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Misc. Erotica गरम रोज
#21
ab dekhe aage aage hota hai kya...........
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#22
“वाह, मेरी सेक्सी गुड़िया। हमने तुमको पहली बार चोदा तो चोदा, लेकिन मां कसम वह तो कुछ भी नहीं था। सच बोलें तो इतना अच्छा खाना को तो उस समय केवल चखने का मौका मिला था। तुम जैसी सेक्सी गुड़िया को तो हर दिन चोदना चाहिए। इतने टेस्टी खाने को तो रोज रोज भर पेट खाना चाहिए,'' उसने कहा। उसकी बातों और हरकतों से मेरे अंदर कामाग्नि भड़क उठी थी। उसने अपनी बातें कहते हुए मेरे गालों को सहलाया जिससे मैं और भी ज्यादा उत्तेजित हो गई। अब मैं पूरी तरह समर्पण के लिए तैयार हो गई थी और सच कहूं तो चुदने को बेताब हुई जा रही थी।

अब वह कमीना नौकर घुसा मेरी चूचियों, गांड और मेरे पूरे शरीर से खेल रहा था। उसने मेरी ब्रा और पैंटी उतार दी। उफ उफ, अब मैं पूरी तरह मादरजात नंगी थी। मेरी कंचन जैसी काया को इस तरह नंगे रूप में देख कर वह तो मानो पगला ही गया था और उसकी आंखों में भूखे भेड़िए सी चमक आ गई थी। और इधर, हे भगवान, अब मेरे अंदर की झिझक, शर्मो हया कहां रफूचक्कर हो गई थी पता नहीं।

“ज़रा देखो तो, ये कितने बड़े हैं। आपने इन्हें इतना बड़ा बनाने के लिए क्या किया? क्या आपकी चूचियों को और भी लोग दबाते हैं? जो भी दबाते होंगे किस्मत वाला ही होंगे। साले कमीने। लेकिन एक बात तो है, तुम जैसी जबरदस्त लौंडिया को चोदने का पहला मौका हमको ही मिला, वाह रे हमारी किस्मत।" कहा और वह मेरे स्तनों को मसलने लगा और चूसने।

"नहीं। बचपन से लेकर आज तक किसी ने मेरी चूचियों को ऐसे नहीं दबाया है। बस ये तो ऐसे ही अपने आप, और लड़कियों की तुलना में कुछ ज्यादा ही बढ़ गये हैं,'' मैंने कहा। "आआआआह ओओओओओहहहहह...." उसकी कामुक हरकतों से मेरी आहें निकलने लगी थीं। अब मैं गरम हो चुकी थी और पूरी तरह चुदाई के मूड में आ गई थी। दो दिन पहले की चुदाई की मस्ती याद आ गई थी। अब मुझे भी खुल कर बोलने में कोई शर्म नहीं आ रही थी।

"बहुत बढ़िया। तुम अब मूड में आ गई हो। अगर तुम्हारे जैसी सेक्सी लौंडिया हमारे गाँव में होती, तो हम उसी से शादी कर लेते और उसे हर दिन चोदते,” उसने कहा और मेरी गर्दन को चूमना और चाटना शुरू कर दिया, जबकि उसके हाथ मेरी जाँघों पर घूमने लगे। फिर उसने अपनी उंगलियाँ मेरी चूत में डाल दीं और उफ उफ करने लगा। उसकी उँगलियाँ मेरे अंदर बहुत अच्छी लग रही थीं।

"इस्स्स्स्स्स्स....." उसकी उंगली जैसे ही मेरी चूत में घुसी, मेरी सिसकारी निकल पड़ी।

उसने कहा, "देखो, तुम इसका आनंद कैसे ले रही हो।" वह सही था। मैं इस समय आनंद ले रही थी और मैंने फिर इस बार हार मानने का फैसला कर लिया। मुझे मजा आता देख वह मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरी गर्दन को चूमने और चाटने लगा। फिर वह मेरी चूचियों की ओर बढ़ा, उन्हें चूसा और उनके साथ जमकर खेलने लगा।

फिर नौकर मेरी कमर और नाभि की ओर बढ़ा और चूमता रहा। मेरी नाभि मेरी कमज़ोर जगह है, यह मुझे अब पता चल रहा था और मैं अधिक उत्तेजित होकर छटपटाने लगी। वो मेरी नाभि को अपनी जीभ से चाटने लगा और इससे मुझे बहुत मजा आ रहा था।

फिर नौकर मेरी चूत के पास गया और उसे सूँघा। फिर वो उसे चूसने लगा। मैंने उसका सर पकड़ लिया और जोर-जोर से कराहती रही। यह बूढ़ा, बदसूरत आदमी तो चुदाई का जादुगर निकला। अपनी जीभ से बहुत अच्छा काम कर रहा था। इससे पहले कि मैं अपनी चरम सीमा तक पहुँच पाती, वह रुक गया।

फिर वह फिर से मेरे ऊपर चढ़ गया, मेरी दोनों चूचियों को पकड़ा और उनके बीच में अपना लंड घुसेड़ दिया। मेरे बड़ी बड़ी चूचियों ने नौकर के मोटे लंबे काले लंड को पूरी तरह से अपनी आगोश में ले लिया। मैंने भी उत्तेजना के आवेग में खुद ही अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को पकड़ लिया और उन्हें एक दूसरे के और करीब करके उसके मोटे लंड को अपनी चुचियों के बीच जकड़ लिया। वह कमीना चुदक्कड़ अपने लंड को मेरी चूचियों के बीच ही आगे पीछे करने लगा। हम दोनों ने अपनी आंखें बंद कर लीं और मस्ती भरी सिसकारियां निकालने लगे।
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#23
माफ कीजिएगा, गलती से यह दुबारा पोस्ट हो गया था। असुविधा के लिए खेद है।
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#24
अब आगे
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#25
कुछ देर अपनी चुचियों के बीच उसके लंड की घिसाई से मैंने उत्तेजना के मारे बेकाबू होकर उसका मोटा लंड हाथों में ले लिया। मेरी बेताबी देखकर एक पल के लिए तो वह भी हैरान रह गया। उससे भी मेरा मन नहीं भरा तो मैंने उसका मोटा लंड अपने मुँह में डाल लिया और पागलों की तरह चूसने लगी। मैंने उसे अपने दोनों हाथों अच्छी तरह पकड़ रखा था और आइसक्रीम की तरह चाटने लगी। वह बहुत जोर-जोर से आहें भरता रहा और अपना सुध-बुध खोता रहा।

“आह ओह रोज मैडम, आप तो लंड चूसने में बहुत माहिर हो। इससे अच्छा मुखचोदन मुझे आज तक नहीं मिला। आज तक किसी ने मेरा लंड इतने अच्छे से नहीं चूसा,'' उसने कहा और कराहता रहा।

मैंने काफी देर तक उसका लंड चूसा। अब उसके बर्दाश्त की इंतहा हो गई थी। उसने मुझे घुमाया और मेरे ऊपर सवार हो गया गया और अपना लंड मेरी गांड पर रगड़ने लगा। उसने मेरी पूरी पीठ को चूमा-चाटा और फिर मेरी गांड को मसलते हुए चूमने लगा। जब उसने ऐसा किया तो मेरे मुँह से दर्द और ख़ुशी के कारण कराह निकली।

“तुम्हारी गांड भी बहुत सुन्दर और सेक्सी है। मैंने पहले कभी इतना बड़ा गांड़ नहीं देखा। मैं इसे बहुत जम कर चोदना चाहता हूं, लेकिन अभी नहीं, अभी तो तेरी चूत ही मेरे लौड़े को खाने के लिए फड़फड़ा रही है,'' उसने एक और थप्पड़ मारते हुए कहा, और मुझे कुतिया के स्टाइल में घुटनों के बल बैठने को कहा।

फिर कामुक नौकर अपना बड़ा लंड पीछे से मेरी गीली चूत के अंदर घुसेड़ने लगा। "आआआआआआह...." दर्द से मेरा चेहरा विकृत हो गया और मेरी दर्दनाक आह निकल पड़ी। मुझे लगा कि मैं इतने बड़े लंड को दोबारा अपने अंदर नहीं संभाल पाऊंगी, लेकिन उसने धक्का देकर किसी तरह लंड अंदर डाल दिया। मैं भी बहुत गीली हो चुकी थी और इस वक्त बेकाबू हो रही थी, इसलिए झेल गई।

उसने मेरे कूल्हों को पकड़ लिया और गहरे गहरे धक्के लगाने लगा। मैं भी अपने कूल्हे हिला रही थी और कराहती रही। मैं बहुत जोश में आ चुकी थी और खुल कर उस चुदाई में सहयोग करने लगी थी। अब मुझे बहुत आनन्द आ रहा था। उसका लंड मेरे अंदर तक जाता रहा जो मुझे स्वर्ग का सुख प्रदान कर रहा था। वह मुझे चोदते समय मेरी गांड़ पर थप्पड़ भी मारता जा रहा था और गंदी गंदी गालियां भी दे रहा था। "साली बुरचोदी, ले मेरा लौड़ा खा मां की लौड़ी। आह आह ओह ओह ले साली कुत्ती, और ले हुम और ले....." फिर उसके धक्कों की रफ्तार तूफानी हो गई और चरमसुख से पहले हम दोनों पलट गये। अब उसने मुझे सीधा लिटा कर मेरी टाँगें उठाईं और अपना लंड फिर से अन्दर डाल दिया और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा। उसका लंड मेरे अंदर तक जा रहा था। मैं बहुत उत्तेजित हो गई थी और मेरी चूत और अधिक की चाह में उसके लंड के चारों ओर लिपटती जा रही।
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#26
wah maza aa gya
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#27
हम दोनों कराह रहे थे, सिसक रहे थे और हांफ रहे थे। इस पोजीशन में अब उसने गति बढ़ा दी और तेजी से धक्के मारने लगा और हम दोनों गुत्थम-गुत्था हो रहे थे, एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद कर रहे थे और जोर-जोर से आहें भर रहे थे। जैसे ही हमारे शरीर आपस में रगड़ रहे थे, मैंने उसे कसकर पकड़ लिया। मैं लगभग चिल्ला रही थी क्योंकि मुझे बहुत आनंद आ रहा था।

तभी मेरा शरीर अकड़ने लगा और मैं अपने चरमसुख तक पहुंच गई, "आआआआआआह मां इस्स्स्स्स्स्स ....." और फिर वह पहुंचा और बाप रे बाप, क्या पहुंचा। फर्र फर्र फचाक फचाक करके अपना वीर्य मेरी चूत में पिचकारी की तरह छोड़ने लगा। ओह ओह ओह मैं निहाल हो गई। हम दोनों एक दूसरे से पागलों की तरह चिपक कर चरम सुख में गोते लगा कर हांफ रहे थे।

खल्लास हो कर वह मेरे पास लेट गया और मुस्कुराते हुए पूछा, "मैडम, क्या आप अब गर्म हैं?"

"हाँ, मैंने जितना सोचा था उससे कहीं अधिक," मैं पूर्ण संतुष्टि की मुस्कान के साथ बोली।

वह बहुत जबरदस्त चुदक्कड़ था। वह कुरूप, मोटा बुड्ढा देखने में चाहे कितना भी गंदा और घटिया था लेकिन चोदने में बिल्कुल माहिर। पहले मुझ जैसी छोटी उम्र की कमसिन लड़की के कौमार्य को बड़ी चालाकी से भंग किया और चुदाई के आनंद से परिचित कराया और अब इस दूसरी चुदाई में तो जन्नत ही दिखा दिया। दोनों बार मुझे अच्छी तरह चोद कर अपनी अदम्य चुदाई क्षमता का कायल कर दिया। स्टोररूम की घटना के बाद अब इस दूसरी चुदाई के बाद तो मेरी चूत मेरे उस जंगली नौकर के लंड के लिए धड़कने लग गई। मैंने उसी वक्त फैसला किया कि मैं इस गंदे खेल से अपनी हवस पूरी करती रहूंगी और उस कमीने नौकर से चुदवाती हुई उसके द्वारा मुझे सेक्स के इस अद्भुत आनंद से परिचित कराने का प्रतिदान देती रहूंगी।

अब आगे की घटना अगली कड़ी में पढ़िए। तब तक के लिए इस कामुक रोजा की लेखनी का अल्पविराम स्वीकार कीजिए।
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#28
Ab aahe ka pratidaan kya hai
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#29
गरम रोजा (भाग 3)

मैं पहले ही बता चुकी हूं कि हमारे घर में एक नया नौकर आया था जिसका नाम घुसा दुराई था। वह निहायत ही बदसूरत, धूर्त और कामुक आदमी था। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि पहली नजर में मैं उसके व्यक्तित्व से घृणा करती थी लेकिन दो तीन दिनों में ही हालात ने ऐसी करवट ली कि अब मैं उससे घृणा तो दूर की बात है, मैं उस पर आसक्त हो चुकी थी। कारण तो आप लोगों को पता चल ही गया होगा।

जी हां, मैं इस श्रृंखला को अपनी शैली में लिख रही हूं । यहां मैं अपनी कहानियां और अनुभव साझा कर रही हूं और यह आगे कैसे चलता रहा इसके आधार पर इसे एक श्रृंखला के रूप में पेश कर रही हूं।

स्टोर रूम वाली घटना के बाद तीसरे ही दिन घुसा नें किस तरह मेरा बुखार उतारा वह तो आपलोग जान ही चुके हैं। उसके बाद तो उसके साथ मेरा शारीरिक संबंध होना आये दिन की बात हो गई। मैं तो एक तरह से उस गंदे आदमी के साथ गुपचुप तरीके से कामुक कृत्यों में सक्रिय सहभागिता निभाते निभाते उसकी विविध कामक्रीड़ाओं की दीवानी सी हो गई। दस पंद्रह दिनों में ही उस नादान उम्र में मुझे सेक्स का ऐसा चस्का लग गया कि मैं सेक्स की आदी हो गयी। उस कमीने की तो निकल पड़ी थी। जहां मौका मिला नहीं कि हम गुत्थमगुत्था हो कर अपने तन की भूख मिटाने में पीछे नहीं रहते थे। सबसे विचित्र बात तो यह थी कि मैं सेक्स की आदी होने के बावजूद मेरी पहली पसंद घुसा जैसा उम्रदराज आदमी ही था। लड़कों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी, जबकि लड़के मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े रहते थे। जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मैं पहले भी किसी लड़के को घास नहीं डालती थी और घुसा ने मुझे अपने हवस की शिकार बनाने के बाद के बाद लगातार ऐसे ऐसे ढंग से मुझे भोगा कि मैं उसकी दीवानी सी हो गई। लड़कों में मेरी दिलचस्पी बिल्कुल खत्म हो गई थी, यह तो बाद बाद की बात है कि यदा कदा लड़कों से भी मैं अपने तन की भूख मिटाने लगी।

अब आगे की जो घटना हुई, वह इस तरह है: -

हमारे कॉलेज के वार्षिक दिवस की तैयारियां चल रही थीं और उसके लिए हर तरह से तैयारियां चल रही थीं। उस दिन के कार्यक्रम में गीत संगीत, ड्रामा तथा और भी विभिन्न प्रकार की प्रस्तुतियां होनी थीं। मैं भी ड्रामा में भाग लेने वाली थी और उसी के रिहर्सल के लिए मुझे कॉलेज जाना था। उस दिन शनिवार था और मेरी मां के ऑफिस की छुट्टी थी इसलिए वे घुसा के साथ घर की साफ सफाई करने का प्रोग्राम बना चुकी थी। यदि मुझे कॉलेज नहीं जाना होता तो मुझे भी इस सफाई के कार्य में उनका हाथ बंटाना पड़ता। उस दिन रिहर्सल के लिए मुझे कॉलेज जाने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि ड्रामा का निर्देशक , जो हमारे कॉलेज का ही एक स्पोर्ट्स टीचर था, मेरे हिस्से की भूमिका को पहले ही देख चुका था, मेरे रोल के प्रति पूरी तरह आश्वस्त था कि मैं अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभा सकती हूं, लेकिन घर के काम से बचने के लिए मैं ने कॉलेज जाना ही पसंद किया।

कॉलेज के लिए निकलते समय मैंने पलट कर देखा तो मैं अपनी मां को देखती रह गई। वह पूरी तरह काम करने के मूड में थी। उन्होंने काम करने के हिसाब से उसी तरह से कपड़े पहने हुए थी। मेरी मां ने नीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी और चूँकि वह सफ़ाई करने को तत्पर थी इसलिए आसानी से चलने फिरने के लिए उसने साड़ी को नाभि से नीचे बांध लिया था। उन्होंने पल्लू को भी लपेट कर साइड से कमर में खोंस रखा था इसलिए उनके स्तन पर ब्लाउज के अलावा और किसी तरह का अतिरिक्त पर्दा नहीं था। मेरी मां के भारी भरकम स्तन स्पष्ट रूप से अपने आकार और साईज को ब्लाऊज के अंदर से ही प्रदर्शित कर रहे थे।

मेरी मां के पास भी बड़ी अच्छी देहयष्टि थी, या यों कहूं कि वह, औरतों वाली आकर्षक और बेहद सेक्सी देह वाली धन संपदा की मालकिन थी। उसकी देह का नाप जोख 36-32-38 के करीब था शायद, जो कि उसकी उम्र के हिसाब से काफी अच्छी थी। उसकी कमर पर चर्बी थी लेकिन उससे कमर पर चर्बी के कारण वह अलग तरह से सेक्सी लगती थी। आस-पड़ोस के सभी जवान लड़के और पुरुष हमेशा चोरी छिपे उसकी देहयष्टि देख देख कर आहें भरते थे। सामने से तो नजरें चुराते थे लेकिन छुप-छुप कर उसके जिस्म के उतार चढ़ाव को देखते थे। पुरुषों के लिए अपनी आंखें सेंकने हेतु मेरी माँ एक बेहद सेक्सी और बेहद उपयुक्त महिला थीं।

मेरी मां को पता था कि हमारे कॉलेज में वार्षिक दिवस की तैयारियां चल रही थीं और उस कार्यक्रम में मेरी क्या भुमिका थी। उन्हें पता नहीं था की मेरी छुट्टी कब होगी अतः उन्होंने पूछ लिया, "रोज सुनो, तुम्हारी छुट्टी कब होगी?"

"पता नहीं मां। रिहर्सल है, कब तक चलेगा पता नहीं। शायद देर हो जाय।" मैंने कहा।
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#30
nice.........................
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#31
"जब आना होगा तो फोन कर लेना, ड्राईवर गाड़ी लेकर पहुंच जाएगा।" मां ने फिर कहा।

"तुम चिंता मत करो मां। मैं खुद ही ऑटो करके आ जाऊंगी। देर होगी तो मैं बता दूंगी।" मैं बोली।

"ठीक है " कहकर मां झाड़ू लेकर काम में लग गयी।

मेरे देखते ही देखते मेरी मां ने झुक कर झाड़ू लगाना आरंभ कर दिया था। उसका यह रूप देखकर मैं कुछ पलों तक बुत बनी उसे देखती रह गई । झुक कर झाड़ू लगाते समय उनके स्तनों के बीच की पूरी दरार स्पष्ट रूप से नुमायां हो रही थीं। काफी हद तक स्तन भी दृष्टिगोचर हो रहे थे। उस समय वह नौकर एक ऊंची स्टूल पर खड़ा होकर छत की सफाई करने की तैयारी कर रहा था। जब इतनी दूर से मुझे मां के अंग इतने स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहे थे तो घुसा तो मुश्किल से मां से तीन चार फुट की दूरी पर था। क्या उस कमीने ने यह सब नहीं देखा होगा? अवश्य देखा होगा और मां की सेक्सी देह ने जरूर उसे आकर्षित किया होगा। उस जैसा कमीने आदमी का मन भी अवश्य डोल गया होगा, आखिर औरतों का रसिया जो ठहरा। उसने ध्यान नहीं दिया कि मैं उनकी तरफ देख रही हूं। वह स्टूल पर चढ़ने के बदले अपने स्थान पर ही मानो जम गया था। उसकी नजरें ब्लाऊज से छलक कर बाहर निकल आने को बेताब, मेरी मां के बड़े बड़े स्तनों पर गड़ी हुई थीं और वह अपने होंठ चाट रहा था। साला हराम का जना कुत्ता कहीं का। इन बातों से अनजान मेरी मां झाड़ू लगाना आरंभ कर चुकी थी।

मुझे साफ साफ पता चल रहा था कि मेरे घर से बाहर निकलते ही यहां कुछ न कुछ तो होने वाला है। यह कमीना किसी न किसी तरह मेरी मां को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश अवश्य करेगा, लेकिन कैसे? यह सवाल मेरे दिमाग में घूमने लगा। साथ ही साथ यह सवाल भी था कि उसके कुत्सित कृत्य को कैसे अंजाम देगा और उसके इस प्रयास के प्रति मेरी मां की प्रतिक्रिया क्या होगी? अब मुझे कॉलेज जाने से ज्यादा यहां होने वाले तमाशे को देखने की बलवती इच्छा होने लगी लेकिन मेरी उपस्थिति में यह होना असंभव था। मैं सोचने लगी कि इनके सामने यहां से बाहर निकलने का दिखावा कर के किसी तरह फिर से चुपके से घर में दाखिल हो कर गुप्त रूप से छिप जाऊं तो मजा आ जाए।

सहसा मेरे दिमाग में एक योजना आ गई। मैं जानती थी कि इस वक्त घर के पीछे का दरवाजा खुला हुआ है। मैं उनकी नजरों के सामने, आगे के दरवाजे से बाहर निकल गई और पीछे के दरवाजे से चुपके से फिर अंदर आ कर दबे पांव बगल वाले अतिथि कक्ष में जा घुसी। अतिथि कक्ष का दरवाजा पीछे से आने वाले गलियारे की ओर था जिसके कारण मुझे ड्राइंग हॉल को पार करने की आवश्यकता नहीं थी और मुझे चुपके से वहां घुसने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मुझे पता था कि अतिथि कक्ष दो दिन पहले ही साफ किया जा चुका था, इसलिए वहां छुपना ज्यादा सुरक्षित था, जहां उनके आने की संभावना नहीं थी। अतिथि कक्ष और ड्राइंग हॉल के बीच एक बड़ी सी शीशे की खिड़की थी और अतिथि कक्ष की तरफ अंदर से पर्दा लगा हुआ था, जिसे हल्का सा सरका कर मैं ड्राईंग हॉल का नजारा अच्छी तरह से देख सकती थी।
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#32
मैं ने देखा कि घुसा उस ऊंची स्टूल पर चढ़ चुका था और उसके हाथ ऊपर के सीलिंग फैन की सफाई करने में व्यस्त थे लेकिन उसका पूरा ध्यान मेरी मां के शरीर पर ही था जो अपने काम में व्यस्त थी। मां जब झुक कर झाड़ू लगा रही थी तो जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मेरी मां के बड़े बड़े स्तन ब्लाऊज से छलक कर बाहर निकलने को बेताब दिखाई दे रहे थे और साथ ही साथ उनके बड़े-बड़े मांसल नितम्ब पीछे की ओर बड़े सेक्सी और आकर्षक दिखाई दे रहे थे। उस नजारे को घुसा लार टपकाती नजरों से घूर रहा था और अपने होंठों पर जुबान फिरा रहा था। इन सब बातों से बेखबर मेरी मां अपने ही काम में मगन थी।

घुसा एक पतली टी शर्ट और पैजामे में था। हां, उस दिन की अपेक्षा आज उसकी टी-शर्ट और पैजामा काफी साफ सुथरी थी। तभी मेरी नजर उसकी तोंद से नीचे जांघों के बीच पड़ी और यह देख कर मेरी आंखें बड़ी-बड़ी हो गयीं कि घुसा के पैजामे का अगला भाग काफी उभर चुका था। हे राम, यह तो स्पष्ट हो चुका था कि घुसा उत्तेजित हो चुका था और उसका लंड खड़ा हो चुका था। यह सब देखकर इधर मैं भी भीतर ही भीतर सनसना उठी थी।

"तुम एक ही पंखा साफ करते रहोगे कि बाकी भी साफ करोगे?" मेरी मां की आवाज सुनकर घुसा ने तुरंत अपनी नज़र पंखे की ओर उठा ली लेकिन उसके मन की कुत्सित भावना की चुगली तो उसका फूला हुआ पैजामा कर रहा था। मेरी मां ने जैसे ही नजर उठाकर घुसा की ओर देखा तो उसकी नजर सीधे उसके फूले हुए पैजामे पर पड़ी। उतना बड़ा तंबू देखकर एक बार तो मेरी मां के मुंह में मानो ताला ही लग गया था और कुछ पलों के लिए उसकी आंखें मानो वहीं जम सी गई थीं। उनका चेहरा लाल हो गया था। कुछ ही पलों में जैसे उन्हें होश आया और अपने सर को झटक कर फिर अपने काम में लग गई।

"जी मैडमजी, यह पंखा तो साफ हो गया, अब दूसरा पंखा साफ करने वाले हैं।" कहने को तो वह कह गया था लेकिन सहसा उसे भी पता चल गया कि मेरी मां की नजर कहां है। वह हड़बड़ा कर पंखा का ब्लेड छोड़ कर अपना हाथ अपने सामने ले आया। दूसरे हाथ में एक कपड़ा का टुकड़ा था जिससे वह पंखे को साफ कर रहा था। वह एक हाथ से ही अपने सामने के उभार को छिपाने का असफल प्रयास करने लगा। उसी हड़बड़ाहट में वह स्टूल से उतर ही रहा था कि जानबूझकर या अनजाने में उसका संतुलन बिगड़ा और पास में ही खड़ी मेरी मां के ऊपर गिरने लगा लेकिन खुद को संभालते संभालते भी मेरी मां पर लद गया, जिस कारण मेरी मां का भी संतुलन बिगड़ा और वह भी पीछे की ओर गिरने लगी। घुसा मोटा जरूर था लेकिन फिर भी गजब की फुर्ती से न केवल खुद को संभाला, बल्कि मेरी मां को भी अपनी मजबूत बाहों में दबोच कर नीचे फर्श पर गिरने से बचा लिया। यह संयोग था या उसने ऐसा जानबूझकर किया था कि स्टूल मेरी मां के विपरीत दिशा में गिरा था और घुसा मेरी मां की तरफ गिरा था। मैं स्पष्ट देख सकती थी कि घुसा गिरते हुए भी बिल्कुल नियंत्रण में था लेकिन ऐसे दिखाया कि यह एक आकस्मिक दुर्घटना हो। उसके नियंत्रण का अंदाजा इस बात से भी लगा कि गिरने के क्रम में न उसे चोट लगी और न ही मेरी मां को चोट लगने दिया, लेकिन बड़ी चालाकी से वह मेरी मां को सुरक्षित फर्श पर ऐसे गिराया कि उसे बिल्कुल चोट न लगे और खुद उस पर धीरे से लद गया। ऐसी चालाकी से और सावधानी से लदा कि मेरी मां को उसकी चालाकी का आभास तक नहीं हुआ। घुसा ने इस बात का भी ध्यान रखा था कि मेरी मां उसके भारी भरकम शरीर से दब कर न पिस जाए। मैं ने इस बात को भी गौर किया था कि गिरते गिरते कितनी चालाकी से घुसा ने मेरी मां की साड़ी उनके घुटनों से ऊपर तक उठा दी थी। इतना ऊपर की मेरी मां की केले के थंभ जैसी चिकनी जांघें बेपर्दा हो गई थीं। यह सब उसने इतनी कुशलतापूर्वक किया था कि मेरी मां को इसका अंदाजा तक नहीं हुआ। वह तो इस आकस्मिक दुर्घटना से कुछ पलों तक हतप्रभ रह गयी थी। उसे अपने शरीर का होश ही नहीं था कि पल भर में वह किस तरह अर्धनग्न हो चुकी थी। वाह घुसा वाह। उसकी चालाकी पर मैं मन ही मन दाद देने लगी थी।
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#33
wah maa beti dono shayad ................
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#34
कुछ पल तो वे दोनों उसी तरह पड़े रहे। मेरी मां नीचे और घुसा उसके ऊपर। मैं यह भी अच्छी तरह देख सकती थी कि घुसा की जांघों के बीच का विशाल उभार ठीक मेरी मां की जांघों के बीच टिका हुआ था। यह मैं अच्छी तरह से समझ सकती थी कि उस कठोर उभार की चुभन से मेरी मां बिल्कुल भी अनभिज्ञ नहीं थी होगी। यह एक प्रकार से मेरी मां की साड़ी के ऊपर से ही उसकी योनि पर एक दस्तक थी, फिर भी कुछ देर वैसी ही एक पराए मर्द, घुसा जैसे नौकर के नीचे पड़ी रहना क्या दर्शा रहा था? मेरी मां को तो तुरंत घुसा के नीचे से निकल कर उठ जाना चाहिए था लेकिन मेरी मां ने ऐसा नहीं किया, क्यों? उस नादान उम्र में उस वक्त मुझे समझ नहीं आया था लेकिन अब सब समझ सकती हूं।

एक शादी शुदा औरत महीने महीने भर अपने पति से दूर रहती है तो उसकी मनोदशा कैसी रहती है यह मैं बहुत अच्छी तरह से समझती हूं। उस चालीस की उम्र वाली महिला के लिए इतने समय के लिए पति से दूर रहना कितना कष्टकारी हो सकता है यह हम महिलाओं से बेहतर और कौन जान सकता है भला। मेरी मां कोई अपवाद तो थी नहीं और ऐसे कमजोर पलों का फायदा उठाने में घुसा जैसे औरतखोर मर्द कहां पीछे रहने वाले होते हैं। वही स्वर्णिम अवसर इस वक्त घुसा के पास था और वह इस अवसर को कहां हाथ से जाने दे सकता था भला। मेरी मां भले ही एक सम्मानित पद पर काम करने वाली महिला थीं, एक संभ्रांत वर्ग की महिला थी, लेकिन थी तो एक महिला ही। अपनी जिस्म की जरूरत भी तो कोई चीज होती है। मेरी मां की हसरत भरी नजरों का मतलब समझने में घुसा को तनिक भी देर नहीं लगी।

वह अच्छी तरह से जानता था कि बस एक बार मेरी मां के मन से झिझक नाम की दीवार को ढहा दिया जाय तो फिर माल पूरी तरह कब्जे में होगा। बस इस सुनहरे मौके को भुनाने का इससे अच्छा अवसर और कहां मिलता। आधा काम तो कर ही चुका था। बस लोहा को थोड़ा और गरम करना था और फिर हथौड़ा चला देना था।

"ओह, माफ कीजिएगा मैडमजी। आपको कहीं चोट तो नहीं लगी?" कहकर उसने इतने करीब से मेरी मां के शरीर को देखते हुए बोला। उसका एक हाथ मेरी मां की पीठ पर था और दूसरा हाथ अभी भी मेरी मां की खुली जांघ पर था। ऐसी आकस्मिक दुर्घटना में किसका हाथ कहां है, इसपर अगर ध्यान जाए भी तो व्यक्ति इसे हड़बड़ी और बेध्यानी का परिणाम ही समझेगा, और इस समय मेरी मां के साथ यही हुआ था। अबतक जो भी घटना घटित हुआ वह देखने में आकस्मिक था लेकिन मैं अच्छी तरह समझ रही थी कि घुसा ने यह सब जान बूझकर किया था जबकि मेरी मां इसे आकस्मिक घटना मान रही थी। लेकिन उसी स्थिति में मेरी मां का पड़ी रहना क्या दर्शा रहा था? अवश्य उस वक्त मेरी मां को अच्छा लग रहा था।

"न न न नहीं , नहीं, मुझे कहीं कोई चोट नहीं लगी है। मैं ठीक हूं।" घुसा की बात से मानो मेरी मां नींद से जाग उठी और बोली। वह तनिक घबरा भी गयी कि घुसा को उनकी मनोदशा का आभास तो नहीं हो गया है। उधर घुसा जैसा आदमी इतना मूर्ख कैसे हो सकता था कि उसकी बांहों में आई औरत के मन में क्या चल रहा है इस बात को समझ न सके। घुसा ने मेरी मां के चेहरे को देखा, उनकी आंखों को देखा और मेरी मां के देह की भाषा को समझा और उसे समझते देर नहीं लगी कि मेरी मां के अंदर चिंगारी सुलग चुकी है, बस थोड़ी और हवा देकर उस चिंगारी को आग में परिवर्तित करने की देर है कि गरमागरम लजीज व्यंजन उसकी थाली में खुद ब खुद गिर जाती और बोल पड़ती, अब मेहरबानी करके मुझे खा लो।
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#35
shandar ja rhi hai apki story.............
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#36
"देखिए हम से झूठ मत बोलिए मैडमजी। मुझ बेवकूफ के गिरने से आप जिस तरह गिरी हैं उससे आपको चोट लगना एकदम स्वाभाविक है और आप बोल रही हैं कि आपको जरा भी चोट नहीं लगा, ऐसे कैसे हो सकता है? आप जैसे गिरी हैं, वैसे में हाथ में और कमर में तो जरूर चोट लगा होगा।" घुसा पीठ के पीछे से मेरी मां की नंगी कमर को सहलाते हुए बोला, लेकिन अब भी वह मेरी मां के ऊपर से हटने का कोई उपक्रम नहीं किया था। हटने का उसका इरादा भी नहीं था शायद। उसी पोजीशन में घुसा थोड़ा सा कसमसाया और इस तरह से वह अपने खंभे को मेरी मां की योनि के ऊपर रगड़ा। निश्चित तौर पर मेरी मां उस खंभे की रगड़ को स्पष्ट तौर पर अनुभव कर चुकी थी लेकिन तब भी वह घुसा के नीचे से हटने की कोशिश नहीं कर रही थी। उफ उफ मेरी मां। अब मैं समझ सकती हूं कि मेरी मां के अंदर की सोई हुई कामना, या यों कहूं कि दबा कर रखी हुई कामना का बांध अवश्य फट पड़ने को आतुर था होगा। उस वक्त मेरी मां का चेहरा लाल हो चुका था। कैसा अनुभव कर रही थी होगी? क्या उसके मन की दबी हुई कामना अंगड़ाई लेने लगी थी? जरूर। जरूर वह चाह रही थी होगी कि वे उसी तरह पड़े रहें ताकि वह घुसा के शरीर को और अच्छी तरह महसूस कर सके लेकिन अपने मुंह से कहे तो कैसे कहे। एक शारीरिक भूख की मारी संभ्रांत परिवार की नारी, एक पराए मर्द, वह भी एक नौकर के सामने, खुल कर अपनी ऐसी कामना को व्यक्त करे भी तो कैसे करें। हाय रे मेरी मां की मजबूरी।

लेकिन मेरी मां की किस्मत अच्छी थी कि यहां उसका पाला एक शातिर औरतखोर से पड़ा था, जो अनपढ़ होते हुए भी एक घाघ मनौवैज्ञानिक से कम नहीं था। बिन कहे ही वह मेरी मां के अंदर मचल रही भावना के उफान को अच्छी तरह से समझ रहा था।

"यह यह तुम कककक्या कर रहे हो? मुझे कुछ नहीं हुआ है। छोड़ो मुझे।" घुसा के हाथ को अपनी नंगी कमर पर घूमते हुए पा कर मेरी मां ने बड़े कमजोर स्वर में कहा लेकिन घुसा के नीचे से खिसकने की कोई कोशिश नहीं कर रही थी।

"हुआ है मैडमजी। हमको पता है, कुछ तो जरूर हुआ है। कुछ चोट ऊपर से नहीं, अंदर से महसूस होता है। हम वही कर रहे हैं मैडमजी, जो इस समय हमको करना चाहिए। देखिए मना मत कीजिएगा। कुछ ही देर में आपको अच्छा लगने लगेगा।" घुसा उसी तरह मेरी मां की कमर को सहलाते हुए बोला। अब मेरी मां की जुबान पर एक तरह से ताला सा लग गया था। सच में मेरी मां को अच्छा लग रहा था क्योंकि मेरी मां के चेहरे पर एक सुकून दिखाई दे रहा था। उनके किस दर्द पर मरहम लग रहा था? शायद बाहरी भी और अंदरूनी भी। मेरी मां के चेहरे पर सुकून देखकर घुसा की हिम्मत बढ़ती जा रही थी।

"चलिए, थोड़ा सा पलट जाईए तो। हम आपका कमर दबा देंगे।" बोलने के साथ वह मेरी मां के बदन में कोई हरकत होने से पहले ही उठा और वहां से दो कदम दूर, जहां कालीन बिछा हुआ था, मां को पलट दिया।

"मैं बोल रही हूं ना कि मैं ठीक हूं। मुझे कोई चोट वोट नहीं लगी है।" मेरी मां बोली। उसने इस बात पर अब भी ध्यान नहीं दिया था कि उसकी साड़ी घुटनों से ऊपर उठी हुई थी और उसकी गोरी गोरी जबरदस्त जांघें बेपर्दा हालत में घुसा की आंखों में चमक पैदा कर चुकी थी। उसकी आंखों में वासना के लाल डोरे उभर आए थे। मुंह में लार आ गया था। वह तो जरूर कल्पना में मेरी मां की जांघों के बीच के सामान को देख रहा था शायद और उसकी बेताबी देखते ही बन रही थी। बड़ा धीरज वाला था वह। हड़बड़ी में सारा मामला को गड़बड़ नहीं करना चाह रहा था।

वह बहुत चालाकी से फूंक फूंक कर धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था और इधर उत्तेजना के कारण मेरी हालत खराब हो रही थी। मेरी उतावली बढ़ती जा रही थी। जहां मेरा एक हाथ मेरी चूचियों पर आ गया था वहीं दूसरा हाथ मेरी चूत पर पहुंच चुका था। अरे जो होना है वह तो स्पष्ट हो चुका था लेकिन इतना धीरे धीरे हो रहा था कि आगे की घटना देखने के लिए मेरे सब्र का पैमाना छलक जा रहा था। खैर मेरी भी मजबूरी थी। चुपचाप देखते रहने के अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं था। उतावली में आकर मैं इतने उत्तेजक और मजेदार घटना में खलल नहीं डाल सकती थी नहीं तो सारा गुड़ गोबर हो जाता।
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#37
MERA BHI SARB KA PAIMANA TUT RHA HAI
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#38
"झूठ बोल रही हैं आप। यह हो ही नहीं सकता है कि आपको कोई चोट नहीं लगी हो। देखिए तो पीछे से आपकी कमर के पास लाल हो गया है। चलिए मैं आपकी कमर थोड़ा दबा दूं, नहीं तो बाद में आपको बहुत तकलीफ़ होने वाली है।" कहकर उसने मेरी मां के ब्लाऊज को पीछे से थोड़ा और उठा दिया और कमर से साड़ी को थोड़ा और नीचे खिसका दिया।

"ययययह कककक्या कर रहे हो तुम?'" मेरी मां पेट के बल लेटे लेटे ही बोली। लेकिन घुसा कहां मानने वाला था। वह मेरी मां की कमर के दोनों तरफ अपने पैरों को रख कर घुटनों पर आ गया। इस तरह से देखा जाए तो उसने मेरी मां को अपने कब्जे में ले लिया था। अब घुसा थोड़ा झुका तो उसके सामने का खंभा, जो अबतक पूरी तरह से खड़ा हो कर सख्त हो चुका था, मेरी मां के मोटे मोटे चूतड़ों के बीच की दरार पर टिक गया था।

"अब आप चुप रहिए। हम जो कर रहे हैं उससे आपको अच्छा लगेगा।" कहकर वह मेरी मां की कमर दबाने लगा। हल्के हाथों से धीरे धीरे वह मेरी मां की कमर को दबा रहा था और अपना खंभा मेरी मां के चूतड़ों की दरार पर घिस रहा था।

"आआआहहह ओओओहहह...." मेरी मां आहें भरने को मजबूर हो गयी। उनकी आंखें अब बंद हो गई थीं।

"देखा, हम कहते थे ना, कि अच्छा लगेगा। अच्छा लग रहा है ना मैडमजी?" घुसा मेरी मां की कमर दबाते हुए बोला।

"हां, लेकिन......"

"लेकिन वेकिन कुछ नहीं। आप चुपचाप लेटी रहिए और देखिए हमारा कमाल। अभी आपको और अच्छा लगेगा।" घुसा बोला और उसका हाथ धीरे धीरे ऊपर की ओर बढ़ने लगा।

उन्हें उस तरह से देख कर मेरी हालत खराब हो रही थी, लेकिन खुद को नियंत्रित करके मैं तन्मयता से सामने के नजारे को आंखें फाड़कर देख रही थी।

अब मैं ने देखा कि उस बदसूरत शैतान का हाथ धीरे धीरे कमर से होते हुए पीठ पर, और फिर पीछे से मेरी माँ के ब्लाउज में घुसा जा रहा था, जबकि वह उनके पीछे झुका हुआ था और साड़ी के ऊपर से ही मेरी मां के चूतड़ों की दरार पर अपना लंड रगड़ रहा था।

"अब यह तुम कककक्या कर रहे हो हरामी। निकालो अपना हाथ बदमाश।" मां ने बड़ी कमजोर आवाज में कहा। लेकिन विरोध करने के लिए कोई शारीरिक प्रयास नहीं किया।

"हम वही कर रहे हैं मैडमजी जो आप को अच्छा लगेगा। कसम से, आप शांत रहिएगा तो हम आपके मन के मुताबिक ही आपको खुश कर देंगे।" वह बदमाश ऐसे बोला जैसे मेरी मां के मन की बात को पढ़ लिया था।

"तुम बहुत बदमाश हो। शैतान कहीं के। तुम ऐसा कैसे सोच सकते हो कि मैं ऐसी हरकत पसंद करूंगी?" मेरी मां ने मात्र मुंह से अपना विरोध प्रकट किया लेकिन उसकी भाव भंगिमाएं उनके मन के बात की चुगली कर रही थीं और लीजिए जनाब, मेरी मां ने आँखें बंद कर ली थीं और उस नौकर के हाथों को अपनी चूचियों पर महसूस कर रही थी।

"बदमाश बोलिए चाहे शैतान बोलिए, लेकिन सच बोलिए कि आपको यह सब अच्छा लग रहा है कि नहीं?' वह अपनी हरकतों से मेरी मां को उत्तेजित करने की कोशिश करते हुए बोला।

"क्या बकवास कर रहे हो, कुछ समझ भी रहे हो कि तुम क्या कर रहे हो?" मेरी मां कमजोर पड़ चुकी थी लेकिन वैसे ही बोली। उसे भी पता था कि अब उसका कुछ बोलना बेमानी था। वह समझ गई थी कि उसके मनोदशा से घुसा वाकिफ हो चुका है।

"चलिए बकवास ही सही, लेकिन हमको पता है कि हम क्या कर रहे हैं।" वह नौकर घुसा बोला और अपना एक हाथ को मां के पीछे से उनके ब्लाउज में डालकर सीधे उनके स्तनों को सहलाने लगा था। उसका का दूसरा हाथ पीछे से मेरी माँ के पेट पर लिपटा हुआ था। वह अपने हाथ से मां के पेट को रगड़ रहा था और उसकी नाभि से खेल रहा था।
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#39
"आआआआ नहीं नहीं, यह गलत है।" मेरी माँ कराहते हुए बोली।

"कुछ गलत नहीं है मैडमजी। जिस बात से आपको खुशी मिलती है वह करने में कुछ गलत नहीं है।" घुसा मेरी मां को अपनी बातों के जाल में उलझा कर अपनी हरकतें जारी रखे हुए था। उसे पता था कि चिड़िया जाल में फंस चुकी है।

“देखो रोज आ जाएगी तो गजब हो जाएगा। वह कभी भी वापस आ सकती है।" मेरी मां ने कहा। इसका मतलब यह था कि मेरी मां ने स्वीकार कर लिया था कि जो कुछ हो रहा था उससे उसे मजा आ रहा है लेकिन उसे बस इस बात की चिंता थी कि कहीं मैं न पहुंच जाऊं और यह सब देख न लूं। उसे क्या पता था कि यह सब मेरी खुली आंखों के सामने हो रहा था।

"उसकी चिंता आप मत कीजिए मैडम। वह तो बोली थी ना कि उसको आने में देर होगी? वैसे भी हम यह सब उतनी देर तक थोड़ी न करने वाले हैं। बस आपको थोड़ा अच्छा महसूस करा के खत्म करेंगे।" उसने मेरी मां को आश्वस्त करते हुए कहा।

अब वह कमीना नौकर अपने हाथ माँ के पेट पर लपेट लिया और उनकी गर्दन को चूमते हुए उनका पेट मसलता रहा। उसने उसे घुमाया और उसकी कमर पकड़कर उसे अपने पास खींचते हुए उसे चूमना शुरू कर दिया।

"आआआआहहहहह उफ़ उफ़ यह यह....." उत्तेजना के मारे मेरी मां अपनी बात पूरी भी नहीं कर पा रही थी।

अब उस हरामी ने मेरी मां की उठी हुई साड़ी के अंदर नीचे से हाथ घुसा कर उनकी मांसल गांड़ पर सरकाया और उन्हें दबाने लगा। वह उसे हर जगह चूम रहा था और उसे फिर से घुमाया, और एक बार फिर उसके ब्लाउज में अपना हाथ डाल दिया। इस बार वह उसके स्तनों को बहुत जोर से दबा रहा था, साथ ही वह माँ को जोर जोर से भींच रहा था।

"ओह पागल, तुम तो पागल हो और साथ ही मुझे भी पागल किए दे रहे हो। आह" मेरी मां सिसकारियां भरने लगी थी। अब माहौल काफी गरम हो चुका था जिसकी गरमी मैं भी अनुभव करने लग गयी थी। इधर मेरी भी चूत गीली होने लगी थी।

फिर वह उसके सामने आया, अपने घुटनों पर बैठ गया, अपने हाथ उसके चारों ओर लपेटे और उसकी कमर को चूमने लगा, और अपनी जीभ से उसकी नाभि से खेलने लगा। मेरी माँ हल्के हल्के कराह रही थी। अब उसका हौसला बढ़ चुका था। उसने मेरी मां के बालों में अपनी उंगलियाँ फिराईं और अपनी आँखें बंद कर लीं।

चूंकि नौकर ने उसकी साड़ी को काफी ऊपर तक उठा दिया था, मेरी मां की मांसल, गोरी, दूधिया जाँघों का जलवा एक अनखी छटा बिखेर रहा था। बस थोड़ी सी और अगर साड़ी उठ जाती तो मां का खजाना, पैंटी में ही सही, लेकिन जरूर दिखाई दे जाता। वह उसके पैरों को चूमने लगा और उसकी जाँघों तक बढ़ रहा था। उसके हाथ उसकी साड़ी के नीचे से उसकी गांड पर थे और वह उन्हें दबाता और मसलता रहा।

जब उसका हाथ चूत तक पहुंचने वाला था, तो मेरी माँ ने उसे रोक दिया और कहा, "नहीं नहीं, अभी नहीं।"

लेकिन घुसा तो अब बहरा हो चुका था। वह उठा और उसके ब्लाउज का हुक खोल दिया। माँ के बड़े बड़े स्तन ब्लाऊज की कैद से छलक कर बाहर निकल आए। ओह माई गॉड! मेरी मां ब्रा भी नहीं पहनी थी। वह जंगली मेरी मां की बड़ी बड़ी दूधिया चूचियों को कुछ पलों तक तो आंखें फाड़कर देखता रह गया। फिर अचानक जैसे उसे होश आया और मां की चूचियों पर भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ा। वह चूचियों को दबा दबा कर महसूस करना शुरू कर दिया। उतने से उसका मन कहां भरता। वह तो सीधे मुंह लगा कर उन्हें चूसने लगा। वह उन्हें बारी बारी से चाट रहा था और अपने गंदे हाथों से खेल रहा था। माँ और भी तेजी से कराह रही थी और उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं।
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#40
अब मेरी मां की उत्तेजना चरम पर पहुंच चुकी थी और उत्तेजना के आवेग में उसने अपना हाथ घुसा की जांघों के बीच के बड़े से उभार को, मतलब पैजामे के ऊपर से ही उसके लंड को पकड़ कर मसलने लगी। उधर घुसा माँ के शरीर को बेतहाशा चूम रहा था, और उन्हें बता रहा था,

"मैडमजी , आपके पति कितने भाग्यशाली हैं कि आपके जैसी मस्त औरत को चोदने का सौभाग्य मिलता है। खैर, यह तो अपनी अपनी किस्मत है। उफ उफ, आज आपको चोदने का वही सौभाग्य मुझे मिलने वाला। कृपा करके ना मत कीजिएगा।" वह बेताबी से बोला।

इधर मैं उन्हें देख कर उत्तेजित हो रही थी और उधर मेरी मां की भारी भारी खूबसूरत चूचियों से वह जानवर खुल कर खेल रहा था। उसके काले काले हाथ मेरी माँ के सुंदर, गोरे रंग के शरीर के हरेक अंगों को छू रहे थे। इस वक्त मुझे मेरी मां से ईर्ष्या सी हो रही थी। मेरे अंदर वासना की ज्वाला धधकने लगी थी और मैं अपनी चुचियों को जोर जोर से मसलने और अपनी चूत को रगड़ने लगी थी। काश इस वक्त मेरी मां की जगह मैं होती।

अब घुसा से बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसने मेरी मां की साड़ी उठाने के बदले कमर से साड़ी ही खोल डाली।

"यह क्या कर रहे हो पागल। मुझे नंगी ही कर दोगे क्या? इस्स्स्स्स्स्स'" वह सिसकारियां निकालते हुए बोली।

"नंगी नहीं करेंगे तो पूरा मज़ा कैसे लीजिएगा मैडमजी। लीजिए हम भी नंगे हो जाते हैं।" कहकर घिसा पहले तो मेरी मां की साड़ी और पेटीकोट को खींच खांच कर खोल दिया और खुद भी पैजामा खोल दिया।

हे भगवान। सामने जो नजारा था वह किसी को भी पागल कर देने के लिए काफी था। मेरी मां की गोरी, संगमरमरी, मांसल देह पर मात्र एक पैंटी थी और पैंटी के अंदर फूला हुई मेरी मां का अनमोल खजाना छिपा हुआ था। मेरी मां का ब्लाऊज सामने से पहले ही खुल चुका था और उनकी बड़ी बड़ी चूचियां थलथला कर बाहर निकली हुई थीं। अब ब्लाऊज मेरी मां के तन से अलग हो या न हो क्या फर्क पड़ता था। मां की छाती तो सामने से नंगी हो ही चुकी थी और चूचियां पूरे जलाल के साथ अपना जलवा दिखा रही थीं। मेरी मां की पैंटी के सामने का हिस्सा गीला हो चुका था और उधर घुसा का काला, बेडौल मोटा नंगा शरीर किसी बनमानुष की तरह सिर्फ ढीले ढाले अंडरवियर में था और सामने विशाल तंबू की शक्ल अख्तियार कर चुका था। उसके लंड के आकार, लंबाई और मोटाई का अंदाजा लगाना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था। वैसे भी मेरी मां तो पैजामे के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ कर बखूबी अंदाजा लगा लिया था होगा। वह पगली तो उसके लंड का अंदाजा लगा कर गनगना ही चुकी थी होगी।

लेकिन कहां मेरी मां का गोरा चिट्टा चिकना शरीर और कहां घुसा का काला कलूटा, मोटा बेढब, शरीर, कितनी बेमेल जोड़ी थी यह। मेरी मां को अब क्या फर्क पड़ने वाला था। इस वक्त वासना की ज्वाला में तपते उसके शरीर को ठंडा करने के लिए अपने जबरदस्त हथियार के साथ घुसा के रूप में मेरी मां के लिए वह देवता का अवतार ही नजर आ रहा था होगा।अब सिर्फ मेरी मां की पैंटी उतरने और घुसा का अंडरवियर उतरना बाकी था, फिर जो धमाल होने वाला था उसकी कल्पना से ही मेरा शरीर रोमांचित हो उठा। मैं बेहद उत्तेजित हो चुकी थी और अगर मेरा वश चलता तो वहीं बीच में कूद पड़ती और बोलती, "साले हरामी, चोदने की इतनी ही जल्दी पड़ी है तो पहले मुझे चोद, फिर मां को चोदते रहना।" लेकिन मन मसोस कर रह गई। यही इस वक्त का तकाजा भी था। मैं अपनी चूत को बदहवासी के आलम में जोर जोर से रगड़ने लगी।
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