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हे राम, इस बेमेल जोड़ी के शरीरों का एकाकार होने के दृष्य का इंतजार मुझे कितना लंबा लग रहा था। अब और रहा नहीं जा रहा था मुझसे और तभी मानो भगवान ने मेरी सुन ली। बदहवासी के आलम में मेरी मां ने आव देखा न ताव, एक झटके में अपनी पैटी उतार फेंकी और घुसा के अंडरवियर पर टूट ही तो पड़ी। एक झटके में मेरी मां ने घुसा के अंडरवियर को खींच लिया। इतनी जोर से खींची कि घुसा के अंडरवियर का नाड़ा टूट गया और लो, घुसा का फनफनाता आठ इंच लंबा काला डंडा बड़े डरावने अंदाज में सख्ती के साथ खड़ा उठक बैठक कर रहा था। मैं तो पहले भी देख चुकी थी लेकिन इस वक्त उसका इस तरह दर्शन करना मुझे अंदर तक सिहरने को मजबूर कर रहा था। मेरी मां का तो शायद मुझसे भी बुरा हाल हो रहा था होगा। उसके लिए इतना बड़ा अमानवीय लंड इतने करीब से देखना कैसा लग रहा था होगा यह तो मुझे तुरंत ही पता चल गया,
"हाय राआआआआआम इत्तनाआआआआआ बड़ाआआआआ......!" आश्चर्य और भय के मिश्रित भाव से वह बोली। मेरी मां की हालत देखकर मुझे भीतर ही भीतर हंसी आ गई। कहां मैं इतनी कम उम्र में इस विशाल लंड से अपना कौमार्य फटवा कर अब मजे से चुदवाने का आनंद ले रही हूं और कहां इतनी बड़ी चूत वाली मेरी उम्रदराज मां का डर के मारे हालत खराब हो रही है। मजेदार, आगे जो होने वाला है वह कितना मजेदार होगा, इसकी कल्पना करके मैं रोमांचित हो रही थी। मुझ नादान को तो उस पहली चुदाई के समय यह अहसास ही नहीं था कि घुसा का लंड सामान्य है या सामान्य से काफी बड़ा है, क्योंकि मैं ने पहली बार किसी का लंड देखा था, लेकिन मेरी मां को तो मेरे पापा का लंड लेती रही थी और निश्चय ही मेरे पापा का लंड घुसा के लंड की तुलना में काफी छोटा था होगा तभी तो मेरी मां की यह प्रतिक्रिया थी।
मेरी मां की चूत के ऊपर काले काले रोएं थे लेकिन चूत काफी फूली हुई थी। मेरी चूत से तो काफी बड़ी दिखाई दे रही थी लेकिन मेरी मां की हालत क्यों खराब हो रही थी, पता नहीं। जब मैं उस बड़े लंड को झेलने में सक्षम थी तो मेरी मां को क्या मुश्किल होती, लेकिन फिर भी डर रही थी। "नहीं नहीं, इतना बड़ा मुझसे बर्दाश्त नहीं होगा।" वह घबराकर बोली।
"होगा मैडमजी, आराम से होगा। आप थोड़ा सा हिम्मत कीजिए फिर देखिए कितना मज़ा दूंगा। एक बार ले कर देख लीजिए, अगर मजा न आए तो हम छोड़ देंगे। अब जैसी आपकी मर्जी।" घुसा मेरी मां की फूली, रसीली चूत पर अपनी जादुई उंगलियां फिराते हुए बोला। फिर भी मेरी मां झिझक रही थी।
"अच्छा ठीक है। अब हम दूसरा उपाय करते हैं।" कहकर वह मेरी मेरी मां के ऊपर उल्टा चढ़ गया और सीधे मेरी मां की चूत पर अपना मुंह लगा बैठा। मेरी मां की सिसकारी निकल पड़ी।
"छि छि गंदे आदमी। वहां मुंह मत तगाओ आआआआइहहहह......" मेरी मां सिसक पड़ी लेकिन हिल नहीं सकती थी क्योंकि मेरी मां अब पूरी तरह उसके कब्जे में थी। मेरी मां के सर के दोनों तरफ उसकी टांगें थीं और उसका हथियार ठीक मेरी मां के चेहरे के ऊपर झूल रहा था। मेरी मां बेबसी के आलम में अपना सर इधर उधर कर रही थी। घुसा ने मेरी मां की मोटी मोटी जांघों को अपने मजबूत हाथों से फैला दिया था और पागलों की तरह मेरी मां की चूत को ऊपर से नीचे तक चाटने लगा। उसके चाटने का असर कुछ ही पलों में दिखाई देने लगा। मेरी मां जल बिन मछली की तरह तड़प उठी और अपनी कमर उछालने लगी। उसके मुंह से आहें उबलने लगीं। साफ पता चल रहा था कि अब मेरी मां के साथ कुछ भी किया जा सकता है। पागल सी हो गई थी वह। पागलपन में मेरी मां ने अपने चेहरे के ऊपर झूलते घुसा का मोटा लंड हाथों से पकड़ कर उसके लंड के सुपाड़े को मुंह में ले कर चूसने लगी।
"आह आह आह मैडमजी, हां हां हां, चूसती रहिए ओह मैडम ओह उफ उफ.... बहुत बढ़िया।" घुसा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह भी कमर ऊपर नीचे करने लगा। धीरे धीरे मेरी मां उसके मोटे लंड को अपने मुंह में अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी। मेरे देखते ही देखते वह उतने बड़े लंड को आधा निगलने में कामयाब हो गयी। गजब का दृश्य था। घुसा अपनी कमर उछालने लगा, एक तरह से वह मेरी मां के मुंह को ही चोद रहा था।
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सहसा घुसा रुक गया। मेरी मां उसके लंड को चूसने और अपनी कमर उछालने में जिस जोश का परिचय दे रही थी उसे देख कर घुसा समझ गया था कि अब मौका आ गया है मां की चूत चोदने का। वह समझ गया था कि इस चरम उत्तेजना के स्वर्णिम मौके में मेरी मां बिना किसी डर भय के उसका लंड अपनी चूत में लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाएगी। बस फिर क्या था, लोहा गरम हो चुका था, हथौड़ा चलाने की देर थी कि किला फतह हो जाता। बिना समय गंवाए घुसा कूद कर पोजीशन बदला और मेरी मां की फैली हुई जांघों के बीच आया, अपने लंड को मां की चूत के मुंह पर रखा और बिना किसी भूमिका के गच्च से अपना लंड मेरी मां की चूत में उतार दिया।
"आआआआआआह ....." मेरी मां के मुंह से निकला। यह दर्द की आह थी या मस्ती भरी आह थी, पता नहीं। जो भी थी मजेदार थी। इधर उत्तेजना के अतिरेक में मैं उंगली करते करते कब चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई पता ही नहीं चला। उफ उफ उफ, मैं आहें भरने लगी और मेरी आंखें बंद हो गयीं। पूरे एक मिनट तक मैं थरथराती हुई झड़ती रही। ओह बड़े ही सुखद अहसास से मैं दो चार हो रही थी।
जब मैं होश संभाल कर पुनः उधर देखने लगी तो अचंभित रह गई। वही मां जो कुछ देर पहले तक घुसा के लंड से भयभीत थी, बड़े मजे से उसका पूरा लंड अपनी चूत में लेने लगी थी। अब तो घुसा की निकल पड़ी। वह जानवरों की तरह अपने लंड की पूरी लंबाई का उपयोग करते हुए मेरी मां को चोदने लगा था मैंने मेरी मां अपनी टांगे उठा कर घुसा की कमर पर चढ़ा कर मजे से चुदी जा रही थी।
तभी, माँ का फ़ोन बजने लगा, मगर मां को फोन के बजने से कोई फर्क नहीं पड़ा। वह तो जैसे इस दुनिया में ही नहीं थी। शायद किसी दूसरी दुनिया की सैर कर रही थी। गजब। "अब अच्छा लग रहा है ना मैडम?" चोदते चोदते घुसा रुक कर बोला।
"हां हां हां हरामी, तू चोदता रह कुत्ता कहीं का। रुको मत। ओह ओह ओह, बड़ा बढ़िया चुदक्कड़ है रे तू। लगा रह, जैसा नाम, वैसा ही घुसा घुसा कर चोद हरामी।" मेरी मां पागलों की तरह बोली। उसके बाल बिखर गए थे। अस्त व्यस्त हालत हो गई थी उसकी। मां की बातें सुनकर घुसा दुगुने उत्साह के साथ चोदने में भिड़ गया। यह कुश्ती करीब पंद्रह मिनट तक चलता रहा और फिर दोनों एक दूसरे से चिपक कर हांफने लगे और कुछ ही पलों में शांत हो कर लंबी लंबी सांसें लेने लगे।
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https://xossipy.com/thread-58545-page-27.html
आपकी पसंदीदा और इंटरनेट की सबसे खूबसूरत cuckold based interfaith स्टोरी अपडेट हो चुकी है अगर आपने इसे पहले नहीं पढ़ा तो कृपया पहले पेज से पटना ढेर सारी कमेंट वगैरह करके लेखक की हौसला अफजाई करना
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wah aakhari maa main bhi ghusa bhi ghus gya..................
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तभी फिर मेरी मां का फोन दुबारा बजने लगा। मेरी मां खीझ उठी। "यह कौन हरामी बार बार फोन किए जा रहा है, कुत्ता का बच्चा कहीं का।" कहकर अलसाई सी उठी और उसी तरह नंगी ही बेशर्मी से फोन उठाने बढ़ी। हाय राआआआआआम, क्या नजारा था। बाल बिखरे हुए थे। चेहरा लाल भभूका हो रहा था। मैं ने अपनी मां को इस तरह नंगी देखने की कल्पना भी नहीं की थी। कितने बड़े बड़े स्तन थे। इतने भारी स्तन इस उम्र में भी लटके नहीं थे और उनके चलने से उछल रहे थे। घुसा ने इनको दबा दबा कर और चूस चूस कर लाल कर दिया था। निप्पल काफी बड़े बड़े और खड़े थे। अब मैं बेशर्मी और कौतूहल से मेरी मां की चुद चुद कर फूली रसीली चूत को देख रही थी। चूत के मुंह पर अब भी घुसा का वीर्य लिथड़ा हुआ था, जिसे उसने पोंछ कर साफ करने की भी जहमत नहीं उठाई थी। उसकी चाल भी थोड़ी बदल गई थी। यह शायद थकान और घुसा के मोटे लंड से धुआंधार चुदाई का असर था। हाय रे मेरी मां। तकलीफ़ से चल रही थी लेकिन कितनी निर्द्वन्द, बेफिक्री, निर्लज्जता के साथ एक पराए मर्द, घुसा जैसे नौकर के सामने नंग धड़ंग चल रही थी, इस बात से बेखबर कि एक जोड़ी और आंखें उनकी नग्नावस्था का दीदार कर रही थीं।
मेरी मां ने अपना फोन जैसे ही उठाया तो कॉल करने वाले का नाम देखकर झल्ला उठी। "अरे भाई, अब क्या हुआ? छुट्टी के दिन भी चैन नहीं लेने देते हो तुमलोग। जल्दी बोलो क्या बात है।" खीझ और नाराजगी भरे स्वर में बोली। फिर उधर से उतर सुनकर उनके चेहरे का रंग बदल गया। "ठीक है ठीक है, एक घंटे में पहुंच रही हूं" कहकर उन्होंने फोन काट दिया। फिर बड़बड़ाने लगी, "इधर यह कमीना मुझे निचोड़ कर रख दिया और उधर कमीना बॉस को भी अभी ही काम पड़ गया। छुट्टी के दिन भी घर में चैन से नहीं रहने ने देते हैं ये ऑफिस वाले।" फोन पर उस छोटे से वार्तालाप के बाद मेरी मां के शरीर पर अचानक फुर्ती आ गई।
"और तू घुसा, अब उठेगा की इसी तरह पड़ा रहेगा। साला चोद चोद के मेरा कचूमर निकाल दिया और अब आराम फरमा रहा है। उठो और काम में लग जाओ। मैं नहा धोकर अभी तुरंत ऑफिस के लिए निकलूंगी।" कहते हुए मेरी मां अपने कपड़े समेट कर अपने कमरे में चली गई।
अब यहां का रोमांचक खेल खत्म हो चुका था। बड़ा उत्तेजक खेल था यह। उस उत्तेजक खेल को देखते देखते मैं बेहद उत्तेजित हो चुकी थी और उत्तेजना के अतिरेक में अपने तन के यौनांगो से खेलती हुई एक बार स्खलित भी हो गई, लेकिन उस लंबे खेल को देखती हुई जब दुबारा मुझपर उत्तेजना का बुखार चढ़ने लगा तो वह खेल खत्म हो गया और मेरे अंदर एक अतृप्ति का अहसास घर कर गया था। खैर चलो जो हुआ सो हुआ, मुझे वहां से चुपके से खिसकने में ही अपनी भलाई नजर आई, क्योंकि मेरी मां वहां से गायब हो कर अपने कमरे में चली गई थी। जबतक घुसा उठ कर अपने कपड़े पहनता, मैं दबे पांव उस कमरे से निकली और पिछले दरवाजे से बाहर आ गई। मैं घूम कर घर के पिछवाड़े से सामने आई और चुपके से गेट खोल कर बाहर खुली हवा में सांस लेने लगी। मैं वहां रुकी नहीं बल्कि घर से कुछ दूर तक पैदल ही निकल पड़ी ताकि बाहर की ठंडी हवाएं मेरे अंदर धधकती ज्वाला को ठंढी कर सके।
आगे की घटना अगली कड़ी में
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bhai Roj ka intazar .......rhega next update
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गरम रोजा (भाग 4)
मैं अपने मन के झंझावातों को अपने अंदर समेटे घर से कुछ दूर पार्क के बाहर एक बेंच पर सड़क की ओर मुंह करके बैठ गई। बार बार मेरी आंखों के सामने मां और घुसा के बीच जो वासना का खेल चला था, वही चलचित्र की भांति घूम रहा था। मन के अंदर काफी कुछ उमड़ घुमड़ रहा था। जिस पेड़ के नीचे मैं बेंच पर बैठी थी, उस पेड़ पर ढेर सारे पक्षियों का कलरव हो रहा था लेकिन मुझे और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। मेरे अंदर उन पक्षियों के शोर से कहीं ज्यादा ज्यादा शोर मचा हुआ था। बड़ी बैचैनी की हालत में अपने स्थान पर बैठी पहलू बदल रही थी कि तभी मैंने हमारी कार को देखा जिसमें मां जा रही थी। निश्चय ही वह ऑफिस जा रही थी। मैं अनमने मन से उन्हें जाते हुए देखती रही। बेचारी मां।
मेरे मन में कई तरह के विचार आ जा रहे थे। बचपन से लेकर इस उम्र तक मैं संपन्नता के आधार पर और जाति के आधार पर भेदभाव देखती आ रही थी। रहन सहन के आधार पर भेदभाव देखती आ रही थी। लेकिन अब जब मैं देखती हूं तो पाती हूं कि जब अपने अपने मतलब निकालने की बात आती है तो यह भेदभाव नहीं दिखाई देता है। इसका सबसे सटीक उदाहरण वेश्यालय हैं। जब अपने शरीर की जरूरत की पूर्ति हेतु पुरुष, वेश्यालयों में जाते हैं तो वेश्याओं की जाति नहीं पूछते। वहां जातिगत आधार पर कोई भेदभाव नहीं रह जाता है। समाज में यह दोगलापन क्यों है, समझ नहीं आता है। पता नहीं समाज में लोगों के बीच खुलेआम बराबरी का व्यवहार कब आएगा। यह मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि एक नीची जाति का गरीब नौकर घुसा और ऊंची जाति की अमीर मालकिन, मेरी मां के बीच आज जो दैहिक संबंध स्थापित हुआ और उस संबंध से प्राप्त खुशी से दमकते घुसा और मेरी मां के चेहरे को देखकर सच में आपको भी ऐसे भेदभाव को ठोकर मारने का मन हो जाएगा।
अब मुझी को देख लीजिए। घुसा ने मेरे साथ अच्छा किया या बुरा किया, लेकिन अब हमारे बीच जो होता आ रहा था, उससे घुसा के साथ साथ मुझे जो खुशी मिल रही थी, उसके बाद तो मुझे इस प्रकार के भेदभाव से नफ़रत सी हो गई है। यह तो हुई जिस्मानी भूख शांत करने की बात को लेकर, लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसी बातें हैं जहां हम अगर छुआछूत, ऊंच नीच और भेदभाव को लेकर चलें तो हमारा जीना हराम हो जाएगा। अब देखिए, रुपए पैसे के लेन-देन में, खाद्य सामग्रियों की खरीद बिक्री में, और भी हमारी कई जरूरत की चीजों के लेन-देन और खरीद बिक्री में तो हम यह भेदभाव नहीं करते हैं। कपड़े खरीदते समय ट्रायल के नाम पर न जाने कितने लोगों के शरीर से उतरन को हम खरीदने में नहीं हिचकिचाते हैं। रुपए पैसे और कई प्रकार के हमारे जरूरत के सामान न जाने किस किस तरह के लोगों के हाथों से होते हुए हमारे हाथों में आते हैं, जिन्हें लेने में हम आनाकानी नहीं करते हैं फिर सामाजिक जीवन में आपसी व्यवहार में इस तरह का भेदभाव क्यों करते हैं? काश कि इंसान इन बातों को समझ कर सबके साथ सामान्य व्यवहार करने लगे तो यह धरती ही स्वर्ग बन जाए! यह आपस में दिखावे का जातिभेद, रंगभेद क्यों? स्वर्ग नर्क किसने देखा है? क्यों न हम इस धरती को ही आपसी सौहार्द से स्वर्ग बना दें।
अरे यह मैं भी पागल यह क्या बोले जा रही हूं। हां तो मैं अपनी मां के बारे में कह रही थी कि कुछ देर पहले तो वह घुसा के साथ रंगरेलियां मना रही थी और अभी ही उसे ऑफिस से बुलावा आ गया। क्या मन: स्थिति ले कर जा रही थी होगी। मन ही मन खीझ रही थी होगी। खैर मेरी मां के मन की स्थिति जैसी भी थी, मेरी मानसिक स्थिति से तो अलग ही थी होगी। मेरी मां के तन की आग तो बुझ चुकी थी लेकिन उनके बीच जो कुछ हो रहा था उसे देख कर मेरे तन बदन में जो आग लगी हुई थी उसका क्या? मैं ऐसे ही बैठे बैठे यही सब आलतू फालतू बातें सोच सोच कर अपने तन की जलन को बहला फुसलाकर शांत रखने की कोशिश कर रही थी लेकिन साली यह देह के अंदर की गर्मी मुझे परेशान किए जा रही थी। वहां अच्छी खासी ठंढी हवा बह रही थी लेकिन उस ठंढी हवा की शीतलता भी मुझे आंतरिक तपिश से मुक्त करने में असफल सिद्ध हो रही थी।
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मेरी मां की चुदाई देखते देखते मेरी जो हालत हुई थी वह बयान करना बड़ा मुश्किल है। तन बदन में आग लग गयी थी और उत्तेजना के आवेग में मेरी पैंटी जो उस समय गीली हुई थी, अभी तक गीली थी। मेरे सामने करीब चार फुट के बाद पैदल चलने वालों के लिए करीब छः सात फुट चौड़ा पक्का रास्ता था। पक्के रास्ते के पहले, मैं जिस बेंच पर बैठी थी, वहां से लेकर करीब तीन फुट चौड़ी हरी भरी घास का कालीन सा बिछा हुआ था और जहां मैं बैठी थी ठीक उसके सामने एक ऊंचा घना झाड़ीनुमा पौधा था, जिसके बीच से उस पार सड़क की ओर तो देख सकती थी लेकिन सड़क चलते लोग इधर देख नहीं सकते थे। मैं चप्पल खोल कर खाली पैर शीतल घास के कालीन पर रख कर बैठी हुई रास्ते पर आते जाते लोगों को देखते हुए कोई दूसरी ही दुनिया में विचरण कर रही थी। ठंडी हवाएं और घास की शीतलता भी मेरे अंदर की तपिश को ठंडा करने में नाकाम थी। तभी सड़क किनारे घूमते हुए दो आवारा कुत्ते मुझे दिखाई दिए। वे पता नहीं क्यों मेरी बेंच के पास पहुंच कर रुक गये। वे कुत्ते हवा में इधर उधर कुछ सूंघ रहे थे। सूंघते सूंघते धीरे धीरे वे मेरे बिल्कुल पास आ कर खड़े हो गए। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मेरे आस पास ऐसा क्या था कि वे मेरे बिल्कुल पास आ कर खड़े हो गए थे। उनमें से एक काफी तंदरुस्त और ऊंचा कुत्ता था। रंग भूरा और सफेद का मिश्रण था। देखने में भी साफ सुथरा और आकर्षक था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी का पालतू कुत्ता हो, लेकिन उसके साथ कोई आदमी नहीं था जिसे उसका मालिक कहा जा सके। साफ जाहिर हो रहा था कि वह लावारिस कुत्ता था। दूसरा वाला काले रंग का कुत्ता अपेक्षाकृत थोड़ा कमजोर था। तभी उनमें से जो काफी तगड़ा और ऊंचा था, सूंघता हुआ सीधे मेरी टांगों के बीच सर घुसाने लगा। मैं घबराकर अपनी टांगें सटा कर अपने हाथ के इशारे से भगाने की कोशिश करती हुई हट हट करती रही लेकिन वह थोड़ा जिद्दी किस्म का कुत्ता था। जबर्दस्ती मेरी जांघों के बीच सिर सटा कर सूंघने लगा और थोड़ा गुर्राने लगा। मैं घबराकर सोचने लगी कि अब इसे हटाऊं तो हटाऊं कैसे। उसकी इस हरकत से मैं थोड़ा डर भी गई थी। उसके आक्रामक हाव भाव से घबराकर अपने स्थान से उठ खड़ी हो गई। सोचने लगी कि यह क्या मुसीबत आ पड़ी है। अब इनसे पीछा छुड़ाऊं तो कैसे?
हे भगवान! सहसा मुझे अहसास होने लगा कि कहीं मेरी भीगी पैटी की गंध से तो ये आकर्षित नहीं हो गये? शायद। शायद नहीं, अवश्य। एक तो पशु, ऊपर से कुत्ता। ये तो मनुष्यों के हाव भाव और व्यवहार से भी मनुष्यों के अंदर की भावनाओं को भी समझ सकने में सक्षम होते हैं। इनकी घ्राणशक्ति भी गजब की होती है। अवश्य इन कुत्तों को मेरी उत्तेजित मादा देह की महक और मेरी योनि से रिसते स्राव से भीगी पैंटी की गंध ने आकर्षित किया था। वह बड़ा कुत्ता तो कुछ अधिक ही जिद्दी निकला। मैं वहां से हड़बड़ा कर उठी और मेरे कदम तेजी के साथ घर की ओर बढ़ गये। मैंने देखा कि वे कुत्ते भी मेरे पीछे पीछे चलने लगे थे। आगे आगे वह कद्दावर कुत्ता और उसके पीछे पीछे मरियल कुत्ता मुझसे मात्र तीन फुट की दूरी रख कर मेरा पीछा कर रहे हो। घबराहट में जल्दी से घर के गेट को खोल कर मैं अंदर दाखिल हुई और जल्दी से गेट को बंद करके घर के प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गयी। वे कुत्ते वहीं गेट के बाहर खड़े रह गये थे। बाल बाल बची थी मैं। अगर मुझ पर आक्रमण कर देते तो मेरा क्या हश्र होता, सोच कर ही मेरी रूह कांप उठी। मेरा दिल धाड़ धाड़ धड़क रहा था। घर के दरवाजे पर पहुंच कर मेरा कांपता हुआ हाथ कॉल बेल पर जा टिका और पल भर बाद ही दरवाजा खुला। सामने घुसा खड़ा था। मुझे देख कर वह एक तरफ हो गया और बोला,
"अरे रोजा बिटिया, इतनी जल्दी आ गई!" वह अब तक सामान्य हो चुका था और बिल्कुल सामान्य व्यवहार कर रहा था जैसे वहां कुछ हुआ ही नहीं हो। अपने आपको व्यवस्थित करके सफाई के काम में व्यस्त लग रहा था।
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shandar ...............update
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next update ............pls mujhe is tarah ki story............batut hi pasand hai ......................pls
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"हां , जल्दी आ गई। जल्दी रिहर्सल खत्म हो गई थी तो और क्या करती, चली आई।" मैं घुसा को सर से पांव तक देखते हुए बोली। वह बिल्कुल सामान्य स्थिति में था। उसे देख कर नहीं लग रहा था कि कुछ देर पहले मेरी मां के साथ धींगामुश्ती में लीन रहा था।
मैंने घर में प्रवेश किया और अंदर आते ही बोली, "अभी तक सफाई चल रही है?"
"हां, आपकी मां तो बीच में ही चली गई ऑफिस, अब हमें ही बाकी काम करना है।" वह बोला। कमीना कहीं का, ऐसे बोल रहा था जैसे मेरी मां भी उसके साथ काम करने के लिए नियुक्त की गई हो और बीच में ही काम छोड़कर रफूचक्कर हो गई हो। इतना बोलकर फिर अपने काम में लग गया। पता नहीं मेरी नज़रों में उसे क्या नजर आया कि वह मुझसे नज़रें चुरा रहा था।
"कोई बात नहीं। अब मैं आ गई हूं ना। मैं भी सफाई के काम में हाथ बंटा देती हूं।" कहकर मैं अपने कमरे में चली गई। कमरे में जाकर मैंने ऐसे कपड़े चुने, जिन्हें पहन कर सुविधाजनक रूप से अपने शरीर की नुमाइश भी कर सकूं।कपड़े बदल कर मैं घुसा के पास चली आई यह पूछने के लिए कि और क्या क्या काम बचा है। मैंने अपनी शर्ट के ऊपर के बटन इतने खोल दिए कि वह मेरी बड़ी बड़ी उन्नत चूचियों की घाटी देख सके। वह पल भर को तो मुझे देखता ही रह गया।
"हल्लो , कहां खो गए हो।" मैं उसे मानो नींद से जगा कर बोली।
वह हड़बड़ा कर अपनी नजरें इधर उधर करते हुए मुझे बताया कि बस और थोड़ी सफाई बाकी है। फिर वह मुझे दिखाने लगा कि कहां कहां सफाई बाकी है। मैं अंग प्रदर्शन करके उसे आकर्षित करने की नीयत से जिस तरह से कपड़े पहनी हुई थी वह व्यर्थ नहीं गया। वह नजरें उठा उठा कर मेरी छाती को बार बार देख रहा था। फिर बिना कुछ बोले मैं झुक कर सफाई करने लगी। मैं जानबूझकर ऐसी पोजीशन ले रही थी ताकि वह मेरी चूचियों को अच्छी तरह से देख सके। मुझे अच्छी तरह से पता था कि वह मेरे शरीर को देख रहा था, लेकिन यह देखकर मुझे खीझ हो रही थी कि वह बार-बार मेरे शरीर के उभारों को सिर्फ देख रहा था, आगे बढ़कर कुछ करने का प्रयास नहीं कर रहा था। कुछ देर तक इंतजार करने के बाद मुझसे रहा नहीं गया, मैं मन ही मन झल्ला उठी। साला कमीना आगे बढ़ कर इस एकांत का फायदा उठाने की कोशिश क्यों नहीं कर रहा है? क्या वह सोच रहा था कि मैं खुद बोलूं कि आ घुसा, आ मुझे चोद।
जब मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ है मेरे सब्र का पैमाना छलक उठा तो उसके सामने जा कर उसे झन्नाटेदार थप्पड़ मार दिया। वह इस आकस्मिक थप्पड़ से हतप्रभ रह गया।
"कमीने कहीं के। बड़े शरीफ बन रहे हो अभी। मेरी अनुपस्थिति में तुमने मेरी माँ का फायदा उठाने की हिम्मत कैसे की तुमने?” मैं तनिक क्रोधित स्वर में बोली। अब तो जैसे उसे सांप सूंघ गया।
वह सोच रहा था कि यह बात मुझे कैसे पता चली। लेकिन फिर भी अनजान बनने का नाटक करते हुए बोला, "क्या? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं कि हमने आपकी मां के साथ ऐसा कुछ किया है। नहीं नहीं। बिल्कुल नहीं रोजा बिटिया, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। कृपा करके हम पर विश्वास करो,'' उन्होंने कहा।
“झूठ। झूठ मत मत बोलो। मुझे सबकुछ पता है, तुमने मेरी मां के साथ क्या किया है। अब सच बताते हो कि दूं एक और?” मैं तैश में आकर जोर से बोली।
"हम सच बोल रहे हैं मैडम, हमने कुछ नहीं किया है।" मेरी बात सुन कर वह थोड़ा सकपका गया और सहम भी गया था।
"फिर झूठ। तुम ने मेरी मां को अपने जाल में फंसा कर कुकर्म किया है। मैंने अपनी आंखों से देखा है, कैसे जानबूझकर एक छोटी सी दुर्घटना का रूप देकर मेरी मां के अंदर की प्यासी औरत को जगाया, उकसाया और बड़ी चालाकी से अपनी मीठी मीठी बातों में उलझा कर मेरी मां को उत्तेजित किया और उसकी इज्जत में हाथ डाला। सब कुछ मैंने देखा।" मैं जोर से बोली।
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wah kahani twist...............
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“हमने बहुत कुछ नहीं किया है मैडम।"
"साले हरामी, कुकर्मी, चोदने को बहुत कुछ नहीं कहते हैं क्या?" मैं चीख कर बोली। जान बूझकर चीख चीखकर बोले जा रही थी। यहां हमें सुनने वाला और कौन था भला।
"उन्हें चोदना तो दूर, चोदने के लिए सोचना भी मेरे जैसे गरीब नौकर आदमी के लिए कहां संभव था मैडम। लेकिन क्या करें, बस हो गया। लेकिन सच मानिए, जो हुआ आज ही हुआ। यह सब आज ही अचानक अपने आप हो गया। अब इसके लिए जो सजा देना है दे दीजिए। हम कुछ नहीं बोलेंगे।" वह दयनीय मुद्रा में मुझसे बोला।
“ठीक है, ठीक है, जो तुमने किया सो किया, लेकिन मेरी मां को खुशी मिली यह काफी है। अब अचानक और अपने आप यह सब हुआ यह राग दुबारा मेरे सामने मत आलापना।इस पर विश्वास करना मुझ जैसी लड़की के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, समझे तुम? लेकिन हां, अब अगर आगे भी मेरी मां की रजामंदी से यह सब होता है तो ऐसा करने से मुझे कोई ऐतराज नहीं है, आगे भी ऐसा करो और मेरी मां को खुश रखो, क्योंकि वैसे भी पापा ज्यादातर समय व्यस्त रहते हैं और मेरी मां अपनी अतृप्त कामना के साथ जीती रहे, ऐसा मैं हर्गिज नहीं चाहती हूं। ऐसे में मेरी मां को तुम्हारे साथ खुशी मिलती है तो फिर ठीक है, लेकिन अगर मैंने कभी तुम्हें उनकी मर्जी के विरुद्ध उसके साथ जबरदस्ती करते हुए पकड़ लिया, तो मैं पापा से बोल कर तुम्हें नौकरी से निकलवा दूँगी, और तुम फिर कभी न तो मां को छू पाओगे और न ही मुझे, समझ गये ना।'' मैं धमकी भरे स्वर में बोली।
"नहीं। कृपया ऐसा न करें। हम आपकी मम्मी की मर्जी के बगैर ऐसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे। अब तो आप हमको क्षमा कर देंगी ना रोज मैडम?" मेरी बात सुन कर उसके चेहरे का तनाव कम हो गया और प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखते हुए बोला। एक तरह से वह आश्वस्त हो गया था।
"ठीक है। लेकिन मन में गांठ बांध लो इस बात को कि मेरी मां की रजामंदी के बगैर बिल्कुल नहीं करोगे।"
"जी मैडम।" वह आज्ञाकारी नौकर की भांति सर झुकाकर बोला।
"एक बात और कान खोलकर सुन लो कि मेरे और तुम्हारे बीच जो कुछ चल रहा है इसकी भनक तक मम्मी को नहीं लगनी चाहिए और इस बात की भी कि तुम्हारे और मम्मी के बीच जो कुछ चल रहा है वह मुझे पता है, समझ गये?" मैं सख़्त शब्दों में हिदायत देती हुई बोली।
"जी मैडम।"
"अब जी मैडम, जी मैडम ही करते रहोगे? अब तो सब कुछ साफ हो गया है या और कुछ कहना सुनना बाकी है?" मैं बोली।
"हां मैडम, सब कुछ साफ हो गया है"
"सब कुछ साफ हो गया है तो फिर मेरा मुंह क्या देख रहे हो। अब आगे मुझे कुछ और नहीं कहना है। जो कहना है कह चुकी हूं। अब चलो शुरू हो जाओ।" मैं बोली।
"क्या ?" समझ तो रहा था वह, लेकिन फिर भी सवालिया निगाहों से मुझे देख रहा था, गधा कहीं का। वैसे मेरे कथन का आशय तो समझ ही चुका था होगा, क्योंकि मैं देख रही थी कि इतनी बात होते होते उसके पैजामे का अगला भाग फिर से तंबू की शक्ल अख्तियार कर चुका था। साला खड़ूस कहीं का। मेरे अंदर वासना की ज्वाला धधकने का तो यथोचित कारण था लेकिन यह हरामी, जो कुछ देर पहले मेरी मां को चोद चुका था, अभी फिर से उसका लंड खड़ा हो गया था, मुझे चोदने के लिए, साला चुदक्कड़ कहीं का।
"अब आगे क्या करना है यह भी मैं ही अपने मुंह से बोलूं?" मैं झल्ला कर बोली।
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wAH kya updATE HAI ...................NICE
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"करने के लिए हम तो हमेशा तैयार हैं। जब भी हम तुम्हें देखते हैं तो मेरा यह पागल लंड खड़ा हो जाता है, और जब तुम मुझे इस तरह छेड़ती हो तो मेरे लिए कंट्रोल करना बहुत मुश्किल हो जाता है।" वह ड़ी बेशर्मी से पैजामे के ऊपर से ही अपना लंड पकड़ कर हिलाने लगा। अब वह खुल कर बोलने लगा था।
"बहुत बढ़िया, लेकिन अभी सिर्फ देखो। कुछ करना नहीं है'' मैंने उसे चिढ़ाते हुए कहा और अपनी शर्ट के बटन खोल दिए और बेशर्मी से अपने बड़े स्तन उसे दिखा दिए जो मेरी ब्रा से बाहर फुदक कर निकलने का इंतजार कर रहे थे। इसी तरह के सिग्नल का तो इंतजार कर रहा था वह कमीना।बस फिर क्या था उसने अपना विशाल हथियार बाहर निकाल दिया और हाथ में लेकर हिलाने लगा। उसे अच्छी तरह से पता था होगा कि मेरी मां इतनी जल्दी वापस तो आएगी नहीं और निश्चय ही मैं आज पहले ही घर पहुंच जाऊंगी। अच्छा मौका था उसके लिए तो। शायद यही कारण रहा होगा कि वह पैजामे के अंदर कुछ नहीं पहना था, कि मैं घर पहुंचूं और मेरे साथ धक्कमपेल शुरू।
उसके बड़े, लंबे, मोटे काले लंड को देखकर मैं उत्तेजित हो गई। आज तो उसका हथियार पहले से भी विकराल दिखाई दे रहा था। एक शिकारी की भांति अपने शिकार के इंतजार में अपने हथियार के साथ तैयार था। उसका हथियार एकदम गधे के लंड जैसा। बाप रे बाप यह आदमी है कि गधा है। मेरी उत्तेजना का तो कहना ही क्या था। उत्तेजित तो पहले से ही थी। मेरी मां की चुदाई देखने के समय से ही मेरे तन बदन में आग लगी हुई थी। मुझ से अब और रहा नहीं जा रहा था।
"तुम हाथ हटाओ अपना," मैंने कहा और तुरंत अपने घुटनों पर बैठ गई और उसका फनफनाता काला, मोटा लंड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसना शुरू कर दिया। ओह मेरे राम, कब से यह सब करने को मरी जा रही थी। मेरे मन में उस वक्त पता नहीं क्यों, सड़क किनारे का वही कद्दावर कुत्ता घूम रहा था। उसकी आंखों की चमक मैं चाहकर भी भूल नहीं पा रही थी। जिस तरह वह मेरा पीछा कर रहा था वह मैं कैसे भूल सकती थी? अगर रुक जाती तो क्या करता वह? क्या वह मुझ पर झपट पड़ता? या किसी कुतिया की तरह मुझ पर चढ़ने की कोशिश करता? पता नहीं। उसकी जीभ कैसे लपलपा रही थी। निश्चित तौर पर उसे गरमाई हुई मेरी मादा देह और खास तौर पर मेरी रसीली चूत की महक मेरे पीछे पीछे खींच रही थी। उस कुत्ते का ख्याल मेरे जेहन में इस कदर तारी था कि मैं पहले से और ज्यादा उत्तेजित हो उठी और बड़ी शिद्दत से घुसा के लंड को दोनों हाथों से पकड़ कर जोर जोर से चूसने लगी। वह मेरी बेताबी से चूसने की क्रिया से बड़ा अंचभे में था। बड़ा खुश भी था और आनंद के मारे उसने आंखें बंद कर लीं "आआआआइहहहह ओओओहहह" करने लगा वह।
“आह.. रोज मैडम, तुम सर्वश्रेष्ठ हो। तुम बहुत सेक्सी हो,'' वह कहने लगा। उत्तेजना के मारे वह अपनी कमर उछालने लगा था।
मैंने अपने स्तन अपनी ब्रा से बाहर निकाले और उसके सामने प्रस्तुत कर दिया कि वह इनसे खेलना आरंभ कर दें। हुआ भी यही। खुली हवा में फुदक कर बाहर निकले मेरी चूचियों के आमंत्रण को ठुकरा दे ऐसा बेवकूफ नहीं था वह। उन्हें देखकर उसकी आंखें चमक उठीं। अपने गंदे हाथ धीरे से मेरी चूचियों पर रख दिया और सहलाने लगा। मेरे सारे शरीर में 440 वोल्ट का करंट दौड़ गया और मैं थरथरा उठी। मारे मस्ती के मेरी भी आंखें बंद हो गयीं। अपनी आंखें बंद करके घुसा के लंड को चूसती हुई उसके हाथ के स्पर्श को अपनी चूचियों पर महसूस करते हुए आनंदित होती रही। घुसा भी उत्तेजना के आवेग में मेरी चूचियों को पकड़ कर दबाने लगा। पहले तो धीरे-धीरे, फिर जोर जोर से दबाने लगा। उतने जोर जोर से दबाने पर भी मुझे पीड़ा नहीं हो रही थी बल्कि पीड़ा के स्थान पर मुझे दुगुना आनंद मिल रहा था। अब मेरे सब्र का पैमाना छलक उठने को था। मैं चाहती थी आनन फानन हम दोनों अपने कपड़ों से मुक्त हो कर उन्मुक्त सेक्स में जुट जाएं।
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उन कुत्तों की याद मेरे मन में उमड़ घुमड़ रही थी और सोचने लगी कि क्या ही अच्छा हो जो यह घुसा उन कुत्तों की तरह आचरण करना आरंभ कर दे। मैं उसका लंड चूसना छोड़ कर हांफती हुई बोली,
"रुको,"
"काहे?" घुसा हांफते हुए बोला।
"क्या तुम आज मेरे साथ कुत्तों की तरह आचरण करना पसंद करोगे?" मैं बोलती हुई कांप रही थी।
"तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली। हम तो कब से तुमको अपनी कुतिया बनाना चाह रहा था। चल रे मेरी कुतिया, आज हम अपनी कुतिया के लिए कुत्ता बनेंगे।" कहकर वह झटपट अपने कपड़े खोल कर मादरजात नंगा हो गया और मुझ पर झपटने को तैयार हो गया। उसकी रजामंदी और बेताबी देख कर मुझे मजा आ गया।
"रुक साले, मुझे भी नंगी हो जाने दे। लेकिन याद रखना, मैं इन्सान हूं और तुम एक इन्सान स्त्री के साथ कुत्तों की तरह व्यवहार करोगे। समझ रहे हो ना मैं क्या कह रही हूं?" मैं बोली और बिना कोई समय गंवाए नंगी हो गई। इतने कम समय में ही सेक्स की लत ऐसी लगी थी मुझे कि मैं अपने तन की भूख मिटाने के लिए बेशर्मी की किसी भी हद तक जाने में जरा भी हिचकिचाहट नहीं दिखा रही थी। मेरी मादरजात नग्न कमनीय गदराई देह पर मेरे उन्नत उरोज सामने फुदक रहे थे और मेरी रसीली चूत रस से सराबोर लंड खाने को फकफक कर रही थी।
"वाह मैडम ऐसे कैसे होगा?" वह मेरी देह को सर से पांव तक किसी भूखे भेड़िए की तरह निहारते हुए बोला।
"होगा, सब कुछ होगा। तुम कुत्ते की तरह मेरे साथ जो चाहो करो लेकिन मैं रहूंगी इन्सान ही।"
"लेकिन आपको चौपाया तो बनना ही पड़ेगा ना।"
"बनूंगी। जैसा बोलोगे वैसा बनूंगी, वैसा ही करूंगी लेकिन तुम्हें कुत्ता बनकर मुझे खुश करना है। समझ में आया?" मैं बोली।
"बहुत बढ़िया। आज तो मजा ही आ जाएगा। धन्य हो गये हम तो।" खुशी के मारे किलकारी मारते हुए वह बोल पड़ा।
"हाय रे मेरे कालू, अब मेरा मुंह क्या देख रहे हो, अब मैं ही बोलूं कि आजा कालू चोद मुझे? शुरू काहे नहीं कर रहे हो अपना कार्यक्रम?' मैं बेताब हुई जा रही थी। अब क्या था, वह तो बिल्कुल कुत्ता ही बन गया और कुत्ते की तरह मुझ पर टूट पड़ा। ठीक उन आवारा कुत्तों की तरह वह मेरी चिकनी जांघों को पागल कुत्ते की तरह चाटने लगा। उफ़ भगवान, गजब का अहसास था वह। मुझे लग रहा था जैसे कोई कुत्ता ही मेरी जांघों को चाट रहा हो। मेरी सिसकारी निकल पड़ी।
चाटते चाटते वह मेरी चूत तक जा पहुंचा। पहले वह कुत्तों की तरह मेरी चूत को सूंघने लगा और फिर धीरे से जैसे ही उसकी जीभ ने मेरी चूत को स्पर्श किया मैं गनगना उठी। "आआआआह कालू, ओह नहींईंईंईंईं......!" मैं आनंद से भर कर तड़प उठी।
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NICE....................STORY
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"अब काहे का नहीं?" वह बोला और अपनी दोनों हाथों से मेरे गुदाज़ चूतड़ों को पकड़ कर सड़प सड़प चाटने में मशगूल हो गया। वह ठीक कुत्ते की तरह अपने दोनों अगले पंजों से मेरी गांड़ को लपेट लिया था और मुझे अपनी ओर खींच कर जबरदस्त तरीके से मेरी चूत को नीचे से ऊपर तक चाटने लगा। उसकी जीभ का स्पर्श जब मेरे भगनासे से हो रहा था तो मेरी आनंद भरी चीखें उबलने लगीं थीं। मैं पीछे खिसकना चाहती थी लेकिन वह मुझे सामने खींचते हुए चाट चाट कर मेरी चूत लाल करता रहा। मैं पागल हुई जा रही थी। वह तो कुछ ज्यादा ही करने लगा था। सिर्फ ऊपर ही ऊपर नहीं चाट रहा था, वह तो मेरी चूत के अंदर भी जीभ घुसा घुसा कर चाट रहा था और मैं निहाल हुई जा रही थी।
"बस्स्स्स्स बस्स्स्स्स, अब और नहींईंईंईंईंईंईं....." मैं अचानक चीख पड़ी और उत्तेजना के अतिरेक में मेरा सारा शरीर थरथरा उठा और लो, हो गया बंटाधार। मैं खुद को नियंत्रण में नहीं रख पाई और मेरा स्खलन शुरू हो गया। "आआआआआआह " मेरा शरीर अकड़ने लगा और घुसा की मजबूत पकड़ में छटपटाते हुए एकाएक स्थिर हो गई। ओह मेरी मां, कितना सुखद स्खलन था वह। मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती।
उधर घुसा, जो एक नंबर का खेला खाया माहिर औरतखोर था, सब कुछ भांप कर भी मुझे छोड़ा नहीं और लगातार चाटता रहा। वह बहुत अच्छी तरह से जानता था कि मुझे चोदने के लिए फिर से अच्छी तरह से कैसे गरम किया जाना है। वही कर रहा था। उसकी मेहनत रंग लाई और मैं बहुत जल्द गरम हो गई और चुदने के लिए छटपटाने लगी। मुझे इस बात से भी आश्चर्य हो रहा था कि इतनी देर तक इतनी शिद्दत से कोई आदमी लगातार कैसे चाटता रह सकता है। ऐसा लग रहा था जैसे घुसा के शरीर में किसी कुत्ते की आत्मा आ गई थी। एकदम पशु की तरह लगातार, अथक चाट रहा था।
"ओह ओह ओह, बस बस ऊऊऊऊऊ अब और कितना तड़पाओगे कमीने?" मैं बदहवासी के आलम में उसका सर पकड़ कर हटाने का प्रयास करती हुई चीख कर बोली, लेकिन उस जानवर ने जिस सख्ती से मुझे अपनी गिरफ्त में लिया हुआ था कि मैं सिर्फ छटपटा कर रह गई। वह समझ गया कि अंतिम आक्रमण करने के जिस उपयुक्त अवसर के लिए वह अथक प्रयास कर रहा था, वह पल आ चुका है तो वह मुझे छोड़कर मेरे पीछे आया और अपने दोनों पंजों से मेरे कंधों को जोरदार धक्का दिया जिससे मैं औंधे मुंह उसी जगह कालीन पर गिर पड़ी, जहां कुछ समय पहले उसने मेरी मां का शिकार किया था। गनीमत थी कि मैं ने अपने हाथों से खुद को मुंह के बल गिरने से बचा लिया।
"यह क्या कर रहे हो तुम?" मैं घबराकर बोली। लेकिन वह मूक पशु की तरह मुंह से कुछ नहीं बोला और पीछे से मुझ पर चढ़ गया। उसने मुझे पीछे से जकड़ लिया था जिसके कारण मैं जोर लगा कर विरोध करने में असमर्थ थी।
"छोड़ो मुझे पागल कहीं के। ऐसा भी कोई करता है?" मैं चीखती रही लेकिन वह तो मानो बहरा हो चुका था। वह अब अपनी पाशविक प्रवृत्ति का परिचय देने लगा था। हे भगवान, उत्तेजना के अतिरेक में यह मैं किस मुसीबत को आमंत्रण दे बैठी थी। वह अपनी कमर चलाने लगा था। बिना अपने हाथ का इस्तेमाल किए वह अपने सख्त लंड से ही पीछे से धक्के लगाता हुआ मेरी चूत का प्रवेश द्वार खोज रहा था। इसी क्रम में एक बार तो मेरी गांड़ में ही लंड घुसेड़ने की कोशिश करने लगा था। मेरी तो जान ही हलक में आ गई थी। किसी प्रकार एक हाथ से अपने शरीर को फर्श पर सहारा देकर दूसरा हाथ पीछे लेकर उसके लंड को अपनी चूत के मुंह पर रखने में सफल हो गयी।
घुसा तो धक्के लगा ही रहा था, जैसे ही उसके लंड को मेरी चूत का प्रवेश द्वार मिला, वह दनादन धक्के मारता हुआ घुसाता चला गया। ऊऊऊऊऊहहहह मेरी मां, इस वक्त मुझे अहसास हो रहा था कि घुसा का लंड पहले की अपेक्षा काफी बड़ा हो गया है। जब उसका लंड मेरी चूत में पूरी तरह समा गया तो मुझे ऐसा लगने लगा कि उसका लंड मेरे गर्भाशय को भी क्षत-विक्षत कर देगा। इसका क्या कारण था होगा मैं समझ नहीं पाई। इस मुद्रा में मैं पहली बार चुद रही थी शायद यही कारण हो कि उसका लंड पूरा मेरे अंदर तक जा रहा था। मैं एक बार तो घबरा ही गई। अरे बाप रे, मैं भय के मारे आगे खिसकने की कोशिश करने लगी लेकिन घुसा मेरी कमर पकड़ कर पीछे की ओर घसीट घसीट कर चोदने लगा। मैं जितना आगे खिसकने की कोशिश करती थी उतना ही वह मुझे पीछे की ओर घसीट रहा था। मुझे पीड़ा का भी अहसास हो रहा था। इस मुद्रा में चुदने का यह पहला अवसर मेरे लिए काफी पीड़ादायक सिद्ध हो रहा था लेकिन यह मेरा ही जोखिम भरा निर्णय था इसलिए झेलने के लिए वाध्य थी। आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरितार्थ हो रही थी। अपनी दुर्दशा पर मेरी आंखों से आंसू निकलने लगे थे।
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घुसा मुझे बिल्कुल कुत्ते की तरह चोद रहा था। कुत्तों की तरह वह मेरी कमर पकड़ कर पीछे से तूफानी रफ्तार से धक्के लगाने लगा था। कुछ ही देर में मैं पसीने पसीने हो गई। लेकिन कुछ ही देर में जब मैं इस मुद्रा में पीछे से धक्कों की अभ्यस्त हो गई तो बड़ा आनंद मिलने लगा। अब मैं भी अपनी चूतड़ उछाल उछाल कर चुदवाने लगी।
"आह आह ओह ओह बहुत बढ़िया। चोद मेरे कालू कुत्ते चोद। आह ओह ऊ ऊ ऊ ऊ। शाब्बाआश आह आह...." मैं उसकी श्वान चुदाई से निहाल होती हुई बोल रही थी लेकिन उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था। वह तो मानो मूक बधिर बन चुका था। एकदम पशु की तरह, भावना हीन, सिर्फ अपनी अदम्य चुदाई क्षमता का अभूतपूर्व परिचय देते हुए किसी मशीन की तरह चोदे जा रहा था। मेरी बड़ी बड़ी सख्त चूचियां फर्श की ओर इंगित करती हुई थरथरा रही थीं। मैं आनंद विभोर हुई जा रही थी और हम दोनों एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद में जुटे चुदाई की मस्ती में आहें भरने लगे। करीब पंद्रह मिनट तक घमासान चुदाई के बाद हम हांफते कांपते चरमोत्कर्ष में पहुंच गए। उसके लंड से वीर्य का फौव्वारा छूटने लगा जिससे मेरी कोख की सिंचाई होने लगी।
"आआआआह मैं गयीईईईईई रे कालू ओओओहहह.... " कहते हुए खल्लास हो कर धड़ाम से फर्श पर धराशाई होने लगी और घुसा किसी भैंसे की तरह डकार मारता हुआ मुझ पर लद ही जाता, लेकिन अपने को संभाल लिया। उसका गधे जैसा लंड धीरे धीरे सिकुड़ कर फच्च की आवाज के साथ मेरी चूत से बाहर निकला। उस समय मुझे अहसास हुआ जैसे मेरे शरीर के अंदर से मेरे ही शरीर का कोई अभिन्न अंग जुदा हो गया हो। एक खालीपन का अहसास हो रहा था। घुसा खल्लास हो कर मेरी ही बगल में लुढ़क कर लंबी लंबी सांसें लेने लगा। हम दोनों पसीने से लथपथ हो चुके थे।
"कैसा रहा मैडम?" अपनी सांसों पर काबू पाकर इतनी देर में पहली बार उसके मुंह से बोल फूटा।
"चुप हरामी। जान ही निकाल दिया और पूछ रहा है कैसा रहा।" मैं बड़े प्यार से उसके सीने पर सर रख कर बोली।
"हें हें हें हें" सूअर का बच्चा मेरी नंगी देह को अपनी बांहों में भर कर हंसने लगा।
"मजा तो आया ना मैडम" वह फिर बोला।
"हां बड़ा मज़ा आया लेकिन शुरू में तो तुमने मुझे डरा ही दिया था सूअर कहीं का।" मैं उसका भीगा चूहा बना हुआ लंड सहलाते हुए बोली।
"अब तो डर नहीं लग रहा है ना?"
"नहीं बिल्कुल नहीं। बेटीचोद तो पहले से ही बन चुका था तू, अब मेरी मां का लौड़ा भी हो गया।" मैं बड़े लाड़ से गंदे तरीके से बोली। सच में इन कुछ ही दिनों में मैं बहुत गंदी बन गई थी।
"हे भगवान, ई सब बात बोलना तुम कहां से सीखी?" वह मुझे बांहों में कसते हुए बोला।
"सुन कर। हमारे कॉलेज के लड़के आपस में ऐसे ही बातें करते हैं।" मैं बोली।
"तुम लड़कियां ऐसी बातें सुनती हो तो कैसा लगता है?" शैतानी भरी मुस्कान से वह बोला।
"वो लोग ऐसा बोलते हैं तो हम लड़कियां भी कम थोड़ी न हैं। हम भी ऐसी बातें करते हैं।" मैं बोली।
"तुम लड़कियां तो बड़ी बेशरम हो?"
"तुमने ही तो मुझे ऐसी बेशर्म बनाया है मेरे प्यारे चोदू जी। ऐसे ही और भी लड़कियां बेशर्म बनी होंगी, क्या पता।"
"ओहो। ऐसा है?"
"हां जी। मुझे जंगली तुम्हीं ने बनाया है ना, नहीं तो मैं भी पहले अच्छी ही लड़की थी। ऐसी बातों से दूर ही रहती थी। अच्छी लड़कियों से दोस्ती थी, लेकिन जब से तुमने मुझे चुदवाने का चस्का लगाया है, तब से मेरी मानसिकता और सोच में बड़ा बदलाव आ गया है। अब मैं पहले वाली शरीफ लड़की थोड़ी न रह गई हूं। पूरी तरह बदल गई हूं। अब मैं जंगली बन गई हूं और मेरी दोस्ती भी ऐसी ही जंगली लड़कियों से हो गई। अब मुझे ऐसी गंदी बातें करने में अच्छा लगता है।" मैं अब भी उसके नंगे शरीर से चिपकी हुई थी।
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jungli roj.....................
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