27-02-2025, 10:42 AM
Nice story update fast
Adultery Meri Maa Poonam aur Asura ka Vehashi Pyaar
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27-02-2025, 10:42 AM
Nice story update fast
27-02-2025, 09:07 PM
UPDATE 4.5 (B)
Main bass dadaji key kamre me baithe huye jo kuch bhi aaj ghata tha usi key bare mey soch raha tha. Main dadaji ko yaad karate huye bass yeh hi puch raha tha " Dadaji aap hume chor kar kyun gaye...?" Neend to ab aaney se rahi, maine ghadi ki aur dekha... Raat key 2.30 baj rahe they. main bahar aaya, Asura bhi jag raha tha. Woh aasman mey kuch dekhe jaa raha tha.. Aaney wali raat Kali raat thi, jaise Swamiji ney kaha tha. Aaj ki raat bhi usi ki chata ki tarah dikh rahi thi.. Aasman ghane badlon sey bhara huaa tha. Pratap dada aangan mey hi chatai bichaye so rehe they. Maa aur Paro kamre mey so rahi thh, bass main aur Asura hi jag rahe they. Main wahi koney mey baith gaya aur bass kuch pal key liye apni aankhein band kiyi.... " Abe chutiye uthh jaa... Chal uthh..." Kisi ki bhari aawaj aur ek lath mujh par padhi... " Kaun ? "... maine aankhein michate huye puncha... " Tera baap.. kutte " Asura mujhe gusse sey dekhtey huye kehne laga. Main Apne aap ko sambhalta huaa utha. " Chal subah key 4.30 baj chuke hain... Dada humari raah dekh rahe hai ". Aisa keh key Asura, Mere swargwasi Shukra dadaji key kamare ki aur chalne laga. Main bhi 'Marta kya na karta' ais soch key uske piche chal pada.
27-02-2025, 09:12 PM
भाग 4.5 (B) अद्यतन किया गया है।
यह श्रृंखला 4 का अंतिम भाग है। अगला भाग श्रृंखला के हिस्से के आसपास सबसे बड़ा अपडेट होगा भाग 5 को आज रात 10 बजे अपडेट किया जाएगा।
27-02-2025, 10:08 PM
(This post was last modified: 28-02-2025, 06:56 AM by RonitLoveker. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
UPDATE 05
प्रताप दादा शुक्रा दादाजी के कमरे में कुछ ढूंढ रहे थे. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लेकिन वह जो कुछ भी ढूंढ रहे थे, वो शायद उन्हें वहां मिल चुका था... चाबी... हां चाबी.. वह किसी चाबी को ढूंढ रहे थे और उन्हें वह चाबी मिल चुकी थी. वह चाबी लेकर कमरे से बाहर आए और असुरा को दिखाते हुए आगे बड़े. " लो मिल गई " दादा ने असुरा से कहा. दादा कुछ असमंजस में थे शायद, कुछ ऐसा था जो उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा था, तभी उन्होंने मेरी और देखा और असुरा की ओर बड़े हैरान होकर देखने लगे. असुरा समझ चुका था की दादा किस बात से हैरान है. असुरा ने आगे बढ़कर दादा से कहा " दादा.. आज से यह मेरा शागिर्द है, आखिर बेटा जो है मेरा " प्रताप दादा यह सन कुछ कहा ना सके. वह वैसे भी बहुत शांत किस्म के व्यक्ति थे. " चलो... चलते हैं" दादा ने आगे बढ़ते हुए कहा. मैं और असुरा दादा के पीछे-पीछे चलते हुए आगे जाने लगे. " क्या...? प्रताप दादा कहां जा रहे थे...? तहखाना में....? तहखाना में आज तक तो कोई नहीं गया... शायद वह चाबी उसी दरवाजे की तो नहीं थी...? हे स्वामी जी...! मतलब आज तहखाना का दरवाजा खुलने वाला था..? बचपन से ही मेरे मन में यह बात हमेशा मुझे सताती थी कि उस तहखाना में आखिर है क्या...? आज यह राज भी खुलने वाला था ". मैं यहां सोचते हुए, असुरा और दादा के पीछे चलते-चलते तहखाना में पहुंच गया. तहखाना का ताला जंग खा चुका था. दादा ने उस ताले में चाबी डाली और...? इतना पुराना ताला होने के बावजूद एक ही झटके में ताला खुल गया. अब आगे दरवाजा खोलते ही हम तहखाना के अंदर पहुंच गए. मुझे लगा था कि तहखाना के अंदर कुछ खजाना, सोना, जेवरात, या कुछ पुरानी मूर्तियों या कुछ और पुरानी चीजे होगी.... लेकिन पूरा तहखाना बिल्कुल खाली था, पर सिर्फ बीच में एक मेज रखा था और उस मेज पर एक संदूक था. उस संदूक पर स्वामी जी का चिन्ह बना हुआ था. प्रताप दादा वहां गए और उन्होंने उस संदूक को खोला. उस संदूक में दो पुराने कागज रखे थे. दादा ने वह दोनों कागज ले लिए और दोनों को गौर से पड़ा. उनमें से एक कागज को दादा ने वही बाजू में रखा और एक कागज असुरा की और दिखाते हुए उन्होंने उससे पूछा " क्या तुम्हें सच में यह करना है..? फिर एक बार सोच लो असुरा.. यह तुम जो करने वाले हो... वह एक वहशीपन है." मैं प्रताप दादा की यह बात सुनकर बौखला सा गया. क्या करने वाला था असुरा ? .. क्या था उस कागज में.? असुरा प्रताप दादा की ओर चल पड़ा. उसने वह कागज अपने हाथ में लेते हुए मेरी और देखा फिर प्रताप दादा की ओर देखकर कहा.. " मेरे पिता ने मेरा नाम असुरा क्यों रखा था दादा..? आप तो जानते ही हैं... आज मेरे इस बेटे को भी बता ही दीजिए " प्रताप दादा चुप रहे. फिर असुरा ने जरा कठोर आवाज में दादा से कहा " बता दीजिए दादा ". " नमन बेटा बहुत पुरानी बात है. मैं और तुम्हारे शुक्रा दादा एक ही साथ इस घर में रहते थे पर मुझसे एक गलती हो गई कि मैं हमारे स्वामी जी के कुल के विरोधी कुल की लड़की से प्रेम कर बैठा और उससे विवाह किया. वहां कुल नकारात्मक शक्तियों का प्रतीक था यह बात जब हमारे पूर्वजों को शुक्रा से पता चली तो उन्होंने मुझे इस घर से निष्कासित कर दिया. हमारी जो संतान हुई यानी असुरा के पिता वहां नकारात्मक शक्ति और हमारे कुल की शक्ति से एकरूप होकर पैदा हुए और उन्होंने भी अपना विवाह नकारात्मक कुल के ही लड़की यानी पारो से किया. जब उनकी संतान का जन्म हुआ तब उस बच्चे के अंदर ज्यादा से ज्यादा प्रतिशत नकारात्मक शक्ति का प्रभाव साफ-साफ दिखाई दे रहा था. वहां बिल्कुल असुर की तरह जन्म था. जब यह बात मुझे समझ में आई तब मैंने सब ठीक करने के लिए हमारे कुल के स्वामीजी का जो सबसे पुराना मंदिर था वहां जाकर उस बच्चे का शुद्धीकरण करने का निर्णय लिया लेकिन हमारे पूर्वजों ने हमें इस बात की अनुमति नहीं दी और मेरे बेटे का और मेरा अपमान कर हमें वहां से निकाल दिया. मेरा बेटा इस अपमान को सह न सका. उसने यह ठान लिया कि वहां इस असुर बच्चे का नाम असुरा ही रखेंगे और यही तय किया गया " दादा यह बात बताते हुए रोने लगे. उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे. वह असुरा के कंधे पर हाथ रख वहीं खड़े रहे. " अगर यह कुल सच में मानता है कि मैं असुर हूं तो अब मैं असुर ही सही. अगर स्वामी जी ही इस कुल को मुझे सौंपना चाह रहे हैं, तो अब मैं भी वही करूंगा जो एक असुर को करना चाहिए. अगर स्वामी जी ने तुम्हारी मां पूनम को मुझे सौंपा है तो, अब पूनम ही मेरी दरिंदगी और वहशीपन का सामना करेगी. मेरा बदला अब उसी के अत्याचार से पूरा होगा. इस कागज पर जो मंत्र लिखे हैं यह स्वामीजी के परम कामपुरुष शक्ति मंत्र हैं. इस मंत्र को पढ़कर मेरे अंदर किसी अरबी घोड़े जैसी शक्तियां आ जाएंगी. मेरा लिंग और भी विशाल और विकराल बन जाएगा. मेरी संभोग की अवधि और समय के लिए बढ़ जाएगी. और तुम्हारी कामसुंदरी मां पूनम की सहनशक्ति इसका सामना करेगी. उसे मैं अगले कई सालों तक छठी का दूध याद दिलाऊंगा. उसके गर्भ के द्वार पर नहीं बल्कि में द्वार खोल के अंदर बच्चेदानी में अपना लंड पहुंचाऊंगा. उसे ऐसी यातना भरा प्रेम दूंगा कि वह बेइंतहा दर्द से वो पूरी तरह मुझ पे मर मिट जाएगी ". असुरा ऐसा कह के दादा के पास पहुंचा. में बस यहीं सोच रहा था कि यह कोई बुरा सपना तो नहीं....? यह सच में असुर है...? और मेरी मां....? उनकी इसमें क्या गलती हैं...? पर अब सब लिखा जा चुका था. अब कुछ नहीं हो सकता था. मेरी अप्सरा जैसी मां एक वहशी असुर की औरत बन चुकी थी और अब जो होने वाला था वह कामवासना और क्रूरता की मिलीभगत का खेल होने वाली थी. असुरा ने दादा के पैर छुए और वह उस संदूक पर बने स्वामीजी के चिन्ह पर अपना हाथ रख वह मंत्र जोरो से पढ़ने लगा. प्रताप दादा बिल्कुल असमर्थ हो के यह देख रहे थे. मेरा तो दिमाग ही घूम चुका था. कुछ ही समय में असुरा ने मंत्रजाप पूरा किया..... लेकिन... लेकिन ...कुछ भी नहीं हुआ.... असुरा एकदम हैरान हो गया. उसने दादा की ओर देखा. मैने स्वामीजी का शुक्रिया किया, क्यों कि मुझे लगा कि उन्होंने मां को इस राक्षस के क्रूरताभरी योजना से बचा लिया था पर.....? एक ही पल में उस संदूक पर बने चिन्ह से एक ऐसा प्रकाश उजाला बहार आया कि उस पल हमारी आँखें कुछ समय के लिए उस उजाले से बंद हो गई.... और जब आंखे खुली तब...... आंखे खुलते ही मैं क्या देखने वाला था? असुरा सच में कोई असुर था...इतना वहशी कैसे कोई हो सकता था..? आगे क्या होने वाला था...? पढ़िए अगले अपडेट में.
28-02-2025, 12:06 AM
अगला पार्ट जल्द ही रिलीज किया जाएगा।
28-02-2025, 06:47 AM
(This post was last modified: 28-02-2025, 06:55 AM by RonitLoveker. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
.....
28-02-2025, 01:16 PM
Nice update and keep rocking
28-02-2025, 02:20 PM
अगला भाग १० मिनट में रिलीज होगा.
28-02-2025, 02:37 PM
UPDATE 5.1
"उस उजाले के बाद जो मैने देखा वह काले अंधेरे जैसे था. हां.. वह एक काला अंधेरा... जो मेरे दिमाग में था की आगे क्या होने वाला था?" असुरा के कपड़े उसके शरीर से अलग हो चुके थे. वो बिल्कुल नंगा हमारे सामने खड़ा था. उसका शरीर पूरी तरह बदल चुका था. उसका कद भी शायद बढ़ चुका था. उसके शरीर की हर एक नस नस दिख रही थी. वो किसी हैवी वेट बॉडी बिल्डर की तरह दिखने लगा था. पहले ही वो सांड की तरह था और अब वह जंगली सांड बन चुका था. और... और... उसका लंड गधे जैसा बड़ा... लंबा... और पूरा ताकतवर बन चुका था. शायद ऐसा लंड कभी किसी को हो भी सकता है यह कल्पना से परे था. मैं उसका साइज भी सोच नहीं सकता था. मेरा गला सूखने लगा था. उसका लंड फिलहाल सिर्फ लटक रहा था. पर जब वो पूरा खड़ा होगा तब कैसा दिखेगा यह सोचना भी नामुमकिन था. दादा ने असुरा को देखा और उसके हाथ से वह मंत्र वाला कागज ले लिया और चुपचाप उस संदूक के अंदर रखा और उसे बंध कर के दूसरा कागज अपने साथ लेके कमरे से बहार चले जाने लगे. मुझे ऐसा लग रहा था कि दादा को ये सब बिलकुल भी रास नहीं आया था पर वो इसमें कुछ नहीं कर सकते थे. असुरा ने मेरी तरफ देखा और अपने मुरझाए लंड को हाथ में लेके मुझसे कहा " अबे साले.. जा और ऊपर से मेरे कपड़े बेग से निकाल कर ले आ....अगर ऐसे ही ऊपर गया और तेरी मां कहीं दिखाई पड़ी तो कल की तरह में अपना आपा खो दूंगा और कल तो बस उसे चूमा था....आज अभी कई में उसे पटक के उसे चोद ना दु... चल जल्दी जा ". असुरा ऐसा कह के जोर से हंसने लगा. वो मेरा पूरा मजाक उड़ा रहा था. में ऊपर आया और जल्दी से उसका बैग ढूंढ के उसके कपड़े निकालने लगा तभी मेरी नज़र उसके बैग में पड़े एक बॉक्स पर पड़ी... वो एक मेडिसिन बॉक्स था.... गर्भनिरोधक गोलियों का.... इसका मतलब असुरा पहले ही सब तैयारी कर आया था. एक पल के लिए मेरे सामने एक फैंटसी का दृश्य दिखने लगा था.... उसमें मां पूरी नंगी टेबल के सामने खड़ी है... उनकी चूत से सफेद वीर्य बाहर बह रहा था... असुरा पीछे बिस्तर पर नंगा लेटकर अपने वीर्य भरे लंड को मसल ते हुए मां को देख रहा हैं और मां हल्की मुस्कुराहट के साथ उस पैकेट में से एक गोली निकालकर ले रही है.... उफ्फ... ये में क्या सोच रहा था में...? अपने ही मां के बारे में ऐसा....? मैं अपने आप को उस ग्लानि से बहार निकाल के जल्दी से असुरा के कपड़े लेके नीचे आया और उसे कपड़े दे दिए. कपड़ों में व्हाइट शर्ट था जो अब उसे बिलकुल फिट हो रहा था और जींस पेंट जो भी फिट और कुछ इंच छोटी मालूम पड़ रही थी, मतलब असुरा का कद भी थोड़ा बड़ गया था. असुरा ने कपड़े पहनके मुझे बाहर जाने का इशारा किया और वह मेरे पीछे तहखाना की चाबी ले की बाहर आया और तहखान फिर से चाबी से लोक कर दिया. हम दोनों ऊपर आए. सुबह हो चुकी थी. असुरा की नज़र मां के कमरे पर गढ़ी थी... असुरा अब सच में पूरा असुर बन चुका था...? उस दूसरे कागज में क्या था जो दादा के पास था..? आज सुबह नया क्या होने वाला था...? मां की बदली हुई जिंदगी की सुबह उनके लिए क्या लाने वाली थी? पढ़िए आगे की अपडेट में.
28-02-2025, 04:16 PM
(28-02-2025, 02:37 PM)RonitLoveker Wrote: UPDATE 5.1Bro hinglish main update dijiya pls
28-02-2025, 08:36 PM
(This post was last modified: 28-02-2025, 08:37 PM by RonitLoveker. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अगला भाग जल्दी ही आपके सामने प्रस्तुत करूँगा.
कृपया बेहतर षड्यंत्र के लिए सुझाव दें.
28-02-2025, 10:40 PM
28-02-2025, 10:54 PM
01-03-2025, 04:18 PM
01-03-2025, 05:35 PM
(This post was last modified: 01-03-2025, 05:39 PM by RonitLoveker. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
01-03-2025, 05:38 PM
टिप्पणी: अगला भाग शाम ७.०० बजे प्रस्तुत होगा.
01-03-2025, 07:07 PM
(This post was last modified: 02-03-2025, 12:10 PM by RonitLoveker. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
UPDATE 5.1 (A)
मैं भी पीछे-पीछे बाहर आया. अभी तक मां और पारो आंटी नहीं उठी थी. या फिर शायद वह कमरे में थी लेकिन अभी तक बाहर नहीं आई थी. मैं भी फ्रेश होने के लिए दादाजी के कमरे में गया. मैं तुरंत नहा कर बाहर आया. असुरा कहीं पर दिखाई नहीं दे रहा था पर अब मां के कमरे का दरवाजा जरा खुला था. मैं जाऊं या ना जाऊं... यह बार-बार सोच रहा था पर आखिर मैंने मन बनाया, और मैं उनके कमरे के पास चला आया. मैने कमरे में थोड़ा सा अंदर झांक के देखा तो अंदर पारो आंटी अपने बैग में से कुछ सामान थल-पुथल कर देख रही थी.. पर मुझे मां कहीं पर दिखाई नहीं दी. मैं थोड़ा सा और अंदर गया और बाथरूम की तरफ नज़र घुमाई. मां बाथरूम के दरवाजे पर खड़े रहकर अपने बाल सुखा रही थीं पर मेरी नज़र जब उनपर पूरी पड़ी तो में उन्हें देखता ही रह गया. उन्होंने अपनी वहीं पुरानी वाली सफेद साड़ीयो में से एक साड़ी पहनी थी. उनके बाल एक बाजू में उनकी डाई साइड में आ गए थे जिन्हें वह सुखा रही थी और इस वजह से उनका बाया साइड पूरा का पूरा एक्सपोज हो रहा था. वह ब्लाउज भी पुराना वाला ही था पर अब उसके ऊपर के सारे हुक्स खुले थे और बस नीचे के दो हुक्स ही मां के दो बड़े बड़े स्तन संभाले रखें हुए थे. शायद ऊपर वाले हुक्स अब लग नहीं रहे थे.....उफ़..... " चलता फिरता कोकेन तो मेरी मां बन चुकी थी " और उनके कंधे पर वह ब्लाउज का स्ट्रैप पूरा कसा हुआ था.... आहह... और ऊपर से... स्लीवलेस ब्लाउज....हो हो.... शायद ब्लाउज फिट नहीं हो रहा था इस वजह से मां ने ब्लाउज के स्लीव्स निकाल दिए थे.. क्यों कि मां के पास स्लीवलेस ब्लाउज तो कभी थे ही नहीं.. पर यह ब्लाउज जो आज उन्होंने पहना था उसमें स्लीव्स नहीं थे. ![]() मैं उन्हें देखे जा रहा था तभी पारो आंटी की नजर मुझ पर पड़ी. उन्होंने मुझे देखा और मुझे फटकारते हुए कहा.. " तू यहां क्या कर रहा है..? " पारो आंटी की आवाज सुनते ही मां ने दरवाजे की और देखा. मुझे दरवाजे पर देख कर वह बिल्कुल शर्मा कर पीछे पलट गई, और बाथरूम के अंदर जाकर दरवाजा बंद कर लिया. उन्हें शायद मेरे सामने इस तरह आने में बहुत शर्म आ रही थी. मैं भी पारो आंटी की फटकार से डर गया... मैंने हकलाते हुए पारो आंटी से कहा " आंटी में तो मां को देखने आया था... वह ठीक तो है ना...? यही जानना था." " वह ठीक है...! तू ऐसा कर बाहर जा... आधे घंटे में हम बाहर चाय पर मिलेंगे " उन्होंने मुझे रूखे शब्दों में ऐसा कह के बाहर भेज दिया. मैं भी बाहर चला आया. बाहर आते ही मैंने देखा कि प्रताप दादा शायद बाहर से नाश्ता लेकर आये थे. फिर प्रताप दादा और मैं किचन में गए वहां से, बर्तन , प्लेटस, कप लेकर बाहर आए और आंगन में ही नाश्ते का सामान लगाने लगे. अभी तक मुझे असुरा कहीं पर दिखाई नहीं दे रहा था. कुछ आधे घंटे बाद मां और पारो आंटी कमरे से बाहर आई. मां ने अपना पल्लू अपले पूरे शरीर से लपेटे अपने बदन को ढक रखा था पर सारी चीजें तो ढकी नहीं जा सकती थीं ना..? उनके जिस्म के हर एक कर्व.. हर एक कटाव अभी भी पता चल ही रहा था. मां की चाल में भी बहुत बदलाव आ गया था. पता नहीं कैसे पर अब उनकी कमर की लचक साफ पता चल रही थी. " क्या मां के चूतड बड़े हो गए थे, इसीलिए मां कमर मटकाकर तो नहीं चल रही थी..? नहीं... नहीं... मेरा दिमाग भ्रष्ट हो गया है... मैं क्य क्या सोच रहा हूं...? " मुझे यहां सोच के खुद पर ही शर्म आने लगी. पारो आंटी और मां जैसे ही आंगन में आई... तब पारो आंटी ने मां को प्रताप दादा के पैर छूकर आशीर्वाद लेने को कहा. मां ने भी किसी आज्ञाकारी बहु की तरह पारो की बात मानी ली. " जुग जुग् जियों बहू " ऐसा आशीर्वाद प्रताप दादा ने मां को दिया. मां बस दादा से आशीर्वाद लेके बाजूमें जाकर एक कोने में खड़ी हो गई. मां बार-बार मुझसे नज़रें चुरा रही थी. उन्हें शायद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी.... इसीलिए मैं उन्हें कंफर्टेबल महसूस कराने के लिए उनके पास जाकर खड़ा हो गया. मां ने मुझे देखा... उनकी आंखें जैसे भर आई... मैंने उनकी कलाई पकड़ी और उन्हें भरोसा जताया कि सब ठीक हो जाएगा. इससे उन्हें इस माहौल में भी थोड़ी तो राहत महसूस हुई होंगी ऐसा मुझे लगा. प्रताप दादा ने वह दूसरा वाला कागज जो उस तहखाना की संदूक में था उसे अपनी जेब से बाहर निकाला. तब तक गेट से असुरा अंदर आता हुआ हमें दिखा. मां असुरा को देखकर डर सी गई.. वह मुझसे सटकर खड़ी हो गई.... मां के मुझसे सटकर खड़े होने से उस वक्त मेरी नाक की नस नस में एक अजीब सी खुशबू भर गई... वह खुशबू कुछ और ही थी. मुझे कुछ अलग ही महसूस हो रहा था पर उस खुशबू की व्याख्या में कर नहीं पा रहा था. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंग अंग में रोमांच दौड़ रहा हैं... " मादकता का रस...? क्या यह खुशबू उसी की थी....? और थी भी तो, यह कहना पड़ेगा कि यह खुशबू किसी को भी पागल बना कर छोड़ सकती थी... शायद में मर्द होता तो... तो मुझे भी." हम असुरा को आते हुए देख रहे थे. वह आ गया और दादा के पास बैठ गया. उसके बैठते ही पारो आंटी भी बैठ गई और उन्होंने हमें भी बैठने को कहा. हम सबको जमीन पर बैठकर नाश्ता करना था और मां को उनके सामने बैठने में अजीब लग रहा था. इसीलिए उन्होंने कहा कि वहां सबको नाश्ता परोस देगी और खुद बाद में खा लेगी. इस घर की परंपरा थीं कि, घर की सबसे नई बहु हमेशा सबके बाद खाना खाती हैं और मेरी मां इस विचार का समर्थन करने वाली औरत थी. यह सुनकर दादा ने उन्हें कहा कि " पूनम अगर तुम इस प्रथा को इतना सम्मान देती हो... तो यह अच्छी बात है...ये तुम्हारी मर्जी है....पर.... नाश्ते के बाद जब बैठक होगी... तब मुझे पता चलेगा कि तुम कितना परंपरा का मान रखती हो, और तुम इसपर खरी उतरती हो या नहीं. दादा ने वह कागज मां को दिखाते हुए ये कहा, और कहते कहते उन्होंने मां को नाश्ता परोसने का इशारा. मैं भी जाकर नीचे बैठने ही वाला था तभी असुरा ने आंखों के इशारे से मुझे अपनी और आकर बैठने को कहा. मैं भी चुपचाप उसकी बात मानकर उसके करीब बैठ गया. मां झुककर नाश्ता परोसने लगी पर उन्होंने इस बात पर पूरा का ध्यान रखा की उनका कोई भी अंग इस वक्त किसी को न दिखे... या फिर कहूं असुरा को ना दिखे... पर स्वामी जी को कुछ और ही मंजूर था... खाना परोसते परोसते मां का बैलेंस बिगड़ा और वो गिरते गिरते बच गई. पर खुद को संभालते वक्त मां के साथ ऐसा कुछ हुआ कि मेरी आँखें फटी की फटी रह गई... मैं और असुरा एक ही साथ एक बाजू में बैठे थे... मां हमें ही खाना परोसने आ रही थी... तभी यह वाकिया घटा... मां ने जो पल्लू अपने बदन पर लपेटा था वह छूट चुका था... और सब से गंभीर बात जो घटी थी वह यह थी कि मां के ब्लाउज के जो बचे हुए हूक थे वह टूट कर नीचे बिखर गए थे... अब सिर्फ एक ही हुक के सहारे मां के वक्ष असुरा को अपना दीदार करा रहे थे. ... यह सब इतनी जल्दी हुआ था कि... मां को कुछ होश ही नहीं रहा... पर जब उन्हें पता चला, वैसे ही उन्होंने अपना ब्लाउज ठीक किया... मां ब्लाउज ठीक करते वक्त जैसी दिख रही थीं... वैसा सीन जाने ही किसी को देखने को मिले.... ऊपर से वह तिरछी नजर से जो असुरा को देखे जा रही थी... उफ्फ.... वह शायद असुरा को इसलिए देख रही थी क्यों कि उन्हें डर था कि शायद असुरा उन्हें इस हालत में देख कुछ कर न दे.... पर असुरा तो प्रो खिलाड़ी था. वह फिलहाल सिर्फ इस चीज का लुफ्त उठा रहा था. ![]() ब्लाउज ठीक करके मां ने अपनी साड़ी के पल्लू से फिर खुद को ढक लिया और वो वहां से चली गई... और मुझे कहा कि " नमन तुम सबको और कुछ नाश्ता चाहिए तो परोस देना...में बाद में खा लूंगी और बैठक के लिए मुझे बुला लेना. में आ जाऊंगी...." ऐसा कह के वो रसोईघर में चली गई. क्या था उस कागज में..? किस चीज की बैठक होने वाली थी..? आज शादी का दिन था जैसे स्वामी जी ने कहा था... तो क्या आज शादी होने वाली थी...? क्या होने वाला है आगे ये पढ़िए आगे की अपडेट में.
01-03-2025, 09:36 PM
Bhai excitement me hi tadpa doge kya, pal pal sabr ke bandh ka pani bahar chalakne ko betab ho rha hai, asura ka milan milan nahi par ek lamba kamuk, ashleelta se bhara, aur saari hade todne wala ho yahi umeed hai, jo kamagni hamare dilo me jal rahi hai usse lawa bana ke bahar nikalana ab aake hatho me Hai....
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