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Adultery प्यासा यौवन (सम्पूर्ण)
#1
Heart 
दोस्तो, आप सबको मेरा नमस्कार. 
आज मैं आप सबके सामने अपने जीवन की एक घटना पेश करने जा रहा हूँ. इस घटना को पढ़ कर आप सभी को तय करना ही होगा कि सामजिक परिस्थितियाँ किस प्रकार मजबूर करती हैं.
घटना को लिपिबद्ध करने में कामुकता पैदा करना आवश्यक हो जाता है और उद्देश्य भी यही होता है कि लड़कों के लंड से रस टपकने लगे और वे सब मुट्ठ मारे बिना रह पायें तथा सब लड़कियों की चूत रसीली हो जाए और उनके हाथ भी जबरदस्ती उनकी चूत में घुस जाएँ.
हमारे परिवार में कुल तीन सदस्य हैं, मैं बाईस साल का मेरी बहन 18 साल की और माता जी. मेरे माँ नौकरी करतीं हैं.
हम लोग मम्मी के साथ ही रहते हैं. वे भी अक्सर सरकारी काम से बाहर जाती रहती हैं. मम्मी को एक सरकारी नौकर मिला हुआ है, उसका नाम जुगल है. वो एक दुबला पतला लड़का बुंदेलखंड का रहने वाला था. घर की साफ़-सफाई, और खाना आदि बानाने का काम उसका ही है और वो सर्वेंट क्वार्टर में रहता है.
उसकी इसी साल शादी हुई है. उसकी बीवी मन्जू बड़ी कमाल की चीज है. देखने में उसकी उम्र 18 साल से कम ही लगती है. उसके सारे शरीर के अंग बड़े बारीकी से बने हुए दिखते हैं. देखने में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लगती है. उसकी टाँगें केले के तने की तरह, कमर पतली और लहरदार, कटि एकदम क्षीण, भारी नितम्ब, उठावदार चूचियाँ जैसे दो उन्मत्त पर्वत शिखर, जो हमेशा उसके ब्लाउज को फाड़ कर बाहर आने को आतुर हों, सुराही की तरह गला, कोमल से हाथ, लाल गुलाबी होंठ, सुतवां नाक, कमल पंखुरियों से नयन, चौड़ा माथा, घने काले बाल, जिसमें फँस कर कोई भी अपने होश गवां बैठे. उसको देख कर बड़े-बड़ों के होश गुम हो जाएँ.
मैं चोरी-छुपे मन्जू को देखा करता था और मन में बड़ी तमन्ना थी कि बस एक बार वो मेरे लौड़े की सवारी कर ले, पर कामयाबी नहीं मिल रही थी. मैंने जाने कितनी बार उसको देख देख कर मुट्ठ मारी होगी पर वो मेरे हाथ नहीं रही थी.
वो घर में खाना बनाने का काम करती थी तथा अपने पति के काम में हाथ बंटाती थी. मेरी बहन के हम-उम्र होने के कारण वो उससे तो खूब बात करती थी पर मुझसे कोई बात नहीं करती थी.
एक बार मेरी मम्मी किसी काम से बाहर जाना पड़ा. उसी समय अचानक जुगल के किसी रिश्तेदारी में किसी की मृत्यु हो जाने के कारण उसने मम्मी से गाँव जाने की इजाजत मांगी.
मम्मी ने कहा- "ठीक है तुम चले जाओ, पर तुम्हारे पास ट्रेन का रिजर्वेशन भी नहीं है और तुम मन्जू को कैसे ले जाओगे? उसको यहीं रहने दो, वैसे भी घर का खाना आदि का काम भी कैसे हो पायेगा?"
वह मान गया और मन्जू को छोड़ कर चला गया. मेरी बहन सुबह ही कॉलेज चली जाती है और दोपहर तक लौटती है. घर पर सिर्फ में ही अपने खड़े लंड के साथ रह गया था. मैं अपने कमरे में था.
मन्जू ने घर की सफाई करना शुरू की, सभी जगह झाड़ू आदि लगाने के बाद वो मेरे कमरे में आई. मैं उसे चोर नज़रों से देख रहा था. जब वो झुक कर झाड़ू लगा रही थी, तो उसके दोनों संतरे हिल रहे थे.
मेरा तो कलेजा उछल रहा था, मेरा लौड़ा मुझे उकसा रहा था कि इसी समय पटक लो साली को और चोद दो, पर गांड फट रही थी कि कहीं बिदक गई तो हंगामा कर देगी और फिर सब गड़बड़ हो जायेगा.
इसीलिए मैंने अपने लंड को समझया कि बेटा अभी मान जा, अभी पहले इसको पटाना जरूरी है. फिर इसकी चूत का भोग लगाना उचित होगा. पटाने के लिए सबसे पहली जरूरी चीज है कि उससे बातचीत हो, सो मैंने उससे बातचीत करने का निर्णय किया.
मैंने उससे बड़े ही अच्छे ढंग से पूछा- मन्जू किसकी मौत हुई है?”

शायद वो भी मुझसे बातचीत तो करना चाहती थी पर झिझकती थी, मन्जू बोली- भैया जी, मेरी दूर की ननद थीं. उनको कैंसर हुआ था और वो बहुत दिनों से अस्पताल में भी भरती थीं

मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- तुम्हारे घर में कौन-कौन हैं?”

वो बैठ गई और बताने लगी- भैयाजी, हम चार बहनें और दो भाई हैं. मैं सबसे बड़ी थी, सो मेरी ही शादी हुई है अभी”

मैंने पूछा- तुम्हारी शादी बड़ी जल्दी इतनी कम उम्र में ही हो गई?”

मन्जू बोली- हाँ भैया जी, हमारे गाँव में शादी जल्दी कम उम्र में ही हो जाती है. पर मेरी शादी तो अठरह पूरे होने पर ही हुई थी

मैंने पूछा- तुमने इधर दिल्ली में क्या-क्या घूमा है?”

बोली- मैं कहीं घूमने गई ही नहीं

मैंने पूछा- क्यों?”

मन्जू बोली- इनको कभी काम से फुरसत ही नहीं मिलती है. मैं कैसे जाऊँ घूमने? जब भी कहो तो कहते हैं कि हजारों काम पड़े हैं और तुम्हें घूमने की पड़ी है

मैंने उसको एकटक देख रहा था, उसका अंग-अंग मादकता से भरा हुआ था.
मैंने अपने लौड़े पर हाथ फेरते हुए कहा- जब तुम अपने घर वापिस जाओगी, और कोई तुमसे पूछेगा कि तुमने क्या क्या घूमा? तो तुम क्या जवाब दोगी?”

मन्जू बोली- सो तो है भैया जी. अब हमने तो देखा है नहीं कि किधर क्या घूमने का है. अकेले कैसे घूमने कैसे जाऊँ?”

मैंने कहा- अरे चिंता काहे करती हो, मैं तुमको दो दिन सब घुमा दूँगा. बस तुम मेरे साथ चलने को राजी हो जाओ तब तो कुछ बात बने

वो बोली- मुझे तो आपसे बात करने में ही डर लगता था कि कहीं आप मुझसे नाराज हो जाओ

मैंने अपने लौड़े को और जोर से खुजाते हुए कहा-अरे मुझसे कैसा डर? मैंने कोई गैर हूँ क्या?”

वो एकटक मेरे लौड़े की देखने लगी.

मैंने फिर उससे पूछा-तुम्हारा पति तुमको ठीक से रखता तो है या नहीं?”

वो एक दीर्घ श्वास लेकर बोली- हाँ, रखते तो हैं, और भी रखें तो क्या कर सकते हैं, माँ-बाप ने जीवन की डोर तो उनसे ही बाँध दी है

मैंने कहा- “अरे ऐसा क्यों कहती हो क्या जुगल में कोई कमी है? मारता तो नहीं है तुमको?”

TO BE CONTINUED ......
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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#2
Heart 
वो कुछ नहीं बोली, बस उसने अपना सर झुका लिया, उसकी आँखें दुःख का भान कराने लगीं.
मैंने उठ कर उसके कंधे पर हाथ रखा और उसको दुलारते हुए पूछा- “क्या हुआ मन्जू तुम रो क्यों रही हो?”

वो सुबकने लगी. मैंने उसके सर पर हाथ फेरा, मेरा मन तो हो रहा था कि उसको उठा कर सीने से लगा लूँ, पर अभी कुछ जल्दबाजी लगी सो फिर उससे पूछा- “बताओ मुझे बताओ क्या बात है? कोई दिक्कत है क्या? क्या जुगल दारु पीता है? या तुमको परेशान करता है? मैं उसको ठीक कर दूंगा, तुम मुझसे खुल कर कहो. मुझसे डरो मत. अरे मुझसे नहीं कहोगी तो फिर समस्या कैसे दूर होगी?”

मन्जू बोली- “हाँ भैया जी आप बात तो सही कह रहे हैं. आप ही मेरी समस्या दूर कर सकते हैं”

मैंने उसको उठाया और कहा- “पहले इधर बैठो, पानी पियो और फिर मुझे बताओ कि मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ. मैं तुम्हारी हर तरह से मदद करूँगा. तन से, मन से, धन से, तुम किसी बात की चिंता मत करो”

उसने मेरी तरफ नजर उठा कर देखा और कहा- “भैया जी वो बात ऐसी है कि…” और उसने अपनी नजरें नीचे झुका लीं और अपनी साड़ी के छोर को अपनी उँगलियों में गोल-गोल घुमाने लगी.

मुझे बात कुछ समझ में नहीं आई किये क्या कहना चाहती है. मैंने उससे दोनों कंधे पकड़े, उसको थोड़ा हिलाया और एक हाथ से उसकी ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा अपनी तरफ उठाया और उसकी आँखों में झाँक कर देखा.
उससे पूछा- “क्या बात है मन्जू? तुम मुझसे खुल कर कहो तुमको क्या दिक्कत है?”

उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे. मैंने उसके गालों पर हाथ फेरा, और इसी बहाने मुझे पहली बार उसके नर्म और मुलायम गालों पर अपना हाथ फेरने का मौका मिल गया. उसके नर्म गालों के स्पर्श से मेरा लौड़ा और भी कड़क हो गया.
मैं उसके और करीब आ गया. वो भी मेरे हाथों का प्यार भरा स्पर्श पाकर मुझ से लिपट गई. मेरी तो बुद्धि ही फिर गई.

मन्जू भी मेरे हाथों का प्यार भरा स्पर्श पाकर मुझ से लिपट गई, मेरी तो बुद्धि ही फिर गई।
उसकी और मेरी स्थिति पर जरा निगाह डालिए कि वो बिस्तर पर बैठी थी और मैं उसके सामने खड़ा था।
मेरा लौड़ा उसके चेहरे के बिल्कुल सामने था। जब वो मुझसे लिपटी तो उसके दोनों हाथ मेरी कमर के पीछे जाकर मुझे अपनी बाँहों के घेरे में ले लिया था। इस परिस्थिति में मेरा लौड़ा उसके मुँह से लग गया था। एक तरह से उसने अपना चेहरा मेरे खड़े हथियार से लगा दिया था। मैं गनगना गया।
मैंने उसके सर को और भी अपने नजदीक खींच लिया और उसको दुलारने लगा। एक हाथ से उसकी पीठ को सहलाने लगा। मुझे कुछ-कुछ समझ में आ रहा था।

मैंने उससे पूछा- "जुगल तुमको खुश नहीं करता क्या?"

बोली- "हाँ भैया जी, वे कमजोर हैं, रोज जल्दी सो जाते हैं, कहते हैं मैं बहुत थक गया हूँ"

मैंने उसको और खोला- "क्या उसका खड़ा नहीं होता?"

वो सकुचाई और बोली- "आज तक खड़ा नहीं हुआ"

मैंने कहा- "तुमने कभी अपने हाथ से कोई कोशिश नहीं की?"

बोली- "खूब कोशिश की हाथ से, मुँह से पर वो सब बेकार की कोशिश साबित हुई"

मैंने कहा- "कितना बड़ा है उसका?"

उसके स्वर में वितृष्णा थी, बोली- "बड़ा?? मेरे तो करम ही फूटे थे कि उससे पाला पड़ गया"

मैंने उसके हाथों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और उसके चेहरे के पास लाया। इससे हुआ ये कि उसकी हथेलियाँ मेरे लौड़े के पास आ गईं। उसने अपनी आँखें मेरी तरफ कीं और मैंने उसकी हथेलियों को अपने खड़े लण्ड से टिका दीं और अपनी हथेलियों से उसकी हथेलियों को लौड़े पर दबा दिया।

उसने मेरे लौड़े का स्पर्श किया। मेरा लण्ड फनफना उठा। उसने मेरी नजरों को देखते हुए मेरे हथियार को कुछ दबाया। अब सब खेल का खुलासा होने लगा था।
मैंने भी अब देर नहीं की और उसको उठा कर अपने सीने से लगा लिया, वो मेरे सीने से लिपट गई। 
मन्जू अब फफक-फफक कर रो रही थी, बोली- "भैया जी, आप ही मेरे दुःख को समझ सकते हो। गाँव में मेरी सास को मेरी कोख से मेरे होने वाले बच्चे का बड़ी बेसब्री से इन्तजार है"

मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। मैं तो सोच रहा था कि इसको सिर्फ लण्ड की खुराक चाहिए पर इसको तो मेरा बीज भी चाहिए था.
मेरा मन बल्लियों उछल रहा था, जिसको याद कर के हस्त-मैथुन करता था वो आज मेरी बाँहों में थी और मुझसे बच्चा मांग रही है। 
मुझे और मेरे लौड़े को बस एक ही ठुमरी का वो अंश याद या रहा था- "आजा गिलौरी, खिलाय दूँ किमामी, लाली पे लाली तनिक हुई जाए"

मैंने अब देर करना उचित न समझा। उसको बाँह पकड़ कर उठाया और खड़ा करके अपने सीने से लगा लिया। वो मुझसे लता सी लिपट गई। मैंने भी उसको अपनी बाँहों में समेट लिया। कुछेक पलों के बाद उसकी हिचकियाँ बंद हुंईं। मैंने उसके चूतड़ों पर अपनी हथेलियाँ फेरीं। एकदम गोल और ठोस चूतड़ थे, चूतड़ों को दबा कर उसे अपनी तरफ खींचा।
उसने भी लाज और हया छोड़ कर अपने होंठ मेरी तरफ किये, मैंने उसके रसीले होंठों को अपने होंठों में दबा लिए। उसके होंठों की तपिश ने मुझे एहसास करा दिया कि मन्जू गर्म हो चली थी।
उसके अंगों पर अपने हाथ फेरते-फेरते पता ही नहीं चला कि कब कपड़ों ने कब साथ छोड़ दिया था। मैंने उसको बिस्तर पर लेटा दिया.
मन्जू का बेमिसाल हुस्न जिसकी मैंने तारीफ की थी, दरअसल मेरे बाहुपाश में था और यही वो समय था जब मैंने उसको जी भर कर देखा था।

TO BE CONTINUED ......
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ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

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Heart 
एक बार फिर महसूस कीजिये- उसकी टाँगें केले के तने की तरह, कमर पतली और लहरदार, कटि एकदम क्षीण, भारी नितम्ब उठावदार, चूचियाँ जैसे दो उन्मत्त पर्वत शिखर, सुराही की तरह गला, कोमल से हाथ, लाल गुलाबी होंठ, सुतवां नाक, कमल पंखुरियों से नयन, चौड़ा माथा, घने काले बाल, बिल्कुल गोरी और झांटों रहित चूत।
उसकी चूत बिल्कुल एक अनचुदी और अनछुई थी। चूत की दोनों फाँकें चिपकी हुई थीं। दरार के बीच में चने के दाने सा उभरा हुआ उसकी भगनासा, उसकी भगन को देख कर मुझे कमलगटा के बीज की याद आ जाती है जो हरे रँग का होता है.
हम दोनों एक दूसरे इतने खोये थे कि कोई सुध-बुध ही न थी, मेरे लंड पर उसका हाथ बार-बार जा रहा था। 
मन्जू की इस चाहत को देख कर मैंने उससे कहा- "इसको चखना है?"
उसकी आँखों में सहमति थी.
मैंने सिर्फ कहा था और उसने हाँ में जबाब देकर मेरी इजाजत का इन्तजार भी नहीं किया। उलट कर नीचे हो गई और मेरे लौड़े पर अपनी रसना लगा दी।
उसकी चूत मेरे सामने खुली पड़ी थी। मैंने अपनी उंगली उस पर लगाई, तो उसका रस निकलने लगा था। मैंने भी अपनी एक उंगली उसकी दरार में तनिक सी घुसेड़ी।
मेरी तर्जनी की एक पोर बमुश्किल उसकी चूत में पेवस्त हुई, रस की चाशनी से मेरी पोर गीली हो गई थी। मैंने उंगली को निकाल अपनी जिह्वा से लगाया, मस्त नमकीन स्वाद था।
उंगली चाट कर अपने थूक से गीली की, और दोबारा उसकी दरार में डाली। अबकी बार मेरी उंगली उसकी चूत में अन्दर तक गई, भट्टी सी तप रही थी साली.
कुछ देर में मेरे लवड़े को भी उसके मुँह की गर्मी का अहसास होने लगा।

मैंने उससे पूछा- "मन्जू अब मुँह से ही बच्चा लोगी क्या?"

वो मुस्कुरा दी, बोली- "भैया जी… मुँह से कैसे?"

"ओये, भैया मत बोल, अब मेरा लौड़ा चचोर रही है तू रानी!"

"हा हा हा हा, मैं तो भूल ही गई थी, क्या बोलूँ आपको?"

"पिया जी बोल दे"

वो उलट कर फिर एक बार मेरे सीने पर अपने पयोधरों की चुभन देने लगी थी। मैंने उसके गुलाबी चूचुकों को अपने होंठों से दबा लिया। वो सिसकारने लगी।
उसके कंठ से आवाज निकल रही थी, और उन आवाजों को मैं भली भांति जानता था कि अब इसको खुराक चाहिये। मैंने तुरंत ही चुदाई की पहली मुद्रा ली, और उसकी टाँगों को फैला कर अपना शिश्न-मुंड उसकी दरार पर रखा।
मुझे उसने बताया तो था कि सील पैक है, पर फिर भी गुलाबी चूत देख कर मैं अपना आपा खो बैठा। 
एक झटका मारा, उसकी चीख निकल गई- "आअ… आईई… ऊओई… मर ईइ दैयाआ… अअरे… "

मैंने झट से उसके होंठों को हाथ से दबाया। मेरा लौड़ा अभी भी उसकी चूत में फँसा था। वो छटपटा रही थी। मैंने कुछ देर रुक कर उसके होंठों को चूसा और अपने हाथ से उसकी घुंडियों को मसला।
अब वो कुछ संयत हुई। उसने भी अपनी चूत को चौड़ा कर मेरे लंड के लिये रास्ता बनाया। मैंने अपने लंड को थोड़ा बाहर खींचा।

"मत निकालो, होने दो दर्द, अंदर कर दो…"- उसकी आवाज भारी हो गई थी।

मेरा लंड अब उसकी चूत की दीवारों को चौड़ा करता हुआ अंदर जाने लगा। जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत को चीरता हुआ आगे बढ़ा उसके मुँह से एक बार फिर ‘आआऽऽऽहहऽऽऽ’ की आवाज निकली और लंड पूरा का पूरा चूत में धंस गया।

"अच्छा लगा?"

‘हूँ’ उसने अपने दाँतों से चबाते हुए कहा।

मैंने फिर अपने जिस्म को उठा कर लंड को उसकी चूत को रगड़ते हुए बाहर की ओर निकाला और फिर वापस पूरे जोर से चूत में अंदर तक ठांस दिया.

"ऊऊ… ऊहहऽऽऽ दर्द कर रहा है। आपका वाकई काफी बड़ा है। मेरी चूत छिल गई है"उसने मेरे आगे-पीछे होने की रिदम से अपनी रिदम भी मिलाई।

हर धक्के के साथ मेरा लंड उसकी चूत में अंदर तक घुस जाता और उसकी चूत की मुलायम त्वचा पर मुझ से रगड़ खा जाती।
वो जोर-जोर से मुझे ठोकने के लिए उकसाने लगी। मेरे हर धक्के से पूरा बिस्तर हिलने लगता। काफी देर तक मैं ऊपर से धक्के मारता रहा।
मैंने नीचे से उसकी टाँगें उठा कर अपनी कमर पर लपेट ली थीं। मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर लगा कर अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी।

इसी तरह उसको लगातार चोदे जा रहा था और वो ‘आआऽऽ… हहऽऽऽ माँआऽऽऽ मममऽऽऽ ऊफफऽऽऽ’ जैसी आवाजें निकाले जा रही थी।

मैं लगातार इसी तरह पंद्रह मिनट तक ठोकता रहा और उसकी आँखों में झाँका, वो भी पस्त पड़ चुकी थी। मैंने उससे कहा रस छोड़ दूँ?

बोली- "उसी का तो इन्तजार है"

मैंने कुछ और दमदार शॉट मारे और अपना लावा उसकी चूत में भर दिया।
उसकी हसरत पूरी हो गई। जब कुछ देर बाद उठना हुआ, तो देखा लण्ड खून से सना था।
मन्जू की सील तोड़ने का खिताब मेरे लंड के नाम हो गया था। उसके बाद उसे कई बार चोदा। समयानुसार एक लड़का पैदा भी हो गया। वो बहुत खुश थी, और जुगल भी खुश तो था पर बेबस था, उसे जानकारी थी कि यह मेरे बीज की फसल थी।
THE END
चूम लूं तेरे गालों को, दिल की यही ख्वाहिश है ....
ये मैं नहीं कहता, मेरे दिल की फरमाइश है !!!!

Love You All  Heart Heart
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#4
Nice story
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#5
[Image: 17935953_009_7eff.jpg]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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