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Fantasy बूढ़े लोगों को सेवा।
#41
next update
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#42
Eagerly waiting for continuation....
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#43
Waiting for the update
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#44
Update please
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#45
Waiting.....
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#46
Update
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#47
Intezaar....
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#48
Update please
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#49
(16-12-2023, 12:55 AM)dagadu Wrote: Update please

भाई दिल थामकर बैठ। काल सुबह 11 बजे आ जाएगा।
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#50
Waiting.....
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#51
Waiting
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#52
(16-12-2023, 12:59 AM)Basic Wrote: भाई दिल थामकर बैठ। काल सुबह 11 बजे आ जाएगा।

aaj ke 11 baje gye hai
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#53
Bhai please update le aao
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#54
(29-11-2023, 05:15 PM)Basic Wrote: UPDATE 5

देखते देखते एक हफ्ता हो गया। मेवा अब रात को नहीं आता। उसकी वजह से बढ़ती ठंडी का मौसम। बढ़ती ठंडी को वजह से सरकार ने 15 दिन की छुट्टी जाहिर कर दी। छुट्टी की खबर सुनकर अनामिका बहसूत खुश हुईं। 25 नवंबर 1976 की सुबह सुबह मेवा को दूध पिलाकर सुबह 9 बजे कोहरा के बीच वो किल्ले को तरफ चल दी। ठंडी बहुत ज्यादा थी। ठंडी में धूप का कोई अता पता नहीं। किल्ले का दरवाजा खुला और वो अंदर गई। काम से कम 6 मिनट लगता है किल्ले के अंदर जाने में इतना बड़ा जो है। वहां अनामिका ने देखा तो बाबा साधना में लीन थे। अनामिका की आहट सुनकर वह अपनी आंखे खोल दिए। हल्की सी मुस्कान के साथ बाबा ने अनामिका को आने का इशारा किया। अनामिका ने बाबा के पैर छुए।

"जीती रहो प्रिये। चलो अंदर चली कक्ष में वहां दोनो बात करेंगे।"

दोनो कक्ष में पहुंचे। बाबा ने अनामिका को प्रसाद दिया जो यज्ञ का था। अनामिका ने उस प्रशाद को अपने थैली में डाला।

"बताओ अनामिका क्यों आई यहां?"

"बाबा मैं थोड़े से संकट में हूं।"

"जानता हूं कैसी संकट में हो। यही न कि एक हफ्ता हो गया लेकिन मणि से तुम्हारी कोई बातचीत नहीं हुई।"

"हां बाबा।

"देखो अनामिका ये साधना आसान नहीं। तुम मेवा की सेवा तो अच्छे से कर रही हो लेकिन तुम घर से जाती हो सुबह और वापिस आती हो शाम को। इस बीच पूरे दिन का क्या ? मणि को वक्त दो। उसके साथ वक्त बिताओ। थोड़ा ज्यादा जुड़ने की कोशिश करो। तो कुछ होगा।"

"ऐसा क्या करूं बाबा ?"

"उसके पास जाओ। बात करो। उसके बगीचे के प्रति काम में मदद करो। मदद जैसे कि वो काम करे तो उससे बात करो।"

"कोशिश की लेकिन हुआ नही।"

"मणि की एक समस्या है जो तुमने नही देखा। उसे दिन में कई बार पुरानी यादों का दौरा चढ़ता है जिसकी वजह से वो खुद को बेसहारा मान बैठा। तुम आज से हर वक्त उसके साथ रहो। रही बात मेवा कि तो उसके साथ हर रात बिताओ। देखो मणि को हरहाल में अपना बनाना होगा। तुम्हारी सेवा सिर्फ उसे खाना खिलाना या फिर इज्जत देना नही बल्कि अपना सब कुछ न्योछावर करना होगा। जरूरत पड़ने पर उसकी जरूरतों को पूरा करो। मुझे पता है अनामिका तुम कर लोगी।"

"मुझे राह दिखाने के लिए धन्यवाद। बाबा आपको और कुछ चाहिए ?"

"नही। लेकिन हां वक्त आने पर तुम्हारी जिंदगी में एक और आएगा जिसकी सेवा करनी होगी तुम्हे।"

"कौन है वो ?"

"वक्त है उसे आने में। लेकिन अनामिका इस सेवा साधना का क्या फल है ये तुम्हे पता नही। जब पता चलेगा तब तुम खुद पे गर्व करोगी।"

"फिर अब हम कब मिलेंगे?"

"जब तुम्हारी मर्जी। मैं अब यह ही रहूंगा। बस अब से मेवा मणि तुम्हारा सब कुछ है। न्योछावर करदो अपने आपको उनके लिए। खुद का सब कुछ लुटा दो। करदो हवाले अपने आपको। तुमसे जो वो मांगे वो दे दो।"

अनामिका अब अपना लक्ष्य समझ गई। अब नई शुरुआत करेगी वो। अब मणि को खुद से जोड़ेगी। हर वक्त उसकी परछाई बनेगी। घर वापिस आई तो देखा मणि अकेले बगीचे में बैठा था। ठंड ज्यादा थी। अनामिका अंदर गई और शॉल लेकर मणि को ओढ़ाया। मणि को जैसे गर्माहट का अनुभव हुआ। वो अनामिका को पहली बार मुस्कान के साथ देखा।

"क्या बात है ? तुम्हे हंसना भी आता है ?" अनामिका ने खुश होते हुए कहा।
"मेमसाब ऐसा नहीं है लेकिन आपका आदर सत्कार देखकर थोड़ा दंग रह गया था। किसी ने ऐसी इज्जत तो नही दी।"

"देखो मणि मुझे मेमसाब नही अनामिका के नाम से बुलाओ। तुम नौकर नही हो मेरे।"

मणि के आंखो में आंसू आ गया और वो अनामिका को बोला "इतना इज्जत देने के बाद आपसे क्या कहूं। अब तो को भी हो मैं आपकी सेवा करूंगा। आपके अच्छे व्यवहार ने मुझे आपका दास बना दिया।"

"नही मणि दास जैसे शब्द न कहो। क्या मैं तुम्हारे बराबर की नहीं हो सकती ? देखो मणि अगर साथ रहना है तो एक दूसरे को वक्त देना होगा। तुम बस मेरे साथ रहो और देखना बहुत सारे दुख तकलीफ से तुम्हे मै निकालूंगी।"

"वैसे अनामिका तुम्हे पता है मुझे बगीचे हरे भरे अच्छे लगते है। तो क्या अब मैं काम करूं बगीचा में ?"

"हां लेकिन मैं भी तुम्हारे साथ रहूंगी।"

"अब तो हर वक्त साथ रहना है तो रहना है। चलो मेरे साथ। तुम सिर्फ बैठकर बाते करो। मैं काम कर लूंगा।"

अनामिका की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। मणि को अब अपने पास पाकर वो खुश थीं। अब उसे सिर्फ मणि के साथ ही वक्त बिताने का मन था। रही बात मेवा की तो रात को उसके साथ वक्त बिताएगी। फिर अनामिका मणि के साथ बगीचे में गई। मणि इतनी ठंडी में पाइप से पानी निकालकर पोधो को सींच रहा था। अनामिका बड़े अदब से बैठे उसके काम को देख रही थी।

मणि बोला "पता है अनामिका बहुत जल्द इसमें फूल उगेंगे और फिर पेड़ पौधे लगाऊंगा। गर्मी के मौसम तक बगीचा खूबसूरत लगने लगेगा।"

"हां मणि तुम मेहना बहुत कर रहे हो इसके लिए।"

"यह तो हम दोनो के लिए।" मणि ने कहा।

"अरे वाह ये मेरे लिए भी है ?"

"हां।"

फिर दोनो ने साथ में अच्छा दिन बिताया। फिर शाम के 7 बज गाएं दोनो ने कहना खाया और अपने कमरे चले गए। कमरे में घुसते ही अनामिका ने लालटेन चालू किया। अपने ऊपर के सारे कपड़े उतारकर बिलकुल ऊपर से नग्न अवस्था में अनामिका रजाई के अंदर आ गई। रात के घने अंधेरे और हवा को आवाजों से खिड़की पूरी कोहरा से ढका हुआ था। अनामिका अंगड़ाई लिए लेती हुई थी। उसे किसी के कदमों को आहट सुनाई दी। मुस्कुराते हुए दरवाजे को तरफ देखी। अंधेरे में खड़ा मेवा पूछा "मेरी अनामिका अंदर आऊं?"

"हां राजा आ जाओ।"

मेवा अंदर आया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। रजाई को हल्के से ऊपर किया तो देखा अनामिका के ऊपरी शरीर में एक कपड़े भी न थे। खुश होते हुए मेवा पूछा "मेरा इंतजार कर रही थी ?"

"हां लेकिन तुम हो की देर से आए। लगता है मुझसे मिलना अब अच्छा नही लगता ?" अनामिका ने बाहें फैलाकर मेवा को अपनी और बुलाया।

मेवा अनामिका की बाहों में घुसा और हल्के से होंठ को चूमते हुए बोला "मेरे लिए और मेरे कहने पर तुम मेरा इंतजार कर रही थी। मेरी अनामिका।" फिर से मेवा ने अनामिका के होठ चूमा।

"यह कैसी चुम्मी दी। बहुत बदमाश हो रहे हो तुम।"

"मेरी अनामिका के साथ मैं जो करूं। मेरी हो तुम।"

"हां मेवा मैं तुम्हारी हूं। जो करना चाहते हो करो।"

"दूध पीने से पहले मुझे तुम्हारे साथ खेलना है।"

"क्या खेलना है ?" अनामिका ने पूछा।

"देखो अभी तो मुझे तुम्हारे पेट के साथ खेलना है। फिर तुम उल्टा लेटोगी। फिर में पीठ के साथ खेलूंगा। अपनी जुबान के साथ।"

अनामिका मुस्कुरा दी। मेवा खून खेला स्तन के साथ फिर अनामिका को उल्टा लेटाया। उसकी नंगी पीठ को जुबान से चाटा। फिर पूरी तरह से ऊपर लेट गया। अनामिका के गांड़ में उसका लिंग चुभने लगा। मेवा पीछे उसके बाल को एक किनारे रखकर गले को चाटने लगा। कुछ देर तक अनामिका की आंखे बंद थी और वो उस मधुर एहसास में थे। फिर मेवा उसे सीधा लेटाया और दूध पीने लगा। अनामिका को नींद आई और उसे अपनी बाहों में सुलाया। मेवा कभी सोती हुई अनामिका के होठ चूमता तो फिर स्तन को चूमता। मेवा बेतहाशा अब चूमने लगा। कुछ देर बाद वो भी निढाल होकर सो गया। सुबह होते ही अनामिका का दूध फिर से पिया और दबे पांव घर से बाहर चला गया। अनामिका कुछ देर ऐसे ही सोती रही।

कुछ देर बाद अनामिका तैयार हुई और नीचे उतरी। हॉल में देखा तो मणि नहीं था। बगीचे में भी नही था। सोचा शायद अपने कमरे में होगा इसीलिए अनामिका कमरे की तरफ गई। कमरे के बाहर उसे अजीब सा आवाज आया। आवाज जैसे किसी के हाफने की। अनामिका ने दरवाजे को हल्के से खोला तो देखा बिस्तर पर पड़ा मणि कांप रहा था। शायद उसे पुराने जख्म का दौरा पड़ा। अनामिका तुरंत उसके पास गई और शांत रहने को कहा। मणि फिर भी कांप रहा था। उसे सपने में अपने परिवार का वो बुरा वक्त दिख रहा था। डर और दुख का साया उसे घेर लिया। कांपते जिस्म से पसीना बह रहा था। अनामिका ने बिना सोचे मणि को खुद से सीने से लगाया और शांत रहने को कहा। अनामिका ने मणि को गले लगा लिया। तब जाकर मणि को जान में थोड़ी जान आई। उसे अभी भी होश नही था इसीलिए वो अनामिका को कसके गले लगा लिया। अनामिका का संतुलन बिगड़ा और वो बिस्तर पे बैठी थी अब गिरके लेट गई। मणि पूरी तरह से अनामिका के ऊपर लेट गया। अनामिका ने हल्के से मणि के चेहरे को सीने से लगाया और कहा "शांत हो जाओ मणि। मैं हूं ना। तुम्हे कुछ नही होगा।"

मणि को आंखे खुली तो देखा कि वो अनामिका के ऊपर लेटा है और अनामिका उसे सहानुभूति दे रही थी। मणि की ऊंचाई वैसे अनामिका के कंधे से थोड़ा और नीचे था। मणि को अनामिका की सहानुभूति अच्छी लगी। कुछ देर दोनो ऐसे ही रहे। फिर मणि बिस्तर से उठा। मणि के साथ अनामिका भी उठी। अनामिका ने अपने साड़ी का पल्लू ठीक किया। दोनो कुछ बोले नहीं और उठकर बाहर चले गए। मणि बाहर बगीचे में चला गया। अनामिका सुबह के कोहरे में खो गई और वो फिर से किल्ले की तरफ रुख की। अनामिका के दिमाग में कई सवाल उठा। क्या उसने जो मणि के साथ किया क्या वो सही सेवा थी ? क्या मणि के साथ जो किया उससे मिली अपार आनंद के लिए ही वो तरस रही थी ? मणि को खुद से लगाकर वो क्यों इतना खुश महसूस कर रही थी ?

इन सवालों को खुद के दिमाग में समेटकर वो आगे बढ़ी और कुछ देर बाद किल्ला में पहुंची। उस वक्त किल्ला के बगीचे में बाबा पक्षियों को दाना दे रहे थे। अनामिका को सामने देख मुस्कुराए और अंदर आने का इशारा किया। दोनो कमरे में पहुंचे। बाबा ने देखा की अनामिका इतनी ठंडी में sleveless साड़ी में थी और शरीर में न कोई गरम कपड़ा था। अनामिका अंदर आई। बाबा गरम शाल अनामिका को ओढ़ाते हुए ठीक उसके बगल बैठे।

"क्या हुआ अनामिका ? यहां कैसे ?"

अनामिका ने बाबा को आज सुबह मणि के साथ हुए घटना के बारे में बताया। घटना के बारे में सुनकर बाबा बोले "तो तुम्हे उसका साथ देना होगा। वो अकेला है। हो सकता है उसे किसी साथी की जरूरत हो। तुम खुबसूरत हो, जवान हो, तुम्हारे चुने से उसे अच्छा लगा। ऐसा एहसास वो इस जन्म में नहीं कर पाएगा। उसका कुबड़ा और काल शरीर किसी को पसंद नही। कोई उसे अपने आस पास भी नहीं आने देता। लेकिन तुम उसे अपने आप से जोड़कर उसके अंदर की भावना को जगाया। मेरी मानो तो अगर वो तुमसे कुछ करने की आशा करे तो पूरा करो। उसे किसी औरत का साथ अब चाहिए। अब उसके साथ तुम्हे शारीरिक संबंध बना पड़े तो बना लो। इसी में तुम्हारी सेवा है। लेकिन एक बात बता दू। अगर उसकी सेवा में तुम सफल हुई तो तुम्हारे सास ससुर को जिंदगी के कष्ट दूर हो जाएंगे।"

"ठीक है बाबा मैं तैयार हूं। मणि के लिए मुझे अगर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना पड़े तो बनाऊंगी। बस मुझे आशीर्वाद दीजिए की मणि की सेवा में मैं सफल हो जाऊं।"

"अनामिका मैं सदेव तुम्हारे साथ हूं और रहूंगा। जब भी कोई धर्म संकट हो तो मेरे पास चली आना। अब मैं तुम्हे छोड़कर कही नही जाऊंगा।"

अनामिका मुस्कुराते हुए पैर छूकर बोली "आपसे यही उम्मीद थी। बस हर कदम मेरा साथ दे।"

"तो वादा रहा मेरा। आज से ये किल्ला मेरा घर। अब जब भी तुम आना चाहो आ जाना। तुम्हारा और मेरा रिश्ता सदेव बना रहेगा।"

अनामिका पूरी तसल्ली से वहा से घर की तरफ चली गई। वापिस आई तो देखा मणि काम कर रहा था। अनामिका उसे परेशान नहीं करने देना चाहती थी। वो चली गई अपने कमरे। खुद को शीशे के सामने निहारने लगी। खुद की सुंदरता को देख रही थी। उसने अपने कपड़े बदले। लाल रंग का sleevless ब्लाउस और नीले रंग की साड़ी। उन नए साड़ी के साथ अनामिका बाहर घर के पीछे एक मेज़ पर बैठी। अनामिका कुछ देर तक बेटी रही। लेकिन फिर उसे अपने दोनो मुलायम कंधो पे दो हाथ का स्पर्श महसूस हुआ।

अनामिका समझ गई को यह हाथ मणि का है। मणि ने अगले पल अनामिका के दोनो स्तन पे हाथ रखा और मसलने लगा। अनामिका जैसे मदहोश सा महसूस करने लागी क्योंकि इतने सालो से किसी ने इस तरह उसे नहीं छुआ।

मणि अनामिका के कान के पास बोला "मुझे तुम्हारी जरूरत है।"

"मैं तुम्हारे लिए ही हूं।" अनामिका ने आंखे बंद करके कहा।

मणि अनामिका के साड़ी का पल्लू गिरा दिया और कहा "चलो अनामिका मेरी जरूरत को पूरा करो।"

अनामिका मणि को लेकर मणि के कमरे गई। मणि जैसे बहुत खुश था। पीछे से अनामिका को बाहों में भर लिया। उसकी ऊंचाई अनामिका से बहुत कम थी। वो अनामिका के कंधे से थोड़ा नीचा था। कुबड़ा शरीर होने की वजह से।

"पता है अनामिका यहां क्यों लाया हूं तुम्हे ?"

"अपने जरूरत को पूरा करने। तो मणि कर लो अपनी जरूरत पूरी। आज के लिए ही नहीं बल्कि कई दिनों के लिए।"

"अनामिका सोच लो। एक कदरूपे कुबड़ा बुड्ढा हूं। क्या सच में तुम मेरी ये इच्छा पूरी करना चाहती हो ?"

"हां मणि।"

"मेवा की तरह मेरा भी ऐसा खयाल रखोगी ?" मणि ने पूछा।

"तुम्हे मेवा के बारे में कैसे पता ?"

"बाबा ने कहा था। मेवा भी मुझे जानता है।"

"देखो मणि तुम जो चाहो वो करो। तुम्हे प्यार की जरूरत है। उसे मैं पूरा करूंगी।"

"सच ?"

"हां मणि।"

मणि अनामिका के पल्लू को उतार दिया और बिस्तर पे धक्का देकर लिटा दिया। अनामिका की आंखों में आंखे डाल मणि ने अपना धोती और कुर्ता उतार दिया। उसका कुबड़ा देह देखकर अनामिका को उसपे तरस आया आखिर ईश्वर कैसे उसके साथ ऐसी नाइंसाफी कर सकता है। मणि को अब इस दर्द से निकलेगी वो बस यही सोच रही थी अनामिका।

अनामिका को तरफ आगे बढ़ा मणि। उसके नाभि पे अपना सख्त होठ डाला और चूमने लगा। अनामिका की आंखे बंद हुई और बिजली का एक झटका उसके बदन में दौड़ गया। अब अनामिका के कपड़े उतारने लगा मणि। अनामिका को पूरी तरह से नग्न अवस्था में रख दिया मणि ने। मणि ने अनामिका के होठ को चूसना शुरू किया। अनामिका को हल्की सी बदबू महसूस हो रही थी। अनामिका ने उसे नजरंदाज कर मणि का चुम्बन में साथ दिया। मणि अनामिका के स्तन को हाथो में दबाने लगा।

"अनामिका ये प्यार सिर्फ एक दिन से नहीं पूरा होगा।"

"कौन कहता है कि तुम एक बार करो। जब तक तुम चाहो मेरे जिस्म से प्यार कर सकते हो। मेरा काम है तुम्हारी इच्छा पूरी करना। तुम्हे हर रोज प्यार दे सकती हूं। एक जीवनसाथी की तरह। इस दुनिया से हम अलग है और अब तुम्हे संतुष्ट करना मेरा काम है।

"में तुमसे प्यार करता हूं अनामिका और करता रहूंगा।" कहते ही अपने मुंह को योनि में डाल दिया। मणि ने पूरी जुबान अनामिका के साफ सुथरे गोरे योनि में डाला। जुबान योनि में पड़ते ही अनामिका में जैसे जोर का बिजली का झटका लगा। मणि ने उसके दोनो पैर को फैलाया और अपने कंधो पे दोनो पैर रखकर अच्छे से योनि का स्वाद ले रहा था। इस स्वाद में मणि की गति बढ़ने लगी। दोनो हाथो से पैर को फैलाकर चाट रहा था। फिर योनि पर थूक दिया। थूक को योनि के बाहर फैलाकर चाटने लगा। फिर दोनो हाथो से स्तन को दबा रहा था। अनामिका उत्तेजना में मणि के सिर को योनि में दबा दिया।

मणि का कुबड़ा शरीर देखकर अनामिका को कुछ महसूस नहीं हो रहा था। अनामिका उत्तेजना की आग में जलने लगी। आखिर उसके योनि से काम रस टपका। मणि रुका नहीं और अपना लिंग उसकी योनोन्मे डालकर हल्का सा धक्का मारने लगा। हल्के दर्द से अनामिका की चीख निकली। मणि ने एक झटके में फिर जोर से लिंग को पूरी तरह से अंदर डाल दिया। अनामिका को आनंद का अनुभव होने लगा। धक्का मारते हुए मणि अनामिका की आंखों में आंखे डालकर देख रहा था।

"आआआआह्हह अनामिका आज मुझे जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिली। तुम्हे पाकर आज मुझे कितना अच्छा लग रहा है यह तुम जानती नही। आखिर मुझे वो खूबसूरत औरत मिल ही गई जिसपे में अपना प्यार न्योछावर कर सकूं।"

"मणि तुम जब चाहे तब जिस्मानी सुख ले सकते हो। क्या अब तुम मानते हो कि मैंने तुम्हारी सेवा की ? क्या तुम मानते हो कि तुम किसी के इज्जत के काबिल हो।l ?"

"हां अनामिका। मुझे आज जिंदगी का सही मतलब मिला। मे तुमसे बहुत प्यार करता हूं अनामिका।"

बहुत देर तक मणि धक्का मारता रहा और आखिर में अपना लिंग निकलकर अनामिका के चेहरे पर जड़ गया। अनामिका ने अपना चेहरा साफ किया। दोनो एक प्रेमी जोड़े की तरह एक दूसरे की आंखों में देख रहे थे।

"क्या तुम्हे ऐसा नहीं लग रहा की विधि के विधाता ने हमे एक दूसरे की कमी पूरी करने के लिए बनाया है ?"

"हां मणि आज तुम्हारे साथ संभोग करके ऐसा लग रहा है कि हमारी जुदाई एक सच्चे मोहोब्बत का अंत होगा। इसीलिए अब तुम्हे खुद से जुदा नहीं होने दूंगी।"

"तो फिर सब लो अनामिका मेरा फैसला। अब चाहे कुछ भी हो हमे कोई अलग नहीं कर सकता। क्या तुम अपने घर परिवार को मेरे लिए छोड़ सकती हो ?"

"नही। लेकिन इतना तय है की तुम्हे खुद से अलग नहीं होने दूंगी। अब मुझपर तुम्हारा हक है। ये भी सच है कि मेरी सांसे तुम्हारे लिए है। अब जब भी तुम चाहो मुझे पा सकते हो। मणि ये अनामिका तुम्हारी है और अब प्यार का जाम तुम्हे पिलाती रहूंगी।"

दोनो एक दूसरे की बाहों में नंगे सो गए। रात हुई और मेवा दबे पांव अनामिका के कमरे में आया। कमरे में अनामिका नही थी। फिर मेवा दूसरे कमरे में देखा उसमे भी अनामिका नही थी। आखिर में वो नीचे के कमरे यानी मेवा के कमरे में गया। वहा जब अनामिका और मेवा को नग्न अवस्था बिस्तर पर लेटे हुए देखा तो दंग रह गया। अनामिका मणि को बाहों में लिए गहरी नींद में सो रही थी। मेवा को पता चल गया की मणि और अनामिका ने एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बना लिया। ये सब देखकर मेवा के चेहरे पर मुस्कान आई। वो बहुत खुश हुआ मणि के लिए। बिना दोनो के पता लगे वो अपने घर की तरफ चला गया। मणि को खुशी का ठिकाना न था। अपने दोस्त मणि और अनामिका को सेवा को सफल होते देख वो तुरंत किल्ले की तरफ चला गया। रात के भयानक अंधेरे में आगे बढ़ता गया। किल्ले के दरवाजे के बाहर आग से जली मशाल लिया और अंदर की तरफ गया। अंदर बाबा यज्ञ कर रहा था। मशाल की आग को देख वो खड़ा हुआ और मेवा की तरफ देखकर मुस्कुराया।

"प्रणाम सरकार।"

"बोलो मेवा क्या खबर लाए हो ?"

"अनामिका अपने सेवा के दूसरे चरण पर सफल हुई। मणि और उसे एक दूसरे के साथ हुए प्रेम प्रकरण को देखकर आ रहा हूं।"

बाबा खुश होकर बोला "वाह अब अनामिका ऐसी दुनिया की तरफ जा रही हैं जहां लोगो का दर्द और तकलीफ उसी के जरिए कम होगा। अनामिका को नहीं पता कि उसके इस पवित्र काम से उसके घरवालों को कितना लाभ होगा। जानते हो मेवा कल की सुबह जब उसके सास ससुर उठेंगे तब उनकी चिंता और दर्द हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। उनके घर धन की ऐसी वर्षा होगी जिससे उनका बुढ़ापा और परिवार सुखी रहेगा।"

"सच में बाबा। आप अनामिका के जरिए बहुत लोगो को जिंदगी को सुखी कर रहे है।"

"लेकिन इस सुख की कुछ कीमत है।"

"क्या ?"

"कल सुबह अनामिका के घरवाले और ससुरलवाले धन की प्राप्ति तो करेंगे लेकिन बदले में एक चिट्ठी उन्हें मिलेगी जिसमे ये लिखा होगा की अनामिका कभी वापिस नही आयेगी। वो एक सेवा तप के लिए हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा ले चुकी है। अब अनामिका कभी भी वापिस अपने घर नही जा पाएगी।"

मेवा रोने लगा और बोला "अनामिका की जय हो। उसने सेवा का मार्ग चुना। अपने परिवार को तक छोड़कर आ गई।"

बाबा की आंखों में आंसू आ गया और वो बोला "लेकिन अब ये हमारी जिम्मेदारी है की अनामिका को हम संभाले। उसे किसी प्रेम की कमी न हो। अनामिका हम सब की जिम्मेदारी है।"

"अब आगे किसकी सेवा करनी होगी उसे ?"

"चलो मेरे साथ।"

बाबा मेवा को लेकर एक तायखाने में गया। वहां तायखने के अंधेरे में एक बुड्ढा इंसान था। वो पूरी तरह से पागल था और उसके चेहरा दाढ़ी से भरा हुआ था। उसकी उमर 95 साल की थी। बाबा ने कड़ी तपस्या से उसे जिंदा रखा था। उस बुड्ढे का नाम हल्दी था। हल्दी को देख मेवा उसके पास गया। हल्दी बहुत ही पागल था। मेवा को देख डर गया। मेवा ने उसे संभाला और शांत किया। हल्दी बाबा को देख दौड़ा और पैर छूकर बैठ गया।

मेवा पूछा बाबा से "क्या अनामिका ये कर पाएगी ?"

बाबा बोला "अब ये अनामिका की अगली सेवा है।"

Superb story
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#55
Update please
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#56
Waiting for continuation.....
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#57
Within 10 minutes.... Update is coming.
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#58
Update 6

साल दिसंबर 1942



यह वो समय था जब भारत अंग्रेजो के राज में था। छत्तीसगढ़ के हनुमंत गांव में एक बुड्ढा आदमी रहता था जिसका नाम हल्दी था। हल्दी की उमर उस वक्त 62 साल की थी। हल्दी एक बहुत अच्छा शिकारी था। जंगल में अक्सर शिकार करता और अंग्रेजो को बेचता। इन सब में उसे कुछ खास पैसे नही मिलता। घर भी नही चलता। उसी गांव में एक बड़ा बिल्डर आया जिसका नाम सुरेश कुमार था। सुरेश कुमार अंग्रेजो का खास बिल्डर था। उसे काम दिया गया था गांव को खाली करके एक होटल बनाना।



सुरेश कुमार का बड़ा भाई अंग्रेज सिक्युरिटी का कमिश्नर था। दोनो बही बहुत ही क्रूर और खराब इंसान थे। दोनो भाईयो ने बहुत सारे पैसे कमाए। लोगो को लूटा और जमीन हड़पी। बदन भाई सुशील कुमार क्रूर के साथ लुटेरा भी था।। बहुत से गांव के लोगो को कर्ज देकर लूटता। उस पर कई औरतों की इज्जत लूटने का इल्जाम भी था। अब सुरेश का काम था गांव खाली करवाना। दोनो भाईयो ने गांव पर अत्याचार किया। आधे लोग जमीन खो दिए।



सुरेश की एक पत्नी थी जिसका नाम दिव्या था। दिव्या की उमर 23 साल की थी। बेहद खूबसूरत और आकर्षण से भरपूर। वो बहुत दयालु थी। सुरेश और उसका संबंध अच्छा नही था। सुरेश उसपर कई दफा घुसा करता। उसे मारता भी। कभी कभी ज्यादा मार देता। है रोज जिल्लत की जिंदगी देता। कई औरतों के साथ अवैध संबंध भी था। दिव्या का कभी कभी मन करता की उसे मार डाले। एक दिन की बात है दोनो में लड़ाई हुई। गुस्से में आकर दिव्या गांव से बाहर एक जंगल में गई। वहां उसके सामने एक शेर आया। शेर को सामने देख वो घभराई। शेर उसपे हमला करने जाए कि हल्दी ने दूर से उसपर कुल्हाड़ी का वार किया। शेर के जबड़े पर कुल्हाड़ी धस गया। शेर तुरंत हल्दी की तरफ दौड़ा। हल्दी ने दूसरे कुल्हाड़ी से उसपर वार किया। फिर बड़े से चाकू हाथ में लिए पीठ के गहराई में घुसाकर मार दिया।



हल्दी की बहादुरी देख दिव्या दंग रह गई साथ ही साथ अति प्रसन्न हुई। हल्दी ने जब दिव्या को देखा तो देखता रह गया। दूध सा गोरा रंग और जवानी की जलती ज्वाला। हल्दी को एक बुड्ढा और निम्न स्तर का आदमी था उसे पहली बार में दिव्या पसंद आ गई। हल्दी बहादुर तो था ही लेकिन सटीक से बात करनेवाला आदमी भी।



हल्दी दिव्या के करीब आया और बोला "तुम हो बला की खूबसूरत लेकिन इतनी रात इस जंगल में क्या कर रही हो ?"



दिव्या को अपने पति के हुई लड़ाई के बारे में याद आ गया और मुंह चढ़ाकर बोली "पता नही।"



बीड़ी का कश लेकर हल्दी पूछा " तू तो उस दरिंदा आदमी सुरेश की औरत है न ?"



दिव्या बोली "किसे दरिंदा बोला तू ? पता भी है कौन है वो ? पलक झपकते ही तुम्हारे खानदान को खत्म कर देगा "



गुस्से से तिलमिलाया हल्दी कुल्हाड़ी को हवा में लहराते हुए बोला "उसके खानदान को मैं अकेला खत्म कर दूंगा। उस दरिंदे ने मेरे परिवार को बीच चौराहे में मार डाला था। बहुत अत्याचार किया है उसने हम गांव वालो पर।"



"किया तो है लेकिन बदला कैसे लोगे ?"



हल्दी थोड़ा सा चकराया और पूछा "यह तुम क्या कह रही हो ? उसे मारना आसान नहीं।"



दिव्या हंसते हुए बोली "अभी तो कह रहे थे की खानदान खत्म कर दोगे उसका और अब जल्दी पलट भी गए ?"



"अरे बात वो नही है। वो तो मैने गुस्से में बोला था। उसके खानदान को मरना मुश्किल है।"



"लेकिन नामुमकिन नहीं।"



हल्दी का दिमाग चकराया और बोला "मतलब ?"



दिव्या ने अपने पति की दरिंदगी हल्दी को बताई। हल्दी से वादा किया कि वो उसकी मदद करेगी।



जाते जाते दिव्या ने एक बात साफ साफ कह दिया "अगर तुम उस दरिंदे को मारने में असफल होते हो तो मेरी इसमें गलती नही। मैं तुम्हे पहचानने से साफ साफ इंकार कर दूंगी।"



"और अगर सफल हुआ तो ?"



"तो को मांगोगे वो दूंगी।"



"तो सुन लो। अगर मैं कमियाब हुआ तो तुम्हे मेरे पास आना होगा। खुद को मेरे हवाले कर देना।"



दिव्या सोची की ये बुड्ढा क्या ही कर लेगा। कुछ उखाड़ नही पाएगा सुरेश का। वो भी बोल पड़ी "ठीक है। जिस दिन ये हुआ समझो उसी दिन तुम मुझे उठाकर ले जाना फिर को करना चाहो कर लेना।"



करीब दो महीना बीता और आखिर वो दिन आ ही गया जब एक दिन सुरेश शिकार करने गया। सुरेश को जंगल में देख हल्दी ने उसके चार आदमियों को छुपकर मार डाला और फिर कुल्हाड़ी से सुरेश के शरीर के ४० टुकड़े किए। खून से लतपत हल्दी हवेली में जा पहुंचा। हवेली में दिव्या ने जब हल्दी को खून से लतपत देखा और हाथ में कुल्हाड़ी देखा तो समझ गई कि हल्दी नेनापना काम पूरा कर दिया।



हल्दी बिना कुछ बोले दिव्या को उठा लिया और हवेली से बाहर ले गया। बिना रुके हवेली से दूर जंगल में अपने झोपड़ी में ले गया। उसके बाद दिव्या के जिस्म से अपने शारीरिक भूख को मिटाने का काम शुरू किया। बियाबान जंगल में दिव्या बिना कपड़े के गोरे बदन के साथ हल्दी के झोपड़ी में उसके साथ सेक्स कर रही थी। वो अब हल्दी से प्रभावित हो गई। एक बुड्ढा बदसूरत आदमी उसके जिस्म से खेल रहा था। दोनो ने पूरी रात एक दूसरे के जिस्म की भूख को मिटाया। दिव्या ने ऐसा सेक्स कभी नही किया था।



दोनो भयंकर सेक्स के बाद एक दूसरे की बाहों में थे। दोनो को आंखे एक दूसरे से मिली। हल्दी बोला "वाह दिव्या आज तो तुम्हे इस झोपड़ी में लाकर तुम्हारे साथ रात बिताने में मजा आ गया। लेकिन साथ ही साथ ऐसा लग रहा है की शेर के मुंह में खून लग गया। एक बार नही ऐसी १०० राते तेरे साथ बिताने का मन हो रहा है।"



"मैंने कहा था ना की उस जल्लाद को मार दोगे तो मेरा जिस्म तुम्हारा। तो अब अपने इस शर्त में जीते हुए इनाम का को उपयोग करना है करो। अब से तुम इसके मालिक।"



हल्दी दिव्या के स्तन को हाथो से मसलते हुए कहा "तो चल दिव्या। अब यहां से दूर चले। दुनिया से दूर। भाग चल। क्योंकि अब मुझे बाकी की सारी उमर तेरे साथ बिताना है।"



हल्दी उसी रातों रात दिव्या को शहर से दूर ले गया। वो उसे बिलवाड़ा गांव के किल्ले में ले गया। दोनो ने उसे अपना घर बना लिया। हल्दी दिव्या को इस किल्ले के मंदिर में ले गया और शादी कर ली। ठीक ९ महीने बाद दिव्या ने हल्दी के बच्चें को जन्म दिया। ऐसे ही दुनियां से छुपकर दोनो ने एक दूसरे की जरूरत पूरी की। ६ साल में दिव्या ने हल्दी के ४ बच्चो को जन्म दिया। सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन इनकी खुशी को सुशील कुमार की नजर लागी। शुशील कुमार ने दोनो को ढूंढ निकाला उसके बाद शुशील ने भयानक मौत का खेल खेला। हल्दी और दिव्या के चार बच्चों को मार डाला और दिव्या को भी। ये सब देख हल्दी पागल हो गया। हल्दी ने सुशील को मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद उसके आदमियों को मार डाला। किल्ले की दीवारें चीख पुकार से गूंज गई। इसके बाद हल्दी का मानसिक संतुला को गया।



उसे आगे चलकर बाबा ने पनाह दी। दिव्या जो हल्दी की पत्नी थी वो इस जन्म ने अनामिका बनी। अब वक्त आ गया था अनामिका को हल्दी से मिलवाने का।



वास्तविक समय।





सुबह सुबह अनामिका को किल्ला में बुलाया गया। बाबा ने उसे अगले सेवा का काम बताया। एक तायखाने में पड़ा 95 साल का बुड्ढा बदन पे कोई कपड़ा नहीं और पागलों की तरह दीवाल नोच रहा था। उस बुड्ढे को देख अनामिका अंदर से डर गई।



"ये कौन है बाबा ?"



बाबा ने अनामिका को पिछले जन्म की कहानी को दोहराया। यह सुनकर अनामिका अंदर से दुखी हुई और हल्दी के प्रत्ये सहानुभूति होने लगी उसे।



"तो क्या फैसला किया तुमने अनामिका ?"



"अब मैं अपने तीसरे सेवा कार्य को अंजाम दूंगी। पिछले जन्म न सही। इस जन्म में उसे प्यार मैं दूंगी। लेकिन करना क्या होगा मुझे ?"



"अब जो तुम्हे करना होगा उसके लिए तुम्हे अपने मन को मजबूत करना होगा। अब तुम हल्दी के साथ रहोगी। उसे जिंदगी का प्यार दोगी।"



"लेकिन मणि का क्या ? मेवा का क्या ?"



"दोनो को भी अपने साथ लेकर चलना होगा। मणि और मेवा दोनो मेरे परिवार का हिस्सा है और तुम भी।"



"मतलब ?"



"मतलब ये है इस सेवा की जिंदगी में तुम अपना पिछला जीवन को छोड़ चुकी हो। अब मैं मणि मेवा तुम हल्दी एक परिवार है।"



"क्या मेरा वो बीता हुआ परिवार सुखी है ?"



बाबा मुस्कुराकर बोले "अब से कभी उन्हें पैसों की कमी नही होगी। इतना धन मिलेगा की वो अब कभी मेहनत नहीं करेंगे। अब सारी ज़िंदगी ऐशो आराम में ही गुजरेगी।"



ये सुनकर अनामिका खुश हुई और बोली "अब मैं खुशी खुशी इस दुनिया में रहूंगी। अब से यही मेरा परिवार।"



"अनामिका अब से तुम हमारे साथ इस किल्ले में रहोगी हमेशाबके लिए।"



इतने में मेवा और मणि आए और बोले "हां अनामिका अब से हम सब साथ रहेंगे।"



बाबा बोले "मणि और मेवा अनामिका का सारा सामान कमरे में रख दो। मणि और अनामिका एक ही कमरे में रहेंगे। मेवा जाओ बाकी का काम पूरा करो। अनामिका कुछ देर के लिए मेरे साथ अकेले मेरे कमरे चलो।"



बाबा और अनामिका दोनो कमरे में आए।



"बाबा बताइए अब क्या करना होगा ?" अनामिका ने पूछा।



"अनामिका क्या तुम रूपा को जानती हो ?"



अनामिका चौक गई और बोली "रूपा मेरी दोस्त है। वो मुझसे दो साल छोटी है। क्या हुआ ? सब ठीक तो है न ?"



"बिलकुल नहीं। उसके घरवालों ने उसे छोड़ दिया। उसके पति ने उसके साथ रिश्ता तोड़ दिया और किसी और से शादी कर लिया।"



"ये तो बहुत बुरा हुआ।" अनामिका दुखी मन से बोली।



"अनामिका बहुत जल्द अब वो इस किल्ले में आएगी और हमारे swa कार्य को आगे बढ़ाएगी। बहुत जल्द वो भी हमारे साथ रहेगी।"



"बाबा एक सवाल पूछूं ?"



"पूछो।"



"आप ये सब क्यों कर रहे है ? इस सेवा कार्य से आपको क्या लाभ होगा ?"



"शांति मिलेगी। मुझे शक्ति मिलेगी। और तो और इसमें तुम मेरी मदद करेगी।"



"मैं सब कुछ करने को तैयार हूं।"



"पता है अनामिका ? तुमने जिस दिन मुझे मौत से बचाया था तब से मुझे विश्वास हो गया की तुम कितनी अच्छी हो। तब से मैंने ठान लिया था की तुम्हे अपने साथ रखूंगा। बस अनामिका तुम ऐसे ही साथ रहो। तुम्हारे सिवा मेरा अब कोई नही।" अनामिका के दोनो कंधो को हाथ में थामते हुए बाबा ने कहा "जब तक मैं जिंदा हूं तब तक मेरा साथ देना और छोड़कर मत जाना।"



अनामिका ने कहा "अब आप ही मेरा संसार हो। अब आप देखिए इस किल्ले में सिर्फ खुशियां ही खुशियां होंगी।"



बाबा ने अनामिका को गले से लगा लिया। दोनो एक दूसरे से लिपटे रहे। बाबा आगे बोले "अब जाओ मणि तुम्हारा इंतजार कर रहा है।"



अनामिका बाबा को प्रणाम करके बाहर गई। अपने कमरे में आई तो देखा मणि बिना किसी कपड़े के बिस्तर पर लेटा था। अनामिका मणि को देखकर मुस्कुराई। मणि ने अनामिका को बिस्तर पर आने का इशारा किया। साड़ी के पल्लू को बदन से हटाकर अनामिका बिस्तर पर आई मणि तुरंत अनामिका के होठ को चूमते हुए पूछा "कैसा लगा हमारा नया घर ?"



अनामिका अपने ब्लाउज को उतारते हुए बोली "बहुत अच्छा लग रहा है।"



"बाबा के कहने पर हम दोनो एक ही कमरे में रहेंगे। जैसे पति पत्नी।" मणि ने अनामिका का ब्रा उतारकर उसे फिर से चूमने लगा।



"माणि क्या अब बगीचे का काम इधर करोगे ?"



"हां और तुम हम सब की खयाल रखोगी।"



मणि खुद को और अनामिका को निर्वस्त्र कर दिया। मणि और अनामिका एक दूसरे की बाहों में रात गुजारने लगे। दोनो प्रेमी ने खूब एक दूसरे को प्यार किया। अनामिका अगली सुबह ४ बजे उठी। कमरे से बाहर छत पर से पूरे गांव को देख रही थी। अनामिका को ठंडी हवा की खुशबू अच्छी लगी। अनामिका फिर गई मेवा के कमरे और उसे दूध पिलाया। दोस्तो बहुत जल्द अनामिका इस दास्तान आगे बढ़ेगी और कई मोड़ भी आयेगा इस सेवा के सफर में।
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#59
Gazab hi kar diya bhai.....
Loot....... Liyaaaa.....
Aisa likhoge ye to socha hi nhi tha.....
Marvellous....
Sex scene thoda detail mein likho....
Dudh pilane ka scene wagerah bhi detal mein. Likho...
Anamika ki soch..... Pehnawa.... Feelings..... Environment etc detail mein likho....
Mewa ka doodh pite waqt boons per thuk lagna.... Uski feeling..... Anamika ke pov se.... Etc...
Eagerly waiting for next....
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#60
shandar lekin sex sceen ko detail main likhna chahiye bas..........
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