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Misc. Erotica मां बेटी को चोदने की इच्छा (copied)
#61
Update 31


माँ-बेटी को चोदने की इच्छा


कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा…

शायद वो वासना के नशे में कुछ ज्यादा ही अंधी हो चली थी.. क्योंकि उसके चूचे अब मेरी छाती पर रगड़ खा रहे थे और वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़े हुए खड़ी थी। उसके सीने की धड़कन बता रही थी कि उसे अब क्या चाहिए था।
मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- तो क्या कहा था.. अब बोल भी दो?
वो बोली- क्या मेरी चूत की सुगंध वाकयी में इतनी अच्छी है…
मैंने बोला- हाँ मेरी जान.. सच में ये बहुत ही अच्छी है।
वो बोली- फिर सूंघते हुए चाट क्यों रहे थे?
तो मैंने बोला- तुम्हारे रस की गंध इतनी मादक थी कि मैं ऐसा करने पर मज़बूर हो गया था.. उसका स्वाद लेने के लिए..

ये कहते हुए एक बार फिर से अपने होंठों पर जीभ फिराई.. जिसे रूचि ने बड़े ही ध्यान से देखते हुए बोला- मैं तुमसे कुछ बोलूँ.. करोगे?

मैंने सोचा लगता है.. आज ही इसकी बुर चाटने की इच्छा पूरी हो जाएगी क्या? यह सोचते हुए मन ही मन मचल उठा।

अब आगे..

वो मुझसे बोली- अगर तुम सच कह रहे हो कि तुम्हें मेरी चूत की खुश्बू पसंद है.. तो क्या तुम सच में मेरी चूत को भी ऐसे ही सूंघ कर दिखा सकते थे?
तो मैंने तुरंत ही कहा- हाँ.. क्यों नहीं।

वो बोली- चल झूठे.. ऐसा भी कोई करता है क्या?
मैं समझ गया कि या तो यह इस खेल की नई खिलाड़ी है.. या तो ये खुद ही मेरे साथ खेल कर रही है.. ताकि मैं ही अपनी तरफ से पहल करूँ।
तो मैंने भी कुछ सोचते हुए बोला- क्यों तुम्हें पहले किसी ने मना किया है क्या?
बोली- नहीं.. ऐसा नहीं है.. मैं तो इसलिए बोली थी.. क्योंकि वहाँ से गंदी बदबू भी आती है ना.. इसलिए।

तब जाकर मैं समझा कि यह अभी नई है और इसे इस खेल का कोई अनुभव नहीं है।

मैंने बोला- अरे पगली तुम नहीं समझ सकती कि एक जवान लड़की की और एक जवान लड़के के लिंग में कितनी शक्ति होती है। दोनों में ही अपनी-अपनी अलग खुशबू होती है.. जो एक-दूसरे को दीवाना बना देती है।
तो वो बोली- मैं कैसे मानूं?
मैं बोला- अब ये तुम्हारे ऊपर है.. मानो या ना मानो.. सच तो बदलेगा नहीं..
तो वो बोली- क्या तुम मुझे महसूस करा सकते हो?
मैं तपाक से बोला- क्यों नहीं..



तो वो झट से मेरे सामने अपना लोवर खोल कर मुझे अपनी चूत चाटने की दावत देने लगी.. शायद उस पर वासना का भूत सवार हो चुका था।

मैं भी देरी ना करते हुए बिस्तर से उठा और फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठकर उसकी मुलायम चिकनी जांघों को अपने हाथों से पकड़ कर खोल दिया.. ताकि उसकी चूत ठीक से देख सकूँ।

मैंने जैसे ही उसकी चूत का दीदार किया तो मुझे तो ऐसा लगा.. जैसे मैं जन्नत में पहुँच गया हूँ.. उसकी चूत बहुत ही प्यारी और कोमल सी दिख रही थी.. जिसमें ऊपर की तरफ छोटे-छोटे रेशमी मुलायम बाल थे जो कि उसकी गोरी चूत की सुंदरता पर चार चाँद लगा रहे थे।
मेरी तो जैसे साँसें थम सी गई थीं.. क्योंकि ये मेरा पहला मौका था.. जब मैंने किसी कुँवारी लड़की की चूत को इतनी करीब से देखा था.. बल्कि ये कह लें कि इसके पहले देखा ही नहीं था।
उसकी चूत बिल्कुल कसी हुई थी.. कुछ फूली-फूली सी.. और उसके बीच में एक महीन सी दरार थी.. जो कि उसके छेद को काफ़ी संकरा किए हुए थी।
इतनी प्यारी संरचना को देखकर मैं तो मंत्रमुग्ध हो गया था.. जिससे मुझे कुछ होश ही नहीं था कि मैं कहाँ हूँ.. कैसा हूँ।

खैर.. जब मैं उसकी चूत को टकटकी लगाए कुछ देर यूँ ही देखता रहा.. तो उसने मेरे हाथ पर एक छोटी सी चिकोटी काटी.. जो कि उसकी जाँघ को मजबूती से कसे हुए था।
तो मेरा ध्यान उसकी चूत से टूटा और मैंने ‘आउच..’ बोलते हुए उसकी ओर देखा.. उसकी नजरों में लाज के साथ-साथ एक अजीब सी चमक भी दिख रही थी।
ऐसी नजरों को कुछ ज्ञानी बंधु.. वासना की लहर की संज्ञा भी देते हैं।

वो अपनी आँखों को गोल-गोल घुमाते हुए बोली- क्यों राहुल.. पक्का तुम यही सोच रहे होगे कि मैंने झूट क्यों बोला.. मैं कैसे किसी की गंदी जगह को सूंघ सकता हूँ.. अब फंस गए ना.. अभी तक मुझे बेवकूफ़ बना रहे थे.. चलो छोड़ो.. अगर दीदार पूरे हो गए हों तो। तुमको अगर यही देखना था.. तो पहले ही बोल देते.. मैं कमरे में घुसते ही दिखा देती। आख़िर तुम वो पहले इंसान हो जिससे मैंने प्यार किया.. तुम्हारे लिए मैं ये पहले ही कर सकती थी.. पर तुमने झूट का सहारा लिया.. अब ऐसा दोबारा ना करना।

तभी मैंने बोला- जान.. तुम नहीं जानती कि आज मैंने अपनी पूरी जिंदगी में पहली बार चूत देखी है.. जिसे अक्सर ख़्वाबों में ही देखता था.. पर जब आज सच में सामने आई.. तो मैं देखता ही रह गया था.. क्या तुमने कभी हस्तमैथुन भी नहीं किया?
‘क्या..?’ वो चौंक कर बोली- यह क्या होता है?

तो मैं उसकी चूत की कसावट को देखते हुए बोला- कोई बात नहीं.. मैं सब सिखा दूँगा और रही बात सूंघने की.. तो मैं तो सोच रहा हूँ.. इसे चाट कर सूँघूं या सूंघ कर चाटूं..।
तो वो बोली- जो भी करना.. जल्दी करो.. नहीं तो तुम्हें देर हो जाएगी जाने में.. और प्लान भी बिगड़ सकता है।
मैंने तुरंत ही उसके नितंबों को पकड़ कर बिस्तर के आगे की ओर खींचा ताकि उसकी चूत पर मुँह आराम से लगा सकूँ।

फिर मैंने बिना देर किए हुए उसे बिस्तर के किनारे लाया और सीधा उसकी चूत पर मुँह लगा कर उसके दाने को अपनी जुबान से छेड़ने लगा.. जिससे उसके मुँह से मादक सिसकारियाँ फूट पड़ीं- ओह्ह..शिइई..

मैंने जब उसकी ओर देखा तो वो अपने चेहरे को अपने दोनों हाथों से ढके हुए थी.. पर जब उसने अपनी चूत पर मेरा मुँह नहीं महसूस किया.. तो अपनी आँख खोल कर मुझसे बोली- राहुल.. यार फिर से कर न.. मुझे बहुत अच्छा लगा.. मुझे नहीं पता था कि इसमें इतना मज़ा आता है।
तो मैं बोला- परेशान मत हो… अभी तो खेल शुरू हुआ है.. देखती जाओ.. मैं क्या-क्या और कितना मजा देता हूँ।

वो बोली- एक बात पूछू.. मज़ाक तो नहीं बनाओगे मेरा?
तो मैं बोला- हाँ.. पूछो..

वो बोली- राहुल मैं चाहती हूँ.. कि जो मज़ा तुम मुझे दे रहे हो.. वो मैं भी दूँ.. क्या ये एक साथ हो सकता है? मेरा मतलब तुम मेरी वेजिना को मुँह से प्यार करो और मैं तुम्हारे पेनिस को अपने मुँह से प्यार करूँ।
मैंने अपनी ख़ुशी दबाते हुए कहा- हो सकता है..
तो वो चहकते हुए स्वर में बोली- राहुल सच..
मैंने बोला- हम्म..
तो वो बोली- पर कैसे?
मैं बोला- तुम सच में कुछ नहीं जानती..
तो वो बोली- तुम्हारी कसम.. ये मेरा पहला अनुभव है।
मैंने कहा- अच्छा चलो कोई बात नहीं.. मैं तुम्हें सिखा दूंगा सब कुछ..

मैं मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो अपने आप ही मेरा काम आसान हो गया।
मैंने तुरंत ही खड़े होकर अपने लोअर को नीचे खिसकाकर अपने शरीर से अलग कर दिया.. जिससे मेरा पहले से ही खड़ा ‘सामान’ बाहर आ कर झूलने लगा।

मेरा लवड़ा देखकर रूचि बोली- यार ये बताओ.. तुम्हारा ये पेनिस मेरे मुँह तक कैसे आएगा.. जब तुम नीचे बैठोगे तभी तो मैं कुछ कर पाऊँगी
तो मैं बोला- पहले तो इसे पेनिस नहीं लण्ड बोलो.. और अपना दिमाग न लगाओ.. जैसे मैं बोलूँ.. वैसे करो।
तो वो चहक कर बोली- ठीक है.. चलो अब जल्दी से अपना ल..लण्ड मेरे मुँह में डालो और अपना मुँह मेरी च..चूत पर लगाओ.. अब मुझसे और इंतज़ार नहीं हो सकता।

लण्ड-चूत कहने में वो कुछ हिचक रही थी.. बेचारी.. सच में उसको कुछ नहीं मालूम था कि कैसे क्या करना है.. उसे तो बस इतना ही मालूम था कि लण्ड चूत में जाता है जिससे माल निकलता है.. और लण्ड का माल चूत में भर जाता है.. जिससे बच्चा हो जाता है बस।
ये सब उसने मुझे बाद में बताया था..

तो कैसी लग रही है मेरी कहानी..
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#62
समझा नहीं आपकी क्या दिक्कत है किसी आदमी को कोई काम भी हो सकते हैं या दिनभर सेक्स स्टोरीज ही पड़ता और लिखता रहें, खैर अपडेट दे दिया है आज शाम को एक और अपडेट दूंगा और इस हफ्ते में इस कहानी को खत्म कर दूंगा।

आपके पढ़ने का शुक्रिया
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#63
यार इतनी जल्दी कहानी खत्म मत करना बहुत बढ़िया जा रहे हो। और आगे भी बहुत कुछ लिख सकते हो। तो कहानी खत्म मत करना।
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#64
Bahut achchhe...plz continue
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#65
Update 32


माँ-बेटी को चोदने की इच्छा


पिछले भाग में आपने पढ़ा…

तो वो चहक कर बोली- ठीक है.. चलो अब जल्दी से अपना ल..लण्ड मेरे मुँह में डालो और अपना मुँह मेरी च..चूत पर लगाओ.. अब मुझसे और इंतज़ार नहीं हो सकता..

लण्ड-चूत कहने में वो कुछ हिचक रही थी.. बेचारी.. सच में उसको कुछ नहीं मालूम था कि कैसे क्या करना है..। उसे तो बस इतना ही मालूम था कि लण्ड चूत में जाता है जिससे माल निकलता है.. और लण्ड का माल चूत में भर जाता है.. जिससे बच्चा हो जाता है बस..।
ये सब उसने मुझे बाद में बताया था..

अब आगे..

खैर.. मैंने उसे बिस्तर पर सही से लिटाया और हम 69 अवस्था में लेट गए। यह देख कर उसके दिमाग की बत्ती जल उठी और रूचि खुश होते हुए बोली- यार वाकयी में तुम स्मार्ट के साथ-साथ होशियार भी हो.. क्या जुगाड़ निकाला है..

मैं तुरंत ही उसकी चूत के दाने को अपनी जुबान से छेड़ने लगा और वो मेरे लण्ड को पकड़ कर खेलने लगी और थोड़ी ही देर में उसने अपनी नरम जुबान मेरे लौड़े पर रखकर सुपाड़े को चाटने लगी.. जिससे मुझे असीम आनन्द की प्राप्ति होने लगी।

उसकी गीली जुबान की हरकत से मेरे अन्दर ऐसा वासना का सैलाब उमड़ा.. जिसे मैं शब्द देने में असमर्थ हूँ.. फिर मैंने भी प्रतिउत्तर में उसके दाने को अपने मुँह में भर-भर कर चूसना चालू कर दिया.. जिससे उसके मुँह से ‘अह्ह्ह ह्ह.. हाआआह… आआआ..’ की आवाज स्वतः ही निकलने लगी।
उसके शरीर में एक अजीब सा कम्पन हो रहा था.. जिसे मैं महसूस करने लगा।
चूत चुसवाने के थोड़ी ही देर में वो अपनी टाँगें खुद ही फ़ैलाने लगी और अपने चूतड़ों को उठा कर मेरे मुँह पर रगड़ने लगी।

अब मुझे एहसास हो गया कि रूचि को इस क्रिया में असीम आनन्द की प्राप्ति हो रही है। फिर मैंने उसके जोश को और बढ़ाने के लिए अपनी उँगलियों के माध्यम से उसकी चूत की दरार को थोड़ा फैलाया और देखता ही रह गया.. चूत के अन्दर का बिलकुल ऐसा नज़ारा था.. जैसे किसी ने तरबूज पर हल्का सा चीरा लगा कर फैलाया हो.. उसकी चूत से रिस रहा पानी उसकी और शोभा बढ़ा रहा था।

मैंने बिना कुछ सोचे अपनी जुबान उसकी दरार में डाल दी.. और उसे चाटने लगा।

जिससे उत्तेजित होकर रूचि ने भी मेरे लण्ड के शिश्न-मुण्ड को और अन्दर ले कर चूसते हुए ‘ओह.. शिइ… इइइइ.. शीईईई..’ की सीत्कार के साथ ‘अह्ह्ह.. अह्ह्ह्ह ह्ह..’ करने लगी।

तो मैंने वक्त की नज़ाकत देखते हुए अपनी एक ऊँगली उसकी चूत के छेद में घुसेड़ दी.. जिससे उसकी एक और दर्द भरी ‘आह्ह्ह्ह ह्ह..’ छूट गई और दर्द से तड़पते हुए बोली- यार.. लग रही है ये.. क्या कर दिया.. अब तो अन्दर जलन सी होने लगी है..



तो मैंने मन में सोचा शायद इसने अपनी चूत में ऊँगली भी नहीं डाली है.. इसलिए इसे ऐसा लग रहा होगा।

मैंने बोला- जान बस थोड़ा रुको.. अभी सही किए देता हूँ।

फिर मैंने उंगली बाहर निकाली और उसकी चूत पर थूक का ढेर लगाकर.. उसके छेद को चूसते हुए.. जुबान से ही अपने थूक को उसके छेद के अन्दर ठेलने लगा.. जिससे उसका दर्द अपने आप ही ठीक होने लगा।

‘अह्ह्ह्ह.. अह्ह्ह ह्ह्ह्ह.. शिइइ… शहअह…’ की ध्वनि उसके मुँह से निकलने लगी।

दोस्तो, सच में उस समय मेरी थूक ने उसके साथ बिल्कुल एंटी बायोटिक वाला काम किया और जब वो मस्तिया के फिर से मेरा लण्ड चूसने लगी.. तो मैंने फिर से उसकी चूत में उंगली डाल दी।

इस बार वो थोड़ा कसमसाई तो.. पर कुछ बोली नहीं.. शायद वो और आगे का मज़ा लेना चाहती थी.. या फिर उसे दोबारा में दर्द कम हुआ होगा।
अब मैंने धीरे-धीरे उसकी चूत में उंगली करते हुए उसके दाने को अपनी जुबान से छेड़ने और मुँह से चूसने लगा। मेरी इस हरकत से उसने भी जोश में आकर मेरे लौड़े को अपने मुँह में और अन्दर ले जाते हुए तेज़ी से अन्दर-बाहर करने लगी।

उसके शरीर में हो रहे कम्पन को महसूस करते हुए मैं समझ गया कि अब रूचि झड़ने वाली है.. यही सही मौका है दूसरी उंगली भी अन्दर कर दो.. ताकि छेद भी थोड़ा और फ़ैल जाए।
इस अवस्था में इसे दर्द भी महसूस नहीं होगा.. ये विचार आते ही मेरा भी जोश बढ़ गया और मैं एक सधे हुए खिलाड़ी की तरह उसकी चूत में तेजी से उंगली अन्दर-बाहर करने लगा।
अब रूचि के मुँह से भी ‘गु.. गगगग गु.. आह्ह..’ की आवाज़ निकलने लगी.. क्योंकि वो भी मेरा लौड़ा फुल मस्ती में चूस रही थी.. जैसे सारा आज ही रस चूस-चूस कर खत्म कर देगी।

मैंने तुरंत ही अपनी उंगली अन्दर-बाहर करते हुए अचानक से पूरी बाहर निकाली और दोबारा तुरंत ही दो उँगलियों को मिलाकर एक ही बार में घुसेड़ दी.. जिससे उसके दांत मेरे लौड़े पर भी गड़ गए और उसके साथ-साथ मेरे भी मुँह से भी ‘अह्ह ह्ह्ह्ह..’ की चीख निकल गई।

सच कहूँ दोस्तो, हम दोनों को इसमें बहुत मज़ा आया था।
आज भी हम आपस में जब मिलते हैं तो इस बात को याद करते ही एक्साइटेड हो जाते हैं मेरा लौड़ा तन कर आसमान छूने लगता है और उसकी चूत कामरस की धार छोड़ने लगती है।

खैर.. जब उसका दर्द कुछ कम हुआ तो फिर से वो लण्ड को चचोर-चचोर कर चूसने लगी और अपनी टांगों को मेरे सर पर बांधते हुए कसने लगी।
वो मेरे लौड़े को बुरी तरह चूसते हुए ‘अह्ह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह ह्ह्ह..’ के साथ ही झड़ गई। उसका यह पहला अनुभव था.. जो कि शायद 10 से 15 मिनट तक ही चल पाया था।

मेरा अभी बाकी था.. पर मैंने वहीं रुक जाना बेहतर समझा.. क्योंकि ये उसके जीवन का पहला सुखद अनुभव था.. जो कि उसके शरीर की शिथिलता बयान कर रही थी।
मैंने इस तरह उसके रस को पूरा चाट लिया और छोड़ता भी कैसे.. आखिर मेरी मेहनत का माल था।

उसकी तेज़ चलती सांसें.. मेरे लौड़े पर ऐसे लग रही थीं.. जैसे मेरे लौड़े में नई जान डाल रही हो.. और मैं भी पूरी मस्ती में उसकी बुर को चाट कर साफ करने लगा।

जब उसकी सांसें थोड़ा सधी.. तो वो एक लम्बी कराह ‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह..’ के साथ चहकते हुए स्वर में बोली- राहुल.. यू आर अमेज़िंग.. सच यार.. मुझे तो तूने फुल टाइट कर दिया.. यार लव यू और ये क्या तुम्हें लगता है.. ज्यादा मज़ा नहीं आया क्योंकि तुम पहले की ही तरह नार्मल दिख रहे हो.. जबकि मैं पसीने-पसीने हो गई।

तो मैं बोला- जान तुम्हारा डिस्चार्ज हो गया है और मेरा अभी नहीं हुआ है और असली मज़ा डिस्चार्ज होने के बाद ही आता है।

उसने झट से बिना कुछ बोले- मेरे लण्ड को पकड़ा और दबा कर बोली- अच्छा.. तुम पहले की तरह मेरे जैसे बिस्तर पर बैठो और मैं जमीन पर बैठ कर तुम्हारी तरह करती हूँ।

मैं तुरंत ही बैठ गया और वो उठी और मेरे सामने अपने घुटनों के बल जमीन पर बैठकर मेरे लौड़े को पकड़ कर अपने मुँह में डालकर चूसने लगी।

बीच-बीच में वो अपनी नशीली आँखों से मुझे देख भी लेती थी.. जिससे मुझे भी जोश आने लगा।
और यह क्या.. तभी उसकी बालों की लटें उसके चेहरे को सताने लगी.. जिसे वो अपने हाथों से हटा देती।
तो मैंने खुद ही उसके सर के पीछे हाथ ले जाकर उसके बालों को एक हाथ से पकड़ लिया।

हय.. क्या सेक्सी सीन लग रहा था.. ओह माय गॉड.. एक सुन्दर परी सी अप्सरा आपके अधीन हो कर.. आपकी गुलामी करे.. तो आपको कैसा लगे.. बिलकुल मुझे भी ऐसा ही लग रहा था।

फिर मैंने दूसरे हाथ से उसकी ठोड़ी को ऊपर उठाकर उसकी आँखों में झांकते हुए.. उसके मुँह में धक्के देने लगा.. जिससे उसके मुँह से ‘उम्म्म.. उम्म्म्म.. गगग.. गूँ.. गूँ..’ की आवाजें आने लगीं।
इस तरह कुछ देर और चूसने से मेरा भी माल उसके मुँह में ही छूट गया और वो बिना किसी रुकावट के सारा का सारा माल गटक गई।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है.. पहली बार में बिना किसी विरोध के कोई कैसे माल अन्दर ले सकता है?
तो मैं आपको बता दूँ कि जैसे मैंने किया था.. वैसा ही उसने किया.. क्योंकि उसे कुछ मालूम ही नहीं था।
तो अब आगे क्या हुआ.. जानने के लिए अगली कड़ी का इंतज़ार करें।
तो कैसी लग रही है मेरी कहानी..
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#66
Bhai jaldi se agey ke update do
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#67
Bakwas
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#68
nice update com fat with image
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#69
Update 33

माँ-बेटी को चोदने की इच्छा

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा…

मैं तुरंत ही बैठ गया और वो उठी और मेरे सामने अपने घुटनों के बल जमीन पर बैठकर मेरे लौड़े को पकड़ कर अपने मुँह में डालकर चूसने लगी।

बीच-बीच में वो अपनी नशीली आँखों से मुझे देख भी लेती थी.. जिससे मुझे भी जोश आने लगा।
और यह क्या.. तभी उसकी बालों की लटें उसके चेहरे को सताने लगी.. जिसे वो अपने हाथों से हटा देती।
तो मैंने खुद ही उसके सर के पीछे हाथ ले जाकर उसके बालों को एक हाथ से पकड़ लिया।

हय.. क्या सेक्सी सीन लग रहा था.. ओह माय गॉड.. एक सुन्दर परी सी अप्सरा आपके अधीन हो कर.. आपकी गुलामी करे.. तो आपको कैसा लगे.. बिल्कुल मुझे भी ऐसा ही लग रहा था।

फिर मैंने दूसरे हाथ से उसकी ठोड़ी को ऊपर उठाकर उसकी आँखों में झांकते हुए.. उसके मुँह में धक्के देने लगा.. जिससे उसके मुँह से ‘उम्म्म.. उम्म्म्म.. गगग.. गूँ.. गूँ..’ की आवाजें आने लगीं।
इस तरह कुछ देर और चूसने से मेरा भी माल उसके मुँह में ही छूट गया और वो बिना किसी रुकावट के सारा का सारा माल गटक गई।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है.. पहली बार में बिना किसी विरोध के कोई कैसे माल अन्दर ले सकता है?
तो मैं आपको बता दूँ कि जैसे मैंने किया था.. वैसा ही उसने किया.. क्योंकि उसे कुछ मालूम ही नहीं था।

अब आगे:
फिर वो उठी और बाथरूम में जाकर मुँह धोया और वापस आकर मेरे पास बैठ गई और इस समय मैं और रूचि दोनों ही नीचे कुछ नहीं पहने थे जिससे मुझे साफ़ पता चल रहा था कि रूचि का चूत रस अभी भी बह रहा है।
तो मैंने उसे छेड़ते हुए पूछा- अरे तुम तो बहुत माहिर हो लण्ड चूसने में… कहाँ से सीखा?

तो बोली- और कहाँ से सीखूँगी… बस अभी अभी सीख लिया!
तो मैं बोला- कैसे?
तो वो बोली- जैसे तुम अच्छे से बिना दांत गड़ाए मेरी चूत को अपने मुँह में भर भर कर चूस रहे थे तो मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, ऐसा लग रहा था कि तुम बस चूसते ही रहो… मुझे सच में बहुत अच्छा लगा और तुम्हारी उँगलियों ने तो कमाल कर दिया, जैसे तुमने अपनी उंगली नहीं बल्कि मेरे अंदर नई जान डाल दी हो! ठीक वैसे ही मैंने भी सोचा कि क्यों न तुम्हें भी तुम्हारी तरह मज़ा दिया जाये! बस मैंने तुम्हारी नक़ल करके वैसे ही किया और मुझे पता है कि तुम्हें भी बहुत मज़ा आया… पर यार, तुमने मेरी हालत ही बिगाड़ दी थी, मेरी तो सांस ही फूल गई थी पर अब दोबारा ऐसा न करना वरना… मैं नहीं करुँगी।

तो मैं बोला- फिर अभी क्यों किया?
वो बोली- क्योंकि तुमने मुझे इतनी मज़ा दिया था जिसे मैं अपने जीवन में कभी नहीं भुला सकती!

मैंने बोला- अच्छा अगर मैं इसी तरह तुम्हें मज़ा देता रहा तो क्या तुम भी मुझे मज़े देती रहोगी?
वो बोली- यह बाद की बात है पर सच में मेरे गले में दर्द होने लगा था!
मैंने बोला- अच्छा, अब आगे से ध्यान रखूँगा पर तुम्हें बता दूँ कि आने वाले दिनों में मैं बहुत कुछ देने वाला हूँ।
वो बोली- और क्या?



तब मैंने बोला- यह तो सिर्फ शुरुआत है, और अभी सब बता कर मज़ा नहीं खराब करना चाहता, बस देखती जाओ कि आगे आगे होता है क्या?

कहते हुए मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में दबा कर उसके होंठों का रसपान करने लगा और वो भी मेरा पूर्ण सहयोग देते हुए मेरे निचले होंठ को पागलों की तरह बेतहाशा चूसे जा रही थी, मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं जन्नत में हूँ, मुझे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि ये सब इतनी जल्दी हो जायेगा।
खैर मैं उसके पंखुड़ी समान होंठों को चूसते हुए उसकी पीठ सहलाने लगा और रूचि की मस्ती वासना से भरने लगी।
मैंने मौके को देखते हुए उसके चूचों पर धीरे से दोनों हाथ रखकर उन्हें सहलाने लगा और हल्का हल्का सा दबा भी देता जिससे रूचि के मुख से सिसकारियाँ ‘शिइइइइइइइ’ फ़ूट पड़ती जो आग में घी का काम कर रही थी।

फिर मैंने अपने दोनों हाथों को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट ऊपर की ओर उठाते हुए उसे किस करता रहा। तभी अचानक उसने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ लिया और बोली- यह क्या कर रहे हो? इसकी क्या जरूरत?

तो मैंने बोला- तुम्हें इसके पहले कुछ पता भी था या मुझसे सीखा?
वो बोली- तुमसे… पर तुम्हें तो मेरी चूत पसंद है न… वो तो कब की खुली है।
तो मैं बोला- जान असली मज़ा तो खुले में ही आता है न! मेरी बात मानो!

वो हल्की सी मुस्कान के साथ फिर से मेरी बाँहों में आ गई और मेरे कान के पास मुख ले जाकर फुसफुसाई- यार, मुझे शर्म आ रही है, अगर इसे न उतारा जाये तो क्या काम नहीं चलेगा?

मैं बोला- हम्म… बिल्कुल बिना टॉप उतारे वो मज़ा आ ही नहीं सकता।
तो वो बोली- क्यों?
तो मैंने मन ही मन खुश होते हुए अपने हाथों को ठीक से साध के उसके चूचों पर निशाना साधा और अचानक मैंने उसके गोल और मांसल चूचों को भींचते हुए मसक दिया जिससे उसकी दर्द भरी ‘अह्ह… ह्ह्ह्ह… आह्ह…’ निकल गई और मुझसे अलग हट कर अपने चूचों को सहलाने लगी और मुझसे गुस्सा करते हुए बोली- यार, ये क्या कर दिया तूने? मेरी तो जान ही निकल गई।

तो मैंने भी तुरंत बोला- इसी लिए तो कह रहा था कि बिना टॉप के मज़ा आता है और ऊपर से ग्रिप अच्छी नहीं बन पाती जैसा कि अभी तुमने खुद ही देखा, तुम्हें दर्द हुआ न?
तो बोली- सच में इसमें मज़ा आएगा?

तो मैंने उसको होंठों को चूसते हुए अपने होंठों को उसके कान के पास ले गया और एक लम्बी सांस छोड़ते हुए उसके कान में धीरे से बोला- खुद ही महसूस करके देख लो।
और एक बात मैंने जब सांस छोड़ी थी तो मैंने महसूस किया कि मेरी सांस ने रूचि के बदन की झुरझुरी बढ़ा दी थी जिससे उसके बदन में एक अजीब सा कम्पन महसूस हुआ था।

खैर फिर मैंने दोबारा धीरे से उसके कान के पास चुम्बन लेते हुए अपने हाथ उसकी टॉप में डाले और ऊपर की ओर उठाने लगा जिसमें रूचि ने भी सहयोग देते हुए अपने दोनों हाथ ऊपर की ओर उठा लिए जिससे उसकी चूचियाँ तन के मेरी आँखों के सामने आ गई।

दोस्तो, क्या गजब का नज़ारा था… जैसे सफ़ेद छेने पर गाढ़ी लाल रंग की चेरी रख दी हो!

मैं तो देख कर इतना मस्त हो गया कि मुझे कुछ होश ही न रहा और मैं उसके चूचों की घुंडियों को प्यार से मसलने लगा जिससे रूचि कुछ कसमसाई तो मैंने उससे धीरे से पूछा- क्या हुआ?

तो बोली- यार अच्छा भी लग रहा है और थोड़ा अजीब सा भी!

मैंने बोला- बस थोड़ी देर रुको, अभी तुम्हें मज़ा आने लगेगा।
तो वो बोली- अब क्या करने वाले हो?

मैंने बिना बोले ही उसके बायें चूचे के निप्पल को अपने मुँह में भर लिया और मस्ती में चूसने लगा जैसे लोग कोल्ड ड्रिंक में स्ट्रॉ डाल कर चुस्की लगाते हैं और दूसरे चूचे को अपनी हथेली से सहलाने लगा जिससे रूचि इतना मदहोश हो गई कि पूछो ही मत… वो ऐसे सीत्कार ‘शिइइइइ शीईईई आह्ह्ह ह्ह्ह अह्ह्ह’ कर रही थी जैसे रो रही हो !

पर जब मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो नज़ारा कुछ ओर ही था, वो अपनी गर्दन को पीछे किये हुए अपनी आँखें बंद करके निचले होंठों को दांतों से दबाते हुए मंद सीत्कार कर रही थी जैसे की पक्की रंडी हो!

अब आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार करें और मस्ती में रहें।
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#70
Update 34


माँ-बेटी को चोदने की इच्छा

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा..

मैंने बोला- बस थोड़ी देर रुको, अभी तुम्हें मज़ा आने लगेगा।
तो वो बोली- अब क्या करने वाले हो?


मैंने बिना बोले ही उसके बायें चूचे के निप्पल को अपने मुँह में भर लिया और मस्ती में चूसने लगा जैसे लोग कोल्ड ड्रिंक में स्ट्रॉ डाल कर चुस्की लगाते हैं और दूसरे चूचे को अपनी हथेली से सहलाने लगा जिससे रूचि इतना मदहोश हो गई कि पूछो ही मत… वो ऐसे सीत्कार ‘शिइइइ शीईईई आह्ह्ह ह्ह्ह अह्ह्ह’ कर रही थी जैसे रो रही हो !

पर जब मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो नज़ारा कुछ ओर ही था, वो अपनी गर्दन को पीछे किये हुए अपनी आँखें बंद करके निचले होंठों को दांतों से दबाते हुए मंद सीत्कार कर रही थी जैसे की पक्की रंडी हो!

अब आगे:

फिर मैंने भी अपने हाथों को उसके पीछे ले जाकर उसकी गर्दन को सहारा दिया और उसकी गोरी चिकनी गर्दन को चाटने लगा जिससे उसका खुद पर से काबू टूट गया और वो भी अपने हाथ मेरे पीछे ले जाकर अह्ह अह्ह शिइइई… करती हुई अपने सीने से दबाने लगी जिससे उसकी गठीली चूचियाँ मेरे सीने पर रगड़ खा रही थी।

मैं इतना गर्म हो गया था कि मुझे लग रहा था कि अबकी तो मैं ऐसे ही बह जाऊँगा।
फिर मैंने सोचा कि कुछ और करके देखते हैं तो मैंने फिर से उसे दबाते हुए पूरी तरह से बेड पर लिटा दिया और उसके ऊपर लेटकर उसके कान के पास किस करते हुए काट भी रहा था, जिससे उसको भरपूर जवानी का सुख मिल रहा था जो उसने मुझे बाद में बताया।

फिर मैंने धीरे से अपने पैर एडजस्ट कुछ इस तरह किया जिससे उसकी चूत का मिलान मेरे खड़े लौड़े पर होने लगा तो मैंने महसूस किया की उसकी चूत भी पूरी चूत रस से सनी थी और गजब की गर्मी फेंक रही थी।

मैंने सयंम रखा… दोस्तो, मैं चाहता तो उसकी चूत मैं अपना लौड़ा डाल सकता था पर वो कभी चुदी नहीं थी और हम लोग काफी देर से अंदर भी थे इससे माया को शक भी हो सकता था क्योंकि पहली बार चुदने के बाद कोई भी लड़की हो उसकी चाल सब बता देती है कि यह लण्ड खाकर आई है।
इसलिए मैंने ऊपर से अपने लण्ड को उसकी चूत के दाने पर सेट किया और रगड़ने लगा जिससे रूचि मदहोशी में आकर आह… अह्हह करके सीत्कार करने लगी।

फिर मैंने उसके होंठों को मुँह में भर चूसना चालू कर दिया ताकि आवाज़ कुछ काम हो सके और अपने दोनों हाथों को उसकी चूचियों की सेवा में लगा दिया जो जम के उसके चूचों की सेवा कर रहे थे।
रूचि मदहोशी कर इतना भूल चुकी थी कि वो अभी घर पर है और सब लोग बाहर ही बैठे हैं, वो पागलों की तरह अपनी कमर उठा उठा कर तेज़ी से मेरे लण्ड पर रगड़ मारते हुए ‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह अह्ह्ह उउम्म्ह्ह ह्ह्ह्हह’ करते हुए अपनी गर्दन इधर उधर पटकने लगी थी।



उसकी इस हरकत को भांप कर मैं समझ गया कि यह झड़ने वाली है तो मैंने भी अपनी गति बढ़ा दी ताकि मेरा भी पानी निकल जाये और उसकी चूत की चिकनाहट से लौड़ा आराम से रगड़ खा रहा था जिसे हम दोनों मस्ती से एन्जॉय कर रहे थे।


अचानक उसने चादर को अपने दोनों हाथों में भर कर अपने दोनों पैरों को तान कर बेड से चिपका लिया और एक भारी ‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह’ के साथ अपना पानी छोड़ दिया जिसका साफ़ एहसास मुझे मेरे लण्ड पर हो रहा था, उसकी चूत के गर्म लावे और उसकी इस अदा को मेरा लौड़ा भी बर्दाश्त न कर सका और मेरा भी माल बह निकला जिसे उसने महसूस करते मेरे गले अपने हाथो से फंडा बनाते हुए मुझे अपने सीने से चिपका लिया और इस बार उसने खुद ही मेरे होंठों को अपने होंठों से जकड़ कर चूसने लगी।

कोई 5 मिनट बाद हमारी होंठ चुसाई छूटी तो उसने मुझे बोला- राहुल.. आई लव यू… यू आर अमेज़िंग… आई एम इन स्काई…I love you… You are amazing… I am in the sky…

फिर हम दोनों उठे तो मैंने बेड की चादर देखी तो बहुत आश्चर्य हुआ कि वो इतना कैसे भीग गई क्योंकि माया के साथ भी ऐसा करता था पर इतना चादर कभी न भीगी थी।
खैर कुछ भी कहो, दोनों को खूब मज़ा आया था और उसके चेहरे की चमक बता रही थी कि उसको भी बहुत मज़ा आया।

वो उठी- राहुल यार, इतना मज़ा जब ऊपर से आया है तो अंदर जा कर तो यह बवाल ही मचा देगा… कसम से मुझे इतना अच्छा कभी नहीं लगा…
तो मैंने बोला- हाँ ये तो है!

तो वो तुरंत बोली- क्यों न अभी करके दिखाओ तुम?

तो मैंने उसके गालों पर किस किया और बोला- जान थोड़ा इंतज़ार करो अभी तुम्हारी माँ को शक हो सकता है, तुम मेरे साथ बैग पैक करने आई हो, ज्यादा समय लगता है उसमें और हम वैसे ही इतना देर तक समय बिता चुके हैं, अब यह काम मेरा है, तुम फ़िक्र मत करो, जल्द ही तुम्हें वो मज़ा भी दूँगा जो हर लड़की और औरत चाहती है।
तो वो बोली- औरत क्यों चाहेगी? उसका तो हस्बेंड उसे मज़े देता ही होगा!

मैं कुछ नहीं बोला और अपने सारे कपड़े उतार कर जींस टी-शर्ट पहनने लगा और इस बीच रूचि मुझे बराबर छेड़ती रही जैसे कभी मेरी छाती में किस करे, कभी मेरे लौड़े से खेले, उसे किस करे, कभी हल्के हाथों से मेरी पीठ सहलाये…
जिससे मुझे ऐसा लग रहा था कि रूचि मेरे दोस्त की बहन नहीं बल्कि मेरी बीवी है।

मैंने कपड़े पहने और उसे भी बोला- जल्दी से तुम भी कपड़े पहन लो!
पर वो चुहलबाज़ी में पड़ी थी और बोले जा रही थी- मेरा तो अभी और करने का मन कर रहा है।
मैंने बोला- मैं कहीं शहर छोड़ कर नहीं जा रहा हूँ… पहले जल्दी से चादर बदलो।

तो वो उठी और सूंघते हुए बोली- यार क्या खुशबू है मिली जुली सरकार की!
तो हम दोनों ही हंस दिए।

फिर उसने बोला- यह तो धोनी भी पड़ेगी!

कहते हुए बाथरूम में चादर को टब में भिगो के डाल आई और दूसरी चादर बिछा कर अपने कपड़े पहनने के बजाय फिर मेरे गले में अपने हाथों को डालकर मुझे ‘आई लव यू…’ बोलते हुए चूमने लगी जिससे मुझे भी बहुत मज़ा अ रहा था और मेरे हाथ उसके नग्न शरीर पर फिसलने लगे थे।
छोड़ कर जाने का तो मन नहीं था पर प्लान के मुताबिक जाना भी था ताकि दो दिन और समय मिले उन लोगों के साथ वक्त गुजारने के लिए…

और तभी जिस बात का डर था, वही हुआ, बाहर दरवाज़े पर ठक ठक ठक होने लगी, हम दोनों ही घबरा गए कि कौन हो सकता है जो बिना रुके दरवाज़े को ठोके जा रहा है?

फिर मैंने ऊँचे स्वर में बोला- कौन है? अभी आया खोलने!

और रूचि तुरंत ही अपने कपड़े लेकर बाहर भागी, मैंने भी भूसे की तरह बैग भरकर चैन बंद की और पीठ पर टांग के दरवाज़ा खोलने चल दिया।

अब आगे क्या हुआ?
कौन था दरवाजे पर?
हम पर क्या बीती?
जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार करें और मस्ती में रहें।
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#71
Bhai ruchi ki chudayi ka intezar h
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#72
hi bro... ma or beti sath me chudwaho... galli dekar gulam bana do....

[Image: a-mahta-sssenojy.jpg]
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#73
Update 35

माँ-बेटी को चोदने की इच्छा

कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा..

और तभी जिस बात का डर था, वही हुआ, बाहर दरवाज़े पर ठक ठक ठक होने लगी, हम दोनों ही घबरा गए कि कौन हो सकता है जो बिना रुके दरवाज़े को ठोके जा रहा है?

फिर मैंने ऊँचे स्वर में बोला- कौन है? अभी आया खोलने!

और रूचि तुरंत ही अपने कपड़े लेकर बाहर भागी, मैंने भी भूसे की तरह बैग भरकर चैन बंद की और पीठ पर टांग के दरवाज़ा खोलने चल दिया।

फिर मैंने जैसे ही दरवाज़ा खोला तो मैं माया को देखकर एक पल के लिए घबरा सा गया था कि पता नहीं कहीं इन्होंने कुछ सुन या देख तो नहीं लिया?
पर दरवाजा खुलते ही उन्होंने जो बोला, उससे मेरा डर एक पल में ही छू हो गया क्योंकि दरवाज़ा खुलते ही माया बोली- अरे राहुल, तुम अभी तक तैयार होकर गए नहीं? क्या इरादा ही नहीं जाने का?

मैं बोला- अरे नहीं ऐसा नहीं है, मेरी कुछ चीज़ें नहीं मिल रही थी तो उन्हें खोजने में समय लग गया… खैर अब सब मिल चुका है।
तो वो बोली- यह क्या? ऐसे ही जायेगा क्या? तुम्हारी माँ देखेगी तो बोलेगी मेरा लड़का आवारा हो गया है।

तो मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखा तो वो मेरा हाथ पकड़कर कमरे में लगे बड़े शीशे की ओर लाई और खुद कंघा उठा कर मेरे बाल सही करने लगी।
तो मैंने बोला- आप रहने दें, मैं कर लूंगा। और रूचि अभी बाथरूम से निकलेगी तो यह देखकर मुझे चिढ़ाएगी जो मुझे अच्छा नहीं लगेगा।
तो वो मेरे गालों पर चुम्बन करके कंघे को मुझे देती हुई बाथरूम की ओर चल दी, और जैसे ही दरवाज़े के पास पहुंची कि रूचि खुद ही बाहर आ गई।

और उसे देखते ही माया ने कहा- अरे मेरा बच्चा, तुम्हारी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है… क्या डॉक्टर के पास चलें?
तो रूचि बोली- नहीं माँ, मैंने अभी दवाई ली है, देखते हैं अगर मुझे अब लगता है कि अभी सही नहीं हुआ तो मैं बता दूंगी।



फिर मैं भी बोला- अरे आंटी, बेकार की टेंशन मत लो, होता है!
और मैं रूचि की चुहुल लेते हुए बोला- अभी इसका पेट साफ़ हो रहा है, आप देखती जाओ, इन दो दिनों में इसकी सारी शिकायत दूर हो जाएगी।

तो आंटी बोली- ऐसे कैसे?
तो मैं बोला- अरे मैं हूँ ना… इसे इतना खुश रखूँगा कि इसकी बिमारी दूर हो जायेगी। डॉक्टर भी बोलते है कि हंसने से कई बिमारियों का इलाज़ अपने आप हो जाता है। तो वो भी मेरी बात से सहमत होते हुए हम्म बोली।
फिर मैंने कंघा रखा और प्लान के मुताबिक मैंने आंटी से कहा- अच्छा, मैं अब चल रहा हूँ। और रूचि तुम ठीक समय पर फ़ोन कर देना।
‘ठीक है…’
पर यह साला क्या? बोल तो मैं रूचि से रहा था, पर मेरी नज़रें रूचि के चेहरे की ओर न होकर उसके चूचों पर ही टिकी थी, क्या मस्त लग रही थी यार… शायद क्या बिल्कुल यक़ीनन… उसने टॉप के नीचे कुछ न पहना था जिससे उसके संतरे संतरी रंग के ऊपर से ही नज़र आ रहे थे जिसे माया और रूचि दोनों ही जान गई थी कि मेरी निगाह किधर है।

माया ने मेरा ध्यान तोड़ने के लिए ‘अच्छा अब जल्दी जा, नहीं तो आएगा भी देर में…’ और रूचि इतना झेंप गई थी कि पूछो ही मत!

इतना सुनते ही वो चुपचाप वहाँ से अपने बेड पर आराम करने का बोल कर लेट गई और मैं वहाँ से बाहर आने के लिए चल दिया।
साथ ही साथ माया भी मुझे छोड़ने के लिए बाहर आते समय पहले रूचि के दरवाज़े को बाहर से बंद करते हुए बोली- बेटा, तू आराम कर ले थोड़ी देर, अभी तुमने दवाई ली है, मैं दरवाज़ा बाहर से बंद कर लेती हूँ।
बोलते हुए दरवाज़ा बंद किया और इधर मैं भी मन ही मन खुश था कि आंटी को तो पता ही नहीं चल पाया कि रूचि ने आज मेरी ही टॉनिक पी है जिसके बाद अच्छा आराम मिलता है।

तभी आंटी ने मेरा हाथ पकड़ा और किचेन की ओर चल दी, जब तक मैं कुछ समझ पाता, उसके पहले ही उन्होंने फ़्रिज़ से बोतल निकाली और मेरे हाथों में देते हुए बोली- अब विनोद अगर बीच में उठता है तो तुम बोलना कि मैं पानी पीने आया था।

तो मैं बोला- फिर आप?

तो उन्होंने कुछ बर्तन उठाये और सिंक में डाल दिए और धीमा सा नल का पानी चालू कर दिया।
मैं उनसे बोला- जान क्या इरादा है? जाने का मन तो मेरा भी नहीं है, पर जाना पड़ेगा और वैसे भी अभी थोड़ी देर में ही फिर आता हूँ।

वो बोली- वो मुझे पता है, पर कितनी देर हो गई कम से कम एक पप्पी ही ले ले !
कहते हुए उन्होंने मेरे होठों को अपने होठों में भर लिया और किसी प्यासे पथिक की तरह मेरे होठों के रस से अपनी प्यास बुझाने लगी।

और मैंने भी प्रतिउत्तर मैं अपने एक हाथ से उनकी पीठ सहलाना और दूसरे हाथ से उनके एक चुच्चे की सेवा चालू कर दी और मन में विचार करने लगा कि माँ और बेटी दोनों मिलकर मेरे लिए इस घर को तो स्वर्ग ही बना देंगी आने वाले दिनों में।
इतना सोचना था कि नहीं मेरे लौड़े ने भी मेरे विचार को समर्थन देते हुए खुद खड़ा होकर माया की नाभि में हलचल मचा दी जिसे माया ने महसूस करते ही मेरे जींस के ऊपर से मेरे लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर लिया और उसे दबाते हुए बोलने लगी- क्यों राहुल, अभी रूम में तुम्हारी नज़र किधर थी?

मैं बोला- किधर?
वो बोली- मैंने देखा था जब तुम रूचि के स्तनों को देख रहे थे।
तो मैं बोला- अरे ऐसा नहीं है…

तो बोली- अच्छा ही है अगर ऐसा न हो तो !

मैंने उनके विचारों को समझते हुए उन्हें कसके बाँहों में जकड़ लिया मानो उन्हें तो मन में गरिया ही रहा था पर फिर भी मैंने उनके होठों को चूसते हुए बोला- जब इतनी हॉट माशूका हो तो इधर उधर क्या ताड़ना, और वैसे भी तुमने मेरे लिए अनछुई कली का इंतज़ाम करने का वादा किया है, तो मुझे और क्या चाहिए।

तो वो बोली- उसकी फ़िक्र मत करो पर मेरी बेटी का दिल मत तोड़ना अगर पसंद हो तो जिंदगी भर के लिए ही पसंद करना।

मैंने उनके माथे को चूमा और स्तनों को भींचते हुए बोला- अच्छा, अब मैं चल रहा हूँ, वरना मैं शाम को जल्दी नहीं आ पाऊँगा।
कहते हुए मैं उनके घर से चल दिया और आंटी भी मुस्कुराते हुए बोली- चल अब जल्दी जा, और आराम से जाना और तेरी माँ को बिल्कुल भी अहसास न होने देना।
अब आगे की कहानी का इंतज़ार करें।
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#74
Update 36


माँ-बेटी को चोदने की इच्छा



मैं अपनी कहानी पर आता हूँ, कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा..

मैंने आंटी के माथे को चूमा और स्तनों को भींचते हुए बोला- अच्छा, अब मैं चल रहा हूँ, वरना मैं शाम को जल्दी नहीं आ पाऊँगा।
कहते हुए मैं उनके घर से चल दिया और आंटी भी मुस्कुराते हुए बोली- चल अब जल्दी जा, और आराम से जाना और तेरी माँ को बिल्कुल भी अहसास न होने देना।

अब आगे:
मैं उनके घर से जैसे तैसे निकला और रास्ते भर अपने खड़े लण्ड को दिलासा देता रहा कि ‘प्यारे अभी परेशान न कर, दुःख रहा है, तू बैठ जा, तेरा जुगाड़ जल्दी ही होगा…’ क्योंकि माया की हरकत ने मेरे लौड़े को तन्ना कर रख दिया था, उसके हाथों के स्पर्श से मेरा लौड़ा इतना झन्ना गया था कि बैठने का नाम ही नहीं ले रहा था।

जैसे तैसे मैं घर पहुँचा, दरवाज़ा खटखटाया तो माँ ने ही दरवाज़ा खोला और मुझे देखते ही बोली- अरे राहुल बेटा, तुम आ गए।
मैंने बोला- हाँ माँ!
तो वो बोली- तुम इतनी देर से क्यों आये?
तो मैं बोला- आ तो जल्दी ही रहा था पर वो लोग अभी तक नहीं आये और फ़ोन भी नहीं लग रहा था तो आंटी बोली शाम तक चले जाना। तो मैं अब आ गया।

फिर माँ बोली- वो लोग आ गए?
मैं बोला- नहीं, अभी तक तो नहीं आये थे, आ ही जायेंगे।
वो बोली- अच्छा जाओ मुँह हाथ धो लो, मैं चाय बनाती हूँ।
बस फिर क्या था, मैं तुरंत ही गया और सबसे पहले जींस को उतार कर फेंका और रूम अंदर से लॉक करके अपने लौड़े को हाथ से हिलाते हुए बाथरूम की ओर चल दिया, इतना भी सब्र नहीं रह गया था कि मैं अपने आप पर काबू रख पाता और बहुत तेज़ी के साथ सड़का मारने लगा।

आँखें बंद होते ही मेरे सामने रूचि का बदन तैरने लगा और कानो में उसकी ‘अह्ह ह्ह्ह शिइई इइह…’ की मंद ध्वनि गूंजने लगी।
मैं इतना बदहवास सा हो गया था कि मुझे होश ही नहीं था की मैं सड़का लगा रहा हूँ या उसकी चूत पेल रहा हूँ।
खैर जो भी हो, आखिर मज़ा तो मिल ही रहा था और देखते ही देखते बहुत तेज़ी के साथ मेरे हाथों की रफ़्तार स्वतः ही धीमी पड़ने लगी और मेरा वीर्य गिरने लगा।

मैं सोचने लगा ‘जब इन दो पलों में इतना मज़ा आया है, तो मैं उसे जब चोदूंगा तो कितना मज़ा आएगा!’
‘पर कैसे चोदूँ’ उसे यही उधेड़बुन मेरे अंतर्मन को और मेरी कामवासना धधकाये जा रही थी कि कैसे करूँगा मैं रूचि के साथ… अब तो घर में माया के साथ साथ विनोद भी है।
‘क्या करूँ जो मुझे रूचि के साथ हसीं पल बिताने का मौका मिल जाये!’
इसी के साथ मैंने मुँह पर पानी की ठंडी छींटे मारे और लोअर पहनकर बाहर आ गया, पर मन मेरा रूचि की ओर ही लगा था, इन दो दिनों में मुझे हर हाल में उसे पाना ही होगा कैसे भी करके!

तब तक माँ ने आकर चाय सोफे के पास पड़ी मेज़ पर रख दी थी जिसे मैं नहीं जान पाया था, मेरी इस उलझन की अवस्था को देखते हुए माँ ने कहा- क्या हुआ राहुल, तुमने चाय पी नहीं?



मैं बोला- कुछ नहीं माँ, बस यही सोच रहा हूँ कि मेरा दोस्त घर पहुँचा या नहीं क्योंकि आंटी को बच्चों की तरह डर लगता है।
माँ बोली- होता है किसी किसी के साथ ऐसा…
मैं बोला- माँ, बस उन्हें होरर फिल्म की आवाज़ सुना दो, फिर देखो !
माँ बोली- अच्छा ऐसा क्या हुआ?

तो मैं बोला- माँ, अभी कल ही मैं टीवी देख रहा था कि अचानक सोनी चैनल लग गया और उस वक़्त उसमें ‘आहट’ आ रहा था तो उसमे डरावनी आवाज़ सुनते ही आंटी पागल हो उठी उन्होंने झट से टीवी बंद कर दिया और मुझसे बोली- अब रात को मेरे कमरे में ही सोना, नहीं तो मुझे डर लगेगा तो पता नहीं क्या होगा।

उस पर मैं बोला- अच्छा आंटी कोई बात नहीं!
और फिर सोते समय जान बूझकर वही सीन उन्हें दिलाने लगा मस्ती लेने के लिए… आंटी बाथरूम जा ही रही थी कि फिर से मारे डर के दौड़ के मेरे पास आने लगी और उनका कपड़ा पता नहीं कैसे और कहाँ फंसा तो वो गिर पड़ी।

तो माँ ने मुझे डांटा कि ऐसा नहीं करते हैं।

हम चाय पीने लगे और चाय ख़त्म होते ही माँ कप लेकर किचन की ओर जाने लगी, तभी उनका फ़ोन बजा और मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।

माँ ने फ़ोन उठाया और चहक कर बोली- अरे रूचि, अभी राहुल तुम्हारे ही घर की बात कर रहा था।

फिर दूसरी तरफ की बात सुनने लगी और कुछ देर बाद फिर बोली- हाँ, वो यहीं है, अभी आया है कुछ देर पहले…

‘क्यों क्या हुआ?’ कहकर फिर शांत हो गई, उधर की बात सुनने लगी और क्या बताऊँ यारो, मेरी फटी पड़ी थी क्योंकि अबकी बार सब नाटक हो रहा था फिर तभी मैंने सुना, माँ बोली- अरे कैसे?
फिर शांत हो कर कुछ देर बाद बोली- अब कैसे और कब तक आओगी?

तो वो जो भी बोली हो फिर माँ बोली- अरे कोई नहीं, परेशान मत हो, मैं राहुल को भेज दूंगी, तुम लोग अपना ध्यान रखना।

मैं तो इतना सुनते ही मन ही मन बहुत खुश हो गया कि चलो अब तो ऐश ही ऐश होने वाली है।

तभी माँ फ़ोन रखकर किचन में गई, मैं उनके पीछे पीछे गया, पूछने लगा- माँ क्या हुआ? रूचि घर क्यों बुला रही थी?

तो माँ ने जो बोला उसे सुनकर मैं तो हक्का बक्का सा हो गया, ‘साली बहुत ही चालू लौंडिया थी क्योंकि प्लान दो दिन का था पर अब 5 दिन का हो चुका था!
वो कैसे?
तो अब सुनें, माँ ने बोला कि उसकी तबीयत कुछ खराब हो गई थी जिसकी वजह से उनकी ट्रेन छूट गई थी और वापसी के लिए उन्हें रिजर्वेशन भी नहीं मिल पा रहा है। जैसे तैसे उनका रिजर्वेशन तो हो गया पर पांच दिन के बाद का मिला है। और हाँ, वो बोली है कि माँ से पैसे लेकर विनोद के अकाउंट में ट्रांसफर कर दें कल, क्योंकि उनके पास पैसे भी कम हो गए हैं।

तो मैं बोला- ठीक है, पर अब मैं क्या करूँ?

तो वो बोली- करना क्या है, अपना बैग उठा और आंटी के पास जा और हाँ अब उन्हें डराना नहीं, नहीं तो मैं तुझे मारूँगी और उनसे पूछूँगी कि कोई शरारत तो नहीं की तूने फिर से… इसलिए अब अच्छे बच्चे की तरह रहना 5 से 6 दिन… अब जा जल्दी, देर न कर !

तो मैं बोला- ठीक है माँ!
और मैं ख़ुशी में झूमता हुआ अपने दूसरे कपड़ों को निकाल कर रखने लगा और अपनी उस चड्डी को जो की रूचि की चूत रस भीगी हुई थी, उसे बतौर निशानी मैंने अपनी ड्रॉर में रख दी जिसकी चाभी सिर्फ मेरे ही पास थी, उसे मेरे सिवा कोई और इस्तेमाल नहीं करता था।
फिर बैग पैक करके मैं उनके घर की ओर चल दिया पर मैं रूचि को चोदना चाहता था इसलिए मैं प्लान बना रहा था कि कैसे हमें मौका मिल सकता है।
तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यों न माया से इस विषय पर बात की जाये।

…अब आप लोग सोच रहे होंगे कि माया से में किस विषय पर बात करने की सोच रहा हूँ तो अब आप लोग भी सोचें कि मैं माया आंटी से किस विषय पर बात करूँगा।
कहानी जारी रहेगी।
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#75
Update 37

माँ बेटी को चोदने की इच्छा

कहानी में अब तक आपने पढ़ा
मैं ख़ुशी में झूमता हुआ अपने दूसरे कपड़ों को निकाल कर रखने लगा और अपनी उस चड्डी को जो की रूचि की चूत रस भीगी हुई थी, उसे बतौर निशानी मैंने अपनी ड्रॉर में रख दी जिसकी चाभी सिर्फ मेरे ही पास थी, उसे मेरे सिवा कोई और इस्तेमाल नहीं करता था।
फिर बैग पैक करके मैं उनके घर की ओर चल दिया पर मैं रूचि को चोदना चाहता था इसलिए मैं प्लान बना रहा था कि कैसे हमें मौका मिल सकता है।
तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यों न माया से इस विषय पर बात की जाये।

अब आगे:

फिर मैं यही विचार मन में लिए उनके घर की बजाये, पास में ही एक पार्क था, तो मैं वहाँ चल दिया, और दिमाग लगाने लगा कि कैसे स्थिति को अनुरूप किया जा सके। फिर यही सोचते सोचते पार्क में बैठा ही था कि माया का फोन आया- क्यों राजा बाबू, माँ ने अभी परमिशन नहीं दी क्या?

मैं- नहीं, उन्होंने तो भेज दिया है।
‘फिर तू अभी तक आया क्यों नहीं?’
तो मैं बोला- अरे, ऐसा नहीं है, मैं थोड़ा परेशान हूँ, इसी लिए पार्क में बैठा हूँ।

उन्होंने मुझसे मेरी परेशानी के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें कहा- आप मदद तो कर सकती हो, पर कैसे… यह सोच रहा हूँ।
तो वो बोली- अरे बात तो बता पहले, ये क्या पहेलियाँ बुझा रहा है?

तो मैंने उन्हें अपने मन की अन्तर्पीड़ा बताई तो वो बोली- पागल, पहले क्यों नहीं बताया? यह तो मैं भी चाहती थी।
मैं बोला- फिर आपके पास कोई प्लान है?
वो बोली- नहीं, पर तुम कोई जुगाड़ सोचो!
मैं बोला- अच्छा, फिर मैं ही कुछ सोचता हूँ, बस आप मेरा साथ देना, बाकी का मैं खुद ही देख लूंगा।

तो वो बोली- बिल्कुल मेरे राजा, पर थोड़ा जल्दी से सोच और घर आ जा!



मैं पुनः सोच ही रहा था कि पास बैठे कुछ बच्चों के गानों की आवाज़ आई, मैंने देखा लो वहाँ कुछ बच्चे ग्रुप में बट कर अन्ताक्षरी खेल रहे हैं और हारने पर एक दूसरे को कुछ न कुछ दे रहे थे जैसे कि कभी कोई टॉफी तो कभी चॉकलेट, कभी लोलीपोप!

तो मेरे दिमाग में तुरंत यह बात बैठ गई और मैंने सोचा कि क्यों न इस खेल को बड़े स्तर पर खेला जाये?
और प्लान बनाते ही बनाते मैं मन ही मन चहक सा उठा क्योंकि इस प्लान से मुझे ऐसी आशा की किरण दिखने लगी थी जिसकी परिकल्पना करना हर किसी के बस की बात नहीं थी, यहाँ तक मैंने भी कुछ देर पहले ऐसा कुछ भी नहीं सोचा था पर मुझे प्रतीत हो गया था कि अब मेरे कार्य में किसी भी प्रकार की कोई बाधा नहीं आएगी।

बस अब रूचि को तैयार करना था साथ देने के लिए तो मैंने तुरंत ही अपना फ़ोन निकाला और रूचि को कॉल किया। जैसे जैसे उधर फोन पर घंटी बज रही थी, ठीक वैसे ही वैसे मेरे दिल की घंटी यानि धड़कन…
खैर कुछ देर बाद फ़ोन उठा पर मैं निराश हो गया क्योंकि उधर से फ़ोन रूचि ने नहीं बल्कि मेरे दोस्त विनोद ने उठाया था। जैसे उसकी आवाज़ मेरे कान में पड़ी, मैं तो इतना हड़बड़ा गया था, जैसे मेरे तोते ही उड़ गए हों। फिर उधर से तीन चार बार ‘हेलो हेलो’ सुनने के बाद मैं ऐसे बोला जैसे उल्टा चोर कोतवाल को डांटे… मैं बोला- क्यों बे, फोन की जब बेटरी चार्ज नहीं कर सकते तो रखता क्यों है, कब से तेरा फोन मिला रहा हूँ!

अब आप सोच रहे होंगे ऐसा मैंने क्यों कहा, तो आपको बता दूँ कि हर भाई को अपनी बहन की चिंता होती है और मेरे अचानक से उसके फोन पर फोन करने उसके मन पर कई तरह के प्रश्न उठ सकते थे क्योंकि ऐसा पहली बार था जब मैंने रूचि को अपने फोन से काल की थी।

खैर हम अपनी कहानी पर आते हैं।
तो वो बोला- बेवकूफ हो का बे? मेरा फोन तो ओन है।
मैंने बोला- फिर झूट बोले?
तो बोला- सच यार… अभी रुक और उसने अपने फोन से कॉल की ओर देखा मेरा नंबर वेटिंग पर आ रहा है।

मैंने बोला- हम्म आ तो रहा है पर मिल क्यों नहीं रहा था?
वो बोला- होगा नेटवर्क का कोई इशू…
मैं बोला- चल छोड़, यह बता मैं आ रहा था तो सोच रहा हूँ बाहर से कुछ ले आऊँ खाने पीने के लिए?

वो बोला- रहने दे यार, माँ खाना बना ही रही है।
तब मुझे कुछ आवाज़ सुनाई दी जो रूचि की थी पर मुझे यह तब मालूम पड़ा जब उसने खुद विनोद से फोन लेकर हेलो कहा, बोली- अरे आप हो कहाँ? आये नहीं अभी तक?
मैंने बोला- पास में विनोद हो तो थोड़ा दूर हटकर बात करो, जरूरी बात करनी है।
वो बोली- अच्छा!

और फिर कुछ रुक कर बोली- वैसे आप लाने वाले क्या थे?
मैं बोला- जो तुम कहो?
तो वो बोली- खाना तो बन ही गया है, आप थम्स-अप लेते आना, खाने के बाद पी जाएगी।

साथ बैठकर कहती हुई वो विनोद से दूर जाने लगी और उचित दूरी पर पहुँच कर मुझसे बोली- हाँ बताओ, क्या जरूरी बात थी?
मैं बोला- मेरे दिमाग में एक प्लान है जिसे सुनकर तुम झन्ना जाओगी और सबके साथ रहते हुए भी हम साथ में वक़्त गुजार पाएंगे।

तो वो बोली- लव यू राहुल, क्या ऐसा हो सकता है?
मैं बोला- क्यों नहीं, अगर तुमने साथ दिया तो!
फिर वो बोली- अरे, मैं क्यों नहीं दूंगी साथ… पर अपना प्लान तो बताओ?

मैंने उसे अपना प्लान सुना दिया तो वो बहुत खुश हुई और मारे ख़ुशी के उछलने सी लगी थी और मुझसे कहने लगी- जल्दी से आ जाओ, अब मुझे तुम्हारी जरूरत है। क्या प्लान बनाया… मास्टर माइंड निकले तुम तो!
कहते हुए बोली- अब और देर न करो, बस जल्दी से आओ।
मैंने बोला- बस अभी आया!
और फ़ोन काट दिया।
अब आप लोग सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा प्लान मैंने बनाया जिससे मेरी चूत इच्छा आसानी से पूरी हो सकती थी, वो भी सबके रहते हुए?
तो दोस्तो, थोड़ा इंतज़ार करें और अपने अपने लौड़े और चूतों को सहलाते हुए सोचते रहें कि ऐसा क्या होने वाला है।
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#76
Update 38


माँ बेटी को चोदने की इच्छा


अभी तक आपने पढ़ा:

मैं बोला- क्यों नहीं, अगर तुमने साथ दिया तो!
फिर वो बोली- अरे, मैं क्यों नहीं दूंगी साथ… पर अपना प्लान तो बताओ?

मैंने उसे अपना प्लान सुना दिया तो वो बहुत खुश हुई और मारे ख़ुशी के उछलने सी लगी थी और मुझसे कहने लगी- जल्दी से आ जाओ, अब मुझे तुम्हारी जरूरत है। क्या प्लान बनाया… मास्टर माइंड निकले तुम तो!
कहते हुए बोली- अब और देर न करो, बस जल्दी से आओ।
मैंने बोला- बस अभी आया!
और फ़ोन काट दिया।

अब आगे:
फिर मैं उठा और विनोद के घर की ओर चल दिया और कुछ ही देर में मैं उसके घर के पास पहुँच गया, उसके अपार्टमेंट के पास एक बेकरी की शॉप थी जहाँ से मैंने रूचि के लिए थम्स-अप की बड़ी बोतल ली और अपार्टमेंट में जाने लगा।

जैसे ही मैंने घंटी बजाई, वैसे ही अंदर से विनोद की आवाज आई- कौन?

मैं बोला- दरवाज़ा भी खोलेगा या नहीं?
तो वो बिना बोले ही आया और दरवाज़ा खोला, मैंने अंदर जाते हुए उससे पूछा- आंटी और रूचि कहाँ हैं?
वो बोला- माँ किचन में है और रूचि शायद रूम में है तो मैंने अपना बैग वहीं सोफे पर रखा और विनोद से बोला- यार कोई बढ़िया चैनल लगाओ, तब तक मैं इसे यानि की कोल्ड्ड्रिंक को फ्रीज़ में लगा कर आता हूँ।
कहते हुए किचन की ओर दबे पाँव जाने लगा।

जैसे ही मैं किचन के पास पहुँचा तो मैं माया को देखकर मतवाला हाथी सा झूम उठा, क्या क़यामत ढा रही थी वो… मैं तो बस देखता ही रह गया, एक पल के लिए मेरे दोनों पैर स्थिर हो गए थे जैसे कि मैं धरती से चिपक गया हूँ, उसने उस वक़्त साड़ी पहन रखी थी और बालों को पोनी टेल की तरह संवार रखा था जो उसके ब्लॉउज के अंतिम छोर से थोड़ा सा नीचे लटक रहे थे और उसका ब्लाउज गहरे गले का होने के कारण उसकी पीठ पीछे से स्पष्ट दिख रही थी जिसकी वजह से मैं मंत्र-मुग्ध सा हो गया था।



जैसे तैसे अपने आप को सम्हालते हुए धीरे से मैं उनके पीछे गया और कोल्ड्ड्रिंक की बोतल को उनकी जांघों के बीच में घुसेड़ते हुए उनके पीछे से में चिपक गया जिससे माया तो पहले चौंक ही गई थी और एक हल्की सी चीख निकल गई पर मुझे देखते ही उसने अपना सर झुका कर मेरे गालों पर चुम्बन लिया और गालों की चुटकी लेते हुए बोली- राहुल, बहुत शैतान हो गए हो तुम… ऐसे कहीं करते हैं मैं अगर जल जाती तो?

मैं तपाक से बोला- ऐसे कैसे जलने देता? मैं हूँ ना… वैसे आज तुम मुझे बहुत ही खूबसूरत लग रही हो!
तो वो बोली- हर समय मक्खन मत लगाया करो!
मैं बोला- नहीं यार, मैं मक्खन नहीं लगा रहा हूँ, सच ही बोल रहा हूँ, तभी तो मैं खुद पर कंट्रोल न रख सका… क्या एक चुम्मी मिलेगी अभी?
तो बोली- नहीं, अभी रूचि कभी भी आ सकती खाना लगाने के लिए… बाद में!
मैं बोला- नहीं, मुझे अभी चाहिए!

वो बोली- अच्छा ठीक है बाबा, परेशान मत हो, बस थोड़ा रुको और देखते जाओ कैसे मैं तुम्हें आज अपने बच्चों के सामने चुम्मी दूँगी।
मैं बोला- देखते हैं क्या कर सकती हो?
और मैंने उन्हें बोतल दी फ्रीज़ में लगाने को और फिर हॉल में आ गया पर मैंने एक चीज़ नोटिस की, वो यह थी कि जो पूरे प्लान का मास्टर माइंड है, वो अभी तक यहाँ मेरे सामने क्यों नहीं आया तो मैंने सोचा खुद ही रूम में जाकर इसका जवाब ले लेता हूँ।

मैंने अपना बैग उठाया और विनोद से बोला- मैं रूम में बैग रख कर आता हूँ और कपड़े भी चेंज कर लेता हूँ।
वो बोला- अबे जा, रोका किसने है तुझे? अपना ही घर समझ!

तब क्या… मैंने बैग लिया और चल दिया रूम की तरफ और अंदर घुसते ही रूचि भूखी बिल्ली की तरह मुझ पर टूट पड़ी और मुझे अपनी बाँहों में लेकर मेरे गालों और गर्दन पर चुम्बनों की बौछार करने लगी। उसकी इस हरकत से मैं समझ गया था कि वो क्यों बाहर नहीं आई थी, शायद इस तरह से वो सबके सामने मुझे प्यार न दे पाती!
फिर मैंने भी उसकी इस हरकत के प्रतिउत्तर में अपने बैग को बेड की ओर फेंक कर उसे बाँहों में भर लिया और उसके रसीले गुलाबी होठों को अपने अधरों पर रखकर उसे चूसने लगा जिससे उसके होठों में रक्त सा जम गया था, मुझे तो कुछ होश ही न था कि कैसी अवस्था में हम दोनों का प्रेममिलाप हो रहा है। वो तो कहो, रूचि ज्यादा एक्साइटेड हो गई थी, जिसके चलते उसने मेरे होठों पर अपने दांत गड़ा दिए थे जिससे मेरा कुछ ध्यान भंग हुआ।

फिर मैंने उसे कहा- यार, तुम तो वाकयी में बहुत कमाल की हो, तुम्हारा कोई जवाब ही नहीं!

वो कुछ शर्मा सी गई और मुस्कुराते हुए मुझसे बोली- आखिर ये सब है तो तुम्हारा ही असर!
मैं बोला- वो कैसे?
तो बोली- जिसे मैंने केवल सुना था, उससे कहीं ज्यादा तुम मेरे साथ कर चुके हो और सच में मुझे नहीं मालूम था कि इसमें इतना मज़ा आएगा जो मुझे तुमसे मिला है। मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार करने लगी हूँ…
‘आई लव यू राहुल…’ कहते हुए उसने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया, उसका सर इस समय मेरे सीने पर था और दोनों हाथ मेरे बाजुओं के नीचे से जाकर मेरी पीठ पर कसे थे और यही कुछ मुद्रा मेरी भी थी, बस फर्क इतना था कि मेरे हाथ उसकी पीठ को सहला रहे थे।
मुझे भी काफी सुकून मिल रहा था क्योंकि अभी हफ्ते भर पहले तक मेरे पास कोई ऐसा जुगाड़ तो क्या कल्पना भी नहीं थी कि मुझे ये सब इतना जल्दी मिल जायेगा!
पर हाँ इच्छा जरूर थी और इच्छा जब प्रबल हो तो हर कार्य सफल ही होता है, बस वक़्त और किस्मत साथ दे !

फिर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो उधर उसका भी वही हाल था वो भी अपनी दोनों आँखें बंद किए हुए मेरे सीने पर सर रखे हुए काफी सहज महसूस कर रही थी जैसे कि उसे उसका राजकुमार मिल गया हो।

मैं इस अवस्था में इतना भावुक हो गया कि मैंने अपने सर को हल्का सा नीचे झुकाया और उसके माथे पर किस करने लगा जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा महसूस होने लगा।
शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही जो उसने मुझे बाद में बताया।
वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी, मैं उसका पहला प्यार बन चुका था!
अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला ही होता है।
आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ तो मैं एकदम ठहर सा जाता हूँ, मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है और रह रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।
आज मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा दौड़ रहा है क्योंकि चुदाई तो मैंने जरूर माया की करी थी पर वो जो पहला इमोशन होता है ना प्यार वाला… वो रूचि से ही प्राप्त हुआ था।

दोस्तो, आज के लिए क्षमा… आज मैं अपनी लेखनी को यही विराम देना चाहूँगा।
अगले भाग के लिए आप इंतज़ार करें, जल्द ही मिलेंगे।
और ये क्या मुझे कुछ लाइन भी याद आ गई आप सभी के लिए…
हम हैं राही प्यार के फिर मिलेंगे चलते चलते…
आप सभी को मेरी ओर से बहुत बहुत आभार जो मेरी कहानी की इतनी सराहना की।
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#77
Update 39



माँ बेटी की चूत चुदाई की इच्छा



आप लोग हो सकता है कि बोर हो रहे हों कि क्या यार फालतू की बातें लिख रहा है.. तो आपको बताना चाहूंगा कि जैसा-जैसा वास्तव में मेरे साथ हुआ था.. वैसा ही लिख रहा हूँ ताकि आप इस कहानी से भावनात्मक रूप से जुड़ सकें.. और ये तभी सम्भव है.. जब ये सारी घटनाएं आपके समक्ष होंगी।

मित्रो.. बिलकुल भी परेशान न हों.. चुदाई भी होगी.. पर समय आने पर.. न कि खोला लण्ड और ‘दो इक्कम दो’ किया और चल दिए अपने घर..

कुछ मनचलों के लिए सन्देश भी है कि कृपया मुझसे कोई भी ऐसी उम्मीद न रखें.. जिससे मेरे या आपके मन को ठेस पहुँचे.. क्योंकि कुछ ऐसे भी लोग है जो कहते हैं.. मुझे भी दिलवा दे.. एक बार मिलवा ही दे.. मैं उनको ये बताना चाहता हूँ कि इस तरह की कोई उम्मीद न धारण करें और इत्मीनान से कहानी का मज़ा लेते हुए सहयोग प्रदान करें। धन्यवाद।

अभी तक आपने पढ़ा…

मैं उसके माथे पर चुम्बन करने लगा जिससे रूचि के बदन में कम्पन सा होता हुआ महसूस होने लगा.. शायद रूचि इस पल को पूरी तरह से महसूस कर रही थी.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया।
वो मुझे बहुत अधिक चाहने लगी थी.. उसका मैं पहला प्यार बन चुका था।

अब आप लोग समझ ही सकते हो कि पहला प्यार तो पहला ही होता है। आज भी जब मैं उस स्थिति को याद कर लेता हूँ.. तो मैं एकदम ठहर सा जाता हूँ।
मेरा किसी भी काम में मन नहीं लगता है और रह-रह कर उसी लम्हे की याद सताने लगती है।

शायद आज भी मैं इसके आगे अब ज्यादा नहीं लिख सकता क्योंकि अब मेरी आँखों में सिर्फ उसी का चेहरा घूम रहा है।
चुदाई तो मैंने जरूर माया की थी.. पर वो जो पहला इमोशन होता है न.. प्यार वाला.. वो रूचि से ही प्राप्त हुआ था।

अब आगे इसी तरह मैंने चुम्बन करते हुए उसके गालों और आँखों के ऊपर भी चुम्बन किया और जैसे ही उसकी गर्दन में मैंने अपनी जुबान फेरी.. तो उसके मुख से एक हलकी सी ‘आह’ फूट पड़ी- आआआअह.. शीईईईई.. मत करो न.. गुदगुदी होती है..

वो मेरी बाँहों में से छूटते हुए बोली- यार अब मुझसे रहा नहीं जाता.. कुछ भी करो.. पर मुझे आज वो सब दो.. जो मुझे चाहिए..

तो मैं बोला- जान बस तुम साथ देना और कुछ न बोलना.. जैसा मैं बोलूँ.. करती जाना.. फिर देखना.. आज नहीं तो कल पक्का तुम्हें मज़ा ही मज़ा दूँगा।

वो बोली- ठीक है.. तुम्हारा प्लान तो ठीक है.. पर भगवान करे सब अच्छा अच्छा ही हो..
तो मैं बोला- तुम फिक्र मत करो.. अब मैं विनोद के पास जा रहा हूँ।
उसने मुझे फिर से मेरे कन्धों पर हाथ रख कर मेरे होंठों पर चुम्बन लिया और बोली- तुम कामयाब होना..

फिर मैं सीधा बाहर आ गया और विनोद के पास आकर बैठ गया और हम इधर-उधर की बात करते हुए टीवी देखने लगे।

इतने में ही रूचि आई और मेरी ओर मुस्करा कर बोली- आप के लिए चाय ले आऊँ?
मैं बोला- अरे खाना खाते हैं न पहले?
तो बोली- खाने में अभी कुछ टाइम और लगेगा..
मैं बोला- फिर चाय ही बना लाओ..

तो बोली- जरूरत नहीं है.. माँ को आपकी पसंद पता है.. वो बना चुकी हैं.. मैं तो बस आपकी इच्छा जानने आई थी कि आप क्या कहते हो?
मैंने कहा- अगर जवाब मिल गया हो.. तो जाओ.. अब ले भी आओ..।

यह कहते हुए मैंने विनोद से बोला- यार ये भी तुम लोगों की तरह.. मेरी मौज लेने लगी.. जैसे मेरे सभी दोस्त चाय के लिए मेरे पीछे पड़े रहते थे..
तभी विनोद भी बोला- और इतनी ज्यादा चाय पियो साले.. मैंने 50 दफा बोला कि सबके सामने अपने इस शौक को मत जाहिर किया करो.. पर तुम मानते कहाँ हो.. अब झेलो..

तभी आंटी और रूचि दोनों लोग आ गईं.. और दूसरी साइड पड़े सोफे पर बैठते हुए बोलीं- आज तो बहुत ही गरम है।
तो मैं हँसते हुए बोला- चाय तो गर्म ही अच्छी होती है।

वो बोली- मैं मौसम की बात कर रही हूँ।

सभी हंसने लगे.. फिर हमने चाय खत्म की और फिर रूचि मेरी तरफ देखते हुए बोली- अच्छा खाना तैयार है.. अब आप बोलें.. कितनी देर में लेना चाहोगे?
उसके इस दो-अर्थी शब्दों को मैंने भांपते हुए कहा- मज़ा तो तभी है.. जब गर्मागर्म हो।
वो भी कातिल मुस्कान लाते हुए बोली- फिर तैयार हो जाओ.. मैं यूं गई और आई..

अब आंटी.. विनोद और मैं उठे और खाने वाली टेबल पर बैठ कर बात करने लगे।

तभी मैंने आंटी को छेड़ते हुए पूछा- आज आप इतना थकी-थकी सी क्यों लग रही हो..?
वो बोलीं- नहीं ऐसा तो कुछ भी नहीं है..
मैं बोला- फिर कैसा है?

वो बोलीं- कुछ नहीं.. बस गर्म बहुत है तभी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है..

मुझे उन्होंने बाद में बताया था कि उन्हें बेचैनी इस बात की सता रही थी कि विनोद के होते हुए हम चुम्बन कैसे लेंगे..

खैर.. फिर मैंने बोला- अरे कोई बात नहीं.. आप खाना खाओ.. फिर आज हम लोग भी एक गेम खेलेंगे।
वो बोलीं- अरे ये गेम-वेम तुम लोग ही खेलना.. मुझे इस चक्कर में मत डालो.. मुझे कोई खेल-वेल नहीं आता।
मैं बोला- अरे ये बहुत मजेदार है.. आप खेल लोगी.. और तो और इससे आपको पुराने दिनों की बातें भी याद आ जाएगीं।

वो बोलीं- ऐसा क्या है.. इस गेम में?
तो मैं आँख से इशारा करते हुए बोला- क्या है.. ये खुद ही देख लेना..
वो समझते हुए बोलीं- अब तुम इतना कह रहे हो.. तो देखते हैं ये कौन सा खेल है?



तभी रूचि आई और मेरी ओर देखकर हँसते हुए बोली- अरे मुझे भी बताओ.. तुम लोग कौन से खेल की बात कर रहे हो?
तो विनोद बोला- हम में से सिर्फ राहुल को ही मालूम है।
मैं बोला- सब कोई खेल सकता है इस खेल को।

तो वो बोला- पहले बता तो दे कि कौन सा खेल है?
मैं बोला- ठीक है.. पहले पेट पूजा बाद में काम दूजा..
एक बार इसी के साथ साथ सब लोग फिर हंस दिए।

अब आप लोगों को बता दूँ कि हम कैसे बैठे थे.. ताकि आप आगे का हाल आसानी से समझ सकें।

खैर.. हुआ कुछ इस तरह कि मेरे दांए सेंटर चेयर पर विनोद बैठा था और मैं उसके बाईं ओर बैठा था। फिर आंटी यानि कि वो मेरे बाईं ओर.. फिर रूचि विनोद के दांई ओर.. यानि कि मेरे ठीक सामने..

तो दोस्तो, दिल थाम कर बैठ जाईए क्योंकि अब असली खेल शुरू होता है।

आंटी ने प्लेट लगाना चालू किया तो सबसे पहले रूचि को दिया.. पर उसने ये बोल कर अपनी थाली को अपने भाई विनोद की ओर सरका दी.. कि माँ आपने इसमें अचार क्यों रख दिया..

तो माया हैरान होकर बोलीं- पर ये तो तुम्हें बहुत पसंद है.. तुम रोज ही लेती हो।
वो बोली- मेरा पेट ख़राब है।

जबकि आपको बता दूँ उसने ऐसा इसलिए किया था ताकि वो देर तक खाना खा सके।

विनोद ने खाना शुरू नहीं किया था तो वो फिर बोली- भैया शुरू करो न..
तो विनोद बोला- पहले सबकी प्लेट लग जाने दे।
वो बोली- अभी जब बन रहा था तो आपको बड़ी भूख लगी थी.. अब खाओ भी.. हम में से कोई बुरा नहीं मानेगा।

तो मैंने भी बोल दिया- हाँ.. शुरू कर यार.. वैसे भी प्लेट तो लग ही रही हैं।

इस पर उसने खाना चालू कर दिया और इधर आंटी ने खाना लगाया और रूचि को प्लेट दी.. तो वो रखकर बोली- सॉरी.. अभी आई.. मैंने हाथ तो धोए ही नहीं..

उसने मुझे आँखों से अपने साथ चलने का इशारा किया.. जिससे मैंने भी तपाक से बोल दिया- अरे हाँ.. मैंने भी नहीं धोए.. थैंक्स रूचि.. याद दिलाने के लिए..
फिर हम उठे और चल दिए।

अब मैं आगे और रूचि मेरे पीछे थी.. शायद उसने इसलिए किया था ताकि मैं पहले हाथ धोऊँ।

मैं वाशबेसिन के पास जाकर हाथ धोने लगा और रूचि से इशारे में पूछा- क्या हुआ?

तो वो फुसफुसा कर बोली- जान कुछ होगा.. तो अपने आप बोलूँगी तुम्हें..
और उसने एक नॉटी स्माइल पास कर दी।

प्रतिक्रिया में मैं भी हंस दिया। मैं हाथ धो ही रहा था.. तभी वो बोली- खाना खाते समय चौंकना नहीं.. अगर कुछ एक्स्ट्रा फील हो तो..
मैं बोला- क्यों क्या करने का इरादा है?

वो बोली- इरादा तो नेक है.. पर हो.. ये पता है कि नहीं.. ये ही देखना है बस..
फिर मैं हाथ धोकर टेबल की ओर चल दिया.. साथ ही साथ सोचने लगा कि रूचि क्या करने वाली है.. ये सोचते हुए बैठ गया।

तब तक मेरी थाली भी लग चुकी थी और आंटी की भी.. उन्होंने खाना भी शुरू कर दिया था।
मेरे बैठते ही बोलीं- चल तू भी शुरू कर..

तो मैंने भी चालू कर दिया.. तभी रूचि आई और बैठते हुए उसने चम्मच नीचे गिरा दी.. जो कि उसकी एक चाल थी। फिर वो चम्मच उठाने के लिए नीचे झुकी.. और उसने एक हाथ से चम्मच उठाई और दूसरे हाथ से मेरे पैरों को खींच कर आगे को कर दिया।

मैंने भी जो हो रहा था.. होने दिया.. फिर वो अपनी जगह पर बैठ गई और अपना खाना शुरू करने के साथ ही साथ उसने अपनी हरकतें भी शुरू कर दीं।

अब वो धीमे-धीमे अपने पैरों से मेरे दायें पैर को सहलाने लगी.. जिससे मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
मेरे चेहरे पर कुछ मुस्कराहट सी भी आ रही थी.. वो बहुत ही सेंसेशनल तरीके से अपने पैरों से मेरे पैर को रगड़ रही थी.. जिसका आनन्द सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।

कुछ ही देर बाद अब हम सिर्फ तीन ही रह गए थे.. यानि कि मैं रूचि और माया क्योंकि विनोद अपना खाना समाप्त करके टीवी देखने चला गया था।

इधर रूचि की हरकत से मैं इतना बहक गया था कि मेरे खाने की रफ़्तार स्वतः ही धीमी पड़ गई थी।
शायद यही हाल उसका भी था.. क्योंकि वो खाना कम.. मेरे पैरों को ज्यादा सहला रही थी।

मैं अपने सपनों में खोने वाला ही था.. या ये कह लो कि लगभग स्वप्न की दुनिया में पहुँच ही गया था कि तभी माया ने अपना खाना समाप्त कर पास बैठे ही मेरे तन्नाए हुए लौड़े पर धीरे से अपने हाथ जमा दिए।

इस हमले से मैं पहले तो थोड़ा सा घबरा सा गया.. पर जल्द ही सम्भलते ही बोला- अरे आंटी आपने तो अपना खाना बहुत जल्दी फिनिश कर दिया?
तो वो बोली- हाँ.. इसी लिए तो बैठी हूँ.. ताकि तुम लोगों को सर्व कर सकूँ।

वो निरंतर मेरे लौड़े को मनमोहक अंदाज़ में सहलाए जा रही थी और उधर रूचि नीचे मेरे पैरों को सहला रही थी.. जिससे मुझे जन्नत का एहसास हो रहा था।

मेरे मन में एक डर भी था कि दोनों में से कोई भी कहीं और आगे न बढ़ जाए वरना सब गड़बड़ हो जाएगी.. क्योंकि अगर रूचि आगे बढ़ती है.. तो माया का हाथ लगेगा और माया आगे बढ़ती है.. तो रूचि का पैर..

फिर मैंने इसी डर के साथ अपने खाने को जल्दी फिनिश किया और उठ कर मुँह धोने के बाद सीधा वाशरूम जाकर मुठ मारने लगा.. क्योंकि इतना सब होने के बाद मैं अपने लौड़े पर काबू नहीं रख सकता था।

शायद मेरी कामुकता बहुत बढ़ गई थी और खुद पर कंट्रोल रख पाना कठिन था।

मुठ्ठ मारने के बाद जब मेरा लण्ड शांत हुआ.. तब जाकर मेरे दिल को भी शान्ति मिली और इस सब में मुझे बाथरूम में काफी देर भी हो चुकी थी.. तो मैंने झट से कपड़े ठीक किए और बाहर निकल कर आ गया।

बाहर आकर देखा सभी टीवी देखने में लगे थे और जैसे ही मैं वहां पहुँचा तो माया और रूचि दोनों ही मुझे देखकर हँसने लगीं.. जिसे मैं भी देखकर शरमा गया था।
मुझे ऐसा लग रहा था कि जो मैंने अभी बाथरूम में किया.. वो सब ये लोग समझ गईं शायद..
मुझे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि मैं आखिर कंट्रोल क्यों नहीं कर पाया।

मैं अभी इसी उलझन में था कि माया ने मुझे छेड़ते हुए बोला- बड़ी देर लगा दी अन्दर.. सब कुछ ठीक है न?

तभी रूचि भी चुहल लेते हुए कहा- कहीं ऐसा तो नहीं मेरी पेट वाली समस्या आपके पास ट्रांसफर हो गई?
तो मैं झेंपते हुए बोला- नहीं कुछ भी गड़बड़ नहीं है.. जैसा आप लोग समझ रहे हैं।

रूचि हँसते हुए बोली- फिर कैसा है?
तो मैंने बोला- अरे मैं टॉयलेट गया था.. तभी मेरी आँख में शायद कोई कीड़ा चला गया था.. तो मैं अपनी आँख धोकर देखने लग गया था कि वो आँख के अन्दर है कि नहीं..

तभी रूचि मेरे पास आई उसने कातिलाना मुस्कान देते हुए कहा- लाओ मैं अभी तुम्हारा कीड़ा चैक किए देती हूँ..
तो मैं बोला- अरे नहीं.. अब हो गया..
वो मेरे लौड़े को देखते हुए बोली- हाँ दिख तो रहा है.. कि साफ़ हो गया।
फिर से चुहलबाज़ी में हँसने लगी।

तभी माया ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा- तू उसे तंग मत कर.. बड़ा है तेरे से..
तब कहीं जाकर रूचि शांत हुई.. फिर हम टीवी देखने लगे कि तभी माया बोली- टीवी में आज कुछ अच्छा आ ही नहीं रहा है..

रूचि भी बोली- हाँ.. माँ आप सच कह रही हो.. मैं भी बोर हो रही हूँ।
तो मैंने भी उनकी ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते हुए अपने प्लान को सफल बनाने के लिए अपनी इच्छा प्रकट की- हाँ यार.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा है..

तो विनोद बोला- फिर क्या किया जाए?
रूचि बोली- कुछ भी सोचो.. जिससे आसानी से टाइम पास हो सके।
वो बोला- अब सोचो तुम ही लोग.. मेरा क्या है.. मैं तो बस शामिल हो जाऊँगा।

अब मुझे अपना प्लान सफल होता हुआ नज़र आने लगा जो कि मैंने घर से आते ही वक़्त बनाया था.. जिसकी सम्पूर्ण जानकारी सिर्फ रूचि को ही थी.. लेकिन प्लान क्या था.. इसके लिए अभी थोड़ा और इंतज़ार कीजिएगा.. जल्द ही मैं इस कहानी के अगले भाग को लिखूंगा और प्लान भी बताऊँगा और तब तक आप भी सोचते रहिए कि आखिर प्लान क्या हो सकता है।

तो दोस्तो, आज के लिए इतना बाकी का अगली कहानी में..

फिर मिलेंगे..
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#78
Mazaa aa gaya..maa ke saamne beti ke saath masti aur beti ke saamne maa ke sath ragdai ho toh mazaa aa jaye..
Plz continue
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