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Incest मस्तराम का चेला : सीरीज
#1
मस्तराम का चेला: सीरीज इंट्रो – 

नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ राजू – मस्तराम जी का चेला, वो लड़का जो गाँव की मिट्टी से शहर की चमक तक आया, लेकिन खून में वही देसी आग जलाए रखी। मस्तराम जी की तरह, मेरी ये सीरीज है गर्मागर्म, चोदू-चोदी वाली कहानियों का खजाना – लेकिन थोड़ा हटके, क्योंकि आजकल का जोश तो मोबाइल स्क्रीन पर ही भड़कता है। इंस्टा DMs, वीडियो कॉल्स, छुपी क्लिप्स – सब मिलाकर वो टैबू आग जो भाभी की कमर से बहन की चूचियों तक, मम्मी की छुपी भूख तक पहुँच जाएगी। हर कहानी लंबी, डिटेल से भरी – सिसकियाँ सुनाई देंगी, पसीना महक आएगा, और लंड फड़क उठेगा जैसे खुद चोद रहे हो।

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मस्तराम का चेला: पहली कहानी - भाभी की गर्म रातें


नमस्कार दोस्तों, मैं हूँ राजू, मस्तराम का चेला। मस्तराम जी की तरह ही, मैं भी अपनी जिंदगी की वो गर्मागर्म कहानियाँ सुनाने जा रहा हूँ जो रातों को नींद उड़ा देंगी। लेकिन थोड़ा हटके, क्योंकि मैं मॉडर्न टाइम का लड़का हूँ – गाँव से शहर आया हूँ, लेकिन खून में वही देसी आग दौड़ती है। मेरी कहानियाँ होंगी भाभी-बहन वाली, लेकिन इसमें होगा ट्विस्ट – जैसे मोबाइल चैट्स, वीडियो कॉल्स और वो सारी चीजें जो आजकल के जोश को और भड़काती हैं। हर कहानी लंबी होगी, डिटेल से भरी, ताकि तुम्हें लगे जैसे खुद वहाँ हो। तो चलो, शुरू करते हैं पहली कहानी से। ये है "भाभी की गर्म रातें" – मेरी वो भाभी रानी, जो मेरे भाई की बीवी थी, लेकिन मेरी आग बनी।
मेरा नाम राजू है, उम्र २५ साल। गाँव में रहता हूँ, लेकिन दिल्ली में जॉब के चक्कर में आया था। भाई का नाम था रमेश, जो १० साल बड़ा था। वो दिल्ली में फैक्ट्री में सुपरवाइजर था, शादी हुई थी रानी भाभी से। रानी भाभी – वाह! क्या कहूँ? उम्र ३० के आसपास, लेकिन बॉडी ऐसी कि देखकर लंड खड़ा हो जाए। गोरी चिट्टी, ३६-२८-३८ का फिगर, लंबे काले बाल, और वो आँखें जो सीधे दिल में चुभ जातीं। साड़ी पहनती तो कमर की कटि पट्टी से पेट की नाभि झांकती, और ब्लाउज में चूचियाँ ऐसी तनी हुईं कि बटन फूटने को तैयार। गाँव में सबकी नजरें उस पर टिकी रहतीं, लेकिन भाई की सख्ती से कोई हिम्मत न करता।
मैं दिल्ली आया तो भाई ने कहा, "रह ले यहाँ, कमरा खाली है।" मैं खुश हो गया। भाभी ने चाय दी, मुस्कुराईं, और मैंने सोचा – बस इतना ही। लेकिन रात को जब सोया, तो सपने में भाभी का चेहरा घूमने लगा। अगले दिन सुबह उठा तो भाभी किचन में थी। पीठ फेरी हुई, सलवार सूट पहना था, लेकिन कमर पर पसीना चिपका हुआ। मैंने चुपके से देखा – कमर की लकीर, गांड का उभार। लंड सख्त हो गया। "भाभी, चाय?" मैंने कहा। वो मुड़ीं, मुस्कुराईं – "बैठ जा राजू, बना रही हूँ।" उनकी आवाज में वो मिठास थी जो सीधे नीचे उतर जाती।
दिन बीतते गए। भाई फैक्ट्री में शिफ्ट करता, रात १० बजे लौटता। मैं घर पर ही रहता, लैपटॉप पर काम। भाभी शाम को घूमने जातीं, लेकिन कभी-कभी अकेली बोर हो जातीं। एक दिन रात को, भाई लेट आया। मैं सो रहा था, लेकिन प्यास लगी तो उठा। बाहर हॉल में लाइट जल रही थी। भाभी सोफे पर लेटी थीं, मोबाइल स्क्रॉल कर रही थीं। नाइट गाउन पहना था, पतला सा, और नीचे से पैंटी की लाइन दिख रही। मैं रुक गया। वो नोटिस न कीं। मैं चुपके से किचन गया, पानी पिया, वापस आया। लेकिन वो अभी भी वहीँ। मैं हिम्मत करके बोला, "भाभी, नींद न आ रही?"
वो चौंकीं, मोबाइल रखा। "हाँ राजू, तू भी जाग रहा है? भाई लेट आएगा आज।" उनकी आँखों में उदासी। मैं पास बैठ गया। "कुछ परेशानी है भाभी?" वो हँसीं – "नहीं, बस... यहाँ अकेलापन लगता है। गाँव में तो सास-ससुर थे, यहाँ बस हम तीनों।" मैंने कंधा हिलाया। "मैं हूँ ना भाभी। कुछ भी बोलो।" बातें होने लगीं। पुरानी यादें, गाँव की। धीरे-धीरे टॉपिक बदला। "राजू, तू सिंगल है, कोई गर्लफ्रेंड?" मैं शरमाया – "नहीं भाभी, समय कहाँ मिलता।" वो हँसीं, हाथ मेरी जाँघ पर रखा – "अरे, युवा हो, मजे ले लो।" वो टच... इलेक्ट्रिक करंट सा। मेरा लंड फड़क गया।
उस रात से शुरू हो गया। हर शाम चैटिंग। भाभी का नंबर लिया, व्हाट्सएप पर। पहले हल्की-फुल्की बातें – "क्या खाया?", "मूवी देखी?"। लेकिन एक हफ्ते बाद, रात को मैसेज आया – "राजू, नींद न आ रही। तू?" मैंने रिप्लाई किया – "मैं भी भाभी। कुछ शेयर करूँ?" फोटो भेजी – जिम वाली, मेरी मसल्स दिख रही। भाभी ने तुरंत – "वाह! कितना फिट है तू। भाई तो मोटा हो गया।" इमोजी के साथ हार्ट। मैंने बोल्ड होकर – "भाभी, आपकी फोटो भेजो ना।" वो भेजीं – साड़ी में, कमर दिखाते हुए। कैप्शन – "ये लाइक करो।" मैंने लाइक्स की, लेकिन नीचे कमेंट – "भाभी, आपकी कमर... कमाल।" वो ऑनलाइन रहीं, लेकिन रिप्लाई न किया। अगली रात वीडियो कॉल।
"हैलो भाभी!" मैंने कहा। वो बेड पर लेटीं, नाइट गाउन। "हाय राजू, कैसा है?" बातें हुईं। लेकिन कॉल कटने से पहले, वो बोलीं – "राजू, एक सीक्रेट। कभी-कभी रात को... अकेलापन बहुत सताता है।" मेरा दिल धड़का। "कैसे भाभी?" वो शरमाईं – "अरे, समझदार है तू।" कॉल कटा, लेकिन मेरे दिमाग में तूफान। अगली सुबह, भाई गया काम पर। मैं घर पर। भाभी नहा रही थीं। दरवाजा खुला छोड़ दिया था – शायद गलती से। मैंने झाँका। वाह! नंगा बदन, पानी से भीगा। चूचियाँ गोल, गुलाबी निप्पल्स। गांड गोल, चूत पर हल्के बाल। मैं वहीं खड़ा, लंड बाहर। हाथ हिला रहा था। भाभी ने सुना, मुड़ीं – "राजू!" चीखीं, लेकिन आँखों में शरम के साथ चमक।
"सॉरी भाभी!" मैं भागा। लेकिन शाम को मैसेज – "भाभी, माफ कर दो।" वो – "ठीक है, लेकिन अगली बार नो नो।" इमोजी – चुटकी। रात को फिर कॉल। "राजू, आज क्या देखा तूने?" मैं हकलाया – "भाभी, आप... परफेक्ट हो।" वो हँसीं। "सच? तो बता, क्या पसंद आया?" मैं बोल गया – "सब कुछ। खासकर... नीचे वाला।" साइलेंस। फिर वो – "राजू, तू नॉटी है। लेकिन... अच्छा लगा सुनकर।" कॉल पर ही, वो गाउन ऊपर किया। चूचियाँ दिखीं। "ये देख।" मैं पागल। "भाभी, छूना चाहूँ?" वो – "काश। लेकिन भाई है ना।" लेकिन अगली रात, भाई नाइट शिफ्ट पर गया। घर अकेले हम।
रात ११ बजे। भाभी कमरे में। मैं गया। "भाभी, मसाज दूँ?" वो मुस्कुराईं – "चल, पीठ दर्द है।" लेटीं बेड पर, गाउन ऊपर। कमर नंगी। मैं तेल लगाया। हाथ फिसले, गांड पर। वो सिसकीं – "आह राजू..." मेरा लंड सख्त। मैंने दबाया उनकी गांड पर। वो न रुकीं। पलटीं। आँखों में आग। "राजू, ये गलत है। लेकिन... रोक न सका।" मैं झुका, होंठ चूमे। वो चूसी मेरी जीभ। हाथ मेरी पैंट में। "वाह, कितना बड़ा!" लंड बाहर निकाला। ७ इंच का, मोटा। वो मुंह में लिया। चूसने लगीं। "उम्म... राजू का लंड... स्वादिष्ट।" मैं चूचियाँ दबाईं। निप्पल चूसे। वो चीखीं – "आह... काट ले!"
फिर मैं नीचे गया। चूत पर हाथ। गीली। उंगली डाली। "भाभी, कितनी टाइट!" वो – "भाई का छोटा है, तू... फाड़ देगा।" मैं चाटा। जीभ अंदर। वो कूदने लगीं – "ओह राजू... चूस... चूत चूस!" मैंने १० मिनट चाटा। वो झड़ीं – "आ गया... पानी... पी ले!" मीठा रस। फिर ऊपर आया। लंड चूत पर रगड़ा। "डाल राजू!" धक्का। अंदर। टाइट। "आह... दर्द... लेकिन मजा!" मैं पेला। धीरे-धीरे तेज। बेड हिल रहा। "भाभी, तेरी चूत... स्वर्ग!" वो – "तेरा लंड... राजा!" २० मिनट पेला। पोजिशन चेंज – डॉगी। गांड पकड़ी, चोदा। थप्पड़ मारे। "रंडी भाभी... चोदू तुझे!" वो – "हाँ चोद... भाई से ज्यादा!" आखिर में, झड़ गया अंदर। गर्म वीर्य। वो लिपट गईं। "राजू, ये हमारा राज रहेगा।"
लेकिन ये तो शुरुआत थी। अगली रातें और गर्म हुईं। कभी किचन में, साड़ी ऊपर करके। कभी बाथरूम में, नहाते हुए। एक बार भाई घर आया, हम बेड के नीचे। हँसी आई। लेकिन टेंशन भी। भाभी प्रग्नेंट हो गईं – मेरा बच्चा। भाई को लगा अपना। लेकिन मैं जानता हूँ। अब गाँव लौट आए सब। भाभी की नजरें मुझ पर। सीरीज जारी रहेगी। अगली कहानी – "बहन की शादी की रात"। तब तक, मुठ मार ले दोस्तों। मस्तराम का चेला बोल रहा था – राजू।
Fuckuguy
albertprince547;
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मस्तराम का चेला: दूसरी कहानी - बहन की शादी की रात 

नमस्कार दोस्तों, वापस लौट आया हूँ मैं राजू, मस्तराम का चेला। पिछली बार भाभी रानी की वो जलती रातें सुना दीं, लेकिन आज दूसरी कहानी पर रुको मत। तुम्हारे कहने पर "बहन की शादी की रात" को और लंबा, और डिटेल से भरा बना दिया। ज्यादा टेंशन, ज्यादा चिंगारियाँ, ज्यादा वो देसी आग जो रगों में दौड़े। प्रिया – मेरी अपनी बहन – की वो स्टोरी, जहाँ भाई-बहन का रिश्ता शादी के बहाने लाइन क्रॉस कर गया। हटके ट्विस्ट के साथ: इंस्टाग्राम DMs, छुपी वीडियो क्लिप्स, और वो डिजिटल उत्तेजना जो आजकल के गाँव को भी शहर जैसा बना देती। कहानी अब और गहरी, सीन-दर-सीन डिटेल्स से भरी – साँसें रुक जाएँगी, लंड फड़क उठेगा। तो आराम से लेटो, हाथ नीचे रखो, और डूब जाओ।
मेरा नाम राजू है, उम्र २५ साल। गाँव का लड़का, लेकिन दिल्ली की चकाचौंध ने खून गर्म कर दिया। बहन प्रिया, २२ की। बचपन से मेरी जान – साथ नहाना, साथ सोना, वो पुरानी मासूमियत। लेकिन प्यूबर्टी के बाद सब बदल गया। प्रिया का बदन खिल गया – ३४-२६-३६ का स्लिम फिगर, लेकिन कर्व्स ऐसे कि साड़ी पहनो तो कमर की लकीरें लहराएँ, ब्लाउज में चूचियाँ तनकर बटन दबाएँ। चेहरा मासूम, लेकिन आँखों में वो शरारत जो रातों को जगाए। कॉलेज जाती, इंस्टा पर पोज देती – कभी जींस में गांड का उभार, कभी टॉप में क्लीवेज। मैं चुपके देखता, लाइक करता, लेकिन अंदर जलन। "ये मेरी बहन है यार," सोचता, लेकिन नीचे का तनाव झूठ न बोलता। रात को सपने आते – प्रिया नंगी, मेरे ऊपर। सुबह उठता तो पजामा गीला।
फिर आया वो दिन जब प्रिया का एंगेजमेंट फिक्स हुआ। लड़का शहर का इंजीनियर, नाम विक्रम। अच्छा घर, लेकिन प्रिया को डर लगता। "भैया, शादी के बाद क्या होगा? वो सब... नया-नया।" शाम को छत पर बैठे, वो बोली। मैंने कंधा पर हाथ रखा – "डर मत प्रिया, सब ठीक होगा। तू तो क्वीन है।" लेकिन उसकी आँखें नम, होंठ काँपते। मैंने गले लगाया – पहली बार इतना क्लोज। उसके बालों की खुशबू, चूचियों का हल्का दबाव। मेरा लंड सख्त। "भैया, तू हमेशा मेरे साथ रहेगा ना?" वो बोली। मैंने हाँ कहा, लेकिन दिमाग में कुछ और। एंगेजमेंट की पार्टी में प्रिया लहंगे में – लाल रंग, चोली टाइट। डांस करते हुए कमर मटकाई, सबकी नजरें। विक्रम ने हाथ पकड़ा, लेकिन मैं जल उठा। रात को घर लौटे, प्रिया थकी। "भैया, मेरी पीठ दर्द कर रही। मसाज कर दे।" कमरे में, वो लेटी। ब्लाउज ऊपर किया – कमर नंगी, पसीने से चमकती। मैं तेल लगाया। हाथ फिसले, नाभि पर। वो सिसकी – "आह... हल्के भैया।" मेरा दिल धड़का। गांड का उभार छुआ – गोल, मुलायम। "सॉरी," मैं बोला। वो मुस्कुराई – "कोई बात नही, तू तो भाई है।" लेकिन आँखों में चमक। उस रात मैं अपने कमरे में लेटा, कल्पना की – प्रिया को नंगा करके चोदना। हाथ हिलाया, झड़ गया। "प्रिया... तेरी चूत..."
शादी की तैयारियाँ चरम पर। मेहंदी की रात – घर में औरतें, ढोल-नगाड़े, गाने। "बारात लाएंगे..." गातीं, प्रिया के हाथ-पैरों पर हरी मेहंदी। मैं बाहर धूम्रपान कर रहा, लेकिन अंदर चला गया पानी लाने। प्रिया अकेली कमरे में, दुपट्टा हटाकर लेटी। चोली ढीली, चूचियाँ आधी नंगी – गुलाबी निप्पल्स हल्के सख्त। पेट पर मेहंदी सूख रही, नाभि गहरी। मैं दरवाजे पर रुक गया, साँसें रुकीं। "भैया!" वो चौंकी, लेकिन कवर करने की बजाय हँसी – "आ गया जासूस। मेहंदी सूख न पा रही, फैन कर।" मैं पास बैठा। हाथ हिलाया, लेकिन नजरें उसकी कमर पर। पसीना टपक रहा, खुशबू आ रही – वो लड़कियों वाली, मादक। "प्रिया, तू कितनी हॉट लग रही," मैं फिसला। वो शरमाई – "भैया, ये क्या बोल रहा? विक्रम को सुन लिया तो..." लेकिन पैर फैलाया, सलवार की लाइन दिखी – पैंटी की। मेरा लंड पैंट में दुख रहा। मैंने हिम्मत की, हाथ रखा उसकी जाँघ पर – "सिर्फ तारीफ की प्रिया। तू मेरी राजकुमारी है।" वो चुप। फिर बोली – "भैया, शादी के बाद तू अकेला न रहना। कोई बहू ला ले।" बातें घूमीं सेक्स पर। "भैया, तूने कभी किया? कैसा लगता?" मैं हकलाया – "हाँ... मजा आता। तुझे डर लगेगा पहली रात?" वो लजाई – "हाँ, लेकिन तू बता ना... कैसे शुरू होता?" मैंने डिटेल बताई – चुंबन, छुअन। वो सुनती गई, आँखें चमकतीं। मेहंदी सूखी, लेकिन हमारी आग भड़की।
शादी का दिन – बारात धूमधाम से। प्रिया दुल्हन बनी – लाल लहंगा, मंगलसूत्र, घूंघट में चेहरा। लेकिन जब फेरे लेने बैठी, घूंघट हल्का उठा – आँखें मेरी तरफ। "भैया..." होंठ हिले। मेरा दिल पिघला। रात विदाई – प्रिया रो रही, ससुराल वालों के बीच। मैंने आखिरी गले लगाया। उसके बदन का गर्माहट, चूचियाँ दब गईं मेरे सीने पर। कमर पकड़ी – पतली, लेकिन मजबूत। "प्रिया, खुश रहना," मैं बोला। वो कान में फुसफुसाई – "भैया, तू याद आएगा... रातें कटेंगी कैसे?" विदाई हुई, घर सूना। पापा-पम्मी सोए। मैं प्रिया के कमरे में घुसा – उसके सामान सँभालने। अलमारी खोली – अंदर पैंटी-ब्रा सेट। पिंक लेस वाला। नाक लगाया – उसकी चूत की हल्की महक। लंड बाहर निकाला, मुठ मारी। कल्पना में प्रिया को डॉगी स्टाइल चोदता – "भैया... तेज... फाड़ दे!" झड़ गया, वीर्य पैंटी पर। सोया, लेकिन नींद न आई।
असली धमाका तो शादी की अगली रात। प्रिया ससुराल में सेटल, लेकिन व्हाट्सएप पर मैसेज बम – "भैया, पहली रात थी। विक्रम ने किया... दर्द बहुत, लेकिन अंदर कुछ अच्छा भी। तू बता, तेरी पहली बार कैसी?" मैं चौंका – "प्रिया, ये क्या शेयर कर रही? गलत है।" लेकिन वो – "भैया, तू मेरा सबकुछ है। छुपाऊँगी नहीं। वीडियो देख... सिर्फ ऑडियो।" क्लिप भेजी – डार्क रूम की आवाजें। प्रिया की सिसकियाँ – "आह विक्रम... धीरे... दर्द हो रहा।" विक्रम की ग्रंट – "टाइट है तू..." लेकिन क्लिप छोटी, ३० सेकंड। मेरा लंड पत्थर। "प्रिया, विक्रम का छोटा लग रहा," मैं फिसला। वो रिप्लाई – "हाँ भैया, ५ इंच का। तेरा कितना?" मैंने फोटो भेजी – लंड का, सख्त। "७ इंच, मोटा।" वो – "ओह माय गॉड! भैया, ये तो जानलेवा। कल आ ससुराल, बहन की जिम्मेदारी निभा। सब सो जाएँगे रात को।"
मैं पहुँचा शाम को। ससुराल बड़ा घर, गाँव के पास। प्रिया ने चाय दी, मुस्कुराई – लेकिन आँखों में आग। विक्रम बाहर गया दोस्तों से मिलने। "भैया, रुको ना रात तक," वो बोली। बातें हुईं – शादी की, हनीमून प्लान। लेकिन टॉपिक घूमा। "भैया, कल्पना कर – अगर तू ही मेरी पहली रात का हीरो होता?" मैं हँसा – "पागल, विक्रम है ना।" लेकिन वो हाथ मेरी जाँघ पर – "वो तो औपचारिक। तू असली भाई... और कुछ।" रात ११:३०। घर शांत। विक्रम सो गया कमरे में। प्रिया का मैसेज – "पीछे का दरवाजा खुला। आ।" मैं चुपके घुसा। वो वेटिंग – सिल्की नाइट गाउन, पारदर्शी। ब्रा-पैंटी दिख रही। "भैया!" दौड़कर गले लगी। होंठ मिले – गर्म, नरम। जीभ अंदर। चूसी जैसे पागल। "प्रिया... ये पाप है," मैं बोला। वो – "प्यार है भैया। रोक मत।" हाथ मेरी शर्ट में – छाती सहलाई। मैंने गाउन ऊपर किया – चूचियाँ बाहर। ३४ साइज, गोल, निप्पल्स सख्त जैसे चेरी। दबाया – नरम रोटी सा। "आह... भैया... दबा मजबूत। विक्रम तो बस चूसता, तू काट।" मैं झुका, मुंह में लिया। जीभ घुमाई, काटा हल्का। वो चीखी दबी आवाज में – "ओह... दर्द... लेकिन मजा! दूसरी चूची भी।"
नीचे हाथ। पैंटी गीली। उंगली से रगड़ा। "प्रिया, तेरी चूत... कितनी गर्म। बाल हल्के, साफ-सुथरी।" वो काँपी – "विक्रम को अच्छा लगता। लेकिन तू चाट भैया।" मैं घुटनों पर। पैंटी नीचे। चूत गुलाबी, चमकती। जीभ लगाई – क्लिट पर। चाटा। वो सिर पकड़ लिया – "आह... जीभ अंदर... चूस चूत! विक्रम कभी न चाटा, तू राजा है।" मैंने १० मिनट चाटा। जीभ अंदर-बाहर। उंगली डाली – टाइट, गीली। "प्रिया... विक्रम ने ढीली न की?" वो हँसी सिसकते हुए – "नहीं भैया, तू पहला मोटा। झड़वा मुझे।" तेज चाटा। वो कूद पड़ी – "आ गया... पानी... ओह भैया... पी ले सब!" मीठा, नमकीन रस। मुंह भर लिया।
अब मेरा टर्न। खड़ा किया। पैंट नीचे – लंड बाहर, लाल, नसें फूलीं। प्रिया की आँखें बड़ी – "वाह! इतना लंबा, मोटा। मुंह में लूँ?" घुटनों पर बैठी। पकड़ा, चूमा टिप पर। "उम्म... भैया का लंड... गर्म, नमकीन।" मुंह में लिया। आधा अंदर। जीभ घुमाई। चूसी जैसे आइसक्रीम। मैं सिर पकड़, धक्का दिया – गले तक। "गले तक ले रंडी बहन... चूस मजबूत!" आँसू आ गए उसके – लेकिन न रुकी। "हाँ भैया... मुंह चोद... गंदा बोल, उत्तेजित होती हूँ।" ७ मिनट मुंह चोदा। लार टपक रही। "बस... अब चूत में।"
दीवार पर सटाया। एक पैर ऊपर उठाया। लंड चूत पर रगड़ा – गीला स्लाइड। "डाल भैया... फाड़ दे!" धक्का – टिप अंदर। टाइट। "आह... दर्द... रुको!" मैं रुका। चुंबन किया, चूचियाँ दबाई। फिर धीरे धक्का – पूरा अंदर। "ओह... भरा हुआ... विक्रम का दोगुना!" मैं पेला। धीरे-धीरे। थप थप। "प्रिया... तेरी चूत... भाई का लंड निचोड़ रही। कितनी टाइट!" वो – "हाँ... चोद बहन को... शादी की सौगात दे। तेज भैया!" स्पीड बढ़ाई। बेडरूम से विक्रम के खर्राटे आ रहे – टेंशन, लेकिन जोश दोगुना। पोजिशन चेंज – डॉगी। गांड ऊपर। थप्पड़ मारा – लाल निशान। "मार भाई... गांड पर... रंडी बना दे!" चोदा। गांड पकड़, लंड अंदर-बाहर। २० मिनट। पसीना टपक रहा। "प्रिया... झड़ रहा... अंदर?" वो पलटी, लिपट गई – "हाँ... भरा दे... प्रेग्नेंट हो जाऊँ तो तेरा राजकुमार।" गर्म झड़ी – वीर्य चूत में। ओवरफ्लो। वो भी झड़ी – "आह... मिल गया... भैया का स्पर्म!"
सुबह चुपके निकला। लेकिन प्रिया का मैसेज सीरीज – नंगी सेल्फी। "ये देख, चूत अभी भी गीली। कल फिर।" हनीमून गए, लेकिन चैट न रुकी। बीच पर वीडियो – बिकनी में। "भैया, गांड चोदने का मन?" मैं – "हाँ प्रिया, लौटकर खेत में।" लौटे तो ट्विस्ट – प्रिया प्रग्नेंट। डॉक्टर ने बताया। विक्रम खुश, लेकिन मैं जानता – मेरा बीज। अब गाँव में रहती, रातें गुप्त। कभी घर के पीछे, साड़ी ऊपर करके। कभी खेतों में, घास पर लेटकर। "भैया... बच्चा तेरा... चोद फिर।" बहन बनी रखैल, आग बनी।
Fuckuguy
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मस्तराम का चेला: तीसरी कहानी - मम्मी की छुपी भूख

नमस्कार दोस्तों, वापस हाजिर हूँ मैं राजू, मस्तराम का चेला। पिछली कहानियों की भाभी और बहन वाली आग तो झुलसा चुकी होगी ना? लेकिन आज तीसरी कहानी को और गहरा, और डिटेल से भरा बना दिया – "मम्मी की छुपी भूख"। सबसे टैबू वाली, जहाँ सालों दबी वो आग बाहर आई। मम्मी श्यामा – वो मॉम जो घर की दीवारें सहती रहीं, लेकिन अंदर जलतीं। हटके ट्विस्ट: पुराने फैमिली वीडियोज, छुपे चैट्स, और स्मार्टफोन की वो चिंगारियाँ जो मॉम-बेटे को एक बटन पर रखैल-युवा बना दें। कहानी अब और लंबी, सीन-दर-सीन – सिसकियाँ सुनाई देंगी, पसीना महसूस होगा, लंड फड़क उठेगा। प्रेग्नेंसी वाला पार्ट हटा दिया, बस आग का सिलसिला जारी। तो लेट जाओ, हाथ नीचे, और डूब जाओ।
मेरा नाम राजू, २५ का। गाँव का पुराना घर, जहाँ पापा दिन भर खेतों में पसीना बहाते, मम्मी घर की चारदीवारी में। मम्मी श्यामा, ४५ की उम्र, लेकिन बदन ऐसी कि शहर की लड़कियाँ जलें। ३८-३२-४० का फिगर – चूचियाँ भारी, साड़ी में लहरातीं जैसे दो बड़े आम झूल रहे हों; कमर मोटी लेकिन मजबूत, कटि पट्टी से नाभि गहरी झांकती; गांड गोल-फूली, सलवार सूट में मटकती। गोरी चिट्टी स्किन, लंबे काले बाल जो कंधों पर लहराते, और वो आँखें – काजल लगीं तो सीधे दिल में चुभें। शादी के ३० साल पापा के साथ, लेकिन आखिरी १० साल ठंडे – पापा की बीमारी, काम का बोझ। मम्मी रातों को अकेली लेटीं, सिसकियाँ दबातीं, लेकिन कभी मुंह न खोला। मैं दिल्ली से लौटा तो पहली नजर में पकड़ा – मम्मी की नजरें मुझ पर ठहरतीं, जैसे पुरानी यादें जाग उठी हों। "राजू बेटा, तू तो मर्द बन गया... कंधे चौड़े, छाती चौड़ी," कहतीं, लेकिन मुस्कान में वो भूख जो सालों दबी थी। मेरा लंड फड़कता, सोचता – "ये मेरी मम्मी है, लेकिन..."
गर्मी का वो पहला शाम। पापा खेत पर गए, शाम को लौटेंगे। मैं घर पहुँचा, धूल से सना। मम्मी किचन में – हरी साड़ी पहनी, पसीना चिपका हुआ। पीठ फेरी, साड़ी की चोली गीली, कमर नंगी चमक रही। नाभि के पास पसीने की बूंदें लुढ़क रही। मैंने पानी माँगा, गिलास थमा। वो मुड़ीं – ब्लाउज पारदर्शी, चूचियाँ की ब्राउन आउटलाइन साफ, निप्पल्स हल्के सख्त। "बैठ जा बेटा, चाय उबाल रही हूँ। तू थका लग रहा।" मैं पास खड़ा, कंधे पर हाथ रखा – गर्माहट सी। "मम्मी, तू भी पसीने में तर। मसाज दूँ कंधे की?" वो हँसीं, लेकिन आँखें चमकीं – "अरे बेटा, शहर में क्या सिखाया? पुराने दिनों की याद – तू छोटा था, मैं तुझे नहलाती, मालिश करती।" पुरानी यादें? बचपन में मम्मी के हाथों का स्पर्श, नंगे बदन का टच। अब वो स्पर्श उत्तेजित कर रहा। चाय पीते हुए बातें – "बेटा, तेरी कोई गर्लफ्रेंड? शादी कब करेगा?" मैं शरमाया – "मम्मी, समय कहाँ। तू-पापा की तरह खुश रहूँ तो।" लेकिन वो उदास हो गईं – "तेरा पापा... अब बीमार। रातें कटतीं कैसे? अकेलापन... सालों से।" पहली बार खुली। मैंने उनका हाथ पकड़ा – नरम हथेली, नाखून लाल। "मम्मी, मैं हूँ ना। कुछ भी बोल, शेयर कर।" वो चुप, लेकिन हाथ न हटाया।
उस रात खाना खाया। पापा सोए जल्दी – दवा का असर। हम हॉल में टीवी देखने। मम्मी साड़ी में लेटीं सोफे पर, पैर मेरी गोद में रख दिए – "बेटा, पैर दर्द कर रहे। दबा दे ना।" मैंने दबाना शुरू – टखनों से ऊपर, जाँघों की मांसपेशियाँ। साड़ी की प्लेट्स फिसल गईं, गोरी जांघें नंगी। पसीना सूखा, लेकिन खुशबू – वो मादक, चंदन वाली। हाथ ऊपर फिसला, जांघ के अंदर। मम्मी सिसकी – "आह... हल्के बेटा, वहाँ संवेदनशील है।" मेरा लंड पैंट में सख्त, दुख रहा। "मम्मी, तू कितनी सॉफ्ट है... जैसे रुई।" वो मुस्कुराईं, पैर फैलाया हल्का – "बेटा, तू भी मजबूत हाथ। पापा के पास ये ताकत न रही।" नजरें मिलीं – कुछ सेकंड बिजली सी। फिर वो उठीं – "नींद आ गई बेटा। कल मिलते।" लेकिन जाते हुए कूल्हे मटकाए, साड़ी की घाघरा लहराई। मैं अपने कमरे में लेटा, लंड बाहर निकाला। कल्पना की – मम्मी की चूचियाँ चूसता, चूत चाटता। "मम्मी... तेरी भूख... मिटा दूँ?" मुठ तेज, झड़ गया। बेडशीट गीली।
अगली सुबह। पापा डॉक्टर के पास गए – चेकअप। घर अकेले। मम्मी नहाने लगीं। बाथरूम का दरवाजा हल्का खुला – शायद हवा से। मैं चुपके झाँका। वाह रे वाह! नंगा बदन, पानी की धार से भीगा। चूचियाँ भारी, झूल रही – ब्राउन निप्पल्स सख्त, जैसे दूध की बूंदें। साबुन लगाया, हाथ फिसले कमर पर, नाभि में। गांड गोल, पानी से चमकती – दरार साफ। चूत पर बाल ट्रिम्ड, गुलाबी होंठ हल्के फैले। मम्मी ने सिर धोया, आँखें बंद – सिसकी जैसी आवाज। "आह... कितना अच्छा लग रहा।" मैं वहीं खड़ा, पैंट में हाथ डाला, हिलाने लगा। लंड सख्त, नसें फूलीं। मम्मी ने हलचल सुनी – मुड़ीं। "राजू बेटा!" चीखीं, लेकिन तौलिया से ढका न सही – बस हाथ चूचियों पर। आँखों में शॉक, लेकिन वो चमक – जैसे सालों की प्यास। "सॉरी मम्मी... पानी लेने आया था," मैं हकलाया। वो तौलिया लपेटा, बाहर आईं – "बेटा, ये... गलती हुई। लेकिन तू... बड़ा हो गया। मत सोचना कुछ।" लेकिन उनका चेहरा लाल, साँसें तेज। दोपहर को चाय बनाई, देते हुए हाथ मेरी पीठ पर रुका – "बेटा, सुबह का... भूल जा। लेकिन तूने देखा ना... सब।" मैं हिम्मत जुटाया – "मम्मी, तू परफेक्ट है। पापा खुशकिस्मत, लेकिन अब मैं... देख रहा।" वो लजाईं, लेकिन बोलीं – "पागल बेटा। मॉम को क्या लगेगा?"
शाम ढली। मम्मी का नया स्मार्टफोन – मैंने सेटअप किया था। "बेटा, ये वीडियो कैसे चलें?" मैंने पुराने फैमिली एल्बम दिखाए – बचपन के। लेकिन एक पुरानी कैसेट से डिजिटाइज्ड क्लिप – मम्मी-पापा की हनीमून वाली। मम्मी शरमाईं – "अरे ये मत देख बेटा! पुरानी बात।" लेकिन मैंने प्ले किया। मम्मी साड़ी में, पापा चुंबन कर रहे, हाथ कमर पर। मम्मी हँस रही, आँखें बंद। "वाह मम्मी, कितनी जवान लग रही... होंठ कितने रसीले।" वो गाल रंगाए – "बेटा, वो तो २० साल पहले। अब बूढ़ी हो गई। चूचियाँ लटक गईं, कमर ढीली।" मैंने हाथ पकड़ा, करीब खींचा – "झूठ मम्मी। अभी भी हॉट। छू लूँ?" वो साँस अटकी – "क्या बक रहा बेटा? तू मेरा... " लेकिन न हटाईं। मैंने कंधा सहलाया, फिर कमर पर। नाभि छुई। "मम्मी, तेरी स्किन... सिल्क सी।" वो काँपीं – "राजू... ये गलत है। लेकिन... सालों से कोई न छुआ। भूख लगी है बेटा।" चैट पर ले गया – "मम्मी, मैसेज कर। सीक्रेट।" रात को पहला मैसेज – "बेटा, सोया? नींद न आ रही।" मैं – "मैं भी मम्मी। सुबह का सोच रहा। तेरी चूचियाँ... कितनी भरी।" वो – "पागल! लेकिन... फोटो भेजूँ?" सेल्फी आई – साड़ी में, ब्लाउज ऊपर, चूचियाँ की क्लीवेज। कैप्शन – "ये देख, अभी भी तनी हुईं।" मेरा लंड फिर सख्त। "मम्मी, निप्पल्स दिखा।" वो – "कल बेटा। पापा सोए हैं।"
अगली रात वीडियो कॉल। पापा सोए। मम्मी बेड पर, नाइट गाउन – पतला, पारदर्शी। "हैलो बेटा... कैसा है?" बातें हल्की। फिर वो – "बेटा, एक सीक्रेट। रात को अकेली... वीडियो देखती हूँ। तेरे जैसे जवान लड़कों के। लंड... बड़ा, मोटा। कल्पना करती – कोई चोदे।" मैं पागल – "मम्मी, सच? दिखा ना वो वीडियो।" वो शेयर की लिंक – इंडियन पॉर्न क्लिप। लेकिन कॉल पर ही, गाउन ऊपर सरकाया। चूचियाँ नंगी – भारी, ब्राउन निप्पल्स सख्त। "ये देख बेटा... छू ले काश। दबा।" मैंने अपना लंड दिखाया – पैंट से बाहर। "मम्मी, ये तेरा।" वो साँस तेज – "ईश्वर... कितना लंबा। पापा का आधा भी न था। चूसना चाहूँ।" कॉल खत्म, लेकिन आग भड़की।
पापा के दो हफ्ते के रिश्तेदार ट्रिप पर गए। घर सिर्फ हम – स्वर्ग। पहली रात, १० बजे। मम्मी कमरे में बुलाया – "बेटा, मसाज दे ना। पीठ दर्द।" लेटीं बेड पर, गाउन ऊपर – कमर नंगी, पैंटी सफेद लेस। मैं तेल गरम किया, लगाया। कंधों से शुरू, फिर रीढ़ पर। हाथ फिसले, गांड पर। गोल, फूली। दबाया – मांस नरम, लेकिन टाइट। "आह बेटा... वहाँ भी... सालों से कोई न दबाया।" मैंने पैंटी सरकाई हल्का – गांड की दरार दिखी। उंगली रगड़ी। मम्मी सिसकी – "ओह राजू... गर्म हो गई।" पलटीं। आँखों में आग, होंठ काँपते। "बेटा... ये पाप है। लेकिन रोक न सकूँ। चूम ले।" मैं झुका, होंठ मिले – नरम, रसीले। जीभ अंदर, चूसी। मम्मी ने मेरी जीभ काटी हल्का – "उम्म... बेटे के होंठ... मीठे।" हाथ मेरी शर्ट में – छाती सहलाई, निप्पल्स चूए। "तू कितना फिट बेटा... मसल्स सख्त।"
मैंने गाउन पूरी खोला। चूचियाँ बाहर – ३८ साइज, गोल, भारी। निप्पल्स ब्राउन, चेरी जैसे। दबाया दोनों हाथों से – नरम आटा सा, लेकिन उछाल। "मम्मी... तेरी चूचियाँ... कितनी जूसी।" मुंह में लिया एक – चूसा मजबूत, जीभ घुमाई। काटा हल्का। "आह... दर्द बेटा... लेकिन मजा! दूसरी भी चूस... दूध पी ले जैसे बचपन में।" मैंने १० मिनट चूसा – बारी-बारी। मम्मी काँप रही, हाथ मेरे बालों में। "ओह... बेटा... निप्पल काट... उत्तेजित हो रही।" नीचे हाथ। पैंटी गीली, चिपकी। उंगली से क्लिट रगड़ा – सख्त बटन सा। "मम्मी, तेरी चूत... भिगोई हुई।" पैंटी नीचे सरकाई। चूत गुलाबी, होंठ फैले, बाल ट्रिम्ड। महक – मादक, नमकीन। "बेटा... छू... उंगली डाल।" मैंने एक उंगली अंदर – टाइट, गर्म। दीवारें निचोड़ रही। "आह... कितना गहरा... पापा कभी इतना न पहुँचा।" दूसरी उंगली। रगड़ा। मम्मी पैर फैलाए – "ओह... तेज बेटा... झड़वा मुझे।"
मैं घुटनों पर। जीभ लगाई चूत पर। क्लिट चाटा – नरम, मीठा। "मम्मी... तेरी चूत का रस... अमृत।" जीभ अंदर-बाहर। उंगली संग। १५ मिनट चाटा। मम्मी चादर मुट्ठी में – "आह... चूस बेटा... चूत चूस! सालों की भूख... मिट रही। ओह... आ गया... झड़ रही!" पानी बहा – मीठा, गर्म। मुंह भर लिया, निगला। "स्वादिष्ट मम्मी... तेरा रस।"
अब मेरा टर्न। खड़ा किया। शर्ट-पैंट उतारी। लंड बाहर – ७ इंच लंबा, मोटा, लाल टिप से चमकता। नसें फूलीं। मम्मी बैठीं, आँखें बड़ी – "ईश्वर... इतना विशाल! पकड़ूँ?" हाथ लगाया – गर्म, सख्त। हिलाया हल्का। "बेटा... कितना मोटा... मुंह फट जाएगा।" फिर घुटनों पर। चूमा टिप पर – "उम्म... नमकीन... बेटे का लंड।" मुंह में लिया – आधा अंदर। जीभ घुमाई, चूसी। लार टपक। "मम्मी... चूस मजबूत... गले तक ले।" सिर पकड़, धक्का दिया। गला फुला। "हाँ बेटा... मुंह चोद... रंडी मम्मी को सजा दे। गंदा बोल... उत्तेजित होती।" मैंने १० मिनट मुंह चोदा। आँसू आ गए उसके – लेकिन न रुकी। "बस मम्मी... अब चूत में डाल।"
बेड पर लिटाया। पैर फैलाए – चूत खुली, गीली। लंड टिप चूत पर रगड़ा – स्लाइड। "डाल बेटा... भर दे मम्मी को!" धक्का – टिप अंदर। टाइट। "आह... दर्द... धीरे!" मैं रुका, चुंबन किया – होंठ, गर्दन, चूचियाँ। फिर धीरे पूरा धक्का – अंदर। "ओह... भरा हुआ... कितना गहरा... पापा का सपना था!" पेलना शुरू – धीरे-धीरे। थप थप। बेड हिला। "मम्मी... तेरी चूत... बेटे का लंड निचोड़ रही। कितनी टाइट!" वो – "हाँ राजू... चोद मम्मी को... भूख मिटा। तेज बेटा... फाड़ दे!" स्पीड बढ़ाई। पसीना टपक। हाथ चूचियों पर – दबाया। पोजिशन चेंज – मम्मी ऊपर। सवार हुई। लंड अंदर, उछलने लगी। "आह... कंट्रोल मेरा... देख बेटा!" चूचियाँ उछल रही। मैं नीचे से धक्के – "उछल मम्मी... रंडी की तरह!" १० मिनट। फिर डॉगी – गांड ऊपर। थप्पड़ मारा – लाल निशान। "मार बेटा... गांड पर... सजा दे सालों की भूख की!" लंड अंदर, चोदा। गांड पकड़, तेज। दरार में उंगली। "ओह... गांड भी... लेकिन बाद में।" २० मिनट। "झड़ रहा मम्मी... बाहर?" वो पलटी, मुंह खोला – "मुंह में... पी लूँ बेटे का दूध!" मैं बाहर निकाला, मुंह पर झाड़ा। गर्म वीर्य – चेहरे पर, होंठों पर। वो चाटी – "उम्म... मीठा... गाढ़ा।"
सुबह तक चुदाई का सिलसिला। किचन में – मम्मी झुककर, साड़ी ऊपर, पीछे से चोदा। "आह... चाय बनाते हुए... लंड अंदर!" बाथरूम में – नहाते, शावर के नीचे। "बेटा... साबुन लगाकर चोद।" वीडियो बनाए – फोन पर। "ये रखेंगे... जब अकेले हों।" पापा लौटे, लेकिन राज छुपा। रातें गुप्त – कभी हॉल में, पापा सोते हुए पास। कभी खेत के पीछे, रात के अंधेरे में। "बेटा... फिर चोद... भूख कभी न मिटेगी।" मम्मी की आग बनी रही, सिलसिला चलता – बिना किसी टूट के।
Fuckuguy
albertprince547;
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मस्तराम का चेला: चौथी कहानी - चाची की गांड मराठी 

नमस्कार दोस्तों, हाय-हैलो कैसे हो? मैं राजू हूँ, मस्तराम का चेला – वो लड़का जो गाँव की मिट्टी में लोटा, लेकिन शहर की चमक से लंड चमकाता। पिछली कहानी में मम्मी की भूख मिटाई ना? वो तो सीरियस आग थी। लेकिन आज चौथी कहानी को और डिटेल से भरा, लंबा खींचा हुआ बना दिया – "चाची की गांड मराठी"। मेरी चाची मीना की स्टोरी, जो मराठी मसाले वाली रंडी बनी। टैबू? अरे हाँ, चाची-भतीजा का धमाल! लेकिन हटके ट्विस्ट: मराठी चैट्स में गाली-गलौज, वीडियो कॉल्स पर मराठी जोक्स, और वो फन जो आग को हँसी-मजाक में भड़काए। डिटेल्स भरी – हर टच, हर सिसकी, हर थप्पड़। और हाँ, थोड़ा हँसी-मजाक ऐड किया – जैसे चाची की मराठी वाली चुटकुलियाँ, जो लंड हिलाने के बीच हँसी उड़ा दें। तो पैंट लूज करो, मुस्कुराओ, और सुनो। अगर झड़ते वक्त हँस आए तो मेरा कमाल!
मेरा नाम राजू, २५ का गाँव का शेर। दिल्ली से लौटा तो गाँव में हलचल – सब पूछते, "क्या लाया शहर से?" मैं सोचता, "लंड का साइज बढ़ाया है!" लेकिन असली धमाका चाची मीना से। चाची – पापा की छोटी बहन की बेटी, लेकिन शादी होकर ससुराल में बस गई। उम्र ३८ की, लेकिन मराठी खून ने बॉडी को फायरवर्क्स बना रखा। ३६-३०-४० का फिगर – चूचियाँ ऐसी तनीं कि ब्लाउज में बटन बोले, "फूट जाऊँगा भाई!"; कमर पतली लेकिन हिप्स चौड़े, साड़ी पहनो तो गांड मटकती जैसे बॉम्बे की बार डांसर। मराठी साड़ी – नौवारी स्टाइल, ९ गज का धागा लपेटा, लेकिन ब्लाउज लो-कट, क्लीवेज झांकता। चेहरा गोल-मटोल, होंठ मोटे जैसे चुटकुला खाने को तैयार, आँखें काजल से लकीरें – एक नजर में लंड खड़ा। चाचा – ट्रक ड्राइवर, महीनों गुजरात-महाराष्ट्र की सड़कों पर। चाची अकेली घर में, लेकिन गाँव की अफवाहें: "मीना रांड बाई, रात को ट्रक की तरह रिवर्स गियर लगाती!" मैं हँसता, सोचता – "चाची, तू तो मेरा अगला टारगेट।"
पहली मुलाकात तो कमाल की। मैं घर आया, शाम को। चाची मिठाई का डिब्बा लेकर आईं – "राजू रे बाबा, दिल्लीतून आलास? कितना मोठा झाला आहेस तू! आता चाचा सारखं ट्रकचं ड्रायव्हर व्हावंस का?" मराठी में बोलीं, गले लगीं। वाह! बदन का टच – चूचियाँ सीने पर दब गईं, जैसे दो सॉफ्ट गद्दे। कमर पकड़ी तो नाभि की गर्मी महसूस हुई। पसीना चिपका, लेकिन खुशबू – चंदन और मसाले की, मराठी स्टाइल। मैं शरमाया, लेकिन लंड ने कहा, "भाई, स्टैंडिंग ओवेशन!" "चाची, तू भी जवान लग रही... चाचा को जलन होगी," मैंने फ्लर्ट किया। वो हँसीं – ठहाका लगाया, जैसे मराठी कॉमेडी शो। "अरे वाईट मुलगा! चाचा तर छोटा ट्रक आहे, तू तर जंबो! पण सांग, शहरात काय शिकलास? गर्लफ्रेंड किती?" पापा-मम्मी हँसे, लेकिन मैंने आँख मार दी – "चाची, गर्लफ्रेंड तो एक, लेकिन तू देख ली तो भूल गई!" वो गाल रंगाए, लेकिन चुटकी काटी – "पागल! मी तर तुझी चाची, नाही रे बॉयफ्रेंड!" शाम भर बातें – चाचा की, गाँव की। जाते वक्त नंबर लिया – "व्हाट्सअॅपवर बोलू ना। मराठी जोक्स पाठवेन।"
रात को धमाल शुरू। ११ बजे मैसेज – "राजू, झोपलास का? मी एकटी, चाचा गुजरातला गेले." मैं – "नहीं चाची। तू अकेली? ट्रक मिस कर रही?" वो – "हो रे! ट्रक तर छोटा, पण तुझ्यासारखा मोठा हवा! ?" चैट मराठी-हिंदी मिक्स, इमोजी भरा। "चाची, तेरी गांड... साड़ी में मटकती देखा आज। कमाल!" वो ऑनलाइन रहीं, लेकिन ५ मिनट बाद – "अरे वाईट! पण... तुला आवडली? हे पाहा, सेल्फी." फोटो आई – साड़ी में, कमर घुमाकर, गांड का साइड व्यू। कैप्शन – "मराठी गांड, ट्रक पार्किंगसाठी!" मैं हँस पड़ा, लंड सख्त। "चाची, ये तो हाईवे वाली! चोदूँ?" वो – "पागल! उद्या ये घर येईन। चाचा १० दिवस नाहीत। मजा करू!" अगली सुबह चैट – जोक्स: "काय म्हणतात ट्रक ड्रायव्हरला? लंड छोटा, पण रस्ता लांब! तुझं काय?" मैंने फोटो भेजी – लंड का सिल्हूट। "ये देख चाची, मेरा ट्रक!" वो – "बापरे! इतकं मोठं? चाचा च्या दुप्पट! उद्या दाखव."
अगले दिन शाम को पहुँचा चाची के घर – बहाना, "मदत चाहिए नल ठीक करने का।" घर छोटा, लेकिन साफ। चाची नौवारी साड़ी में – ९ गज का धागा लपेटा, लेकिन ब्लाउज टाइट, चूचियाँ तनीं। "ये आला रे बाबा! बसा, चहा बनवते." चाय दी, लेकिन आँखें चमक रही। बातें शुरू – चाचा की शिकायत। "तो बाहेर असतो महिनाभर, मी एकटी... कंटाळलेली. रात्रि स्वतःला हात लावते, पण समाधान नाही." मैं चौंका, लेकिन मजाक में – "चाची, हाथ से तो ठीक, लेकिन ट्रक चाहिए ना? मेरा वाला लंबा रूट!" वो ठहाका लगाई – "हाहा! तू तर कॉमेडियन! सांग, तुझं किती लांब?" मैंने फोन निकाला, पुराना वीडियो प्ले – भाभी वाला क्लिप, लेकिन एडिटेड। लंड का १० सेकंड। "ये देख चाची, ७ इंच का ट्रक!" वो आँखें फाड़ी – "अरे बापरे! इतकं मोठं? चाचा तर ४ इंचचा रिक्षा! छू लू का?" हाथ मेरी जांघ पर – गर्म। मैंने हाँ कहा। वो पकड़ा पैंट पर – "कडक झालं... उघड ना रे, पार्किंग करू!"
पैंट नीचे सरकी। लंड बाहर – लाल, सख्त, नसें फूलीं। चाची घुटनों पर बैठी, जैसे पूजा। "वाह रे... मोटा, लांब. हे तर मराठी लंड नाही, बॉम्बे एक्सप्रेस!" हँसी आई, लेकिन वो चूमा टिप पर – "उम्म... नमकीन... राजूचा लंड चोखा." मुंह में लिया – आधा अंदर। जीभ घुमाई, चूसी जैसे आइसक्रीम। लार टपक। "चाची... चूस मजबूत... गले तक ले रे!" मैं सिर पकड़ा, धक्का दिया। गला फुला। "हाँ रे बाबा... तोंड चोद... रांडी चाचीला सजा दे! पण हळू, शेजारी ऐकत असतील!" हँसते हुए बोलीं, लेकिन चूसती रहीं। ७ मिनट – लार से चेहरा गीला। "बस चाची... अब तेरी बारी। साड़ी ऊपर!" चाची उठीं, नौवारी खोली – धागा लहराया। ब्लाउज खोला। चूचियाँ बाहर – ३६ साइज, गोल, ब्राउन निप्पल्स सख्त। दबाया मैंने – नरम, लेकिन उछाल। "चाची... तेरी चूचियाँ... मराठी ढोकला जैसे!" वो हँसी – "हाहा! ढोकला तर चवीष्ट, चूस ना!" मैं झुका, मुंह में लिया। चूसा मजबूत, काटा हल्का। "आह... काट रे... दुखतंय पण मजा! दुसरीही, दूध काढ!" जीभ घुमाई, ५ मिनट बारी-बारी। चाची सिसक रही, लेकिन जोक मारा – "चाचा तर चाटतच नाही, तू तर लंडस्टार!"
नीचे हाथ। पेटीकोट में घुसा। चूत गीली, पैंटी चिपकी। "चाची, तेरी चूत... कितनी गर्म। बाल साफ?" उंगली रगड़ी क्लिट पर – सख्त बटन। "हो रे... वाक्सिंग केली. चाट ना, मराठी चटनी!" मैं हँसा, झुका। पैंटी नीचे। चूत गुलाबी, चमकती। जीभ लगाई – क्लिट चाटा। "ओह... जीभ... चूत चाट रे! चाचा कधीच नाही, तू तर एक्सपर्ट!" मीठा रस बहा। जीभ अंदर-बाहर, उंगली संग। १२ मिनट चाटा। चाची पैर काँपे – "आलं... पाणी... ओह बाबा... प्या रे सब! झडली मी!" पानी बहा – नमकीन, गर्म। मुंह भर, निगला। "चाची, तेरा रस... मराठी चाय से बेहतर!"
अब असली धमाल – गांड मराठी! चाची बेड पर डॉगी – गांड ऊपर, गोल-फूली। "राजू, गांड चोडी ना... पहिल्यांदा. पण हळू, फाटू नये!" मैं तेल निकाला अलमारी से – "चाची, ये ट्रक का लुब्रिकेंट!" वो हँसी – "हाहा! तू तर मस्त! लाव रे." तेल लगाया दरार पर – गर्म, चिकना। लंड टिप रखा। धीरे दबाया – टिप अंदर। "आह... फाटलंय... रुको रे बाबा!" रुका, पीठ चूमा, चूचियाँ नीचे से दबाई। "चाची, रिलैक्स... ट्रक रिवर्स में जाता है ना?" फिर धक्का – आधा अंदर। टाइट, गर्म। "ओह... भरली... किती टाइट!" पूरा धक्का। पेलना शुरू – धीरे-धीरे। थप थप। गांड पकड़, थप्पड़ मारा। "चाची... तेरी गांड... आग की तरह!" वो सिसकी – "हो रे... चोद जोरात... थप्पड मार! रांडीसारखी वाटतेय!" थप्पड़ की आवाज – चटाक! लाल निशान। १८ मिनट पेला। पसीना टपक, लेकिन बीच में जोक – "चाची, चाचा को पता चले तो बोलेगा, 'ट्रक चोरी हो गया!'" वो हँसी सिसकते हुए – "हाहा... तूच चोर!"
शिफ्ट चूत में। मिशनरी – पैर कंधे पर। लंड चूत पर रगड़ा – गीला स्लाइड। "डाल चाची... चूत फाड़!" धक्का – अंदर। टाइट। "आह... मोठा लंड... चाचा च्या पेक्षा राजा!" पेला। थप थप। चूचियाँ दबाई। "तेरा लंड... गांड-चूत किंग!" १५ मिनट। पोजिशन – चाची ऊपर। सवार हुई, उछली। चूचियाँ हिलीं। "उछल रे चाची... मराठी डांस!" मैं नीचे से धक्के। "हाँ... चोद निचून... झडू मी!" १० मिनट। झड़ना टाइम। "चाची, बाहर... चेहऱ्यावर!" वो पलटी, मुंह खोला – "हो रे... दूध प्यायला!" बाहर निकाला, झाड़ा। गर्म वीर्य – चेहरे पर, होंठों पर, बालों में। चाटा वो – "उम्म... मीठं... गाढ़ं दूध! चाचा च्या पेक्षा क्रिमी!"
लेकिन ये तो शुरुआत भाई। अगली रातें धमाल – वीडियो कॉल पर मराठी गालियाँ: "चोद माझी गांड रे लंड राजा! पण शेजारी ऐकू नये, साइलेंसर लाव!" कभी खेत में, नौवारी ऊपर करके – "ट्रक पार्किंग में चोद!" एक बार मजा – चाचा का फोन आया मिड-चुदाई। चाची ने उठाया – "हो चाचा... हा जोराचा आवाज? ट्रक स्टार्ट केला!" मैं हँसा, लंड अंदर ही। चाची काटी – "बस रे... झडू मी!" सिलसिला चला – चाची की आग बनी। "राजू, तू माझा चेला... नेहमी चोद, पण जोक्स सुद्धा!"
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मस्तराम का चेला: पांचवीं कहानी - दोस्त की बीवी का राज 

नमस्कार दोस्तों, या फिर कहूँ, नमस्कार उन चुपचाप जलती रातों को, जहाँ चाँद की किरणें खिड़की से सिसकियाँ ले आती हैं, और दिल की गहराइयों में वो पुरानी धुन बजने लगती है – वो जो प्यार कहलाती है, लेकिन कभी-कभी भूख का नाम ले लेती है। मैं हूँ राजू, मस्तराम का चेला – वो साधारण सा यात्री जो गाँव की धूल भरी राहों से गुजरा, शहर की ऊँची इमारतों के साये में ठहरा, लेकिन रगों में वही ज्वाला बहाती रही जो ठंडी हवा को भी गर्म कर दे। पिछली कहानियों में मैंने भाभी की कमर की लहरों को छुआ, बहन की शादी की रात का तूफान महसूस किया, मम्मी की दबी सिसकियों को सुनाया, और चाची की मराठी ठहाकों में डूबा। हर बार लगता है कि ये आखिरी मोड़ है, लेकिन जिंदगी तो एक अनंत नदी है, जहाँ हर लहर में कोई नया राज छिपा होता है – कभी आग का, कभी प्यार का। आज की कहानी को मैंने थोड़ा और लंबा खींचा है, थोड़ा और गहरा उतारा है, क्योंकि तुम्हारे कहने पर नेहा की ये दास्ताँ अब सिर्फ चुदाई की नहीं, बल्कि उस रोमांस की है जो दोस्ती की दीवारों को चुपके से तोड़ देता है। "दोस्त की बीवी का राज" – मेरे सबसे करीबी संजय की बीवी नेहा, जो एक दिन मेरी आँखों की रानी बन गई। टैबू? हाँ, दोस्ती का विश्वास तोड़ना पाप है, लेकिन जब दिल की धड़कनें बोलने लगें, तो वो पाप भी स्वर्ग लगने लगता है। हटके ट्विस्ट? पुराने प्रेम-पत्रों की तरह चैट्स, वॉइस नोट्स में फुसफुसाहटें, और वो स्मार्टफोन वाली चिंगारियाँ जो दोस्ती को एक गुप्त प्रेम कथा में बदल दें। कहानी अब और लंबी है, धीमी आग वाली – हर सीन में हवा का स्पर्श महसूस होगा, हर टच में आत्मा की पुकार। तो लेट जाओ, आँखें बंद करो, और कल्पना करो कि ये तुम्हारी ही कहानी है, जहाँ प्यार और वासना एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
मेरा नाम राजू है, उम्र वो ही २५ की, जब जिंदगी के रंग सबसे चटखदार लगते हैं – न तो बचपन की मासूमियत बची रह जाती है, न ही बुढ़ापे की थकान आ जाती है। संजय मेरा वो दोस्त था, जो बचपन से साथ खेला, गाँव की नदी किनारे पत्थर फेंका, और दिल्ली की भागदौड़ में भी हँसते-हँसते जॉब पकड़ ली। वो शांत था, किताबों का दीवाना, हमेशा कहता – "राजू, जिंदगी एक उपन्यास है, धीरे पढ़ना।" मैं? मैं तो उछल-कूद वाला, शरारतों का पिटारा। फिर आई नेहा – संजय की शादी की शाम को, जैसे कोई सपना उतर आया हो। दिल्ली की लड़की, २४ की, लेकिन आँखों में गाँव की वो सादगी जो शहर की चमक को भी फीका कर दे। नेहा... अरे, नेहा को शब्दों में बाँधना मुश्किल है, जैसे कोई पुरानी ग़ज़ल जो सुनते ही सीने में बस जाए। ३४-२८-३६ का फिगर, स्लिम लेकिन कर्व्स ऐसी कि साड़ी पहनो तो वो लहरें उठें जो समंदर को शरमाने पर मजबूर कर दें; जींस में तो कमर की वो लकीरें सीधी नजरों में चुभ जाएँ, जैसे कोई नक्काशीदार मूर्ति। चेहरा अंडाकार, होंठ गुलाबी जैसे सुबह की ओस से भीगे, आँखें काली – गहरी, जहाँ डूबते ही भूल जाओ कि तट कहाँ है। हँसती तो डिंपल्स खिलखिलाते, गुस्से में भौहें सिकुड़तीं तो लगता, कोई कवि कागज उठा ले। शादी के बाद वो संजय के साथ दिल्ली शिफ्ट हुई। हम तीनों का रूटीन बन गया – शाम को चाय की प्यालियाँ, रात को मूवी की स्क्रीन पर हँसी। लेकिन धीरे-धीरे, जैसे बारिश की पहली बूँदें बादल से अलग होती हैं, मैंने नोटिस किया – नेहा की नजरें मुझ पर ठहरने लगीं। संजय की बातों के बीच, वो मुस्कुराहट... वो चमक जो दोस्ती से ऊपर उड़ान भरने को तैयार लगती। संजय? वो अपनी दुनिया में खोया रहता – किताबें, काम, नींद। कभी नोटिस ही न करता कि नेहा की आँखों में तड़प है, वो जोश की कमी जो शादी के रंगमंच पर धीरे-धीरे फीका पड़ने लगे।
एक शाम, दिल्ली की वो बारिश जो अचानक आ धमकती है, जैसे कोई पुराना प्रेमी लौट आया हो। संजय मीटिंग में फँसा, लेट आने वाला। मैं उनके फ्लैट पर पहुँचा, नेहा के साथ। वो किचन में चाय उबाल रही थी, साड़ी का पल्लू हल्का सा सरका हुआ, कमर की वो नाजुक लकीरें बारिश की नमी से चमक रही। खिड़की से पानी की बूँदें टपक रही, हवा में ठंडक घुली हुई – वो ठंडक जो दिल को छू ले। "भैया, संजय कब आएगा? ये बारिश... अकेले में डर लगता है," नेहा बोली, मुस्कुराते हुए, लेकिन आँखों में वो उदासी जो शब्दों से ज्यादा बोलती। मैंने टीवी ऑन किया – कोई पुरानी फिल्म, जहाँ हीरो-हीरोइन बारिश में गीत गाते। लेकिन नेहा पास आ बैठी, कंधा छुआ – हल्का सा, लेकिन बिजली सा करंट। "तू तो हमेशा हँसाता है भैया... संजय के साथ तो बस रूटीन। सुबह चाय, शाम खाना, रात सोना। कभी वो स्पार्क... वो जो दिल को जगाए।" उसकी साँसें गर्म लगीं, बारिश की ठंडक में भी। मैंने हाथ पकड़ा – नरम, ठंडा, लेकिन उँगलियों में वो कंपकंपी जो प्यार की पहली पुकार होती। "नेहा, तू खुश तो है ना? संजय तेरा कितना ख्याल रखता।" वो चुप रही, आँखें नीची। फिर धीरे से बोली, जैसे कोई राज़ खोल रही हो – "खुश हूँ भैया... लेकिन कभी-कभी लगता, जिंदगी में कुछ मिस कर रही। वो जोश... वो स्पार्क जो रातों को नींद उड़ा दे, सुबहों को सपनों से भर दे। संजय अच्छा है, लेकिन... वो आग नहीं जलाता।" बारिश तेज हो गई, जैसे आकाश भी रो रहा हो। मैंने करीब खींचा – धीरे से, जैसे कोई नाजुक फूल तोड़ रहे हों। होंठ मिले – नरम, गीले, बारिश की बूँदों जैसे। नेहा न रुकी, बल्कि लिपट गई। जीभ चूसी, धीरे-धीरे, जैसे कोई पुरानी धुन गा रही। "भैया... ये गलत है," फुसफुसाई, लेकिन आँखें बंद, हाथ मेरी कमीज में घुसे। संजय का फोन आया – "मैं लेट आऊँगा, मीटिंग लंबी।" नेहा ने काट दिया, मुस्कुराई – "अभी तो वक्त है भैया... बस थोड़ा सा।" वो पल... वो पहला चुंबन, जैसे कोई कविता पूरी हो गई हो।
उस रात से राज़ का जन्म हुआ – वो राज़ जो दोस्ती की दीवारों के पीछे छिपा, लेकिन रातों को चाँदनी में चमकने लगा। संजय सो गया, थकान से। हम बालकनी में चले आए – बारिश थम चुकी थी, लेकिन हवा में नमी बाकी। नेहा की साड़ी का पल्लू सरक गया, कमर नंगी चमक रही – वो नाजुक लकीरें, नाभि की गहराई जो किसी गहरे समंदर को छिपाए। मैंने छुआ – धीरे से, उँगलियों से सहलाया, जैसे कोई पुरानी तस्वीर को छू रहे हों। "नेहा... तू कितनी सुंदर है। जैसे कोई सपना जो छूने से उड़ न जाए।" वो सिसकी भर आई – हल्की, लेकिन दिल को छू लेने वाली। "भैया... संजय कभी नोटिस न करता। बस सो जाता, जैसे ड्यूटी हो। लेकिन तू... तेरी नजरें... वो प्यार जैसी।" हाथ नीचे सरका – सलवार में, चूत पर हल्का रगड़। गीली, गर्म। "तू... तैयार लग रही, लेकिन डर भी।" नेहा ने सिर हिलाया, आँखें नम – "डर है भैया... लेकिन तेरे बिना अब और डर लगेगा।" बालकनी की रेलिंग पर सटाया, धीरे से। सलवार नीचे सरकी। चूत गुलाबी, बाल हल्के, जैसे कोई फूल की कलियाँ। मैं घुटनों पर – जीभ लगाई, चाटा धीरे-धीरे, क्लिट पर। "आह... भैया... चूस... संजय कभी न चाटा, लेकिन तू... जैसे जानता हो मेरा हर राज़।" मीठा रस बहा, धीरे-धीरे। १० मिनट तक चाटा, उँगली डाली – एक, फिर दो। नेहा काँपी, बालकनी की रेलिंग पकड़ ली – "झड़ रही हूँ भैया... पी ले... तेरा प्यार।" रस मीठा, गर्म – निगला, जैसे कोई अमृत। फिर खड़ा हुआ। लंड बाहर – ७ इंच, सख्त लेकिन धीरे। नेहा ने पकड़ा – "वाह... संजय का छोटा लगता। तेरा... जैसे मेरा।" मुंह में लिया, चूसा धीरे – जीभ घुमाई, आँखें ऊपर उठाकर। "उम्म... तेरा स्वाद... प्यार का।" ६ मिनट। फिर दीवार सटाकर। "डाल भैया... धीरे... रोमांस से।" धक्का – टिप अंदर। टाइट, गर्म। "ओह... फुल हो गई... तेरी आग।" पेला – धीरे-धीरे, हर धक्के में चुंबन। थप थप, लेकिन बारिश की तरह नरम। १५ मिनट। नेहा की सिसकियाँ – "भैया... प्यार कर... तेज नही, गहरा।" आखिर में बाहर झाड़ा – उसके पेट पर, गर्म बूँदें। नेहा ने सहलाया – "तेरा राज़... मेरे अंदर।"
लेकिन ये राज़ तो बस शुरुआत था, जैसे कोई उपन्यास का पहला अध्याय। अगले हफ्ते संजय का बर्थडे आया – पार्टी की रौनक, लेकिन हमारे लिए वो एक गुप्त मिलन का बहाना। नेहा साड़ी में – लाल, पारदर्शी, जैसे कोई दुल्हन लेकिन आँखों में वो रहस्य जो सिर्फ मेरे लिए। नजरें मिलीं – पार्टियों के शोर में भी, जैसे कोई फुसफुसाहट। संजय शराब में डूबा, दोस्तों से हँसता। रात गहरी हुई, संजय सो गया – थकान से, बर्थडे की। नेहा चुपके मेरे कमरे में – "भैया, आग लगी है आज... बर्थडे का तोहफा तू दे।" नंगी हो गई, धीरे-धीरे – साड़ी सरकी, ब्लाउज खुला। बदन चाँद सा चमका, कमरे की लाइट में। चूचियाँ गोल, निप्पल्स गुलाबी – सख्त लेकिन नाजुक। मैंने छुआ – सहलाया, दबाया धीरे। "नेहा... तेरी चूचियाँ... जैसे दो तारे।" झुका, चूसा – मुंह में लिया, जीभ घुमाई। "आह... काट ले भैया... लेकिन प्यार से।" काटा हल्का, लेकिन चुंबनों से। नीचे – चूत चाटी, धीरे। उँगली डाली – दो, रगड़ा। "भैया... संजय एक ही डालता, लेकिन तू... जैसे मेरा दिल छू रहा।" नेहा झड़ी – लंबी, काँपती। "तेरा प्यार... बहा दिया।" फिर डॉगी – गांड ऊपर, लेकिन रोमांटिक। "गांड नही भैया... चूत में... गहरा प्यार।" लंड अंदर – धीरे। पेला। २५ मिनट। पोजिशन बदली – नेहा ऊपर, उछली धीरे। चूचियाँ हिलीं, लेकिन आँखें मिलीं। "तेरा लंड... मेरा राजा... प्यार का।" झड़ना – मुंह में, धीरे। निगला नेहा – "मीठा... तेरा, हमेशा।"
चैट्स अब कविताएँ बन गईं। वॉइस नोट्स – नेहा की फुसफुसाहट: "भैया, संजय सोया... तेरा वीडियो भेज, सपनों में देखूँ।" मैं भेजा – मुठ मारता, लेकिन आँखों में प्यार। वो – "मेरा देख... चूत रगड़ती, तेरे नाम की।" वीडियो कॉल रातों में – "भैया, संजय बाहर... कल्पना में चोदूँ, लेकिन प्यार से।" लेकिन एक दिन ट्विस्ट आया, जैसे कोई तूफान। संजय को शक हुआ – नेहा के फोन में एक मैसेज झलक गया। "नेहा, राजू से इतनी बातें? क्या राज़ है?" नेहा हँसी – "अरे यार, भाई जैसा... बस हँसाता है।" लेकिन रात को उसका मैसेज – "भैया, डर लग रहा... लेकिन तेरे बिना जिंदगी सूनी। आ मिल, पार्क में।" हम मिले – पार्क की बेंच पर, चाँदनी में। चुंबन – लंबा, गहरा। "नेहा, संजय को छोड़ दूँ?" वो आँखें नम – "नहीं भैया... वो मेरा पति, लेकिन तू मेरा प्यार। चुपके का राज़... हमारा।"
सिलसिला चला, जैसे कोई अनकही प्रेम कथा। कभी होटल में – मिशनरी पोजिशन, चूचियाँ काटते लेकिन चुंबनों से। "भैया... तेरा स्पर्श... आत्मा तक।" कभी कार में – ओरल, लेकिन आँखें बंद, कल्पना में। संजय को आखिरकार पता चला – एक रात, फोन में वीडियो क्लिप। झगड़ा हुआ, आँसू बहे। लेकिन नेहा बोली, आवाज काँपती – "संजय, तू मेरा सहारा... लेकिन राजू मेरा जोश, मेरा प्यार। हमें माफ कर... या स्वीकार।" संजय चुप रहा, टूटा लेकिन समझा। अब त्रिकोण बन गया – कभी तीनों साथ हँसते, कभी चुपके नेहा और मैं। नेहा की आग बनी, लेकिन अब रोमांस से भरी। "भैया, तू मेरा चेला... हमेशा, चाहे जो हो।
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मस्तराम का चेला: छठी कहानी - टीचर की क्लास आफ्टर हाउर्स 

नमस्कार दोस्तों, या फिर कहूँ, नमस्कार उन उन दोपहरों को जो कॉलेज की घंटी बजने के बाद भी चुपके से सुलगती रहती हैं, जब क्लासरूम की बेंचें खाली हो जाती हैं लेकिन हवा में वो अनकही चाहतें तैरने लगती हैं – वो जो चॉक की स्क्रैच से ज्यादा तेज, ज्यादा गुप्त होती हैं। मैं हूँ राजू, मस्तराम का चेला – वो लड़का जो गाँव की कच्ची सड़कों से निकला, दिल्ली की मेट्रो में सवार हुआ, लेकिन दिल में वही जज्बा रखा जो कभी शांत न हो। पिछली कहानियों में वो राज़ सुने ना? लेकिन आज की ये कहानी थोड़ी अलग रंगत वाली है, थोड़ी नई मसाले वाली – "टीचर की क्लास आफ्टर हाउर्स"। मेरी कॉलेज टीचर, सीमा मैम, जो दिन में इकोनॉमिक्स की थ्योरी पढ़ातीं, शाम ढलते ही सिखातीं वो सब जो सिलेबस के बाहर था। टैबू? हाँ, टीचर-स्टूडेंट का वो बंधन जो डेस्क की दराज में छिपा हो। लेकिन हटके ट्विस्ट: ऑनलाइन क्लासेस के ज़ूम सेशंस में छुपी वो वीडियो शेयरिंग, चैट्स में वो कोडेड मैसेज, और डिजिटल स्क्रीन वाली वो उत्तेजना जो पुरानी नोटबुक्स को भी आग लगा दे। कहानी अब और फैली हुई है, नई डिटेल्स से भरी – हर नजर का टकराना, हर मैसेज का वाइब्रेशन, हर मिलन का स्वाद महसूस होगा। तो लैपटॉप बंद करो, फोन साइलेंट पर रखो, और डूब जाओ – ये क्लास कभी रूटीन नहीं बनेगी।
मेरा नाम राजू है, उम्र वो ही 20 की, जब कॉलेज की हवा में पहली बार वो बेचैनी घुलती है – क्लास में लड़कियाँ चुपके से नोट्स शेयर करतीं, लड़के बैकबेंच पर चुटकुले फुसफुसाते, और मैं बीच में बैठा वो सब सोखता। दिल्ली का वो साधारण सा कॉलेज, बीकॉम का आखिरी साल। क्लास में इकोनॉमिक्स की लेक्चर – ड्राई सब्जेक्ट, लेकिन टीचर? ओहो! सीमा मैम – इकोनॉमिक्स की लेक्चरर, उम्र 35 के आसपास, लेकिन स्टाइल ऐसी कि देखकर लगे जैसे 28 की हों। 36-28-38 का फिगर, साड़ी पहनतीं कॉटन की – हल्के रंगों वाली, लेकिन फिटिंग ऐसी कि कमर की मोड़ पर साड़ी चिपकती, नाभि की छाया हल्की झलकती जैसे कोई गुप्त कोड। ब्लाउज बैकलेस स्टाइल, चूचियाँ उभरी हुईं जैसे इकोनॉमिक्स के कर्व्स डाउनवर्ड स्लोप न हों। छोटे बाल, कानों में झुमके की हल्की झंकार, और वो आँखें – बिना चश्मे की, लेकिन नजरें ऐसी कि सीधे दिमाग से नीचे उतर जाएँ। मैम स्मार्ट थीं – "राजू, इकोनॉमिक्स में बैलेंस शीट समझा?" पूछतीं, लेकिन पूछते हुए भी आवाज में वो गहराई जो रातों को फोन पर कॉल करने को मजबूर कर दे। मैं मिडल रो का, हमेशा ऑन टाइम, लेकिन मैम की नजरें मुझ पर टिकतीं – जैसे कुछ पढ़ रही हों। एक दिन टेस्ट में लो स्कोर – "राजू, आफ्टर क्लास मिलना। डिस्कशन।" दिल में उथल-पुथल – चिंता भी, उत्सुकता भी। क्लास खत्म, सब निकले। क्लासरूम में सन्नाटा, ब्लैकबोर्ड पर इकोनॉमिक्स के इक्वेशन। मैम चेयर पर बैठीं, साड़ी की सिलवटें हल्की फैलीं, जाँघों की शेप हल्की दिख रही। "राजू, तू कैपेबल है, लेकिन फोकस क्यों नहीं? क्या प्रॉब्लम है? फ्रेंड्स?" मैम बोलीं, नोटबुक बंद करके। मैं खड़ा रहा, नजरें नीची – "मैम, कुछ नहीं... बस कंफ्यूजन ज्यादा।" लेकिन नजरें उनकी गर्दन पर फिसली – पसीना की बूंदें लुढ़कती, नाभि की तरफ। मैम नोटिस कीं, हँसीं – "कंफ्यूजन? या क्लास में कुछ और घूर रहा? इकोनॉमिक्स में डिमांड कर्व है, लेकिन तू डिस्ट्रैक्शन पर फोकस कर।" पहली स्पार्क – वो हँसी, वो आँखों की चालाकी। मैं मुस्कुराया – "मैम, आपकी एक्सप्लेनेशन... इंस्पायरिंग है।" वो उठीं – "इंस्पायरिंग? या मैं? चल, नेक्स्ट टाइम इंप्रूव कर।" लेकिन जाते हुए कंधा थपथपाया – हल्का टच, लेकिन बॉडी में झनझनाहट। उस रात सपने में मैम – साड़ी खुलती, ब्लाउज गिरता। सुबह उठा, बॉडी गर्म।
उस शाम से आफ्टर क्लास सेशंस शुरू। पहले इकोनॉमिक्स के टॉपिक्स पर – मैम के ऑफिस में। छोटा स्पेस, डेस्क पर किताबें, लेकिन एयर में उनकी बॉडी लोशन की खुशबू। "राजू, इकोनॉमिक्स में ग्रोथ समझा?" मैम बोलीं, ग्राफ ड्रॉ करते। मैं पास खड़ा, कोहनी छुई। बातें शिफ्ट हुईं – पर्सनल। "राजू, तू सिंगल? कॉलेज लाइफ में रोमांस?" मैं शरमा गया – "मैम, रोमांस तो नहीं, लेकिन इंस्पिरेशन है। आपकी तरह।" मैम हँसीं – "पागल! मैं 35 की, मैरिड। हसबैंड है, लेकिन... रूटीन लाइफ। वो ट्रैवलिंग जॉब में, घर खाली रहता।" राज़ की झलक – मैम की शादी 10 साल पुरानी, हसबैंड आउटडोर वर्क, हफ्तों बाहर। मैम शामों को अकेली, म्यूजिक सुनतीं, लेकिन अंदर की आग... वो वाली। मैंने बोल्ड होकर – "मैम, आप डिजर्व ज्यादा। खुशी।" वो चुप, फिर बोलीं – "खुश? कभी लगता... लाइफ में एक्साइटमेंट कम।" हाथ मेरा छुआ – नरम। "राजू, तू एनर्जेटिक, एंजॉय कर।" मैंने नंबर माँगा – "मैम, डाउट्स के लिए टेक्स्ट?" वो दीं – "ओके, लेकिन सिर्फ स्टडी।" लेकिन आँखों में चमक।
रात को पहला टेक्स्ट – "मैम, चैप्टर 6 का क्वेश्चन – इकोनॉमिक ग्रोथ कैसे मेजर?" लेकिन रिप्लाई – "राजू, मॉर्निंग में डिस्कस। लेकिन तू क्या कर रहा? स्लीपिंग?" मैं – "नहीं मैम, थिंकिंग अबाउट क्लास।" चैट फ्लो – "मैम, आपकी आज की साड़ी... ग्रे, स्टनिंग लग रही थीं। लेक्चर में मन लगा।" वो ऑनलाइन, लेकिन लेट – "थैंक्स राजू! तू भी हैंडसम लगता। जिम?" इमोजी – विंक। चैट हॉट – "मैम, अगर आप स्टूडेंट होतीं तो... फ्रेंडशिप करता।" वो – "फ्रेंडशिप? या कुछ और? गुडनाइट।" फोटो शेयर की – बुक पढ़ते, लेकिन साड़ी हल्की लूज, क्लीवेज की झलक। कैप्शन – "स्टडी टाइम।" मेरा लंड फड़का – हाथ हिलाया। अगली मॉर्निंग क्लास में आई कांटैक्ट – मैम स्माइल की।
एक हफ्ते बाद, पैनडेमिक हिट – कॉलेज शट, वर्चुअल क्लासेस ऑन। ज़ूम पर मैम – होम से, साड़ी में लेकिन कैजुअल, कैमरा एंगल नीचे, कमर की कर्व्स हल्की विसिबल। क्लास में 40 स्टूडेंट्स, लेकिन प्राइवेट चैट – "राजू, फोकस!" मैं – "मैम, आपकी बैकग्राउंड... डिस्ट्रैक्टिंग।" वो – "शट अप! क्लास एंड में कॉल मी।" क्लास ओवर, प्राइवेट ज़ूम कॉल – "राजू, असाइनमेंट रेडी? या होम ट्यूशन चाहिये?" दिल तेज – "मैम, होम ट्यूशन... प्लीज।" वो – "कम होम, इवनिंग। एड्रेस भेजती।" शाम को पहुँचा – मैम का अपार्टमेंट, क्वाइट एरिया। दरवाजा खोला – मैम कुर्ती-लेगिंग्स में, टाइट, कर्व्स उभरे। "कम इन राजू, टी?" रूम में – लिविंग एरिया, बुक्स, काउच, बैडरूम दूर। मैम बैठीं, लेगिंग्स फैली, जाँघें शेप्ड। "राजू, तू मेच्योर हो गया... बॉडी शेप्ड।" हाथ मेरी आर्म पर – मसल्स छुई। मेरा लंड हलचल। "मैम, आप... क्यूट लग रही। होम स्टाइल।" वो स्माइल – "क्यूट? या सेक्सी? लेक्चर स्टार्ट?" लेकिन करीब शिफ्ट। आँखें मिलीं – "राजू... ये रॉंग है। लेकिन लोनली फील कर रही... हसबैंड आउट, मैं सोलो।" मैंने हाथ पकड़ा – "मैम, आई एम हियर।" होंठ मिले – गर्म, वेट, जीभ प्ले जैसे थर्स्टी। "उम्म... राजू के लिप्स... टेस्टी।" 7 मिनट किस – नेक लिक, ईयर बाइट। "आह... बाइट राजू... पेन प्लेजर गिव्स।"
मैंने कुर्ती ऊपर – ब्रा ब्लैक लेस। ब्रा हुक ओपन – चूचियाँ आउट – राउंड, ब्राउन निप्स हार्ड जैसे पेंसिल टिप। दबाया – सॉफ्ट, लेकिन स्प्रिंगी। "मैम... सो फिल्ड... मिल्की।" बेंट, माउथ इन – सक्ड हार्ड, टंग स्वर्ल। बाइट लाइट। "ओह... सक राजू... स्टूडेंट माउथ... हेवन। निप बाइट... ईयर्स सिन्स टच्ड।" 18 मिनट सक्ड – अल्टरनेट, नेक फ्रॉम बेली किस। डाउन। लेगिंग्स डाउन – पैंटी वेट, पिंक। "मैम, शेव्ड? क्लीन लुकिंग।" पैंटी स्लाइड – चूत पिंकिश, क्लिट स्वोलन। फिंगर रब्ड – "आह... फिंगर... इन राजू।" वन फिंगर इन – टाइट, हॉट। वॉल्स स्क्वीजिंग। "मैम... सो टाइट... फ्रेश सी।" सेकंड फिंगर। रब्ड। "ओह... फास्टर राजू... मेक मी कम।" 7 मिनट। देन बेंट – टंग टच। क्लिट लिक्ड – सॉफ्ट, स्वीट। "आह... टंग... पुसी लिक! हसबैंड नेवर लिक्ड, यू... किंग।" टंग इन-आउट, फिंगर कॉम्बो। 18 मिनट लिक्ड। मैम शीट ग्रिप्ड – "कमिंग... जूस... ओह राजू... ड्रिंक ऑल!" जूस फ्लो – स्वीट, साल्टी। माउथ फिल्ड, स्वॉलोड। "डेलिशस मैम... योर जूस... नेक्टर।"
नाउ माइन। स्टैंड अप। शर्ट ऑफ। मैम पैंट्स डाउन – लंड आउट, 7 इंच, थिक, रेड हेड ग्लिस्टनिंग। "गॉड... सो बिग! क्लास टॉपर राजू... इन लंड।" हैंड टच्ड – हॉट, हार्ड। स्ट्रोक्ड। "मैम... सक।" नीज ऑन। किस्ड टिप – "उम्म... साल्टी... राजू लंड।" माउथ इन – आधा इन। टंग स्वर्ल, सक्ड। स्लोबर ड्रिप। "मैम... सक हार्ड... थ्रोट टेक।" हेड ग्रैब, थ्रस्ट। थ्रोट स्वेल। "येस राजू... माउथ फक... टीचर पनिश!" स्लोबर साउंड – स्लurp। 12 मिनट माउथ फक्ड। टीयर्स कम – बट न स्टॉप्ड। "एनफ... नाउ पुसी इन।"
बेड ऑन लेड। लेग स्प्रेड – पुसी ओपन, वेट। लंड टिप रब्ड – स्लाइड। "पुट राजू... टियर टीचर!" थ्रस्ट – टिप इन। टाइट। "आह... पेन... स्लो!" स्टॉप्ड, किस्ड – लिप्स, टिट्स। देन फुल। "ओह... फिल्ड... सो डीप!" पाउंडेड – स्लो। थप थप। "मैम... योर पुसी... स्टूडेंट लंड ईटिंग।" वो – "येस... फक टीचर... ग्रेड गिव। फास्टर!" स्पीड। बेड शेक। टिट्स स्क्वीज्ड। पोज – मिशनरी टू डॉगी। अस अप। स्लैप्ड – "स्लैप राजू... अस ऑन... पनिश ग्रेड्स!" फक्ड। अस ग्रैब्ड। 30 मिनट। स्वेट ड्रिप। "कमिंग मैम... इनसाइड?" वो हग – "येस... फिल... योर कम!" हॉट बर्स्ट – कम फिल्ड। ओवरफ्लो। वो कम टू – "आह... गॉट... स्टूडेंट मिल्क!"
मॉर्निंग टिल क्लास। किचन इन – लेगिंग्स अप, बैक फ्रॉम। "आह... ब्रेकफास्ट मेकिंग... लंड इन!" शावर इन – सोप स्लिपरी। वीडियो रिकॉर्ड – "दिस असाइनमेंट, राजू।" हसबैंड रिटर्न, बट चैट्स ऑन। ज़ूम प्राइवेट – "टुडे चैप्टर... अस।" कभी कैंपस कॉर्नर इन, इवनिंग डस्क। हसबैंड सस्पिशस – "हू राजू?" मैम – "स्टूडेंट... बट माय लवर।" फायर कंटिन्यूड, क्लास नेवर एंडेड।
Fuckuguy
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मस्तराम का चेला: सातवीं कहानी - दोस्त की माँ की  भूख

नमस्कार दोस्तों, या शायद कहूँ, नमस्कार उन उन रातों को जो दोस्ती की छतों से झांकती हैं, जब लाइट्स बंद हो जाती हैं लेकिन दीवारों के पीछे वो गुप्त सिसकियाँ गूँजने लगती हैं – वो जो किताबों के पन्नों से ज्यादा गहरी, ज्यादा गुप्त होती हैं। मैं हूँ राजू, मस्तराम का चेला – वो लड़का जो गाँव की कच्ची सड़कों से निकला, दिल्ली की मेट्रो में सवार हुआ, लेकिन दिल में वही जज्बा रखा जो कभी शांत न हो। पिछली कहानी में मैम की वो क्लास सुनी ना? दिन में इकोनॉमिक्स, रात में वो सब जो सिलेबस से बाहर। लेकिन दोस्तों, जिंदगी तो बस एक लंबी दोस्ती है, जहाँ हर दोस्त के घर में कोई न कोई राज़ छिपा होता – कभी माँ का, कभी खुद का। आज की कहानी थोड़ी दोस्ती की आग वाली है, थोड़ी माँ वाली टैबू, लेकिन हटके ट्विस्ट के साथ: इसमें होगा वो छुपा देखना, जो राजू ने देखा – दोस्त की माँ का सेक्स, और फिर वो स्टोरी जो बतानी पड़ी, लेकिन सिर्फ देखने तक – कोई छुअन नहीं, कोई मिलन नहीं, बस वो जलती आग की झलकियाँ जो रातों को नींद उड़ा देतीं। कहानी अब और विस्तार से भरी है, डिटेल्स से लदी – हर झाँकी का दृश्य, हर सिसकी का एहसास, सेक्स पार्ट अब और इंटेंस, और इंटरेस्टिंग – टेंशन से भरा, जैसे कोई थ्रिलर मूवी। तो दरवाजा बंद करो, लाइट्स ऑफ करो, और सुनो – ये है "दोस्त की माँ की भूख"। मेरे दोस्त अजय की माँ, आंटी राधा, जो दिन में माँ लगती, रात में वो आग जो राजू ने चुपके देखी, और वो देखना जो कभी भुलाया न जा सका।
मेरा नाम राजू है, उम्र वो ही 25 की, जब दिल्ली की इस अपार्टमेंट में रहता था – सिंगल रूम, लेकिन पड़ोस कमाल का। अजय मेरा क्लोज फ्रेंड, कॉलेज से – साथ पढ़ाई, साथ क्रिकेट, साथ रातों की बातें। उसका घर अगला फ्लोर, अक्सर जाता – होमवर्क के बहाने, या बस यूं ही। आंटी राधा – 42 की, लेकिन बॉडी ऐसी कि देखकर लगे 35 की हों, घर की वो औरत जो दिन में सब संभालती, लेकिन रात में अकेली जलती। 38-30-40 का फिगर, साड़ी पहनतीं ऐसी कि कमर की कटि पट्टी हल्की ढीली, नाभि की गहराई में पसीना चमकता जैसे कोई गुप्त झील। चूचियाँ भारी और गोल, ब्लाउज में तनी हुईं जैसे दो परिपक्व फल लटक रहे हों, गांड गोल और फूली, सलवार में मटकती तो लगता कोई रिदम बज रहा। चेहरा गोल-मटोल, होंठ मोटे और गुलाबी, आँखें काली और गहरी – मुस्कुराती तो डिंपल्स खिलखिलाते, लेकिन रात में वो नजरें जो उदास होकर चाँद को ताकतीं। अंकल – अजय के पापा – बिजनेस में डूबे, ट्रिप्स पर महीनों, घर आते तो थके-हारे सो जाते। आंटी घर में अकेली, लेकिन अजय से कहती – "बेटा, राजू को बुला ले, कंपनी मिलेगी।" पहली मुलाकात किचन में – "राजू बेटा, चाय पी? अजय बाहर है, लेकिन तू बैठ।" हाथ छुआ चाय देते हुए, लेकिन वो टच में गर्मी – जैसे कोई करंट। मैं सोचता – "आंटी, तू कितनी केयरिंग, लेकिन आँखों में उदासी क्यों?" लेकिन दोस्त की माँ, कभी लाइन क्रॉस का सोचा न।
एक शाम, अजय का बर्थडे – पार्टी घर पर, सब दोस्त बुलाए। मैं लेट पहुँचा, काम से फँसा। दरवाजा हल्का खुला, अंदर गया – लेकिन घर सूना, पार्टी खत्म? लाइट्स डिम, सब सोए लगे। लेकिन बैडरूम से हल्की आवाज – सिसकी जैसी, कराह जैसी। दिल धड़का, चुपके दरवाजे की दरार से झाँका – वाह रे किस्मत! आंटी बेड पर, नाइट गाउन ऊपर कमर तक चढ़ा, पैर फैले, और हाथ... चूत पर रगड़ते हुए। लेकिन अकेली न – कोई आदमी उसके ऊपर, अंकल जैसा नहीं, कोई और – पड़ोसी या कोई? वो आदमी – मोटा, 50 का, आंटी की कमर पकड़े, लंड चूत में पेल रहा। "आह... तेज... फाड़ दे मेरी चूत!" आंटी की कराह – गहरी, भूखी। आदमी का लंड मोटा, 6 इंच, लेकिन तेज धक्के – थप थप की आवाज, बेड हिल रहा। आंटी की चूचियाँ बाहर, उछल रही – भारी, निप्पल्स सख्त, आदमी मुंह में ले चूस रहा, काट रहा। "काट ले... दर्द में मजा है... अंकल कभी न करता!" आंटी सिसकी, हाथ उसके बालों में। आदमी नीचे गया – चूत चाटने लगा, जीभ अंदर-बाहर, क्लिट पर रगड़। आंटी काँपी – "ओह... चूस... पानी निकाल... भूखी हूँ सालों से!" रस बहा, आदमी पिया। फिर डॉगी – आंटी घुटनों पर, गांड ऊपर, आदमी थप्पड़ मारा – "रंडी... ले लंड!" पेला – गहरा, तेज। आंटी चीखी – "हाँ... रंडी बना... फाड़ गांड भी!" लेकिन आदमी चूत में ही – 20 मिनट पेला, पसीना टपका, सिसकियाँ गूँजीं। आंटी 2 बार झड़ी – "आ गया... फिर आ गया!" आखिर आदमी झड़ा – अंदर, गर्म वीर्य भरा। "भर दे... प्रेग्नेंट कर!" आंटी लिपट गई। मैं वहीं खड़ा, लंड सख्त, लेकिन हिला न – डर, उत्तेजना। चुपके निकला, लेकिन दिमाग में वो दृश्य – इंटेंस, जैसे कोई लाइव शो, भूखी औरत की आग, जो देखकर रात भर नींद न आई।
अगली सुबह अजय से मिला – "कल पार्टी मजा आया?" लेकिन आंटी की नजरें मुझ पर – सामान्य, लेकिन जैसे जानती हों कि देखा। "राजू, रात को आया था? दरवाजा खुला था।" मैं हकलाया – "हाँ आंटी... लेकिन लेट था, चला गया।" वो मुस्कुराई – "अंदर आ जाता, चाय मिलती।" लेकिन आँखों में चमक – शायद शक? मैं चुप रहा, लेकिन रात को सपने में वो दृश्य – आंटी की सिसकियाँ, धक्कों की थपथपाहट, वो इंटेंस भूख जो एक औरत की सालों दबी थी। अगली रात फिर झाँका – बालकनी से, विंडो खुली। आंटी फिर – उसी आदमी से, लेकिन अब ओरल – मुंह में लंड, गले तक, लार टपकती। "चूस... रंडी जैसे!" आदमी बोला। आंटी चूसी – तेज, जीभ घुमाई। फिर 69 – आदमी नीचे, आंटी ऊपर, चूत उसके मुंह पर, लंड उसके मुंह में। "चाट... पानी पी!" सिसकियाँ, 15 मिनट। झड़ना – दोनों साथ। मैं देखता रहा, लंड रगड़ता, लेकिन बाहर – इंटेंस दृश्य, जैसे कोई सीक्रेट फिल्म।
कई रातें ऐसे – कभी डॉगी में गांड थप्पड़, कभी मिशनरी में चूचियाँ काटना, कभी शावर में साबुन से चिकना चोदना। आंटी की भूख इंटेंस – "तेज... और तेज... सालों की प्यास!" वो आदमी बदलता – कभी पड़ोसी, कभी डिलीवरी बॉय, लेकिन आग एक। मैं देखता, मुठ मारता, लेकिन कभी अंदर न गया – डर अजय का, डर राज़ खुलने का। लेकिन वो स्टोरी – दोस्त की माँ की वो भूख, जो देखकर मैंने सीखा कि औरत की आग कितनी गहरी होती। अब अजय को बताऊँ? नहीं
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