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होम -> समाज | 4-मिनट में पढ़ें |
Updated: 24 अगस्त, 2015 07:41 PM
अल्पयू सिंह
अल्पयू सिंह
@alpyu.singh
क्या मैं दूसरे कैदियों को देख सकती हूं... (इस्मत बोलीं) सिक्युरिटीवालों ने लाइन में लगे दूसरे कैदियों की तरफ इशारा कर कहा... यही हैं बाकी लोग...इन लोगों ने क्या किया है ? ...इस्मत ने फिर पूछा. सिक्युरिटी वाले ने जवाब दिया, वही पॉकेटमारी, चोरी, लूटपाट.इस्मत हंसी और कहा- ये कोई बात है मर्डर किए होते तो ज्यादा मज़े की बात थी.
1940 के दशक में कहानी लिहाफ़ के लिए अश्लीलता के मुकदमे के लिए बेल लेने के दौरान इस्मत चुगताई की ऐसी बेफिक्री देख सिक्युरिटीवाले चौंक गए थे. परंपरागत ,., समाज की एक महिला से ऐसी बातें उन्होंने शायद पहली कभी नहीं सुनी. ठीक उसी तरह जिस तरह इस दुनिया ने भी इस्मत जैसे शख्सियत को उससे पहले देखा नहीं था. ऊर्दू अदब में इस्मत चुगताई एक ऐसे बेबाक बेलौस तेवर का नाम है, जिनके लिखे किस्से कहानियों के हर लफ्ज, हर वाक्य ने समाज को आईना दिखाया.
कहा जाता है कि 1915 की अगस्त में उनका जन्म हुआ था, हालांकि तारीख को लेकर कोई साफ तथ्य नहीं मिलते हैं, लेकिन माना यही जाता है कि अगस्त के इसी पखवाड़े में उनका जन्मदिन पड़ता है.
अब इस बात को चाहे एक सदी भले ही बीत गई हो, लेकिन कई सदियां हैं जो रवायतों की घड़ी की सुईयों में अटक कर रह गई हैं. ताजा अखबारों की सुर्खियां कह रही हैं कि आज भी 53.2 फीसदी ,., महिलाएं घेरलू हिंसा का शिकार हैं. तकरीबन 65.9 फीसदी महिलाओं का तलाक जुबानी हुआ है, जबकि 78 फीसदी का एकतरफा ही. जिन 4,710 महिलाओं की राय पर ये सर्वे तैयार किया गया है उनमें से 92 फीसदी मानती हैं कि जुबानी तलाक की रवायत खत्म होनी चाहिए.
ऐसे में जरा सोचें कि अगर अपने किस्से कहानियों के किसी किरदार की शक्ल में इस्मत आपा सामने आ जाएं तो क्या होगा... यकीनन वो कहेंगीं... अरे मरजानियों आज भी वहीं की वहीं हो, बहुत संभव है कि वो अपनी मशहूर कहानी मुगल बच्चे का जिक्र कर दें... जिसमें उन्होंने एक औरत का दर्द बेहद खूबसूरती से दिखाने की कोशिश की है... दिखाया है किस तरह एक नवाब अपनी पत्नी को सिर्फ इसलिए छोड़ देता है क्योंकि वो उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत थीं, बस इस वजह से उस औरत ने ताउम्र वैधव्य जैसा जीवन बिताया.
कहने को तो एक सदी बीत गई और पिछले कुछ सालों में तकनीक ने बेहद तरक्की की है, अब फेसबुक है, ईमेल है, वाट्सऐप है, जहां संदेश पढ़े और शेयर किए जातें हैं, लेकिन हैरानी इस बात की है कि इस तकनीक ने जहां दुनिया जहान की दिक्कतें हल की हैं तो महिलाओं की मुश्किलें बढ़ाई ही हैं, अब मियां सात समंदर पार बैठकर स्काईप पर ही तलाक कह देता है. ये लो अब कर लो कुछ भी. जिस गैरबराबरी की दुनिया में इस्मत ने आंखें खोली थी. उनके आंखें बंद करने के बाद भी औरतों के लिए दुनिया का दोतरफा रवैया तिल भर भी बदला नहीं है, बल्कि अपनी मर्ज़ी थोपना और आसान ही हो गया है. ऐसे में ये बहुत मौजूं है कि इस्मत अपने जाने पहचाने अंदाज़ में खड़ी हों और आधी आबादी को एक बार याद दिलाएं कि देखो ज्यादा कुछ मत करो. बस एक दफा मेरी ज़िंदगी की ओर ही देख लो.
''देखो कि मैंने किस तरह अपनी जिंदगी जी है. जब मैं 13 साल की थी... तब से ही घर में कोशिश गई कि मैं सीना- पिरोना सीखूं, लड़कियों वाले काम सीखूं... तब से लेकर मरने तक मैंने सिर्फ रवायतें ही तोड़ी और अपनी बनाई लकीर पर ही चलीं. उफ मेरे मिजाज में बला की जिद थी. चाहे फिर वो मां-बाप की ओर से जबरन शादी कराए जाने को लेकर मुखालफत हो या फिर पढाई- लिखाई को लेकर उस वक्त की दकियानुसी सोच का विरोध. हद तो तब थी जब मैंने अपने अब्बा हुज़ूर को अल्टीमेटम दे दिया था कि अगर आगे पढ़ने नहीं देंगे तो * से क्रिश्चियन बन जाऊंगी. याद करो जब मैंने अलीगढ़ के उस मुल्ला के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद की थी जिसने शहर के पहले गर्ल्स कॉलेज को वेश्यावृत्ति का अड्डा करार दिया था. तब मैं उस मुल्ला के खिलाफ़ कोर्ट तक गई थी.
''1942 में मैंने लिहाफ़ लिखी, 1944 में लाहौर में इसी कहानी पर अश्लीलता का मुकदमा चला. मुझ पर दबाव डाला गया कि मैं माफी मांग कर बात खत्म करूं लेकिन मैंने लड़ना बेहतर समझा और मुकदमा लड़ा. हर बार अदालत में जाते समय मुझ पर फब्तियां कसी जातीं परंतु मैंने केस जीत लिया.''
तो ये तो तब की बात रही जब इस्मत आपा किस्से कहानियों के किरदारों से निकल कर सामने आ जाती हैं... अकस्मात ही. लेकिन उनके समकालीन और उतने ही विवादास्पद लेखक मंटो ने भी अपने संस्मरण में इस्मत के बारे में बेहद रोचक किस्सा लिखा है. दरअसल मंटो और इस्मत दोनों को ही अश्लीलता के लिए लाहौर कोर्ट से समन मिला था और दोनों साथ ही लाहौर गए थे. मुंबई वापस आने पर एक शख्स ने इस्मत से पूछ डाला 'आप लाहौर क्यों गईं थीं... इस पर इस्मत ने मुस्कुरा कर कहा...जूते खरीदने, सुना है अच्छे मिलते हैं वहां.'
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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इस्मत चुगताई से समझना चाहिए Feminism के मायने
इस्मत चुगताई पर सैकड़ों किस्से हैं मगर जन्मदिन के दिन उनपर बात इसलिए भी जरूरी हो जाती है क्योंकि उन्होंने न सिर्फ ,., महिलाओं को बल दिया बल्कि ये भी बताया कि असल में महिला सशक्तिकरण होता क्या है
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