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माँ बेटा एक दूजे के सहारे
#1
माँ बेटा एक दूजे के सहारे








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!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
माँ बेटा एक दूजे के सहारे


पहले हमारे घर में तीन लोग थे. मैं, मेरी माँ सुजाता और मेरे पिता लीलाधर जी.

हम बहुत अमीर तो नहीं थे पर हम मध्यम उच्च वर्गीय स्तर के लोग थे. मेरे पिता जी की एक किराने की छोटी सी दूकान थी और हमारे पास लगभग १० एकड़ जमीन भी थी. इसलिए हमारा गुजरा आराम से हो जाता था.

घर में खुशहाली थी और हर तरह की सुख सुविधा का सामान भी घर में था.

हमारे रिश्तेदार हम से कुछ काम अमीर थे. तो शायद इसलिए वो हमसे जलते भी थे. पर मेरे पिता जी दिल के बहुत ही अच्छे इंसान थे तो इसलिए तो टाइम बे टाइम जरूरत पड़ने पर अपने रिश्तेदारों की मदद भी कर देते थे. इसलिए हमारे घर में रिश्तेदारों का आना जाना लगा ही रहता था.

पर जैसे की आप सब जानते हैं की बुरा वक़्त आते किसी को भी पता नहीं चलता.

एक दिन अचानक मेरे पिता को लकवे का अटैक आ गया। इस से पिता जी की दाईं टांग और बांह बिलकुल काम करने से हट

गयी.

हम तुरंत पिता जी को उठा कर पास के शहर में हॉस्पिटल में ले गए और उन्हें दाखिल करवा दिया.

आप तो जानते ही हैं की कैसे ये प्राइवेट हॉस्पिटल वाले इंसान की खून की आखिरी बूँद तक निचोड़ लेते है.

पिता जी की हालत में कुछ भी सुधार नहीं हो रहा था पर ऊपर से हॉस्पिटल का बिल भी बढ़ता ही जा रहा था.

पिता जी को २ महीने हॉस्पिटल में रहना पड़ा. इन दो महीनों में हमारी साड़ी जमा पूँजी ख़तम हो गयी. स्थिति यह आ गयी थी की हमारी दूकान भी बिक गयी और सर पर कर्जा भी बहुत चढ़ गया.

आखिर दो महीनो के बाद पिता जी की मौत हो गयी. पर तब तक घर के हालात बहुत बिगड़ चुके थे. हमारी दूकान बिक चुकी थी और खेत भी लाला के पास गिरवी रखे थे.

हमने अपने रिश्तेदारों से कुछ पैसे की मदद मांगी पर वो तो सरे रिश्तेदार ऐसे गायब हो गए थे जैसे गधे के सर से सींग..

सब रिश्तेदारों ने हमसे मुँह मोड़ लिया और उन्होंने तो हमारा फ़ोन भी उठाना बंद कर दिया कि कहीं हम उनसे कोई उधर न मांग लें.

खैर हम कर भी क्या सकते थे. आखिर दोस्त और रिश्तेदार की पहचान बुरे समय में ही तो होती है.

और कोई चारा न देख कर हमने अपने खेत को भी बेच दिया और कर्ज चूका दिया.

अब हमारे घर के हालात बहुत खराब हो चुके थे.

घर में खाने को भी लाले पद गए थे. और कोई साधन न देख कर मैंने खेतों में मजदूरी करना शुरू कर दिया. जिन खेतों के कभी हम मालिक थे अब मैं उन्ही खेतों में मजदूर था.

वक़्त का ऐसा ही चक्कर होता है. हमारे सब रिश्तेदार हम से मुँह मोड़ चुके थे. और हम घर में सिर्फ माँ बेटा ही रह गए थे जो किसी तरह अपना समय पास कर रहे थे.

बजुर्गों ने सच ही कहा है की ग़ुरबत यानि गरीबी इंसान की सबसे बड़ी दुश्मन है.

इसी तरह करते करते समय निकल रहा था और धीरे धीरे पिता जी की मौत को १० साल हो गए थे.

अब मेरी उम्र ३२ साल पार कर गयी थी और मेरी माँ की उम्र भी ५३ साल की हो चुकी थी.

माँ को सबसे ज्यादा चिंता मेरी शादी की थी.

माँ ने अपनी रिश्तेदारी में सब लोगों से मिन्नतें कर ली थी कि किसी तरह मेरी शादी हो जाये क्योंकि मेरी शादी की उम्र निकलती जा रही थी. या यूँ कहें की लगभग निकल गयी थी पर किसी रिश्तेदार ने मेरी शादी में कोई मदद न की और न ही कोई दिलचस्पी दिखाई.

अब उम्र के साथ हर इंसान में उस उम्र की जरूरते पैदा होती ही हैं. मुझे भी सेक्स की बहुत इच्छा होती थी. पर मैं करता भी तो क्या करता. न तो मेरी शादी ही हो रही थी और गरीब होने के कारण मेरी कोई गर्लफ्रेंड भी नहीं थी. आजकल की लड़कियां तो अमीर लड़के चाहती है पर मैं उनकी ऐसी कोई इच्छा पूरी नहीं कर सकता था. और न ही मेरे पास इतने पैसे थे कि मैं किसी रंडी को बुला कर चोद सकता.

मेरे पास तो ले दे कर भगवन के दिए हुए बस दो हाथ ही थे. और मैं जितना हो सकता उनका इस्तेमाल करता था.

मैं अब हर रोज रात में मुठ मर कर अपनी गर्मी निकालता था.

बस ऐसे ही जिंदगी बीत रही थी.

फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिस से मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ आने वाला था.

यह बात है मेरे बुआ के बेटे की शादी की है। मेरे बुआ के बेटे की शादी थी. वैसे तो बुआ हम लोगों को शायद बुलाना नहीं चाहती थी पर रिश्तेदारी का ख्याल रखते हुए उसने फॉर्मेलिटी के तौर पर हम लोगों को भी शादी में बुला लिया.

मैं जानता था की वहां हम लोगों की कोई इज्जत तो हैं नहीं, पर माँ शादी में जाना चाहती थी. वो सोचती थी की चलो इसी बहाने से उनका अपने रिश्तेदारों से कुछ सम्बन्ध बना रहेगा और शायद वहां मेरी शादी का भी कोई चांस शुरू हो जाये. तो माँ की इच्छा देखते हुए हमने शादी में जाने का फैसला कर लिया..

माँ ने अपने सब से सुन्दर कपडे और साड़ीयां ले ली. और हम वहां शादी में चले गए.

मेरी माँ अपनी तरफ से खूब सज संवर कर तैयार हो रही थी.

आखिर थी तो वो भी एक औरत ही. तो सजने सँवारने का मौका तो बेचारी को सालों बाद मिला था.

तो दोस्तों वहां मैंने अपने घर की कई औरतों को देखा। उनमें से कोई मेरी बहन थी, चाची थी, बुआ थी, मौसी थी, या मामी थी।

माँ को मैंने बहुत देर बाद सजी संवरी देखा तो देखता ही रह गया. सच में मेरी माँ तो बहुत ही सुन्दर थी. शायद उतनी सुन्दर कोई और औरत शादी में नहीं थी. मैंने कभी अपनी माँ की सुंदरता पर ध्यान ही नहीं दिया था. शायद उस ने भी कभी इतना सुन्दर सज कर मेकअप आदि नहीं किया था. मेरी माँ काफी मोटी थी। उसके मम्मे बहुत बड़े बड़े थे शायद 42D से कम नहीं होंगे. उस से भी सुन्दर उनकी चूतड़ और गांड थी. शादी में आये हुए हर आदमी की आँखें मेरी माँ के मुम्मों और गांड से हट ही नहीं रही थी.

दूसरों की क्या कहूं खुद मेरी आँखें माँ की गांड पर ही बार बार जा रही थी.

दोस्तों उससे पहले मैंने कभी उनको चुदाई की नजर से नहीं देखा था। लेकिन शादी में सारी की सारी औरतें इतना सज-संवर के आई थी, कि उनको देखने वाले हर आदमी का लंड खड़ा हो जाता और उन सब में सब से सेक्सी लग रही थी मेरी माँ ।

जब बारात में मैं शादी में आयी हुई लड़कियों और औरतों के साथ नाच रहा था, तब उनके चूचियों और गांड को दबाने का कई बार मौका मिला, और रात होते-होते मेरी हालत ऐसी हो गई थी, कि मुझे जाकर मुठ मारनी पड़ी।

उस दिन पहली बार मैंने सोचा कि अगर मुझे अपने घर की औरतों (मेरी माँ ) की चुदाई करने का मौका मिल जाये, तो बहुत अच्छा हो।

घर की औरतों को चोदने के बहुत फायदे हैं। सबसे पहला, जब चाहो जहां चाहो तुम उनको चोद सकते हो।

दूसरा फायदा यह है कि किसी को शक नहीं होता। मुझे चुदाई का बहुत शौक है। लेकिन मैं किसी औरत को अभी ज्यादा चोद नहीं सका था, बस किसी तरह पैसे जोड़ कर एक दो बार किसी सस्ती सी रंडी को चोद था। वैसे भी मैं डरता था कि चुदाई के चक्कर में कभी किसी लफड़े में ना फंस जाऊं। इसलिए मैंने यह ठान लिया था कि अब माँ को चोद कर ही रहूंगा।

अब पहली समस्या यह थी कि शुरुआत कैसे की जाये। क्यूंकी सब कुछ इसी बात पर निर्भर करता था कि अगर सबसे पहले गलत कदम उठा लिए और माँ को चोदने की कोशिश की, और उसने सबको बता दिया, तो मेरी जिंदगी के लोड़े लग जायेंगे।

सबसे पहले मां को चुनने के कुछ कारण थे। पहला यह है कि एक तो मां के नज़दीक आना सबसे आसान होता है। अगर कुछ गलत भी हो तो बचने का तरीका है। कई सारे बहाने होते हैं। और दूसरी सबसे जरूरी बात, कि अगर कुछ उल्टा-सीधा हो भी जाये तो मां तुम्हारी कभी किसी को बताएगी नहीं।

और वैसे भी मेरी पास माँ पर कोशिश करने के इलावा और कोई औरत है भी तो नहीं.

और फिर सब से बड़ी बात की माँ चाहे उम्र में 53 साल की हो गयी हो पर आज भी वो सेक्स की देवी लगती थी.

शादी के बाद हम घर वापिस आ गए पर अब मेरा अपनी माँ को देखने का नजरिया बदल चूका था. अब वो मुझे माँ नहीं बल्कि सेक्स की देवी और एक ऐसी सुन्दर औरत दिखाई देती थी, जिसे देख कर ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता था.

पर माँ को मेरे अंदर आये इस बदलाव का कुछ पता नहीं था. वो तो मेरे सामने उसी पुराने तरीके से ही रहती थी. घर के अंदर वो पहले ही की तरह पेटीकोट और ब्लाउज मैं रहती थी (गर्मी के कारण वो घर में साड़ी नहीं पहनती थी और हमारे पास AC तो था भी नहीं, यह मेरे लिए बहुत अच्छा था, इन कपड़ों में मैं माँ के सेक्सी और कामुक जिस्म का भरपूर नजारा कर सकता था.

माँ के बड़े बड़े मुम्मे और उनकी उभरी हुई गांड मेरी मुठ मारने की फैंटसी का साधन थी. मैं रोज अब माँ के कामुक बदन को सोच कर मुठ मरता था.

अब जब कभी माँ नहाने जाती थी तो मैं छुप कर बाथरूम के दरवाजे की दरार से उनके सेक्सी बदन को देखने की कोशिश करता था.

मेरी मॉम का फिगर 40-36-44 का होगा. उनकी गांड लगभग पूरी तरह से बाहर निकली हुई है. मेरी मॉम हमेशा साड़ी ही पहनती हैं.

वो साड़ी कुछ इस तरह से बांधती हैं कि उनका न दिखने वाला जिस्म पूरी तरह से कुछ इस तरह से दिखे, जिसे देख कर देखने वालों के लंड में आग लग जाए. जैसे एक तो उनकी नाभि हमेशा ही साफ़ दिखती थी. चूचों के ऊपर साड़ी का पल्लू कुछ इस तरह से रखती थीं, जिससे उनकी चूचियां पूरी तरह से फूली हुई दिखती थीं.

मॉम अपनी चूचियों की क्लीवेज कभी नहीं ढकती थीं, उनकी सिल्की चूचियों की गोरी दरार उनके गहरे गले वाले ब्लाउज में से साफ़ दिखती थी, उस पर मॉम की साड़ी का पल्लू उनकी चूचियों पर कुछ इस तरह से कसा हुआ होता था कि उनकी चूचियों में दो गुब्बारों में हवा भर कर गांठ बाँध दी गई हो.[img][Image: IMG-3247.jpg][/img]

उनको इस तरह से देख कर मैं उनको चोदने के बारे में ही सोचता रहता था. मुझे लगता था कि मेरी मॉम पापा के न रहने से संतुष्ट नहीं हो पाती हैं, इसीलिए वो इतनी कामुक दिखती हैं, ताकि अपने लिए वो लंड तलाश सकें.

एक दिन मॉम कपड़े बदल कर रही थीं, मैं चोरी से उन्हें देख रहा था. मॉम ने पहले अपनी साड़ी निकाली, उसके बाद पेटीकोट और ब्रा पेंटी उतार कर मॉम पूरी नंगी हो गईं. मैं दरवाज़े से झिरी से मॉम को नंगी होती हुई देख रहा था.

जैसे ही मेरी मॉम पूरी नंगी हुई, मेरा कलेजा हलक में आ गया. मैं अपने लंड को हिला रहा था और उनको देख रहा था.

नंगी हो जाने के बाद उन्होंने तेल लिया और अपनी चूत पर लगाया. फिर चूचियों पर मला. मॉम ने अपनी चूचियों की थोड़ा सहलाया और अपने निप्पल पकड़ कर चुचों को आगे खींचते हुए अपनी आंखें बंद करके मजा लिया. इससे मुझे उनकी चुदास साफ़ दिख रही थी.

तेल से मम्मों और चूत को घिसने के बाद मॉम ने एक ब्रा और पेंटी निकाली. उन्होंने बड़ी नफासत से उसको पहना, फिर आईने में घूम घूम कर पैंटी ब्रा को अपने मम्मों पर और गांड पर सैट करते हुए खुद को देखा. उसके बाद साड़ी पहन ली.

मुझे समझ आ गया कि मॉम किसी भी पल बाहर आ सकती हैं, इसलिए मैं लंड सहलाते हुए वहां से बाथरूम में चला गया. उधर जाकर मैंने मॉम के नाम की मुठ मारी.

मॉम ने मुझे आवाज देते हुए कहा- तुझे कुछ चाहिए हो तो बोल, मैं ज़रा बाजार जा रही हूँ.

मैंने कहा- नहीं, मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए, आप कितनी देर में वापस आओगी?

मॉम ने कहा- एक घंटे में आ जाऊंगी.[Image: IMG-3247.jpg]

मैंने ओके कहते हुए उनको जाने दिया. मॉम अपनी गांड हिलाते हुए चली गईं.

उसके बाद जब भी मुझे मौका मिलता, मैं मॉम को देखता और मुठ मार लेता.

माँ अभी जवान थी और चुदने लायक माल थी। एक दिन जब सुबह वो बाथरूम में नहा रही थी तो मैं ने सोचा कि माँ को नंगी देखने का यह एक बढ़िया मौका है तो मैं बाथरूम के छेद के पास चला गया और माँ को बाथरूम में नहाते देखने लगा।

वो नहा रही थी और पूरी तरह से नंगी थी। मैंने माँ को नंगी देखा तो मेरा लंड बिलकुल खड़ा हो गया। दोस्तों, दिल में यही आ रहा था की अभी माँ को पकड़ लूँ और कसकर चोद लूँ।

मैं बाथरूम की खिड़की के पास छुप गया और अपनी माँ की नहाते हुए देखते लगा। मेरा बाप मर कर स्वर्ग सिधार गया और मेरी माँ को ढंग से चोद भी ना पाया। बाथरूम की खिड़की के पीछे मैं छिपा हुआ था और माँ को नहाते हुए देख रहा था। उसका जिस्म आज भी भरा हुआ और सुडौल था। मम्मे 42 " के थे और काफी कसे और गोल गोल मस्त थे।

कहीं से भी मेरी माँ के बदन पर फालतू चर्बी नही थी और बड़ा सुडौल बदन था उसका। वो डव साबुन को अपने मम्मो पर जल्दी जल्दी मल रही थी, फिर हाथ पैर और चेहरे पर साबुन लगाने लगी, फिर अंत में टांगो पर साबुन मलने लगी। फिर जांघ पर साबुन लगाते हुए माँ अपनी चूत पर पहुच गयी और साबुन चूत पर मलने लगी।

माँ बाथरूम के शीशे के तरफ चेहरा कर के पूरी नंगी झुकी हुई थी और पैरों में तेल लगा रही थी उनका बड़ा सा मोटा फुटबॉल जैसा 44 साइज का गांड क्लियर मेरे आंखो के सामने था और क्योंकि वो झुकी हुई थी तो उनका गांड का टाइट छेद और चूत का बंटवारा बिकुल साफ साफ मेरे आंखों के सामने था

क्योंकि माँ की बहुत सालों से चुदाई नहीं हुई थी तो शायद इसी लिए इसी बीच मेरी माँ का चुदने का दिल करने लगा और वो अपनी चूत में ऊँगली करने लगी।

फिर अचानक माँ ने अलमारी में से एक खीरा निकल लिया. मैं तो यह देख कर बहुत ही हैरान हो गया. मुझे इतना तो मालूम था की माँ की चुदाई बहुत सालों से नहीं हुई है तो उनका भी तो चुदवाने का मन करता होगा पर इतना मालूम नहीं था की वो खीरे से अपनी काम पिपासा शांत करती है,

खीरा लगभग ६ इंच लम्बा और काफी मोटा था. माँ ने उसको एक बार अपनी चूत की दरार में रगड़ा और फिर उसपर थोड़ा सरसों का तेल लगा लिया.

फिर माँ एक छोटे से स्टूल परटांगे चौड़ी करके बैठ गयी. अब मुझे अपनी माँ की चूत पूरी तरह से खुल कर दिखाई दे रही थी. माँ की चूत पर बहुत बड़े काले काले बाल थे. माँ ने बालों को इधर उधर करके चूत की फांको को खोला. अब मुझे माँ की चूत का छेद पूरी तरह से दिखाई दे रहा था. माँ की चूत चाहे बाहर से काली थी पर अंदर से पूरी लाल थी,

माँ ने खीरे का किनारा अपनी चूत पर रखा और धीरे से खीरे को अंदर डाल लिया. खीरा लगभग आधा अंदर चला गया क्योंकि वो पहले से ही तेल से तर था और खूब चिकना हो गया था। धीरे धीरे माँ ने पूरा खीरा अपनी चूत के अंदर डाल लिया और माँ की ऑंखें मजे से बंद हो गयी थी,

वो अब तेज तेज खीरे को अंदर बाहर कर रही थी और मजे से चिल्ला रही थी,

"आआआआअह्हह्हह....ईईईईईईई...ओह्ह्ह्हह्ह...अई..अई..अई....अई...." करके मेरी चुदासी माँ आवाज निकाल रही थी। "काश.....कोई मुझे चोद डाले.....कसके मुझे चोद दे.... सी सी सी सी.. हा हा हा .....ऊऊऊ ...." मेरी माँ बार बार चिल्ला रही थी।

वो अचानक उनका पूरा बदन अकड़ गया और वो जोर से चिल्ला कर झड़ने लगी. उनका पूरा बदन कांप रहा था और उनकी चूत से ढेर सारा पानी निकल कर बाथरूम के फर्श पर गिरने लगा. थोड़ी देर माँ का बदन इसी तरह कांपता रह और फिर धीरे धीरे शांत हो गया. माँ ने खीरा धो कर फिर से अलमारी में रख दिया.

आज मैं जान गया की मेरी माँ मुझसे कोई बात कहती नही है, पर आज भी उनका चुदवाने का और मोटा लौड़ा चूत में खाने का बड़ा दिल करता है। माँ बड़ी देर तक नहाते नहाते अपनी रसीली चूत में ऊँगली करती रही। चूत पर साबुन मलती रही। फिर उन्होंने बाल्टी भर भर कर जी भरकर नहाया और अपने जिस्म को साफ़ कर लिया।

अपनी चूत में माँ से कई बार पानी जग से भरकर डाला। फिर तौलिया लेकर मेरी माँ ने अपने सारे बदन को पोछा, अपने सुडौल मम्मे और चूचियों को भी माँ ने अच्छे से पोछा और फिर अंत में अपनी चूत को तौलिया से अच्छे से पोछा। अब उनकी चूत बड़ी सुंदर, साफ़ और गुलाबी लग रही थी।

जब माँ बाथरूम के बाहर आने लगी तो मैं वहां से हट गया। अपनी नंगी माँ को मैं देख ही चूका था और उनकी बुर चोदने का बड़ा मन था मेरा। मैंने कई बार माँ के रूप रंग को सोच सोच कर मुठ मारी।

इसका यह मतलब तो साफ था कि मम्मी के अंदर आग बची रहती थी।

मैं अभी तक कोई तरीका नहीं ढूंढ पाया था कि अपनी मां को चुदाई के लिए तैयार कैसे करुं।

फिर एक दिन मेरी मां की कुछ सहेलियां घर पर आई हुई थी। मेरी मां और उनकी चार पांच सहेलियों का एक ग्रुप था। यह सभी लगभग एक ही उम्र की थी और उन में से कई तो मेरी माँ की तरह विधवा थी, जो शादीशुदा भी थी वो भी लगता है की सेक्स की भूखी ही थी या उनका अपने पति से सेक्स का कोटा पूरा नहीं होता था. यह लोग हर कुछ दिन में एक-दूसरे के घर पर मिलती थी। यह उस टाइम पर मिलती थी जब उनके पति घर पर नहीं आते। तांकि खुल कर बात कर सके। मैंने सोचा की चलो आज इनकी बातें सुनी जाये। देखे ये कैसी बातें करते हैं।

शुरुआत में तो वे फालतू बातें कर रही थी अपने घर परिवार की, जो सब औरतें करती है। लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे उनकी बातो में खुलापन आने लगा। धीरे-धीरे वो अपनी पर्सनल बातें करने लगे। इन सब औरतों की बातो में एक बात तो समान थी कि यह सब उनके पति से खुश नहीं हो पा रही थी,

इनकी बात-चीत में इन लोगों ने यह बात पर भी चर्चा की कि अगर हम बाहर भी चुदाई करा ले, तो अपने आप को तो ठंडा कर सकते हैं। लेकिन इन लोगों ने उस विचार को ही खत्म कर दिया क्यूंकि यह सब बदनामी से डरती थी।

इसी बातचीत में मेरी मां ने एक बात बोली। जिसको सुनने के बाद मुझे लगा कि मेरा काम बन जायेगा।

अगर तुम में से कोई यह सोच रहा है कि मेरी मां ने कहा चलो अपने बेटों से चुदवा लेते हैं, तो ऐसा उसने कुछ नहीं कहा। मेरी मां ने जो बात कही थी, वह यह थी कि,

"आज-कल तो लड़के-लड़कियां 18-19 की उम्र में चोदने लगे हैं, अगर हम भी आज के ज़माने में पैदा हुई होती, तो चुदाई का पूरा मजा लेती। पर क्या करें हम पुराने जमाने की औरतें है, अब मेरी ही उदाहरण लो। मेरे पति को मरे हुए १० साल हो चुके है. पर मैं तो जिन्दा हूँ. पर क्या करूँ. मेरी चूत का कोई इलाज नहीं है. मेरा भी मन करता है की कोई मुझे जोर जोर से अपने बड़े और मोटे से लण्ड से चोदे, पर मैं क्या करूं. मैं तड़प के रह जाती हूँ. मैं बाहर भी किसी से चुदवा नहीं सकती क्योंकि बाद में वो आदमी मेरे को ब्लैकमेल कर सकता है और फिर मुझे रंडी की तरह हर रोज खुद या अपने दोस्तों से भी चुदवाने को कहेगा. और अगर वो बात किसी को पता चल गयी तो मैं तो बहुत बदनाम हो जाउंगी. मेरा एक ही बेटा है. वैसे भी उस बेचारे की शादी नहीं हो रही और अगर मेरी ऐसी बदनामी हो गयी तो उसकी भी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. इसलिए मैं मन को मार कर रह जाती हूँ. बस अब तो खीरे या मूली का ही सहारा है या अपनी उँगलियों से काम चलाना पड़ता है. पर उस में वो मजा कहाँ जो टांगे चौड़ी करके लेट जाने में है. बस नंगी होकर लेट जाओ और आदमी खुद ही लण्ड अंदर डाल कर कस कस कर चोदता है. आराम से पूरे लौड़े के अंदर बाहर होने के एहसास का मजा लो। अब खीरा मूली में तो खुद ही अपने ही हाथ से अंदर बाहर करना पड़ता है. "।

माँ की सहेलियों ने भी उनकी बात का समर्थन किया और कहा की उनकी भी ऐसे ही स्थिति है.

फिर मेरी माँ ने बोला " अरे लेट कर चुदवाने का आनंद लिए तो सालों हो गए है, वो भी क्या दिन थे जब हर रोज चुदाई होती थी. मैं तो अपने पति का लौड़ा हर रोज चूसती थी. अब तो मेरे को लौड़े का स्वाद भी लगभग भूल ही गया है. मुँह में लण्ड को आइसक्रीम की तरह चूसने और फिर उसके माल (वीर्य) को चाट चाट कर पी लेने का मजा तो बीते अतीत की यादें ही बन कर रह गया है. कितना मन करता है कि मुँह में मोटा सा लौड़ा ले कर कस कस कर चूसूं पर कुछ कर नहीं सकती. मेरे को तो मांस के लौड़े का स्वाद ही याद नहीं आता अब तो. बस रोज रात को अपनी किस्मत पर रो रो कर और अपनी ही उँगलियों से अपना पानी निकल कर चुप चाप सो जाती हूँ. "

उनकी सहेलियों ने माँ की बात का समर्थन किया की उनका भी वही हाल है.

बस कुछ ऐसी ही बातें करके उनकी सहेलियां चली गयी.

मैं अपनी माँ की बातें सुन कर बहुत हैरान था और मेरा लण्ड तो इतना टाइट हो गया था की जैसे बस फट ही जायेगा.

उन दिन मैंने माँ की याद और उनकी तड़पती कामुक जवानी की याद में तीन बार मुठ मारी।

इतना तो मेरे को पक्का हो गया था की मेरी माँ चुदासी है और चुदवाने को तड़प रही है. मैं यह भी जानता था की मेरी माँ बाहर किसी से चुदवा नहीं पायेगी, तो या तो उसे मुझे ही चोदना पड़ेगा या माँ ऐसे ही तड़पती रहेगी.

पर मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैं करूँ तो क्या करूँ। मुझे मालूम था की माँ तो खुद मेरे से चुदवायेगी नहीं तो मुझे ही कुछ करना पड़ेगा.

मां की इस बात के बाद मैंने यह प्लान बनाया कि एक रंडी को पैसे देकर अपने घर लाऊंगा, और कुछ ऐसा इंतजाम करूंगा कि मां मुझे उसको चोदते हुए पकड़ ले।

एक दिन मां बाहर गई हुई थी। तो मैंने उस रंडी को बुलाया और हम दोनों मस्त चुदाई करने लगे। मैंने दरवाजे को जान-बूझ कर ताला नहीं लगाया था, तांकि जब मैं चुदाई कर रहा हूं, तो मां मुझे उस रंडी के साथ पकड़ सके। और ठीक ऐसा ही हुआ। मां आई, और मां ने हम दोनों को चुदाई करते पकड़ लिया।

मैं जान भूज कर उस दिन रंडी को पूरा नंगा हो कर चोद रहा था. जब माँ ने हमे पकड़ा तो मेरा पूरा लौड़ा उस रंडी की चूत के अंदर था.

रंडी नीचे लेटी हुई थी और मैं उस के ऊपर लेट कर धक्के मार रहा था.

जब माँ ने दरवाजा खोला तो उसने हमें चुदाई करते हुए पाया.

मेरा पूरा लौड़ा रंडी के अंदर था. इसलिए माँ को मेरा लौड़ा और उसका साइज पता नहीं चला. पर जब मैंने माँ को देखते ही हैरान होने और डर जाने का नाटक करते हुए लौड़ा बाहर निकला तो धीरे धीरे लौड़े को बाहर आते माँ ने देखा. मेरा लौड़ा ८ इंच लम्बा और ४ इंच मोटा था. शायद पिता जी का लण्ड भी इतना बड़ा नहीं था.

मेरे इतने बड़े लौड़े को देख कर माँ की तो जैसे आँखें ही उस पर जम गयी और उनका मुँह खुला रह गया.

मेरा लौड़ा रंडी की चूत के रस से भीगा हुआ था और रस से चमक रहा था.

माँ हैरानी से उसे देख रही थी.

फिर जैसे माँ को होश आया और उसने अपनी आँखें मेरे लण्ड से हटाई.

उसके बाद मां बहुत गुस्सा हुई। माँ तो गुस्से में पागल ही हो गयी थी.

मैं हैरान हो जाने और पकडे जाने का नाटक कर रहा था. मैं ऐसा दिखावा कर रहा था की मैं गलत काम करते हुए पकड़ा गया हूँ. मैं नंगा ही बैठा था. और मेरा आठ इंच लम्बा और ४ इंच मोटा, बेलन जैसा लण्ड अपनी पूरी शान के साथ आसमान की ओर सर उठाये खड़ा था. मेरे मोटे लण्ड को देख कर एक बार तो माँ की आँखें जैसे फटी की फटी रह गयी. माँ की नजर मेरे लण्ड पर जम ही गयी थी. वो हैरानी के साथ मेरे लण्ड को देख रही थी. उन की आँखों में हैरानी और कुछ अजीब से भाव थे. पर कुछ देर के बाद जैसे वो किसी सन्मोहन से जगी और मेरे लौड़े से नजर दूर करी., ऐसा लग रहा था की माँ मेरे लौड़े से अपनी नजर हटाना नहीं चाहती थी, पर माँ को अब इस स्थिति में रंडी को भी तो भगाना था।

तो सबसे पहले तो उसने उस रंडी को गालियां देकर बाहर निकला। यह जिंदगी में पहली बार था जब मैंने अपनी मां के मुंह से इतनी गालियां सुनी थी।

रंडी के चले जाने के बाद पहले तो मां ने मुझे गालियां दी, थोड़ा मारा, और कहा "तुझे बहुत गर्मी चढ़ रही है. घर में खाना खाने के पैसे नहीं है और तू इन दो टके की बाजारू रंडियों पर पैसे बर्बाद कर रहा है. तुझे कोई शर्म लिहाज है भी या नहीं, तुझे इतना भी डर नहीं है की इन औरतों से तुझे कोई बीमारी भी लग सकती है. "

यह कह कर माँ ने मुझे खूब मारा, मैं भी चुपचाप मार खाता रहा और माँ भी रोती रही,

फिर कुछ देर के बाद माँ किचेन में चली गयी.

मेरा प्लान कामयाब रहा था पर बात कुछ आगे बढ़ नहीं रही थी.

पर कहते हैं न की भगवान आपकी मन की इच्छा पूरी करने का कुछ न कुछ इंतजाम कर देते हैं.

कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ.

धीरे धीरे अब मेरी हवस बढ़ रही थी. माँ को छुप छुप कर नहाते हुए तो मैं पहले भी देखता था पर मैं अब उनकी ब्रा और पैंटी छुपाने लगा था. रोज किसी की ब्रा या पैंटी चुपके से उठा कर ले जाता था और उसको सूंघते हुए मुठ मारता था. फिर उसी पैंटी में वीर्य पोंछ देता था. जब पैंटी सूख जाती थी तो उसे फिर से माँ के कपड़ों में रख देता था. या फिर उसको वैसे ही ले जाकर उसी जगह पर टांग देता था जहां से उतारी होती थी. ऐसे ही दिन बीतते गए.

एक दिन मैं काम से लौटा तो देखा आज माँ की नयी पैंटी बाथरूम में गंदे और धोने वाले कपड़ों में पड़ी थी. उसे मैंने आज पहली बार ही देखा था. मैंने पैंटी को उठा कर देखा और थोड़ा सूंघा तो उस में से माँ के चूत की सुगंध आ रही थी. माँ ने पैंटी को सारा दिन पहना था तो उस में से माँ के पेशाब की भी भीनी भीनी खुशबु आ रही थी. नयी पैंटी थी तो लंड मचलने लगा. मैं पैंटी को लेकर ऊपर अपने रूम पर गया. मैंने अपना बैग एक तरफ पटका और अपने कपड़े उतारने लगा.
haldvani
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
मैं पूरा का पूरा नंगा हो गया. मेरी आदत है कि जब मैं अकेला होता हूं ज्यादातर नंगा ही रहता हूं. उस दिन भी मैं अपने कपड़े उतार कर पूरा नंगा हो गया. मगर दरवाजा बंद करना मुझे याद ही नहीं रहा. मैं बेड पर लेट गया. मैंने लौड़े को हिलाना शुरू किया. पैंटी सूंघते हुए वो एक मिनट के अंदर ही पूरा टाइट हो गया. मैं पैंटी को लंड पर लगा कर मुठ मारने लगा. मेरी आंखें बंद थी. फिर कुछ देर तक मुठ मारने के बाद मैंने पैंटी को अपने मुँह पर रख लिया और जिस जगह पर माँ की चूत आती है उस जगह को चाटने लगा. मेरा लण्ड बहुत सख्त हो गया था और मेरा होने ही वाला था. ज्यों ज्यों मेरा वीर्यपात पास आ रहा था मेरे मुठ मारने की स्पीड तेज होती जा रही थी.

पता नहीं कब अचानक से माँ घर आ गयी और मुझे कहीं न पा कर वो मेरे रूम में आ गयी. उन्होंने मुझे मुठ मारते हुए देख लिया. एकदम से घबरा कर मैं उठ गया और खड़ा हो गया। पर मेरा वीर्यपात इतना पास था की मैं अभी भी अपने लण्ड को तेज तेज आगे पीछे कर रहा था. और मैं नंगा ही था.

मेर लण्ड लोहे की तरह था और मेरा काम पूरा होने ही वाला था तो लण्ड पर नसें तक दिख रही थी.

बस पैंटी मेरे मुँह में थी और लंड पर मेर हाथ चल रहे थे.. मैं मज़े में मुठ मार रहा था.

उन्होंने मुझे ऐसा करते देखा और चिल्लाईं- ये क्या कर रहे हो?

मैं डर गया ... मुझसे कुछ नहीं बोला गया.

माँ के आँखें आज फिर मेरे तने हुए लण्ड पर फिर से जम गयी थी. माँ गुस्से से मेरे पास आयी और मेरे हाथ से अपनी पैंटी छीनने की कोशिश की. मैंने जल्दी से मुँह से पैंटी हटाई और कुछ न सूझते हुए लण्ड को उस से ढकने की कोशिश की. इस कोशिश में लण्ड पर माँ की पैंटी लग गयी.

माँ ने पैंटी छीनने की कोशिश की तो गलती से उनका हाथ मेरे लौड़े पर लग गया। पैंटी उतारने की कोशिश में मेरा लौड़ा उनके हाथ में आ गया.

चाहे माँ ने जान भूझ कर मेरा लौड़ा पकड़ने की कोशिश न करी थी पर गलती से ही सही मेरा लौड़ा माँ के हाथ में आ गया.

ज्यों ही मेरे लौड़े पर माँ का हाथ पड़ा बस मेरे मुँह से एक जोर से आह की आवाज निकली और मेरे लौड़े ने अपने रस के धार छोड़नी शुरू कर दी. अब स्थिति यह थी की माँ के हाथ में मेरा लण्ड था जो अपनी पूरी ताकत से अपने माल निकल रहा था.

इस के पहले कि माँ अपने हाथ पीछे कर सके. उनका सारा हाथ मेरे लैंड के रस से भर गया। पूरा वीर्य उनके हाथ में गिर गया और कुछ छींटे तो उनकी साड़ी पर भी पद गए।

माँ को कुछ सूझ नहीं रहा था की वो क्या करे. उनका हाथ मेरे विर्य से भरा था.

उसके बाद मॉम ने मेरे हाथों से अपनी पेंटी खींची और चली गईं. मैं एकदम से घबरा गया था और उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था.

माँ गुस्से में थी. वो कुछ भी बोले बिना अपने कमरे में चली गयी.

मैं बहुत डर गया था. तो माँ के पीछे पीछे गया. मैंने माँ के कमरे के दरवाजे की दरार से देखा तो माँ ने मेरे वीर्य से भरा हुआ अपना हाथ अपने मुँह में डाल लिया और फिर वो अपने हाथ की उँगलियों से मेरे वीर्य को चाटने लगी.

मेरा लौड़ा तो माँ को मेरा वीर्य चाट ते देख कर फिर से एकदम खड़ा हो गया. पर मैंने कुछ नहीं किया और चुपचाप अपने कमरे में आ गया.

माँ ने भी कोई बात नहीं की। वो बस बिलकुल चुप थी. जैसे उसे समझ नहीं आ रहा था की वो क्या कहे और क्या करे.

शाम को जब माँ सोफे पर बैठे थी तो मैंने उनसे बात की. मैंने उनसे माफ़ी मांगते हुए कहा- मॉम मुझसे ग़लती हो गई

... आगे से ऐसा नहीं होगा.

माँ चुप रही. वो कुछ सोच में थी.

मैंने माँ के दोनों हाथ अपने हाथों में पकड़ लिए और माँ से कहा.

"माँ मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ. गुस्सा न हो कर प्लीज मेरी बात शांति और ध्यान से सुने. मैं आज के वाकये पर बहुत शर्मिंदा हूँ. मुझे सच में ऐसा नहीं करना चाहिए था. जो भी हुआ गलत हुआ. पर माँ आप ही सोचो मैं भी क्या करूँ. मेरे उम्र ३२ साल हो गयी है. मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं की मैं रोज रोज किसी रंडी से अपना जोश उतार सकूँ. न ही मेरी शादी हो रही है. हम गरीब हैं इस लिए कोई रिश्तेदार मेरी शादी की लिए उत्सुक नहीं है. कोई भी आदमी अपनी बेटी मुझ से ब्याहना है चाहता. पर मेरी भी तो कुछ शारीरिक जरूरतें हैं. मैं क्या करु और जाऊँ तो कहाँ जाऊं। मुझे एक औरत के शरीर की बहुत चाहना होती है. पर गरीब होने के कारन कुछ कर नहीं सकता. "

माँ चुप रही. वो मेरी स्थिति समझ सकती थी पर वो बेचारी भी क्या करती.

मैं फिर बोला

"माँ. मैं जानता हूँ की जैसी मेरी स्थिति है ठीक वैसी ही हालत आप की भी है. आप भी एक मर्द के शरीर के लिए तरस रही है. आप भी अभी बहुत सुन्दर और जवान है. और आप तो पिछले १० साल से विधवा हैं. आप भी मेरी तरह चाहती है की आप की शारीरिक जरूरतों को कोई मर्द पूरा करे. मैंने आप को बहुत बार बाथरूम में अपनी उँगलियों से अपनी काम इच्छा रगड़ते देखा है. मैंने आप को कितनी ही बार खीरे या मूली से अपने आप को शांत करते देखा है. "

माँ की आँखें हैरानी से खुली रह गयी. वो नहीं जानती थी की मुझे उन की इस गुप्त काम क्रियाओँ के बारे में पता है. उन होने मुझे रोकने और न करने के लिए मुँह खोला ही था पर मैंने उन्हें बोलने से पहले ही आगे बोलते हुए कहा.

"माँ इतना ही नहीं मैंने कई बार आप और आप की सहेलियों की बातें भी सुनी हैं. जब आप कहती थी की आप का चुदवाने का बहुत मन कर रहा है. माँ मैं जानता हूँ की जैसे मैं सेक्स के लिए तड़प रहा हूँ. आप भी मेरी तरह ही सेक्स की भूखी है और तड़प रही है. पर हम दोनों के पास अपनी इस समस्या का कोई समाधान नहीं है. न ही मैं किसी औरत को चोद सकता हूँ और अपनी सेक्स की भूख मिटा सकता हूँ और न ही आप किसी बाहर के आदमी से अपनी सेक्स की इच्छा पूरी कर सकती है. और गरीब होने के कारन ऐसा कोई रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा की आने वाले समय में कुछ हो सकेगा. ऐसा लगता है की भगवान ने हमे किसी गहरी खाई में धकेल दिया है. जहां कोई रास्ता नहीं है. हम दोनों जाएं तो जाएँ कहाँ. "

मैं जोश में चुदाई जैसे शब्द बोल गया पर माँ ने शायद उस पर ध्यान ही नहीं दिया. वो तो हैरान और चुप चाप बैठी रही.

माँ को शांत और चुप देख कर मैं फिर से बोला

"माँ इस जीवन में हम दोनों माँ बेटा एक दूजे के सहारे ही है. अब अपना जीवन हम दोनों को इक दूसरे के सहारे और साथ में ही गुजारना है. हमे अपनी समस्याओं का समाधान भी खुद ही ढूंढ़ना होगा. और कोर तीसरा हमारी मदद करने वाला नहीं है.

माँ अब मैं जो कहने जा रहा हूँ, आप प्लीज गुस्सा मत होना और जरा शांति से मेरी बात सुन्ना. और फिर शांति से उस पर विचार करना और फिर कोई निर्णय लेना. मुझे कोई जल्दी नहीं हैं. आप जो भी निर्णय लेंगी मुझे मंजूर होगा. "

माँ चुपचाप मेरी ओर देखती रही. उसे कोई आईडिया नहीं था की मेरे मन में क्या है.

मैं माँ को प्यार से देखते हुए बोलै.

"माँ हम दोनों को भगवान ने एक दूसरे के सहारे ही छोड़ दिया है. अब इस जीवन में हम माँ बेटा हर चीज के लिए एक दुसरे के सहारे हैं. चाहे वो पैसा हो, कोइ काम हो, कहीं आना जाना हो, बीमारी हो या जीवन की कोई भी इच्छा या जरूरत हो तो हम दोनों ही एक दुसरे का सहारा है. और हम दोनों ही सेक्स के लिए तड़प रहे हैं. जब भगवान ने हमे एक दुसरे की मदद करने को रखा है तो शायद भगवान् ही चाहता है की हम दोनों ही सेक्स के लिए भी एक दुसरे का सहारा बने. और एक दुसरे के सेक्स की जरूरत पूरी करें. घर में हम दोनों ही हैं तो किसी को कानो कान पता भी नहीं चलेगा और हम दोनों एक दुसरे से सेक्स भी कर सकेंगे."

माँ मेरी बात सुननते ही गुस्से से भड़क गयी और एकदम गुस्से में खड़ी हो गयी और बोली

"तेरा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है. तुजे मालूम भी है की तू यह क्या कह रहा है."

माँ गुस्से से कांप रही थी.

मैंने माँ को शांत करते हुए कहा.

"माँ बैठ जाओ और शांति से मेरी बात सुनो. देखो हमें सब रिश्तेदारों ने छोड़ दिया है. कोई भी हमारी मदद नहीं करता. हर दुःख सुख और जरूरत के लिए हम दोनों को एक दूजे का हे सहारा है. मेरी शादी का कोई चांस नहीं है. मैं कब तक अपने हाथों से मुठ मारता रहूँगा. और आप का तो कुछ भी नहीं हो सकता. आप की तो अब कोई शादी भी नहीं होगी. आप के बातें मैंने सुनी है (सहेलियों के साथ ), आप सेक्स के लिए कितना तड़प रही है. मैं अच्छी तरह जानता हूँ. आप क्या सारी जिंदगी चुदाई के लिए ऐसे ही तड़पती रहोगी. क्या सारी उम्र अपनी उँगलियों या खीरे मूली से ही अपनी तड़प शांत करती रहोगी. क्या आप नहीं चाहती की आप की भी अच्छी तरह से चुदाई हो. आप के पास मेरी इस बात के इलावा क्या कोई और रास्ता है जिस से आप और मेरी काम सेक्स की जरूरत पूरी हो सके। माँ आप शांति से सोच कर कोई निर्णय लें. मुझे आप के निर्णय का इन्तजार रहेगा. एक तरफ है इसी तरह सारी जिंदगी तड़प तड़प कर मुठ मार मार कर जीवन गुजारना और दूसरी तरफ है एक दुसरे का साथ. और जिसमे है रोज की जबरदस्त चुदाई और प्यार. हम दोनों माँ बेटा है तो किसी को शक भी नहीं होगा और हम खुल कर चुदाई कर सकेंगे. मैं आप को मजबूर नहीं कर सकता पर आप शांति से सोच कर अपने निर्णय मेरे को बता देना "

(मैं जोश में चुदाई मुठ मारना जैसे खुले शब्द बोल गया पर माँ ने शायद उस ओर ध्यान ही नहीं दिया और चुप चाप बैठी रही.)

यह बोल कर मैं उठ कर अपने कमरे में चला गया और माँ किसी गहरी सोच में डूबी हुई सोफे पर पत्थर की मूर्ती की तरह बैठी रही.

मैं माँ को बोल कर अपने कमरे में चला गया पर माँ किसी पत्थर की मूर्ती की तरह चुपचाप बैठी रही. शायद मेरी बात उनके लिए किसी वज्रपात से कम नहीं थी। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था की उनका अपना बेटा ही उन्हें चोदने और आपस में ही सेक्स भरा जीवन बिताने का ऑफर देगा.

शाम को भी माँ ने मेरे से कोई बात नहीं कृ. बस वो चुपचाप घर का काम करती रही.

खाना खाने के टाइम भी हमारे बीच में कोई बात चीत नहीं हुई. एक भोजल सी ख़ामोशी हमारे दरमियान छाई रही..

खाना खाने के बाद मैं चुपचाप अपने कमरे में जा कर लेट गया। मैंने एक लुंगी पहन रखी थी और ढीला सा कच्छा पहना था ताकि रात में मुझे मुठ मारने में दिक्कत न हो.

माँ भी किचन का काम निबटा कर अपने कमरे में जा कर लेट गयी.

मेरा दिल तो बहुत देर से बहुत तेज तेज धड़क रहा था. पर जब माँ अपने कमरे में जा कर लेट गयी और उनके कमरे की लाइट भी बंद हो गयी तो मेरा दिल भुज गया. मुझे लग रहा था की मैंने अपनी माँ से सेक्स सम्भन्ध बनाने की बात करके गलती कर दी है. मेरा तो आज मुठ मारने का भी मन नहीं कर रहा था.

मुझे नींद नहीं आ रही थी.

इसी तरह रात के ११ बज गए.

मैं सोने ही जा रहा था की अचानक मेरे कमरे के दरवाजे पर कुछ आवाज हुई. मैंने सर घुमा कर देखा तो दरवाजा धीरे धीरे खुल रहा था.

मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा की जैसे मेरा तो हार्ट अटैक ही आ जायेगा.

दरवाजे से मेरी माँ जिसने एक ढीला सी मैक्सी पहन रखी थी अंदर आयी.

कमरे में खिड़की से बाहर से थोड़ी रौशनी आ रही थी जिस से सब कुछ ठीक से दिखाई दे रहा था.

माँ ने मेरी तरफ देखा और मेरे बेड के पास आ गयी. मैं भी अपलक माँ की तरफ ही देख रहा था.

मैं माँ की ओर देख रहा था मैने अपनी आँखें अपनी माँ की आँखों की तरफ की और उनकी आँखों में देखा.

माँ की आँखों में बेइंतेहा शर्मा की लाली थी. माँ ने शर्म से अपनी आँखें झुका ली. वो मेरी ओर ज्यादा देर तक न देख सकी.

मैं माँ को देखते हुए मुस्कुरा रहा था. और माँ बहुत ही शर्मा रही थी. मैंने माँ को बैठने या लेटने के लिए कुछ न कहा और आराम से अपने बीएड पर लेटा रहा. तो माँ बेचारी आइए ही कड़ी रही. मैं शरारत से मुस्कुरा रहा था.

माँ भी चुप थी. अब वो वापिस भी नहीं है सकती थी. जब मैंने उन्हें बैठने या लेटने को न कहा तो माँ ने आखिर अपनी चुप्पी तोड़ी और मुझे बोली

माँ ने मुझे देखते हुए कहा।

"थोड़ा परे को तो सरक मुझे भी लेटने के लिए थोड़ी जगह दे. देख कैसे अकेला ही पूरा बेड घेर कर लेटा है. "

कहते हुए माँ के होंठों पर एक शरारती सी मुस्कान थी.

मैंने फटाफट पीछे को हो कर माँ के लेटने के लिए जगह बनाई।

खाली जगह में माँ मेरे साथ लेट गयी.

मेरा दिल धड़क रहा था. लगता था माँ ने कोई निर्णय कर लिया है और हम दोनों माँ बेटे के जिंदगी खुशियों से भरने वाली है.

माँ बिलकुल मेरे साथ ही लेटी थी. हमारे शरीरों के बीच में मुश्किल से ६ इंच का फासला था.

माँ का दिल भी इतने जोर से धड़क रहा था कि उनके दिल के धड़कने की आवाज मुझे साफ सुनाई दे रही थी. शायद मेरे तेज तेज धड़कते दिल की आवाज मेरी माँ को भी सुनाई दे रही हो.

यह हमारे जीवन का एक बहुत ही नाजुक और महत्वपूर्ण क्षण था. जो हमारे आने वाले जीवन की दिशा बदल देने वाला था.

मैंने माँ से प्यार से पूछा

"माँ क्या आप ने मेरी बात पर कुछ गौर किया.? आप ने क्या निर्णय लिया है?"

जवाब में माँ कुछ नहीं बोली. उनकी गालें शर्म से लाल हो रही थी. शर्म से उनसे कुछ कहा नहीं जा रहा था. बस उन्होंने आगे बढ़ कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उन्हें चूमने लगी.

माँ का उत्तर बिलकुल स्पष्ट था. मैंने भी अपने होंठ खोल दिए और माँ के होंठों को अपने होंठों के बीच दबा कर चूसने लगा.

मैंने फिर अपना चेहरा पीछे किया और शरारती सी मुस्कान में कहा

"माँ बताओ न आप का क्या निर्णय है. क्या मैं आप की हाँ समझूँ?"

हालाँकि अब सब स्पष्ट ही था. माँ ने मेरे कमरे में आ कर और मेरे होंठों को चूम कर सब बता ही दिया था पर मैं तो शरारत कर रहा था.

पर माँ तो आखिर माँ ही थी. वो मुँह से कुछ बोल कैसे सकती थी.

जब मैंने माँ से दोबारा उन का निर्णय पूछा तो माँ ने शर्म से अपना चेहरा मेरी छाती में छुपा लिया और मुझसे चिपकते हुए धीरे से अपना हाथ नीचे ले जा कर मेरी लुंगी में डाल दिया और मेरे तने हुए लौड़े को अपने हाथ में पकड़ लिया.

फिर माँ ने धीमे से अपना मुँह मेरे कान के पास किया और मेरे लौड़े को अपने हाथ से आगे पीछे करते हुए, जैसे वो मेरा मुठ मार रही हो, धीरे से बोली

"यह है मेरा निर्णय."


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और मेरे लौड़े को जोर से दबा दिया. कि मेरी तो जैसे चीख ही निकल गयी.

माँ अब मेरे लौड़े पर अपने हाथ को तेज तेज आगे पीछे करते हुए मेरे लण्ड को प्यार से सहला रही थी, और फिर मेरे कान में फिर से बोली.

"बेटा मुझे बोलने में बहुत शर्म आ रही है. बस अब कुछ न पूछ. तू खुद ही समझ जा. तू अपना दिल भी बता दे कि तेरे दिल में क्या इच्छा है."

मैंने अपना हाथ नीचे ले जा कर माँ की सलवार मैं घुसेड़ दिया. माँ के कोई पैंटी नहीं पहनी थी. मेरा हाथ सीधा माँ की चूत पर पहुंच गया.

मेरे को एक और झटका सा लगा. माँ की चूत, जिसे मैंने न जाने कितनी बार छुप छुप कर बाथरूम में देखा था की उस पर झांटों का पूरा जंगल ऊगा हुआ था. अब बिलकुल क्लीन शेव थी. लगता था माँ अपनी पहली चुदाई के लिए झांटे साफ करके पूरी तयारी करके आयी थी.

मैंने माँ की फूली हुई चूत को अपनी मुठी में भर लिया और उसे मुट्ठी में मसलते हुए बोला।

"माँ आपका बहुत बहुत धन्यवाद कि आपने मेरी बात पर सहानुभूति पूर्वक फैसला किया। अब आपको कभी भी चुदाई के लिए तड़पना नहीं पड़ेगा और न ही मेरे जीवन में कोई कमी रहेगी. हम दोनों माँ बेटा एक दूजे का सहारा बनेंगे और एक दुसरे की हर तरह से इच्छा पूर्ती करेंगे. आज से दुनिया की नजरों में हम माँ बेटा है पर घर के अंदर हम दोनों एक मर्द और औरत है. दोनों एक दूजे की सेक्स की जरूरत पूरी करेंगे. आज के बाद न ही मेरे को मुठ मारना पड़ेगा और न ही आपको अपनी उँगलियों से या किसी खीरे गाजर आदि से अपनी इच्छा पूरी करने की जरूरत रहेगी. आज से इस बेड पर रोज माँ बेटे की चुदाई होगी. ठीक है न?"

माँ ने फिर शर्म से अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया और अपने हाथ में पकडे मेरे लौड़े को प्यार से मसलती हुई बोली

"ठीक है बेटा. शायद भगवान को यही मंजूर है. अगर उसकी यही इच्छा है तो ऐसे ही सही. आज से हम दोनों एक दुसरे की सेक्स की जरूरत भी पूरी करेंगे. और सच में एक दूजे का सहारा बनेंगे."

यह कहते हुए माँ मेरे से लिपट गयी, पर उसने हाथ में पकड़ा हुआ मेरा लौड़ा नहीं छोड़ा और उसे धीरे धीरे मुठियाती रही. शायद माँ को १० साल बाद एक असली लौड़ा पकड़ने का मौका मिला था तो वो लण्ड को छोड़ना नहीं चाहती थी. मैंने भी माँ की चूत को अपने हाथ में भरे रखा और धीरे से एक ऊँगली माँ की चूत, जो की अब उसके बह रहे काम रस से गीली हो गयी थी, में घुसेड़ दी.

माँ ने एक आह की आवाज करी पर मेरी ऊँगली को अपनी चूत में से निकलने की कोशिश भी न करि. बल्कि आगे को खिसक कर ऊँगली को और पूरा अंदर तक लेने की कोशिश की।

मैं बहुत खुश था.

भगवान ने हम माँ बेटे की सुन ली थी.

मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा.

मैंने माँ को अपने से चिपकाया और अपनी ऊँगली को माँ की चूत में आगे को धकेल कर पूरी तरह से उन की चूत में घुसा दिया और बोला

"माँ अपनी चूत को आगे को धकेल रही हो. क्या अपनी चूत में मेरी ऊँगली अच्छी लगी. क्या दूसरी ऊँगली भी आपकी चूत में घुसेड़ दूँ?"

माँ ने अपना सर न में हिलाया और कहा

"अरे नहीं."

मैंने बोला "माँ क्या आपको अंदर घुसी हुई ऊँगली पसंद नहीं आयी?"

माँ शर्माती हुई सी मेरे सीने में अपना मुँह छुपा कर बोली.

"अब तुमसे यह नया रिश्ता बन रहा है तो मैं अब ऊँगली को क्यों घुसवाना चाहूंगी। ऊँगली से तो मैं खुद ही पिछले १० साल से कर रही हूँ. क्या अब भी ऊँगली से ही काम चलाऊंगी? अब तो मुझे तेरी ऊँगली नहीं बल्कि तेरा उन्गला चाहिए."

मैं थोड़ा हैरान हो कर बोला.

"माँ ऊँगली तो मैं समझता हूँ. पुर तुम अपनी चूत में यह उन्गला क्या चाहती हो? उन्गला क्या होता है?"

माँ ने अपने हाथ में पकडे हुए मेरे लौड़े को मुठिआते हुए और प्यार से उस पर अपने हाथ फेरते हुए कहा

"एह् है तेरा उन्गला। अब मुझे अपने अंदर इसे लेना है. ऊँगली नहीं "

मैं समझ गया की माँ की वासना अब बहुत बढ़ गयी है और वो चुदवाने के लिए पूरी तैयार है.

मैंने मस्ती से झूमते हुए माँ से कहा

"माँ बस आज के बाद तझे कभी अपनी ऊँगली प्रयोग नहीं करनी पड़ेगी. मेरा यह ७ इंच लम्बा और ३ इंच मोटा उन्गला आपकी चूत की सेवा करने के लिए तैयार रहेगा.

माँ के मुँह पर ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और वो भी प्यार से मेरे से चिपक गयी पर इस सब में उसने मेरा लौड़ा अपने हाथ से न छोड़ा और उसे प्यार से सहलाती रही. माँ को १० साल के बाद एक हाड़ मांस का लौड़ा हाथ में आया था. लगता था की माँ उसे मन भर के प्यार किये बिना नहीं छोड़ेगी.

फिर माँ मेरे से बोली

"अच्छा एक बात बता। उस दिन तू मेरी कच्छी को क्यों सूंघ रहा था और क्यों चाट रहा था? तुझे शर्म नहीं आयी जो तू इतनी गन्दी जगह लगी हुई पैंटी को चाट रहा था.? "

मैं माँ को अपने से चिपकता बोला।

"माँ कौन कहता है कि वो गन्दी जगह है या उस को सूंघना ठीक नहीं है. आपकी चूत से तो बहुत ही अच्छी खुशबु आती है.

आपकी पैंटी के अगले भाग पर मुझे उसके चूत का रस महसूस हुआ और मैं बिना कुछ सोचे-समझे ही उसके रस को सूंघने और चाटने लगा था. पर आपकी चूत का रस तो शहदसे भी प्यारा था."

मैंने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए महसूस किया कि वो कुछ ज्यादा ही गर्म होने लगी थी। उसके आँखों में लाल डोरे साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसके होंठ कुछ कंपने से लगे थे.

मैंने बोला- "वाह माँ.. क्या महक थी आपकी चूत की.. इसे मैं हमेशा अपने जीवन में याद रखूँगा.. आई लव यू माँ "..

तो वो भी मन ही मन में मचल उठी और वो बोली- मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो न..

मैं बोला- ऐसा नहीं है.. फिर मैंने उसकी चूत को अपनी गदेली में भरते हुए कामुकता भरे अंदाज में बोला- जान.. इसे हिंदी में बुर और चूत भी बोलते हैं।

मेरी इस हरकत से वो कुछ मदहोश सी हो गई और उसके मुख से 'आआ.. आआआह..' रूपी एक मादक सिसकारी निकल पड़ी।

मैंने उसकी चूत पर से हाथ हटा लिया इससे वो और बेहाल हो गई.. लेकिन वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थी कि मैं उसकी चूत को छोड़ दूँ..

लेकिन स्त्री-धर्म.. लाज-धर्म पर चलता है.. इसलिए उस समय वो मुझसे कुछ कह न सकी और मुझसे धीरे से बोली- बेटा.. क्या इतनी अच्छी खुश्बू आती है मेरी चू... से..

ये कहती हुई वो 'सॉरी' बोली.. तो मैं तपाक से बोला- "माँ शर्माओ नहीं और खुल कर बोलो. चूत को चूत ही केहते है तो इसमें शर्माना क्या. सेंटेंस पूरा करो.. और वैसे भी अब.. जब तुम भी मुझे चाहती हो.. तो अपनी बात खुल कर कहो।

तो बोली- नहीं.. फिर कभी..

शायद वो वासना के नशे में कुछ ज्यादा ही अंधी हो चली थी.. क्योंकि उसके चूचे अब मेरी छाती पर रगड़ खा रहे थे और वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़े हुए थी। उसके सीने की धड़कन बता रही थी कि उसे अब क्या चाहिए था।

तो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- तो क्या कहा था.. अब बोल भी दो?

तो वो बोली- क्या मेरी चूत की सुगंध वाकयी में इतनी अच्छी है...

तो मैंने बोला- हाँ मेरी जान.. सच में ये बहुत ही अच्छी है।

वो बोली- फिर सूंघते हुए चाट क्यों रहे थे?

तो मैंने बोला- तुम्हारे रस की गंध इतनी मादक थी कि मैं ऐसा करने पर मज़बूर हो गया था.. उसका स्वाद लेने के लिए..

ये कहते हुए एक बार फिर से अपने होंठों पर जीभ फिराई.. जिसे माँ ने बड़े ही ध्यान से देखते हुए बोला- मैं तुमसे कुछ बोलूँ.. करोगे?

तो मैंने सोचा लगता है.. आज ही माँ की बुर चाटने की मेरी इच्छा पूरी हो जाएगी क्या?

ये सोचते हुए मन ही मन मचल उठा.

मुझे लग रहा था की माँ भी अपनी चूत चटवाना चाहती है. पर शायद शर्मा रही है. या तो ये खुद ही मेरे साथ खेल कर रही है.. ताकि मैं ही अपनी तरफ से पहल करूँ। ( वो तो मेरे को बाद में माँ ने बताया की वो भी रोज मेरे पापा का लौड़ा चूसती थी और वीर्य चाटती थी.)

तो मैंने भी कुछ सोचते हुए बोला- क्यों क्यों लगता है की वो सूंघने की जगह नहीं है?

माँ बोली- नहीं.. ऐसा नहीं है.. मैं तो इसलिए बोली थी.. क्योंकि वहाँ से गंदी बदबू भी आती है ना.. इसलिए।

मैंने बोला- अरे आप नहीं समझ सकती कि एक जवान लड़की की और एक जवान लड़के के लिंग में कितनी शक्ति होती है। दोनों में ही अपनी-अपनी अलग खुशबू होती है.. जो एक-दूसरे को दीवाना बना देती है।

तो वो बोली- मैं कैसे मानूं?

मैं बोला- अब ये तुम्हारे ऊपर है.. मानो या ना मानो.. सच तो बदलेगा नहीं..

तो वो बोली- क्या तुम मुझे महसूस करा सकते हो?

मैं तपाक से बोला- क्यों नहीं..

तो बो बोली "तो ठीक है मुझे महसूस करवाओ".

शायद उस पर वासना का भूत सवार हो चुका था।

मैं भी देरी ना करते हुए बिस्तर से उठा और झट से माँ की सलवार खोल दी. माँ ने भी कोई इतराज न किया। बल्कि उसने तो खुद अपनी कमीज भी उतार दी. अब मेरी माँ मेरे सामने बिलकुल नंगी थी. मैंने भी फटाफट अपने कपडे उतरे और खुद भी माँ की तरह नंगा हो गया. अब माँ बेटे का वासना का खेल शुरू होने ही वाला था. माँ अभी भी थोड़ा शर्मा रही थी. पर मैंने घुटनों के बल बैठकर उसकी मुलायम चिकनी जांघों को अपने हाथों से पकड़ कर खोल दिया.. ताकि उसकी चूत ठीक से देख सकूँ।

मैंने जैसे ही उसकी चूत का दीदार किया तो मुझे तो ऐसा लगा.. जैसे मैं जन्नत में पहुँच गया हूँ.. उसकी चूत बहुत ही प्यारी और कोमल सी दिख रही थी..

मेरी तो जैसे साँसें थम सी गई थीं.. क्योंकि ये मेरा पहला मौका था.. जब मैंने अपनी माँ की चूत को इतनी करीब से देखा था.

उसकी चूत बिल्कुल कसी हुई थी.. कुछ फूली-फूली सी.. और उसके बीच में एक महीन सी दरार थी.. जो कि उसके छेद को काफ़ी संकरा किए हुए थी।

इतनी प्यारी संरचना को देखकर मैं तो मंत्रमुग्ध हो गया था.. जिससे मुझे कुछ होश ही नहीं था कि मैं कहाँ हूँ.. कैसा हूँ। माँ की चूत पिछले १० साल से चूड़ी जो न थी.

खैर.. जब मैं उसकी चूत को टकटकी लगाए कुछ देर यूँ ही देखता रहा.. तो उसने मेरे हाथ पर एक छोटी सी चिकोटी काटी.. जो कि उसकी जाँघ को मजबूती से कसे हुए था।

तो मेरा ध्यान उसकी चूत से टूटा और मैंने 'आउच..' बोलते हुए उसकी ओर देखा.. उसकी नजरों में लाज के साथ-साथ एक अजीब सी चमक भी दिख रही थी।

ऐसी नजरों को कुछ ज्ञानी बंधु.. वासना की लहर की संज्ञा भी देते हैं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#4
(22-11-2024, 11:08 AM)neerathemall Wrote:
माँ बेटा एक दूजे के सहारे



!




V







वो अपनी आँखों को गोल-गोल घुमाते हुए बोली- क्यों बेटा.. पक्का तुम यही सोच रहे होगे कि मैंने झूट क्यों बोला.. मैं कैसे किसी की गंदी जगह को सूंघ सकता हूँ.. अब फंस गए ना.. अभी तक मुझे बेवकूफ़ बना रहे थे.. चलो छोड़ो.. लेट जाओ मैं समझ गयी की तुम इसे सूंघ नहीं पाओगे.खैर अब ऐसा दोबारा ना करना।
तभी मैंने बोला- माँ.. तुम नहीं जानती कि आज मैंने अपनी पूरी जिंदगी में पहली बार इतने पास से आपकी चूत देखी है.. जिसे अक्सर ख़्वाबों में ही देखता था.. पर जब आज सच में सामने आई.. तो मैं देखता ही रह गया था?
मैं उसकी चूत की कसावट को देखते हुए बोला- " रही बात सूंघने की.. तो मैं तो सोच रहा हूँ.. इसे चाट कर सूँघूं या सूंघ कर चाटूं."।
तो माँ बोली- जो भी करना.. जल्दी करो..
मैंने तुरंत ही उसके नितंबों को पकड़ कर बिस्तर के आगे की ओर खींचा ताकि उसकी चूत पर मुँह आराम से लगा सकूँ।
फिर मैंने बिना देर किए हुए उसे बिस्तर के किनारे लाया और सीधा उसकी चूत पर मुँह लगा कर उसके दाने को अपनी जुबान से छेड़ने लगा.. जिससे उसके मुँह से मादक सिसकारियाँ फूट पड़ीं- ओह्ह..शिइई..
मैंने जब उसकी ओर देखा तो वो अपने चेहरे को अपने दोनों हाथों से ढके हुए थी.. पर जब उसने अपनी चूत पर मेरा मुँह नहीं महसूस किया.. तो अपनी आँख खोल कर मुझसे बोली- बेटा.. यार फिर से कर न.. मुझे बहुत अच्छा लगा.. मुझे नहीं पता था कि इसमें इतना मज़ा आता है।
तो मैं बोला- परेशान मत हो... अभी तो खेल शुरू हुआ है.. देखती जाओ.. मैं क्या-क्या और कितना मजा देता हूँ।
वो बोली- एक बात पूछू.. मज़ाक तो नहीं बनाओगे मेरा?
तो मैं बोला- हाँ.. पूछो..
वो बोली- बेटा मैं चाहती हूँ.. कि जो मज़ा तुम मुझे दे रहे हो.. वो मैं भी दूँ.. क्या ये एक साथ हो सकता है? मेरा मतलब तुम मेरी चूत को मुँह से प्यार करो और मैं तुम्हारे हथिआर को अपने मुँह से प्यार करूँ।
मैंने अपनी ख़ुशी दबाते हुए कहा- हो सकता है..
तो वो चहकते हुए स्वर में बोली- बेटा सच..
मैंने बोला- हम्म..
मैं मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो अपने आप ही मेरा काम आसान हो गया।
मैंने तुरंत ही खड़े होकर अपने अंपने 'सामान' को हिलाने लगा।
मेरा लवड़ा देखकर माँ बोली- बेटा ये बताओ.. तुम्हारा ये हथिआर मेरे मुँह तक कैसे आएगा.. जब तुम नीचे बैठोगे तभी तो मैं कुछ कर पाऊँगी
तो मैं बोला- पहले तो इसे हथिआर नहीं लण्ड बोलो.. और अपना दिमाग न लगाओ.. जैसे मैं बोलूँ.. वैसे करो।
तो वो शर्मा कर बोली- ठीक है.. चलो अब जल्दी से अपना ल..लण्ड मेरे मुँह में डालो और अपना मुँह मेरी च..चूत पर लगाओ.. अब मुझसे और इंतज़ार नहीं हो सकता।
लण्ड-चूत कहने में वो कुछ हिचक रही थी.. बेचारी.. सच में एक माँ के लिए यह बहुत मुश्किल है की अपने ही बेटे के साथ सेक्स करना और फिर इस तरह खुले तौर से गुप्त अंगों के नाम लेना। पर अब यह सब तो करना ही था.
खैर.. मैंने उसे बिस्तर पर सही से लिटाया और हम 69 अवस्था में लेट गए। यह देख कर उसके दिमाग की बत्ती जल उठी और माँ खुश होते हुए बोली- बेटा वाकयी में तुम स्मार्ट के साथ-साथ होशियार भी हो.. क्या जुगाड़ निकाला है..
मैं हँसते हुए माँ से बोला "माँ। जिस की माँ तुम्हारे जितनी सुन्दर हो उस का बेटा तो अपने आप अकलमंद हो ही जायेगा. "
माँ खुश हो गयी।
मैं तुरंत ही उसकी चूत के दाने को अपनी जुबान से छेड़ने लगा और वो मेरे लण्ड को पकड़ कर खेलने लगी और थोड़ी ही देर में उसने अपनी नरम जुबान मेरे लौड़े पर रखकर सुपाड़े को चाटने लगी.. जिससे मुझे असीम आनन्द की प्राप्ति होने लगी। माँ मेरे लण्ड के सुपाडे को ऐसे चूस और चाट रही थी जैसे वो लण्ड न हो कर कोई आइसक्रीम हो. माँ को बहुत सालों के बाद इक हाड मांस का लौड़ा मुँह में लेने का मौका मिला था तो माँ उस का पूरा फ़ायदा उठाने जा रही थी.
उसकी गीली जुबान की हरकत से मेरे अन्दर ऐसा वासना का सैलाब उमड़ा.. जिसे मैं शब्द देने में असमर्थ हूँ.. फिर मैंने भी प्रतिउत्तर में उसके दाने को अपने मुँह में भर-भर कर चूसना चालू कर दिया.. जिससे उसके मुँह से 'अह्ह्ह ह्ह.. हाआआह... आआआ..' की आवाज स्वतः ही निकलने लगी।
उसके शरीर में एक अजीब सा कम्पन हो रहा था.. जिसे मैं महसूस करने लगा।
चूत चुसवाने के थोड़ी ही देर में वो अपनी टाँगें खुद ही फ़ैलाने लगी और अपने चूतड़ों को उठा कर मेरे मुँह पर रगड़ने लगी।
अब मुझे एहसास हो गया कि माँ को इस क्रिया में असीम आनन्द की प्राप्ति हो रही है। फिर मैंने उसके जोश को और बढ़ाने के लिए अपनी उँगलियों के माध्यम से उसकी चूत की दरार को थोड़ा फैलाया और देखता ही रह गया.. चूत के अन्दर का बिलकुल ऐसा नज़ारा था.. जैसे किसी ने तरबूज पर हल्का सा चीरा लगा कर फैलाया हो.. उसकी चूत से रिस रहा पानी उसकी और शोभा बढ़ा रहा था।
मैंने बिना कुछ सोचे अपनी जुबान उसकी दरार में डाल दी.. और उसे चाटने लगा।
जिससे उत्तेजित होकर माँ ने भी मेरे लण्ड के शिश्न-मुण्ड को और अन्दर ले कर चूसते हुए 'ओह.. शिइ... इइइइ.. शीईईई..' की सीत्कार के साथ 'अह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह ह्ह..' करने लगी।
तो मैंने वक्त की नज़ाकत देखते हुए अपनी एक ऊँगली उसकी चूत के छेद में घुसेड़ दी.. जिससे उसकी एक और दर्द भरी 'आह्ह्ह्ह ह्ह..' छूट गई और दर्द से तड़पते हुए बोली- बेटा..तुम्हारी ऊँगली मेरे अंदर लग रही है ये.. क्या कर दिया.. अब तो अन्दर जलन सी होने लगी है..
मैंने बोला- बस थोड़ा रुको.. अभी सही किए देता हूँ।
फिर मैंने उंगली बाहर निकाली और उसकी चूत पर थूक लगाकर.. उसके छेद को चूसते हुए.. धीरे धीरे फिर से ऊँगली को अंदर करने लगा... जिससे उसका दर्द अपने आप ही ठीक होने लगा।
'अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह ह्ह्ह्ह.. शिइइ... शहअह...' की ध्वनि उसके मुँह से निकलने लगी।
सच में उस समय मेरी थूक ने उसके साथ बिल्कुल एंटी बायोटिक वाला काम किया और जब वो मस्ति के फिर से मेरा लण्ड चूसने लगी.. तो मैंने अपनी दूसरी ऊँगली भी अब माँ की चूत में डाल दी।
इस बार वो थोड़ा कसमसाई तो.. पर कुछ बोली नहीं.. शायद वो और आगे का मज़ा लेना चाहती थी.. या फिर उसे दोबारा में दर्द कम हुआ होगा।
अब मैंने धीरे-धीरे उसकी चूत में उंगली करते हुए उसके दाने को अपनी जुबान से छेड़ने और मुँह से चूसने लगा। मेरी इस हरकत से उसने भी जोश में आकर मेरे लौड़े को अपने मुँह में और अन्दर ले जाते हुए तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगी।
उसके शरीर में हो रहे कम्पन को महसूस करते हुए मैं समझ गया कि अब माँ झड़ने वाली है.. यही सही मौका है उंगली की स्पीड तेज कर दो.. ताकि छेद भी थोड़ा और फ़ैल जाए।
इस अवस्था में इसे दर्द भी महसूस नहीं होगा.. ये विचार आते ही मेरा भी जोश बढ़ गया और मैं एक सधे हुए खिलाड़ी की तरह उसकी चूत में तेजी से उंगली अन्दर-बाहर करने लगा।
अब माँ के मुँह से भी 'गु.. गगगग गु.. आह्ह..' की आवाज़ निकलने लगी.. क्योंकि वो भी मेरा लौड़ा फुल मस्ती में चूस रही थी.. जैसे सारा आज ही रस चूस-चूस कर खत्म कर देगी।
मैंने तुरंत ही अपनी उंगली अन्दर-बाहर करते हुए अचानक से पूरी बाहर निकाली और दोबारा तुरंत ही दो उँगलियों को मिलाकर एक ही बार में घुसेड़ दी..
माँ को शायद थोड़ा दर्द हुआ, जिससे उसके दांत मेरे लौड़े पर भी गड़ गए और उसके साथ-साथ मेरे भी मुँह से भी 'अह्ह ह्ह्ह्ह..' की चीख निकल गई।
सच कहूँ, हम दोनों को इसमें बहुत मज़ा आया था।
आज भी हम आपस में जब मिलते हैं तो इस बात को याद करते ही एक्साइटेड हो जाते हैं मेरा लौड़ा तन कर आसमान छूने लगता है और उसकी चूत कामरस की धार छोड़ने लगती है।
खैर.. जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तो फिर से वो लण्ड को चचोर-चचोर कर चूसने लगी और अपनी टांगों को मेरे सर पर बांधते हुए कसने लगी।
वो मेरे लौड़े को बुरी तरह चूसते हुए 'अह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह..' के साथ ही झड़ गई। माँ का पूरा शरीर कांप रहा था, और उसकी चूत से कम्पन मेरी जीभ पर भी अनुभव हो रहा था। माँ की चूत से उसके काम रस का बाहर आ रहा था जिसे मैं फटाफट चाट रहा था ताकि माँ के रस का एक भी कटरा बाहर न रह जाये. अपने बेटे से चूत चटवाने का माँ का यह पहला अनुभव था..
मैंने इस तरह उसके रस को पूरा चाट लिया और छोड़ता भी कैसे.. आखिर मेरी मेहनत का फल था। और आप तो जानते ही हो की मेहनत का फल मीठा होता है। सचमुच माँ की चूत का रस बहुत मीठा था.
उसकी तेज़ चलती सांसें.. मेरे लौड़े पर ऐसे लग रही थीं.. जैसे मेरे लौड़े में नई जान डाल रही हो.. और मैं भी पूरी मस्ती में उसकी बुर को चाट कर साफ करने लगा।
जब उसकी सांसें थोड़ा सधी.. तो वो एक लम्बी कराह 'अह्ह्ह ह्ह्ह्ह..' के साथ चहकते हुए स्वर में बोली- बेटा.. मुझे जिंदगी में पहली बार चुसवाने में इतना मजा आया है... मुझे तो तूने फुल टाइट कर दिया"
तो मैं बोला- माँ तुम्हारा डिस्चार्ज हो गया है और मेरा अभी नहीं हुआ है और असली मज़ा डिस्चार्ज होने के बाद ही आता है। प्लीज जल्दी से मेरा लौड़ा चूसो ताकि मेरा भी रस निकल सके.
उसने झट से बिना कुछ बोले- मेरे लण्ड को पकड़ा और दबा कर बोली- अच्छा.. और मेरे लौड़े को पकड़ कर अपने मुँह में डालकर चूसने लगी।
बीच-बीच में वो अपनी नशीली आँखों से मुझे देख भी लेती थी.. जिससे मुझे भी जोश आने लगा।
और यह क्या.. तभी उसकी बालों की लटें उसके चेहरे को सताने लगी.. जिसे वो अपने हाथों से हटा देती।
तो मैंने खुद ही उसके सर के पीछे हाथ ले जाकर उसके बालों को एक हाथ से पकड़ लिया।
हाय.. क्या सेक्सी सीन लग रहा था.. ओह माय गॉड.. एक सुन्दर परी सी अप्सरा जैसी मेरी माँ मेरे लण्ड के अधीन हो कर..आपका लण्ड चूसे.. तो आपको कैसा लगे.. बिलकुल मुझे भी ऐसा ही लग रहा था।
फिर मैंने दूसरे हाथ से उसकी ठोड़ी को ऊपर उठाकर उसकी आँखों में झांकते हुए.. उसके मुँह में धक्के देने लगा.. जिससे उसके मुँह से 'उम्म्म.. उम्म्म्म.. गगग.. गूँ.. गूँ..' की आवाजें आने लगीं।
इस तरह कुछ देर और चूसने से मेरा भी काम होने के पास आने लगा. मुझे मालूम था की किसी भी टाइम मेरा माल निकल सकता है तो मैंने माँ को मुह को जोर जोर से चोदना शुरू कर दिया. फिर एक जोर की आअह्ह के साथ मेरा माल उसके मुँह में ही छूट गया और वो बिना किसी रुकावट के सारा का सारा माल गटक गई।
हम दोनों माँ बेटा अपने पहले सेक्स से बहुत थक गए थे तो हम दोनों एक दुसरे के साथ लेट गए। हम दोनों ही बिलकुल नंगे थे. तो मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा- अरे माँ तुम तो बहुत माहिर हो लण्ड चूसने में... कहाँ से सीखा?
तो बोली- और कहाँ से सीखूँगी... तुम्हारे पिता भी तुम्हारे तरह ही लण्ड चुसवाने के शौकीन थे. उन्ही से सब सीखा है.!
तो मैं बोला- माँ आप को मेरा आप की चूत को चूसना और चाटना कैसा लगा.?
तो वो बोली- जैसे तुम अच्छे से बिना दांत गड़ाए मेरी चूत को अपने मुँह में भर भर कर चूस रहे थे तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, ऐसा लग रहा था कि तुम बस चूसते ही रहो... मुझे सच में बहुत अच्छा लगा और तुम्हारी उँगलियों ने तो कमाल कर दिया, जैसे तुमने अपनी उंगली नहीं बल्कि मेरे अंदर नई जान डाल दी हो! ठीक वैसे ही मैंने भी सोचा कि क्यों न तुम्हें भी तुम्हारी तरह मज़ा दिया जाये! बस मैंने तुम्हारी नक़ल करके वैसे ही किया और मुझे पता है कि तुम्हें भी बहुत मज़ा आया... पर तुमने मेरी हालत ही बिगाड़ दी थी, मेरी तो सांस ही फूल गई थी।
तो मैं बोला- फिर अभी क्यों किया?
माँ बोली - बेटा तुम्हारे पापा का लौड़ा काफी बड़ा था पर तुम्हारा लौड़ा तो उन से काफी बड़ा है. कम से कम तुम उनसे २-३ इंच लम्बे हो. पर असली चीज है तुम्हारे लण्ड की मोटाई। तुम्हारा लौड़ा तुम्हारे पापा से बहुत मोटा है.इसलिए मुझे उसे मुँह में लेने में समस्या हो रही थी। पर कोई बात नहीं। धीरे धीरे आदत हो जाएगी। अगली बार तुम्हे अधिक मजा आएगा.
मैंने कहा _ माँ तुम्हे लौड़ा चूसने में ज्यादा मजा आया या चूत चटवाने में?
वो बोली- बेटा मुझे दोनों में मजा आया. पर एक बात बोलूं. तुम्हारा लौड़ा ही तुम्हारे पापा से बड़ा नहीं है. असली चीज है की तुम्हारी जीभ भी बहुत लम्बी है. तुम्हारे पापा मेरी चूत चाटते तो थे पर थोड़ा सा ही. असल में उन्हें चूत चाटना अच्छा नहीं लगता था. पर तुमने तो मुझे स्वर्ग में ही पहुंचा दिया. तुम्हारी जीभ लम्बी होने के कारण इतनी अंदर तक जा रही थी की आज तक कभी इतने आगे तक चुसाई नहीं हुई. यह मेरे लिए एक बहुत ही अलग अनुभव था। मैं तो आज बहुत खुश हूँ. क्योंकि तुमने मुझे इतनी मज़ा दिया था जिसे मैं अपने जीवन में कभी नहीं भुला सकती!
मैंने बोला- अच्छा अगर मैं इसी तरह तुम्हें मज़ा देता रहा तो क्या तुम भी मुझे मज़े देती रहोगी?
वो बोली- यह बाद की बात है पर तुमने अपने आखिर में तो मेरे मुंह में इतने जोर से धक्के मरे की सच में मेरे गले में दर्द होने लगा था!
मैंने बोला- अच्छा, अब आगे से ध्यान रखूँगा पर तुम्हें बता दूँ कि आने वाले दिनों में मैं बहुत कुछ देने वाला हूँ।
वो बोली- और क्या?
तब मैंने बोला- यह तो सिर्फ शुरुआत है, और अभी सब बता कर मज़ा नहीं खराब करना चाहता, बस देखती जाओ कि आगे आगे होता है क्या?
कहते हुए मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में दबा कर उसके होंठों का रसपान करने लगा और वो भी मेरा पूर्ण सहयोग देते हुए मेरे निचले होंठ को पागलों की तरह बेतहाशा चूसे जा रही थी, मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं जन्नत में हूँ,
सबसे ज्यादा ख़ुशी की बात तो यह थी एक अब माँ की शर्म पूरी तरह दूर हो चुकी थी और वो चूत लण्ड जैसे शब्द खुल कर बोल रही थी और पूरा मजा ले रही थी.
"....ओह्ह्ह्हह...ओह...." माँ के होंठ धीरे धीरे बुदबुदा रहे थे.
होंठ को अच्छी तरह चूमने के पश्चात मैं जल्द ही अपनी माँ के स्तन पर पहुँच गया.
यहाँ पर अभी भी माँ के हाथ थे. मेरा चेहरा जैसे ही माँ के स्तन के ऊपर रखे हाथों से टकराता है तो वो अपने हाथ हटा लेती है और मुझे अपने स्तन चूमने देती है. मैं फिर से माँ के निप्पल बदल बदल कर चूस रहा था.
माँ मेरे बालों में उँगलियाँ घुमा रही थी.
अपनी चूत चटवाई के उस जबरदस्त सख्लन के पश्चात बिलकुल सुस्त पड चुकी माँ अब अपने जिस्म में कुछ हरकत महसूस कर रही थी.
तकरीबन दस सालो के बाद माँ ने यह परम संतुष्टी प्राप्त की थी इतना मजा माँ को पहली बार मिल रहा था इस आनंद को तो वह भूल ही चुकी थी मगर इतने सालों बाद उनके बेटे ने यह सुख उसे दिया.
निप्पलों को चूसते चूसते मैंने अपनी नज़र अपनी माँ पर डाली जो मेरे बालों में उँगलियाँ फेरते हुए मुझे बेहद प्यार, स्नेह और ममतामई नज़र से देख रही थी.
हम दोनों माँ बेटे की नज़रें मिलती हैं और मैं आगे अपनी माँ के चेहरे की और बढ़ता हु.
माँ भी मेरा चेहरा अपने हाथों में थाम अपने मुंह पर खींचती है. मेरा चेहरा सीधा अपनी माँ के चेहरे पर झुक जाता है
और हमदोनों के होंठ आपस में जुड़ जाते हैं. दोनों प्रेमियों की तरह एक दुसरे को चूम रहे थे. कभी माँ मेरे तो कभी मैं माँ के होंठों को चूस रहा था.
उधर माँ को अपनी जांघों पर मेरा लण्ड ठोकरें मारता महसूस होता है.
बेटे के लण्ड को अपनी योनि के इतने नजदीक पाकर उनके बदन में कामौत्तेजना लौटने लगती है
और उसकी साँसों की गहराई बढ़ने लगती है.
माँ की जिव्हा मेरे होंठो को चाटने लगती है और वो उसे मेरे मुंह में धकेलती है. मैं अपना मुंह खोल देता हु और माँ की जिव्हा मेरे मुख में प्रवेश कर जाती है.
माँ मेरी जीभ को अपनी जीभ से सहलाती है.
मगर मैंने एकदम से उसकी जीभ को अपने होंठो में दबाकर उसे चूसने लगा क्या शहद के जैसा स्वाद था.
"उन्न्न्गग्घ्ह्ह......" माँ मेरे मुंह में सिसकने लगी और वो अपनी कमर इधर उधर हिलाने लगी.
मैं यह समझकर कि माँ क्या चाहती है अपनी कमर को थोडा सा हिलाता डुलाता हु और फिर हम दोनों एकदम से सिसक उठते हैं.
माँ योनि दरार में लण्ड के एहसास को पाकर ठिठक गई थी वो मेरे चेहरे की और देखती है मैं उसी की और देख रहा था मैं सोच मैं पड गया इतनी छोटी योनि में मेरा लण्ड कैसे जाएगा जो ना सिर्फ नौ इंचलम्बा था बल्कि चार इंच मोटा भी था और उनका आगे का टोपा बहोत बडा किसी जंगली आलू की तरह.
वह इस संकरी जगह में कैसे जाएगा.
माँ को बहोत दर्द होगा क्या वह झेल पाएगी मैं अपनी माँ को कोई दर्द नही देना चाहता. अब मैं गहरे सोच मैं पड़ गया
माँ ने मेरी तरफ देखा मुझे किसी सोच में पड़ा देखकर मुझे हिलाकर नजरोसे कहा
"क्या हुआ"?
मैने उन्हें सब बताया तब वह हस पड़ी और उन्होंने कहा
"बेटा कुछ नही होता तुम कुछ मत सोचो, जो होता है वह हो जाने दो "
पर मैन कहा "आपको बहुत दर्द होगा कैसे सह पाओगी तुम"
तब माँ ने कहा "हर औरत यही चाहती है की उनका प्यार करने वाला उसे बहोत सारा प्यार करे, हर नारी को यह दर्द सहना ही पड़ता है, जीवन मे सिर्फ एक बार, हालाँकि मैं तुम्हारी माँ हूँ और बहुत बार तुम्हारे पापा के साथ सेक्स कर चुकी हूँ, पर ठीक है की अब मुझे किसी मर्द के साथ यह सब किये १० साल हो चुके हैं, पर मैं खीरा या मूली आदि से अपना काम चला ही लेती थी तो मुझे अभी भी आदत है. कुछ नहीं होगा इसलिए तुम कोई चिंता मत करो "
मैंने उनकी और देखा तो माँ धीरे से हल्के से सर हिलाती है जैसे मेरे किसी सवाल का जवाब दे रही हो.
मैं माँ के इशारे को पाकर वापिस उठ गया
जब मैं ने माँ की जाँघो पर किस करना शुरू किया तब धीरे धीरे माँ अपने पैर को अलग कर रही थी.
जैसे मैं उपर जाता वैसे उनके पैर एक दूसरे से अलग हो रहे थे.
अब माँ की योनि मेरे सामने थी. माँ की स्मॉल योनि जिसके लिप्स अंदर की तरफ थे सिर्फ एक लकीर दिख रही थी किसी छोटी बच्ची की योनि की तरह थी बिना बालो की गुलाबी रंगत लिए हुये मैंने उँगलिसे लिप्स अलग करके देख तो अंदर से पूरी लाल थी मानो अंदर लिपस्टिक लगाई हो बहोत छोटा सा होल था इसमें मेरा इतना बड़ा लिंग कैसे जाएगा मेरा लिंग तो पूरी तबाही मचाएगा
माँ की योनि पूरी गीली हो चुकी थी. माँ की योनि चमक रही थी.
वो चमक मेरे आँखो को अपनी तरफ अट्रॅक्ट कर रही थी.
...मैं तो आँखो से माँ की चुदाई करने लगा.
माँ की योनि गीली थी जिस से मुझे पहले माँ की योनि को साफ करना था.
मैं ने अपनी जीभ से माँ की योनि को साफ करना शुरू किया.
जब भी मैं माँ के किसी पार्ट को अपने जीभ से टच करता तब मुझे क्या हो जाता
मैं अपने होश खो बैठता. मुझे ऐसा लगता कि इस दुनिया मे माँ और मैं,सिर्फ़ हम दोनो ही हो,जो सिर्फ़ प्यार करना जानते है.
मैं अपनी जीभ से माँ की योनि चाटने लगा. माँ बस एक काम कर रही थी वो था सिसकिया लेना.
एक पत्नी जैसे सुहागरात के दिन अपने पति के साथ चुदाई करते हुए शरमा कर खुल कर सिसकिया नही लेती उसी तरह माँ भी मुझसे शरमा कर सिसकारियों पर कंट्रोल रख रही थी.
पर जो भी था उसमे मुझे एक अलग ही आनंद मिल रहा था.
माँ की बिना बालो वाली गुलाबी योनि अब मैं ने चाट कर साफ कर दी थी.
फिर मैं ने अपनी जीभ को माँ की योनि मे डाल कर माँ को भी आनंद देने लगा. माँ भी अपना पानी छोड़ कर मेरी प्यास बुज़ा रही थी.
मैं ने हाथो से माँ की योनि के होंठ खोल दिए.
फिर मैं आराम से अपनी जीभ माँ की योनि मे डाल कर चाटने लगा खेलने लगा.
माँ की योनि मे मैं जितनी ज़ोर से अपनी जीभ अंदर डालता उतनी ज़ोर से माँ की योनि जीभ को बाहर फेक देती.
जैसे कह रही थी कि मुझे जीभ नही तुम्हारा लण्ड चाहिए. देना है तो लण्ड दो जीभ से मेरा क्या होगा.
जीभ से तो मेरी आग भड़क जाएगी. पर मैं भी कहा हार मानने वाला था,मैं ने भी उसकी योनि मे जीभ डालना जारी रखा.
उसकी टाइट योनि मेरी जीभ को बाहर धकेल देती इस खेल मे मुझे अपना ही आनंद मिल रहा था. साथ मे माँ को भी.
माँ इतनी गरम हो चुकी थी की उसको कुछ भी करना बर्दास्त नही हो रहा था.
फिर ज़्यादा देर करना ठीक नही होता.
मैं ने माँ को आँखो खोलने के लिए कहा. उसने आँखो खोल दी.मैं ने लण्ड को माँ के हाथो मे दिया.
माँ ने एक बार मेरी तरफ देखा और फिर लण्ड की तरफ. फिर लण्ड पे एक किस कर के लण्ड को छोड़ दिया और गर्दन हिला दी.
मतलब अब बस एक काम बाकी था. वो था...ढेर सारी चुदाई
फिर मैं ने माँ के नितम्बो के नीचे पिल्लो रख दिया.
फिर मैं माँ के टाँगो के बीच मे आ गया.
मैं ने लण्ड पे थूक लगा दी. और लण्ड को योनि पर रख दिया. मेरा लण्ड माँ की योनि को प्यार करना चाहता था.
उसको फील करना चाहता था. मैं ने लण्ड वैसे ही रहने दिया. लण्ड और योनि का मिलन होने वाला था.
उस मिलन मे दर्द होने वाला था पर मेरा लण्ड योनि को दर्द देने से पहले उसको प्यार कर रहा था.
दर्द से पहले प्यार...
मुझे कुछ ना करते हुए देख कर माँ ने आँखें खोल कर मुझे आगे बढ़ने को कहा.
इसका मतलब था की मेरे जीवन का वो स्वर्णिम क्षण आ गया था जिस की मैं न जाने कब से इन्तजार कर रहा था.
मैं ने फिर से लण्ड पर थूक लगाया और लण्ड को योनि पर रखा.
और माँ के उपर आ गया.
मैं ने पहले माँ के होंठो पर एक किस किया और फिर मैं ने एक झटका मारा पर कुछ नही हुआ, मेरा लण्ड फिसल गया. फिसलता भी क्यों नहीं. आखिर माँ की चूत थी ही इतनी टाइट और माँ को छोड़ने का मेरा यह पहला ही मौका था.
मैं ने फिर से लण्ड को योनि पर रखा और एक ज़ोर का झटका मारा कि लण्ड का टोपा माँ की योनि मे चला गया.
माँ के मुँह से चीख निकल गयी.
माँ की दर्द भरी चीख सुनकर मुझे ऐसा लग रहा था कि दर्द माँ को नही बल्कि मुझे हो रहा हो.
दर्द माँ को हो रहा था और मेरी आँखो मे पानी आ रहा था.
माँ ने जब मेरी आँखो मे पानी देखा तो उन्होने चीखना बंद किया. और दर्द को बर्दास्त करना शुरू किया.
माँ अपने होंठो को दबा कर अपनी चीख को रोकने लगी.
पर माँ को दर्द हो रहा था.
माँ का दर्द कम करने के लिए मैं अपने होंठ माँ के होंठो पर रख कर चूसने लगा.
जिस से माँ दर्द को भूल कर किस पर फोकस कर सके ताकि दर्द कम होज़ाये.
अभी तो सिर्फ़ टोपा अंदर गया था.
मेरा टोपा बहुत बड़ा था किसी जंगली आलू की तरह और इतने सालों से माँ ने सेक्स नही किया था, ठीक है की उंगली से माँ मजा लेती थी पर आखिर लण्ड तो लण्ड ही उसका और एक ऊँगली का क्या मुकाबला. इसलिए उनकी योनि किसी कुँवारी लड़की की तरह हो गई थी अभी तो सिर्फ टोपा अंदर गया था पूरा लण्ड अभी अंदर जाना बाकी था.
पर मुझे क्या हुआ था कि मैं माँ को दर्द होता हुआ देख नही पा रहा था.
पर माँ को प्यार भी करना था.
उपर से मेरा लण्ड माँ की योनि मे जाने के लिए बेताब हो रहा था.
थोड़ी देर मे माँ शांत हो गयी फिर भी मैं हाथो से स्तन को दबाने लगा. थोड़ी देर मे माँ को पूरी तरह से अच्छा लगने लगा.
मैं ने माँ को इशारे मे पूछा कि अंदर डालु उसने हाँ मे गर्दन हिला दी.
फिर मैं ने एक जोरदार झटका मारा,वो झटका जिसे कोई औरत अपनी ज़िंदगी भर भूल नही सकती, झटका मार कर लण्ड माँ की योनि में अपना रास्ता बनाता हुआ पांच इंच तक अंदर चला गया.
माँ ने बहुत कोशिस की चीख ना निकले पर ये ऐसा झटका था जिस के मारते ही हर औरत की चीख निकल जाती है.
माँ की भी चीख निकल गयी.पर मेरे किस करने से उसकी दबी हुई चीख मेरे मुँह मे दब गयी.
माँ और मेरे भी आँखो से पानी निकलने लगा क्यों कि मैं अपने माँ को कोई भी तकलीफ होते हुए नही देख सकता
उसको सासे लेने की ज़्यादा ज़रूरत थी जिस से मैं ने उनके होंठो को अपने होंठो से आज़ाद किया. पर मैं स्तन को दबाता रहा.
माँ के मुँह से दर्द भरे शब्द निकले. पर माँ ने कंट्रोल करते हुए उन शब्दो को बीच मे रोख दिया.
मुझे पता था कि माँ को दर्द हो रहा है. फिर भी माँ ने मुझे लण्ड बाहर निकालने को नही कहा और अंदर डालने को भी नही कहा.
वो बस मेरे नीचे लेटी हुई अपने दर्द को मुझ पर जाहिर नही होने देना चाहती थी.
माँ मुझसे इतना प्यार करती थी कि उसने आँखो को खोल कर मुझे आँखो से इशारा करके थोड़ी देर रुकने को कहा.
उसे लगा कि अगर मैं भी उस से प्यार करता हू तो मैं उनका इशारा समझ जाउन्गा.
और हुआ भी ऐसा ही मैं समझ गया कि वो क्या कहना चाहती है.
मैं ऐसे ही रुका रहा. मुझे ऐसे देख कर उसकी आँखो मे एक चमक आ गयी. वो मुझे लण्ड को बाहर निकलवाना नहीं चाहती थी. माँ तो चुदाई चाहती थी बस दिक्कत थी तो इतने मोठे लण्ड के दर्द की. माँ भी जानती थी की यह दर्द थोड़ी ही देर का है और थोड़ी ही देर में इसके पीछे पीछे मजा आने वाला है जिसके लिए मैं और मेरी माँ न जाने कितने सालों से तड़प रहे थे।
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#5
मैं ने अपने लण्ड को ऐसे ही रखा.और फिर से माँ के होंठो को चूसने लगा. स्तन को दबाने लगा.कुछ समय के बाद माँ को अच्छा लगने लगा.

उनका दर्द कम हो गया. मैं ने माँ के होंठो को छोड़ दिया.और स्तन को भी...

माँ के चेहरे पर अब दर्द नही था बस प्यार ही प्यार दिख रहा था.

मैं लण्ड को धीरे से बाहर निकाल कर अंदर डालने लगा.धीरे धीरे लण्ड को अंदर बाहर करने लगा. अभी तक पांच इंच लण्ड अंदर था.मैं आराम से दो मिनट तक लण्ड को हिलाता रहा.

माँ बस बिना पलके झुकाए मुझे देख रही थी. क्या पता क्या देख रही थी.

मैं जो प्यार से लण्ड अंदर बाहर कर रहा था.मैं उसे ज़्यादा दर्द नही होने दे रहा था. शायद माँ यही देख रही थी.

मैं लण्ड को बड़े प्यार से माँ की योनि मे डाल रहा था. शायद माँ मेरा यही प्यार देख रही थी.

फिर धीरे धीरे गति बढ़ाने लगा.अब माँ का कुछ दर्द कम हुआ था. पर मैं ने अभी तक पूरा लण्ड अंदर नही डाला था.मैं इंतज़ार करने लगा कि कब माँ की योनि पानी छोड़ेगी.

पांच मिनट तक ऐसे ही चुदाई करने से माँ की योनि ने पानी छोड़ दिया.

माँ की योनि में पानी आ गया था. योनि अब गीली हो गयी थी. लण्ड के लिए जगह बन रही थी. माँ कुँवारी नही थी पर मेरा लण्ड ही बहोत बडा था नौ इंच लंबा और चार इंच चौड़ा और उसका सुपडा किसी जंगली आलू की तरह बडा था और माँ की योनि बहुत छोटी थी किसी छोटी बच्ची की तरह माँ की योनि और मेरे लिंग का कोई मेल ही नही था तो रिझल्ट तो ऐसे ही आना था मेरे लिंग ने माँ की योनि का बहोत बुरा हाल कर दिया था

फिर मैं ने आख़िरी झटका मारा और पूरा लण्ड अंदर चला गया. माँ की दबी हुई दर्द भरी चीख निकल गयी.

मैं माँ का बचा हुआ दर्द स्तन को दबा कर कम करने लगा.

मैं ने माँ से कहा बस हो गया.अब दर्द नही होगा... जितना दर्द होना तो हो गया...पूरा लण्ड अंदर चला गया है..,बस थोड़ी देर रूको सब ठीक हो जाएगा

माँ ने कहा., मुझे दर्द नही हो रहा है.

मुझे पता था कि माँ झूठ बोल रही थी.

मेरे लण्ड से दर्द ना हो ये हो ही नही सकता.

माँ की स्मॉल योनि मे दर्द ना हो ये हो ही नही सकता.

लण्ड अंदर जाने के बाद चीख निकली और दर्द ना हो ये हो ही नही सकता.

फिर भी माँ ने मेरे लिए कहा कि उन्हें दर्द नही हो रहा.

माँ की बात सुन ने के बाद मैं ने लण्ड को बाहर निकाल लिया. माँ के चेहरे पर जो भाव था वो ये बता रहा था कि माँ को कितना दर्द हो रहा है.

मैं समझ गया कि वो मेरे लिए,अपने प्यार के लिए दर्द बर्दास्त कर रही है.

मैं ने लण्ड को धीरे से फिर से अंदर डाल दिया और माँ के स्तन दबाते हुए लण्ड को धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू किया.

लण्ड के हिलने से माँ को दर्द हो रहा था.उन्होने अपने हाथ मेरी पीठ पे रख दिए. जैसे उनको दर्द होता वो अपने नाख़ून मेरे पीठ मे गाढ देती.और कहती कि मुझे दर्द नही हो रहा.

एक तरफ दर्द के वजह से नाख़ून से मेरे पीठ को खरॉच रही थी और दूसरी तरफ कह रही थी कि मुझे दर्द नही हो रहा.

माँ के साथ चुदाई करते हुए मुझे कोई जल्दी नही थी.

मैं हर एक धक्के को महसूस करना चाहता था. मैं ऐसा क्यू कर रहा था मुझे पता नही था.

पर हर एक धक्के के साथ मुझे एक अलग ही आनंद मिल रहा था.

माँ भी अब मेरे धक्को को महसूस करके अपने दिलो दिमाग़ मे ये माँ बेटे की पहली चुदाई फिट कर रही थी.

मैं बड़े प्यार से माँ की चुदाई कर रहा था. आज मुझे क्या हुआ था कुछ समझ नही आरहा था.

ना माँ को जल्दी थी और ना मुझे जल्दी थी. ना माँ मुझसे अलग होना चाहती थी. और ना मैं माँ को अलग होने देना चाहता था

मैं लण्ड को माँ की योनि की गहराई तक अंदर डाल कर धक्के मारता गया. फिर भी उनका दर्द कम नही हुआ.पर मुझे लग रहा था कि उनका प्यार बढ़ रहा है.

चुदाई के बाद मैं माँ को क्या कहूँगा,उनका सामना कैसे करूँगा,इसकी मुझे कोई फिकर नही थी.

बस मैं धक्के मार कर अपने जीवन को सफल कर रहा था.

मैं लण्ड को धीरे से पूरा बाहर निकाल लेता फिर अंदर कर लेता. ऐसा कुछ देर करने के बाद माँ की योनि ने मेरे लण्ड के लिए जगह बना दी.और लण्ड आराम से अंदर जाने लगा.

योनि मे लण्ड के लिए जगह बनने से माँ का दर्द ख़तम हो गया. मैं धक्के लगाता रहा.

अब माँ भी अपने चूतड़ उपर करके मेरा साथ दे रही थी माँ अब सिसकिया ले रही थी पर खुल कर नही ले रही थी. वो मुझसे शरमा रही थी.

बस बीच बीच मे आहह आहह कर रही थी.दस मिनट तक मैं ने दिमाग़ को सेक्स से अलग रख कर दिल को माँ की चुदाई फील करने दे रहा था.

मैं माँ की ऐसे ही चुदाई करता रहा.फिर से माँ ने पानी छोड़ दिया.

फिर मैं ने माँ के पैरो को थोड़ा ज़्यादा फैला दिया और धक्के बहुत धीमी गति से मैं माँ की योनि मे धक्के मार रहा था.

मैं माँ को हर धक्के का मज़ा दे रहा था और ले भी रहा था. कमरे मे हमारे चुदाई का म्यूज़िक गूँज रहा था.

यह चुदाई का म्यूज़िक कब से बज रहा था ये ना माँ को पता था और ना मुझे पता था.

माँ ने ज़्यादा तर समय अपनी आँखो को बंद रखा था.पर माँ बीच बीच मे अपनी आँखो खोल कर मुझे धक्के मारते हुए देख कर फिर से अपनी आँखो बंद कर लेती.

माँ ने फिर एक बार पानी छोड़ दिया.इस लंबी चुदाई मे मुझे भी लग रहा था कि अब मेरा भी होने वाला है.

अब मुझे अपनी धक्के मारने की गति बढ़ानी थी.पर माँ को दर्द ना हो,इसके लिए दिल मुझे इसकी इजाज़त नही दे रहा था. अगर दिल की जगह दिमाग़ होता तो अब तक मैं ने अपनी गति बढ़ा दी होती और मेरा वीर्य माँ की योनि मे होता.

मैं बड़े प्यार के साथ आख़िरी झटके भी धीरे धीरे मार रहा था.

आख़िरी झटके वो भी धीरे धीरे मारने के लिए मुझे मेरे दिल ने बहुत मदद की.

मेरे धक्के की गति अपने आप थोड़ी बढ़ गयी थी शायद उस से माँ ने पता लगा लिया होगा कि मेरा होने वाला.

इस लिए वो अपने चूतड़ उठाकर मेरा साथ देने लगी.

मैंने माँ को प्यार से पूछा - "माँ मेरा होने वाला है. मैं अपना माल कहाँ निकालूँ? क्या अंदर ही छोड़ दूँ. कोई दिक्कत तो नहीं है न?'

माँ भी प्यार से बोली - "हाँ बेटा मेरे अंदर ही अपना माल छोड़ दो. मेरा अब माँ बनने का टाइम निकल चूका है. इसलिए कोई खतरा नहीं है. तुम आराम से अंदर ही अपना वीर्य छोड़ सकते हो. वैसे भी मैं पहली बार अपने बेटे के साथ यह सब कर रही हूँ तो तुम्हारा वीर्य मैं अपने अंदर महसूस करना चाहती हूँ. "

फिर एक आखरी धक्के के साथ मेरा वीर्य निकल गया.

मैं ने अपना वीर्य माँ की योनि मे डाल दिया.

मेरा वीर्य योनि मे महसूस कर के माँ ने आँखो खोल दी और मैं माँ के उपर गिर गया.

थोड़ी देर मैं माँ के उपर ही रहा.

फिर माँ नॉर्मल हो गयी.

अब माँ को अपने बदन मे दर्द महसूस हो रहा था.

क्यू कि मैं अभी तक माँ के उपर था

मुझे इस बात का अहसास हुआ.मैं माँ के उपर से अलग हो गया.

मैं ने अपने लण्ड को माँ की योनि से बाहर निकाल लिया.

मेरा लण्ड तो माँ की योनि से बाहर आने को तैय्यार नही था.

उसे हमेशा के लिए आखिर एक घर मिल गया था और वो वही रहना चाहता था.

दिल पर पत्थर रख कर लण्ड को बाहर निकाल लिया.

मेरे लण्ड पे माँ की चूत का रस और मेरा वीर्य लगा हुआ था.

माँ के योनि पर भी उनका अपना रस और उनके बेटे का वीर्य लगा हुआ था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#6
5

तब माँ ने कहा "ऐसे ही पड़े रो कुछ देर अच्छा लग रहा था" और शर्मा गई फिर मैंने फिर मेरा लिंग अंदर डालकर उनके ऊपर पडा रहा उनको किस करता रहा

और साथ मे उनके स्तन के साथ प्यार से खेलता रहा हम एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे माँ को अब दर्द नही हो रहा था

उनके बदन के पसीने की गंध से मेरा लण्ड फिर हार्ड होने लगा माँ मेरे लण्ड का कड़ापन महसूस करके हैरत से बोली

"ये क्या फिर से"कहते हुए मेरी तरफ हैरत और अभिमान से देखने लगी उनकी उस नजर से मुझे फिर से ताकत मिली और मैं फिर धीरे धीरे अपना लिंग अंदर बाहर करने लगा अभी कुछ देर पहले मैं अंदर झड़ा था इसलीए मेरे वीर्य से पूरी योनि अछि तरह चिकनाई युक्त हो गई थी माँ ने प्यार भरे गुस्से में मुझे देखा और धीरे से कहा

"ये क्या तुम फिर शरू हुये, क्या अब भी दिल नही भरा? अब एक बार हो तो गया है. "

माँ के ऐसे कहते ही मुझे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया कि माँ को कितना दर्द हुआ था और मैं उन्हें आराम देने के बदले फिर सेक्स के बारे में सोचने लगा मैने झटसे अपना लिंग बाहर निकाला और माँ के ऊपर से उतर के अलग हुआ

मुझे यू अपने उपरसे हटते हुए देखकर माँ को हैरत का झटका लगा. उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा

" क्या हुआ तुम हट क्यों गये"

मैंने कहा "सॉरी माँ मुझसे गलती हुई तुम्हे इतना दर्द था और मैं सिर्फ सेक्स के बारे में सोच रहा था मुझे माफ़ करो मुझसे गलती हुई"

माँ ने हस कर मेरी तरफ देखा और कहा

"बेटा तुम मुझसे इतना प्यार करते हो, मैं आज बहुत खुश हूं अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझती हूं जो मुझे अपने साथी के रूप में तुम मिले, और मुझे इतना दर्द नही हो रहा है, मैं तो मजाक कर रही थी, मेरी भी इच्छा थी तुम मुझे प्यार करते रहो "

मैने माँ की आंखों में अपने लिए बेइंतहा प्यार देखा मेरी आँखों मे खुशी के आंसू आगये मैं माँ लिपटकर उन्हें पागलो की तरह चुमने लगा माँ भी मेरा साथ देने लगी मेरा ढीला पड़ा लिंग फिर हार्ड हो गया माँ की दोनो थाइस मेरी कमर से लिपट गई मैने अपना लिंग माँ की रसभरी योनि में फिर से घुसा दिया माँ के मुह से आनंददायक सिसकारी निकल गई मैं फिरसे माँ की चुदाई करने लगा माँ और मैंने का सेक्सुअल पार्ट्स एकदम चिपक चुका था... पूरा लण्ड माँ की योनि में घूसा बैठा था...

मैंने माँ के शोल्डर्स को अपने हाथों में थाम लिया, फेस और लिप्स पर किसिंग करने लगा.. मैं अपने लण्ड को कुछ देर माँ की योनि में घूसा कर रखना चाहता था.. शायद इस तरह से माँ की योनि मेरे लण्ड के साइज की तरह हो जाए.... मैंने पूरा लण्ड धीरे धीरे योनि से बाहर निकाला और फिर झटके से पूरा अन्दर डाल दिया.. माँ दर्द से फिर चिल्ला उठि.. मैंने ने कोई १० - १५ धक्के इस तरह मारे..हर धक्के पर माँ के मुँह से हाय मर गइ..ओह माँ मा..अह निकल रहा था.. लण्ड योनि में अपनी जगह बनाने में लगा था.. धीरे धीरे जब मैंरे लण्ड ने माँ की टाइट योनि में अपनी जगह बना ली तो दर्द कुछ कम होने लगा. फिर मैंने माँ को चोदना शुरू कर दिया.. माँ मेरी बाँहों में पड़ी चुप चाप चुद रही थी.. थोड़ी देर में माँ का दर्द बिलकुल ख़तम हो गया और वो भी अब मेरा साथ देने लगी.. माँ ने मुझे अपने से लिपटा लिया. माँ के सेक्सी लेगस, उन लेग्स पर पायल, और सेक्सी रेड पेंटेड नेल्स चुदाई के टाइम बहुत मस्त लग रही थी. मैंने स्लो और तेज दोनों तरह से रेगुलर माँ की योनि चोद रहा था. माँ भी मुझ को अपने चूतड़ ऊपर उठा उठा कर मेरा साथ दे रही थी.. हमदोनों का सेक्सुअल चुदाई इतना परफेक्ट दीख रहा था मानो हम एक दूसरे के साथ कई सालों से सेक्स कर रहा हो.. दोनों की सेक्सी अवाज़ों से पूरा कमरा गूँज रहा था.

इतने दिनों की प्रतीक्षा में दोनी का संयम अब टूट चुका था मैंने अब अपनी माँ को अब वह सुख दे रहा था जिसके लिए मां न जाने कितने सालो के लिये तरसी थी आज उसे वह सुख मिल रहा था जो वह भूल गई थी उनका पति पिछले १० साल पहले मर चूका था और तब से वह इस सुख से वंचित थी और उसने इसे अपना भाग्य मान लिया था

पर आज उनका बेटा ही उनका पति के स्थान पर उन्हें चोद रहा था, उनका अपने वो बेटा जो न केवल उसे प्यार करता है बल्कि सेक्स में भी बहुत जोरदार है जो उसे वह सुख दे रहा है जिसके लिए वह न जाने कबसे तड़पी थी पर अब उसे वह सुख मिल रहा था वह बहुत खुश थी तभी मेरी आवाज से वह सोच से बाहर आई.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#7
माँ के फेस से अब साफ़ दीख रहा था के उनको भी सेक्स करने में खूब मजा आ रहा है..

रेगुलर धक्को से माँ के चूतड़ बिस्तर में धस चुके थे..उनके सेक्सी टांगों को जो कभी तो मेरे हिप्स पर होते,,, तो कभी हवा में,,, और कभी मैंने उनको अपने शोल्डर पेर रख कर योनि को चोदता.,,, मेरे धक्कों के साथ साथ माँ के पायल की छन छन साउंड भी सुनाई देती. जिस जगह माँ के चूतड़ थे वहां पर से मैट्रेस भी नीचे घुस गया था..

मैं बिना रुके धक्के पर धक्के लगा रहा था. लगा के शायद मेरा लण्ड बहुत जल्दी पानी छोड़ देगा, क्योंकि ज़िंदगी मे पहली बार माँ की योनि का दर्शन किया था, मगर पूरे बीस मिनट हो चुके थे और अब भी रेगुलर मेरा लण्ड माँ की योनि की गहराई नाप रहा था.. मैं चुदाई ग के साथ साथ कभी माँ के स्तन को चूसता तो कभी लिप्स को चूसता.

मेरे चेहरे पर मजे के रंग आ रहे थे माँ भी उन्हें देख कर समझ रही थी की मुझे चुदाई में बहुत आनंद आ रहा है. उन्हें खुद भी बहुत मजा आ रहा था. आखिर यह माँ बेटे की पहली चुदाई जो थी.

मैं अब झड़ने वाला था.. तभी कोई दस धक्कों के बाद मैं गुर्राने लगा..ओर मैंने माँ को अपने बदनसे इस तरह से चिपका लिया के मानो हवा भी पार न हो पाये. आह आह आए माँ में आ रहा हूँ। अब नहीं रुक सकता।. ओह माँ ओह.और एक जटके के साथ मैंने अपने लण्ड का पानी माँ की योनि में डाल दिया..माँ भी साथ साथ चीख उठि.. आआह में भी झड़ रही हु.ओह माँ मर गई. आह

झड़ने के बाद मैं माँके ऊपर ही ढेर हो गया.. माँ के स्तन में मेरा सर पड़ा था. मैं बहुत थक चुका था मगर लण्ड अब भी योनि में ही घूसा बैठा था..दस मिनट बाद हमदोनो के बदन अलग हुये.. मैं माँ के साइड में लेट गया.

मेरी नज़र माँ पर गई तो देखा.. वो बेड पर टाँगे खोले पोजीशन में पड़ी थी.ऐसा लग रहा था के जैसे दोनों सेक्सी टाँगे इतनी जबरदस्त चुदाई के बाद बंद होने का नाम ही नहीं लें रही थी।

माँ का बदन पसीना पसीना हो रहा था.. माँ के पसीने की बूंदे पूरे बदन पर चमक रहीं थी. बाल गीले हो कर चेहरे से चिपक गए थे. मैंने ने खूब जम कर माँ के होंठों को चूसा था, होंठों का साइज खुल कर डबल हो गया था.. पूरे शरीर पर मेरे काटने के निशान थे.

मैंने दोनों टाँगो को और ख़ौल दिया और अपनी जन्मभूमि योनि के दर्शन किये. ओह भगवान. माँ के योनि का रंग बदल कर पूरा लाल हो गया था. लण्ड से चुदने के वजह से योनि के होंठों खुले के खुले ही रह गए थे.. योनि के अन्दर कई इंच तक साफ़ देखा जा सकता था.. मेरा ख़ूनमिश्रित वीर्य भी माँ के योनि से रिस रिस के बाहर आ रहा था.

माँ बेहाल बेड पर पड़ी थी.. ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उनका रेप किया हो. माँ के योनि के नीचे की चादर पूरी गीली और लाल हो चुकी थी,,माँ चुदाई के दोरान ४-५ बार झड़ गई थी और सारा पानी चादर पर ही बह गया.. फिर हम दोनो बारी बारी से बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर आगये और बेडसे बेडशीट बदल कर दोनों बेड पर पड़े थे. फिर मैं ने माँ को अपने बदन से चिपका लिया

फिर मैंने माँ की आँखों में जहाँ मेरे लिए प्यार ही प्यार था को देखा और माँ को कहा

"माँ आपका बहुत बहुत धन्यवाद् है की आप ने मेरी बात को माना. मैं कहता था न कि, पूरी दुनिया ने हम को छोड़ दिया है. हमारा कोई और सहारा नहीं है. बस हम दोनों माँ बेटा ही अब इस जीवन में एक दूजे के सहारे हैं. इसलिए हमे ही एक दुसरे की हर तरह की जरूरत का ध्यान रखें है और इस हर तरह की जरूरत में शरीर की जरूरत भी शामिल है. आज हमने माँ बेटे के संबंधों की आखरी दिक्कत भी दूर कर ली है और अब सारी जिंदगी इसी तरह हूँ एक दुसरे का सहारा बने रहेंगे। ठीक है न?

माँ की आँखों में मेरे लिए अनन्त प्यार दिखाई दे रहा था. वो भी बोली

"बेटा पहले तो मुझे तुम्हारी बात बहुत गलत लगी. पर फिर मैंने भी जब तुम्हारी बात पर ध्यान से और शांति से गौर किया तो मुझे भी लगा की तुम ठीक ही कह रहे हो. अब हम दोनों माँ बेटा को ही एक दुसरे का सहारा बनना है. चलो जो भी हुआ अच्छा ही हुआ. अब बाकि की सारी जिंदगी हम दोनों इसी तरह गुजारेंगे।

दुनिआ के लिए हम माँ बेटा होंगे और घर के अंदर हम प्रेमी प्रेमिका, या जो भी नाम तुम हमारे इस नए रिश्ते को दो. लेकिन बस अब आगे से हमारे जीवन में प्यार ही प्यार होगा। "

यह कह कर माँ मेरे से जोर से चिपक गयी और मैंने भी माँ को अपनी आगोश में जकड लिया और फिर हम दोनों माँ बेटा नींद की वादियो मे खो गये..

हम अब जानते थे की हमारे जीवन से दुःख जा चूका है और आगे खुशियाँ ही खुशियां हैं.

समाप्त।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#8
Good story
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#9
Ma chud jay
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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