Thread Rating:
  • 2 Vote(s) - 1 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Incest सुनीता: एक साधारण गृहिणी की कहानी
#1
Tongue 
सुनीता: एक साधारण गृहिणी की कहानी
नन्हा सा कस्बा था वह, जहाँ गलियों में सुबह की धूप के साथ गायों की घंटियों की आवाज़ गूंजती थी। उत्तर प्रदेश के किसी छोटे से शहर में बसा यह कस्बा अपनी सादगी और परंपराओं के लिए जाना जाता था। यहीं, एक पुराने से दो मंज़िला मकान में रहता था एक संयुक्त परिवार। इस परिवार की धुरी थी सुनीता, जिसे सब प्यार से "चाची" कहकर बुलाते थे। सुनीता, 35 साल की एक साधारण सी औरत, दो बच्चों की माँ और आरव की चाची। आरव, 18 साल का कॉलेज जाने वाला नौजवान, उसी घर का हिस्सा था। सुनीता का जीवन परिवार, परंपराओं और धर्म के इर्द-गिर्द घूमता था। उसकी सादगी और मेहनत ही इस परिवार को जोड़े रखती थी।

सुनीता का रूप और पहनावा
सुनीता का रंग गेहुँआ था, न ज़्यादा गोरा, न साँवला, बल्कि वैसा जो गाँव की मिट्टी की तरह सच्चा और देसी लगे। उसका चेहरा सादा था, बिना किसी नखरे के। आँखें बड़ी-बड़ी, जिनमें हमेशा एक गहरा सा अपनापन झलकता था, लेकिन साथ ही थोड़ी थकान भी। होंठों पर हल्की सी मुस्कान रहती, जो बच्चों को डाँटते वक़्त भी गायब नहीं होती। उसकी काया मझोली थी, न ज़्यादा पतली, न भारी। गृहिणी के काम-काज ने उसके शरीर को मज़बूत बनाया था, पर उसकी कमर पर हल्की सी चर्बी भी थी, जो दो बच्चों की माँ होने की निशानी थी।
सुनीता हमेशा साड़ी पहनती थी। उसकी साड़ियाँ ज़्यादातर सूती या सस्ती सिल्क की होतीं, जिन्हें वह बाज़ार की छोटी सी दुकान से ख़रीदती। लाल, हरी, नीली, पीली—हर रंग की साड़ी उसके पास थी, पर वह ज़्यादातर गहरे रंग ही चुनती, क्योंकि उनमें दाग-धब्बे कम दिखते। साड़ी के नीचे वह पेटीकोट और ब्लाउज़ पहनती, जो हमेशा साड़ी से मेल खाता। उसकी ब्लाउज़ की सिलाई पुराने ज़माने की थी—टाइट, छोटी बाँहों वाली, जो उसकी बाँहों को और सुंदर बनाती। ब्रा वह रोज़ पहनती, पर पैंटी का इस्तेमाल सिर्फ़ मासिक धर्म के दिनों में करती, जब सैनिटरी पैड की ज़रूरत पड़ती। यह उसकी गाँव की आदत थी, जहाँ औरतें बिना पैंटी के ही साड़ी पहनती थीं।
सुनीता की देह पर बाल थे, जैसा कि गाँव की औरतों में आम है। उसकी बगलें और निचले हिस्से में घने काले बाल थे, जिन्हें वह कभी नहीं हटाती थी। यह उसकी सादगी और प्राकृतिक जीवन का हिस्सा था। गाँव में ऐसी चीज़ों को कोई अहमियत नहीं दी जाती थी, और सुनीता ने भी इसे कभी ज़रूरी नहीं समझा। उसके बाल काले, घने और लंबे थे, जिन्हें वह हमेशा जूड़े में बाँधती। जूड़े में एक साधारण सी कंघी और कभी-कभार गजरा लगाती, ख़ासकर जब मंदिर जाना हो। उसकी माँग में हमेशा सिंदूर की लाल रेखा और माथे पर छोटा सा बिंदिया सजा रहता, जो उसकी शादीशुदा ज़िंदगी का प्रतीक था।

सुनीता का स्वभाव और आस्था
सुनीता का मन धर्म और परंपराओं में रमा रहता था। वह सुबह उठते ही सबसे पहले तुलसी के पौधे को जल चढ़ाती और शिवजी की पूजा करती। उसका छोटा सा पूजा-घर घर के कोने में था, जहाँ मूर्तियों के सामने अगरबत्ती की ख़ुशबू और घंटियों की आवाज़ हमेशा गूंजती। वह हर सोमवार को व्रत रखती और मंदिर जाकर भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाती। उसकी आस्था इतनी गहरी थी कि वह हर छोटी-बड़ी बात को भगवान की मर्ज़ी मानती। अगर बच्चे बीमार पड़ते, तो वह तुरंत नीम का पत्ता जलाकर घर में धुआँ करती और मंत्र पढ़ती।
उसका स्वभाव रूढ़िवादी था। वह औरतों के लिए बनाए गए पुराने नियमों को मानती थी। उसे लगता था कि औरत का धर्म है अपने पति और परिवार की सेवा करना। उसने कभी कॉलेज की दहलीज़ नहीं देखी थी, सिवाय कुछ सालों की प्राइमरी पढ़ाई के। गाँव में लड़कियों को ज़्यादा पढ़ाने का रिवाज़ नहीं था, और सुनीता भी उसी परंपरा की देन थी। वह पढ़ना-लिखना मुश्किल से जानती थी, पर घर चलाने की समझ में उसका कोई जवाब नहीं था। वह बाज़ार से सस्ता सामान चुनने, बच्चों को अनुशासन सिखाने और रिश्तेदारों से रिश्ते निभाने में माहिर थी।

सुनीता का दिनचर्या
सुनीता का दिन सुबह चार बजे शुरू होता था। वह उठकर पहले नहाती, फिर पूजा करती और रसोई में चूल्हा जलाती। परिवार बड़ा था, तो खाना भी ढेर सारा बनाना पड़ता। दाल, चावल, सब्ज़ी, रोटी—सब कुछ उसके हाथों से बनता। वह खाना बनाते वक़्त पुराने भजन गुनगुनाती, जिससे रसोई में एक अलग ही रौनक छा जाती। दोपहर में वह बच्चों को खाना खिलाती, कपड़े धोती और घर की साफ़-सफ़ाई करती। आरव को वह हमेशा पढ़ाई के लिए टोकती, "बेटा, किताब खोलो, कॉलेज में नाम कमाओ।" आरव उसकी बातें सुनकर हँसता और कहता, "चाची, आप भी तो पढ़ लो मेरे साथ।" सुनीता हँसकर टाल देती।
शाम को वह मंदिर जाती, जहाँ कस्बे की दूसरी औरतों से गपशप करती। वहाँ वह बच्चों की शादी, रिश्तेदारों की ख़बरें और आने वाले त्योहारों की बातें करती। रात में, जब सब सो जाते, सुनीता चुपके से अपनी साड़ी के पल्लू से आँसू पोंछती। शायद वह अपनी जवानी के दिनों को याद करती, या परिवार की ज़िम्मेदारियों का बोझ महसूस करती। पर अगली सुबह, वह फिर वही मुस्कान लिए उठती और अपने काम में जुट जाती।
[+] 3 users Like hairypussy's post
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#2
Good update.... continue
Like Reply
#3
Waiting for your next update jaldi
Like Reply
#4
Interesting story, Waiting for first update...
Like Reply




Users browsing this thread: 3 Guest(s)