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भाग - 12
फोन करके राघव ने साक्षी को श्रृष्टि सहित सभी साथियों के साथ दफ्तर के निजी कमरे में बुलाया था। कुछ ही वक्त में द्वार पर आहट हुआ और भीतर आने की अनुमति मांगा गया।
भीतर आने की अनुमति मिलते ही सभी एक एक करके भीतर आ गए। हैलो हाय की औपचारिकता के बाद राघव बोला... कल आधे दिन की छुट्टी का लुफ्त लिया जा रहा था। हंसी ठहाके एक दूसरे की टांग खींचना एक दूसरे की लव लाईफ के बारे में जानना बड़ा मस्ती….।
"उफ्फ ये किया बोला दिया। जो नहीं बोलना था वहीं बोल गया। अब क्या करूं अब तो सभी को शंका हों जायेगा कि मैं उन्हें छुप छुप कर काम करते हुए देखता हूं। दूसरे शायद इस घटना को सामान्यतः ले जो अक्सर होता रहता हैं लेकिन श्रृष्टि, उसे अगर थोडी बहुत शंका हुई भी होगी कि मैं उसे छुप छुप कर देखता हूं जो कि सच हैं। अब तो उसकी शंका यकीन में बादल जायेगा। हे प्रभु ये कैसा अनर्थ मूझसे हों गया कोई रास्ता दिखा"
सहसा राघव को आभास हुआ कि जो नहीं बोलना था। वहीं बोल गया। तो अपने वाक्य को अधूरा छोड़कर मन ही मन ख़ुद से बाते करने लग गया।
ठीक उसी वक्त राघव की अधूरी बाते सुनकर साक्षी, श्रृष्टि सहित बाकी साथियों के अलग अलग प्रतिक्रिया थी। जहां दूसरे साथीगण इस घटना को सामान्यतः ले रहें थे। वहीं साक्षी के मन का चोर द्वार खुल गया और मन ही मन बोलीं... अगर सर छुप छुप कर हम पर नज़र रख रहे थे तो कहीं उन्हे पाता न चल जाएं मेरे ही कारण श्रृष्टि को दिए समय से प्रोजेक्ट पूरा नहीं हों पाया। तब क्या होगा?अब डर न साक्षी को था | और होना भी चाहिए था | वैसे भी चोर को सब से ज्यादा डर लगता है जब रजा चोर को पकड़ने के लिए बोलता है क्यों की चोर को ही उसके परिणाम के बारे में सोचना पड़ता है वही गलती भी करता है| खेर हमें उस से क्या लेना देना है
ठीक उसी वक्त श्रृष्टि का मन कुछ अलग ही कह रहा था। "ऊम्ह तो मेरी शंका सही निकली साला सर मुझे छुप छुप कर देखते हैं। नहीं नहीं मुझे क्यों देखने लगे, हों सकता है सर छुपकर ये देखते हो हम काम कर रहें हैं कि नहीं पर जब भी मैं सर के सामने आती हूं तब टकटकी लगाएं मुझे ही देखते रहते हैं। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता। तो क्या सर छुप कर मुझे ही देखते हैं। ओ हो मैं ये किस उलझन में फांस गई।" वो देखता भि है तो मै क्या कर सकती हु ??? सब की आँखे है और देखने का अधिकार भी है
पर सब की नजर एक सी भी नहीं होती !!!
उफ्फ्फ मै ये सब क्या सोच रही हु क्या होता है वो भी देखना पड़ेगा न ऐसे ही मेरे मनगाडत विचारो से दुनिया थोड़ी ना चलती है पक्का कर के देखना चाहिए फिर कोई निर्णय लेना चाहिए|
जहां श्रृष्टि, साक्षी और राघव अपने अपने विचारो में उलझे हुए थे। ठीक उसी वक्त दूसरे साथियों में से एक बोला... खाली समय था तो उसका सदुपयोग करते हुए मस्ती मजाक और एक दूसरे की टांग खींच रहें थे। अगर अपने देख ही लिया था तो आप भी कुछ वक्त के लिए हमारे साथ मिल जाते इससे आपका मानसिक तनाव थोडा बहुत कम हों जाता।
इन आवाजों के कानों को छूते ही राघव विचार मुक्त हुआ और बोला...क क क्या बोला।
"सर लगता है आपका ध्यान कहीं ओर था। मैं तो बस इतना ही कह रहा था कि जब आपने देख ही लिया था तो आप भी हमारे साथ थोडा मस्ती मजाक कर लेते ही ही ही...।
"मैंने सोचा तो कई बार फिर ये सोचकर रूक जाता हूं कहीं आप लोग मेरे मस्ती मजाक करने का गलत मतलब न निकाल ले और काम धाम छोड़कर मस्ती में लगे रहें। ऐसा हुआ तो मेरा बहोत बड़ा नुकसान हों जायेगा।" एक निगाह श्रृष्टि पर डाला फ़िर मुस्कुराते हुए राघव ने अपनी बात कह दिया।
"सर कभी कभी कामगारो के साथ थोड़ी बहुत मस्ती मजाक भी कर लेना चाहिए इससे दफ्तर का माहौल सही बना रहता हैं।" राघव के मुस्कान का जवाब मुस्कान से देते हुए श्रृष्टि बोलीं।
राघव... कह तो सही रही हों खैर छोड़ो इन बातों पर बाद में सोचेंगे अभी (प्रोजेक्टर पर एक वीडियो प्ले करते हुए आगे बोला) अभी इस वीडियो को ध्यान से देखो।
जब तक वीडियो चलता रहा तब तक सभी ध्यान से देखते रहें। वीडियो खत्म होते ही राघव बोला... ये हमारा नया कंस्ट्रक्शन साइड हैं। इस पर एक आलीशान बहुमंजिला इमारत बनाना हैं। जिसके बाहरी आवरण की खूबसूरती मन मोह लेने वाली होना चाहिए उतना ही खूबसूरत और आकर्षक भीतरी भाग होना चाहिए। इसलिए क्लाइंट का कहना हैं पहले मानचित्र बनाकर उसकी रूप रेखा 3D मॉडल के जरिए दिखाया जाएं अगर उन्हें पसंद आया तब ही कंस्ट्रक्शन शुरू किया जा सकता हैं। अब आप सभी अपने अपने हुनर को प्रदर्शित करे और एक बेहतरीन मॉड्यूल तैयार करें और हां एक बात का ध्यान रखना यहां प्रॉजेक्ट हमारी और हमारी कम्पनी की साख का सवाल है इसलिए कोई भी चूक नहीं होना चाहिए। ये बहोत भारी शब्दों में बोला ताकि उसकी गंभीरता बन जाए|
सभी एक साथ एक ही स्वर में "सर हम पूरा ध्यान रखेंगे" बोले फिर राघव आगे बोला... हां तो अब कुछ जरुरी बाते इस प्रॉजेक्ट का प्रॉजेक्ट हेड श्रृष्टि को बनाया जाता है ये खास उपहार मेरे ओर से श्रृष्टि और साक्षी के लिए है। साथ ही दुसरे के लिए भी हैं।
ऐसा खास उपहार साक्षी को मिलेगा ऐसा कभी उसने सोचा नहीं था। जो प्रॉजेक्ट हेड हुआ करती थी सहसा एक नई लड़की जिसको आए हुए अभी महीना भर भी नहीं हुआ। प्रोजेक्ट हेड बना दिया जाता है। यह बात साक्षी को हजम नहीं हुआ और अंदर ही अंदर खीजते हुए बोलीं...साली श्रृष्टि तूने मेरा होद्दा मूझसे छीन लिया। बात चाहें कम्पनी की साख की हो मुझे फर्क नहीं पड़ता अब बात मेरी साख पर आ गई है? अब देख मैं तेरे साथ क्या क्या करती हूं?
यहां साक्षी, श्रृष्टि से खीज गई वहीं श्रृष्टि इस बात से बहुत खुश हुई। होना भी चाहिए जहां लोगों को काम करते करते वर्षों बीत जाते हैं फिर भी प्रॉजेक्ट हेड नहीं बन पाते है वहीं मात्र कुछ ही दिनों में उसे एक ऐसे प्रोजेक्ट का हेड बना दिया गया। जिसका ताल्लुक कम्पनी के साख से हैं। बहरहाल श्रृष्टि खुश, साक्षी खीजी हुई इससे उलट दूसरे साथी श्रृष्टि को बधाई देने लग गए। जिसे श्रृष्टि सहस्र स्वीकार कर रहीं थीं। खैर बधाई देने के बाद एक साथी बोला…सर श्रृष्टि मैम के साथ बस कुछ ही दिन काम करके हम सभी इतना तो जान ही गए हैं कि श्रृष्टि मैम हुनर के मामले में बहुत धनी है। इतने बड़े प्रोजेक्ट पर इनके साथ काम करने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ। शायद हमारे लिए इससे बड़ा दुसरा कोई उपहार हों नहीं सकता था? सर किसी और का मै नहीं कह सकता मगर अपनी बात दावे से कहता हूं। इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि मैम के साथ जी जान से काम करेगें और हमारी कम्पनी के साख पर दाग नहीं लगने देगें। इसी बहाने श्रृष्टि मैम से उनके हुनर के कुछ गुर भी सीख लूंगा। शायद भविष्य में उनसे सीखे गुर मेरे कुछ काम आ जाए और किसी प्रोजेक्ट का मै भी हेड बन जाऊं।
सहयोगी की ये बातें जहां श्रृष्टि के हृदय में हर्ष का भाव उत्पन कर रही थीं। वहीं साक्षी के मन में सिर्फ और सिर्फ़ बैर पैदा कर रहा था, जहा जहा मिर्ची लग सकती थी वहा वहा मिर्ची अपने रंग दिखा रही थी और साक्षी से ये सब बर्दाश्त से बहार होता जा रहा था | और राघव एक नज़र श्रृष्टि की और मुस्कुराते हुए देखा फ़िर साक्षी की ओर देखकर बोला... कह तो तुम ठीक रहें हों। सीखने का जज्बा हमारे अंदर उम्र के आखरी पड़ाव तक जिंदा रहना चाहिए। तुम्हारी सोच मेरी नज़र में तारीफो के काबिल हैं। मगर (एक अल्प विराम लिया फ़िर साक्षी से निगाह हटाकर आगे बोला) मगर कुछ लोग सीखने की इस जज्बा को दावा लेते हैं शायद ऐसा वो अकड़ के चलते है कि मुझे जीतना सीखना था सिख चुका अब ओर सीखकर क्या फायदा खैर छोड़ो बाते बहुत हुआ अब जाओ ओर काम पर लग जाओ। साक्षी तुम कुछ देर रूककर जाना तुमसे कुछ जरुरी बात करना हैं।
राघव की बाते सभी को सामान्य लगा और कुछ ज्ञानवर्धक भी मगर साक्षी को राघव की बाते चुभन का अहसास करा गई और रूकने की बात सुनकर एक अनजाना सा डर मन में घर कर गया जिसका नतीजा साक्षी के हाव भाव बदल गए। इन सभी से अंजान श्रृष्टि बोलीं... सर इतना बड़ा प्रोजेक्ट है ऊपर से कंपनी की साख का सवाल हैं। कोई चूक न रह जाएं इसलिए मैं सोच रहीं थीं। एक बार साइड का दौरा कर आते तो ठीक होता आगर दूर है तो कोई बात नहीं हम मैनेज कर लेंगे।
"हा सर एक बार साइड का दौरा हो जाता तो अच्छा होता। अच्छा किया जो श्रृष्टि मैम ने याद दिला दिया वरना हम तो भूल ही गए थे।"एक सहयोगी बोला
राघव…ठीक है फिर कल को चलते हैं। अपने अपने सभी जरूरी यन्त्र जांच लेना अगर किसी में कोई कमी हैं तो ठीक करवा दूंगा।
इसके बाद सभी एक एक कर चलते बने जैसे ही साक्षी अपने जगह खड़ी हुई। राघव तुंरत बोला...साक्षी तुम कहा जा रहीं हों तुम्हें रूकने को कहा था न।
इतना सुनते ही साक्षी वापस बैठ गई और सभी के जानें के बाद राघव द्वार की ओर बड़ गया।
अब साक्षी सोच रही थी अब तक मै संडास के बहाने राघव सर को श्रुष्टि के खिलाफ लगाती थी लेकिन अब तो ये महसूस होता है की सच में उसे संडास जाना पड़ेगा |
अब क्या बात होगी राघव सर और साक्षी के बिच में ???
क्या साक्षी को और एक तक मिलेगी श्रुष्टि के खिलाफ कुछ बोलने की ?? क्यों की अभो वो दोनों अकेले है जो चाहे वो कर सकती है
क्या श्रुष्टि अब अपने पद से गुरुर मी आएगी ??? साक्षी को अब दबा सकती है ??? या फिर वो खुद साक्षी जैसी बन के रहेगी ??? पैसा, गुरुर और पद आदमी को अपने संस्कार को भुला देने के लिए काबिल होते है
देखते है आगे
जारी रहेगा...
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Let me move you ahead to reveal this story further
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अब आगे
भाग - 13
राघव एक एक कदम द्वार की ओर बढ़ा रहा था। राघव के बढ़ते कदम के साथ साक्षी को एक अनजाना सा डर खाए जा रही थीं। सर क्या कहना चाहते है? क्यों सर ने मुझे रूकने को कहा? कहीं सर को मेरे करनी का पता तो नहीं चल गया? ऐसा हुआ तो पता नहीं आज मेरा क्या होगा? ऐसे विविध प्रकार के ख्याल साक्षी के मन में चल रहे थे।
कब राघव द्वार बन्द करके उसके पास आकर खड़ा हों गया सखी को भान भी नहीं हुआ। मंद मंद मुस्कान से मुस्कुराते हुए राघव ने साक्षी के कंधे पर हाथ रख दिया। सहसा स्पर्श का आभास होते ही "क क कौन हैं? कौन हैं? कहते हुए साक्षी ख्यालों से मुक्ति पाई।
"अरे क्या हुआ मैं हूं राघव, तुम ठीक तो हों न"
"सर मै ठीक हूं" बिचरगी सा राघव की ओर देखते हुए साक्षी बोलीं।
राघव अपने कुर्सी पर बैठकर मुद्दे पर आते हुए बोला…हां तो साक्षी तुम्हें ये खास तौफा कैसा लगा?
साक्षी... ये कैसा खास तौफ़ा हुआ। कल को आई एक लड़की को मेरा होद्दा दे दिया और आप पूछ रहें हों ये खाश तौफ़ा कैसा लगा? क्या ये मेरे लिए तौफा हो सकता है भला ?
राघव...कल आए या आज इससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है तो बस इस बात से कि वो कितना काबिल हैं। काबिलियत के दाम पर ही किसी को उसका होद्दा मिलता है। समझ रहीं हों न मैं कहना क्या चहता हूं?
साक्षी... हां हां सर समझ रहीं हूं। आप सीधे सीधे मेरे काबिलियत पर उंगली उठा रहें हो और कह रहे हो। मुझमें काबिलियत नहीं हैं इसलिए मुझे इस प्रोजेक्ट का प्रॉजेक्ट हेड नहीं बनाया। जबकि एक वक्त था आप मेरे काबिलियत की तारीफ़ करते नहीं थकते थे फिर सहसा ऐसा किया हो गया जो मेरी काबिलियत आपके नजरों से ओजल हों गईं और कल आई श्रृष्टि की काबिलियत मूझसे ज्यादा हों गई।?
राघव…ओ हों साक्षी तुम्हारा ये दिमागी फितूर और अहम कि बारे में मूझसे ज्यादा काबिल कोई और नहीं हैं। और वोही तुम्हारे काबिलियत का भक्षण करता जा रहा हैं फिर भी तुम सहसा मेरे ऐसा करने के पीछे कारण क्या रहा जानना चाहती हों? तो सुनो वो कारण तुम खुद ही हो।
"तुम खुद ही हों" सुनते ही साक्षी हैरान सा राघव को देखती रहीं। एक भी शब्द उसके मुंह से नहीं निकला मानो उसके जुबान को लकवा मार गया हों। यू साक्षी के चुप्पी साध लेने से राघव मुस्कुरा दिया फिर बोला...क्या हुआ साक्षी तुम्हें सांप क्यों सुंग गया। चलो आगे का मै खुद ही बता देता हूं जिससे शायद तुम्हारी चुप्पी टूट जाए। बीते लंबे वक्त से तुम क्या कर रहीं हों इसका पता मुझे नहीं चलेगा अगर तुम ऐसा सोचती हो तो ये तुम गलत सोचती हैं। मैं अभी जब से श्रृष्टि आई है तब की नहीं उससे भी आगे की बात कर रहा हूं। श्रुष्टि तो अब आई है, मन तो किया तुम्हे धक्का मार कर निकाल दूं मगर ये सोचकर चुप रहा कि तुम अरमान की दोस्त हों और अरमान के साथ मेरे रिश्ते में तिराड हुईं पड़ी थी मैं उस फजियत को और बढ़ाना नही चाहता था सिर्फ इसलिए चुप रहा। मगर अब मेरा ओर अरमान का रिश्ता उस मुकाम पर पहुंच चुका हैं कि वो कभी सुधर नहीं सकता इसलिए सोचा तुम्हें तुम्हारी करनी का अहसास दिला दूं। लेकिन तुम ये मत समजो की तुम्हे निकाल रहा हु बस तुम्हारी कमिया तुजे दिखा रहा हु ताकि तुम और बेहतर कर सको|
इतना बोलकर राघव चुप्पी सध लिया बस मंद मंद रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया और साक्षी मानो जम सी गई। उसके बदन में रक्त प्रवाह रूक सा गया हो। सांस रोके, बिना हिले डुले, बिना पलकों को मीचे बस एक टक राघव को देखती रहीं। ये देखकर राघव बोला... अरे तुम्हारी तो सांसे रूक गई, पलके झपकाना भूल गईं हो क्या। चलो चलो पलके झपका लो चंद सांसे ले लो नहीं तो तुम्हारा दम घुट जायेगा। दम घुटने से तुम्हें कुछ हों गया तो मेरी इज्जत दाव पे लग जायेगी सो अलग साथ ही मेरा एक काबिल आर्किटेक्चर कम हों जायेगा। और मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता हूं। तुम एक काबील आर्किटेक्ट हो ये मत भूलो बस कुछ काम करने के रवैये में सुधार की जरुरत है|
आज साक्षी को राघव संभलने का एक भी मौका दिए बिना सदमे पर सदमे दिए जा रहा था और साक्षी दम साधे सुनती जा रहीं थीं। साक्षी का ऐसा हाल देखकर राघव कुछ कदम आगे बढ़कर द्वार से बहार चला गया।
साक्षी बैठी बस देखती रहीं। कुछ ही वक्त में राघव एक गिलास पानी साथ लिए लौट आया और साक्षी को देते हुए बोला... शायद तुम्हारा गला सुख गया होगा लो पानी पीकर गला तार कर लो इससे तुम्हें आगे की सुनने का हौसला मिलेगा।
साक्षी पानी का गिलास ले तो लिया मगर आगे की ओर सुनने की बात से ठहर सी गई और राघव की ओर चातक नजरो से देखने लग गई। जैसे पूछ रहीं हों इतना तो सूना दिया अब ओर क्या बाकी रह गया है।
राघव आज आर या पार के मूड में था। जैसे कसाई दो घुट पानी पिलाने के बाद एक झटके में शीश को धड़ से अलग कर देता हैं। ऐसा ही कुछ करने का शायद राघव मन बना चुका था तभी तो हाथ में पकड़ी पानी का गिलास खुद से साक्षी के मुंह से लगा दिया ओर इशारे से पीने को कहा तो साक्षी बिल्कुल आज्ञाकारी शिष्या की तरह घुट घुट करके पानी पी लिया फ़िर राघव की ओर ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हो अब इस गिलास का किया करूं। "ये भी मुझे बताना होगा" इतना कहकर गिलास साक्षी के हाथ से लेकर मेज पर रख दिया और जाकर अपने कुर्सी पर बैठ गया।
साक्षी बस बेचारी सा मुंह बनाए देखती रहीं ये देख राघव बोला... ओ साक्षी ऐसे न देखो की मुझे तुमसे प्यार हों जाएं। उफ्फ तुम भी तो यहीं चाहती थी कि मैं तुमसे प्यार करने लग जाऊं जिसके लिए तुमने न जानें कौन कौन से पैंतरे अजमाया अपने जिस्म की नुमाइश करने से भी बाज नहीं आई। अब तुम सोच रहीं होगी मुझे कैसे पाता चला, अरे नादान लड़की मैं भी इसी दुनिया का हूं किसी दुसरी दुनिया से नहीं आया हूं। लोगों की फितरत समझता हूं। दस साल, पूरे दस साल घर से बहार रहा उस वक्त ऐसे अनगिनत लोगों से मिला जो तुम्हारी तरह बचकानी हरकते करके बैठें बिठाए सफलता की बुलंदी पर पहुंचना चाहते हैं मगर तुम शायद भूल गई थीं जैसे पानी का गिलास भले ही कोई मुंह से लगा दे लेकिन खुद से पीकर ही प्यास शांत किया जा सकता हैं। वैसे ही सफलता की बुलंदी पर पहुंचने में भले ही कोई मदद कर दे मगर पहुंचना खुद को ही पड़ता है। क्यों मैंने सही कहा न?
राघव एक के बाद एक साक्षी का भांडा फोड़ता जा रहा था और शब्द इतने तीखे की साक्षी सहन नहीं कर पा रही थी। मगर राघव रूकने का नाम नहीं ले रहा था। बस बोलता ही जा रहा था।
राघव...तुम्हें बूरा लग रहा होगा जबकि मैं तुम्हारा किया तुम्हें बता रहा हूं। जरा सोचो श्रृष्टि को कितना बुरा लगा होगा जब बिना गलती के सिर्फ़ तुम्हारी वजह से उसे सुनना पड़ा एक बार नहीं दो दो बार अब….।
"बस कीजिए सर मुझे ओर कितना जलील करेंगे। मुझे समझ आ गया मैंने जो भी किया सिर्फ़ खुद को फायदा पहुंचने के लिए किया था।" इतना बोलकर साक्षी रो पड़ीं।
साक्षी का अपराध बोध उस पर हावी हो चुका था। इसलिए सिर झुकाए दोनो हाथों से चेहरा छुपाए सुबक सुबक कर रोने लगीं ये देखकर राघव साक्षी के पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला...साक्षी मैं बस तुम्हें अपराध बोध करवाना चाहता था। जिसका बोध तुम्हें हों चुका है। अब जब तुम अपराध बोध से ग्रस्त हों ही चुकी हों तो मैं तुम्हें एक ओर मौका देता हूं। तुम श्रृष्टि से बिना बैर रखे उसके साथ मिलकर अपने हुनर का परचम लहराओ श्रृष्टि में कितनी हुनर है ये मैं बहुत पहले से जानता हूं न तुम हुनर में उससे कम हो न ही वो तुमसे कम हैं।
श्रृष्टि को पहले से जानने की इस धमाके ने सहसा साक्षी को ऐसा झटका लगा जिसका नतीजा ये हुआ साक्षी रोना भूलकर अचंभित सा राघव को ताकने लग गई। ये देखकर राघव बोला... इतना हैरान होने की जरुरत नहीं हैं। सच में मैं तुम्हें एक और मौका देना चाहता हूं।
अभी तक जो सिर्फ़ दम साधे सुन रहीं थी सहसा लगे एक झटके ने साक्षी के लकवा ग्रस्त जुबान में खून का दौरा बढा दिया और साक्षी बोलीं... सर आप श्रृष्टि को कब से जानते हों?।
राघव... वो तो तुम्हें इस बात का झटका लगा कि मैं श्रृष्टि को कब से जनता हूं जबकि मैं सोच रहा था कि इतना कुछ करने के बाद मैं तुम्हें दुसरा मौका क्यों दे रहा हूं। देखो साक्षी मैं श्रृष्टि को कैसे और क्यों जानता हूं ये जानना तुम्हारे लिए जरूरी नहीं हैं।
साक्षी... पर...।
राघव... पर बर कुछ नहीं अब तुम जाओ और चाहो तो आज की छुट्टी ले लो इससे तुम्हारा मानसिक संतुलन जो हिला हुआ है। वो ठीक हों जायेगा फ़िर कल से नए जोश और जुनून से नए प्रोजेक्ट के काम पर लग जाना।
मना करने के बावजूद भी साक्षी जानना चाहि मगर राघव ने कुछ नहीं बताया। अंतः तरह तरह के विचार मन में लिए साक्षी चली गई। उसके जाते ही राघव ने एक फोन किया और बोला... एक गरमा गरम कॉफी भेजो और थोडा जल्दी भेजना।
कॉफी का ऑर्डर देकर एक बार फिर से पूर्ववत बैठ गया बस अंतर ये था आज टांगे नहीं हिला रहा था न ही होठो पर रहस्यमई मुस्कान था। बल्कि शांत भाव से बैठा हुआ। सहज भाव से मंद मंद मुस्करा रहा था।
बाप रे राघव ने आज सर का पद पर बैठ के सर जैसा व्यवहार कर दिया
क्या ये जरुरी था ??
क्या इस से उसकी कंपनी को कोई फायदा होगा ??
या साक्षी जैसी होनहार आर्किटेक्ट को खोना पड़ेगा ?
क्या इस से साक्षी सुधर जायेगी ???
या फिर उसका गुस्सा जो अब तक सिर्फ श्रुष्टि तक था अब उसमे राघव ने भी अपनी जगह बना ली ??? अब दो दुश्मन हो गए उसके ???
बड़ा सवाल तो ये है की राघव श्रुष्टि को कैसे जानता है जब की श्रुष्टि उसे जानती तक नहीं ????
साक्षी के साथ साथ मै भी बहोत अचंबित हु सच में .............
अरे मन में सवाल तो बहोत से है और बस आगे जानना भी तो पड़ेगा !!!
जारी रहेगा...
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हेल्लो दोस्तों
वैसे तो शुभ दिन कल था पर आज आई तो आज ...........
आप सब को स्वातंत्र दिवस की बहोत बहोत शुभकामनाये और इस नए शुभ अवसर और पावन दिवस की ढेर सारी बधाईया
एक विकसित अखंड भारत का बुलंद सपने को बुनते और बनाते हुए......आगे बढे .........
एक नए एपिसोड के साथ कहानी को आगे बढाते है ........
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भाग - 14
साक्षी वापस तो आ गईं मगर उसका मन उथल पुथल से अब भी भरा हुआ था। कभी वो ये सोचती कि राघव सर श्रृष्टि को कब से और कैसे जानते हैं? जानते हैं तो क्या साक्षात्कार वाले दिन जो मैंने सोचा था क्या वो सच हैं? अगर सच हैं तो दोनों का क्या रिश्ता हैं?
कुछ देर राघव ओर श्रृष्टि को लेकर सोचती रही फिर सहसा उसे राघव की बताई बाते मस्तिष्क के किसी कोने में गूंजती हुई सुनाई दिया और अपने किए कर्मो को याद करके अपराध बोध से घिर गईं।
साक्षी की यह दशा श्रृष्टि सहित दूसरे साथियों के निगाह में आ गया। सभी ये सोच रहें थे कि नए प्रोजैक्ट का हेड न बनाए जानें से परेशान हैं। इस पर श्रृष्टि और दूसरे साथी बात करना चाहा पर साक्षी उनसे बात करने को कतई राज़ी नहीं हुई। बार बार जोर देने पर अंतः स्वस्थ खबर होने का बहाना बनाकर घर को चल दि।
जबकि साक्षी को किसी तरह का कोई बहाना बनाने की जरूरत ही नहीं थीं। क्योंकि राघव ने उसे पहले ही छुट्टी लेने को कह ही चुका था।
साक्षी के जाते ही श्रृष्टि सहित बाकि सभी कुछ पल ठहर सा गए फिर अपने काम में लग गए।
जारी है
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शाम को जब श्रृष्टि घर लौटाकर आई। बेटी का हंसता मुस्कुराता खिला हुआ चेहरा देखकर माताश्री बोलीं... क्या बात आज मेरी बेटी के चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं हैं। लगता है आज उतना काम नहीं करना पड़ा।
"थकी हुइ तो हूं पर आज जो खुशी मुझे मिली है उसके आगे थकान कहीं टिकता ही नहीं, पाता है मां आज हमे नया प्रोजेक्ट मिला हैं और उसका हेड मुझे बनाया गया हैं।" खुशी को जताते हुए बोलीं और मां के गले लग गईं।
"बधाई हों बेटी ऐसे ही अपनी काबिलियत का परचम लहराते रहना" पीठ थपथपाते हुए माताश्री बोलीं।
श्रृष्टि सिर्फ हां में जवाब दिया और मां से लिपटी रही कुछ देर बाद अलग होकर माताश्री बोली... आज इस खुशी के मौके पर मैं वो सभी खाना बनाउंगी जिसे मेरी बेटी खाना पसंद करती हैं।
श्रृष्टि... मां सिर्फ़ मेरी नहीं समीक्षा के पसंद का खाना भी बना लेना मैं आज उसे भी खाने पर बुलाने वाली हूं।
"हां हां बुला ले उसके बिना तो तेरी खुशी अधूरी हैं।"
इतना बोलकर माताश्री रसोई घर को चली गई और श्रृष्टि ने कॉल करके समीक्षा को खाने की आमंत्रण दे दिया फिर मां के साथ हाथ बटाने लग गईं।
रात्रि करीब साढ़े आठ के करीब द्वार पर किसी के आने का संकेत मिला तो श्रृष्टि ने जाकर द्वार खोला "ये नादान लडकी घर आएं मेहमान से कोई इतनी देर प्रतीक्षा करवाता हैं भाला" इतना बोलकर समीक्षा ने श्रृष्टि से किनारा करते हुए अंदर आ गईं।
"आहा आंटी आज किस खुशी में इतनी स्वादिष्ट और सुगंध युक्त भोजन के महक से घर को महकाया जा रहा हैं।"गहरी स्वास भीतर खींचने के बाद समीक्षा बोलीं
"ये तू अपने दोस्त से पूछ वहीं बता देगी।" श्रृष्टि की और इशारा करते हुए माताश्री बोलीं
माताश्री का जवाब सुनाकर समीक्षा पलटी तो श्रृष्टि उसे, उसके पीछे खड़ी मिली। श्रृष्टि के दोनों कंधो पर हाथ टिका कर बोलीं... उमहू तो बहेनजी जरा अपना मुंह खोलिए और इस दावत का राज क्या है बोलिए।
या फिर मै खुद ही सोच लू ??? कह के एक आँख मार दी श्रुष्टि की ऑर....और कुछ ऐसी जगह उसने चीटी भी भर दी |
"आज हमे नया प्रोजेक्ट दिया गया हैं जिसका हेड मैं हूं इसी...।"
"सत्यानाश… लगता है कम्पनी मालिक को अपने कंपनी से मोह भंग हों गया इसलिए इस डॉफर को प्रोजेक्ट हेड बना दिया ही ही ही..।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कांटकर समीक्षा बोलीं फ़िर श्रृष्टि के माथे पर उंगली रखकर हल्का सा धक्का दिया और दौड़ लगा दी।
"मैं डॉफर हूं, साली डॉफर रूक तुझे अभी बताती हूं।" इतना बोलकर श्रृष्टि भी उसके पीछे भागी । समीक्षा डायनिंग मेज का चक्कर लगाकर माताश्री के पीछे छिप गई और बोलीं...आंटी बचाओ देखो डॉफर को डॉफर बोला तो कितना चीड़ गई ही ही ही...।
श्रृष्टि समझ गई समीक्षा मस्ती कर रही थी फ़िर भी दिखावा करते हुए मेज पर इधर उधर देखने लग गई। ये देखकर समीक्षा बोलीं... ये डॉफर मेज पर क्या ढूंढ रहीं हैं?
"चक्कू ढूंढ रहीं हूं चक्कू, लो मिल गया चक्कू हा हा हा" इतना बोलकर चक्कु हाथ में लेकर पलटी तो समीक्षा बोलीं... आंटी देखो इस डॉफर को ऐसे खुशी के मौके पर केक काटा जाता हैं मगर इस डॉफर की सोच भी डॉफर जैसी हैं दोस्त की गर्दन काटकर खुशी मनाएगी ही ही ही।
"किसने कहा मैं तेरी गर्दन काटूंगी मैं तो तेरी जीभ काटूंगी जिससे की तू मुझे डॉफर न बोल पाए हा हा हा।" चक्कू घूमते हुए श्रृष्टि बोला ये देखकर माताश्री किनारे होकर रसोई को चल दिया।
"आंटी अब आप कहा चली आप ही तो मेरी ढाल थी।"
"तुम दोनों दोस्तों के बीच मेरा क्या काम आपस में निपटा लो ही ही ही।" और एक नजर श्रुष्टि की वो जगह पर डाली जहा समीक्षा ने चिटी भरी थी और थोडा सा मुस्कुराके अपने गंतव्य की और चल दी\
मौका पाते ही श्रृष्टि ने समीक्षा को पकड़ लिया और धकेलते हुए सोफे तक ले गईं फिर समीक्षा को बिठाकर उसके गोद में चढ़ बैठी और चक्कू घूमते हुए बोलीं... अब बोल क्या बोल रहीं थी।
"तू चक्कू दिखाकर डराएगी तो क्या मैं डर जाऊंगी। तू तो डॉफर हैं और डॉफर ही रहेगी, डॉफर कहीं की ( फिर श्रृष्टि की माथे पर उंगली लगाकर धक्का देते हुए बोलीं) हटना न मेरी जांघें टूट गई कितना भरी हो गई है थोडा बर्जीश वर्जीश किया कर ।" और एक नजर उसके स्तनों पर डालते हुए बोली ये भी भारी हो रहे है शायद उसी का वजन ज्यादा है
"तुम दोनों अपनी ये नौटंकी बंद करो ओर इधर आओ।" सहसा माताश्री एक केक मेज पर रखते हुए बोलीं।
"वाह आंटी सही टाइम पर एंट्री मारी हैं नहीं तो ये डॉफर आज मेरी जीभ ही काट देती (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) ये डॉफर ये जीभ बीभ काटने का प्रोग्राम कैंसल कर और केक काटने का प्रोग्राम फिक्स कर।"
"समीक्षा" चिखते हुए श्रृष्टि बोलीं, तो समीक्षा उसके गालों पर हाथ फेरकर हाथ को चूमते हुए बोलीं...मुआआ क्यों छिड़ती है मेरी जान।
इतना सुनते ही श्रृष्टि मुस्कुराते हुए समीक्षा की गोद से उतर गई और समीक्षा उठकर माताश्री की और जाते हुए बोलीं…आंटी देखो इसे बस प्यार से जान बोल दो सारा गुस्सा गायब। आंटी मेरे को न एक शंका हो रहीं हैं कहीं इसने अपने बॉस को जान बोलकर प्रोजेक्ट हेड का तोहफा छीन तो नहीं लिया।
माताश्री बस मुस्कुरा दी और बोली “अब तुम दोनों एक दुसरे की टांग खीचने से बहार आओ तो कुछ काम आगे बढे “
मा ने भी श्रुष्टि के स्तनों की और देखा और बोली
“दोनों सिर्फ और सिर्फ शरीर से दिख रही है बाकी उम्र का व्यवहार आना बाकी है “ बस भगवान ही आगे जाने
"समीक्षा तू कुछ ज्यादा नहीं बोल रहीं हैं अब तो पक्का तेरी जीभ काट दूंगी।" इतना बोलकर श्रृष्टि तेजी से दो चार कदम बढ़ी ही थी की सहसा उसके कदम रूक गए और कुछ सोचकर मुस्करा दिया फ़िर सिर झटक दिया और समीक्षा के पास जाकर बोलीं…अब बोल क्या बोल रहीं थीं?
समीक्षा... मैं तो बस इतना बोल रहीं थी जल्दी से केक काट बहुत जोरों की भूख लगी हैं।
समीक्षा रूक रूक कर बोलीं जिससे श्रृष्टि मुस्कुरा दिया और समीक्षा से गले मिली और धीरे से बोली डफेर मा के सामने इधर उधर छुआ मत कर|
फिर केक कांटकर खुद को मिली उपलब्धि की खुशी मनाई और खान पीना करके समीक्षा अपने घर और श्रृष्टि अपने घर सपनों की हंसी वादियों में खो गईं।
जारी रहेगा...
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well आज भी को कोमेंट नहीं आया ना ही लाइक ................
लगता है किसी को मेरी कहानी पसंद ही नहीं आई
खेर अब कहानी लिखी ही है तो पूरी कर्निजरुर है शायद बाद में पाठको को पसंद आये
चलिए कहानी में अब आगे बढ़ते है
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भाग - 15
अगले दिन सभी दफ्तर में मौजूद थे अगर कोई नहीं था तो वो थी साक्षी, राघव दफ्तर आते ही शिग्रता से कुछ काम निपटाया फ़िर श्रृष्टि और उसके साथियों के पास पहुंच गया।
राघव…हां तो सभी जानें के लिए तैयार हों।
श्रृष्टि... सर तैयार तो है पर साक्षी मैम अभी तक नहीं आई।
राघव... उसका msg आया था उसकी तबीयत खराब हैं इसलिए आज नहीं आ पाएगी (फ़िर मन में बोला) लगता हैं कल की बातों का ज्यादा ही असर पड़ गया।
श्रृष्टि... ओह ऐसा क्या? हम तो कुछ ओर ही सोच बैठें थे।
राघव... जो भी सोचा हो उसे यहीं पर पूर्णविराम दो और चलने की तैयारी करो हमे देर हों रहा हैं। किसी के लिए कोई रुकता है भला ??
"जी हा" कहकर सभी अपने अपने जरूरी यन्त्र लेकर दफ्तर से बहार आए। दूसरे साथियों के पास अपने अपने कार थे तो वो उसी ओर चल दिए और श्रृष्टि अपने स्कूटी लेने जा रहीं थीं कि राघव रोकते हुए बोला...श्रृष्टि आप कहा चली आप मेरे साथ मेरे कार से चलिए।
श्रृष्टि... पर सर मेरे पास मेरी स्कूटी है।
राघव...हा जानता हूं आपके पास स्कूटी है। आप उसे यहीं छोड़ दीजिए ओर मेरे साथ चलिए क्योंकि हमे दो चार किलोमीटर नहीं शहर के दूसरे छोर लगभग तीस किलोमीटर दूर जाना हैं।
"ऐसा है तो मैं उनके साथ उनके कार में चलती हूं।" असहज होते हुए बोलीं
राघव... क्यों? मेरे साथ चलने में क्या बुराई हैं? मैं कोई भूखा भेड़िया नहीं हूं जो आपको खा जाऊंगा।
श्रृष्टि... मैंने ऐसा तो नहीं कहा।
राघव... भले ही नहीं कहा मगर आपके हावभाव कुछ ऐसा ही दर्शा रहीं हैं। यकीन मानिए मैं कोई अधोमुखी नहीं हूं आपकी तरह एक साधारण इंसान हूं। इसलिए ओर बाते न बढ़ाकर मेरे साथ चलिए।
राघव के इतना बोलते ही श्रृष्टि ना चाहते हुए भी राघव के पीछे पीछे चल दिया तो राघव बोला...आप यहीं रूकिए मैं कार लेकर आता हूं।
श्रृष्टि वहीं रूक गईं और तरह तरह की बाते उसके मन मस्तिष्क में चलने लगे । मैं सर के साथ उन्हीं के कार में जाकर क्या सही कर रहीं हूं? किसी ने ध्यान दिया तो तरह तरह की बाते बनाने लग जायेंगे। ऐसा हुआ तो मैं इन सब बातों का सामना कैसे करूंगी। उफ्फ मैने चलने को हां क्यों कहा? मुझे हां कहना ही नहीं चाहिए था अब क्या करूं?
श्रृष्टि खुद की विचारों में खोई थी कि सहसा हॉर्न की आवाज ने उसके विचारों से उसे मुक्त करवाया। सामने राघव कार लिए खड़ा था। उसके बैठने को कहने पर एक बार फिर श्रृष्टि सोच में पड गई कि बैठे तो बैठें कहा आगे बैठे कि पीछे सहसा न जानें उसके मस्तिष्क में किया खिला जो पीछे का दरवाजा खोलकर बैठने जा ही रहीं थी की राघव बोला...अरे डोफर पीछे क्यों बैठ रहीं हो आगे का सीट खाली है वहा बैठो न खामखा मुझे अपना ड्राइवर बनाने पे क्यों तुली हों।
डोफर सुनते ही श्रृष्टि राघव को खा जाने वाली नजरों से ऐसे देखने लगीं मानो अभी के अभी राघव को बिना पानी के सबूत निगल जायेगी। ये देख राघव बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि गलती हों गइ। अब मुझे ऐसे न घूरो जल्दी से बैठो हमे देर हों रहा है ओर हा पीछे मत बैठना आगे की सीट पर बैठना (फिर मन में बोला) ओह लगता हैं कुछ ज्यादा ही नाराज हो गई है। होना भी चाहिए डोफर सुनते ही किसी भी खूबसूरत लडकी को गुस्सा आ ही जाएगा। मै भी शायद बुध्धू ही हु इतना आसान बात भी मेरे समज में नहीं आया”
श्रृष्टि बस घूरते हुए घूमकर सामने की सीट पर बैठ गई फिर "भाडाम" से कार का दरवाजा बन्द कर दिया। अपना गुस्सा दरवाजे पे ठोक दिया| ये देखकर राघव बोला... अरे अरे नाराज हों तो नाराजगी मुझ पर निकालो कार का द्वार तोड़ने पे क्यों तुली हो इसे कुछ हुआ तो मेरा बापू दुसरा नहीं दिलाएगा हा हा हा।
श्रृष्टि…”एकदम गोबर जोक था जब जोक सुनाना नहीं आता। तो सुनाते क्यों हों?”
इतना बोलकर श्रृष्टि मुंह फूला कर बैठ गई। इन लड़कियों के नखरे भी अजब गजब है कल दोस्त डोफर डोफर बोल रहीं थीं तो बहनजी मस्त, मस्ती कर रही थी और आज बॉस ने डोफर क्या बोल दिया बहनजी रूठ गई हैं।
खैर कार अपने गंतव्य को चल दिया और कार में सन्नाटा था। न राघव कुछ बोल रहा था ना ही श्रृष्टि कुछ बोल रहीं थी। लम्बा वक्त यूं सन्नाटे में बीत गया। सहसा राघव सन्नाटे को भंग करते हुए बोला... श्रृष्टि आप न भोली सूरत वाली एक खूबसूरत लडकी हों।
ये सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया और निगाहे फेरकर राघव की ओर देखा मगर राघव उसकी और न देखकर सामने की और देख रहा था। एक बार फिर कुछ पल का सन्नाटा छा गया इस बार की सन्नाटा को भंग करते हुए श्रृष्टि बोलीं...सर किसी रूठी लडकी को मनाने का ये पैंतरा पुराना हों चुका हैं कोई और तरीका हों तो अजमा सकते हैं। वैसे हर नारी को अपनी तारीफ़ अच्छी लगती है और श्रुष्टि उसमे से कैसे बकात रह सकती है | उसे अच्छा तो लगा पर गुस्सा जो दिखाना था
राघव... पुराना भले ही हो मगर कारगर हैं तुम सिर्फ़... तुम बोल सकता हूं न।
श्रृष्टि…सर ये आप और तुम की औपचारिकता छोड़िए जो मन करें बो बोलिए। (मन में लेकिन कुछ अच्छा बोलना ये फिर से डोफर ना कह देना )
"मेरा मन तो जानेमन बोलने को कर रहा है।" धीरे से बोला ताकि श्रृष्टि सुन न ले।
श्रृष्टि... सर क्या बोला जरा ऊंचा बोलेंगे मुझे कम सुनाई देता हैं।
राघव... तुम्हें और कम क्यों झूठ बोल रहीं हों। तुम तो हल्की सी आहट भी सुन लेती हों।
श्रृष्टि…अच्छा... ये आप कैसे कह सकते हों। (सहसा कुछ याद आया जिसे सोचकर श्रृष्टि मन ही मन बोलीं) ऊम्म तो आपका इशारा उस दिन की बात पर हैं चलो मेरा भ्रम तो दूर हुआ अब बस ये जानना हैं कि आपके मन में चल क्या रहा हैं।
इतने में राघव ने कार को रोक दिया फिर बोला... श्रृष्टि हम पहुंच चुके हैं।
श्रृष्टि ने आगे देखा तो सामने एक बड़ा सा खाली जमीन है जिसे देखकर श्रृष्टि बोलीं... सर हम बडी जल्दी पहुंच गए।
राघव... बातों बातों में पाता ही नहीं चला जरा अपने हाथ में बंधी घड़ी को देखो फ़िर पता चल जायेगा हम कितने समय तक सफर करते रहें।
घड़ी देखने के बाद श्रृष्टि को पता चला लगभग एक घंटे का सफर करने के बाद वो लोग यहां तक पहुंचे खैर और देर करना व्यर्थ समझकर श्रृष्टि लपककर गाड़ी से उतरी, जेठ महीने की झुलसा देने वाली सूरज की तपन देह को छूते ही श्रृष्टि बोलीं... धूप कितनी तेज हैं।
राघव... धूप तो तेज है लेकिन अब किया भी ही क्या जा सकता हैं तुम पहले कहती तो मैं एक छाता ले आता।
श्रृष्टि... अच्छा मेरे कहने भर से आप छाता ले आते।
राघव... तुम कह कर तो देखती नहीं लेकर आता फ़िर कहती।
श्रृष्टि मुस्कुराकर देखा और मन में बोलीं... आज मुझे हो क्या हो रहा हैं सर से ऐसे क्यों बात कर रही हूं। सर भी ओर दिनों से ज्यादा फ्रैंकली बात कर रहें हैं। उनके दिमाग में चल किया रहा हैं। मुझे उसे ऐसे कोई ढील देनी नहीं चाहिए ये पुरुष होते है ऐसे है कुछ जगह मिली नहीं की पूरी सिट खुद की मान लेते है |
यहां श्रृष्टि खुद से बातें करने में मस्त थीं वहां राघव भी कुछ ऐसा ही बात मन में बोला रहा था। "आज मुझे क्या हों गया जो में श्रृष्टि से ऐसे बात कर रहा हूं। पहले तो उसे डफेर बोल दिया फिर खुद को उसका ड्राइवर बोल दिया वो पीछे बैठ रहीं थी तो इसमें कौन सी बुराई थीं। मगर मैंने लागभग विनती करते हुए उसे आगे बैठने को कहा इतना तो ठीक हैं वो मेरे साथ आना ही नहीं चाहती थी फिर भी उसे लगभग जबरदस्ती मेरे साथ बैठने को मजबूर कर दिया। मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं क्यों...।
"सर यहां कब तक खड़े रहना हैं धूप बहुत तेज़ है हमे जल्दी से काम निपटाकर चलना चाहिए।" सहसा एक आवाज राघव के कानों को छुआ तो उसकी तंद्रा भंग हुआ, सामने देखा तो उसके साथ आए साथियों में से एक खड़ा था जो उससे कुछ बोला था मगर राघव विचारो में खोए होने के कारण सुन नहीं पाया तब उसने क्या बोला ये पुछा तो जवाब में "सर आप को हो क्या गया है? अच्छे भले दिखते हो फ़िर भी कहीं खोए खोए से लगते हों। आप ऐसे तो न थे | मैं तो बस इतना ही कह रहा था धूप बहुत तेज़ है जल्दी से हमे काम निपटाकर चलना चाहिए।
राघव... ठीक कह रहे हों।
इतना बोलकर एक नज़र श्रृष्टि की ओर देखा तो उसे दिखा श्रृष्टि उसी की ओर देखकर मंद मंद मुस्करा रहीं थीं। ये देखकर राघव भी हल्का सा मुस्कुरा दिया।
राघव को मुस्कुराते देखकर श्रृष्टि ने निगाह ऐसे फेर लिया जैसे दर्शाना चाहती हों उसने कुछ नहीं देखा। बहरहाल जमीन की पैमाईश और बाकि जरुरी काम शुरू किया गया। तेज धूप और उमस अपना प्रभाव उन सभी पर छोड़ रहा था। इसलिए कुछ देर काम करते फिर कार में आकर एसी के ठंडक का मजा लेकर फिर से काम करने लग जाते। काम खत्म करते करते लगभग तीन साढ़े तीन बज गए। थक तो गए ही थे साथ ही सभी को भूख भी बड़ी जोरों का लगा था। तो लौटते वक्त सभी को एक रेस्टोरेंट में ले जाकर सभी को उनके पसंद का खान खिलाया फ़िर दुनिया भर की बाते करते हुए दफ्तर लौट आएं।
अब ये नया कुछ आया श्रुष्टि और राघव ना जाने क्या सोच रहे है ये ऑफिस का तो काम है ही पर एक दुसरे के बारे में सोचना तो ऑफिस वर्क में नहीं आता !!!!!!
जारी रहेगा…..
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भाग - 16
अगला दिन सब कुछ सामान्य रहा बस राघव का व्यवहार और साक्षी का न आना सामान्य नहीं रहा। राघव दोपहर के बाद का बहुत सारा वक्त श्रृष्टि सहित बाकि के साथियों के साथ बिताया।
जहां सभी काम में लगे रहे वहीं राघव काम में हाथ तो बांटा ही रहा था मगर कभी कभी रूक सा जाता और श्रृष्टि को मग्न होकर काम करते हुए देखता रहता यदाकदा दोनों की निगाहे आपस में टकरा जाते तो राघव निगाहे ऐसे फेर लेता जैसे वो कुछ देख ही नहीं रहा हों और श्रृष्टि बस मुस्कुरा देती।
ऐसा अगले कई दिनों तक चला। इन्हीं दिनों राघव लंच भी उन्हीं के साथ करने लगा। श्रृष्टि के मन में जो थोड़ी बहुत शंका बची था वो खत्म हों गया। शंका खत्म होने से श्रृष्टि का राघव को देखने का नजरिया भी बदल गया। अब वो भी खुलकर तो नहीं मगर सभी से नज़रे बचाकर राघव को बीच बीच में देख लेती और जब कभी नज़रे टकरा जाती तो खुलकर मुस्कुरा देती।
नैनों का टकराव और छुप छुपकर ताकाझाकी हों रहा था इसका मतलब ये नहीं की काम से परहेज किया जा रहा हों। काम उसी रफ़्तार से किया जा रहा था।
बीते कई दिनों से जो भी हों रहा था वो शुरू शुरू में असामान्य घटना थी मगर अब सामान्य हों चुका था किंतु बीते दिनों की एक घटना अभी तक असामान्य बना हुआ था। जिस दिन राघव ने साक्षी को उसके मनसा या कहू उसके कारस्तानी बताया था उस दिन से अब तक एक भी दिन साक्षी दफ्तर नहीं आई थीं।
ये बात श्रृष्टि सहित बाकि साथियों को खटक रहा था। और ख़ास कर एक कर्मचारी को | इसलिए आज लंच के दौरान उसी सहयोगी ने उस मुद्दे को छेड़ा... श्रृष्टि मैम पिछले कुछ दिनों से साक्षी मैम दफ्तर नहीं आ रही हैं। पूछने पर कहती हैं तबीयत खराब हैं और कहती है की वो तबियत की खराबी मुझे नहीं बता सकती शायद लेडीज़ प्रोब्लेम्र हो, लेकिन मुझे लगता हैं सच्चाई कुछ ओर ही हैं।
"हां श्रृष्टि मैम जिस दिन आपको प्रोजेक्ट हेड बनाया गया था उस दिन भी साक्षी मैम कुछ अजीब व्यवहार कर रहीं थीं मुझे लगता हैं साक्षी मैम को ये बात पसंद नहीं आई इसलिए दफ्तर नहीं आ रहीं हैं।" दूसरे साथी ने कहा।
श्रृष्टि… गौर तो मैंने भी किया था। मगर तुम जो कह रहें हों मुझे लगता हैं सच्चाई ये नहीं है। ऐसा भी तो हों सकता है सच में साक्षी मैम की तबीयत खराब हों इसलिए नहीं आ रहीं हों।
"मैम हम लोग साक्षी मैम के साथ लम्बे समय से काम कर रहे हैं। उन्होंने कभी इतना लंबा छुट्टी नहीं लिया अगर लिया भी तो दो या तीन दिन इससे ज्यादा कभी नहीं लिया फिर एकदम से क्या हो गया जो इतनी लम्बी छुट्टी पर चली गई है। मुझे आपके प्रोजेक्ट हेड बनने के अलावा कोई और कारण नज़र ही नहीं आ रहा है।" एक साथी ने बोला
साथी की बातों ने श्रृष्टि को सोचने पर मजबूर कर दिया। अलग अलग तथ्य पर विचार विमर्श करने के बाद मन ही मन एक फैंसला लिया और जल्दी से लंच खत्म करके राघव के पास पहुंच गईं। कुछ औपचारिता के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आज आप हमारे साथ लंच करने नहीं आए।
राघव... आज लंच नहीं लाया था इसलिए...।
"मतलब अपने आज लंच नहीं किया।" राघव की बातों को बीच में कांटकर श्रृष्टि बोलीं।
राघव... अरे नहीं नहीं लंच किया हैं बहार से मंगवाया था इसलिए तुम सभी के साथ लंच नहीं किया।
श्रृष्टि... बहार से मंगवाया था तो क्या हुआ आ जाते हम आपका लंच हड़प थोड़ी न लेते। खैर छोड़िए इन बातों को मैं आपसे कुछ जरूरी बातें करने आई थी।
राघव... तो करो न मैंने कब रोका हैं और तुम ये आप की औपचारिकता कब बंद कर रहें हों। मैंने तुम्हें कहा था न, तुम मेरे लिए आप संबोधन इस्तेमाल नहीं करोगे।
श्रृष्टि...जब सभी आपको आप कहकर संबोधित करते हैं तो मेरे कहने में बुराई क्या हैं।
राघव... बूराई है श्रृष्टि, क्योंकि तुम सबसे खास हों ( फिर मन में बोला ) तुम क्यों नहीं समझती यार तुम मेरे लिए कितनि खास हों इतने इशारे करने के बाद भी तुम रहे डॉफर के डॉफर ही।
क्रमश .....
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श्रृष्टि... खास बास मैं कुछ नहीं जानती। दूसरो की तरह मैं भी आपको आप से ही संबोधित करूंगी। आपको बूरा लगता हैं तो लगें। (फ़िर मन में बोलीं) सर जानती हूं मैं आप के लिए मै कितनी खास हूं या यूं काहू एक कामगार से बढ़कर कुछ ओर ही हूं। लेकिन मैं ऐसा हरगिज नहीं होने देना चहती हूं।
{आपको क्या पता जब मैंने ये जाना की मै कुछ ख़ास बन रही हु तो सब से पहले नहाते वक़्त मैंने खुद को शीशे के सामने देखा बस ये जान ने के लिए की क्या मै उतनी आकर्षक हु की किसी को आकर्षित कर सकू ?? और ये तीसरी बार था पहली बार स्कुल में किसी ने छेड़ दिया था तब दूसरी बार वो हरामी का पिल्ला जिस ने मोल में मेरे नितंब छुए थे तब उसकी वो हरकत ने मुझे मेरे ही नितम्बो को देखने मजबूर कर दिया और अब आपकी वजह से, कभी कभी साली वो समीक्षा कि छेडछाड भी खेर वो तो मै भी उसे वैसे ही करती रहती हु पर शायद ये कुछ मेरे खयालो से विपरीत ही मैंने अपने आप को पूरी तरीके से टोवेल उतार के देखा और ये पहली बार था और शायद मुझे लगा की मै आकर्षक तो हु }
राघव... तुम मानने से रहीं इसलिए तुम्हारा जैसे मन करे वैसे ही संबोधित करो मगर ध्यान रखना एक दिन मैं अपनी बात तुमसे मनवा कर रहूंगा।
श्रृष्टि... मैं भी देखती हूं आप कैसे मनवाते है। खैर छोड़िए इन बातों को जो मैं कहने आई थीं वो सुनिए...।
राघव... हां तो सुनाओ न मैं भी सुनने के लिए ही बैठा हूं। (बस कुछ मीठा मीठा ही बोल दो )
इस बात पर श्रृष्टि मुस्कुरा दिया फिर बोली... सर मैंने फैसला लिया हैं कि आप इस प्रोजेक्ट का हेड साक्षी मैम को बना दीजिए।
"अच्छा? क्या मैं जान सकता हूं तुमने ये फैसला क्यों लिया एक वाजिब वजह बता दो।"सहज भाव से मुस्कुराते हुए राघव बोला
श्रृष्टि... सर वजह ये हैं की जिस दिन से आपने मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाया हैं उसके बाद से ही साक्षी मैम छुट्टी पर हैं। इसलिए मुझे लगता है, साक्षी मैम को मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाना पसंद नहीं आया।
राघव... जरूरी तो नहीं कि यहीं वजह रहीं हों कुछ ओर भी कारण हों सकता हैं। बीमार हो
श्रृष्टि... सर आप ये भलीभांति जानते हों साक्षी मैम कभी भी इतना लम्बा छुट्टी नहीं लिया हैं फ़िर इतनी लंबी छुट्टी लेने का ओर क्या करण हों सकता हैं। मुझे तो बस यहीं एक कारण दिख रहा हैं जो प्रत्यक्ष सामने है।
राघव... ओ श्रृष्टि तुम काम के मामले में जितनी तेज तर्रार हों उतनी ही भोली, कुछ ओर मामले में हों। अब देखो न तुम ही कहती हो जो प्रत्यक्ष दिख रहा है सच उसके उलट होता हैं। इस मामले में भी जो दिख रहा है सच वो नहीं हैं। अब तुम सच जानने की बात मत कह देना क्योंकि ये सच मैं किसी को नहीं बताने वाला हूं। और हां देखो मुझे यहाँ अपने धंधे से काम है अगर मेरा काम ढंग से हो ही रहा है तो मुझे किसी की भी पर्व नहीं है
श्रृष्टि... ठीक हैं मैं सच नहीं जानना चाहूंगी मगर मुझे साक्षी मैम का यूं इग्नोर रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा।
राघव... वो क्यों भाला?
श्रृष्टि... “सर साक्षी मैम यहां लंबे समय से काम कर रहीं हैं और जीतना भी वक्त मैं उनके साथ काम किया है उतने वक्त में, मैं इतना तो समझ ही गई हूं साक्षी मैम काबिलियत के बहुत धनी है। मुझे तो लगता हैं वो मूझसे भी ज्यादा काबिल है इसलिए इस प्रोजेक्ट में उनका साथ रहना इस प्रोजेक्ट के लिए बहुत फायदेमंद होगा। और ये मै मेरे लिए नहीं कह रही पर हमारी कंपनी के फायदे में ये जरुरी है शायद आप को ठीक लगे “
"ठीक हैं मैं कुछ करता हूं" मुस्कुराते हुए राघव बोला
श्रृष्टि... “जो करना हैं जल्दी से कीजिए अच्छा अब मैं चलती हूं।“
श्रृष्टि जाने की अनुमति मांगा तो राघव उसे रोकते हुए बोला... श्रृष्टि इस इतवार को तुम खाली हों।
"आप क्यों पूछ रहें हों" जानकारी लेने के भाव से बोलीं
राघव... अगर खाली हों तो इस इतवार को लंच या फ़िर शाम की चाय पर चल सकती हों।?
श्रृष्टि... उम्हू तो आप मुझे डेट पर ले जाना चाहते हैं। क्या मैं जान सकती हूं क्यों?
राघव…शायद डेट ही हों मगर क्यों ले जाना चाहता हूं ये जब चलोगी तब पाता चलेगा।
श्रृष्टि... सॉरी सर मै इस इतवार को बिल्कुल भी खाली नहीं हूं वो क्या है न मुझे मां के साथ कहीं जाना हैं ओर शायद लौटने में देर हों जाए इसलिए आपसे वादा नहीं कर सकतीं हूं।
राघव... कोई बात नही फ़िर कभी चल देगें।
इसके बाद श्रृष्टि विदा लेकर चल दिया जाते वक्त मन ही मन बोलीं... सर मै जानती हूं आप मुझे डेट पर क्यों ले जाना चाहते हों पर मैं आपके साथ एक कामगार के अलावा कोई ओर रिश्ता जोड़ना नहीं चाहता। सॉरी सर मैंने आपसे झूठ बोला मगर मैं भी क्या करूं मैं मजबूर जो हूं।
मन ही मन इतना बोलकर आंखो के कोर पर छलक आई आंसू के बूंदों को पोंछते हुए चली गई और यहां राघव श्रृष्टि के जाते ही खुद से बोला... ओ श्रृष्टि तुम साक्षी से कितनी अलग हों यही बात मैंने साक्षी या किसी ओर से बोला होता तो कितना भी जरुरी काम होता सब छोड़कर मेरे साथ चल देती मगर तुम...हो ...की ....डाफेर..... ओहो श्रृष्टि तुम कब मेरे दिल की भावना को समझोगी कितनी बार दर्शा चुका हूं कि मै तुम्हें पसंद करता हूं और शायद प्यार भी करने लगा हूं।
मन ही मन खुद से बातें करने के बाद मुस्कुरा दिया फिर कुछ याद आते ही किसी को फ़ोन किया, एक बार नहीं कहीं बार फ़ोन किया मगर कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो थक हरकर मोबाइल रख दिया ओर अपने काम में लग गया।
लगभग दो दिन का वक्त ओर बिता था की साक्षी दफ्तर आ पहोची उसे देखकर श्रृष्टि सहित सभी साथी गण उसका हालचाल लेने लग गए और इतने दिन ना आने का कारण पूछने लग गए। तबीयत ख़राब होने की पुरानी बात बताकर टाल दिया। वे भी ज्यादा सवाल जवाब न करके जो साक्षी ने बताया मान लेना ही बेहतर समझा।
जैसे ही राघव के दफ़्तर पहुंचने का पता चला सभी को राघव से मिलने जानें की बात कहकर चल दिया और कुछ औपचारिक बाते करने के बाद एक लेटर राघव के मेज पर थापक से रख दिया।
जारी रहेगा...
आप के मन में जो भी सवाल आये है तो आप यहाँ बता दे
वर्ना अगला भाग तो है ही ....................
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चलिए एक और कदम बढ़ाते हुए हमारी कहानी में
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भाग - 17
अपने सामने रखा लेटर पर सरसरी निगाह फेरकर राघव बोला... ये क्या है साक्षी, एक तो इतने दिनों बाद लौटी हों और आते ही लेटर थमा रहीं हों। कहीं ये लव लेटर तो नहीं, ऐसा हैं तो इसे अपने पास रख लो ये मेरे किसी काम का नहीं।
साक्षी... ये आपके काम का ही हैं। ये लव लेटर नहीं मेरा इस्तीफा हैं।
"क्या" चौकते हुए राघव बोला और लेटर उठकर पढ़ने लग गया। लेटर का कुछ हिस्सा पढ़कर राघव बोला...साक्षी ये क्या पागलपंती हैं। मैं तो तुमसे इस्तीफा नहीं मांगा फ़िर इस्तीफा क्यों दे रहीं हों।
साक्षी... जो भी मैंने किया और जो भी यहाँ हुआ। मैं समझती हूं उसके बाद मेरा यहां काम कर पाना संभवतः मुश्किल हैं। सिर्फ़ इसी कारण से मैं इस्तीफा दे रही हूं।
"जो भी क्या (सरसरी निगाह साक्षी पर फेरा फिर राघव आगे बोला) जो भी तुमने किया वो तो समझ में आया मगर जो भी हुआ उससे तुम्हारा क्या मतलब हैं? कहीं तुम्हें श्रृष्टि को प्रोजेक्ट हेड बना देना बूरा तो नहीं लग गया।
राघव के सवाल का कोई जबाव साक्षी नहीं दिया बस चुप्पी साधे खड़ी रहीं। साक्षी का यूं चुप्पी साध लेना इशारा कर रहा था कि राघव का तीर सही ठिकाने पर लगा हैं। इसलिए राघव बोला...साक्षी तुम काबिलियत के मामले में भले ही श्रृष्टि से कम नहीं हों मगर एक मामले में तुम उसके आस पास भी नहीं भटकती हों वो है उसकी सोच, उसकी सोच अव्वल दर्जे की हैं। बीते दो दिन हुए वो मेरे पास आई थीं और कह रही थीं कि मैं तुम्हें प्रोजेक्ट हेड बना दूं।
साक्षी...सर क्यों झूठ बोल रहें हों। इतने कम वक्त में कोई प्रोजेक्ट हेड बन जाएं और खुद ही आकर किसी ओर को, जिसे पछाड़कर प्रोजेक्ट हेड बनी हों। दुबारा उसे प्रोजेक्ट हेड बनाने को कहें ये मैं मान ही नहीं सकती। क्या आप मान सकते हो अगर आप मेरी जगह पर हो तो ???
राघव...साक्षी तुम और तुम्हारी सोच तुम मानो या न मानों यहीं सच हैं। हों सकता है तुम्हें बूरा लगे मगर यहीं सच हैं कि तुम सिर्फ़ अपने भले की ही सोचती हो जबकि तुम कई वर्षों से हमारी कम्पनी में काम कर रहीं हों और श्रृष्टि उसको आए अभी एक ही महीना हुआ हैं लेकिन वो खुद से ज्यादा हमारी कम्पनी के भले की सोच रहीं हैं। उसका कहना हैं कि तुम उससे ज्यादा काबिल हों इसलिए मैं तुम्हें उसके जगह प्रोजेक्ट हेड बाना दू। उसका यह भी कहना हैं इससे प्रोजेक्ट को फायदा होगा। अब तुम ही सोचो प्रोजेक्ट को फायदा मतलब सीधा सीधा कम्पनी को फायदा होगा। इस पर तुम्हारा क्या कहना हैं?
साक्षी अभी कुछ भी कह पाती उसे पहले ही "सर मै भीतर आ सकती हूं।" आवाज आई। आवाज सुनते ही राघव समझ गया। आवाज देने वाली कौन है? इसलिए साक्षी को चुप रहने का इशारा करके बोला... श्रृष्टि कोई जरूरी काम था?
"हां सर" श्रृष्टि बोलीं
राघव... ठीक हैं आ जाओ
श्रृष्टि भीतर आते ही कुछ औपचारिक बाते किया फिर असल मुद्दे पर आते हुए बोलीं... सर अब जब साक्षी मैम आ ही गई हैं तो आप उन्हें मेरे जगह प्रोजेक्ट हेड बना दिजिए (फ़िर साक्षी से सामने होकर बोलीं) साक्षी मैम मैं इतना तो समझ ही गई हूं कि मुझे प्रोजेक्ट हेड बना देना आपको बूरा लगा हैं। चाहे आप बताये या ना बताये पर आप काबिल हो और काफी वक्त से हमारी कम्पनी से जुड़ी हों सहसा नई नई आई किसी लडकी को प्रोजेक्ट हेड बना दिया जाए तो बूरा लगना स्वाभाविक हैं। आप की जगह मै होती तो मुझे भी बुरा लगता और मै ही क्या कोई भी होता तो उसको बुरा लगता |
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श्रृष्टि की बातो ने साक्षी को अचंभित सा कर दिया। उसके मन में पनपी सभी शंका को एक पल में ही धराशाई कर दिए। सहसा श्रृष्टि की निगाह राघव के सामने रखी लेटर पर पड़ा। जिसे उठकर कुछ ही हिस्सा पढ़ते ही बोलीं...उम्हा तो आप इस्तीफा देने आई थीं। मगर अब आपको इस्तीफा देने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि आज से आप इस प्रोजेक्ट की हेड होंगी। क्यों सर मै सही बोल रहीं हूं न।
राघव…”खेर तुम अभी बोस नहीं बनी श्रुष्टि” तुमने तो झट से अपना फैंसला सुना दिया। कुछ फैंसला मुझे ही करने दो आखिर मैं इस कम्पनी का हेड हूं।
"ठीक है। उम्मीद करूंगी आपका फैंसला साक्षी मैम के हक में हों। (साक्षी से मुखातिब होकर बोलीं) साक्षी मैम बहुत छुट्टी मार ली अब चलकर कुछ काम धाम कर ले।
साक्षी... तुम चलो मैं सर से कुछ जरुरी बात करके आती हूं।
"जल्दी आना" बोलकर श्रृष्टि चली गई। उसके जाते ही कुछ देर रूकी फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये कैसा पीस है और इसे कहा से ढूंढ लाए।
राघव…अनमोल पीस हैं। खुद से आई हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हैं।
"सिर्फ़ मेरा है" सुनते ही साक्षी की आंखे बडी बडी और मुंह खुला का खुला रहा गया ये देख राघव बोला...जब से श्रृष्टि आई हैं तब से साक्षी तुम्हारी ग्रह दशा बिगड़ गई हैं। सिर्फ़ सदमे पे सदमा मिल रहीं हैं।
साक्षी... सर ये सदमा मुझे तब तक मिलता रहेगा जब तक आप ये नहीं बता देते कि आप श्रृष्टि से कब-कैसे मिले और "मेरी हैं" से आपका क्या मतलब हैं।
राघव... मतलब तुम्हें सदमा लगने से बचाना हैं तो श्रृष्टि से मिलने की बात बताना जरूरी हैं।
साक्षी... हां सर बता दिजिए नहीं तो पता चला किसी दिन आपके दिए सदमे से मैं चल बसी और आपका एक आर्किटेक हमेशा हमेशा के लिए काम हों जाएं।
राघव... हमेशा हमेशा से मतलब तुम...।
"हां सर श्रृष्टि की बातों ने मुझे ये सोचने पर मजबुर कर दिया कि मेरी सोच कितनी गलत हैं। इसलिए चंद पलों में ही मैने फैंसला ले लिया कि मैं अब यह कम्पनी तब तक छोड़कर नहीं जाऊंगी जब तक आप खुद से मुझे निकाल नहीं देते और इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि को हेड मानकर ही काम करूंगी।" राघव की बातों को कांटकार साक्षी बोलीं
राघव…”अच्छा किया जो तुमने अपना फैंसला बादल दिया। अब तुम खुद ही श्रृष्टि को बताओगी की वो ही इस प्रोजेक्ट की हेड रहेगी।“
मै जहा तक उसे जानता हु तो तुम्हारे पीछे पीछे उसका भी इस्तीफा मेरे टेबल पे आ जाएगा “ क्या पता वो अपने कोम्पुटर पर वोही टाइप कर रही हो......”
"हां हां बता दूंगी अब आप अपना कथा पुराण शुरू कीजिए।" साक्षी मुस्कुराते हुए बोलीं। “मुझे बस उसमे ही रस है की श्रुष्टि से क्या लेनादेना है
अगर आपको मेरी काबलियत का पूरा पूरा निचोड़ चाहिए तो शर्त ये है “
राघव “पता नहीं था की तुम्हे ब्लेकमेल भी करना आता है| बहोत शातिर किसम की लड़की हो तुम “
साक्षी “ आपको बहोत कुछ अभी मेरे बारे में जानना बाकी है शुरुआत से ही डर गए?? मुस्कुराते हुए अपनी एक हाथ से आगे बोलने का इशारा करते हुए राघव की और ? मार्क भरी आँखों से देखते हुए बोली
राघव... ये बात तब की है जब हमारी कम्पनी और DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप पार्टनरशिप में एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहें थे।
"सर ये तो दो तीन साल पुरानी बात हैं। राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं
राघव... हां, ये उस वक्त की बात हैं। हालाकि श्रृष्टि ओर मेरा ज्यादा आमना सामना नहीं हुआ। याद कदा ही उससे मिला हूं वो भी कंसट्रक्शन साईड पर मगर उसकी चर्चा बहुत सूना था जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। दरअसल हुआ ये था हमारी क्लाइंट बड़ा अजीब था। बीच कंस्ट्रक्शन ही अलग अलग मांग रख देता था। तुम तो जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन में मांग रख दी जाए तो उसे पूरा करने में आर्किटेक के पसीने छूट जाते हैं। उस वक्त भी उस प्रॉजेक्ट से जुड़े सभी आर्किटेक्ट के पसीने छूटे हुए थे। मगर एक श्रृष्टि ही थी जो अपने सूज बुझ और कार्य कुशलता के दम पर बिना नीव को कोई नुकसान पहुंचाए क्लाइंट के एक के बाद एक मांग को पूरा करती गइ। इससे प्रभावित होकर DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक श्रीमान दिनेश नैनवाल जी से श्रृष्टि के साथ एक पर्सनल मीटिंग करवाने की मांग रखा। मगर दिनेश नैनवाल जी मान ही नहीं रहे थे। बहुत मन मनुवाल के बाद राज़ी हुए इस शर्त पर कि उस मीटिंग में वो भी मौजूद रहेंगे। मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं था तो मैंने भी हां कर दिया। हमारी मीटिंग हो पाती उससे पहले ही सूचना मिला कि श्रृष्टि ने नौकरी छोड़ दिया।
"क्या..ये लडकी भी पागल हैं। इतना नाम हों रहा था फ़िर भी नौकरी छोड़ दिया।" चौकते हुए बीच में साक्षी बोल पड़ी।
राघव... पागल नहीं इतना तो मैं दावे से कह सकता हू।
साक्षी... वो कैसे?
राघव... वो ऐसे कि जब मुझे पता चला श्रृष्टि ने वहां से नौकरी छोड़ दिया तो मैंने सोचा क्यों न मैं अपनी कम्पनी की तरफ से उसे जॉब ऑफर करू मगर इसके लिए उससे संपर्क करना जरूरी था। जो कि मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से ही मिल सकता था। श्रृष्टि का कोई संपर्क सूत्र तो मिला नहीं मगर मुझे ये पता चल गया की दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने श्रृष्टि के साथ बहुत गलत सलूक किया था जिस कारण उसने नौकरी छोड़ दिया था। ये बात पता चलते ही मैंने भी उनसे पार्टनरशिप तोड़ लिया। अब ये मत सोचना एक लड़की के लिए मैंने बड़ी पार्टनरशिप छोड़ दी मै अपने आप को जानता हु और मेरे भी कुछ नियम है जो शायद मेरे पिताजी ने दिए है खास कर महिलाओ के बारे में
भला मैं कैसे उन लोगो के साथ पार्टनरशिप आगे बड़ा सकता था जिनके यहां काम गारो की बिल्कुल भी इज्जत न किया जाता हों और उसके साथ गलत सलूक करने वाला खुद मालिक हों। मुझे यह भी लगा, हों सकता हैं इस बात की आंच मुझ तक भी पहुंच जाए। और मेरी इज्जत जो पिताजी ने बनाए राखी है वो एक पल में दाव पर लग जाए | मैं कतई ये नहीं चहता था कि कोई भी ऐसी बात जिससे मेरे कम्पनी जिसे मेरे बाप ने बहुत मेहनत से खड़ा किया उसके और मेरे बाप के साख पर कोई दाग लगे। खैर ये बात आई गई हो गई और एक काबिल आर्किटेक मेरे हाथ से निकल जानें का अफ़सोस होने लगा। मगर किस्मत को शायद कुछ ओर ही मंजूर था सहसा एक दिन श्रृष्टि से मेरी भेट यहां हुआ और उसके बाद का तुम जानती ही हों।
जारी रहेगा…..
लो भाई अब ये भी जानना बाकी था
खेर अब तक मै भी सोच ही रही थी की एक तरफा जानकारी कैसे हो सकती है (श्रुष्टि कोई PM तो है नहीं की उसे सब जाने पर वो किसी को ना जाने ........... एक भेद तो खुला
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चलिए अब कहानी में आगे बढ़ते है और जान ने की कोशिश करते है आगे क्या क्या है
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भाग - 18
राघव ने वह सभी बाते बता दिया। जिसके कारण वो श्रृष्टि से और उसकी काबिलियत से परिचित था। सभी बाते सुनने के बाद साक्षी बोलीं... मानना पड़ेगा सर आप इस मामले में बहुत शक्त हों कि कोई आप पर, आपके पिता पर या फ़िर कम्पनी पर उंगली न उठा पाए साथ ही इस बात का भी ध्यान रखते थे किसी के साथ गलत सलूक न हों। और मुज से ज्यादा इस बारे में और कोई नहीं जान सकता |
राघव…हां इसलिए जब तुम नुमाइश करके मेरे साथ गलत सलूक करती थी तब मैं तुम्हें टोकता था मगर तुम थीं कि सुनती ही नहीं थीं। सुनती भी कैसे तुम्हारे दिमाग में फितूर जो भरा हुआ था।
साक्षी... सर आप फ़िर से मुझे जलील करने लग गए।
राघव...इसमें जलील किया करना मैं तो वहीं कह रहा हूं। जो सच हैं। और जलील दूसरो के सामने होते है साक्षी यहाँ सिर्फ मै और तुम है और हमदोनो एक दुसरे को बखूबी जानते है
साक्षी... हां हां कह लो अभी मौका आपके हाथ में हैं जिस दिन मेरे हाथ मौका आया एक एक बात का गिन गिन के बदला लूंगी ही ही ही।
राघव...वो मौका तुम्हें कभी नहीं मिलने वाला हा हा हा।
साक्षी... वो तो वक्त ही बताएगा अब आप "मेरी है" से आपका क्या मतलब है। कहीं आप….।
"हा साक्षी तुम जो कहना चाहती हो वो सच है मैं श्रृष्टि को पसंद करता हूं और शायद प्यार भी करने लगा हूं। मगर वो निर्दय मेरी भावनाओं को समझकर भी अंजान बनी रहती हैं।" साक्षी की बातो को बीच में कांटकर खेद जताते हुए राघव बोला।
साक्षी...चलो अच्छा किया जो मुझे बता दिया अब तो मैं आपकी एक एक बातों का गिन गिन कर बदला लूंगी।
राघव...मतलब तुम फ़िर से...।
"नही नही मैं वैसा कुछ नहीं करने वाली बस आप दोनों के प्रेम कहानी का पने ढंग से कुछ लुफ्त लेने वाली हूं ही ही ही।" राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं
राघव... क्या ही ही ही... मदद करने के जगह तुम्हें मजे लेने की पड़ी हैं।
साक्षी...ऐसा तो मैं करके रहूंगी आखिरकार लाइन में सबसे पहले मैं लगीं थी मगर मेरा रास्ता श्रृष्टि नाम की बिल्ली ने कांट दिया इसका बदला लेकर रहूंगी।
राघव...साक्षी मैं तुमसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं विनंती क्या यार भीख मांगता हु कुछ भी ऐसा न करना जिससे की श्रृष्टि की नजरों में मैं गिर जाऊं देखो तुम्हे बदला लेना है मूझसे लो।
साक्षी...देखे देखो जमाने वाले देखो राघव तिवारी, तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक कैसे हाथ जोड़े विनती कर रहा हैं। चलो ठीक है आपकी विनती मान लेती हूं ओर कोशिश करूंगी आप दोनों की प्रेम नैया जल्दी से पर लग जाएं।
राघव... चलो अच्छा है जो तुम मदद करने को मान गई।
साक्षी...हा हा ठीक हैं अब ज्यादा मक्खन न लगाओ। अच्छा मैं श्रृष्टि को बुलाकर लाती हूं और आपके सामने उसे कह दूंगी कि वो ही प्रोजेक्ट हेड बनी रहेगी।
इतना बोलकर बिना राघव की सुने साक्षी चली गईं और कुछ ही देर में श्रृष्टि के साथ वापस आ गईं। आते ही श्रृष्टि बोलीं... सर अपने किस लिए बुलाए।
इतना सुनते ही राघव समझ गया साक्षी उसके कंधे का सहरा लेकर बंदूक चलाना चहती है तो राघव मुस्कुराते हुए बोला...श्रृष्टि तुमसे साक्षी कुछ कहना चाहती हैं। इसलिए बुलाया था।
श्रृष्टि... साक्षी मैम आप को कुछ कहना था तो वहीं कह देती यहां बुलाने की जरूरत ही क्या थीं?
साक्षी...श्रृष्टि मैं चाहती हूं तुम इस प्रोजेक्ट का हेड तुम ही बनी रहो।
श्रृष्टि...पर मैम आप मूझसे ज्यादा काबिल हो और बहुत पुरानी भी फिर मैं कैसे।
साक्षी... श्रृष्टि तुम कितनी काबिल हों ये राघव सर बहुत पहले से जानते हैं और आज मैं भी जान गईं।
"बहुत पहले लेकिन कब से, इनसे मिले हुए मात्र एक महीना हों रहा हैं।" अनभिज्ञता जाहिर करते हुए श्रृष्टि बोलीं
साक्षी...DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में जब तुम काम करती थी तब से।
श्रृष्टि... मतलब की आप वोही राघव हो जो DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ने के बाद मूझसे मिलना चाहते थे।
क्रमश:
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राघव... हां
श्रृष्टि... क्या, जिस कारण मैं DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ा था आज वहीं कारण मेरा पीछा करते करते मुझ तक पहुंच ही गई। छी मेरी किस्मत भी कितनी बुरी हैं। मां ने बार बार कहा था मैं आगे नौकरी न करू मगर मैं उनकी एक भी नहीं माना जिसका नतीजा आज मेरे सामने वहीं लोग आ गए जिनसे पीछा छुड़ाना चाहती थीं।
"श्रृष्टि तुम गलत समझ रहीं हों राघव सर दिनेश नैनवाल जी के बेटे जैसा नहीं हैं। ये मूझसे बेहतर कोई नहीं जानता हैं। श्रृष्टि मेरी बात ध्यान से सुनो (श्रृष्टि का बाजू पकड़े खुद की ओर मोड़ा फ़िर आगे बोलीं)सर को जब पाता चला वहां दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने तुम्हारे साथ गलत सलूक किया था। जिस कारण तुमने नौकरी छोड़ दी थीं। तब इन्होंने उनसे पॉर्टनरशिप तोड़ लिया सिर्फ़ ये सोचकर की उनके वजह से उन पर और हमारे कम्पनी पर कोई उंगली न उठाए। ये तुम भी जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन पॉर्टनरशिप तोड़ने पर कितना हर्जाना भरना पड़ता हैं। अब भी तुम्हें लगे की सर उन जैसा हैं तो तुम गलत ख्याल अपने जेहन में पाल रखी हो।" एक सांस में साक्षी ने अपनी बात कह दी।
जिसे सुनकर श्रृष्टि अचंभित सा राघव को देखने लग गई तो राघव बोला...श्रृष्टि तुम्हें डरने की जरूरत नहीं हैं मै उन जैसा नहीं हूं और न ही उन जैसा बर्ताब करने वाले किसी भी बंदे को काम पर रखा हूं।
इतना सुनते ही सहसा श्रृष्टि की आंखे छलक आई और हाथ जोड़कर बोलीं...सर मुझे माफ़ कर देना मैं सच्चाई जानें बिना न जानें आपको क्या क्या बोल दिया और न जानें क्या क्या सोच बैठी। प्लीज़ सर मुझे माफ़ कर देना।
राघव बैठे बैठे साक्षी को इशारा किया तो साक्षी श्रृष्टि को सहारा दिया फिर राघव बोला...श्रृष्टि मैं तुम्हारी बातों का बूरा नहीं माना क्योंकि तुमने जो भी कहा अंजाने में कहा इसलिए तुम माफी न मांगो।
इतना सुनने के बाद श्रृष्टि एक बार फिर राघव को देखा तो राघव मुस्कुरा दिया देखा देखी श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया। कुछ देर की चुप्पी छाई रहीं फिर चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि अब तो तुम इस प्रोजेक्ट के हेड बनी रहना चाहोगी और जैसे कार्य कुशलता का परिचय DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में दिया था वैसे ही कार्य कुशलता का परिचय हमारी कम्पनी और इस प्रॉजेक्ट के लिए भी देना।
श्रृष्टि... सर आपने और खास कर साक्षी मेडम ने मुझ पर भरोसा किया हैं तो मैं आपका भरोसा टूटने नहीं दूंगी। (फिर कुछ सोचकर आगे बोलीं) सर क्या ऐसा नहीं हों सकता कि एक ही प्रोजेक्ट में दो हेड हों।
राघव... मतलब तुम साक्षी को भी अपने साथ साथ इस प्रोजेक्ट का हेड बनना चाहती हों (फिर साक्षी से मुखताबी होकर बोला) साक्षी मैंने तुमसे कहा था न श्रृष्टि की सोच अव्वल दर्जे की है देखो प्रमाण तुम्हारे सामने है।
इतना सुनकर साक्षी ने श्रृष्टि को गले से लगा लिया फ़िर बोलीं... श्रृष्टि जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया वो मां बहुत भाग्य शाली है। मैं एक बार उस मां से मिलना चाहती हूं और पूछना चाहती हूं कि क्या खाकर तुम्हें जन्म दिया जो खुद के बारे मे सोचने से पहले दूसरे के बारे मे सोचती हैं।
वैसे मा क्या होती है मुझे नहीं पता धीरे से बोली
एक बार फ़िर से चुप्पी छा गई। कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं...किसी दिन समय निकालकर घर आना मिलवा दूंगी फ़िर पूछ लेना जो पूछना हों।
राघव... अच्छा सिर्फ़ साक्षी को अपनी मां से मिलवाओगी मुझे नहीं,? भाई मैने क्या गुनाह कर दिया जो मूझसे बैर कर रही हों।
"आपको तो बिल्कुल भी नहीं मिलवाना है। क्योंकि अपने मूझसे बाते छुपाया जब आप मुझे पहचान गए थे तो पहले ही बता क्यों नही दिया।" रूठने का दिखावा करते हुए श्रृष्टि बोलीं।
"हा श्रृष्टि बिलकुल भी मत बुलाना।" साथ देते हुए साक्षी बोलीं।
कुछ देर ओर बाते हुआ फिर दोनों राघव से विदा लेकर चले गए। दोनों के जाते ही राघव ने तुरंत ही फोन करके एक कॉफी का ऑर्डर दे दिया और शांत चित्त मन से कुर्सी के पुस्त से सिर टिका लिया। सहसा उसके आंखो के पोर से आंसु के कुछ बंदे बह निकला जिसे पोंछकर राघव बोला...श्रृष्टि तुम कितना भाग्य शाली हों जो कोई भी तुम्हारी मां से मिलना चाहें तो तुम खुशी खुशी उन्हें अपनी मां से मिलवा सकती हों और मैं कितना अभागा हूं कि मेरे पास ऐसा कोई शख्स नहीं हैं जिसे मां बोलकर मिलवा सकूं। एक सौतेली मां हैं जिसकी आंखों में मैं हमेशा खटकता रहता हूं उन जैसी महिला से मैं कभी किसी को मिलवा ही नहीं सकता। हे प्रभु मुझे किस जन्म के गुनाह की सजा दे रहा हैं। बस एक विनती है अगले जन्म में मुझे ऐसे मां के कोख से जन्म देना जो जीवन भर मेरे साथ रहें, अपने आंचल के छाव तले मेरे जीवन के एक एक पल को संवारे।
इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति माँगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भाव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स से राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।
जारी रहेगा….
अब ये कहानी ने इमोशन पकड़ लिया
अब क्या बताऊ और क्या लिखू कुछ समज में नहीं आ रहा
साक्षी ऐसी निकलेगी पता ही नहीं था ये केरेक्टरने मुझे परेशान कर रखा है
हिरोइन श्रुष्टि है या साक्षी ????
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भाग - 19
इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति मांगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स ने राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।
शाम को श्रृष्टि दिन भर की कामों से निजात पाकर घर पहुंची। माताश्री से कुछ औपचारिक बाते किया फ़िर अपने कपड़े बदलकर आई और मां के सामने जमीन पर बैठ गई। इतने में ही माताश्री समझ गई बेटी को आज फिर मालिश की जरूरत हैं।
तुंरत रसोई से तेल लेकर आई और मालिश शुरू कर दिया। मालिश का मजा लेते हुए श्रृष्टि बोलीं... पता हैं मां आज साक्षी मैम दफ्तर आई थीं। वो न बहुत दिनों से छुट्टी पर थीं।
"छट्टी पर थीं इसमें क्या बडी बात हैं कोई जरूरी काम होगा तभी छुट्टी पर गई होगी।"
श्रृष्टि...कोई जरुरी काम नहीं था। मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाए जानें से वो नाराज हों गईं थीं इसलिए छुट्टी पर चली गई और पाता है मां आज वो दफ्तर सिर्फ इस्तीफा देने आई थी मगर मैंने कुछ ऐसा किया जिससे वो कभी इस्तीफा देने की बात नहीं कहेंगे।
"अब कौन सा कांड कर आई।"
श्रृष्टि... मैंने कोई कांड बांड नहीं किया बल्कि मैंने सर को उन्हें प्रोजेक्ट हेड बनाने को कहा पर साक्षी मैम चाहती थी मैं ही प्रोजेक्ट हेड बनी रहूं। ये बात जानकार मैंने भी सर से मांग रख दी कि मेरे साथ साथ साक्षी मैम भी प्रोजेक्ट हेड रहे और सर मन गए। अच्छा मां आपने मुझे क्या खाकर पैदा किया था ऐसा मैं नही साक्षी मैम पूछ रहीं थीं।
"उम्हू लगता हैं तेरी सोच से तेरी साक्षी मैम बहुत प्रभावित हुईं हैं। उनसे कहना सभी मांये जो खाना खाती हैं मैंने भी वहीं खाना खाया बस दुनिया की वाहियात सोच से तुझे बचाकर रखा और तुझे उस सोच से रूबरू करवाया जो तुझे दुनिया से अलग बनाती हैं।"
"तभी तो मैं कहती हूं मेरी मां दुनिया की सबसे अच्छी मां है।" बोलते हुए श्रृष्टि पलटी और माताश्री के गले से लिपट गई।
"अच्छा अच्छा ठीक हैं अब तू चुपचाप बैठके मालिश करवा।" खुद से अलग करते हुए माताश्री बोलीं।
श्रृष्टि... मां आपको एक बात बताना तो भूल ही गई (इतना बोलकर माताश्री की तरफ घूम कर बैठ गईं फ़िर बोलीं) मां मैं जहां काम करती हूं न ये वहीं राघव की कम्पनी हैं जो मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ने के बाद ढूंढ रहें थे।
"क्या????, फ़िर तो ये भी शायद उन्हीं के जैसे सोच रखते होंगे लड़कियों को अपने बाप की जागीर और खेलने वाला खिलौना समझते होंगे आखिर दोनों पार्टनर जो थे।" चौकते हुए माताश्री बोलीं
श्रृष्टि... नहीं नहीं मां वो ऐसे नहीं है बल्कि उनसे बहुत अलग हैं। जब उन्हें पाता चला कि मेरे साथ वहा गलत सलूक हुआ और इस बात की आंच उन पर और उनके कम्पनी पर न पड़े इसलिए DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से पार्टनरसिप तोड़ दिया था। पता हैं मां इसके लिए उन्हें हर्जाना भी भरना पड़ा।
"जैसा तू कह रही है इससे तो लगता है तेरे सर की सोच बहुत अच्छी हैं फ़िर भी मैं तुझे इतना ही कहूंगी ऐसे लोगों का कोई भरोसा नहीं हैं। ऐसे लोग छद्दम आवरण ओढ़े रहते हैं और जरूरत के मुताबिक बदलाव करते रहते हैं।"
श्रृष्टि... मां मैं जानती हूं ऐसे ही छद्दम आवरण ओढ़े एक शख्स के छलावे के चलते आज हम मां बेटी एक दूसरे का सहारा बने हुए हैं। वैसे मां लोग मुखौटा क्यों ओढ़े रहते हैं अपना वास्तविक चेहरा सभी के सामने क्यों नहीं रख देते।
"वो इसलिए क्योंकि इससे उनके रसूक पर आंच आ जायेंगे। कभी कभी तेरी बाते मेरी समझ से परे होती हैं तू काम काज के मामले में इतनी तेज़ तर्रार हैं मगर जिंदगी की कुछ अहम बाते समझने में डाफेर के डाफेर ही रहीं।" एक टपली श्रृष्टि के सिर पर मार दी।
श्रृष्टि... मां मैं डफेर नहीं हूं फ़िर भी आपको लगता हैं तो मैं डफेर ही सही जब आप मेरे साथ हों फिर मुझे फिक्र करने की जरुरत ही नहीं।
"कैसे जरूरत नहीं मैं हमेशा तेरे साथ नहीं रहने वाली हूं।"
श्रृष्टि... क्यों आप कहीं जा रही हों। जहां भी जाना है मुझे साथ में लेकर जाना।
"चुप बबली आज नहीं तो कल तेरी शादी होगी तब मैं तेरे साथ नहीं रहूंगी। तब क्या करेगी?।" एक ओर टपली मरते हुए बोली
"जिस भी लड़के से ( कुछ देर रूकी और मंद मंद मुस्कुराते हुए आगे बोलीं) मेरी शादी होगी उससे साफ साफ कह दूंगी। दहेज में मेरी मां को साथ ले रहे हों तो बात करो वरना रास्ता नापो।"
"तू सच में डफेर हैं जिससे भी तेरी शादी होगा उसका भी अपना परिवार होगा। तो फिर वो मुझे क्यों साथ रखने लगा? वैसे भी शादी के बाद बेटी पर मां का कोई हक नहीं होता। पति और उसका परिवार ही सब कुछ होता हैं। इसलिए तुझे वहां नए सिरे से जिंदगी शुरू करना होगा उसके परिवार को संवारना होगा। समझी की नहीं।" ऐसे नहीं चलेगा जब चाहा सो गई जब चाहा उठ गई, ना खाने का ढंग ना किसी चीज़ का अब क्या बताऊ तुजे....बच्चे होंगे मा बनेगी कई जवाबदारिया आएगी तभी तो कहती हु अपनी जिंदगी में बदलाव ला थोडा | ये सहेलियों से मिलना झुलना ......बस उतना कह के चुप हो गई ....
श्रृष्टि... उम्हू नहीं समझी मेरा पहला परिवार मेरी मां हैं जहां मेरी मां नहीं वहां मेरा कोई ओचित्य नहीं अब आप इस बात को भूल जाओ जब मेरी शादी होगी तब सोचेंगे क्या करना हैं? अभी आप मुझे ये बातों उस अंकल से कैसे मिला जाए।
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बेटी की बातों ने माताश्री को कुछ पल के लिए भावुक कर दिया फिर अपने भावनाओं को काबू करके बेटी का गाल सहला दिया और उसी हाथ को चूम कर बोलीं... कभी कभी तू ऐसी बातें कह देती हैं जिसे सुनकर लगता हैं। मैं तेरी मां नहीं तू मेरी मां हैं। मगर अगले ही पल कुछ ऐसा कह देती है जिसे सुनकर लगता हैं तेरे से बड़ा मूर्ख कोई ओर नहीं हैं।
"मां" ऐसे बोलीं जैसे पसंद नहीं आया
"क्या मां, तुझे पाता नहीं वो ऑटो चलाते हैं तो ऑटो स्टैंड पर ही मिलेंगे इसके अलावा तुझे कोई ओर जगह पाता हों तो चली जा।"
श्रृष्टि…ये तो मैं भी जानती हूं और सोचा भी यही था। मैं तो बस आपसे कन्फर्म कर रहीं थीं। वैसे मै आते जाते उस मोड़ पे देखती तो हु पर वो कही दिखाई नहीं देते
"अच्छा, मतलब मां को मामू बना रहीं थीं।"
श्रृष्टि... नहीं नहीं मां को मां बनना रहीं थीं। वो क्या है कि मेरी मां अपनी बेटी को अपनी मां बनाने पर तुली है ही ही ही।
इतना बोलकर श्रृष्टि भागी "ठहर जा तुझे अभी बताती हूं" इतना बोलकर माताश्री भी श्रृष्टि के पीछे भाग्गी लगा दी। मा को तंग करती है ???
ऐसे ही अगले तीन से चार दिन बीत गया। इन्हीं दिनों श्रृष्टि और साक्षी की देख रेख में पुर जोर काम चलता रहा। इन्हीं दिनों पूर्व की दिनों की तरह प्रत्येक दिन राघव लंच के समय उन्हीं के साथ लंच करने आ जाता था। राघव के मन में क्या हैं इससे ना श्रृष्टि अंजान थीं ना ही साक्षी अंजान थीं। ऐसे ही एक दिन जब राघव सभी के साथ लंच कर रहा था तो एक साथी बोला... सर कई दिनों से गौर किया हैं। आप लगभग प्रत्येक दिन हमारे साथ लंच करने आ जाते हैं। जान सकता हूं ऐसा क्यों?
"हां सर मैंने भी देखा हैं। ऐसी क्या बात हों गई जो आप लंच हमारे साथ ही करते हों जबकि और भी बहुत लोग यहां काम करते हैं। इससे बडी बात ये कि आप या तो अपने कमरे में लंच करते हों या कैंटीन में फिर सहसा क्या हों गया जो आप सिर्फ हमारे साथ ही लंच करने आ जाते हों।" नज़र फेरकर श्रृष्टि को देखा फ़िर साथी का साथ देते हुए साक्षी बोलीं।
"बस मन करता हैं इसलिए आ जाता हूं। इसके अलावा कोई ओर खास बात नहीं हैं आगर तुम सभी को बूरा लगता है तो कल से नहीं आऊंगा।" इतनी बात राघव ने श्रृष्टि को देखकर मुस्कुराते हुए कहा बदले में श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया और सिर झुका कर खाना खाने लग गईं। ये सभी एक्टिविटी साक्षी से छुप तो नहीं सकती थी अब
साक्षी... सर अपने जो वजह बताया वो तो ठीक हैं फ़िर भी मुझे लगता है हम में से कोई आपको भा गया हैं इसलिए आप उसके साथ वक्त बिताने के बहाने हमारे साथ लंच करने आ जाते हों।
इतना सुनते ही श्रृष्टि को ढचका लग गई और वो खो खो खो खांसने लग गई। श्रृष्टि के बगल में ही साक्षी बैठी थी वो तुंरत संभली और श्रृष्टि की ओर पानी का गिलास बढ़ा दिया फिर पीठ सहलाते हुए बोलीं... अरे श्रृष्टि तुम्हारा ध्यान किधर हैं। कम से कम भोजन के वक्त तो अपना ध्यान भोजन पर दो।
राघव… श्रृष्टि तुम ठीक तो हों न।
श्रृष्टि...जी मैं ठीक हूं बस...।
"बस तुम्हारा ध्यान काम पर था और जल्दी से खाना खाकर काम पर लगना था। अरे भाई कम से कम खाना खाते वक्त तो काम से ध्यान हटा लो। यहां ध्यान देने के लिए कुछ ओर भी हैं जरा उन पर भी ध्यान दे दो।"
श्रृष्टि का अधूरा वाक्य पूरा करते हुए साक्षी बोलीं साथ ही अपने तरफ से भी जोड़ दिया। जिसे सुनकर राघव मुस्कुरा दिया। लेकिन श्रृष्टि आंखे मोटी मोटी करके साक्षी को देखने लग गई। जिसे देखकर साक्षी बोलीं... अरे तुम मुझे खा जानें वाली नजरों से क्यों देख रही हों खाना ही हैं तो भोजन खाओ ही ही ही।
श्रृष्टि इतना तो समझ ही गई की साक्षी तफरी काट रहीं है और बातों ही बातों में राघव की ओर ध्यान देने की बात कह रही हैं। इसलिए बिना कुछ बोले चुप चाप भोजन करने लग गईं।
कुछ ही देर में भोजन समाप्त करके राघव चला गया और बाकि सब अपने अपने काम में लग गए। ऐसे ही दिन बीतने लगा और इतवार का दिन भी आ गया।
जारी रहेगा...
अब इसमें तो कुछ खास लगता नहीं प्रेम कहानी पनप रही है और साक्षी पता नहीं हेल्प कर रही है अपना काम .......
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भाग - 20
इतवार की सुबह लगभग 10 बजे के करीब श्रृष्टि नजदीक के ऑटो स्टैंड चली गई। कई सारे ऑटो सवारी के इंतजार में खड़े थे। चकरी, चकरी, चकरी, बस एक सवारी चहिए चकरी की, मेढा, मेढा, मेढा, मेढा जानें वालो इधर आ जाओ, ये मामू हट न सामने से सवारी आने दे, अरे ओ... हां हां तुझे बोल रहा हूं अपना डिब्बा हटा मुझे जाना है।
तरह तरह की आवाजे वहां गूंज रहा था। कोई सवारी हातियाने के लिए सवारी का सामान खुद उठा ले रहे थे। तो कोई "अरे माताजी आप मेरे ऑटो में बैठिए बस चलने ही वाला हूं" बोल रहा था। इन्हीं आवाजों के बीच श्रृष्टि एक चेहरे को बड़े बारीकी से ढूंढ रहीं थी। कई ऑटो वाले उसे सवारी समझकर अपने ऑटो में बैठने को कह रहा था।
श्रृष्टि उन पर ध्यान न देकर आगे बढ़ जाती। तो ऑटो वाला "अरे मैम कहा जाना है जगह तो बताओं आपको वहा तक छोड़ आऊंगा" पीछे से बोल देता। श्रृष्टि इन पर ध्यान न देखकर सिद्दत से उस खास शख्स को ढूंढने में लगी हुई थीं।
श्रृष्टि को आए वक्त काफी हों चूका था। धूप की तपन बीतते वक्त के साथ बढ़ता जा रहा था। बिना इसकी प्रवाह किए माथे पर आई पसीना को पोछकर उस शख्स को ढूंढने में लगीं हुईं थीं। सहसा एक ऑटो आकर वहा रूका। चालक को ध्यान से देखने के बाद एक खिला सा मुस्कान श्रृष्टि के होठो पर तैर गया और श्रृष्टि उस ऑटो वाले की ओर बढ़ गइ।
सवारी समझकर ऑटो वाला बोला...बेटी आपको कहा जाना हैं।
"अंकल मैं आज आपकी ऑटो की सवारी करने नहीं आई हूं बल्कि आपसे मिलने आई हूं।" मुस्कुराते हुए श्रृष्टि बोलीं
"मूझसे पर क्यों? मैं तो तुम्हें जानता भी नही।"
श्रृष्टि... अंकल आप भूल गए होंगे मगर मैं नहीं भुली आज से लगभग एक महीना पहले आपने मेरी मदद कि थी। जिससे मुझे नौकरी मिली थी। धन्यवाद अंकल सिर्फ आपके कारण ही मुझे नौकरी मिला था। ये लिजिए...।
इतना कहकर श्रृष्टि अपने साथ लाई थैली को चालक की और बढ़ा दिया। चालक अनभिज्ञता का परिचय देते हुए श्रृष्टि का मुंह ताकने लग गया।
"क्या हुआ अंकल ऐसे क्यों देख रहें हों। लगता हैं आपको सच में मैं याद नही रहा चलिए कोई बात नहीं मैं आपको याद करवा देती हूं।"
इसके बाद श्रृष्टि ने उस दिन की घटना सूक्ष्म रूप में सूना दिए जिसे सुनकर चालक बोला…ओहो तो तुम हों चलो अच्छा हुआ बेटा जो उस दिन तुम्हें नौकरी मिल गई। मगर मैं ये नहीं ले सकता। बेटी मैंने तो उस दिन एक इंसान होने के नाते इंसानियत का फर्ज निभाया था।
श्रृष्टि...उस दिन अपने अपना फर्ज निभाया था आज मैं अपना फर्ज निभा रहीं हूं। वैसे भी अपने मुझे बेटी कहा हैं। बेटी कुछ दे तो मना नहीं करते।
"पर...।"
"पर वर कुछ नहीं बस आप रख लिजिए। प्लीज़ अंकल जी।" बचकाना भाव से श्रृष्टि बोलीं
"अच्छा अच्छा ठीक है लाओ दो। वैसे इसमें हैं क्या?।" हाथ में लेकर परखते हुए चालक बोला
श्रृष्टि... जो भी है आप बाद में देख लेना अभी आप अपना कॉन्टेक्ट नम्बर दे दिजिए मुझे जब भी कहीं आने जानें की जरूरत पड़ेगी मैं आपको बुला लिया करूंगी। आप आयेंगे न अंकल जी।
"हां हां आ जाऊंगा।" अपना संपर्क सूत्र देते हुए बोला
चालाक का संपर्क सूत्र लेकर श्रृष्टि चल दिया। वहां मौजुद एक लड़का यह सब देख और सुन रहा था। श्रृष्टि के जाते ही चालक के पास आया ओर बोला...अंकल ये लड़की थोड़ा अजीब हैं न, भाला कौन ऐसा करता हैं।
"अजीब तो हैं जहां लोग अपनो से मदद लेकर भूल जाते है वहां इस जैसी भी है जो एक अंजान के मदद करने पर भी उसे भूली नहीं बल्कि उसे ढूंढते हुए आ गई।"
"चलो अच्छा है अब देख भी लो क्या देकर गई हैं। बाद में पाता चला थैला सिर्फ दिखने में भारी है उसमे कुछ है ही नहीं।"
"क्या है क्या नहीं तुझे उससे क्या करना हैं। मैं इतना तो जान गया हूं इसमें कुछ न कुछ है अगर कुछ नहीं भी हुआ। तब भी मेरे लिए इतना ही काफी है वो मेरा किया मदद भुला नहीं और मुझे ढूंढते हुए यह तक आ गई। चल जा अपना काम कर और मुझे अपना काम करने दे।" टका सा जवाब दे दिया
इतना बोल ऑटो वाला ऑटो बढ़ा दिया और लड़का "मैं तो बस ऐसे ही बोल रहा था। इन्हे तो बूरा लग गया चलो यार जाने दो अपने को क्या करना मैं अपना काम करता हूं वैसे भी सुबह से एक भी सवारी नहीं मिला।" बोलते हुए अपने ऑटो की ओर चला गया।
ठीक उसी समय जब श्रुष्टि उस ओटो वाले को ढूंढने गई थी तब घर पर माताश्री........
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ठीक उसी समय जब श्रुष्टि उस ओटो वाले को ढूंढने गई थी तब घर पर माताश्री........
मा सोच रही थी पिछले कुछ दिनों से श्रुष्टि में काफी बदलाव आ गया है
पहेले सिर्फ समीक्षा से रमत करती थी खेर वो तो आजकल इस जमाने ने सब चलता है और दो सहेलियों की बात है मुझे उस तरफ नहीं सोचना चाहिए और उसमे मुझे कोई आपत्ति भी नहीं है
लेकिन आजकल देख रही हु की वो बाथरूम में कुछ ज्यादा समय ले रही है
अपने शरीर के रखरखाव पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दे रही है
पेहले वो कभी बिंदी नहीं लगाती थी और जब मै कहती थी की बेटा बिंदी स्त्री का एक सौन्दर्यवर्धक साधन है तब कहती थी मा ये सब एक दिखावा है ऐसा कुछ नही ये सब आप लोगो के जमाने के तौरतरीके है और आजकल वो बिंदी लगा के ऑफिस जाती है
पहले वो अपने कपडे पे कुछ ध्यान ही नहीं देती थी आजकल वो मेचिंग कपडे पहेनके जाती है कपडे के चुनाव और पहेर्वेश में काफी फर्क आ गया है
पहेले दुपट्टा अपने स्तनों को ढके हुए से रखती थी आजकल वो सिर्फ एक साइड में रख के जाती है
जब देखो अपने शरीर को देखे हुए रहती है
कभी कभी अपने विचारो में खोई हुई लगती है जैसे दुनिया में वो है ही नहीं
कभी कभी बिना कारण मुस्कुराती रहती है ..........
क्या मै वोही सोच रही हु ????
क्या उसे कोई भा गया है ?????
क्या वो राघव ही तो नहीं ????
अगर ऐसा है तो मुझे क्या करना चाहिए ???
कैसे समजाऊ इस लड़की को ??? क्या वो भी मेरी तरह .............
नहीं नहीं नहीं कभी नहीं मेरी लड़की मेरी श्रुष्टि ऐसा कुछ नहीं कर सकती और वो ऐसा सह भी नहीं सकती, भोली बच्छी है मेरी
हे भगवान मुझे ऐसे विचार क्यों आ रहे है ?????
अरे ऐसा कुछनही हर पुरुष ऐसा होता तो दुनिया कैसे चलती ????
पता है मुझे पर हर पुरुष को चख भी तो नहीं सकते ????
सभी अच्छे है और होते है पर नशीब खराब हो तो ...........
साली तेरे मन में बस ऐसा ही आएगा तू कभी अच्छा सोच ही नहीं सकती
क्यों की मै मा हु
तो क्या दुनिया में कोई मा है ही नहीं ????? मा है तो आजन्म उसकी साथ रहेगी ????
अच्छा भी तो सोच लिया कर
कि लड़का देखने में सुन्दर हो मेरी बेटी के मुकाबले में भले ही थोडा श्याम हो पुरुष तो होते ही ऐसे है काले पर दिल का अच्छा हो मेरी बेटी को पलकों पे रखे ऐसा हो उसमे जितना प्रेम भरा हो सब मेरी बेटी पे न्योछावर करता हो प्रेम के पलो में भी और आम जिंदगी में भी ..........
ऐसा सोच तेरी तबियत अच्छी रहेगी वर्ना जल्दी ही मरेगी
अब सब सहो हो रहा है ना भगवान मुझे उसके दुःख दे दो और उसको बस खुशिया देदो बिना बाप की लड़की है ........
ऐसे ही कुछ गंदे और अच्छे की सोच में डूबी हुई थी की डोर बेल बजो और श्रुष्टि अपना काम निपटा के हस्ती हसती अन्दर आ गई .....
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