Poll: Kya ek auraat ko bahut saare maardon ke saat sex karana accha nahi hain?
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Sirf pati ke saat sex kare, sati savitri
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Aurat ko har type ke maard ka swad lena chahiye
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Kisi maard ko mana nahi kare
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Apne pasand ke saab mard ke sat sex kare
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bina umar, rishta, ajnabi ya kisi cheej ka lihaaj na karate saab ke saat sex kare
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Adultery मैँ बहक जाती हूँ - पार्ट ३६ - मेरे पति मौसाजी के कुक (Part 2) !
#61
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#62
Thanks
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#63
पार्ट १८: बंटी संग परमानंद !

जब मेरी आँखें खुली तो देखा की मैं बंटी की बाँहों में सो रही थी. दिन के १२.३० या १.०० बजे का टाइम हो गया था. बंटी मुझे प्यार से निहार रहा था. उसकी आंखें चमक रही थी. मैंने मेरी नजरें शर्मा कर झुका दी और उसके छाती पर चेहरा रख कर छुपा लिया. 
बंटी : उठ गयी मेरी जान.
मैं: हाँ, स्वप्निल कहा गया? 
बंटी: वह हमारे लिए बहार से खाना लेने गया है . ( उस जमाने में आज की तरह स्विग्गी या होम डिलीवरी सिस्टम नहीं था.)
मैंने बंटी से लिपट कर पूछा - ऐसे क्या देख रहे हो ?
बंटी: तुझे देख रहा हूँ संध्या , तू मुझे पागल कर देती है. 
मैंने देखा बंटी का काला लंड अब फिर से कड़क हो कर उफान भर रहा था. मैंने अपना हात उसके छाती से  फेरकर नीचे की तरफ लेकर गयी और उसके लंड को सहलाने लगी. मैं उसके लंड के टोपे की मुलायम चमड़ी से खेलने लगी. कभी उसकी चमड़ी आगे खींचती, कभी पीछे. जब उसके लंड की चमड़ी पीछे को खींचती, उसके लंड का बड़ा गोलाकार सूपड़ा बहार आ जाता. मुझे ऐसे करने से बड़ा मजा आ रहा था. उसका काला लंड और सामने बड़ा सूपड़ा , कोई चॉक्लेट लोल्लिपोप की तरह लगता.
बंटी ने पूछा: हरीश कैसा है? अभी भी उससे  मिलती हो ? प्यार करती हो?
मैं : हाँ वो अच्छा है..तू बता, तुझे तो गांव मैं बहुत सारी लड़किया मिल जाती होगी.
बंटी: हां मिलती है. पर किसी से दिल नहीं लगता. मुझे तो बस तुजसे प्यार हो गया है. पर तू किसी ओर से प्यार करती है.
मैं हक्काबक्का रह गयी. गांव के मर्द कितनी आसानी से दिल की बात कह देते है. 
मैंने कहा: झूठा ..अगर ऐसे होता तो तुझे हरिया या स्वप्निल को मुझे चुदते देखकर बुरा लगता. तू सिर्फ सेक्स के लिए मुझे मिलता है. तुझे कोई प्यार नहीं है. बस सेक्स की वासना है.
बंटी: ने मेरा चेहरा पकड़ लिया और चूमने लगा. उसकी आँखों में दर्द था, प्यार था , पानी था. बंटी ने कहा : ऐसे नहीं है संध्या. शुरू में मुझे भी बुरा लगा था, पर जब देखा की तू खुश है, तेरी ख़ुशी देख कर मैं भी खुश हो जाता हूँ. तुझे अब तक समझा नहीं होगा,पर मैंने महसूस किया है - तू सब से ज्यादा सेक्स मेरे साथ  एन्जॉय करती. क्यूंकि वो सिर्फ सेक्स नहीं पर प्यार है. मैं तुझे जबरदस्ती नहीं करूँगा. पर तुझे अपने-आप  जब यह महसूस होगा तू भी मेरा कहना मान जायेगी.

मैं कुछ समज नहीं पा रही  थी. मैं लगातार बंटी के लंड से खेल रही थी.जो अब मेरे हातों की स्पर्श से फनफना रहा था. मैं बंटी के लंड को छोड़कर बंटी से चिपक गयी, उसको कसकर आलिंगन दे दिया. बंटी अब मेरी पीठ पर से हात घुमाकर मेरी कमर के नीचे मेरे  नितम्ब दबा रहा था. मैंने कहा - बंटी..मैं बहुत थक गयी हूँ. प्लीज अभी कुछ नहीं.
बंटी ने कहा .. हां रानी, मैं जानता हूँ, तुम कुछ मत करो , सिर्फ सोई रहो. मुझे आज तेरे शरीर का हर अंग , हर कोना , छूना है , चूमना है. 

बंटी ने मुझे सर पर चूमना शुरू किया , धीरे से वह सर से निचे लगतार चुम रहा था, मेरी आँखें, नाक, गाल, कान, गला, ओंठ..सब. उसे कोई जल्दी नहीं थी. मैं चुपचाप आंखें बंद कर के उसको महसूस कर रही थी. मुझे बड़ा अच्छा लग रह था. ऐसे पहले कभी महसूस नहीं हुआ था. बंटी ने दोनों हातों से मेरे मम्मे ऊपर उठाए और प्यार से उन्हें चूमने लगा, चूसने लगा. मेरी चुत गीली हो रही थी. वह बहुत देर तक मेरे दोनों बूब्स एक दूसरे से चिपका के मसलता रहा, चूमता रहा, चूसता रहा. फिर वह नीचे मेरी नाभि की तरफ चला गया. पहले उसने मेरी नाभि को उँगलियों से सहलाया और एक ऊँगली मेरी नाभि के अंदर डाल कर उसकी गहराई नापी. फिर दोनों ओंठों को  मेरे नाभि के आजु बाजु रखकर चूसने  लगा और बीच बीच मैं उसकी जीभ नाभि के अंदर डालने लगा. मुझे बहुत गुदगुदी हो रही थी..और मैं उत्तेजित भी हो रही थी. उसने मेरी कमर, पेट और जांघें सब अपनी जीभ से चाटनी शुरू कर दी. मैं अब करहा रही थी. मैं इंतजार कर रही थी की वह जल्दी से मेरी चुत को चाटना शुरू करे , पर मेरी चुत छोड़कर वह सब जगह , चुत के आजु बाजू, चाट रहा था. मैं अपनी कमर उठाने लगी. ताकि वह मेरी चुत पर ध्यान दे. पर वह मेरी चुत को बिलकुल भाव नहीं दे रहा था. 
मैंने तड़पकर कहा -  बंटी मेरी चुत चाटो.
बंटी: नहीं रानी, तू थक गयी है. मैंने वादा किया तुझे, कुछ नहीं करूँगा
मैं: बंटी प्लीज, अब रह नहीं जा रहा
पर बंटी ने एक नहीं सुनी , वह मेरी चुत के ऊपर, जांघों पर, और गांड के पास, चाटता रहा, उसकी गरम साँसे मेरी चुत पर महसूस हो रही थी. मैं तड़प रही थी. मैंने बंटी के बाल पकड़ लिए और मेरी चुत की तरफ धकेलने लगी. पर वह बिलकुल नहीं मान रहा था. अब उसने मेरी चुत के ऊपर, और आजु बाजु जांघों को हलके दातों से काटना शुरू कर दिया. उसके काटने से मैं तड़प जाती. मेरी चुत से लगातार पाणी बहा रहा था . तभी बंटी ने मेरी चुत के दाणे को अपने होठों में  लेकर चूसने लगा हलके दातों से उसको चबा दिया. जैसे उसने चबाया..मैं..हाई........ू ... करके पानी  छोड़ने  लगी.  मैंने बंटी का सर जोर से अपनी चुत पर रगड़ दिया . बंटी कोई अकाल पीड़ित प्यासे जानवर की तरह मेरे चुत का पाणी चाटने लगा . मेरी चुत का सारा पाणी चाट चाट कर पी गया. 

फिर बंटी नीचे बिस्तर पर मेरे बाजु लेट गया और कहा : संध्या आओ ..मेरे ऊपर आकर मेरे लंड पर बैठ जाओ.
मैंने कहा : बंटी मेरे पाओ बहुत दर्द दे रहे, मैं बैठ नहीं पाऊँगी.
बंटी ने कहा : मुझ पर भरोसा रखो, तू बैठ तो सही.
मैं उठ गयी , दोनों पेर बंटी के कमर के बाजू रख कर नीचे बैठने लगी , बंटी ने अपने लंड को पकड़ कर ठीक मेरी चुत के द्वार पर लगा दिया, और मैं धीरे धीरे उसके लंड को मेरे चुत में  अंदर ले कर बैठने लगी.
मेरी चुत ऐसे ही बहुत गीली थी.. बंटी का पूरा ८ इंच का काला जहरीला नाग निगल गयी. बंटी का नाग मेरी चुत को अंदर  से हर जगह छू रहा था. 
बंटी ने कहा : अब तू मेरे ऊपर सो जा, और पाँव सीधे कर दे.
मैं नीच झुक कर बंटी के छाती पर अपने मम्मे दबाकर लेट गयी और बंटी की गर्दन पर अपना सर रख दिया... और धीरे से मेरे घुटने सीधे पीछे कर के , बंटी के ऊपर सो गयी. बंटी ने अपने  घुटने ऊपर किये और अपने पाँव ऊपर उठा कर मेरी गांड और जांघों को अपने दोनों पैरों से कस कर उसके शरीर के ऊपर दबा दिया. उसने दोनों हातों से मेरी पीठ को अपने शरीर से दबा रखा था. ऐसे करने से बंटी का पूरा लंड मेरी चुत के अंदर गहराई तक चला गया था. मैंने मुँह ऊपर किया और हम दोनों एक दूसरे को पागलों की तरह चूमने लगे. बंटी की पैर की पकड़ और भी टाइट हो रही थी..और मेरी चुत से लगातार पाणी बह रहा था. ना कोई धक्के, बस ऐसे ही एक दूसरे का कस कर बाँहों मैं पकड़ कर हम चुम रहे थे. मैं उन्माद मैं आकार कांपने लगी  और मैंने जोर से मेरी कमर को बंटी के लंड पर दबा दिया ..और ..उह ..आह..  बंटी...कर के उसके ओंठों को चूसकर झड़ने लगी. मेरी चुत ने पानी का बरसाव बहा दिया और बंटी का लंड और भी गिला हो गया और उसके टट्टे भी. 

जब मैं शांत हुई तब बंटी फिर से मेरे गालों पर चूमने लगा और कहा - मैंने कहा था न संध्या मुझ पर भरोसा रखो..देखो तो..न मैंने धक्के मारे , ना तुमने,  बस ऐसे ही मुझ पर लिपटी रहो.
मैं फिर से कस कर बंटी के नंगे जिस्म पर लिपट गयी. मेरा मुँह बंटी के कंधे  पर था, बंटी ने मेरे कान को अपने होठों से चबा डाला और धीरे से मेरे कान के पास बातें करने लगा. उसकी मुँह और नाक से गरम सांसे मेरे कान पर महसूस हो रही थी . मुझे फिर  से गरम कर रही थी. 
बंटी ने पूछा : अच्छा संध्या बताओ तो मेरा लंड कहा है.
मैंने प्यार से जोश मैं कहा : मेरे अंदर , मेरी चुत मैं है.
बंटी ने कहा : नहीं मेरी जान, वह तेरी चुत नहीं है..वह तो मेरे लंड की राणी है,  अब बता तेरे अंदर क्या है?
मैंने शर्मा कर बंटी की गर्दन को चुम लिया .. और कहा - मेरे अंदर , मेरी राणी का लंड राजा है.
बंटी: बता यह लंड किसके लिए है? 
मैं: यह लंड सिर्फ मेरा है, मेरी राणी की लिए है
बंटी: अगर ऐसा है तो तूने तो अभी तक मेरे लंड को ठीक से प्यार भी नहीं किया .
मैंने कहा : तेरे कल जाने से पहले मैं इसको बहुत सारा प्यार कर लुंगी. 
बंटी ने कहा ..  सच  मेरी जान बता तो कैसे  प्यार करेगी  मेरे लंड को ?
मैं अब फिर से कांपने लगी थी. बंटी के लंड पर ऐसे सोते सोते मैं अब फिर से उन्मद में आ चुकी थी. मेरी चुत से लगातार बिना रुके पाणी बह रहा था. मेरी चुत अब फड़फड़ाने लगी थी. बंटी का लंड पूरा मेरी चुत मैं समां गया था. वह धक्का नहीं लगा रहा  था , ना उसका लंड आगे पीछे कर रहा था. उसके लंड की नसे मेरी चुत मैं फूल रही थी झटके लगा रही थी. 
मैंने कहा - मैं इसको बहुत सारी पप्पी दूंगी..इसको प्यार से चूसूंगी ..
बंटी - आह मेरी राणी.. ( उसने कस कर अपने पैरों से मेरी गांड उसके लंड पर दबा दी)
मैं फिर से जोर से कांप कर...उसके लंड पर झड़ गयी.
मेरी चुत तो जैसे बंटी के लंड से अंदर चिपक गयी थी. बिना धक्के, बिना कोई घर्षण - अपने आप ही पाणी बहा रही थी..बंटी का लंड अब और भी ज्यादा फूलकर मेरे चुत के अंदर जकड गया था. मैं थक गयी थी, पर बहुत आनंद आ रहा था. बंटी मुझे उसी पोजीशन मैं सुलाना चाहता था, अपने लंड को मेरी चुत के अंदर डाल के. पर मेरी चुत उसके लंड से बहुत उत्तेजित हो जाती, और अपने आप उसके लंड के प्यार में प्रेम का रस बहा देती. करीब ३० मिनट हम वैसे ही सोये रहे ,ओर इस दरम्यान मैं और एक बार झड़ गयी थी. मेरी चुत से लगातार पाणी बहरहा था. मैंने बंटी से कहा - बंटी बस करो अब, मैं मर जाउंगी.  अपना पाणी मेरे चुत मैं डाल दो अब. 

बंटी ने कहा - ठीक है , जैसे तुम  चाहो और बंटी नीचे से जोर जोर से उसके लंड को मेरी चुत के अंदर धक्के मारने लगा. हम दोनों ज्यादा देर टिक नहीं पाए. बंटी का लंड मेरी चुत  में और भी ज्यादा फुल गया , और एक बड़ा झटका दिया .. मुझे मेरी चुत के अंदर उसके वीर्य की गरम बूंदे महसूस हुई. फिर दूसरा झटका .. फिर तीसरा ...ऐसे १५-१६ झटके बंटी के लंड ने मेरी चुत के अंदर मारे ..और हर झटके के साथ मेरी चुत मैं उसका गरम गरम वीर्य अंदर तक चला गया. उसके गरम गरम  गाढ़े वीर्य ने मेरी चुत अंदर तक भिगो  डाली. मेरी प्यासी चुत को पाणी पिलाकर प्यास बुझा दी, शांत कर डाला . मैं बहुत देर तक वैसे ही बंटी से लिपट कर सोई रही. बहुत देर बाद बंटी का लंड धीरे से मेरी चुत से अपने आप बहार निकल गया.

बंटी ने मुझे साइड में  लिटाकर फिर से बाँहों मैं ले लिया. मैं उसके छाती पर मुँह रख कर सो गयी. एक सकून था,आनंद  था, भरोसा था, सुरक्षित महसूस कर रही थी. बंटी की बाँहों मैं सब भूल जाती, कोई चिंता नहीं होती, कोई  संदेह  नहीं, कोई शंका नहीं. महसूस होता तो सिर्फ एक अपनापन , एक आकर्षण, प्यार, खिंचाव, लगाव , उसकी महक, उसका मरदाना सुन्दर शरीर, इमोशनल केमिस्ट्री, सेक्सुअल केमिस्ट्री, सब बेखुबी से फिट हो रहे थे. हरीश या दूसरे मर्दों के साथ सेक्स तो एन्जॉय करती थी पर बाद में मन  का जो खालीपन महसूस करती वह बंटी के साथ से चला जाता था. 

मैं बहुत सम्भ्रम मैं पड़ गयी थी. 
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#64
Sandhya ki madak chudaai main maza aa gaya
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#65
मस्त अपडेट मस्त चुदायी
क्या बंटी का प्यार समझ आयेगी
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#66
(21-10-2022, 08:14 AM)maakaloda Wrote: Sandhya ki madak chudaai main maza aa gaya

Thank you
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#67
पार्ट १९: फुफेरे भाइयों का प्यार !

दरवाजे पर बेल बजी. स्वप्नील खाना लेकर आया था. घर में घुसते ही उसने अपने बनाये नियमो के अनुसार सारे कपडे निकाल दिये और पूरा नंगा हो गया. मैं बिस्तर पर लेटी थी.  मेरी चुत से अभी भी बंटी का गाढ़ा वीर्य बहार निकल रहा था. मैंने बाथरूम जाकर उसको साफ़ नहीं किया. बंटी का गरम वीर्य मुझे मेरी चुत के अंदर बहुत अच्छा लग रहा था. ऐसे लग रहा था की बंटी को कोई भाग या अंश मेरे शरीर के अंदर है और वह अब  मेरे शरीर का हिस्सा  है. 

स्वप्निल एक हट्टा कट्टा ६ फ़ीट ऊँचा मर्द था, उसने मुझे गुड़िया की तरह अपने दोनों हातों से बिस्तर पर से उठाया ओर डाइनिंग टेबल पर ले गया. तब तक बंटी ने प्लेट मैं खाना लगा दिया था. स्वप्निल ने डाइनिंग टेबल की खुर्ची पर बैठकर मुझे अपनी गोदी मैं बिठा लिया. मुझे स्वप्निल का गोरा, गुलाबी लण्ड अपनी गांड पर रगड़ता महसूस हुआ. मैं स्वप्निल की गोदी में , उसके गले में  बाहें डाल कर बैठी थी और वह मुझे अपने हातों से खाना खिला रहा था. मैंने बंटी की तरफ देखा. उसने मुझे आँख मर दी. अजीब चमक और शरारत थी उसके आँखों मैं. ना  कोई जलन, ना कोई शिकायत , कितना कॉन्फिडेंस और भरोसा था उसे खुदपर. स्वप्निल खाने के साथ मिठाई मैं गुलाब जामुन भी लाया था. खाना खाने के बाद, उसने गुलाब जामुन का कुछ चाशनी मेरे बूब्स पर, निप्पल्स पर डाल दी और चाटने लगा. बंटी ने कहा - मिठाई तो मैंने भी कहानी है और उसने उसकी खुर्ची मेरे पास खिंच ली और वह भी मेरे चूचियों पर से गुलाब जामुन की चाशनी चाटने लगा. स्वप्नील का लण्ड खड़ा होकर तन गया था ओर मेरी गांड की दरार मैं गांड की छेद पर टकरा रहा था. स्वप्नील ने शरारत कर के मुझे पीछे खिंच लिया तो उसका लण्ड का सूपड़ा बिलकुल मेरी गांड की द्वार को जोर से धक्का देकर टकरा गया. मुझे थोड़ा दर्द हो गया ओर मैंने कहा - नहीं स्वप्नील..यह नहीं..करके आगे खिसक  गयी. बंटी हंसकर बोला - हI स्वप्नील, इसकी चुत को चोदने का उद्घाटन का मौका तो मुझे नहीं मिला , पर इसकी गांड का उद्घाटन जरूर मेरा लण्ड ही करेगा. मैंने बंटी का लण्ड पकड़कर जोर से दबा दिया - चुप कमीने .. बंटी ने - आह ! कर के आहें भर दी. हम सब हंसी मजाक कर रहे थे. 

 मेरी चुत अब फिर से गीली होने लगी थी . बंटी का पाणी अभी भी मेरी चुत से बहार निकल रहा था और स्वप्निल के जांघों पर गिर के चिपक रहा था. स्वप्निल की दोनों जाँघे मेरे और बंटी के पाणी से गीली होकर चिप चिपी हो गयी थी. स्वप्निल ने मेरी चुत के अंदर एक ऊँगली डाल दी और चिप चिपा पानी निकल कर सुंघा - आह इसमें तो संध्या और बंटी दोनों की महक है.. हम सब हंसने लगे. उसने वह ऊँगली मुँह मैं डाल दी और चाट ली. कहा - या तो बड़ा स्वाद दे रहा है. मुझे सब चाटना है. उसने मुझे वैसे ही गोदी मैं उठा लिया और धीरे से सोफे पर बिठा दिया. मेर दोनों पैर अपने  हातों से फैला  दिये और मेरी चुत को अपने जीभ से चाटने लगा. मुझे बड़ा अजीब लगा. स्वप्निल बड़ी चाव से मेरा और बंटी का  मिश्रित पाणी, मेरी चुत के अंदर से चाट रहा था. जैसे कोई अमृत हो. बंटी का लण्ड अब तनाव में  आकर कड़क हो गया था. उसने सोफे के साइड से आकर खड़े खड़े उसका लण्ड मेरे मुँह के पास रख दिया. मैंने  अपने दोनों हातों से बंटी का लण्ड पकड़ लिया और उसको चूमने लगी और चूसने लगी. बंटी ने भी अपना लण्ड धोया नहीं था. उसका लण्ड मेरे और उसके पानी से भीगा था, मुझे हम दोनों का स्वाद ओर महक उसके लण्ड पर  महसूस हो रहा था. मैंने बंटी का काला ८ इंच का लण्ड धीरे धीरे , अपना गला ऊपर कर के, पूरा मुँह के अंदर गले तक ठूस लिया. बंटी बहुत खुश हो गया. उधर स्वप्निल ने मेरी चुत चाट- चाट कर , अंदर तक अपनी मोटी लम्बी जीभ डाल दी थी और बंटी ओर मेरा पूरा पाणी चाट लिया था. अब मेरी चुत सिर्फ उसकी थूंक के कारण गीली थी. 

मेरा सारा ध्यान बंटी के लण्ड पर था, जो लण्ड मुझे इतनी ख़ुशी देता है, उसे मुझे आज बहुत प्यार करना था. मैं बंटी के लण्ड को कभी ओंठो से, कभी गालों पर , कभी मेरे चूचियों पर  रगड़ देती, चूमती ओर चूसती . बंटी का नाग अब मेरे मुँह मैं फन-फ़ना रहा था. मुझे पता था चुत की बजाये मर्द का लण्ड औरत के मुँह और गले में जल्दी झड़ जाता है. तब तक स्वप्निल ने मेरे पाव अपने कंधे पर उठाकर अपना गोरा गुलाबी लण्ड मेरे चुत पर रख दिया था. उसने धक्का मारा, और उसका पूरा लण्ड मेरी चुत के अंदर चला गया. स्वप्निल मुझे निचे से मेरी चुत को अपने  गोरे गुलाबी ७ इंच के कटे लण्ड से अंदर बहार कर के चोद रहा था और बंटी मेरे मुँह और गले को अपने मोटे काले ८ इंच के लण्ड से चोद रहा था. मेरी चुत पहले से बंटी के ८ इंच काले लण्ड की चुदाई से  खुल गयी थी, इसलिए स्वप्निल का लण्ड आसानी से मेरे चुत में गोते लगा रहा था. मैं  अब कांपने लग गयी थी..मेरी चुत अब गरम हो कर कसमसा गयी थी और मेरे मुँह से सिसकारियां निकल  रही थी..आह.. मेरे बंटी ..उह ..स्वप्निल.. कमीनो .. चोद चोद कर मुझे मार डालोगे...आह.. मैंने बंटी का लण्ड पूरा गले तक लिया और जोर-जोर  से उसके लण्ड को पकड़ कर चूसने लगी. बंटी ज्यादा  देर  तक टिक  नहीं पाया  और ..आह..उह..कर के अपना लण्ड बहार निकाला और मेरे जीभ पर अपने लण्ड का पाणी गिराने लगा.  मैंने नीचे अपने चुत से स्वप्निल का लण्ड कस के पकड़ लिया और वह भी..उसी समय..आह मेरी रानी..संध्या ..ले ले..करके .. उसका लण्ड मेरी चुत में झटके से  गरम पाणी का फंवारा उड़ाने  लगा. स्वप्निल ने कही झटके दिये और मेरी चुत के अंदर अपना सारा वीर्य डाल दिया. वह मेरे ऊपर लेट गया. मैं भी बंटी के लण्ड से हर एक  बून्द अपनी जीभ से चाट रही थी, बंटी के पानी का स्वाद मुझे मादक लग रहा था. किसी दूध या शहद की तरह मीठा लग रहा था. मेरे लिये यह उसका तीर्थ प्रसाद था. बंटी का लण्ड अभी भी खड़ा था ओर मैं किसी लॉलीपॉप की तरह उसे मुँह में चूस कर उसका स्वाद ले रही थी. 

हम तीनों अब थक गए थे. स्वपनिल ने फिर से मुझे उसके भारी भरकम शरीर के ऊपर उठा लिया और बैडरूम में लाकर मुझे बिस्तर के बीच में सुला दिया. इतनी चुदाई से मेरे पाँव कांप गये थे, मैं ठीक से चल नहीं पा रही  थी. स्वपनिल मेरे बाजू में  लेट गया. उसने मुझे अपने दोनों हातों और पैरो के बीच बाहें  फैला कर  मेरे शरीर को पूरा अपने शरीर से जकड लिया. मैंने भी उसके भुजाओं पर अपना सर रख दिया और उसके ओंठों पर अपने ओंठ रखकर सोने लगी. बिस्तर के दूसरे छोर से बंटी आया और मुझे पीछे से चिपक गया. उसने उसका एक हाथ मेरे सीने पर मेरे मम्मों पर रख दिया. मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और उसके हात को अपने ओंठों पर रख दिया. पीछे से बंटी का लण्ड मेरी गांड की फांको मैं धस  कर मेरे चुत को छू रहा था. मैंने फिर से उसके हात को चुम लिया और वैसे ही उसके हात पर अपने ओंठ लगाकर सो गयी. मेरा कनेक्शन अब पूरा हो गया था.

२ दिन तक स्वप्निल और बंटी ने मुझे बहुत प्यार किया. वह दोनों थे, मैं अकेली, उन दोनों को संतुष्ट करना आसान नहीं  था. वह रात की गाड़ी से वापस चले गये क्यूंकि दूसरे दिन माँ - पापा वापस आने वाले थे.. 

जाने से पहले स्वपनिल ने मुझे सोने की अंगूठी गिफ्ट दी और बंटी ने मुझे २ सोने के कंगन दिये. मेरे आँखों मैं आंसू थे. मैंने कहा  - इसकी क्या जरुरत थी, तुम दोनों तो अभी कमाते भी नहीं. जब कमाओगे तब देना.  जो चाहे दे देना . बंटी ने कहा -  ये उनके पॉकेट मनी की सेविंग्स से ली. कहा की उन्होंने दिल से मुझे यह गिफ्ट दिया है, मना मत करना. स्वपनिल ने कहा - संध्या तेरे सिवा हमारा ओर कौन है. हम हमारी ख़ुशी से दे रहे. तेरे कारण हमें कितना आनंद मिला हैं. . मैंने कहा - ठीक है अब तो ले लेतीं हूँ, पर आगे से कोई गिफ्ट नहीं लुंगी. मुझे उनके कमाई का गिफ्ट लेने मैं कोई हर्ज नहीं है. दोनों मुझे बाँहों मैं लेकर आगे पीछे लिपट गये ओर प्यार से मुझे चमन लगे. मेरे आँखों मैं पानी था. बंटी ने मेरे आँखों पर चुम लिया और मेरे आँखों का पानी चाट लिया कहा - रोना नहीं पगली, तू जब बुलायेगी हम आ जायेंगे.

मैं बहुत थक गयी  थी..जल्दी से सो गयी. 

उस दिन सुबह सुबह मुझे सपना आया - बंटी का तेजस्वी चेहरा, उसकी शरारती कामिनी आंखें, वह मेरे पास नंगा बैठा था, उसका कसा हुआ गठीला बदन, उसका लम्बा मोटा, काला ८ इंच का नाग, वह मुझे प्यार कर रहा था.

मैं नींद से तड़प कर उठी .. मेरा शरीर पसीने से भीगा था, मेरी चुत फड़फड़ा रही थी, शरीर कांप रहा था. चुत से पानी बह रहा था. पहली बार मैंने सपने मैं किसी मर्द को देखा था, प्यार किया था. क्या था यह ? और हरीश..? नहीं मैं तो हरीश से प्यार करती हूँ. पर हरीश के साथ यह अनुभूति क्यों नहीं हुई ?
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#68
पार्ट २०: सरदार ओर मेरी हवस ! 

मेरा इंजीनियरिंग का दूसरे साल का फाइनल सेमिस्टर शुरू हो गया था. हरीश अब फाइनल ईयर मैं था. उसने बहार फॉरेन यूनिवर्सिटी मैं आगे की पढाई की तयारी कर ली थी. हमें पता था की अब हम कुछ ५-६ महीने ही साथ रहेंगे, और फिर वह अपने आगे की पढाई या जॉब के लिए कॉलेज से पास होकर चला जायेगा. मुझे बड़ी बेचैनी हो जाती. क्या हम अलग हो जायेंगे ? या हमारा प्यार हमें जुदा नहीं कर पायेगा. उस ज़माने  में ना आज की तरह  इंटरनेट था, सोशल अप्प्स थे ना मोबाइल, ना फ़ोन. हमरा संपर्क सिर्फ लेटर / पत्र या आसपास कही पर फ़ोन होगा तो वहा से होगा. उस ज़माने में टेलीफोन की लैंडलाइन  हुआ करती और वह भी महंगा होता और सिर्फ कुछ गिने चुने आमिर लोग ही उपभोग पाते. 

फाइनल ईयर परीक्षा ख़तम होते ही हरीश आगे पढ़ने के लिए USA चला गया. मैं बहुत उदास रहने लगी. हरीश लगभग रोज मुझे चोदता था ओर अब मेरी चुत प्यासी थी. हरीश ने मुझे वहा से चिट्ठी लिखी. पर उन दिनों इंटरनेशनल लेटर भी २ हफ्ते में मिलते थे. मेरा तीसरा साल चालू हो गया था. बारिश के दिन थे. एक दिन राजवीर ने मुझे क्लास में कहा - संध्या क्या यार इतनी उदास हो. बस २ साल और फिर तू भी USA  चले जाना. हरीश के पास . मैंने कुछ जवाब नहीं दिया. राजवीर ने कहा - हम सब दोस्त - अगले वीक-एन्ड पर एक दिन का पिकनिक प्लान कर रह है. तू भी आ रही है और माना नहीं करना. मैं तुझे ऐसे उदास नहीं देख सकता.

राजवीर एक हैंडसम पंजाबी सरदार था. उसकी पगड़ी और दाढ़ी मैं एकदम मरदाना लगता. किसी शेर की तरह हट्टा-कट्टा लगता था. साढ़े छह फ़ीट ऊँचा और बहुत ही मजाकिया स्वभाव का था. क्लास में पॉपुलर था. मुज़से बहुत फ़्लर्ट करता था और बहुत बार मुझे अपने प्यार का इजहार बिंदास पुरे क्लास के सामने करता था. अगले हफ्ते हम सुबह ही तयार हो गए. ६-७  लड़के और ३ लड़किया  ऐसे हमारा ग्रुप था. एक ७ सीटर SUV  बुक की थी और हम बड़े मुश्किल से ठूस कर गाड़ी मैं बैठे. आखिर की सीट मैं पैरो के बिच जगह थी, राजवीर ने कहा - संध्या तू आराम से सीट पर बैठ, मैं यहाँ सीट के निचे बैठ जाता हूँ. और वह एकदम मेरे पैरो से चिपक कर निचे बैठ गया. मैंने कहा - राजवीर ऊपर ही बैठो. कुछ घंटे के बात है, एडजस्ट कर लेंगे. राजवीर - अरे नहीं संध्या मैं तुम्हे तकलीफ मैं नहीं ले जाऊंगा. आराम से बैठो. ३ घंटे का रास्ता था. मैंने स्कर्ट और टॉप पहना था और मेरे पाँव पर स्कर्ट के अंदर लेग्गिंग्स पेहेनी थी. मेरा स्कर्ट घुटने तक था. बीच में  रोड काफी ख़राब था, बैलेंस बनाने के लिए राजवीर मेरे पैरों को पकड़ लेता था. गाड़ी मैं जोर शोर से म्यूजिक चल रहा था. बियर की बोतल आगे से पीछे पास हो रही थी. हम सब मस्ती मैं थे. बीच मैं ही अगर गाड़ी को ब्रेक लगता , या स्पीड ब्रेकर आता, गिरने से बचने के लिए राजवीर मेरे पैरो को पकड़ लेता. ख़राब रोड की वजह से गाड़ी ड्राइवर धीरे धीरे ड्राइव कर रहा था. राजवीर का हाथ मेरे घुटने पर था. एक बड़ा गड्ढा आया और गाड़ी हिल गयी.. उसके साथ ही राजवीर का हात मेरे स्कर्ट के अंदर जांघों पर चला गया. उसने अपना हात वही रहने दिया. उसके बड़े बड़े हात और उंगलिया लेग्गिंग्स के ऊपर से मेरे जंघा पर गोल गोल घूमने लगे. बारिश का mausam था, बहार बारिश की वजह से अँधेरा  था. गाड़ी मैं भी अँधेरा था,  राजवीर इसी का फायदा उठा रहा था. राजवीर के बड़े हातों का स्पर्श मुझे अच्छा लग रहा था. मैंने भी जानबूझ कर ध्यान नहीं दिया और उसे रोका भी नहीं. राजवीर का हात धीरे धीरे मेरी जांघों पर ऊपर की तरफ जा रहा था. मेरे दोनों पैर फैले हुए थे और उनके बीच मैं राजवीर बैठा था, राजवीर को आसानी से स्कर्ट के अंदर मेरी पैंटी तक का रास्ता मिल गया. राजवीर अब धीरे से मेरी चुत को कपड़ों की ऊपर से सहला रहा था.  मेरे चुत से अब पाणी बह रहा था. राजवीर बड़े प्यार से मेरी चुत को मसल रहा था. मेरी चुत के पाणी से अब मेरी पैंटी और उसके ऊपर की लेग्गिंग गीली हो गयी. राजवीर के हात को मेरे चुत का चिप-चिपा  पाणी लगा. उसने वह अपना हात बहार निकल कर मेरी तरफ देख कर चाट लिया और मुस्करा कर मुझे आँख मार दी. उसने फिर से उसका हात मेरी स्कर्ट के अंदर डाल दिया और फिर से मेरी चुत को सहलाने लगा. उसने मेरी स्कर्ट  के अंदर लेग्गिंग ओर पैंटी निचे खींचने को कोशिश की ओर अपना हात मेरी पैंटी के अंदर डालना चाहा. पर लेग्गिंग्स बहुत टाइट फिट थी..उसको बड़ी दिक्कत हो रही थी. तभी मैंने देखा की हम हमारे पिकनिक स्पॉट के पास आ रहे है. मैंने नखरे दिखा कर उसका हात पकड़ लिया और झटक दिया. उसको गुस्से से देखा. राजवीर सकपका गया. उसको लगा कही मैं तमाशा ना खड़ा कर दू. तभी हम सब निचे उतरने लगे.

पिकनिक मैं मैंने जानबूझ कर राजवीर से कोई बात नहीं की. वह २-३ बार मेरे पास आकर सॉरी कहने लगा. दोपहर को मुझे अकेली देख कर उसने कहा - संध्या सॉरी यार. अब तो मुज़से बात करो. देखो मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ. यह बात तू ही नहीं पूरी क्लास जनता है. मैं खुद को काबू मैं नहीं रख पाया. प्लीज मुझे माफ़ कर दो. आगे नहीं करूँगा. मैंने कहा - ठीक है, माफ़ कर दिया. पर आगे से ध्यान रखना. तेरी गर्ल फ्रेंड अनीता मेरी रूम पार्टनर है. वह क्या सोचेगी? राजवीर ने कहा - अनीता को में प्यार नहीं करता. तुम उसकी रूम पार्टनर हैं इसलिए में उसको भाव देता हूँ. प्लीज मुझे माफ़ कर दो. मैंने कहा.. वह सब ठीक हैं पर अब तुम जाते वक्त तू निचे नहीं बैठोगे. ऊपर सीट पर बैठोगे. राजवीर ने मजाक मैं कहा - फिर तू कहा बैठेगी ? मेरी गोदी मैं? मैंने भी हंसकर कहा दिया - हाँ  तेरी गोदी मैं बैठूंगी. वहा अच्छासा टॉयलेट देखकर मैं अंदर चली गयी.

पिकनिक से वापस आते वक्त शाम हो गयी थी, अंधेरा था. राजवीर  मेरी साइड डोर के पास बैठ गया. आगे पीछे बैठकर हमने आधी - आधी सीट शेयर कर ली. पर जब पहाड़ों से गाड़ी चलने लगी तब हमें बड़ी दिक्कत हो रही थी. मैं बार बार राजवीर की छाती से टकरा जाती या निचे खिसक जाती. राजवीर ने  टी शर्ट और बरमूडा पहनी थी. उसकी काले बालों से भरी छाती और जांघें मुझे आकर्षित कर रही थी. गाड़ी में म्यूजिक बज  रहा था और गाने  का शोरगुल हो रहा था. राजवीर ने मेरी कान में  कहा - तू मेरी गोदी मैं बैठने वाली थी. मैंने भी - हां कहा कर उसके जांघों पर अपनी गांड फैला कर बैठ गयी. राजवीर को यह अपेक्षित नहीं था. रास्ता उबड़ खाबड़ था. राजवीर ने अपने हात आगे कर के मुझे पकड़ लिया. उबड़ खाबड़ रोड पर मैं राजवीर के जांघों पर उछल रही थी .. और मुझे उसके मोठे लण्ड का आकर महसूस होता. मैंने राजवीर का एक हात लेकर मेरी जंघा पर रख दिया. राजवीर खुश हो गया. मेरी जंघा नंगी थी. मैंने पहले ही टॉयलेट जाकर मेरी लेग्गिंग उतर दी थी. राजवीर ने मेरे जांघों पर हात फेरने लगा. वह धीरे से उसका हात  मेरी चुत के तरफ ले जाने  लगा. उसके हात पर मेरी गीली चुत का पाणी लग गया. राजवीर ने मेरे कान मैं कहा - तू तो नंगी हो गयी. दिन भर तूने बड़े नखरे किये, मुझे तड़पाया. 
मैंने टॉयलेट मैं अपनी पैंटी भी उतार कर पर्स में डाल दी थी.
मैंने कहा - तो अब तुझे कौन रोक रहा है.  
राजवीर ख़ुशी से चहक उठा. वह स्कर्ट के अंदर हात डाल कर मेरी चुत से खलने लगा, सहला कर मसलने लगा.  बाकी सब लोग मजे कर रहे थे, दारू पी रहे थे.सब लोगों के सामने हमारा सीक्रेट खेल चल रहा था. हम दोनों बड़े गरम हो गए थे. मुझे मेरी गर्दन पर राजवीर की गरम सांसे महसूस हो रही थी. वह मेरी गर्दन को पीछे से चुम रहा था. हलके से राजवीर ने अपनी एक ऊँगली मेरी चुत के अंदर डाल दी. उसकी लम्बी मोटी ऊँगली किसी लण्ड से कम नहीं थी.  शाम हो गयी थी. गाड़ी में अंधेरा था. एक जगह राजवीर ने मुझे गोदी से उठा दिया और एक झटके में  उसकी बरमूडा निचे पैरो पर खिसका दी और मुझे फिर से अपनी नंगी गोदी मैं बिठा दिया.

मुझे मेरी गांड पर राजवीर का मोटा लण्ड फनफनाता महसूस हुआ. वह बहुत मोटा और लम्बा था. शायद हरिया से बड़ा और मेरे जीवन का अब तक सबसे विशाल लण्ड था. हम कुछ ज्यादा नहीं कर सकते थे. क्यों की बाजू ओर सामने  की सीट बैठे दोस्तों को भनक लग जाती. मैं मेरी गांड से राजवीर के लण्ड को ऊपर से मसल रही थी. मेरी चुत के द्वार पर राजवीर के लण्ड का सूपड़ा दस्तक दे रहा था. मेरी चुत के पाणी से उसका लण्ड गिला हो गया था. एक जगह राजवीर ने मेरी गांड पकड़ कर ऊपर उठा दिया और अपने लण्ड को मेरी चुत के ऊपर सटा कर मुझे उसके ऊपर बिठा दिया. उसका लण्ड मेरी गीली चुत मैं अंदर तक घुस गया. इतना मोटा और बड़ा लण्ड.. किसी खूंटी की तरह मेरी चुत में ठूस गया. मैं दर्द से चीखती, उसके पहले ही राजवीर ने एक हात से मेर मुँह को  दबा दिया और चुप करा दिया.

कुछ देर वैसे ही  उसके लण्ड पर बैठ कर मेरा दर्द अब कम हो गया था. पर गाड़ी के धक्के के सात-सात , राजवीर मुझे उछाल देता और अपने लण्ड को आगे पीछे धक्का देकर मेरी चुत को चोद देता. राजवीर पीछे से मेरे कानों में  गन्दी बातें करके शरारत कर रहा था. शोरगुल मैं किसी को पता नहीं चला. मैं आगे बैठी थी इसलिए कुछ बोल नहीं पा रही थी. 

राजवीर: आह. ! संध्या तेरी फुद्दी की भट्टी कितनी गरम है.मेरे लोडे को  जला देगी.
राजवीर: संध्या इस मौके का मैं २ साल से इंतजार कर रहा था. तेरी फुद्दी तो मस्त है , गरम पाणी का झरना है.
राजवीर: बेहेन की लोड़ी.. तेरी फुद्दी  इतनी गरम हैं तो गांड कितनी गरम होगी. तेरी फुद्दी  के बाद तेरी गांड  भी मरूंगा.

वह मुझे अपने दोनों हातों से मेरी गांड पकड़ कर गाड़ी के धक्कों के सात मेरी गांड अपने बड़े लोडे पर उछाल रहा था. मुझे उसके गन्दी बातों से और पब्लिक सेक्स से मजा आ रहा था. मेरा उन्माद बढ़ रहा था. मैंने अपने ओंठ दबा दिए और ...आगे ले सीट को पकड़ लिया. मैं थर-थरा कर राजवीर के लण्ड पर झड़ गयी. मेरी चुत ने कही बार राजवीर के मोटे लण्ड को कस कर जकड लिया और उसको अपने गरम पाणी से भिगो दिया. राजवीर भी मेरी चुत की इस हरकत से सीट पर पीठ दबाकर पीछे बैठ गया और ..उसका लण्ड मेरी चुत मैं फंवारा उड़ने लगा. मुझे मेरी चुत मैं उसके गरम पाणी का अहसास हुआ. एक के बाद एक करके  अनेक झटके उसके लण्ड ने मेरी चुत के अंदर लगाये. हम बहुत देर तक वैसे ही बैठे रहे. उसका लण्ड अभी भी तना हुआ था. ना उसका लण्ड मेरी चुत से जुदा होना चाहता था , ना मेरी चुत उसके लण्ड से बिछडना चाहती थी.   

कॉलेज पहुंचने तक मैं वैसे ही उसके लोडे पर बैठी रही. इस दौरान वह दूसरी बार मेरी चुत में उसका पाणी उड़ाकर भिगो चुका था और मैं भी ४ बार झड़ गयी थी. 

हॉस्टल पहुँच कर में कमरे में जाकर सो गयी. मेरी रूम पार्टनर अनीता ने पूछा - कैसी रही पिकनिक. उसकी एग्जाम थी, इसलिए वह आ नहीं पायी थी. राजवीर ने भी बड़े सोच समाज कर यह पिकनिक की प्लानिंग की थी. उसने सोचा था पिचकिनीक पर किसी अच्छे सुनसान स्पॉट पर मुझे ले जाकर चोदेगा. उसके हिसाब से गाड़ी के अंदर साब दोस्तों की उपस्थिति में सेक्स का अनुभव उसके सोच ओर प्लानिंग से कही  गुना अच्छा था. मैंने अनीता से कहा  - पिकनिक ठीक थी , तुझे आना चाहिए था. राजवीर को तेरी कमी बहुत खल रही थी. बड़ा उदास था. अनीता को कैसी बताती कि - मैं उसके बॉयफ्रेंड राजवीर से चुदकर आयी हूँ. 

मैंने कपडे भी नहीं बदले और वैसे ही सोने लगी. मेरी चुत से अभी भी राजवीर का पाणी बह रहा था. मैं सोचनी लगी - यह क्या था ?  ना कोई प्यार, ना कोई वादा , वचन, ना कोई चूमा , ना कोई foreplay .. सिर्फ शुद्ध चुदाई .. क्या यह सिर्फ मेरी हवस ओर लालसा थी. ?   क्या यह गलत था ?
 
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#69
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#70
Mind-blowing update... Soch se zyada behtar...
Meri Zindagi Ke Kuch Sachche or Kuch Masale ke sath Qisse..

Meri Zindagi Ki Dastan
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#71
(22-10-2022, 09:51 PM)NehaStoryTeller Wrote: Mind-blowing update... Soch se zyada behtar...
thank you nehaji
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#72
पार्ट २१: मेरी बढ़ती हवस ! 

दूसरे दिन मैं कॉलेज गयी. क्लास में  सब लड़के लड़किया आ चुके  थे. सर अभी आने के थे. राजवीर मेरे बाजू वाली सीट पर आकर बैठ गया. अनीता मुझे दूर से घूरने लगी. मैंने कहा - मैं तो अच्छी हूँ.. पर तू  खुद अपना देख ले..अभी अनीता के पास जाकर बैठ जा. वह मुझे गुस्से से घूर रही है. उसने कहा - तू अनीता की चिंता मत कर. वो रंडी मेरे लण्ड की दीवानी है. रोज कॉलेज की टेरेस पर मुज़से चुदवाती है. आज भी चोद दूंगा उसे..उसकी ख़ुशी उसी में  है. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक !

उस दिन राजवीर पूरा समय मेरे साथ  बैठा. जब भी कोई शिक्षक पढ़ाता था, वो मेरी जांघों पर अपना हात फेर देता था. आज मैंने जीन्स ओर टॉप पहना था. इसलिए उसे खास मजा नहीं मिल रहा था. राजवीर ने कहा - संध्या कल से हम सबसे पीछे वाले बेंच पर बैठेंगे और तू भी रोज स्कर्ट पेहेन कर आना ओर वो भी बिना पैंटी के. मैंने उसे  मना कर दिया. उसने कहा - प्लीज संध्या , बहुत मन कर रहा तुझे फिर से चोदने का, तेरी चूत एकदम मस्त रसीली है. मैंने उसे कहा - मुझसे ऐसी बातें मत कर. ऐसे कुछ नहीं होगा अब.  कल जो हुआ वह पहली और आखरी बार था. तू जा कर अनीता को चोद. मेरे से कुछ उम्मीद मत रख. .
मैं  गुस्से से उठी. और लाइब्रेरी चली गयी. घर जाते वक्त मैंने देखा राजवीर और अनीता सीढ़ियों से टेरेस की तरफ जा रहे थे. राजवीर एक पंजाबी सिख सरदार था. उसके लिए लाइफ बड़ी आसान थी. जो मन में आता  वही करता और बोल  देता. दिमाग पर जोर नहीं देता. कमीना पर सच्चा और बिंदास था. उसकी यही बातें मुझे अच्छी लगती. कोई दिखावा नहीं, कोई झूट नहीं.. सीधी बात, ना कोई  बकवास !
रात को अनीता रूम पर आयी.. मेरे से बात नहीं की. उखड़ी उखड़ी थी. 
मैंने पूछा - क्या हुआ अनीता, सब ठीक है ना ?  
गुस्से  में बोली - तू राजवीर से दूर ही रहा कर. 
मैंने कहा - मैं किसी के पास नहीं जाती, वोही मेरे पीछे कुत्ते की तरह घूमता है. तू उसे संभाल नहीं सख़्ती  तो मुझे दोष मत दे. 
हमारा झगड़ा हो गया.

दूसरे दिन मैं खुद को रोक नहीं पायी और मैंने स्कर्ट पहन ली. रूम से कॉलेज निकलते वक्त मैं आखिर वक्त पर बाथरूम चली गयी और मेरी पैंटी भी निकाल ली. मैं कॉलेज पैदल चल के जाती थी. मुझे  खुले स्कर्ट के निचे से मेरी नंगी चुत पर ठंडी हवा लग रही थी. पता नहीं क्यों अच्छा लग रहा था, आजाद लग रहा था, रोज की तरह आज भी मुझे कॉलेज के फर्स्ट ईयर से लेकर फाइनल ईयर के सब लोंडे घूर कर वासना भरी नज़रों से चोद रहे थे. आज मुझे अंदर नंगी होने की वजह से एक अच्छी चुदाई वाली अनुभूति हो रही थी.

मुझे देखकर राजवीर खुश हो गया. वह भी सिर्फ बरमूडा और टी शर्ट में था. मैं आखरी बेंच पर जाकर बैठ गयी. वह मेरे बाजु आकर बैठ गया. कहा - अरे वाह !  संध्या आज गजब की लग रही हो. और थैंक यू .. तू मुझे ऐसे ही सरप्राइज दे देती है. 
मैंने पूछा - अनीता क्यों इतनी भड़की है ?  मुज़से झगड़ा कर डाला रात को. 
राजवीर - छोड़ो उस रंडी को. फ़िक्र मत कर. कल उसको कॉलेज की टेरस पर बहुत चोदा. पर चोदते वक्त मेरे मुँह से गलती से तेरा नाम निकल रहा था.. आह संध्या ! ..क्या मस्त चुत है.. !  संध्या तेरी बड़ी गांड मारनी है  !... इस वजह से वह भड़क गयी. 
मुझे हंसी आ गयी. हम दोनों हँसने लगे. अनीता दूर से हमें देख रही थी. मनीष सर क्लास में  आ गये. मनीष सर बड़े सक्त ओर कठोर अनुशाषण वाले  थे , पर उनकी पर्सनालिटी भी बहुत अच्छी थी.. ६ फ़ीट हाइट , लम्बे अमिताभ बच्चन जैसे बाल, ओर बहुत हॉट थे, ४५ साल की उम्र मैं भी वो जवानी के उफान पे थे ओर एकदम जॉन अब्राहम की तरह दिखते थे. वह कपडे भी टाइट पहनते, जिससे  उनकी बॉडी, जांघें , गांड ओर लंड का मोटा उभार साफ दीखता था. बहुत सारी कॉलेज की लड़किया उनपर मरती थी ओर रात को सोते वक्त उनको याद करके अपनी चुत मसलती थी. उन्हें शायद यह पता था,इसलिए वह कॉलेज बाद स्टाइल मैं आते..टाइट  फिटिंग्स के कपडे ..परफ्यूम लगा कर बड़े बन-ठन कर आते. 

मैं पीछे बेंच पर दिवार को लग कर बैठी थी ओर मेरी दायी बाजु राजवीर था. राजवीर ने अपना बाया हात मेरी जांघों पर रख दिया ओर धीरे से उसका हात मेरी जांघों के ऊपर फेरने लगा. मैंने भी अपना दाया हात उसके बालों से भरी जांघों पर रख दिया ओर ऊपर की तरफ सहलाने लगी. राजवीर का काला लंड बरमूडा की बायीं पैर की तरफ से बहार निकल आया था. मैंने आज पहली बार उसके लंड को देखा था , उस भारीभरकम लण्ड से राजवीर ने दो दिन पहले मेरी मुलायम चिकनी  चुत की  २ घंटे कुटाई की थी. इतना बड़ा ओर मोटा लंड मैं पहली बार देख रही थी. मुज़से रोका नहीं गया. मैंने उसकी बरमूडा ऊपर उसके जांघों तक कर दी ओर बड़े-बड़े मोटे बालों वाले टट्टे पकड़ लिए. उसके लंड के ऊपर बहुत सारा काले झाटों का जंगल था. इतने झाटों वाला लंड ओर बड़े टट्टे  मैंने पहली बार देखा था. मेरे हातों पर राजवीर का झाटों वाला  लंड ओर टट्टे  बड़े मस्त लग रहे थे. तब तक राजवीर ने भी अपनी मोटी उंगली  मेरी चुत के अंदर डाल दी थी. 
मनीष सर क्लास में पढ़ा रहे थे. हम दोनों उनकी तरफ देख कर, चुपके से निचे अपने हातों से चुत ओर लंड के खेल का मजा ले रहे थे. मैंने मनीष सर के हात को देखा.. उनकी हात का पंजा ओर उंगलियां भी बड़ी थी. मुझे एक पल के लिये लगा की मेरी चुत में राजवीर की नहीं , मनीष सर की उंगली  है. मनीष सर आदत अनुसार पढ़ाते वक्त  क्लास की बिच की जगह से चलकर आखिर बेंच तक आते ओर फिर से आगे ब्लैकबोर्ड की तरफ चले जाते. इस बार वह बहुत देर तक पीछे खड़े रहे. 
फिर उन्होंने कहा - राजवीर .. बता मैंने  X  Y  Z   .. के बारें मैं क्या पढ़ाया !. 

राजवीर हड़बड़ा गया. उसने झट से मेरी चुत ओर स्कर्ट से हात निकाला ओर मैंने भी उसके लंड पर से हात निकाल दिया. उसको कुछ जवाब नहीं आ रहा था. पूरी क्लास उसको देख रही थी. वह किताब अपने बरमूडा के आगे हात में लेकर खड़ा हो गया. उसके लंड ने बरमूडा में बड़ा तम्बू  बना दिया था. वो उस तम्बू को किताब आगे पकड़कर छिपाना चाहता था. शुक्र था की मनीष सर ने उसे डांट कर जल्दी बिठा दिया, नहीं तो पूरी क्लास को उसका खड़ा तम्बू दिख जाता. क्या हमारी चोरी पकड़ी गयी थी ? 

जातें वक्त मनीष सर ने मुझे बुलाया - संध्या तुम्हे कुछ प्रोजेक्ट वर्क देना चाहता हूँ. मैं ५ वे  पीरियड के बाद फ्री हूँ, डिस्कशन के लिये आ जाना. मैंने हाँ कह दिया पर मन में कही सवाल थे ओर डर भी था. ५ वे पीरियड के बाद मैं  मनीष सर के केबिन में गयी. उनका कमरा बहुत बड़ा था. एक बड़ा सा टेबल, टेबल की आगे २-३ खुर्ची ओर उसके पीछे एक बड़ा सा सोफा ओर टी टेबल था. में दरवाजे पर नॉक कर के अंदर चली गई. सर ने मुझे देखा .. वह कुछ नोट्स देख रहे थे. उन्होंने मुझे सोफे पर बैठने कहा. में अपना स्कर्ट एडजस्ट कर के बैठ गयी. थोड़ी देर में मनीष सर मेर पास आकर सोफे पर बैठ गये. वह मुझे गहराई से देख रहे थे. में उनसे नजर नहीं मिला रही थी. 
उन्होंने मेर पास आकर कहा - मेरी तरफ देखो संध्या. 
मैंने उनकी नीली आँखों से नजर मिला ली. कितने खूबसूरत थे मनीष सर. मेरी चुत में खुजली हो रही थी, वो गीली हो रही थी. मुझे बड़ी शर्म आ रही थी. 
सर ने कहा - क्लास में तुम राजवीर के साथ क्या कर रही थी संध्या. 
मैं कांप गयी .. मेरे ओंठ खुल गये.. में कुछ नहीं बोल पा रही थी. 
मैंने हिम्मत कर के कहा - कुछ नहीं ..सर 
मनीष सर ने कहा .. सच बोलो..मुझे झूट पसंद नहीं.. मैंने सब देखा. ! 
सर  अभी भी मेरे आँखों से नजरे मिला कर बैठे थे. मैं उनकी  खूबसूरत आँखों की झील में डुब रही थी.  
मैंने कहा .. सच...!
फिर मेरे ओंठ थरथराने लगे .. मेरे मुंह से शब्द नहीं निकाल रहे थे. . तभी सर ने एक हात से मेरा स्कर्ट पकड़ कर ऊपर कर दिया .. में झट से खड़ी हो गयी. उन्होंने मेरा स्कर्ट पूरा कमर के ऊपर उठा लिया ओर बोले - कुछ नहीं ? फिर ये क्या है ? 
सर अभी भी सोफे पर बैठे थे. मैं उनके बहुत पास खड़ी होने की वजह से मेरी नंगी चुत अब बिलकुल उनके चेहरे के पास थी. में एक बूथ बन के खड़ी थी. कांप रही थी. मेरा खुद पर से  नियंत्रण खो रहा था. सर ने जैसे मुझे वशीकरण कर लिया था. मैंने ना मेरी स्कर्ट निचे की, ना मेरी चुत को अपने हातों से छिपाया. २ मिनट तक सर वैसे ही मेरी नंगी चुत को देखते रहे. मेरी चुत फड़फड़ रही थी. मेरी चुत से पाणी निकल रहा था. मनीष सर के ओंठ कप रहे थे. उन्होंने आपने ओठों पर से अपनी जीभ फेर ली. उनके मुँह मैं पानी आ रहा था. मनीष सर ने  धीरे से उनकी नाक मेरी चुत पर रख कर एक जोर से साँस ले कर सूंघ ली. 
बोले - आह संध्या क्या खुशबू है तेरी पुच्ची की, इसको रोज ऐसे ही साफ़ - चिकनी रखती हो?
मैंने कहा : हाँ सर .. 
मुज़से ओर आगे कुछ बोला भी नहीं जा रहा था. मेरी जुबान सुख रही थी. मनीष सर मराठी थे. मराठी में  चुत को पुच्ची कहते है.
मनीष सर: तेरी पुच्ची  बहुत सुन्दर है .. बिलकुल तेरे जैसी. क्या में इसको छू कर देख लू. 
मैं: हाँ  सर
सर : वाह संध्या . तेरी पुच्ची  तो मस्त लाल टमाटर जैसे फूली है..बहुत चिकनी है. क्या मैं इसके सात खेल सकता हूँ 
मैं: हाँ  सर 
मनीष सर मेरे चुत को प्यार से सहलाने लगे. उन्होंने मेरी चुत के अंदर धीरे से सपनी एक उंगली डाल दी.
मैं ; आह सर...उम्म्म .. (सिसकियाँ लेने लगी)
मनीष सर: संध्या ! क्या तुम्हे अच्छा लग रहा ?  क्या तुम वापस जाना चाहती हो ?
मैं: हाँ सर बहुत अच्छा लग रहा. मैं नहीं जाना चाहती हु.
सर खुश हो गये. बोले: संध्या मैंने तेरी पुच्ची देख ली. क्या  तू भी मेरा बुल्ला (बड़ा लण्ड)  देखना चाहेगी.
मैंने कहा - हाँ सर ..
सर ने मुझे अपने  पास सोफे  पर बिठा दिया .. ओर उठकर रूम को अंदर से बंद कर दिया. फिर वापस आकर उन्होंने..अपने जूते, पैंट ओर फिर उनकी अंडरवियर निकाल दिया  ओर नंगा हो कर मेरे बाजू बैठ गये. सर का लण्ड शानदार था. एकदम साफ़, चिकना , ७ इंच का कटा लण्ड था गुलाब सुपडे वाला , बाल साफ़ किये हुए , ओर मस्त बड़ी बड़ी गेंद जैसे गोटियां थी. सर ने मेरे दोनों हात पकड़ कर अपने गरम बुल्ले पर रख दिये. मैं उनके लण्ड से खेलने लगी.
मनीष सर: संध्या कैसे लगा मेरा बुल्ला ? पसंद आया तुझे?
मैं : हां सर, बहुत अच्छा है
सर: राजवीर से अच्छा है ? 
मैंने झूट बोल दिया : हाँ राजवीर से अच्छा है ओर बड़ा है. 
सर एकदम खुश हो गये. मर्दों को जीवन में  सबसे बड़ी ख़ुशी  - उनके लण्ड की तारीफ सुन के होती है. मुझे प्यार से पास खींचकर वह मेरे ओंठ चूमने लगे. दूसरे हातों से उन्होंने मेरी टॉप निकाल दी थी. ओर मेरी ब्रा खोल रहे थे. वयस्क मर्दों की यही खूबी होती है. उन्हें जल्दी नहीं होती . बड़े प्यार ओर इत्तेमान से  धीरे धीरे प्यार करके चोदते है. हर औरत इसी तरह का प्यार ओर चुदाई चाहती है. जल्दी उन्होंने मुझे पूरा नंगा कर दिया - सिर्फ स्कर्ट रहने दिया . उन्होंने मुझे अपनी गोदी मे बिठा दिया ओर मेरे ओंठ चूसने लगे. मैंने भी उनकी शर्ट निकाल  दी . उनकी बालों वाली छाती मुझे पागल कर रही थी. मनीष सर को नंगा देख कर मैं खुश हो गयी  थी. मनीष सर को कॉलेज की हर लड़की सपने मैं नंगा कर के अपनी चुत मसलती थी. आज तो उन्होंने खुद मुझे मौका दिया था. मैं यह मौका गवाना नहीं चाहती थी.  मैंने बड़े प्यार से मनीष सर के ओंठ चूस लिये. फिर प्यार से उनके छाती को चूमने  लगी. मनीष सर के निप्पल्स बहुत बड़े ओर मोटे थे. ऐसे निप्पल्स मर्दों के मैंने पहली बार देखे थे. मैं उन्हें चाटने लगी ओर जोर से चूसने लगी. मनीष सर एकदम गरम हो गये.. आह....उम्म्म... करके उनका लण्ड मुझे निचे से मेरी चुत पर धक्के मारने लगा. मुझे मनीष सर की कमजोरी पता चल गयी. उन्हें ओरल सेक्स  (चुम्मा - चाटी)  में  ज्यादा मजा आ रहा था. मैंने एक दो बार उनके निप्पल्स को चूस के हलके से काट भी लिया. वो  उह,,,आह संध्या .. कर के करहा रहे थे. मैं निचे बैठकर उनके लण्ड को चाटने लगी. उनका पूरा लण्ड मैंने  धीर से मुँह के अंदर ले लिया. जीभ फेर कर , उनके लण्ड के छेद के अंदर जीभ डालने लगी. उन्होंने मेरा सर पकड़ लिया ओर जोर जोर से अपने लण्ड से मेरा मुँह चोदने लगे. मुझे लगा की वह जल्दी झाड़ जायेंगे. पर मनीष सर पुराने खिलाडी थे. उन्होंने अपना लण्ड मेरे मुँह से बहार निकाला ओर मुझे सोफे पर सोने को कहा.

मैं सोफे पर सो गयी. वह मेरे ऊपर ६९ की पोजीशन मैं आ गये. उन्होंने मेरी चुत पर अपने ओंठ रख दिये ओर अपनी जीभ से मेरी चुत चाटने लगे.  मनीष सर का लण्ड अब मेरे मुँह के पास था. मैंने उनका लण्ड अपने दोनों हातों से पकड़  लिया ओर सर को ऊपर उठाकर उनका लण्ड अपने मुँह में  ले लिया. सर बहुत प्यार से धीरे धीरे मेरी चुत के दाणे को चाट  रहे थे, अपनी जीभ फिरा कर मेरी चुत की मुन्नी से प्यार कर रहे  थे. मैं भी उनकी देखा देखि बहुत प्यार से उनके लण्ड के सुपडे को चूस रही थी. उनका लण्ड मेरी थूक से पूरा गिला ओर चिकना हो गया था. 

तभी मनीष सर ने अपने दोनों हातों से मेरी गांड ऊपर उठा दी ओर मेरी गांड चाटने लगे. वह मेरी गांड को काट देते ओर मेरी गांड की छेद पर जीभ से चाटने लगे थे. पहली बार किसी ने इतने शिद्दत से मेरी गांड चाटी थी. सर ने मेरी गांड के छेद पर अपने ओंठ रख कर उनकी पूरी जीभ मेरी गांड की छेद मैं डाल दी. मैंने भी उनकी देखा देखी कर के उनका लण्ड मेरे मुँह से निकाल लिया ओर उनकी गांड निचे करके उनके गांड को चाटने लगी. उनके गांड पर बाल थे ओर उनकी गांड का छेद बालों से भरा था. मैंने उनके गांड की छेद को अपनी जीभ से चाट  लिया ओर जीभ अंदर डालने लगी.
मनीष सर: आह संध्या .. क्या मस्त  मोटी गांड है तेरी. क्या महक हैं तेरी गांड की 
मैं ; सर .. बहुत अच्छा लग रहा ..आप बहुत मस्त गांड चाटते हो.
सर: आह..संध्या तू भी बहुत मस्त चाट रही मेरी गांड.
मैं: सर आप की गांड बहुत साफ़ सुथरी हैं. बहुत मस्त मरदाना खुशबु ओर स्वाद है.
मैं प्यार से पूरी जीभ अंदर बहार कर के सर की गांड का गुलाबी छेद चाटने लगी. सर की गांड सच मे बहुत साफ़ थी ओर सच मे उसकी महक ओर स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था. मुझे गरम कर रहा था. सर ने तभी मेरी गांड को चाटकर अपने दूसरे हात से एक जोरदार चांटा मेरी गांड पर मार दिया..ओर बोला - कामिनी.. ! .छिनाल..! गांड ..मटका कर रोज मेरे लण्ड को तरसाती है.
मैं..- आह सर.  सॉरी . मुझे नहीं मालूम था मेरी गांड ने आपके प्यारे लण्ड को इतनी तकलीफ दी. आप मेरी गांड को मार-मार कर  पिटाई कर दो .. सक्त सजा दे दो सर. 
सर. - . यह ले.. उम्...आह.. तेरी गांड तो लाल हो गयी. 
उन्होंने मेरी गांड पर एक..दो.. ऐसे कई चपाट मारे.. 
मैं -  उह  सर..दर्द होता है..उम्.....मारो सर..होने दो उसको लाल सर..मेरी कमीनी गांड को आज सजा दे दो.
ओर मैंने भी सर की गांड को हलके से दातों से चबा दिया. मेरे काटने से सर. - .आह..उफ़..  संध्या  ! कर के गरम आहें भरने लगे.  मैंने भी मौका देखा ओर सर की गांड पर एक चांटा जोर से मार दिया. 
वैसे ही सर बोले .- आह संध्या !  .. ओर जोर से.. 
मैं - हाँ  सर..आपकी गांड भी लाल हो रही हैं..इसकी अच्छी से पिटाई करती हूँ. आपने कठोर अनुशाषण से सब बच्चों को डरा कर रखा है. आपकी यही सजा है.
मैं सर की गांड पर जोर-जोर से चपाट मारते रही. 
सर भी..आह ..संध्या.. ओर..जोर से...उम्म्म...हाँ दे दो मुझे सजा.. आह.. अगली बार स्केल पट्टी ओर अपनी सैंडल से मारकर इसको सजा देना...सर उफ़..  आह करते रहे. 
मेरी गांड को निचे रखकर  कर वो अब मेरी चुत को चाटकर चुत का रस पी रहे थे.  मैं  भी उनके गांड पर चांटे मार मार कर थक गयी थी..पर उनकी प्यास बुझी नहीं थी.. मुझे मालूम था उनकी प्यास अब मेरे सैंडल या स्केल पट्टी से बुझेगी. 

मैंने उनका लण्ड फिर से पकड़ लिया. उनका लण्ड ..फूल कर फुफकार रहा था. मैंने धीरे से उनका लण्ड आपने मुँह में  लेकर पूरा अपने गले तक डाल दिया. 
सर..आह...संध्या ...क्या मस्त बुल्ला चुस्ती है तू
मैं : सर आपका बुल्ला हैं ही बहुत प्यारा , एकदम जबरदस्त
मनीष सर खुश हो गये : आह संध्या .. सर मत बोलो.. सिर्फ मनीष बोलो.
मनीष सर..अपनी गांड आगे पीछे कर के मेरे मुँह को चोद रहे थे. उनका पूरा लण्ड मेरे मुँह मैं ठूस जाता ओर उनकी गोटियाँ मेरे ओंठों के निचे  टकरा जाती. 
मैं : नहीं सर यह गलत है.. आप मेरे सर हो. मेरे से बड़े हो,
मनीष सर का लण्ड मेरे मुँह में धक्के पर धक्के दे रहा था..  ओर वो मेरी चुत का दाणा प्यार से चूस रहे थे.
मनीष सर.: संध्या हम दोनों बिस्तर पर नंगे है. नंगे लोग न बड़े होते न छोटे , सब एक समान ..आह संध्या तेरी मुन्नी (दाणा) कितनी रसीली  हैं.. 
मनीष सर ने हलके से मेरे चुत का दाणा ओंठों से दबा दिया. .
मैं: आह मनीष...! उम्म्म.........उह....करके झड़ गयी. मेरे शरीर ने कांप के कही झटके दिये. झड़ते वक्त मैंने भी मनीष सर के लण्ड के टोपे को जोर से चूस लिया ओर अपने होठों से दबा दिया.
मनीष सर: आह...ले ले मेरा पाणी संध्या .. पूरा पाणी पी ले . ओर उन्होंने पूरा पाणी मेरे मुँह मैं डाल दिया. मैंने उनको सिर्फ उनके नाम से  बुलाने से वो खुश हो गये थे. 
उनके लण्ड का पाणी खारा ओर गाढ़ा था. मैंने भी उनके लण्ड का सूपड़ा चूस चूस कर सारा पाणी पी लिया. मनीष सर भी अपनी जीभ निकाल कर मेरी चुत का पाणी चाट रहे थे. 
मनीष सर बड़े खुश हो गये: वाह संध्या मजा आ गया .. पहली बार किसी ने मेरे लण्ड का पाणी पिया. बता कैसे लगा.
मैं: मनीष आप के लण्ड का पाणी बहुत स्वाद भरा था. एकदम लाजवाब ओर गरम - एकदम आप जैसे. 
सर खुश हो गये. वह मेरी ऊपर कुछ देर लेटे रहे ओर मेरे चुत का पाणी चाटते रहे. मैंने भी उनका लण्ड अपने मुँह से तब तक बहार नहीं निकाला जब तक वह सिकुड़ नहीं गया था. 
सर सोफे पर बैठ गये. सर ने मुझे अपनी गोदी में  बिठा दिया ओर मुझे चूमने लगे. मेरे ओंठों पर अभी भी उनके लण्ड का पाणी लगा था. वह मेरे ओंठ चूसकर सब पाणी पिने लगे. उन्हें अपने लण्ड के पाणी का स्वाद मेरे मुँह से चखते हुए बड़ा  मजा आ रहा था. 
सर ने कहा : संध्या अब शाम हो गयी. वॉचमैन आता ही होगा. देखो आगे से ख्याल रखो. मुझे तेरे ओर राजवीर के खेल से कोई दिक्कत नहीं पर ओर किसी ने देख लिया तो बदनामी होगी. तेरा नाम ख़राब होगा...वगैरे ...वगैरे .. वह मुझे समजा रहे थे.
मैंने सर से कहा..सर सॉरी.. मैं आगे से ख्याल रखूंगी. पर मैं ऐसा नहीं करती तो आप मुझे कैसे मिलते? सर मुस्कुरा दिये. सर ने  पूछा - फिर से मिलोगी. 
मैं: हाँ  सर , आप मुझे बुला लेना जब भी आप फ्री हो. प्रोजेक्ट भी पूरा करना है ना. 
हम दोनों हंसने लगे. सर ने हँसते कहा - पर एक शर्त पर. तुम मुझे अकेले मैं मेरे नाम से बुलाओगी .
मैंने कहा - हां मनीष 
सर के सिकुड़े हुए लण्ड को देखकर मुझे पता लग गया था की सर एक पारी (inning ) के  खिलाडी है. हमने कपडे पहने, पर पैंटी नहीं होने की वजह से , स्कर्ट के अंदर अभी भी नंगी थी. जाने से पहले सर ने मुझे फिर से अपनी बाहों मैं भर लिया ओर एक लम्बा गुड बाय चुम्मा दिया ओर मेरे स्कर्ट के अंदर अपनी ऊँगली डाल दी. मेरी गीली चुत का रस अपनी ऊँगली से निकाल कर उन्होंने मुझे आँख मार दी ओर उनकी ऊँगली मुंह मैं डालकर चूसते रहे. सर क्लास में  जितने सक्त ओर कठोर थे, प्यारके मामले में इस उम्र मैं भी उतने ही ज्यादा रंगीन थे. 

मैं अपने कपडे ठीक ठाक कर के .. कॉलेज से बहार आयी ओर अपने हॉस्टल की तरफ जाने लगी. कॉलेज की टाइमिंग ख़तम हो गयी थी, सब घर चले गये था, सुनसान था. कैंटीन के सामने मुझे राजवीर अकेला खड़ा मिला. राजवीर ने कहा - संध्या कहा थी. कब से तुझे ढूंढ रहा था. 
मैंने कहा - यही लाइब्रेरी मैं थी. उसने कहा - मैंने तुझे वहा भी ढूंढा , तू दिखी नहीं. 
मैंने कहा - टॉयलेट में होंगी तभी शायद. क्या करू, पैंटी नहीं होने की वजह से सब गिला हो जाता है. 
राजवीर मुस्करा दिया:  अच्छा है ना. ! तुझे मस्त फ्री लग रहा होगा. निचे से ठंडी हवा भी चुत को लग रही होगी. यार क्लास में  कुछ मजा नहीं आया. मनीष सर ने सारा खेल बिगाड़ दिया. चलो ना कही चलते हैं. 
मैंने कहा  - कहा जायेंगे ? ओर अनीता ?
राजवीर: मैंने अनीता से जानबुज कर झगड़ा कर डाला. वो अपने रूम पर हॉस्टल चली गयी है. . चल टेरस पर चलते है.
मेरी चुत में लण्ड की भूक लगी थी. उस वक्त सिर्फ राजवीर उसे बुझा सकता था. मैंने आस पास देखा. कोई नहीं था. मैं राजवीर के सात उसके पीछे चलने लगी.
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#73
please read, comment and rate updated story
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#74
Thank you for liking the strory
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#75
Thank you again
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#76
(24-10-2022, 11:49 PM)Shy_niks Wrote: Hello everyone i m here to make some open minded friends, i m niks 24y male looking for a teenager girl,mature lady or cuckold husband or brother who interested in erotic conversation. My teli id is @shy_niks

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#77
(18-10-2022, 06:51 PM)luvnaked12 Wrote: पार्ट १५: हरिया से चुद गयी !

दूसरे दिन शादी थी. बहुत भीड़ ओर शोरगुल था. सुबह में उठकर नहाने गयी.. मैंने देखा, मेरी एक पायल पाँव में नहीं थी. कहा गिर गयी होगी? में सोच रही थी. तभी मेरे ख़याल में आया की कही रात को तबेले में तो नहीं गिर गयी. घर में किसी को बोल भी नहीं सकती थी. नहीं तो राज खुल जाता. मैंने सोचा ढूंढना तो पड़ेगा, नहीं तो बाद में किसी को वहा पायल मिल गयी तो , पूरा भांडा फुट जायेगा. मेरे पास पायल का दूसरा जोड़ था. मैंने वह पेहेन लिया ओर सोचा जब सब शादी में  मशगूल होंगे तब ढून्ढ लुंगी. घर में मैंने सब जगह देख लिया था. कही नहीं मिल रही थी.  में तैयार हो कर शादी वाले मंडप पर चली गयी. 

मैंने के डिज़ाइनर पिंक रंग की साड़ी पहनी थी. सब मुझे देख कर निहार रहे थे. स्वप्निल ओर बंटी दोनों माँ से मजाक कर रहे थे. मुझे देखकर स्वप्निल ने माँ से कहा - मामी आपकी बेटी तो बहुत सुन्दर हैं, में तो मामा की  लड़की से ही शादी करूँगा !  ओर साब ठहाके लगा कर हंसने लगे. बंटी ने भी कह दिया - मै सगा भांजा हूँ .. पहला हक मेरा है.. !  स्वप्निल ने कहा - यह क्या तेरे सात गाँव में रहेगी?  यह तो मेरे से ही शादी करेगी. बंटी ने भी कह दिया - हां यह मेरे सात गाँव में ही रहेगी. ओर आंख मारते हुए बोला - अब तो इसको दूध निकालना भी आता है. हंसी मजाक हो रहा था.  शाम हो रही थी, शादी की रस्मे चल रही थी ओर सब DJ म्यूजिक पर थिरक रहे थे. में भी कुछ देर नाची ओर सोचा क्यों ना तबेले में जाकर पायल ढूंढ लू. सबकी नजर बचा कर मंडप से बहार आयी. बहार कोई नहीं था. में धीरे से तबेले का दरवाजा खोल कर अंदर चली गयी. में 

वहा पर जिस जगह हम सब - में, बंटी ओर स्वप्निल - तीनो रात को सोये थे, उस जगह चारे के ढेर में पायल ढूंढने लगी. "क्या ढूंढ रही हो बिटिया " - हरिया की आवाज थी. मैंने हड़बड़ा कर डर कर पीछे देखा. हरिया वैसे ही नंगा - सिर्फ एक लाल रंग की लंगोटी में था. उसका काला - मांसल बदन तेल की वजह से चमक रह था. मैंने कहा - अरे कुछ नहीं हरिया. में जाती हूँ. में मुड़कर बहार जाने लगी पर हरिया ने बीच आकर मेरा रास्ता रोक लिया. वह मरे बिलकुल पास खड़ा था. उसके बदन से मुझे भैसो की, गोबर की ओर गोमूत्र की बदबू आ रही थी. वह बोला - अरे बताओ बिटिया - डरो मत, क्या ढूंढ रही हो? मैं  तेरी मदत कर दूंगा. मैंने उसे अपने से दूर धकेला - दूर हाटों - मुझे तेरी बदबू से उलटी हो जायेगी. पर वह अपनी जगह से बिलकुल नहीं हिला. उसने मेरे दोनों हात पकड़ कर पीछे एक हात में जकड लिए, ओर अपने ओंठ मेरे ओंठों पर रखकर चूमने लगा. उसके मुँह से गन्दी तम्बाकू की बदबू आ रही थी. मैंने कहा..प्लीज मुझे छोड़ दो हरिया..शादी में सब मेरी राह देख रहे होंगे. हरिया ने कहा - झूटी .. तू यहाँ फिर से मुज़से चुदने आयी ना? ओर उसने मेरे बैकलेस चोली की गांठ खोल दी, जिस से मेरी चोली खुल कर सामने से नीचे गिर गयी ओर मेरे बूब्स एकदम हरिया के मुँह के नीचे थे.

मैंने झट कहा - कमीने मुझे जाने दे. में यहाँ अपनी पर्स ढूंढने आयी जो कल यहाँ गिर गयी थी. हरिया ने कहा - तेरी पर्स मेरे पास हैं. में हक्काबक्का राह गयी. अब यह क्या है? तुझे चाहिए तेरी पर्स?  मैंने कहा - हा . हरिया ने एक हात से मेरे दोनों हात पकडे थे.. अपने दूसरे हातों से उसने अपना लंगोट खींच के फेक दिया. मैंने शर्मा कर दूसरी तरफ मुँह फेर लिया. उसने कहा - यह ले तेरी पर्स..ले ले अपने हातों  से. मैंने कहा मुझे छोडो, वहा कोई पर्स नहीं, मुझे नहीं देखना  तेरा काला  भद्दा सांड का लण्ड. तुम्हे ऐसे नंगा होने में शर्म नहीं आयी. हरिया ने  मुझे एक चपट लगा दी -  सटाक.. कहा -  कमीनी कल तो ख़ुशी से चुद रही थी मेरे लण्ड से. आज तुझे यह लण्ड  भद्दा लग रह है . तूने कब देखा सांड का लण्ड. अभी समजा, की तू यहां सांड का लण्ड देखने आती है.  अगली बार आएगी तुझे सांड के लण्ड से भी चुदवा दूंगा.  देख तो, सच में तेरा पर्स यहाँ है..उसने मेरा जबड़ा पकड़कर मेरा चेहरा  नीचे उसके लण्ड की तरफ कर दिया. मैंने उसके लण्ड को देखा, .मैं  अवाक राह गयी.. यह क्या.. मेरी पायल उसके लण्ड ओर टट्टे पर बंधी थी. में पसीना पसीना हो गयी. हरिया ने कहा - बिटिया . यही ढूंढने आयी थी ना. ले ले अपने हातों से खोलकर. मेरे पास ओर कोई रास्ता नहीं था. मैं  अपने दोनों हाथों से मेरी पायल खोलने लगी, पर पता नहीं हरिया ने बहुत अजीब ढंग से बाँधी थी, खोल नहीं पा रही थी. में उसको निकलने वही उसके पैरो के पास घुटने पर नीचे बैठ गयी. मेरे होतों के मुलायम स्पर्श से हरिया का लण्ड पूरा खड़ा होकर तन गया था. इससे मुझे पायल निकालने में दिक्कत हो रही था. हरिया का लण्ड फनफना रह था ओर मेरे गाल ओर ओंठ से लग रह था. हरिया ने मेरा सर पकड़ा ओर अपना  लण्ड मेरे मुँह में डाल दिया. उसका सिर्फ आधा लण्ड मेरे मुँह में गया था. मैं  बुरी तरह से फंसी थी.   मुझे पायल भी लेनी थी, जल्दी मंडप पर भी जाना था, ओर दिल में हरिया का लण्ड से मजे लेने का भी मन कर रह था. मैंने सोचा की अच्छी से अगर हरिया का पूरा लण्ड निगल कर इसको चुसू तो जल्दी से हरिया का लण्ड  झड़ जायेगा ओर में फ्री हो जाउंगी. मैंने भी मुँह ऊपर कर के धीरे से - हरिया का काला - १० इंच का लण्ड  पूरा गले तक निगल लिया ओर उसके काले सुपडे को चूसने लगी. उसके मूत्र छेद को जीभ डाल कर चाटने लगी ओर जोर से चूसने लगी. हरिया बोला - वाह बिटिया - ऐसे तो तू जल्दी तेरा पर्स ले लेगी. अब मेरी चोली साइड में गिर गयी थी..में सिर्फ साडी में टॉपलेस थी ओर हरिया ला लण्ड पकड़कर पूरा ऊपर से नीचे मुँह में अंदर बहार कर के चूस रही थी. 

मैंने हरिया के दोनों बड़े बड़े गेंद जैसे अण्डे अपने  दोनों हातों  में ले लिए ओर प्यार से सहलाने लगी ओर मसलने लगी. इससे हरिया का लण्ड ओर भी ज्यादा फनफनाने लगा. उसने मुझे नीचे घास पर धकेल कर सुला दिया. एक झटके में मेरी साडी ऊपर कर दी ओर मेरी पैंटी खींच कर निकल दी. अब हरिया को मेरी चूत दिख रही थी. उसने बिना कुछ कहे .. अपने लण्ड का सूपड़ा मेरी चूत पर रख कर जोर से झटका दे दिया. मेरी चूत पहले से बहुत गिल्ली थी. बड़े प्यार से खुलकर उसने हरिया के लण्ड का स्वागत अपने अंदर किया. हरिया अब जोर जोर ऊपर नीचे से धक्के देने लगा. वह अपने चरम सीमा पर था. उसने मेरे दोनों आम आपने हातों  में ले लिये ओर जोर होर से चूसने लगा. मेरी चूत भी जवाब दे गयी..आह..आह.. कर के गंगा-जमुना बहाने लगी.. कुछ देर हरिया मेरी चूत  के अंदर उसका लण्ड  डाल कर रुक गया. .जब तक मेरी कम्पन शांत नहीं हुई तब तक.  उसने फिर धीरे धीरे अपने लण्ड को धक्के मारना चालू कर दिया. अब मेरी चूत के पानी ने उसके मोटे काले लम्बे लण्ड का रास्ता ओर भी आसान कर दिया था. हरिया ने अब उसकी जीभ मेरे मुँह के अंदर घुसेड़ दी.. बोला -चूस रंडी ..मेरी जीभ को लण्ड की तरह चूस. उसकी जीभ सच में बहुत लम्बी ओर मोटी थी. मुँह में अंदर गले तक जाती थी. में भी  हरिया के जीभ को लण्ड की तरह चूसने लगी. बहुत मजा आ रह था. ऐसे लग रह था की में एक लण्ड मुँह से चूस रही हूँ ओर दूसरा लण्ड अपनी चूत में ले रही हूँ. दो लण्ड का मजा में पिछले रात - बंटी ओर स्वप्निल के लण्ड से खेलकर ले चुकी थी. मुझे फिर से वाह सुनहरे पल याद आ गये ओर बंटी ओर स्वप्निल के जवान नंगे बदन मेरी आँखों के सामने नाचने लगे.

हरिया - बिटिया कितनी कसी हुई चूत हैं तेरी. ऐसे लगता हैं कंवारी  चूत है. मैंने भी अपने चूत से हरिया के लण्ड को जोर को जकड लिया , जिससे वह आह..आह...करके मेरी चूत में झटके देने लगा. मेरे चूत में हरिया का गरम गरम पाणी अंदर तक चला गया. ८-१० झटके , हर झटके के सात हरिया का लण्ड मेरी प्यासी  चूत को अपना गरम पाणी पिलाता. में भी जोर से एक बार फिर कसकर झड़ गयी. मैंने जोर से हरिया की गांड अपने हातों से पकड़कर अपनी  चूत के तरफ दबा दी. मेरे नाख़ून हरिया के गांड को छील दिये. हरिया के लण्ड के सुपडे ने पूरा मेरे चूत के अंदर घुसकर मेरे बच्चेदाणी का द्वार खोला ओर अपना गरम पाणी पीला दिया.

में थक गयी थी. पर दिल को अजीब सकून था. मेरा गुस्सा पूरा चला गया था. में जल्दी से उठी. अपनी साडी , बाल, कपडे सब ठीक करने लगी. हरिया  भी थक गया था..वही नंगा लेट कर मुझे देख रह था. बोला - बिटिया तू बहुत सुन्दर हैं..तेरा पति बहुत खुश रहेगा. यह ले तेरी पायल. मुझे सुबह ही मिल गयी थी. मुझे मालूम था इसे ढूंढते तू जरूर यहाँ आएगी. मैंने अपनी पायल हरिया से ले ली. पर मेरी पैंटी हरिया ने ले ली.. कहा - बिटिया यह मेरे पास ही रखूँगा.  हे भगवन .. मैंने माथा पीट लिया.. तीन तीन पैंटी - कहा गयी..में क्या बताउंगी माँ को? पर मुझे अब ना बहस ना मिन्नतें करने का वक्त था, में फिर से संवर कर चुपके से तबेले से बहार चली गयी. 

बहार अब थोड़ा अँधेरा था. बहुत सारे गेस्ट चले गए थे, पर घर के रिश्तेदार अभी भी DJ  पर नाच रहे थे. तभी मुझे महसूस हुआ की हरिया की गरम पाणी की धार जांघों पर बह कर आ रही है. साडी में कुछ अंदर अपने आप पोंछ गयी..पर अब वह नीचे घुटने तक बह कर चला गया था. मैंने सोचा की टॉयलेट जाकर साफ़ कर दू. पर तभी बंटी ने मुझे पकड़ लिया. संध्या - बस् अब ओर २-३ गाने..फिर फंक्शन ख़तम हो जायेगा. जाते जाते मेरे साथ एक - दो डांस कर लो. उसने पी भी राखी थी. उसका मन रखने में मान गयी.. वह  जोर से मेरे आगे पीछे, ऊपर नीचे  घूमकर नागिन डांस कर रह था.  तभी वह नीचे  घुटनो पर बैठ गया..ओर अपने हात नागिन जैसे करके..मेरे पैरोके पास  गोल गोल घूमकर  नाचने लगा. वह घूर घूर कर मेरे पैरो को देख रह था. उसने हाथ नागिन जैसे नीचे करके मेरे पांव पर हात घुमा दिया..मेरे पैरो पर चिप छिपा गिला लगा. उसने सूंघ कर देखा.. फिर मुझे आँख मर दी. वह हरिया का पाणी था, जो मेरी चूत से बहकर पैरों तक नीचे बह गया था. बंटी धीरे से पैरो पर खड़ा हो कर नाचने लगा ओर मेरे कान के पास आकर पूछा - आह !  संध्या अब किस्से चुदकर आयी हो?
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#78
पार्ट  २२ : एक सरदार, बाकी बेकार !

मैं राजवीर के पीछे पीछे चलने लगी. जैसे सीढ़ियां चढ़ने लगे, राजवीर ने मुझे उसके आगे चलने को कहा. प्लीज मुझे पीछे से तेरी मटकती गांड देखनी है. 
राज: संध्या तू सीढ़ी चढ़ती है, तेरे चूतड़ पीछे से मस्त हिलते है..क्या मस्त गांड है तेरी - भरी और गदरायी सी. !
उसने पीछे से स्कर्ट के अंदर हात डाल कर मेरी गांड पकड़ ली और मेरे चूतड़ अपने दोनों हातों से मसलने लगा.
मैं एक पैर जैसे ऊपर कर देती, सीढी  चढ़ने , वह निचे  से मेरे चुत को भी पकड़कर दबा देता. मेरी चुत अब बहुत गीली हो गयी थी. मैं जानबूझ कर धीरे धीरे गांड को ठुमके देकर चल रही थी. राज एकदम पागल हो गया था. 
राज: तेरी चुत की भट्टी आज बहुत गरम है.
मैं: हाँ..जल्दी से इसको शांत कर दे.
हम छत पर पहुँच गये. इतनी लम्बी बड़ी छत पर कोई नहीं था. बाकि की बिल्डिंग / इमारतें भी बहुत दूर थी. शाम के अँधेरे में कोई  देख नहीं सकता था. 
मैंने कहा - राज कोई आ जायेगा तो?
राज: कोई नहीं आयेगा संध्या, मैं हूँ.. तू डर मत.

छत की टावर के बाजु एक कोना था..वहा एक- दो पुराने टेबल भी पड़े थे. हरीश ने अपने पूरे कपडे निकाल दिये और टेबल के कोने पर रख दिये. राजवीर पंजाब का सरदार शेर था. झट से नंगा हो गया. मैं उसको पहली बार नंगा देख रही थी. साढ़े  छह  फ़ीट लम्बा - हट्टा-कट्टा, बड़ी दाढ़ी, सर पर पगड़ी.. उसकी मांसल भुजाये , और उसकी किसी मोटे चौडे खंबे जैसे जंघा - एकदम बॉलीवुड के सनी देओल जैसे लगता था. उसका पूरा गोरा बदन सर से पाँव तक काले घुंगराले बालों से भरा था. उसकी मोटी जांघों के बीच से लटकता उसका गोरा लण्ड - १० इंच का, मोटा गुलाबी सूपड़ा, ओर उसकी दोनों टांगों के बिच उसके लटकते टट्टे ..मुझे वह स्वप्निल से भी सुन्दर लग रहा था. मेरे जीवन का सबसे सुन्दर ओर मरदाना  नंगा आदमी..शायद..!

राजवीर ने खड़े खड़े मुझे भी नंगा कर दिया..और पागलों की तरह मुझे चूमने लगा, मेरे आम मसल कर चूसने लगा. उसने मुझे टेबल की दूसरी बाजु बिठा दिया. मैंने अपने दोनों हातों से उसका लण्ड पकड़ लिया. उसका लण्ड एकदम गरम ओर सख्त था. मैंने राजवीर का मुँह मेरे मम्मों से दूर किया..
मैं: राजवीर ये चुम्मा चाटी बाद में  करो यार . पहले इसको मेरे अंदर डाल दो.
राजवीर ने मुझे टेबल पर सुला दिया ओर मेरे पैर ऊपर करके मेरी छाती से लगा दिये. अब मेरी गांड ऊपर हो गयी थी ओर चुत सामने खुल गयी थी. राजवीर ने अपने हातों से मेरी चुत मसल दी..ओर हलके से अपन हातों से मेरी चुत पर मार  दिया. 
मैं: आह.....ओह..राज..दर्द होता हैं. मारो मत. जल्दी से डाल दो.
राज: चुप बेहेन की लोड़ी...   तेरी फुद्दी में  तो आग लग गयी है.. बता क्या डाल दू..ठीक से बता.
मैं: मेरी फुद्दी में  तेरा लण्ड डाल दे राजवीर प्लीज्.
राज: हम्म..  मेरी रानी..तेरी गरम फुद्दी मैं अपना लण्ड डाल कर तेरी फुद्दी बज बजा कर लाल कर दूंगा. तेरी फुद्दी पर मूत कर तेरी फुद्दी को ठंडा कर दू? 
मैं: ओह राज...प्लीज डाल दे..मुझे चोद दे.. 
राज: ले रंडी..तू ही अपने हातों से मेरा लण्ड तेरी फुद्दी में  डाल दे.
मैं अपने दोनों हातों से राज का लण्ड पकड़ कर अपने फुद्दी पर रख दिया. पर वह धक्का नहीं मार रहा. मैंने गांड ऊपर उछाल दी ताकि उसका लण्ड चुत के अंदर डाल दू. उसके लण्ड का टोपा मेरे दाणे पर फिसल जाता ओर घिस जाता.
मैं: ओह.. माँ.. प्लीज राजवीर अंदर डाल दे..मैं मार जाउंगी.
राज: तुझे थोड़ी मरने दूंगी रानी. मारूंगा तो मैं तेरी फुद्दी.. रोज चोद चोद कर इसको सुजा दूंगा. पहले  बोल..रोज मेरे से अपनी फुद्दी चुदवायेगी ना ?
मैं: हाँ  हमेशा तेरे लण्ड से अपनी फुद्दी चुदवा लुंगी, बस अब डाल दे.
राज:  प्रॉमिस कर. ओर रोज क्लास में नंगी आकर मेरे बाजू बैठोगी. 
मैं - हां रोज सिर्फ स्कर्ट मैं आउंगी..बिना पैंटी के ओर तेरे बाजू बैठूंगी.
राजवीर ने एक लम्बा जोर से धक्का दिया - ओर एक ही झटके में  उसका पूरा लण्ड मेरी चुत में डाल दिया.. मैं ..ओह माँ.बोल कर जोर से  चीख उठी.  वैसे उसने मेर मुँह पर हात रख दिया ताकि मेरी आवाज किसी को सुनाई ना दे.
सरदार अब उसका पूरा १० इंच का लण्ड मेरी चुत में गड़ाये था. मैं कांप रही थी. सिसक रही थी. इतने बड़े लण्ड से छटपटा रही थी. 
राजवीर ने दूसरे हात से मेरा दाना मसलना चालू कर दिया. कुछ देर तक वह वैसे ही मुज़मे फंसा रहा. अब मुझे कुछ राहत मिली थी.. उसने अपना आधा लण्ड बहार निकाला ओर फिर से मेरी चुत में अंदर तक टिका दिया. मैं..आह.कर के चिल्लाई पर उसने अभी भी उसका हात मेरे मुँह पर रखा था. राजवीर अब मुझे धीरे धीरे, लण्ड अंदर-बहार कर के चोद रहा था. अब उसने रफ़्तार बढ़ा दी थी ओर पूरा लण्ड अंदर बहार करके मुझे चोद रहा था.
ले रंडी..अब तू भी मेरे लण्ड की गुलाम बन गयी. रोज अपने लण्ड से तुझे सांड जैसे चोदूंगा. आज तक किसी ने तेरी फुद्दी ऐसे चुदी नहीं होगी.   . 
रोज तुझे मसल दूंगा..चोद चोद कर तेरी फुद्दी ख़राब कर दूंगा. रोज तू अपने चूतड़ मेरे लण्ड पर उछाल उछाल कर चुदवायेगी. 
मैं छटपटा रही थी. मेरी चुत जवाब दे रही थी. मैंने.. आह मार गयी..ओह..उफ़...करके  उठकर राजवीर को मेरे ऊपर खिंच लिया . उसके ओंठो को मेरे मुँह से जोर से चूसकर / उसके लण्ड पर झड़ने लगी. राजवीर को यह अपेक्षित नहीं था..मेरी चुत के गर्माहट ओर पानी से, वह भी मेरी चुत के अंदर झटके देने लगा. उसका गरम पाणी, मेरी चुत में अंदर तक चला गया.  मैंने राजवीर को कस के बाँहों में  पकड़ लिया था. निचे उसका लण्ड मेरी चुत मैं - एक..२..३...करके झटके लगाता रहा ओर अपना वीर्य का फंवारा मेरी चुत के अंदर उडाता रहा. मैंने थक कर उसको कसके पकड़कर  उसके कंधे पर अपनी गर्दन रख दी. तभी मेरी नजर सामने गयी. मुझे टेरेस की दरवाजे के  पीच्छे कुछ दिखा. मैंने गौर से देखा. अनीता वहा दरवाजे की पीछे छुपकर हमें देख रही थी.

मैंने राजवीर के कान मैं धीरे से कहा: अनीता हमें दरवाजे के पीछे छुपकर देख रही है.
राजवीर: देखने दे. मुझे उसमे ऐसे भी कोई इंटरेस्ट नहीं है अब.
मैंने उसके  पीठ पर हात फेरते उसकी गांड को जोर से चिमटी ले ली.. 
राजवीर- आह संध्या..कमीनी !  इतनी जोर से .चिमटी क्यों ले रही हो.
मैं: कमीने . ! कुछ दिनों बाद मुझे भी कहेगा की अब कोई इंटरेस्ट नहीं रहा. 
राजवीर: नाही जान , मैं तो तुझे फर्स्ट दिन से देखा, तब से प्यार करता हूँ. तू कहे तो अभी आज तेरे से शादी कर लू. अपने १०-१२ बच्चों की माँ बना दू. 
राजवीर का लण्ड अभी भी मेरी चुत में था. अभी भी ऊ वो सख्त था. 
मैं: तूने मुझे थका दिया. अब मुझे हॉस्टल तक पैदल जाने की इच्छा नहीं है.
राजवीर: कोण तुझे जाने को कहा रहा .. तू कहे तो तुझे  ऐसे ही ले चलू.
ऐसा कहकर रणवीर ने मुझे अपने लण्ड पर उठा लिया ओर मेरी गांड निचे से पकड़कर गोदी में ले लिया. मैं भी उसको वैसे ही चिपके रही ओर गर्दन पर हात डालकर पकडे रही. . 
रणवीर: आजा , आज तुझे कॉलेज  की टेरेस की सैर  कराता हूँ. 
वह मुझे वैसे ही अपने लण्ड पर बिठा कर कॉलेज की टेरेस पर चारो बाजू घूमने लगा. चलने की वजह से मैं उसके लण्ड पर उछल जाती. छत की दिवार हमारे कमर तक थी. पर निचे से कोई देखता तो जरूर पता चलता की हम क्या कर रहे. ऊपर से हम नंगे थे. ओर रणवीर की लम्बाई अच्छी होने से, उसने ऊपर तक मुझे गोदी में उठा लिया था. इसी रोमांच में , मैं फिर से रणवीर के लण्ड पर झड़ गयी. मैंने उसको कास के पकड़ लिया ओर उसके  ओंठों को चूसने लगी. उसने भी मेरे मुँह  में अपनी जीभ डाल दी ओर फिर से मुझे उसके गरम लण्ड के झटके ओर पाणी के फंवारे का अहसास मेरी चुत के अंदर हुआ. वह भी कांप कर मेरी चुत में  झड़ने लगा. चलते चलते मेरी चुत का पाणी ओर रणवीर के लण्ड के पाणी ..की बुँदे टेरस पर सब जगह गीर गयी. 
रणवीर ने कहा : मजा आया संध्या..?
मैं: बहुत.. तू बहुत मस्त है. ..
रणवीर: सब से अच्छी तू है. पर याद  रख.. एक सरदार . बाकी बेकार !
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#79
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#80
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Doston main kya karti..saab ekdum achanaak ho 
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