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Incest Rishton ka Zehar
#1
नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ राहुल शर्मा। मेरी उम्र 26 साल है और मैं गुलाबी नगरी जयपुर का रहने वाला हूँ। मेरा जीवन अब तक काफी साधारण रहा है, लेकिन हाल ही में कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं कि घर के रिश्तों को देखने का मेरा नज़रिया ही बदल गया।

मेरे परिवार में हम चार लोग हैं—मेरे पापा, मेरी मम्मी, मेरी बड़ी बहन और मैं।

किरदारों की झलक:
शीला (माँ): मेरी माँ की उम्र 45 साल है। वो एक घरेलू महिला (Housewife) हैं। इस उम्र में भी उन्होंने खुद को बहुत अच्छी तरह से मेंटेन कर रखा है। सादगी और ममता उनके व्यक्तित्व की पहचान है, लेकिन उनके चेहरे पर हमेशा एक ऐसी गहराई रहती है जिसे शायद मैं अब तक समझ नहीं पाया था।

तारा (बड़ी बहन): तारा मेरी जुड़वा बहन की तरह ही है (उम्र 26 साल), लेकिन वो मुझसे कुछ समय बड़ी है। तारा दिखने में बहुत ही खूबसूरत और चंचल है। उसकी अभी एक महीने पहले ही सगाई हुई है। सगाई के बाद से उसके व्यवहार में एक अजीब सी तब्दीली आई है—शायद अपनी नई ज़िंदगी को लेकर बढ़ती उत्सुकता या कुछ और।

मैं (राहुल): मैं एक प्राइवेट जॉब करता हूँ। घर में सबसे छोटा होने के नाते सबका लाड़ला हूँ, लेकिन सगाई के बाद से घर के माहौल में जो एक नई 'एनर्जी' आई है, उसने मुझे भी काफी प्रभावित किया है।

कहानी की शुरुआत:

जयपुर की उस हल्की गुलाबी ठंड वाली शाम को जब घर में तारा की शादी की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही थीं, तब मुझे अंदाज़ा भी नहीं था कि रिश्तों की ये डोर किस तरफ मुड़ने वाली है। मम्मी और तारा अक्सर घंटों बैठकर शादी के कपड़ों और गहनों की बातें करतीं, और मैं बस उन्हें दूर से देखता रहता। पर उस दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने हमारे बीच की दूरियों और मर्यादाओं की लकीर को थोड़ा धुंधला कर दिया...
भाग 1: जुनून की शुरुआत
जयपुर की वो रातें अब मेरे लिए सामान्य नहीं रही थीं। 26 साल की उम्र में जब मेरी रातों का सुकून खोने लगा, तो उसकी वजह कोई बाहर वाली नहीं, बल्कि मेरे अपने घर की चारदीवारी थी। इसकी शुरुआत तब हुई जब मैंने पहली बार इंटरनेट की डार्क दुनिया में कदम रखा और 'एडल्ट' फिल्मों के उस जाल में फँस गया जहाँ रिश्तों की मर्यादा का कोई मोल नहीं था।

धीरे-धीरे, उन फिल्मों के दृश्य मेरे दिमाग पर हावी होने लगे। मैं जब भी मम्मी (शीला) को रसोई में काम करते देखता या तारा को सजते-संवरते देखता, तो मेरा दिमाग सामान्य भाई या बेटे की तरह नहीं, बल्कि एक शिकारी की तरह सोचने लगता।

वो पागलपन की हद:

मम्मी जब छत पर कपड़े सुखाने जातीं, तो मेरी नज़रें अनजाने में ही उनके अंतर्वस्त्रों (Lingerie) पर टिक जातीं। एक दिन, जब घर पर कोई नहीं था, मैं दबे पाँव उनके कमरे में दाखिल हुआ। अलमारी की उस खास खुशबू के बीच जब मेरे हाथ मम्मी की सिल्क की साड़ी के नीचे दबी उनकी पैंटी तक पहुँचे, तो मेरे हाथ कांप रहे थे। वो सिर्फ एक कपड़ा नहीं था, वो मेरे लिए उस 'वर्जित फल' की तरह था जिसे चखने के लिए मैं पागल हो रहा था।

मैंने उसे अपने चेहरे के करीब लाया। उस कपड़े में रची-बसी मम्मी के शरीर की भीनी खुशबू ने मेरे दिमाग की नसों में बिजली दौड़ा दी। मेरा हाथ खुद-ब-खुद नीचे गया और मैं वहीं फर्श पर बैठकर अपनी कल्पनाओं की चरम सीमा तक पहुँचने लगा।

तारा की सगाई के बाद, उसकी अलमारी में नए-नए डिज़ाइन के कपड़े आने लगे थे। तारा की पैंटीज़ और उसके इत्र की महक मुझे और भी बेचैन कर देती। एक तरफ उसकी शादी की खुशियाँ थीं और दूसरी तरफ मेरा ये बढ़ता हुआ Rough (जंगली) पागलपन। मैं रातों को जागकर बस यही सोचता कि काश ये पर्दे हट जाएँ और मैं उस सच को देख सकूँ जो इन कपड़ों के पीछे छिपा है।

मेरी प्यास अब सिर्फ देखने से नहीं बुझ रही थी, मुझे अब 'महसूस' करने की लत लग चुकी थी। हर बीतते दिन के साथ, राहुल शर्मा एक संस्कारी बेटे से बदलकर अपनी ही माँ और बहन की परछाईं का दीवाना बनता जा रहा था।
वो मंजर: जब मर्यादा की दीवार धुंधली हुई
मम्मी (शीला) अभी-अभी नहाकर निकली थीं। उनके बदन से पानी की कुछ बूंदें अभी भी टपक रही थीं। उन्होंने काले रंग का पेटीकोट और पीले रंग का ब्लाउज पहना हुआ था। ब्लाउज की बारीक जालीदार बनावट के नीचे से उनकी सफेद रंग की ब्रा की स्ट्रैप साफ झलक रही थी, जो उनके गोरे कंधों पर धंसी हुई थी। गीले बालों की वजह से ब्लाउज पीछे से चिपक गया था, जिससे उनके शरीर की बनावट और भी उभर कर आ रही थी।

वो सीधे अपने कमरे में गईं। मैंने देखा कि उन्होंने कुंडी लगाने की कोशिश की, लेकिन शायद हड़बड़ी में कुंडी पूरी तरह चढ़ी नहीं और दरवाज़ा हल्का सा खुला रह गया। मेरा दिल सीने को चीरकर बाहर आने को बेताब था। मैं दबे पाँव, अपनी सांसें रोककर उस झरोखे के पास पहुँचा।

दरवाजे की दरार से दिखता नज़ारा:

अंदर मम्मी अलमारी के सामने खड़ी थीं। उन्होंने अलमारी के सबसे निचले हिस्से से एक सफेद रंग की पैंटी निकाली। वो काफी पुरानी और किनारों से थोड़ी फटी हुई थी, जिससे उसकी सादगी में भी एक अजीब सी उत्तेजना महसूस हो रही थी। मम्मी ने उस पैंटी को हाथ में लेकर गौर से देखा और फिर एक लंबी आह भरी।

अगले ही पल, उन्होंने अपना काला पेटीकोट धीरे से ऊपर सरकाया। मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। उनकी जांघों की गोलाई और फिर वो हिस्सा... जहाँ बरसों का अनुभव और मातृत्व छिपा था। वहां छोटे-छोटे, करीने से बढ़े हुए बाल थे। उम्र के उस पड़ाव पर उनकी योनि (चूत) में थोड़ी ढीलापन ज़रूर था, लेकिन नहाने के बाद वो अभी भी पूरी तरह गीली और चमकदार लग रही थी।

मैंने देखा कि कैसे वो अपने हाथों से उस अंग को सहला रही थीं। कमरे की उस मद्धम रोशनी में उनका वो रूप किसी तपस्या को भंग करने जैसा था। मेरी हालत ये थी कि मैं दरवाजे को पकड़कर खुद को गिरने से बचा रहा था। मेरे अंदर एक जंगलीपन जाग उठा था। राहुल शर्मा जो अब तक सिर्फ कल्पनाओं में था, आज हकीकत के इतने करीब था कि मम्मी के जिस्म की महक उस दरार से होकर मेरे नथुनों तक पहुँच रही थी।

वो पल ठहर सा गया था। एक तरफ मेरी माँ की गरिमा थी और दूसरी तरफ मेरा वो बढ़ता हुआ 'लस्ट', जो अब किसी भी हद को पार करने के लिए तैयार था।
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#2
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#3
कमरे के अंदर मम्मी ने वो सफेद पुरानी पैंटी पहनी और फिर बड़ी सलीके से अपनी साड़ी के पल्लू को कंधे पर सेट करने लगीं। शीशे के सामने खड़ी होकर जब वो खुद को निहार रही थीं, तो उनकी आँखों में एक अलग सी चमक थी। तैयार होने के बाद वो अपनी उसी चिर-परिचित गरिमा में वापस आ चुकी थीं, लेकिन राहुल के लिए अब वो सिर्फ 'मम्मी' नहीं रह गई थीं; वो उस देह का दर्शन कर चुका था जिसे देखना किसी गुनाह से कम नहीं था।

जैसे ही मम्मी कमरे से बाहर निकलने के लिए मुड़ीं, राहुल बिजली की फुर्ती से पीछे हटा और अपने कमरे में घुस गया। उसके पायजामे के अंदर उसका अंग (लुंड) पत्थर की तरह सख्त हो चुका था और तनाव इतना था कि उसे दर्द महसूस होने लगा। वो बिस्तर पर गिर पड़ा और छत को ताकते हुए गंदी और डार्क कल्पनाओं में खो गया। वो सोच रहा था कि काश वो उस वक्त कमरे के अंदर होता, काश वो उन गीली जांघों को छू पाता।

अभी वो इन खयालों में डूबा ही था कि घर के मुख्य दरवाजे की घंटी बजी।

तारा की एंट्री:

"राहुल! ओ राहुल! ज़रा गेट खोल," बाहर से तारा की खनकती हुई आवाज़ आई।

राहुल ने अपनी उत्तेजना को बमुश्किल काबू किया और उठकर गेट खोला। सामने तारा खड़ी थी, जो अभी-अभी मंदिर से लौटी थी। उसने नीले रंग का फ्लावर प्रिंट वाला सूट और ढीली पटियाला सलवार पहनी हुई थी। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने की वजह से उसके चेहरे पर पसीने की हल्की बूंदें थीं और उसका दुपट्टा कंधे से ढलक कर नीचे गिर गया था।

नीले रंग के उस सूट में तारा का निखार और भी खिल उठा था। पटियाला सलवार की वजह से जब वो चल रही थी, तो उसके शरीर की हरकतें राहुल के दिमाग में धमाके कर रही थीं। सूट की फिटिंग इतनी सही थी कि उसके उभरे हुए अंग राहुल की आँखों को अपनी ओर खींच रहे थे।

"क्या हुआ? ऐसे क्या देख रहा है जैसे पहली बार देख रहा हो?" तारा ने शरारत से मुस्कुराते हुए पूछा और अपना हाथ राहुल के कंधे पर रख दिया।

राहुल को उस वक्त मंदिर के प्रसाद की खुशबू नहीं, बल्कि तारा के शरीर से आने वाली उस ताज़ी महक ने पागल कर दिया। एक तरफ मम्मी की साड़ी का पल्लू याद आ रहा था और दूसरी तरफ सामने खड़ी सगी बहन का ये मदहोश कर देने वाला रूप। राहुल को समझ आ गया था कि आज की रात उसके लिए बहुत भारी होने वाली है।
घर के भीतर की उमस और राहुल के मन की वासना अब एक खतरनाक मोड़ ले चुकी थी। रसोई से उठती मसालों की खुशबू और मम्मी की चूड़ियों की खनक राहुल को सामान्य नहीं कर पा रही थी। तभी तारा के फोन की रिंगटोन बजी—उसके मंगेतर का कॉल था।

तारा ने मुस्कुराते हुए फोन उठाया और प्राइवेसी के लिए सीढ़ियों से होती हुई छत पर बने अपने कमरे की ओर भागी। राहुल, जिसके खून में पहले ही उबाल था, दबे पाँव बिल्ली की तरह उसके पीछे हो लिया।

छत का कमरा और वर्जित नज़ारा
तारा का कमरा आधा खुला था। राहुल ने दीवार की ओट ली और अपनी एक आँख दरवाजे की झिरी पर टिका दी। अंदर का नज़ारा देख उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। तारा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसका नीला पटियाला सूट अस्त-व्यस्त था। सामने मोबाइल स्टैंड पर लगा था और स्क्रीन पर उसका होने वाला पति नग्न अवस्था में अपना सख्त अंग (लुंड) कैमरे के सामने हिला रहा था।

तारा की आँखों में शर्म भी थी और एक अजीब सी भूख भी। उसका मंगेतर फोन पर कुछ गंदी बातें कह रहा था, जिसे सुनकर तारा का चेहरा लाल पड़ रहा था।

"दिखाओ न तारा... बस थोड़ा सा," फोन से उसके मंगेतर की भारी आवाज़ आई।

तारा ने शर्माते हुए अपनी पटियाला सलवार का नाड़ा धीरे से ढीला किया। राहुल की सांसें रुक गईं। उसने देखा कि कैसे तारा ने अपनी सलवार को थोड़ा नीचे सरकाया, जिससे उसकी सफेद जांघों का ऊपरी हिस्सा और उस पर चढ़ी वही सफेद पैंटी की पट्टी दिखने लगी। राहुल ने अपनी पैंट के ऊपर से ही अपने अंग को ज़ोर से भींचा।
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#4
तारा स्क्रीन पर अपने मंगेतर को देखकर धीरे-धीरे अपनी उँगलियाँ अपनी कमीज के ऊपर से ही अपने सीने पर फेरने लगी। वो अपने मंगेतर के अंग को स्क्रीन पर बढ़ता देख अपनी जुबान से होंठों को चाट रही थी। राहुल ने गौर किया कि तारा की सांसें तेज हो रही थीं और उसका बदन उत्तेजना से कांप रहा था।

बाहर खड़ा राहुल यह सब देख रहा था—उसकी अपनी बहन, जिसका रिश्ता तय हो चुका था, आज अपने होने वाले पति के सामने अपनी मर्यादा की परतें खोल रही थी। राहुल का दिमाग सुन्न था, पर उसका शरीर पूरी तरह से जंगली (Rough) होने के लिए तैयार था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अंदर जाकर तारा को रंगे हाथ पकड़े या वहीं खड़े होकर अपनी इस प्यास को और बढ़ाए।
राहुल के लिए वो पल किसी सपने जैसा था, लेकिन ये सपना बहुत गहरा और मदहोश कर देने वाला था। दरवाजे की दरार से जो वो देख रहा था, उसने उसके जिस्म के रोम-रोम में आग लगा दी थी।

कमरे का मंजर: तारा की मदहोशी
अंदर बिस्तर पर लेटी तारा अब पूरी तरह से अपने मंगेतर की बातों के जादू में थी। फोन की स्क्रीन पर उस मर्द का नग्न बदन देख तारा का संयम टूट गया। उसने कांपते हाथों से अपने नीले कुर्ते के नीचे के किनारे को पकड़ा और उसे धीरे-धीरे ऊपर उठाना शुरू किया। राहुल की नजरें उसकी दूध जैसी सफेद कमर और नाभि पर टिक गई। जैसे ही कुर्ता ऊपर सरका, तारा ने उसे अपने सिर से निकालकर एक तरफ फेंक दिया। अब वो सिर्फ अपनी सफेद ब्रा और पटियाला सलवार में थी। उसके उभरे हुए अंग ब्रा की कैद से बाहर निकलने को बेताब दिख रहे थे।

तारा ने अपनी सलवार का नाड़ा पूरी तरह खोल दिया। भारी पटियाला सलवार उसके पैरों से फिसलकर नीचे गिर गई। अब तारा के जिस्म पर सिर्फ उसकी सफेद पैंटी और ब्रा बची थी। राहुल ने देखा कि तारा की पैंटी के बीच का हिस्सा हल्का गीला हो चुका था, जो उसकी उत्तेजना की गवाही दे रहा था।

तारा ने अपनी आँखें बंद कीं और अपनी बीच वाली उंगली को पैंटी के कपड़े के ऊपर से ही अपनी चूत की दरार पर रगड़ना शुरू किया। उसके मुंह से सिसकारियां निकलने लगीं—"अह्ह्ह... जान... बहुत गर्मी हो रही है।"

तारा ने धीरे से अपनी उंगली पैंटी के अंदर डाली। राहुल का दिल धक-धक कर रहा था। वो देख सकता था कि कैसे तारा की उंगली अंदर-बाहर हो रही थी, जिससे गीलेपन की हल्की 'चप-चप' की आवाज़ कमरे के सन्नाटे को चीर रही थी। तारा का चेहरा आनंद से भरा हुआ था, वो फिंगरिंग (fingering) करते हुए खुद को पूरी तरह सौंप चुकी थी।

राहुल का पागलपन
बाहर खड़ा राहुल अब खुद को रोक नहीं पाया। उसने अपनी पैंट की चेन खोली और अपना सख्त, गर्म लुंड बाहर निकाल लिया। उसका अंग तनाव से काला पड़ चुका था और उसकी नसें उभर आई थीं। राहुल ने उसे अपनी मुट्ठी में मजबूती से जकड़ा।

जैसे-जैसे अंदर तारा की उंगलियों की रफ़्तार बढ़ रही थी, बाहर राहुल की मुट्ठी का घर्षण भी तेज होता जा रहा था। वो तारा की हर सिसकारी पर अपने हाथ को ऊपर-नीचे (Stroke) कर रहा था। उसके दिमाग में गंदे विचार आ रहे थे—"आज तारा अपने मंगेतर के लिए ये कर रही है, पर देख मैं रहा हूँ।"

राहुल ने अपने हाथ को इतनी तेजी से चलाया कि उसका पूरा बदन पसीने से भीग गया। अंदर तारा अपनी चरम सीमा (Climax) के करीब थी, उसकी उंगलियाँ अब और गहराई तक जा रही थीं, और बाहर राहुल का अंग भी फटने को तैयार था। वो अपनी बहन की नग्नता और उसकी कामुक आवाज़ों के नशे में पूरी तरह डूबा हुआ था।
राहुल के कानों में तारा के मंगेतर की आवाज़ किसी पिघले हुए लोहे की तरह उतर रही थी। फोन के स्पीकर से आती वो गंदी और नग्न गालियाँ राहुल के अंदर के दरिंदे को और ज्यादा उकसा रही थीं।

हवस का चरम: गालियाँ और सिहरन
कमरे के अंदर तारा पूरी तरह से अपनी उंगलियों के खेल में डूबी हुई थी, तभी उसके मंगेतर की भारी और हवस भरी आवाज़ गूँजी, "देख क्या रही है रण्डी? अपनी उंगलियों को और अंदर डाल! आज तुझे तड़पते हुए देखना चाहता हूँ।"
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#5
तारा ने शर्माते हुए अपनी आँखें मूंद लीं, लेकिन उसका हाथ रुकने के बजाय और तेज़ हो गया।

मंगेतर रुकने का नाम नहीं ले रहा था, उसने और गंदा होना शुरू किया, "तेरी ये चूत देख रहा हूँ न... जब शादी होकर यहाँ आएगी, तो तुझे बिस्तर से उठने नहीं दूँगा बेंचोद। अभी तो तू उंगली कर रही है, जब मैं अपनी जुबान से तेरी इस गीली दरार को चाटूँगा, तो तू पागल हो जाएगी। बता न, कैसा लग रहा है जब मैं तुझे मादरचोद बुला रहा हूँ?"

तारा की सिसकारियां अब चीखों में बदल रही थीं। उसे ये गालियाँ और उसका मंगेतर का वो नंगापन एक अलग ही नशा दे रहा था। उसने अपनी सफेद पैंटी को पूरी तरह उतारकर अपनी टांगों से बाहर फेंक दिया और अब वो कैमरे के सामने पूरी तरह निर्वस्त्र होकर अपनी गीली और लाल होती चूत को रगड़ रही थी।

"हाँ... हाँ जान... और गाली दो... मुझे और गंदा बोलो," तारा बेकाबू होकर बेड की चादर को अपने दांतों से दबाते हुए फुसफुसा रही थी।

बाहर राहुल का पागलपन
बाहर खड़ा राहुल अपनी बहन के मुँह से ऐसे शब्द और मंगेतर की वो Rough गालियाँ सुनकर सुन्न पड़ गया था। उसका लुंड अब उसकी मुट्ठी में फटने को तैयार था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी मासूम दिखने वाली बहन अंदर एक 'रण्डी' की तरह व्यवहार कर रही है।

राहुल ने अपनी मुट्ठी की रफ़्तार इतनी बढ़ा दी कि उसे अपने अंग की चमड़ी रगड़ खाने का अहसास भी नहीं हो रहा था। वो कल्पना कर रहा था कि वो मंगेतर नहीं, बल्कि वो खुद है जो तारा को ये गालियाँ दे रहा है। उसके दिमाग में मम्मी और तारा के जिस्म की मिली-जुली गंदी तस्वीरें घूम रही थीं।

मंगेतर फिर चिल्लाया, "अपनी टांगें और फैला... और अपनी इस चूत का पानी मुझे स्क्रीन पर दिखा! तू मेरी अपनी रण्डी है तारा!"

जैसे ही तारा ने एक ज़ोरदार सिसकारी भरी और उसका शरीर ढीला पड़ा, बाहर राहुल का भी बांध टूट गया। उसने अपने दांत भींच लिए और उसका गर्म लावा उसकी मुट्ठी और फर्श पर बिखर गया। वो वहीं दीवार के सहारे टिक कर लंबी-लंबी सांसें लेने लगा, जबकि अंदर तारा अभी भी उस गंदी बातचीत के खुमार में डूबी हुई थी।
राहुल और तारा दोनों ही अपनी-अपनी वासना के शिखर को छू चुके थे। कमरे के बाहर राहुल का शरीर पसीने से तर-बतर था और उसका वीर्य फर्श पर सफेद धब्बों की तरह चमक रहा था, जबकि अंदर तारा हवस की आग में पूरी तरह जलकर अब शांत हो रही थी।

चरम सीमा और वह गंदा खेल
तारा बिस्तर पर अपनी टांगें पूरी तरह फैलाकर निढाल लेटी हुई थी। उसकी नग्न और गीली चूत से काम-रस की सफेद धार बहकर उसकी जांघों पर फैल रही थी। उसने अपना फोन अपनी जांघों के बीच ले जाकर उस दरार पर फोकस किया।

तारा हाँफते हुए बोली, "देख रहे हो न जानू... तुम्हारी इस रण्डी ने अपनी क्या हालत कर ली है? देखो कितना पानी निकल रहा है।"

उसका मंगेतर स्क्रीन पर उसे पागलों की तरह देख रहा था और चिल्लाया, "जी चाहता है स्क्रीन फाड़कर अंदर घुस जाऊँ और तेरा ये सारा सफेद पानी अपनी जुबान से चाट लूँ। तू सच में एक नंबर की मादरचोद माल है तारा, तेरा ये गीलापन देखकर मेरा फिर से खड़ा हो रहा है।"
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#6
तारा अपनी उंगली से उस रस को उठाकर अपने होंठों से चाटने लगी और बोली, "आ जाओ न... पी लो इसे। ये सिर्फ तुम्हारे लिए है। मैं तुम्हारी वो बेंचोद औरत हूँ जो तुम्हारे लंड के एक इशारे पर अपनी मर्यादा भूल जाती है।" दोनों के बीच गालियों और गंदी बातों का दौर अपनी सारी हदें पार कर चुका था।

मम्मी की आवाज़ और अफरा-तफरी
तभी अचानक नीचे से मम्मी की ऊँची आवाज़ गूँजी— "तारा! राहुल! कहाँ मर गए दोनों? जल्दी नीचे आओ, खाना लग गया है!"

मम्मी की आवाज़ सुनते ही जैसे बिजली गिर गई हो। राहुल का दिल गले तक आ गया। उसने जल्दी से अपना अंग अंदर किया और पागलों की तरह पसीना पोंछकर नीचे की ओर भागा। अंदर तारा के भी होश उड़ गए। वो हड़बड़ाहट में बिस्तर से उठी।

उसने जल्दी-जल्दी अपनी सफेद ब्रा पहनी, फिर बिना बदन पोंछे ही अपना नीला सूट ऊपर से डाल लिया। पसीने और काम-रस की वजह से सूट उसके बदन पर चिपक रहा था। उसने जल्दी से अपनी पटियाला सलवार चढ़ाई और नाड़ा कस लिया। लेकिन उस जल्दबाज़ी और घबराहट में उससे एक बहुत बड़ी चूक हो गई।

उसकी वो सफेद पैंटी, जो पूरी तरह से उसके काम-रस (पानी) से भीग चुकी थी और जिससे एक तीखी और उत्तेजक गंध आ रही थी, वो बिस्तर के एक कोने में चादरों के बीच दबी रह गई। तारा को इसका अंदाज़ा भी नहीं था कि वो अपना सबसे निजी और गंदा सबूत वहीं छोड़कर नीचे जा रही है।

तारा सीढ़ियों से नीचे उतरी, उसका चेहरा अभी भी लाल था और उसकी आँखों में हवस की चमक बाकी थी। नीचे राहुल और मम्मी उसकी राह देख रहे थे। राहुल की नज़र सीधे तारा के चेहरे पर गई, वो जानता था कि इस वक्त उस नीले सूट के नीचे तारा ने अपनी पैंटी भी नहीं पहनी है।
राहुल ने नीचे पहुँचकर देखा कि मम्मी साड़ी उतार चुकी थीं और अब एक ढीली-ढाली गुलाबी नाइटी में थीं। नाइटी के पतले कपड़े से उनकी सफेद ब्रा की छाप साफ़ दिख रही थी। राहुल का दिमाग पहले ही ऊपर का नज़ारा देख कर फटा जा रहा था, और अब मम्मी का ये रिलैक्स्ड रूप उसके लिए किसी टॉर्चर से कम नहीं था।

भाग 3: डाइनिंग टेबल का तनाव और वो गंदा सबूत
मम्मी ने मेज पर रोटियाँ रखीं और हम तीनों खाने बैठ गए। राहुल की बगल में ही तारा बैठी थी। तारा की पटियाला सलवार से अभी भी उसके शरीर की वह तीखी और मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी। राहुल जानता था कि इस वक्त तारा के सूट के नीचे उसकी जांघों के बीच कोई कपड़ा नहीं है, वो पूरी तरह से नीचे से नग्न (No panty) बैठी है।

मम्मी ने अचानक तारा की तरफ देखा और टोका, "तारा, तेरा चेहरा इतना लाल क्यों है? और ये पसीना... ऊपर पंखा नहीं चल रहा था क्या?"

तारा हड़बड़ा गई, "वो... वो मम्मी मंगेतर का फोन था, थोड़ी बहस हो गई तो बस गर्मी लग रही है।" राहुल ने अपनी थाली में सिर झुका लिया, उसे पता था कि वो 'बहस' नहीं, बल्कि 'बेंचोद और रण्डी' वाली गंदी बातें थीं।

सफ़ेद पैंटी का लालच:

जैसे ही खाना खत्म हुआ, राहुल का दिमाग ऊपर बिस्तर पर छूटी उस गीली सफ़ेद पैंटी की तरफ भागने लगा। उसने बहाना बनाया, "मम्मी, मैं ऊपर छत पर टहलने जा रहा हूँ, गर्मी लग रही है।"

राहुल दबे पाँव वापस ऊपर तारा के कमरे में घुसा। कमरे में अभी भी वही हवस भरी गंध मौजूद थी। उसने झपटकर बिस्तर की चादर हटाई। वहाँ वह पैंटी पड़ी थी—सफ़ेद, पुरानी और बीच से पूरी तरह से तारा के चूत के पानी (काम-रस) से भीगी हुई।

राहुल ने उस पैंटी को उठाया। वो अभी भी तारा के शरीर की गर्मी से गुनगुनी थी। उसने उसे अपने चेहरे पर चिपका लिया। उस पर तारा के चिपचिपे पानी की सड़न और इत्र की मिली-जुली ऐसी गंदी महक थी कि राहुल का अंग फिर से पत्थर की तरह खड़ा हो गया। उसने उस पैंटी के गीले हिस्से को अपनी जुबान से चाटा। उसे लग रहा था जैसे वो अपनी सगी बहन की चूत को ही चख रहा हो।

तभी नीचे से मम्मी की फिर आवाज़ आई, "राहुल! ज़रा स्टोर रूम से सिलाई वाली मशीन निकाल देना, मुझे अपनी नाइटी की सिलाई ठीक करनी है।"

राहुल ने जल्दी से वो गीली पैंटी अपनी जेब में ठूंस ली और नीचे भागा। स्टोर रूम में अंधेरा था। मम्मी वहाँ पहले से खड़ी अपनी नाइटी को ऊपर सरकाकर अपनी जांघ देख रही थीं जहाँ से सिलाई उधड़ी थी।
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#7
स्टोर रूम का वो अंधेरा कोना अब हवस और वर्जित रिश्तों की नई इबारत लिखने के लिए तैयार था। राहुल के जेब में उसकी सगी बहन की गीली और चिपचिपी पैंटी दबी हुई थी, जिसकी तीखी गंध उसके दिमाग के हर तंतु को झकझोर रही थी।

स्टोर रूम का खेल: अंधेरा और उत्तेजना
मम्मी (शीला) स्टोर रूम के एक कोने में खड़ी थीं। उन्होंने अपनी गुलाबी नाइटी को काफी ऊपर तक सरका लिया था ताकि अपनी जांघ के पास से उधड़ी हुई सिलाई को देख सकें। उनकी गोरी और भारी जांघें उस मद्धम रोशनी में चमक रही थीं।

"राहुल, देख न... यहाँ से सिलाई निकल गई है, ज़रा मशीन पर टांका लगा दे," मम्मी ने झुकते हुए कहा। उनके झुकने से नाइटी का गला आगे की ओर लटका और राहुल को उनकी सफेद ब्रा के अंदर कैद उनके भारी अंगों का गहरा नज़ारा (Cleavage) दिखने लगा।

राहुल का हाथ कांप रहा था। वो मम्मी के बिल्कुल करीब गया। उसकी जेब में रखी तारा की पैंटी की गंध और सामने मम्मी के जिस्म की गर्मी—राहुल पूरी तरह से पागल हो चुका था। उसने सिलाई ठीक करने के बहाने मम्मी की जांघ को छुआ।

"मम्मी, यहाँ से?" राहुल की आवाज़ भारी हो गई थी।

"हाँ... वहीं से," मम्मी ने सिसकते हुए कहा। उन्हें शायद राहुल के स्पर्श में कुछ अलग महसूस हुआ, लेकिन उन्होंने विरोध नहीं किया। राहुल की उंगलियाँ मम्मी की रेशमी त्वचा पर रेंगने लगीं। उसे महसूस हुआ कि मम्मी की सांसें भी अब तेज़ हो रही हैं।

तारा की एंट्री और पकड़ा गया सबूत
तभी अचानक स्टोर रूम के दरवाजे पर आहट हुई। तारा वहां खड़ी थी। वो ऊपर अपनी पैंटी न पाकर बुरी तरह घबराई हुई थी और उसे शक था कि राहुल ने कुछ किया है।

"राहुल! तू यहाँ क्या कर रहा है?" तारा ने तीखी आवाज़ में पूछा।

मम्मी हड़बड़ाकर अपनी नाइटी नीचे करने लगीं, "वो... मेरी सिलाई ठीक कर रहा था।"

तारा की नज़र राहुल की पैंट की जेब पर गई। जेब से उस सफेद पैंटी का एक कोना बाहर लटक रहा था। तारा का चेहरा सफेद पड़ गया। वो जान गई कि उसका सबसे गंदा और गीला राज उसके भाई की जेब में है। उसने देखा कि राहुल की पैंट के सामने का हिस्सा (लुंड) बुरी तरह उभरा हुआ है।

तारा ने एक गहरी और हवस भरी नज़र राहुल की आँखों में डाली। उसे अब डर नहीं, बल्कि एक अजीब सा रोमांच महसूस हो रहा था। उसे समझ आ गया कि राहुल ने उसे ऊपर छत पर 'उस हालत' में देख लिया था।

तारा आगे बढ़ी और मम्मी के सामने ही राहुल के बिल्कुल करीब आकर खड़ी हो गई। उसकी चूत से अभी भी उसका पानी रिस रहा था जो उसकी पटियाला सलवार को अंदर से गीला कर रहा था।

"मम्मी, राहुल शायद थक गया है। आप जाइए, मैं इसकी मदद कर देती हूँ," तारा ने राहुल की आँखों में देखते हुए कहा और अपना हाथ धीरे से राहुल की उस जेब पर रखा जहाँ उसकी गीली पैंटी छिपी थी।

मम्मी बाहर चली गईं। अब स्टोर रूम में राहुल और उसकी वो 'बेंचोद' बहन तारा अकेले थे।

तारा ने राहुल का कॉलर पकड़ा और उसके कान में फुसफुसाते हुए गंदी गाली दी, "तो तूने देख लिया न अपनी बहन को उस रण्डी वाली हालत में? अब निकाल मेरी वो गीली पैंटी अपनी जेब से और दिखा मुझे कि तूने उसे कितनी बार चाटा है, मादरचोद!"

स्टोर रूम के उस घुप्प अंधेरे में जब तारा ने राहुल का कॉलर पकड़कर वो गंदी बात कही, तो राहुल का कलेजा मुँह को आ गया। उसे लगा कि अब पकड़ा गया और अब घर में तमाशा होगा। उसका शरीर पसीने से भीग गया और वह हकलाने लगा।

"त... तारा... वो... मैं... मुझे माफ कर दे," राहुल की सिट्टी-पिट्टी गुम थी। उसे लगा कि तारा अब चिल्लाएगी या मम्मी को बुला लेगी।

तारा का बदलता रूप और राहुल की घबराहट
लेकिन अगले ही पल नज़ारा बदल गया। तारा के चेहरे पर गुस्सा नहीं, बल्कि एक शिकारी और कामुक मुस्कान आ गई। उसने राहुल के कांपते हुए चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया और अपनी आँखों में हवस भरकर उसे देखने लगी।

"ओह मेरा छोटा भाई... इतना डर क्यों रहा है?" तारा ने बहुत ही प्यार से, लेकिन ज़हरीली आवाज़ में कहा। उसने अपनी उंगलियाँ राहुल के होंठों पर फेरीं। "तू अभी छोटा है राहुल... तुझे क्या लगा कि तेरी बड़ी बहन को पता नहीं चलेगा कि तू पीछे-पीछे छत पर आया था?"

राहुल की सांसें ऊपर-नीचे हो रही थीं। तारा और करीब आई, उसकी पटियाला सलवार की वो गंदी और मदहोश कर देने वाली महक राहुल के नथुनों में सीधे वार कर रही थी।
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#8
वो गंदा सवाल: "कब से चाट रहा है?"
तारा ने अपना हाथ राहुल की जेब की ओर बढ़ाया और धीरे से वो सफ़ेद, गीली और गंदी पैंटी बाहर निकाल ली। उसने उस पैंटी को अपनी उंगली पर लपेटा और राहुल की नाक के पास ले गई।

"बता न रे मादरचोद... कब से मेरी इस चूत के पानी को चाट रहा है?" तारा ने उसके कान को अपने दांतों से हल्का सा काटते हुए पूछा। "जब मैं ऊपर अपने मंगेतर को अपना पानी दिखा रही थी, तब तू बाहर खड़ा होकर मुठ मार रहा था न? बोल!"

राहुल की आँखें फटी रह गईं। तारा उसे 'बेटा' कहकर सहला भी रही थी और साथ ही साथ उसे दुनिया की सबसे गंदी गालियाँ भी दे रही थी।

"तारा... वो... तेरी पैंटी की खुशबू... बहुत नशीली थी," राहुल ने दबी आवाज़ में कबूल किया।

तारा खिलखिलाकर हँसी, एक ऐसी हँसी जिसमें सिर्फ हवस थी। उसने राहुल का हाथ पकड़कर सीधा अपनी पटियाला सलवार के ऊपर, अपनी जांघों के बीच रख दिया। राहुल को महसूस हुआ कि तारा अंदर से पूरी तरह नग्न (No panty) है और उसका पानी सलवार के कपड़े को भी गीला कर चुका है।

"सिर्फ कपड़ा चाटकर क्या होगा राहुल? जब असली माल यहाँ बह रहा है," तारा ने उसे उकसाते हुए कहा। "बता, क्या तुझे मम्मी की भी पैंटी ऐसे ही पसंद है? क्या तू हम दोनों माँ-बेटियों को एक साथ अपनी रातों के खेल में सोचता है?"

राहुल अब पूरी तरह से तारा के वश में था। स्टोर रूम का वो कोना अब गुनाहों के एक ऐसे दलदल में बदल चुका था जहाँ से वापसी का कोई रास्ता नहीं था
स्टोर रूम की उस घुटन भरी गर्मी में राहुल का हाथ तारा की गीली सलवार पर जमा हुआ था। तारा ने राहुल की आँखों में आँखें डालीं और उसकी हवस भरी मुस्कान और भी गहरी हो गई। उसने राहुल के गाल को सहलाया, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को दुलारती है, पर उसके शब्द आग लगा देने वाले थे।

तारा का ऑफर: "मुझे लंड चाहिए और तुझे चूत"
तारा ने राहुल के गले में अपनी बाहें डाल दीं और बिल्कुल सटकर खड़ी हो गई। राहुल को उसके उभरे हुए अंगों का दबाव अपने सीने पर महसूस हो रहा था।

तारा फुसफुसाते हुए बोली, "यार राहुल, अब सच सुन... मेरी शादी में अभी वक्त है और वो मंगेतर साला सिर्फ फोन पर बेंचोद-रण्डी बोलकर मेरा पानी निकाल देता है। पर अब मुझसे और कंट्रोल नहीं होता। मेरा बदन प्यासा है और तुझे तो पता ही है कि मुझे क्या चाहिए।"

उसने राहुल के उभार (लुंड) को अपनी मुट्ठी में ज़ोर से भींचा, जिससे राहुल के मुँह से एक कराह निकल गई।

"तुझे मेरी चूत चाहिए न? तू तड़प रहा है न इसे चखने के लिए? और सच कहूँ तो मुझे भी एक असली लंड चाहिए जो मुझे बेड पर पटककर मेरी चीखें निकाल दे। बता, क्या तू अपनी बड़ी बहन की ये प्यास बुझाएगा?"

राहुल की धड़कनें रुक सी गईं। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी सगी बहन उसके सामने अपनी हवस का सौदा कर रही है।

तारा ने अपनी गंदी बातों का सिलसिला जारी रखा, "देख राहुल, ड़र मत। मैं किसी को कुछ नहीं बोलूंगी। ये हमारे बीच का गंदा राज़ होगा। तू मेरा भाई भी रहेगा और मेरा सांड भी। जब मन करेगा, तू मेरी इस सफ़ेद चूत को फाड़ देना और मैं तेरा वो गर्म पानी पी जाऊंगी। बोल मंजूर है?"

स्टोर रूम में शुरू हुआ असली खेल
राहुल ने बिना कुछ बोले अपनी बहन को कमर से पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। उसका जवाब उसकी आँखों की वहशी चमक में था। तारा ने एक गंदी गाली दी, "चल तो फिर, देर किस बात की मादरचोद? शुरू हो जा।"
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#9
तारा ने अपनी पटियाला सलवार का नाड़ा एक झटके में खींच दिया। भारी सलवार सर्र से नीचे गिर गई। स्टोर रूम की हल्की रोशनी में तारा की सफ़ेद, सुडौल टांगें और उसके बीच का वो गीला जंगल राहुल के सामने था। तारा ने अपनी टांगें थोड़ी और फैला दीं, जिससे उसकी चूत की दरार साफ दिखने लगी, जो अभी-अभी निकले रस से लथपथ थी।

"चाट इसे... अपनी इस रण्डी बहन को पागलों की तरह चाट!" तारा ने आदेश दिया।

राहुल घुटनों के बल बैठ गया। उसने तारा की जांघों को मजबूती से पकड़ा और अपना चेहरा उसकी चूत की गहराई में घुसा दिया। जैसे ही उसकी जुबान ने उस गर्म और नमकीन रस को छुआ, तारा ने अपना सिर पीछे झुका लिया और स्टोर रूम की दीवार को पकड़कर सिसकने लगी।

"अह्ह्ह... हाँ राहुल... ऐसे ही... अपनी जुबान अंदर तक डाल दे... चूस ले अपनी बहन का सारा पानी!"

बाहर मम्मी के चलने की आवाज़ आ रही थी, लेकिन अंदर भाई-बहन मर्यादा की सारी हदों को आग लगा चुके थे।
स्टोर रूम के उस अंधेरे कोने में अब न तो कोई मर्यादा बची थी और न ही कोई शर्म। राहुल के लिए तारा अब उसकी बहन नहीं, बल्कि मांस का एक ऐसा टुकड़ा थी जिसे वो कच्चा चबा जाना चाहता था। तारा की जांघों के बीच अपना चेहरा गड़ाए राहुल किसी भूखे भेड़िए की तरह उसकी योनि (चूत) पर टूट पड़ा।

हवस का नंगा नाच: चूत का स्वाद और गालियाँ
जैसे ही राहुल की गर्म और खुरदरी जुबान तारा की उस गीली और उभरी हुई दरार से टकराई, तारा का पूरा बदन बिजली के झटके की तरह कांप उठा। उसने राहुल के बालों को अपनी मुट्ठी में कसकर जकड़ लिया और उसका चेहरा अपनी जांघों के बीच और ज़ोर से भींच दिया।

"अह्ह्ह... उफ्फ्फ... राहुल... हाँ! चाट इसे मादरचोद! अपनी इस रण्डी बहन का सारा पानी पी जा!" तारा के मुँह से सिसकारियों के साथ ऐसी गंदी गालियाँ निकल रही थीं जो राहुल के खून की रफ़्तार को और बढ़ा रही थीं।

राहुल अपनी जुबान को एक सांप की तरह तारा की चूत के अंदर डाल रहा था। वो उस हिस्से (clitoris) को अपने दांतों के बीच हल्का सा दबाकर चूसने लगा, जिससे तारा की चीखें स्टोर रूम की दीवारों से टकराकर वापस आने लगीं। "ओह गॉड... राहुल... तू तो उस्ताद निकला... तेरी ये जुबान... अऊउउ... ये तो उस मंगेतर के लंड से भी ज्यादा ज़हरीली है!"

एक-एक इंच का मज़ा
राहुल ने अपनी जुबान को चूत के ऊपरी हिस्से से लेकर नीचे गुदा (anus) के छेद तक फिराया। तारा का पानी लगातार बहकर राहुल के मुँह और ठुड्डी पर लग रहा था। तारा अब बेकाबू हो चुकी थी, उसने अपनी पटियाला सलवार को पूरी तरह लात मार कर दूर फेंक दिया और अपनी एक टांग स्टोर रूम की एक पुरानी मेज पर रख दी ताकि राहुल को और गहराई मिल सके।

"और गहरा... और गहरा डाल अपनी जुबान! आज अपनी बहन को हवस से पागल कर दे बेंचोद! तुझे पता है न कि तेरी इस बहन की चूत कितनी प्यासी थी? आज इसे सुखा दे!" तारा पागलों की तरह अपनी कमर हिला रही थी, जिससे राहुल के मुँह पर मांस के टकराने की 'चप-चप' की आवाज़ गूँज रही थी।

राहुल ने अपनी उँगलियाँ भी अंदर डाल दीं। जैसे-जैसे उसकी उँगलियाँ अंदर-बाहर हो रही थीं और जुबान उस गीलेपन को चाट रही थी, तारा का बदन धनुष की तरह तन गया। वह गंदी-गंदी बातें बोलती जा रही थी, "हाँ भाई... ऐसे ही... आज माँ को भी भूल जा और बस अपनी इस रण्डी तारा में खो जा... देख कितना रस निकल रहा है... ये सब तेरा है... पी ले इसे!"

राहुल का अपना अंग (लुंड) पैंट के अंदर फटने को तैयार था। उसे अपनी बहन की उस कामुक गंध और स्वाद ने ऐसा नशा दिया कि उसे अब दुनिया में कुछ और दिखाई नहीं दे रहा था।

राहुल ने जब देखा कि तारा उसकी जुबान के वार से पूरी तरह निढाल हो चुकी है और उसकी चूत से काम-रस का सैलाब बह रहा है, तो उसने अपनी जांघों के बीच का तनाव और बर्दाश्त नहीं किया। उसने एक झटके में अपनी पैंट का बटन खोला और अपना काला, सख्त और नसों से भरा हुआ लंड बाहर निकाल लिया।

जैसे ही उसका अंग बाहर आया, स्टोर रूम की हल्की रोशनी में वह किसी लोहे की रॉड की तरह चमक रहा था। तारा की नज़रें जैसे ही उस भारी अंग पर पड़ीं, उसकी आँखें फटी की फटी रह गई।

तारा का मुँह और राहुल का प्रहार
तारा अभी भी हाफ रही थी, उसकी चूत का पानी उसकी जांघों पर सूख रहा था। राहुल ने उसके बालों को मुट्ठी में भरा और उसे घुटनों के बल नीचे बैठने का इशारा किया। तारा, जो अब पूरी तरह राहुल की दासी बन चुकी थी, बिना एक शब्द कहे फर्श पर घुटनों के बल बैठ गई।

"ले... बहुत गालियाँ दे रही थी न? अब इसे अपनी उस गंदी ज़बान से साफ़ कर," राहुल ने आदेश दिया।

तारा ने अपनी लालसा भरी नज़रें ऊपर उठाईं और राहुल के उस भारी लंड को अपने दोनों हाथों में थाम लिया। उसने अपने गुलाबी होंठों को पूरा खोला और राहुल के अंग के ऊपरी हिस्से (Supaari) को अपनी ज़बान से सहलाना शुरू किया।

"अह्ह्ह... राहुल... ये तो बहुत बड़ा है... इसे अंदर लूंगी तो मर ही जाऊंगी मादरचोद," तारा ने लंड को चूमते हुए गंदी आवाज़ में कहा।

अगले ही पल, राहुल ने सबर छोड़ दिया। उसने तारा के सिर को पीछे से पकड़ा और अपना पूरा लंड उसके मुँह में ठूंस दिया। तारा का मुँह पूरी तरह भर गया, उसकी आँखें बाहर आने को हो गईं और गले से 'गक-गक' की आवाज़ निकलने लगी। राहुल उसे कोई मौका नहीं देना चाहता था। वह तेज़ी से अपने कूल्हे चलाने लगा, उसका लंड तारा के हलक (throat) की गहराइयों को छू रहा था।

गंदा खेल और गंदी बातें
तारा का दम घुट रहा था, लेकिन वह हवस के उस मज़े में डूबी हुई थी। उसकी आँखों से पानी निकल रहा था जो राहुल के लंड पर गिर रहा था। राहुल उसे और गंदी गालियाँ देने लगा, "चूस इसे रण्डी! चूस अपनी सगे भाई का ये गरम सरिया! तुझे मंगेतर का लंड चाहिए था न? देख मेरा लंड उससे कितना बड़ा और मोटा है।"

तारा ने मुँह से लंड बाहर निकाला और ललचाई हुई नज़रों से उसे देख कर बोली, "हाँ भाई... तेरा लंड तो जान ले लेगा मेरी... मुझे अपनी बेंचोद बना ले... आज इस स्टोर रूम में अपनी इस बहन का मुँह भर दे अपने गरम दूध से!"
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#10
तारा ने फिर से पूरा लंड अपने मुँह में लिया और पागलों की तरह उसे चूसने लगी, जैसे वो कोई आइसक्रीम हो। राहुल के हाथ तारा के चेहरे पर कसते जा रहे थे। स्टोर रूम का कोना अब पूरी तरह से हवस की सड़ांध और कामुक आवाज़ों से भर गया था।

स्टोर रूम की उस घुटन भरी गर्मी में राहुल का सख्त अंग अब तारा के वश में था। तारा, जो अब पूरी तरह से एक प्यासी हवस की मूरत बन चुकी थी, अपने सगे भाई के लुंड को किसी कीमती खजाने की तरह निहार रही थी। उसने अपने दोनों हाथों से उस भारी और गरम अंग को मजबूती से जकड़ा।

तारा का वहशीपन: चूसना और हिलाना
तारा ने अपनी नज़रों को राहुल की आँखों में गाड़ दिया और अपने एक हाथ से लुंड की जड़ से लेकर ऊपर तक तेज़ी से रगड़ना (Stroke) शुरू किया। उसकी मुट्ठी की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि राहुल के मुँह से सिसकारी निकल गई।

"देख राहुल... कैसा लग रहा है जब तेरी सगी बहन तेरे इस काले मोटे लंड को अपनी मुट्ठी में भींच रही है?" तारा ने गंदी मुस्कान के साथ पूछा।

फिर उसने अपना मुँह पूरा खोला और लुंड की टोपी (सुपारी) को अपनी गरम जुबान से लपेट लिया। वो उसे किसी लॉलीपॉप की तरह चारों तरफ से चाटने लगी। राहुल के शरीर में करंट दौड़ गया। तारा की थूक (Lube) की वजह से उसका हाथ अब और भी तेज़ी से ऊपर-नीचे फिसलने लगा, जिससे एक गीली और गंदी 'चप-चप' की आवाज़ पूरे स्टोर रूम में गूँजने लगी।

तारा अब पागलपन की हद तक पहुँच गई थी। उसने लुंड को पूरा अपने मुँह के अंदर खींच लिया। उसका गाल पिचक गया और लुंड उसके हलक की गहराई तक जा पहुँचा। वह अपनी गर्दन को तेज़ी से आगे-पीछे कर रही थी, और साथ ही साथ अपने दूसरे हाथ से राहुल के अंडों (Balls) को सहला रही थी।

"गक... गक... गक..." तारा के गले से ये आवाज़ें राहुल को पागल कर रही थीं।

उसने बीच में मुँह बाहर निकाला और लंड पर अपनी थूक की धार गिराते हुए बोली, "चूस लूंगी तेरा सारा दम आज मादरचोद! देख तेरी ये बेंचोद बहन कैसे तेरे लंड की गुलामी कर रही है। आज तुझे मम्मी के पास जाने लायक नहीं छोड़ूँगी।"

उसने फिर से लुंड को मुँह में भरा और अब उसकी रफ़्तार पहले से कहीं ज़्यादा 'Rough' हो गई थी। वह हिला भी रही थी और चूस भी रही थी। राहुल का बदन पसीने से नहा गया था, उसके पैर कांपने लगे थे। तारा की मखमली जुबान और उसकी मुट्ठी का घर्षण उसे उस मुकाम पर ले आया था जहाँ से वापसी मुमकिन नहीं थी।

तारा की आँखें ऊपर की ओर चढ़ रही थीं और वो पूरी ताक़त से राहुल के अंग को अपने मुँह में खींच रही थी, जैसे वो उसका सारा वजूद ही पी जाना चाहती हो।
स्टोर रूम की उस मद्धम रोशनी में राहुल का धीरज अब पूरी तरह जवाब दे चुका था। उसने तारा के सिर को अपने मुँह से अलग किया और उसे झटके से खड़ा करके दीवार के सहारे सटा दिया।

वो वहशी मंजर: हवस का तांडव
तारा दीवार से चिपकी खड़ी थी, उसकी सांसें इतनी तेज़ थीं कि उसका सीना धौंकनी की तरह ऊपर-नीचे हो रहा था। उसके बाल बिखर कर उसके गोरे चेहरे और कंधों पर आ गिरे थे। उसकी आँखों में अब शर्म का नामो-निशान नहीं था, सिर्फ एक गहरी, काली और आदिम भूख थी। नीले फ्लावर प्रिंट वाले उस गीले सूट में तारा किसी घायल शेरनी की तरह लग रही थी, जो अपने भाई के अगले वार का इंतज़ार कर रही थी।

राहुल ने अपनी वहशी नज़रों से उसे ऊपर से नीचे तक देखा। उसकी नज़रें तारा के उन उभरे हुए अंगों पर टिक गईं जो सूट के पतले कपड़े को फाड़कर बाहर निकलने को बेताब थे।

राहुल के अंदर का जानवर जाग चुका था। उसने बिना कोई पल गँवाए अपने दोनों हाथों से तारा के उभरे हुए सीने (Boobs) को सूट के ऊपर से ही अपनी मज़बूत पकड़ में दबोच लिया। तारा के मुँह से एक दर्द भरी लेकिन मदहोश सिसकारी निकली—"आह्ह्ह... राहुल... धीरे..."

पर राहुल अब 'धीरे' होने के मूड में नहीं था। उसने अपनी मुट्ठियाँ भींची और पूरी ताक़त से सूट के गले को पकड़कर नीचे की ओर एक जोरदार झटका दिया। "चरररर्र..." की आवाज़ के साथ तारा का वो सुंदर नीला सूट दो हिस्सों में बीच से फट गया।

तारा के बदन पर अब सिर्फ उसकी वो सफ़ेद ब्रा बची थी, जो उसके भारी अंगों के बोझ से तनी हुई थी। सूट के फटे हुए चिथड़े उसके कंधों से लटक रहे थे। राहुल के सामने उसकी सगी बहन अब लगभग आधी नग्न खड़ी थी। फटे हुए कपड़ों के बीच से उसकी गोरी कमर, उसकी गहरी नाभि और ब्रा के ऊपर से छलकते उसके मांसल अंग राहुल की आँखों में खून उतार लाए।

तारा ने अपनी आँखों को आधा मूंद लिया और दीवार पर अपने हाथ फैला दिए। "फाड़ दे राहुल... आज सब कुछ फाड़ दे... अपनी इस बेंचोद बहन का एक भी कपड़ा सलामत मत छोड़!"

राहुल ने देखा कि ब्रा के फीते तारा के गोरे कंधों में धँस रहे थे। उसने अपनी उँगलियाँ ब्रा के बीच वाले हुक पर टिका दीं।
स्टोर रूम की उस घुटन भरी हवा में अब सिर्फ हवस और फटे हुए कपड़ों की गंध बची थी। राहुल की आँखों में वहशीपन सवार था और तारा दीवार से चिपकी, अपनी तबाही का इंतज़ार कर रही थी।

मर्यादा का अंत: ब्रा का टूटना और नग्नता
राहुल ने अपनी उंगलियां तारा की सफेद ब्रा के बीच वाले हुक पर फंसाईं। तारा की सांसें इतनी गर्म थीं कि राहुल के हाथों को जला रही थीं। राहुल ने अपनी आँखों में आँखें डालकर एक झटके में हुक को खींचा—"तड़क"—हुक टूट गया और ब्रा के कप (cups) तारा के गोरे और भारी अंगों को आजाद करते हुए नीचे लटक गए।

जैसे ही वे अंग बाहर आए, राहुल की सांसें थम गईं। वे उम्मीद से कहीं ज़्यादा भारी और गुलाबी टिप वाले थे। राहुल ने एक पल भी बर्बाद नहीं किया और अपने दोनों हाथों में उन गर्म गोलों को भर लिया। उसने उन्हें इतनी बेरहमी से भींचा कि तारा के मुँह से सिसकारी निकल गई, "अह्ह्ह... राहुल... मादरचोद... जान निकाल देगा क्या?"

राहुल ने अपना मुँह आगे बढ़ाया और एक अंग को पूरा अपने मुँह में भर लिया। वो उसे किसी जंगली जानवर की तरह चूसने और काटने लगा। तारा का बदन धनुष की तरह तन गया।

दीवार के सहारे पिछला हमला (Rough Doggy Style)
तारा की उत्तेजना अब उस मुकाम पर थी जहाँ उसे सिर्फ और सिर्फ अपना शरीर छिलवाना था। उसने राहुल के चेहरे को अपने सीने से हटाया और खुद ही दीवार की तरफ घूम गई। उसने अपनी कमर झुकाई और अपने दोनों हाथ दीवार पर टिका दिए।

तारा ने अपनी फटी हुई सलवार को पूरी तरह लात मारकर दूर फेंका। अब वो राहुल के सामने पूरी तरह नग्न पीठ किए खड़ी थी। राहुल के सामने उसकी सुडौल कमर और उसके नीचे वो भारी गोलाई (Bums) थी जो बिना पैंटी के पूरी तरह नग्न और चमकदार लग रही थी।

तारा ने अपनी गर्दन पीछे मोड़ी और अपनी जुबान से होंठों को चाटते हुए गंदी आवाज़ में कहा, "देख क्या रहा है बेंचोद? अब देख अपनी बहन की ये नंगी पीठ और ये सफेद गुफा... फाड़ दे इसे आज! अपनी इस रण्डी को आज चलना भुला दे!"

राहुल ने अपनी पैंट पूरी तरह उतार दी। उसका सख्त और काला लंड सीधा खड़ा होकर तारा की जांघों के बीच की दरार से टकराने लगा। उसने तारा की कमर को अपनी मज़बूत पकड़ में लिया और अपनी मुट्ठियाँ उसकी त्वचा में गड़ा दीं।
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#11
राहुल ने अपने लंड की गर्म सुपारी को तारा की गीली चूत के मुहाने पर टिकाया। वहां से रिसता हुआ तारा का काम-रस राहुल के लंड को फिसलन दे रहा था। राहुल ने अपने दाँत भींचे और एक ज़ोरदार धक्का लगाया—"पच्च..." की आवाज़ आई और आधा लंड उस तंग और अनछुई गहराई के अंदर समा गया।

"अह्ह्ह्ह्ह्ह... माँअअअअअ!" तारा की एक दर्द भरी चीख स्टोर रूम के सन्नाटे को चीर गई। उसकी आँखों से आंसू निकल आए, लेकिन उसकी कमर राहुल के प्रहार को झेलने के लिए पीछे की ओर और ज़ोर से दबी।

राहुल ने उसे संभलने का मौका नहीं दिया। उसने अपने हाथों से तारा के बाल पकड़े और उसके सिर को पीछे खींचते हुए पागलों की तरह धक्के (Strokes) मारना शुरू कर दिया। "थप-थप-थप" की गंदी आवाज़ें उस गंदे स्टोर रूम में गूँजने लगीं।
राहुल ने जब देखा कि तारा दीवार के सहारे उसके आधे प्रहार से ही कांप उठी है, तो उसका वहशीपन और बढ़ गया। उसने तारा के बालों को अपनी मुट्ठी में लपेटा और उसे झटके से खींचकर स्टोर रूम के ठंडे फर्श पर ले आया।

फर्श पर वहशीपन: घोड़ी और सील पैक गाँड
"नीचे झुक रण्डी... घुटनों के बल हो!" राहुल ने गरजते हुए कहा।

तारा, जिसका बदन हवस और दर्द के मिले-जुले नशे में चूर था, तुरंत फर्श पर अपने हाथों और घुटनों के बल टिक गई। राहुल ने उसके पीछे झुककर उसकी कमर को नीचे दबाया और उसके नितम्बों (Bums) को ऊपर की ओर उठा दिया। अब तारा उसके सामने एक 'घोड़ी' की शक्ल में थी।

राहुल की नज़रें जैसे ही तारा के पिछले हिस्से पर पड़ीं, उसकी सांसें रुक गईं। तारा की जांघों के बीच उसकी चूत तो गीली थी ही, लेकिन उसके ठीक नीचे उसकी गाँड का छेद किसी बंद कली की तरह था। उस हिस्से की त्वचा शरीर के बाकी रंग से थोड़ी काली (Dusky) थी, जो उस सफेद बदन पर और भी ज्यादा उत्तेजक लग रही थी। वह हिस्सा पूरी तरह से सील पैक था, जिसे देखकर साफ पता चल रहा था कि आज तक वहां किसी ने दस्तक नहीं दी थी।

राहुल ने अपनी उंगली उस काले और तंग छेद पर रखी और उसे हल्का सा सहलाया। तारा का पूरा शरीर सिहर उठा और उसने अपनी गर्दन पीछे मोड़कर राहुल को देखा।

गंदा संवाद और हवस का इकरार
राहुल ने गंदी मुस्कान के साथ कहा, "देख रही है अपनी ये हालत? तेरी ये गाँड... ये तो एकदम सील पैक है। थोड़ी काली है पर इतनी टाइट है कि मेरा अंग इसमें जाते ही फंस जाएगा। तू तो कहती थी कि तू बड़ी हो गई है, पर यहाँ से तो तू अभी भी एकदम बच्ची है बेंचोद!"

तारा ने ललचाई आवाज़ में जवाब दिया, "हाँ भाई... यहाँ आज तक किसी ने हाथ भी नहीं लगाया। ये सिर्फ तेरे लिए बचा कर रखी थी। बहुत तंग है न? तो अपनी इस बहन की सील तोड़ दे आज। इसे भी वैसा ही काला कर दे जैसा तेरा लंड है।"

राहुल ने अपनी थूक (Spit) अपनी हथेली पर ली और उसे तारा के उस तंग और काले छेद पर मलना शुरू किया। तारा दर्द और मज़े के अहसास से अपनी कमर हिलाने लगी।

"बहुत टाइट है तारा... आज जब इसमें मेरा ये गरम सरिया जाएगा, तो तेरी चीखें मम्मी के कमरे तक जाएँगी," राहुल ने उसके नितम्बों पर एक ज़ोरदार चांटा (Slap) मारा, जिससे वहां उसकी उंगलियों के लाल निशान छप गए।

तारा ने अपनी आँखें मींच लीं और फर्श को अपने नाखूनों से खुरचने लगी। "मार भाई... और मार! आज अपनी इस मादरचोद बहन का एक-एक अंग अपनी हवस से नीला कर दे। डाल दे अपना ये लंड मेरी इस सील पैक गाँड में!"
स्टोर रूम का कोना अब एक बूचड़खाने जैसा लग रहा था जहाँ हवस और जिस्म की महक घुली हुई थी। राहुल ने जब तारा की उस काली और सील पैक गाँड को देखा, तो उसके अंदर का शैतान पूरी तरह बेकाबू हो गया।

गाँड का स्वाद और वहशीपन
राहुल ने अपनी जुबान बाहर निकाली और तारा की उन भारी जांघों के बीच अपनी नाक घुसा दी। उसने तारा के उस काले और तंग छेद पर अपनी जुबान का सिरा टिकाया। तारा के मुँह से एक चीख निकल गई, "अह्ह्ह... राहुल... वहाँ नहीं... वो गंदा है... ऊऊउउ!"

लेकिन राहुल कहाँ रुकने वाला था? उसने अपनी जुबान से उस तंग दरार को पागलों की तरह चाटना और चूसना शुरू किया। तारा की गाँड के मांस को उसने अपने दांतों से हल्का काटा। तारा फर्श पर अपने हाथ पटकने लगी, उसकी सिसकारियाँ अब किसी जानवर की आवाज़ जैसी लग रही थीं। "अह्ह्ह... भाई... तू तो पागल हो गया है... क्या स्वाद मिल रहा है तुझे उस काली जगह में? बेंचोद... मार ही डालेगा आज!"

चूत में प्रहार: घोड़ी बनी बहन की तबाही
गाँड चाटने के बाद राहुल ने अपनी मुट्ठियाँ तारा के कूल्हों पर जमा दीं और उसे और नीचे झुकने को कहा। तारा का पिछला हिस्सा अब हवा में पूरी तरह उठा हुआ था। राहुल ने अपना सख्त और काला लंड अपनी मुट्ठी में पकड़ा और उसे तारा की उस गीली और लाल हो चुकी चूत के मुहाने पर सेट किया।

राहुल ने अपने दांत भींचे और पूरी ताक़त से एक ही झटके में अंदर धँस गया—"चपाक्क्क्!"
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#12
तारा की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसके गले से एक ऐसी आवाज़ निकली जैसे उसकी जान निकल रही हो। "आह्ह्ह्ह्ह्ह! निकल इसे! बाहर निकाल मादरचोद! फट गई मैं... राहुल... मर जाऊंगी!"

तारा का बदन फर्श पर आगे की ओर खिसक गया, लेकिन राहुल ने उसे कमर से पकड़कर वापस खींचा और लगातार धक्के मारने शुरू किए। थप-थप-थप-थप!

"चुप रह रण्डी! अभी तो खेल शुरू हुआ है," राहुल ने उसके कान में दहाड़ते हुए कहा और उसकी पीठ पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ा।

तारा की सिसकारियाँ अब दर्द और बेइंतहा मज़े के बीच झूल रही थीं। राहुल का लंड उसकी चूत की गहराई में एक-एक इंच को रोंद रहा था। "ओह्ह्ह... राहुल... तू तो... अऊउउ... मादरचोद... कितनी ज़ोर से मार रहा है! मेरी सील तोड़ दी तूने... अह्ह्ह... हाँ... ऐसे ही... फाड़ दे अपनी इस बहन को!"

राहुल की रफ़्तार अब Full Rough हो चुकी थी। तारा के बाल फर्श पर बिखरे थे और उसकी सिसकारियाँ "बाहर निकाल" से बदलकर "और डाल" में बदल गई थीं। स्टोर रूम की दीवारों ने आज एक सगे भाई को अपनी बहन की अस्मत के साथ खेलते हुए देखा था।
स्टोर रूम के बाहर गलियारे में मम्मी की चप्पलों की 'चट-चट' की आवाज़ जैसे ही तारा के कानों में पड़ी, उसके जिस्म में डर की एक लहर दौड़ गई। उसकी सिसकारियाँ अचानक रुक गईं और उसने घबराकर राहुल की तरफ गर्दन मोड़ी।

"राहुल! रुक... रुक... मम्मी की आहट है! वो इधर ही आ रही हैं, जल्दी कर... वरना आज हम दोनों की लाशें गिरेंगी यहाँ!" तारा ने फुसफुसाते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में डर के साथ-साथ पकड़े जाने का एक अजीब सा रोमांच भी था।

पागलपन की रफ़्तार और आखिरी प्रहार
मम्मी की आवाज़ पास आ रही थी—"राहुल, मिला क्या सिलाई का डिब्बा? कितनी देर लगा रहा है बेटा?"

राहुल का दिमाग सुन्न हो गया, लेकिन उसका शरीर अब रुकने के लिए तैयार नहीं था। मम्मी की आवाज़ सुनकर उसके अंदर का वहशीपन और भी बढ़ गया। उसने तारा की कमर को लोहे की तरह जकड़ा और जंगली सांड (Rough) की तरह धक्के मारने की रफ़्तार बढ़ा दी।

थप-थप-थप-थप-थप!

हर प्रहार के साथ तारा का बदन फर्श पर आगे-पीछे हो रहा था। "जल्दी... राहुल... अह्ह्ह... निकाल... मेरा पानी निकल गया... जल्दी कर मादरचोद, वो आ जाएँगी!" तारा बेकाबू होकर कह रही थी।

राहुल का अंग अब फटने के करीब था। उसकी नसों में खून नहीं, बल्कि लावा दौड़ रहा था। उसने आखिरी के दस-बारह धक्के इतनी ताक़त से मारे कि तारा का मुँह खुला का खुला रह गया। जैसे ही राहुल को महसूस हुआ कि उसका बांध टूटने वाला है, उसने एक झटके में अपना लंड तारा की चूत से बाहर निकाला।

गंदा अंत: तारा का मुँह और वीर्य का सैलाब
"मुँह खोल रण्डी! जल्दी!" राहुल ने हाँफते हुए आदेश दिया।

तारा ने बिना पलक झपकाए अपना मुँह पूरा खोल दिया और राहुल के उस तपते हुए अंग को अपनी जुबान पर ले लिया। अगले ही पल, राहुल का शरीर जोर-जोर से झटके खाने लगा और उसके लंड से सफ़ेद, गाढ़ा और गर्म वीर्य (दूध) फव्वारे की तरह निकलकर तारा के मुँह में जा गिरा।

तारा की आँखें फटी रह गईं क्योंकि राहुल का माल इतनी मात्रा में था कि उसके मुँह से बाहर निकलकर उसकी ठुड्डी और फटी हुई ब्रा पर गिरने लगा। राहुल ने अपनी मुट्ठी से लंड को दबा-दबाकर आखिरी कतरा भी तारा के हलक में उतार दिया।

तारा ने उस सारे गंदे रस को गटकने की कोशिश की और राहुल की आँखों में देखते हुए एक गंदी मुस्कान दी। अभी राहुल ने अपनी पैंट ऊपर की ही थी कि स्टोर रूम के दरवाजे पर दस्तक हुई।

"राहुल! क्या हुआ? दरवाजा क्यों अटका रखा है?" बाहर मम्मी खड़ी थीं।

अंदर तारा फर्श पर अपनी फटी हुई सलवार और ब्रा के टुकड़ों के बीच नग्न पड़ी थी, और राहुल की कमीज पसीने से भीगी हुई थी।
स्टोर रूम के अंदर का मंजर किसी युद्ध के मैदान जैसा था, जहाँ मर्यादा की लाश बिछी हुई थी। जैसे ही मम्मी के कदमों की आवाज़ दरवाजे के बिल्कुल पास आई, राहुल और तारा के बीच मौत जैसी खामोशी छा गई।

सबूतों का मिटना और तारा का छिपना
तारा ने बिजली की फुर्ती दिखाई। उसने जमीन पर बिखरे अपने नीले फटे हुए सूट, टूटी हुई सफेद ब्रा और अपनी वो गीली पटियाला सलवार को एक झटके में समेटा। फर्श पर राहुल का जो सफेद पानी (वीर्य) गिरा था, उसे उसने अपनी फटी हुई कमीज से रगड़कर साफ किया।

नग्न अवस्था में ही वो दबे पाँव स्टोर रूम के अंधेरे कोने में रखे पानी की टंकी के पीछे दुबक गई। उसकी सांसें अभी भी तेज थीं और उसका बदन राहुल के प्रहारों की वजह से थरथरा रहा था। वह टंकी के पीछे से अपनी आँखें गड़ाकर देखने लगी कि अब राहुल इस स्थिति को कैसे संभालेगा।

मम्मी की एंट्री और राहुल की घबराहट
राहुल ने जल्दी से अपनी पैंट की चेन चढ़ाई, अपनी शर्ट के बटन बंद किए और पसीना पोंछकर दरवाजा खोला। सामने मम्मी खड़ी थीं, उनके चेहरे पर गुस्से और झुंझलाहट के भाव साफ थे।

"कितनी देर लगा दी राहुल? एक सिलाई मशीन निकालने को बोला था, उसमें पूरा घंटा लगा दिया!" मम्मी ने अंदर कदम रखते हुए कहा। स्टोर रूम की हवा में अभी भी उस गंदे खेल की तीखी महक और हवस की उमस मौजूद थी।
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#13
राहुल का गला सूख गया, वो हकबकाते हुए बोला, "वो... मम्मी... मशीन भारी थी और कोने में दबी थी... बस वही निकाल रहा था।"

मम्मी ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई, उनकी पारखी नज़रें कुछ तलाश रही थीं। "और तेरी बहन तारा कहाँ है? वो भी तो मशीन की सिलाई ठीक करवाने में मदद करने की बात कर रही थी।"

राहुल का दिल सीने को चीरकर बाहर आने को था, "वो... वो तो... वो तो तभी चली गई थी जब आपने आवाज़ दी थी। शायद ऊपर अपने कमरे में गई होगी।"

मम्मी का शक और मशीन का ले जाना
मम्मी ने एक गहरी सांस ली और मशीन के पास पहुँचीं। "बड़ी अजीब महक है यहाँ... तूने कुछ गिराया है क्या?" उन्होंने अपनी गुलाबी नाइटी को हल्का सा ऊपर उठाते हुए मशीन को पकड़ा।

टंकी के पीछे छिपी तारा ने देखा कि मम्मी की नाइटी के नीचे से उनकी गोरी पिंडलियाँ चमक रही थीं। राहुल की नज़रें भी वहीं टिक गईं। उसे याद आया कि अभी कुछ मिनट पहले वो अपनी बहन की चूत का रस पी रहा था और अब उसकी माँ उसके सामने उसी अंदाज़ में खड़ी थी।

"चलो, ये मशीन उठा और मेरे कमरे में चल। मुझे अपनी नाइटी ठीक करनी है, यहाँ गर्मी बहुत है," मम्मी ने हुक्म दिया और मशीन लेकर बाहर की तरफ मुड़ गईं।

जैसे ही मम्मी बाहर निकलीं, राहुल ने पीछे मुड़कर टंकी की तरफ देखा। वहां से तारा ने अपना मुँह बाहर निकाला, उसके होंठों पर अभी भी राहुल के वीर्य का हल्का सा निशान था। उसने राहुल को आँख मारी और अपनी उंगली से 'मम्मी के कमरे' की तरफ इशारा किया, जैसे वो कह रही हो कि "अब अगली बारी उनकी है।"
मम्मी के स्टोर रूम से बाहर निकलते ही सन्नाटा छा गया। तारा धीरे से टंकी के पीछे से बाहर निकली। वो पूरी तरह नग्न थी, एक हाथ में अपना फटा हुआ नीला सूट और दूसरे हाथ में वो टूटी हुई सफेद ब्रा थामे हुए। उसका गोरा बदन पसीने से चमक रहा था और जांघों पर अभी भी राहुल के साथ किए हुए गंदे खेल के निशान बाकी थे।

तारा दबे पाँव राहुल के पास आई और उसके कान के पास अपना मुँह ले जाकर शरारत से बोली, "क्यों भाई... बड़ा मज़ा आया न अपनी बहन की सील तोड़ने में? अब बता, मम्मी के पीछे-पीछे रूम में जा रहा है... क्या अब मम्मी को भी चोदेगा क्या?"

राहुल ने तारा की नंगी कमर पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए बोला, "तू तो बड़ी तेज़ निकली रे... लेकिन मम्मी की बात ही अलग है।"

तारा ने अपना फटा हुआ सूट दिखाते हुए गुस्से से कहा, "अरे मादरचोद, तूने तो मेरा पूरा सूट बीच से फाड़ दिया, अब मैं इस हालत में बाहर कैसे निकलूँ? अगर मम्मी ने देख लिया कि मैं बिना कपड़ों के यहाँ घूम रही हूँ, तो दोनों धर लिए जाएंगे।"

राहुल ने दबे पाँव दरवाजे से बाहर झांका और तारा की तरफ पलट कर बोला, "मम्मी अपने रूम में मशीन लेकर गई हैं और वो वहां काम में लग गई हैं। ये सही मौका है, तू बिना आवाज़ किए सीधा ऊपर अपने कमरे में भाग जा। मैं थोड़ी देर में वहां आता हूँ, फिर तेरा ये फटा हुआ सूट भी ठिकाने लगाना है।"

तारा ने एक बार फिर राहुल का लंड पकड़ कर हल्का सा दबाया और बोली, "ठीक है, मैं ऊपर जा रही हूँ... लेकिन याद रखना, अभी तो तूने सिर्फ मेरी चूत का स्वाद चखा है, वो काली गाँड अभी भी तेरा इंतज़ार कर रही है।"

तारा बिना कोई कपड़ा पहने, नग्न ही दबे पाँव स्टोर रूम से बाहर निकली और सीधा सीढ़ियों की तरफ लपकी, जबकि राहुल अपनी शर्ट ठीक करता हुआ मम्मी के कमरे की तरफ बढ़ गया, जहाँ मम्मी अपनी गुलाबी नाइटी की सिलाई ठीक करने का इंतज़ार कर रही थीं।
स्टोर रूम का वह गंदा खेल खत्म होने के बाद, तारा ऊपर अपने कमरे में पहुँच कर सीधे बाथरूम में घुसी। गरम पानी से नहाते हुए भी उसे राहुल के लंड का स्पर्श और अपनी चूत में हुई वह चीरफाड़ याद आ रही थी। शरीर पर अभी भी राहुल के हाथों के लाल निशान और दाँतों के हल्के निशान थे, जो उसे एक अजीब सा दर्द भरा सुख दे रहे थे।

नए रूप में तारा: अतीत की यादें और छत पर इंतज़ार
नहाने के बाद, तारा ने अपनी अलमारी खोली। आज उसे कुछ अलग पहनने का मन हुआ। उसने अपनी सबसे खूबसूरत सफेद सलवार और उसके ऊपर एक गुलाबी टॉप निकाला। सलवार इतनी पतली थी कि उसके अंदर से उसकी टांगों की बनावट साफ दिख रही थी।

कपड़े पहनते हुए उसे एक अजीब सी खुशी महसूस हुई। उसे अपने कॉलेज के दिनों का एक्स-बॉयफ्रेंड (Ex-boyfriend) याद आ गया, जो उसे अक्सर ऐसे ही छेड़ता था और छत पर ले जाकर ज़बरदस्ती चोदता था। तारा के मन में आया कि काश राहुल भी उसे ऐसे ही जंगली तरीके से प्यार करे।

वह अपने कमरे से निकलकर छत पर आ गई। ठंडी हवा उसके खुले बालों से गुज़र रही थी। छत पर लगे गमलों के पास खड़ी, वह खुली हवा में गहरी सांस ले रही थी, उसके होंठों पर एक शैतानी मुस्कान थी। उसे लग रहा था जैसे आज वह किसी बड़ी जंग को जीतकर आई हो, और इस जीत का नशा उसके रग-रग में दौड़ रहा था।

राहुल का वहशी स्पर्श: छत पर हवस का नया खेल
अभी तारा छत पर अपनी हँसी में खोई हुई थी कि अचानक उसके पीछे से दो मज़बूत हाथ आए और उसकी सफेद सलवार के ऊपर से ही उसके कूल्हों (Hips) को कसकर दबोच लिया। राहुल ने अपने शरीर को तारा की पीठ से सटा दिया, जिससे तारा को उसके लंड का कड़ा उभार अपनी कमर पर महसूस हुआ।

तारा चौंक उठी, लेकिन उसकी आवाज़ में डर नहीं, बल्कि एक अजीब सी उत्तेजना थी। "राहुल! क्या कर रहे हो?" उसने गर्दन मोड़ी और उसकी आँखों में हवस की वही आग दिखी जो राहुल ने अभी कुछ देर पहले ही स्टोर रूम में जगाई थी।

राहुल ने अपनी जुबान तारा के कान पर फेरी और फुसफुसाते हुए बोला, "क्या करूं दीदी... अभी तो आपकी चूत का स्वाद मेरे मुँह से गया भी नहीं है। और ऊपर से आपकी ये पतली सलवार और ये फूले हुए कूल्हे... मुझे तो पागल कर रहे हैं।"

उसने अपनी उंगलियों को तारा की सलवार के अंदर डालने की कोशिश की, जहाँ से उसकी चूत की गीली गर्माहट महसूस हो रही थी। तारा ने एक गहरी सांस ली। छत पर, खुले आसमान के नीचे, अब एक और गंदा खेल शुरू होने वाला था।
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