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संभोग करते क्षण में
श्वास जितनी शांत और शिथिल होगी, संभोग का काल उतना ही लंबा हो जाएगा। अगर श्वास को बिलकुल शिथिल रहने का थोड़ा सा अभ्यास किया जाए, तो संभोग के क्षणों को कितना ही लंबा किया जा सकता है।
संभोग के क्षण जितने लंबे होंगे, उतने ही संभोग के भीतर से समाधि का जो सूत्र मैंने कहा है- निरहंकार भाव, ईगोलेसनेस और टाइमलेसनेस का अनुभव शुरू हो जाएगा।
श्वास अत्यंत शिथिल होनी चाहिए। श्वास के शिथिल होते ही संभोग की गहराई, अर्थ और नये उद्घाटन शुरू हो जाएंगे।
और दूसरी बात, संभोग के क्षण में ध्यान दोनों आंखों के बीच, जहां योग आज्ञाचक्र को बताता है, वहां अगर ध्यान हो तो संभोग की सीमा और समय तीन घंटों तक बढ़ाया जा सकता है। और एक संभोग व्यक्ति को सदा के लिए ब्रह्मचर्य में प्रतिष्ठित कर देगा। न केवल इस जन्म के लिए, बल्कि अगले जन्म के लिए भी।
तो दो बातें मैंने कहीं उस गहराई के लिए-श्वास शिथिल हो, इतनी शिथिल हो कि जैसे चलती ही नहीं; और ध्यान, सारा अटेंशन आज्ञाचक्र के पास हो, दोनों आंखों के बीच के बिंदु पर हो। जितना ध्यान मस्तिष्क के पास होगा, उतना ही संभोग की गहराई अपने आप बढ़ जाएगी।
जितनी श्वास शिथिल होगी, उतनी लंबाई बढ़ जाएगी। और आपको पहली दफा अनुभव होगा कि संभोग का आकर्षण नहीं है मनुष्य के मन में, मनुष्य के मन में समाधि का आकर्षण है। और एक बार उसकी झलक मिल जाए, एक बार बिजली चमक जाए और हमें दिखाई पड़ जाए अंधेरे में कि रास्ता क्या है, फिर हम रास्ते पर आगे निकल सकते हैं।
एक आदमी एक गंदे घर में बैठा है। दीवालें अंधेरी हैं और धुएँ से पुती हुई हैं। घर बदबू से भरा हुआ है। लेकिन खिलाड़ी खोल सकता है। उस गंदे घर की खिड़की में खड़े होकर भी वह देख सकता है--दूर आकाश को, तारों को, सूरज को, उड़ते हुए पंक्षियों को। और तब उस घर के बाहर निकलने में कठिनाई न रह जाएगी।
जिसे एक बार दिखाई पड़ गया कि बाहर निर्मल आकाश है, सूरज है, चांद है, तारे हैं, उड़ते हुए पंछी हैं, हवाओं में झूमते हुए वृक्ष और फूलों की सुगंध है, मुक्ति है बाहर, वह फिर अंधेरी और धुएँ से भरी हुई कोठरियों में बैठने को राजी नहीं होगा, वह बाहर निकल जाएगा। जिस दिन आदमी को संभोग के भीतर समाधि की पहली थोड़ी सी भी अनुभूति होती है, उसी दिन सेक्स का गंदा मकान, सेक्स की दीवालें, अंधेरे से भरी हुई व्यर्थ हो जाती है और आदमी बाहर निकल जाएगा ।
ओशो
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औरत कभी संतुष्ट नहीं होती .....
औरत से प्रेम में अगर आप ये उम्मीद करते हैं कि वो आपसे पूरी तरह खुश है तो आप नादानी में हैं
ये औरत के मूल में ही नहीं है अगर आप बहुत ज्यादा केयर करते है तो उससे भी ऊब जाएगी
अगर आप बहुत उग्र हैं तो वो उससे भी बिदक जाएगी
अगर आप बहुत ज्यादा विनम्र हैं तो वो उससे भी चिढ जाएगी
अगर आप उससे बहुत ज्यादा बात करते हैं तो वो आपको टेक इट फौर ग्रांटड लेने लगेगी
अगर आप उससे बहुत कम बात करते हैं तो वो मान लेगी कि आपका चक्कर कहीं और चल रहा है
यानी आप कुछ भी कर लीजिए वो संतुष्ट नहीं हो सकती
ये उसका स्वभाव है वो एक ऐसा डेडली काॅम्बीनेशन खोजती है जो बना ही न हो बन ही न सकता हो
ठीक वैसे ही जैसे कपड़ा खरीदने जाती है तो कहती कि इसी कलर में कोई दूसरा डिजाइन दिखाओ,
इसी डिजाइन में कोई दूसरा कलर दिखाओ
कपड़े का गट्ठर लगा देती है...
बहुत परिश्रम के बाद एक पसंद आ भी गया, तो भी संतुष्ट नहीं हो सकती...
आखिरी तक सोचती है कि इसमे ये डिजाइन ऐसे होता तो परफैक्ट होता...
इन सबके बावजूद एक बहुत बड़ी खूबी भी है औरत के अंदर ...
एक बार उसे कुछ पसंद आ गया तो उसे आखिरी दम तक सजो के रखती है वो चाहे रिश्ते हो या चूड़ी
रंग उतर जाएगा चमक खत्म हो जाएगी पर खुद से जुदा नहीं करेगी
बस यही खूबी औरत को विशिष्ट बनाती है
औरत से प्रेम में अगर आप ये उम्मीद करते हैं कि वो आपसे पूरी तरह खुश है तो आप नादानी में हैं...
ये औरत के मूल में ही नहीं है...
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एक स्त्री निर्वस्त्र होकर संभोग तभी करती है
जब वह अपने प्रेमी पर विश्वास करती है
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कभी तुझसे मिलेंगे तो कहेंगे झूठ तुझसे..
हम न तेरी फ़िक्र करते हैं न तुझ को याद करते हैं...!!
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(20-08-2024, 10:40 AM)nitya.bansal3 Wrote: एक स्त्री निर्वस्त्र होकर संभोग तभी करती है
जब वह अपने प्रेमी पर विश्वास करती है
Maza to adha nanga karke chodne m jyada ata h
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?बस इतना ही कहा था कि बरसों के प्यासे हैं हम
उसने होठों पे होंठ रख के खामोश कर दिया??
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जो ज्ञानी है, जो धैर्यवान है, जो शीलवान है, जो दूरदर्शी है, जिसमे तप करने की प्रवृति है, जो मितभाषी है, जो बड़ों को सम्मान देते हैं...
...वे हीं वस्तुतः समाज में स्वाभिमान से जीते हैं, समाज को नई दिशा देते हैं और समाज में युवाओं के लिए प्रेरणाश्रोत होते हैं।
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आजकल लिव-इन रिलेशनशिप, ??
बिना विवाह के शारीरिक और भावनात्मक सुख पाने का एक सामान्य विकल्प बनता जा रहा है। यह उन लोगों के लिए आकर्षक हो सकता है जो एक-दूसरे के साथ समय बिताना चाहते हैं और शारीरिक संतुष्टि की आवश्यकता को पूरा करना चाहते हैं। हालांकि, इस संबंध को सही तरीके से समझना और अपनाना बेहद जरूरी है, वरना यह कई समस्याओं का कारण बन सकता है।
लिव-इन रिलेशनशिप में शामिल लोग एक-दूसरे की शारीरिक और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। लेकिन अगर इसे केवल शारीरिक भूख और आर्थिक फायदे के लिए अपनाया जाता है, तो यह संबंध टिकाऊ नहीं हो सकता और असफलता की ओर बढ़ सकता है।
अगर कोई महिला 40 साल की उम्र के बाद इस प्रकार के संबंध में प्रवेश करती है, तो उसे विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए। इस उम्र में स्थायित्व और सुरक्षा की जरूरत बढ़ जाती है, और अस्थायी संबंध में जाना मानसिक और भावनात्मक कठिनाइयाँ पैदा कर सकता है।
हमारे समाज में पारंपरिक विवाह संबंधों में भी चुनौतियाँ होती हैं, जैसे कि माता-पिता, रिश्तेदारों और समाज का दबाव। लिव-इन रिलेशनशिप में इस प्रकार का कोई सामाजिक समर्थन नहीं होता, जिससे यह और भी जोखिम भरा हो सकता है।
बड़े शहरों में लिव-इन रिलेशनशिप का चलन बढ़ता जा रहा है। कुछ लोग इसे अपने शौक के लिए अपनाते हैं, जबकि कुछ मामलों में यह फैशन का हिस्सा भी बन गया है। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि इन संबंधों की स्थिरता और सुरक्षा के बारे में सोचा जाए।
यदि कोई वृद्ध व्यक्ति किसी युवा के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में है, तो इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि यह संबंध सच्चे प्रेम और सहयोग पर आधारित हो, न कि केवल आर्थिक लाभ पर।
लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करने से पहले इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है:
१. **भरोसा और पारदर्शिता:** दोनों पक्षों के बीच विश्वास और पारदर्शिता होनी चाहिए।
२. **आर्थिक समझौते:** आर्थिक मामलों में स्पष्टता जरूरी है, ताकि किसी प्रकार की धोखाधड़ी से बचा जा सके।
३. **कानूनी सुरक्षा:** कानूनी दस्तावेजों और समझौतों की जांच करवा लें, ताकि किसी भी विवाद से बचा जा सके।
इस प्रकार, लिव-इन रिलेशनशिप में प्रवेश करते समय सतर्क रहना और सभी संभावित खतरों को ध्यान में रखना आवश्यक है।
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कामवासना के आयाम;
आकर्षण
सम्मोहन
सहमति
आलिंगन
सम्भोग
और फिर अंत मे स्खलन और चरमसुख
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गौर करने वाली बात;
कंधे पर रखे जाने वाली हर चीज़ बोझ होती है,
सिवाय महबूब के सिर और टांगों के. .
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24-08-2024, 02:40 PM
(This post was last modified: 24-08-2024, 02:42 PM by nitya.bansal3. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
एक लड़की की शारीरिक जरूरत संभोग से पूरी होती है, और एक सुखद संभोग उसके स्त्रीत्व की पूर्ति करता है। यह दिमाग में ऐसे केमिकल निकालने में मदद करता है जिससे वह पूर्ण महसूस करती है। मैंने भी इस बात को महसूस किया है और यह सत्य है। जब मैं कॉलेज में थी, तो नई-नई फिल्में और इंटरनेट पर लेख पढ़ती थी, जिससे मुझे यह समझ आया कि स्त्री और पुरुष दोनों की शारीरिक जरूरतें होती हैं।
स्त्री की जरूरत को पूरा करने के लिए पुरुष की आवश्यकता होती है, और पुरुष को स्त्री की। एक-दूसरे की जरूरत को पूर्ण करने में कोई गलत बात नहीं है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ, हमारे ग्रंथ और माता-पिता इस बात के खिलाफ थे। उनका कहना था कि शादी से पहले यह सब गलत है। मुझे यह समझ नहीं आया और मुझे खुद यह सब फिजूल की बातें लगती थीं। ?♀️
मेरा एक बॉयफ्रेंड बना, और मैंने अपनी सहमति जाहिर की कि मैं संभोग का आनंद लेना चाहती हूं। वह भी तैयार था, और हम दोनों ने इसे एक्सपीरियंस किया। यह जादुई एहसास था, शरीर में एक अलग तरह की ऊर्जा आने लगी थी। अब मुझे लगा कि यह शारीरिक जरूरत जरूर पूरी करनी चाहिए। लेकिन कुछ समय बाद मेरा ब्रेकअप हो गया। ?
इसके बाद मैं किसी दूसरे लड़के के साथ संबंध बनाने लगी। लेकिन हमारी शादी नहीं हो सकती थी। और अब शादी की उम्र आ गई थी, तो मां-पापा ने एक अच्छा लड़का खोज कर शादी कर दी। पहले कुछ दिन तो संभोग अच्छा रहा, लेकिन ना जाने क्यों मेरा मन इस बात से हटने लगा। पति जब संभोग की पहल करते, मैं बहाना बना देती। हमारे रिश्तों में खटास आने लगी थी। ?
मैंने डॉक्टर से परामर्श लिया और उन्हें अपनी समस्या बताई। उन्होंने कहा, "उम्र के साथ ऐसा होता है," और पूरा एक साल दवाई खाई। लेकिन मेरे पति भी मुझसे खिन्न रहने लगे थे। मुझे पता है कि पुरुषों को सेक्स की चाहत होती है, पर मैं चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पा रही थी। हमारे बच्चे भी नहीं थे और ना हमारे बीच ज्यादा शारीरिक संबंध थे। उन्होंने मुझसे कहा, "पत्नी होते हुए भी मेरी शारीरिक जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है, अब हमारा साथ रहने का कोई मतलब नहीं है।" ?
यह बात मुझे अंदर तक चुभ गई। मैंने उनसे कुछ समय मांगा और इस बार सब छोड़कर ऋषिकेश चली गई। इस आस में कि मेरी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, जिसकी वजह से यह सब हो रहा है। वहां मेरी मुलाकात गुरु मा से हुई, जिन्होंने मुझे ध्यान और योग सिखाया। ?♀️
उन्होंने मुझसे मेरी समस्या के बारे में चर्चा की। जब मैंने उन्हें सब बताया, तो उन्होंने पलभर में ही यह कह दिया, "शादी से पहले कितने पुरुषों के साथ सोई हो?" मैं हैरान थी, पर मैंने सही जवाब दे दिया। ?
उन्होंने कहा, "हमारा शरीर यादों से मिलकर बना है। जब कोई स्त्री किसी पुरुष के साथ संबंध बनाती है, तो उसके अंग-अंग में उस पुरुष की याद बस जाती है। इस वजह से दोनों के बीच परस्पर प्रेम और कामवासना बढ़ती है। लेकिन जब यही काम 2-3 पुरुषों के साथ होता है, तो शरीर समझ नहीं पाता कि किसे यादों में बसाना है और किसे निकाल फेंकना। और इस वजह से संभोग में अरुचि होती है, धीरे-धीरे प्रेम खत्म होने लगता है।" ?
तब मुझे समझ आया कि क्यों बड़े बुजुर्ग शादी के बाद ही संभोग करने की सलाह देते हैं, ताकि हमारे रिश्ते मजबूत हो सकें। लेकिन आज मेरी तरह ना जाने कितनी लड़कियां शादी से पहले संभोग करती हैं, बिना इसके दुष्प्रभाव को समझे। और न चाहते हुए भी उनकी शादीशुदा जिंदगी बर्बाद हो जाती है। ?
इसके अलावा, कुछ लड़कियां तो केवल अपने काम को निकालने या अपने स्टेटस को मेंटेन रखने के लिए अपनी चढ्ढी किसी के सामने खोल देती हैं। पर यह बात गलत है। मुझे इसका एहसास तब हुआ जब मेरे पति और मेरे रिश्तों के बीच खटास आने लगी।
किसी भी स्थिति में शादी से पहले संबंध बनाना गलत है। तुम्हें आज मजा आएगा, लेकिन शादी के बाद सिर्फ पछताना पड़ेगा। और तुम यह सोचोगी, "क्यों आखिर ऐसा किया मैंने?"
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अगले अपडेट की प्रतीक्षा है
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प्रेम मे सबसे खूबसूरत चीज होती है कोशिश...थोड़ी और कोशिश हर बार ... कोशिश उसकी एक झलक पाने की,कोशिश उस से अपनी भावनाएं जाहिर करने की,
कोशिश उसके मुरझाये पर एक हल्की हंसी लाने की, कोशिश उसके सपनों को पुरा करने की, कोशिश खुद को बेहतर करने की उसके लिए,
कोशिश वो सब करने की जिससे प्रेम कायम रहे ,कोशिश अपने प्रेम को उसके मंजिल तक पहुचां के उसे एक मुक्कमल नाम देने की,
कोशिश ही है जो प्रेम को जीवंत बनाए रखता था..हर बार एक नयी कोशिश प्रेम को नवीनता देती है...यही कोशिशें एक दिन प्रेम को मूर्त् देती है..❤️
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तुम्हे पता है..
हर प्रेम कहानी में दो लोग कभी एक बराबर प्यार नहीं करते,
कर नहीं सकते क्योंकि यह व्यापार नहीं है
कि तुम जितनी गिन्नियाँ दो, बदले में उतना ही बराबर व्यापर लो।
यह गैर-बराबरी का मामला है जनाब,
जहाँ एक प्रेमी होता है और एक प्रेम पात्र।
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27-08-2024, 06:06 PM
(This post was last modified: 27-08-2024, 06:06 PM by nitya.bansal3. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
सम्भोग एक ऐसा विषय है, जिसे हर कोई अनुभव करना चाहता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। कामुकता और सेक्स से जुड़ी बातें हर किसी को आकर्षित करती हैं, और ऐसा होना स्वाभाविक है क्योंकि यह हमारी प्रकृति का हिस्सा है। सहमति से किया गया सेक्स बिल्कुल गलत नहीं है, बल्कि इसे भी अन्य सामान्य क्रियाओं की तरह ही समझा जाना चाहिए।
सेक्स, जब सही ढंग से किया जाए, तो यह सबसे सुखद अनुभव हो सकता है। महर्षि वात्स्यायन जैसे महान दार्शनिक ने कामसूत्र जैसी पुस्तक में सेक्स का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, जो दर्शाता है कि यह विषय चर्चा के योग्य है और इसे खुले मन से स्वीकार किया जाना चाहिए। ?
हालांकि, समाज में कुछ लोग खुद को अत्यधिक संस्कारवान दिखाने का प्रयास करते हैं। जब भी कोई सेक्स की बातें करता है, तो ये लोग बड़ी मर्यादा और नैतिकता का दिखावा करते हैं, जैसे वे इस विषय से बिल्कुल अनभिज्ञ हों। परंतु, वास्तविकता यह है कि यही लोग कामवासना में सबसे अधिक लिप्त होते हैं और अकेले में पोर्न वीडियो देखने से भी नहीं चूकते, लेकिन सबके सामने एक अलग चेहरा दिखाते हैं। ?
महान दार्शनिक रजनीश ओशो ने कहा है कि जैसे नहाना, खाना, सोना-जागना हमारी दैनिक क्रियाएं हैं, ठीक वैसे ही सेक्स भी एक सामान्य क्रिया है। यह बस एकांत में की जाने वाली क्रिया है, लेकिन इसके बारे में बात करने में कोई बुराई नहीं होनी चाहिए। ?
मैं हर विषय पर खुलकर लिखती हूं, चाहे वह सेक्स हो या कोई अन्य मुद्दा। सेक्स पर बात करने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि बुराई तो किसी भी अच्छे काम में दुन्धा जा सकता है। इसलिए, क्यों न हम इस डर को छोड़कर इस पर भी खुलकर चर्चा करें? ✨
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सेक्स बुरी बात नहीं परन्तु इसमे परस्पर सहमति और पर्दा बहुत हीं आवश्यक है।
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स्त्रियों का मन ब्लाउज़ के हुक में
फँसा हुआ नही होता कि
जिसको खोलते ही
उसका मन भी खुल जाए।
न मंगलसूत्र की तरह गले में बंधा होता है
कि उसके बंधते ही
उसका मन भी बंध जाये।।
स्त्री का मन एक यात्रा है!!
और ये आप पर निर्भर है कि
आप कहाँ तक पहुँचते है।
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स्त्री मन नातों-रिश्तों में आते ही बनाने लग जाता है वो हौसला, जिससे रिश्ता टूटने पर वो ख़ुद को दुबारा जोड़ सके,
सिख जाती है स्त्रियाँ वो मलहम बनाना, तैयार रखने लग जाती है वो फाहे जो अंतस् की चोट पे लगा सकें,
हर बार जब एक भाव छूटता है दिल से, एक अभाव कर जाता है जीवन में और वो उस दरार में भर देती है अपने आंसू जो बन जाते हैं पत्थर और समेट लेता है सारे बिखराव को अपने में, थाम लेता है जीवन प्रवाह को फिर से,
बिखर कर ख़ुद को समेटने की आदत हो जाती है स्त्रियों को,
हर बार इस तरह ख़ुद को जोड़ लेती हैं कि कोई बाल बराबर भी जोड़ नहीं ढूँढ पाता,
जितनी बार भी टूटी स्त्रियाँ,
उतनी बार नयी सी जी,
उतनी बार निखरी वो स्त्रियाँ
दुख और ग्लानि क्या गलायेगा उन्हें,
जो जानी है अपने ज़ख्मों की गहराई,
इस बिखरन-सिमटन के चक्र में,
हर बार ख़ुद को नयी सी गढ़ती स्त्रियाँ।
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एक छोटी सी विधि बहुत सहायक होगी।
जब कभी तुम्हारे अंदर सेक्स की कामना उठे, तो वहां उसकी तीन सम्भावनाएं है: पहली है, उनको तुष्ट करने में लग जाओ, सामान्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति यही कर रहा है, दूसरी है—उसका दमन करो, उसे बलपूर्वक अपनी चेतना के पार अचेतन के अंधकार में नीचे धकेल दो, उसे अपने जीवन के अंधेरे तलघर में फेंक दो। तुम्हारे तथा कथित असाधारण लोग, महात्मा, संत और भिक्षु यही कर भी रहे हैं। लेकिन यह दोनों ही प्रकृति के विरुद्ध हैं। ये दोनों ही रूपांतरण के अंतर्विज्ञान के विरुद्ध हैं।
तीसरी सम्भावना है—जिसका बहुत थोड़े से लोग सदैव प्रयास करते हैं। जब भी सेक्स की कामना उठे, तुम अपनी आंखें बंद कर लो। यह बहुत मूल्यवान क्षण है: कामना का उठना ऊर्जा का जाग जाना है। यह ठीक सुबह सूर्योदय होने जैसा है। अपनी दोनों आंखें बंदकर लो, यह क्षण ध्यान करने का है। अपनी पूरी चेतना को काम केंद्र पर ले जाओ, जहां तुम उत्तेजना, कम्पन और उमंग का अनुभव कर रहे हो। वहां गतिशील होकर केवल एक मौन दृष्टा बने रहो। उसकी निंदा मत करो, उसकी साक्षी बने रहो। तुम उसकी निंदा करते हो, तुम उससे बहुत दूर चले जाते हो। और न उसका मजा लो, क्योंकि जिस क्षण तुम उसमें मज़ा लेने लगते हो, तुम मूर्च्छा में होते हो। केवल सजग, निरीक्षण कर्ता बने रहो, उस दीये की तरह जो अंधेरी रात में जल रहा है। तुम केवल अपनी चेतना वहां ले जाओ, चेतना की ज्योति, बिना हिले डुले थिर बनी रहे। तुम देखते रहो कि कामकेंद्र पर क्या हो रहा है, और यह ऊर्जा है क्या?
इस ऊर्जा को किसी भी नाम से मत पुकारो, क्योंकि सभी शब्द प्रदूषित हो गए हैं। यदि तुम यह भी कहते हो कि यह सेक्स है, तुरंत ही तुम उसकी निंदा करना प्रारम्भ कर देते हो। यह शब्द ही निदापूर्ण बन जाता है। अथवा यदि तुम नई पीढ़ी के हो, तो इसके लिए प्रयुक्त शब्द ही कुछ पवित्र बन जाता है। लेकिन शब्द अपने आप में हमेशा भाव के भार से दबा रहता है। कोई भी शब्द जो भाव से बोझिल हो, सजगता और होश के मार्ग में अवरोध बन जाता है। तुम बस उसे किसी भी नाम से पुकारो ही मत। केवल इस तथ्य को देखते रहो कि काम केंद्र के निकट एक ऊर्जा उठ रही है। उसमें उत्तेजना है उमंग है, उसका निरीक्षण करो। और उसका निरीक्षण करते हुए तुम्हें इस ऊर्जा का पूरी तरह से एक नये गुण का अनुभव होगा। उसका निरीक्षण करते हुए तुम देखोगे कि यह ऊर्जा ऊपर उठ रही है। वह तुम्हारे अंदर मार्ग खोज रही है। और जिस क्षण वह ऊपर की ओर उठना प्रारम्भ करती है, तुम्हें अनुभव होगा कि एक शीतलता तुम पर बरस रही है, तुम पर चारों ओर से एक अनूठी शांति, मौन अनुग्रह आशीर्वाद और आनंद की वर्षा हो रही है। अब कोई पीड़ायुक्त है, यह ठीक एक मरहम जैसा है। और तुम जितने अधिक सजग बने रहोगे, यह ऊर्जा उतनी ही ऊपर जाएगी। यदि यह हृदय तक आ सकती है, जो बहुत कठिन नहीं है, कठिन तो है, लेकिन बहुत अधिक कठिन नहीं है.. यदि तुम सजग बने रहे, तो तुम देखोगे कि यह हृदय तक आ गई है। जब यह ऊर्जा हृदय तक आ जाती है तो तुम पहली बार यह जानोगे कि प्रेम क्या होता है।
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