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20-03-2024, 07:23 PM
Dosto! Pichali bar yah kahani meri adhuri rah gai thi...
App logo ke feedback, comments and advise ke base par koshish karoonga ki ek umda kahani aap logo ke liye likhoo.
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!
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(21-03-2024, 12:56 AM)sri7869 Wrote: Start karo
Abhi do thread mere chal rahe hai,
Jisme ek holi ke bad khatam kar doonga
fir aapke liye is thread ko likhoonga.
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होली कब है...... कब है होली
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02-04-2024, 07:09 PM
सभी चुदासी बहनों व चुदक्कड भाइयों को आपके अपने सग़ीर ख़ान का प्यार भरा आदाब!
मैं आज आप सबके लिए फिर से अपनी एक बहुत पुरानी कहानी को लेकर हाज़िर हुआ हूँ "यादों के झरोखे से" जिसे आप सभी लोगों ने बहुत पसंद भी किया था। किन्ही कारणों से वह कहानी मेरी अधूरी छूट गई थी जिसे कई लोगों ने अधूरा ही वहाँ से कॉपी करके अलग अलग साइट्स पर अपने नाम से पोस्ट कर दिया और वह अधूरी कहानी भी हर साइट पर बहुत हिट हुई।
मैं पिछले कई सालों से एक से एक उम्दा कहानियों से आप सभी का मनोरंजन करता आ रहा हूँ। यहाँ इस साइट पर भी मेरी यह दूसरी आई डी है। पिछला यूज़र नेम भूल जाने से में अपनी कहानियाँ डाल कर भी सर्च किया परंतु कुछ नहीं मिला। उसके बाद इस नई आई डी के साथ आप लोगों की सेवा में फिर से हाज़िर हुआ हूँ।
अब मैं उसी पुरानी कहानी को एक नए कलेवर में आप सबके सामने रखने जा रहा हूँ। कहानी वही है परन्तु यह कहानी "जिस्म की भूख" के बाद शुरू होती है।
जो लोग मेरी यह कहानी पहली बार पढ़ने जा रहे हैं, उनसे गुज़ारिश है कि वे पहले "जिस्म की भूख" का आनंद लें फिर इस कहानी की शुरूआत करें। इस कहानी में जैसे जैसे पात्र आते जायेंगे वैसे वैसे उनका आपको परिचय करा दिया जाएगा।
मेरी कहानी "जिस्म की भूख" अब समाप्ति की ओर है, जैसे ही वह कहानी समाप्त होगी आप लोग इस कहानी का लुत्फ़ उठा पाएंगे।
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(02-04-2024, 07:09 PM)KHANSAGEER Wrote: मेरी कहानी "जिस्म की भूख" अब समाप्ति की ओर है, जैसे ही वह कहानी समाप्त होगी आप लोग इस कहानी का लुत्फ़ उठा पाएंगे।[/size][/color][/align]
Intezaar rahega dost...
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(18-04-2024, 07:17 AM)Pentagon Wrote: Intezaar rahega dost...
Jyada intezar nahi karna padega
Tab tak "Jism Ki Bhukh" ka maza lijie
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19-04-2024, 06:40 PM
यह एक सच्ची एवं मेरी अपनी कहानी है जिसका मेरे और मेरे परिवार व रिश्तेदारों के अलावा किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है परंतु जगह और पात्रों के नाम को सुरक्षा के नज़रिए से बदल दिया गया है।
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19-04-2024, 07:28 PM
अपनी पिछली कहानी "जिस्म की भूख" का सन्दर्भ देना यहाँ बहुत ज़रूरी है परंतु मैं बहुत ही संक्षेप में यहाँ लिखूंगा जिससे हमारे पाठकों को वही कहानी फिर से पढ़ कर किसी भी तरह की बोरियत न हो। वैसे चुदाई की कहानियों की यह ख़ासियत होती है कि आप इन्हें मर्ज़ी आए कितनी भी बार पढ़ो, ये कभी पुरानी नहीं होतीं। हर बार पढ़ने पर लॅंड खड़ा और चूत पानी छोड़ने लगती है। इन कहानियों को पढ़ने पर हर बार कुछ नयापन महसूस होता है, हर बार लगता है कि पिछली बार शायद कुछ छूट गया था। आप सभी खवातीन और हज़रात से गुज़ारिश है कि मेरी इस कहानी को शुरू करने से पहले मेरी कहानी "जिस्म की भूख" का आनंद लें फिर इस कहानी का मज़ा दोगुना हो जाएगा।
मेरी पिछली कहानी पर कमेंट्स तो कम आए परंतु किसी ने भी उसमें कमियाँ नहीं निकालीं. यही एक सबसे बड़ा कारण था कि मैं और नई कहानियाँ लेकर यहाँ आप लोगों के सामने रखने की हिम्मत ज़ुटा सका।
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27-04-2024, 11:41 AM
(This post was last modified: 27-04-2024, 11:46 AM by KHANSAGEER. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
ख्वातीन और हज़रात तो अब वक़्त आ गया है इस सफर को आगे बढ़ाने का ....
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27-04-2024, 11:43 AM
उम्मीद है कि आप लोगों ने मेरी पिछली कहानी "जिस्म ही भूख" का पूरा लुत्फ़ उठाया होगा। तो आइए अब आप लोगों को अपनी ज़िंदगी के सफ़र-ए-चुदाई के वाक्यातों से रूबरू कराता हूँ।
मेरी आपी हनी और फरहान के साथ मस्त रातें रंगीन हो रहीं थी, कोई रात ऐसी नहीं जा रही थी जब मेरा लॅंड आपी या हनी की चूत में अपना पानी न निकाल रहा हो।
हनी और आपी को चोद चोद कर में चुदाई के खेल का इतना बड़ा खिलाड़ी बन चुका था कि यदि इस खेल को ओलंपिक में शामिल कर दिया गया होता तो में पता नहीं कितने मैडल अपने देश को दिला चुका होता।
मैं इन दो चूत में ही इतना मस्त था कि मुझे अपना जीवन अब संपूर्ण लगने लगा था। मेरे अंदर अब किसी तरह की कोई चाहत बाकी नही बची थी।
रोज़ रात में खुल कर चुदाई का खेल होता था। आपी और हनी का कोई छेद ऐसा नहीं बचा था जिसमे मैने और फरहान ने अपना लॅंड न पेला हो। कसम से पूरा ज़न्नत का लुत्फ़ उठाते हुए हम लोगों की ज़िंदगी गुज़र रही थी।
एक भी दिन हमारे लण्ड या चूत को आराम नहीं मिल रहा था। दो में से जब भी किसी के पीरियड होते थे तो दूसरी पर दुगुना लोड हो जाता था क्योंकि मैं या फरहान एक बार के पानी निकलने पर शांत होने वालों में से नहीं थे। कभी कभी तो ऐसा होता था कि आपी या हनी की चूत और गाँड दोनों में एक साथ हम लोगों के लण्ड होते थे।
यहाँ में एक बात और बताना चाहूँगा कि जिस तरह एक लॅंड हर समय किसी चूत की चाहत में तड़पता है उसी तरह हर चूत भी किसी न किसी लॅंड को अपने में पिलवाने को बेताब रहती है। आपको सिर्फ अपने आँख और कान खुले रखने है। आपको हर गली, हर मोहल्ले यहाँ तक कि हर घर में चुदासी चूत या चुदक्कड लॅंड आपके अनुसार मिल जायेगा।
CONTD.....
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27-04-2024, 03:57 PM
फाइनल एग्जाम ख़तम हो चुके थे। पढ़ाई से हम सब पूरी तरह से आज़ाद होकर हर समय सिर्फ़ चूत और लण्ड में खोए ज़िंदगी के असली मज़े ले रहे थे।
( दोस्तो! मेरी अम्मी, मामू (जावेद) और खाला (सलमा) का पुश्तैनी गाँव सतियाना है जो लुधियाना पंजाब में लगता है। गाँव के सरपंच ठाकुर शमशेर सिंह राणा के बेटे ठाकुर विक्रम सिंह राणा की नज़र मेरे मामू की बड़ी बेटी और बेगम यानी मेरी मामी पर थी। एक दिन तंग आकर मामू रातों रात लुधियाना शिफ्ट हो गए। सतियाना के सरपंच ठाकुर फैमिली और मेरे मामू के किस्से आप को अपनी दूसरी कहानी "हवस-लीला" में बता दूँगा फिलहाल आप लोगों को मैं अपनी कुछ पुरानी यादों से रूबरू कराता हूँ)
मेरे मामू के तीन बेटियां है। वैसे तो तीनो एक से बढ कर एक खूबसूरत है परन्तु मंझली वाली का ज़बाब नहीं है। बड़ी वाली की शादी जम्मू में एक डॉक्टर के साथ हुई है। अब मामू के दो बेटियां शादी के लिए बचीं है। मंझली वाली मुझसे 11 महीने उमर में बड़ी है और इतनी खूबसूरत है कि आपको बता नहीं सकता। 36/24/36 वाली बिल्कुल परफेक्ट फिगर है उसकी। उसकी बड़े बड़े संतरे जैसी चुचियों को देख कर मेरा लंड अक्सर टायट होने लगता था और मै हमेशा उसकी मस्त चूत की कल्पना करता था। छोटी वाली भी बला की खूबसूरत है और मुझसे उमर में डेढ साल छोटी है। दोनों ही भरपूर जवान है।
पिछली बार बड़ी आपी के निकाह में मामू अपने पूरी फेमिली के साथ आए थे। उस वक्त मेरी मंझली दीदी से अच्छी ट्यूनिंग बन गई थी। वो अक्सर मेरे गाल पर किस करतीं या मौका मिलते ही मुझे कस कर हग कर लेतीं थीं, उस वक्त मुझे अच्छा तो बहुत लगता था पर मैं चूत और लण्ड के खेल से वाक़िफ़ नहीं था। अब इस खेल का चैम्पियन बन जाने के बाद मेरा लण्ड उन सब बातों को सोच कर ही टाइट हो जाता था।
एक दिन सुबह नाश्ते के वक़्त अम्मी बोलीं- "अजी सुनते हो! ३-४ साल हो गए जावेद और उसके बच्चों से मिले, बहुत दिल कर रहा है उन सबसे मिलने का"
अब्बू बोले- "यार मुझे तो छुट्टी नहीं मिल सकती, तुम सग़ीर के साथ जावेद के यहाँ चली जाओ। मै तुम दोनों का ट्रेन रिसर्वेशन करवा देता हूँ। मेरे खाने पीने का इंतज़ाम रूही देख लेगी"
अब्बू की बात सुनकर मेरे लॅंड ने तुरंत अपनी गर्दन उठा दी। मैं मंझली दीदी की मस्त चूत और रसीली चूचियों के सपने देखने लगा। मुझे पता था कि आपी को जैसे ही पता चलेगा वो तुरंत समझ जाएँगी क्योंकि वो मेरी फ़ितरत से अच्छी तरह से वाक़िफ़ थी।
और वही हुआ, रात में जैसे ही आपी कमरे में आई उस वक़्त मैं हनी को चोद रहा था और फरहान उसके एक मम्मे को मसलते हुए दूसरे मम्मे को बड़ी बेदर्दी से चूस रहा था। हनी के मुँह से 'उउह...आह....आ....' की कामुक आवाज़े निकल रहीं थीं।
आपी ने आते ही अपनी कुर्ती निकाल फेंकी तब मैने देखा कि उन्होने तो ब्रा भी नहीं पहन रखी थी। इतनी शर्मो हया वाली और सर से पाँव तक अपने को ढक कर रखने वाली आपी आजकल ब्रा पेंटी सब पहनना छोड़ दी थी।
कपड़े उतार कर आपी ने हनी के ऊपर से मुझे खींच कर मेरे होठों से अपने होंठ लगा दिए।
कुछ देर कस कर किसिंग करने के बाद वो मुझसे भारी आवाज़ में बोलीं, "अब तो बहुत खुश होगे तुम, वहाँ दो दो सील पैक चूत जो मिलेंगी चोदने को..." उनकी आँखों में हल्के से आँसू आ गए थे।
मैने उनके चेहरे को अपनी हथेलिओं में लेकर कहा, "कैसी बात करती हो आपी? आपके लिए तो मैं ज़न्नत की हूर भी ठुकरा दूं, मामू की बेटियाँ क्या चीज़ हैं, प्लीज़ रोना मत, मैं अब्बू के कहने से जा रहा हूँ वरना मैं तुम्हें छोड़ कर एक पल को भी जुदा नहीं हो सकता, यदि आप नहीं चाहतीं तो मैं अभी जाकर अब्बू को मना किए देता हूँ" मैने अंधेरे में एक तीर छोड़ा।
"उसकी अब कोई ज़रूरत नहीं, लेकिन खबरदार जो वहाँ दो दिन से ज़्यादा रुके तो, तेरा लॅंड काट कर कुत्तों को खिला दूँगी"
मुझे आपी के साथ मशरूफ देख कर, फरहान बड़ा फुर्ती से उठ कर आया और अपना लॅंड हनी की चूत पर टिका कर एक झटके में जड़ तक ठांस दिया। इस एकाएक हमले के लिए हनी तैयार नहीं थी तो उसके मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गयी।
आपी ने पलट कर देखा और गुस्से से बोली, "इस बहनचोद को पता नहीं कितनी जल्दी रहती है, वो कहीं भागी जा रही है क्या? आराम से नहीं चोद सकता तू?"
फरहान डर कर हनी को धीरे धीरे चोदने लगा।आपी ने मेरे लॅंड को कस कर पकड़ा हुआ था, ऐसा लग रहा था कि उन्हें डर हो कि छोड़ देने से ये कहीं भाग ना जाए।
"सलवार उतारो मेरी" -मेरे होठों को चूसते हुए व लॅंड को कस कर सहलाते हुए आपी ने फरमान ज़ारी किया।
मैने आपी की सलवार घुटनो के नीचे कर दी जिसे उन्होने खुद ही पैरों में फँसा कर निकाल दिया फिर मुझे बेड पर गिरा कर मेरे लॅंड को अपनी चूत पर टिका कर एक झटके में बैठ गईं, मेरा लॅंड सूख चुका था और चूत भी पूरी तरह से गीली नहीं थी सो मेरा लॅंड आपी की चूत में चरचराता हुआ जड़ तक घुसता चला गया, इस हमले से हम दोनों के ही मुँह से एक 'आह....' निकल गई।
थोड़ी देर रुक कर आपी ने मेरे लॅंड पर कूदना शुरू कर दिया, आपी बहुत तेज़ी से शॉट लगा रहीं थीं, मुश्किल से २०-२५ शॉट मारते ही आपी की चूत ने पानी छोड़ दिया और 'फच्च...फच्च' की आवाज़ के साथ आपी मेरे सीने पर गिर कर हाँफने लगीं परन्तु मेरा अभी भी नहीं हुआ था,
मैने आपी की चूत में अपने लॅंड को फँसाए हुए ही पलटी मार दी, अब आपी मेरे नीचे थीं, मैनें बिना समय बर्बाद किए आपी की चूत में अपना लॅंड सटासट पेलना शुरू कर दिया। मैं इतनी तेज़ी से आपी को चोद रहा था कि उनकी आँखें बाहर को निकलीं पड़ रहीं थीं परंतु मुझे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था, मैं पूरी गाँड़ तक की ताक़त लगा कर आपी को चोदे जा रहा था.
ज़नाना शरीर एक बांसुरी की तरह होता है जिसमें तीन खूबसूरत छेद होते हैं। वैसे बजाने में छेद तो सभी प्रयोग किए जाते हैं परन्तु कब कौन से छेद को छेड़ना है यह एक मजबूत आदमी को ज़रूर पता होता है, वह बारी बारी से उन तीनों छेदों को छेड़ कर जब उस बांसुरी को बजाता है और सही समय पर सही छेद का उपयोग करता है तो आवाज अद्भुत होती है ....उह...आह… ओह... उम्म्म... आउच...
अचानक मेरे मुँह से आवाज़ निकली, “आह...तेरी...माँ...को...चोदूँ...बहन...चोद... मैं .... गया....."
आपी ने मुझे कस कर भींच कर मुस्कुराते हुए कहा, "बड़ा कमीना है, मुझे पता है कि मौका लगे तो तू छोड़ेगा अम्मी को भी नहीं"
मैं बिना कोई जवाब दिए अपना सारा माल आपी की चूत में ही निकाल कर उनके बाज़ू में लेट गया, फरहान हनी को चो द कर अपना मुरझाया लॅंड लिए आँख बंद किए पड़ा था, हनी टाँगे फैलाए पड़ी थी, उसकी चूत से फरहान का जूस अभी तक रिस रहा था।
CONTD....
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30-04-2024, 11:06 AM
हम चारो ऐसे ही नंगे सो गए, रात में अचानक मुझे लगा कोई मेरा लॅंड चूस रहा है। इस एहसास से ही मेरा लॅंड फनफ़नाने लगा। मैने आँख खोल कर देखा तो आपी मेरा लॅंड चूस रहीं थीं, शायद वो दो दिन का कोटा पूरा करने के मूड में थीं मैने भी उनको खींच कर अपने बाज़ू में लिटाया और उनकी चूत में अपना लॅंड पेल कर सटासॅट चोदना शुरू कर दिया। मैने सोच लिया था कि आपी को अब कभी भी रोकूंगा नहीं चाहे उनकी चूत का भोसड़ा ही क्यूँ न बन जाए।
मैं पूरी स्पीड से उन्हें चो द रहा था, अचानक आपी की चूत ने पानी छोड़ दिया। मैने अपनी स्पीड और बढ़ा दी और थोड़ी देर में मैने भी अपना सारा माल आपी की चूत में निकाल कर वहीं बगल में गिर कर फिर सो गया।
सुबह जब आँख खुली तो देखा आपी नीचे जा चुकीं थीं, हनी और फरहान नंगे मेरे बाज़ू में सो रहे थे। फरहान का लॅंड पूरा खड़ा तनतना रहा था। मैने अपने लॅंड की तरफ निगाह डाली तो वो भी पूरे परवान पर था।
लुधियाना पहुँच कर क्या मौसम बनता है इसका कोई भरोसा नहीं था। सो मैने धीरे से हनी को अपनी ओर खींच कर उसकी एक चूची को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया, जिससे हनी की भी आँख खुल गई और वो मुस्करा कर मेरा लॅंड सहलाने लगी।
इन तीन चार महीनों में हम चारो ही इतने ज़्यादा चुदक्कड़ हो गए थे कि हर वक़्त लॅंड और चूत के सिवाय कुछ नज़र ही नहीं आता था। जब भी मौका मिलता, चाहे दिन हो या रात हम लोग चुदाई में लग जाते थे। पता नहीं ये कैसा चस्का था कि जितना हम इसमें डूब रहे थे उतना ही हवस और बढ़ती जा रही थी।
हनी की चूत में अपना पानी निकाल कर मैने उसके चूतड़ पर चपत मार के उसे उठ जाने को बोला, साथ ही फरहान को उठाते हुए मैं बाथरूम में घुस गया।
अब्बू जब शाम को घर आए तो ज़ुमेरात को दिन के दो बजे के लगभग जाने वाली लुधियाना सुपर फास्ट ट्रेन की टिकट उनके हाथ में थी।
ज़ुमेरात को नियत समय पर मैं अपनी अम्मी को लेकर स्टेशन पहुँच गया। ट्रेन समय से आ गई, हम लोग लगभग शाम के सात बजे लुधियाना पहुँच गये। पूरे रास्ते मै दीदी की चूचियों और मस्त चूत के बारे में ही सोचता रहा। अबकी बार मैंने पक्का मन बना लिया था कि मैं दीदी को ज़रूर चोदूंगा। जब हम लुधियाना पहुंचे तो मामू स्टेशन पर हम लोगों को लेने आ गए थे। आखिर मैं शाम ७:४५ तक अपनी प्यारी मस्त दीदी के दीदार को उनके घर पहुँच गया।
मेरी मामी छत पर कपडे उठाने गयी थी, उन्हें जैसे ही हमारे आने की खबर मिली वह तुरंत सारे कपडे लेकर नीचे आने लगी। ज्यादा कपडे होने के कारण उन्हें आगे का कुछ नज़र नहीं आ रहा था। अतः वह सारे कपड़ों के साथ सीडियों से नीचे फिसल कर आ गिरी जिससे उनका सर फट गया।
तुरंत ही सब लोग मामी को लेकर अस्पताल पहुंचे जहाँ डाक्टर ने इलाज करने के बाद कहा, "अब पेशेंट को कोई खतरा तो नहीं है परन्तु इन्हें कम से कम दो दिन तक अस्पताल में ही रखना पड़ेगा क्योंकि सर में बहुत गहरी चोट लगी है”
मामू ने कहा कि वह रात को अस्पताल में ही रुक जाते है बाकी सभी लोग अब घर जाये लेकिन अम्मी ने वही रुकने की जिद की तो आखिर में यह तय हुआ कि मैं और दीदी अब घर जाये और अम्मी व मामू ही अस्पताल में रुक जाते है क्योंकि अब मामी भी पूरे होश में आ चुकी थी।
कहावत है कि अगर किसी चीज को शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हे उससे मिलाने में लग जाती है। जो आज मुझे बिल्कुल सटीक बैठती लग रही थी। ऊपर वाला भी आज पूरा मेहरबान लग रहा था। मैं इस मौके को किसी भी कीमत पर हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। इससे बेहतरीन मौका शायद जीवन में दोबारा नहीं मिलता।
तभी दीदी मुझसे बोली,"सग़ीर! बाइक बहुत धीरे धीरे चलाना, मुझे बहुत डर लगता है" यह सुनकर सब हँसने लगे।
मामू बोले, "बेटा सग़ीर! ये जबसे मेरे साथ बाइक से गिरी है तबसे बहुत डरने लगी है, तुम धीरे धीरे ही ले जाना"
मैंने हामी भर दी और मामू से बाइक की चाभी लेकर दीदी को चलने का इशारा किया। मैं दीदी को मामू की बाइक से लेकर घर चल दिया।
रास्ते में मैंने बाइक की स्पीड थोड़ी तेज़ कर दी जिससे दीदी डर कर मुझ से चिपक कर बोली, "सग़ीर...र…र... अगर तुमने बाइक धीमी नहीं की तो मै कूद जाऊँगी"
मुझे अपनी पीठ पर दीदी की रसीली चूचियां गड़ती सी महसूस हो रही थी जिससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन फिर भी मैंने बाइक धीमी करते हुए बोला "सॉरी दीदी! मुझे ध्यान नहीं रहा"
"ठीक है, ठीक है लेकिन प्लीज अब बाइक तेज़ मत चलाना" -दीदी बोली लेकिन उन्होने जो पीछे से मुझे कस कर पकड़ कर अपनी चूचियों को मेरी पीठ पर दबा रखा था उन्हे ढीला नहीं किया वो उसी तरह से मुझे पकड़ कर चिपकी रहीं।
मैं जानबूझ कर कभी ब्रेक तो कभी बाइक को गड्ढे में डाल दे रहा था जिससे उनकी चूचिया मेरी पीठ पर बुरी तरह रगड़ खा रहीं थीं। पता नहीं वो जानबूझ कर अपनी चूचियो को मेरी पीठ पर रगड़ रहीं थीं या बेखयाली में था पर कुछ भी हो मुझे मस्त मज़ा आ रहा था, मेरा लंड फुल टाइट होकर फुंफ़कार रहा था। दिल तो कर रहा था कि उनका हाथ पकड़ कर लंड पर रख दूं पर मैं आपी की तरह ही इनको भी आराम से चोदना चाह रहा था। हाँ इतना दिल में पक्का कर लिया था कि बिना चोदे लुधियाना से नहीं जाऊँगा।
रात के साढ़े दस के करीब बज रहे थे, मैने दीदी को बोला कि रास्ते में किसी होटेल से कोई सब्जी पैक करा लेते हैं, घर पर आप और रज़िया (छोटी बहिन) मिल कर सिर्फ़ रोटी बना लेना।
"जैसा तुम ठीक समझो" -दीदी ने वैसे ही चिपके हुए जवाब दिया।
मैने एक होटेल के सामने बाइक रोकी और देखा कि बगल में ही एक मेडिकल स्टोर भी है। मैं जैसे ही बाइक स्टेंड पर लगा कर दुकान की तरफ़ बढ़ा तो देखा एक कुत्ता कुतिया की चूत मारने की फिराक़ में लगा था परन्तु कुतिया उसे चोदने नहीं दे रही थी, हार कर वो उसकी चूत चाटने लगा, अब शायद कुतिया को मज़ा आने लगा था तो वह चुपचाप चटवाने लगी तभी मेरी निगाह कुत्ते के लॅंड पर गई जो गाँठ तक लगभग सात इंच बाहर निकल आया था और अच्छा ख़ासा मोटा भी था।
मैने अचानक दीदी की तरफ देखा तो वह भी बड़ा गौर से देख रहीं थी। मुझसे नज़र मिलते ही वो झेंप कर दूसरी तरफ देखने लगीं। इसी बीच कुत्ते ने चूत चाटते चाटते अपने दो पैर कुतिया की पीठ पर टिका कर एक ही झटके में आधे के करीब लॅंड कुतिया की चूत में पेल दिया।
कुतिया के मुँह से बड़ी दर्द भरी 'का...यं...ओ...ओ...' निकल गई पर अब वो थोड़ा आगे बढ़ कर रुक गई। कुत्ते ने अपने लॅंड को चूत से बाहर नहीं निकलने दिया। वो उसी के साथ आगे बढ़ते हुए चोदना शुरू कर दिया।
मैने फिर से दीदी की तरफ देखा तो वो इस चुदाई को बड़े गौर से देख रहीं थी। मैं मुस्कुराते हुए होटेल में अंडा करी का ऑर्डर दिया फिर मेडिकल पर जाकर टाइमिंग बढ़ाने वाली दवा लेकर जब तक वापस आया तो अंडा करी पैक हो चुकी थी।
CONTD....
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01-05-2024, 03:30 PM
इस सब वाक़ए ने मेरे लॅंड की हालत और भी ख़राब कर दी थी। मेरी आँखों के सामने सिर्फ़ दीदी की मस्त मस्त चूत घूम रही थी। मैं दीदी को लेकर घर चल दिया। पूरे रास्ते मैं किसी न किसी बहाने से दीदी के शरीर को टच कर रहा था जिसमे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
घर पहुँच कर मैंने रज़िया को बोला कि अब मामी बिलकुल ठीक है तुम निश्चिन्त हो कर अपने एंट्रेंस की तैय्यारी करो। मै और दीदी खाना तैयार करते हैं फिर तीनो लोग मिल कर खाना खाएँगे।
रज़िया बोली- “ठीक है भैय्या! लेकिन आप और दीदी ही खाना खा लेना, मेरी खाना खाने की अभी बिलकुल भी तबियत नहीं है, मै ऊपर वाले कमरे में अपनी पढ़ाई करती हूँ अगर रात में भूख लगी तो मै आकर खा लूंगी, मेरे लिए चार रोटियां केसरोल में छोड़ देना”
यह कहकर रज़िया घूम कर ऊपर जाने वाली सीडियों की तरफ बढ़ गयी। तब मैंने पहली बार रज़िया को गौर से देखा कि वो भी बहुत हसीन और सेक्सी थी, पिंक कलर के स्लीवलेस टॉप और ब्लैक कैपरी में उसकी गदराई हुई मस्त गांड जो उसकी कमर से कम से कम छह इंच उठी हुई थी और तनी हुई चूचियां जैसे चुदाई का खुला निमंत्रण सा दे रही थी जब वह गांड हिलाती सीढियां चढ़ रही थी तो ऐसा लग रहा था कि रज़िया की गांड में कोई छोटी वाली बेरिंग फिट है जिस पर उसकी गांड टिक टाक टिक नाचती है। वो दीदी जितनी अगर सेक्सी नहीं थी तो कुछ कम भी नहीं थी, उसका शरीर किसी भी लंड को बेक़ाबू करने के लिए पर्याप्त था।
उस वक़्त मै अपने आप को किसी ज़न्नत में दो दो परियों के बीच किसी महाराजा के मानिंद महसूस कर रहा था। मैं वहीं दीदी के पास किचिन में ही आ गया। मेरी आँखे उनके रोटियों के लिए आटा बनाते समय ऊपर नीचे होती हुई चूचियो पर ही टिकीं थीं।
जब दोनों हाथो पर जोर देती हुई दीदी नीचे को झुकती थी तो उनकी नारंगी जैसी दूधिया चूचिया कुर्ते के गले से आधे से भी ज्यादा नुमाया हो जाती थी, यहाँ तक कि उनकी ब्लैक ब्रा के कप्स मुझे साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे। मै किचिन के दरवाज़े में खड़ा एक हाथ से अपने लंड को सहलाते हुए दीदी की चूचियों के पूरे मज़े ले रहा था।
तभी दीदी रोटियों के लिए आटा तैयार करके बोली- “सग़ीर! मेरे सर में बहुत दर्द होने लगा है जिससे कुछ भी करने की हिम्मत नहीं पड़ रही है, वैसे भूख भी बहुत लग रही है"
"दीदी तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो, मै तुम्हारे साथ अभी फटाफट रोटियां बनवा लेता हूँ, तुम बेलती जाना और मै गैस पर सेंक लूँगा और अगर तुम कहो तो रज़िया को नीचे बुला लेता हूँ” -मैंने उनका हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा।
दीदी ऊपर उठते हुए अचानक हल्का सा लड़खड़ा गईं, मैने उन्हे एकदम से सहारा देने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो उनकी चूची मेरे हाथ में आ गई जिसे मैने बिना मौका गवाए हल्का सा मसल दिया साथ ही ये भी ख़याल रखा कि यह सब अंजाने में हुआ महसूस हो।
वैसे तो मेरी इस हरक़त को दीदी ने नज़र अंदाज़ कर दिया था परंतु मैं जानता था कि नज़र पहचानने के मामले में लड़कियों की सिक्स सेंस बहुत तेज़ होती है। वो समझ गईं थीं कि मेरे मन में उनकी चुदाई का ख़याल चल रहा है मगर मैं भी हार मानने वालों में से नहीं था।
जब मैने रूही आपी जैसी शर्मो हया की मूरत को चोद लिया तो ये क्या चीज़ हैं परंतु शायद मुझे देख कर उनकी चूत में भी सुरसुराहट हो रही थी और मैं भी आपी और हनी को चोद चोद कर इस खेल का माहिर खिलाड़ी बन गया था।
मैने कहा- "तुम तो मेरी सबसे प्यारी और हसीन दीदी हो, बहुत दिनों से आपसे मिलने को दिल कर रहा था पर पढ़ाई और शॉप से बिल्कुल मौका ही नहीं मिल पा रहा था, कितना वक़्त हो गया आप से मिले हुए। वो आपका बात बात पर मुझे हग करना और मेरे गालों पर किस करना आज़ तक मिस करता हूँ"
इतना कह कर मैं दीदी की तरफ देखने लगा। उनका गोरा चेहरा एक दम हया से सिंदूरी हो गया था।
"धत्त... तब तो तू छोटा था....." -उन्होने बिना मेरी तरफ़ देखे शरमाते हुए ज़वाब दिया।
"और... अब...., अब भी तो मैं छोटा ही हूँ" -यह कह कर मैने उन्हे कंधों से पकड़ कर अपनी तरफ घुमा दिया।
"तब की बात और थी, अब... तो... तू... पूरा मर्द हो गया है..." -उन्होने फिर से नज़र झुका ली।
मैं फूँक फूँक कर कदम रख रहा था, मेरा एक ग़लत कदम सब चौपट कर सकता था।
मैने धीरे से उन्हे अपनी तरफ खींचा तो वो बिना नानुकुर के बिल्कुल मेरे से लग कर खड़ी हो गईं, मुझे अपनी गाड़ी पटरी पर रेंगती लग रही थी और ज़रूरत थी तो बस इसे स्पीड देने की।
"मैं तो आपके लिए हमेशा बच्चा ही रहूँगा दीदी" - मैने उन्हे थोड़ा और अपने से चिपकाते हुए कहा. "सिर्फ़ वही पुरानी किस और हॅग ही तो माँग रहा हूँ" मैने उनके कान में सरगोशी सा करते हुए कहा और धीरे से अपने दोनों हाथों से उनकी कमर को पकड़ कर अपने से बिल्कुल चिपका लिया।
अब उनकी चुचियाँ मेरे सीने से दब गईं थीं, उनके हाथ अभी भी नीचे लटक रहे थे जिन्हे मैने थोड़ा पीछे हट कर अपने कंधों पर रख कर उन्हे पहले से और ज़ोर से कस कर अपने सीने से लगाते हुए कहा, "हाँ, अब किस दो"
दीदी ने धीरे से सिर उठा कर मेरे गाल पर चुम्मी ले ली।
मैने कहा, "अभी तो आपने कहा कि मैं बड़ा हो गया हूँ, फिर भी ये बच्चों वाली चुम्मी?"
"तो.... फिर.....?"
मैने होठों की तरफ इशारा किया और बिना उनके ज़वाब का इंतेज़ार किए मैने अपने होंठ उनके होठों पर चिपका दिए। मैं डर तो रहा था कि कहीं बिदक न जाएँ पर 'जो होगा देखा जाएगा' सोच कर मैने होंठ चिपका दिए थे।
दीदी ने जब कुछ नहीं कहा तो मैने उनके निचले होंठ को धीरे से चूसना शुरू कर दिया साथ ही मेरे हाथ उनकी पीठ पर रेंग रहे थे।
मेरी बाँहों में कसमसाते हुए दीदी बोलीं- "अब छोड़ो मुझे, रज़िया का कोई भरोसा नहीं वो कब आ जाए… और मुझे रोटी भी बनानी है, ११ बज चुके हैं"
"ऊं... हूं... बन जाएँगीं रोटी"
मैं समझ गया कि इस चूत में तो अब लंड जा कर रहेगा क्योंकि उनकी बातों से इतना तो मुझे पता चल ही गया था कि उनकी चूत में भी कीड़े रेंगना शुरू हो गए हैं। मैने उनके दोनों चूतड़ कस कर मसलते हुए उनके होठों पर अपने होंठ रख दिए।
दीदी ने पेंटी नहीं पहनी थी यह मैं उनके चूतड़ पकड़ते ही समझ गया था। मैं दीदी के दोनों तरबूज़ जैसे चूतड़ मसलते हुए उनके होठों के रस को पी रहा था, चूतड़ मसलते मसलते मैने अपना उंगली उनकी गाँड़ में कर दी, वैसे ही दीदी ने मुझे कस कर अलग करते हुए कहा, "नहीं सग़ीर! ये सब ग़लत है, हमें इतना आगे नहीं बढ़ना चाहिए कि फिर वापस लौटना नामुमकिन हो जाए और फिर ये भी मत भूलो कि मैं भी तुम्हारी बड़ी बहन हूँ, बिल्कुल रूही की तरह दूसरी बात मेरे सिर में बहुत तेज़ दर्द भी हो रहा है, बस किसी तरह रोटी बन जाए फिर मैं आराम करूँगी"
ये पता नहीं लड़कियों की क्या आदत होती है कि जब तक ख़ुद को मज़ा आ रहा होता है तब तक तो ठीक है जैसे ही तुम मज़ा लेना शुरू करो तो एकदम से बिदक जाती हैं और इन्हें अब ये कौन बताए कि मेरी आपी तो सबसे बड़ी लॅंडखोर है। उसका बस चले तो मेरे लॅंड को काट के हमेशा के लिए अपनी चूत में डाल ले। दो दो लॅंड से दिन रात चुदाई होने के बाद भी उनकी चूत की आग शांत नहीं होती है।
ख़ैर नज़ाक़त तो हुस्न का हिस्सा होता है और मैं भी हिम्मत हारने वालों में से नहीं था. वैसे तो हॉस्पिटल से आने के बाद से ही मैने अपनी हरकतों से दीदी की चूत को पनिया दिया था, वो पता इसलिए भी चल रहा था कि थोड़ी थोड़ी देर के बाद दीदी अपनी चूत को रगड़ कर साफ़ हर रहीं थीं।
शायद वो भी समझ रहीं थीं कि आज उनकी चूत जम कर चुदने वाली है, यही सोच सोच कर उनकी साँसें भारी और चेहरा लाल हो जा रहा था।
परंतु मैं चाहता था कि भले ही दीदी मुझसे खुल कर न कहें कि, 'आओ सग़ीर, मेरी चूत में अपना लॅंड पेल दो' लेकिन कम से कम अपनी तरफ से पहल तो करें जिससे फिर मैं खुल कर आगे बढ़ कर उन्हें हचक हचक के चोद सकूँ।
CONTD....
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02-05-2024, 03:22 PM
मैने कहा, "तो चलो आओ, मैं आपके सिर में तेल लगा कर हल्के हाथों से चम्पी कर देता हूँ तुरंत आराम मिल जाएगा"
"नहीं, पहले रोटी बना देतीं हूँ तब तक तुम मुझे दवा के बॉक्स में से एस्प्रिन की दो टेबलेट लाकर दे दो"
मैने दीदी को एस्प्रिन लाकर दी साथ ही मैने अपनी टाइमिंग बढ़ाने वाली दवा भी निकाल ली।
दीदी ने एस्प्रिन कप में डालते हुए पूछा, "तुम किसकी दवा ले रहे हो सग़ीर?"
"दीदी! मेरा पेट कुछ अज़ीब सा भारी हो रहा है तो ये डायजेशन की दवा है"
एस्प्रिन लेकर दीदी रोटियाँ बनाने लगीं, मैं किचिन के बाहर कुर्सी पर बैठा दीदी की बेलते समय हिलती गाँड़ देख कर अपने लॅंड को मसल रहा था। मेरी भूख प्यास सब मर गई थी। मैं तो बस चाह रहा था कि ये किसी तरह अपना काम ख़तम करके बेड पर चलें फिर मैं इन्हें चोद ने की कुछ तरक़ीब सोचूँ।
मैं इसी सोच में डूबा था कि दीदी की आवाज़ आई, "सग़ीर! मैने अपने और रज़िया के लिए चार चार रोटी बाला लीं हैं, तेरे लिए कितनी बना लूं"
मैने लॅंड मसलते हुए जवाब दिया, "अरे दीदी, जो दिल करे बना लो, आधी रात तो निकल चुकी है"
दीदी ने मुझे लॅंड मसलते देख मुस्करा कर कहा, "कपड़े तो चेंज कर ले, अलमारी से अब्बू का तहमद ले लो"
मैं उठ कर जब तक कपड़े बदल कर आया तो दीदी कुछ अज़ीब हरकतें कर रहीं थीं। वो कभी अपनी लेफ्ट चूची दबातीं तो कभी सिर पकड़ लेतीं।
मैं दौड़ कर उनके पास आकर बोला, "क्या हुआ दीदी? तुम ठीक तो हो ना?"
दीदी ने अजीब सी आवाज़ में कहा "अरे सग़ीर, ये मुझे क्या हो रहा है, अजीब सी फीलिंग हो रही है, हाथ पैर झनझना से रहे है"
मुझे कुछ शक हुआ तो मैने दीदी से पूछा, "घर में ब्लड प्रेशर नापने की मशीन है क्या?"
दीदी ने हाँ में सिर हिलाया और मामू के कमरे की तरफ इशारा किया, मैने उन्हे मौके का फ़ायदा उठाते हुए तुरंत गोद में उठा लिया।
"अरे...रे... क्या...करता...है, मैं चल सकती हूँ" -दीदी ने शरमाते हुए कहा।
"आप बिल्कुल अब चुप रहेंगीं, मुझे जो करना है वो पता है" -मैने अधिकार जमाते हुए कहा।
मैने कमरे में जाकर दीदी को बेड पर लिटा दिया और मामू के कमरे से जाकर ब्लड प्रेशर नापने की मशीन उठा लाया। बी पी लो हो गया था और शायद यही कारण था जो उनकी यह हालत हो गई थी।
घर में कोई लो बी पी की दवा नहीं थी सो मैं तुरंत किचन में गया और एक कप पानी में एक ढेढ़ चम्मच सफेद नमक घोल कर ले आया और उनका सिर उठा कर धीरे से पिला दिया।
"अब आप दस मिनट आँख बंद करके चुपचाप लेटी रहिए, ऊपर वाले ने चाहा तो आप बिल्कुल ठीक हो जाएँगीं" -मैने उनके पास लेटते हुए कहा।
मैं बाज़ू में लेट कर उनके बालों में धीरे धीरे उंगलियाँ चलाने लगा। करवट से होने के कारण मेरा लॅंड उनकी जाँघ से रगड़ रहा था, दूसरा हाथ अभी भी उनकी गर्दन के नीचे था। तहमद पता नहीं इस हड़बड़ में कहाँ खुल कर गिर गया था, मैं केवल अंडरवियर बनियान में था। मेरा लॅंड अंडरवियर से फुंफ़कार मारता हुआ सॉफ नज़र आ रहा था।
अपने लेफ्ट हाथ को उनकी गर्दन के नीचे से थोड़ा और आगे बढ़ा कर उनका सिर अपने कंधे पर कर लिया, अब लेफ्ट हाथ की उंगलियाँ सीधी उनकी लेफ्ट चूची के ऊपर तक पहुँच रहीं थीं। राइट हाथ से उनके बालों में उंगलियाँ चलाते हुए मैने लेफ्ट हाथ को उनकी चूची पर रख दिया।
मैं इस बात का विशेष ख़याल रख रहा था कि मेरी हर हरक़त बेखयाली में हुआ लगे।
बालों में उंगली के साथ साथ मैं रह रह कर अपनी हथेली से उनकी लेफ्ट चूची को भी दबाता जा रहा था पर दीदी उसका कोई नोटिस नहीं ले रहीं थीं।
बी पी इतना ज़्यादा लो नहीं था कि कोई ख़तरे की बात हो, टेंशन और प्रॉपर डाइट ना लेने से हमेशा बी पी की शिकायत होती है।
मेरा एक हाथ दीदी के बालों मे चल रहा था तो दूसरे हाथ से कभी मैं उनके गाल को सहला देता था तो कभी चूची पर रख कर दबा देता था। दीदी आँखें बंद किए चुपचाप पड़ीं थीं।
लगभग आठ दस मिनट बाद मैने दीदी के गाल पकड़ कर उनका चेहरा अपनी तरफ घुमाया और एक किस लेकर पूछा, "दीदी! अब कैसी तबीयत है आपकी"
उन्होने धीरे से आँख खोल कर कहा, "अब तो कुछ बेटर लग रही है"
"आप उठ कर खाना खा लो जिससे और अच्छा महसूस होगा, बहुत ज़्यादा तो नहीं पर हाँ थोड़ा सा बी पी लो हो गया था" -यह कह कर मैने उनके होठों पर अपने होंठ रगड़ कर कस के अपने सीने से लगा लिया।
"चलो उठो, अब खाना खा लिया जाए, सुबह समय से उठ कर फिर हम दोनों को अस्पताल भी जाना है" -ये कह कर मैं बेड से उठ गया।
मैने दीदी को सहारा देकर बेड से उठाया और बाहर टेबल तक ले आया।
फिर हम दोनों खाना खाने बैठ गए। खाना खाते हुए मेरी निगाह उनकी चुचियों पर ही टिकी थी। वह जब भी खाने के लिए थोड़ा सा झुकती थी तो कुर्ते के वी शेप गले से उनकी आधी मस्त दूधिया चूचियां नुमाया हो जाती थी। यह सीन देख कर मेरा लंड टायट हो रहा था।
" तेरा ध्यान कहाँ है" -दीदी ने पूंछा।
"कुछ नहीं दीदी, बस आपके बारे में ही सोच रहा था" -मैंने सकपकाते हुए ज़बाब दिया।
"मेरे बारे में? क्या सोच रहा है? मुझे अजीब सी फीलिंग हो रही है, दिल में गुदगुदी हो रही है व हाथ पैरों से कंट्रोल ख़तम हो रहा है" -दीदी ने खाना ख़तम करते हुए कहा।
"अरे कोई नहीं दीदी, चलो मै आपको बेड तक ले चलता हूँ" -मैंने दीदी को बांह पकड़ कर सहारा देते हुये उठाया।
दीदी चलते हुए लडखडा रही थी, उन्होंने कस कर मेरी बांह पकड़ रखी थी। मैं उनकी बांह कम पकड़ रहा था अपनी उँगलियों से उनकी चूचियों को टच ज्यादा कर रहा था, अचानक मैंने सहारा देने के बहाने उनके चूतड पर हाथ रख कर हल्के से दबा दिया जिसको दीदी ने कोई नोटिस नहीं लिया। पर मैं एक बात नहीं समझ पा रहा था कि ज़रा से बी पी लो में इतनी कमज़ोरी तो नहीं आती, ज़रा सा चलने के लिए वो मेरी तरफ़ देख रहीं थीं। मेरी सेहत पर इस बात से कुछ फ़र्क नहीं पड़ना था।
मैं उन्हें कमरे में बेड के पास ले जा कर उनके दोनो गालों को अपनी हथेलियों में भर कर बोला, "दीदी, आप तब तक कपडे चेंज करके नाईट ड्रेस पहनो मै टॉयलेट होकर आता हूँ"
"ठीक है, लेकिन मेरी नाइटी वार्डरोब से निकाल कर देता जा" -दीदी ने कहा।
मैने वार्डरोब से नाइटी निकाल कर वहीं दीदी के सामने बेड पर डाल दी और अटैच्ड बाथरूम में घुस गया, मैंने जानबूझ कर दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया और दरवाजे के पीछे से छुप कर दीदी को कपडे बदलते हुए देखने लगा। दीदी ने सलवार का नाडा खोल कर सलवार उतार दी फिर कुरता उतारने लगी।
दीदी ने चड्डी नहीं पहन रक्खी थी। दीदी की क्या टाँगें थीं, शफ्फाक़ सफेद गोरी, उन पर एक भी रेशा नहीं था, इतनी चिकनी कि कमर पर एक बूँद पानी गिरे तो सीधा एड़ी तक फिसलता चला जाए और हर कदम पर थिरकते चूतड़। माशा अल्लाह... ऐसा लग रहा था दो सफेद मीडियम साइज़ के सफेद रंग के तरबूज़ जैसे कोई दो फल ऊपर वाले ने पिछवाड़े पर लगा दिए हो।
यह देख कर अब मेरा लंड कंट्रोल से बाहर होने लगा सो मैं अंडरवीयर से लंड को बाहर निकाल कर सहलाने लगा, मानों उसे तसल्ली दे रहा था कि चिंता मत करो आज तुम्हे दीदी की चूत में ज़रूर पेलूँगा।
जैसे ही दीदी ने कुर्ता उतारा, दीदी ने कुर्ती उतारने के लिए बाँहें ऊपर करते हुए वो थोड़ा सा बाथरूम की तरफ घूमीं, मुझे बिज़ली का चार सौ चालीस वोल्ट जैसा झटका लगा। उनकी नंगी चूत मेरे सामने थी, दो टाँगों के बीच ऐसा लग रहा था कि किसी बड़े संतरे की दो फांकों को छील करके एक दूसरे के मुँह से लगा कर वहाँ चिपका दीं हों।
मैं यही मुनासिब वक़्त जान कर लॅंड को किसी तरह अंडरवियर में ठूंस कर बाथरूम से बाहर आ गया, दीदी पूरी नंगी केवल ब्रा में मेरे सामने खड़ी थीं।
उनकी कुर्ती उनके हाथ में थी मुझे देख कर उन्होने कुर्ती से अपना सीना ढँक लिया, खुलीं तो चूत भी थी पर शायद वो यह भूल गयीं थीं कि वो चड्डी नहीं पहने हैं।
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03-05-2024, 02:37 PM
"हाय अल्ला, मुझे जल्दी से नाइटी दे" -दीदी ने बुरी तरह से शरमाते हुए अपने कुर्ते से अपनी चूचियों को छिपाते हुए कहा। उनकी गोरी गोरी टांगो के बीच उनकी चूत बड़ी मस्त लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे आज मेरे लिए ही दीदी ने चूत को चिकना किया था।
"ओह सॉरी दीदी, मैंने सोचा आपने नाइटी पहन ली होगी, कोई बात नहीं दीदी, अगर आपकी तबियत सही नहीं है तो इसमें शर्माना कैसा? आखिर बीमारी में डाक्टर के सामने भी तो कभी कभी हमें नंगा होना पड़ता है और फिर मै कोई गैर तो हूँ नहीं आखिर आपका प्यारा सा भाई ही तो हूँ" -यह कह कर मैने पीछे से दीदी को अपनी बाँहों मे भर लिया, दीदी की हाइट कम होने से मेरा लॅंड अब उनकी कमर पर ठोकर मार रहा था। मैं उनके चिकने मक्खन जैसे पेट पर हाथ फेरने लगा।
औरत का परपुरुष से लज्जा करना प्राकृतिक है और ये संस्कार भी है परन्तु एक अनुभवी और कामक्रीङा मे पारंगत कामातुर स्त्री हर समय एक तगड़े दमदार पुरुष के ही स्वप्न देखती है जो अपने बलशाली बाहुपाश मे जकड़ के ऐसे ठाप मारे की औरत का अंग अंग ही नहीं अपितु नस नस भी ढीली हो जाये। अगर उसको मनचाही संतुष्टि नहीं मिलती है तो वह बेचैन रहती है कि किसी तरह उसको भी सभी औरतों की तरह संतुष्टि मिलें। कोई उसके भी पैर चूमे, जांघें चूमें, पीठ पर चुम्बन करें। उसकी चूत को अपनी लपलपाती जीभ से चाटे।
"नहीं पगले, मुझे बहुत शरम आ रही है, मुझे जल्दी से नाइटी दे" -दीदी ने कहा।
मैंने बेमन से दीदी को छोड़ कर नाइटी उठा कर दी। उस वक़्त मेरा मन कर रहा था कि दीदी को उठा कर बेड पर पटक दूँ और एक झटके में ही पूरा लंड उनकी मस्त चूत में ठांस दूँ लेकिन मै पूरे सब्र से काम ले रहा था क्योंकि ज़रा सी ज़ल्दबाजी सारे बने बनाये खेल को चौपट कर सकती थी। दीदी ने नाइटी पहन ली थी। मैंने उन्हें सहारा देकर बेड पर लिटा दिया।
अब मुझे सिर्फ उसे चुदने के लिए तैयार करना था सो उसी प्रयास में दीदी को मक्खन लगाते हुए बोला- "दीदी क्या मै थोड़ी देर आप के कमरे में ही रुक जाऊ? अभी मुझे नींद नहीं आ रही है और फिर पता नहीं कहीं आप की हालत फिर से ना बिगड़ने लगे"
"अरे इसमे पूछने की क्या बात है, तू तो मेरा छोटा सा प्यारा शैतान भाई है” - दीदी ने पूरा प्यार ज़ताते हुए कहा।
अब तो मेरा मन बल्लियों उछल रहा था व लंड भी दीदी की मस्त चूत के दीदार के लिए दीवाना हो रहा था। तभी उनकी निगाह मेरे अंडरवियर में बने तंबू पर गई जिसे देख उनकी आँखे चौड़ी हो गईं पर उन्होने ऐसा ज़ाहिर किया जैसे कि कुछ देखा ही न हो।
मैं अंडरवियर बनियान में उनके बेड पर बगल में ही लेट गया। मेरी निगाह दीदी की नाइटी के ऊपर से उनकी बिना चड्डी की मस्त चूत को महसूस कर रही थी। हर साँस के साथ उनकी चूचियाँ उठ गिर रहीं थीं, अब दीदी की पलकें बोझिल सी हो रही थी।
अब मुझे डर लगने लगा कि दीदी कहीं सो ना जाएँ अतः मै उन्हें जगाये रखने को बोला- "क्या दीदी, कितने दिन बाद तो हम मिले है और तुम्हें नींद आ रही है। कुछ बातचीत करो ना मेरी प्यारी दीदी" यह कह कर मै उनके बगल में लेट गया और मैंने प्यार जताने के से अंदाज़ में अपना एक हाथ उनकी चूची को टच करते हुए पेट पर व अपनी एक टांग उनकी टांग पर रख कर छोटे बच्चे की तरह जिद करते हुए कहा।
"धत पगले! चल बता क्या बात करू" दीदी बोली
मेरा लंड आज पूरी तरह से चूत के लिए दीवाना था, मै आज सोच चुका था कि आज मै किसी ना किसी तरह दीदी की चूत में अपना लंड डाल के रहूँगा। मुझे आज अपना सपना अब सच होता दीख रहा था।
मै समझ चुका था कि लोहा पूरी तौर से गरम हो चुका है, ज़रूरत है तो बस एक आख़िरी चोट की और अब यह सही वक़्त है उनकी छुपी वासना को जगाने का। मैंने शोख अंदाज़ में धीरे से अपना हाथ उनकी चूची पर रख कर टांग से टांग रगड़ते हुए कहा, क्योंकि अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था लेकिन दीदी का भी चुदने के लिए तैयार होना ज़रूरी था।
"दीदी, आपका कोई बॉय फ्रेंड है क्या?"
"अब्बू को देखा है ना, छोटा छोटा काट कर नदी में बहा देंगे"
"यार, ये अम्मी अब्बू लोग हम लोगों की फीलिंग्स को समझते क्यूँ नहीं, खुद तो ज़िंदगी का पूरा मज़ा ले चुके बल्कि अभी तक ले रहे हैं और बच्चों पर सारी पाबंदियाँ लगा रखीं हैं"
"तुझे कैसे पता कि अभी तक ले रहे हैं" -दीदी ने शरारत से मुस्कुराते हुए पूछा
"व्वो...वो...दीदी...वो…”
"क्या वो वो कर रहा है?"
"वो दीदी, मैने एक बार देखा था, गर्मियों में अम्मी अब्बू रात में छत पर सोते थे, एक रात जब लाइट चली गई तो मैं ऊपर गया तो वो अम्मी के साथ कर रहे थे" -मैं शरमाते हुए बोला।
झुंझलाहट में मुँह से निकल तो गया पर बाद में सोचा कि मैं ये क्या बोल गया।
"बड़ा कमीना है तू, एक तो सब देख लिया ऊपर से सबको बता भी रहा है"
"एक ही घर में, वो भी खुली छत पर यदि आप ऐसा करोगे तो कब तक छुपेगा, आप ने नहीं देखा मामू को ये सब करते हुए?"
"चल हट, तू तो मेरी सोच से भी बड़ा कमीना है रे!" -यह कह कर दीदी मेरी तरफ पीठ करके लेट गई।
उन्हें इन सब बातों में मज़ा पूरा आ रहा था पर ज़ुबान साथ नहीं दे रही थी और मुझे किसी भी तरह उनकी ज़ुबान खुलवानी थी।
मैने अपनी एक टाँग उनकी क़मर पर रख कर पीछे से पकड़ लिया। मेरा लॅंड उनकी पतली सी नाइटी के ऊपर से उनके दोनों चूतड़ के बीच में सेट हो गया था जिसे वह पूरा महसूस कर रही होंगीं परंतु ना तो वो कुछ कह रहीं थीं और ना ही मुझे हटा रहीं थीं।
"बताओ ना दीदी, आपको मेरी कसम" -मैने उनके पेट को सहलाते हुए धीरे से अपना हाथ उनकी चूची की तरफ बढ़ाते हुए कहा
“ओफ्फो... क्या बता दूँ तुझे? तूने ही तो कहा एक घर में कब तक छिपेगा, तो मेरी भी एक दो बार निगाह पड़ गई पर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम वहीं रुक कर देखते ही रहें" -दीदी ने गरम साँसों के साथ ज़वाब दिया।
मैने उन्हें कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ घुमा लिया, लोहा तेज़ी से गर्मी पकड़ रहा था। अब मेरा लॅंड उनकी चूत के ऊपर ठोकर मार रहा था और चूचियाँ मेरे सीने से दबी थीं, मुझे अपने बीच से इन कपड़ों की दीवार को और गिराना था।
मैंने उनकी नाइटी के ऊपर से ही अपना लंड उनकी चूत से रगड़ना शुरू कर दिया। मै उन्हें कस कर चिपका के उनकी पीठ भी सहलाता जा रहा था। अब दीदी मेरे सीने से चिपकी गहरी गहरी सांसे ले रही थी, अचानक मैं उन्हें अपनी बाँहों में लेकर पीठ के बल सीधा लेट गया और उनकी दोनों टाँगो के बीच अपने पैर फँसा कर चौड़ा कर दिया. दीदी बहुत गहरी गहरी साँसें ले रहीं थीं.
"सग़ीर! हम ये ग़लत तो नहीं कर रहे ना? क्या ये सब ज़ायज़ है?"
मेरा लॅंड दीदी की चूत के ऊपर ठोकर मार रहा था जैसे उससे ये कपड़ों की दीवार बर्दाश्त नहीं हो रही थी.
"इसमें ग़लत क्या है दीदी, आख़िर अपनी ख्वाहिशों का क़त्ल करना भी तो ज़ायज़ नहीं है" मैने उनके चूतड़ मसलते हुए कहा।
"अगर यहाँ मेरी जगह रूही होती तब?"
मुझे लगा कि अब मुझे अपने और आपी के संबंधों के बारे में बता देना चाहिए, उससे शायद ये खुल कर अपनी चूत में मेरा लॅंड ले पाएँगीं लेकिन में बिना पूरी तरह मुतमईन हुए एक दम से ये राज़ नहीं खोलना चाह रहा था।
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