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Gay/Lesb - LGBT क्या यही प्यार है
#1
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एपिसोड 1
संजय से पहली मुलाकात

लखनऊ की चकाचौंध भरी सड़कों पर सुबह की धूप की किरणें किसी पुरानी यादों की तरह बिखरी हुई थीं। जुलाई का महीना था, हवा में सुबह की हल्की ठंडक घुली हुई थी।

एक पीली रंग की पुरानी एंबेसडर टैक्सी सड़क पर सरसराती हुई आगे बढ़ रही थी, उसके अंदर से हल्का-सा रेडियो का शोर बाहर की दुनिया से कटकर एक अलग ही माहौल रच रहा था। 

FM पर बज रहा था वो गाना—'रॉकी' फिल्म का वो मशहूर नंबर, जो प्यार की मिठास और उदासी को एक साथ बुनता था।

*जैसे फूलों के मौसम में ये दिल खिलते हैं...  
प्रेमी ऐसे ही क्या पतझड़ में भी मिलते हैं?  
रुत बदले, दुनिया बदले, प्यार बदलता नहीं...*

टैक्सी के पीछे की सीट पर बैठा था रोहन—बस 19 साल का, आंखों में कॉलेज की चमक और दिल में घर छोड़ने का हल्का-सा डर। 

उसके बगल में था उसका बड़ा भाई मोहन, 29 साल का, मोहन का चेहरा थोड़ा थका-सा था, लेकिन रोहन के लिए वो हमेशा वो हीरो था—जो बड़े भाई की तरह हर मुश्किल को हंसकर टाल देता। 

आज वो रोहन को इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन करवाने ले जा रहा था। 

रोहन के लिए ये सफर नई जिंदगी की शुरुआत था। घर से दूर, दोस्तों से अलग, और शायद... किसी अनजान प्यार की तलाश में।

*ओ-ओ, दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं, वक्त गुजरता नहीं...  
क्या यही प्यार है? हाँ, यही प्यार है...*

Fm पर गाना बज रहा था।

रोहन खिड़की से बाहर झांक रहा था। सड़क पर लगे होर्डिंग्स, चाय की टपरी पर बैठे लोग, और दूर कतार में खड़ी हुईं पुरानी हवेलियां—सब कुछ वैसा ही था, लेकिन आज सब कुछ नया सा लग रहा था। 

गाने की धुन उसके कानों में घुल रही थी, जैसे कोई पुरानी डायरी के पन्ने पलट रही हो। 

"भाई," रोहन ने अचानक कहा, मोहन की ओर मुड़ते हुए, "ये गाना सुनकर लगता है ना, प्यार तो बस फिल्मों में ही होता है। रियल लाइफ में तो बस पढ़ाई, नौकरी, और फैमिली प्रेशर।"

मोहन हंसा, ड्राइवर को इशारा करते हुए कि स्पीड कम करे।

"अरे यार, तू अभी तो कॉलेज जा रहा है। वहां जाकर देख, कितने रोमांटिक स्टोरी बनेंगी तेरी। बस, एग्जाम में फेल मत होना, वरना मैं आकर तेरे लव लेटर्स ही फाड़ दूंगा।" उसकी हंसी में वो भाईचारा था, जो सालों की जुदाई भी न मिटा सके।

टैक्सी एक मोड़ पर मुड़ी, और कॉलेज का गेट नजर आने लगा।

गाना अभी भी बज रहा था—
*ओ, दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं... क्या यही प्यार है...*।

रोहन ने सोचा, शायद ये कहानी इसी गाने से शुरू हो रही है। कौन जाने, पतझड़ में भी कोई फूल खिल जाए। या फिर, ये दिल का खिलना ही असली प्यार हो।

ये कहानी यहीं से शुरू होती है—एक टैक्सी की सीट से, एक भाई के कंधे से, और एक गाने की धुन से...

टैक्सी कॉलेज के गेट पर रुकी, और मोहन भाई ने मेरी पीठ थपथपाई—जैसे कोई योद्धा को जंग के मैदान में विदा कर रहा हो। ये है तेरा कॉलेज रोहन। ये ही तेरा घर है अगले 4 साल तक। मैने सिर हिलाया, लेकिन दिल में वो हल्की-सी घबराहट थी, जो नई जगह की खुशबू के साथ आती है। 

कॉलेज का कैंपस विशाल था—हरी-भरी लॉन, पुरानी ईंटों की इमारतें, और हवा में घुली हुई वो जवान उमंग, जो हर नए लड़के को ललकारती है।

एडमिशन ऑफिस में कागजों का ढेर, चाय की प्यालियां, और सीनियर्स की भीड़। भाई के साथ होने से सब आसान हो गया। फॉर्म भरवाए, फीस जमा की, और हॉस्टल का रूम अलॉट हो गया—दूसरी मंजिल पर, दो बेड वाला, खिड़की से लॉन का नजारा। 

लेकिन जैसे ही हम कैंपस में घूमने लगे, मुझे लगा कि नजरें मुझ पर टिक रही हैं। सीनियर लड़के—कुछ लंबे-चौड़े, कुछ मस्कुलर, कुछ शरारती मुस्कान वाले—मुझे गौर से घूर रहे थे। उनके इशारे भद्दे थे, जैसे कोई भूखा शेर शिकार को आंक रहा हो। एक ने तो जीभ निकालकर होंठ चाटे, दूसरे ने अपनी कलाई पर हाथ फेरा—साफ इशारा कि मेरी गांड को वो भांप चुके थे।

मैं गोरा-चिट्टा हूं, चेहरा नरम, बॉडी स्लिम—और स्वभाव से शर्मीला। ये सब मिलकर किसी मादक जहर की तरह काम करता है उन लौड़ों के लिए, जो गांड मारने के शौकीन होते हैं। मेरी गांड गोल-मोटी, नरम, जैसे किसी ने रोटी की तरह गूंथी हो—और वो झट से समझ जाते कि ये लंड के लिए बनी हुई है, चुदाई के लिए रेडी।

भाई के साथ होने से किसी ने हिम्मत न की। लेकिन एडमिशन काउंटर पर थोड़ी देर के लिए मोहन भाई फोन पर व्यस्त हो गए। 

बस, उतने का मौका। एक सीनियर—लंबा, दाढ़ी वाला, टी-शर्ट के नीचे मसल्स उभरे हुए—पास आया। उसकी आंखें मेरी गांड पर टिकीं, जैसे कोई मीठा फल नाप रहा हो। फिर अचानक हाथ बढ़ाया और मेरे गालों पर फेरा—नरम, चिकने गालों पर, जैसे कोई बच्चे को सहला रहा हो, लेकिन नजरों में वो भूख साफ थी। "अरे वाह, कितने चिकने गाल हैं तेरे... नया है क्या बाबू? किस ट्रेड में एडमिशन ले रहा है?"

मैं झिझक गया, गाल लाल हो गए। दिल धक-धक कर रहा था, लेकिन आवाज में हिम्मत जुटाई। "स-सिविल में।"

वो हंसा—गहरी, गंदी हंसी, जैसे कोई राज खोल रहा हो। "अच्छा? सिविल में? तब तो तेरी गांड की मौज हो जाएगी, यार। सीनियर्स ऐसे लौड़े हैं कि नया माल आते ही चख लेते हैं। रैगिंग के बहाने लंड घुसेड़ देंगे, और तू तो लगता है तैयार ही है।" उसके शब्दों में वो कुरूप सच्चाई थी, जो कॉलेज की दीवारों में सांस लेती है। 

मैंने कुछ सुना था रैगिंग के बारे में—नंगे करवाना, थप्पड़ मारना, लेकिन ये... ये तो कुछ और था। गांड मारने की वो छिपी भूख, जो सीनियर्स के लंडों में उफान मारती है। मैंने कुछ न कहा, बस सिर झुका लिया। 

मोहन भाई आ गए, तो वो सीनियर मुस्कुराता हुआ चला गया, लेकिन जाते-जाते पीछे मुड़कर मेरी गांड को एक आखिरी नजर दी—जैसे वादा कर रहा हो कि जल्द ही मिलेंगे।

एडमिशन पूरा हुआ, हॉस्टल का रूम साफ-सुथरा मिला। भाई ने बैग रखवाया, चाय पिलाई, और आखिरी में गले लगाया। 

"ख्याल रखना, रोहन। ये दुनिया तेरी तरह नरम नहीं है।" मैंने हामी भरी, लेकिन अंदर से जानता था—ये दुनिया मेरी गांड को निगल जाना चाहती है। 

मोहन भाई चले गए, टैक्सी की आवाज दूर हो गई, और मैं अकेला रह गया। 

हॉस्टल की सीढ़ियां चढ़ते हुए, वो सीनियर की हंसी कान में गूंज रही थी। 

रात को बेड पर लेटा तो सोचा—क्या ये कॉलेज है, या कोई जंगल, जहां लौड़े शिकार तलाशते हैं? लेकिन दिल कहीं गहराई में कांप रहा था—शायद डर से, शायद उत्सुकता से। 

गांड में हल्की-सी सिहरन, जैसे कोई अनजाना स्पर्श हो। ये नई जिंदगी की शुरुआत थी—रैगिंग की, चुदाई की, और शायद... उस प्यार की, जो गाने में गाया जाता है, लेकिन यहां लंड और गांड की भाषा में।

उस पहली रात हॉस्टल के रूम में मैं अकेला ही लेटा रहा। बाहर बारिश की बूंदें खिड़की पर टपक रही थीं, और अंदर दिल की धड़कनें किसी पुरानी फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक की तरह गूंज रही थीं। 

सीनियर की वो भद्दी हंसी, मेरी गांड पर टिकी नजरें—सब कुछ दिमाग में घूम रहा था। लेकिन थकान ने आखिरकार नींद बुला ली, जैसे कोई मां अपने बच्चे को सीने से लगा ले।

अगली सुबह 

धूप की किरणों के साथ दरवाजा खुला, और अंदर आए संजय —मेरे रूम पार्टनर, चौथे साल के सीनियर। 

लंबे-चौड़े, कंधे चौड़े जैसे किसी जिम के मॉडल, चेहरा साफ-सुथरा, दाढ़ी हल्की-सी ट्रिम्ड। उनकी बॉडी मस्त थी—हट्टे-कट्टे जवान मर्द की, छाती पर हल्के बाल, बाहें ऐसी कि किसी को भी गले लगाने का मन कर जाए। 

उन्होंने बैग फेंका, मुस्कुराए, और बोले, कॉलेज में नया है ना? रैगिंग का डर मत रख, सब संभाल लूंगा। बस, कोई सीनियर मिले तो नमस्ते करते हुए बता देना—संजय का छोटा भाई हूं। कोई तुझे परेशान करने की हिम्मत न करेगा।"

उनकी ये युक्ति जादू की तरह काम कर गई। 

अगले कुछ दिन  तक किसी सीनियर ने परेशान न किया—न भद्दे इशारे, न गांड नापने वाली नजरें। हां, ललचाई हुई आंखें तो रहतीं ही, जैसे भूखे भेड़िए दूर से शिकार को ताकते रहें। लेकिन संजय भाई  के साथ रहकर मैं सुरक्षित महसूस करता। वो मेरे शील्ड थे—बड़े भाई की तरह, लेकिन दिल में कुछ और ही उफान उठने लगा। 

रातें आतीं, और भैया सोने से पहले सिर्फ वी-शेप वाली अंडरवियर में लेट जाते। वो चड्डी इतनी टाइट कि उनका मर्दाना हथियार—वो फौलादी लौड़ा—मुश्किल से समा पाता। नरम कपड़े के नीचे उभार साफ दिखता, जैसे कोई जंगली जानवर जकड़न में तड़प रहा हो।

मेरी नजरें अनजाने में उसी पर ठहर जातीं—रात के सन्नाटे में, जब वो हल्की सांसें लेते, तो वो उभार हल्का-सा हिलता। शायद भैया को पता चल गया था; कभी-कभी वो मुस्कुराते, लेकिन कुछ न कहते।

फिर आया वो दिन—तौलिया खुलने की वो घटना, जो मेरी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट बनी। भैया नहाकर रूम में घुसे, सिर्फ तौलिए में लिपटे। 

गीले बाल, पानी की बूंदें छाती पर चमक रही थीं। अलमारी खोलकर कुछ ढूंढने लगे—शर्ट निकालनी थी शायद। मैं बेड पर बैठा नोट्स पढ़ रहा था, लेकिन नजरें भटक गईं। 

अचानक—हुश!—तौलिया फिसला, और  संजय भाई मेरे सामने पूरे नंगे खड़े हो गए। 

पहली बार मैंने देखा उनका लौड़ा—फौलादी, 8 इंच लंबा, 5 इंच मोटा, नसें उभरी हुईं, टोपा मशरूम जैसा चमकदार। वो लौड़ा इतना मजबूत लग रहा था कि लगे, ये किसी गांड को फाड़ सकता है, प्यार से चोद सकता है। भाई ने झट से तौलिया लपेट लिया, लेकिन देर हो चुकी थी। मेरी आंखें चिपक गई थीं।

वो मेरी ओर मुड़े, आंखों में शरारत और हल्का डर। "छोटे, तूने कुछ देखा तो नहीं ना?" उनकी आवाज हल्की-सी कांप रही थी।

मैंने झूठ बोला, गाल लाल हो चुके थे। 

"न-नहीं भाई, कुछ नहीं देखा।" लेकिन हम दोनों जानते थे—मैंने सब देख लिया था। 

वो लौड़ा अब मेरी आंखों में समा गया, दिन-रात मेरी आंखों में घूमता। 

रात को सोते वक्त जब उनका हाथ नीचे चला जाता, तो मेरी गांड में सिहरन दौड़ जाती। मुझे उनके लंड से प्यार हो गया था—न सिर्फ छूना, बल्कि चूमना, चूसना, उसके रस को अमृत की तरह पीने की ख्वाहिश जागने लगी। वो लौड़ा मेरा देवता बन गया।

बरसात के वो दिन तो जैसे आग में घी। कपड़े सूखते ही नहीं, नमी हवा में लिपटी रहती। 

एक दिन संजय भाई की चड्डी भी भीगी रही। वो बिना चड्डी के ही पैंट पहनकर घूमे। चलते वक्त उनका लौड़ा पैंट में झूलता—बाएं-दाएं, ऊपर-नीचे, जैसे कोई आजाद परिंदा। मैं चुपके से देखता, दिल धक-धक। रात को वो उभार मेरी नींद उड़ा देता।

फिर उसकी रात—अमृत की रात थी।

संजय भाई किसी बर्थडे पार्टी से लौटे, करीब 11 बजे। चेहरा लाल, आंखें चमक रही—थोड़ी शराब की महक।

"छोटे, सो जा, कल क्लास है," बोले, लेकिन खुद तौलिया लपेटकर लेट गए।

रात के 12 बज रहे थे जब मेरी नींद टूटी। चांदनी खिड़की से झांक रही थी। मेरी नजर भाई पर पड़ी—तौलिया खुला पड़ा था। उनका लौड़ा तनकर खड़ा था, उत्तेजना में झटके खा रहा—टोपा चमक रहा, नसें फूली हुईं। शायद सपने में किसी की  गांड चोद रहे थे।

पता नहीं कहां से मुझ में हिम्मत आई।

 मैं धीरे से उनके पास सरका। हल्के हाथ से वो लौड़ा पकड़ा—गर्म, कड़ा, नसों की धड़कन महसूस हुई। सहलाया, ऊपर-नीचे। भाई न जागे। हिम्मत बढ़ी। मैंने मुँह झुकाया, लौड़ा मुँह में भरा—रसीला, नमकीन स्वाद। 

जीभ से टोपा चाटा, मशरूम साइज का वो सिरा चूसा। भाई नींद में ही सिसकारियां ले रहे थे—'उम्म... आह...'। 

शायद सपने में चुदाई का मजा ले रहे। थोड़ी देर में उनका रस फूट पड़ा—गर्म, नमकीन अमृत, जो मैंने एक बूंद न छोड़े पी लिया। आनंद की लहर दौड़ी, जैसे जन्मों की प्यास बुझी।

मैं चुपके से वापस आया, लेकिन भाई को नंगे देखा—नींद में टांगें फैलाए लेटे थे, लौड़ा अब हल्का नरम पड़ा। 
मुझ में प्यार उमड़ आया। मोबाइल निकाला, फ्लैश ऑफ करके फोटो खींची—भाई के नंगे बदन की, खासकर उनके लौड़े की। हाइड फोल्डर में रखी, और सो गया।

सुबह जल्दी उठा, मॉर्निंग वॉक पर निकला। लौटा तो भैया अभी भी नंगे पड़े थे। 

मैंने उनके नंगे बदन पर चादर डाला, चुपके से। तैयार होकर कॉलेज भागा।

दोपहर बाद कॉलेज में संजय भाई नजर आए—अब वो अलग लग रहे, मेरे साजन जैसे। बाथरूम में छिपकर फोटो देखी, चूमा स्क्रीन को। 

दिन ऐसे ही बीते—लौड़े की याद में गांड गीली हो जाती।

जब भी भाई के लंड की याद आती, मोबाइल में देख लेता।जो मज़ा मैंने भइया के नींद में होते हुए लिया था, अब मुझे जागते हुए लेना था। पर भइया की तरफ़ से कोई पहल न होते देखकर मैंने आगे कदम बढ़ाने की सोची।

अब धीरे-धीरे मैं उन्हें हिंट देने लगा।मैं पहले लोअर में सोता था, पर मैंने भी भाई की तरह अंडरवियर में सोना शुरू किया। ऊपर से मैंने बनियान भी पहनना बंद कर दिया।

वैसे तो मेरा पूरा बदन चिकना था। छाती पर हल्के से बाल थे। गांड और लंड के आस-पास हल्के-हल्के रोएँ थे, जिसे मैं साफ़ रखने लगा था।

अपने शरीर को भाई के लिए तैयार रखने लगा। न जाने कब भाई मेहरबान हो जाएँ और हमारा शारीरिक मिलन हो जाए। 
इस उम्मीद में मैं सजने-सँवरने लगा।

मन ही मन में मैंने भाई को अपना पति मान लिया था। अब तो मुझे अपने पति की प्यार भरी नज़र की आस थी।

दिवाली की छुट्टियाँ और योजना

एक दिन मैंने संजय भाई से पूछा, " भाई ,क्या आप छुट्टियों में घर जाएँगे?"

"नहीं छोटे," उन्होंने कहा, "दिवाली के बाद मुझे असाइनमेंट सबमिट करना है, इसलिए मैं नहीं जाने वाला। सबका सबमिट हो गया है, सिर्फ़ मेरा ही बचा है।"

फिर भाई ने मुझसे पूछा।

मैंने कहा, "घर से भाई आएँगे तो मुझे जाना पड़ेगा।"

यह सुनते ही भइया का मुँह उतर गया। वह निराश दिखने लगे।मैंने उनसे यह बात छिपा ली कि मैं भी घर नहीं जा रहा। 

मुझे यह सही मौका लगा संजय भाई को अपना बनाने का। पर यह बात मैंने संजय भाई को नहीं बताई।

मैंने उनसे कहा, "मैं शुक्रवार की सुबह घर चला जाऊँगा, क्योंकि उस दिन मेरा जन्मदिन है। शाम तक घर पहुँचकर जन्मदिन घर पर मनाऊँगा।"

शुक्रवार को सुबह भाई ने मुझे गले लगाकर जन्मदिन की शुभकामना दी और पूछा कि कितने बजे ट्रेन है।

मैंने कहा, "11 बजे।"

भाई ने कहा, "ध्यान से जाना। और पहुँचकर फ़ोन कर देना।"

यह कहकर वह सुबह ही कॉलेज को चले गए, लाइब्रेरी में असाइनमेंट पूरा करने।

सुहागरात की तैयारी

पूरे दिन मैं रूम पर अकेला था।
मैंने पूरा कमरा फूलों से सजाया। सुहागरात के लिए बिस्तर तैयार किया।ऑनलाइन केक ऑर्डर किया। बाज़ार जाकर बढ़िया क्वालिटी के कंडोम और लुब्रिकेंट लेकर आया।शाम को अच्छे से नहाया। बढ़िया डियो लगाया। और अपने साजन के आने का इंतज़ार करने लगा।

भाई करीब 8 बजे आए।
मैंने कमरे की लाइट्स ऑफ़ कर रखी थी। 
भाई ने आते ही लाइट्स ऑन की, तो संजय भाई मुझे कमरे में देखकर हैरान हो गए।

मैंने कहा, "भाई, मैं घर नहीं गया। आज मेरा जन्मदिन है, उसे मैं आपके साथ मनाना चाहता था।"
भाई ने मुझे गले लगा लिया और मुझे Happy Birthday बोला।
मैंने Thank you बोलकर उनके होठों पर चुंबन कर दिया।मैंने जैसे ही चुंबन किया, वह हैरानी से मुझे देखकर बोले,

"छोटे, ये क्या?"
मैंने कहा, भाई मैं आपसे प्यार करने लगा हूँ और आपको अपना बनाना चाहता हूँ। मुझे अपना बना लो।"

"नहीं, तुझे तो मैं अपना छोटा भाई मानता हूँ।"

"वह मुझे नहीं पता भाई। मुझे आपसे प्यार है और आपको भी मुझसे प्यार है, पर कहने से डरते थे। कहीं मुझे बुरा न लगे। पर भाई, मुझे अब अपने पर काबू नहीं रहा। आपको अपना बनाना चाहता हूँ।"

"छोटे, मैं डरता था। मैंने तुझे कॉलेज के लड़कों से बचाया, और मैं ही तुझ पर नीयत ख़राब कर रहा हूँ। छोटे, मैं भी तुझे प्यार करता हूँ।"यह कहकर वह भी मुझे मस्त किस करने लगे।

5 मिनट की गहरी किस के बाद हम अलग हुए, और मैं केक लेकर आया। 

भाई के साथ मिलकर मैंने केक काटा। हमने एक-दूसरे को केक खिलाया।

केक खाने के बाद भाई ने मुझे फिर चुंबन किया।

 हम फिर एक-दूसरे के होठों को चूसने लगे।मैंने भाई को कहा, "भइया, अभी थोड़ी देर में खाना आने वाला है। मैंने ऑनलाइन ऑर्डर किया है। तब तक आप नहाकर फ्रेश हो जाइए।"

भाई नहाने चले गए।
मैने Fm रेडियो पर एक चैनल लगा दिया। उस वक्त Fm पुराने हिंदी गाने बजा रहा था। गाने सुनते हुवे मैं भाई का इंतजार करने लगा। 
थोड़ी में नहाकर आए, तब तक खाना आ चुका था। हम दोनों ने मिलकर खाना खाया। खाना खाने के बाद भाई सिगरेट पीने बाहर चले गए, और यहाँ कमरे में मैं आगे की प्लानिंग में जुट गया।

कमरे की लाइट्स मद्धम कर मैं ब्रा और पैंटी पहनकर सेज पर बैठ गया और अपने दिलबर का इंतज़ार करने लगा।

थोड़ी देर में भाई आए। कमरे की मद्धम रोशनी देखकर बोले, "छोटे, गजब का वातावरण बना दिया है।"

वह मेरे पास आए और मेरे ऊपर से चादर हटा दी।

मुझे ब्रा और पैंटी में देखकर वह बहुत खुश हुए और मुझे गले लगा लिया।

मैं खड़ा हुआ और उनके लिए गुनगुना दूध ले आया और अपने हाथों से उनको पिला दिया।

अब तक भाई समझ चुके थे कि अब उनको क्या करना है।अब मैंने अपनी कमान उनको सौंप दी।

वह मुझे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिए और अपने होठों से मुझे ऊपर से नीचे तक चूमने लगे थे।

एक-एक इंच पर उन्होंने अपने होठों की मोहर लगा दी।
उसी वक्त FM पर वही गाना बजने लगा, 
ROCKY Movie का लता मंगेश्कर_ किशोर कुमार  की डुएट आवाज में....
song 
"पहले मैं समझा, कुछ और वजह इन बातों की।
लेकिन अब जाना, कहाँ नींद गई मेरी रातों की।
जागती रहती हूँ मैं भी, चाँद निकलता नहीं।।

ओ-ओ, दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं, 
वक़्त गुज़रता नहीं,
क्या यही प्यार है? 
बोलो, बोलो ना हाँ, यही प्यार है"

संजय भाई के होठों पर मेरे होठ चिपके हुवे थे। गाने की बोल हमारे प्यार को बयान कर रहे थे। 

कहानी जारी रहेगी।
✍️निहाल सिंह 
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#2
Episode 2: शादी वाली रात 

...संजय मुझ पर से चादर हटा दी। मुझे ब्रा और पैंटी में देखकर वह बहुत खुश हुए और मुझे गले लगा लिया।
मैं खड़ा हुआ और उनके लिए गुनगुना दूध ले आया और अपने हाथों से उनको पिला दिया। अब तक भइया समझ चुके थे कि अब उनको क्या करना है। अब मैंने अपनी कमान उनको सौंप दी।
वह मुझे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिए और अपने होठों से मुझे ऊपर से नीचे तक चूमने लगे थे। एक-एक इंच पर उन्होंने अपने होठों की मोहर लगा दी।
लंड, राज़ और मंगलसूत्र
मुझे चूमते-चूमते उनका लौड़ा तनकर कड़क हो गया और उनके तौलिए में से बाहर आने को मचलने लगा। अचानक उनका फौलादी लंड तौलिए के साइड से झाँका, जिस पर मैंने तौलिए का पर्दा हटा दिया।
उनका 8 इंची लौड़ा फनफनाकर बाहर कूदने लगा।
वह बोले, "कैसा लगा मेरा औजार?"
मैंने कहा, "भइया, इसके तो मैं पहले ही दर्शन कर चुका हूँ, और इसका अमृत भी पी रखा है।"
अब भइया फिर से चौंक गए।
"भइया, करीब 2 महीने पहले आप किसी की बर्थडे पार्टी से आए थे। शायद उस दिन आपने थोड़ी-सी पी रखी थी। उस दिन आपने अंडरवियर नहीं पहना था। आप सो रहे थे और ये जनाब जाग रहे थे और खड़े होकर पहरा दे रहे थे। मैंने ज़रा-सा हाथ लगाया तो जनाब गुर्राने लगे, तो मैंने इनका मुँह बंद करने की नीयत से अपने मुँह में भर लिया और चूस-चूसकर सज़ा देने लगा। थोड़ी देर बाद इन्होंने मेरे मुँह में ही उल्टी कर दी।"
"इतना सब हो जाने पर भी आपकी नींद नहीं खुली।"
भइया ने सुना तो हैरान हो गए। "ओह! मेरे शेर, तुमने मेरा शिकार पहले से कर रखा है! मुझे आज तक इस बात का एहसास ही नहीं हुआ।"
उनके मुँह से ऐसी बात सुनकर मुझे शर्म आ गई, और मैंने उनके बालों से भरे सीने में अपना मुँह छुपा लिया।
भइया ने बड़े प्यार से मुझे बाहों में कस लिया।
मैंने शरमाते हुए कहा, "भइया, मैं आपसे प्यार करता हूँ। मेरी हर चीज़ आपकी है और आपकी हर चीज़ पर मेरा हक़ समझकर उस दिन मुझसे नादानी में वो सब हो गया। आप मुझसे नाराज़ तो नहीं हो न?"
"अरे नहीं पगले, बल्कि मुझे तो खुशी हुई। मेरा लंड भी तो तुम्हारा ही तो है! तुझे नहीं पता, कब से तड़प रहा हूँ तुझे अपना बनाने के लिए।"
"तो भइया, आज मुझे अपना बना लो हमेशा के लिए।"
"आज तुझे अपना बनाकर तुझे जन्नत की सैर करवा दूँगा।"
"हाँ भइया, मुझे जी भर कर प्यार करो।"
"पर मेरी जान, अब से मुझे भइया न कहना। आज से सिर्फ मुझे संजय कहा करो।"
"ठीक है। पर मैं आपका नाम कैसे ले सकता हूँ?"
"क्यों? क्या हुआ?"
"मैंने आपको अपना पति माना हुआ है और मैं आपकी पत्नी हूँ। कभी पत्नी अपने पति का नाम लेती है?"
"ओह मेरी जान," यह कहकर संजय ने मुझे चूमकर कहा, "तुम अभी मेरी पत्नी बनी नहीं हो। अभी अपनी शादी होनी है।"
ऐसा कहते ही संजय ने अपने गले की सोने की चेन निकालकर मुझे पहना दी और कहा, "मेरी जान, ये मंगलसूत्र है। अब से इसे अपने गले से मत निकालना।"
मंगलसूत्र पहनाकर संजय ने मुझे चूमा।
"तुम भी तो मुझे कुछ निशानी दो, जिससे मुझे लगे कि मैं भी शादीशुदा हूँ।"
मैंने अपनी अँगूठी निकालकर संजय को पहना दी, जिस पर बड़े अक्षर में 'R' लिखा था। मगर वो अँगूठी संजय की उँगली में नहीं आई, सिर्फ़ छोटी वाली उँगली में हल्की-सी फ़िट हुई। जिस पर संजय ने कहा, "कल इसे अपने साइज़ का करवा लूँगा।"
अब शादी हो चुकी थी। दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे में खो गए।
पत्नी की ज़ुबानी
संजय ने मुझे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया।
मैंने शर्म से अपनी आँखें मूँद रखी थीं।
संजय ने मेरी ब्रा और पैंटी उतारकर फेंक दी।
संजय धीरे-धीरे मुझे चूमने लगे। होठों से होता हुआ मेरी गर्दन पर, गर्दन से होता हुआ मेरी छाती के निप्पल पर।
संजय मेरे दोनों निपल्स बेतहाशा चूस रहा था। अपने दाँतों से हल्के-हल्के काट रहा था। मेरी गोरी छाती पर निपल्स लाल होने लगे थे।
थोड़ी देर बाद संजय मेरी कमर पर चूम रहा था। कमर पर संजय के गर्म मुलायम होठ लगते ही मैं कामवासना में भर गया। मैंने अपने कूल्हे ऊपर उठा लिए।
मेरा 6 इंची लंड भी कड़ककर खड़ा हो गया।
मेरा लंड संजय के गालों पर चपेड़े मारने लगा, जैसे कह रहा हो—'मैं भी रोहन हूँ, मुझे भी प्यार करो।'
तभी संजय ने वो किया जिसे मैं सोच भी नहीं सकता था कि संजय ऐसा भी करेगा।
हाँ दोस्तों, संजय ने रोहन का कड़क लंड अपने मुँह में ले लिया और उसे मस्त चूसने लगा।
मेरा लंड संजय के मुँह में जाकर रॉकेट बन गया। मैं सातवें आसमान में पहुँच गया। ऐसा सुख आज तक मैंने कभी महसूस नहीं किया।
संजय मेरा लंड चूस रहा था और मेरे हाथ संजय के बालों से खेलने लगे।
अपने पति के द्वारा ऐसा असीम आनंद पाकर मैं धन्य हो गया।
और तभी मेरा ज्वालामुखी फट पड़ा।
ज्वालामुखी का गर्म लावा संजय पीने लगा।
सारा रस पीने के बाद संजय ने कहा, "वाह, कितना मीठा था।"
वह मेरे बगल में आकर लेट गया और मुझे अपने गले लगा लिया।
पर मेरी आग अभी शांत नहीं हुई थी।
मैंने संजय से कहा, "मेरे पति देव, अब मुझे वो तोहफ़ा दो जिसे पाकर मैं अनचूदी कली से फूल बन जाऊँ।"
"मेरी रानी, आज तो तुम चुद कर ही रहोगी। तुम्हारी सील आज मेरे हब्शी लौड़े से टूटेगी।"
"मुझे पता है मेरे राजा, आज मुझे तुम्हारे लौड़े से कोई बचा नहीं सकता। मुझे ये भी पता है कि जब तुम मेरे अंदर घुसाओगे तो मुझे दर्द बहुत होगा। चाहे मैं कितना चीखूँ, कितना चिल्लाऊँ, पर आज तुमने मुझ पर दया नहीं दिखानी है। तुम्हें सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान देना है।"
"वाह मेरी रानी, पूरी जानकारी रखती हो तुम।"
"हाँ मेरे पति देव, अपने साथ के दोस्तों ने मुझे ये सब बताया था।"
"और क्या-क्या पता है तुम्हें, ज़रा हमें भी बताओ।"
"मैंने सुन रखा है। इस हॉस्टल के अधिकतर सीनियर जूनियर लड़कों की गांड बजाते हैं। किसी ने ये भी कहा है एक बार किसी लड़के की चुदाई हुई तो वो बेहोश हो गया था।"
यह सुनते ही संजय हैरान हो गए।
"और पता है पति देव, वो चुदाई करने वाला सीनियर कौन था?"
"वो आप थे। संजय रस्तोगी।"

कहानी जारी रहेगी।
✍️निहाल सिंह 
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#3
एपिसोड 3: सीनियर से भिड़ंत 

फ्लैशबैक 1

संजय ने अपना बैग अभी कमरे में रखा ही था कि किसी ने आकर कहा, "सीनियर राजीव का ऑर्डर है, सभी जूनियर को हॉस्टल के हॉल में इकट्ठा होना है।"
"क्यों, क्या हुआ?" संजय ने संदेश लाने वाले व्यक्ति से कहा।

"सीनियर-जूनियर मिलन समारोह होगा। तुम भी तो जूनियर हो, तुम्हारा भी आज ही मिलन होना है।"

"वैसे तुम कौन हो?" संजय ने पूछा।

"मैं सीनियर-जूनियर मिलन समारोह का आयोजक हूँ। मेरी ही देखरेख में आयोजन संपन्न होता है। मैं यह सुनिश्चित करता हूँ कि कोई भी जूनियर रह न जाए।"

यह अपने आप को आयोजक कहने वाला व्यक्ति नीरज राठौड़ था, जो राजीव का ख़ास चेला था। वह और राजीव दोनों एक ही बैच के थे, पर नीरज फर्स्ट ईयर भी पास न कर सका। उसका दिल पढ़ाई में नहीं लगता था, तो उसने इंजीनियरिंग छोड़ दी, पर राजीव को न छोड़ सका। यूँ कहें तो एक तरह से वह राजीव की रखैल था।

नीरज राजीव के लंड का प्रेमी था। उसे राजीव से चुदवाना बहुत पसंद था। वह नए-नए लड़कों का इंतज़ाम करता था राजीव के लिए, जिससे ख़ुश होकर कभी-कभार उसे भी राजीव के लंड की कृपा प्राप्त हो जाती थी।

राजीव की गैंग की यह हर साल की परंपरा थी कि नए आए जूनियर लड़कों की परेड करवाना, जिससे उन्हें पता चल सके कि कौन-सा नया माल चखने लायक है।

"और हाँ, आते समय सिर्फ़ अंडरवियर में आना।" यह कहते हुए नीरज चला गया।

संजय समझ चुका था कि सीनियर्स उसकी रैगिंग लेने वाले हैं। 'जाता तो मरता, न जाता तो मरेगा। तो जाकर ही मरा जाए।' यह सोचकर संजय ने अपनी पैंट खोलकर बिस्तर पर रख दी और शर्ट उतारकर हॉल की तरफ चल पड़ा।

उसकी निगाह जहाँ भी जा रही थी, हर तरफ़ नंगे जाते जूनियर दिखाई दे रहे थे। रंग-बिरंगी चड्डियों में हर बॉडी टाइप के लौंडे।
हॉल में पहुँचकर संजय ठिठका।

लाइन बनाकर सभी जूनियर खड़े थे। सामने दो कुर्सियों पर राजीव और जय बैठे थे। नीरज राजीव के पीछे खड़ा था। कुछ और सीनियर भी थे जो वहीं खड़े-खड़े अपनी आँखें सेंक रहे थे।

जब सभी जूनियर आ गए, तो राजीव की बुलंद आवाज़ सुनाई दी।

"सभी जूनियर को मेरा प्यार भरा नमस्कार। आज के इस मिलन समारोह में आप सबका स्वागत है। मैं राजीव, फाइनल ईयर स्टूडेंट हूँ। आप सबका अपना, आप सबका बड़ा भाई। आपको इस कॉलेज में कोई भी समस्या हो, बिना किसी हिचक के मुझसे मिल सकते हैं। अब आज का कार्यक्रम शुरू करते हैं। धन्यवाद!"

यह कहकर राजीव वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

तभी पीछे से नीरज निकलकर सामने आया।

"सभी जूनियर, एक-एक करके राजीव सर के सामने आओ और अपनी चड्डी उतारकर अपना परिचय दो। और हाँ, अगर किसी ने कुछ चूँ-चाँ की, तो उसके साथ जो होगा, उसका वह खुद ज़िम्मेदार होगा।"

"सभी जूनियर्स के लिए आज से कुछ नियम हैं। ये नियम पूरे साल ही लागू रहेंगे।"

* पहला नियम: यह अंडरवियर जो आज तुम्हारी राजीव सर के सामने उतरेगी, तो पूरे साल किसी भी जूनियर को पैंट के अंदर अंडरवियर पहनने की परमिशन नहीं होगी। यहाँ तक कि कॉलेज में भी।

* दूसरा नियम: सभी जूनियर पूरे साल अपनी झाँटें, छाती के बाल और बगलें हमेशा साफ़ रखेंगे।

* तीसरा नियम: कोई भी जूनियर रात में कपड़े पहनकर नहीं सोएगा। सोना है, वो भी नंगे, बिना कमरा बंद किए।

"ये तीन नियम न मानने वाला राजीव सर के कहर का सामना करेगा। अब शुरू करो नंगा परेड!"

"ओए चिकने, चल आ आगे!" नीरज ने एक जूनियर की तरफ़ इशारा किया।

वह जूनियर काँपते हुए आया। उसका हाथ अपनी अंडरवियर की इलास्टिक पर था, पर नीचे खींचते हुए घबरा रहा था।

"उतार बे अपनी चड्डी!" नीरज गुर्राया।

तभी उस जूनियर ने झटके से अपना अंडरवियर उतार दिया।

उसकी गोरी-गोरी गांड सभी जूनियर की तरफ़ थी, पर हर जूनियर ने अपनी आँखें झुका रखी थीं।

"पलट साले, अपना पिछवाड़ा दिखा राजीव सर को!"

वह जूनियर पलट गया।

"मस्त माल है," राजीव ने नशीली आवाज़ में कहा। "10 नंबर।"

"अपना नाम और किस स्ट्रीम बता?" नीरज पेन-पेपर लिए बोला।

"ध्रुव मेहरा। सिविल।"

"जी ग्रुप! इधर, जहाँ 'G' लिखा है, वहाँ जाकर खड़ा हो जा।"

"हाँ, नेक्स्ट!" नीरज बोला।

तभी दूसरा आगे आया। उसने आगे आते ही अपनी चड्डी खोल दी।

"राजेश राठी। मैकेनिकल।"

राजेश देखने में साँवला था, पर शरीर से मज़बूत था। उसके शरीर पर देखने लायक सिर्फ़ एक ही चीज़ थी जो सोते हालत में अच्छा-ख़ासा दिखाई पड़ रहा था।

"वाह, क्या हथियार दिया मालिक ने," राजीव बोला।

"एल ग्रुप!" नीरज बोला, "उस तरफ़ जहाँ 'L' लिखा है, वहाँ जाकर खड़ा हो जा।"
राजेश दूसरी तरफ़ चला गया।

तभी तीसरे को बुलाया गया।

वह तीसरा जूनियर आया। उसने भी अपनी चड्डी उतार दी।

"कमल वर्मा। सिविल।"

कमल देखने में कुछ ख़ास नहीं था। न आगे से, न पीछे से। नॉर्मल, सूखी हड्डी-सा लड़का था।

नीरज ने राजीव के कुछ कहने का भी इंतज़ार नहीं किया और बोला, "एन ग्रुप! जहाँ 'N' लिखा है, वहाँ खड़ा हो जा।"

अब तक सब समझ चुके थे। 'G' ग्रुप (गांड), 'L' ग्रुप (लंड) और 'N' ग्रुप (नॉर्मल/नकारा) में किस कैटेगरी की भर्ती हो रही थी।
लगभग सभी जूनियर भर्ती किए जा चुके थे। सबसे लास्ट में सिर्फ़ संजय ही बचा।

संजय का विद्रोह

बिना बुलाए संजय वहाँ चला गया।

पर उसने अंडरवियर उतारने से मना कर दिया।

"क्यूँ बे, उतार क्यूँ नहीं रहा चड्डी?" नीरज दहाड़ा।

"सबके हथियार और सबके अनमोल खज़ाने देख लिए, पर सीनियर अभी भी पूरे कपड़ों में हैं। यह तो नाइंसाफ़ी है। हम भी तो देखें, सीनियर किस कैटेगरी में फ़िट होते हैं।"

"तेरी ऐसी हिम्मत!" नीरज चिल्लाया। "सीनियर को नंगा होने को बोलता है! तू है किस खेत की मूली?"

"मैं मूली हूँ या मूसल हूँ, इसका पता तो बाद में चलेगा। पहले आप क्या हो, इसे देखना है।"

तभी राजीव खड़ा हुआ। "क्या नाम है तेरा?"

"संजय रस्तोगी, स्ट्रीम सिविल, रूम नंबर 302।"

"वाह, बड़ी हिम्मत है लौंडे में।"

"हिम्मत आ जाती है। अगर मेरा सामान देखना है, तो पहले अपना दिखाना होगा। मैं भी तो देखूँ, तुम सब मेरे लायक हो भी या नहीं।"

"वाह, आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुई जो मुझे बेपर्दा देखे।"

"आप जैसा हम जूनियर के साथ कर रहे हो, उससे तो यही पता लगता है, आपने अपने सीनियर्स को बहुत ख़ुश किया होगा।"

अपने बारे में यह सच सुनकर राजीव की आँखें लाल हो गईं। यह बिल्कुल सच था। राजीव और उनकी यह गैंग जो अब सीनियर है, अपने जूनियर ईयर के समय अपने सीनियर्स की रखैल हुआ करते थे। यह परिपाटी वहीं से चली आ रही थी।

पर शायद यह परिपाटी अब बदलने वाली थी। संजय जूनियर्स के लिए शायद बदलाव की एक नई हवा लेकर आया था।

कहानी जारी रहेगी...
✍️निहाल सिंह 
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