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Misc. Erotica मां बेटी को चोदने की इच्छा (copied)
#41
Update 22


माँ-बेटी को चोदने की इच्छा


अब तक की कहानी में आपने पढ़ा…

माया ने मेरे गालों के दोनों ओर चूम कर अपने होंठों से पुनः मेरे होंठों का करीब एक मिनट तक रसपान करती रही।

वो यूँ ही चूमते हुए धीरे-धीरे नीचे को बढ़ने लगी।

अब आगे..




फिर वो मेरी गर्दन को अपने जीभ की नोक से सहलाने लगी.. जिससे मुझे असीम आनन्द प्राप्त हो रहा था।

फिर वो धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ते हुए मेरी छाती को चूमने लगी और निप्पलों को जुबान से छेड़ने लगी.. जिससे बदन में अजीब सा करेंट दौड़ गया और वो मेरे बदन के कम्पन को महसूस करते हुए पूछने लगी- राहुल कैसा लग रहा है?

तो मैंने कहा- बहुत ही हॉट फीलिंग आ रही है.. मज़ा आ गया।

फिर वो धीरे-धीरे मेरे निप्पलों को जुबान की नोक से छेड़ते हुए अपने हाथों को मेरे लोअर तक ले गई और चाटते हुए नीचे को बैठने लगी।

फिर जैसे ही उसने मेरी नाभि के पास चुम्बन लिया तो मेरे बदन में एक अज़ीब सी सिहरन हुई।

तो उसने मुस्कान भरे चेहरे से मेरी ओर देखा.. और शरारती अंदाज़ में आँख मारते हुए बोली- क्यों मज़ा आया न?

तो मैंने बोला- यार सच में.. इतना तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।

फिर देखते ही देखते उसने मेरा लोअर मेरे पैरों से आज़ाद कर दिया और मेरी जांघों को रगड़ने लगी।

तो मैंने उसका सर पकड़ लिया और बोला- मेरी जान.. क्या इरादा है..?

तो बोली- इरादा तो नेक है.. बस अंजाम देना है।

फिर जैसे ही उसकी नज़र मेरी चड्डी के अन्दर खड़े लौड़े पर पड़ी तो उसकी आँखों की चमक दुगनी हो गई। उसने आव न देखा ताव.. मेरे लौड़े को चड्डी के ऊपर से ही अपने मुँह में भरकर दाँतों को गड़ाने लगी और वो साथ ही साथ मेरी जांघों को हाथों से सहला रही थी।

उसकी इस प्रतिक्रिया पर मेरे मुँह से दर्द भरी मादक ‘आह्ह्ह ह्ह्ह्ह’ निकालने लगी।

मैंने उसके सर को मजबूती से पकड़ कर अपने लौड़े पर दाब दिया..

जो आनन्द मुझे मिल रहा था उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है क्योंकि शब्दों में बयान किया तो उस आनन्द की तौहीन होगी।



फिर उसने मेरी चड्डी को अपने दाँतों से पकड़ कर नीचे सरकाया जैसे ही मेरा लण्ड गिरफ्त से बाहर आया तो उसने आते ही माया के माथे पर सर पटक दिया।

मानो कह रहा हो- तुस्सी ग्रेट हो तोहफा कबूल करो।

फिर उसने चड्डी को मेरे जिस्म से अलग कर दिया।

अब मैं उसके सामने पूर्ण निर्वस्त्र खड़ा था और वो उसी गाउन में नीचे झुकी बैठी थी.. जिससे उसके अनार साफ झलक रहे थे।

फिर उसने मेरे लौड़े को मुँह में भर लिया और लॉलीपॉप की तरह उसे चूसने लगी.. जिससे मेरा आनन्द दुगना हो गया और मेरे मुँह से मादक भरी- श्ह्ह्ह ह्ह्ह आआआअह्ह्ह श्ह्ह्ह ह्हह्ह !!

सीत्कार निकालने लगी और मैंने आनन्द भरे सागर में गोते लगाते हुए उसके सर को अपने हाथों से कस लिया।

इसके पहले वो कुछ समझ पाती.. मैंने उसके सर को दबा कर अपने लौड़े को जड़ तक उसके मुँह में घुसेड़ कर उसके मुँह को जबरदस्त अपनी कमर को उचका-उचका चोदने लगा।

मेरे इस प्रकार चोदने से माया की हालत ख़राब हो गई। उसके मुँह के भावों से उसकी पीड़ा स्पष्ट झलक रही थी.. उसके होंठों के सिरों से उसकी लार तार-तार होकर बहने लगी।

इतना आनन्दमयी पल था.. जिसको बता पाना कठिन है.. उसकी आँखों की पुतलियों में लाल डोरे गहराते चले जा रहे थे और उसके मुख से बहुत ही उत्तेजित कर देने वाली दर्द भरी सीत्कार ‘आआआह्ह्ह ह्ह्ह आआआउउउ उउउम्म्म्म्म गुगुउउउ’ की आवाजें बड़े वेग के साथ रुंधे हुए (रोते हुए) स्वर में निकली जा रही थीं।

मैं बिना उसकी इस दशा की परवाह किए.. बस उसे चोदे जा रहा था.. और जब कभी उसके दांत मेरे लौड़े पर रगड़ जाते.. तो मैं उसके गाल पर तमाचा जड़ देता.. जैसा कि मैंने फिल्मों में देखा था।

जब मुझे यह अहसास हुआ कि अब मैं खुद को और देर नहीं रोक पाऊँगा.. तो मैंने उसके सर को पकड़ा और तेज़ स्वर में ‘आह्ह आआअह्ह्ह्ह आआह जानू.. बस ऐसे ही करती रहो.. थोड़ा और सहो.. मेरा होने वाला है बस..’ और देखते ही देखते मेरे वीर्य निकालने के साथ-साथ मेरी पकड़ ढीली हो गई।

और फिर माया ने तुरंत ही मेरे लौड़े से मुँह हटा लिया और खांसने लगी और सीधा वाशरूम चली गई।

मेरे इस तरह करने से उसे बहुत पीड़ा हुई थी और उसका मुँह भी दर्द से भर गया था, जिसे उसने बाद में बयान किया।

और सच कहूँ तो मुझे भी बाद में अच्छा नहीं लगा.. पर अब तो सब कुछ हो ही चुका था.. इसलिए पछताने से क्या फायदा..

पर कुछ भी हो ये तरीका था बड़े कमाल का.. आज के पहले मुझे लौड़ा चुसाई में इतना आनन्द नहीं मिला था।

फिर मैंने पास रखी बोतल उठाई और पानी के कुछ ही घूट गटके थे कि माया आई और दर्द भरी आवाज़ में बोली- राहुल आज तूने तो मेरे मुँह का ऐसा हाल कर दिया कि बोलने में भी दुखता है.. आआआह.. पता नहीं तुम्हें क्या हो गया था.. इसके पहले तुमने कभी ऐसा नहीं किया.. तुम्हें मेरी हालत देखकर भी तरस नहीं आया.. बल्कि चांटों को जड़कर मेरे गाल लाल करके.. दर्द को और बढ़ा दिया।

तो मैंने उससे माफ़ी मांगी और बोला- माया मुझे माफ़ कर दे.. मैं इतना ज्यादा कामभाव में चला गया था कि मुझे खुद का भी होश न था.. पर अब ऐसा दुबारा नहीं होगा।

मेरी आवाज़ की दर्द भरी कशिश को महसूस करके माया मेरे सीने से लग गई और बोली- अरे ये क्या.. माफ़ी मांग कर मुझे न शर्मिंदा करो.. होता है.. कभी-कभी ज्यादा जोश में इंसान बहक जाता है.. कोई बात नहीं मेरे सोना.. मेरे राजाबाबू.. आई लव यू.. आई लव यू..

यह कहते हुए वो मेरे होंठों को चूसने लगी और अभी मेरे लौड़े में भी पीड़ा हो रही थी जो कि मेरे जंग में लड़ने की और घायल होने की दास्तान दर्द के रूप में बयान कर रही थी।

एक अज़ीब सा मीठा दर्द महसूस हो रहा था.. ऐसा लग रहा था कि अब जैसे इसमें जान ही न बची हो।

फिर मैंने माया को जब ये बताया कि तुम्हारे दाँतों की चुभन से मेरा सामान बहुत दुःख रहा है.. ऐसा लग रहा है.. जैसे कि इसमें जान ही न बची हो.. अब मैं कैसे तुम्हारी गांड मार कर अपनी इच्छा पूरी कर पाउँगा और कल के बाद पता नहीं ये अवसर कब मिले.. मुझे लगता नहीं कि अब मैं कुछ और कर सकता हूँ.. ये तो बहुत ही दुःख रहा है।

तो माया ने मेरे लौड़े को हाथ से छुआ जो कि सिकुड़ा हुआ.. किसी सहमे से कछुए की तरह लग रहा था।

माया मुस्कुराई और मुझे छेड़ते हुए बोली- और बनो सुपर हीरो.. अब बन गए न जीरो.. देखा जोश में होश खोने का परिणाम..

और मुझे छेड़ते हुए मेरी मौज लेने लगी.. पर मेरी तो दर्द के मारे लंका लगी हुई थी.. तो मैंने झुंझला कर उससे बोला- अब उड़ा लो मेरा मज़ाक.. तुम भी याद रखना.. मुझे इतना दर्द हो रहा है और साथ-साथ अपनी इच्छा न पूरी हो पाने का कष्ट भी है.. और तुम हो कि मज़ाक उड़ा रही हो.. वैसे भी कल वो लोग आ जायेंगे.. तो पता नहीं कब ऐसा मौका मिले… तुमने तो इतनी तेज़ी से दाँतों को गड़ाया.. जिससे मेरी तो जान निकल रही है।

मैं बोल कर दर्द से बेहाल चेहरा लिए वहीं बिस्तर पर आँख बंद करके लेट गया।

मेरे दर्द को माया सीरियसली लेते हुए मेरे पास आई और मेरे माथे को चूमते हुए मेरे मुरझाए हुए लौड़े पर हाथ फेरते हुए बोली- तुम इतनी जल्दी क्यों परेशान हो जाते हो?

तो मैंने बोला- तुम्हें खुराफात सूझ रही है और मेरी जान निकाल रही है।

वो मुस्कुराते हुए प्यार से बोली- राहुल तेरी ये जान है न.. इसमें जान डालने के लिए.. तुम अब परेशान मत हो.. अभी देखना मैं कैसे इसे मतवाला बनाकर एक बार फिर से झूमने पर मज़बूर कर दूंगी।

और मैं कुछ बोल पाता कि उसके पहले ही उसने अपने होंठों से मेरे होंठ सिल दिए।

अब आज के लिए इतना ही काफी है। आप सभी लौड़े वाले और लपलपाती हुई चूत वालियों से निवेदन है कि अब कैसे मेरा दर्द सही हुआ और कैसे मैंने गांड मारी.. ये जानने के लिए आगे के भाग का इंतज़ार करें धन्यवाद।
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#42
(07-08-2023, 09:53 AM)sandy4hotgirls1 Wrote: Update de do bhai

थोड़ा बिजी था इसलिए अपडेट नहीं कर पाया अब कर दिया है मजा लीजिये
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#43
Update 23

माँ-बेटी को चोदने की इच्छा


अब तक की कहानी में आपने पढ़ा…

मेरे दर्द को माया सीरियसली लेते हुए मेरे पास आई और मेरे माथे को चूमते हुए मेरे मुरझाए हुए लौड़े पर हाथ फेरते हुए बोली- तुम इतनी जल्दी क्यों परेशान हो जाते हो?

तो मैंने बोला- तुम्हें खुराफात सूझ रही है और मेरी जान निकाल रही है।

वो मुस्कुराते हुए प्यार से बोली- राहुल तेरी ये जान है न.. इसमें जान डालने के लिए.. तुम अब परेशान मत हो.. अभी देखना मैं कैसे इसे मतवाला बनाकर एक बार फिर से झूमने पर मज़बूर कर दूंगी।

और मैं कुछ बोल पाता कि उसके पहले ही उसने अपने होंठों से मेरे होंठ सिल दिए।


अब आगे..

हम कुछ देर यूँ ही एक-दूसरे को चूमते रहे..

फिर माया के दिमाग में पता नहीं क्या सूझा वो उठ कर गई और फ्रिज से बर्फ के टुकड़े ले आई।

यार सच कहूँ तो मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि ये सब क्या करने वाली है।

फिर उसने मेरे लंड को पकड़ कर उसकी अच्छे से सिकाई की..

यार दर्द तो चला गया पर बर्फ का अधिक प्रयोग हो जाने से वो सुन्न सा पड़ गया था।

मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे मतवाले हाथी को किसी ने मार दिया हो और अन्दर ही अन्दर बहुत डर सा गया था कि अब क्या होगा.. अगर इसमें तनाव आना ख़त्म हो गया.. तो क्या होगा?

मेरे चेहरे के चिंता के भावों को पढ़कर माया बोली- अरे राहुल क्या हुआ.. तुम इतना उलझन में क्यों लग रहे हो?

तो मैंने बोला- मेरा दर्द तो ठीक हो गया.. पर मुझे अब ये डर है कि इसमें जान भी बची है कि नहीं?

तो माया मुस्कुरा दी और हँसते हुए बोली- तुमने कभी सुना है.. ‘अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना..’ अब तुमने मेरे मुँह में जबरदस्ती सब कुछ किया.. तो तुम भुगत रहे हो.. पर अब जो मैं तुम्हारे दर्द को दूर करने के लिए कर रही हूँ.. उससे शायद मैं खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जा रही हूँ।

मैं उसकी बातों को सुनकर आश्चर्य में पड़ गया कि आखिर माया के कहने का मतलब क्या है.. सब कुछ मेरी समझ के बाहर था।

तो मैंने उससे बोला- साफ़-साफ़ बोलो.. कहना क्या चाहती हो?

बोली- अरे जान.. तुम्हें नहीं मालूम.. अगर बर्फ से सिकाई अच्छे से की जाए.. जब तक की लण्ड की गर्मी न शांत हो जाए और उसके बाद जो सेक्स करने का समय होता है.. वो बढ़ जाता है और अब तुम परेशान न हो.. परेशान तो मुझे होना चाहिए कि पता नहीं आज मेरा क्या होने वाला है.. और अब मुझे पता है कि इसमें कैसे तनाव आएगा.. पर मेरी एक शर्त है।

तो मैं बोला- क्या?

तो बोली- पहले बोलो कि मान जाओगे..

मैंने भी बोला- ठीक है.. मान जाऊँगा।

तो माया बोली- एक तो आज तक पीछे छेद में मैंने किसी के साथ सेक्स नहीं किया है.. तो तुम फिर से मेरे मुँह की तरह वहाँ जबरदस्ती कुछ नहीं करोगे और पहले मेरी चूत की खुजली मिटाओगे.. तुम्हें नहीं मालूम ये साली छिनाल.. बहुत देर से कुलबुला रही है..

तो मेरे दिमाग में भी एक हरकत सूझी कि बस एक बार किसी तरह माया मेरा ‘सामान’ खड़ा कर दे.. तो इसको भी बर्फ का मज़ा चखाता हूँ।

मैंने उससे बोला- ठीक है.. मुझे मंजूर है..



तो वो बर्फ ट्रे लेकर जाने लगी और बोली- अभी आई।

तो मैंने बोला- अरे ये ट्रे मुझे दे दो.. तब तक मैं इससे अपनी सिकाई करता हूँ।

वो मुझे ट्रे देकर चली गई।

अब आखिर उसे कैसे पता चलता कि उसके साथ अब क्या होने वाला है।

फिर कुछ ही देर में वो मक्खन का डिब्बा लेकर आ गई और बोली- जानू.. अब तैयार हो जाओ.. देखो मैं कैसे अपने राजाबाबू को अपने इशारे पर ठुमके लगवाती हूँ।

तो मैंने हल्की सी मुस्कान देकर अपनी सहमति जता दी।

अब बारी उसकी थी तो उसने अपने गाउन की डोरी खोली और उसे अपने बदन से लटका रहने दिया और फिर वो एक हलकी पट्टीनुमा चड्डी को दिखाते हुए ही मेरे पास आ गई और मेरे सीने से चिपक कर गर्मी देने लगी और मेरे होंठों को चूसते हुए मेरे बदन पर हाथों को फेरने लगी..
जिससे मेरे बदन में प्रेम की लहर दौड़ने लगी।

उसकी इस क्रिया में मैंने सहयोग देते हुए और कस कर अपनी बाँहों में कस लिया.. फिर उसके होंठों को चूसना प्रारम्भ कर दिया।

देखते ही देखते हम लोग आनन्द के सागर में डुबकी लगाने लगे और फिर माया ने अचानक से अपना हाथ मेरे लौड़े पर रखकर देखा.. जो कि अभी भी वैसा ही था।

तो वो अपने होंठों को मेरे होंठों से हटा कर बोली- लगता है इसको स्पेशल ट्रीटमेंट देना होगा।

मैं बोला- कुछ भी कर यार.. पर जल्दी कर।

तो माया उठी और मुझे पलंग के कोने पर बैठने को बोला.. तो मैं जल्दी से उठा और बैठ गया।

मेरे इस उतावलेपन को देखकर माया हँसते हुए बोली- अरे राहुल.. अब होश में रहना.. नहीं तो यूँ ही रात निकल जाएगी.. फिर बाद में कुछ भी न कहना।

मैं बोला- यार वो एक बार हो गया… अब ऐसे कभी नहीं करूँगा.. पर दर्द तो जरूर दूँगा.. जब तुझे दर्द में सिसियाते हुए देखता हूँ और तेरी दर्द भरी चीखें मेरे कानों में जाती हैं.. तो मेरा जोश और बढ़ जाता है.. पर अब दर्द देने वाली जगह पर ही दर्द दूँगा।

तो वो हँसते हुए बोली- बड़ा मर्द बनने का शौक है तुझे.. चल देखती हूँ कि तू कितना दर्द देता है.. मुझे भी तेरे दर्द देने वाली जगह पर दर्द देने में एक अजीब से प्यार की अनुभूति होती है.. जो कि मुझे तेरा दीवाना बनाए हुए है।

यह कहते हुए उसने मक्खन निकाला और मेरे लौड़े पर मलने लगी।

फिर ऊपरी सतह पर लगाने के बाद उसने थोड़ा मक्खन और निकाला और मेरे लौड़े की खाल को खींच कर सुपाड़े पर हल्के-हल्के नर्म उँगलियों का स्पर्श देते हुए मलने लगी।

मैंने ध्यान से देखा तो सुपाड़े का रंग गुलाबी न होकर कुछ कुछ बैंगनी सा हो गया था.. तो मैं चिंता में पड़ कर सोचने लगा कि ये गुलाबी से बैंगनी कैसे हो गया?

तो मेरे दिमाग में आया या तो यह चोट के कारण है.. या फिर बर्फ की ठंडक का कमाल है?

खैर.. अब सब कुछ मैंने माया पर छोड़ दिया था।

फिर उसने सहलाते हुए मेरे लौड़े को फिर से अपने मुख में ढेर सारा थूक भर कर ले लिया और अपने होंठों से मेरे लौड़े पर पकड़ मजबूत बना दी.. जिससे मुझे मेरे सामान पर गर्मी का अहसास होने लगा।
फिर कुछ देर यूँ ही रखने के बाद माया बिना होंठों को खोले अन्दर ही अन्दर मेरे लौड़े के सुपाड़े को चूसने लगी.. जैसे कोई हाजमोला की गोली चूस रही हो।

उसकी इस चुसाई से मेरे लौड़े में जगी नई तरंगें मुझे महसूस होने लगीं और समय के गुजरने के साथ साथ मेरा लौड़े ने फिर से माया के मुँह की गर्मी पाकर हिलोरे मारने शुरू कर दिए..
जिसे माया ने भी महसूस किया और मुझसे हँसते हुए बोली- अब होश मत खोना.. बस थोड़ा समय और दो.. देखो कैसे अभी इसे लोहे सा सख्त करती हूँ।

वो फिर से मेरे लौड़े को मुँह में भरकर चूसने लगी और चूसते हुए उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर अपनी दोनों चूचियों पर रख दिए।

मैंने उसके इस इशारे को समझ कर धीरे-धीरे उसके चूचे मसलने लगा और कुछ ही देर में मैंने महसूस किया कि मेरे लौड़े का हाल पहले ही जैसा और सख्त हो चुका था।

तो मैंने माया के मुँह से अपने लौड़े को निकला जो कि उसके थूक और मक्खन से सना होने के कारण काफी चमकदार और सुन्दर महसूस हो रहा था.. जैसे उस पर पॉलिश की गई हो।

अब सुपाड़ा भी अपने रंग में वापसी कर चुका था.. जो कि शायद बर्फ की ठंडक के कारण नीला सा हो गया था।

फिर धीरे से मैंने माया के माथे को चूमा और उसे ‘थैंक्स’ बोला.. तो बोली- अरे इसमें थैंक्स की क्या बात है.. ये तो सब चलता है.. और किसी का भी ‘आइटम’ इतनी जल्दी खराब नहीं होता.. तभी भगवान ने इसमें हड्डियां नहीं दीं..

ये कह कर वो हँसने लगी।

तो मैंने माया के कन्धों को पकड़ा और उसे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया और उसके दोनों हाथों को सर के ऊपर ले जाकर उसे चूमते हुए.. उसके मम्मों को भींचने लगा।

जबकि माया अभी तक इससे अनजान होते हुए बंद आँखों से मेरे होंठों का रस चूस रही थी.. उसे क्या पता की आज मैं उसे कौन सा दर्द देने वाला हूँ और फिर मैंने उसके हाथों पर थोड़ा पकड़ मजबूत की.. तो बोली- अरे हाथों को इतना न कसो.. दर्द होता है।

तो मैंने बोला- जानेमन.. अभी तो बहुत बोल रही थीं कि दर्द में मज़ा आता है.. अब क्या हुआ.. अब तू देखती जा.. तेरे साथ क्या होने वाला है।

तो मारे आश्चर्य के उसकी दोनों आँखें बाहर निकल आईं और बहुत सहमे हुए तरीके से बोली- अब कैसा दर्द देने वाले हो.. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।

तो मैंने बोला- समझ जाओगी.. बस आँखें बंद करो और ऐसे ही लेटी रहो..

अब क्योंकि मैं उसके ऊपर था.. तो मैंने उसके ऊपर अपने शरीर का भार डाल दिया और डोरी को पहले आहिस्ते से पलंग की रैक को खींचने वाले छल्ले में बाँध दिया जिसमें कि पहले से ही लॉक लगा हुआ था।

जिसका माया को बिल्कुल भी अहसास न था कि क्या हो रहा.. बल्कि वो भूखी शेरनी की तरह वासना की आग से तड़पती हुई मेरी गर्दन और छाती को चूसने और चाटने में लगी हुई थी।

फिर मैंने धीरे से अपने पैरों को सिकोड़ लिया और उसकी छाती पर ही बैठ गया ताकि वो कुछ भी न कर सके।

वो जब तक कुछ समझ पाती.. मैंने उसके हाथों में रस्सी का फन्दा सा बनाकर मज़बूती से कस दिया और उसके ऊपर से हटकर उसके होंठों को चूसने लगा.. जिससे माया जो बोलना चाह रही थी.. वो बोल ही न सकी।

मैं इसी तरह निरंतर उसके होंठों को चूसते हुए उसके मम्मों को रगड़े जा रहा था जिसमें माया का अंग-अंग उमंग में भरकर नाचने लगा था।

तो मैंने सोचा.. अब मौका सही है.. अब ये कुछ मना नहीं करेगी।

मैंने उसके होंठों को आज़ाद करके जैसे ही उठा और बर्फ की ट्रे हाथों में पकड़ी.. वो तुरंत ही चीखकर बोली- अरे राहुल.. अब क्या करने वाले हो.. मुझे बहुत डर लग रहा है.. प्लीज़ पहले रस्सी खोलो.. आज हो क्या गया है तुम्हें..?

पर उसे क्या पता कि आज मैं उसे दर्द ही दर्द देने वाला हूँ।

अब मैं ऐसा क्या करूँगा.. ये जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिएगा। सभी पाठकों के संदेशों के लिए धन्यवाद..
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#44
Mast..plz continue
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#45
Bohut most he.

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মা কাকুর দিকে তাকিয়ে কোমর দুলিয়ে দুলিয়ে কাকুর বাড়ার উপর ওঠানামা করতে লাগলো. এরকম ভাবে কিছুক্ষন করবার , মা হাপিয়ে গেলো.  Sex chat korle msg deo
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#46
Plz update
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#47
Update 24



माँ-बेटी को चोदने की इच्छा



अब तक की कहानी में आपने पढ़ा…

मैं इसी तरह निरंतर उसके होंठों को चूसते हुए उसके मम्मों को रगड़े जा रहा था जिसमें माया का अंग-अंग उमंग में भरकर नाचने लगा था।
तो मैंने सोचा.. अब मौका सही है.. अब ये कुछ मना नहीं करेगी।
मैंने उसके होंठों को आज़ाद करके जैसे ही उठा और बर्फ की ट्रे हाथों में पकड़ी.. वो तुरंत ही चीखकर बोली- अरे राहुल.. अब क्या करने वाले हो.. मुझे बहुत डर लग रहा है.. प्लीज़ पहले रस्सी खोलो.. आज हो क्या गया है तुम्हें?
पर उसे क्या पता कि आज मैं उसे दर्द ही दर्द देने वाला हूँ।

अब आगे…
फिर मैंने माया के बगल में लेटते हुए उसके दूसरे ओर ट्रे रख दी। माया मुझे लगातार हाथ खोलने को बोले जा रही थी..

पर मैं उसकी बातों को अनसुना करते हुए उसके होंठों को चूसते हुए एक बर्फ के टुकड़े को लेकर उसकी गर्दन से लेकर उसकी नाभि तक धीरे-धीरे चला कर उसके बदन की गर्मी को ठंडा करने लगा।

माया को भी अजीब सा लग रहा था.. उसने नहीं सोचा था कि ऐसा भी कुछ होगा।
उसे एक आनन्द के साथ-साथ सर्दी का भी एहसास होने लगा था।

जब मैंने उसकी चूचियों पर बर्फ रखी तो क्या बताऊँ यार.. उसके चूचे इतने गर्म और सख्त हो चुके थे कि उसकी गर्माहट पाकर बर्फ तीव्रता के साथ घुल गई और माया का तनबदन तड़पने लगा
‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह..’ से सिसियाते हुए माया बोली- राहुल बस कर.. अब और न तड़पा.. दे दे मुझे अपना प्यार..
मैं बोला- आज तुझे सब दूँगा.. पर थोड़ा तड़पाने के बाद..

फिर मैंने उसकी कुछ भी बिना सुने उसके मम्मों को बर्फ से सेंकने लगा।
कभी एक उसका एक दूद्धू मुँह में रहता और दूसरे को बर्फ से सेंकता.. तो कभी दूसरे को मुँह में भरता और पहले वाले को बर्फ से सेंकता..

और उधर माया की मादक आवाजें मुझे पागल सा बनाने के लिए काफी थीं।
वो अब कमर उठाकर ‘आआआ… अह्हहह्ह श्ह्ह्ह्ह्हह उउउ..म्म्म्म्म.. राहुल बस कर.. तूने तो पूरे बदन में आज चीटियाँ दौड़ा दीं..
अब मान भी जा..

पर मैंने उसकी एक न सुनी और बर्फ के टुकड़े को जैसे ही उसकी गर्दन से लगाता या कमर पर लगाता.. तो वो एक जोर की ‘आआअह्ह्ह्ह’ के साथ चिहुंक उठती।

फिर मैंने माया की चड्डी एक ही झटके में हाथों से पकड़ कर उतार दी और जैसे ही मैंने फिर से बर्फ का टुकड़ा दोबारा से उठाया.. तो वो आँखें बाहर निकालते हुए बोली- राहुल.. अब बहुत हो गया.. मारेगा क्या मुझे?
तो मैं बोला- तुम बस मज़े लो.. बाक़ी का मैं लूँगा.. और अब मना करने के लिए मुँह खोला तो तुम्हारा मुँह भी बंद कर दूँगा।

अब माया चुप हो गई फिर मैंने उसकी जाँघों पर.. धीरे-धीरे बर्फ रगड़ते हुए उसकी चूत के दाने पर मुँह लगा कर उसे चूसना चालू किया..
जिससे माया के मुँह से दर्द के साथ मीठी.. और कानों को मधुर लगने वाली सीत्कार ‘श्ह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह..’ निकलने लगी और मैं उसके चेहरे की ओर देखने लगा।

जब कुछ देर उसने मेरी जुबान का एहसास अपनी चूत पर नहीं पाया तो उसने आँखें खोलीं और मेरी ओर देखते हुए लज़्ज़ा भरे स्वर में बोली- अब क्या हुआ.. रुक क्यों गए.. करो न.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
तो मैंने कटीली मुस्कान दी और आँख मारते हुए बोला- तुम बस मज़ा लो..

अब फिर बर्फ के टुकड़े को उसकी चूत के भीतर सरका दिया जो कि कुछ घुल सा गया था.. बर्फ का टुकड़ा लगभग आधा इंच का रहा होगा.. जिसे माया की लपलपाती चूत आराम से निगल गई।
पर माया की चूत में बर्फ ने ऐसी खलबली मचाई कि वो जोर-जोर से ‘आअह्हह.. उम्म्म स्स्स्स्स्श्ह्ह’ के साथ अपनी कमर बिस्तर पर पटकने लगी।

सबसे ताज्जुब वाली बात तो यह थी कि उसकी चूत में इतनी गर्मी थी कि जल्द बर्फ का दम घुट गया और रिस कर बाहर बह गई.. पर इतनी देर में बर्फ ने माया की चूत में जलन को बढ़ा दिया था।



मैं अभी देख ही रहा था कि माया बोली- चल अब और न सता.. डाल दे अन्दर.. और मिटा दे चूत की गर्मी..
तो मैं बोला- पहले इसकी गर्मी बर्फ से शांत करता हूँ.. फिर मैं कुछ करूँगा।
वो बोली- राहुल इसकी गर्मी तो इससे और बढ़ती ही जा रही है.. अगर कोई शांत कर सकता है तो वो तेरा छोटा राजाबाबू है।
तो मैंने बोला- चलो ये भी देखते हैं..

मैंने फिर से दूसरा टुकड़ा उठाया जो कि करीब दो इंच लम्बा और ट्रे के गोल खांचे के हिसाब से मोटा था.. वो समूचा टुकड़ा मैंने माया की चूत में घुसेड़ दिया और उसके चूत के दाने को रगड़ते हुए उसे चूसने लगा।
यार सच बता रहा हूँ जरा भी देर न लगी.. देखते ही देखते माया की चूत उसे भी डकार गई।
अबकी बार उसकी चूत में से बर्फ और चूत दोनों का मिला हुआ पानी झड़ने लगा.. जिसे मैंने उसकी चड्डी से साफ़ किया।

अब माया बोली- राहुल अब अन्दर डाल दे.. मुझे बर्दाश्त नहीं होता।
तो मैंने भी सोचा वैसे भी समय बर्बाद करने से क्या फायदा.. चल अब काम पर लग ही जाते हैं।

वैसे भी अभी गाण्ड भी मारनी है गाण्ड मारने का ख़याल आते ही मेरा ध्यान उसके छेद पर गया जो कि काफी कसा हुआ था।
मैं सोच में पड़ गया कि मेरा लौड़ा आखिर इतने छोटे और कैसे छेद को कैसे भेदेगा।

इतने में ही मेरे दिमाग में एक और खुराफात ने जन्म लिया और वो यह था कि माया की गाण्ड का छेद बर्फ से बढ़ाया जाए.. क्योंकि उसमें किसी भी तरह का कोई रिस्क भी नहीं था.. अन्दर रह भी गई तो घुल कर निकल जाएगी.. पर माया तैयार होगी भी या नहीं इसी उलझन में था।

इतने में माया खुद ही बोल पड़ी- अब क्या हुआ जान.. क्या सोचने लगे?
तो मैंने उससे बोला- मुझे तो पीछे करना था.. पर तुमने पहले आगे की शर्त रखी है.. पर मैं ये सोच रहा हूँ.. अगर आगे करते हुए तुम्हारी गाण्ड में अगर बर्फ ही डालता रहूँ तो उसका छेद आसानी से फ़ैल सकता है।
वो बोली- यार तेरे दिमाग में इतने वाइल्ड और रफ आईडिया आते कहाँ से हैं?
तो मैं हँसते हुए बोला- चलो बन जाओ घोड़ी.. अब मैं तेरी सवारी भी करूँगा और तेरी गाण्ड भी चौड़ी करूँगा।
तो वो बोली- पहले हाथ तो खोल दे.. अब मेरे हाथों में भी दर्द सा हो रहा है।

मैंने उसके हाथों की रस्सी खोली और रस्सी खुलते ही उसने मेरे सीने से चिपक कर मेरे होंठों को चूसा और मेरा लण्ड सहलाती हुई मेरी गर्दन पर अपनी गर्म साँसों का एहसास कराते हुए मेरे लौड़े तक पहुँच गई।
फिर से उसे मुँह में लेकर कुछ देर चूसा और फिर बिस्तर से उतार कर बिस्तर का कोना पकड़ कर घोड़ी की तरह झुक गई।

मैंने भी मक्खन ले कर अच्छे से उसकी गाण्ड के छेद में भर दिया और अपनी ऊँगली उसकी गाण्ड में घुसेड़ कर अच्छे से मक्खन अन्दर तक लगा दिया.. जिससे आराम से ऊँगली अन्दर-बाहर होने लगी।
फिर मैंने एक बर्फ का टुकड़ा लिया और उसकी गाण्ड में घुसड़ने के लिए छेद पर दबाने लगा.. पर इससे माया को तकलीफ होने लगी..

अब मेरा आईडिया मुझे फेल होता नज़र आ रहा था.. तो मैंने सोचा क्यों न कुछ और किया जाए।
फिर मैंने अपने लण्ड को पीछे से ही माया की चूत में डाल दिया और उसे धीरे-धीरे पीछे से लण्ड को गहराई तक पेलते हुए चोदने लगा.. जिससे मेरा लण्ड उसकी बच्चेदानी से टकरा जाता और माया के मुँह से ‘आआआह स्स्स्स्स्स्स्श’ की सीत्कार फूट पड़ती।
मैं लौड़ा पेलना के साथ ही साथ उसके चूचों को ऐसे दाब रहा था.. जैसे कोई हॉर्न बजा रहा हूँ।

जब मैंने देखा कि माया पूरी तरह मदहोश हो चुकी थी तो मैंने फिर से ऊँगली उसके गाण्ड के छेद में डाल दी.. जो कि आराम से अन्दर-बाहर हो रही थी।
इसी तरह दो ऊँगलियाँ एक साथ डालीं.. वो भी जब आराम से आने जाने लगीं.. तो मैंने फिर से उसकी गाण्ड में बर्फ का टुकड़ा डाला..

पर इस बार उसकी गाण्ड अपने आप ही खुल बंद हो रही थी और बर्फ का ठंडा स्पर्श पाते ही माया का रोम-रोम रोमांचित हो उठा। उसकी सीत्कार ‘आआह्ह्ह स्स्स्श्ह्ह्ह ष्ह्ह उउउम’ उसके अन्दर हो रहे आनन्द मंथन को साफ़ ब्यान कर रही थी।
उसकी गाण्ड की गर्मी पाकर बर्फ जब घुलने सी लगी तो उसकी ठंडी बूँदें उसकी चूत तक जा रही थीं.. जिससे माया को अद्भुत आनन्द मिल रहा था, वो मस्तानी चुदक्कड़ सी सिसिया रही थी, ‘बस ऐसे ही.. अह्ह्हह्ह उउउउम.. और तेज़ करो राहुल.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.. आआआअह

वो अपनी चूत से गर्म रस-धार छोड़ने लगी.. जिससे मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।
एक तो बाहर बर्फ का ठंडा पानी जो कि लौड़े पर गिर रहा था और अन्दर माया के जलते हुए बदन का जलता हुआ गर्म काम-रस..

मुझसे भी अब रहा नहीं जा रहा था।
जैसे रेस का घोड़ा अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए पूरी ताकत लगा देता है.. वैसे ही मैं पूरी ताकत और रफ़्तार के साथ उसकी चूत में अपना लौड़ा पेलने लगा।
जिससे माया लौड़े की हर ठोकर पर ‘आआअह… अह्ह्ह् उउम्म्म ष्ह्ह स्स्स्श्ह्ह्ह’ के साथ जवाब देते-देते चोटें झेलने लगी।

उसकी आवाज़ों ने मुझे इतना मदहोश कर दिया था कि मैंने फिर से अपने होश को खो दिया और जो बर्फ का टुकड़ा उसकी गाण्ड के छेद पर टिका रखा था, उसे किसी बटन की तरह उसकी गाण्ड में पूरी ताकत से अंगूठे से दबा दिया.. जिससे एक ही बार में उसकी गाण्ड में बर्फ का टुकड़ा चला गया।

अब माया गहरी पीड़ा भरी आवाज़ के साथ चिल्लाने लगी- आआह्ह्ह म्मा.. माँ मार.. डाला..
उसकी तो जैसे जान ही निकल गई हो.. पर अब क्या हो सकता था उसे तो निकाला भी नहीं जा सकता था और उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया जो कि मुझे बाद में पता चला।
खैर.. अब तो मेरा काम हो ही चुका था.. और माया उसी तरह अपनी टाँगें फैलाए बिस्तर पर सर रखकर झुकी-झुकी ही दर्द पर काबू पाते हुए ‘आआअह आआआह उउउम्म्म्म्म’ कराहने लगी।

उसके अनुभव के अनुसार उसे उस वक़्त चूत चुदाई का आनन्द और गाण्ड में बर्फ का दर्द दोनों का मिला-जुला अहसास हो रहा था।
खैर मैंने उसी तरह माया की ठुकाई करते हुए उसकी चूत में ही अपना वीर्य उगल दिया..
जिससे माया को अपनी चूत में तो राहत सी मिल गई किन्तु उसकी गाण्ड में अब खुजली बढ़ चुकी थी।

उसकी गाण्ड की गर्मी का साफ़ पता चल रहा था क्योंकि बर्फ का टुकड़ा लगभग एक मिनट में ही पिघल कर आधा रह गया था।
तो मैंने भी वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए सोचा.. अभी लोहा गर्म है बेटा.. मार ले हथौड़ा.. नहीं तो चूक जाएगा।

मैंने तुरंत ही झुककर उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुम्बन भी करना चालू कर दिया और बर्फ के पिघलने से माया का दर्द भी कम सा हो गया था।
उसके शरीर में रोमांच की तरंगें फिर से उमड़ने लगी थीं..
तो मैंने फिर से उसे यूँ ही प्यार देते हुए जहाँ तक ऊँगलियां जा सकती थीं.. से बचे हुए बर्फ के टुकड़े को और अन्दर करने लगा।

फिर मैं अपनी दोनों ऊँगलियां अन्दर-बाहर करते हुए आश्चर्य में था कि पहले जो आराम से नहीं हो रहा था.. पर वो अब आराम से हो रहा था।
तो मैंने फिर से एक बर्फ का टुकड़ा लिया और उसकी गाण्ड में दबा दिया जो कि अन्दर नहीं जा पा रहा था और माया फिर से ‘आआअह’ कराह उठी।

मैंने बर्फ के टुकड़े को मक्खन में सान कर फिर से उसकी गाण्ड में झटके से दबा दिया.. तो इस बार फिर से बर्फ का टुकड़ा गाण्ड में आराम से चला गया और ख़ास बात यह थी कि अबकी बार माया को भी दर्द न हुआ।
जैसा कि उसने बाद में बताया था कि पहली बार जब अन्दर घुसा था तो उसे ऐसा लगा जैसे उसे चक्कर सा आ रहा है..
उसकी आँखें भी बंद हो चुकी थीं और काफी देर तक उसकी आँखों में अधेरा छाया रहा था.. जैसे किसी ने उसकी जान ही ले ली हो।
उसे सुनाई तो दे रहा था.. पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
खैर मैंने यूँ ही बर्फ के टुकड़े डाल डाल कर माया की गाण्ड को अच्छे से फैला दिया था।

जब बर्फ का टुकड़ा आराम से अन्दर-बाहर होने लगा.. तो मैंने भी देर न करते हुए माया को चूमा और उसे उठा कर.. फिर से उसके होंठों का रसपान किया और उसके मम्मों को रगड़-रगड़ कर मसलते हुए उसकी चुदाई की आग को हवा देने लगा।

मेरा लौड़ा भी पूरे शवाब में आकर लहराते हुए उसके पेट पर उम्मीदवारी की दस्तक देने लगा.. जिसे माया ने बड़े प्यार से पकड़ा और उसे चूमते हुए बोली- बहुत जालिम हो गए हो.. अब अपनी गुड़िया को दर्द दिए बिना भी नहीं मानते।
वो कुछ इस तरह से बोल रही थी कि उसके शब्द थे तो मेरे लिए.. पर वो मेरे लौड़े के लिए लग रहे थे।

मैंने भी अपने लौड़े को लहराते हुए उससे बोला- जान बस आखिरी इच्छा और पूरी कर दे.. फिर जब तू कहेगी तेरी हर तमन्ना खुशी से पूरी कर दूँगा।
तो वो उसे मुँह में भरकर कुछ देर चूसने के बाद बोली- ले अब मार ले बाजी.. लेकिन प्यार से..

अब मैं ऐसा क्या करूँगा.. ये जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिएगा।
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#48
Update 25

माँ-बेटी को चोदने की इच्छा-25


अब तक की कहानी में आपने पढ़ा…

मेरा लौड़ा भी पूरे शवाब में आकर लहराते हुए उसके पेट पर उम्मीदवारी की दस्तक देने लगा.. जिसे माया ने बड़े प्यार से पकड़ा और उसे चूमते हुए बोली- बहुत जालिम हो गए हो.. अब अपनी गुड़िया को दर्द दिए बिना भी नहीं मानते।

वो कुछ इस तरह से बोल रही थी कि उसके शब्द थे तो मेरे लिए.. पर वो मेरे लौड़े के लिए लग रहे थे।

तो मैंने भी अपने लौड़े को लहराते हुए उससे बोला- जान बस आखिरी इच्छा और पूरी कर दे.. फिर जब तू कहेगी तेरी हर तमन्ना खुशी से पूरी कर दूँगा।

तो वो उसे मुँह में भरकर कुछ देर चूसने के बाद बोली- ले अब मार ले बाजी.. लेकिन प्यार से..

अब आगे…

तो मैंने झट से उसे घुमाया और सर नीचे बिस्तर पर छुआने को बोला.. उसने ठीक वैसा ही किया, जिससे उसकी गाण्ड ऊपर को उठ कर मेरे सामने ऐसे आई जैसे माया बोल रही हो- गॉड तुस्सी ग्रेट हो तोहफा कबूल करो..

मैंने भी फिर से मक्खन लिया और अच्छे से अपने लौड़े पर मल लिया.. फिर थोड़ा और लिया और उसकी गाण्ड के छेद के चारों ओर मलते हुए उँगलियों से गहराई में भरने लगा।

फिर मैंने अच्छे से ऊँगलियाँ अन्दर-बाहर कीं.. जब दो ऊँगलियाँ आराम से आने-जाने लगीं.. तो मैंने माया से बोला- अब तुम्हारे सब्र के इम्तिहान की घड़ी आ चुकी है.. अपनी कुंवारी गाण्ड के उद्घाटन के लिए तैयार हो जाओ और मेरे लिए दर्द सहन करना।

तो माया ने दबी आवाज़ में मुँह भींचते हुए ‘हम्म’ बोला और सहमी हुई आँखें बंद किए हुए सर को बिस्तर पर टिका लिया।

फिर मैंने धीरे से अपने लौड़े को पकड़ कर उसके छेद पर दबाव बनाया लेकिन लण्ड अन्दर करने में नाकाम रहा।

तो मैंने माया से मदद मांगी।

उसने सर टिकाए हुए अपने दोनों हाथों को पीछे लाकर अपनी गाण्ड के छेद को फैला लिया।

मैंने फिर से प्रयास किया.. इस बार कुछ सफलता मिली ही थी कि माया टोपे के हल्का सा अन्दर जाते ही आगे को उचक गई.. जिससे फिर से मेरा लौड़ा बाहर आ गया।

तो मैंने माया से तीखे शब्दों में बोला- क्या यार.. ऐसे थोड़ी न करते हैं..

तो माया सहमी हुई बोली- यार डर लग रहा है.. मैं कैसे झेलूँगी?

मैंने उसके चूतड़ों पर हाथों से चटाका लगाते हुए बोला- जैसे आगे झेलती है..

और उसकी कमर को सख्ती से पकड़ कर फिर से लौड़ा टिकाया।
तो वो फिर से उचकने लगी इसी तरह जब तीन-चार बार हो गया तो मैंने फिर से बर्फ का एक टुकड़ा लिया और उसकी गाण्ड के छेद में जबरदस्त तरीके से चिड़चिड़ाहट के साथ दाब दिया.. जिससे माया को बहुत दर्द हुआ और वो पैर सिकोड़ कर लेट सी गई.. पर बर्फ का टुकड़ा तो अन्दर अब फंस चुका था।

तो मैंने उससे बोला- अब देख.. जो दर्द होना था.. वो हो चुका.. अब बर्दास्त करके चुपचाप उसी तरह से हो जाओ.. वर्ना फिर से यही करूँगा।

वो बोली- ठीक है.. पर आराम से करना..

वो फिर उसी तरह से गाण्ड उठाकर लेट गई.. फिर मैंने उसी बर्फ के टुकड़े के सहारे अपने लौड़े को धीरे-धीरे उसकी गाण्ड में दबाव देते हुए डालने लगा और कमाल की बात यह थी कि उसकी गाण्ड भी आराम से पूरा लौड़ा खा गई और अब मेरे सामान की गर्मी और माया की गाण्ड की गर्मी पाकर बर्फ अपना दम तोड़ चुकी थी।



उसकी गाण्ड का कसाव मेरे लौड़े पर साफ़ पता चल रहा था।

फिर मैंने उसकी कमर को मजबूती से पकड़ कर अपने लण्ड को बाहर की ओर खींचा.. तो माया के मुख से दर्द भरी घुटी सी ‘अह्ह…ह्ह’ निकल गई।

पर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे तरबूज़ के अन्दर चाकू डाल कर निकाला जाता है।

फिर मैं फिर से धीरे-धीरे उसकी गाण्ड में लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा जिसमे मुझे भी उसकी गाण्ड के कसाव के कारण अपने लौड़े पर रगड़ महसूस हो रही थी।

माया का तो पूछो ही नहीं.. उसका दर्द से बुरा हाल हो गया था.. पर मेरे कारण वो अपने असहनीय दर्द को बर्दास्त किए हुए आँखों से आँसू बहाते हुए लेटी रही।

फिर मैंने अपने लण्ड को टोपे से कुछ भाग अन्दर रखते हुए बाकी का बाहर निकाला और उसमें थोड़ा सा मक्खन लगाया और फिर से अन्दर डाला।

इस तरह यह प्रक्रिया 5 से 6 बार दोहराई तो मैंने महसूस किया कि अब चिकनाई के कारण लौड़ा आराम से अन्दर-बाहर आ-जा रहा था।

फिर मैंने माया की ओर देखा.. तो अब उसे भी राहत मिल चुकी थी। जो कि उसके चेहरे से समझ आ रही थी।

मैंने इसी तरह चुदाई करते हुए अपने लौड़े को बाहर निकाला और इस बार जब पूरा निकाल कर अन्दर डाला.. तो लौड़ा ‘सट’ की आवाज करता हुआ आराम से अन्दर चला गया.. जैसे कि उसका अब यही अड्डा हो।

इस बार माया को भी तकलीफ न हुई।

मैं माया से कुछ बोलता कि इसके पहले ही माया बोली- क्यों अब हो गई न इच्छा पूरी?

तो मैंने बोला- अभी काम आधा हुआ है।

वो बोली- चलो फिर पूरा कर लो.. तो मैंने फिर से उसकी गाण्ड से लौड़ा निकाला और तेज़ी के साथ लौड़े को फिर से अन्दर पेल दिया जो कि उसकी जड़ तक एक ही बार में पहुँच गया।

जिससे माया के मुख से दर्द भरी सीत्कार, ‘अह्ह्ह ह्ह.. आआआह मार डाला स्स्स्स्श्ह्ह्ह्ह’ फूट पड़ी और आँखों के सामने अँधेरा सा छा गया।

और मैं उस पर रहम खाते हुए कुछ देर यूँ ही रुका रहा और आगे को झुक कर मैंने उसकी पीठ को चूमते हुए उसकी चूत में ऊँगली डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा।
इसके कुछ देर बाद ही माया सामान्य होते हुए चूत में उँगलियों का मज़ा लेते सीत्कार करने लगी।

अब मैंने भी इसी तरह उसकी चूत में ऊँगली देते हुए उसकी गाण्ड में लण्ड अन्दर-बाहर करने लगा फिर कुछ ही समय बाद चूत की खुजली मिटाने के चक्कर में माया खुद ही कमर चलाते हुए तेज़ी से आगे-पीछे होने लगी और उसके स्वर अब दर्द से आनन्द में परिवर्तित हो चुके थे।

मैंने वक़्त की नज़ाकत को समझते हुए अपनी भी गति बढ़ा दी और अब मेरा पूरा ‘सामान’ बिना किसी रुकावट के.. उसको दर्द दिए बिना ही आराम से अन्दर-बाहर होने लगा।

जिससे मुझे भी एक असीम आनन्द की प्राप्ति होने लगी थी.. जिसको शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

देखते ही देखते माया की चूत रस से मेरी ऊँगलियां ऐसे भीगने लगीं जैसे किसी ने अन्दर पानी की टोंटी चालू कर दी हो।

पूरे कमरे उसकी सीत्कारें गूंज रही थी- आआआअह्ह्ह उउम्म्म्म स्स्स्स ज्ज्ज्जाअण आआअह आआइ जान बहुत मज़ा आ रहा है.. मुझे नहीं मालूम था कि इतना मज़ा भी आएगा.. शुरू में तो तूने फाड़ ही दी थी.. पर अब अच्छा लग रहा है.. तुम बस अन्दर-बाहर करते रहो.. लूट लो इसके कुंवारेपन का मज़ा..

तो मैं भी बेधड़क हो उसकी गाण्ड में बिना रुके ऐसे लण्ड ठूँसने लगा.. जैसे ओखली में मूसल चल रहा हो।

उसकी चीखने की आवाजें, ‘उउउम्म्म आआअह्ह्ह् श्ह्ह्ह्ह् अह्ह्हह आह आआह’ मेरे कानों में पड़ कर मेरा जोश बढ़ाने लगीं।

जिससे मेरी रफ़्तार और तेज़ हो गई और मैं अपनी मंजिल के करीब पहुँच गया। अति-उत्तेजना मैंने अपने लौड़े को ऐसे ठेल दिया जैसे कोई दलदल में खूटा गाड़ दिया हो।

इस कठोर चोट के बाद मैंने अपना सारा रस उसकी गाण्ड के अंतिम पड़ाव में छोड़ने लगा और तब तक ऐसे ही लगा रहा.. जब तक उसकी पूरी नली खाली न हो गई।

फिर मैंने उसकी गाण्ड को मुट्ठी में भरकर कसके भींचा और रगड़ा.. जिससे काफी मज़ा आ रहा था। और आए भी क्यों न.. माया की गाण्ड किसी स्पंज के गद्दे से काम न थी।

फिर इस क्रीड़ा के बाद मैं आगे को झुका और उसकी पीठ का चुम्बन लेते हुए.. उसकी बराबरी में जाकर लेट गया।

अब उसका सर नीचे था और गाण्ड ऊपर को उठी थी.. तो मैं उसके गालों पर चुम्बन करते हुए उसकी चूचियों को छेड़ने लगा.. पर वो वैसे ही रही।

मैंने पूछा- क्या हुआ.. सीधी हो जाओ.. अब तो हो चुका जो होना था।

तो माया अपना सर मेरी ओर घुमाते हुए बोली- राहुल तूने कचूमर निकाल दिया।

उस समय तो जोश में मैंने भी रफ़्तार बढ़ा दी थी.. पर अब जरा भी हिला नहीं जा रहा है।

तो मैंने उसे सहारा देते हुए आहिस्ते से लिटाया और मेरे लिटाते ही माया की गाण्ड मेरे लावे के साथ-साथ खून भी उलट रही थी जो कि उसके अंदरुनी भाग के छिल जाने से हो रहा था।

मैंने माया के चेहरे की ओर देखा जो कि इस बात से अनजान थी। उसकी आँखें बंद और चेहरे पर ओस की बूंदों के समान पसीने की बूँदें चमक रही थीं और मुँह से दर्द भरी आवाज लगातार ‘आआआअह अह्ह्हह श्ह्ह्ह्ह’ निकाले जा रही थी।

मैं उसकी इस हालत तरस खाते हुए वाशरूम गया और सोख्ता पैड और गुनगुना पानी लाकर उसकी गाण्ड और चूत की सफाई की.. जिससे माया ने मेरे प्यार के आगोश में आकर मुझे अपने दोनों हाथ खोल कर अपनी बाँहों में लेने का इशारा किया।

तो मैं भी अपने आपको उसके हवाले करते हुए उसकी बाँहों में चला गया।

उसने मुझे बहुत ही आत्मीयता के साथ प्यार किया और बोली- तुम मेरा इतना ख़याल रखते हो.. मुझे बहुत अच्छा लगता है.. आज से मेरा सब कुछ तुम्हारा राहुल.. आई लव यू.. आई लव यू.. सो मच.. मुझे बस इसी तरह प्यार देते रहना।

कहानी का यह भाग यहीं रोक रहा हूँ।

अब मैं क्या करूँगा.. ये जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिएगा।
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#49
It just take 20 seconds to read full update coz there is nothing in this except sex sex n sex
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#50
Update 26


माँ-बेटी को चोदने की इच्छा


अब तक की कहानी में आपने पढ़ा…

मैंने माया के चेहरे की ओर देखा जो कि इस बात से अनजान थी।

उसकी आँखें बंद और चेहरे पर ओस की बूंदों के समान पसीने की बूँदें चमक रही थीं और मुँह से दर्द भरी आवाज लगातार ‘आआअह अह्ह्ह ह्ह्ह श्ह्ह्ह्ह्ह’ निकाले जा रही थी।

मैं उसकी इस हालत तरस खाते हुए वाशरूम गया और सोख्ता पैड और गुनगुना पानी लाकर उसकी गाण्ड और चूत की सफाई की..
जिससे माया ने मेरे प्यार के आगोश में आकर मुझे अपने दोनों हाथ खोल कर अपनी बाँहों में लेने का इशारा किया।

तो मैं भी अपने आप को उसके हवाले करते हुए उसकी बाँहों में चला गया।

उसने मुझे बहुत ही आत्मीयता के साथ प्यार किया और बोली- तुम मेरा इतना ख़याल रखते हो.. मुझे बहुत अच्छा लगता है.. आज से मेरा सब कुछ तुम्हारा राहुल.. आई लव यू.. आई लव यू.. सो मच.. मुझे बस इसी तरह प्यार देते रहना।

अब आगे..

फिर मैं और माया दोनों एक-दूसरे की बाँहों में लेटे रहे।

जब माया का दर्द कुछ कम हुआ तो वो उठी और वाशरूम जाने लगी और पांच मिनट बाद जब वापस आई तो चहकते हुए बोली- ओए राहुल तूने तो शादी की पहली रात याद दिला दी।

तो मैंने भी उत्सुकता से पूछा- वो कैसे?

तो बोली- अरे जब मैंने पति के साथ पहली बार किया था तब भी मुझे बहुत दर्द हुआ था और खून से तो मेरे कपड़े भी खराब हो गए थे.. पर कुंवारी चूत और कुंवारी गांड फड़वाने में थोड़ा अंतर लगा।

तो मैंने भी मुस्कुराते हुए पूछा- क्या?

बोली- उस दिन बहुत खून बहा था जिसके थोड़ी देर बाद में वाशरूम गई तो खून हल्का-हल्का बह रहा था.. पर आज तो सिर्फ हल्का-हल्का ही निकला.. मैं यही देखने गई थी।

तो मैं उसकी बात सुनकर ताली बजा कर हँसने लगा।

वो मुझसे बोली- तुम्हें हँसी क्यों आई?

तो मैंने बोला- सच में.. तुम्हें कुछ मालूम नहीं पड़ा।

वो बोली- क्यों.. क्या हुआ?

तो मैंने उसे उसका गाउन दिखाया जिस पर खून की दो-चार बूँदें टपकी हुई थीं। क्योंकि उसका गाउन नीचे ही पड़ा था और पहले मैंने ही उसे देखा था और एक तरफ कर दिया था।

फिर उसे वो सोख्ता पैड दिखाया जो कि मेरे वीर्य और उसके खून से सना हुआ था।

तो वो आश्चर्यचकित होते हुए मेरे पास आई और ‘आई लव यू’ कहते हुए मुझे चूमते हुए बोली- राहुल तुम सच में मेरा बहुत ख़याल रखते हो.. तुम तो मुझे तो मालूम ही न चलने देते.. अगर मैं कुछ न कहती।

फिर वो अपने गाउन को उठा कर बोली- जान फिर तो उस दिन की तरह मुझे आज भी अपनी गांड भी फिर से मरवानी पड़ेगी.. ताकि अब दुबारा चूत की तरह गांड में भी दर्द न हो.. तुम एक काम करो.. मोबाइल में एक गेम और खेलो और मैं तुम्हारे लिए चाय लाती हूँ.. पर पहले इसे धोने के लिए डाल दूँ वरना क्या कहूँगी कि ये दाग कैसे पड़ा।

मैंने बोला- बोल देना महीना सोते में ही शुरू हो गया।

तो बोली- राहुल जब घर में बड़ी बेटी भी हो न.. तो ये सब छुपाने में दिक्कत होती है और महीना चार से पांच दिन चलता है.. इसको छुपाने के लिए और झूट बोलने पड़ेंगे.. तुम एक काम करो.. गेम खेलो मैं बस दस मिनट में गरमा-गरम चाय के साथ आती हूँ।

यह बोलकर माया चली गई।

फिर मैंने माया का फोन उठाया और उसके फ़ोन की गैलरी में जाकर रूचि की फोटो देखने लगा जो कि शायद रूचि के जन्मदिन की थी क्योंकि रूचि केक काट रही थी और वो उस दिन की ड्रेस में काफी आकर्षित करने वाली लग रही थी।

उसके हुस्न को देखते ही मेरे लौड़े में फिर से जान आने लगी थी।

किसी तरह मैंने लौड़े को मुठियाने से बचाया और वापस गेम खेलने लगा और जैसे ही स्नेक वाला गेम खेलने को खोला… मेरे दिमाग में आया क्यों न अपने फोन पर रूचि का नंबर कॉपी कर लूँ।

तो मैंने तुरंत ही अपना फोन उठाया और उसका नंबर टाइप करने लगा और जब तक में उसकी फोन कांटेक्ट डायरेक्टरी से निकालता.. तब तक माया आ गई और हड़बड़ी में काल लग गई.. जो कि पता न चला…



माया आते ही बोली- लो चाय पियो और दिमाग फ्रेश करके अपने खेल में फिर से मुझे भी शामिल कर लो।

तब तक रूचि ने फ़ोन काटकर उधर से काल की तो मैंने देखा कि रूचि का फोन इस समय कैसे आ गया।

मैंने ये सोचते हुए ही फोन माया की ओर बढ़ा दिया.. तो उसने जो भी बोला हो.. मैंने नहीं सुना पर माया बोली- अरे नींद नहीं आ रही थी तो मैं टीवी देख रही थी और मैंने समय देखने के लिए फोन उठाया था.. पता नहीं कैसे काल लग गई। खैर.. होगा ये बोलो अब तुम्हारी तबियत ठीक है न?

फिर उधर से कुछ कहा गया होगा जिसके जबाव में माया ने कहा- अच्छा चलो.. कल घर आओ.. फिर देखते हैं अगर सही नहीं लगेगा तो हम डॉक्टर के पास चलेंगे.. तुम अभी आराम करो.. बाय..

माया ने फोन काट दिया।

फिर माया फोन काटते ही मुझसे झुँझलाकर बोली- तुमने मेरे फ़ोन से काल क्यों की?

तो मैंने बोला- अरे मैं तो गेम खेल रहा था और हो सकता है.. रखते समय बटन दब गई होगी।

बोली- यार ये तो कहो उसने ज्यादा कुछ नहीं सुना बल्कि फोन काट कर मिला लिया.. वरना मैं उसको क्या बताती?

मैंने बोला- अब छोड़ो भी जो होना था हो गया.. चाय पियो और दिमाग को ठंडा रखो।

तो वो मुस्कुराते हुए बोली- ह्म्म्म्म्म वैसे भी तुम्हें गर्म पसंद है..

मैं बोला- अरे वाह मेरी जानू.. तुम तो बहुत अच्छे से मुझे जान चुकी हो कि मुझे गर्म चाय और उसको पिलाने वाली दोनों पसंद हैं।

फिर हम दोनों ने चाय पी और कुछ देर बैठे ही बैठे एक-दूसरे को बाँहों में लेकर प्यार भरी बातें करने लगे जिससे कुछ ही देर में माया फिर से गर्माते हुए बोली- राहुल मैं सोच रही हूँ जैसे मैंने शादी की पहली रात को तीन-चार बार किया था.. वैसे ही आज भी करूँ.. पता नहीं ये समा फिर कब इस तरह रंगीन हो।

ये कहते हुए उसने अपना हाथ मेरे लौड़े पर रख दिया और मेरी आँखों में देखते हुए मुझसे बात करते-करते मेरे लौड़े को मुठियाने लगी।

उसकी इस अदा पर में’ फ़िदा ही हो गया था.. आज भी जब कल्पना करता हूँ.. उसके खुले रेशमी बाल.. बड़ी आँखें उसके होंठ.. समझ लो आज भी बस यही सोचकर मुट्ठ मार लेता हूँ।

खैर.. अब कहानी में आते हैं..

तो मैं उसके इस रूप पर इतना मोहित हो गया कि बिना कुछ बोले बस एकटक उसे ही देखता रहा… जैसे कि मैं उसे अपनी कल्पनाओं में चोदे जा रहा हूँ.. और देखते ही देखते मैंने उसके होंठों पर अपने होंठों से आक्रमण कर दिया और उसे बेतहाशा मदहोशी के आगोश में आकर चूमने चाटने लगा।
जिससे माया का भी स्वर बदल गया और उसकी बोलती बंद हो गई और बीच-बीच में बस ‘आआह्ह्ह श्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. ऊऊम्म’ के स्वर निकालने लगी।

मैं उसके चूचे ऐसे चूसे जा रहा था जैसे गाय के पास जाकर उसका बछड़ा उसके थनों से दूध चूसता है।

फिर कुछ देर बाद देखा तो वो भी मेरी ही तरह से पूरी तरह से मदहोशी के आगोश में आकर अपने दूसरे निप्पल को रगड़कर दबाते हुए, ‘आह्ह्ह्ह्ह श्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. उउउउउम..’ की ध्वनि निकाल रही थी.. जिससे कि मेरा जोश और बढ़ गया।

मैंने उसे वैसे ही लिटाया और उसके पैरों के बीच खड़ा होकर.. उसकी चूत में एक ही बार में लण्ड डालकर.. उसे जबरदस्त तरीके से गर्दन को बाएं हाथ से पलंग पर दबाकर तेज़ ठोकरों के साथ चोदने लगा।

माया की सीत्कार ‘आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह’ चीत्कार में बदल गई।

‘अह्ह्हह्ह.. बहुत मज़ा आ रहा है राहुल.. बस ऐसे ही करते आह्ह्ह्ह रहो..।’

देखते ही देखते माया का शरीर ढीला पड़ गया और मैं भी उसके साथ तो नहीं… पर उसके शांत होते ही अपने लौड़े का गर्म उबाल.. उगल दिया।

फिर उसके मम्मों पर सर रखकर आराम करने लगा।

सच बताऊँ दोस्तों इसमें हम दोनों को बहुत मज़ा आया था।

थोड़ी देर यू हीं लेटे रहने के बाद माया मेरे सर को अपने हाथों से सहलाते हुए चूमने लगी और बोली- राहुल तुम मेरे साथ जब भी.. कैसे भी.. करते हो, मुझे बहुत अच्छा लगता है और सुकून मिलता है.. मुझे अपना प्यार इसी तरह देते रहना।

मैंने बोला- तुमसे भी मुझे बहुत सुकून मिलता है.. तुम परेशान मत होना जान.. मैं हमेशा तुम्हें ऐसे ही प्यार देता रहूँगा।

फिर वो मुझे चूमते हुए बोली- आगे की तो जंग छुड़ा कर ऑयलिंग कर दी.. पर अब पीछे की बारी है।

तो मैंने हैरान होते हुए उसकी आँखों में झाँका.. तो वो तुरंत बोली- क्यों क्या हुआ.. ऐसा मैंने क्या बोल दिया.. जो इतना हैरान हो गए?

तो मैंने बोला- अरे कुछ नहीं..

वो बोली- है तो कुछ.. मुझसे न छिपाओ.. अब बोल भी दो।

तो मैंने बोला- अरे तुम्हारे पीछे दर्द होगा.. तो क्या बर्दास्त कर लोगी? मैंने देखा था.. महसूस भी किया था तुम्हें बहुत तकलीफ हुई थी।

तो मुस्कुराते हुए बोली- अले मेले भोलू लाम.. तुम सच में बहुत प्यारे हो.. मेरा बहुत ख़याल रखते हो.. पर तुम्हें जानकर ख़ुशी होगी कि अब तालाब समुन्दर हो गई है.. चाहो तो खुद देख लो।

वो मेरा हाथ पकड़ कर अपनी गांड के छेद पर रखते हुए बोली- खुद ही अपनी ऊँगली डालकर देख लो..

तो मैंने उसकी गांड में दो ऊँगलियां डालीं.. जो कि आराम से चली गईं।

कुछ देर बाद फिर जब मैंने तीन डालीं तो उसे हल्का सा दर्द महसूस हुआ..
पर वो बोली- चलो अब जल्दी से इस दर्द को भी दूर कर दो।

मैंने बोला- अच्छा.. फिर से तेल या मक्खन लगा लो।

तो वो बोली- अरे अब उसकी जरुरत नहीं है.. मैं हूँ न.. बस तुम सीधे होकर लेट जाओ।

फिर मैं सीधा ही लेट गया.. माया अपने हाथ से मेरे लण्ड को मुठियाते हुए मुँह में भरकर चूसने लगी.. जिससे मेरा लौड़ा फिर आनन्द की किश्ती में सवार हो कर झूम उठा और जब उसके मुँह से लौड़ा निकलता तो उसके माथे पर ऐसे टीप मारता.. जैसे कहता हो, ‘पगली.. ठीक से चूस..’

फिर मैंने माया को बोला- जल्दी से इसे ले लो.. वरना ये ऐसे ही उबाल खा कर भावनाओं के सागर में बह जाएगा।

तो माया ने भी वैसा ही किया और मुँह में ज्यादा सा थूक भरकर.. मेरे लौड़े को तरबतर करके.. खुद ही मैदान सम्हालते हुए मेरे ऊपर आ गई।

वो मेरे लौड़े को अपनी गांड के छेद पर टिका कर धीरे-धीरे नीचे को बैठने लगी और उसकी थूक की चिकनाई के कारण आराम से उसकी गांड ने मेरा पूरा लौड़ा निगल सा लिया था।

उसकी गांड की गर्माहट पाकर मेरे अन्दर मनोभावनाओं में फिर से तूफ़ान सा जाग उठा और मैं भी कमर चलाकर उसे नीच से ठोकते हुए लण्ड की जड़ तक उसकी गांड में डालने लगा।

इतना आनन्द भरा समा चल रहा था कि दोनों सब कुछ भूल कर एक-दूसरे को ठोकर मारने में लगे थे।

माया ऊपर से नीचे.. तो मैं नीचे से ऊपर की ओर कमर चला रहा था।
माया लगातार ‘अह्ह्हह्ह उउउउम..’ करते-करते चूत से पानी बहाए जा रही थी.. जिसकी कुछेक बूँदें मेरे पेट पर गिर चुकी थीं।
उसको इतना मज़ा आ रहा था कि बिना चूत में कुछ डाले ही चरमोत्कर्ष के कारण स्वतः ही उसकी चूत का बाँध छूट गया और उसका कामरस मेरे पेट पर ही गिरने लगा।

और देखते ही देखते माया ने निढाल सा होकर पलंग पर घुटने टिका कर.. लण्ड को अन्दर लिए ही मेरी छाती पर सर रख दिया और अपने हाथों से मेरे कंधों को सहलाने लगी।

जिससे मेरा जोश भी बढ़ने लगा और मैंने अपने हाथों से उसके चूतड़ों को पकड़ा और मज़बूती से पकड़ते हुए नीचे से जबरदस्त स्ट्रोक लगाते हुए उसकी गांड मारने लगा।

जिससे वो सीत्कार ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह आआआअह..’ करते हुए जोश में आने लगी और मेरी छातियों को चूमने चाटने लगी।

मैंने रफ़्तार बढ़ा कर उसे चोदते हुए उसकी गांड में अपनी कामरस की बौछार कर दी।

झड़ने के साथ ही माया को अपनी बाँहों में जकड़ कर उसके सर को चूमते हुए उसे प्यार करने लगा।

ऐसा लग रहा था.. जैसे सारी दुनिया का सुख भोग कर आया हूँ।

फिर उस रात मैंने थोड़ी-थोड़ी देर रुक रूककर माया की गांड और चूत मारी.. करीब पांच बजे के आस-पास हम दोनों एक-दूसरे की बाँहों में निर्वस्त्र ही लिपटकर सो गए।

कहानी का यह भाग यहीं रोक रहा हूँ।
अब मैं क्या करूँगा.. जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिएगा।
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#51
Update 27


माँ-बेटी को चोदने की इच्छा


अब तक की कहानी में आपने पढ़ा…

फिर उस रात मैंने थोड़ी-थोड़ी देर रुक रूककर माया की गांड और चूत मारी.. करीब पांच बजे के आस-पास हम दोनों एक-दूसरे की बाँहों में निर्वस्त्र ही लिपटकर सो गए।

अब फिर करीब 11 बजे के आस-पास मेरी आँख खुली तो देखा माया कमरे में नहीं थी, तो मैं उठा और उसको आवाज़ दी।

जब कोई जवाब न मिला तो मैंने सोचा कहीं विनोद लोग आ तो नहीं गए..
जल्दबाज़ी में बिना चड्डी के ही लोअर डाला और और चड्डी को लोअर की जेब में रख ली।
मैं फ्रेश होने सीधा वाशरूम गया.. फिर फ्रेश होकर बाहर के कमरे की ओर चल दिया और देखने का प्रयास करने लगा कि ये लोग आए कि नहीं..
पर घर की शांति बता रही थी कि अभी वो लोग नहीं आए हैं।

तो मैं बिना किसी आवाज़ किए रसोई की ओर चल दिया.. तो पाया कि माया बालों को खोले और बहुत ही सरीके से साड़ी पहने हुए खाना पकाने में जुटी थी।
गर्दन से लेकर कमर तक का उसका हिस्सा खुला था.. जिस पर ब्लाउज की मात्र तीन इंची पट्टी थी।
उसके खुले बाल भीगे नज़र आ रहे थे.. जैसे कुछ ही देर पहले नहा कर आई हो..

उफ.. क्या माल दिख रही थी.. जैसे कि कोई हुस्न की परी जन्नत से उतर आई हो..

मैं उसके इस रूप-सौंदर्य को देखते ही अपना आपा खो बैठा और जाते ही लपककर उसको पीछे से अपनी बाँहों में भर लिया.. उसकी भीगी गर्दन पर जीभ फिराते हुए चुम्बन करने लगा।
उसके बालों से आ रही मादक खुशबू ने मुझे इतना मदहोश कर दिया कि मैं उसे अपनी ओर घुमाकर उसके सर को पकड़ कर उसके होंठों को चूसते हुए तो कभी उसके कानों और गालों में चूमते हुए उसकी पीठ सहलाते-सहलाते.. उसके ब्लाउज में पीछे की ओर से ऊँगलियां डालते हुए उसकी ब्रा का हुक खोलने लगा.. जो कि कुछ ही पलों में खुल गया।

जिसका पता माया को भी तभी चला, जब ब्रा का हुक खुलते ही उसकी पीठ पर थोड़ा रगड़ सा गया।

वो भी मेरी इस क्रिया में मेरा साथ देते-देते इतना मदहोश हो चुकी थी कि वो भी अपना होश खो कर मुझे अपने सीने से लगाकर.. अपनी चूचियों को मेरी छाती से रगड़ते हुए मेरे होंठों को चूसे जा रही थी।

फिर जब उसे हुक की रगड़ से होश आया तो मुझसे बोली- राहुल जाओ.. जल्दी जाकर नहा लो.. ये लोग अभी आते ही होंगे।
तो मैंने बोला- क्या उनसे बात की?
बोली- नहीं.. अभी नहीं की।
तो मैंने पूछा- अच्छा मेरा फ़ोन कहाँ है रात को तो बिस्तर पर ही था.. पर जब सो कर उठा तो वहाँ मेरा फ़ोन नहीं दिखाई दिया।

माया बोली- अरे वो विनोद के कमरे में चार्जिंग पर लगा है.. तुम्हारा बैग वहीं था और सुबह जब उठी तो तुम्हारा फोन ‘लो-बैटरी’ की वार्निंग दे रहा था। तो मैंने उसे चार्जिंग पर लगा दिया।

मैं आप सबको बता दूँ कि विनोद और रूचि दोनों का एक ही दो बिस्तरों वाला कमरा था और उसी को उन्होंने स्टडी-रूम भी बनाया हुआ था।

खैर.. मैंने माया से बोला- ओके.. मैं अभी देखता हूँ कि ये लोग कहाँ पहुँचे।

तो माया बोली- हाँ.. पूछ लो वक्त तो हो गया.. पर अभी तक नहीं आए..

मैंने माया को फिर से गले लगाया और उसके होंठ को चुम्बन देते हुए बोला- माया ये हसीन पल.. पता नहीं कब मेरी जिंदगी में आएंगे.. मैं बहुत ही याद करूँगा।

तो माया ने मेरे लहराते हुए मदमस्त नाग के समान लौड़े को पकड़ते हुए मुझसे बोली- राहुल तुम्हें नहीं पता.. तुमने इन दो दिनों में मुझे क्या दिया है.. आज इतना अच्छा लग रहा है, जितना कि पहले कभी न लगा, काश.. हम साथ रह पाते.. पर तुम परेशान न हो, तुम्हें मैं कैसे भी करके मज़ा देती और लेती रहूँगी।

यह कहते हुए उसने अपनी आँखों को बंद करते हुए गर्मजोशी के साथ मेरे लबों पर अपने लबों को चुभाते हुए चुम्बन करने लगी।

मैं और वो दोनों एक-दूसरे को बाँहों में जकड़े हुए प्यार कर रहे थे.. तभी माया ने अचानक अपनी आँखें खोलीं और बोली- राहुल तुम्हारा तो नहीं पता.. पर मेरा छोटा राहुल (लण्ड) हमेशा मेरे लिए बेकरार रहता है.. देखो कैसे तुम्हारे लोअर के अन्दर से ही फुदक-फुदक कर मेरे पेट को छेड़ रहा है।

मैंने बोला- सही ही तो है.. अब पता नहीं कब मौका मिले.. चलो एक बार मिलन करवा ही दें।

तो माया डरते हुए लहज़े में बोली- अरे नहीं.. अभी नहीं.. उनका आने का समय हो चुका है।

तो मैंने बोला- तो कौन से वो लोग आ गए.. तुम तो बेकार ही घबरा रही हो.. अब एक काम करो.. मैं फ़ोन करने जा रहा हूँ.. अगर मैं पांच मिनट में न आऊँ.. तो समझ लेना अपना मिलन होकर ही रहेगा।

तुम गैस बंद करके वहीं विनोद के कमरे में आ जाना।

तो वो बोली- हाँ.. ये सही रहेगा.. तुम उन लोगों की लोकेशन लो.. तब तक मैं भी बचे काम खत्म करके आती हूँ।

फिर मैं ख़ुशी से झूमते हुए मतवाले हाथी के समान विनोद के कमरे की ओर चल पड़ा और जाते ही फ़ोन लगाया और काल की.. तो विनोद ने ही फ़ोन उठाया।

मैंने उससे पूछा- अबे तू अभी तक न आया.. कहाँ फंसा है?

तो विनोद बोला- अरे कोई नहीं यार.. आ तो गया हूँ.. पर पिछले दस मिनट से गाड़ी आउटर पर खड़ी है.. प्लेटफॉर्म में पहुँचे.. तो काम बने।

तो मैंने पूछा- अरे कोई सिग्नल हुआ अभी कि नहीं?

तो वो बोला- शायद माल गाड़ी की वजह से रुकी पड़ी है.. लोडिंग-अनलोडिंग का लफड़ा लग रहा है.. अब देखो कितना समय लगता है.. हो सकता है तीस मिनट और लग जाएँ।



मेरा मन उसकी यह बात सुनकर ख़ुशी में झूम उठा और मैंने मन ही मन खुश होकर विनोद से बोला- अरे कोई बात नहीं आराम से आओ वैसे भी आज का खाना मैं खा कर ही जाऊँगा..

इस तरह दो-अर्थी शब्दों में बाते करते हुए मैंने फोन रख दिया.. तब तक माया आई और मेरे चेहरे के भावों से भांप गई कि विनोद लोग अभी और देर में आएंगे।

वो मुझसे बोली- क्या बात है.. लगता है तुम्हें अब मन चाहा फल देना ही पड़ेगा..

तो मैंने भी उससे झूट बोलते हुए कहा- अभी उनको दो घंटे और लगेंगे.. उनकी ट्रेन शहर से दूर कहीं सिग्नल न मिलने के कारण खड़ी हो गई है..
अब अगर मैं ये कहता कि गाड़ी स्टेशन के आउटर पर खड़ी है.. तो शायद वो कुछ भी मन से न करती और डरते हुए चुदाई करने में वो मज़ा कहाँ.. जो पूरे इत्मीनान के साथ करने में मिलता है।

खैर.. माया भी ख़ुशी से फूली न समाई और आकर मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और अपने होंठों से मेरे होंठों को चूमने लगी।

मैं भी उसे अपनी बाँहों में जकड़े हुए प्यार से चूमने-चाटने लगा और उसकी गर्दन पर जैसे ही चूमा.. वैसे ही उसके बालों से आ रही खुश्बू जो कि आज ही उसने धोए थे..

तो उसके बालों से आ रही खुश्बू से मैं मदहोश सा हो गया और उसे अपनी गोद में उठा कर उसे रूचि वाले बिस्तर पर लिटा दिया।

अब मैं उसके भीगे बालों की खुशबू लेने लगा।
उसके बाल भीगे होने से तकिया भी गीला होने लगा.. मैं उसे और वो मुझे बस पागलों की ही तरह चूमे-चाटे जा रहा था।

फिर उसने मुझे ऊपर की ओर धकेला और मुझे नीचे लेटने को बोला।

मैं कुछ समझ पाता.. उसके पहले ही उसने अपनी पैंटी निकाली और फिर मेरा लोअर हटा के वहीं पलंग के नीचे डाल दी और मेरे ऊपर आकर मेरी जांघों पर बैठते हुए अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगी।

मैं इतना बेताब हो गया कि बिना उसके खोले ही उसके चूचे नोचने-दबाने लगा।

जिससे उसके मुँह से चीख निकल गई और बोली- यार दो मिनट रुक नहीं सकते।

तो मैंने बोला- इतना मदहोश कर देती हो कि होश ही नहीं रहता।

तभी माया ने ब्लाउज निकाल दिया और मेरे होंठों को चूसते हुए मेरा सर सहलाने लगी।
फिर मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी पीठ पर ले जाकर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी पीठ सहलाते हुए सके चूतड़ों को रगड़ते हुए उन पर चाटें मारने लगा..
जिससे माया चिहुँक उठी।

अब तो उसे भी मेरी इस अदा पर मज़ा आने लगा था और मेरे हर तरीके का मज़े से स्वागत करने लगी थी..
जैसे कि वो मेरी आदी हो चुकी हो।

उधर मेरा लण्ड जो कि अब बेकरार हो चुका उसकी चूत से रगड़ खाते हुए उसकी चूत के मुहाने पर तन्नाते हुए अपना सर पटकने लगा था.. मानो कह रहा हो कि अब तुम लोगों का हो गया हो तो अब मेरी बारी आ गई है।

तभी मुझे भी होश आया कि वो लोग कभी भी घर पहुँच सकते हैं.. तो मैंने धीरे से अपने हाथों से उसके मम्मे दबाने चालू किए.. जिससे माया की सीत्कार निकलने लगी।

वो भी गर्म जोशी के साथ अपनी गर्दन उठा कर लहराती हुई जुल्फों से पानी की बूँदें टपकाती हुई ‘आआह.. उउउम्म्म्म और जोर से राहुल.. आआआह.. ऐसे ही करो.. आआअह..’ बोलने लगी।

तभी मैंने महसूस किया कि माया की चूत का पानी रिस कर मेरी जांघों और लौड़े के अगल-बगल बह रहा है।

फिर मैंने माया के चूतड़ों को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपना सीधे हाथ से लौड़े को पकड़कर उसकी चूत पर सैट करने लगा।
तो माया ने मोर्चा सम्हालते हुए खुद ही अपने हाथ से मेरे पप्पू को पकड़ा और उस पर अपनी चूत टिका एक ही बार में ‘गच्च’ से बैठ गई।

चूत के रसिया जाने से मेरा लण्ड भी बिना किसी रुकावट के उसकी चूत में लैंड हो गया और अब बल खाते हुए अपनी कमर चला-चला कर हुमक के ऊपर-नीचे होने लगी।

यार.. मैं तो उसका चेहरा ही देखता रह गया।
उसके जोश को देखकर एक पल के लिए मैं तो थम सा गया कि आखिर आज माया को क्या हो गया है.. वो एक भूखी शेरनी की तरह एक के बाद एक मेरे लौड़े पर अपनी चूत से वार करने लगी और निरंतर उसकी गति बढ़ती चली गई।

जैसे रेल की चाल चलती है.. कभी धीमे-धीमे और बीच में तेज़ और जब रूकती है तो फिर धीमे-धीमे.. ठीक उसी तरह माया कि भी गति अब बढ़ चुकी थी।

वो इतनी मदहोशी के साथ सब कर रही थी कि उसका अब खुद पर कोई काबू नहीं रहा था और वो अपनी आँखों को बंद किए हुए अपने निचले होंठों को मुँह से दाबे हुए दबी आवाज़ में ‘श्ह्ह्ह्ह्ह्ह.. आआआअह.. उम्म्म्म्म्..’ करती हुई मेरे सीने को अपने हाथों से सहला रही थी..
जिससे मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था और मैं भी उससे बोलने लगा- माया.. अब कर दो मेरे लण्ड पर प्यार की बरसात.. अब मेरा लण्ड अन्दर की और गर्मी बर्दास्त नहीं कर सकता..

इतना कहते ही मैंने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके तरबूज सामान चूतड़ों को भींचते हुए कसकर पकड़ लिया।

अब मैं भी अपनी कमर चलाने लगा.. जिससे माया का बांध कुछ ही धक्कों के बाद टूट गया और वो हाँफते हुए मेरे सीने पर सर टिका कर झुक गई।

अब वो इस स्थिति में अपनी गांड उठाए हुए मेरा लण्ड अपनी चूत में खाने लगी.. जिससे मुझे भी मज़ा आने लगा और मैं भी नीचे से तेज़ी के साथ कमर चलाते हुए उसकी चूत बजाने लगा।

अब आप लोग सोच रहे होंगे कि मैंने ये बजाना शब्द क्यों प्रयोग किया.. तो आपको बता दूँ कि उसकी चूत से इतना ज्यादा पानी डिस्चार्ज हुआ था.. और मेरे लौड़े के बार-बार अन्दर-बाहर होने से गप्प-गप्प और चप्प-चप्प की आवाजें आ रही थीं.. जो कि एक अलग प्रकार के जोश को बढ़ाने के लिए काफी थी। उधर माया की भी कराहें भी बढ़ गईं और प्यार भरी सीत्कार ‘आआआह.. आह.. उम..उम्म्म..’ के साथ भारी-भारी सांसें मेरे सीने पर गिर रही थीं।

उसकी गर्म सांसें मेरे रोम-रोम से टकरा कर कह रही थीं कि अब आ जाओ और पानी डाल कर बुझा दो.. इन गर्म साँसों को.. और कर दो ठंडा..

मैं भी पूरी तल्लीनता के साथ अपने चरमोत्कर्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता हुआ उसकी चूत पर लण्ड की ठोकर जड़ने लगा। इतने में ही डोर बेल बजी.. जिससे माया सकते में आ गई और घबरा गई।

वास्तव में हम दोनों पसीने से लथपथ तो थे ही.. अब आँखों में घबराहट के डोरे भी साफ़ दिखने लगे और उधर लगातार डोर-बेल बजे ही जा रही थी।

मेरा मन तो कर रहा था जाऊँ और जाकर उस बेल को तोड़ दूँ.. पर करता भी तो क्या? मेरा अभी भी हुआ नहीं था तो मैं जल्दी से उठा और अपना लोअर पहना और उसी से जुड़े हुए बाथरूम में चला गया।

जल्द-बाज़ी में माया ने भी अपनी साड़ी सही की जो अस्तव्यस्त हो गई थी और चड्डी वहीं पलंग के ऊपर पड़ी भूल गई थी।
वो अपने कपड़े सुधारने के बाद बिस्तर बिना सही किए ही चिल्लाते हुए चली गई।

‘आ रही हूँ.. पता नहीं कौन है.. बार-बार परेशान कर रहा है..’

उधर मैं भी अपना हाथ जगन्नाथ करने में जुटा था और अपना पानी बहाते हुए मैं थोड़ी देर वहीं बैठ गया.. अब मुझे क्या पता कि जल्दबाजी में लोअर उठाने के चक्कर में मेरी चड्डी जो कि रूचि के पलंग के नीचे रह गई थी और माया की चूत रस से भीगी चड्डी बिस्तर पर ही पड़ी थी।

खैर.. तब तक मुझे कमरे कुछ हलचल महसूस हुई.. तो मैंने सोचा अब निकलना चाहिए ताकि बहाना बना सकूँ कि मैं फ्रेश हो रहा था और मैं कैसे दरवाज़ा खोलता।

खैर.. मैं धीरे से अपना मुँह धोते हुए बाहर निकला.. तो मैं हक्का-बक्का सा रह गया क्योंकि रूचि के हाथों मेरी और माया की चड्डी थीं.. उसके दाए हाँथ में मेरी और बाएं हाथ में माया की.. और वो बड़े ही गौर से मेरी चड्डी को बिस्तर पर रखकर माया की चड्डी के गीले भाग को बड़े ही गौर से देखते हुए सूंघने लगी और अपनी ऊँगली से छू कर शायद ये देख रही थी कि ये चिपचिपा-चिपचिपा सा क्या है?

इतने में मैंने अपनी मौजूदगी को जाहिर करते हुए तेज़ी से बाथरूम का गेट बंद किया.. जिससे रूचि भी हड़बड़ा गई और उस चड्डी को बिस्तर पर फेंकते हुए मुझसे बोली- तुम यहाँ क्या कर रहे थे?

तो मैंने बाथरूम की ओर इशारा करते हुए बोला- यहाँ क्या करते हैं?

वो बोली- मैं उसकी बात नहीं कर रही हूँ।

‘तो किसकी बात कर रही हो?’

वो बेड को दिखाते हुए बोली- यहाँ की..!

तो मैंने सोचा.. इसको तो अब कुछ तो बताना ही होगा.. मैं बहुत असमंजस में पड़ते हुए बोला- यहाँ सोता था..

तो मेरी और माया की चड्डी उठाते हुए बोली- ये सब क्या है?

वो गीला तकिया जो कि माया के गीले बालों से भीगा सा लग रहा था।

अब मैंने मन ही मन सोचा कि विनोद के यहाँ आने के पहले इसका कुछ तो करना ही पड़ेगा..

तो दोस्तो, आज के लिए इतना ही..

अब रूचि से मैं क्या बोलूँगा.. कैसे उसे पटाऊँगा.. ये सब जानने के लिए थोड़ा सा सब्र करें.. जल्द ही आप लोगों को आगे की कहानी पढ़ने को भेजूंगा.. तब तक के लिए धन्यवाद।
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#52
Wah mazaa aa gaya...abb maya aunty ko bhi Ruchi bahan ke liye apne kamuk khayalon ko jataa do..
Plz update soon..
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#53
Update 28



माँ-बेटी को चोदने की इच्छा



कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा था..

जब मुझे मालूम हुआ कि माया आंटी की लड़की रूचि और लड़का विनोद को ट्रेन से आने में अभी देर है तो मैं माया को चोदने में जुट गया पर मेरे अनुमान के पहले ही वे दोनों घर आ गए और दरवाजा खटखटाया.. हड़बड़ा कर हम दोनों उठे और जब मैं माया को आधा-अधूरा चोद कर मुठ मार कर रह गया था.. और बाथरूम में चला गया था।

खैर.. मैं धीरे से अपना मुँह धोते हुए बाहर निकला.. तो मैं हक्का-बक्का सा रह गया क्योंकि रूचि के हाथों मेरी और माया की चड्डियाँ थीं.. उसके दाए हाँथ में मेरी और बाएं हाथ में माया की.. और वो बड़े ही गौर से मेरी चड्डी को बिस्तर पर रखकर माया की चड्डी के गीले भाग को बड़े ही गौर से देखते हुए सूंघने लगी और अपनी ऊँगली से छूकर शायद यह देख रही थी कि ये चिपचिपा-चिपचिपा सा क्या है?

इतने में मैंने अपनी मौजूदगी को जाहिर करते हुए तेज़ी से बाथरूम का गेट बंद किया.. जिससे रूचि भी हड़बड़ा गई और उस चड्डी को बिस्तर पर फेंकते हुए मुझसे बोली- तुम यहाँ क्या कर रहे थे?

तो मैंने बाथरूम की ओर इशारा करते हुए बोला- यहाँ क्या करते हैं?

तो मैंने सोचा.. इसको तो अब कुछ तो बताना ही होगा.. मैं बहुत असमंजस में पड़ते हुए बोला- यहाँ सोता था!

मेरी और माया की चड्डी उठाते हुए बोली- ये सब क्या है?

तो मैंने पूछा- किसकी बात कर रही हो?

वो बिस्तर को दिखाते हुए बोली- यहाँ की..

तो मैंने सोचा यार इसको तो अब कुछ तो बताना ही होगा। मैं बहुत असमंजस में पड़ते हुए बोला- मैं यहाँ सोता था।

वो मेरी और माया की चड्डी उठाते हुए बोली- ये सब क्या है?

फिर उसने गीला तकिया जो कि माया के गीले बालों से भीगा सा लग रहा था।

तो मैंने मन ही मन सोचा.. विनोद के यहाँ आने के पहले.. इसका कुछ तो करना ही पड़ेगा।

अब आगे बढ़ कर मैंने उससे बोला- तुम्हें क्या लग रहा है?

तो वो मुझसे बोली- वही तो समझने की कोशिश कर रही हूँ कि मुझे क्यों सब कुछ गड़बड़ लग रहा है या फिर बात कुछ और है?

तो मैंने उसे बोला- जो तुम्हें लग रहा है पहले वो बोलो.. फिर अगर सही होगा तो मैं ‘हाँ’ या ‘न’ में जवाब दूँगा और तुम गलत हुई.. तो मैं बता दूँगा.. पर ये बात मेरे और तुम्हारे बीच ही रहेगी।

मैं उस दिन बहुत डर गया था.. घबराहट के मारे मेरे माथे से पसीना बहने लगा था। पर जैसे ही उसकी बात सुनी तो मेरी जान में जान आई और मैंने सोचा इसे अपनी बात पूरी कर लेने दो फिर तो मैं इसे हैंडल कर लूँगा।

मैं दरवाजा बंद करने लगा तो उसने कहा- ये क्यों किया तुमने?

मैंने बोला- ताकि कोई यहाँ न आए.. फिर मैं उसी बिस्तर पर जाकर बैठ गया.. और उससे बोला- मेरे पास न सही.. पर चाहो तो सामने वाले बिस्तर पर बैठ जाओ.. नहीं तो थक जाओगी.. अभी तुम्हारी तबियत भी ठीक नहीं है।

तो उसने मुँह बनाते हुए बोला- ज्यादा हमदर्दी दिखाने की कोशिश मत करो..
वो यह कहते हुए बैठ गई।

फिर मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा- अच्छा अब बोलो.. तुम क्या सोच रही थी?

मैंने उसके हाथ की ओर इशारा करते हुए पूछा.. जिसमें वो माया के रस से सनी चड्डी को पकड़े हुए थी।

तो वो बोली- आप कितने गंदे हो.. मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि आप माँ के अंदरूनी कपड़ों को लेकर सोओगे और ये सब करोगे..

तो मैं समझ गया कि ये अभी नादान है.. इसे ज्यादा कुछ नहीं पता लगा।

मैंने भी थोड़ी बेशर्मी दिखाते हुए बोला- क्या.. इस सबसे तुम्हारा क्या मतलब है?

तो वो चड्डी में लगे हुए रस को छूते हुए बोली- ये..

तो मैंने पूछा- तुम्हें नहीं पता कि ये क्या है.. तो तुम मुझे गन्दा कैसे कह सकती हो?

मुझे पता चल गया था कि वो क्या कहना चाह रही थी.. पर उसके मुँह से सुनने के लिए मैंने उसे उकसाया.. तो वो बोली- बेवकूफ मत समझो मुझे.. आपको नहीं मालूम.. ये आपका स्पर्म है। मैंने अपनी सहेलियों से सुना है कि लड़कों का स्पर्म चिकना होता है.. और आपको मैं पहले दिन से नोटिस कर रही हूँ कि आप मेरी माँ को मौका पाकर छेड़ते रहते हैं और…



तो मैंने बोला- और क्या?

बोली- और.. अब तो हद ही हो गई.. आपने हम लोगों की गैरहाज़िरी का फायदा उठाते हुए मेरी माँ पर गन्दी नज़र रखते हुए.. उनके अंडरगार्मेंट्स को अपने साथ लेकर सोने लगे और न जाने मन में क्या क्या करते होंगे.. जिससे आपका स्पर्म निकल जाता होगा..

तो मैंने उससे बोला- तुम्हें पता है.. स्पर्म कैसे निकलता है?

बोली- हाँ.. गन्दा सोचने पर..

मैंने हंस कर बोला- उतनी देर से तुम भी तो मेरे बारे मैं गन्दा सोच रही हो.. तो क्या तुम्हारा भी ‘स्पर्म’ निकल रहा है?

वो तुनक कर बोली- अरे मेरे कहने का मतलब ऐसा नहीं है..

तो मैंने बोला- फिर कैसा है?

बोली- मैं अभी जाती हूँ.. और बाहर जाकर सबको बताती हूँ.. फिर वही तुम्हें समझा देंगे..

ये कह उठने सी लगी तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखे और उसे बैठने को कहा और बोला- पहले ठीक से हम समझ तो लें.. फिर जो मन में आए.. वो करना।

तो बोली- नहीं.. अब मुझे कुछ नहीं समझना.. मैं आपको बहुत अच्छा समझती थी.. पर आप बिलकुल भी ठीक इंसान नहीं हो..

मैंने बोला- अभी सब समझा दूँगा.. पर पहले ये बताओ.. तुम मेरी किस सोच को गन्दा बोल रही थी.. जिससे स्पर्म निकल आया।

तो वो कुछ हकलाते हुए सी बोली- मैं सब सब समझती हूँ.. अब मैं छोटी नहीं रही.. जो आप मुझे बेवकूफ बना लोगे.. आपसे सिर्फ दो ही साल छोटी हूँ।

तो मैंने बोला- तुम्हें कुछ पता होता.. तो अब तक बता चुकी होतीं.. और ये क्या है मुझे भी नहीं मालूम।

तो बोली- ज्यादा होशियारी मत दिखाओ.. जब मन में सेक्स करने के ख़याल आते हैं तो स्पर्म निकलता है और वही तुम करते थे।

मैंने बोला- ऐसा नहीं है।

तो वो बोली- इस उम्र में ये सब होना बड़ी बात नहीं है.. पर मेरी माँ को लेकर तुम्हारी नियत खराब हो गई.. ये बहुत गलत बात है.. मैं अभी भैया और माँ को बताती हूँ।

तो मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे बैठाया और उसी के बगल में बैठ गया और उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया।

तो बोली- ये आप क्या कर रहे हैं?

तो मैंने बोला- अभी कहाँ कुछ किया.. और जब तक तुम ‘हाँ’ नहीं कहती.. मैं कुछ भी नहीं करूँगा।

तो बोली- मैं समझी नहीं.. आप कहना क्या चाहते हो?

तो मैंने उसे बुद्धू बनाते हुए बोला- प्लीज़ तुम किसी को भी ये बात मत बोलना.. मगर मेरी अब एक बात सुन लो.. फिर तुम अगर चाहोगी तो मैं यहाँ दोबारा आऊँगा.. वर्ना कभी भी अपनी शक्ल तक नहीं दिखाऊँगा।

तो वो बोली- आप पहले मेरे ऊपर से अपने गंदे हाथ हटाएं.. और यहाँ से जल्दी अपनी बात खत्म करके निकल जाएं।

फिर मैं उसे उल्लू बनाते हुए बोला- जो ये तुम्हारे हाथ में चड्डी है..

वो बोली- हाँ तो?

तो मैंने बोला- यह मैं नहीं जानता था कि ये तुम्हारी है या आंटी की.. क्योंकि ये मुझे यहीं मिली थी।

तो वो हैरानी से बोली- मतलब क्या है तुम्हारा? किसी की भी चड्डी में अपना रस गिरा देते हो?

तो मैंने बोला- नहीं.. ऐसा नहीं है..

वो बोली- फिर कैसा है?

मैंने उससे बोला- मैंने जबसे तुमको देखा है.. मैं बस तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूँ और तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.. और मुझे सच में यह नहीं मालूम कि यह किसकी थी.. मैंने तो तुम्हारी समझ कर ही अपने पास रख ली थी और आंटी को लेकर मेरा कोई गलत इरादा नहीं था। मैं तो सोते जागते बस तुम्हारे बारे में ही सोचता था.. इसीलिए मैंने सोने के लिए बिस्तर भी तुम्हारा ही पसंद किया था.. जिसमें मुझे तुम्हारे बदन की मदहोश कर महक अपना स्पर्म निकालने के लिए मजबूर कर देती थी.. और अगर तुम्हें ये गलत लगता है.. तो आज के बाद मैं तुम्हें कभी मुँह नहीं दिखाऊँगा.. पर मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ.. आगे तुम्हारी मर्ज़ी…

यह कहते हुए मैं शांत होकर उसके चेहरे के भावों को पढ़ने लगा।

उसका चेहरा साफ़ बता रहा था कि अब वो कोई हंगामा नहीं खड़ा करेगी.. तो मैंने फिर से उससे बोला- क्या तुम भी मुझे अपना सकती हो?

तो वो उलझन में आ गई… जो कि उसके चेहरे पर दिख रही थी..

मैं उठा और उससे बोला- कोई जल्दी नहीं है.. आराम से सोच कर जवाब देना.. पर हाँ.. तब तक के लिए मैं तुम्हारे घर जरूर आऊँगा.. पर बाहर ही बाहर तक.. मुझे तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा।

मेरी बात समाप्त होते ही दरवाज़े पर विनोद आ गया और खटखटाने लगा तो रूचि ने मुझे फिर से इशारे से बाथरूम का रास्ता दिखा दिया और मैं अपनी चड्डी की जगह जल्दबाज़ी में माया की ले आया और बाथरूम अन्दर से बंद करके बाहर की आवाज़ सुनने लगा।

विनोद ने घुसते ही पूछा- राहुल किधर है.. माँ ने बोला है कि वो यहीं होगा?

तो रूचि बोली- भैया.. वो तो नहा रहे हैं मैंने भी जब बाथरूम खोलना चाहा तो वो अन्दर से लॉक था.. फिर अन्दर से उनकी आवाज़ आई कि मैं नहा रहा हूँ.. तब मैंने सोचा कि चलो तब तक कपड़ों को ही अलमारी में एक सा जमा दूँ।

भैया बोले- तू बहुत पागल है.. इस तरह से पूरे बिस्तर में कपड़े फ़ैलाने की क्या जरुरत थी? चल जल्दी से निपटा ले।

तभी मैं अन्दर से निकला और मैंने शो करने के लिए शावर से थोड़ा नहा भी लिया था।

मैंने निकलते ही पूछा- अरे रूचि तुम्हारा एग्जाम कैसा रहा?

तो बोली- अच्छा रहा..

वो मेरी ओर देखते हुए मुस्कुरा दी.. फिर मैंने विनोद से पूछा- यार नींद पूरी नहीं हुई क्या.. जो आते ही सो गए।

तो बोला- हाँ यार.. ट्रेन में सही से सो नहीं पाया।

तब तक आंटी ने आवाज़ देते हुए बोला- अरे सुनो सब.. तुम लोग आ जाओ.. नाश्ता रेडी है।

विनोद बोला- रूचि पहले तू फ्रेश होने जाएगी या मैं जाऊँ?

वो बोली- आप हो आइए.. मैं कपड़े रखकर आती हूँ।

मैं मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।

वो मेरी तरफ देखते हुए बोली- तब तक आप चलिए.. हम दोनों आते हैं।

अब मुझे यकीन हो गया था कि ये चिड़िया भले ही मेरे जाल में न फंसी हो.. पर यह बात ये किसी को भी नहीं बोलेगी..
यह सोचता हुआ बाहर आ गया।

माया ने जैसे ही मुझे देखा कि मैं अकेला ही आ रहा हूँ.. तो वो जोर से बोलते हुए बोली- वो लोग कहाँ हैं?

फिर मेरे पास आई और बोली- कुछ अन्दर गड़बड़ तो नहीं हुई न?

तो मैंने उनके गालों को चूमते हुए कहा- आप परेशान न हों.. किसी को कुछ भी शक नहीं हुआ है।

ये कहते हुए मैं डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।

आप सभी का पुनः धन्यवाद।
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#54
Bhai ab ruchi ki seal bhi tod do
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#55
Bahut achchhe..plz continue
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#56
Update 29


माँ-बेटी को चोदने की इच्छा

पिछले भाग में आपने पढ़ा:

माया ने जैसे ही देखा कि मैं अकेला ही आ रहा हूँ तो जोर से बोलते हुए कि वो लोग कहाँ है..? वो मेरे पास आई और बोली- अन्दर कुछ गड़बड़ तो नहीं हुई न?
तो मैंने उसके गालों को चूमते हुए बोला- आप परेशान न हों.. किसी को कुछ भी शक नहीं हुआ है।
ये कहते हुए मैं डाइनिंग टेबल पर बैठ गया।

अब आगे..

फिर मैं वहीं उन दोनों का इंतज़ार करने लगा और आंटी जी भी अपने कमरे में चली गईं.. शायद कपड़े बदलने गई थीं.. क्योंकि उन कपड़ों में काफी सिकुड़न पड़ चुकी थी.. जिसको किसी ने ध्यान ही नहीं दिया.. वरना रूचि तो तुरंत ही समझ जाती।

खैर.. करीब 10 मिनट बाद विनोद आया और उसके कुछ ही देर बाद रूचि भी आ गई।

हम बैठे.. इधर-उधर की बात करते-करते नाश्ता करने लगे.. लेकिन रूचि कुछ भी खा नहीं रही थी.. तो मैंने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए उससे पूछा- तुम कुछ ले नहीं रही हो?

तो वो बोली- ये बहुत ही हैवी नाश्ता है.. मुझे कुछ हल्का-फुल्का चाहिए.. क्योंकि कल मेरी तबियत कुछ ख़राब हो गई थी.. पर अब थोड़ा सही है।

यह सुन कर आंटी आईं और बोलीं- सॉरी बेटा.. मैं तो जल्दी में भूल ही गई थी.. तुम बस 1 मिनट ठहरो.. मैं अभी तुम्हारे लिए कुछ लाती हूँ।

वो रसोई में गईं और थोड़ी देर बाद रूचि के लिए थोड़ा पपीता और केला काट कर लाईं और उसे देते हुए बोलीं- लो इसे खा लो.. ये तुम्हारे लिए बहुत अच्छा रहेगा.. इससे पेट में आई हुई खराबी भी सही हो जाएगी।

तब तक मेरा और विनोद का नाश्ता हो चुका था.. तो हम उठे.. और हाथ धोकर करके सोफे पर बैठ गए।

अब मैंने आंटी से बोला- आपने नाश्ता नहीं किया?

तो वो मेरी ओर देखते हुए हँसते हुए बोलीं- अभी जब ये लोग आ रहे थे.. तभी मैंने बड़ा वाला ‘केला’ खाया है और अब इच्छा नहीं है..

यह कहते हुए वे आँख मारकर हँसते हुए चली गईं।

उनकी यह बात कोई नहीं समझ पाया और फिर कुछ ही देर बाद जब रूचि भी अपना नाश्ता करके हमारे बीच आई तो मैंने विनोद से बोला- अच्छा भाई.. अब मैं चलता हूँ.. मुझे नहीं लगता कि अब मेरी यहाँ कोई जरूरत है। अब तो तुम लोग भी आ गए हो.. वैसे तुम लोगों से बिना पूछे तुम्हारे कमरे का इस्तेमाल करने के लिए सॉरी..

तो विनोद बोला- साले पागल है क्या तू.. जो ऐसा बोल रहा है।

मैंने बोला- यार गेस्ट-रूम भी था और मुझे तुमसे पूछना चाहिए था।

तो वो बोला- अरे तो कोई बात नहीं.. वैसे भी हमें बुरा नहीं लगा.. क्यों रूचि तुम भी सहमत हो न?

तो रूचि बोली- अरे कोई बात नहीं.. हो गया.. अब जो होना था..
कहती हुई वो मुस्कुरा उठी।

तो मैंने मन में सोचा चलो भाई अब तो हो चुका जो होना था.. अब तो वो करना है.. जो बाकी है..
यही सोचते हुए मैंने रूचि की आँखों में झांकते हुए कहा- वैसे यार सच बोलूँ इतना मज़ा तो कभी खुद के बिस्तर पर नहीं आया.. जितना यहाँ के बिस्तर में आया है.. यार वास्तव में मज़ा आ गया।

तो रूचि का चेहरा शर्म से लाल हो गया और उसके चेहरे पर मुस्कान छा गई जो कि उसके अंतर्मन को दर्शाने के लिए काफी थी।

तब तक विनोद बोला- साले.. ऐसा क्या हो गया?

मैं बोला- यार यहाँ सुबह जल्दी नहीं उठना पड़ता था न.. इसलिए..



मैंने बात को घुमा दिया.. ताकि विनोद अपना ज्यादा दिमाग न लगाए.. और मैंने बात यहीं ख़त्म कर दी।

फिर मैंने बोला- मुझे मेरा जवाब चाहिए.. जितनी जल्दी हो सके दो..

यह मेरा रूचि से पूछा गया सवाल था.. जो कि कुछ देर पहले ही कमरे पर मेरी और रूचि के बहस से सम्बंधित था।

तो विनोद बोला- कैसा जवाब?

मैं बोला- अब मैं घर जा सकता हूँ..
तो वो बोला- थोड़ी देर में चले जइयो बे..
मैं बोला- नहीं यार.. घर में भी देखना पड़ेगा.. दो दिन से यहीं हूँ.. आंटी के साथ.. अब तुम लोग आ ही गए हो तो..

इतने में आंटी पीछे से आते हुए बोलीं- मुझे बहुत खलेगा राहुल.. तुमने मेरा बहुत ध्यान रखा.. हो सके तो शाम को आ जाना.. तुम्हारी याद आएगी।

तो मैंने रूचि की ओर देखते हुए बोला- आंटी अब मैं आज नहीं आऊँगा.. हो तो आप भी माँ जैसी.. पर माँ नहीं.. पर मैं आपका बहुत सम्मान करता हूँ.. तो अब दुबारा मैं कैसे आ सकता हूँ.. समझने की कोशिश कीजिए..

ये मैंने केवल रूचि को झांसे में लेने के लिए तीर छोड़ा था.. जो कि ठीक निशाने पर लगा.. क्योंकि उसका चेहरा उतर चुका था।

इतने में माया बोली- जब तुम मेरी इतनी इज्जत करते हो तो.. क्या मेरे कहने पर आ नहीं सकते।

तो मैं बिना बोले ही रूचि की आँखों में आँखे डालकर शांत होकर देखने लगा.. जिससे उसे ऐसा लगा.. जैसे मैं उससे ही पूछ रहा होऊँ कि मैं आऊँ या न आऊँ..

तब तक विनोद भी बोला- बोल न यार.. शाम को आ जा..

पर अब भी मुझे शांत देख कर रूचि ने अपनी चुप्पी तोड़ी और बोली- क्यों न आप आज भी यहीं रुक जाएँ.. हम मिलकर मस्ती करेंगे और कल फिर आपको देर तक सोने को मिलेगा।

सच बोलूँ तो यार उसकी ये बात सुन तो मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न रहा।

मेरी ख़ुशी को देखकर रूचि बोली- देखना माँ.. राहुल भैया जरूर मान जायेंगे.. क्योंकि लगता है.. उनको सोने का बहुत शौक है और ये शौक वो अपने घर में पूरा नहीं कर पाते हैं।

तो विनोद बोला- हाँ यार.. चल अब जल्दी से ‘हाँ’ बोल दे.. सबकी जब यहीं इच्छा है.. तो तू आज रात यहीं रुक जा..

तो मैंने भी बोला- चलो ठीक है.. जैसी आप लोगों की इच्छा.. पर मुझे अभी घर जाना ही होगा। फिर शाम तक आ जाऊँगा।

मैं मन में सोचने लगा कि मैंने तो सोचा था कि अब आना ही कम हो जाएगा.. पर यहाँ तो खुद रूचि ही मुझे रुकने के लिए बोल रही है। ये मैं कैसे हाथ से जाने दूँ।

इतने में रूचि बोली- अब क्या सोच रहे हो.. आप जल्दी से आप अपने घर होकर आओ।
मैंने बोला- अब घर पर क्या बोलूँगा कि आज क्यों रुक रहा हूँ?
तो कोई कुछ बोलता.. उसके पहले ही रूचि बोली- अरे आप परेशान न हों.. मैं खुद ही आंटी जी को फ़ोन करूँगी।
तो मैंने बोला- वो तो ठीक है.. पर बोलोगी क्या?

तब उसने जो बोला उसे सुन कर तो मैं हैरान हो गया और मुझे ऐसा लगा कि ये तो माया से भी बड़ी चुदैल रंडी बनेगी। साली मेरे साथ नौटंकी कर रही थी। उसकी बात से केवल मैं ही हैरान नहीं था बल्कि बाकी माया और विनोद भी बहुत हैरान थे।

उसने बोला ही कुछ ऐसा था कि आप अभी अपने घर जाओ और आंटी पूछें कि हम आए या नहीं.. तो आप बोलना मैं जब निकला था.. तब तक तो वो लोग नहीं आए थे और उनका फ़ोन भी स्विच ऑफ था..। फिर आप अपने काम में लग जाना.. जैसे आप सही कह रहे हों और फिर 6 बजे के आस-पास मैं ही आपकी माँ को काल करूँगी और उनसे बोलूँगी कि आंटी अगर भैया घर पर ही हों तो आप उनसे बोल दीजिएगा कि हम आज नहीं आ पा रहे हैं। हमारी ट्रेन कैंसिल हो गई है.. तो हम कल ही घर पहुँच पायेंगे..

मैं उस अभी सुन ही रहा था कि वो और आगे बोली- और हाँ.. वैसे कल की जगह परसों ज्यादा ठीक रहेगा और आपके साथ वक़्त बिताने के लिए दो दिन भी ठीक है न..
तो मैंने भी मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ बोला।

फिर उसने अपनी बात शुरू की- हाँ.. तो अब ये बोलूँगी कि ट्रेन कैंसिल हो जाने से रिजर्वेशन परसों का मिला है.. तो आप प्लीज़ उनसे बोलिएगा कि वो दो दिन घर पर ही रहें.. क्योंकि माँ को अकेले रहने में बहुत डर लगता है और उन्हें कोई शक न हो इसलिए बाद मैं ये भी बोल दूँगी कि पता नहीं क्यों.. माँ और राहुल भैया का फ़ोन भी नहीं मिल रहा है.. इसलिए आप ही उन्हें कह देना।
फिर अपनी बात को समाप्त करते हुए बोली- क्यों कैसा लगा सबको मेरा आईडिया?

तो सब ने एक साथ बोला- बहुत ही बढ़िया..

मैंने मन में सोचा- यार इससे तो संभल कर रहना पड़ेगा.. ये तो अपनी माँ से भी ज्यादा चालाक लड़की है।

फिर हमने एक साथ बैठकर चाय पी। इस बीच रूचि बार-बार मुझे ही घूरते हुए हँसे जा रही थी.. पर कुछ बोल नहीं रही थी। जबकि मैं उससे सुनना चाहता था कि वो ऐसा क्यों कर रही है.. पर मुझे कोई मौका ही नहीं मिल रहा था।

इतने में विनोद उठा और वहीं सोफे के पास पड़े दीवान पर लेटते हुए बोला- मैं तो चला सोने.. अब मुझे कोई डिस्टर्ब न करना।
मैंने भी सोचा.. चलो अब तो बात करने का मौका मिल ही जाएगा।
मैं वक़्त की नजाकत को समझते हुए बोला- अच्छा विनोद.. तुम सो.. मैं चला अपने घर.. फिर शाम को मिलते हैं।

तो बोला- ठीक है।

आंटी भी वहीं बैठी थीं.. वो तुरंत बोलीं- शाम को क्या खाओगे?
तो मैंने उनके रसभरे चूचों की ओर घूरते हुए कहा- जो आप पिला और खिला पाओ?
तो वो मेरी निगाहों को समझते हुए बोलीं- ठीक है.. देखते हैं फिर क्या बन सकता है।
फिर मैंने बोला- अब आप सोचती रहो.. शाम तक.. मैं चला अपनी पैकिंग करने.. घर जल्दी ही पहुँचना पड़ेगा।
तो रूचि भी खुद ही बोली जैसे वो भी मुझसे बात करना चाह रही हो, खैर.. वो मुझसे बोली- हाँ भैया.. चलिए मैं भी आपकी कुछ मदद कर देती हूँ ताकि आपका ‘काम’ जल्दी हो जाए।

वो ‘काम’ तो ऐसे बोली थी.. जैसे कामशास्त्र की प्रोफेसर हो और मुझे नीचे लिटाकर ही मेरा काम-तमाम कर देगी।
लेकिन फिर भी मैंने संभलते हुए बोला- अरे मैं कर लूँगा.. तुम परेशान न हो।
तो बोली- अरे कोई बात नहीं.. आखिर मैं कब काम आऊँगी।

मैंने भी सोचा.. चलो ‘हाँ’ बोल दो.. नहीं तो ये काम-काम बोल कर मेरा काम बढ़ा देगी।
फिर मैंने भी मुस्कुराते हुए बोल दिया- ठीक है.. जैसी तेरी इच्छा..

हालांकि अभी मैं उससे दो अर्थी शब्दों में बात नहीं कर रहा था.. पर अपने नैनों के बाणों से उसके शरीर को जरूर छलनी कर रहा था। जिसे वो देख कर मुस्कुरा रही थी।
शायद वो ये समझ रही होगी कि मैं उसे प्यार करता हूँ। मुझे वो उसकी अदाओं और बातों से लगने भी लगा था कि बेटा राहुल तेरा काम बन गया.. बस थोड़ा सब्र रख.. जल्द ही तेरी इसे चोदने की भी इच्छा पूरी हो जाएगी।

फिर वो अपने भारी नितम्बों को मटकाते हुए मेरे आगे चलने लगी।
उसकी इस अदा से साफ़ लग रहा था कि वो मुझे ही अपनी अदाओं से मारने के लिए ऐसे चल रही है.. क्योंकि वो बार-बार साइड से देखने का प्रयास कर रही थी कि मेरी नज़र किधर है।

साला इधर मेरा लौड़ा इतना मचल गया था कि बस दिल तो यही कर रहा था कि अपने लौड़े को छुरी समान बना कर इसके दिल समान नितम्ब में गाड़ कर ठूंस दूँ।
पर मैं कोई जल्दबाज़ी नहीं करना चाहता था.. क्योंकि मेरे मन में ये भी ख़याल आ रहे थे कि हो सकता है कि रूचि अभी कुंवारी हो.. और न भी हो..
पर यदि ये कुवांरी हुई.. तो सब गड़बड़ हो जाएगी और वैसे भी उसकी तरफ से लाइन क्लियर तो थी ही.. ये तो पक्का हो ही गया था कि आज नहीं तो कल इसको चोद कर मेरी इच्छा पूरी हो ही जाएगी।

फिर ये सब सोचते-सोचते हम दोनों कमरे में पहुँचे तो रूचि बोली- भैया आप दरवाज़ा बंद कर दीजिए।
तो मैंने प्रश्नवाचक नज़रों से उसकी ओर देखा तो बोली- अरे आप परेशान न हों.. मैं आपकी तरह नहीं हूँ।
तो मैंने भी तुरंत ही सवाल दाग दिया- क्या मेरी तरह.. मेरी तरह.. लगा रखा है।

वो बिस्तर की ओर इशारा करते हुए बोली- यही.. जो आप दरवाज़ा बंद करके मेरे बिस्तर और माँ की चड्डी से करते थे।

मैंने भी बोला- मैं कैसे समझाऊँ कि मुझे नहीं मालूम था कि वो तेरी माँ की चड्डी है।
उतो वो तुरंत ही बोली- और ये बिस्तर..
मैंने बोला- हाँ.. ये तो मालूम था।
तो वो बोली- बस यही तो मैं बोली कि आप दरवाज़ा बंद करो.. मैं आपकी तरह आपका चोदन नहीं करूँगी।

साली बोल तो ऐसे रही थी.. जैसे बोल रही हो कि राहुल आओ जल्दी से.. और मेरा चोदन कर दो और मेरे शरीर को मसलते हुए कोई रहम न करना।

मैंने बोला- फिर दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत है?
तो बोली- आप भी इतना नहीं मालूम कि एसी चलने पर दरवाजे बंद होने चाहिए!
मैंने बोला- तो ऐसे बोलना चाहिए न..
तो वो हँसते हुए बोली- आप इतने भी बुद्धू नहीं नज़र आते.. जो आपको सब कुछ बताना पड़े.. कुछ अपना भी दिमाग लगाओ।

फिर मैंने दरवाज़ा अन्दर से बंद करते हुए सिटकनी भी लगा दी।

अब बंद कमरे में आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार कीजिए।
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#57
Bhai next update dijiye wait nh hota
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#58
Update 30

माँ बेटी को चोदने की इच्छा



कहानी में आपने पढ़ा…

वो बोली- बस यही तो मैं बोली कि आप दरवाज़ा बंद करो.. मैं आपकी तरह आपका जबरन चोदन नहीं करूँगी।
साली बोल तो ऐसे र5ही थी.. जैसे बोल रही हो कि राहुल आओ जल्दी से.. और मेरा चोदन कर दो और मेरे शरीर को मसलते हुए कोई रहम न करना।
मैंने बोला- फिर दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत है?
तो बोली- आप भी इतना नहीं मालूम कि एसी चलने पर दरवाजे बंद होने चाहिए?
मैंने बोला- तो ऐसे बोलना चाहिए न..
तो वो हँसते हुए बोली- आप इतने भी बुद्धू नहीं नज़र आते.. जो आपको सब कुछ बताना पड़े.. कुछ अपना भी दिमाग लगाओ।
फिर मैंने दरवाज़ा अन्दर से बंद करते हुए सिटकनी भी लगा दी।

अब आगे..

मैंने दरवाजा बंद किया और उसकी आँखों में देखते हुए सोचने लगा.. बेटा राहुल.. तवा गर्म है.. सेंक ले रोटी.. पर मुझे इसके साथ ही एक तरफ यह भी डर था कि कहीं मैंने जो सोचा है.. वो यदि कुछ गलत हुआ.. तो सब हाथ से फिसल जाएगा..
खैर.. अब सब्र से काम ले शायद तेरी इच्छा पूरी हो जाए।

मैं अभी भी उसकी आँखों को ही देखे जा रहा था और वो मेरी आँखों को देख रही थी।

तभी उसने मेरे मन में चल रही उथल-पुथल को समझते हुए कहा- राहुल उधर ही खड़ा रहेगा या बैग भी पैक करेगा.. तुझे जाना नहीं है क्या?

तो मैंने उसके मुँह से अपना नाम सुनते हुए हड़बड़ाते हुए जवाब दिया- अरे जाना तो है।

तो वो बोली- फिर सोच क्या रहे हो.. बोलो?

फिर मैंने भी उसके मन को टटोलने के लिए व्यंग्य किया- मैं इस बात से काफी हैरान हूँ.. कि जो लड़की मुझे कुछ देर पहले गन्दा और बुरा बोल रही थी.. वही मुझे रोकने का प्लान क्यों बना रही है?

इस बात को सुन कर उसने मुझे अपने पास बुलाया और अपनी बाँहों में थाम लिया.. और फिर मुझे बिस्तर पर बैठा कर मेरे बगल में बैठ गई।

उसकी बाँहों में जाते ही मेरी तो लंका लगी हुई थी.. उत्तेजना के साथ-साथ मन में एक अजीब सा डर भी बसा हुआ था कि क्या ये सही है? लेकिन कहते हैं न कि वासना के आगे कुछ समझ नहीं आता.. और न ही अच्छा-बुरा दिखाई देता है।
मैंने बोला- रूचि.. तुम तो मुझे अभी कुछ देर पहले भगा रही थीं और फिर अब अचानक से ऐसा क्या हो गया?

तो उसने मुझे हैरानी में डाल दिया.. जब वो भैया की जगह मुझसे ‘राहुल’ कहने लगी- देखो.. मैं नहीं चाहती कोई ड्रामा हो.. इसलिए जब मैं और तुम अकेले होंगे तो मैं तुम्हें सिर्फ और सिर्फ राहुल.. जान.. या चार्मिंग बॉय.. ही कह कर बुलाऊँगी.. देखो राहुल मुझे अभी तक नहीं मालूम था कि तुम मेरे बारे में क्या सोचते थे.. पर मैं जब से तुमसे मिली हूँ.. पता नहीं क्यों मेरा झुकाव तुम्हारी तरफ बढ़ता ही चला गया और न जाने कब मुझे प्यार हो गया। तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो और सच पूछो तो मैं पता नहीं.. कब से तुम्हें दिल ही दिल में चाहने लगी हूँ। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ राहुल.. आई लव यू..

ये कहते हुए उसने मेरी छाती को चूम लिया और उसके हाथों की कसावट मेरी पीठ पर बढ़ने लगी।

लेकिन उसे मैंने थोड़ा और खोलने और तड़पाने के लिए अपने से दूर किया और उसकी गिरफ्फ्त से खुद को छुड़ाया.. तो वो तुरंत ही ऐसे बोली.. जैसे किसी चिड़िया के उड़ते वक़्त पर टूट गए हो और वो नीचे गिर गई हो।

‘क्या हुआ राहुल तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या.. या फिर तुम मुझे नहीं चाहते.. सिर्फ आकर्षित हो गए थे मुझसे?’

मैंने भी उसके दर्द भरे स्वर को भांपते हुए कहा- नहीं रूचि.. ऐसा नहीं है.. जब पहली बार तुमको देखा था.. मैं तो उसी दिन से ही तुम्हें चाहने लगा था.. मेरी सोच तो तुम पर ही ख़त्म हो गई थी और सोच लिया था.. कैसे भी करके तुम्हें अपना बना लूँगा।

तो वो बोली- फिर मुझे अपने से अलग क्यों किया?

मैंने बोला- आज जब तुमने मुझे बहुत खरी-खोटी सुनाई.. तो मुझे बहुत बुरा लगा.. मैं अपनी ही नजरों में खुद को नीच समझने लगा था और मेरा सपना टूटा हुआ सा नज़र आने लगा था। मेरे मन में कई बुरे ख्याल घर करने लगे थे।

तो वो तुरंत ही बोली- कैसे ख्याल?

मैंने अपनी बात सम्हालते हुए जबाव दिया- तुमने मेरे बारे में बिना कुछ जाने ही मेरे सम्बन्ध अपनी माँ से जोड़ दिए.. जो कि मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।

तो वो बोली- तुमने हरकत ही ऐसी की थी.. तुम मेरी माँ की चड्डी लिए सोते थे.. तो भला तुम ही बोलो.. मैं क्या समझती? और जब से तुम हमारे घर आ रहे थे.. मैं तब से ही ध्यान दे रही थी कि तुम और माँ एक-दूसरे के काफी करीब नज़र आते थे।

इस बात पर मैंने तुरंत ही उसको डाँटते हुए स्वर में कहा- रूचि.. तुम पागल हो क्या? तुम्हारी माँ तो तुम्हारे भाई के जैसे ही मुझे प्यार देती थी और मैं भी बिल्कुल विनोद के जैसे ही तुम्हारी माँ का ख्याल रखता था। तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो? और रही चड्डी की बात.. तो तुम ही बताओ कि तुम्हारे और तुम्हारी माँ के शरीर की बनावट में कोई ख़ास अंतर है क्या?
तो वो थोड़ा सा लजा गई और मुस्कान छोड़ते हुए बोली- सॉरी राहुल.. अगर तुम्हें मेरी वजह से कोई दुःख हुआ हो तो.. और वैसे भी जब तुमने सच मुझे बताया था.. तो मैं खुद भी अपने आपको कोस रही थी.. अगेन सॉरी..

अब मैंने भी अपनी लाइन क्लियर देखते हुए बोला- फिर अब आज के बाद ऐसा कभी नहीं बोलोगी।

वो तपाक से बोली- पर एक शर्त पर..

तो मैंने पूछा- कैसी शर्त?

बोली- मेरी माँ की चड्डी तुम अपने पास नहीं रखोगे।

तो मैं बोला- जब विनोद कमरे में आया था.. मैंने तो उसी वक़्त उसको यहाँ फेंक कर बाथरूम में चला गया था.. और प्रॉमिस.. आज के बाद ऐसी गलती नहीं होगी.. क्योंकि..

तो वो मेरी बात काटते हुए बोली- क्योंकि क्या?

मैं बोला- क्योंकि अपनी चड्डी तुम खुद ही मुझे दिया करोगी।

तो वो हँसने लगी और मेरे गालों पर चिकोटी काटते हुए बोली- बहुत शैतान और चुलबुला है.. ये मेरा आशिक यार..

उसकी इस अदा पर मैं इतना ज्यादा मोहित हो गया कि उसको शब्दों में पिरो ही नहीं पा रहा हूँ।
फिर वो मेरी ओर प्यार भरी नजरों से देखते हुए बोली- जान.. अब तो मेरी माँ की चड्डी दे दो।
तो मैंने बोला- मेरे पास नहीं है.. यहीं तो फेंककर गया था।

वो बोली- तुमने अभी नीचे कुछ नहीं पहना है क्या?

तो मैंने बोला- नहीं.. पर तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो?

वो बोली- फिर क्या तुम ऐसे ही नहाए और ऐसे ही बाहर भी आ गए?

मैंने उसे थोड़ा और खोलने के लिए शरारत भरे लहज़े में बोला- थोड़ा खुलकर बोलो न.. क्या ‘ऐसे..ऐसे..’ लगा रखा है।

तो वो बोली- बेटा.. तुम समझ सब रहे हो.. पर अपनी बेशर्मी दिखा रहे हो.. पर मुझे शर्म आ रही है।

अब मैंने तुरंत ही उसका हाथ पकड़ा और बोला- यहाँ हम दोनों के सिवा और है ही कौन.. और मुझसे कैसी शर्म?

तो वो बोली- अरे जाने दो..

मैंने उसे आँख मारते हुए बोला- ऐसे कैसे जाने दो..

तो वो मुस्कुराते हुए बोली- मेरे ‘ऐसे-ऐसे’ का मतलब था कि तुम नंगे-नंगे ही नहा लेते हो.. तुम्हें शर्म नहीं आती?

तो मैंने उससे बोला- खुद से कैसी शर्म..? क्या तुम ‘ऐसे..ऐसे..’ नहीं नहातीं?

वो बोली- न बाबा.. मुझे तो शर्म आती है।

मैंने उसकी जांघों पर हाथ रखते हुए बोला- एक बार आज़मा कर देखो.. कितना मज़ा आता है।

यह सुनते ही उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया और मैंने उसके शरीर पर एक अजीब सी फुरकन जैसी हरकत महसूस की.. क्योंकि मेरा हाथ उसकी जाँघों पर था।
फिर वो मेरी बात काटते हुए बोली- देखेंगे कभी करके ऐसे.. लेकिन जो चड्डी तुम ले गए थे.. वो है कहाँ?

तो मैंने भी लोअर की जेब में हाथ डाला और झटके से उसकी आँखों के सामने लहराने के साथ-साथ बोला- लो कर लो तसल्ली.. मेरी ही है कि नहीं?

वो एकदम से बोली- अरे मेरे भोले राजा.. अब तो खुद भी तो देख लो.. या फिर नज़र कमजोर हो चली।

मैंने जैसे ही उसके चेहरे से नज़र हटाई और चड्डी की ओर देखा.. तो वो बोली- क्या है ये?

मैंने शर्मा कर सॉरी बोलते हुए बोला- मैंने ध्यान ही नहीं दिया यार.. उस समय हड़बड़ाहट में कुछ समझ ही नहीं आया.. खैर.. ये लो.. पर मेरी चड्डी कहाँ है?

तो उसने बोला- तुम्हें मेरी खुश्बू अच्छी लगती है न.. तो मैंने उसे पहन लिया.. वैसे भी तुम्हारी ‘वी-शेप’ की चड्डी बिल्कुल मेरी ही जैसी चड्डी की तरह दिखी.. तो मैंने पहन ली.. ताकि मैं तुम्हें अपनी खुश्बू दे सकूँ और उसे अपने पास रखने में तुम्हें शर्म भी न आए..

ये सुनकर पहले तो मुझे लगा कि ये मज़ाक कर रही है, तो मैंने बोला- यार मज़ाक बाद मैं. मुझे अभी जल्दी से तैयार होकर घर के लिए भी निकलना है।

बोली- अरे.. मज़ाक नहीं कर रही मैं.. अभी खुद ही महसूस कर लेना..
ये कहती हुई वो बाथरूम में चली गई और जब निकली तो उसके हाथ में मेरी ही चड्डी थी।
पर जब तक मैं उसे पहने हुए देख न लेता.. तो कैसे समझता कि उसने पहनी ही थी।

फिर वो मेरे पास आकर खड़ी हुई और मेरी चड्डी देते हुए बोली- लो और अब कभी भी ऐसी खुश्बू की जरुरत हो.. तो मुझे अपनी ही चड्डी दे दिया करना।
मैंने उसके हाथों से लेते ही उसको देखा तो उसके अगले भाग पर मुझे उसके चूत का रस महसूस हुआ और मैंने सोचा.. लगता है रूचि कुछ ज्यादा ही गर्म हो गई थी। इसे क्यों न और गर्म कर दिया जाए ताकि ये भी अपनी माँ की तरह ‘लण्ड..लण्ड..’ चिल्लाने लगे।

तो मैंने उसकी ओर ही देखते हुए बिना कुछ सोचे-समझे ही उसके रस को सूंघने और चाटने लगा और अपनी नजरों को उसके चेहरे पर टिका दीं।

मैंने उसके चेहरे के भावों को पढ़ते हुए महसूस किया कि वो कुछ ज्यादा ही गर्म होने लगी थी। उसके आँखों में लाल डोरे साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसके होंठ कुछ कंपने से लगे थे.. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसकी चूत का रस अपनी चड्डी से नहीं.. बल्कि उसकी चूत से चूस रहा होऊँ।

खैर.. मैंने उसे ज्यादा न तड़पाने की सोचते हुए अपनी चड्डी से मुँह को हटा लिया और उसकी ओर मुस्कुराते हुए बोला- वाह यार.. क्या महक थी इसकी.. इसे मैं हमेशा अपने जीवन में याद रखूँगा.. आई लव यू रूचि..

तो वो भी मन ही मन में मचल उठी और शायद उसे भी अपने रस को अपने होंठों पर महसूस करना था.. इसलिए उसने कहा- अच्छा.. इतनी ही मादक खुश्बू और स्वाद था ये.. तो मुझे मालूम ही नहीं.. कि मेरी वेजिना किसी को इतना पागल कर सकती है?

मैं उसके मुँह से ‘वेजिना’ शब्द सुनकर हँसने लगा.. तो वो बोली- मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो न..

मैं बोला- ऐसा नहीं है..

तो उसने भी प्रतिउत्तर मैं कहा- फिर कैसा है?

‘तुम्हें क्या यही मालूम है.. या बन कर बोली थीं..?’

तो वो बोली- क्या?

मैंने फिर से हँसते हुए कहा- वेजिना..

तो वो बोली- उसे यही कहते हैं.. मैं और कुछ नहीं जानती..

मैंने बोला- क्या सच मैं?

तो वो बोली- क्या लिखकर दे दूँ.. पर मुझे तुम बताओ न.. इसे और क्या कहते हैं?

मैं बोला- फिर तुम्हें भी दोहराना होगा..

तो वो तैयार हो गई.. फिर मैंने उसकी वेजिना को अपनी गदेली में भरते हुए कामुकता भरे अंदाज में बोला- जान.. इसे हिंदी में बुर और चूत भी बोलते हैं।

मेरी इस हरकत से वो कुछ मदहोश सी हो गई और उसके मुख से ‘आआ.. आआआह..’ रूपी एक मादक सिसकारी निकल पड़ी।
मैंने उसकी चूत पर से हाथ हटा लिया इससे वो और बेहाल हो गई.. लेकिन वो ऐसा बिल्कुल नहीं चाहती थी कि मैं उसकी चूत को छोड़ दूँ.. जो कि उसने मुझे बाद में बताया था।

लेकिन स्त्री-धर्म.. लाज-धर्म पर चलता है.. इसलिए उस समय वो मुझसे कुछ कह न सकी और मुझसे धीरे से बोली- राहुल.. क्या इतनी अच्छी खुश्बू आती है मेरी चू… से…

ये कहती हुई वो ‘सॉरी’ बोली.. तो मैं तपाक से बोला- मैडम सेंटेंस पूरा करो.. अभी तुमने बोला कि दोहराओगी और वैसे भी अब.. जब तुम भी मुझे चाहती हो.. तो अपनी बात खुल कर कहो।

तो बोली- नहीं.. फिर कभी..
मैं बोला- नहीं.. अभी के अभी बोलो.. नहीं तो मैं आज शाम को नहीं आऊँगा।

ये मैंने उसे झांसे में लेने को बोला ही था कि उसने तुरंत ही मेरा हाथ पकड़ा और लटका हुआ सा उदास चेहरा लेकर बोली- प्लीज़ राहुल.. ऐसा मत करना.. तुम जो कहोगे.. वो मैं करूँगी।

मैंने बोला- प्रॉमिस?
तो वो बोली- गॉड प्रोमिस..

शायद वो वासना के नशे में कुछ ज्यादा ही अंधी हो चली थी.. क्योंकि उसके चूचे अब मेरी छाती पर रगड़ खा रहे थे और वो मुझे अपनी बाँहों में जकड़े हुए खड़ी थी। उसके सीने की धड़कन बता रही थी कि उसे अब क्या चाहिए था।
तो मैंने उसे छेड़ते हुए कहा- तो क्या कहा था.. अब बोल भी दो?

वो बोली- क्या मेरी चूत की सुगंध वाकयी में इतनी अच्छी है…
तो मैंने बोला- हाँ मेरी जान.. सच में ये बहुत ही अच्छी है।
वो बोली- फिर सूंघते हुए चाट क्यों रहे थे?

तो मैंने बोला- तुम्हारे रस की गंध इतनी मादक थी कि मैं ऐसा करने पर मज़बूर हो गया था.. उसका स्वाद लेने के लिए..

ये कहते हुए एक बार फिर से अपने होंठों पर जीभ फिराई.. जिसे रूचि ने बड़े ही ध्यान से देखते हुए बोला- मैं तुमसे कुछ बोलूँ.. करोगे?

तो मैंने सोचा लगता है.. आज ही इसकी बुर चाटने की इच्छा पूरी हो जाएगी क्या?
ये सोचते हुए मन ही मन मचल उठा।

कहानी जारी रहेगी लेकिन यहां पाठकों का रिस्पांस नगण्य हैं। कोई लाइक नहीं कर रहा शायद इस स्टोरी को या लिखने में कोई कमी है

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#59
A grate story writing
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#60
Bhai update daily do apki story ek number hai
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