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गरम रोजा
नमस्ते दोस्तों। मैं आत्मकथा के रूप में अलग अलग कड़ियों में अपने सेक्स जीवन की कहानी लिखने की कोशिश कर रही हूं। कृपया इसे पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रियाएं अवश्य भेजिएगा जिससे मुझे और अच्छी तरह लिखते रहने में उत्साह मिलता रहे।
आप लोगों की रोजा।
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28-02-2024, 05:10 PM
(This post was last modified: 30-05-2024, 10:34 AM by Rajen4u. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.
Edit Reason: congratulation in word
)
गरम रोजा (भाग 1)
मेरा नाम रोजा है, रोजा तमांग। मेरी उम्र 60 साल है लेकिन अभी भी मैं 40 - 45 से ज्यादा की नहीं दिखती हूं। मैं अभी भी बाहरी तौर पर जितनी सेक्सी शरीर की मालकिन हूं, उतना ही मेरे अंदर वासना कूट कूट कर भरा हुआ है। अभी भी मेरे शरीर का साईज 40 - 35 - 40 का है। मेरा कद भी अच्छा खासा 5' 7" का है। मेरे पति को स्वर्गवास हुए चार साल हो चुका है। मेरे पति एक बड़ी कंपनी में सेल्स एक्जीक्यूटिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मैं भी महीने भर पहले हाई कॉलेज के प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी हूं।
मैं बहुत ही कामुक किस्म की औरत हूं। अपनी अदम्य कामुकता के कारण विवाह के पहले ही से ही कई गैर मर्दों से मेरा शारीरिक संबंध चल रहा था। अठारह साल की उम्र में ही एक कुरूप बूढ़े घरेलू नौकर के हवस की शिकार होकर मैंने अपना कौमार्य खो दिया था और उस समय से मुझे सेक्स का चस्का लग गया था। जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे मेरे अंदर कामुकता बढ़ती चली गई। मैंने घर वालों को इस बात की जरा भी भनक नहीं लगने दी। मेरे विवाह के बाद भी सिर्फ पति से सेक्स से मेरा मन नहीं भरता था नतीजतन उनके जीते जी ही गुपचुप तरीके से कई गैर मर्दों से मेरा शारीरिक संबंध बदस्तूर जारी रहा। पति की मौत के बाद भी यह सिलसिला अब भी चल रहा है। विभिन्न मर्दों से, विभिन्न तरीकों से सेक्स करने में मुझे बड़ी संतुष्टि मिलती है। अब तक जितने मर्दों के साथ हमबिस्तर हुई हूं उनमें अठारह से लेकर साठ साल तक के मर्द शामिल हैं लेकिन उम्रदराज लोग मुझे ज्यादा पसंद हैं। अब तो आप लोगों को पता चल ही गया होगा कि मैं किस तरह की महिला हूं।
अब मैं आगे बताने जा रही हूं कि मेरे जीवन की सेक्स यात्रा का आरंभ कैसे हुआ।
मेरा संबंध एक संभ्रांत परिवार से था। पिताजी इनकम टैक्स ऑफिसर थे और मेरी मां बैंक में शाखा प्रबंधक थी। घर में सुख सुविधाओं की कमी नहीं थी। एकलौती संतान होने के कारण मेरे पालन-पोषण में कोई कमी नहीं थी। सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध थीं। माता पिता अपने कार्यों में इतने व्यस्त रहते थे कि मैं स्वच्छंद तरीके से जीने की आदी हो गयी थी। कोई रोक टोक नहीं था इसलिए मैं थोड़ी नकचढ़ी और शैतान किस्म की हो गई थी।
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हां तो मैं बता रही थी कि मेरे सेक्स जीवन का आरंभ कैसे हुआ। उस वक्त मैं मात्र सत्रह साल की कॉलेज की छात्रा थी। हमारे यहां एक नौकरानी थी जो घर का सारा काम संभालती थी। लेकिन एक दिन,
"आज से हमारे पास एक नया नौकर काम करने आ रहा है रोज,'' मेरी माँ ने मुझे बताया।
“कौन है और नया क्यों? पहले वाली को क्या हुआ?” मैंने पूछ लिया।
“वह बीमार थी इसलिए अपने गाँव चली गई। अपने बदले, उसने अपने पति को भेजा है,” मेरी माँ ने कहा।
“ठीक है, लेकिन कब तक के लिए?” मैंने पूछ लिया।
मेरी माँ ने उत्तर दिया, "उसने कहा था कि यह दो महीने के लिए यहां उसके स्थान पर रहेगा।"
“ओह, ठीक है" मैंने सिर्फ इतना ही कहा। मैंने उसे देखने की जहमत भी नहीं उठाई। मैं अपने फोन में व्यस्त थी।
"तुम घुसा दुराई हो ना?" घर में एक आदमी के प्रवेश करते ही उसने कहा।
मैंने देखने की भी जहमत नहीं उठाई और अपने फोन पर व्यस्त रही।
"जी मैडमजी। मेरी पत्नी ने मुझे भेजा है।"' उस आगंतुक आदमी ने उत्तर दिया।
"हां हां मुझे पता है। तुम्हारी पत्नी ने बताया था।" मेरी माँ ने उसका स्वागत करते हुए कहा और उससे कुछ सवाल पूछे और उसे जो भी काम करना था, इत्यादि बताने लगी। मैं अब भी अपने फोन पर व्यस्त थी और उनकी बातचीत पर ध्यान नहीं दे रही थी।
“क्या यह आपकी बेटी है मैडम? यह तो अपने नाम के अनुसार ही फूल की तरह बड़ी प्यारी है,'' उसने टिप्पणी की।
“हाँ, यह मेरी इकलौती बेटी है। यह 17 साल की है। प्यारी है ना? यह अभी अभी कॉलेज जाना शुरू की है। रोज बेटा, इस घुसा अंकल को नमस्कार करो'' मेरी माँ ने मुझसे कहा।
मैंने नज़र उठा कर देखा तो मुझे सामने सबसे बदसूरत आदमी खड़ा मिला। ऐसा बदसूरत आदमी मैंने जिंदगी में पहले कभी नहीं देखा था। मोटा सा आदमी। उसके नैन-नक्श कुरूप और रंग कोयले की तरह काला था। मोटे मोटे होंठ हब्शियों की तरह बाहर निकले हुए थे। उसकी बड़ी बड़ी आंखों में एक अबूझ सी चमक और अजीब सी भूख थी। सर के बाल सामने से आधे से ज्यादा गायब थे। जो बचे थे वे भी करीब करीब सारे सफेद हो चुके थे। वह मोटा सा काला आदमी उम्रदराज था लेकिन शरीर से काफी ताकतवर दिखाई दे रहा था और सामने उसका काफी बड़ा सा तोंद निकला हुआ। उसका कद भी केवल 5' 6" था। मुझसे कम से कम एक इंच कम। वह 50 - 55 की उम्र का लग रहा था। मेरा मन खिन्न हो गया लेकिन मैंने उसके प्रति वितृष्णा के भाव को चेहरे पर न दिखाने की कोशिश की और उनका अभिवादन किया, "नमस्ते।"
हे भगवान, कैसे कैसे लोगों को हमारे घरवाले खोज खोज कर नौकर रखते हैं। इसकी घरवाली, जो हमारी नौकरानी थी, वह भी काली, मोटी औरत थी। बस एक इसी की कमी थी। छि छि। हमारे घर कोई आएगा तो ऐसे नमूनों को देख कर हमारे बारे में क्या सोचेगा। पता नहीं क्या देखकर ऐसे लोगों को नौकर रखना पसंद करते हैं हमारे घर के लोग।
मैं ने ऐसे विचारों को झटक कर फिर से अपने फ़ोन पर वापस व्यस्त हो गयी।
“आप सारा सामान ले आये?” माँ ने उससे पूछा।
"जी मैडमजी।" वह बोला।
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“ठीक है, तुम इसे अपने कमरे में रख सकते हो।” कहकर मां ने मुझसे कहा, "रोज बेटा, उसे उसका कमरा दिखाओ और जब वह अपना सामान वहां रखे, तो उसे घर दिखाओ और समझाओ कि उसे क्या करना है और अपनी शैतानी को जरा काबू में रखना। मैं जानती हूं यह शरीफ आदमी है इसलिए इसे परेशान मत करना और इसके बारे में झूठ-मूठ की शिकायत लेकर मेरे पास मत आना क्योंकि आजकल ऐसे शरीफ काम वाले बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। समझ गई ना?"
"हां हां समझ गई।" मैं अपने मन के भाव को छिपाते हुए बोली। वैसे यह आदमी मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था। पता नहीं मां को इसमें क्या अच्छाई दिखाई दे रहा था और तुर्रा यह कि इसे शरीफ आदमी कह रही थी। मुझे तो किसी भी कोण से यह शरीफ नहीं दिखाई दे रहा था। पूरा मक्कार किस्म का आदमी दिखाई दे रहा था मुझे तो लेकिन मेरी मां को यह सब क्यों नहीं दिखाई दे रहा था पता नहीं। वैसे मुझे बहुत जल्द पता चल जाने वाला था कि मेरी मां को उसमें क्या खूबी दिखाई दे रही थी।
"ठीक है, तो इसे ले जा कर इसके कमरे में इसका सामान रखवा कर स्टोर रूम और बाकी जगहों को दिखा दो।" कहकर वह अपने ऑफिस से संबंधित कार्यों को देखने के लिए अपने दफ्तर रुपी कमरे में चली गई।
मैं उस घटिया आदमी के साथ जाने की कत्तई इच्छुक नहीं थी लेकिन मैं अपनी माँ की अवज्ञा नहीं कर सकी।
मैंने उससे अपने पीछे आने को कहा और उसे नौकरों वाले कमरे में ले गयी। जब मैं फोन में व्यस्त थी तो नये नौकर ने अपना सामान वहीं रख दिया था। मैंने नज़र उठा कर देखा तो वह मुझसे केवल कुछ इंच की दूरी पर खड़ा था और फर्श पर सामान ज्यादा होने के कारण उसे मेरे पास खड़ा होना पड़ा था। मैं उससे दूर ही रहना चाहती थी लेकिन वह मुझसे जितना पास रह सकता था उतना पास रहने की कोशिश में था।
“रोज मैडम, जब आप छोटी थीं तो मैंने आपकी एक फोटो देखी थी। मेरी पत्नी ने इसे एक बार मुझे दिखाया था। अब तो तुम बहुत खूबसूरत लड़की बन गई हो। बहुत खूबसूरत युवती। तुम एक सुंदर फूल की तरह खिल गयी हो,'' उसने बातचीत करने की कोशिश करते हुए मुझसे कहा।
मैं जवाब नहीं देना चाहती थी, लेकिन मैंने सोचा कि मैं विनम्र रहूंगी और उसे बनावटी विनम्रता से धन्यवाद दे कर औपचारिकता निभाई, जबकि मैंने नज़र उठा कर देखा तो उसे मेरे विशाल स्तनों को घूरते पाया। उस उम्र में ही मेरे शरीर के उभार काफी विकसित हो चुके थे।
शायद मैं बताना भूल गयी कि मैं उस वक्त एक सुंदर और गोरे रंग की लड़की थी, जिसके सुंदर लंबे काले बाल थे और मेरा शरीर भरा हुआ था। मैं 14 - साल से ही बड़े स्तनों वाली बन गई थी। मेरे कूल्हे और नितंब भी बहुत बड़े हो गए थे। सौभाग्य से, मेरे पेट पर बहुत अधिक चर्बी नहीं बढ़ी थी और मैंने खुद को अच्छी तरह से बनाए रखा था। यह सब शायद कॉलेज कॉलेज में खेल-कूद में सक्रिय भागीदारी के कारण थी। मेरी रुचि जूडो कराटे में भी थी। कॉलेज में तो मुझे जूडो कराटे के मुकाबलों में कई ट्रॉफियां भी मिली थीं। अब तो मैं 40-30-40 की हूं।
हाँ, बहुत से लड़के उस वक्त मेरे साथ सेटिंग करना चाहते थे और मेरी चाहत रखते थे, लेकिन मैं बहुत नकचढ़ी थी और मैंने कभी किसी को ज़्यादा भाव नहीं दिया।
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जब मैंने नए नौकर को घूरते हुए पाया, 'उह.. गंदा आदमी!' मैंने सोचा। जिस तरह से वह मुझे देख रहा था इसका मतलब यह था कि जब मैं उसके सामने चलती थी तो वह मेरे मटकते नितंबों को जरूर घूरता था। इस विचार ने मुझे क्रोधित कर दिया। मैंने सिर्फ एक टी-शर्ट और एक ट्रैक पैंट पहना था लेकिन मेरे उभारों के कारण, सब कुछ ऐसा लग रहा था जैसे वे मुझ पर कस रहे हों। मेरे स्तन सख्त होने के बाद भी अपने बड़े आकार के कारण ऐसे लग रहे थे जैसे वे किसी भी समय टी-शर्ट से छलक कर बाहर निकलना चाहते हों। उसने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि मैंने उसे घूरते हुए पकड़ लिया है।
"चलो चलें," मैंने कहा और यह जानते हुए भी कि वह फिर से मेरे थिरकते नितंबों को घूरेगा, मैंने उसे पूरा घर, बगीचा और उसे क्या करना है सब दिखाया। पूरे समय वह मेरे करीब खड़े रहने की कोशिश कर रहा था और मेरी बातों पर अतिरिक्त ध्यान दे रहा था, या शायद उसने यह दिखावा किया क्योंकि वह सिर्फ मेरे शरीर को घूरना चाहता था।आखिरी जगह जहां मैं उसे ले गयी वह स्टोर रूम था। मैंने उसे बताया कि अगर उसे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो वहाँ क्या क्या रखा है देख ले।
चारों ओर सारा सामान भरा होने के कारण और स्टोररूम छोटा होने के कारण हमें फिर से पास-पास खड़ा होना पड़ा। इसे लेकर वह काफी खुश नजर आ रहा था। मैं वहां से जल्दी से जल्दी निकलना चाहती थी लेकिन वह मुझसे लगातार सवाल पूछता रहा जिससे मैं समझ गई कि वह जानबूझकर मेरे करीब लंबे समय तक रहना चाहता था। वह जानबूझकर मेरी बांह को छूते हुए कमरे की चीजों की तरफ इशारा कर रहा था और इस तरह अपनी जिज्ञासा शांत कर रहा था लेकिन ऐसे दिखा रहा था जैसे उसका मुझे छूना बेध्यानी में हो रहा हो। मैं कुछ नहीं कह सकी क्योंकि वहां जगह ज्यादा नहीं थी और इस कारण मैं उस पर गलत इरादे से मुझे छूने का आरोप नहीं लगा सकती थी। आरोप लगाती भी तो वह मेरे आरोप को मानने से इन्कार कर देता क्योंकि वहां बहुत कम जगह होने के कारण मजबूरी में यदा कदा हमारे शरीरों का सटना लाजिमी था। उसने मुझसे कुछ बक्से खोलकर दिखाने को कहा जिसे मैं मना नहीं कर सकी इसलिए मैं आगे बढ़ गयी। मैं महसूस कर रही थी कि उसकी टटोलती हुई पैनी नज़र मेरे शरीर पर हर वक्त घूम रही थी।
थोड़ी देर के बाद, वह घुटन भरा छोटा सा कमरा और गर्म हो गया और हम दोनों को पसीना आने लगा। मेरे कपड़े मेरे शरीर से चिपकने लगे और मेरे बड़े सख्त स्तनों के उभारों का आकार अधिक स्पष्ट हो गया। मेरे खड़े खड़े निपल्स भी हल्के-हल्के दिख रहे थे। मैं इस तरह उसकी ओर मुड़कर उसे मेरे शरीर के प्रति और अधिक आकर्षित करने और लुभाने का मौका नहीं देना चाहती थी। लेकिन मजबूरी में कई बार मुझे घूमना पड़ रहा था।
मैं देख सकती थी कि मेरे शरीर के उतार चढ़ाव और कटाव को इतने करीब से इस तरह देखते हुए उसकी आँखों में चमक आती जा रही थी। यह देखकर कि कैसे मेरी टी-शर्ट के पिछले हिस्से पर भी पसीना आ गया, मुझे यकीन था कि उसने मेरी पीठ को अच्छी तरह से देखा होगा और यही उसकी उम्मीद भी थी होगी।
मैंने उस पर नज़र डाली तो वह पसीने से लथपथ होकर और भी बदसूरत लग रहा था। उसकी पतली टी-शर्ट भी उसके शरीर से चिपकी हुई थी और मैं उसके विशाल पेट को और अधिक उजागर होते हुए देख सकती थी।
मैंने यह दिखाने के लिए बक्सा खोला कि अंदर क्या है, कि तभी अचानक एक छिपकली न जाने कहां से वहां आ गिरी और मैं घबराकर चिल्लायी, बक्सा एक तरफ फेंक दिया, और छिपकली से दूर होने के लिए फुर्ती से पीछे हटी और मुड़ गई तो ठीक मेरे पीछे खड़े घुसा से टकरा कर उसी के ऊपर गिर गयी। मुझे नहीं पता क्यों, लेकिन मुझे चक्कर आ गया और मैं बेहोश हो गयी।
मुझे लगता है कि मुझे कुछ मिनटों के बाद ही होश आ गया। मुझे नहीं पता था कि कितना समय बीत गया या मैं क्यों बेहोश हो गयी। शायद वहां की गर्मी, दमघोंटू वातावरण और घबराहट का असर रहा हो। जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को किसी मुलायम चीज़ पर पेट के बल लेटी हुई पाया। मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरी टी-शर्ट के अंदर मेरी पीठ को सहला रहा था। मैं उस खुरदुरे हाथों को अपनी नंगी त्वचा पर महसूस कर सकती थी। मैं महसूस कर सकती थी कि कोई दूसरा हाथ मेरे नितंबों पर रखकर उसे हल्का हल्का दबा रहा था।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई बहुत सख्त चीज़ मेरी योनि में चुभ रही है। फिर मुझे धीरे-धीरे याद आया कि क्या हुआ था और मैंने तुरंत अपना सिर और धड़ को आंशिक रूप से उठाया और देखा कि मैं घुसा के ऊपर लेटी हुई थी। हमारे शरीर एक दूसरे से चिपके हुए थे।
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वह मेरी ओर देखकर मुस्कुराया और मुझसे कहा, "ओह, तुम होश में आ गई। चलो हमको सुकून मिला।" मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरे ऊपर मुश्किल से चार पांच इंच ऊपर झुकी हुई कोई भारी चीज से टकरा गई।
"हाय राम, यह क्या है?" मेरे मुंह से निकला।
"यह लोहे का भारी शेल्फ है जो गिर कर तिरछा होकर दीवार से टिक गया है, ठीक हमारे ऊपर। यह तो अच्छा हुआ कि यह सामने वाले दीवार पर टिक गया है नहीं तो हमलोग उसी के नीचे दब जाते।" वह बोला। इसके साथ ही वह अपने मजबूत बाजुओं से मुझे अपने ऊपर दबा लिया।
"आपको क्या लगता है, आप क्या कर रहे हैं?" मैंने गुस्से से पूछा।
"मैडम, क्या आपको नहीं दिख रहा कि इस शेल्फ के नीचे हम कैसे फंसे हुए हैं?" वह बोला।
मैंने ऊपर देखा तो पाया कि लोहे का भारी शेल्फ विपरीत दीवार पर झुकी हुई थी। यदि ऐसा न होता तो यह हम पर ही गिर पड़ता। खड़े होने कि बात तो दूर, ठीक से बैठने की भी कोई संभावना नहीं थी क्योंकि शेल्फ के सारे डिब्बे भी गिर कर हमें घेर चुके थे। मैंने रेंगकर दरवाजे तक पहुंचने की सोची लेकिन बक्सों को एक तरफ धकेलने की जगह भी नहीं थी। हम मानो एक छोटे से ऐसे पिंजरे में कैद हो गये थे जहां हम उस वक्त जैसी स्थिति में थे उसी स्थिति में रहने को बाध्य थे, अर्थात या तो अपने हाथों के सहारे एकाध इंच का फासला बना कर उसके शरीर के ऊपर झुकी रहूं या उस पर लद जाऊं।
“मैडम, आपने अब तक सब कुछ समझ लिया होगा। हम यहां तब तक फंसे हुए हैं जब तक कोई तीसरा आदमी हमारी मदद के लिए नहीं आता,'' उसने कहा।
अरे नहीं। कम से कम 2 घंटे तक कोई मदद के लिए नहीं आएगा क्योंकि आज शनिवार को छुट्टी के दिन मेरी माँ इस समय मंदिर जाती हैं। अब मैं 2 घंटे तक इसी तरह बदहाल , असहाय और बेचारगी की स्थिति में घुसा के चंगुल में फंसी रहूंगी।
"आपने मदद के लिए हल्ला क्यों नहीं किया?" मैंने यह तथ्य छिपाते हुए कि मेरी मां घर में नहीं थी, घुसा से पूछा।
“हमने किया था, मैडम। लेकिन कोई नहीं आया,'' उसने ऐसे कहा कहा मानो मुझे उस पर विश्वास हो जाएगा! उसने तो जरूर सोच ही लिया था होगा कि यह अच्छा है, क्योंकि इस स्थिति में मेरे शरीर को अच्छी तरह से महसूस कर सकता है।
"मैं कितनी देर तक बेहोश थी?" मैं ने पूछा।
“शायद लगभग 15 मिनट, मैडम, लेकिन यह इतना लंबा समय भी नहीं था,'' उसने कहा।
उफ, मुझे नहीं पता था कि उसने 15 मिनट तक मेरे शरीर के साथ क्या क्या किया। अगर वह सच कह रहा था तो इन पंद्रह मिनटों में जरूर यह मेरे शरीर के अंगों से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आया होगा। इस उम्र में भी कुंवारी रहने के बावजूद मर्दों का लड़कियों के प्रति क्या नीयत रहती है इसका मुझे अंदाजा था। मौका मिलते ही ऐसे मर्द लड़कियों के शरीर के साथ क्या क्या कर सकते हैं इसका मुझे अनुभव तो नहीं था लेकिन अंदाजा तो जरूर था।
"मुझे समझ नहीं आ रहा कि जब मैं पीछे हटी तो शेल्फ कैसे अपने आप गिर गई?" मैं असमंजस में थी।
“मैडम, शायद आपको याद न हो लेकिन हमने देखा कि गिरते समय सबसे पहले आपने क्या किया। आपका पीछे वह आपका पीछे की मुड़ कर कूदना और आपका हाथ बगल में दीवार से सटे हुए शेल्फ पर लगना और आपके हाथ से लगकर शेल्फ का हमारे ऊपर गिरना, यह सब इतनी जल्दी हुआ कि हम कुछ भी नहीं कर सके। क्या इस शेल्फ के पाए ऐसे ही हैं? यह शेल्फ अच्छा नहीं है मैडम। किसी तरह सीधा खड़ा कर दिया जाए तो फिर कभी न कभी गिरेगा। फिलहाल तो हम इसे किसी तीसरे की सहायता के बिना सीधा कर ही नहीं सकते हैं। आप समझ रही हैं ना?”
धत तेरी कि। यह संभव था। वह शेल्फ़ हमेशा हिलती रहती थी लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह गिर जायेगी।
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"जब मैं बेहोश थी तो तुम मेरे शरीर को टटोल क्यों रहे थे?" मैं खीझ कर बोली।
"हमने? हमने तो कुछ नहीं किया, मैडम," उसने मासूम भाव से कहा।
इस सब के दौरान मैंने यह भी देखा कि वह मेरे बड़े स्तनों पर नज़र डाल रहा था, जिन पर टी-शर्ट चिपकी हुई थी जिससे उनके आकार का पता चल रहा था। मुझे बहुत असहज महसूस हो रहा था।
“मैडम, अगर आप बुरा न मानें तो क्या हम कुछ कह सकते हैं?” उसने पूछा।
"क्या है बोलो?" रुखे स्वर में मैं बोली।
“मैडम, आप न केवल बहुत खूबसूरत हैं बल्कि आपका बदन भी गठा हुआ और बेहद सेक्सी है। अपने पूरे जीवन में, हमने जितनी लड़कियां देखी हैं, उसमें तुम सबसे सुंदर और सेक्सी लड़की हो। मैडम, जो भी आपसे शादी करेगा, वह दुनिया का सबसे किस्मतवाला आदमी होगा,'' घुसा ने गहरी साँस लेते हुए कहा। उसकी आवाज में हवस साफ झलक रही थी।
मुझे नहीं पता था कि क्या कहूं इसलिए मैं चुप रही।
उसने आगे कहा, ' आपको पता है कि एक औरत का शादी के बाद अपने मरद के साथ एक अलग ही तरह का रिश्ता हो जाता है।"
"मुझे पता नहीं, न ही मुझे जानने में दिलचस्पी है, लेकिन यह सब मुझे क्यों बता रहे हो?" मैं भन्ना कर बोली।
"बस ऐसे ही बोल दिया। वैसे आप चाहो तो बता सकते हैं और दिखा भी सकते हैं" वह धूर्तता से मुस्काते हुए बोला। मैं चुप रही लेकिन वह बोलता ही चला जा रहा था। "देखो हमको गाँव की लड़कियों में कभी कोई दिलचस्पी नहीं थी। हमको हमेशा शहरी लड़कियाँ पसंद थीं। लेकिन आप, आप तो बाकी सभी शहरी लड़कियों से भी सुंदर हैं।"
'उफ़, यह दुष्ट किस बारे में बात कर रहा है?' मैंने सोचा।
"मैडम, हमको नहीं पता कि आपके पिता आपके साथ एक ही छत के नीचे कैसे रह रहे हैं," उसने कहा।
"क्या?" मैंने नादान, नासमझ, पूछ बैठी कि उसके इस कथन का क्या तात्पर्य है।
"मेरा मतलब है, मैडम, आप बहुत सुंदर और सेक्सी हैं, जब भी वह आपको देखता होगा तो उसका सख्त हो जाता होगा। हमको समझ नहीं आता कि वह अपने आपको कंट्रोल कैसे कर पा रहा है, कम से कम तुम्हें छूने से।” वह बोलता जा रहा था। समझ गई कि यह सनकी पागल है! कोई आदमी इस तरह कैसे सोच सकता है। बेहद घटिया सोच है इसकी। एक बाप अपनी बेटी को ऐसी नज़रों से कैसे देख सकता है?
"यह तुम कैसी बात कर रहे हो गलीज आदमी?" मैं गुस्से में बोली।
“गुस्सा मत हो मैडम। मेरा मतलब है कि आपका शरीर इतना जबरदस्त और कोमल है कि रिश्ते की परवाह किए बिना कोई भी पुरुष आपको देखकर गरम हो जाएगा।'' उसने कहा और उसने अपना हाथ मेरी टी-शर्ट के नीचे डाल दिया और मेरी नंगी पीठ को सहलाने लगा।
“तुम्हारी खुशबू भी बहुत अच्छी और मन को मोहने वाली है। तुम्हारी खुशबू हमको ललचा रही है,'' उसने कहा और मेरे बालों को अपने हाथों में लेकर उसे सूंघा।
"आप क्या कर रहे हो? तुरंत अपने हाथ हटाओ गंदे आदमी,'' मैं चिल्लाई।
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“हम तो बस आपको समझा रहे हैं मैडम। देखो तुम कितनी खूबसूरत और कोमल हो,'' घुसा ने ढिठाई से कहा और मेरे बालों को छोड़कर दूसरे हाथ से मेरा स्तन पकड़ लिया। जी तो चाह रहा था कि उसे जोरदार झापड़ रसीद कर दूं और उसे छठी का दूध याद दिला दूं लेकिन मैंने सहारे के तौर पर अपने दोनों हाथों को ज़मीन पर टिकाकर अपने धड़ को ऊपर उठाया हुआ था। इस कारण मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी और न ही उसके हाथ को झटक सकती थी। मैं जानती थी कि ऐसा करने से मैं उस पर गिर जाऊंगी और फिर से उसके शरीर से चिपक जाऊंगी।
"देखो तुम्हारी चूचियां कितनी सख्त हैं" मेरी मजबूरी को समझ चुका था वह और उसने वासना भरी आवाज में कहा और मेरे उरोज और नंगी पीठ को जोर से सहलाया। उसने एक और स्तन को टटोला और दोनों स्तनों को हौले-हौले सहलाया, फिर उसने धीरे से उन्हें दबाया।
“देखो, तुम्हारे निपल्स कितने टाईट और खड़े हो गए हैं, मैडम,” उसने मेरे निपल्स पर चुटकी काटते हुए कहा।
मैं ये देखकर हैरान, स्तब्ध और निःशब्द हो गई थी। पता नहीं मुझे क्या होता जा रहा था। वह कमीना नारियों की कमजोरियों से पूरी तरह वाकिफ था इसलिए धीरे धीरे अपनी चालाकी से मेरे विरोध को कमजोर करता जा रहा था। मेरा विरोध धीरे धीरे कमजोर पड़ता जा रहा था। इसका मतलब था कि वह मुझे उत्तेजित करने में कामयाब होता जा रहा था और मैं उत्तेजित हो रही थी! धीरे-धीरे मेरे अंदर एक अनजानी उत्तेजना का संचार हो रहा था, क्योंकि किसी ने भी आज तक इस तरह से मेरे स्तनों से खिलवाड़ नहीं किया था। मुझ नादान के लिए यह एक नये तरह का सुखद अहसास था। लेकिन इस गंदे बूढ़े द्वारा मेरे साथ यह सब किया जाना मुझे बड़ा ही गंदा लग रहा था, लेकिन पता नहीं गंदा लगने के बावजूद यह सब धीरे धीरे मुझे अच्छा भी लगने लगा था।
फिर उसने मेरी टी-शर्ट को ऊपर उठाना शुरू कर दिया।
"नहीं - नहीं। ऐसा मत करो!” मैंने बड़ा कमजोर सा विरोध किया लेकिन वह नहीं रुका।
उसने जबरदस्ती मेरा एक के बाद दूसरा हाथ उठाकर मेरी टी-शर्ट उतार दी। मैं अभी भी अपने धड़ को अपने हाथों से ज़मीन पर टिकाए हुए थी। अब मैं उसके सामने केवल काली लैसी ब्रा में थी जो मेरे आधे स्तन को ढक रही थी। चूंकि मेरे स्तन कम उम्र में ही सामान्य से अधिक बड़ी हो गई थीं, इसलिए मेरी मां ने मेरे लिए मुझे टाईट ब्रा खरीद दी थीं। टाईट ब्रा में मेरे स्तनों को देखकर उसकी आँखें पहले से कहीं अधिक चमक उठीं या यों कहूं उसकी आंखें चुंधिया सी गई थीं। निश्चित रूप से उसे आभास हो गया था कि इस टाईट ब्रा के अंदर मेरी जबरदस्त चूंचियां छिपी हुई हैं।
"बहुत खूब! यह मेरे जीवन में अब तक देखी गई सबसे खूबसूरत चीज़ है। अपने स्तनों को देखो, तुम्हारे ब्रा के अंदर ये ऐसे लग रहे हैं जैसे ये ब्रा फाड़ कर बाहर कूदना चाह रहे हैं। इतनी बड़ी बड़ी और खूबसूरत चूचियों को इतने कस के बांध कर रखना इन चूचियों के ऊपर ज्यादती नहीं है क्या?'' उसने कहा और उन्हें पकड़ना शुरू कर दिया। उस बदमाश नौकर ने मेरी चूचियों के दरार के बीच अपनी उंगली डाली, मेरे स्तनों की रूपरेखा को महसूस किया। अपने हाथ मेरी ब्रा के अंदर डाले, और मनचाहे ढंग से उनसे खेलने लगा।
मैं यह दिखाने से कतरा रही थी कि मैं उत्तेजित हो गयी हूँ! फिर उसने मेरे नीचे से अपनी टी-शर्ट ऊपर खींची और उतार दी। मैं उसकी काली त्वचा पर उसकी बालों से भरी छाती देख सकती थी। मेरा पेट अपने नीचे उसके बड़े पेट को महसूस कर सकता था।
जैसे ही उसने मेरी ब्रा खोली, मेरे बड़े-बड़े स्तन फुदक कर बाहर निकल पड़े और पूरी आजादी से अपना जलवा दिखाने लगे। उसकी आँखें अविश्वास और प्रसन्नता से और भी अधिक चमक उठीं। वह कुछ देर तक मेरी बड़ी बड़ी चूचियों के साथ खेलता रहा, उन्हें दबाता रहा और पकड़ पकड़ कर विस्मित हो कर देखता रहा।
फिर उसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया जिससे उसका मुँह मेरी चूचियों तक पहुंच गया। उसने उन्हें चूसना शुरू कर दिया और उन्हें ऐसे चाटने लगा जैसे वे आइसक्रीम हों। मैं अपनी सिसकारियों को रोकने की पुरजोर कोशिश कर रही थी।
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"ओह , नहीं नहीं ऐसा मत करो।" मैं बोली। उसे रोकने की असफल कोशिश करती रही लेकिन न उसने सुना और न ही मेरी बात माना। उसके हाथ मेरे पूरे शरीर पर घूम रहे थे और बीच-बीच में मेरी गांड़ भी दबा रहे थे।
उसने मेरी पैंट नीचे खींच दी और अपने दोनों हाथों से मेरी गांड पकड़ ली और उसे दबाने और मसलने लगा।
“मैडम, यह सबसे अच्छी और बड़ी गांड़ है जो मैंने अपनी आज तक की जिंदगी में कभी नहीं देखा है। यह बहुत सेक्सी है। मैं तुम्हारी गांड का भी मजा लेना चाहता हूँ,'' उसने कहा और थोड़ी देर तक उससे खेलता रहा, हर जगह अपने हाथ फिराता रहा और मेरी पैंटी टटोलता रहा।
फिर उसने मुझे फिर से नीचे सरका दिया. एक बार फिर उसका डंडा मेरी चूत में चुभ रहा था. मैंने अभी भी अपने दोनों हाथों से अपने धड़ को ऊपर उठाया हुआ था। मेरी बांहें मजबूत होते हुए भी अब थकने लगी थीं। आखिर कितनी देर तक अपने हाथों से अपने शरीर का बोझ संभाल सकती थी।
उस गलीज आदमी ने अचानक पीछे से मेरा सिर पकड़ लिया और मेरा चेहरा नीचे खींच लिया। मुझे पता था कि वह क्या करने वाला है। वह मजबूत था। उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए और भूखे जानवर की तरह मुझे चूमने लगा। उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मुझे ज़ोर से चूमने लगा और उसके हाथ मेरे पूरे शरीर पर घूमने लगे। ओह, मैं कभी भी इस बदसूरत कमीने को चूमना नहीं चाहती थी, खासकर उसके सूअर जैसे थूथन को तो कत्तई नहीं! लेकिन उस वक्त पता नहीं क्या हो गया था, मानो मैं अपने वश में नहीं थी।
अब मेरा शरीर पूरी तरह से उसके शरीर से चिपक गया था क्योंकि उसने मुझे पकड़कर नीचे खींच लिया था और मुझे उसी स्थिति में पकड़ लिया था। मैं उसके गंदे शरीर से चिपक गई थी। वह मुझे इतनी तीव्रता से चूम रहा था कि मैं उत्तेजित हो रही थी। मुझपर उत्तेजना इस कदर हावी हो गयी थी कि मैंने भी उसे वापस चूमना शुरू कर दिया और उसने मेरी गांड को दबाते हुए मुझे और भी गहराई से चूमना शुरू कर दिया।
यह कुछ समय तक चलता रहा और मैं इसे और बर्दाश्त नहीं कर सकी। मेरी चूत में अनजानी सी आग धधकने लगी। यह आग कैसे शांत होगी इसका अंदाजा मुझे नहीं था लेकिन वह धूर्त कमीना सब कुछ जानता था। सूअर का बच्चा। वह पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत पर अपनी उंगलियाँ रगड़ कर महसूस करने लगा। मेरी चूत से गीले गीले लसीले द्रव्य का स्राव होने लगा। उसे भी महसूस हो रहा था कि मैं कितनी गीली हो चुकी हूं। मुझे इस बदसूरत हरामी आदमी द्वारा उत्तेजित होने और उत्तेजना के कारण चूत गीली होने से बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। लेकिन खुद को नियंत्रित करना अब मेरे वश में नहीं रह गया था।
“मैडम, देखिए आप कितनी गीली हो गई हैं। हमको लगता है कि हमें अब और देर नहीं करना चाहिए। हम अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते, मैडम। हम तो बस इसी समय का इंतज़ार कर रहे थे,” वह बोला।
उसने मेरी पैंटी नीचे खींच दी, अपनी पैंट और अंडरवियर भी नीचे खींचने में कामयाब हो गया। अब मैं उसके विशाल लंड को उसके पूरे आकार के साथ महसूस कर सकती थी। वह बिल्कुल चट्टान जैसा कठोर था और बहुत लंबा और मोटा महसूस हो रहा था। जब उसने देखा कि अब मैं उसके कृत्यों से प्रभावित हो गई हूं तो उसने मुझसे खुद को ठीक से ऊपर आने और सही पोजीशन में आने के लिए कहा ताकि मैं उसके लंड पर बैठ सकूं ताकि वह उसे मेरी चूत में डाल सके और मैं अपनी उत्तेजना और नादानी में यंत्रवत ऐसा करने को मजबूर हो गयी।
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“अब, हम इसको अंदर डालेंगे मैडम।” वह बेताब हुआ जा रहा था।
हे भगवान! अब यह इतना मोटा लंड मेरी चूत में डालेगा! कैसे होगा? दहशत में आ गई मैं। लेकिन उत्तेजना के अतिरेक में मैं होश खो चुकी थी। मैं ने वैसा ही किया जैसा उसने कहा।
मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर नौकर ने मेरी टाँगें अलग कीं और आख़िर में अपना मोटा लंड मेरी चूत के मुहाने पर टिका कर धीरे धीरे दबाने लगा। चिकने द्रव्य के स्राव से चिकनी हो चुकी चूत का मुंह धीरे-धीरे खुलने लगा और मुझे महसूस होने लगा जैसे कोई मोटा सरिया मेरी चूत के अंदर जाने का प्रयास कर रहा है। मैं पीड़ा से छटपटाने लगी।
"आआआआइहहहह नहीं नहीं......!" अपनी चूत के फटने के दर्दनाक अहसास से मैं चीख पड़ी।
लेकिन वह खेला खाया चुदक्कड़ अब कहां मानने वाला था, जबर्दस्ती दबाव दे कर घुसाने की कोशिश करने लगा। पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ लेकिन दूसरे तीसरे प्रयास में वह सफल हो गया। अब मुझे पता चला कि उसका लंड कितना बड़ा था। एक तो मेरी कुंवारी चूत और ऊपर से उसका उतना बड़ा लंड।
"आआआआइहहहह मर गई मर गई। निकालो निकालो। ओह मां......!" मैं चीखती चिल्लाती रही लेकिन वह वहशी दरिंदा तो किला फतह करने के आनंद में सराबोर था। मैं समझ गई कि उस गधे ने मेरी चूत की सील का बंटाधार कर दिया है। असहनीय पीड़ा से मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। मुझे इतना भयानक दर्द हो रहा था कि मेरी आंखें फट पड़ने को हो गईं। लेकिन उस आरंभिक पीड़ा के कुछ मिनटों के बाद धीरे-धीरे दर्द कम होने लगा। मुझे तो लगा था कि मैं इतने बड़े लंड के साथ मर जाऊंगी। एक बार उसके लंड का सुपाड़ा मेरी चूत में घुसने की देर थी कि फिर तो वह बिना रुके घुसाता ही चला गया और मेरी चिकनी चूत की फिसलन भरी गुफा में मेरी चूत को फाड़ता हुआ अपना तकरीबन आठ इंच लंबा लंड पूरा का पूरा घुसेड़ कर ही माना। वह बहुत अच्छी तरह से जानता था कि अगर अब वह रुकता तो मेरी छटपटाहट के कारण उसका अधूरा काम शायद बीच में ही छूट जाता। वह मुझे कोई मौका नहीं देना चाहता था। वह पूरी तरह से मुझे अपने कब्जे में करके मेरी कमसिन कुंवारी देह का भरपूर उपभोग करने का मन बना चुका था। मेरी स्थिति से वह अनभिज्ञ नहीं था इसलिए मुझे उस पीड़ा के दौर से उबरने के लिए अपना पूरा लंड घुसेड़ लेने के बाद उसी स्थिति में स्थिर रहा। उसका उतना बड़ा लंड पूरी तरह अन्दर जाते ही मेरी तंग चूत उसके लंड से चिपक गयी थी, एक तरह से अपनी गिरफ्त में ले चुकी थी।
वह कराहते हुए बोला, “मैडम, आप की चूत बहुत टाईट हैं। हम पागल हो रहे हैं'' उसने कहा और उसने मेरे कूल्हों को पकड़ लिया और जोर लगाने लगा और अपने लंड को मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा। जैसे जैसे दर्द कम होता गया वैसे वैसे मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मैं स्वर्ग में हूं। मैंने अब अपने आप को पूरी तरह उसके हवाले कर दिया और कराहना शुरू कर दिया। यह सब महसूस करते हुए कि नौकर का लंड मेरे अंदर और बाहर मजे से जा रहा था, मैं सिसकारियां लेने लगी। उसके लंड की मोटाई के कारण लंड के अंदर बाहर होने से मेरी चूत की भीतरी दीवारों में जो घर्षण हो रहा था उससे मेरा रोम रोम तरंगित हो रहा था। हम दोनों एक साथ जोर जोर से कराहने और सिसकारियां लेने लगे। बीच बीच में मैं चीखना चाहती थी क्योंकि उसका लंबा लंड काफी अंदर, मेरे गर्भाशय तक जा रहा था।
अब उसने चोदने की अपनी गति बढ़ा दी और तेजी से धक्के मारने लगा जिससे मेरे स्तन और सख्त हो गये।
“अहा! कितना सुंदर नजारा है मैडम। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि मुझे सबसे खूबसूरत और सेक्सी लड़की को चोदने का मौका मिल रहा है,'' उसने कहा लेकिन अब मैं उसकी बातों का बुरा नहीं मान रही थी क्योंकि अब मुझे मजा आने लगा था। अब मैं भी सहयोग करने लगी थी और सच बोलिए तो अब हम दोनों जानवरों की तरह चुदाई करने लगे और अनाप-शनाप आवाजें निकालने लगे। सचमुच उस समय मैं भी उत्तेजना के आवेग में पूरी तरह जानवर बन गई थी। जहां वह पूरा जंगली जानवर की तरह मुझे चोद रहा था वहीं पहली बार चुदाई के नये आनंद का रसास्वादन करती हुई उत्तेजना के आवेग में मैं भी पूरी तरह कुतिया की तरह अपनी कमर उचका उचका कर अपनी चूत में उस गंदे आदमी का उतना बड़ा गधे जैसे लंड को गपागप खा रही थी। मैं उस पहली चुदाई के स्वर्गीय सुख का मजा लेने में डूब गयी थी। उस छोटे से स्थान में फच फच की आवाज गूंज रही थी।
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02-03-2024, 01:57 PM
(29-02-2024, 12:20 PM)Rajen4u Wrote: वह मेरी ओर देखकर मुस्कुराया और मुझसे कहा, "ओह, तुम होश में आ गई। चलो हमको सुकून मिला।" मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरे ऊपर मुश्किल से चार पांच इंच ऊपर झुकी हुई कोई भारी चीज से टकरा गई।
"हाय राम, यह क्या है?" मेरे मुंह से निकला।
"यह लोहे का भारी शेल्फ है जो गिर कर तिरछा होकर दीवार से टिक गया है, ठीक हमारे ऊपर। यह तो अच्छा हुआ कि यह सामने वाले दीवार पर टिक गया है नहीं तो हमलोग उसी के नीचे दब जाते।" वह बोला। इसके साथ ही वह अपने मजबूत बाजुओं से मुझे अपने ऊपर दबा लिया।
"आपको क्या लगता है, आप क्या कर रहे हैं?" मैंने गुस्से से पूछा।
"मैडम, क्या आपको नहीं दिख रहा कि इस शेल्फ के नीचे हम कैसे फंसे हुए हैं?" वह बोला।
मैंने ऊपर देखा तो पाया कि लोहे का भारी शेल्फ विपरीत दीवार पर झुकी हुई थी। यदि ऐसा न होता तो यह हम पर ही गिर पड़ता। खड़े होने कि बात तो दूर, ठीक से बैठने की भी कोई संभावना नहीं थी क्योंकि शेल्फ के सारे डिब्बे भी गिर कर हमें घेर चुके थे। मैंने रेंगकर दरवाजे तक पहुंचने की सोची लेकिन बक्सों को एक तरफ धकेलने की जगह भी नहीं थी। हम मानो एक छोटे से ऐसे पिंजरे में कैद हो गये थे जहां हम उस वक्त जैसी स्थिति में थे उसी स्थिति में रहने को बाध्य थे, अर्थात या तो अपने हाथों के सहारे एकाध इंच का फासला बना कर उसके शरीर के ऊपर झुकी रहूं या उस पर लद जाऊं।
“मैडम, आपने अब तक सब कुछ समझ लिया होगा। हम यहां तब तक फंसे हुए हैं जब तक कोई तीसरा आदमी हमारी मदद के लिए नहीं आता,'' उसने कहा।
अरे नहीं। कम से कम 2 घंटे तक कोई मदद के लिए नहीं आएगा क्योंकि आज शनिवार को छुट्टी के दिन मेरी माँ इस समय मंदिर जाती हैं। अब मैं 2 घंटे तक इसी तरह बदहाल , असहाय और बेचारगी की स्थिति में घुसा के चंगुल में फंसी रहूंगी।
"आपने मदद के लिए हल्ला क्यों नहीं किया?" मैंने यह तथ्य छिपाते हुए कि मेरी मां घर में नहीं थी, घुसा से पूछा।
“हमने किया था, मैडम। लेकिन कोई नहीं आया,'' उसने ऐसे कहा कहा मानो मुझे उस पर विश्वास हो जाएगा! उसने तो जरूर सोच ही लिया था होगा कि यह अच्छा है, क्योंकि इस स्थिति में मेरे शरीर को अच्छी तरह से महसूस कर सकता है।
"मैं कितनी देर तक बेहोश थी?" मैं ने पूछा।
“शायद लगभग 15 मिनट, मैडम, लेकिन यह इतना लंबा समय भी नहीं था,'' उसने कहा।
उफ, मुझे नहीं पता था कि उसने 15 मिनट तक मेरे शरीर के साथ क्या क्या किया। अगर वह सच कह रहा था तो इन पंद्रह मिनटों में जरूर यह मेरे शरीर के अंगों से छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आया होगा। इस उम्र में भी कुंवारी रहने के बावजूद मर्दों का लड़कियों के प्रति क्या नीयत रहती है इसका मुझे अंदाजा था। मौका मिलते ही ऐसे मर्द लड़कियों के शरीर के साथ क्या क्या कर सकते हैं इसका मुझे अनुभव तो नहीं था लेकिन अंदाजा तो जरूर था।
"मुझे समझ नहीं आ रहा कि जब मैं पीछे हटी तो शेल्फ कैसे अपने आप गिर गई?" मैं असमंजस में थी।
“मैडम, शायद आपको याद न हो लेकिन हमने देखा कि गिरते समय सबसे पहले आपने क्या किया। आपका पीछे वह आपका पीछे की मुड़ कर कूदना और आपका हाथ बगल में दीवार से सटे हुए शेल्फ पर लगना और आपके हाथ से लगकर शेल्फ का हमारे ऊपर गिरना, यह सब इतनी जल्दी हुआ कि हम कुछ भी नहीं कर सके। क्या इस शेल्फ के पाए ऐसे ही हैं? यह शेल्फ अच्छा नहीं है मैडम। किसी तरह सीधा खड़ा कर दिया जाए तो फिर कभी न कभी गिरेगा। फिलहाल तो हम इसे किसी तीसरे की सहायता के बिना सीधा कर ही नहीं सकते हैं। आप समझ रही हैं ना?”
धत तेरी कि। यह संभव था। वह शेल्फ़ हमेशा हिलती रहती थी लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह गिर जायेगी। वाह Rajen जी वाह, क्या describe किया है आपने, लड़की के अंग अंग को पूरी तरह से विस्तारपूर्वक आपने मेरी आँखों के सामने ला दिया है / ऐसा लग रहा है की रोज़ के उपर मैं ही गिरा हुआ हूँ और मेरा लौड़ा उसके कमसिन बदन की गर्मी ले कर और भी लम्बा चौड़ा हो रहा है और पत्थर जैसा सख्त हो रहा है / बहुत खूब / शाबास ऐसे ही आगे बढते रहें और हमारे जैसे जिज्ञासु पाठकों के मस्तिष्क को खुराक देतें रहें /
आपका धन्यवाद जी //
// सुनील पंडित //
मैं तो सिर्फ तेरी दिल की धड़कन महसूस करना चाहता था
बस यही वजह थी तेरे ब्लाउस में मेरा हाथ डालने की…!!!
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SHANDAR JAANDAR STORY...............PADHA KAR MAZA AA GYA NEXT UPDATE
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"चाहे हम तुम्हें कितना भी चोद लें, यह काफी नहीं है। तू तो बहुत बड़ी बुरचोदी निकली मैडम। वाह वाह, मेरे लौड़े से चुदवाने में अच्छी अच्छी औरतों की गांड़ फटती है लेकिन तू तो मजे ले चुदी जा रही है। मजा आ गया आज तो। मिल गई तू हमारी मनपसंद लंडरानी।" वह चोदे जा रहा था और ऐसे ही उद्गार निकाल रहा था।
मैं भी कहां पीछे थी। चुदाई की मस्ती में इतनी डूब गई थी कि मेरे मुंह से भी क्या उल्टा सीधा निकल रहा था मुझे होश ही नहीं था, "साले कुत्ते, चोद हरामी चोद। आह आह, ओह ओह मां बड़ा मज़ा आ रहा है। ओह मां, ओह मेरे चोदू बुड्ढे, और जम के मार मेरी चूत ओओओओओहहहहह....." मैं ऐसे ही और न जाने क्या क्या बके जा रही थी और चुदे जा रही थी। अंततः पसीने से लथपथ हम दोनों कुछ पलों के अंतराल में करीब करीब एक साथ ही चरमसुख में पहुंच गए। उसके लंड से गरमागरम वीर्य का फौवारा फचफच करके मेरे गर्भ को सींचने लगा था और मैं उसके विकृत शरीर से किसी छिपकली की तरह चिपक कर अपने जीवन के उस पहले स्खलन का रसास्वादन करती हुई मानो स्वर्ग की सैर कर रही थी। जैसे ही चुदाई की खुमारी उतरी, मैं थक कर चूर उसके ऊपर ही गिर गयी। हम दोनों कुछ देर वैसे ही लेटे रहे और उसने धीरे से अपने खुरदुरे हाथ मुझ पर रगड़े।
वाह, मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं अभी-अभी इस जानवर से इस छोटी सी गंदी धूल भरी जगह में चुदी। मेरे जीवन की इस पहली चुदाई का अनुभव बेहतरीन थी। यादगार था। जीवन के नये आनंद से रूबरू हो कर मैं आह्लादित थी।
मुझे पता ही नहीं चला कि कितना समय बीत गया। नौकर ने मुझसे कहा कि मेरी माँ के घर आने से पहले मैं तैयार हो जाऊँ। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह मेरी मां की अनुपस्थिति के बारे में पहले से जानता था। शायद माँ ने जाने से पहले उसे बता दिया होगा। कमीना कहीं का।
“हम यहाँ से कैसे निकलेंगे? क्या तुम्हें लोहे की शेल्फ़ दिखाई नहीं दे रही है?” मैंने उससे पूछा।
उसने मुझसे कहा कि अगर मैं थोड़ा सा भी हट जाऊं तो वह इस शेल्फ को उठा लेगा। उसका लंड पुच्च करके मेरी चूत से बाहर निकल चुका था। मेरे कौमार्य के फटने से निकले खून से सराबोर उसका लंड भीगे चूहे की तरह सिकुड़ कर मुरझा चुका था, लेकिन न तो उस वक्त मुझे इसका ध्यान था और न ही उसे। हमें तो अब वहां से किसी तरह निकलना था। मैं किसी तरह खिसकने में कामयाब हो गयी और वह शेल्फ को उठाने के लिए स्वतंत्र हो गया। उसने अपनी शक्ति लगा कर उस शेल्फ को उठा लिया और सीधा खड़ा कर दिया। फिर मैंने अपनी चूत को अच्छी तरह से पोंछा और मेरे खून से सने अपने लंड को उसने पोंछा और हम अपने कपड़े पहनने लगे। अब चूंकि चुदाई का नशा उतर चुका था, मैं उस गंदे आदमी के हाथों अपना कौमार्य खोने के कारण बहुत शर्मिन्दा थी। जहां मुझे उससे नजरें मिलाने में भी शर्म आ रही थी वहीं वह कमीना तो विजयी मुस्कान के साथ बड़ी बेशर्मी से मुझे देख रहा था। फिर हमने मिलकर उस कमरे को व्यवस्थित किया।
कमरे से बाहर निकलने से पहले, मैंने उसे कस कर एक थप्पड़ मारा और गुस्से से बोली, "कमीने, तुमने मुझे चोदने के लिए मेरे साथ धोखा किया,” और उसकी प्रतिक्रिया देखे बगैर वहाँ से चलने लगी। पहली बार इतने मोटे लंड से चुदने के कारण मेरी चूत में जलन हो रही थी और चूत फूल कर मालपुआ हो चुकी थी इसलिए मेरी चाल भी बदल चुकी थी। चलने में हल्की सी तकलीफ़ का अनुभव कर रही थी।
"धोखा ही सही लेकिन आप को भी मज़ा तो आ रहा था ना, नहीं तो आपके मुंह से ऐसा ऐसा बात निकल रहा था जिसे सुनना हमारे लिए नया बात था। वैसा बात तुम्हारे मुंह से निकलते सुन कर हम चकित भी थे और खुश भी थे कि चलो तुमको मजा तो आ ही रहा था। अब बोलो वैसा बात कैसे निकल रहा था अगर तुमको मजा नहीं आ रहा था तो?" वह बोला।
"चुप हो जाओ। वह तो, वह तो....." आगे मुझसे कुछ बोलते नहीं बन रहा था। मैं जानती थी कि सचमुच मुझे बड़ा मजा आ रहा था। ऐसे मजे की हालत में मेरे मुंह से क्या क्या निकल रहा था मुझे होश ही कहां था। मैं तो चुदाई की मस्ती में डूबी हुई थी। मेरी बात सुन कर वह मुस्करा उठा। "अब हंस रहे हो मक्कार कहीं के।" मैं विफर कर बोली। "नहीं मैडम, आपने यह सब गलत समझा। हम समझा सकते हैं'' वह कहता रहा लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उस धूर्त के जाल में फंस कर कुछ पलों की उत्तेजना में ही मैं एक कुरूप बूढ़े, जंगली जानवर के हाथों अपना कौमार्य खो कर एक लड़की से औरत बन चुकी थी। अब बड़ी शरम आ रही थी और अपने आप को कोस भी रही थी। खैर जो हुआ सो हुआ, जीवन के एक अनजाने आनंद से रूबरू होने का मौका तो मिला, बस इसी बात की तसल्ली थी। यह थी बड़े ही अटपटे ढंग से मेरे सेक्स जीवन की शुरुआत।
अगली बार, मैं आपको बताऊंगी कि कैसे वह जानवर नौकर मुझे फिर से बहकाने और मेरे साथ संबंध बनाने में कामयाब रहा और यह एक सिलसिला बन गया।
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आगे के सिलसिला क इंतजार रहेगा
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गरम रोजा (भाग 2)
हमारे नये नौकर नें हमारे घर में कदम रखते ही मेरे जीवन में एक तूफान ला दिया था। पहले ही दिन हमारे ही स्टोर रूम में मुझ नादान लड़की को बेवकूफ बना कर अपने जाल में फंसा लिया और बड़े ही शातिर अंदाज से मेरे कौमार्य को भंग कर दिया। बड़ी कुटिलता के साथ मुझे फंसा कर मुझे उत्तेजित किया और अपनी हवस का शिकार बना दिया। कहां वह 50 - 55 साल का पहलवान टाईप खेला खाया कुरूप बूढ़ा और कहां मैं खूबसूरत कमसिन कुंवारी कन्या। मैं शैतान जरूर थी लेकिन इन सब बातों से अनजान थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि मैं बड़ी आसानी से उसके जाल में जा फंसी। जरा भी दया दिखाए बिना मेरे तन बदन से खेला और अपने विशालकाय लंड से मेरी कुंवारी चूत का बड़ी बेदर्दी से उद्घाटन कर के करीब करीब फाड़कर ही रख दिया था। उसकी जबरदस्त कुटाई से दूसरे दिन भी मेरी चूत फूली हुई थी। चलना फिरना भी दूभर हो गया था। दूसरे दिन भी मेरी हालत खराब थी। वह कमीना नौकर घुसा तो दूसरे दिन भी मुझे भोगने का मौका तलाश कर रहा था लेकिन मैं उससे दूर दूर ही रही और उसे कोई मौका नहीं दिया लेकिन तीसरे दिन भगवान ने कुछ ऐसा कर दिया कि उसे फिर से स्वर्णिम अवसर हाथ लग गया।
उस दिन कॉलेज से लौटते समय काफी देर इंतजार करने के बाद भी हमारी कार नहीं आई तो मैं पैदल ही कुछ दूर निकल आई। तभी अचानक जोरों की बारिश शुरू हो गई। मैं सड़क किनारे एक पेड़ की छाया में बचने की कोशिश में बारिश से भीग गई। जब हमारी कार आई तबतक मैं काफी भीग चुकी थी। वैसे ही भीगी हालत में मैं कार में बैठ कर घर आई। मेरी हालत देखकर मां मुझे डांटते हुए बोली,
“रोज, तुम्हें बारिश में भीगने के लिए किसने कहा? तुमने तब तक इंतजार क्यों नहीं किया जब तक कार तुम्हें लेने नहीं आई?" वह यह देखकर चिंतित थी कि मैं सिर से पैर तक कितनी भीगी हुई थी और ठंड से कांप भी रही थी।
“मैं पहले से ही रास्ते में थी जब बारिश शुरू हुई। फिर अचानक ही जोरों से बारिश होने लगी। ड्राइवर को आने में बहुत देर हो रही थी तो और में क्या करती। मैंने ज्यादा इंतजार करने के बजाय, पैदल ही निकल चलना पसंद किया,'' मैं बोलते हुए अभी भी कांप रही थी।
"हे भगवान! जाओ तौलिया ले आओ और उसे तुरंत पोंछने में मदद करो। मैं उसके कमरे से कपड़ों की एक नई जोड़ी ले कर आती हूं।'' मेरी मां ने नौकर घुसा से कहा और वह मेरे कमरे में जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ने लगी। फर्नीचर गीला न हो जाए, इस कारण मैं एक स्टूल पर अपनी बांहों को क्रॉस करके बैठी थी, लेकिन मैं अभी भी कांप रही थी। घर के अंदर भी मुझे बहुत ठंढ लग रही थी।
हमारा बदसूरत खड़ूस नौकर दो मोटे तौलिये लेकर आया और एक मुझे दे दिया। मैं खुद को पोंछने लगी तो वो भी दूसरे तौलिए से मुझे पोंछने लगा।
"यह आप क्या कर रहे हो? स्टोररूम की घटना के बाद मैंने तुमसे कहा था ना कि मुझसे दूर रहो,'' मैंने गुस्से में उससे कहा। मेरा गुस्सा करना जायज था लेकिन भीतर ही भीतर मुझे उसके साथ हुए प्रथम संभोग की वह मधुर याद तरंगित भी कर रही थी।
"तुम्हारी माँ ने मुझसे तुम्हारी मदद करने के लिए कहा था और अगर तुम जल्दी से अपने आप को नहीं सुखाओगी, तो तुम्हें बुखार हो सकता है," उसने हल्के अंदाज में जवाब दिया।
"लेकिन फिर भी मैं स्वयं ही अपने बदन को सुखा सकती हूं। मुझे तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं है," मैंने कहा और अपने शरीर और बालों को पोंछना शुरू कर दिया।
वह शांत खड़ा हो गया था और जब मैंने नज़रें उठा कर देखा तो वह मेरे सामने खड़ा होकर मेरे शरीर को घूर रहा था। मेरे कपड़े गीले हो गये थे और मेरे शरीर से चिपक गये थे। वह मेरी ब्रा की रूपरेखा, मेरे स्तन और मेरे निपल्स को स्पष्ट देख सकता था जो ठंड के कारण खड़े हो गए थे। मेरी पैंट भी मेरे पैरों से चिपक गयी थी।
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आपका सुझाव अच्छा है। मैं इसे ध्यान में रखूंगी। फिलहाल तो जो मैं लिख चुकी हूं उसे पढ़ लीजिए। अच्छा अब आगे पढ़िए: -
नौकर बड़ी बेशर्मी से खुल कर अपने होंठ चाटते हुए मेरे बदन का मुआयना कर रहा था। उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि मैं उसे देख रही हूँ। मैंने धीरे से उसकी जांघों के बीच नज़र डाली तो मुझे एक बड़ा सा उभार दिखाई दिया। उस साले कमीने का लंड फिर से सख्त हो रहा था!
मेरी माँ कपड़े लेकर नीचे आ गयी। उसने नौकर के हाथ से दूसरा तौलिया लिया और मेरे बाल सुखाने लगी। उसने कहा कि उसे पता नहीं चल रहा है कि उसने हेअर ड्रायर कहां रखा है और तभी उसका फोन आया।
“तुम वहाँ खड़े होकर क्या कर रहे हो? यहाँ आओ, इससे पहले कि उसे सर्दी लग जाए, इसकी मदद करो,'' उसने कहा और उस पर तौलिया फेंक दिया, जिसे उसने बड़े प्रफुल्लित भाव से लपक लिया। मेरी माँ खिड़की के पास जाकर फ़ोन पर बात कर रही थी। उसकी पीठ हमारी ओर थी। मेरे नौकर ने सबसे पहले मेरे सिर के बाल सुखाना शुरू किया और फिर मेरे कंधे और सामने के बालों को सुखाना शुरू किया।
वो मेरे बाल सुखाने के बहाने मेरे स्तनों को दबाने लगा और उन्हें महसूस करने लगा! उसका हाथ तौलिये से ढका हुआ था और माँ ने मेरे चारों ओर एक और तौलिया लपेट रखा था, इसलिए अगर वह पलट भी जाये तो उसे पता नहीं चलता। उसकी हरकतों से मैं विचलित हो उठी।
“तुम क्या घटिया हरकत कर रहे हो, कमीने! अपना हाथ हटाओ,'' मैंने रोष से मगर धीरे से कहा ताकि मेरी मां सुन न सके। स्टोर रूम वाली घटना के बाद मैं अब भी अपराधबोध से ग्रसित थी। मैंने झटक कर उसके हाथ हटाने की कोशिश की लेकिन वह अपने हाथ हटाने के बजाय मेरा हाथ पकड़ लिया और फिर से मेरे स्तनों को छूना जारी रखा। वह मेरे पीछे खड़ा था इसलिए मैं महसूस कर सकती थी कि उसका खड़ा हो चुका लंड मेरी पीठ पर चुभ रहा था। मैं चाहती थी कि मेरी माँ जल्दी से घूमें लेकिन वह मां के घूमने से पहले ही रुक गया।
मेरी माँ ने मुझे जल्दी से कपड़े बदलने के लिए कहा और कहा कि उन्हें काम से बुलावा आया है इसलिए वह हमारे कार्यालय कक्ष में काम करेंगी और चली गईं।
मैं भी जल्दी से अपने कमरे में चली गयी। जल्दी से स्नान किया और अपने कपड़े बदले। लेकिन मुझे अच्छा महसूस नहीं हो रहा था और बुखार जैसा महसूस होने लगा। मैंने अपनी माँ को बताया तो उन्होंने मुझे कुछ गर्म भोजन खाने को कहा और खाने के बाद आराम करने के लिए कहा।
"अगर तुम्हें यकीन हो जाए कि बुखार है, तो एक गोली ले लेना और घुसा, तुम लगातार इसकी देखभाल करोगे।" उसने उस बदसूरत सनकी की ओर देखते हुए कहा।
"जी मैडमजी। हम इसी के साथ रहेंगे।" वह झट से बोला। वह तो इसी की ताक में था कि जितना ज्यादा उसे मेरे पास रहने का मौका मिले उतना ही अच्छा है। मैंने खाना खाया और सो गयी।
जब मैं उठी तो मुझे लगा कि मेरे शरीर का तापमान बढ़ गया है और ऐसा लग रहा था जैसे मुझे बुखार है। नौकर ने तुरंत मेरा तापमान जांचा। मैंने पूछा कि मेरी मां कहां हैं तो उन्होंने कहा कि चूंकि बारिश रुक गई है, इसलिए उन्हें तत्काल कार्यालय बुलाया गया है। तब मैंने बुखार की एक गोली ली और सो गयी। फिर भी मेरा बुखार कम नहीं हो रहा था बल्कि और बढ़ गया।
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हमारे नौकर ने कहा कि तापमान कम करने के लिए मेरे बदन को गीले कपड़े से पोंछना होगा। मैं इसके ख़िलाफ़ थी लेकिन उन्होंने ज़ोर दिया कि शरीर के तापमान को कम करने के लिए भीगे कपड़े से पोछना जरूरी है नहीं तो मैं ख़तरे में पड़ जाऊंगी। मेरे अंदर विरोध करने की कोई ऊर्जा नहीं थी इसलिए मैंने हार मान ली।
उसने मुझे सोने के लिए कहा और मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसने मेरी स्कर्ट मेरे घुटनों तक खींच दी। उसने मेरे टॉप को ऊपर कर दिया जिससे मेरी कमर और नाभि दिखने लगी। उसने मेरे टॉप के ऊपर के बटन भी खोल दिए और मेरे ऊपरी स्तन और ब्रा नंगी हो गईं।
मैंने उससे पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया जबकि गीला कपड़ा केवल हाथ, पैर और माथे पर ही इस्तेमाल किया जाता था। उन्होंने कहा कि उनके गांव में सभी ऐसा ही करते हैं। ऐसा करने से जल्द बुखार उतर जाता है। फिर उसने मेरे हाथ, पैर, माथा, कमर, गर्दन और गर्दन के नीचे चूचियों के ऊपर, शरीर के खुले भाग पर गीले कपड़े से पोंछना शुरू कर दिया। पहले तो मैं छटपटाती रही क्योंकि ठंड लग रही थी लेकिन फिर सो गयी।
मुझे नहीं पता कि मैं कितनी देर तक सोयी और उसने मेरे शरीर के साथ क्या किया। लेकिन जब मैंने अपनी आँखें खोलीं, तो वह अभी भी वहीं बैठा था और मैं बहुत बेहतर महसूस कर रही थी। मेरे शरीर का तापमान बहुत कम हो गया था। मैंने अपनी माँ को फोन किया तो उन्होंने कहा कि वह अभी भी काम कर रही है। उसने कहा कि वह बहुत व्यस्त है और घर लौटने में देर हो सकती है। मेरे पिताजी दो दिवसीय सम्मेलन में थे इसलिए वह शहर से बाहर थे। यह तो सब गड़बड़ हो गया था। अब मैं इस कमीने के साथ घर में अकेली थी।
नौकर ने मुझे वापस सो जाने और अधिक आराम करने के लिए कहा। मैंने उससे मेरे कमरे से बाहर जाकर बाहर ही इंतजार करने को कहा फिर मैं सो गयी।
मुझे नहीं पता कि इस बार मैं कितनी देर तक सोयी थी। जब मेरी आंख खुली तो नौकर मेरे बगल में मुझसे लिपट कर सो रहा था। वो सिर्फ अंडरवियर में था और इस बार उसने मेरी स्कर्ट मेरी जांघों तक उठा दी थी। उसने फिर से मेरा टॉप खींच दिया और मेरी पूरी कमर खुल गयी। मेरी टॉप के बटन फिर से खुल गए थे और मेरी ब्रा खुल गई थी।
उसने अपनी बाहें मेरे चारों ओर डाल दीं। फिर उसने मुझे कसकर पकड़ लिया और मेरे आधे नंगे शरीर को अपने शरीर से चिपका लिया। उसका एक हाथ मेरी नंगी पीठ पर था और दूसरा मेरी गांड को सहला रहा था।
"यह आप क्या कर रहे हो?" मैंने गुस्से से कहा।
“रोज मैडम, कृपया ग़लत न समझें। तुम्हें बहुत ठंड लग रही थी इसलिए हम तुम्हें इस तरह गर्म कर रहे थे,'' उन्होंने कहा।
“तो फिर मेरे कपड़े क्यों खुले हैं और तुम्हारा हाथ मेरी गांड़ पर क्यों है?” हां मैं ने अपनी गुदा को गांड़ ही कहा था। वह हरामी था तो मुझे भी उसके सामने ऐसे शब्दों को इस्तेमाल करने में कोई शर्म का अहसास नहीं हुआ।
“मैडम, गर्मी पैदा करने के लिए शरीर के नंगे चमड़े को छूना सबसे अच्छा तरीका है। लेकिन कहीं आप मुझे डाँट न दो इसलिए हमने आपके सारे कपड़े नहीं उतारे।''
"ठीक है लेकिन मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है।"
“मैडम, कृपया समझिए। हमको आपकी देखभाल करनी है। अगर तुम्हारी माँ तुम्हारी हालत बिगड़ती देखेगी तो हमको ही डाँटेंगी। तुम बीमार हो और हम तुम्हें गर्म रखने के लिए यहाँ हैं,'' उसने कहा और मेरे कपड़े उतारने लगा।
मैंने उस समय उसका विरोध नहीं किया या उसे रोकने की कोशिश नहीं की क्योंकि शायद यह सब मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। नौकर मेरी पूरी पीठ को सहला रहा था और मेरी स्कर्ट के नीचे से मेरी गांड को दबा रहा था। आश्चर्य की बात यह है कि उसका स्पर्श मुझे धीरे-धीरे उत्तेजित करने लगा।
यह देखकर कि मेरी आंखें बंद हो गई हैं, वह समझ गया कि मुझे मजा आ रहा है। अब वह उसकी हिम्मत बढ़ गई और उसने मेरा टॉप खींच कर उतार दिया। फिर उसने मेरी स्कर्ट उतार दी। मैं केवल ब्रा और पैंटी में थी और मेरा शरीर नौकर के शरीर से जोर से चिपका हुआ था।
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