Thread Rating:
  • 31 Vote(s) - 2.65 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Misc. Erotica गरम रोज
#81
"बस बस बहुत हो गया। चूस कर ही खतम कर दोगी तो तुझे चोदेंगे कैसे।" कहकर वह झटके से अलग हो गया।
"चल अब जल्दी से कुतिया बन जा।" उसके कहने की देर थी कि मैं उसकी गुलाम की तरह वहीं फर्श पर चौपाया बन गई। मुझे उस वक्त जरा भी गुमान नहीं था कि घुसा के दिमाग में क्या चल रहा था। जैसे ही मैं चौपाया बनी, घुसा तुरंत पीछे से मुझ पर चढ़ गया और मेरी कमर पकड़ कर अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगा। मेरी चूत से रिसते लसलसे चिकनाई से अपने लंड को लिथड़ा कर सहसा वह अपने लंड के सुपाड़े को मेरी गांड़ की छेद पर टिका दिया और बोला,
"आज तेरी गांड़ की बारी है बिटिया। आज मना मत करना।"
"यह कककक्या कह रहे हो तुम?" मैं उसके इरादे को भांप कर कांप उठी और बोली।
"तो छोड़ो आज हम नहीं चोदेंगे।" कहकर वह पीछे हटने लगा। हे भगवान, मुझे इस हालत में वह छोड़ देगा तो मर ही जाऊंगी मैं। यह सरासर ब्लैकमेल था, लेकिन उस वक्त मेरी जो स्थिति थी उसमें उसकी इच्छा का मान रखने के अलावा मेरे पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं था। चलो आज उसकी बात रख लेती हूं और देखती हूं कि लोग गांड़ मरवाने में क्या मजा पाते हैं। यही सोच कर जल्दी से बोली,
"अच्छा अच्छा चोद ले मेरी गांड़।"
यही तो चाहता था वह कमीना। बहुत ही उपयुक्त समय में उसका ब्लैकमेल काम आया और मेरी सहमति पाकर तो खुशी के मारे पागल ही हो गया। वह खेला खाया माहिर चुदक्कड़ इस सुनहरे मौके को गंवाना नहीं चाहता था। "तू इसी तरह कुतिया की तरह झुकी रह, फिर देख हम कितना मजा देते हैं तुमको।" वह बोला।
"कमीना कहीं का, तुम्हारी कुतिया तुम्हारे सामने झुकी हुई ही तो है। अब जो करना है जल्दी कर।" मैं तड़प कर बोली। अंधे को और क्या चाहिए, बस दो आंखें ही तो। मौका सुनहरा था। तेल वगैरह की व्यवस्था वह पहले ही कर चुका था और अपनी पहुंच के पास ही रखा था। वह सोच चुका था कि उसे आज किसी भी कीमत पर मेरी गांड़ मारनी है, इसलिए पहले से पूरी तैयारी कर चुका था। हाथ बढ़ा कर तेल की बोतल से अपनी हथेली पर तेल लिया और अपने लंड पर लसेड़ कर हमला करने को तैयार हो गया। अब उसने मेरी कमर को मजबूती से अपनी गिरफ्त में लेकर अपने तेल चुपड़े लंड के विशाल सुपाड़े को मेरी गांड़ के छेद पर टिकाया और अपने लंड का दबाव देने लगा जिससे उसके लंड का उतना बड़ा चिकना सुपाड़ा फिसलते हुए मेरी गांड़ के प्रवेश द्वार को फैलाते अंदर दाखिल होने लगा।
"आआआआआआह......." दर्द से मैं चीख पड़ी। तेल की चिकनाई से सराबोर उसका मोटा सुपाड़ा मेरी गांड़ के मुंह के अंदर पुच्च से घुस गया और एक बार उसके लंड को रास्ता मिल गया तो फिर गांड़ की तंग गुफा को फैलाते हुए अंदर घुसता चला गया। करीब आधा लंड अंदर घुस चुका था और मैं दर्द के मारे बेहाल हो रही थी। "आआआआह हरामी मादरचोओओओओओद निकाल निकाल बाहर साला फाड़ दिया मेरी गांड़ ओओओहहह।" मैं पसीना पसीना हो गई। घुसा जानता था कि उसने किला फतह कर लिया था। वह उसी तरह मुझे जकड़ कर कुछ सेकंड रुक गया। उसका आधा लंड मेरी गांड़ के अंदर था और मेरी जान निकली जा रही थी। जोश जोश में होश खोने का यही नतीजा होना था। मगर अब पछताए क्या होता है। मेरी गांड़ का बंटाधार तो हो चुका था।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#82
"देखी? तुम्हारी गांड़ फैल कर मेरे लंड को रास्ता दे रही है।" वह बोला।
"फैल कर नहीं मां के लौड़े मादरचोओओओद.... फट कर बोलो, फट कर। फट गई मेरी गांड़। ओह बहुत दर्द हो रहा है।" मैं कराहती हुई बोली।
"बस बस हो गया जो होना था। अब हिलो मत और देखो अभिए दर्द कैसे गायब हो जाएगा।"
घुसा बड़ा शातिर और बेहद कुशल चुदक्कड़ था। वह अच्छी तरह से जानता था कि पहली बार किसी की गांड़ कैसे मारी जाती है। उसके कुछ पलों के विराम से ही मुझे बड़ी राहत का अनुभव होने लगा था। मैं ने अब हिल डुल कर विरोध करने का प्रयास छोड़ दिया और अपनी टाईट गांड़ में उसके आधे लंड को आत्मसात करके शांत रही क्योंकि अब मुझे पीड़ा नहीं हो रही थी। घुसा ने उसी तरह स्थिर रह कर एक हाथ से मेरी चूत सहलाना आरंभ कर दिया। यह एक अनोखा सुखद अनुभव था मेरे लिए। मुझे अब मजा आने लगा था। वह अपनी जादुई उंगलियों से मेरे भगनासे से छेड़छाड़ आरंभ कर दिया।
"आआआआह ओओओहहह जादूगर.....इस्स्स्स्स" मैं सिसक उठी। घुसा का दूसरा हाथ अब मेरी चूचियों पर पहुंच गया था और उससे वह मेरी चूचियों को धीरे धीरे दबाने लगा था। मैं तो जन्नत में पहुंच गई थी। घुसा समझ गया कि अब मुझे मजा आने लगा है।
"देखी? अब मजा आ रहा है ना? असली मजा तो अभी बाकी है, थोड़ा धीरज से काम लो तो पूरा मज़ा मिलेगा।" घुसा बोला।
"धीरज ही तो नहीं हो रहा है। जल्दी कर जो करना है।" मैं बदहवासी के आलम में बोली। अब घुसा ने मौका ताड़कर झट से मेरी कमर को को दुबारा कस कर पकड़ा और एक और करारा धक्का मार कर अपना पूरा लंड मेरी गांड़ में घुसेड़ दिया।
"आआआआह हरामी साले, मार ही डालोगे क्या आआआआह , इसी के लिए धीरज धरने को बोल रहे थे? आखिर फाड़ ही दिया ना?" मैं इस आकस्मिक हमले से दुबारा पीड़ा के मारे चीख पड़ी। उसका पूरा आठ इंच का लंड अब मेरी गांड़ के अंदर जड़ तक समा चुका था। मेरी तो जान ही हलक में आ गई थी। ऐसा लगा जैसे मेरी अंतड़ियों को फाड़ ही डालेगा मादरचोद। मैं छटपटाने लगी लेकिन उसकी पकड़ इतनी सख्त थी कि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। घुसा फिर उसी स्थिति में स्थिर हो गया और कुछ ही पलों के उस विराम में मानो चमत्कार हो गया। मेरी गांड़ का दर्द धीरे धीरे समाप्त होने लगा और धीरे-धीरे वह दर्द कहां गायब हो गया पता ही नहीं चला। घुसा सब समझ रहा था। मेरी मन: स्थिति से अनभिज्ञ नहीं था वह।
"अब कैसा लग रहा है?"
"हाय राम, बहुत अच्छा लग रहा है।" मैं बोल उठी।
उफ उतना बड़ा लंड मेरी गांड़ में पूरी तरह समाया हुआ था और मैं कुछ भी दर्द का अनुभव नहीं कर रही थी, जबकि मेरी गांड़ फटने की सीमा तक फैल चुका था। यह चमत्कार नहीं था तो और क्या था। उसका लंड लंबा ही नहीं, उसी के अनुपात में मोटा भी था जिसके कारण मेरी गांड़ का रास्ता अपनी क्षमता से बाहर फैल चुका था और उसके लंड को सख्ती से अपनी गिरफ्त में ले चुका था। मेरे अंदर पूरी तरह संपूर्णता का अहसास हो रहा था। इधर घुसा फिर से मेरी चूचियों और चूत से खेलने लगा। यह अद्भुत अनुभव था। बेहद आनंददायक।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#83
"हम बोले थे ना, बहुत मजा आएगा? अब आगे आगे देखो कितना मजा आने वाला है।" कहकर थीरे धीरे घुसा अपना लंड बाहर निकालने लगा तो मुझे अपने अंदर खालीपन का अहसास होने लगा लेकिन आधा लंड बाहर निकालने के बाद वह दुबारा अंदर घुसेड़ दिया। यह क्रम कुछ देर चला और मैं चकित थी कि अब मुझे जरा भी पीड़ा का अहसास नहीं हो रहा था। घुसा को भी मालूम हो गया कि अब मैं सुगमता पूर्वक गांड़ चुदाने में सक्षम हो चुकी हूं। बस इसी का तो इंतजार कर रहा था वह कमीना। अब तो उसकी निकल पड़ी थी। धीरे धीरे वह मेरी गांड़ चोदने लगा और फिर उसके धक्कों की रफ्तार बढ़ने लगी। इसी के साथ वह मेरी चूचियों और चूत से खेलता रहा ताकि मुझे पूरी तरह गांड़ चुदाई का मजा मिलता रहे। यही हुआ भी। मैं पूरी मस्ती में डूब कर अब कमर नचा नचा कर गांड़ चुदाई का मजा लेने लगी। यह धक्कमपेल करीब दस मिनट तक चलता रहा। धीरे धीरे उसकी रफ़्तार बढ़ती जा रही थी कि हम दोनों चर्मोत्कर्ष में पहुंच गए। मैं चर्मोत्कर्ष में पहुंची क्यों कि मेरी गांड़ में घुसा के लंड का अद्भुत घर्षण हो रहा था और उस घर्षण से मेरा तन बदन तरंगित होता रहा था। इधर मेरी चूत में घुसा की उंगलियों का जादू भी चल रहा था। उधर घुसा का तो कहना ही क्या था। वह तो मेरी चिकनी गांड़ की तंग सुरंग को चोदने की मस्ती में डूब कर मानो स्वर्ग की सैर कर रहा था और इसी स्वर्गीय सुख में डूबते-उतराते चर्मोत्कर्ष तक जा पहुंचा था। चर्मोत्कर्ष में पहुंच कर उसके लंड से जो गरमागरम वीर्य की पिचकारी छूटी वह मेरी गांड़ के अंदरुनी हिस्से को सींचते हुए मेरी जांघों से होता हुआ नीचे बह निकला था। उफ, क्या सुखद स्खलन था वह मेरा। गांड़ मरवाने में भी इतना मज़ा आता है यह मुझे आज पहली बार मालूम हुआ। हम दोनों खल्लास होकर एक-दूसरे से चिपके हुए ऐसे हांफ रहे थे मानो मीलों दौड़ कर आए हों। तन मन में इन सुखद पलों की मिठास अभी तारी ही थी कि तभी,
"हे भगवान, यह क्या हो रहा है यहां।" यह मेरी मां की चीख थी। वासना की असह्य गर्मी और चुदाई की बेकरारी में हम दरवाजा बंद करना भी भूल गए थे और यह भी भूल गए थे कि मेरी मां कभी भी पहुंच सकती है, जिसका नतीजा यह हुआ कि हम रंगे हाथ पकड़े गए। मम्मी दरवाजे पर खड़ी आंखें फाड़कर अविश्वास के साथ यह गंदा दृश्य देखते हुए जड़ हो गई थी। हमनें इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी।हम उसी स्थिति में जड़ हो गये थे। मैं मादरजात नंगी चौपाया बनी हुई थी और घुसा भी मादरजात नंगा किसी बनमानुष की तरह मुझ पर सवार था। उसका लंड अब भी मेरी गांड़ में समाया हुआ था।
इस घटना का अगला भाग अगली कड़ी में पढ़िए कि आगे क्या हुआ। तब-तब के लिए अपनी गरम रोजा का इंतजार कीजिए।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#84
गरम रोजा (भाग 6)

हां तो मैं पिछली कड़ी में बता रही थी कि घुसा मेरी गांड़ का उद्घाटन कर चुका था और मुझे पहली बार गांड़ मरवा कर एक अलग तरह के आनंद से परिचय हुआ। सचमुच बड़ा मज़ा आया। लेकिन हवस की आग में जलते हुए हम दोनों एकाकार होने की जल्दबाजी में थोड़े लापरवाह हो गये थे और दरवाजा बंद करना भूल कर वहीं ड्राईंगरूम में शुरू हो गये थे, जिसका दुषपरिणाम यह हुआ कि हम रंगे हाथ पकड़े गए और हमें अपनी मां के सामने बड़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। हमारी दूसरी गलती यह थी कि हम चुदाई की मस्ती में इतने डूब गये थे कि मां के आगमन के समय का भी हमें ख्याल नहीं रहा। मुझे ही समझ जाना चाहिए था कि मुझे छोड़कर घनश्याम चाचा फिर से गाड़ी लेकर वापस क्यों चले गए थे। अवश्य ही मां के कॉल को सुनकर घनश्याम चाचा उन्हें लेने चले गए थे। अगर मैं अपने होशोहवास में रहती तो यह समझना मेरे लिए मुश्किल नहीं था, लेकिन अपने तन की भूख के आगे मेरे सोचने समझने की शक्ति कुंद हो चुकी थी और नतीजा सामने था। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। यहां हमारे अंदर स्खलन की खुमारी अभी उतर ही रही थी कि अचानक मां का आगमन हो गया और उसने हमें रंगे हाथ पकड़ लिया। मां की चीख से हमें होश आया और हमने खुद को बड़ी ही अजीबोगरीब स्थिति में पाया। हमारी स्थिति काटो तो खून नहीं वाली हो गई थी। शर्म से पानी पानी हो गये थे हम। मुझे तो लग रहा था कि धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं।
"यह क्या हो रहा है यहां? बेशर्म लोग।" मेरी मां दूसरी बार चीखी। उसकी चीख इतनी जोर की थी कि खुले दरवाजे से बाहर तक पहुंच गई और घनश्याम चाचा, जो कार पार्क करके उधर से गुजर ही रहे थे, उस चीख को सुनकर दौड़े चले आये। हमारी स्थिति को देखते ही उसे सबकुछ समझ में आ गया कि यहां क्या हो रहा था। हे राम, वे भी क्या सोच रहे होंगे। शायद सोच रहे थे होंगे कि मेरी हालत को समझ कर उन्होंने पहल की होती तो अभी घुसा के स्थान पर वे होते। एक सुनहरा अवसर उनके हाथ से निकल गया था। वे अपने आप को कोस रहे थे होंगे। घुसा हड़बड़ा कर अपने कपड़ों की ओर तो झपटा तो मैं भी अपने कपड़ों की ओर झपटी और हम दोनों झेंपते हुए जल्दी जल्दी अपने कपड़े पहनने लगे।
"अब खुद को ढंकने का क्या फायदा। गंदी लड़की और घटिया आदमी। छि: छि:। हाय हाय, यह गंदा दृश्य देखने से पहले मैं मर जाती तो अच्छा होता।" वह फिर चीख उठी और अपना सर पकड़ कर वहीं धम से बैठ गई। उसकी हालत देखकर मुझे बड़ा बुरा लग रहा था। खुद पर बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। जबतक ढंका छिपा सब कुछ चल रहा था बहुत अच्छा था लेकिन अब जब खुल कर इस तरह सामने आ गया तो अचानक जैसे सबकुछ बदल गया था। जैसे तैसे जल्दबाजी में अपने अपने कपड़े पहन कर हम अपराधी की मुद्रा में सर झुकाए खड़े हो गए थे। यह सबकुछ घनश्याम चाचा भी आंखें फाड़कर देख रहे थे।
"सॉरी मम्मी। प्लीज़ इस तरह गुस्सा मत करो। गलती हो गई। माफ कर दो हमें।" मैं अपराधी की भांति गिड़गिड़ाते हुए बोली।
"चुप बेहुदा लड़की। एकदम चुप। नादान लड़की, तूने अपने साथ क्या कर लिया इसका अंदाजा भी है? ऐसी घटिया हरकत करते हुए जरा भी शर्म नहीं आई तुम्हें? बर्बाद हो गई तू। समझ रही है कलंकिनी कहीं की?" मां गुस्से से चीखती हुई बोली।
"जो हुआ सो हुआ, अब इस तरह चीख चीखकर आस पास के लोगों को तो मत सुनने दो प्लीज़।" मैं धीरे से बोली। सहसा जैसे मम्मी को आभास हो गया कि गुस्से में कुछ अधिक ही ऊंची आवाज में चीख रही थी। दरवाजा भी खुला हुआ था।
"अब क्या बोलूं। मेरी तो किस्मत ही फूट गई है। तू तो नादान है लेकिन यह कमीना तो सबकुछ समझता है। सूअर का बच्चा। इतनी छोटी बच्ची के साथ यह सब करते हुए शर्म नहीं आई तुम्हें? खराब करके रख दिया मेरी बच्ची को, शैतान का बच्चा।" मां घुसा की ओर मुखातिब हो कर गुस्से से बोली। अब उसकी आवाज थोड़ी मद्धिम थी लेकिन आवाज में तल्खी स्पष्ट थी।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#85
Ab aayega aur maza
Like Reply
#86
"अब हम का कहें मैडमजी। हमारे पास कहने को अब बचा ही क्या है। गलती हो गई हमसे और रंगे हाथों पकड़े भी गए हैं। अब जो सजा देना है दे दीजिए, हमको सब मंजूर है।" वह बड़ी बेचारगी भरे स्वर में बोला।
"तुम इतनी उम्र के होकर एक बार भी नहीं सोचे कि इस छोटी बच्ची के साथ इस तरह की गलत हरकत का परिणाम क्या होगा? तुमने मेरी बेटी की जिंदगी खराब कर दी और इसकी कोई माफी नहीं हो सकती है। समझ रहे हो ना मैं क्या कह रही हूं?"
"समझ रहे हैं मैडमजी, इसलिए तो कह रहे हैं, हमको जो सजा देना है दे दीजिए, रोजा बिटिया को कुछ मत कहिए।"
"अब इसको बिटिया किस मुंह से कह रहे हो कलमुहे। यह सब करते समय यह तुम्हारी बिटिया नहीं थी क्या? मैं तुम्हें माफ नहीं कर सकती हूं।"
"मम्मी अब......" मैं कुछ कहना चाहती थी लेकिन मां ने मुझे डांटते हुए कहा,
"चुप हरामजादी, एकदम चुप। अब एक शब्द मुंह से निकाली तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, कुलटा कहीं की।" मम्मी ने मेरी बात काट कर कहा।
"रोजा बिटिया कुछ मत बोलो। सब गलती मेरी है। हमको जो सजा मिलेगी हमें मंजूर है।" घुसा बोला।
"सोच लो अंकल।" मैं बोली।
"सोच लिया।" वह सर झुका कर बोला। मुझे उसके लिए बड़ा बुरा लग रहा था। आखिर गलती उसकी अकेली थोड़ी न थी। मैं भी तो बराबर की भागीदार थी, फिर अकेले उसे ही सजा क्यों मिले? मैं सोचने लगी कि इस स्थिति से खुद को और घुसा को कैसे बचाया जाए।
"तो एक काम करो, अपना बोरिया बिस्तर बांधो और निकलो यहां से, अब तुम इस घर में नहीं रह सकते।" मम्मी तैश में आ कर बोली।
"सोच लो मम्मी।" मैं बोली।
"सबकुछ सोच समझकर बोल रही हूं।" मां गुस्से से बोली।
"इस वक्त तुम गुस्से में हो। कुछ देर शांति से सोफे पर बैठ कर सोच लो, फिर बोलना कि घुसा को यहां रहना है कि जाना है। कहीं उसके जाने से आपका कोई नुक्सान तो नहीं होगा ना?" मैं अर्थपूर्ण दृष्टि से मां को देखती हुई बोली। मेरी बात सुन कर जैसे उसे होश आया। उसे भी समझ में आ गया कि घुसा को निकाल कर वह क्या खोने जा रही है लेकिन गुस्से में उसके मुंह से निकल गया और अब अपने शब्द वापस ले भी तो कैसे। वह एक बार मुझे देखी और फिर घुसा को देखते हुए चुपचाप उठ कर सोफे पर बैठ गई और कुछ देर उसी तरह चिंतामग्न बैठी रही। शायद सोच रही थी होगी कि गुस्से में आकर उसने जो कुछ कहा, वह सचमुच अमल में आ जाएगा तो उसका कितना बड़ा नुक्सान हो जाएगा। उसके तन की भूख अब कौन मिटाएगा। अबतक तो पति की अनुपस्थिति में घुसा ही उसका एकमात्र सहारा था। इसी उधेड़बुन में पड़ी शायद अपने मुंह से निकले शब्दों पर पछता रही थी होगी। इधर हम सब मां को चुपचाप देखते रहे। हम सब का मतलब घनश्याम चाचा भी शामिल थे। कुछ देर की शांति से मेरे अंदर हिम्मत पैदा हुई और मुझे लगा कि अब मुझे अपने और घुसा के बचाव में कुछ नया पैंतरा खेलने की जरूरत है। मैं सोच चुकी थी मुझे क्या कहना है। मुझे जो कुछ कहना था उसका ठोस आधार, सबूत के साथ मेरे पास मौजूद था, जिसे कोई नकार नहीं सकता था।
"ओके मम्मी, जब तुम सोच चुकी हो कि घुसा को इस घर से जाना ही इस समस्या का एकमात्र समाधान है तो मैं कुछ नहीं बोलूंगी लेकिन इस तरह घुसा को ही इस घटना का दोषी ठहरा कर निकालना सर्वथा अनुचित है।" मैं बोली।
"तुम फिर......" मेरी मां मेरी बात को काटते हुए बोलना चहती थी लेकिन मैंने उसे बीच में ही टोक कर कहा,
"पहले मेरी बात सुन लो फिर खुद निर्णय करना।" कहकर आज मेरे साथ कॉलेज में जो कुछ घटा, उसे सविस्तार बताती चली गई। जो कुछ मैंने बताया उसे सुनकर सभी के मुंह खुले के खुले रह गये। उस मुसीबत से मैं कैसे बच कर निकल आई वह सुनने में जितना रोमांचक था उतना ही अविश्वसनीय था लेकिन उन्हें विश्वास करना ही था क्योंकि मेरे हाथों में रफीक का मोबाइल था। मेल प्रेम से इतना महत्वपूर्ण सबूत मेरे हाथ लगना संभव ही नहीं था इसलिए मेरी बातों पर उन्हें विश्वास करना ही पड़ा। उस मोबाइल में उनकी सारी कारगुजारियों का कच्चा चिट्ठा भरा हुआ था।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#87
wah naya mod mast hai
Like Reply
#88
"अगर विश्वास न हो तो खुद देख लो।" कहकर मैं ने मोबाइल मां के हाथों में थमा दिया। उसमें मेरी नग्न तस्वीरों के अलावा कई लड़कियों की अश्लील तस्वीरें और उनके संभोग रत वीडियो भरे पड़े थे।
"हे भगवान।" यह सब देखकर बस यही उद्गार मेरी मां के मुंह से निकला।
"अब आगे यहां देखिए" कहकर मैंने अपनी मोबाइल में उन लड़कों की नग्न और घायल तस्वीरों को दिखाया। यह सब दिखाने के बाद अब मुझे और कुछ कहना नहीं पड़ा। सभी मुझे चकित नजरों से देख रहे थे कि मैं अकेली लड़की उन छंटे हुए बदमाशों की इस तरह दुर्दशा करने में कैसे सफल हो पाई।
"अब आगे सुनिए और निर्णय कीजिए कि घुसा को यहां से जाना चाहिए या रहना चाहिए। उस जगह मेरे साथ वे अपनी हसरत तो पूरी नहीं कर सके लेकिन मेरे बदन के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ करने में सफल रहे। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरा बदन सुलग उठा था। अपने सुलगते बदन की तपिश के वशीभूत यहां आकर मैंने ही घुसा को जबरदस्ती इस कृत्य के लिए उकसाया और यहां यह सब हुआ। यह बेचारा तो मना करता रहा लेकिन कब तक मना करता, आखिर यह भी मर्द है, कब-तक खुद को कंट्रोल करता, अंततः मेरी इच्छा के आगे हथियार डाल दिया और जो कुछ हुआ वह आपने देखा। अब आगे फैसला आपका। मुझे और कुछ नहीं कहना है।" कहकर मैं चुप हो गई। मैं ने जो कुछ कहा था उसमें काफी कुछ सच था और काफी कुछ झूठ। झूठ इसलिए, क्योंकि घुसा तो पहले से ही मुझे चोदने को तैयार था, उसे उकसाने की जरूरत कहां थी। मैंने बड़ी चतुराई से रघु का जिक्र इस कहानी में हल्का सा किया था, जिस कारण किसी ने रघु के नाम को कोई खास तवज्जो नहीं दी। रघु की भी खास भूमिका इस घटना में थी, क्योंकि बिना उसके सहयोग के वे लोग इस प्रकार की घटनाओं को इतनी सुगमता के साथ अंजाम नहीं दे सकते थे लेकिन जिस तरह से मैंने इस घटना को पेश किया था उससे रघु की संलिप्तता का पता नहीं चल रहा था। अगर रघु की संलिप्तता का पता चलता तो उसे भी मेरी मां छोड़ने वाली नहीं थी। मैं अपनी बात खत्म करके कभी मां को देखती कभी घनश्याम को, जो अभी तक वहां खड़ा हमारी बातें सुन रहा था। मेरी बातें सुनकर मां तो निःशब्द हो गई।
तभी मेरी मां का ध्यान घनश्याम की ओर गया और वह इस बात से तनिक घबरा उठी कि इस घटना का एक और राजदार पैदा हो चुका था। वह घनश्याम की ओर मुखातिब हो कर बोली, "जो कुछ आपने यहां देखा और सुना, यह आप तक ही रहना चाहिए, समझ गये ना?"
"मैं समझता हूं मैडमजी। आप मुझपर भरोसा कर सकती हैं।" घनश्याम विश्वास दिलाता हुआ बोला।
मां तो आश्वस्त हो गई लेकिन मुझे इसका अंदाजा था कि घनश्याम आगे क्या गुल खिलाने वाला था। सारी बातें साफ होने के बाद मेरी मां सहज हो गई। इधर घनश्याम की मनःस्थिति की मैं कल्पना कर सकती थी। उस बेचारे को उकसाने की मैंने जो कोशिश की थी वह सफल हो चुकी थी लेकिन इस वक्त तो मौका उसके हाथ से निकल चुका था वरना आज इस सुनहरे मौके का लाभ उसे ही मिलने वाला था। जो कुछ यहां घुसा के साथ हुआ, वह घनश्याम के साथ भी हो सकता था। वह जरूर अपनी किस्मत को कोस रहा था होगा। खैर मैं जानती थी कि आज नहीं तो कल घनश्याम की मुराद पूरी होनी ही थी। आखिर मैं कहीं भागी तो नहीं जा रही हूं और न ही घनश्याम कहीं भागा जा रहा था।
"ओके ओके, अब मैं समझ सकती हूं कि यहां हमने जो कुछ देखा वह क्यों हुआ। और घुसा, आज जो भी हुआ सो हुआ, आईंदा यह दुबारा नहीं होना चाहिए। समझ गये?" एक लंबी सांस ले कर मां बोली। मुझे मन ही मन हंसी आ गई। यह तो पहले से होता आ रहा था, यह तो आज ही हम रंगे हाथ पकड़े गये। आईंदा यह नहीं होगा, यह तो हो नहीं सकता था, यह मैं भी जानती थी और घुसा भी जानता था। सबसे मजेदार बात तो यह हुई कि इस दौरान मैं घनश्याम को अपने आकर्षण जाल में फांस चुकी थी। आज नहीं तो कल निश्चित रूप से मैं खुद ही उसकी गोद में गिरने वाली थी। अब यह कब और कैसे होगा यह तो भविष्य के गर्त में था।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#89
"अब मैं ही इन बदमाश लड़कों को उनके अंजाम तक पहुंचाऊंगी। कल ही मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे कॉलेज जा रही हूं और यह सुनिश्चित करूंगी कि उनको उचित दंड मिल जाए। तुमने बहुत अच्छा किया कि यह मोबाईल साथ ले आई। इससे बड़ा सबूत उनकी काली करतूतों का और क्या होगा।" मां बोली।
"एक मिनट मम्मी। जरा यह मोबाईल देना तो।" कहकर मैंने रफीक का मोबाईल मम्मी के हाथ से लेकर उन खास फोटो और वीडियोज को अपनी मोबाईल में कॉपी करने लगी। इसी वक्त मैंने रफीक की मोबाईल से रघु से संबंधित फोटो और वीडियो को डिलीट कर दिया। अब रघु के फोटो और वीडियोज मेरी मोबाईल में तो था लेकिन रफीक की मोबाईल से गायब हो चुका था। ट्रैश में भी नहीं था। अब रघु सुरक्षित था।
"क्यों कर रही हो यह?" मां ने पूछा तो मैंने बताया कि यह अतिरिक्त कॉपी इमरजेंसी बैकअप के लिए है। कॉलेज मैनेजमेंट में अगर कोई और भी इन कृत्यों में संलिप्त हो तो वह इसे डिलीट करने की कोशिश करेगा, ऐसी स्थिति में यह बैकअप हमारे काम आएगा। मां मेरी बुद्धिमत्ता की दाद देती हुई रफीक का मोबाईल ले कर तेज कदमों से अपने कमरे में चली गई।
"बाल बाल बचे।" मम्मी के वहां से जाते ही मेरे मुंह से निकला। सहसा मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ। वहां उपस्थित घनश्याम ने मेरी बात सुन ली और भौंचक्का हो कर अजीब सी नजरों से मुझे देखने लगा। हे भगवान, यह मेरे मुंह से क्या निकल गया।
"क्या मतलब है इसका?" वह बोला।
"किसका?" मैं हकबका कर बोली।
"यही, कि बाल बाल बचे। पकड़ी तो गयी ही।" वह बोला।
"ओह, कुछ नहीं। बस यही बोल रही थी कि आज वहां कॉलेज में बाल बाल बची, वरना वे लोग मेरे साथ क्या क्या करते वह तो भगवान ही जानता था होगा।" मैं बात घुमा कर बोली।
"ओह, मैं समझा यहां के बारे में बोल रही हो। लेकिन मुझे अब भी लगता है कि यहां जो कुछ हुआ वह आज की अकेली घटना नहीं है।" वह बोला।
"ऐसा क्यों लगता है आपको?'"
"मेरे बाल ऐसे ही सफेद नहीं हुए हैं।"
"ओह, फिर मेरा चरित्र भी पता चल गया होगा?" अब मैं भी ढिठाई पर उतर आई।
"थोड़ा थोड़ा।" वह बोला। वह धीरे-धीरे खुलने लगा था।
"थोड़ा थोड़ा क्यों , पूरा ही पता चल जाना चाहिए था?" मैं बोली।
"पूरा पता चल जाता तो आज घुसा की जगह मैं होता।" अब वह पूरी तरह खुल गया था और मुझे घूर कर देखने लगा।
"ओह चाचाजी, आप भी?" मैं उनकी हिम्मत की दाद देने लगी। उनका आशय समझ कर मेरा शरीर रोमांचित हो उठा। यही तो मैं चाहती थी कि कब वे अपनी चाहत शब्दों के माध्यम से व्यक्त करेंगे।
"हां मैं भी। आखिर मर्द हूं। सबकुछ समझता हूं।" वह बोला। वहां खड़ा घुसा हमारी बातें सुनकर मुस्कुरा उठा था। उसे अंदेशा हो गया था कि घनश्याम के रूप में मुझे खाने के लिए एक और भागीदार पैदा हो गया था। उनको क्या पता था कि रघु नाम का एक और भागीदार भी मेरी सूचि में शामिल हो चुका था।
"तो उस समय कार में आते वक्त आपकी मर्दानगी को क्या हो गया था?" मैं उसे चुनौती देती हुई बोली।
"उस वक्त तक मुझे तुम्हारे बारे में पूरा पता कहां था। कुछ करता और तुम्हारी प्रतिक्रिया विपरीत होती तो मैं तो गया था काम से।" वह बिंदास बोल रहा था और मैं घर में ही एक और जुगाड़ मिल जाने से खुश हो उठी।
"तो अब क्या लगता है आपको, मेरे बारे में पूरा पता लग गया?" मैं अब भी उसकी परीक्षा लेती हुई बोली। कहीं यह तुक्का तो नहीं मार रहा है।
"हां हां, यहां जो कुछ तुम्हारे और घुसा के बीच हो रहा था उसे देखकर पूरा पता लग गया।" पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला वह।
"तो आपको नहीं लगता है कि यह आकस्मिक था?" मैं अब भी पूरी तरह से तसल्ली कर लेना चाह रही थी कि वह जो बोल रहा था उस पर उसे कितना विश्वास था।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#90
"मैं दावे के साथ बोल सकता हूं कि यह आकस्मिक नहीं था। यह पहले से चल रहा है।" वह बेधड़क बोला।
"अगर मैं आपके दावे को चुनौती दूं तो?" मैं अब भी उसे ठोक बजा रही थी।
"मुझे तुम्हारी चुनौती मंजूर है। बोलो क्या चुनौती देना चाहती हो।" वह ताव में आकर बोला।
"यह जो आप कह रहे हैं यह तो आपका जुबानी दावा है। इसे आप साबित कैसे कर सकते हैं?" मैं बोली।
"तुम केवल एक मौका तो दो, मैं इसे साबित भी कर दूंगा।" वह अब थोड़ा जोश में आकर बोला। मैं जानती थी कि अब वह जोश में आ गया था और मेरे एक मौका देने का इंतजार कर रहा था।
"चलो मैं पूरी छूट देती हूं। आप साबित करके दिखाएं।" यह मेरी ओर से खुली छूट भी थी और चुनौती भी।
"तो साबित करूं ना?"
"हां बाबा हां। और कैसे बोलूं?"
"एक टेस्ट लूंगा, अगर तुम हां बोलो तो।" वह आशा पूर्ण नेत्रों से मुझे देखते हुए बोला।
"हां तो बोल रही हूं, और कैसे बोलूं?"
"टेस्ट से पहले टेस्ट का यंत्र देखना चाहोगी?" घनश्याम की आवाज में अब शरारत का पुट था और उसकी आंखों में हवस की चमक दिखाई दे रही थी। मैं उसके कहने का आशय समझ रही थी इसलिए मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था लेकिन वहां खड़ा घुसा हमारी बातें कितनी समझ रहा था पता नहीं।
"अ अ हां हां, क्यों नहीं। ज ज जरूर देखना चाहूंगी।" धड़कते दिल से हकलाते हुए मैं बोली। क्या वह यहीं दिखाने की हिम्मत करेगा?
"यहीं?" वह मेरी मनःस्थिति समझ गया था। वह मेरे भय और झिझक को महसूस कर रहा था।
"हहहह हां, यहां देखने में दिक्कत क्या है?" मैं देखने को उत्सुक भी थी लेकिन अंदर ही अंदर भयभीत भी थी और यह भी जानती थी कि वह यहां दिखाने की हिम्मत तो कत्तई नहीं करेगा।
"सोच लो। तुम्हें दिक्कत हो सकती है।"
"मुझे क्या दिक्कत हो सकती है भला।" मैं बोली और तभी मेरी नजर उसकी जांघों के बीच उठते हुए बेहद बड़े से उभार पर पड़ी। मैं भीतर ही भीतर गनगना उठी।
"सोच लो। यह सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की चीज नहीं है।" वह शैतानी मुस्कान के साथ बोला।
"ऐसा भी क्या यंत्र है जिसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है, जरा मैं भी तो सुनूं।" मैं झिझकते हुए अनजान बनने का नाटक करते हुए बोली।
"सुनोगी? हो सकता है सुनकर तुम्हें बुरा लगेगा।"
"कुछ बुरा नहीं मानूंगी, हां सुनाईए।"
"ठीक है तो पास आओ।"
"लो आ गई। अब बताईए।" मैं धड़कते हृदय के साथ उसके पास जाकर बोली। वह मेरे कान में धीरे से बोला,
"वह यंत्र है मेरा लंड।" कहकर मेरा चेहरा देखने लगा। इतने स्पष्ट शब्दों को सुनकर मेरा चेहरा कनपट्टी तक लाल हो उठा था। मैं जानती थी वह क्या बोलने वाला है लेकिन उसके मुंह से सुनना एक अलग ही रोमांचक अनुभव था। बचपन से लेकर आज तक जिसे मैं चाचा बोलती आ रही थी उसके मुंह से इस तरह का नंगा शब्द सुनने की तो मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
"हाय राम! बड़े बेशर्म हैं आप तो।" मैं आंखें बड़ी-बड़ी करके चकित नजरों से उन्हें देखकर बोली।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#91
ab aur log bhi add hone lge dheere dheere............wow
Like Reply
#92
"बुरा लगा?" वह मेरी प्रतिक्रिया देखकर बोला।
"न न न नहीं। बुरा नहीं लगा लेकिन आपकी हिम्मत पर आश्चर्य हुआ।" मैं शर्म से लाल भभूका होती हुई बोली।
"आश्चर्य क्यों हुआ?" वह भलीभांति जानता था कि मेरा आश्चर्यचकित होना मात्र एक दिखावा था।
"आश्चर्य इसलिए हुआ क्योंकि मैंने जब से होश संभाला तब से आपको चाचा ही कहती आ रही हूं और चाचा के मुंह से ऐसी बात सुनकर आश्चर्य नहीं होगा तो और क्या होगा।" मै बोली।
"अच्छा? और वह क्या था जो तुम कार में कर रही थी? चाचा ही समझती तो कार के अंदर अपने उत्तेजक अंगों की नुमाइश क्यों कर रही थी? अब मेरे सामने भोली बनने का नाटक तो मत करो। तुम्हें पता भी है कि उस वक्त मेरी क्या दशा हो रही थी?" घनश्याम बोला। घनश्याम के सामने अब और कुछ नहीं बोल सकती थी मैं। सच ही तो था, कि मैं उनकी नजरों के सामने ज्यादा से ज्यादा अपने सेक्सी तन की, आंशिक ही सही, नुमाइश करके उन्हें उत्तेजित करने की कोशिश कर रही थी ताकि वे मेरे तन की भाषा समझ कर अपने अंदर उठी हुई कामना को व्यक्त करें।
"क्या हालत हो रही थी जरा मैं भी तो सुनूं।" मैं अब झूठ मूठ अपने बचाव में कुछ नहीं बोलना चाह रही थी। जब सबकुछ स्पष्ट हो ही गया है तो खुलकर बात करने में क्या समस्या है।
"जो तुम चाहती थी वही तो हुआ था। बस समय नहीं था वरना दिखा देता कि मैं नामर्द नहीं हूं।"
"समय का बहाना किसी और को सुनाईए, मुझे नहीं। कमसे कम अपना यंत्र ही दिखा देते।"
"उस समय मुझे पता नहीं था कि तुम इस तरह की लड़की हो। यह तो यहां आकर पता चला कि तुम किस तरह की लड़की हो, वरना घुसा की जगह आज मैं होता। अब यंत्र दिखाने की बात कर रही हो तो अभी भी दिखा सकता हूं, लेकिन यहां घुसा के सामने? और कहीं बड़ी मालकिन ने देख लिया तो मेरी नौकरी तो गयी समझ लो।" अब हमारे बीच घुमा फिरा कर बात नहीं हो रही थी बल्कि सीधे मुद्दे की बात हो रही थी।
"घुसा के सामने क्या पर्दा। अब तो घुसा से भी आपके मन की बात छिपी नहीं रह गई है। जहां तक मैं मम्मी को जानती हूं, वह अभी एक नींद मारे बिना अपने कमरे से बाहर नहीं निकलेंगी। वैसे अभी यहां उसने अपनी आंखों से जो कुछ देखा है और मेरे साथ हुए हादसे के बारे में पता चला है, उसके बाद उसे नींद आ रही है कि नहीं यह नहीं बता सकती, फिर भी अपना यंत्र दिखाने का जोखिम उठाना चाहें तो दिखा सकते हैं। क्यों घुसा, सही कह रही हूं ना?" मैं जिस लहजे में बोली उससे मेरी उत्सुकता का पता चल रहा था। घुसा भी सहमति में सिर हिला दिया। इतनी देर तक हमारे बीच में जो भी वार्तालाप हुआ, घुसा बिल्कुल खामोशी के साथ सुन कर मजा ले रहा था। वैसे उसे क्या फर्क पड़ने वाला था। वह जानता था कि मैं उस पर पहले से ही फिदा हूं, एक और साझेदार मिल भी जाए तो पहला हक़ तो उसी का है, आखिर उद्घाटक जो ठहरा।
"फिर ठीक है, देख ही लो।" कहकर घनश्याम अपना पैंट ढीला करने लगा लेकिन पूरी तरह खोलकर अपना लंड निकालने में उसे मुश्किल हो रही थी। मुश्किल क्यों हो रही थी उसका कारण कुछ पलों में ही पता चल गया जब उसके पैंट और जांघिए के अंदर से करीब आठ इंच लंबा और करीब दो इंच मोटा दिल दहलाने वाला काला कोबरा फनफना कर बाहर निकल आया।
"हे भगवान!" मेरे मुंह से निकला। मेरा मुंह खुला का खुला रह गया और मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। घुसा भी विस्मित हो कर घनश्याम का लंड देखता रह गया। घुसा के लंड से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं था, बल्कि थोड़ा मोटा ही होगा।
"देख ली?" घनश्याम मुझे देखते हुए बोला। मेरी मुख मुद्रा देखकर वह मुस्कुरा रहा था।
"हहहह हां.... बाआआआआप रेएएएए.... इतना बड़ाआआआआ.....!" मैं अब भी भयभीत नजरों से उसे देख रही थी।
"देखना हो गया तो अब बंद करूं?"
"नहीं, जरा पकड़ कर देख सकती हूं?" मैं विश्वास करना चाहती थी कि यह सचमुच में वास्तविक है। इसके अलावा मैं उसे पकड़ कर उसकी विशालता का आंकलन और इतने बड़े लंड को पकड़ने के रोमांच से दो चार होना चाहती थी।
"जरूर जरूर, यह तुम्हारा ही है बिटिया।" वह बोला।
मैं डरते डरते उसके लंड को पहले छूकर देखी, फिर हथेली में ले कर पकड़ी। उफ उस गरमागरम लंड को अपने हाथों से पकड़ कर मैं सिहर उठी। फिर सहसा मुझे क्या हुआ कि मैं उसके लंड को पकड़े पकड़े घनश्याम से लिपट गई और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दी। घनश्याम भी एक पल को भौंचक्का रह गया।
"ओह अंकल यू आर ग्रेट।" मैं अपने होंठ अलग करके एक हाथ से उसके लंड को सहलाती हुई बोली। मैं उस लंड से चुदने की कल्पना करके ही सिहर उठी थी।
"ग्रेट तो तब होऊंगा जब मुझे मौका दोगी हमारी बिटिया रानी।" कहकर वह मेरे स्कर्ट को उठाकर मेरी नंगी चूतड़ को सहला कर बोला।
[+] 1 user Likes Rajen4u's post
Like Reply
#93
"हटाईए अपना हाथ। अभी मां घर में ही है। कल देखुंगी आपके इस लंड का दम और आपकी मर्दानगी।" मैं उसका हाथ झटक कर बोली।
"इधर हम भी हैं। हमको मत भूलना।" घुसा झट से बोला।
"तुझे कैसे भूल सकती हूं। साला मादरचोद गांड़ फाड़ कर रख दिया और बोलता है हमको मत भूलना। तू ही तो है इस सारी कहानी का मुख्य पात्र। तू न होता तो मैं ऐसी न होती। अच्छा आज का ड्रामा खत्म हुआ। अब अपना अपना काम देखो और मुझे भी आराम करने दो।" गंदे शब्दों से अपनी बात कहकर (घनश्याम के सामने जब मेरी गंदगी उजागर हो ही गयी तो गंदे शब्दों से परहेज़ क्यों ?) मैं अपने अंदर के तूफान को समेटे अपने कमरे की ओर बढ़ गयी।
ओह मेरे भगवान, जब मैं वहां से अपने कमरे की ओर चल रही थी तो मुझे पता चल रहा था कि घुसा नें मेरी गांड़ मारकर मेरी गांड़ की क्या हालत कर दी थी। जितनी देर मैं वहां खड़ी थी, मुझे कुछ खास तकलीफ का अहसास नहीं हो रहा था लेकिन जैसे ही मैं वहां से चलने लगी, मेरी गुदा की दोनों गोलाईयों के बीच जो घर्षण हो रहा था उसके कारण मेरे मलद्वार में जलन होने लगी थी। गांड़ मरवाने का मजा अब मुझे सजा की तरह लग रहा था। कैसे घुसा का उतना मोटा लंड सर्र सर्र मेरी गांड़ में अंदर बाहर हो कर मुझे स्वर्ग की सैर करा रहा था और उन आनंद के पलों में मैं आरंभिक पीड़ा को भूलकर प्रथम गांड़ चुदाई का अद्भुत रसास्वादन कर रही थी। पहली बार की गांड़ चुदाई में भगवान किसी को भी इतने मोटे लंड से पाला न पड़ने दे। मैं अब समझ रही थी कि पहली बार ही जब घुसा का लंड घुस रहा था, उसी समय उसके लंड की मोटाई के कारण मेरी गांड़ का मुंह अपनी सीमा से बाहर फैल गया था जिसके कारण गांड़ हल्का सा चिरा गया था। उस समय मुझे जलन सी महसूस हुई थी लेकिन उस जलन को धीरे धीरे भूलकर चुदाई के आनंद में डूब गयी थी लेकिन अब फिर से जलन महसूस कर रही थी। हां यह और बात है कि यह जलन थोड़ी कम थी। चलने फिरने में भी थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी।
दर्द को पीती हुई किसी तरह अपने कमरे में जा घुसी। कमरे में घुस कर सबसे पहले मैंने हाथ से छू कर महसूस किया तो पता चला कि गुदा द्वार का छल्ला थोड़ा सूज भी गया था। यह भी मुझे महसूस हो रहा था कि मेरी गांड़ काफी खुल गई थी। मैंने बोरोलीन की ट्यूब से उंगली में थोड़ी सी बोरोलीन ले कर गुदा द्वार के अंदर और बाहर अच्छी तरह से लगाया और कपड़े बदल कर कुछ देर लेट गई लेकिन मेरे पेट में मरोड़ सा उठने लगा। पेट के अंदर एक ऐसा दबाव सा महसूस हो रहा था जैसा मल विसर्जन से पहले होता है। लाख कोशिशों के बाद भी मुझे उस दबाव को रोकने में सफलता नहीं मिल रही थी, जिसके कारण मैं हड़बड़ा कर उठ बैठी और टॉयलेट में जा घुसी। कमोड पर बैठते न बैठते भरभरा कर घुसा के वीर्य के साथ साथ पतला मल बाहर निकलने लगा। कुछ ही पलों में ऐसा लगा जैसे मेरा पेट खाली हो गया हो। टॉयलेट से फारिग हो कर मैं बाहर आई और धम से बिस्तर पर गिर कर लंबी लंबी सांसें लेने लगी। मुझे दुबारा अच्छी तरह से बोरोलीन लगाना पड़ा। मैं भयभीत हो रही थी कि क्या इसी तरह मेरी गांड़ ढीली रह जाएगी? जो लोग गांड़ मरवाने के आदी होते हैं, क्या उनकी भी गांड़ ऐसी ही ढीली हो जाती होगी? अगर ऐसा ही होता तो लोग गांड़ क्यों मरवाते? निश्चित तौर पर यह पहली बार में ही इतने मोटे और लंबे लंड से गांड़ मरवाने का नतीजा था। यह निश्चय ही तात्कालिक परेशानी थी। यही सोचकर मैं खुद को तसल्ली देने लगी थी। मेरा यह अनुमान बाद में सही भी साबित हुआ, हालांकि अगले दिन भी मुझे थोड़ी तकलीफ़ से गुजरना पड़ा लेकिन बाद में सबकुछ ठीक हो गया। बाद के कुछ दिनों में तो बड़ी सुगमता से गांड़ मरवाने में सक्षम हो गई।
करीब एक घंटे तक अपने बिस्तर पर आराम करने के बाद मुझे काफी राहत मिली। रात को खाना खाने के बाद मेरी मां ने अगले दिन मेरे साथ कॉलेज जाने की बात कही। मैं अपनी मां के कथन से सहमत थी। मां ने कहा कि वह अगले दिन ऑफिस नहीं जा रही है। मुझे भी यही उचित लग रहा था। मामला गरम था और बिना देर किए हुए हमें उन लड़कों के विरुद्ध कदम उठाना आवश्यक था। फिर हम सोने चले गये। सोने के पहले आज की सारी घटनाएं चलचित्र की भांति मेरी आंखों के सामने घूम रही थीं। लेबोरेट्री में उन बदमाश लड़कों के साथ जो कुछ हुआ, फिर रघु के साथ जो कुछ हुआ, फिर कार में घनश्याम के साथ, फिर घर में आकर घुसा के द्वारा मेरी गांड़ की कुटाई (गांड़ कुटाई की बात जेहन में आते ही मेरी गांड़ में टीस सी उठी), फिर मां के द्वारा घुसा के द्वारा गांड़ मरवाते हुए हमारा रंगे हाथ पकड़ा जाना और अंत में घनश्याम के साथ वार्तालाप और उसके मस्ताने लंड का दर्शन, कुल मिलाकर आज का दिन मेरे लिए कभी न भूलने वाला दिन साबित हुआ। यही सब मेरे जेहन में घूम रहा था और अगले दिन जो कुछ होने वाला था वह भी दिमाग में चल रहा था। सारी बातें मेरे दिमाग में गड्ड मड्ड होती रहीं और कब मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया मुझे पता ही नहीं चला।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#94
दूसरे दिन मैं मां के साथ कॉलेज गयी। मैं ने देखा कि घायल होने के बावजूद रघु अपनी ड्यूटी में आया हुआ था। मुझे देखते ही वह अपने स्टूल से खड़ा हुआ,
"नमस्ते मैडम जी।" वह मुझे सलाम करते हुए बोला। "नमस्ते नमस्ते। मैं मम्मी के साथ प्रिंसिपल के पास जा रही हूं। वैसे तो तुम्हारी जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो तुम्हें भी बुलावा आ सकता है। लेकिन घबराओ मत, में हूं।" मैं बोली और मेरी मां मुझे ताज्जुब से देख रही थी कि उसकी बेटी कब इतनी बड़ी हो गई इसका उसे अंदाजा भी नहीं था।
"जी मैडम जी। अगर मेरी जरूरत पड़ी तो मैं अवश्य आ जाऊंगा।" वह अपना सर हिलाते हुए बोला।
"ठीक है।" कहकर मैं अपनी मां के साथ सीधे प्रिंसिपल के पास चली गयी। मेरी मां ने प्रिंसिपल को मेरे साथ जो कुछ हुआ उसके बारे में बताया। न केवल मेरे साथ हुई घटना के बारे में, बल्कि उन लड़कों की अबतक की सारी करतूतों के बारे में बताया और सबूत के तौर पर प्रिंसिपल के हाथ में रफीक का मोबाईल थमा दिया। सबकुछ सुनकर और मोबाईल में मौजूद फोटो और वीडियो को देखकर प्रिंसिपल आग बबूला हो गया और चपरासी को बुला कर उन लड़कों को बुला कर लाने को कहा। इस बीच प्रिंसिपल ने कॉलेज के दो चार और सीनियर स्टाफ को बुला लिया। कुछ ही देर में चपरासी पुनः वापस आ कर बताया कि उन लड़कों में से कोई भी आज कॉलेज नहीं आया है। यह सुनकर प्रिंसिपल ने उनके अभिभावकों को फोन लगाया तो पता चला कि सभी लड़के अस्पताल में भर्ती हैं। राजू का सर फट गया था, रफीक का हाथ टूट गया था, विशाल का जबड़ा टूटा हुआ था और अशोक की टांग टूटी हुई थी।
"यह सब तुमने किया?" प्रिंसिपल ने मुझे आश्चर्य से देखते हुए पूछा। कल की घटना मेरी मां बता चुकी थी और उन लड़कों का अस्पताल में भर्ती रहना, उसी बात की पुष्टि कर रहा था।
"जी हां सर। मेरा ऐसा करना जरूरी था वरना मैं उनके चंगुल से निकल नहीं सकती थी।" मैं दृढ़ता से बोली।
"वेल डन माई गर्ल। अब इन पर ऐक्शन लेने की बारी मेरी है। मैं विश्वास दिलाता हूं कि ऐसे आवारा लड़के दुबारा हमारे कॉलेज में कदम भी नहीं रख पाएंगे।" वे मुझसे बोले फिर मेरी मां की तरफ मुखातिब हो कर बोले, "सॉरी मैडम, आपकी बेटी को इन सबसे गुजरना पड़ा। वन्स अगेन आई एम रीयली वेरी सॉरी। आपको जिस मानसिक स्थिति से गुजरना पड़ा उसके लिए फिर से माफी चाहता हूं। आपको गर्व होना चाहिए कि आपकी बेटी इतनी बहादुर है।" उनकी आंखों में मेरे लिए प्रशंसा के भाव थे। मैं खुश थी कि सबकुछ सलट गया था।
"अब आप बेफिक्र होकर जाईए। आज के बाद हमारे कॉलेज में ऐसा कभी नहीं होगा, यह मेरा वादा है।" प्रिंसिपल साहब ने मेरी मां से कहा।
"थैंक्यू सर।" कहकर मेरी मां मेरे साथ ऑफिस से निकली। मैं उन्हें गेट तक छोड़ने आई। मेरी मां के जाते ही मैं रघु की ओर मुड़ी।
"अब कैसे हो?" मैं उससे बोली।
"थोड़ा थोड़ा यहां वहां दर्द है लेकिन कुल मिलाकर ठीक हूं।" वह बोला।
"तुम्हारी जरूरत नहीं पड़ी। सबकुछ सलट गया।" मैं बोली।
"थैंक्यू मैडमजी।"
"खाली थैंक्यू से काम नहीं चलेगा। मेरी बात याद है ना?" मैं उसकी आंखों में देखते हुए बोली।
"कौन सी बात मैडम?"
"भूल गए?"
"आपने तो बहुत सारी बातें कही हैं। कौन सी बात के बारे में पूछ रही हैं?"
"तुम्हारे पपलू की बात कर रही हूं गधे।"
"ओह। मैंने भी तो कहा था कि जब भी जरूरत हो, खाली बोल दीजियेगा, मैं हाज़िर हो जाऊंगा।" उसकी आंखें चमक उठीं।
"गुड। अब मैं चलती हूं क्लास।" कहकर एक दिलकश मुस्कान उसकी ओर उछाल कर मैं क्लास की ओर बढ़ गयी। आज मेरी सहेलियों को बताने के लिए मेरे पास बहुत सारा मसाला था।

आगे की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए अपनी गरम रोजा को आज्ञा दीजिए।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#95
गरम रोजा (भाग 7)

उस दिन फिर हम सभी सहेलियां कैंटीन में बैठी थीं। मैं इस वक्त हल्के गुलाबी रंग की टॉप और गहरे नीले रंग की स्कर्ट में थी। मैंने पहले ही उन्हें बता दिया था कि आज मेरे पास बताने के लिए बड़ा ही मजेदार किस्सा है। सभी ब्रेक की बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। जैसे ही ब्रेक हुआ़, हम सभी जल्दी से कैंटीन में अपनी अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गये।
"हां अब बताओ क्या मजेदार किस्सा बताना चाह रही हो?" शीला ज्यादा ही बेसब्र हुई जा रही थी। मैं कल की सारी घटना सिलसिलेवार बताती रही और उनके चेहरे के चढ़ते उतरते भावों को देख देख कर मजे लेती रही। उन चारों लड़कों के बारे में सुनकर सबकी नजरें कैंटीन के चारों ओर घूम गयी।
"अरे सही में ये चारों लड़के आज दिखाई नहीं दे रहे हैं।" रेखा बोली।
"दिखाई कहां से देंगे साले। चारों अस्पताल के बिस्तर पर पड़े हैं।" मैं बोली।
"इतनी बुरी तरह मारा है तुमने? तुम दिखती तो नहीं हो ऐसी?" रश्मि चकित हो कर बोली।
"मेरे दिखने पर मत जाओ। जब किसी पर बीतती है ना तो ताकत खुद ब खुद आ जाती है। राजू का सर फटा है, रफीक का हाथ टूटा है, विशाल का जबड़ा टूटा है और अशोक की टांग टूटी है। अब तो वैसे भी ये लोग दुबारा इस कॉलेज में कदम भी नहीं रख पाएंगे।" मैं बोली।
"अच्छा! ऐसा क्या हो गया है?" शीला बोली।
"अरे मां के साथ प्रिंसिपल को सारी बात बता आई हूं और रफीक का मोबाईल भी दे आई हूं जिससे वे लोग लड़कियों की नंगी तस्वीरें खींचते थे और वीडियो बनाते थे। प्रिंसिपल ने खुद कहा है कि इस कॉलेज से उनकी छुट्टी हो जाएगी।" मैं बोली।
"वाह, यह तो बहुत बढ़िया हो गया। लेकिन तुमने रफीक की मोबाईल प्रिंसिपल को देने से पहले हमें भी दिखा दिया होता तो मजा ही आ जाता।" रेखा बोली।
"अरे उसकी चिंता मत करो। सबकुछ मैंने अपने मोबाईल में कॉपी कर लिया है।"
"दिखाओ, दिखाओ।" सभी एक साथ बोल पड़े।
"अभी यहां नहीं। कॉलेज की छुट्टी के बाद देख लेना।"
"तब तक इंतजार नहीं होगा।" रश्मि बड़ी बेताबी से बोली।
"चुप साली हरामजादी कुतिया। इंतजार नहीं होगा, ऐसे बोल रही है जैसे मर ही जा रही है। और किसी को पता चल जाएगा कि हमारे पास भी उन फोटोज़ और वीडियोज की कॉपी है तो सचमुच हम गये काम से। अच्छा एक काम करते हैं। आज कॉलेज की छुट्टी होते ही सभी मेरे घर चलते हैं। मेरा घर यहीं पास में है। मेरे कमरे में जाकर देखते हैं। क्या बोलती हो सब लोग? सभी लोग घर में बता दो कि आज लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी।" शीला बोली।
"हां हां यही ठीक रहेगा।" सबके सब एक स्वर में बोले। उसके बाद बाकी पीरियड कैसे वे लोग पहलू बदलते हुए काटे ये तो वही लोग जानते होंगे। जैसे ही कॉलेज की छुट्टी हुई, हम भागे भागे शीला के घर जा पहुंचे।
"नमस्ते आंटी।" हमने एक साथ शीला की मां का अभिवादन किया।
"क्या बात है भई, आज सारी सहेलियां एक साथ?" शीला की मां हमें एक साथ देख कर आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी से बोली।
"हां मम्मी, ये लोग बोल रही थीं बहुत दिनों से हमारे घर नहीं आई हैं, सो आज हमारे घर का पानी पी कर जाएंगी।" शीला बोली।
"बहुत अच्छा किया। तुम लोग आई हो तो कुछ देर इसकी शैतानी से मुझे राहत मिलेगी, वरना यह तो कॉलेज से घर आते ही मेरी नाक में दम करके रखती है।" उसकी मां बोली।
"अच्छा! ऐसा है? यह तो कॉलेज में बड़ी शरीफ बनती है!" मैं शीला को छेड़ती हुई बोली।
"अच्छा! मैं तो समझती थी कि कॉलेज में भी इसकी शैतानी ऐसी ही रहती होगी।" उसकी मां आश्चर्य से बोली। "अच्छा चलो अब तुमलोग आराम से बैठ कर बातें करो, मैं चाय पानी भिजवाती हूं।" कहकर उसने नौकरानी को आवाज दी। नौकरानी तुरंत किचन से दौड़ी चली आई। वह पचीस तीस साल की एक अच्छी खासी, सामान्य से अधिक लंबी, (करीब पांच फुट दस इंच) और अपने कद के अनुसार मजबूत देहयष्टि वाली जवान महिला थी। सांवली थी लेकिन चेहरा मोहरा आकर्षक था। पता नहीं क्यों, लेकिन उसे देख कर मुझे थोड़ा अजीब सा लगा। वह हम सबको बड़े गौर से देख रही थी। तभी मैंने देखा कि शीला और उस नौकरानी की आंखें चार हुईं और एक रहस्यमई मुस्कान उन दोनों के होंठों पर आई। कुछ न कुछ तो था इन दोनों के बीच में था जो मैं समझ नहीं पाई। खैर मुझे क्या।
[+] 3 users Like Rajen4u's post
Like Reply
#96
wow nice update
Like Reply
#97
"मम्मी, हमलोग सभी मेरे कमरे में जा रही हैं। वहीं चाय पानी भिजवा देना।" शीला बोली।
"ठीक है ठीक है। मैं वहीं भिजवाती हूं।" कहकर वह नौकरानी को आदेश देने लगी और बोली, "मैं जरा कमला के पास जा रही हूं। कुछ भी जरूरत होगी तो राधा को बोल देना।" जैसे ही शीला की मम्मी बाहर निकली, हमलोग बड़ी बेसब्री से शीला के कमरे में जा घुसे।
"कहां, कहां, जल्दी दिखा।" कमरे में घुसते न घुसते सभी मेरी ओर झपटे।
"अरे हड़बड़ाओ मत, पहले दरवाजा तो बंद करने दो।" कहकर शीला दरवाजा बंद करने लगी।
"और अगर तुम्हारी नौकरानी आ गई तो?" रेखा बोली।
"अरे चिंता मत करो। वह पहले दरवाजा खटखटाएगी। ऐसे थोड़ी न घुसी चली आएगी।" शीला बोली।
फिर जैसे ही मैंने मोबाईल निकालकर अनलॉक की, शीला झपट कर मेरे हाथ से मोबाईल ले ली और अपने बेड पर बैठ गई। रेखा और रश्मि भी उसकी बेड पर चढ़ कर उसके पीछे बैठ गयीं। अब जैसे ही उसने गैलरी खोला तो मेरी सांस रुक सी गई। पहली शुरुआत मेरी नंगी फोटो से ही हुई। सबकी आंखें फटी की फटी रह गईं। हे भगवान, मैं ने अपनी फोटो और वीडियो को तो अलग फाईल में डालना भूल ही गई थी। मैं उसके हाथ से मोबाईल छीनने की कोशिश करने लगी तभी दरवाजा खटखटाया गया। दरवाजे खुलने से पहले शीला ने मोबाईल छिपा लिया था। सामने नौकरानी पानी की ट्रे लेकर खड़ी थी। रेखा दौड़ कर उसके हाथ से पानी की ट्रे ले ली और सामने टेबल पर रख दी। जैसे ही नौकरानी कमरे से बाहर निकली, मैं फिर से शीला की ओर झपटी लेकिन शीला सावधान थी। मैं अपने प्रयास में सफल नहीं हो पाई।
"प्लीज़ मेरी फोटो मत देखो।" मैं गिड़गिड़ाई।
"अरे देखने तो दे। जरा देखें तो तुम बिना कपड़ों के कैसी दिखती हो।" शीला शरारत भरे लहजे में बोली।
"हाय राम, कैसी बेशरम हो तुमलोग।" मैं लाज से मरी जा रही थी। मैं फिर एक कोशिश की छीनने की लेकिन इस बार भी असफल रही। थक हार कर वहीं टेबल के पास एक कुर्सी पर सर पकड़ कर बैठ गई।
"अरे यार, जरा देखो तो क्या गजब की फिगर है इसकी।" शीला बोली।
"फिगर तो गजब की है ही, इसकी चूचियां तो देखो। साली पता नहीं क्या खाती है। ऐसी चूचियां तो हमलोगों की भी नहीं है।" रेखा बोली।
"एकदम पक्की बात है, यह जरूर किसी न किसी से चूचियां दबवाती है तभी तो... " रश्मि बोली।
"चुप साली हरामजादी। दबवाती होगी तू।" मैं झल्ला कर बोली।
"हां तो, दबवाती तो हूं लेकिन हमें लगता है तेरी चूचियां दबाने वाला हमारे वालों से भी जबरदस्त चुदक्कड़ होगा।" शीला बोली।
"हां हां, सच बोल रही हो। इसकी चूत देखो तो, एकदम मालपुए की तरह है। अच्छा खासा लौड़ा वाला होगा जो इसको चोदता होगा।" रेखा बोली।
"साली कुतिया, मेरी चूत देख रही है, अपनी दिखा तो?" मैं गुस्से में बोली।
"दिखाऊं?' रेखा खड़ी हो गई। तभी फिर दरवाजा खटखटाया गया। हम सब चुप हो गये। दरवाजा खुला तो नौकरानी चाय लेकर हाजिर थी। रेखा झट से उसके हाथ से चाय की ट्रे लेकर फिर से दरवाजा बंद कर ही रही थी कि शीला ने नौकरानी को आवाज दी,
"राधा, जरा रुक जाओ, हम जैसे ही चाय खत्म करते हैं, तुम खाली कप लेकर चले जाना।"
"जी शीला बीबी, मैं यहीं खड़ी हूं।" कहकर वह वहीं खड़ी हो गई। वह खड़े खड़े हम सबों को बड़े गौर से देखे जा रही थी। जैसे ही हमने चाय खत्म की, राधा सारे जूठे कप को लेकर बाहर निकल गयी। रेखा झट से दरवाजा बंद करने के लिए दरवाजे की ओर चली। दरवाजा बंद करके जैसे ही पलटी,
"हां, अब दिखा।" मैं ताव में आकर बोली।
[+] 1 user Likes Rajen4u's post
Like Reply
#98
"जा नहीं दिखाती, क्या कर लेगी।" वह मुझे चिढ़ाती हुई बोली। अब मुझसे रहा नहीं गया और झपट कर उसे पकड़ ली और वह नहीं नहीं करती रही लेकिन मेरी ताकत के सामने उसकी एक नहीं चली। मैं उसे बिस्तर पर पटक कर उसके ऊपर चढ़ गई और देखते न देखते उसकी जींस खोल बैठी। वह मेरे नीचे छटपटाती रही लेकिन मैं खींच खांच कर जीन्स के साथ ही साथ उसकी पैंटी भी उतारने में सफल हो गयी। अब उसकी चिकनी नंगी चूत हमारे सामने थी। शीला और रश्मि तमाशा देख रही थीं।
"हाय राम। साली रंडी कहीं की, यह क्या कर बैठी।" रेखा गुस्से से बोली।
"तो ये है लंडखोर की चूत। मां की लौड़ी मुझे बोल रही थी ना मालपुए सी चूत। यह क्या कम है? अब इसकी चूचियों को दिखाती हूं।" मैं पूरी तरह उसे अपने कब्जे में ले चुकी थी।
"नहीं नहीं प्लीज़ रोजा छोड़ दे।" वह बेबसी में गिड़गिड़ाने लगी थी।
"साली बुरचोदी, छोड़ दूं? बिना तेरी चूचियां देखे कैसे छोड़ दूं?" कहकर मैं उसकी टॉप के बटन खोलने लगी। वह छटपटा रही थी लेकिन मेरी ताकत के आगे उसकी एक न चली। उसकी टॉप के बटन खोल कर उसकी ब्रा का हुक खोलने में कामयाब हो गयी। जैसे ही उसकी ब्रा खुली, उसकी बड़ी बड़ी चूचियां फुदक कर बाहर निकल आईं।
"अब बोल लंडखोर, किससे चुदवा कर अपनी चूत और चूचियों को इतना बड़ा की?" मैं अब उसके ऊपर से उठ गयी और उसे चिढ़ाते हुए बोली।
"वाह वाह यह हुई ना बात। आज इसका सामान भी हमने देख लिया। क्या गजब की लौंडिया है रे तू तो।" शीला आंखें फाड़कर उसे देखते हुए बोली।
"सच बोल रही है तू। हां तो रेखा बीबी, जबतक हम ये फोटो और वीडियो देखते हैं, तू इसी तरह रह।" यह रश्मि थी।
"हाय राम, यह भी कोई बात हुई? मैं तो अपने कपड़े पहन कर ही मानूंगी।" रेखा बोली और अपने कपड़ों की ओर झपटी लेकिन मैं सतर्क थी। उसके कपड़ों को शीला की ओर उछाल दी। रेखा जब उधर भागी तो शीला ने रश्मि की ओर फेंका जिसे रश्मि ने बड़ी फुर्ती से लपक लिया। इसी तरह फेंका फेंकी से थक हार कर रेखा उसी तरह नंगी ही बैठ गई।
"चलो अब बहुत हुआ। हम यही करते रहेंगे तो यह मोबाईल क्या गांड़ मरवाने के लिए मैं पकड़ी हुई हूं। चलो चलो इधर आओ।" शीला बोली। रेखा उसी तरह नंगी ही उठ कर शीला की ओर आई तो मैं भी उसके पीछे आ कर बैठ गयी। अभी शीला मोबाईल पर गैलरी खोल ही रही थी कि मैं रेखा की चूचियों पर हाथ रख दी।
"यह क्या कर रही है हरामजादी?" वह मेरे हाथ झटकते हुए बोली लेकिन मैं कहां मानने वाली थी। अब मैं ने उसकी चूचियों को पकड़ लिया था। किसी दूसरी लड़की की चूचियों को पकड़ने का यह पहला मौका था मेरे लिए और मुझे एक अलग तरह का अहसास हो रहा था। एक अलग तरह की उत्तेजना का अनुभव कर रही थी।
"तू मानेगी नहीं?" रेखा तड़प उठी थी।
"अभी तो सिर्फ चूचियों को पकड़ी हूं, अभी तो यह भी बाकी है," कहकर मैं उसकी चूत छूने और सहलाने से खुद को रोक नहीं पाई और मैं रेखा की चूत पर भी हाथ लगा दी। उफ उफ, किसी और लड़की की चूत को छूना बड़ा अजीब सा लग रहा था। मैं गनगना उठी।
"अरी रंडी, यह क्या कर रही है?" वह मेरे सामने से हटने की कोशिश करने लगी लेकिन मैंने उसे कस के पकड़ लिया और जबरदस्ती उसकी चूत को छेड़ने के लालच से बच नहीं पाई और उसकी चूत को सहलाते हुए छेड़छाड़ करने लगी। ओह मेरे राम, यह सब करते हुए अलग तरह का आनंद आ रहा था।
"उई मां। तू मुझे पागल कर रही है मां की लौड़ी।" रेखा तड़प रही थी लेकिन मैं अब उसके भगनासे को उंगली से छेड़ने लगी थी। इधर उसके नाज़ुक अंगों की छेड़छाड़ के कारण "आआआआआआह ओओओहहह....." वह सिसकारियां निकालने लगी।
[+] 1 user Likes Rajen4u's post
Like Reply
#99
Wah roj ke agl hi maze hai
Like Reply
"अरी भोंसड़ी वाली, क्या करने का इरादा है?" वह उत्तेजित हो कर बोल उठी।
"तुम्हें बताना चाहती हूं कि उस लेबोरेट्री में मेरे साथ जो कुछ हो रहा था उस वक्त मेरी क्या हालत हो रही थी।" मैं बोली। सच तो यह था कि ऐसा करने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था। मैं भी भयानक उत्तेजना का अनुभव कर रही थी। मर्द होती तो अभी ही उसे पटक कर चोद देती, लेकिन हाय रे मजबूरी, मैं लड़की थी। उसके नाज़ुक अंगों से खेलने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी।
"समझ गई समझ गई। अब तो छोड़ दे मेरी मां आआआआह।" सचमुच वह बहुत उत्तेजित हो गई थी। उसका बदन ऐंठने लगा था और यही हाल मेरी भी थी। मैं भी एक नयी तरह की उत्तेजना का अनुभव कर रही थी।
"लो छोड़ दी।" मैंने अंततः कहा और न चाहते हुए भी उसे उसी उत्तेजना की हालत में छोड़कर हट रही थी तो रेखा मुझे कस कर पकड़ ली और मुझसे चिपकने लगी। मेरी हालत भी कम बुरी नहीं थी। मन तो कर रहा था कि उसके नंगे बदन से लिपट जाऊं। मैंने आज तक किसी दूसरी लड़की के नाजुक अंगों से इस तरह खिलवाड़ नहीं किया था लेकिन खुद को बड़ी मुश्किल से नियंत्रण में रखे हुए थी।
"अब इन नौटंकीबाजों को देखो। साली हरामजादियां यहां क्या करने आई थीं और क्या कर रही हैं।" शीला हमारी ओर देखते हुए बोली।
"अच्छा चलो पहले इन्हीं लोगों का तमाशा देखते हैं।" रश्मि भी हमारी हरकतों पर रुचि लेने लगी थी।
"हां हां देखो देखो। साली इस लड़की के नंगे सेक्सी बदन को देख कर कौन मादरचोद खुद को कंट्रोल में रख पाएगा।" मैं हांफती हुई बोली।
"साली रांड, मेरी जैसी ही हालत कल तेरी हुई थी तो तू कल शांत कैसे रह सकी?" रेखा तड़प कर बोली।
"शांत रही? साली मेरे बदन में आग लगी हुई थी। उन बदमाशों की जबर्दस्ती पर मुझे गुस्सा आ रहा था, फिर उन कमीनों के आगे कैसे समर्पण कर देती। बस मन में आ रहा था कि उस वक्त उनके अलावा कोई भी और मर्द मिल जाता और ढंग से प्रोपोज करता तो कसम से उसकी बांहों में समा कर खुद को समर्पित कर देती लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कॉलेज से निकलते वक्त और घर लौटने तक तड़पती रही थी।" मैं बोली।
"इसका मतलब घर लौटने तक कुछ नहीं हुआ लेकिन, घर लौट कर हुआ, यही ना? आखिरकार शांत तो हुई ना, बताओ बताओ कैसे शांत हुई? तुम्हारे घर में ऐसा कौन था जिससे मरवा कर शांत हुई?" रेखा मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी।
"यह मत पूछो तो अच्छा है, यह लंबी कहानी है। बताने लायक नहीं है।" मैं बोली। मैं यह कैसे बताती कि घुसा से गांड़ मरवा कर मेरी कामाग्नि शांत हुई थी? जोश जोश में गांड़ मरवा कर मेरी गांड़ की जो दुर्गति हुई थी वह कैसे बता देती? दुर्गति हुई तो हुई फिर भी कैसे घुसा जैसे गर्दभ की गर्दभी बन गुदामैथुन से गदगद हुई, यह कैसे बताती? कैसे बता देती कि मेरी जख्मी गांड़ में अभी भी हल्की हल्की जलन सी महसूस हो रही थी? मीठी मीठी सी ही सही, मलद्वार में खुजली हो रही थी यह कैसे बताती? सब लोग मेरी इस हालत का माखौल ही तो उड़ाते।
"बताना तो पड़ेगा ही। यहां हम कौन सी दूध की धुली हैं। अरे हम सब किसी न किसी से मरवाती हैं। बता ना।" रेखा बोली।
"मैं बोल रही हूं ना, बताने लायक नहीं है।" मैं झुंझला कर बोली।
रेखा और मेरे बीच जो हरकतें हो रही थीं उसे देख कर और हमारे बीच जो वार्तालाप चल रहा था उसे सुन कर शीला और रश्मि हमारी ओर आकर्षित हो चुकी थीं और मजा ले रही थीं।
"साली कुत्ती, जो इस वक्त कर रही हो वह तुझे करने लायक लग रहा है और जो कल तुम्हारे साथ घर में हुआ वह बताने लायक नहीं है, यह भी कोई बात हुई?" रेखा मुझसे लिपटते हुए बोली।
"सुन कर क्या करोगी? मुझपर छी छी थू थू करोगी। नहीं बता सकती।" मैं बताने से हिचकिचा रही थी। सुन कर पता नहीं ये लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे।
"बताना तो पड़ेगा ही, नहीं तो यहां से निकल नहीं पाओगी।" कहकर वह मेरे टॉप को खोलने लगी।
"यह क्या कर रही हो तुम? रुको रुको। अच्छा बाबा ठीक है बताती हूं।" मैं घबराकर बोली लेकिन तब तक वह मुझ पर चढ़ गयी थी और आनन-फानन मेरे टॉप को खोल दी। मैं ज्यादा विरोध करती तो मेरी टॉप की बटन टूट जाती। अब मैं ने खुद को उसके हवाले करने में ही अपनी भलाई समझ ली थी। वैसे मैं भी यही चाहती थी। मुझे समर्पण की मुद्रा में देख कर उसका हौसला बढ़ गया और उसने बड़े आराम से मेरी ब्रा को खोल दिया जिससे मेरी थरथराती उन्नत, चमचमाती चूचियां छलक कर बाहर आ गयीं। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, इतनी देर से मूक दर्शक बनी शीला और रश्मि भी मुझ पर टूट पड़ीं और देखते ही देखते मेरी स्कर्ट और पैंटी से मुझे मुक्त करके पूरी तरह नंगी कर दिया।
[+] 2 users Like Rajen4u's post
Like Reply




Users browsing this thread: 4 Guest(s)