04-01-2024, 12:45 PM
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
Fantasy बूढ़े लोगों को सेवा।
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04-01-2024, 12:45 PM
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:46 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:46 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:47 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:48 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:48 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:49 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:51 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:51 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:53 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:53 PM
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भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:54 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 12:55 PM
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04-01-2024, 12:55 PM
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04-01-2024, 01:04 PM
(This post was last modified: 06-01-2024, 10:05 AM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
04-01-2024, 01:24 PM
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UPDATE 5
देखते देखते एक हफ्ता हो गया। मेवा अब रात को नहीं आता। उसकी वजह से बढ़ती ठंडी का मौसम। बढ़ती ठंडी को वजह से सरकार ने 15 दिन की छुट्टी जाहिर कर दी। छुट्टी की खबर सुनकर अनामिका बहसूत खुश हुईं। 25 नवंबर 1976 की सुबह सुबह मेवा को दूध पिलाकर सुबह 9 बजे कोहरा के बीच वो किल्ले को तरफ चल दी। ठंडी बहुत ज्यादा थी। ठंडी में धूप का कोई अता पता नहीं। किल्ले का दरवाजा खुला और वो अंदर गई। काम से कम 6 मिनट लगता है किल्ले के अंदर जाने में इतना बड़ा जो है। वहां अनामिका ने देखा तो बाबा साधना में लीन थे। अनामिका की आहट सुनकर वह अपनी आंखे खोल दिए। हल्की सी मुस्कान के साथ बाबा ने अनामिका को आने का इशारा किया। अनामिका ने बाबा के पैर छुए। "जीती रहो प्रिये। चलो अंदर चली कक्ष में वहां दोनो बात करेंगे।" दोनो कक्ष में पहुंचे। बाबा ने अनामिका को प्रसाद दिया जो यज्ञ का था। अनामिका ने उस प्रशाद को अपने थैली में डाला। "बताओ अनामिका क्यों आई यहां?" "बाबा मैं थोड़े से संकट में हूं।" "जानता हूं कैसी संकट में हो। यही न कि एक हफ्ता हो गया लेकिन मणि से तुम्हारी कोई बातचीत नहीं हुई।" "हां बाबा। "देखो अनामिका ये साधना आसान नहीं। तुम मेवा की सेवा तो अच्छे से कर रही हो लेकिन तुम घर से जाती हो सुबह और वापिस आती हो शाम को। इस बीच पूरे दिन का क्या ? मणि को वक्त दो। उसके साथ वक्त बिताओ। थोड़ा ज्यादा जुड़ने की कोशिश करो। तो कुछ होगा।" "ऐसा क्या करूं बाबा ?" "उसके पास जाओ। बात करो। उसके बगीचे के प्रति काम में मदद करो। मदद जैसे कि वो काम करे तो उससे बात करो।" "कोशिश की लेकिन हुआ नही।" "मणि की एक समस्या है जो तुमने नही देखा। उसे दिन में कई बार पुरानी यादों का दौरा चढ़ता है जिसकी वजह से वो खुद को बेसहारा मान बैठा। तुम आज से हर वक्त उसके साथ रहो। रही बात मेवा कि तो उसके साथ हर रात बिताओ। देखो मणि को हरहाल में अपना बनाना होगा। तुम्हारी सेवा सिर्फ उसे खाना खिलाना या फिर इज्जत देना नही बल्कि अपना सब कुछ न्योछावर करना होगा। जरूरत पड़ने पर उसकी जरूरतों को पूरा करो। मुझे पता है अनामिका तुम कर लोगी।" "मुझे राह दिखाने के लिए धन्यवाद। बाबा आपको और कुछ चाहिए ?" "नही। लेकिन हां वक्त आने पर तुम्हारी जिंदगी में एक और आएगा जिसकी सेवा करनी होगी तुम्हे।" "कौन है वो ?" "वक्त है उसे आने में। लेकिन अनामिका इस सेवा साधना का क्या फल है ये तुम्हे पता नही। जब पता चलेगा तब तुम खुद पे गर्व करोगी।" "फिर अब हम कब मिलेंगे?" "जब तुम्हारी मर्जी। मैं अब यह ही रहूंगा। बस अब से मेवा मणि तुम्हारा सब कुछ है। न्योछावर करदो अपने आपको उनके लिए। खुद का सब कुछ लुटा दो। करदो हवाले अपने आपको। तुमसे जो वो मांगे वो दे दो।" अनामिका अब अपना लक्ष्य समझ गई। अब नई शुरुआत करेगी वो। अब मणि को खुद से जोड़ेगी। हर वक्त उसकी परछाई बनेगी। घर वापिस आई तो देखा मणि अकेले बगीचे में बैठा था। ठंड ज्यादा थी। अनामिका अंदर गई और शॉल लेकर मणि को ओढ़ाया। मणि को जैसे गर्माहट का अनुभव हुआ। वो अनामिका को पहली बार मुस्कान के साथ देखा। "क्या बात है ? तुम्हे हंसना भी आता है ?" अनामिका ने खुश होते हुए कहा। "मेमसाब ऐसा नहीं है लेकिन आपका आदर सत्कार देखकर थोड़ा दंग रह गया था। किसी ने ऐसी इज्जत तो नही दी।" "देखो मणि मुझे मेमसाब नही अनामिका के नाम से बुलाओ। तुम नौकर नही हो मेरे।" मणि के आंखो में आंसू आ गया और वो अनामिका को बोला "इतना इज्जत देने के बाद आपसे क्या कहूं। अब तो को भी हो मैं आपकी सेवा करूंगा। आपके अच्छे व्यवहार ने मुझे आपका दास बना दिया।" "नही मणि दास जैसे शब्द न कहो। क्या मैं तुम्हारे बराबर की नहीं हो सकती ? देखो मणि अगर साथ रहना है तो एक दूसरे को वक्त देना होगा। तुम बस मेरे साथ रहो और देखना बहुत सारे दुख तकलीफ से तुम्हे मै निकालूंगी।" "वैसे अनामिका तुम्हे पता है मुझे बगीचे हरे भरे अच्छे लगते है। तो क्या अब मैं काम करूं बगीचा में ?" "हां लेकिन मैं भी तुम्हारे साथ रहूंगी।" "अब तो हर वक्त साथ रहना है तो रहना है। चलो मेरे साथ। तुम सिर्फ बैठकर बाते करो। मैं काम कर लूंगा।" अनामिका की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। मणि को अब अपने पास पाकर वो खुश थीं। अब उसे सिर्फ मणि के साथ ही वक्त बिताने का मन था। रही बात मेवा की तो रात को उसके साथ वक्त बिताएगी। फिर अनामिका मणि के साथ बगीचे में गई। मणि इतनी ठंडी में पाइप से पानी निकालकर पोधो को सींच रहा था। अनामिका बड़े अदब से बैठे उसके काम को देख रही थी। मणि बोला "पता है अनामिका बहुत जल्द इसमें फूल उगेंगे और फिर पेड़ पौधे लगाऊंगा। गर्मी के मौसम तक बगीचा खूबसूरत लगने लगेगा।" "हां मणि तुम मेहना बहुत कर रहे हो इसके लिए।" "यह तो हम दोनो के लिए।" मणि ने कहा। "अरे वाह ये मेरे लिए भी है ?" "हां।" फिर दोनो ने साथ में अच्छा दिन बिताया। फिर शाम के 7 बज गाएं दोनो ने कहना खाया और अपने कमरे चले गए। कमरे में घुसते ही अनामिका ने लालटेन चालू किया। अपने ऊपर के सारे कपड़े उतारकर बिलकुल ऊपर से नग्न अवस्था में अनामिका रजाई के अंदर आ गई। रात के घने अंधेरे और हवा को आवाजों से खिड़की पूरी कोहरा से ढका हुआ था। अनामिका अंगड़ाई लिए लेती हुई थी। उसे किसी के कदमों को आहट सुनाई दी। मुस्कुराते हुए दरवाजे को तरफ देखी। अंधेरे में खड़ा मेवा पूछा "मेरी अनामिका अंदर आऊं?" "हां राजा आ जाओ।" मेवा अंदर आया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। रजाई को हल्के से ऊपर किया तो देखा अनामिका के ऊपरी शरीर में एक कपड़े भी न थे। खुश होते हुए मेवा पूछा "मेरा इंतजार कर रही थी ?" "हां लेकिन तुम हो की देर से आए। लगता है मुझसे मिलना अब अच्छा नही लगता ?" अनामिका ने बाहें फैलाकर मेवा को अपनी और बुलाया। मेवा अनामिका की बाहों में घुसा और हल्के से होंठ को चूमते हुए बोला "मेरे लिए और मेरे कहने पर तुम मेरा इंतजार कर रही थी। मेरी अनामिका।" फिर से मेवा ने अनामिका के होठ चूमा। "यह कैसी चुम्मी दी। बहुत बदमाश हो रहे हो तुम।" "मेरी अनामिका के साथ मैं जो करूं। मेरी हो तुम।" "हां मेवा मैं तुम्हारी हूं। जो करना चाहते हो करो।" "दूध पीने से पहले मुझे तुम्हारे साथ खेलना है।" "क्या खेलना है ?" अनामिका ने पूछा। "देखो अभी तो मुझे तुम्हारे पेट के साथ खेलना है। फिर तुम उल्टा लेटोगी। फिर में पीठ के साथ खेलूंगा। अपनी जुबान के साथ।" अनामिका मुस्कुरा दी। मेवा खून खेला स्तन के साथ फिर अनामिका को उल्टा लेटाया। उसकी नंगी पीठ को जुबान से चाटा। फिर पूरी तरह से ऊपर लेट गया। अनामिका के गांड़ में उसका लिंग चुभने लगा। मेवा पीछे उसके बाल को एक किनारे रखकर गले को चाटने लगा। कुछ देर तक अनामिका की आंखे बंद थी और वो उस मधुर एहसास में थे। फिर मेवा उसे सीधा लेटाया और दूध पीने लगा। अनामिका को नींद आई और उसे अपनी बाहों में सुलाया। मेवा कभी सोती हुई अनामिका के होठ चूमता तो फिर स्तन को चूमता। मेवा बेतहाशा अब चूमने लगा। कुछ देर बाद वो भी निढाल होकर सो गया। सुबह होते ही अनामिका का दूध फिर से पिया और दबे पांव घर से बाहर चला गया। अनामिका कुछ देर ऐसे ही सोती रही। कुछ देर बाद अनामिका तैयार हुई और नीचे उतरी। हॉल में देखा तो मणि नहीं था। बगीचे में भी नही था। सोचा शायद अपने कमरे में होगा इसीलिए अनामिका कमरे की तरफ गई। कमरे के बाहर उसे अजीब सा आवाज आया। आवाज जैसे किसी के हाफने की। अनामिका ने दरवाजे को हल्के से खोला तो देखा बिस्तर पर पड़ा मणि कांप रहा था। शायद उसे पुराने जख्म का दौरा पड़ा। अनामिका तुरंत उसके पास गई और शांत रहने को कहा। मणि फिर भी कांप रहा था। उसे सपने में अपने परिवार का वो बुरा वक्त दिख रहा था। डर और दुख का साया उसे घेर लिया। कांपते जिस्म से पसीना बह रहा था। अनामिका ने बिना सोचे मणि को खुद से सीने से लगाया और शांत रहने को कहा। अनामिका ने मणि को गले लगा लिया। तब जाकर मणि को जान में थोड़ी जान आई। उसे अभी भी होश नही था इसीलिए वो अनामिका को कसके गले लगा लिया। अनामिका का संतुलन बिगड़ा और वो बिस्तर पे बैठी थी अब गिरके लेट गई। मणि पूरी तरह से अनामिका के ऊपर लेट गया। अनामिका ने हल्के से मणि के चेहरे को सीने से लगाया और कहा "शांत हो जाओ मणि। मैं हूं ना। तुम्हे कुछ नही होगा।" मणि को आंखे खुली तो देखा कि वो अनामिका के ऊपर लेटा है और अनामिका उसे सहानुभूति दे रही थी। मणि की ऊंचाई वैसे अनामिका के कंधे से थोड़ा और नीचे था। मणि को अनामिका की सहानुभूति अच्छी लगी। कुछ देर दोनो ऐसे ही रहे। फिर मणि बिस्तर से उठा। मणि के साथ अनामिका भी उठी। अनामिका ने अपने साड़ी का पल्लू ठीक किया। दोनो कुछ बोले नहीं और उठकर बाहर चले गए। मणि बाहर बगीचे में चला गया। अनामिका सुबह के कोहरे में खो गई और वो फिर से किल्ले की तरफ रुख की। अनामिका के दिमाग में कई सवाल उठा। क्या उसने जो मणि के साथ किया क्या वो सही सेवा थी ? क्या मणि के साथ जो किया उससे मिली अपार आनंद के लिए ही वो तरस रही थी ? मणि को खुद से लगाकर वो क्यों इतना खुश महसूस कर रही थी ? इन सवालों को खुद के दिमाग में समेटकर वो आगे बढ़ी और कुछ देर बाद किल्ला में पहुंची। उस वक्त किल्ला के बगीचे में बाबा पक्षियों को दाना दे रहे थे। अनामिका को सामने देख मुस्कुराए और अंदर आने का इशारा किया। दोनो कमरे में पहुंचे। बाबा ने देखा की अनामिका इतनी ठंडी में sleveless साड़ी में थी और शरीर में न कोई गरम कपड़ा था। अनामिका अंदर आई। बाबा गरम शाल अनामिका को ओढ़ाते हुए ठीक उसके बगल बैठे। "क्या हुआ अनामिका ? यहां कैसे ?" अनामिका ने बाबा को आज सुबह मणि के साथ हुए घटना के बारे में बताया। घटना के बारे में सुनकर बाबा बोले "तो तुम्हे उसका साथ देना होगा। वो अकेला है। हो सकता है उसे किसी साथी की जरूरत हो। तुम खुबसूरत हो, जवान हो, तुम्हारे चुने से उसे अच्छा लगा। ऐसा एहसास वो इस जन्म में नहीं कर पाएगा। उसका कुबड़ा और काल शरीर किसी को पसंद नही। कोई उसे अपने आस पास भी नहीं आने देता। लेकिन तुम उसे अपने आप से जोड़कर उसके अंदर की भावना को जगाया। मेरी मानो तो अगर वो तुमसे कुछ करने की आशा करे तो पूरा करो। उसे किसी औरत का साथ अब चाहिए। अब उसके साथ तुम्हे शारीरिक संबंध बना पड़े तो बना लो। इसी में तुम्हारी सेवा है। लेकिन एक बात बता दू। अगर उसकी सेवा में तुम सफल हुई तो तुम्हारे सास ससुर को जिंदगी के कष्ट दूर हो जाएंगे।" "ठीक है बाबा मैं तैयार हूं। मणि के लिए मुझे अगर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना पड़े तो बनाऊंगी। बस मुझे आशीर्वाद दीजिए की मणि की सेवा में मैं सफल हो जाऊं।" "अनामिका मैं सदेव तुम्हारे साथ हूं और रहूंगा। जब भी कोई धर्म संकट हो तो मेरे पास चली आना। अब मैं तुम्हे छोड़कर कही नही जाऊंगा।" अनामिका मुस्कुराते हुए पैर छूकर बोली "आपसे यही उम्मीद थी। बस हर कदम मेरा साथ दे।" "तो वादा रहा मेरा। आज से ये किल्ला मेरा घर। अब जब भी तुम आना चाहो आ जाना। तुम्हारा और मेरा रिश्ता सदेव बना रहेगा।" अनामिका पूरी तसल्ली से वहा से घर की तरफ चली गई। वापिस आई तो देखा मणि काम कर रहा था। अनामिका उसे परेशान नहीं करने देना चाहती थी। वो चली गई अपने कमरे। खुद को शीशे के सामने निहारने लगी। खुद की सुंदरता को देख रही थी। उसने अपने कपड़े बदले। लाल रंग का sleevless ब्लाउस और नीले रंग की साड़ी। उन नए साड़ी के साथ अनामिका बाहर घर के पीछे एक मेज़ पर बैठी। अनामिका कुछ देर तक बेटी रही। लेकिन फिर उसे अपने दोनो मुलायम कंधो पे दो हाथ का स्पर्श महसूस हुआ। अनामिका समझ गई को यह हाथ मणि का है। मणि ने अगले पल अनामिका के दोनो स्तन पे हाथ रखा और मसलने लगा। अनामिका जैसे मदहोश सा महसूस करने लागी क्योंकि इतने सालो से किसी ने इस तरह उसे नहीं छुआ। मणि अनामिका के कान के पास बोला "मुझे तुम्हारी जरूरत है।" "मैं तुम्हारे लिए ही हूं।" अनामिका ने आंखे बंद करके कहा। मणि अनामिका के साड़ी का पल्लू गिरा दिया और कहा "चलो अनामिका मेरी जरूरत को पूरा करो।" अनामिका मणि को लेकर मणि के कमरे गई। मणि जैसे बहुत खुश था। पीछे से अनामिका को बाहों में भर लिया। उसकी ऊंचाई अनामिका से बहुत कम थी। वो अनामिका के कंधे से थोड़ा नीचा था। कुबड़ा शरीर होने की वजह से। "पता है अनामिका यहां क्यों लाया हूं तुम्हे ?" "अपने जरूरत को पूरा करने। तो मणि कर लो अपनी जरूरत पूरी। आज के लिए ही नहीं बल्कि कई दिनों के लिए।" "अनामिका सोच लो। एक कदरूपे कुबड़ा बुड्ढा हूं। क्या सच में तुम मेरी ये इच्छा पूरी करना चाहती हो ?" "हां मणि।" "मेवा की तरह मेरा भी ऐसा खयाल रखोगी ?" मणि ने पूछा। "तुम्हे मेवा के बारे में कैसे पता ?" "बाबा ने कहा था। मेवा भी मुझे जानता है।" "देखो मणि तुम जो चाहो वो करो। तुम्हे प्यार की जरूरत है। उसे मैं पूरा करूंगी।" "सच ?" "हां मणि।" मणि अनामिका के पल्लू को उतार दिया और बिस्तर पे धक्का देकर लिटा दिया। अनामिका की आंखों में आंखे डाल मणि ने अपना धोती और कुर्ता उतार दिया। उसका कुबड़ा देह देखकर अनामिका को उसपे तरस आया आखिर ईश्वर कैसे उसके साथ ऐसी नाइंसाफी कर सकता है। मणि को अब इस दर्द से निकलेगी वो बस यही सोच रही थी अनामिका। अनामिका को तरफ आगे बढ़ा मणि। उसके नाभि पे अपना सख्त होठ डाला और चूमने लगा। अनामिका की आंखे बंद हुई और बिजली का एक झटका उसके बदन में दौड़ गया। अब अनामिका के कपड़े उतारने लगा मणि। अनामिका को पूरी तरह से नग्न अवस्था में रख दिया मणि ने। मणि ने अनामिका के होठ को चूसना शुरू किया। अनामिका को हल्की सी बदबू महसूस हो रही थी। अनामिका ने उसे नजरंदाज कर मणि का चुम्बन में साथ दिया। मणि अनामिका के स्तन को हाथो में दबाने लगा। "अनामिका ये प्यार सिर्फ एक दिन से नहीं पूरा होगा।" "कौन कहता है कि तुम एक बार करो। जब तक तुम चाहो मेरे जिस्म से प्यार कर सकते हो। मेरा काम है तुम्हारी इच्छा पूरी करना। तुम्हे हर रोज प्यार दे सकती हूं। एक जीवनसाथी की तरह। इस दुनिया से हम अलग है और अब तुम्हे संतुष्ट करना मेरा काम है। "में तुमसे प्यार करता हूं अनामिका और करता रहूंगा।" कहते ही अपने मुंह को योनि में डाल दिया। मणि ने पूरी जुबान अनामिका के साफ सुथरे गोरे योनि में डाला। जुबान योनि में पड़ते ही अनामिका में जैसे जोर का बिजली का झटका लगा। मणि ने उसके दोनो पैर को फैलाया और अपने कंधो पे दोनो पैर रखकर अच्छे से योनि का स्वाद ले रहा था। इस स्वाद में मणि की गति बढ़ने लगी। दोनो हाथो से पैर को फैलाकर चाट रहा था। फिर योनि पर थूक दिया। थूक को योनि के बाहर फैलाकर चाटने लगा। फिर दोनो हाथो से स्तन को दबा रहा था। अनामिका उत्तेजना में मणि के सिर को योनि में दबा दिया मणि का कुबड़ा शरीर देखकर अनामिका को कुछ महसूस नहीं हो रहा था। अनामिका उत्तेजना की आग में जलने लगी। आखिर उसके योनि से काम रस टपका। मणि रुका नहीं और अपना लिंग उसकी योनोन्मे डालकर हल्का सा धक्का मारने लगा। हल्के दर्द से अनामिका की चीख निकली। मणि ने एक झटके में फिर जोर से लिंग को पूरी तरह से अंदर डाल दिया। अनामिका को आनंद का अनुभव होने लगा। धक्का मारते हुए मणि अनामिका की आंखों में आंखे डालकर देख रहा था। "आआआआह्हह अनामिका आज मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिली। तुम्हे पाकर आज मुझे कितना अच्छा लग रहा है यह तुम जानती नही। आखिर मुझे वो खूबसूरत औरत मिल ही गई जिसपे में अपना प्यार न्योछावर कर सकूं।" "मणि तुम जब चाहे तब जिस्मानी सुख ले सकते हो। क्या अब तुम मानते हो कि मैंने तुम्हारी सेवा की ? क्या तुम मानते हो कि तुम किसी के इज्जत के काबिल हो।l ?" "हां अनामिका। मुझे आज जिंदगी का सही मतलब मिला। मे तुमसे बहुत प्यार करता हूं अनामिका।" बहुत देर तक मणि धक्का मारता रहा और आखिर में अपना लिंग निकलकर अनामिका के चेहरे पर जड़ गया। अनामिका ने अपना चेहरा साफ किया। दोनो एक प्रेमी जोड़े की तरह एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे। "क्या तुम्हे ऐसा नहीं लग रहा की विधि के विधाता ने हमे एक दूसरे की कमी पूरी करने के लिए बनाया है ?" "हां मणि आज तुम्हारे साथ संभोग करके ऐसा लग रहा है कि हमारी जुदाई एक सच्चे मोहोब्बत का अंत होगा। इसीलिए अब तुम्हे खुद से जुदा नहीं होने दूंगी।" "तो फिर सब लो अनामिका मेरा फैसला। अब चाहे कुछ भी हो हमे कोई अलग नहीं कर सकता। क्या तुम अपने घर परिवार को मेरे लिए छोड़ सकती हो ?" "नही। लेकिन इतना तय है की तुम्हे खुद से अलग नहीं होने दूंगी। अब मुझपर तुम्हारा हक है। ये भी सच है कि मेरी सांसे तुम्हारे लिए है। अब जब भी तुम चाहो मुझे पा सकते हो। मणि ये अनामिका तुम्हारी है और अब प्यार का जाम तुम्हे पिलाती रहूंगी।" दोनो एक दूसरे की बाहों में नंगे सो गए। रात हुई और मेवा दबे पांव अनामिका के कमरे में आया। कमरे में अनामिका नही थी। फिर मेवा दूसरे कमरे में देखा उसमे भी अनामिका नही थी। आखिर में वो नीचे के कमरे यानी मेवा के कमरे में गया। वहा जब अनामिका और मेवा को नग्न अवस्था बिस्तर पर लेटे हुए देखा तो दंग रह गया। अनामिका मणि को बाहों में लिए गहरी नींद में सो रही थी। मेवा को पता चल गया की मणि और अनामिका ने एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बना लिया। ये सब देखकर मेवा के चेहरे पर मुस्कान आई। वो बहुत खुश हुआ मणि के लिए। बिना दोनो के पता लगे वो अपने घर की तरफ चला गया। मणि को खुशी का ठिकाना न था। अपने दोस्त मणि और अनामिका को सेवा को सफल होते देख वो तुरंत किल्ले की तरफ चला गया। रात के भयानक अंधेरे में आगे बढ़ता गया। किल्ले के दरवाजे के बाहर आग से जली मशाल लिया और अंदर की तरफ गया। अंदर बाबा यज्ञ कर रहा था। मशाल की आग को देख वो खड़ा हुआ और मेवा की तरफ देखकर मुस्कुराया। "प्रणाम सरकार।" "बोलो मेवा क्या खबर लाए हो ?" "अनामिका अपने सेवा के दूसरे चरण पर सफल हुई। मणि और उसे एक दूसरे के साथ हुए प्रेम प्रकरण को देखकर आ रहा हूं।" बाबा खुश होकर बोला "वाह अब अनामिका ऐसी दुनिया की तरफ जा रही हैं जहां लोगो का दर्द और तकलीफ उसी के जरिए कम होगा। अनामिका को नहीं पता कि उसके इस पवित्र काम से उसके घरवालों को कितना लाभ होगा। जानते हो मेवा कल की सुबह जब उसके सास ससुर उठेंगे तब उनकी चिंता और दर्द हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। उनके घर धन की ऐसी वर्षा होगी जिससे उनका बुढ़ापा और परिवार सुखी रहेगा।" "सच में बाबा। आप अनामिका के जरिए बहुत लोगो को जिंदगी को सुखी कर रहे है।" "लेकिन इस सुख की कुछ कीमत है।" "क्या ?" "कल सुबह अनामिका के घरवाले और ससुरलवाले धन की प्राप्ति तो करेंगे लेकिन बदले में एक चिट्ठी उन्हें मिलेगी जिसमे ये लिखा होगा की अनामिका कभी वापिस नही आयेगी। वो एक सेवा तप के लिए हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा ले चुकी है। अब अनामिका कभी भी वापिस अपने घर नही जा पाएगी।" मेवा रोने लगा और बोला "अनामिका की जय हो। उसने सेवा का मार्ग चुना। अपने परिवार को तक छोड़कर आ गई।" बाबा की आंखों में आंसू आ गया और वो बोला "लेकिन अब ये हमारी जिम्मेदारी है की अनामिका को हम संभाले। उसे किसी प्रेम की कमी न हो। अनामिका हम सब की जिम्मेदारी है।" "अब आगे किसकी सेवा करनी होगी उसे ?" "चलो मेरे साथ।" बाबा मेवा को लेकर एक तायखाने में गया। वहां तायखने के अंधेरे में एक बुड्ढा इंसान था। वो पूरी तरह से पागल था और उसके चेहरा दाढ़ी से भरा हुआ था। उसकी उमर 95 साल की थी। बाबा ने कड़ी तपस्या से उसे जिंदा रखा था। उस बुड्ढे का नाम हल्दी था। हल्दी को देख मेवा उसके पास गया। हल्दी बहुत ही पागल था। मेवा को देख डर गया। मेवा ने उसे संभाला और शांत किया। हल्दी बाबा को देख दौड़ा और पैर छूकर बैठ गया। मेवा पूछा बाबा से "क्या अनामिका ये कर पाएगी ?" बाबा बोला "अब ये अनामिका की अगली सेवा है।"
04-01-2024, 06:30 PM
04-01-2024, 06:31 PM
05-01-2024, 12:44 AM
Where is update?
06-01-2024, 09:34 AM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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