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वन नाईट स्टैंड
#1
PROLOGUE

इस कहानी की शुरुआत एक शादी में हुई थी। रिश्तेदार की लड़की की शादी थी सो जाना जरुरी था। शादी के बहाने ही कितनों से मुलाकात का अवसर मिल जाता है। शादी में एक नजदीकी रिश्तेदार महिला जो 35-36 साल की होगी उनसे मुलाकात हुई। महिला सुलझी हुई और आधुनिक विचारों की थी। बातें होने लगी। जयमाला होने के बाद खाने का कार्यक्रम हुआ, इसके बाद में फेरे वगैरहा होने में समय था तभी मेरी परिचित रिश्तेदार आयी और मुझ से अनुरोध किया कि मैं उन की कजिन को उस के घर तक अपनी कार से ले जाऊँ। उसे कपड़ें बदल कर आने थे। मेरे पास समय बिताने के लिए कुछ नही था सो मैं तैयार हो गया। जब वो कजिन आई तो पता चला कि ये तो वही महिला है जिन का जिक्र मैंने ऊपर किया था। मैं अपनी गाड़ी की तरफ चला तो उन्होने कहा कि वह अपनी गाड़ी लाई है। केवल रात होने के कारण उन की बहन उन्हें अकेली नही जाने दे रही है। मैंने कहा अच्छी बात है।


हम दोनों उन की कार की तरफ चल दिये। कार उन की थी इस लिए कार वह ही ड्राईव कर रही थी। छोटे शहरों के रास्ते वहाँ के रहने वाले ही अच्छी तरह से जानते है। 10 मिनट के बाद हम उनके घर पहुंच गये। उन्होने घर का दरवाजा खोला और कार को पोर्च में खड़ा कर दिया। दरवाजा खोल कर घर में प्रवेश किया। पति व्यापार के सिलसिले में शहर से बाहर गये हुऐ थे। कोई घर में कोई और नही था। वह मेरे से बोली कि 10-15 मिनट लगेगे उन्हें तैयार होने में, क्या मैं एक कप चाय लेना चाहुँगा? मैंने हाँ कहा। थोड़ी देर में वह चाय का कप देकर कपड़ें बदलने चली गई। मैं चाय का सिप भर ही रहा था कि उन की आवाज आई कि जीजा जी जरा अन्दर आयेगे। मैंने पुछा कहाँ तो उन्होने बताया कि साथ वाले दरवाजे से आऊँ।

मैं अन्दर चला गया, यह कमरा बैडरुम था। माया जी कपड़ें बदल रही थी। वह बोली की उन के ब्लाउज की जिप फंस गई है और खुल नही रही है। मैं उसे खोल दुँ। माया ने अपने सामने के हिस्से पर एक तोलिया डाल रखा था। उस के ब्लाउज की जिप फंस गई थी और खुल नही रही थी। मैं बड़ी असमंजस से उन की पीठ की तरफ बढा और ब्लाउज की जिप को हाथ लगाया। मेरे हाथ कांप रहे थे पहला मौका था जब पत्नी के अलावा किसी अन्य महिला की पीठ को हाथ लगाया था। अपनी घबराहट को काबु में कर के मैंने जिप को नीचे की तरफ खीचने की कोशिश की लेकिन जिप टस से मस नही हुई। पास से जा कर देखा तो पता चला कि जिप का हुक टुट गया था और वह जिप को खुलने नही दे रहा था।

उस का एक ही उपाय था की जिप को तोड़ा जाये, मैंने माया से पुछा की कोई छोटा पेचकस होंगा। 
उसने कहा कि वह ढुढ़ती है। एक दराज में पेचकस मिल गया। मैंने माया की पीठ को रोशनी की तरफ करके पेचकस को जिप के हुक के अन्दर फँसा कर उसे चौड़ा करने का प्रयास किया मेरी ऊंगलियाँ उस की पीठ और ब्लाउज के बीच फंसी थी। कंरट सा शरीर में दौड रहा था। आखिर कोशिश रंग लायी और हुक लुज हो गया। मैंने ऊंगलियों से पकड़ कर उसे नीचे की तरफ करा। माया ने कहा कि इसे पुरा खोल कर ब्लाउज को पुरा खोल दूँ। 

मैने ऐसा की किया। गोरी चिकनी सपाट पीठ मेरे सामने थी। मैं अपना थुक सटक रहा था।

मैंने हटने की कोशिश की तो माया ने कहा कि जब इतनी जहमत ऊँठाई है तो ईनाम तो बनता है।

मैं चुप रहा तब तक उसने तोलिये के साथ ही ब्लाउज को हटा दिया। मेरे सामने गोरे पुष्ट भरे हुये उरोज तने हुये खड़े थे। मैं इस घटना के लिए तैयार नही था। सकपका गया था।

माया ने कहा कि जीजा जी अब इतने भी शरीफ ना बनो और मेरे हाथों को पकड़ कर उसने अपने उरोजों पर रख लिया। मुझे जोर का झटका लगा। 

लेकिन मैंने उन्हें हल्के से सहला कर कहा कि ठन्ड लग जाऐगी कुछ और पहन लो।

माया बोली जीजाजी आज आप शादी में कहर ढ़ा रहे थे, तभी मैने सोचा था कि कैसे आप से मिलु? दीदी ने मौका दे दिया। अब तो जो मेरी मर्जी होगी सो मैं करुगी।

मैंने कहा तुम्हारे काबू में हुँ जो मर्जी करो। खदिम हूँ।

माया यह सुन कर हंस दी और बोली कि आप इतने भोले भी नही है जितने नजर आते है।

मैंने कहा ये तो तुम्हारी नजरों का असर है। आज तो तुम भी कहर ढ़ा रही थी। 

माया बोली मुझे तो पता नही चला कि आप पर इस का कोई असर हुआ है।

मैंने कहा मैडम रात को आप के साथ खिदमतदार बन कर खड़ें है बताओ और क्या करे? मैने उसके होठों को चुमने का प्रयास किया तो माया ने कहा कि मेकअप खराब हो जाऐगा।

मैंने उसे अपने से थोड़ी दूर कर दिया तो वह बोली कि लिपिस्टक तो दुबारा लगानी ही पड़ेगी कपड़ों के कलर की। यह तो कर सकते है फिर वह आगे आ कर मुझ से लिपट गई। मैंने कहा कि माया मेरे शर्ट पर कहीं दाग न लग जाये।

कोट तो मैंने पहले ही उतार दिया था, कमीज के बटन माया ने खोल दिये और उसे उतार दिया अब मैं कोई बहाना नही कर सकता था। मैंने उसे आंलिगन मे ले लिया और जोर से उसके होंठों को चुमने लगा। वह भी खुब चुम रही थी। हम दोनों ऐसे लग रहे थे मानो कोई प्रेमी-प्रेमिका वर्षो के बाद मिले हो। मेकअप की वजह से कहीं और चुमना सम्भव नही था। मैं चेहरा झुका कर उसके उरोजों के मध्य उतर गया। एक हाथ से सहला रहा था तथा दुसरें को होंठो से चुम रहा था। माया भी खुब साथ दे रही थी। उत्तेजना के कारण उसके चुचुंक आधा इचं से ज्यादा बड़े हो चुके थे। उन को पीने में मजा आ रहा था।

माया - अहा हाहहहहहहा उहहह आआहहहह आहहहहहहह ओहहहहहहहहहहह आहह...

माया ने जो लहंगा पहना हुआ था वह अभी उतारा नही था। मैंने खोलने की कोशिश की तो पता चला कि वह भी जिप वाला है।
माया ने साइड से जिप खोल कर उस को नीचे गिरा दिया। मैंने उसे उठा कर बेड पर लिटा दिया और लहंगे को फर्श से उठा कर बेड के किनारे पर रख दिया। माया मेरे सामने पुरी नंगी पड़ी थी। मेरी परेशानी यह थी कि मैं सुट पहने हुऐ था। शर्ट के अलावा और भी कपड़ें मेरे बदन पर थे। उन का आगे के कार्यक्रम में खराब होने का फुल चांस था। क्या करुँ?

माया ने मेरी पेंट की बेल्ट खोल कर उसे नीचे सरका कर अंडरवियर को भी खिसका दिया और बोली देखिये मैं आप के दिमाग को पढ़ सकती हुँ।

इस सब में मेरे लिंग ने पुरा तनाव ले लिया था और तन कर सलाम ठोक रहा था। माया ने उसे हाथों में ले कर सहलाया और मुंह में ले लिया।

मैंने माया से कहा कि हमारे पास ज्यादा समय नही है उसे तय करना है कि कैसे करें।

माया ने लिंग को मुँह से निकाल कर अपने पैरों को बेड से नीचे कर लिया और उन्हें फैला लिया। अब मेरे सामने उसकी चूत खुली पडी थी मैंने अपने लिंग के सुपारे को उसके मुँह पर रखा और योनि में डालने की कोशिश की माया की योनि तो बहुत कसी हुई थी। तब तलक माया ने अपने हाथ से पकड के मेरे लिंग को अन्दर डाल लिया। अन्दर तो इतना गिलापन था कि वह अपने आप सरक कर गहरे तक उतर गया।

आह हहहहहह आहहहह आहहह माया दर्द से चिल्लाने लगी।

मैंने डर कर लिंग को बाहर निकाल लिया। इस पर वह बोली कि आवाज से भी डरते हैं?

मैंने कहा मुझे लगा कि दर्द हो रहा है

माया - हां दर्द तो हो रहा है लेकिन इसी दर्द के लिये तो यह सब हो रहा है। डालो..

मैंने फिर से डाल दिया। माया ने अपने दोनों हाथो को मेरे कुल्हों के पीछे से ऐसे जकड़ लिया कि मैं अब लिंग निकाल ना सकुँ।
मजा तो अब शुरु हुआ था। मैंने जोर-जोर से धक्कें मारनें शुरु कर दिये। फच फच की आवाज आने लगी।
माया ने भी चुतड़ उठा कर साथ दिया।

मैं फर्श पर खड़ा था और कमर से झुक कर माया के स्तनों को चुम रहा था। जल्दी झडने का डर नही था लेकिन इसे ज्यादा देर तक नही कर सकते थे। इस के बाद माया को तैयार भी होना था। 5 मिनट के बाद मैंने माया को उलटा करके पेट के बल लिटा दिया। इस से मुझे आराम हो गया। अब मैं माया की योनि में पीछे की तरफ से प्रवेश कर सकता था। ऐसा ही मैंने किया।
जोर-जोर से झटके मारने के कारण माया के चुतड़ों पर चोट पड़ रही थी। वह लाल हो गये थे मैंने लिंग निकाल कर उसकी गुदा के मुख पर रखा तो माया बोली गांड़ मारने के बाद मैं वहाँ कैसे बैठुगी यह तो सोचिए। मैने फिर से लिंग को योनि में डाल दिया।
इसी बीच माया डिस्चार्ज हो गई। मैंने सांस रोक कर बडे जोर-जोर से लिंग को अन्दर बाहर करना शुरु किया। थोडी ही देर में मैं भी डिस्चार्ज हो गया। मैं भी माया के बगल में लेट गया। मैंने उठ कर माया से पुछा कि टिशु पेपर है उसने इशारे से बताया। मैंने टिशु पेपर निकाल कर अपने लिंग को साफ किया और माया की चूत को भी पोंछा। माया ने करवट बदल कर टिशु पेपर ले कर अपने नीचे के हिस्से को भी अच्छी तरह से पोंछा और उठ कर बैठ गई।

माया - आप अब मेरी कपड़ें पहनने में मदद करो तो मैं जल्दी तैयार हो जाऊँगी।

मैंने कहा बंदा हाजिर है पहले मैं शर्ट पहन कर कपड़ें सही कर लुँ।

मैंने जब तक अपने कपड़ें सही तरह से पहने माया बाथरुम से फ्रैश हो कर आ गई। इस के बाद मैंने उसे ब्लाउज पहनने में मदद करी और पेटीकोट पहना कर साड़ी भी बाँध दी। इस साड़ी मे तो वो और भी सुन्दर लग रही थी।

उसने शीशे में देख कर अपनी लिपस्टिक लगाई। मेकअप टच अप किया। मेरी तरफ घूम कर देखा और कहा कि आप भी टचअप कर लो। मैंने उस से कहा कि वह देख कर कर दे। उस ने मेरे बालों में कंधी की और टाई को सही कर दिया।

माया - आप तो जँच रहे है, चले...  एक बार घूम कर देख ले कही कोई कमी तो नही रह गई है।

मैंने उस के चारों ओर घूम कर देखा और हाँ में सर हिलाया।

मैंने कहा कि छाती पर एक बार टचअप कर ले रंग अलग लग रहा है। वह हंसी और बोली आदमी तो वही पर नजर डालेगे।

मैने कहा कि मैं तो सहायता कर रहा हूँ।

माया ने वहाँ पर पफ लगाया और सेंट छिडका। मैं उस से दूर हट गया।

माया - अब दूर क्यों हो रहे हो? सेंट तुम्हारी पहचान है मुझे परेशानी में डाल देगी। 

माया हंसी - आप तो छुपे रूस्तम निकले।

आप के साथ का असर है।

जीजा जी आप तो ऐसे ना थे

आप की सोहबत का असर है

पहले पता होता तो और मजा आता

जो मिल जाये वही काफी है

चले

हाँ

मैंने कोट पहना शीशे में खुद को निहारा।

सही

जोरदार

माया ने दरवाजा बन्द किया और गाड़ी स्टार्ट कर बाहर निकाली मैंने बाहर के दरवाजे पर ताला लगा दिया। फिर माया कि बगल में बैठ गया।

रास्ते में माया ने कहा कि उसके कुल्हों में दर्द हो रहा है मैंने कहा ये तो होना नही चाहिये। ज्यादा जोर तो नही लगाया था।
आप मर्द लोग अपने बल को समझ नही पाते है।

हमारे लिए तो इतना ही काफी है। अगर मौका मिलता तो पावं कन्धे पर रख कर के करता।

तब तो हो चुका था

अभी ही हालत खराब है।

ध्यान रखना। वहाँ कोई समस्या ना खडी हो।

आप को लगता है मैं कुछ ऐसा करुँगी?

जिसे अपने मनमर्जी की चीज मिली हो वह शिकायत क्यों करेगा।

लेकिन लगता है कि मेरी बहन को आप बहुत तंग करते होगे वो तो दर्द से कराहती होगी

कराहेगी तो जब, जब प्यार करेगी। उसे तो करे महीनों बीत गये है मेरे लबों पर अपनी कहानी आ गई।

आप की कहानी भी मेरी जैसी है।

मैंने आश्चर्य से पुछा, ऐसा क्या?

आज कितने सालों के बाद मैंने यह आनंद लिया है। ये तो सालों से कुछ नही करते।

मैं चुप चाप बैठा रहा। मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रख कर दबाया। वह खोखली हँसी। आप को देख कर मैं आज धैर्य खो बेठी 

लेकिन मुझे गर्व है कि मैं आप के साथ हुँ।

मैंने उस का हाथ और जोर से दबाया।

तभी मंजिल आ गई। गाड़ी खडी कर के माया औरतों के झुड़ में खो गई और मैं पुरुषों के पास चला आया।

शादी की रस्में शुरु होने वाली थी। हम समय से आ गये थे। मेरे फोन की घन्टी बजी। देखा तो अन्जाना नम्बर था।
उठाया तो जानी पहचानी हँसी थी।

कोई और आवाज नही आई। जरुरत भी नही थी।

अज्ञात के नाम से सेव कर लिया।

इस आशा से कि शायद कभी फोन आयेगा और जब आया तो मेरे लिए असमंजस की स्थिती खड़ी कर दी।...........
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#2
UPDATE 1

माया से पहली मुलाकात बहुत रोमांचक थी। मुझे वह बहुत रहस्यमय लगी। उस के बारें में ज्यादा पता नहीं कर पाया, इस लिये रहस्य बना ही रहा। एक दिन ऑफिस में काम कर रहा था तभी फोन बजा, जब उठाया तो नंबर देख कर आश्चर्य से भर उठा।
दूसरी तरफ से वही रहस्यमयी आवाज थी, यहाँ रीगल होटल में रुम नम्बर 202 में ठहरी हूँ तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ, बताओं कितनी जल्दी आ सकते हो ? एक ही साँस में इतने सवाल सुन कर पहले तो मैं अचकचा गया, कुछ बोलता इस से पहले ही खनखनाती हूई आवाज ने कहा कि मैं आप का इंतजार कर रही हूँ। इतना कह कर उस ने फोन काट दिया।

मैं हैरान था कि अब क्या होने वाला है, यह यहाँ क्या करने आयी है? और मुझ से क्यों मिलना चाहती है? इन सब सवालों का जवाब मुझे वही जा कर मिलने वाला था। इस लिये मैंने हॉफ-डे ऑफ लिया और कार ले कर होटल रीगल की तरफ चल दिया। आधे घंटे के बाद होटल पहुँच कर दूसरी मंजिल पर रुम नम्बर 202 की बेल बजाई। दरवाजा खुला और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर घसीट लिया गया।

मैं हैरान सा होटल के सूट में खड़ा था मेरा हाथ माया के हाथ में था। वह मेरे से लिपट गयी और मैंने भी उसे बांहों में भर लिया। कुछ देर तक हम दोनों ऐसे ही एक-दूसरें से लिपटें खड़ें रहे, फिर अलग हो गये। मैं कुर्सी पर बैठ गया और वह मेरे सामने बेड पर पाँव ऊपर करके बैठ गयी। अभी तक मैं चुप था, मुझे चुप देख कर माया बोली कि क्या शॉक लग गया है ? मैंने हाँ में गरदन हिलायी तो वह हँसती हूई बोली कि ऐसा क्या किया है मैंने जो इतने हैरान है? मैं अभी भी चुप था।

यह देख कर वह बेड से उठी और मुझे झकझौर कर बोली कि सपना नहीं देख रहे है, सच में मैं ही हूँ। मैंने कहा कि शॉक तो तुम्हारें फोन से लगा था कि तुम अचानक यहाँ कैसे? लेकिन अब विश्वास हो गया है कि तुम ही हो, मायावी माया। मेरी बात पर उस की खनकती हूई हँसी मेरे कानों में घुल गयी। वह बोली कि आप के सिवा मैं किसी के पास नहीं जा सकती हूँ इस लिये यहाँ चली आयी। मुझे अभी तक कुछ समझ नहीं आया था। वह मेरा चेहरा देख कर बोली कि

आप को कुछ पता नहीं है ?

क्या कुछ ?

मेरे बारे में कुछ भी ?

नहीं

मेरी इतनी चिन्ता करते है ?

तुम्हारी चिन्ता नहीं करता

क्यों ?

तुम अपनी चिन्ता खुद कर सकती हो, ऐसा मेरा मानना है

इस लिये मेरे बारे में कुछ पता नहीं रखते

अब बता भी दो, क्या हुआ है ?

सच बोल रहे है

हाँ भई हाँ

मैं आजाद हो गयी हूँ

किस से

अपने बंधन से

कुछ समझा नहीं

इनकी मृत्यु हो गयी है, चार महीने पहले

सॉरी, मुझे पता नहीं था

आप क्यों सॉरी हैं

तुम्हारें साथ बुरा हुआ

कौन कह रहा है कि बुरा हुआ है

मैं कुछ समझा नहीं

उस रात के बाद भी कुछ समझ नहीं आया था आप को

कुछ-कुछ समझ आया था लेकिन इस बारें में ज्यादा पता नहीं कर पाया

अच्छा किया पता नहीं किया, कोई कुछ बताता नहीं

क्या हुआ?

अचानक हार्ट अटैक आया और कुछ कर नहीं पाये।

मैं अब उस संबध से आजाद हूँ, मुझे कोई रोल करने की आवश्यकता नहीं है। सारा बिजनेस मेरे नाम हो गया है और मैंने उसे बेच कर यहाँ बसने का फैसला कर लिया है।

बढिया है

आप को मेरा साथ देना है, मैं आप के पास ही आयी हूँ या यह कहे की आप के सर पर लदने आ गयी हूँ।

कोई बात नहीं है, तुम्हारा साथ जरुर दुँगा, आखिर साली जो हो

खाली साली ?

कोई नाम देना जरुरी है ?

नहीं मुझे किसी नाम की अब जरुरत नहीं है, मुझे बस आप का साथ चाहिये।

इतनी बड़ी बात इतनी आसानी से कैसे कह सकती हो ?

आप के साथ इतने कम समय रह कर ही मैं आप को पहचान गयी हूँ, तभी तो इतना बड़ा फैसला किया है। मेरी नजरें पहचानने में धोखा नहीं खाती है।

पहले क्या करोगी ?

मकान खरीदूँगी, कुछ के बारें में पता किया है, आप के साथ चल कर देख लेती हूँ।

तुम्हारी दीदी को कैसे बताना है ?

वो सब आप मुझ पर छोड़ों, मैं सब संभाल लुँगी। आप तो अपनी कहो।

अब और क्या सुनना चाहती हो ?

जो सुनना चाहती हूँ वह पता है कि नहीं हो सकता है।

क्या नहीं हो सकता है, इतना सब तो हो चुका है।

वह तो अचानक हुआ था, अब जो होगा वह सोच समझ कर होगा।

हाँ यह तो है उस की तैयारी करनी पड़ेगी। सोचना पड़ेगा कि उस का सब पर क्या असर पड़ेगा ?

सोचने का ही काम है अब मेरे पास, और कोई काम नहीं है, पैसे की चिन्ता नहीं है। जीवन को दूबारा पटरी पर लाने की सोच रही हूँ।

वह भी पटरी पर आ जायेगी। चिन्ता मत करों।

यह कह कर मैं कुर्सी से उठा और माया को बेड से उठा कर अपने से आलिंगन बद्ध कर लिया, वह भी लता की तरह मेरे से लिपट गयी। मेरे होंठ उस के होंठों से जुड़ गये और हम दोनों चुम्बनलीन हो गये। मेरी बाँहों का कसाब उस की पीठ पर कस रहा था, वह बोली कि दम मत निकालों, नहीं तो किसी काम की नहीं रहुँगी। यह सुन कर मैंने बाँहों का कसाब ढ़ीला किया। फिर उसे बाँहों से मुक्त कर दिया।

हम दोनों बेड के किनारे पर बैठ गये। कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने उस से पुछा कि खाना खा लिया है? तो वह बोली कि नहीं यहाँ आ कर तुम्हारा चेहरा देखे बिना कुछ खाना नहीं था। उस की यह बात सुन कर मैंने उस से कहा कि जब मेरे से इतना प्यार है तो बीच में कभी याद क्यों नहीं किया?

वह बोली कि इस प्यार की वजह से ही तो जिन्दा हूँ नहीं तो कब की मर जाती, लेकिन लाज-शर्म की वजह से और दीदी को धोखा देने के भय से अपने पर काबु रखा, लेकिन अब काबु नहीं रहा। इस लिये आप के पास चली आयी।

मैंने उस की पीठ के पीछे से बाँह कर के उसे अपने से सटा लिया। हम दोनों के पास शब्द खत्म हो गये थे। काफी देर तक दोनों ऐसे ही बैठे रहे। फिर मैंने कहा कि चलों कहीं बाहर चलते है खाना खाने। माया बोली यही सही रहेगा। हम दोनों ने अपने कपड़ें सही किये और रुम का दरवाजा लॉक करके दोनों निकल लिये। होटल से कार ले कर मैं एक रेस्टारेंट में आ गया। यहाँ हम दोनों नें भरपेट खाना खाया।

खाने के बाद माया बोली कि मुझे कुछ कपड़ें खरीदने है कहीं चलो। मैंने कहा चलो चलते है और हम दोनों एक बड़ी मॉल के लिये चल दिये।
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#3
UPDATE 2

मॉल पहुँच कर माया की आँखें चौधियाँ गयी और वह बोली कि मैं तो यहाँ पागल हो जाऊँगी। मैंने कहा कि वह तो तुम पहले से ही हो दुबारा क्या होगी? तो वह मेरी तरफ आँखें तरेर कर बोली कि अच्छा ऐसे विचार है आप के मेरे बारे में।

मैं हँस दिया और हम दोनों कपड़ों की बड़ी दूकान में घुस गये। कुछ वेस्टर्न कपड़ें खरीदने के बाद मैंने माया से कहा कि मैडम कुछ अंडर गारमेंट भी ले लो तो वह बोली कि आप ने अच्छा याद दिलाया। हम अंडर गारमेंट के सेक्शन में आ गये। मैंने सेल्सगर्ल को बुला कर कहा कि मैडम का सही साइज ले कर मैडम को ब्रा दिखायो और पेंटी सेट भी दो। मेरी बात सुन कर माया ने मुझे हैरानी से देखा तो मैंने उस से आँखें चुरा ली।

वह सेल्सगर्ल के साथ चली गयी। काफी देर बाद ट्रायल रुम से बाहर आ कर मेरी बाँह पकड़ कर बोली कि आप को कैसे पता कि मेरा साइज गलत है ? मैं मुस्कराया तो वह बोली कि मैं तो भुल ही जाती हूँ कि आप तो ऑलराउंडर है। मैंने सर झुका कर धन्यवाद दिया तो वह मेरी चुकुटी काट कर बोली कि ऐसा कुछ है जो आप को पता नहीं है ?

मैं हँस गया और बोला कि बहुत कुछ है जो मैं नहीं जानता। वह और मैं बिल देने के लिये काउंटर पर पहुँच गये। उस ने पर्स से कैश निकाल कर भुगतान कर दिया। सामान ले कर हम मॉल से बाहर निकले तो शाम घिर आयी थी, मैंने पुछा कि खाना खाना है तो वह बोली कि होटल में रुम में ऑडर कर देगे।

उस की बात मान कर मैं कार की तरफ चल दिया। सामान कार में रख कर हम दोनों वापस होटल के लिये चल दिये। होटल पहुँच कर सामान ले कर उस के रुम पर आ गये। वह बोली कि बोलों क्या खाना खाना है? मैंने कहा कि जो उसे पसन्द हो, मेरी बात सुन कर वह फोन पर ऑडर करने लग गयी।

इस के बाद मेरी तरफ घुम कर बोली कि उस दिन तो आप ने ऊपर हाथ ही लगाया था फिर भी आप को कैसे पता चला कि मेरी ब्रा का साइज गलत था। मैंने कहा कि तुम्हारें ब्लाउज उतारते ही मुझे पता चल गया था कि तुम्हारा साइज गलत है, वह बोली कि ऐसा कैसे पता चला? मैंने कहा कि नजर है पता चल जाता है। वह हँसी और बोली कि आप की इस बात से मेरी चिन्ता बढ़ गयी है कि मेरा प्रेमी कितनों को जानता है?

मैं उस की बात सुन कर बोला कि दो को ही जानता हूँ एक तुम्हारी बहन यानी मेरी बीवी और अब दूसरी तुम, इस पर तुम विश्वास करो या ना करो लेकिन यही सही है। वह मुस्करायी और बोली कि इस बात पर विश्वास नहीं होता कि कोई व्यक्ति एक बार में ही खुले वक्ष को देख कर बता दे कि ब्रा गलत साइज की पहन रखी है। लेकिन उस दिन तो ब्रा भी नहीं पहन रखी थी।

मैंने उसे बताया कि उस का ब्लाउज उस की छाती पर इतना कसा था कि उस का वक्ष सामने से दबा हुआ था, इसी लिये मैंने कहा कि तुम्हारी ब्रा का साइज गलत है। ब्लाउज का साइज भी गलत था। इतनी सी बात है यह बात पहली बार में ही पकड़ ली थी। मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर संतोष के भाव आये।

मैंने उसे बताया कि मैं देख कर एक-दो एमएम का अंतर भी पकड़ सकता हूँ, तुम्हारा तो इंच से ज्यादा का था। वह हँस कर दोहरी हो गयी और बोली कि आप की माया आप ही जानो, लेकिन मैं तो डर गयी थी कि आप ऐसे विषय पर इतनी जानकारी कैसे रखते है? तभी बेल बजी और वेटर खाना ले कर आया और खाना लगा कर चला गया।

हम दोनों खाना खाने लगे, खाना खाने के बाद मैंने माया से पुछा कि कल का क्या प्रोग्राम है तो वह बोली कि कल मैं दीदी को फोन करके बात करती हूँ फिर पता चलेगा क्या करना है। रात हो रही थी इस लिये मैं उस से विदा ले कर वापस घर चला आया।

सुबह जब ऑफिस पहुँचा तो कुछ देर बाद ही पत्नी का फोन आया कि माया यहाँ आई हुई है और होटल में रुकी हुई है, तुम उसे होटल से लेकर घर छोड़ जाओं, वह मुर्ख मेरे होते हुये होटल में रुकी है। उस से पुछा कि कौन सा होटल है और रुम नंबर क्या है। उस ने सब मुझे बता दिया, मैं ऑफिस से निकल कर होटल पहुँचा और माया का चैक आऊट करा कर उस का सामान गाड़ी में रख कर घर की तरफ चल दिया।

रास्तें में मैंने उस से पुछा कि कपड़ों के थेलें कहाँ है? तो वह बोली कि कपड़ों के टैग वगैरहा हटा कर उन के थेलें फैक दिये है, दीदी को पता नहीं चलना चाहिये कि कल मैं आप के साथ थी, नहीं तो सब कुछ गड़बड़ हो जायेगा। मैं मुस्करा दिया घर पहुँच कर दोनों बहनें गले मिल कर रोने लगी।

पति की मौत के बाद माया पहली बार पत्नी से मिली थी। जब दोनों शांत हो गयी तो मैंने पत्नी से पुछा कि और कोई काम तो नहीं है, नहीं तो मैं वापिस ऑफिस जाऊँ, तो बीवी बोली कि नहीं इसे यहाँ छोड़ना था, अब तुम ऑफिस चले जाओ।

शाम को आते में कुछ काम हुआ तो मैं बता दूँगी। मैं ऑफिस के लिये निकल गया। शाम को जब ऑफिस से निकलने लगा तो पत्नी से फोन करके पुछा कि कहो तो खाना लेता आऊँ तो वह बोली कि मैं भी यही कहने वाली थी जो तुम्हें पसन्द हो लेते आना।

मैं आते में तीन लोगों के लिये खाना लेता आया। जब सब खाना खाने बैठे तो माया बोली कि जीजा जी आप की पसन्द तो बढ़िया है, खाना स्वादिष्ट है। पत्नी बोली कि इन की पसन्द तो लाजवाव है इस के दो राय नहीं है।

मैं चुपचाप अपनी प्रशंसा सुनता रहा। रात तो जब सोने लगे तो पत्नी ने बताया कि अब माया इसी शहर में रहेगी। उसे पास में ही कोई मकान दिलवाना है। ताकि हम उस का ध्यान रख सके। मैं उस की बात सुनता रहा। मैंने कुछ ज्यादा नहीं पुछा, क्योंकि मैं उस के मन में शंक उत्पन्न नहीं करना चाहता था।

सुबह रविवार था सो ऑफिस नहीं जाना था, सुबह बिस्तर में ही था कि माया चाय ले कर आ गयी। यह देख कर बीवी बोली कि तुझें यह सब करने की आवश्यकता नहीं है। माया बोली कि जैसे तुम चाय बना कर लाती वैसे ही मैं भी ले आयी हूँ इस में क्या बात है?

उस की बात सुन कर पत्नी से जबाव नहीं दिया गया। तीनों चाय पीने लगे। चाय पीने के बाद मैं बाहर अखबार लेने चला गया। अखबार ले कर बाहर के कमरे में उसे पढ़ने बैठ गया। तभी माया आयी और बोली कि जीजा जी नाश्ते में क्या खाना है?

उस की बात सुन कर मैं बोला कि माया अब यह ज्यादा हो रहा है अभी तो आयी हो थोड़ा आराम कर लो, बाद में यह सब काम कर लेना। वह बोली कि आप भी दीदी के साथ मिल गये है। मैंने कहा कि हाँ उस के साथ ही हूँ कुछ दिन आराम करो फिर सब कर लेना, अभी तो कुछ दिन दीदी के आथिथ्य का आनंद लो।

तभी पत्नी भी आ गयी और बोली कि अब तो तेरे जीजा जी ने भी कह दिया है, उन की बात तो तुम मानती ही हो। माया बोली कि यह तो आप दोनों गलत बात कर रहे हो। ऐसे तो मैं आलसी बन जाऊँगी। पत्नी बोली कि, तु चिन्ता मत कर बहुत काम करायेंगे हम दोनों।

माया बोली कि अब क्या करुँ ? मैंने कहा कि नहा लो, सामान वगैरहा निकाल कर अलमारी में सजा लो। दीदी के साथ मिल कर घर देख लो। बहुत काम है करने के लिये। दोपहर में मैं तुम्हें काम बताऊँगा।

वह मेरी बात सुन कर मुस्करा कर चली गयी। पत्नी बोली कि आज पहली बार इस के चेहरे पर मुस्कराहट देखी है, तुम्हारी बात मान लेती है। मैंने कहा कि जीजा भी तो हूँ मैं। पत्नी भी चली गयी और मैं अखबार पढ़ने में मग्न हो गया।

कुछ देर बाद मेरे कानों में आवाज पड़ी कि आज क्या सारा अखबार चाटना है? सर उठा कर देखा को माया गिले सिर पर तौलिया लपेटे खड़ी थी। बड़ी सुन्दर लग रही थी। मैंने उसे देखा और अखबार बंद कर के रख दिया। फिर उस को देख कर पुछा कि साली जी बताओ क्या आज्ञा है? वह बोली कि नहा ले नहीं तो ऐसे ही नाश्ता करने के लिये चले। मैंने कहा कि एक दिन तो मिलता है देर से नहाने का, इस लिये ऐसे ही नाश्ता दे दो।

यह कह कर मैं उस के साथ चल दिया। वह आगे चल रही थी और मैं पीछे-पीछे उस की मस्त हथिनी की जैसी चाल देख रहा था। डाइनिग टेबल पर पत्नी नाश्ता लगा कर इंतजार कर रही थी। मुझे देख कर बोली कि अब तुझे पता चला कि तेरे ये पसन्दीदा जीजा जी कैसे है, छुठ्ठी के दिन तो इन से कोई भी काम करवाना बहुत मुश्किल काम है।

मैंने दोनों से माफी माँगी और कहा कि तुम आवाज दे देती, मैं आ जाता। मेरी बात सुन कर दोनों हँस पड़ी कि आप को सच में नहीं पता कि हम दोनों कितनी देर से आप को आवाज दे रहे थें। मैंने कानों को हाथ लगा कर कहा कि सच में, मैं अखबार पढ़ने में इतना डुब गया था कि कुछ भी ध्यान नहीं रहा। यह कह कर मैं मेज पर नाश्तें की प्लेट अपने आगे करके बैठ गया। माया बोली कि अब आप कुछ देर इंतजार करों, चाय दूबारा बनानी पड़ेगी। यह कह कर वह किचन में चली गयी।

पत्नी ने मेरी तरफ आँखें तरेर कर कहा कि आज तो पता नहीं तुम कहाँ खो गये थे। पहले तो ऐसे नहीं थे। मैंने कहा कि यार सच में अखबार पढ़ने में कुछ सुनायी ही नहीं दिया। कुछ देर बाद माया चाय ले कर आ गयी और हम तीनों चाय के साथ नाश्ता करने लगे। पत्नी बोली कि अब पहले नहाने जाना फिर और कोई काम करना। नहीं तो शाम तक ऐसे ही घुमते रहोगे।

उस की बात सुन कर माया बोली कि नहाने में भी बहाने, मैंने उसे देख कर कहा कि भाई आज के दिन हम एक दिन के बादशाह है इस लिये माबदौलत कोई काम नहीं करते है। मेरी बात पर दोनों हँस कर दोहरी हो गयी। मैं उन को हँसता छोड़ कर नहाने भाग गया। लेकिन जब नहा लिया तो पता चला कि तौलिया तो ले कर आया ही नहीं था। अब क्या करुँ ? पत्नी को आवाज लगायी तो माया की आवाज आयी की क्या है?

मैंने कहा कि दीदी को भेज, वह हँस कर पत्नी को बुलाने चली गयी। पत्नी के आने पर मैंने उसे बताया कि मेरा तौलिया बाहर रह गया है उसे दे दो। पत्नी भी हँस कर चली गयी किसी की आवाज आयी तो मैंने हाथ बाहर निकाला तो तौलिये की जगह हाथ पकड़ लिया, मुझे लगा कि पत्नी मजाक कर रही है, मैंने उसे डाट कर कहा कि यार अभी मजाक करने की सुझी है जब तुम्हारी बहन घर में है नहीं तो मैं ऐसे ही बाहर आ जाता, मेरी बात पर किसी परिचित की खनकती हँसी सुनायी दी और हाथ में तौलिया पकड़ा दिया गया।

मैं जब तौलिया लपेट कर बाहर आया तो देखा कि कोने में माया खड़ी मुझे देख रही थी। उस के इस रुप से मुझे डर लगा कि कहीं पत्नी को सब पता ना चल जाये लेकिन इस पर उसे कुछ कहना उचित ना समझ कर मैं बेडरुम में कपड़ें पहनने चला गया। कपड़ें पहन कर निकला तो देखा कि माया अभी तक वहीं खड़ी थी। मुझे देख कर बोली कि गीला तौलिया मुझे दे दे, मैं उसे सुखा कर आती हूँ यह कह कर वह तौलिया मेरे हाथ से ले कर चली गयी।

मैं पत्नी को ढुढ़ने लगा तो वह मुझे मिली नहीं, जब छत पर पहुँचा तो मैडम वहाँ कपड़ें सुखा रही थी। माया भी बहन के साथ कपड़ें सुखाने में मदद कर रही थी। मुझे देख कर दोनों बोली कि अब साहब खुद ही सुखने के लिये आ गये है। मैं हँस पड़ा और बोला कि हाँ ऐसा कह सकती हो।

मुझे कपड़ों में देख कर पत्नी बोली कि कहीं जा रहे हो तो मैं बोला कि बाहर जा रहा हूँ कुछ मगाँना तो नहीं है तो वह बोली कि माया को साथ ले जाओ, इसे यहाँ के बारे में पता चल जायेगा। पनीर लेते आना। फिर वह माया से बोली कि जो सब्जी तुझे पसन्द हो वह भी लेतीआना।

मैं स्कूटर निकाल कर माया को बिठा कर बाजार को चला तो वह बोली कि आप से अच्छा तो मैं चला लेती हूँ, मैंने कहा कि कार ज्यादा चलाने के कारण स्कुटर अब तेज नहीं चलता है। बाजार पहुँच कर मैं माया को साथ ले कर सब्जी खरीदने चल दिया तो माया बोली कि आप किस लिये बाजार आये थे?

मैं चुप रहा तो वह बोली कि क्या मेरे साथ आने के लिये बहाना किया था। मैंने कहा कि नहीं मुझे यहाँ से कुछ खरीदना था सो आना पड़ा तो वह बोली कि अब खरीद क्यों नहीं रहे? मैंने कहा कि पहले तुम सब्जी खरीद लो, पनीर ले लो फिर वापिस जाते में मैं उसे भी खरीद लुगा।

वह चुप रही, उस का सामान खरीदने के बाद मैं वाइन की दूकान के सामने माया को खड़ा करके अंदर चला गया तो माया भी मेरे साथ ही अंदर आ गयी और बोली की बाहर बहुत धुप है। मैंने स्काच की बोतल खरीदी और जब बाहर आया तो माया बोली कि सीधी तरह से नहीं बता सकते थे कि शराब लेनी है। मैंने कहा कि पता नहीं था कि तुम कैसे रियेक्ट करती ? इस लिये झिझक रहा था।

वह बोली कि मैं भी पी लेती हूँ। आगे से ध्यान रखना, मैंने पुछा कोई खास पसन्द तो वह बोली कि रेड वाइन पसन्द है लेकिन आज नहीं, नहीं तो दीदी को जबाव देना मुश्किल हो जायेगा। अब आप के साथ कुछ और मजा आयेगा।

रास्ते भर हम दोनों चुप रहे। पत्नी को सारा सामान दे कर मैं बोतल अलमारी में रखने चला गया। वापस लौटा तो बीवी बोली कि साली से क्या शर्म ? जब पीते हो तो पीते हो। मैंने कहाँ कि मुझे कोई शर्म नहीं है। बात यहीं खत्म हो गयी।

दोपहर के खाने के बाद मैं सोने चला गया। हफ्तें भर की नींद की पूर्ति आज ही हो पाती है। शाम को पत्नी ने झकझौर कर उठाया और कहा कि चलो उठ कर चाय पी लो। मैं उठ कर डाइगरुम में आ गया। मेज पर चाय के साथ पकोड़ें रखे थे। मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से पत्नी की तरफ देखा तो वह बोली की तुम्हारी साली ने बनाये है, बोली कि पकोड़ें तो जीजा जी को अच्छे लगते होगे?

मैंने माया कि तरफ देख कर कहा कि पकोड़ों के लिये धन्यवाद तुम्हारी दीदी और पकोड़ों का छत्तीस का आकड़ा है, मेरी इस बात पर पत्नी ने मेरी तरफ आँख तरेर कर देखा। हम तीनों पकोड़ों का आनंद उठाने लगे। पकोड़ें स्वादिष्ट बने थे। खा कर मजा आ गया। पत्नी बोली कि अब तुम्हारी साली तुम्हारें ऐसे शौकों को पुरा करेगी।

पत्नी बोली कि हम दोनों बाजार घुमने जा रहे है। तुम्हें कोई काम तो नहीं है? मैंने ना में सर हिलाया। दोनों तैयार हो कर बाजार चली गयी। मैं अकेला घर में रह गया। मैंने फोन चैक किया कि कहीं माया की कॉल तो नहीं पड़ी है लेकिन कोई कॉल नहीं थी।

बैठ कर टीवी पर पोर्न देखने बैठ गया। सेक्स की ललक जग रही थी लेकिन पता नहीं था कि कब करने का मौका मिलेगा। पत्नी जी की हाँ का कोई पता नहीं था। माया के साथ करने की सोच भी नहीं सकता था। कोई भी जल्दबाजी भारी पड़ सकती थी।

कोई रास्ता ना देख कर पोर्न ही देख कर काम चलाना पड़ रहा था। दो घंटे तक पोर्न देखता रहा। फिर बंद कर दिया कि पता नहीं दोनों कब लौट आये। मेरा सोचना सही निकला, टीवी बंद करते ही घंटी बज गयी, बाहर दोनों सामान से लदी हुई खड़ी थी। दोनों का सामान उन के हाथों से ले कर मैं अंदर आ गया। बीवी बोली कि मैं तो थोड़ा सा सामान लायी हूँ बाकि तो माया का है। मैं कुछ नहीं बोला।

रात को खाना खाने के बाद मैं पैग बना कर टीवी देखने बैठ गया, दोनों बहनें बेडरुम में थी, तभी माया आयी और मेरे गिलास से सिप मार कर बोली कि स्वाद तो अच्छा है, मैंने पुछा कि पैग बनाऊँ तो वह बोली कि नहीं अभी नहीं। वह वापस चली गयी। मैं अपना पैग खत्म कर के दूसरा पैग बना कर बैठ गया। पैग खत्म होने के बाद सोने चला गया। रात को बिस्तर पर पत्नी तैयार मिली और काफी दिनों के बाद दोनों ने जोरदार सेक्स का आनंद उठाया।

अगला दिन सोमवार था सो मैं तो ऑफिस के लिये चला गया। शाम तक मेरी किसी से कोई बात नहीं हुई। जब घर आया तो पत्नी से पुछा कि कैसा दिन बीता तो वह बोली कि पता ही नहीं चला कि दिन कब बीत गया। हम दोनों बातें बनाने में लगी रही, फिर इसे जरुरी सामान दिलाने के लिये बाजार चली गयी। वहाँ से वापस आये तो तुम ऑफिस से आ गये हो, अब चाय पी कर रात के खाने की तैयारी करते है।

रात को खाने पर पत्नी बोली कि मुझे तीन दिन के लिये बहन के पास जाना है, क्या करुँ, मैंने कहा तुम और माया दोनों चली जाओं तो माया बोली कि मैं तो वही से आयी हूँ अब वहाँ नहीं जाना चाहती। उस की बात सुन कर मैं चुप हो गया। पत्नी बोली कि मेरे पीछे माया के होने से तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी, इसी को केवल समय अकेले बिताना पड़ेगा। पत्नी की बात सुन कर माया बोली कि उस की तो मुझे आदत है।

मैंने उसी समय दूसरे दिन की पत्नी की ट्रेन की टिकट बुक करा दी। ट्रेन दोपहर में जाती थी सो अगले दिन ऑफिस से बीच में आ कर पत्नी को ट्रेन में बिठा आया और वापस ऑफिस आ गया। शाम को जब घर पहुँचा तो माया बोली कि दोपहर में आप फोन तो कर सकते थे? मैंने उसे बताया कि मुझे ऑफिस में दम मारने की फुर्सत नहीं मिलती है। इसी वजह से घ्यान में होने के बावजूद फोन करना भुल गया।

मैंने इस के लिये माया से सॉरी कहा तो वह बोली कि सॉरी माँगने की जरुरत नहीं है, जाते समय दीदी सब बता कर गयी है कि इन्हें ऑफिस जा कर घर फोन करने का समय नहीं मिलता है इस लिये चिन्ता मत करना और ना नाराज होना। ये ऐसे ही है। उस की बात सुन कर मैं मुस्करा दिया और बोला कि चलों मेरी प्रशंसा शुरु हो गयी।

मैंने माया से पुछा कि तुम्हें पता है क्यों तुम्हारी दीदी तुम्हें और मुझे अकेला छोड़ गयी है? उस ने ना में सर हिलाया तो मैंने कहा कि वह हम दोनों को चैक करना चाहती है। माया को विश्वास नहीं हुआ, मैंने उसे बताया कि वह जितनी सीधी है, उतनी ही तेज है लेकिन वह तेजी दिखाती नहीं है। इस लिये हम दोनों अच्छें बच्चें बन कर रहेगे। मेरी बात पर वह भी मुस्करा दी और बोली कि होगा तो वही जो दीदी चाहती है। मैंने हाँ में सर हिलाया।

वह बोली कि मुझ से कोई गल्ती हो जाये तो मुझे बता जरुर देना। मैं बोला कि क्या बताऊँगा कि तुम ने नमक कम डाला है या चीनी कम है, छोडो़ं अब हम दोनों की यह सब करने की उम्र नहीं रही। तुम जो करोगी सही करोगी ऐसा मेरा विश्वास है।

मेरी बात पर माया बोली कि मुझ पर इतनी जल्दी इतना विश्वास कैसे हो गया? जैसे तुम को हो गया है, वैसे ही मुझ को हो गया है। मेरी बात पर वह बोली कि दीदी सही कहती है कि आप से बातों में कोई नही जीत सकता।

फिर वह मेरी नाक हिला कर चाय बनाने चली गयी। रात के खाने पर मैंने पुछा कि सारा दिन क्या करा? तो वह बोली कि आप के जाने के बाद नहा धो कर घर साफ करके मैं तो सोने चली गयी और दोपहर तक सोती रही। और सोती रहती लेकिन दीदी के फोन ने जगा दिया। वह पहुँच गयी थी इसी बात की सुचना उन्होनें मुझे दी थी।

इसके बाद मैंने नाश्ता या कहो खाना बनाया और खाने के बाद कपड़ें वगैरहा लगाने लग गयी। पुराना सब वही छोड़ दिया था सो सब कुछ नया लेना पड़ रहा है। इसी में लगी थी कि आप आ गये थे। खाने के बाद हम दोनों कुछ देर बातें करते रहे, मैं बहुत थका था सो सोने चला गया, कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला।
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#4
UPDATE 3

सुबह अलार्म बजा ही था कि माया चाय ले कर आ गयी। नाइट सुट में सुन्दर लग रही थी । मुझे घूरते देख बोली कि क्या खाने का इरादा है? मैंने कहा कि हाँ इरादा तो है लेकिन अभी मौका नहीं है। वह मेरे पास बेड पर आ कर बैठी और मेरा सर प्यार से हिला कर बोली कि अच्छे बच्चें बन कर रहो नहीं तो शिकायत कर दूँगी। मैंने कहा कि हाँ भई पता है।

मैं चाय पी कर उठ गया और बाथरुम में घुस गया। वहाँ से जब निकल कर वाशरुम में नहाने के लिये गया तो अंदर जा कर देखा कि मेरी तौलिया तथा ब्रीफ और बनियान टंगी हुई थी। यह देख कर मुझे बहुत खुशी हुई क्यों कि यह मैं बहुत पहले से चाहता था लेकिन मेरी पत्नी को ऐसा करना पसन्द नहीं था।

उस का कहना था कि अपना काम है खुद किया करो। मैं तुम्हारा काम क्यों करुँ? मैं उस से बहस नहीं कर सकता था। सो ऐसे ही काम चल रहा था। नहा कर कपड़ें पहन कर निकला तो माया ने पुछा कि अंडर गार्मेंट सही रखे थे।

मैंने प्रश्नवाचक मुद्रा में उसकी तरफ नजर घुमायी तो वह बोली कि ब्रीफ का रंग और बनियान सही थी या नहीं? मैंने कहा दोनों सही थी। मैं ऐसा ही चाहता हूँ तो वह बोली कि आगे से आप को परेशानी नहीं होगी, मैं इस बात का ध्यान रखुँगी। मैं उस के सर पर चपत लगा कर बेडरुम में कपड़ें पहनने चला गया।

नाश्ते की मेज पर बैठा तो मैंने माया से कहा कि वह भी मेरे साथ नाश्ता कर ले तो वह बोली कि मुझे अभी नहाना है, उस के बाद नाश्ता करुँगी। उस ने मेरा लंच बना कर पैक कर दिया था सो मैं उसे लेकर ऑफिस के लिये निकल गया।

ऑफिस पहुँच कर मुझे ध्यान आया कि माया ने कल भी नाश्ता नहीं किया था, इस लिये आज उस से फोन करके पुछ लेना सही रहेगा। मेरी मीटिंग थी लेकिन मैंने घर फोन लगाया और माया से पुछा कि उस ने नाश्ता कर लिया तो वह बोली कि यह आप को कैसे ध्यान आ गया?

मैंने कहा कि यह बाद में बताऊँगा, पहले तुम बताओं तो वह बोली कि नहीं किया है अभी करती हूँ। मैंने पुछा कि दूबारा फोन करुँ तो वह हँस कर बोली कि इतना लाड़ मत करों, मुझ से हजम नहीं होगा। इस के बाद मैं मीटिंग में चला गया।

शाम को ऑफिस से निकला तो वाइन शॉप चला गया और एक रेड वाइन की वॉटल खरीद ली। घर पहुँच कर वाइन की बोतल छुपा कर रख दी । चाय पीते समय मैंने पुछा कि नाश्ता किया तो वह हँसी और बोली कि हाँ नाश्ता भी किया और लंच भी किया था। मुझे पता लग गया है कि आप को मेरी चिन्ता है।

रात के खाने से पहले में स्काच का पैग बना कर पीने बैठा तो मैंने माया से कहा कि वह भी मेरा साथ दे तो वह बोली कि नहीं इतनी हार्ड नहीं पीनी है। मैं उस की बात सुन कर उठा और रेड वाइन की बोतल ला कर उस के हाथ में दे दी, उसे देख कर वह बोली कि मुझे अकेले ही पीनी पड़ेगी। मैंने कहा मैं साथ दे रहा हूँ ना।

मेरी बात सुन कर वह भी गिलास में वाइन डाल कर मेरे साथ बैठ कर पीने लगी। पीते हुये बोली कि आज इतनी सारी बातें कैसे याद रही आपको? मैंने कहा कि दिमाग को मोड़ना पड़ता है, किसी-किसी दिन काम की अधिकता के कारण कुछ सोच ही नही पाता। माया मेरी बात समझ कर बोली कि हाँ यह तो मैं समझ सकती हूँ कि नौकरी करना आसान नहीं है और लोगों से काम करवाना तो और ज्यादा मुश्किल काम है।

मेरे को आप की व्यस्तता से कोई शिकायत नहीं है। लेकिन ऐसे ही कभी-कभी हमें याद कर लिया करें तो अच्छा लगता है। मैंने हाँ में सर हिलाया। हम दोनों नें दो-दो पैग पीये और उस के बाद खाना खाने बैठ गये। थोड़ा बहुत नशा तो चढ़ ही गया था। लेकिन दोनों को पता था कि सीमा का उल्लघन नहीं करना है, सो दोनों चुपचाप अपने-अपने कमरें में जा कर सो गये।

सुबह जब माया चाय लाई तो बोली कि आज सर घुम रहा है, मैंने कहा हैगऑवर है थोड़ी देर में उतर जायेगा तो वह बोली कि कल ज्यादा तो नहीं पी थी। मैंने कहा, नहीं दो ही पैग लिये थे हो सकता है तुम ने बहुत समय के बाद पी है इस लिये ऐसा हुआ है। वह कुछ नहीं बोली और चाय पीती रही। फिर उठी और मेरे माथे को चुम कर चली गयी। मैं भी अपने नित्य के कामों में लग गया।

नाश्ते के समय मैंने उस से कहा कि खाली समय में टीवी पर फिल्म देख ले तो वह बोली कि कल कोशिश की थी लेकिन कुछ हुआ नहीं। मैंने कहा कि मैं आज उस को समझा कर जाता हूँ कि फिल्म कैसे मिलती है। नाश्ते के बाद मैंने माया को समझाया कि फिल्म कैसे ढुढ़ कर देख सकती है वह बोली कि यहाँ तो भंडार भरा है, अब कोई समस्या नहीं आयेगी। मैं जब चलने लगा तो मैंने माया के होंठों पर हल्का सा चुम्बन दे दिया, जैसा में अक्सर जाते समय अपनी पत्नी के होंठों पर दिया करता हूँ। माया के चेहरे पर चमक आ गयी, मैं घर से निकल गया।

शाम को घर आने से पहले माया से पुछा कि कुछ खाना ले कर आऊँ तो वह बोली कि पिज्जा खाना है। मैंने कहा कि कौन सा? तो वह बोली कि जो आप को पसन्द हो। मैं घर आते में बड़ा पिज्जा पैक करा कर ले आया। चाय के बाद मैं नहाने के लिये जाने लगा तो माया बोली कि खाली तौलिया दूँ या कुछ और?

मैंने तौलिया लिया और कपड़ें बदलने बेडरुम में चला गया। कपड़ें बदल रहा था तभी माया कमरे में आयी और मुझे कपड़ें बदलते देख बाहर जाने लगी तो मैंने कहा कि तौलिया तो दे जाओं, उसे ही पहन कर तो जाऊँगा।

वह मुस्करायी और बोली कि यहाँ कौन देख रहा है आप कैसे भी जा सकते हो। मैं उस की तरफ लपका तो वह तौलिया मुझ पर फैंक कर बाहर भाग गयी। मैं नहाने के बाद तौलिया लपेटे ही कमरे में आ रहा था कि माया फिर सामने पड़ गयी और बोली कि इतनी शर्म किस बात की है? मैंने कहा कि कोई शर्म नहीं है बचपन से ऐसी ही आदत है, अब बदलती नहीं है। मैं कमरे में आ कर बारमुदा पहन कर ड्राइगरुम में आ कर बैठ गया।

वह पिज्जा गरम कर के ले आयी। मैंने पैग बनाया तो वह भी वाइन गिलास में डाल कर आ गयी और हम दोनों शराब और पिज्जा की दावत उड़ाने लगे। पिज्जा खा कर मजा आ गया था। माया ने मुझ से पुछा कि आप आज कल मेरे पर ही इतने मेहरबान है या दीदी पर भी ऐसी मेहरबानी होती रहती है ? मैंने जबाव दिया कि दीदी आये तो उन से ही पुछना, वही जबाव देगी।

मैं जब सोने के लिये जाने लगा तो वह मेरे से पीछे से लिपट गयी और बोली कि किस तो कर ही सकते हो। मैंने उसे पकड़ कर अपने सामने किया और उस को होंठों पर जोरदार चुम्बन दे दिया। बात आगे ना बढ़े इस लिये जल्दी से बेडरुम में चला गया, इतनी देर में ही मेरे महाराज में तनाव आ गया था।

कुछ देर और साथ रहते तो सारा कंट्रोल हाथ से निकल जाना था। दरवाजा बंद नहीं किया था। माया मुझे दरवाजे पर दिखायी दी मैंने उसे सॉरी कहा और चद्दर ऊपर कर ली। वह भी चुपचाप चली गयी।

सुबह चाय पीते समय वह बोली कि आप सब कुछ समझते हो लेकिन मुझ से चाहते हो कि मैं आगे बढुँ। मैंने कहा नहीं ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन हो सकता है मैं तुम्हारी हाँ का इंतजार कर रहा हूँ, इस पर वह बोली कि और कितनी बार हाँ कहलवाना चाहते हो, मैं तन और मन से आपकी हो चुकी हूँ जो करना है कर सकते है।

मैंने कहा कि तुम कुछ करने की चीज नहीं हो, मेरी दोस्त हो, उससे भी ज्यादा हो, शायद पत्नी से भी अधिक इस लिये कुछ भी कह सकती हो माँग सकती हो, कर सकती हो, मालकिन हो। मेरी बात पर वह हँसी और बोली कि मुझे इतना ऊँचा दर्जा दे कर मेरा सर मत खराब करो। मैं तो बस तुम से थोड़ा सा प्यार चाहती हूँ।

मैंने उसे अपने पास करा और उस को बाँहों में ले कर कहा कि शारीरिक रुप से मिलना ही तो मिलन नहीं है, दिल भी तो मिल रहे है, शरीर भी समय आने पर मिल लेगें। थोड़ा सब्र करों, जल्दबाजी में सब कुछ खराब हो जायेगा। वह चुपचाप सुनती रही। फिर बोली कि तुम मेरे सामने बिना तौलिये के भी नहीं जा सकते, इतनी शर्म क्यों? मैं यह सुन कर हँस पड़ा और बोला कि लो जी आज ही जैसा आप चाहती है कर देते है अब तो खुश हो। उस के चेहरे पर मुस्कान आयी।

वह बोली कि आप के व्यवहार से मुझे लगता है कि आप अपने और मेरे में दूरी रखते है। मैंने उस की नाक पकड़ कर कहा कि माया जी कोई दूरी नहीं है लेकिन कल गल्ती से तुम्हारी दीदी के सामने कुछ ऐसा हो गया तो वह सब समझ जायेगी। इस लिये मैं ऐसा कर रहा हूँ समझा करो, मुझे भी ऐसा करना अच्छा थोड़ी ना लग रहा है लेकिन समय की माँग है इस लिये मन को मसोस रहे है लेकिन आज जैसा आप कहे वैसा ही होगा।

वह बोली कि कोई तौलिया नहीं, नहा कर ऐसे ही यहाँ आना। मैंने कहा जैसी आपकी आज्ञा, लेकिन बाद में जो होगा उस के लिये मैं जिम्मेदार नहीं होऊँगा। वह बोली कि यही तो देखना है कि हम दोनों में कितना दम है कि हम अपने आप को रोक सकते है या नहीं? उसकी बात में दम था आज ही यह देखा जा सकता था कल तो पत्नी को वापस आ जाना था।

मैं नहाने चला गया, नहा कर जब निकाला तो केवल ब्रीफ में था तौलिया मेरे हाथ में था बेड़रुम में आ कर खड़ा हुआ, माया आयी और बोली कि हाँ ऐसे सही लग रहे हो यहाँ पर किस से शर्म है, कोई और देखने वाला नहीं है। वह मुझे देखती रही फिर खुद नहाने चली गयी। कुछ देर बाद जब वह आयी तो मैं उसे देखता रह गया, अपनी उम्र से कम की लग रही थी कहीं पर मांस ज्यादा नहीं था।

छातियां भी ब्रा में कसी थी और कमर 30 की थी और कुल्हें 34 के होगे वह भी पेंटी में कसे फब रहे थे। आज पहली बार मैंने उसे ऐसे देखा था सो देखता रह गया। वह मुस्कराती हूई बोली कि अभी केवल देख कर काम चलाओं। मैं भी मुस्करा दिया, फिर वह मस्त चाल से चलती हुई कमरे से बाहर अपने कमरे के लिये चली गयी। आज हम दोनों नें एक दूसरें को कम वस्त्रों में देख लिया था सो पता चल गया था कि कैसे दिखते है। कुछ तो कामना बढ़नी थी और कुछ को कम होना था।

मैं कपड़ें पहन कर तैयार हो रहा था तो वह भी साड़ी पहन कर आ गयी, साड़ी में तो वह और भी कातिल लग रही थी, मुझ से रहा नहीं गया और मैंने उसे बाँहों में लेकर उस के होंठों पर अपनी छाप लगा दी। उस ने कुछ नहीं कहा शायद वह भी यही चाहती थी लेकिन कह नहीं रही थी।

उस ने नाश्तें के समय पुछा कि दीदी को कैसे पता चलेगा कि हम ने पीछे कुछ किया है या नहीं। मैं बोला कि उसे कपड़ों पर लगे दाग-धब्बों, चादरों और ना जाने किस किस से पता चल सकता है। वह इस घर को बनाने वाली है उसे कुछ भी बदलता है या इधर-उधर होता है पता चल जाता है, शायद उस की छठी इंद्रिय काम करती है।

माया बोली कि हाँ यह बात तो है हम औरतों की छठी इंद्रिय कई बार हमें खतरें का आभास करा देती है। क्या आप को नहीं लगता कि दीदी को शायद पता है कि मैं आप को चाहती हूँ। कितनी शादियों में, कार्यक्रमों में उन से मुलाकात हुई है, वह मेरा आपके प्रति आकर्षण समझ गयी होगी। मैंने हाँ में सर हिलाया और कहा कि हो सकता है उसे पता हो लेकिन सिर्फ एक घटना को छोड़ कर मेरी तुम से कोई ज्यादा देर की मुलाकात नहीं हुई है।

वह बोली कि उस मुलाकात के लिये भी उन्होंनें ही आप को मेरे साथ भेजा था, मैं तो अकेले जा रही थी। मैंने कहा तुम सही कह रही हो। उसे मुझ पर बहुत विश्वास है, तुम्हारी भी चिन्ता करती है इसी लिये मुझे तुम्हारें साथ भेजा था।

हम दोनों इस के बाद चुपचाप नाश्ता करने लगे। माया ने पुछा कि दीदी को कब आना है? तो मैंने उसे बताया कि शाम को आना है मैं ऑफिस से ही चला जाऊँगा उस को लेने। कहो तो रात का खाना भी बाहर से लेता आऊँ तो वह बोली कि जैसी तुम्हारी मर्जी। मैंने कहा कि तुम बताओ, तो वह बोली कि हाँ ऐसा ही सही रहेगा। मैं पीछे से सफाई कर लेती हूँ। इस के बाद मैं ऑफिस के लिये निकल गया।
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#5
UPDATE 4

दोपहर में पत्नी को फोन किया तो वह बोली कि गाड़ी में बैठ गयी हूँ, अगर लेट ना हुई तो 5 बजे तक पहुँच जाऊँगी। मैंने उसे बताया कि मैं उसे स्टेशन पर मिल जाऊँगा। वह बोली कि जब उतर जाऊँगी तो फोन कर दूगी। इस के बाद मैं काम में डुब गया। साढ़े चार बजे माया ने फोन करके मुझे याद दिलाया कि ट्रेन समय पर है आप दीदी को लेने चले जाओ, तब जा कर मुझे याद आया कि मुझे पत्नी को लेने भी जाना है।


मैं ऑफिस से निकल गया। ठीक पांच बजे ही स्टेशन पहुँचा। तभी पत्नी का फोन आया कि कहाँ हो? मैंने कहा कि आ रहा हूँ अभी पहुँचा हूँ। वह बोली कि मैं प्लेटफार्म पर ही आप का इंतजार कर रही हूँ। मैं तेजी से सीढ़ीयाँ चढ़ता हुआ प्लेटफार्म पर पहुँचा और पत्नी को ढुढ़ता हुआ उस के पास पहुँच गया। उस के सामान को ले कर मैं और वो दोनों स्टेशन से बाहर आये और कार में सामान रख कर घर के लिये चल दिये।



रास्तें में पत्नी बोली कि लगता है आज भी तुम यह भुल गये कि तुम्हें मुझे लेने जाना है। मैंने गल्ती मान कर कहा कि हाँ ऐसा ही हुआ था, वह तो माया ने फोन करके याद दिलाया नहीं तो तुम अभी तक मेरा इंतजार ही करती होती। वह बोली कि मुझे पता था, इस लिये माया को कहा कि तुम को फोन कर दे।

अब मुझे पता चला कि दोनों बहनें कितने समन्वय से काम करती है। यह सोच कर मेरे मन के किसी कोने में संतोष हुआ कि चलों आपस में कुछ तो सहमति है दोनों में। कुछ देर में घर पहुँच गये। सामान निकाल कर मैं बाद में घर में घुसा, उससे पहले पत्नी और माया एक-दूसरे के गले मिल चुकी थी।


मैं सामान रखने बेडरुम में चला गया। जब वापस दोनों के पास पहुँचा तो दोनों बातें कर रही थी, मुझे देख कर माया बोली कि दीदी सही कह रही थी, आप काम में इतने डुब गये थे कि दीदी को लेने जाने की बात भुल गये। अच्छा हुआ कि दीदी ने मुझे पहले ही याद दिला दिया था कि यह ऐसे ही है इस लिये तु इन को समय से याद दिला देना।



मैं उस की बात सुन कर मुस्कराया और बोला कि अच्छा हुआ तुम दोनों एक-दूसरें के साथ मिल कर चलती हो, आगे इस से फायदा होगा। पत्नी बोली कि आज ही फायदा हो गया नहीं तो मैं स्टेशन पर बैठ कर बोर होती रहती। माया चाय लेने गयी और पत्नी बोली कि तुम नहीं बदलोगें? मैंने उसे अपना फोन दिखाया और बताया कि मैंने अलार्म लगा रखा था, लेकिन इस से पहले ही माया ने फोन कर दिया। वह बोली कि चलों पहली बार तुम ने अक्लमंदी दिखायी है।



मैं उठ कर कपड़ें बदलने चला गया तभी मुझे याद आया कि खाना तो मैं लाया ही नहीं। यह याद करके मैं दूबारा बाहर जाने लगा तो पत्नी बोली कि कहाँ जा रहे है? मैंने कहा कि खाना बाहर से लाना था, सो लेने जा रहा हूँ, मेरी बात सुन कर पत्नी बोली कि आज मत लाओं, आते में बहन ने खाना बना कर रख दिया था, वह काफी है, बाहर का खाना फिर कभी खा लेगे। उस की बात सही थी।



मैं दूबारा कपड़ें बदलने चला गया। ड्राइगरुम में लौटा तो माया चाय लगा चुकी थी, पकोड़ें भी साथ थे। हम तीनों चाय पीने बैठ गये। माया ने पत्नी से पुछा कि आपकी यात्रा कैसी रही ? पत्नी बोली कि सही थी लेकिन इन के बिना मन नहीं लगा इस लिये जल्दी आ गयी। पहली बार इन के बिना कही गयी थी, मैंने कहा कि इस से तुम्हारी झिझक निकल जायेगी, उस ने मेरी बात से सहमति जतायी। दोनों बहनें बेडरुम में चली गयी और मैं टीवी चला कर बैठ गया। मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब टीवी देखते-देखते सो गया।



पत्नी नें मुझे झकझौर कर उठाया और बोला कि सोना है तो बेडरुम में जा कर सो जाओ, यहाँ क्यों सो रहे हो? मैंने कहा कि मुझे नहीं पता मैं कब सो गया। वह बोली कि तुम थके हुये हो, खाना खा कर जल्दी सो जाओ। मैं उठ कर बैठ गया। कुछ देर बाद माया पत्नी द्वारा लाया गया खाना गरम करके ले आयी, हम सब खाना खाने लगे।

मेरी साली बहुत स्वादिष्ट खाना बनाती थी सो सारा खाना हम चट कर गये। खाने के बाद आईसक्रीम खाने का मन हुआ तो देखा कि माया ने पहले ही उसे ला कर रखा हुआ था, वह आईसक्रीम ले कर आ गयी और हम लोग उस का मजा लेने लगे।


मैंने माया से पुछा कि उसे आईसक्रीम लाने का कैसे ध्यान आया तो वह बोली कि दीदी ने कहा था कि इन को आईसक्रीम बहुत पसन्द है, अगर तुझे समय मिले तो ले आना। सो आज मैं जा कर ले आयी थी। मैंने उसे धन्यवाद कहा और सोने के लिये चला गया। वाकई में मैं बहुत थका हुआ महसुस कर रहा था, इस लिये लेटते ही सो गया। कब पत्नी आ कर सोयी मुझे कुछ पता नहीं चला।



सुबह जब आँख खुली तो देखा कि पत्नी मुझ से लिपट कर सो रही थी। उस की टाँगें मेरे ऊपर रखी थी। उस के चेहरे पर सकुन दिख रहा था सो मैं चुपचाप पड़ा रहा। जब उस ने करवट बदली तो मैं बेड से उठ गया। मुझे बाथरुम जाना था। जब कमरे से बाहर निकला तो देखा कि माया भी उठ कर बाहर निकल रही थी। मुझे देख कर वह मेरे पास आयी और मेरे गाल पर चुम्बन दे कर किचन में चली गयी।



मैं अपने तने हुये लिंग का तनाव दूर करने के लिये बाथरुम में घुस गया। जब बाहर निकला तो माया खड़ी थी। बोली कि दीदी सो रही है बाहर बैठ कर चाय पीते है। मैंने हाँ कहा और हम दोनों बाहर कुर्सियों पर बैठ कर चाय कि चुस्कियां लेने लगे। माया ने चाय पीते हुये पुछा कि कल क्या बात थी, बिल्कुल थके हुये लग रहे थे। मैंने कहा कि पता नहीं लेकिन मेरा दम सा निकल गया था। सो कर ही आराम मिला। माया बोली कि सेहत का ध्यान रखें। इतनी थकान की वजह समझ नहीं आती है। मैंने भी उस की हाँ में हाँ मिलायी।



चाय पीने के बाद मैं अपना ब्लडप्रेशर नापने लगा। माया मुझे ऐसा करते देखती रही। ब्लडप्रेशर सही था। वह बोली कि आप को ब्लडप्रेशर की शिकायत है, मैंने उसे बताया कि है तो नहीं लेकिन हो सकता है इस लिये जाँच लेना सही रहता है।

तेरी दीदी का ब्लडप्रेशर कभी-कभी कम हो जाता है। वह चिन्तित दिखायी देने लगी। मैंने उसे बताया कि चिन्ता मत करों आज डाक्टर के पास जा कर चैक करा कर आता हूँ, मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर से चिन्ता की परछायी दूर हुई।
हमारी बातचीत के दौरान ही पत्नी भी उठ कर आ गयी और बोली कि माया क्या बात है? माया ने पुरी बात उसे बतायी तो वह बोली कि इन की काम में डुबने की आदत इस की वजह है। आराम करना इन के लिये हराम है। मैंने उसे बताया कि आज डाक्टर को दिखाता हूँ, ऐसी थकान होनी नहीं चाहिये, चैकअॅप करा लेता हूँ, मेरी बात सुन कर उसे चैन आया।
ऑफिस जाते समय मैं डाक्टर के पास चला गया, उन्होंनें चैक करके कहा कि कुछ खास दिख नहीं रहा है लेकिन फिर भी चैकअॅप करवा लेते है ताकि पुरी बात पता चल सके इस लिये ब्लड सेम्पल दे कर मैं ऑफिस चला गया। शाम को घर आते समय रिपोर्ट लेने गया तो डाक्टर ने बताया कि विटामिन की कमी निकली है, तथा लगता है बर्नआऊट की स्थिति बन गयी है, आप पुरा आराम करे ताकि शरीर अपने आप को रिजेनरेट कर सके। इतना ज्यादा काम शरीर को नुकसान कर रहा है।
डाक्टर की लिखी दवाईयाँ ले कर मैं घर आ गया। घर पर दोनों बहनें चिन्ता कर रही थी। मैंने उन्हें बताया कि पुरा आराम करने को कहा है, और कुछ दवाईयाँ लिख दी है जो मैं ले आया हूँ।


मेरी बात पर विश्वास ना करके माया ने रिपोर्ट मेरे हाथ से ले कर पढ़ना शुरु कर दी, जब सारी रिपोर्ट पढ़ ली तो पत्नी से बोली कि जीजा जी सही कह रहे है, विटामिन की कमी के कारण थकान हो रही है तथा बर्न आऊट की हालात होने के कारण पुरा रेस्ट करने को कहा है।

वह बोली कि कल से जीजा जी ऑफिस नहीं जा रहे है। मैंने कहा कि मैं अभी ऑफिस में एक हफ्तें की मेडीकल लीव के लिये एप्लाई कर देता हूँ। मेरी बात सुन कर दोनों को चैन पड़ा। अपनी थकान से मैं भी चिन्तातुर था लेकिन अपनी चिन्ता उन दोनों को दिखाना नहीं चाहता था।
कपड़ें बदलने के बाद ड्राइगरुम में सब बैठ कर बातें कर रहे थे तो माया बोली कि दीदी बता रही थी कि आप 14-14 घंटें काम करते है, ऐसे कैसे चलेगा ? इतना काम करने का कोई खास इनाम मिल रहा है? मुझे चुप देख कर वह बोली कि पहले आप का स्वास्थ्य है, बाद में कुछ और है यह बात आप कान में बाँध लो। मैं उस की बात सुन कर हँस गया तो वह बोली कि दीदी को आप चला सकते है लेकिन मैं किसी बात में नहीं आने वाली, पहले सेहत, बाद में कुछ और।


खाना खाने के बाद जब मैं सोने गया तो पत्नी बोली कि आप अपनी सेहत को लेकर इतना लापरवाह क्यों है ? मैंने उस से कहा कि कहाँ लापरवाह हूँ सभी चैकअॅप करवा कर तो आया हूँ, कल तक तो सही था। विश्वास ना हो तो माया से पुछ लो।

वह बोली कि मुझे पता है कि कल सुबह तो तुम सही थे, शाम को ऑफिस से आते ही तुम्हारी हालात खराब थी। ऑफिस में तो कुछ नहीं चल रहा है? मैंने उसे बताया कि कुछ खास नहीं है, ऐसा तो चलता ही रहता है, वह बोली कि कुछ तो चिन्ता है जो तुम्हें अंदर ही अंदर खा रही है लेकिन तुम उसे बता नहीं रहे हो, और कैसे पुछु? मैंने उसे आश्वस्त किया की ऐसा कुछ नहीं है। इस के बाद मैं सो गया।



सुबह जब आँख खुली तो पाया कि पत्नी मुझ से लिपटी सो रही थी। वह ऐसे कम ही सोती थी, शायद परेशान होने के कारण ऐसा कर रही थी। मेरे हिलने के कारण वह भी जग गयी और मुझे चुम कर बोली कि तुम्हें तो रात को कुछ पता ही नहीं था। मैंने उसे बताया कि अभी नींद खुली है, रात को सोने के बाद कुछ पता नहीं है।



वह शायद प्यार करने को तड़प रही थी इस लिये उस के हाथ मेरी पीठ पर घुम रहे थे। एक तो सुबह वैसे ही लिंग में तनाव होता है फिर पत्नी की प्यार की चाहत और लाड़ दोनों संभोग करने के मुड़ में आ गये। ऐसा कम ही होता था कि सुबह संभोग करें, लेकिन आज की बात ही कुछ और थी पत्नी पुरी तरह से गर्म थी और उस के हाथ मेरे शरीर को सहला रहे थे, अब मैं भी उस का साथ दे रहा था, कुछ देर बाद ही उस की गर्मी मेरे शरीर में भी समा गयी।



वासना की आग हम दोनों के शरीर में भड़क गयी थी। मैं उस की गरदन को चुमता हुआ उस के उरोजों को टीशर्ट के ऊपर से ही चुमने लग गया उस की उभरी निप्पलें मुझे उकसा रही थी। फिर मैंने उस की टीशर्ट उतार दी और मेरे होंठ उस के उरोजों को चुसने लगे। पहले एक की चुसाई हुई फिर दूसरे का नंबर लगा।



इस के बाद उस के पेट पर चुम्बन देते हुये उस की नाभी को चुम कर मेरे होंठ उस की जाँघों के मध्य पहुँच गये। पायजामे के ऊपर से ही चुम कर मैंने हाथ से उस का पायजामा उतार दिया और फिर पेंटी भी उतर गयी। अब मेरी उँगली उस की योनि की दोनों फलकों के बीच फिरने लगी। इस के बाद वह अंदर घुस गयी, अंदर पानी भरा हुआ था जो इस बात का द्योतक था कि वह पुरी तरह से उत्तेजित थी।



कुछ देर मैं उस की योनि की नमी में उँगली अंदर बाहर करता रहा फिर अपने कपड़ें उतार कर उस के ऊपर आ गया और लिंग को उस की योनि में डाल दिया। अंदर कोई घर्षण नहीं मिला क्योंकि योनि में द्रव भरा था। मैं धीरे-धीरे ऊपर नीचे हो रहा था, कुछ देर बाद पत्नी मेरे ऊपर आ गयी और मैं नीचे से उस के हिलते उरोजों को होथों से पकड़ कर चुसने लगा। इस से मेरी यौन अग्नि और प्रज्जवलित हो रही थी। पत्नी के थक जाने पर वह बगल में लेट गयी।



इस के बाद मैंने उस की टाँग कंधों पर रख कर योनि में लिंग डालना चाहा तो वह बोली कि ऐसे बहुत दर्द हो रहा है, उस की बात सुन कर मैंने उस की टाँगें नीचे कर दी। हम दोनों पति-पत्नी संभोग में मग्न थे तभी कमरें का दरवाजा खुला और माया चाय के साथ कमरे में घुसी, हमें प्यार करता देख कर वह अचकचा कर जड़ हो गयी और वही खड़ी हो गयी।



जब होश आया तो घुम कर बाहर जाने लगी तो पत्नी ने उसे आवाज दी और कहा कि माया दरवाजा बंद कर दे। माया ने दरवाजा बंद कर दिया। मैं धक्कें लगा रहा था और माया देख रही थी, पत्नी उस से बात कर रही थी। पत्नी बोली कि चाय रख दे। माया ने आदेश का पालन किया। वह आँखे झुकाये खड़ी थी। पत्नी ने उस से पुछा कि इन से प्यार करती है ? उस ने हाँ में गरदन हिलायी। प्यार करना चाहती है ? उसने फिर से गरदन हिलायी।



अब पत्नी की आवाज मेरे कान में पड़ी, तो देख क्या रही है कपड़ें उतार कर आ जा, मेरे बाद तेरे से प्यार करेगें यह। उस की यह बात सुन कर मैं हैरान रह गया कि वह क्या कह रही है। लेकिन मैं कुछ बोला नहीं, जिस बात के लेकर हम दोनों परेशान थे, वह इस तरह से हो रही थी, विश्वास नहीं हो रहा था। माया ने चुपचाप अपना नाइट सुट उतार दिया और ब्रा और पेंटी में आ गयी। पत्नी बोली कि इन्हें पहन कर प्यार करेगी तो उस ने वह भी उतार दिये।



अब वह पुरी तरह से नंगी खड़ी थी, सौन्दर्य की मुर्तिमान प्रतिमा लग रही थी मेरी आँखे पुरी तरह से खुली नहीं थी सो मुझे साफ-साफ नहीं दिख रहा था। माया धीरे से आ कर बेड पर हमारे पास लेट गयी। मैं अपने शरीर में लगी आग में जल रहा था तथा उस से छुटकारा पाना चाहता था इस लिये शरीर कड़ा करके जोर-जोर से धक्कें लगा रहा था फिर ज्वालामुखी फट गया और मैं डिस्चार्ज हो गया। कुछ देर पत्नी के ऊपर लेटा रहा, फिर उस की बगल में लेट गया।
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#6
UPDATE 5

पत्नी ने मुझ से कहा कि माया कुँवारी की तरह है, इस से प्यार आराम से करना, मेरी तरह ताकत मत लगाना इस बात का ध्यान रखना। यह कह कर वह बीच में से उठ कर बेड से उतर गयी और बोली कि मैं कपड़ें पहनने जा रही हूँ, तुम दोनों प्यार करों।

मैंने उसे रोका और कहा कि अभी इतनी जल्दी कहाँ प्यार कर पाऊँगा तो वह बोली कि चलों चाय पीते है। हम तीनों नंगें चाय पीने लग गये। माया चुप थी। पता नहीं क्या सोच रही थी। सकुचायी सी एक तरफ बैठी चाय पीने लगी।

चाय पीने के बाद पत्नी चाय के कप ले कर कमरे का दरवाजा बंद करके चली गयी। लग रहा था कि वह शायद आयेगी नहीं, लेकिन हम दोनों में से कोई श्योर नहीं था। लेकिन कुछ पल पहले का घटना क्रम हैरान करने वाला था, मुझे अभी तक समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है?

पत्नी ने जो कुछ कहा था, उसका मतलब था कि वह सब कुछ जानती थी और आज शायद उसे इस से बढ़िया मौका नहीं मिला हम दोनों पर सच जाहिर करने का। अब जो होना था सो हो चुका था, उस से आगे बढ़ने का समय था।

मैंने आगे बढ़ कर माया को अपनी बाँहों में ले लिया और वह मेरी बाँहों में समा गयी। हम काफी देर तक ऐसे ही पड़े रहे और अपने शरीरों को महसुस करते रहे। कुछ और करने की जरुरत ही नहीं लग रही थी। फिर मैंने उस के होंठों को चुम लिया जो लरज रहे थे कि कोई उन्हें चुमे।

उस का मुँह जरा सा खुला और मेरे होंठ ने उस के ऊपरी होंठ को कस कर जकड़ लिया और उसे चुसना शुरु कर दिया। फिर नीचे वाले होंठ की बारी आयी, इसके बाद माया की जीभ मेरे मुँह में अठखेलियाँ करने लगी।

मेरे होंठों ने उसी की गरदन पर गहरा चुम्बन लिया और वहाँ अपनी छाप लववाईट के रुप में छोड़ दी। इस के बाद कालर बॉन को चुम कर उस के उरोजों के मध्य चुमते हुये होंठ उस के तने निप्पलों का रस पीने लगे। इतना जोर लग रहा था कि माया आहहहहहहहहहहह करने लग गयी थी।

मेरे हाथ उस के उरोजों की नपायी कर रहे थे, पत्नी की अपेक्षा उस के उरोजों का कसाब ज्यादा था। उस के कारण मुझे ज्यादा मजा आ रहा था। उरोजों का मनचाहा मर्दन करने के बाद मेरा मुँह उस की कमर पर पहुँच गया उस की सपाट कमर पर होंठों की छाप छोड़ कर मैंने उस की नाभी में अपनी गरम साँसे छोड़ी। इस दौरान मेरे हाथ उस की केले के तने के समान भरी हुई जाँघों को सहला रहे थे। जाँघों के मध्य की गहराई में मेरी जीभ ने प्रवेश किया और उस को उसका मनपसन्द स्वाद मिल गया।

मैंने योनि के दोनों लिप्स को अलग करके जीभ को योनि के अंदर गहरे में घुसेड़ दिया। उत्तेजना के कारण माया ने मेरे सर के बाल पकड़ कर मेरा मुँह अपनी जाँघों के बीच में चिपटा लिया। उस के पाँव मेरी कमर पर कस गये थे। शायद यह मजा उसे पहली बार मिल रहा था इस लिये उस का सारा शरीर कांप रहा था।

कुछ देर तक योनि का स्वाद लेने के बाद मैंने अब उस की भरी हुई जाँघों को चुम कर उस के पंजों को चुमा और उस के पाँव की हर उँगली को होंठ में ले कर चुसा। फिर उसे पेट के बल कर के उस के कुल्हों पर होंठों की छाप छोड़ी और उन की गहराईयों में अपनी जीभ फिरायी तो माया तड़फ गयी।

मैं ऊपर की तरफ उस की पीठ को जीभ से चाटता हुआ उस की गरदन के पीछे पहुँचा और उस को चुम कर उसे पलट लिया। मेरा लिंग उस के मुँह पर था सो उस ने हाथ से उसे पकड़ कर सहलाया और धीरे से उस की चोटी को चुमा। लिंग तो अभी पिछले संभोग के कारण ढीला पड़ा था लेकिन उस के चुम्बन से वह फिर से तन गया।

उत्तेजना के कारण लिंग मे से प्रीकम निकल रहा था। माया की जीभ उसे चाट गयी। फिर अचानक माया ने लिंग को पुरा निगल लिया और उसे लालीपॉप की तरह चुसना शुरु कर दिया। अब मेरी आह निकल रही थी। संभोग के लिये दूबारा तैयार होने में समय लगता है लेकिन मैं अब पुरी तरह से दूसरी बार के लिये तैयार था।

मैंने अपना लिंग उस के मुँह से निकाला और उस की जाँघों के बीच बैठ कर उस की योनि को लिंग से दो चार बार सहलाया और लिंग का सुपारा उस की योनि में डाल दिया। योनि तो कसी हुई थी लेकिन लिंग पहली बार में ही अंदर चला गया। दूसरे झटकें में मैंने पुरा लिंग योनि में घुसेड़ दिया, माया ने आहहहहहहहहह उईईईईईईईईईईईई आहहहहहहहहह करना शुरु कर दिया।

पुरा लिंग अंदर डालने के बाद मैं रुका और फिर मैं धीरे-धीरे धक्कें लगाने लगा। माया भी नीचे से अपने कुल्हों को उठा कर मेरा साथ दे रही थी। कुछ देर बाद मैं अपने शरीर को सीधी लकीर में कर के जोर जोर से धक्के लगाने लगा।

माया जोर-जोर से कराहने लगी। माया शायद स्खलित भी हो चुकी थी इसी कारण से कमरे में फच-फच की आवाज आ रही थी। मेरा सारा ध्यान धक्कें लगाने पर था, जोर के प्रहार की वजह से माया ने अपने नाखुन मेरी पीठ के मांस में घुसेड़ दिये थे, मुझे उस से दर्द तो हो रहा था लेकिन मैं उस की परवाह नहीं कर रहा था। मुझे यह भी पता था कि दूसरी बार स्खलित होने में मुझे देर लगेगी और तब तक माया की योनि की हालत खराब हो जायेगी लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था, यात्रा शुरु हो चुकी थी, उसे अब बीच में छोड़ा नहीं जा सकता था।

मैंने आराम करने के लिये लिंग योनि से निकाल लिया, लिंग पुरा द्रव्यों से लिथड़ा हुआ था। मैं माया की बगल में लेट गया और वह मेरे ऊपर आ गयी। उस ने लिंग को हाथ से सहारा दे कर योनि में डाल लिया और अपने कुल्हें ऊपर नीचे करने लगी। उसे इस में मजा आ रहा था मैं भी उस को उरोजों को चुम कर मजा ले रहा था। काफी देर तक इसी आसन में रहने के बाद माया थक गयी और बगल में लेट गयी।

अब मैंने माया को पेट के बल करके उसके कुल्हों को ऊपर करके उसकी योनि में पीछे से लिंग डाल दिया और धक्कें लगाने शुरु किये। यह आसन में पत्नी के साथ नहीं कर पाता था। माया को भी दर्द हो रहा था लेकिन वह कुछ कह नहीं रही थी।

मुझे भी यह कुछ ज्यादा जमा नहीं तो मैंने फिर से उसे पीठ के बल करके उसके अंदर लिंग डाल दिया। हमें संभोग करते 20 मिनट से ज्यादा हो गये थे। माया तो थक सी गयी थी, मेरी भी हालत पतली सी थी अब मैं चाहता था कि स्खलित हो जाऊँ लेकिन हो नहीं पा रहा था।

दोनों पसीने से तरबतर हो गये थे। दोनों के शरीर जल से रहे थे, लेकिन उस से निजात नहीं मिल रही थी। मैंने शरीर एक लकीर में किया और जोर-जोर से ऊपर नीचे करने लगा। अचानक मेरी आँखे मुद गयी और मेरे लिंग पर आग सी लग गयी, माया भी जोर से कराही। मैं पस्त हो कर उस के ऊपर पड़ गया।

चेतना आने के बाद माया के ऊपर से उठ कर उस की बगल में लेट कर उसे अपने सीने से लगा लिया और उस के होंठों को चुम लिया और उस से पुछा कि कैसा हाल है ? माया बोली कि लग रहा है कि जैसे आज ही जीवन का आनंद मिला है। दर्द है लेकिन ऐसा तो होना ही था। तुम तो जान ही निकाल देते हो, दीदी सही कह रही थी। मैंने उसे बाँहों में कस लिया।

कुछ देर बाद दरवाजा खुला और पत्नी अंदर आयी और बोली कि तुम दोनों उठ रहे हो या नहीं ? मुझे तो ऑफिस जाना नहीं था सो मैं बोला कि तुम भी यहीं आ जाओं। वह हम दोनों के पास आ कर बैठ गयी। हम दोनों की हालत देख कर बोली कि सुहागरात वाली हालत है, माया का तो बाजा बजा दिया होगा तुम ने। मैंने कहा कि तुम बहनें मुझे दोष देना बंद करो।

माया बोली कि दीदी सारा शरीर तोड़ दिया है। अभी तो यह बीमार है जब ठीक होते है तो क्या करते होगे? पत्नी बोली कि मैं क्या बताऊँ, अब तु खुद ही सब जान जायेगी। प्यार में इन का साथ मैं तो नहीं दे पाती, अब तेरी बारी है, इन का पुरा साथ देना। हम दोनों के शरीर के नीचे के हिस्सें वीर्य और योनि द्रव्यों से लथपथ थे। मेरा लिंग तो अभी भी पानी छोड़ रहा था।

पत्नी ने उठ कर तौलिया मुझे दिया और कहा कि साफ कर लो फिर नहाने चले जाओ। माया ने भी मेरे बाद तौलिये से शरीर पोछा और उठ कर कपड़ें डाल लिये। फिर शर्माती हुई कमरे से निकल गयी। पत्नी और मैं कमरें में अकेले रह गये। मैंने उस से पुछा कि उसे कैसे पता चला कि मैं माया से प्यार करता हूँ तो वह बोली कि हम औरतों के पास खास शक्ति है, पता चल जाता है। वह तुम्हें चाहती है यह तो मुझे कई सालों से पता है लेकिन मैं उसे गम्भीरता से नहीं लेती थी।

लेकिन आज की परिस्थिति में उसे अकेला नहीं छोड़ सकते है और वह भी सब कुछ छोड़ कर तुम्हारें पास आयी है इस लिये तुम्हारें लगाव को मानना ही सही रहेगा, इस से पहले भी तुम ने कितने लगावों को ठुकराया है लेकिन इस बार ऐसा नहीं था, तुम भी उस से लगाव रख रहे थे, मैं जानबुझ कर तुम दोनों को अकेला छोड़ कर गयी थी।

लेकिन तुम दोनों नें मेरे पीछे कुछ नहीं किया, जो यह बताता है कि तुम दोनों मुझे धोखा नहीं देना चाहते हो, इस लिये मैंने ही तुम दोनों को प्यार करने के लिये ऐसे उकसाया, ऐसा सोचा नहीं था लेकिन सुबह जब हम दोनों प्यार कर रहे थे तभी ध्यान आया कि माया और तुम को अपनी सहमति बता देती हूँ, लेकिन माया ने आ कर वह मौका मुझे दे दिया और बाकि तो तुम्हें पता है।

बताओं मेरी बात कैसी लगी? मैंने उसे अपने से लिपटा कर कहा कि तुम ने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी। तुम बहुत चतुर हो यह तो मैं जानता हूँ लेकिन अपनी सौत के लिये भी ऐसा कर सकती हो, मुझे नहीं पता था। वह वोली कि सब भाग्य का लिखा है।

तुम को सेक्स में ज्यादा रुचि है मुझे कम है अब शायद माया के साथ यह कमी दूर हो जायेगी। लेकिन माया का ध्यान रखना, उस ने जिन्दगी में कोई सुख नहीं देखा है ऐसा कुछ ना हो जिस से उसे दूख पहुँचे। मैंने हाँ में सर हिलाया।

पत्नी ने पुछा कि अब क्या हाल है तुम्हारी तबीयत का? मैंने कहा कि अभी तो सेक्स की गर्मी में कुछ नहीं लग रहा है लेकिन नहा-धो कर देखते है कि क्या हाल होता है ? हमारी बातें चल ही रही थी कि माया नहा कर आ गयी, पत्नी ने माया को पास बुला कर कहा कि मैंने इन को सब बता दिया है, हम तुम दोनों इस बारें में बाद में बातें करेगें। मैं भी नहाने जा रही हूँ। यह कह कर वह उठ कर चली गयी।

माया मेरे से बोली कि आप तो अब कुछ पहन लो कही ठंड़ ना लग जाये। मैंने देखा कि मैं नंग-धड़ग बैठा था। माया ने मेरी ब्रीफ उठा कर दे दी और बारमुड़ा भी मेरे हाथ में दे दिया। मैंने उन्हें डाल लिया। वह बेड के सामने की बेंच पर बैठ गयी और बोली कि आज तो हम दोनों की बहुत बड़ी परेशानी दीदी ने खत्म कर दी।

मैंने कहा कि मैंने तुम्हें कहा था कि तुम्हारी दीदी बहुत चतुर है, वह हर चीज को बहुत सावधानी से करती है। ऐसा ही उस ने इस बार भी किया है। कितनी बड़ी बात उस ने करी है यह तो वह ही जानती है। इसी लिये मैं उस का बहुत सम्मान करता हूँ। माया बोली कि दीदी ने तो मुझे खरीद लिया है। उन के उपकार को मैं कभी नहीं उतार सकती हूँ।
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#7
UPDATE 6

माया को कुछ याद आया तो बोली कि अब आप को कैसा लग रहा है? मैंने उसे बताया कि सही लग रहा है, थकान नहीं है। वह बोली कि आप मानसिक रुप से थक गये थे। आराम करेगें तो सही हो जायेगे। मैंने कहा कि शायद तुम सही कह रही हो। मानसिक तनाव ने शरीर को तोड़ दिया है। हमारी बातचीत चलती रहती, तभी पत्नी नहा कर आ गयी।


वह मुझे देख कर बोली कि अब आप का नंबर है नहा कर आओं। हो सके तो हल्के गरम पानी से नहा लेना मैंने पानी गरम कर दिया है। गर्म पानी से नहाने से शरीर खुल जाता है। माया ने तब तक मेरे कपड़ें निकाल लिये थे वह उन्हें बाथरुम में टाँगने चली गयी। मैं बेड से उठा तो मैंने देखा कि बेड की चद्दर का हाल बुरा था वह दागों से भर गयी थी। मैं नहाने के लिये चला गया।

जब नाश्ता करने बैठे तो माहौल अलग था हमारे मनों में जो डर था वह खत्म हो गया था। आगे कैसे बढ़ना था वह समय के गर्भ में था। पत्नी बोली कि आज आप सारे दिन आराम करो, टीवी देखो, फिल्म देखो, म्युजिक सुनों लेकिन कुछ काम मत करो, कुछ सोचों मत। हम दोनों बाजार जा रहे है। कुछ तुम्हारें लिये लाना हो तो बता दो? मैंने कहा कि कुछ याद नहीं आ रहा है अगर याद आया तो फोन कर दूँगा।

पत्नी बोली कि आज पार्टी बनती है क्या पीना है तुम तो बीयर पीते हो, आज हम भी पी कर देख लेते है। कौन सी बीयर लाये? मैंने उसे नाम बता दिया। वह बोली कि और कुछ लाना है तो मैंने कहा कि केक लेते आना, उसे मेरा विचार पसन्द आया। मैं टीवी देखने लग गया और वह दोनों तैयार हो कर बाजार चली गयी। कुछ देर बाद मैं थक गया और वही पर लेट गया। कब नींद आ गयी मुझे पता नहीं चला।

मेरी आँख डोरबेल की आवाज से खुली, जब जा कर दरवाजा खोला तो देखा कि दोनों हाथों में सामान के थेलें लिये खड़ी थी। पत्नी बोली कि बड़ी देर कर दी आते-आते। मैंने बताया कि आँख लग गयी थी, इसी वजह से दरवाजा खोलने में देर हो गयी। घर के अंदर आ कर माया ने जल्दी से सामान रखा और मेरा हाथ पकड़ कर देखा कि कहीं बुखार तो नहीं है लेकिन ऐसा कुछ नहीं था वह बोली कि ब्लडप्रेशर भी नाप लेते है सो मशीन लेने चली गयी।

पत्नी भी उसी के साथ चली गयी, दोनों मशीन ले कर आ गयी और मेरा ब्लडप्रेशर चैक करने लग गयी। वह भी सही था मैंने कहा कि टीवी देख कर आँखें थक गयी थी, इस लिये लेट गया था और नींद आ गयी इस में चिन्ता की कोई बात नहीं है, लेकिन दोनों के माथे से चिन्ता की लकीरें नहीं गयी। दोनों ने तय किया कि अब से एक घर में रहा करेगा। दोनों एक साथ बाहर नहीं जायेगी।

माया कोल्ड ड्रिक लाने के लिये किचन में चली गयी और ड्रिक ले कर आ गयी, दोनों भी काफी थक गयी थी सो ठंड़ा कोल्ड ड्रिक पी कर दोनों को राहत मिली। मैं भी उसे पी कर बढ़िया महसुस कर रहा था। मैंने दोनों से पुछा कि इतनी सारी क्या खरीदारी कर ली? तो जबाव मिला कि कुछ तुम्हारें कपड़ें खरीदे है, कुछ माया के लिये खरीदा है और कुछ मैंने अपने लिये लिया है। माया बोली कि बीयर भी ले आये है। यह सुन कर मुझे खुशी हुई।

पत्नी ने माया के लिये नई साड़ी खरीदी थी। एक साड़ी माया ने पत्नी के लिये खरीदी थी। मैंने माया से कहा कि यह तो साड़ी पहनती नहीं है तो वह बोली कि अब पहनेगी। पत्नी बोली कि कोई साड़ी दिलाते तो है नहीं, ना पहनने का ताना मारते रहते है। मैंने कहा माया तुम गवाह हो, अब मैं साड़ियों की लाइन लगा दूँगा, देखता हूँ कि यह कितनी पहनती है। दोनों हँसने लग गयी। मेरे लिये नाइट सुट भी लाई थी। देखा कि कई जोड़ी ब्रीफ भी खरीदी गयी थी। लेकिन किसी ने बताया नहीं कि क्यों खरीदी है? मैंने भी पुछना सही नहीं समझा।

पत्नी दोपहर का खाना बनाने चली गयी। मैं और माया बात करने लगे। माया बोली कि आप ने अपनी दवाई खा ली है तो मैंने उसे बताया कि सुबह वाली तो खा ली थी, दोपहर वाली खाना खाने के बाद खाता हूँ। माया ने मेरे हाथ अपने हाथ में लेकर उन्हें सहलाया और फिर चली गयी। मैं टीवी पर अपनी मनपसन्द फिल्म लगा कर बैठ गया और उस का मजा लेता रहा।

पत्नी जब दाल-चावल बना कर लायी तो फिल्म खत्म होने को थी। मैंने उसे पॉज कर दिया और मेज पर आ गया। माया भी आ गयी थी। हम सब खाना खाने लगे तो माया बोली कि आप सुबह जुस लिया करो इस लिये हम फल ले कर आये है, आप के खाने की आदत भी बदलनी पड़ेगी ताकि आप को सम्पुर्ण आहार मिल सके किसी चीज की कमी ना हो। मैं उस की बात सुनता रहा।

मैंने पत्नी से पुछा कि माया को साड़ी किस खुशी में दिलवाई है तो जबाव मिला कि है कोई बात, अब हर बात तुम्हें नहीं बतायी जा सकती। मैंने अपना ध्यान खाने में लगा दिया। खाना खाने के बाद खरबुजा खा कर मैं फिर से फिल्म देखने बैठ गया। पत्नी आराम करने चली गयी। माया भी चली गयी लेकिन फिर कुछ देर बाद मेरे साथ आ कर बैठ गयी।

मैं उस का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाता रहा फिर उसे चुम लिया। वह बोली कि दीदी ने बताया नहीं है इस लिये नाराज तो नहीं हो? मैंने कहा कि नहीं लेकिन अनुमान लगा सकता हूँ कि किस लिये दिलाई होगी? वह हँस पड़ी कि बताओ? मैंने कहा कि कल की घटना की खुशी में दिलवाई है या नहीं?

वह शर्माकर बोली कि हाँ यही बात है वह बोली कि तु तो अब सौतन हो गयी हैं, इसी खुशी में नई साड़ी तो बनती है। उन्होंनें हमारे रिश्तें पर मुहर लगा दी है, इसी वजह से मैंने भी अपनी बड़ी बहन को साड़ी दी है। धन्यवाद कहा है।

मैं बोला कि यह तो सही है लेकिन जो मुख्य कारण है उसे किसी ने कुछ नहीं दिया तो वह आँखें तरेर कर बोली कि दो-दो बीवी मिल गयी है इस के बाद तुम्हें और क्या चाहिये? मैंने कहा हाँ भई इतनी बड़ी बात हो गयी है अब और क्या चाहिये। मैं चुपचाप फिल्म देखने लग गया। माया बोली कि और कुछ भी लायी हूँ लेकिन वह बाद में दिखाऊँगी। मैंने कुछ नहीं कहा।

वह कुछ देर बैठ कर वापस चली गयी। मेरे को समझ नहीं आ रहा था कि रात को इन दोनों के साथ सोने का क्या कार्यक्रम रहेगा। बीवी के साथ ना सोओं तो वह नाराज होगी और माया के साथ ना सोओं तो यह नाराज, मैं क्या करुँ यह समझ नहीं आ रहा था। मुझे आशा थी कि पत्नी ही इस समस्या का कोई हल निकाल सकती है। रात को उसी से बात करनी पड़ेगी। यहीं सोचते सोचते मेरी आँख फिर लग गयी। अभी भी कमजोरी कहो या कमी, नींद कुछ ज्यादा ही आ रही थी।

कुछ देर बाद ही माया ने मुझे उठा दिया और हाथ पकड़ कर अपने कमरें में ले गयी और बेड पर बिठा कर बोली कि यहाँ पर सो जाओ। वहाँ दीदी सो रही है तुम्हारे जाने से जाग जायेगी। मैं लेट गया और माया का हाथ पकड़ कर उसे भी लिटा लिया। वह बोली कि रात को करेगें अभी तुम सो जाओ। मैंने कहा कि अब मुझे नींद नहीं आयेगी तो वह बोली कि तुम्हारा क्या करें, बेड पर नींद नहीं आती है और टीवी देखते में सो जाते हो।

मैंने कहा कि मुझे भी नहीं पता क्या बात है लेकिन जो है सो है। वह मुझ से लिपट गयी और बोली कि कल तो तुम ने मेरी जान ही निकाल दी थी। जोड़-जोड़ दर्द कर रहा है। बहुत ताकत है, मैंने उसे बताया कि कोई खास बात तो नहीं थी केवल दूसरी बार संभोग करने पर ज्यादा देर में स्खलित होते है ऐसा ही हुआ था। फिर तुम्हें सेक्स की आदत नहीं है इसी कारण से ज्यादा दर्द हो रहा होगा।

मैंने मजाक में कहा कि सुहागरात में तो ऐसा होता ही है तो उस ने मेरे सीने पर घुसें मारनें शुरु कर दिये। उस की मार से बचने के लिये मैंने उसे अपनी छाती से चिपका लिया। उस के होंठों ने मेरी छाती पर अपनी छाप लगानी शुरु कर दी। फिर उस के होंठ मेरे होंठों से जुड़ गये और हम दोनों लम्बें चुम्बन में डुब गये। जब साँसे फुल गयी तब जा कर अलग हुये।

उस ने कहा कि मेरी चुटकी काटों मुझे लग रहा है कि मैं सपना देख रही हुँ। मैंने उस की बाँह में चुटकी काटी तो वह बोली कि नहीं सपना नहीं है लेकिन सब कुछ सपने जैसा है। तुम को इतने सालों से दूर-दूर से चाहना। तुम्हारें बारें में जानना और फिर मन को मार लेना। क्या-क्या नहीं किया है मैंने। लेकिन सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी तुम्हारी हो पाऊँगी। मैं तो उस रात के मिलन से ही संतुष्ट थी। लेकिन भाग्य ने जैसे हम दोनों को मिलाने का सोच रखा था, सब कुछ होता गया और आज मैं तुम्हारी बगल में हूँ।

तुम ने कभी मेरे बारें में सोचा था। मैंने कहा कि माया मैं कुछ सोचने की अवस्था में नहीं था। उस घटना के बाद तुम इतनी रहस्यमयी हो गयी थी कि मैं तुम्हें समझ नहीं पा रहा था। परिस्थितियाँ भी ऐसी नहीं थी कि कुछ और सोचा जा सके, लेकिन मन में किसी कोने में आस थी कि कभी तो तुम्हारा फोन आयेगा। इस से ज्यादा मत पुछों जो हो रहा है उस के साथ बहों, उस का मजा लो।

वह कुछ बोली नहीं उस के होंठ मेरी गरदन पर अपनी छाप लगाते रहे। मैं इस सब से उत्तेजित हो रहा था, लेकिन रात के लिये अपनी शक्ति बचा कर रखना चाहता था, क्या पता दोनों को संतुष्ट करना पड़ें। माया को तो ज्यादा भुख थी, लेकिन लग रहा था कि उसे देख कर पत्नी की प्यास भी जग गयी थी। मेरे लिये अच्छा भी था और कठिन भी था लेकिन इस का सामना तो करना ही था।

बीमारी की अवस्था में अपने को ज्यादा थका कर हालात खराब नहीं करना चाहता था। इसी लिये माया को उसके मन की करने देता रहा। वह भी शायद मेरे मन की बात समझ गयी थी इस लिये कुछ देर बाद उठ कर चाय बनाने चली गयी। मैं उठ कर बाथरुम चला गया। लिंग तनाव से पुरा तन कर कठोर हो गया था।

उस से पेशाब करना मुश्किल हो गया। उस तनाव को कम करके निकला तो पत्नी के पास गया वह अभी भी लेटी थी, मेरी आहट पर कर उठ कर बैठ गयी और बोली कि नींद आ रही है तो आराम से क्यों नहीं लेटते, सोफे पर अधलेटे सो रहे हो। मैंने उसे बताया कि नींद चली गयी है, इस लिये चाय पीने आ गया हूँ माया चाय बना कर ला रही है। कुछ देर बाद माया चाय ले कर आ गयी।

चाय पीने के बाद पार्टी के लिये खाना बाहर से मँगाना तय हुआ, मीनू भी तय कर लिया गया। सात बजे के बाद खाना ऑडर कर दिया गया। आठ बजे खाना आ गया। इस के बाद बीयर को गिलासों में डाल कर चीयर्स के साथ पार्टी शुरु हो गयी। कुछ देर मैं और पत्नी गाने पर नाचते रहे फिर माया भी मेरे साथ नाचने आ गयी। पत्नी ने मुझे बताया कि माया बहुत अच्छा नाचती है तो वह फिल्मी गाने पर नाचने को तैयार है गयी।

मैं और पत्नी दोनों दर्शक बन कर उसका डान्स देखने लगे। वह वाकये में बहुत बढ़िया डान्स करती थी। कुछ देर बाद वह थक कर बैठ गयी, बीयर का नया दौर शुरु हो गया। बोतलें खाली होती रही। जब खुब नशा चढ़ गया तो पत्नी बोली कि अब पीना बंद, खाना खाते है।

वह और माया मेज पर खाना सजाने लगें। कई तरह की डिश होने के कारण काफी सारा खाना मेज पर था लेकिन शायद नशे और भुख के कारण हम तीनों सारा खाना चट्ट कर गये। खाना खत्म होते होते काफी रात बीत गयी थी।

पत्नी बोली कि मैं तो सोने जा रही हूँ मैंने उस के कान में कहा कि आज मैं माया के साथ सो रहा हुँ तो उस ने सर हिलाया और चली गयी। मैंने और माया ने खाने के बरतन किचन में रखे और मैं दरवाजें पर ताला लगाने चला गया। जब कमरे की तरफ जा रहा था तो माया के कान में कहा कि कपड़ें बदलना नहीं।

वह मुस्कराती हुई चली गयी। नशे के कारण मैं भी झुम सा रहा था लेकिन माया के कमरें में जा कर बेड पर लेट गया। माया कुछ देर बाद आयी और उस ने दरवाजा बंद कर दिया। वह आ कर मेरी बगल में लेट गयी। कुछ देर ऐसे ही लेटी रही फिर बोली

आज क्या इरादा है, जो कपड़ें भी नहीं बदलने दे रहे हो?

इरादा तो नेक है।

है क्या?

कुछ खास नहीं है

लेकिन है

हाँ है तो सही

बताओंगें नहीं

अभी पता चल जायेगा

पास आओ ना

पास तो हुँ

और पास आओं

खुद ही पास आ जाओ

मैं उस को पास खिचँने के लिये खिसका तो मुझे चक्कर से आने लगे, लगा कि शायद नशा हो रहा है लेकिन तभी फैसला किया कि आज रात कुछ नहीं करना है, केवल आराम करना है, यही सोच कर माया को सीने से लगाया और उस के कान में कहा कि आज कुछ नहीं करना, सोते है। वह भी शायद यही चाहती थी सो मेरे सीने में मुँह छुपा कर लेट गयी। कुछ ही देर में हम दोनों गहरी नींद में चले गये। हमें नहीं पता चला कि रात कब बीत गयी।

सुबह के अलार्म से मेरी नींद टुटी तो देखा कि माया अभी भी मेरे से चिपकी सो रही थी उस की बाँहें मेरी कमर पर और पेर मेरे पेरों पर थे। अगर मैं हिलता तो वह जग जाती इस लिये मैं ऐसे ही पड़ा रहा लेकिन कुछ देर बाद उस की आँख भी खुल गयी और मुझे अपने आप को देखता देख कर वह बोली कि क्या देख रहे हो? मैंने कहा कि तुम सोते में अच्छी लग रही थी सो निहार रहा था, वह मुझे नकली मुक्का मारते हूऐ बोली कि चलो हटो, बातें ना बनाओ, मैंने कहा कि सच्ची बात कही है तुम्हारी मर्जी मानो या ना मानों। वह उठी और मेरा चुम्बन ले कर बोली कि

आप इतने रोमांटिक कब से हो गये?

जब से तुम मेरी जिन्दगी में आयी हो रोमान्स वापस आ गया है।

वह बोली कि सुबह-सुबह बटरिग बंद करो कुछ मिलेगा नहीं। मैंने कहा कि बंदा कुछ चाह ही नहीं रहा है। उसे सब कुछ बिना चाहे मिल गया है। माया खड़ी हो कर अपने कपड़ें सही करती हूई बोली कि रात को कपड़ें भी नहीं बदलने दिये। मैंने कहा कि तुम्हें पता चल जायेगा कि क्यों नहीं बदलने दिये थे। लेकिन कल रात थकान के कारण प्रोग्राम बदल दिया था।

वह कुछ-कुछ समझ कर मुस्कराई और बोली कि मैं चाय बना कर लाती हूँ। यह कह कर वह चली गयी। मुझे पता था कि पत्नी अभी सो रही होगी सो उसे जगाना उचित नहीं समझा। मैं भी उठ कर कपड़ें सही कर के बाहर चला आया और दरवाजों पर लगे तालें खोलने लगा। बाहर अभी भी हल्का अंधेरा था सूरज निकला नहीं था, लेकिन अपनी जल्दी उठने की आदत के कारण मैं जल्दी उठ गया था।

मेरी वजह से ही माया भी उठ गयी थी। मैं किचन में पानी पीने गया तो माया चाय बना रही थी मुझे देख कर बोली कि यहाँ क्या कर रहे हो? मैंने कहा कि पानी पीने आया हूँ तो वह बोली कि मुझ से क्यों नहीं कहा? माया मेरी आदत ना बिगाड़ों, यह मेरी रोज की आदत है कि सुबह उठ कर दो गिलास पानी पीता हूँ उस के बाद कुछ और करता हूँ, सो कर रहा हुँ, तुम्हें धीरे-धीरे मेरी सारी आदतें पता चल जायेगी। वह मुस्करा दी। मैं पानी पी कर वापस कमरें में चला गया।

कुछ देर बाद माया चाय लेकर आ गयी और हम दोनों चाय पीने लगे। माया बोली कि कल तो इतनी थकान थी कि रात को एक बार भी आँख नहीं खुली। मैंने कहा कि बीयर और खाने के नशे नें कुछ और करने लायक ही नहीं छोड़ा था। वह हँस कर बोली कि या तो पार्टी कर लो या कुछ और काम।

चाय पीने के बाद मुझे फिर से नींद सी आने लगी तो मैं दोबारा लेट गया। माया बोली कि क्या बात है? मैंने उसे बताया कि कुछ नहीं, बस नींद सी आ रही है वह बोली कि चाय के बाद नींद तो नहीं आनी चाहिये। सोओ मत, मैं अखबार ले कर आती हूँ उसे पढ़ लो नींद चली जायेगी। मुझे उस की राय पसन्द आयी और मैं अखबार लेने बाहर चला गया।

अखबार अभी आया नहीं था। इस लिये वापस लौट आया। कमरे में घुसा सो माया पीछे से मेरे से लिपट गयी और ऐसे ही खड़ी रही। मैंने भी उसे छेड़ा नहीं। शायद वह मेरे शरीर को अनुभव करना चाहती थी। कुछ देर बाद वह अलग हो गयी। इस बार मैंने उसे अपने आलिंगन में कस लिया और हम दोनों काफी देर तक ऐसे ही खड़ें रहे।

दोनों के शरीर एक-दूसरें की तपन का, उतार चढ़ाव का अनुभव कर रहे थे इस से अधिक कुछ करने की आवश्यकता भी नहीं थी। इस के बाद माया के कान में शायद अखबार गिरने की आवाज आयी थी सो वह अखबार लेने चली गयी, और आ कर मेरे हाथों में अखबार थमा कर बाहर चली गयी। मैं भी बिस्तर पर बैठ कर अखबार पढ़ने में मग्न हो गया।

पत्नी की आवाज सुन कर मैंने सर ऊठा कर देखा तो पत्नी बिस्तर की चद्दर को ध्यान से देख कर बोली कि क्या हुआ? मैंने उसे बताया कि कुछ नहीं हुआ। वह बोली क्यों? मैंने उसे बताया कि नींद बहुत जोर से आ रही थी इसी लिये आते ही सो गये। वह बोली कि नींद तो मुझे भी जोर से आयी थी अभी माया के जगाने पर जगी हूँ, नहीं तो ना जाने कब तक सोती रहती।

वह भी मेरे पास बैठ कर अखबार पढ़ने लगी। हम दोनों को अखबार पढ़ता देख कर माया बोली कि लगता है जीके का कोई एक्जाम देना है आप दोनों को। मैंने उसे बताया कि यह हमारा रोज का रुटिन है, चाय पीते-पीते अखबार पढ़ना। वह बोली की आदत तो बुरी नहीं है। कुछ देर बाद मैं उठ कर नित्यक्रम के लिये चल दिया।

माया बोली कि यह बात है कि बिना चाय पीये और अखबार पढ़े कुछ होता नहीं है। मैंने हँस कर कहा कि तुम कुछ भी कह लो लेकिन सच यहीं है। पत्नी ने माया को हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठा लिया और मैं बाथरुम में चला गया। वहाँ से आ कर नहाने के लिये चलने लगा तो माया बोली कि आप के कपड़ें और तौलिया अंदर ही है। उस की बात सुन कर पत्नी के होठों पर मुस्कान फैल गयी। मैं बाथरुम में नहाने के लिये घुस गया।

नहा कर जब बाहर आया तो कमरे में देखा कि दोनों बहनें अभी तक बातें कर रही थी। मुझे देख कर बोली कि कपड़ें यहीं बदल लो। मैं अपने कपड़ें निकाल कर पहनने लग गया दोनों मुझे देखती रही। माया बोली कि दीदी यह रोज ऐसा ही करते है। पत्नी बोली कि हाँ इन की इस आदत को बदल नहीं पायी हूँ।

मैंने कहा कि तुम स्त्रियाँ हम पुरुषों को अपने अनुसार तो बदलना चाहती हो लेकिन खुद हमारे अनुरुप नहीं ढ़ल पाती, ऐसा क्यों? मेरी बात सुन कर माया बोली कि क्योकिं हमें पता है कि सही क्या है और गलत क्या। पत्नी नें भी हँस कर गरदन हिला कर उस की बात का समर्थन किया। मैं भी हँस दिया।

इस के बाद माया भी नहाने चली गयी। पीछे से पत्नी ने मुझ से पुछा कि रात को क्या हुँआ? मैंने कहा कि तुम्हें बताया तो था कि कुछ नहीं हुआ, थके होने के कारण हम दोनों सो गये थे। सुबह अलार्म की आवाज से ही नींद खुली थी। वह बोली कि मुझे लग रहा है कि तुम्हें पुरा आराम करना चाहिये। आज से माया मेरे साथ सोयेगी और तुम अकेले सोना। तुम्हारा शरीर बहुत थका हुआ है, शारीरिक संबंध बनाने की शक्ति अभी नहीं है।

मैंने उस की बात से सहमति जतायी और कहा कि कुछ दिन तुम्हारी बात मान कर देखते है। वह बोली कि मेरी बात सही ही होती है। मैंने मन में सोचा कि यह कह तो सही रही है, इस की बात अंत में सही ही निकलती है। मैं बिस्तर पर लेट गया और उस से बोला कि अगर सो जाँऊ तो नाश्ते के लिये जगा लेना, इस पर वह बोली कि मैं कमरा बंद करके जा रही हूँ, तुम आराम से सो जाओ। जब नाश्ता बन जायेगा तो तुम्हें जगा दूँगी। यह कह कर वह कमरा बंद करके चली गयी। मुझे भी नींद आ रही थी इस लिये मैं भी सो गया।

किसी के हिलाने पर मेरी नींद टूटी, आँख खोली तो देखा कि माया मुझे हिला कर जगा रही थी। मैं उठ कर बेड पर बैठ गया। माया मेरे पास बैठ कर बोली कि मुझे समझ नहीं आ रहा कि दो दिन पहले तक तो आप बिल्कुल सही थे। अब क्या हो गया है? क्या मेरे आपके जीवन में आने से तो ऐसा नहीं हुआ है? मैं वैसे भी करमजली हुँ, मेरे भाग्य में कोई सुख लिखा ही नहीं है। यह कह कर वह रोने लगी।

मैंने उससे कहा कि माया तुम बात का पतंगड़ बना रही हो, डाक्टर को दिखा दिया है। कोई चिन्ता की बात नहीं है। यह कह कर मैंने उसे गले से लगा लिया और कहा कि रोना बंद करो। मेरी बात सुन कर वह चुप हो गयी।

फिर हम दोनों नाश्ता करने के लिये ड्राइग रुम में आ गये। पत्नी मेज पर नाश्ता लगा रही थी। माया का चेहरा देख कर बोली कि इसे क्या हुआ है? मैंने कहा कि तुम्हारी बहन है तुम्ही पुछ लो। पत्नी बोली कि पहले नाश्ता करों उस के बाद पुछती हूँ, यह कह कर उस ने माया को पकड़ कर कुर्सी पर बिठा दिया। हम तीनों नाश्ता करने लगे। मैंने कहा कि मेरी नींद को लेकर चिन्ता ना करों। थकान है कुछ दिन के आराम से सही हो जायेगी। नाश्ता खत्म होने तक कोई कुछ नहीं बोला।

नाश्ते के बाद मेरे ऑफिस से फोन आ गया, मैं उस में व्यस्त हो गया। उस के बाद मैंने पत्नी से पुछा कि कहीं चलने का इरादा है तो वह बोली कि नहीं अभी तुम आराम करो। हम दोनों घर के कुछ काम निबटा लेती है, उस के बाद कुछ सोचेगी। मैं अपने मनपसन्द के गाने लगा कर सुनने लगा। पत्नी तथा माया दोनों काम में लग गयी।

अपनी थकान को लेकर मैं भी मन ही मन में बहुत परेशान था लेकिन उन दोनों को अपनी परेशानी दिखाना नहीं चाहता था। मुझे यह भी पता था कि दवाईयों का असर होने में कुछ समय तो लगेगा ही। मन और शरीर को आराम देना ही एकमात्र उपाय नजर आ रहा था। मानसिक उलझन तो पत्नी ने सुलझा दी थी।

हाँ एक जिम्मेदारी बढ़ गयी थी लेकिन उस की तो मुझे आदत थी। तभी मुझे ध्यान आया कि मुझे अपनी दवाई खानी है, मैं उठने ही वाला था कि माया आती दिखायी दी। उस के हाथ में मेरी दवा थी। वह दवाई मेरे हाथ में दे कर बोली कि इसे खा ले। मैंने दवा ली और उसे खा लिया। वह पानी का खाली गिलास ले कर चली गयी। दवा खाने के बाद कुछ देर में बैठा रहा फिर सोचा कि व्यस्त रहने के लिये कुछ काम तो करना पड़ेगा।

यही सोच कर मैं बाथरुम यह देखने चला गया कि कुछ सही तो नहीं करना है, तो पता चला कि कई काम करने है। यह देख कर मैं अपना टूल बॉक्स ला कर खराब चीजों को सही करने लग गया। इन कामों में मेरा मन लगता था यह मुझे पता था। काफी समय लग गया सब कुछ सही करने में।

जब बाथरुम से निकला तो देखा कि पत्नी और माया बाहर खड़ी थी। पत्नी बोली कि देखा माया यह है इन के आराम करने का तरीका। मैंने कहा कि नींद आना रोकने का मुझे यही तरीका समझ आया सो इस काम में लग गया। देखो अब मुझे नींद नहीं आ रही है।

माया बोली कि लगता है आप को काम करने का रोग है, बिना काम के आप रह नहीं सकते। मैंने कहा कि हो सकता है लेकिन यह सब काम मेरी रुटिन में शामिल है छुट्टी के दिन में यह सब करता हूँ अगर विश्वास ना हो तो अपनी बहन से पुछ लें। पत्नी नें हाँ में सर हिलाया। माया बोली कि चलों अब तो बाथरुम खाली कर दो मुझे नहाने जाना है।

मैंने हँस कर कहा कि तुम्हारें ही लिये तो इसे सही कर रहा था अब नहा कर इन का मजा लो। मेरी बात सुन कर दोनों हँस पड़ी और माया कपड़ें लेने चली गयी। पत्नी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बेडरुम में ले गयी और बोली कि अब तुम आराम करो। आज का काम हो गया। उस की इस बात पर मैं मुस्करा कर रह गया। बेड पर लेट कर पत्नी से बोला और कोई हूकुम सरकार?

वह बोली कि अपने को आराम दो, ना कि उसे और थकाओ। मैंने इस का कोई जवाब नहीं दिया। हमारी बातचीत चल रही थी कि तभी माया नहा कर आती दीख गयी। उस ने गीले बाल तोलिये से लपेट रखे थे। इस से वह बड़ी सुन्दर लग रही थी।

मुझे अपने को घुरता देख कर उस ने मेरी तरफ आँखें तरेरी। मैंने अपनी नजर उस पर से हटा ली। उस ने पत्नी से पुछा कि कहा बहस चल रही है, पत्नी बोली कि मैं इन को आराम करने को कह रही थी। यह कुछ कह ही नहीं रहें।

मैंने कहा कि मुझे लगा कि खाली बैठने से शायद नींद आ रही है, इसी लिये मैं घर का काम करने बैठ गया था, और कोई बात नहीं है। मुझे अब नींद नहीं आ रही है, शाम तक देखते है कि क्या होता है? मेरी बात पर दोनों कुछ नहीं बोली। मैंने माया को कहा कि वह भी बैठ जाये और ध्यान से मेरी बात सुने और अगर कुछ गलत है तो मुझे बताये।

वह बेड के कोने पर बैठ गयी। फिर बोली कि हो सकता है कि आप की बात सही हो, लेकिन आप ने छुट्टी आराम करने के लिये ली है ना कि काम करने के लिये। मैंने कहा कि तुम दोनों सही कह रही हो, अब मैं कोई काम नहीं करुँगा। लेकिन मुझे कोई ना कोई काम तो करना पड़ेगा जिस से मैं बोर ना होऊँ।

पत्नी बोली कि तुम्हें किताबें पढ़ना बहुत पसन्द है, इतनी बड़ी लाईब्रेरी बना रही है, वह किस दिन काम में आयेगी। उस में से कोई किताब लेकर पढ़ना शुरु कर दो। मुझे उसकी यह राय पसन्द आयी और ड्राइग रुम में जा कर अलमारी में से एक किताब निकाल कर बेडरुम में लौट आया। यह देख कर पत्नी माया से बोली कि अब हम दोनों की सौत आ गयी है, जब तक यह इसे खत्म नहीं कर लेगें तब तक हम दोनों की तरफ ध्यान नहीं देगें।

यह सुन कर माया मुस्करा कर बोली कि इस सौतन का इलाज है। अभी तो इन दोनों को मजें करने दो। मैं बेड पर लेट कर किताब पढ़ने लग गया। किताब आधी खत्म हुई थी कि माया आ कर बोली कि खाना लग गया है खाने आ जाओ। मैं किताब रख कर खाना खाने उस के साथ चल दिया।

मेज पर खाना लगा हुआ था। पत्नी बोली कि आज तुम्ही पसन्द के राजमा चावल बनाये है। मैं राजमा चावल खाने लग गया। राजमा बढ़िया बने थे। मैंने पुछा कि किस ने बनाये है? तो पत्नी ने पुछा कि तुम्हें पता नहीं चला? मैंने ना में सर हिलाया तो वह बोली कि माया ने बनाये है। मैंने कहा कि इस लिये तो पुछा था क्योंकि तुम्हारें हाथ के बने राजमा का स्वाद मुझे पता है। यह नया स्वाद है। माया बोली कि अब आप इतनी तारीफ ना करो। मैंने कहा कि राजमा अगर बढ़िया बना होता है तो मैं तारीफ किये बगैर रह नहीं सकता।
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#8
UPDATE 7

पत्नी बोली कि अब तो मुझे थोड़ा आराम मिल पायेगा क्योंकि खाना बनाने में बहुत दिमाग लगता है, अब हम दोनों काम को बाँट कर कर सकती है। खाना खाने के बाद माया आइसक्रीम ले कर आ गयी। मैंने पुछा कि यह किस ने बताया तो वह हँस कर बोली कि अब आप को हर चीज थोड़ी ना बताई जायेगी। मैं चुपचाप आइसक्रीम का मजा लेता रहा। खाने के बाद पत्नी बोली कि मैं तो सोने जा रही हूँ। यह कह कर वह कमरे में चली गयी।

हम दोनों अकेले रह गये। मैंने माया से कहा कि वह भी आराम कर ले तो वह बोली कि मेरा आराम करने का तरीका अलग है। वह मेरे नजदीक बैठ कर बोली कि मुझे तो आप के साथ बैठ कर आराम आता है। मैंने उस से पुछा कि उस का मन लग गया है तो वह बोली कि मन क्यों नहीं लगेगा। सब कुछ तो मेरे मुताबिक हो रहा है। कुछ देर बाद वह मुझे उठा कर अपने साथ कमरे में ले गयी। कमरे में आ कर दरवाजा बंद करके मुझ से लिपट गयी।

मुझे पता था कि उसे मेरे साथ की जरुरत है मैंने भी उसे अपने आगोश में ले लिया। हम दोनों काफी देर तक ऐसे ही खड़ें रहे। फिर जब मन शान्त हुये तो अलग हो कर बेड पर बैठ गये। यहाँ भी माया ने मेरी बाँह पकड़ रखी थी। उस का सिर मेरे कंधे पर टिका था। मैंने पुछा कि क्या बात है तो वह बोली कि

कुछ नहीं है। बस ऐसे ही।

ऐसे ही क्या?

तुम्हारा साथ।

साथ तो हो

कह नहीं सकती

डर लग रहा है

नहीं तो

फिर क्या बात है?

प्यार करने का मन है

किसी ने रोका है

तुम्हारी हालत से डर लग रहा है

यार कोई चिन्ता की बात नहीं है। तुम्हें सब कुछ तो पता है।

मैंने उस का चेहरा अपने हाथों में ले कर उस के होंठों पर एक तगड़ा चुम्बन ले लिया। इस से वह पिघल सी गयी और मेरी गोद में गिर गयी। मैं उस के बालों में ऊंगलियां फिराने लगा। साड़ी में माया बहुत सुन्दर लग रही थी।

मैंने झुक कर उस के माथे को चुमा और उस के बाद उस की आँखों पर किस किया। इस के बाद मेरे होंठ उस को होंठों से चुपक गये। काफी देर तक हम गरमागरम चुम्बन में रत रहे। मैंने उस के वक्षस्थल के मध्य चुम्बन किया। इस से उस के बदन में सिहरन सी दौड़ गयी।

शायद हम दोनों प्रेमातुर थे और अपने आप को बलपुर्वक रोक रहे थे। उस की बाँहें भी मेरे गले से लिपट गयी। मैं उस के उरोजों के मध्य चुम्बन ले रहा था। इस से उसे उत्तेजना हो रही थी। मैं भी उत्तेजना से भर गया था। अब वही होना था जो होना चाहिये। वही हुआ तुफान आया और आ कर चला गया। हम दोनों अपनी साँसें संभाल कर बेड पर पड़े थे। माया और मैं अब कुछ सन्तुष्ट सा महसुस कर रहे थे।

शाम को जब दोनों उठ कर पत्नी के पास पहुँचे तो वह भी उठ कर बैठी थी। हम दोनों को देख कर बोली कि कुछ आराम किया या नहीं? उस की आवाज का व्यंग्य मुझे समझ आ गया था। लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा। माया भी चुपचाप रही।

हमारी चुप्पी देख कर पत्नी हँस कर बोली कि मैं तो मजाक कर रही थी। मुझे तो गहरी नींद आयी थी, अभी उठी हूँ। मैंने कहा कि हम दोनों सोने की कोशिश कर रहे थे लेकिन नींद नहीं आयी तो ऐसे ही पड़ें रहे। मेरी बात पर पत्नी के होठों पर मुस्कराहट आ गयी।

माया बोली कि चाय के साथ किसी को कुछ खाना तो नहीं हैं? मैंने कहा कि अपनी बहन से पुछों इसकी क्या राय है। पत्नी बोली कि चलों चाय के साथ कुछ बनाते हैं, यह कह कर वह उठ कर माया को पकड़ कर किचन की तरफ चली गयी। मैं कमरे में अकेला रहा गया। मैं भी कमरे से निकल कर ड्राइग रुम में चला आया और एक किताब निकाल कर उसे पलटने लगा। तभी माया आई और बोली कि पढ़ना बंद किजिये और बैठ कर चाय पिजिये। मैंने कहा की जैसी आप की आज्ञा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि हाँ आज्ञा तो माननी पड़ेगी।

तभी पत्नी चाय ले कर आ गयी। चाय के साथ आलु प्याज के पकोड़ें थे। हम तीनों चाय और पकोड़ों का मजा लेने लगे। पकोड़ें खाते में मैंने कहा कि देखो आज मुझे नींद नहीं आयी है, दोनों बोली कि हाँ यह तो है आज तुम्हें नींद नहीं आ रही है। इस का मतलब है कि थकान ही कारण थी और कोई बात नहीं थी।

माया बोली कि एक-दो दिन देखते है अगर नींद नहीं आती तो मान लेगे की आप की बात सही है। पत्नी ने भी उस की बात पर सर हिला दिया। मैंने कहा कि हो सकता है मैं एक जैसा काम करते करते थक गया होऊँगा, जिसके कारण थकान हो रही थी। आज सारे दिन मैंने अपनी पसन्द के काम किये है जिस के कारण थकान नहीं हुई है।

दोनों कुछ नहीं बोली। चाय खत्म होने के बाद माया बरतन किचन में रखने चली गयी। पीछे से पत्नी बोली कि चलो तुम को नींद ने आज परेशान नहीं किया, इसी खुशी में शाम को कहीं बाहर चलते है। मैंने कहा बताओ कहाँ चलना है? वह कुछ सोच कर बोली कि किसी मॉल में चलते है कुछ देर घुमेगें, आते में वहीं पर खाना भी खा लेगे। आऊटिंग हो जायेगी। मैंने कहा कि विचार तो सही है दोनों तैयार हो जाओ फिर चलते है।

दोनों तैयार होनें लग गयी, मैं भी कपड़ें पहन कर तैयार हो गया, इस के बाद हम शहर की एक बड़ी मॉल के लिये चल पड़ें। आधे घंटे के बाद मॉल पर पहुँचे। मॉल में भीड़ थी। कुछ देर तो विंड़ो शापिंग की, फिर पत्नी घर का राशन लेने लग गयी, मैंने उसे मना किया की वह अभी ज्यादा सामान ना खरीदे नहीं तो खाना खाने के लिये उसे ऊपर की मंजिल पर ले जाने में परेशानी होगी।

मेरी बात मान कर उस ने ज्यादा सामान नहीं खरीदा और हम हल्की-फूल्की खरीदारी करके ऊपर की मंजिल पर स्थित फुडकोर्ट के लिये चल दिये। फुडकोर्ट में काफी भीड़ थी लेकिन एक मेज खाली मिल गयी और हम तीनों उस पर बैठ गये। पत्नी बोली कि मैं कहीं नहीं जा रही हूँ तुम दोनों जा कर खाना ऑडर कर दो। मैं और माया उठ कर चल दिये, रास्तें में माया बोली कि दीदी को सब पता चल जाता है। मैंने कहा कि मैंने तुम्हें पहले ही बताया था।

हम दोनों नें जा कर पसन्द का खाना ऑडर किया और उसे लेकर पत्नी के पास वापस लौट आये। पत्नी बोली कि देखे क्या लाये हो? हम ने खाना मेज पर लगा दिया और तीनों खाना खाने लगे। पत्नी को खाना पसन्द आया और वह बोली कि खाना तो सही लाये हो। मैंने कहा कि जैसा बना है वैसा लाये है। बस पसन्द किया था।

तुम्हें पसन्द आया तो हम दोनों की मेहनत सफल हो गयी। मेरी बात सुन कर वह बोली कि देखले माया इन्हें हर बात में अपनी तारीफ चाहिये। मैंने हँस कर कहा कि तुम्हें भी तो पसन्द किया था, वह आँख मार कर बोली कि हाँ दिख तो रही है तुम्हारी पसन्द, काफी जोरदार है।

मैं उस की बात पर माया को देख कर हँस पड़ा वह बिचारी हम दोनों के बीच कुछ बोल नहीं पायी। हम खाना खत्म करने में लग गये। खाने के बाद सब लोग फिर से शापिंग करने चल दिये। पत्नी ने और माया ने शापिंग की और मैं उन के साथ लगा रहा। घर लौटते में पत्नी बोली कि आज आप ने कुछ नहीं खरीदा तो मैंने कहा कि तुम दोनों ने तो भरपुर खरीदा है मेरे खरीदने के लिये कुछ बचा ही नहीं। मेरी बात पर दोनों हँस दी और बोली कि बातें बनाना तो कोई आप से सीखे।

घर वापस आ कर जब सोने लगे तो मैं अपने बेडरुम में जा कर लेट गया। शॉपिंग के दौरान मैं काफी थक गया था सो जल्दी सोना चाहता था। नींद आती देख कर मैंने जल्दी से कपड़ें बदलें और सोने के लिये लेट गया। कब आँख लग गयी मुझे पता नहीं चला। सुबह नींद खुली तो देखा कि पत्नी बेड के एक कोने पर सो रही थी। उसे जगाना उचित ना समझ कर मैं उठ कर कमरे के बाहर आ गया।

मन किया तो माया के कमरे का दरवाजा खटखटाया तो वह खुला था, उसे धकेल कर अंदर चला गया। माया भी नींद में थी लेकिन मेरी आहट पा कर उठ गयी और बिस्तर से उठ कर दौड़ कर मेरे गले लग गयी। मेरे हाथ भी उस के बदन पर कस गये। हम दोनों गहरे आलिंगन में डुब गये। काफी देर तक ऐसे ही लिपटे रहे फिर मैंने माया को अलग किया और उस के होंठों पर अपनें होंठों की छाप लगा दी। उस का चेहरा लाल हो गया।

आलिंगन से हम दोनों ने एक-दूसरे के शरीर की गर्मी को अनुभव किया था तथा मन था कि दोनों एक-दूसरे के शरीर को सहलाये और चुमे। मैंने माया को पकड़ कर बिस्तर पर धकेल दिया और उस के ऊपर लेट गया। मेरे शरीर को उस के शरीर की ऊँचाई और गहराई का अनुभव हो रहा था। उस के स्तन उत्तेजना की वजह से कठोर हो कर मेरे ह्रदय में चुभ रहे थे। मेरा लिंग उस की गहराई मे दबा जा रहा था। सुबह की उत्तेजना के कारण लिंग पत्थर की तरह कठोर हो रहा था। मैंने माया को होंठों को अपने होंठों से ढक लिया और उन्हें चुसने लगा।

प्रत्तिउत्तर में उस के होंठ भी मेरे होंठों को चुस रहे थे। इस से हमारे शरीरों में कामाग्नि और प्रज्वलित हो रही थी। जब बर्दास्त से बाहर हो गयी तो मैंने माया की गाउन उस के सर के ऊपर से कर के उतार दी। माया सिर्फ पेंटी पहने हुई थी। उसके उरोज मेरे सामने थे मेरे होठ उन्हें चुमने, चुसने और काटने में लग गये। माया उई आहहहहहह उहहहहह करने लगी लेकिन मुझे पता था कि उसे भी यही सब चाहिये था। उरोजों को चाटने काटने के बाद मेरे होंठ उसी नाभी को चुम कर नीचे की गहराईयों में उतर गये।

पेंटी के ऊपर से भीनी-भीनी खुशबु आ रही थी मैं कुछ देर तक तो योनि को पेंटी के ऊपर से जीभ से सहलाता रहा फिर मैनें उँगली फँसा कर पेंटी नीचे खिसका दी। अब उस की योनि मेरे सामने नंगी थी। मेरी जीभ ने उस के भंग को सहलाना शुरु कर दिया। इस से माया के शरीर में सिहरन दौड़ गयी। इस के बाद मेरी जीभ उस की योनि के होंठों को अलग करके उसकी गहराई मे समा गई। माया आहहहहहह उहहहह उईईईईईईईईईई करने लगी। उत्तेजना के कारण उस का मुँह इधर उधर हो रहा था।

उस ने मेरे बाल पकड़ कर मेरा चेहरा अपनी योनि से सटा दिया। मैं भी उस की योनि के नमकीन पानी का स्वाद लेता रहा फिर उस की केले के सामन मोटी जाँघों को चुमता पंजों तक चला गया फिर उसे उल्टा करके उसके उभारों को चुमता उस की पीठ पर होंठों की छाप लगाता हुँआ उस की गरदन को चुमने लगा।

इस के बाद माया उलट गयी और उस ने अपनी बाँहें मेरी गरदन में डाल कर मुझें अपने से चिपका लिया। उस ने मेरी नाईट सुट की शर्ट उतार दी और मेरे पजामें को नीचे कर दिया। उस के हाथ मेरे कुल्हें को सहला रहे थे। मुझे पता था कि वह क्या चाहती है। मैंने अपनी ब्रीफ नीचे करी और उस के ऊपर बैठ गया। मेरे लिंग ने उसकी योनि में प्रवेश किया तो वहाँ भरपूर नमी थी इस कारण से योनि में कसाव होने के बावजूद लिंग आसानी से अंदर चला गया। दूसरे झटके में पुरा लिंग योनि में था।

इस धक्के से माया ने आह भरी। मैं जल्दी-जल्दी धक्कें लगाने लगा। माया भी नीचे से अपने कुल्हें उठा कर मुझे सहयोग दे रही थी। दोनों की गति तेज हो गयी। जब मैं थक गया तो माया मेरे ऊपर आ गयी और उस के कुल्हें हिल हिल कर मेरे लिंग को अपने अंदर समेट रहे थे। मैं उस के उछलते उरोजों को सहला रहा था। इस के बाद मेरे होंठ उन के कुचाग्रों को चुसने में लग गये। माया आहहहहहहहहहह उईईईईईईईईई आहहहह करने लगी लेकिन उस की आवाज बहुत धीमी थी। वह नहीं चाहती थी कि यह आवाज मेरी पत्नी के कानों तक जाये। कुछ देर बाद वह भी थक कर साथ में लेट गयी।

इस बार मैंने उस के पाँवों को उठा कर अपने कंधों पर रखा और उस को भोगने लगा। इस से माया को दर्द हो रहा था लेकिन वह उसे जाहिर नहीं कर रही थी। जब मेरे लिंग के जोरदार धक्कें उस के कुल्हों पर पड़ने लगे तो उस ने मुझ से कहा कि पाँव नीचे कर दो। मैंने दोनों पाँव नीचे कर दिये और अपने शरीर को एक सीधी रेखा में कर के धक्कें लगाने शुरु कर दिये, शरीर में आग सी धधक रही थी उस से शरीर निजात चाहता था।

कुछ देर बाद मेरी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और मैं माया के ऊपर लेट गया। मेरे लिंग पर आग सी लगी थी। गर्मागरम वीर्य निकल रहा था। शायद माया भी उसी समय डिस्चार्ज हुई थी उस के द्रव की गर्मी भी मेरे लिंग को महसुस हो रही थी। कुछ देर माया पर पड़ें रहने के बाद जैसे ही मुझे चेतना आई मैं उस के ऊपर से उठ कर बगल में लेट गया। हम दोनों पसीने से नहा गये थे।

दोनों की साँसें धोकनी की तरह चल रही थी। कुछ देर बाद सब कुछ सामान्य हो गया। मैंने माया की तरफ मुँह किया तो वह मुझे ही घुर रही थी। उस ने मुझे देख कर कहा कि कुछ भी धीमा नहीं कर सकते, सारा शरीर तोड़ दिया है। मैंने कहा कि प्यार में रुका नहीं जाता है। वह मुस्कुराई और मुझे चुम कर बोली कि रुकने को कौन कह रहा है, लेकिन गति कुछ तो कम कर सकते हो। नीचे का सारा शरीर दर्द कर रहा है। दीदी को सब पता चल जायेगा।

दीदी को सब पता है अब क्या नया पता चलेगा। उस के साथ भी ऐसा ही होता है। प्यार करते में उत्तेजना पर काबू करना मुश्किल होता है। जब बुढ़े होगे तब देखेगें कि गति कम होती है या नहीं। मेरी बात पर वह हँस दी और बोली कि चलों उठों और कपड़ें पहनों अब सोना नहीं है। मैंने उठ कर कहा कि जो हूकुम सरकार। यह कह कर मैं उठ गया और कपड़ें पहनने लगा।

माया भी कपड़ें पहन कर तैयार हो गयी और बोली कि चाय बनाऊँ या दीदी को जगने पर बनाऊँ? मैंने कहा कि दस मिनट बाद बना लेना, फिर उस को भी उठा देगें। यह कह कर मैं उस की तरफ लपका तो वह मुझे जीभ दिखाती हूई कमरें से बाहर भाग गई। मैं उठ कर तालें खोलने चल दिया। बाहर से अखबार ला कर ड्राइंग रुम में बैठ कर पढ़ने बैठ गया।

कुछ देर बाद माया चाय लेकर आ गयी और बोली कि दीदी को उठा दूँ? मैंने हाँ में गरदन हिलायी तो वह उसे उठाने चली गयी। उस की चाल में हल्की सी लड़खड़ाहट थी। सुबह के प्यार का असर था। मैं चाय पीने ही वाला था कि माया के साथ पत्नी भी आ गयी। वह मुझे देख कर बोली कि अखबार अभी पढ़ा नहीं है? मैंने हँस कर कहा कि तुम्हारा इंतजार हो रहा था कि कब तुम उठ कर आयों और मैं और तुम अखबार पढ़ें। माया तो अखबार पढ़ती नहीं है। माया ने मेरी तरफ आँखें तरेरी तो पत्नी बोली कि इस के पास क्या आफतों की कमी थी?

हम तीनों चाय पीने लगें। मैंने पत्नी से पुछा कि रात को नींद अच्छी आयी थी? तो उस ने जवाब दिया कि मेरी नींद का सवाल नहीं है हमें तो तुम्हारी नींद की चिन्ता है। मैं तो रात की सोई अभी माया के उठाने पर उठी हूँ। तुम बताओ? मैंने उसे बताया कि मैं भी चैन से सोया था लेकिन जल्दी उठ गया था। वह मेरी बात सुन कर मुस्कराई और बोली कि जल्दी उठने का फायदा रहता है।

मैंने कहा कि हाँ यह तो है। माया चाय के कप ले कर वहाँ से भाग गयी। पत्नी बोली कि सुबह तुमने उसे परेशान किया होगा? मैंने कहा कि जैसे तुम्हें परेशान करता हूँ वैसे ही किया। वह बोली कि चलो उसे भी पता चल जायेगा कि उसके जीजा जी किसी भी समय प्यार करने के लिये तैयार रहते है।

मैं हँस कर बोला कि अपनी बात क्यों भुलती हो?

रात में मैडम को समय ही नहीं मिलता।

वह बोली कि सारे दिन की थकी होने के कारण कुछ और होता ही नहीं है। तुम्हें सब पता है।

तो फिर मुझ पर दोषारोपण क्यों?

दोषारोपण कहाँ कर रही हूँ।

एक तो इन से प्यार करो और बातें भी सुनो।

और कौन सुनेगा तुम्हारें सिवा।

हाँ यह तो है, माया को मत सुनाना।

क्यों नहीं वह भी तो परिवार ही हैं।

सो तो है।

मैंने माया से कहा कि मैं और तेरी दीदी रात को थके होने के कारण अक्सर प्यार सुबह ही कर पाते है वह भी सप्ताहंत में। यही तुम्हारें साथ भी रहेगा। मैं थका होने के कारण पुर सप्ताह शायद ही रात में तुम्हें प्यार कर पाऊँ यह बात तुम्हें इस लिये बता रहा हूँ कि अब तुम भी हमारा हिस्सा हो तो जैसा हम करते है वैसा ही तुम्हें करना होगा।

मेरी बात सुन कर माया मुस्करातें हुई बोली कि जैसा दीदी के साथ करते है वैसा ही मेरे साथ करें, मुझे कोई परेशानी नहीं है। यह सुन कर मैंने पत्नी की तरफ देखा तो वह हँस कर बोली की साली अभी जीजा जी के प्रभाव में है इस लिये हाँ में सर हिला रही है।

मैंने कहा कि साली बाद में है पहले तो तुम्हारी बहन है। इस पर दोनों हँस पड़ी और गम्भीरता का माहौल खत्म हो गया। यह समस्या मेरे और पत्नी के बीच बहुत बड़ें झगड़ें का कारण बनती थी, क्योंकि जब मेरा कभी रात को मेरा मन करता था तब पत्नी जी थकी होने के कारण मना कर देती थी। उस समय तो बड़ा गुस्सा आता था लेकिन बाद में मैंने समझौता कर लिया।

आज यह बात माया के सामने भी आ गयी। उसे भी शायद आगे जा कर समस्या होने वाली हो। असली परेशानी तो मेरी थी कि मुझे अब दो-दो औरतों को सन्तुष्ट करना था। दोनों को कब मुझ से प्यार चाहिये यह मैं तय नहीं कर सकता था। लेकिन इस में मैं कुछ कर नहीं सकता था।

पत्नी चली गयी और पीछे माया और मैं रह गये। माया मुझे चुटकी काट कर बोली कि आप कभी चुप क्यों नहीं रहते? क्या जरुरत थी दीदी को कहने की। मैंने उसे बताया कि मैंने नहीं बताया था, उसी ने ताना मारा था, सो उसी का जबाव दिया था। वह बोली कि चुप तो रह नहीं सकते आप। मैं चुप रहा तो माया बोली कि मैं उन के अधिकार क्षेत्र में घुस रही हूँ तो कुछ तो मुझे सब्र करना पड़ेगा। मैंने हाँ में सर हिलाया तो वह हँस कर बोली कि आज के बाद आप उन्हें इस बात में जबाव नहीं देगे। मैं उन से बात करके इस को हल कर लुँगी।

मैंने फिर हाँ में सर हिलाया तो वह बोली कि क्या सर हिला रहे है? बोलते क्यों नहीं? तुमने ही तो अभी मना किया था। वह बोली कि मुझे चलाईये मत। बात को समझिये, दीदी के मान को कोई चोट नहीं लगनी चाहिये। मेरे लिये तो यही बहुत है कि मैं आप के पास हूँ। प्यार तो मिल ही जायेगा। लेकिन दीदी के अधिकार में कोई भी हस्तक्षेप मुझे मंजुर नहीं है। आप को भी यह ध्यान रखना पड़ेगा। उन के मन को ठेस नहीं लगनी चाहिये। जो कुछ उन्होंनें मुझे दिया है मैं उस से उन की आजीवन ऋणी रहुँगी।

मैं चुपचाप उस की बात सुनता रहा। उस की बात किसी हद तक सही थी। मुझे और माया को अपने पर अंकुश लगाना ही पड़ेगा, नहीं तो पत्नी, मेरे और माया के संबंधों में तनाव आ सकता है। ऐसा मैं और माया बिल्कुल नहीं चाहते थे।

इस के बाद सब दैनिक दिनचर्या में व्यस्त हो गये। नाश्ते में मैंने देखा कि आलु के पराठें बने है तो कहा कि आज क्यों बनाये है? तो पत्नी बोली कि मेरा और माया का मन था कि आलु के पराठें खाने है सो बना लिये है। मैं यह सुन कर चुप हो गया और चुपचाप नाश्ता करने लग गया। नाश्ते के दौरान ज्यादा बातचीत नहीं हुई।

नाश्ते के बाद मैं कल की अधुरी पड़ी किताब को पढ़ने बैठ गया। एक घन्टे में मैंने उसे पुरा पढ़ कर खत्म कर दिया। कुछ देर सुस्ता कर मैं घर में घुम कर देखने लगा कि कोई और काम तो पेंडिग नहीं पड़ा है लेकिन ऐसा कुछ मिला नहीं तो बेडरुम में जा कर बेड पर लेट गया। कुछ देर बाद आँख लग गयी।

पत्नी के जगाये जाने पर नींद खुली। पत्नी कह रही थी कि उठ जाओ, खाना बन गया है। मैं उठ कर बैठ गया और फिर उस के साथ चल पड़ा। ड्राइग रुम में माया मेज पर खाना लगा रही थी। मेरी मनपसन्द अरहर की दाल और चावल बने थे। मुझे भुख भी लग रही थी सो खाना खाने बैठ गया।

माया बोली कि दीदी बता रही थी कि आप को दाल चावल बहुत पसन्द है, इस लिये बना लिये है, खा कर बताईयें कि कैसे बने है? मैंने एक चम्मच चावल खा कर कहा कि दाल और चावल बढ़िया बने है। यह सुन कर पत्नी माया से बोली कि तुने बड़ी लड़ाई जीत ली है आदमी के दिल में जाने का रास्ता मुँह से हो कर जाता है।

माया यह सुन कर हँस पड़ी और बोली कि आप कह रही है तो मान लेती हूँ। मैं उन की बात को अनसुना करके खाना खाता रहा। माया सच में खाना बढ़िया बनाती है। मैंने भी सिर हिला कर पत्नी की बात से सहमति जताई। माया के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।

खाने के बाद हम तीनों बैठ कर बातें कर रहें थे तभी मैंने कहा कि आज से मैं अकेला सोऊँगा। तुम दोनों एक-साथ सोयो। मेरी बात सुन कर दोनों ने मेरी तरफ अचरज से देखा। मैंने कहा कि मैंने तय किया है कि मुझे ही अपने आप पर नियंत्रण करना होगा, इसी लिये यह निर्णय किया है कि बची छुट्टियों में मैं किसी के साथ नहीं सोऊँगा। हो सकता है सेक्स में ज्यादा लगे रहने के कारण थकान हो रही हो। इस बात को भी जाँच लेते है।

मेरी बात पर माया बोली कि दीदी ने तो पहले ही कहा था लेकिन हम दोनों ने उन की बात नहीं मानी। मैंने कहा कि इस की बात को ही तो अब मैं मान रहा हूँ, ना किसी के साथ सोऊँगा ना ही सेक्स करने की इच्छा होगी। पत्नी के होंठों पर मंद मुस्कान आ गयी। वह बोली कि हम दोनों तुम्हारें बिना रात को सो लेगी। तुम अपनी देख लो। मैंने कहा कि मुझे भी कोई परेशानी नहीं होगी।

इस के बाद इस विषय पर बात बंद हो गयी। शाम को खाना खाने के बाद कुछ देर सब गप्प मारते रहे फिर सोने चल दिये। मैं माया के कमरे में आ गया और लाइट बंद करके लेट गया। कुछ देर मुझे नींद आ गयी। सुबह किसी की आहट से मेरी नींद खुली तो देखा कि माया सिरहाने खड़ी थी। उसे देख कर मैं उठ कर बैठ गया और उसे बैठने का इशारा किया। वह बेड पर बैठ गयी।

रात को नींद आई?

हाँ, अभी तुम्हारें आने की आहट से खुली है।

और कोई परेशानी?

कैसी परेशानी?

थकान, कमजोरी

नहीं, ऐसा कुछ नहीं लग रहा

शायद दीदी की बात सही है कि हम ज्यादा सेक्स कर रहे हैं

हो सकता है, वह ज्यादातर सही होती है

इस बार भी सही है

लगता है

अपनी गल्ती मान क्यों नहीं लेते

कौन सी गल्ती

मुझ से प्यार करने की

ऐसी गल्ती तो बार-बार करुँगा

ऐसी बात

हाँ

बहुत जिद्दी हो

हाँ, हूँ तो

कैसे मानोगे

मान तो गया हूँ, और क्या करुँ?

देखती हूँ कब तक अपने को रोकते हो

अपनी दीदी से पुछो, महीनों तक कुछ नहीं करते

ऐसा क्यों?

जबरदस्ती इस उम्र में नहीं होती, मन नहीं करता

हूँ

क्या हूँ, मेरी दशा में ही जानता हूँ, क्या बताऊँ

समझ सकती हूँ

तुम्हारें आने से लगता है, ज्यादा ही हो गया है

इतना तो कुछ ज्यादा नहीं किया है

हाँ, यह तो सामान्य है

चाय लाऊँ?

हाँ बनाओ, मैं बाहर आता हूँ

माया मेरी बात सुन कर किचन के लिये चली गयी। मैं उठ कर उस के पीछे चल दिया। मुझे किचन में देख कर बोली कि चैन नहीं है, मैंने उसे बताया कि मैं सुबह खाली पेट पानी पीता हूँ सो पीने आया हूँ। वह यह सुन कर मुस्कुरा दी। उस की मुस्कराहट बहुत हसीन थी। मैं दो गिलास पानी पी कर किचन से निकल गया।
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#9
UPDATE 8

ताले खोल कर बाहर से अखबार उठा कर ले आया। तब तक माया भी चाय ले आयी थी, हम दोनों चाय पीने लगे। मैंने माया से पुछा कि तुम्हारी दीदी सो रही है? हाँ सो रही है मैंने उठाना सही नहीं समझा। सही किया। वह सारे दिन काम करके थक जाती है, इस लिये मैं उसे सुबह जल्दी नहीं उठाता। तुम क्यों जल्दी उठ जाती हो?

मुझे आदत है। चाय के बाद माया ने मेरे हाथ अपने हाथ में लेकर पुछा कि

परेशान तो नहीं हो मेरे आने से?

यह कैसा सवाल है?

मन में आया तो पुछ लिया।

ऐसा सवाल दूबारा मत करना। सिर्फ देह से प्यार नहीं है तुम से प्यार है। लेकिन रोज नहीं कह सकता।

मुझे पता है।

फिर ऐसा सवाल क्यों?

तुम्हारी तबीयत देख कर।

मेरे पर काम को बहुत बोझ है। हाई पोस्ट होने के कारण जिम्मेदारियां भी अधिक होती है, इसी वजह से यह सब हो रहा है। मुझे अब कुछ समय अपने आप को भी देना पड़ेगा ताकि मन और तन दोनों तनाव को सह सके।

बड़ी जल्दी समझ में आया है?

जब जागों तभी सवेरा

बातों में तो कोई नहीं जीत सकता तुम से

दिल तो जीत लिया है

अच्छा जी

हाँ

सुबह सुबह मख्खन बाजी शुरु

सच कहा तो यकीन क्यों नहीं हो रहा?

यकीन तो है लेकिन डर सा लगा रहता है

डरना छोड़ दो

सही कह रहे हो।

जा कर दीदी को जगा दे

माया पत्नी को जगाने चली गयी। कुछ देर बाद दोनों आती दिखायी दी। पत्नी बोली कि माया को तो सोने देते। मैंने थोड़ा इसे जगाया है, इस ने ही मुझे जगाया था। माया बोली कि दीदी मैं जल्दी जग जाती हूँ, पुरानी आदत है। पत्नी बोली कि आदत तो अच्छी है लेकिन मुझ से जगा ही नहीं जाता। मैंने कहा कि तुम्हें जल्दी जगने की जरुरत क्या है। वह कुछ नहीं बोली। माया उस के लिये चाय लाने चली गयी।

पत्नी को कुछ याद आया तो वह बोली कि मैं कल भुल गयी थी, आज तुम्हारी कोई कुलीग आने वाली है तुम्हें देखने। कल दोपहर को फोन आया था, तुम सो रहे थे सो फोन मैंने उठा लिया।

क्या नाम बताया था।

बताया तो था लेकिन याद नहीं आ रहा है।

कब आने को कहा था?

कोई समय तो नहीं बताया था तुम फोन मे देख लो।

मैंने कहा कि चलो देख लेता हूँ। पत्नी मेरा फोन लेने चली गयी। फोन उस के पास ही था।

फोन में देख कर पता चला कि मेरे साथ काम करने वाली का फोन था। मैंने पत्नी को बताया कि शायद वह यह देखने आ रही है कि मैं वास्तव में बीमार हूँ या और कही जॉयन तो नहीं कर लिया है।

ऐसा क्यो?

मैंने कभी इतनी लम्बी लिव नहीं ली है।

कैसी है?

सुन्दर है। जब आये तो देखना, अभी मैं क्या बताऊँ मेरा ख्याल है कि शाम को ऑफिस के बाद आयेगी।

तुम नहा कर तैयार रहना, पता नहीं वह कब आ टपके।

बिना नहाये ज्यादा असर पड़ेगा।

तभी माया चाय लेकर आ गयी हम दोनों के लिये भी चाय लायी थी। बातचीत का बाद का हिस्सा उस के कानों में पड़ा था सो पुछा कि कौन आ रहा है? पत्नी बोली कि इन के ऑफिस की कोई कुलीग है इन्हें देखने आ रही है। मैंने कहा कि हो सकता है वह अकेली ना हो कई लोग हो सकते है। चाय नाश्ते का इंतजाम रखना।

माया बोली कि आप ऑफिस में इतना पापुलर हो? पत्नी ने मजाक से कहा कि सारी लड़किया है, सर के पीछे पागल है। सर यहाँ छो़ड़ देना, यह दे देना। यही सब चलता रहता है।

माया ने उसकी आवाज में तंज पकड़ लिया और बोली

आपको परेशानी नहीं होती?

पहले होती थी, फिर पता चला कि इन पर किसी बात को कोई असर ही नहीं होता तो अब मुझे कोई परेशानी नहीं होती। माया बोली कि मुझे तो हो सकती है। पत्नी बोली कि अब हम दोनों का सामना कौन करेगी? तु निश्चित रह। मैं हँस कर बोला कि तुम दोनों देवियों के सामने किसकी हिम्मत है कि मेरी तरफ नजर भी उठाये। मेरी बात पर हम तीनों ही हँस पड़े।

ऑफिस से जो कुलीग आ रही थी, उस के आने से मैं खुश नही था लेकिन कुछ कर नहीं सकता था। नाश्ते के बाद नहा कर बैठा ही था कि कुलीग का फोन आ गया वह पता पुछ रही थी। उसे पता बता का पत्नी को भी बता दिया कि वह आने वाली है। कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी तो पत्नी ने दरवाजा खोला तो कुलीग ने पत्नी को पहचान कर उसे नमस्कार किया और अंदर आ गयी। पत्नी ने कमरे में आ कर मुझे बताया कि उन्हें कमरें में बिठा दिया है।

मैं ड्राइग रुम में पहुँचा तो माधवी मुझे देख कर खड़ी हो गयी। मैंने पत्नी को कहा कि यह माधवी है ऑफिस में मेरी कुलीग है। यह सुन कर माधवी बोली कि मैं कुलीग नहीं जूनियर हूँ सर की आदत है कि सारे जूनियर को इतनी इज्जत देते है। मैंने माधवी से पुछा कि पत्नी को तुम जानती हो तो वह बोली कि एक बार पार्टी में मैम को देखा था। इसी लिये पहचान गयी।

मुझे देख कर बोली कि आप थके-थके से लग रहे है। मैंने कहा कि इसी लिये तो छुट्टियों पर हूँ नहीं तो घर क्यों बैठा होता?

क्या हुआ है आपको?

बहुत थकान हो रही थी और सारे समय नींद आ रही थी, डाक्टर को दिखाया तो उस ने कुछ दिन रेस्ट करने को कहा है। वही कर रहा हूँ। तुम्हें छुट्टी कैसे मिल गयी?

आप को देखने के लिये आधे दिन की छुट्टी ली है।

सब को चिन्ता हो रही थी क्योंकि आप इतनी छुट्टियां नहीं लेते हो। जब मन नहीं माना तो तय किया कि आप को देखने चलती हूँ। सो चली आयी। अच्छा किया, अब सबुत हो गया कि मैं असल में बीमार हूँ मेरी इस बात पर वह हँस पड़ी और बोली कि मैनेजमैन्ट तो चिन्ता करता ही रहता है। उसका यही काम है।

तभी माया नाश्ता ले कर आ गयी। मैंने माधवी से माया का परिचय कराया और उसे बताया कि यह मेरी साली है। माया का परिचय भी माधवी से कराया और उसे बताया कि माधवी मेरी कुलीग है।

माधवी बोली कि आप पुरा आराम करो। शरीर का ध्यान रखना भी जरुरी है। काम भी तभी किया जा सकता है जब तन में जान हो। चारों जनें नाश्ता करते रहे। पत्नी माधवी से बोली कि आप खाना खा कर जाना।

माधवी बोली कि इस की कोई आवश्यकता नहीं है, मैंने कहा कि खाने का समय है, तो खाना खा कर जाईयेगा। मेरी बात सुन कर वह बैठ गयी। मैं कमरे से निकल गया लेकिन मेरे कानों में तीनों औरतों की बातचीत की आवाज पड़ रही थी।

माधवी खाना खा कर चली गयी। उसके जाने के बाद माया बोली कि आप की सारी कुलीग ऐसी ही है? ऐसी कैसी से क्या मतलब? सुन्दर, तेज तर्रार। हाँ नौकरी करने वाली ज्यादातर ऐसी ही होती है। मैंने हँस कर माया से पुछा कि जलन हो रही है? तो वह बोली कि सच बोलुँ तो जलन हो रही है। दीदी आप को कभी डर नहीं लगा। पत्नी बोली कि पहले लगता था लेकिन फिर कुछ दिनों बाद पता चला कि मेरा पति किसी को घास नहीं डालता तो डर चला गया।

माया ने मेरी तरफ देख कर कहा कि बहुत विश्वास है इन पर। पत्नी बोली कि विवाह में यही एक बात है तो उसे मजबुती देती है। माया ने मेरी तरफ देख कर कहा कि मेरे बाद भी आप को ऐसा ही लगता है तो पत्नी बोली कि इस का जवाब मैं नहीं दूँगी तु देगी। तेरी बात कुछ और है। जो मैं कह रही हूँ वही तु भी कुछ दिनों बाद कहेगी। मैं उन दोनों की बात सुन कर मुस्कुराता रहा। माया मुझे देख कर बोली कि देखो दीदी कैसे मुस्कुरा रहे है।

मैंने कहा कि माया जिन्दगी में यही तो कमाया है। मेरी इस बात पर दोनों मुस्करा दी। मैंने हँस कर दोनों को बताया कि माधवी का नाम मेरे साथ कई बार जोड़ने की कोशिश की गयी, लेकिन उस में कोई सच्चाई नहीं होने के कारण चल नहीं पायी। ऑफिसों में यह सब चलता रहता है, मेरी आदत है कि मैं सब से बात करता हूँ, सीनियर होने का रोब नहीं झाड़ता। इसी कारण से स्टाफ में पापुलर हूँ लेकिन मेरी बुराई भी करने वाले है।

मैं इस सब पर ज्यादा ध्यान नहीं देता। पत्नी बोली कि अभी कई दिनों तक माया को नींद नहीं आने वाली है कि इतनी सुन्दर औरत के साथ तुम सारे दिन रहते हो। मैंने कहा कि अभी तो इस से भी सुन्दर लड़कियाँ है मेरी कुलीग। माया बोली कि अब मुझे सताना बंद करो। हम दोनों बोले कि तेरी शक्ल देख कर मजाक कर रहे थे। तुम परेशान ना हो।

हमारी बातों में शाम हो गयी और दोनों जनी चाय बनाने चली गयी। मैं माधवी के घर आने से खुश नहीं था। लेकिन एक बात का संतोष था कि यह ऑफिस में जा कर बतायेगी कि मैं वास्तव में बीमार हूँ तो अफवाहें खत्म हो जायेगी। इस के आने का मेरे को यही एक फायदा होने वाला था।

ऑफिस की बातें अब मुझे परेशान नहीं करती थी। हो सकता था कि माधवी के आने के बाद और कोई भी सर की नजरों में गुड साबित होने के लिये उन के हाल-चाल पुछने आ सकता था जो मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं था लेकिन कुछ कर नहीं सकता था किसी को मना करना और अफवाहों को जन्म देना था।

यही सोचते-सोचते कब समय बीत गया पता नहीं चला। माया कि आवाज से अपनी तंद्रा से निकला। पत्नी बोली कि माधवी के आने से परेशान है और उसी के बारें में सोच रहे हो। मैंने हाँ मे सर हिलाया तो माया बोली कि दीदी आप तो जीजाजी के मन की बात बिना बताये ही समझ जाती हो। पत्नी बोली कि मुझे पता रहता है कि कब इन के मन में क्या चल रहा है। चाय के साथ पापड़ देख कर मैं उन का स्वाद लेने लगा और इस तरह से मेरा पीछा बातों से छुटा।

रात को मैं अकेला ही सोया। सुबह फिर से माया ने मुझे जगाया। हम दोनों छत पर चले गये सूरज अभी निकला नहीं था, मौसम ठंड़ा था। हम दोनों सूर्योदय को देखने लगे। माया मुझ से बोली कि

रात को कैसी नींद आयी थी?

मैंने जवाब दिया कि बढ़िया नींद आयी थी।

इसका मतलब है कि हमारें साथ सोने से परेशानी हो रही थी।

मैंने ऐसा कब कहाँ?

मतलब तो ऐसा ही लग रहा है

ऐसा नहीं है, शायद ज्यादा सेक्स करने की वजह से थकान हो रही होगी

ऐसा हो सकता है?

हाँ हो सकता है

विश्वास नहीं हो रहा

मुझे भी नहीं हो रहा है लेकिन हो सकता है कि तेरी दीदी के साथ सेक्स करने की आदत ना रहने से शरीर सेक्स का आदी नहीं रहा है। इन दिनों रोज सेक्स करने से शरीर थक रहा हो। कोई स्पष्ट कारण नहीं है।

सही कह रहे हो

शायद सही हो सकता हूँ या गलत भी हो सकता हूँ

मेरा ही दोष है

तुम्हारा क्यों है

मैंने तुम से ज्यादा सेक्स की माँग की

तुम ने नहीं मुझे भी सेक्स की जरुरत थी, तुम तैयार थी, इस लिये दोनों सेक्स कर पाये, शायद तुम्हें देख कर तुम्हारी दीदी के अंदर सेक्स की भुख जग गयी है।

यह तो अच्छी बात है

हाँ है तो सही, मेरे लिये बढ़िया है

हाँ तुम्हारी तो मौज है

अगर तुम इसे मौज कहती हो तो मौज है

बुरा मान गये

नहीं लेकिन यह अस्थायी है, शरीर इस को संभाल लेगा

होना तो यही चाहिये, रोज सेक्स करना कोई अति तो नहीं है।

हाँ चिन्ता मत करो, सब सही हो जायेगा

हाँ होना तो चाहिये

चलो अब चाय पिलाओ

चलो नीचे चलते है

चलो

हम दोनों नीचे आ गये। माया और मैं किचन में आ गये। माया चाय बनाने लग गयी और मैं पानी पीने लग गया। इस के बाद मैं बाहर अखबार लेने चला गया। अखबार लेकर ड्राइग रुम में आ गया। तभी पत्नी भी उठ कर आ गयी, बोली कि माया कहाँ है?

इतने में माया चाय ले कर आ गयी। पत्नी की चाय उस में नहीं थी, वह उसके लिये चाय लेने चली गयी। उस के आने के बाद हम तीनों चाय का आनंद लेने लग गये। मैं अखबार पढ़ने लगा। हम तीनों चुपचाप थे। शायद तीनों के पास बात करने के लिये विषय ही नहीं था।

दिन सामान्य रुप से बीत रहा था। दिन के खाने के बाद पत्नी सोने जाने लगी तो मैं उस के साथ बेडरुम में आ गया। पत्नी ने माया को आवाज दे कर बुला लिया। माया के आने के बाद पत्नी ने उस से पुछा कि तुम यहाँ आ कर खुश तो है? पत्नी के सवाल पर माया ने कहा कि हाँ बहुत खुश हूँ। नाखुश होने का कोई कारण नहीं है। मैं हैरान हो कर पत्नी की बात सुन रहा था।

पत्नी ने कहा कि मैंने यह सवाल माया से इस लिये पुछा कि उस के आने के बाद तुम बीमार पड़ गये हो, इस लिये कुछ तनाव सा तो नहीं है। मैंने कहा कि तनाव क्यों होगा। तुम ने उसे स्वीकार कर लिया है। इस से ज्यादा उसे क्या चाहिये? पत्नी ने मुझे देखा और कहा कि हो सकता है कि तुम उस के साथ नहीं सो पा रहे हो इस लिये यह परेशान हो।

माया बोली कि दीदी मैं इतना सब पा कर अपने भाग्य को सराह रही हूँ और जीजा जी के स्वास्थ्य से ज्यादा मेरे लिये कुछ नहीं है। कुछ दिन अगर उन के साथ नहीं सो सकी तो परेशान हो जाऊँ, ऐसा तो कोई कारण नहीं है। पत्नी बोली कि हमें यह तय करना पड़ेगा कि यह किस दिन किस के साथ सोयेगे, ताकि तुझे या इन्हें कोई परेशानी ना हो। मैं चुपचाप उसकी बात सुन रहा था मुझे पता था कि वह मेरे मन की बात जान लेती है इसी लिये वह यह बात कर रही है। इस का कभी ना कभी सामना तो करना ही पड़ेगा तो आज की क्यों नहीं।

माया कुछ नहीं बोली, यह देख कर पत्नी बोली कि सप्ताह में चार दिन तेरे साथ और तीन दिन मेरे साथ सोयेगे। माया ने सहमति में सर हिला दिया। शनिवार को तेरे साथ, संडे को मेरे साथ, सोमवार को तेरे साथ, मंगल को मेरे साथ और बुध को तेरे साथ, ब्रहसपति को मेरे साथ तथा शुक्रवार तो जहाँ इन का मन चाहे। मैं उस की बात सुन कर हँस पड़ा तो वह बोली कि हँसे क्यों? मैंने कहा कि यार मैं शुक्र की बात सुन कर हँसा था।

लेकिन तुम कह सही रही हो। ऐसा ही होगा अगर माया इस के लिये राजी है तो। मेरी बात पर माया बोली कि जो दीदी करेगी वह सही होगा। मुझे मंजुर है। मैंने यह सुन कर मन ही मन में राहत की साँस ली। पत्नी ने मेरी तरफ देखा तो मैंने कहा कि यह सही रहेगा। मेरी बात सुन कर वह बोली कि यह कोई पत्थर की लकीर नहीं है लेकिन इस से तुम्हारी परेशानी खत्म होगी कि आज किस के साथ सोना है? मैंने हाँ में सर हिलाया।

पत्नी यह कह कर चुप हो गयी। माया बोली कि जो दीदी कहेगी मैं वही करुँगी। मैंने अब अपना जीवन तुम दोनों के हवाले कर दिया है जैसा आप चाहोगें मैं वैसा ही करुँगी। बात यही पर खत्म हो गयी।

शाम को पत्नी ने मुझे बताया कि वह अपनी सहेलियों के साथ बाजार जा रही है, उसे आने में देर हो जायेगी। मेरे चेहरे पर आते भावों को देख कर वह बोली कि माया मेरे साथ नहीं जा रही है। इस के बाद वह तैयार होने चली गयी। कुछ देर माया से बात करने के बाद वह चली गयी। अब घर में माया और मैं दोनों अकेले थे। माया मेरे पास आ कर बैठ गयी।

कुछ देर चुपचाप बैठी रही फिर बोली कि अब बताओ तुम्हारी तबियत कैसी है? मैंने कहा कि सही लग रही है कहो तो चैक कर लेते है, मेरी बात को समझ कर वह बोली कि जब देखों शैतानी सुझती रहती है। मैंने मजाक से कहा कि इस में शैतानी कहाँ से आ गयी। वह बोली कि दीदी अभी घर से निकली नहीं है और महाराज अपनी लाईन पर आ गये है।

मैं हँस दिया और बोला कि हर चीज अपने पास ही रखती हो। खुद ही आगे बढ़ कर सेक्स करती हो और मैं कहुँ तो मजाक उड़ाती हो, माया तुम भी कमाल करती हो। वह भी हँसती हुई बोली कि मैं तो हूँ ही कमाल की। फिर वह मेरे से चिपक कर बोली कि बुरा मान गये? मैंने कहा कि बुरा क्यों मानुँगा? अपनी चीज को पाने के लिये किसी से पुछना थोड़ी ना पड़ेगा। वह सर हिला कर बोली हाँ यह तो है। मैंने उसे आलिगंन में बाँध कर कहा कि बताओ क्या करुँ? वह हँस कर बोली कि यह भी मैं बताऊँ?

हाँ, बताना तो पड़ेगा

जो मन करे

मन तो बहुत कुछ करता है

क्या चाहता है

बताऊँगा तो मारोगी

नहीं बताओ तो सही

फिर कभी

अभी क्यों नहीं

सही समय नहीं है

हम दोनों में कुछ दूराव बचा है

नहीं तो लेकिन लगता है बुरा मान जाओगी?

बहाना मत बनाओ

छोड़ो

जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं हूँ कौन?

ब्लैकमेलिंग?

जैसा समझो

पीछे से करने का मन है

किसने रोका है

तुम्हारी दीदी के डर से कभी किया नहीं

मैं तो नहीं डरती

चलो किसी दिन ट्राई कर के देखेगे।

यह बात हुई ना

तुम्हें डर नहीं लगता

तुम से क्या डर, पता है तुम मुझे कष्ट नहीं दोगे

इतना विश्वास है मुझ पर

यह पुछने की बात है

नहीं तो

तन, मन सब कुछ तुम पर अर्पित कर दिया है

रोमांटिक हो रही हो

गलत है

नहीं, लेकिन इस की आदत नहीं रही

तो अब आदत डाल लो

डाल लेते है जी, सरकार

मार खानी है

क्यों?

चिढ़ा क्यों रहे हो

सरकार कहने से चिढ़ क्यों रही हो

सरकार तो कोई और है

हाँ यह तो है लेकिन मेरी तो दो-दो सरकार हैं

यह बात है

हाँ

मजे करो

मजे ही तो कर रहे है।
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#10
UPDATE 9

मेरे हाथ उस की कमर पर कस गये उस की बाँहें मेरी गरदन से लिपट गयी और हम दोनों गहन चुम्बन में डुब गये। जब साँस फुल गयी तब अलग हुये। माया बोली कि तुम कुछ भी कम नहीं करते।

यार चुमने में भी कम ज्यादा होता है।

हाँ साँस रुक सी गयी थी।

सब्र नहीं होता।

सब्र करना सीखो। तुम्हारी ही चीज है तो इतनी जल्दी बाजी क्यो? सही है

आगे ध्यान रखुँगा।

माया मेरे से लिपटी ही रही। मैं भी उस के शरीर की गर्मी को महसुस करता रहा। फिर हम दोनों बैठ गये। मैं उस के चेहरे को देखता रहा। मुझे घुरते देख कर माया बोली

घुर क्यो रहे हो?

नजरों में बसाना चाहता हूँ।

अभी तक कहाँ थी

दिल में

नजरों में नहीं

नहीं

तुम्हारें सामने ही तो हूँ

हो लेकिन तुम्हें ध्यान से देखने का मौका ही नहीं मिला है।

सब कुछ तो देखा है

हाँ, लेकिन फिर भी दिल और देखना चाहता है

आज सूरज कहीं और से तो नहीं निकला?

क्यों?

तुम इतने रोमांटिक, मैंने तो यह रुप देखा ही नहीं था

जिस को दिखाना चाहता था वह देखना ही नहीं चाहती थी, इस लिये मन को मार लिया, अब लगता है कि मन को मारना क्यों है।

सही है मन को क्यों कर मारना

दिल को तसल्ली मिले वही करना चाहता हुँ।

आज इतने भावुक से क्यों हो?

पता नहीं, लेकिन खुश हूँ, तुम

मैं भी खुश हूँ

तो फिर चलों खुशी इंजॉय करते है।

हाँ

हम दोनों प्यार करना चाहते थे लेकिन फिर भी नहीं कर रहे थे क्योकि उसे करने से डर लग रहा था। एक दूसरे के साथ समय बिताना ज्यादा सही था, सो वही करने की कोशिश कर रहे थे। मैंने माया से पुछा कि मकान कहाँ पर देखा है?

मैंने कहाँ देखा है सिर्फ पता किया था।

चलो एक दिन चल कर देख आते है।

अपने से अलग करना चाहते हो?

ऐसा कैसे लगा?

यहाँ साथ में अच्छा नहीं लग रहा है?

पैसा आया है तो प्रोपर्टी खरीद लेना अच्छा रहेगा। यहाँ से जाने को किसने कहा है।

तुम ने कहा तो लगा कि मुझे अपने से अलग कर रहे हो?

जरुरत पड़ी तो ऊपर एक मंजिल और बनवा लेगे।

यह सही रहेगा।

तुम मेरे से दूर नहीं जा रही हो जब तुम्हारी दीदी ने कह दिया है तो यह फाइनल है। मैं चाहूँ तो भी नहीं बदल सकता। इस लिये मन में आये किसी भी विचार को निकाल दो।

तुम कभी-कभी खतरनाक बात करते हो

मुझे लगता है तुम से खतरनाक काम तो कोई कर ही नहीं सकता

आज हम दोनों लड़ क्यों रहे है?

शायद प्यार बढ़ रहा है। जब दो लोग गहरे प्यार में होते है तो वह दोनों बहुत लड़ते है।

तुम तो दीदी से नहीं लड़ते

किस ने कहा

दीदी ने

पहले बहुत लड़ते थे लेकिन फिर दोनों शान्त हो गये है।

बढ़िया है तुम लड़ते अच्छे नहीं लगते

और क्या करता अच्छा नहीं लगता

धीरे-धीरे सब पता चल जायेगा, जल्दी क्या है

जैसी तुम्हारी मर्जी

तभी माया को चाय बनाने की याद आयी तो वह चाय बनाने चली गयी। कुछ देर बाद लौटी तो चाय के साथ पापड़ भी तल कर लायी थी। हम दोनों चाय का आनंद लेने लग गये। मैंने पुछा कि दीदी बता कर गयी है कि रात का खाना खा कर आयेगी या घर पर खायेगी?

माया ने बताया कि खाना खा कर आयेगी। मैंने कहा कि माया बाहर का खाना है तो कुछ मँगा लेते है तो वह बोली कि नहीं मैं बना रही हूँ वही खायेगें।

कुछ देर बाद माया खाना बनाने चली गयी, मैंने पत्नी को फोन कर के पुछा कि खाना बनवाऊँ तो वह बोली कि हाँ मैं घर पर आ कर ही खाना खाऊँगी। उसकी यह बात सुन कर मैं किचन में गया और माया को बताया कि वह अपनी दीदी के लिये भी खाना बना कर रखे।

उस ने मेरी तरफ हैरत की नजरों से देखा तो मैंने उसे बताया कि अभी मेरी बात हूई है और वह घर पर ही खाना खाने की कह रही है। माया ने एक गहरी साँस ली और बोली कि चलों आप ने फोन कर लिया नहीं तो जब वह घर पर आती तो खाना ना देख कर क्या सोचती? मैंने उसे दिलासा दिया कि वह कुछ नहीं सोचती।

तुम्हें उसे खाना बना कर देना पड़ता। वह यह सुन कर मुस्करा कर बोली कि लगता है कि आप भी दीदी को समझने लगे है। मैंने कहा कि वह मुझ को समझती है और मैं उस को समझता हूँ यही विवाह का असली अर्थ है। माया कुछ नहीं बोली और खाना बनाती रही।

आठ बजे करीब पत्नी बाजार से आ गयी। उस के हाथ सामान से भरे थे। वह सामान रख कर बैठी और फिर माया से बोली कि मैंने तुझे तो मना किया था, लेकिन जब इन्होनें फोन किया तो सोचा कि अकेले खाना खाने में क्या मजा आयेगा और देर भी बहुत हो जायेगी इस लिये इन से खाना बनाने की कह दी थी। तुझे बुरा तो नहीं लगा।

माया बोली, इस में बुरा मानने की क्या बात है, मैं खाना बना ही रही थी तभी जीजा जी ने आ कर बता दिया था। अगर नहीं भी बताया होता तो तुम्हारें आने के बाद बना देती। उस की बात सुन कर पत्नी के चेहरे पर संतोष के भाव दिखाई दिये।

हम तीनों खाना खाने बैठ गये। खाना खाने के बाद पत्नी मीठा लेने चली गयी, वह बाजार से रसगुल्ले ले कर आयी थी। खाने के बाद मुझे मीठा खाने की आदत है यह उसे पता है। हम सब लोग इस के बाद बात करने लगे फिर मैं माया के कमरे में सोने चला गया।

नींद अभी आई ही थी कि लगा कि दरवाजा खुला और किसी ने दरवाजा बंद किया और लॉक कर दिया। फिर किसी के पास लेटने का आभास हुआ। मुझे लगा कि नींद में सपना देख रहा हूँ लेकिन जब नाक में किसी की खुशबू समायी तो समझ आया कि माया है।

तब तक माया मुझ से लिपट चुकी थी। मेरी पीठ पर उस के उरोज दबें हुये थे। उस के पाँव मेरी जाँघों पर चढ़ कर आगे की तरफ आ गये थे। हाथ मेरी गरदन पर थे। मैंने करवट बदली तो उस के होंठ मेरे होंठों से चिपक गये।

कई दिनों से उनका स्वाद नहीं लिया था इस लिये मेरे होंठ उन के स्वाद का रसास्वादन करने लग गये। मैंने आँख खोल कर कहा कि तुम यहाँ कैसे? तो जवाब मिला कि दीदी ने भेजा है कि तुम्हारें पास जा कर सोऊँ। मैं कुछ समझा नहीं लेकिन जो कुछ हो रहा था उस से मैं खुश था।

रात जोरदार बीतनी थी। मैं हाथों से उस की पीठ सहलाने लगा। धीरे-धीरे दोनों के शरीरों में गरमी भरने लगी। मैंने माया की गरदन के नीचे अपने होंठ लगा दिया। इस के बाद मैंने उस के नाईटसुट के बटन खोल दिये। अब उस के उरोज मेरे सामने थे। दूध से उजले उरोजों के कुचांग्रो को देख मैंने अपने होंठ उन पर लगा दिये।

फुले हुये निप्पलों को चुसना शुरु कर दिया। दूसरें को मेरे हाथ सहला रहे थे। उरोजों का मर्दन और चुषण करने के बाद मेरा ध्यान उस के नीचे की तरफ गया। मैंने होठों से उस की नाभी चुम कर उस के पजामें के अंदर हाथ डाल दिया।

उस ने पेंटी पहनी हुई थी। उस के अंदर मेरी उँगलियों नें प्रवेश करके उसकी योनि को सहलाना शुरु कर दिया, इस कारण से माया की उत्तेजना बढ़ने लगी। उस के होंठ अब मेरी गरदन पर गढ़ रहे थे।

मैं आज की रात कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था तथा चाहता था कि हमारा सहवास लम्बा चले इसी लिये धीरे-धीरे उस की भग को सहलाने लगा। इस से माया उत्तेजित हो रही थी, कुछ देर बाद मेरी उँगलियाँ उस की योनि की गहराई को खंगाल रही थी। पहले एक उँगली थी फिर दो उँगलियाँ योनि के अंदर बाहर होने लगी।

माया आहहहहहहहह एईईईईईईई उहहहहह करने लगी। उस ने मेरे कान में कहा कि अब रुका नहीं जा रहा है। मैंने नीचे झुक कर उस का पायजामा उतार दिया और पेंटी भी निकाल दी।

मेरे होंठ उस की योनि को चाटने लगे। इस के बाद उस की जाँघों को चुम कर नीचे पंजों की तरफ चल पड़ें। पंजों को हाथों से सहला कर मैंने उस की हर उँगली को होंठों में ले कर चुसा मुझें ऐसा करना अच्छा लग रहा था तथा इस की वजह से मेरे शरीर में उत्तेजना भरती जा रही थी।

माया ने उठ कर मुझे अपने ऊपर गिरा लिया और मेरे कपड़ें उतारने शुरु कर दिये। ऐसा करने के बाद उस ने अपने मन की करना शुरु कर दिया।

उस के मन में भी मेरे शरीर को प्यार करने महसुस कररने की इच्छा थी जिसे वह पुरी करना चाहती थी। गरदन के ऊपर चुम्बन करने के बाद मेरे निप्पलों का नंबर लगा और उस ने उन को होंठों में ले कर काटना शुरु कर दिया। अब मेरे मुँह से आह निकलने लग गयी।

इस के बाद उस के लबों ने मेरी नाभी पर कृपा करी और इस के बाद उस ने मेरी जाँघों के मध्य में चुमना शुरु किया। मेरी जाँघों पर चुम्बन करने के बाद उस ने मेरे अंडकोशों को चुमा और उन को हाथ से सहलाना शुरु कर दिया। सहलाने से अंडकोश तन गये और यह तनाव लिंग में चला गया और वह भी तन कर कठोर हो गया।

माया ने पहले लिंग के सुपारे का चुम्बन लिया और उस के बाद हाथों से उसे सहला कर उसे मुँह में ले लिया। धीरे-धीरे उस ने पुरा लिंग निगल लिया। कुछ देर वह उसे चुसती रही और उस के बाद उस ने उसे मुँह के अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। मुझे यह अच्छा तो लग रहा था लेकिन मैं अभी स्खलित नहीं होना चाहता था लेकिन माया लिंग को मुँह से निकालने को राजी नहीं थी।

मैं घुम कर 69 की पोजिशन में आ गया और हम दोनों को अपने काम की चीज मिल गयी। माया मेरे लिंग को चुस रही थी उसे मसल रही थी और मैं अपनी जीभ से उस की योनि को चाट रहा था और उस के अंदर जीभ को डाल कर उस का रसास्वादन कर रहा था। काफी देर यही चलता रहा, मैं माया के मुँह में स्खलित हो गया और माया भी स्खलित हो गयी।

इस के बाद हम दोनों एक दूसरे की बगल में लेट गये। माया ने मेरे कान में फुसफुसाया कि आज कुछ बाकी तो नहीं रह गया? मैंने कहा कि अभी तो चल रहा है देखते है कितना होता है यह सुन कर उस ने मेरी चकोटी काटी और कहा कि शैतानी कम करो।

मैंने कहा कि अपनी चीज का स्वाद ले रहा हूँ जैसे तुम ले रही हो तो वह बोली कि हाँ कह तो सही रहे हो। आज मैं भी अपने मन की कर रही हूँ, किसी बात का डर नहीं लग रहा है।

कुछ देर हम दोनों ऐसे ही पड़ें रहे फिर वह उठ कर मेरे ऊपर आ गयी और बोली कि आज तो तुम अच्छे बच्चे की तरह व्यवहार कर रहे हो। मैंने कहा कि मालकिन की सलाह मान ली है तो उस ने मेरी छाती पर मुक्का मारा।

मैंने उसे अपने से चिपका लिया। फिर उस के कान में कहा कि अभी महाराज को थोड़ी देर लगेगी क्योकि तुमने उसे चुस लिया है तो वह बोली कि पुरी रात अपनी है मैं इंतजार कर लुँगी।

उस के वक्ष मेरे सीने पर दबाव डाल रहे थे। मैंने एक हाथ से उन्हें सहलाना शुरु किया तो वह बोली कि कुछ देर तो रुकों। मैंने कहा कि सहला ही तो रहा हूँ, इस पर माया बोली कि दर्द कर रहे है, तुम्हें अपनी ताकत का पता नहीं है। मैंने अपना हाथ उस के वक्ष से हटा लिया। उसकी पीठ को सहलाया तो वह चिहुक कर बोली कि कुछ और इरादा तो नहीं है।

इरादा तो नेक है

कितना नेक?

जितना मैं हूँ

तुम और नेक

क्यों भई ऐसा क्या किया है

अच्छा तुम्हें पता ही नहीं है

क्या किया है

अभी कितनी बार डिस्चार्ज हुई हुँ पता है?

नहीं

3-4 बार.

पता नहीं चला

नीचे हाथ लगा कर देखो तब पता चलेगा

मैनें हाथ नीचे उस की जाँघों के जोड़ पर रखा तो पता चला कि वहाँ भरपुर गीलापन था

तुमने भी तो मुझे डिस्चार्ज कर दिया हिसाब बराबर

अच्छा जी

हाँ जी

कुछ और इरादा तो नहीं है

इरादें तो बहुत है लेकिन आज कोई नहीं है।

यह कह कर मैंने उस के कुल्हों को दबा कर अपने लिंग से चुपका लिया। लिंग इस तन गया और मैनें हाथ लगा कर उसे माया की योनि में डाल दिया।अंदर भरपुर नमी थी इस लिये लिंग बिना किसी रुकावट के बच्चेदानी तक चला गया।

इस के बाद मैंने नीचे से अपने कुल्हें उछाल कर धक्का दिया तो माया के मुँह से आह निकल गयी। लिंग ने बच्चेदानी के मुँह पर जोर से टक्कर मारी थी। मैं धीरे-धीरे अपने कुल्हें उठा कर धक्कें लगा रहा था फिर माया भी कुल्हों को हिला कर मेरा साथ देने लगी।

मैंने दोनों हाथों से उसकी पतली कमर थाम रखी थी। कुछ देर बाद हम दोनों नें करवट ली और मैं माया के ऊपर आ गया। मैं अभी भी धक्कें लगा रहा था। मुझे पता था कि स्खलित होने में ज्यादा समय लगना था। सो उस के लिये ही गति धीमी रख कर चल रहा था।

कुछ समय ऐसा करने के बाद मैनें लिंग निकाल लिया और माया को करवट दिला कर पेट के बल कर दिया और उस के कुल्हों को उठा कर उस के पीछे घुटनों के बल बैठ कर पीछे से उस की योनि में लिंग डाला शायद लिंग योनि में घर्षण कर रहा था इस लिये माया कराहने लगी।

मैं उस के दोनों कुल्हों को जो ज्यादा मांसल नहीं थे पकड़ कर धक्कें लगा रहा था माया भी इस में मेरा साथ दे रही थी। काफी देर इस आसन में रहने के बाद मैं थक गया था सो मैंनें उसे पीठ के बल लिटाया और उस के दोनों पाँव कंधों पर रख कर लिंग योनि में डाल दिया।

योनि बहुत कस गयी थी इस लिये लिंग को बहुत कसाब मिल रहा था। अब मेरे शरीर में आग सी लग रही थी और मैं उस से छुटकारा चाहता था लेकिन स्खलित होने की अवस्था नहीं आ रही थी लिंग सुन्न सा हो रहा था। इस लिये मैने लिंग को योनि से निकाल लिया और माया के दोनों पाँव नीचे कर दिये। माया बोली कि मेरी जान निकल रही थी अब चैन मिला है।

तुम्हें बोलना था

क्यों

दर्द हो रहा था

मजा आ रहा था, तुम्हें रोकना सही नही लगा

अब कभी ऐसा हो तो रोक देना

अच्छा

मैंने फिर से अपना लिंग माया की योनि में डाल दिया और शरीर को एक लकीर में कर के जोर-जोर से धक्कें लगाने शुरु कर दिया। माया आहहहहह आहहहह उईईईई उहहहहह करने लग गयी। कुछ देर बाद मेरी आँखों के सामने तारें झिलमिला गये और मैं माया पर लेट गया।

माया की छातियाँ भी जोर जोर से ऊपर नीचे हो रही थी उस की बाँहें और पैर मेरे बदन पर कस गये थे। वह भी स्खलित हो गयी थी। कुछ देर हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे फिर मैं उस की बगल में लेट गया। करवट लेकर माया कि तरफ मुँह किया तो वह बोली

आज की बात ही कुछ और है मैं तो हवा में उड़ रही हूँ, मुझे पकड़ कर रखो कहीं उड़ ना जाऊँ।

तुम कही नहीं उड़ रही मैंने थाम रखा है।

तुम्हारा ही तो सहारा है।

यह कह कर माया मुझ से लिपट गयी। हम दोनों के शरीरों से द्रव्य बह रहे थे नीचे के हिस्से इस कारण से गीले हो गये थे लेकिन संभोग के आंनद के सामने किसी को इस बात की चिन्ता नहीं थी। रात वाकई में बहुत जोरदार थी दोनों ने इस का भरपुर आंनद लिया था। लंबें संभोग के कारण थक जाने के कारण दोनों कब सो गये पता ही नहीं चला।

सुबह उठा तो सही लग रहा था, मेरे बगल में माया सोई पड़ी थी। सोती हुई बहुत मासुम लग रही थी। उस का चेहरा बालों से ढ़का हुआ था। मैंने हाथ से उसके चेहरे पर पड़े बालों की लट हटाई तो वह जग गयी। मुझे बाल हटाता देख बोली कि सोते में भी चैन नहीं लेने देते।

मैंने कहा कि मेरी प्रेमिका का चेहरा बादलों से ढ़का था सो उसे बादलों से बाहर कर रहा था। मेरी बात सुन कर वह हँस पड़ी और बोली कि आज तो आप के जुबान पर कवि बैठा हुआ है क्या बात है?

बात क्या है दिल खुश है

कितना

इतना की कविता करने लगा है

यह भी शौक है जनाब को

कई शौक जिम्मेदारियों की गर्द में दब गये थे, अब तुम ने आ कर उन पर पड़ी गर्द हटा दी है

क्या बात है मेरा पति तो मुझे देख कर कविता भी करता है, मैं तो धन्य हो गयी

कभी तो पढ़ा लिखा काम आयेगा ही, तो आज क्यों नहीं तुम्हारें चेहरे रुपी चन्द्रमा को बाल रुपी बादल मेरे से छिपा नहीं सकते

मैंने झुक कर माया के माथे पर चुम्बन दे दिया। वह उठ कर बैठ गयी और फिर अपनी हालत देख कर शर्मा गयी और चादर अपने पर लपेट ली। उस की यह हरकत देख कर मैंने कहा कि मुझ से कैसी शर्म तो वह बोली कि हर समय बेशर्मी सही नहीं लगती, मुझे कपड़ें पहनने दो। मैंने उस के कपड़ें उसे पकड़ाएँ और अपने कपड़ें पहनने लगा। जब दोनों ने कपड़ें पहन लिये तो दोनों कमरे से बाहर आ गये।

माया चाय बनाने किचन में चली गयी और मैं अखबार लेने बाहर चला गया। दरवाजा खोल कर बाहर से अखबार उठा लिया। फिर कुछ सोच कर बेडरुम में जा कर पत्नी को जगाने लगा। वह कुनमुनाती हूई उठ कर बेड पर बैठ गयी। मुझे देख कर बोली कि तुम जग गये।

मैंने कहा कि हाँ तभी तो तुम्हें उठाने आया हूँ। बाहर आ कर चाय पी लो। वह बोली कि चलो मैं आती हूँ। मैं इस के बाद किचन में चला गया। वहाँ पानी ले कर मैंने माया को बताया कि तेरी दीदी भी आ रही है उस की चाय भी बना ले तो वह बोली कि मुझे पता है आप उन्हें जगाने गये थे।

तब तक पत्नी भी किचन में आ गयी और बोली कि जब चाय बन जाये तो तुम दोनों बाहर आ जाना, मैं बाहर जा रही हूँ। उस की बात सुन कर मैं उस के साथ ही बाहर आ गया। दोनों कुर्सियों पर बैठ गये और अखबार पर नजर मारने लगे।

आज मुझे अच्छा लग रहा था। कोई थकान नहीं हो रही थी। सुबह की घुप अच्छी लग रही थी। माया चाय ले कर आ गयी और हम दोनों को चाय दे कर खुद भी चाय का कप ले कर बैठ गयी।

पत्नी ने मुझ से पुछा कि आज तुम्हें कैसा लग रहा है? मैंने उसे बताया कि आज सही महसुस कर रहा हूँ कोई थकान नहीं लग रही है। मेरी यह बात सुन कर वह बोली कि लगता है तुम सही हो रहे हो। ऐसे ही दो-तीन दिन और आराम कर लो पुरी तौर पर सही हो जाओगे। मैंने उस की बात पर सहमति में सर हिला दिया।

पत्नी ने माया से पुछा कि रात को सब कुछ सही था तो उस ने कहा कि हाँ दीदी सब कुछ सही रहा। मैं कुछ समझा नहीं तो पत्नी बोली कि रात को मैंने ही इसे तुम्हारें पास भेजा था यह देखने के लिये कि तुम शारीरिक तौर पर सही हो या नहीं? हमें जैसा पहले लग रहा था शायद वह ही सही कारण था लेकिन वह ही इकलौता कारण नहीं था।

कई चीजों के मिल जाने के कारण तुम थक गये थे। अब सही हो जाओगे। सेक्स भी कर पायोगे। ऐसा मेरा मानना है। रोज सेक्स करने के कोई बीमार नहीं होता है। माया और मैंने उस की बात से सहमति जताई।

दिन सामान्य तौर पर गुजरा। ऑफिस से फोन आया तो मैंने एच आर को बता दिया कि मैं तीन दिन के बाद आऊँगा। मैं अभी अपने आप को कुछ और आराम देने के मुड में था। दोपहर में पत्नी बोली कि कहीं बाहर चलते है।

हम तीनों शहर के मशहुर बाजार को घुमने निकल गये। बाजार में जा कर दोनों की तो मानो लॉटरी निकल आयी। दोनों ने मन भर कर खरीदारी करी। मैं तो बस उन दोनों के साथ घुमता रहा। रेस्टोरेंट में तीनों के खाना खाया और शाम को घर पर वापस आ गये।

घर आ कर दोनों जनी मुझे अपनी खरीदी चीजें दिखाने लग गयी। इस के बाद माया रात के लिये खाना बनाने चली गयी। पत्नी मेरे पास बैठी रही, मुझे अकेला देख कर वह बोली कि माया का मन लग गया है, इस से मैं बहुत खुश हूँ इस ने अपने जीवन में कोई सुख नहीं पाया है। आज हमारे साथ यह खुश है मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। कोशिश करना कि यह कभी दूखी ना हो।

मैं चुप रहा तो वह बोली कि कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो? क्या बोलूँ तुम तो सब कुछ बोल ही रही हो। लेकिन करना तो तुम्हें है। हाँ मैं तो सब कुछ करुँगा कि माया खुश रहे, लेकिन इस सब के पीछे हो तो तुम ही ना। अगर कुछ गलत करुँ तो मुझे टौक देना। वह मुझे देख कर बोली कि

मुझ पर इतना विश्वास है?

जैसे तुम्हें अपने पति पर विश्वास है वैसे ही मुझे मेरी पत्नी पर है।

माया ना जाने कब आ कर हम दोनों की बातें सुन रही थी। वह बोली कि तुम दोनों मेरी खुशी के लिये इतने चिन्तित क्यों हो? मैंने कहा कि तुम अब हमारी हो गई हो तो तुम्हारी खुशी भी हमारी जिम्मेदारी है वैसे भी हम पति-पत्नी को जिम्मेदारियाँ उठाने की आदत है।

वह पत्नी से लिपट कर बोली कि दीदी मुझे भी अपना हिस्सा बना लो ताकि मैं भी आप दोनों की चिन्ता कर सकुँ? इस पर पत्नी बोली कि वह तो तु हो ही गयी है, हमारी चिन्ता तु नहीं करेगी तो और कौन करेगा।

मैंने कहा कि भाई भुख लग रही है खाना खाते है। मेरी बात पर माया किचन में भाग गयी। कुछ देर बाद वह खाना ले आयी और हम तीनों मेज पर खाना खाने बैठ गये। मुझे लगा कि मेरे जीवन में आया हुआ तुफान गुजर गया है और अब वहाँ शान्ति छा गयी है।

तीन दिन बाद मैंने ऑफिस जाना शुरु कर दिया था। जीवन चल रहा था। माया को बहुत से प्यार की जरुरत थी वह उसे मिल रहा था लेकिन फिर भी मुझे लगता था कि उसे जो रोमांच मेरे साथ चाहिये वह नहीं मिल रहा है।

पत्नी के सामने हम दोनों अपने आप को बंधा सा महसुस करते थे। जो होना भी चाहिये था। वह मेरे घर की मालकिन थी मेरे जीवन को चलाने वाली थी। बिना उस की सहमति के मैं कुछ भी नहीं करता था। यह मेरी आदत में शामिल हो गया था।

माया अपने लिये जगह चाहती थी जो उसे मिल तो गयी थी लेकिन वह उस की मालकिन नहीं थी। किसी की नाराजगी का हर समय उसे डर बना रहता था। हम दोनों इस अवस्था को बदल नहीं सकते थे। यही अवस्था हमारे जीवन के सही चलने की शर्त थी। इस के बदलते ही क्या होगा हम दोनों में से कोई नहीं जानता था।

हम इस की कल्पना भी नहीं करना चाहते थे। मैं सोचता रहता था कि कैसे माया के अंदर जो शैतान बच्चा है वह बाहर आये। मुझे उसकी वही बैलोस छवि पसन्द थी लेकिन वह रुप अब दब सा गया था। वह अब अपनी दीदी की आज्ञाकारी बहन हो गयी थी। उसे भी यही पसन्द आ रहा था लेकिन मैं इस से खुश नहीं था।

मुझे लगता था कि माया का पुराना रुप वापस आना चाहिये तभी उस के और मेरे संबंध सामान्य रहेगे। सेक्स तो था ही लेकिन कही और कुछ था जो मिसिंग था वह क्या था? उसे खोजना था।

कुछ महीने बाद पत्नी के किसी संबंधी के यहाँ कोई समारोह था, पहले तो वह मना कर देती थी लेकिन माया के आने के बाद उसे घर की चिन्ता नहीं थी इस लिये जाने के लिये तैयार हो गयी। करीब सात दिन के लिये वह संबंधी के यहाँ चली गयी।
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#11
UPDATE 10

मैं और माया उसे रेलवे स्टेशन पर जा कर ट्रेन में बिठा कर आये। घर आ कर दोनों बातें करने लगे। माया का शरारती रुप फिर प्रगट से हो गया और वह बोली कि तुम्हारी कोई दबी हुई इच्छा है तो बताओ मैं उसे पुरी करुँगी।

मैंने शरारत से कहा कि है तो लेकिन सुन कर भाग मत जाना। वह बोली कि भाग कर तो तुम्हारें पास आयी हूँ अब और कहाँ जाऊँगी? उस की बात सुन कर मैंने उसे बताया कि गुदा मैथुन की पुरानी चाहत है लेकिन तेरी दीदी ने कभी पुरी नहीं होने दी।

मैंने इस के बारे में सोचना ही छोड़ दिया है। मेरी बात सुन कर वह बोली कि अब इस इच्छा को पुरी कर सकते है। मैं कितना भी दर्द से कराहु, मेरी आवाज से कोई परेशान नहीं होगा। उस की बात से मुझे लगा कि कोई तो तरीका होना चाहिये कि इस काम में दर्द अधिक ना हो।

दिमाग में आया कि आज कल तो सेक्स टॉय आते है पहले उन का उपयोग करके तैयारी की जा सकती है। लेकिन यह टॉय कहाँ मिलेगे यह पता करना था। बाजार में तो ऐसे ही नहीं मिल सकते थे। नेट पर खोज करी तो एक साइट पर मिल गये।

अपने काम का टॉय ऑडर कर दिया। उस के साथ एक जैल भी ऑडर किया जो इस तरह के टॉय के साथ इस्तेमाल किया जाता है ताकि ज्यादा घर्षण ना हो। अगले ही दिन ऑडर आ गया। इस सब के बारे में माया को कुछ भी नहीं बताया था। दूसरे दिन शनिवार की छुट्टी थी। सोचा कि रात को या दिन में इसे प्रयोग कर के देखेगे। इस बारें में माया से भी बात करनी थी।

रात को माया ने पैकेट के बारे में पुछा तो मैंने उसे बताया कि कोई सामान है कल खोलेगे। वह इस के बाद कुछ नहीं बोली। रात को सोते में वह बोली कि ऑफर चल रहा है तुम कुछ कर नहीं रहे हो। मैंने कहा कि मैडम हमें अभी आप से प्यार करना है ऑफर की कल सोचेगे।

वह बोली कि कोई बदमाशी तो नहीं सोच रहे हो। मैंने कहा कि तुम से बदमाशी कर के मैं कहाँ जाऊँगा तो वह हँस दी और बोली कि हम दोनों से बच नहीं सकते। फिर हम प्यार करने लग गये। जो हमेशा की तरह जोरदार रहा।

सुबह नाश्ता कर के मैं बैठा ही था कि माया पैकिट ले कर आ गयी और बोली कि मैं इस के बारे में जानने के लिये मरी जा रही हूँ लेकिन तुम कुछ छिपा रहे हो? मैंने उसे हाथ से पकड़ कर बिठाया और कहा कि लाओ आज इस राज का भी पर्दाफाश करते है।

मैंने पैकेट खोला और उस के अंदर से सेक्स टॉय और जैल निकाल कर बाहर रख दिया। टॉय को देख कर माया को कुछ समझ तो आया लेकिन वह मुझे देख कर बोली कि यह क्या है। मैंने कहा कि तुम्हें सब कुछ समझ में आ जायेगा। वह मेरे पास बैठ गयी।

टॉय आठ इंच लंबा ठोस सिलिकॉन का बना लिंग था जिस में दो-दो इंच पर गांठे सी बनी थी। माया उसे उत्सुकता से देख रही थी। मैंने भी किसी ऐसी चीज को पहली बार हाथ में लिया था। फिल्मों में इस चीज को बहुत बार इस्तेमाल करते हुये देखा था लेकिन हाथ में ले कर बड़ा अजीब सा लग रहा था। उस के साथ आये कागज को पढ़ने बैठ गया।

उस में टॉय के देखभाल के बारे में बताया था। मैंने माया को थोड़ा गरम पानी करने को कहा। वह किचन में पानी गर्म करने चली गयी। कुछ देर बाद मैं उस के पीछे किचन में आ गया। उस से गर्म पानी लेकर कर उसे टॉय पर डाल कर उसे साफ किया और बेडरुम में आ गया। माया भी मेरे साथ ही बेडरुम में आ गयी।

मैंने माया को पास में बिठा कर कहा कि मेडम यह सेक्स टॉय है जो हमें गुदा मैथुन करने में सहायता करेगा। उस ने मेरी तरफ अचरज से देखा तो मैंने कहा कि मेरे करने से पहले इस के द्वारा तुम्हें तैयार करेगे ताकि असल में करते समय तुम्हें अधिक दर्द ना हो।

मेरी बात से उस के चेहरे के भाव नहीं बदले। अब मैं परेशान था कि माया को कैसे तैयार करुँ कि वह इसे इस्तेमाल करें। मैंने माया को देखा और उस से पुछा कि उसे मुझ पर विश्वास है या नहीं तो वह बोली कि यह कैसा सवाल है?

मैंने कहा कि अभी इस्तेमाल कर के देखे या रात को तो वह बोली कि अभी कर के देखते है रात को जल्दी रहती है। मैं उस की इस बात से सहमत था। लेकिन इस के लिये पहले उसे तैयार करना था, बिना उसे उत्तेजित किये यह काम किया नहीं जा सकता था।

मैंने उसे अपनी बाँहों में जकड़ा और चुमना शुरु कर दिया। वह भी मुझे चुमने लगी। बीवी के घर में ना होने के कारण हम दोनों आगे-बगाहे एक-दूसरे को चुमते रहते थे। पत्नी के सामने यह करने में शर्म लगती थी।

कुछ देर बाद जब मुझे लगा कि माया उत्तेजित हो गयी है तो मैंने उस के सारे कपड़ें उतार दिये और उसे बेड पर लिटा लिया। मेरे कपड़ें भी उतर गये। हम दोनों एक दूसरे को सहलाने और उकसाने में लग गये। मेरा लिंग उस के मुँह में आ गया और वह उसे चुसने लगी।

मैं उस की योनि को चुम रहा था। कुछ देर ऐसा ही होता रहा फिर मैंने उसे पेट के बल लिटा दिया और उस के चुतड़ों को सहलाया और उनकी दरार में अपनी जीभ फिराई। माया इस से चिहुकी लेकिन फिर शान्त हो गयी। मुझे अब लगा कि माया अब टॉय को युज करने के लिये तैयार है।

मैंने उसे बताया कि यह उस की गुदा में डालना है। उस ने हाँ में सर हिलाया। मैंने टॉय पर जैल लगाया और उस की गुदा के मुँह पर लगा कर धीरे से ऊपर नीचे किया ताकि वह इस को फिल कर सके। फिर धीरे से उसे उस की गुदा में धकेलने की कोशिश की जैल लगा होने के कारण उस ने कोई घर्षण नहीं किया और उस का मुँह गुदा में प्रवेश कर गया।

मैंने अपना हाथ रोक लिया। माया से पुछा कि दर्द हो रहा है तो वह बोली कि ज्यादा नहीं हो रहा है। यह सुन कर मैंने हाथ पर दबाव डाला और टॉय को कुछ और अंदर कर दिया। माया चुपचाप पड़ी रही। मैंने हाथ से उस के चुतड़ों को सहलाया और टॉय को आधा उस की गुदा में धुसेड़ दिया। अब माया अपने कुल्हों को हिलाने लगी। मैंने उस की पीठ को सहलाया और उस के मुँह को चुम लिया।

माया को करवट दिला कर अपनी तरफ किया और उस का चुम्बन लेने लग गया और हाथ से उस के स्तन को दबाया। वह बोली कि जलन सी हो रही हो। मुझे पता था कि जितना टॉय अंदर गुदा में गया है वह काफी है इतना ही मेरा लिंग अंदर जा पायेगा। मैंने हाथ बढ़ा कर उसे माया की गुदा से निकाल लिया।

माया ने राहत की साँस ली। उस ने अपना सर मेरी छाती में छुपा लिया। हम दोनों फिर से गहरे चुम्बन में लीन हो गये। माया मेरे कान में बोली कि अब दुबारा डालो शायद अच्छा लगे पहले तो बहुत दर्द हो रहा था।

बताया क्यों नहीं

पता था कि ऐसा होगा

लेकिन मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कोई परेशानी हो

कुछ भी नया करेगें तो ऐसा होना ही है लेकिन तुम तो इतनी सावधानी बरत रहे हो

वो सब सही है लेकिन तुम्हें दर्द हो यह मैं नहीं चाहता

ऐसा सोचगों तो रात को प्यार कैसे करोगों?

तुम्हारी माया तुम ही जानों

वैसा करो जैसा मैं कह रही हूँ

अच्छा

मैंने इस बार उसे पीठ के बल लिटा कर उस के पाँव ऊँचे कर के टॉय को गुदा में डाला। इस बार माया ने कुछ नहीं करा। धीरे-धीरे मैंने पुरा टॉय अंदर डाल दिया। फिर उसे अंदर बाहर करने लगा। माया को इस में मजा आ रहा था। उस के चेहरे से पता चल रहा था। कई बार अंदर बाहर करने के बाद मैंने उसे निकाल कर रख दिया। माया से पुछा कि अब मैं करुँ तो उस ने सर हिला दिया।

मैंने उसे डोगी स्टाइल में करा और उस के पीछे बैठ कर अपने लिंग पर जैल लगा लिया और उसकी गुदा पर भी जैल लगा दिया। इस के बाद लिंग को हाथ से पकड़ कर माया की गुदा पर रख कर दबाया। लिंग का सुपाड़ा उस की गुदा में घुस गया। माया की चीख निकली। मैं इसे सुन कर रुक गया। माया से पुछा तो वह बोली कि रुकों मत।

मैंने जोर लगाया और मेरा आधा लिंग माया की गुदा में समा गया। माया दर्द से कराह रही थी। मैं रुकना चाहता था लेकिन पता था कि इस बार रुक गया तो मेरे मन की कामना, कामना ही रह जायेगी। इस लिये मन कड़ा करके तीसरी बार जोर लगा कर पुरा 6 इंच का लिंग माया की कसी गुदा में उतार दिया।

माया आहहहह उहहहहह कर रही थी। मैंने उस पर झुक कर उस के उरोजों को सहलाया ताकि उस को आराम पड़े। ऐसा ही हुआ वह शान्त हो गयी। इस के बाद मैंने अपने लिंग को गुदा के अंदर बाहर करना शुरु किया।

पहले तो कसाब काफी था फिर वह कम सा हो गया। मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लिंग किसी कुँवारी योनि का स्वाद ले रहा है। कुछ देर बाद मुझे लगा कि मैं स्खलित होने वाला हूँ तो मैंने अपना लिंग माया की गुदा से बाहर निकाल लिया।

माया को लिटाया और उस के योनि में लिंग डाल दिया। अब हम दोनों कुल्हों को उठा दबा कर लिंग को समाने का प्रयास कर रहे थे। कुछ देर के बाद मैं स्खलित हो कर माया के ऊपर लेट गया। कुछ देर बाद माया के ऊपर से उठ कर उस की बगल में लेट गया।

उस ने अपना चेहरा मेरी छाती में छुपा लिया। कुछ देर तक हम ऐसे ही पड़े रहे। मेरे लिंग पर भी घर्षण की वजह से दर्द हो रहा था। शायद पहली बार होने के कारण ऐसा हो रहा था।

कुछ देर दोनों ऐसे ही लेटे रहे। मैं उठ कर बैठ गया तो माया भी उठ कर बैठ गयी। मैंने उस से पुछा कि कैसा अनुभव रहा? तो वह कुछ बोली नहीं, मुझे पता लग गया कि वह खुश नहीं है लेकिन कह कुछ नही रही है।

माया उठ कर कपड़ें पहन कर बेडरुम से बाहर निकल गयी। दोपहर हो रही थी। उसे खाना बनाना था। मैं बेड पर लेटा सोच रहा था कि आज जो कुछ मैंने किया वह सही था या नहीं। मााया का चेहरा बता रहा था कि वह इस सब से खुश नहीं थी। मुझे टॉय युज करने से पहले उस से पुछना चाहिये था।

खाना खाने के समय हम दोनों चुपचाप खाना खाते रहे। फिर जब वह मेरे पास लेटने आयी तो मैंने उसे अपने से चिपका कर पुछा कि माया मुझ से नाराज हो? इस पर वह बोली कि हाँ नाराज हूँ, मुझे किसी टॉय की जरुरत नहीं है, मेरे पास तुम हो मैं किसी नकली चीज को अपने शरीर में क्यों डालुँ?

उस की यह बात सुन कर मुझे समझ आया कि क्या गलत हुआ है। वह बोली कि इस टॉय को अभी तोड़ कर फैंक दो। इस बारे में दीदी को कुछ नहीं बताना। मुझ से एक बार पुछना तो था। तुम मेरे साथ कुछ भी करो लेकिन कोई नकली चीज मैं इस्तेमाल करुँ यह मुझे बर्दाश्त नहीं है।

तुम ने मना क्यों नहीं करा था

तुम बुरा ना मान जाओ

अब नहीं बुरा मानुँगा

मैं मना लुँगी, उस समय कहती तो तुम बुरा मान जाते

यह तो कोई बात नहीं हुई

बस मैंने मना कर दिया ना, मुझे नहीं युज करना

ओके मैं समझ गया अभी उसे तोड़ कर फैंक देता हूँ

हाँ यही सही है, आगे से कुछ करने से पहले मुझ से पुछ लेना

अच्छा अब माफ कर दो

तुम्हें तो सजा मिलेगी

चलो सजा ही दे दो लेकिन नाराज तो मत हो

मुझे मनाना सीखो

यही तो मुझे अब तक नहीं आया है

सब कहते है कि तुम बातों के उस्ताद हो

अपनों से क्या बात करुँ

अपने ही तो सबसे ज्यादा नाराज होते है, मुझे खुश करो जैसे पहले करते थे

जैसी आज्ञा

ऐसा करोगे तो माफी नहीं मिलेगी

माफी तो चाहिये

मैंने अपने कानों को हाथ लगाया तो माया हँस पड़ी और मेरे चेहरे को पकड़ कर चुमने लग गयी। मेरे कान में बोली कि तुम इतने बदमाश हो कि तुम्हें सजा देने की बजाय प्यार करने का मन करता है।

तो फिर प्यार करो

जो पीछे दर्द हो रहा है उसका क्या

तुम्हें बताया तो था, पहली बार में ऐसा होना ही था

लेटा नहीं जा रहा है

तुम आराम करो

मैं ऐसा कह कर उठ गया और टॉय को ले कर बेडरुम से बाहर निकल गया। बाहर आ कर चाकु से टॉय के छोटे छोटे टुकड़ें करे और उसे कुड़ेदान में डाल दिया। मेरे पहले सेक्स ऐडवेंचर का यह हाल हुआ। लेकिन मैं मन में खुश था कि माया कि बात सही है हम क्यों नकली चीज इस्तेमाल करे जब कि हमारे पास असली हथियार है।

माया के गुस्से को खत्म करने के लिये उसे इतना प्यार करना पड़ेगा कि वह इस दर्द को भुल जाये। यही सोच कर मैं ड्राइग रुम में बैठ कर टीवी दिखने लगा। कुछ देर बाद माया आई और मुझ हाथ पकड़ कर बेडरुम में ले गयी।

बेडरुम में आ कर वह बोली कि आपको माफी अभी नहीं मिलगी। मुझे समझ आया कि माया को ऑर्गाज्म दिलाना पड़ेगा तभी उस का गुस्सा शांत होगा। यही सोच कर मैंने उसे बेड पर घसीट लिया और हम दोनों प्यार करने में डुब गये। मैने उस की योनि चाटी उस के जी स्पाट को रगड़ा तब जा कर उसे ऑर्गाज्म हुआ उस का सारा शरीर कांपने लगा।

योनि से निकला पानी मेरे चेहरे को भिगाने लगा। मैं जब भी उस की योनि में उँगली करता उस का शरीर अकड़ता। मैंने उस के होंठ चुम लिये और धीरे से अपना लिंग उस की योनि में डाल दिया। माया का शरीर अभी भी अकड़ रहा था। उस की योनि मेरे लिंग को कस कर मथ रही थी। हम दोनों संभोग में लगे रहे। माया कराहती रही मैं धक्कें लगाता रहा। उस के पाँव मेरी कमर पर बुरी तरह से कस गये।

मेरे हर धक्कें पर उस के मुँह से कराह निकल रही थी। उस के शरीर में तरगें सी उठ रही थी मैं उन्हें महसुस कर रहा था। कुछ देर बाद मैं भी स्खलित हो गया और निढाल हो कर उस की बगल में लेट गया। मेरा लिंग वीर्य और योनि द्रवों से लिथड़ा हुआ था। माया कि योनि पर हाथ लगाया तो वह भी पानी निकाल रही थी। उस ने मेरा हाथ दबा कर योनि से चुपका दिया। हम दोनों थक कर ऐसे ही सो गये।

शाम को जब नींद खुली तो माया मेरे से लिपटी सोई पड़ी थी। उसे हिलाया तो वह कराही और बोली कि मुझे मार क्यों नहीं देते। मैंने उसे चुमा तो उसे होश आया और आँख खोलकर बोली कि तुम्हारी सजा माफ हो गयी। मैं उस की बात सुन कर हँस गया। मेरी हँसी को सुन कर वह उठ कर बैठ गयी और बोली कि सारी बदमाशी माफ है तुम्हारे इस तरह प्यार करने पर।

मैंने उसे पकड़ा तो वह बोली कि अब मैं सारे दिन के लिये तुम्हारे लिये बेकार हूँ, तुम ने पीछे से आगे से सब जगह से मुझे भोग कर तृप्त कर दिया है लेकिन मुझे बैठने में दर्द हो रहा है। मैंने कहा रानी जी आनंद ऐसे ही थोड़ी ना मिलता है मूल्य चुकाना पड़ता है। वह बोली कि मैंने जो कहा था वह आप ने किया?

तुम्हारें हुक्म को पुरा कर दिया

बढ़िया, लेकिन यह आइडिया आया कहाँ से

ब्लु फिल्म से

आज से तुम्हारा ब्लु फिल्म देखना बंद

तुम से मिलने के बाद मैंने फिल्म देखना बंद कर दिया है

मैं तुम्हारी फिल्म हूँ

नहीं लेकिन तुम मेरी इच्छा पूर्ति हो जिसे में ब्लु फिल्म देख कर किया करता था

मुझे तो आज ही पता चला

अच्छा है

यह बदमाश बच्चा और क्या इच्छा रखता है?

अब कोई इच्छा नहीं है

साधु बन गये हो

साधु क्यों बनुँ

हाँ दो बीवीयों का पति साधु क्यों बनेगा

तुम्ही कह रही थी

मैं तो बदमाशी छोडने की बात कर रही थी

बदमाशी तो हम नहीं छोड़ सकते वो भी तुम्हारे साथ

हमने कब मना किया है लेकिन बदमाशी करो गलत काम नहीं

आगे से नहीं करेगें, गल्ती की माफी मिलनी चाहिये

माफी मिल गयी है लेकिन कान पकड़ों

पकड़ तो लिये थे

मैंने देखा नही था

मैंने अपने कान पकड़ें, तो माया पेट पकड़ कर हँसने लगी। जब चुप हुई तो बोली कि आज चाय आप बना कर पिला दो। मैं तो आराम कर रही हूँ। पीछे दर्द है। मुझे कुछ याद आया तो उसे कहा कि लायो इस का भी इलाज करते है तो वह बोली कि हाथ मत लगायो। आग सी लगी है।

मैंने उँगली में जैल लगा कर माया के विरोध के बावजूद उस की गुदा में उसे लगा दिया। जैल के कारण उसकी गुदा में ठंडक पड़ गयी। इस से माया को आराम मिला। वह बोली कि यह पहले क्यों नहीं लगाई थी। मैंने उसे बताया कि इसे लगा कर ही उस से गुदा मैथुन किया था। वह बोली कि मुझे कुछ पता नहीं चला।

मैं किचन में चाय बनाने चला गया। चाय पी कर हम दोनों बेड पर ही बातें करते रहे। तभी पत्नी का फोन आया, वह जानना चाहती थी कि सब कुछ सही है या नहीं माया ने उसे बताया कि सब कुछ सही है फिर दोनों समारोह की बातें करने लगी। महिलाओं की बातें तो वैसे भी लम्बी चलती है। जब बातें खत्म हुई तो माया ने मुझे बताया कि दीदी कह रही है कि वह दो और दिन रह कर आयेगी।

मैंने माया को आँख मारी तो वह बोली कि रात के खाने का इंतजाम करो। मैंने उसे बताया कि ऑनलाइन ऑडर कर देते है वह बोली कि मुझे पहले दिखायो क्या मँगा रहे हो? मैंने उसे मीनू दिखाया और उस की पसन्द की डिश ऑडर कर दी। एक घंटें बाद खाना आ गया। रात को आठ बजे हम दोनों ने खाना खाया और पैग भी लगाये।

माया को वाइन पसन्द है तो वह वाइन पीती रही और मैं वोदका का मजा लेता रहा। जब सोने गये तो दोनों नशें में धुत्त थे। कुछ करने का दम नहीं थी। एक दूसरे की बाँहों में लेट गये। माया मेरा गाल चुम कर बोली

अब नाराज तो नहीं हो।

किसी बात से

मैंने जो कहा था

नहीं

मुझे लगा कि तुम्हारी मन की बात नहीं मानी इस लिये

मेरे मन का तो सब कुछ तुम ने करा ही था

लेकिन बाद में अपनी बात भी तो कही थी

वह सही थी जो चीज तुम्हें सही नहीं लगी तुमने कही और मैंने मान ली

खुश हो

हाँ

झुठ तो नहीं बोल रहे?

तुम बताओ

सच बोल रहे हो

माया तुम मेरी प्रेमिका हो मेरा कहा तुम ने माना और तुम्हारा कहा मैंने माना। यही तो सही अर्थों में प्यार है

तुम से बातों में कोई नहीं जीत सकता

जीतना कौन चाहता है हम तो हार कर ही खुश है

शयर कब से बन गये है आप

जब से आप के प्यार में डुबे है

मेरा सनम तो हर रोज मुझे चौकाता है

सो तो है किसी ऐरी गैरी का सनम थोड़े ना हूँ

सुनो पीछे से करने से मुझे कोई गुरेज नही है मुझे केवल टॉय से आपत्ति थी सो वह तुम ने दूर कर दी। अब हम इसे भी करा करेगे, जब हमारे पास समय होगा। एक बार करने के बाद ऐसा दर्द होगा तो काम नहीं चलेगा।

छोड़ों मन में कामना थी वह आज पुरी हो गयी। अब दूबारा करने की कोई इच्छा नहीं है

सच कह रहे हो

हाँ

मेरी बात सुन कर माया ने मेरी छाती में अपना सर छुपा लिया और हम दोनों नींद में डुब गये। आज का दिन बहुत थकान भरा था। मेरी किया काम एक बहुत बड़ी घटना की वजह बन सकता था लेकिन माया कि समझदारी ने उसे खत्म कर दिया।

सुबह रविवार था, इस लिये दोनों देर तक सोते रहे। नींद पत्नी के फोन से खुली वह मुझ से पुछ रही थी कि तुम घर के मंदिर में दीपक जला रहे हो या नहीं। मैंने मना करा तो वह बोली कि जब तक मैं नहीं हूँ यह तुम्हारी जिम्मेदारी है कि मंदिर में सुबह दीपक जलना चाहिये। मैंने उस की बात पर सहमति जता दी।

फोन कट गया। माया भी जग गयी थी उसे पता चल गया था कि फोन किसका था। वह मुझे देख कर बोली कि क्या हुआ? मैंने उसे बताया कि मंदिर में दीपक जलाने के लिये कह रही थी। माया यह काम नहीं करती थी ना पत्नी ने उसे कभी कहा था। क्या कारण था मुझे पता नहीं था और ना मैं जानना चाहता था।

मैं उठ कर नहाने जाने लगा तो माया बोली की रुकों तुम्हारें कपड़े निकाल दूँ। मैंने उस से कहा कि मैं बिना कपड़ों के आता हूँ जब तक वह कपड़ें निकाल दे। कुछ देर बाद जब मैं नहा कर लौटा तो वह कपड़ें हाथ में ले कर खड़ी थी। मैंने तोलिया निकाल कर कपड़ें पहने और कमरे से निकल गया। मंदिर में जा कर दीपक लिया और उसे साफ करके जला कर पुजा करके वापस आ गया।

माया अभी तक कमरे में ही बैठी थी। मुझे लगा कि कोई बात जरुर है। उस के पास जा कर बैठा तो वह बोली कि पता नहीं मुझ से क्या गल्ती हूई है कि दीदी मुझे पुजा करने को नहीं कहती। मैंने उसे समझाया कि यह उस का क्षेत्र है हम दोनों इस में ना घुसे तो ही सही रहेगा। मैं नहीं चाहता था कि वह समझे कि हम उस के अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ कर रहे है। मेरी बात सुन कर माया चुप हो गयी।

दिन काफी निकल आया था इस लिये वह किचन में चली गयी और मैं ड्राइग रुम में आ कर अखबार पढ़ने लगा। नाश्ता करते में माया से पुछा कि आज कही चले तो वह बोली कि चलों कही घुमने चलते है। मैंने कहा कि कहाँ जाना है वह बोली कि कोई फिल्म देखने चले। मैंने कहा चलो। हम दोनों घर से निकल गये। मॉल में ही सिनेमा था वहाँ की टिकट ली और हॉल में चले आये।

ऊपर किनारे की सीट मिली थी। दोनों एक-दूसरे के कंधें पर सिर टिका कर फिल्म देखने लगे। फिल्म तो क्या देखनी थी सारा समय मैं माया का हाथ दबाता रहा और वह मेरे कान में फुसफुसाती रही। फिल्म खत्म होने के बाद दोनों मॉल में घुमने लगे। घर के लिये खरीदारी करी। माया ने अपनी पसन्द की लॉन्जरी खरीदी और खाना खा कर वापस घर आ गये।

शाम हो गयी थी। घुमने से थक से गये थे। चाय पीने की बात चली तो माया बोली कि कुछ हार्ड पिये?

बीयर रखी थी उन्ही को पीने लग गये। दोनों बीयर के नशे में टुन्न हो गये। माया मेरे गले में लटक कर बोली कि तुम मुझ से कितना प्यार करते हो? मैने कहा कि माया नशा हो गया है ऐसे सवाल मत करो। वह बोली कि अभी तो सवाल करने का समय है तुम सही जवाब दोगे।

मैंने उसे आलिंगन में लिया और कहा कि हर बार इस सवाल का जवाब वही रहेगा जो पहले था। वह बोली कि मुझे पता है लेकिन मेरा मन उसे बार बार सुनने को करता है। मैंने माया से पुछा कि क्या हुआ है जो वह आज इतनी परेशान है तो वह बोली कि दीदी मुझे अपना नही मानती है।

मैंने कहा दीदी ने अपना पति तुझे दे दिया है फिर भी ऐसी बात करती है। वह बोली कि यह तो है लेकिन छोटी छोटी बातें परेशान करती है। मैंने कहा कि मैं भी मंदिर में हाथ नहीं लगाता जब तक वह नहीं कहती तो तुम्हारी बात तो दूर की है। मेरी राय यही है कि जब वह पुजा करे तो उस के साथ तैयार हो कर उस की सहायता करोगी तो वह तुम्हें सब कुछ करने देगी।

तुम्हें शायद इस लिये नहीं कहा कि तुम अभी तक इस बारें में कुछ करती नहीं हो। उसे लगा होगा कि तुम से पुजा करने को कहना सही नहीं रहेगा। आप भी दीदी का पक्ष ले रहे हो। मैं बात समझाने की कोशिश कर रहा हूँ। एक बात हमेशा ध्यान में रखना यह उस का घर है वह इसे चलाती है हम दोनों इस में रहते है। यह बात हम दोनों को कभी नहीं भुलनी चाहिये। मेरी बात सुन कर वह बोली कि यह तो तुम सही कह रहे हो। उन की ही चलेगी नहीं तो सब कुछ बिगड़ जायेगा।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कल से सब कुछ खराब सा क्यों हो रहा है। जब कुछ समझ में नहीं आया तो उस विचार को दिमाग से निकाल दिया। रात हो गयी थी। नशे के कारण खाना बनना संभव नहीं था इस लिये खाना ऑडर कर दिया। जब खाना आ गया तो उसे खा कर सोने चल दिये। बेड पर ही अब असली युद्ध होना था।

सुबह सोमवार था मैं ऑफिस चला गया। शाम को ऑफिस से आ कर बैठा तो माया चाय ले कर आ गयी। हम दोनों चाय पीने लगे। मेरे मन में कई बातें थी जो माया से करनी थी मैंने माया से पुछा कि कुछ पुछुँगा तो बुरा तो नहीं मानोगी। वह बोली कि अब बुरा मानने वाली अवस्था से बहुत दूर आ चुकी हूँ तुम पुछो? मैंने कहा कि मुझे यह चिन्ता है कि तुम किसी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करती हो या नहीं, नहीं तो परेशानी हो सकती है।

मेरी इस बात पर वह हँस कर दोहरी हो गयी और बोली कि आप भी क्या बात करते है आप के पास आने से पहले ही मैंने इस का समाधान सोच लिया था। लेडी डाक्टर से पुछ कर पिल्स लेनी शुरु कर दी थी। इसी लिये तो आप से पहले दिन से शारीरिक संबंध बना रही हूँ। कुछ नहीं लिया होता तो इसी चिन्ता में मरी रहती और आप से दूर रहना पड़ता।

उस की बात सुन कर मुझे चैन मिला। मेरा चेहरा देख कर वह बोली कि आप अपनी माया को जानते नहीं है क्या? मैंने कहा कि मैं जानता तो हुँ लेकिन मुझे इतने दिनों तक तुम से मिलने की खुशी में यह बात ध्यान ही नहीं आया, लेकिन आज ही यह बात ध्यान में आयी तो तुम से पुछ ली। मुझे पता है कि मेरी माया बहुत तेज तर्रार है, समझदार है लेकिन शंका तो शंका है उस का समाधान करना ही चाहिये।

मैंने माया से कहा कि मुझे पहली वाली माया ही पसन्द है बैलोस, निडर ऐसी ही बनी रहो। किसी को कॉपी करने की कोशिश मत करो। वह मेरी बात समझ गयी। बोली कि मैं किसी को कॉपी नहीं कर रही हूँ बल्कि तुम्हें खुश करने की कोशिश कर रही थी। मैं बोला कि मुझे तुम जैसी हो वैसी ही पसन्द हो उस में कोई बदलाव मत करो। वह मेरी तरफ देख कर मुस्कराई और बोली कि आज मेरा प्रेमी अलग ही रुप में है, सूरज क्या पश्चिम से निकला है।

मैंने उस के तंज को नजरअंदाज करके कहा कि बहुत दिनों बाद तुम से अकेले बात करने का समय मिला है और आज दिमाग में सेक्स करने की इच्छा पीछे है और तुम्हारी चिन्ता सामने है। वह बोली कि आज कुछ हुआ है जो तुम ऐसा कर रहे हो। मैंने कहा कुछ नहीं हुआ है, शुरु की तरंग धीमी पड़ गयी है वास्तविकतायों से सामना हो रहा है।

वह बोली हाँ आप कह तो सही रहे हो अभी तक तो मैं भी आप से मिलने की उमंग में थी लेकिन इन दिनों अकेले होने के बाद और बातें भी दिमाग में आ रही है। अब थोड़ी स्थिरता आई है इस लिये दिमाग इन बातों को सोच पा रहा है। यह सब बातें भी जरुरी है। बोलों और क्या तुम्हारें मन में है?
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#12
FINAL UPDATE

मैने माया को कहा कि तुम्हारें लिये मकान भी लेना है। वह बोली कि मुझे अपने से दूर क्यों करना चाहते हो? दूर कौन करना चाहता है, पैसा है तो उसे कही ना कही इन्वेस्ट करना ही पड़ेगा। वहीं सोच रहा था। तुम हम से दूर नहीं जा रही हो यह बात तुम्हारी दीदी ने पहले ही स्पष्ट कर दी थी। वह इस संबंध में आखिरी बात है।

कहों तो साथ वाला प्लाट खरीद ले। वह बोली कि अगर ऐसा हो जाये तो बहुत सही रहेगा। उस को बनवा लेगे। मैंने कहा कि मैं बात करके देखता हूँ। वह बोली कि यह बात मैंने आप पर छोड़ दी है जैसा सही लगे करे।

मैंने पुछा कि और पैसे का क्या करना है तो वह बोली कि मैंने फिक्स कर दिया है उस से हर महीने एक निश्चित रकम आती रहती है। मुझे पहले पता नहीं था कि आप के साथ रह पाऊँगी या नहीं इस लिये ऐसा किया था मैंने कहा कि यह तुम ने सही किया है। और कोई काम रह गया है तो बताओ। वह बोली कि मुझे तो कुछ ध्यान में नहीं आ रहा है।

मैंने माया से कहा कि मन में है कि कहीं विदेश में घुम कर आये कब संभव होगा पता नहीं लेकिन तुम्हारें पेपर तैयार है? वह बोली कि मेरे मन में तो ऐसा विचार कभी आया ही नहीं। मैंने उसे बताया कि पहले तो उस का पता बदलवाना पड़ेगा, फिर उस का पासपोर्ट बनवाना पड़ेगा। वह बोली कि किस नाम से पासपोर्ट बनवाना है। मैंने कहा कि सोच कर बताओ कि क्या करें। वह बोली कि यह काम भी करना पड़ेगा। पता मैं बदलवाती हूँ।

मैंने माया के हाथ अपने हाथ में लेकर उस से पुछा कि इस रिश्ते को कोई नाम देना चाहती है। वह मेरी बात सुन कर मेरी आँखों में देख कर बोली कि क्या कहते हो? मैंने कहा कि तुम से पुछ रहा था। कानुनी रुप से तो कुछ हो नहीं सकता, लेकिन धार्मिक रुप से कुछ किया जा सकता है। वह बोली कि क्या कहुँ इतना मिला है कि अब तुम से कुछ और माँगने की हिम्मत नहीं है। ना दीदी से कुछ कह सकती हूँ।

मैंने कहा कि तुम मेरे जीवन का हिस्सा बन गयी हो। उसे कुछ नाम दूँ या ना दूँ। वह बोली कि जो तुम्हारे मन को संतोष दे वह तुम करो। मैंने तो तुम्हें अपना तन, मन और धन पहली बार में ही उस रात को सौंप दिया था। मैंने उसे अपने गले लगा कर कहा कि तुम्हारें साथ कोई और नाम जुड़ा रहे यह मुझे कष्ट देता है।

वह मेरे कान में बोली कि आज तो जो कुछ माँगुगी वो मिलेगा। मन तो मेरा भी है कि तुम मेरे से शादी कर लो। मैं भुत से बिल्कुल छुट जाऊँ। मैंने उस से पुछा कि बताओ क्या करुँ? वह बोली कि पहले दीदी से पुछना पड़ेगा। मैंने कहा कि वह मना नहीं करेगी। उस ने उस दिन मुझे तुम्हें सौंप दिया था।

वह बोली कि मैं दीदी की गुलाम बन गयी हूँ। मुझे कभी कोई गल्ती करते पाओ तो मुझे रोक देना। अगर तुम से मेरी शादी हो जायेगी तो मेरी जिन्दगी का वह सबसे हसीन लम्हा होगा। जिसे मैं शादी से पहले से चाहती थी वह मेरा हो गया इस से ज्यादा क्या मिलेगा।

हम दोनों ने यह किया कि हम किसी मंदिर में जा कर वरमाला पहना कर विवाह कर लेगें। यह सही रहेगा। किसी को पता भी नहीं चलेगा और दोनों के मन को संतोष भी हो जायेगा। इस विषय पर अब अंतिम निर्णय मेरी पत्नी को लेना था। इस के बाद माया सही अर्थो में मेरी पत्नी बन जायेगी। वह भी इस बात से खुश थी।

उस के नाम से उस के पुर्व पति का नाम हटवा कर मेरा नाम या उस के पिता का नाम लिखवा देगें। इस सब बातों पर माया से बात करके मेरे मन को बहुत शान्ति मिली थी। माया को यह समझ आ गया था। वह बोली कि तुम मेरी इतनी चिन्ता करते हो मुझे पता नहीं था। मैंने कहा कि तुम मेरे लिये शरीर नहीं हो तुम मेरी आत्मा का अंग हो। तुम से मेरा दिल मिला है दोस्त हो, मेरी हमदम हो।

वह यह सुन कर बोली कि तुम आज मुझे चने के झाड़ पर चढ़ा कर मानोगे। मैंने कहा कि जो मेरे मन में था वह सब मैंने तुम्हें बता दिया। वह बोली कि मेरे पास तुम्हारें जैसे शब्द तो नहीं है लेकिन तुम ने मुझे दूसरा जीवन दिया है तुम मेरे प्राणनाथ हो सही अर्थो में। मैं यह सुन कर हँस गया तो वह बोली कि तुम बोलो सो सही मैं बोलुँ तो मजाक। मैंने कहा मजाक नहीं लेकिन प्राणनाथ सुन कर लगा कि 50-60 साल पहले चला गया।

वह बोली कि शब्द पर मत जाओ भावना समझो। मैंने उसे चुम कर कहा कि माया तुम ने मेरी जीवन में भी नया सवेरा सा ला दिया है। मेरी सेक्स लाइफ दूबारा जिन्दा कर दी है। नहीं तो मुझे लगता था कि मैं नामर्द ही हो गया था। वह बोली की ऐसा नामर्द जो बीवी की कमर तोड़ दे वाह।

मैंने कहा कि तुम्हारें साथ ही पता चला कि मैं किसी को साथ इतने लम्बे समय तक सेक्स कर सकता हूँ। नहीं तो लगता था कि मुझ में कोई ना कोई कमी है। वह बोली कि अब तो चिन्ता खत्म हो गयी ना किसी भी दिन आधा घंटे से कम समय नहीं लगता है। शायद दीदी के साथ भी समय बढ़ गया है।

मैंने सर हिलाया तो वह बोली कि अब मान क्यों नहीं रहे हो। मैंने कहा कि दीदी से पुछना। वह बोली कि तुम मुझे मरवाना चाहते हो। मैंने कहा जब तीनों एक साथ हो तब समय नोट करना। वह यह सुन कर मुस्करा दी और बोली कि वह बात तो उसी दिन हुई थी अब आगे नहीं हो सकती है। मुझे शर्म आयेगी। मैंने कहा देखते है कितनी शर्म आती है। वह चुप रही।

बातें करते काफी देर हो गयी थी, माया बोली कि आज बातों से ही पेट भरना है या खाना भी खाना है। मैंने कहा कि चलो खाना बनाते है वह बोली कि यह काम भी आता है। मैंने कहा नहीं आता लेकिन तुम्हारें पीछे तो खड़ा हो ही सकता हूँ। वह मेरी नाक पकड़ कर बोली कि सीधी तरह से नहाने जाओ, पसीने की बदबु आ रही है। मैं खाना बना कर लाती हूँ।

वह किचन में चली गयी। तभी पत्नी का फोन आया वह बोली कि क्या कर रहे हो? तो मैने उसे बताया कि नहाने जा रहा हूँ तो वह हैरानी से बोली किअभी तक क्या कर रहे थे। मैंने उसे बताया कि माया से उस के भविष्य के बारें में बात कर रहा था इस लिये इतनी देर हो गयी। वह बोली कि सही काम किया है तुम ही यह बात कर सकते हो। क्या हल निकला तो मैंने मजाक से कहा कि तुम्हारी सौतन से ब्याह करना है।

वह बोली कि मैं सोच रही थी कि तुम से इस बारें में बात करुँगी लेकिन हिम्मत नहीं पड़ रही थी। अच्छा हुआ कि तुम ने यह बात भी कर ली, बढ़िया करा। मैंने उस से पुछा कि कब आ रही है तो वह बोली कि मेरे बिना मन नहीं लग रहा है तो मैंने उसे बताया कि हाँ ऐसी ही बात है। वह हँस कर बोली कि मेरा मन भी तुम्हारें बिना नहीं लग रहा है। मेरे आने की बुकिंग कर दो। मैंने कहा कि कर के तुम्हें बताता हूँ। मैंने फोन काट दिया।

मैं नहा कर कपडे़ं बदल कर आ गया। कुछ देर बाद माया खाना ले कर आ गयी। हम दोनों खाना खाने लगे। मैंने माया को बताया कि पत्नी का फोन आया था। वह मेरा चेहरा देखने लगी तो मैंने कहा कि मैंने शादी की बात उसे बता दी है वह बोली कि दीदी क्या बोली तो मैंने उसे बताया कि वह बोली कि मैं भी यही बात तुम से करना चाहती थी लेकिन कर नहीं पायी। तुम ने तय कर लिया है तो सही बात है।

माया के चेहरे पर सकुन के भाव आ गये। वह चुपचाप खाना खाने लगी। आज हम तीनों ने जीवन का बहुत बड़ा फैसला लिया था। जो आगे के हमारे भविष्य को प्रभावित करने वाला था। समाज की बड़ी आलोचना सहनी पड़ेगी। यह हम तीनों समझते थे लेकिन हम वो ही करने वाले थे जो हमारे लिये सही था। खाने के बाद पत्नी की आने की बुकिंग कर के उसे बता दिया। वह दो दिन बाद वापस आ रही थी।

रात को जब दोनों सोने लगे तो माया मेरी छाती पर अपना सर रख कर लेट गयी। मैं उस के बाल सहलाने लगा। वह बोली कि तुम कौन हो? मैंने कहा मैं कैसे बताऊँ? वह बोली कि तुम मेरे भगवान हो जो मैं चाहती हूँ तुम वही मेरे कहने से पहले कर देते हो। मैंने कहा कि माया तुम मेरी जिन्दगी में क्यों आयी थी यह तो प्रारब्ध ही जानता है। मैं तो तुम्हारी देखभाल करुँगा यह मेरी जिम्मेदारी है। इसी जिम्मेदारी को तेरी दीदी भी निभा रही है।

वह चुपचाप पड़ी रही। फिर हम दोनों एक-दूसरे को चुमने लगे। आज दोनों बहुत खुश थे। इस लिये शरीर में अलग ही तरह की तरंग सी उठ रही थी। फिर दोनों प्यार करने में लग गये। खुशी के कारण दौड़ बहुत जोरदार हुई और दोनों एक साथ ही मंजिल पर पहुँचे। थक कर चूर होने के बाद दोनों एक-दूसरे की बाँहों में पड़े-पड़े ही सो गये।

सुबह एक नयी आशा ले कर आयी थी। मैं ऑफिस के लिये निकल गया। बीच में घर पर फोन करा तो माया बोली कि शान्ति से काम करो मुझे परेशान मत करो। नहीं तो दीदी से शिकायत कर दूँगी। मैंने कहा कि मैं तो हालचाल पुछने के लिये फोन किया था। वह बोली कि खाना खा कर आराम कर रही हूँ। मैंने फोन काट दिया।

// समाप्त //
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