17-11-2025, 10:54 AM
Episode 1: जब वो मिली मुझे पहली बार
रात का पहर था, शहर की चकाचौंध वाली सड़कें अब सन्नाटे में डूब चुकी थीं।
आर्यन, पच्चीस साल का जवान मर्द, अपनी ब्लैक एसयूवी चला रहा था।
लंबा कद, चौड़ी छाती, काले लहराते बाल जो हवा में उड़ रहे थे, और आँखें—गहरी, जैसे कोई रहस्य छिपा हो।
वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, दिन भर कोडिंग की दुनिया में खोया रहता, लेकिन रातें? वे उसके लिए आजादी की साँसें थीं।
संगीत बज रहा था रेडियो पर—एक पुराना रोमांटिक गाना, जो उसके मन को छू रहा था।
"कसमें वादे निभाएंगे हम," गाता हुआ, वह सोच रहा था अपनी जिंदगी के बारे में। कोई गर्लफ्रेंड नहीं, बस दोस्ती और सपने। लेकिन आज रात कुछ अलग थी—हवा में एक अजीब सी बेचैनी, जैसे कोई किस्मत का धागा खिंच रहा हो।
आर्यन ने एसी की स्पीड कम की, खिड़की खोली। ठंडी हवा उसके चेहरे को सहला रही थी।
अचानक, सड़क के मोड़ पर कुछ चमका—एक छाया, तेजी से दौड़ती हुई। उसने ब्रेक मारा, लेकिन देर हो चुकी थी।
कार रुकी तो सामने एक लड़की पड़ी थी, साँसें फूल रही थीं, पैरों से खून रिस रहा था।
आर्यन का दिल धड़क उठा। वह झपटकर बाहर निकला। "अरे! तुम्हें चोट लगी है?" उसकी आवाज में घबराहट थी, लेकिन कोमलता भी।
लड़की ने सिर उठाया।
गुलमोहर—अठारह साल की नाजुक सी परी, लेकिन आँखों में डर का साया। उसके बाल बिखरे हुए, गेहुंए रंग की त्वचा पसीने से चमक रही थी।
सलवार-कमीज फटी हुई, जो उसके बदन को छुपाने की बजाय उजागर कर रही थी—कमीज का कालर खुला, स्तनों की हल्की उभार झलक रही, सलवार में जांघों की मुलायम लकीरें नजर आ रही।
वह अल्हड़ सी लग रही थी, लेकिन टूटी हुई।
"स-साहब... बचा लो," वह हकलाती हुई बोली, आँखों में आँसू। "एक आदमी... पीछा कर रहा था। भागी आ रही थी... आपकी कार से टकरा गई" उसके पैरों पर खरोंच से दर्द हो रहा था, लेकिन ज्यादा तो दिल का दर्द था।
आर्यन ने झुककर उसे संभाला, अपनी मजबूत बाहों में उठाया।
पहली बार गुल ने किसी को इतना करीब महसूस किया—आर्यन की साँसें उसके गले पर लग रही थीं, आर्यन के बदन की गर्मी उसके सीने में समा रही।
"शशश... चुप। कुछ नहीं होगा। मैं आर्यन हूँ। तुम?"
कार के दरवाजे पर उसे बिठाते हुए बोला।
"गुलमोहर," वह फुसफुसाई, शर्मा गई।
आर्यन ने उसके पैरों को सहलाया, रूमाल से खून पोंछा। हर स्पर्श में एक करंट-सा दौड़ गया—उसके नाजुक पैरों की त्वचा इतनी मुलायम थी।
"तुम्हें घर छोड़ दूँ?" उसने पूछा, लेकिन गुलमोहर का सिर नकार में हिल गया। "नहीं... घर? वह तो जेल है।"
उसकी आँखें नम हो गईं।
कार चली, लेकिन रुकी नहीं। आर्यन ने इंजन चालू रखा, लेकिन बातें शुरू कर दीं।
"क्या हुआ? बताओ, अगर मन हो।"
गुलमोहर ने खिड़की की तरफ देखा, चाँद की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी।
फिर, जैसे कोई बाँध टूट गया, वह बह निकली—अपनी दुख भरी दास्तान।
"मेरा बाप... रामलाल... गरीब मजदूर था। लेकिन शराब ने सब हर लिया। रोज पीता, और अब बीमारी—लीवर का कैंसर। बिस्तर पर पड़ा कराहता, 'बेटी, संभाल ले घर,' कहता। लेकिन संभाल कौन रहा था? मेरी सौतेली माँ, कमला। वह... वह राक्षसी है। बचपन से मारती-पिटती। 'तू बोझ है, निकल जा,' चिल्लाती। कभी झाड़ू से पीटती, कभी गर्म लोहे से दागती। देखो ना..."
वह बोली और अपनी कमीज की आस्तीन ऊपर सरका दी। कंधे पर निशान—पुराने, कटे हुए, जो उसके नाजुक बदन पर जैसे घाव की कहानी कह रहे थे।
आर्यन का चेहरा सख्त हो गया, हाथ स्टीयरिंग पर कस गया। लेकिन वह चुप रहा, सुनता रहा।
गुलमोहर की आवाज काँप रही थी, हिचकियाँ ले रही थी। उसके स्तन साँसों से ऊपर-नीचे हो रहे, आँसू गालों पर लकीरें खींच रहे थे।
"फिर आज... शाम को। कमला ने मुझे बेच दिया। एक बूढ़े ठाकुर हरिया को, पचास हजार में। 'तेरी जिंदगी संवर जाएगी,' कहती रही।
लेकिन मैं जानती थी—वह तो मेरी जवानी चख लेगा, तोड़ देगा। बाप नशे में सोया था। भाग आई... रात अंधेरी, जंगल से होकर। डर लग रहा था, भूखी निगाहें हर तरफ। और फिर... आपकी कार से।" वह रुक गई, सिर झुका लिया।
कार में सन्नाटा छा गया। आर्यन की साँसें तेज हो गईं। वह रुका, सड़क किनारे।
"गुलमोहर... तुम्हारी व्यथा... मेरी हो गई। कोई नहीं छुएगा अब तुम्हें।" उसने उसके हाथ पकड़े, उंगलियाँ उलझा दीं।
आर्यन की आँखों में आग थी—गुस्से की, लेकिन प्यार की भी।
गुलमोहर ने सिर उठाया, उनकी नजरें मिलीं। हवा में एक तनाव—रोमांटिक, उत्तेजक। उसके होंठ काँप रहे थे, आर्यन की नजर फिसली—उसके गले की लकीर पर, उसके कमर के वक्र पर।
लेकिन वह रुका।
"चलो, मेरे अपार्टमेंट। वहाँ सुरक्षित रहोगी। वहां सोचेंगे क्या करना है।"
कार फिर चली।
शहर के पोश इलाके में आर्यन का फ्लैट था—छोटा सा, लेकिन साफ-सुथरा, दीवारों पर पोस्टर, खिड़की से चाँदनी झाँक रही थी।
अंदर घुसते ही गुलमोहर ने राहत की साँस ली।
आर्यन ने दरवाजा बंद किया, लाइट जलाई।
"बैठो," वह बोला, सोफे की तरफ इशारा करते हुए।
गुलमोहर बैठ गई, थकान से काँप रही थी।
आर्यन ने पानी का गिलास दिया, फिर मरहम-पट्टी का बॉक्स। घुटनों पर बैठा, उसके पैरों को सहलाया।
"दर्द ज्यादा हैं?" उसने पूछा, आँखें उठाकर।
गुलमोहर ने सिर हिलाया, लेकिन उसकी नजरें आर्यन के चेहरे पर ठहर गईं—उसकी मजबूत जबड़े की लकीर पर, उसके कंधों पर। स्पर्श में एक जादू था—उसके हाथों की गर्मी उसके बदन में समा रही।
आर्यन ने पट्टी बाँध दी, फिर खड़ा हो गया।
"तुम थकी हुई लग रही हो। नहा लो, तरोताजा हो जाओ। बाथरूम वहीँ है," उसने इशारा किया, दाहिने तरफ के दरवाजे की ओर। गुलमोहर का चेहरा लज्जा से लाल हो गया।
वह झुककर बोली, "साहब... लेकिन... मेरे पास पहनने को कोई और कपड़े नहीं हैं। ये तो... फटे हुए हैं।"
उसकी उंगलियाँ अपनी सलवार-कमीज की फटी कगारों पर फिर रही थीं, जो उसके बदन को और भी उजागर कर रही थीं।
आर्यन ने एक पल सोचा, फिर अलमारी की ओर बढ़ा। "रुको," वह मुस्कुराया, एक सफेद टी-शर्ट और ग्रे लोअर निकालते हुए।
टी-शर्ट बड़ी थी, उसके कंधों तक ढुलमुल, लेकिन लोअर लूज।
"ये ले लो। मेरे हैं, लेकिन साफ हैं। पहन लो, आराम मिलेगा।"
गुलमोहर ने कपड़े लिए, उसकी उंगलियाँ आर्यन की उंगलियों से छू गईं—एक हल्की सी सिहरन दौड़ गई।
"शुक्रिया... साहब," वह फुसफुसाई, आँखें नीची करके। फिर, शर्माते हुए बाथरूम की ओर चली गई, दरवाजा बंद किया।
बाथरूम के अंदर, ठंडी टाइलें उसके पैरों को छू रही थीं। गुलमोहर ने आईना देखा—अपना चेहरा, बिखरे बाल, फटी कमीज जो उसके स्तनों की उभार को मुश्किल से ढक रही थी।
पसीना और धूल से सना बदन, लेकिन नीचे छिपी वो नाजुकता जो कभी किसी ने न छुई।
उसने साँस ली, और धीरे से कमीज के बटन खोलने लगी। ऊपरी बटन खुला, तो उसके गले की हल्की लकीर नजर आई—गेहुंए रंग की त्वचा, जो चाँदनी की तरह चिकनी।
फिर अगला बटन... कमीज खुली, कंधे से सरक गई। उसके स्तन आजाद हो गए—किशोरावस्था की मिठास से भरे, गोल, निप्पल गुलाबी और सख्त, जैसे कोई फूल की कली जो छूने को बुला रही हो।
वह मन ही मन आर्यन को याद करने लगी—उसकी मजबूत बाहें, जो उसे कार में उठा रही थीं।
"काश... वह यहीं होता," सोचा, और एक हल्की सी मुस्कान उसके होंठों पर आ गई।
फिर सलवार की डोरी खींची। वह नीचे सरक गई, उसके पतले कूल्हे उजागर हो गए—मुलायम, लहराते हुए, जैसे कोई नदी का किनारा।
जांघें लंबी, अंदरूनी तरफ की त्वचा इतनी कोमल कि हवा का स्पर्श भी सिहला दे।
अंत में चड्ढी उतारी—उसकी चूत, नाजुक पंखुड़ियों वाली, अभी-अभी फूली हुई, जो कभी छुई न गई थी। पूरा बदन नंगा, आईने में खड़ी—कमर पतली, पेट सपाट, नाभि एक छोटी सी गहराई।
बाल कंधों पर लहराते, पीठ का वक्र कामुक।
वह आर्यन को फिर याद की—उसकी आँखें, जो उसे ऊपर से नीचे देख रही थीं। "वह... क्या सोचेगा मुझे ऐसे?" दिल की धड़कन तेज हो गई, उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे। लेकिन एक अजीब सी उत्तेजना भी—जैसे कोई आग सुलग रही हो।
वह शावर के नीचे चली गई। गर्म पानी उसके बदन पर बहा—स्तनों पर, कूल्हों पर, जांघों के बीच। साबुन लगाया, झाग से रगड़ा—हर स्पर्श में आर्यन का चेहरा घूम गया।
"उसके हाथ... अगर छूते तो..." सोचते हुए, वह सिहर उठी। आधा घंटा बीत गया, लेकिन लग रहा था जैसे समय रुक गया हो।
आखिरकार, दरवाजा खुला। गुलमोहर निकली—आर्यन की टी-शर्ट पहने, जो उसके कंधों पर ढुलमुल लटक रही थी, लेकिन नीचे से उसके जांघों तक आ रही, स्तनों की उभार हल्के से झलक रहे।
लोअर लूज था, कमर पर बंधा हुआ, लेकिन उसके पतले कूल्हों पर चिपक रहा। बाल गीले, चेहरे पर पानी की बूंदें, आँखें चमक रही।
वह शरमा रही थी, हाथों से टी-शर्ट के किनारे खींच रही।
आर्यन सोफे पर बैठा था, चाय का प्याला थामे। जैसे ही उसने देखा, उसके अंदर हलचल मच गई—दिल की धड़कन तेज, साँसें भारी।
वो टी-शर्ट उसके बदन पर... जैसे उसके लिए बनी हो, लेकिन इतनी सेक्सी। उसके निप्पल्स की हल्की आउटलाइन।
"तुम... बहुत अच्छी लग रही हो," वह बोला, आवाज में एक भारीपन। नजरें फिसल गईं—उसके होंठों पर, उसके गीले बालों पर। अंदर आग लग रही थी, लेकिन वह संभला।
गुलमोहर मुस्कुराई, पास आकर बैठ गई।
रात और गहरी हो रही थी, कमरे में हल्की-सी चाँदनी झाँक रही थी।
गुलमोहर सोफे पर बैठी थी, आर्यन की टी-शर्ट और लोअर में लिपटी हुई, जो उसके बदन पर जैसे दूसरी खाल बन गई थी।
आर्यन ने फोन निकाला, एक ऐप खोला।
"भूख लगी होगी। आज बाहर से खाना मंगवा लेते हैं," वह बोला, मुस्कुराते हुए। गुलमोहर ने सिर हिलाया।
आर्यन को खाना बनाना आता ही नहीं था—चाय या कॉफी के सिवा। वो अक्सर बाहर से कुछ न कुछ मँगवाता रहता, कभी चाइनीज, कभी पिज्जा।
आज तो खास था—गुलमोहर के लिए। "क्या पसंद है? बिरयानी? या कुछ हल्का?" उसने पूछा।
गुलमोहर शरमा गई, "जो भी... आपकी पसंद।"
आधे घंटे बाद डोरबेल बजी। आर्यन ने खाना लिया—गर्मागर्म पनीर टिक्का मसाला, नान, और सलाद। मेज पर सजाया, दोनों ने साथ बैठकर खाया। हँसी-मजाक चला, गुलमोहर की हँसी पहली बार फूटी—आर्यन की बातों पर, जो उसके गाँव की कहानियों को हल्का करने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन हर नजर के मिलाव में एक तनाव था—उसकी नजरें उसके होंठों पर ठहर जातीं, जहाँ मसाला की हल्की चमक थी।
खाना खत्म हुआ, प्लेटें साफ।
आर्यन ने उठकर कहा, "अब सो जाओ। बेडरूम में जाओ, आराम से। मैं सोफे पर ठीक हूँ।"
गुलमोहर ने मना किया, लेकिन आर्यन ने जोर दिया। "तुम मेहमान हो। कल तरोताजा होकर बात करेंगे।" वह बेडरूम में चली गई, दरवाजा बंद किया।
आर्यन लाइट बुझाकर सोफे पर लेट गया, लेकिन नींद कहाँ से आती?
बेडरूम में गुलमोहर लेटी थी, साफ चादर पर, लेकिन मन अशांत था।
आर्यन की टी-शर्ट उसके बदन से चिपकी हुई, उसके स्तनों को हल्के से दबा रही। वह आँखें बंद करके आर्यन को याद करने लगी—उसकी चौड़ी छाती, जो कार में उसे छू रही थी; उसके हाथों की गर्मी, जो पैरों पर लगी थी।
कभी अतीत घेर लेता—सौतेली माँ की मार, बाप की कराहें, बूढ़े ठाकुर की भूखी नजरें। आँसू आ जाते, लेकिन फिर आर्यन का चेहरा घूम जाता—उसके मजबूत कंधे, लहराते बाल, गहरी आँखें जो उसे देखकर चमक उठी थीं।
"वह... अगर छू ले तो?" सोचते हुए, उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। उसके हाथ अनजाने में अपनी जांघों पर फिसल गए, लोअर की नरमी पर।
कशमकश थी—डर और आकर्षण का मिश्रण।
एक तरफ अतीत का जख्म, दूसरी तरफ आर्यन का वो आकर्षण, जो उसके नाजुक बदन को जगा रहा था।
वह मचल उठी बिस्तर पर, साँसें तेज, लेकिन सीमा पर रुकी। "नहीं... अभी नहीं। वह अच्छा इंसान है।"
फिर भी, मन में तूफान—आर्यन के होंठों की कल्पना, उसके स्पर्श की। रात भर नींद न आई, बस यादें और कल्पनाएँ घूमती रहीं।
बाहर सोफे पर आर्यन भी करवटें बदल रहा था। उसकी आँखें बंद, लेकिन दिमाग में गुलमोहर का चेहरा। वो बाथरूम से निकली थी—गीले बाल, टी-शर्ट में उसके स्तनों की हल्की उभार, जांघों की चिकनी लकीरें जो लोअर से झाँक रही थीं।
वह कल्पना कर रहा था—उसके नाजुक बदन को छूना, उसके गले की लकीर को चूमना, उसके पतले कूल्हों को सहलाना। उसके स्तन कितने मुलायम होंगे, निप्पल्स गुलाबी और सख्त... जांघों के बीच वो नरमी, जो कभी छुई न गई। साँसें भारी हो गईं, हाथ अनजाने में नीचे सरक गया, लेकिन रुका।
"नहीं, आर्यन। वह टूटी हुई है। पहले विश्वास, फिर प्यार।" मचल रहा था, लेकिन हद पार न की।
मन में आग सुलग रही थी—गुलमोहर की वो मासूम मुस्कान, वो शर्माती नजरें।
दोनों एक-दूसरे को याद करके तड़प रहे थे, लेकिन रात गुजरी बिना सीमा लाँघे।
सुबह का इंतजार था... नई शुरुआत का।
दूसरी तरफ
गुलमोहर के भागने की खबर कमला को जैसे बिजली की तरह चुभ गई।
रात के दूसरे पहर में, जब गाँव की गलियाँ सन्नाटे में डूब चुकी थीं, कमला ने ठाकुर हरिया को फोन किया।
उसकी आवाज काँप रही थी—गुस्से से, लालच से।
"हरिया जी... वो हरामी बेटी भाग गई!
अब क्या करें?
फोन पर ठाकुर की साँसें भारी हो गईं। साठ साल का बूढ़ा, लेकिन आग अभी बाकी—पीली दांतों वाली मुस्कान के पीछे वो भूख, जो जवानी की तरह सुलग रही थी।
"भाग गई? अरे कमला, तूने तो कहा था कि वो नाजुक फूल है, मेरे लिए ही बनी है। अब मैं खाली हाथ? नहीं... मैं खाली नहीं बैठूँगा। ढूँढो उसे। शहर की सड़कों पर, जंगलों में—हर जगह। वो अकेली लड़की, रात में... कोई न कोई भूखा भेड़िया तो मिलेगा ही। लेकिन अगर मैंने पकड़ लिया, तो तेरी सौतेली बेटी को सजा मिलेगी... मेरी गोद में, मेरी आग में जलकर।"
कमला का चेहरा पीला पड़ गया। वह जानती थी ठाकुर की "सजा" क्या होती—उसकी पुरानी हवेली में, जहाँ दीवारें चीखों से गूँजती थीं।
ठाकुर ने फोन काटा, लेकिन नींद न आई। वह बिस्तर पर लेटा, आँखें बंद, गुलमोहर का चेहरा घूम गया—वो फटी सलवार-कमीज में झलकते स्तन, वो पतली कमर, वो नाजुक जांघें जो भागते वक्त लहरा रही होंगी।
"पचास हजार... वो चूत मेरी होनी थी," वह बुदबुदाया, हाथ नीचे सरक गया। कल्पना में गुलमोहर को नंगा देखा—उसकी चूत को चखते हुए, उसके कराहने की कल्पना।
लंड सख्त हो गया, बूढ़े बदन में जवानी की आग।
"ढूँढ लाऊँगा... और जब लाऊँगा, तो पहले तेरी सौतेली माँ को सजा दूँगा—उसके सामने तुझे तोड़ूँगा।"
तभी उसने अपने आदमियों को हवेली पर इकठ्ठा होने को कहा।
ठाकुर ने सबको इसी वक्त ढूंढने के लिए लगा दिया । किसी भी कीमत पर लड़की ढूँढ लाओ। वरना सब की गांड़ मारूंगा खड़े खड़े।
कमला ने भी शुरू किया ढूंढने का अभियान —अपने आशिकों को ढूंढने के लिए भेजा,पड़ोसियों से पूछा। लेकिन अंदर से डर था—अगर गुलमोहर न मिली, तो ठाकुर का गुस्सा... उफ्फ, वो तो कमला के बदन को ही निगल लेगा।
गाँव की वो रात अब शिकार की रात बन गई—ठाकुर की भूखी नजरें शहर की ओर।
लेकिन गुलमोहर? वो आर्यन की बाहों में सुरक्षित... अभी के लिए।
कहानी जारी रहेगी
रात का पहर था, शहर की चकाचौंध वाली सड़कें अब सन्नाटे में डूब चुकी थीं।
आर्यन, पच्चीस साल का जवान मर्द, अपनी ब्लैक एसयूवी चला रहा था।
लंबा कद, चौड़ी छाती, काले लहराते बाल जो हवा में उड़ रहे थे, और आँखें—गहरी, जैसे कोई रहस्य छिपा हो।
वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, दिन भर कोडिंग की दुनिया में खोया रहता, लेकिन रातें? वे उसके लिए आजादी की साँसें थीं।
संगीत बज रहा था रेडियो पर—एक पुराना रोमांटिक गाना, जो उसके मन को छू रहा था।
"कसमें वादे निभाएंगे हम," गाता हुआ, वह सोच रहा था अपनी जिंदगी के बारे में। कोई गर्लफ्रेंड नहीं, बस दोस्ती और सपने। लेकिन आज रात कुछ अलग थी—हवा में एक अजीब सी बेचैनी, जैसे कोई किस्मत का धागा खिंच रहा हो।
आर्यन ने एसी की स्पीड कम की, खिड़की खोली। ठंडी हवा उसके चेहरे को सहला रही थी।
अचानक, सड़क के मोड़ पर कुछ चमका—एक छाया, तेजी से दौड़ती हुई। उसने ब्रेक मारा, लेकिन देर हो चुकी थी।
कार रुकी तो सामने एक लड़की पड़ी थी, साँसें फूल रही थीं, पैरों से खून रिस रहा था।
आर्यन का दिल धड़क उठा। वह झपटकर बाहर निकला। "अरे! तुम्हें चोट लगी है?" उसकी आवाज में घबराहट थी, लेकिन कोमलता भी।
लड़की ने सिर उठाया।
गुलमोहर—अठारह साल की नाजुक सी परी, लेकिन आँखों में डर का साया। उसके बाल बिखरे हुए, गेहुंए रंग की त्वचा पसीने से चमक रही थी।
सलवार-कमीज फटी हुई, जो उसके बदन को छुपाने की बजाय उजागर कर रही थी—कमीज का कालर खुला, स्तनों की हल्की उभार झलक रही, सलवार में जांघों की मुलायम लकीरें नजर आ रही।
वह अल्हड़ सी लग रही थी, लेकिन टूटी हुई।
"स-साहब... बचा लो," वह हकलाती हुई बोली, आँखों में आँसू। "एक आदमी... पीछा कर रहा था। भागी आ रही थी... आपकी कार से टकरा गई" उसके पैरों पर खरोंच से दर्द हो रहा था, लेकिन ज्यादा तो दिल का दर्द था।
आर्यन ने झुककर उसे संभाला, अपनी मजबूत बाहों में उठाया।
पहली बार गुल ने किसी को इतना करीब महसूस किया—आर्यन की साँसें उसके गले पर लग रही थीं, आर्यन के बदन की गर्मी उसके सीने में समा रही।
"शशश... चुप। कुछ नहीं होगा। मैं आर्यन हूँ। तुम?"
कार के दरवाजे पर उसे बिठाते हुए बोला।
"गुलमोहर," वह फुसफुसाई, शर्मा गई।
आर्यन ने उसके पैरों को सहलाया, रूमाल से खून पोंछा। हर स्पर्श में एक करंट-सा दौड़ गया—उसके नाजुक पैरों की त्वचा इतनी मुलायम थी।
"तुम्हें घर छोड़ दूँ?" उसने पूछा, लेकिन गुलमोहर का सिर नकार में हिल गया। "नहीं... घर? वह तो जेल है।"
उसकी आँखें नम हो गईं।
कार चली, लेकिन रुकी नहीं। आर्यन ने इंजन चालू रखा, लेकिन बातें शुरू कर दीं।
"क्या हुआ? बताओ, अगर मन हो।"
गुलमोहर ने खिड़की की तरफ देखा, चाँद की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी।
फिर, जैसे कोई बाँध टूट गया, वह बह निकली—अपनी दुख भरी दास्तान।
"मेरा बाप... रामलाल... गरीब मजदूर था। लेकिन शराब ने सब हर लिया। रोज पीता, और अब बीमारी—लीवर का कैंसर। बिस्तर पर पड़ा कराहता, 'बेटी, संभाल ले घर,' कहता। लेकिन संभाल कौन रहा था? मेरी सौतेली माँ, कमला। वह... वह राक्षसी है। बचपन से मारती-पिटती। 'तू बोझ है, निकल जा,' चिल्लाती। कभी झाड़ू से पीटती, कभी गर्म लोहे से दागती। देखो ना..."
वह बोली और अपनी कमीज की आस्तीन ऊपर सरका दी। कंधे पर निशान—पुराने, कटे हुए, जो उसके नाजुक बदन पर जैसे घाव की कहानी कह रहे थे।
आर्यन का चेहरा सख्त हो गया, हाथ स्टीयरिंग पर कस गया। लेकिन वह चुप रहा, सुनता रहा।
गुलमोहर की आवाज काँप रही थी, हिचकियाँ ले रही थी। उसके स्तन साँसों से ऊपर-नीचे हो रहे, आँसू गालों पर लकीरें खींच रहे थे।
"फिर आज... शाम को। कमला ने मुझे बेच दिया। एक बूढ़े ठाकुर हरिया को, पचास हजार में। 'तेरी जिंदगी संवर जाएगी,' कहती रही।
लेकिन मैं जानती थी—वह तो मेरी जवानी चख लेगा, तोड़ देगा। बाप नशे में सोया था। भाग आई... रात अंधेरी, जंगल से होकर। डर लग रहा था, भूखी निगाहें हर तरफ। और फिर... आपकी कार से।" वह रुक गई, सिर झुका लिया।
कार में सन्नाटा छा गया। आर्यन की साँसें तेज हो गईं। वह रुका, सड़क किनारे।
"गुलमोहर... तुम्हारी व्यथा... मेरी हो गई। कोई नहीं छुएगा अब तुम्हें।" उसने उसके हाथ पकड़े, उंगलियाँ उलझा दीं।
आर्यन की आँखों में आग थी—गुस्से की, लेकिन प्यार की भी।
गुलमोहर ने सिर उठाया, उनकी नजरें मिलीं। हवा में एक तनाव—रोमांटिक, उत्तेजक। उसके होंठ काँप रहे थे, आर्यन की नजर फिसली—उसके गले की लकीर पर, उसके कमर के वक्र पर।
लेकिन वह रुका।
"चलो, मेरे अपार्टमेंट। वहाँ सुरक्षित रहोगी। वहां सोचेंगे क्या करना है।"
कार फिर चली।
शहर के पोश इलाके में आर्यन का फ्लैट था—छोटा सा, लेकिन साफ-सुथरा, दीवारों पर पोस्टर, खिड़की से चाँदनी झाँक रही थी।
अंदर घुसते ही गुलमोहर ने राहत की साँस ली।
आर्यन ने दरवाजा बंद किया, लाइट जलाई।
"बैठो," वह बोला, सोफे की तरफ इशारा करते हुए।
गुलमोहर बैठ गई, थकान से काँप रही थी।
आर्यन ने पानी का गिलास दिया, फिर मरहम-पट्टी का बॉक्स। घुटनों पर बैठा, उसके पैरों को सहलाया।
"दर्द ज्यादा हैं?" उसने पूछा, आँखें उठाकर।
गुलमोहर ने सिर हिलाया, लेकिन उसकी नजरें आर्यन के चेहरे पर ठहर गईं—उसकी मजबूत जबड़े की लकीर पर, उसके कंधों पर। स्पर्श में एक जादू था—उसके हाथों की गर्मी उसके बदन में समा रही।
आर्यन ने पट्टी बाँध दी, फिर खड़ा हो गया।
"तुम थकी हुई लग रही हो। नहा लो, तरोताजा हो जाओ। बाथरूम वहीँ है," उसने इशारा किया, दाहिने तरफ के दरवाजे की ओर। गुलमोहर का चेहरा लज्जा से लाल हो गया।
वह झुककर बोली, "साहब... लेकिन... मेरे पास पहनने को कोई और कपड़े नहीं हैं। ये तो... फटे हुए हैं।"
उसकी उंगलियाँ अपनी सलवार-कमीज की फटी कगारों पर फिर रही थीं, जो उसके बदन को और भी उजागर कर रही थीं।
आर्यन ने एक पल सोचा, फिर अलमारी की ओर बढ़ा। "रुको," वह मुस्कुराया, एक सफेद टी-शर्ट और ग्रे लोअर निकालते हुए।
टी-शर्ट बड़ी थी, उसके कंधों तक ढुलमुल, लेकिन लोअर लूज।
"ये ले लो। मेरे हैं, लेकिन साफ हैं। पहन लो, आराम मिलेगा।"
गुलमोहर ने कपड़े लिए, उसकी उंगलियाँ आर्यन की उंगलियों से छू गईं—एक हल्की सी सिहरन दौड़ गई।
"शुक्रिया... साहब," वह फुसफुसाई, आँखें नीची करके। फिर, शर्माते हुए बाथरूम की ओर चली गई, दरवाजा बंद किया।
बाथरूम के अंदर, ठंडी टाइलें उसके पैरों को छू रही थीं। गुलमोहर ने आईना देखा—अपना चेहरा, बिखरे बाल, फटी कमीज जो उसके स्तनों की उभार को मुश्किल से ढक रही थी।
पसीना और धूल से सना बदन, लेकिन नीचे छिपी वो नाजुकता जो कभी किसी ने न छुई।
उसने साँस ली, और धीरे से कमीज के बटन खोलने लगी। ऊपरी बटन खुला, तो उसके गले की हल्की लकीर नजर आई—गेहुंए रंग की त्वचा, जो चाँदनी की तरह चिकनी।
फिर अगला बटन... कमीज खुली, कंधे से सरक गई। उसके स्तन आजाद हो गए—किशोरावस्था की मिठास से भरे, गोल, निप्पल गुलाबी और सख्त, जैसे कोई फूल की कली जो छूने को बुला रही हो।
वह मन ही मन आर्यन को याद करने लगी—उसकी मजबूत बाहें, जो उसे कार में उठा रही थीं।
"काश... वह यहीं होता," सोचा, और एक हल्की सी मुस्कान उसके होंठों पर आ गई।
फिर सलवार की डोरी खींची। वह नीचे सरक गई, उसके पतले कूल्हे उजागर हो गए—मुलायम, लहराते हुए, जैसे कोई नदी का किनारा।
जांघें लंबी, अंदरूनी तरफ की त्वचा इतनी कोमल कि हवा का स्पर्श भी सिहला दे।
अंत में चड्ढी उतारी—उसकी चूत, नाजुक पंखुड़ियों वाली, अभी-अभी फूली हुई, जो कभी छुई न गई थी। पूरा बदन नंगा, आईने में खड़ी—कमर पतली, पेट सपाट, नाभि एक छोटी सी गहराई।
बाल कंधों पर लहराते, पीठ का वक्र कामुक।
वह आर्यन को फिर याद की—उसकी आँखें, जो उसे ऊपर से नीचे देख रही थीं। "वह... क्या सोचेगा मुझे ऐसे?" दिल की धड़कन तेज हो गई, उसके स्तन ऊपर-नीचे हो रहे। लेकिन एक अजीब सी उत्तेजना भी—जैसे कोई आग सुलग रही हो।
वह शावर के नीचे चली गई। गर्म पानी उसके बदन पर बहा—स्तनों पर, कूल्हों पर, जांघों के बीच। साबुन लगाया, झाग से रगड़ा—हर स्पर्श में आर्यन का चेहरा घूम गया।
"उसके हाथ... अगर छूते तो..." सोचते हुए, वह सिहर उठी। आधा घंटा बीत गया, लेकिन लग रहा था जैसे समय रुक गया हो।
आखिरकार, दरवाजा खुला। गुलमोहर निकली—आर्यन की टी-शर्ट पहने, जो उसके कंधों पर ढुलमुल लटक रही थी, लेकिन नीचे से उसके जांघों तक आ रही, स्तनों की उभार हल्के से झलक रहे।
लोअर लूज था, कमर पर बंधा हुआ, लेकिन उसके पतले कूल्हों पर चिपक रहा। बाल गीले, चेहरे पर पानी की बूंदें, आँखें चमक रही।
वह शरमा रही थी, हाथों से टी-शर्ट के किनारे खींच रही।
आर्यन सोफे पर बैठा था, चाय का प्याला थामे। जैसे ही उसने देखा, उसके अंदर हलचल मच गई—दिल की धड़कन तेज, साँसें भारी।
वो टी-शर्ट उसके बदन पर... जैसे उसके लिए बनी हो, लेकिन इतनी सेक्सी। उसके निप्पल्स की हल्की आउटलाइन।
"तुम... बहुत अच्छी लग रही हो," वह बोला, आवाज में एक भारीपन। नजरें फिसल गईं—उसके होंठों पर, उसके गीले बालों पर। अंदर आग लग रही थी, लेकिन वह संभला।
गुलमोहर मुस्कुराई, पास आकर बैठ गई।
रात और गहरी हो रही थी, कमरे में हल्की-सी चाँदनी झाँक रही थी।
गुलमोहर सोफे पर बैठी थी, आर्यन की टी-शर्ट और लोअर में लिपटी हुई, जो उसके बदन पर जैसे दूसरी खाल बन गई थी।
आर्यन ने फोन निकाला, एक ऐप खोला।
"भूख लगी होगी। आज बाहर से खाना मंगवा लेते हैं," वह बोला, मुस्कुराते हुए। गुलमोहर ने सिर हिलाया।
आर्यन को खाना बनाना आता ही नहीं था—चाय या कॉफी के सिवा। वो अक्सर बाहर से कुछ न कुछ मँगवाता रहता, कभी चाइनीज, कभी पिज्जा।
आज तो खास था—गुलमोहर के लिए। "क्या पसंद है? बिरयानी? या कुछ हल्का?" उसने पूछा।
गुलमोहर शरमा गई, "जो भी... आपकी पसंद।"
आधे घंटे बाद डोरबेल बजी। आर्यन ने खाना लिया—गर्मागर्म पनीर टिक्का मसाला, नान, और सलाद। मेज पर सजाया, दोनों ने साथ बैठकर खाया। हँसी-मजाक चला, गुलमोहर की हँसी पहली बार फूटी—आर्यन की बातों पर, जो उसके गाँव की कहानियों को हल्का करने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन हर नजर के मिलाव में एक तनाव था—उसकी नजरें उसके होंठों पर ठहर जातीं, जहाँ मसाला की हल्की चमक थी।
खाना खत्म हुआ, प्लेटें साफ।
आर्यन ने उठकर कहा, "अब सो जाओ। बेडरूम में जाओ, आराम से। मैं सोफे पर ठीक हूँ।"
गुलमोहर ने मना किया, लेकिन आर्यन ने जोर दिया। "तुम मेहमान हो। कल तरोताजा होकर बात करेंगे।" वह बेडरूम में चली गई, दरवाजा बंद किया।
आर्यन लाइट बुझाकर सोफे पर लेट गया, लेकिन नींद कहाँ से आती?
बेडरूम में गुलमोहर लेटी थी, साफ चादर पर, लेकिन मन अशांत था।
आर्यन की टी-शर्ट उसके बदन से चिपकी हुई, उसके स्तनों को हल्के से दबा रही। वह आँखें बंद करके आर्यन को याद करने लगी—उसकी चौड़ी छाती, जो कार में उसे छू रही थी; उसके हाथों की गर्मी, जो पैरों पर लगी थी।
कभी अतीत घेर लेता—सौतेली माँ की मार, बाप की कराहें, बूढ़े ठाकुर की भूखी नजरें। आँसू आ जाते, लेकिन फिर आर्यन का चेहरा घूम जाता—उसके मजबूत कंधे, लहराते बाल, गहरी आँखें जो उसे देखकर चमक उठी थीं।
"वह... अगर छू ले तो?" सोचते हुए, उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। उसके हाथ अनजाने में अपनी जांघों पर फिसल गए, लोअर की नरमी पर।
कशमकश थी—डर और आकर्षण का मिश्रण।
एक तरफ अतीत का जख्म, दूसरी तरफ आर्यन का वो आकर्षण, जो उसके नाजुक बदन को जगा रहा था।
वह मचल उठी बिस्तर पर, साँसें तेज, लेकिन सीमा पर रुकी। "नहीं... अभी नहीं। वह अच्छा इंसान है।"
फिर भी, मन में तूफान—आर्यन के होंठों की कल्पना, उसके स्पर्श की। रात भर नींद न आई, बस यादें और कल्पनाएँ घूमती रहीं।
बाहर सोफे पर आर्यन भी करवटें बदल रहा था। उसकी आँखें बंद, लेकिन दिमाग में गुलमोहर का चेहरा। वो बाथरूम से निकली थी—गीले बाल, टी-शर्ट में उसके स्तनों की हल्की उभार, जांघों की चिकनी लकीरें जो लोअर से झाँक रही थीं।
वह कल्पना कर रहा था—उसके नाजुक बदन को छूना, उसके गले की लकीर को चूमना, उसके पतले कूल्हों को सहलाना। उसके स्तन कितने मुलायम होंगे, निप्पल्स गुलाबी और सख्त... जांघों के बीच वो नरमी, जो कभी छुई न गई। साँसें भारी हो गईं, हाथ अनजाने में नीचे सरक गया, लेकिन रुका।
"नहीं, आर्यन। वह टूटी हुई है। पहले विश्वास, फिर प्यार।" मचल रहा था, लेकिन हद पार न की।
मन में आग सुलग रही थी—गुलमोहर की वो मासूम मुस्कान, वो शर्माती नजरें।
दोनों एक-दूसरे को याद करके तड़प रहे थे, लेकिन रात गुजरी बिना सीमा लाँघे।
सुबह का इंतजार था... नई शुरुआत का।
दूसरी तरफ
गुलमोहर के भागने की खबर कमला को जैसे बिजली की तरह चुभ गई।
रात के दूसरे पहर में, जब गाँव की गलियाँ सन्नाटे में डूब चुकी थीं, कमला ने ठाकुर हरिया को फोन किया।
उसकी आवाज काँप रही थी—गुस्से से, लालच से।
"हरिया जी... वो हरामी बेटी भाग गई!
अब क्या करें?
फोन पर ठाकुर की साँसें भारी हो गईं। साठ साल का बूढ़ा, लेकिन आग अभी बाकी—पीली दांतों वाली मुस्कान के पीछे वो भूख, जो जवानी की तरह सुलग रही थी।
"भाग गई? अरे कमला, तूने तो कहा था कि वो नाजुक फूल है, मेरे लिए ही बनी है। अब मैं खाली हाथ? नहीं... मैं खाली नहीं बैठूँगा। ढूँढो उसे। शहर की सड़कों पर, जंगलों में—हर जगह। वो अकेली लड़की, रात में... कोई न कोई भूखा भेड़िया तो मिलेगा ही। लेकिन अगर मैंने पकड़ लिया, तो तेरी सौतेली बेटी को सजा मिलेगी... मेरी गोद में, मेरी आग में जलकर।"
कमला का चेहरा पीला पड़ गया। वह जानती थी ठाकुर की "सजा" क्या होती—उसकी पुरानी हवेली में, जहाँ दीवारें चीखों से गूँजती थीं।
ठाकुर ने फोन काटा, लेकिन नींद न आई। वह बिस्तर पर लेटा, आँखें बंद, गुलमोहर का चेहरा घूम गया—वो फटी सलवार-कमीज में झलकते स्तन, वो पतली कमर, वो नाजुक जांघें जो भागते वक्त लहरा रही होंगी।
"पचास हजार... वो चूत मेरी होनी थी," वह बुदबुदाया, हाथ नीचे सरक गया। कल्पना में गुलमोहर को नंगा देखा—उसकी चूत को चखते हुए, उसके कराहने की कल्पना।
लंड सख्त हो गया, बूढ़े बदन में जवानी की आग।
"ढूँढ लाऊँगा... और जब लाऊँगा, तो पहले तेरी सौतेली माँ को सजा दूँगा—उसके सामने तुझे तोड़ूँगा।"
तभी उसने अपने आदमियों को हवेली पर इकठ्ठा होने को कहा।
ठाकुर ने सबको इसी वक्त ढूंढने के लिए लगा दिया । किसी भी कीमत पर लड़की ढूँढ लाओ। वरना सब की गांड़ मारूंगा खड़े खड़े।
कमला ने भी शुरू किया ढूंढने का अभियान —अपने आशिकों को ढूंढने के लिए भेजा,पड़ोसियों से पूछा। लेकिन अंदर से डर था—अगर गुलमोहर न मिली, तो ठाकुर का गुस्सा... उफ्फ, वो तो कमला के बदन को ही निगल लेगा।
गाँव की वो रात अब शिकार की रात बन गई—ठाकुर की भूखी नजरें शहर की ओर।
लेकिन गुलमोहर? वो आर्यन की बाहों में सुरक्षित... अभी के लिए।
कहानी जारी रहेगी
✍️निहाल सिंह


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