Thread Rating:
  • 1 Vote(s) - 5 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Fantasy पेशाब
#1
दोस्तों आपके सामने एक छोटी सी कहानी ले कर आया हूँ.
जो की एक रात की घटना पर आधारित है.
कैसे एक छोटी सी पेशाब की घटना, कितना बढ़ा बदलाव ला सकती है.
चलिए एक सफर पर चलते है.

पेशाब

[Image: IMG-20231101-110756-028.jpg]


"क्या आरिफ क्या जरुरत थी इतना पीने की?"

साबी ने अपने लड़खड़ाते पति आरिफ का हाथ पकड़ते हुए बोला

"अरे जान कुछ नहीं हुआ है ये तो मेरा रोज़ का है "

आरिफ ने अपने हाथ को छुड़ाते हुए दिलासा दिया.

साबी और आरिफ पति पत्नी आज अपने दोस्त की किसी पार्टी मे शामिल थे.

ऊंचे घराने के थे तो लाजमी है पार्टी भी अलीशान थी, शाबाब कबाब सब कुछ शामिल था.

इसी माहौल मे आरिफ ने कुछ ज्यादा ही ड्रिंक कर ली थी, हालांकि उसके कहे अनुसार ये समान्य बात थी

लेकिन साबी कुछ परेशान थी, उसे जल्दी घर पहुंचना था उसके दो बच्चे घर पे उनकी राह देख रहे होंगे.

हालांकि बच्चे बड़े थे, साबी खुद 40 के पड़ाव मे थी लेकिन कोई माई का लाल ये बात कह नहीं सकता था.

आज पार्टी मे भी साबी सभी के आकर्षन का केंद्र बनी हुई थी.
[Image: bc39f6d31f69d2e1c5ab55c410789daf.jpg]
सिल्क one पीस गाउन मे क्या कहर ढा रही थी ये तो वही जाने जिनके अरमानो पे सांप मंडरा रहे हो.

साबी आज उम्र के 40वे दशक मे थी, लेकिन काया अभी भी कोई 30 साल की युवती की थी.

कसा हुआ बदन, कड़क माध्यम आकर के स्तन जिसकी मादक लकीरें चमकिले गाउन मे साफ देखि जा सकती थी. बाहर को निकली गांड किसी घमंडी पहाड़ की तरह बाहर को निकली शोभा बिखेर रही थी.
आज पार्टी मे सभी मर्दो की नजर इसी खजाने पर थी.

"क्या बात है साबी आज सारे मर्द तुम्हे ही देख रहे है "
कई महिलाओ ने साबी को जैसे तने मारे हो.
औरते खूबसूरत औरतों से जलती ही है.

साबी क्या करती हस के रह जाती.

"ऐसा कुछ नहीं है आप लोग भी ना " हालांकि साबी जानती थी मर्दो की नजर को.

उसका बदन था ही ऐसा, जो देखता जी भर के देखता.

आज पार्टी मे भी ऐसा ही था.

34 के कैसे हुए स्तन अपने पराक्रम पे थे ही ऊपर से क़यामत ये की साबी ने गाउन पहना हुआ था जिसमे उसके नितम्भ साफ झलक पड़ रहे थे.

चलती तो आपस मे रागड खा कर एक कामुक आवाज़ उत्पन कर दे रहे थे.

ना जाने कितने मर्द आज पार्टी मे पानी फैला चुके होंगे.

कितने तो अपनी किस्मत को कोष रहे होंगे " हमें क्यों नहीं मिली ऐसी औरत "

मर्द तो मर्द जलने मे औरते भी कम ना थी.

उनके टोंट साबी भली भांति समझती थी.

कई मर्दो ने आज पार्टी मे इस मौके को भूनना भी चाहा लेकिन कामयाब नहीं हो सके, साबी किसी को भाव देने मे भलाई नहीं समझती थी या फिर उसकी ये पसंद थी ही नहीं.

बिगड़े अमीर शराबी लोग जिन्हे हुश्न की कोई परवाह नहीं.

समय रात 11:30

चलो रवि बहुत समय हो गया बच्चे इंतज़ार कर रहे होंगे, सर्दी का समय है "
साबी लगभग आरिफ को पकडे बाहर लेती चली गई.
करती भी क्या आरिफ दोस्तों के बीच से हट ही नहीं रहा था.
हालांकि साबी ने भी एक दो पैग वोडका के ले लिए थे, बाकि महिलाओ के दबाव मे.
लेकिन नशा कुछ खास नहीं था जबकि वोडका से जिस्म मे कुछ गर्मी थी.

जो की इस सर्दी मे स्लीवलेस पहने साबी के लिए राहत का सबाब था.
दोनों कार तक पहुंच चुके थे.
"आरिफ आप चला लोगे ना कार?" साबी ने अशांका जहिर की.
"अरे बेग़म तुम बैठो, सब चला लूंगा मै "
कुछ ही पलों मे कार हाईवे पर थी.
साबी के चेहरे पे एक अलग ही भाव था ना जाने उसका धयान कहाँ था, उसे बार बार पार्टी के दृश्य ही याद आ रहे थे.

कैसे सब लोग उसे ही घुर रहे थे, कोई बूब्स देखता तो कोई पलट पलट के उसकी हिलती मादक गांड को निहारता
 जो की उम्र के साथ और भी मादक और बड़ी हो चली थी.
साबी का जिस्म गरम था, कुछ कुछ वोडका का असर था तो कुछ उन निगाहो का जो उसके जिस्म को भेद रही थी, कपडे फाड़ कर अंदर घुस जाना चाहती थी.

अभी कार कुछ दूर चली थी थी की "उफ्फफ्फ्फ़...... ये रोड " कार के झटको से साबी के नाभि के निचे कुछ हलचल हो रही थी.

जब से पार्टी से निकली थी एक दबाव तो महसूस हो रहा था जो की अब पेशाब का रूप ले चूका था.
हर झटके के साथ लगता जैसे पेशाब की कुछ बुँदे निकल ही जाएगी.
साबी ने आरिफ की तरफ देखा जो की कार चलाने और सामने सड़क पर आंखे जमाए बैठा था.
[Image: images-2.jpg]
थोड़ी दूर जाने पे अहसास हुआ की अब सहन कारना मुश्किल है.
"आरिफ ..... आरिफ ..... आरिफ .... कार रोको ना "
साबी ने जैसे याचना की हो.
"क्या हुआ जान अभी पुणे शहर आने मे 25km का फासला है.
"वो बात नहीं है मुझे टॉयलेट आया है "
"रुको थोड़ी देर सुनसान रास्ता है आगे कही ढाबे पे रोकता हु"
[Image: giphy.gif]
आरिफ कार चलाने पर ध्यान दे रहा था.
वो होता है ना दारू पीने के बाद आदमी गाड़ी चलाने मे एक्स्ट्रा ध्यान फूँक देता है रवि की भी यही हालत थी.

"तभी तो कह रही हूँ रोड सुनसान है, जल्दी से कर लुंगी, अब रोकना मुश्किल है "
साबी के सब्र का पेमाना छलक रहा था.

"क्या यार तुम भी..... चरररररर......." करती कार रुक गई."
कार का रुकना था साबी तुरंत गेट खोल दौड़ पड़ी, सड़क सुनसान थी.
क्या देखना था क्या समझना था,
तुरंत सड़क किनारे पहुंची, एक झटके मे गाउन ऊपर किया, चड्डी निचे की और बैठ गई वही सड़क किनारे....

ससससससररररर......... ररररर...... सससससस......
[Image: images.jpg]
एक तेज़ धार चुत से निकल सड़क किनारे मिट्टी को गीली करती चली गई.
साबी को मानो स्वर्ग मिल गया हो, ऐसी राहत ऐसा सुकून क्या बयान किया जाये इस सुख को.
[Image: images.jpg]
साबी की आंखे बंद होती चली गई, जिस्म के रोंगटे खड़े होते चले गए.
जैसे जैसे पेशाब बाहर आता गया वैसे ही जिस्म हल्का होता चला गया,
लेकिन जिस्म की गरमहट अभी भी बारकरार थी, ऊपर से ठंडी हवा के झोंके उसकी चुत से होते गांड की दरार को छेड़ते आगे भाग जा रहे थे.

गजब का सुकून था.
साबी ऐसा कुछ जीवन मे पहली बार कर रही थी.
ये पहला मौका था जब वो ऐसे खुले मे मूत रही थी.
समय समय की बात है.
कभी उसकी चुत से निकले अमृत की गवाह उसकी अलीशान महंगी टॉयलेट सीट थी आज ये गिरती मरती सड़क है.

उसी स्थान पर कुछ समय पहले.

"अबे मादरचोद हरिया साले दारू तो ले आया ये, पानी तेरा बाप लाएगा "
"चुप भोसडीके मुझे लगा पानी तू ला रहा है"
हरिया और कालिया पास ही गांव के हरामी अधेड उम्र के आदमी सड़क किनारे बैठे दारू पर बहस कर रहे थे.
दोनों ही बचपन के यार, एक नम्बर के पियक्कड़, बदनाम, मनचंले आदमी.
उम्र के हिसाब से 50वा दशक चल रहा था, लेकिन आज भी वही जवानी बारकरार थी.
ना कभी शादी की ना कोई जिम्मेदारी
बस दारू और लोंड़ियाबाजी से ही इनकी पहचान थी, गांव की औरते इन दोनों से बच के ही चलती थी.
हालांकि गांव और आस पास के इलाके मे इनका दबदबा भरपूर था, कुछ तो दोनों की एकता और कुछ इनके लंड की ताकत.
जी हाँ.... ये दोनों ही किसी राक्षस से कम नहीं थे दीखते मे काले कलूटे लेकिन बदन ऐसा की कोई चट्टान हो.
जिसको चोदते साथ ही चोदते, और जो औरत चुद जाती वो इनकी दीवानी ही हो जाती.
महिलाओ मे लोकप्रिय थे लेकिन गांव के आदमी इन्हे दुश्मन ही मानते थे.
आज भी साले दारू के लिए लड़ रहे थे.
की तभी....



चाररर....... करती एक सफ़ेद कार सड़क पर आ रुकी.
[Image: images-1.jpg]
अभी दोनों कुछ समझते ही की...
एक अप्सरा जैसी शहरी औरत जल्दी से कार का गेट खोल भागती हुई सड़क किनारे ही जा बैठी.

ऊपर सड़क उसके जस्ट निचे हरिया कालिया.....
साबी का गाउन ऊपर होता गया, इन दोनों की सांसे हलक मे चढ़ती चली गई.

दोनों के सामने एक शहरी साफ चिकिनी चुत चमक रही थी, अभी दोनों कुछ सोच समझ पाते की ससससरररर....... ररररर..... सससस...... उस अमृत कलश से एक तेज़ धार फुट पड़ी.
[Image: 4422861.gif]
"आआआहहहह..... उफ्फ्फफ्फ्फ़....." साबी के मुँह से एक राहत की सांस निकल पड़ी.
सामने ही झड़ी के पीछे हरिया कालिया को जैसे सांप सूंघ गया था, कभी एक दूसरे को देखते तो कभी सामने के दृश्य को.
साबी इन सब से अनजान आंख बंद किये, राहत की सांसे भर रही थी.
[Image: 20210802-234103.jpg]
साबी को राहत थी लेकिन उन दोनों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

साबी की चुत से निकले पेशाब की एक एक बून्द सड़क को नहीं उनके जिस्म को गिला कर रही थी.
क्युकी साबी जहा बैठी थी, उसके सामने ही झाड़ी के पार निचे हरिया कालिया दारू पीने बैठे थे.

पेशाब की धार छटक के उन दोनों के जिस्म को भिगो रही थी,
और ये दोनों काम पीपाशु रक्षासो को तो जैसे स्वर्ग का नजारा दिख गया था इसके लिए वो इस अमृत मे भीग जाना चाहते थे.
[Image: 20210802-222001.jpg]

Contd.....
[+] 3 users Like Andypndy's post
Like Reply
Do not mention / post any under age /rape content. If found Please use REPORT button.
#2
Good start
Like Reply
#3
please continue 
[+] 1 user Likes Chandan's post
Like Reply
#4
Good start
Like Reply
#5
अपडेट -2

[Image: 20210802-222001.jpg]
पीछे से कार की हेड लाइट साबी की गोरी गांड को भीगो रही थी, लेकिन सब बातो से बेखबर साबी मूतने का परम आनंद के रही थी.
"उफ्फ्फ्फ़...... ससससस.... स्सीईई...."
जिस्म ने एक झुरझुरी सी ली, रोंगटे खड़े हो गए थे.
तभी साबी के कानो मे एक सरसराहत की आवाज़ पड़ी, आवाज़ का आना था की साबी की आंखे खुल गई.
सामने जो नजारा था उसे देख साबी का पेशाब वही रुक गया, आंखे फटती चली गई, बदन सफ़ेद हो चला.
सामने झाडी से दो काले कलूटे आदमी झाँक रहे थे, उनकी भी आंखे पथरा गई थी.
वो किसी बूत की तरह एकटक चुत रूपी महीन दरार से झरने को बेहता देख रहे थे,
[Image: images-3.jpg]
 अपितु कुछ कुछ बुँदे उड़ती हुई उनके चेहरे पे किसी अनमोल मोती की तरफ जमा हो गई थी.

साबी को काटो तो खून नहीं, उसे उठना चाहिए था, भागना चाहिए था लेकिन वो भी जड़ थी जैसे दिल ने काम काटना बंद कर दिया हो, चुत से निकलती पेशाब की धार रुक गई थी बीच मे ही.

लेकिन लेकिन..... ये ख्यान आते ही ना जाने कैसे वो उठ खड़ी हुई, और कार की तरफ बेतहाशा दौड़ लगा दी, काली चड्डी अभी भी घुटनो के बीच ही फ़सी हुई थी.
फिर भी जैसे तैसे वो कार तक जा पहुंची....
हमफ़्फ़्फ़..... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... रवि चलो जल्दी.
अंदर घुसते ही उसके हलक से शब्द फुट पड़े.

"गट... गट.... गट....गुलुप " पानी तो पीने दो बेग़म, इतना क्यों हांफ रही हो कोई भूत देख लिया क्या?

रवि ने पानी की बोत्तल खाली करते हुए कहा.
"वो... वो.... कुछ नहीं जल्दी चलो " साबी बस यही रट लगाए हुई थी,
उसे ये तजुर्बा पहली बार महसूस हुआ था, शर्म ग्लानि से वो मरी जा रही थी, ना जाने कब से वो दो अनजान मर्दो के सामने अपनी चुत उघाड़े, आंख बंद किये मुते जा रही थी.
जैसे ही पेशाब का ख्याल आया तो पेट के निचले हिस्से मे कुलबुलाहत सी मच गई, तेज़ पेशाब को जैसे तैसे रोका था उसने, रोकते सम्भलते भी कुछ बुँदे चुत से रिसती हुई जांघो से होती घुटनो तक जा पहुंची थी.

"खररर...... कहरररर.... खरररर....."
"खच्चर्र्टटर..... खररररर..... खच.... कचम... अरे ये क्या कार स्टार्ट क्यों नहीं हो रही " रवि ने चाभी को मरोड़ते हुए कहा.

साबी अपने मे कही खोई हुई थी.
रवि ने एक कौशिश और की "खररर.... कहरररर.... खच....." अभी तो बढ़िया चल रही थी, अब रवि के माथे पर भी चिंता की लकीरें दौड़ आई थी.

"क्या हुआ चलो ना "
"कहाँ से चालू अब गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही"
"ककककक... कक्क... क्या? क्यों नहीं हो रही?"
साबी के दिल की धड़कन बढ़ती ही जा रही थी,

"तुम थोड़ा कंट्रोल नहीं कर सकती थी?" रवि साबी पर भड़क रहा था.
अब इसमें साबी की भी क्या गलती थी ये तो वो प्रेशर है जो रोके नहीं रुकता.

"क्या हुआ साहब कोई समस्या " एक खार्खरती रोबदार आवाज़ रवि की तरफ से कार मे गूंज गई.
दोनों की नजरें विंडो की तरफ चली गई, साबी की सिटीं पिट्टी तो पहले ही गुम थी, सामने वही चेहरे पा कर रहा सहा जोर भी जाता चला गया, लगता था जैसे जो पेशाब बचा है वो अभी ही निकाल जायेगा.
"तत..... त्तत... तुम " एक घुटी सी आवाज़ साबी के गले से निकली जिसने मुँह तक पहुंचते ही दम तौड़ दिया.
बस आंखे उस के दिल का हाल बयान कर रही थी, जैसे अँधेरी रात मे कोई भूत देख लिया हो.
वही रवि इस सुनसान जगह पर मदद के नाम पर ये आवाज सुन ख़ुश था.
झट से रवि ने अपने तरफ का दरवाजा खोल दिया, बाहर निकल तो हलके पैर लड़खड़ा गए,.
"वो... वो.... कार स्टार्ट नहीं हो रही हिचहह...." रवि ने बाहर निकल देखा वहा एक नहीं दो आदमी थे.
"कोई बात नहीं साब यहाँ अक्सर ऐसा हो जाता है, हम लोग है ना, ये हरिया मै कालिया " हरिया ने दोनों का परिचय तुरंत दे मारा.
जबकि दोनों की नजरें रवि के लड़खड़ाते पैरो पे पडती हुई सीधा कार के अंदर दौड़ गई जहा साबी सहमी सी खुद को समेटे बैठी हुई थी. ना जाने उसे क्या डर था... या फिर शर्म थी उसकी चुत देख ली जाने की शर्म.
"आप अंदर बैठ जाइये साब हम देखते है, कार का बोनट खोलिये " हरिया कार के आगे जा पंहुचा जहा उसका जिस्म कार की हेड लाइट से नहा गया.
एकदम काला, मैली सी बनियान पहना एक देहाती आदमी, जिसकी चौड़ी छाती पर बालो का गुच्छा सा था जो लिस्लिसे पसीने से सरोबर हो रखा था.

"खोलिये साब "
"साबी बटन तुम्हारी तरफ है उसे खींचो " रवि ने साबी को बोल दिया.
साबी जैसे कुछ सुन नहीं रही थी, उसके सामने झाडी वाला सीन अभी भी जस का तस था, झाडी से निकला काला शैतान उसके सामने खड़ा था अब.

"साबी.... साबी..."
"जजननन.... जी... जी..."
"वो बोनट का लिवर खींचो " रवि ने फिर से बात दोहराई
साबी की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.

की तभी "रहने दो साब मैडम को क्यों परेशान करते है" साबी की तरफ की विंडो से एक काला मैला हाथ निचे की तरफ सरक गया.
कालिया यहाँ तक पहुंच गया था.
उसका काला हाथ सभी की गोरी जाँघ से रागड़ खाता हुआ लिवर तक जा पंहुचा.
"सससस..... इसस...." एक ठंडी सी लहर ने साबी के जिस्म को और ठंडा कर दिया.
पसीने से भीगा काला गन्दा हाथ साबी की जांघो को गन्दा करता चला गया.

"आप डरिये नहीं मैडम, हम यही पास गांव के लोग है, अभी ठीक कर देंगे "
कालिया ने दिलाशा देते हुए लिवर को झटके से खिंच लिया, एक कैसेली सी गंध पूरी कार मे फ़ैल गई.
इस गंध से रवि अनजान था लेकिन साबी परिचित थी ये उसी के पेशाब की गंध थी जिसमे हरिया कालिया भीगे थे.
अब कालिया भी कार के आगे था बोनट ऊपर हो चूका था.

"अच्छा हुआ ये दो आदमी आ गए, कितने भले होते है गांव के लोग " रवि ने अपना कथन रख दिया.

"मममम... मै डर क्यों रही हूँ, किसी ने कुछ भी तो नहीं किया, गांव के भोले लोग है, मदद करना चाहते है." साबी भी मन ही मन उन दोनों से प्रभावित हुई.
वो सिर्फ शर्मा गई थी, डर गई थी कही लड़ने ना चले आये ये लोग, क्युकी पेशाब करते वक़्त बुँदे उन पर जा छटकी थी.

"उउफ्फ्फ..... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... साबी ने एक गहरी सांस ली क्युकी उसे विश्वास हो चला था की ये दोनों लड़ने नहीं बल्कि मदद के लिए आये है.

लेकिन इस गहमा गहमी मे साबी अभी भी पेशाब के दबाव मे थी वो आधे रास्ते ही उठ भागी थी ऊपर से कालिया के हाथो की रागड़ ने उसके जिस्म मे एक ठंडी परन्तु एक अजीब सी सीहरन पैदा कर दी थी.
वो अपनी जांघो को कस के भींचे हुए बैठी थी.

थोड़ी ही देर बाद
"साब पानी है क्या " कालिया रवि की साइड विंडो पर था
"पप्प... पानी पानी तो था मै पी गया " रवि ने खुद का माथा धुन लिया, जब साबी पेशाब कर वापस आई थी उसी वक़्त वो पानी की लास्ट बून्द डकार रहा था.

"गरम हो गई है साब " कालिया ने ये बात साबी तो देखते हुए कही
"क्या...?"
" साब गाड़ी.... गाड़ी गरम हो गई है, ठंडी करनी पड़ेगी "
कालिया की नजर बराबर साबी पर थी, साबी भी कालिया की बात सुन चिंता मै थी लेकिन उसे कालिया की नजरों मे कुछ खटक रहा था,
कालिया बार बार उसके जिस्म को घूर ले रहा रहा, ऊपर से कालिया के आते ही पेशाब की गंध वापस से कार मे फ़ैल गई.

"आए.... अ... आबब्ब... अब....क्या करेंगे?" रवि गहरी चिंता मे था, बार बार आंखे बंद हो जा रही थी कारण था सर पे चढ़ता नशा,
उसे उम्मीद थी वो जल्द घर जा के लुढ़क जायेगा लेकिन अब उसकी जबान लड़खड़ा रही थी, उसके दिमाग़ मे नशा हावी हो रहा था,
ऊपर से बाहर से आती ठंडी हवा उसके दिमाग़ को नींद की खाई मे धकेल रही थी.
"हम कुछ करते है आप आइये बाहर " कालिया ने रवि के साइड का दरवाजा खोल दिया
रवि बाहर उतरने को ही हुआ की धड़द्दाम्म्म्म.... से लड़खड़ा के गिर पड़ा.
"रावववववईई......"
"साब सससब..... साब सम्भालिये " हरिया भी आवाज़ सुन भागता हुआ आगे से साइड मे आ गया.
"लगता है साब ने ज्यादा पी रखी है"
"नहीं.... नहीं...मै ठीक हूँ " रवि ने खुद को संभालने की पूरी कौशिश की.
लेकिन फिर वही उसके पैर जवाब दे रहे थे नशा हावी होता जा रहा था.
अक्सर दारू पिए इंसान के साथ ऐसा ही होता है, जब तक बाइक कार पर होता है ठीक चला लेता है लेकिन जैसे ही रुकी की उसका जिस्म धोखा दे देता है, रवि के साथ भी ऐसा ही था.
यहाँ साबी की चिंताये बढ़ती जा रही थी. एक के बाद एक मुसीबत आती जा रही थी.
"आ.. अआप.... ठीक तो है ना " साबी कार के अंदर ही आगे को झुक गई जैसे गिरते रवि को पकड़ने पहुंची हो.
इस चाहत मे उसका जिस्म रवि की सीट पर लेट सा गया, गेट खुलने से अंदर की लाइट जल उठी थी.
एक दूधिया रौशनी ने साबी का गोरा सफ़ेद चिकना जिस्म नहा उठा.
[Image: images-2.jpg]
गाउन मे से बूब्स बगावत पर उतर आये थे, आधे से ज्यादा बाहर छलक आये, ऊपर से गाउन पहले ही जाँघ तक ऊपर था जो इस कदर चढ़ गया की दोनों जांघो के बीच कुछ दुरी ही बची थी वरना चिकनी चुत फिर से उजागर हो जाती.
बाहर रवि को संभाले हरिया कालिया के होश उड़े हुए थे,
रवि उनके जिस्म पर टिका हुआ था लेकिन दोनों की आंखे अंदर साबी के जिस्म पर थी.
कभी गोरे स्तन पर जाती तो कभी जांघो से होती हुई घुटनो पर टिक जाती जहा अभी भी साबी की काली कच्ची अटकी हुई थी,
 इन सब घटनाओ मे उसका ध्यान ही नहीं रहा की उसने उठते वक़्त पैंटी ऊपर नहीं की थी बस भाग ली थी.
साबी को जैसे ही इस बात का अहसास हुआ वो सकपका गई, निचे नजरें गई तो उसकी पैंटी अभी भी घुटनो पर थी.
[Image: images-4.jpg]
"उफ्फ्फ.... ये..... ये..... साबी झट से सीधी हो गई, उसके पास समय नहीं था पैंटी ऊपर चढ़ाने का, उसने झट से पैंटी को निचे कर दिया, पैंटी उसके तलवे चाट रही थी.
[Image: 20070-trusiki-ja-uzhe-snjala-chto-budet-...2c60cd.gif]
बाहर रवि को साहरा देते हुए दोनों मुस्टडो ने कार की पिछली सीट पर लेटा दिया था, अब तक साबी भी बाहर आ चुकी थी.
उसके चेहरे पर चिंता और परेशानी साफ देखी जा सकती थी.
"आप चिंता ना करे मैडम हम कुछ करते है " हरिया कालिया वापस कार के आगे बोनट मे मुँह घुसेड़े खड़े थे.
"क्या हुआ है "
अचानक से साबी की आवाज ने उनका ध्यान भंग कर दिया, साबी कोतुहल वंश वहा चली आई थी.
"मैडम कार गरम हो गई है " हरिया ने रौशनी मे चमकती साबी के जिस्म पर आंखे गुमा ली.
क्या दिख रही थी, सुनसान अँधेरी सड़क पर कार की रौशनी उसके जिस्म को चमका रही थी.
सिल्क गाउन मे कसा हुआ ताराशा हुआ जिस्म, एक एक उठाव चढ़ाव साफ महसूस किये जा सकते थे.
लगभग हर अंग अपनी मादकता बिखेर रहा था.
[Image: 20230613-085253.jpg]
"तो फिर अब?" साबी की चिंता जायज थी.
"पानी डालना पड़ेगा, पानी से अच्छी अच्छी गरम चीज ठंडी हो जाती है " कालिया ने साबी के कमर के नीचे बने टाइट उभार को देखते हुए कहा.
"पानी कहाँ से आएगा "
"यही तो चिंता है, आस पास कोई तालाब हैंडपम्प भी नहीं है " हरिया ने ऐसे मुँह बनाया जैसे उसका बाप मरा हो अभी.

"वैसे एक तरीका है हरिया "
"क्या "
"क्यों ना हम लोग इसके रेडिएटर मे पेशाब कर दे, इस से इंजन ठंडा हो जायेगा, कम से कम मैडम घर तो पहुंच जाएगी " कालिया का हाथ पाजामे के अगले हिस्से को ऐसे टटोल रहा था जैसे चेक कर रहा हो पानी है या नहीं.
साबी को तो इतना सुनना था की उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई.
"पेशाब नाम सुन जैसे उसके बदन मे एक झुरझुरी सी दौड़ गई, ऐसे शब्दों का इस्तेमाल वो नहीं किया करती थी.
"क्यों मैडम क्या कहती हो?" हरिया कालिया ने साबी की तरफ देख दाँत निपोर दिए.

आईडिया अतरंगी था.
तो क्या साबी इस आईडिया को मानेगी?
आपको क्या लगता है?
Like Reply
#6
अपडेट -3


"वो... वो.... कक्क.... क्या?" साबी तो लूटी पीटी खड़ी थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

"पानी नहीं है पेशाब करना पड़ेगा " हरिया ने जरा ऊँची आवाज़ मे बोला जैसे साबी कम सुनती हो.

"लल्ल.... ललललल...... लेकिन.. लेकिन "
"क्या लेकिन अब कोई रास्ता भी नहीं है, सुनसान सड़क है, अँधेरी रात है कोई चोर लुटेरा या जानवर आ गया तो आपके साथ साथ हम भी गए"
कालिया ने सीधी बात कह दी.

मरती क्या ना करती "ठ... ठ....ठ..... ठीक है " साबी ने हामी भर दी.
"ठीक है तो करो "
"मै.... मै.... मै कैसे कर सकती हूँ?"

"वैसे ही जैसे अभी थोड़ी देर पहले हम लोगो पर मुता था "
साबी की अब घिघी बंध गई थी, हालांकि उसे पेशाब का प्रेशर महसूस हो रहा था.

पहली बार अनजाने मे हुआ लेकिन अभी वो दो अनजान लोगो के सामने कैसे कर सकती थी.

"वो... वो.... वो गलती से हुआ, मैंने देखा नहीं था, अब भला इतनी रात को झाड़ियों मे कौन क्या करता है?"
साबी ने गलती स्वीकार कर ली थी मन हल्का हो चला था, साबी उन दोनो की बात का जवाब दे रही थी.

"हम तो दारू पीने बैठे थे झाड़ियों मे, लेकिन ये हरामी पानी ही नहीं लाया, अभी पानी के बारे मे सोचते ही की आप ने पेशाब कर दिया हम लोगो पर " कालिया ने फिर बेचारा सा मुँह बना लिया.

"वो... वो... सॉरी मैंने देखा नहीं था " साबी झेम्प गई थी परन्तु सर नीचे किये एक बार मुस्कुरा दी.
बेचारे कालिया का चेहरा ही ऐसा बना हुआ था.

"तुझे मूत आ रहा है क्या कालिया?"
"नहीं यार दिन से एक बून्द पानी नहीं गया पेट मे मूत कहाँ से आएगा " कालिया ने जवाब दिया

दोनों ही पेशाब और मूत शब्द पर जोर दे रहे थे, नजरें साबी पे ही गड़ी हुई थी जैसे वो जज है फैसला उसके हाथ मे है.


"लललल.... लेकिन मै?"
साबी की आंखे बड़ी हो गई
"हमसे क्या शर्माना मैडम हमने तो देख ही लिया है झरना कहाँ से निकलता है.

"वो.. वो... वो.... अनजाने मे हुआ था " साबी सकपका गई एक अजीब सी गर्मी महसूस करने लगी थी इन दोनों की बातो से.

"हमें तो आई नहीं है पेशाब "
दो पल को सन्नाटा छा गया.
इन दोनों को आई नहीं थी, साबी शर्म के मारे कुछ कर नहीं सकती थी.
"एक तरीका है कालिया" हरिया ने कालिया को कुछ इशारा किया.
"क्या?" जवाब साबी ने दिया उसे उम्मीद की किरण नजर आई.
"मैडम वो... वो... हम थोड़ी दारू पी लेते है, पेट मे जाएगी तो पेशाब बन जायेगा "
"ददद.... दारू....?"
साबी चौंक गई, उसका पति वही पी के तो पड़ा था कार मे.
उसने खुद ने हलकी वोडका पी थी उसी का परिणाम था उसको तेज़ पेशाब का प्रेशर.
"हहह..... मममम....." साबी ने हामी भर दी.
साबी की हामी थी की अगले ही पल हरिया ने कुर्ता ऊपर कर देसी दारू की बोत्तल निकाल ली, और झट से प्लास्टिक ग्लास मे आधा भर दिया.
एक तीखी तेज़ दारू की स्मेल ने साबी के नाथूनो को भीगो दिया.
"ईई.... सससस.... ये क्या है?"
"दारू है मैडम देसी संतरा "
"जल्दी पियो अब " साबी अब काफ़ी घुल मिल गई थी उसे बस इस मुसीबत से छूटकारा चाहिए था.
"लेकिन पानी कहाँ है?" कालिया ने मुँह बना दिया
"अभी तुमने ही तो कहाँ दारू पी लोगे तो प्रेशर बन जायेगा "
"ये थोड़ी ना कहाँ था की सुखी पिएंगे मर नहीं जायेंगे ऐसे हम लोग "
" फिर पानी कहाँ से आएगा? " साबी ने मुँह बनाया
"आपकी चुत से थोड़ा पानी मिल जाता तो काम हो जाता " इस बार कालिया ने सीधा हमला कर दिया
"कककक..... ककककया?
"अरे आपकी चुत का पानी... मतलब पेशाब "

"छिईई.... ये क्या बदतमीजी है "साबी का हलक सुख गया, रोंगटे खड़े हो गए.
[Image: shocked-keerthysuresh.gif]
पहली बार कोई व्यक्ति उसके कोमल गुप्त अंगों को चुत बोल रहा था, बोल क्या रहा था उसका पानी मांग रहा था.
"अब यही तरीका है मैडम आपके हर बात मे नाटक है, हमें क्या गरज पड़ी है आपकी मदद की, चल कालिया पानी कही और देख लेंगे"
इस बार हरिया बहुत तेज़ बिगड़ा था.

साबी का गुस्स्सा फुर्ररर... हो गया ये समय नहीं था इन सब बातो का.
"ररर..... रुको...."
मूड कर जाते हरिया कालिया रुक गए.
दोनों ने अपने ग्लास आगे बढ़ा दिए.
साबी का मन मचल रहा था, ऐसे गंदे लोग वो पहली बार देख रही थी, कोई किसी का पेशाब कैसे पी सकता है याकककक.... "
"मैडम मज़बूरी मे सब करना पड़ता है " हरिया ने जैसे साबी का दिमाग़ पढ़ लिया हो.

"कार गरम है उसे पानी चाहिए और हमें दारू के लिए, आपका पेशाब शायद इतना ना निकले क्युकी अभी आप मूत के आई हो "
साबी सिर्फ सुने जा रही थी जैसे जैसे सुनती उसके रोंगटे खड़े हो जाते, ऐसा अतरंगी आईडिया उसने पहली बार सुना था.
साबी परेशान थी क्या करे क्या नहीं, मना करती है तो ये दोनों चले जायेंगे, वो क्या करेगी इस सुनसान सड़क पर.
"चलो कुछ नहीं से कुछ सही "
साबी को अब ये सब रोमांचित कर रहा था, उसके जांघो के बीच का हिस्सा कुलबुला रहा था.
ऐसा अनुभव उसने कभी नहीं लिया था.
ना जाने कैसे उसके हाथ आगे को बढ़ गए, कालिया हरिया के हाथो मे थामे ग्लास को जा पकड़ा, एक बार को हाथ जरूर काँपे थे परन्तु ये कहना मुश्किल था की वजह डर है या जिस्म मे उठता रोमांच.

"तुम दोनों उधर देखो " साबी ने ग्लास हाथ मे पकडे बोला.

"अब हमसे क्या छुपाना मैडम हम आपकी चुत देख ही चुके है हेहेहेहे..."दोनों एक साथ गन्दी हसीं हस दिए.

चुत देख लेने के अहसास से ही साबी का प्रेशर तेज़ हो गया, शादी के बाद ये पहली बार था जिनसे वो ऐसी बात सुन रही थी.
"ललललल... लेकिन "
"लेकिन क्या मैडम जी वैसे भी अंधेरा है कुछ नहीं दिखेगा "
कालिया ने बात काट दी.
साबी ने ग्लास कार की हेडलाइट के ऊपर रख दिए, और एक हाथ नीचे कर गाउन ऊपर करने लगी.

दिल धाड़ धाड़ कार बज रहा था जैसे सीना फट ही जायेगा, साबी ने गजब की हिम्मत दिखाई थी.
गाउन जांघो तक ऊपर चढ़ आया था, दो सुडोल मोटी चिकनी जाँघे रौशनी मे चमक उठी.
सामने कालिया हरिया दिदे फाड़े एकटक उस हसीन नज़ारे को देखे जा रहे थे.
साबी का हाथ आगे बढ़ा और ग्लास उठा गाउन के अंदर गायब हो गया.
"सससससससस...... इईईस्स्स्स..... एक सुरमई आवाज़ ने सुनसान माहौल को चिर के रख दिया.
पेशाब की मोटी धर ग्लास मे भरने लगी.
[Image: tumblr-mdxfvv0l6-N1rsl04yo1-250.gif]
गरम गरम एक कामुक स्मेल लिया हुआ पेशाब.
साबी के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे, जहा अभी कसमकास थी वो असीम शांति मे तब्दील होती जा रही थी.
[Image: 0ca1c1d8e2f2c02ab99212965bd968d5.jpg]
सामने दोनों के चेहरे लाल थे, सीधा असर उनके पाजामे मे देखा जा सकता था, जहा एक बड़ा सा उभार आ गया था.

साबी ने झट से दूसरा ग्लास भी अंदर डाल लिया.
"ससससससस..... ईईस्स्स.....हुम्म्मफ़्फ़्फ़.... उफ्फफ्फ्फ़...." साबी ने एक राहत की सांस लेते हुए एक आखिरी बून्द भी टपका दी.
जिस्म ने एक झुरझुरी सी ली.
"ये लो....." साबी ने तुरंत हाथ आगे बढ़ा दिए.
दोनों ने तुरंत हाथ बढ़ा कर उन अमृत कलाश की थाम लिया.
वो अमृत कलाश ही तो था, जिसे साबी नामक अप्सरा उन काले दानवो को खुद अपने हाथ से दे रही थी.
"गट.... गट.... गटक.... गाटाक...." अभी साबी कुछ और सोच पाती की दोनों ने एक ही झटके मे साबी के गरम पेशाब से भरे दारू के पेग को एक सांस मे ख़त्म कर दिया.
"आआआहहहहह....."
"उफ्फ्फ्फ़....."
तीनो के मुँह से एक साथ एक आह निकल गई.
साबी तो जैसे आज दुनिया का आठवा अजूबा देख रही थी, उसने ऐसा कभी सपने मे भी नहीं सोचा था हालांकि कभी कभी किसी पब्लिक टॉयलेट मे जाती थी तो वहा की स्मेल उसे आकर्षित जरूर लगती थी परन्तु कोई उसके पेशाब को पी भी सकता है....

"आआआहहहहम..... मैडम क्या स्वाद है आपके पेशाब का, इतना गरम और नशीला उफ्फ्फ्फ़.... हुम्म्मफ़्फ़्फ़...."
एक गरम और अजीब सी गंध आ कर साबी के चेहरे से टकरा गई, इस स्मेल मे पेशाब और दारू का एक अजीब सा मिक्चर था.

ये गंध सीधी साबी के दिमाग़ मे चढ़ गई.
उसके जिस्म मे एक अजीब सी हलचल ने जन्म ले लिया था, उसके जांघो के बीच जैसे कुछ था जो बाहर निकलना चाहता था एक खुजली सी होने लगी थी.
चुपचाप दोनों को देखे जा रही थी.

"अब आएगा ना पेशाब "
दोनों ने ग्लास साइड रख अपने अपने पाजामे के अगले हिस्से को सहला दिया.
[Image: Gifs-for-Tumblr-1734.gif]
साबी की नजर उनपर ही टिकी थी, उनके हाथो का पीछा किया तो उसकी सांस जहा थी वही अटक गई "यययय.... ये क्या है...."
एक बढ़ा सा लंबा उभार बना हुआ था जिसे दोनों अपने काले हाथो से सहला रहे थे.

साबी का दिल धाड़ धाड़ कर बजने लगा "क्या... कककक... क्या ये वही है "
नहीं.... नहीं ऐसा तो नहीं होता.
अभी साबी किसी नतीजे ओए पहुंचती ही की.
"ससससससरररर...... करता दोनों का गन्दा पजामा नीचे की धूल चाटने लगा.
साबी की नजर पाजामे के साथ नीचे गई, और लगभग ही तुरंत ऊपर उठ गई,
पजामा नीचे है तो ऊपर क्या है....
अब लड़की कोई हो, कितनी शरीफ हो वो ये नजारा तो देखना ही चाहेगी, ये कोतुहल की बात है,
ऊपर से गरमाता जिस्म, मन मे उठती एक हलचल.
जैसे ही साबी की नजर सामने पड़ी, उसकी आंखे फ़ैलती चली गई, मुँह खुलाता चला गया जैसे अभी चीख पड़ेगी शायद चीख भी देती लेकिन सांस वही अटक गई.
[Image: 20220115-021443.jpg]
सामने हरिया कालिया के भयानक काले लंड अपनी औकात मे खड़े थे.
साबी की जैसे सांस टंग गई थी. उसने ऐसा कुछ आज से पहले कभी देखा नहीं था.


"मैडम.... मैडम...."
साबी शून्य मे थी, कभी हरिया के लम्बे लंड को देखती तो कभी कालिया के हद से ज्यादा मोटे लंड को.
दोनों के लंड एकदम काले, बालो के घोसले से निकले हुए थे, लंड के नीचे दो बड़े बड़े टट्टे झूल रहे थे.
जैसे कोई आलू हो.
"मैडम.... मैडम.... थोड़ा पीछे हटो हम रेडिएटर मे पेशाब करते है.
[+] 1 user Likes Andypndy's post
Like Reply
#7
ट्टीआरएआइटी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply
#8
बाकमाल लिखा है। अगला पार्ट जल्द पोस्ट कीजिए
Like Reply
#9
jabardast  clps
Like Reply




Users browsing this thread: 1 Guest(s)