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Adultery गुलमोहर... एक अल्हड़ सी लड़की
#1
Episode 1: जब वो मिली मुझे पहली बार

रात का पहर था, शहर की चकाचौंध वाली सड़कें अब सन्नाटे में डूब चुकी थीं। 

आर्यन, पच्चीस साल का जवान मर्द, अपनी ब्लैक एसयूवी चला रहा था। 

लंबा कद, चौड़ी छाती, काले लहराते बाल जो हवा में उड़ रहे थे, और आँखें—गहरी, जैसे कोई रहस्य छिपा हो। 

वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, दिन भर कोडिंग की दुनिया में खोया रहता, लेकिन रातें? वे उसके लिए आजादी की साँसें थीं। 

संगीत बज रहा था रेडियो पर—एक पुराना रोमांटिक गाना, जो उसके मन को छू रहा था। 

"कसमें वादे निभाएंगे हम," गाता हुआ, वह सोच रहा था अपनी जिंदगी के बारे में। कोई गर्लफ्रेंड नहीं, बस दोस्ती और सपने। लेकिन आज रात कुछ अलग थी—हवा में एक अजीब सी बेचैनी, जैसे कोई किस्मत का धागा खिंच रहा हो।

आर्यन ने एसी की स्पीड कम की, खिड़की खोली। ठंडी हवा उसके चेहरे को सहला रही थी। 

अचानक, सड़क के मोड़ पर कुछ चमका—एक छाया, तेजी से दौड़ती हुई। उसने ब्रेक मारा, लेकिन देर हो चुकी थी। 

कार रुकी तो सामने एक लड़की पड़ी थी, साँसें फूल रही थीं, पैरों से खून रिस रहा था। 

आर्यन का दिल धड़क उठा। वह झपटकर बाहर निकला। "अरे! तुम्हें चोट लगी है?" उसकी आवाज में घबराहट थी, लेकिन कोमलता भी।

लड़की ने सिर उठाया। 

गुलमोहर—अठारह साल की नाजुक सी परी, लेकिन आँखों में डर का साया। उसके बाल बिखरे हुए, गेहुंए रंग की त्वचा पसीने से चमक रही थी। 

सलवार-कमीज फटी हुई, जो उसके बदन को छुपाने की बजाय उजागर कर रही थी—कमीज का कालर खुला, स्तनों की हल्की उभार झलक रही, सलवार में जांघों की मुलायम लकीरें नजर आ रही। 

वह अल्हड़ सी लग रही थी, लेकिन टूटी हुई।

"स-साहब... बचा लो," वह हकलाती हुई बोली, आँखों में आँसू। "एक आदमी... पीछा कर रहा था। भागी आ रही थी... आपकी कार से टकरा गई" उसके पैरों पर खरोंच से दर्द हो रहा था, लेकिन ज्यादा तो दिल का दर्द था।

आर्यन ने झुककर उसे संभाला, अपनी मजबूत बाहों में उठाया।

पहली बार गुल ने किसी को इतना करीब महसूस किया—आर्यन की साँसें उसके गले पर लग रही थीं, आर्यन के बदन की गर्मी उसके सीने में समा रही।

"शशश... चुप। कुछ नहीं होगा। मैं आर्यन हूँ। तुम?" 

कार के दरवाजे पर उसे बिठाते हुए बोला। 

"गुलमोहर," वह फुसफुसाई, शर्मा गई। 

आर्यन ने उसके पैरों को सहलाया, रूमाल से खून पोंछा। हर स्पर्श में एक करंट-सा दौड़ गया—उसके नाजुक पैरों की त्वचा इतनी मुलायम थी।

"तुम्हें घर छोड़ दूँ?" उसने पूछा, लेकिन गुलमोहर का सिर नकार में हिल गया। "नहीं... घर? वह तो जेल है।"

उसकी आँखें नम हो गईं।

कार चली, लेकिन रुकी नहीं। आर्यन ने इंजन चालू रखा, लेकिन बातें शुरू कर दीं। 

"क्या हुआ? बताओ, अगर मन हो।" 

गुलमोहर ने खिड़की की तरफ देखा, चाँद की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी। 

फिर, जैसे कोई बाँध टूट गया, वह बह निकली—अपनी दुख भरी दास्तान।

"मेरा बाप... रामलाल... गरीब मजदूर था। लेकिन शराब ने सब हर लिया। रोज पीता, और अब बीमारी—लीवर का कैंसर। बिस्तर पर पड़ा कराहता, 'बेटी, संभाल ले घर,' कहता। लेकिन संभाल कौन रहा था? मेरी सौतेली माँ, कमला। वह... वह राक्षसी है। बचपन से मारती-पिटती। 'तू बोझ है, निकल जा,' चिल्लाती। कभी झाड़ू से पीटती, कभी गर्म लोहे से दागती। देखो ना..." 

वह बोली और अपनी कमीज की आस्तीन ऊपर सरका दी। कंधे पर निशान—पुराने, कटे हुए, जो उसके नाजुक बदन पर जैसे घाव की कहानी कह रहे थे।

आर्यन का चेहरा सख्त हो गया, हाथ स्टीयरिंग पर कस गया। लेकिन वह चुप रहा, सुनता रहा। 

गुलमोहर की आवाज काँप रही थी, हिचकियाँ ले रही थी। उसके स्तन साँसों से ऊपर-नीचे हो रहे, आँसू गालों पर लकीरें खींच रहे थे।

 "फिर आज... शाम को। कमला ने मुझे बेच दिया। एक बूढ़े ठाकुर हरिया को, पचास हजार में। 'तेरी जिंदगी संवर जाएगी,' कहती रही। 

लेकिन मैं जानती थी—वह तो मेरी जवानी चख लेगा, तोड़ देगा। बाप नशे में सोया था। भाग आई... रात अंधेरी, जंगल से होकर। डर लग रहा था, भूखी निगाहें हर तरफ। और फिर... आपकी कार से।" वह रुक गई, सिर झुका लिया। 

कार में सन्नाटा छा गया। आर्यन की साँसें तेज हो गईं। वह रुका, सड़क किनारे। 

"गुलमोहर... तुम्हारी व्यथा... मेरी हो गई। कोई नहीं छुएगा अब तुम्हें।" उसने उसके हाथ पकड़े, उंगलियाँ उलझा दीं। 

आर्यन की आँखों में आग थी—गुस्से की, लेकिन प्यार की भी। 

गुलमोहर ने सिर उठाया, उनकी नजरें मिलीं। हवा में एक तनाव—रोमांटिक, उत्तेजक। उसके होंठ काँप रहे थे, आर्यन की नजर फिसली—उसके गले की लकीर पर, उसके कमर के वक्र पर। 

लेकिन वह रुका।

"चलो, मेरे अपार्टमेंट। वहाँ सुरक्षित रहोगी। वहां सोचेंगे क्या करना है।"

कार फिर चली। 

शहर के पोश इलाके में आर्यन का फ्लैट था—छोटा सा, लेकिन साफ-सुथरा, दीवारों पर पोस्टर, खिड़की से चाँदनी झाँक रही थी।

अंदर घुसते ही गुलमोहर ने राहत की साँस ली। 

आर्यन ने दरवाजा बंद किया, लाइट जलाई। 

"बैठो," वह बोला, सोफे की तरफ इशारा करते हुए।

गुलमोहर बैठ गई, थकान से काँप रही थी। 

आर्यन ने पानी का गिलास दिया, फिर मरहम-पट्टी का बॉक्स। घुटनों पर बैठा, उसके पैरों को सहलाया।

"दर्द ज्यादा हैं?" उसने पूछा, आँखें उठाकर।

गुलमोहर ने सिर हिलाया, लेकिन उसकी नजरें आर्यन के चेहरे पर ठहर गईं—उसकी मजबूत जबड़े की लकीर पर, उसके कंधों पर। स्पर्श में एक जादू था—उसके हाथों की गर्मी उसके बदन में समा रही।

आर्यन ने पट्टी बाँध दी, फिर खड़ा हो गया। 

"तुम थकी हुई लग रही हो। नहा लो, तरोताजा हो जाओ। बाथरूम वहीँ है," उसने इशारा किया, दाहिने तरफ के दरवाजे की ओर। गुलमोहर का चेहरा लज्जा से लाल हो गया। 

वह झुककर बोली, "साहब... लेकिन... मेरे पास पहनने को कोई और कपड़े नहीं हैं। ये तो... फटे हुए हैं।"

उसकी उंगलियाँ अपनी सलवार-कमीज की फटी कगारों पर फिर रही थीं, जो उसके बदन को और भी उजागर कर रही थीं। 

आर्यन ने एक पल सोचा, फिर अलमारी की ओर बढ़ा। "रुको," वह मुस्कुराया, एक सफेद टी-शर्ट और ग्रे लोअर निकालते हुए।

टी-शर्ट बड़ी थी, उसके कंधों तक ढुलमुल, लेकिन लोअर लूज। 

"ये ले लो। मेरे हैं, लेकिन साफ हैं। पहन लो, आराम मिलेगा।" 

गुलमोहर ने कपड़े लिए, उसकी उंगलियाँ आर्यन की उंगलियों से छू गईं—एक हल्की सी सिहरन दौड़ गई।

 "शुक्रिया... साहब," वह फुसफुसाई, आँखें नीची करके। फिर, शर्माते हुए बाथरूम की ओर चली गई, दरवाजा बंद किया।

बाथरूम के अंदर, ठंडी टाइलें उसके पैरों को छू रही थीं। गुलमोहर ने आईना देखा—अपना चेहरा, बिखरे बाल, फटी कमीज जो उसके स्तनों की उभार को मुश्किल से ढक रही थी। 

पसीना और धूल से सना बदन, लेकिन नीचे छिपी वो नाजुकता जो कभी किसी ने न छुई। 

उसने साँस ली, और धीरे से कमीज के बटन खोलने लगी। ऊपरी बटन खुला, तो उसके गले की हल्की लकीर नजर आई—गेहुंए रंग की त्वचा, जो चाँदनी की तरह चिकनी। 

फिर अगला बटन... कमीज खुली, कंधे से सरक गई। उसके स्तन आजाद हो गए—किशोरावस्था की मिठास से भरे, गोल, निप्पल गुलाबी और सख्त, जैसे कोई फूल की कली जो छूने को बुला रही हो।

वह मन ही मन आर्यन को याद करने लगी—उसकी मजबूत बाहें, जो उसे कार में उठा रही थीं। 

"काश... वह यहीं होता," सोचा, और एक हल्की सी मुस्कान उसके होंठों पर आ गई।

फिर सलवार की डोरी खींची। वह नीचे सरक गई, उसके पतले कूल्हे उजागर हो गए—मुलायम, लहराते हुए, जैसे कोई नदी का किनारा। 

जांघें लंबी, अंदरूनी तरफ की त्वचा इतनी कोमल कि हवा का स्पर्श भी सिहला दे। 

अंत में चड्ढी उतारी—उसकी चूत, नाजुक पंखुड़ियों वाली, अभी-अभी फूली हुई, जो कभी छुई न गई थी। पूरा बदन नंगा, आईने में खड़ी—कमर पतली, पेट सपाट, नाभि एक छोटी सी गहराई। 

बाल कंधों पर लहराते, पीठ का वक्र कामुक। 

वह आर्यन को फिर याद की—उसकी आँखें, जो उसे ऊपर से नीचे देख रही थीं। "वह... क्या सोचेगा मुझे ऐसे?" दिल की धड़कन तेज हो गई, उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे। लेकिन एक अजीब सी उत्तेजना भी—जैसे कोई आग सुलग रही हो।

वह शावर के नीचे चली गई। गर्म पानी उसके बदन पर बहा—स्तनों पर, कूल्हों पर, जांघों के बीच। साबुन लगाया, झाग से रगड़ा—हर स्पर्श में आर्यन का चेहरा घूम गया। 

"उसके हाथ... अगर छूते तो..." सोचते हुए, वह सिहर उठी। आधा घंटा बीत गया, लेकिन लग रहा था जैसे समय रुक गया हो।

आखिरकार, दरवाजा खुला। गुलमोहर निकली—आर्यन की टी-शर्ट पहने, जो उसके कंधों पर ढुलमुल लटक रही थी, लेकिन नीचे से उसके जांघों तक आ रही, स्तनों की उभार हल्के से झलक रहे। 

लोअर लूज था, कमर पर बंधा हुआ, लेकिन उसके पतले कूल्हों पर चिपक रहा। बाल गीले, चेहरे पर पानी की बूंदें, आँखें चमक रही। 

वह शरमा रही थी, हाथों से टी-शर्ट के किनारे खींच रही। 

आर्यन सोफे पर बैठा था, चाय का प्याला थामे। जैसे ही उसने देखा, उसके अंदर हलचल मच गई—दिल की धड़कन तेज, साँसें भारी। 

वो टी-शर्ट उसके बदन पर... जैसे उसके लिए बनी हो, लेकिन इतनी सेक्सी। उसके निप्पल्स की हल्की आउटलाइन।

 "तुम... बहुत अच्छी लग रही हो," वह बोला, आवाज में एक भारीपन। नजरें फिसल गईं—उसके होंठों पर, उसके गीले बालों पर। अंदर आग लग रही थी, लेकिन वह संभला। 

गुलमोहर मुस्कुराई, पास आकर बैठ गई।

रात और गहरी हो रही थी, कमरे में हल्की-सी चाँदनी झाँक रही थी। 

गुलमोहर सोफे पर बैठी थी, आर्यन की टी-शर्ट और लोअर में लिपटी हुई, जो उसके बदन पर जैसे दूसरी खाल बन गई थी। 

आर्यन ने फोन निकाला, एक ऐप खोला। 

"भूख लगी होगी। आज बाहर से खाना मंगवा लेते हैं," वह बोला, मुस्कुराते हुए। गुलमोहर ने सिर हिलाया।

आर्यन को खाना बनाना आता ही नहीं था—चाय या कॉफी के सिवा। वो अक्सर बाहर से कुछ न कुछ मँगवाता रहता, कभी चाइनीज, कभी पिज्जा।

आज तो खास था—गुलमोहर के लिए। "क्या पसंद है? बिरयानी? या कुछ हल्का?" उसने पूछा। 

गुलमोहर शरमा गई, "जो भी... आपकी पसंद।" 

आधे घंटे बाद डोरबेल बजी। आर्यन ने खाना लिया—गर्मागर्म पनीर टिक्का मसाला, नान, और सलाद। मेज पर सजाया, दोनों ने साथ बैठकर खाया। हँसी-मजाक चला, गुलमोहर की हँसी पहली बार फूटी—आर्यन की बातों पर, जो उसके गाँव की कहानियों को हल्का करने की कोशिश कर रहा था। 

लेकिन हर नजर के मिलाव में एक तनाव था—उसकी नजरें उसके होंठों पर ठहर जातीं, जहाँ मसाला की हल्की चमक थी। 

खाना खत्म हुआ, प्लेटें साफ। 

आर्यन ने उठकर कहा, "अब सो जाओ। बेडरूम में जाओ, आराम से। मैं सोफे पर ठीक हूँ।" 

गुलमोहर ने मना किया, लेकिन आर्यन ने जोर दिया। "तुम मेहमान हो। कल तरोताजा होकर बात करेंगे।" वह बेडरूम में चली गई, दरवाजा बंद किया। 

आर्यन लाइट बुझाकर सोफे पर लेट गया, लेकिन नींद कहाँ से आती?

बेडरूम में गुलमोहर लेटी थी, साफ चादर पर, लेकिन मन अशांत था। 

आर्यन की टी-शर्ट उसके बदन से चिपकी हुई, उसके स्तनों को हल्के से दबा रही। वह आँखें बंद करके आर्यन को याद करने लगी—उसकी चौड़ी छाती, जो कार में उसे छू रही थी; उसके हाथों की गर्मी, जो पैरों पर लगी थी। 

कभी अतीत घेर लेता—सौतेली माँ की मार, बाप की कराहें, बूढ़े ठाकुर की भूखी नजरें। आँसू आ जाते, लेकिन फिर आर्यन का चेहरा घूम जाता—उसके मजबूत कंधे, लहराते बाल, गहरी आँखें जो उसे देखकर चमक उठी थीं। 

"वह... अगर छू ले तो?" सोचते हुए, उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। उसके हाथ अनजाने में अपनी जांघों पर फिसल गए, लोअर की नरमी पर। 

कशमकश थी—डर और आकर्षण का मिश्रण। 

एक तरफ अतीत का जख्म, दूसरी तरफ आर्यन का वो आकर्षण, जो उसके नाजुक बदन को जगा रहा था।

वह मचल उठी बिस्तर पर, साँसें तेज, लेकिन सीमा पर रुकी। "नहीं... अभी नहीं। वह अच्छा इंसान है।" 

फिर भी, मन में तूफान—आर्यन के होंठों की कल्पना, उसके स्पर्श की। रात भर नींद न आई, बस यादें और कल्पनाएँ घूमती रहीं।

बाहर सोफे पर आर्यन भी करवटें बदल रहा था। उसकी आँखें बंद, लेकिन दिमाग में गुलमोहर का चेहरा। वो बाथरूम से निकली थी—गीले बाल, टी-शर्ट में उसके स्तनों की हल्की उभार, जांघों की चिकनी लकीरें जो लोअर से झाँक रही थीं।

वह कल्पना कर रहा था—उसके नाजुक बदन को छूना, उसके गले की लकीर को चूमना, उसके पतले कूल्हों को सहलाना। उसके स्तन कितने मुलायम होंगे, निप्पल्स गुलाबी और सख्त... जांघों के बीच वो नरमी, जो कभी छुई न गई। साँसें भारी हो गईं, हाथ अनजाने में नीचे सरक गया, लेकिन रुका। 

"नहीं, आर्यन। वह टूटी हुई है। पहले विश्वास, फिर प्यार।" मचल रहा था, लेकिन हद पार न की। 

मन में आग सुलग रही थी—गुलमोहर की वो मासूम मुस्कान, वो शर्माती नजरें। 

दोनों एक-दूसरे को याद करके तड़प रहे थे, लेकिन रात गुजरी बिना सीमा लाँघे। 

सुबह का इंतजार था... नई शुरुआत का।

दूसरी तरफ

गुलमोहर के भागने की खबर कमला को जैसे बिजली की तरह चुभ गई। 

रात के दूसरे पहर में, जब गाँव की गलियाँ सन्नाटे में डूब चुकी थीं, कमला ने ठाकुर हरिया को फोन किया।

 उसकी आवाज काँप रही थी—गुस्से से, लालच से।

 "हरिया जी... वो हरामी बेटी भाग गई! 
अब क्या करें?

फोन पर ठाकुर की साँसें भारी हो गईं। साठ साल का बूढ़ा, लेकिन आग अभी बाकी—पीली दांतों वाली मुस्कान के पीछे वो भूख, जो जवानी की तरह सुलग रही थी। 

"भाग गई? अरे कमला, तूने तो कहा था कि वो नाजुक फूल है, मेरे लिए ही बनी है। अब मैं खाली हाथ? नहीं... मैं खाली नहीं बैठूँगा। ढूँढो उसे। शहर की सड़कों पर, जंगलों में—हर जगह। वो अकेली लड़की, रात में... कोई न कोई भूखा भेड़िया तो मिलेगा ही। लेकिन अगर मैंने पकड़ लिया, तो तेरी सौतेली बेटी को सजा मिलेगी... मेरी गोद में, मेरी आग में जलकर।"

कमला का चेहरा पीला पड़ गया। वह जानती थी ठाकुर की "सजा" क्या होती—उसकी पुरानी हवेली में, जहाँ दीवारें चीखों से गूँजती थीं। 

ठाकुर ने फोन काटा, लेकिन नींद न आई। वह बिस्तर पर लेटा, आँखें बंद, गुलमोहर का चेहरा घूम गया—वो फटी सलवार-कमीज में झलकते स्तन, वो पतली कमर, वो नाजुक जांघें जो भागते वक्त लहरा रही होंगी।

"पचास हजार... वो चूत मेरी होनी थी," वह बुदबुदाया, हाथ नीचे सरक गया। कल्पना में गुलमोहर को नंगा देखा—उसकी चूत को चखते हुए, उसके कराहने की कल्पना। 

लंड सख्त हो गया, बूढ़े बदन में जवानी की आग। 

"ढूँढ लाऊँगा... और जब लाऊँगा, तो पहले तेरी सौतेली माँ को सजा दूँगा—उसके सामने तुझे तोड़ूँगा।"

तभी उसने अपने आदमियों को हवेली पर इकठ्ठा होने को कहा। 
ठाकुर ने सबको इसी वक्त ढूंढने के लिए लगा दिया । किसी भी कीमत पर लड़की ढूँढ लाओ। वरना सब की गांड़ मारूंगा खड़े खड़े। 

कमला ने भी शुरू किया ढूंढने का अभियान —अपने आशिकों को ढूंढने के लिए भेजा,पड़ोसियों से पूछा। लेकिन अंदर से डर था—अगर गुलमोहर न मिली, तो ठाकुर का गुस्सा... उफ्फ, वो तो कमला के बदन को ही निगल लेगा।

गाँव की वो रात अब शिकार की रात बन गई—ठाकुर की भूखी नजरें शहर की ओर।

लेकिन गुलमोहर? वो आर्यन की बाहों में सुरक्षित... अभी के लिए।


कहानी जारी रहेगी
✍️निहाल सिंह 
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#2
Nice update and nice story
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#3
Episode 2: कैसा ये खुमार है?

सुबह की पहली किरणें खिड़की से झाँक रही थीं, हल्की-हल्की धूप जो कमरे को सोने की परत चढ़ा रही थी।

आर्यन ने कल रात ही फैसला कर लिया था—आज ऑफिस नहीं जाना। शुक्रवार था, और उसके लिए तो शनिवार-रविवार की छुट्टियाँ बोनस। मतलब, पूरे तीन दिन... गुलमोहर के साथ।

कोई जल्दबाजी नहीं, बस वो और वो—एक नई दुनिया की शुरुआत।
वह सोफे पर लेटा था, चादर आधी कमर तक, ऊपरी बदन नंगा।

पच्चीस साल की जवानी उसके शरीर में उफान ला रही थी—चौड़ी छाती पर हल्के बाल, पेट की मांसपेशियाँ जो साँसों से हल्के से उभर रही थीं। नींद में उसके होंठ हल्के खुले, चेहरा शांत, जैसे कोई बच्चा जो सपनों में खोया हो। क्यूट... इतना क्यूट कि कोई भी पिघल जाए।

बेडरूम का दरवाजा धीरे से खुला।
गुलमोहर बाहर आई—आर्यन की टी-शर्ट पहने, जो उसके नाजुक बदन पर ढीली लेकिन मोहक लग रही थी। नीचे लोअर, जो उसके पतले कूल्हों पर चिपका हुआ था, जांघों की चिकनी त्वचा हल्के से झलक रही। बाल बिखरे, चेहरा तरोताजा—नहाने के बाद की वो चमक अभी बाकी थी।

वह रुकी, सोफे की ओर देखा। आर्यन सो रहा था। "हाय राम..." उसके मन में एक तरंग दौड़ गई। सोते हुए वह इतना मासूम लग रहा था—बाल माथे पर बिखरे, भौहें हल्की सिकुड़ीं, होंठों पर एक हल्की मुस्कान। गुलमोहर का दिल धड़क उठा। "कितना क्यूट... जैसे कोई छोटा बच्चा।"

उसे चूमने का मन हुआ—उन होंठों को, उसकी गर्माहट महसूस करने का। उसके बदन में एक सिहरन दौड़ गई, स्तन ऊपर-नीचे हो गए साँसों से। लेकिन वह रुकी। "नहीं... गुलमोहर, तू पागल हो गई है? अभी तो..." भावनाओं को दबाया, लेकिन नजरें हट न सकीं।

वह खड़ी हो गई, चुपचाप देखती रही—कई मिनट। आर्यन की छाती का उतार-चढ़ाव, उसके कंधों की चौड़ाई, कमर पर बालों की हल्की सी लकीर ,. सब कुछ उसे खींच रहा था। मन में कल्पना घूम रही—उसके स्पर्श की, उसकी बाहों की।
अचानक, उसके हाथ अनजाने में साइड टेबल पर रखे फूलदान को छू गया। "धड़ाम!"—दान नीचे गिरा, मिट्टी बिखर गई, फूल बिखरे।

शोर से आर्यन की चौंककर आँखें खुल गई। लेकिन जैसे ही नजर उठी, वो ठहर गई—गुलमोहर पर। उनकी नजरें मिलीं।

गुलमोहर के चेहरे पर खिड़की से आ रही सुबह की हल्की धूप की किरण पड़ रही थी, उसके गेहुंए रंग को सोने जैसा चमका रही। बालों पर चमक, आँखों में एक मासूम चमक, होंठ हल्के गुलाबी। टी-शर्ट की गर्दन से उसके गले की नाजुक लकीर झलक रही, स्तनों की हल्की उभार धूप में और मोहक।

आर्यन का दिल उछल गया—जैसे कोई तीर सीधा छलनी कर गया।

"वाह... सुबह के उजाले में तो परी लग रही है," मन ही मन बोला। गुलमोहर का रूप निखर गया था—रात की थकान गायब, बस वो अल्हड़ सौंदर्य, जो उसे बाँध ले।

नजरें मिलीं तो समय रुक सा गया—कई पल तक, बिना शब्दों के बातें होती रहीं। आँखों में आँखें, जैसे कोई धागा खिंच रहा हो।

आर्यन की नजरें उसके चेहरे से फिसलीं—होंठों पर, गले पर, फिर नीचे... टी-शर्ट के कर्व पर।

गुलमोहर महसूस कर रही थी—उसकी नजरों की गर्मी, जो उसके बदन को सुलगा रही। उसके गाल लाल हो गए, लेकिन नजरें न हटीं।

आर्यन के मन में तूफान—उसके नाजुक बदन की कल्पना, रात की वो सिहरन।
गुलमोहर के मन में भी—उसकी क्यूट मुस्कान, मजबूत बाहें। हवा में तनाव था—रोमांटिक, उत्तेजक।

लेकिन तभी किचन से चाय की हल्की खुशबू आई—गुलमोहर ने पहले ही उबाल रखी थी।

वो खुशबू ने हकीकत बुला ली, और होश लौटा।

आर्यन ने हल्के से खाँसा, सोफे पर उठ बैठा। चादर सरका, उसका ऊपरी बदन और साफ नजर आया—मसल्स की हल्की चमक, पसीने की बूंदें।

"गुड मॉर्निंग... नींद आई अच्छे से?" उसकी आवाज भारी, लेकिन मुस्कान के साथ।

गुलमोहर शर्मा गई, फूलों को समेटने लगी। "हाँ... शुक्रिया। आप?" लेकिन नजरें फिर मिलीं—वो अधूरी बात, जो अभी बाकी थी।

गुलमोहर ने फूल समेटे, फिर मुस्कुराई। "साहब... फ्रेश हो जाओ। मैंने आपके लिए चाय बनाई है।" उसकी आवाज में एक मासूम अपील थी, जैसे घर की मालकिन बन गई हो।

आर्यन का दिल पिघल गया—ये पहली बार था जब किसी और ने उसके लिए चाय बनाई हो।

"ठीक है,। पाँच मिनट में आता हूँ।" वह उठा, बाथरूम की ओर चला गया।
गुलमोहर किचन में लग गई।

आर्यन फ्रेश होकर लौटा—गीले बाल, साफ शर्ट-ट्राउजर में, और भी हैंडसम लग रहा।

दोनों सोफे पर बैठे, चाय के प्याले थामे। सिप लेते हुए नजरें मिलीं—आर्यन की गहरी आँखें गुलमोहर के चेहरे पर ठहर गईं, उसके गालों की लाली पर।

"ये चाय... स्वर्ग जैसी है," वह बोला, मुस्कुराते हुए। गुलमोहर शर्मा गई,चाय का प्याले को अपने हाथों में छिपा लिया।

हवा में वो तनाव फिर लौट आया—रोमांटिक, हल्की उत्तेजना भरी। चाय खत्म हुई, लेकिन बातें न रुकीं।

आर्यन ने अचानक कहा, "तुम्हें लेकर कहीं जाना है। तैयार हो जाओ।" गुलमोहर चौंकी, "कहाँ?" "सरप्राइज," वह विन्क किया।

दस बजे तक दोनों तैयार।

कार में बैठे, आर्यन ने इंजन स्टार्ट किया। रास्ते में हल्की बातें—गुलमोहर के गाँव की, आर्यन की जॉब की।

लेकिन उसकी नजरें बार-बार उसके जांघों पर फिसल जातीं, जो लोअर से हल्के से नजर आ रही थीं।

मॉल पहुँचे—बड़ा सा, चमचमाता।

अंदर घुसते ही गुलमोहर की आँखें फैल गईं—दुकानों की रौनक, कपड़ों की चमक।

आर्यन ने उस का हाथ पकड़ लिया, "चलो, शॉपिंग का समय।"
वह उसे पहली दुकान में ले गया—महिलाओं के सेक्शन में। "जो पसंद आए, ले लो।"

गुलमोहर हिचकिचाई, लेकिन आर्यन ने जोर दिया।

एक के बाद एक—दस अलग-अलग रंगों के सलवार सूट: लाल सिल्क का, नीला कॉटन का, हरा एम्ब्रॉयडरी वाला, पिंक प्रिंटेड... सब बढ़िया मटेरियल, उसके नाजुक बदन के लिए परफेक्ट।

ट्रायल रूम में जाती, आर्यन बाहर इंतजार करता—कल्पना करता उसके बदन पर उन सूट्स का फिट। हर बार बाहर आती, तो मुस्कुराहट के साथ घूमती।
"कैसा लग रहा?" "परफेक्ट... राजकुमारी लग रही हो," वह फुसफुसाता। गुलमोहर शर्मा जाती, लेकिन खुशी से चमकती आँखें। बैग भर गए—सूट्स, जूते, बैग्स।

फिर लॉन्जरी सेक्शन। गुलमोहर को शर्म आ गई।

"साहब... ये..." लेकिन आर्यन ने कहा, "जरूरी है ना। जाओ, चुन लो। मैं बाहर हूँ।"

वह अंदर चली गई—पैंटी-ब्रा चुनने लगी, नाजुक लेस वाली, उसके स्तनों और कूल्हों के लिए सॉफ्ट।

आर्यन बाहर खड़ा, लेकिन नजरें इधर-उधर। तभी उसकी नजर पड़ी एक साड़ी पर—ब्लैक कलर की, प्लेन सिल्क, इतनी स्मूथ कि स्पर्श करने को मन करे।

"ये... गुलमोहर के लिए परफेक्ट।" उसने खरीदी, लेकिन बैग में छिपा ली। न गुलमोहर को दी, न बताया। मन में सोचा, "समय आएगा... सरप्राइज।"

कल्पना की—वो साड़ी उसके बदन पर लिपटी, कर्व्स उभारती।

दोपहर तक शॉपिंग खत्म।

दोनों थके हुए, लेकिन खुश। कार में लौटे, बैग्स पीछे। घर पहुँचे, आर्यन ने दरवाजा खोला।

"फ्यू... क्या दिन था!" वह सोफे पर धम्म से लेट गया, आँखें बंद।
गुलमोहर ने बैग्स रखे, लेकिन आर्यन की थकान देखी—उसकी छाती ऊपर-नीचे, बाल बिखरे।

"सो रहा है... कितना केयरिंग।" वह मुस्कुराई। किचन में लग गई—फ्रिज में जो था: कुछ सब्जियाँ, चावल, दाल। इम्प्रोवाइज्ड खाना बनाया—सिंपल लेकिन प्यार भरा। मसाले डाले, भाप आने लगी।

एक घंटे बाद तैयार—गर्मागर्म सब्जी, चावल। वह आर्यन के पास गई, हल्के से कंधा झकझोरा। "साहब... उठो। खाना तैयार है।"

आर्यन की आँखें खुलीं, नींद भरी मुस्कान फैल गई। लेकिन जैसे ही 'साहब' शब्द कान में पड़ा, वह हल्का सा चौंका। सोफे पर आधा उठा।

"अरे गुलमोहर... तुम मुझे साहब मत कहा करो। ऐसा लगता है जैसे मैं 50-60 का अंकल हूँ। मैं तो 25 साल का जवान मर्द हूँ!" कहते हुए उसने बाजू मोड़ी, अपने बाइसेप्स दिखाए—मजबूत, उभरे हुए, जो शर्ट की आस्तीन से बाहर झाँक रहे थे। हल्की मसल्स की चमक, जो और भी आकर्षक लग रही।

गुलमोहर की नजरें आर्यन के बाइसेप्स पर ठहर गईं—वो मजबूत, उभरे हुए मसल्स, शर्ट की आस्तीन से बाहर झाँकते, हल्की चमक के साथ। एक पल के लिए, उसके मन में एक सिहरन दौड़ गई।

"हाय... कितने मजबूत... कितने आकर्षक... अगर ये हाथ मुझे छू लें, तो क्या होगा?" वह मन ही मन सोची, कल्पना में आर्यन के हाथों का स्पर्श उसके बदन पर फिसलता महसूस हुआ—कंधों पर, कमर पर, नीचे की गीली गहराई की पंखुड़ियां पर ।

इस कल्पना से उसके गाल लाल हो गए, साँसें तेज।

शरम से आँखें नीची, लेकिन मन में वो उत्तेजना—आर्यन का जवान बदन उसे बुला रहा था। "हाँ... जवान ही तो लगते हो... और कितना जवान!"
आर्यन को तुरंत होश आया—उसकी आँखें फैल गईं। "अरे... मैंने क्या बोल दिया?"

वह मन में कसमसाया, चेहरा गर्म हो गया।

आर्यन ने खाँसते हुए अपनी गलती सुधारने की कोशिश की, "म्ह्ह... मतलब... खाना... हाँ, खाना तैयार है ना? चलो, ठंडा न हो जाए।"

लेकिन तब तक देर हो चुकी थी—वो शब्द उनके बीच बस चुके थे, हवा में एक रोमांटिक, उत्तेजक तनाव छोड़कर। गुलमोहर ने सिर्फ सिर हिलाया, मुस्कुराती हुई टेबल की ओर इशारा किया।

दोनों डाइनिंग टेबल पर बैठे। गुलमोहर ने चावल पर सब्जी परोसी—हरी मटर वाली आलू की सब्जी, मसालों की हल्की खुशबू।

आर्यन ने एक कौर लिया, आँखें बंद कीं।

"उम्म... ये स्वाद..." आज बहुत दिनों के बाद घर जैसा लगा—माँ की याद आई, वो पुरानी रसोई की गर्माहट।

उसके गले में एक गांठ सी लग गई, आँखें नम हो गईं। "गुलमोहर... तूने तो जादू कर दिया। इतने दिनों बाद... घर का अहसास।" वह बोला, आवाज भारी।
गुलमोहर ने देखा—उसकी आँखों में चमक, लेकिन भावुक। "आर्यन... खुशी हुई।" वह सुधार गई, लेकिन शरम अभी बाकी।

खाना चला—हँसी-मजाक, लेकिन हर नजर में वो अधूरी बात। आर्यन की नजरें उसके होंठों पर ठहर जातीं, जहाँ चावल की बूंद चिपकी थी।

गुलमोहर महसूस कर रही थी—उसकी नजरों की गर्मी, जो उसके बदन को सुलगा रही। प्लेटें साफ हो गईं, लेकिन मन भरा नहीं।
खाना खत्म, दोनों सोफे पर बैठे।

आर्यन ने बैग्स की तरफ इशारा किया, मुस्कुराते हुए।

"गुलमोहर, तुमने मेरा आज बहुत खर्चा करवा दिया—दस सूट्स, जूते... लेकिन अभी तक मेरे लोअर और टी-शर्ट पर कब्जा कर रखा है।"

वह हँसा, लेकिन आँखों में शरारत। "जाओ, और आज खरीदे कपड़ों में से कोई पहनकर दिखाओ। देखूँ, राजकुमारी कैसी लगेगी।"

गुलमोहर शरमा गई—गालों पर लाली, उंगलियाँ टी-शर्ट के किनारे पर फिरने लगीं।

"अच्छा... ठीक है।" वह उठी, बैग्स उठाकर बेडरूम में चली गई। दरवाजा बंद किया, लेकिन मन धड़क रहा था।

"वह देखेगा... मुझे ऐसे..." आईने के सामने खड़ी, उसने लोअर-टी-शर्ट उतारी। नंगा बदन—स्तन गोल, निप्पल्स हल्के सख्त, कमर पतली, कूल्हे लहराते।
पहले लॉन्जरी का बैग खोला। मॉल से खरीदी वो नाजुक ब्रा-पैंटी—सफेद लेस वाली, उसके बदन के लिए परफेक्ट।

वह सिहर उठी, आईने में खुद को देखते हुए। ब्रा पहनने लगी—स्ट्रैप्स कंधों पर फिसले, कप उसके स्तनों को सहलाते हुए समेट लिया।

निप्पल्स पर हल्का दबाव, जो एक मीठी सिहरन पैदा कर गया।

"आर्यन... अगर देख ले तो..." मन में उसकी नजरें घूम गईं। फिर पैंटी—पतली स्ट्रिंग्स कूल्हों पर लिपटीं, उसकी चूत को नाजुकता से ढकते हुए।
जांघों के बीच की वो नरमी, जो अब छिपी लेकिन उत्तेजक। पूरा लॉन्जरी सेट उसके बदन पर चिपका—कामुक, लेकिन मासूम।

अब नीले रंग का सलवार सूट चुना—सिल्क का, एम्ब्रॉयडरी वाला।
सलवार पहनी, जो कूल्हों पर लहराई; फिर कमीज, जो ब्रा की उभार को हल्के से उभार दे रही।

बाल संवारे, काजल लगाया—जो मॉल से ही लिया था। शरमाते हुए बाहर आई, कदम धीमे।

आर्यन ने देखा—सोफे से उठा, साँसें रुक गईं।

"गुलमोहर..... वाह।" नीला सूट उसके गेहुंए रंग पर चमक रहा था, कमीज की नेकलाइन से गले की लकीर झलक रही, दुपट्टा कंधों पर लहराता।

उसके कदमों की थिरकन, कमर का हल्का मोड़—सब कुछ उत्तेजक, लेकिन मासूम। आर्यन की नजरें ऊपर से नीचे फिसलीं—जांघों की लकीर पर, एंकल्स पर।

मन में आग लग गई, लेकिन वह मुस्कुराया।
"परफेक्ट...किसी परी से कम नहीं।"
गुलमोहर शर्मा कर खड़ी रही, लेकिन आँखों में चमक—उसकी तारीफ ने दिल छू लिया।

शाम ढल रही थी, लेकिन उनके बीच की शाम?
अभी तो बस शुरू हुई थी...
कहानी जारी रहेगी..
✍️निहाल सिंह 
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#4
मजेदार कहानी लग रही है अब देखना है आगे क्या है ।
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#5
Episode 3: हम आपके हैं कौन 

आर्यन ने गुलमोहर की तारीफ़ करने के बाद अचानक गंभीर हो गया।

“गुलमोहर, मैं तुम्हारे बारे में और जानना चाहता हूँ। कल रात तुम बहुत डरी हुई थीं। क्या तुम अब भी पूरी तरह ठीक नहीं हो?”

गुलमोहर को लगा कि आर्यन वाक़ई उसकी परवाह करता है। उसने आँखें नीचे कीं और धीरे-धीरे अपने गाँव, सौतेली माँ के अत्याचार के निशानों और हरिया ठाकुर के बारे में विस्तार से बताया — वह दर्दनाक अतीत जो आर्यन को सिर्फ़ एक झलक में पता चला था। वह रो पड़ी।

गुलमोहर के रोने से आर्यन का दिल पसीज गया। उसके अंदर का रक्षक जाग उठा।

आर्यन धीरे से उठा और गुलमोहर के पास बैठ गया। उसने उसके सिर पर हाथ रखा। सांत्वना देते हुए उसके आँसू पोंछे।

“बस… बस, अब नहीं। यह सब खत्म हो चुका। सुनो गुलमोहर, तुम यहाँ हो, तुम सुरक्षित हो। मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूँगा। तुम्हें मेरे साथ यहाँ रहने के लिए किसी चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं। अगर वो हरिया ठाकुर या कोई और तुम्हारी तरफ़ आँख उठाकर देखेगा, तो मैं…” उसने गुस्से से मुट्ठी भींच ली।

गुलमोहर को महसूस हुआ कि आर्यन सिर्फ़ आकर्षक नहीं, एक मज़बूत सहारा है। उसका विश्वास आर्यन पर पहाड़-जितना मजबूत हो गया। वह पहली बार सच्चे मन से मुस्कुराई, उसकी आँखें चमक उठीं।

रात होने लगी। आर्यन माहौल हल्का करना चाहता था।
“चलो, अब बहुत हो गईं गंभीर बातें। आज का दिन बहुत लंबा था। हम एक कॉमेडी फिल्म देखते हैं।”

वह सोफे पर नीले सूट में बैठी गुलमोहर के लिए जगह बनाता हुआ खिसका।

फिल्म देखते-देखते थकी हुई गुलमोहर अनजाने में अपना सिर आर्यन के कंधे पर टिका देती है — यह पल विश्वास और सुरक्षा का प्रतीक था।

आर्यन का शरीर फिर तड़प उठा, मगर वह खुद को संयम में रखता है। उसने अपनी एक बाँह गुलमोहर के कंधों के चारों ओर डाल दी — सिर्फ़ रक्षक की तरह, जैसे वह कोई नन्हा बच्चा हो। धीरे-धीरे वह उसके सूखे और साफ़ बालों को सहलाने लगा।

रात बहुत गहरी हो चुकी थी। सोफे पर आर्यन के कंधे पर सिर टिकाए सोई गुलमोहर की साँसें शांत थीं।

आर्यन का हाथ अब भी उसे थामे था, लेकिन उसके अंदर का तूफ़ान शांत हो चुका था।

अब उसके लिए गुलमोहर सिर्फ़ आकर्षण नहीं, एक पवित्र ज़िम्मेदारी थी।

आर्यन ने धीरे से गुलमोहर को गोद में उठाया। नींद में उसका बदन हल्का और बेजान-सा लग रहा था। वह उसे अपनी मजबूत बाँहों में लेकर बेडरूम की ओर बढ़ा।

गुलमोहर को बिस्तर पर लिटाया, चादर ठीक की और एक पल रुका। उसकी नज़र उसके मासूम चेहरे पर थी — जहाँ अब डर नहीं, सिर्फ़ शांति थी।

आर्यन ने धीरे से उसके माथे पर हाथ फेरा, फिर पैरों के पास फर्श पर बैठ गया। वह चौकीदार की तरह उसे सोता देखता रहा — नीली पोशाक, शांत चेहरा, वह मासूमियत जिसे दुनिया ने तोड़ने की कोशिश की थी।

देखते-देखते आर्यन की आँखें भी भारी हो गईं। रात भर का तनाव और भावनात्मक उथल-पुथल ने उसे थका दिया था। उसने सिर बिस्तर के किनारे पर टिकाया और गुलमोहर के पैरों के पास ही ज़मीन पर सिमटकर सो गया।

सुबह की पहली किरणें खिड़की से झाँकने लगीं।
गुलमोहर की आँख खुली। उसकी नज़रें कमरे में घूमीं और पैरों के पास ठिठक गईं।

आर्यन!
पहले पल तो वह डर गई — एक अजनबी मर्द, एक ही कमरे में। दिल जोर से धड़का। फिर उसने देखा — आर्यन कितनी अजीब स्थिति में सो रहा था, पैर बिस्तर पर, सिर ज़मीन पर।

उसने खुद को छुआ — वह पूरी तरह सुरक्षित थी। कपड़े जस के तस।

“हाय राम…” उसके मन में गहरा भाव उमड़ आया।
“अगर कोई और होता तो शायद अब तक मुझे चख चुका होता। पर आर्यन कितना नेकदिल है। उसने मुझे छुआ भी नहीं अभी तक।”

उसका दिल कृतज्ञता और एक नए प्यार से भर गया। यह सिर्फ़ आकर्षण नहीं, विश्वास और सम्मान था।

वह उठी और बिस्तर पर बैठी। आर्यन के चेहरे पर नींद की शांति थी — बाल माथे पर बिखरे, क्यूट मासूमियत।
गुलमोहर ने हिम्मत जुटाई, हाथ बढ़ाया और उसके बालों को सहलाया।

फिर झुककर अपने होंठ उसके होंठों से छुआ — एक हल्की-सी, मासूम पप्पी।

“मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ, आर्यन,” उसने फुसफुसाया।

आर्यन अभी गहरी नींद में था। गुलमोहर मुस्कुराई और बाथरूम की ओर चली गई।

आर्यन की नींद गुलमोहर के बाहर निकलने के बाद टूटी। उसे याद आया कि वह गुलमोहर के पैरों के पास सोया था। वह उठा, अंगड़ाई ली और सोफे पर आ गया।

जब गुलमोहर नहाकर निकली तो आज पीले सूट में वह ताज़गी से भरी लग रही थी। गालों पर हल्की लाली — रात के भावुक पलों और सुबह की पप्पी की वजह से।

आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा, “गुड मॉर्निंग, राजकुमारी।”
गुलमोहर शर्मा कर बोली, “गुड मॉर्निंग, आर्यन।”
दोनों किचन में नाश्ते के लिए खड़े थे — चाय और टोस्ट।

आर्यन टोस्ट पर जैम लगाते हुए गुलमोहर की आँखों में देखता रहा। वह अब और इंतज़ार नहीं कर सका।
उसने टोस्ट साइड में रखा और गुलमोहर के पास आ गया। धीरे से उसका गाल थामा।

“गुलमोहर,” उसकी आवाज़ भारी मगर सच्चाई से भरी थी, “मैं तुम्हारी कहानी जानता हूँ। मैंने देखा है तुम कितनी टूटी हुई हो। लेकिन जब कल रात तुमने मेरे कंधे पर सिर रखा, मुझे लगा मैं दुनिया का सबसे अमीर आदमी हूँ।”

वह उसकी आँखों में देखता रहा।

“मैं तुम्हारे बिना इस घर की कल्पना भी नहीं कर सकता। मैंने तुम्हें सुरक्षित रखने की कसम खाई है और निभाऊँगा।”

उसने अपना हाथ उसके गाल से नीचे खिसकाया और उसका हाथ थाम लिया।

“मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ, गुल — तुम्हारे दर्द से नहीं, तुम्हारी हिम्मत और मासूमियत से। और मैं तुम्हें हमेशा सम्मान दूँगा।”

गुलमोहर की आँखें भर आईं। वह खुशी के आँसुओं के साथ आर्यन के सीने से लग गई।

इस बार आर्यन का आलिंगन सिर्फ़ सुरक्षा नहीं, प्यार का इकरार था।

आर्यन के प्यार भरे इकरार ने गुलमोहर को निःशब्द कर दिया। वह रो रही थी — खुशी और सुरक्षा के आँसू।
 आर्यन ने उसे कसकर थाम रखा था — उसकी बाँहें अब उसकी ढाल और उसका घर थीं।

कुछ देर बाद गुलमोहर शांत हुई। उसकी आँखें नम मगर चमकती हुईं।

“आर्यन…” बस इतना ही कह पाई।
आर्यन ने उसके गालों के आँसू पोंछे। अब शब्दों की ज़रूरत नहीं थी। वह धीरे से झुका।

गुलमोहर ने आँखें बंद कर लीं, साँसें तेज़ हो गईं।
आर्यन के होंठ पहली बार गुलमोहर के होंठों से मिले।
चुम्बन शुरू में नरम और मीठा था — जैसे दो प्यासे होंठ एक-दूसरे को पहचान रहे हों।

धीरे-धीरे गहरा होता गया। आर्यन का एक हाथ उसके गाल पर, दूसरा कमर पर — उसे अपने करीब खींच लिया। दोनों के बदन चिपक गए।

गुलमोहर ने बाँहें उठाईं और आर्यन की गर्दन लपेट लीं। उसने भी पूरी शिद्दत से जवाब दिया।

किचन की गर्माहट, चाय की खुशबू — सब मिट गया। सिर्फ़ उनकी तेज़ साँसें बाकी थीं।

आर्यन ने उसे उठाया और दीवार से सटा लिया। होंठ जुड़े ही रहे। गुलमोहर के पैर हवा में, जाँघें आर्यन की कमर से चिपकी हुई थीं। वह आर्यन की जवान मर्दानगी का दबाव साफ़ महसूस कर रही थी।

आख़िरकार साँसें फूलने पर आर्यन पीछे हटा। दोनों के होंठ गीले, आँखें बंद, चेहरे खुशी और कामुकता से दमक रहे थे।

आर्यन ने माथा उसके माथे से टिकाया और फुसफुसाया, “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, गुल।”
गुलमोहर ने हँसते हुए, आँखें बंद रखते हुए सिर हिलाया। वह अब पूरी तरह आर्यन की थी।

तभी आर्यन का दायाँ हाथ अनजाने में मेज पर रखे रेडियो को छू गया। 

पावर बटन दब गया। 

एक पल की खामोशी… फिर अचानक वो मधु धुन कमरे में फैल गई…
FM पर हम आपके हैं कौन का गीत बजने लगा।

♪♫ बेचैन है मेरी नज़र… 
है प्यार का कैसा असर… 
ना चुप रहो, इतना कहो… 
हम आपके, आपके हैं कौन… ♫♪

गुलमोहर की आँखें एक पल को खुलीं, फिर और कसकर बंद हो गईं। 

वो गाना जैसे उसके दिल की बात कह रहा था। 
आर्यन ने होंठ हटाए बिना, मुस्कुराते हुए उसे और करीब खींच लिया। 
 
उसके हाथ अब गुलमोहर की कमर से ऊपर सरक गए—उसकी पीठ पर, उसकी गर्दन पर। 
गुलमोहर ने भी जवाब दिया—उसकी उंगलियाँ आर्यन के बालों में उलझ गईं।

♪♫ खुद को सनम रोका बड़ा… 
आखिर मुझे कहना पड़ा… 
ख्वाबों में तुम आते हो क्यों… 
हम आपके, आपके हैं कौन… ♫♪

गुलमोहर के होंठों से एक हल्की सी आवाज़ निकली—जैसे वो गा रही हो, या कह रही हो। 
“आर्यन…” 

आर्यन ने चुंबन को और गहरा कर दिया। उसकी जीभ ने हल्के से उसके होंठों को छुआ। 

गुलमोहर का बदन काँप उठा। उसने खुद को पूरी तरह से उसके हवाले कर दिया। 

अब दोनों के बदन एक-दूसरे से ऐसा चिपके थे जैसे अलग होना नामुमकिन हो।

♪♫ बेचैन है मेरी नज़र… है प्यार का कैसा असर… 
हैं होश गुम, पूछो ना तुम… 
हम आपके, आपके हैं कौन… ♫♪

गुलमोहर के मन में सिर्फ एक ही बात गूँज रही थी— 
मैंने खुद को बहुत रोका था… 
पर अब नहीं रोक पाई… 
तुम मेरे ख्वाबों में नहीं… 
अब मेरी ज़िंदगी में हो… 
मैं तुम्हारी हूँ… 
केवल तुम्हारी 


आर्यन ने आखिरकार होंठ हटाए। दोनों की साँसें फूली हुई थीं। 

उसने अपना माथा गुलमोहर के माथे से टिका दिया। 
गुलमोहर के गाल शर्म से लाल थे—ठीक वैसे ही जैसे गाने में कहा जा रहा था। 
आर्यन ने फुसफुसाया, 
“तेरा चेहरा सब बता रहा है गुल… 
अब कुछ कहने की ज़रूरत नहीं…”

फिर उसने फिर से उसके होंठ अपने होंठों में समेट लिए। 
गाना चलता रहा… 
चुंबन चलता रहा… 
और उस पल गुलमोहर ने बिना एक शब्द बोले, अपने पूरे वजूद से कह दिया—

हम आपके हैे…सिर्फ आपके हैं  ❤️

कहानी जारी रहेगी...
✍️निहाल सिंह 
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#6
Nice update and awesome story
[+] 1 user Likes sushilt20's post
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