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Misc. Erotica गरम रोज
"तुमने बताया नहीं कि ई चिड़िया कौन है?'" वह बूढ़ा दुबारा पूछा।
"अबे गुरु घंटाल, तू आम खाने से मतलब रख।" घनश्याम की बात सुनकर मैं कांप उठी।
"क्या मतलब है आपका?" मैं सोफे से उठकर गुस्से से बोली।
"बैठ जाओ बच्ची। चुपचाप बैठ जाओ। घनश्याम जिसको यहां लेकर आता है उसको यहां आने का मतलब अच्छी तरह से पता होता है।" वह बूढ़ा चमकती आंखों से मुझे देखते हुए बोला।
"घनश्याम चाचा यह गलत है। मैं यहां नहीं रुकूंगी। जा रही हूं।" मैं गुस्से से बोली।
"कैसे जाओगी छुटकी। तुमको पता है तुम इस वक्त कहां हो? बिना मेरी सहायता के तुम यहां से निकल कर कहीं जा भी नहीं सकती हो। यहां जंगल में आगे की झोपड़ियों में गुंडे मवालियों का अड्डा है। यह बूढ़ा जग्गू भाई है यहां का सबसे बड़ा मवाली, इसलिए यहां तुम सुरक्षित हो। यहां से हम तुम्हें निकल कर जाने भी दें तो निकल कर भटक गयी और उनके हाथ पड़ गयी तो तुम्हारा क्या होगा उसका शायद तुम्हें अंदाजा भी नहीं है।" घनश्याम बोला। अब मेरे पास कोई शब्द नहीं था। घनश्याम इतना कमीना होगा इसका मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था।
"पानी वानी पीना है?" वह बूढ़ा मुझसे पूछ रहा था।
"पानी पिलाने के बदले मुझे यहां से वापस जाने की व्यवस्था कीजिए।" मैं गुस्से से बोली।
"वापस तो ले जाऊंगा लेकिन तेरा डर हमेशा के लिए दूर करके।" घनश्याम बोला।
"अबे कम से कम अब तो बता दो कि ई है कौन? अच्छे घर की दिखाई दे रही है और इतनी कम उम्र की।'" वह बूढ़ा बोला।
"अच्छे घर की बिगड़ी औलाद है और इसकी उम्र पर मत जाओ। खूब मज़ा देगी। पूरी ट्रेनिंग मिली हुई है।" घनश्याम बोला।
"लेकिन ई है कौन?" वह बूढ़ा फिर बोला।
"साले खड़ूस, मेरी मालकिन की बेटी है।"
"फिर तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी। घर में बता देगी तो?"
"नहीं बताएगी। यह खुद मुझे निमंत्रण दी है।"
"फिर यह मना काहे कर रही है?"
"उसके मना करने का कौन मां का लौड़ा परवाह करता है। तुम्हें पता है ना कि मैं पहले कितना बड़ा हरामी था? फिर शरीफ लोगों की संगति में इतने दिन शराफत की जिंदगी जी रहा था। लेकिन यह हरामजादी फिर से मेरे लंड को जगा कर बता दी कि मैं हरामी ही ठीक था।"
"ओह ऐसा है तो फिर ठीक है। सच में बहुत बढ़िया कोची माल लाए हो। हम इसे बाद में देख लेंगे।" बूढ़ा खीसें निपोरते हुए बोला। 'बाद में देख लेंगे' का मतलब अच्छी तरह से समझ रही थी मैं।
हे मेरे राम, मेरी छोटी सी भूल की इतनी बड़ी सजा? घनश्याम तक तो फिर भी ठीक था। अब यह बूढ़ा भी मुझे चोदने की सोच रहा है। आज तो गई मैं काम से। यहां से भाग भी तो नहीं सकती थी। नयी जगह थी। कहीं भटक कर मवालियों के हत्थे चढ़ गयी तो और मुसीबत हो जायेगी। अब आगे जो कुछ होने वाला था उसकी कल्पना कर के ही मैं सिहर रही थी।
"अब तुमलोग अईसे ही एक दूसरे का मुंह देखते रहोगे कि कुछ करोगे भी। हम भी इधर कतार में इंतजार कर रहे हैं। पहले तुम निपट लो फिर हम निपटेंगे।" वह बूढ़ा वासना भरी निगाहों से मुझे देखते हुए बोला।
"देखिए चाचाजी, यह गलत है। आप मुझे लेकर जंगल में आए थे, वहां तक तो ठीक था लेकिन यहां लाकर तो आपने मुझे बुरी तरह फंसा दिया। यहां बूढ़ा यह क्या बोल रहा है?" मैं उस बूढ़े की बात सुनकर कांप उठी।
"सारी गलती तुम्हारी है। यह तुम अब बोल रही हो। जंगल में ही मान जाती तो यहां आने की नौबत ही नहीं आती।" घनश्याम बोला।
"ओह, तो तुम जिंदगी की ई सबसे चटपटी और स्वादिष्ट चीज को अकेले ही खाने का प्लान बनाए हुए थे? लानत है तुम्हारी दोस्ती पर।" वह बूढ़ा नाराज होकर बोला।
"अरे अरे नाराज क्यों हो रहे हो भाई। अब ले तो आया ही हूं ना। आराम से खाओ, कौन मना करता है।" घनश्याम बोला। मुझे इस मुसीबत से निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था।
"ददद देखिए देर हो रही है। मां आ जाएगी तो आप क्या सफाई दीजियेगा? आज बहुत देर हो जाएगी। फिर कभी आएंगे।" मैं ने बचने का अंतिम प्रयास किया। समझ गई थी कि एक बार मेरी चुदाई शुरू हुई तो बारी बारी से दोनों मुझे चोदे बिना नहीं छोड़ेंगे।
"तुम उसकी चिंता काहे कर रही हो मेरी बन्नो रानी? आज भगवान भी मेहरबान है या यूं कह लो यह सब भगवान की मर्जी से हो रहा है। तुम्हारी मां आज सात बजे से पहले आने वाली नहीं है और अभी तो मात्र साढ़े चार बज रहा है। हमारे पास ढाई घंटे का समय है। बहुत समय है। तबतक तो बहुत कुछ हो जाएगा, बशर्ते कि तुम सहयोग करो।" कहकर घनश्याम आगे बढ़ा और मेरे टॉप के बटन खोलने लगा। बटन खोलते खोलते वह ऊपर से ही मेरी चूचियों को छूने लगा था। मेरी चूचियां वे संवेदनशील बटन हैं जिनपर हाथ लगते ही मेरा खुद पर से नियंत्रण छूटने लगता है। उस वक्त वही हो रहा था।
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FAs gai hmari ROJ
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"मुझसे इतनी गंदी तरह व्यवहार मत कीजिए चाचा जी प्लीज़।" मैं अंतिम बार विरोध करने की कोशिश करते हुए बोली।
"इसमें गंदा क्या है? तेरे कपड़े ही तो खोल रहा हूं।" कहते हुए मेरी टॉप के सामने के सारे बटन खोल दिया। हाय राम, वह दढ़ियल बूढ़ा कितनी भूखी नज़रों से मेरे सीने को देख रहा था।
"इस पराए बूढ़े के सामने ऐसा करना बुरा नहीं है क्या? जरा तो रहम कीजिए बेशरम। मुझे पराए मर्द के सामने शरम आ रही है।" मैं उसके दोनों हाथ पकड़ कर बोली। दरअसल आत्मनियंत्रण खोने की शुरुआत हो चुकी थी लेकिन उस बूढ़े की उपस्थिति मुझे खल रही थी।
"मैं तुम्हारे साथ जो करने जा रहा हूं उसमें तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं है ना?" घनश्याम मेरे टॉप को उतारते हुए बोला।
"नहीं, मगर अकेले में।" मुझे बोलना पड़ा। मरता क्या न करता।
"यही बात तुम पहले बोल देती तो कितना अच्छा होता। चलो देर आई दुरुस्त आई।" कहकर घनश्याम मेरी ब्रा खोलने लगा। ब्रा खोलने के क्रम में घनश्याम मेरी चूचियों पर हाथ भी लगा रहा था।
"नहीं नहीं प्लीज़, इसके सामने नहीं।" मैं फिर विरोध करने लगी। यह विरोध बड़ा कमजोर सा था। मेरी कांपती आवाज़ की कंपन को मैं छिपा नहीं पाई।
"अच्छा अच्छा, गंजू भाई, तुम्हारे सामने यह शरमा रही है।" घनश्याम उस बूढ़े से बोला। उसके कहने का तात्पर्य था कि वह इस वक्त वहां से चला जाए।
"अच्छा बच्चू, हमारे ही घर में हम ही को बाहर भेज रहे हो। अच्छा चलो, दोस्त की खातिर ई भी मंजूर है।" कहकर वह मुस्कुराते हुए मुझे घूर कर बाहर चला गया। उसके जाते ही दरवाजा अपने आप बंद हो गया। अब हम दोनों अकेले थे।
"अब ठीक है?" घनश्याम मुझसे बोला।
"हां।" मरी मरी सी आवाज में मैं बोली। अब घनश्याम को रोकने का कोई बहाना नहीं बचा था मेरे पास। वह मेरी ब्रा को खोल दिया और मेरी बड़ी बड़ी चूचियों को इतने सामने से देख कर मानो पलक झपकाना भूल गया। धीरे से उसने मेरी चूचियों को सहलाया और हल्के से दबा कर महसूस किया। मैं उसके खुरदरी हथेलियों के स्पर्श को अपनी चूचियों पर महसूस कर न चाहते हुए भी रोमांचित हुए बिना नहीं रह सकी। फिर उसने मेरे खड़े गुलाबी निप्पलों को अपनी चुटकियों से पकड़ कर मसलने लगा।
"आआआआआआह......" मेरी आह निकल गई। फिर धीरे धीरे वह मेरी चूचियों को हथेलियों से पकड़ कर दबाने लगा। मेरी आह से स्पष्ट हो गया कि अब मुझ जैसी खिलंदड़ी लड़की शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी उसके काबू में आ चुकी थी।
"उफ, बड़ी जबरदस्त चूचियां हैं तुम्हारी। जी चाहता है दबाता रहूं।" वह बोला और उसके हाथ का दबाव धीरे धीरे मेरी चूचियों पर बढ़ने लगा।
"ओओओहहह.... " मुझे दर्द हो रहा था लेकिन यह बड़ा उत्तेजक था। वह अब मेरी नंगी पीठ को सहलाने लगा और धीरे-धीरे मुझे ठेलते हुए बिस्तर तक ले आया। वह अब मेरे चेहरे के पास अपना चेहरा ले आया और पहले मेरी आंखों में आंखें डाल कर मुझे देखने लगा।
"अ अ अअब कककक्या देख रहे हैं?" मैं उसकी नजरों की ताब नहीं ला सकी।
"देख रहा हूं, यह हुस्न की परी इतने दिनों तक मेरे आस पास थी मगर मेरी आंखों पर ही पर्दा पड़ा हुआ था।" वह अब मुझे बांहों में भर कर बेहताशा चूमने लगा। मेरे गालों को चूमा और फिर मेरे गुलाबी होंठों पर अपने तपते होंठ रख दिए। उफ उफ उस बूढ़े के होंठों ने मेरे अंदर चिंगारी सी सुलगा दी। मेरा रहा सहा विरोध भी पूरी तरह खत्म हो गया। मेरे होंठ अपने आप खुल गये। यह आमंत्रण था जिसे कामदेव बना घनश्याम जैसा बूढ़ा कैसे ठुकरा सकता था। वह तुरंत अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल कर चुभलाने लगा। मुझ पर अजीब सा नशा तारी होने लगा। एक हाथ से वह मुझे थाम रखा था और मेरे मुंह में अपनी लंबी जीभ घुसा घुसा कर नचा रहा था और इधर दूसरे हाथ से मेरे स्कर्ट को खोलने लगा। मैं जान रही थी कि मेरे साथ क्या हो रहा था लेकिन मैं रोक पाने की स्थिति में नहीं रह गई थी। स्कर्ट नीचे गिर गया। अब मुझे अपनी पैंटी के ऊपर से ही चूत पर उसकी उंगलियों का स्पर्श महसूस हुआ। मैं गनगना उठी। उत्तेजना के अतिरेक में मेरे पैर थरथराने लगे। वह मेरी पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को सहलाने लगा। कुछ पलों तक सहलाने के बाद उसने पैंटी के अंदर अपना हाथ डाल दिया।
इस्स्स्स्स...... जैसे ही उसकी उंगलियों का स्पर्श मेरी नंगी चूत पर हुआ, मैं अपनी जांघों को आपस में रगड़ने को बाध्य हो गई। मैंने अपनी जांघों से उसकी उंगलियों को जकड़ लिया। मैं कुछ देर उसी तरह स्थिर रह गई और घनश्याम भी जानता था कि मेरी हालत क्या है। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब क्या करूं। कुछ देर उसकी उंगलियों को अपनी चूत पर महसूस करती रही फिर मैंने अपनी जांघों को खोल दिया। अब घनश्याम मेरी पैंटी को नीचे खिसकाने लगा और देखो, कुछ देर पहले कहां मैं घनश्याम का विरोध कर रही थी और कहां अब अपनी पैंटी से मुक्त होने के लिए घनश्याम का सहयोग करने लगी। पल भर में ही मैं पूरी तरह उसकी बांहों में नंगी खड़ी थी।
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घनश्याम मेरी हालत से अनभिज्ञ नहीं था। वह जानता था कि मैं पूरी तरह गरम हो चुकी हूं और यही वह सुनहरा मौका था जब वह बड़ी आसानी से अपनी मंजिल (मेरी चूत) को हासिल कर सकता था और मुझ जैसी नवयौवना के कमनीय शरीर से सर्वोत्तम आनंद प्राप्त कर सकता था। वह धीरे से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। मैं कामुकता के वशीभूत एक टक उसे अपने कपड़ों से मुक्त होते हुए देख रही थी। एक एक करके उसके शरीर से सारे कपड़े उतरते जा रहे थे। शर्ट और बनियान उतरते ही उसके शरीर के ऊपरी हिस्से पर भरे हुए काले सफेद बाल मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर रहे थे। उस उम्र में भी उसका शरीर कसा हुआ था। उसका चौड़ा सीना और उसकी बांहों की उभरी हुई मछलियां मेरे अंतर्मन को आंदोलित कर रहा था। जैसे ही उसका पैंट खुला, उसके अंडरवियर के ऊपर का बड़ा सा उभार यह जताने लगा था कि उसके अंदर जो कुछ भी था कितना विशाल होगा। हालांकि मैं पहले ही उसके लिंग का दर्शन कर चुकी थी लेकिन इस वक्त की बात कुछ और थी। इस वक्त उसके साथ सक्रिय संपर्क का अवसर आ चुका था, जो कि वास्तविकता का रूप लेने जा रहा था और उस की कल्पना से मेरे शरीर की धमनियों में रक्त का संचार द्रुत गति से होने लगा था। लो वह पल भी आ गया जब अंडरवियर के रूप में अंतिम पर्दा भी हट गया और उसका विशाल लिंग अपने पूरे जलाल के साथ मेरी आंखों के सामने उछाल मार कर प्रकट हो गया। अब वह पूरी तरह नंगा था और मेरी नग्न देह को सर से पांव तक वासनापूर्ण नजरों से निहार रहा था। वह भी शायद मुझ जैसी इतनी कम उम्र की कमसिन और सेक्सी नवयौवना के शरीर को अपनी पहुंच के इतने करीब पा कर अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं कर पा रहा था होगा। वह मुझे चोदने के पहले अपलक मेरी खूबसूरत देह को जी भर देखे जा रहा था।
इधर मैं अपने अंदर भड़क उठी कामाग्नि से जलती हुई जल बिन मछली की तरह, हमारे शरीर के एकाकार होने के पलों के इंतजार में पागल हुई जा रही थी। अब मेरे अंदर कोई दुविधा नहीं थी, कोई इनकार नहीं, कोई विरोध नहीं, कोई भय नहीं, बस आमंत्रण, बेकरारी भरा आमंत्रण था। मैं रोजा से मादरजात नंगी रति बन गई थी और अपनी कमसिन, कंचन काया के साथ आमंत्रण की मुद्रा में बिस्तर पर लेटी हुई थी। बूढ़ा घनश्याम अब मुझे उस वक्त पूर्ण सक्षम, पौरुष से भरपूर, संभोग के लिए आतुर साक्षात कामदेव का अवतार नजर आ रहा था। हमारे बीच उम्र के इतने बड़े फासले का कोई अब कोई अर्थ नहीं था। इस वक्त मैं बस रति और वह मेरा कामदेव था। मेरी फकफकाती प्यासी चूत और उसके फुंफकार मारते विशाल काले लंड के मिलन में एक पल का विलंब अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
"ओओओओओ जालिम बुड्ढे, अब इस बच्ची को और कितना तड़पाओगे?" मैं उसकी ओर से विलंब होता देख कर तड़प उठी।
"बच्ची को अब बूढ़े से डर नहीं लग रहा है?" सहसा वह तंद्रा से जाग कर शैतानी से बोला।
"नहीं बाबा नहीं, अपनी बच्ची को बाहों में ले लो।" मैं बाहें फैला कर जल्दी से बोली।
"सोच लो तुम मुझे चाचा बोलती हो।"
"सोच ली, चाचा के लिए भतीजी तैयार है।" यह मेरे सब्र का इम्तिहान था।
"तुम बोल रही थी यह गलत है।" वह छेड़ते हुए बोला।
"अब बोल रही हूं कि सेक्स में सही ग़लत कुछ नहीं होता है।" मैं बेसब्री से करीब करीब चीखती हुई बोली।
"सोच लो।"
"सोच लिया। यहां तक होने के बाद अब सोचना क्या।" अब मेरे सब्र का पैमाना छलक उठा था। मैं बिल्कुल जंगली बिल्ली की तरह बिस्तर से उठी और उस पर झपट पड़ी और उसके नंगे जिस्म से चिपक कर बेसाख्ता चूमने लगी। मेरी इस हरकत से वह पल भर को हतप्रभ रह गया था लेकिन अब मैं रुकने वाली नहीं थी। मुझे होश ही कहां था। यहां तक कि क्या बोल रही हूं उसका भी होश नहीं था। मेरे चुंबन के प्रतिदान में वह भी मुझे चूमने लगा। एक हाथ से मुझे थाम कर दूसरे हाथ को मेरे नंगे जिस्म पर फिरा रहा था। कभी मेरी चिकनी गांड़ को सहलाता, कभी मसलता। उसका सख़्त लिंग मेरी चूत पर दस्तक दे रहा था।
"बहुत जोश में हो मेरी बन्नो रानी।" चूमते चूमते वह बीच में ही बोल उठा। उसकी उंगलियां अब मेरी चूत के ऊपर नृत्य कर रही थीं।
"हां हां, मेरे साथ गंदी गंदी हरकत करके मुझे पागल करने के बाद अब मुझे होश ही कहां है कि आप जोश की बात कर रहे हैं? इस वक्त ऐसी बात का क्या मतलब, जब मैं पागल हो चुकी हूं?" मैं हांफते हुए बोली। मेरा हाथ अब उसके लिंग को पकड़ चुका था। बाप रे, कितना गरम, सख्त और मोटा हो चुका था। मुझे उसके लिंग की लंबाई और मोटाई भी डरा नहीं रही थी।
"सचमुच पागल हो गई हो?" जैसे ही मैं उसका लंड पकड़ी वह बोल उठा।
"हां भई हां।" मैं उससे लिपट कर बोली।
"इतना पागल होना ठीक नहीं है।" वह फिर बोला।
"पहले मुझे पागल किया और अब लेक्चर दे रहे हैं?" मैं उसके उपदेश सुनने के मूड में नहीं थी। यहां मेरे अंदर आग लगी हुई थी और यह गधा मुझे लेक्चर पिला रहा था।
"लेक्चर नहीं दे रहा हूं। सावधान कर रहा हूं। ऐसी हालत में तो कोई भी तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकता है।" वह मेरे नितंबों को दबाते हुए बोला।
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"तो करने दीजिए ना।" मैं झटके में बोल उठी।
"करने दूं?" घनश्याम मुस्कुरा कर बोला।
"हां हां जिसको जो करना है करने दीजिए, जो होगा मेरा होगा, आपको इससे क्या? आपको जो करना है कीजिए ना।" मुझसे अब ऐसी बेमतलब की बात में समय गंवाना बर्दाश्त नहीं हो रहा था। मैं उसकी गर्दन पर बांहों का हार पहनाकर उसे फिर से बेसाख्ता चूमने लगी।
"कोई भी तुम्हारे साथ कुछ भी करेगा उससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा?" वह शैतानी से बोला।
"अरे करेगा तो आखिर क्या करेगा?" मैं झल्ला कर बोली।
"चोदेगा।" वह मुस्कुराते हुए बोला।
"चोदने दीजिए। मुझे कौन चोदता है इससे आप को क्या। आप अपने काम से काम रखिए ना।" मैं वासना की आग में जलती हुई ऐसी बेमतलब की बात से बेहद खिन्न हो कर बोली। मैं जबरदस्ती उसकी नग्न देह को अपने में समा लेने की आतुरता में चिपक गई।
"ठीक बोली, तुम्हें कौन चोदता है इससे मुझे क्या। किसकी किसकी किस्मत में तुम्हें चोदना लिखा है इससे मुझे क्या लेना देना है। मेरी किस्मत में तो इस वक्त तुम्हें चोदना लिखा है। आजा मेरी बच्ची अपने चाचा की गोद में।" कहकर उसने मेरी चूतड़ के नीचे हाथ लगा कर मुझे गोद में उठा लिया। अब मेरी खुशी सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी। मैं अपने पैरों को उसकी कमर पर लपेट कर पूरी सहूलियत से झूलने लगी और उसे बेहताशा चूमने लगी।
जितनी आसानी से घनश्याम ने मुझे उठा रखा था उससे घनश्याम की ताकत का अंदाजा मुझे मिल रहा था। उसी पोजीशन में घनश्याम ने एक हाथ से मुझे थाम लिया और दूसरे हाथ से अपना तना हुआ लिंग नीचे से मेरी चूत के द्वार पर सटाया। जैसे ही उसके लिंग का स्पर्श मेरी यौन गुहा के प्रवेश द्वार पर हुआ, मैं चिहुंक उठी। उई मांआंआंआंआ....!घबराकर नहीं, बल्कि रोमांचित हो कर। यह अनुभव अनोखा था। मैं सनसना उठी थी। उत्तेजना के मारे मेरी चूत से रस रिसने लगा था। अब उसी चिकने रस पर घनश्याम अपने लिंग का सुपाड़ा घिस रहा था। मैं मुदित हो उठी। अब मेरी प्यासी योनि की मुराद पूरी होने वाली थी। घनश्याम अपने लिंग को मेरी योनि से रिसती चिकनाई पर रगड़ रहा था, इसका मतलब अब वह किसी भी पल मेरी योनि को अपने हथियार से भेदने वाला था। मैं इसी पल के लिए तो इतनी देर से मरी जा रही थी। उस वक्त मैं भूल ही गई थी कि घनश्याम का लिंग लंबाई में तो करीब करीब घुसा के बराबर ही था लेकिन मोटाई में घुसा के लिंग की तुलना में कुछ ज्यादा ही था। मेरी भूख प्यास से व्याकुल योनि उस वक्त एक अदद लिंग के लिए बेकरार थी। मुझे उस घड़ी घनश्याम जैसे ताकतवर बुजुर्ग के विशाल लिंग की लंबाई मोटाई की परवाह करने का होश ही नहीं था। मेरी योनि भेदन के इस अंतिम पल में घनश्याम ने अपने लिंग पर अतिरिक्त चिकनाई के लिए अपना थूक लगाया और अपने लिंग को मेरी योनि के प्रवेश द्वार पर टिका कर मुझे धीरे धीरे नीचे उतारने लगा।
घनश्याम की बिना किसी अतिरिक्त कोशिश से मेरा शरीर अपने भार के कारण नीचे आने लगा और इसका परिणाम यह हुआ कि मेरी चूत घनश्याम के तने हुए लंड पर उतरने लगा और जैसा कि आपलोग जानते हैं, घनश्याम के लंड का टोपा, मेरी चूत के दरवाजे को फैला कर अंदर दाखिल होने लगा।
"ऊऊऊऊऊहहहह मांआंआंआंआंआं...." यह पीड़ामिस्रित आनंद भरी आह थी जो मेरे मुंह से निकली थी। जैसे जैसे मेरा शरीर नीचे जाने लगा, वैसे वैसे उसके लंड के सुपाड़े के साथ साथ लंड का बाकी हिस्सा भी अंदर प्रविष्ट होने लगा। उसके लंड की असाधारण मोटाई के कारण मुझे अपनी चूत क्षमता से अधिक फैलती हुई महसूस हो रही थी लेकिन इस वक्त मुझे कोई परवाह नहीं थी। उसके लंड के हिसाब से मेरी संकीर्ण चूत जितना फैलना था फैल कर रास्ता देती जा रही थी। उसका लंड भी घनश्याम की तरह कमीना था, जबरदस्ती रास्ता बनाता हुआ घुसता ही चला जा रहा था। अंततः जड़ तक घुस कर ही रुका। मैं इस दौरान दांत भींचे दर्द को पीती, अपनी चूत की अविश्वसनीय क्षमता का प्रदर्शन करती हुई रोमांचित हो रही थी।
"आआआआआआह ओओओहहह....." पूरी तरह उसके लंड को अपने अंदर समाहित करके आहें भरने लगी।
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Ab lgta hai roj ki ek din main do do se sath
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"आआआआआआह ओओओहहह....." पूरी तरह उसके लंड को अपने अंदर समाहित करके आहें भरने लगी।
"उफ़ उफ़ तेरी चूऊऊऊऊत। आआआआआआह...." घनश्याम भी अपनी सफलता का झंडा गाड़ कर आहें भरने को मजबूर हो गया। पूरी तरह लंड घुसेड़ कर कुछ पल रुक कर उस आनंदमय पलों को महसूस करने लगा। वही हाल मेरा भी था। अब घनश्याम फिर मुझे उठाने लगा और इतना ही उठाया कि उसका आधा लंड अंदर ही था फिर मुझे नीचे उतारने लगा। यही क्रम तीन चार बार दुहराने के बाद तो मैं भी पूरी तरह सक्रिय हो गयी और खुद ही उसकी गोद में उछलने को मजबूर हो गयी। मेरा रोम रोम तरंगित हो रहा था और मस्ती में आ कर मेरी आंखें बंद हो गयीं। हम दोनों को पहली बार एक दूसरे का स्वाद मिला था और सच कहूं तो अद्भुत सुखद स्वाद मिला था। अब इस उत्तेजक प्रथम समागम के सुखद पलों को महसूस करते हुए हमें इन पलों को जितना लंबा खींच सकते थे उतना खींच कर भरपूर मजा लेना था। मैं तो पागल सी हुई जा रही थी। घनश्याम मेरी चूतड़ों को नीचे से थाम कर मुझे ऊपर नीचे करने लगा और इसी के साथ उसका लंड मेरी चूत में अंदर बाहर होने लगा। मैं उनकी गर्दन पर अपनी बाहों का हार पहनाकर पैरों से उनकी कमर लपेटे अपनी चूत में उसके लंड के घर्षण से उत्पन्न तरंगों से दूसरी दुनिया में ही पहुंच गई थी। मैं अपने आप को कोसने लगी कि पता नहीं कौन सी बेवजह आशंका और भय के वशीभूत मैं इस अद्भुत आनंद से वंचित रहना चाह रही थी।
चुदाई के इस अद्भुत खेल में डूब कर अभी इसका रसास्वादन करना आरंभ ही की थी कि सहसा मेरी चूचियों पर दो खुरदुरे अजनबी हाथ आ कर थिरकने लगे। ये दो हाथ कहां से पैदा हो गये? घनश्याम के दोनों हाथ तो मेरे नितंबों के नीचे से मुझे थामे हुए थे। मैं चौंक उठी और मैं घबराकर आंखें खोल कर समझने की कोशिश करने लगी कि यह क्या हो रहा है। तभी मेरी गर्दन पर गर्म सांसें महसूस होने लगीं और साथ ही दाढ़ी का स्पर्श हुआ। मेरी पीठ की ओर से एक और व्यक्ति आ चिपका था। मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह वही बूढ़ा गंजू था जो न जाने कब वहां चोरों की तरह घुसा चला आया था। छि छि, जिस घृणित बुड्ढे के सामने मुझे नंगी होने में शर्म आ रही थी वही बुड्ढा अब मेरी नंगी देह को न सिर्फ देख रहा था बल्कि अपने हाथों से महसूस कर रहा था।
"हट हट यह यह क क क्या कर रहे हो? तुम हटो, छोड़ो मुझे घटिया आदमी।" मैं चौंक कर तिरस्कार भरे स्वर में बोली। इस आनंददायक पलों में इतना अप्रिय व्यवधान, वह भी इस घृणित बुड्ढे द्वारा मुझे बेहद नागवार गुजरा।
"हम भी घनश्याम की तरह आदमी हैं। एक आदमी से इस तरह घिन से बोला नहीं करते मेरी बच्ची।" वह बूढ़ा पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ कर बोला। इसी के साथ मेरी गर्दन को चूमने लगा। मेरी देह पर उसकी देह का स्पर्श मुझे घृणा से भर रहा था। मुझे अहसास हो गया था कि यह भी पूरी तरह नंगा है। हाय हाय यह मैं कहां आ फंसी थी। अब यह अजनबी गंदा बूढ़ा भी मुझे चोदने की फिराक में है, उससे चुदने की कल्पना से ही मैं सिहर उठी।
"नहीं नहीं। हटो, छोड़ो मुझे गंदे आदमी।" मैं घनश्याम के गले को छोड़ कर तड़प उठी। घनश्याम के गले को छोड़ने से मैं मुक्त नहीं हो पाई, क्योंकि घनश्याम ने अब मुझे कस के जकड़ लिया था और उसका लंड मेरी चूत में फंसा हुआ था।
"एक बुजुर्ग से इस तरह का वर्ताव ठीक नहीं है मेरी बन्नो रानी। इन्सानियत भी कोई चीज होती है। थोड़ी खुशी इसे भी बांट दो ना। सुना है खुशी बांटने से खुशी बढ़ती है। तेरा कुछ घट थोड़ी न जाएगा। तुम्हारे ही शब्दों के अनुसार बोलूं तो, आखिर क्या करेगा, चोदेगा ही ना। तो फिर अब इस तरह का नखरा क्यों? यकीन मानो, खुश हो जाओगी।" घनश्याम मुझे चोदना रोक कर जकड़े हुए बोला। चुदाई में खलल और बीच मझधार में घनश्याम का रुकना सचमुच बड़ा कष्टकारी सिद्ध हो रहा था। मुझे समझते देर नहीं लगी कि यह उनकी मिलीभगत थी, एक पूर्व योजना के तहत मुझे फंसाया गया था। इस वक्त मेरी जो हालत थी वह बयान के काबिल नहीं थी। एक तरफ घनश्याम की चुदाई का सुरूर मेरे सर चढ़ कर बोल रहा था और दूसरी तरफ इस बूढ़े गंजू के प्रति मन में वितृष्णा का भाव। उस वक्त चुदाई की खुमारी में मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि जग्गू को टालूं तो टालूं कैसे। अगर मैं जग्गू के प्रति वितृष्णा के बावजूद उसकी मंशा को पूरी होने देने के लिए अपनी सहमति दे दूं तो फिलहाल घनश्याम के साथ निर्विघ्न संभोग का लुत्फ ले सकती हूं बशर्ते कि गंजू इस तरह इस समय व्यवधान पैदा न करे। मैं ने मन कड़ा करके जग्गू की मंशा के आगे घुटने टेकने का निर्णय लिया क्योंकि इस वक्त घनश्याम के साथ मैं संभोग के जिस मुकाम तक पहुंच चुकी थी वहां से वापस लौटना कितना कष्टकारी होता उसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
"ठीक है जैसी आपलोगों की मर्जी, लेकिन इस वक्त आप रुकिए मत प्लीज।" मैं फिर से घनश्याम से लिपट गई।
"बहुत बढ़िया निर्णय।" कहकर घनश्याम फिर से गचागच चोदने लगा। मैं उत्तेजना की आंधी में बही चली जा रही थी। अब भी गंजू ने मुझे छोड़ा नहीं था और पीछे से मेरी चूचियों को सहलाने और दबाने का क्रम जारी रखा हुआ था। न चाहते हुए भी गंजू की हरकतों से मैं और भी ज्यादा उत्तेजना का अनुभव करने लगी थी।
"आआआआआआह ओओओहहह.... अभी तो छोड़िए गंजू जी। पहले घनश्याम चाचा जी से निपटने तो दीजिए। मैं कहीं भागी थोड़ी ना जा रही हूं।" मैं बुड्ढे गंजू के हाथों को झटकती हुई बोली।
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wah roj ke to maze hi maze hai.............
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"देख बिटिया, हम बूढ़े जरूर हो गये हैं लेकिन ई सब हमारे सामने हो तो हमसे चुपचाप देखा नहीं जाता है। ई सब में खुद को रोकना हमसे बर्दाश्त नहीं होता है। तुम लेती रहो ना घंशू का लौड़ा, हम कहां रोक रहे हैं तुमको, लेकिन हमको भी थोड़ा मजा लेने दो ना। हमारा भरोसा रखो, हम डिस्टर्ब बिल्कुल भी नहीं करेंगे।" वह पीछे नहीं हटा और पीछे से मेरी चूचियों को दबाते हुए किसी भूखे की तरह अपनी बेसब्री जताते हुए मेरी गर्दन और पीठ पर चुंबनों की झड़ी लगाने लगा। उसका कद काफी लंबा था, करीब छः फुट का, इसलिए वह थोड़ा झुक कर यह सब कर रहा था। उसकी इस तरह की हरकतों से मेरे अंदर मस्ती और ज्यादा बढ़ गई थी। एक तो घनश्याम की चुदाई और दूसरी तरफ गंजू की कामुकता भरी हरकतें, दोतरफा मजा, हालांकि दोतरफा मजा की यह तो मात्र शुरुआत थी। आगे अभी और भी मेरे साथ बहुत कुछ होना बाकी था। अभी जो कुछ मेरे साथ हो रहा था, उसमें ही मुझे जो आनंद मिल रहा था कि ज्यादा कुछ बोला नहीं जा रहा था क्योंकि अब मुझे गंजू की हरकतें धीरे धीरे बड़ी अच्छी लगने लगी थीं। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मुझसे कम से कम तीन गुना ज्यादा उम्र का बूढ़ा, जो जिस्मानी तौर पर जवानों को भी फेल करने का माद्दा रखता था, मुझे आसानी से हवा में उठा कर चोद रहा था। उसके असामान्य बड़े लिंग पर मेरी योनि बड़ी सख्ती से चिपकती हुई घर्षण का मजा दे रही थी। इस नयी मुद्रा में चुदने का एक नया रोमांच था। घनश्याम द्वारा चुदाई में अपने लिंग की पूरी लंबाई का, सुपाड़े से जड़ तक का संपूर्ण इस्तेमाल सोने पर सुहागा का काम कर रहा था। इन सबका मिला जुला परिणाम यह था कि मैं दूसरी ही दुनिया की सैर करने लगी थी और अब जैसे इसमें कोई कसर बाकी थी तो उस कसर को पूरा करने के लिए यह टकला दढ़ियल बूढ़ा गंजू पीछे से आ कर मुझ पर गर्दन से लेकर पीठ पर चुंबनों की बरसात करते हुए मेरे उन्नत स्तनों से खेलने लगा था जिससे मैं बेहद उत्तेजित हो कर चरम उत्तेजना के सागर में गोते खाने लगी थी। उन दोनों के बीच सैंडविच बनी हुई मैं कामना करने लगी कि भगवान, इन पलों को जितना लंबा खींच सकते हो, अंतहीन खींचो।
"आआआआइहहहह ओओओहहह....." मैं आंखें बंद कर आहें भरने को बाध्य हो गई। तभी अचानक मैं चौंक उठी। मेरी गुदा द्वार पर एक जाना पहचाना स्पर्श हुआ। मैं समझ नहीं पाई कि यह उंगली का स्पर्श था या कुछ और चीज का। मैं ने तस्दीक करने के लिए गुदा के नीचे हाथ लगाया तो सन्न रह गई। हे भगवान! यह उंगली नहीं थी। यह तो, यह तो बूढ़े गंजू का लंड था। मैंने हाथ से उसके लंड के साईज का अंदाजा लगाया तो मेरी रूह फना हो गई। यह घुसा के लंड से भी बड़ा प्रतीत हो रहा था जिस पर गंजू ने थूक लगा कर मेरी गांड़ के दरवाजे पर टिका रखा था।
"नहीं नहीं। यह कककक्या कर रहे हैं?" मैं भय के मारे चीख पड़ी, जानती थी कि यह मेरी गांड़ मारने की तैयारी थी।
"तेरी गांड़ देख कर हमसे रहा नहीं गया बिटिया।" गंजू मेरे कान के पास मुंह ला कर बोला। कान के पास जैसे ही उसका मुंह आया, मेरे नथुनों में एक अजीब तरह की तीखी दुर्गंध आई। उस वक्त मुझे पता नहीं था लेकिन अब मुझे पता है कि वह दुर्गंध देशी शराब की थी।
"छि छि इतनी गंदी बदबू। अपना मुंह दूर रखिए और यह आप मेरी गांड़ के लिए क्या बोल रहे हैं?" मैं घृणा और भय से हलकान होती हुई बोली।
"बर्दाश्त कर लो बिटिया, थोड़ा सा देशी चढ़ा लिया है। अगर बुरा महक रहा है तो हमको माफ कर दो लेकिन यह भी सच है कि तेरी खूबसूरत गांड़ को देख कर हमसे बर्दाश्त नहीं हुआ जा रहा है।" वह मेरी चूचियों को मसलते हुए बोला।
"नहीं नहीं, गांड़ नहीं प्लीज़। सामने से और पीछे से एक साथ तो कभी नहीं प्लीज़। मैंने पहले कभी ऐसा नहीं किया है, मुझ से नहीं होगा यह सब। मर जाऊंगी मैं। मुझ पर जरा तो रहम कीजिए।" मैं रोनी सी आवाज में बोली।
"डरो मत। कुछ नहीं होगा तुम्हें। मेरा भरोसा रखो। मैं कह रहा था ना कि तुम्हारा डर आज पूरी तरह से खत्म कर दूंगा। थोड़ा हिम्मत करके देखो, आज के बाद तुम्हारा डर हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।" घनश्याम बोला।
"मुझसे नहीं होगा।" मैं भयभीत स्वर में बोली।
"तुम से सब होगा। बस डरना छोड़ दो।"
"इस बुड्ढे का बहुत बड़ा है।"
"घुसा का बड़ा नहीं है क्या?'"
"इनका बहुत ज्यादा बड़ा है।" मैं फिर भी झिझक रही थी।
"घुसा का भी तो बड़ा था। बड़ा था कि नहीं, था ना? तब भी हुआ ना? तुम्हारी उम्र की लड़की पहली बार में ही उतना बड़ा ले सकी, इसका मतलब समझती हो? तुम्हारे अंदर गजब की क्षमता है। इस क्षमता को पहचानो मेरी बच्ची। उससे थोड़ा और बड़ा ले कर देखो, यह भी हो जाएगा, इसी तरह थोड़ा थोड़ा करके बढ़ाती जाओ तो तुम बड़ा से बड़ा भी लेने में सक्षम हो जाओगी, फिर देखो आगे जिंदगी में मजा ही मजा मिलता रहेगा। कोई डर नहीं और न ही कोई तकलीफ़, बस मज़ा ही मज़ा।अगर मेरी बात झूठ निकली तो मेरा नाम घनश्याम से बदल कर गांड़श्याम कर देना।" डर के बावजूद घनश्याम के मुंह से गांड़श्याम सुनकर मैं अपनी हंसी रोक नहीं पाई। अब मुझमें थोड़ी हिम्मत आ गई। घनश्याम की चिकनी चुपड़ी बातों से मैं काफी हद तक आश्वस्त हो गई थी। वैसे भी अब इतनी मजेदार चुदाई के बीच में रुकना मुझे बुरी तरह खलने लगा था। मेरी चूत में फंसा घनश्याम के लंड का रुकना मुझे बड़ा नागवार गुजर रहा था। मैंने सोच लिया कि अब आगे जो भी होना है हो, फिलहाल कामुकता के इस खेल में जिस सुखद दौर से मैं गुजर रही थी उसमें कोई खलल तो न पड़े।
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"अच्छा अच्छा, लेकिन बात झूठ निकली तो आज से आपका नाम गांड़श्याम। ठीक है?" मैं नर्वस मुस्कान के साथ बोली, हालांकि अब भी मैं आशंकित थी।
"ठीक है ठीक है।" घनश्याम जल्दी से बोला। उसके बोलने की देर थी कि बूढ़े जग्गू को तो मानो हरी झंडी मिल गयी। मेरी गांड़ चोदने के लिए उतावला बूढ़ा जो अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए पूरी तरह तैयार था, अब फिर से अपने लंड को मेरी गुदा के दरवाजे पर टिका कर धीरे धीरे दबाव बढ़ाने लगा। मुझे अहसास होने लगा कि मेरी गुदा का मुंह धीरे धीरे खुल रहा था। जैसे जैसे उसके लंड का दबाव बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे मेरी गांड़ फैलती जा रही थी। एक सीमा तक तो फैला, लेकिन उसके बाद मुझे दर्द होने लगा।
"आआआआआआह आआआआआआह दर्द हो रहा है बाप रेएएएए बाआआआआआप....." मैं पीड़ा से छटपटाने लगी ही थी कि फुच्च से उसके लंड का सुपाड़ा मेरी गांड़ में घुस गया।
"बस बस मेरी बच्ची हो गया। जो होना था हो गया, अब दर्द नहीं होगा।" गंजू मुझे सांत्वना देते हुए मेरी चूचियों को सहलाने और मसलने लगा और साथ ही साथ अपने लंड पर दबाव बढ़ाता चला गया।
"आआआआआआह नहींईंईंईंईंईंईं ओओओहहह...." मेरी घुटी घुटी चीख निकल गई। यह पीड़ा उस पहली पीड़ा से कुछ कम थी जब उसके लंड का सुपाड़ा प्रवेश कर रहा था।अब तो जैसे जैसे जग्गू अपने लंड पर जोर डालता जा रहा था वैसे वैसे सरसराता हुआ उसका लंड अंदर घुसता चला जा रहा था। मेरी गुदा मार्ग की हालत अब फटी तब फटी वाली होने लगी थी।
"बस बस हो गया हो गया अब और नहीं।" मैं दर्द से कराहते हुए बोली।
"बस बस बिटिया हो गया बस थोड़ा सा और हिम्मत करो।" गंजू आधा लंड घुसेड़ने के बाद रुक कर बोला।
"ओओओओओ ओओओहहह...और कितना?"
"बस थोड़ा सा और" कहकर उसने थोड़ा और जोर लगाया तो उसका पूरा लंड अंदर चला गया।
"हाय हाय फट गई फट गई मेरी गांड़ फट गई।" मैं चिल्ला उठी।
"कुछ नहीं हुआ मेरी बच्ची, अब तुम्हें अच्छा लगेगा। तुम बस देखती जाओ। आआआआआआह बहुत जानदार गांड़ है मेरी बच्ची। दिल खुश हो गया।" पूरा घुसाने के बाद मेरी गांड़ पर थपकियां देते हुए बोला।
"मुझे लग रहा है मेरी गांड़ सचमुच फट गई है।" मैं अपनी गांड़ की तरफ हाथ ले जाकर बोली। हाथ से छूने पर पता चल गया कि उसका लंड पूरा जड़ तक घुस चुका था लेकिन मेरी गांड़ सही सलामत थी। हां सख्ती से उसके लंड को मेरी गांड़ ने जकड़ रखा था।
"अरे नहीं फटी मेरी बन्नो, तेरी गांड़ फैल गई। अब तुझे मजा आएगा।" सामने से घनश्याम मुझे सांत्वना देते हुए बोला।
"चुप हरामी, लंड मेरी गांड़ में घुसा है कि आपकी गांड़ में घुसा है? बड़े आए मुझे बताने कि नहीं फटी है। मुझे पता है कि मेरी गांड़ की हालत क्या है।" मैं डांटती हुई घनश्याम से बोली। हालांकि अब दर्द काफी कम हो गया था।
"अरे बिटिया, घंशू की बात छोड़ो और बताओ कि अब कैसा लग रहा है?" जग्गू पीछे से बोला।
"ऊऊऊऊऊहहहह अब ठीक लग रहा है।" मैं बोली। सचमुच अब ठीक लग रहा था। हल्का दर्द अभी भी था लेकिन यह एक अद्भुत अनुभव था। मुझे अपने अंदर एक अजीब तरह की परिपूर्णता का अहसास हो रहा था। मेरी चूत में घनश्याम का लंड और गांड़ में गंजू का लंड और दोनों लंड एक से बढ़कर एक।
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वाह मजा आ गया रोज को
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"बहुत बढ़िया। अब आएगा मजा, तुमको भी और हमको भी। चल रे घंशू।" कहकर वह भी मेरी चुतड़ के नीचे हाथ डालकर मुझे ऊपर उठाने लगा। एक साथ घनश्याम का लंड चूत से और गंजू का लंड गांड़ से बाहर निकलने लगा। उफ उफ यह तो चमत्कार हो गया। मेरा दर्द कहां छूमंतर हो गया पता ही नहीं चला। फिर एक साथ दोनों मुझे नीचे उतारने लगे, दोनों के लंड फिर मेरे अंदर घुसने लगे। दोनों के लंड का घर्षण मुझे कितना आनंद दे रहा था मैं बता नहीं सकती। मेरी चूत और गांड़ के अंदर एक अजीब सी सुरसुरी हो रही थी। चूत और गांड़ के मुंह में और अंदर की संवेदनशील दीवारों में स्थित संवेदक ग्रंथियों द्वारा प्रेषित दोनों लंडों के घर्षण से उत्पन्न तरंगें तन मन को अद्भुत आनंद से भर रहा था। अब दोनों के लंड एक साथ मेरी अलग अलग छिद्रों में अंदर बाहर होने लगे। पहले आहिस्ता आहिस्ता, फिर इस क्रिया की रफ्तार बढ़ने लगी। वे न सिर्फ मुझे ऊपर नीचे कर रहे थे, बल्कि अपनी अपनी कमर को जुंबिश भी दे रहे थे, फलस्वरूप उनकी ठापों में अतिरिक्त बल का प्रभाव मैं अच्छी तरह से अनुभव कर रही थी। मैं उन दोनों के बीच सैंडविच बनी प्रथम बार युगल चुदाई के अभूतपूर्व आनंद से परिचित हो रही थी। यह एक रोमांचक अनुभव तो था ही, मेरे सेक्स जीवन में एक नया अध्याय भी जोड़ गया था। उस युगल चुदाई के अद्भुत आनंद में खोती जा रही थी। अब वे दोनों मेरे शरीर को हवा में उठा कर उछाल उछाल कर चोद रहे थे और मैं सारा डर भय और लाज शर्म को तिलांजलि दे कर पूरे तन मन से उस कामुकता भरे खेल में बड़े आनन्द से अपनी सहभागिता निभाने लगी थी। मुझे लग रहा था जैसे मैं हवा में उड़ रही हूं।
जो डर भय, शरम लिहाज मेरे अंदर कुछ देर पहले था, वह कब का छूमंतर हो चुका था और अब मैं बेशर्मी की सारी सीमाएं तोड़ कर उस कामुक खेल में उन्मुक्त सक्रिय सहभागिता निभाते हुए उस नयी तरह की युगल संभोग का भरपूर आनंद लेने लगी थी। ऐसा लग रहा था जैसे मैं कोई ऐसा वाद्ययंत्र थी जिसपर उन दोनों बुड्ढे जुगलबंदी कर रहे हों। हरेक ठाप तालबद्ध था और मेरे अंदर से आहों और सिसकारियों के रूप में मानो मधुर तरंगें निकल रही थीं। मुझे पता नहीं था कि करीब दस पंद्रह मिनट की वह अथक चुदाई मेरी आने वाली जिंदगी में कितनी बड़ी भूमिका निभाने वाली है। हम तीनों के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था सिवाय आहों और सिसकारियों के। करीब दस मिनट बाद,
"अरी मांआंआंआंआंआं की लौड़ीईईईईईई, आआआआआआह......" कहते हुए घनश्याम अपना पूरा लंड मेरे अंदर घुसेड़ कर रुक गया और तभी उसके लंड से गरमागरम वीर्य लावा की तरह मेरी चूत में फर्र फर्र छूटने लगा। घनश्याम का वीर्य मेरी कोख में गिर रहा था जिससे मेरी कोख सराबोर हो रही थी। यह मेरे लिए बड़ा ही आनंददायक पल था। मैं भी खुद को रोक नहीं पाई और लो मेरा भी काम तमाम हो गया।
"आआआआआआह ओओओहहह इस्स्स्स्स ......" मैं आहें भरते हुए उसके जिस्म से चिपक कर स्खलन का आनंद लेने लगी। खल्लास हो कर घनश्याम तो ढीला पड़ गया था लेकिन गंजू रुका नहीं। उसे भी पता चल गया था कि घनश्याम खल्लास हो गया है। वह अब अकेले ही मुझे अपनी हथेलियों पर थाम कर अपनी रफ़्तार दुगुनी कर दिया।
"तू छोड़ कर हट जा घंशू। हम जानते हैं कि तेरा काम हो गया। तेरे अधूरे काम को अब हम अकेले पूरा करेंगे।" पीछे से गंजू हांफते हुए बोला। हे भगवान, मैं तो झड़ गई थी, मेरा सारा जोश ठंढा पड़ रहा था लेकिन अब गंजू मेरे ठंढे पड़ते शरीर में फिर से नयी जान फूंक कर अपनी जिस्मानी भूख को पूरी तरह शांत करके ही छोड़ने वाला था।
तभी घनश्याम मुझे छोड़कर हट गया। उसका लंड मुरझा कर छ: इंच का रह गया था। उसका लंड वीर्य और मेरी चूत रस से सना हुआ चमचमा रहा था। जैसे ही घनश्याम हटा, गंजू ने मेरी गांड़ से अपना लंड निकाल लिया और एक झटके में मुझे किसी गुड़िया की तरह पलट कर मुझे गद्देदार बिस्तर पर पटक दिया। अब वह आंखें फाड़कर कर मुझे सर से पांव तक मुझे अपलक देखे जा रहा था।
"वाह, इसे कहते हैं माल। जबरदस्त। इतनी खूबसूरत। घंशू मादरचोद, कहां हम इसकी गांड़ देख कर पगलाए जा रहे थे और कहां तू इसकी चमचमाती चूत की चटनी बना रहा था। गजब है रे तू लौंडिया और गजब है तेरी जवानी। हमारी जिंदगी संवर गई। ऐसी लौंडिया जिंदगी में पहली बार मिली है। घंशू, हम का मुंह से तुमको धन्यवाद कहें। चल री बिटिया अब हमारा लौड़ा को डुबकी लगाने दे।" गंजू लार टपकाते हुए बोला।
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"नहीं नहीं। मेरी फट जायेगी।" मैं घबराकर बोली।
"गांड़ तो फटी नहीं। ई कईसे फट जाएगी।" वह बोला। इधर मैं इस विषम परिस्थिति में पड़ी आंखें फाड़कर कभी गंजू के छः फुटे दानवाकार शरीर को देखती, कभी उसके ताकरीबन दस इंच लंबे भीमकाय काले फनफनाते लंड को देखती। अब इस दानव झेलने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। मेरी रूह फना हो गई थी। अब मेरे पास बोलने को कुछ बचा नहीं था। मेरी घिग्घी बंधी हुई थी और मेरी जीभ तालू से चिपक गई थी। हे भगवान, अब इतने बड़े लंड से, जिससे मेरी गांड़ में कयामत ढा कर कचूमर निकाल चुका है, यह दानव मुझे चोदेगा। कल्पना से ही मैं सिहर उठी। मेरी गांड़ फटी नहीं, यह मेरी किस्मत थी या मेरी गांड़ की क्षमता, जो भी हुआ, मेरी गांड़ बच गयी। अब मेरी चूत की बारी थी।
लेकिन गंजू के दिमाग में कुछ और चल रहा था। उसे भी पता था कि मैं खलास हो चुकी हूं और मुझे चोदने के पहले मुझे गरम करना जरूरी था। मैं इधर दम साधे उसके अगले कदम का इंतजार कर रही थी। उसकी आंखों में अजीब सी चमक थी। वह आगे बढ़ा तो मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। वह पहले सर झुका कर मेरी चूत का मुआयना करने लगा।उसकी गरम सांसें मेरी चूत पर अनुभव कर रही थी। उसकी दाढ़ी मेरी जांघों को स्पर्श कर रही थीं। तभी मैंने उसकी जीभ के स्पर्श को अपनी चूत पर अनुभव किया।
"वाह, टेस्टी है।" बोलकर फिर वह रुका नहीं। सपड़ सपड़ चाटने लगा। ऊपर से नीचे तक मेरी चूत को अपनी लंबी जीभ से कुत्ते की तरह चाटने लगा। उसकी जीभ का स्पर्श जब मेरे भगनासे पर हुआ तो मैं चिहुंक उठी। मेरे चिहुंकने की देर थी कि वह उसी भगांकुर को चाट चाट कर मुझे पागल करने मे जुट गया। यह इतनी कामुकता भरी हरकत थी कि मैं अपनी कमर उचकाने लगी और मेरी आहें निकलने लगीं। मेरी प्रतिक्रिया देखकर उसकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही।
"लो हो गई तैयार।" वह बोला और धीरे धीरे मेरे ऊपर चढ़ने लगा। अब मैं बिस्तर पर नीचे थी और मेरे ऊपर दढ़ियल, टकला, बूढ़ा गंजू सवार होने वाला था। नीचे से ऊपर आते आते वह मेरी नाभी और चूचियों को अच्छी तरह से चाटा। अब उसका कुरूप चेहरा बिल्कुल मेरे चेहरे के पास था। उसके नथुनों से निकलती देसी दारू की बदबू मेरे नथुनों से टकरा रही थी। मुझे उबकाई सी आ रही थी लेकिन अब मैं बहुत गरम हो चुकी थी। मुझे अब उस दुर्गंध में एक नशा सा महसूस होने लगा था। बस बस, बहुत हुआ, मेरे शरीर मे भीषण आग लगी हुई थी। अब तो बस चुदने की चाह थी। कितना लंबा या मोटा लंड था उसका, उसकी परवाह नहीं थी।
एक हाथ से अपने लंड को मेरी चूत के मुंह पर रख कर धीरे धीरे दबाव देने लगा और मेरी चूत का मुंह अपने आप खुलने लगा। उसके लंड का विशाल सुपाड़ा जैसे ही मेरी चूत में दाखिल हुआ, पीड़ा के मारे मेरी चीख निकलने को हुई, तभी उसका दुर्गंधयुक्त थूथन मेरे होंठों पर आ चिपका। मेरी चीख हलक में ही दफन हो गई। मैं हलाल होती हुई बकरी की तरह छटपटाने लगी थी लेकिन वह दानव धीरे धीरे अपना लंड मेरी चूत में ठूंसता चला जा रहा था। अंदर, और अंदर, अंतहीन अंदर। ओह ओह, कितना अंदर जा रहा था, मेरी सांसें मानो थम सी गई थीं। तभी मुझे अहसास हुआ कि वह जड़ तक अपना लंड घुसेड़ चुका था। पीड़ा के अतिरेक से मुझे पसीना आ गया था। उसका लंड मेरी कोख में दस्तक दे रहा था। अब वह रुका और सर उठा कर मुस्कुराते हुए मेरे चेहरे को देखने लगा।
"आह आह ओह ओह निकालिए निकालिए.... " जैसे ही मेरे होंठ मुक्त हुए, मैं चीख कर बोली।
"अब क्या निकालिए। जो होना था हो गया। थोड़ा शांत रहो बिटिया, फिर देखो मजा ही मजा।" कहकर वह रुका रहा और मेरे चेहरे के चढ़ते उतरते रंग को देखने लगा।
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mast hai ................kahani hmari ROJ
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हालांकि उसका इस तरह रुकने से मुझे थोड़ी राहत महसूस हो रही थी फिर भी मैं दुबारा चीखी, "निकालिए निकालिए।"
"लो निकाल दिया।" कहकर वह एक झटके में अपना लंड बाहर खींच लिया। उसके इस तरह अचानक लंड बाहर निकालने से मुझे बड़ा अजीब सा महसूस होने लगा था। ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर एक खालीपन व्याप्त गया हो। हे भगवान, यह मेरे साथ क्या हो रहा था। इस तरह अचानक लंड बाहर निकाल लेने से मेरी चूत में भयानक खलबली सी मच गई थी। यह तो दुबारा लंड लेने की बेचैनी थी। मेरा मन अवश हो कर दुबारा लंड लेने को मचल उठा था।
"आआआआआआह नहीं नहीं, अब डाल ही दीजिए...." मैं मचल कर बोली।
"जानते थे, यही बोलोगी। लो...." कहकर वह दुबारा लंड घुसेड़ने लगा।
"आआआआआआह ओओओहहह हां हां...." मैं अब आनंद विभोर हो उठी। उसके लंड के घर्षण से मेरी चूत की अंदरूनी दीवारें तरंगित हो उठीं। उसके मोटे लंड पर मेरी चूत की अंदरूनी दीवारें कस गयी थीं और चिपक कर न छोड़ने की असफल कोशिश कर रही थी। गंजू मेरी चूत की कसावट को अपने लंड पर महसूस कर रहा था इसलिए धीरे धीरे अंदर घुसेड़ कर फिर धीरे-धीरे बाहर निकालने लगा। ओह ओह, जन्नत क्या होता है पता नहीं लेकिन मुझे तो यही जन्नत लग रहा था।
"ओह, बहुत जबरदस्त, कमसिन जवानी, उस पर चिकनी, टाईट चूत, ओह मेरी जान, तू है महान। सबसे अलग, सबसे मस्त, सबसे चटपटी, सबसे गरम। इतनी जल्दी, इतने आराम से मेरा लौड़ा लेने में सफल सिर्फ और सिर्फ तुम ही हो सकी.... गजब, तुम तो बहुत बड़ी लंडखोर निकली। अब तुम्हारे बारे में और का कहें, सच बोलें तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं है।" वह खुशी के मारे किलक कर बोला।
"हटिए, अपनी मर्जी जबरदस्ती मुझ पर लाद कर बड़े आए लंडखोर बोलने वाले।" मैं ठुनक कर बोली।
"चलो जबरदस्ती ही सही, हमको तो बहुत मज़ा आ रहा है, लेकिन सच बोलो, तुमको मजा आ रहा है कि नहीं?" वह बोला।
"हां हां, हां बाबा हां आआआआआआह, जो करना है कीजिए ना, केवल बकवास किए जा रहे हैं।" मैं अपनी बेकरारी छिपा नहीं पाई और मन के उद्गार को व्यक्त कर बैठी।
"खुशी से बोल रही हो ना बिटिया?" वह खुश हो कर बोला।
"और कैसे बोलूं?" मैं, जो उत्तेजना के मारे पगलाई जा रही थी, अपनी कमर उचकाते हुए बोली।
"ई हुई ना बात।" मेरी हरकत से वह पागल हो उठा। शुरू हो गया अपने मूसल से मेरी चूत कूटने। उस कुरूप दानव के सांसों की दुर्गंध अब मुझे सुगंध लग रही थी। वह मुझे पागलों की तरह चूम रहा था और मेरे गालों को काट रहा था फिर भी मैं मदहोश हुई जा रही थी और पागलों की तरह उसके धक्कों का जवाब अपनी कमर उचका उचका कर दे रही थी। उस बिस्तर पर धक्कमपेल चल रहा था, वासना का तांडव हो रहा था। घपाघप घपाघप तूफानी चुदाई और उसके विशाल अंडकोष के थपाथप थपाथप थपेड़े मुझे जन्नत की सैर करा रहे थे। मैं उसके दानवाकार शरीर को अपने में समा लेने की जद्दोजहद में भिड़ गयी थी। लेकिन वह दैत्य था तो था, आखिर बूढ़ा ही तो था, कहां मैं नौयौवना और कहां वह पैंसठ सत्तर साल का बूढ़ा, थक कर हांफने लगा था और मैं उत्तेजना के आवेग में दुगुने जोश से उछल उछल कर चुदवा रही थी। उसे थकते देख कर मुझसे रहा नहीं गया और मैं बदहवासी के आलम में चीख पड़ी,
"पलटिए, नीचे आईए, मुझे ऊपर आने दीजिए।" गंजू मेरी चीख सुनकर सकते में आ गया और मेरे कहे अनुसार नीचे आ गया। अब मैं उसपर चढ़ गई। अब वह नीचे था और मैं उसके ऊपर। अब उस वासना के खेल की कमान मेरे हाथ में थी।
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shandar hai hmari Roj ki bari.................
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"पलटिए, नीचे आईए, मुझे ऊपर आने दीजिए।" गंजू मेरी चीख सुनकर सकते में आ गया। उत्तेजना के मारे मेरा चेहरा लाल हो चुका था। मेरे बिल बिखर गए थे। मैं बिल्कुल जंगली बिल्ली बन गई थी। वह भी शायद थोड़ा सहम सा गया था। मेरे कहे अनुसार नीचे आ गया।
"घंशू, यह तो जंगली बिल्ली बन गई रे।" उसके मुंह से निकला।
"हां, मैं पालतू बिल्ली से जंगली बिल्ली बन गई हूं। आप लोगों की कृपा है। अब देखिए जंगली बिल्ली क्या करती है।" कहकर मैं झपट कर उसपर चढ़ गई। अब वह नीचे था और मैं उसके ऊपर। अब उस वासना के खेल की कमान मेरे हाथ में थी।
"आप आराम से लेटे रहिए मेरे बुड्ढे, आपने जितना करना था कर लिया, अब बाकी काम यह बिल्ली कर लेगी।" कहकर मैं उसके दढ़ियल चेहरे को पागलों की तरह चूमने लगी और ऊपर से ही दुगुने जोश के साथ उसके लंड पर अपनी चूत पटकती हुई चुदवाने लगी।
"बहुत बढ़िया। ई हुई ना बात।" वह बोला।
"चुप, एकदम चुप। अपना लंड खड़ा रखिए और लेटे लेटे इस जंगली बिल्ली का मजा लीजिए।" मैं बदहवासी के आलम में बोली और गपा गप गंजू का लंड लेने लगी।
"तभी मैं कहूं कि गंजू क्यों पगला कर तेरी गांड़ के पीछे पड़ गया था।" पीछे से घनश्याम की आवाज आई। "सच में, तेरी हिलती हुई गांड़ में अद्भुत आकर्षण है। तेरी ऐसी गांड़ को देख कर जिस मादरचोद का लौड़ा खड़ा नहीं होगा, वह कोई छक्का ही होगा। देखो तो साला मेरा लौड़ा फिर से खड़ा हो गया।" घनश्याम बोलता गया और हमारे पास आ गया।
"ज्यादा भूमिका बांधने की जरूरत नहीं है। चोदना है तो आप भी फटाफट शुरू हो जाईए।" मैं चुदवाने में मशगूल बिना पीछे देखे ही बोली। मैं जानती हूं कि आज भी मेरे आकर्षक नितंबों पर बड़े बड़ों की नीयत डोल जाती है तो उस समय की तो बात ही कुछ और थी। जानती थी कि अब घनश्याम भी मेरी थिरकते हुए नितम्बों के आकर्षण जाल में फंस चुका था और मेरी गांड़ का लालच खींच रहा था। मौका भी अनुकूल था और इस मौके को कैसे छोड़ देता। मेरे गोल गोल चिकने नितंबों के बीच के दरार में अपना लंड घुसेड़ कर अपनी मनोकामना पूर्ण करने का यह स्वर्णिम अवसर भला वह कैसे छोड़ देता। इतना सुलभ मौका और मेरा आमंत्रण पाकर बेसब्री के साथ घनश्याम कूदकर बिस्तर पर चढ़ गया और बिना समय गंवाए मेरे नितंबों को अपने दोनों हाथों से फैलाया और अपना लंड मेरी गुदा द्वार पर रख दिया। अब वह अपने लंड पर दबाव बढ़ाने लगा नतीजतन उसके लंड का सुपाड़ा मेरी गुदा द्वार को फैलाता हुआ अंदर दाखिल होने लगा। जैसे ही सुपाड़ा अन्दर गया, उसने एक धक्का और दिया और लो, पूरा का पूरा लंड मेरी गांड़ के अंदर दाखिल हो गया। अब शुरू हुई दोहरी चुदाई।
"आआआआआआह", संपूर्णता का वह अद्भुत अहसास और दोहरी चुदाई ने मुझे फिर से कामुकता के शिखर पर पहुंचा दिया। मैं फिर एक बार सैंडविच बन गई। फर्क सिर्फ इतना था कि इस वक्त गंजू का लंड मेरी चूत में था और घनश्याम का लंड मेरी गांड़ में। पहली बार दोनों के लंड एक साथ अंदर बाहर हो रहे थे लेकिन इस बार जब मैं नीचे झटका मारती तो गंजू का लंड अंदर घुसता और घनश्याम का लंड बाहर निकलता और जब अपनी कमर उठाती तो गंजू का लंड बाहर निकलता और घनश्याम का लंड अंदर घुसता। यह दूसरी तरह की जुगलबंदी थी, जो मुझे अलग तरह के आनंद से सराबोर कर रहा था। बिस्तर पर जो धमाचौकड़ी होने लगी उससे मैं इतनी उत्तेजित हो गई कि कुछ ही मिनटों में मैं चरमोत्कर्ष में पहुंच गई। तभी गंजू नीचे से मुझे जकड़ कर का लंड वीर्य उगलने लगा और मेरी कोख को हरी करने लग गया। ओह गंजू का वह दीर्घ स्खलन आज तक मुझे याद है। इधर मेरी पसलियां कड़कड़ा रही थीं और उसके लंड से फच्च फच्च रुक रुक कर पिचकारी छूट रही थी। पता नहीं कितना वीर्य जमा था उसके अंदर कि उसका वीर्य मेरी चूत से बाहर भी बह निकला। मैं भी स्खलन सुख में सराबोर थरथरा थरथरा कर झड़ने लगी। इधर झड़ कर शिथिल मेरे शरीर पर पीछे से चढ़ा घनश्याम मेरे क्लांत शरीर को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरी कमर पकड़ कर उसका कुत्ते की तरह दनादन दनादन ठोकना जारी था। अंततः करीब दस मिनट बाद वह भी मेरी गांड़ चोद कर अपनी पिचकारी मेरे अंदर ही छोड़ कर फारिग हुआ। जब उसकी पिचकारी छूट रही थी उस समय वह अपनी पूरी ताकत से मेरी चूचियों को दबोच कर अपने अंदर के गरमागरम वीर्य को मेरी गांड़ में भरने लगा था। गंजू और मैं तो कुछ पलों के अंतराल में स्खलित हुए थे लेकिन उसके उपरांत भी करीब दस मिनट तक घनश्याम मेरी गांड़ चुदाई में जुटा रहा। शिथिल शरीर होने के बावजूद घनश्याम की चुदाई से मुझे कोई ऐतराज नहीं था क्योंकि उसमें भी मुझे मजा आ रहा था। हे राम, सचमुच इन लोगों ने मुझे लंडखोर बना दिया। जब हम तीनों के अंदर की वासना ठंढी हुई तो एक तरफ गंजू, दूसरी तरफ घनश्याम दो भैंसों की तरह बिस्तर पर पसर कर लंबी लंबी सांसें ले रहे थे और मैं लुटी पिटी, नुची चुदी, उन चुदक्कड़ बूढ़े द्वय के बीच संतुष्टि के सुखद अहसास में आंखें बंद किए पड़ी हुई थी। उन दोनों के लंड भींगे चूहों की तरह सिकुड़ चुके थे।
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maza aa gya do do.............lekar kar ROJ ko
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"मजा आया?" घनश्याम हांफते हुए मुझसे बोला।
"हां, बहुत।" मैं जैसे नींद से जाग कर बोली।
"मैं झूठ तो नहीं बोला था ना?"
"नहीं।"
"डर खत्म?"
"हां।"
"शर्म अब भी है कि खत्म?"
"चुप हरामी। तुमलोग जैसे बेशर्मों के साथ भला शर्म कब तक रहेगी।" मैं घनश्याम के सीने पर सिर रख कर प्यार से बोली।
"हमसे घिन तो नहीं आ रही है अब?" गंजू मेरी चुचियों पर हाथ फेरते हुए बोला।
"चुप मेरे प्यारे बुढ़ऊ, ऐसे बोलिएगा तो ठीक नहीं होगा। मैं ही बेवकूफ थी। आपसे घिन करें मेरे दुश्मन। नासमझ थी मैं।" मैं उसके सोए हुए लंड पर हाथ फेरते हुए बोली।
"पसंद आया यह?" गंजू बोला।
"बहुत। लेकिन पहले तो डरा ही दिया था आपके हथियार ने।" मैं उसके सोए लंड को प्यार से सहलाने लगी। तभी अचानक जैसे मुझे होश आया कि यहां काफी देर हो चुकी थी। मैं झटके से उठ बैठी और सामने दीवार पर घड़ी देखी तो पता चला छः बज रहा था। "हाय राम, बहुत देर हो गई है।"
"अरे अरे हमारी छम्मक छल्लो, इतना मत हड़बड़ाओ। अभी बहुत टाईम है।" घनश्याम मेरी बांह पकड़ कर बोला।
"हट हरामी। चुपचाप उठिए और कपड़े पहनिए। घर नहीं जाना है क्या?' में उसका हाथ झटक कर बिस्तर से उठी मगर लड़खड़ा गई। मुझे खड़े रहने में तकलीफ़ हो रही थी। मेरी टांगें थरथरा रही थीं और मेरी जांघों के बीच मीठी मीठी जलन सी महसूस हो रही थी। मेरे अंदर एक अजीब तरह के खालीपन का अहसास हो रहा था। सहसा मेरे पेट में मरोड़ सा उठने लगा। पेट में एक दबाव सा महसूस होने लगा और वह दबाव शौच के लिए भागने को मजबूर कर रही थी। मैं इधर उधर देखने लगी।
"क्या हुआ?" गंजू मेरी हालत देखकर चिंतित स्वर में बोला।
"टॉयलेट।" मैं इतना ही बोली।
"उधर" वह उत्तर पूर्वी कोने की ओर एक दरवाजे की ओर इशारा करते हुए बोला। मैं जल्दी से उधर ही भागी लेकिन मेरे पांव लड़खड़ा रहे थे, फलस्वरूप खुद को संभाल नहीं पाई और मुंह के बल फर्श पर गिरने ही वाली थी कि बिजली की फुर्ती से गंजू बिस्तर से उठ कर मेरी ओर झपटा और मुझे गिरने से बचा लिया।
"तुम ठीक तो हो ना बच्ची?" उस बुड्ढे ने जिस तरह चुदाई में अपने शरीर की ताकत दिखाई थी, वह थका हुआ बूढ़ा उतनी ही फुर्ती इस वक्त दिखाते हुए बोला।
"अब बच्ची बोल रहे हैं? चोदते वक्त बच्ची नहीं दिखाई दे रही थी चुदक्कड़ कहीं के।" मैं बनावटी नाराजगी दिखाते हुए बोली।
"तुम्हारा नाराज होना जायज है। लेकिन हम जानते हैं कि तुम दिखने में बच्ची हो लेकिन 'इसके लिए' बच्ची नहीं हो। अगर बच्ची थी भी तो अब बड़ी बन गई हो।"
"हटिए, बड़े आए बड़ी बनाने वाले। गांड़ और चूत का कचूमर निकाल कर रख दिया, अब आए हैं बड़ी बोलने वाले। सबकुछ तो बड़ा कर दिया। छोड़िए मुझे, बड़ी जोर की (शौच) लगी है। रुक नहीं रही है।" मैं उसका हाथ झटक कर बोली।
मैं जल्दी से दरवाजा खोल कर लड़खड़ाते कदमों से अंदर गयी और जल्दीबाजी में बिना दरवाजा बंद किए ही टॉयलेट सीट पर बैठने ही वाली थी कि भर्र भर्र भुस्स करके अंदर से घनश्याम के वीर्य से लिथड़ा पतला मल मेरी जांघों से होता हुआ नीचे बहने लगा। किसी तरह मैं टॉयलेट सीट पर बैठी। टॉयलेट सीट पर बैठते ही भरभरा के एक मिनट में ही मेरा पेट खाली हो गया। अच्छी तरह से फ्रेश हो कर खुद को धो पोंछ कर बाहर निकली। मैं अब तक थोड़ी संभल गई थी लेकिन मेरी गांड़ और चूत की हालत बड़ी खस्ता थी, मलद्वार काफी ढीला हो गया था और चूत भी सूज गई थी। चलने से चुद कर खुली हुई चूत की फांकों के दोनों ओर के होंठों के बीच घर्षण और ढीली हो गई मलद्वार पर दोनों नितम्बों घर्षण से उत्पन्न मीठी मीठी सी खुजली मिश्रित जलन का अहसास हो रहा था।
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