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यूं ही दिन पर दिन बीत रहा था और राघव लगभग प्रत्येक दिन श्रृष्टि के पास लंच करने पहुंच जाता था। इस बात का फायदा साक्षी बखूबी उठा रहीं थी। मौका देख दोनों को छेड़ देती और कुछ ऐसा कह देती जिसके जड में दोनों आ जाते। राघव तो खुद को संभाल लेता लेकिन श्रृष्टि खुद को संभाल नहीं पाती और उसे धाचका लग जाता।
श्रृष्टि राघव की हरकतों को बखूबी समझ रहीं थी और उसके दिल में भी राघव के लिए जगह बन चूकी थी फ़िर भी न जानें क्यों चुप सी रहती। राघव जब भी छुट्टी वाले दिन यानी इतवार वाले दिन लंच या फिर शाम की चाय पे मिलने की बात कहता तो काम न होते हुए भी बहना बनाकर टाल देती।
श्रृष्टि का ऐसा करना राघव के समझ से परे था। कभी कभी राघव को लगता श्रृष्टि के दिल में उसके लिए जगह बन चूका हैं और शायद वो भी उससे प्यार करने लगीं हैं फिर राघव के साथ अकेले मिलने से मना कर देने पर राघव को लगता शायद जैसा वो सोच रहा है वैसा कुछ नहीं हैं। मगर फिर श्रृष्टि के हाव भाव उसके सोच को बदल देता।
श्रृष्टि के इसी व्यवहार के चलते राघव परेशान सा रहने लगा। परेशानी का हाल कैसे ढूंढा जाएं इसका रास्ता उसे सूज नहीं रहा था।
राघव की परेशानी में उसकी सौतेली मां ओर इजाफा कर देती। जब भी कोई रास्ता सुजता और उस पर अमल करने की सोचता ठीक उसी दिन उसकी सौतेली मां वबाल करके उसके दिमाग को दिशा से भटका देता।
ऐसे ही एक दिन राघव सुबह सुबह वबाल करके बिना कुछ खाए पिए घर से निकल ही रहा था कि उसके पिता ने उसे रोका और घर से बहार लाकर बोला... राघव बेटा मुझे माफ़ करना मेरे एक भूल की सजा तुझे भुगतना पड रहा हैं।
राघव... आह पापा आप से कितनी बार कहा है आप माफी न मांगा करे आपने तो मेरे भले के लिए सोचा था मगर शायद मैं ही इतना मनहूस हूं जिसके किस्मत में मां की ममता लिखा ही नहीं है।
तिवारी... ये बात तू गलत कह रहा हैं तू मनहूस नहीं है अगर तू मनहूस होता तो मेरी ज़िम्मेदारी अपने कंधे पर लेते ही मेरा धंधा दिन दुगुनी और रात चौगुनी तरक्की नहीं कर रहा होता।
राघव…वो तो सिर्फ़ मेरी मेहनत की वजह से हों रहा हैं। पापा मैं सोच रहा था। अभी अभी जो प्लॉट लिया है मैं उसी में जाकर रहने लग जाऊं। इसे न मैं इनके सामने रहूंगा ओर न ही रोज रोज कहासुनी होगा।
तिवारी…ऐसा सोचने से पहले एक बार अपने इस बूढ़े बाप के बारे मे भी सोच लेता जो तेरे सहारे जीने की आस जगाए जी रहा हैं।
राघव...आप की बाते सोचकर ही तो अब तक चुप रहा लेकिन अब ओर सहन नहीं होता। आप भी चल देना दोनों बाप बेटे साथ में रहेंगे।
तिवारी... अच्छा ओर इस घर का क्या होगा? जिसे तेरी मां ने खुद अपने पसंद से बनवाया था एक एक कोना खुद अपने हाथों से सजाया था। आज भी उसकी यादें इस घर में बसी है मैं उसे छोड़कर कहीं ओर जा ही नहीं सकता हूं। तू क्या समजता है बेटा मै यहाँ इस औरत के लिए हु ??? नहीं मै यहाँ तेरी मा के लिए हु वो अभी भी मेरे साथ है तुम नहीं समज सकोगे बेटे
राघव... आप जा नहीं सकते मुझे जाने नहीं दे रहे। गजब की किस्मत लिखवा कर लाया हूं अब तो लगता है जिंदगी भर ऐसे ही ताने सुन सुनकर जीना होगा।
तिवारी... सब्र रख ऊपर वाले पर भरोसा रख वो जरूर हम बाप बेटे के लिए कुछ न कुछ करेगा।
राघव... पापा वो कुछ नहीं करता बस रास्ता दिखा देता हैं। अच्छा आप भीतर जाइए नहीं तो वो बहार आ गई तो फ़िर से शुरू हो जायेगी।
तिवारी... ठीक हैं जाता हूं और तू दफ्तर पहुंचने से पहले कुछ खां लेना।
राघव... कैंटीन में खा लूंगा
बाप से कहकर राघव चल तो दिया पर उसकी मनोदशा ठीक नहीं थी। अभी अभी जो बाते बरखा ने कहा था उसका एक एक शब्द राघव के कानों में गूंज रहा था। "तू इतना मनहूस हैं की पैदा होने के कुछ साल बाद अपने मां को खा गया अब मेरे खुशियों को खा रहा हैं। तुझसे मेरी खुशी देखी नहीं जाती इसलिए मेरे बेटे को मूझसे दूर भेज दिया। उसके जगह तू ही चला जाता कम से कम मुझे तेरा मनहूस सूरत तो न देखना पड़ता।"
इन्हीं शब्दों ने राघव के मन मस्तिस्क पर कब्जा जमा रखा था। उससे कार चलाया नहीं जा रहा था इसलिए कार को रोड साइड रोक दिया और भीगी पलकों को पोछकर अपना मोबाईल निकलकर गैलरी में से एक फोटो ढूंढ निकाला और उसे देखते हुए बोला...मां तू मुझे छोड़कर क्यों चली गई। मैं मनहूस हूं इसलिए तूने भी मूझसे पीछा छुड़ाने ले लिए वक्त से पहले भगवान के घर चली गई है न बोल मां बोल न।
"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं।" सहसा एक आवाज राघव के कानों में गूंजा।
जारी रहेगा….
काफी इमोशन से भरा दोनों घर में कोई अपनी मा के लिए रो रहा है तो कोई अपनी बेटी के लिए
दोनों घरो में कुछ ना कुछ अंदेशा है क्या करे .......
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भाग - 21
"मेरा राजा बेटा मनहूस नहीं हैं" ये आवाज कानों में गूंजते ही राघव दाएं, बाएं, पीछे देखने लग गया मगर उसे ऐसा कोई नहीं दिखा जिसने यह शब्द कहा हों। जब कोई नहीं दिखा तो राघव एक बार फिर मां की फ़ोटो देखते हुए बोला... मां इस जन्म में भले ही आप मूझसे पीछा छुड़ा लिया लेकिन अगले जन्म में फिर से आपका बेटा बनकर आऊंगा तब आपको बहुत परेशान करुंगा। आप मुझसे पीछा छुड़ाना चाहोगी तब भी नहीं छोडूंगा।
राघव मां की फ़ोटो देखकर बाते करने में लगा हुआ था। बातों के बीच उसका फ़ोन बजा कुछ देर बात करने के बाद राघव चल दिया।
दृश्य में बदलाव
श्रृष्टि सुबह जब दफ्तर आई तब सामान्य थीं। मगर आने के कुछ देर बाद असामान्य व्यवहार करने लग गई। काम करते करते उठकर द्वार के पास जाकर खड़ी हो जाया करती। कुछ पल खड़ी रहती फिर जाकर काम में लग जाती। कुछ देर काम करती फ़िर द्वार पर चली जाती कुछ देर खड़ी रहती फिर आकर काम में लग जाती। अबकी बार जैसे ही श्रृष्टि उठकर द्वार की और जानें लगी तब साक्षी रोकते हुए बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ ऐसा क्यों कर रहीं हैं। किस बात की बेचैनी हैं जो दो पल कही ठहर ही नहीं रहीं हैं।
"कुछ नहीं" बस इतना ही बोलीं और द्वार की ओर चल दिया। कुछ देर खड़ी रहीं फ़िर भागती हुई साक्षी के पास पहुचा और बोला... साक्षी मैम सर कुछ परेशान सा लग रहे हैं जाइए न पूछकर आइए क्या हुआ हैं?
"सर की इतनी फिक्र है तो तू ही जाकर पूछ ले।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं
"साक्षी मैम प्लीज़ जाइए न।" विनती करते हुए बोलीं
साक्षी... अच्छा बाबा जाती हूं।
इतना कहकर साक्षी चली गई और कुछ ही देर में वापिस आ गई। आते ही श्रृष्टि बोलीं…बात हों गई।!! क्या हुआ कुछ पाता चला।?
साक्षी... नहीं रे सर अभी बिजी हैं थोड़ी देर में खुद ही बुला लेंगे।
कुछ जानने का मन हो ओर उस बारे में पाता न चले तो मन अशांत सा रहता हैं और जानने की बेचैनी बीतते पल के साथ बढ़ता जाता है। वैसे ही कुछ श्रृष्टि के साथ हों रहा था। उसे राघव की परेशानी जानना था मगर अभी तक कुछ पता नहीं चल पाया। इसलिए श्रृष्टि काम तो कर रहीं थी लेकिन ध्यान उसका काम में न होकर कहीं ओर ही था।
यह बात साक्षी समझ रहीं थी और मन ही मन मुस्कुरा रहीं थीं। खैर कुछ वक्त बीता ओर फिर से श्रृष्टि साक्षी के पास जाकर बोलीं... मैम अभी जाकर देखिए न शायद सर फ्री हो गए होंगे।
साक्षी...बोला न सर खुद ही बुला लेंगे। अच्छा एक बात बता सर परेशान हैं। उससे तू क्यों इतना बैचेन हो रही हैं?
"पता नहीं" झेपते हुए श्रृष्टि ने जवाब दिया। इतने में साक्षी का फ़ोन बज उठा। फोन देखकर साक्षी बोलीं... ले सर का फ़ोन आ गया।
"जाइए न जल्दी से पूछ आइए" बेचैनी से श्रृष्टि बोलीं
"अरे बेबी जाती हूं। हेलो सर...।" फ़ोन रिसीव करके बात करते हुए साक्षी चली गई।
राघव के पास पहूंचकर भीतर जाने की अनुमति लेकर जैसे ही भीतर गइ। राघव ने सवाल दाग दिया।
"साक्षी कुछ काम था।?"
साक्षी…सर मुझे कोई काम नहीं था काम तो आपके दिलरुबा को था। उसी ने भेजा हैं।
राघव... दिलरुबा ... ओ श्रृष्टि को, उसे काम था तो खुद आ जाती।
साक्षी... वो आ जाती तो आप उसकी बेचैनी भाप नहीं लेते। अच्छा ये बताइए आप परेशान किस बात से हों।
राघव...बेचैनी उसे किस बात की बेचैनी हैं और रहीं बात परेशानी की तो तुम खुद ही देख लो, क्या मैं तुम्हें परेशान लग रहा हूं?
साक्षी...बेचैनी तो होगी ही आपने आदत जो लगा दिया। दफ्तर आते ही मिलने पहुंच जाओगे आज जब नहीं आए तब से एक पल एक जगह ठहर ही नहीं रहीं थीं। बार बार द्वार पर आकर खड़ी हों जाती तभी शायद आप उसे दिख गई होगी और भागते हुए मेरे पास आकर मुझे यहां भेज दिया कि आपको क्या परेशानी है जानकर आऊ।
राघव…वाहा जी वाहा कमाल की लङकी से पाला पड़ा हैं। दो पल निगाह क्या टकराया उसी में जान लिया मैं परेशान हूं जबकि कोई ओर जान ही नहीं पाया और इतने दिनों से मेरे दिल में क्या है उससे अनजान बनी हुई हैं।
साक्षी...अनजान बनी हुई है तो खुद से कह दो आगे बड़ो और प्रपोज कर दो फिर समझ जायेगी।
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राघव... क्या खाक आगे बढूं जब वो खुद से आगे ही नहीं बढ़ रहीं हैं। कितनी बार उसे इतवार को लंच या फिर शाम को चाय पर मिलने को बोला मगर हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती है। अब तुम ही बताओं मैं करूं तो करूं क्या?
"उहुम्म ( कुछ सोचते हुए साक्षी आगे बोलीं) अभी से इतने नखरे पता नहीं बाद में श्रृष्टि आपका क्या हाल करेंगी ही ही ही।
राघव...एक बार हां तो कर दे फ़िर चाहें जितने नखरे करना हों कर ले मैं बिना उफ्फ किए सह लूंगा। अब तुम मेरी खिल्ली उडाने के जगह कोई रस्ता हों तो बताओं।
साक्षी...उफ्फ ये प्रेम रोग मुझे कब लगेगा। खैर छोड़िए आप एक काम करिए पूरे टीम को एक साथ लंच पर ले चलिए सभी साथ होंगे। तब मना भी नहीं कर पाएगी फ़िर वहां पर उसे आपके साथ अलग टेबल पर बिठा देंगे फिर कह देना जो आपको कहना हों।
राघव... आइडिया तो सही हैं मगर मुझे एक शंका है। इतवार को लंच पर चलने की बात कहा तो कहीं फिर से टाल न दे।
साक्षी... अरे तो इतवार को लेकर जानें को कह ही कौन रहा हैं।
राघव...इसका मतलब मुझे थोड़ा नुकसान सहना पड़ेगा चलो कोई बात नही इसकी भरपाई बाद में तुम सभी से काम करवा कर लूंगा ही ही ही।
साक्षी... हां हां करवा लेना अब आप ये कहिए कि आप किस बात से परेशान थे। क्या है न मेरे जाते ही आपकी श्रृष्टि फिर से मेरे पीछे पड़ जायेगी।
राघव... घर में कुछ कहा सुनी हों गया था जिससे बाते बहुत बढ़ गई थीं। इसलिए मैं थोड़ा परेशान था।
साक्षी... किस बात पे कहा सुनी हुआ था। ये मुझे नहीं जानना मैं तो बस आपके श्रृष्टि के लिए पूछ रहीं हूं। क्योंकि जब तक वो पुरी बात नहीं जान लेगी तब तक उस बेचैन आत्मा को चैन नहीं मिलेगा।
राघव...कहासूनी की वजह मेरी अपनी है। मैं उसका बखान किसी के सामने करना नहीं चाहूंगा तुम अपनी तरफ से जोड़कर कुछ भी बोल देना जिससे उसे लगे की सच में यहीं मेरे परेशानी की वजह हैं।
"ठीक है सर" बोलकर साक्षी चली गई
दृश्य में बदलाव
साक्षी जैसे ही भीतर आई उसे देखकर श्रृष्टि अपने जगह से उठने लगीं तो साक्षी बोलीं…अरे इतनी जल्दी में क्यों है? मैं आ तो रहीं हूं।
इतना सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर अपने जगह बैठ गई। साक्षी पास आकर बोलीं... श्रृष्टि बता तू इतना बेचैन क्यों हैं।
श्रृष्टि... मैम...।
"ये मेम की औपचारिकता तू कब भूलेगी मैंने कहा था न हम दोनों दोस्त है और दोस्तों में कोई औपचारिकता नहीं होती।" टोकते हुए साक्षी बोलीं
श्रृष्टि... आदत से मजबुर हूं मैम, नहीं नहीं साक्षी। अब ठीक है न।
साक्षी... अब बता तू इतना बेचैन क्यों हैं और तुझे कैसे पता चला सर परेशान हैं?
"क्यो और कैसे पता नहीं।" इतना बोलकर श्रृष्टि नज़रे झुका लिया। शायद इसलिए कि कहीं उसकी नज़रे चुगली करके उसके दिल का हाल बयां न कर दे। मगर इस पगली को कौन समझाए चुगल खोरी तो हो चूका है जिसे भाप कर साक्षी बोलीं...कुछ लोग होते है जो बिना बताए ही जान लेते हैं कि सामने वाले का हाल क्या हैं। पता हैं श्रृष्टि मैंने एक क्वेट्स में पढ़ा था ऐसे लोग दिल के बहुत करीब होते हैं और मुझे लगता हैं सर तेरे दिल के बहुत करीब हैं। इसलिए तो तू बिना बताए ही जान गई कि सर को कोई परेशानी हैं। जबकि मैं भी उन्हें देखकर पता नहीं कर पाईं कि उन्हें कोई परेशानी हैं भी।
साक्षी के कथन का श्रृष्टि के पास कोई जवाब नहीं था फ़िर भी कुछ न कुछ बोलकर इस कथन को नकारना था इसलिए श्रृष्टि बोलीं…मेरा स्वभाव शुरू से ही ऐसा हैं इसलिए मैं सर को देखते ही भाप गई कि उन्हें कोई परेशानी हैं। अब तुम ये बताओं सर किस बात से परेशान थे
साक्षी...सर कह रहें थे। उनके घर पर कुछ कहा सुनी हुआ था इसलिए परेशान थे।
श्रृष्टि…कहासुनी.. हल्की फुल्की कहासुनी से कोई इतना परेशान नहीं होता। तुमने पुछा था किस बात पे इतना कहासुनी हुआ था। बताओ न।
"कहासुनी इस बात पे हुई (इतना बोलकर रूकी फिर कुछ सोचकर बोलीं) सर कह रहे थे उनके घर वाले उनकी शादी के लिए कोई लड़की देखा हैं लेकिन सर अभी शादी नहीं करना चाहते हैं इसी बात पर बहस हों गई और बाद में बहस बहुत गरमा गया बस इसी बात से सर परेशान थे।
जारी रहेगा….
क्या साक्षी अपना कम कर रही है ????
श्रुष्टि के मन और दिल में जो है साक्षी तो भाप गई पर हीरो और हिरोइन को पता चलेगा ??? एक दुसरे की भावनाओं का .......
या फिर ये साक्षी !!!!!!!!!!!! मुझे तो इस साक्षी नाम का केरेक्टर से डर लगता है सच में !!!! एक सीधी सादी जिंदगी को कोई कभी भी अपने बेरंग स्वभाव या हरकतों से किसी का भी जीवन बेरंग कर सकते है ..........रंग भरनेवाले बहोत कम है इस श्रुष्टि में.........और जो रंग भरनेवाले है उसे पहचान ने वाले भी बहोत कम है......... क्या पता .........
आप को क्या लगता है ????? आप सहमत है मुज से ??? या कहा तक सहमत है ????? है भी या नहीं ?????? अपनी सोच दे कोमेंट बॉक्स में ..........
अगले भाग में और कुछ जानकारी लेंगे .............
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ये कहानी को मै जल्द ही ख़तम करने की कोशिश करती हु ...............कहानी की स्पीड थोड़ी बढ़ा देती हु ......या फिर लिखने की स्पीड .............
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भाग - 22
शादी वो भी राघव की, सुनते ही श्रृष्टि के लिए पल जहां का तहां ठहर सा गया। किसी बात पर प्रतिक्रिया देना क्या होता हैं? श्रृष्टि भूल सी गईं। श्रृष्टि को यूं अटक हुआ देखकर साक्षी मुस्कुरा दिया और बोलीं... तुझे क्या हुआ तुझे किस बात का सदमा लग गया।
साक्षी की बाते कानों को छूते ही श्रृष्टि चेतना पाई फिर बोली... कुछ बोला क्या?
साक्षी...मैं तो बस इतना ही कह रहीं थीं। काम पर लगते हैं।
"हां चलो" इतना बोलकर दोनों काम में लग गई मगर साक्षी बीच बीच में श्रृष्टि की ओर देखकर मुस्करा देती क्योंकि श्रृष्टि ओर दिनों की तरह काम पर ध्यान ही नहीं दे पा रहीं थीं। जीतना खुद को सामान्य करके काम पर ध्यान देना चाहती। उतना ही उसका ध्यान किसी बात से भटक जाता और बेचैनी सा उस पे हावी हो जाता नतीजातन उसका ध्यान काम से विमुख हों जाता।
दिन का बचा हुआ वक्त श्रृष्टि का ध्यान भटकना फिर बेचैन हों जाना इसी में ही निकल गया। शाम को जैसे ही घर पहुंची माताश्री देखते ही पहचान गई कि उसकी बेटी पर थकान से ज्यादा कुछ ओर ही हावी हैं। तो तुरंत ही बेटी को अपने पास बैठाया फ़िर बोलीं...श्रृष्टि बेटा क्या बात है आज दफ्तर में कोई बात हों गई हैं जो तू इतना परेशान दिख रहीं हैं।?
"नहीं मां, छोटी मोटी बाते तो होती ही रहती है उससे क्या परेशन होना। आज ज्यादा काम की वजह से मुझे थकान ज्यादा हों गई हैं शायद मेरी थकान आपको परेशानी के रूप में दिख रही हों। वैसे भी ज्यादा थकान भी तो परेशानी का कारण होता हैं।" हाव भव में बदलाव करते हुए श्रृष्टि बोलीं।
"मेरी नज़रे कभी धोका नहीं खा सकती है। मैं मेरी बेटी का चेहरा देखकर ही जान जाती हूं वो कब थकान के वजह से परेशान है और कब किसी बात को लेकर परेशान हैं। समझी।"
श्रृष्टि... उफ्फ मां आप भी न दिन भर की कामों से थकी हरी बेटी घर लौटी हैं। उसे एक कड़क चाय या कॉफी पिलाने के जगह आप बातों में लगीं हुईं हों।
"अच्छा अच्छा अभी लाती हूं।" इतना बोलकर माताश्री रसोई की ओर चल दिया कुछ कदम पर रूककर बोलीं...श्रृष्टि बेटा तेरी मां होने के साथ साथ तेरी पहली दोस्त भी हूं। इसलिए कोई बात अगर तुझे परेशान कर रहीं है तो मुझे बता देना शायद इससे तेरे परेशानी का हल मिल जाएं।
और इतना कह के माताश्री का ह्रदय थोडा सा हिल गया कुछ अनचाही डर से
"ओ हो मां फिलहाल तो मुझे कोई परेशानी नहीं हैं अगर कोई परेशानी होगी तो आपको बता दूंगी और किस को बताउंगी भला ? अब आप जल्दी से एक कड़क चाय लेकर आईए"
माताश्री आगे कुछ न बोलकर रसोई में चली गई और श्रृष्टि अपने कमरे में चली गई। अपने कमरे में जाके कपडे उतारते वक़्त एक नजर शीशे में देखना चाहा पर ऐसा वो ना कर सकी और दो बूंद अपने आँखों ने छोड़ दिए. जिसे पोछ कर वो कपड़े बदलकर आई तब तक माताश्री चाय बना चुकी थी। श्रृष्टि के आते ही दोनों मां बेटी चाय की चुस्कियां गपशप करते हुए लेने लग गई।
लेकिन अक अनुभवी आँखों ने ये नॉट कर लिया की श्रुष्टि की आँखों से कुछ अश्रु निकल चुके है और उसे पोछ दिया गया है. माताश्री को बहोत हलचली महसूस हुई पर सोचा अभी वक़्त नहि आया की उस से बात करू, शायद कुछ हुआ भी न हो या फिर ऐसा कुछ हुआ हो (राघव) की कुछ बात उसे पसंद ना आई हो. कही ऐसा तो नहीं की राघव ने कुछ ............. नहीं नहीं पागल ऐसा कुछ होता तो वो सीधा मुझे बोल देती .....तू अपने में से बाहर आ .....खुद से बोली
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अगले दिन लंच के वक्त सभी लंच करना शुरू ही किया था कि उसी वक्त राघव भी टिफिन लिए पहुंच गया।
बीते दिन राघव लंच करने नहीं आया था और राघव की झूठी शादी की खबर साक्षी ने पहले श्रृष्टि को बताया बाद में उसे छेड़ने के लिया दूसरे साथी को भी बता दिया।
यहां बात जानने की कातुहाल दूसरे साथियों के मन में खलबली मचाया हुआ था। राघव को देखते ही वो अपना सवाल दागने ही वाले थे की साक्षी बोल पड़ी...सर आप कल क्यों नहीं आए आप जानते तो है आपको देखे बिना कोई है जो बहुत बेचैन हों जाती हैं। खुद की नहीं तो उसकी ही फिक्र कर लेते।
साक्षी कह तो राघव से रही थी। मगर इशारा श्रृष्टि की ओर थीं यह बात श्रृष्टि समझ गई। इसलिए हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर सरसरी निगाह राघव और साक्षी पे फेरकर सिर झुका लिया और भोजन करने में मग्न हो गई।
राघव नजदीक आकर एक कुर्सी पर बैठ गया फिर टिफन खोलते हुए बोला... फिक्र है बहुत ज्यादा फिक्र है इसलिए मैं आना भी चाहत था लेकिन कुछ जरुरी काम की वजह से नहीं आ पाया। आज आ गया हूं अब कल की भी भरपाई कर दूंगा।
बोलने के बाद राघव ने सरसरी निगाह श्रृष्टि पर फेर दिया और बगल में बैठा एक सहयोगी बोला…सर कौन है वो जिसकी फिक्र आपको बहुत ज्यादा हैं जरा हमे भी बता दिजिए हम भी तो जानें वो खुश नसीब कौन है जिसकी आपको बहुत ज्यादा फिक्र है।
साक्षी... है कोई अभी सर और उसके बीच छुप्पन छुपाई चल रहा हैं। जब दोनों का खेल खत्म हो जायेगा तब सभी को बता दिया जायेगा। क्यों श्रृष्टि ये बात शायद तुम भी जानती हों?
साक्षी का इतना बोलना था की श्रृष्टि को एक बार फिर धचका लग गई। ये देख राघव श्रृष्टि को पानी का गिलास बढा दिया। श्रृष्टि बिना कुछ कहे पानी ले लिया। थोड़ी ही वक्त में श्रृष्टि संभली तो सहयोगी में से एक बोला...सर कल साक्षी मैम कह रही थी आप शादी करने वाले हों। जिसके लिए लड़की भी देखा जा रहा हैं।
एक बार फ़िर से शादी की बात छिड़ते ही श्रृष्टि दम सादे सिर झुकाए बैठी राघव के जवाब का इंतजार करने लगी।
खुद की शादी की बात जिससे राघव खुद अंजान था। सुनते ही साक्षी की ओर देखा और इशारे से पुछा ऐसा क्यो कहा। तब साक्षी ने श्रृष्टि की ओर इशारा कर दिया और राघव को हां बोलने को कहा।
अब राघव गंभीर परिस्थिति में फंस गया। क्या जवाब दे क्या न दे ये समझ ही नहीं पा रहा था? सहसा उसे क्या सूझा की बोल पडा... हां देख तो रहें हैं। मैं भी कब तक टाला मटोली करूं उम्र निकलता जा रहा हैं अब सोच रहा हूं शादी कर ही लेता हूं।
राघव का हां बोलना और श्रृष्टि जो दम सादे सुन रहीं थीं। उसको सहसा दम घुटने सा लगा। खाने का निवाला जो हाथ में पकड़ी थी वो हाथ से छुट कर प्लेट पे गिर गया। यह सब साक्षी सहित सभी देख रहे थे। देखते ही साक्षी बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ खाना पसंद नहीं आया या फिर किसी की बाते पसंद नहीं आई। बोलों क्या बात हैं?
श्रृष्टि से बोला कुछ नहीं गया। चुप चाप अपने जगह से उठी और चली गई। ये देख राघव विचलित सा हो गया और मन ही मन पछताने लगा कि उसने साक्षी का कहना क्यों माना और साक्षी आवाज देते हुए बोली... श्रृष्टि क्या हुआ तुम कहा जा रहीं हों खाना पसंद नहीं आया तो मेरे में से खा लो।
श्रृष्टि ने कोई जबाव नहीं दिया और चुप चाप रूम से बहार चली गई और राघव विचलित सा साक्षी को देखा तो साक्षी ने इशारे से आश्वासन देते हुए कहा कुछ नहीं हुआ वो सब संभाल लेगी। मगर राघव पे आश्वासन का कोई असर नहीं हुआ।
सभी खाने में लगे रहें मगर राघव से एक भी निबला निगला नहीं गया इसलिए वो भी अधूरा खाना छोड़कर जाते वक्त साक्षी को उसके रूम में आने को कह गया।
पल भर में पूरा शमा ही बदल गया एक झूठी हां ने दोनों को हद से ज्यादा विचलित कर दिया। श्रृष्टि अपना खाना फेंक कर आई और बेमन से कम में लग गई। साक्षी खाना खाने के बाद राघव के रूम में पहुंच गई।
राघव... तुमने देखा ना मेरे झूठी हां से श्रृष्टि कितना परेशान हों गईं। तुम्हें कहना ही था तो कोई ओर बात बता देती। मेरी झूठी शादी की बात कहने की जरूरत ही किया थीं। कह दिया सो कह दिया मुझे भी सच बोलने से रोक दिया। साक्षी तुम्हें ऐसा नहीं करना चहिए था।
साक्षी... सर आज जैसा हुआ कल भी श्रृष्टि का ऐसा ही हाल हुआ था बस आज आपने खुद से हां कहा तो इसका कुछ ज्यादा ही असर हुआ। इस बात से इतना तो आप जान ही गए होंगे कि श्रृष्टि भी आपसे प्यार करती हैं। अब आपको देर नहीं करना चहिए कल ही जैसा मैंने कहा था वैसे ही सभी को साथ में लंच पे ले चले और मौका देखकर प्रपोज कर दे।
राघव... एक तो वो पहले से ही मेरे साथ जानें को राजी नहीं हों रही थी उसके बाद आज जो हुआ अब तो वो बिल्कुल भी राजी नहीं होगी।
साक्षी...सर आप ट्राई तो कीजिए अगर नहीं जाती है तो मैं खुद उससे बात करके सच बता दूंगी और आगर लंच पर चल देती है त`ब आप पहले उसे सच बता देना फिर प्रपोज कर देना।
राघव... तुमने अलग ही टेंशन में डाल दिया अब तुम जाओ ओर श्रृष्टि को संभालो मैं कुछ काम कर लेता हूं फ़िर समय निकल कर एक फेरा आ जाऊंगा।
साक्षी राघव से बात करके वापस आ गई। यहां श्रृष्टि का हाल कल से ज्यादा बेहाल था वो काम पर ध्यान ही नहीं लगा पा रही थी। साक्षी कई बार बात करना चाह मगर श्रृष्टि साक्षी ही नहीं किसी से बात करने को राजी नहीं हुई। मानो उसने चुप्पी सी सद ली हों।
उधर राघव का हाल भी दूजा नही था। वो भी काम में ध्यान ही नहीं लगा पा रहा था। बार बार रह रहकर एक ही ख्याल मन में आ रहा था कि वो साक्षी की बात माना ही क्यों उसे साक्षी की बात मानना ही नहीं चाहिए था।
एक दो बार वहां गया मगर श्रृष्टि ने उस पे ज्यादा ध्यान ही नहीं दिया और श्रृष्टि को बेचैन सा देखकर इशारे इशारे में साक्षी को डांटकर चला गया।
जारी रहेगा….
आग दोनों तरफ लगी है और साक्षी शायद मजे ले रही है या उसका कोई काम हो रहा है
ये साक्षी को समज ने में शायद मै भी धोखा खा गई हु
मुझे तो ऐसा लगता है की राघव ने साक्षी पे इतना बड़ा विश्वास क्यों किया ????
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भाग - 23
शाम होते होते श्रृष्टि का हाल ऐसा हों गया। जैसे अनगिनत तूफान उसके अंदर उमड़ रहे हो और उसके जड़ में आने वालों के परखाचे उड़ा दे।
छुट्टी का वक्त होते ही श्रृष्टि दफ़्तर से ऐसे निकली मानों वो वहां किसी को जानती ही नहीं सभी उसके लिए अजनबी हों। ये देखकर साक्षी मन ही मन खुद को कोसने लगीं। सहसा उसके ख्यालों में कुछ उपजा "नहीं वो ऐसा नहीं कर सकतीं है।" बोलते हुए तुरंत दफ्तर से बहार भागी।
जब साक्षी लिफ्ट का सहारा लेकर नीचे पहुंची। ठीक उसी वक्त श्रृष्टि उसके सामने से निकल गई। श्रृष्टि किस ओर जा रहीं है ये देखकर साक्षी तुरंत अपनी कार लेकर उस ओर चल दि।
जितनी रफ़्तार से साक्षी कार को दौड़ा सकती थी दौड़ा रहीं थीं और श्रृष्टि की रफ्तार भी कुछ कम नहीं था। वो स्कूटी की कान अंतिम छोर तक उमेठकर दौड़ाए जा रहीं थीं।
दोनों के बीच पकड़म पकड़ाई जोरों पर थीं। रास्ते पर अजबाही करती दूसरी गाडियां भी थी और कुछ ज्यादा ही था। जिससे साक्षी को आगे निकलने में कुछ दिक्कत आ रही थी मगर श्रृष्टि हल्की सी गली मिलते ही स्कूटी ऐसे निकल रहीं थी मानों उसे किसी बात की परवाह ही न हों।
ट्रैफिक से निकलकर जब खाली रस्ता मिला तब जल्दी से श्रृष्टि तक पहुंचने के लिए साक्षी ने कार की रफ्तार बड़ा दिया। जब तक साक्षी पास पहुंचती तब तक श्रृष्टि एक गली में घुस गई।
साक्षी को गली में घुसने में थोड़ा देर हों गया। जब वो गली में घुसा श्रृष्टि जा चुकी थी। अब साक्षी के सामने दुस्वरी ये थी इस अंजान गली में श्रृष्टि को ढूंढे तो ढूंढे कहा तो कार को रोक कर बोलीं... ये पगली कुछ कर न बैठें अब मैं क्या करूं उसका घर कहा है कैसे ढूंढू कोई और दिख भी नहीं रहा। हे प्रभू उसके मन में कोई गलत ख्याल न आने देना मैं कान पकड़ती हूं कभी किसी से ऐसा मजाक नहीं करूंगी तब तो बिल्कुल भी नहीं जब मामला दो दिलों का हों।
वो अपने आप को कोसती रही .......जिस चीज़ पे मेरा हक़ नहीं वो चीज़ को मै हासिल करने की चाहत में मै दो दिलो को तोड़ रही हु !!!!!!
सोच अगर ये हादसा मेरे साथ हुआ होता तो मै क्या करती ?
मुझे श्रुष्टि के बारे में सोचना चाहिए
क्या मै अपनी चाहतो में ये भी भूल गई की मै भी एक नारी हु ? और नारी के मन और दिल से खेलने पर नारी पे क्या गुजरती है?
क्या ये मेरा मजाक था ? या फिर ......
हे भगवान् मुझे माफ़ कर मेरी गलती सुधारने का एक मौक़ा दे मेरी खातिर नहीं तो उस भोली नादान लड़की के लिए
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दृश्य में बदलाव
श्रृष्टि जैसे ही घर पहुंची माताश्री देखते ही पहचान गई। आज उसकी बेटी कल से ज्यादा परेशान हैं उसके अंतरमन में उफान सा आया हुआ हैं।
ये भापते ही माताश्री तूरंत श्रृष्टि को अपने पास बैठाया और बोला... श्रृष्टि बेटा क्या हुआ कुछ बात हों गई हैं जो इतना परेशान दिख रही हैं।
माताश्री का इतना ही पूछना था कि श्रृष्टि के हृदय में उपजा तूफान सैलाब का रूप ले लिया फ़िर रूदन के रूप में बहार निकल आई और श्रृष्टि मां से लिपट कर रोने लग गई।
श्रृष्टि का रूदन अन्य दिनों से अलग था। जिसने माताश्री के हृदय में खलबली मचा दिया। अब माताजी को विश्वास हो चूका था की वो जो सोच रही थी वो हो रहा है और माताजी भी डर गई
इसलिए माताश्री पुचकारते हुए बोलीं... श्रृष्टि, बेटा क्या हुआ तू ऐसे क्यों रो रहीं है?
माताश्री के पुचकारते ही श्रृष्टि का रूदान और बढ़ गया। जिसे देखकर माताश्री एक बार फ़िर पुचकारते हुए पुछा मुझे नहीं बताएगी बेटा ? क्या मै इस लायक नहीं हु जो मेरी ही बेटी के दिल में क्या चल रहा मै जान सकू ? मेरी बच्ची इतनी बड़ी हो गई की अब मा को बताने में उसे शर्म महसूस हो रही है ?
तो इस बार श्रृष्टि फफकते हुए बोलीं... मां वो न वो न शादी कर रहा हैं।
माताश्री... कौन शादी कर रहा है? हां बोल कौन (साहस माताश्री के मस्तिष्क में कुछ खिला और मताश्री बोलीं) जिसकी शादी हों रहा हैं कहीं तू उससे प्यार तो नहीं करती।
"हां" सुबकते हुए श्रृष्टि बोलीं
" कौन है वो और तू ने मुझे पहले क्यों नहीं बताया।" अपनी सोच को वास्तविकता होते हुए देख रही थी | अब डर श्रुष्टि से ज्यादा मा को हो रहा था
क्या कोई ऊंचनीच हुई है ? या वहेम ?
श्रृष्टि... मां वो न वो न राघव सर हैं।
राघव सर सुनते ही मानो माताश्री पर वज्र पात हों गया हों। तूरंत श्रृष्टि को खुद से अलग किया फिर बोलीं... ये तूने क्या किया? तू भी उसी रास्ते पे चल पड़ी जिस रास्ते पर चलकर मैं पछता रहीं हूं। क्यो आखिर क्यों?
श्रृष्टि…मैंने खुद को बहुत रोकना चाहा मगर रोक ही नहीं पाई। दिल पे भला किसका बस चला हैं। प्यार तो किसी से भी हों सकता है। प्यार न अमीरी, न गरीबी, न जाति, न धर्म देखता है। वो तो बस हो जाता हैं। मुझे भी हो गया अब वो शादी कर रहें हैं। जब से उनकी शादी की बात जाना हैं। तब से मुझ पे क्या बीत रहीं हैं? मै ही जानती हूं।
"वो शादी कर रहें हैं तो तू भी इस बात को भूल जा मुझे साफ साफ दिख रहा हैं तेरा प्यार एक तरफा हैं इसलिए मेरी मान तू खुद को यही पर रोक ले।"
“बेटा एक बात सच में बता क्या तुम ने उस से अपने आप को सौपा है ? मेरा मतलब शारीरक समागम सेक्स ?
श्रुष्टि “नहीं मा ऐसा कुछ नहीं जो आप सोच रही हो
मा के कलेजे पे ठंडक पहोची चलो एक बात से तो डरना नहीं है
श्रृष्टि... नहीं मां मेरा प्यार एक तरफा नहीं हैं। मैंने कई बार भापा है वो भी मूझसे प्यार करते।
"अच्छा अगर वो भी तुझे प्यार करते तो शादी क्यों कर रहें हैं। सोच जरा।"
माताश्री की बातों से श्रृष्टि को स्तब्ध कर दिया। वो कुछ बोल ही नहीं पाई मगर उसके मस्तिष्क में विचार चल पडा, उसका मस्तिष्क बार बार उससे कह रहा था की मां सही कह रहीं है अगर उन्हें मूझसे प्यार होता तो सभी के जानने पर हा क्यों कहते कि उनकी शादी की बात सही है..।
श्रृष्टि विचारों में खोई थी की माताश्री उसके विचारों में सेंद मरते हुए बोलीं...श्रृष्टि मैंने तुझे पहले ही कहा था। कुछ लोग हाव भाव से कुछ दर्शाते है और उनके मस्तिष्क में कुछ ओर चलता हैं। तेरे राघव सर भी शायद उन्हीं में से एक हैं। देख तेरी मां होने के नाते मैं तेरा अहित कभी नही चाहूंगी और ये भी नहीं चाहूंगी कि जो गलती मैंने किया जिसकी सजा मैं आज भी भुगत रही हूं। तू भी वही गलती दोहराए इसलिए मैं बस इतना ही कहुंगी जो भी फैंसला लेना सोच समझ कर लेना ताकि तुझे भविष्य में पछतावा न हो।
माताश्री की बातों ने एक बार फिर से श्रृष्टि के मन मस्तिस्क में खलबली मचा दिया। कुछ देर तक उसके मस्तिस्क में मची खलबली उसे परेशान करती रही। सहसा ही आंखो से आंसु पोछकर बोलीं... मां मुझे एक काफ चाय मिल सकता है।
"ठीक है तू हाथ मुंह धोकर आ मैं चाय बनाती हूं।"
श्रृष्टि उठकर कमरे में चल दिया और माताश्री रसोई की ओर "अभी तो कितना रो रहीं थी सहसा उसके स्वर में इतना बदलाब कैसे आ गया। हे प्रभू जो मेरी बेटी के लिए सही हो वहीं करना उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ मत करना जैसे मेरे भविष्य के साथ किया था बस इतनी सी मेरी विनती मान लेना।" बोलते हुए चल दिया।
श्रृष्टि ने कौन सा फैंसला लिया जिससे उसका रूदन स्वर में बदलाव आ गया जिसे भापकर माताश्री प्रभू से विनती करने लग गई। यह तो बस समय ही बता पाएगा बहरहाल माताश्री रसोई में प्रवेश किया ही था कि द्वार घंटी ने किसी के आगमन का संकेत दे दिया।
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"कौन है" बोलकर माताश्री द्वार खोलने बढ़ गई। द्वार खोलते ही सामने खड़े शख्स ने बोला... आंटी जी श्रृष्टि यहीं पर रहती हैं।
"जी हा! आप कौन?"
"जी मैं उसी के साथ काम करती हूं मेरा नाम साक्षी हैं।"
"हों तुम ही हो साक्षी तुम्हारी बहुत चर्चा सूना था। आओ भीतर आओ।"
साक्षी को बैठाकर माताश्री श्रृष्टि को आवाज देते हुए बोलीं... श्रृष्टि बेटा देख तेरी साक्षी मैम आई हैं। जल्दी से बहार आ जा (फिर साक्षी से बोलीं) बेटा तुम बैठो मैं चाय लेकर आई।
इतना बोल कर माताश्री रसोई में चली गई
अब उधर वोही समय पे श्रुष्टि के कमरे में
रोज की तरह आज श्रुष्टि के चहरे पर वो खास तरीके की मुश्कान गायब थी| आज उसे वोही दर्पण उसे दुश्मन लगा जहा जाके अपने शरीर को देखती और फुला नहीं समाती थी आज उसे इस अकेलेपन से उब रही थी जहा वो मा से दूर होते ही उस अकेलेपन की मज़ा लेती थी अपने सपनो को बूनती रहती थी
ये वोही कमरा था जहा उसके सपनो की महक आती थी आज वो दुर्गन्ध में परिवर्तित हो चुकी थी
आज उसके शरीर में कोई ज़नज़नाहत महेसुस नहीं हो रही थी, उसके पैरो से वो मोर अपनी थान्गानाट गायब हो गई थी ये वोही कमरा था जहा वो हर लड़की की तरह अपनी श्रुष्टि सजाती थी अपने राजकुमार के साथ आज वोही कमरा था और वोही पलंग जहा सोती थी और वोभी वोही श्रुष्टि थी पर सपने टूटे हुए थे
श्रुष्टि अपनी ही बुनी हुई काल्पनिक श्रुष्टि को खो चुकी थी
तभी मा की आवाज़ आई और थोड़ी देर में श्रृष्टि हल्की बनावटी मुस्कान होठो पर लिए कमरे से बहार आई और साक्षी को देखकर बोलीं...अरे साक्षी तुम मेरे घर में।
साक्षी... क्यों नहीं आ सकती (फिर मन में बोलीं) थैंक गॉड श्रृष्टि सामान्य लग रही हैं।
श्रृष्टि... अरे मैं तो बस इसलिए कहा तुम्हे मेरे घर का पता नहीं मालूम था न।
साक्षी... पाता नहीं मालूम था अब तो चल गया वो भी सिर्फ तेरे वजह से तू दफ्तर से इतनी परेशान होकर निकली मुझे लगा तू कुछ कर न बैठें इसलिए मैं तेरा पीछा करते करते आ गई बस गली में घुसते ही तू ओझल हो गई वरना तेरे साथ ही तेरे घर पे आ जाती। और हां तू स्कूटी बहोत तेज़ चलाती है
श्रृष्टि...चलो अच्छा हुआ इसी बहाने मेरा गरीब खाना भी देख लिया और उस बात को भूल जाना क्योंकि वो मेरी एक बचकाना हरकत थी जो अब मैं समझ चुकी हूं अच्छा तू बैठ मैं देखती हूं चाय बना की नहीं फिर चाय पीते हुए बाते करेंगे।
श्रृष्टि की बातों ने साक्षी को अचंभित कर दिया साथ ही उसके व्यवहार भी जो लंच के बाद किसी से बात नहीं कर रहीं थी घर आते ही बदल गई सिर्फ़ इतना ही नहीं जो परेशानी और उदासी उसकी चेहरे पर देखा था वो भी गायब हों गया।
कुछ देर तक साक्षी इसी विचार में मगन रही मगर श्रृष्टि में आई बदलाब ने उसके विचार को ध्वस्त कर दिया। कुछ ही देर में चाय नाश्ता लेकर दोनों मां बेटी आ गई फ़िर तीनों में शुरू हुआ बातों का दौरा। जो की लंबा चला फ़िर साक्षी विदा लेकर कल दफ्तर में मिलते है बोलकर चली गई।
जारी रहेगा….
पता नहीं अब कहानी क्या मोड़ ले रही है जान ने की कोशिश करेंगे अगले एपिसोड में ......
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भाग - 24
राघव का हाल भी श्रृष्टि से दूजा नहीं था। वो भी उतना ही परेशान था बस बदहवास नहीं हुआ था। खुद पर काबू रखा हुआ था। वैसे तो राघव जल्दी घर नहीं जाता था इसकी वजह बरखा थीं। मगर आज उसका मन कही पे नहीं लगा तब घर चला गया। तिवारी भी उसी वक्त घर पर मौजूद था और बेटे को जल्दी आया देखकर उसके साथ कुछ वक्त बिताना चाहा इसलिए साथ में चाय पीने की फरमाइश कर दी।
बेमन से राघव पिता की बात मान लिया और उनके साथ बैठ गया। तिवारी बातों के दौरान ध्यान दिया कि राघव का ध्यान कहीं ओर है और उसके सामने रखा कॉफी पड़ा पड़ा ठंडा हों रहा था लेकिन राघव अभी तक एक भी घूंट नहीं पिया था। ये देख तिवारी जी बोले... राघव क्या हुआ बेटा तुझे कोई परेशानी है?
राघव... नहीं तो
तिवारी... क्यों झूठ बोल रहा हैं? मैं कब से देख रहा हूं कॉफी पड़े पड़े ठंडा हों रहा है और तू पीने के जगह कहीं और खोया हुआ हैं।
"तुम्हें तो सिर्फ़ अपने बेटे की परेशानी दिखती हैं। कभी इतना ही ध्यान मेरे बेटे पर भी दे दिया करो।" बरखा कमरे से बहार आ रहीं थी तो दोनों बाप बेटे की बाते सुनकर तंज का भाव शब्दों में घोलकर बोलीं
तिवारी... ये बात तुम कह रहीं हों जरा अपनी गिरेबान में झांककर देखो कभी तुमने मां होने का एक भी फर्ज निभाया? कभी राघव को पास बैठाकर एक मां की तरह उससे उसकी परेशानी पुछा? नही कभी नहीं मगर मैंने कभी अरमान और राघव में भेद नहीं किया दोनों को एक समान बाप का प्यार दिया।
बरखा... मैं तो करती हूं और आगे भी करती रहूंगी क्योंकि राघव मेरा सगा नहीं सौतेला हैं...।
राघव इतना सुनते ही उठकर चला गया और तिवारी बोला...बस करो बरखा ओर कब तक ऐसे ही मेरे बेटे को उसी के सामने सौतेला होने का एहसास करवाते रहोगे वो तो तुम दोनों से कभी भी भेद भाव नहीं करता हैं फ़िर तुम और अरमान सगा सौतेला का भेद क्यों करते हों? ना मैंने कभी सगा सौतेले का भेद किया हैं।
बरखा...मैं तो जो भी करती हूं सामने से करती हूं। तुम जो भी करते हो वो सब दिखावा करते हों। अगर दिखावा नहीं करते तो जायदाद में दोनों को बराबर हिस्सा देते। अरमान को कम और राघव को ज्यादा नहीं देते।
बातों का रूख बदलते देख तिवारी उठे और कमरे की और जाते हुए बोले...उसके लिए भी तुम दोनों मां बेटे ही ज़िम्मेदार हों जीतना दिया उसी में खुश हों लो वरना वो भी छीन लूंगा और मुझे ऐसा करने पर मजबुर न करो।
इतना बोलकर तिवारी कमरे में चला गया और बरखा दो चार बाते और सुनाया फ़िर अपने कमरे में चली गइ।
अजीब विडंबना में दोनों बाप बेटे जिए जा रहे हैं। दो पल बैठकर एक दूसरे की परेशानी भी जान नहीं पा रहे हैं। आज कोशिश की पर वो भी सिर्फ बरखा के कारण धारा का धारा रह गया।
रात्रि भोजन का वक्त हों चुका था मगर राघव कमरे से एक पल के लिए बाहर ही नहीं आया था। ये बात जानते ही तिवारी बेटे को बुलाने चले गए। कई आवाज देने के बाद राघव बाहर आया तब तिवारी बोला... चल बेटा भोजन कर ले।
राघव... पापा आप कर लिजिए मुझे भूख नहीं हैं।
तिवारी... चल रहा है की फिर से सुरसुरी करना शुरू करू।
राघव... नहीं पापा चलिए आप की सुरसुरी सहने से अच्छा भोजन ही कर लेता हूं।
दोनों बाप बेटे खाने के मेज पर आ के बैठ गए। भोजन लगाया जा रहा था उसी वक्त बरखा भी आ कर बैठ गई। निवाला मुंह में डालते हुए बरखा बोलीं... यहां बाप अपने बेटे के साथ बैठे भोजन कर रहा हैं मगर मेरा बेटा वहां भोजन किया भी कि नहीं ये तक किसी ने नहीं पुछा।
तिवारी... उसके लिए तुम हों न घड़ी घड़ी फ़ोन करके पूछ ही लेती हो तो फिर दूसरे को पूछने की जरूरत ही क्या है? अब तुम चुप चाप भोजन करो। यहां बैठना अच्छा नहीं लग रहा हैं तो अपने कमरे में जा सकती हों।
एक निवाल बनाकर राघव को खिलाते हुए बोला...आज मैं अपने बेटे को अपने हाथ से खाना खिलाता हूं और एक सौतेली मां को दिखा देना चाहता हूं वो भाले ही मेरे बेटे को मां का प्यार दे चाहे न दे लेकिन एक बाप मां और बाप दोनों का प्यार देना जानता हैं।
बरखा... हा हा...।
"चुप बरखा बिल्कुल चुप एक भी शब्द न बोलना नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा। मुझे इतना भी मजबुर न कारो की मुझे तुम पर हाथ उठाना पड़े।" तिवारी ने अपनी बाते लगभग चीखते हुए बोला।
तिवारी का गर्म तेवर देखकर बरखा चुप हो गई और चुप चाप भोजन करने लग गई।
तिवारी खुद से निवाला बनाकर राघव को खिलाए जा रहा था। कुछ निवाला खाने के बाद राघव खुद से निवाला बनाकर खाने लगा। राघव खुद से खा तो रहा था मगर उसके मस्तिस्क के किसी कोने में दोपहर के भोजन का वो दृश्य बार बार चल रहा था जब श्रृष्टि भोजन अधुरा छोड़कर चली गइ थी।
वो दृश्य मस्तिस्क में उभरते ही उस वक्त का पूरा दृश्य चलचित्र की तरह राघव के सामने चलने लग गया और राघव के चहरे पर एक बार फ़िर से परेशानी की लकीरें आ गया। बगल में बैठा बाप इसे भाप गया तो एक हाथ से राघव का हाथ थाम लिया।
स्पर्श का आभास होते ही राघव के सामने चल रहा चलचित्र अदृश्य हों गइ और राघव हाथ में लिया हुआ निवाला प्लेट में छोड़कर चला गया।
"राघव भोजन तो पूरा करता जा।" रोकते हुए तिवारी बोला
बरखा...अरे जानें दो क्यों गला फाड़ रहे हो उसे भूख नहीं होगा, होता तो भोजन अधुरा छोड़कर नहीं जाता।
तिवारी...बरखा मैंने तुमसे बोला था चुप रहना फिर क्यों अपना मुंह खोला, तुम्हें दिख नहीं रहा वो किसी बात से परेशान हैं।
बरखा…परेशान तो होगा ही रोज पता नहीं बहार से क्या गंदा संदा खा पीकर आता हैं। जा कर देखे कहीं तुम्हारे बेटे का लिवर सीवर सड़ तो नही गया।
बरखा की बातों ने तिवारी का पारा इतना चढ़ा दिया की वो खुद पर काबू नहीं रख पाया। तिवारी झट से अपना खुर्शी छोड़ा और चटाक, चटाक की आवाज वहा गूंज उठा। सहसा क्या हुआ ये बरखा के समझ से परे था और तिवारी यहां नहीं रूके एक के बाद एक कई चाटा ओर मारा फ़िर लगभग चीखते हुए बोला…बरखा आज तुम्हारे जुबान से जो निकला वो मेरे सहन सीमा को पार कर गया। आज तुम्हें चेतावनी देता हूं आज के बाद तुम अपनी ये सड़ी हुई सुरत लेकर मेरे बेटे के सामने आइ तो तुम्हरा वो हस्र करुंगा कि आईने में अपनी सूरत देखने से कतराओगे।
बरखा को इतने चाटे पड़े की उसका हुलिया बिगड़ गया। बिना बालों को छुए करीने से कड़े और जुड़ा किए हुए बालों को अस्त व्यस्त कर दिया गया।
तिवारी का रौद्र रूप बरखा के लिए किसी सदमे से कम न था इससे पहले भी बरखा ने न जानें कितनी वाहियात बाते कहीं थी मगर उस वक्त तिवारी सिर्फ टोकने के अलावा कुछ नहीं किया और आज वो हुआ जिसका आशा (इल्म) शायद बरखा को न थी, न ही तिवारी ने कभी किसी महिला के साथ किया होगा।
मेज पर रखा पानी उठाकर गट गट पी गया फिर गहरी गहरी सांसे लेकर तिवारी ने अपने गुस्से को ठंडा किया फिर बोला...बरखा तुम्हारी हरकतें और कड़वी बातों ने आज मुझे वो करने पर मजबुर कर दिया जो न मैंने कभी सोचा था न ही कभी किया था और हा जो भी बाते मैने गुस्से में कहा ये मत सोचना की मैं भूल जाऊंगा भले ही मैंने गुस्से में कहा हो मगर एक एक बाते सच हैं आज के बाद तुम्हारी सुरत मुझे या मेरे बेटे को दिखा तो तुम्हारा गत इससे भी बूरा करुंगा। मुझे ऐसा बहुत पहले कर देना चहिए था जिससे मेरे बेटे को इतना जलील न होना पड़ता चलो देर से ही सही अब से उसे उसके घर में जलील नहीं होना पड़ेगा।
इतना कहाकर एक प्लेट में खाना लगाया ओर राघव के कमरे की ओर जाते हुए बोला... मैं राघव को भोजन करवाने जा रहा हूं जब लौट कर आऊं तब तुम मुझे यहां नहीं दिखनी चहिए और हां अभी अभी तुम्हारे साथ जो भी हुआ इसकी भनक अरमान को नहीं लगना चाइए अगर उसे पाता चला तो तुम्हारा गत क्या होगा ये मैं भी नहीं जानता बस इतना कहुंगा बहुत बूरा होगा।
बरखा का मुह जैसे काटो तो खून ना निकले जैसा हो गया था शायद डर भी गई थी|
राघव के कमरे पे पहुचकार द्वार खटखटाया फ़िर बोला... राघव दरवाजा खोल और भोजन कर ले बेटा।
राघव... पापा...।
"राघव कोई बहाना नहीं चलेगा तू द्वार खोलता है कि मैं कुछ करूं।" झिड़कते हुए तिवारी बोला
राघव ने तुरंत द्वार खोल दिया फ़िर दोनों भीतर चले गए। राघव को बेड पर बैठने को कहकर खुद भी बैठ गए फ़िर राघव को खुद से भोजन करवाने लग गए। राघव ना ना करता रहा पर तिवारी माने नहीं डांट डपट कर जीतना भोजन लाया था लगभग सभी भोजन राघव को खिला दिया फ़िर प्लेट रखकर बोले... अब बोल तू किस बात से इतना परेशान हैं।
राघव...मैं कहा परेशान हूं लगता हैं आपको भ्रम हुआ था।
तिवारी...अच्छा मुझे भ्रम हुआ था ! ! मै तो कभी तुम्हारी उम्र में था ही नहीं शायद ऐसे ही बचपन से सीधा बुढा !!!! चल माना की मुझे भ्रम हुआ था मगर भोजन के वक्त तू किन ख्यालों में गुम था और मेरा स्पर्श पाते ही बना बनाया निवाला छोड़कर आ गया।
जारी रहेगा….
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भाग - 25
पिता के ख्यालों में खोने की बात कहते ही राघव एक बार फ़िर ख्यालों में खो गया। इस बार कुछ ओर ही ख्याल उसके मस्तिस्क में चला रहा था। वो सोच रहा था पापा को सच बताए या नहीं अगर सच नहीं बताना है है तो कुछ ऐसा बताना होगा जिससे पापा को लगे की राघव की परेशानी की यहीं वजह है। सहसा राघव मुस्कुराते हुए बोला... पापा वो दफ्तर से आते वक्त कुछ वक्त के लिए नजदीक के एक पार्क में गया था। वहा देखा एक बच्चे को उसकी मां खुद से खिला रहीं थीं ये देखकर मुझे मां की याद आ गई थी इसलिए थोड़ा परेशान हों गया था फ़िर भोजन के वक्त आप अपने हाथो से खिला रहें थे तो उस वक्त भी मां की याद आ गई कि मां होती तो वो भी मुझे ऐसे ही खिलाते बस इसलिए उठकर आ गया।
तिवारी... अच्छा कोई बात नहीं अब जब भी तेरा मन करें मुझे बता देना मैं तुझे अपने हाथों से खिला दिया करुंगा।
और हां ऐसा जूठ हम उमर वालो से बोला जता है !!!! हा हा हा
कुछ और इधर उधर की बाते होने लगा। धीरे धीरे बाते राघव की शादी की ओर चल पड़ा शादी की बात आते ही राघव के मन में श्रृष्टि का ख्याल आ गया। सीधा सीधा वो बाप से कह नहीं पा रहा था। इसलिए राघव बोला...पापा मान लिजिए मैं किसी ऐसी लड़की को पसंद करता हूं जो हमारी हैसियत की बराबरी नहीं करती है तो क्या आप...।
"हम्म तो मामला ये है मेरे बेटे को किसी से प्यार हों गया जो रूतवे में हमसे कम है। है ना मैं सही कह रहा हूं ना।" राघव की कहने का मतलब समझते हुए तिवारी बोला
राघव... जी पापा
जूठ बोलता हु तो पकड़ा जाता हु
तिवारी... बेटा कभी कभी जूठ बोलना भी सीखना पड़ता है कभी कभी जूठ ही काम में आ जाता है खेर चल अब ये भी बता दे तेरी प्रेम कहानी कहा तक पहुंची फ़िर मैं बताऊंगा की तेरे सवाल का क्या जवाब हैं।
सूक्ष्म रूप में श्रृष्टि के साक्षत्कार देने आने वाले दिन से लेकर अब तक की पुरी कथनी सूना दिया। जिससे सुनकर तिवारी बोला... हम्म तो तूने अभी अभी जो अपने परेशानी का कारण बताया था कारण वो नही बल्कि श्रृष्टि है जो आज तेरी शादी की झूठी खबर सुनकर परेशान हो गई।
राघव... जी पापा।
तिवारी... तो बेटा ये बताओ प्रपोज खुद से करोगे कि मैं शागुन की थैली लेकर उसके घर पहुंच जाऊं।
राघव... क्या पापा आप तो मेरे फेरे फेरवाने के पीछे पड़ गए। थोड़ा रूकिए पहले मुझे बात तो कर लेने दिजिए। आज जो बखेड़ा हुआ है उसके बाद पता नहीं वो क्या कहेंगी।
तिवारी... क्या कहेंगी ये मैं नहीं जानता मैं बस इतना जानता हूं कि उस जैसी उच्च सोच वाली कोई ओर लड़की शायद ही मुझे मेरी पुत्र बधू के रूप में मिले। इसलिए जल्दी से तुझे जो करना है कर नहीं हुआ तो मुझे बताना मैं उसके घर रिश्ता लेकर पहुंच जाऊंगा।
राघव... इसका मतलब आपको इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि उसकी हैसियत हमारे बराबर नहीं है और हमारे कम्पनी में काम करने वाली एक नौकरियात (मुलाजिम) हैं।
तिवारी…जब लड़की इतनी होनहार और दूजे ख्यालों वाली है तो उसके सामने हमारी हैसियत मायने ही नहीं रखता बेटे । उस जैसी लड़की को मुझे अपनी पुत्रवधू बनाने में भला क्या दिक्कत आयेगा।
राघव... ठीक है।
इसके बाद तिवारी जी राघव को सोने को कहकर चले गए और राघव आने वाले सुखद भविष्य के सुनहरी सपने बुनते हुए सो गया।
उधर तिवारी जी भी अपनी पुत्रवधू की कल्पना को लिए सोने के लिए चले गए
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.......
अगले दिन सुबह श्रृष्टि जब दफ्तर आई तब वो बिल्कुल सामान्य थीं। देखकर कोई ये नहीं कह सकता कि यहीं लड़की कल इतना परेशान थी की किसी से बात नहीं कर रहीं थीं और जब दफ्तर से गई थी तब तो एक अलग ही मरू या मारू के रूप में थी। मगर आज वो सभी से हस बोल रहीं थीं ठिठौली कर रहीं थीं।
राघव दफ्तर आते ही पहले श्रृष्टि को देखने गया कि वो कैसी हैं। श्रृष्टि को हसता मुस्कुराता देखकर राघव को बहुत ही ज्यादा सकून मिला लेकिन उसका यह सकून ज्यादा देर नहीं टिका क्योंकि श्रृष्टि ने सरसरी निगाह फेरकर ऐसे पलट गई। जैसे राघव श्रृष्टि के लिए अनजान हों।
राघव काफी देर खड़ा रहा इस उम्मीद में कि श्रृष्टि एक बार उसकी ओर देखे और थोडा मुस्कुराये मगर श्रृष्टि एक बार जो नज़रे झुकाया तो बस झुका ही रही। अंतः राघव वापस जाते वक्त बोला... श्रृष्टि कुछ काम की बात करना हैं मेरे साथ आना जरा।
बिना नज़रे उठाए बस इतना बोला "आप चलिए मैं आती हूं" ये सुन और श्रृष्टि का बरताव देखकर राघव कुछ विचलित सा होकर चला गया।
राघव के जाते ही श्रृष्टि कुछ देर बिल्कुल चुप बैठी रहीं फ़िर अपने रुमाल से आंखो को फोंछने लग गई ये देख साक्षी बोलीं... क्या हुआ श्रृष्टि?
श्रृष्टि... साक्षी लगता है आंखों में धूल का कोई कण घुस गया हैं।
साक्षी...अच्छा ला दिखा मैं निकाल देती हूं।
श्रृष्टि... मैं निकाल लूंगी तू सर से मिलकर आ।
साक्षी... मैं क्यों जाऊं? बुलाकर तुझे गया हैं तो तू ही जा।
श्रृष्टि... मैं जाऊं या तू बात तो उन्हें काम की करनी हैं। हम दोनों प्रोजेक्ट हेड हैं तो काम की बात तुझसे भी किया जा सकता हैं। इसलिए तू होकर आ तब तक मैं कुछ जरुरी काम निपटा लेती हूं।
साक्षी...श्रृष्टि आज तेरा वर्ताव मेरे समझ में नहीं आ रहीं हैं। तुझे हुआ किया हैं। पहले तो तू सर के न बुलाने पर कोई न कोई काम का बहाना करके बात करने चली जाती थीं फिर आज क्या हुआ जो बुलाने पर भी नहीं जा रही हैं।?
"आ हा साक्षी मैंने जो कहा है वो कर न मुझे क्या हुआ क्या नहीं ये जानना जरूरी नहीं हैं।" चिड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं
साक्षी... अरे इतनी सी बात के लिए चीड़ क्यों रहीं हैं। अच्छा ठीक है मैं ही चली जाती हूं।
इसके बाद साक्षी चली गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... साक्षी तुम क्यों आईं हों। आने को श्रृष्टि को बोला था।
साक्षी... उसी ने ही भेजा हैं।
"क्या (चौकते हुए राघव आगे बोला) श्रृष्टि आज कुछ अजीब सा व्यवहार कर रही हैं समझ नहीं आ रहा कि वो ऐसा क्यों कर रहीं हैं।"
साक्षी... लगता है कल की बातों को कुछ ज्यादा ही दिल पे ले लिया हैं आप एक काम करिए अभी थोड़े देर बाद पुरी टीम को लंच पर ले जानें की बात कह दिजिए शायद इस बात से उसमे कुछ बदलाब आ जाए।
राघव... ठीक हैं तुम अभी जाओ।
साक्षी वापस चली गई और राघव ने तूरंत ही किसी को फ़ोन किया फिर काम में लग गया। कुछ वक्त काम करने के बाद वो वहां गया और बोला... आज मैं आप सभी को लंच पे ले जाना चाहता हूं तो आप सभी तैयार रहना।
राघव की इस बात पे श्रृष्टि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिया न ख़ुशी जाहिर किया न गम बस सामान्य ही बनी रही और साक्षी बोलीं... अरे वाह सर आज किस ख़ुशी में हम पर ये मेहरबानी किया जा रहा हैं (फ़िर श्रृष्टि की ओर देखकर बोलीं) सर कही आप किसी की नाराजगी दूर करने के लिए सभी को लंच पर तो नही ले जा रहें हों।
"सर जब लंच पर ले ही जा रहे हो तो किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में लेकर चलना।"एक सहयोगी बोला
साक्षी... अरे डाफेर जब सर लेकर जा रहे हैं तो अच्छे रेस्टोरेंट में लेकर ही जायेगे आखिर उन्हे किसी रूठे हुए को मनाना जो हैं। क्यों सर मैंने सही कहा न?
डाफेर सुनते ही श्रृष्टि की आंखें फैल गई और चौकने वाले अंदाज में साक्षी को देखने लग गईं। जब उसे अहसास हुआ की डाफेर उसे नहीं किसी ओर को बोला गया हैं। तो मंद मंद मुस्कान बिखेर कर नज़रे झुका लिया और राघव बोला...रेस्टोरेंट कैसा है ये तो तुम सभी को वहा पहुंचकर पता चल जायेगा। वैसे मेरा आधा काम हों चुका हैं बाकि का लंच के वक्त हों जायेगा। अच्छा तुम सभी काम करो मैं समय से आ जाऊंगा।
एक गलतफैमी जीवन में कौन कौन सा मोड़ ला सकता हैं। यह कहा नहीं जा सकता लेकिन अभी अभी राघव एक गलत फैमी के चलते जो समझा और जो कहा वो कितना सिद्ध होगा ये वक्त ही बता सकता हैं। बहरहाल श्रृष्टि के मंद मंद मुस्कान को हां समझकर राघव चला गया और साक्षी श्रृष्टि के पास जाकर श्रृष्टि के कंधे से कंधा टकराते हुए बोलीं…श्रृष्टि अब तो खुश हों जा। यह लंच खास तेरे लिए प्लान किया गया हैं।
श्रृष्टि... मैं भला क्यों खुश होने लगीं और मेरे ही लिए क्यों स्पेशियली लंच प्लान क्या जानें लगा?
साक्षी... तू जानती सब हैं फ़िर भी अनजान बन रहीं हैं चल कोई बात नहीं थोड़ी ही देर की बात हैं सब जान जायेगी।
श्रृष्टि... मुझे कुछ नहीं जानना और तेरा बाते बनना हों गया हो तो कुछ काम कर ले।
साक्षी... मैं बाते बना रहीं हूं कि सच कह रहीं हूं ये थोड़ी ही देर में पता चल जायेगा। चल अपना अपना काम करते है आज तो लंच पे मैं छक के खाऊंगी ही ही ही।
अभी इन्हें काम करते हुए कुछ ही वक्त हुआ था कि श्रृष्टि का फ़ोन घनघाना उठा। बात करते हुए श्रृष्टि कुछ विचलित सी हों गईं और परेशानी की लकीरें उसके चेहरे पर उभर आईं। फ़ोन कटते ही अपना हैंड बैग उठाया और साक्षी से बोलीं…साक्षी मुझे अभी घर जाना होगा सर को बता देना।
साक्षी... क्या हुआ?
श्रृष्टि... अभी बताने का समय नहीं है बाद में बता दूंगी।
इतना बोलकर श्रृष्टि चली गई। श्रृष्टि के चेहरे पे उभरी चिंता की लकीरें देखकर साक्षी भापने की जतन करने लगी की सहसा क्या हों गया जो श्रृष्टि इतनी जल्दबाजी में और इतनी चिंतित मुद्रा में घर चली गई।
जारी रहेगा….
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लो भाई अब एक नयी टेन्शन खड़ी करी दी श्रुष्टि ने ............ ये कहानी भी अजीब होती है कही भी एक ढंग से नहीं चलती ............
अब इस कहानी को ही ले लीजिये !!!! अरे भाई या तो दो प्रेमी को मिला दे या फिर भुला दे ये आगे क्या होगा की झंझट से तो छूटे !!!!!!!!!!!!!
हा हा हा हा...............
बने रहिये ये कहानी जल्द ही ख़तम होगी
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भाग - 26
श्रृष्टि का यूं अचानक बिना कोई कारण बताए चिंतित मुद्रा में घर चले जाना साक्षी सहित बाकि साथियों के लिया चिंता का विषय बन गया।
दूसरे साथी साक्षी से श्रृष्टि के जानें का कारण पूछने लग गए मगर साक्षी भी तो अनजान थी तो बस इतना ही बोलीं...मुझे नहीं पता लेकिन उसे देखकर इतना तो जान ही गईं हूं। कुछ तो हुआ हैं वरना वो ऐसे अचानक घर न चली जाती। तुम सभी काम पे ध्यान दो मैं सर को बताकर आती हूं।
साक्षी राघव के पास पहुंच गई। भीतर जानें की अनुमति लेकर भीतर जाते ही राघव बोला... बोलों साक्षी कुछ काम था।?
साक्षी... सर मै बस इतना बताने आई थी कि श्रृष्टि अभी अभी घर चली गई हैं।
"क्या (चौक कर राघव आगे बोला) श्रृष्टि का एसा व्यवहार मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं वो चाहती किया हैं। आज फिर कोई बहाना बनाकर चली गई हैं।
साक्षी... सर मै इतना तो दावे से कह सकती हूं आज वो किसी तरह का कोई बहाना बनाकर नहीं गई हैं। पर जब वो गई थी तब बहुत ही विचलित और चिंतित थी। जैसे ही उसका फोन आया उसी टाइम से|
"क्या, क्या हुआ कुछ बताकर गई हैं?" राघव चिंतित होते हुए बोला
साक्षी... नहीं सर..।
इतना सुनते ही राघव तुंरत फोन निकाला और किसी को कॉल लगा दिया। एक के बाद एक कई कॉल किया पर दुसरी और से कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो खीजते हुए राघव बोला... श्रृष्टि फोन क्यों रिसीव नहीं कर रहीं हैं?
साक्षी... अरे सर अभी अभी तो गई हैं स्कूटी चला रहीं होगी। आप चिंता न करें मैं थोड़ी देर में उससे बात करके आपको बता देती हु । अच्छा अब मैं जाती हूं और सभी को बता देती हूं आज का लंच कैंसिल हों गया हैं।
राघव... क्यों, लंच कैंसिल क्यों करना?
साक्षी... अरे सर जिसके लिए लंच प्लान किया गया था वो ही चली गई हैं। तो फिर लंच पर जाकर क्या फायदा?
राघव... नहीं साक्षी लंच कैंसिल नहीं कर सकते हैं। ऐसा किया तो उन सभी के अरमानों पर पानी फ़िर जायेगा। और मेरी क्या वेल्यु रहेगी
साक्षी... आप के अरमानों पर पानी फिर गया उसका क्या?
राघव... मेरे अरमानों पर पानी फिरता रहता हैं। अब तो इसकी आदत सी हो गई हैं। मैं तुम्हें वहा का एड्रेस दे देता हूं तुम सभी को साथ लेकर चली जाना
साक्षी... जाहिर सी बात है श्रृष्टि नहीं जा रही है मतलब आप भी नहीं जाओगे। आगर आप जा रहे है तो मैं खुद के जाने में बारे में सोच सकती हूं। बोलिए आप चल रहे हों।
राघव…सॉरी साक्षी मैं….।
साक्षी... बस सर मै समझ गयी। अब ये लंच का प्रोग्राम कैंसिल मतलब कैंसिल।
राघव…साक्षी समझा कारों यार।
साक्षी... समझ ही तो गई हूं तभी तो बोल रहीं हूं। दो आशिक एक दूसरे से प्यार का इजहार कर पाए इसलिए लंच पे जाने का प्लान किया गया था जब दोनों ही नहीं जा रहे है तो हमारे जानें का मतलब पैदा ही नहीं होता हैं। और अगर इस बहाने काम हो जाता तो हम सब ख़ुशी के मारे और एक पार्टी मांग लेते ही ह ही ही
इतना बोलकर साक्षी चल दि। जाते जाते पलट कर बोलीं... सर आप चिंता न करे उनके सामने आप की नाक नहीं कटने दूंगी।
राघव ने रूकने को बोला पर साक्षी नही रूकी वो चली गई। जब सहयोगियों के पास पहुंची तो साक्षी बोलीं...सुनो मुझे तुम सब से एक सवाल पूछना हैं। क्या तुम सब राघव सर के साथ लंच पर जाना चाहते हों?
"ये भी कोई पूछने की बात हैं। सर ने खुद ही कहा हैं तो जाना तो बनता हैं भला ऐसा मौका रोज रोज कहा मिलता हैं।" सर को लुटने का हा हा हा हा एक सहयोगी बोला
एक साथ सभी ने अपनी अपनी मनसा जहीर कर दिया जिसे सुनकर साक्षी बोलीं...कह तो सही रहे हों ऐसा मौका रोज रोज नहीं मिलता हैं पर श्रृष्टि चली गई है इसलिए मेरा भी मन नहीं हैं। मैं तो भाई सर को मना कर आई हूं। तुम सभी को जाना है तो चले जाना सर जानें को तैयार हैं।
साक्षी के लंच पे जाने से मना कर देने पर सभी पहले तो एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे फिर आपस में विचार विमर्श करने लग गए। कुछ देर बाद उनमें से एक बोला... क्या साक्षी मैम कम से कम आप तो चलती बड़े दिनों से सोच रहा था। आपको लंच पर चलने को कहू पर हिम्मत नहीं जुटा पाया आज राघव सर के बहाने मेरी इच्छा पूरी हों रही थी मगर लगता है मेरी किस्मत एक टांग की घोड़ी पर सवार होकर धीरे धीरे आ रहा हैं जो बात बनते बनते बिगड़ गया।
"मतलब " चौकते हुए साक्षी बोलीं
"अरे बोल दे शिवम ( ये वही कर्मचारी है जो हमेशा साक्षी के पक्ष में होता था याद है ना) आज मौका है इतनी हिम्मत करके ये बोल दिया है तो आगे का भी बोल दे जो बोलने के लिए लंच पर ले जाना चाहता था।" एक सहयोगी धीरे से शिवम के कान में बोला
शिवम... वो साक्षी मैम, वो क्या हैं न मैं आपको बहुत दिनों से पसंद करता हूं और प्यार भी पर कभी कहने का साहस ही नहीं जुटा पाया।
"तो फिर आज कैसे साहस जुटा लिया।" मुस्कुराते हुए साक्षी बोलीं
शिवम... वो आज आपके साथ लंच पर न जा पाने की हताशा के कारण कुछ बातें निकल गया फिर…
"फ़िर इसने मेरे कान भरने से पुरी बात उसके मुंह से निकल गया। क्यों शिवम सही कहा न।" शिवम की बाते पूरा करते हुए उसके कान में बोलने वाले ने बोला
साक्षी... चलो अच्छा हुआ जो आज बोल दिया। मैं भी कई दिनों से गौर कर रहीं थी तुम कुछ कहना चाहते हों मगर बात जुबां तक आते आते कही अटक जा रहा था। अच्छा मुझे थोड़ा वक्त मिल सकता है या फिर आज ही जवाब देना हैं।?
शिवम... नहीं आपको वक्त चहिए तो ले लो मगर थोड़ा जल्दी बोल देना।
हां मेम जरा जल्दी ही बोल देना शिवम् से रहा नहीं जाएगा उसी कर्मचारी ने उसकी टांग खीचते हुए बोला
साक्षी... ठीक है अब बोलों किसी को सर के साथ लंच पर जाना हैं।
"अब भला लंच पर कौन जायेगा। लंच तो यहीं करेंगे और लंच पार्टी शिवम देगा।" एक सहयोगी बोला
शिवम... वो क्यों भाला अभी सिर्फ मैने बोला है उधर से कोई जबाव नहीं आया जिस दिन जवाब आयेगा अगर हां हुआ तो भरपुर पार्टी दूंगा।
"चल ठीक है तेरी बात मान लेते है। साक्षी मैम आप सर को बोल दिजिए लंच पार्टी कैंसिल कोई नहीं जा रहा हैं।"
लंच कैंसिल करने की बात जब साक्षी राघव को बोलने गई तो सुनने के बाद राघव बोला... तो साक्षी तुम्हें भी तुम्हारा चाहने वाला मिल गया।
साक्षी...मतलब की आज फ़िर आप छुप छुप कर हमे देख और हमारी बाते सुन रहे थे।
राघव…हा साक्षी...।
साक्षी... आप अपनी ये आदत कब छोड़ेंगे।
राघव... कभी नहीं! साक्षी शिवम को लेकर जो भी फैंसला लेना सोच समझकर कर लेना क्योंकि मुझे लगता हैं शिवम तुम्हारे लिए बिल्कुल परफेक्ट लड़का हैं। मैं बस अपनी राय बता रहा हूं।
साक्षी...वो मैं देख लूंगी कुछ भी जवाब देने से पहले शिवम को अच्छे से परख लूंगी अच्छा अब मैं चलती हूं कुछ काम भी कर लेती हूं।
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दृश्य में बदलाब
श्रृष्टि इस वक्त एक हॉस्पिटल में हैं। जहां उसकी मां बेड पर लेटी हुई है। उनके एक पाव में प्लास्टर चढ़ा हुआ है और श्रृष्टि मां से बोल रहीं हैं।
"जब आप की तबीयत सुबह से खराब लग रही थी तो आपको कॉलेज जानें की जरूरत क्या थीं।"
"श्रृष्टि बेटा मैं एक शिक्षक हूं। शिक्षक होना बहुत ज़िम्मेदारी का काम हैं। चाहें कुछ भी हों जाएं मैं अपनी ज़िम्मेदारी से विमुख नहीं हों सकता।"
"शिक्षक होने के साथ साथ आप एक मां हों और आपके अलावा आपके बेटी का इस दुनिया में कोई नहीं है ये बात क्यों भुल जाती हों।" श्रृष्टि लगभग रोते हुए बोलीं
"अहा श्रृष्टि बेटा रोते नहीं हैं मुझे कुछ हुआ थोड़ी हैं बस पाव थोड़ा सा मोच हुआ है और ये बोतल तो डॉक्टर लोगों ने बस अपना बिल बढ़ने के लिए लगा रखा हैं।"
श्रृष्टि...आपको तो सब सहज लगता हैं। लेकिन मुझ पर क्या बीत रहीं थी मैं ही जानती हूं। जब मेरे पास फ़ोन आया कि आप सीढ़ी से गिर गई हों। तब कितने अनाप शनाप ख्याल मेरे दिमाग़ में आ रहे थे।
"अहा श्रृष्टि ज्यादा अनाप शनाप ख्याल आपने दिमाग में न लाया कर एक तू और एक वो बताने वाला उसने पुरी बात बताया नहीं और तूने पुरी बात सूनी नहीं मैं तो बस...।"
"बस आपको चक्कर आ गया था ओर आप गिर गई थी जिसे आपका पैर मुड़ गया था।" मां की बात पूरा करते हुए श्रृष्टि बोलीं
"हां बस इतना ही हुआ देखना शाम तक बिल्कुल ठीक हों जाउंगी।"
श्रृष्टि... कितना ठिक हों जाओगी मैं जानती हूं। जब तक आपका पाव ठीक नहीं हो जाता तब तक आप कॉलेज नहीं जाओगी।
"पर...।"
"पर वर कुछ नहीं जो बोला यहीं आपको करना होगा अब आप आराम करो मैं डॉक्टर से मिलकर आती हूं।" मां को लगभग डांटते हुए बोली
मा “ ये लड़की मेरी मा ही बनेगी “
इसके बाद श्रृष्टि डॉक्टर के पास पहुंची और मां के सेहत की जानकारी लिया तब डॉक्टर बोला... ज्यादा मेजर प्रॉब्लम नहीं है हल्की सी फैक्चर है। उनके उम्र को देखते हुए हमने ऐतिहातन (प्रिकोशनरी) प्लास्टर चढ़ा दिया है ।
श्रृष्टि... डॉक्टर, मां को घर कब ले जा सकती हूं।
डॉक्टर... बस कुछ ही देर ओर रूकना है ड्रिप खत्म होते ही आप उन्हें ले जा सकती हों।
इसके बाद श्रृष्टि मां के पास आकर बैठ गई और उनसे बाते करके समय काटने लग गई। ड्रिप खत्म होने के बाद माताश्री को छुट्टी दे दिया गया।
घर आकर माताश्री को उनके रूम में लिटाकर श्रृष्टि घर के कामों में लग गई ऐसे ही शाम हो गया। श्रृष्टि मां के साथ शाम के चाय का लुप्त ले रहीं थी उसी वक्त द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का आवाहन दिया।
जारी रहेगा...
अब शायद कहानी जोर पकड़ रही है ........... अब आपका इस कहानी में बने रहने का बनता ही है !!!!!!!!!!!!
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भाग - 27
द्वार घंटी के आवाहन देने पर श्रृष्टि जाकर द्वार खोला और आए हुए शख्स को देखकर बोला...साक्षी तुम आओ आओ भीतर आओ।
साक्षी... श्रृष्टि तेरा तो क्या ही कहना। कितना फोन किया एक फोन रिसीव करना जरूरी नहीं समझा तुझे पता है राघव सर कितना परेशान हों रहें थे।
श्रृष्टि…सर भला क्यों परेशान होने लग गए। ओह्ह समझी आज दफ्तर जाकर लौट आईं इसलिए परेशान हों रहें होंगे। होना भी चहिए उनका आज का काम रूक जो गया। सही कहा ना।?
श्रृष्टि ने सपाट लहजे में अपनी बाते कह दिया जिसे सुनकर साक्षी सिर्फ मुंह तकती रह गई और श्रृष्टि आगे बढ़ते हुए बोलीं... साक्षी सॉरी हा वो मां हॉस्पिटल में थी और ये सूचना पाते ही मेरा सूज बुझ जवाब दे चुका था इसलिए कुछ बता नहीं पाई।
"क्या (चौकते हुए साक्षी बोली) आंटी हॉस्पिटल में है तो तू इस वक्त घर में क्या कर रहीं हैं?
"श्रृष्टि बेटा कौन आया हैं।" माताश्री जानकारी लेते हुए बोली
श्रृष्टि... मां साक्षी आई है। चल साक्षी मां से भी मिल ले।
इसके बाद दोनों माताश्री के कमरे में पहुंचे वहां साक्षी ने माताश्री का हाल चाल लिया फ़िर बोलीं... आंटी आपकी बेटी न पूरा का पूरा वावली हैं। आप की सूचना पाकर खुद तो परेशान हुइ ही साथ में ओर लोगों को भी परेशान कर दिया।
"वो तो होगी ही मां से इतना प्यार जो करती हैं।।"
साक्षी... मां से प्यार करती है ये तो अच्छी बात है मगर इसे समझना चाहिए कोई है जो इससे बहुत प्यार करता है। इसे परेशान देखकर वो भी परेशान हो जाता हैं।
कोई ओर भी श्रृष्टि को प्यार करता हैं यह सुनते ही माताश्री और श्रृष्टि समझ गई कि किसकी बात कही जा रही हैं। माताश्री कुछ बोलती उससे पहले ही श्रृष्टि बोलीं... साक्षी तू मां से बात कर मैं चाय बनाकर लाई।
साक्षी रूकने को कहा पर श्रृष्टि रूकी नहीं खैर कुछ देर में श्रृष्टि फ़िर से तीन कप चाय लेकर आई और साक्षी को देते हुए बोलीं... साक्षी तुझे तो कॉफी पीने की आदत है लेकिन हम मां बेटी को चाय पीने की आदत है। इसलिए कॉफी की जगह चाय लेकर आई हूं। तुझे बूरा तो नहीं लगेगा।
साक्षी... क्यों कल भी तो तूने मुझे चाय पिलाया था तब तो तूने मुझसे कुछ नहीं कहा अच्छा आंटी आप ही बताइए कहा लिखा है कॉफी पसंद करने वाला चाय नहीं पी सकता हैं।
"कहीं नहीं लिखा हैं।"
साक्षी... ये बात जरा अपने इस डफेर बेटी को समझाइए
डफेर सुनते ही माताश्री हंस दि और श्रृष्टि चिड़ते हुए बोलीं... मां साक्षी मुझे डफेर बोल रहीं हैं और आप इसे कुछ कहने के जगह हंस रहीं हों।
इस बार माताश्री और साक्षी दोनों श्रृष्टि की बातों पर हंस दिया फ़िर माताश्री बोलीं... श्रृष्टि बेटा इसमें छिड़ने वाली कोई बात ही नहीं हैं। तूने बाते ही मूर्खो वाली कहीं हैं।
श्रृष्टि... मां...।
श्रृष्टि एक बार फिर से चीड़ गई। माताश्री ने उसे समझा बुझा कर मना लिया बहरहाल चाय खत्म होने के बाद साक्षी फ़िर आने को बोलकर विदा लिया। साक्षी को श्रृष्टि बहार तक छोड़ने आई। बहार आकर श्रृष्टि बोलीं... साक्षी सर को बोल देना मैं कुछ दिन छुट्टी पर रहूंगी।
साक्षी... मैं क्यों बोलूं छुट्टी तुझे चाहिए तू खुद ही बोल देना।
श्रृष्टि...क्या तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती हैं।
साक्षी... कर तो बहुत कुछ सकती हूं पर करूंगी नहीं क्योंकि जब तू बिना बताए आ गई तो सर सुनकर बहुत चिंतित हों गए थे। इसलिए नहीं की तू उनके साथ लंच पर नहीं गईं। वो चिंतित इसलिए हुए थे क्योंकि उन्हें तेरी फिक्र हैं। अरे मैं भी कौन सी बाते लेकर बैठ गई अच्छा मैं चलती हूं और तू अपने छुट्टी की अर्जी खुद ही सर को फ़ोन करके लगा देना।
साक्षी चली गई और श्रृष्टि भीतर आ गई। जब वो माताश्री के कमरे में पहुंची तो देखा माताश्री किसी ख्यालों में गुम है। ये देख श्रृष्टि बोलीं... मां आप किस ख्यालों में खोए हों।
"कुछ नहीं बस ऐसे ही। अच्छा ये बोल रात के खाने में क्या बना रहीं हैं।"
श्रृष्टि... जो आप कहो
रात्रि भोजन में क्या बनाया जाएं। ये सुनिश्चित होते ही श्रृष्टि रसोई में चली गई और रात्रि भोजन की तैयारी करने लग गईं। तभी "श्रृष्टि बेटा तेरा फ़ोन बज रहा है देख ले किसका फ़ोन आया हैं।" माताश्री आवाज देते हुए बोली। तब श्रृष्टि अपना मोबाइल लेने गई तब तक कॉल कट चुका था।
स्क्रीन पर दिख रहे नाम को देख कर फटा फट एक msg टाइप करके भेज दिया और फ़ोन अपने साथ लेकर रसोई में आ गई। रसोई में आने के बाद भी कई बार मोबाइल बजा मगर श्रृष्टि नजरंदाज करके अपना काम करती रहीं। उसकी आँखे अब जवाब दे गई पर तय जो किया था
माताश्री के पांव में फैक्चर की वजह से प्लास्टर चढ़ा हुआ था इसलिए सावधानी बरते हुए श्रृष्टि ने दफ्तर में छुट्टी की अर्जी लगा दिया था। इसका पाता चलते ही माताश्री ने श्रृष्टि को डांटा कि साधारण सी चोट है इसके लिए तुझे छुट्टी लेने की जरूरत नहीं हैं। तू दफ्तर जा मैं खुद का ख्याल रख लूंगी। मगर श्रृष्टि माताश्री की एक न सुनी और घर पर ही रहीं।
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उधर साक्षी के जरिए राघव को भी खबर मिल चुकी थी कि किस करण श्रृष्टि चली गई थी जिसे जानकार राघव ने कहीं बार श्रृष्टि को कॉल किया लेकिन एक भी बार श्रृष्टि ने कॉल रिसीव नहीं किया बल्कि जवाब में एक msg भेज देया था।
राघव बेचारा प्यार की बुखार से पीड़ित, आशिकी का भूत सिर पर चढ़ाए बस श्रृष्टि की एक शोर्ट msg से खुद को संतुष्ट कर लेता था।
एक हफ्ते की छुट्टी के बाद श्रृष्टि दफ्तर पहुंची जहां सभी ने श्रृष्टि का अव भगत ऐसे किया जैसे श्रृष्टि कई महीनों बाद दफ्तर आई हों।
राघव की जानकारी में था कि आज श्रृष्टि दफ्तर आ रहीं हैं तो महाशय आज अपने नियत समय से पहले ही दफ्तर पहुंच गए और जा पहूंच अपनी माशूका के दीदार करने मगर बेचारे की फूटी किस्मत श्रृष्टि ने नज़र उठकर भी राघव को नहीं देखा। कुछ वक्त तक वह खड़ा रहा इस आस में की श्रृष्टि कभी तो उसकी और देखेगी लेकिन श्रृष्टि ज्यो की त्यों बनी रहीं। अंतः जाते वक्त राघव बोला... श्रृष्टि जरा मेरे कमरे में आना कुछ बात करनी हैं और हा तुमसे ही बात करनी हैं किसी ओर से नहीं इसलिए तुम्हे ही आना होगा।
इतना बोलकर राघव चला गया और श्रृष्टि असमंजस की स्थिति में फंस गई कि करे तो करे क्या? आस की निगाह से साक्षी को देखा तो उसने भी कंधा उचा कर कह दिया। मैं इसमें तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकती हूं जो करना हैं तुम्हें ही करना हैं।
अब राघव के पास जानें के अलावा श्रृष्टि के पास कोई और चारा ही नहीं बचा इसलिए श्रृष्टि राघव के पास पहुंच गई। श्रृष्टि को आया देखकर राघव के होठो पर मंद मंद मुस्कान तैर गया और आंखों से शुक्रिया अदा करते हुए राघव बोला... श्रृष्टि तुम्हारी मां की खबर जानने के लिए कितना फोन किया मगर तुमने एक बार भी बात करना ज़रूरी नहीं समझा। ऐसा क्यों?
श्रृष्टि... सर उस वक्त मैं बिजी रहती थी इसलिए फोन रिसीव नहीं कर पाईं। वैसे भी साक्षी से आप को खबर मिल ही गया होगा कि मां कैसी हैं तो मैं बताऊं या साक्षी बताए बात तो एक ही हैं।
राघव... तुम्हारी मां की खबर मिल ही गया था फ़िर भी मैंने इतना फोन किया कम से कम एक बार कॉल रिसीव कर लेती भला घर पर रहते हुए भी कौन इतना बिजी रहता है जो किसी से बात करने की फुरसत ही नहीं मिल रहा था।
श्रृष्टि... सर दफ्तर के काम के अलावा घर पर भी सैकड़ों काम होते हैं जिसे करना भी ज़रूरी होता हैं। आपकी ज़रूरी बाते हो गया हों तो मैं जाऊं।
राघव... श्रृष्टि मैं देख रहा हूं। कई दिन से तुम मुझे नजरंदाज कर रहें हों। मैं जान सकता हूं मुझसे ऐसा कौन सा गुनाह हों गया है जिसके लिए तुम ऐसा कर रहीं हों।
"सर गुनाह आप से नहीं मूझसे हुआ हैं। मुझे लगता है आपकी ज़रूरी बाते खत्म हों गया होगा इसलिए मैं चलती हूं बहुत काम पड़ा हैं।" सपाट लहजे में श्रृष्टि ने अपनी बाते कह दि और पलट कर चल दिया।
जब श्रृष्टि द्वार तक पहुंची तब रूक गई और आंखें मिच लिया शायद उसके आंखों में कुछ आ गई होगी तो आंखो को पोंछते हुए चली गई। राघव पहले तो अचंभित सा हों गया फ़िर श्रृष्टि को द्वार पर रूकते देखकर मंद मंद मुस्करा दिया और श्रृष्टि के जाते ही धीरे से बोला... ओ हों इतना गुस्सा चलो इसी बहाने ये तो जान गया कि तुम भी मूझसे प्यार करती हों।
जारी रहेगा….
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भाग - 28
जब श्रृष्टि द्वार तक पहुंची तब रूक गई और आंखें मिच लिया शायद उसके आंखों में कुछ आ गई होगी तो आंखो को पोंछते हुए चली गई। राघव पहले तो अचंभित सा हों गया फ़िर श्रृष्टि को द्वार पर रूकते देखकर मंद मंद मुस्करा दिया और श्रृष्टि के जाते ही धीरे से बोला... ओ हों इतना गुस्सा चलो इसी बहाने ये तो जान गया कि तुम भी मूझसे प्यार करती हों।
दोपहर के भोजन का समय हों चुका था। सभी आपने अपने जगह बैठ रहें थे। आज कुछ अलग ये हुआ कि साक्षी शिवम के बगल वाली कुर्सी पर बैठी थी और श्रृष्टि कमरे से बहार जा रहीं थीं ये देख साक्षी बोलीं... श्रृष्टि तू बहार कहा जा रहीं है तुझे लंच नहीं करना हैं।?
श्रृष्टि... लंच करने ही जा रही हूं वो क्या है कि आज टिफिन लेकर नहीं आई तो कैंटीन में जा रहीं हूं।
साक्षी... ठीक है फिर जल्दी से लेकर आ।
श्रृष्टि... सोच रहीं थी आज वहीं लंच कर लेती हूं।
इतना बोलकर बिना साक्षी की बात सुने श्रृष्टि चली गई और साक्षी बोलीं...पता नहीं इसे क्या हों गया?
सभी लंच करने की तैयारी कर ही रहें थे उसी वक्त राघव भी वहा आ गया। श्रृष्टि को न देखकर राघव बोला...श्रृष्टि कहा गई उसे लंच नहीं करना।
"सर श्रृष्टि मैम लंच करने ही गई हैं दरअसल मैम कह रहीं थी कि आज टिफिन नहीं लाई हैं तो कैंटीन में करने गईं हैं।" एक साथी बोला
"अच्छा" बस इतना ही बोलकर राघव मुस्करा दिया और अपना टिफिन खोलकर लंच करने लग गया। कुछ ही देर में सभी ने लंच समाप्त किया फ़िर अपने अपने काम में लग गए।
ऐसे ही कई दिन बीत गया और इन्हीं दिनों राघव जितनी भी बार वहा आता प्रत्येक बार श्रृष्टि राघव को नजरंदाज कर देती सिर्फ इतना ही नहीं लांच भी प्रत्येक दिन कैंटीन में जाकर ही करती साक्षी या दूसरे सहयोगी अपने में से खाने को कहते तो मना करके कैंटीन चला जाया करतीं थीं।
श्रृष्टि को ऐसा करते देखकर राघव भी लंच करने कैंटीन में चला जाता और श्रृष्टि के टेबल पर जाकर बैठ जाता तब श्रृष्टि उठकर दूसरे टेबल पे बैठ जाती। श्रृष्टि की बेरुखी देखकर राघव बेहद कुंठित हों जाता मगर हार नहीं मान रहा था। प्रत्येक दिन अपना क्रिया कलाप दौहराए जा रहा था।
जो भी श्रृष्टि कर रहीं थी इससे श्रृष्टि भी आहत हों रहीं थी। जब भी राघव आकर चला जाता तब श्रृष्टि की भावभंगिमा बदल जाती जिसे देखकर साक्षी श्रृष्टि के पास जाकर बोली...श्रृष्टि जब तुझे राघव सर के साथ ऐसा सलूक करके बूरा लगता हैं तो क्यों कर रहीं हैं।
श्रृष्टि... मैं भला राघव सर के साथ कैसा व्यवहार करने लगी जिससे मुझे बूरा लगेगा।
साक्षी...सब जानकर भी अंजान बनने का स्वांग न कर मैं सब देख रही हूं और समझ भी रहीं हूं जब भी तू सर को नजरंदाज करती है प्रत्येक बार तू उदास हों जाती हैं और तेरी आंखें छलक आती है फिर भी तू ऐसा क्यों कर रही हैं? ये बात मेरे समझ से परे हैं।
श्रृष्टि... मैं भाला स्वांग क्यों करने लग गई? मैने न कभी स्वांग किया है न ही करती हूं और रहीं बात मेरे आंखें छलकने की तो उस वक्त कोई धूल का कर्ण चला गया होगा।
साक्षी... श्रृष्टि बार बार एक ही किस्सा कैसे दौहराया जा सकता है? तू कह रहीं हैं तो मान लेती हूं। अच्छा सुन इस इतवार को मैं तेरे घर आ रही हूं तू घर पर तो रहेगी न।
श्रृष्टि... तुझे मैंने कभी रोका हैं? जब मन करें तब आ जाना।
साक्षी... रोका तो नहीं है पर सुनने में आया है तू आज कल इतवार को भी बहुत बिजी रहने लगीं है बस इसलिए पूछ लिया।
साक्षी ने जो कहा उसे सुनकर श्रृष्टि समझ गई की साक्षी का इशारा किस ओर है इसलिए बिना कुछ कहे अपने काम में लग गई। कुछ देर काम करने के बाद साक्षी जा पहुंची राघव के पास साक्षी को आया देखकर राघव बोला...साक्षी कुछ काम बना कुछ पता चला ? श्रृष्टि क्यों ऐसा कर रहीं हैं।?
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साक्षी... सर पता तो नही चला लेकिन अब पता चल जायेगा मैं इतवार को उसके घर जा रहीं हूं और कैसे भी करके उससे जानकर ही रहूंगी कि वो आपको नजरंदाज क्यों कर रहीं हैं जबकि ऐसा करके वो दुखी हो जाती हैं।
राघव... तभी तो तुम्हें पता करने को कहा क्योंकि कई बार मैंने भी गौर किया है। श्रृष्टि मुझे नजरंदाज कर रही हैं या फिर सपाट लहजे में कुछ कह देती हैं उसके अगले ही क्षण उसकी आंखें डबडबा जाती हैं।
साक्षी... बस कुछ दिन और फ़िर सब पता कर लूंगी।
राघव... चलो ये भी करके देख लेता हूं। अच्छा ये बताओं तुम्हारा और शिवम का कहा तक पहुंचा है बेचारे को अभी तक लटका रखा हैं। उसे हा या न में जवाब क्यों नहीं दे देती।
साक्षी... सर शिवम को मैंने परख लिया है वो मेरी मापदंड में बिल्कुल खरा उतरता है। बस आप और श्रृष्टि के बीच जो थोड़ी बहुत दूरी है उसे खत्म कर दूं फिर शिवम जो सुनना चाहता है उसे उसके पसंदगी का जवाव दे दूंगी।
राघव... मतलब की तुम बेचारे को अभी और तराशने वाली हों।
साक्षी... हां! अभी तरसेगा तभी तो मेरे पीछे खर्चा करेगा ही ही ही।
राघव... तुम भी न चलो जाओ अब कुछ काम भी कर लो अलसी कहीं कि हां हां हां।
इसके बाद साक्षी चली गईं। काम काज में यह दिन बीत गया शाम को श्रृष्टि रात्रि भोजन बना रहीं थी माताश्री भी उसके बगल में थी जो उसकी मदद कर रही थीं।
श्रृष्टि सब्जी बना रहीं थीं मगर उसका ध्यान सब्जी पर नहीं कहीं और थीं। जिसे देखकर माताश्री उसके कंधे पर हाथ रख दिया। स्पर्श का आभास होते ही श्रृष्टि आंखें मिच लिया ये देख माताश्री बोलीं... क्या हुआ श्रृष्टि आंखें क्यों मिच लिया?
श्रृष्टि... मां लगता है सब्जी की मिर्ची वाली भाप आंखो में चला गया है।
"जा आंखें धो ले तब तक सब्जी मैं देख लेती हू।"
श्रृष्टि तूरंत ही सिंक में आंखो को धोने लग गई। बहरहाल खाना बन जाने के बाद दोनों मां बेटी साथ में खाना लगाकर खाने लग गई। खाना खाते वक्त भी श्रृष्टि का ध्यान खाने पर नहीं कहीं ओर था ये देखाकर माताश्री मुस्कुराते हुए बोली... श्रृष्टि तेरा ध्यान किधर हैं।
माताश्री की आवाज कानों को छूते ही श्रृष्टि का ध्यान भंग हुआ फिर श्रृष्टि बोलीं... बस मां काम को लेकर कुछ सोच रहीं थीं।
"तू काम की नहीं अपने सर के बारे में सोच रहीं थी। क्यों मैने सही कहा न?" अब मैंने भी बाल धुप में सफ़ेद नहीं किये है ही ही ही
इतना सुनते ही श्रृष्टि चौक कर माताश्री की और देखा और माताश्री मुस्कुरा दि। जिसे देखकर श्रृष्टि नज़रे घुमा लिया ओर बोलीं…नहीं तो मां मैं भला उनके बारे में क्यों सोचने लगीं।
"अच्छा! चल कोई बात नही मैंने शायद गलत ख्याल पाल लिया होगा। अच्छा सुन तू अपने सर और खुद के बारे मे जो भी फैंसला लेना सोच समझकर लेना और अभी तक नहीं सोचा हैं तो उस पर गौर से सोचना।"
इतना बोलकर माताश्री मुस्कुरा दिया। श्रृष्टि माताश्री को गौर से देखने लगी और समझने की कोशिश करने लगी कि मां ऐसा कहकर मुस्कुरा क्यों रही है उनके मुस्कुराने के पीछे वजह किया है पर श्रृष्टि कोई वजह तलाश ही नहीं पाई तो खाने में व्यस्त हो गईं।
ऐसे ही दिन बीतता गया और इतवार का दिन भी आ गया। दिन के करीब 12 बजे द्वार घंटी ने बजकर किसी के आने का संकेत दिया। श्रृष्टि जाकर दरवाजा खोला और आए हुए शख्स को देखकर बोलीं... साक्षी आने में कितनी देर कर दी मैं कब से तेरा वेइट कर रही थीं।
साक्षी... अच्छा मेरे आने का या फ़िर किसी ओर के आने का बेसबरी से वेइट कर रहीं थी।
श्रृष्टि... अरे जब आने वाली तू थी तो किसी और के आने का भला मैं क्यों वेइट करने लगीं।
साक्षी... वो क्या है न राघव सर भी तुझसे अकेला मिलना चाहते हैं तो मैंने सोचा शायद तू राघव सर के आने का वेट कर रहीं होगी इसलिए बोला था। अच्छा बता आंटी कहा हैं दिख नहीं रहीं।
"तू बैठ मैं चाय लेकर आती हूं। मां कुछ काम से बजार गई हैं।" इतना बोलकर श्रृष्टि रसोई की और चली गई। दो पल रूककर साक्षी भी रसोई की और चली गई। वह जाकर देखा श्रृष्टि का एक हाथ फ्रीज के डोर पर है और दुसरा हाथ उसके आंखों के पास है ये देखकर साक्षी बोलीं... श्रृष्टि क्या हुआ।
अचानक साक्षी की आवाज सुन कर श्रृष्टि सकपते हुए बोली... वो फ्रिज का डोर खोल रहा था तो शायद कुछ आंखों में चली गईं।
श्रृष्टि की बाते सुनकर साक्षी मुस्कुरा दिया फिर दो कदम आगे बढ़कर श्रृष्टि के कांधे पर हाथ रखकर बोली….फ्रिज का डोर तो बंद है फिर बिना डोर खुले तेरे आंखो में कुछ कैसे जा सकता हैं। ? और आजकल तेरी आँखों में कुछ ज्यादा ही कण घुस रहे है है ना?
श्रृष्टि का झूठ पकड़ा गया और उसके पास प्रतिउत्तर देने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। इसलिए बिना कुछ बोले फ्रिज से दूध निकलकर चाय चढ़ा दिया। गैस पे चाय धीमी आंच पर पक रही थी और साक्षी बोलीं... श्रृष्टि कभी कभी हम कितना भी झूठा स्वांग रचा ले लेकिन कभी न कभी हमारा झूठ पकड़ा ही जाता हैं। आज तेरा भी झूठ पकड़ा गया। तू भले ही राघव सर के प्रति कितना भी बेरूखी दिखा ले मगर भीतर ही भीतर तू भी कूड़ती रहती हैं। खुद को कोसती रहती हैं कि तूने उनके साथ ऐसा क्यों किया। श्रृष्टि मैं सही कह रहीं हूं ना?।
जारी रहेगा…
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Friends
Being a proud Sanatani (the FIRST religion of the universe) let me wish you through this platform
Congratulations to all Sanatani for 5251st Birth Anniversary (Birthday) of LORD Shri KRISHNA (BHAGVAAN)
Today our pray should to Lord Shri KRISHNA begging blessings to our Country (BHARAT) and all Bharatiya
Let us move forward in our life by following GEETA .............And make our life peaceful and prosperous
By this we also moving forward on this story ...........
दोस्तों
सनातनी (ब्रहमांड का पहला धर्म ) होने का गर्व के साथ मै इस फोरम के जरिये ,आप (हम) सब को बधाईया देना चाहती हु
भगवान श्री कृष्ण की 5,251 का जन्मोस्तव की बहोत बहोत बधायिया उनकी कृपा मेरे देश भारत और हम सब भारतीयो पे बनी रहे बस यही भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना के साथ
चलिए आइये हम सब अपनी जिंदगी में श्री कृष्ण के भगवद गीता में बताये हुए रास्ते को अनुसरते हुए अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाते हुए ..............
इस कहानी में भी आगे बढ़ते हुए ..............
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