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सुबह के करीब 5 बजे थे। खुशबु और मयंक बेडरूम में चित होकर लेटे हुए थे तभी मयंक ने ज़ोर का पाद निकाला जिससे बेडरूम का माहौल बदबूदार हो गया बहुत भयंकर पाद थी उसकी आवाज से खुशबू जागी और छी, छी,छी, करते बालकनी की ओर भागी । बालकनी में पहुंची तो सुंदर से उठने लहरें के साथ ठंडे हवा भी चल रही थी । खुशबू को वहां अच्छा फिल हो रहा था वह थोड़ी देर बैठने के बाद वह बाथरूम चली गई।
थोड़ी देर बाद वह बाथरूम से बाहर निकल और अपना मोबाइल लेकर किचन में चली गई और अपने लिए एक कप कॉफी बनाया और उसे लेकर फिर बालकनी में पहुंची वह चेयर पर बैठकर कॉफी पी रही थीं और अपना मोबाइल चला रही थी । कुछ मिनट बाद उसके मोबाइल के whatapps पर एक मैसेज आया। जो श्री सिन्हा द्वारा भेजी गई थी , फिर चैटिंग स्टार्ट हो गया।
श्री सिन्हा : गुड मॉर्निंग , मेरी प्यारी पत्नी।
खुशबु: गुड मॉर्निंग , मेरे डियर हसबैंड
श्रीं सिन्हा: वह ना मर्द कहा हैं ?
खुशबु: अभी भी बेड पर चित लेटा हुआ हैं
श्री सिन्हा: रात की चुदाई कैसी लगी ?
खुशबू: जबरदस्त । आप कहां हो ?
श्री सिन्हा: स्विमिंग पूल के करीब बैठ हुं।
( खुशबू बालकनी से झांक कर देखती है )
श्री सिन्हा: मैंने जो तुम्हें गिफ्ट दिया पसंद आया ।
खुशबु: वो बिकिनी , अच्छा था ।
श्री सिन्हा: तो पहन कर नीचे आओ साथ में स्विमिंग करेंगे ।
खुशबू: अगर आपकी पत्नी ने हमें एक साथ स्विमिंग करते देख लिया तो क्या सोचेगी ।
श्री सिन्हा : तुम उसकी चिंता मत करो मैं उसे संभाल लूंगा ।
खुशबू: आती हुं ।
खुशबू ने गुलाबी ब्रा और काली पैंटी के ऊपर पारदर्शी लंबी टी शर्ट पहनी या पूल पार चली गई।
खुशबू स्विमिंग पूल के किनारे रखे कुर्सी पर बैठ गई और श्री सिन्हा से बात करने लगी कुछ देर बात करने के बाद अपने पारदर्शी लंबी टी शर्ट उतारकर वहीं कुर्सी पर रख दिया । स्विमिंग पूल में स्विमिंग करने लगी।
खुशबू को स्विमिंग करता देखकर श्री सिन्हा ने भी अपना टी शर्ट और हाफ पेंट उतार कर सिर्फ अंडरवियर में आ गये और स्विमिंग करना चालू कर दिया। थोड़ा देर स्विमिंग करने के बाद। श्री सिन्हा खुशबू के पास आने लगे। श्री सिन्हा खुशबू के सामने आकर खड़ा हो गया उन दिनों के शरीर का आधा भाग पानी के अंदर था ।
वह दोनो सामान्य बात करने लगे , बात करते करते श्री सिन्हा ने खुशबू का बायां हाथ पकड़ी और अपने अंडरवियर में डाल दिया ( अंडरवियर पानी के अंदर था ) खुशबू को कुछ महसूस हुआ जैसे कोई हार्ड चीज टच हो रही हो और खुशबू घबरा कर अपने हाथ को पीछे कर लिया । खुशबू को समझ में देर नहीं लगी । वह श्री सिन्हा का लंड था जो अंडरवियर में फुल कर आधा अंदर और आधा बाहर निकला हुआ था मगर पानी के अंदर था
खुशबू शॉक होकर उसे देखी , तो श्री सिन्हा ने मुस्कुरा दिया लेकिन खुशबू ने उसे इग्नोर कर दिया। लेकिन वह फिर खुशबू के नज़दीक आ गया और उसका हाथ फिर से लंड पर रख कर छू आने लगा।
लेकिन जैसे आप सब जानते हैं खुशबू कितनी बड़ी चुदक्कड़ हूं, तो उसे भी अच्छा लगने लगा था। और खुशबू ने एक बार बालकनी की ओर देखा । जहां मयंक खड़ा था और स्विमिंग पूल की ओर देख रहा था और किसी से मोबाइल पर बात कर रहा था
खुशबू ने भी श्री सिन्हा का लंड को मसलना शुरू कर दिया ।
श्री सिन्हा का लंड पानी के नीचे था इसलिए मयंक को नहीं पता चला कि वह नीचे क्या हो रहा है।
खुशबू ने उसके चेहरे की ओर देखा उसे भी मजा आ रहा था, श्री सिन्हा उसे किस करना वाला ही था कि खुशबू ने उसे रोक और बालकनी की तरह इशारा किया। श्री सिन्हा ने बालकनी पर नजर डाला तो मयंक अभी वह किसी से फोन पर बातचीत कर रहा था
खुशबू ने अब अपनी स्पीड बढ़ा दीया हाथों से उसके लंड को ज़ोर ज़ोर से मसलने लगी। उन दोनों के शरीर का आधा हिस्सा नीचे पानी में था। श्री सिन्हा ने अब एक हाथ खुशबू की काली पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर रख दिया और रगड़ने लगा। इससे खुशबू के मुंह से सस्स्स्स्स्स्स्स....... आहाहाहाहा ..... सिसकारी निकल गई, इतना मजबूत स्पर्श था उसका।
इतनी ठंडा पानी में वह दोनों भीगे हुए और एक दूसरे के चूत और लंड को मसल और रगड़ने रहे थे, वह दोनों मदहोश हो रहे थे।
तभी श्री सिन्हा ने खुशबू के कान में कहा कि कमरा में चलते हैं खुशबू ने मना कर दिया वहीं बगल में एक छोटी सी कॉटेज ( एक छोटा घर ) था उसमें जाने का इशारा किया।
श्री सिन्हा ने अपना अंडरवियर सही करते हुआ पूल से बाहर चला गया उस कॉटेज। मगर खुशबू मन में सोच रही थी जाउ या ना जाउ , ( क्योंकि उससे लगा मयंक अभी बालकनी में होगा कहीं उसे कॉटेज में जाता देख लिया हो उससे शक हो जाएगा ) । इसीलिए उसने एक फिर बालकनी की तरह देखा मगर वह मयंक नहीं था। फिर खुशबू भी पूल से निकलकर सीधा उसी कॉटेज में चली गई , जब खुशबू अंदर गई तो श्री सिन्हा अब भी अंडरवियर में ही था। उसने खुशबू को अंदर खींचा और दरवाज़ा बंद करके उसे दरवाज़े से लगा के चूमने लगा ऐसा लग रहा था कि वो किस नहीं कर रहा है खुशबू के पूरा मुँह को खोल के इतना ज़ोर से स्मूच कर रहा था और खुशबू उउंम्म्म्म........ औउम्म्म्म........।
खुशबू इतना मस्त फील कर रही थी श्री सिन्हा उसके गीले बालों को पकड़ के डीप किस करने लगा उम्म्म्म.... उउम्म्म्म...., और एक हाथ से खुशबू के स्तन को टी शर्ट के ऊपर से ही मसलने और दबाने लगा ।
अहहह.....अहहा...उउम्म्म्म..... खुशबू कराहने लगी ऊह्ह्ह्ह.....
" बेबी, तुम्हारा शरीर बहुत सेक्सी और गर्म है, मैं तुम्हें तुम्हारी चूत में गहराई तक चोदना चाहता हूँ " श्री सिन्हा ने खुशबू को कहा।
वो पगलो की तरह खुशबू को किस कर रहा था, कभी होठों पर , कभी गर्दन पर , कभी कानों पर , सच बताऊं तो खुशबू की तो होश ही उड़ गए थे।
अब श्री सिन्हा ने खुशबू की टी शर्ट निकाला और ब्रा भी निकाल दी, अब खुशबू सिर्फ पैंटी में थी उसके सामने खुशबू के बड़े बड़े स्तन बाहर उछल रहे थे । आगे से श्री सिन्हा ने दोनों को पकड़ के इतने जोर से दबाया की खुशबू की मुंह से गाल निकल गई ।
फिर उसने खुशबू के एक बूब को मुँह में लेके चुनने लगा, उसके निपल को काटने लगा, आह्ह्हह्ह्ह्ह..... खुशबू को मीठा , मीठा दर्द हो रहा था और मज़ा भी आ रहा था।
15 मिनट तक श्री सिन्हा ने खुशबू को ऐसे ही खड़ा रखा उसके निपल्स चूस और काट रहा था। फिर श्री सिन्हा ने खुशबू को उठाया और वह पर रखे चौकी ( एक सोने वाला बिछावन ) पर लेटा दिया और खुशबू की पैंटी निकल दी। खुशबू ने भी उसका अंडरवियर निकाल दिया।
श्री सिन्हा का लंबा मोटा लंड खुशबू के सामने झूल रहा था, वह खुशबू के ऊपर आ गया और खुशबू के पूरे शरीर को चूमने लगा। खुशबू हल्के हल्के कराहने लगी । उम्म्मम्म.... स्स्स्स्स्स्स्स्स्..... आह्ह्हह्ह्ह्ह.......
फिर वह अपना जीभ निकाल कर खुशबू के चूत के पास गया या उससे चुसने लगा । आह्ह्ह्ह..... खुशबू की तो पानी ही निकल गई श्री सिन्हा ने खुशबू के चूत का पूरा रस चूस रहा था और अपनी उंगली से खुशबू की भगशेफ को भी छेड़ रहा था।
स्स्स्स्स्स्स....... बेबी उउम्म्म्म..... इसे ऐसे ही चाटो हाँ बेबी खुशबू बोली ।
खुशबू कराहती हूँ उसके बालों को पकड़ के मज़ा लेने लगी।
श्री सिन्हा ने 10 मिनट तक खुशबू की चूत चाटी, इस दौरान खुशबू दो बार झड़ गई । अब खुशबू से इंतजार नहीं हो रहा था। अब खुशबू उठी और श्री सिन्हा को चौकी पर लेटा दिया और श्री सिन्हा के ऊपर चाहड़ के उसके लंड को मुँह में लिया और चुसने लगी । " हाँ, तुम मेरी कुतिया हो रंडी, आहहहह...... श्री सिन्हा भी पागल हो रहा था, उससे भी कंट्रोल नहीं हो रहा था।
तभी श्री सिन्हा ने खुशबू को वहीं जमीन पर लिटाया और अपना लंड खुशबू की चूत में डाल दिया, एक ही झटके में सारे लंड खुशबू की चूत में पेल दिया और फिर झटके मारने लगा। खुशबू अह्ह्ह्हह्ह.....हाँ.....येस्स्स्स्स्स्स्स.... खुशबू को अब दर्द हो रहा था , लेकिन श्री सिन्हा धरा धरा धरा खुशबू को चोदने में लगा हुआ था रूकने का नाम नहीं ले रहा था ।
" मेरी चोदू कुतिया ले मेरा बड़ा लंड अपने चूत के अंदर श्री सिन्हा ने कहते । खुशबू के मुंह से आहहह ....अहाहाहा.... अह्ह्ह्हह्ह... की सिसकारियां निकलने लगी । उसने खुशबू की हार्डकोर चुदाई शुरू कर दी .
उम्म्म्म..... अह्ह्हह्ह्ह्ह.... अह्ह्ह्हह्ह.... यस्स्स्स्स्स.... बेबी चोदो मुझे ऐसे ही चोदो , चोदो ,चोदो , हाँह्ह्ह्ह..... हाँह्ह्ह्ह.... अह्ह्ह्हह्ह।
खुशबू भी उसका साथ देने लगी श्री सिन्हा झटके पे झटके मारने लगा वाहाहाहा क्या झटके थे । खुशबू की पूरी बॉडी उछल रही थी। श्री सिन्हा के धक्के से अह्ह्ह्हह्ह..... अह्ह्ह्हह्ह..... ओह्ह्ह्हह्ह ..... खुशबू तीन बार झड़ गयी।
फिर श्री सिन्हा ने खुशबू को घोड़ी बनाई और जामकर चोदने लगा , अब खुशबू थक गई थी लेकिन श्री सिन्हा रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था।
ऐसे ही श्री सिन्हा ने खुशबू को 40 मिनट तक लगातार चोदा और खुशबू की चूत में झड़ गया वह खुशबू के ऊपर ही गिर गया। वह दोनो नंगे ऐसे ही जमीन पर पड़े रहे।
तभी मयंक ने दरवाजा खटखटाया और कहा खुशबू मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी है
मयंक ने फिर दरवाजा खटखटाया और कहा खुशबू मुझे तुमसे एक जरूरी बात करनी है
तब जाकर खुशबू ने दरवाजा खोला दरवाजे खोलते बोली " जरा सी आंख लग गई थी "
मयंक ने अंदर झांका तो अंदर कोई भी नहीं था वह अंदर आ के खुशबू से बोला " गोदाम से फोन आया था कि गोदाम में आग लग गई थी । कुछ सामान बची है कितने सामने आग में जली है उसकी पुष्टि करने के लिए बुलाया जा रहा है " और मैंने दोपहर की घर वापसी जाने वाले तत्कालीन दो हवाई टिकट कटवा लिया हुं।
फिर मयंक और खुशबू दोनों कमरे में वापस आ गये ।
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अरे वाह! बिलकुल ही नई शादी शुदा दंपति की तरह चुद रहे हैं दोनों।।। अब आगे क्या? पति के साथ खुशबू वापस लौट जाएगी या कुछ न कुछ बहाना कर के रुक जाए ताकि अच्छे से चुद सके सिन्हा को???
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08-09-2025, 10:01 PM
(This post was last modified: 09-09-2025, 05:22 AM by Dhamakaindia108. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अपनी गोवा ट्रिप को बीच में छोड़कर वह लोग कोलकाता आ गए । उन लोगों ने एक-दो दिन आराम किया फिर अपने काम में व्यस्त हो गए । फिर खुशबू की जिंदगी उसी महसूनियत की तरह गुजरने लगी ।
मयंक अच्छे इंसान हैं, लेकिन वो कभी खुशबू की इच्छाओं को नहीं समझ पाया । खुशबू की दुनिया बस उसके ऑफिस और उसकी जिम्मेदारी तक सीमित है। उसकी चाहतें, उसकी चूत की प्यास, मयंक के लिए कोई मायने नहीं रखती। हर रात खुशबू उम्मीद करती कि मयंक उसे प्यार में संतुष्ट करेंगा , उसकी चूत की प्यास बुझाऐगा, लेकिन हर बार वो खुशबू को अनदेखा करके सो जाते।
खुशबू को एक पत्नी का सुख श्री सिन्हा द्वारा बहुत अच्छे और सरल तरीके से कराया जाता था , इसी वजह से खुशबू को श्री सिन्हा से प्यार हो गया था
तीन से चार महीने के बाद खुशबू के जिंदागी में कुछ ऐसा हुआ की वो हर रोज अपने कामुकता का पुरा का पुरा आनंद लेटी है उसकी अधूरी प्यास भी पुरी होती है और होती ही रहेगी । आइए आपको संक्षेप में वर्णन करते हैं
एक दिन शाम को मयंक गोदाम से घर वापस आया तो उसके चेहरे पर परेशान देखकर खुशबू ने उसका कारण पूछा तो मयंक ने कहा गोदाम मैं माल की कमी हो गई है जिसके लिए उस एक महीना के लिए गुजरात जा के वहां रहकर वह से माल कोलकाता भेजवान है
समस्या गुजरात जाने की नहीं है मैं सोच रहा था कि तुम घर पर एक महीने अकेली रहोगी तो बोर हो जाऊंगी। क्योंकि ना बाबू जी और माता जी ( खुशबू के ससुर और सास ) को एक महीने के लिए यहां बुलाया जाये वह दोनों यहां आयेंगे तो तुम भी अच्छा लगेगा और उनका भी मन बहल जायेगा।
इस पर तुम्हारी किया विचार है खुशबू तो खुशबू ने कहा आइडिया तो आपका अच्छा है। खुशबू ने इसमें सहमति जताई।
दो दिन बाद मयंक ने गुजरात जाने का एक फ्लाईट का टिकट कटवा ली और अपने बाबू जी और माता जी का भी फ्लाईट का टिकट कटा दिया।
एक दिन सवेरे-सवेरे खुशबू किचन में नाश्ता बना रही थी तभी उसके घर का मेन डोर पर लगे घंटी को किसी ने बजाये । खुशबू कीचन से निकलकर दरवाजे पर पहुंंची और दरवाजा खोला तो सामने में उसके ससुर और सास खड़े थे उसने एक आदर्श बहुं होने का परिचय दिया उन दोनों का पांव छूकर आशीर्वाद लिया । उसके सास ससुर ने मंयक के बरे में पूछ तो उसकी बहूं खुशबू ने कहा आप दोनों के आने से पहले ही मयंक गुजरात के लिए जा चुके हैं।
एक सप्ताह बाद......
दयाराम बाजार से थकाहारा घर लौटा, उसका बदन पसीने से तर और दिमाग रोज़मर्रा की भागदौड़ से भारी। 58 साल का दयाराम , सेना से रिटायर्ड, अभी भी हट्टा-कट्टा था। उसका कद छह फीट, चौड़ा सीना, और भारी-भरकम कंधे उसे एक नौजवान मर्द का रौब देते थे। उसकी पत्नी मीना , 54 साल की, पिछले कुछ सालों से बीमारी के चलते कमज़ोर थी, और उसका बेटा मयंक ।
दयाराम ने घर में कदम रखते ही जूते उतारे और सीधा बाथरूम की ओर भागा। उसे पेशाब की सख्त ज़रूरत थी। घर में बाथरूम एक ही था, और दरवाज़ा हल्का सा खुला देखकर उसने सोचा कि शायद अंदर कोई नहीं। वो तेज़ी से अंदर घुसा, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र सामने पड़ी, उसकी सांसें थम गईं। वहां उसकी बहू खुशबू , बिल्कुल नंगी, नहाने की तैयारी में खड़ी थी। उसका गीला बदन पानी की बूंदों से चमक रहा था, जैसे कोई ताज़ा मोती समंदर से निकला हो। खुशबू का चेहरा खूबसूरत था, लेकिन उसका बदन तो मानो जन्नत की सैर करा रहा था। दयाराम की नज़रें उसके चेहरे से हटकर सीधे उसके गोल, भरे हुए स्तनों पर टिक गईं। वो स्तन, जो इतने सख्त और उभरे हुए थे कि मानो किसी मूर्तिकार ने बड़े जतन से तराशे हों। उनके ऊपर गुलाबी निप्पल्स, हल्के भूरे रंग के घेरे के साथ, किसी मर्द के होश उड़ा देने को काफी थे।
दयाराम की नज़रें और नीचे खिसकीं। खुशबू का पेट, चिकना और सपाट, हल्का सा उभरा हुआ, जिसके नीचे उसकी कमर इतनी पतली थी कि मानो किसी ने नाप-तोल कर बनाई हो। और फिर, उसकी नज़रें उस त्रिकोण पर रुक गईं, जो हर मर्द के सपनों का केंद्र होता है। खुशबू की योनि के ऊपर हल्के काले बालों का झुरमुट था, जो गीले होकर उसकी त्वचा से चिपके हुए थे। वो जगह इतनी मोहक थी कि दयाराम का गला सूख गया। उसका लंड, जो सालों से सिर्फ पेशाब के काम आ रहा था, अचानक तन गया, और उसके खून में गर्मी की लहर दौड़ पड़ी।
खुशबू , जो अब तक सन्न थी, अचानक होश में आई। उसने शर्म से अपनी आंखें नीचे कीं और जल्दी से पीछे मुड़ गई। लेकिन ये उसकी सबसे बड़ी भूल थी। जैसे ही वो मुड़ी, दयाराम के सामने उसकी गांड आ गई—वो गांड, जो इतनी गोल, भरी हुई, और चिकनी थी कि मानो मक्खन का गोला हो। खुशबू की गांड का हर हिस्सा इतना परफेक्ट था कि दयाराम के लिए उससे नज़र हटाना नामुमकिन था। उसकी जांघें, जो गांड के नीचे से शुरू हो रही थीं, मांसल और गोरी थीं, जैसे केले के तने। दयाराम , जो औरतों की गांड का दीवाना था, अब पूरी तरह बेकाबू हो चुका था। उसकी ज़िंदगी में उसने कई औरतों की गांड देखी थी—बाज़ार में, रास्ते में, गलियों में—लेकिन खुशबू की गांड ने उसे पूरी तरह झकझोर दिया।
वो आगे बढ़ा, जैसे कोई भूखा शिकारी अपने शिकार की ओर बढ़ता है। उसने अपने घुटनों पर बैठते हुए खुशबू की कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया। खुशबू के बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ गई। उसने विरोध करने की सोची, लेकिन उसका शरीर मानो सुन्न पड़ गया था। दयाराम ने बिना वक्त गंवाए अपने होंठ खुशबू की गांड के एक गाल पर रख दिए। “आह्ह…” खुशबू के मुंह से हल्की सी सिसकारी निकली। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मयंक ने कभी उसकी गांड को इस तरह नहीं चूमा था। हां, वो उसे सहलाता ज़रूर था, लेकिन ये जो ससुर कर रहा था, वो कुछ और ही था।
दयाराम अब पूरी तरह खो चुका था। उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और खुशबू की गांड के चिकने गालों को चाटना शुरू किया। उसकी जीभ, गीली और खुरदरी, ऊपर से नीचे तक फिसल रही थी, और हर बार जब वो खुशबू की गांड की दरार के पास पहुंचता, खुशबू का बदन कांप उठता। “उम्म… आह्ह…” खुशबू की सिसकारियां अब तेज़ हो रही थीं। उसकी योनि में गीलापन बढ़ रहा था, और वो शर्म के साथ-साथ उत्तेजना की आग में भी जल रही थी। दयाराम ने अपनी जीभ को और गहराई में डाला, खुशबू की गांड की दरार में रगड़ते हुए। “ओह्ह… ससुर जी…” खुशबू के मुंह से हल्की सी आवाज़ निकली, लेकिन वो अब भी रुकी रही। उसका दिमाग़ उसे रोकने को कह रहा था, लेकिन उसका शरीर इस स्पर्श का मज़ा ले रहा था।
दयाराम ने अब अपने हाथों को खुशबू की जांघों पर फेरना शुरू किया। उसकी उंगलियां धीरे-धीरे ऊपर की ओर बढ़ीं और खुशबू की योनि के बालों को छूने लगीं। खुशबू का बदन अब पूरी तरह गर्म हो चुका था। उसकी सांसें तेज़ थीं, और उसकी योनि में गीलापन अब साफ महसूस हो रहा था। “आह्ह… ओह्ह…” उसकी सिसकारियां अब और तेज़ हो गई थीं। दयाराम ने अपनी जीभ को और तेज़ी से रगड़ा, और फिर, एकाएक, उसने खुशबू की गांड के एक गाल में हल्का सा दांत गड़ा दिया। “आउच!” खुशबू के मुंह से हल्की सी चीख निकली।
ये चीख सुनते ही खुशबू को होश आया। उसने जल्दी से कहा, “ससुर जी, आप जाइए… सासु मां पूजा के कमरे में हैं।” उसकी आवाज़ में शर्म, डर, और उत्तेजना का मिश्रण था। दयाराम भी एकदम से रुक गया। उसे अहसास हुआ कि वो बहुत दूर निकल आया था। वो उठा और बिना कुछ कहे बाथरूम से बाहर चला गया। खुशबू ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और दीवार के सहारे खड़ी होकर हांफने लगी। उसकी टांगें कांप रही थीं, और उसका दिल अब भी ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
दयाराम अपने कमरे में पहुंचा और बिस्तर पर लेट गया। उसका दिमाग़ उस घटना को बार-बार दोहरा रहा था। खुशबू का नंगा बदन, उसकी गोल गांड, और वो सिसकारियां—सब कुछ उसके सामने बार-बार आ रहा था। उसका लंड फिर से तन गया, इतना सख्त कि उसे दर्द होने लगा। उसे याद आया कि पिछले पांच-छह सालों से उसने अपनी पत्नी मीना के साथ चुदाई नहीं की थी। मीना की बीमारी ने उसे बिस्तर तक सीमित कर दिया था, और उसका लंड सिर्फ पेशाब के लिए काम आ रहा था। लेकिन आज, खुशबू की जवानी ने उसकी रगों में फिर से आग भर दी थी।
वो सोचने लगा कि खुशबू ने इतनी देर तक क्यों चुप्पी साधी। उसने पहला चुम्बन लेते ही क्यों नहीं रोका? और जब रोका, तो सिर्फ इतना कहा कि “सासु मां पूजा के कमरे में हैं”? क्या इसका मतलब ये था कि अगर मीना घर में न होती, तो खुशबू उसे और आगे बढ़ने देती? दयाराम के दिमाग़ में सवालों का तूफान उठ रहा था। क्या खुशबू भी मयंक की गैरमौजूदगी में मर्द की कमी महसूस कर रही थी? क्या वो भी इस स्पर्श का मज़ा ले रही थी?
दयाराम ने मन ही मन एक फैसला ले लिया। वो इस रास्ते पर आगे बढ़ेगा, लेकिन सावधानी से। वो जानता था कि खुशबू को पटाना आसान नहीं होगा। अगर घर में इसकी भनक पड़ गई, तो सब कुछ तबाह हो सकता था। उसने सोचा कि वो पहले खुशबू की प्रतिक्रिया को परखेगा। वो जानता था कि औरतें मर्दों की नीयत को तुरंत भांप लेती हैं। उसने फैसला किया कि वो कुछ दिन सिर्फ खुशबू को प्यासी नज़रों से देखेगा, उसकी हर हरकत को गौर करेगा, और उसकी प्रतिक्रिया को समझेगा।
इधर, खुशबू अपने कमरे में पहुंची और दरवाज़ा बंद करके बिस्तर पर बैठ गई। उसका बदन अभी भी कांप रहा था। वो बार-बार उस पल को याद कर रही थी, जब ससुर की जीभ उसकी गांड पर फिसल रही थी। “हे भगवान,” उसने मन में सोचा, “अगर मैंने वक्त पर होश न संभाला होता, तो ससुर जी की जीभ कहीं और पहुंच जाती।” इस ख्याल ने उसकी योनि में फिर से गीलापन बढ़ा दिया, और उसके निप्पल्स तन गए। उसे याद आया कि उसकी ज़िंदगी में ये पहली बार नहीं था जब किसी ने उसका फायदा उठाने की कोशिश की थी।
खुशबू मन में बड़बड़ायी , “बेशरम! उसे क्या पता कि औरत की गांड जन्नत का दरवाज़ा होती है।” वो अभी ये सब सोच ही रही थी कि सास की आवाज़ आई, “ खुशबू , कहां हो? नाश्ता नहीं बनानी है क्या ? तुम्ह ससुर जी को भूखा रखेगी?”
खुशबू ने जल्दी से साड़ी पहनी और किचन की ओर भागी। उसकी साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, और उसका गोरा, चिकना पेट बार-बार झलक रहा था। दयाराम की नज़रें उसकी कमर पर टिकी थीं। वो जानता था कि इस रास्ते पर चलना आसान नहीं, लेकिन खुशबू की जवानी ने उसे बेकाबू कर दिया था। वो अब हर कदम सोच-समझकर उठाएगा, और खुशबू की हर प्रतिक्रिया को बारीकी से देखेगा।
खुशबू ने नाश्ता बनाकर दयाराम के सामने रखा। उसकी साड़ी का पल्लू फिर से सरका, और उसका पेट और गहरी नाभि साफ दिख रही थी। दयाराम की नज़रें उसकी कमर पर टिक गईं। खुशबू ने उसकी नज़रें देख लीं, और उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया। वो जल्दी से किचन की ओर भागी। उसे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था कि अगर उसने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया होता, तो शायद ये सब न होता। लेकिन अब जो हो गया, वो हो गया। उसे पता था कि ससुर जी की आंखों में अब कई रातों तक नींद नहीं आएगी।
दयाराम किचन में हाथ धोने के बहाने पहुंचा। उसका असली मकसद तो खुशबू की जवानी को फिर से निहारना था। वो जानता था कि ये खेल अब शुरू हो चुका है, और वो इसे और आगे ले जाएगा।
दयाराम ने हाथ धोने का बहाना बनाया और किचन की ओर बढ़ चला, लेकिन उसका असली मकसद था अपनी बहू खुशबू की कातिल जवानी को निहारना। उसकी आँखें खुशबू के हर अदा पर टिकी थीं, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को ताक रहा हो। किचन में खुशबू आटा गूँथ रही थी, उसकी साड़ी नाभि से काफी नीचे बँधी थी, जिससे उसका गोरा, चिकना पेट और गहरी नाभि साफ नजर आ रही थी। साड़ी का पतला कपड़ा उसके कूल्हों पर चिपका हुआ था, और हर बार जब वो हिलती, उसकी गोलमटोल गांड का उभार ससुर की आँखों में चुभता।
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(08-09-2025, 10:02 PM)Dhamakaindia108 Wrote: ![[Image: Snap-Insta-to-491439754-1815004501636975...093935.jpg]](https://i.ibb.co/m5FxV6NQ/Snap-Insta-to-491439754-18150045016369752-2331825278043897543-n-093935.jpg)
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Dayaram toh gayaram ho gaya....apne bahu ki dudh jese gora rang ke aage
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दयाराम खामोशी से कोने में खड़ा हो गया, उसकी नजरें खुशबू के चूतड़ों पर जाकर टिक गईं। उसकी लुंगी में उसका लंड तनने लगा, जैसे कोई बेकाबू जंगली जानवर। उसने अपने आप को संभालने की कोशिश की, लेकिन खुशबू की जवानी का जादू उसे बेचैन कर रहा था। वो धीरे से पीछे हटने लगा, मगर तभी खुशबू ने पलटकर उसे देखी। उसकी तिरछी नजरें ससुर की लुंगी पर पड़ीं, जहाँ उभार साफ दिख रहा था। खुशबू का चेहरा एक पल को लाल हो गया, वो समझ गई कि ससुर की नजरें उसकी देह पर भूखी भेड़ियों की तरह टिकी थीं।
अगले कुछ दिनों तक दयाराम का यही खेल चलता रहा। वो हर मौके पर खुशबू को घूरता, उसकी हरकतों को ताड़ता। खुशबू शुरू-शुरू में इस घूरने से थोड़ा असहज हो जाती, मगर धीरे-धीरे उसे ये सब नॉर्मल लगने लगा। बल्कि, अब तो उसके दिल के किसी कोने में ससुर की ये भूखी नजरें अच्छी लगने लगी थीं। उसे अपनी जवानी पर गर्व होने लगा, और वो जानबूझकर ससुर के सामने इठलाने लगी। कभी साड़ी को थोड़ा और नीचे खिसकाती, कभी जानबूझकर झुककर अपनी चूचियों का उभार दिखाती। वो देखना चाहती थी कि ससुर कितना बेकाबू हो सकता है।
दयाराम भी कोई नौसिखिया नहीं था। उसने खुशबू के चेहरे पर ना तो गुस्सा देखा, ना ही नफरत। बल्कि, अब तो खुशबू खुद उसके करीब आने के बहाने ढूंढने लगी थी। दयाराम समझ गया कि बहू अब उसके जाल में फंस चुकी है। उसने सोचा, अब वक्त है अगला कदम बढ़ाने का। आँखों की बातें तो हो चुकी थीं, अब कुछ असली बातचीत होनी चाहिए। मगर सीधे-सीधे फ्लर्ट करना जोखिम भरा था। खुशबू शरमा सकती थी, या बात को टाल सकती थी। तभी उसके दिमाग में एक तरकीब सूझी— आज से वो काम्या से खुलकर बात करेगा, उसकी तारीफ करेगा, क्योंकि औरत को अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनना हमेशा पसंद होता है।
रात को खाना खाने के बाद सास मीना अपनी नींद की गोली खाकर सोने चली गई। खुशबू ने भी किचन का काम निपटाया और अपने कमरे में चली गई। दयाराम टीवी देखता रहा, मगर उसका दिमाग कहीं और था। करीब दस बजे वो उठा और छत पर चला गया। उधर, खुशबू अपने कमरे में थी। उसने कपड़े बदले, एक पतली सी नाइटी पहनी, जो उसके जिस्म से चिपककर उसकी हर वक्र को उभार रही थी। वो बिस्तर पर लेटी , नींद नहीं आ रही थी। सुबह की घटना उसके दिमाग में घूम रही थी।
सुबह जब वो पोंछा लगा रही थी, उसने लो-कट ब्लाउज पहना था। झुकते वक्त उसकी चूचियाँ आधी बाहर झांक रही थीं। दयाराम उसे एकटक घूर रहा था, उसकी नजरें खुशबू की चूचियों पर जमी थीं, जैसे कोई भूखा शेर मांस को देख रहा हो। खुशबू शर्म से पानी-पानी हो गई थी और भागकर कमरे में चली गई थी। अब उस दृश्य को याद करके उसका बदन सिहर उठा। “हाय राम, ससुर जी की नजरें कितनी भूखी थीं! मयंक ने तो कभी ऐसे नहीं देखा,” उसने मन ही मन सोचा।
इधर, छत पर दयाराय टहल रहा था। वो सोच रहा था कि बात कैसे शुरू करे, क्या बोले। उसने उससे फोन किया और छत पर बुलाया। तभी खुशबू के होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई। “लगता है ससुर जी की नींद हराम हो चुकी है,” उसने सोचा और फोन उठाया।
खुशबू : हेलो…
दयाराम : हेलो, बहू? हाँ, मैं ससुर जी बोल रहा हूँ। सो गई थी क्या?
खुशबू : अरे, ससुर जी! नहीं, अभी नहीं सोई।
दयाराम : तो क्या कर रही थी? नींद नहीं आ रही?
खुशबू : बस, गाने सुन रही थी। आप बताइए ?
दयाराम : छत पर हूँ।
खुशबू : क्या बात है, ससुर जी? आपको नींद नहीं आ रही?
दयाराम: अरे बहू, नींद तो उड़ गई है।
खुशबू समझ गई कि ससुर का इशारा किस तरफ है, मगर उसने अनजान बनते हुए पूछा, “क्यों ससुर जी , नींद क्यों नहीं आ रही? तबीयत तो ठीक है ना?”
दयाराम: तबीयत तो ठीक है, मगर बुढ़ापे में नींद कहाँ आती है?
खुशबू: अच्छा, बताइए न, फोन क्यों किया?
दयाराम : तुम भी छत पर आओ ना ।
काम्या: ठीक है , आती हुं ससुर जी ?
..............छत पर खूशबू के आने के बाद............
दयाराम : वो… उस दिन बाथरूम वाली बात। मुझे लगता है, तुम उस दिन से नाराज हो।
खुशबू : अरे, नहीं ससुर जी, हम नाराज नहीं हैं। वो तो हमारी गलती थी, दरवाजा खुला नहीं रखना चाहिए था।
दयाराम : हाँ, मगर बहू, हम भी तो बहक गए। तुम्हें वैसा देखकर हमारा दिमाग काम करना बंद कर गया। सॉरी।
खुशबू : अरे, ससुर जी, सॉरी मत बोलिए। हम सचमुच नाराज नहीं हैं।
दयाराम अब मौके की नजाकत भांप चुका था। उसने बात को थोड़ा और मोड़ा। “दरअसल, बहू, जब दरवाजा खुला और हमने तुम्हें देखा, तो हमारी आँखें चौंधिया गईं। ऐसा लगा जैसे कोई अप्सरा सामने खड़ी हो। बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला, मगर तुमने तो और बड़ी गलती कर दी।”
खुशबू : गलती? हमने क्या किया, ससुर जी?
दयाराम : अरे, तुम पलटकर घूम गईं ना!
खुशबू: वो तो शरम के मारे पलट गई थी।
दयाराम : बस, वही तो गलती थी। तुम्हारा पीछे वाला हिस्सा… हाय, ऐसा कि अगर कोई मुर्दा भी देख ले, तो उठ बैठे। अगर कोई हिजड़ा देख ले, तो वो भी जोर-जबरदस्ती करने लगे। और हम तो फिर भी इंसान हैं, बहू!
खुशबू समझ गई कि ससुर उसकी गांड की बात कर रहा है, मगर उसने नादानी का नाटक किया। “ससुर जी, आप क्या बोल रहे हैं? हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा।”
दयाराम : अरे बहू, अब हम कैसे समझाएँ? अगर तुम गुस्सा ना होने का वादा करो, तो बताएँ।
खुशबू : गुस्सा होने की क्या बात? आप बताइए ना।
दयाराम अब खुलकर खेलने के मूड में था। “हम तुम्हारी उस चीज की बात कर रहे हैं, जो तुम पैंटी में छुपाती हो।”
खुशबू हँसते हुए बोली, “ससुर जी, कसम से, हम वहाँ कुछ नहीं छुपाते। पैंटी में तो जेब भी नहीं होती!”
दयाराम को पता था कि खुशबू सब समझ रही है, मगर मजा ले रही है। वो बोला, “अरे, हम जेब की बात नहीं कर रहे। हम तुम्हारी उस शत्रुहंता गांड की बात कर रहे हैं!”
“हाय राम!” खुशबू के बदन में सनसनी दौड़ गई। ससुर के मुँह से इतना खुला शब्द सुनकर उसकी साँसें तेज हो गईं। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। दयाराम उसकी तेज साँसों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। वो समझ गया कि उसका तीर निशाने पर लगा है।
खुशबू : ससुर जी, आप क्या बोल रहे हैं!
दयाराम : सच बोल रहे हैं, बहू। तुम्हारी गांड को देखकर हम तो पागल हो गए। उसके बाद जो कुछ हुआ, वो हमने नहीं, तुम्हारी उस मादक गांड ने करवाया।
खुशबू की साँसें और तेज हो गईं। उसकी पैंटी भीग चुकी थी। और उसकी काजू-दाना तनकर खड़ा हो गया। “हाय ससुर जी, आप तो चालाक हैं। सारा दोष हम पर डाल रहे हैं। सारे मर्द एक जैसे होते हैं!”
दयाराम : हाँ बहू, मर्द तो एक जैसे होते हैं, मगर औरतें नहीं। तुम्हारी जैसी गांड हमने जिंदगी में कभी नहीं देखी। सच कहें, मयंक बहुत किस्मत वाला है, जो उसे तुम जैसा खजाना मिला।
खुशबू वो सुनकर एक पल को मायूसी हुई। मयंक ने तो कभी उसकी गांड की तारीफ नहीं की थी, ना ही कभी उसे इस तरह छुआ था। उसने बिना सोचे कह दिया, “जिसे खजाने से मतलब ही नहीं, उसकी बात ना करें, ससुर जी।”
दयाराम तुरंत समझ गया कि मयंक खुशबू की कदर नहीं करता। ये उसके लिए सुनहरा मौका था। “तुमने कभी अपना दुख बताया ही नहीं, बहू। वरना…”
खुशबू : बताया तो क्या करते? हम तो कोलकाता में रहते हैं।
दयाराम : तो क्या हुआ? हम तो घरवाले हैं। कोई ना कोई रास्ता निकाल लेते।
खुशबू : उनके बिना कैसे?
खुशबू अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। “आआह…” एक हल्की सी सिसकारी उसके मुँह से निकली।
दयाराम : क्यों बहू, हमें कमजोर समझ रही हो? कोलकाता आकर सब कुछ सुलझ सकता है।
खुशबू : आप क्या कह रहे हैं, ससुर जी?
दयाराम : हम कह रहे हैं, तुम्हारे खजाने की सेवा हम कर देंगे, अगर तुम्हें ऐतराज ना हो। जवानी का बोझ कोई उठा ले, तो सफर आसान हो जाता है।
ये सुनते ही खुशबू का बदन झनझना उठा। उसे अपनी चूत को बिना मसलें ही उसकी चूत से पानी का सैलाब बह निकला, ऐसा ऑर्गेज्म उसे मयंक के साथ सेक्स में भी कभी नहीं हुआ था। वो सोचने लगी, “हाय राम, ससुर जी इतना खुलकर बोल रहे हैं, जैसे मैं उनकी बहू नहीं, कोई गर्लफ्रेंड हूँ।” उसकी गांड का जादू तो पहले भी कई बार चल चुका था।
( शादी से पहले की बात थी। एक बार वो अपनी सहेली पंखुरी के साथ बाजार गई थी। दोनों ने टाइट जींस पहनी थी। खुशबू की गोलमटोल गांड उस जींस में ऐसी लग रही थी, जैसे कोई मक्खन का गोला। पूरा बाजार उसकी गांड को घूर रहा था। दुकानदार हों या ग्राहक, सबकी आँखें उस पर टिकी थीं। पंखुरी को ये बात चुभ गई। लौटते वक्त वो बोली, “खुशबू , अगली बार तू अकेले बाजार जा। सारा बाजार तेरी गांड को देख रहा था, मुझे तो कोई पूछ ही नहीं रहा!” खुशबू ने हँसकर टाल दिया, मगर उसे भी अंदर ही अंदर अपनी जवानी पर गर्व हुआ। ) ( नोटिस:- यह वही पंखुरी है जिसकी एक कहानी आने वाली हैं इस साइट पर " " काला जामुन ")
( एक दूसरी घटना कॉलेज की थी। छमाही परीक्षा का रिजल्ट आया था। खुशबू की दोस्त पायल , जो थोड़ी चालू थी, बोली, “खुशबू , तुझे पता है, तू जिन सब्जेक्ट्स में अच्छे नंबर लाई, वो सब मेल टीचर्स के हैं। और लेडी टीचर्स ने तुझे कम नंबर दिए। जानती है क्यों? क्योंकि वो तेरी इस गोलमटोल गांड से जलती हैं, और मेल टीचर्स इसके दीवाने हैं!” खुशबू ने उसे डाँटा, मगर पायल हँसते हुए बोली, “अगर मेरे पास तेरी जैसी गांड होती, तो मैं टीचर्स से अपने पैर दबवाती!” ) ( नोटिस - यह वही पायल है जिनकी एक कहानी आने वाली हैं )
अब आगे… दयाराम को खुशबू की तेज साँसों और चीख से पता चल गया था कि वो झड़ चुकी है। वो समझ गया कि बहू अब उसके जाल में पूरी तरह फंस चुकी है। अगले दिन उसने ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपनाई। खुशबू का व्यवहार सामान्य था, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। दयाराम ने फिर से उसका चक्षु चोदन शुरू कर दिया। दो दिन तक यही आँखों की गुस्ताखियाँ चलती रहीं।
एक शाम खुशबू ने पतली सी साड़ी पहनी थी, जो उसके जिस्म से चिपककर उसकी हर वक्र को उभार रही थी। साड़ी इतनी नीचे बँधी थी कि उसकी नाभि और पेट का गोरा मांस साफ दिख रहा था। दयाराम का लंड बार-बार तन रहा था। खुशबू किचन में गई, और मीना पूजा करने चली गई। दयाराम को मौका मिल गया। वो किचन में घुसा। खुशबू आटा गूँथ रही थी, और उसके कूल्हों पर थोड़ा आटा लग गया था। दयाराम ने मौके का फायदा उठाया। “अरे, ये क्या लगा है पीछे?” कहते हुए उसने खुशबू की गांड पर हाथ रख दिया और धीरे-धीरे सहलाने लगा।
खुशबू का बदन सिहर उठा। “हाय, ससुर जी, क्या है?” वो बोली, मगर उसकी आवाज में शरम के साथ-साथ एक अजीब सी उत्तेजना थी।
दयाराम : शायद आटा लगा है, हम साफ कर देते हैं।
खुशबू : गलती से लग गया होगा।
दयाराम ने आटा साफ करने के बाद भी अपना हाथ नहीं हटाया। वो खुशबू की गांड को सहलाते हुए बोला, “आज क्या सब्जी बना रही हो, बहू?”
खुशबू : अभी कुछ पक्का नहीं किया। आप बताइए, क्या पसंद है?
दयाराम : जो हमें पसंद है, वो तुम नहीं पाओगी।
खुशबू : आप बोलिए तो, हम वही खिला देंगे।
दयाराम : सोच लो, बाद में मुकरना नहीं।
खुशबू : हम अपनी बात के पक्के हैं, ससुर जी।
दयाराम अब खुशबू के बगल में खड़ा हो गया था। उसकी नजरें खुशबू की चूचियों पर टिकी थीं, जो साड़ी के ऊपर से उभरी हुई थीं। खुशबू ने उसकी नजरें पकड़ लीं, मगर अनजान बनी रही। “बोलिए ना, क्या खाएँगे?” उसने पूछा।
दयाराम ने उसकी आँखों में देखा, फिर नजरें नीचे करते हुए बोला, “हमें तो नॉनवेज खाना है।”
खुशबू : नॉनवेज? हमारे घर में तो नहीं बनता। सासु मां मना करेंगी।
दयाराम : घर में नहीं बनता, तो कच्चा ही खिला दो। —कहते हुए उसने खुशबू की गांड को जोर से दबा दिया।
खुशबू : उउह! ससुर जी, कोई कच्चा मांस खाता है क्या?
दयाराम : हम तो फौजी आदमी हैं, बहू। हमें कच्चा मांस भी पसंद है। —उसने अपनी उंगली खुशबू की गांड की दरार में धीरे से सरकाई।
खुशबू : हाय राम, आप कैसे कच्चा मांस खा लेते हैं?
दयाराम : तुमने अभी दुनिया देखी कहाँ है, बहू? और एक बात बताएँ?
खुशबू : क्या, ससुर जी?
दयाराम : अगर मांस ताजा और जवान हो, तो कच्चा खाने में और मजा आता है। एक बार तुम भी खाओगी, तो दीवानी हो जाओगी।
खुशबू की चूत अब पूरी तरह भीग चुकी थी। ससुर की गंदी बातें उसे पागल कर रही थीं। उसने कभी नहीं सोचा था कि वो अपने ससुर के साथ ऐसी बातें करेगी। तभी पूजा कक्ष से घंटी की आवाज आई। मीना की पूजा खत्म होने वाली थी।
खुशबू : ससुर जी, अब आप जाइए। सासु मां आने वाली हैं।
दयाराम : और हमारा नॉनवेज?
खुशबू : सासु मां , से परमिशन लीजिए, फिर मिलेगा।
दयाराम : वो तो कभी नहीं मानेगी। चोरी-छुपे खिलाना पड़ेगा।
खुशबू : हाय राम, अब आप पाप भी करवाएँगे?
दयाराम हँसते हुए किचन से निकल गया और बाथरूम की ओर चला गया। खुशबू ने उसे जाते देखा और शरम से लाल हो गई। वो जानती थी कि ससुर बाथरूम में जाकर क्या करने वाला है। वो भी जल्दी से अपने कमरे में चली गई। उसका बदन गर्म था, गाल लाल हो चुके थे। उसकी गांड में अभी भी ससुर की उंगली का स्पर्श महसूस हो रहा था। “हाय राम, अगर ससुर जी ने और जोर लगाया होता, तो उनकी उंगली तो अंदर चली ही जाती,” वो बुदबुदाई।
बिस्तर पर लेटकर वो सोचने लगी कि मर्दों को औरतों की गांड इतनी अच्छी क्यों लगती है। उसकी गांड ने तो पहले भी कई बार लोगों को दीवाना बनाया था। ( उसे श्री सिन्हा की याद आ गई। अक्सर वह इसके घर आते थे । वो उसे जबरदस्ती गोद में बिठाते, और खुशबू को उनके तने हुए लंड का अहसास होता। एक बार, श्री सिन्हा ने उसे जोर से गले लगाया और उसकी गांड को मसलते हुए कहा, “खुशबू , तू तो पीछे से पूरी साइज की हो गई है। सामने से भी तैयार है। ” खुशबू शर्म से पानी-पानी हो गई थी, मगर श्री सिन्हा की बेशर्मी ने उसे हैरान कर दिया था। )
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दयाराम की उस दिन की छेड़छाड़ के बाद ससुराल का माहौल और गर्म हो गया। खुशबू सास मीना के सामने तो सभ्य बनी रहती, मगर उनकी गैरमौजूदगी में खूब इठलाती। उसकी चाल में एक अलग ही लचक आ गई थी। उसने अब टाइट कपड़े पहनने शुरू कर दिए—कुरता और स्किन-टाइट पजामी, जिसमें उसका गठीला जिस्म चमक उठता। वो जानती थी कि ससुर उसकी गांड का दीवाना है। वो जानबूझकर ऐसे खड़ी होती कि उसकी गांड ससुर की नजरों में चुभ जाए। कभी झुककर कुछ उठाती, तो उसकी पजामी में उसकी गांड का उभार साफ दिखता। दयाराम की हालत किसी कॉलेज के लौंडे जैसी हो गई थी। उसका मूसल हर दो घंटे में खड़ा हो जाता।
दोनों की ये आँख-मिचौली करीब एक हफ्ते तक चली। दयाराम उम्रदराज था, मगर शातिर था। उसने अपनी खुमारी को हावी नहीं होने दिया। वो जानता था कि खुशबू जवान है, पति से दूर है, और अपनी भावनाओं को ज्यादा देर नहीं संभाल पाएगी। वो इंतजार कर रहा था कि खुशबू खुद पहल करे, ताकि कल को कोई इल्जाम न लगे। उसका अनुमान सही निकला। दस दिन तक जब दयाराम ने सिर्फ घूरने तक सीमित रखा, तो खुशबू बेचैन हो उठी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ससुर इतना कंट्रोल कैसे कर रहा है। मगर वो भी औरत थी, और अपनी जवानी की ताकत जानती थी। उसने सोचा, जिस जवानी के आगे बड़े-बड़े तपस्वी हार गए, दयाराम क्या चीज है? उसने दयाराम को तड़पाने वाला तरीका फिर से आजमाने का फैसला किया। उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान तैर गई।
खुशबू कोई चालू लड़की नहीं थी। उसे मर्दों को तड़पाने में मजा नहीं आता था। मगर दयाराम का उसे इग्नोर करना उसके अहं को चोट पहुँचा रहा था। उसका वो कातिल जिस्म, जिसके पीछे कॉलेज के टीचर तक पागल थे, उसका एक बूढ़े पर असर न हो, ये उसे बर्दाश्त नहीं था। उसने ठान लिया कि भले ही पहला कदम दयाराम ने उठाया, मगर आखिरी कदम उसका होगा। वो नहीं जानती थी कि ऐसे रिश्तों का दलदल कितना खतरनाक होता है। खासकर जब सामने दयाराम जैसा शातिर लुगाईबाज हो। मौका दो दिन बाद आया
होली का दिन। .......................
होली के दिन दयाराम पड़ोसियों से मिलने गया। वहाँ थोड़ी-बहुत भांग और शराब पी ली। जब लौटा, तो घर में मीना , खुशबू और मोहल्ले की कुछ औरतें थीं। होली का धूम-धड़ाका चल रहा था। खुशबू रंगों में पूरी तरह भीग चुकी थी। उसकी पतली साड़ी उसके जिस्म से चिपक गई थी, और उसकी चूचियाँ, कमर और जाँघें साफ दिख रही थीं। दयाराम का लंड फनफनाने लगा। वो खुशबू के पूरे जिस्म को रंग से भर देना चाहता था, मगर रिश्तों की मर्यादा आड़े आ रही थी। थोड़ी देर बाद औरतों की टोली निकल गई, और मीना भी उनके साथ चली गई। जाते-जाते उसने खुशबू से कहा, “मुझे एक-दो घंटे लगेंगे। ससुर जी के लिए खाना बना देना।”
खुशबू को यही मौका चाहिए था। वो बाथरूम गई, अच्छे से नहाई, और अपने कमरे में चली गई। उसने दरवाजा बंद किया और सारे कपड़े उतार दिए। नंगी होकर उसने खुद को आईने में देखा। उसका चेहरा, गोल-गोल चूचियाँ, पतली कमर, मांसल जाँघें और सबसे ऊपर उसकी गदराई गांड—वो रति का अवतार लग रही थी। “अब देखती हूँ, ससुर जी कैसे कंट्रोल करते हैं,” उसने बुदबुदाया। उसने एक स्किन-टाइट लेगिंग पहनी, जो उसकी जाँघों और चूत के उभार को साफ दिखा रही थी। ऊपर एक राउंड-नेक टी-शर्ट, जो उसकी चूचियों को और उभार रही थी। वो पूरी तरह तैयार थी।
खुशबू किचन में गई, चाय बनाई और दयाराम के पास पहुँची। उसे लेगिंग में देखकर दयाराम का दिल धक से रह गया। उसकी जाँघें लेगिंग में कैद थीं, मगर हर मूवमेंट साफ दिख रहा था। उसकी गांड का उभार ऐसा था कि मानो लेगिंग फट जाएगी। दयाराम मुँह फाड़े उसे देखने लगा। खुशबू ने उसकी हालत देखकर मन ही मन खुशी से झूम उठी। “ससुर जी, चाय,” उसने हल्के से खाँसते हुए कहा।
दयाराम ने चाय ली, और खुशबू चली गई। थोड़ी देर बाद वो कप लेने आई, तो देखा कि दयाराम आँखें मूँदे बैठे हैं। असल में, उसे खुशबू के आने का अहसास हो गया था, मगर वो नाटक कर रहा था।
खुशबू : ससुर जी, क्या सोच रहे हैं?
दयाराम : कुछ नहीं, बहू।
खुशबू : नहीं, जरूर कुछ सोच रहे हैं। बताइए ना।
दयाराम : रहने दो, तुझे बुरा लग जाएगा।
खुशबू : प्लीज, बताइए ना।
दयाराम : नहीं, बहू, तू नाराज हो जाएगी।
खुशबू : अरे, हमने कब आपकी बात का बुरा माना? बोलिए ना।
दयाराम : वो… तुझे लेगिंग में देखकर उस दिन की याद आ गई।
खुशबू : कौन सा दिन?
दयाराम : वो बाथरूम वाला दिन।
ये सुनते ही खुशबू का चेहरा शरम से लाल हो गया। “हाय भगवान, ससुर जी, आप तो बिल्कुल बेशरम हैं! अभी तक वो बात नहीं भूले?” वो दौड़कर किचन की ओर भागी। उसकी गांड इतनी तेजी से थिरक रही थी कि दयाराम की आँखें फटी रह गईं। “हाय, ये हाहाकारी गांड कुछ भूलने नहीं देगी,” उसने बुदबुदाया।
खुशबू किचन में पहुँची, तो वो हाँफ रही थी। उसने प्लेटफॉर्म पकड़ा और झुककर खड़ी हो गई। उसकी गांड पीछे को उभर गई। तभी दयाराम किचन में आया। खुशबू की उभरी गांड देखकर उसका लंड टनटना गया। उसने लुंगी में अपने मूसल को सीधा किया और सीधे खुशबू की गांड से भिड़ा दिया। फिर उसकी कमर पकड़ ली। खुशबू के बदन में करंट दौड़ गया। “आआह…” उसकी सिसकारी निकल गई।
दयाराम ने उसके कान के पास मुँह लाकर कहा, “गुस्सा हो गई, बहू?”
खुशबू कुछ नहीं बोली। उसका बदन काँप रहा था।
दयाराम : गुस्सा हो गई? इसलिए बार-बार कह रहा था, मत पूछ।
खुशबू : हम गुस्सा नहीं हैं। —उसकी आवाज धीमी थी।
दयाराम : तो भागकर क्यों आई? —कहते हुए उसने अपना हाथ टी-शर्ट के नीचे डाला और खुशबू के चिकने पेट को सहलाने लगा।
खुशबू : आप ऐसी बातें करेंगे, तो हम और क्या करें?
दयाराम : तूने ही तो जिद की थी, सो मन की बात कह दी। —उसने खुशबू की गर्दन पर अपने होंठ रख दिए।
खुशबू की गर्दन उसका सबसे कमजोर हिस्सा थी। ससुर के होंठ लगते ही “उउह…” उसकी सिसकारी निकल गई।
खुशबू : ससुर जी , ये क्या कर रहे हैं?
दयाराम : आज होली है, बहू। सुबह से सबके साथ होली खेली, हमसे नहीं खेलेगी? —कहते हुए उसने हाथ ऊपर सरकाया और खुशबू की चूचियों को पकड़ लिया।
चूचियों पर ससुर का हाथ पड़ते ही खुशबू का बदन झनझना गया। उसकी साँसें तेज हो गईं। “आआह…” एक और सिसकारी निकली। दयाराम की उंगलियाँ उसकी निप्पल्स को टटोलने लगीं। वो धीरे-धीरे उन्हें मसलने लगा। खुशबू की चूत में गीलापन बढ़ने लगा। उसका बदन गर्म हो रहा था, मगर वो संस्कारी थी। मन में उत्तेजना के बावजूद, उसका दिल इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं था।
खुशबू : ससुर जी, प्लीज, छोड़ दीजिए।
दयाराम : अरे, बहू, त्योहार में जिद नहीं करते। बस, थोड़ा होली खेल लेने दे। —वो जानता था कि खुशबू गर्म हो रही है। उसने अब खुशबू के कंधे और गर्दन को चाटना शुरू किया।
खुशबू अब तीन तरफा हमले में फंस चुकी थी। नीचे उसकी गांड में ससुर का तना हुआ लंड धक्के मार रहा था। चूचियाँ ससुर के हाथों में थीं, और उसकी जीभ उसकी गर्दन पर हलचल मचा रही थी। “उउह… आआह…” उसकी सिसकारियाँ तेज होने लगीं। उसकी आँखें बंद होने लगीं। उसकी चूत पूरी तरह भीग चुकी थी। वो अब विरोध नहीं कर पा रही थी। उसका बदन ससुर के स्पर्श का गुलाम हो चुका था।
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खुशबू की सिसकारियाँ अब तेज हो चुकी थीं। दयाराम की उंगलियाँ उसकी चूचियों की घुंडियों को मसल रही थीं, और उसका लंड उसकी गांड से टकरा रहा था। खुशबू का बदन पूरी तरह गर्म हो चुका था। उसकी चूत से पानी की धाराएँ बह रही थीं, जैसे कोई नदी उफान पर हो। अचानक दयाराम ने चूचियों को और जोर से मसला, तो खुशबू सिसक पड़ी, “उई माँ… स्स्स… ससुर जी, दर्द दे रहा है, धीरे दबाइए ना!”
ये सुनकर दयाराम के चेहरे पर शातिर मुस्कान तैर गई। थोड़ी देर पहले जो बहू “छोड़िए” चिल्ला रही थी, अब वही “धीरे दबाइए” कह रही थी। “सॉरी, बहू, अब धीरे करेंगे,” कहते हुए उसने खुशबू के कंधे पर हल्के से दाँत गड़ाए। खुशबू का बदन सिहर उठा। “ससुर जी, काट क्यों रहे हैं?” उसने सिसकते हुए पूछा।
दयाराम ने प्यार से पुचकारा, “ये काटना नहीं, बहू, लव बाइट है। दर्द हुआ क्या?”
खुशबू : जी नहीं, दर्द तो नहीं हुआ, मगर कोई दाँत गड़ाता है क्या?
दयाराम : अरे, बहू, ये तो प्यार का तरीका है। —कहते हुए उसने खुशबू के कंधे और गर्दन पर लव बाइट्स देना शुरू कर दिया।
दयाराम का हर स्पर्श खुशबू को और गर्म कर रहा था। वो किसी मांसाहारी जानवर की तरह उसकी देह को नोच रहा था, और खुशबू का जिस्म उसकी भूख का शिकार बन रहा था। अचानक, दयाराम ने उसकी टी-शर्ट ऊपर खींचनी शुरू की। खुशबू ने विरोध किया, “ससुर जी, ये क्या कर रहे हैं?”
दयाराम : बस, जरा गुलाल लगाना है, बहू।
खुशबू : ऐसे ही ऊपर से लगा लीजिए ना।
दयाराम : नहीं, बहू, ऐसे नहीं चलेगा। जरा हाथ ऊपर करो।
खुशबू : नहीं, ससुर जी, हमें शरम आती है। ऊपर से ही लगा लीजिए।
दयाराम : ये तो गलत बात है, बहू। पूरे मोहल्ले के साथ होली खेली, और अपने ससुर के साथ मना कर रही हो?
खुशबू : हाय राम! हमने कब मोहल्ले वालों के साथ होली खेली?
दयाराम : अरे, हमने खिड़की से सब देखा। वो सक्सेना का लड़का तेरी छाती में हाथ डालकर रंग लगा रहा था।
खुशबू : वो तो कमीना है। औरतों ने पहले ही बता दिया था कि वो बदमाश है। हमने उसे डाँटा भी था।
दयाराम : और मिश्रा जी का दामाद? वो तो तुझे पीछे से पकड़कर मसल रहा था। कितनी देर तक मसला उसने!
खुशबू : उसके बारे में तो हमें कुछ पता ही नहीं था। अचानक पकड़ लिया। छुड़ाने की कोशिश की, मगर वो ताकतवर था। कमीना हरामी है! मिश्रा जी को ऐसा ठरकी दामाद कहाँ से मिला?
दयाराम : जब सबने तुझसे होली खेली, तो हमें क्यों रोक रही है? ये तो वही बात हुई, “सबको बाँटो, हमें डाँटो!”
खूशबू : क्या! हमने क्या बाँटा सबको?
दयाराम : अरे, त्योहार की खुशियाँ बाँटीं ना। अब हमें मना कर रही हो?
कहते हुए दयाराम ने फिर से टी-शर्ट खींची। खुशबू ने मजबूरी में हाथ ऊपर कर दिए, और टी-शर्ट उतर गई। अब वो कमर के ऊपर पूरी नंगी थी। दयाराम झुका और उसकी मखमली पीठ पर चुम्बन शुरू कर दिए। बीच-बीच में वो हल्के से दाँत भी गड़ा देता। खुशबू फिर से गर्म होने लगी। अचानक, दयाराम ने उसे कंधों से पकड़कर घुमाया। अब खुशबू की चूचियाँ उसके सामने थीं—गोल, मक्खन जैसे, और उनके ऊपर काले अंगूर जैसे निप्पल। दयाराम की साँसें रुक गईं। वो एकटक उन्हें निहारने लगा।
खुशबू की आँखें बंद थीं। जब कुछ देर तक सन्नाटा रहा, तो उसने हल्के से आँखें खोलीं। देखा, ससुर जी पागलों की तरह उसकी चूचियों को घूर रहे हैं। “ ससुर जी, हो गई होली? अब मैं जाऊँ?” उसने धीरे से पूछा।
दयाराम की तंद्रा टूटी। “बस एक मिनट, बहू,” कहते हुए उसने खुशबू की एक चूची मुँह में ले ली। फिर तो वो पागलों की तरह चूसने लगा। खुशबू की सिसकारियाँ फिर शुरू हो गईं। “आह… ससुर जी… ओह माय गॉड… स्स्स… जोर से मत काटिए… धीरे चूसिए…”
मयंक भी खुशबू की चूचियाँ चूसता था, मगर दयाराम की कला उसके सामने फीकी थी। खुशबू मन ही मन बुदबुदाई, “बाप बाप ही होता है, बेटा कभी बाप नहीं बन सकता।” करीब 15 मिनट तक दयाराम ने बारी-बारी से उसकी चूचियों को चूसा। खुशबू की चूत से पानी की धाराएँ बह रही थीं। अचानक, दयाराम साँस लेने के लिए रुका। खुशबू आँखें मूँदे खड़ी थी, उसकी नंगी सुंदरता रति को भी चुनौती दे रही थी। दयाराम ने उसकी गर्दन पकड़कर अपनी ओर खींचा और उसके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए। खुशबू अब पूरी तरह आग का गोला बन चुकी थी। पराए मर्द का चुंबन उसे और रोमांचित कर रहा था।
कुछ देर बाद उसे होश आया। “ससुर जी, अब छोड़ दीजिए। बहुत होली खेल ली,” उसने कहा।
दयाराम : बस, बहू, एक मिनट। जरा गुलाल तो लगा लूँ।
उसने कुरते की जेब से गुलाल निकाला और खुशबू के पेट, चूचियों और गर्दन पर रगड़ने लगा। गुलाल का खुरदरापन खुशबू को और उत्तेजित कर रहा था। उसकी साँसें फिर तेज हो गईं। अचानक, दयाराम ने उसकी लेगिंग की इलास्टिक में उंगली फँसाई और उसे गांड तक नीचे खींच दिया। फिर उसने खुशबू की गांड पर गुलाल रगड़ना शुरू किया। ये वही गांड थी, जो उसके सपनों में रोज आती थी। वो बहक गया और उसकी गांड में उंगली डाल दी।
खुशबू को झटका लगा। उसने आँखें खोलीं और देखा कि उसकी लेगिंग नीचे खिसकी पड़ी है। “ससुर जी, ये क्या कर रहे थे?” उसने घबराते हुए कहा और लेगिंग ऊपर खींच ली।
दयाराम : कुछ नहीं, बहू, बस गुलाल लगा रहा था।
खुशबू : नहीं, ससुर जी, नीचे बिल्कुल नहीं!
उसने टी-शर्ट उठाई और नंगी ही अपने कमरे में भाग गई। दयाराम उसकी थिरकती गांड को देखता रहा। उसकी हर मटक के साथ उसका लंड झटके खा रहा था। फिर वो बाथरूम की ओर चला गया।
अपने कमरे में जाकर दयाराम सोचने लगा। आज का दिन उसके लिए मील का पत्थर था। पहली बात, खुशबू ने खुद कहा, “धीरे दबाइए,” यानी उसके अंदर आग सुलग रही थी। दूसरा, उसने जी भरकर उसकी चूचियाँ चूसीं। वो जानता था कि चूचियाँ औरत का सबसे संवेदनशील अंग होती हैं। ओशो ने तो यहाँ तक लिखा था कि स्त्री को समाधि के लिए भृकुटी की जगह स्तनाग्र पर ध्यान देना चाहिए। दयाराम को यकीन था कि आज का सुख खुशबू को
बार-बार उसके पास खींच लाएगा। तीसरी और सबसे बड़ी बात— खुशबू ने अपनी टी-शर्ट उतारने की इजाजत दे दी। एक बार औरत अपने कपड़े उतारने को तैयार हो जाए, तो उसका चारित्रिक पतन हो चुका होता है। अब वो सिर्फ वासना की लालच में बार-बार गिरती चली जाती है। दयाराम निश्चिंत था कि अब वो खुशबू को ऊपर से तो नंगी कर ही लेगा। अब बस उसे लेगिंग उतारने के लिए राजी करना था। अगर वो नीचे भी हाथ लगाने दे दे, तो फिर उसका फौलादी लंड खुशबू की मखमली चूत की गहराइयों में रोज सैर करेगा।
खुशबू को याद करके उसका लंड फिर अंगड़ाई लेने लगा। उसने उसे मुठियाते हुए कहा, “बस, बेटा, थोड़ा सब्र कर। तेरे अच्छे दिन आने वाले हैं।”
इधर, खुशबू अपने कमरे में हाँफ रही थी। उसे लग रहा था कि ससुर जी अभी भी उसकी चूचियाँ चूस रहे हैं। “हाय भगवान, ससुर जी क्या-क्या करते हैं! कहीं काटते हैं, कहीं निप्पल पर जीभ चुभलाते हैं, कहीं घुंडियों को दाँतों में हल्के से चबाते हैं। पता नहीं कहाँ से सीखा होगा ये सब!” फिर वो बुदबुदाई, “बाप इतना सयाना है, और बेटा बिल्कुल भोंदू। झल्ले को कुछ नहीं आता। कम से कम बाप से कुछ सीख लिया होता!”
वो इन बातों को याद करके गर्म हो रही थी, मगर उसे आश्चर्य भी था कि उसने ससुर जी को इतना कुछ करने दिया। ससुर तो बाप के समान होता है। पहले जो हुआ, वो अचानक हुआ, मगर आज तो उसने खुद टी-शर्ट उतार दी। और वो बेशर्मी से कह रही थी, “जोर से मत काटिए, धीरे करिए!” उसे अपनी हरकतों पर शरम आने लगी। वो इज्जतदार घर की बेटी और संस्कारी बहू थी। “हम तो कच्ची उम्र की हैं, मगर ससुर जी तो सयाने हैं। फिर भी बच्चों की तरह चपर-चपर दूध पीने लगे!” अपनी चूचियों को सहलाते हुए उसने सोचा, “मर्द चाहे कोई हो, इनके जोश से बचकर कहाँ जाएगा?”
तभी उसे याद आया कि मयंक के अलावा उसकी चूचियों से खेलने वाला दयाराम दूसरा पराया मर्द नहीं था। उससे पहले उसके ओफिस के बॉस श्री सिन्हा ने उसके नए-नए नींबुओं से मनमानी की थी। वो घटना उसके सामने चलचित्र की तरह घूमने लगी।
( पुराने यादें.....बारहवीं कक्षा की बात थी। प्रैक्टिकल एग्जाम का दिन था। एक दूसरी कॉलेज की लेडी टीचर निरीक्षक थी। उसने क्लास का दौरा किया, सवाल पूछे और चली गई। खुशबू का पेपर खराब हो गया था, और वो ढंग से जवाब भी नहीं दे पाई थी। सर कुछ लिख रहे थे। एग्जाम के बाद उन्होंने खुशबू और पंखुरी को रोक लिया। एक लिस्ट दिखाई, जिसमें दोनों को 50 में से 10 नंबर मिले थे। खुशबू के पैरों तले जमीन खिसक गई। दोनों सर के सामने रोईं, मगर सर बोले, “ये नंबर मैडम ने दिए हैं।”
रो-धोकर जब वो जाने लगीं, तो कुछ दूर पर सर ने पंखुरी को बुलाया। दोनों कुछ देर बात करते रहे। जब पंखुरी लौटी, तो खुश थी।
खुशबू : क्या बात है? अचानक खुश क्यों हो रही है?
पंखुरी : सर पास करने को तैयार हो गए हैं।
खुशबू : कैसे? अचानक क्यों बदल गए?
पंखुरी : कल हमें 11 बजे लैब में बुलाया है।
खुशबू : कॉलेज की छुट्टियाँ हो गईं, फिर लैब में क्यों?
पंखुरी : तेरी पूजा करने को बुलाया है।
खुशबू : मतलब? समझी नहीं।
पंखुरी : सुन, सर की बीवी दूसरे शहर में है। वो यहाँ अकेले शांड-भुसंड की तरह पड़े हैं। बोले हैं, थोड़ा एंजॉय करा दो, तो पास कर देंगे।
खुशबू : क्या! तू पागल हो गई है? ये क्या बकवास है?
पंखुरी : ना मैं पागल हूँ, ना बकवास बोल रही हूँ। मुझे फेल नहीं होना, ना बारहवीं में दोबारा बैठना है।
खुशबू : तो क्या इज्जत बेच देगी? होश में तो है?
पंखुरी : इज्जत-विज्जत बेचने की जरूरत नहीं। सर सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। मैंने साफ बात कर ली है।
खुशबू : पंखुरी , तू पागल है। एक बार फिर सोच ले।
पंखुरी : मैंने सब सोच लिया। मुझे साल बर्बाद नहीं करना। तू भी सोच ले—साल बर्बाद करना है या थोड़ा दूध मसलवाना। सर बस किसिंग-विसिंग करेंगे, हाथ फेरेंगे।
खुशबू : सॉरी, मुझे कुछ नहीं करना। तेरी सलाह तुझे मुबारक। मैं ऐसी-वैसी लड़की नहीं।
पंखुरी : मैं भी ऐसी-वैसी नहीं, मगर हालात मजबूर करते हैं। फेल हो गई, तो पिताजी घर में बैठा देंगे।
दोनों अलग हो गए। खुशबू का दिमाग भन्ना गया। “हाय राम, कहीं सचमुच फेल हो गई तो?” रात भर वो सो नहीं पाई। सुबह पंखुरी का फोन आया।
पंखुरी : बोल, लेने आऊँ?
खुशबू : पंखुरी , कॉलेज बंद है। कहीं सर जबरदस्ती करें तो?
पंखुरी : चिंता मत कर। सर से बात हो गई है, सिर्फ ऊपर-ऊपर करेंगे। प्रिंसिपल और चौकीदार भी होंगे। और हम दो हैं, अकेले तो नहीं।
खुशबू : कहीं सर ने किसी को बता दिया तो? बदनाम हो जाएँगे।
पंखुरी : वो ऐसा नहीं करेंगे। उनका नुकसान ज्यादा है—नौकरी जाएगी, बीवी भी छोड़ सकती है। टेंशन मत ले।
दोनों लैब पहुँचीं। खुशबू को देखकर सर की आँखें चमक उठीं। उन्हें यकीन नहीं था कि वो मानेगी। पंखुरी अंदर गई, सर से बात की, फिर खुशबू से बोली, “मैं दरवाजे पर हूँ। तू अंदर जा, साले को थोड़ा एंजॉय करा दे। डर मत।”
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होली की घटना के बाद खुशबू अपने ससुर से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रही थी। उसका मन शर्म से भरा था, क्योंकि ससुर ने उसे ऊपर से पूरी तरह नंगा कर दिया था, वो भी उसकी सहमति से। दयाराम ये सब नोट कर रहा था। उसे इस बात की तसल्ली थी कि खुशबू गुस्सा नहीं थी, बस हिचक रही थी। चार दिन तक ये लुका-छिपी चलती रही। दयाराम ने सोचा कि शुरुआत उसे ही करनी पड़ेगी, क्योंकि औरतें स्वभाव से ऐसे मामलों में आगे नहीं बढ़तीं। उसने रात को छत से खुशबू को फोन किया।
खूशबू का दिल ससुर जी का नंबर देखकर धक-धक करने लगा। कुछ देर पहले ही मयंक से गर्मागरम बातें हुई थीं, और वो पहले से ही मूड में थी। उसने फोन रिसीव किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, क्या कर रही हो? सो गई थी क्या?
खुशबू : नहीं, ससुर जी, बस गाने सुन रही थी।
दयाराम : दिनभर गाने ही सुनती रहती हो? थोड़ा घूमो-फिरो, शरीर स्वस्थ रहेगा।
खुशबू : रात को कहाँ घूमें?
दयाराम : अरे, रात के खाने के बाद तो घूमना जरूरी है। और जगह की कमी है क्या? इतनी बड़ी छत पड़ी है। चलो, ऊपर आ जाओ।
खुशबू : ऊपर? ऊपर तो आप हैं।
दयाराम : तो? हम हैं तो क्या हुआ? कोई भूत-प्रेत हैं क्या?
खुशबू : नहीं, वो बात नहीं, पर… स्स्स…
दयाराम : तो फिर क्या बात है? साफ-साफ बोलो, डरती क्यों हो?
खुशबू : छत पर तो अँधेरा भी रहता है।
दयाराम : अँधेरा है तो क्या? अपना घर है, कोई जंगल थोड़े जाना है। चलो, आओ, थोड़ा वॉकिंग कर लो।
खुशबू : ससुर जी, आप तंग तो नहीं करेंगे?
दयाराम : क्या! हम तंग करते हैं क्या?
खुशबू : वो… उस दिन होली वाले दिन कितना तंग किया था।
दयाराम : पगली, वो तो त्योहार था। यहाँ खुले में कोई कुछ करेगा क्या? तुम तो फालतू घबराती हो।
खुशबू : सच्ची बताइए, आपका कोई भरोसा नहीं।
दयाराम : अरे, बहू, हम पर भरोसा नहीं करोगी, तो इस शहर में किस पर करोगी?
खुशबू : नहीं, आप बहुत बदमाश हैं। अगर कुछ बदमाशी की, तो पूरा मोहल्ला देख लेगा।
दयाराम : बहू, तुम भी डरपोक हो। खुली छत पर कुछ हो सकता है क्या? चलो, ऊपर आ जाओ।
खुशबू : पहले कसम खाइए कि खुले में कोई बदमाशी नहीं करेंगे। तब आएँगे।
दयाराम : अरे, तुम्हारी कसम, खुले में नो बदमाशी, नो लफड़ा। अब जल्दी आ जाओ।
खुशबू ने ससुर को कसम से बाँध लिया, तो वो दिलेर हो गई। उसने ससुर के सब्र का इम्तिहान लेने के लिए होली वाला कातिलाना ऑउटफिट पहना—टाइट टी-शर्ट और लेगिंग, जिसमें उसकी चूचियाँ और गांड उभरकर जानलेवा लग रही थीं। छत पर पहुँचते ही दयाराम की आँखें चमक उठीं। उसे पक्का यकीन हो गया कि बहू की ठरक अभी भी चढ़ी हुई है।
दोनों छत पर पास-पास चलने लगे। दयाराम जानबूझकर मयंक से विरह की बातें कर रहा था, ताकि खुशबू हीट में आए। उसका असर हुआ। कुछ देर बाद खुशबू की आवाज भारी होने लगी, उसमें चंचलता आ गई। वो ससुर के और करीब चिपककर चलने लगी। थोड़ी देर बाद दयाराम ने नीचे चलने को कहा और पहले सीढ़ियों की ओर बढ़ा। घर की छत पर टावर था, जिसमें दरवाजा लगा था। खुशबू पीछे थी, तो उसने दरवाजा बंद किया। जैसे ही वो पलटी, दयाराम ने उसे बाँहों में जकड़ लिया और उसके रसीले होंठ चूसने लगा। उसके हाथ खुशबू की चूचियों पर पहुँच गए। इस अचानक हमले से खुशबू हड़बड़ा गई, मगर छुड़ा नहीं पाई।
खुशबू : ससुर जी, प्लीज छोड़िए। आपने कहा था, खुले में तंग नहीं करेंगे।
दयाराम : बहू, यहाँ खुला कहाँ है? देखो, चारों तरफ से बंद है।
खुशबू ने देखा, वो टावर के अंदर थी।
खुशबू : लेकिन आपने कहा था, बदमाशी नहीं करेंगे। ये चीटिंग है!
दयाराम: नहीं, बहू, बिल्कुल चीटिंग नहीं। हम अपनी कसम नहीं तोड़ते।
वो फिर से खुशबू की जवानी लूटने लगा। उसकी हरकतों से खुशबू गर्म होने लगी। उसकी चूचियाँ तन गईं, और बदन में करंट दौड़ने लगा। दयाराम ने मौका देखकर उसकी टी-शर्ट उतारने की कोशिश की।
खुशबू : ससुर जी, नहीं, कपड़े मत उतारिए। हमें ये अच्छा नहीं लगता।
दयाराम : ठीक है, बहू। हमारी जिंदगी तो नीरस थी। सोचा, शायद तुम कुछ सुकून दे सको। मगर हमारा भाग्य ही खराब है।
दयाराम की भावनात्मक बात ने खुशबू को पिघला दिया।
खुशबू : हमने तो सिर्फ इतना कहा कि कपड़े मत उतारिए।
दयाराम : चॉकलेट का रैपर बिना उतारे खाने में स्वाद कहाँ? बिना देखे रहा भी नहीं जाता।
खुशबू : लेकिन फिर आप आगे बढ़ने लगते हैं।
दयाराम : आगे मतलब?
खुशबू : मतलब नीचे जाने लगते हैं। हमें वो बिल्कुल पसंद नहीं। होली के दिन भी आप वहाँ पहुँच गए थे।
दयाराम : लेकिन तुमने मना किया, तो रुक गए ना? तुम्हारी मर्जी के बिना हम एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे।
इस बार खुशबू चुप रही। दयाराम ने उसकी टी-शर्ट उतार दी। एक पल में वो फिर अधनंगी थी। उसने अपनी जीभ से खुशबू के निप्पल के चारों ओर चक्कर लगाए। खुशबू गनगना उठी। “आह… स्स्स…” उसकी सिसकारियाँ शुरू हो गईं। दयाराम ने चूचियाँ चूसनी शुरू कीं, तो खुशबू उसके बाल सहलाने लगी। दयाराम ने दाँत भी गड़ाए। खुशबू की चूत तक करंट पहुँच रहा था। वो बड़बड़ाने लगी, “हाँ, ससुर जी, खा जाओ इनको। ये आपके लिए ही हैं। खूब मसल डालो। बहुत परेशान करती हैं ये।”
दयाराम : बहू, अब तुम्हारी सारी परेशानी खत्म। इनकी देखभाल हम करेंगे। जब भी तंग करें, हमें बता देना, हम इनकी खबर लेंगे।
टावर में तूफान आ गया। दयाराम ने खुशबू के ऊपरी जिस्म पर अपने होंठों से मुहर लगाई, जैसे उस पर अपनी मिल्कियत जता रहा हो। खुशबू बेसुध पड़ी थी। आधे घंटे बाद जब वो अपने कमरे में पहुँची, उसकी चूचियाँ दयाराम के दाँतों के निशानों से भरी थीं।
दो दिन बाद दयाराम ने फिर खुशबू को बुलाने का सोचा। वो नहीं चाहता था कि खुशबू की आदत छूटे, वरना वो ठंडी पड़ सकती थी। दूसरा, उसे खुद अब कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। उसने रात को फोन किया और सीधे टावर में बुलाया।
खुशबू के लिए ये धर्मसंकट था। अब तक जो हुआ, वो अचानक हुआ था। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वो दयाराम को कड़ाई से रोक नहीं पाई। मगर आज वो उसे सीधे टावर में बुला रहा था। अगर वो जाती, तो इसका मतलब वो खुद अपना जिस्म ससुर को परोसने जा रही थी। इतनी बेहया वो कैसे हो सकती थी? उसने फैसला किया और कमरे में ही रही।
जब वो नहीं आई, तो दयाराम ने फिर फोन किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, आओ ना, हम इंतजार कर रहे हैं।
खुशबू : ससुर जी, हम नहीं आएँगे।
दयाराम : क्यों नहीं? क्या बात हो गई?
खुशबू : कोई बात नहीं, बस आना नहीं चाहते।
दयाराम : प्लीज, बहू, ऐसा मत करो। अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता।
खुशबू : ससुर जी, जो हो रहा है, वो गलत है। पाप है।
दयाराम : कोई पाप नहीं। तुम जानती हो, पाप क्या होता है? शास्त्र कहते हैं, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई।’ जिससे सुख मिले, वही धर्म है। हमारी दोस्ती से दोनों को खुशी मिलती है।
खुशबू : ससुर जी, हमें शास्त्र नहीं मालूम। बस इतना जानते हैं कि ये रिश्ता गलत है।
दयाराम : तुम हमें मझधार में नहीं छोड़ सकती। तुम्हारे बिना हमारा जीवन बेमानी है।
दयाराम की प्रेम भरी बातों से खुशबू का मन डोल गया, मगर वो टस से मस न हुई। दयाराम की सारी योजना धरी रह गई। मगर वो पक्का फौजी था। उसने “इमोशनल अत्याचार” का हथियार निकाला।
अगले दिन वो सुबह से मजनू की तरह उदास बैठा रहा। शाम को बाजार चला गया। देर रात तक नहीं लौटा, तो सास मीना ने खुशबू से कहा, “फोन करके पूछो, कहाँ हैं?”
खुशबू : ससुर जी, कहाँ हो? खाना खाने का टाइम हो गया।
दयाराम : हमें देर हो जाएगी। खाना खाकर आएँगे। —और फोन काट दिया।
दयाराम देशी शराब के ठेके पहुँचा। उसने सालों पहले पीना छोड़ दिया था, मगर आज उसने देशी ठर्रा पिया, ताकि बदबू आए और घर में पता चले। उसने चिकन खाया और घंटे भर बाद घर लौटा। खुशबू ने दरवाजा खोला, तो शराब की बदबू से पीछे हट गई। दयाराम ने लड़खड़ाने की एक्टिंग की और अपने कमरे में चला गया। सास-बहू एक-दूसरे का मुँह देखने लगीं।
अगले दिन फिर दयाराम ठर्रा पीकर आया। उसने एक रोटी खाई और गुमसुम अपने कमरे में चला गया। मीना बड़बड़ाने लगी, “इन्हें क्या हो गया? बड़ी मुश्किल से पीने की आदत छुड़ाई थी, अब फिर शुरू। इस बुढ़ापे में शराब शरीर खोखला कर देगी। पता नहीं किसकी नजर लग गई!” खुशबू चुपचाप सुनती रही। वो कैसे बताती कि ससुर जी का टेंशन वो खुद है?
तीसरे दिन जब दयाराम फिर निकला, तो खुशबू समझ गई कि वो पीने जा रहे हैं। अब वो टेंशन में थी। सास कह रही थी कि शराब ससुर जी को खोखला कर देगी। दूसरा, घर को नजर लगने की बात। तीसरा, उसकी चूचियाँ बार-बार “ससुरजी-ससुरजी” पुकार रही थीं। दयाराम के दीवानापन ने उसके दिल में प्यार का अंकुर जगा दिया था। आधे घंटे बाद उसने फोन उठाया।
खुशबू : ससुर जी, हमें क्यों परेशान कर रहे हो? ये पीना क्यों शुरू किया?
दयाराम : तुम्हें इससे क्या? तुम ऐश करो। —रूखी आवाज में बोला।
खुशबू : पीना जरूरी है क्या? अपने शरीर का ख्याल करिए।
दयाराम : इस शरीर का क्या करना, जब ये सुख नहीं दे सकता? अब शराब ही सहारा है।
खुशबू : और आपका परिवार? उसका ख्याल नहीं?
दयाराम : सब ठीक हैं। सास पूजा में, बहू अपने मस्ती में। इस बूढ़े के लिए किसके पास टाइम है?
खुशबू : प्लीज, बाबूजी, शराब मत पियो। हमें ये पसंद नहीं।
दयाराम : हम तुम्हारी पसंद से नहीं चल सकते, जैसे तुम हमारी पसंद से नहीं चलतीं।
खुशबू : हम हाथ जोड़ रहे हैं। बिना पिए लौट आइए। जो चाहते हैं, वो मिल जाएगा।
दयाराम : क्या मिल जाएगा?
खुशबू : आप बहुत गंदे हैं। हमारे मुँह से बुलवाना चाहते हैं।
दयाराम : अरे, कुछ पता तो चले।
खुशबू : हम टावर में आ जाएँगे, बस। शरारती कहीं के! —और फोन काट दिया।
खुशबू की हरी झंडी से दयाराम झूम उठा। उसे यकीन नहीं था कि खुशबू इतनी जल्दी मान जाएगी। वो गुनगुनाता हुआ घर लौटा। घर में सास-बहू टीवी देख रही थीं। खुशबू चाय बनाने गई, और दयाराम हाथ-मुँह धोने। लौटा, तो देखा खुशबू किचन में है और मीना टीवी में मगन। दयाराम किचन में घुसा और खुशबू को पीछे से पकड़ लिया। उसका कोबरा फन फैलाकर खुशबू की गांड में चोट मारने लगा। उसके हाथों ने चूचियों पर कब्जा कर लिया। खुशबू चिहुँक गई, “ससुर जी, ये क्या कर रहे हो? सास मां बगल में हैं। प्लीज छोड़िए।”
दयाराम : छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है।
खुशबू की चूचियाँ उसकी कमजोरी बन चुकी थीं। दयाराम के हाथों का जादू और होंठ उसकी पीठ व गर्दन पर चल रहे थे। खुशबू सनसना रही थी, मगर बोली, “ससुरजी, प्लीज, अभी चले जाइए। जो करना है, रात को कर लेना।” दयाराम ने मीना के डर से उसे छोड़ा और बोला, “ठीक है, बस एक किस दे दो।” उसने खुशबू को घुमाया और उसके होंठों पर अपने होंठ जोड़ दिए। खुशबू ने उसे जोर से चिपका लिया।
रात को मीना नींद की गोली खाकर सो गई। दयाराम ने टावर से फोन किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, तीन दिन से ढंग से खाना नहीं खाया। भूख लगी है।
खुशबू : कुछ खाना ले आएँ?
दयाराम : नहीं, बस थोड़ा दूध पी लेंगे।
खुशबू : ठीक है, दूध ले आते हैं।
दयाराम : अरे, तुम आ जाओ, डायरेक्ट पी लेंगे।
खुशबू : डायरेक्ट मतलब?
दयाराम: जैसे बच्चा पीता है, मुँह लगाकर।
खुशबू उसकी बात समझकर शरमा गई। “हाय राम, आप जैसा बेशरम नहीं देखा। कोई अपनी बहू से ऐसा बोलता है?”
दयाराम : अच्छा, ठीक है, बोलेंगे नहीं, करेंगे। दूध पीयेंगे।
खुशबू : आपको और कोई काम है ही नहीं। सुई एक ही जगह अटकती है।
दयाराम : अरे, तुम भी तो वहीँ अटक गई हो। जल्दी आओ।
खुशबू टावर की ओर बढ़ी। उसे शर्म महसूस हो रही थी। वो अपने ससुर के पास जा रही थी, जो उसके जिस्म से खेलने को बेताब था। हर कदम भारी लग रहा था। टावर के दरवाजे पर पहुँचते ही दयाराम ने उसे खींचकर बाँहों में भींच लिया। वो खुशबू को दबोचने-मसलने लगा। खुशबू उसके दीवानापन पर गर्व महसूस कर रही थी। दयाराम ने उसके स्ट्रॉबेरी होंठ चूसने शुरू किए। उसका कोबरा खुशबू की नाभि पर चोट मार रहा था। उसने खुशबू का चेन वाला गाउन खोला। अगले पल उसकी चूचियाँ फड़फड़ाकर बाहर आ गईं। जीरो वाट की रोशनी में वो जानलेवा लग रही थीं।
खुशबू के मुँह से निकल गया- बाप रे… बाप..!
दयाराम: क्या देख रही हो, बहु ?
खुशबू : कुदरत की नायाब कारीगिरी।
दयाराम : क्या हुआ बहू.. इतना ज्यादा बड़ा है क्या मेरा लंड ?
खुशबू : आपका बहुत बड़ा है।
दयाराम : क्या बहू ?
खुशबू : वो जो नीचे है।
दयाराम : क्या.. इसका नाम लो बहू.. बोलो लंड.. बोलो..
खुशबू : हाँ.. आपका लंड.. बहुत बड़ा है।
ससुर जी मेरे नजदीक आकर बोले- तुमको अच्छा लगा?
खुशबू : मैं तो आपका यह बड़ा लंड देख कर उसी दिन से पागल थी।
आज वही लंड मेरी आँखों के सामने था तो मैंने बिना कुछ कहे उनका लंड अपने हाथ में लेकर मसलने लगी।
अब मैं नीचे बैठ गई और उनके लंड को हाथ से आगे-पीछे करने लगी।
दयाराम : इसको मुँह में लो।
खुशबू : - नहीं बाबू जी.. मुझे शर्म आती है, यह गंदा है।
दयाराम : बहू तुम भी प्यासी हो और मैं भी प्यासा हूँ। देखो ना.. मयंक को कितने दिन हो गए और तुम तो अभी जवान हो, सेक्सी गर्म औरत हो।’
ससुर जी के मुँह से अपनी तारीफ सुन कर मैं पागल हुए जा रही थी, मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया था।
दयाराम : कुछ भी गंदा नहीं है बहू.. तुम एक औरत हो और मैं एक मर्द हूँ… बस सब कुछ भूल जाओ ताकि दोनों को आनन्द आए और अब मुझे तुम ससुर जी नहीं, दयाराम बोलो।’
खुशबू - ठीक है दयाराम।
खुशबू ने घुटनों पर बैठ कर हाथ में लेकर हिलाया और फिर मेरे ससुर जी का 11 इन्च का लंड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
मैं उनके लौड़े को आइस-क्रीम की तरह चाटने और चूसने लगी।
पहले पहल तो कुछ नमकीन सा लगा फिर मुझे उसका स्वाद अच्छा लगने लगा।
ससुर जी के मुँह से ‘हाय खुशबू बहू...... अहहहाज...... आह.......’ निकलने लगी।
मैं अपने मुँह में उस लंड को चूसे जा रही थी और मेरी चूत भी रसीली हो चली थी।
ससुर जी की सिसकारी सुन कर मेरी भी आहें निकलने लगीं- मूओआयाया..... ओआहौ… अमम्मुआहह..... आ ससुर जी अहह.......बहुत बड़ा है और टेस्टी लग रहा है.. मैंने पहली बार किसी का लंड अपने मुँह में लिया है।
दयाराम : क्यों खुशबू मयंक ने अपना लंड तेरे मुँह में नहीं दिया क्या?’
खुशबू : ससुर जी.. उनका बहुत छोटा है ,।’
अब उन्होंने मेरी ब्रा और कच्छी को भी खोल कर मुझे भी खुद के जैसा नंगा कर दिया और ये सब कार्यक्रम मेरे कमरे में चल रहा था।
फिर ससुर जी ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी चूत को चाटने लग गए।
मैं पागल सी हो रही थी, दो बार तो ऐसे ही मेरा पानी निकल गया, फिर उन्होंने अपना 11 इन्च का लंड मेरी चूत में लगा दिया।
मुझे थोड़ा दर्द हुआ। । फिर मेरे मुँह से चीख निकल गई ‘उईईइइमाआ..’
दयाराम : क्या हुआ खुशबू .. दर्द हुआ क्या?
खुशबू : हाँ ससुर जी .. थोड़ा आराम से करो।
फिर उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए और धीरे-धीरे अपना पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
खुशबू चिल्लाए जा रही थी- ससुर जी , नहीं पेल अब रुक जा.. बहुत दर्द हो रहा है..!
पर वो कसाई जैसे लगे रहे तनिक भी नहीं रुके और मेरी चुदाई करते रहे।
खुशबू : ‘आह्ह....... उईईइमाआआआ....... ससुर जी बस करो.. निकालो..!’
दयाराम : बस मेरी जान थोड़ा सा और.. बस खुशबू , मेरी जान… मैं बहुत तड़पा हूँ तेरे लिए, आज जाकर तू मेरे लंड के नीचे आई है, बहुत चुदासी है तू रानी । तेरी.. आह्ह..ले और ले..साली।’
मैं भी उनकी बातों से गर्म होकर उनके धक्कों का साथ देते हुए अपनी गाण्ड को ऊपर उठाए जा रही थी।
दयाराम : खुशबू..... आआहा..हहहह.. हहाह मैं आ.. आ गया.. अह..’ उन्होंने अपने लंड का पानी मेरी चूत में छोड़ दिया सब माल मेरे गर्भ में चला गया।
फिर कुछ देर हम दोनों ऐसे ही नंगे ही अपने पलंग पर पड़े रहे।
थोड़ी देर में उन्होंने मुझे फिर से गोद में लेकर चोदा और पूरी रात मेरे ससुर जी ने 4 बार मेरी चुदाई की और सुबह मैं उठी तो मेरे ससुर जी पहले ही उठ गए थे।
मैं नंगी ही उनके कमरे में पड़ी थी।
फिर मैं उठकर नंगी ही ऊपर अपने कमरे में आ गई। मैंने अपने कपड़े पहने और घर के काम में लग गई।
ससुर जी - बहू तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?
खुशबू - हाँ.. मैं बिल्कुल ठीक हूँ ससुर जी।
हम दोनों ज़ोर से हँसने लगे।
अब मेरी ज़िंदगी इस तरह ही कटने लगी थी।
यह रोज की बात हो गई। मैं नहाने के लिए बाथरूम में जाती और ससुर जी अपने कमरे के छेद से मुझे नहाते हुए देखते, फिर बोलते- खुशबू बहू आज तुम बाथरूम में क्या कर रही थीं और इस रंग की कच्छी-ब्रा पहने हो!
यह सब कुछ सुन कर मैं शर्म से लाल हो जाती। मैं क्या करती, मुझे भी उनकी ज़रूरत थी।
मेरे ससुर जी घर में मेरे साथ खूब मस्ती करते और वे मेरा ख्याल भी बहुत रखते, जैसे मैं उनकी बहू नहीं पत्नी होऊँ।
वो मेरे पति से भी ज्यादा ख्याल रखते, हम दोनों में सब कुछ अच्छा चल रहा था।
फिर एक दिन हम दोनों बाजार में सब्जी लेने गए।
मैं गुलाबी साड़ी में थी और बहुत ही कटीली लग रही थी।
दयाराम : बहू.. आज बहुत ही मस्त लग रही हो.. कहीं ऐसा न हो कि बाजार में सब मूठ मारने लग जाएँ.. जरा संभल कर चलना मेरी खुशबू रानी!’
खुशबू : जी.. आप भी ना बाबू जी.. बहुत बदमाश हो गए हो.. बहुत मस्ती करते हो! चलो, अब हम लोग चलें।’
हम लोग बाजार के लिए चल दिए और बस में चढ़े।
बस में बहुत भीड़ थी, सब एक-दूसरे से सट कर खड़े थे।
मेरे आगे मेरे ससुर और पीछे मेरे कोई दूसरा आदमी था, जो बहुत ही मोटा और काला था, मेरी गाण्ड पर ज़ोर लगाए जा रहा था।
जब भी बस के ब्रेक लगते, वो मेरे ऊपर चढ़ जाता और मैं ससुर जी के ऊपर हो जाती।
दयाराम : बहू मज़े लो अपनी ज़िंदगी के.. समझ लो बस में नहीं हो.. बिस्तर में हो।’
उस आदमी ने तो हद ही कर दी, मेरी साड़ी के बाहर से ही वो मेरी गाण्ड पर हाथ फेरने लग गया।
वह हाथ फेरते-फेरते मेरी गांड में ऊँगली करने लगा।
मैंने भी कोई विरोध नहीं किया, तो उसने हिम्मत करके एक हाथ आगे लाकर मेरे एक स्तन पर धर दिया और उसको मसलने लगा। मैं पागल हुई जा रही थी। बहुत भीड़ की वजह से किसी को कोई पता भी नहीं चल पा रहा था।
और मेरे ससुर जी एक हाथ पीछे करके अपने एक हाथ से मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही सहलाने लगे।
मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था मेरे आगे-पीछे दोनों तरफ से मेरे अंगों को मसला जा रहा था।
तभी बस रुकी और देखा कि सब्जी मंडी आ गई। हम उतरे और सब्जी ली और वापस घर आ गए।
रात को भी ससुर ने मुझे खूब चोदा। ससुर जी रात को मेरे कमरे में आ गए और मेरे पास आकर मुझे छत पर ले गए, दयाराम - खुशबू मेरी जान.. आज चाँदनी रात है आज यहीं छत पर तुम्हें चोदने का मन हो रहा है।
खुशबू : ससुर जी.. यहीं छत पर नहीं .. यदि किसी पता लग गया तो? नहीं.. नहीं… आप कमरे में चलो वहां जो भी करना हो कर लेना, जो भी करना है।’
दयाराम : नहीं खुशबू जानू.. प्लीज़।’
उन्होंने मेरी एक ना सुनी और पागलों की तरह चूमने लग गए। मेरी साड़ी उतारने के बाद में पेटीकोट-ब्लाउज में थी, उन्होंने वो भी खींच कर खोल दिए। अब मैं कच्छी और ब्रा में आ गई।
दयाराम : बिल्कुल कयामत लग रही हो बहू रानी.. मेरी जान.. चाँदनी रात में चुदाई का मज़ा ही कुछ और है।’
खुशबू : यह कोई देख लेगा ससुर जी.. प्लीज़ नीचे चलो ना..’
दयाराम : नहीं बहू.. कोई नहीं देखेगा.. तुम मेरा साथ दो बस..’
मैंने भी वासना के वशीभूत होकर अपनी ब्रा का हुक खोल कर पिंजड़े में बन्द अपने चुचियों को आजाद कर दिया।
मेरे दोनों चुचियों जो मेरी छोटी ब्रा में समा ही नहीं रहे थे, ससुर जी उनको चूसने लग गए और मेरी चूत में उंगली करने लगे।
अब वो भी नंगे हो गए और उनके लंड को मैंने हाथ में लेकर आगे-पीछे करने लगी।
मुझे भी मज़ा आने लगा और मैंने उनका लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।
अब मुझे उनका लंड बहुत टेस्टी लगने लगा था, चाँदनी रात में चुदाई के पहले चुसाई का असीम आनन्द मिलने लगा था।
दयाराम : आह.. जानेमन खुशबू हय.. बहुत अच्छा चूसती हो.. तुम मेरा लंड आज बहुत मजे से चूस रही हो.. आह्ह…आ।’
फिर उन्होंने मुझे दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और अपना लंड पीछे से मेरी चूत में ठूंस दिया और धकाधक धकाधक चूत मारने लगे।
गली में कुत्ते भौंक रहे थे, रात के एक बज रहे थे और मैं अपने ससुर के साथ चुदाई करवा रही थी। चुदाई के बाद ससुर जी ने मुझे कहा बहूं कमरे में चलो हम दोनों कमरे में पहुंचे। उस रात ससुर जी ने अलग-अलग आसनों में लिटा कर मुझे चोद रहे थे।
हम दोनों चुदाई में पुरा थक चुके थे। हल्की नींद लगी तभी किसी ने जोर चिल्लाया !
हम दोनों हड़बड़ा के उठे तो देखा कमरे का दरवाजा खुला हुआ था तो बाहर सासु जी खड़ी थी. वो मुझे इस हालत में देख समझ चुकी थी कि रात भर क्या हुआ होगा.
उनकी आंखों से आँसू आने लगे और मुँह नीचे करके अपने कमरे में चली गयी.ससुर जी भी अपने रूम में चले गये.
अगली दिन सासु मां मेरे पास आई और बोली- बहू, जो भी घर में हो रहा है, बहुत गलत हो रहा है. वो तेरे ससुर हैं, पिता समान हैं वो तेरे!
खुशबू - सासु मां , आप नाराज़ क्यों हो रही हो. अब आप तो ससुर जी को खुश नहीं रख पा रही हो तो किसी को तो उनकी खुशी का ध्यान रखना होगा । सासु मां इससे बहुत गुस्सा होने लगी पर वो कुछ कर नहीं सकती थी. क्योंकि की वह जानती थी कि उसका बेटा मेरी बहूं को संतुष्ट नहीं कर सकता है और मैं मयंक के बाप को वह मजे नहीं दे सकती जो मजा जवानी में देती थी।
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उस दिन के बाद से सांस-बहू की झिझक खत्म हो चुकी थी। दयाराम ठरकी ससुर बन गया, और खुशबू उसकी ठरकी बहू। अब वो खुशबू के कमरे का दरवाजा खटखटाता, और वो अपने को नुचवाने चली आती। और खुशबू गाण्ड मटकाते हुए टावर पहुँच जाती। वहाँ शुरू होता रगड़म-रगड़ाई का खेल। हफ्ते भर बाद उसकी मेहनत का फल खुशबू के जिस्म में दिखने लगा—उसके बूब्स डेढ़ गुना बड़े हो गए, गाण्ड और चौड़ी हो गई। ससुर की दी हुई खुशियों से उसका वजन भी बढ़ गया। पुराने जमाने में मायके आने पर लड़की का मोटापा ससुराल की खुशी का पैमाना माना जाता था।
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Next update boss shri shina coming
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बहुत सही! अपने ससुर की खुशियों का कदर करना कोई खुशबू से सीखे।।। ससुर बहु का पवित्र रिश्ता।।।
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(12-09-2025, 05:47 PM)Dhamakaindia108 Wrote: Next update boss shri shina coming
Khusbu aur Mr. sinha ki chudai karwao office mein bhi...ya khusbu sinha ko tease kare meeting ke dauran under the table...ya bold or seductive attire me kabhi office aye,..
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(12-09-2025, 05:42 PM)Dhamakaindia108 Wrote: होली की घटना के बाद खुशबू अपने ससुर से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रही थी। उसका मन शर्म से भरा था, क्योंकि ससुर ने उसे ऊपर से पूरी तरह नंगा कर दिया था, वो भी उसकी सहमति से। दयाराम ये सब नोट कर रहा था। उसे इस बात की तसल्ली थी कि खुशबू गुस्सा नहीं थी, बस हिचक रही थी। चार दिन तक ये लुका-छिपी चलती रही। दयाराम ने सोचा कि शुरुआत उसे ही करनी पड़ेगी, क्योंकि औरतें स्वभाव से ऐसे मामलों में आगे नहीं बढ़तीं। उसने रात को छत से खुशबू को फोन किया।
खूशबू का दिल ससुर जी का नंबर देखकर धक-धक करने लगा। कुछ देर पहले ही मयंक से गर्मागरम बातें हुई थीं, और वो पहले से ही मूड में थी। उसने फोन रिसीव किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, क्या कर रही हो? सो गई थी क्या?
खुशबू : नहीं, ससुर जी, बस गाने सुन रही थी।
दयाराम : दिनभर गाने ही सुनती रहती हो? थोड़ा घूमो-फिरो, शरीर स्वस्थ रहेगा।
खुशबू : रात को कहाँ घूमें?
दयाराम : अरे, रात के खाने के बाद तो घूमना जरूरी है। और जगह की कमी है क्या? इतनी बड़ी छत पड़ी है। चलो, ऊपर आ जाओ।
खुशबू : ऊपर? ऊपर तो आप हैं।
दयाराम : तो? हम हैं तो क्या हुआ? कोई भूत-प्रेत हैं क्या?
खुशबू : नहीं, वो बात नहीं, पर… स्स्स…
दयाराम : तो फिर क्या बात है? साफ-साफ बोलो, डरती क्यों हो?
खुशबू : छत पर तो अँधेरा भी रहता है।
दयाराम : अँधेरा है तो क्या? अपना घर है, कोई जंगल थोड़े जाना है। चलो, आओ, थोड़ा वॉकिंग कर लो।
खुशबू : ससुर जी, आप तंग तो नहीं करेंगे?
दयाराम : क्या! हम तंग करते हैं क्या?
खुशबू : वो… उस दिन होली वाले दिन कितना तंग किया था।
दयाराम : पगली, वो तो त्योहार था। यहाँ खुले में कोई कुछ करेगा क्या? तुम तो फालतू घबराती हो।
खुशबू : सच्ची बताइए, आपका कोई भरोसा नहीं।
दयाराम : अरे, बहू, हम पर भरोसा नहीं करोगी, तो इस शहर में किस पर करोगी?
खुशबू : नहीं, आप बहुत बदमाश हैं। अगर कुछ बदमाशी की, तो पूरा मोहल्ला देख लेगा।
दयाराम : बहू, तुम भी डरपोक हो। खुली छत पर कुछ हो सकता है क्या? चलो, ऊपर आ जाओ।
खुशबू : पहले कसम खाइए कि खुले में कोई बदमाशी नहीं करेंगे। तब आएँगे।
दयाराम : अरे, तुम्हारी कसम, खुले में नो बदमाशी, नो लफड़ा। अब जल्दी आ जाओ।
खुशबू ने ससुर को कसम से बाँध लिया, तो वो दिलेर हो गई। उसने ससुर के सब्र का इम्तिहान लेने के लिए होली वाला कातिलाना ऑउटफिट पहना—टाइट टी-शर्ट और लेगिंग, जिसमें उसकी चूचियाँ और गांड उभरकर जानलेवा लग रही थीं। छत पर पहुँचते ही दयाराम की आँखें चमक उठीं। उसे पक्का यकीन हो गया कि बहू की ठरक अभी भी चढ़ी हुई है।
दोनों छत पर पास-पास चलने लगे। दयाराम जानबूझकर मयंक से विरह की बातें कर रहा था, ताकि खुशबू हीट में आए। उसका असर हुआ। कुछ देर बाद खुशबू की आवाज भारी होने लगी, उसमें चंचलता आ गई। वो ससुर के और करीब चिपककर चलने लगी। थोड़ी देर बाद दयाराम ने नीचे चलने को कहा और पहले सीढ़ियों की ओर बढ़ा। घर की छत पर टावर था, जिसमें दरवाजा लगा था। खुशबू पीछे थी, तो उसने दरवाजा बंद किया। जैसे ही वो पलटी, दयाराम ने उसे बाँहों में जकड़ लिया और उसके रसीले होंठ चूसने लगा। उसके हाथ खुशबू की चूचियों पर पहुँच गए। इस अचानक हमले से खुशबू हड़बड़ा गई, मगर छुड़ा नहीं पाई।
खुशबू : ससुर जी, प्लीज छोड़िए। आपने कहा था, खुले में तंग नहीं करेंगे।
दयाराम : बहू, यहाँ खुला कहाँ है? देखो, चारों तरफ से बंद है।
खुशबू ने देखा, वो टावर के अंदर थी।
खुशबू : लेकिन आपने कहा था, बदमाशी नहीं करेंगे। ये चीटिंग है!
दयाराम: नहीं, बहू, बिल्कुल चीटिंग नहीं। हम अपनी कसम नहीं तोड़ते।
वो फिर से खुशबू की जवानी लूटने लगा। उसकी हरकतों से खुशबू गर्म होने लगी। उसकी चूचियाँ तन गईं, और बदन में करंट दौड़ने लगा। दयाराम ने मौका देखकर उसकी टी-शर्ट उतारने की कोशिश की।
खुशबू : ससुर जी, नहीं, कपड़े मत उतारिए। हमें ये अच्छा नहीं लगता।
दयाराम : ठीक है, बहू। हमारी जिंदगी तो नीरस थी। सोचा, शायद तुम कुछ सुकून दे सको। मगर हमारा भाग्य ही खराब है।
दयाराम की भावनात्मक बात ने खुशबू को पिघला दिया।
खुशबू : हमने तो सिर्फ इतना कहा कि कपड़े मत उतारिए।
दयाराम : चॉकलेट का रैपर बिना उतारे खाने में स्वाद कहाँ? बिना देखे रहा भी नहीं जाता।
खुशबू : लेकिन फिर आप आगे बढ़ने लगते हैं।
दयाराम : आगे मतलब?
खुशबू : मतलब नीचे जाने लगते हैं। हमें वो बिल्कुल पसंद नहीं। होली के दिन भी आप वहाँ पहुँच गए थे।
दयाराम : लेकिन तुमने मना किया, तो रुक गए ना? तुम्हारी मर्जी के बिना हम एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे।
इस बार खुशबू चुप रही। दयाराम ने उसकी टी-शर्ट उतार दी। एक पल में वो फिर अधनंगी थी। उसने अपनी जीभ से खुशबू के निप्पल के चारों ओर चक्कर लगाए। खुशबू गनगना उठी। “आह… स्स्स…” उसकी सिसकारियाँ शुरू हो गईं। दयाराम ने चूचियाँ चूसनी शुरू कीं, तो खुशबू उसके बाल सहलाने लगी। दयाराम ने दाँत भी गड़ाए। खुशबू की चूत तक करंट पहुँच रहा था। वो बड़बड़ाने लगी, “हाँ, ससुर जी, खा जाओ इनको। ये आपके लिए ही हैं। खूब मसल डालो। बहुत परेशान करती हैं ये।”
दयाराम : बहू, अब तुम्हारी सारी परेशानी खत्म। इनकी देखभाल हम करेंगे। जब भी तंग करें, हमें बता देना, हम इनकी खबर लेंगे।
टावर में तूफान आ गया। दयाराम ने खुशबू के ऊपरी जिस्म पर अपने होंठों से मुहर लगाई, जैसे उस पर अपनी मिल्कियत जता रहा हो। खुशबू बेसुध पड़ी थी। आधे घंटे बाद जब वो अपने कमरे में पहुँची, उसकी चूचियाँ दयाराम के दाँतों के निशानों से भरी थीं।
दो दिन बाद दयाराम ने फिर खुशबू को बुलाने का सोचा। वो नहीं चाहता था कि खुशबू की आदत छूटे, वरना वो ठंडी पड़ सकती थी। दूसरा, उसे खुद अब कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। उसने रात को फोन किया और सीधे टावर में बुलाया।
खुशबू के लिए ये धर्मसंकट था। अब तक जो हुआ, वो अचानक हुआ था। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वो दयाराम को कड़ाई से रोक नहीं पाई। मगर आज वो उसे सीधे टावर में बुला रहा था। अगर वो जाती, तो इसका मतलब वो खुद अपना जिस्म ससुर को परोसने जा रही थी। इतनी बेहया वो कैसे हो सकती थी? उसने फैसला किया और कमरे में ही रही।
जब वो नहीं आई, तो दयाराम ने फिर फोन किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, आओ ना, हम इंतजार कर रहे हैं।
खुशबू : ससुर जी, हम नहीं आएँगे।
दयाराम : क्यों नहीं? क्या बात हो गई?
खुशबू : कोई बात नहीं, बस आना नहीं चाहते।
दयाराम : प्लीज, बहू, ऐसा मत करो। अब तुम्हारे बिना रहा नहीं जाता।
खुशबू : ससुर जी, जो हो रहा है, वो गलत है। पाप है।
दयाराम : कोई पाप नहीं। तुम जानती हो, पाप क्या होता है? शास्त्र कहते हैं, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई।’ जिससे सुख मिले, वही धर्म है। हमारी दोस्ती से दोनों को खुशी मिलती है।
खुशबू : ससुर जी, हमें शास्त्र नहीं मालूम। बस इतना जानते हैं कि ये रिश्ता गलत है।
दयाराम : तुम हमें मझधार में नहीं छोड़ सकती। तुम्हारे बिना हमारा जीवन बेमानी है।
दयाराम की प्रेम भरी बातों से खुशबू का मन डोल गया, मगर वो टस से मस न हुई। दयाराम की सारी योजना धरी रह गई। मगर वो पक्का फौजी था। उसने “इमोशनल अत्याचार” का हथियार निकाला।
अगले दिन वो सुबह से मजनू की तरह उदास बैठा रहा। शाम को बाजार चला गया। देर रात तक नहीं लौटा, तो सास मीना ने खुशबू से कहा, “फोन करके पूछो, कहाँ हैं?”
खुशबू : ससुर जी, कहाँ हो? खाना खाने का टाइम हो गया।
दयाराम : हमें देर हो जाएगी। खाना खाकर आएँगे। —और फोन काट दिया।
दयाराम देशी शराब के ठेके पहुँचा। उसने सालों पहले पीना छोड़ दिया था, मगर आज उसने देशी ठर्रा पिया, ताकि बदबू आए और घर में पता चले। उसने चिकन खाया और घंटे भर बाद घर लौटा। खुशबू ने दरवाजा खोला, तो शराब की बदबू से पीछे हट गई। दयाराम ने लड़खड़ाने की एक्टिंग की और अपने कमरे में चला गया। सास-बहू एक-दूसरे का मुँह देखने लगीं।
अगले दिन फिर दयाराम ठर्रा पीकर आया। उसने एक रोटी खाई और गुमसुम अपने कमरे में चला गया। मीना बड़बड़ाने लगी, “इन्हें क्या हो गया? बड़ी मुश्किल से पीने की आदत छुड़ाई थी, अब फिर शुरू। इस बुढ़ापे में शराब शरीर खोखला कर देगी। पता नहीं किसकी नजर लग गई!” खुशबू चुपचाप सुनती रही। वो कैसे बताती कि ससुर जी का टेंशन वो खुद है?
तीसरे दिन जब दयाराम फिर निकला, तो खुशबू समझ गई कि वो पीने जा रहे हैं। अब वो टेंशन में थी। सास कह रही थी कि शराब ससुर जी को खोखला कर देगी। दूसरा, घर को नजर लगने की बात। तीसरा, उसकी चूचियाँ बार-बार “ससुरजी-ससुरजी” पुकार रही थीं। दयाराम के दीवानापन ने उसके दिल में प्यार का अंकुर जगा दिया था। आधे घंटे बाद उसने फोन उठाया।
खुशबू : ससुर जी, हमें क्यों परेशान कर रहे हो? ये पीना क्यों शुरू किया?
दयाराम : तुम्हें इससे क्या? तुम ऐश करो। —रूखी आवाज में बोला।
खुशबू : पीना जरूरी है क्या? अपने शरीर का ख्याल करिए।
दयाराम : इस शरीर का क्या करना, जब ये सुख नहीं दे सकता? अब शराब ही सहारा है।
खुशबू : और आपका परिवार? उसका ख्याल नहीं?
दयाराम : सब ठीक हैं। सास पूजा में, बहू अपने मस्ती में। इस बूढ़े के लिए किसके पास टाइम है?
खुशबू : प्लीज, बाबूजी, शराब मत पियो। हमें ये पसंद नहीं।
दयाराम : हम तुम्हारी पसंद से नहीं चल सकते, जैसे तुम हमारी पसंद से नहीं चलतीं।
खुशबू : हम हाथ जोड़ रहे हैं। बिना पिए लौट आइए। जो चाहते हैं, वो मिल जाएगा।
दयाराम : क्या मिल जाएगा?
खुशबू : आप बहुत गंदे हैं। हमारे मुँह से बुलवाना चाहते हैं।
दयाराम : अरे, कुछ पता तो चले।
खुशबू : हम टावर में आ जाएँगे, बस। शरारती कहीं के! —और फोन काट दिया।
खुशबू की हरी झंडी से दयाराम झूम उठा। उसे यकीन नहीं था कि खुशबू इतनी जल्दी मान जाएगी। वो गुनगुनाता हुआ घर लौटा। घर में सास-बहू टीवी देख रही थीं। खुशबू चाय बनाने गई, और दयाराम हाथ-मुँह धोने। लौटा, तो देखा खुशबू किचन में है और मीना टीवी में मगन। दयाराम किचन में घुसा और खुशबू को पीछे से पकड़ लिया। उसका कोबरा फन फैलाकर खुशबू की गांड में चोट मारने लगा। उसके हाथों ने चूचियों पर कब्जा कर लिया। खुशबू चिहुँक गई, “ससुर जी, ये क्या कर रहे हो? सास मां बगल में हैं। प्लीज छोड़िए।”
दयाराम : छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा है।
खुशबू की चूचियाँ उसकी कमजोरी बन चुकी थीं। दयाराम के हाथों का जादू और होंठ उसकी पीठ व गर्दन पर चल रहे थे। खुशबू सनसना रही थी, मगर बोली, “ससुरजी, प्लीज, अभी चले जाइए। जो करना है, रात को कर लेना।” दयाराम ने मीना के डर से उसे छोड़ा और बोला, “ठीक है, बस एक किस दे दो।” उसने खुशबू को घुमाया और उसके होंठों पर अपने होंठ जोड़ दिए। खुशबू ने उसे जोर से चिपका लिया।
रात को मीना नींद की गोली खाकर सो गई। दयाराम ने टावर से फोन किया।
खुशबू : हाँ, ससुर जी।
दयाराम : बहू, तीन दिन से ढंग से खाना नहीं खाया। भूख लगी है।
खुशबू : कुछ खाना ले आएँ?
दयाराम : नहीं, बस थोड़ा दूध पी लेंगे।
खुशबू : ठीक है, दूध ले आते हैं।
दयाराम : अरे, तुम आ जाओ, डायरेक्ट पी लेंगे।
खुशबू : डायरेक्ट मतलब?
दयाराम: जैसे बच्चा पीता है, मुँह लगाकर।
खुशबू उसकी बात समझकर शरमा गई। “हाय राम, आप जैसा बेशरम नहीं देखा। कोई अपनी बहू से ऐसा बोलता है?”
दयाराम : अच्छा, ठीक है, बोलेंगे नहीं, करेंगे। दूध पीयेंगे।
खुशबू : आपको और कोई काम है ही नहीं। सुई एक ही जगह अटकती है।
दयाराम : अरे, तुम भी तो वहीँ अटक गई हो। जल्दी आओ।
खुशबू टावर की ओर बढ़ी। उसे शर्म महसूस हो रही थी। वो अपने ससुर के पास जा रही थी, जो उसके जिस्म से खेलने को बेताब था। हर कदम भारी लग रहा था। टावर के दरवाजे पर पहुँचते ही दयाराम ने उसे खींचकर बाँहों में भींच लिया। वो खुशबू को दबोचने-मसलने लगा। खुशबू उसके दीवानापन पर गर्व महसूस कर रही थी। दयाराम ने उसके स्ट्रॉबेरी होंठ चूसने शुरू किए। उसका कोबरा खुशबू की नाभि पर चोट मार रहा था। उसने खुशबू का चेन वाला गाउन खोला। अगले पल उसकी चूचियाँ फड़फड़ाकर बाहर आ गईं। जीरो वाट की रोशनी में वो जानलेवा लग रही थीं।
खुशबू के मुँह से निकल गया- बाप रे… बाप..!
दयाराम: क्या देख रही हो, बहु ?
खुशबू : कुदरत की नायाब कारीगिरी।
दयाराम : क्या हुआ बहू.. इतना ज्यादा बड़ा है क्या मेरा लंड ?
खुशबू : आपका बहुत बड़ा है।
दयाराम : क्या बहू ?
खुशबू : वो जो नीचे है।
दयाराम : क्या.. इसका नाम लो बहू.. बोलो लंड.. बोलो..
खुशबू : हाँ.. आपका लंड.. बहुत बड़ा है।
ससुर जी मेरे नजदीक आकर बोले- तुमको अच्छा लगा?
खुशबू : मैं तो आपका यह बड़ा लंड देख कर उसी दिन से पागल थी।
आज वही लंड मेरी आँखों के सामने था तो मैंने बिना कुछ कहे उनका लंड अपने हाथ में लेकर मसलने लगी।
अब मैं नीचे बैठ गई और उनके लंड को हाथ से आगे-पीछे करने लगी।
दयाराम : इसको मुँह में लो।
खुशबू : - नहीं बाबू जी.. मुझे शर्म आती है, यह गंदा है।
दयाराम : बहू तुम भी प्यासी हो और मैं भी प्यासा हूँ। देखो ना.. मयंक को कितने दिन हो गए और तुम तो अभी जवान हो, सेक्सी गर्म औरत हो।’
ससुर जी के मुँह से अपनी तारीफ सुन कर मैं पागल हुए जा रही थी, मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया था।
दयाराम : कुछ भी गंदा नहीं है बहू.. तुम एक औरत हो और मैं एक मर्द हूँ… बस सब कुछ भूल जाओ ताकि दोनों को आनन्द आए और अब मुझे तुम ससुर जी नहीं, दयाराम बोलो।’
खुशबू - ठीक है दयाराम।
खुशबू ने घुटनों पर बैठ कर हाथ में लेकर हिलाया और फिर मेरे ससुर जी का 11 इन्च का लंड को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
मैं उनके लौड़े को आइस-क्रीम की तरह चाटने और चूसने लगी।
पहले पहल तो कुछ नमकीन सा लगा फिर मुझे उसका स्वाद अच्छा लगने लगा।
ससुर जी के मुँह से ‘हाय खुशबू बहू...... अहहहाज...... आह.......’ निकलने लगी।
मैं अपने मुँह में उस लंड को चूसे जा रही थी और मेरी चूत भी रसीली हो चली थी।
ससुर जी की सिसकारी सुन कर मेरी भी आहें निकलने लगीं- मूओआयाया..... ओआहौ… अमम्मुआहह..... आ ससुर जी अहह.......बहुत बड़ा है और टेस्टी लग रहा है.. मैंने पहली बार किसी का लंड अपने मुँह में लिया है।
दयाराम : क्यों खुशबू मयंक ने अपना लंड तेरे मुँह में नहीं दिया क्या?’
खुशबू : ससुर जी.. उनका बहुत छोटा है ,।’
अब उन्होंने मेरी ब्रा और कच्छी को भी खोल कर मुझे भी खुद के जैसा नंगा कर दिया और ये सब कार्यक्रम मेरे कमरे में चल रहा था।
फिर ससुर जी ने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी चूत को चाटने लग गए।
मैं पागल सी हो रही थी, दो बार तो ऐसे ही मेरा पानी निकल गया, फिर उन्होंने अपना 11 इन्च का लंड मेरी चूत में लगा दिया।
मुझे थोड़ा दर्द हुआ। । फिर मेरे मुँह से चीख निकल गई ‘उईईइइमाआ..’
दयाराम : क्या हुआ खुशबू .. दर्द हुआ क्या?
खुशबू : हाँ ससुर जी .. थोड़ा आराम से करो।
फिर उन्होंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए और धीरे-धीरे अपना पूरा लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया।
खुशबू चिल्लाए जा रही थी- ससुर जी , नहीं पेल अब रुक जा.. बहुत दर्द हो रहा है..!
पर वो कसाई जैसे लगे रहे तनिक भी नहीं रुके और मेरी चुदाई करते रहे।
खुशबू : ‘आह्ह....... उईईइमाआआआ....... ससुर जी बस करो.. निकालो..!’
दयाराम : बस मेरी जान थोड़ा सा और.. बस खुशबू , मेरी जान… मैं बहुत तड़पा हूँ तेरे लिए, आज जाकर तू मेरे लंड के नीचे आई है, बहुत चुदासी है तू रानी । तेरी.. आह्ह..ले और ले..साली।’
मैं भी उनकी बातों से गर्म होकर उनके धक्कों का साथ देते हुए अपनी गाण्ड को ऊपर उठाए जा रही थी।
दयाराम : खुशबू..... आआहा..हहहह.. हहाह मैं आ.. आ गया.. अह..’ उन्होंने अपने लंड का पानी मेरी चूत में छोड़ दिया सब माल मेरे गर्भ में चला गया।
फिर कुछ देर हम दोनों ऐसे ही नंगे ही अपने पलंग पर पड़े रहे।
थोड़ी देर में उन्होंने मुझे फिर से गोद में लेकर चोदा और पूरी रात मेरे ससुर जी ने 4 बार मेरी चुदाई की और सुबह मैं उठी तो मेरे ससुर जी पहले ही उठ गए थे।
मैं नंगी ही उनके कमरे में पड़ी थी।
फिर मैं उठकर नंगी ही ऊपर अपने कमरे में आ गई। मैंने अपने कपड़े पहने और घर के काम में लग गई।
ससुर जी - बहू तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?
खुशबू - हाँ.. मैं बिल्कुल ठीक हूँ ससुर जी।
हम दोनों ज़ोर से हँसने लगे।
अब मेरी ज़िंदगी इस तरह ही कटने लगी थी।
यह रोज की बात हो गई। मैं नहाने के लिए बाथरूम में जाती और ससुर जी अपने कमरे के छेद से मुझे नहाते हुए देखते, फिर बोलते- खुशबू बहू आज तुम बाथरूम में क्या कर रही थीं और इस रंग की कच्छी-ब्रा पहने हो!
यह सब कुछ सुन कर मैं शर्म से लाल हो जाती। मैं क्या करती, मुझे भी उनकी ज़रूरत थी।
मेरे ससुर जी घर में मेरे साथ खूब मस्ती करते और वे मेरा ख्याल भी बहुत रखते, जैसे मैं उनकी बहू नहीं पत्नी होऊँ।
वो मेरे पति से भी ज्यादा ख्याल रखते, हम दोनों में सब कुछ अच्छा चल रहा था।
फिर एक दिन हम दोनों बाजार में सब्जी लेने गए।
मैं गुलाबी साड़ी में थी और बहुत ही कटीली लग रही थी।
दयाराम : बहू.. आज बहुत ही मस्त लग रही हो.. कहीं ऐसा न हो कि बाजार में सब मूठ मारने लग जाएँ.. जरा संभल कर चलना मेरी खुशबू रानी!’
खुशबू : जी.. आप भी ना बाबू जी.. बहुत बदमाश हो गए हो.. बहुत मस्ती करते हो! चलो, अब हम लोग चलें।’
हम लोग बाजार के लिए चल दिए और बस में चढ़े।
बस में बहुत भीड़ थी, सब एक-दूसरे से सट कर खड़े थे।
मेरे आगे मेरे ससुर और पीछे मेरे कोई दूसरा आदमी था, जो बहुत ही मोटा और काला था, मेरी गाण्ड पर ज़ोर लगाए जा रहा था।
जब भी बस के ब्रेक लगते, वो मेरे ऊपर चढ़ जाता और मैं ससुर जी के ऊपर हो जाती।
दयाराम : बहू मज़े लो अपनी ज़िंदगी के.. समझ लो बस में नहीं हो.. बिस्तर में हो।’
उस आदमी ने तो हद ही कर दी, मेरी साड़ी के बाहर से ही वो मेरी गाण्ड पर हाथ फेरने लग गया।
वह हाथ फेरते-फेरते मेरी गांड में ऊँगली करने लगा।
मैंने भी कोई विरोध नहीं किया, तो उसने हिम्मत करके एक हाथ आगे लाकर मेरे एक स्तन पर धर दिया और उसको मसलने लगा। मैं पागल हुई जा रही थी। बहुत भीड़ की वजह से किसी को कोई पता भी नहीं चल पा रहा था।
और मेरे ससुर जी एक हाथ पीछे करके अपने एक हाथ से मेरी चूत को साड़ी के ऊपर से ही सहलाने लगे।
मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था मेरे आगे-पीछे दोनों तरफ से मेरे अंगों को मसला जा रहा था।
तभी बस रुकी और देखा कि सब्जी मंडी आ गई। हम उतरे और सब्जी ली और वापस घर आ गए।
रात को भी ससुर ने मुझे खूब चोदा। ससुर जी रात को मेरे कमरे में आ गए और मेरे पास आकर मुझे छत पर ले गए, दयाराम - खुशबू मेरी जान.. आज चाँदनी रात है आज यहीं छत पर तुम्हें चोदने का मन हो रहा है।
खुशबू : ससुर जी.. यहीं छत पर नहीं .. यदि किसी पता लग गया तो? नहीं.. नहीं… आप कमरे में चलो वहां जो भी करना हो कर लेना, जो भी करना है।’
दयाराम : नहीं खुशबू जानू.. प्लीज़।’
उन्होंने मेरी एक ना सुनी और पागलों की तरह चूमने लग गए। मेरी साड़ी उतारने के बाद में पेटीकोट-ब्लाउज में थी, उन्होंने वो भी खींच कर खोल दिए। अब मैं कच्छी और ब्रा में आ गई।
दयाराम : बिल्कुल कयामत लग रही हो बहू रानी.. मेरी जान.. चाँदनी रात में चुदाई का मज़ा ही कुछ और है।’
खुशबू : यह कोई देख लेगा ससुर जी.. प्लीज़ नीचे चलो ना..’
दयाराम : नहीं बहू.. कोई नहीं देखेगा.. तुम मेरा साथ दो बस..’
मैंने भी वासना के वशीभूत होकर अपनी ब्रा का हुक खोल कर पिंजड़े में बन्द अपने चुचियों को आजाद कर दिया।
मेरे दोनों चुचियों जो मेरी छोटी ब्रा में समा ही नहीं रहे थे, ससुर जी उनको चूसने लग गए और मेरी चूत में उंगली करने लगे।
अब वो भी नंगे हो गए और उनके लंड को मैंने हाथ में लेकर आगे-पीछे करने लगी।
मुझे भी मज़ा आने लगा और मैंने उनका लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।
अब मुझे उनका लंड बहुत टेस्टी लगने लगा था, चाँदनी रात में चुदाई के पहले चुसाई का असीम आनन्द मिलने लगा था।
दयाराम : आह.. जानेमन खुशबू हय.. बहुत अच्छा चूसती हो.. तुम मेरा लंड आज बहुत मजे से चूस रही हो.. आह्ह…आ।’
फिर उन्होंने मुझे दीवार के सहारे खड़ा कर दिया और अपना लंड पीछे से मेरी चूत में ठूंस दिया और धकाधक धकाधक चूत मारने लगे।
गली में कुत्ते भौंक रहे थे, रात के एक बज रहे थे और मैं अपने ससुर के साथ चुदाई करवा रही थी। चुदाई के बाद ससुर जी ने मुझे कहा बहूं कमरे में चलो हम दोनों कमरे में पहुंचे। उस रात ससुर जी ने अलग-अलग आसनों में लिटा कर मुझे चोद रहे थे।
हम दोनों चुदाई में पुरा थक चुके थे। हल्की नींद लगी तभी किसी ने जोर चिल्लाया !
हम दोनों हड़बड़ा के उठे तो देखा कमरे का दरवाजा खुला हुआ था तो बाहर सासु जी खड़ी थी. वो मुझे इस हालत में देख समझ चुकी थी कि रात भर क्या हुआ होगा.
उनकी आंखों से आँसू आने लगे और मुँह नीचे करके अपने कमरे में चली गयी.ससुर जी भी अपने रूम में चले गये.
अगली दिन सासु मां मेरे पास आई और बोली- बहू, जो भी घर में हो रहा है, बहुत गलत हो रहा है. वो तेरे ससुर हैं, पिता समान हैं वो तेरे!
खुशबू - सासु मां , आप नाराज़ क्यों हो रही हो. अब आप तो ससुर जी को खुश नहीं रख पा रही हो तो किसी को तो उनकी खुशी का ध्यान रखना होगा । सासु मां इससे बहुत गुस्सा होने लगी पर वो कुछ कर नहीं सकती थी. क्योंकि की वह जानती थी कि उसका बेटा मेरी बहूं को संतुष्ट नहीं कर सकता है और मैं मयंक के बाप को वह मजे नहीं दे सकती जो मजा जवानी में देती थी।
Bhot he kyamat likha hai bhai aapne
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जैसा कि आप को मालूम है कि दयाराम ने अपनी बहू खुशबू की 25 - 30 दिन तक लगातार उसकी जोरदार पेलाई किया। अब आगे.......
मयंक का गोदाम का सारा काम होने के बाद वह एक महीने बाद वह कोलकाता आपस पहुंचा आया उसके आने से खुशबू की जिंदगी में वही निराशा वापसी लैट आया। मयंक के कोलकाता वापस आने के दो-तीन बाद उसके माता-पिता वापस अपने गांव चले गए।
खुशबू फिर से वही पुरानी दिनचर्या वाली जिंदगी जीने लागी ।
खुशबू एक दिन सवेरे - सवेरे ओफिस के लिए निकल गई जब वह ओफिस पहुंच तो श्री सिन्हा उसे देखकर खुश थे क्योंकि खुशबू एक महीने बाद ओफिस आ रही थी। श्री सिन्हा द्वारा उससे एक सुचना दी गई कि हेड ओफिस की तरफ से एक बॉक्सिंग का मैच रखा गया हैं , जिसमें ओफिस की सारी महिला कर्मचारी के पति और ओफिस के पुरूष कर्मचारी के बीच मैच होगा और जो जीतेगा उससे एक असली मर्द होने का सम्मान मिलेगा और एक अच्छा कर्मचारी होने का सम्मान मिलेगा यह बॉक्सिंग अगले सप्ताह के रविवार को ओफिस के नजदीक टाऊन हॉल में आयोजित किया जाएगा।
शाम को खुशबू घर पहुंची और मयंक के वह बात बताई तो मयंक ने बॉक्सिंग मैच में भाग लेने हामी भर दी । उसने श्री सिन्हा को यह सूचना दी ।
एक सप्ताह बाद........
मैच का दिन आ चुका था, और यह एक एकांत स्थान पर रखा गया था – एक पुराना जिम, जो ओफिस के पास एक सुनसान गली में स्थित था। वहाँ सिर्फ कुछ कर्मचारी ही मौजुद थे । रिया, जो मेरी सबसे करीबी दोस्त थी और ओफिस की बेहतरीन सुपरएडवाइजर भी, ने रेफरी के रूप में अपनी जिम्मेदारी ली थी।
फिर, थोड़ी देर में रिया ने इशारा किया और मुकाबला शुरू हो गया।
देखते-देखते दौरान 5 रांउड हो गया था अब 6 रांउड की बारी थी 6 रांउड में मयंक और श्री सिन्हा की बारी आई।
एक तरफ मयंक था—मेरा पति।
दूसरी तरफ श्री सिन्हा था—मेरा वर्तमान प्यार । उसका गुस्सा, उसकी हठ, और मुझे लेकर उसकी दीवानगी मुझे यह एहसास कराती थी कि वह भी मुझे पूरी तरह से अपना बनाना चाहता था।
मैच चालु होने से पहले रिया ने मुझे से एक सवाल पुछा आप इस दोनों में से किनकी सपोर्ट में है।
तो मेरे दिल और दिमाग में जैसे जंग छिड़ गई। मैं पूरी तरह से उलझन में थी। उनकी लड़ाई मेरे सामने हो रही थी, और मैं चाहकर भी इसे रोकने में असमर्थ थी
अगर मैं श्री सिन्हा का साथ देती, तो मयंक की नज़रों में मैं और गिर जाती। और अगर मैं मयंक का साथ देती, तो श्री सिन्हा के साथ मेरा रिश्ता हमेशा के लिए टूट जाता।
मैं चाहती थी कि यह लड़ाई रुक जाए, लेकिन मुझे पता था कि अगर मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो बात और बिगड़ सकती थी।
फिर मैंने रिया से कहा, “मैं किसी की सपोर्ट में नहीं खड़ी हो सकती। यह फैसला अब उनके हाथ में है। मुझे इस चुनौती को होने देना होगा,"
मेरी बात सुनकर दोनों की आँखों में अलग-अलग भाव थे— श्री सिन्हा के चेहरे पर एक अजीब सा आत्मविश्वास और जिद थी, जबकि मयंक की आँखों में एक जोश का तूफान।
अब यह लड़ाई सिर्फ एक मैच नहीं थी। यह मेरे भविष्य और मेरे रिश्ते का फैसला करने वाला पल था।
राउंड 6 :
पहला राउंड शुरू होते ही दोनों ने एक-दूसरे पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। मयंक ने अपनी पूरी ताकत लगाते हुए एक तेज़ मुक्का मारा, जो सीधे श्री सिन्हा के चेहरे पर लगा। श्री सिन्हा ने उसे झटकते हुए जवाब दिया, और मयंक के लंड के ऊपर वाले हिस्से पर एक जोरदार घूंसा मारा, जिससे मयंक थोड़ा पीछे हटा। लेकिन वह जल्दी संभलते हुए, श्री सिन्हा की ओर फिर से बढ़ा और एक और तगड़ा मुक्का मार दिया, जो श्री सिन्हा के गाल पर लगा। फिर एक सिटी बजी और 6 रांउड सम्पूर्ण हुआ।
राउंड 7 :
अब दोनों और भी ताकत से लड़ रहे थे। श्री सिन्हा ने अपनी लंबाई का फायदा उठाते हुए मयंक को एक सीधा पंच मारा, जो उसके चेहरे पर लगा और मयंक थोड़ी देर के लिए असंतुलित हुआ। लेकिन मयंक ने कोई समय नहीं गंवाया, उसने तुरंत पलटवार किया और श्री सिन्हा की गांड़ पर एक जोरदार लात मारी, जिससे श्री सिन्हा हिलते हुए गिरने से बचा।
मेरी आँखें दोनों पर थीं। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं दोनों के बीच फंसी हुई हूँ, और हर मुक्का जैसे मेरे दिल पर एक और निशान छोड़ रहा था।
राउंड 8 (आखिरी राउंड):
यह राउंड निर्णायक साबित होने वाला था। दोनों की हालत खराब हो रही थी, वे थक चुके थे, लेकिन उनके चेहरे पर जीत की चाहत साफ झलक रही थी। मयंक ने फिर से एक ताकतवर पंच मारा, जो श्री सिन्हा के चेहरे पर पूरी ताकत से लगा और वह गिरते-गिरते संभल गया। उसकी साँसें तेज़ चल रही थीं, लेकिन वह फिर भी लड़ने के लिए खड़ा हुआ।
श्री सिन्हा ने अपनी पूरी ताकत इकट्ठा की और मयंक के चेहरे पर एक जोरदार पंच मारा। मयंक इस बार संतुलन खोकर और गिर पड़ा।
रिया ने तुरंत कदम बढ़ाए और मुकाबला रोका। “यह काफी हो चुका,” रिया ने कहा, और उसने बिना देर किए, श्री सिन्हा का हाथ ऊपर उठाया, उसे विजेता घोषित किया।
जब रिया ने श्री सिन्हा का हाथ ऊपर उठाया, मेरा दिल तड़प उठा। मेरी आँखें सिर्फ एक ही दिशा में थीं – मयंक की तरफ। वो जमीन पर गिरा हुआ था, अपनी पूरी ताकत लगा चुका था, लेकिन फिर भी हार चुका था। उसकी आँखों में जो निराशा था, वह मुझे अंदर तक चीर रहा था। वह हमेशा मेरे पास खड़ा था, जब मुझे उसकी जरूरत थी। वह मेरा पति था, जो मेरी खुशी और दुख दोनों में हमेशा साथ था।
श्री सिन्हा और अन्य कर्मचारी ने मिलकर मयंक को उठाया और मेरी केविन के सोफे पर लिटा दिया और श्री सिन्हा ने मुझे मुस्कराकर देखा । मैं समझ गई थी कि मुझे अपने कपड़े उतारने पड़ेंगे । मैंने बिना कुछ बोले ही अपनी कपड़े को उतारना शुरू किया और जल्द ही वह मेरे हाथ में थी।
मेरा टॉप अब पूरी तरह से उतर चुका था, और मेरी गहरी लाल रंग की ब्रा मेरे बदन पर आकर्षक लग रही थी।
मैंने अपना टॉप उतारकर केविन के फ्लोर पर रख दिया और फिर मैंने अपने शॉर्ट्स के बटन खोलने शुरू कर दिए।
मैंने अपने शॉर्ट्स को नीचे खींचना शुरू किया और वे मेरी मखमली कमर से सरकते हुए नीचे ज़मीन पर गिर गए।
मैं सिर्फ ब्रा पैंटी में रह गयी।
मेरी ब्रा में मेरे 34″ के गोल मटोल बूब्स आधे से ज्यादा उभरे हुए थे, जैसे कि वे बाहर निकलने के लिए उत्सुक थे। और मेरी पैंटी मेरे शरीर की गर्मी को छुपाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह मेरे यौवन की गर्मी को और भी ज्यादा आकर्षक बना रही थी।
श्री सिन्हा की आँखें बड़ी हो गई थीं और वह मुझे देखकर मुस्करा रहा था। श्री सिन्हा बहुत खुश हुआ और बोला- खुशबू बेबी, बचे हुए कपड़े भी उतार दे! अपने यौवन के दर्शन करवा दे।
मैंने नज़र झुकाई और अपना हाथ पीछे लेकर गई और ब्रा का हुक खोल दिया।
मेरी ब्रा लूज़ हो गयी और नीचे को लटक गयी।
मैंने अपने दोनों कंधों से ब्रा उतार कर टेबल के पास रख दी।
मेरे रस भरे बूब्स एकदम श्री सिन्हा के सामने थे। मेरे गुलाबी निप्पल अब तक खड़े हो चुके थे।
फिर मैंने अपने दोनों हाथ पैंटी के अंदर डाले और पैंटी को मेरी चिकनी जांघों के बीच में से खींचते हुए नीचे झुक कर मेरे पैरों तक ले आयी।
मैंने पैंटी भी उतार दी।
अब इस वक़्त मैं मयंक के हारने की वजह से अपने बॉस बॉयफ़्रेंड श्री सिन्हा के सामने बिल्कुल नंगी खड़ी हुई थी।
मेरे बदन पर एक भी बाल नहीं था, शीशे की तरह मेरा बदन चमक रहा था।
मैंने अपनी चूत पर एक सिल्वर छल्ला पहनी हुआ थी जो कि मयंक ने मुझे गुजरात से आने के बाद एक हफ्ते पहले पहनाया था।
चुदने से पहले मैं वो बाली उतारती हूं। मेरी चूत एकदम चिपकी हुई थी।
श्री सिन्हा ने मेरी चूत की तरफ इशारा करते हुए कहा- बेबी, ये क्या पहना हुआ है तुमने?
मैंने कुछ नहीं बोला।
मै बिल्कुल नंगी खड़ी हुई थी। मेरे बाल खुले हुए थे जो कि मेरी आधी कमर तक आ रहे थे।
लाल रंग की लिपस्टिक से मेरे होंठ रस भरी स्ट्रॉबेरी की तरह रसीले हो रहे थे।
मैंने पूरा मेकअप किया हुआ था और मेरी चूत में जो मैंने बाली पहनी हुई थी वो तो मेरे बदन को और चार चाँद लगा रही थी।
वो बाली मुझे और ज्यादा चुदक्कड़ साबित करने में लगी हुई थी।
मुझे बहुत अजीब लग रहा था, मयंक तो अभी सोफे पर बेहोश में था।
मैं उसका चेहरा भी नहीं देख सकती थी, मुझे रोना आ रहा था। जिससे मुझे और भी अजीब लग रहा था।
मेरे पैर कांपने लगे थे, और मयंक बेहोश पडा़ था। मुझे समझ आ गया था कि अब मेरी चुदाई होने वाली है जमकर … श्री सिन्हा से।
यह सोचकर मुझे और भी अजीब लग रहा था, और मैं नहीं जानती थी कि मैं क्या करूँ।
श्री सिन्हा ने मेरे सारे कपड़े उठाकर मयंक के ऊपर फेंक दिए। फिर उसने मुझे अपने पास बैठने के लिए कहा। मैं नंगधड़ंग उसके पास बैठ गई। हालांकि मुझे मयंक के लिए बुरा लग रहा था, लेकिन अब मुझे थोड़ा अच्छा लगने लगा और मेरी चूत में कुछ होने लगा।
श्री सिन्हा ने मुझे अपनी ओर खींच लिया और हम दोनों पास आ गए। हम दोनों के बीच सिर्फ एक से दो इंच का फासला था। हम दोनों की सांसें एक दूसरे से टकरा रही थीं।
श्री सिन्हा ने मेरे बालों को फिर से मेरे कान के पीछे किया और बोला, “मेरी आँखों में देखो।” । मैं उसकी आँखों में देखने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मेरी आँखें झुक गईं।
श्री सिन्हा बोला, “खुशबू , तू परेशान मत हो। मैं तुझे कुछ नहीं करने वाला। यह सब तेरे पति मयंक को सबक सिखाने के लिए किया था। उसे अपने बारे में बहुत ज्यादा घमंड है। मैं बस उसे थोड़ा नीचा दिखाना चाहता था।
लेकिन असल में, मैं तुझे कुछ और भी जानना चाहता था। मैं देखना चाहता था कि क्या मैं तेरे लिए सही हूँ। तू मुझे सच में प्यार करती है या नहीं। मैं तुझे खोना नहीं चाहता, इसलिए मैं यह सब जानना चाहता था।”
उनकी यह बात सुनकर मैं दंग रह गई। मैं सोच रही थी कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है?
एक जवान लड़की नंगी खड़ी है उसके सामने और वो कुछ नहीं करना चाहता! मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हुआ?
श्री सिन्हा ने मुझसे बोला, “तुम आराम करो, मैं जाता हूं।” वो मुड़कर जाने लगे। मैं अभी भी हैरान थी और समझ नहीं पा रही थी कि क्या हो रहा है।
वो केविन से बाहर निकला ही था कि मुझे न जाने क्या हुआ … मैं भागी और जाकर उसकी पीठ से लिपट गई। अब मैं खुद चाह रही थी कि श्री सिन्हा मुझे चोदे।
श्री सिन्हा बोले, “खुशबू, ये क्या कर रही हो? यह सही नहीं है। मैं तुम्हारे साथ ऐसा नहीं कर सकता। अभी हमारा रिश्ता नया है, हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए।”
श्री सिन्हा और मै दोनों ही कन्फ्यूजन में थे तभी , मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी भीगी हुई चूत पर रख दिया जो कि भट्टी की तरह एकदम गर्म हो चुकी थी।
श्री सिन्हा का चेहरा बच्चे की तरह खिल गया । मैं समझ गई कि अब ठुकाई के लिए मुझे तैयार होना है।
श्री सिन्हा ने मुस्कराते हुए मुझे अपनी बांहों में उठाया और उसी जगह पर ले जाकर पटक दिया जहां मयंक बेहोश पड़ा था।
श्री सिन्हा मेरे ऊपर चढ़ गया। मैंने श्री सिन्हा को अपनी बांहों में भर लिया और मैंने उसके चेहरे और जिस्म पर मेरे गुलाबी होंठों से चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
मैं उसे पागलों की तरह उसके माथे पर, उसके गालों पर चूमे जा रही थी और मेरा एक हाथ उसके बालों को सहला रहा था। श्री सिन्हा ने मेरे होंठों पर किस करते हुए मुझसे कहा- खुशबू , तुम बहुत खूबसूरत हो। तुम्हारा बदन किसी जलपरी की तरह भरा हुआ है तुम्हारे यह गोल मटोल तने हुए बूब्स तुम्हारी सुंदरता को और बढ़ाते हैं।
इस पर मैंने भी कहा- श्री सिन्हा , आज ये वक़्त तेरा है। तू मुझे महका दे। मुझे बहका दे। मेरे सपनों को हकीकत में बदल दे और मेरी जिस्म की प्यास मिटा दे, जिसके लिए मैं इतने दिनों से तड़प रही हूं। मेरा अधूरा प्यार पूरा कर दे तू! आज के लिए मैं सिर्फ और सिर्फ तेरी हूं।
मेरा बदन पहले से ही कसा हुआ था। मेरी गांड, मेरे चूचे, मेरी कमर पर बाल, मेरी बाजुएं सब कुछ … जिसकी वजह से मैं सुंदरता की धनी पहले से ही थी।
श्री सिन्हा की बांहों में मेरी जवानी सिमटी हुई थी। उसने मुझे कसकर अपनी बांहों में दबोच रखा था।
मेरे बदन के हर अंग से सुंदरता का अमृत टपक रहा था। जो परफ्यूम मैंने लगाया हुआ था उसकी वजह से हम दोनों की सांसें भी महक उठी थीं।
श्री सिन्हा ने अपने होंठ मेरे भरे हुए रसीले होंठों पर रखे और उनसे बूंद-बूंद करके अमृत चूसने की कोशिश करने लगा।
मैं भी उसका भरपूर साथ दे रही थी। श्री सिन्हा के दोनों हाथ मेरे बूब्स के साथ खेलना शुरू हो गए थे।
उसकी उंगलियों का स्पर्श मेरी निप्पलों को सख्त होने पर मजबूर कर रहा था।
वो अपने नाखूनों से मेरे निप्पलों पर नोंच रहा था जो कि मुझे और कामुकता पर ले जा रही थी।
उसकी यह कला इतनी मादक थी कि मैं उसकी बांहों में बिन पानी मछली की तरह मचलने लगी जिसका वो फायदा उठा रहा था।
दोनों महकते हुए बदनों के बीच अब गर्मी पैदा होना शुरू हो गई थी। हमारा बदन पसीने की बूंदों से भीगना शुरू हो गया था; हम दोनों की आँखों में सिर्फ वासना के डोरे पड़े हुए थे।
हम दोनों बस एक दूसरे की प्यास बुझाने में लीन थे। हमारी चूमा चाटी को चलते हुए 10 मिनट हो चुके थे।
श्री सिन्हा मेरे बूब्स पर आ गया और अपने बड़े बड़े हाथों को मेरे बूब्स पर रख कर उन्हें पुरजोर तरीके से मसलने लगे।
मैं आह भरने लगी थी और सिसकारियाँ निकालने लगी।
मैंने अपने नाजुक से होंठों को अपने दांतों के बीच दबाया और उन्हें कटाने लगी।
हम दोनों की कामुकता एक अलग ही तूफ़ान ला चुकी थी
अब तक श्री सिन्हा मेरे बूब्स पर आकर मेरे निप्पल्स को चूसने लगा और मेरे बूब्स दबाने लगा।
श्री सिन्हा मेरे निप्पलों को इस तरह चूसने लगा जैसे दूध ही निकाल देगा और मेरे बूब्स को मसलने लगा ।
मैंने भी बेड पर उसे अपने जिस्म में समेट रखा था।
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इसके बाद श्री सिन्हा ने अपनी टी शर्ट उतार दी और उसे भी मयंक के ऊपर फेंक दिया ।
वो अभी भी मेरी बांहों में था। मैंने उसे अपनी बांहों से अलग किया और उसने तुरंत अपना पजामा भी उतार फेंका ।
उसका लंड उसके अंडरवियर में उफान मार रहा था और मेरी चुदाई करने के लिए एकदम तैयार था।
मगर मैं अभी पूरी तरह चुदाई के लिए तैयार नहीं थी, बस चाहती थी कि हम एक दूसरे के शरीर से ऐसे ही खेलते रहे ।
मैंने उसे फिर से अपनी बांहों में भर लिया।
वो अपने होंठ मेरी गर्दन के पीछे रख मेरे गले को चूमने लगा। वहां वो मुझे चूमे जा रहे था।
वासना इतनी भड़क चुकी थी कि हम दोनों पसीने में भीगे हुए थे। मेरी गर्दन के पीछे से पसीने की बूंदें शुरू होती हुईं मेरे बूब्स के क्लीवेज से होती हुई मेरी नाभि में समा रही थी।
श्री सिन्हा भी मेरे पसीने की बूंदों को गर्दन से चूसते हुए धीरे धीरे मेरे सीने पर आ गया।
वो मेरे जिस्म से जो अमृत की बूंदें पसीने के रूप में टपक रही थीं उन्हें पीते हुए मेरे बूब्स तक आ गया।
उसने अपनी गर्दन मेरे बूब्स पर रखी और बूब्स के क्लीवेज में से जो अमृत की बूंदों की धार बहती जा रही थी उन्हें पीने की कोशिश की।
मगर वो इस कोशिश में नाकाम रहा।
मेरे बूब्स का क्लीवेज काफ़ी गहरा है इसलिए उसके होंठ वहां तक नहीं पहुंच पा रहे थे।
मैंने श्री सिन्हा की मदद करते हुए उसके दोनों हाथ मेरे बूब्स पर रखे और मेरे दोनों बूब्स को श्री सिन्हा ने खोल दिया।
अब मेरा क्लीवेज बड़ा हो चुका था जिसमें उसके होंठ मेरे क्लीवेज में आराम से युद्ध कर सकते थे और अमृत की बूंदों का आनंद ले सकते थे।
मैं बहुत गर्म हो चुकी थी और अपनी दोनों टांगों को उसकी पीठ पर रख कर उसे अपनी ओर दबा रही थी।
मैंने अपने दोनों हाथ उसकी पीठ पर रखे और अपनी सारी उंगलियों के नाखूनों को उसकी पीठ में चुभो दिया और अपनी ओर उन्हें भींचने लगी।
श्री सिन्हा मेरे क्लीवेज से धारा को चूसते हुए मेरी नाभि पर आ गया और मेरी नाभि को चूमने लगे।
मैं इस वक़्त एक अलग जन्नत का अहसास कर रही थी जिसको मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती।
हमारा फोरप्ले चलते हुए लगभग एक घंटा हो चुका था। और बेचारा मयंक बगल में बेहोश पड़ा था, या जाने सो रहा था ।
मेरी चूत अब तक अपना रस छोड़ने को तैयार हो गई थी मगर मैंने खुद को संभाला।
श्री सिन्हा ने मुझे झट से पलट दिया और मेरी पीठ अब उसके सामने थी।
वो अपनी एक उंगली मेरी गर्दन से फेरते हुए मेरी कमर की गहराई तक आ गया।
इस हरकत ने मुझे और जोश में ला दिया।
श्री सिन्हा ने अपने होंठ मेरे पीठ पर रखे और जगह जगह मेरी पीठ को चूमने लगा।
इतने दिन से मुझे ऐसा सुख नहीं मिला था ।
कुछ देर बाद श्री सिन्हा ने बोला, चल खुशबू तू भी अपने होठों का कमाल दिखा , मै तुरंत पलट गई ।
मैंने उसके अंडरवियर पर हाथ रखा और उसे खींचती हुई उसकी जांघों से नीचे ले आयी और उसे उतार कर नीचे फेंक दिया।
मैं उसके आगे से कटे हुए लंड को देख कर अचंभित थी और
मुस्कान के साथ मेरी नज़रें उसके बदन को निहार रही थीं। उसका लंड हवा में उफान मार रहा था।
मैंने श्री सिन्हा के लंड को अपने हाथों में ले लिया और उसे अचंभित नज़रों से देखने लगी।
फिर श्री सिन्हा ने बोला रुक, तू अभी बाद में चूसियो और मुझे लिटाकर मेरी दोनों टाँगें खोल दीं और घुटनों के बल बैठकर श्री सिन्हा ने मेरी चूत की बाली को खोल दिया।
उसने अपनी उंगलियों से मेरी चूत का दरबार खोला और अपनी जीभ मेरी चूत की दोनों पंखुड़ियों पर रख दी।
फिर उसने अपनी जीभ मेरी चूत में घुसाई और फिर मेरी चूत का दरबार वापसी बंद कर दिया।
श्री सिन्हा की आधी जीभ मेरी चूत में थी। वो अंदर ही अंदर मेरी चूत में अपनी जीभ हिला रहा था जिसकी वजह से मुझे बहुत मजा आ रहा था।
कुछ देर बाद श्री सिन्हा मेरी चूत पर किसी दीवाने की तरह टूट पड़ा और अपने होंठों से मेरी चूत को प्यार करने लगा।
मैं अब आहें भरने लगी थी- आह्ह सर … आह्ह … आह्ह … सर ।
वो मेरी चूत में अपनी जीभ से कलाबाजी दिखा रहा और मुझे मजा दे रहे थे।
मैं भी अपने दोनों हाथ उनके लम्बे बालों में फंसाकर उसे मेरी चूत की तरफ खींचने लगी।
मेरी चूत एकदम चिकनी हो गई थी। उसे मेरी चूत चूसते हुए 20 मिनट हो गए थे। वो कभी मेरी चूत के दाने से खेलता तो कभी मेरी चूत अपने लबों से काटता।
मैं बहुत कामुक हो चुकी थी। इस वजह से मेरी चूत तो पहले ही झड़ने को तैयार थी।
मेरा बदन अकड़ने लगा और मैंने श्री सिन्हा से कहा- मैं झड़ने वाली हूं।
कुछ देर श्री सिन्हा ने मेरी चूत को और चूसा और मैं उसके होंठों पर ही झड़ने लगी।
उसने जीभ डाल डाल कर मेरा सारा अमृत निकाल दिया और मेरे अमृत की एक एक बून्द को चूस गया।
उसे मैंने अपनी बांहों में दबोच लिया और उसके माथे पर अपने होंठों से चूमने लगी श्री सिन्हा का लंड नीचे मेरे पेट पर टच हो रहा था मैंने उसे अपने हाथ में लिया और सहलाने लगी।
मैंने श्री सिन्हा की आँखों में देखा।
हम दोनो एक दूसरे में डूबने के लिए तैयार थे। मैंने उसके होंठों पर होंठ रखे और दोबारा से चूसने लगी, साथ ही एक हाथ से उसके लंड को सहलाने लगी।
मैंने श्री सिन्हा को अब बांहों से अलग किया और खुद अब घुटनों के बल बैठ गई, मैंने उसको नीचे लेटा दिया था।
मैंने आज सारी शर्मा और हया अपने कपड़ों के साथ उतार फेंकी थी।
मैं अपनी गर्दन श्री सिन्हा के लंड के पास ले गई और मैंने अपने रसीले होंठ उसके लंड के टोपे पर रख दिए।
लंड के टोपे को मैंने एक बार चूसा जिसमें से बड़ी मादक महक आ रही थी।
मैंने अपने होंठों के बीच उसके लंड के टोपे को दबा लिया फिर मैंने अपने दांतों से उनके टोपे पर धीरे से काटा।
वो भी महक उठा ।
उसका लंड अब जोर जोर से हिल रहा था।
मैंने फिर उसका लंड धीरे धीरे अपने रसीले होंठों से चूसते हुए पूरा अंदर ले लिया। मैं उसके लंड के सुपारे को जोरदार तरीके से चूसने लगी।
मैं उसके टट्टों को हाथों से सहलाने लगी। वो आहें भरने लगा। अब उसके हाथ मेरी गर्दन पर आ गए और वो लंड को मेरे मुंह में दबाने लगा था। मेरे मुंह की चुसाई उसके लंड से अब बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
लगभग 10-15 मिनट मुझे उसका लंड चूसते हुए हो गए थे।
इसी तरह मैंने उसके लंड को 10-15 मिनट और चूसा। श्री सिन्हा ने अपना लंड मेरे मुँह से बाहर निकाल लिया और मुझे सीधी लेटा दिया।
अब वो मेरी दोनों टांगों के पास आ गया और उसने मेरी दोनों टाँगें खोल कर अपने दोनों कंधों पर रख लीं। मुझे समझ आ गया था कि ये कदम मेरे चरम सुख की प्राप्ति की ओर बढ़ रहे हैं। अभी मेरी जमकर ठुकाई होने वाली है।
उसने अपना लंड मेरी मखमली चूत पर रखा और धीरे से एक धक्का लगाया जिससे उनके लंड का टोपा मेरी चूत की कलियों को खोलता हुआ पहली बार मेरे जिस्म में प्रवेश हुआ।
मैं थोड़ी सी शरमाई जैसे कि मानो कि कोई नयी नवेली दुल्हन अपने पति से सुहागरात पर पहली बार चुद रही हो।
उसने एक और जोरदार धक्का मारा और पूरा लंड मेरी चूत को फाड़ता हुआ अंदर तक उतर गया।
चूत और लंड का मिलन हो गया जिसकी वजह से मैं चीखी- आह … सर … धीरे कर।
उसने अपना पूरा लंड अंदर तक डाल दिया था और धक्के लगाने शुरू कर दिए।
वो अब जमकर मेरी चूत मे अपने लंड से धक्के लगाने लगा और मैं भी चीखती हुई उसका साथ देने लगी- आह्ह … सर … आह्ह … आआईई … आह्ह … उईई … आह्ह।
लगभग 15-20 मिनट उसे मेरी चुदाई करते हुए हो गए थे, यहाँ मुझे चरम सुख की प्राप्ति हो रही थी; उसने मेरी दोनों टांगों को अपने कंधे पर रखा हुआ था और अपने दोनों हाथों से मेरी दोनों टांगों को पकड़ा हुआ था।
मैं उसके धक्के लगातार झेल रही थी। धक्कों की वजह से मेरे बूब्स हिल भी रहे थे।
मेरे पैरों में जो पायल थी उसके घुंघरुओं में से छन-छन की आवाजें आ रही थीं और श्री सिन्हा मेरी टांगों को पकड़ कर मेरी दमदार ठुकाई करने में लीन था।
मैं श्री सिन्हा को देख कर शर्मा रही थी और पानी पानी हुई जा रही थी।
वो मेरी दोनों टांगों को मेरे चेहरे की ओर मोड़ते हुए उन्हें मेरे चेहरे तक ले आया और धक्के लगाने लगा।
अब मेरी चूत के साथ साथ मेरी दोनों टांगों में भी दर्द हो रहा था।
हम दोनों का चेहरा एक दूसरे से सिर्फ 3-4 इंच की दूरी पर था।
मैं शर्म के मारे नज़रें चुरा रही थी।
मेरे मुँह से अभी इस वक़्त सिसकारियों की आवाजें कम हो गई थीं।
मैंने दोबारा उसकी आँखों में आँखें डालीं और उसने अपने दोनों होंठ मेरे होंठों पर रख कर धक्के को जोरदार मारा।
मैं चीखना चाहती थी मगर होंठ पर होंठ थे इसलिए कुछ नहीं कर पायी। हम दोनों एक दूसरे के होंठों को चूस रहे थे।
श्री सिन्हा ने मेरी दोनों टाँगें मोड़ी हुई थीं और खुद उन पर चढ़े हुए था और नीचे से अपने लंड से धक्के लगा रहे था।
मुझे अब तक चुदते हुए काफी देर हो चुकी थूरा झड़ने के बाद उसने मेरे मुंह से लंड को बाहर निकाल लिया।
हम दोनों निढाल होकर लेट गए और एक दूसरे से चिपक गए।
पर श्री सिन्हा इतनी जल्दी हार कहा मानने वाला था, उसके बाद न जाने कितने राउंड उसने दोबारा मेरी चुदाई की और शायद ही कोई ऐसी पोजीशन हो जिसमें उसने मुझे न चोदा हो ।
मै इतनी ज्यादा थक गई थी कि नंगी ही उससे चिपक कर सो गई।
शाम को मेरी आँख खुली, तो देखा हमारे कपड़े चारों तरफ बिखरे पड़े है जैसे किसी ने गुस्से में फेंके हो ,अभी भी श्री सिन्हा मेरे पास थोड़ा ऊपर की ओर सोया हुआ था।
उसका लंड मेरे मुंह के पास आ रहा था, मैंने उसकी ओर देखा, और वह अभी भी गहरी नींद में था। तभी मैने देखा मयंक केविन में सामने खड़ा सब कुछ देख रहा है, और आंखों से आंसू गिरा रहा है ।
मयंक ने कुछ नहीं बोला, बेचारा बोलता भी कैसे? वह मेरे सामने खड़ा था, उसकी आँखों में एक अजीब सी मायूसी थी। वह मेरे आगे हाथ जोड़कर बोला, “जनता हूँ तुम अब उसकी हो, पर क्या एक बार तुम्हारे चूत पर किस कर सकता हूँ?” उसकी आवाज़ में एक अजीब सी भीख थी, जो मेरे दिल को छू गई।
मैं बोलने वाली थी कि नहीं, इसमें तो श्री सिन्हा ने दिनभर अपना लंड डाला है, पर मैंने कुछ नहीं कहा। मैंने बस मयंक को देखा और मुस्कराई। मयंक ने मेरी चूत पर एक जोरदार किस की और फिर वहाँ से चला गया, मुझे श्री सिन्हा के साथ बिताए गए चुदाई की यादों में खो जाने के लिए छोड़ दिया। थकान की वजह से मैं भी श्री सिन्हा के लंड पर मुंह रख कर दोबारा सो गई ।
............. The end ..........
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इस का पार्ट २ भी आए ग़ मगर थोड़ा विलम्ब हो सकता है
आप लोगों को पहले भाग कैसा लगा जरूर कोमेंट करें
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तब तक आप लोगों से विदा लेता हूं
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