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Misc. Erotica गरम रोज
"हां अब बता।" अब वे तीनों मुझे पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले कर पूछ रहे थे।
"तुम सब थूकोगी मुझ पर।"
"नहीं थूकेंगी।"
"तो सुनो।"
"सुनाओ हरामजादी। कब से हम सुनने के लिए मरी जा रही हैं।"
"वह वह मैं अपने घर के नौकर से....." मैं झिझकते हुए बोली।
"वाह मेरी बन्नो रानी कोई और नहीं मिला? घर का नौकर ही मिला था तुम्हें?" शीला बोली।
"और कौन था जो घर में? जो सामने मिला उसी से काम चलाना पड़ा। मेरे अंदर आग लगी हुई थी। जैसा भी मिला लेकिन अच्छा ही मिला, उस वक्त वह भी बहुत था।" मैं विवशता में, थोड़ा झूठ ही मिलाकर सही, बताने को बाध्य हो गई थी वरना ये लोग मुझे छोड़ती नहीं।
"नौकर कैसा है, मेरा मतलब कितनी उम्र का है?" शीला बोली।
"यही पचपन साठ साल का होगा।" मैं बोली।
"अरे साली, बूढ़े के साथ!" सभी आश्चर्यचकित हो कर बोले।
"बड़ा हरामी बूढ़ा होगा। तुम जैसी इतनी कम उम्र की लड़की को चोदने में भी झिझका नहीं?" रश्मि मजे लेती हुई बोली।
"मेरी जिद पर वह ऐसा करने के लिए मजबूर हुआ।"
"मना भी तो कर सकता था? साला बुढ़ऊ, घर में बैठे बिठाए इतनी मस्त माल मिल रही थी तो छोड़ता कैसे? है कि नहीं? कैसा लगा? मजा आया ना?" शीला चुटकी लेते हुए बोली।
"हां, उस वक्त तो मेरा काम चल ही गया।" मैं आधा सच और आधा झूठ बोल गयी।
"बहुत बढ़िया, बूढ़े नौकर की बुढ़िया। सच ही कहा गया है, "चूत भला और क्या चाहे, बस एक लौड़ा,
क्या फर्क पड़ता है, जवान हो या हो बूढ़ा।
भूखी चूत भला और किसे किसे चीन्हे,
मालिक हो, नौकर हो, लूला हो या लंगड़ा।"
"मान गये रे तुमको, मान गये। अच्छा चल अब इधर ध्यान दे। अब देख खुद को और रेखा को, इस वक्त यहां रेखा नंगी, तू नंगी और तुम दोनों यहां इस तरह एक दूसरे से लिपटा लिपटी कर रहे हो, इससे आगे भी कुछ करना है कि बस ऐसे ही.... ‌खाली टाईम पास?" शीला बोली। मैं इधर मन ही मन खुश हो रही थी कि बात का रुख दूसरी ओर मुड़ गया था और मैं पूरा सच बताने से बच गयी, वरना ये लोग बाल की खाल निकालने में पीछे कहां रहते। अब इन्हें कैसे बताती कि चूत नहीं, गांड़ चुदवाई थी। अब उन्हें हमारे नंगे जिस्म को देख कर मजा आ रहा था। इनकी मंशा मैं समझ रही थी। ये लोग हमारे बीच और भी कुछ होते हुए देख कर मजा लेना चाहते थे।
मैं पूरी तरह रेखा की तरह नंगी थी लेकिन इन लोगों के सामने नंगी होने में मुझे कोई शर्म नहीं आ रही थी। अबतक मैं ने रेखा के जिस्म से जिस तरह खिलवाड़ किया था उसके कारण रेखा काफी गरम हो चुकी थी। रेखा मेरे नंगे जिस्म को बड़ी भूखी नज़रों से देख रही थी। वास्तविकता तो यह थी कि मैं भी रेखा के नंगे बदन को महसूस करते हुए गरम हो चुकी थी। हम दोनों एक दूसरे की नग्नता को हवस भरी नज़रों से देख रहे थे। उधर शीला और रश्मि को पूरी उम्मीद थी कि अब हमारे बीच आगे भी कुछ न कुछ और घमासान होने वाला था, जिसके लिए वे बेसब्री से तमाशबीनों की तरह खड़े थे।
मैं ने उन्हें नजरअंदाज किया और सहसा मुझपर जैसे पागलपन का दौरा सा पड़ गया, मैं एकदम से रेखा पर टूट पड़ी और उसे अपनी बाहों में ले कर पागलों की तरह चूमने लगी। रेखा तो पहले तो हकबका गयी लेकिन वह भी तो उत्तेजना की आग में जल रही थी, मेरे चुंबन का प्रतिदान उसकी ओर से भी चुंबन के रूप में मिलने लगा। मैं उसके ऊपर चढ़ी हुई थी और मेरी चूचियों से उसकी चूचियां दबी हुई थीं। एक नग्न नारी की देह से दूसरी नग्न नारी की देह का इस प्रकार संपर्क होने से कैसा अहसास होता है यह मैं पहली बार अनुभव कर रही थी। मैं भीतर तक झनझना उठी थी। मैं अपनी चूचियां उसकी चूचियों पर रगड़ने लगी। ऐसा लग रहा था मानो चूचियों के घर्षण से चिंगारियां सी छूट रही हों। रेखा ने स्वयंमेव आमंत्रण की मुद्रा में अपने पैर फैला दिए और मैं यंत्रवत उसके दोनों पैरों के बीच घुस कर उसे अपनी आगोश में ले ली। इसी दौरान जैसे ही मेरी चूत का संपर्क उसकी चूत से हुआ मुझे जैसे बिजली का झटका सा लगा। ओह मेरी मां, कितना उत्तेजक अहसास था वह मैं बयां नहीं कर सकती हूं। कुछ देर हम दोनों अपनी चूत आपस में सटा कर स्थिर हो गई थीं। वह एक बड़ा ही रोमांचक और सुखद अहसास था जिसके आनंद को हम महसूस कर रहे थे। हमारे अंदर एक आग सी भड़क उठी थी और हम उत्तेजना के आवेग में अनियंत्रित होकर चूत पर चूत रगड़ने लगीं। उफ उफ यह एक ऐसा सुखद अनुभव था जो अवर्णनीय है। अपने आप ही मेरी कमर हिचकोलें लेने लगी। चूत पर चूत छपाक छईयां कर रही थीं। चूत की चुदाई भला चूत से हो सकती थीं? कदापि नहीं, लेकिन उस घर्षण ने हमारी उत्तेजना को चरम पर पहुंचा दिया। हम दोनों एक दूसरे से गुंथ कर मानो एक दूसरे के शरीर में समा जाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। हम दोनों को इस बात की बिल्कुल भी फिक्र नहीं थी कि शीला और रश्मि हमारी हरकतों का मजा ले रही थीं, बल्कि मैं तो मना रही थी कि वे भी अपने कपड़ों से मुक्त हो कर हमारी तरह इस कृत्य में लिप्त हो जाएं।
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"रोजा को देखो। साली हम सबसे उमर में छोटी है लेकिन यह कुत्ती की बच्ची है हम सबसे ज्यादा सेक्सी। कमीनी बदन भी क्या पाई है मां की लौड़ी। इस उम्र में ही इसकी चूचियों को देखो तो, इतनी बड़ी बड़ी चूचियां कहीं देखी है? कपड़े पहनने के बाद भी आदमी को साफ साफ पता चल जाता होगा कि इसकी ब्लाऊज के अंदर कितना माल भरा पड़ा है। अब देखो तो, अपनी गर्मी रेखा पर कैसे निकाल रही है साली जंगली बिल्ली।" शीला ईर्ष्या से मुझे देखते हुए बोली।
"चूचियां तो चूचियां, इसकी गांड़ देख नहीं रही हो? इतनी बड़ी गांड़ देख कर किस मां के लौड़े का लंड खड़ा नहीं हो जाएगा? जिस आदमी का लंड न खड़ा हो, वह जरूर नामर्द होगा। तभी तो उन बदमाशों ने हमारे बीच में से इसी को चुना था चोदने के लिए। उनके दिमाग में सबसे पहले इसी को चोदने का प्लान आया होगा।" रश्मि बोली। मैं अपने बारे में उनकी ईर्ष्या भरी और प्रशंसात्मक बातें सुनकर सोचने लगी कि जब ये लोग ऐसी बातें कर रहे हैं तो बाकी लोग क्या क्या बातें करते होंगे। मैं खुश तो हो रही थी लेकिन उससे ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। इसी उत्तेजना का असर था कि मेरे और रेखा के बीच जो कुछ हो रहा था वह खुद ब खुद होता जा रहा था। मेरा हाथ उसके नाज़ुक अंगों पर यंत्रवत विचरण कर रहा था और उसी तरह रेखा भी मेरे तन के यौनांगों से खेल रही थी। हम दोनों बदहवासी की हालत में पहुंच चुके थे और अब आगे क्या करना है यह हमें समझ नहीं आ रहा था। तभी रेखा मेरी एक चूची मुंह में भर कर चूसने लगी और दूसरे हाथ से मेरी दूसरी चूची को मसलने लगी।
"आआआआआआह ओओओहहह पगली कहीं की।" मैं आहें भरने को बाध्य हो गई। मैं भी पागलों की तरह उसकी एक चूची को मसलने लगी और दूसरे हाथ से उसकी चूत रगड़ने लगी। कुछ देर ऐसा ही चलता रहा लेकिन हमें तसल्ली नहीं हो रही थी। उत्तेजना के अतिरेक में मैं पलट गई और उसकी जांघों के बीच सर घुसा कर उसकी चूत पर मुंह रख दी और सटासट चाटने लगी। यह सबकुछ अपने आप हो रहा था। एक स्त्री तन के साथ हम जो कुछ कर सकते थे वह करने का हर संभव प्रयास कर रहे थे। ऐसा क्या करें कि हमें एक दूसरे के शरीर से और ज्यादा खुशी मिले, उस अतिरिक्त खुशी की तलाश में अनजाने ही नया नया अन्वेषण करते जा रहे थे। मेरी इस क्रिया से रेखा भी पागल हो उठी और वह भी मेरा अनुसरण करती हुई मेरी चूत पर मुंह लगा कर चपाचप चाटने में जुट गई। अब हम 69 की पोजीशन में थे। मेरा सर उसकी जांघों के बीच और उसका सर मेरी जांघों के बीच था। हम पागलों की तरह एक दूसरे की चूत को सड़प सड़प चाट रहे थे और चूस चूस कर लाल कर रहे थे।
"बाप रे बाप, इस कमरे का वातावरण इतना गरम हो चुका है कि मुझे भी उस असह्य गर्मी का अहसास हो रहा है। तुम्हारी क्या हालत है रश्मि?" शीला के गले से फंसी फंसी सी आवाज निकली।
"यह भी बताने की जरूरत है? मैं भी इस तपन को महसूस कर रही हूं। तुम्हें नहीं लगता है कि हमें भी अपने कपड़ों से मुक्त हो जाना चाहिए?" रश्मि झट से बोली और शीला के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही फटाफट मादरजात नंगी हो गई। उसकी चिकनी काया को देख कर शीला भूखी बिल्ली की तरह उस पर झपट पड़ी। रश्मि इस अचानक हमले से खुद को संभाल नहीं पाई और धड़ाम से बिस्तर पर उलट गयी।
"साली हरामजादी, बिना कपड़े उतारे ही मुझ पर चढ़ी जा रही है मां की लौड़ी।" कहकर रश्मि, शीला के बदन से कपड़े नोचने लगी। पलक झपकते ही शीला भी नंगी पुंगी हो कर रश्मि के शरीर से गुंथ गयी। अब तो वहां का मंजर और भी उत्तेजक हो गया था। हमें अब कुछ भी होश नहीं था कि कौन किसके साथ क्या कर रहा था। सबको अपनी अपनी हवस की पड़ी थी। यहां जो भी हो रहा था यह समलैंगिक (लेस्बियन ) सेक्स था जिसका रसास्वादन मैं पहली बार अनजाने में कर रही थी। बाकी लोगों के बारे में मुझे पता नहीं। यह सब करते हुए मुझे बड़ा आनन्द का अनुभव हो रहा था लेकिन सोने पर सुहागा हो जाता यदि इस वक्त कोई मर्दाना लंड भी मिल जाता। यह बात मेरे जेहन में उठी ही थी कि फिर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। हम जिस स्थिति में थे उसी स्थिति में बुत बने रह गये। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें तभी,
"कौन?" खीझ भरी आवाज शीला की आई।
"मैं हूं, राधा।" बाहर से आवाज आई।
"बड़े मौके पर आई है साली गधी की बच्ची।" शीला बदहवासी के आलम में बोली और तुरंत कूद कर नंगी ही दरवाजा खोलने बढ़ गई। हम सब उसकी बेशर्मी देख कर भौंचक्की रह गये। दरवाजा खोल कर शीला झट से उसे अंदर खींच ली और दरवाजा बंद कर दी। राधा वहां का दृश्य देख कर सकते में आ गई। कभी वह शीला के नंगे बदन को देखती कभी हमारी बेशर्मी भरी स्थिति को देखती।
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"अब आंखें फाड़कर देखती रहेगी कि कुछ करेगी भी।" शीला डांटते हुए राधा से बोली।
"हे भगवान, दिनदहाड़े यहां यह सब?" वह स्तब्ध थी।
"अब भगवान को याद मत कर। यह सब करने के लिए पंडित से मुहूरत निकालना पड़ता है क्या?" शीला बोली।
"अगर मालकिन को पता चल गया तो गजब हो जाएगा।" वह बोली।
"साली मनहूस कहीं की, शुभ शुभ बोलो। जब भी मुंह खोलेगी अशुभ ही बोलेगी गधी कहीं की। मुझे क्या पता नहीं है कि मम्मी इस वक्त कमला आंटी के पास गयी हुई हैं और वहां उनका गप्पसड़ाका घंटे भर से पहले खत्म होने वाला नहीं है।" शीला बोली।
"ठीक है ठीक है। तो अब मेरे लिए क्या हुक्म है?" राधा बोली।
"इसके लिए भी तुम्हें हुक्म देने की जरूरत है क्या? यह भी तुम्हें बताना पड़ेगा? तुम देख नहीं रही हो यहां क्या चल रहा है। तुम्हें पता नहीं चल रहा है कि यहां की जरूरत क्या है, या यह भी बताऊं मूर्ख कहीं की? वही करो जिसके लिए मैं तुम्हें जानती हूं।" शीला बोली।
"समझ गयी।" कहकर वह मेरी शेल्फ से गत्ते का एक डिब्बा निकाल लाई और देखते ही देखते अपने कपड़े उतार कर उस डिब्बे को खोलने लगी। मैं उसके नंगे बदन को देख कर अचंभित रह गई। कितना गठा हुआ शरीर था उसका। उसकी मांसपेशियां मर्दों की तरह कसरती दिखाई दे रही थीं। उसकी छाती पर खड़े सख्त स्तनों को देख कर मैं रोमांचित हो उठी। उसकी चूत के ऊपर घने काले रोएं उगे हुए थे। डिब्बे से उसने जो चीज निकाला वह एक चमचमाता हुआ गहरे नारंगी रंग का कृत्रिम लिंग था। उसकी लंबाई सात इंच के करीब थी और मोटाई भी उसी के अनुपात में था। उसपर दो तरफ बेल्ट लगे हुए थे। देखते ही देखते उसने उसे बेल्ट की सहायता से कमर पर इस तरह बांध लिया कि वह टनटनाया हुआ कृत्रिम लंड ठीक उसी जगह सेट हो गया जहां मर्दों का लिंग हुआ करता है। उस लिंग के नीचे अंडकोष भी बना हुआ था। अब उसके तेवर मर्दों की तरह दिखाई दे रहे थे। चोदने को आतुर मर्दों की तरह।
"बाप रे बाप इतना लंबा और मोटा लंड!" रश्मि भयमिश्रित आश्चर्य से बोली।
"हां इसी तरह के जबरदस्त हथियार की तो जरूरत थी ना?" शीला मुस्कुरा कर बोली।
"इससे तो फट जायेगी हम लोगों की।" रेखा भी भयभीत दिखाई दे रही थी।
"हां हां, यह बहुत बड़ा है।" मैं उनके समर्थन में बोली जबकि मुझे अंदर ही अंदर हंसी आ रही थी उनपर। मैं तो घुसा के आठ इंच लंबे लंड से चुदने की अभ्यस्त थी, मुझे भला इस लंड से भय कैसा। उधर राधा की तीक्ष्ण नजरें कुछ पल इधर उधर घूमीं और मुझपर आकर ठहर गयीं। मुझे समझते देर नहीं लगी कि उसकी पहली शिकार मैं ही हूं।
"बहुत बढ़िया चुनाव है तुम्हारा राधा। शुरुआत इसी मस्त माल से कर। आज तुझे इतनी कमसिन कन्या को अपना जलवा दिखाने का मौका मिला है। चल शुरू हो जा।" शीला उसे उकसाती हुई बोली।
मैं उत्तेजना के चरम पर थी। चुदने के लिए मरी जा रही थी। यहां मुझे चोदने के लिए जो तैयार थी, वह एक लड़की थी। एक लड़की से चुदने की कल्पना से ही मैं रोमांचित हो रही थी। मैं जानती थी कि इस वक्त जैसे ही मेरी चुदाई शुरू होगी, कुछ ही मिनटों में मेरा काम तमाम होना तय था। राधा जब मेरी ओर बढ़ रही थी तो उसके चेहरे पर वही भाव था जो आम तौर पर घुसा के चेहरे पर हुआ करता था। एक बाज की तरह एक निरीह पक्षी पर झपटने को आतुर।
"चल री मेरी गुड़िया, तैयार हो जा।" राधा बोली और इससे पहले कि मेरी कोई प्रतिक्रिया होती, वह मेरी टांगें पकड़ कर अपनी ओर बड़ी निर्दयता से घसीट ली। मुझे अपनी ओर घसीटने में उसने जिस शक्ति का परिचय दिया उससे मैं अचंभित रह गई। मैं बड़ी आसानी से उसकी ओर घिसटती चली आई। कद काठी में मुझसे थोड़ी सी ही बीस होगी लेकिन उम्र में तो मैं उसकी तुलना में बच्ची ही थी। उसका शरीर गठा हुआ था और मैं उसकी तुलना में कमसिन सी थी। जब उसने मुझे अपनी ओर घसीटा तो मेरा आधा शरीर, कमर से ऊपर का हिस्सा भर पीठ के बल बिस्तर पर था। मेरी जांघों को राधा ने अपनी मजबूत हाथों पर उठा लिया था। मेरी टांगें हवा पर थीं, जिन्हें फैला कर राधा टांगों के बीच घुस गयी थी। उसने 'अपना लंड' मेरी फकफक करती चूत के प्रवेशद्वार पर रखा तो बाकी लड़कियां भी मेरे पास आ गयीं। उन्हें शायद भय था कि मैं इस कृत्रिम लंड की लंबाई और मोटाई को झेल नहीं पाऊंगी और दर्द से छटपटाने लगूंगी इसलिए मेरी सहायता का इरादा था शायद उनका। जबकि मेरे अंदर यही चाहत भरी उत्कंठा थी कि कब यह मनमोहक लिंग मेरी जलती हुई चूत में घुस कर मुझे शीतलता प्रदान करे। साली कमीनी की एक एक पल मुझे भारी पड़ रही थी। हां इतना तो तय था कि अपनी तरफ से थोड़ा ड्रामा तो अवश्य होगा।
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जब राधा 'अपने लंड' पर दबाव देने लगी तो मेरी चूत का मुंह खुलता चला गया और मैं चीखने लगी और छटपटाने लगी। "आआआआआआह मर गई मर गई, फट गई फट गई, ओओओहहह मेरी चूऊऊऊऊत......" उसी समय एक तरफ से शीला और दूसरी तरफ से रश्मि ने मुझे थाम लिया और मेरी चूचियों को सहलाने और दबाने लगीं। मैं ऐसा दिखा रही थी मानो ऐसा लंड मेरी चूत में पहली बार घुस रहा हो। रेखा मेरे कंधों को दबा कर मुझे तसल्ली देने लगी, "बस बस हो गया हो गया। अब देख तुझे मजा आएगा।" इधर मुझे भीतर ही भीतर हंसी आ रही थी। धीरे धीरे राधा ने पूरा लंड मेरी चूत में उतार दिया।
"आह ओह फट गई फट गई ओह मेरी चूत फट गई।" मैं फिर से दर्द का नाटक करती हुई चीखती रही। मेरी चीख चिल्लाहट को नजरंदाज करके धीरे धीरे राधा ने चोदना आरम्भ कर दिया। उस कृत्रिम लिंग के बाहरी सतह पर चारों तरफ उभरी हुई नसें बनी हुई थीं, जिनके घर्षण से मेरी चूत की संवेदनशील अंदरूनी दीवारों के द्वारा मेरे सारे शरीर और अंतरतम में सुखद और रोमांचक तरंगों का संचार हो रहा था। मुझे अनिर्वचनीय आनंद मिल रहा था क्योंकि मैं उत्तेजना के जिस मुकाम पर थी उस समय मुझे ऐसे ही अद्वितीय लिंग से चुदाई की जरूरत थी। मैं पीड़ा भरी आहें भर रही थी लेकिन मेरी शारीरिक भाषा मेरी आंतरिक स्थिति की चुगली करने लगी थीं। दरअसल मुझसे अब चाह कर भी और ड्रामा नहीं किया जा रहा था और मैं ऐसा दिखाने लगी जैसे अभी अभी ही मेरी चूत उसके लंड के हिसाब से फैल कर लंड को ग्रहण करने में सक्षम हो गई हो और अब मुझे कोई तकलीफ़ नहीं है। सच कहूं तो उत्तेजना के अतिरेक में मेरी कमर खुद ब खुद उछलने लगी थी। राधा के धक्कों का जवाब मैं चूतड़ उछाल उछाल कर देने लगी थी।
"साली नौटंकीबाज झूठ मूठ का नौटंकी कर रही थी। देखो तो कैसे गांड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही है बुरचोदी।" राधा बोली और अपने धक्कों की रफ्तार बढाती चली गई। गजब की ताकत का प्रदर्शन कर रही थी वह। कस कस कर धक्का लगा रही थी। उसका हर धक्का मुझे आह्लादित कर रहा था और मैं मदहोशी के आलम में सिसकारी निकालने को मजबूर हो गयी। सबको लगने लगा कि अब मैं भी उनकी तरह अच्छी लंडखोर बन गई हूं। लेकिन उन्होंने मेरी चूचियों से खेलना बंद नहीं किया। उन्हें मेरी चूचियों से खेलने में मजा आ रहा था और मुझे भी चुदते हुए अपने नाज़ुक अंगों पर इतने हाथों का स्पर्श बड़ा सुख प्रदान कर रहा था। उत्तेजना के अतिरेक में मैं बहुत जल्द चर्मोत्कर्ष में पहुंच गई और झड़ने लगी।
"ओओओओओ मांआंआंआंआंआं मैं गयीईईईईईई...." आहें भरते हुए मैं राधा से चिपक गई और उस सुखद स्खलन में डूबने उतराने लगी। राधा अब मुझे अपनी बाहों में भर कर चूमते हुए बोली,
"आआआआआआह लड़की, तुम्हें चोदना सचमुच बड़ा आनंददायक है। मैं बहुत खुश हुई।" मुझे संतुष्ट करके वह हट गई। मैं राधा की चुदाई की कायल हो गई। क्या जबरदस्त चुदाई हुई थी मेरी। मान गयी। बड़ी तबीयत से मेरी ठुकाई करके संतुष्टि की एक अलग ही परिभाषा लिख दी थी मेरे जेहन में। बड़ी जबरदस्त चुदक्कड़ थी। जिस रफ्तार और जिस शक्ति का प्रदर्शन उसने मुझे चोदने में किया था वह मेरे लिए अभूतपूर्व था। सचमुच शीला को नौकरानी के रूप में एक अद्भुत चुदक्कड़ मिली थी। साली हरामजादी बड़ी किस्मत वाली थी जो अपने तन की भूख मिटाने के लिए औरत के रूप में उसे इतनी बढ़िया साधन उपलब्ध हुई थी। उनके बीच इस अनैतिक संबंध पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था। अवश्य ही शीला और उसके बीच में यह सब पहले से चलता आ रहा होगा। सारी व्यवस्था पहले से शीला के पास थी तभी तो वह कृत्रिम लिंग इतनी सुगमतापूर्वक उपलब्ध हुआ और उसका इतनी कुशलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया।
अब राधा की नजर रेखा पर पड़ी। वह उसकी दूसरी शिकार थी।
"नहीं नहीं मैं नहीं।" जैसे ही रेखा की नजरें राधा से मिलीं, रेखा की घबराई आवाज आई। राधा ने जिस बेदर्दी से मेरी चुदाई की थी वह उसने अभी अभी खुद अपनी आंखों से देखा था। मेरी चीखों से जरूर वह और भी भयभीत हुई होगी। मैं तो झेल गई, क्या वह झेल पाएगी? यह भय उसे खाए जा रहा था होगा।
"तू क्यों नहीं? साली मेरी कुटाई हो रही थी तो बड़ा मजा आ रहा था ना? अब तू भी भुगत।" मैं रेखा को चिढ़ाती हुई बोली। रेखा चीखती चिल्लाती रही लेकिन उसके साथ भी वही हुआ जो मेरे साथ हुआ था। लेकिन उसे सचमुच में काफी तकलीफ़ हुई थी होगी, तभी तो वह जिबह होती हुई बकरी की तरह काफी देर तक दर्द से चीखती रही और कराहती रही। जहां मेरा छटपटाना दिखावा था वहीं उसका छटपटाना बिल्कुल बनावटी नहीं था। हां यह और बात है कि कुछ देर की चुदाई के बाद रेखा भी मस्ती भरी सीत्कार निकालने लगी। करीब दस मिनट बाद उसका भी काम तमाम हो गया। मेरी तरह वह भी राधा से चिपक कर स्खलित होने लगी और तत्पश्चात लंबी लंबी सांसें लेते हुए निढाल पड़ गयी। यही क्रम रश्मि के साथ, फिर शीला के साथ दुहराया गया। सबको संतुष्ट करके भी राधा की शारीरिक भाषा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वाह क्या दम था साली के अंदर। ऐसा लग रहा था कि अभी भी वह कई लड़कियों को चोद सकती थी।
"हम चारों का तो हो गया लेकिन अब तेरा क्या होगा?" शीला बोली।
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ab aage kya hone wala hai.................roj ki atmkatha main
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"मेरी बात छोड़िए।" वह झट से बोली।
"ऐसे कैसे छोड़ दें। सबका बाजा बजाई है। अब मैं बजाऊंगी इसकी।" मैं झट से बोली। इतनी देर में मैं काफी कुछ देख चुकी थी और सीख चुकी थी। वैसे भी मुझे अपनी शारीरिक क्षमता पर पूरा विश्वास था।
"कर लोगी?'" सभी आश्चर्यचकित हो कर मुझसे बोले। राधा भी अविश्वास से मुझे देख रही थी।
"अभी दिखाती हूं।" कहकर मैंने राधा की कमर से कृत्रिम लिंग उतार लिया और किसी अभ्यस्त चुदक्कड़ की तरह उसे अपनी कमर पर फिक्स किया। यह सब करते हुए मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था। जब मैं उस खास कृत्रिम लिंग को पहन रही थी तो उसकी बनावट में एक खासियत पर मैंने गौर किया कि लिंग के पीछे हल्का सा उभार बना हुआ था। वह उभार ठीक मेरी चूत के ऊपर जा कर टिक गया था। जैसे ही उस उभार का स्पर्श मेरी चूत में हुआ, मैं गनगना उठी। मैं इसे बनाने वाले की बुद्धि की दाद देने लगी। इसका दोहरा फायदा होने वाला था। एक तो यह अपने स्थान से इधर उधर खिसकेगी नहीं और दूसरा, इसके घर्षण का आनंद मुझे भी मिलने वाला था। अब मैं तैयार थी।
"पकड़ो साली को।" मैं ने हुक्म दिया। मेरी आवाज़ में जो आत्मविश्वास था उससे वे प्रभावित हो गयीं और मेरे हुक्म की तालीम करने आगे बढ़ीं। राधा के साथ जोर जबरदस्ती की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि आखिर वह भी एक युवती ही थी। कृत्रिम लिंग लगा कर वह मर्द तो नहीं बन गयी थी। हमें चोदते वक्त भी वह महिला ही थी। स्त्री सुलभ उत्तेजना का उदय उसके अंदर भी तो हुआ था। चुदास से तो वह भी मरी जा रही थी होगी। कद काठी में वह वह थोड़ी सी ही मुझसे बीस थी। बाकी तीनों सहेलियों से कम उम्र होने के बावजूद शारीरिक रूप से मैं ही उसकी बराबरी करने को सर्वथा उपयुक्त दिखाई दे रही थी। यहां इस वक्त अपनी सहेलियों की तुलना में मैं ही उसे चोद कर संतुष्ट करने में सक्षम दिखाई दे रही थी।
"मुझे फ्री छोड़ दो। मैं ऐसे ही चुदने के लिए मरी जा रही हूं और यह भी जानती हूं कि इस लड़की में दम है। आजा लड़की, चोद ले।" वह समर्पण की मुद्रा में बेड पर पसर गई।
"ऐसे कैसे छोड़ दें। पहले हम मिलकर तेरे शरीर से भी उसी तरह खेलेंगे जैसा हमारे साथ हुआ है। जरा हम भी तो फील करके देखें कि तुम्हारा सामान कैसा है। देखने में तो बड़ा जबरदस्त दिखाई दे रहा है।" रश्मि बोली।
"तुम सब बड़ी ज़ालिम हो। यहां मेरे बदन में आग लगी हुई है और आप लोगों को मस्ती सूझ रही है। अच्छा जो करना है जल्दी करो, मुझसे और रहा नहीं जा रहा है।" वह हथियार डालते हुए बोली। उसके बोलने की देर थी कि हम सब उस पर टूट पड़े। शीला उसकी दाईं चूची को पकड़ कर चूमने लगी तो रश्मि बाईं चूची को।
"बड़ी इतनी बड़ी बड़ी चूचियां हैं लेकिन बड़ी सख्त हैं।" रश्मि चूसती हुई बोली।
"मुझे पता है। मैं तो खूब चूसती हूं। बड़ा मज़ा आता है।" शीला बोली।
रेखा उसकी चूत पर धावा बोली। "साली झांट वाली चिकनी टाईट चूत चाटने का मजा ही कुछ और होगा," कहकर वह उसकी चूत चाटने लगी और मैं उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर चूमने लगी। राधा तो उत्तेजना के मारे पागलों की तरह कभी मेरी जीभ चूसती कभी अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसेड़ कर नचाती। कुछ ही देर में राधा इतनी उत्तेजित हो गई कि उसने पूरी ताकत से हम सबको ढकेल कर अलग कर दिया। उसकी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं।
"चोदना है तो जल्दी चोदो, ऐसे ही तड़पा तड़पा कर मार डालने का इरादा है क्या?" वह तड़प कर बोली।
"चोदती हूं बाबा चोदती हूं, लेकिन ऐसे नहीं।" मेरे दिमाग में शैतानी घूम रही थी।
"फिर कैसे?" वह असमंजस में बोली। उस वक्त मेरे दिमाग में घुसा से चुदने वाली मुद्रा का ध्यान आया।
"चौपाया बन जा। मैं पीछे से तुझ पर चढ़ुंगी।" मैं बोली। मैं इस मुद्रा में चुद कर जन्नत का मजा ले चुकी थी और अब मौका मिला था उसी मुद्रा में किसी लड़की को चोदने का तो इस मौके का फायदा उठा कर उस रोमांचक चुदाई को दुहराने का लोभ संवरन नहीं कर पा रही थी। हां, उस वक्त मैं नीचे थी और घुसा ऊपर, उस वक्त मैं चुद रही थी और इस वक्त चोदने वाली मैं थी। उस वक्त लगाम किसी और के के हाथ में था और इस वक्त लगाम मेरे हाथ में था। एक अजीब तरह के रोमांच से भर चुकी थी मैं। मैं आत्मविश्वास से भरी हुई थी। राधा मेरी आवाज़ की दृढ़ता से चमत्कृत रह गई। बाकी लड़कियां भी मेरे आत्मविश्वास को देख कर चकित थीं।
"क्या बोल रही हो लड़की?" वह बोली।
"वही बोल रही हूं जो तू सुन रही है और समझ रही है। मैं तुझे कुत्ते की तरह चोदने जा रही हूं।" मैं बोली।
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Naya Rup hai yah to Roj ka
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"हे भगवान! यह लड़की देखने में ही मासूम है। साली इस उम्र में ही खूब खेली खाई है।" रेखा मेरी बात सुनकर आश्चर्य से बोली।
"ठीक बोली। लगता है साला इसका नौकर बहुत कुछ सिखा दिया है।" शीला बोली।
"हां और तुम सब लोग तो दूध की धुली हुई हो ना।" मैं चिढ़ कर बोली।
"अब बकवास ही करती रहोगी कि कुछ करोगी भी?' राधा बेकरारी में बोली।
"करती हूं करती हूं। तू पहले कुतिया तो बन।"
"मैं चुदने के लिए तड़प रही हूं। जैसे करना है करो मगर जल्दी करो। लो मैं कुतिया बन गई।" कहकर वह हाथों और घुटनों के बल झुक कर चौपाया बन गई। अब मैं उसके ऊपर पीछे से झुक कर 'अपना लंड' उसकी लसलसी चूत पर रखने लगी। जब 'मेरा लंड' पोजीशन में आया, मैं उसकी कमर पकड़ कर दबाव देने लगी। बड़ा अजीब सा लग रहा था।
"आआआआआहहहहहह....." राधा की आह निकल गई। 'मेरा लंड ' धीरे धीरे सरकता हुआ उसकी चूत पर दाखिल होता चला गया। पूरा 'लंड' उसकी चूत में घुसा कर मुझे तसल्ली हुई कि चलो शुरुआत तो अच्छी तरह से कर दी अब दनादन ठोकना है। राधा भी शायद उसी का इंतजार कर रही थी।
"आआआआआआह बहुत बढ़िया ओओओहहह....चल अब शुरू हो जा।" वह बदहवासी के आलम में बोली।
"हां हां शुरू करती हूं। किसी की चूत में लंड घुसेड़ने का पहला मौका है ना, जरा उस आनंद को ठीक से अनुभव अनुभव तो कर लूं, ठोकाई तो होती ही रहेगी।" मैं किसी लड़की की चुदाई के इस पहले अहसास से रोमांचित होती हुई बोली। कुछ पल मैं उसी अवस्था में स्थिर रह कर उस रोमांचक पलों का रसास्वादन करती रही।
"साली जल्दी कर। मां आ जाएगी तो तेरा यह चूत लंड का खेल और आनंद सब खत्म हो जाएगा।" शीला बोली। उसकी बात सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई और मैं राधा को घपाघप ठोकने में जुट गई। शीला की बात सही भी थी। करीब एक घंटा तो हो ही चुका था। मैं ने पीछे से राधा की सख्त चूचियों को मसलते हुए दनादन ठुकाई चालू कर दी।
"आह ओह अरी मां, ओह ठोक री मेरी रानी ठोक। ओह बड़ी मस्त चुदक्कड़ है तू आह ओह....।" इसी प्रकार के उद्गार के साथ वह भी अपनी गांड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही थी। मुझे उसकी चूचियों को मसलते हुए चोदना बड़ा अच्छा लग रहा था। उसकी सिसकारियां और उद्गार मेरा जोश दुगुना करने में सहायक हो रहे थे। मैंने भी अपनी पूरी शक्ति झोंक दी और तूफानी रफ्तार से चोदने में भिड़ गई। मात्र पांच मिनट में ही राधा का शरीर थरथरा उठा और वह
"आआआआआआह ओओओहहह गयी रेएएएएए गयी मैं.....गयीईईईईई" कहती हुई झड़ने लगी। मैंने एक जोरदार धक्का लगाया और उसके शरीर से चिपक गई। दरअसल हुआ यह कि उसे चोदने के क्रम में कृत्रिम लिंग के पीछे में जो उभार था उसका घर्षण मेरी चूत में होता रहा और उस घर्षण से जो मजा मुझे मिल रहा था, उसके कारण मैं, बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी। यही कारण था कि जब राधा खल्लास हो रही थी तो मैं भी खुद पर से नियंत्रण खो बैठी और मैं भी स्खलन सुख में डूब गयी। राधा मुंह के बल बिस्तर पर गिर पड़ी और मैं उसी के ऊपर लद गयी। हम दोनों कुत्तों की तरह हांफ रहे थे तभी,
"अरे कहां मर गये सबके सब?'" यह शीला की मां की आवाज थी। हड़बड़ा कर हम सभी अपने अपने कपड़ों की ओर झपटे।
"हां मम्मी, हम सब मेरे कमरे में हैं।" फटाफट अपने कपड़े पहनते हुए शीला बोली। कपड़े पहनने की आपाधापी में उल्टा सीधा जो बन पड़ा, आनन-फानन हमने किसी तरह कपड़े पहन कर अपने आप को दुरुस्त किया।
"यह राधा भी न जाने कहां मर गई है?" मां की दुबारा आवाज आई।
"यह भी हमारे साथ है।" कहकर शीला ने दरवाजा खोला और राधा दौड़ती हुई बाहर निकल गयी। उसके पीछे पीछे हम सब भी बाहर निकल आए।
"देख रही हूं, यह राधा भी तुम्हारी संगति में बिगड़ती जा रही है। मैं घर में नहीं हूं तो इसका मतलब है तू भी काम धाम छोड़ कर शीला के साथ मस्ती करने लगी, गधी कहीं की।" शीला की मां बिगड़ती हुई बोली। शीला की मां की डांट में वह गंभीरता नहीं थी, बस यह एक औपचारिकता मात्र थी। हमें तसल्ली हुई। बाल बाल बचे। अच्छा हुआ सबकुछ निबटने के बाद उसका आगमन हुआ था।
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wah roj ko bhi maza aaya aaj to..................
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"अरे मम्मी बिगड़ती काहे हो। यह तो चाय के बर्तन लेने कमरे में आई थी।" शीला, राधा की तरफ से सफाई देने लगी थी।
"बस बस, अब इसकी तरफदारी मत कर। सब समझती हूं तुम लोगों को।" कहकर शीला की मां लाड़ से डांटती हुई अपने कमरे की ओर बढ़ गयी। हम सबके चेहरों की घबराहट पल भर में छूमंतर हो गई थी और हम सभी के होंठों पर वही चिरपरिचित अंदाज में मुस्कान तैर रही थीं।
"हम सब यहां इसके मोबाईल में फोटो और वीडियो देखने आई थीं और यहां तो बकायदा लाईव शूटिंग हो रही थी।" रेखा बोली।
"हम जैसी चंडाल चौकड़ी जहां रहेंगी वहां यही तो होगा। वैसे इसकी मोबाईल के फोटो और वीडियोज कब देखेंगी हम?" रश्मि बोली।
"मैं वह तुम सबको भेज दूंगी।" मैं बोली।
"हां यह ठीक रहेगा।" सबने सहमति जताई।
"जो भी बोलो, लेकिन बड़ा मज़ा आया।" शीला बोली।
"सच बोली। शीला की मेहरबानी से नयी चीज का पहली बार अनुभव हुआ। क्या जुगाड़ रखी है घर में, मजा ही आ गया।" रेखा बोली।
"इसको पार्टनर भी तो वैसी ही मिली है। बढ़िया जोड़ी है तुम लोगों की।" रश्मि बोली।
"इस राधा में तो मर्दों को भी फेल करने का माद्दा है।" राधा की प्रशंसा करती हुई रेखा बोली। मैं चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी।
"क्या रे छुटकी, तू काहे चुप है। तू भी कहां कम है।" अब राधा बोली।
"मैं सोच रही हूं कि मेरी ब्रा कौन पहनी है।" मैं बोली।
"शायद मैंने। तभी तो मैं सोच रही हूं कि मुझे इतनी ढीली क्यों हो रही है।" रेखा बोल उठी।
"तेरे चक्कर में मैं बिना ब्रा के टी शर्ट पहनी हूं।" मैं गुस्से से बोली।
"इतनी बड़ी बड़ी चूचियों वाली की ब्रा तुम जैसी लौंडिया पर ढीली नहीं होगी तो और क्या होगी। पक्का इसकी लार्ज साईज है। बहुत जल्दी एक्स एल भी पहनेगी साली।" शीला बोली।
"ठीक बोली। इसी उम्र में यह बहुत सेक्सी फिगर की मालकिन हो गई है। साली दम खम भी रखती है। लगता है यह अपने नौकर का बहुत बढ़िया इस्तेमाल कर रही है। इसके नौकर की तो निकल पड़ी है।" रेखा मेरी खिंचाई करती हुई बोली।
"चुप साली हरामजादी। जो हुआ बस कल ही तो हुआ।" मैं शर्म से लाल होती हुई फिर झूठ बोली।
"हाय हाय, जरा इसकी सूरत तो देखो। कैसे लाल हुई जा रही है।" शीला बोली।
"जो भी बोलो, लेकिन इस लड़की में बहुत जान है।" राधा बोली और वहां से जाने के लिए मुड़ी ही थी कि तभी शीला की मां वहां आ गयी। उसने राधा की बातें सुन ली थीं।
"जान नहीं होगी? जरा देखो इस लड़की को और सीखो कि अपने बदन को कैसे मेनटेन किया जाता है, काहिल कहीं की। इस शीला को देखो तो, कैसी ढीली ढाली बदन है इसकी। थोड़ा वर्कआउट किया करो बोलती हूं तो इसकी नानी मरती है। राधा भी इसी के रंग में रंग कर इसे बर्बाद ही किए जा रही है।" शीला की मां ने राधा की बातें सुनकर कहा। वह अभी अभी अपने कमरे से बाहर निकली थी। अच्छा हुआ कि उन्होंने हमारी पूरी बातें नहीं सुनी थी, वरना हमलोगों के प्रति उसकी धारणा ही बदल जाती।
"मम्मी तुम फिर शुरू हो गई? तुम्हें पता भी है कि रोजा का नौकर कितनी अच्छी तरह से इससे योगा और कसरत करवाता है?" शीला बोल तो अपनी मां से रही थी लेकिन उसकी बातों में मेरे लिए जो ताना था वह हम सभी सहेलियां समझ रही थीं।
"तो राधा किस मर्ज की दवा है। तू भी इसकी सहायता लिया कर। लेकिन तुझसे यह तो होगा नहीं। आराम करने और मस्ती मारने से फुर्सत मिले तब ना?" शीला की मां उसे उलाहना देती हुई बोली।
"आपसे तो बहस करना ही बेकार है।" शीला बात खत्म करते हुए बोली।
"हां हां, बेकार की बहस ही तो कर रही हूं। कुछ फायदा तो होगा नहीं।" उसकी मां झल्ला कर बोली। "अरे मैं भी क्या पचड़ा लेकर बैठ गई। तुमलोग खाना खाकर जाओगी ना?" उसकी मां ने फिर हमारी ओर मुखातिब हो कर कहा।
"नहीं नहीं आंटी, हमलोग अभी निकलने ही वाले थे। हमलोग अब चलती हैं।" मैं बोली।
"ठीक है मैं भी तुम लोगों को रोकूंगी नहीं। इसी तरह बीच बीच में आती रहना तुमलोग। तुमलोगों से मिल कर अच्छा लगा। इस गधी को भी तुम लोगों की तरह थोड़ी अक्ल आ जाए तो मुझे बड़ा अच्छा लगेगा।" उसकी मां बोली।
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very nice story
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Nice..............
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"जी आंटी।" कहकर हमने नमस्ते की मुद्रा में उसकी मां की ओर हाथ जोड़ दिए। उसकी मां को क्या पता था कि अक्ल के मामले शीला ही हम लोगों की गुरु थी। मैं मन ही मन हंसने लगी।
"ओके बाय।" शीला बोली और हमलोग शीला को बाय कहकर वहां से निकल गयीं। उस समय शाम का छः बज रहा था। हमलोगों ने पहले ही अपने अपने घरों में खबर कर दिया था कि आज थोड़ी देर हो जाएगी। जैसे ही शीला के घर से हम बाहर निकले, सामने हमारी कार खड़ी मिली।
"चलो हमारी कार में ही। तुम दोनों को ड्रॉप करते हुए हम चलेंगे।" मैंने रेखा और रश्मि से कहा। रेखा और रश्मि के घर हमारे घर के रास्ते में ही थे। हम तीनों हमारी कार में ही निकल पड़े। घनश्याम ने क्या क्या नहीं सोच रखा था होगा।सोचा था होगा कि मैं अकेली ही होऊंगी और उस अकेले पन का कुछ न कुछ लाभ तो आज जरूर उठाने का मौका मिलेगा लेकिन हम तीन लोगों को एक साथ देख कर उसकी आशाओं पर तुषारापात हो गया होगा। मायूसी उसके चेहरे पर साफ दिखाई पड़ रही थी। मैं तिरछी नजरों से घनश्याम की ओर देखती हुई सामने की सीट पर बैठी और रेखा और रश्मि पीछे की ओर बैठ गयीं। उसी तरह बैठी जैसे मैं कल बैठी थी। मेरी चमकती हुई चिकनी जांघें खुली हुई थीं। बेचारा घनश्याम हवस भरी नज़रों से एक नजर मेरी जांघों को देखा और मन मसोस कर कार स्टार्ट कर दिया। रास्ते में यदा कदा घनश्याम की नजरें रीयर व्यू दर्पण पर भी पड़ रही थीं जिसमें वह रश्मि और रेखा को भी देखे जा रहा था। रश्मि और रेखा ने भी घाट घाट का पानी पिया हुआ था। मर्दों की ऐसी दृष्टि का अर्थ समझना कौन सी बड़ी बात थी। पहले रश्मि का घर पहुंचा।कार से उतरते वक्त रश्मि अर्थपूर्ण दृष्टि से मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। फिर रेखा का घर पहुंचा। रेखा ने इशारे से मुझे कार से उतरने को कहा तो कार से उतर कर जैसे ही उसके पास पहुंची, उसने मेरे कान में जो कुछ कहा उसे सुनकर मैं लाल हो गयी। "जरा संभलकर रहना, तुम्हारा ड्राईवर भी एक नंबर का लौंडियाबाज प्रतीत होता है।" वह बोली थी।
"हट साली, जैसी तू, वैसी ही सोच और वैसी ही दृष्टि है तुम्हारी।" मैं झिड़क कर बोली। हालांकि सच्चाई तो यही थी।
"मानो न मानो, मर्जी तुम्हारी।" कहकर बाय करते हुए वह भी रुखसत हुई।
"हां तो चाचाजी बात क्या है, ऐसे गुमसुम क्यों हैं?" जैसे ही कार स्टार्ट हुई, मैं जानबूझकर छेड़ती हुई बोली।
"कुछ नहीं, कुछ भी तो नहीं।" वह बोला।
"कुछ तो है। बोलिए ना।" मैं उनकी जांघ पर हाथ रख कर बोली।
"पहले अपना हाथ हटाओ यहां से।"
"कहां से?"
"मेरी जांघ से, और कहां से।"
"और कहां से? पता नहीं है और कहां से? वहां भी हाथ लगा दूंगी।"
"तुम बहुत गड़बड़ कर रही हो।"
"गड़बड़ तो हो चुका है। न मेरे साथ कॉलेज में वह सब होता और न कल आप हमें उस हालत में देखते और न बात यहां तक बढ़ती।"
"तो जो बात कल जहां तक बढ़ी है उसको तुम और आगे तक बढ़ाना चाहती हो?"
"मेरी बात का तो आपको पता ही है, आप बोलिए कहां तक और कब तक आगे बढ़ना चाहते हैं?" मैं उसके जांघ पर हाथ फेरती हुई बोली।
"ज्यादा बनने की कोशिश मत करो, और अपना हाथ दूर रखो नहीं तो ठीक नहीं होगा।"
"क्या ठीक नहीं होगा जरा मैं भी तो सुनूं।"
"मेरा पप्पू जाग जाएगा।"
"जागा तो कल भी था। आज जाग जाएगा तो जागने दो, जाग जाएगा तो क्या हो जाएगा?"
"जाग जाने पर संभलता नहीं है।"
"कल तो संभल गया था। वैसे भी पप्पू तो आपका है, आप संभाल नहीं सकते हैं?"
"पप्पू मेरा है लेकिन जाग जाने के बाद यह आऊट आॉफ कंट्रोल हो जाता है, कल की बात कुछ और थी। समय और मौका रहता तो तुमको पता चल जाता कि यह कितना उधम मचाता है। मुझसे भी नहीं संभलता है।"
"ओह ऐसी बात है? मैं भी कहां संभालने को बोल रही हूं" मैं अब उसकी जांघों के ऊपर हाथ ले जा रही थी।
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"मैं फिर से चेतावनी दे रहा हूं। पप्पू के पास हाथ मत ला।"
"पप्पू के पास हाथ न लाऊं? मैं तो कल पकड़ कर देख चुकी हूं, क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं।"
"तुमने सिर्फ इसका रूप देखा है, इसका पागलपन नहीं देखी हो।"
"आज नहीं तो कल वह भी देख लूंगी। अरे, बातों बातों में घर पहुंच गये।अब इसका पागलपन आज भी देखने का मौका हाथ से निकल गया। अच्छा कोई बात नहीं, कल आपके पप्पू का पागलपन जरूर देखना चाहूंगी और यह भी देखना चाहूंगी कि यह कितना धमाल मचाता है।" मैं शरारत से बोली और पोर्टिको में कार रुकते ही दरवाजा खोल कर बाहर निकल आई। एक बांकी चितवन घनश्याम पर बिखेरती, इठलाती बलखाती घर के दरवाजे की ओर बढ़ ही रही थी कि पीछे से घनश्याम की आवाज आई,
"ठीक है कल दिखाऊंगा मेरे पप्पू का पागलपन।" उसकी आवाज में एक बेकरारी थी। बेचारा मुझे चोदने को मरा जा रहा था। बिना चोदे करार थोड़ी न आने वाला था उसे। मैं अबतक इतना तो जान ही गई थी कि
"जितनी ज्यादा बेकरारी होगी,
चुदाई उतनी ही करारी होगी।"


अब आगे की कहानी अगली कड़ी में पढ़िए। तब-तक के लिए अपनी कामुक रोजा को आज्ञा दीजिए।
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Intazaar main kamuk Roj ki............
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गरम रोजा (भाग 8)

शीला के घर से वापस आते आते रात का सात बज रहा था। शीला के घर में धमाल मचाने के बाद मैंने रश्मि और रेखा को अपनी कार में लिफ्ट दिया और उन्हें रास्ते में पड़ने वाले उनके घरों पर ड्रॉप करते हुए घर पहुंची थी। शीला के घर में हम सहेलियों ने जो कुछ किया वह एक अविस्मरणीय घटना के रूप में दिमाग में अंकित हो चुका था। समलैंगिक सेक्स का यह मेरा पहला अनुभव था जिसका मैंने भरपूर लुत्फ उठाया था। मैंने गौर किया था कि घर लौटने के दौरान घनश्याम न सिर्फ मुझपर, बल्कि रश्मि और रेखा पर भी अपनी आंखें सेंक रहा था। रश्मि और रेखा को भी इस बात का अच्छी तरह से पता था, तभी तो रेखा मुझसे विदा लेती हुई घनश्याम के प्रति विचार को मेरे सामने व्यक्त किया था। पहले घनश्याम ऐसा नहीं था लेकिन मैं जानती थी कि मेरी हरकतों की वजह से उसके मन की सुषुप्त कामनाएं फिर से अंगड़ाइयां लेने लगी थीं। अब उसकी नजरें बदल चुकी थीं। पूरे रास्ते मैं अपनी स्कर्ट को ऊपर खिसका कर अपनी जांघों का प्रदर्शन करके घनश्याम को ललचाने की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। ऊपर से मैंने अपने हाथों से उसकी जांघ सहला कर मानो आग में घी डाल दिया था। घनश्याम तो पहले ही मेरी मनःस्थिति से परिचित था, मेरी इस हरकत से उसकी उत्तेजना कहां तक पहुंची, उसकी मैं कल्पना ही कर सकती थी। घनश्याम पूरे रास्ते किस अवस्था में कार चला रहा था इसकी कल्पना ही की जा सकती थी।
घर में प्रविष्ट होते ही, मेरी मां से सामना हो गया। बगल में घुसा भी खड़ा था। मां चिंतित स्वर में पूछी,
"क्या बात है? इतनी देर क्यों हुई? तुम्हें मालूम है ना कि कल की घटना के बाद मुझे तुम्हारी कितनी चिंता होने लगी है?"
"कल की घटना के बाद तुम्हें अपनी बेटी पर विश्वास तो हो ही जाना चाहिए कि मैं आत्मरक्षा करने में पूरी तरह सक्षम हूं।" मैं बोली।
"और यहां घर में जो हुआ सो?"
"वह एक परिस्थितिजन्य आकस्मिक और एकमात्र दुर्घटना के रूप में सोच कर भूल नहीं सकती हो तुम?" मैं कल घर में रंग हाथ पकड़े जाने की घटना पर अपनी स्वीकारोक्ति के साथ एक क्षम्य घटना का रूप देती हुई बोली।
"ठीक है चलो भूल गयी लेकिन मुझे अब भी रह रह कर इस घुसा पर गुस्सा आता है उसका क्या करूं?"
"इसकी भी एकमात्र गलती समझ कर भूल जाना भी हमारे लिए उचित होगा। मैंने गलती मान ली, इसने मान ली, अब उस बात को इतना तूल देकर क्या लाभ होगा। ठंढे दिमाग से सोच लो और बात खत्म करो ना, और नहीं तो निकाल बाहर कर दो हम दोनों को, सारा किस्सा ही खत्म।" मैं जानती थी कि वह ऐसा किसी भी हालत में नहीं कर सकती थी इसलिए ऐसा बोली। उसे घुसा का मजा मिल गया था, जिसे वह किसी भी हालत में खो नहीं सकती थी और मैं तो खैर उसकी बेटी ठहरी, जिसके साथ ऐसा करने की सोच भी नहीं सकती थी।
"ओके ओके। चलो बात खत्म। आज यह बात फाइनली यहीं दफन करते हैं। लेकिन तुमने बताया नहीं कि आज इतनी देर क्यों हुई?" मां फिर बोली।
"अरे बाबा मैं बताई थी तो, कि मैं शीला के घर होती हुई आऊंगी। भूल गयी क्या?" मैं बोली।
"ओह। कल की घटना के बाद मेरा दिमाग भी ठीक से काम नहीं कर रहा है।" मां अपना माथा ठोकती हुई बोली।
"कल की घटना भूतकाल हो चुका है मम्मी। वर्तमान में आ जाओ।" कहकर मैं अपने कमरे में चली गई। जाते जाते मैंने एक नजर घुसा को देखा तो वह मुझे आभार व्यक्त करने वाली दृष्टि से मुझे देख रहा था। उसे मेरा आभारी होना ही चाहिए था क्योंकि मैंने अपनी चमड़ी बचाते बचाते घुसा की चमड़ी भी बचाई थी। मुझे अफसोस तो बस इस बात का हो रहा था कि मेरे अहसान के बोझ तले दबे हुए घुसा में शायद अब वह पहले जैसी निर्भीकता नहीं रहेगी। खैर मुझे क्या। मैं तो उसका बिंदास इस्तेमाल कर ही सकती थी। घुसा के अलावा अब मेरे पास घनश्याम चाचा और कॉलेज का गेटकीपर जैसे विकल्प भी मौजूद थे। वैसे घुसा को भी क्या फर्क पड़ता था, मेरी मां तो उसे छोड़ने वाली थी नहीं, आखिर उसका स्वाद जो चख चुकी थी। यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे में दाखिल हुई और शीला के घर में आज जो कुछ हुआ, उसके बारे में सोच सोच कर रोमांचित हुई जा रही थी। क्या सोच कर गयी थी और क्या हो गया। लेकिन जो भी हुआ बहुत बढ़िया हुआ। एक नया रोमांचक अनुभव तो हुआ। कुल मिलाकर मजा आ गया।
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ab aage kya............
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मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गयी तो नहाते वक्त मेरा हाथ अपनी चूत पर पड़ी तो सनसना उठी। आज इस चूत में पहली बार एक कृत्रिम लिंग का प्रवेश हुआ था। कृत्रिम लिंग के साथ राधा की चुदाई भला भूलने वाली चीज है? क्या गजब की चुदाई हुई थी मेरी। साली मर्दों को भी फेल करने की क्षमता रखने वाली राधा तो एक नंबर की चुदक्कड़ निकली। इसके साथ ही साथ किसी लड़की को कृत्रिम लिंग से चोदने का वह पहला अनुभव भी कम रोमांचक नहीं था। साली राधा भी मेरी चुदाई का लोहा मान गई होगी। पहली बार किसी लड़की से चुदने और किसी लड़की को चोदने का यह दिन मेरे लिए अविस्मरणीय दिन बन कर रह गया।
नहा धोकर फ्रेश होकर कपड़े बदलते वक्त मेरे जेहन में घनश्याम और कॉलेज के गेटकीपर रघु का ख्याल आया। दोनों ही मुझे चोदने को लालायित थे। केवल एक उपयुक्त अवसर की जरूरत थी और दोनों के दोनों मेरे शरीर से एकाकार होने में पल भर भी देर करना गंवारा नहीं करते। लेकिन इन दोनों में से पहले कौन बाजी मारने वाला था यह तो आने वाला समय तय करने वाला था। इनमेें बाजी मारने की ज्यादा संभावना घनश्याम की थी। अब आगे क्या होने वाला था यह मुझे बहुत जल्द, कल ही पता चल जाने वाला था।
इतनी कम उम्र में और काफी कम समय में ही मुझे अपने तन के यौनांगों के छेड़छाड़ का जो उत्तेजक और आनंददायक अनुभव मिल गया था उससे मैं अचंभित थी और बहुत खुश भी थी। मेरी सोच में भी काफी परिवर्तन आ गया था। मैं सोच रही थी कि यदि मेरी जिंदगी में यह सब चल रहा है तो निश्चित ही समाज में इस प्रकार का सेक्स संबंध औरों के जीवन में भी चल रहा होगा, जिसका हमें पता नहीं है, इसका साक्षात प्रमाण मेरी सहेलियां थीं। ढंके छिपे ढंग से कितने स्त्री पुरुष विवाहेतर सेक्स संबंध में लिप्त होंगे, जिसका हमें अंदाजा भी नहीं होगा। मेरी मां की तरह कितनी स्त्रियां पराए मर्दों की बांहों में अपनी अतृप्त कामनाओं की तृप्ति ढूंढ़ रही होंगी। कितने अतृप्त पुरुष पराई स्त्रियों के जिस्म में अपनी जिंदगी की खुशी ढूंढ़ रहे होंगे। तभी मुझे ख्याल आया कि मेरे पिता भी, जो इतने लंबे लंबे समय के लिए घर से बाहर रहते हैं, क्या वे अपवाद होंगे? कत्तई नहीं। मैं ने निष्कर्ष यही निकाला कि ढंके छिपे ढंग से ही सही, यह सब सभी जगह चल रहा है। यह सब सोच सोच कर मेरे मन के किसी कोने पर एक अपराधबोध था, वह छूमंतर हो गया। अब मैं खुद को काफी हल्की फुल्की महसूस करने लगी थी।अब मैं बिना किसी अपराधबोध के स्वच्छंदता पूर्वक अपने मनपसंद व्यक्ति के साथ सेक्स संबंध बना कर अपनी काम क्षुधा शांत कर सकती हूं। यह सोच मुझे कितना सुकून दे रहा था मैं बता नहीं सकती।
रात को भोजन के वक्त जब मैं डाइनिंग टेबल पर आई, तबतक मैं काफी बदल चुकी थी। मैं सीधे बिना किसी अपराधबोध के मां की आंखों में आंखें डाल कर बात कर रही थी और उसी तरह घुसा की आंखों में भी बिना शर्म के आंखें डाल कर बात कर रही थी। एकदम बिंदास। शाम को मैंने जो बातें मां से कही थीं, उस पर शायद मेरी मां ने ठंढे दिमाग से सोचा था होगा, इसलिए वह भी बिल्कुल सामान्य ढंग से बातें कर रही थी, हालांकि मैं यह अच्छी तरह से जानती थी कि अपनी आंखों से उन्होंने जो गंदा दृष्य देखा था, उसे भूल पाना इतना आसान नहीं था। उसे भूलने में समय तो लगना ही था, या शायद ज़िन्दगी भर न भूल पाए, लेकिन समय के साथ उसके चलते हमारे संबंधों की खटास में कमी और धीरे-धीरे खटास पूरी तरह समाप्त हो जाएगी, इसका मुझे पूर्ण विश्वास था। इसी विश्वास के साथ खाना ख़त्म करके उधर उधर की बातें करने के बाद मैं अपने कमरे में आई। मां भी अपने कमरे में चली गई।
कुछ ही देर बाद मेरे कमरे का दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं जैसे ही दरवाजा खोली तो सामने घुसा को खड़ा पाई। "क्या है?" मैं बोली।
"बस ऐसे ही चला आया, काहे कि आज तुमसे कुछ 'खास बात' हुई नहीं ना।" वह बोलने में संकोच कर रहा था।
"शीईईईई, चुप बेवकूफ, मां सो गयी क्या?" मैं फुसफुसा कर बोली।
"हां छोटी मालकिन" वह भी धीरे से बोला।
"पहले दरवाजा बंद कर मूर्ख आदमी।" मैं बोली।
वह दरवाजा बंद करके मेरी ओर मुखातिब हुआ।
"मां सो गयी क्या?" मैं बोली। मैं जानती थी वह क्या बोलना चाह रहा था।
"हां, बड़ी मालकिन सो गयी है, इसी लिए तो आया।" वह अपने पीछे दरवाजा बंद करके बोला।
"ओके, अब साफ साफ बोलो क्या बात है?" मैं बोली।
"तुमने मुझे बचा लिया उसका धन्यवाद देना था।"
"ऐसे ही धन्यवाद दिया जाता है?" मैं अपने बिस्तर पर बैठते हुए मुस्कुरा कर बोली।
"जानते हैं, लेकिन....."
"ओह, अब झिझकने भी लगे हो?" मैं उसकी खिंचाई करते हुए बोली।
"नहीं ऐसी बात नहीं है। अभी शायद हमको बड़ी मालकिन का बुलावा आ जाएगा। इसलिए सिर्फ मुंह से ही धन्यवाद दे रहे हैं।"
"नहीं तो?" मैं शरारती मुस्कान के साथ बोली। वैसे भी अभी मुझे आराम की जरूरत थी और साथ सेक्स करने की थोड़ी इच्छा थी भी तो मैंने मन को समझा लिया था। मुझे मालूम था कि कल सारी कसर पूरी हो जाएगी।
"नहीं तो इससे धन्यवाद दे देता।" वह थोड़ा झिझका और पैजामे के ऊपर से ही अपने लंड की ओर इशारा करते हुए बोला।
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dekhe kal kya hota hai aage
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"बहुत बढ़िया। वैसे धन्यवाद बोलने की जरूरत नहीं है। धन्यवाद तो मुझे तुम्हारा करना चाहिए।"
"किस लिए?"
"तुमने मुझे जिंदगी का मजा लेने के लिए बहुत बढ़िया रास्ता जो दिखा दिया है।"
"ओह, यह आज नहीं तो कल तो होना ही था।" वह अब मुस्कान के साथ बोला।
"होना ही था यह तो सच है। जहां तुम्हारे जैसा आदमी हो, वहां यह नहीं होगा, यह कैसे संभव है। सच बोल रही हूं ना?" मैं बोली।
"वह तो वह तो एक दुर्घटना थी।" वह हकलाते हुए बोला।
"चुप हरामी। दुर्घटना थी। वह तुम्हारे जैसे आदमी के लिए उस परिस्थिति से उत्पन्न, तुम्हारे दिमाग में जो कुत्सित भावना थी उसको अमल में लाने का स्वर्णिम अवसर था, जिसका तुमने बहुत चालाकी और बढ़िया तरीके से लाभ उठाया था। दुर्घटना बोलकर तुम मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते हो। सब समझती हूं मैं। दुबारा दुर्घटना मत बोलना मेरे सामने कमीने।" मैं डांटती हुई बोली।
"ठीक है चलो मान लिया। लेकिन उसके बाद जो होता रहा उसका क्या?" वह भी कम ढीठ नहीं था। पूरी तरह अपनी ग़लती नहीं मान रहा था।
"दुर्घटना की आड़ में तुमने जो कुछ किया उसके जिम्मेदार तो तुम हो ही। मैं सिर्फ यह कहना चाहती हूं कि जो कुछ भी हुआ, उससे मुझे मजा लेने का जो नया रास्ता मिला, उसके लिए मैं तुम्हें धन्यवाद कहना चाहती हूं, और कोई बात नहीं है। उस दिन के बाद जो कुछ होता आया है वह उसी दिन का फल है। मुझे चुदाई के मजे से परिचित कराया और उस समय से मुझे जो चस्का लगा है, उसी के कारण अब मैं तुमसे चुदवा रही हूं। कुछ समझे मेरे प्यारे बुड्ढे चुदक्कड़ जी। अब जाओ और बड़ी मालकिन की 'सेवा' करो और जहां तक तेरे धन्यवाद की बात है तो वह मैं तुझसे बाद में सूद समेत ले लूंगी।" मैं उठ कर उससे लिपट कर चूमते हुए बोली। उससे लिपटने के क्रम में मैं उसके लंड को सहला रही थी।
"हे भगवान, यह क्या है? बिना अंडरवियर के ही हो साले। इतना बड़े लंड के साथ बिना अंडरवियर के आने में शरम नहीं आती है तुम्हें? पूरा खंभा बना हुआ है गधे कहीं के। बहुत बड़े हरामी हो जी। साला पता नहीं कहां से ऐसा गधा सरीखा लंड पाया है। अभी मौका मिलता तो अभिए मुझे चोद लेते, है कि नहीं और मुझे चोद कर ऐसे ही मेरी मां को चोदने चले जाते। साला बेटी को चोद कर मां की चुदाई करता कुत्ता कहीं का। चल चल फूटो जल्दी यहां से, नहीं तो अपनी चूत की खुजली से परेशान मां कहीं तुम्हें खोजती हुई इधर आ गई तो सचमुच तुम तो गये काम से।" मैं बोली। मेरी बात सुन कर घुसा मुस्कुरा उठा।
"अभी जब अंडरवियर उतारना ही है तो फिर पहनने की जरूरत ही क्या है छोटी मैडम। वैसे बोलो तो एक छोटी चुदाई फटाफट वाली कर सकते हैं।" वह थोड़ी शरारत भरे लहजे में बोला।
"भगवान किसी को तेरे जैसा हरामी किसी को न बनाए। (वैसे मन ही मन तो सोच रही थी कि भगवान ऐसा हरामी कुछ चुनिंदा लोगों की ही नसीब में लिखता है) तुझे पता है ना कि कल कैसे मेरी गांड़ छील कर रख दिया? अभी तक गांड़ जल रही है मां के लौड़े। पूरा गांड़ फुला कर रख दिया मादरचोद। अब फूटो यहां से। कल देखती हूं तुमको।" मैं डांटते हुए बोली।
"थैंक्यू" जाते जाते दांत निपोरते हुए थैंक्यू बोलना नहीं भूला कुत्ता कहीं का। उसके निकलते ही जैसे ही मैं दरवाजा बंद कर रही थी, मुझे मां की आवाज सुनाई पड़ी जो शायद अभी अभी ही अपने कमरे से निकली थी और ड्राइंग रूम की तरफ जा रही थी,
"घुसा, कहां हो।"
"जी मैडम जी, हम किचन में हैं।" बहुत जल्दी वह किचन में भी पहुंच गया था। अगर मैं उसे नहीं भगाती तो यह कमीना आज गया था काम से।
"क्या कर रहे हो किचन में अभी तक?"
"जी बर्तन साफ करके रख रहा हूं।"
"ठीक है, किचन का काम खत्म करके मेरे कमरे में पानी पहुंचा देना।" मेरी मां की आवाज सुनाई दी और उसके कदमों की चाप से मैं समझ गई कि वह अपने कमरे की ओर जा रही थी। मैं जानती थी कि उसे किस चीज की प्यास लगी है। घुसा तो उस खास पानी का पूरा टैंकर था। सिर्फ टैंकर ही क्या, अच्छा खासा पानी का जबरदस्त पाईप भी था उसके पास। 'पाईप' घुसेड़ कर दम तक प्यास बुझाने की क्षमता थी उसके अंदर।
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