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भाग - 29
साक्षी ने जो कहा यहीं सच था। श्रृष्टि जब भी राघव को नजरंदाज कर देती या फ़िर कोई कड़वी बातें कह देती थी उसके बाद वो खुद को कोसती रहती थी और आंखों से नीर बहा देती थी। ऐसे करते हुए कई बार पकड़ी भी गई। पकड़े जानें पर अपने सामने मौजूद वस्तु का बहाना बनाकर टाल देती थीं।
आज जब साक्षी ने उसकी झूठ को पकड़ लिया और उसके हाल-ए-दिल बयां कर दिया तब श्रृष्टि खुद को रोक नहीं पाई और साक्षी से लिपट कर फाफक पड़ी फ़िर रोते हुए बोलीं...साक्षी तू सही कह रहीं हैं सर के साथ जब भी बूरा वर्ताव किया। प्रत्येक बार मुझे उनसे ज्यादा तकलीफ हुआ बहुत ज्यादा तकलीफ हुआ फिर भी सहती रहीं।
कुछ देर श्रृष्टि को रोकर जी हल्का करने दिया। जब श्रृष्टि कुछ संभली तब साक्षी बोलीं... ये आशिकी का बुखार भी बड़ा अजीब होता है जब चढ़ती है सहन शक्ति बढ़ जाती हैं। वहा राघव सर तेरी बेरूखी सहकर भी हंस रहें थे मुस्कुरा रहे थे और यहां तू उनसे बेरूखी दिखाकर कुढ़ती रहती थी। तू जानती हैं। इस मामले में शिवम भी कुछ कम नहीं हैं। बेचारे को न जानें मैंने कितनी कड़वी बातें सुनाया, कितना डांटा बिना एक लफ्ज़ बोले सब सहता रहा। आखिर सहता नहीं तो क्या करता उस पर भी आशिकी का भूत सवार था और मुझे प्यार जो करता हैं। मुझे आज समज में आता है उस शिवम् की स्थिति के बारे में दुःख भी बहोत हुआ अपर अब क्या करू ???
कहते है जब कोई आहत हो या चोटिल हों तब ध्यान भटकने के लिए कुछ ऐसी बातें कह दो जिसकी अपेक्षा उसने कभी किया न हों जिससे उसका ध्यान कुछ पल के लिए भटक जाता है। बिल्कुल वैसा ही श्रृष्टि के साथ हुआ। जो अभी तक आहत थी। साक्षी का कथन सुनकर श्रृष्टि अचंभित हों गई और साक्षी से अलग होकर एक टक बिना पलके झपकाए देखने लगी। उसे ऐसा करते देखकर साक्षी बोलीं...क्या हुआ तू मुझे ऐसे क्यों देख रही है? तुझे क्या लगता है प्यार सिर्फ तू और राघव सर ही कर सकते हैं। बाकी कोई नहीं कर सकता हैं।
श्रृष्टि... ऐसा नहीं है प्यार तो सभी कर सकते हैं ताज्जुब की बात ये है की हिटलर को भी प्यार होता है। प्यार पर किसी का मालिकाना हक थोड़ी न है। मुझे तो बस इसलिए झटका लगा की उसने कभी किसी को आभास ही नहीं होने दिया की उसके मन में ऐसी कोई बात है।
साक्षी... बड़ा छुपा हुआ आशिक है। मुझे भी उसकी आशिकी भा गई। अब मैं भी प्यार की दरिया में इश्क का नाव लिए उतर गई रे।
श्रृष्टि... अच्छा तो बता न ये कब और कैसे हुआ?
साक्षी... कब कैसे ये भी जान लेना पर पहले मुझे चाय पिला और जो मैं जानने आई हूं एक एक वाक्य सच सच बता देगी तब ही मैं अपनी बताऊंगी।
श्रृष्टि को समझते देर नहीं लगी की साक्षी क्या जानने आई है इसलिए चुप्पी सद लिया और पलट गई। वह चाय उबालकर गिर चुका था तो साफ सफाई करके दुबारा चाय चढ़ा दिया। चाय बनते ही दो कप में डालकर बहार आ गई और बैठे एक कप साक्षी को पकडा दिया फिर दुसरा कप खुद ले लिया। चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी बोलीं... श्रृष्टि चाय तो तूने बड़ा बेहतरीन बनाया हैं। अब उतनी ही बेहतरीन तरीके से वो बता जो मैं जानना चहती हूं।
श्रृष्टि... बताना ज़रूरी हैं।?
साक्षी... हां ज़रूरी है।
कुछ देर की चुप्पी छाया रहा। इतने वक्त में श्रृष्टि के मस्तिस्क में विचार चलता रहा फ़िर चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं…सर से मेरी बेरूखी की वजह सिर्फ उनकी शादी हैं।
इतना बोलकर श्रृष्टि नज़रे चुराने लग गई और साक्षी बोलीं... झूठ सफेद झूठ क्योंकि राघव सर की शादी की बात झूठी थी। यह बात मैंने ही फैलाया था। ये बात मैं तुझे बता चुकी थी और क्यों फैलाया था यह भी तुझे बता चुकी थी फ़िर भी तू उनसे बेरूखी दिखाती रहीं। तो जाहिर सी बात है वजह दूसरी हैं। अब मुझे वहीं दूसरी वजह जानना हैं।
यह सुनकर श्रृष्टि नज़रे झुका लिया और मूल वजह बताने में हिचकिचने लग गई। यह देखकर साक्षी बोलीं...श्रृष्टि राघव सर से मुझे इतना तो पता चल गया कि तू बीती घटनाओं को बताकर सहानुभूति पाने वालो में से नहीं है यह बात तूने खुद राघव सर को बोला था लेकिन अब मामला सहानुभूति की नहीं बल्कि दो दिलों का हैं जो एक दुसरे से बहुत प्यार करते हैं मगर उसी एक वजह के कारण तू आगे कदम बढ़ाने से डर रहीं हैं।
श्रृष्टि... वो वजह मां है।
"आंटी पर क्यों?" चौकते हुए बोलीं
श्रृष्टि... तू मां सुनके इतना चौकी क्यों?
साक्षी... मैं तो बस ऐसे ही चौक गई थी अब तू ये बता आंटी वजह कैसे हों सकती हैं?
श्रृष्टि... मां नही मां के साथ घटी एक घटना मूल वजह हैं।
साक्षी...यार तूने क्या मुझे पागल समझा है कभी कहती है आंटी ही वजह है कभी कहती है उनके साथ घटी एक घटना वजह हैं। यार जो कहना है ठीक ठीक बता यूं मुझे शब्दों में न उलझा।
श्रृष्टि... बात उस वक्त की है जब मां की शादी नहीं हुई थी और मां एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हुआ करती थी। उस वक्त मां की मुलाकात दक्ष नाम की एक शख्स से हुआ जो कि मेरा बाप हैं। दोनों की मुलाकाते दिन वा दिन बढ़ती गई और मां को उनसे प्यार हों गया। शुरू शुरू में मां उनसे कतराती थीं लेकिन एक दिन पापा ने खुद मां को प्रपोज कर दिया। मां तो पहले से ही उनके प्यार में डूबी हुईं थी इसलिए उन्होंने हां कर दिया।
जब बात शादी की आई तो पापा टाला मटोली करने लग गए। सहसा एक दिन वो खुद से शादी को मान गए। जब ये बात नाना नानी को बता दिया गया। तो उन्होंने मना कर दिया क्योंकि वो रूढ़ी वादी सोच के थे और प्रेम विवाह के सख्त खिलाफ थे।
"अजीब ख्यालात के लोग है। जिन्होंने प्रेम का पाठ पढ़ाया उनकी अर्चना करते हैं। वखान सुनाते हैं और खुद भी सुनते है लेकिन जब वही प्रेम उनके बच्चे करते हैं तो उनकी रूढ़ी वादी सोच आड़े आ जाती हैं।" बात काटते हुए साक्षी बीच में बोलीं
श्रृष्टि…इन्हीं लोगों को ही दोहरा चरित्र वाले कहते है। ये दिखावा कुछ ओर करते है और इनके मन मस्तिष्क में कुछ ओर ही चलता रहता हैं। खैर छोड़ इन बातों को तू आगे सुन... बहुत मान मुनावल किया गया। मगर नाना नानी नहीं माने तब पापा के कहने पर दोनों ने भागकर शादी कर लिया। यहीं एक गलती मां से हों गई। खैर शादी को साल भर बीता ही था की मां को पता चलने लग गई कि पापा भी दौहरे चरित्र वाले है वो जैसा दिखते है वैसा नहीं हैं।
पापा एक छोटा मोटा बिजनेस मैन थे और इनकी आकांक्षा बहुत बडी थीं। पापा मां को ताने देते थे कि उन्होंने सिर्फ उसने शादी इसलिए किया ताकी वो नाना नानी से मदद लेकर अपना व्यापार बड़ा कर सके मगर भागकर शादी करने की वजह से नाना नानी ने मां से सारे संबंध तोड़ लिए और उनकी मनसा धरी की धरी रह गई।
मां ने बहुत कोशिश किया कि उनका वैवाहिक जीवन ठीक चले इसलिए उन्होंने नाना नानी से बात करने की बहुत कोशिश किया मगर उनकी सारी कोशिशे विफल रहीं। इस बीच मैं भी दुनिया में आ चुकी थी पर मेरे आने के बाद भी पापा में कोई बदलाव नहीं आया और जब मैं लगभग तीन या चार साल की थी तब पापा ने मां के सामने डाइवर्स पेपर रख दिया। पेपर देखकर मां बोलीं कि आपके आकांक्षा के आगे मेरा प्यार इतना क्षिण हो गया कि आप मुझे डाइवर्स देने पर आ गए। मेरे बारे में नहीं तो कम से कम हमारी बेटी के बारे में सोच लेते। तब पापा बोले मुझे तुमसे कभी प्यार था ही नहीं मुझे तो बस तुम्हारे बाप की थोड़ी सी दौलत चहिए था जब वो मुझे नहीं मिल रहा तो भला मैं तुम्हें क्यों झेलूं वैसे भी मैंने मेरा इंतजाम कर लिया हैं तुम्हें डाइवर्स देकर उससे शादी करके उसके बाप की अपार संपत्ति का मालिक बनकर मौज करुंगा।
और हां ये श्रुष्टि मेरी ही है उसका कोई प्रमाणपत्र तो है नहीं
मा ने अपने चरित्र पर लांछन लेते हुए भी मां मनाने की बहुत जतन किया बहुत दुहाई दिया पर पापा नहीं माने अंतः मां ने डाइवर्स पेपर पे हस्ताक्षर कर दिया और निकल आए उस वक्त मां का मन किया की आत्महत्या कर ले लेकिन मेरी सुरत देखकर वो ये भी नहीं कर पाए आखिर करते भी तो कैसे मां इतनी निष्ठुर थोड़ी न थी जो मुझे इस दुनिया में अकेले छोड़कर चली जाती।
बाद में मां नाना नानी के पास भी गए पर उन्होंने ये कहकर मना कर दिया कि उनके लिए मां मर चुकी है। नाना नानी कि बात न मानकर मां ने जो गलती किया उसकी सजा मां को मिल रहीं थीं और मां के भाग जानें की वजह से समाज में जो उनकी किरकिरी हुआ था उसके लिए मां से कोई वास्ता नहीं रखना चाहते थे इसलिए उन्होंने मां को उनके हाल पर छोड़ दिया।
तब मां वो शहर छोड़कर यहां आ बसी और यहां एक कॉलेज में जॉब करना शुरू किया फिर मुझे पल पोसकर इस काबिल बनाया की मैं खुद के दाम पर दुनिया के कंधे से कंधा मिलाकर चल पाऊं। अब तू ही बता न, मां ने कौन सी गलती किया जो उन्हे ऐसी सजा मिली सिर्फ इतना ही न की वो एक दोहरे चरित्र वाले इंसान से प्यार किया। हां मानती हूं मां को भाग कर शादी नहीं करना चाइए थी जो उनकी सबसे बडी गलती थी। या शायद उनका अंधा प्रेम उनसे ये सब करवा दिया
मुझे सिर्फ इस बात का डर है कि सर भी दोहरे चरित्र के न हों और मुझे भी ऐसा कोई कदम उठाना पड़े जो मां ने उठाया था। इसलिए मैं खुद को बहुत रोकना चाहा मगर उनके भाव भंगिमा देखकर न जाने कैसे वो मेरे दिल में जगह बना लिया मैं समझ ही नहीं पाई और जब तूने शादी की झूठी खबर दिया तब मैं बहुत आहत हुई थीं और मां के समझाने पर मैं खुद को सामान्य कर लिया फिर खुद को आगे बढ़ने से रोकने के लिए सर के साथ बेरूखी वाला सलूक करने लग गइ। उससे सर जितने आहत होते थे उससे कहीं ज्यादा मैं आहत होती थी।
जारी रहेगा...
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भाग - 30
श्रृष्टि के एक सवाल ने साक्षी को विचाराधीन कर दिया। दोषी कौन है मां, बाप या फिर नाना नानी कुछ देर गहन विचार के बाद साक्षी बोलीं...यार तूने जो किस्सा सुनाया उसे सुनने के बाद मेरे समझ में नहीं आ रहा हैं कि मैं किसे दोषी मानूं कभी लगता है तेरा बाप दोषी हैं कभी लगता तेरी मां दोषी हैं कभी लगता है तेरे नाना नानी दोषी है कभी तो ऐसा लगता है जैसे तीनों ही अपने अपने जगह दोषी हैं।
श्रृष्टि…तू सही कह रहीं है कौन दोषी है ये कह पाना असम्भव है। पता हैं मां खुद को दोषी मानती है और कहती है वो ऐसे दोहरे चरित्र शख्सियत वाले इंसान से प्यार न करती तो ऐसा कभी नहीं होता।
सब से बड़ी दुःख की बात ये है की उनकी भरी जवानी में उन्हों ने मेरी वजह से दूसरी शादी की नहीं सोची या फिर उनका एक अनुभव ने उन्हें ये करने से रोक के रखा जो भी है पर एक स्त्री या फिर पुरुष एक सही उम्र के पड़ाव पर दोनों को एक दुसरे की जरुरत होती है तुम समज सकती हो मै क्या कह रही हु ? उनका ये उपकार है मेरे पर और उन्हों ने अपनी जवानी मुज पर कुर्बान कर दी
कभी कभी सोच के ही डर लगता है अगर मेरे साथ भी ऐसा हुआ तो ????????
साक्षी…यार ये आंटी भी अजीब ही सोचती है भला वो अकेले कैसे दोषी हुइ। प्यार करना कोई गुनाह थोड़ी न है। हां उनसे गुनाह बस इतना हुआ की उन्होंने घर से भागकर शादी किया और प्यार ऐसे शख्स से किया जिसे उनसे प्यार था ही नहीं इसमें तेरा बाप भी कम दोषी नहीं है जब वो जान रहें थे कि तेरे नाना नानी राजी नहीं है। फिर उन्हें तेरे मां से प्यार था ही नहीं तो भाग कर शादी करने का विचार ही नहीं करना चहिए था। और तुम्हारी मा को भोग ना सही बात नहीं थी एक स्त्री की भावनाओं से खेलना मतलब वो स्त्री की जिंदगी से खेलना या फिर उसकी ह्त्या के बराबर है.......तेरे नाना नानी भी कम दोषी नहीं है उन्हें जब पता चला की बेटी किसी से प्यार करती हैं तो मान लेना चाहिए था और लड़के को परख लेते अगर गलत होते तब तेरी मां को समझा देते तो शायद ऐसा नहीं होता। तुझे क्या लगता हैं?
श्रृष्टि... मुझे लगता हैं तीनों में से कोई दोषी नहीं है अगर कोई दोषी है तो वो है परिस्थिति शायद उस वक्त कोई ऐसी परिस्थिति बनी होगी जिसके कारण मां और पापा मिले होंगे। उनकी मुलाकाते बढ़ती गई और शायद तब पापा जानें होंगे कि मेरे नाना नानी काफी ज्यादा धन संपन्न है तब शायद उनके मन में लालच ने जन्म ले लिया होगा और उनका मूल मकसद मां को पाना हो गया होगा फ़िर नाना नानी के मना कर देने पर परिस्थिति उनके विपरीत बन गइ और परिस्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने भागकर शादी करने की योजना बनाया होगा मगर शादी के बाद भी परिस्थिति उनके पक्ष में नहीं बना तब शायद किसी परिस्थिति के चलते दूसरी महिला से मिले फिर सब परिस्थिती के भेट चढ़ती गई और मैं भी उसी परिस्थिती का शिकार बन गईं। या फिर उस परिस्थिति का फल स्वरुप हु
साक्षी... मुझे नहीं लगता की सिर्फ परिस्थिती ही दोषी हैं फ़िर भी एक बार को तेरा कहा मान लिया जाएं तो तू कैसे परिस्थिति की शिकार बनी देख श्रृष्टि तेरा बाप और नाना नानी ने जिन दोहरे चरित्र शख्सियत का प्रमाण दिया हैं। उनके जैसा राघव सर को मान लेना न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राघव सर को बहुत वक्त से मैं जानती हूं और वो जैसा है वैसे ही दिखते हैं।
श्रृष्टि... सर के बारे में जो तू कह रही हैं। वो मुझे भी सही लगता हैं पर जरा सोच जब उनके घर वालों को पता चलेगा कि मैं एक तलकसुदा महिला की बेटी हूं जिसके मां बाप खुद उससे ताल्लुक नहीं रखते तब क्या होगा।
साक्षी... आंटी का तलाकसुदा होना तेरे और राघव सर का एक दूसरे से दूर होने का कारण नहीं बनता और बनना भी नहीं चाहिए क्योंकि राघव सर के पापा ने भी दो शादी किया है यह बात तू भी जानती हैं और पुरा शहर भी जानता हैं।
श्रृष्टि...उनके दूसरी शादी करने के पीछे मूल कारण उनके पहली पत्नी का मौत है पर मां के मामले में ऐसा कुछ नहीं हैं। मां तलाक सुदा हैं और बहुत सालों से अकेले रह रही हैं। अकेली महिला का चरित्र चित्रण समाज के ठेकेदार अपने अपने सहूलियत के अनुसार करते हैं। कल को मेरे कारण उनके परिवार वाले मां पर टिका टिप्पणी करे ये मुझे सहा नहीं जाएगा इसलिए मेरा उनसे दूर रहना ही बेहतर हैं।
इतना कहकर श्रृष्टि ने आंखें मिच लिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया ये देख साक्षी हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर श्रृष्टि का मुंह खुद की ओर घुमा कर बोलीं... श्रृष्टि क्या तू सर से दूर रह पाएगी सिर्फ कहने भर से तेरी आंखें भर आई।
श्रृष्टि... नहीं जानती क्या करूंगी ये भी नहीं जानती मेरे किस्मत में क्या लिखा हैं मेरी छोड़ तू अपनी बता।
साक्षी... मैं तो अपनी बता ही दूंगी लेकिन मै अब तुजे एक गारंटी देती हु की तेरे किस्मत में राघव सर ही लिखा है ये मैं सुनिश्चित करके ही रहूंगी। चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े और कुछ भी का मतलब कुछ भी
अब ये साक्षी पहले जैसी नहीं है और ख़ासकर तेरे साथ और आंटी के साथ जब मैंने आंटी के बारे में जाना |
श्रृष्टि... सुनिश्चित करेंगी कहीं तू...।
"हां मैं राघव सर को सब बता दूंगी।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए साक्षी बोलीं
श्रृष्टि...तू ऐसा बिल्कुल नहीं करेगी तुझे मेरी कसम है अगर तू मुझे दोस्त मानती है तो तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता जो भी मैंने तुझे बताया इसका एक अंश भी तू सर को नहीं बताएगी।
साक्षी...तू मुझे तो वास्ता देकर रोक लिया मगर ऊपर जो बैठा है न इस श्रृष्टि की रचायता उसने जरूर तेरे लिए कुछ अच्छा सोच के ही रखा है और शायद उस ओर कदम बड़ा भी चुके होंगे बस सही वक्त आने का इंतेजार करना हैं।
श्रृष्टि...जो भी सोचा होगा वो मेरे पक्ष में तो नहीं होगा फ़िर भी तू कहती है तो प्रतीक्षा भी करके देख लूंगी अच्छा तू बैठ मैं दो कप चाय और बना लाती हूं फ़िर चाय की चुस्कियां लेते हुए तेरी प्रेम कहानी भी सुन लूंगी।
साक्षी...सिर्फ चाय ही बनना चाय के बहाने आंसू बहाने न लग जाना।
बिना कुछ कहें हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर चाय बनाने चली गईं।
इस बिच माताश्री भी आ गई तो साक्षी ने बूम लगाईं श्रुष्टि अब तीन कप चाय आंटीजी आ गई है
अंदर से श्रुष्टि हा ठीक है
और आंटी से बाते करने लगी
थोड़ी बात चित के दौरान माताश्री ने जान लिया की साक्षी अब सब जानती है
थोड़ी ही देर में दो काफ चाय लेकर लौटी और चाय की चुस्कियां लेते हुए साक्षी को उसकी प्रेम कहानी सुनाने को बोला।
साक्षी ने एक बार माताश्री के सामने देखा तो माताश्री बोली क्या मुझे जान ने का अधिकार नहीं है या फिर मै मा ज्यादा हु और दोस्त कम हु |
साक्षी “ नहीं आंटी आप से अब क्या छुपाना जो है सब सामने है या होगा “
माता श्री “ तो अब मुझे तेरी प्रेम कहानी बाद में जानना है सब से पहले तू अपने बारे मे बता क्यों की तुम हमारे बारेमे सब जानती हो पर हम तुम्हे सिर्फ नाम से ही जानते है और कुछ नहीं “
साक्षी “ मेरी कहानी या मेर एबारेमे में कुछ ज्यादा रोचक नहीं है आंटी “
जो भी हो सराहने वाली कोई बात होगी तो सराहेंगे और डांटनेवाली बात होगी तो जरुर डातुंगी जो भी है बस बता भी “
साक्षी ने शुरुआत में तो टाल ने की की पर दोनों मा बेटी के सामने हार गई
बने रहिये
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अब साक्षी की जुबान से
साक्षी ने बोलला शुरू किया
देखो आंटी मै ज्यादा डीप में तो नहीं बताउंगी पर ऊपर ऊपर से बता देती हु
मेरे मा बाप का नाम “अनाथालय” है
क्या ??????? दोनों मा बेटी के मुह से एक स्वर निकला
साक्षी: अरे अभी से हैरान हो गई दोनों ........पहले मुझे बता देने दो बाद में सवाल जवाब भी होते रहेंगे
साक्षी आगे बोली
मुझे नहीं पता मै अनाथालय कैसे पहोची हु, मा ने जन्म देते ही छोड़ दिया होगा या फिर मै एक अनैतिक सम्बन्ध का परिणाम हो सकती हु या फिर किसी बलात्कार का फल या फिर एक हवस मा की भी या बाप की भी या दोनों की या फिर एक अनचाही औलाद या फिर किसी की भूल कम उम्र की भूल या फिर एक पाप जो भी हो लेकिन बाद में ये सब मेरे सर्टिफिकेट बन गए |
खेर हर बच्चे के पैदा होने के मकसद होते है मा बाप की आशा होती है उम्मीद होती है ख़ुशी होती है अपने प्रेम का सफल फल के स्वरुप में माना जाता है या फिर मा बाप को अपनी क्रियेटिविटी का अनोखा सुख होता है
मेरा जन्म मकसद के बगैर का था खेर अनाथालय में पाई गई और वही बड़ी हुई मेट्रन के हाथ निचे उनकी देखरेख में पली बाप का नाम ऐसे ही दिया गया रामलाल जो सिर्फ एक सर्टिफिकेट के लिए जरुरी था और वहां भी एक हेस्त्रिक लगा हुआ है की सिर्फ नाम दिया गया है जैविक कुछ भी नहीं
स्कुल में अव्वल रहने की वजह से पढ़ाई जारी रखी गई वो भी ट्रस्टी के मेहरबानी से..... खेर प्यार प्रेम क्या होता है वो हम अनाथो के लिए शब्दकोष से बहार होता है
स्कुल शिक्षण के बाद कोलेज में जाने के लिए और उसकी फ़ीस भरने के लिए मैंने लोगो के घरकाम भी किया सफाई भी की, ऑफिस की सफाई भी की
आखिर एक लड़की हु ना निखरी भी और रस पीनेवाले शुरू भि हुए
एक दिन मेरा सौदा भी हो गया लेकिन जैसे तैसे मै वहा से भाग निकली
आंटी, नारी होना और वो भी सुन्दर मतलब गुनाह है मुझे कम उमर में ही पता चला की नारी क्या होती है और वही से मैंने थाम ली की मै बिकनेवालो में से नहीं हु मा बाप ने छोड़ा है लेकिन जीना तो मुझे है ही और अपने ढंग से मेट्रन से लड़ी भी और सिखा की कैसे जिंदगी में जीने के लिए लड़ना जरुरी है अपने वजूद के लिए
आखिर फिर से वोही मेट्रन के निचे जाना पड़ा लेकिन इस बार उद्देश्य कोलेज था काम भी करती रही और अपने आप को बचाती भी रही और इस प्रकार मेरा निखार जो आज है वैसा बना और मेरा सौदा फिर से हो गया पर भगवान ने मेरे नसीब कुछ अच्छे लिखे थे की मैंने उनकी बाते सुनी और अनाथालय छोड़ दिया और मै भी, आप ही की तरह यहाँ आके एक झोपड़ी में रही और कोलेज ख़त्म किया और आज मै ऐसी हु जो आप लोगो को दिख रही हु|
हां यहाँ आप से एक बात नहीं छुपाना चाहती ऐसे परिश्थिति से अपने आप को बचाया भी लेकिन अपने आप को अक्षत नहीं रख पायी सो आज मै अक्षत नहीं हु अब ये ना पूछना की वो भेडीया कौन था उस नज़र से मै आज भी अक्षत हु पर मेरी मेट्रन ने मुज से समलैंगिक शारीरिक सम्बन्ध बनाए थे मेरे लिए वो जरुरी भी था क्यों की वोही थी जो मुझे बचा के रख सकती थी फिर भी पैसो के लिए उसने मेरा सौदा 2 बार किया पर बच निकली सो किसी पुरुष ने मेरी अक्षतता नहीं ली पर एक नार ही......
अब आप जान ना चाहेगी की मेरी उपलब्धि
ये जान लो की मेरी उपलब्धि ये है की मै कोई वेश्या नहीं बनी अपने आप को काबिल बनाया और भद्र समाज में रहने के काबिल हु ये सब से बड़ी उपलब्धि होती है हम जैसे अनाथो के लिए
अब श्रुष्टि ये जान लो की मै ने तेरे साथ जो सुलूक किया वो मेरा पुराना अनुभव से हुआ मुझे लगता है की सिर्फ मै ही होनी चाहिए लेकिन तुम्हारे व्यवहार ने मुझे समाज को फिर मान देना पड़ा वर्ना मै इस भद्र समाज को सिर्फ गाली ही देती हु या देती थी
मै नशिबवाली हु पर अनाथालय की हर बच्ची मेरे जैसे नसीब नहीं ले के आती कही ना कही उसे हार मान ही लेनी पड़ती है क्यों की रक्षा का विशवास मा बाप की नहीं, सर के ऊपर छत्र नहीं, सुरक्षा की कोई गेरंटी नहीं.........फिर भी सभी जीती है
श्रुष्टि तुम्हे ऐसा लगता है की मा की वजह से ऐसा होता है या फिर तुम खुद अपने आप को कोसती हो और अपनी मा के गोद में अपना सर रख के रो सकती हो, एक प्रेमाल और हेतार्थ हाथ सदा के लिए तेरे सीर पर रहेगा उसका विश्वास है
मै क्या करू ???? कहा रोउ कौनसे कंधे पे जाके ,,,, किस को अपना ख़ुशी या दुःख पेश करू ? बहार एक से एक कंधे पड़े है जो रोने देते है और अपनी हवस भी मिटाते है विश्वनीय कंधा तुम्हारे पास है.....कुछ किताबो में पढ़ा था श्रुष्टि की कुछ दुःख तो मा के शरीर की गंध (सुगंध) आते ही दूर हो जाते है मुझे पता नहीं की वो गंध या सुगंध कैसी होती है और बेटी के दुःख उस सुगंध कैसे दूर करती है, मुज से विवरण मत पूछना
लेकिन फिर भी खुश हु हा ये जरुर है की तुम जैसो को मा के प्रेम पाते हुए देख के मुझे बहोत जलन होती है मै तुरंत वो जगह छोड़ देती हु और उसी वजह से मैंने उस दिन तुम दोनों से खास बात नहीं की थी
मै मेरे घर जाके कितने सवाल पूछती हु अपने माँ और बाप से कोई नहीं जानता लेकिन कोई जवाब भी तो नहीं देता ........मेरे अनुभव और आकलन ने मुझे ये सिखाया है की कुछ भी करो लेकिन अपने वजूद बनाए रखो शायद इसलिए मैंने तुम से ऐसा व्यवहार किया माफ़ कर देना अगर हो सके तो
अब रूम में कुल मिला के 6 आंखे रो रही थी
आखिर माताश्री ने चुपकी तोड़ी “बेटा तुम्हारे बारे में जानने के बाद हमारा रोना तो बिलकुल बेकार है तुम सच में महान हो मुझे पता है की एक अकेली नारी को जीने के लिए कितना सहन करना पड़ता है और तूने तो बचपन से यही देखा है
“मुझे तुम से कोई शिकायत पहले भी नहीं थी और आज भी नहीं है” श्रुष्टि ने भी अपना विचार प्रगट कीया
साक्षी “खेर मैंने कहा था ना की मेरी कहानी रोचक नहीं” मानती ही नहीं थी
हो सकता है मैंने कुछ गलत बोला हो या मेरी भाषा अभद्र रही हो पर मैंने यही सिखा है और यही सिखाया है अगर मा होती तो शायद मै भी आप लोगों की तरह .........भद्र ..ही ......होती ..........रो देती हुई
माताश्री “ बेटी एक बात कहू ?? अगर तुम्हे बुरा ना लगे तो ?
आंटीजी आपको पूछने का कोई अधिकार नहीं है सिर्फ कहना है चाहे बुरा लगे या अच्छा
“क्या मै आंटी जी से माताश्री में आ सकती हु तुम्हारे लिए ???”
साक्षी हतप्रभ बनी हुई देखती रही
श्रुष्टि: अब जल्दी जवाब दे वर्ना मै दे दुगी और माँ को बता दूंगी की आपने मुझे एक बहन दे दी
साक्षी कुछ बोल ना सकी बस माता के कंधे पे सर रख के फुट फुट और चिल्ला चिल्ला के रोने लगी
और 4 आँखे और 2 ह्रदय भी उसका साथ देने लगे
मा : रो ले बेटे जितना रो सकती है रो ले और साक्षी की पीठ को पसारे जा रही थी
काफी देर के बाद में साक्षी अपने आप को संभल पायी
आंटीजी आपका आभार
उतना ही बोल सकी की एक हल्का सा तमाचा उसके गाल पर पड़ा और वो मा के हाथ से था
“आज के बाद आंटी शब्द मेरे लिए तुम्हारे मुह से निकला तो अभि सिर्फ़ हल्का तमाचा पडा है फिर झाड़ू से मार पड़ेगी ये मत भूलना की मै तुम्हे झेलती जाउंगी” कह के उसे गले लगा दिया और कान में बोली मा बोल
“मा” !!!!!!!!!! माफ़ कर दो ............साक्षी अपनी आप को ना रोक पाई और फिर से रोने बैठ गई
बहन से मिलेगी ??? या दोस्त से मिलेगी या फिर सहकर्मचारी से ????
यहाँ बहन से मिलूंगी, खानगी में दोस्त से मिलूंगी जब मा नहीं होगी तब, और ऑफिस में सहकर्मचारी से मिलूंगी बोल अब कुछ बोलना है तुजे !!!!!!!!!!
वातावरण गमगीनी से कुछ प्रसन्नता की तरफ बढ़ा
अरे हां तेरी प्रेम कहानी का मुझे उस में ज्यादा रूचि थी ये मा भी ना बिच में आ गई सच में “ कह के साक्षी को आँख मरते हुए और एक ऊँगली उसके पेट में सरसरी करते हुए बोली
“देख अब मा है मतलब वो सब नहीं” मा से शर्म रख साक्षी ने भी आँख मारते हुए जवाब दिया
अरे मा है तो क्या है बेटे बता भी दे मन में रखने से तो अच्छा है और मा भी तो दोस्त बन ही जाती है जब बेटी बैठती उठती हो जाती है ठीक है चलो मै फिर थोड़ी चाय बना लेती हु कह के दोनों बहनों को अकेला छोड़ ना ही बेहतर समजी
मुझे क्या पता ?? ही ही ही ही
चल शुरू कर श्रुष्टि ने फिर से आँख मारी
साक्षी...मेरी प्रेम कहानी तेरी तरह टिपिकल नहीं है बिल्कुल सिंपल सा हैं। जैसा की तू जानती है शिवम और मैं बहुत समय से तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में काम कर रहें हैं। जब से मैं और शिवम एक साथ एक ही प्रोजेक्ट पर काम करने लगें तभी से शिवम मुझे पसंद करने लगा लेकिन मैं उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मेरे दिमाग़ में कोई ओर ही फितूर चल रहा था। अब तू उस फितूर के बारे में पूछने न लग जाना ठीक हैं। (श्रृष्टि हां में मुंडी हिला दिया तब साक्षी आगे बताना शुरू किया) जैसे जैसे वक्त बीतता गया वो मेरे प्यार में गिरता गया। मैं जो करने को कहता चाहे सही हो या गलत खुद भी करता और दूसरे सहयोगी को भी वैसा करने को मनवा लेता था।
कारण वो सभी जानते थे मगर शिवम में इतनी हिम्मत नहीं हुआ कि वो मुझे प्रपोज कर पाए कहीं न कहीं उसके मन में डर था कहीं मैं बूरा मान गई ओर राघव सर से कहके उसे नौकरी से निकलवा दिया तो वो मूझसे दूर चला जायेगा। बाकी सहयोगी के बार बार कहने पर उसमे थोड़ा थोड़ा हिम्मत आने लगा और मेरे एक हफ्ते की छुट्टी के बाद वापस लौटते ही उसमे बहुत बदलाब आ चुका था। वो मूझसे कुछ कहना चहता था लेकिन झिकक के कारण कहा नहीं पाता था।
जब सर ने हम सभी को लंच पर ले जानें की बात कहा तब शिवम मौका ताड़ने की सोचा और लंच पर ही कोई मौका देखकर मूझसे बात करने का प्लान बना लिया। आंटी की वजह से तू चली आई और तेरे आ जानें के कारण राघव सर लंच पे नहीं जाना चाहते थे।
"क्या सिर्फ मेरे कारण सर लंच पर नहीं जाना चाहते थे।"चौकते हुए श्रृष्टि बोलीं
साक्षी... हां क्योंकि लांच पर जानें का प्लान सिर्फ तेरे कारण बनाया गया था ताकि सर तुझसे बात कर पाए और लंच पर जानें का प्लान मैंने ही बनाने को कहा था क्योंकि तू सर के साथ अकेले कहीं जानें को राज़ी नहीं हों रहीं थीं।
श्रृष्टि…मतलब तू सब जानती थीं ओर मैं सोचती थी तू मेरी हरकते देखकर तुक्का भिड़ती थी जो सही बैठता था।
साक्षी...चल हट पगली मैं सब जान बूझकर कहती थीं। मुझे उस दिन पता चला जब मैं छुट्टी के बाद इस्तीफा देने वापस आईं थीं। तू तो मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाने की बात कहकर चली आई पर बाद में सर ने मुझे बता दिया की उनके मन में तेरे लिए क्या है। पता है सर कितना हक से कह रहे थे "श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।"
"श्रृष्टि सिर्फ मेरी हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्करा दिया फ़िर बोला... मैं कितना उनकी हूं ये तो बाद में पाता चलेगा अब तू अपनी सूना।
साक्षी... राघव सर ने मुझे सभी को लंच पे ले जानें को कहा पर मेरा मन जानें को नहीं कर रहा था इसलिए मैंने भी मना कर दिया। मेरे न जानें की बात जब उन लोगों को कहा तो तब शिवम ने झिझकते हुए अपने दिल की बात कह दिया। मुझे पहले से अंदाजा था कि वो कुछ कहना चाहत है। जब जाना तो मैंने उससे कुछ वक्त मांगा और उसने दे भी दिया। इस बीच मैंने उसकी कुंडली खंगाला और उसके साथ छुट्टी वाले दिन कुछ वक्त बिताने लगी तब मुझे पता चला शिवम नेचर का बहुत अच्छा है। मगर अब तेरे बाप और नाना नानी के दोहरे चरित्र शख्सियत की बात जानकर लग रहा हैं शिवम के साथ ओर वक्त बिताना पडेगा। तभी पता चलेगा कही शिवम ने भी दोहरे चरित्र शख्सियत का मुखौटा तो नहीं ओढ़ रखा हैं साथ ही ये भी पाता करना है उसके परिवार वाले कैसे हैं।
जारी रहेगा...
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दोस्तों सच कहू तो ये ऊपरवाला एपिसोड लिखते लिखते ही मेरी भी आँखे नम गई थी शायद आँखों ने थोडा पानी बहा ही दिया था
क्यों की लिखते लिखते साक्षी का केरेक्टर मुज में उतर गया था शायद
मुझे नहीं पता आपको क्या लगा वो एपिसोड पढ़ते हुए पर एक नज़र उन अनाथालयो की लडकियों के बारे में सोच के देखना जरा बस ..........यही विनंती ............. मैंने ये एपिसोड बहोत छोटा रखा है क्यों की ये डीप में जाने से बहोत रोना पड सकता है
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भाग - 31
साक्षी की प्रेम कहानी जानने के बाद श्रृष्टि बोलीं... यार मैं खुद उलझी हुई हूं इस मामले में मैं तेरी कोई मदद शायद ही कर पाऊं।
साक्षी...तू फिक्र न कर लडको को परखने की कला मुझे बखुबी आता है। शिवम को कैसे परखना है वो मैं देख लूंगी लेकिन उससे पहले तुझे और राघव सर को कैसे एक करना हैं उस पर सोचना हैं।
श्रृष्टि…तू कुछ ऐसा वैसा न सोच बैठना और जो बाते तुझे बताया है वो अपने तक ही रखना।
साक्षी...मुझ पर भरोसा रख मैं मतलबी हो सकती हूं पर जुबान का बिल्कुल पक्की हूं। चाहे कुछ भी हों जाएं तूने मुझे वास्ता दिया है तो उसे जरूर निभाऊंगी।
अच्छा अब मैं चलती हूं जरा मेरे मजनू का कुछ हाल चाल ले लू।
श्रृष्टि... ठीक है जा।
इसके बाद साक्षी चली गई और श्रृष्टि कुछ वक्त तक किसी विचार में खोए रहीं फ़िर रेस्ट करने चली गईं।
अगले दिन दफ्तर आते ही राघव उताबला हुआ जा रहा था कि कल साक्षी और श्रृष्टि के बीच क्या बाते हुइ। लेकिन उसे मौका ही नहीं मिल रहा था। वो एक के बाद एक मीटिंग करने में व्यस्त था। साथ ही कुछ ज़रूरी काम भी निपटा रहा था। जब उसे वक्त मिला तब उसने साक्षी को बुला लिया। साक्षी के आते ही राघव बोला... साक्षी जल्दी बोलों कल श्रृष्टि से तुम्हारी क्या बाते हुई।
साक्षी... सर बहुत बाते हुई और उसके बेरूखी की वजह भी पाता चल गया है। साथ ही एक खास बात ये पता चला कि वो भी आपसे बहुत प्यार करती है। जितनी भी बार वो आपसे बेरुखी से पेश आई उतनी ही बार उसे आप से ज्यादा तकलीफ हुइ हैं।
राघव...ये तो मैं भाप चुका था। अब तुम वो वजह बताओं जिसके कारण श्रृष्टि मेरे साथ बेरूखी से पेश आ रही हैं।
साक्षी... सॉरी सर वो वजह तो मैं नहीं बता सकती हूं क्योंकि उसने मुझे दोस्ती का वास्ता दिया हैं।
राघव...अब ये कौन सा पेंच फंसा आई सोचा था श्रृष्टि के बेरूखी का कारण पता चलने पर उसकी बेरुखी दूर करने का कोई रस्ता खोज निकलूंगा पर अब कैसे कोई रस्ता निकालूं।
साक्षी... रास्ता मैं बता दूंगी लेकिन उसकी बेरुखी की वजह नहीं बता सकती हूं। मैं मजबुर हूं।
राघव...तो बताओं न अब क्या मूहर्त निकलवा कर ही बताओगी।?
साक्षी... बता तो दूंगी लेकिन आप मुझे एक वादा दो की जब भी आपकी मदद की मुझे जरूरत पड़ेगी अब मेरी मदद करेंगे।
राघव... एक रस्ता बताने के लिए तुम मूझसे मदद करने की वादा ले रहें हों। मतलब कि किसी बड़े काम में तुम मदद मांगने वाली हों।
साक्षी... सर आगे चलके एक मामले में मुझे आपकी मदद की जरूरत पड़ सकती हैं। कहीं आप मुकर न जाओ इसलिए आपसे वादा ले रहीं हूं।
राघव...मैं मुकर जाऊंगा इसका मतलब तुम मूझसे कुछ ऐसा करवाने वाले हों जो शायद मुझे पसंद न हों या फ़िर श्रृष्टि...।
"सर आप डरिए नही मैं जो भी मदद आपसे लूंगी उसकी जानकारी श्रृष्टि को होगी जब वो हां कहेगी तब ही मैं आप से मदद लूंगी मगर उससे पहले कोशिश करूंगी की आपकी मदद लेने की जरूरत ना पड़े।" राघव के शक को दूर करते हुए साक्षी बोलीं।
राघव... ऐसा है तो चलो दिया वादा अब तुम मुझे जल्दी से वो रास्ता बताओ।
साक्षी... सर आप ना किसी क्लाइंट से मिलने जानें की बात कहकर श्रृष्टि को साथ लेकर जाओ और अपनी बाते कह दो चाहो तो अभी हम जिस प्रॉजेक्ट पर काम कर रहें है उसी के क्लाइंट से मिलने जानें की बात कहकर ले जाओ लेकिन उसे पहले से मत बता देना जब जाना हो उसी वक्त बताना। इससे वो मना नहीं कर पाएगी।
राघव...बिल्कुल सही कहा ऐसा ही करना ठीक होगा मैं उसे कल ही बहाने से लेकर जाता हूं क्योंकि कल शाम को किसी काम से मुझे 10-15 दिन के लिए बहार जाना हैं।
साक्षी... मेरी माने तो वहा से आने के वाद ही प्रपोज करे तो अच्छा होगा। 10-15 आपको नहीं देखेगी तो श्रृष्टि तड़प जायेगी और जब आप प्रपोज करेंगे तो वो मना नहीं कर पाएगी।
राघव... बिल्कुल नहीं उससे ज्यादा मैं तड़पुंगा अगर प्रपोज कर दिया तो भले ही वो मेरे सामने न रहें लेकिन फोन पर तो देख पाऊंगा और नहीं किया तो न देखना नसीब होगा न ही वो बात करेंगी।
साक्षी...ओ हो चलो ठीक हैं जैसा आप ठीक समझो। अच्छा अब मैं चलती हूं।
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दृश्य में बदलाव
शाम के चाय का वक्त हों रहा था। चंद्रेश तिवारी डायनिंग हॉल में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहें थे। तभी द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का संकेत दिया।
तिवारी... रमेश देख तो कौन आया हैं।
रमेश जाकर द्वार खोला सामने खड़े शख्स को देखकर बोला... छोटे मालिक आप
तिवारी... रमेश कौन आया हैं।
रमेश... साहब छोटे मालिक आएं हैं।
इतना बोलकर रमेश किनारे हट गया या कहूं अरमान ने धक्का देकर उसे किनारे किया और दनदनाते हुए भीतर घुस आया फ़िर "मां मां कहा हों"।
तिवारी... तेरी मां उसके कमरे मैं हैं। यहां खड़े खड़े चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला मिलना है तो तुझे खुद चलकर उसके कमरे तक जाना होगा।
अरमान बिना कुछ कहें बरखा के कमरे में चला गया। कुछ देर बाते करने के बाद बरखा को कमरे से बाहर चलने को कहा लेकिन बरखा ने मना कर दिया। तब अरमान बोला…क्यों नहीं जाना
"वो नहीं आएगी क्योंकि उसे चेतावनी मिला हुआ हैं जब तक मैं या राघव घर में रहेंगे वो अपने कमरे में कैद रहेगी।" ये आवाज तिवारी का था जो कमरे के द्वार से कुछ ही दूरी पर बैठे चाय की चुस्कियां ले रहा था।
अरमान... कहें की चेतावनी। मां तुम बाहर चलो मैं देखता हूं कौन क्या करता हैं ये बूढ़ा तो बुढ़ापे में सटिया गया हैं।
"सही कहा बूढ़ा बुढ़ापे में सटिया गया हैं और वो कर रहा हैं जो वर्षो पहले करना चहिए था। तू भी कान खोलकर सुन ले इस घर का मालिकाना हक मेरे पास हैं इसलिए जो मैं कहुंगा इस घर में वोही होगा। अगर तुझे इस घर में खुला घूमना है तो तुझे भी वहीं करना होगा जो मैं कहुंगा। मेरा कहा नहीं मानना हैं तो कहीं ओर अपना ठिकाना ढूंढ लेना।" लगभग चीखते हुए तिवारी ने अपनी बाते कह दिया।
तिवारी के बातों का जवाब देने के लिए अरमान का जीभ कुलबूला रहा था। मगर वो कुछ कह नहीं पाया क्योंकि बरखा ने उसे होठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा कर दिया था। यह देख तिवारी बोला... बरखा आज तुमने पहली बार अपने बेटे को बोलने से रोककर एक अच्छा काम किया हैं। आगे भी ऐसे ही अच्छा काम करती रहना इससे इस घर में शान्ति बनी रहेगी और तुम दोनों मां बेटे का ठाट बांट भरा जीवन सुचारू रूप से चलता रहेगा। जिस दिन तुमने यह काम नहीं किया उस दिन मैं तुम दोनों मां बेटे को धक्के मार कर इस घर से बहार फेंक दूंगा और संपति से भी बेदखल कर दूंगा।
तिवारी की कड़क मिजाज से भरी बातें सुनकर दोनों मां बेटे को सांप सूंघ गया। दोनों बिना कुछ कहें कमरे का द्वार बन्द कर लिया फिर अरमान के पूछने पर बरखा ने बता दिया की तिवारी ने अपना तेवर क्यों बदल लिया। जिसे जानकर अरमान और बरखा में योजना बनाने लगा की इस परिस्थिती से कैसे बाहर निकला जाए।
रात्रि भोजन का समय हों चुका था। तिवारी और राघव के लिए भोजन लगाया जा रहा था उसी वक्त अरमान अपने कमरे से बाहर निकला फ़िर बोला…रमेश मेरा और मां का खाना मां के कमरे में लगवा देना।
तिवारी... रमेश अभी खाली नहीं है हम दोनों बाप बेटे के लिए भोजन लगा रहा है। तुझे जल्दी है तो खुद से लेकर जा।
राघव... कैसा है भाई और कब आया।?
अरमान...देख ले कैसा हूं। शाम को आया हूं तब से पराए जैसा सलूक हों रहा हैं।
तिवारी... तुम्हारा किया हुआ तुम पर ही लौट रहा हैं बेटे। ऐसा ही सलूक तुम दोनों मां बेटे राघव के साथ करते आए हों। इतने से वक्त में जब तुझे इतना बूरा लग रहा हैं तो सोच जरा राघव को कितना बूरा लगता था?। जब तुम दोनों उसके साथ पराए जैसा सलूक करते हों और तुम दोनों तो वर्षों से करते आ रहे हों।
तिवारी का तेवर और सच्चाई बताने पर अरमान बिना कुछ कहें वहा से चला गया। उसके जाते ही तिवारी ने रमेश को बरखा और अरमान का खाना उनके कमरे में लगवा देने को कह दिया।
जारी रहेगा….
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भाग - 32
दोनों बाप बेटे भोजन करते हुए। दफ्तर की बाते कर रहें थे। तब राघव बोला... पापा कल शाम को मुझे कुछ काम से 10-15 दिन के लिए बहार जाना हैं। आप इतने दिनों के लिए जब भी आपको मौका मिले दफ्तर हों आना।
तिवारी ने हां बोल दिया फिर भोजन से निपट कर राघव अपने कमरे में चला गया और तिवारी वही बैठे रहें। कुछ देर में अरमान भोजन करने के बाद अपने कमरे में जा रहा था कि तिवारी ने उसे बुला लिया। अरमान के आते ही तिवारी बोला...अरमान तुझे जयपुर वापस कब जाना हैं।
अरमान... आज ही तो आया हूं। कुछ दिन बाद चला जाऊंगा।
तिवारी... ठीक है कल शाम को राघव किसी काम से बाहर जा रहा हैं उसके आने तक तू रोजाना दफ्तर जायेगा।
अरमान... जयपुर का काम देखू फ़िर दफ्तर भी जाऊं इतना काम मेरे से नहीं हो पायेगा।
तिवारी... क्यों नहीं हो पायेगा? राघव को देखा हैं उसे अपने बारे में सोचने का फुरसत नहीं मिलता हैं दिन रात सिर्फ काम और काम में लगा रहता हैं।
अरमान... काम और काम के अलावा उसे और कुछ सूझता ही नही मैं उसके जीतना काम मैं नहीं कर सकता हूं।
तिवारी...अच्छा राघव दिन रात मेहनत करके संपत्ति बढ़ाएगा और तू बैठें बैठें बराबरी का हिस्सा लेगा।? तूझे संपति में बराबरी का हिस्सा चहिए तो राघव के बराबर काम करना होगा। अगर नहीं कर सकता तो संपत्ति में बराबरी का हिस्सा तो छोड़ जीतना मिल रहा हैं शायद वो भी न मिले।
अरमान... मतलब आप...।
"हां मैं संपत्ति का बराबर हिस्सा कर दूंगा लेकिन तब जब तू राघव जितना काम उतनी ही ज़िम्मेदारी से करेगा जितनी ज़िम्मेदारी से राघव करता हैं।" अरमान की बात पूरा करते हुए तिवारी बोला
"ठीक हैं" बुझे मन से बोलकर अरमान चला गया उसके बाद तिवारी भी अपने कमरे में चला गया।
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दृश्य में बदलाव
सुबह दफ्तर आने के बाद कुछ जरूरी काम निपटाकर राघव ने श्रृष्टि को बुलवाया। श्रृष्टि बेमन से राघव के पास जानें के लिए निकला ही था की किसी को देखकर चौक गया और खुद से बोला... ये कमीना यहां पर क्यों? क्या करने आया? पहले तो कभी नहीं देखा।
उस शख्स ने भी श्रृष्टि को देख लिया। देखकर पहले तो चौक गया फ़िर कमीनगी मुस्कान से मुस्कुरा कर बोला... ओहो मैडम आप यहां काम करती हों चलो अच्छा हुआ आप को ढूंढने के लिए मेहनत नहीं करना पड़ेगा।
इतना बोलकर वह शख्स अपने गाल पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए चला गया और श्रृष्टि के माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं। उन्हीं लकीरों के साथ श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गई। श्रृष्टि से नज़रे मिलते ही उसके माथे पर चिंता की लकीरें देखकर राघव बोला... श्रृष्टि क्या हुआ तुम इतनी चिंतित क्यों दिखाई दे रही हों।
"कुछ नहीं सर बस इसलिए चिंतित हूं की आप ने यू अचानक क्यों बुलाया।" मूल वजह न बताकर दुसरा वजह बता दिया जो उसके लिए चिंता का विषय था ही नहीं।
राघव... अच्छा चलो बुलाने का कारण भी बता देता हूं। अभी तुम जिस प्रॉजेक्ट पर काम कर रहीं हों। उसके क्लाइंट ने अभी के अभी मिलने बुलाया हैं और तुम्हारा जाना जरूरी हैं।
"क्या" चौक कर श्रृष्टि बोलीं।
राघव... हां चलो हमे अभी चलना हैं।
इतना बोलकर राघव बहार को चल दिया और बुझे मन से धीरे धीरे श्रृष्टि ऐसे चल रहीं थीं जैसे उसके शरीर का बोझ उसके पैर उठा नहीं पा रहा हों।
कुछ ही देर में दोनों राघव के कार में थे हालाकी राघव के साथ उसी के कार से श्रृष्टि जाना नहीं चहती थी और इसके लिए उसके पास देने को कोई तर्क ही नहीं था इसलिए बेमन से कार में बैठ गई।
रास्ता भर सामने के सीट पर खुद को समेटे श्रृष्टि बैठी रहीं और खिड़की से बाहर को देखती रहीं। राघव कभी कभी नज़र फेरकर श्रृष्टि को देख लेता फिर मुस्कुराकर अपना ध्यान कार चलाने में लगा देता।
शहर के मशहूर रेस्टोरेंट के सामने कार रोका तो श्रृष्टि चौककर राघव को ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हों यहां क्यों लाए, हमे तो क्लाइंट से मिलने जाना था।
श्रृष्टि को चौकते देखकर राघव खुद ही बोल दिया…श्रृष्टि तुम ऐसे क्यों चौक रहीं हों क्लाइंट ने हमे यही पर मिलने बुलाया था।
दोनों साथ में रेस्टोरेंट के अंदर गए फिर एक ओर इशारा करके श्रृष्टि को साथ लिए एक पर्सनल केबिन में जाकर बैठ गया फ़िर श्रृष्टि को मेनू कार्ड देते हुए राघव बोला... श्रृष्टि जो पसंद हो अपने लिए और मेरे लिए भी ऑर्डर कर देना।
मेनू कार्ड को कुछ देर देखने के बाद ऑर्डर दे दिया फिर श्रृष्टि बोलीं…सर आप मुझे यहां किस काम से लाए है।? क्या मैं जान सकती हूं?
राघव...क्यों तुम नहीं जानती? हम यहां क्लाइंट से मिलने आए हैं।
श्रृष्टि...क्लाइंट तो अभी तक आए नहीं है। तो क्या आप उनसे पूछ सकते है? वो कितने देर में आ रहे हैं।?
राघव…पूछ लूंगा उसे पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दे सकती हों कि तुम्हें मेरे साथ कुछ वक्त बैठने में क्या दिक्कत हैं?
श्रृष्टि के पास इस सवाल का जवाब था ही नहीं तो क्या जवाब देती। बस दो पल राघव को देखा फ़िर नज़रे झुका लिया और राघव बोला…तुम्हारे नज़रे झुका लेने से मैं इतना तो समझ ही गया हूं कि तुम्हारे पास मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं हैं। अगर हैं भी तो तुम देना नहीं चहती हो शायद मैं तुम्हारे नजरों में बहुत या कहूं हद से ज्यादा गयागुजरा हूं इसलिए तुम बीते काफी समय से मुझे नज़रअंदाज कर रहीं हों। जब भी मैं तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताने आता हूं तुम बहाने से कहीं और चली जाती हों। मैं सही कह रहा हूं न।
इतना सुनते ही श्रृष्टि ने कुछ वक्त राघव की ओर देखा फ़िर अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया फ़िर आंखें मिच लिया। दूसरी ओर देखकर ही श्रृष्टि बोलीं... सही कहा अपने आप मेरे नजरों में हद से ज्यादा गए गुजरे हों इसलिए मैं आपके साथ से बच रहीं थीं और आज भी आना नहीं चहती थी मगर मजबूरी है शायद आप के साथ नहीं आती तो आप मुझे नौकरी से निकाल देते और कहते मैं अपने काम में ज़िम्मेदार नहीं हूं।
श्रृष्टि इतनी बातें कह तो दिया मगर बातों के दौरान उसका गाला भर आया हुआ था और आंखो ने उसे धोका दे दिया था।
अपनी बाते कहने के दौरान श्रृष्टि किस हाल से गुजरी राघव समझ गया था। इसलिए मुस्करा दिया फिर श्रृष्टि के रूकते ही राघव बोला...अरे तुम तो सच बोल रहीं हों। जब तुम मेरे मुंह पर सच बोल ही रहीं हों तो नजरे क्यों फेरना, यहीं बाते तुम मेरी आंखों में देखकर भी बोल सकती हों।
इस वक्त श्रृष्टि का हाल ऐसा था कि वो फूट फूट कर रो दे मगर राघव के सामने खुद को कमज़ोर नहीं दिखाना चहती थी इसलिए किसी तरह खुद को रोके हुए थी। ये बात राघव भी शायद समझ गया होगा इसलिए आगे कुछ न बोलकर चुप रहा।
कुछ देर में उनका ऑर्डर आ गया फ़िर भी श्रृष्टि राघव की ओर नहीं देखा तब राघव बोला... श्रृष्टि कुछ खा लो शायद तब तक क्लाइंट आ जाए।
श्रृष्टि अभी राघव की ओर मुंह फेरती तो राघव देखकर ही समझ जाता कि जितनी बाते उसने कहीं है कहीं न कहीं वो बाते श्रृष्टि को भी चोट पहुंचा रही हैं। इसलिए बिना राघव की और देखे उठ खड़ी हुई और केबिन में लगा वाशबेसिन में हाथ के साथ अपना चेहरा धोने लगीं ये देखकर राघव बोला... अरे श्रृष्टि ये क्या कर रहीं हों चेहरा क्यों धो लिया। इससे तो तुम्हरा सारा मेकअप धुल गया।
श्रृष्टि तूरंत पलटी और राघव को ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हों कि देख कर बताओं तो मैंने कितना मेकअप किया हैं। राघव मुस्कुराते हुए बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि मैं भूल गया था तुम तो नैचुरल ब्यूटी हों तुम्हें तो मेकअप करने की जरूरत ही नहीं हैं।
ये सुनते ही स्वतः ही श्रृष्टि के होठो पर मुस्कान तैर गई फ़िर श्रृष्टि चेहरा और हाथ धोने के बाद आकर जो मंगवाया था वो खाने लग गई। बिना पूछे यूं मतलबी की तरह खाते हुए देखकर राघव बोला…श्रृष्टि बड़े मतलबी हों एक बार भी पूछना ज़रूरी नहीं समझा।
सॉरी सर बस इतना बोलकर नज़रे झुका लिया और राघव बोला... तुम्हें शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं हैं मै तो बस ऐसे ही कहा था।
राघव के इस बात का श्रृष्टि ने कोई जबाव नहीं दिया बस चुप चाप खाने में बिजी रहीं। देखा देखी राघव भी खाने में बिजी हो गया। कुछ देर में उनका खाना पीना हो गया फ़िर श्रृष्टि बोलीं...सर हमे आए हुए काफी समय हो गया फ़िर भी आपके क्लाइंट नहीं आया। एक बार पूछ कर तो देखो कहा रह गए।
राघव... देखो श्रृष्टि यहां कोई क्लाइंट नहीं आ रहा हैं। मुझे तुमसे कुछ बात करनी थीं इसलिए तुम्हें झूठ बोलकर यहां लाया हूं। तुमसे झूठ बोला उसके लिए सॉरी सॉरी सॉरी।
जारी रहेगा...
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भाग - 33
राघव के खुलासा करते ही कि कोई क्लाइंट मिलने नहीं आने वाला हैं वो झूठ बोलकर श्रृष्टि को रेस्टोरेंट में लेकर आया हैं। श्रृष्टि को समझते देर नहीं लगा कि राघव कौन सी बात कहने यहां आया हैं। जिसके लिए न जाने कब से श्रृष्टि टाला मटोली कर रहीं थीं। सिर्फ इतना ही नहीं राघव को नजर अंदाज भी कर रहीं थी। मगर इतना कुछ करने के बाद भी वो वक्त आ ही गया। जब राघव प्यार का इजहार करने वाला हैं।
श्रृष्टि का मन इसे भापकर खुशी में झूमना चाहता था लेकिन कुछ बाते हैं जो श्रृष्टि के मन मस्तिष्क को अपने जड में ले रखा था। इस वक्त श्रृष्टि की मस्तिष्क में उसके मां के साथ घटी घटना के बारे में वो जितना जानती थी। एक एक बाते घूम रहीं थीं।
भविष्य की वो बाते जिसका अगम अनुमान श्रृष्टि लगा रखी थी कि राघव के परिवार वाले उसके नाना नानी की तरह रूढ़ीवादी सोच के हुए तो क्या होगा अगर नहीं हुए तो कहीं उसकी मां के बारे में कोई गलत बाते कहकर उसे ठुकरा न दे।
इन्ही सभी बातों ने उसके भीतर एक जंग सा छेड़ रखा था। तर्क वितर्क खुद से ही कर रहीं थीं। उसका दिल गवाही दे रहा था कि राघव उसके बाप जैसा नहीं हों सकता हैं। लेकिन जब राघव के परिवार की बात और मां पर लांछन लगने की बात आई तो श्रृष्टि न चाहते हुए भी राघव के प्यार को ठुकराने का निश्चय कर लिया। फिर श्रृष्टि बोलीं...सर दफ्तर में इतने सारे काम पड़े है उसे छोड़कर आपको यही सब सूझ रहा हैं। अपने ही दफ्तर में काम करने वाली एक कर्मचारी को झूठ बोल कर रेस्टोरेंट लेकर आ गए आपको ऐसा करते हुए शर्म आना चहिए था।
राघव...कर्मचारी यहां पर कौन कर्मचारी और कौन मालिक हैं? चलो तुम्हारी बात मान लेता हूं तुम मुलाजिम हों पर क्या यहीं सच हैं। तुम जानती हों कि तुम मेरे लिए एक मुलाजिम से बढ़कर हों।
"एक मुलाजिम से बढ़कर हों" ये सुनते ही श्रृष्टि का मन उछालने को कह रहा था लेकिन श्रृष्टि चाहकर भी ऐसा नहीं कर पा रहीं थीं। अजीब सी कश्मकश से वो लड़ रहीं थीं। जब वो इस लड़ाई में जीत नहीं पाई तो मुंह फेरकर आंखे मिच लिया।
राघव भली भांति समझ रहा था कि श्रृष्टि खुद से जंग लड़ रहीं हैं मगर क्यों ये वो समझ नहीं पाया। आज वो मन बनाकर आया था कुछ भी हों जाएं वो इस मौके को हाथ से जानें नहीं देगा और अपनी बाते श्रृष्टि तक पहुंचा कर ही रहेगा। इसलिए राघव बोला...श्रृष्टि मैं नहीं जानता कि वो कौन सी वजह हैं। जिसके लिए तुम मेरे साथ इतनी बेरुखी से पेश आ रहीं थीं। लेकिन मैं इतना तो जानता हूं मेरे साथ बेरूखी करके मूझसे ज्यादा तुम तकलीफ में थी। जो साबित करता है कि तुम भी मूझसे उतना ही प्यार करती हो जीतना मैं तुम से करता हु।
इतना बोलकर राघव चुप हों गया और श्रृष्टि की विडंबना ये थी कि राघव को तकलीफ पहुंचने के लिए वो खुद कितनी तकलीफ से गुजरी हैं इस बात का पता राघव को हैं ये जानकर भी वो खुशी नहीं मना पा रही हैं। चहकते हुए राघव से लिपट नहीं पा रही हैं। बस मुंह फेरे शक्ति से आंखे मिचे बगावत पर उतर आई आंसुओ को रोक रहीं हैं।
राघव भली भांति श्रृष्टि की शारीरिक भाषा देख और पढ़ पा रहा था। वो समझ गया कि श्रृष्टि अपनी जज्बातों को दबा रहीं हैं इसलिए राघव बोला...श्रृष्टि जब कोई जान लेता हैं कि वो जिसे तकलीफ पहुंचा रहा हैं। उससे वो खुद सामने वाले से ज्यादा तकलीफ में रहती हैं और यह बात सामने वाले को पता हैं ये जानते ही वो खुद पर काबू नहीं रख पाती हैं। या तो वो खुशी से उछल पड़ती है या फ़िर वो उससे लिपट कर अपनी जज्बातों को जाहिर कर देता हैं। मगर तुम्हें देखकर लग रहा हैं तुम अपनी जज्बातों को दबा रहीं हों। शायद तुम्हें मेरी बातों से उतनी खुशी न मिली हों लेकिन अब जो बोलने वाला हूं उसे सुनकर तुम अपनी जज्बातों को काबू नहीं रख पाओगी।
इतना बोलकर राघव चुप हुआ और मंद मंद मुस्कुराते हुए श्रृष्टि को देखने लगा। वहां ना चाहते हुए भी श्रृष्टि की दिल की धड़कने धक धक, धक धक तीव्र गति से चल पडा। कुछ पल की चुप्पी छाया रहा बस दो दिलों की धडकने ही सुनाई दे रहा था। चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं ये आंकड़ों में बता पाना संभव नहीं हैं फ़िर भी तीन शब्द जो सभी प्रेमी एक दूसरे से सुनना चाहते हैं। मैं भी वहीं तीन शब्द तुमसे बोलता हूं। श्रृष्टि आई लव यूं, आई लव यूं...।
"आई लव यूं" कहीं बार दौहराने के बाद तब कहीं जाकर राघव चुप हुआ एक बार फ़िर गुप सन्नाटा छा गया सिर्फ सांसों के चलने और सांसों के साथ दिल के धडकने की आवाजों के अलावा शायद ही कुछ ओर सुनाई दे रहा था। श्रृष्टि तो कुछ बोलीं नहीं लेकिन राघव चुप्पी तोड़ते हुए बोला...श्रृष्टि क्या हुआ कोई जवाब तो दो मैं जानता हूं तुम्हारा जवाब क्या होगा फिर भी मैं तुमसे सुनना चाहता हूं।
कुछ देर की फ़िर से चुप्पी छा गया फ़िर चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं... मैं आपसे प्यार नहीं करती हूं।
कुछ चुनिंदा शब्द बोलने में श्रृष्टि की जुबान लड़खड़ा रहा था। जैसे उसकी जुबान कुछ और बोलना चाहता था लेकिन श्रृष्टि जबरदस्ती कुछ ओर बुलवा रहीं थीं। जिसे समझकर राघव बोला... श्रृष्टि तुम जो बोल रहीं हों उसमे तुम्हारा जुबान साथ नहीं दे रहा हैं। तुम्हारा मन कुछ ओर बोलने को कह रहा हैं मगर तुम बोल कुछ ओर रहीं हों। मतलब कोई तो वजह हैं जिस कारण तुम अपनी जज्बातों को दबा रहीं हों (फ़िर अपना रुमाल श्रृष्टि की और बढ़ते हुए राघव आगे बोला) लो श्रृष्टि अपने आंसु पोंछ लो जिसे तुम बहुत देर से बहाए जा रहे हों। तुम्हारे बहते आंसू ने ही मेरा जवाब दे दिया हैं फ़िर भी मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं। जिसके लिए मुझे चाहें कितना भी वेइट करना पड़े कर लूंगा बस तुम इतना जान लो तुम्हारे अलावा मेरे जीवन में किसी दूसरी लङकी के लिए कोई जगह नहीं हैं।
मुंह फेरे रहने के बाद भी राघव जान गया की श्रृष्टि आंसू बहा रहा हैं साथ ही उसके जवाब का वेइट करने की बात सुनकर श्रृष्टि एक झटके में उठी फिर वॉशबेसिन में अपना चेहरा धोकर अपने रुमाल से पोछने के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आपको मेरे जवाब का वेइट करने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि इस जन्म में तो मैं आपके प्रपोजल को एक्सेप्ट नहीं करने वाली इसलिए बेहतर यहीं होगा की आप किसी ओर को ढूंढ लो रहीं बात आपको मना करने की वजह, तो वो वजह हैं आपकी अपार धन संपत्ति जो आगे चलकर हों सकता है आपके और मेरे बीच दीवार बन जाए इसलिए पहले ही संभाल जाना ठीक होता हैं।
इतनी बाते बोलते वक्त श्रृष्टि पूर्ण आत्मविश्वास और राघव के नजरों से नज़रे मिलाकर बोला जिसने राघव को सोचने पर मजबूर कर दिया कि श्रृष्टि जो अभी तक आंसु बहा रहीं थीं सहसा पानी से मुंह धोते ही उसमे इतना बदलाब कैसे आ गया।!!! राघव को सोच में पड़ा देख श्रृष्टि बोलीं... ज्यादा सोचा विचारों न करो क्योंकि आप अपनी धन संपत्ति छोड़ नहीं सकते और मैं इतनी धन संपत्ति वाले को अपना नहीं सकती इसलिए विचार करना छोड़े और दफ्तर की ओर चलते हैं।
इतना बोलकर श्रृष्टि बाहर की और चल दिया पर कुछ कदम चलते ही अपने रूमाल का एक ओर बार इस्तेमाल अपना चेहरा पोछने में किया फ़िर बाहर चली गई। पीछे पीछे राघव भी चला आया फ़िर दोनों बिना कोई शब्द बोले दफ्तर पहुंच गए कार से उतरते ही श्रृष्टि बोलीं... सर क्या मुझे आज के बचे हुए समय की छुट्टी मिल सकता हैं? क्या हैं कि आपकी बातों से मेरा सिर भारी कर दिया हैं और मेरे सिर में इतना दर्द कर रहा हैं कि मैं काम नहीं कर पाऊंगी।
राघव ने हां बोल दिया फ़िर श्रृष्टि वहीं से ही अपनी स्कूटी से घर चली गई और राघव कार में बैठें बैठें रेस्टोरेंट में हुई एक एक बात को रिवाईन कर रहा था और सोच रहा था की अचानक श्रृष्टि में इतना बदलाव कैसे आया जो पूरे आत्म विश्वास के साथ उसकी आंखों से आंखें मिलाए अपनी बाते कह दिया। विचार करते करते सहसा राघव मुस्करा दिया और बोला... श्रृष्टि तुमने उस वक्त क्यों इतनी आत्म विश्वास से वो बाते कहीं मैं समझ गया हूं। बस कुछ दिन की वेइट करो मैं तुम्हारे मन की सभी शंका को दूर कर दूंगा।
कुछ देर ओर बैठने के बाद राघव दफ्तर के भीतर गया फ़िर थोडा बहुत काम करके घर को चला गया जहां से वो तैयार होकर एयरपोर्ट के लिए चल दिया।
जारी रहेगा….
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भाग - 34
दिन के करीब चार बजे माताश्री कॉलेज से घर लौटी घर का मुख्य द्वार खुला था और श्रृष्टि की स्कूटी आंगन में खड़ी थीं। यह देखकर वो समझ गई कि श्रृष्टि घर आ गई हैं मगर एक सवाल उनके मस्तिष्क में कौंधा कि श्रृष्टि आज इतनी जल्दी घर कैसे आ गई। कहीं उसकी तबीयत तो खराब तो नहीं हैं।
इस सवाल के उत्पन्न होते ही माताश्री तुरंत घर में प्रवेश किया। बैठक में श्रृष्टि को न पाकर आवाजे देते हुए श्रृष्टि के कमरे की ओर बढ़ गईं।
कमरे का द्वार खुला हुआ था। भीतर जाते ही देखा श्रृष्टि छीने के बल लेटी हुई थीं। तूरंत माताश्री उसके पास गईं और बिस्तर पे बैठकर श्रृष्टि के पीठ पर हाथ रखकर बोलीं... श्रृष्टि बेटा क्या हुआ तू आज इतनी जल्दी कैसे आ गईं।?
मां की आवाज सुनते ही श्रृष्टि तूरंत उठाकर बैठ गई और आंखों को पोंछने लग गईं। क्षणिक पल में ही माताश्री भाप गई श्रृष्टि किसी बात से बहुत आहत हुई हैं और उसकी भरपाई करते हुए अपने कोमल आंखो को बहुत कष्ट दिया हैं।
"श्रृष्टि बेटा क्या हुआ तू इतना क्यों रोई कि तेरी आंखे और चेहरा सूज सा गया हैं।"
श्रृष्टि... मां मुझे जिस बात का डर था आज वोही हो गया जिससे न जानें मैं कब से बचती आ रही थीं। आज सर ने अपने प्यार का इजहार कर दिया और मैं चाहकर भी उनके प्यार को अपना नहीं पाई।
इतना बोलकर श्रृष्टि की रुलाई फिर से फूट पड़ी और मां से लिपट गईं। माताश्री उसके सिर सहलाते हुए बोलीं... जब तू उससे इतना प्यार करती हैं। उससे दूर नहीं रह सकती हैं फ़िर मना क्यों किया?
मां के इस सवाल का जवाब श्रृष्टि के पास था पर दे नहीं पाई और माताश्री बखुबी समझ रहीं थीं कि किस वजह से श्रृष्टि इतना प्यार करने के बावजूद राघव को मना कर दिया। इसलिए वो खुद से बोलीं... श्रृष्टि बेटा हम कभी कभी इंसान को समझने में भुल कर बैठते हैं। यही भूल तू और मैं तेरे सर को लेकर कर बैठें। मेरी भूल उसी दिन टूट गई थी जिस दिन मेरी पैर में फैक्चर हुआ था और शाम को तेरी साक्षी मैम हमारे घर आई थी उस दिन साक्षी बिटिया ने मुझे कुछ ऐसी बातें बताया जिसे जानकर मैं समझ गई कि तेरे सर तेरे पापा और नाना नानी जैसे दोहरे चरित्र वाला नहीं है।
श्रृष्टि तूरंत मां से अलग हुई और अपने आंखों को पोछते हुए बोली... उस दिन तो मैं आप दोनों के साथ ही थी फ़िर कब बताया कहीं आप झूठ तो नहीं बोल रहे हों।
"नहीं रे मैं क्यों झूठ बोलने लगीं उस दिन जब तू चाय बनाने गई थी तब बोला था। क्या बोला था ये मैं तूझे नहीं बोल सकती क्योंकि साक्षी बिटिया ने वो बाते तूझे बताने से मना किया था। तूझे जानना हैं तो साक्षी बिटिया से पूछ लेना।"
श्रृष्टि... वो तो मैं पूछ ही लूंगी साली मादर....तभी मा ने उसके मुह पे हाथ रख दिया और बोली नो गाली। जान लो अब वो तुम्हारी बहन है
सोरी मां, मा मैं कुछ कुछ तो जान ही गई थीं कि सर दोहरे चरित्र वाले नहीं हैं लेकिन उनके घर वाले ऐसे हुए तो क्या होगा और अगर नहीं हुए तो कहीं वो आप के बारे में जानकर आप पे लांछन लगाकर मुझे ठुकरा दिया तो।? मैं सब कुछ सह सकती हूं पर कोई आप पर लांछन लगाएं ये मैं नहीं सह सकती सिर्फ इसी कारण मैं सर को मना कर दिया।
बेटी की बाते सुनते ही माताश्री की पलके भारी हों गई और आंखे मिच लिया फ़िर श्रृष्टि को खुद से लिपटा कर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि आज तेरी बातों ने मुझे भी ये सोचने पर मजबूर कर दिया और जो साक्षी ने भी बोला था कि तू जब मेरे कोख में थी जरूर मैंने अलहदा कुछ खाया था जिसके कारण तू ऐसी सोच के साथ पैदा हुइ। जहां प्यार होते ही प्रेमी सिर्फ अपने खुशी की सोचते हैं वहीं तू सिर्फ इसलिए अपना प्यार कुर्बान कर रही है ताकि तेरे मां पर लांछन न लगें। तूझे अपना प्यार कुर्बान करने की जरूरत नहीं हैं तू अभी के अभी फोन कर और तेरे सर को हां कर दे।
श्रृष्टि... मैं ऐसा बिल्कुल नहीं करूंगी मैं जुदाई सह लूंगी पर आप पर लांछन लगे ये सह नहीं पाऊंगी।
"अरे पगली मां पर इतना तो भरोसा कर ले तेरे कारण तेरी मां पर लांछन नहीं लगेगा।"
श्रृष्टि... मतलब क्या हैं आपका?
"बस इतना जान ले कुछ बातें समय आने पर पता चले तो ही बेहतर होता हैं।"
श्रृष्टि... मतलब आप सर के परिवार के बारे मे जानते है। बताओं न मां आप उनके परिवार के बारे में क्या जानते हों।?
"क्या और कैसे जानती हूं ये तेरे लिए अभी जानना ज़रूरी नही है। जब समय आएगा मैं तूझे बता दूंगी अभी जो जरूरी है वहीं कर तेरे सर को फ़ोन कर और हां बोल दे।"
अपने प्यार को मार मत बेटी
मां से “हां” बोलने की बात सुनकर श्रृष्टि का चेहरा खिल उठा और तूरंत फोन उठा लिया फ़िर कुछ सोचकर मुस्करा दिया और फ़ोन को वापस रख दिया।
"क्या हुआ फ़ोन क्यों रख दिया?"
श्रृष्टि…कल दफ्तर जाकर मै खुद उन्हे डेट पर चलने को कहूंगी फिर वहीं पर ही उनके प्रपोजल को एक्सेप्ट कर लूंगी और कुछ बातों की माफी भी मांग लूंगी जो आज मैंने उन्हें कहा था।
"एक तो प्रपोजल एक्सेप्ट नहीं किया। ऊपर से कुछ कह आई। बता क्या कह आई? जिसके लिए तूझे माफी मांगनी हैं।"
श्रृष्टि... ये बातें उनके ओर मेरे बीच की हैं जिसे मैं किसी को भी नहीं बताने वाली।
माताश्री ने जानने की जिद्द भी नहीं कियाबस सिर्फ अनुभवी आँखों ने उसे भाप ने की कोशिश की। श्रृष्टि को देखकर वो समझ गई। बाते बहुत बडी है। जिसके कारण उसकी खुशी में हल्की सी उदासी और अफसोस झलक रहीं थीं।
अब उसके मन के मोर फिर नाच उठे थे
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अगले दिन जब श्रृष्टि दफ्तर पहुंची तो उसका चेहरा खिला हुआ था। भीतर ही भीतर श्रृष्टि प्रफुल्लित महसूस कर रहीं थीं।
जिसे देखकर साक्षी समझ गई कि इसका कारण क्या हों सकता हैं फिर भी वो बार बार श्रृष्टि से पूछ रहीं थीं और श्रृष्टि बाद में बताऊंगी कहकर टाल दे रहीं थीं।
धीरे धीरे वक्त बीता लेकिन श्रृष्टि को राघव अभी तक नहीं दिखा। तब राघव से मिलने चली गईं। वहा राघव के जगह किसी ओर को बैठा देखकर चौक गई और बिना कुछ बोले वापिस आ गईं। वापस आकर साक्षी से पुछा तो साक्षी ने बता दिया की राघव कुछ दिनों के लिए बहार गया हैं।
राघव की न होने की बात जानकर श्रृष्टि को अफसोस हों रहा था। इसलिए उसने अपना मोबाइल निकला और एक msg राघव को भेज दिया फिर अपना काम करने लग गईं।
अभी कुछ ही वक्त बीता था कि "सूना है कोई नई नई आई हैं जिसकी खूब चर्चे हों रहीं हैं" की आवाज वहा गुंजा।
बोलने वाले शख्श को देखकर श्रृष्टि फ़िर से चौक गईं और साक्षी सहित बाकि सभी लोग उसे देखकर औपचारिक बाते करने लग गए मगर बातों के दौरान वह शख्स श्रृष्टि को देखकर कमीनगी मुस्कान से मुस्कुरा रहा था और अपने होठों पर जीभ फिराकर सूखे होंठो को गीला कर रहा था।
यह देखकर श्रृष्टि का हावभाव बदल गया जहां वो खुशी से चहक रहीं थी पल भर में उसकी खुशी गुस्से में बदल गई और मुट्ठी को सकती से भींचे खड़ी थीं।
वह शख्स कुछ कदमों का फैंसला तय करके श्रृष्टि के पास गया और उसके सिर से पाव तक नज़रे फेरकर बोला...बड़ा ही खिला खिला फूल लग रही हों वैसे बता सकती हो किस भंवरे ने रस चूस कर कली से फूल बना दिया।
इन शब्दों का मतलब वह मौजद एक एक शख्स समझ गया था और श्रृष्टि का गुस्सा आसमान को छू गया। दोनों मुठ्ठी को शक्ति से भीचे दांत किटकिटाते हुए बोलीं... अरमान सर तमीज से बात करना सीख लिजिए आपके बहुत काम आएगा। खासकर किसी लड़की से, किसी लङकी के बारे में कुछ भी बोलने से पहले जानकारी ले लेना चहिए। एक वो राघव सर हैं जो सभी से कितने सलीके से पेश आते है एक आप हों जिसे तमीज से सख्त परहेज हैं।
अरमान... राघव मेरा भाई तो है पर सगा नहीं सौतेला इसलिए मेरा उससे कोई सरोकार नहीं हैं और तमीज की बात तू न ही करें तो बेहतर हैं। भूल गई मॉल वाली बात।
श्रृष्टि... भूली नहीं वहा भी बदतमीजी आप ही ने किया था इसलिए तो...।
"अरमान राघव सर नहीं हैं इसका मतलब ये नहीं की तू किसी के साथ बदतमीजी करेगा।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कटकर साक्षी बोलीं
"तू मेरी दोस्त है या राघव की चमची भूल गई मेरे ही कारण तूझे यहां नौकरी मिली थी।" अरमान साक्षी की और बढ़ते हुए बोला
साक्षी... हां ये सच हैं की नौकरी तेरे कारण मिली थी। लेकिन यहां टिकी हुई हूं तो सिर्फ मेरे टैलेंट के कारण अब तू यहां से जाता हैं कि राघव या फिर तिवारी सर को फ़ोन करू।
तिवारी का नाम आते ही अरमान वहा से खिसक लिया मगर जाते जाते श्रृष्टि को बोला... मॉल में जो किया था उसका बदला तो मैं तेरे से लेकर रहूंगा। भारी भीड़ में मुझे बेइज्जत किया था न देख अब मैं तेरा क्या हस्र करता हूं।
जारी रहेगा...
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भाग - 35
अरमान बोलकर चला गया और साक्षी सहित सभी श्रृष्टि को अचंभित होकर देखने लग गए। जहां श्रृष्टि गुस्से में फुफकार रहीं थीं। ये देख साक्षी एक गिलास पानी श्रृष्टि को दिया। जिसे पीकर श्रृष्टि का गुस्सा कुछ कम हुआ तब साक्षी बोली... श्रृष्टि तूने ऐसा किया क्या था? जिसका बदला अरमान तुझसे लेना चाहता हैं।
श्रृष्टि... जिस दिन मैं यह साक्षत्कार देने आई थी उससे एक दिन पहले की बात हैं। मैं और समीक्षा शॉपिंग पर गए थे। जब हम बिल काउंटर पर बिल पे कर रहे थे। तभी ये हरामी मेरे पीछे हाथ रख दिया सिर्फ रखा ही नहीं दा…(आस पास देखकर वो पूरा नहीं बोली रूक गई कुछ देर रूकने के बाद आगे बोली) तब मैंने इसे खीच कर दो तीन करारे थप्पड़ जड़ दिऐ...थे।
"क्या थाप्पड जड़ दिया।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कटकर चौकते हुए साक्षी बोलीं तू ऐसा भी कर सकती है मुझे ऐसा अंदाजा नहीं था|
"साक्षी मैम इसमें चौकने की कोई बात नही है अरमान सर ने हरकते ही ऐसा किया था।" एक सहयोगी बोला
"राघव सर के होते हुए भी दफ्तर में सभी से बदतमीजी से पेश आता है। तो बाहर तो पता नहीं किया किया करता होगा।" एक और साथी बोला
शिवम... श्रृष्टि मैम आपने सही नाम दिया हरामी साला कमीना कहीं का जहां राघव सर सभी से कितने तमीज से पेश आते है। चाहें वो सफाई वाला ही क्यों न हों और ये हरामी सभी से ऐसे पेश आता है जैसे कीड़ा मकौड़ा हों। महीनों से नहीं था तो सभी शान्ति से रह रहे थे अब आ गया है पता नहीं क्या क्या करेगा और श्रृष्टि मैम आप जरा बचकर रहना।
श्रृष्टि... बचकर किया रहना ज्यादा बदतमीजी करेगा तो अच्छे से उसके गालों को छैंक दूंगी।
साक्षी…मैं वो नौबत ही नहीं आने दूंगी। अभी राघव सर को फ़ोन करके बताती हूं।
"नहीं साक्षी अभी रहने दे वो काम से गए हैं। ऐसी बातें जानकर बहुत परेशान हों जायेंगे।" साक्षी को रोकते हुए श्रृष्टि बोलीं
साक्षी... ओ हो बड़ी फिक्र है उनकी हां होनी भी चहिए उनकी मा…(आस पास देखकर माशूका पूरा नहीं बोलीं फिर कुछ देर रूक कर आगे बोलीं) चल आज रहने देती हूं आगे इसने परेशान किया तो मैं किसी की नहीं सुनुगी।
इसके बाद सभी काम में लग गए। लंच के वक्त सभी खाना खा रहे थे तभी श्रृष्टि का फ़ोन बजा स्क्रीन पर नाम देखकर मुस्कुरा दिया फ़िर वॉल्यूम बटन दबाकर फोन को साइलेंट कर दिया। उसके बाद कई बार फ़ोन बजा हर बार श्रृष्टि ने ऐसा किया।
कुछ देर बाद साक्षी का फ़ोन बजा तो साक्षी फोन लेकर साईड में चली गई फिर फ़ोन रिसीव करके बोलीं... हां सर बोलिए।
"ये श्रृष्टि फ़ोन क्यों नहीं रिसीव कर रही हैं। पहले तो खुद msg करती है सॉरी सर आप कब आ रहे हो जल्दी से आना मेरे पास आपके लिए एक सरप्राइस है। अब कॉल कर रहा हूं तो रिसीव नहीं कर रहीं हैं।"
साक्षी... आपकी माशूका है आप ही जानो कॉल क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं। वैसे ये सॉरी क्यों बोला और सरप्राइस क्या देने वाली हैं।
"सॉरी क्यों बोला ये आकर बता दूंगा। लेकिन सरप्राइस क्या है ये श्रृष्टि ही जानें वैसे मुझे कुछ कुछ अंदाजा है।"
साक्षी...नॉटी बॉय कल ही प्रपोज किया और इतनी जल्दी बड़ी...।
"हट पगली कुछ भी सोचती है। मैं रखता हूं।" इतना बोलकर कॉल काट दिया।
इसके बाद साक्षी श्रृष्टि के पास गई और उससे पूछने लगी की वो राघव का कॉल क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं। सॉरी क्यों बोला और सरप्राइस क्या देने वाली हैं। उसकी एक ऊँगली श्रुष्टि के पेट की तरफ बढाते हुई तो श्रुष्टि ने उसकी ऊँगली को वाही टोक दिया और इशारे से समझाया की जगह सानुकूल नहीं है तो उसने भी टाल दिया ये कह कर की बाद में बताएगी।
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राघव को गए लगभग एक हफ्ता हों चुका था। इन एक हफ्ते में अरमान दफ्तर आने के बाद कुछ देर काम करता कभी नहीं करता फिर जा पहुंचता श्रृष्टि लोगों के पास वहां पहुंचते ही शुरू हो जाता।
उसके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ श्रृष्टि ही थी। उसके साथ वाहियात हरकते करता बदजुबानी करता कभी कभी तो श्रृष्टि को यह वहा छूने की कोशिश करता और हर बार श्रृष्टि उसके वाहियात हरकतों के लिए जी भरके सूना देती लेकिन अरमान पे कोई असर ही नहीं होता।
आज भी अरमान वहां पहोचा और चुपके से द्वार खोलकर भीतर गया जहां सभी अपने अपने काम में मग्न थे और श्रृष्टि खड़ी थी। उसका ध्यान प्रोजेक्टर पर था।
अरमान धीरे से श्रृष्टि के पास पहोचा और एक हाथ से उसके नितंब की गोलाई नाप ने की नकार कोशिश की कुछ ही देर में एक झन्नाटेदार थाप्पड़ अरमान को हिला दिया उसके बाद तो एक के बाद एक कई थाप्पड़ अरमान के गालों का मस्त छिकाईं कर दिया फ़िर श्रृष्टि चीखते हुए बोलीं...तुझ जैसा गिरा हुआ इंसान मैंने आज तक नहीं देखा तूझे पैदा करने वाले भी तेरे जैसा कमीना होगा तभी तुझ जैसा जलील पैदा हुआ। जिसे कितनी भी गालियां दे लो फर्क ही नहीं पड़ता।
"तेरी तो..मा की चु.....।" बस इतना ही अरमान ने बोला था की एक और झन्नाटेदार थाप्पड़ उसके गालों को हिला दिया। इस बार थप्पड़ मरने वाली साक्षी थीं।
साक्षी... तू तो जानवर कहलाने के लायक भी नहीं उन्हें एक बार डांटो फटकारों तो कहना मान लेते है मगर तू.. तू तो उनसे भी गया गुजरा हैं जिस पर किसी भी बात का फर्क हैं नहीं पड़ता।
अरमान आगे कुछ बोलता उसे पहले दूसरे सहयोगी में से एक बोला...अरमान आज तूने हद पर कर दिया। अब तू चुप चाप निकल जा वरना हम भूल जायेंगे की तू यहां का मालिक हैं। और एक कुत्ते से बदतर बन कार बाहर जाएगा
शिवम...अरे कहां भेज रहा है पकड़ इसे आज इसे चप्पल की माला पहनाकर दफ्तर में मौजूद सभी लड़कियों के पैर चटवाएंगे।
माहौल बिगड़ता देख अरमान खिसक लेना ही बेहतर समझा और श्रृष्टि धम से वहा बैठ गई और सुबकने लग गई।
साक्षी ने मोर्चा संभाला और श्रृष्टि को दिलासा देने लग गईं। कुछ देर बाद श्रृष्टि खड़ी हुई और बोलीं... मैं आज ही इस्तीफा देखकर यहां का जॉब छोड़ दूंगी मुझे ऐसे जगह काम नहीं करना जहां अरमान जैसे जलील लोग हो उसे उसकी इज्जत की फिक्र नहीं पर मुझे मेरी इज्ज़त सब से प्यारी हैं।
साक्षी... श्रृष्टि मेरी बात सुन इस बारे में राघव सर को कुछ भी पता नहीं पहले उन्हें बताते हैं। अगर उन्होंने अरमान पर कोई एक्शन नहीं लिया तो सिर्फ तू ही नहीं हम सभी इस्तीफा दे देगें।
इसके बाद तो एक एक करके सभी साक्षी की कही बात दोहराया फ़िर श्रृष्टि मान गई तब साक्षी ने राघव को फोन करके वहां क्या क्या पिछले कुछ दिनों में हुआ सभी बता दिया साथ ही इसकी शुरुआत कब से हुआ यह भी बता दिया।
राघव सभी बाते सुनते ही गुस्से में तिलमिला उठा और बोला... साक्षी फोन श्रृष्टि को दो।
साक्षी ने फोन श्रृष्टि के कान में लगा दिया और राघव बोला... श्रृष्टि मैं अभी यहां से निकल रहा हूं। घर पहुंचते ही पहले अरमान का बो हांल करुंगा की जिदंगी भर किसी भी लङकी के साथ बदसलूकी नहीं करेगा। बस तुम मुझे छोड़कर मत जाना।
इतना बोलकर राघव ने फोन काट दिया फिर साक्षी बोलीं... श्रृष्टि सर क्या बोले
श्रृष्टि... सर बोल रहे थे वो अभी वहा से निकल रहें हैं और कह रहें थे मुझे….।
आगे पूरा नहीं बोलीं बस इतने में ही चुप हों गई और साक्षी उसके कहने का मतलब समझकर मुस्कुरा दिया फ़िर कुछ देर में सब सामान्य हो गया।
जारी रहेगा….
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मित्रो शायद अगला भाग अंतिम रहेगा
कुछ घटनाओं को कम करके कहानी को ख़तम करते है
पढ़िएगा जरुर
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भाग - 36
शाम को करीब चार बजे राघव घर पहुंचा। घर पर तिवारी उस वक्त बैठक में बैठें दिन भर के घटनाओं का विवरण न्यूज चैनल से ले रहे थे। राघव को इतनी जल्दी आया देखकर तिवारी बोला... राघव तेरा काम हों गया।? इतनी जल्दी ?? तुमने तो काफी दिन मांगे थे !!!!!!!!!!
राघव...नहीं पापा बीच में छोड़कर आया हूं।
तिवारी... क्या.. पर क्यों।?
राघव...बता दुंगा पहले आप मेरे सौतेले भाई और सौतेली मां को बाहर बुलाइए।
दांत पीसकर राघव बोला था। जिसे देख तिवारी भी हैरान रह गए क्योंकि राघव कभी इस तरह से बरखा और अरमान के लिए सौतेला नहीं बोला था। तिवारी आगे कुछ बोलता उसे पहले ही अरमान बरखा के कमरे से निकलकर बाहर आया। उसे देखते ही राघव दोनों मुठ्ठी बीचे अरमान की और बढ़ गया और एक खीच के जड़ दिया। बस चटक और अहहा की आवाज निकला और उसके बाद एक और पड़ा। अरमान कुछ बोलने के लिए मुंह खोलता तब एक और पड़ता जितनी बार मुंह खोला उतनी बार झन्नाटेदार थाप्पड पड़ा।
यह देख तिवारी हैरान रह गए कि आज राघव को हो क्या गया। तिवारी उठाकर राघव को रोकने के लिए आगे बढे उधर से बरखा भी कमरे से बाहर निकलकर आई और अरमान को थप्पड पडते देख बोलीं... क्यों मेरे बेटे को मार रहा हैं घर आते ही पगला गया हैं जो इसे मारे जा रहा हैं।
तिवारी... हां क्यों मार रहा हैं।
"क्यों मार रहा हूं ये इससे पूछो... पूछो इससे आज दफ्तर में क्या करके आया।" दांत पीसते हुए राघव बोला
दफ्तर की बात सुनते ही बरखा से छूटकर अरमान भागने को हुआ की राघव ने उसे पकड़कर एक ओर झन्नाटेदार थाप्पड जड़ दिया फिर बोला... तूझे भागना है जरूर भागना और साथ में अपनी मां को लेकर हमेशा के लिए इस घर से भाग जाना लेकिन जाने से पहले अपनी कारस्तनी बता दे ताकि तेरी मां बरखा को पता तो चले उन्हें घर से क्यों निकाला जा रहा हैं।
बरखा... मैं क्यों जाऊंगी न मेरा बेटा कहीं जायेगा जाना हैं तो तू जा।
राघव... कैसे नहीं जाओगे तुम्हारे बाप ने दहेज में दिया था जो डेरा जमाए बैठे हों।?
राघव की बाते सुनते ही बरखा दांत पीसकर रह गई और तिवारी बोख्लाते हुए बोले...राघव पहले बता तो दे क्या हुआ फिर मैं फैंसला करुंगा की इन्हें घर से निकलना है कि किया करना हैं।
राघव... पापा ये कमीना बरखा का बेटा मेरा सौतेला भाई पिछले कुछ दिनों से श्रृष्टि के साथ बदसलूकी कर रहा था आज इसने इतनी नीच हरकत किया कि श्रृष्टि ने इसे थाप्पड मार दिया सिर्फ आज ही नहीं इससे पहले भी एक बार इसे मॉल में भीड़ के बीच थप्पड मारा था और जब श्रृष्टि को दफ्तर में देखा तब से ये नीच उससे बदला लेने की बात कहा कर रोज उसके साथ बदसलूकी करने लगा। आज सभी कर्मचारियों ने उसे मार ने की ठान ली थी अब बताओ मै और आप किस मुह से ऑफिस जा पायेंगे ???
अरमान के कर्म सुनते ही तिवारी बौखला गया और कुछ कदम आगे बढ़कर अरमान को कई थाप्पड मारा फिर चीखते हुए बोला... नीच आज तूने साबित कर दिया तू सच में मेरा सौतेला बेटा हैं। तूझे मेरी इज्जत की जरा भी परवाह नहीं जिन हरकतों की वजह से राघव ने DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से पार्टनरशिप तोडकर करोड़ों का नुकसान उठाया किस लिए सिर्फ इसलिए कि मेरी और कम्पनी की साख पर कोई दाग न लगे और आज तूने वही हरकत हमारे ही दफ्तर में काम करने वाली एक लङकी के साथ करके मेरी बनी बनाई साख को धूमिल कर दिया।
कुछ देर की चुप्पी छाया रहा फ़िर चुप्पी को तोड़ते हुए तिवारी बोला...बरखा आज इसने जो किया ये सब तुम्हारी परवरिश का नतीजा है अच्छा हुआ जो तुम राघव से नफरत करती थी वरना तुम्हारी परवरिश पाकर राघव भी इसके जैसा हों जाता।
बरखा... आप मेरे परवरिश पे दाग न लगाएं मैंने इसे कोई गलत परवरिश नहीं दिया।
तिवारी...चलो माना तुमने इसे गलत परवरिश नहीं दिया फिर इसके अंदर ये गुण आया कहा से जरूर ये इसकी पैदासी गुण होगा और इसके बाप से इसे विरासत में मिला होगा। बरखा अब मैं तुम दोनों मां बेटे को ओर नहीं झेल सकता तुम दोनों ने मेरे और राघव के जीवन में बहुत जहर घोल लिया अब और नहीं तुम दोनों अपना बोरिया बिस्तर समेटो और फौरन निकल जाओ।
बरखा... पर..।
तिवारी... पर वर कुछ नहीं जीतना बोला हैं उतना करो। और हां अब मुज से कुछ भी उम्मीद मत रखना जो दिया है वो भी छीन लूँगा
अरमान... मां चलो इनको तो बाद में देख लेंगे कोर्ट में घसीटकर इनकी नाक न रगड़वाया फ़िर बताना।
इतना बोलते ही राघव ने एक झन्नाटेदार थप्पड जड़ दिया फ़िर बोला... चल जा तूझे जो करना हैं कर लेना। रही बात नाक रगड़वाने की वो तो मैं तेरा रगड़वाऊंगा वो भी बीच सड़क पर अब निकल इस घर से यहां का दाना पानी तेरे लिए बंद हों चुका हैं।
तिवारी... बरखा इससे बोलों चुप रहे और कोर्ट में घसीटने की बात न करें नहीं तो इसे बहुत बुरे दिन देखना पड़ेगा।
बरखा... आप हमारे साथ जो कर रहें हो सही नहीं कर रहे हों इसका भुगतान आपको करना पड़ेगा। चल अरमान अब इन दोनों बाप बेटे को सबक सीखाकर ही रहेंगे।
इतना बोलकर अरमान को साथ लिए बरखा बहार की और चल दिया और तिवारी बोला... बरखा मैं भी देखना चाहुंगा की तुम मुझे क्या सबक सिखाती हो।
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कुछ देर की खामोशी छाई रहीं फिर तिवारी ने पानी लाने को कहा तभी राघव को कुछ याद आया और वो बोल…पापा श्रृष्टि के साथ DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में ऐसा कुछ हुआ था जिसके कारण उसने वहा का जॉब छोड़ दिया था आज फ़िर उसके साथ वैसा ही सलूक हुआ कहीं वो यहां का जॉब भी न छोड़ दे अगर जॉब छोड़ दिया। तो मेरा क्या होगा?
तिवारी..तेरा क्या होगा ... कहीं ये वोही लड़की तो नही जिससे...।
राघव... हां पापा श्रृष्टि वोही लड़की है जिससे मैं प्यार करता हूं।
तिवारी... मेरे तो ध्यान से उतर गया था तूझे पहले बोलना चहिए था। चल अभी उसके घर चलते हैं। आज दफ्तर में जो हुआ उसके लिए उससे माफी मांग लूंगा और आज ही उसके घर वालों से रिश्ते की बात कर लूंगा।
राघव... पर पापा...l
बस इतना ही बोला फिर साक्षी को कॉल लगा दिया उससे बात करने के बाद राघव बोला... चलो पापा
(नोट:- कुछ पाठकों को लग रहा होगा कि लड़के वाले कैसे लड़की वालों से बात करने जा रहा हैं जबकि लड़की वाले खुद बात करने आते हैं तो मैं इस पर सिर्फ इतना ही कहुंगी कि दूसरे संप्रदाय में क्या होता हैं मै नहीं जानती लेकिन बंगाली संप्रदाय में ऐसा ही होता हैं मै उसी आधार पर लिख रही हूं
और हां अब ज़माना बदल गया है अब तो लड़का और लड़की खुद ही अपना साथी ढूँढ लेते है | मा बाप को तो सिर्फ आशीर्वाद देना होता है . ये भी जान ले अब बहोत कुछ बदल रहा है यु कहो की पूरा समाज बदल रहा है या बदल गया है)
दोनों बाप बेटे घर से चल पड़े। कुछ ही देर में राघव के मोबाइल में एक msg आया। जिसमे एक एड्रेस था। राघव उस एड्रेस को गूगल मैप में फीड किया और उसी रास्ते पर कार को दौड़ा दिया।
कुछ देर में राघव वहा पहुंचा गया। जहां से श्रृष्टि के घर की गली में घुसना था। उस गली में घुस तो गया पर ठीक लोकेशन वाला घर ढूंढ नहीं पा रहा था। कुछ देर इधर उधर भटकने के बाद किसी से पूछकर सही ठिकाना श्रृष्टि के घर के पास पहुंच गया।
राघव ने द्वार घंटी बजाया और कुछ देर बाद द्वार खुला द्वार खोलने वाले को देखकर राघव मुस्कुरा दिया क्योंकि सामने श्रृष्टि ही खड़ी थीं। राघव के साथ एक बुजुर्ग को देखकर श्रृष्टि ने उन्हें प्रणाम किया फिर दोनों को अंदर आने का रास्ता दिया।
"श्रृष्टि बेटा कौन आया हैं।" माताश्री जानकारी लेते हुए बोलीं
अब श्रृष्टि के लिए दुविधा ये थीं राघव को तो जानती थी पर उसके साथ आए शख्स को नहीं पहचानती थी तब राघव धीरे से बोला "मेरे पापा हैं।" ये सुनकर श्रृष्टि मुस्कुराते हुए बोलीं... मां सर और उनके पापा आए है। श्रुष्टि ने तिवारी जी के पैर छुए और एसा कर की एक इशारा राघव को दे ही दिया| अब अपने आप को रोक पाना भी तो मुश्किल था |
इसके बाद सभी अंदर आए। औपचारिक बातों के दौरान तिवारी माताश्री को गौर से देख रहे थे। जैसे उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहें हों। जब पहचान नहीं पाए तो तिवारी बोला…आप को कहीं तो देखा हैं। जाना पहचाना लग रही हों पर याद नहीं आ रहा है आपको कहा देखा हैं।
तिवारी की बाते सुनकर माताश्री ऐसे मुस्कुराई जैसे वो जानती है तिवारी ने उन्हें कहा देखा हैं पर बताना नहीं चाहती हों। बहरहाल तिवारी की बातों का जवाब देते हुए माताश्री बोलीं... मैं इसी शहर के मशहूर *** कॉलेज में आध्यपिका हूं शायद अपने वहीं देखा होगा। (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) श्रृष्टि बेटा इनके लिए चाय नाश्ते का प्रबंध करो।
तिवारी मना करने लगें। लेकिन माताश्री ने अपना तर्क देकर श्रृष्टि को चाय नाश्ते का प्रबंध करने भेज दिया। एक नज़र राघव को देखकर मुस्कुरा दिया फ़िर श्रृष्टि रसोई की और चली गई फ़िर तिवारी मुद्दे पर आते हुए बोले...देखिए मेडम जी मैं ज्यादा घुमा फिरा कर बात नही करूंगा राघव कह रहा था वो आपके बेटी से प्यार करता है और शायद श्रृष्टि बिटिया भी उससे प्यार करती हैं।
"जी मैं भी ये बात जानती हूं श्रृष्टि भी मूझसे यहीं कह रहीं थीं कि वो भी आपके बेटे से प्यार करती हैं।" और हां मेरा नाम मनोरमा है आप मुझे मेडम ना कहे
तिवारी... जब दोनों एक दूसरे से प्यार करते है तो हमें बीच में दीवार बनके कोई फायदा नहीं है दोनों को एक कर देने में ही भलाई हैं।
"केह तो आप सही रहें हो फ़िर भी कुछ बाते हैं जो आपको जान लेना चहिए उसके बाद ही कुछ फैसला आप ले तो ही बेहतर होगा।"
दोनों के बिच की बाते चल ही रही थी कि श्रृष्टि चाय लेकर आ गई। एक एक करके सभी को चाय दिया जब राघव को चाय दे रहीं थीं तो कुछ पल के लिए दोनों की निगाह एक दूसरे में अटक गई फिर श्रृष्टि खुद ही शर्माकर अपना निगाह हटा लिया और अपने निर्धारित जगह बैठ गई। तब तिवारी बोला... श्रृष्टि बेटा आज दफ्तर में जो हुआ उसके लिए हमे खेद हैं। मैं नहीं जानता था अपने ही घर में एक सपोला पाल रखा हैं जो सरेआम मेरी इज्जत उछलता फिरता हैं। अब जो हों गया उसे तो बदल नहीं सकता पर तुमसे माफ़ी तो जरूर मांग...।
"सर आप माफी न मांगे आप मेरे पिता के उम्र के है। इसलिए आप माफी मांगकर मुझे शर्मिंदा न करें।" बीच में रोकते हुए श्रृष्टि बोलीं
श्रृष्टि की बाते सुनके वह मौजूद सभी मुस्कुरा दिए और श्रृष्टि नज़रे झुका लिया। इसके बाद सभी चाय पीने लगे चाय पीने के दौरान राघव बोला... माजी मुझे श्रृष्टि से कुछ बात करना हैं। क्या मैं कर सकता हूं?
"हां क्यों नही श्रृष्टि बेटा चाय खत्म करके अपने सर से बात कर लो सुनो वो क्या कहना चाहते हैं।"
चाय पीने के बाद श्रृष्टि राघव को लेकर छत पर चली गई। दोनों के जाते ही तिवारी... हां तो मनोरमाजी आप कुछ कह रहे थे।
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"देखिए बात आगे बढ़ाने से पहले कुछ बाते हैं जो आपको जान लेना चहिए क्या है कि मैं एक तलाक सुदा हूं और श्रृष्टि जब लभभग चार साल की थी तब से मैं मेरे पति से अलग रहा रहीं हूं।"
तभी डोरबेल बजी और मनोरमा ने दरवाजा खोला तो सामने साक्षी मुस्कुराए हुए अन्दर चली आई अब उसे अन्दर आने के लिए कोई परमिशन की जरुरत तो थी ही नहीं|
अन्दर अपनी जगह पर बैठते ही बोली “ सोरी आप लोगो की बिच में मै आ गई लेकिन मेरे बगैर कुछ होने नहीं दूंगी” कह के हस दी
तिवारीजी ने भी साक्षी को आवकारते हुए बोले हा बेटा तुम्हारे बगैर कुछ नहीं हो सकता लेकिन कुछ जल्दी ही आ गई
मनोरमाजी “ खेर अब आ ही गई है तो मुझे कोइ आपत्ति नहीं वैसे भी ये सब जानती है और कुछ तो उसके ये पोलिटिकल व्यवहार से ही ये सब और यहाँ तक है “ कह के हस्ते हुए बोली चले अब हम आगे बात करते है
तो ये जान लेना आवश्यक था जो मैंने बता दिया
जारी रहेगा...
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भाग - 37
तिवारी... तो इसमें क्या बडी बात है ऐसे तो मैं भी हूं बस फर्क इतना है आपने दूसरी शादी नहीं किया और मैंने पहली पत्नी के मौत के बाद दूसरी शादी कर लिया था। वैसे एक बात बता दूं अपने दूसरी शादी न करके ही सही किया। आप दूसरी शादी कर लेते तो शायद श्रृष्टि बिटिया का जीवन भी राघव जैसा हो जाता।
"आप कहना किया चाहते है मैं कुछ समझी नहीं।"
तिवारी... मैं समझा देता हूं। देखिए मेरा मानना है की जब रिश्ता जोड़ने आए ही है तो आप बिना पूछे ही अपने बारे में बता रहें हैं तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं भी अपने बारे में बता दूं। दरअसल राघव के मां की मौत के बाद राघव अकेला रहता था और मैं काम में रहता था इसलिए मैंने दूसरी शादी किया क्योंकि राघव उस वक्त पांच साल का था। लेकिन मेरी शादी का फैंसला मेरे बेटे के लिए मुसीबत लेकर आया। अब आप समझ ही रहीं हो एक सौतेली मां क्या क्या कर सकती हैं। बस इसलिए मैंने कहा था आप दूसरी शादी न करके ठीक किया था।
तिवारी की बाते सुनने के बाद माताश्री बोलीं…मतलब आपके बेटे को मां के होते हुए भी बाल उम्र से मां की ममता के लिए तरसना पडा।?
तिवारी...मां कहा सौतेली मां खैर छोड़िए मैं उन बातों पर ज्यादा चर्चा नहीं करने आया हूं। मैं बस इतना जानना चाहता हूं क्या आपको ये रिश्ता मंजूर हैं।?
साक्षी “ हां मजूर है ही ही ही “
तिवारीजी स”साक्षी तू अपना मुह बंध रखे तो अच्छा “
"मंजूर तो हैं पर...।"
तिवारी... आप डरिए नहीं श्रृष्टि बिटिया को राघव की सौतेली मां परेशान नहीं करेगी क्योंकि वो अब हमारे साथ नहीं रहती हैं।
राघव की सौतेली मां क्यों उनके साथ नहीं रहती यहां सवाल माताश्री के मन में उपजा मगर वो इस सवाल को नहीं पुछा बल्कि कुछ ओर बोला... ठीक है अब बच्चों को आने दिजिए वो जैसा कहेंगे वैसा ही करेंगे।
तिवारी भी उनकी बातों से सहमत हों गए फ़िर दोनों दूसरी ओर बाते करने लग गए।
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दृश्य में बदलाव
राघव और श्रृष्टि जब छत पर पहुंचे तब राघव बोला... श्रृष्टि मुझे माफ़ कर देना मैं तुमसे वादा किया था फ़िर भी तुम्हारे साथ वैसा ही हुआ। जिसके लिए तुमने DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ा था।
राघव की बाते सुनकर श्रृष्टि को शरारत सुझा इसलिए श्रृष्टि बोलीं...सर आपका वादा तो टूट चुका हैं इसलिए मैंने तय किया हैं अब मैं आपकी कम्पनी में नौकरी नहीं करूंगी।
राघव की निगाह श्रृष्टि पर बना हुआ था। इसलिए उसे श्रृष्टि की आंखों में दिख गया कि वो शरारत करने पे उतर आईं हैं तो राघव भी शरारत करते हुए बोला... ठीक है जब तुमने इस्तीफा देने का मन बना ही लिया है तो मैं क्या कर सकता हूं? ठीक है श्रृष्टि तुम कल को इस्तीफा भेज देना अब में चलता हूं।
इतना बोलकर राघव दो कदम बड़ा ही था कि श्रृष्टि उसका हाथ थामे रोकते हुए बोली…सॉरी सर मै तो बस आपसे शरारत कर रही थीं।
राघव... वो क्यों भला।
श्रृष्टि... आप नहीं जानते।
राघव... नहीं बिल्कुल नहीं जानता।
श्रृष्टि...तो फिर अपने रेस्टोरेंट में जो बोला क्या वो सभी बाते झूठ कहा था?
राघव... नहीं वो सभी बाते सच था लेकिन तुमने मेरे प्यार को स्वीकारा ही नहीं बल्कि मेरे आंखों में आंखे डालकर बोल दिया तुम्हारे और मेरे प्यार के बीच मेरी अपार संपत्ति दीवार बने खड़ी हैं। मैं….।
राघव इससे आगे बोल ही नहीं पाया क्योंकि श्रृष्टि राघव से लिपट गई और सिसकते हुए बोलीं…सॉरी सर मै भी आपसे उतना ही प्यार करती हूं जितना की आप मूझसे करते है। मैं तो...।
"इसलिए न की कुछ बाते हैं जो तुम्हें मेरे प्यार को स्वीकारने से रोक रहीं थी।" श्रृष्टि की बाते पूरा करते हुए राघव भी श्रृष्टि से लिपट गया। हम्मम बस इतना ही श्रृष्टि कह पाई और राघव से लिपटे सुबकती रहीं तब राघव बोला... श्रृष्टि जब तुमने वो बात कहीं थी तब मैं खुद अचंभित था कि तुमने ऐसा कहा तो कहा क्यों? लेकिन जब दफ्तर पहूंच के तुम छुट्टी लेकर चली गईं तब मैंने रेस्टोरेंट की एक एक बात को फ़िर से मस्तिष्क में दोहराया तब मुझे समझ आया कि तुम मेरी आंखों में धूल झोंकने के लिए ही मेरी आंखो से आंखे मिलाकर पूर्ण आत्म विश्वास से वो बाते कहीं थी।
श्रृष्टि... इसके अलावा मैं और क्या करती आप मेरी शारीरिक भाषा से समझ जा रहे थे कि मेरा अंतर मन कुछ कहा रहा है और मुंह से कुछ ओर ही निकल रहा हैं
इतना कहाकर श्रृष्टि फिर से सुबकने लग गई तब श्रृष्टि का सिर खुद से तोड़ा अलग करके उसके आंखों में देखते हुए राघव बोला…बस श्रृष्टि बस अब और नही अब तुम मुझे वो बाते बताओ जिसके लिए तुम मुझे जीतना तकलीफ दे रही थीं उससे कहीं ज्यादा तकलीफ तुम खुद सह रहीं थीं।
श्रृष्टि... बताना जरूरी हैं।?
राघव... हां ज़रूरी हैं क्योंकि उन्हीं बातों के कारण मेरी श्रृष्टि जो मूझसे प्यार करते हुए भी स्वीकार नहीं पा रही थीं और तकलीफ सह रहीं थीं।
इसके बाद कुछ देर की चुप्पी छाया रहा फ़िर श्रृष्टि ने वो सभी बाते बता दिया जो वो माताश्री के बारे में जानती थी और उसके अलावा यहां भी बता दिया कि माताश्री की बीती जिंदगी के बारे में जानकर कहीं राघव के परिवार वाले उसे ठुकरा न दे और उसके मां पर लांछन न लगा दे। इतना कहने के बाद श्रृष्टि बोलीं…मैं सब कुछ सह सकती हूं पर मां पर कोई मेरे कारण लांछन लगाएं ये मैं कभी नहीं सह सकती हूं। यहीं एक मूल वजह है आपको मना करने के पीछे।
राघव...श्रृष्टि तुम अपने मन से यह डर निकाल फेंको क्योंकि पापा तुम्हारे और मेरे शादी की बात करने आएं हैं। समझी।
श्रृष्टि... क्या शादी।?
राघव... हां हमारी शादी। मैं पापा को बता दिया था की मैं तुमसे प्यार करता हूं और पापा को भी इस बात से कोई आपत्ती नहीं है कि तुम हमारे कम्पनी में मुलाजिम हों या कुछ ओर।
ये बात सुनकर श्रृष्टि मुस्कुरा दिया फ़िर राघव से अलग होकर दो कदम पीछे गई फ़िर बोलीं…मुझे आप से शादी नहीं करनी।
राघव... अच्छा फ़िर से नखरे! चलो बताओं शादी क्यों नहीं करना?
श्रृष्टि... वो इसलिए, वो इसलिए... बस मुझे आपसे शादी नहीं करनी।
इतना बोलकर श्रृष्टि नीचे भाग गई और राघव भी उसके पीछे पीछे नीचे चला गया।
खेर इस बिच जब राघव और श्रुष्टि एक दूजे से बात या फिर यु कही की छेड़छाड़ कर रहे थे तब .......
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साक्षी मा मुझे एक कप चाय मिलेगा अगर आप को तकलीफ ना हो
मा “ अरे इसमें तकलीफ कैसी पर तू खुद भी बना सकती है
नहीं मा मै तब तक कुछ बाते सर से करना चाहती हु
अच्छा !!!! देख कुछ गर्बाद मत करना तिवारी जी इस से जरा संभाल के तब तक मै इस नटखट की चाय बना लेती हु
माताजी चाय तो रसोई में बना रही थी पर उनके कान तिवारी और साक्षी की बातो की ऑर थे पर खास कुछ सुने नहीं दिया फिर सोचा खेर जो होगा वो देखा जाएगा
जब तक मा चाय बना के लायी तब तक शायद साक्षी और तिवारी जी ने बाते कर लि थि
श्रृष्टि चुप चाप जाकर माताश्री के पास बैठ गई और राघव को आते देखकर ठेंगा दिखा दिया फ़िर मुस्कुराने लग गईं।
राघव श्रृष्टि की शरारतें देखकर मुस्करा दिया और खुद से बोलीं... दिखाने में जितनी भोली और मासूम है उतनी ही शरारती है। चलो इसी बहाने पता तो चल गया श्रृष्टि शरारते भी करना जानती हैं।
राघव भी जाकर तिवारी के पास बैठ गया। तब तिवारी बोला... दोनों में बाते हों गईं हो तो बता दो मूहर्त कब का निकले।
"हां श्रृष्टि बेटा बताओं।" माताश्री भी तिवारी का साथ देते हुए पुछा चाय का कप साक्षी को थमाते हुए बोली
"मां मुझे अभी शादी नहीं करनी है चार पांच साल रूकके शादी करनी हैं।" राघव की और शरारती निगाहों से देखकर श्रृष्टि बोली
"पापा नहीं दो तीन दिन बाद का कोई मूहर्त निकलवाइए पता चला चार पांच साल में श्रृष्टि का मन फ़िर से बदल गया तो मैं आधार में लटक जाऊंगा।" उतावलापन में राघव बोला
राघव की बाते सुनकर सभी हंस दिए और श्रृष्टि सभी के सामने ही राघव को ठेंगा दिखाते हुए बोला... आप चार पांच साल रूक सकते हों तो ठीक वरना मैं अपने लिए किसी और को देख लूंगी हां।
श्रृष्टि की बाते और उसकी हरकते देखकर राघव सहित सभी समझ गए कि श्रृष्टि शरारत कर रहीं हैं। इसलिए तिवारी भी श्रृष्टि का साथ देते हुए बोला... ठीक हैं श्रृष्टि बेटा तुम जब चाहोगी शादी तब ही होगी।
राघव…ठीक हैं पापा (फिर श्रृष्टि की ओर देखकर बोला) श्रृष्टि थोड़ा एडजेस्ट करके देखो न शायद शादी के दिन नजदीक आ जाएं।
राघव की बाते सुनकर एक बार फिर से सभी हंस दिए फ़िर माताश्री और तिवारी ने फैसला किया की जब दोनों चाहेंगे तब कोई अच्छा सा मूहर्त देखकर दोनों को एक कर देगें फ़िर विदा लेकर जाते वक्त राघव उठ ही नहीं रहा था तो तिवारी जी उसका बाजू थामे उसे उठाते हुए बोला... अरे चल न अब क्या शादी करके ही जायेगा क्या ?
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