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Misc. Erotica गरम रोज
Bahut mst story h aapki keep it up
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तभी मुझे अहसास हुआ कि क्या गड़बड़ हो गई है। बैंगन का पूरा मोटा हिस्सा मेरी चूत के अंदर समा कर फंस गया था। मैं ने घबराकर ज्यों ही बैंगन के डंठल को पकड़ कर बाहर खींचने की कोशिश की, बैंगन का डंठल टूट कर मेरे हाथ में आ गया और इसी के साथ अब बैंगन को बाहर निकालने का एकमात्र सहारा टूट कर मेरे हाथ में था। बैंगन को अब चूत से बाहर निकालने के लिए कोई उपाय नहीं रह गया था। खीरा के साथ समस्या इसलिए नहीं हुई क्योंकि खीरा अपनी पूरी लंबाई में एक समान मोटा था लेकिन बैंगन के साथ ऐसी बात नहीं थी। बैंगन का मोटा हिस्सा अंदर जा चुका था और पीछे का जो पतला हिस्सा था वह भी डंठल के टूट कर अलग हो जाने से सरकता हुआ अंदर जा कर गायब हो गया था। अब इस भयंकर मुसीबत से मुझे कैसे निजात मिले, यह समझ नहीं आ रहा था। घबराहट के मारे मुझे पसीना छूटने लगा। बड़ा अजीब सा अनुभव हो रहा था। उतना बड़ा बैंगन मेरी चूत के अंदर जा कर गायब हो गया था और मुझे अहसास हो रहा था जैसे वह बैंगन मेरे शरीर के अंदर का एक अंग बन गया हो। चूत के प्रवेश द्वार से लेकर गर्भाशय तक के सुरंग में बैंगन के रूप में एक बड़ा सा गोला फंस कर मार्ग को अवरूद्ध कर चुका था और उस मार्ग के अवरोध से मुक्ति पाने का कोई रास्ता नहीं बचा था। अब मेरी घबराहट का पारावार न था।
मैं असहाय भाव से कुछ पल तो उसी तरह लेटी रही। फिर मैंने सोचा कि शायद मैं पैर फैला कर खड़ी हो जाऊं और पहले की भांति अपने पेट में अंदर से दबाव दूं तो अपने आप बैंगन बाहर निकलने लगे। मैंने ऐसा ही किया। पूरी शक्ति से कोशिश की लेकिन सिर्फ बैंगन को छूने में समर्थ हो पाई। उस ढीठ बेशर्म बैंगन ने सिर्फ मुझे छूने दिया लेकिन इतना बाहर नहीं निकला कि उसे पकड़ पाऊं। जैसे ही मैंने दबाव देना बंद किया वह कमीना बैंगन फिर मेरे अंदर अदृश्य हो गया। दो तीन बार मैंने इसी तरह और कोशिश की लेकिन नतीजा सिफर निकला। अब मैं सचमुच दहशत में आ गई। अब क्या होगा? अपनी नादानी में मैंने यह कैसी मुसीबत मोल ली थी। बड़ी चली थी अपने चूत की क्षमता का परीक्षण करने, अब उसका नतीजा सामने देख कर पछतावा हो रहा था। थक हार कर मैं बिस्तर पर पैर पसार कर पसर गई और इस मुसीबत से निकलने का उपाय सोचने लगी मगर कोई उपाय सूझ नहीं रहा था। इसी चिंता में डूबी मेरा हाथ अपनी चूत पर चला गया। इतना बड़ा बैंगन मेरी चूत में घुस कर गायब था लेकिन मुझे पीड़ा का कोई अहसास नहीं हो रहा था। पीड़ा हुई थी तो केवल उस समय जब बैंगन का सबसे मोटा हिस्सा अंदर जा रहा था।
"ओ मेरे प्यारे बैंगन, प्लीज़ बाहर आ जा।" मैं बड़बड़ा उठी और साथ ही अपने हाथ से चूत सहलाने लगी। इस मुसीबत की घड़ी में भी अपने हाथों से अपनी चूत सहलाना मुझे बड़ा सुखद अहसास दे रहा था। भगांकुर पर उंगली का स्पर्श हुआ तो जैसे मैंने अनजाने में सितार के तारों को छेड़ दिया हो। झन्न से जैसे मेरे अंतरतम के तारों को छेड़ बैठी थी। चूत के प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर एक छोटे से अंकुर की तरह दाने को, (जो मुझे उस समय पता चला कि वह सबसे संवेदनशील केन्द्र है) स्पर्श करते ही मेरे अंदर जो मधुर झंकार उठी थी उस झनकार से कुछ पलों के लिए वह दुश्चिंता छूमंतर हो गई जिसकी चिंता में मैं हलकान हो रही थी। उस दुश्चिंता की जगह एक सुखद शीतल राहत का अनुभव हुआ। किसी अनजानी प्रेरणा से मैंने अब उंगली से अपने भगांकुर को छेड़ना आरंभ कर दिया। ओह ओह यह कितना आनंददायक था। मेरी उंगलियां अब तेजी से भगांकुर को रगड़ने लगीं। उफ उफ, मैं भूल ही गयी कि मेरी चूत के अंदर इतना बड़ा बैंगन फंसा हुआ है। मैं आंखें बंद करके उस स्वर्गीय सुख का रसास्वादन करने लगी। सहसा मेरा एक हाथ खुद ब खुद मेरी चूचियों पर पहुंच गया और उस हाथ से मैं बेतहाशा बारी बारी से अपनी सख्त उन्नत चूचियों को दबाने लगी। उधर एक हाथ की उंगलियां मेरी चूत से खिलवाड़ कर रही थीं और इधर उत्तेजना के मारे दूसरे हाथ से मैं अपनी चूचियों पर कहर बरपा रही थी। गजब का सुख मुझे मिल रहा था।
"आह ओह इस्स्स्स्स इस्स्स्स्स आह" मुंह से आहें और सिसकियां निकलने लगी थीं। मैं बिस्तर पर तड़पने लगी। मेरी कमर खुद ब खुद उछलने लगी। मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे मेरी चूत के भीतर फंसा बैंगन जीवित हो उठा हो और मेरे इस हस्तमैथुन में सक्रिय भागीदारी निभाने लगा हो। मेरी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं और हर सांस के साथ बैंगन मानो कुछ और अंदर जाता और कुछ पीछे खिसकता। ऐसा लग रहा था जैसे बैंगन मेरी चूत की पकड़ से स्वतंत्र हो कर अंदर ही अंदर मैथुन मार्ग में विचरण करता हुआ अंदरूनी दीवारों पर घर्षण दे कर जो आनंद प्रदान कर रहा था वह अवर्णनीय था। ओह मेरी माआंआंआंआं मैं दूसरी ही दुनिया में पहुंच गई थी। इतना आनंददायक था वह हस्तमैथुन कि मैं बयां नहीं कर सकती हूं। मेरी उत्तेजना बढ़ती बढ़ती अंततः चरम पर पहुंच गयी और मैं स्खलन के कागार पर पहुंच गयी। और फिर शुरू हुआ मेरा वह अंतहीन सुखद स्खलन। "आआआआआआह ओओओहहह ओओओओओहहहहह....." मेरी घुटी घुटी आनंद मिश्रित चीखें उबलने लगीं। पूरे एक मिनट तक मैं थरथराते हुए स्खलित होती रही। फिर मेरा शरीर शिथिल होता चला गया।
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shandaar ..........hai ROJ
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Shandar upfate nice way keep it up
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तभी मानो एक चमत्कार हो गया। जैसे ही मेरा शरीर शिथिल होने लगा, मेरी चूत का संकुचन ढीला पड़ने लगा और स्खलन पूर्ण होते न होते मेरे भीतर से बैंगन को बाहर निकलने के लिए चूत ने पूरी तरह से द्वार खोल दिया। इस स्वर्णिम अवसर पर मैंने अपनी बची खुची शक्ति एकत्रित करके अपने अंदर से एक जोर का दबाव दिया, फलस्वरूप मेरी चूत की तरफ से "फच्च" की एक जोरदार आवाज आई और उसी आवाज के साथ मुझे महसूस हुआ जैसे एक बड़ा सा गोला मेरी चूत से एक रफ्तार के साथ झटके में बाहर निकल आया हो। यह और कुछ नहीं, वही चमचमाता बैंगन था जिसके मेरी चूत के अंदर फंसे रहने से मेरी जान सांसत में फंसी हुई थी। निकलने के क्रम में मुझे फिर एक क्षणिक पीड़ा का अहसास हुआ लेकिन वह पीड़ा, उस बैंगन से मुक्ति के सामने कुछ नहीं था। उस शैतान बैंगन को मेरी चूत ने करीब दो फीट दूर फेंक दिया था। मैंने राहत की एक लंबी सांस ली और उस चमचमाते बैंगन को देखने लगी जिसने मेरी जान सांसत में डाल रखी थी। अब मुझे उस बैंगन से कोई शिकवा शिकायत नहीं थी। मुझे कुछ पलों पहले के उस आनंद का स्मरण हो आया जब मैं हस्तमैथुन का आनंद ले रही थी और मेरी हर सांस के साथ चूत के अंदर बैंगन हलचल मचाता हुआ उस मैथुन के आनंद को दुगुना कर रहा था। यह सोच कर मुझे बैंगन पर बड़ा प्यार आ रहा था। अब जब मैं बैंगन को देख रही थी तो मुझे ऐसा लगा जैसे वह बैंगन मुझे देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहा हो और उसकी मुस्कान संतुष्टि की मुस्कान थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी हसरत पूरी हो गई हो।
"साले मेरी जान सांसत में डालकर अब मुझ पर मुस्कुरा रहे हो?" मैं मुस्कुरा कर बड़बड़ाई। बैंगन भी मुस्कुरा रहा था। तभी मुझे एक और बात का अहसास हुआ, और वह था उस साढ़े तीन इंच मोटे बैंगन को अपनी चूत में सफलता पूर्वक अंदर लेने की सक्षमता। हां यह सच था कि मेरी चूत फटी भी नहीं और उतना मोटा बैंगन मेरी चूत में दाखिल भी हुआ और निकल भी गया। हां थोड़ा दर्द हुआ लेकिन मैं जान गई कि इतने मोटे लंड से चुदने में सक्षम हूं और थोड़ी और अभ्यस्त हो जाऊं तो यह थोड़ा दर्द भी नहीं होगा। अब इतने मोटे लंड से मैं आराम से मजा ले सकती हूं। इसी के साथ खीरा के इस्तेमाल से मुझे पता चल गया कि इतने लंबे लंड से भी मुझे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। अनायास मेरा हाथ अपनी चूत पर चला गया और मुझे अपनी उंगलियों से पता लगा कि मेरी चूत का प्रवेश द्वार काफी फैल चुका है लेकिन जैसे ही मैंने अपनी चूत को संकुचित करने का प्रयास किया तो यह देखकर चकित रह गयी कि अपनी चूत से अपनी उंगली को दबोच लेने में सक्षम थी।
"वाह री रोजा, तू तो इतनी सी उम्र में ही बड़ी कुशल लंडखोर बनती जा रही है।" मैं बड़बड़ा उठी। इसी के साथ मैं बिस्तर से उठी और खीरा और बैंगन को अच्छी तरह से धो पोंछ कर फिर से उसी डिब्बे में रख दी। अब मैं अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने नंगी ही खड़ी हो गई और अपनी चूत का मुआयना करने लगी। देखने में मेरी चूत का साईज सामान्य ही दिखाई दे रहा था लेकिन थोड़ी बाहर की ओर उभर आई थी जो कि स्वाभाविक भी था, आखिर इतना लंबा खीरा और इतना मोटा बैंगन जो मेरी चूत में अंदर बाहर हुआ था, थोड़ी सूजन तो होनी ही थी मगर मुझे इसकी परवाह नहीं थी। एक संतोष था कि अब मैं लंबे मोटे लंड से चुदवाने के लिए पूरी तरह सक्षम हूं। फिर मैं बाथरूम में जाकर अच्छी तरह से अपनी चूत को साफ़ किया और पुनः बिस्तर पर आ कर निश्चिंत हो कर पसर गई और कब निद्रा देवी के आगोश में चली गई पता ही नहीं चला।
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गरम रोजा (भाग 11)

खीरा और बैंगन का उपयोग करके अपनी चूत की क्षमता का आंकलन करने का जो जोखिम भरा निर्णय मैंने लिया था उसके चक्कर में मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गयी थी, लेकिन उस मुसीबत से जिस चमत्कारिक रूप से मेरा उद्धार हुआ वह आज तक न भूलने वाली याद बनकर मेरे जेहन में समाया हुआ है। दहशत के उन पलों में भगवान ने जो चमत्कार दिखाया, वह चमत्कार मुझे इतना आनंद प्रदान करेगा इसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी। वह हस्तमैथुन मुझे आज भी याद है और उस हस्तमैथुन के परिणाम स्वरूप जो सुखद अनूठे स्खलन का सुख मुझे प्राप्त हुआ वह बयान के बाहर की बात है। ओह वह कितना सुखद, अंतहीन और अविस्मरणीय स्खलन था। उस सुखद स्खलन के पश्चात मुझे बहुत अच्छी नींद नींद आई। उस रात सपने में भी मुझे खीरा और बैंगन ही दिखाई दे रहे थे जीवंत प्राणियों के रूप में।
दोनों के दोनों उछल कर डिब्बे से बाहर आ गये थे। दोनों के हाथ नहीं थे, सिर्फ छोटे छोटे पैर थे। उनके गर्दन भी नहीं थे। ऊपर की ओर सर की जगह आंखें, नाक, कान दिखाई दे रहे थे जो उभरे हुए नहीं थे बल्कि ऐसे सपाट थे जैसे किसी चित्रकार ने आंख, कान नाक और मुंह के स्थान पर अपनी कलाकारी से उन अंगों को उकेर दिया हो। दोनों के होंठों पर मुस्कान थीं और आंखें चमक रही थीं। वे बड़े खुश लग रहे थे। वे दोनों बारी बारी से उछल उछल कर मेरे बिस्तर पर चढ़ गये थे और मेरे अगल बगल में खड़े मेरी नग्न देह को ललचाई दृष्टि से निहार रहे थे। पूरे शरीर का मुआयना करने के बाद उनकी नजरें मेरी चूत पर ठहर गई थीं।
"भाई खीरा, हम सब्जियों और फलों की जिंदगी में इतना आनंददायक इस्तेमाल शायद ही किसी का हुआ हो।" बैंगन बोल रहा था। वे दोनों मेरी जांघों के पास आकर मेरी चूत को बड़े गौर से देखने लगे थे।
"हां भाई, जरा देख तो इस दरार को। इसी दरार से होकर ही तो मैं अंदर गया था। कितनी नरम मुलायम जगह है यह। ऊपर से काफी मुलायम लग रही है लेकिन इसमें जो छेद है, बड़ी संकरी है। साला समझ में नहीं आ रहा था कि इसी मुलायम जगह के बीच की दरार में उतनी संकरी, छोटी सी छेद कैसे फैलती जा रही थी।" खीरा मेरी चूत को देखते हुए बोला।
"सच कह रहे हो भाई। संकरा सा छेद है लेकिन हम उसमें फिसलते हुए घुस भी गये और सही सलामत निकल भी गए। अंदर कितनी फिसलन भरी संकरी गुफा है जिसमें फिसलते हुए मैं अंदर घुसता चला जा रहा था। हां अब चूंकि मेरा पेट थोड़ा बड़ा है इसलिए घुसते समय थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन एक बार अंदर घुस गया तो बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के बस घुसता ही चला गया। अंदर कितनी गर्मी थी रे बाप। लेकिन जो भी हो बड़ा मज़ा आया। लेकिन निकलते समय मुझे पसीना छूट गया था। यह तो भला हो ऊपर वाले का कि पता नहीं किस अदृश्य शक्ति ने ढकेल कर मुझे बाहर फेंक दिया, नहीं तो पता नहीं मेरा क्या होता। खैर अब समझ गया कि अंदर घुस सकता हूं तो बाहर भी आ सकता हूं।" बैंगन बोला।
"सही बोले भाई। मैं थोड़ा और आगे तक चला गया था तो देखा अंदर एक और लचीला छेद है। मैं जब उस छेद के अंदर जाने लगा तो ओह क्या बताऊं। वह छेद भी फैल कर मुझे अंदर जाने देने लगा। अंदर झांक कर देखा तो अन्दर बहुत जगह दिखाई दे रहा था। ताज्जुब तो तब हुआ कि मैं इतना लंबा होते हुए भी पूरा का पूरा अंदर समा गया था। अविश्वसनीय। सच बोल रहे हो कि अंदर की गर्मी सचमुच बहुत ज्यादा है। लेकिन उस गर्मी में भी एक अलग तरह का मजा आ रहा था। मन तो कर रहा है फिर एक बार इस छेद में डुबकी लगा लूं।" खीरा बोला। उनकी बातों को सुनकर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और उसी के साथ मेरी उत्तेजना भी बढ़ने लगी थी।
"मेरा भी मन हो रहा है भाई कि एक बार फिर इसके अंदर जा कर मजा लूं। मैं भी उस अंदर वाले छेद को देखना चाहता हूं। मैं तुम्हारे जैसा और अंदर तक जा नहीं सका था। इस बार अंदर तक जाऊंगा।" बैंगन बोला।
"तू नहीं जा सकेगा वहां तक मोटे। साले मोटे, तू बाहर वाले दरवाजे से अंदर चला गया वही तेरे लिए बहुत बड़ी बात है।" खीरा बोला।
"नहीं भाई, जब बाहर वाले छेद को फैला कर अंदर घुस सकता हूं तो अंदर आगे तक भी जा सकता हूं। जाऊंगा तो जरूर।"
"तो ठीक है, लेकिन अकेले अकेले जाने के बदले क्यों न एक साथ ही अंदर जाएं। दोनों साथ-साथ अंदर जाएंगे तो और मजा आएगा।" खीरा बोल उठा।
"अरे बेवकूफ, हम अकेले अकेले तो इतनी मुश्किल से अंदर गये थे, एक साथ अंदर कैसे जाएंगे? कहीं यह छेद फट गई तो?" बैंगन बोला। अबतक दोनों मेरी चूत के मुंह के एक दम पास आ कर चूत का मुआयना कर रहे थे।
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wah shandaar uodate .............roj
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"अबे नहीं फटेगी। देखा नहीं, यह छेद देखने में छोटी है लेकिन जब हम घुस रहे थे तो कैसे फैल रही थी? अबे घुस जाएंगे। कोई समस्या नहीं होगी।" खीरा बैंगन को उकसा रहा था। मुझे खीरा की बात से गुस्सा आ रहा था। मैं ने खीरा को डांटने के लिए मुंह खोला तो मेरी आवाज़ ही नहीं निकल रही थी। खीरा की बात सुनकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था। हे भगवान, ये दोनों तो सचमुच मेरी चूत को फ़ाड़ डालने पर आमादा हैं।
"ठीक है तो चलें!" बैंगन बोल उठा।
मैं भय के मारे कांप उठी। मैं उन्हें रोकना चाहती थी, मना करना चाहती थी लेकिन न तो मेरे मुंह से आवाज निकल रही थी और न ही अपने हाथों को हिला डुला सकती थी। मेरा पूरा शरीर ही एक तरह से निष्क्रिय हो चुका था। ऐसा लग रहा था जैसे मुझे लकवा मार गया हो। अपनी बेबसी पर मुझे रोना आ रहा था।
"हां हां चलो।" कहकर दोनों एक साथ मेरी चूत में अपने सर घुसाने लगे थे। एक बार उनका सर संयुक्त रुप से मेरी चूत में किसी भी तरह से घुस जाता तो सरकते सरकते उनका पूरा शरीर मेरी चूत के अंदर दाखिल होने में कोई रोक नहीं सकता था। माना कि बैंगन का पेट बड़ा था लेकिन वह खीरा की तुलना में अधिक चिकना था इसलिए जबरदस्ती घुसने की कोशिश में वह अवश्य सफल हो जाता। मैं अपनी चूत की दुर्दशा के बारे में सोच कर कांप उठी। अब वे अपने सर जोड़ कर मेरी चूत के मुंह पर जा टिके और अंदर घुसने के लिए जोर लगाने लगे। उनके सम्मिलित प्रयास से और जोर आजमाइश से मेरी चूत फैलने लगी। ओह ओह, फैलते फैलते एक सीमा के बाद मुझे दर्द होने लगा और वह दर्द इतना बढ़ गया कि मैं पसीने से नहा उठी और मेरे मुंह से एक चीख उबलने को थी लेकिन मेरे गले से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। भय और घबराकर के मारे पसीने से तरबतर हो कर मेरी आंखें खुल गईं। हे भगवान, तो यह एक सपना था? मैं अब भी पसीना पसीना हो रही थी। मैंने सर घुमाकर देखा तो वह डिब्बा अब भी अपने स्थान पर था और उसका ढक्कन बंद था। मैंने अगल बगल देखा तो न वहां बैंगन था और न ही खीरा। हे भगवान कितना भयानक सपना था। मैं बिस्तर से उठकर डिब्बे के पास गयी और ढक्कन खोलकर देखी तो बैंगन और खीरा यथास्थान पड़े हुए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। "साले हरामियों, सपने में भी मुझे परेशान करने से बाज नहीं आ रहे हो कमीने कहीं के।" मैं बड़बड़ा उठी और डिब्बे का ढक्कन बंद करके फिर बिस्तर पर आई और पसर कर सो गयी।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो सबसे पहले मेरी नज़र उसी डिब्बे पर मेरी नजर पड़ी जिसमें खीरा और बैंगन रखा हुआ था। मैं उठ कर उस डिब्बे का ढक्कन उठाई तो देखी कि खीरा और बैंगन बड़ी मासूमियत से लेटे हुए थे। मैं बरबस मुस्कुरा उठी। रात की पूरी घटना चलचित्र की भांति मेरी आंखों के सामने घूमने लगी थीं। उफ, कितनी बड़ी जोखिम उठाई थी मैं। अगर उस मुसीबत से चमत्कारी ढंग से नहीं निकलती तो रात भर सो भी नहीं पाती। मैं अब भी नंगी ही थी। अनायास मेरा हाथ अपनी चूत पर चला गया और यह महसूस करने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई कि मेरी चूत काफी फूल चुकी थी। हल्का हल्का दर्द अभी भी था। जो भी हो, यह दर्द और सूजन तो स्वाभाविक ही था और साथ ही अस्थाई था। मुख्य बात यह थी कि ऐसे लंबे और मोटे लंड लेने में सक्षम थी, यह मुझे पता चल गया था।
सहसा मुझे याद आया कि ओह, आज मुझे घनश्याम से यह जानना था कि कल मम्मी के साथ उसने ऐसा क्या किया था कि मम्मी का चलना फिरना भी दूभर हो गया था। इतना तो साफ हो गया था कि मम्मी की अच्छी खासी कुटाई हुई थी। ताज्जुब तो मुझे इस बात पर हो रहा था कि ऐसी हालत होने के बावजूद रात में मम्मी ने घुसा को याद किया था। चूत का रसिया चुदक्कड़ घुसा थोड़ी न मम्मी के कमरे से खाली हाथ बाहर निकला होगा। ऐसा लगता है मम्मी भी धीरे धीरे अच्छी खासी लंडखोर बनती जा रही है नहीं तो उस हालत में भी उसे एक मर्द की तलब क्यों हो रही थी। यही सब सोचते सोचते मैं नहा धो कर फ्रेश होकर अपने कमरे से बाहर निकली। किचन में खटर पटर की आवाज से समझ गई कि घुसा अपने काम में लग चुका है।
उस समय आठ बज रहा था और मुझे कॉलेज जाने की जल्दी थी। जल्दी ही मां भी नाश्ते की टेबल पर आ गयी। मां का चेहरा थोड़ा सूजा हुआ था। स्पष्ट था कि वह रात को काफी देर बाद सोई होगी। घुसा की भूख के साथ उसकी क्षमता भी कुछ अधिक ही बढ़ रही थी और शायद मम्मी की भी। इतनी जल्दी थोड़ी ना अलग हुए होंगे दोनों। घुसा जब टेबल पर नाश्ता सजा रहा था तो उसके चेहरे पर न कोई शिकन और न ही कोई थकान थी। वह तो ठहरा कामगार टाईप मेहनती आदमी, उसे कोई फर्क थोड़ी ना पड़ता था। अगर मम्मी हां बोले तो मेरे कॉलेज जाने के बाद फिर चढ़ दौड़ पड़ने में पीछे नहीं रहेगा कुत्ता कहीं का, लेकिन मम्मी के चेहरे की थकान और संतुष्टि साफ बता रही थी कि रात को अच्छी खासी चुदाई हो चुकी है और फिलहाल और दौर चलने की संभावना नहीं थी। कभी मम्मी चोर दृष्टि से घुसा को देखती और कभी घुसा मम्मी को लेकर मैंने सबकुछ नजर अंदाज कर दिया। असल में मेरे मन में उत्सुकता थी यह जानने के लिए कि घनश्याम और मम्मी के बीच कल क्या हुआ था। मैं जल्दी जल्दी नाश्ता कर ही रही थी कि घनश्याम आ गया। उसके हाथों में एक बड़ा सा बेडिंग होल्डर और एक सूटकेस था।
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ab mummy ke sath kya pura banana bhai...........
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BAHUT HO GYA INTZAAR NEXT UPDATE
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"आ गये?" मम्मी ने उसे देखते ही कहा।
"जी मैडम जी। इन्हें कहां रखूं?" वह अपने सामानों की ओर देखते हुए बोला।
"वहीं, किनारे वाले कमरे में जिसे मैं ने कल बताया था। घुसा, घनश्याम के लिए वह कमरा खोल दो।"
"जी मैडम जी।" कहकर घुसा आगे बढ़ कर घनश्याम के हाथ से सूटकेस ले लिया और उस कमरे की ओर बढ़ गया और उसके पीछे पीछे घनश्याम चल पड़ा। वह कमरा मेरी मम्मी के कमरे की लाईन में पूरब की ओर सबसे किनारे है। मुझे पता था उस कमरे में मात्र एक दीवान, एक टेबल और एक कुर्सी था। हालांकि एक कमरा, जो अपेक्षाकृत थोड़ा छोटा था, घनश्याम के रहने के लिए दिया जा रहा था उसके बावजूद हमारे घर में दो और खाली कमरे हैं जिसे मेहमानों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एक कमरा नीचे ड्राईंगरूम के उत्तर में, पीछे वाले गलियारे की बाईं ओर है और दूसरा कमरा ऊपर में मेरे कमरे के विपरीत दिशा में स्थित है। जिस कमरे में घनश्याम को रहना था वह कभी कभार ही इस्तेमाल होता था और बिल्कुल अलग है। उसमें भी मेहमानों को ठहराया जा सकता था लेकिन ऐसी नौबत पिछले आठ दस सालों में एक दो बार ही आई थी। एक तरह से देखा जाए तो वह कमरा हमारी जरूरत के हिसाब से अतिरिक्त कमरा था। जिस कमरे में घुसा रहता था, वह किचन से सटा हुआ, दो हिस्से में है, एक हिस्सा स्टोर रूम की तरह है और दूसरा हिस्सा घुसा के रहने के लिए इस्तेमाल हो रहा था।
ऊपर वाले तल्ले में मेरे कमरे से होकर जो लंबा गलियारा है उसकी लंबाई पूरब पश्चिम है जिसके पूरब की ओर एक आपातकालीन दरवाजा है जिसके बाहर नीचे जाने के लिए एक स्टील की सीढ़ी है। वह सीढ़ी ठीक पूरब दिशा में खुलने वाले हमारे घर के एक अतिरिक्त निकासी के लिए प्रयुक्त दरवाजे के पास खत्म होता है। यह दरवाजा उस कमरे के दरवाजे के बाईं ओर है, जिस कमरे को घनश्याम के रहने के लिए दिया गया था।
घनश्याम जल्दी ही अपना सामान अपने कमरे में रखकर वापस आ गया। मैं कॉलेज जाने के लिए तैयार ही थी, तुरंत ही घनश्याम के साथ बाहर निकली। कार जैसे ही स्टार्ट हुई,
"हां, तो घनश्याम अंकल, अब बताईए।" मेरी उत्सुकता चरम पर थी।
"क्या बताऊं?'" जान कर भी अनजान बनते हुए घनश्याम बोला।
"मेरा सवाल आपकी समझ में नहीं आया क्या?"
"नहीं।"
"ऐसे मासूम बनने की जरूरत नहीं है, नहीं तो खुलकर पूछूंगी, जो कि आपको अच्छा नहीं लगेगा।"
"मुझे तुम्हारे मुंह से सबकुछ अच्छा लगेगा। खुल कर पूछो, क्या पूछना है।"
"यानी कि सबेरे सबेरे मेरा मुंह गंदा करवाना चाह रहे हैं।"
"इसका मतलब तुम गंदी चीज़ पूछना चाह रही हो।" वह मुस्कुरा कर बोला।
"आप सचमुच बड़े गंदे हैं।" मैं लाल होती हुई बोली।
"तुमने मुझे साफ रहने कहां दिया। फिर से मुझे तुम नें गंदा कर दिया। अब गंदा हो गया हूं तो गंदी बातें ही अच्छी लगती हैं। अब गंदी बातें सुनना चाहता हूं। अब गंदे काम करना अच्छा लगने लगा है।" वह गीयर लीवर से हाथ हटा कर बांई हाथ से मेरी जांघों को सहलाते हुए बोला।
"हाथ हटाईए जंगली कहीं के।" मैं उसका हाथ झटकते हुए बोली। हालांकि उसका इस तरह मेरी जांघ सहलाना अच्छा लगा था। उसका हाथ मेरी जांघ पर पड़ा लेकिन असर मेरी चूत में हुआ। मेरी चूत चुनचुना उठी। रक्त का प्रवाह मेरे शरीर में द्रुत गति से होने लगा था। पूरा शरीर सनसना उठा था। कोई और वक्त रहता तो मैं उसकी इस हिमाकत को और आगे बढ़ने दे सकती थी, जिसकी अंतिम परिणति, जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं, एक चुदाई, भले ही कार के अंदर ही हो जाती। लेकिन इस वक्त मुझे कॉलेज जाने की जल्दी थी इसलिए मैं उसकी हरकत को आगे बढ़ने नहीं दे सकती थी।
दरअसल उन दिनों मेरे साथ अब जो कुछ हो रहा था उससे मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था लेकिन मैंने अपनी पढ़ाई में किसी तरह की कोई ढिलाई नहीं बरती थी। मेरे तन की भूख अपनी जगह थी और पढ़ाई अपनी जगह। मुझे चुदाई का चस्का जरूर लग गया था लेकिन उसके लिए मैंने अपनी पढ़ाई के साथ कोई समझौता नहीं किया था। पढ़ाई में मैं शुरू से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि की थी लेकिन फिर भी पढ़ाई में ढिलाई मेरे शब्दकोष में नहीं था। खेल कूद में भी मैं सक्रिय रूप से हिस्सा लेती थी इसलिए मेरा शरीर काफी कसा हुआ था। खेलों में मेरा प्रिय खेल बास्केटबॉल था। छठी कक्षा से ही मैं ने जूडो कराटे की ट्रेनिंग शुरू कर दी थी जो अभी तक बदस्तूर जारी था। संगीत में भी मुझे रुचि थी। शौकिया थोड़ा बहुत गिटार बजा लेती थी और गिटार के साथ गाना भी गा लेती थी। पेंसिल स्केचिंग के साथ साथ थोड़ी बहुत पेंटिंग भी कर लेती थी। कुल मिलाकर आपलोग मुझे बहुमुखी प्रतिभा की धनी कह सकते हैं। अब लंड लेने का यह नया चस्का चढ़ गया था। पढ़ाई के साथ साथ जो भी शौक थे, उनसे मानसिक सुकून तो मिलता ही था, अब इस चुदाई के चस्के से मानसिक और शारीरिक तनाव दोनों से मुक्ति का एक और मार्ग मुझे मिल गया था। अब मुझे लगने लगा था कि मैं जीवन को पूरी संपूर्णता के साथ जीना शुरू कर चुकी हूं।
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Lamba intzaar ke bad hamri ROJ ki vapsi...........wow
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हां तो मैं कह रही थी कि घनश्याम को बोल तो रही थी कि मेरी जांघों पर से अपना हाथ हटाईए, लेकिन उसका इस तरह मेरी नंगी जांघों पर हाथ रखना और सहलाना मुझे बड़ा अच्छा और उत्तेजक लग रहा था लेकिन इस वक्त मुझे कल वाली मेरी मां के साथ जो कुछ हुआ था उसे सुनने के लिए मरी जा रही थी। मैं इस वक्त भी स्कर्ट ब्लाउज में ही थी इसलिए उन्होंने मेरे स्कर्ट को हल्का सा ऊपर खिसका कर सीधे मेरी नंगी जांघों पर हाथ रखा था इसलिए उनके स्पर्श को अच्छी तरह महसूस कर रही थी। मैं उत्तेजित हो रही थी लेकिन इस वक्त मुझे कॉलेज जाने की जल्दी थी, वरना जो उत्तेजना का अनुभव इस वक्त महसूस कर रही थी उसके वशीभूत मैं चुद जाने के कागार पर पहुंच चुकी थी।
"जंगली तो बन चुका हूं और इसका एकमात्र कारण तुम्हारी हरकतें हैं।" वह धीरे-धीरे अपना हाथ मेरी जांघों पर ऊपर ले जा रहा था। यह मेरे सब्र का इम्तिहान था।
"आपको पता है ना कि मैं इस वक्त कॉलेज जा रही हूं? फिर यह जंगलीपन क्यों कर रहे हैं। हाथ हटाईए अपना।" मैं झिड़क उठी। मेरे तेवर को देख कर उन्होंने अपना हाथ तो हटा लिया लेकिन अब मुझे उनका इस तरह अचानक हाथ हटाना खलने लगा।
"लो हाथ हटा दिया।" कहकर वह खामोश हो गया लेकिन उसे भी अहसास था कि उसने मेरे अंदर आग सुलगा दी थी।
"हां अब बताईए।" मैं बोली।
"नहीं अभी नहीं बता सकता।" वह बोला।
"क्यों?"
"लंबी कहानी है।"
"संक्षेप में बताईए।" मैं उतावली में बोली।
"नहीं, अभी नहीं।"
मैं जान गयी कि वह रुष्ट है। अब मैं क्या करूं? कैसे उसका मुंह खुलवाऊं? क्या मैं भूल जाऊं कि अभी मैं कॉलेज जा रही हूं? क्या ऐसा करूं कि वह मुंह खोलकर बताए? अभी भी कॉलेज का रास्ता आधा घंटा का था। वह चाहता तो बड़े आराम से बता सकता था लेकिन जानबूझकर नहीं बता रहा था और इधर मेरी उत्सुकता चरम पर थी। सुनने की उत्सुकता का आलम यह था कि मेरा मन बेचैन हो उठा। इस हालत में मैं क्लास क्या खाक करती। क्लास में झूठ मूठ की शारीरिक उपस्थिति से तो अच्छा होता कि मैं क्लास ही नहीं जाती। अंततः मैं ने निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, अभी ही सुन लूं नहीं तो कभी नहीं। मेरी उत्सुकता जीत गयी और मैं ने क्लास कुर्बान करने का निश्चय कर लिया। क्लास के लिए देर हो चाहे आज कॉलेज नागा ही हो जाय, सुनकर ही रहूंगी चाहे उसके लिए कोई भी समझौता क्यों न करना पड़े। मैंने अपना हाथ घनश्याम की जांघ पर रख दिया।
"अब यह क्या कर रही हो?" घनश्याम के मुंह से निकला। मैं कुछ नहीं बोली और उसकी जांघ सहलाने लगी।
"हाथ हटाओ अपना। जब मैं कर रहा था तो तुम्हें आपत्ति हो रही थी, अब यह क्या तमाशा कर रही हो?" वह फिर बोला। मैं फिर भी कुछ नहीं बोली और सहलाते सहलाते उसकी जांघ पर ऊपर की ओर हाथ बढ़ाने लगी।
"आपको यह तमाशा लग रहा है? मैं गंभीर हूं।" मैं अपना हाथ और ऊपर की ओर खिसकाते हुए बोली।
"तुम खाली पीली मजाक कर रही हो। गंभीर तो कत्तई नहीं हो। हाथ हटाओ नहीं तो ठीक नहीं होगा।" वह चेतावनी के स्वर में बोला लेकिन मुझपर कोई असर नहीं हुआ। मैं उसके पैंट के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाने लगी। मुझे साफ साफ पता चल रहा था कि उसका लंड तन कर खंभे की शक्ल अख्तियार करने लगा था। अब तो मैं खुद ही अवश हो चुकी थी और मुझपर खुद ही नियंत्रण नहीं रह गया था। कुछ मिनट पहले घनश्याम ने मेरी जांघ सहला कर जो शुरुआत की थी, शायद उसका भी असर था कि जोश में आकर मैं उसके लंड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ कर मुठियाने लगी। सच तो यह था कि उसके तने हुए लंड पर हाथ रखते ही मैं खुद ही सुलग उठी थी।
"तुम मानोगी नहीं?" उसका चेहरा लाल हो उठा था। लेकिन उसकी बातों को अनसुना करती हुई अब मैं यंत्र वत उसके पैंट की चेन खोलने लगी थी।
"इसमें मानना क्या? आपको भी तो मजा आ रहा है।" मैं बोली।
"नहीं, बिल्कुल नहीं, मैं तुम्हें चेतावनी दे रहा हूं। हाथ दूर रखो।" वह बोला।
"आपके चेतावनी की ऐसी की तैसी। आपका हथियार खड़ा हो गया है, यह मैं समझ नहीं रही हूं क्या? इसका मतलब क्या है?" मैं बोली और उसके पैंट की चेन खींच कर खोल दी और अपना हाथ उसके पैंट में डाल दी। उसका लंड अब उसके अंडरवीयर को फाड़कर बाहर फुदकने को उतावला हो चुका था। अब मुझे खुद को रोकना असंभव था। मैं उसके अंडरवीयर में हाथ घुसाने से खुद को रोक नहीं पाई और हाथ घुसा कर सीधे उसके लंड को पकड़ ली। ओह भगवान, इतना सख्त और गर्म था उसका लंड कि मैं उसी वक्त चुदने को बेकरार होने लगी थी। मेरी चूचियां तन गयी थीं और ब्रा टाईट हो चुकी थी। मेरी चूत में पानी आ चुका था। मेरा पूरा शरीर मानो आग की भट्टी में तब्दील हो चुका था।
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Is bar Bahut hi Lamba intzaar karega hamri ROJ ne
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excellent writing. excellent story idea
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"अब इस तरह हाथ लगाओगी तो खड़ा नहीं होगा तो सोया रहेगा क्या? सोच लो, इस तरह करती रहोगी तो तुम्हें कॉलेज जाने में देर हो जायेगी, क्योंकि अभिए कर दूंगा।"
"सोच लिया। देर होने दीजिए, कर लीजिए जो करना है, परवाह नहीं है मुझे।" मैं बोलती जा रही थी।
"बाद में मुझे कुछ नहीं बोलना। लेकिन तुम्हारी मां को भी ऑफिस छोड़ना है।"
"मुझे किसी भी कीमत पर बस मां के बारे में सुनना है। मां को बोल दीजिए कि कार खराब हो गयी है।"
"किसी भी कीमत पर?"
"हां, किसी भी कीमत पर।" बोलने को तो बोल गयी लेकिन मुझे अंदाजा भी नहीं था कि वह कीमत क्या होगी। मैं अबतक उसके लंड को पकड़ कर न केवल मुठिया रही थी बल्कि जोश ही जोश में अपना होश खो कर अपने हाथ की हरकत से उसके लंड को भयानक आकार दे चुकी थी। अब घनश्याम का धीरज भी जवाब देने लगा था।
"तू मानेगी नहीं?" वह गुर्रा उठा। मगर मुझे कोई परवाह नहीं थी। मैंने पैंट से उसका लंड बाहर निकाल लिया था और यह देखकर दंग रह गयी कि आज उसका लंड पहले की अपेक्षा काफी भयानक रूप अख्तियार कर चुका था। लंबा और मोटा तो पहले ही काफी था लेकिन आज की बात कुछ और थी। काले सांप की तरह फुंफकार मारता हुआ बहुत ख़तरनाक दिखाई दे रहा था।
"मैं आखिरी बार बोल रहा हूं। अब रुक जा हरामजादी।"
"नहीं रुकुंगी। जबतक आप कल वाली बात नहीं बताएंगे, नहीं रुकूंगी।" मैं ढिठाई से बोली। सच तो यह था कि इस वक्त मैं भी चुदने के लिए मरी जा रही थी। मां के साथ कल वाली घटना को सुनना अब मेरे लिए दूसरी प्राथमिकता थी। पहली प्राथमिकता तो चुदना था।
"साली कुतिया की बच्ची, रुक जरा, अभी बताता हूं तुझे।" कहते ही उसने कार को बाईं ओर इतनी तेजी से घुमाया कि मैं घनश्याम पर लद गयी। कार सड़क के बाईं ओर ऊंची ऊंची घनी झाड़ियों को चीरता हुआ अन्दर घुसता चला गया और करीब पचास मीटर दूर जाकर एक झटके में रुक गया। जैसे ही कार रुकी, मैं उस अनजान सुनसान जगह को देखकर चौंक उठी। मैंने नज़र उठाकर देखा तो सामने करीब बीस पच्चीस मीटर दूर एक भूत बंगला टाईप हवेली का खंडहर था। उस रास्ते से गुजरते हुए पहले भी मैं इन घने झुरमुट के पीछे उस खंडहरनुमा हवेली का ऊपरी हिस्सा प्रायः देखती थी लेकिन आज इतने करीब से देखने का मौका मिला भी तो किस परिस्थिति में? मैं सोच कर भीतर ही भीतर मुस्कुरा उठी थी। इससे पहले कि मैं कुछ और सोचती, कार के रुकते ही एक झटके में घनश्याम कार का दरवाजा खोल कर बाहर आया और घूमकर मेरी ओर का दरवाजा खोल दिया। उसके चेहरे पर मैंने जो कुछ देखा, कुछ भयभीत हो गयी।
"नीचे उतर साली रंडी की औलाद। आज तुझे दिखाता हूं कि घनश्याम क्या चीज़ है।" ख़तरनाक लहजे में कहकर मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर मेरे बाजू को कसकर पकड़ कर बाहर खींचा और इससे पहले कि मैं कुछ समझती, मुझे सख्ती के साथ पकड़ कर अपने साथ घसीटते हुए खंडहर की ओर ले चला। मुझे ताज्जुब हो रहा था कि उसके अंदर इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि अपनी नौकरी की भी चिंता नहीं है। उसके इस जबरदस्ती वाले कृत्य से उनकी नौकरी भी जा सकती थी लेकिन उसकी धृष्टता तो देखो, जिस घर में ड्राईवरी करता है, उसी घर की लड़की के साथ इस तरह की जबर्दस्ती करते हुए जरा भी डर नहीं था।
"यह आप क्या कर रहे हैं?' मैं भयभीत स्वर में बोली।
"तुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या कर रहा हूं? साली कुतिया? आज तुझे ऐसा चोदुंगा कि तुम्हें जिंदगी भर याद रहेगा।" वह खूंखार लहजे में बोला। मैं उसकी पकड़ में छटपटाती रही लेकिन वह मुझे घसीटते हुए खंडहर के बीच ले आया। पहले पहल मैं घिसटती रही, फिर खुद को संभाल कर अपने पैरों से ही खिंचती चली गई। मैंने देखा कि उस खंडहर के एक ऐसे हिस्से में हम थे, जो शायद पहले बड़ा सा हॉल हुआ करता था। चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारों से घिरे हॉलनुमा स्थान के पश्चिम की ओर एक करीब तीन फीट ऊंचा स्टेज सा बना हुआ था जिस पर चढ़ने के लिए सामने से टूटी फूटी सीढ़ी थी। वह मुझे उसी चबूतरे की ओर खींच कर लाया। मैंने देखा कि उस चबूतरे पर घास उग आया था जो कालीन की तरह पूरे चबूतरे के क्षेत्र पर बिछा हुआ था। मुझे लग रहा था कि घनश्याम वहां पहले भी कई बार आ चुका था। मुझे घसीट कर उसी स्टेज पर बड़ी निर्ममता से पटक दिया। मुलायम घास के कालीन के कारण मुझे कोई चोट नहीं आई। जैसे ही मैं उस चबूतरे पर गिरी, वह किसी भूखे भेड़िए की भांति मुझ पर टूट पड़ा और एक एक करके मेरे तन से कपड़े अलग हो कर हवा में उड़ने लगे। मेरे कपड़े कुछ फटे, टूटे या कुछ खुले, लेकिन हाय राम, उस झपटा झपटी के परिणामस्वरूप मिनट भर में मैं उस स्टेज पर मादरजात नंगी पड़ी हुई थी।
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कहानी के सिलसिले का बंटाधार करने का यह एक नये तरह का घटिया तरीका है। कृपया इस तरह बीच में घुस कर कहानी को बेमजा मत कीजिए। यह मेरा विनम्र निवेदन है।
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Next update.........
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"आप पागल हो चुके हैं।" मैं दहशत में आकर बोली।
"पागल किसने किया?" वह गुर्रा कर बोला और पलक झपकते खुद भी नंगा हो गया। उफ़ भगवान, उस वक्त उसके नंगे जिस्म को देख कर मेरे सारे शरीर में झुरझुरी होने लगी। अधेड़ था या शायद बुढ़ापे की ओर कदम रख चुके उसके छ: फुटे शक्तिशाली दानवाकार शरीर की मांसपेशियां और उभरी हुई नसें साफ साफ दिखाई दे रही थीं। चेहरे पर वहशीपन और आंखों में भेड़िए सी चमक, मुझ जैसी किसी भी लड़की को भयभीत करने के लिए काफी थीं। पल भर के लिए मैं भी दहशत में आ गई थी लेकिन आखिर मैं भी अबतक अच्छी खासी लंडखोर बन चुकी थी, भय को झटक कर एक तरफ़ फेंकने में कामयाब हो गयी और अपने ऊपर आने वाली कयामत के लिए मन को मजबूत कर ली। मेरी दृष्टि जैसे ही उसके लंड पर पड़ी, स्तब्ध रह गयी। इस वक्त उसकी लंबाई तकरीबन साढ़े आठ इंच के करीब हो चुकी थी और मोटाई भी उसी के अनुपात में करीब तीन ढाई से तीन इंच के बीच में आ चुका था। उसके तन कर सख्त हो चुके काले लंड के ऊपर की नसें भी काफी उभर चुकी थीं। लंड के चारों ओर घने, काले सफेद बाल भरे हुए थे। उसका पूरा व्यक्तित्व ही बदल चुका था। वह इस वक्त किसी दैत्य से कम नहीं दिखाई दे रहा था।
अपनी नग्नता पर मुझे लेशमात्र भी शर्मिंदगी महसूस नहीं हो रही थी, उल्टे मैं तो चुदने को बेताब थी। कुछ पल हम दोनों स्थिर हो कर एक दूसरे को देखते रहे। उसकी नजर पहले मेरे चेहरे पर पड़ी, फिर मेरी चूचियों पर और फिर मेरी फकफकाती चूत पर ठहर गई।
"साली इसी चूत पर इतरा रही थी? आज इसका भोंसड़ा न बना दिया तो बोलना।" फिर इससे पहले कि मैं अपनी अवस्था के बारे में और ज्यादा सोच पाती, घनश्याम मुझपर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा और मुझे भंभोड़ना शुरू कर दिया। उसकी हरकत चोदने को व्याकुल बिल्कुल मूक पशु की भांति थी। वह पागलों की तरह मेरी चूचियों को निचोड़ने लगा और मुंह में भरकर चूसने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूचियों को खा जाने को आमादा हो। उत्तेजना के आवेग में वह मेरे निप्पलों को दांतों से काट भी रहा था। पीड़ा और दहशत के मारे मैं चीख पड़ी।
"चीखो, चिल्लाओ, कोई मां का लौड़ा यहां तुम्हें बचाने नहीं आने वाला है।" वह सर उठा कर बड़े खतरनाक स्वर में बोला। उसके कहने के लहजे से मैं कांप उठी। हे भगवान, यह मैं इस दरिंदे के हाथों कैसे फंस गयी। आज तो मेरी दुर्गति से कोई नहीं बचा सकता है।
"आप जानवर बन गये हैं।" मैं भयभीत स्वर में उसके विशाल शरीर के नीचे पिसते हुए बोली।
"तुमने मुझे जानवर बनने को मजबूर किया है। अब भुगतो।" कहकर उसने एक हाथ से मेरी चूतड़ को बेदर्दी से मसलने लगा।
"आआआआह मुझे दर्द हो रहा है।" मैं कराह कर बोली।
"दर्द क्या होता है, यह अभी तुझे क्या पता। दर्द तो अब होगा।" यह सुनकर मैं सिहर उठी। हे भगवान, अब यह क्या करने वाला है। तभी मेरी चूतड़ पर उसका जोरदार थप्पड़ पड़ा और मैं तड़प उठी, मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। इसी तरह वह मेरे अंग अंग को नोचने खसोटने लगा। उसने अपनी एक उंगली भच्च से मेरी चूत पर घुसेड़ दिया और दनादन अंदर बाहर करने लगा।
"उई मां।" मैं फिर से चीख पड़ी।
"चुप हरामजादी, कुतिया। उस दिन मेरा और गंजू का लौड़ा लेकर बड़ा मज़ा आ रहा था, अब खाली मेरी एक उंगली से चीख निकल रही है नौटंकीबाज।" इतना कहकर उसने दो उंगलियां मेरी चूत में घुसेड़ कर फिर भकाभक उंगली से ही चोदने लगा।
"आआआआह....." मैं फिर चीखी। मगर उसने मेरी चीख की परवाह करने के बदले तीन उंगलियां घुसेड़ दी और फिर उंगलियों से मुझे चोदने का क्रम चालू रखा।
"उईईईईईईई मांआंआंआंआंआं....." मेरी चीखें थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं और उसकी दरिंदगी का अंतहीन सिलसिला जारी रहा। धीरे धीरे दर्द खत्म होने लगा और मुझमें पुनः उत्तेजना का संचार होने लगा और मुझे मजा आने लगा।
"चल अब कुतिया बन जा।" कहकर उसने मुझे झटके से पलट दिया। हे भगवान, अब यह क्या करने वाला है।
"चल हरामजादी जल्दी से कुतिया बन जा।" उसने कठोर शब्दों में हुक्म दिया और बिना इंतजार किए मेरी चूतड़ पर एक और करारा थप्पड़ मारकर मुझे झटके से कुतिया की पोजीशन में हाथ और घुटनों के बल उठा दिया।
"मुझे मार क्यों रहे हैं? मुझे दर्द देकर आपको क्या मजा मिल रहा है जालिम कहीं के?" मैं उसके थप्पड़ से कराह कर बोली।
"दर्द तो अब होगा, जब मेरा मूसल तेरी चूत को भोसड़ा बनाएगा।" उसकी बातें सुनकर मुझे और कुछ बोलना व्यर्थ लगने लगा। देखा जाए तो यह सरासर बलात्कार था। लेकिन उस बलात्कार से मुझे एक अलग तरह का रोमांच मिल रहा था। इस रोमांचक बलात्कार से मेरी उत्तेजना को बढ़ रही थी। मैंने उसकी मर्जी के अनुसार पोजीशन ले लिया और इंतजार करने लगी कि कब उसका लंड मेरी चूत का तिया पांचा करने लगेगा। मुझे उसके लंड की लंबाई और मोटाई से कोई लेना-देना नहीं था। जानती थी कि मैं बड़े आराम से झेल लूंगी। कोई और होती तो शायद हलकान होती लेकिन मैंने अपनी क्षमता का आंकलन पहले ही कर लिया था इसलिए ऐसी परिस्थिति के लिए तैयार थी। मुझे ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ा।
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तभी उसने कुत्ते की तरह मेरी कमर को पकड़ा और बिना कोई निशाना साधे अपनी कमर को हरकत देने लगा। हे भगवान, यह मानव स्वभाव भूल गया है क्या? अपने हाथ से अपने लंड को पोजीशन में क्यों नहीं रख रहा था? कुत्तों की तरह उसका लंड कभी मेरी चूत के छेद के इधर कभी उधर होता रहा और उस दौरान मेरी चूत के छेद के समीप आस पास, अगल बगल ठोकरों से मुझे फिर पीड़ा देने लगा। मैं परेशान होकर एक हाथ से उसके लंड को मेरी चूत छेद पर रखने की कोशिश की लेकिन वह मुझे मौका ही नहीं दे रहा था। किसी कुत्ते की तरह लगातार प्रहार पर प्रहार किए जा रहा था इस कारण मेरा प्रयास व्यर्थ हो गया, अंततः मैंने हार मान कर खुद को स्थिर किया जिसका परिणाम सार्थक हुआ। उसका लंड खुद ब खुद अपने निशाने पर टिक गया और एक ही धक्के में उस कमीने का पूरा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ जड़ तक दाखिल हो गया।
"आआआआआआह ओओओओओ.....मर गयीईईईईईई. .. ‌.... " मेरी मर्मांतक चीख उस खंडहर में गूंज उठी। मैं इस तरह की पाशविक चुदाई की कल्पना नहीं की थी।
"चूऊऊऊऊऊप हरामजादी, तू मरेगी नहीं, हां अब तड़पेगी और उस घड़ी को कोसेगी जब तुमने मेरे अंदर के जानवर को जगाने की सोची थी।" कहकर वह अब पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ कर मसलते हुए तूफानी रफ्तार से चोदना आरंभ कर दिया। इसी दौरान उत्तेजना के आवेग में वह अपने दांतों से मेरे कंधों पर दांत गड़ाना भी आरंभ कर दिया था। उफ उफ उफ उफ वह सचमुच जानवर बन चुका था। कुछ देर तो मैं दांत भींच कर दर्द को पीती रही लेकिन कुछ देर में मुझे उसकी वहशियाना हरकत बेहद उत्तेजक लगने लगी। मुझे अब बड़े आनंद की अनुभूति होने लगी और मैंने खुले दिल से उसकी वहशियाना हरकत में सहयोग करने लगी। मैं इतनी उत्तेजना कभी अनुभव नहीं की थी। उसकी तूफानी रफ्तार के कारण मैं इतनी ज्यादा कुछ ही देर में मैं झड़ने को वाध्य हो गई। ओह अद्भुत था वह स्खलन। अवर्णनीय था और अत्यंत सुखद था।
"आआआआआआह ओओओओओहहहहह.... ऊऊऊऊऊ मांआंआंआंआंआं...... बस्स्स्स् बस्स्स्स्स हो गया आआआआआआह......" मेरे मुंह से निकला।
"मेरा तो नहीं हुआ नाआआआआआ... ‌" वह बोला और अपनी रफ़्तार दुगुनी कर दिया। वह कभी मेरे बालों को तो कभी मेरे कंधों को पकड़ कर पागलों की तरह चोदे जा रहा था। मैं ने अब अपने शिथिल होते शरीर को पूरी तरह उसके रहमो करम पर छोड़ दिया। पता नहीं आज उसे क्या हो गया था वह खल्लास होने का नाम ही नहीं ले रहा था। करीब आधा घंटा चोदने के बाद भी जब वह खल्लास नहीं हुआ तो अचानक उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसने मेरी गान्ड को निशाना बनाया।
"नहीं नहीं गांड़ नहीं," मैं चीख पड़ी। तभी मेरी गान्ड पर एक जोरदार थप्पड़ पड़ा।
"चुप हरामजादी," वह गुस्से से गुर्रा उठा और एक झटके में मेरी गान्ड को चीरता हुआ पूरा लंड घुसेड़ने लगा। यह सचमुच बहुत पीड़ादायक था। मेरी सूखी गांड़ को छीलता हुआ, उसका लंड घुसता जा रहा था और मैं दर्द से छटपटा रही थी। ओह ओह असहनीय दर्द। मुझे वह कस कर अपनी गिरफ्त में ले चुका था और मुझे विरोध करने से बिल्कुल असमर्थ कर चुका था। शनै शनै उसका लंड मेरी गान्ड में घुसता चला गया जो जड़ तक समा चुकने के बाद ही रुका। ओह मैं बता नहीं सकती हूं कि कितनी तकलीफदेह था वह। गनीमत थी कि उसका लंड मेरी चूत के रस से सना हुआ था वरना निश्चित तौर पर मेरी गान्ड बड़ी बुरी तरह ज़ख़्मी हो चुकी होती।
"आआआआआआह... ‌.. ‌‌....." मैं चीख पड़ी। तभी मेरी पीठ पर उसका थप्पड़ पड़ा।
"साली चीख, और जोर से चीख, कुतिया की बच्ची, चुदने के लिए मरी जा रही थी ना, अब जितना चाहो चीखो चिल्लाओ, कोई मादरचोद इधर नहीं आने वाला है।" वह खूंखार लहजे में बोला और अब शुरू हुई मेरी गान्ड की कुटाई। वह मेरे कंधों को पकड़ कर भकाभक चोदना आरंभ कर दिया। शुरू में पीड़ा के मारे मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े थे लेकिन कुछ मिनट बाद ही मुझे फिर से मजा आने लगा। मैं आराम से अपनी गांड़ में उसका लंड लेने लगी थी। कुछ पलों पहले की पीड़ा छूमंतर हो चुकी थी और मैं फिर से उसकी निर्दयता पूर्वक चुदाई का आनंद लेने लगी थी। अभी उसके चोदने की रफ्तार लगातार बढ़ती जा रही थी और मैं फिर एक बार स्खलन के कागार पर पहुंचने वाली ही थी कि अचानक उसने अपना लंड पूरी तरह बाहर निकाल लिया जो उस पल के लिए मुझे तड़पने को मजबूर कर दिया था लेकिन वह मात्र पल भर की तड़प थी क्योंकि अगले ही पल उसने फिर से मेरी चूत पर धावा बोला और लो, हो गया उस भीषण चुदाई का अभूतपूर्व सुखद समापन। उसने कस कर मेरी चूचियों को दबाया और....
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