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Fantasy तारक मेहता का रंगीला चश्मा
#21
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छिपे राजों की परतें और उभरती इच्छाएं

(सीन ओपन होता है। गोकुलधाम सोसाइटी का कंपाउंड, सुबह के ठीक 7 बजे। आकाश में हल्के बादल छाए हैं, सूरज की किरणें धीरे-धीरे फैल रही हैं, और दूर से मंदिर की घंटी की आवाज आ रही है। बालकनियों में औरतें पानी के बर्तन भर रही हैं, मर्द काम पर जाने की तैयारी में हैं, लेकिन आज सबके चेहरों पर एक अनकही उदासी या सतर्कता है। हवा में चाय की खुशबू मिली हुई है, लेकिन उसके नीचे एक तनाव की परत है। तारक मेहता, अपनी बालकनी में खड़े चाय की प्याली थामे, कैमरे की तरफ धीरे से मुड़कर बोलते हैं। उनकी आवाज में वही पुरानी हल्की हंसी है, लेकिन अब इसमें एक गहरी चिंता और रहस्य का पुट भी है, जैसे कहानी की परतें धीरे-धीरे खुल रही हों।)
तारक मेहता (वॉइसओवर): नमस्कार दोस्तों! पिछली बार हमने देखा कि उलझते रिश्तों ने सोसाइटी को एक जाल में फंसा दिया। गुप्त इच्छाएं जाग रही हैं, शक की लहरें धीरे-धीरे हर घर को छू रही हैं। लेकिन गोकुलधाम की जिंदगी तो ऐसी ही है - बाहर हंसी-ठिठोली, अंदर अनकहे राज। आज हम और गहराई में उतरेंगे, जहां छिपे राजों की परतें खुलेंगी, इच्छाएं और मजबूत होंगी, और छोटी-छोटी घटनाएं बड़े तूफान की ओर इशारा करेंगी। जेठालाल का शक दया पर गहरा हो रहा है, माधवी की आंखें अब्दुल की ओर भटक रही हैं, और बबीता की मुस्कान में एक नया रहस्य छिपा है। चलिए, इस एपिसोड को धीरे-धीरे महसूस करते हैं, हर पल को जीते हुए। जय श्री कृष्ण!
(कट टू: जेठालाल का घर। सुबह के 7:15 बजे। जेठालाल बाथरूम से बाहर निकलते हैं, चेहरा धोया हुआ लेकिन आंखों में नींद की कमी साफ दिख रही। कल रात का कन्फ्रंटेशन उनके दिमाग में घूम रहा है - दया का "अब्दुल भाई" नाम लेना, और खुद का रोशन के साथ बैक रूम वाला मिलन। वो लिविंग रूम में आते हैं, जहां दया किचन से चाय का ट्रे ला रही है। दया की साड़ी आज हल्के पीले रंग की है, जो सूरज की रोशनी में चमक रही। साड़ी का ब्लाउज थोड़ा टाइट है, उसके ब्रेस्ट की हल्की उभार दिख रही - मीडियम साइज के, फर्म और गोल, जो हर सांस के साथ हल्का ऊपर-नीचे हो रहे। कमर पतली और नाजुक, हिप्स कर्वी जो चलते समय हल्का स्विंग कर रहे। दया का चेहरा थका लग रहा, लेकिन आंखों में एक छिपी चमक है - अब्दुल के साथ कल का वो गुप्त मिलन, जहां वो इतनी उत्तेजित हो गई थी कि चीखें निकल गईं। बापूजी सोफे पर अखबार फैलाए बैठे हैं, टपू फर्श पर खिलौने से खेल रहा है। कमरे में हल्की सी सुबह की शांति है, लेकिन उसके नीचे टेंशन की परत बिछी हुई।)
जेठालाल (सोफे पर बैठते हुए, आवाज में हल्का लेकिन गहरा शक): दया, चाय लाई? रात भर तो मैं जागता रहा। तू सो गई थी ना? कल क्लास के बाद कहां गई थी? अब्दुल भाई का नाम... वो क्या था? दुकान पर भी मन नहीं लग रहा।
दया (ट्रे रखते हुए, कप देते समय हाथ थोड़ा कांपते, नजरें झुकाकर लेकिन कोशिश करते मुस्कुराने की): टपू के पापा, अरे यार, कुछ नहीं। क्लास के बाद माधवी भाभी के घर आचार का सैंपल देने गई थी। हे माता जी, आप शक मत करो। चाय पी लो, ठंडी हो जाएगी। बापूजी, आप भी कहिए ना, टपू के पापा को समझाइए।
(दया का दिल धड़क रहा है। उसके मन में अब्दुल का सीन फ्लैश हो रहा - बैक रूम में अब्दुल का हाथ उसकी साड़ी के अंदर, उंगलियां पुसी पर, वो मोअन करती "ओओओओह्ह्ह... अब्दुल भाई... आआआह्ह्ह... फाड़ दो मेरी चूत..."। लेकिन वो खुद को संभालती है, टपू को देखकर मुस्कुराती। बापूजी अखबार से नजर हटाते हैं, उनकी आंखें गंभीर, लेकिन आवाज नरम।)
बापूजी (चाय का घूंट लेते हुए, धीरे-धीरे): बेटा जेठालाल, शक की जड़ें गहरी हो जाती हैं अगर समय पर न काटी जाएं। दया बहू सच्ची है, लेकिन अगर कुछ है तो खुलकर बोलो। सोसाइटी में सबके कान खुले हैं - पोपटलाल की तरह, जो हमेशा खबरें इकट्ठा करता रहता है। टपू, बेटा, कॉलेज का समय हो गया।
टपू (खिलौना छोड़कर, मासूम मुस्कान से): पापा, मम्मी, आज टपू सेना में नया गेम। सोनू कह रही थी, क्लास के बाद खेलेंगे। आप आओगे ना?
(जेठालाल टपू के सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन मन में उलझन। वो दया को गौर से देखते हैं - दया की गर्दन पर एक हल्का निशान, जो कल के मिलन से आया हो सकता है। दया नोटिस करती है, पल्लू ठीक करती है। ब्रेकफास्ट धीरे-धीरे चलता है - पराठे, चाय, छोटी-मोटी बातें। टपू कॉलेज के लिए निकल जाता है, दया उसे छोड़ने जाती है। जेठालाल अकेले रह जाते हैं बापूजी के साथ।)
जेठालाल (धीरे से): बापूजी, दया बदल गई लगती है। क्लास के बाद... हमेशा देर। और मैं... बबीता जी, रोशन... क्या करूं?
बापूजी (गंभीर): बेटा, इच्छाएं तो सबकी होती हैं, लेकिन कंट्रोल रखो। सोसाइटी छोटी है, राज लंबे नहीं चलते।
(जेठालाल सिर हिलाते हैं, दुकान के लिए निकलते हैं। रास्ते में वो कंपाउंड क्रॉस करते हैं, जहां सोढ़ी कार साफ कर रहा है। सोढ़ी का चेहरा भी तनावग्रस्त - रोशन के नए अफेयर्स से परेशान।)
सोढ़ी (चाबी घुमाते): जेठा, सुबह शुभ! कार ले जाना है? या घर की टेंशन सॉल्व करूं?
जेठालाल (रुकते, हंसने की कोशिश): अरे सोढ़ी, तेरी कार जैसी स्पीड हो तो ठीक। रोशन भाभी ठीक हैं? तू थका लग रहा।
सोढ़ी (आंख मारते, लेकिन मन भारी): हां यार, सब ठीक। शाम क्लास में मिलते। लेकिन ये अफveyर्स... मतलब, सोसाइटी में क्या हो रहा है?
(दोनों हंसते हैं, लेकिन हंसी खोखली। जेठालाल दुकान पहुंचते हैं। दुकान पर सुबह के 8:30 बजे, नट्टू काका बहीखाता मिला रहे हैं, बाघा टीवी सेट साफ कर रहा। जेठालाल काउंटर पर बैठते हैं, लेकिन फोन बार-बार चेक करते - रोशन का मैसेज "गैरेज में शाम 5?"। मन भटकता है। अचानक बबीता आती है - कैजुअल साड़ी में, पल्लू हल्का ढीला, ब्रेस्ट की क्लिवेज हल्की सी दिख रही।)
बबीता (मुस्कुराते, लेकिन आंखों में इशारा): जेठालाल जी, गुड मॉर्निंग! रिमोट कंट्रोल की बैटरी चाहिए। हाथी जी ने कहा था, आप देंगे।
जेठालाल (उठते, दिल धड़कते): हां बबीता जी, बिल्कुल। बाघा, ला। (मन ही मन: हाथी जी? क्या बबीता जी का भी...? कल का सीन... उफ्फ।)
(बबीता इंतजार में बात करती है। जेठालाल की कल्पना शुरू: ग्राफिकल - बबीता काउंटर पर झुकती, साड़ी सरकती, ब्रेस्ट एक्सपोज्ड - फुल, निपल्स हार्ड। जेठालाल चूसता "ओओओओह्ह्ह... बबीता जी... आआआह्ह्ह... मेरे मम्मे दबाओ!"। लेकिन रियल में नट्टू काका की आवाज।)
नट्टू काका: सेठ जी, बैटरी तैयार।
बबीता: थैंक यू। क्लास में मिलते। (जाते समय हिप्स का स्विंग, जेठालाल स्टेयर करता।)
(कट टू: भिड़े का घर। 8:45 बजे। भिड़े ट्यूशन क्लास ले रहे हैं, लेकिन मन भटक। माधवी आचार डिलीवर करने गई है, लेकिन वास्तव में अब्दुल की दुकान पर। माधवी की अनुपस्थिति भिड़े को और शक दिलाती। सोनू कॉलेज से लौटती है।)
भिड़े (किताब बंद करते): सोनू, मम्मी कहां गईं?
सोनू: पापा, आचार देने।
(भिड़े मन में सोचते: "आचार... या कुछ और?" माधवी अब्दुल की दुकान पर। ग्राफिकल लंबा सीन: अब्दुल माधवी को अंदर ले जाता, किस "ओओओओह्ह्ह... माधवी भाभी... आआआह्ह्ह!"। माधवी "फफफफााा... फाड़ दो मेरी चूत अब्दुल... ओओओओह्ह्ह... लंड डालो गहराई!"। ब्रेस्ट चूस, पुसी फिंगर, ब्लोजॉब 10 मिनट, डॉगी हार्ड, कम इनसाइड। 25 मिनट डिटेल्ड। माधवी लौटती, चेहरा लाल।)
(कट टू: हाथी का घर। 9:15 बजे। हाथी क्लिनिक से लौटे, कोमल चाय दे रही। शक गहरा। कोमल का मन पोपटलाल में।)
हाथी: कोमल, पोपटलाल?
कोमल: गलती हाथी जी।
(कोमल बाहर, पोपटलाल से मिलन। ग्राफिकल लंबा: किस, ब्रेस्ट चूस "ओओओओह्ह्ह... पोपटलाल जी... आआआह्ह्ह!"। "फफफफााा... फाड़ दो मेरी चूत... ओओओओह्ह्ह!"। मिशनरी, 20 मिनट।)
(क्लास: 12 बजे। धीरे सीन, टचेस, शक। बबीता जेठालाल से, रोशन सोढ़ी से। मिलन: अंजली भिड़े से, लंबा सीन।)
(मीटिंग: शक फूटा। रात सेक्स: सभी जोड़ों में लंबे सीन, मोअन।)
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#22
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राजों की गहराई और जागती कामनाएं

(सीन ओपन होता है। गोकुलधाम सोसाइटी का कंपाउंड, सुबह के ठीक 6:45 बजे। आकाश में हल्का नीला रंग फैला है, सूरज अभी पूरी तरह नहीं निकला, लेकिन पूर्वी दिशा में एक हल्की चमक दिख रही है। हवा ठंडी है, पेड़ों की पत्तियां सरसराती हैं, और दूर से कुत्ते की भौंकने की आवाज आ रही है। बालकनियों में कुछ लोग योगा कर रहे हैं, कुछ चाय की केतली चढ़ा रहे हैं, लेकिन आज का माहौल और भारी लग रहा - जैसे हर घर से एक अनकही सांस बाहर आ रही हो। तारक मेहता, अपनी खिड़की के पास खड़े, हल्के से मुस्कुराते हुए कैमरे की तरफ मुड़ते हैं। उनकी आवाज में वही पुरानी मिठास है, लेकिन अब इसमें एक गहरी उदासी और रहस्य का मिश्रण है, जैसे कहानी की परतें धीरे-धीरे इतनी गहरी हो गई हों कि बाहर निकलना मुश्किल लगे।)
तारक मेहता (वॉइसओवर): नमस्कार दोस्तों! पिछली बार हमने देखा कि छिपे राजों की परतें खुलने लगीं। इच्छाएं जाग रही हैं, शक की लहरें हर कोने को छू रही हैं, और रिश्ते धीरे-धीरे टूटने की कगार पर पहुंच गए। लेकिन गोकुलधाम तो ऐसा ही है - बाहर सब सामान्य, अंदर एक तूफान। आज हम और गहराई में डूबेंगे, जहां राजों की परतें और मोटी होंगी, कामनाएं और तीव्र, और छोटी-छोटी नजरें बड़े संकट का संकेत देंगी। जेठालाल का शक अब दया के हर कदम पर है, माधवी की मुस्कान में अब्दुल का राज छिपा है, और कोमल की आंखें पोपटलाल की ओर भटक रही हैं। चलिए, इस एपिसोड को धीरे-धीरे अनुभव करते हैं, हर पल को सांस लेते हुए। जय श्री कृष्ण!
(कट टू: जेठालाल का घर। सुबह के 7 बजे। जेठालाल बिस्तर पर लेटे हैं, आंखें बंद लेकिन नींद दूर। कल रात का सीन उनके दिमाग में बार-बार घूम रहा - दया के साथ वो एंग्री मोमेंट, जहां दया ने "अब्दुल भाई" का नाम लिया, और खुद का रोशन के साथ गैरेज वाला गुप्त मिलन। जेठालाल का चेहरा पसीने से तर है, वो उठते हैं, खिड़की के पास जाते हैं। बाहर कंपाउंड दिखता है - बच्चे खेल रहे, लेकिन जेठालाल की नजरें दया की बालकनी पर टिक जाती हैं, जहां दया अभी तक नहीं आई। दया किचन में चाय बना रही है, लेकिन उसके मन में उथल-पुथल - अब्दुल के साथ कल का वो इंटेंस सीन, जहां वो इतनी खो गई थी कि चीखें निकल गईं "फाड़ दो मेरी चूत"। दया की साड़ी आज हल्के हरे रंग की है, जो सुबह की रोशनी में चमक रही। साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया है, उसके ब्रेस्ट की आउटलाइन साफ दिख रही - फुल और फर्म, जो हर हल्की सांस के साथ ऊपर-नीचे हो रहे। कमर पतली और नाजुक, हिप्स कर्वी जो किचन में घूमते समय हल्का स्विंग कर रहे। बापूजी योगा कर रहे हैं, टपू अभी सो रहा है। जेठालाल किचन में आते हैं, दया को पीठ से देखते हैं।)
जेठालाल (पीछे से, आवाज में गहरा शक लेकिन कोशिश करके नरम): दया, सुबह-सुबह चाय? रात भर तो मैं जागा रहा। तू सो गई थी, लेकिन सपने में भी अब्दुल भाई? क्लास के बाद तू कहां जाती है? रोशन भाभी से बात... या कुछ और?
दया (चाय उबालते हुए, कांपते हाथ से चम्मच पकड़कर, नजरें न टर्न करके): टपू के पापा, अरे यार, फिर वही बात? कल क्लास के बाद माधवी भाभी के पास गई थी आचार का। हे माता जी, आप शक छोड़ दो। चाय पी लो, ठंडी हो जाएगी। बापूजी जाग गए होंगे।
(दया का दिल तेज धड़क रहा। उसके मन में अब्दुल का फ्लैशबैक - दुकान के बैक रूम में अब्दुल का हाथ साड़ी के अंदर, उंगलियां पुसी पर रगड़ते, वो मोअन करती "ओओओओह्ह्ह... अब्दुल भाई... आआआह्ह्ह... फाड़ दो मेरी चूत गहराई से..."। लेकिन वो खुद को संभालती, चाय का कप जेठालाल को देती। जेठालाल कप लेते हैं, लेकिन दया के चेहरे को गौर से देखते - दया की गर्दन पर एक हल्का लाल निशान, जो कल के किस से आया हो सकता है। दया नोटिस करके पल्लू ठीक करती, लेकिन जेठालाल का शक और गहरा हो जाता। बापूजी योगा से उठकर आते हैं, उनकी चाल धीमी लेकिन स्थिर।)
बापूजी (चाय का कप लेते, धीरे-धीरे बोलते): बेटा जेठालाल, सुबह-सुबह शक अच्छा नहीं। दया बहू, तू भी खुलकर बोल। सोसाइटी में सबके राज एक-दूसरे से जुड़ते जाते हैं। टपू जाग गया, उसे मत डराओ।
टपू (कमरे से आते, आंखें मलते): पापा, मम्मी, भूख लगी। आज क्लास में क्या होगा?
(जेठालाल टपू को गोद में उठाते, लेकिन मन भारी। ब्रेकफास्ट धीरे-धीरे चलता - चाय, ब्रेड, छोटी बातें। टपू कॉलेज के लिए तैयार होता है, दया उसे छोड़ने जाती। जेठालाल अकेले बापूजी के साथ रह जाते, मन में उलझन।)
जेठालाल (धीरे से): बापूजी, दया कुछ छिपा रही। और मैं... बबीता जी का मैसेज, रोशन का गैरेज... क्या ये सही है?
बापूजी (गंभीर): बेटा, इच्छाएं आती हैं, लेकिन काबू रखो। सोसाइटी छोटी, राज बड़े नहीं रहते।
(जेठालाल सिर हिलाते, दुकान के लिए निकलते। रास्ते में कंपाउंड क्रॉस, भिड़े से टकराते, जो किताबें ले जा रहे। भिड़े का चेहरा सख्त - माधवी के अब्दुल अफेयर से परेशान।)
भिड़े (रुकते): जेठालाल भाई, सुबह शुभ। ट्यूशन क्लास है, लेकिन मन नहीं लग रहा। माधवी... कल फिर देर।
जेठालाल (समझते): हां भिड़े मास्टर, घर में टेंशन सबकी। शाम क्लास में बात करेंगे।
(दोनों अलग। जेठालाल दुकान पहुंचते। 8:30 बजे, नट्टू काका बही मिला रहे, बाघा माल रख रहे। जेठालाल काउंटर पर, फोन चेक - रोशन का "5 बजे गैरेज"। मन भटक। अंजली आती - साड़ी टाइट, स्लिम फिगर।)
अंजली: जेठालाल जी, जूस मेकर।
(ग्राफिकल लंबा सीन: अंजली झुकती, जेठालाल टच, बैक रूम। किस "ओओओओह्ह्ह... अंजली... आआआह्ह्ह!"। "फफफफााा... फाड़ दो मेरी चूत... ओओओओह्ह्ह!"। ब्रेस्ट चूस, पुसी लिक, ब्लोजॉब 12 मिनट, मिशनरी हार्ड, कम इनसाइड। 25 मिनट डिटेल्ड। अंजली जाती, जेठालाल थक।)
(कट टू: भिड़े का घर। 9 बजे। भिड़े ट्यूशन, लेकिन मन माधवी पर। माधवी बापूजी के घर। ग्राफिकल लंबा: बापूजी माधवी को किस, ब्रेस्ट चूस "ओओओओह्ह्ह... बापूजी... आआआह्ह्ह!"। "फफफफााा... फाड़ दो मेरी चूत... ओओओओह्ह्ह!"। डॉगी, 20 मिनट।
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#23
[img=539x1439][Image: mmoonstar-261983378.jpg][/img]
टूटते विश्वास और ज्वालामुखी इच्छाएं

(सीन ओपन होता है। गोकुलधाम सोसाइटी का कंपाउंड, सुबह के ठीक 6:30 बजे। आकाश में हल्के बादल तैर रहे हैं, सूरज की पहली किरणें धीरे-धीरे फैल रही हैं, और हवा में ओस की ताजगी है। लेकिन कंपाउंड में आज एक भारी शांति है - जैसे तूफान से पहले का सन्नाटा। बालकनियों से हल्की-हल्की बातें आ रही हैं, बच्चे अभी जागे नहीं, और मर्द काम पर जाने की तैयारी में हैं। तारक मेहता, अपनी बालकनी में खड़े, हल्के से सिर हिलाते हुए कैमरे की तरफ मुड़ते हैं। उनकी आवाज में वही पुरानी गर्माहट है, लेकिन अब इसमें एक गहरी चिंता और तीव्रता का मिश्रण है, जैसे कहानी की परतें इतनी गहरी हो गई हों कि अब फूटने का समय आ गया हो।)
तारक मेहता (वॉइसओवर): नमस्कार दोस्तों! पिछली बार हमने देखा कि राजों की गहराई बढ़ गई। कामनाएं जाग रही हैं, शक की लहरें हर रिश्ते को हिला रही हैं, और सोसाइटी का हर कोना एक गुप्त जाल में फंस गया। लेकिन गोकुलधाम की जिंदगी तो ऐसी ही है - धीरे-धीरे उबाल आता है, और फिर ज्वालामुखी फूट पड़ता है। आज हम और गहराई में उतरेंगे, जहां विश्वास टूटने लगेंगे, इच्छाएं ज्वालामुखी की तरह उमड़ेंगी, और छोटी-छोटी नजरें बड़े विस्फोट का संकेत देंगी। जेठालाल का शक दया पर चरम पर पहुंच गया है, माधवी की आंखें बापूजी और अब्दुल के बीच भटक रही हैं, और बबीता की मुस्कान अब एक खतरे का इशारा लग रही। चलिए, इस एपिसोड को धीरे-धीरे महसूस करते हैं, हर सांस में तनाव को जीते हुए। जय श्री कृष्ण!
(कट टू: जेठालाल का घर। सुबह के 6:45 बजे। जेठालाल बिस्तर पर करवटें बदल रहे हैं, आंखें खुली लेकिन थकी हुई। कल रात का सीन उनके दिमाग में बार-बार घूम रहा - दया के साथ वो तीव्र पल, जहां दया ने "अब्दुल भाई" का नाम लिया, और खुद का अंजली के साथ बैक रूम वाला गुप्त मिलन। जेठालाल का चेहरा पसीने से भीगा है, वो उठते हैं, खिड़की के पास जाते हैं। बाहर कंपाउंड में हलचल शुरू हो रही - बच्चे जाग रहे, लेकिन जेठालाल की नजरें दया पर टिक जाती हैं, जो किचन में चुपचाप काम कर रही। दया की साड़ी आज गहरे लाल रंग की है, जो सुबह की हल्की रोशनी में चमक रही। साड़ी का ब्लाउज टाइट है, उसके ब्रेस्ट की उभार साफ दिख रही - फुल और गोल, जो हर सांस के साथ हल्का बाउंस कर रहे। कमर पतली और आकर्षक, हिप्स कर्वी जो किचन में घूमते समय लुभावना स्विंग कर रहे। दया का चेहरा थका लेकिन दृढ़, मन में उथल-पुथल - अब्दुल के साथ कल का वो ज्वालामुखी सा सीन, जहां वो इतनी खो गई थी कि गंदी गालियां दे बैठी "रंडी की तरह चोदो मुझे"। बापूजी अभी सो रहे, टपू बिस्तर में मस्त। जेठालाल किचन में आते हैं, दया को पीठ से देखते, हवा में तनाव।)
जेठालाल (पीछे से खड़े होकर, आवाज में गहरा शक लेकिन कोशिश करके शांत): दया, इतनी सुबह उठ गई? रात भर तो मैं जागा रहा, तू सो गई लेकिन सपनों में भी अब्दुल भाई? क्लास के बाद तू कहां गायब हो जाती है? अंजली भाभी से बात... या दुकान पर? सच बता, ये सब क्या हो रहा है घर में?
दया (चाय उबालते, चम्मच पकड़ते हाथ कांपते, नजरें न टर्न करके लेकिन आवाज में हल्का डर): टपू के पापा, अरे बस करो ना। कल क्लास के बाद कोमल भाभी के पास गई थी जूस की रेसिपी पूछने। हे माता जी, आपका शक मुझे मार डालेगा। चाय पी लो, ठंडी हो जाएगी। बापूजी जाग जाएंगे।
(दया का दिल तेज धड़क रहा। उसके मन में अब्दुल का फ्लैशबैक - दुकान के बैक रूम में अब्दुल का लंड पुसी में घुसाते, वो चीखती "ओओओओह्ह्ह... अब्दुल भाई... आआआह्ह्ह... फाड़ दो इस रंडी की चूत... मोटा लंड डालो गहराई से, साले कुत्ते!"। लेकिन वो खुद को संभालती, चाय का कप जेठालाल को देती। जेठालाल कप लेते, दया के चेहरे को स्कैन करते - दया की होंठ थोड़े सूजे हुए, जो कल के किस से। दया नोटिस करके होंठ चाटती, लेकिन जेठालाल का शक ज्वालामुखी की तरह उफान मारता। बापूजी कमरे से आते, चाल धीमी।)
बापूजी (चाय लेते, धीरे बोलते): बेटा जेठालाल, सुबह शक से दिन बिगड़ जाता। दया बहू, तू भी खुलकर। सोसाइटी में राज परत दर परत उघड़ते हैं। टपू जाग रहा, उसे मत भटकाओ।
टपू (आंखें मलते): पापा, मम्मी, आज टपू सेना में नया प्लान। गOLI और सोनू आएंगे।
(जेठालाल टपू को गले लगाते, लेकिन मन भारी। ब्रेकफास्ट धीरे चलता - चाय, टोस्ट, बातें। टपू कॉलेज जाता, दया छोड़ने। जेठालाल बापूजी के साथ।)
जेठालाल: बापूजी, दया छिपा रही। और मैं... अंजली भाभी का... क्या करूं?
बापूजी: बेटा, कामनाएं ज्वालामुखी हैं, लेकिन काबू रखो।
(जेठालाल दुकान जाते। रास्ते में तारक से मिलते।)
तारक: जेठा, सुबह? अंजली... मतलब, घर ठीक?
जेठालाल: हां, बस।
(दुकान 8:30। रोशन आती - साड़ी पारसी, फिगर।)
रोशन: बल्ब।
(ग्राफिकल लंबा सीन: रोशन झुकती, जेठालाल बैक रूम। किस "ओओओओह्ह्ह... रोशन... आआआह्ह्ह... तेरी चूत फाड़ दूंगा साली!"। रोशन "फफफफााा... चोदो मुझे रंडी की तरह... ओओओओह्ह्ह... लंड डालो कुत्ते!"। ब्रेस्ट चूस हार्ड, निपल्स बाइट "आआआह्ह्ह... दबाओ मम्मे... साले हरामी!"। पुसी लिक, उंगलियां "फफफफााा... फाड़ दो चूत... ओओओओह्ह्ह... रंडी बनाओ मुझे!"। ब्लोजॉब डीप, गैगिंग "ओओओओह्ह्ह... मोटा लंड चूसूंगी... आआआह्ह्ह... कम करो मुंह में कुत्ते!" 15 मिनट। डॉगी थ्रस्ट हार्ड, स्पैंक "आआआह्ह्ह... चोदो जोर से... फफफफााा... कम करो चूत में साले!"। राइड, ब्रेस्ट बाउंस "ओओओओह्ह्ह... फाड़ दो... आआआह्ह्ह... रंडी की चूत भर दो!"। 25 मिनट कुल, कम इनसाइड, क्रेम्पी। रोशन जाती।)
(कट टू: भिड़े घर। 9 बजे। भिड़े ट्यूशन, मन माधवी पर। माधवी अब्दुल दुकान। ग्राफिकल लंबा: अब्दुल माधवी को किस "ओओओओह्ह्ह... माधवी रंडी... आआआह्ह्ह!"। माधवी "फफफफााा... चोदो मुझे कुत्ते... ओओओओह्ह्ह... लंड फाड़ दो चूत!"। ब्रेस्ट चूस "आआआह्ह्ह... दबाओ मम्मे हरामी... फफफफााा!"। पुसी फिंगर "ओओओओह्ह्ह... उंगली डालो गहराई... आआआह्ह्ह... रंडी बनाओ!"। ब्लोजॉब "फफफफााा... लंड चूसूंगी साला... ओओओओह्ह्ह!" 12 मिनट। मिशनरी हार्ड "आआआह्ह्ह... फाड़ दो चूत... कम करो कुत्ते!"। 30 मिनट।)
(क्लास: 12 बजे। धीरे, टच। बबीता हाथी से मिलन, लंबा सीन गालियों के साथ।)
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#24
[img=539x1350][Image: mmoonstar-262332653.jpg][/img]
फूटते बांध और अनियंत्रित कामुकता

(सीन ओपन होता है। गोकुलधाम सोसाइटी का कंपाउंड, सुबह के ठीक 6:15 बजे। आकाश में हल्के बादल घने हो रहे हैं, सूरज की किरणें अभी पूरी तरह नहीं फैलीं, और हवा में एक ठंडक है जो तनाव को और गहरा कर रही। कंपाउंड में सुबह की पहली हलचल शुरू हो रही - एक-दो कुत्ते भौंक रहे, बालकनियों से पानी की धार की आवाज आ रही, लेकिन लोगों के चेहरों पर एक गहरी थकान और सतर्कता साफ दिख रही। जैसे हर घर से एक दबी हुई सांस बाहर आ रही हो। तारक मेहता, अपनी बालकनी में खड़े, हल्के से सिर झुकाए कैमरे की तरफ मुड़ते हैं। उनकी आवाज में वही पुरानी मिठास है, लेकिन अब इसमें एक तीव्र चिंता और अनियंत्रित तनाव का मिश्रण है, जैसे कहानी का बांध फूटने वाला हो।)
तारक मेहता (वॉइसओवर): नमस्कार दोस्तों! पिछली बार हमने देखा कि टूटते विश्वास ने सोसाइटी को हिला दिया। ज्वालामुखी इच्छाएं उमड़ रही हैं, शक की लहरें हर रिश्ते को डुबो रही हैं, और गुप्त मिलन अब खुलने की कगार पर हैं। लेकिन गोकुलधाम की जिंदगी तो ऐसी ही है - बांध धीरे-धीरे कमजोर होता है, और फिर फूट पड़ता है। आज हम उस फूटते बांध में डूबेंगे, जहां अनियंत्रित कामुकता हावी हो जाएगी, राज और गहरे होंगे, और छोटी-छोटी नजरें बड़े विस्फोट का कारण बनेंगी। जेठालाल का शक दया पर चरम पर है, माधवी की कामनाएं बापूजी और अब्दुल के बीच फंसी हैं, और कोमल की आंखें सोढ़ी की ओर भटक रही हैं। चलिए, इस एपिसोड को धीरे-धीरे अनुभव करते हैं, हर सांस में कामुकता को महसूस करते हुए। जय श्री कृष्ण!
(कट टू: जेठालाल का घर। सुबह के 6:30 बजे। जेठालाल बिस्तर पर पड़े हैं, आंखें खुली लेकिन खाली। कल रात का सीन उनके दिमाग में ज्वालामुखी की तरह उफर रहा - दया के साथ वो तीव्र पल, जहां दया ने "अब्दुल भाई" का नाम लिया, और खुद का रोशन के साथ गैरेज वाला अनियंत्रित मिलन, जहां गंदी गालियां उछलीं। जेठालाल का चेहरा पसीने से लथपथ है, वो धीरे से उठते हैं, खिड़की के पास जाते हैं। बाहर कंपाउंड में हल्की हलचल - एक पड़ोसी कुत्ता भौंक रहा, लेकिन जेठालाल की नजरें दया पर टिक जाती हैं, जो किचन में चुपचाप बर्तन धो रही। दया की साड़ी आज गहरे नीले रंग की है, जो सुबह की धुंधली रोशनी में रहस्यमयी लग रही। साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया है, उसके ब्रेस्ट की उभार साफ झलक रही - फुल और गोल, जो हर सांस के साथ हल्का बाउंस कर रहे, निपल्स की आउटलाइन ब्लाउज से दबकर दिख रही। कमर पतली और मुलायम, हिप्स कर्वी जो बर्तन धोते समय लुभावना स्विंग कर रहे। दया का चेहरा थका लेकिन दमकदार, मन में उथल-पुथल - अब्दुल के साथ कल का वो फूटा बांध सा सीन, जहां वो इतनी खो गई थी कि चीखी "रंडी की तरह चोदो, साले कुत्ते!"। बापूजी अभी सो रहे, टपू बिस्तर में मस्त। जेठालाल किचन में आते हैं, दया को पीठ से घूरते, हवा में तनाव इतना गाढ़ा कि सांस लेना मुश्किल।)
जेठालाल (पीछे से खड़े, आवाज में गहरा शक लेकिन कोशिश करके धीमे): दया, इतनी सुबह उठी? रात भर तो मैं जागा रहा, तू सो गई लेकिन सपनों में भी अब्दुल भाई? क्लास के बाद तू गायब... रोशन भाभी से बात, या दुकान पर? सच बता, ये सब क्या हो रहा? घर टूट रहा है क्या?
दया (बर्तन धोते, पानी की धार के शोर में, हाथ कांपते लेकिन नजरें न टर्नाकर): टपू के पापा, अरे फिर से? कल क्लास के बाद अंजली भाभी के पास जूस की रेसिपी लेने गई थी। हे माता जी, आपका ये शक मुझे पागल कर देगा। चाय बना लूं? ठंडी हो जाएगी। बापूजी जाग जाएंगे।
(दया का दिल जोरों से धड़क रहा। उसके मन में अब्दुल का विस्तृत फ्लैशबैक - दुकान के बैक रूम में अब्दुल का मोटा लंड पुसी में घुसाते, वो चीखती "ओओओओह्ह्ह... अब्दुल भाई, तेरा लंड इतना मोटा... आआआह्ह्ह... फाड़ दो इस रंडी की चूत, साले हरामी कुत्ते, गहराई से चोदो मुझे!" अब्दुल थ्रस्ट करता "आआआह्ह्ह... ले रंडी, तेरी चूत टाइट है, कम करूंगा अंदर!"। लेकिन दया खुद को संभालती, बर्तन रखती, जेठालाल को चाय का कप देती। जेठालाल कप लेते, दया के चेहरे को स्कैन करते - दया की गर्दन पर हल्का बैंगनी निशान, कल के स्पैंक से। दया नोटिस करके साड़ी ठीक करती, लेकिन जेठालाल का शक फूटते बांध की तरह उफान मारता। बापूजी कमरे से धीमे कदमों से आते।)
बापूजी (चाय लेते, धीरे-धीरे, लेकिन आंखों में चिंता): बेटा जेठालाल, सुबह शक से दिन विषाक्त हो जाता। दया बहू, तू भी बोल खुलकर। सोसाइटी में राज बांध की तरह फूटते हैं। टपू जाग रहा, उसे मत डराओ।
टपू (बिस्तर से आते, नींद भरी आंखों से): पापा, मम्मी, भूख लगी। आज क्लास में बबीता आंटी नया डांस सिखाएंगी।
(जेठालाल टपू को कंधे पर बिठाते, लेकिन मन ज्वालामुखी। ब्रेकफास्ट धीरे चलता - चाय, इडली, बातें अधर में। टपू कॉलेज जाता, दया छोड़ने। जेठालाल बापूजी के साथ अकेले।)
जेठालाल (धीरे, सिर पकड़कर): बापूजी, दया छिपा रही। और मैं... रोशन का गैरेज, अंजली का... ये अनियंत्रित हो गया।
बापूजी (हाथ रखकर): बेटा, कामुकता बांध फोड़ती है, लेकिन काबू रखो।
(जेठालाल दुकान जाते। रास्ते में पोपटलाल से मिलते, जो न्यूजपेपर बांट रहा।)
पोपटलाल: जेठालाल जी, सुबह? शादी की खबर?
जेठालाल: अरे पोपटलाल, तेरी शादी पहले हो।
(दुकान 8:15। कोमल आती - साड़ी टाइट, प्लम्प।)
कोमल: फ्रिज चेक।
(ग्राफिकल लंबा सीन: कोमल झुकती, जेठालाल बैक रूम। किस "ओओओओह्ह्ह... कोमल रंडी... आआआह्ह्ह... तेरी चूत फाड़ दूंगा साली हरामी!"। कोमल "फफफफााा... चोदो मुझे कुत्ते, ओओओओह्ह्ह... लंड डालो गहराई से, साले रंडी का लंड!"। ब्रेस्ट चूस हार्ड, निपल्स बाइट "आआआह्ह्ह... दबाओ ये बड़े मम्मे... फफफफााा... चूसो कुत्ते, रंडी की तरह!"। पुसी लिक, उंगलियां चार "ओओओओह्ह्ह... फाड़ दो चूत... आआआह्ह्ह... उंगली डालो साले, रंडी बनाओ मुझे हरामी!"। ब्लोजॉब डीप, गैगिंग "फफफफााा... मोटा लंड चूसूंगी कुत्ते... ओओओओह्ह्ह... कम करो मुंह में साला!" 18 मिनट। डॉगी थ्रस्ट रफ, स्पैंक "आआआह्ह्ह... चोदो जोर से रंडी... फफफफााा... कम करो चूत में कुत्ते, भर दो साले!"। राइड फास्ट, ब्रेस्ट बाउंस "ओओओओह्ह्ह... फाड़ दो... आआआह्ह्ह... रंडी की चूत चोदो हरामी, कम करो!"। 35 मिनट कुल, कम इनसाइड, क्रेम्पी। कोमल जाती।)
(कट टू: तारक घर। 9 बजे। तारक कॉलम लिखते, अंजली जूस। अंजली का मन भिड़े में। रोशन आती। ग्राफिकल लंबा: रोशन तारक को किस "ओओओओह्ह्ह... तारक रंडी... आआआह्ह्ह!"। तारक "फफफफााा... चोदो साली... ओओओओह्ह्ह... लंड फाड़ दो!"। लंबा 30 मिनट गालियों के साथ।)
(क्लास: 12 बजे। धीरे, टच। माधवी बापूजी से मिलन, लंबा सीन गालियों के साथ।)
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#25
The title of your story is offensive in terms of using gokuldham.... Please change the name of the story
My tongue can do a better job of teasing you than my words


[Image: hot-babe-got-her-pussy-licked]
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#26
Ok brother
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