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Fantasy RAJAMATA SHIVGAMI DEVI
#1
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राजमाता शिवगामी देवी
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#2
This is a fantasy story moves around Rajamata Shivgami Devi and her life . This story contain erotic , suspense , horror and politics. If you are sensitive towards religious, age and some particular names so please don't read it. Because this story will dive down on many things.
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#3
लिंगपुरम साम्राज्य हिमालय की बर्फीली चोटियों और गंगा-यमुना के पवित्र संगम के बीच बसा हुआ था। यह साम्राज्य अपनी अपार शक्ति और रहस्यमयी, खतरनाक कथाओं से भरा पड़ा था, जहाँ हर कोना कामुकता और खतरे की कहानियों से गूंजता था। नाममात्र का शासक राजा कमल सिंह था, लेकिन वास्तविक सत्ता राजमाता शिवगामी देवी के हाथों में थी। शिवगामी देवी, एक विधवा, अपनी सेक्सी आकर्षकता और बुद्धिमत्ता से पुरुषों को मोहित कर लेतीं। उनकी उमंग भरी आँखें, उभरे हुए स्तन और कमर की लहराती गति हर दर्शक को कामुक कल्पनाओं में डुबो देती। वह सेना और परिषद पर पूर्ण नियंत्रण रखतीं, हर निर्णय में अपनी इच्छा का राज चलातीं, जैसे कोई कामुक रानी जो अपने साम्राज्य को अपनी कामुक शक्ति से संभालती हो।

साम्राज्य के महल, लिंगपुरम किला, एक भव्य और कामुक संरचना था। इसके दीवारें संगमरमर से तराशी गईं, जिन पर कामुक मूर्तियाँ उकेरी गईं—नग्न देवियाँ जो शिवलिंग को चूम रही हों, उनके होंठों से लार टपकती हुई, स्तन हिलते हुए। किले का मुख्य द्वार एक विशाल शिवलिंग की आकृति में था, जो लिंग की तरह मोटा और सीधा खड़ा था, उसके आधार पर असंख्य स्त्रियाँ हाथों से पकड़े हुए, उनकी उँगलियाँ लिंग की नसों को सहला रही हों। यह साम्राज्य का प्रतीक था—शिवलिंग जो लिंग जैसा प्रतीत होता, लेकिन अनगिनत महिलाओं द्वारा आधार से थामा हुआ, जैसे वे इसे अपनी कामुक इच्छाओं से संभाल रही हों, चूस रही हों, सहला रही हों।

महल के अंदरूनी कक्ष कामुकता का स्वर्ग थे। राजमाता शिवगामी देवी का निजी चैंबर एक विशाल बिस्तर से सजा था, जहाँ रेशमी चादरें फैली हुईं, और दीवारों पर चित्र थे—रानियाँ जो योद्धाओं के लिंग को मुंह में ले रही हों, उनके गले तक गहराई तक, या फिर देवियाँ जो एक-दूसरे की योनि को चाट रही हों, रस टपकते हुए। किले के गलियारे में हर मोड़ पर मूर्तियाँ थीं, जो संभोग के विभिन्न आसनों को दर्शातीं—कुत्ते की मुद्रा में पुरुष योनि में धंसता हुआ, या स्त्री ऊपर बैठी लिंग को निगलती हुई। हवा में कामुक सुगंध फैली रहती, जैसे हर सांस में वासना का जहर घुला हो।

लिंगपुरम के मंदिर तो और भी रहस्यमयी थे। हर मंदिर में कामुक मूर्तियाँ भरी पड़ीं—देवी-देवता नग्न, उनके लिंग सीधे खड़े, योनि गीली चमकती। भक्तगण पूजा के नाम पर इन मूर्तियों को स्पर्श करते, सहलाते, जैसे वे जीवित हों। राजमाता शिवगामी देवी इन मंदिरों की संरक्षक थीं, और कथाएँ प्रचलित थीं कि रात के अंधेरे में वह स्वयं इन मूर्तियों के साथ लिप्त होतीं, अपने शरीर को उनके लिंगों पर रगड़तीं, चीखें भरतीं। साम्राज्य की शक्ति इसी कामुकता से उपजी थी—हर योद्धा, हर सिपाही, राजमाता की एक झलक पर ही उत्तेजित हो जाता, उनका लिंग कड़ा हो जाता, सेना की एकजुटता इसी वासना से बंधी थी।

किले के राजसभागार में, जहाँ परिषद की बैठकें होतीं, फर्श पर नक्काशी थी—समूह संभोग के दृश्य, जहाँ कई स्त्रियाँ एक लिंग को घेर रही हों, चूस रही हों, चाट रही हों। शिवगामी देवी सिंहासन पर विराजमान, अपनी साड़ी के नीचे से उभरी जांघें दिखातीं, परिषद के सदस्यों को मोहित करतीं। उनकी बुद्धिमत्ता हर निर्णय को कामुक रणनीति बना देती—शत्रुओं को हराने के लिए जासूस स्त्रियाँ भेजतीं, जो शत्रु राजाओं के लिंग को अपनी योनि से वशीभूत कर लें। लिंगपुरम का यह साम्राज्य, रहस्यों और वासना का केंद्र था, जहाँ हर पत्थर, हर दीवार, हर सांस में कामुकता का संगीत बजता रहता।
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#4
लिंगपुरम के रहस्यमयी मंदिरों का प्रमुख पुजारी और राजमाता का मुख्य सलाहकार लिंगसेन था। वह चालाक, विकृत और वासना से भरा हुआ पुरुष था, जिसकी आँखें हमेशा स्त्रियों के शरीर पर टिकी रहतीं। धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर वह विवाहित और अविवाहित महिलाओं के साथ अपनी विकृति को साकार करता। मंदिरों में पूजा के दौरान, वह विधवाओं को शिवलिंग के सामने बिठाता, उनकी साड़ियाँ खिसका कर उनके उभरे स्तनों को सहलाता, कहता कि यह देवी की कृपा है। अविवाहित कन्याओं को तंत्र-मंत्र सिखाने के बहाने, वह उनके नंगे शरीर को तेल से मलता, उँगलियाँ उनकी योनि में डालता, चाटता, और लिंग को उनके मुंह में ठूंसता, सब कुछ 'धार्मिक उत्सर्ग' के नाम पर। विवाहित स्त्रियों को पति की अनुपस्थिति में बुलाता, उन्हें नग्न कर के मूर्तियों के बीच लिटाता, अपना कड़ा लंड उनकी चूत में घुसेड़ता, चोदता, और चीखें दबाने को कहता कि यह पापों का नाश है। ये सब राजमाता शिवगामी को ज्ञात था, लेकिन वह हमेशा मौन रहतीं, शायद अपनी सत्ता की रक्षा के लिए, या फिर अपनी गुप्त वासना को संतुलित करने के लिए। लिंगसेन की यह विकृति साम्राज्य की कामुकता का हिस्सा बन चुकी थी, जहाँ धर्म और वासना की सीमा धुंधली हो जाती।

सेनापति भुजेंद्र को राजमाता ने स्वयं चुना था। वह रहस्यमयी योद्धा था, ऊँचा कद, मजबूत शरीर, भावहीन चेहरा और क्रूर हृदय वाला, जिसका कोई अतीत ज्ञात नहीं था। उसकी आँखें हमेशा ठंडी, जैसे कोई मशीन, लेकिन उसके विशाल लंड की अफवाहें किले में फैली हुईं, जो राजमाता की आज्ञा पर किसी को भी कुचल सकता था—शत्रु को तलवार से, या स्त्री को बेरहमी से चोदकर।

एक सुबह, राजमाता शिवगामी देवी अपने सहायक कमिनी के साथ मंदिर की ओर जा रही थीं। कमिनी, २९ वर्ष की, अत्यंत सुंदर और सेक्सी, लेकिन कुंवारी, अपनी मालकिन की सेवा में लगी रहती। उसकी पतली कमर, उभरे नितंब और कोमल स्तन साड़ी के नीचे लहराते, लेकिन उसकी आँखों में शुद्धता झलकती। शिवगामी, अपनी विधवा अवस्था में भी आकर्षक, साड़ी में लिपटी, जांघें झलकाती चलीं। वे राजमहल के गलियारे से गुजर रही थीं, जब राजा शिशंध्वज के कक्ष से कराहने की आवाज़ आई—ताली की आवाज़ के बाद, चमड़े की फटकार जैसी, और एक पुरुष की गहरी, उत्तेजित सिसकारी। 'आह... और जोर से... मेरी गांड फाड़ दो!' राजा की आवाज़ गूंजी, दर्द और सुख मिश्रित।

कमिनी चौंक गई, उसकी आँखें विस्फारित हो गईं। जिज्ञासा में वह चुपके से दरवाजे की झिरी से झाँकी। अंदर का दृश्य उसे हिला गया—राजा शिशंध्वज, नाममात्र का शासक, नग्न लेटा हुआ, उसकी गांड ऊपर की ओर तनी, और एक नौकर, मजबूत काया वाला, अपना मोटा लंड राजा की गांड में पूरी गहराई तक धंसाए हुए, जोर-जोर से ठोक रहा था। नौकर की पेलाई से राजा की गांड लाल हो चुकी, चुदाई की आवाज़ गूंज रही—चपक-चपक, और राजा के लंड से रस टपक रहा, वह कराह रहा, 'हाँ... चोदो मुझे... गहरा!' नौकर ने फिर एक तमाचा मारा राजा के नितंब पर, और लंड को और तेज़ी से अंदर-बाहर किया, जैसे कोई जानवर। कमिनी का चेहरा लाल हो गया, उसकी योनि में अजीब सी गुदगुदी हुई, लेकिन वह स्तब्ध खड़ी रही।

लेकिन राजमाता शिवगामी का चेहरा भावशून्य था, जैसे यह कोई पुरानी बात हो, जिसे वह पहले से जानती हों। उनकी आँखों में कोई आश्चर्य नहीं, बस एक ठंडी मुस्कान, जैसे वे इस राज़ को लंबे समय से छिपाए हुए हों। वे आगे बढ़ीं, कमिनी को इशारा किया चुप रहने को, और मंदिर की ओर चलीं। लेकिन तभी, मंदिर के द्वार पर लिंगसेन खड़ा था, उसकी आँखें कमिनी के शरीर पर टिकीं, जैसे वह उसे अगला शिकार बना ले। क्या राजमाता का मौन अब टूटेगा, या यह रहस्य और गहरा होगा? मंदिर के अंदर से एक रहस्यमयी कराह उठी, जैसे कोई नया अनुष्ठान शुरू हो रहा हो...
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#5
मंदिर के विशाल द्वार पर पहुँचते ही लिंगसेन ने राजमाता शिवगामी देवी का स्वागत किया, उसके चेहरे पर एक चालाक मुस्कान खेल रही थी। 'नमस्कार, राजमाता जी,' उसने कहा, आवाज़ में एक गहरी, वासना भरी गूंज छिपी हुई। 'आपकी उपस्थिति से यह मंदिर और भी पवित्र हो गया है। आपकी यह लाल साड़ी, जो आपकी कमर की घुमावदार रेखाओं को इस तरह लपेटे हुए है, जैसे कोई देवी का आलिंगन हो। और वह बिना आस्तीन का काला ब्लाउज... आह, आपके उभरे स्तनों को इस तरह उभारता है कि शिवलिंग स्वयं ईर्ष्या करे। आपके सोने के हीरे के आभूषण चमक रहे हैं, जैसे आपकी योनि की चमक को प्रतिबिंबित कर रहे हों।' उसकी आँखें राजमाता के शरीर पर घूम रही थीं, और उसका लंड साड़ी के नीचे खड़ा हो गया, कड़ा और उत्तेजित, जैसे पूजा की घंटी बज रही हो।

राजमाता शिवगामी ने मंदिर की ओर नज़र दौड़ाई। यह मंदिर लिंगपुरम का सबसे भव्य स्थल था—विशाल, धनाढ्य और अत्यंत सुंदर। संगमरमर के स्तंभों पर नक्काशीदार मूर्तियाँ खड़ी थीं, जहाँ नग्न देवियाँ अपने उज्ज्वल स्तनों को सहलातीं, योनि को खुला रखे हुए। दीवारें कामुक चित्रों से सजीं, जहाँ पुरुष देवता स्त्रियों की चूत में लंड घुसेड़ते, चोदते हुए दिखाए गए थे। मंदिर का मुख्य शिवलिंग विशाल था, मोटा और सीधा, नसों से भरा, जिसके आधार पर असंख्य स्त्रियों की मूर्तियाँ उँगलियाँ लपेटे हुए थीं, जैसे वे इसे चूस रही हों। गुप्त कक्ष और द्वार हर कोने में छिपे थे, जहाँ रहस्यमयी अनुष्ठान होते, और हवा में एक मादक सुगंध फैली रहती—चंदन, अगरबत्ती और वासना का मिश्रण। सोने-चाँदी के थाटू पर रखे इडॉल्स में देवियाँ एक-दूसरे की गांड चाट रही थीं, या पुरुषों के लंड को मुंह में ले रही। यह मंदिर न केवल धार्मिक था, बल्कि एक कामुक स्वर्ग, जहाँ हर पत्थर से कामुकता टपकती।

राजमाता को लिंगसेन की प्रकृति ज्ञात थी—उसकी विकृति, उसका अंधेरा पक्ष, जो वह धार्मिक आड़ में छिपाता। लेकिन वह वैसा ही व्यवहार करतीं, जैसे वह एक सज्जन पुरुष हो। 'लिंगसेन जी, आपकी प्रशंसा हमेशा हृदयस्पर्शी होती है,' उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, उनकी आवाज़ में एक चालाक लय। 'यह मंदिर आपकी देखरेख में और भी जीवंत हो गया है। इन मूर्तियों को देखकर लगता है, जैसे वे साँस ले रही हों, अपने अंगों को सहला रही हों।' उनकी आँखें लिंगसेन की ओर गईं, जहाँ उसका उभरा लंड साफ़ दिख रहा था, लेकिन उन्होंने अनदेखा किया, जैसे यह सामान्य हो।

लिंगसेन ने एक कदम आगे बढ़ाया, उसकी साँसें भारी। 'राजमाता, आप जानती हैं, यहाँ हर प्रतीक यौन ऊर्जा का है। देखिए यह शिवलिंग... इसे छूने से ही शक्ति जागृत होती है। क्या आप अनुमति देंगी कि मैं आपको इसका स्पर्श करवाऊँ? आपकी उँगलियाँ इसके आधार पर... जैसे वे मेरे लंड को पकड़ रही हों।' उसकी बातों में कामुकता लिपटी थी, चालाकी से भरी।

राजमाता ने हल्के से हँसते हुए कहा, 'बिल्कुल, लिंगसेन जी। धर्म की राह पर चलना ही तो हमारा कर्तव्य है। लेकिन याद रखें, कुछ रहस्य अभी गुप्त रहें।' उनके बीच कई गुप्त बातें थीं—भविष्य में खुलने वाली, जो साम्राज्य की नींव हिला सकतीं। लिंगसेन का लंड और कड़ा हो गया, जैसे कोई अनुष्ठान शुरू होने वाला हो, लेकिन राजमाता की आँखों में एक रहस्यमयी चमक थी, जो बताती कि खेल अभी शुरू ही हुआ है...
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