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Fantasy गेंदामल हलवाई का चुदक्कड़ परिवार
#1
Heart 
नमस्कार दोस्तो,
मै जो कहानी यहां पोस्ट करने जा रहा हुं दरअसल इस कहानी को किसी ने बीच मे ही छोड़ दिया था, मै कोशिश करुंगा इसे पुरा करने की, जब तक मै इसके आगे के भाग लिखता हुं तब तक आप पुराने लिखे गये भागो का आनंद लिजिये तो आईये शुरु से शुरु करते है

भाग - 1

ये 1910 के दौर की बात है, जब हमारे देश पर अंग्रजों का राज था।
उ.प्र. के एक छोटे से कस्बे में अंग्रेज सरकार की छावनी हुआ करती थी और उसी कस्बे में हलवाई गेंदामल की दुकान थी।
गेंदामल का घर पास के ही गाँव में था और दुकान काफ़ी अच्छी चलती थी।

दुकान पर उसने दो काम करने वाले लड़के भी रख हुए थे।
लगभग 45 साल के गेंदामल के सपने इस उम्र में भी बहुत रंगीन थे।
गेंदामल के अब तक तीन शादियाँ हो चुकी थीं। पहली पत्नी की मौत हो गई थी, जिससे एक लड़की भी थी।

लड़की के जन्म के 3 साल बाद ही उसकी पहली पत्नी चल बसी। 

गेंदामल काफ़ी टूट गया, पर समय के साथ-साथ गेंदामल सब भूल गया।
उस समय गेंदामल की माँ जिंदा थी। उसके कहने पर गेंदामल ने दूसरी शादी कर ली।

गेंदामल छावनी के कमान्डर का ख़ास आदमी बन चुका था। क्योंकि गेंदामल की दुकान पर जो भी मिठाई बनती थी, वो वहाँ के कमान्डर के पास सबसे पहले पहुँचती थी।

पैसा और रुतबा इतना हो गया था कि गेंदामल के सामने सब सर झुकाते थे।
जब दूसरी पत्नी से कोई संतान नहीं हुई तो, बेटे की चाहत में गेंदामल ने तीसरी शादी कर ली।

आज 15 जनवरी 1910 के दिन ट्रेन में गेंदामल अपनी तीसरी बीवी से शादी करके लखनऊ से अपने गाँव वापिस आ रहा है।

लखनऊ में गेंदामल का छोटा भाई रहता था। जिसके कहने पर गेंदामल उसके नौकर के बेटे को जो 18 साल का है.. उसे भी अपने साथ लेकर अपने घर आ रहा है, साथ में दूसरी बीवी और पहली बीवी से जो बेटी थी, वो भी साथ में थी।

गेंदामल- उम्र 45 साल, अधेड़ उम्र का ठरकी।

कुसुम- गेंदामल की दूसरी पत्नी, उम्र 33 साल। एकदम जवान और गदराया हुआ बदन, काले लंबे बाल, हल्का सांवला रंग, तीखे नैन-नक्श, हल्का सा भरा हुआ बदन।

सीमा- गेंदामल की तीसरी और नई ब्याही हुई पत्नी, उम्र 23 साल, एकदम गोरा रंग, कद 5’4” इंच, लंबे बाल, गुलाबी होंठ और साँप सी बलखाती कमर।

दीपा- गेंदामल की बेटी, उम्र 18 साल अभी जवानी ने दस्तक देनी शुरू की है।

राजू- उम्र 18 साल गेंदामल के भाई के नौकर का बेटा, जिसे गेंदामल अपने घर के काम-काज के लिए ले जा रहा है।

जैसे की आप जानते ही हैं कि गेंदामल तीसरी शादी के बाद अपने गाँव लौट रहा है।
उसके साथ उसकी दूसरी पत्नी कुसुम, नई ब्याही पत्नी सीमा और बेटी दीपा के अलावा उसके भाई के नौकर का बेटा राजू भी है।

गेंदामल और उसके परिवार को छोड़ने के लिए उसका भाई रेलवे स्टेशन पर आया और उसका नौकर भी साथ में था, जिसका बेटा गेंदामल के साथ उसके गाँव जा रहा था।

राजू का पिता- देख बेटा… मैं तुम पर भरोसा करके सेठ गेंदामल के साथ नौकरी के लिए भेज रहा हूँ, वहाँ पर जाकर दिल लगा कर काम करना। मुझे शिकायत नहीं मिलनी चाहिए तुम्हारी…!

राजू- जी बाबा… मैं पूरा मन लगा कर काम करूँगा, आप को शिकायत का मौका नहीं दूँगा।

अपने बेटे से विदा लेते समय, उसकी आँखें नम हो गईं। राजू गेंदामल के साथ ट्रेन में चढ़ गया। आज ट्रेन में खूब भीड़ थी, बैठने की तो दूर.. खड़े रहने की जगह भी गेंदामल और उसके परिवार के लिए मुश्किल से बन पाई थी। ट्रेन में चढ़ने के बाद.. गेंदामल ने किसी तरह अपने परिवार के लिए जगह बनाई।


सुबह के 10 बज रहे थे। ट्रेन अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी।
सर्दी का मौसम था, इसलिए बाहर घना कोहरा छाया हुआ था।

गेंदामल ने देखा, ट्रेन में बैठने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए उसने अपने संदूकों को नीचे रख कर एक पर कुसुम को और दूसरे पर अपनी नई पत्नी सीमा को बैठा दिया। तीसरे बक्से पर उसकी बेटी दीपा बैठ गई।

गेंदामल अपनी नई पत्नी सीमा के पास उसकी तरफ मुँह करके खड़ा हो गया।भीड़ बहुत ज्यादा थी। गेंदामल के ठरकी दिमाग़ में कीड़े तभी से कुलबुला रहे थे, जब से उसने सीमा को देखा था। अब वो और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता था, पर ट्रेन मैं वो कर भी क्या सकता था?

उसकी नज़र राजू पर पड़ी, जो अभी भी खड़ा था।

गेंदामल- तुम क्यों खड़े हो, बैठ जाओ…!

राजू ने इधर-उधर देखा, पर जो बैठने की जगह थी, वो बिल्कुल उसकी बेटी दीपा के बगल में थी, जिस संदूक पर दीपा बैठी थी।

गेंदामल- हाँ..हाँ.. इधर-उधर क्या देख रहा है..! वहीं पर बैठ जा… बहुत लंबा सफ़र है…!

गेंदामल की बात को सुन कर राजू थोड़ा झिझका, पर हिम्मत करके उसी संदूक पर दीपा के पास बैठ गया, जिस पर दीपा बैठी थी।

राजू को बैठाने का गेंदामल का अपना मकसद था। ताकि राजू उसकी हरकतों को देख ना पाए।

आख़िरकार नए जोड़े में उसकी नई पत्नी जो बैठी थी.. उसके सामने।
राजू के बैठने के बाद गेंदामल ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई, सब अपनी ही धुन में मगन थे।

गेंदामल की पहली पत्नी कुसुम को तो बैठते ही नींद आने लगी थी, क्योंकि पिछली रात वो शोर-शराबे के कारण ठीक से सो नहीं पाई थी।
अधेड़ उम्र के गेंदामल ने अपनी नई दुल्हन की तरफ देखा, जो लंबा सा घूँघट निकाले हुए संदूक पर बैठी थी। 
सीमा अपने गोरे हाथों को आपस में मसल रही थी, जिस पर सुर्ख लाल मेहंदी लगी हुई थी।

गेंदामल के पजामे में हलचल होने लगी। उसने इधर-उधर देखा और अपने हाथ नीचे ले जाकर सीमा के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया।
सीमा बुरी तरह घबरा गई और उसने अपना हाथ पीछे खींच लिया और अपने घूँघट के अन्दर से ऊपर की तरफ देखा।

गेंदामल अपने होंठों पर मुस्कान लाया और सीमा को कुछ इशारा किया और फिर अपना हाथ सीमा के हाथ की तरफ बढ़ाया। सीमा का दिल जोरों से धड़क रहा था, उसने अपनी कनखियों से चारों तरफ देखा।
उसकी सौत कुसुम तो बैठे-बैठे सो गई थी और उसकी बेटी दीपा नीचे सर झुकाए ऊंघ रही थी।

इतने में गेंदामल ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर सीमा के हाथ को पकड़ लिया। एक अजीब सी झुरझुराहट उसके बदन में घूम गई।

गेंदामल ने एक बार फिर से अपनी नज़र चारों तरफ दौड़ाई, किसी की नज़र उन पर नहीं थी। गेंदामल ने सीमा के हाथ को पकड़ कर अपने पजामे के ऊपर से अपने लण्ड पर रख दिया।

सीमा एकदम चौंक गई, उसे अपनी हथेली में कुछ नरम और गरम सा अहसास हुआ, उसने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा, पर गेंदामल ने उसके हाथ नहीं छोड़ा और वो सीमा के हाथ को पकड़े हुए अपने लण्ड के ऊपर रगड़ने लगा।

नई-नई जवान हुई सीमा भी समझ चुकी थी कि उसका पति भले ही अधेड़ उम्र का है, पर है एक नम्बर का ठरकी।

जैसे ही सीमा का कोमल हाथ गेंदामल के लण्ड पर पड़ा, उसके लण्ड में जान आने लगी। सीमा का दिल जोरों से धड़क रहा था। वो अपनी जिंदगी में पहली बार किसी मर्द के लण्ड को छू रही थी, जिसके कारण वो मदहोश होने लगी।

उसका हाथ खुद ब खुद गेंदामल के पजामे के ऊपर से उसके लण्ड के ऊपर कस गया और वो धीरे-धीरे उसके लण्ड को सहलाने लगी।
गेंदामल तो जैसे जन्नत की सैर कर रहा था।

उसकी आँखें बंद होने लगीं और सीमा भी अपनी तेज चलती साँसों के साथ अपने हाथ से उसके लण्ड को सहला रही थी।कुछ ही पलों के बाद गेंदामल का साढ़े 5 इंच का लण्ड तन कर खड़ा हो गया।

दूसरी तरफ उनके पीछे बैठे हुए राजू का ध्यान अचानक से गेंदामल और सीमा की तरफ गया, जिससे देखते ही उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं।

राजू उम्र के उस पड़ाव में था, जहाँ पर से जो भी कुछ देखता है, वही सीखता है। सीमा का हाथ तेज़ी से गेंदामल के पजामे के ऊपर से उसके लण्ड को सहला रहा था। अब सीमा की पकड़ गेंदामल के लण्ड के ऊपर मुठ्ठी मारने का रूप ले चुकी थी। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सीमा चलती हुई ट्रेन में गेंदामल की मुठ्ठ मार रही थी और वो भी सब की नज़रों से बच कर!

पर राजू की नज़र उस पर पड़ चुकी थी, जिससे देखते-देखते उसका लण्ड भी उसके पजामे में कब तन कर खड़ा हो गया.. उसे पता भी नहीं चला।

गेंदामल के विपरीत राजू अभी अपनी जवानी के दहलीज पर था और उसका लण्ड गेंदामल से 3 इंच बड़ा और कहीं ज्यादा मोटा था।
अपने सामने कामुक नज़ारा देख कर कब राजू का लण्ड खड़ा हो गया और कब उसका हाथ खुद ब खुद लण्ड के पास पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चला।

उसने अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से भींच लिया और धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया।वो अपने सामने हो रहे गेंदामल और सीमा के कामुक खेल को देख कर ये भी भूल गया था कि उसके बगल में गेंदामल की बेटी दीपा बैठी हुई है।
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#2
भाग - 2

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि सीमा चलती हुई ट्रेन में गेंदामल की मुठ्ठ मार रही थी और वो भी सब की नज़रों से बच कर, पर राजू की नज़र उस पर पड़ चुकी थी, जिससे देखते-देखते उसका लण्ड भी उसके पजामे में कब तन कर खड़ा हो गया.. उसे पता भी नहीं चला।

गेंदामल के विपरीत राजू अभी अपनी जवानी के दहलीज पर था और उसका लण्ड गेंदामल से 3 इंच बड़ा और कहीं ज्यादा मोटा था।

अपने सामने कामुक नज़ारा देख कर कब राजू का लण्ड खड़ा हो गया और कब उसका हाथ खुद ब खुद लण्ड के पास पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चला।

उसने अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से भींच लिया और धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया।

वो अपने सामने हो रहे गेंदामल और सीमा के कामुक खेल को देख कर ये भी भूल गया था कि उसके बगल में गेंदामल की बेटी दीपा बैठी हुई है।

वो ये सब देखते हुए, धीरे-धीरे अपने लण्ड को हिलाने लगा, उसका लण्ड पजामे को ऊपर उठाए हुए.. पूरी तरह से तना हुआ था।

दीपा जो कि सर झुकाए और आँखें बंद किए हुए उसके पास बैठी थी, उसने अचानक से अपनी आँखें खोलीं और जो नज़ारा उसके आँखों के सामने था, उसे देख कर मानो उसके साँसें अटक गई हों।

उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।

पजामे के ऊपर से राजू का विशाल लण्ड देखते ही, उसकी दिल के धड़कनें बढ़ गईं।

उसके बदन में अजीब सी सरसराहट होने लगी।

दोनों एकदम पास-पास बैठे थे।

जब राजू अपने लण्ड को हाथ से हिलाता था.. तब उसकी कोहनी दीपा के बगल से उसकी चूची के बिल्कुल पास रगड़ खाने लगी।

उसके पूरे बदन में अजीब सी मस्ती की लहर दौड़ गई।

राजू इस बात से बिल्कुल अंजान सीमा और गेंदामल की रासलीला को देखते हुए, अपने लण्ड को तेज़ी से हिलाए जा रहा था।

दीपा को एक और झटका तब लगा, जब उसने राजू की नज़रों का पीछा किया और राजू की नज़रों का पीछा करते हुए उसकी नज़रें जिस मुकाम पर पहुँची.. उसे देख कर तो जैसे दीपा के दिल की धड़कनें रुक गई हों।

वो अपनी नज़रें अपने पिता और नई सौतेली माँ से हटा नहीं पा रही थी।

अचानक से राजू का हाथ हिलना बंद हो गया, जब इसका अहसास दीपा को हुआ तो, वो एकदम से चौंक गई।

उसने धीरे से अपने चेहरे को राजू की तरफ घुमाया, जो उसकी तरफ ही देख रहा था। जैसे ही दोनों की नज़रें आपस में टकराईं, दीपा एकदम से झेंप गई।

उसने अपने सर को झुका लिया, ना चाहते हुए भी उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, पर नीचे सर झुकाए हुए, दीपा के सामने दूसरा अलग ही नजारा था।

नीचे राजू का लण्ड उसके पजामे के अन्दर उभार बनाए हुए झटके खा रहा था।

जैसे-जैसे राजू का लण्ड झटके ख़ाता, दीपा का मन उछल जाता।

माहौल इस कदर गरम हो चुका था कि राजू को पता नहीं चला कि कब उसका हाथ पीछे से दीपा की कमर पर आ गया..!

जैसे ही दीपा की कमर पर राजू का हाथ पड़ा, दीपा का पूरा बदन काँप गया।

सामने उसके पिता का लण्ड उसकी नई सौतेली माँ हिला रही थी और नीचे राजू का लण्ड झटके खा रहा था। जिसे देख कर जवान कोरी चूत में सरसराहट होने लगी।

राजू का हाथ दीपा की कमर पर रेंग रहा था और दीपा का पूरा बदन मस्ती भरे आलम में थरथर काँप रहा था।

ये सब राजू के लिए भी बिल्कुल नया था, जिसने आज तक किसी लड़की या औरत को छूना तो दूर, आज तक आँख उठा कर बुरी नज़र से देखा तक नहीं था।

आज अपने सामने चल रहे कामुक खेल को देख कर वो भी बहक गया था..!

इस बात से अंजान कि वो सेठ की बेटी की कमर को सहला रहा है। अगर दीपा इस बात की शिकायत अपने पिता गेंदामल से कर देती तो, शायद राजू के खैर नहीं होती।

पर दीपा का हाल भी कुछ राजू जैसा ही था, आज जिंदगी में पहली बार वो किसी मर्द और औरत के कामुक खेल को अपनी आँखों से साफ़-साफ़ अपने सामने देख रही थी और दूसरी तरफ राजू का तना हुआ लण्ड उसके पजामे में फुंफकार रहा था।

दीपा अपनी कनखियों से नीचे राजू के लण्ड की तरफ देख रही थी। वो भी अपना आपा खोने लगी थी।

राजू के हाथ का स्पर्श उसे अन्दर तक हिला चुका था।

न ज़ाने क्यों.. पर उसका हाथ खुद ब खुद राजू की जांघ पर रेंगने लगा।

उसने अपने आप को रोकने की बहुत कोशिश कि पर कामुकता से अधीर हो चुकी दीपा का भी अपने पर बस नहीं चल रहा था।

उसकी सलवार के अन्दर उसकी चूत में सरसराहट बढ़ गई थी।

जैसे ही उसके काँपते हुए हाथों के ऊँगलियाँ राजू के लण्ड से टकराईं… राजू के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।

जिसे गेंदामल और सीमा तो नहीं सुन पाए, पर उसकी ये मस्ती भरी आवाज़ सुन कर कुसुम जो कि ऊंघ रही थी.. उसकी आँखें खुल गईं और जब उसकी नज़र राजू और दीपा पर पड़ी, तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं।

दीपा का हाथ राजू की जांघ पर था और उसकी हाथों की काँप रही ऊँगलियाँ धीरे-धीरे राजू के लण्ड पर रगड़ खा रही थीं।

वो एकदम हैरान रह गई.. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये दीपा इतनी शरमाती है, वो खुले आम ट्रेन में ही, एक नौकर के लण्ड को अपने हाथ से छूने की कोशिश कर रही है।

आख़िर इतनी जल्दी उस नौकर ने दीपा पर क्या जादू कर दिया था, जो दीपा उससे इतना चिपक कर बैठी थी।

जब कुसुम ने दोनों की नज़रों का पीछा किया तो, उससे भी एक और झटका लगा। गेंदामल सीमा के सामने खड़ा हुआ अपने लण्ड को उससे रगड़वा रहा था।

‘कमीना साला..!’

कुसुम ने दिल ही दिल में गेंदामल को गाली दी- इसे ज़रा भी शरम नहीं है… ये भी नहीं देखता कि पास में जवान बेटी बैठी हुई है..!

पर अगले ही पल कुसुम के होंठों पर भी मुस्कान फ़ैल गई।

उसका कारण ये था कि कुसुम दीपा के सौतेली माँ ही थी और जब से गेंदामल ने तीसरी शादी करने का फैसला किया था, तब से वो गेंदामल के खिलाफ थी, पर उससे चुप करवा दिया गया था।

गेंदामल के रुतबे के आगे किसी की बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी।

गेंदामल को वारिस देने में नाकामयाब हो चुकी कुसुम के लिए ये सबसे बड़ी हार थी।

कुसुम जानती थी कि गेंदामल अपनी बेटी दीपा को जी-जान से प्यार करता है। उसकी हर जरूरत को पूरा करता है और कुसुम यह देख कर बहुत खुश थी कि उसकी बेटी एक नौकर के साथ अपना मुँह काला करवा रही थी।

कुसुम को ना तो राजू की कोई परवाह थी और ना ही दीपा की उससे तो अपने साथ हुई ज्यादती का बदला लेना था।

चाहे वो कैसे भी हो…!

उधर दीपा का चेहरा सुर्ख लाल होकर दहक रहा था। इतनी सर्दी होने के बावजूद भी उसके चेहरे पर पसीना आ रहा था।

एक साइड बैठी कुसुम दीपा की हालत को बखूबी समझ रही थी। राजू का हाथ दीपा के कमर से थिरकता हुआ, उसके चूतड़ों पर आ गया।

दीपा के पूरे बदन में मस्ती के लहर दौड़ गई। उसकी आँखों की पलकें भारी होकर बंद होने लगीं।

जिसे देख कर कुसुम के होंठों की मुस्कान बढ़ती जा रही थी।

दीपा का बदन थरथर काँप रहा था।

राजू ने अपने हाथ फैला कर उसके चूतड़ को अपनी हथेली में भर कर ज़ोर से दबा दिया।

“उंह..”

दीपा के मुँह से मस्ती भरी ‘आह’ निकल गई।

भले ही दीपा ये सब कुछ करना नहीं चाहती थी, पर उससे समय हालत ही कुछ ऐसे हो गए थे कि वो कुछ कर नहीं पा रही थी।

वो यह भी जानती थी कि अगर यह बात उसके पिता गेंदामल को पता चली, तो उसके पिता राजू को रास्ते में ट्रेन से नीचे फेंक देंगे। जिसके चलते दीपा थोड़ा सहम गई थी और दूसरा कुछ माहौल भी गर्म हो चुका था।

राजू ने अपने हाथ से धीरे-धीरे दीपा के चूतड़ों को मसलते हुए, अपने हाथ की उँगलियों को चूतड़ों के नीचे ले जाना शुरू कर दिया।

जैसे-जैसे राजू के हाथों की ऊँगलियाँ दीपा के चूतड़ों और संदूक के बीच घुस रही थीं, दीपा के बदन में नाचते हुए भी मस्ती के लहरें उमड़ने लगतीं, पर
दीपा का पूरा वजन संदूक पर था।

जिसके कारण राजू अपने हाथ की उँगलियों को उसके चूतड़ों के नीचे नहीं लेजा पा रहा था। दूसरी तरफ बैठी सीमा ये मंज़र देख कर मुस्करा रही थी।

सीमा ने अपना पहला दाँव खेला, उसने दीपा को आवाज़ लगाई- दीपा वो पानी की सुराही देना..!

कुसुम की आवाज़ सुन कर दीपा एकदम से हड़बड़ा गई। उसके चेहरे का रंग एकदम से उड़ गया।

‘जी…जी.. अभी देती हूँ..!

यह कह कर दीपा पानी की सुराही को उठाने के लिए जैसे ही झुकी, उसके चूतड़ों और संदूक के बीच में जगह बन गई, जिसका फायदा काम-अधीर हो चुके राजू ने बखूबी उठाया और अपनी उँगलियों को दीपा के चूतड़ों के नीचे सरका दिया।

जैसे ही पानी की सुराही को उठा कर दीपा सीधी हुई, उसकी साँसें मानो अटक गईं।

उसके चूतड़ों के ठीक नीचे राजू का हाथ था।

कुसुम ने आगे बढ़ कर दीपा के हाथ से सुराही ली और जानबूझ कर दूसरी तरफ देखने लगी ताकि दीपा और राजू को शक ना हो कि वो उन दोनों की रंगरेलियाँ देख रही है।

दूसरी तरफ गेंदामल और सीमा अपने काम में मशरूफ थे। उन्हें तो जैसे दीन-दुनिया की कोई खबर ही नहीं थी, पर इधर दीपा का बुरा हाल था।

राजू ने अपने हाथों की उँगलियों को दीपा के चूतड़ों की दरार में चलाना शुरू कर दिया।

दीपा एकदम मस्त हो चुकी थी। उसकी चूत की फाँकें कुलबुलाने लगीं। राजू की ऊँगलियाँ दीपा के गाण्ड के छेद और चूत की फांकों से रगड़ खा रही थीं।
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#3
भाग - 3

कुसुम ने आगे बढ़ कर दीपा के हाथ से सुराही ली और जानबूझ कर दूसरी तरफ देखने लगी ताकि दीपा और राजू को शक ना हो कि वो उन दोनों की रंगरेलियाँ देख रही है।

दूसरी तरफ गेंदामल और सीमा अपने काम में मशरूफ थे। उन्हें तो जैसे दीन-दुनिया की कोई खबर ही नहीं थी, पर इधर दीपा का बुरा हाल था।

राजू ने अपने हाथों की उँगलियों को दीपा के चूतड़ों की दरार में चलाना शुरू कर दिया।

दीपा एकदम मस्त हो चुकी थी। उसकी चूत की फाँकें कुलबुलाने लगीं। राजू की ऊँगलियाँ दीपा के गाण्ड के छेद और चूत की फांकों से रगड़ खा रही थीं।

दीपा के आँखें मस्ती में बंद हो गईं और वो अपनी आवाज़ को दबाने के लिए कोशिश कर रही थी।

कुसुम के होंठों पर जीत की ख़ुशी साफ़ झलक रही थी। उधर दीपा की चूत की फांकों में आग लगी हुई थी।

कुसुम के दिल में आज सुकून था, जब से उसे गेंदामल की तीसरी शादी की बात का पता चला था, तब से वो अन्दर ही अन्दर सुलग रही थी और आज अपने घर की इज़्ज़त के रूप में गेंदामल की इज़्ज़त को एक नौकर के हाथ का खिलौना बना देख कर कुसुम का मन सुकून से भरा हुआ था।

गेंदामल एकदम मस्त होकर अपनी नई पत्नी से अपने लण्ड की मुठ्ठ मरवा रहा था और वो झड़ने के बेहद करीब था।

उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर सीमा के हाथ को कस कर पकड़ लिया और उसके हाथ को तेज़ी से हिलाते हुए अपनी मुठ्ठ मरवाने लगा।

गेंदामल की आँखों के सामने जन्नत सा नशा तैर गया।

उसके लण्ड ने वीर्य की बौछार कर दी।

गेंदामल का पूरा बदन हल्का हो गया, सीमा को जब अहसास हुआ कि उसका पति झड़ गया है, तो उसने अपना हाथ उसके लण्ड से हटा लिया।

बाकी का सफ़र आराम से कट गया।

शाम के 5 बजे गेंदामल अपने परिवार के साथ अपने गाँव में पहुँच गया।

गेंदामल का घर पूरे गाँव में सबसे बड़ा था और होता भी क्यों ना…!

आख़िर उसकी दुकान आसपास के इलाक़े में सबसे मशहूर थी।

ऊपर से गेंदामल सूद पर पैसे भी देता था।

गेंदामल के घर में कुल 7 कमरे थे।

एक रसोईघर और नहाने-धोने के लिए घर के पीछे एक बड़ा सा गुसलखाना था।

घर के सभी लोग पीछे बने गुसलखाने में ही नहाते थे।

गेंदामल के घर मैं एक कुआं भी था, जो उस समय घर में होना शान की बात माना जाता था।

यूँ तो गेंदामल के घर का काम करने के लिए और साफ़-सफाई करने के लिए एक नौकरानी और थी, जिसका नाम चमेली था।

पर अगर घर वालों को बाजार से कुछ सामान मंगवाना होता तो, उन्हें गेंदामल को सुबह-सुबह ही बताना पड़ता था.. या फिर अगर गेंदामल का दोपहर को घर में चक्कर लगता, तब उस सामान को मंगाया जा सकता था।

गेंदामल के घर में एक कमरा गेंदामल और उसकी दूसरी पत्नी इस्तेमाल करते थे..

पर अब गेंदामल ने तीसरी शादी कर ली थी, इसलिए गेंदामल ने अपने कमरे के साथ वाले कमरे में कुसुम का सामान रखवा दिया था। बस इसी बात से कुसुम आग में जल रही थी।

उसकी नई सौत के आने से पहले ही उससे उसका कमरा भी छिन गया था।

पिछले 10 साल से कुसुम किसी रानी की तरह उस घर पर राज करती आई थी, पर अब उससे अपनी सत्ता खत्म होते हुए महसूस हो रही थी।

कुसुम को जो कमरा दिया गया था, उसके बगल वाला कमरा दीपा का था। इन तीनों कमरों के सामने दूसरी तरफ 3 कमरे और थे।

जिसमें से एक उसके माता-पिता का था, जो अब चल बसे थे।

सामने के 3 कमरे खाली थे।

जैसे ही गेंदामल का परिवार घर में दाखिल हुआ, तो कुछ दिनों से सुनसान पड़े घर में जैसे बहार आ गई हो।

चारों तरफ चहल-पहल सी हो गई थी।
चमेली भी आ गई थी और गेंदामल के परिवार के लिए खाना और चाय बनाने में लग गई थी।

सब अपना-अपना सामान अपने कमरों में रख कर बाहर आँगन में इकठ्ठे होकर बैठ गए।

राजू भी बाहर ही खड़ा था.. उस बेचारे पर तो किसी का ध्यान नहीं था।

वो अपना थैला अभी भी उठाए खड़ा था।

जब गेंदामल ने उसकी तरफ देखा तो बोला- अरे भाई… तुम ये अपना झोला उठाए अभी तक खड़े हो…! हम तो कब के घर पहुँच गए।

राजू- बाबू जी, आप बताईए मैं इसे कहाँ रखूं?

राजू की बात सुन कर गेंदामल कुछ देर सोचने के बाद बोला- चमेली ओ चमेली..!

इतने में बावर्चीखाने से चमेली बाहर आई- जी सेठ जी..!

चमेली ने आदर सहित कहा।

गेंदामल- चमेली, इसे घर के पीछे जो कमरा है.. वो दिखा दो..ये वहीं रहेगा…!

इससे पहले कि कोई कुछ बोलता या कहता, कुसुम बीच में बोल पड़ी- जी.. उसमें तो जगह ही कहाँ हैं… वो तो पुराने सामान से भरा पड़ा है और वैसे भी पीछे इतनी दूर इसको बुलाने कौन जाएगा.. आगे तीन कमरे खाली हैं तो…!

कुसुम की बात सुन कर गेंदामल कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया, पर गेंदामल जानता था कि राजू नौकर है और नौकर का घर के बीच में रहना ठीक नहीं है।

इसलिए गेंदामल ने ये कह कर मना कर दिया कि जिस सामान की ज़रूरत नहीं है.. उससे फेंक दिया जाए या जलावन के लिए इस्तेमाल किया जाए..!

गेंदामल की बात सुन कर कुसुम थोड़ा हताश ज़रूर हुई, पर राजू को पीछे वाले कमरे में ठहरने से भी कुसुम को कुछ अलग ही सूझ रहा था।

आख़िरकार घर की सभी औरतें पीछे जाकर ही तो नहाती थीं।

घर में सबसे पहले गेंदामल नहाता था और गेंदामल के दुकान पर जाने के बाद दीपा और कुसुम नहाती थीं और अब सीमा भी शामिल हो गई थी।

गेंदामल ने फैसला सुना दिया था।

चमेली ने राजू को अपने साथ चलने के लिए कहा।

जैसे ही चमेली राजू को लेकर घर के पीछे की तरफ गई, उसने पीछे मुड़ कर एक बार राजू को देखा।

उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी, जब से उसने राजू को देखा था।

चमेली का पति सेठ गेंदामल की दुकान पर ही काम करता था, वो एक नम्बर का पियक्कड़ था, कोई काम-काज नहीं करता था।

बस सारा दिन गाँव के आदमियों के साथ इधर-उधर घूमता रहता, दारू पीता और घर आकर सो जाता।

इसलिए गेंदामल से कह कर चमेली ने अपने पति को दुकान पर लगवा दिया था और गेंदामल ने भी चमेली के पति को खूब फटकारा था, जिससे वो काफ़ी हद तक सुधर गया था।

अब वो दुकान में ही रहता था, बस 7-8 दिन में एक बार गाँव आता था।

गेंदामल उसकी तनखाह चमेली को ही देता था और कुछ पैसे उसके पति को भी देता था।

जब चमेली उसे पीछे बने कमरा की तरफ ले जा रही थी, तो वो बार-बार पीछे मुड़ कर उसकी तरफ देख रही थी।

चमेली की उम्र 30 साल थी और एक बेटे और बेटी की माँ भी थी.. बेटी बड़ी थी।

चमेली की शादी छोटी उम्र में हुई थी और एक साल बाद ही उसने बेटी को जन्म दिया था, जिसका नाम रज्जो था।

रज्जो दीपा से उम्र में एक समान थी।

राजू को चमेली का यूँ बार-बार मुड़ कर देखना और देख कर मुस्कराना अजीब सा लग रहा था क्योंकि चमेली राजू से दुगनी उम्र की थी और राजू इन
सब बातों और इशारों को समझने के लिए परिपक्व नहीं था।

कमरे की तरफ जाते हुए, चमेली अपने चूतड़ों को कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी, चमेली और उसके पति के बीच चुदाई का खेल अब खत्म हो चुका था।

जब से चमेली ने गेंदामल से अपने पति को फटकार लगवाई थी, तब से उसने चमेली से चुदाई करना बंद कर दिया था। चमेली को चुदाए हुए कई साल हो चुके थे।

जब चमेली ने कमरे के सामने जाकर दरवाजा खोला और राजू के तरफ पलटी और अपने होंठों पर मुस्कान लाते हुए कहा- ये लो… आज से ये तुम्हारा कमरा है।

राजू सर झुकाए हुए कमरे में घुस गया और इधर-उधर देखने लगा।

कमरा पुराने सामान से भरा हुआ था।

इतने में पीछे से गेंदामल भी आ गया और कमरे के अन्दर झांकता हुआ बोला- हाँ.. सच में अन्दर तो पुराना सामान भरा हुआ है… ऐसा करो, अपना झोला यहीं रखो… कल यहाँ से बेकार सामान बाहर निकलवा देते हैं और आज रात का तुम्हारे सोने का इंतज़ाम कहीं और करवा देता हूँ।।

गेंदामल की बात सुन कर चमेली ने झट से कहा- सेठ जी… अगर आप बोलें तो, ये आज हमारे घर पर ही सो जाता है।

गेंदामल को चमेली की बात ठीक लगी और गेंदामल ने चमेली को ‘हाँ’ कह दी।

रात ढल चुकी थी, सब खाना खा चुके थे और अपने कमरों में जाकर सोने की तैयारी कर रहे थी।

गेंदामल तो इस घड़ी के लिए पहले से ही बहुत उतावला था।

चमेली अपना सारा काम निपटा कर राजू के पास गई.. जो खाना खा कर आँगन में ज़मीन पर ही लेटा हुआ था।

‘चलो अब चलते हैं… सारा काम खत्म हो गया है।’

राजू ने बेमन से चमेली की तरफ देखा।

जो उसकी तरफ देखते हुए कातिल मुस्कान अपने होंठों पर लाए हुए थी और फिर राजू उठ कर खड़ा हो गया।
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#4
भाग - 4

रात घिर चुकी थी। सब खाना खा चुके थे और अपने कमरों में जाकर सोने की तैयारी कर रहे थी।

गेंदामल तो इस घड़ी के लिए पहले से ही बहुत उतावला था।

चमेली अपना सारा काम निपटा कर राजू के पास गई.. जो खाना खा कर आँगन में ज़मीन पर ही लेटा हुआ था।

‘चलो अब चलते हैं… सारा काम खत्म हो गया है।’

राजू ने बेमन से चमेली की तरफ देखा।

जो उसकी तरफ देखते हुए कातिल मुस्कान अपने होंठों पर लाए हुए थी और फिर राजू उठ कर खड़ा हो गया।

चमेली कुसुम के कमरे में गई और बोली- दीदी, मैंने सारा काम कर दिया है… अब मैं जा रही हूँ… बाहर का दरवाजा बंद कर लो।

उसके बाद चमेली राजू को लेकर गेंदामल के घर से निकल कर अपने घर की तरफ जाने लगी।

रात घिर चुकी थी।

आप सब लोग तो जानते ही होंगे।

उस समय में बिजली नहीं होती थी, ख़ासतौर पर गाँवों में, इसलिए चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था।

रास्ते में किसी-किसी घर के अन्दर से लालटेन की रोशनी नज़र आ जाती थी।

गाँव के गलियों में सन्नाटा छाया हुआ था।

चमेली राजू के आगे-आगे कुछ गुनगुनाते हुए चल रही थी।

अंधेरे की वजह से राजू ठीक से देख भी नहीं पा रहा था।

गाँव की गलियों से गुज़रते हुए चमेली और राजू गाँव के बाहर आ चुके थे।

अंधेरे और अंजान जगह के कारण राजू थोड़ा डर रहा था।

आख़िरकार उसने चमेली से पूछ ही लिया- गाँव तो खत्म हो गया.. आप का घर कहाँ है?’

चमेली ने पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखा और पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा- वो उधर.. वो वाला घर है।

राजू ने एक बार पीछे मुड़ कर उस घर की तरफ देखा, जहाँ पर लालटेन जल रही थी।

राजू- पर फिर आप यहाँ क्यों आ गईं?

चमेली- वो दरअसल मुझे बहुत तेज पेशाब लगी थी। इसलिए यहाँ पर आई हूँ और सुनो तुम भी यहीं मूत लो.. घर पर पेशाब करने के लिए जगह नहीं है।

यह कह कर चमेली अपनी गाण्ड मटकाते हुए थोड़ा आगे होकर रुकी और एक बार पीछे मुड़ कर 6-7 फुट दूर खड़े राजू की तरफ देखा और अपने लहँगे को ऊपर उठाने लगी।

यह देख कर पीछे खड़े राजू के हाथ-पाँव काँपने लगे और वो झेंपते हुए इधर-उधर देखने लगा।

हल्का चारों तरफ अंधेरा था पर आसमान में आधा चाँद निकला हुआ था, जिससे कुछ रोशनी तो चारों तरफ फैली हुई थी।

जैसे ही चमेली ने अपने लहँगे को कमर तक ऊपर उठाया, मानो जैसे राजू के हलक में कुछ अटक गया हो।

उसकी आँखें चमेली के हल्के साँवले रंग के मांसल और गुंदाज चूतड़ों पर जम गई।

चमेली आगे की तरफ देखते हुए मुस्करा रही थी।

यह सोच कर कि उसकी गाण्ड देख कर पीछे खड़ा राजू बेहाल हो रहा होगा और राजू था भी बेहाल।

चमेली के मोटी और गुंदाज गाण्ड को देखते ही, राजू का लण्ड उसके पजामे में एकदम तन कर खड़ा हो गया।

चमेली ने अपने एक हाथ से अपने लहँगे को पकड़ा हुआ था और उसने एक दूसरे हाथ से एक बार अपनी चूत की फांकों को खुज़ाया और धीरे-धीरे नीचे पंजों के बल बैठ गई और फिर ‘सर्र’ की तेज आवाज़ से उसकी चूत से पेशाब के धार निकलने लगी।

जिसे सुन कर राजू का और बुरा हाल हो गया। चमेली का दिल भी जोरों से धड़क रहा था।

वो मन में सोच रही थी कि राजू अभी उसे यहीं पटक कर चोद दे, पर अब वो ये सीधा-सीधा अपने मुँह से तो नहीं कह सकती थी।

राजू का हाथ खुद ब खुद ही पजामे के ऊपर से उसके लण्ड पर पहुँच चुका था और वो चमेली की गाण्ड को देखते हुए, अपने लण्ड को मसल रहा था।

चमेली पेशाब करने के बाद उठी और अपनी टाँगों को थोड़ा सा फैला कर अपनी चूत की फांकों को अपनी ऊँगली से रगड़ कर साफ़ करने लगी।

अपना लहंगा नीचे करने की उसे कोई जल्दी नहीं थी, भले ही उसकी बेटी की उम्र का लड़का पीछे खड़ा उसकी गुंदाज गाण्ड देख रहा था।

चमेली की झाँटों से भरी चूत का कुछ हिस्सा राजू को भी दिखाई देने लगा।

राजू का लण्ड तो बगावत पर उतर आया था.. वो उसके पजामे में ऐसे झटके मार रहा था, जैसे अभी उसका पजामा फाड़ कर बाहर आ जाएगा।

चमेली ने अपना मुँह घुमा कर पीछे देखा, राजू की नज़रें चमेली की गाण्ड पर ही टिकी हुई थीं और उसका हाथ अपने 8 इंच के लण्ड को पजामे के ऊपर से मसल रहा था।

जब चमेली ने ये सब देखा तो उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई, उसने अपने लहंगा नीचे किया और राजू की तरफ मुड़ी।

जैसे ही चमेली की गाण्ड को लहँगे ने ढका.. राजू जैसे सपनों की हसीन दुनिया से बाहर आया और उसने चमेली की तरफ देखा।
चमेली उसकी तरफ देखते हुए, मंद-मंद मुस्करा रही थी।

राजू ने अपना ध्यान दूसरी तरफ कर लिया, जैसे उसने कुछ देखा ही ना हो।

चमेली अपनी गाण्ड को मटकाते हुए राजू के पास आई और बोली- तुम्हें नहीं मूतना?

चमेली की बात सुन कर राजू हड़बड़ाया- जी नहीं..

राजू की हालत देख कर चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

‘अच्छा ठीक है चलो… रात बहुत हो गई है… सुबह सेठजी के घर वापिस भी जाना है।’

यह कह कर चमेली अपने घर की तरफ जाने लगी।

राजू बेचारा अपने लण्ड को छुपाते हुए चमेली के पीछे चल पड़ा।

चमेली ने अपने घर के सामने जाकर लकड़ी से बने दरवाजे को खटखटाया, थोड़ी देर बाद चमेली की बेटी रज्जो ने दरवाजा खोला।

वो अपनी नींद से भरी हुई आँखों को मलते हुए बोली- क्या माँ.. इतनी देर लगा दी… मैं तो सो ही गई थी।

जब उसने अपनी आँखों को खोल कर चमेली की तरफ देखा तो चमेली के पीछे खड़े राजू को देख कर थोड़ा हैरान होकर बोली- यह कौन है माँ?

चमेली ने राजू की तरफ देखा और बोली- यह राजू है, यह सेठ जी के घर में रहेगा.. उनका नौकर है। आज ही शहर से आया है।

चमेली और राजू अन्दर आ गईं।

चमेली का घर ज्यादा बड़ा नहीं था…

उसके घर में आगे की तरफ एक कमरा था और पीछे की तरफ एक कमरा था, जिसमें चमेली और उसकी बेटी सोते थी।

आगे वाले कमरे में जलावन का सामान रखा हुआ था और पिछले कमरे के आगे एक छोटा सा बरामदा था, पूरा घर कच्चा था.. नीचे ज़मीन भी कच्ची थी।

चमेली राजू को लेकर पिछले कमरे में आ गई, पिछले कमरे में एक चारपाई दीवार के साथ खड़ी थी।

शायद ग़रीब चमेली के घर वो ही एक चारपाई थी और नीचे टाट के ऊपर दो बिस्तर लगे हुए थे।

चमेली ने अन्दर आते ही अपनी बेटी रज्जो को साथ में एक और बिस्तर लगाने के लिए कहा।

राजू एक दीवार के साथ खड़ा था, लालटेन की रोशनी में अब उसे चमेली और बेटी साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थीं।

चमेली के बेटी का बदन चमेली से भी अधिक भरा-पूरा था।

रज्जो का कद 5’ 4′ इंच के करीब था, उसका बदन अभी से भर चुका था।

हर अंग उसकी जवानी को बयान करता था, 32 साइज़ की चूचियां एकदम कसी हुई थीं।

चमेली ने अपनी बेटी के साथ बिस्तर लगाते हुए, राजू की तरफ देखा।

उसका लण्ड उसके पजामे में बड़ा सा उभार बना हुआ था।

चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और अगले ही पल वो राजू के पजामे में आए हुए उभार को देख कर उसके लण्ड की कल्पना करने लगी।

‘आज सर्दी बहुत है।’

चमेली ने राजू के तरफ देखते हुए कहा।

चमेली की बात सुन कर रज्जो भी बोली- हाँ माँ.. आज तो कुछ ज्यादा ही सर्दी ही… मुझे तो बहुत ठंड लग रही है।

चमेली (मुस्कुराते हुए)- हाँ.. ठंड तो लग रही है, पर ठंड का अपना ही मज़ा है।

यह कहते हुए वो लगातार राजू की तरफ देख रही थी।

बिस्तर लगाने के बाद रज्जो अपने बिस्तर पर पसर गई, उसे घर में राजू जैसे अंजान लड़के के होने से कोई फरक नहीं पड़ रहा था ऐसा शायद नींद की वजह से था।

रज्जो बिस्तर पर पेट के बल लेट गई, जिसके कारण पीछे से उसकी भरी हुई गाण्ड बाहर की ओर आ गई थी।

वो उस समय सलवार-कमीज़ पहने हुए थी।

उसकी सलवार उसके चूतड़ों पर एकदम कसी हुई थी, जिसे देखे वगैर राजू से रहा नहीं गया।

अपनी बेटी की गाण्ड को यूँ घूरता देख कर चमेली ने राजू की तरफ तीखी आँखों से देखा और फिर रज्जो के ऊपर रज़ाई उढ़ा दी और बुदबुदाते हुए बिस्तर पर लेट गई।
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#5
भाग - 5

बिस्तर लगाने के बाद रज्जो अपने बिस्तर पर पसर गई, उसे घर में राजू जैसे अंजान लड़के के होने से कोई फरक नहीं पड़ रहा था ऐसा शायद नींद की वजह से था।

रज्जो बिस्तर पर पेट के बल लेट गई, जिसके कारण पीछे से उसकी भरी हुई गाण्ड बाहर की ओर आ गई थी।

वो उस समय सलवार-कमीज़ पहने हुए थी।

उसकी सलवार उसके चूतड़ों पर एकदम कसी हुई थी, जिसे देखे वगैर राजू से रहा नहीं गया।

अपनी बेटी की गाण्ड को यूँ घूरता देख कर चमेली ने राजू की तरफ तीखी आँखों से देखा और फिर रज्जो के ऊपर रज़ाई उढ़ा दी और बुदबुदाते हुए बिस्तर पर लेट गई।

राजू वहाँ ठगा सा खड़ा था।

जब चमेली ने अपने ऊपर रज़ाई ओढ़ते हुए राजू की तरफ देखा तो वो अभी भी रज्जो की तरफ ही देख रहा था।

‘अब तूँ क्यों वहाँ खड़ा है? चल लेट जा.. सुबह सेठ के घर जाकर बहुत काम करना है।’ चमेली ने तीखी आवाज में कहा।

राजू- जी।

राजू चमेली के साथ वाले बिस्तर पर लेट गया, उसके लण्ड पर आज बहुत ज़ुल्म हो रहा था।

अभी भी उसका लण्ड एकदम तना हुआ था।

उसने अपने ऊपर रज़ाई ओढ़ी और अपने पजामे का नाड़ा खोल कर अपना हाथ अन्दर सरका कर अपने लण्ड को पकड़ कर हिलाना चालू कर दिया।

रज़ाई के अन्दर चलते हाथ से थोड़ी सरसराहट होने लगी।

चमेली पीठ के बल लेटी हुई थी। जब उसने वो आवाज़ सुनी तो उसने कनखियों से राजू की तरफ देखा।

उसकी रज़ाई कमर वाले हिस्से से थोड़ा हिल रही थी।

चमेली समझ गई कि छोरा अपना लण्ड को हिलाते हुए मुठ्ठ मार रहा है।

यह बात दिमाग़ में आते ही उसके दिल के धड़कनें बढ़ गईं।

उसकी चूत की फाँकें यह सोच कर कुलबुलाने लगीं कि उसके बगल में एक जवान लड़का लेटा हुआ अपना लण्ड हिला कर मुठ्ठ मार रहा है।

यह सब चमेली के बर्दाश्त से बाहर था।

लेटे हुए चमेली के दिमाग़ में पता नहीं क्या आया, उसने अपनी करवट बदली और राजू की तरफ अपनी पीठ कर ली।

आवाज़ सुन कर राजू एक पल के लिए रुक गया, जब उसने देखा कि चमेली ने दूसरी तरफ मुँह कर लिया है.. उसने फिर से अपने लण्ड को हिलाना चालू कर दिया।

उसका लण्ड अब पूरी तरह अकड़ा हुआ था, वो तेज़ी से अपने लण्ड को हिलाए जा रहा था।

मस्ती के कारण उसकी आँखें बंद हो गईं। कुछ देर बाद फिर से कुछ आहट हुई.. राजू झड़ने के बेहद करीब था.. आहट सुनकर राजू एकदम से घबरा गया और उसने अपने लण्ड को हिलाना बंद कर दिया।

फिर अपनी अधखुली आँखों से चमेली की तरफ देखा।

चमेली अभी भी करवट बदल कर ही लेटी हुई थी।

जब राजू ने अपनी नज़र को थोड़ा सा नीचे किया, तो उसका मुँह खुला का खुला रह गया।

चमेली की पीठ अभी भी उसकी तरफ थी।

चमेली के बदन के कमर के ऊपर वाला हिस्सा रज़ाई में था और कमर से नीचे वाला हिस्सा रज़ाई से बाहर था।

उसने अपने घुटनों को मोड़ कर अपने पेट से सटा रखा था और उसका लहंगा, उसकी कमर के ऊपर तक चढ़ा हुआ था। ऊपर की तरफ का पूरा बदन ढका हुआ था ताकि रज्जो अगर जाग भी जाए तो चमेली को इस हालत में ना देख सके।

पीछे से उसकी गाण्ड बाहर की तरफ निकली हुई थी, जिसे देखते ही उसका लण्ड फिर से झटके खाने लगा।

जिस अवस्था में राजू लेटा हुआ था,उस अवस्था में उसे उसकी गाण्ड का ऊपर हिस्सा ही दिखाई दे रहा था।

पर इतना देखने भर से ही उसके लण्ड में जो कसाव आया, वो उसकी बर्दाश्त से बाहर था।

राजू धड़कते हुए दिल के साथ धीरे से उठा और जिस तरफ चमेली के पैर थे, उस तरफ सरक कर लेट गया।

भले ही चमेली का मुँह दूसरी तरफ था, पर उसे पता था कि उसकी पीठ के पीछे राजू क्या कर रहा है।

जैसे ही राजू उसके पैरों की तरफ लेटा, चमेली ने अपने घुटनों को और मोड़ कर पेट से सटा लिया।

चमेली की जाँघें आपस में सटी हुई थीं।

वाह.. क्या नज़ारा था..!

राजू की आँखों के सामने, सटी हुई जाँघों के बीच चमेली की चूत बाहर की तरफ निकली हुई दिखाई दे रही थी।

गहरे गुलाबी रंग की फांकों को देख राजू का हाथ एक बार फिर से अपने आप चलने लगा।

चमेली दूसरी तरफ मुँह किए लेटी हुई, राजू की तेज चल रही साँसों को साफ़ सुन पा रही थी।

राजू अब पूरी रफ़्तार से चमेली की चूत को देखते हुए अपने लण्ड को हिलाने लगा, उसका लण्ड और चमेली की चूत के बीच मुश्किल से एक फुट का फासला था।

उसके लण्ड की नसें अब पूरी तरह वीर्य से भर चुकी थीं और अगले ही पल राजू के आँखें बंद हो गईं और उसके लण्ड से एक के बाद एक वीर्य के पिचकारियाँ छूटने लगीं, जो सीधा जाकर सामने लेटी चमेली की चूत और चूतड़ों पर गिरने लगी।

इस बात से अंजान राजू अपनी आँखें बंद किए जन्नत की सैर कर रहा था।

जैसे ही राजू का गरम वीर्य की धार चमेली की चूत की फांकों और चूतड़ों पर गिरी, चमेली के पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई..

उसकी चूत की फाँकें गरम वीर्य को महसूस करते ही कुलबुलाने लगीं।

चमेली के ऊपर अजीब सा नशा छा गया था।

उसकी आँखें मस्ती में बंद हो गईं और वो आँखें बंद किए राजू के वीर्य को अपनी चूत की फांकों पर बहता हुआ महसूस करने लगी।

थोड़ी देर बाद जब राजू की आँखें खुलीं, तो चमेली की चूत पर अपने वीर्य को देख कर एकदम से घबरा गया, उसे कुछ समझ में ही नहीं आया।

उसने दूसरी तरफ करवट बदली और रज़ाई ओढ़ कर लेट गया, ये सोच कर कि चमेली को पता ना चले..

जैसे ही राजू ने दूसरी तरफ मुँह किया, चमेली ने अपने आप को अच्छे से रज़ाई से ढक लिया।

उसने अपना एक हाथ पीछे ले जाकर अपने चूतड़ों और चूत की फांकों को छुआ, उसके हाथ की ऊँगलियाँ राजू के लण्ड से निकले वीर्य से सन गईं।

उसने अपनी चूत पर लगे वीर्य पर अपनी उँगलियों को घुमाया और फिर पता नहीं उसके दिमाग़ में क्या आया, उसने राजू के वीर्य से सनी अपनी एक ऊँगली को अपनी चूत में घुसा लिया और अन्दर-बाहर करने लगी।

उसके दिमाग़ में जैसे राजू के लण्ड की छवि सी बन गई थी, जिसे अभी तक उसने देखा भी नहीं था।

वो अपनी ऊँगली को तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगी और मन में कल्पना करने लगी कि राजू का लण्ड उसकी चूत के अन्दर-बाहर हो रहा है..

पर उस पतली से ऊँगली से उसकी चूत की आग कहाँ बुझने वाली थी।

वो तो और भड़क रही थी, आख़िर हार कर चमेली ने अपने लहँगे को ठीक किया और सीधी होकर लेट गई।

अगली सुबह जब चमेली उठी तो उसने देखा कि ना तो रज्जो अपने बिस्तर पर है और ना ही राजू बिस्तर पर है।

वो जल्दी से बिस्तर से उठी और आँगन में आई।

रज्जो बाहर आँगन में झाड़ू मार रही थी, पर राजू नहीं था।

‘वो राजू कहाँ गया है?’ चमेली ने रज्जो से पूछा।

रज्जो- वो तो बाहर गया है शौच के लिए।

यह कह कर रज्जो फिर से झाड़ू लगाने लगी।

चमेली ने मुँह-हाथ धोया और चाय बनाने लगी।

थोड़ी देर बाद राजू भी आ गया, चाय पीने के बाद चमेली राजू को लेकर गेंदामल के घर पहुँच गई।

गेंदामल उस समय नहाने जा रहा था, राजू को देख कर वो रुक गया और बोला- अरे राजू जब तक चमेली नाश्ता तैयार करती है, तू खुद जाकर उस कमरे से बेकार सामान बाहर निकाल दे… चल मेरे साथ, मैं बताता हूँ कि कौन-कौन सा सामान बाहर निकलवाना है और कौन सा रखना है।

राजू- जी बाबू जी चलिए।

गेंदामल- अरे सुन यार.. ये बाबू जी मुझे थोड़ा अटपटा लगता है, सभी मुझे यहाँ ‘सेठ जी’ बुलाते हैं। तुम भी ‘सेठ जी’ ही कहा करो।

राजू- जी.. सेठ जी।

राजू गेंदामल के साथ घर के पीछे बने कमरे में आ गया।

वहाँ आकर गेंदामल ने राजू को वहाँ पड़े दो पुराने पलंग और कुछ कुर्सियां बाहर निकालने को कहा।

गेंदामल- अगर ये सामान बाहर निकाल लोगे, तो इधर काफी जगह हो जाएगी।

यह कह कर गेंदामल नहाने के लिए चला गया और राजू वहाँ पड़ा सामान बाहर निकालने लगा, जैसा कि गेंदामल ने उससे बताया था।

राजू को वक्त का पता ही नहीं चला।

अब दस बज चुके थे, गेंदामल अपनी दुकान पर जा चुका था।

उधर सब लोग नाश्ता कर चुके थे और चमेली राजू के लिए नाश्ता लेकर अभी पीछे जाने ही वाली थी कि कुसुम ने उससे आवाज़ देकर रोक लिया।
कुसुम- अरे ओ चमेली.. ज़रा इधर आ.. कहाँ जा रही है?

चमेली (कुसुम की तरफ जाते हुए)- वो मैं राजू को नाश्ता देने जा रही थी।

कुसुम- अच्छा ठीक है.. जा नास्ता देकर आ, मैं तुम्हारा अपने कमरे में इंतजार कर रही हूँ… एक ज़रूरी काम है तेरे से।
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#6
भाग - 6 

चमेली- जी दीदी.. मैं अभी आती हूँ।

चमेली नाश्ता लेकर पीछे चली गई, कुसुम अपने कमरे में आ गई।

उसके होंठों पर अजीब सी मुस्कान थी, पता नहीं.. उसके दिमाग़ में आज क्या चल रहा था।

थोड़ी देर बाद चमेली कुसुम के कमरे में आई।

चमेली- जी दीदी.. बताईए क्या काम है?

कुसुम- आ बैठ तो सही..

कुसुम बिस्तर पर बैठी थी, चमेली उसके सामने जाकर नीचे चटाई पर बैठ गई।

कुसुम- तुम्हें मेरा एक काम करना है।

चमेली- आप हुक्म करें दीदी।

कुसुम- मैं चाहती हूँ कि आज जब तुम दीपा के बालों में तेल लगाओ..तो उस समय उसकी मालिश भी कर देना।

चमेली- बस इतना सा काम… कर दूँगी दीदी।

कुसुम- अरी मैं उस ‘मालिश’ की बात कर रही हूँ, जो मैं तुमसे करवाती हूँ।

कुसुम की बात सुन कर चमेली थोड़ा झिझक गई और बोली।

चमेली- पर दीदी उसकी ‘वो’ मालिश करने की क्या जरूरत है अभी?

कुसुम- तू भी ना कभी-कभी बच्चों जैसी बात करती है, देख अब दीपा जवान होने लगी है। उसके बदन में भी आग भड़कने लगी होगी। अगर ऐसे मैं उसकी अच्छे से मालिश हो जाए, तो उसका तन भी ठंडा हो जाएगा और इससे बच्चे बुरे कामों की तरफ भी नहीं जाते.. समझीं!

चमेली- अच्छा दीदी… ये तो बहुत अच्छा सुझाव दिया है आपने.. सच में आपका कोई जवाब नहीं.. पर क्या वो मान जाएगी?

कुसुम- अरे तुम्हें नहीं पता.. तुम्हारे हाथों में तो जादू है। एक बार किसी के बदन को छू लेती हो, तो वो वहीं हथियार डाल देता है।

अच्छा जा.. अब वक्त खराब ना कर.. अभी मुझे उस नई आई महारानी को नहलाने के लिए पीछे भी ले जाना है।

चमेली- ठीक है दीदी.. मैं दीपा के कमरे में जाती हूँ।

चमेली के जाने के बाद कुसुम सीमा के कमरे में गई।

सीमा वहाँ पर अपने लिए कपड़े निकाल रही थी।

उस समय वो ब्लाउज और पेटीकोट पहने खड़ी थी, उसके बाल खुले हुए थे, जो उसकी पतली नागिन से कमर पर बल खा रहे थे।

कुसुम को देख कर सीमा उसकी तरफ़ मुड़ी- आईए दीदी.. मैंने कपड़े निकाल लिए हैं।

कुसुम- तो चलो, फिर चल कर नहा लेते हैं।

सीमा- चलिए।

कुसुम सीमा को लेकर पीछे बने गुसलखाने की तरफ आ गई।

चमेली ने पहले से ही पानी गरम करके रख दिया था।

जैसे ही वो दोनों पीछे पहुँची, कुसुम की आँखें उस कमरे की ओर लग गईं।

अन्दर राजू खाना खा कर लेट गया था, सुबह से सामान बाहर निकाल कर काफ़ी थक चुका था।

जब कुसुम और सीमा के चलने से उनके पैरों की पायल की आवाज़ हुई, तो राजू उठ कर बैठ गया और दरवाजे पर आ कर बाहर देखने लगा।
बाहर दो जवान और हसीन औरतें खड़ी थीं।

कुसुम ने देखा कि राजू दरवाजे की आड़ से उनकी तरफ देख रहा है, पर उसने यह जाहिर नहीं होने दिया कि उसने राजू को देख लिया है।

‘जाओ अन्दर जाकर नहा लो.. मैं यहीं बैठती हूँ।’ कुसुम से सीमा से कहा।

सीमा गुसलखाने में चली गई।

उसका दिमाग़ कभी दीपा की तरफ जाता कि चमेली ने अब तक अपना काम शुरू कर दिया होगा और कभी राजू की तरफ, जो पीछे खड़ा दरवाजे के ओट से उसे देख रहा था।

अचानक से कुसुम के दिमाग़ में पता नहीं क्या आया.. उसने भी साड़ी नहीं पहनी हुई थी, वो भी ब्लाउज और पेटीकोट में थी, पर उसने सर्दी से बचने के लिए एक शाल ओढ़ रखी थी। कुछ सोचने के बाद उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

कुसुम अपने मन में सोचने लगी कि वहाँ चमेली तो ज़रूर आज दीपा के बदन में आग लगा देगी और वही आग आगे चल कर मेरी बेइज्जती का बदला लेगी, पर इधर तो आग मुझे ही लगानी पड़ेगी।

आग अगर दोनों तरफ बराबर लगाई जाए तो धमाका तो होगा ही।

ये सोच कर कुसुम खड़ी हुई और अपना शाल उतार कर वहाँ लगी रस्सी पर टांग दिया और फिर अपनी बाँहों को सर के ऊपर ले जाकर एक अंगड़ाई कुछ इस तरह से ली कि उसकी 38 साइज़ की मस्त चूचियां उभर कर और बाहर आ जाएँ।

अपने सामने यह हसीन नज़ारा देख कर राजू जो कल से परेशान था.. उसका और बुरा हाल हो गया।

उसके पजामे में हलचल होने लगी।

फिर कुसुम ने चोर नज़रों से उस कमरे की तरफ़ देखा.. राजू अभी भी वहीं खड़ा था और बड़ी ही हसरत भरी नज़रों से कुसुम की तरफ देख रहा था।

फिर कुसुम ने उसकी तरफ पीठ की और कुछ देर बाद उसने अपने पेटीकोट को ऊपर उठाना चालू कर दिया, राजू के दिल के धड़कनें पूरी रफ़्तार से चलने लगी थीं।

उसके लण्ड में सनसनाहट होने लगी, कुसुम ने अपना पेटीकोट अपनी कमर तक पूरा चढ़ा लिया।

उफ़फ्फ़… राजू की आँखों के सामने क्या नज़ारा था..

रात को वो चमेली की गाण्ड को ठीक से नहीं देख पाया था, पर अभी सूरज के रोशनी में जब उसने कुसुम की गाण्ड को देखा, तो मानो जैसे उसकी साँसें अटक गई हों, एकदम गोल-गोल और मोटे चूतड़ उसके आँखों के सामने थे।

गाण्ड की दरार जो राजू बिल्कुल अच्छे से देख पा रहा था।

उसका मन तो कर रहा था कि अभी जाकर अपना लण्ड उसकी गाण्ड की दरार में जाकर रगड़ना चालू कर दे!

पर अभी ये सब बहुत दूर की कौड़ी थी।

फिलहाल तो राजू वहीं खड़ा होकर अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से मसल रहा था।

कुसुम जानती थी कि पीछे खड़ा राजू उसके चूतड़ों को देख रहा है और वो चाहती भी यही थी।

वो नीचे पैरों के बल बैठ गई और उसने मूतना चालू कर दिया.. सर्दी की सुनहरी धूप में उसकी मूत की धार भी राजू को किसी सुनहरे रंग के झरने की तरह लग रही थी।

राजू का जो हाल था, वो तो राजू ही बता सकता है।

पेशाब करने के बाद कुसुम खड़ी हुई और पास पड़े एक कपड़े से अपनी चूत को साफ़ करने लगी।

उसने भी अपना पेटीकोट को नीचे करने के कोई जल्दबाज़ी नहीं की।

हालांकि कुसुम के दिल में अभी तक राजू के लिए कोई बात नहीं थी, वो ये सब इसलिए कर रही थी कि जोश में आकर दीपा और राजू कुछ ऐसा कर दें कि गेंदामल की इज्जत के धज्जियाँ उड़ जाएँ।

अपनी चूत को साफ़ करने के बाद उसने अपना पेटीकोट नीचे कर लिया, राजू के लिए जो लाइव शो चल रहा था, वो खत्म हो चुका था।

इधर राजू के लण्ड से कल से किस्मत कहर ढा रही थी।

उधर दूसरी तरफ दीपा के बदन में कल की आग आज कुछ ठंडी सी हो गई थी।

दीपा का आज तक किसी से कोई चक्कर नहीं चला था.. होता भी कैसे.. वो घर से बहुत कम ही बाहर निकलती थी।

वैसे भी गेंदामल ये सब करने की आज्ञा भी नहीं देता था।

अगर वो बाहर जाती तो भी कोई ना कोई साथ में ज़रूर होता।

उधर दीपा बिस्तर के किनारे बैठी हुई है, उसकी पीठ किनारे की तरफ है और चमेली उसके बालों में तेल लगा रही थी।

चमेली ने देखा कि दीपा बहुत गुमसुम सी है।

चमेली (दीपा के बालों में तेल लगाते हुए)- क्या बात है.. आज हमारी राजकुमारी बहुत गुमसुम क्यों है?

दीपा (जैसे अभी-अभी नींद से जागी हो)- नहीं.. वो वो.. कल बहुत थक गई थी ना.. इसलिए पूरा बदन दु:ख रहा है काकी।

चमेली- ओह.. अच्छा ये बात है, अगर पहले बता देती तो मैं कब का राजकुमारी के बदन का दर्द दूर कर देती.. चलो आज आपकी मालिश कर देती हूँ।

दीपा- मालिश..!

चमेली- हाँ.. बड़ी दीदी तो मुझसे हफ्ते में एक-दो बार तो ज़रूर करा लेती हैं, आप भी एक बार करवा के देखो, अगर बार-बार ना कहो तो कहना।

दीपा- ठीक है काकी… तो फिर आज आप मेरी भी मालिश कर दो।

चमेली- ठीक है कर देती हूँ, राजकुमारी जी।

यह कह कर चमेली ने मुस्कुराते हुए कमरा के एक कोने में पढ़ी चटाई को उठा कर नीचे बिछा दिया और उस पर एक तकिया लगा दिया।

चमेली- आप यहाँ लेट जाएँ।

दीपा बिस्तर से उठी और नीचे चटाई पर बैठ गई।

चमेली ने कमरा का दरवाजा बन्द किया और दीपा के पीछे नीचे बैठ गई। चमेली के हाथ पहले ही तेल से सने हुए थे। चमेली ने दीपा के खुले हुए बालों को एक तरफ किया और उसके कंधों को धीरे-धीरे दबाते हुए सहलाने लगी।

चमेली की ऊँगलियाँ दीपा के कंधों से नीचे दीपा के खुले हुए गले तक जा रही थीं।

चमेली के मुलायम हाथों ने अपना जादू दिखाया, दीपा की आँखें इतनी मस्त मालिश से बंद होने लगीं।

दीपा के कंधों को थोड़ी देर दबाने के बाद चमेली ने अपने हाथों को उसके कंधों से सरका कर और नीचे कर दिया।

अब उसके हाथ दीपा के आगे की तरफ के खुले हिस्से की मालिश कर रहे थे।

चमेली अपने घुटनों के बल बैठी थी, दीपा ने अपना सर चमेली के छाती पर टिका दिया, जिससे चमेली के 38 नाप की चूचियां भी दब गईं और उसके मुँह से ‘आहह’ निकल गई।
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#7
भाग - 7


दीपा चमेली की ‘आहह’ सुन कर बोली- क्या हुआ काकी?

चमेली- कुछ नहीं।

जैसे-जैसे चमेली के हाथ दीपा के गले की मालिश करते हुए, उसकी चूचियों की तरफ बढ़ रहे थी, दीपा की साँसें तेज होती जा रही थीं।

उसका बदन चमेली के हाथों के नीचे गरम होने लगा था।

चमेली दीपा उसके पीछे से खिसक कर उसकी बगल में आकर बैठ गई और दीपा को उसके कंधों से पकड़ कर धीरे-धीरे नीचे चटाई पर लेटा दिया और खुद उसकी बगल में घुटनों के बल बैठ गई।

दीपा बहुत आराम महसूस कर रही थी, जिसके चलते हुए उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं।

चमेली ने धीरे से अपने दोनों हाथों से दीपा की कमीज़ को पकड़ कर थोड़ा सा ऊपर उठा दिया।

दीपा ने इस पर कोई आपत्ति जाहिर नहीं की।

कमीज़ को उठाने के बाद उसने अपने दोनों हाथों से दीपा के कमर को दबाना चालू क्या।

फिर थोड़ा सा तेल दीपा के पेट पर डाल कर अपने हाथ को गोल-गोल घुमाते हुए दीपा के पेट की मालिश करने लगी।

दीपा को अजीब सा मजा आ रहा था, उसके पेट में गुदगुदी सी होने लगी, जिसके कारण दीपा थोड़ा हिलने लगी।

चमेली- क्या हुआ राजकुमारी जी..ठीक से लेटिए ना.. हिल क्यों रही है?

दीपा अपनी आँखें बंद किए हुए बोली- काकी, वो गुदगुदी हो रही है।

चमेली- क्या गुदगुदी.. आप तो ऐसे मचल रही हो, जैसे कि कोई लड़का आपके पतली कमर पर हाथ फेर रहा हो।

जैसे ही चमेली ने यह बात कही, दीपा के मन में एक बार फिर से कल वाली बात ताज़ा हो गई।

उसका दिल जोरों से धड़कनें लगा, कल जब राजू उसके कमर और चूतड़ों को मसल रहा था.. तो उसकी चूत पनिया गई थी।

लेकिन चमेली और राजू के छूने में ज़मीन-आसमान का फर्क था।

‘काकी मर्द के छूने से क्या होता है?’ दीपा ने जिज्ञासापूर्वक पूछा।

वो अभी भी अपनी आँखें बंद किए हुए थी।

चमेली- अरे बेटी, अब क्या बताऊँ कि जब एक मर्द किसी औरत के बदन को छूता है तो क्या होता है। बस ये समझ लो कि दुनिया का हर सुख उस सुख के सामने फीका लगता है। जब कोई मर्द प्यार से छूता है।

दीपा- ऐसा क्यों होता है काकी?

दीपा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी।

चमेली दीपा के पेट की मालिश करते हुए उसकी चूचियों की तरफ बढ़ती जा रही थी।

चमेली- वो तो पता नहीं जब तुम्हें कोई मर्द छुएगा, तो पता चल जाएगा कि कितना मजा आता है, जब एक मर्द औरत के बदन को छूता है।

चमेली दीपा की कमीज़ उसकी चूचियों के नीचे तक ऊपर कर चुकी थी, अब उसकी ऊँगलियाँ बीच-बीच में दीपा की चूचियों से टकरा जातीं तो दीपा के बदन में मस्ती की लहर दौड़ जाती और अब तो उसके मुँह से मस्ती भरी ‘आहह..’ निकल गई, जिसे सुन कर चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

चमेली ने दीपा की चूचियों के पास मालिश करते हुए कहा- तुम जानती हो एक मर्द को औरत के किस अंग को सहलाने में सबसे अच्छा लगता है?
अगर औरत को वो अंग जितना सुंदर और बड़ा होगा, वो मर्द को उतना ही आकर्षित करता है।

दीपा ने तेज चलती साँसों के साथ पूछा- क्या काकी बताओ ना?

चमेली ने अपने दोनों हथेलियों से दीपा की चूचियों को मसलते हुए कहा- ये… एक औरत की चूचियाँ देख कर कोई भी उसका गुलाम हो सकता है।

दीपा ने मस्ती में सिसकते हुए कहा- ओह्ह.. काकी… यह आप क्या कर रही हैं?

चमेली- मैं तुम्हें बता रही हूँ कि जब एक आदमी किसी औरत की चूचियों को मसलता है, तो औरत को बहुत मजा आता है। तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या?

दीपा ने अपनी आँखें बंद किए हुए मदहोशी के सागर में गोते खाते हुए कहा- अच्छा लग रहा है… काकी.. पर पर्ररर उन्हह.. अहह.. काकी।

चमेली ने अपनी उँगलियों से दीपा की चूचियों के चूचकों को मसल दिया।

दीपा के बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।

उसने अपने दोनों हाथों से चमेली के हाथों को कस कर पकड़ लिया, पर उसने चमेली के हाथों को अपनी चूचियों पर से हटाने की कोशिश नहीं की, चमेली के होंठों की मुस्कान बढ़ती जा रही थी।

अब चमेली ने एक और दांव खेला, जिसे झेलने के लिए दीपा बिल्कुल तैयार नहीं थी।

दीपा के 32 साइज़ की तनी हुई चूचियां उसके कमीज़ से बाहर थीं और उन पर हल्के गुलाबी रंग के चूचुकों को देख कर तो किसी का भी ईमान डोल जाता।

चमेली ने दीपा की चूचियों पर से अपने हाथ हटा कर दीपा के हाथों को पकड़ा और उसके सर के पास नीचे चटाई के साथ सटा दिया, जिससे दीपा
गोरी-गोरी चूचियाँ और बाहर की तरफ निकल गईं।

हल्के गुलाबी रंग के चूचक जो एकदम तने हुए थे, किसी तीर की नोक की तरह तीखे हो चुके थे।

दीपा अब भी अपनी आँखें बंद किए हुए थी.. उसके होंठ थोड़ा सा खुले हुए थे, मानो जैसे उससे साँस लेने में तकलीफ हो रही हो।

चमेली ने मौका देखते हुए, उन पर झुक गई और उसके बाएं चूचुक को मुँह में भर लिया।

‘ओह काकी.. अहह सीईई..उंह ईईए आअ क्य ओह्ह..’

दीपा तो पहले से हथियार डाल चुकी थी, उसके दिमाग़ में एक बार फिर राजू की छवि बन चुकी थी।

मानो जैसे चमेली नहीं राजू ही उसकी चूचियों को चूस रहा हो।

दीपा अपने हाथों से तकिए को कस कर पकड़े हुए थी।

उसका पूरा बदन मस्ती में ‘थरथर’ काँप रहा था, चमेली ने उसके चूचुक को चूसते हुए दूसरी चूची को हाथ में लेकर धीरे-धीरे मसलते हुए सहलाना शुरू कर दिया।

दीपा आँखें बंद किए हुए मस्ती से भरी सिसकारियाँ भर रही थी।

फिर चमेली ने एकाएक दीपा की चूची को जितना हो सकता था मुँह में भर लिया, दीपा एकदम सिसक उठी।

उसने तकिए को छोड़ कर चमेली को कंधों के ऊपर से उसकी पीठ को कस लिया।

दीपा- ओह काकी… मुझे ये क्या हो रहा है… ओह काकी.. बहुत अच्छा लग रहा है.. उंह सीई काकीईई…

चमेली ने देखा कि दीपा अब पूरी तरह गरम हो चुकी है तो उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर दीपा के सलवार के नाड़े को पकड़ा और धीरे-धीरे खींचते हुए खोल दिया।

जैसे ही दीपा की सलवार उसकी कमर पर ढीली हुई, दीपा के दिल के धड़कनें बढ़ गईं।

उसने अपनी मदहोशी के नशे से भरी आँखों को खोल कर चमेली की तरफ देखा, जो उसकी चूची चूसते हुए, अपना हाथ उसकी सलवार के अन्दर डाल रही थी।

दीपा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी, वो अब कुछ भी करने की हालत में नहीं थी। जैसे ही चमेली के हाथ की उँगलियों ने दीपा की कुँवारी चूत की फांकों को छुआ, दीपा के मुँह से मस्ती भरी ‘आहह’ निकल गई।

उसने अपने होंठों को अपने दाँतों में दबा लिया और चमेली की पीठ पर तेज़ी से हाथ फेरने लगी।

मानो जैसे उसने राजू को ही अपने आगोश में ले रखा हो।

चमेली ने अपनी उँगलियों से दीपा की चूत की फांकों को धीरे से सहलाया।

दीपा का पूरा बदन झनझना उठा, उसका पूरा बदन अकड़ कर झटके खाने लगा और दीपा बिन पानी की मछली के तरह तड़पते हुए अपनी कमर को हिलाते हुए अपने चूतड़ों को ऊपर उछालने लगी।

दीपा को तो जैसे होश नहीं था।

दीपा की चूत ने अगले ही पल पानी छोड़ना शुरू कर दिया, अनुभवी चमेली अपनी उँगलियों पर दीपा की चूत से निकाल रहे पानी को महसूस करते ही समझ गई कि लौंडिया झड़ गई है।

उसने अपना हाथ उसकी सलवार से बाहर निकाला और अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछ लिया।

दीपा अपनी साँसों के दुरस्त होने का इंतजार कर रही थी, जवान दीपा की चूत ने आज पहली बार अपना कामरस बहाया था।

उसके होंठों पर संतुष्टि से भरी मुस्कान फ़ैल गई।

जब दीपा थोड़ी देर बाद सामान्य हुई, तो उसने अपनी सलवार के नाड़े को बंद किया और खड़ी होकर नहाने के लिए चली गई।
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#8
भाग - 8


जैसे ही दीपा नहाने के लिए घर के पिछवाड़े में गई तो सीमा और कुसुम नहा कर वापिस आ रही थीं।

दीपा सर झुकाए हुए, उनके पास से गुजर गई।

कुसुम ने आगे निकल कर चमेली से पूछा- अरे मरी कहाँ जा रही है.. उसकी मालिश अच्छे से की या नहीं?

चमेली मुस्कुराते हुए कुसुम की तरफ देखने लगी।

‘बहुत गरम छोरी है.. दीपा… जैसे ही उसकी चूत को छुआ, उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया.. वो किसी मछली के तरह तड़फ रही थी।’

चमेली की बात सुन कर कुसुम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

कुसुम जो चाहती थी, उस मंज़िल के तरफ वो एक कदम आगे बढ़ चुकी थी।

उधर घर के पीछे जब दीपा गुसलखाने की तरफ पहुँची, तो उसने देखा कि राजू उस सामान को एक कोने में इकठ्ठा कर रहा था.. जिसे उसने बाहर निकाला था।

जैसे ही दीपा गुसलखाने के पास पहुँची, दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, पर दीपा ने अपने सर को झुका लिया।

कुछ देर पहले जब वो चमेली को अपनी बाँहों में भींचे हुए थी, तब उसके दिमाग़ में राजू की ही छवि बनी हुई थी।

जिसके चलते दीपा राजू से आँखें नहीं मिला पा रही थी, पर राजू तो कल से उससे देखने के लिए बेकरार था।

जैसे ही राजू सामान को रख कर दीपा की तरफ जाने लगा, तो उसने देखा कि चमेली उसकी तरफ आ रही थी।

चमेली को देख कर वो रुक गया।

दीपा भी गुसलखाने में घुस गई, पता नहीं क्यों…

पर राजू चमेली की तरफ देखने से कतरा रहा था।

वो सीधा कमरे के अन्दर चला गया और वहाँ पढ़े एक पुराने पलंग पर बैठ गया।

चमेली उसके पीछे कमरे में आ गई।

चमेली ने राजू की तरफ मुस्करा कर देखते हुए कहा- नाश्ता कर लिया?

राजू (सर झुकाए हुए)- जी कर लिया।

चमेली ने राजू की तरफ देखा, सुबह से सफाई कर रहे राजू के बदन पर धूल जमी हुई थी।

‘मैं नदी पर नहाने जा रही हूँ… तुम भी चलो, नहा लो, बहुत धूल से भर गए हो तुम… यहाँ पर सब नौकर नदी पर ही नहाने जाते हैं।’

राजू ने अपनी हालत देखी.. सुबह से सामान को बाहर निकालते हुए.. उसके कपड़े धूल से सन चुके थे।

वो बिना कुछ बोले खड़ा हुआ और अपने बैग में से कपड़े निकालने लगा।

यह देख कर चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई!

फिर राजू चमेली के साथ गेंदामल के घर से बाहर आ गया और दोनों चमेली के घर की तरफ जाने लगे।

जब दोनों घर पहुँचे तो चमेली ने अपनी बेटी रज्जो से कहा- रज्जो सुन.. मैं नहाने जा रही हूँ, तू सेठ जी के घर जा और वहाँ की साफ़-सफाई कर दे। मैं आकर दोपहर का खाना बना दूँगी।

रज्जो- अच्छा माँ जाती हूँ.. पर जल्दी आ जाना, मुझे घर की सफाई भी करनी है।

यह कह कर रज्जो सेठ के घर चली गई।

चमेली ने अपने कपड़े लिए और दोनों नदी की तरफ चल पड़े।

राजू आज पहली बाद इस गाँव के गलियों को उजाले में देख रहा था।

गाँव से बाहर आकर दोनों एक सुनसान रास्ते पर चलते हुए नदी की तरफ जाने लगे..

रास्ते में कोई भी नज़र नहीं आ रहा था.. जिसके चलते राजू थोड़ा असहज महसूस कर रहा था।

‘गाँव के सभी लोग नदी पर नहाने जाते हैं?’ राजू ने झिझकते हुए चमेली से पूछा।

चमेली ने पीछे मुड़ कर राजू की तरफ देखते हुए कहा- नहीं सर्दियों में नदी पर कम ही आते हैं.. गर्मियों में सभी आते हैं।


इससे आगे राजू ने कुछ नहीं बोला और वो चमेली के पीछे बिना कुछ बोले चलता रहा।

थोड़ी देर बाद दोनों नदी के किनारे पहुँच गए।

नदी के दोनों तरफ काफ़ी पेड़ थे और बहुत झाड़ियाँ थीं।

नदी के किनारे पहुँच कर चमेली ने अपने कपड़े को नीचे साफ़ घास पर रखा और अपनी साड़ी उतारने लगी।

राजू उसके पीछे खड़ा मुँह फाड़े उसे देख रहा था।

घर पर तो उसकी माँ ने भी कभी उसके सामने साड़ी नहीं उतारी थी।

यह सब राजू के लिए अलग था, एक जवान और मदमस्त औरत उसके सामने खड़ी अपने जिस्म से साड़ी को अलग कर रही थी।

चमेली ने साड़ी को उतार कर कपड़ों के पास रख दिया और राजू की तरफ मुड़ी।

‘अरे ये क्या.. अभी तक कपड़े पहने खड़े हो, नहाना नहीं है क्या.. जल्दी करो, घर जाकर मुझे दोपहर का खाना भी बनाना है।’

चमेली राजू की हालत को समझ रही थी।

वो अपनी मुस्कान को होंठों पर आने से नहीं रोक पाई।

फिर चमेली पलट कर नदी में उतर गई।

‘हाय राम मर गई…’

राजू चमेली की आवाज़ सुन कर घबरा गया।

‘क्या हुआ काकी?’

राजू घबराए हुए स्वर में बोला।

चमेली (मुस्कुराते हुए)- कुछ नहीं पानी बहुत ठंडा है.. अब जल्दी कर ना, घर वापिस जाकर खाना भी तैयार करना है।

चमेली की बात सुन कर अपने कपड़े उतारने लगा।

चमेली की नज़रें राजू के गोरे बदन पर अटकी हुई थीं, पर राजू का उस तरफ ध्यान नहीं था।

राजू ने अपनी कमर पर एक सफ़ेद रंग की धोती बाँध ली और अपना पजामा खोल कर नदी में उतर गया।

चमेली नदी में डुबकी लगा रही थी, उसका ब्लाउज और पेटीकोट भीग कर उसके बदन से चिपक गया।

चमेली ने नहाते हुए अपनी पीठ राजू की तरफ कर ली।

पानी.. चमेली की जाँघों तक था। जैसे ही चमेली पानी में खड़ी हुई, तो सामने का नजारा देख कर काँप रहे राजू के बदन में मानो जैसे आग लग गई हो।

चमेली का पीले रंग का पेटीकोट उसके चूतड़ों पर चिपका हुआ था, पतले से पेटीकोट में से चमेली के चूतड़ों का पूरा भूगोल दिखाई दे रहा था।

यहाँ तक कि उसकी गाण्ड की दरार भी राजू के आँखों से छुपी नहीं थी।

इतने ठंडे पानी में भी जैसे उसके धोती के अन्दर आग लग गई हो, उसका लण्ड धोती के अन्दर हलचल करने लगा।

जब राजू ने अपने लण्ड की तरफ देखा, तो उसकी धोती का भी वही हाल था। उसके लण्ड पर उसके गीली धोती चिपकी हुई थी और उसका लण्ड साफ़ नज़र आ रहा था।

उसने फिर चमेली की तरफ देखा, वो चाह कर भी चमेली के चूतड़ों पर से नज़र नहीं हटा पा रहा था।

फिर चमेली ने अपनी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से रगड़ना शुरू कर दिया।

वो जानती थी कि राजू उसकी तरफ ही देख रहा है,

पर इस बात से चमेली को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो जानती थी कि उसके चूतड़ों की पूरी गोलाईयां राजू को दिखाई दे रही होंगी और वो चाहती भी यही थी।

इधर राजू का लण्ड एक बार फिर से अपनी औकात पर आ चुका था।

अपने बदन को मलते हुए चमेली अचानक राजू के तरफ पलटी..

उसका ब्लाउज भी गीला होकर उसकी चूचियों से चिपका हुआ था।

काले रंग के चूचक उसके ब्लाउज में ऊपर से साफ़ दिखाई दे रहे थे।

राजू का मुँह खुला का खुला रह गया।

उससे तो इतना भी होश नहीं था कि उसकी गीली धोती, उसके 8 इंच के लण्ड के ऊपर चिपकी हुई है, जिसे देख कर चमेली का कलेजा मुँह में आ गया था।

चमेली हैरत भरी नज़रों से राजू के विशाल और मोटे लण्ड को देख रही थी।

जब राजू को इस बात का अहसास हुआ तो वो नदी के किनारे बनी सीढ़ियों पर बैठ गया और अपनी जाँघों को आपस में सटा कर अपने खड़े लण्ड को छुपाने के कोशिश करने लगा।

राजू के मूसल लण्ड की एक झलक देखने के बाद, चमेली की चूत की फाँकें फुदकने लगीं।

उसने अपने होंठों पर कामुक मुस्कान लाकर राजू से कहा- बड़ा तगड़ा हथियार है तुम्हारा।

राजू को इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि चमेली इस कदर खुल कर उसके लण्ड के बारे में कह देगी, वो एकदम से झेंप गया।

वो हड़बड़ाते हुए बोला- क्या.. क्या.. काकी..

चमेली को राजू की हालत पर हँसी आ रही थी, पर उसने अपनी हँसी दबा ली- तुम्हारा लण्ड और क्या..!

एक बार फिर राजू चमेली की बात सुन कर बुरी तरह चौंक गया।

उसने अपने सर को झुका लिया।

चमेली उसकी तरफ देखते हुए.. अपनी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से रगड़ते हुए नहाने लगी, पर राजू की हिम्मत नहीं हुई कि वो दुबारा चमेली की तरफ देख सके।

राजू का लण्ड देख कर तो चमेली की चूत में तो जैसे आग दहकने लगी थी, पर गाँव की नदी पर कभी कोई भी आ सकता था।
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#9
भाग - 9


आज पुरा दिन घर के कामकाज मे निकल गया और रात आराम करने मे,

अगले दिन काफी ठंड थी,

चमेली बोली " मालकिन काम हो गया, मै जा रही हु नदी पर नहाने,

उसने राजु से पुछा

राजु ने भी चमेली के साथ चलने के लिए हामी भर दी।

दोनों नदी की तरफ चल पड़े।

सुबह के 10 बजे थे, पर सूरज देव का नामो-निशान नहीं था, चारों तरफ घना कोहरा छाया हुआ था।

लगभग गाँव के सभी लोग अपने-अपने घर में दुबके हुए थीं।

‘आज रहने देते हैं काकी.. आज सच में बहुत ठंड है।’

चमेली ने पीछे मुड़ कर देखा और मुस्कुराते हुए बोली- चल ठीक है… वैसे आज ठंड कुछ ज्यादा ही है।

यह कह कर चमेली वापिस गाँव की तरफ मुड़ गई, चमेली और राजू जब नदी पर आने से पहले चमेली के घर पर गई थीं, तब चमेली ने अपनी बेटी रज्जो को सेठ के घर जाकर सफाई करने को कहा था।

चमेली ने सोचा इस समय उसके घर पर कोई नहीं होगा तो हो सकता है, आज उसकी चूत की आग ठंडी हो जाए।

चमेली- चलो, पहले मेरे घर चलते हैं, ये कपड़े तो वापिस रख दें।

उसके बाद चमेली राजू को लेकर अपने घर पर आ गई।

चमेली के बेटी गेंदामल के घर पर जा चुकी थी।

‘चलो आज नहाया तो नहीं, कम से कम मुँह हाथ तो धो ही लेती हूँ।’

ये कह कर चमेली आँगन में आकर एक चौकी पर बैठ गई और अपने लहँगे को घुटनों से ऊपर सरका कर.. अपने पैरों को साफ़ करने लगी।

राजू बाहर आँगन में खड़ा चमेली की तरफ देख रहा था।

कल से वो देख-देख कर पागल हो चुका था।

कुसुम के साथ तो कुछ करने के उसकी हिम्मत नहीं थी, पर चमेली… वो भी तो उसी की तरह नौकर थी।

हाथ-पाँव धोने के बाद चमेली कमरे में गई और अपनी चोली उतारने लगी।

उसने कमरे का दरवाजा बंद नहीं किया था। बाहर खड़ा राजू अब अपने आप पर काबू रखने की हालत में नहीं था।

चमेली ने जैसे ही अपनी चोली उतारी, उसकी नंगी पीठ राजू की आँखों के आगे आ गई।

चमेली जानती थी कि राजू की आँखें उसी पर लगी हुई हैं। फिर चमेली एक संदूक के तरफ बढ़ी और उसमें से अपने लिए कपड़े निकालने के लिए झुकी, तभी चमेली को वो झटका लगा, जिसके लिए वो पिछले कुछ दिनों से अन्दर ही अन्दर सुलग रही थी।

‘आह्ह.. ओह.. क्या कर रहा है छोरे.. छोड़ मुझे..’ चमेली ने कसमसाते हुए कहा।

राजू ने अचानक से पीछे से जाकर चमेली की चूचियों को अपनी हथेलयों में भर लिया था।

उसकी 38 इन्च की गुंदाज चूचियाँ राजू के हाथों में समा नहीं रही थीं।

राजू का लण्ड जो उसके पजामे में तंबू बनाए हुए था।

सीधा चमेली के लहँगे के ऊपर से उसकी चूतड़ों की दरार में धंस गया।

चमेली ने अपने हाथों से राजू के हाथों को पकड़ लिया…

वो भले ही राजू को छोड़ने के लिए कह रही थी, पर वो विरोध बिल्कुल भी नहीं कर रही थी।

चमेली कसमसाते हुए- आहह.. छोड़ राजू कोई आ जाएगा.. छोड़ दे.. ऊंह राजू ओह…

चमेली के इधर-उधर हिलने से राजू का लण्ड उसके लहँगे के ऊपर से गाण्ड की दरार में सरकता हुआ सीधा उसकी चूत की फांकों में जा लगा।

चमेली एकदम से मचल उठी और उसने अपने हाथों को पीछे ले जाकर राजू के सर को पकड़ लिया।

अब राजू के हाथ आज़ाद थे, जिसका पूरा फायदा उसने उठाना शुरू कर दिया।

उसने धीरे-धीरे चमेली की चूचियों को अपने हाथों में भर कर दबाना शुरू कर दिया।

चमेली एकदम मस्त हो चुकी थी, उसने अपने सर को राजू के कंधों पर टिका दिया.. उसकी आँखें मस्ती में बंद हो गईं।

चमेली- राजू छोड़ दे बेटा.. कोई आ जाएगा, मान जा.. मेरी बात.. ऊंह सीईई क्या कर रहा है धीरे राजू आह्ह…

चमेली ने राजू के हाथों को पकड़ कर अपनी चूचियों से हटाया और राजू से अलग होकर राजू की तरफ देखने लगी।

उसकी चूचियाँ तेज सांस लेने से ऊपर-नीचे हो रही थीं।

राजू एकटक चमेली की ऊपर-नीचे हो रही गुंदाज चूचियों को देख रहा था।

आज सालों बाद जवान लड़के के हाथों का स्पर्श पाकर उसकी चूचियों के काले चूचुक एकदम तन गए और उसे अपने चूचकों के पास खिंचाव महसूस होने लगा।

राजू ने जैसे ही अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसकी चूची को छुआ.. चमेली एकदम मस्त हो गई और राजू की ओर अपनी अधखुली आँखों से देखते हुए कहने लगी (मस्ती से भारी लड़खड़ाती आवाज़ में)- तुम किसी को बताओगे तो नहीं।

राजू- नहीं काकी।

राजू ने बस इतना ही कहा था कि चमेली ने राजू आगे बढ़ कर अपनी बाँहों में भर लिया।

उसकी चूचियां राजू के छाती में धँस गईं।

‘ओह्ह राजू कब से तड़फ रही हूँ और जब से तुम्हारा लण्ड देखा है.. मेरी चूत में आग लगी हुई है.. तुम मुझे चोदेगा ना…’

राजू- आहह.. काकी… आपने भी तो मुझे अपनी चूत दिखा-दिखा कर पागल कर दिया है… देखो ना मेरा लण्ड कैसे खड़ा हो गया है..

चमेली- चल पीछे हट.. पहले मुझे बाहर का दरवाजा बंद करके आने दे।

तब तक तुम नीचे बिस्तर लगा.. फिर देख कैसे तेरे लण्ड का रस निचोड़ कर इसकी अकड़ निकालती हूँ।

यह कह कर चमेली थोड़ा सा पीछे हटी और अपने लहँगे को खोल कर ऊपर करके अपनी चूचियों पर बाँध कर बाहर चली गई।

जब चमेली बाहर के दरवाजे को बंद करके वापिस आई तो राजू ज़मीन पर बिस्तर लगा रहा था।

चमेली ने मुस्कुराते हुए उसे देखा और फिर कमरे का दरवाजा भी बंद कर दिया।

दरवाजा बंद करने के बाद चमेली, राजू के पास आकर खड़ी हो गई और अपने लहँगे के नाड़े को जो कि उसकी चूचियों पर बँधा हुआ था.. को खोल दिया।

लहँगे के नाड़े की पकड़ उसकी चूचियों पर ढीली पड़ते ही.. लहंगा सरकता हुआ चमेली के कदमों में आ गिरा।

राजू के सामने चमेली अब पूरी तरह से नंगी खड़ी थी।

उसकी 38 साइज़ की चूचियां तेज से साँस लेने के कारण ऊपर-नीचे हो रही थीं और नीचे चूत पर काली घनी और लंबे झांटें साफ़ दिखाई दे रही थीं जो कुसुम की चूत से बिल्कुल अलग थी।

राजू चमेली को यूँ अपने सामने नंगा खड़ा देख कर पागल हो गया।

उसने आगे बढ़ कर उसे अपनी बाँहों में कसते हुए उसकी बाईं चूची को मुँह में भर लिया।

जैसे ही चमेली की चूची का चूचुक पर राजू के जीभ का स्पर्श हुआ, चमेली सिसक उठी।

उसने राजू के सर को अपने बाँहों में कस लिया।

‘आह्ह.. सीई ओह राजू चूस्स्स ले.. सब तेरे ही लिए है आज.. चूस और ज़ोर से चूस्स्स बेटा ओह..’

चमेली पागलों की तरह राजू की बाँहों में छटपटा रही थी।

उसके हाथ तेज़ी से राजू के सर के बालों में घूमने लगे और होंठ राजू के कंधों पर रगड़ खाने लगे।

मस्ती से अधीर हो चुकी चमेली की चूत कि फाँकें कुलबुलाने लगीं।

नीचे राजू का लण्ड चमेली के पेट से सटा हुआ था, चमेली अपना हाथ नीचे ले गई और राजू के लण्ड के मोटे गुलाबी सुपारे को दो उँगलियों और अंगूठे के बीच में पकड़ लिया।

अंगूठे के नाख़ून से उसने राजू के लण्ड के सुपारे से हल्का सा कुरेद दिया।

राजू- आह.. काकी ये क्या कर रही हो ?

राजू की आँखें भी मस्ती में बंद होने लगीं, चमेली लगातार अपने अंगूठे को गोल-गोल घुमा कर राजू के लण्ड के सुपारे को नाख़ून से कुरेद रही थी।

राजू का लग रहा था, जैसे चमेली उसके लण्ड को निचोड़ कर पूरा रस निकाल लेना चाहती हो।

अब राजू भी चमेली के हर हरकत का जवाब देने के लिए बिल्कुल तैयार था।

उसने चमेली के चूचुक को मुँह से निकाला और दूसरी चूची को मुँह में भर कर चूसना चालू कर दिया।

चमेली एक बार फिर से सिसक उठी।

‘ओह हाआआ राजू बेटा चूस दोनों तेरी हैं.. ऊंह सीईई और ज़ोर से चूस..’

राजू चमेली की चूची को चूसते हुए धीरे-धीरे अपना हाथ नीचे ले गया और चमेली की जाँघों को फैला कर उसकी चूत की फांकों को अपने हाथ से दबोच लिया।

चमेली का बदन एकदम से अकड़ गया, मानो जैसे उसकी साँस ही रुक गई हो, उसका मुँह खुल गया और उसने अपनी जाँघों को फैला लिया।

मौका देखते ही राजू ने अपनी एक ऊँगली को चमेली की चूत में पेल दिया।

‘ओह्ह राजू अब और खड़ा नहीं रहा जाता बेटा ओह..’

चमेली के बात सुन कर राजू ने चमेली की चूत से अपनी ऊँगली निकाली और अपनी बाँहों में भर कर उससे नीचे लेटा दिया।

जैसे ही चमेली नीचे लेटी, उसने अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर फैला कर ऊपर उठा लिया, जिससे उसकी झाँटों से भरी चूत का मुँह खुल कर राजू की आँखों के सामने आ गया।

चूत का गुलाबी कामरस से भीगा हुआ छेद देख राजू का लण्ड और ज्यादा अकड़ गया।

चमेली अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और उसकी चूत में सरसराहट इस कदर बढ़ गई थी कि वो एक पल और इंतजार नहीं करना चाहती थी।

‘ये ले बेटा.. देख मेरी चूत कैसे अपना पानी बहा रही है… अब और मत तड़फा बेटा… घुसा दे अपना मूसल सा लण्ड अपनी काकी की फुद्दी में…।’
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#10
भाग - 10


चमेली ने अपनी चूत की फांकों को हाथों से फैला कर राजू को दिखाते हुए कहा, जिससे देख राजू एकदम पागल हो गया और चमेली की जाँघों के बीच घुटनों के बल बैठ कर अपने लण्ड के मोटे सुपारे को चमेली की चूत के छेद पर लगा दिया जिसे चमेली अपने हाथों से खोल कर राजू को दिखा रही थी।

जैसे ही राजू के लण्ड का गरम और मोटा सुपारा चमेली की चूत के छेद पर लगा, चमेली के बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।

उसके कमर ने ऊपर की ओर झटका खाया और राजू के लण्ड का सुपारा चमेली की गीली चूत में जा घुसा।

चमेली- ओह्ह.. राजू कब से तरस रही थी.. मेरी फुद्दी.. तुम्हारे मोटे लण्ड के लिए.. ओह अब चोद डालो मुझे.. कस-कस ज़ोर से चोदो।

ये कहते हुए, चमेली ने राजू को कंधों से पकड़ कर उससे अपने ऊपर खींच लिया, जिससे राजू का वजन चमेली के ऊपर पड़ते ही.. उसके लण्ड का सुपारा चमेली चूत की दीवारों को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुसने लगा..

जिसे महसूस करते ही चमेली सिसक उठी और अपनी टाँगों को उठा कर उसने राजू की पीठ पर कस लिया।

‘ऊंह मर गइईई रे.. बहुत मोटा लण्ड है.. तेरा.. ओह्ह..’

चमेली ने अपनी गाण्ड को धीरे-धीरे ऊपर कर और उछालते हुए कहा।

कुछ ही पलों में राजू का पूरा लण्ड चमेली की चूत की गहराइयों में जा घुसा। उसके लण्ड का सुपारा चमेली के बच्चेदानी से रगड़ खा रहा था।

अब राजू भी थोड़ा सामान्य हो चुका था और वो भी अपनी कमर को हिलाते हुए धीरे-धीरे अपने लण्ड को चमेली की चूत की अन्दर-बाहर करने लगा।

चमेली की चूत की दीवारें राजू के मोटे लण्ड के ऊपर एकदम कसी हुई थीं.. मानो जैसे उसका सारा रस निचोड़ लेना चाहती हो।

चमेली अपनी कमर को हिलाने से नहीं रोक पा रही थी, वो मस्ती के सागर में गोते खाते हुए.. लगातार अपने चूतड़ों को ऊपर की ओर उछालते हुए चुदवा रही थी।

चमेली पागलों की तरह अपने हाथों से राजू की पीठ को सहलाते हुए- ओह चोद दे बेटा..अब दिखा दे… तेरे लण्ड में कितना दम है।

चमेली की बात सुन कर राजू एकदम से जोश में आ गया और चमेली के होंठों पर अपने होंठों को लगा दिया।

चमेली तो पहले से ही मस्त हो चुकी थी, उसने भी अपने होंठों को ढीला छोड़ कर राजू से चुसवाना शुरू कर दिया।

जैसे ही चमेली की आवाज़ बंद हुई.. राजू ने अपने लण्ड को सुपारे तक बाहर निकाला और पूरी ताक़त से फिर से चमेली की चूत में पेल दिया।

राजू का लण्ड पूरी रफ़्तार के साथ उसकी चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ.. बच्चेदानी से जा टकराया।

चमेली अपने होंठों को राजू के होंठों से अलग करते हुए- ओह्ह.. मारा डाला रे…धीरे बेटा धीरे ओह्ह ऊंह आह्ह.. आह्ह.. आह्ह.. हाय.. धीरे.. बेटा.. उफफफफ्फ़..

चमेली को बदन में दर्द और मस्ती के मिली-ज़ुली लहर दौड़ गई।

राजू तो जैसे चमेली को साँस लेने का मौका भी नहीं देना चाहता था.. एक के बाद एक ताबड़तोड़ धक्के चमेली की चूत में लगाए जा रहा था और चमेली मुँह खुला हुआ था और आँखें ऊपर को चढ़ी हुई थीं।

अब उसके मुँह से ‘आ..आह’ की हल्की आवाज़ ही निकल रही थी।

राजू लगातार पूरी रफ़्तार से अपने लण्ड को चमेली की चूत में अन्दर-बाहर कर रहा था।

उसके जाँघों के झटके चमेली के पेट के निचले हिस्से और चूत के आस-पास टकरा कर ‘हॅप-हॅप’ की आवाज़ करने लगे।

जिसे सुन कर राजू और जोश में आ गया और तेज़ी से चमेली की चूत को चोदने लगा।

फिर अचानक से चमेली का बदन अकड़ गया।

उसकी टाँगें जो ऊपर उठी हुई थीं, एकदम सीधी हो गईं और उसने अपने चूतड़ों को बिस्तर से ऊपर उठा कर राजू के लण्ड पर अपनी चूत को ज़ोर से दबा दिया।

‘राजू रुक जा बेटा.. ओह।’

कहते हुए एक बार फिर चमेली की कमर झटके खाने लगी।

चमेली झड़ गई थी, उसकी चूत जो इतने दिनों बाद चुदी थी..

राजू के मोटे लण्ड के जबरदस्त धक्कों को ज्यादा देर ना झेल पाई और उसकी चूत से कामरस की नदी बह निकली।

जैसे ही चमेली की कमर ने एक और झटका खाया.. राजू का लण्ड फिसल कर चमेली की चूत से बाहर आ गया और चमेली की चूत से पेशाब की धार छूट पड़ी, जो सीधा जाकर राजू की छाती पर गिरने लगी।

चमेली की आँखें मस्ती में एक बार फिर बंद हो गईं।

‘ओह्ह यह क्या किया काकी.. हटिए..’ राजू चिल्लाता हुआ खड़ा हो गया।

गनीमत यह थी कि चमेली बिस्तर के किनारे लेटी हुई थी और मूत की धार नीचे कच्चे फर्श पर गिर रही थी।

राजू चमेली को यूँ लेटे हुए देख रहा था.. और उसकी चूत से मूत की धार निकल कर नीचे गिर रही थी.. यह देख राजू का लण्ड और अकड़ गया।

पेशाब करने के बाद चमेली ने अपने चूतड़ों को नीचे टिका लिया और अपनी मदहोशी से भरी आँखें खोल कर राजू के तरफ देखा।

चमेली- ओह्ह.. राजू मुझे नहीं मालूम था कि तुम्हारा ये मोटा लण्ड मेरा मूत निकाल देगा। कसम से आज तक चूत में इतना बड़ा लण्ड नहीं लिया।

राजू उदास मन से एक ओर खड़ा हुआ चमेली की तरफ देखते हुए- पर काकी अभी तो मेरा हुआ ही नहीं!

चमेली के होंठों पर संतुष्टि से भरी मुस्कान फैली हुई थी- तो मैं कब तुम्हें मना कर रही हूँ, आज से ये फुद्दी तेरे ही मेरे राजा.. चल इधर आ मुँह लटका कर क्यों खड़ा है?

राजू चमेली के पास जाकर बिस्तर पर खड़ा हो गया, चमेली नीचे अपने चूतड़ों के बल बैठी हुई थी, उसने तकिए को उठा कर अपने चूतड़ों के नीचे रखा और राजू के लण्ड को मुठ्ठी में भर कर गौर से देखने लगी।

‘हाय राम.. यह तो सच में बहुत बड़ा है.. इसलिए तो मेरी चूत से मूत निकाल दिया तेरे लण्ड ने…’ फिर चमेली ने राजू के लण्ड को मुठ्ठी में भर कर तेज़ी से हिलाना शुरू कर दिया।

‘आह.. काकी धीरे ओह्ह.. काकी धीरे करो ना!’ चमेली ने मुस्कुराते हुए राजू के लण्ड के सुपारे को अपनी उँगलियों के बीच में लेकर ज़ोर से मसल दिया।

राजू एकदम सिसकते हुए चिल्ला उठा।

चमेली राजू के लण्ड को तेज़ी से हिलाते हुए- क्यों रे.. अब मैं क्यों रुकूँ.. जब मैंने तुम्हें रुकने के लिए कहा था, तब तो तूने मेरी एक भी नहीं सुनी.. बोल मारेगा अपनी काकी के फुद्दी..हाँ…

राजू- हाँ काकी.. पहले मेरा लण्ड तो छोड़ो।

राजू की बात सुन कर चमेली ने राजू का लण्ड छोड़ दिया।

फिर वो दूसरी तरफ पलट गई और कुतिया के जैसी अवस्था में आ गई।

‘ये चोद अपनी काकी की फुद्दी.. बेटा देख मैं तेरे लिए कुतिया की तरह अपनी चूत फैला कर कुतिया बनी हुई हूँ। अब डाल दे अपना मूसल सा लण्ड मेरी चूत में..।’

राजू का लण्ड एक बार फिर से पूरे उफान पर था।

राजू चमेली के पीछे आकर घुटनों के बल बैठ गया।

चमेली आगे से नीचे की ओर झुक गई और उसने अपनी गाण्ड को जितना हो सकता था ऊपर उठा लिया, जिससे चमेली की चूत का छेद बिल्कुल राजू के लण्ड की सीध में आ गया।

राजू ने एक हाथ से अपने लण्ड को पकड़ा और एक हाथ से चमेली की झाँटों भरी चूत की फांकों को पकड़ कर पेलने की कोशिश करने लगा।

ये देख चमेली भी अपना एक हाथ पीछे ले आई और अपनी चूत की फांकों को एक तरफ से फैला दिया और दूसरी तरफ से राजू ने जोर लगाया।
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#11
भाग - 11


अब राजू को चमेली की चूत का गुलाबी छेद बिल्कुल साफ़ दिखाई दे रहा था।

राजू ने अपने लण्ड के सुपारे को चमेली की चूत के छेद पर टिका कर उसकी कमर को दोनों तरफ से पकड़ कर धीरे-धीरे अपने लण्ड के सुपारे को अन्दर पेलना शुरू किया।

चमेली की आंखें फिर से मस्ती में बंद हो गईं।

राजू के लण्ड के गरम सुपारे ने एक बार फिर चमेली की चूत की दीवारों को रगड़ कर उसे गरम कर दिया।

‘ऊंह हाआअँ.. बेटा बहुत अच्छे बेटा हाआआं और घुसाओ… उफ़फ्फ़ ऊंह..’

ये कहते हुए चमेली ने अपनी चूतड़ों को पीछे की तरफ धकेला।

राजू का लण्ड चमेली की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ आधे से ज्यादा अन्दर घुस गया।

‘सुन बेटा तेरा लण्ड बहुत मोटा है.. पर तुझे अपनी काकी पर तरस खाने के कोई ज़रूरत नहीं है… चोद मुझे कुतिया की तरह.. रगड़ कर चोद.. ज़ोर-ज़ोर से पेल अपना लण्ड.. मेरी फुद्दी में.. तेरे मोटे लण्ड को चूत में लेने के लिए मैं कुछ भी सह लूँगी..’

राजू ने चमेली के दोनों चूतड़ों को फैला कर अपनी कमर को थोड़ा सा पीछे किया और फिर साँस रोक कर जोरदार धक्का मारा।

राजू का लण्ड चमेली की चूत की दीवारों को बुरी तरह फ़ैलाता हुआ एक ही बार में पूरा अन्दर घुस गया।

चमेली- ओह.. राजू मार दिया रे हरामी.. सालेए.. उफफफ्फ़ फाड़ दी मेरी चूत… ओह्ह..

राजू- तूने ही तो बोला था काकी.. कि कस-कस के चोदूँ।

चमेली- हाँ बोला था.. हरामी साले.. पर तेरा ये मोटा लण्ड उफफफ्फ़.. अब रुक क्यों गया है?

राजू ने मुस्कुराते हुए चमेली के चूतड़ों को दबोच कर एक के बाद एक जोरदार धक्के लगाने चालू कर दिए, राजू की जाँघें बार-बार चमेली के चूतड़ों से टकरा कर आवाज़ कर रही थीं।

चमेली इस कदर मस्त हो गई कि उससे ये भी ध्यान नहीं रहा कि उसकी उँची हो रही कामुक सिसकारियों को कोई भी सुन सकता है।

चमेली- हाँ चोद बेटा.. ओह… चोद अपनी काकीईईईईई की फुद्दी फाड़ दे.. ओह्ह आह्ह.. ह आह ओह धीरे.. ज़ोर से.. ओह..

राजू अपना लण्ड चमेली की चूत में जड़ तक पेलते हुए- क्या काकी कभी कहती हो धीरे. और कभी कहती हो ज़ोर से फुद्दी मारूं.. एक बात बोलो..

चमेली- आह्ह.. ह.. बेटा तुम मेरी बात मत सुनो.. ओह बस अपने इस मूसल छाप लण्ड से मेरीईई चूततत फाड़ देए ओह्ह..

राजू की मस्ती का कोई ठिकाना नहीं था।

उसने आगे झुक कर चमेली की चूचियों को अपने हाथों में दबोच लिया और उनको अपनी तरफ खींचते हुए ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा।
चमेली की चूत एक बार फिर झड़ने के कगार पर थी।

उसने भी अपनी गाण्ड को पीछे की तरफ उछालना शुरू कर दिया।

‘ओह बेटा बस थोड़ी देर और ओह… मेरा होने वाला है।’

राजू अब होश खो बैठा था और अपने आँखें बंद किए हुए, तेज़ी से धक्के लगा रहा था।

‘काकी ओह.. मेरा भी होने वाला है…ओह्ह काकी।’

और फिर जैसे राजू के लण्ड से वीर्य का सैलाब निकल कर चमेली की चूत की दीवारों को भिगोने लगा।

राजू के वीर्य को अपनी चूत की दीवारों पर महसूस करते ही चमेली ने भी अपनी गाण्ड को तेज़ी से राजू के लण्ड पर पटकना चालू कर दिया।

चमेली- रुक जाआअ बेटा.. बस तेरी ये काकी की फुद्दी भी रसधार बहाने वाली है… ओह आह आह आह्ह..

फिर चमेली भी शांत पड़ गई और आगे के तरफ लुढ़क गई।

राजू का लण्ड जो की बिल्कुल सना हुआ था.. चमेली की चूत से बाहर आ गया।

चमेली की चूत से कुछ वीर्य निकल कर बाहर बिस्तर पर गिर गया।

चमेली पेट के बल लेट गई, उसकी आँखें मस्ती में बन्द थीं और होंठों पर मुस्कान फैली हुई थी।

चमेली आँखें बंद किए हुए- तूने तो कमाल कर दिया छोरे… एक ही बार में दो बार मेरी चूत का पानी निकाल दिया.. तेरे इस लण्ड ने मेरी चूत को खोद-खोद कर झाड़ दिया।

राजू- काकी आप कहो, तो एक बार और निकाल देता हूँ।

चमेली- नहीं आज इतना बहुत है..बहुत देर रही है। अब सेठ के घर भी जाना है, चल जल्दी कर कपड़े पहन ले, कहीं रज्जो ना आ जाए।

चमेली की बात सुन कर राजू अपना पज़ामा पहनने लगा, चमेली ने भी अपने कपड़े पहने और बिस्तर को ठीक करके रख दिया।

उसके बाद दोनों सेठ के घर आ गए।

अभी दोपहर के 12 बज रहे थे.. जब दोनों सेठ के घर पहुँचे तो पता चला कि सेठ गेंदामल घर पर था।

वो उसकी नई पत्नी सीमा और दीपा तीनों कहीं जाने के लिए तैयार थे।

कुसुम ने चमेली को बताया कि गेंदामल सीमा को लेकर एक-दो दिन के लिए उसके मायके जा रहा था और साथ में दीपा भी जा रही है।

कुसुम इस बात से बहुत खुश थी।

अब घर पर सिर्फ़ चमेली और राजू ही उसके साथ थे।

बाहर तांगे वाला खड़ा था, तीनों उस पर सवार होकर शहर स्टेशन की ओर निकल लिए।

चमेली को अब सिर्फ़ अपने राजू और कुसुम के लिए ही खाना बनाना था।

आज चमेली के चेहरा खिला हुआ था।

जो बयान कर रहा था कि कुछ समय पहले उसकी ज़बरदस्त चुदाई हुई है, इस बात का अंदाज़ा कुसुम मन ही मन लगा रही थी, क्योंकि दोनों काफ़ी देर से गायब थे।

खाना खाने के बाद राजू अपने कमरे में चला गया।

अब उसे भी कोई काम नहीं था।

रज्जो भी खाना खा कर घर जा चुकी थी।

चमेली ने बर्तन साफ़ किए और घर जाने के निकली, उसे आज बहुत मीठी-मीठी नींद आ रही थी, पर उसे कुसुम ने आवाज़ लगा कर रोक लिया।

‘अए सुन तो चमेली.. कहाँ थी इतनी देर.. उस छोरे के साथ?’

कुसुम ने ज़रा कड़क आवाज़ में पूछा।

चमेली ने हड़बड़ाते हुए कहा- वो मालिकन.. नहाने नदी पर गई थी।

कुसुम- अच्छा.. आज-कल नदी पर बहुत जा रही हो तुम.. वैसे मुझे लगता है कि आज तुम कुछ और नहाई हो, देख कैसे बाल बिखरे हुए हैं तेरे…

चमेली कुसुम की बात सुन कर एकदम से सकपका गई- वो क्या था ना दीदी.. आज बहुत सर्दी थी, जिसकी वजह से नहीं नहाया।

कुसुम- तो फिर तेरे को इतने देर कैसे लगी?

चमेली- वो दीदी वो वहाँ कपड़े धोने के कारण देर हो गई।

कुसुम को चमेली की बातों से शक तो हो रहा था पर उससे पूरा यकीन नहीं था।

‘अच्छा चल ठीक है.. चल मेरे कमरे में आज बहुत खुजली हो रही है.. ज़रा मालिश तो कर दे।’

चमेली- दीदी आज… पर दीदी मुझे घर पर बहुत काम है।

चमेली का मन अब कुछ भी करने को नहीं था।

कुसुम- चलती है कि नहीं.. कि दूँ.. दो कान के नीचे..!

चमेली फिर चुपचाप कुसुम के कमरे में आ गई।

कुसुम ने अपने कमरे को अन्दर से बंद किया और अपने कपड़े निकालने लगी।

‘दीदी शाम को अच्छे से कर दूँगी.. अभी मेरे तबियत ठीक नहीं है।’

चमेली ने मुँह बनाते हुए कहा।

‘क्यों क्या हुआ तेरे को? चल इधर आ तेरी तबियत आज मैं हरी कर देती हूँ।’

यह कह कर कुसुम ने चमेली को धक्का देकर बिस्तर पर गिरा दिया और उसके लहँगे को एक झटके में उसकी कमर तक चढ़ा दिया।

‘हाय दीदी.. क्या कर रही हैं आप?’ चमेली ने खीजते हुए कुसुम से पूछा, पर कुसुम ने बिना कुछ बोले.. अपनी ऊँगली को चमेली की चूत में पेल दिया।

कुसुम की ऊँगली चमेली की गीली चूत में फिसलती हुई अन्दर चली गई।

‘आह दीदी ये ईए.. ओह…’

कुसुम ने दो-चार बार अपनी ऊँगली चमेली की चूत के अन्दर-बाहर की और फिर अपनी ऊँगली निकाल कर देखने लगी।

उसकी ऊँगली चमेली की चूत और राजू के कामरस से भीगी हुई थी, कुसुम का शक और बढ़ गया।

कुसुम- ये क्या है.. रांड.. बोल क्या किया तूने उस छोरे के साथ? उसका लण्ड अपनी चूत में लेकर अब तेरा भोसड़ा ठंड हो गया हो गया ना?

चमेली- ये.. ये.. क्या कह रही हैं दीदी आप.. वो तो मेरे बेटे की उम्र का है।
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#12
भाग - 12

कुसुम- हाँ जानती हूँ मैं तुझे साली.. ज़रूर बेटा.. बेटा.. कह कर उसके लण्ड पर उछल रही होगी.. बोल.. नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

चमेली- दीदी वो वो..

इससे पहले कि चमेली कुछ बोलती, कुसुम अपनी दो उँगलियों को चमेली की चूत में पेल कर अपने अंगूठे से उसकी चूत के दाने को ज़ोर से मसल दिया। चमेली एकदम से सिसया उठी और अपनी कमर को उछालने लगी।

कुसुम- देख साली कैसे अपनी गाण्ड उछाल रही है। ऐसे ही अपने गाण्ड उछाल-उछाल कर चुदवाई होगी ना तुम उस लौंडे से?

चमेली- दीदी ग़लती हो गई.. माफ़ कर दो, उसने मुझे संभलने का मौका ही नहीं दिया।

कुसुम- क्या उसने.. या तूने उसे मौका नहीं दिया.. जा री.. तेरी फुद्दी उसके लण्ड को देख कर लार टपकाने लगी होगी.. बोल साली.. मज़ा लेकर आई है ना.. जवान लण्ड का?

चमेली- अब बस भी करो दीदी.. कहा ना ग़लती हो गई.. आइन्दा ऐसा नहीं होगा।

कुसुम- चल साली जा अब.. आगे से उस छोरे से दूर रहना.. समझी।

चमेली बिस्तर से खड़ी हुई और कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर निकल गई।

चमेली तो चली गई, पर कुसुम की चूत में चमेली की चुदाई की बात सुन कर आग लग चुकी थी।

चमेली के जाने के बाद कुसुम ने अपने कमरे का दरवाजा बंद किया और अपने सारे कपड़े उतार कर बिस्तर पर लेट गई और अपनी चूत को मसलने लगी।

कुसुम अपनी चूत को मसलते हुए अपनी चूत की आग को ठंडा करने के कोशिश कर रही थी, पर कुसुम जैसे गरम औरत को भला उसकी पतली सी ऊँगलियाँ कैसे ठंडा कर सकती थीं।

फिर अचानक से कुसुम के दिमाग़ में कुछ आया और वो उठ कर बैठ गई।

‘अगर वो साली छिनाल उस जवान लौंडे का लण्ड अपनी बुर में ले सकती है तो मैं क्यों अपनी उँगलियों से अपनी चूत की आग बुझाने की कोशिश करूँ… चाहे कुछ भी हो जाए..आज उसे नए लौंडे का लण्ड अपनी चूत में पिलवा कर ही रहूँगी।’

यह सोचते ही चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और वो उठ कर अपनी साड़ी पहनने लगी।

साड़ी पहनने के बाद वो अपने कमरे से बाहर आकर घर के पीछे की ओर चली गई।

राजू बाहर ही चारपाई पर लेटा हुआ था और सुनहरी धूप का आनन्द ले रहा था।

कुसुम के कदमों की आवाज़ सुन कर वो उठ कर खड़ा हो गया और कुसुम की तरफ देखने लगा।

‘आराम कर रहे हो… लगता है आज बहुत थक गए हो तुम?’

कुसुम ने मुस्कुराते हुए राजू से कहा।

‘जी नहीं.. वो कुछ काम नहीं था, इसलिए लेट गया।’

कुसुम- अच्छी बात है, आज तुम आराम कर लो अभी.. क्योंकि रात को तुझे मेरी मालिश करनी है… समझे… थोड़ा वक्त लगेगा आज…

राजू सर झुकाए हुए- जी।

कुसुम पलट कर जाने लगी, वो अपनी गाण्ड आज कुछ ज्यादा ही मटका कर चल रही थी, जैसे वो घर के आगे की तरफ पहुँची, तो मुख्य दरवाजा पर किसी के आने के दस्तक हुई।

कुसुम ने जाकर दरवाजा खोला, तो कुसुम के चेहरे का रंग उड़ गया। सामने गेंदामल की चाची खड़ी थीं, जो उसी गाँव में रहती थीं- और सुना बहू कैसी हो?

गेंदामल के चाची ने अन्दर आते हुए कुसुम से पूछा।

गेंदामल की चाची का नाम कान्ति देवी था।

कान्ति देवी शुरू से ही गरम मिजाज़ की औरत थी। भले ही अपनी जवानी में उसने बहुत गुल खिलाए थे, पर अब 65 साल की हो चुकी कान्ति देवी अपनी बहुओं पर कड़ी नज़र रखती थी।

आप कह सकते हैं कि उसे डर था कि जवानी में जो गुल उसने खिलाए थे, वो उसकी बहुएँ ना कर सकें।

कान्ति देवी को देख कुसुम का मुँह थोड़ा सा लटक गया, पर फिर भी होंठों पर बनावटी मुस्कान लाकर कान्ति देवी के पैरों को हाथ लगाते हुए बोली- मैं ठीक हूँ चाची जी.. आप सुनाइए आप कैसी हैं?

कान्ति अन्दर के ओर बढ़ते हुए- ठीक हूँ बहू.. अब तो जितने दिन निकल जाएँ… वही जिंदगी, बाकी कल का क्या भरोसा। कल इस बुढ़िया की आँख खुले या ना खुले।

कुसुम- क्या चाची.. अभी आपकी उम्र ही क्या है.. अभी तो आप अच्छे-भले चल-फिर रही हो।

कुसुम चाची को अपने कमरे में ले गई, कान्ति कुसुम के बिस्तर पर पालती मार कर बैठ गई- वो गेन्दा कह गया था मुझसे कि आज रात तुम अकेली होगी.. इसलिए मैं तुम्हारे पास सो जाऊँ, इसलिए चली आई।

कुसुम भले ही अपने मन ही मन बुढ़िया को कोस रही थी, पर वो उसके सामने कुछ बोल भी तो नहीं सकती थी।

‘यह तो आपने बहुत अच्छा किया चाची… और वैसे भी आप हमें कब सेवा करने का मौका देती हो.. अच्छा किया जो आप यहाँ आ गईं।’

कान्ति- अब क्या बताऊँ बहू.. मुझे तो मेरी बहुएँ कहीं जाने ही नहीं देती, बस आज निकल कर आ गई।

कुसुम- अच्छा किया चाची जी आपने।

शाम ढल चुकी थी और कुसुम का मन बेचैन हो रहा था। वो जान चुकी थी कि आज फिर उसकी चूत को तरसना पड़ेगा।

चमेली सेठ के घर से आ चुकी थी और खाना बनाने में लगी हुई थी और राजू भी घर के छोटे-मोटे कामों में लगा हुआ था।

राजू अपना काम निपटा कर पीछे अपने कमरे में चला गया।

चमेली की बेटी रज्जो भी आ गई, चमेली ने कुसुम और कान्ति को खाना दिया।

कुसुम और कान्ति देवी बाहर आँगन में बैठ कर खाना खा रही थीं।

चमेली ने उन दोनों को खाना देने के बाद राजू के लिए खाना परोसा और पीछे की तरफ जाने लगी।

कुसुम चमेली को पीछे के तरफ जाता देख कर- अए, कहाँ जा रही है?

चमेली कुसुम की कड़क आवाज़ सुन कर घबराते हुए- जी वो राजू को खाना देने जा रही थी।

कुसुम- तुम रुको.. ये थाली रज्जो को दे.. वो खाना दे आती है, तू जाकर ये पानी गरम कर ला… इतना ठंडा पानी दिया है.. क्या हमारा गला खराब करेगी।

कुसुम की बात सुन कर चमेली का मुँह लटक गया, उसने रज्जो को खाना दिया और राजू को देकर आने के लिए बोला और खुद मुँह में बड़बड़ाती हुई रसोई में चली गई।

रज्जो बहुत ही चंचल स्वभाव की थी, वो राजू को घर के पीछे बने उसके कमरे में खाना देने के लिए गई और अपने चंचल स्वभाव के चलते वो सीधा बिना किसी चेतावनी के अन्दर जा घुसी।

अन्दर का नज़ारा देख कर जैसे रज्जो को सांप सूंघ गया हो, अन्दर राजू पलंग पर लेटा हुआ था।

उसका पजामा, उसके पैरों में अटका हुआ था और वो अपने लण्ड को हाथ में लिए हुए तेज़ी से मुठ्ठ मार रहा था, उसके दिमाग़ में सुबह की चुदाई के सीन घूम रहे थे।

रज्जो की तो जैसे आवाज़ ही गुम हो गई हो।

राजू बिस्तर पर लेटा हुआ अपने 8 इंच लंबे और 3 इंच मोटे लण्ड को तेज़ी से हिला रहा था और रज्जो राजू के मूसल लण्ड को आँखें फाड़े हुए देखे जा रही थी।

राजू इससे बेख़बर था कि उसके कमरे में कोई है।

रज्जो आज अपनी जिंदगी में दूसरी बार किसी लड़के का लण्ड देख रही थी।

पहली बार उसने लण्ड तब देखा था, जब उसका बाप उसकी माँ की चुदाई कर रहा था और चमेली अपनी गाण्ड को उछाल-उछाल कर अपने पति का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी।

बस फर्क इतना था कि उसके बाप का लण्ड राजू के लण्ड से आधा भी नहीं था।

अपनी माँ की कामुक सिसकारियाँ सुन कर उससे उसी दिन पता चल गया था कि जब औरत की चुदाई होती है, तो औरत को कितना मजा आता है, बाकी रही-सही कसर उसकी सहेलियों ने पूरी कर दी थी।

जिसमें से कुछ उससे दो-तीन साल बड़ी थीं और उनकी शादी हो चुकी थी।

रज्जो अक्सर उनकी चुदाई के किस्से सुन चुकी थी, पर आज राजू के विशाल लण्ड को देख कर उसकी चूत में एक बार फिर सरसराहट होने लगी।
रज्जो अक्सर अपनी सहेलयों से यह भी सुन चुकी थी कि लण्ड जितना बड़ा हो, उतना ही मज़ा आता है।

उसकी सहेलियाँ अकसर अपने पति के लण्ड के बारे में बात करती रहती थीं, जो अक्सर उसकी चूत में भी आग लगाए रखती थी।

यहाँ तो राजू का विशाल लण्ड उसकी आँखों के ठीक सामने था.. उसके हाथ-पैर अंजान सी खुमारी के कारण काँपने लगे।
जिसके चलते उसके हाथ में पकड़ी हुई थाली में हलचल हुई और राजू की आँखें खुल गईं।

राजू हड़बड़ा कर खड़ा हो गया, उसने देखा सामने रज्जो हाथ में खाने की थाली लिए खड़ी उसके लण्ड की तरफ आँखें फाड़े देख रही है।

जैसे ही दोनों के नज़रें मिलीं, रज्जो ने नज़रें झुका लीं और थाली को नीचे रख कर तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गई।

राजू को समझ में ही नहीं आया कि आख़िर ये सब कैसे हो गया, पर अब वो कर भी क्या सकता था, उसने अपने पजामे को ऊपर करके बांधा और बाहर जाकर हाथ धोने के बाद आकर खाना खाने लगा।

खाना खाने के बाद राजू अपने झूटे बर्तन लेकर घर के आगे आ गया।

कान्ति खाना खाने के बाद कुसुम के कमरे में चली गई थी.. पर कुसुम अभी भी आँगन में लगे बड़े से पलंग पर बैठी हुई थी।

चमेली और रज्जो नीचे चटाई पर बैठे खाना खा रहे थे।

राजू ने अपने झूठे बर्तन रसोई में रख दिए और वापिस घर के पिछवाड़े की तरफ जाने लगा, पर कुसुम ने उसे रास्ते में ही आवाज़ दे कर रोक दिया और अपने पास बुला लिया।
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#13
भाग - 13

कुसुम- राजू सुन ज़रा मेरे पैर तो दबा दे, बहुत दर्द हो रहे हैं।

यह कह कर कुसुम उठ कर एक कुर्सी पर बैठ गई और अपनी साड़ी को घुटनों से ऊपर करके, एक टाँग उठा कर सामने पलंग पर रख दी, ताकि उसकी चूत राजू को दिखाई दे सके।

चमेली ये सब सामने बैठी देख रही थी।

‘साली छिनाल अब अपना भोसड़ा खोल कर बैठ गई है.. छोरे के सामने..’ चमेली ने मन ही मन कुसुम को कोसा, इसके अलावा और वो कर भी क्या सकती थी।

राजू नीचे बैठ कर उसका एक पैर दबाने लगा।
उसका ध्यान भी कुसुम के पेटीकोट के अन्दर ही था।

चमेली अपने मन में राजू को भी गाली देती है- यह भी उसी की चूत देख रहा है.. साले मादरचोद इन सब मर्दों की एक ही जात होती है.. कुत्ते जहाँ चूत देखी, वहीं चाटना शुरू कर देते हैं।

खैर.. चमेली अब कुसुम के सामने तो कुछ बोल नहीं सकती थी, इसलिए वो खाना खाकर अपनी बेटी रज्जो के साथ चली गई और राजू भी अपने कमरे में जा कर सो गया।

आज रात फिर कुसुम की चूत को लण्ड के लिए और तड़पना था।

अगली सुबह जब नाश्ते के बाद जब चमेली अपने घर जा चुकी थी तो राजू को कुसुम ने बाजार से कुछ सामान लाने के लिए कहा।

जब वो सामान लाने के लिए घर से निकला, तो उसे चमेली नदी की तरफ जाते हुए नज़र आई।

दोनों ने एक-दूसरे के तरफ देखा, पर चमेली ने नखरा करते हुए अपना मुँह दूसरी तरफ मोड़ लिया।
जिस पर राजू को थोड़ी हैरानी तो ज़रूर हुई, पर वो बिना कुछ बोले चमेली के पीछे चल पड़ा।

वो चमेली से कुछ फासला बना कर चल रहा था।

चमेली जानती थी कि राजू उसके पीछे आ रहा है, पर उसने जानबूझ कर उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया।

कुछ ही देर में चमेली नदी के घाट पर पहुँच गई, यहाँ पर वो नहाती थी..

पर आज चमेली वहाँ नहीं रुकी और नदी के साथ आगे बढ़ने लगी।

राजू को कुछ समझ में नहीं आया, वो भाग कर चमेली के पास गया- काकी ओ काकी.. सुनो तो.. कहाँ जा रही हो?

चमेली ने राजू की तरफ देखते हुए कहा- क्यों तुम्हें क्या.. कहीं भी जाऊँ?

चमेली फिर से आगे चल पढ़ी और राजू भी चमेली के पीछे चल पड़ा।

जैसे-जैसे दोनों आगे बढ़ रहे थे, रास्ता और सुनसान होता जा रहा था।

चारों तरफ ऊँची-ऊँची झाड़ियाँ बढ़ने लगीं, गाँव बहुत पीछे रह गया था।
आगे जंगल शुरू हो गया था।
काफ़ी दूर चलने के बाद चमेली एक घाट पर रुकी और अपने साथ लाए हुए कपड़े की गठरी को नीचे रख कर अपनी चोली खोलने लगी।
राजू यह सब पीछे खड़ा देख रहा था।

‘क्यों रे क्या देख रहा है, मेरे पीछे क्यों आ गया.. जा तेरी मालकिन तुझे ढूँढती होंगी।’

राजू- वो उन्होंने सामान लाने के लिए भेजा था।

चमेली- तो जा फिर.. सामान खरीद, यहाँ कौन सी दुकान खुली है।

राजू- आप नाराज़ हो मुझसे?

चमेली- मैं भला कौन होती हूँ तुमसे नाराज़ होने वाली।

राजू- तो फिर काकी आप ऐसे क्यों बात कर रही हो?

चमेली- अच्छा जा.. अब अपना काम कर, मुझे परेशान मत कर।

राजू का चेहरा चमेली के बात सुन कर उतर गया और वहीं घास पर नीचे बैठ गया।

चमेली ने अपनी चोली उतार कर अपने लहँगे को अपनी चूचियों पर बाँध लिया और नदी में उतर गई।

वो कनखियों से राजू की तरफ देख कर मन ही मन मुस्करा रही थी।
राजू नदी के किनारे बैठा चमेली को देख रहा था, चमेली का लहंगा गीला होकर चमेली के बदन से चिपक गया था।

राजू का लण्ड अकड़ने लगा, पर आज लगता है कि राजू को भी चूत के लिए तरसना पड़ सकता है।

नहाने के बाद चमेली नदी से बाहर निकली और राजू के पीछे जाकर अपने साथ लाया हुआ दूसरे लहँगे को उठा कर गीले लहँगे को उतार दिया।

राजू ने पीछे की तरफ नहीं देखा, वो तो बस मुँह लटकाए बैठा हुआ था।

उसके बाद उसने दूसरे लहँगे को भी ऊपर करके अपनी चूचियों पर बाँध लिया और फिर गीले लहँगे को लेकर नदी के सीढ़ियों पर बैठ कर अपने उतारे हुए कपड़े धोने लगी।

सुनहरी धूप चारों तरफ फैली हुई थी, राजू पीछे बैठा चमेली को देख रहा था।

जब चमेली कपड़ों को रगड़ने के लिए आगे की ओर झुकती, तो चमेली का लहंगा जो कि उसकी चूचियों पर बँधा हुआ था, उसके चूतड़ों से ऊपर उठ जाता और चमेली के भारी चूतड़ों का दीदार राजू को हो जाता।

बेचारे को क्या पता था कि वो दो चूत की आग के बीच में झुलस रहा है, जो कल से एक-दूसरे के हर पैंतरे को नाकामयाब करने के कोशिश कर रही थी।

अब राजू के बर्दाश्त से बाहर हो जा रहा था, चमेली जानबूझ कर अपने पैरों के बल बैठी हुई, बार-बार अपनी गाण्ड को ऊपर उठा लेती और पीछे बैठे राजू को चमेली के गाण्ड और झाँटों से भरी चूत की झलक पागल कर देती।

राजू का लण्ड अब उसके पजामे में पूरी तरह तना हुआ था।

चमेली ने अपने कपड़े धोए और उठ कर अपने कपड़े उठाने के लिए झुकी- आह्ह.. क्या क्या कर रहा है छोरे, यहाँ कोई देख लेगा.. हट जा अपनी मालकिन के पाँव दबा..

चमेली ने राजू को दूर धकेल दिया और अपने कपड़ों को घास पर डाल कर झाड़ियों के अन्दर जाने लगी।

यह देख राजू भी उसके पीछे चला गया।

‘क्या है.. अब आराम से मूतने भी नहीं देगा क्या.. पीछे क्यों आ रहा है?’
चमेली ने जानबूझ कर गुस्सा दिखाते हुए कहा।

राजू- पर काकी हुआ क्या है, मुझसे कोई ग़लती हो गई क्या?

चमेली ने राजू की बात का कोई जवाब नहीं दिया और थोड़ा आगे जाकर अपने लहँगे को अपनी कमर तक उठा कर पेशाब करने के लिए बैठ गई।

चमेली राजू से कुछ दूरी पर बैठी मूत रही थी और अब राजू के लिए रुक पाना नामुमकिन था, वो आगे बढ़ा और चमेली के पास जाकर नीचे बैठ गया।

चमेली के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई- देखा, कैसे कुत्ते की तरह चूत को सूँघता हुआ पीछे बैठ गया है..
चमेली ने अपने मन में सोचा, उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फैली हुई थी जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो।

तभी अचानक राजू ने चमेली के चूतड़ों के नीचे से ले जाकर चमेली की चूत को अपनी मुट्ठी में भर कर ज़ोर से मसल दिया।
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#14
भाग - 14

चमेली एकदम से सिसक उठी।
पेशाब तो वो कर चुकी थी, बस अपनी गाण्ड और चूत दिखा कर राजू को तड़फा रही थी.

‘उफफ्फ़ हट हरामीई ओह.. राजू बेटा.. ये जगह ठीक नहीं है ओह राजू..’

इससे पहले कि चमेली कुछ और बोल पाती, राजू ने अपनी दो उँगलियों को एक साथ चमेली की चूत में पेल दिया।

चमेली बुरी तरह छटपटाते हुए खड़ी हो गई, पर राजू अपनी उँगलियों को तेज़ी से चमेली की चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।

राजू भी खड़ा हो गया और एक हाथ से चमेली के गदराए हुए पेट को पकड़ कर दूसरे हाथ को पीछे से उसकी चूत में डाल कर उँगलियों को अन्दर-बाहर कर रहा था।

चमेली राजू छूटने की कोशिश कर रही थी, जिससे वो आगे की ओर झुकने लगी और उसकी गाण्ड पीछे से और बाहर को आ गई।

चमेली- ओह्ह.. रुक जा रे छोरे.. क्या कर रहा हाईईईई ओह माआआ रुक आह्ह.. आह्ह… सुन नाअ.. चल घर चलते हैं.. यहाँ कोई देख लेगा बेटा।

राजू चमेली की बात सुन कर खुश हो गया और उसने चमेली की चूत में से अपनी ऊँगलियाँ निकाल लीं।

जैसे ही चमेली राजू के गिरफ़्त से बाहर हुई, वो हँसती हुई आगे भाग गई।

‘तू अब जा अपनी मालकिन के पैर दबा..’ चमेली ने हँसते हुए कहा और आगे बढ़ने लगी।

राजू का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा.. और तेज़ी से भाग कर चमेली को पीछे से पकड़ लिया।

राजू- ओह्ह.. तो अच्छा ये बात है, तुम्हें मालकिन से जलन हो रही है ना।

चमेली- जले मेरे जूती.. तू जा यहाँ से..

राजू ने चमेली को पीछे से बाँहों में भर लिया और उसके पेट को सहलाते हुए उसके पीठ पर अपने होंठों को रगड़ने लगा, चमेली के बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई, पर फिर भी अपने पर काबू करते हुए बोली- नहीं.. यहाँ नहीं.. तू जा अभी.. मुझे घर जाने दे, मुझे अभी बहुत काम हैं..

राजू- अब गुस्सा छोड़ो भी काकी.. मैं भी तो तुम्हारी तरह नौकर हूँ और उनकी बात ना आप टाल सकती हैं और ना ही मैं… इसमें मेरी क्या ग़लती है?

यह कहते हुए राजू के हाथ चमेली की चूचियों पर पहुँच चुके थे और उसने धीरे-धीरे चमेली की चूचियों को दबाना चालू कर दिया।

चमेली की आँखें मस्ती में धीरे-धीरे बंद होने लगीं।

राजू ने चमेली को अपनी तरफ घुमाया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला- अब और मत तड़पाओ काकी.. यह देखो मेरे लण्ड कैसे तेरी फुद्दी में जाने के लिए तरस रहा है..

यह कह कर राजू ने चमेली का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया और फिर राजू ने अपना हाथ चमेली के जाँघों के बीच घुसा दिया।

चमेली अपनी अधखुली मस्ती से भरी आँखों से राजू की तरफ देखते हुए बोली- अगर कोई आ गया तो?

राजू ने चमेली की चूत की फांकों में अपनी उँगलियों को फिराया और फिर चमेली की चूत के दाने को अपनी उँगलियों के नीचे दबा कर मसलना चालू कर दिया।

‘कोई नहीं आएगा काकी..’

चमेली छटपटाते हुए राजू से लिपट गई और राजू के लण्ड को पजामे के ऊपर से तेज़ी से हिलाने लगी।

राजू ने चमेली के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसना चालू कर दिया और चमेली ने राजू के पजामे का नाड़ा खोल दिया।

राजू का पजामा उसकी जाँघों में आकर अटक गया।

चमेली ने अपनी कामुक नज़रों से एक बार राजू के तने हुए 8 इंच लंबे लण्ड की ओर देखा और बोली- तेरा ये मूसल सा लौड़ा मेरे दिमाग़ पर ऐसा छाया हुआ है कि मैं तो इससे चाह कर भी भूल नहीं सकती।

राजू ने चमेली के आँखों में देखा और फिर से उसके होंठों पर होंठों को रख दिया।

चमेली ने अपनी आँखें बंद कर लीं..दोनों एक-दूसरे को पागलों की तरह चूम रहे थे।

राजू ने अपनी जीभ चमेली के होंठों में पेल दी और चमेली उसकी जीभ ऐसे चाटने लगी, जैसे कोई कुल्फी हो।

फिर अचानक चमेली ने अपने होंठों को राजू के होंठों से अलग किया और अपने लहँगे का नाड़ा खोल दिया, जो कि उसकी चूचियों पर बँधा हुआ था।

नाड़ा खुलते ही चमेली के पैरों मैं आ गिरा, चमेली ने उस लहँगे को उठाया और एक बड़े से पेड़ की तरफ बढ़ी और फिर उसने लहँगे को पेड़ के नीचे रख दिया और राजू को उसके ऊपर बैठने को कहा।

राजू भी अपना पज़ामा संभालते हुए उस पेड़ के नीचे आकर लहँगे के ऊपर बैठ गया।
उसने अपनी पीठ को पेड़ के तने से टिका लिया, उसने अपने पैरों को लंबा करके पहला रखा था।

चमेली उसके पैरों के दोनों तरफ टाँगें करके खड़ी हो गई और फिर नीचे बैठते हुए राजू के लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा कर धीरे-धीरे अपनी चूत को राजू के लण्ड के सुपारे के ऊपर दबाने लगी।

राजू के लण्ड का मोटा सुपारा चमेली की चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर जाने लगा।

चमेली अपनी चूत के छेद पर राजू के लण्ड के गरम सुपारे का अहसास पाते ही सिसयाने लगी- ओह सीईईईई.. राजू तू मुझे पागल बना कर छोड़ेगा ओह.. कितना मोटा है.. रे.. तेराअ…

जैसे ही सुपारा चमेली की चूत में घुसा.. राजू ने चमेली की कमर को दोनों तरफ से पकड़ कर नीचे की तरफ दबा दिया।

चमेली की गीली हो चुकी चूत में राजू का लण्ड फिसलता हुआ अन्दर जा घुसा।

‘ओह्ह छोरे.. क्या कर रहा है, ज़रा भी सबर नहीं है.. ओह मार दियाआ रेए… ओह रुक जा ओह आह्ह.. ओह!’

राजू नीचे से लगातार अपनी कमर को हिलाते हुए चमेली की चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा।
उसके लण्ड ने चमेली की चूत के छेद को बुरी तरह फैलाया हुआ था।
चमेली की आँखें मस्ती में बंद हो गई, राजू ने उसके ऊपर-नीचे हो रही चूचियों में से एक को मुँह में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा।
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#15
भाग - 15

चमेली- ओह राजू.. धीरे-धीरे अई बेटा.. ओह हाँ.. चूस ले.. बेटा मेरी चूची.. ओह राजू हाँ.. ऐसे मसल…ऊऊओ मेरी गाण्ड कूऊऊ सलिएईई सब के नज़रें इसी पर रहती हैं.. ओह.. बेटा चोद अपनी काकी को.. चोद डाल बेटा.. अपनी काकी की फुद्दीई ओह..

चमेली अपने पैरों के बल बैठ गई और राजू के कंधों को पकड़ कर पागलों की तरह अपनी गाण्ड को ऊपर-नीचे उछालने लगी, लण्ड तेज़ी से चमेली की चूत के अन्दर-बाहर हो रहा था।
चमेली की चूत से निकल रहे कामरस से राजू का लण्ड पूरी तरह भीग गया था, जिससे उसका लण्ड ‘फच-फच’ की आवाज़ करता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था।

राजू ने अब अपनी कमर हिलाना बंद कर दिया था और दोनों हाथों से चमेली के चूतड़ों को मसलते हुए, उसकी दोनों चूचियों को बारी-बारी से चूस रहा था।
खुले आसमान के नीचे चुदाई का जबरदस्त दौर चल रहा था।

चमेली- ओह्ह.. बेटा ले.. मजा आ रहा है नाआअ.. अपनी काकी की फुद्दी मार कर्ररर.. ओह बेटा ले चूस्स्स लेए जीईए भरररर तुन्न्न् मुझसे नाराज़ तो नहीं हाईईईईई ओह…

राजू- नहीं काकी मैं तुमसे नाराज़ नहीं हूँ।

चमेली ने राजू को ज़ोर से अपने बदन से चिपका लिया और राजू ने भी चमेली के चूतड़ों को फैला कर अपनी एक ऊँगली उसके गाण्ड के छेद में घुसा दी।

चमेली एकदम तड़फ उठी और होंठों पर कामुक मुस्कान लाकर बोली- क्या इरादा है.. तेरा..आँ.. मेरी गाण्ड में ऊँगली कर रहा है।

राजू इस पर कुछ नहीं बोला और धीरे-धीरे अपनी ऊँगली से उसकी गाण्ड के छेद को कुरदने लगा।

चमेली अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और पूरी रफ़्तार से अपनी गाण्ड उछाल-उछाल कर राजू का लण्ड अपनी फुद्दी में ले रही थी।

अब उसकी चूत में सरसराहट और बढ़ गई थी।

उसका पूरा बदन काँपने लगा और फिर चमेली का बदन एकदम से अकड़ गया और वो राजू के ऊपर पसर होकर लुड़क गई।

राजू के लण्ड ने भी लावा छोड़ दिया।

चमेली को चोदने के बाद राजू सामान लाने के शहर चला गया और चमेली अपने घर चली गई।

दूसरी तरफ कुसुम अपने कमरे में कान्ति देवी के साथ बैठी बातें कर रही थी।
ऊपर से तो भले ही वो कान्ति देवी के साथ हंस-हंस कर बातें कर रही थी, पर मन ही मन वो उससे गालियाँ दे रही थी।

‘और सुना बहू, नई दुल्हन लाने के बाद बेटा गेंदामल तेरी तरफ ध्यान देता है कि नहीं?’ कान्ति देवी ने बातों-बातों में कुसुम से पूछा। कुसुम बेचारा सा मुँह लेकर बैठ गई।

‘ये सारे मर्द ना.. एक ही जात के होते हैं.. पर तू फिकर ना कर, भगवान के घर देर है.. अंधेर नहीं..’

कुसुम ने उदास होते हुए कहा- पर मुझे तो लगता है भगवान ने मेरे लिए अंधेरा ही रखा है, अब तो वो मुझसे सीधे मुँह बात भी नहीं करते।

कान्ति- बोला ना.. सब मर्दों की एक ही जात होती है.. अपने अनुभव से बोल रही हूँ। कुछ दिन उसको नई चूत का चाव रहेगा, देखना बाद मैं सब ठीक हो जाएगा.. अच्छा चल मैं एक बार घर भी हो आती हूँ.. वहाँ की खबर भी ले लूँ।

उधर राजू बाज़ार से सामान खरीद कर वापिस गाँव आ चुका था।
अब दोपहर के 12 बज चुके थे।

जैसे ही राजू घर में दाखिल हुआ, वो सीधा कुसुम के कमरे में चला गया।
चमेली भी आ चुकी थी और खाना बना रही थी।

राजू ने कुसुम के कमरे में जाकर कहा- मालिकन सामान ले आया हूँ।

कुसुम- इतनी देर कहाँ लगा दी।

राजू- वो मालकिन ये जगह मेरे लिए नई है ना…इसलिए देर हो गई।

कुसुम- अच्छा ठीक है, जा रसोई में सामान रख दे और कुछ देर आराम कर ले।

राजू जैसे ही रसोई में जाने लगा।
कुसुम भी उसके साथ रसोई में आ गई।
वो किसी भी कीमत पर राजू और चमेली को एक पल के लिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी।

राजू सामान रख कर पीछे अपने कमरे में चला गया।

चमेली खाना बना कर अपना और अपनी बेटी का खाना साथ लेकर अपने घर वापिस चली गई।

अब कुसुम घर पर अकेली थी और राजू पीछे अपने कमरे में था।

भले ही कुसुम के पास ज्यादा समय नहीं था, पर कुसुम ये वक्त भी बर्बाद नहीं करना चाहती थी।
वो जानती थी कि चाची कान्ति किसी भी वक्त टपक सकती है।

कुसुम ने सबसे पहले मैं दरवाजा बंद किया और फिर घर के पीछे चली गई।

राजू के कमरे में पहुँच कर उसने देखा कि राजू अन्दर पलंग पर लेटा हुआ सो रहा था।

कुसुम ने एक बार उसे अपनी हसरत भरी आँखों से ऊपर से नीचे तक देखा, फिर उसके पास जाकर उसके सर पर हाथ फेरते हुए उसे आवाज़ दी।

राजू ने अपनी आँखें खोलीं, तो कुसुम को अपने ऊपर झुका हुआ पाकर वो एकदम से हड़बड़ा गया और उठ कर बैठ गया।

राजू- क्या हुआ मालकिन आप आप यहाँ?

कुसुम- उठो.. खाना तैयार है, आकर खाना खा ले।

कुसुम ने एक बार फिर से राजू के बालों में प्यार से हाथ फेरा और पलट कर बाहर चली गई।

राजू को ये सब कुछ अजीब सा लगा, पर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और उठ कर घर के आगे की तरफ आ गया।

पूरे घर मैं सन्नाटा छाया हुआ था, बस रसोई से बर्तन की आवाज़ आ रही थी।

राजू रसोई में गया, यहाँ पर कुसुम एक प्लेट मैं खाना डाल रही थी- आ गया तू.. चल बाहर जाकर बैठ.. मैं खाना लेकर आती हूँ।

राजू- रहने दीजिए ना मालकिन.. मैं खुद ले लेता हूँ।

कुसुम- हाँ मैं जानती हूँ, तू बड़ा होशियार है.. सब खुद ले लेता है।

राजू कुसुम के दोअर्थी बात सुन कर थोड़ा सा झेंप गया।

उसे भी शक हो गया कि हो ना हो कुसुम को उसके और चमेली के रंगरेलियों के खबर लग चुकी है।
वो चुपचाप बाहर आकर बैठ गया, थोड़ी देर बाद कुसुम रसोई से बाहर आई।

उसने अपनी साड़ी के पल्लू को कमर पर लपेट रखा था और उसकी 38 साइज़ की चूचियां उसके ब्लाउज में ऐसे तनी हुई थीं, जैसे हिमालय की चोटियाँ हों।
इस हालत में राजू के सामने आने मैं कुसुम को ज़रा भी झिझक महसूस नहीं हो रही थी।

कुसुम- अरे नीचे क्यों बैठ गया तू.. उठ ऊपर उस कुर्सी पर बैठ जा.. नीचे फर्श बहुत ठंडा है, सर्दी लग जाएगी।

राजू- नहीं मालकिन.. मैं यहीं ठीक हूँ।

कुसुम- अरे घबरा मत.. ऊपर बैठ जा.. घर पर कोई नहीं है।

राजू बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ गया, कुसुम ने उससे खाना दिया और खुद सामने पलंग पर जाकर बैठ गई।

राजू सर झुकाए हुए खाना खाने लगा, कुसुम उसकी तरफ देख कर ऐसे मुस्करा रही थी..जैसे शेरनी अपने शिकार होने वाले बकरे को देख कर खुश होती है।

राजू तो ऐसे सर झुकाए बैठा था, जैसे वहाँ और कोई हो ही ना।

कुसुम जानती थी कि इस उम्र के लड़कों को कैसे लाइन पर लिया जाता है।

वो पलंग पर लेट गई, उसने अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर पलंग के किनारे पर रख दिया और अपनी साड़ी और पेटीकोट को अपने घुटनों तक चढ़ा लिया, ताकि राजू उसकी चिकनी चूत का दीदार कर सके।

टाँगों के फैले होने के कारण साड़ी में इतनी खुली जगह बन गई थी कि सामने बैठे राजू को कुसुम की चूत साफ़ दिखाई दे सके, पर राजू को तो जैसे साँप सूँघ गया था, वो सर झुकाए हुए खाना खा रहा था।

‘अबे गांडू.. मादरचोद.. थाली में तेरी माँ चूत खोल कर बैठी है.. जो तेरी नज़रें वहाँ से हट नहीं रही हैं.. यहाँ मैं अपनी चूत खोल कर बैठी हूँ।’
कुसुम ने मन ही मन राजू को कोसा, पर राजू तक कुसुम के मन की बात नहीं पहुँची।
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#16
भाग - 16

उसने खाना खत्म किया और उठ कर अपनी प्लेट रखने के लिए रसोई में चला गया।

जब राजू रसोई में प्लेट रखने के लिए जा रहा था, तब कुसुम को राजू के जेब में से कुछ खनकने की आवाज़ सुनाई दी।
जिससे कुसुम थोड़ी चौंक गई।

राजू जब प्लेट रख कर वापिस आया तो कुसुम ने उससे अपने पास बुला लिया।

कुसुम पलंग पर बैठते हुए- अरे राजू इधर आ.. क्या है तेरी जेब में?

कुसुम की बात सुन कर राजू का रंग उड़ गया।

जब वो शहर गया था.. तो वहाँ से वो चमेली के लिए पायल खरीद कर लाया था, पर चमेली को देने का मौका नहीं मिला था।

अब वो बेचारा क्या कहता कि जो पैसे कुसुम ने उस रात राजू को दिए थे, उसमें से वो चमेली के लिए पायल ले आया है।

राजू को यूँ चुप खड़ा देख कर कुसुम ने फिर से राजू से पूछा, पर अब राजू कर भी क्या सकता था, चारों तरफ से फँस चुका था।

‘वो मालकिन.. वो पायल है..’

कुसुम थोड़ा परेशान होते हुए- पायल कहाँ से लाया तू.. दिखा निकाल कर..

राजू ने पायल निकाल कर कुसुम की तरफ बढ़ा दी।

‘क्यों रे, कहाँ से लाया और क्या करेगा इसका?’

राजू- वो मालकिन जब मैं शहर गया था ना.. तब खरीदी थी।

राजू के हाथ-पैर डर के मारे काँप रहे थे।

कुसुम गुस्से से राजू की ओर देखते हुए- सच-सच बोल.. किसने कहा था.. पायल लाने के लिए?

कुसुम की कड़क आवाज़ सुन कर राजू की तो मानो जैसे गाण्ड फट गई हो।
उसका चेहरा ऐसे लटक गया जैसे अभी रो पड़ेगा।

‘किसी ने नहीं कहा मालकिन..’

कुसुम- तो फिर किसके लिए लाया था और बोल तुम्हारे पास पैसे कहाँ से आए?

राजू- वो.. वो.. मालकिन..!

यह कहते-कहते राजू एकदम चुप हो गया और सर झुका कर कुसुम के सामने खड़ा हो गया, जैसे उसने बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो।

कुसुम- देख.. मैं कहती हूँ, अगर तू अपनी भलाई चाहता है, तो सब सच-सच मुझे बता दे.. वरना अगर सेठ जी को मैंने बता दिया तो तेरी खैर नहीं.. बोलता क्यूँ नहीं.. बोल?

राजू- वो मालकिन आपने उस रात को मुझे रुपये दिए थे ना..

कुसुम को याद आया कि रात को उसने राजू को रुपए दिए थे।

‘हाँ तो.. तू उससे जाकर ये पायल ले आया.. चल ठीक है.. अब ये भी बता किसके लिए लाया था?’

राजू- वो.. वो.. मालकिन…

कुसुम- अब ये ‘वो.. वो..’ बंद कर.. सच-सच बता दे मुझे?

राजू- आपके लिए मालकिन।

गाण्ड फ़टती देख कर राजू ने अपना पासा पलट दिया।

राजू की बात सुन कर कुसुम के चेहरे पर हैरानी और खुशी के भाव उमड़ पड़े।
उसके होंठों पर लंबी मुस्कान फ़ैल गई।

‘तू सच बोल रहा है ना?’ कुसुम ने आँखें टेढ़ी करते हुए पूछा।

राजू ने बस ‘हाँ’ में सर हिला दिया।

कुसुम- मेरे लिए लाया था ये पायल?

राजू- हाँ मालकिन।

यूँ तो कुसुम को गहनों की कमी नहीं थी। वो हर समय सोने के जेवरों से लदी रहती थी, पर आज चाँदी की ये पायल जो राजू लाया था, उसे पाकर आज उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

‘पर मेरे लिए क्यों खरीदा? वो पैसे तो मैंने तुम्हें खुश होकर दिए थे।’

राजू- वो मालकिन.. आप मेरा कितना ख्याल रखती हैं.. मुझे कभी महसूस नहीं होने देती कि मैं एक नौकर हूँ.. इसलिए आपके लिए लाया था।

कुसुम- झूठ.. तुम झूठ बोल रहे हो.. मैं नहीं मानती।

कुसुम ने जानबूझ कर राजू को ऐसा कहा।

राजू- नहीं मालकिन.. कसम से आपके लिए ही लाया था।

कुसुम- अच्छा तो फिर जेब में लेकर क्यों घूम रहा था.. मुझे दी क्यों नहीं?

राजू- वो मालकिन वो वो.. मैं मुझे शरम आ रही थी।

कुसुम- ना.. मैं तो तभी मानूँगी, जब तू ये पायल मुझे खुद पहनाएगा.. कि तू मेरे लिए ही ये लाया था।

यह कह कर कुसुम ने अपनी साड़ी को घुटनों तक ऊपर कर लिया।

अब राजू के पास और कोई चारा नहीं था, वो नीचे पैरों के बल बैठ गया, कुसुम ने बड़ी ही अदा के साथ अपना एक पैर राजू की जांघ के ऊपर रख दिया।

राजू उस पैर में पायल पहनाने लगा।

राजू की नजरें बार-बार कुसुम की मांसल और चिकनी टाँगों की तरफ जा रही थीं।
यह सब देख कर कुसुम के होंठों पर मुस्कान बढ़ती जा रही थी।

जैसे ही कुसुम के एक पैर में पायल पड़ी, कुसुम ने वो पैर सरका कर दूसरा पैर भी उसकी जांघ पर रख दिया।

‘ले अब इसमें भी पहना दे..’

पहले वाले पैर की ऊँगलियाँ सीधा राजू के लण्ड से जा टकराईं। अब तक बेजान पड़े.. राजू के लण्ड को जैसे करेंट लगा हो और उसमें जैसे जान आ गई हो, उसका लण्ड पजामे में फूलने लगा। जिसे कुसुम महसूस कर सकती थी..
उसके लण्ड से उठ रही गर्मी को अपने पाँव के तलवों में महसूस करते ही.. उसकी चूत में सरसराहट होने लगी।

‘अरे रुक क्यों गया.. ‘डाल’ ना..’

कुसुम ने बड़ी सी अदा से मुस्कुराते हुए कहा।

जैसे कह रही हो..अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दे, बेचारा राजू दूसरे पाँव में पायल डालने लगा।

जो तोहफा वो चमेली के लिए लाया था.. वो कुसुम की हवस का शिकार होकर उसके पाँव में आ चुका था।

तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी।

कुसुम बुदबुदाते हुए- आ गई बुढ़िया कवाब में हड्डी बनने…

राजू- क्या मालकिन?

कुसुम- कुछ नहीं.. अब तू जाकर आराम कर.. शहर से आकर थक गया होगा।

राजू उठ कर पीछे चला गया और कुसुम खिसयाते हुए बाहर आकर दरवाजा खोला.. बाहर कान्ति देवी खड़ी थी। कुसुम को उस पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर वो उसके समय कर भी क्या सकती थी।

कान्ति देवी अन्दर आते हुए- बाहर बहुत ठंड है ना..?

कुसुम झूठी मुस्कान अपने होंठों पर लाते हुए- जी चाची जी।

कान्ति- दरअसल मैं तुम्हें ये बताने आई थी कि मैं आज सुषमा के घर जा रही हूँ, उसके पोते की शादी है ना कल.. तो मैं आज रात नहीं रुक पाऊँगी.. ठीक है.. अब मैं चलती हूँ।

कुसुम- जी चाची जी.. आप मेरी फिकर ना करें।

जैसे ही कान्ति के जाने के बाद कुसुम ने दरवाजा बंद किया, कुसुम ख़ुशी से उछल पड़ी, जैसे उसे मुँह-माँगी मुराद मिल गई हो।

अभी शाम के 4 बज चुके थे.. अब कुसुम अपने और राजू के बीच किसी को नहीं आने देना चाहती थी।

चमेली के आने का वक्त भी हो रहा था।

चमेली और कुसुम दोनों एक-दूसरे को खूब अच्छी तरह से जानती थी। इसलिए कुसुम के मन में ये शंका थी कि चमेली हो ना हो बीच में अपनी टाँग जरूर अड़ाएगी।

तभी कुसुम कुछ ऐसा सूझा, जिससे उसके होंठों की मुस्कान और बढ़ गई।

वो घर के पीछे बने राजू के कमरे की तरफ गई और बाहर से ही राजू को आवाज़ दी। कुसुम की आवाज़ सुन कर राजू बाहर आया।

राजू- जी मालकिन।

कुसुम- सुन.. तू ऐसा कर आज शहर चला जा दुकान पर.. तुम्हें तो पता है कि सेठ जी नहीं है, आज वहाँ जाकर थोड़ा काम देख ले कि वहाँ के लोग ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं.. दुकान बंद होते ही घर आ जाना और हाँ.. वहाँ शहर में ही कुछ खा लेना, लौटने में तुम्हें देर हो जाएगी।

राजू- जी मालकिन.. मैं अभी चला जाता हूँ।

राजू घर से निकल कर शहर की तरफ चल दिया।

शहर गाँव से कोई 3-4 किलोमीटर दूर था, पैदल चल कर भी वहाँ 20-25 मिनट में पहुँचा जा सकता था।

उधर राजू के जाने के बाद चमेली घर पर आ गई और घर के छोटे-मोटे काम करने लगी।

कुसुम- चमेली सुन।

चमेली- जी दीदी।

कुसुम- चमेली.. वो आज राजू का खाना मत बनाना, वो शहर गया है.. आज रात वो दुकान पर ही रुकेगा.. खाना भी वहीं खा लेगा।

चमेली कुसुम की बात सुन चमेली उदास हो गई- जी दीदी।

आज चमेली का मन भी काम में नहीं लग रहा था।
उसे रह-रह कर राजू की याद आ रही थी।
उसने बेमन से खाना तैयार किया और अपनी बेटी और अपना खाना लेकर घर वापिस चली गई।

रात के 8 बजे राजू दुकान बंद होने के बाद राजू घर वापिस आने के लिए शहर से गाँव की ओर चला..
चारों तरफ घना कोहरा छाया हुआ था।
रात के अंधेरे और सन्नाटे की सरसराहट से उसकी गाण्ड फट रही थी। सुनसान रास्ते पर चलते हुए.. मानो उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसका पीछा कर रहा हो।
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#17
भाग - 17

ऐसा लगता मानो अभी खेतों में से कोई निकल कर उसे धर दबोचेगा, पर ये सिर्फ़ राजू का वहम था।

डर के मारे उसके हाथ-पैर थरथर काँप रहे थे।

फिर अचानक से खेतों में से एक नेवला बड़ी तेज़ी से सड़क पार करके दूसरे तरफ के खेतों में गया। राजू तो डर के मारे चीख पड़ा, पर इतने सुनसान रास्ते पर उसकी चीख सुनने वाला भी नहीं था।

उसे ऐसा लग रहा था कि उसके दिल के धड़कनें रुक जाएंगी। जैसे-तैसे राजू किसी तरह गाँव पहुँचा और चैन की साँस ली। उसने सोच लिया था कि वो कुसुम को बोल देगा कि वो आगे से रात को शहर अकेला नहीं जाएगा, वो बुरी तरह से डरा हुआ था।

उसने दरवाजे पर दस्तक दी। कुसुम तो जैसे उसके ही इंतजार में बैठी थी।
कुसुम- कौन है बाहर?

राजू- जी.. मैं हूँ राजू।

राजू की आवाज़ सुनते ही.. कुसुम के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।

उसने जल्दी से दरवाजा खोला।

जैसे दरवाजा खुला राजू ऐसे अन्दर आया..जैसे उसकी मौत उसके पीछे लगी हो, उसका डरा हुआ चेहरा देख कुसुम भी घबरा गई।

राजू सीधा अन्दर चला गया.. कुसुम ने दरवाजा बंद किया और राजू के पीछे आँगन में आ गई।

‘क्या हुआ रे इतना घबराया हुआ क्यों है?’

राजू नीचे चटाई पर बैठ गया, वो सच में बहुत डरा हुआ था। भूत देखा तो नहीं पर उसने भूतों के बारे में सुना ज़रूर था।

‘वो.. वो.. मैं मुझे रास्ते में डर लग रहा था।’ राजू ने घबराहट में हड़बड़ाते हुए कहा।

कुसुम- डर लग रहा था.. किससे?

राजू- वो रास्ते में बहुत अंधेरा था, मैं आगे से रात को नहीं जाऊँगा।

कुसुम को राजू के भोलेपन पर हँसी आ गई।

‘मैं आज यहीं सो जाऊँ मालकिन.. मुझे आज बहुत डर लग रहा है?’ राजू ने कुसुम की तरफ देखते हुए कहा।

राजू की बात सुन कर कुसुम को ऐसा लगा.. मानो आज उसकी मन की मुराद पूरी होने को कोई नहीं रोक सकता।

कुसुम खुश होते हुए- हाँ.. हाँ.. क्यों नहीं.. यहाँ क्यों तू मेरे कमरे में सो जाना। इसमें डरने की क्या बात है.. खाना तो खाया ना तूने?

राजू- हाँ मालकिन.. खाना खा लिया था।

कुसुम- तू चल मेरे कमरे में.. मैं अभी आती हूँ।

यह कह कर कुसुम रसोई में आ गई।

राजू को अब भी ऐसा लग रहा था, जैसे उसके पीछे कोई हो।

वो डरता हुआ कुसुम के कमरे में आ गया, वो सहमा हुए खड़ा था।

थोड़ी देर बाद अचानक कुसुम के अन्दर आने की आहट सुन कर राजू बुरी तरह हिल गया, पर जब कुसुम को उसने देखा.. तो उसकी साँस में साँस आई।

कुसुम हाथ में गिलास लिए खड़ी थी।
उसने गिलास को मेज पर रखा और मुड़ कर दरवाजा बंद कर दिया।
दरवाजा बंद करने के बाद उसने ओढ़ी हुई शाल को उतार कर टाँग दिया।

राजू की हालत का अंदाज़ा कुसुम को हो चुका था, अब वो इस मौके को जाया नहीं होने देना चाहती थी।

वो गिलास को मेज पर से उठाते हुए बोली- तू अभी तक खड़ा है, चल बैठ जा पलंग पर.. और ये ले पी ले।

कुसुम ने हाथ में पकड़ा हुआ गिलास राजू की तरफ बढ़ा दिया।

राजू- यह क्या है मालकिन?

कुसुम- दूध है.. गरम है.. पी ले.. ठंड कम हो जाएगी।

राजू- इसकी क्या जरूरत थी… मालकिन?

कुसुम- ले पकड़ और पी जा..अब ज्यादा बातें ना बना।

राजू ने कुसुम के हाथ से गिलास ले लिया और खड़े-खड़े पीने लगा।

कुसुम बिस्तर के सामने खड़ी हो गई और अपनी साड़ी उतारने लगी.. राजू दूध का घूँट भरते हुए उसके गदराए बदन को देख रहा था, कमरे में लालटेन की रोशनी चारों तरफ फैली हुई थी।

कुसुम ने होंठों पर कामुक मुस्कान लिए हुए अपने मम्मे उठाते हुए राजू से कहा- आराम से बैठ कर ठीक से ‘दूध’ पी, ऐसे कब तक खड़ा रहेगा।

जो कुसुम बोलने वाली थी, राजू को कुछ-कुछ समझ में आ गया था, पर राजू ने उस तरफ़ ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

कुसुम ने अपनी साड़ी उतार कर रख दी।

अब उसके बदन पर महरून रंग का ब्लाउज और पेटीकोट ही शेष था।

कुसुम उसमें में बला की खूबसूरत लग रही थी।

राजू अपनी नज़रें कुसुम पर से हटा नहीं पा रहा था।

कुसुम बिस्तर पर आकर बैठ गई और राजू के सर को सहलाते हुए बोली- अरे अंधेरे से क्या डरना.. तू रोज रात पीछे अकेला ही सोता है ना.. फिर आज कैसे डर गया तू?

राजू- वो मालकिन मैं लालटेन जला कर सोता हूँ।

कुसुम- अच्छा ठीक है, आगे से कभी तुझे रात को नहीं भेजूँगी.. चल अब आराम से ‘दूध’ पी ले।

राजू- मालकिन वो मुझसे पिया नहीं जा रहा है।

कुसुम- क्यों क्या हुआ?

राजू- आपने इसमें घी क्यों डाल दिया? मुझे दूध मैं घी पसंद नहीं है।

कुसुम- तेरे लिए अच्छा है घी.. पी जा मुझे पता है.. आज कल तू बहुत ‘मेहनत’ करता है।

कुसुम की बात सुन कर राजू एकदम से झेंप गया।

राजू ने दूध खत्म किया और गिलास को मेज पर रख दिया।
जैसे ही राजू ने गिलास को मेज पर रख कर मुड़ा तो उसने देखा कि कुसुम रज़ाई के अन्दर घुसी हुई उसकी तरफ खा जाने वाली नज़रों से देख रही है।

‘अब वहाँ खड़ा क्या है… सोना नहीं है क्या?’

कुसुम ने राजू से कहा..
पर राजू को समझ में नहीं आ रहा था कि वो सोएगा कहाँ? क्योंकि वो कुसुम के साथ बिस्तर पर तो सोने के बारे में सोच भी नहीं सकता था।

राजू- पर मालकिन मैं कहाँ लेटूँगा?

कुसुम- अरे इतना बड़ा पलंग है.. यहीं सोएगा और कहाँ?

राजू- आपके साथ मालकिन.. पर..!

कुसुम- चल कुछ नहीं होता.. आ जा।

यह कह कर कुसुम ने एक तरफ से रज़ाई को थोड़ा सा ऊपर उठा लिया, राजू काँपते हुए कदमों के साथ बिस्तर पर चढ़ गया और कुसुम के साथ रज़ाई में घुस गया।
जैसे ही वो कुसुम के पास लेटा… कुसुम के बदन से उठ रही मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुश्बू ने उससे पागल बना दिया। कुसुम उसके बेहद करीब लेटी हुई थी।

दोनों एक-दूसरे के जिस्म से उठ रही गरमी को साफ़ महसूस कर पा रहे थे।

कुसुम- राजू बेटा.. मेरी जाँघों में बहुत दर्द हो रहा है, थोड़ी देर दबा देगा?

राजू- जी मालकिन.. अभी दबा देता हूँ।

कुसुम (पेट के बल उल्टा लेटते हुए)- सच राजू तू कितना अच्छा है.. मेरा हर दिया हुआ काम कर देता है… चल ये रज़ाई हटा दे और मेरी जाँघों की अच्छे से मालिश कर दे।

जैसे ही कुसुम ने राजू को मालिश की बात बोली, उससे उस रात की घटना याद आ गई, जब कुसुम ने अपनी जाँघों की मालिश करवाते हुए अपनी चूत का दीदार राजू को करवाया था।

‘मालकिन.. तेल से मालिश करूँ?’ राजू ने उत्सुक होते हुए पूछा।

कुसुम- हाँ.. तेल ले आ और अच्छे से मालिश कर दे।

राजू बिस्तर से उतर कर सामने रखी तेल की बोतल उठा कर जैसे ही पलटा तो उसका कलेजा हलक में आ गया।

सामने कुसुम उल्टी लेटी हुई थी.. पीछे से उसके भारी चूतड़ महरून रंग के पेटीकोट में पहाड़ की तरह उभरे हुए थे, जिसे देख कर राजू का लण्ड फड़फड़ाने लगा और वहीं उसके पैर जम गए।

कुसुम- वहाँ क्यों रुक गया.. चल आजा, बहुत सर्दी है।

राजू- वो मालकिन मुझे बहुत तेज पेशाब आ रहा है।

कुसुम- तो जाकर कर आ.. मैंने कहाँ रोक रखा है तुझे?

राजू- पर वो मालकिन पीछे अंधेरा होगा।

कुसुम (अपने सर को झटके हुए)- चल मैं तेरे साथ चलती हूँ।

जब दोनों कमरे से निकल कर घर के पीछे की तरफ आए तो उन्होंने देखा.. बाहर जोरों से बारिश हो रही है।

‘जा तू मूत के आ.. मैं यहीं खड़ी हुई हूँ.. नहीं तो मैं भी भीग जाऊँगी।’

राजू ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और गुसलखाने की तरफ भागते हुए गया.. पर बारिश से बच ना पाया, उसके कपड़े एकदम गीले हो गए।

जब राजू वापस आया तो कुसुम ने देखा वो पूरी तरह से भीगा हुआ है।

कुसुम- तू यहीं रुक.. मैं तेरे लिए कुछ लाती हूँ.. अगर गीले कपड़े अन्दर लेकर गया तो सारा घर गीला कर देगा।

यह कह कर कुसुम अन्दर चली गई।

बारिश के कारण सर्दी और बढ़ गई थी। थोड़ी देर बाद जब कुसुम वापिस आई.. तो उसके हाथ में एक लुँगी थी।

‘और तो कुछ मिला नहीं.. अब यही पहन ले..’ कुसुम ने उसकी तरफ वो लुँगी बढ़ा दी और पलट कर कमरे के तरफ जाने लगी।

‘सारे कपड़े निकाल दे और इसे पहन कर अन्दर आ जा… बाहर बहुत सर्दी है।’

कुसुम के जाने के बाद राजू ने अपने गीले कपड़े उतारे और वो लुँगी पहन कर कपड़ों को वहीं टाँग दिया और कमरे के तरफ चल पड़ा।

जब राजू कुसुम के कमरे में पहुँचा तो कुसुम बिस्तर पर लेटी हुई थी।

‘दरवाजा बंद कर दे।’ कुसुम ने राजू के बदन को घूरते हुए कहा।

उसकी नज़र राजू के मांसल और चिकने बदन पर से हट नहीं रही थी, राजू ने दरवाजा बंद किया और तेल की बोतल उठा कर कुसुम के बिस्तर की तरफ बढ़ा।

कुसुम ने देखा राजू बुरी तरह से काँप रहा है, उसे राजू पर तरस आ गया।

कुसुम- अरे तू तो बहुत काँप रहा है.. चल छोड़ ये मालिश-वालिश आज.. लेट जा।

यह कह कर कुसुम ने रज़ाई को एक तरफ से उठा कर अन्दर आने के लिए इशारा किया।

राजू को यकीन नहीं हो रहा था कि वो पेटीकोट और ब्लाउज में लेटी हुई हुस्न की देवी कुसुम के बेहद करीब सोने वाला है।

यह देखते और सोचते ही राजू के बेजान लण्ड में जान पड़ने लगी और खड़ा होकर उसकी पहनी हुई लुँगी को आगे से उठाने लगा, जिस पर कुसुम की नज़र पड़ते ही, कुसुम के होंठों पर कामुक मुस्कान फ़ैल गई।

राजू घबराते हुए कुसुम के पास जाकर रज़ाई में घुस गया।
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#18
भाग - 18

अब दोनों के बदन एक-दूसरे को छू रहे थे.. कुसुम के बदन की गरमी महसूस करते ही राजू के बदन में जैसे आग लग गई हो, उसके बदन से उठ रही मादक खुशबू से राजू बेताब होता जा रहा था।
वह अपने चेहरे को ब्लाउज से बाहर झाँक रही कुसुम की चूचियों के पास ले गया।
कुसुम जो आँखें बंद किए हुए राजू के हाथों की हथेलियों को रगड़ कर गरम करने की कोशिश कर रही थी..
राजू की गरम साँसों को अपनी चूचियों पर महसूस करते ही सिहर उठी।

कुसुम ने अपनी आँखें खोल कर राजू की तरफ देखा, राजू अपनी अधखुली आँखों से कुसुम की गुंदाज चूचियों की तरफ देख रहा था और उसके नकुओं से गरम हवा निकल कर उसकी चूचियों से टकरा रही थी, जिससे एक बार फिर वासना अपना असर कुसुम के दिमाग़ पर दिखाने लगी।

वो एकटक राजू के भोले-भाले चेहरे की तरफ देख रही थी। उसके मासूम चेहरे को देख कर कुसुम के दिल के अन्दर जो प्यार उमड़ रहा था, उसको बयान करना तो सिर्फ़ कुसुम के बस की ही बात है।

कुसुम ने राजू के हाथों को छोड़ कर अपनी एक बाजू को उसकी कमर में डालते हुए राजू को अपनी तरफ खींचा, जिससे राजू जो कि अपनी अधखुली आँखों से कुसुम की चूचियों को देख रहा था… वो होश में आया और अपनी आँखों को ऊपर करके कुसुम की तरफ देखने लगा।
बदले में कुसुम ने एक प्यार भरी मुस्कान के साथ उसके सर पर हाथ ले जाकर उसके बालों को सहलाते हुए उसके चेहरे को अपनी चूचियों से सटा लिया.. राजू के लिए ये सीधा-सीधा संकेत था।

राजू के दहकते हुए होंठ कुसुम के फड़फ़ड़ाती हुई चूचियों के ऊपर वाले हिस्से पर जा लगे और अपनी चूचियों पर राजू के होंठों को पा कर कुसुम के बदन में करेंट सा दौड़ गया।

‘आह राजू…’ कहते हुए उसने राजू को और अपने से सटा लिया।

राजू भी अब पूरे जोश में था। कुसुम अपनी चूचियों को ऊपर-नीचे करने लगी, जिससे राजू के होंठ कुसुम के चूचियों पर रगड़ खाने लगे।
कुसुम की साँसें अब बहुत तेज चल रही थीं।

अचानक से राजू ने अपना हाथ कुसुम की जांघ पर रख दिया, राजू को उस समय बहुत बड़ा झटका लगा, कुसुम का पेटीकोट उसकी जाँघों से काफ़ी ऊपर चढ़ा हुआ था।

राजू का हाथ जांघ पर पड़ते ही कुसुम के बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई ‘हय.. सीईईई राजू..’
कुसुम की मादक सिसकी सुनकर राजू को जैसे होश आया।

उसने अपना हाथ उसकी जांघ से हटा लिया, इससे पहले के राजू अपना हाथ पीछे करता…
कुसुम ने राजू का हाथ पकड़ अपनी दोनों जाँघों के बीच में दबा लिया।

राजू को ऐसे लगा मानो उसका हाथ किसी दहक रही भट्टी के अन्दर चला गया हो, इतनी गरम जगह तो और कहीं हो नहीं सकती।

राजू भी अब कुसुम के रंग में रंगने लगा था, उसका लण्ड अब लुँगी में पूरी तरह से तन चुका था और उसको पता भी नहीं चला कि कब उसका लण्ड लुँगी के कपड़े को हटा करके बाहर आ चुका था और कुसुम की चूत पर पेटीकोट के ऊपर से रगड़ खाने लगा।

कुसुम की चूत में मानो आग लग गई हो, अब उससे बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा था।

कुसुम ने राजू के हाथ को जो कि उसने अपनी जाँघों में दबा रखा था, उससे बाहर निकाल दिया और अपनी ऊपर वाली टाँग को उठा कर राजू की कमर पर रख कर अपना पेटीकोट कमर तक उठा दिया।

राजू के 8 इंच के लण्ड का मोटा सुपारा सीधा कुसुम की चूत की फांकों पर जा लगा… उसकी आँखें मदहोशी के आलम में बंद होने लगीं।
राजू के हाथ-पैर कामुकता के कारण कांप रहे थे।
कुसुम की चूत की फांकों ने राजू के लण्ड के सुपारे को चूम कर स्वागत किया और सुपारे के चारों तरफ फ़ैल गईं।

‘ऊंह ओह राजू..’ मादक सिसकी भरते हुए कुसुम ने उसे और ज़ोर से अपने से चिपका लिया और अपनी कमर को धीरे आगे की तरफ करते हुए राजू के लण्ड पर अपनी चूत दबाने लगी, राजू के लण्ड का सुपारा अब सीधा कुसुम की चूत पर टिका हुआ था।

राजू अपने लण्ड के सुपारे पर कुसुम की चूत से बह रहे गरम लिसलिसे पानी को महसूस करके और उत्तेजित हो गया और उसने भी अपनी कमर को आगे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया।

राजू के लण्ड का सुपारा कुसुम की कसी चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर घुसने लगा।

कुसुम को राजू के मोटे लण्ड का सुपारा अपनी चूत की दीवारों पर रगड़ ख़ाता हुआ महसूस हुआ, तो वो पागलों की तरह राजू के चेहरे पर चुम्बनों की बारिश करने लगी।

कुसुम- ओह्ह.. राजू मेरे राजा… ओह उम्ह्ह ओह.. मेरी जान.. हाँ चोद डाल मुझे.. कब से तरस रही है.. ये तेरी मालकिन.. ओह.. राजू।

यह कहते हुए कुसुम ने राजू को बाँहों में भरते हुए अपने ऊपर खींच लिया..
इस खींचा-तानी में राजू की लुँगी उसके बदन से अलग हो गई।

अब राजू का सारा वजन कुसुम के ऊपर आ चुका था।
कुसुम ने राजू की कमर को दोनों तरफ से पकड़ कर अपनी गाण्ड को ऊपर की तरफ उछाला।
राजू का मोटा लण्ड कुसुम की कसी चूत में रगड़ ख़ाता हुआ आधे से ज्यादा अन्दर चला गया.. कुसुम की आँखें मस्ती में बंद हो गईं। अपने होंठों को दाँतों में चबाते हुए उसने अपनी टाँगों को फैला लिया, ताकि राजू आराम से उसकी चूत में अपना लण्ड अन्दर-बाहर कर सके।

कुसुम का बदन पूरा ऐंठ चुका था। अभी तक कोई बच्चा ना होने के कारण और सेठ से बहुत कम चुदी हुई कुसुम की चूत किसी जवान लड़की की चूत की तरह कसी हुई थी।

राजू को उसकी चूत अपनी लण्ड पर कसी हुई महसूस हो रही थी..
जो कि चमेली की चूत से कहीं ज्यादा कसी थी।
इसलिए राजू वासना के सागर में गोते खा रहा था, पर कुसुम की चूत जिस हिसाब से पानी छोड़ रही थी..
उससे राजू का लण्ड बिना किसी दिक्कत के अन्दर की ओर बढ़ता जा रहा था।

कुसुम- ओह राजू हाँ.. डाल दे धीरे-धीरे पूरा अन्दर कर दे… ओह सी ओह।

राजू का लण्ड पूरा का पूरा कुसुम की चूत में समा गया..
कुसुम की चूत के छेद का छल्ला पूरी तरह फैला हुआ था और कुसुम अपनी आँखें बंद किए हुए सिसया रही थी।
राजू के लण्ड की सख्ती को महसूस करके, उसकी चूत लगातार पानी बहा रही थी।

राजू ने कुसुम के कामुक चेहरे की ओर देखा, राजू का लण्ड जड़ तक कुसुम की चूत में समाया हुआ था।

कुसुम ने भी अपनी अधखुली आँखों से राजू की आँखों में देखा, जैसे कह रही हो ‘अब रुक क्यों गए?’

राजू ने धीरे-धीरे अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उठाना चालू किया।

उसका लण्ड कुसुम की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ बाहर आने लगा। जिससे कुसुम के रोम-रोम में मस्ती की लहर दौड़ गई और उसकी आँखें एक बार फिर से बंद हो गईं।

कुसुम अपनी चूत पर होने वाले पहले प्रहार के लिए अपने आप को जैसे तैयार कर रही थी।

तेज चलती साँसों के साथ हिलती हुई बड़ी-बड़ी चूचियाँ, जिसे देख कर राजू पागल हुआ जा रहा था।

अपने लण्ड को सुपारे तक बाहर निकाल कर राजू एक पल के लिए रुका।

जैसे वो भी पहले झटके के तैयारी कर रहा हो।

कुसुम जिसने कि राजू की कमर को दोनों हाथों से कस कर पकड़ा हुआ था।

उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी, उसके हाथ उसकी कमर पर काँप रहे थे और अपनी टाँगों को घुटनों से मोड़ कर जितना हो सकता था, ऊपर उठा लिया।

राजू एक पल के लिए और रुका और फिर अपनी गाण्ड को पूरी रफ़्तार के साथ आगे की तरफ धकेला।
पूरे कमरे में ‘ठाप’ की ज़ोर से आवाज़ गूँज उठी।

‘ऊंहह ओह राजू..’ कुसुम ने अपने होंठों को चबाते हुए कहा।

राजू का लण्ड पूरी रफ़्तार से एक बार उसकी चूत की गहराईयों में खो चुका था।

राजू के मुँह से भी ‘आहह’ निकल गई।
कुसुम ने उसे अपने ऊपर खींच कर अपने से चिपका लिया, राजू भी पूरी मस्ती में आ चुका था।
उसने एक बार फिर अपने लण्ड को सुपारे तक बाहर निकाला और फिर अपनी गाण्ड को पूरी रफ़्तार से धक्का देते हुए, अपने लण्ड को कुसुम की चूत की गहराईयों में उतार दिया, ‘ओह जुग-जुग जियो मेरे लाल..।’

कुसुम की ऐसी बातें राजू को और जोश दिला रही थीं।

कुसुम भी राजू के लण्ड की नसों को अपनी चूत में फूलता हुआ साफ़ महसूस कर पा रही थी।

राजू के इन दो जबरदस्त धक्कों ने उसकी चूत में और सरसराहट बढ़ा दी।

उससे डर था कि कहीं राजू जोश में आकर जल्दी ना झड़ बैठे और उससे यूँ ही सुलगता हुआ न छोड़ दे।

राजू की रफ़्तार को कम करने के लिए.. उसने अपनी टाँगों को उसकी कमर पर कस लिया और अपने दोनों हाथों से अपने ब्लाउज के बटन खोल कर अपनी 38 साइज़ के चूचियों को आज़ाद कर दिया।

आज तो राजू की किस्मत उस पर मेहरबान हो गई थी।

कुसुम की गुंदाज और कसी हुई चूचियों को देख राजू से रहा नहीं गया और पलक झपकते ही कुसुम की बाईं चूची को जितना हो सकता था, मुँह में भर लिया।

अपने चूचुक पर राजू की गरम जीभ और लार को महसूस करते ही… उसके बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई। उसने अपनी बाँहों को राजू के पीठ पर कस लिया।

राजू उसका चूचुक चूसते हुए पूरी रफ़्तार से अपने लण्ड को उसकी चूत के अन्दर-बाहर करने लगा और कुसुम अपनी गाण्ड को बिस्तर से ऊपर उठाए हुए उसके धक्कों की रफ़्तार को कम करने की कोशिश करने लगी।

कुसुम- ओह्ह रुक ज़ाआअ.. राजू धीरे-धीरे उफफफफफ्फ़ तू सुन ना… मेरी बात.. ओह्ह कितना मोटा है रे.. तेरा मूसल ओह.. धीरे-धीरे हाँ.. बेटा ऐसे हीई धीरे-धीरे चोद दे अपनी मालकिन को.. ओह्ह बेटा आराम से.. पहले मेरी इन चूचियों को जी भर के चूस.. ओह्ह बेटा.. मैं कहीं भागी थोड़ी जा रही हूँ.. रोज तुझे चुदवाऊँगी.. बेटा ओह्ह धीरे..

राजू (कुसुम के चूचुक को मुँह से निकालते हुए )- सच मालकिन आप रोज मुझ से…

कुसुम (अपनी मदहोशी से भरी आँखें खोल कर राजू की तरफ देखते हुए)- हाँ मेरी जान.. तेरे इस मोटे लौड़े को तो अब रोज अपनी चूत में लूँगी.. अब आराम से चोद.. बोल जल्दबाजी नहीं करेगा ना..

राजू- नहीं मालकिन आप जैसे कहो.. मैं वैसे ही करूँगा।

कुसुम ने दोनों के ऊपर रज़ाई खींच ली, ‘आह्ह… बेटा ले चूस ले बेटा..।’ और ये कहते हुए उसने राजू के सर को अपनी चूचियों पर दबा दिया।

राजू भी जैसे इसी पल का इंतजार कर रहा था.. उसने भी फिर से उसकी चूची के चूचुक को मुँह में भर लिया और ज़ोर-ज़ोर से उसकी चूची को चूसते हुए, धीरे-धीरे अपने लण्ड को उसकी चूत में अन्दर-बाहर करने लगा।

राजू का दूसरा हाथ अब कुसुम की दूसरी चूची पर आकर उसे मसलने लगा था। राजू की इस हरकत से कुसुम के होंठों पर कामुक मुस्कान फ़ैल गई।

कुसुम- हाँ मेरे सोना.. मसल दे मेरे चूचियों को ओह राजा…आा.. मैं तो कब.. से ओह्ह… धीरे.. बेटा ओह तेरे लण्ड को अपनी फुद्दी में लेने के लिए तड़फ रही थी…ओह्ह आह्ह.. आह्ह.. धीरेए राजू ओह..

कुसुम की चूत से निकल रहे कामरस से राजू का लण्ड पूरी तरह भीग कर चिकना हो गया था और बिना किसी रोक-टोक के उसकी चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था।

राजू ने अपने होंठों को उसके चूचुक से हटाया और उसकी गर्दन को चाटते हुए उसके गालों पर चुम्बन करने लगा।

कुसुम ने भी दोनों हाथों से राजू के सर को पकड़ लिया और उसके बालों को सहलाने लगी।

‘सीईईईईई ओह.. राजू चोद मुझे ओह हान्ंणणन् तेरी ये मालकिन बरसों से तरस रही है.. ओह हाँ चोद बेटा ज़ोर से चोद ओह्ह डाल दे अपना पूरा लण्ड ओह..’

कुसुम अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी और झड़ने के करीब पहुँच रही थी.. उसने अपने पैरों को.. जो राजू की कमर के चारों ओर कस रखे थे.. उन्हें हटा कर अपनी जाँघों को पूरा खोल लिया और अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालने लगी।

राजू का लण्ड ‘फच-फच’ की आवाज़ के साथ कुसुम की चूत में अन्दर-बाहर होने लगा।

रज़ाई में गरमी इस कदर बढ़ गई थी कि दोनों पसीने से तर हो गए।

कुसुम ने रज़ाई को एक तरफ पटक दिया और राजू के सर को पकड़ कर अपने होंठों को उसके होंठों पर लगा दिया।

राजू भी अब कहाँ रुकने वाला था।

जैसे ही कुसुम ने अपने होंठों को उसके होंठों पर रखा, उसने कुसुम के दोनों होंठों को चूसना शुरू कर दिया… नीचे अपनी कमर को पूरी रफ़्तार से हिलाते हुए, राजू अपना लण्ड कुसुम की चूत में अन्दर-बाहर करता जा रहा था और कुसुम भी अपनी गाण्ड को बिस्तर से ऊपर उठा कर राजू का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी।

फिर तो जैसे कुसुम की चूत से सैलाब उमड़ पड़ा।

उसका पूरा बदन अकड़ गया और उसने अपने नाख़ून राजू की पीठ में गढ़ा दिए।

चमेली की खिली हुई के चूत के मुक़ाबले में कुसुम की कसी हुई चूत में राजू का लण्ड भी और टिक नहीं पाया और एक के बाद एक वीर्य की बौछार कर उसकी चूत की दीवारों को भिगोने लगा।

वासना का तूफ़ान ठंडा पड़ चुका था… पर अब भी दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूस रहे थे।
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#19
भाग - 19

जैसे ही कुसुम ने अपने होंठों को उसके होंठों पर रखा.. उसने कुसुम के दोनों होंठों को चूसना शुरू कर दिया और नीचे अपनी कमर को पूरी रफ़्तार से हिलाते हुए.. राजू अपना लण्ड कुसुम की चूत में अन्दर-बाहर करता जा रहा था।

उधर कुसुम भी अपनी गाण्ड को बिस्तर से ऊपर उठा कर राजू का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी।

फिर तो जैसे कुसुम की चूत से सैलाब उमड़ पड़ा।
उसका पूरा बदन अकड़ गया और उसने अपने नाख़ून राजू की पीठ में गड़ा दिए।
चमेली की खिली हुई के चूत के मुक़ाबले में कुसुम की कसी हुई चूत में राजू का लण्ड भी और टिक नहीं पाया और एक के बाद एक वीर्य की बौछार कर उसकी चूत की दीवारों को भिगोने लगा।

वासना का तूफ़ान ठंडा पड़ चुका था, पर अब भी दोनों एक-दूसरे के होंठों को चूस रहे थे।

कुसुम (राजू के होंठों से अपने होंठों को अलग करते हुए, उखड़ी हुई साँसों के साथ)- राजू बेटा आज तूने मुझे वो सुख दिया है, जिसके लिए मैं कई सालों से तड़फ रही हूँ। आज से तुम मेरे नौकर नहीं.. मैं तुम्हारी दासी बन कर रहूँगी.. तुझे दुनिया की हर वो चीज़ मिलेगी.. जिस पर तुम हाथ रख दोगे.. ये तुमसे कुसुम का वादा है।

राजू- वो मालकिन मुझे वो..

कुसुम- हाँ.. बोल मेरे राजा अगर कुछ चाहिए तो…

राजू- नहीं.. वो मैं कह रहा था कि आप मुझे रोज ये सब करने देंगीं?

कुसुम- ओह्ह… मेरे लाल बस इतनी सी बात कहने के लिए इतना परेशान क्यों हो रहा है? सीधा क्यों नहीं कहता कि तू मुझे रोज चोदना चाहता है.. है ना..? बोल..

राजू (शरमाते हुए)- हाँ.. मालकिन।

कुसुम- चोद लेना मेरे राजा.. जब तुम्हारा दिल करे.. पर दिन में थोड़ा ध्यान रखना.. किसी को पता नहीं चलना चाहिए, चल छोड़ ये सब अभी तो आज पूरी रात पड़ी है।

यह कहते हुए कुसुम ने राजू को अपने ऊपर से हटा कर बिस्तर पर लेटा दिया और खुद उसके टाँगों के बीच में जाकर घुटनों के बल बैठ गई।

राजू का अधखड़ा लण्ड अभी भी काफ़ी लंबा और मोटा लग रहा था, जिसे देख कर कुसुम की आँखों में एक बार फिर से वासना जाग उठी।

उसने अपने काम-रस से भीगे राजू के लण्ड को मुठ्ठी में पकड़ लिया और तेज़ी से हिलाने लगी।

राजू- ओह्ह मालकिन धीरे ओह्ह..

कुसुम ने लंड की तरफ मुस्कुराते हुए राजू की तरफ देखा और फिर अपनी कमर पर इकठ्ठे हुए पेटीकोट से राजू के गीले लण्ड को साफ़ किया और फिर झुक कर उसके लण्ड के सुपारे को अपने होंठों के बीच में दबा लिया।

राजू का पूरा बदन काँप गया, उसने कुसुम के सर को दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया।

‘ये क्या कर रही हैं मालकिन आप.. ओह..’

कुसुम ने राजू की बात पर ध्यान दिए बिना.. उसके लण्ड को चूसना शुरू कर दिया।

राजू मस्ती में ‘आहह ओह्ह’ कर रहा था।

एक बार फिर से राजू के लण्ड में तनाव आना चालू हो गया था।
जिसे देख कर कुसुम की चूत की फांकें एक बार फिर से कुलबुलाने लगीं और वो और तेज़ी से राजू के लण्ड को चूसते हुए, अपने मुँह के अन्दर-बाहर करने लगी।
उसके हाथ लगातार राजू के अन्डकोषों को सहला रहे थे और राजू के हाथ लगातार कुसुम के खुले हुए बालों में घूम रहे थे।

कुसुम बार-बार अपनी मस्ती से भरी अधखुली आँखों से राजू के चेहरे को देख रही थी जो आँखें बंद किए हुए अपने लण्ड को चुसवा रहा था।

कुसुम ने राजू के लण्ड को मुँह से निकाला और राजू के अन्डकोषों को मुँह में भर चूसना चालू कर दिया, ‘ओह्ह बस मालकिन.. ओह्ह..’राजू को ऐसा लगा मानो उसकी साँस अभी बंद हो जाएगीं, उसका दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था।

जब राजू से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने कुसुम को उसके बालों से पकड़ कर खींच कर अपने ऊपर लेटा लिया। कुसुम की चूचियाँ राजू छाती में आ धँसीं।

दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे, राजू ने अभी भी कुसुम के बालों को कस कर पकड़ा हुआ था, पर कुसुम के होंठों पर फिर भी मुस्कान फैली हुई थी।

नीचे राजू का लण्ड कुसुम की चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।

कुसुम राजू की आँखों में देखते हुए अपना एक हाथ नीचे ले गई और राजू के लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर टिका दिया और राजू के आँखों में देखते हुए धीरे-धीरे अपनी चूत को राजू के लण्ड पर दबाने लगी।

कुसुम के थूक से सना हुआ राजू का लण्ड उसकी चूत के छेद को फ़ैलाते हुए अन्दर घुसने लगा।

राजू को ऐसे लग रहा था, जैसे उसके लण्ड का सुपारा किसी चूत में नहीं.. बल्कि किसी तपती हुई भट्टी के अन्दर जा रहा हो।

राजू की आँखें एक बार फिर से बंद हो गईं।

कुसुम ने राजू के दोनों हाथों को पकड़ कर अपनी चूचियों पर रख कर अपने हाथों से दबा दिया और अपनी चूत को तब तक राजू के लण्ड पर दबाती रही, जब तक कि राजू का पूरा 8 इंच लंबा लण्ड उसकी चूत की गहराईयों में समा कर उसकी बच्चेदानी के छेद से न जा टकराया।

कुसुम (काँपती हुई आवाज़ मैं)- ओह्ह राजू तेरा लण्ड कितना बड़ा है….ओह.. देख ना कैसे मेरी चूत को खोल रखा है.. ओह राजू..

कुसुम की चूत तो जैसे पहले से एक और जबरदस्त चुदाई के लिए तैयार थी और अपने अन्दर कामरस की नदी बहा रही थी।

राजू का लण्ड अब जड़ तक कुसुम की चूत में घुसा हुआ था और कुसुम की चूत से कामरस बह कर राजू के अन्डकोषों तक आ रहा था।

राजू आँखें बंद किए हुए.. कुसुम की चूचियों को अपने हाथों से मसल रहा था, बीच में वो उसके चूचकों को अपनी उँगलियों के बीच में दबा कर खींच देता, जिससे कुसुम एकदम से सिसक उठती और उसकी कमर अपने आप ही आगे की ओर झटका खा जाती।

ज्यों ही लण्ड चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता उसी पल कुसुम के बदन में मस्ती की लहर दौड़ जाती।

‘हाँ.. राजू उफ्फ और ज़ोर से मसल, मेरे चूचुकों को ओह्ह ओह आह्ह..राजू.. चोद डाल मुझे… देख ना मेरी फुद्दी कैसे पानी छोड़ रही है.. तेरे लण्ड के लिए.. ओह राजू ओह्ह हाँ.. ऐसे ही और ज़ोर से मसल.. ओह ओह आह्ह..’

कुसुम अपनी कमर को हिलाते हुए सिसकारी भर रही थी और अपने दोनों हाथों को राजू के हाथों पर दबा रही थी।

राजू भी जोश में आकर नीचे लेटे हुए ऊपर की ओर धक्के लगाने की कोशिश कर रहा था.. पर दुबले-पतले राजू का बस नहीं चल रहा था.. ऊपर जवानी से भरपूर कुसुम जैसे गदराई हुई औरत जो उसके लण्ड पर उछल रही थी।

राजू तो बस अब आँखें बंद किए हुए कुसुम की कसी चूत के मज़े लूट रहा था।
कुसुम अब एकदम गर्म हो चुकी थी, उसने राजू के हाथों से अपने हाथ हटाए और राजू के ऊपर झुक कर उसके होंठों को अपने होंठों में भर लिया।

जैसे ही राजू के हाथ आज़ाद हुए.. राजू अपने हाथों को उसकी गाण्ड पर ले गया और उसके चूतड़ों को ज़ोर-ज़ोर से मसल कर दोनों तरफ फ़ैलाने लगा।

कुसुम ने अपने होंठों को राजू के होंठों से हटाया और राजू के सर के दोनों तरफ अपनी हथेलियों को टिका कर अपनी गाण्ड को पूरी रफ़्तार से ऊपर-नीचे करके, अपनी चूत को राजू के लण्ड पर पटकने लगी।

राजू का लण्ड हर चोट के बाद करीब आधा बाहर आता और फिर पूरी रफ़्तार के साथ कुसुम की चूत की दीवारों से रगड़ ख़ाता हुआ अन्दर घुस जाता।

कुसुम तो मानो आज ऐसे निहाल हो गई थी, जैसे उससे स्वर्ग मिल गया हो।

कुसुम- हाँ.. राजू ओह्ह और ज़ोर से मसल मेरीईई गाण्ड को.. ओह्ह ह राजू देख मेरी फुद्दी फिर पानी छोड़ने वाली है आह्ह.. राजाआअ ओह ओह आह्ह.. आह्ह.. आह्ह..

कुसुम का बदन एक बार फिर से अकड़ने लगा और उसकी चूत से पानी की नदी बह निकली।
राजू भी नीचे लेटे हुए कमर हिलाते हुए झड़ गया।
कुसुम झड़ कर निढाल होकर राजू के ऊपर ही लुढ़क गई।

जब कुसुम की साँसें दुरस्त हुईं तो कुसुम राजू के ऊपर से उठ कर उसके बगल में लेट गई।

पूरे कमरे में अब चुदाई की खुशबू छाई हुई थी।

कुसुम ने करवट के बल लेटते हुए, राजू को अपने से चिपका लिया और राजू ने भी उसे अपनी बाँहों में भरते हुए, अपने चेहरे को कुसुम की चूचियों में दबा दिया।
कुसुम आज कई सालों बाद झड़ी थी.. वो भी एक के बाद एक.. दो बार।
अब उससे अपना बदन हल्का महसूस हो रहा था, होंठों पर संतुष्टि भरी मुस्कान और दिल में सुकून था।

अब ना तो राजू कुछ बोल रहा था और ना ही कुसुम।

दोनों एक-दूसरे के आगोश में खोए हुए कब सो गए, पता ही नहीं चला।

रात के 3 बजे के करीब राजू की नींद टूटी, शायद.. अभी वो पूरी तरह से जगा हुआ था।

राजू के हिलने के कारण कुसुम की नींद भी उखड़ गई।

लालटेन की रोशनी में उसने अपने आपको राजू की बाँहों में एकदम नंगा पाया।
राजू अब भी उसकी चूचियों को मुँह में दबाए हुए ऊंघ रहा था जिसे देख कर एक बार फिर कुसुम के होंठों पर प्यार भरी मुस्कान फ़ैल गई।
उसने बड़े ही प्यार से एक बार राजू के माथे को चूमा और फिर उसके बालों को प्यार से सहलाने लगी, वो मन ही मन सोच रही थी कि इस रात की सुबह कभी ना हो..
पर यह शायद मुमकिन नहीं था और शायद कल गेंदामल भी वापिस आ सकता था और जो प्यास उसकी आज कई सालों बाद बुझी है, शायद फिर पता नहीं कब तक उसे इस जवान लण्ड के लिए प्यासा रहना पड़े।



यही सोचते हुए.. कुसुम लगातार अपने हाथ की उँगलियों को राजू के बालों में घुमाए जा रही थी, जिससे राजू जो कि अभी गहरी नींद में नहीं था.. पूरी तरह से जाग गया।

उसने अपनी आँखें खोल कर कुसुम की तरफ देखा.. उसके होंठ कुसुम की गुंदाज चूचियों के चूचुकों के बेहद करीब थे।

राजू से रहा नहीं गया और उसने कुसुम के बाएं चूचुक को मुँह में भर कर ज़ोर से चूसना चालू कर दिया।
अपने कड़क चूचुक पर राजू के रसीले होंठ महसूस करते ही.. उसके बदन में सनसनी दौड़ गई।
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#20
भाग - 20

कुसुम ने दोनों हाथों से राजू के सर को पकड़ कर पीछे किया.. जिससे कुसुम का चूचुक ‘पक्क’ की आवाज़ से राजू के मुँह से बाहर आ गया।

राजू ने कुसुम के चेहरे की तरफ देखा।
दोनों की नजरें आपस में मिलीं.. कुसुम की आँखों में चाहत के साथ-साथ लाखों सवाल थे।

कहाँ तो वो राजू को गेंदामल के खिलाफ इस्तेमाल करके.. गेंदामल की इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ाना चाहती थी और कहाँ आज वो खुद राजू के मूसल लण्ड की गुलाम हो कर रह गई थी जो इस वक़्त तन कर कुसुम की चूत के पास उसकी जाँघों को ठोकर मार रहा था.. जैसे कुसुम की चूत के लिए अपना रास्ता बनाने की कोशिश कर रहा हो।

कुसुम ने राजू की आँखों में देखते हुए, अपने होंठों को उसके होंठों की तरफ बढ़ा दिया और अगले ही पल राजू कुसुम की चूचियों को मसलते हुए, उसके होंठों को चूस रहा था।

कुसुम ने अपने हाथों को राजू की पीठ पर कस कर.. उसे अपने ऊपर खींच लिया।

जैसे ही राजू कुसुम के ऊपर आया.. कुसुम ने अपनी टाँगों को फैला लिया, जिससे राजू का नीचे का धड़ उसकी गुंदाज जाँघों के बीच में आ गया..

राजू ने कुसुम के होंठों से अपने होंठों को हटाया और उसके गर्दन और चूचियों के ऊपर वाले हिस्से को चूमने लगा।

कुसुम के बदन में एक बार फिर से वासना की आग भड़कने लगी।

कुसुम अभी भी उसके पेट पर अपने हाथों को घुमा रही थी और राजू उसके बदन के हर अंग को चूमता और चाटता हुआ नीचे उसके पेट पर आ गया।

कुसुम अब धीमी आवाज़ में सिसकियां भर रही थी।

नींद से अभी-अभी जागी कुसुम को आज तक ऐसे खुमारी नहीं छाई थी.. उसने अपने दोनों हाथों को ऊपर ले जाकर सर के नीचे रखे तकिए को कस कर पकड़ लिया।

उसकी कमर लगातार थरथरा रही थी, उसके पेट में उठ रही लहरों से जाहिर हो रहा था कि कुसुम कितनी गरम हो चुकी है और अब उसकी चूत में फिर से सुनामी आने लगी थी- ओह्ह राजू ओह मेरी जान…. उफफफफफ्फ़ और मत तड़फाओ अपनी गुलाम मालकिन को ओह्ह ओह्ह..

राजू ने एक बार कुसुम के कामुक चेहरे की ओर देखा।

उसका पूरा चेहरा पसीने के सुनहरी बूँदों से भीगा हुआ था और उसके रसीले होंठ थरथरा रहे थे।

फिर उसने अभी जीभ निकाल कर कुसुम की नाभि में घुसा दी।

कुसुम के बदन में करेंट सा दौड़ गया.. उसने तकिए को छोड़ कर राजू के सर को दोनों हाथों से पकड़ लिया।

‘ओह राजू आह्ह.. सीईई नहियिइ ओह मत कर मेरे लालल्ल्ल ओह बसस्स्स उफफ्फ़ क्या कर रहा हाईईईई, ओह्ह छोड़ दे.. रा..जाआ…’

राजू उसकी नाभि और पेट के निचले हिस्से को चूमता हुआ और नीचे उसकी चूत की तरफ जाने लगा..

जब कुसुम को इस बात का अहसास हुआ, तो उसने अपनी जाँघों को भींचना शुरू कर दिया।

कुसुम- ओह्ह राजूऊऊ मत्तत्त कर नाआअ.. मैं मर जाऊँगी.. ओह ओह्ह सीईईईई ओह राजू न.. नहीं ओह्ह ओह्ह ओह्ह..

कुसुम की आवाज़ मानो उसके हलक में अटक गई हो, कुछ पलों के लिए उसकी साँस रुक गई और उसके पूरा बदन ऐसे अकड़ गया.. मानो जैसे उसको दौरा पड़ गया हो।

उसने अपने हाथों से राजू के सर को पीछे करने के कोशिश की, पर उसको लगा जैसे उसके बदन ने उसका साथ छोड़ दिया हो।

कुछ पलों की खामोशी के बाद मानो जैसे कमरे में तूफान आ गया।

कुसुम लगभग चीखते हुए सिसकारियाँ भरने लगी।

कुसुम- ओह्ह ओह्ह आह्ह.. आह्ह.. आह्ह.. बेटा ओह छोड़ दे मुझे.. ओह मैं पागल हो जाऊँगी.. बेटा ओह मेरी फुद्दी को मत कर बेटा ओह्ह..

कुसुम अपनी गाण्ड को बिस्तर से ऊपर उछालते हुए मछली के तरह तड़फ रही थी।

उसकी चूत के कामरस ने इस कदर उसकी चूत को गीला कर रखा था कि उसकी चूत से पानी निकल कर गाण्ड के छेद को नम कर रहा था।

जब मस्ती में आकर कुसुम अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालती, तो राजू की जीभ कुसुम की गाण्ड के छेद पर रगड़ खा जाती और कुसुम के बदन में और मस्ती की लहर दौड़ जाती।

कुसुम का पूरा बदन मस्ती में कांप रहा था।

जब कुसुम से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने राजू को कंधों से पकड़ कर ऊपर खींच लिया और अपना हाथ नीचे ले जाकर राजू के लण्ड को पकड़ कर अपनी चूत के छेद पर लगा दिया।

गरम सुपारा चूत के छेद पर लगते ही.. जो सुख की अनुभूति कुसुम को हो रही थी, उसे शब्दों में बयान करना बहुत मुश्किल था।

राजू को ऐसे लग रहा था, जैसे उसके लण्ड का सुपारा किसी दहकते लावा का नदी में चला गया हो।

‘ओह्ह मालकिन आपकी चूत बहुत गरम है.. मेरा लण्ड पिघल जाएगा..’

राजू का बदन भी मस्ती में काँप रहा था, उसने अपनी कमर को आगे की तरफ धकेला, राजू के लण्ड का सुपारा कुसुम की चूत के छेद को फ़ैलाता हुआ अन्दर जा घुसा और कुसुम के मुँह से मस्ती भरी ‘आहह’ निकल गई।


कुसुम ने अपनी बाँहों को राजू की पीठ पर कस लिया और उसके होंठों को जो कि उसकी चूत के कामरस से भीगे हुए थे, अपने होंठों में भर लिया।

राजू ने भी अपनी कुसुम के होंठों को चूसते हुए एक और जोरदार धक्का मार कर अपना पूरा का पूरा लण्ड कुसुम की चूत की गहराईयों में उतार दिया।

कुसुम के बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई और राजू की पीठ पर तेजी से अपने हाथों को फेरने लगी।

अब राजू भी लगातार अपने लण्ड को कुसुम की चूत की अन्दर-बाहर कर रहा था और कुसुम भी अपनी गाण्ड को उछाल-उछाल कर अपनी चूत को राजू के लण्ड पर पटक रही थी।

कुसुम जो कि थोड़ी देर पहले मायूस हो गई थी, अब सब कुछ भूल कर एक बार फिर से अपनी जाँघों को फैलाए हुए, राजू के लण्ड को अपनी चूत में ले रही थी।

चुदाई का ये दौर करीब 15 मिनट चला। झड़ने के बाद दोनों जब अलग हुए.. दोनों बहुत थक चुके थे।

अगली सुबह जब कुसुम उठी, तो उसने अपने आप को राजू की बाँहों में एकदम नंगा पाया.. अपनी इस हालत को देख कर कुसुम के होंठों पर मुस्कान आ गई।

उसने राजू के चेहरे की तरफ देखा, जो अभी भी ख़्वाबों की दुनिया में था।

कुसुम ने झुक कर राजू के माथे को चूमा और फिर उसके बालों को सहलाते हुए उसको जगाया।

राजू नींद से जगा और कुसुम की तरफ देखने लगा।

‘अब उठ जा शहजादे.. सुबह हो गई है.. वो चमेली भी आती होगी..’

ये कह कर कुसुम ने एक बार राजू के होंठों को चूमा और फिर बिस्तर से उतर कर अपनी साड़ी पहनने लगी..

पीछे बिस्तर पर लेटा हुआ राजू कुसुम के गदराए बदन को देख रहा था, उसे अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कल पूरी रात ये बदन उसकी बाँहों में था और उसने कुसुम को रात को जी भर कर चोदा था।

चमेली के आने का वक्त हो रहा था, इसलिए राजू भी बिस्तर से उतर कर लुँगी पहन कर पीछे बने अपने कमरे में चला गया।

पीछे जाने के बाद उसने अपने कपड़े जो कल रात भीग गई थे, उन्हें सूखने के लिए डाल दिया और दूसरे कपड़े पहन कर शौच के लिए खेतों की तरफ चला गया।

दूसरी तरफ चमेली के घर पर आज उसका पति आया हुआ था।

उसके साथ किसन नाम का एक आदमी भी था।

चमेली ने उनके लिए चाय बनाई और चमेली का पति रघु चमेली को कमरे से बाहर ले आया।

चमेली- क्या है जी, आप आज सुबह-सुबह कैसे आ गए?

रघु- वो दरअसल ये जो किसन बाबू हैं.. पास के गाँव में रहते हैं। इनका एक बेटा है.. सुभाष नाम है उसका, उसने कहीं पर हमारी बेटी रज्जो को देख लिया होगा, अब वो रज्जो से शादी करना चाहता है, घर-बार भी अच्छा है.. ज़मीन जायदाद भी है, अब तुम बोलो क्या कहती हो?

रघु की बात सुन कर चमेली कुछ देर के लिए सोच में पड़ गई, पर घर आए इतने अच्छे रिश्ते को ठुकराना नहीं चाहती थी।

‘जी मुझे तो कोई हरज नहीं है, अगर घर-बार अच्छा है तो रिश्ता तय कर देते हैं.. लेकिन इनकी कोई माँग तो नहीं है?’

रघु- अरे किसन भाई साहब बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कहा है कि वो हमारी छोरी को दो कपड़ों में भी अपने बेटे के साथ ब्याह कर ले जाएंगे।

चमेली- ये तो बहुत अच्छी बात है.. आप जल्दी से रिश्ता पक्का कर दीजिए।

दूसरी तरफ राजू नदी की तरफ बढ़ रहा था।

आज उसके चेहरे पर अलग ही मुस्कान थी.. वो अपनी ही धुन में नदी की तरफ बढ़ रहा था, थोड़ी दूर चलने पर अचानक से उसका ध्यान किसी लड़की के हँसने की आवाज़ की ओर गया।

उसे ये आवाज़ कुछ जानी-पहचानी सी लगी.. एक पल के राजू के कदम मानो जैसे रुक गए हों। गन्ने के खेतों के बीच दो लड़कियों के हँसने की आवाज़ आ रही थी.. थोड़ी देर बाद वो आवाज़ नज़दीक आने लगी और एकाएक चमेली की बेटी रज्जो.. अपने पड़ोस में रहने वाली लड़की के साथ खेत से बाहर आई.. दोनों की नजरें आपस में टकरा गईं।
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