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"आआआआआहहहह साली रंडी की औलाआआआआद मां की लौड़ीईईईईईईई....." कहते हुए मुझ पर पीछे से कुत्ते की तरह चिपक गया और फचफचा कर अपना गरमागरम वीर्य मेरी गान्ड में छोड़ने लगा। बाप रे बाप, कितना वीर्य छोड़ रहा था वह। फर्र फर्र करके मेरी गान्ड तो भर ही दिया और मेरी गान्ड के बाहर भी रिस कर निकल रहा था। इस उम्र में भी इन बूढ़ों में इतना वीर्य कहां से पैदा होता है यह सोचकर ही मैं अचंभित थी। खैर अंततः खल्लास हो ही गया और एक मुसीबत टली। मेरी गान्ड के अंदर अब मुझे एक अजीब तरह के खालीपन का अहसास हो रहा था। घनश्याम कुत्ते की तरह हांफते हुए बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क गया था। मैंने सर घुमा कर उसकी ओर देखा तो पाया कि उसका शेर अब भीगी बिल्ली की तरह अपने ही वीर्य से लिथड़ा हुआ दुबका हुआ था और घनश्याम मुझे अबतक शान से (क्यों कि स्खलन से तात्कालिक तौर पर सुस्त पड़े मेरे शरीर में फिर से मानो जान आ चुकी थी) चुदती देख कर खिसियानी बिल्ली सा पड़ा हुआ था। मुझे यह देखकर थोड़ी घिन भी हो रही थी कि उसके लंड पर वीर्य के साथ थोड़ा पीला पीला मल भी लगा हुआ था और तभी मुझे अहसास हुआ कि इस हरामी का लंड न केवल मेरा मलद्वार को बल्राकि मल के रास्ते को भी खोल कर रख दिया था और मेरे पेट में मरोड़ सा उठने लगा था। हे भगवान, कहीं, चुदाई खत्म होते होते कहीं बिस्तर पर ही मेरा भर्र भर्र भुस्स न हो जाए। फिलहाल तो सिर्फ भुस्स भुस्स करके मेरे अंदर का गैस बाहर निकल रहा था। चूंकि अब मुझपर दुबारा चुदाई का भूत सवार हो चुका था इसलिए इस वक्त मेरी प्राथमिकता यही थी कि इस भूत को ही तृप्त करूं। मैं यह सोच ही रही थी कि,
"साला घंशू तो गया, ओओओओहहहहह बिटिया, मेरा तो हो ही नहीं रहा है, अब तू ही कुछ जोर लगा कि मेरा भी हो जाए।" भलोटिया हांफते हुए बोला।
"ठीक है मेरे प्यारे दादाजी, अब आपकी पोती निकालेगी आपका।" कहकर मैंने कमान पूरी तरह अपने हाथ में ले ली और उसके ऊपर उछलने लगी। उफ उफ, उसके मोटे लंड को अब मैं बड़े आराम से सर्र सर्र अपनी चूत में सरपट दौड़ाने लगी थी। बड़ा मज़ा आ रहा था। मैं पूरे जोश में थी लेकिन मेरा जोश बड़ी जल्दी ठंढा होने वाला था। मेरे इस नये जोश के आगे वह मोटा भालू ज्यादा देर टिक नहीं सका और फरफरा कर उसके लंड से फौवारा छूटने लगा।
"आआआआह मेरी बिटिया रानी, ओओओओहहहहह तू तो निकली बड़ी सयानी रेएएएएए आआआआआहहहह मां की लौड़ीईईईईईई, गया मैं गया।" कहते हुए फर्र फर्र करके करीब तीस सेकेंड तक फौवारा छोड़ता रहा साला खड़ूस, मादरचोद, कुत्ता कहीं का, बहुत बड़ा चुदक्कड़ बन रहा था हरामी। मुझे बीच मझधार में ही छोड़कर हांफते कांपते हथियार डाल दिया था। वह मुझसे चिपक कर स्थिर रहना चाहता था लेकिन अभी मैं चुदाई के जोश में रुकना नहीं चाहती थी। लेकिन आखिर कब तक। मुझे बड़ी कोफ्त हो रही थी क्योंकि उसका उतना लंबा और मोटा लंड धीरे धीरे छुहारे की शक्ल अख्तियार करने लगा था। मैं ने अपने मन की निराशा को प्रकट नहीं होने दिया और बड़े बेमन से उसके ऊपर से उठने लगी। मुंह से भले ही में कुछ बोली नहीं लेकिन मेरे शरीर की भाषा भलोटिया जैसे खेले खाए औरतखोर से छिपी न रह सकी। वह खिसियाया हुआ था क्योंकि उसे पता था कि मेरे स्खलन से पहले ही उसका पानी निकल गया था और अब चुदाई जारी रखना उस जैसे बुढ़ऊ के वश की बात नहीं थी।
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"बिटिया तू बड़ी मस्त चीज है। तूने तो हमारा दिल खुश कर दिया, लेकिन मुझे लगता है तुम्हारा हुआ नहीं है। दुखी मत हो, हम बूढ़ों को खुश करके जो पुण्य तुमने कमाया है, उसका भरपूर पुरस्कार अवश्य देना चाहूंगा। अरे घंशू, जरा कल्लू को फोन करके बुला ले, हमारी बिटिया को उसके इस पुण्य कार्य का पुरस्कार तो बनता ही है।" भलोटिया अपनी सांसों पर काबू पाकर घनश्याम को संबोधित करते हुए बोला। मेरा दिल उछल कर मानो हलक तक आ पहुंचा। हे भगवान! इन दोनों के बाद अब वह कल्लू मुस्टंडा। इस वक्त मेरे अंदर जो कामुकता की ज्वाला भड़क रही थी, ऐसी हालत में चर्मोत्कर्ष तक पहुंचने से पहले ही इन बूढ़ों का समर्पण कर देना मेरे लिए सचमुच असहनीय था और मैं भीतर ही भीतर पगलाई जा रही थी फिर भी इन दोनों के निपटने के बाद अब मुझे चोदने के लिए उस हब्शी दैत्य को बुलाने की बात सुनकर मुझे ऐसा लगने लगा जैसे सचमुच मैं रंडी कुतिया बना दी गई हूं। यह सच ही तो था। लेकिन चुदास की मारी मुझे इस घटिया, घृणित लगने वाली भूमिका को भी निभाने में इस वक्त कोई ऐतराज नहीं था। मुझे तो बस कैसे भी करके अपने तन में लगी आग बुझाने से मतलब था, वरना मैं पागल ही हो जाती। बड़े अनमने ढंग से और अनिच्छा से घनश्याम को कल्लू को बुलाने के लिए बाध्य होना पड़ा। उधर कल्लू को तो शायद ऐसी परिस्थितियों से अक्सर ही पाला पड़ता था। घनश्याम के मुंह से भलोटिया का संदेश मिलने के मिनट भर के अंदर किसी भूत की तरह कल्लू प्रकट हो गया और आते ही उसे यहां की परिस्थिति को समझते देर नहीं लगी। ऐसी परिस्थितियों से शायद वह पूरी तरह परिचित था और शायद उसे अच्छी तरह से पता था कि ऐसे समय में उसकी भूमिका क्या होती है लेकिन मुझ जैसी कमसिन लड़की को देख कर शायद वह थोड़ा झिझक कर ठिठक गया था। मुझे घनश्याम के साथ आते हुए देखा तो था लेकिन उसे लगा था होगा कि मुझे घनश्याम जबरदस्ती ले कर आया था और अबतक मेरी दुर्गति हो चुकी होगी।
"अरे कल्लू, तुझे क्या सांप सूंघ गया है? ऐसे क्या देख रहा है, इससे पहले ऐसी लौंडिया नहीं देखी है क्या?" भलोटिया उसकी स्थिति देखकर बोला।
"नहीं साहब जी, ऐसी बात नहीं है।" कल्लू जैसे नींद से जागकर हड़बड़ा गया था।
"तो फिर सोच क्या रहा है? अब तुझे निमंत्रण पत्र देना होगा मां के लौड़ू?" भलोटिया झल्ला कर बोला।
"इतनी कम उम्र की लड़की...." बोलते बोलते कल्लू रुका। उसकी आवाज में झिझक थी। यहां आया तो अवश्य था लेकिन वह सोचा था होगा कि मेरी दुर्गति हो चुकी होगी।
"साला चूतिया, इसकी उम्र दिखाई दे रही है तुझे? यह दिखाई नहीं दे रहा है कि हम बूढ़ों को जन्नत की सैर करा कर अब और लंड खाने के लिए मरी रही है?" भलोटिया उसे एक तरह से डांटते हुए बोला। डांट खाने वाला काम किया ही था। सबकुछ तो साफ साफ दिखाई दे रहा था कि दो दो बुड्ढे मुझे चोद कर निपट गये थे और नंग धड़ंग अवस्था में बिस्तर पर पसर कर भैंसों की तरह हांफ रहे थे। मैं सफलतापूर्वक उनके लंडों को निचोड़ कर भीगे चूहों की शक्ल में तब्दील कर चुकी थी। भलोटिया गलत नहीं बोल रहा था। उसकी बात और वहां की स्थिति से साफ हो गया था कि उसकी झिझक बेमानी थी। मेरा चेहरा भी बता रहा था कि मैं इस वक्त सचमुच चुदने को बेकरार हूं। पल भर भी नहीं लगा और उसके पैंट का अगला हिस्सा फूल गया था।
"अगर यह मरी जा रही है तो मैं किस मर्ज की दवा हूं। अभी लीजिए।" कहकर वह आनन फानन अपने कपड़ों से मुक्त होने की जद्दोजहद में लग गया। मैं क्या नहीं जानती थी कि जब मैं घनश्याम के साथ अंदर आ रही थी तो मुझे देख कर उसके मन में क्या भावना उत्पन्न हुई होगी? भलोटिया किस तरह का आदमी है वह क्या उससे छिपा हुआ था? भलोटिया के यहां ऐसे स्थानों में जिन महिलाओं को लाया जाता होगा, उनके साथ क्या होता होगा, उसके अंगरक्षक होने के कारण अच्छी तरह से पता होगा। अब मुझ जैसी कमसिन कन्या को घनश्याम के साथ आते हुए देखकर वह तो चकित ही रह गया होगा कि साला बुढ़ऊ की किस्मत में ऐसी लौंडिया कैसे लिखी गई है। मुझे वहां लाए जाने का उद्देश्य से भलि भांति परिचित था। वह तो भगवान से मना रहा था होगा कि काश इन बूढ़ों से मैं सही सलामत निपट जाऊं। उसके बाद तो उनकी जूठन में मुंह मारने का अवसर मिलना तय था। शायद यही उसकी भूमिका भी रहती थी, और देखो, जैसे बिल्ली के भाग से छींका टूटा। मैं एक सुंदर कमसिन कन्या उसके सामने उसकी मनोकामना पूर्ण करने हेतु प्रस्तुत थी। कल्लू के काले चेहरे पर प्रसन्नता के भाव को स्पष्ट देख रही थी।
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जैसे जैसे उसके शरीर से कपड़े खुलते जा रहे थे, उसकी गठी हुई काली काया अपने ज़लाल के साथ प्रकट होती जा रही थी। जब उसका पैंट खुला तो उसके कसे हुए जांघिये मे कैद नाग अकड़ कर विशाल तंबू की शक्ल अख्तियार कर चुका था। बड़ी मुश्किल से उसने अपने हथियार को जंघिए की कैद से आजाद किया और लो, मेरे सामने एक काला कलूटा, कसे हुए शरीर वाला कद्दावर दैत्य पूरी तरह नंगा, मुझे चोदने को बेकरार खड़ा था। उसे देख कर मेरा शरीर सनसना उठा। दो दो बूढ़े मुझे चोद कर निपट चुके थे लेकिन मुझे मंजिल से पहुंचने से पहले ही बीच मझधार में छोड़, हथियार डाल कर मुझे इस दैत्य के आगे परोस कर मानो अपनी शर्मिंदगी से निजात पाना चाह रहे थे। लंड चाहे कितना भी लंबा और मोटा हो, लेकिन एक स्त्री की भूख शांत न कर सके तो ऐसा लंड किस काम का। अब मेरे सामने यह काला कलूटा दैत्य, मेरा तारणहार बन कर उद्धार करने हेतु कामदेव का अवतार बन कर प्रकट हुआ था, प्रथमदृष्टया तो पूरी तरह सक्षम चुदक्कड़ दिखाई दे रहा था। लंबा कद और गजब का गठा हुआ शरीर था उसका। अपने शरीर के अनुपात में ही उसका लंबा लंड किसी गधे के लंड से कम नहीं था। कोयले की तरह काले लंड के आगे का चमड़ा पलटा हुआ था और उसका गुलाबी सुपाड़ा चमचमा रहा था। चुदने को बेकरार एक महिला के लिए एक आदर्श मर्द दिखाई दे रहा था लेकिन वह कितने पानी में था यह तो आगे पता चलने वाला था। हालांकि मेरी चूत और गांड़ को चोद चोद कर इन कमीनों ने सुजा कर रख दिया था लेकिन मेरी चुदास ज्यों की त्यों बरकरार थी। दूसरी बार मुझपर जो उत्तेजना का बुखार चढ़ा वह तो मुझे तपा तपा कर मानो मेरे प्राण ही हर लेने वाला था। हे भगवान, इस राक्षस में इतनी शक्ति दे देना कि मुझ प्यासी को भरपूर तृप्ति प्रदान करने में सक्षम हो, यही कामना करते हुए मैं उसके सम्मुख समर्पण करने को तैयार हो गई।
इससे पहले कि कल्लू मुझे चोदना शुरू करता, मैंने अपने अगल बगल दृष्टि घुमाई तो पाया कि भलोटिया और घनश्याम उसी तरह नंग धड़ंग अवस्था में मेरी चुदाई देखने को उत्सुक दिखाई दे रहे थे। भलोटिया तो अभी तक बिस्तर पर भैंस की तरह पसरा हुआ था लेकिन घनश्याम उठकर सोफे पर जाकर बैठ गया था। मैंने देखा कि घनश्याम के सिकुड़े लंड पर अब भी मेरी गुदा से निकला पीला मल लिथड़ा हुआ था जिसे धो कर साफ़ करने का भी उसे होश नहीं था, सूअर कहीं का। मुझे उसे देख कर घिन आ रही थी। मैं जानती थी कि मेरी गुदा से भी उसके वीर्य से लिथड़ा मल अभी भी रिस रिस कर बाहर निकल रहा था जिसके कारण मुझे भी खुद को धो पोंछ कर साफ होने की आवश्यकता थी लेकिन उस गंदगी से घृणा होने के बदले मुझ पर मेरी भड़कती चुदास हावी थी। मुझे अपनी गंदगी की इस वक्त रत्ती भर भी परवाह नहीं थी और न ही बिस्तर के गंदा होने की। भाड़ में जाए बिस्तर, जब भलोटिया और घनश्याम को उस गंदगी से कोई परहेज नहीं था तो मैं तो ठहरी चुदास की मारी लंडखोर (क्योंकि अब मैं सचमुच एक बड़ी ल़डखोर में तब्दील होती जा रही थी और इस वक्त तो जैसे रेगिस्तान में जल बिन मछली की तरह तड़प रही थी, मैं क्यों परवाह करती)। हां थोड़ी भयभीत अवश्य हो रही थी कि यह कल्लू, जैसा कि वह शारीरिक रूप से दिखाई दे रहा था, पता नहीं कितनी जबरदस्त कुटाई करने वाला था। जानती थी कि उसके मन में क्या चल रहा है और मैं खुद भी चुदने के लिए मरी जा रही थी फिर भी अपने मुंह से बोल कर प्रकट नहीं करना चाहती थी। इससे मेरी छिनाल वाली छवि उजागर जो हो जाती। मैं उस परिस्थिति में भी अपना विरोध व्यक्त करते हुए बोली,
"नहीं नहीं, आपलोगों ने मुझे समझ क्या रखा है? मैं कोई बाजारू महिला हूं क्या कि कोई भी मेरे साथ कुछ भी कर ले?"
"साली रंडी की औलाद, तू तो बाजारू औरत से भी गयी गुजरी है। इतना कुकर्म करके भी शराफत का दिखावा कर रही है हरामजादी। इसकी बात पर मत जाओ कल्लू। भीतर ही भीतर चुदने के लिए मरी जा रही है और मुंह से शराफत झाड़ने से बाज नहीं आ रही है कुतिया। चोद मां की लौड़ी को।" घनश्याम मेरी बात सुनकर डपटते हुए बोला। कमीना सचमुच में मनोवैज्ञानिक था। मेरे भीतर की भावना को ताड़ लिया था इसलिए अपने उद्देश्य की असफलता पर तनिक खीझ रहा था और उसकी आवाज में तनिक रुखाई भी थी।
"हम तो तुम्हारे भले के लिए कल्लू को बुलाए थे। तुम्हारी मर्जी नहीं है तो हम मना कर देते हैं।" भलोटिया बोल उठा। उसकी बात सुनकर मैं सहम गई, कहीं सचमुच मुंह के पास आया हुआ यह लजीज व्यंजन मुझ भूखी के पास से हटा न लिया जाए। झट से बोली,
"मेरा भला किस चीज में है यह आपने खुद ही तय कर लिया और बिना मुझ से पूछे इस कल्लू चाचा को यहां बुला लिया, इसी बात से नाराज़ हूं मैं। इनको बुलाने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है यह न इनसे छिपा है और न ही मुझसे तो अब इन्हें मना करने का क्या तुक है। आईए चाचाजी आप भी बहती गंगा में हाथ धो लीजिए।" मैं अपनी आवाज में थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए बोली। हालांकि मेरे कथन में कल्लू के लिए आमंत्रण स्पष्ट था। मैं ने भी अब खुला खेल फर्रूखाबादी खेलने का फैसला कर लिया था। जब चुदना ही है तो रोते कलपते चुदने का क्या फायदा। क्यों ना खुल कर चुदने का लुत्फ लिया जाए, रंडी तो बन ही चुकी हूं तो क्यों न अपनी रंडीपन भी दिखा ही दूं।
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रेखा के दो ब्वॉयफ्रेंड्स में एक * लड़का भी था और उसने एक बार बताया भी था कि चमड़ा कटे हुए लंड से चुदने का अलग ही मजा मिलता है। अभी जब कल्लू के चमड़ा कटे हुए लंड का चमचमाता विशाल लंड का दर्शन हुआ तो मैं सर से पांव तक सनसना उठी। पहली बार ऐसे लंड का दर्शन कर रही थी। अद्भुत, अद्वितीय, लोमहर्षक दृश्य था वह। उसके लंड के ऊपर उभरे हुए नसों के कारण थोड़ा भयावह भी था। लेकिन जो भी था, इस वक्त मुझे एक दमदार लंड से चुदाई की बेहद जरूरत थी। वाह, इसे कहते हैं किस्मत। बैठे बिठाए कटे हुए लंड से चुदने का मजा मिलने वाला था और वह भी बड़े उपयुक्त अवसर पर। हालांकि यहां दो दो कामुक बूढ़े दर्शक बने मौजूद थे लेकिन मुझे परवाह नहीं थी।
"जैसी आप सबकी मर्जी।" कहकर कल्लू मेरी ओर आगे बढ़ा। आगे बढ़ते समय उसके हर कदम के साथ उसका तना हुआ लंड पूरे जलाल के साथ झूम रहा था। बड़ा दिलकश नज़ारा था। मेरी चूत फड़क उठी थी। ज्यों ज्यों वह पास आता जा रहा था, उसकी दृष्टि में अजीब सी चमक बढ़ती जा रही थी। शायद आज से पहले मुझ जैसी कमसिन कन्या उसे नसीब नहीं हुई थी। कभी मेरे चेहरे को देखता, कभी मेरी चूचियों को देखता और कभी चुद चुद कर फूली हुई चिकनी रसीली चूत को देखता। मेरी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं। दिल धाड़ धाड़ धड़क रहा था। जब वह बिल्कुल मेरे पास पहुंचा, तो उसके चेहरे का भाव बिल्कुल बदल चुका था। वह बिल्कुल किसी शिकारी कुत्ते की तरह मुझे भंभोड़ डालने को आतुर दिखाई दे रहा था। एक पल को तो मैं भी सहम गई थी लेकिन चुदने की चाह में कुछ भी झेलने को तैयार हो गई। सहसा वह मुझ पर पागलों की तरह टूट पड़ा और बेतहाशा मेरे रसीले होंठों को चूसने लगा और साथ ही मेरी चूचियों को अपने पंजों में दबोच कर मसलना शुरू कर दिया।
ओह ओह, बड़ी बेसब्री दिखा रहा था वह, साथ ही साथ अपनी पाशविक प्रवृत्ति का परिचय भी दे रहा था। बड़ी बेरहमी से मेरी चूचियों को मसलने लगा था। मैं आह भी नहीं निकाल सकती थी, मेरे होंठ जो उसके होंठों के कब्जे में थे। मैं छटपटा रही थी और वह मुझपर हावी होता जा रहा था। मैं सचमुच थोड़ी सहम सी गई थी। उसके दैत्याकार शरीर के नीचे मैं पिसती हुई बेबसी में हाथ पैर मारने लगी लेकिन अब मेरे छटपटाने के फलस्वरूप फैली हुई मेरी जांघों के बीच वह आ चुका था। मैं बिल्कुल बेबस थी और मेरे विरोध करने का शारीरिक श्रम व्यर्थ समझ कर जो कुछ मेरे साथ हो रहा था उसे स्वीकार करना ही मैंने उचित समझा। मैं ने छटपटाने का प्रयास करना भी बंद कर दिया। मेरी स्थिति को दोनों बूढ़े बड़े मजे ले कर देख रहे थे। खासकर घनश्याम को तो बड़ा सुकून मिल रहा था होगा कि चलो जो प्रताड़ना देने में वह असफल रहा था उसकी भरपाई कल्लू कर रहा था।
कल्लू कुछ देर मेरे होंठों का रस चूसने के बाद मेरे होंठों को मुक्त किया। मुझे लग रहा था जैसे मेरे रक्तिम होंठ और लाल हो कर आगे की ओर उभर आए हों। तभी उसने मेरी चूचियों को मसलना बंद किया लेकिन यह क्षणिक राहत थी। दरअसल जो हमला उसने अपने मुंह से मेरे होंठों पर बोला था, वह हमला अब मेरी चूचियों पर होने वाला था। आआआआह ओओओओहहहहह जैसे ही उसने मेरी एक चूची पर मुंह लगाया, मेरे मुक्त मुंह से बरबस ही सिसकारी निकल पड़ी। उसके होंठों का स्पर्श ज्यों ही मेरी चूची पर हुआ, बेसाख्ता यह सिसकारी निकली थी। यह स्पर्श मुझे राहत भी प्रदान करने वाला था साथ ही मेरे अंदर की कामुकता को हवा देने वाला भी था।
"शाबाश मेरे शेर।" यह भलोटिया की आवाज थी। साला कमीना मोटू।
"बड़ी जबरदस्त चीज लाये हैं सर जी।" कल्लू सर उठा कर बोला।
"सब घंशू की कृपा है। ऐसी मस्त बुरचोदी बिटिया भगवान सबको दे।" भलोटिया बोला। कितना घटिया और घृणित बात थी यह लेकिन उसकी बात सुनकर मैं और भी ज्यादा उत्तेजित हो गई।
"इस उम्र में इतना बड़ा बड़ा मस्त चूची! गजब है गुरूजी।" कल्लू बोला।
"साला प्रशंसा करना बंद कर मादरचोद और निचोड़ निचोड़ कर चोद मां के लौड़े।" घनश्याम तिक्त स्वर में बोला। उसे कल्लू के मुंह से मेरी प्रशंसा अखर गई थी। उसकी बात सुनकर जहां मुझे गुस्सा आया वहीं मुझे मजा भी आया कि वह चिढ़ रहा था।
"जो सच है वही तो बोला। तुम बेवजह बिटिया पर खीझ को कल्लू पर दिखा रहे हो।" भलोटिया बोला तो घनश्याम खिसिया कर रह गया। इधर अब कल्लू पहले किसी कुत्ते की तरह मेरी चूचियों को चाटने लगा। ओह ओह मैं पगलाई जा रही थी। चाटने के बाद वह अपने मुंह मुंह भर भर कर मेरी चूचियों को जोर जोर से किसी भुक्खड़ की तरह चूसने लगा। इस्स्स्स इस्स्स्स यह कल्लू तो मुझे तड़पा कर मार ही डालने पर आमादा था। इसी दौरान मैंने महसूस किया कि मेरी चूत पर उसके गरमागरम मूसल का स्पर्श हुआ। मैं सर से पांव तक गनगना गई। इसी पल का तो बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी मैं। लेकिन कल्लू बड़ा धूर्त था। वह धीरे-धीरे मेरी चूत के ऊपर अपना लंड ऊपर ही ऊपर घिसने लगा था। मेरे अंदर आग धधकने लगी थी। यह हरामी सूअर का बच्चा सीधे अपना लंड पेल क्यों नहीं दे रहा है? यह मेरे सब्र का इम्तिहान था। सहसा कल्लू मेरी चूचियों को चूसना छोड़ कर मेरे चेहरे को देखने लगा। मैं समझ गई कि मेरी चूत पर अपने लंड के घर्षण की प्रतिक्रिया देख रहा था। उत्तेजना के मारे मेरा चेहरा लाल भभूका हो गया था, जिसे देखकर वह मुस्करा रहा था।
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"अबे खाली खेलता ही रहेगा कि चोदेगा भी।" विलंब होता देख कर भलोटिया से रहा नहीं जा रहा था।
"खाना गरम कर रहे हैं गुरूजी।" कल्लू उसी तरह मुस्कुरा कर बोला। उसकी बात सुनकर मुझे बड़ा गुस्सा आ रहा था। साला बड़ा आया गरम करने वाला। गरम करने के चक्कर में खाना जल रहा है इसका भी होश नहीं था उसे। यह मेरे सब्र की इंतहा थी।
सहसा न जाने मुझ पर क्या पागलपन सवार हुआ कि जैसे ही मुझे अहसास हुआ कि उसका लंड मेरी चूत के मुंह के सामने आ गया है, मैंने अपनी कमर ऊपर उछाल दी। यह जोखिम भरा कदम था लेकिन मैं तो पगलाई हुई थी। एक ही झटके में कल्लू का आधा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर दाखिल हो गया। पनियायी हुई चूत थी। घुस गया अंदर। उसी के साथ मेरी चीख भी निकल गई। जी हां, पीड़ा से। जैसी करनी वैसी भरनी। मैं झट से उसके लंड से मुक्त होना चाह रही थी लेकिन कल्लू तो मानो इसी पल का इंतजार कर रहा था। ऐसे कैसे निकलने देता। उसने मुझे दबोच कर अपनी ओर से और एक करारा धक्का लगा दिया।
"आआआआआआहहहह मर गईईईईईईईईई...... निकाल निकाल आआआआआहहहह......." मैं फिर से चीख पड़ी।
"ऐसे कैसे निकाल सकते हैं मेरी छम्मक छल्लो। लिया तुम्हीं ने है।हा हा हा हा।" वह दानव पूरा जड़ तक लंड पेल चुका था। मैं पीड़ा से बिलबिला रही थी लेकिन कल्लू भी कम बड़ा चुदक्कड़ नहीं था। पूरा ठोंक कर रुक गया और मेरी चूत की गहराई का आनंद लेने लगा था। मैंने कल्लू के लंड को भलोटिया की तुलना में कम आंकने की ग़लती की थी। अब पता चल रहा था कि यह गलती कितनी महंगी साबित हो रही थी। उसका लंड मेरी कोख तक जा पहुंचा था इसलिए मुझे अंदर भी दर्द हो रहा था। लेकिन मैं यह भी जानती थी इस पीड़ा के उस पार आनंद ही आनंद मिलने वाला था। इसलिए मैं दांत भींचकर उस पीड़ा को पीने लगी थी। पहले भी ऐसी स्थिति से दो चार हो चुकी थी इसलिए मेरा अंदाजा गलत नहीं हो सकता था। मैं उसके नीचे दबी हुई हलकान हुई जा रही थी। सच में कुछ पलों बाद ही जैसे सारी पीड़ा न जाने कहां छूमंतर हो गई थी।
"बहुत बढ़िया" घनश्याम मेरी हालत से खुश होकर बोला। उसे क्या पता था कि उसने यह बोलने में थोड़ी देर कर दी थी। अब तो सचमुच उसका कथन मेरे लिए भी लागू हो रहा था। सचमुच बहुत बढ़िया हुआ मेरे लिए भी। मुझे अपने अंदर परिपूर्णता का अहसास होने लगा। एक बाहरी अंग अब मेरे अंदर समा कर मानो मेरे शरीर का ही हिस्सा बन गया था। अब मुझ उस अंग में हरकत की चाहत थी। एक हलचल की जरूरत थी। अब कल्लू का रुकना मुझे अखरने लगा था।
"अब रुके काहे चाचा जी।" मैं बेसाख्ता बोल उठी। मेरी लरजती आवाज़ में एक अबूझ, एक अजीब सी कसक थी। काम क्षुधा की तड़प थी।
"यह हुई ना बात।" कल्लू प्रसन्न हो उठा। मेरे अंदर के आग की तपिश को महसूस कर चुका था वह।
"यही खासियत है इस लड़की में।" भलोटिया बोला।
"हां सर जी। वह तो पता चल ही गया। कमसिन संगमरमरी देह, सख़्त चूंचियां। कसी हुई, चमचमाती गरमागरम चूत और सबसे मजेदार चीज यह है कि साली चुदने के लिए मरी जा रही, चुदास के मारे बेहाल लौंडी। यह लौंडिया तो मनमाफिक चोदने के लिए एकदम फिट है।" कल्लू उद्गार निकाल बैठा और घनश्याम के ऊपर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। कल्लू की तो निकल पड़ी थी। मेरी चूत की गहराई में डूबा कल्लू का मूसल मेरे अंदर की गरमी को अच्छी तरह से महसूस कर रहा था। चकित भी था और मुदित भी था यह महसूस करके कि मुझ जैसी इतनी कम उम्र की लड़की के अंदर ऐसी आग भी है। वह अब मुझे चोदने के लिए अच्छी पोजीशन लेने लगा। उसने मेरी टांगों को ऊपर उठा कर लिया और अपने लंड के प्रहार के लिए मेरी चूत को सहूलियत भरे अवस्था में ले आया। अब शुरू हुआ।
आह, उसका लंड का मेरी चूत की अंदरूनी दीवारों को रगड़ता हुआ धीरे-धीरे सरकता सरकता बाहर निकल रहा था। अभी करीब एक दो इंच अन्दर ही था कि दुबारा उसी धीमी रफ्तार से अंदर घुसने लगा। ओह ओह मेरी मां, कितना सुखद था वह घर्षण। मेरा रोम-रोम तरंगित हो उठा था। फिर वही क्रिया दोहराई जाने लगी तो धीरे-धीरे मैं दूसरी दुनिया की ओर बढ़ने लगी। ओह वह सुखद स्वर्गीय अहसास। मैं उसके शरीर से चिपकने की चेष्टा करने लगी लेकिन जिस पोजीशन में वह मुझे चोद रहा था उसमें यह संभव नहीं था। उसके शरीर से पसीने की बदबू आ रही थी लेकिन वह बदबू भी मुझे प्रिय लग रहा था। उस पसीने की बदबू से मुझ पर अजीब तरह का नशा चढ़ रहा था। धीरे-धीरे धीरे-धीरे उसके चोदने की रफ्तार बढ़ने लगी। उतना लंबा और मोटा कालिया नाग सर्र सर्र मेरी चूत में अंदर बाहर हो रहा था। ओह ओह, खतना किया हुआ लंड बिना किसी प्रकार की तकलीफ़ दिए इतनी सुगमतापूर्वक मेरी चूत में उधम मचा रहा था कि पूछिए ही मत। उसी पोजीशन में चोदते हुए वह मेरी चूचियों को भी चूसता जा रहा था। यह दोहरी उत्तेजक हरकत से मैं इतनी जल्दी चर्मोत्कर्ष में पहुंच गयी जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
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"आआआआआहहहह मांआंआंआंआं ओओओओहहहहह... " मैं थरथराती हुई स्खलन के सुख सागर में डूबती चली गई। मेरी हालत से अनभिज्ञ नहीं था कल्लू, लेकिन उसने तो अभी चोदना शुरू ही किया था। उसने चोदने की रफ्तार दुगुनी कर दी। इस दौरान मेरी चूचियों से खिलवाड़ करना, दबाना और चूसना बदस्तूर जारी था। परिणाम यह हुआ कि पांच मिनट होते न होते कामुक हरकतों से मेरे शरीर में पुनः मेरे बेजान शरीर में नवजीवन का संचार हो गया और मेरी कमर खुद ब खुद उछल उछल कर मेरी चूत को लंड खाने में सहयोग प्रदान करने लगी।
"आह आह आह, गुरूजी लौंडिया तो बहुत बड़ी लंडखोर है। साली कैसे गप्प गप्प खाए जा रही है।" कल्लू मुदित मन चोदता हुआ बोला।
"हम दोनों को निचोड़ चुकी है साले। अब तुम्हारी बारी है। देखते हैं तुम निचोड़ते हो या यह तुम्हें भी निचोड़ती है। अब दिखा असली दम।" भलोटिया जहां कल्लू द्वारा मेरी प्रशंसा का समर्थन कर रहा था वहीं कल्लू को ताव भी दिला रहा था जिसका नतीजा यह हुआ कि कल्लू अपने पूरे दमखम के साथ मुझे निचोड़ निचोड़ कर चोदने लगा। उफ उफ यह चुदाई मेरे लिए यादगार हो रही थी। उसके असीमित शक्ति के आगे मैं भी पानी मांगने को विवश हो गई। क्या भयानक रफ्तार से भकाभक चोद रहा था वह। मुझे दिन में ही तारे दिखाई देने लगा था। वह कमरा फच फच चट चट की आवाज से गूंजने लगा था। जहां मेरी चूत की चटनी बन रही थी वहीं उसके पंजों से मेरी कठोर चूचियों का मलीदा बन रहा था। पीड़ा हो रही थी लेकिन उस पीड़ा में अजीब तरह का आनंद मिल रहा था।
"ओह चाचाजी, ओह चच्चा, ओह जरा धीरे कीजिए ना, आह आह ...." मैं मस्ती में भर कर हांफती हुई बोली।
"वाह मेरी बच्ची, धीरे करने को काहे बोल रही हो, तू तो बड़ी गरम माल निकली, धीरे धीरे करके न हमको मजा मिलेगा न तुमको।" वह भी हांफते हुए बोला लेकिन अपने चोदने की रफ्तार में जरा भी कमी नहीं आने दिया। बस भच्च भच्च, फच्च फच्च पेलता रहा पेलता रहा। मुझे किसी खिलौने की तरह जैसा मर्जी वैसा पेलता रहा। टांगें उठाकर पेलते हुए मन नहीं भरा तो पलट कर कुतिया बना दिया।
"यह कककक्या ......." मैं उसकी मर्जी समझ गई थी। अब वह मुझे कुतिया बना कर चोदना चाहता था। चुदने की चाहत तो थी, क्योंकि अब मैं दूसरी बार उत्तेजित होकर चुदाई का मजा ले रही थी। लेकिन मेरे शरीर में अब और ताकत नहीं बची थी कि हाथों और घुटनों के बल पर कुतिया बनूं।
"अब पिच्छे से।" वह मेरी कमर पकड़ कर मेरी चूतड़ को ऊपर उठा लिया। भले ही मेरे घुटनों में थोड़ी जान थी लेकिन मेरे हाथों की शक्ति क्षीण हो गई थी इसलिए मैंने बिस्तर पर सिर टिका दिया लेकिन मेरी चूतड़ उठी हुई थी। इस पोजीशन में तो मेरी चूत चोदने के लिए बेहतर तरीके सी उपलब्ध थी।
"अरे सर काहे नीचे रखी। हाथ का सहारा ले।" कल्लू बोला।
"हाथ थक गया चच्चा।" मैं अपनी असमर्थता जताई। "अच्छा कोई बात नहीं। यह पोजीशन भी बढ़िया है।" कल्लू बोला और पोजीशन में उसने अपना लौड़ा मेरी चूत पर टिकाया और पीछे से कुत्ते की तरह शुरू हो गया। एक ही झटके में उसने अपना लंड भक्क से मेरी चूत में उतार दिया।
"ओओओओहहहहह मांआंआंआंआंआं...." इस पोजीशन में कल्लू ने एक ही झटके में अपना पूरा लंड मेरी चूत की पूरी गहराई में उतार दिया था। यह थोड़ा दर्दनाक था लेकिन ऐसी कामवासना के खेल में इस प्रकार की थोड़ी बहुत पीड़ा को नजरंदाज करने में ही भलाई है। यह मेरा पिछले अनुभवों ने सिखा दिया था। लेकिन पहले झटके की पीड़ा से बेसाख्ता मेरे मुंह से अनचाहे ही आह निकल गई थी।
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"दर्द हुआ?" कल्लू बोला।
"हां, लेकिन आप चालू रखिए। आपको मजा आ रहा है ना, यह मेरे लिए काफी है।" मैं बोली। अबतक इतनी हरामजादी तो बन गई थी कि अपने मन की बात छिपा कर चुदक्कड़ की हौसला-अफजाई करके मजा ले लूं। बस फिर क्या था फिर वही, अब पीछे से कुत्ते की भकाभक चुदाई का सिलसिला चालू हो गया। इस पोजीशन में भी कल्लू पीछे से मेरी चूचियों को निचोड़ना नहीं छोड़ा था। जब मेरी चूचियों को निचोड़ते हुए ठोकता था तो उसका लंड थोड़ा बाहर बाहर ही रहता था लेकिन कुछ देर इस तरह ठोकने के बाद मेरी कमर पकड़ कर पीछे की ओर घसीट लेता था और अपने पूरे लंड की लंबाई घुसेड़ देता था। कभी कभी मेरे कंधों को भी पकड़ कर ठोकने लगता था। बड़ी जबरदस्त तरीके से मेरा सारा कस बल निकाल लेने को आमादा था वह। शायद किस्मत से चोदने को हासिल हुई मेरे जैसी कमसिन लड़की को जी भर के पूरा मज़ा लेते हुए चोद कर पूरी तरह संतुष्ट होना चाह रहा था। वह मेरे शरीर से अधिकतम मजा लेने का हरसंभव प्रयास कर रहा था और इस चक्कर में मुझे बेहाल किए जा रहा था। बेहाल क्या, मुझ रांड को भी तो ऐसी ही चुदाई की तलब लगी थी और लो, अब मुस्टंडे के मूसल से कुटी जा रही थी। उस दैत्य द्वारा मेरे शरीर को नोचा जा रहा था, मेरी चूचियों को निचोड़ा जा रहा था और उसके मूसलाकार लंड से मेरी बुर का भोंसड़ा बनाया जा रहा था। देखने में यह सब भोगना और लोगों को बड़ा ही तकलीफदेह लगेगा लेकिन मुझे बड़ा रोमांचक और उत्तेजक अनुभव के साथ अलग ही तरह का सुखद अहसास हो रहा था।
अंततः, उस अंतहीन सी लगने वाली चुदाई का, करीब आधे घंटे बाद समापन का वह पल आ पहुंचा जिसका मैं बड़ी शिद्दत से इंतजार कर रही थी। ओह वह उत्तेजना का चरमोत्कर्ष था जहां पहुंच कर मुझे झड़ना था और इसी सुखद पलों में कल्लू भी धुआंधार चुदाई किए जा रहा था। उसकी रफ़्तार और हांफना, कांपना और अचानक मेरे अंदर समा जाने की पुरजोर कोशिश करते हुए मुझे अपने से चिपका कर थम जाना उसके भी चर्मोत्कर्ष मे पहुंचने का संकेत था। और लो, हो गया शुरू, फच्च फच्च पिचकारी का छूटना, जिससे मेरी कोख हरी होने लग गई। हर फच्च के साथ उसका शरीर झटका ले रहा था। उसका लंड गरमा गरम वीर्य थूकते हुए, या यों कहूं कि उगलते हुए गर्भगृह को सींचने लगा और मैं उस स्खलन के सुख सागर में डूबने उतराने लगी।
"ओओओओहहहहह चोदूऊऊऊऊऊ चच्चाआआआआ, ओओओओहहहहह मांआंआंआंआंआं.... गयी मैं गई मेरे हर्रामीईईईईईईई... चच्आआआआहहहहह...." मेरे मुंह से आनंद भरी आह चीख की तरह निकल पड़ी। मुझे परवाह नहीं थी कि भलोटिया या घनश्याम पर मेरे इन अल्फाजों का क्या असर होगा।
"आआआआआहहहह ओओओओहहहहह गया मैं गया गुरूजी। साली रंडीईईईईईईई....... आआआआआहहहह गज्जब, चूऊऊऊस रही है मेरा लौड़ा" कहते हुए वह झड़ता रहा और पूरी तरह खल्लास हो कर ढह गया। सच कह रहा था वह। मैं सचमुच अपनी चूत सिकोड़ कर उसके लंड को चूस रही थी। शुरू शुरू में मुझे ताज्जुब होता था कि अपने स्खलन के दौरान मेरी चूत खुद ब खुद संकुचित हो कर लंड का रस निचोड़ने लगती थी। यह स्वाभाविक था या अस्वभाविक था मुझे पता नहीं, लेकिन मैं खुद भी वीर्य का कतरा कतरा अपने अंदर जज्ब करते हुए स्खलन का पूरा लुत्फ लेना सीख गई थी। पूरी तरह खल्लास होकर मैं भी मुंह के बल बिस्तर पर निढाल ढह कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी जैसे मीलों दौड़ कर आई हूं। उन स्खलन के पलों पर जो अल्फाज़ हमारे मुंह से निकले थे उसके बाद और कोई शब्द नहीं निकल रहा था। कोई शब्द निकालने की ताकत भी नहीं बची थी। कल्लू की क्या हालत थी वह तो मुझे पता नहीं लेकिन मेरी तो जैसे सारी शक्ति निचुड़ गई थी। मैं थक कर चूर कुछ देर तक आंखें बंद किए स्खलन सुख में डूबी हुई थी। रेखा का कथन कितना सत्य था, यह मुझे अभी पता चला। खतना किए हुए खुल्ले चिकने लंड से चुदने का वह अद्भुत अहसास सिर्फ महसूस किया जा सकता है। ओह कितना सुखद अहसास था वह। तभी तो उतना लंबा और मोटा लंड मेरी चूत में बड़े आराम से सटासट अन्दर बाहर हो रहा था। उसकी दीर्घ स्तंभन क्षमता का भी शायद यह एक कारण था। एक स्वस्थ, हट्टे-कट्टे आदमी के लिए, चोदने में उसका खतना किया हुआ लंड सोने पर सुहागा का काम कर रहा था। सचमुच, मजा आ गया, पूरी संतुष्टि मिली थी।
"गये दोनों। गजब का दृश्य देखा। ऐसी चुदाई पहले नहीं देखा था। साला इतना जबरदस्त था कि देखते देखते मेरा लौड़ा दुबारा खड़ा हो गया।" भलोटिया की आवाज सुनाई दी और मेरी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। साला मादरचोद ठरकी बुड्ढा अब क्या मुझे दुबारा चोदने की सोच रहा है? नहीं नहीं, बस अब और नहीं। बहुत हो गया। पता नहीं हमारी चुदाई के दौरान ही कब भलोटिया भी बिस्तर से उठ कर सोफे में पसर गया था। मैंने अलसाई हालत में सर घूमाकर भलोटिया के आवाज की ओर दृष्टि फेरी तो मेरी रूह फना हो गयी थी। सचमुच उस भालू भलोटिया का लन्ड खंभे की शक्ल में सख्त, तन कर खड़ा था। भलोटिया की मुद्रा बता रही थी कि वह फिर से चोदने को मन बना चुका था। भलोटिया और घनश्याम अगल बगल सोफे पर पसरे बैठे थे। घनश्याम कहां पीछे रहने वाला था।
"फिर से चोदना है क्या?" घनश्याम भलोटिया से पूछ रहा था या अपने मन की इच्छा व्यक्त कर रहा था, पता नहीं। लेकिन उसका खंभा भी फनफनाते हुए मूक घोषणा कर रहा था कि मेरी चूत में घुस कर तहलका मचाने को बेताब है।
"मन तो है लेकिन बिटिया की हालत पर तरस आ रहा है।" भलोटिया तनिक मायूसी से बोला।
"मन को पिंजरे में न डालिए भाई। माले मुफ्त, दिले बेरहम। इस मां की लौड़ी पर तरस खाने की जरूरत नहीं है। अभी भी हम जैसे दो चार को आराम से निपटा देने का दम है साली में।" घनश्याम बोल उठा।
"हां हां, मार ही डालिए मुझको। आपलोग कैसे आदमी हैं मुझे समझ नहीं आ रहा है। मेरी हालत पर जरा भी दया नहीं आती आप लोगों को। आपलोग आदमी हो कि जानवर हो समझ में नहीं आ रहा है। देख नहीं रहे मेरी हालत? अब और नहीं होगा मुझसे। तीन आदमी बारी बारी से और मैं एक अकेली लड़की, फिर भी आप लोगों का मन नहीं भरा, ऐसे तो मर जाऊंगी मैं।" मैं तिक्त स्वर में बौखला कर बोली। मेरा सारा कस बल तो निकल चुका था और इन हरामियों को दुबारा चोदने की पड़ी थी।
"सर जी, मेरा तो हो गया। आप लोगों की मेहरबानी से इतना बढ़िया माल में हाथ साफ करने का मौका मिला, बहुत बहुत शुक्रिया। अब हम चलते हैं, अब आप लोगों को जितना मौज करना है कीजिए, मैं बाहर तैनात रहूंगा।" कहकर कल्लू बिस्तर से उठकर अपने कपड़े पहनने लगा। कपड़े पहनते पहनते ही वह फिर बोला, "इतनी कम उम्र वाली लड़की इतनी जानदार निकलेगी, हम नहीं सोचे थे। सच में, किस्मत संवर गया।" साला कुच्चड़ कहीं का। बोल रहा था किस्मत संवर गया, हरामी कहीं का। मुझे निचोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ा था। बड़ा ही जबरदस्त चुदक्कड़ था यह। ऐसे जबरदस्त तरीके से चोदा था कि चुदने की मेरी सारी ख्वाहिश पूरी हो गई। जन्नत की सैर करा दिया था लेकिन दिन में ही तारे भी दिखा दिया था। लेकिन इस चक्कर में कितनी बुरी तरह से मुझे निचोड़ा था कि अब मुझमें बिस्तर से उठने का भी दम नहीं था।
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"भगवान के लिए अभी के लिए मुझे बख्श दीजिए। अगर मन नहीं भरा तो घर जाकर रश्मि से कसर पूरी कर लीजिए।" मैं बोली। मेरी बात सुनकर कल्लू अपनी जगह पर ही ठिठक कर रुक गया।
"रश्मि? यह रश्मि कौन है गुरु?" कल्लू भलोटिया की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगा।
"अरे रश्मि बिटिया की बात कर रही है रे।"
"रश्मि? अपनी रश्मि?" कल्लू की आंखें बड़ी-बड़ी हो गयीं।
"हां रे हां, अपनी रश्मि।"
"बाप रे बाप, यह उसके बारे में ऐसा कैसे बोल रही है?" हैरानी से कल्लू बोला।
"जो सच है वही तो बोल रही है। उसके साथ पढ़ती है, तो उसके बारे में अच्छी तरह से जानती होगी। इसकी सहेली है तो इसी की तरह ही होगी। वह भी यहां वहां मुंह मारती होगी। हम तो घर के ही हैं। हमारे रहते वह इधर उधर काहे मुंह मारे? आखिर हम किस मर्ज की दवा हैं?" भलोटिया बड़ी बेशर्मी से बोला।
"आप उसके साथ ऐसा करने की सोच कैसे सकते हैं? वह तो आपकी पोती है।" कल्लू अविश्वास से उसे देखने लगा। "साले, वह पोती है तो क्या हुआ, लौंडिया तो है। इसी रोज की तरह नमकीन लौंडिया। चूत वाली लौंडिया और हम ठहरे लंड वाले मर्द। चूत और लंड के बीच यह दादा पोती के रिश्ते का क्या मतलब है बे? उसे लंड चाहिए और हमें चूत। बस। वैसे भी घर की बात घर में। सही बोल रहा हूं कि नहीं?" भलोटिया अपना कुतर्क देते हुए बोला और मैं सोचने लगी कि मेरा तीर सटीक निशाने पर लगा था। अब रश्मि की खैर नहीं। साली मेरी तरह घरवालों से ही मरवाने लगेगी। ऐसा चोदू दादा जिस घर में हो उस घर की पोती कब तक खैर मनाएगी। चलो चिंगारी तो सुलगा चुकी थी, देखने वाली बात यह थी कि इस चिंगारी की आग उस घर में किस किस को जलाने जा रही थी। जैसे मेरे बाद आग की चपेट में मेरी मां भी आ चुकी थी, कहीं ऐसा रश्मि के घर में भी तो नहीं होने जा रहा था?
"लेकिन रश्मि मान जाएगी? बाहर किसी से भी मरवाती हो लेकिन अपने दादाजी के साथ?" कल्लू अब भी आश्वस्त नहीं था।
"सब होगा। तू देखता जा। साला जबसे वह जवान हुई है, उसकी चाल ढाल देखते ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता है। अब तो रोज बिटिया की बदौलत एक आशा की किरण दिखाई देने लगी है। सब भला होगा। शुभ शुभ सोचा कर।" भलोटिया पूरे विश्वास के साथ बोला। उसकी बात सुनकर कल्लू चुपचाप सर हिलाते हुए वहां से रुखसत हुआ और मैंने देखा कि कल्लू के होंठों पर एक अजीब सी मुस्कान तैर रही थी। मैं समझ गई कि कल्लू के मन में भी लड्डू फ़ूटने लगा था।लेकिन अब मैं भी उठने की कोशिश करने लगी थी। जबतक मैं बिस्तर से उतरती कल्लू वहां से खिसक चुका था। कल्लू और भलोटिया के बीच के वार्तालाप को जहां मैं बड़े मजे लेकर सुन रही थी वहीं घनश्याम मुझे घूरता हुआ मन ही मन गालियां दे रहा था होगा। जहां मैं भलोटिया का ध्यान भटका कर अपनी मुक्ति की खुशी मना रही थी वहीं घनश्याम मन ही मन कुढ़ रहा था होगा कि मुझे अच्छी तरह प्रताड़ित करने की उसकी मंशा पर पानी फिर चुका था।
बिना कुछ और बोले मैं किसी प्रकार उठ बैठी और अपने कपड़े उठाने लगी कि बाथरूम जाकर फ्रेश हो जाऊं, कि मुझे भलोटिया की आवाज सुनाई दी, "बहुत अच्छा, अब अच्छी बच्ची की तरह अपने आप को साफ सुथरी कर ले। तुम्हारी वजह से मेरा दिन बहुत बढ़िया बन गया।" साला बुड्ढा, वह तो भला हो कल्लू का कि मेरा दिन यादगार बना दिया, वरना मेरा दिन खराब करने में इन लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, साले खड़ूस कहीं के।
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Great Going...Keep posting
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मेरी चूत और गांड़ का भुर्ता बना हुआ था। चूत के बाहर तक रिस कर वीर्य सूखने लगा था। मेरी गान्ड से भी मल से लिथड़ा वीर्य रिस कर सूखने लगा था जिन्हें धो पोंछ कर साफ करना आवश्यक था। मेरी चूचियों को भी नोच चीप कर सुजा दिया था कमीनों ने। चुदाई का नशा उतरने के बाद अब मुझे पता चल रहा था कि कितनी निर्ममता पूर्वक मेरी चुदाई हुई थी। अपनी दुर्दशा पर मन ही मन खुद को कोसती हुई लड़खड़ाते कदमों से बाथरूम की ओर बढ़ी।
"खुद चल कर जाने में परेशानी है तो मैं सहायता कर दूं?" यह भलोटिया की आवाज थी। साला मोटू बुड्ढा, मेरी सहायता करना चाहता था कि बाथरूम में मेरे साथ घुस कर मुझे चोदना चाहता था, पता नहीं।
"नहीं, जरूरत नहीं है, मैं खुद चल सकती हूं।" कहकर मैंने सारी शक्ति इकट्ठा करके बाथरूम की ओर चलती चली गयी। मेरे खड़े होने और चलने से मूत्राशय और मलाशय के अंदर का दबाव नियंत्रण में रखना मुश्किल लगने लगा था। किसी प्रकार बाथरूम में घुसी और बिना समय गंवाए दरवाजा खुला छोड़कर ही जल्दी से अपने कपड़े हैंगर पर टांग कर कमोड पर बैठ गयी। बैठते न बैठते भर्र भर्र, फर्र फर्र करके मेरे अंदर का दबाव अनियंत्रित होकर बाहर निकल पड़ा। मैं आंखें बंद किए मल-मूत्र विसर्जन में खोई हुई थी। मुझे अब काफी राहत का अहसास हो रहा था और हल्का महसूस हो रहा था। अब मुझे पता चल रहा था कि इन तीन लोगों ने बारी बारी से मुझे चोद चोद कर मेरी चूत और गांड़ को खोल कर रख दिया था। दोनों दरवाजे ढीले होकर अंदर की गंदगी को बिना किसी प्रयास के आसानी से निकलने दे रहे थे। हे भगवान, दोनों छेद काफी फैल भी गये थे और मल मूत्र विसर्जन के पश्चात अंदर से पूरी तरह खाली होने के बाद भी अपने आप बंद होने में आनाकानी कर रहे थे। क्या ये ऐसे ही ढीले रहेंगे? इस ख्याल से मैं तनिक आतंकित हो गई थी। इन्हीं आशंकाओं के साथ मैं निवृत्त होकर उठी और स्नान करने लगी। अच्छी तरह रगड़ रगड़कर नहा रही थी कि अपने तन और मन की सारी गंदगी से मुक्त हो जाऊं, लेकिन ऐसा लग रहा था मानो गंदगी मेरे तन मन से चिपक कर रह गई हो। निश्चित तौर पर यह मेरा वहम था लेकिन सच तो यही था कि शरीर भले ही साफ हो गया था पर मन तो पूरी तरह मैला हो चुका था। इस मैल से कैसे मुक्त होऊं? शायद कभी नहीं। वासना की एक अजीब सी भूख मेरे अंदर समा गई थी। ओह मेरे ईश्वर, मैं सचमुच रंडी बन गई थी।
नहा धोकर वहां टंगे तौलिए से मैंने अपने तन को रगड़ रगड़ कर पोंछा लेकिन मुझे अब भी लग रहा था कि सफाई में काफी कसर रह गई है। हां इतना अवश्य हुआ था कि मैं अब अपने आप को काफी तरोताजा महसूस कर रही थी। मैंने बिना पैंटी और ब्रा के अपने शरीर पर वही स्कर्ट और ब्लाऊज़ डाल लिया और बाहर निकल आई।
"वाह, चमचमा रही हो बिटिया। देखो, मेरा लौड़ा फिर से खड़ा होकर तुम्हें सलाम कर रहा है।" भलोटिया बोला, जिसका जवाब देने की मैंने कोई जरूरत नहीं समझी और घनश्याम की ओर देखने लगी। वह कमीना भी अबतक नंगा ही बैठा हुआ था।
"आपको चलना नहीं है क्या या अब भी कोई कसर बाकी है? फिर से करना है तो लो।" मैं उसे घूर कर देखते हुए कटु स्वर में बोली और अपने कपड़े उतारने का उपक्रम करने लगी। मेरी आवाज की तल्खी को भलोटिया अच्छी तरह महसूस कर लिया और जल्दी से बोला,
"नहीं नहीं। हो गया। मैं तो यूं ही बोल रहा था। वैसे बड़ी उदारता से तुमने हमलोगों को खुश किया। जी तो चाहता है कि तुझे रख लूं, लेकिन मजबूरी है। अब तुम्हें नहीं रोकूंगा। रश्मि के लिए तुम्हारा सुझाया आईडिया अब दिमाग में चलने लगा है। इसके लिए तुम्हारा शुक्रिया। अबे घंशू, तुझे बिटिया को अब घर ले जाना चाहिए। उठ जा साले।" भलोटिया बोला और घनश्याम खिसिया कर बाथरूम में फ्रेश होने के लिए घुस गया। उसके घुसते ही मैं भलोटिया की गोद में जा बैठी और उसके सख्त खंभे के मुठियाते हुए गरमागरम चुम्बन दे कर बोली,
"सच में इस उम्र में भी आप में बड़ा दम है। इस उम्र में यह हाल है तो जवानी में क्या थे होंगे। अभी भी हालत खराब कर देते हैं आप तो। आशा करती हूं रश्मि भी खुश हो जाएगी।"
भलोटिया मुदित हो कर प्रत्युत्तर में मुझे चूम कर बोला, "तू भी बड़ी जबरदस्त चीज हो बिटिया। देखो तो, अब भी मुझ बूढ़े का लौड़ा खड़ा का खड़ा ही है। ऐसा लग रहा है जैसे मैं फिर से जवान हो गया हूं। कितनी गजब की लौंडिया हो तुम। इतनी कम उम्र में इतने मजे से हम तीनों को निपटा देना मजाक नहीं है। आगे चलकर तो बड़े बड़ों को पानी पिला दोगी।"
"सब आप जैसे लोगों की मेहरबानी है दादाजी।" कहकर इससे पहले कि घनश्याम बाथरूम से बाहर निकलता, मैं चित्ताकर्षक मुस्कान के साथ उसकी गोद से उठ कर खुद को व्यवस्थित करने लगी। सच तो यह था कि उसके लंड को पकड़ कर मैं फिर से गनगना उठी थी। अपने मन को समझा कर वहां से रुखसत होना समय की मांग थी, अतः मन मारकर घनश्याम के निकलने का इंतजार करने लगी।
"उम्मीद है आज के बाद फिर मिलोगी।" भलोटिया आशापूर्ण दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला।
"मिलूंगी काहे नहीं। याद कीजिएगा तो जरूर आऊंगी। वैसे उम्मीद है कि रश्मि को करने में सफल हो जाइएगा तो शायद मेरी जरूरत नहीं पड़ेगी।" मैं शरमाते हुए बोली।
"अय हय ऐसे शरमाते हुए तुम बड़ी खूबसूरत लग रही हो। वैसे जहां तक रश्मि की बात है तो वह तो उसे चोदने के बाद ही पता चलेगा कि उसमें तुम्हारी जैसी आग है कि नहीं। कपड़ों के ऊपर से ही सेक्सी दिखाई देती है या कपड़ों के बिना, वह तो उसके कपड़े उतारने के बाद पता चलेगा और खाली सेक्सी दिखाई देना ही काफी नहीं है, चोदने में भी उतना ही मज़ा आए तो कोई बात है। खैर जो भी हो, जो तुम्हें एक बार चोद ले, वह भला तुम्हें कभी भूल सकता है? कदापि नहीं।" भलोटिया बोलता चला जा रहा था।
"हटिए, आप बड़े वैसे हैं।" मैं शरम से लाल होती हुई बोली।
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Ohh so sexy. Thank you for writing this story.
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"हे हे हे हे, मैं तो ऐसा ही हूं।" वह बड़ी बेशर्मी से हंसते हुए बोला। आगे भी बोलता गया, "मैं सोच रहा हूं कि अगर रश्मि मेरे जाल में नहीं फंसी तो क्या होगा। कहीं बुरा मानकर घर में हंगामा न खड़ा कर दे। फिर मेरी तो बड़ी फजीहत हो जाएगी। मैं घर में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगा।"
"ऐसा नहीं होगा। मैं अपनी सहेलियों को बड़ी अच्छी तरह से जानती हूं।" कहने को तो कह गयी लेकिन फिर उसका अर्थ समझ कर लाल हो गई। भलोटिया मुझे और मेरी सहेलियों को छिनाल टाईप समझा होगा। हे राम मैं यह क्या बोल बैठी।
"अच्छा! ऐसा है? फिर तो बहुत बढ़िया। वैसे एक बात कहूं?" वह बोला।
"हां बोलिए।" मेरा दिल धक धक करने लगा कि पता नहीं अब वह क्या बोलने वाला है।
"तुम्हारी सब सहेलियां ऐसी ही हैं क्या?" कहते हुए उसकी आंखें चमक रही थीं। सच में मैं बहुत बड़ी ग़लती कर बैठी थी। लेकिन अब पछताए क्या होगा।
"हां।" मैं सर झुका कर बोली।
"फिर तो तुम्हारी सहेलियों से भी मिलना चाहूंगा। ऐसा हो सकता है क्या?" उसकी आंखों में चमक बढ़ गई थीं।
"हो काहे नहीं सकता है।" मैं झूठ नहीं बोल पाई।
"मैं उनके साथ भी यह सब कर सकता हूं क्या?" वह बड़ी बेशर्मी से अपने मन की इच्छा व्यक्त कर बैठा।
"यह मैं नहीं बोल सकती हूं। वे ऐसी जरूर हैं लेकिन उनकी पसंद के बारे में मैं क्या बोल सकती हूं।" मैं ने कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की लेकिन वह तो मेरे पीछे ही पड़ गया।
"तुम केवल उनसे मिलवा दो, बाकी मुझ पर छोड़ दो। इतनी मेहरबानी तो मुझ बूढ़े पर कर ही सकती हो।" मैं बातों ही बातों में फंस चुकी थी।
"अच्छा ठीक है। बाकी आप देख लीजिएगा।" कहकर मैंने बातों के सिलसिले को यहीं खत्म करना बेहतर समझा।
"वह मुझ पर छोड़ दो।" भलोटिया बोला।
"क्या बातें हो रही हैं?" घनश्याम बाथरूम से निकलते हुए बोला।
"यह हम दादा और पोती के बीच की बात है। तू अपने काम से काम रख। फिलहाल तो बिटिया के साथ घर जा और हां, आज के बाद बिटिया को बेवजह सजा वजा देने की बात भूल जा। मुझे पता चला कि तू बिटिया को बेवजह परेशान कर रहा है तो अच्छा नहीं होगा, समझे?" भलोटिया घनश्याम को चेतावनी देते हुए बोला। घनश्याम खिसिया कर रह गया।
"ठीक है भलोटिया जी, समझ गया। वैसे भी आपकी कृपादृष्टि जिस पर पड़ जाय, उसका बुरा सोचने की हिम्मत किसकी होगी। तो हम चलें?" घनश्याम नाटकीय अंदाज में बोला।
"बहुत बढ़िया। वैसे तुम्हारा शुक्रिया तो बनता ही है। इतनी जबरदस्त चीज जो मेरी खिदमत में ले कर आए।" भलोटिया, जो अब भी नंगा ही बैठा हुआ था, अपना लंड सहलाते हुए बोला। साला ठर्की बुड्ढा।
"शुक्रिया किस बात की, आपकी ही माल है। जब मन करे याद कर लीजिएगा।" घनश्याम किसी दलाल की तरह मस्का मारते हुए बोला। फिर हम वहां से रुखसत हुए। मैंने एक नजर भलोटिया की ओर फेरी तो वह मोटा भालू बड़े गंदे तरीके से मुझे आंख मारते हुए मुस्कुरा उठा, कुत्ता कहीं का। साला हरामी बुड्ढे का वश चलता तो मुझे यहीं रख कर चोदता रहता। पता नहीं घनश्याम किस पृष्ठभूमि से आया था कि उसके संपर्क में ऐसे ऐसे खड़ूस लोग थे। पहले गंजू , अब भलोटिया और उसका बॉडीगार्ड कल्लू। पता नहीं और कौन कौन लोग होंगे। यही सब सोचते हुए मैं घनश्याम के साथ बाहर निकलने लगी। अभी भी मुझे चलने में थोड़ी कठिनाई का अनुभव हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पांव मनचाहे अनुसार नहीं पड़ रहे थे। मेरी चूत और गांड़ के दरवाजे थोड़े सूज गये थे, इस कारण चलने से उनमें जो घर्षण हो रहा था उससे मीठा मीठा दर्द हो रहा था। उनमें हल्की हल्की जलन भी हो रही थी। किसी प्रकार मैं खुद को संभाल कर चल रही थी लेकिन मेरी चाल सामान्य नहीं थी, जिसे कोई भी देखने वाला बड़ी आसानी से कह सकता था कि मैं क्या गुल खिला कर आ रही हूं। अपनी इस हालत पर मुझे बड़ी शर्म आ रही थी लेकिन चेहरे पर कोई शिकन नहीं आने दे रही थी। आम तौर पर चेहरे का भाव आंतरिक स्थिति की चुगली करती है लेकिन चेहरे का भाव सामान्य होने के बावजूद मेरी चाल जो चुगली कर रही थी उसका क्या करती, जिस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था। उसी हालत में चलती हुई जब घनश्याम के साथ बाहर निकल रही थी तभी कल्लू पर मेरी नजर पड़ी। वह भी मुस्कुराते हुए मुझे ही घूर रहा था और उसका हाथ पैंट के ऊपर से हथियार मसल रहा था। मैं भी उसकी जबरदस्त, अविस्मरणीय चुदाई की दीवानी, अपनी चूत में चुनचुनाहट को महसूस करते हुए मुस्कुरा उठी और घनश्याम के साथ आगे बढ़ गई। कटे चमड़े वाले विशाल लंड का स्वामी कल्लन मियां उर्फ़ कल्लू की जबरदस्त चुदाई ने मेरे जेहन में एक अमिट छाप छोड़ दी थी। उसे देखते ही अभी भी मेरा तन मन झंकृत हो उठा था। अद्भुत, अविश्वसनीय, अविस्मरणीय चुदाई थी वह। यही सब सोचते हुए मैं आगे बढ़ती चली गई।
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(27-04-2025, 02:03 PM)blackdesk Wrote: Ohh so sexy. Thank you for writing this story.
Thanks a lot. This type of appreciation and encouraging words inspire me to continue writing
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Its going great..pl post more
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Waiting eagerly for your update.
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गरम रोज (भाग 15)
जैसे ही हमारी कार स्टार्ट हुई, घनश्याम बोला, "भलोटिया से क्या बातें हो रही थीं?"
"कककुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं।" अचानक उसके सवाल से मैं हकलाते हुए बोली।
"कुछ भी नहीं तो क्या तुम अपने आप से बात कर रही थी? मैं क्या तुम्हें इतना बेवकूफ नजर आता हूं?"
"जब जानते ही हैं तो पूछ क्यों रहे हैं? वहां और क्या बात हो सकती है, वह बताने की जरूरत है क्या?" मैं तल्खी से बोली।
"बता दोगी तो तुम्हारी ज़ुबान घिस जाएगी क्या?"
"तो सुनिए। वह मेरी सहेलियों के बारे में पूछ रहा था और मैंने बता दिया।" मैं बेझिझक बोली।
"क्या बताई?"
"यही कि सबके सब मेरी तरह ही हैं। कोई अनाड़ी नहीं हैं। सबके सब खेली खाई हैं। और कुछ पूछना है क्या?" मैं बिंदास बोलने लगी। जानती थी कि यह हरामी बिना सुने मेरा पीछा छोड़ने वाला नहीं था।
"फिर तो यह भी बोला होगा कि मुझसे मिलवाओ।"
"यह भी पूछने की बात है क्या? औरतों का रसिया, मुझ जैसी लड़कियों से मिलने का मौका भला क्यों छोड़ने वाला था।"
"तुम क्या बोली?"
"बोल दी, मिलवा दूंगी, बाकी आप देख लेना।"
"हरामजादी, अब अपनी सहेलियों को परोसने की सोच रही हो?" घनश्याम बोला।
"आपने क्या किया मेरे साथ? मुझे भलोटिया के सामने परोसा ही तो था ना?" मैं उसके आरोप से गुस्से में आ गयी।
"बहुत जुबान चलने लगी है तुम्हारी।" घनश्याम मेरी बात से खिसिया गया था।
"सब आपकी मेहरबानी है। सच बोली तो बुरा लग गया?" मैं भी चढ़ कर बोलने लगी थी।
"मुझे बुरा लगा या अच्छा इससे तुमको क्या। भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारी सहेलियां। तुम सबकी सब एक नंबर की छिनाल हो।" घनश्याम उखड़ गया था।
"अच्छा? अगर मेरी सहेलियों के साथ सोने का मौका आपको मिलेगा तो आप पीछे रहेंगे क्या? तब तो सब सहेलियां बड़ी अच्छी लगेंगी। बड़े आए छिनाल कहने वाले।" मैं चिढ़ाते हुए बोली। घनश्याम मुझे घूर कर चुप रह गया, क्योंकि मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। सच ही तो कहा था मैंने। सब साले मर्द एक ही तरह के हैं। बिस्तर गरम करने को मिल जाएं तो सब ठीक, और न मिले तो सब गलत। हरामी कहीं का। घनश्याम के मुंह में तो ताला लग गया था लेकिन मेरे मन में उथल-पुथल मची हुई थी। मैं आज की घटनाओं के बारे में सोच रही थी। सबसे पहले घनश्याम ने ही खंडहर में मेरे साथ मुंह काला किया, फिर कॉलेज के गेटकीपर रघु और उसके भाई जधु की बारी बारी से चार बार चुदाई और फिर यहां गंजू के घर में तीन लोगों द्वारा मेरे तन की नुचाई, कुल मिलाकर एक ही दिन में पांच लोगों द्वारा सात बार संभोग में लिप्त रही। सबके सब तीस पैंतीस साल से लेकर ताकरीबन पैंसठ साल के एक से बढ़कर एक चुदक्कड़। तो इस तरह मेरे तन से खेलने वाले अबतक सात लोग हो चुके थे। जैसे जैसे लोग मेरे तन से खेलने लगे थे, वैसे वैसे मेरी वासना की भूख बढ़ती जा रही थी। अभी ही की मेरी हालत देखिए, सुबह से लेकर अभी तक पांच लोगों ने सात बार, अलग अलग तरीके से मेरे तन से अपनी भूख मिटाई, लेकिन उससे जो थोड़ी बहुत शारीरिक तकलीफ़ हुई, उसे नजरंदाज कर दिया जाए तो मेरी शारीरिक भूख में और बढ़ोतरी ही हुई। अभी भी मेरे अंदर एक आग सुलग रही थी। हे भगवान, यह मुझे क्या हो रहा था। अगर यही स्थिति रही तो आगे चलकर कोई राह चलता आदमी भी बड़े आराम से मुझे अपनी हवस का शिकार बना सकता था। यह सोच मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। नादान उम्र में इस तरह सेक्स का चस्का जिसे लग जाए, वह चस्का उसे कहां तक ले जाएगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल था। उस उम्र में मुझे समझ नहीं आ रहा था लेकिन अब समझ में आ रहा है।
मेरे मन में भलोटिया का मेरी सहेलियों से मिलवाने वाला प्रस्ताव भी घूम रहा था। मैंने हामी तो भर ली थी लेकिन मेरी सहेलियों को कैसे मिलवाऊं, यह एक प्रश्न मुझे खाए जा रहा था। मिलवा भी दूंगी तो उसके बाद क्या होगा? अगर मेरी सहेलियों के साथ कुछ ऐसा हुआ जो उन्हें पसंद नहीं आया तो क्या होगा? भलोटिया जैसे हवस के पुजारी की गंदी नीयत जाहिर होने के बाद उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? कहीं भलोटिया अपनी अनियंत्रित गंदी सोच के वशीभूत सीधे सीधे गंदा प्रस्ताव उनके सामने रख दे तो क्या होगा और यदि उसका प्रस्ताव उन्हें पसंद न आया तो क्या होगा? अधिक संभावना यही थी कि भलोटिया जैसे मोटे, भद्दे बूढ़े के प्रति वितृष्णा का भाव उनके मन में आएगा और उसके गंदे प्रस्ताव को ठुकराने के साथ ही उनकी दृष्टि में मेरी छवि बेहद खराब हो जाएगी। निश्चित तौर पर वे मुझे किसी दलाल की तरह देखने लगेंगी। लेकिन यह भी हो सकता है जैसा मैं सोच रही हूं वैसा न हो। यह सब निर्भर करता है भलोटिया के प्रस्ताव की विधि पर। जहां तक भलोटिया के बारे में मुझे समझ में आया कि उसके जैसा घाघ औरतखोर इस फन में अवश्य माहिर होगा। खैर अब तो मैंने अपनी सहमति दे दी थी, इसका मतलब ऊखल में सिर दे दिया था, आगे जो भी परिणाम होगा उसके लिए भी मुझे तैयार रहना पड़ेगा। फिर भी मुझे नब्बे प्रतिशत विश्वास था कि भलोटिया बड़ी चालाकी से जाल फेंकेगा और अवश्य सफल होगा और इसी में मेरी भलाई थी। मेरे विश्वास करने का एक और कारण था मेरी सहेलियों का चरित्र। मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि उनका चरित्र कैसा है। बस सिर्फ भलोटिया का व्यक्तित्व ही आड़े आ रहा था। मोटा, तोंदियल, साठ पैंसठ साल का बूढ़ा। किसी भी कोण से आकर्षक नहीं था। लेकिन उसकी चतुराई पर ही सबकुछ निर्भर था। हे ईश्वर, अब तू ही मालिक है।
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Do not let us lost like this please. We are fond of your great stories. Please give long updates.
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