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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
भाग १०४

सुगना की आंखों के सामने एक बार फिर वह दृश्य घूम गया जब सोनू ने अपने मजबूत हाथों से उसकी कलाइयों को सर के ऊपर ले जाकर दबा रखा था…


न जाने सुगना के मन में क्या आया वह उठी और सरयू सिंह से लिपट गई…आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी सरयू सिंह पूरी तरह सुगना के दुख में डूब गए। उन्हे उसके दुख का कारण तो न पता था परंतु सुगना के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने सुगना से बारंबार कारण जानने की कोशिश की और आखिर सुगना ने अपने लब खोले..

अब आगे…

"बाबूजी लागा ता हमनी से कोई पाप भईल बा तब ही अतना गड़बड़ होता" सुगना सुबक रही थी.. कल रात जो हुआ था वह उसे सोच कर आहत थी….

उन्होंने सुगना के सर पर हाथ फेरते हुए कहा "जो कुछ होला ओहमें भगवान के इच्छा रहेला तू चिंता मत कर दुख के दिन जल्दी खत्म हो जाई…" पाप सुनकर सरयू सिंह के मन में उनके सुगना के साथ किए पाप की याद एक करेंट की भांति दौड़ गई

"मोनी के कुछ पता चलल"

"थाना में रिपोर्ट लिखा देले बानी… जल्दी पता चल जाए"

सुगना अपने परिवार पर आए इस संकट की वजह कल पूजा में हुई किसी अनजान गलती को मान रही थी वरना उसकी इतनी इज्जत करने वाला सोनू उसके साथ ऐसी हरकत करेगा यह असंभव था…और ऊपर से मोनी का इस तरह घर से गायब होना…

सुगना के दर्द अलग थे और सरयू सिंह के अलग…सरयू सिंह अब भी सुगना के हाथ में बंदे कपड़े को लेकर परेशान थे उन्होंने दोबारा पूछा " ई हाथ में चोट कैसे लग गएल"

एक बार के लिए सुगना की मन में आया कि वह सोनू की करतूत को सरयू सिंह से साझा कर दे परंतु उसे सरयू सिंह के गुस्से का अंदाजा था मामला दूर तक जा सकता था और उसके परिवार का भविष्य खतरे में पड़ सकता था सच जानने के बाद इतना तो निश्चित था की सोनू अब और इस परिवार का हिस्सा नहीं रह सकता था।

सुगना ने बात छुपा ली .. उसने अपनी कलाइयों में अचानक आए मोच को बता कर उस कपड़े की उपयोगिता साबित कर दी…

अब तक कजरी पास आ चुकी थी और आते ही मोनी के बारे में वह भी पूछताछ करने लगी सरयू सिंह ने अपने किए गए प्रयासों और थाने में तहरीर की बात बता कर सब को तसल्ली देने की कोशिश की परंतु मोनी का गायब होना किसी को पच न रहा था…. हर आदमी यही सोच रहा था कि आखिर रात में ऐसा क्या हो गया कि मोनी अचानक ही घर छोड़ कर गायब हो गई…

सुगना का चेहरा बदरंग हो चुका था।


तनाव वैसे भी सुंदरता हर लेता है …

कल रात के बाद एक तो सुगना की आंखों से नींद गायब थी ऊपर से मोनी के गायब होने का तनाव उसे बेचैन किए हुए था। सोनू द्वारा उसके मुंह पर लगातार हथेलियों से बनाया गया दबाव चेहरे पर हल्की सूजन पैदा कर गया था जो सुगना के लगातार रोने और दुख का प्रतीक बन गया था। आंसुओं का सारा श्रेय मोनी ले गई थी…अन्यथा सुगना को अपने चेहरे की दुर्दशा का कारण निश्चित ही बताना पड़ता…

सुगना की दाहिनी कलाई पर भी सोनू की मजबूत उंगलियों के निशान पड़ गए थे सुगना एक तो वैसे भी कोमल थी जिस प्रकार फूल की पंखुड़ियों पर जोर से दबाव देने से उस पर दाग पड़ जाता है उसी प्रकार सोनू की मजबूत उंगलियों ने सुगना की कलाई पर अपने दाग छोड़ दिए थे।


यदि वह उंगलियों के निशान किसी की निगाहों में आते तो तो सुगना को कोई और उत्तर ढूंढने में निश्चित ही असुविधा होती…अंततः उसने कलाइयों पर कपड़ा बांधकर उसे मोच का रूप दे दिया था।

सुगना अपने अंतर्द्वंद से झूल रही थी सोनू द्वारा की गई करतूत को वह किसी को भी नहीं बताना चाह रही थी और भीतर ही भीतर घुट रही थी …

लाली चाय का गिलास लेकर सुगना के पास आई …और बोली

,"सुगना ले तनी चाय पी ले …सुबह से तो कुछ खाईले पीयले नाइखे जॉन होला ओमें विधाता के इच्छा रहेला…"

लाली की बात सुनकर सुगना के दिमाग में एक बार फिर उसका सोनू के साथ किया गया पाप घूम गया आखिर विधाता ने उसे इस पाप में क्यों शरीक किया ? इतना तो सुगना भी जान रही थी कि उस पाप (मिलन) के उत्तरार्ध में उसने भी सोनू का साथ दिया था और वह इस बात के लिए ही खुद को गुनाहगार मान रही थी…

सुगना अभी भी अपनी गर्दन झुकाए और मुंह लटकाए खड़ी थी। सरयू सिंह ने एक बार फिर सुगना की ठुड्ढी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाया और बोला

"सुगना बेटा चाय पी ला मोनी के हम जरूर खोज के ले आईब"

सुगना ने भी अब परिस्थितियों से लड़ने का मन बना लिया और मन ही मन फैसला कर लिया ।

उसने उसने लाली के हाथ से चाय का गिलास लिया और निगाहों ही निगाहों में लाली से अपने अब तक के व्यवहार बेरुखी भरे व्यवहार करने के लिए क्षमा मांग ली

दरअसल आज दिन भर से लाली ने कई बार सुगना से बात करने का प्रयास किया परंतु सुगना ने उससे कोई बात नहीं की ऐसा नहीं था की सुगना लाली से नाराज थी उसे तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि सोनू को उसके कमरे में भेजने वाली स्वयं लाली थी..

उधर सोनी बेचैन थी वह अब भी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रही थी की अंदर कमरे में टॉर्च मारने वाला कौन था। मोनी का इस तरह से गायब हो जाना उसे और भी परेशान कर रहा था था। सुबह सुबह उसे एक और झटका लगा था वह अपनी सुंदर लाल पेंटी लेने जब सरयू सिंह की कोठरी में गई थी (जहा वो जमकर चुदी थी) पर वह पेंटी गायब थी।


विकास उसके लिए वह अमेरिका से लेकर आया था और कल ही संभोग के दौरान उसे अपने दांतों से पकड़ कर खींच कर उसके तन से जुदा किया था …अपने कमरे में विकास के खांसने का इंतजार करते करते उसकी बुर पहले ही पनिया कर पेंटी को अपने मदन रस से भीगो चुकी थी. पेंटी किसने ली होगी?

मोनी को गायब हुए 12 घंटे से ऊपर का वक्त बीत चुका था.. घर पर आए हुए अतिथि एक एक करके सरयू सिंह के घर से विदा हो रहे थे। कल जितना उत्साह था आज उतनी ही उदासी। रात ने दो दिनों के बीच इतना अंतर कर दिया था जिसे पाटने में न जाने कितना समय लगता।


शाम होते होते परिवार वालों के कष्ट भी कुछ कम होते गये। वैसे भी आज सरयू सिंह के परिवार को जो कष्ट मिला था वह पूर्णता यह मानसिक था। और इस परिवार में घर छोड़कर जाना कोई नई बात न थी हां यह अलग बात थी कि इस बार परिवार की किसी महिला ने घर छोड़ा था।

मानसिक कष्ट की सबसे बड़ी विशेषता है यदि आप उसके बारे में न सोचिए तो शायद आपको एहसाह भी नहीं होगा कि आपको कोई कष्ट है…

सबको सोनू का इंतजार था। यद्यपि सोनू ने सरयू सिंह से कल आने की बात की थी परंतु सभी आशावान थे कि सोनू आज रात ही वापस आ जाएगा ।

सभी यह बात जानते थे कि सोनू अपने परिवार के साथ रहना बेहद पसंद करता है और सुगना के बच्चों के बिना तो जैसे उसका मन ही नहीं लगता है। परंतु आज सुगना को सोनू का इंतजार न था। वह किस मुंह से उसके सामने आएगी? और सोनू का व्यवहार उसके प्रति क्या होगा? यह सोच सोच कर उसका मन बेचैन हो रहा था सुगना खुद को इस गुनाह का उतना ही जिम्मेदार मान रही थी जितना सोनू को…

सोनू का इंतजार करते-करते रात के 9:00 बज गए पर सोनू न आया। घर के लोगों ने सादा खाना खाया और एक बार फिर सभी अपने अपने बिस्तर पर अपने अपने तनाव से लड़ते अपने दर्द भूलने के लिए नींद का इंतजार करने लगे..

आज रात सरयू सिंह अपनी कोठरी में थे और रात्रि में रोज पिए जाने वाले दूध का इंतजार कर रहे थे तभी अंदर से कजरी की आवाज आई

"सोनी बेटा तनी अपना चाचा जी के दूध दे आवा…"


सोनी के मन में सरयू सिंह के प्रति कुछ अलग ही भाव पैदा हो रहे थे। कभी-कभी उसे लगता कि शायद सरयू चाचा ने अपने कमरे में आने के लिए टॉर्च चलाई होगी। जब वह बात सोचती उसके रोंगटे खड़े हो जाते वह सरयू सिंह के सामने जाने में कतरा रही थी। परंतु कजरी के दोबारा बोलने पर वह दूध का गिलास लिए सरयू सिंह के कमरे में आने लगी।

सोनी को अपनी तरफ आते देख कर सरयू सिंह की निगाहों ने सोनी की मादक काया की सुनहरी किताब को पढ़ना शुरू कर दिया उनके दिमाग में उसे लाल पेंटी मैं कैद सोनी की मादक कमर दिखाई पड़ने लगी। सोनी की पुष्ट जांघों और पतली कमर उस पेंटी के लिए सर्वथा उपयुक्त थी।


सोनी ने अपने दिल की धड़कनों पर काबू किया और करीब आकर अपने कांपते हुए हाथों को संतुलित कर सरयू सिंह को दूध का गिलास दिया और बिना कुछ बोले वापस जाने लगी… जाते समय उसके भरे भरे नितंब एक बार फिर सरयू सिंह की निगाहों के सामने थे उभरे हुए नितम्ब चीख चीख कर यह बता रहे थे की सोनी का दुर्ग भेदन हो चुका है… उन्हें अब यह पूरा विश्वास हो चला था कि निश्चित ही यह पेंटी सोनी की थी और निश्चित ही सोनी व्यभिचार में लिप्त थी.।

सरयू सिंह ने मन ही मन ठान लिया कि वह विकास और सोनी के बीच रिश्ते की सच्चाई को जल्द ही उजागर करेंगे वह भी रंगे हाथ पकड़ने के बाद।

सरयू सिंह दूध पीने लगे और मन ही मन सोनी के व्यभिचार को याद करने लगे उनकी वासना ने सोनी के वस्त्र हरण में कोई कमी न की और धीरे-धीरे सोनी उनके विचारों में नग्न होती गई… दूध का गिलास किनारे रख सरयू सिंह ने अपनी कोठरी को बंद कर और अपने कुर्ते में रखी उस लाल पेंटी को निकाल लिया।

वासना सरयू सिंह को घेर चुकी थी…आंखें वासना से लाल हो चुकी थी जिस तरह एक सांड बछिया को देखकर गरम हो जाता है सरयू सिंह भी उत्तेजित हो चुके थे… सरयू सिंह ने वह पेंटी उठाई कुछ देर उसे देखा और न जाने कब उनके हाथों ने उसे उनकी घ्राणेंद्रियों तक पहुंचा दिया। मदन रस की भीनी खुशबू सरयू सिंह के नथुनो से टकराई और सरयू सिंह मदहोश हो गए।

नीचे लंगोट का बंधन तोड़ उनका लंड एक बार फिर फंफनाकार खड़ा हो गया। यह खुशबू निश्चित ही कुछ अलग थी। युवा योनि की खुशबू सरयू सिंह बखूबी पहचानते थे। जैसे-जैसे सोनी की मदमस्त बुर की खुशबू उनने नथुनो से होती हुई दिमाग तक पहुंची योनि की खूबसूरत आकृति सरयू सिंह की निगाहों के सामने आती गई.. उस रस से डूबी हुई छोटी सी नदी में तैरने को सरयू सिंह का लंड आतुर हो उठा उद्दंड बालक की तरह वह उछलने लगा..

उनकी हथेलियों ने फिर एक बार फिर उनके तने हुए लंड को शांत करने की कोशिश की पर वह हठी बालक की तरह तना रहा।

कुछ ही देर में सरयू सिंह की हथेलियों ने उस उद्दंड बालक की गर्दन पर अपनी पकड़ बनाई और उसे आगे पीछे करने लगे… दिमाग में सोनी की काया घूम रही थी और उनके ख्याल उच्छृंखल हो रहे थे पाप पुण्य उचित अनुचित का भेद खत्म हो रहा था …

जैसे-जैसे हाथों की गति बढ़ती गई विचारों की गति उससे होड़ लगाने लगी जितना ही वह विचारों में सोनी के साथ नग्न और घृणित होते उनका लंड उतना ही तेज उछलता। सरयू सिंह के मन में सोनी के प्रति यह वासना एक अलग किस्म की थी जिसमें प्यार कतई न था।


वह सोनी को पूर्णतया व्यभिचारी मान चुके थे और उसे अपने घृणित विचारों में दंड देना चाह रहे थे और अपने मजबूत लंड से उसे कसकर चोदना चाह रहे थे.. आखिर जिस युवती ने विवाह बंधन में बंधे बिना किसी पर पुरुष से अपनी वासना शांत करने के लिए संभोग किया हो उनकी नजरों में वह सिर्फ और सिर्फ व्यभिचारी थी..…वासना का यह रूप विकृत हो रहा था..

नियति सरयू सिंह का यह रूप देख स्वयं विस्मित थी..

सरयू सिंह का लंड अब स्खलन को तैयार था। सरयू सिंह ने अपनी वासना को और बहकाया उनके लंड ने वीर्य धारा छोड़ दी…… सरयू सिंह निराले थे और उनके मन में जग रही या नहीं वासना भी निराली थी।

सरयू सिंह ने अपनी उत्तेजना में अपना वीर्य स्खलन कर अब जो रायता फैलाया था उसे साफ करने की बारी थी उन्होंने अपने सोनी की पैंटी से वीर्य को साफ करने की सोची पर फिर यह विचार त्याग दिया…सोनी की पैंटी की खुशबू आगे भी उनकी वासना को तृप्त करने की खुराक बन सकती थी और एक सबूत भी थी।

आइए सरयू सिंह को उनके हाल पर छोड़ देते हैं और आपको लिए चलते हैं मोनी के पास जो ट्रेन के जनरल डिब्बे में गुमसुम बैठे बाहर की तरफ देख रही थी… रात के अंधेरे में उसे बाहर कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था …वह जिस दिशा में जा रही थी वहां भी अभी तो सिर्फ और सिर्फ अंधेरा था परंतु मोनी को अपने ईश्वर पर विश्वास था वह जानती थी हर रात के बाद एक सुबह होती है… पिछली रात मोनी के लिए अनुकूल न थी…

सूर्योदय की रोशनी जैसे ही ने जैसे ही सरयू सिंह के आंगन को रोशन किया मोनी अपने कमरे से बाहर आ गई…

मोनी ने अपना सामान यथावत छोड़ दिया परंतु अपने झोले से वह पर्चा अवश्य निकाल लिया जो उसने बनारस महोत्सव के दौरान विद्यानंद के पंडाल से लेकर आई थी। मोनी ने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि अब वह इस कलयुगी जीवन से दूर विद्यानंद के आश्रम में चली जाएगी और वहां जीवन को एक नए सिरे से शुरू करेगी सांसारिक रिश्तो में उसका विश्वास पहले ही कमजोर था और बीती रात उसकी आंखों ने जो देखा था वह भुला पाना कठिन था… ऐसे भाई बहनों के बीच रहने से अच्छा था कि वह विद्यानंद के आश्रम में महिलाओं और युवतियों के बीच रहती जहां विचारों और तन मन की पवित्रता कायम रहती …ट्रेन द्रुतगति से मोनी के लक्ष्य की तरफ बढ़ रही थी और मोनी की आंखें मुदने लगीं थी।

और अब आइए हम सबके प्रिय सोनू और विकास का हालचाल ले लेते हैं जो अपनी अपनी महबूबाओं को जी भर कर चोदने के बाद सुबह-सुबह सलेमपुर से लगभग भाग निकले थे… विकास परेशान था वह सोनी से बिना मिले वापस नहीं जाना चाहता था परंतु परंतु सोनू जिद पर अड़ा था ..

"यार बता तो क्या हुआ तू इतनी जल्दी बाजी में क्यों है?" विकास ने सोनू की बेचैनी देखकर पूछा

"यार मुझे सुबह सुबह ही बनारस पहुंचना है कुछ जरूरी काम है "

"क्या काम है?"

"मैं तुझे बता नहीं सकता यह मान ले कि यह शासकीय काम है"

"पर एक बार सुगना दीदी से मिल तो ले? वह क्या सोचेंगी "

सोनू को जैसे सांप सूंघ गया… वह सुगना से रूबरू कतई नहीं होना चाहता था जो गुनाह उसने किया था उसे बखूबी याद था और वह कुछ दिनों के लिए सुगना से दूर होना चाहता था… रात भर में उसने मन ही मन सोच लिया था कि सुगना दीदी की प्रतिक्रिया जानने के बाद ही वह उनके सामने आएगा और प्रतिक्रिया जानने का सबसे मुख्य स्रोत लाली थी जो न सिर्फ उन दोनों की हमराज थी अपितु वह भी इस खेल में शामिल थी…

जैसे-जैसे सोनू अपने गांव से दूर हो रहा था वैसे वैसे उसकी बेचैनी बढ़ रही थी। आज एक गुनाह करने के बाद वह अपने ही परिवार से दूर हो रहा था पर मन बैचेन था।


क्या सुगना दीदी उसे माफ करेगी? या वह यह बात घर में बता कर उसे इस परिवार से हमेशा के लिए अलग कर देगी? नहीं नहीं सुगना दीदी ऐसा नहीं कर सकती। वह तो उससे बहुत प्यार करती हैं।

सोनू अपने विचारों में कभी सुगना के एक पक्ष को देखता कभी दूसरे पक्ष को। जब उसे सुगना की स्खलित होती बुर् के कंपन याद आते सोनू और उसका लंड बेचैन हो जाता… अद्भुत स्खलन था वह। इतने दिनों से वह लाली को चोद रहा था और हर बार स्खलन का आनंद ले रहा परंतु बीती रात उसके लंड ने जो स्खलन का आनन्द महसूस किया था अद्भुत था।

जैसे उसका तन बदन सब कुछ निचूड़ कर सुगना की बुर की गहराइयों में समा जाना चाहता था। दिल दिमाग तन बदन सब पर सुगना का ही रंग था… सुगना की मांसल जांघों के स्पर्श को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर खड़ा हो गया और सोनू ने मोटरसाइकल चला रहे विकास की कमर को पकड़ कर खुद को थोड़ा दूर किया वरना सोनू के खड़े लंड का अहसास निश्चित ही विकास को हो जाता।


दोनों दोस्त बनारस शहर पहुंच चुके थे। सोनू ने जौनपुर की ट्रेन पकड़ी और विकास अपने घर के लिए निकल पड़ा.

जिस व्यक्ति ने गुनाह किया हो उसका मन कभी शांत हो ही नहीं सकता और वह भी जब उसने यह कार्य पहली बार किया हो। सोनू सुगना से दूर जरूर हो गया था परंतु वह अपनी आत्मग्लानि और डर में अभी डूबा था। एक पल के लिए उसके दिमाग में आया कि कहीं सुगना दीदी ने सिक्युरिटी में रिपोर्ट तो नहीं लिखा दी?


यद्यपि ऐसा संभव न था। सोनू ने सुगना के चेहरे पर स्खलित होते समय जो आनंद देखा था वह बेहद मनमोहक था…. उसे स्खलन के दौरान अब भी सुगना द्वारा उसकी उंगलियों को चुभलाया जाना और अपने पैरो से उसे अपनी तरफ खींचना याद था। दीदी ऐसा नहीं करेगी…पर क्या सुगना दीदी उसे माफ कर देगी? …सुगना का प्रतिरोध उसे याद था..सोनू घबरा गया।

जब एक बार मन में डर आ गया तो आ गया ।

सोनू ने नई नई नौकरी ज्वाइन की थी वह भी एसडीएम जैसे प्रतिष्ठित पद की। यदि दीदी ने उसके खिलाफ सिक्युरिटी में तहरीर दे दी होगी तब तो वह हमेशा के लिए बर्बाद हो जाएगा।

सोनू घबरा गया और अपने एक सिक्युरिटीिया दोस्त से आज सलेमपुर थाने में लिखाई गई रिपोर्टों के बारे में जानने की कोशिश की.. सोनू के दोस्त ने सलेमपुर थाने में फोन कर पता किया परंतु वह ज्यादा जानकारी इकट्ठा न कर सका शायद उधर से अपूर्ण उत्तर ही प्राप्त हुआ था। उसने सोनू को बताया..

"कोई सरयू सिंह के परिवार से रिपोर्ट लिखाई गई है.. किसी लड़की के बारे में…"

सोनू सन्न रहा गया। उसकी आवाज उसकी हलक में बंद हो गई कुछ देर के लिए दोनों तरफ शांति रही.. सोनू के दोस्त ने पूछा

"क्या तू उनको जानता है?"

सोनू सकपका गया। उसके प्रश्न से सोनू ने ऐसा महसूस किया जैसे वह उससे इंटेरोगेशन कर रहा हो…सोनू ने खुद को संतुलित करते हुए कहा…

"क्या नाम है लड़की का?"

"यार मैंने यह तो नहीं पूछा दोबारा पूछ कर बताता हूं.."

जाने दे कल देखते है…

सोनू का यह दोस्त जौनपुर में आने के बाद ही बना था वह अभी सोनू और उसके परिवार के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानता था उसने निर्विकार भाव से जो जानकारी सोनू ने मांगी थी उसे उपलब्ध करा दी थी परंतु उसकी जानकारी ने सोनू के मन में उथल-पुथल मचा दी थी..

सोनू अपने बिस्तर पर पड़ा अपने दोस्त द्वारा कही गई बातें को सोच रहा था उसे इस बात का इल्म भी न था कि मोनी घर छोड़कर जा चुकी है। तो क्या यह रिपोर्ट सरयू सिंह ने उसके बारे में लिखाई थी।


हे भगवान अब क्या होगा…सोनू सोनू के मन में तरह तरह के विचार आने लगे। कभी उससे लगता जैसे उसे नौकरी से निकाल दिया गया हो और उसे जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया हो। उसकी रूह कांप उठती वह जेल की सलाखों के पीछे से खड़ा सुगना को देखता जो अपने चेहरे पर नफरत का भाव लिए उसे घृणित निगाहों से देखती।

परंतु कभी-कभी उसे अपने सर को प्यार से सहलाती सुगना दिखाई पड़ती.. जो उससे बेहद प्यार करती थी। अंततः सोनू ने सुगना के सामने अपने गुनाह को कबूल करने का मन बना लिया और अगली सुबह तड़के वह जौनपुर से सलेमपुर के लिए निकल पड़ा…उसने तय कर लिया था कि वह सुगना दीदी के पैरों पर गिर पड़ेगा और यदि दीदी ने माफ न किया तो वह सिक्युरिटी के सामने सहर्ष गुनाह स्वीकार कर लेगा... आखिर जब सुगना ही नहीं तो जीवन का क्या? क्या सम्मान क्या अभिमान....

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सलेमपुर में आज की सुबह पिछली सुबह से कम तनाव भरी थी…सबको सोनू का इंतजार था सब अपनी अपनी दिनचर्या में लगे हुए थे….सुगना भी स्नान कर बाहर आ चुकी थी और अपनी कोठरी में अपने वस्त्र बदल रही थी हाथों पर सोनू की उंगलियों के निशान कुछ मद्धिम पड़े थे परंतु अब भी वह बरबस ही ध्यान खींचने वाले थे सुगना ने एक बार फिर अपनी कलाइयों पर कपड़ा लपेट लिया…


सुगना ने गर्दन झुका अपने सपाट पेट के नीचे अपनी छोटी सी करिश्माई बुर को देखना चाहा पर भरी-भरी चूचियां निगाहों के रास्ते का रोड़ा बन रही थी सुगना ने अपने दोनों हाथों से अपनी चुचियों को फैलाया और फिर अपनी छोटी सी बुर को देखा जो हल्का सा मुंह बाये सुगना को निहारा रही थी .. बुर के होंठ मुस्कुरा रहे थे जैसे उस सुखद मिलन के सुगना को धन्यवाद दे रहे हों…और सुगना एक बार फिर सोनू के बारे में सोचने लगी…

सुगना ने अपनी साड़ी पहनी बाल बनाएं गले में लटक रहा सोनू का दिया मंगलसूत्र चमक रहा था। सुगना के मन में आया कि वह इस मंगलसूत्र को निकाल दे जो उसके और सोनू के बीच हुए पाप का गवाह था परंतु सुगना अपने गले को सूना नहीं रखना चाहती थी..और वैसे भी उसका यह कृत्य सबका ध्यान खींचता।

सुगना ने अपने गोरे गोरे गालों पर जैसे ही क्रीम लगाई और अपनी आंखें खोली और सोनू को अपने पैरों पर गिरा हुआ पाया…

सोनू अपने घुटनों और पंजों के बल जमीन पर बैठा हुआ था और उसने सुगना के दाहिने पैर की पिंडली पकड़ रखी थी एक हाथ साड़ी के पीछे से और दूसरा सामने से। सर झुकाए और अपनी आवाज में दर्द लिए सोनू ने कहा

"दीदी हमरा के माफ कर द…"


सुगना का कलेजा धक-धक करने लगा..सोनू से बात करने का यह उचित समय कतई ना था…कोठरी का दरवाजा खुला हुआ था और कमरे में कोई भी आ सकता था। जिस तरह सोनू अपने गुनाह की क्षमा मांग रहा था उसे इस अवस्था में देखकर कोई भी इसका कारण जानना चाहता..

वही हुआ जिसका डर था..कजरी अंदर आ गई…सोनू अभी भी सुगना के पैरों पर लिपटा हुआ था…

सुगना ने बात संभालते हुए कहा..

"देखीं …काल बिना बतावले भाग गइले और आज माफी मांगत बाड़े…"

सोनू सुगना की बात सुनकर खुश हो गया जिस सफाई से सुगना ने यह बात कही थी सोनू जान चुका था कि सुगना ने यह बात किसी को नहीं बताई है..

परंतु सिक्युरिटी में लिखाई गई वह रिपोर्ट? सोनू के मन में प्रश्न उठा और उत्तर कजरी ने दे दिया..

"सोनू बाबू… मोनी पता नहीं कल से कहां चल गईल बीया?"

सोनू अभी एक झटके से उबरा ही था कि तभी उसे दूसरा झटका लग गया। मोनी उसकी अपनी बहन थी.. युवा मोनी का इस तरह गायब हो जाना सोनू की भी प्रतिष्ठा पर दाग लगने जैसा था……

सोनू ने विस्तार से कजरी से कल की घटनाओं की जानकारी ली…वह बात बात में सुगना से भी मोनी के बारे में पूछता परंतु परंतु सुगना अपना मुंह न खोल रही थी..वह सोनू से बातें करने में हिचकिचा रही थी और उससे आंखें तक न मिला रही थी..

कजरी के हटते ही एक बार फिर सोनू ने सुगना के पैर छूते हुए कहा

" दीदी माफ कर द.."

सुगना उठ गई और जाते-जाते बोली

"जा पहले मोनी के ढूंढ कर ले आव फिर माफी मांगीह"

सोनू को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो सुगना के व्यवहार से उसने अंदाज लगा लिया की उसका और सुगना का रिश्ता पूरी तरह टूटा नहीं है..

वह सुगना का वो प्यार पा सकेगा या नहीं यह अलग बात थी.. परंतु उसे खोना सोनू को कतई गवारा न था.. सुगना अब उसकी (और उसके छोटू की) की जान थी.. अरमान थी और अब उसके बिना रहना सोनू के लिए नामुमकिन था…

अचानक घर के बाहर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी……कुछ लोग एक व्यक्ति को पीट रहे थे वह दर्द से कराह रहा था मैंने कुछ नहीं किया…सोनू भी बाहर निकल कर आया…


शेष अगले भाग में...
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Heart 
भाग 106

सोनू पास पहुंचकर उसकी मदद करना चाह रहा था परंतु सुगना बदहवास थी उसने हाथ हिलाकर सोनू को रुकने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर बाहर आई।


"दीदी मोनी मिल गईल" सोनू ने चहकते हुए बताया और उसके पैरो पर गिर पड़ा।

सुगना के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आई जिसे झुक चुका सोनू देख भी ना पाया…सुगना पीछे हटी वह एक बार फिर बाथरूम में घुस गई शायद अपनी उल्टीओ पर उसने जो क्षणिक नियंत्रण पाया था वह छूट चुका था..

सोनू ने सुगना को पीछे हटते देख सोनू डर गया क्या सुगना दीदी ने उसे अब भी माफ नहीं किया है?

अब आगे…..

सुगना एक बार फिर उल्टी करने की कोशिश कर रही थी सोनू एक बार फिर सुगना के पीछे आकर खड़ा हो गया और उसकी नंगी पीठ पर थपकीया दें कर उसे शांत करने की कोशिश कर रहा था…. सुगना बार-बार पीछे मुड़कर सोनू की तरफ देखती उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह सोनू को मना करें या नहीं इतना तो सुगना भी समझ रही थी कि सोनू का यह प्यार पूर्णतया वासनाविहीन था।

कुछ देर की जद्दोजहद के बाद आखिरकार सुगना सामान्य हुई और अपने गीले चेहरे को पोछती हुई बाहर हाल में आ गई…

अब तक लाली भी बाजार से वापस आ चुकी थी। सोनू को देखकर वह खुश हो गई। उसने सोनू से पूछा

"मोनी मिलली सोनू" मोनी के बारे में जानने की अधीरता उसके चेहरे पर देखी जा सकती थी।

" हां दीदी विद्यानंद महाराज के आश्रम में भर्ती हो गईल बाड़ी …हम उनका से बात करें के कोशिश कइनी पर बुझाता ऊ घर के आदमी से मिले नईखी चाहत । बाकी देखे सुने में ठीक रहली और अपना टोली में मस्त रहली हा"

सोनू की बातें सुनना भी ध्यान लगाकर सुन रही थी सुगना ने कई दिनो बाद सोनू से प्रश्न किया …

"तोहरा से बात ना कईलास हा का"

"ना दीदी हम संदेशा भी भेजनी पर ऊ ना अइली हा"

सुगना एक तरफ तो मोनी के मिल जाने से खुश थी वहीं दूसरी तरफ मोनी को हमेशा के लिए खोने का दर्द वह महसूस कर पा रही थी। परंतु मोनी ने वैराग्य क्यों धारण किया? यह उसकी समझ से परे था।

न जाने इस परिवार को हुआ क्या था। एक के बाद एक लोग घर छोड़कर बैरागी बनते जा रहे थे। पहले सुगना का पति रतन और उसकी बहन मोनी ….उसके ससुर तो न जाने कब से वैराग्य धारण कर न जाने कहां घूम रहे थे। सुगना को एहसास भी न था कि विद्यानंद उसके अपने ससुर थे..

खैर जो होना था सो हुआ। सुगना ने अपनी खाने की प्लेट उठाई और वापस उसे रसोई में रखने चली गई। लाली ने सुगना से कहा

"सोनू के लिए भी नाश्ता निकाल दे"

लाली फिर सोनू की तरफ मुखातिब हुई और बेहद प्यार से बोली …

"जा सोनू बाबू मुंह हाथ धो ल " आज लाली के मुख से अपने लिए बाबू शब्द सुनकर सोनू को पुराने दिनों की याद आ गई जब लाली उसे इसी तरह प्यार करती थी…अचानक सोनू के लंड में तनाव आ गया यह प्यार ही तो उससे और उत्तेजित कर देता था।

शब्दों को कहने का भाव रिश्तो की आत्मीयता और परस्पर संबंधों को उजागर करता है बाबू ..सोना ..मोना ..यह सारे शब्द अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग भाव उत्पन्न करते हैं.. और आप अपनी अपनी भावना के अनुसार उसने वात्सल्य या वासना खोज लेते हैं

सोनू सुगना सोनू के लिए नाश्ता निकालने लगी परंतु जैसे ही सब्जी की गंध उसके नथुनों में पड़ी एक बार वह फिर उबकाई लेने लगी…सुगना भाग कर बाथरूम में आई…. इस बार सुगना के पीछे सोनू की बजाय लाली खड़ी थी

"अरे ई तोहरा अचानक का भइल पेट में कोनो दिक्कत बा का? " लाली ने पूछा

" ना ना असही आज मन ठीक नईखे लागत " सुगना ने बड़ी मुश्किल से ये कहकर बात छुपाने की कोशिश की…और अपने पंजों से लाली को इशारा कर और बात करने से रोकने की कोशिश की…इस स्थिति में किसी भी प्रश्न का जवाब दे पाना सुगना के लिए भारी पड़ रहा था वह अपनी उल्टी समस्या से कुछ ज्यादा ही परेशान थी।

बेवजह उबकाइयां आने का कारण कुछ और ही था। इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते और सुगना और सोनू ने जो किया था उस अद्भुत मिलन ने सुगना के गर्भ में अपना अंश छोड़ दिया था सुगना के गर्भ में उस अपवित्र मिलन का पाप जन्म ले चुका था..

सुगना के शरीर में आ रहे बदलाव से सुगना बखूबी वाकिफ थी। आज सुबह-सुबह की उल्टी ने उसके मन में पल रहे संदेह को लगभग यकीन में बदल दिया। जब से उसकी माहवारी के दिन बढ़ गए थे तब से ही वह चिंतित थी और आज बेवजह की उबकाइयों ने उसके यकीन को पुख्ता कर दिया था।

हे भगवान तूने यह क्या किया? सुगना अपने हाथ जोड़े अपने इष्ट से अनुनय विनय करती और अपने किए के लिए क्षमा मांगती परंतु परंतु उसके गर्भ में पल रहा वह पाप अपना आकार बड़ा रहा था।

सुगना मन ही मन सोच रही थी निश्चित ही आज नहीं तो कल यह बात बाहर आएगी। वह क्या मुंह दिखाएगी? घर में सोनी और लाली उसके बारे में क्या सोचेंगे ? और तो और इस बच्चे के पिता के लिए वह किसका नाम बताएंगी? और जब यह बात घर से निकल कर बाहर जाएगी सलेमपुर सीतापुर और स्वयं बनारस में उसके जानने वाले…इतना ही सुगना सोचती उतना ही परेशान होते एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह जल समाधि ले ले परंतु उसकी आंखों के सामने उसके जान से प्यारे सूरज और मधु का चेहरा घूम गया अपने बच्चों को बेवजह अनाथ करना सुगना के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाता था उसने तरह तरह के विचार मन में लाए पर निष्कर्ष पर पहुंचने में असफल रही।


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दोपहर बड़ी कशमकश में बीती और शाम होते होते एक बार फिर उल्टियो का दौर चल पड़ा। अब तक परिवार की छोटी डॉक्टरनी नर्स सोनी आ चुकी थी।

अपनी बहन सुगना को उबकाई लेते हुए देख वह भी परेशान हो गई। उसने सोनू को उठाया और बोला

"भैया जा कर हई दवाई ले ले आवा दीदी के उल्टी खातिर"

सोनू तो सुगना के लिए आसमान से तारे तोड़ कर ला सकता था दवाई क्या चीज थी। वह भागते हुए मेडिकल स्टोर की तरफ गया और जाकर दवाइयां ले आया। लाली और सुगना अगल-बगल बैठी थीं लाली सुगना की हथेलियों को पकड़कर सहला रही थी और उसे उबकाई की प्रवृति को भूलने के लिए प्रेरित कर रही थी।

सोनी कमरे में आई और सोनू उसके पीछे पीछे गिलास में पानी लिए खड़ा था…" दीदी ई दवा खा लाउल्टी ना आई… आज दिन में का खाइले रहलू की तहार पेट खराब हो गईल बा"

सुगना क्या बोलती …उसे जो हो रहा था वह वह उसके ऊपरी होठों के द्वारा नहीं अपितु निचले होठों द्वारा खाया गया था…और वह था सामने खड़े अपने छोटे भाई सोनू का मजबूत लंड. सुगना ने दवा न खाई बेवजह दवा खाने का कोई मतलब भी ना था।

सुगना दो बच्चों की मां पहले से थी उसे शरीर में आ रहे बदलाव के बारे में बखूबी जानकारी थी। सुगना ने बात बदलते हुए कहां

"ना दवाई की जरूरत नईखे …. असही ठीक हो जाई। सवेरे बांसी मटर खा ले ले रहनी ओहि से उल्टी उल्टी लागत बा"

सुगना ने एक संतोषजनक उत्तर खोज कर सोनी और सोनू को शांत कर दिया। वह दोनों लाख पढ़े होने के बावजूद स्त्री शरीर में आ रहे बदलावों से अनभिज्ञ थे। और सोनू वह तो न जाने कितनी बार लाली को चोद चुका था कभी उसकी बुर में वीर्य भरता कभी शरीर पर मलता और न जाने क्या-क्या करता उसे इस बात का एहसास न था कि एक बार गर्भ में छोड़ा गया वीर्य भी गर्भ धारण करा सकता था।

सोनू के अनाड़ीपन को लाली ने अपना कवच दे रखा था जब जब सोनू उसके अंदर अपना वीर्य स्खलन करता लाली तुरंत ही गर्भ निरोधक दवा खा लेती। और अपने खेत को तरोताजा बनाए रखती।


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शाम हो चुकी थी..अब तक अब तक घर के सारे बच्चे सोनू के साथ बाहर जाने के लिए तैयार हो गए थे। मामा मामा.. कहते हुए वह सोनू से तरह-तरह की चीजें खिलाने की मांग करते। कुछ ही देर में सोनू अपने भांजे भांजियों के साथ नुक्कड़ पर चाट पकौड़ी खाने चल पड़ा सोनी भी सोनू के साथ गई छोटी मधु और सुगना पुत्र रघु दोनों को अपनी गोद की दरकार थी।

छोटी मधु अपने पिता सोनू की गोद में थी और सुगना तथा स्वर्गीय राजेश के वीर्य से उत्पन्न छोटा रघु सोनी की गोद में। सोनी ने रघु को कई दिनो बाद अपनी गोद में लिया था…

बच्चों - बच्चों में भी अलग आकर्षण होता है कुछ बच्चे कुछ विशेष व्यक्तियों को बेहद पसंद करते हैं और बड़े भी किसी विशेष बच्चे को कुछ ज्यादा ही प्यार करते हैं


सोनी के हिस्से का सारा प्यार सूरज ले गया था और बचा खुचा मधु… लाली के घर के बच्चों में से सामान्यतः उसकी बेटी रीमा ही सोनी के साथ सहजता से खेलती परंतु आज रघु उसकी गोद में था।

धीरे धीरे चलते हुए सोनी और सोनू सड़क पर आ गए बच्चे भी लाइन लगाकर चल रहे थे।

उस दौरान सड़कों पर आवागमन इतना ज्यादा न था पर फिर भी सोनू और सोनी सतर्क थे। सोनी के कहा "लाइन में रह लोग.. इने उने मत जा लोग"

अचानक सोनी का ध्यान भंग हुआ। उसकी गोद में बैठा रघु अपने हाथों से सोनी की चूचियां छू रहा था.. वह कभी उसकी कमीज के ऊपर से अपना हाथ डालकर उसकी नंगी चूचियां छूने का प्रयास करता और सोनी बार-बार उसके हाथों को हटाकर दूर कर देती। परंतु न जाने उस बालक को कौन सी प्रेरणा मिल रही थी (शायद अपने स्वर्गीय पिता राजेश से) वह बार-बार अपने हाथ सोनी की चूचियों में डाल देता और एक बार तो हद ही हो गई जब उसने अपनी मासूम उंगलियों से सोनी के निप्पलो को पकड़ लिया…। सोनी ने उसके गाल पर एक मीठी चपत लगाई और बोला

"बदमाशी करबा त नीचे उतार देब"

रघु ने कुछ देर के लिए तो हाथ हटा लिए पर उसे जो आनंद आ रहा था यह वही जानता था। थोड़ी ही देर में नुक्कड़ आ गया और बच्चे धमाचौकड़ी मनाते हुए अपनी सुगना मां / मौसी के गर्भवती होने का जश्न मनाने लगे और उस अनचाहे बच्चे का पिता अनजाने में ही उन्हें खिला पिला रहा था पार्टी दे रहा था। नियति मुस्कुरा रही थी।

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उधर घर में सुगना एक बार फिर बाथरूम में थी। बाहर आते ही लाली ने सुगना के कंधे पकड़कर पूछा..

" ए सुगना हमरा डर लागता… कुछ बात बा का? हम तोहार सहेली हई हमरा से मत छुपाओ बता का भईल बा.."

सुगना से अब और बर्दाश्त ना हुआ… पिछले कई दिनों से उसने लाली से कोई बात ना की थी परंतु उसे पता था लाली और वह एक दूसरे से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकती थीं। लाली के बिना उसका जीवन अधूरा था और अब वह जिस मुसीबत में पड़ चुकी थी उससे निकालने में सिर्फ और सिर्फ लाली ही उसकी मदद कर सकती थी।

सुगना अपनी भावनाओं पर और काबू न रख पाई और लाली के गले लग कर फफक फफक कर रो पड़ी। लाली उसकी पीठ पर हाथ फेर रही थी …

सुगना ने अपने पेट में आए गर्भ के बारे में लाली को बता दिया। सुगना को पूरा विश्वास था कि यह उसके शरीर में आया बदलाव उसी कारण से है। फिर भी तस्दीक के लिए लाली पास के मेडिकल स्टोर पर गई और प्रेगनेंसी किट खरीद कर ले आई।

कुछ ही देर में यह स्पष्ट हो गया कि सुगना गर्भवती थी ।

लाली ने न तो उस गर्भस्थ शिशु के पिता का नाम पूछा न हीं सुगना से कोई और प्रश्न किया । लाली जानती थी कि सुगना किसी और से संबंध कभी बना ही नहीं सकती थी। यदि उस बच्चे का कोई पिता होगा तो वह निश्चित ही सोनू ही था। उस दीपावली की रात सुगना और सोनू के बीच जो हुआ था यह निश्चित ही उसका ही परिणाम था…. स्थिति पलट चुकी थी।


सुगना लाली से और बातें करना चाहती थी । उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि लाली ने बच्चे के पिता के बारे में जानने की कोई कोशिश न की थी? सुगना उत्तर अपने होंठो पर लिए लाली के प्रश्न का इंतजार कर रही थी पर लाली को जिस प्रश्न का उत्तर पता था उसे पूछ कर वह सुगना को और शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी।

दोनों सहेलियां परेशान थीं। एक दूसरे का हाथ थामें दोनों अपना दिमाग दौड़ा रही थी। लाली इस बच्चे के पिता के लिए कोई उचित नाम तलाश रही थी। परन्तु सुगना जैसी मर्यादित और सभ्य युवती का अनायास ही किसी मर्द से चुद जाना संभव न था।

आखिरकार सुगना ने मन ही मन प्रण किया और बोला

"हम अब अपना भीतर ई पाप के ना राखब हम इकरा के गिरा देब"

उस दौरान एबॉर्शन एक सामान्य प्रक्रिया न थी। एबॉर्शन के लिए कई सारे नियम कानून हुआ करते थे। सुगना ने जो फैसला लिया जो लाली को भी सर्वथा उचित लगा। बस लाली को एक बात का ही दुख था कि यह गर्भ सोनू और सुगना के मिलन से जन्मा था और उसमें सोनू का अंश था ।

परंतु जब सुगना ने फैसला ले लिया तो लाली उसके साथ हो गई। परंतु यह एबॉर्शन होगा कैसे? इसके लिए पिता और माता दोनों की सहमति आवश्यक है? हॉस्पिटल में जाने पर निश्चित ही इस गर्भ के पिता का नाम पूछा जाएगा और उनकी उपस्थिति पूछी जाएगी। हे भगवान! लाली ने सुगना से इस बारे में बात की। सुगना भी परेशान हो गई और आखिरकार लाली ने सुगना को सलाह दी..

" सुगना सोनू के साथ 1 सप्ताह खातिर बाहर चल जा ओहिजे इ कुल काम करा कर वापस आ जइहा। सोनू समझदार बा ऊ सब काम ठीक से करा ली एहीजा बनारस में ढेर दिक्कत होई। घर में सोनी भी बिया इकरा मालूम चली तो ठीक ना होई अभी कुवार लइकी बिया ओकरा पर गलत प्रभाव पड़ी। "

लाली को अभी सोनी की करतूतों का पता न था।

नियति मुस्कुरा रही थी….. लाली बकरी को कसाई के साथ भेजने की बात कर रही थी। जिस सुगना का उसके अपने ही भाई ने चोद चोद कर पेट फुला दिया था वह उस उसे उसके ही साथ अकेले जाने के लिए कह रही थी।

पर न जाने क्यों सुगना को यह बात रास आ गई । वैसे इसके अलावा और कोई चारा भी ना था। सोनू घर का अकेला मर्द था। पर यह प्रश्न अब भी कठिन था सोनू को यह बात कौन बताएगा? और सोनू को इस बात के लिए राजी कौन करेगा?

लाली सुगना की परेशानी समझ गई। उसने सुगना के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

" तू परेशान मत होख… हम सोनू के सब समझा देब… अतना दिन राखी बंधले बाड़े मुसीबत में ऊ ना रक्षा करी त के करी" रक्षाबंधन का नाम सुनकर सुगना खो सी गई… सोनू और उसके बीच प्यार भरे दिन उसकी नजरों के सामने घूमने लगे कैसे वह मासूमियत आज वासना ने लील ली थी। सुगना को खोया हुआ देखकरपर लाली उसे आलिंगन में लेने के लिए आगे बढ़ी।

लाली और सुगना एक बार फिर गले लग गईं…चारों चूचियां एक बार फिर एक दूसरे को सपाट करने की कोशिश करने लगीं। लाली और सुगना में आत्मीयता एक बार फिर प्रगाढ़ हो गई थी। सुगना और लाली के बीच जो दूरियां बन गईं थी वह अचानक खत्म हो रही थीं।

दुख कई बार लोगो के मिलन का कारण बनता है आज लाली के गले लगकर सुगना खुश थी।


बाहर बच्चों की शोरगुल की आवाज आ रही थी। उनकी पलटन वापस आ चुकी थी। सुगना ने अपनी आंखों पर छलक आए आंसुओं को पोछा और शीशे के सामने खड़े हो अपने बाल सवारने लगी। सोनी और सोनू कमरे में आ गए। सोनू ने पूछा

"दीदी अब ठीक लागत बानू?" सुगना के दिमाग में फिर उस रात सोनू द्वारा कही गई यही बात घूमने लगी… कैसे सोनू उसे चोदते समय यह बात बड़े प्यार से पूछ रहा था…दीदी ठीक लागत बा नू"... उस चूदाई का परिणाम ही था कि आज सुगना परेशान थी…

सुगना ने बात को विराम देते हुए कहा

"हां अब ठीक बा चिंता मत कर लोग.."

सोनी ने सुगना के लटके हुए पैरों को पकड़ कर बिस्तर पर रखा और सिरहाने तकिया लगा कर बोली..

"दीदी आज तू आराम कर हम खाना बना दे तानी"

सोनू एक टक सुगना को देखे जा रहा था सुनना के चेहरे पर आया यह दर्द अलग था सोनू स्वयं को असहाय महसूस कर रहा था और मन ही मन सुगना के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना कर रहा था।

धीरे-धीरे कमरे से सभी एक-एक करके जाने लगे और सुबह अपनी पलकें मूंदे आने वाले दिनों के बारे में सोचने लगी वह कैसे सोनू के साथ अबॉर्शन कराने जाएगी?

आइए सुगना को उसके विचारों के साथ छोड़ देते हैं अपने ही भाई के साथ कुकृत्य कर गर्भधारण करना उसी के साथ गर्भ को गिराने के लिए जाना सच में एक दुरूह कार्य था।


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उधर विद्यानंद के आश्रम में रतन मोनी को देखकर आश्चर्यचकित था। रतन मोनी को पहले से जानता था परंतु उसकी मोनी से ज्यादा बातचीत नहीं होती थी। विवाह के पश्चात वैसे भी रतन का गांव पर आना जाना दो-चार दिनों के लिए ही होता था। उस दौरान मोनी शायद ही कभी उससे मिलती।

परंतु पिछली बार सुगना को दिल से अपनाने के बाद जब वह पूजा में शरीक हुआ था उस दौरान मोनी और उसकी कई मुलाकाते हुई थी। मोनी स्वभाववश रिश्तेदारों से दूर ही रहती थी। उसने रतन से मुलाकात तो कई बार की परंतु कुछ देर की ही बातचीत में वह हट कर दूसरे कामों में लग जाया करती थी।

ऐसा नहीं था कि रतन मोनी से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता उस दौरान तो वह सुगना का दिल जीतने में लगा हुआ था।

रतन को वैसे भी आश्रम बनाने का तोहफा दीपावली की रात मिल चुका था। रतन की निगरानी में बने उस विशेष आश्रम में भव्य उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया था जिसमें विद्यानंद स्वयं उपस्थित थे आश्रम में आने वाले लोग भारत देश के कई क्षेत्रों के अलावा देश विदेश से भी आए थे। आगंतुकों में अधिकतर विद्यानंद के अनुयाई ही थे बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषेध था।

विद्यानंद के आश्रम में संपन्नता की कोई कमी न थी और उनके अधिकतर अनुयाई धनाढ्य परिवारों से संबंध रखते थे और विदेश से आए लोगों का कहना ही क्या न जाने ऊपर वाले ने उनके हिस्से में कितनी संपत्ति आवंटित की थी जिससे वह जीवन का इतना लुत्फ ले पाते थे और कुछ तो सब कुछ छोड़ छाड़ कर विद्यानंद के आश्रम में शामिल हो गए थे कार्यक्रम आश्रम जैसा ही भव्य था और उस आश्रम के यजमान रतन और माधवी को बनाया गया था माधवी वहीं विदेशी कन्या थी जो विद्यानंद के इशारे पर रतन के साथ मिलकर इस आश्रम कि नियम और कानून बनाने में रतन की मदद कर रही थी।

रतन और मधावी ने दीपावली की रात उस अनूठे आश्रम के विशेष भवन में जाकर रतन के द्वारा बनाए गए विशेष कूपे का निरीक्षण किया। माधवी और रतन ने एक दूसरे के शरीर को जी भर कर महसूस किया रतन वैसे भी एक दमदार हथियार का स्वामी था और विदेशी बाला माधवी उतनी ही सुकुमार चूत की स्वामिनी थी…माधुरी की गोरी चूत में रतन का काला लंड घुसने को बेताब था परंतु उस कूपे में यह व्यवस्था न थी। नियति ने रतन और माधवी के लिए जो सोच रखा उसे घटित तो होना था पर वह दीपावली की रात ने उनका साथ न दिया।.

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उधर बनारस में रात्रि के भोजन के पश्चात सब अपने-अपने स्थान पर सोने चले गए.. सुगना की आंखों में आज नींद फिर गायब थी वह अपने गर्भ में आए उस पाप के प्रतीक को मिटा देना चाहती थी परंतु कैसे? यह प्रश्न उसके लिए अभी भी यक्ष प्रश्न बना हुआ था ।

लाली ने जो सुझाव दिया वह वैसे तो देखने में आसान लग रहा था परंतु अपने ही भाई के साथ जाकर उसके ही द्वारा दिए गए गर्भ को गर्भपात कराना …..एक कठिन और अनूठा कार्य था।


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सुगना की सहेली लाली सोनू के कमरे में एक बार फिर सोनू को खुश करने के लिए सज धज कर तैयार थी। सोनू भी आज सहज प्रतीत हो रहा था मोनी के मिल जाने के बाद सुगना के व्यवहार को देखकर उसे कुछ तसल्ली हुई थी परंतु लाली जो धमाका करने जा रही थी सोनू उससे कतई अनभिज्ञ था…

जैसे ही लाली करीब आए सोनू ने पीछे से आकर उसकी चूचियां अपनी हथेलियों में भर ली और बोला..

"दीदी इतना दिन से कहां भागल भागल फिरत बाडु "

"अब हमरा से का चाहीँ कूल प्यार त सुगना में भर देला" लाली ने बिना नजरे मिलाए सटीक प्रहार किया..

सोनू को कुछ समझ में न आया अब तक उसका खड़ा लंड लाली के नितंबों में धसने लगा था वह चुप ही रहा । लाली की पीठ और सोनू के सीने के बीच दूरियां कम हो रही थी परंतु लाली सोनू को छोड़ने वाली न थी। अपनी सहेली सुगना को उसकी समस्या से निजात दिलाना उसकी पहली प्राथमिकता थी लाली ने कहा…


शेष अगले भाग में …
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Jo updates nahin available hain vo kaise milenge
Please help
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101/102 update kaise milenge
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भाग 107


जैसे ही लाली करीब आए सोनू ने पीछे से आकर उसकी चूचियां अपनी हथेलियों में भर ली और बोला..

"दीदी इतना दिन से कहां भागल भागल फिरत बाडु "

"अब हमरा से का चाहीँ कूल प्यार त सुगना में भर देला" लाली ने बिना नजरे मिलाए सटीक प्रहार किया..

सोनू को कुछ समझ में न आया अब तक उसका खड़ा लंड लाली के नितंबों में धसने लगा था वह चुप ही रहा । लाली की पीठ और सोनू के सीने के बीच दूरियां कम हो रही थी परंतु लाली सोनू को छोड़ने वाली न थी। अपनी सहेली सुगना को उसकी समस्या से निजात दिलाना उसकी पहली प्राथमिकता थी लाली ने कहा

अब आगे….

"अच्छा सोनू ई बतावा ओ दिन का भएल रहे?"

सोनू ने लाली के कानों और गालों को चुमते हुए उसका ध्यान भटकाने की कोशिश की और बेहद चतुराई से एक हाथ से उसकी चूचियां और दूसरी हथेली से उसकी बुर को घेर कर सहलाने की कोशिश की परंतु लाली मानने वाली न थी वह उसकी पकड़ से बाहर आ गई और सीधा सोनू के दोनों कानों को पकड़ कर उसकी आंखों में आंखें डाल ते हुए फिर से पूछा..

"ओह दिन हमरा सहेली सुगना के साथ का कईले रहला?"

लाली ने सोनू की शर्म और झिझक को कम करने की कोशिश की सुगना को अपनी सहेली बता कर उसने सोनू की शर्म पर पर्दा डालने की कोशिश की आखिर कैसे कोई भाई अपनी ही बहन को चोदने की बात खुले तौर पर स्वीकार करेगा..

सोनू ने बात टालते हुए कहा…

"अच्छा पहले डुबकी मार लेवे द फिर बताएंब "

सोनू ने यह बात कहते हुए लाली को अपनी गोद में लगभग उठा सा लिया और उसे बिस्तर पर लाकर पटक दिया कुछ ही देर में सोनू और लाली एक हो गए सोनू का मदमस्त लंड एक बार फिर मखमली म्यान में गोते लगाने लगा परंतु .. जिसने एक बार रसमलाई खाई हो उसे सामान्य रसगुल्ला कैसे पसंद आता..

सोनू के दिमाग में सुगना एक बार फिर घूमने लगी सुगना की जांघों की मखमली त्वचा का वह एहसास सोनू गुदगुदाने लगा। और सुगना की बुर का कहना ही क्या …वह कसाव वह रस से लबरेज बुर के गुलाबी होंठ और वह आमंत्रित करती सुगना को आत्मीयता अतुलनीय थी..

सोनू का लंड गचागच लाली की बुर में आगे पीछे होने लगा परंतु सोनू का मन पूरी तरह सुगना में खोया हुआ था। कुछ कमी थी … भावनावो और क्रियाओं में तालमेल न था। सुगना और लाली के मदमस्त बदन का अंतर स्पष्ट था और प्यार का भी… परंतु सोनू अपने अंडकोष में उबल रहे वीर्य को बाहर निकालना चाहता था.. उसने लाली को चोदना चारी रखा परंतु मन ही मन वह यह सोचता रहा कि काश यदि सुगना दीदी उसे स्वीकार कर लेती तो उसे जीवन में उसे सब कुछ मिल जाता जिसकी वह हमेशा से तलाश करता रहा है …

सच ही तो था सुगना हर रूप में सोनू को प्यारी थी एक मार्गदर्शिका के रूप में एक सखा के रूप में …. इतने दिनों तक साथ रहने के बाद भी सोनू और भी बिना किसी खटपट के एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे उनके प्यार में कोई नीरसता न थी। परंतु सोनू ने धीरे-धीरे सुगना में प्यार का जो रूप खोजना शुरू कर दिया था सुगना उसके लिए मानसिक रूप से तैयार न थी।

यह तो लाली की वजह से घर में ऐसी परिस्थितियां बन गई थी की सोनू के कामुक रूप के दर्शन सुगना ने कई बार कर लिए थे और उसकी अतृप्त वासना सर उठाने लगी थी। जिसका आभास न जाने सोनू ने कैसे कर लिया था और सोनू और सुगना के बीच वह हो गया था जो एक भाई और बहन के बीच में कतई प्रतिबंधित है ।

बिस्तर पर हलचल जारी थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू जी तोड़ मेहनत कर रहा था परंतु सोनू का तन मन जैसे सुगना को ढूंढ रहा था.. सोनू को अपना ध्यान लाली पर केंद्रित करने के लिए आज मेहनत करनी पड़ रही थी…

इसके इतर लाली सोनू के बदले हुए रूप से आनंद में थी आज कई दिनों बाद उसकी कसकर चूदाई हो रही थी..

"अब त बता द अपना दीदी के साध कैसे बुताईला"

वासना के आगोश में डूबी लाली अब भी सुगना के बारे में बात करते समय सचेत थी। सोनू और सुगना के बीच चोदा चोदी जैसे शब्दों का प्रयोग कतई नहीं करना चाहती थी। उसे पता था सोनू इस बात से आहत हो सकता था वह सुगना को बेहद प्यार करता था और उसकी बेहद इज्जत करता था ऐसी अवस्था में उससे यह पूछना कि तुमने अपनी ही बहन को कैसे चोदा यह सर्वथा अनुचित होता।

सोनू ने लाली की कमर में हाथ डाल कर उसे पलट दिया और उसी घोड़ी बन जाने के लिए इशारा किया। फिर क्या लाली के बड़े बड़े नितंब हवा में लहराने लगे और लाली जानबूझकर अपने नितंबों को आगे पीछे कर सोनू को लुभाने लगी सोनू की मजबूत हथेलियों में लाली की कमर को पकड़ा और सोने का खूंटा अंदर धसता चला गया..

अब सोनू की वासना भी उफान पर थी उसने लंड को बुर की जड़ तक धासते हुए लाली की चिपचिपी बुर को पूरा भरने की कोशिश की और एक बार लाली चिहुंक उठी.." सोनू बाबू …..तनी धीरे से…"

लाली की इस उत्तेजक कराह ने सोनू को एक बार फिर सुगना की याद दिला दी और सोनू से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपने कमर की गति को बढ़ा दिया और लाली को गचागच चोदने लगा…

कुछ ही देर में लाली स्खलित होने लगी परंतु सुगना के बुर के कंपन और लाली के कंपन में अंतर स्पष्ट था सोनू हर गतिविधि में लाली की तुलना सुगना से कर रहा था।

सोनू के लंड को फूलते पिचकते महसूस कर लाली ने अपने नितंबों आगे खींचकर उसके लंड को बाहर निकालने की कोशिश की परंतु सोनू ने उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खींच रखा..

अंततः सोनू ने.. अपनी सारी श्वेत मलाई लाली की ओखली में भर दी….

सोनू अब पूरी तरह हांफ रहा था उसने अपना लंड लाली की बुर से निकाला और बिस्तर पर चित्त लेट गया। लंड धीरे-धीरे अपना तनाव त्याग कर एक तरफ झुकता चला गया लाली सोनू के पसीने से लथपथ चेहरे को देख रही थी और अपनी नाइटी से उसके गालों पर छलक आए पसीने की बूंदों को पोंछ रही थी। उसने सोनू से प्यार से कहा..

"सोनू बाबू भीतरी गिरावे के आदत छोड़ द तोहार यही आदत से सुगना मुसीबत में आ गईल बिया"


सुगना और मुसीबत लाली द्वारा कहे गए यह शब्द सोनू के कानों में गूंज उठे। सुगना पर मुसीबत आए और सोनू ऐसा होने दे यह संभव न था। वह तुरंत ही सचेत हुआ और उसने लाली से पूछा

"का बात बा दीदी के कोनो दिक्कत बा का?"

"ओ दिन जो तू सुगना के साथ कईले रहला ओह से सुगना पेट से बीया"

लाली की बात सुनकर सोनू सन्न रह गया कान में जैसे सीटी बजने लगी आंखें फैल गईं और होंठ जैसे सिल से गए… हलक सूखने लगा लाली ने जो कहा था सोनू को उस पर यकीन करना भारी पड़ रहा था। आंखों में विस्मय भाव बड़ी मुश्किल से वह हकलाते हुए बमुश्किल बोल पाया..

क…..का?

दोबारा प्रश्न पूछना आपके अविश्वास को दर्शाता है सोनू निश्चित ही इस बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था परंतु सच तो सच था… लाली ने अपनी बात फिर से दोहरा दी और सोनू उठ कर बैठ गया। उधर उसका लंड एकदम सिकुड़ कर छोटा हो गया ऐसा लग रहा था जैसे उसे एहसास हो गया था कि इस पाप का भागी और अहम अपराधी वह स्वयं था…

"अब का होई ? " धीमी आवाज में सोनू ने कहा।ऐसा लग रहा था जैसे उसने अपना अपराध कबूल कर लिया हो…और लाली से मदद मांग रहा हो।

लाली और सोनू ने विभिन्न मुद्दों पर विचार विमर्श किया परंतु हर बार शिवाय गर्भपात के दूसरा विकल्प दिखाई नहीं पड़ रहा था। सोनू सुगना से विवाह करने को भी तैयार था परंतु लाली भली-भांति यह बात जानती थी की सोनू और सुगना का विवाह एक असंभव जैसी बात थी इस समाज से दूर जंगल में जाकर वह दोनों साथ तो रह सकते थे परंतु समाज के बीच सुगना और सोनू का पति पत्नी के रूप में मिलन असंभव था।

अंततः सोनू को लाली ने सुगना की विचारधारा से सहमत करा लिया… और जी भर कर चुद चुकी लाली नींद की आगोश में चली गई उधर सुगना अब भी जाग रही थी …इधर सोनू भी अपनी आंखें खोलें सुगना के गर्भपात के बारे में सोच रहा था…आखिर… क्यों उसने उस दिन उसने सुगना के गर्भ में ही अपना वीर्य पात कर दिया था…


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अगली सुबह घर में अचानक गहमागहमी का माहौल हो गया सोनी परेशान थी कि अचानक सुगना दीदी सोनू के साथ जौनपुर क्यों जा रही थी?

सोनू चाहता तो यही था कि सुगना उसके साथ अकेली चले। परंतु यह संभव न था मधु अभी भी उम्र में छोटी थी और उसे अकेले छोड़ना संभव न था और जब मधु साथ चलने को हुई तो सूरज स्वतः ही साथ आ गया वैसे भी वह सुगना के कलेजे का टुकड़ा था।

सुगना थोड़ा घबराई हुई सी थी। उसे कृत्रिम गर्भपात का कोई अनुभव न था और नहीं उसने इसके बारे में किसी से सुन रखा था। वह काल्पनिक घटनाक्रम और उससे होने वाली संभावित तकलीफ से घबराई हुई थी।

लाली ने सुगना का सामान पैक करने में मदद की और सुगना कुछ ही देर में अपने दोनों छोटे बच्चों मधु और सूरज के साथ घर की दहलीज पर खड़े सोनू का इंतजार करने लगी…. जो अपने किसी साथी से फोन पर बात करने का हुआ था।


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उधर सलेमपुर में सरयू सिंह सोनी की पेंटी के साथ अपना वक्त बिता रहे थे और अपने बूढ़े शेर (लंड ) को रगड़ रगड़ कर बार-बार उल्टियां करने को मजबूर करते। धीरे धीरे सोनी उन्हें एक काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी थी…अपने और सोनी के बीच उम्र का अंतर भूल कर वह उसे चोदने को आतुर हो गए थे।

जब वासना अपना रूप विकृत करती है उसमें प्यार विलुप्त हो जाता है। सरयू सिंह की मन में सोनी के प्रति प्यार कतई ना था वह सिर्फ और सिर्फ उसे एक छिनाल की तरह देख रहे थे जो अपनी युवा अवस्था में बिना विवाह के किए शर्म लिहाज छोड़ कर किसी पर पुरुष से अपने ही घर में चुद रही थी।

जब सरयू सिंह की बेचैनी बढ़ी उनसे रहा न गया वह सोनी के देखने एक बार फिर बनारस की तरफ चल पड़े। अपने पटवारी पद का उपयोग करते हुए उन्होंने कोई शासकीय कार्य निकाल लिया था जिससे वह बनारस में अलग से दो-चार दिन रह सकते थे। उन्होंने मन ही मन सोच लिया था कि वह विकास और सोनी को रंगे हाथ अवश्य पकड़ेंगे।

बनारस पहुंचकर उन्होंने विकास और उसके पिता के बारे में कई सारी जानकारी प्राप्त की.. विकास के पिता व्यवसाई थे सरयू सिंह की निगाहों में व्यवसाय की ज्यादा अहमियत न थी वह शासकीय पद और प्रतिष्ठा को ज्यादा अहमियत देते थे। विकास के पिता की दुकान और दुकान के रंग रूप को देखकर उन्हें उनकी हैसियत का अंदाजा ना हुआ परंतु जब वह रेकी करते हुए विकास के घर तक पहुंचे तो उसके घर को देखकर उनकी घिग्घी बंध गई।

सच में विकास एक धनाढ्य परिवार का लड़का था उसके महलनुमा घर को देखकर सरयू सिंह को कुछ सूचना रहा था वह उन पर दबाव बना पाने की स्थिति में न थे। सरयू सिंह को अचानक ऐसा महसूस हुआ जैसे वह विकास और सोनी के रिश्ते को रोक नहीं पाएंगे और सोनी उस अनजान धनाढ्य लड़के से लगातार चुदती रहेगी…

फिर भी सरयू सिंह ने हार न मानी वह गार्ड के पास गए और बोले विकास घर पर हैं…

"हां…आप कौन…?"

सरयू सिंह यह जान चुके थे कि विकास अभी बनारस में है उन्होंने सोनी पर नजर रखने की सोची और अपने बल, विद्या और बुद्धि का प्रयोग कर सोनी और विकास को रंगे हाथ पकड़ने की योजना बनाने लगे।


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सोनू उधर सुगना और सोनू का सामान गाड़ी में रखा जा चुका था सुगना कार की पिछली सीट पर बैठ चुकी थी। मधु उसकी गोद में थी। सूरज भी अपनी मां के साथ पिछली सीट पर आ चुका था जैसे ही सोनू ने आगे वाली सीट पर जाने के लिए दरवाजा खोला सूरज ने बड़ी मासूमियत से कहा

"मामा पीछे हतना जगह खाली बा एहिजे आजा"

इससे पहले कि सोनू कुछ सोचता लाली ने भी सोनू से कहा

"पीछे ईतना जगह खाली बा पीछे बैठ जा सूरज के भी मन लागी… सुगना अकेले तो दू दू बच्चा कैसे संभाली।

अंततः सोनू कार की पिछली सीट पर आ गया सबसे किनारे सुगना बैठी हुई थी उसकी गोद में मधु थी बीच में सूरज और दूसरी तरफ सोनू ।

कार धीरे धीरे घर से दूर हो रही थी सुगना और सोनू के व्यवहार से सोनी आश्चर्यचकित थी न तो दोनों के चेहरे पर कोई खुशी न थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सुगना और सोनू जौनपुर बिना किसी इच्छा के जा रहे थे।

रतन और बबीता के पेट से जन्मी मालती आज पहली बार सुगना से अलग हो रही थी उसकी आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे। सुगना सबकी प्यारी थी मासूम मालती को क्या पता था की सुगना वहां घूमने फिरने नहीं अपितु एक अनजान कष्ट सहने जा रही थी। वहां पूरे परिवार को लेकर जाना संभव न था सोनी ने मालती के आंसू पूछे और न जाने अपने मन में क्या-क्या सोचते हुए घर के अंदर आ गई।

जैसे ही कार सड़क पर आई वह सरपट दौड़ने लगी छोटा सूरज खिड़की के पास आने के लिए बेचैन हो गया और उसकी मनोदशा जानकर सोनू ने उसे खिड़की की तरफ आ जाने दिया पिछली सीट पर अब सोनू सुगना के ठीक बगल में था।

सुगना और सोनू दोनों बात कर पाने की स्थिति मे न थे। सुगना मधु के साथ एक खिड़की से बाहर देख रही थी और सूरज के साथ सोनू दूसरी खिड़की की तरफ।

जैसे ही कार गति पकड़ती गई बच्चे बाहरी दृश्यों से बोर होने लगे… परंतु कार की हल्की-हल्की उछाल ने उन्हें झूले का आनंद लिया और धीरे-धीरे दोनों ही बच्चे सो गए ।

तभी कार एक सिग्नल पर रुकी. दीवाल पर हम दो हमारे दो नारा लिखा हुआ था साथ में पति पत्नी और दो बच्चों की तस्वीर भी बनाई गई थी और नीचे परिवार नियोजन अपनाएं का चिर परिचित संदेश भी दिया हुआ था संयोग से सुगना बाहर की तरफ देख रही थी और निश्चित ही उस विज्ञापन को पढ़ रही थी।

उसी दौरान सोनू की निगाह भी उसी विज्ञापन पर गई और उसे वह विज्ञापन ठीक अपने ऊपर बनाया प्रतीत होने लगा ऐसा लग रहा था जैसे विज्ञापन में बने हुए पति पत्नी वह स्वयं और पास बैठी सुगना थे तथा दोनों छोटे बच्चे सूरज और मधु थे।

नियति का एक यह अजीब संयोग था। सुगना अपने पुत्र सूरज के साथ थी और सोनू अपनी पुत्री मधु के साथ। सुगना और सोनू को कोई भी व्यक्ति वह विज्ञापन ध्यान से पढ़ते हुए देखता तो निश्चित ही अपने मन में यह यकीन कर लेता कि सुगना और सोनू पति-पत्नी है और निश्चित ही परिवार नियोजन की तैयारी कर रहे हैं।

सुगना को परिवार नियोजन की कोई जानकारी न थी। अब तक वह सरयू सिंह से जी भर कर चुदी थी परंतु सरयू सिंह तो जैसे कामकला के ज्ञानी थे। स्त्रियों की माहवारी से गर्भधारण के संभावित दिनों का आकलन कर पाना और उसी अनुसार संभोग के दौरान अपने वीर्य को गर्भ में छोड़ना या बाहर निकालना किया उन्हें बखूबी आता था। और कभी गलती हो भी जाए तो उनका वाह मोतीचूर का लड्डू अपना काम कर देता था परंतु सोनू को ज्ञान मिलने में अभी समय था उसकी पहली गलती ही सुगना को गर्भवती कर गई थी।


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रेलवे का सिग्नल उठ चुका था और ड्राइवर ने कार अचानक ही बढ़ा दी सुगना असंतुलित हो उठी उसने सीट पर अपने हाथ रख स्वयं को संतुलित करने की कोशिश की परंतु सुगना का हाथ सीट की बजाय सोनू की हथेली पर आ गया इससे पहले की सुगना अपना हाथ हटा पाती सोनू ने सुगना की हथेली को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले लिया।

सुगना के मन में आया कि वह अपना हाथ खींच ले परंतु वह रुक गई सामने ड्राइवर था और किसी तरीके का प्रतिरोध एक गलत संदेश दे सकता था।

सोनू सुगना की हथेली को सहलाने लगा कभी व उसकी उंगलियों के बीच अपनी उंगली फसाता कभी हाथ की ऊपरी त्वचा को अपनी हथेली से धीरे-धीरे सहलाता कभी सुगना की हथेली के बीच रेखाओं को अपनी उंगलियों से पढ़ने की कोशिश करता।

सुगना को यह स्पर्श अच्छा लग रहा था ऐसा लग रहा था जैसे सोनू उसकी व्यथा समझ पा रहा हो। परंतु सुगना और सोनू बात कर पाने की स्थिति में न थे।

सोनू और सुगना की कार बनारस शहर छोड़कर लखनऊ का रुख कर चुकी थी। जौनपुर जाने का कोई औचित्य न था लखनऊ में मेडिकल सुविधाएं बनारस और जौनपुर से कई गुना अच्छी थी बनारस में गर्भपात करा पाना कठिन था वहां लोगों से मिलना जुलना हो सकता था और सोनू और सुगना की स्थिति असहज हो सकती थी इसी कारण सोनू लाली और सोनी ने मिलकर गर्भपात के लिए लखनऊ शहर के हॉस्पिटल को चुना था।

सोनू अपराध बोध से ग्रसित था फिर भी सुगना का वह जी भरकर ख्याल रखता रास्ते में गाड़ी रोककर कभी खीरा कभी ककड़ी कभी झालमुड़ी और न जाने क्या-क्या…. अपनी बड़ी बहन को खुश रखने का सोनू पर जतन कर रहा था परंतु सुगना घबराई हुई थी। अपने गर्भ में पल रहे शिशु का परित्याग आसान कार्य न था शारीरिक पीड़ा उसे झेलना था।

आखिरकार लखनऊ पहुंचकर सुगना और सोनू दोनों उसी गेस्ट हाउस में आ गए जिसमें सोनी और विकास का मिलन सोनू ने अपनी आंखों से देखा था। सुगना को गेस्ट हाउस में बैठा कर सोनू हॉस्पिटल जाकर कल के लिए अपॉइंटमेंट ले आया और आते समय सुगना और उसके बच्चों के लिए ढेर सारी चॉकलेट और मिठाईयां लेता आया आखिर जो हो रहा था उसमें बच्चों का कोई कसूर न था।

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सुगना और सोनू आखिर कब तक बात ना करते। दैनिक जरूरतों ने सुगना और सोनू को बात करने पर मजबूर कर दिया…कभी बच्चो के लिए दूध लाना कभी खाना, कभी अटैची उठाना कभी बाथरूम में नल खोलने में …मदद..

इसी क्रम में सुगना ने एक बार फिर बाथरूम में उल्टी करने की कोशिश की…सोनू पानी की बोतल लिए सुगना के पीछे ही खड़ा था..

सुगना ने पलटते ही कहा..

"देख तोहरा चलते आज का हो गइल " सोनू पास आ गया और सुगना को अपने आलिंगन में लेते हुए बोला

" दीदी हमरा ना मालूम रहे हम ही एकर कसूरवार बानी… हमरा के माफ कर द" सुगना ने अपने दोनो हाथ अपने सीने के सामने रखकर आलिंगन में आने पर अपना विरोध दिखाया। सोनू सुगना की मनोस्थिति समझ उससे अलग हुआ और धीरे धीरे अपने दोनों घुटनों पर आ गया।

उसका सर सुनना के पेट से सट रहा था… सोनू की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे वह बार-बार एक ही बात दोहरा रहा था.

" दीदी हम तोहरा के कभी कष्ट ना देवल चाहीं.. हमरा से गलती हो गइल…दोबारा की गलती ना होई"

कान पकड़कर सुगना से मिन्नते करता सोनू नियति को बेहद मासूम लग रहा था। सुगना को ऐसा लगा जैसे शायद सोनू और उसका यह मिलन एक संयोग था और उन दोनो के लिए एक सबक था। परंतु सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था नियति सोनू के दिमाग से खेल रही थी।

सुगना ने सोनू के सर पर हाथ रखते हुए कहा

"अब जा सुत रहा देर हो गइल बा काल सुबह अस्पताल जाए के भी बा"

सुगना और सोनू एक बार बिस्तर पर पड़े छत को निहार रहे थे…नियति सोनू और सुगना के मिलन की पटकथा लिख रही थी…



शेष अगले भाग में
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Bhai story ko ek se jyada pages mai kaise likhe matlab index banakar jaise tumhare 7 pages ho chuke hai
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(05-07-2022, 11:38 AM)Snigdha Wrote:
अपडेट 90 और 91 सिर्फ उन्हीं पाठकों के लिए उपलब्ध है जो कहानी के पटल पर आकर कहानी के बारे में अपने अच्छे या बुरे विचार रख रहे हैं यदि आप भी यह अपडेट पढ़ना चाहते हैं तो कृपया कहानी के पेज पर आकर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें प्रतिक्रिया छोटी, बड़ी, लंबी कामा, फुलस्टॉप कुछ भी हो सकती है परंतु आपकी उपस्थिति आवश्यक है मैं आपको अपडेट 90 और 91 आपके डायरेक्ट मैसेज पर भेज दूंगा

धन्यवाद

nice
लवली आनंद

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Big fan of yours
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ये कहानी राजेश सरहदी की वो शाम कुछ अजीब थी, की श्रेणी वाली कहानी है। उच्च कोटि की लेखन, गांव की देसी भाषा/ बोली इसे बेहद आकर्षक, रोमांचक और कामुक बनाती है। कृपया 90,91 और 101 अपडेट मेरे मेल lordkevin8989 एट द रेट जीमेलcom पर भेज दें। सुगना के जीवन में सरयू सिंह को वापिस लाएं। बाप बेटी के बीच संबंध जानकर स्थापित हो तो और कामोत्तेजक होगा।
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(05-07-2022, 11:38 AM)Snigdha Wrote:
अपडेट 90 और 91 सिर्फ उन्हीं पाठकों के लिए उपलब्ध है जो कहानी के पटल पर आकर कहानी के बारे में अपने अच्छे या बुरे विचार रख रहे हैं यदि आप भी यह अपडेट पढ़ना चाहते हैं तो कृपया कहानी के पेज पर आकर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें प्रतिक्रिया छोटी, बड़ी, लंबी कामा, फुलस्टॉप कुछ भी हो सकती है परंतु आपकी उपस्थिति आवश्यक है मैं आपको अपडेट 90 और 91 आपके डायरेक्ट मैसेज पर भेज दूंगा

धन्यवाद



लवली आनंद

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Heart 
It's a mind-blowing story... please update 90 and91
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(09-08-2022, 11:21 AM)Snigdha Wrote:
अपडेट 102 वां एपिसोड भी इसी कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण अपडेट
Heart
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(09-08-2022, 11:21 AM)Snigdha Wrote:
अपडेट 102 वां एपिसोड भी इसी कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण अपडेट
Heart

Pls update 102
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Nice story
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Send 101
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Nice story
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