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"आआआआआआह.. .... " वह जोर से आह भरने लगा और
फर्र फर्र छर्र छर्र करके उसके लंड ने वीर्य उगलना आरंभ कर दिया। उस गर्मागर्म वीर्य से सिंचित होती मेरी चूत निहाल हो उठी और उसी सुखद पलों में मेरा पुनः स्खलन चालू हो गया।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह अंकल....." मेरे मुंह से आनन्द भरी आह निकल गयी। उस आह में चरम सुख की, पूर्ण संतुष्टि की अभिव्यक्ति थी, जिसे सुनकर घनश्याम निश्चित ही अचंभित हुआ होगा। यह स्खलन करीब एक मिनट तक चलता रहा, झटका ले ले कर, तन मन को तरंगित कर कर के, हिचकोले ले ले कर, उसके वीर्य के एक एक कतरे को मैं अपनी चूत मे जज्ब करती चली गई। अंततः हम दोनों एक दूसरे से चिपक कर निढाल उसी घसियाले स्टेज पर लंबी लंबी सांसें ले रहे थे। इधर उसका विकराल लंड इस वक्त भीगे हुए चूहे की तरह पुच्च से मेरी चूत से निकल गया। मेरी शरारत और उसे उकसाने वाली मेरी गुस्ताखी के लिए मुझे सबक सिखाने के लिए दरिंदगी दिखाते हुए बलात्कार की तरह चोदने पर भी मेरी सुखद आनंद भरी अभिव्यक्ति से वह चकित था। वह मनमाने ढंग से मुझे भंभोड़ कर अपनी काम क्षुधा मिटाया था।
अपनी सांसों पर काबू पाकर मेरी लंडखोरी का कायल हो कर वह हांफते हुए बोल पड़ा, "बहुत जान है रे तुझमें। तू अद्भुत है। मैं समझ रहा था कि तुझे किसी तरह परेशान करके चोदूं, और तेरी शैतानी के लिए दंडित करूं लेकिन...." "लेकिन मुझे तो इसमें भी मजा आ रहा था। एक अलग तरह का मजा। पहली बार मुझे पीड़ित होते हुए भी सेक्स का अद्भुत मजा आ रहा था। सच बोलूं तो आपने मुझे शुरू शुरू में सचमुच डरा ही दिया था लेकिन बाद में जो मजा मिला वह मैं ही समझ सकती हूं। अद्भुत, अवर्णनीय, यादगार, सुखद।" मैं पलट कर उससे चिपक गयी और चूम उठी। इस वक्त हमें समय का भी भान नहीं था।
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lajabab ......................
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"तू सचमुच गजब की लड़की है। खूबसूरत, सेक्सी और दमदार। तुम्हारी प्रतिक्रिया देख कर चकित हूं और खुश भी हूं। पीड़ा के साथ चुदाई का आनंद लेना हर किसी के वश की बात नहीं है। तुम्हारे शरीर के अंदर बहुत क्षमता है। इसको तुम्हें संभाल कर रखने की जरूरत है और इसे निखारने की की जरूरत है।" वह अभिभूत हो कर बोल रहा था।
"मुझे चोदने के बाद आपके मुंह से मेरे लिए इतनी अच्छी अच्छी बातें निकल रही हैं। चोदते समय क्या हो गया था?अभी आप बोल भी रहे हैं तो थोड़ा जरूरत से ज्यादा ही बोल रहे हैं।"
"चोदते समय चुदाई के नशे में जो मन में आ रहा था बोल रहा था और अब जब चुदाई का नशा उतर गया है तो जो बोल रहा हूं खूब सोच समझ कर पूरी गंभीरता के साथ बोल रहा हूं। मजाक नहीं कर रहा हूं।" वह बोला। इधर मैं सोच रही थी कि अभी अभी घनश्याम ने जो कुछ मेरे बारे में कहा था, वह क्या था। क्या वह सचमुच में गंभीरता से बोला था? क्या वह उतना ही सच था जितना उसने कहा था? पता नहीं।
"अब आप मेरे साथ मजाक कर रहे हैं या गंभीरता से कह रहे हैं, इससे मुझे फर्क नहीं पड़ता।" मैं बोली।
"मेरे कथन की सच्चाई तुम्हें आने वाले समय में खुद पता चल जाएगा। ऐसा दुर्लभ व्यक्तित्व ज्यादा दिन छुपता नहीं है। तुम देखती जाओ। मैंने आजतक लोगों को पहचानने में गलती नहीं की है।" वह सचमुच गंभीर था।
"ठीक है ठीक है व्यक्तित्व पहचानने वाले पंडित जी। आपकी बातों से आपका भी बहुमुखी व्यक्तित्व दिखाई दे रहा है।" मैं बोली।
"मैं क्या हूं, यह तुम्हें आगे आगे पता चलता जाएगा। फिलहाल तो तुम्हारी मम्मी को एक फोन लगा दूं।" कहकर वह अपने फोन से मम्मी को बताने लगा कि रास्ते में गाड़ी खराब हो गयी है और वे उसका इंतजार न करके ऑफिस जाने के लिए कोई और व्यवस्था कर लें।
"हां तो अब बताईए कल का मम्मी वाला किस्सा।" मम्मी को फोन करके जैसे ही वह मेरी ओर मुड़ा, मैं उसी तरह नग्नावस्था में अलसाई सी उस घसियाले स्टेज पर लेटी लेटी बोली।
"अब कॉलेज नहीं जाना है?" वह भी अपने कपड़े पहनने की जल्दी में नहीं था। उसका मर्दाना अंग जो मुझे चोदने के बाद भीगे चूहे की तरह सिकुड़ गया था, अब थोड़ा सामान्य अवस्था में आ चुका था।
"आज कॉलेज की क्लास तो यहीं हो गयी। अब क्या कॉलेज जाना।" मैं उसकी नग्न मर्दानगी का दर्शन करती हुई मुस्कुरा कर बोली।
"ठीक है तो सुनो" वह मेरे पास आते हुए बोला, "जहां तुम इस वक्त लेटी हो, ठीक यहीं तुम्हारी मम्मी को मैंने चोदा था और ठीक उसी तरह, जिस तरह इस वक्त तुम्हें चोदा है।"
"हे भगवान, यहीं पर? इसी तरह?" मैं चकित होकर बोली। सोच रही थी कि मां को यह घनश्याम किस तरह पटा कर यहां लाया होगा।
"हां, यहीं पर, इसी तरह।"
"मम्मी राजी खुशी यहां आपके साथ आ गयी थी?"
"बड़े आराम से। राजी खुशी।"
"ऐसे कैसे आराम से? खुद तो अपने मुंह से बोली नहीं होगी?"
"बोली नहीं तो क्या। उनके हाव भाव को समझ नहीं सकता था क्या? मैं बढ़ता गया और वह पसरती चली गई। फिर क्या था, जैसा चाहा वैसा चोदा। जी भर के चोदा और वह मज़े से चुदवाती रही।" वह बोलता चला जा रहा था। "मुझे पूरी बात बताईए। यह समझ में नहीं आया कि मम्मी आपके साथ यहां इस खंडहर तक आने के लिए राजी कैसे हुई?" मैं उत्सुकता में अपनी जगह पर उठ बैठी।
"इसे थोड़ा विस्तार से बताना पड़ेगा। राजी थी तभी तो इस खंडहर में चली आई।"
"तो शुरू से पूरी बात बताईए ना।"
"तो ठीक है तो पूरी बात सुनो" कहकर वह बताने लगा.. ....
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आपकी पूर्व कहानी 'बुजुर्गों की कामिनी' का क्या हुआ रजनी जी ?
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बहुत रोज हो गए हमारी रोज से मुलाकात किए हुए
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गरम रोज (भाग 12)
कल ऑफिस से निकल कर तुम्हारी मम्मी कार की तरफ आ रही थी, उस वक्त तुम्हारी मम्मी बहुत थकी हुई नजर आ रही थी। मैं उसे बड़े गौर से देख रहा था। तुम्हारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। और दिनों के बनिस्पत कल मेरी नज़र बदली हुई थी। थकी थकी सी चाल के बावजूद उसकी चाल में गजब का आकर्षण दिखाई दे रहा था। कल बदली नजरों से देखा तो उसकी चाल मुझे बड़ी मदमस्त दिखाई दे रही थी। उसकी भरी भरी छातियों के उभारों को देख कर अपने आप मेरा लंड खड़ा होने लगा था। इस उम्र में भी उसकी बलखाती कमर गजब ढा रही थी। कार से दो तीन मीटर दूर पहुंच कर अचानक उसके हाथ से उसका बैग नीचे गिर पड़ा। वह हड़बड़ा कर बैग उठाने के लिए मुड़ी और नीचे झुकी। जैसे ही वह नीचे झुकी, मैंने पीछे से उसकी बड़ी-बड़ी गांड़ का दर्शन किया। साड़ी के भीतर भी मानो मुझे उसकी मांसल गांड़ स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। गजब की सेक्सी गांड़ थी रे बाप। बड़ी बड़ी गोल गोल भरी भरी गांड़, नितंबों के बीच की दरार की कल्पना करते ही मेरी हालत खराब होने लगी थी। उस दरार के बीच की आकर्षक छेद में लंड घुसाने की कल्पना मात्र से ही मेरा लंड फट पड़ने को हो रहा था। उफ कल से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था लेकिन कल मेरा लंड एकदम बमक उठा था। मेरा चेहरा लाल हो गया था। आखिर मेरी नज़र को ठीक किसने किया था? तुमने। साला इतनी मस्त औरत मेरे नजरों के सामने थी और मैं अंधा बना हुआ था। तुम्हारी मां भी बड़े आराम से बैग उठा रही थी। उसे अच्छी तरह से पता था कि मैं उसे देख रहा हूं लेकिन ऐसा लग रहा था जैसे उसे इसकी परवाह नहीं हो। सहसा मुझे आभास हुआ जैसे वह खुद ही मुझे अपनी गांड़ का दर्शन करा रही थी। यह अहसास करते ही मेरा लंड बुरी तरह फनफना उठा। इतना सख्त हो चुका था कि मेरी चड्डी में कैद रह कर दर्द करने लगा था।
पहले भी इसी तरह किसी न किसी बहाने से तुम्हारी मां का इसी तरह इशारे से आमंत्रण मिलता था लेकिन मैं कभी उस तरफ ध्यान नहीं देता था लेकिन कल की बात कुछ और थी। मेरी नज़र से पर्दा हट चुका था और सबकुछ साफ साफ दिखाई दे रहा था कि तुम्हारी मां के अंदर क्या चल रहा था।
तुम्हारी मां बैग उठा कर जैसे ही घूमी, उसके ब्लाउज से छलक पड़ने को बेताब बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर मेरी आंखें चुंधिया गयी थीं। उफ, देखने मात्र से मेरी मेरी यह हालत हो रही थी तो उन चूचियों पर हाथ फेरने से मेरी क्या हालत होने वाली थी, यह सोच कर ही मैं गनगना उठा था। उन रसीली चूचियों को अपने हाथों में लेकर दबाने का और मुंह में लेकर चूसने की कल्पना से ही मैं बेताब हुआ जा रहा था। मन तो हो रहा था कि यहीं पटक कर अपने मन की मुराद पूरी कर लूं लेकिन मन मसोस कर रह गया। सब्र का फल मीठा होता है यह तो पता था लेकिन उस वक्त सब्र करना बड़ा कड़वा लग रहा था। वे मेरे सीने पर छुरियां चलाती हुई मदमस्त चाल से कार की ओर बढ़ी तो उसकी नजरें मेरी नजरों से टकराई। मेरी नज़र में उसे जो कुछ दिखाई दिया था और मेरे चेहरे में जो भाव उत्पन्न हुए थे उसे समझ कर चेहरे पर थकान के लक्षण के बावजूद वह हल्के से मुस्कुराई और कार का दरवाजा खोलने लगी। आम तौर पर मैं ही उतर कर कार का दरवाजा खोलता था लेकिन उस वक्त जैसे मुझ पर एक सम्मोहन सा छाया हुआ था। मैं ड्राईविंग सीट पर जड़ हो गया था।
"चलो।" वह सामने की सीट पर ही बैठ गई और दरवाजा बंद की। उसकी आवाज से जैसे मेरा सम्मोहन भंग हुआ और मैं थोड़ा शर्मिंदा हो गया। मैंने कार स्टार्ट की तो तुम्हारी मम्मी ने सीट के पीछे सर टिका कर आंखें बंद कर ली।
"आपकी तबीयत ठीक है ना मैडमजी?" मैंने हिम्मत जुटा कर पूछा। उत्तेजना के मारे मेरी आवाज़ कांप रही थी।
"थोड़ी थकान है और सिर में दर्द है।" वह अपने सर को हल्के हल्के दबाती हुई बोली। मैंने तिरछी नजर से तुम्हारी मम्मी की ओर देखा तो मेरी आंखें उनकी छाती पर टिक गयीं। उनकी छाती से साड़ी का पल्लू गिर गया था जिस पर उनका ध्यान नहीं था या जानबूझकर उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया था। लो कट ब्लाउज़ से उनकी बड़ी बड़ी चूचियां आधे से ज्यादा झांक रही थीं।
"मैडमजी, अगर ज्यादा दर्द है तो रास्ते में कहीं से दवा ले लीजिए।" मैं यूं ही बोला।
"नहीं नहीं, किसी दवा की जरूरत नहीं है। थोड़ा सर दबाने से ही ठीक हो जाना चाहिए। ऐसा तो अक्सर होता ही रहता है।" वह बोली।
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"ओह। वैसे इस प्रकार के दर्द के इलाज का मुझे भी थोड़ा बहुत आईडिया है।" मैं तुरंत बोल उठा क्योंकि तुम्हारी मां के बदन पर हाथ लगाने के लिए मरा जा रहा था।
"अच्छा! अगर ऐसा है तो क्यों ना तुम ट्राई करके देखो।" वह मुझे देखते हुए बोली। इतने पास से उसकी आंखों की भाषा समझना मेरे लिए जरा भी मुश्किल नहीं था।
"घर पहुंचकर ट्राई करूं या... " मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि तुम्हारी मां बोल पड़ी,
"घर पहुंचने में तो आधा घंटा लग जाएगा। यहीं साईड में कार खड़ी करके क्यों नहीं कोशिश करके देखते?" वे शायद मेरी परीक्षा लेना चाह रही थी।
"ओह, लेकिन यहां सड़क किनारे थोड़ा अटपटा लगेगा और पता नहीं लोग देखेंगे तो क्या सोचेंगे। यहां सड़क किनारे करना ठीक नहीं होगा।" मैं बोला।
"ऐसा भी क्या करोगे कि ठीक नहीं होगा? लोग देखेंगे तो देखने दो। मुझे तकलीफ़ है और तुम मेरा इलाज करोगे, इसमें अटपटा लगने वाली क्या बात है?" वह बोली।
"नहीं यहां ठीक नहीं लगेगा। यहां से दो मिनट की दूरी पर एक जगह है, वहां क्यों नहीं चलें? वहां शांति है और जगह भी अच्छी है। आपको पसंद आएगा।" मैं बोला। अब धीरे धीरे मेरा मन बढ़ने लगा था और उसी के साथ मेरी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी। मेरे जेहन में इसी जगह का ख्याल आया था। मुझे पहले से इस जगह के बारे में अच्छी तरह से पता था। मुझे पता था कि यही वो जगह है, जहां मैं तुम्हारी मां को लाकर बिंदास चुदाई कर सकता था। वे खुलकर खुद तो बोलेंगी नहीं कि आओ घनश्याम मुझे चोदो। मुझे ही आगे बढ़ना था और मुझे समझ आ रहा था कि वे भले ही मुंह से नहीं बोलेंगी लेकिन मुझे चोदने से मना भी नहीं करेंगी। ऐसी गदराई, मदमस्त औरत की चुदाई के बारे में सोच सोच कर मैं पगलाया जा रहा था। किसी औरत को चोदने के लिए यह बहुत ही सुंदर, सुनसान और सुरक्षित जगह है और मैं उन्हें लेकर यहीं आ रहा था।
"ठीक है, लेकिन तुम्हें इलाज के बारे में ठीक तरह से पता है ना?" वे सशंकित स्वर में बोली।
"आप चिंता मत कीजिए। मैं इस तरह की तकलीफ को दूर करने के लिए पूरी तरह सक्षम हूं।" कहकर मैं कार चलाता हुआ इस खंडहर की तरफ आ गया।
"यह तो सुनसान खंडहर है। यह जगह मुझे बड़ा अजीब लग रहा है।" वे बोलीं।
"हां, अजीब तो है लेकिन अच्छी जगह है। आप अंदर तो चलिए। जगह पसंद न आए तो कहिएगा।" कहकर मैंने कार रोकी और नीचे उतर आया। वे भी कार से नीचे उतर आईं और मेरे साथ यहां आ गयीं। मेरा शिकार अब मेरे जाल में फंसने को खुद आकुल था, यह मैं अच्छी तरह से जान रहा था।
"अब आप यहां आराम से पैर झुला कर बैठ जाईए।" कहकर मैंने इस मंच की ओर इशारा किया। वे थोड़ी झिझकी लेकिन यहां बैठ गयीं। अब मैं मंच पर चढ़ गया और उनके पीछे जाकर घुटनों के बल बैठ गया और पीछे से उनके सर को दबाना आरंभ किया।
"अब कैसा लग रहा है?" मैं उनके सर को हल्के हल्के दबाते हुए कहा।
"थोड़ा ठीक है लेकिन कुछ खास नहीं।"
"आप आंखें बंद करके रिलैक्स होकर बैठिए फिर देखिए मेरी उंगलियों का जादू।" उन्होंने अपनी आंखें बंद कर लीं। मैं उनके सर को दबाते हुए अपने हाथ को धीरे धीरे नीचे लाने लगा और उनकी गर्दन के पीछे से नसों को दबाते हुए उनके कंधों तक हाथ ले आया।
"आआआहहहहह अब थोड़ा अच्छा लग रहा है।" उनके मुंह से निकला। उनकी नंगी गर्दन ओर कंधों पर मेरा हाथ जादुई ढ़ंग से काम कर रहा था। उनके तन को छूना और इस तरह दबाना, मेरे अंदर की आग को और भड़का रहा था। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरे शरीर में रक्त का संचार बढ़ता जा रहा था। अब मेरे सब्र का पैमाना छलक रहा था। मेरा हाथ धीरे धीरे उनके कंधों से होकर और नीचे जाने को मचल रहा था। अंततः मैंने अपना हाथ बढ़ा ही दिया। जो होगा देखा जायेगा, यह सोच कर मैंने अपना हाथ उनकी छाती की ओर बढ़ा दिया।
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"बदतमीज, इधर कहां हाथ ले जा रहे हो?" वे मानो नींद में बड़बड़ा उठी थी।
"आप की तबीयत ठीक कर रहा हूं। आप एकदम आराम से बैठी रहिए।" कहकर मैंने अपने हाथों को ब्लाऊज के ऊपर से ही उनकी बड़ी बड़ी चूचियों पर रख दिया। उफ भगवान, गजब की चूचियां हैं तुम्हारी मां की। अब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने तेरी मां की चुचियों को सहलाना शुरू कर दिया।
"गलीज आदमी, यह क्या घटिया हरकत कर रहे हो? हाथ हटाओ अपना।" वे नाराजगी जाहिर करती हुई बोली, हालांकि वह लंबी लंबी सांसें लेने लगी थी और अपनी जगह में कसमसाने लगीं। उसकी तरफ से इतनी ही प्रतिक्रिया हुई। विरोध कुछ नहीं। अब मेरा उत्साह बढ़ता चला गया और मैंने अपनी हथेलियों से तुम्हारी मां की चूचियों को दबाना शुरू कर दिया।
"आआआआआआह... शैतान, हटो। यही करने के लिए तुम मुझे यहां ले कर आए हो?" वे उठने का उपक्रम करती हुई आह भरकर बोलीं।
"चिंता मत कीजिए। देखती जाईए मैं आपकी सारी तकलीफ कैसे दूर करता हूं।" अब मेरा लन्ड एकदम सख्त हो कर अंडरवियर फाड़ कर बाहर आने को बेताब हुआ जा रहा था। मैं अब उसे कैसे छोड़ सकता था। मैं उसे जबरदस्ती बैठे रहने को मजबूर कर दिया और इसी तरह हां ना के दौरान उनके ब्लाउज़ का हुक और ब्रा का हुक कब खुल गया, इसका न उन्हें होश था और न ही मुझे। अब मैं उनकी नंगी चूंचियों को अपनी हथेलियों से सहला रहा था। उफ उनकी बड़ी-बड़ी नंगी चूंचियों पर हाथ फिराते हुए मेरी क्या हालत हो रही थी मैं बता नहीं सकता। मैं उन चूचियों को दबाने से खुद को रोकने में असफल होने लगा था।
"ओओओओओहहहहह उफ बस बस। मैं मना कर रही हूं तुम्हें समझ नहीं आ रहा है क्या ? तुम धीरे धीरे उंगली पकड़कर पहुंचा पकड़ने की कोशिश करने लगे?" वे सिसक कर बोली लेकिन उनकी शारीरिक भाषा में मुझे इनकार नहीं दिखाई दे रहा था।
"इतना आगे बढ़ने से आपने मना भी तो नहीं किया। अब थोड़ा और आगे बढ़ने दीजिए ना फिर देखिए आपकी तकलीफ कैसे छूमंतर हो जाएगी।" मैं अब उनकी गर्दन को चूमने लगा था और उनकी बड़ी-बड़ी गुदाज चुचियों से खुल कर खेलने लगा था। इस उम्र में भी उनकी चूचियां काफी कसी हुई थीं।
"तुम मानोगे नहीं? मैंने तुम्हें इतना घटिया आदमी नहीं समझा था।" वे थोड़ी नाराजगी से बोली।
"कहां मैं आपकी तकलीफ दूर करने की सोच रहा हूं और आप हैं कि मुझ पर तोहमत लगा रही हैं। मेरे प्रयास को गलत नजरिए से मत देखिए। मेरा दावा है कि आपको अवश्य अच्छा लगेगा। थोड़ा सहयोग कीजिए।" मैं अब थोड़ी जबरदस्ती पर उतर आया था। मुझे पता था कि उनका मना करना मात्र मुंहजबानी है। वास्तव में तो मन उनका भी मचल रहा था।
"यह तुम गलत कर रहे हो। गलत काम में मुझसे सहयोग करने की बात कैसे कर रहे हो।" वे अपनी जगह में बैठे बैठे कसमसाने लगी थी। मैं जानता था कि उसकी देह में भी आग लग चुकी है। वे झूठ मूठ ही मना करने का दिखावा कर रही हैं।
"जिस काम से अच्छा लगने लगेगा, वह भला गलत कैसे हो सकता है? तरीका गलत लगेगा लेकिन परिणाम बड़ा सुखद होगा। यह मेरा दावा है।" मैं अब खुलकर उनकी चूचियां दबाने लगा था।
"आआआआआआह.... तुम पागल हो चुके हो।" वे सिसकारी निकालती हुई मेरे हाथों को हटाने की व्यर्थ कोशिश करती हुई बोली।
"जी हां, मैं पागल हो चुका हूं और मेरी कोशिश है कि आप भी पागल हो जाईए, तभी आपको आराम मिलेगा और साथ ही आनंद भी। अब आप कृपया चलिए लेट जाइए।" मैं उन्हें उस मंच पर लिटाने लगा। वे थोड़ा विरोध करने लगी या विरोध करने का दिखावा करने लगी जिसके कारण मुझे थोड़ी जबरदस्ती करनी पड़ी परिणामस्वरूप वे बेबस हो कर लेटने को बाध्य हो गईं। मैं समझ गया कि अब मैं उनके साथ कुछ भी कर सकता हूं। यह कहना ग़लत होगा कि वे पूरी तरह मेरे वश में आ चुकी थीं, वास्तव में तो उनकी शारीरिक भाषा चीख चीखकर कह रही थी कि वे मेरे सामने समर्पण करने को पूरी तरह तैयार थी। मैं मौका ताड़कर एक हाथ से उनके पैरों के पास से उनकी साड़ी ऊपर की ओर खिसकाने लगा। इस दौरान मैं लगातार उन्हें चूम रहा था और एक हाथ से उनकी चूचियों से खेलता जा रहा था। धीरे धीरे करके मैं उनकी साड़ी को जांघों से ऊपर तक उठा दिया था और मजे की बात तो यह थी कि वे इतनी मदहोश हो चुकी थीं कि उन्हें अहसास तक नहीं हुआ कि मेरा हाथ उनकी साड़ी के अंदर घुस कर उनकी चूत तक पहुंच चुका था।
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"उईईईईईईई मांआंआंआंआंआं.. .... यह यह कककक्या कर रहे हो? हाथ हटाओ यहां से।" जैसे ही मैंने हाथ से उनकी पैंटी के ऊपर से उनकी चूत को छुआ, वे चिहुंक उठी और बोली। वे अपनी जांघों को सटाने की कोशिश करने लगी लेकिन मैंने अपना हाथ जबरदस्ती उनकी जांघों के बीच रसीली चूत पर रख दिया था।
"मैडमजी, अब इस खजाने को छिपाने या बचाने की कोशिश व्यर्थ है। यही तो वह खुशी का खजाना है जिससे आपको पूरा आराम और सुख दूंगा। अरे मैं भी कितना बेवकूफ हूं जो यह बात आप जैसी खेली खाई व्यस्क स्त्री से यह सब कह रहा हूं। भला यह भी कोई बताने की आवश्यकता है? अब तो आप बस देखती जाईए कि मुझ जैसा ड्राईवर कैसे आपको खुश करता है।" मैं बोलता जा रहा था और धीरे-धीरे उनकी पैंटी की इलास्टिक को पकड़ कर नीचे खींचने लगा।
"जंगली, बदमाश, बदतमीज, तुम यह नहीं कर सकते।" तुम्हारी मां की आंखें अब मुंदी जा रही थी लेकिन मुंह से बड़ी मुश्किल से इतना कहना कह पाई।
"मुझे जंगली कहिए, बदमाश कहिए या बदतमीज कहिए, लेकिन अभी फिलहाल तो मुझसे अच्छा चिकित्सक यहां और कोई उपलब्ध नहीं है। आप विश्वास कीजिए कि मेरी चिकित्सा से आपको भरपूर आराम और सुख मिलेगा, यह मेरा दावा है।" कहते हुए मैं उनकी पैंटी को नीचे खिसकाने में कामयाब हो गया। इस सुनहरे पल में उनकी रसीली चूत का दर्शन करने का लोभ दबा नहीं पाया और झट से उनकी पेटीकोट समेत पूरी साड़ी उलट दी। ओह भगवान, फूली फूली मालपूए जैसी चूत को देख कर तो मैं भौंचक्का रह गया। अपलक कुछ पल देखता ही रह गया। साला घुसा मादरचोद इस जबरदस्त चूत को चोद कर कितना मज़ा लिया होगा। मुझे हरामी घुसा की किस्मत पर जलन होने लगी। साला अगर मेरी बुद्धि में पर्दा नहीं पड़ा होता तो मैं ही पहले चोदने का मजा उठा लेता। खैर देर आए दुरुस्त आए। अब तो मिल ही रही है। आज मुझे जम के चोदना है। यही सब मेरे दिमाग में चल रहा था।
"हट हरामी बेशर्म, यह क्या देख रहे हो?" वे अपनी जांघों को सटाने की असफल चेष्टा करने लगी जिसे मैंने अपने मजबूत हाथों से असफल कर दिया। अब मैं उनपर पूरी तरह हावी हो चुका था।
"सबकुछ तो देख लिया, अब इन कपड़ों का क्या काम।" कहकर उनके विरोध की परवाह किए बगैर मैंने जबरदस्ती उनकी साड़ी और पेटीकोट से भी उन्हें आजाद कर दिया। उफ उनकी मांसल, पकी पकाई रसीली देह का दर्शन करके अंडरवीयर के अंदर मेरे लौड़े का तो दम घुटने लगा था। पूरी तरह टाईट हो कर खुली हवा में सांस लेने को तड़प उठा। अपने लंड की इच्छा का सम्मान कैसे नहीं करता, आखिर इसी शानदार हथियार से तो तुम्हारी मम्मी की रसभरी चूत की कुटाई करनी थी। मैंने पैंट ढीली की और लंड को अंडरवीयर से बाहर निकाल लिया। ओह, ठंढी हवाओं के स्पर्श से मेरे लंड को कितना सुकून मिलने लगा वह बयान करना मुश्किल था। लंड फनफना रहा था।
"हाय राम, कमीने गंदे आदमी, यही गंदा काम करने के लिए तू मुझे यहां लाया था? लाओ मेरे कपड़े। तनिक भी लाज शरम है कि नहीं? यह सरासर मेरे साथ जबरदस्ती है। तुझे पता भी है कि इसका परिणाम क्या होगा? तुम सिर्फ एक ड्राईवर हो और मैं तुम्हारी मालकिन। तुम अपनी औकात भूल गए हो क्या? देखो ठीक नहीं होगा।" वे नंगी पड़ी हुई मेरी गिरफ्त में छटपटा रही थी। मैं जानता था कि यह मात्र दिखावा है। इसलिए अब और रुकना बेकार था।
"परिणाम क्या होगा इसका मुझे बहुत अच्छी तरह से पता है तभी तो इतना आगे बढ़ने की हिम्मत हुई है। जहां तक गंदे काम की बात है तो जहां तक मुझे पता है कि इसी काम के लिए तो औरत और मर्द को बनाया गया है। इसी काम में तो मजा है। जिस काम में मजा है, वह गंदा काम कैसे हो सकता है? ऐसे मजेदार काम को लाज शरम किनारे रखकर ही किया जाता है, यह आपको बताने की जरूरत है क्या ? हां मैं ड्राईवर हूं और आप मेरी मालकिन लेकिन पहले मैं एक मर्द हूं और आप एक औरत। औकात की बात आपने की है तो बता दूं कि अभी मैं अपनी औकात में आया कहां हूं। अभी तो यह शुरुआत है, आऊंगा, अब आऊंगा अपनी औकात में।" मैं बोलता जा रहा था और अपने हाथ से उनकी चूत पर उंगलियां फेरता जा रहा था और साथ ही साथ उनकी जांघों के बीच घुसकर उनकी जांघों को चूमता जा रहा था। ऐसी चिकनी जांघें चूमने लायक ही हैं। वे मेरी गिरफ्त में कसमसा रही थीं और तभी मैंने अपना मुंह उनकी चूत पर रख कर चूम लिया।
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"आआआआआआह ओओओओओहहहहह हरामी कुत्ते यह क्या कर रहे हो ओओओओओहहहहह...... गलीज सूअर के बच्चे" वे सिसकारी निकालती हुई मुझे गालियां देने लगी थीं। उनके मुंह से ये बातें सुनकर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था।
"आपके मुंह से ये गालियां अच्छी लग रही हैं।" मैं बोला। मैं अब उनकी चूत को चाटने लगा था। ओह बड़ा गजब का अहसास हो रहा था। ओह नरम नरम नमकीन नमकीन। चिकनी चिकनी मालपूए जैसी रसीली चूत। जी चाह रहा था चाटता रहूं चाटता रहूं, सिर्फ चाटता क्यों रहूं, खा क्यों न जाऊं? कुछ देर बाद उसी रसीली चूत को चोदने की कल्पना से मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा था। मैं उनकी चूत के ऊपर जो झांट थे उन्हें भी चाट रहा था। चाटते समय मैं जैसे ही उनके भगनासे को अपनी जीभ से छेड़छाड़ करने लगा तो वे तड़प उठीं।
"आआआआआआह उईईईईईईई.....बस बस ओओओओओहहहहह"
मैं समझ गया कि अब उन्हें आराम से चोदा जा सकता है क्योंकि अब वे पूरी तरह समर्पण की मुद्रा में आ चुकी थीं। अच्छी तरह से जांघों को खोल कर पसर चुकी थीं। कसमसा रही थीं। उनकी चूत पानी-पानी हो चुकी थी। अब मैं और समय गंवाना गंवारा नहीं कर सकता था। लोहा गरम हो चुका था। मैं समझ गया कि वे चुदने के लिए बिल्कुल तैयार हो चुकी हैं। केवल मुंह से नहीं बोल रही हैं। मैं उन्हें उसी हालत में छोड़कर खड़ा हो गया। उन्हें इस उत्तेजना की हालत में मेरा अचानक छोड़ देना शायद उन्हें बहुत बुरा लगा और उन्होंने अपनी आंखें खोल दीं कि यह अचानक क्या हो गया। उनकी खुली आंखों के सामने ही मैं पलक झपकते ही मादरजात नंगा हो गया। मैं तुम्हारी मां के दूसरी ओर मुंह करके खड़ा था ताकि उन्हें मेरा लंड दिखाई न दे। कहीं उनकी कल्पना से बहुत बड़ा लंड देख कर भय के मारे उनका विचार बदल न जाए। मैंने सर घूमाकर देखा कि वे मेरी गठी हुई नंगी देह को देख रही थीं। मैं मुस्कुरा उठा। उनकी आंखों में मेरी देहयष्टि के लिए प्रशंसा के भाव थे। मुझे चोदने के कागार पर पहुंच कर अपना लंड दिखाने में कोई आपत्ती नही थी लेकिन उससे पहले अपने लंड का दर्शन करा के सारे किए कराए पर पानी नहीं फिरने दे सकता था। इतनी मेहनत से तो चिड़िया जाल में फंसी थी, उसे जाल से कैसे निकलने देता। उनकी खोजी दृष्टि अब भी मेरे लंड का दर्शन करने को लालायित थीं लेकिन मुंह से बोल कर अपनी अपने अंदर की आतुरता को प्रदर्शित नहीं करना चाहती थीं।
मैं बड़ी चालाकी से अपना लंड छिपा कर फिर से उनकी नग्न देह की ओर बढ़ा और फिर से वही कामक्रीड़ा आरंभ कर दिया। मैं उनकी चूचियों को मसलने लगा और उनकी चूत को चाटने लगा। उनकी उत्तेजना चरम पर पहुंच चुकी थी। वे अपनी जांघों से मेरे सर को दबाते हुए आहें भरने लगीं। अब मैं उनकी चूत को छोड़ कर धीरे धीरे उनकी नाभि की ओर चूमना शुरू कर दिया और फिर पेट पर चूमने लगा। इसी तरह चूचियों को चूमा, चूसा और उनकी गर्दन को चूमते हुए होंठों पर जा पहुंचा। इधर मैं उनके होंठों को चूमने लगा और उधर मेरा लंड उनकी चूत पर जा सटा। मैं धीरे अपना लंड उनकी चूत पर रगड़ना आरंभ कर दिया। कुछ ही देर में उनकी तड़प खुल कर प्रकट हो गयी। वे अपनी कमर उचकाने लगी थीं। मतलब साफ था कि आ अब चोद ले। उन्होंने अपने हाथों से मुझे कसना आरंभ कर दिया था।
तभी एक गड़बड़ हो गई। न जाने कब उनका हाथ नीचे गया और उनके हाथ ने उन्हें जता दिया कि मेरा लंड सामान्य से काफी बड़ा है। उनकी आंखें बड़ी-बड़ी हो गयीं। उनका मुंह खुला का खुला रह गया। आश्चर्य और भय उनकी आंखों में साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था।
"हेएएएएए भगवाआआआआआआन....." उनके मुंह से निकला।
"क्या हुआ मैडमजी?" मैं मुस्कुरा कर बोला। मुझे समझ में आ गया कि मेरे लंड के साईज का आभास उन्हें हो गया है।यह उनकी कल्पना के परे थी।
"तुम्हारा इत्तनाआआआ बड़ाआआआआ! नहीं नहीं, इतनी दूर तक तुम बढ़ चुके हो अब और नहीं। तुम मुझे हलाल करने की नीयत से यहां लाए हो जो कि मैं करने नहीं दूंगी।" उनकी भयमिश्रित आवाज आई।
"चलिए आपकी बातों से इतना तो महसूस हो रहा है कि चुदने से आपको ऐतराज़ नहीं है, है कि नहीं?" मैं बोला।
"तुमने मुझे ऐतराज करने के काबिल छोड़ा है क्या? कमीने कहीं के।" वे बोलीं।
"बहुत बढ़िया। इसका मतलब मैं जो कुछ करने वाला हूं उसके लिए आप राजी हैं। अब आपको सिर्फ भय है मेरे बड़े लंड से, यही ना?" मैं चोदने को मरा जा रहा था और तुम्हारी मां के डर के कारण विलंब से मुझे खीझ होने लगी थी।
"हां।" वह अब भी भयभीत थी।
"किस बात का डर है?" मैं बोला।
"तुम्हारा बहुत बड़ा है। फट जायेगी मेरी। मैं मर जाऊंगी।" वह बोली।
"तो ठीक है। चलिए मैं नहीं करता।" मैं उन्हें छोड़ कर खड़े होने का उपक्रम करने लगा। यह उनके लिए बड़ा विचलित करने वाला समय था। एक तरफ तो उनके तन बदन मे आग लगी हुई थी दूसरी तरफ मेरे लंड का साईज उसे भयभीत कर रहा था। अंततः उनके भय पर उनके तन की आग की विजय हुई और वे मुझसे बेसाख्ता लिपटती जा रही थी।
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bahut hi maze dar update hai rajen bhai
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(18-09-2024, 09:39 PM)saya Wrote: bahut hi maze dar update hai rajen bhai
राजेन भाई मत बोलिए जी, रजनी बोलिए, वासना की पुजारन रजनी, स्त्रीलिंग
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"नहीं नहीं अब ऐसे बीच मझधार में तुम मुझे कैसे छोड़ सकते हो।" वे तड़प कर बोल उठीं।
"तो आप तैयार हैं ना?"
"अब तैयार और न तैयार का कोई मतलब है क्या? अब तो जो करना है जल्दी करो। लेकिन एक बार मुझे अपना दिखा तो दो।" वे बोलीं।
"जरूर जरूर, जरूर देखिए।" कहकर मैंने अपना लंड उनकी आंखों के सामने ले आया।
"बाआआआआप रेएएएएए बाआआआआप इत्तनाआआआ बड़ाआआआआआआ....." वे भौंचक्की रह गयीं।
"जी हां बड़ा तो है लेकिन इतना भी बड़ा नहीं है कि आप नहीं ले सकें। लगे हाथों मैं बता दूं कि आपकी चूत की साईज और गहराई का अंदाजा मुझे अच्छी तरह से हो गया है। मुझे तो लगता है आपकी चूत की गहराई का पूरी तरह इस्तेमाल ही नहीं हुआ है। अपने अंदर के डर के हटा कर आज आपकी चूत की गहराई का पूरा इस्तेमाल करके देखिए, मेरा दावा है कि आपको पूरा मजा मिलेगा। अगर ऐसा न हुआ तो मेरे साथ जो मर्जी आप कर सकती हैं।" मैं उन्हें आश्वस्त करने लगा।
"नहीं नहीं मुझे डर लग रहा है।" वे अपना भय प्रकट करते हुए बोलीं। अब मुझे गुस्सा आने लगा। इधर मेरे बदन में आग लगी हुई थी और चोदने के लिए मरा जा रहा था लेकिन साली हरामजादी तुम्हारी मां अब भी ना नुकुर करने से बाज नहीं आ रही थीं। मना किए जा रही थी।
"चुप। एकदम चुप। साला यहां मेरा लौड़ा चोदने के लिए फटा जा रहा है और मां की लौड़ी साली नखरे किए जा रही है। राजी खुशी मानना लगता है आप औरतें जानती ही नहीं हैं। नहीं चाहती हैं तो छोड़िए चलिए, नहीं चोदता।" मैं नाराजगी जाहिर करते हुए बोला।
"मैं मना कहां कर रही हूं। मैं तो सिर्फ अपना भय प्रकट कर रही हूं।" तुम्हारी मां झट से बोल पड़ी। शायद उन्हें लगा कि मेरी नाराज़गी के कारण इस मुकाम पर पहुंच कर चुदाई कार्यक्रम ठप्प न हो जाए। मेरी धमकी काम कर गयी। अब मैं बड़े आराम से उनकी जांघों को फैला कर उनके ऊपर आ गया अपना लंड फिर से उनकी चूत के ऊपर रगड़ने लगा। मैं जानता था कि इस तरह कुछ देर रगड़ने से वे फिर से उत्तेजित हो कर खुद ही लंड लेने के लिए तैयार हो जाएंगी। इधर मैं उनकी चूत पर लंड रगड़ रहा था और उधर उनकी चूचियों को मसलते हुए उन्हें चूमता जा रहा था। इन सबका परिणाम बहुत जल्द सामने आ गया। तुम्हारी मम्मी की कमर खुद ब खुद जुंबिश लेने लगी। बस और क्या था, मैंने अपना लंड उनकी चूत के मुंह पर सेट किया और जैसे ही उनकी कमर ऊपर की ओर उछली, मैंने भच्च से अपना लंड पेल दिया।
"उई मांआंआंआंआंआं.......मर गई रे बाआआआआप ओओओओओहहहहह......" वे चीख पड़ी। दरअसल मैंने एक ही धक्के में अपना आधा लंड उसकी चूत में घुसेड़ दिया था। मैं ने जब तेरी गांड़ मारने के बाद घुसा का लंड देखा था तभी मुझे अहसास हो गया था कि उसका लंड भी कम दमदार नहीं है और उस लंड से भी चुद चुकी तुम्हारी मां का चीखना मुझे अचरज में डाल रहा था। निश्चित तौर पर मेरा लंड उसकी तुलना में कहीं ज्यादा लंबा और मोटा होगा तभी तो तुम्हारी मां की हालत बुरी हो रही थी। करीब चार पांच इंच तो जरूर अंदर घुस गया था शायद। मेरा लंड उसकी चूत की संकीर्ण गुफा को चीरता हुआ (चीरता हुआ इसलिए कह रहा हूं क्योंकि शायद मेरे लंड की मोटाई उनकी चूत की गुफा की तुलना में कुछ ज्यादा ही था, इसका अंदाजा मुझे इसलिए हुआ क्योंकि उसकी चूत मेरे लंड पर कस गई थी) प्रविष्ट हुआ था। तुम्हारी मम्मी दर्द से छटपटा रही थी लेकिन मुझे तो मेरी मंजिल मिल गई थी, बस एक धक्का और, फिर मेरा पूरा लन्ड उनकी चूत में समा जाना था। मैं ने उन्हें कस कर थामा और एक और करारा धक्का लगा दिया और लो, हो गया किला फतह।
"आआआआआआह मर गई हरामी कमीने कुत्ते, निकाल निकाल ओओओओओहहहहह..... " वे और जोर से चीख पड़ी। उनकी दर्दनाक चीख उस खंडहर में गूंज उठी। वे तड़प रही थी लेकिन मैं उसे उसी अवस्था में दबोच कर स्थिर हो गया था।
"चुप चुप चुप..... " मैं बोलने लगा।
"नहीं नहीं आआआआआआह कैसे चुप रहूं हरामजादे, निकाल निकाल अपना ओह" वे लगातार चीखी जा रही थीं।
"निकाल लूं।" मैं बोला।
"हां।" वे बोलीं।
"ठीक है।" कहकर मैंने अपना लंड बाहर खींच लिया। अचानक ऐसा होने से उन्हें पीड़ा से थोड़ी राहत तो जरूर मिली थी लेकिन चुदाई की चाहत उन पर हावी हो चुकी थी जिसके कारण वे मुझे अभी भी जकड़े हुए थीं। इस तरह आधी अधूरी चुदाई कितनी पीड़ा दायक होती है यह वही बता सकता है जिसके बदन में चुदाई की आग भकभका कर भड़क रही हो। यह ऐसा अहसास है जैसे प्यास के मारे गला सूखने वाले के सामने से पानी का ग्लास हटा लिया जाए। हां पानी थोड़ा कड़वा था लेकिन प्यासे को पानी के उस थोड़े कड़वापन की परवाह क्यों होती।
"नहीं नहीं इस तरह आधे अधूरे मत छोड़ो प्लीज़।" तुम्हारी मम्मी तड़प कर बोलीं। वे मुझे जोर से पकड़ रखी थीं।
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(19-09-2024, 09:30 AM)Rajen4u Wrote: राजेन भाई मत बोलिए जी, रजनी बोलिए, वासना की पुजारन रजनी, स्त्रीलिंग
Sorry Rajni Ji
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