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Adultery शादी
#1
शादी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2

शादी : अरेंज vrs. लव





जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
शादी : अरेंज vrs. लव







 
                नीतिका और भव्या: दोनों ही पक्की और बचपन की सहेलियां थीं, चूंकि दोनों के ही पिता अखिल जी (नीतिका के पापा) और प्रदीप जी (भव्या के पापा) एक ही सरकारी महकमे में लगभग एक ही पद पर भले ही अलग अलग विभागों में कार्यरत थे लेकिन आपस में काफी अच्छे दोस्त थे। यही वजह थी जो शायद इनकी माएं, विभाजी (नीतिका की मां और मोहिनी जी (भव्या की मां)  भी आपस में बहुत गहरी दोस्त तो नहीं, लेकिन एक दूसरे के प्रति काफी मेलजोल था। इनका घर भी आपस में बहुत ज्यादा दूर नहीं था, दोनों एक ही कॉलोनी के बस अलग अलग छोरों पर ही था।
 
             एक ओर जहां नीतिका स्वभाव से थोड़ा गंभीर शांत और शर्मीली सी थी वहीं दूसरी ओर भव्या थोड़ी शरारती, मूडी और बेबाक अंदाज वाली लड़की थी। देखने में दोनों ही सुंदर और प्यारी तो थीं ही लेकिन वहीं साथ -साथ पढ़ाई में भी काफी होशियार थीं तो इम्तिहान में इनके नंबर भी अच्छे ही आते थे। जिस काम को करने में नीतिका दस बार सोचती उसी काम को भव्या पहले धड़ाक से कर बैठती फिर सोचती। यही वजह भी थी कि जहां दोनों दिन में हजार बार लड़ती फिर अगले ही मिनट दोस्त बन जाती। 
 
                आस पास रहने की वजह और आपसी मेलजोल की वजह से लगभग सारे पर्व त्योहार भी साथ ही मनाते और यही वजह थी कि इनके ज्यादातर रिश्तेदारों से भी ये दोनों ही परिवार भली भांति परिचित थे। 
 
                नीतिका और भव्या दोनों ही एक मामले में और भी एक से थे, वो ये कि दोनों ही एक भाई और एक बहन थे। बस फर्क इतना था कि नीतिका अपने भाई शुभम से बड़ी लेकिन भव्या अपने भाई विवेक से छोटी थी। 
 
                 जहां कभी नीतिका को लगता कि काश वो छोटी होती अपने भाई शुभम से तो घरवाले उसे ज्यादा प्यार करते क्योंकि उसे लगता था कि हर बात पर उसे ही टोका और समझाया जाता है, शुभम को छोटे होने की वजह से कभी भी कोई कुछ कहता ही नहीं है वहीं भव्या सोचती कि काश वो बड़ी होती तो जितना रोब विवेक उसके ऊपर जमाता है, उतना ही वो उसपर जमाती। घर वाले भी हर बात पर वो बड़ा है, उससे सीखो, उसको देखो कह कर परेशान भी नहीं करते। इस बात पर भी दोनों सहेलियां घंटों बातें करती और अपना दुखड़ा सुना कर मन हल्का करतीं।
 
                 चूंकि दोनों ही सहेलियां अब तक अपना लगभग हर काम एक जैसा और एक साथ करती आईं थीं तो जाहिर था कि अब बारहवीं खत्म होने के बाद दोनों एक ही कॉलेज में और एक ही विभाग में अपना नाम भी लिखवाना चाहती थीं। दोनों के मां बाप भी इस बात से काफी खुश थे कि अगर दोनों एक दूसरे के साथ रहेंगी तो इनके घरवालों को भी इनकी थोड़ी कम चिंता होगी जो इस उम्र की हर लड़कियों के मां बाप को ना चाहते हुए भी रहती ही है।
 
                अब बात आई कॉलेज और विषय तय करने की तो बहुत मुश्किल से दोनों कॉमर्स पर आ कर मानी। जहां भव्या को कॉमर्स काफी पसंद था वहीं नीतिका के लिए ये सब समझना थोड़ा मुश्किल था लेकिन साथ रहेंगी ये सोच कर दोनों ही तैयार थीं। जब कॉलेज की बात आई तो उस वक्त उस एक साधारण से शहर में कुछ ही गिने चुने कॉलेज थे जो कॉमर्स की अच्छी पढ़ाई के लिए जाने जाते थे लेकिन मुसीबत ये थी कि वे सारे ही कॉलेज co -education वाले थे यानी कि जिसमें लड़के और लड़कियां दोनों ही थे। 
 
             कॉलेज का co-education होने की वजह से नीतिका के घरवाले शुरू में थोड़ा हिचकिचाए लेकिन फिर बच्ची का अच्छा फ्यूचर सोच कर मान गए। दूसरी ओर भव्या के घर में तो मानो तूफान ही आने वाला था क्योंकि ये ना तो उसकी दादी चाहती थीं और ना ही उसका बड़ा भाई, विवेक। विवेक दिल का बुरा नहीं था लेकिन उसकी सोच भी बस आम भाइयों जैसी थी जिसकी वजह से वो अपनी बहन को उस दुनिया से दूर रखना चाहता था।
 
           भव्या के कहने की वजह से नीतिका ने विवेक को काफी समझाया और तैयार किया ताकि वो घर में बांकी सभी को भी मना पाए। नीतिका और विवेक का रिश्ता भी अक्सर मिलने जुलने की वजह से काफी अच्छा था, नीतिका भी चूंकि उसका कोई खुद का बड़ा भाई नहीं था तो वो भी उसे ही बहुत मानती और इज्जत करती थी। वहीं विवेक भी उसका अपनी  छोटी बहन भव्या की तरह ही खयाल भी रखता था। यही वजह भी थी कि नीतिका ने जब co-education वाले कॉलेज को लेकर मना नहीं किया तो वो उससे भी काफी नाराज़ था।
 
नीतिका - क्यों, इतना नाराज़ हो रहे हैं आप भैया, जबकि आप भी अच्छे से जानते हैं कि वो कॉलेज काफी अच्छा है।
 
विवेक (थोड़ा गुस्से में)- तुम लोगों को समझ नहीं आता, अभी तक तुम लोगों की दुनिया बस तुम्हारे कॉलेज से ले कर तुम्हारे चाट और गोलगप्पे की दुकान तक की ही है ना, इसीलिए.....
 
विवेक (फिर से नाराज हो कर)- अगर कभी कोई कुछ कहे तो समझना चाहिए, at least तुम दोनों अच्छे से जानती हो कि मैं तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं हूं।
 
नीतिका (प्यार से)- भैया, आपकी बात बिल्कुल सही है लेकिन आप बस मेरी एक बात का दिल से जवाब दीजिए।
 
विवेक उसकी तरफ देख रहा था।
 
नीतिका (थोड़ा गंभीर हो कर)- भैया, क्या आप नहीं चाहते कि हम लोग अपने पैरों पर खड़े हों???
 
विवेक - तुम लोगों को क्या सच में ऐसा लगता है ???
 
नीतिका - नहीं भैया, अगर ऐसा लगता तो आज आपसे कोई बात कहने में मैं जरूर हिचकिचाती, लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है, आप जानते हैं।
 
विवेक -तो.......
 
नीतिका - तो भैया, आप हमें इस माहौल, इन परेशानियों से कब तक बचाएंगे??? और अगर हम अभी से ही खुद ऐसे माहौल में खुद को नहीं ढालेंगे तो कल क्या ये सब और भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा हमारे लिए???
 
विवेक चुप हो गया।
 
नीतिका (फिर से)- भैया मैं जानती हूं, बड़े भाई होने के नाते आप हमें बहुत सी विषम परिस्थितियों से पहले ही बचाना चाहते हैं लेकिन हम पर भी भरोसा कीजिए कि ये स्थितियां हम अच्छे से समझ और संभाल सकती हैं।
 
                  नीतिका अपनी बात पूरी कर वहां से जाने लगी कि तभी विवेक की बात पर रुक गई।
 
विवेक (गंभीर तौर पर)- अगर तुम चाहती हो कि भव्या भी उसी कॉलेज में जाए तो तुम्हें अपने साथ साथ उसका भी पूरा खयाल रखने का प्रॉमिस देना होगा, ताकि मैं भी निश्चिंत हो सकूं। 
 
विवेक (फिर से)- मैं जानता हूं तुम्हारी नज़र में मैं पुराने जमाने के दादा और नाना जैसी बातें करता हुआ दिख रहा हूं, लेकिन मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
 
                   मैं तुम दोनों के ही स्वभाव को जानता हूं और शायद इसीलिए मैं ये बात भव्या से नहीं बल्कि तुमसे कर रहा हूं। खुल कर कहूं तो उसकी बेबाकी और उसके चंचल स्वाभाव se थोड़ा डरता हूं कि अनजाने ही में लेकिन कहीं कोई बेवकूफी ना कर बैठे।
 
                       नीतिका भी विवेक कि बातों का मतलब अच्छे से समझ रही थी तो उसने भी ज्यादा कुछ नहीं कहा और हां बोलकर वहां से चली गई। बरामदे से निकली ही थी कि भव्या ने भैया माने या नहीं और बांकी और भी ढेरों सवालों की झड़ी लगा दी।
 
नीतिका (हंसती हुई) - बस...... बस, हो गया मेरी मां, कितना बोलेगी, थोड़ा तो रहम कर इस बिचारी जुबान पर.......
 
                भव्या झूठ -मूठ का मुंह बना कर नीतिका को घूरने लगी।
 
नीतिका (हंसती हुई) - चल नौटंकी सब समझती हूं तेरी हरकतें, चल अब कल कॉलेज जा कर फॉर्म भी भरना है जिसकी कितनी तैयारियां भी करनी हैं, बिल्कुल भी टाइम नहीं है, टाइम निकल गया तो भैया को इतने मेहनत से पटाने का कोई फायदा भी नहीं होगा, समझी।
 
            नीतिका कह कर मुड़ते हुए अपने घर जाने लगी, तभी  भव्या ने उसे प्यार जोर से पकड़ लिया।
 
भव्या - I luv u..... I know, u are the best....?
 
नीतिका (धीरे से कान में)- I know....??
 
            आज काफी वक्त बाद जहां भव्या को आखिर चैन मिला कि अब जा कर उसका एडमिशन उसके पसंद के कॉलेज में हो पाएगा, वहीं अब वो दूसरी सोच में गुम होने लगी, कि नया कॉलेज कैसा होगा, लोग कैसे होंगे... पहली बार co-education में कैसे मैनेज करेगी। वहीं दूसरी ओर ये सारे सवाल तो नीतिका के भी मन में चल रहे थे जिसे वो भी नहीं समझ पा रही थी।
 
            अगले ही दिन दोनों दोस्तें तैयार हो कर कॉलेज के लिए निकल गईं। कॉलेज पहुंचते ही चारों तरफ इतनी रौनक और भीड़ देख कर दोनों के ही कदम धीरे हो गए। फॉर्म काउंटर पर खड़ी लाइन देख कर ही उन दोनों ने अपना सिर पकड़ लिया क्योंकि केवल एक फॉर्म लेने और जमा करने में ही कम से कम पूरा का पूरा दिन निकलना था। 
 
                 खैर कोई दूसरा उपाय ना देख दोनों वहीं लाइन में लग गईं। अभी तक थोड़े ही लोगों का काम हुआ था कि अचानक से एक लड़का तेजी से काउंटर की ओर आगे बढ़ा और वहां बैठे शक्श जो फॉर्म बांटने का काम कर रहा था, को गुस्से में कुछ कहा फिर वहीं उसके बगल में रखा "closed" का बैनर खड़ा कर दिया। इन दोनों सहेलियों को तो उस पल कुछ भी समझ नहीं आया लेकिन जब थोड़ा नॉर्मल हुईं तो पता चला कि उतने रौब से आने वाला और इतना कुछ करने वाला शक्श इस कॉलेज का यूनियन लीडर और थर्ड ईयर का स्टूडेंट आद्विक सिन्हा था।
 
              आद्विक सिन्हा, उसी शहर के एक सबसे मशहूर वकील का बेटा और उसी शहर के हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज का पोता था। तीन भाई बहनों में सबसे छोटा, सबका दुलारा, ऊपर से सभी को मनमौजी, दिलफेंक दिखने वाला लड़का अंदर से उतना ही भावुक था जिसका अंदाजा उसके दादाजी को छोड़ और बहुत ही कम लोगों को था। हां, उसकी सारी अच्छी बुरी शैतानियों का गवाह और कोई हो ना हो लेकिन उसका अपना ममेरा भाई दर्श था, जो बचपन से ही एक दूसरे के काफी करीब थे। 
 
             जहां स्वभाव में आद्विक चंचल, गुस्सैल और लगभग हर बात में हड़बड़ी मचाने वाला था वहीं दर्श अपने दो भाई बहनों में बड़ा और काफी शांत और सौम्य स्वभाव का था। दोनों की किसी बात पर एक मत हो जाए ऐसा लगभग असंभव ही था लेकिन फिर भी दोनों ही भाइयों के रिश्ते और दोस्ती की गांठ इतनी मजबूत थी कि उन्हें बांकी किसी बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
           आद्विक के साथ ही उसी कॉलेज में उसी क्लास में दर्श भी था लेकिन स्वभाव की वजह से दोनों का ही ग्रुप और दोस्त बिल्कुल अलग अलग थे। यही वजह भी थी कि वे दोनों आपस में भाई या दोस्त थे ये बहुत ही कम लोगों को अब तक पता चल पाया था।
 
            "यार, क्या ड्रामा है ये, हरकतें तो इनकी ऐसी हैं कि इनके बाप का ये कॉलेज हो?? यूनियन लीडर ना हो गया कि कोई राष्ट्रपति हो गया, जो कि जो कह दे, वही पत्थर की लकीर हो जायेगी।" गुस्से में बड़बड़ाती हुई भव्या बोल पड़ी।
 
नीतिका (थोड़ा उदासी से)- हां यार, आज का पूरा दिन बर्बाद हो गया, उसपर कोई काम भी नहीं निकला सो अलग।
 
            ".........पता नहीं, इस सड़ियल को कोई झेलता कैसे होगा।" फिर से भव्या बोल पड़ी।
 
नीतिका (भव्या का गुस्सा कम करते हुए)- अच्छा छोड़ ना, हमें क्या करना है ये सब जान कर, वो सोचे, जो इसे झेले, हमारा सोचो अब क्या करना है।
 
           कुछ सोच कर दोनों ही थोड़ी देर के लिए उसी कॉलेज के पार्क के एक बेंच पर बैठ गईं और अपने बैग से पानी की बोतल निकाल कर पीने लगीं।
 
           "अच्छा एक बात तो बता निकू कि अगर तेरी शादी ऐसे अड़ियल से ही हो गई, तो फिर क्या करेगी तू??" कुछ सोचती हुई अगले ही पल भव्या खिलखिलाती हुई नीतिका से बोल पड़ी।
 
नीतिका (गुस्से में चिढ़ कर)- मेरा जो होगा वो होगा, तू ही सोच अगर तुझे ऐसा पीस मिल गया तो फिर क्या होगा, या तो वो ही बचेगा या तू क्योंकि, काट -मार तो मचना निश्चित है।
 
भव्या (हंसती हुई)- ना नीकू ना........ तेरी दोस्त इतनी भी पागल नहीं है कि जिंदगी का इतना बड़ा कदम यूं ही बिना सोचे समझे उठाएगी। मैं तो देखना तुम्हे पहले भी कहा है और अब फिर से कह रही हूं कि जब भी करूंगी, लव मैरिज ही करूंगी, ताकि शादी के बाद कोई स्यापा का कोई चांस ही नहीं हो, और लाइफ बस परफेक्ट, मस्त और चिल.......
 
भव्या (फिर से मुंह बना कर)- तू अपना सोच जो कलयुग में हो कर भी सतयुग की बेटी की तरह बस सिर झुकाए हुए खड़ी रहेगी और घरवाला जिससे करा दे, उससे कर लेगी।.... हुंह...
 
नीतिका (शांति से) - भावी, ये शादी ब्याह, सब किस्मत की बातें हैं जिस पर हमारा कोई भी जोर नहीं चलता, जो जोड़ियां ऊपर पहले ही बन गईं वो ही आगे भी मिलेंगी, फिर क्यों बेकार में सोच -सोच कर अपना खून जलाना।
 
भव्या (कुछ सोच कर)- फिर भी, अगर कहीं किसी अजीब से इंसान से तेरा पाला पड़ गया तो???
 
नीतिका (सोचते हुए)- यार, सच कहूं तो वो इंसान जो भी हो, जैसा भी हो, बस शांत और तमीजदार हो, बांकी कोई फर्क नहीं पड़ता।
 
               दोनों ऐसे ही अपनी पसंद -नापसंद की बातें करते घर लौट आईं।
 
                उधर आज काफी वक्त बाद आद्विक और दर्श भी अपने पुराने और पसंदीदा जगह "चाचा की चाय" वाली दुकान पर जो कि उनके कॉलेज से थोड़ी ही दूर पर था, वहीं आ कर बैठे थे ताकि दोनों दोस्त आराम से थोड़ी देर इधर उधर की बातें कर सके। वे दोनों अपनी अपनी चाय और उस दुकान के श्याम चाचा की खैर खबर ले कर बगल में पड़ी बेंच पर बैठे ही थे कि इतने में वहीं एक और लड़का -लड़की जो शायद आपस में काफी करीबी जान पड़ते थे, वहीं आ कर बैठ गए। उन दोनों की बातों से यही लग रहा था कि लड़की उस लड़के को रिश्तों की कद्र और उसकी इज्जत करने की बात समझा रही था वहीं वो लड़का बस ये कह कर उसकी बात टाल रहा था कि हर किसी को अपनी जिंदगी में हर वक्त एक ज्ञान देने वाली मां नहीं बल्कि ऐसा शक्श चाहिए होता है कि जिन्हें देख या जिनसे मिल कर इंसान कितना भी थका हो उसका मूड फ्रेश हो जाए वो सुकून पा पाए क्योंकि अगर कोई इंसान हर वक्त यही सोचता रहा कि आस पास के लोग क्या बोलेंगे और क्या सोचेंगे तो इंसान खुद की मर्जी से कब जिएगा।
 
             थोड़ी देर बातें कर और अपनी चाय खत्म कर वे दोनों अजनबी तो वहां से चले गए लेकिन दर्श उनकी बातें सुन कुछ सोचने लगा।
 
आद्विक - क्या हुआ भाई, अब तुम क्या सोचने लगे??
 
आद्विक (फिर से दर्श की ओर देखते हुए)- अब plz ये तो बिल्कुल भी मत कहना कि वो लड़की कितनी समझदार थी...., गंभीर थी....... कितनी अच्छी थी।
 
दर्श (कुछ सोच कर)- क्यों, सही तो कह रही थी वो, क्या गलत कहा उसने......
 
आद्विक (बात बीच में ही काटते हुए)- क्या खाक सही बोल रही थी, देखा नहीं उसकी गर्लफ्रेंड कम और उसकी गुरु मां ज्यादा लग रही थी। पता नहीं इन्हें ये बात क्यों समझ नहीं आती कि बीवी या गर्लफ्रेंड वही बन कर रहें तो ज्यादा बेहतर है, हम हर किसी की जिंदगी में हर बात पर ज्ञान के लिए दादी नानी हैं।
 
आद्विक (फिर से)- और सच कहूं तो यार शादी में अगर एक जैसी सोच वाले लोग ना मिले तो उस शादी को आज के जमाने में तो भगवान भी नहीं चला पाएंगे। इसीलिए तो मैं सीधा मानता हूं कि बांकी कोई काम अपनी पसंद से करो या ना करो, लेकिन शादी तो खुद की पसंद की होनी ही चाहिए।
 
दर्श - नहीं यार, एक समझदार लड़की हर रिश्ते को बखूबी संभाल सकती है, और ये खोजने की जो पारखी नज़र हमारे बड़े या मां बाप की होगी वो किसी और की हो ही नही सकती है।
 
               दोनों भाई यूं ही कुछ वक्त तक अपनी -अपनी राय देते रहे फिर अपने अपने घर के लिए निकल गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#5
              चूंकि दोनों ही पढ़ने में अच्छी थीं और उनके बारहवीं के नंबर भी काफी अच्छे थे तो अगले ही कुछ हफ्तों में उन दोनों ही सहेलियों का एडमिशन उनकी पसंद के कॉलेज में हो गया। कल सुबह उनके कॉलेज का पहला दिन था जिसे सोच कर ही दोनों के ही मन में इतनी गुदगुदी थी कि नींद आना तो मुश्किल ही था और आंखों ही आंखों में पूरी रात कट गई।
 
            " कितनी बार कहा है कि टाइम की कद्र करो, पता नहीं क्या करती रहती हो?? इतने साल हो गए लेकिन भागते दौड़ते पहुंचने की आदत इस लड़की की अब तक नहीं गई है।" कहते हुए भव्या के पिताजी अपनी चाय लिए वहीं बैठ गए जहां भव्या बगल में बैठी मुंह बनाए जबरदस्ती अपनी मां के गुस्से की वजह से पराठे के टुकड़े को पानी की मदद से सरका रही थी।
 
भव्या (चिढ़ कर)- plz पापा, अब हम कॉलेज में हैं, कॉलेज में नहीं कि बस घंटियों की आवाज पर बस दौड़ती रहें, अब तो थोड़े बहुत लेट होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
 
भव्या की मां (थोड़े गुस्से में) - हां, समय पर इस लड़की का कोई काम तब हो ना जब इसे किसी जिम्मेदारी का कोई अहसास हो?? यहां तो बस जो मन आया जैसे मन आया पड़े रहे।
 
             "वाउ, क्या बात है लहसुन मिर्च वाली चटनी...... तब तो जरूर वो खस्ता वाले पराठे ही बन रहे होंगे, क्यों आंटी जी...??" कहती हुई नीतिका प्यार से आ कर बगल में बैठ गई और भव्या को जल्दी करने के इशारे करने लगी।
 
             नीतिका की प्यारी बात पर भव्या की मां भी मुस्कुरा उठीं और नाश्ता करने को कहा लेकिन नीतिका ने पेट बिल्कुल भरा है कह कर टाल दिया और दोनों से मिल कर भव्या के साथ कॉलेज के लिए निकल गई।
 
             कॉलेज का पहला दिन किसी बड़े त्योहार से कम नहीं होता है नए बच्चों के लिए, वही हाल वहां भी था। जहां लड़कियां रंग बिरंगे कपड़ों, पर्स में अपना एक से एक फैशन दिखा रही थीं वहीं लड़के भी किसी मामले में कम नहीं थे। जहां लड़कियां नजरें बचा -बचा कर स्मार्ट लड़कों को निहार रही थीं वहीं लड़के भी अपनी - अपनी सेटिंग बिठाने के फिराक में हर किसी पर नजरें जमा रहे थे।
 
           ऐसे माहौल में थोड़ी बहुत नर्वस तो दोनों ही दोस्तें थीं लेकिन फिर भी जहां भव्या खुद को वहां के माहौल में ढाल लेने में थोड़ी हद तक सफल हो रही थी वहीं नीतिका इसके विपरीत खुद के अंदर की असहजता से परेशान थी। आज का पहला दो क्लास तो यूं ही एक दूसरे को और टीचर्स को जानने और समझने में ही निकल गया और आगे लगभग चालीस मिनट का ब्रेक था तो दोनों ही दोस्त कॉलेज के कैंटीन की ओर ना जा कर वहीं उसके थोड़े पहले एक शांति वाली जगह देख कर बैठ गईं।
 
भव्या (हंसती हुई)- बाप रे, नीकू ये तो गांव के मेले जैसा नहीं लग रहा, जो रंग खोजो वो मिलेगा.....
 
नीतिका (थोड़ी परेशान सी)- भावी, यार मेरे से सच में ये सब संभलेगा भी या नहीं। कहीं कॉमर्स ले कर मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी।
 
भव्या (घूरती हुई)- ले..... मैं यहां इतना मजेदार नजारा दिखा रहा हूं और एक तुम, कॉलेज के पहले दिन ही अपने पढ़ाई का रोना ले कर बैठी हो।
 
नीतिका (रुआंसी सी)- सच कहूं तो यहां कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा भावी, सब कुछ कितना अलग है ना.... (फिर कुछ सोच कर)...... शायद विवेक भैया सही ही कह रहे थे कि ये जगह हमारे लिए नहीं है।
 
भव्या (थोड़ा चिढ़ कर)- यार नीकू तू भी...... यहां हमें खुल कर जीने को आसमान मिल रहा है और तुझे अब भी अपने रूम में ही रहना है, निकलेंगे नहीं तो फिर जिएंगे कैसे खुल कर।
 
भव्या (थोड़ा समझाती हुई प्यार से)- अच्छा, अब ये बताओ कि जब जॉब करोगी तब क्या करोगी?? 
 
नीतिका (खुद को सामान्य करते हुए)- हां यार, ठीक कह रही है।
 
भव्या (मजाक में)- अच्छा यह सब छोड़ो, ये बताओ यहां अब तक इतने लड़कों में तुम्हें सबसे स्मार्ट कौन लगा??
 
नीतिका (मुंह बना कर)- मुझे क्या पता, तुम ही खोजो, वैसे भी तुम्हें ही रचानी है ना प्यार वाली शादी। मेरे लिए तो सब एक ही जैसे हैं।
 
भव्या (मुंह बना कर)- कितनी बोर है तू यार, पता नहीं कैसे झेलेगा तेरा पति तुझ जैसी सती सावित्री को।
 
नीतिका (हंसती हुई)- अरे तू अपनी चिंता कर ना तू कब खोजेगी अपना राजकुमार, जो भाई मैडम के दिन रात आगे पीछे करे, इनके हजारों नखड़े उठाए। 
 
भव्या - हुंह..... उड़ा ले मेरा मजाक, लेकिन देखना जब वक्त आएगा तब तुझे समझ आएगी मेरी बात कि अच्छी और सुकून की जिंदगी के लिए लव मैरिज कितना जरूरी है।
 
नीतिका (हंसती हुई)- हां, तेरी बात सुन लूं तो जिंदगी का एक मात्र गोल शादी ही लगने लगेगी मुझे, ना बाबा ना..... फिर मेरी नौकरी का क्या होगा।
 
भव्या (सिर पर हाथ रखती हुई)- हे प्रभु, फिर से कर दी ना चिंदी वाली बात?? शादी के बाद वाली नौकरी तो बस मजे के लिए होती है ना, घर मैं ही चलाऊंगी तो फिर वो क्या करेगा।
 
नीतिका (मुंह बना कर)- कुछ नहीं हो सकता तेरा....
 
              दोनों यूं ही आपस में बात कर रही थीं कि अचानक घड़ी की ओर देखा तो याद आया कि क्लास होने का समय कब का हो गया और वे बातों में भूली बैठी थीं। दोनों सहेलियां हड़बड़ाते हुए क्लास की ओर जा रही थीं कि तेजी में नीतिका अचानक किसी से टकरा गई और उसका बैग और सामने वाले के हाथ से उसका फोन गिर पड़ा।
 
अनजान इंसान (थोड़ा गुस्से में)- ओ मैडम, क्या बदतमीजी है ये, कॉलेज में पैर रखे दो घंटे नहीं हुए हैं कि अपनी हरकतें चालू कर दीं। 
 
            नीतिका उसकी बातें सुन बस बुत सी वहीं खड़ी हो गई और ना चाह कर भी उसकी आंखें भर आईं। उस अनजान शक्श की ऐसी बातें सुन भव्या भी गुस्से में कुछ कहने के लिए मुड़ी ही थी कि तब तक वो इंसान वहां से जा चुका था। उसने नीतिका को प्यार से संभाला और फिर आगे बढ़ गईं।
 
           उस अनजान आदमी की ऐसी बातें सुन आज नीतिका का मन अब कहीं भी नहीं लग रहा था उसे क्लास में भी थोड़ी घुटन सी महसूस हो रही थी। वॉशरूम का बहाना बना कर वो आखिर बाहर निकल कर क्लास के दूसरी ओर के कॉरिडोर में जहां एक बेंच लगा पड़ा था वहीं बैठ गई।
 
नीतिका (खुद से)- पता नहीं लोग खुद को क्या समझते हैं, सेकंड भर भी नहीं सोचते और अपनी राय बना लेते हैं, भले ही सामने वाले की कोई गलती हो भी या नहीं। उन्हें क्यों फर्क पड़ेगा कि उनकी ऐसी बातों ने सामने वाले को कितनी तकलीफ पहुंचाई होगी।
 
                    "हम्मम...... बात तो आपकी बिल्कुल सही है लेकिन सच कहें तो उनकी भी क्या गलती है, उन्होंने जो उस एक पल में देखा, वही सोचा और वही समझा। या ये भी तो हो सकता है कि उस वक्त उसकी भी मनोस्थिति कुछ अलग हो और वो कहीं की बात कहीं और ही कह गया हो।" बोलता हुआ एक शक्श वहीं मुस्कुराता हुआ निकिता के बगल में बैठ गया।
 
                 नीतिका ने हड़बड़ा कर बगल वाले शक्श की ओर देखा तो वो अब भी मुस्कुरा रहा था।
 
                 "Hello, I am दर्श, कॉमर्स थर्ड ईयर का स्टूडेंट...." मुस्कुरा कर बोलते हुए दर्श ने अपना हाथ आगे बढाया।
 
               चूंकि आज तो सुबह से ही नीतिका का वक्त बुरा चल रहा था तो वो खुद ही मन में ये सोच कर बड़बड़ाने लगी कि पता नहीं अब ये क्या नई आफत है। कहीं कोई उसकी रैगिंग तो नहीं ले रहा। 
 
              "घबराओ मत, कोई रैगिंग नहीं हो रही तुम्हारी, सब ठीक है। तुम्हें ऐसे अकेले परेशान बैठे देखा तो रुक गया।" मुस्कुराते हुए दर्श फिर से बोल पड़ा।
 
              अब तक नीतिका भी खुद को काफी संभाल चुकी थी तो उसने भी मुस्कुरा कर हाथ मिला लिया और अपना नाम बता दिया। वे दोनों आगे कुछ और बोल पाते कि तब तक भव्या भी वहां नीतिका को खोजती हुई आ पहुंची थी।
 
भव्या (दर्श की तरफ घूरते हुए)- क्या हुआ, यहां क्या कर रही है?? ठीक है ना??
 
नीतिका (शांति से मुस्कुरा कर)- हां, बिल्कुल ठीक हूं, बस क्लास की ही ओर आ रही थी।
 
भव्या - हूं....... इतने देर से नहीं लौटी तो टेंशन हो रही थी।
 
नीतिका - हम्मम..... चलो।
 
नीतिका (अचानक रुक कर)- भावी, इनसे मिलो ये दर्श हैं, हमारे सीनियर.......
 
भव्या (बीच में ही बात काट कर गुस्से में)- क्या हुआ, किसी ने फिर से कुछ कहा क्या??
 
                 नीतिका उसे इशारों में चुप रहने को कहती रही लेकिन उसने बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
 
भव्या - इस बार तो बिल्कुल नहीं छोड़ने वाली मैं, तू देख क्या करती हूं मैं??
 
दर्श (मुस्कुराते हुए)- तुम्हें अपना इतना खून जलाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है तुम्हारी दोस्त को।
 
                 दर्श की बात से नीतिका भी मुस्कुराने लगी। अब तक भव्या का गुस्सा भी भले ही कम हो चुका था लेकिन अब वो दर्श की बेबाक बात पर बस उसे घूरे जा रही थी।
 
दर्श (हाथ आगे बढ़ा कर)- अब तो जान गई ना??
 
                 भव्या ने एक नज़र उसे घूरा और फिर से नीतिका को ले कर बिना कुछ बोले आगे बढ़ गई और दर्श वहां खड़ा उसकी हरकत को देख मुस्कुराता रहा।
 
 
              शाम को कॉलेज से लौटते वक्त सामने फिर से नीतिका और भव्या की नजर दर्श पर गई तो उसने हाथ के इशारे से दोनो को बाय किया। जवाब में नीतिका भी मुस्कुरा दी।
 
भव्या (चिढ़ कर)- ये चिपकू कुछ ज्यादा तेज नही बन रहा??
 
नीतिका (प्यार से)- ऐसे क्यों कह रही है, देखा नहीं कितने डिसेंट से हैं, वरना यहां तो....... नीतिका फिर अचानक सुबह उस अनजान शक्श की बात याद कर दुखी हो गई।
 
भव्या - हुंह.... वो तो दुष्ट था ही, ये चिपकू भी कम नहीं लगता है मुझे। तुम उससे थोड़ा संभल कर रहो।
 
नीतिका - तुम्हारी सुई तो यार बस एक ही जगह आ कर रुक गई है, कितने सीधे से तो हैं वे।
 
भव्या - हुंह..... सीधा???
 
            दोनों दोस्त यूं ही आज पूरे दिन भर की बातें करती रहीं और आखिर यूं ही उन दोनों का आज के कॉलेज का पहला दिन निकल गया और दोनों घर लौट गईं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
            यूं ही दोनों ही सहेलियों का कुछ और वक्त कॉलेज में बीतता गया और वे दोनों ही धीरे -धीरे वहां के माहौल में ढलने लगी थीं। भव्या का झुकाव चूंकि कॉमर्स में पहले से ही था तो वो तैयारियों को ले कर कोई ज्यादा परेशान नहीं होती थी लेकिन वहीं नीतिका पूरी कोशिशें कर रही थी कि फाइनल रिजल्ट्स में उसकी तरफ से कहीं भी कोई चूक ना रह जाए।
 
           वक्त के साथ ही नीतिका और दर्श भी बहुत अच्छे दोस्त तो नहीं लेकिन दोनों के बीच एक अच्छी बॉन्डिंग जरूर बन गई थी जिसकी सबसे बड़ी वजह थी लाइब्रेरी, जहां अकसर दोनों ही एक दूसरे को दिख ही जाते थे। वहीं दर्श भी नीतिका की मेहनत देख उसकी जो हो सके मदद कर दिया करता था। 
 
                   लेकिन इससे ज्यादा अच्छी बात ये थी कि जो भव्या शुरू में दर्श के नाम से ही चिढ़ती थी वो भी अब धीरे -धीरे उसका आस -पास होना पसंद करने लगी थी। नीतिका भी इस बात को गौर कर रही थी लेकिन वो जब भी कुछ कहती तो भव्या मुंह बना कर उसकी बात टाल देती। वहीं दर्श की भी हरकतों से अब तक ऐसा कुछ ज्यादा नहीं समझ आ रहा था। 
 
               एक दिन नीतिका किसी जरूरी वजह से कॉलेज नहीं आ पाई और भव्या को ना चाहते हुए भी अकेले आना ही पड़ा क्योंकि आज खंडेलिया सर की स्पेशल क्लास थी और अगर दोनों में से कोई भी एक नहीं होती तो अगले दिन किसी और से नोट्स मिलने मुश्किल हो जाते। आखिर मन मसोस कर वो अकेली ही आई थी। कुछ क्लासेज के बाद जब खाली वक्त था तो कॉफी पीने का मन तो उसका बहुत हुआ लेकिन अकेले होने की वजह से वो कैंटीन भी नहीं गई और कुछ सोच कर चुपचाप लाइब्रेरी की ओर जाने लगी।
 
            "अगर तुम्हें बुरा न लगे और कोई दिक्कत ना हो तो क्या एक कप कॉफी पी सकते हैं कैंटीन चलकर??" अचानक से पीछे से किसी की आवाज आई तो भव्या भी हैरानी से मुड़ कर देखने लगी। आज दर्श को यूं शांत खड़ा देख उसे ना जाने क्यों लेकिन बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन अगले ही पल कुछ सोच कर चुप हो गई।
 
दर्श - क्या हुआ, क्या सोच रही हो?? एक कप कॉफी कह रहा हूं बस, तुम्हारा किडनी नहीं मांग रहा जो यूं गुम होकर खड़ी हो गई हो।
 
भव्या (घूरते हुए)- मेरा किडनी इतना भी सस्ता नहीं है है कि ऐसे वैसे लोगों पर लुटाती फिरूं।
 
दर्श (हंसते हुए)- हां भाई, तुम्हारी किडनी पर तो सिर्फ नीकू का ही हक होगा, क्यों है ना ??
 
                      भव्या को आज उसके सामने किसी और का नीतिका को यूं नीकू कहना अच्छा नहीं लगा, और वो चुप हो गई जो शायद दर्श भी समझ गया था।
 
दर्श (मुस्कुरा कर बात बदलते हुए) - अच्छा भाई, ये बताओ चल रही हो या नहीं, अब नीतिका होती तो कब का हां कर देती अपने दोस्त की एक बात पर फिर चाहे उसका मन हो भी या ना भी।
 
              वो कुछ और कहता कि भव्या भी अब तक बिना कुछ बोले कैंटीन की ओर मुड़ गई और ये देख कर दर्श भी खुश हो गया। दोनों कॉफी के साथ थोड़ी देर इधर उधर की बातें करते रहे जिसमें दोनों की ही नजरें रह -रह कर एक दूसरे से टकराती और फिर वे दोनों ही इधर उधर देखने लगते। दोनों ने कुछ यहां वहां की बातें की और थोड़ी देर में कॉफी खत्म होने के बाद दोनों अपनी -अपनी क्लास के लिए उठ कर चले गए।
 
               आज काफी वक्त बाद शाम को आद्विक और दर्श अपने उसी फेवरेट चाय की स्टाल पर मिले थे। दोनों अपनी अपनी चाय ले कर वहीं पास में लगी अपनी बाइक के पास अटक कर खड़े हो गए।
 
आद्विक - क्या भाई, क्या चल रहा है आज कल ?? हीरो को आज कल कॉफी खूब पसंद आने लगी है, क्या बात है??
 
          दर्श भी आद्विक की बातों से समझ गया था कि वो जरूर आज के भव्या और उसकी कॉफी की बात कर रहा था।
 
दर्श - अरे, वो तो बस ऐसे ही, आज उसकी दोस्त नहीं आई थी ना, इसीलिए सोचा.....
 
आद्विक (हंसते हुए)- भाई, को तो तूने कभी इतने प्यार वाली कॉफी नहीं पिलाई??
 
दर्श झेंप गया।
 
आद्विक (फिर से)- वैसे कब से चल रहा है ये सब ?? और बांकी छोड़ ये बता कि मुझे ये सब कब बताने वाला था तू कमीने??
 
दर्श (थोड़ा शरमाते हुए)- अरे, ऐसा कुछ खास भी नहीं है, ये तो बस ऐसे ही.................... (थोड़ा रुक कर) और उसे भी तो अब तक इस बात का कोई अंदाजा नहीं है ??
 
आद्विक - ओहो, तो हमारा भाई शर्माता भी है......
 
            दर्श फिर से शर्मा गया।
 
आद्विक (कुछ सोच कर)- देख भाई बस इतना कहूंगा कि आज कल की लड़कियों का जल्दबाजी में कोई भरोसा मत करना। इनका कुछ पता नहीं होता कि कब कौन सा रंग दिखला दें।
 
दर्श (गंभीर हो कर)- नहीं, वो ऐसी नहीं है। वो तो.......
 
आद्विक (हंसते हुए)- क्या बात है, मेरा जो भाई हमेशा से प्यार और मुहब्बत के नाम से दूर भागता था वो यूं किसी लड़की के नाम पर इतना शर्माएगा, पता नहीं था।
 
दर्श - नहीं यार, वो सच में बहुत प्यारी है। 
 
आद्विक - अच्छा अब ये बता कि ये सारी बातें तू उसे कब बताएगा, अब तो बस कुछ ही दिन बचे हैं हमारे कॉलेज के ???
 
दर्श (थोड़ा उदास सा)- हां यार.....
 
आद्विक - इसीलिए तो कह रहा हूं कि पहले ही बात कर लो आपस में ताकि आगे की चीज़ें आराम से सोच सको।
 
दर्श - वही सोच रहा हूं कि क्या और कैसे करूं यह सब ??
 
आद्विक - तो फिर फेयरवेल पार्टी में कह दे।
 
दर्श (कुछ सोच कर खुशी से)- हां बात तो तू ठीक कर रहा है, वही करूंगा। फिर चाहे उसका फैसला जो भी हो।
 
             समय यूं ही गुजर रहा था और आखिर थर्ड ईयर वालों के लिए फेयरवेल पार्टी की तैयारियां होने लगीं जिसमें हर जूनियर को अपने सीनियर का ध्यान रखना था। मेहमानों के स्वागत से ले कर बांकी सारा खयाल रखने की जिम्मेदारी फर्स्ट ईयर वालों को भी दी गई थी। जहां नीतिका अपने स्वभावानुसार इन चीज़ों से दूर ही रहना चाहती थी वहीं भव्या हर एक तैयारी और चहल पहल देख कर उतनी ही खुश थी।
 
            फेयरवेल पार्टी को ध्यान में रख कर सबका काम पहले से ही बांट दिया गया था ताकि लास्ट मिनट पर कहीं भी कोई दिक्कत न हो। भव्या और नीतिका दोनों एक ही ग्रुप में रहना चाहती थीं लेकिन कुछ सीनियर्स ने शायद जान कर दोनों को अलग -अलग काम दे दिया। जहां एक ओर भव्या को सभी सीनियर्स का वेलकम और बैठने का खयाल रखने को कहा गया वहीं नीतिका को स्टेज डेकोरेशन का काम मिला। दोनों ही अब कहीं ना कहीं अपने काम से संतुष्ट ही थीं क्योंकि जहां भव्या को सबसे मिलना जुलना अच्छा लगता था वहीं नीतिका को ड्राइंग और क्रिएटिविटी पसंद थी।
 
           आखीरकार तय दिन के हिसाब से फेयरवेल पार्टी का दिन आ ही गया। इन दोनों ने भी अपने घर में आज की पार्टी की बात बताई तो दोनों के ही मां बाप ने अच्छे से संभल कर कुछ भी करने को कह दिया। वहीं दूसरी ओर विवेक चूंकि इन माहौलों से अच्छे से परिचित था तो उसने एक दो बार इन्हें मना भी किया लेकिन किसी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
 
                  दोनों ही दोस्त कॉलेज जा पहुंची जहां आज की रौनक तो और भी खूब थी। सारे एक से एक खूबसूरत लग रहे थे। एक दो पहचान की लड़कियों ने इन दोनों को साड़ी नहीं पहन कर आने की वजह पूछी तो इन्होंने भी बहाना बना कर टाल दिया क्योंकि ये दोनों अच्छे से जानती थीं कि इनकी ऐसी कोई भी बात घर पर नहीं मानी जाएगी तो इन्होंने इसकी चर्चा ही नहीं की थी। फिर भी सलवार कमीज में भी ये दोनों एक से एक खूबसूरत लग रही थीं।
 
                  थोड़ी ही देर में सीनियर्स का भी आना शुरू हो चुका था और तभी सामने से दर्श सामने से आता दिखा चूंकि भव्या को सभी सीनियर्स की अगुवाई का काम मिला था तो उसकी नजर जैसे ही आज दर्श पर गई उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। वो उसे जितना ही संभालती वो उतनी ही रफ्तार पकड़ लेता। ब्लू जींस, पर v -neck टी शर्ट और उस पर एक डार्क ब्लू कलर की ब्लेजर। बिल्कुल साधारण सी तैयारी में भी वो बहुत ही ज्यादा हैंडसम लग रहा था जिसकी शायद सबसे बड़ी वजह उसके चेहरे की मुस्कान थी। जहां भव्या की नजर चाह कर भी दर्श से नहीं हट रही थी वहीं दर्श भी आज भव्या को यूं देखे जा रहा था जैसे जिंदगी भर के लिए इन पलों को जीना चाहता था। भले ही बांकि कोई इनकी हालत समझ पाया हो या नहीं लेकिन आद्विक और नीतिका दोनों ही इन्हें देख बस मंद मंद मुस्कुरा रहे थे।
 
                भव्या जैसे ही दर्श के थोड़े पास आई, तो दर्श भी आज उसकी खूबसूरती में और भी डूबे जा रहा था। हल्के पीले रंग के पटियाला सूट में उसके आधे खुले बाल जिसकी कुछ लट खुद बाखुद उसके चेहरे पर गिरी पड़ी थीं, उस पर उसकी बड़ी काली आंखों में हल्की सी शर्म उसे और खूबसूरत बना रही थीं। भव्या ने एक छोटा सा गुलाब का फूल दर्श को पकड़ाया जो उसे सारे सीनियर्स को वेलकम के लिए देना था और उसे वेलकम कह कर हल्के से उसकी आंखों में देख कर वापस मुड़ने लगी।
 
               "कुबूल है....." अचानक से ये धीमे शब्द भव्या के कानों में पड़े और वो वहीं शर्म से जम गई क्योंकि ये आवाज किसी और की नहीं दर्श की थी।
 
                बहुत मुश्किल से खुद को संभालते हुए भव्या ने जब मुड़ कर देखा तो तब तक दर्श और बांकी सभी लोग वहां से कब का जा चुके थे। 
 
नीतिका (जान कर छेड़ते हुए)- क्या हुआ, ऐसे शर्मा कर क्यों खड़ी है किसी ने कुछ खास कह दिया क्या ??
 
भव्या (हकलाते हुए)- न.......नहीं..... नहीं तो......
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
नीतिका (हंसती हुई)- अच्छा, वही मैं सोचूं तू कब से यहां इन चक्करों में फंस गई।
 
             भव्या को अब तक कुछ भी समझ नहीं आ रहा था सो वो बस झट से नीतिका के गले लग गई।
 
नीतिका (जान कर छेड़ते हुए)- चल भूल रही है ये तेरे दर्श जी का नहीं मेरा गला है, मेरी तो जान छोड़ दो...।
 
भव्या (अचानक से सिसकते हुए)- नीकू, मुझे सच में नहीं समझ आ रहा है कि ये सब क्या और क्यों है ??
 
नीतिका (प्यार से)- ऐसे परेशान क्यों हो रही है पगली, ये बस वो फीलिंग्स हैं जो आज तक तुम अपने अंदर दबाए बैठी थी और वो आज एक झटके में तुम्हारे ना चाहते हुए भी तुम्हारे सामने आ ही गई।
 
भव्या (रुआंसी सी)- ले.....लेकिन वो...
 
नीतिका (प्यार से)- देख जहां तक मैं उन्हें जान या समझ पाई हूं, वे भी तुम्हारे लिए बिल्कुल वही फीलिंग्स रखते हैं जो तू रखती है, मुझे विश्वास है।
 
भव्या - ले...लेकिन.....
 
           भव्या अपनी बात पूरी ही करती कि तब तक स्टेज से किसी की आवाज आने लगी जो किसी और की नहीं बल्कि दर्श की थी। आज सारे सीनियर्स एक एक कर अपना पिछले तीन सालों का एक्सपीरियंस बयां कर रहे थे।
 
दर्श - सच कहूं तो जब इस कॉलेज में आया था तो मुझे कुछ भी खास नहीं लगा। हां जो पहले सबसे सुन रखा था बिलकुल वैसा ही पाया। अपने स्वभाव की वजह से ना तो बहुत ही दोस्त बने और ना ही कोई दुश्मन। जब भी कभी ये सोचता था कि अपने कॉलेज के पलों की बात कभी याद करूंगा तो क्या करूंगा, तो कोई खास जवाब नहीं मिलता था, लेकिन आज सच कहूं तो दोस्तों शायद कम ही ऐसे लोग होंगे जिन्हें आज यहां से जाने की तकलीफ मेरे जितनी होगी।
 
दर्श (फिर से)- जब तक इन पलों की खासियत समझ पाया हूं, इनसे दूर जाने का वक्त आ गया। नहीं जानता कैसे जियूंगा इन पलों से दूर....
 
            उधर दर्श के हर एक शब्द की तकलीफ भव्या की आंखों से बहती हुई दीख रही थी। उस वक्त कुछ ही लोग थे जिन्हें दर्श की इन बातों का मतलब असल में समझ आ रहा था।
 
कुछ स्टूडेंट्स (चिल्लाते हुए)- लेकिन वो है कौन ??? आज तो हमें भी मिला दीजिए।
 
दर्श (हल्के से)- माफ करना दोस्तों लेकिन अपने दिल की बात तो अब तक उससे भी नहीं कह पाया हूं, तो आपसे क्या कह पाऊंगा।
 
                 सारे स्टूडेंट्स सीटियां बजाने लगे और जोर जोर से हूटिंग करने लगे। भव्या की नजरें तो शर्म के मारे जमीन से उठ ही नहीं पा रही थीं। वो बस नीतिका का हाथ पकड़े चुपचाप सिर झुकाए बैठी थी। उधर अचानक स्टेज से दर्श के गाने की आवाज आने लगी और भव्या बस उसमें ही खोती जा रही थी।
 
 
पहली दफा हुआ है ये क्या
मैं मुझमे नहीं
हुवा जाने क्या?
 
 
 
पहली दफा हुआ है ये क्या
मैं मुझमे नहीं
हुवा जाने क्या?
अक्सर खयालो में दिल सोचता
तुझसे है शायद कोई वास्ता
जबसे तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या
 
 
ओस की बूंदों में अक्स तेरा
साया तेरा
रंग धूप से भी है सुनेहरा
जिस पे हैरान मन ये मेरा
ग़ुज़री है ये करके आरज़ू
फिर से तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या
 
असि घर पर मिलके जाना हो
तू जो दिल च बसाये कर जाना हो
असि घर पर मिलके जाना हो
तू जो दिल च बसाये कर जाना हो
 
परियों से भी ज़्यादा है तू हसीं
दिल नशीं हुआ यकीन
दीवारों पे तूने मेरे दिल की
दस्तक दी दूर से ही
हर पल तेरी है जुस्तुजू
फिर से तू आये रूबरू
ख्वाइशें तेरी मैं करने लगा
ख्वाइशों में बहने लगा
फ़िदा क्या तुझपे मैं होने लगा
पहली दफा हुआ है ये क्या. ......
 
 
                      वहां बैठा हर एक शक्श सबकुछ भूले बस दर्श की मीठी आवाज और उसकी ख्वाहिशों की नदी में गोतें लगाए जा रहा था। इन सबमें अगर किसी की हालत अगर सबसे ज्यादा बदहवास सी थी तो वो थी भव्या की, वो तो बस नीतिका का हाथ जोर से पकड़े एक टक बस नीचे देखे जा रही थी। चाह कर भी शर्म से उसे नजर उठाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। दर्श भी थोड़ी देर बाद स्टेज से उतर कर चुपचाप नीचे आ कर भव्या से बस कुछ दूरी पर ही बैठ गया।
 
                 थोड़ी ही देर में नीतिका वॉशरूम का बोल कर वहां से निकली तो उसके बाहर निकलते ही अचानक किसी ने जोर से उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींच लिया और वो जैसे ही डर से चिल्लाने ही वाली थी कि उस अनजान आदमी ने अपना हाथ झट से बिना सोचे उसके मुंह पर रख दिया जिससे वो और झटपटाने और डर से रोने लगी।
 
                अब आद्विक को उसकी आंखों में आसूं देख कर होश आया कि शायद उसने कुछ ज्यादा ही जोर से नीतिका का हाथ पकड़ रखा था और उसने झट से उसका हाथ छोड़ दिया। नीतिका डर और दर्द से बस एक ओर खड़ी हो गई। 
 
आद्विक (गुस्से में)- अजीब फूल कुमारी हो तुम भी, यहां हाथ पकड़ा नहीं कि नखरे चालू।
 
नीतिका बस गुस्से में उसे घूरने लगी।
 
आद्विक (चिढ़ कर)- एक तो तुम्हारी अक्ल का समझ नहीं आता, वैसे तुम्हारे पास अक्ल है भी या नहीं, मुझे नहीं पता, और हां, मुझे ये जानने का शौक भी नहीं है।
 
नीतिका (गुस्से और दर्द में)- तो यही बताने के लिए इस तरह मुझे यहां खींच कर लाए हैं??? 
 
आद्विक (गुस्से में)- अपने आप को इतना भी वैल्यू मत दो तुम, और हां, आद्विक सिन्हा का इतना बुरा दिन भी नहीं आया है कि तुम जैसी नमूनी को अपने साथ एक पल के लिए भी खड़ा बर्दाश्त करे। 
 
           अब नीतिका भी आद्विक की इस बदतमीजी से गुस्से से तमतमा रही थी। लेकिन वो कुछ कहती या करती कि तब तक वो फिर से बोल उठा।
 
आद्विक (फिर से)- अगर बात मेरे दोस्त की नहीं होती तो.......
 
           नीतिका को इस पल उसे कुछ भी ज्यादा समझ नहीं आ रहा था।
 
आद्विक - तुम्हें इतनी सी अक्ल नहीं है कि अपनी दोस्त के साथ खुद से पूरा वक्त चिपके रहने के बजाय उसे उसके साथ कुछ पल बिताने दो, जो उसकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत पलों में से एक होने वाले हैं। सच में उसकी अच्छी दोस्त हो या ........ या फिर...... (थोड़ा रुककर)..... जल रही हो उसकी खुशियों से, क्योंकि तुम लड़कियों का कोई भरोसा नहीं है ना, जिसे दोस्त मानो कल को उसे ही खुश देख उसकी खुशियां छीनने में लग जाओ।
 
            नीतिका से अब आद्विक की बदतमीजी उसके बर्दाश्त के बाहर थी।
 
नीतिका - तरस आता है मुझे उन स्टूडेंट्स पर जिन्होंने अपना कीमती वोट दे कर तुम्हें इस कॉलेज का प्रेसिडेंट बनाया होगा, तुम पर भरोसा किया होगा। उन्हें कहां पता कि जो बदतमीज इंसान कभी अपनी गंदी सोच से ही नहीं निकल पाया वो कभी भी दूसरों के लिए क्या करेगा।
 
            आद्विक नीतिका की ये बातें बर्दाश्त नहीं कर पाया और वहीं गुस्से में बिना देखे नीतिका को सामने से धक्का दे डाला। वैसे धक्का उतनी जोर का भी नहीं था लेकिन ऐसे अचानक मिलने की वजह से वो खुद को संभाल नहीं पाई और पीछे की ओर फिसल कर गिर पड़ी। वहीं पीछे एक टूटी हुई सी बेंच थी जिसका एक किनारा नीतिका को जोर से लगा और वो तड़प उठी। अब तो आद्विक भी नीतिका की हालत और उसके सिर से बहते खून को देख परेशान हो गया, कुछ समझ पाता कि उससे पहले ही और भी कुछ लोग वहां जमा हो गए। 
 
                कुछ ने मिल कर नीतिका को उठाया और जल्दी से उसे ले कर फर्स्ट एड रूम में गए। वहां बीती डॉक्टर ने उसके घाव को देख कर उसकी सफाई की और पट्टी बांध दिया। कुछ देर बाद जब वो थोड़ी सामान्य हुई तो सभी ने इस हालत की वजह पूछी तो कुछ सोच कर चुप हो गई। 
 
                  अब तक भव्या भी हड़बड़ाई हुई उसके पास आ गई और उससे पूछने लगी। उसने बस चक्कर आने का बहाना बता कर वो बात वहीं खत्म कर दी और जिद कर उसे अच्छे से समझा कर रुकने का कह कर खुद घर के लिए निकल गई।  उधर आद्विक भी कुछ पल के लिए बिल्कुल ही सन्न पड़ गया था और वो भी बस अपनी बाइक ले बिना किसी को कुछ बताए हुए चुपचाप वहां से निकल गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
Good going,wel come for a new story
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#9
             
yourock
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#10
उस दिन के बाद जहां नीतिका थोड़ी और शांत और चुप हो गई वहीं आद्विक भी दुबारा कॉलेज में नजर नहीं आया। नीतिका ने उस घटना को पूरी तरह से भूलने की भी पूरी कोशिश की लेकिन फिर भी ना चाहते हुए भी वो जब भी उस पल को याद करती उसे और तकलीफ होती। जितना होता वो खुद को पढ़ाई में डुबाए रखती। 
 
                दूसरी ओर दर्श और भव्या भी एक दूसरे का साथ पा कर काफी खुश थे। किसी न किसी बहाने से वो अक्सर कॉलेज आ ही जाता और भव्या के साथ कुछ वक्त बिताता। भव्या भी दर्श की ढेर सारी बातें नीतिका को बताती और वो उन दोनों को खुश देख कर और खुश होती।
 
                धीरे धीरे वक्त गुजरता गया और दोनों ही सहेलियों ने अच्छे नंबरों से अपना बीकॉम भी पूरा कर लिया। जहां दोनों ही सहेलियां आगे कोई अच्छी नौकरी करना चाहती थीं वहीं दोनों के ही घरों में उनकी शादी की बातें चलने लगीं जो आम तौर से हर घर में चला करती हैं। 
 
              एक ओर अब भव्या के लिए काफी मुश्किल हो चला था दर्श के बारे में घरवालों से कुछ भी और छुपाना तो आखिरकार उसने हिम्मत करके ये बात अपने भाई विवेक को बता दी। एक पल के लिए तो विवेक को उसकी बात पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं हुआ और ये सब सुन कर उसकी नाराज़गी भी जाहिर थी लेकिन नीतिका के काफी समझाने के बाद उसने भी दर्श की काफी जांच पड़ताल कराई फिर कहीं जा कर वो भी तैयार हुआ।
 
           चूंकि विवेक ने दर्श की बात पर भव्या को पहले ही हरी झंडी दे दी थी तो बांकी घरवालों को भी अब इस बात से कोई ज्यादा परेशानी नहीं थी। वैसे भी उसके मां पापा भी दर्श से मिल कर काफी प्रभावित थे और दर्श भी चूंकि घर से काफी संपन्न और पढ़ा लिखा था तो ज्यादा हिचकिचाहट की भी कोई गुंजाइश नहीं थी।
 
           यूं तो भव्या नौकरी करना चाहती थी लेकिन इस चीज़ को ले कर वो बहुत ज्यादा संजीदा भी नहीं थी। ऊपर से घरवालों के भी बार बार समझाने मनाने की वजह से वो भी आखिर शादी के लिए मान ही गई। दर्श भी अब तक एक अच्छे प्राइवेट फर्म में काफी अच्छे पोस्ट पर कार्यरत हो चुका था। 
    
         आखीरकार दोनों के ही घरवालों ने आपस में विचार विमर्श कर भव्या और दर्श की शादी फिक्स कर दी जो अगले महीने ही होनी थी क्योंकि इनकी कुंडली और लग्न के हिसाब से दूर दूर तक कोई अगला अच्छा लगन नहीं था। भव्या अगर कभी इतनी जल्दबाजी होते देख परेशान भी होती तो बांकी के समझाने और ये सोच कर कि चलो अपने प्यार के साथ जिंदगी भर सुकून से रहने का मौका तो हर किसी को नहीं मिलता ना, वो भी खुश हो जाती।
 
            दर्श और भव्या के इस खुशी से कोई और अगर बेहद खुश था तो वो थी उसकी दोस्त नीतिका जो पहले ही दिन से उन दोनों के प्यार का गवाह थी। दर्श भी अकसर मजाक में उसे अपनी साली ही कहता था जिस पर तीनों खिलखिला कर हंस पड़तीं। कभी कभी नीतिका भव्या के जाने के बाद अकेले हो जाने का सोच काफी उदास भी हो जाती फिर अगले पल उसकी खुशी देख खुद को भी समझा देती। वहीं भव्या भी इस बात से अकसर उदास हो जाती तो दर्श उसे यूं ही मजाक में कह देता कि कोई बात नहीं, अपने ही जान -पहचान में कोई अच्छा सा लड़का देख उसकी भी शादी करा देंगे फिर सारे साथ ही रहेंगे, और ये सुन वो भी खुश हो जाती।
 
            सगाई जैसी कोई रस्म अलग से भव्या और दर्श के लिए नहीं रखी गई क्योंकि दर्श के घर में ही किसी करीबी रिश्तेदार की एक सगाई के दिन वाले ही जलने से मौत हो गई थी। उसके बाद उन लोगों ने इस रस्म को ही मनहूस मान कर छोड़ दिया था। रस्म के नाम पर लड़के और लड़की वालों ने अलग -अलग जा कर ये रस्म पूरी कर ली थी।
 
          अब समय बीतता गया और आखिर शादी का वक्त भी आ गया। दोनों ही घरों में ढेर सारी रस्मों का होना शुरू हो गया जिसमें दोनों ही के घरवालों का एक दूसरे से मिलना जुलना भी बढ़ने लगा। नीतिका भी सगी बहन की तरह हर वक्त भव्या की एक एक जरूरत का पूरा खयाल रखती और उसके आगे पीछे ही घूमती रहती। ज्यादातर लोग तो अच्छे से नीतिका से परिचित थे लेकिन वहीं दर्श के घरवाले दोनों की इतनी गाढ़ी दोस्ती देख थोड़े हैरान भी रहते।
 
            शादी में आने जाने वालों में से काफी लोगों की नज़र अब नीतिका पर भी पड़ने लगी थी क्योंकि शादी की उम्र तो उसकी भी हो चुकी थी। उपर से देखने सुनने में सुन्दर के साथ साथ पढाई लिखाई और बात व्यव्हार में भी काफी होशियार थी तो सबकी नज़र पड़नी बिल्कुल लाजमी था।
 
 
 
दो दिन बाद........
 
 
           आज मेहंदी और संगीत दोनो ही कार्यक्रम रखे गये थे जिसमें दिन के पहले पहर में मेहंदी और दूसरे पहर में संगीत था। संगीत के कार्यक्रम में लड़के वाले और लड़की  वाले  दोनों ही परिवार वालों को भाग लेना था। आज दोनों  ही घर के सभी लोगों ने अपनी  भरपूर तैयारी कर रखी थी एक दूसरे को मात देने की। 
 
               सुबह पूरे शगुन के साथ मेहंदी का कार्यक्रम संपन्न हुआ, और एक बहुत ही खूबसूरत सा मेहंदी का डिज़ाइन भव्या के हाथों में लगाया गया जिसमें ठीक बीचों बीच दर्श का नाम बड़े प्यार से उभारा  गया। सबकी जिद में नीतिका को भी मेहंदी लगवानी पड़ी थी हालांकी उसे भी इन चीज़ों का बहुत शौक था लेकिन आज ना जाने क्यों उसे सबकी बातों से काफी शर्म और झिझक  सी आ रही थी जो कि ये कह कर चिढ़ा रहे थे कि ना जाने आज लड़के वालों की ओर से कौन कौन आयेंगे और क्या जाने उसी में कोई नीतिका को भी पसंद कर ही ले।
 
            शाम होते ही संगीत की रौनक लगने लगी। सभी एक एक कर पार्टी हॉल के पास जमा होने लगे। थोड़ी ही देर में वहां की सुगबुगाहट और बढने लगी क्योंकि लड़के वाले भी आ चुके थे। दर्श  की नजरें तो छुप छुप कर बस सिर्फ भव्या पर ही आ कर टिक रही थीं। 
 
           भव्या की मां ने नीतिका को भव्या को हॉल ले कर आने का बोलीं और खुद लड़के वालों की अगुवाई में लग गईं। वो उसे लेने जा ही रही थी कि तभी भव्या की दादी ने भी पीछे से आवाज लगा दी और अपना चश्मा ले कर आने को कहा। वो हां दादी बोल कर थोड़ा आगे मुड़ी ही थी कि उसकी सलवार उसके ही सैंडल में फंस गई और वो बुरी तरह मुंह के बल गिरने लगी।
 
            नीतिका गिरने के डर से जोर से उह मां..... कह कर चिल्ला ही रही थी कि अचानक सामने से किसी ने उसे जोर से पकड़ लिया और वो बच गई। लेकिन गिरने के डर से उसकी आंखें अब भी बंद थीं।
 
अंजान आदमी (थोड़ा गुस्से में) - ड्रामा खत्म हो गया हो तो उठो, वरना अभी छोड़ दूंगा। 
 
          आवाज सुनते ही नीतिका ने हड़बड़ा कर झट से अपनी आंखें खोल दीं। सामने खड़े इंसान को देख कर तो कुछ पल के लिए वो बिल्कुल शांत हो गई लेकिन अगले ही पल गुस्से में खुद को संभालती हुई खड़ी हो गई।
 
नीतिका (गुस्से में)- तुम यहां क्या कर रहे हो?? और मुझे छूने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?? मैंने कहा था ना, जिंदगी भर मुझसे दूर रहो।
 
आद्विक (गुस्से में)- मैं यहां वही कर रहा हूं जो तुम कर रही हो , हां और रही बात तुम्हें छूने और तुम्हारे पास आने की तो पहले भी कहा था और आज भी कह रहा हूं कि मेरी बात अच्छे से कान खोल कर सुन लो, तुम दुनिया की अगर आखिरी लड़की भी हुई ना तो भी ये आद्विक सिन्हा, तुम्हें किसी भी कीमत पर खुद के पास इस जन्म में तो क्या अगले सात जन्मों में भी नहीं आने देगा।
 
नीतिका (गुस्से में)- कुछ भी नया नहीं है, बदतमीज तो तुम पहले भी थे और आज भी हो। सच कहूं तो सच में तरस आता है उस बिचारी पर जो तुम्हें झेलेगी।  बहुत ही बदकिस्मत होगी जो उस जगह होगी...............हां, उसके लिए ये दुआ जरूर करूंगी कि तुम्हें झेलने की ताकत उसे ऊपरवाला दे।
 
आद्विक (फिर से गुस्से में)- तुम जैसी बहनजी लड़कियों के पतियों का नसीब खराब होता होगा जिन्हें सच में पता नहीं होगा कि उनके कौन से पुराने पाप की सजा मिलती होगी। 
 
            खैर, मुझे क्या करना कि तुम किसकी जिंदगी खराब करती हो।
 
नीतिका (गुस्से में)- सच ही कहा है कुछ लोगों ने कि तमीज किसी दुकान से खरीद कर पिलाई नहीं जा सकती। अच्छे कपड़ों से इंसान की शक्ल बदल सकती है लेकिन इससे न ही उसके संस्कार बदलते हैं और न ही उसकी हरकतें।
 
          आद्विक को किसी की भी इतनी बातें सुनने की आदत नहीं थी वो फिर से गुस्से से अपने आपे से बाहर होने लगा और गुस्से में नीतिका का हाथ घुमा कर पकड़ लिया और उसके बहुत करीब आ कर बोला।
 
आद्विक -     आद्विक को किसी की भी इतनी बात सुनने की आदत नहीं है समझी, फिर तुम्हारी औकात कैसे हुई अपने हद से आगे बढ़ने की, तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि मैं तुम्हारे साथ क्या कर सकता हूं, इसीलिए बस अपने हद में और मुझसे हमेशा के लिए दूर ही रहो.......??
 
              आद्विक की इस हरकत से नीतिका दर्द से कराहने लगी और उसके आंसू बहने लगे। अब आद्विक को भी अहसास हुआ कि उसने गुस्से में क्या कर डाला। बिना कुछ बोले झट से अपने हाथ पीछे खींच लिए। वहीं दूसरी ओर नीतिका अब भी दर्द से कराह रही थी। आंसू की वजह से उसकी आंखें भी लाल हो चली थीं जिसे देख आद्विक को कुछ भी समझ नहीं आया इसीलिए वो वहां से चुपचाप फिर से चला गया वहीं नीतिका भी दर्द से अपना हाथ पकड़े वहीं बगल की सीढ़ी पर बैठ गई और सिसकने लगी।
 
              थोड़ी ही देर में भव्या को लेकर उसकी चचेरी बहनें हॉल में पहुंच गईं और उसे दर्श के पास ही बिठा दिया। दर्श ने भी सबसे छुप कर धीरे से उसका हाथ पकड़ लिया और भव्या शर्मा उठी। दोनों ही अपने इस एक एक पल को जी भर कर जी रहे थे। संगीत और नाच गाने के बीच में ही किसी बात पर दर्श की छोटी बहन बोल पड़ी।
 
छोटी बहन - भैया, ये आदि भैया कहां रह गए हैं??? अब तो उनकी परफॉर्मेंस का भी टाइम आ रहा है, फोन भी कर रही हूं तो बंद है।
 
दर्श (हैरानी से)- हां, ये आदि कहां है, मुझे तो कहा था संगीत शुरू होने के पहले ही वहां होऊंगा लेकिन अब गया कहां ??
 
                उसने भी कई बार आद्विक को फोन लगाया लेकिन कोई जवाब नही मिल रहा था।
 
आद्विक की बड़ी बहन - इस लड़का का भी कुछ समझ नहीं आता, करना क्या चाहता है और फिर आखिर करता क्या है??
 
आद्विक की भाभी (हंसती हुई)- दीदी, इसीलिए तो कहती हूं कि दर्शजी के साथ ही उनके भी फेरे पड़वा ही दीजिए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#11
आद्विक की दादी - हां, और क्या, मैं तो कबसे कह रही हूं कोई अच्छी लड़की खोजो और इसे बांधो, तभी घर परिवार की भी कीमत समझेगा।
 
आद्विक की दीदी (कुछ सोच कर)- हां दादी आप बिल्कुल ठीक कह रही हैं। वैसे मैंने यहीं उसके लिए एक लड़की देखी भी थी और सोचा भी था कि आप सबको भी दिखलाऊंगी, और इसी बहाने आद्विक भी देख लेता, मिल लेता, लेकिन पता नहीं, कहां रह गया ये लड़का ??
 
सभी (हैरानी से)- क्या, कौन है वो, दिखाइए ना, हमें भी मिलना है।
 
आद्विक की दादी - हां बेटा, कौन है, कैसी है, क्या है ?? तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ??
 
आद्विक की दीदी (इधर उधर देखते हुए)- पता नहीं दादी, किधर गई, आज तो दिख ही नहीं रही है वरना हमेशा तो दर्श की होने वाली दुल्हन के साथ ही रहती थी।
 
आद्विक की दीदी (फिर से)- काफी प्यारी, शांत और समझदार लड़की है दादी, मुझे तो अपने आदि के लिए बेस्ट लगती है। वैसे मैंने अभी इस बारे मे किसी से भी कोई बात नहीं की है, उसके घरवालों से भी नहीं, मुझे लगा पहले आप लोग एक बार देख लीजिए फिर बात करना सही रहेगा।
 
             इधर जहां दर्श और आद्विक के सभी घरवालों को नीतिका को देखने और उससे मिलने का बेसब्री से इंतजार था वहीं दूसरी ओर नीतिका सबसे बहाने कर घर वापस आ कर अपने कमरे में बैठी आद्विक की बातों और उसकी हरकतों को सोच कर अकेले में रो रही थी। भव्या ने भी कई बार सबसे पूछवाया कि नीतिका कहां है लेकिन किसी ने भी कोई खास जवाब नही दिया क्योंकि किसी ने भी उसे काफी देर से देखा नही था। वो भी नीतिका के लिए काफी परेशान हो गई लेकिन उस वक्त चूंकि वो होने वाली दुल्हन थी कुछ कर नहीं पा रही थी।
 
          संगीत में भी एक डांस उसका भी था लेकिन वो नहीं दिखी, इन सबको देख कर भव्या को भी बहुत अजीब लग रहा था और वो नीतिका के लिए परेशान हो रही थी। काफी देर बाद संगीत खत्म हुआ और सभी अपने अपने घर लौट गए। दर्श ने भी जाते हुए भव्या को धीरे से कान में उसे जल्दी ही अगले दिन अपने साथ हमेशा के लिए ले जाने की बात कही तो वो शरमा कर नीचे देखने लगी।
 
            कमरे में पहुंचते ही भव्या ने सबसे पहले उसे कॉल लगाया। नीतिका को अब समझ नहीं आ रहा था कि क्या बहाना बनाए।
 
भव्या (गुस्से में)- खुद को समझती क्या हो तुम?? जो मन में आएगा वो करोगी तुम ?? तुमने एक बार भी नहीं सोचा कि मुझे कैसा लगेगा?? 
 
नीतिका (धीरे से)- सॉरी भावी, लेकिन सच में तबियत बिल्कुल भी ठीक नहीं थी फिर गर्दन और बांह में थोड़ी मोच भी पड़ गई इसीलिए, और कोई बात नहीं है सच्ची।
 
भव्या (नाराजगी और गुस्से में)- अच्छी बात है, तेरे वक्त में मैं भी यही करूंगी, याद रखना, फिर पूछूंगी कैसा लगा ??
 
नीतिका (प्यार से)- अच्छा न, सॉरी, माफ कर दे। वैसे भी आज इतना गुस्सा करेगी तो कल अपनी ही शादी के दिन बीमार दिखेगी।
 
भव्या (मुंह बनाते हुए)- हुंह..... 
 
भव्या (थोड़ा शांत हो कर)- नीकू, तू सच में ठीक तो है ना?? सच सच बता, प्लीज।
 
                 नीतिका आज की बात सोच कर फिर से रुआंसी होने लगी लेकिन भव्या के बारे में सोच कर खुद को सामान्य करने लगी।
 
नीतिका (प्यार से)- हां यार, बिल्कुल ठीक हूं, तू इतना जोर मत डाल अपने दिमाग पर, कुछ बचाकर भी रख ले, ससुराल वालों को परेशान करने के काम आएगा।
 
             दोनों ही दोस्तों ने आज भी काफी देर तक एक दूसरे से जी भर कर बातें की फिर नीतिका के खूब समझाने पर वो सो गई। नीतिका भी फोन रख कर वापस कुछ सोचने लगी।
 
 
आद्विक का घर.......
 
 
            "आदि, कहां था तू कि तुझे दर्श के संगीत पर जाना भी याद नहीं रहा?? इतनी लापरवाही.... सोच उसे कितना बुरा लगा होगा???" आद्विक की नीतू दीदी गुस्से में आद्विक को डांट रही थीं।
 
            "हां चाचू, मैंने तो आपका डांस भी नहीं देखा।" प्यार और मासूमियत से आद्विक की चार साल की भतीजी पिया भी बोल पड़ी।
 
आद्विक (प्यार से कान पकड़ते हुए)- सॉरी बेटू....
 
पिया (मुंह बनाते हुए) - चाचू एक तो आपने भी डांस नहीं किया फिर नई चाची की बेस्ट फ्रेंड की भी तबियत खराब हो गई तो उनका भी डांस नहीं देखा, कितना sad sad हुआ ना ये तो।
 
आद्विक पिया की बात पर कुछ सोचने लगा।
 
आद्विक की सौम्या भाभी (आद्विक की दीदी की ओर देखते हुए)- हां दी, मैंने कुछ लोगों से पूछा था उस लड़की के बारे में तो उन्होंने ही बताया कि शायद अचानक गिरने से थोड़ी मोच आ गई थी इसीलिए वहां नहीं दिखी वो।
 
           अब आद्विक को भरोसा हो चुका था कि वे लोग उसी की बात कर रहे थे जिससे वो टकराया था। वो भी उठ कर चुपचाप कमरे में जा कर लेट गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#12
"पता नहीं क्या हो जाता है मुझे, मैं कब से अंजान लोगों की वजह से खुद को दुखी करने लगी हूं। यूं तो मुझे कभी ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ा किसी की भी बात का लेकिन इसकी बातों को मैं चाह कर भी नज़रंदाज़ नहीं कर पाती। ना ही उस दिन, और न ही आज..... " खुद में सोचती हुई परेशान सी नीतिका बिस्तर पर लेटे लेटे करवटें बदलती रही और सोचती रही।
 
 
 
आद्विक का घर.....
 
        "कितनी बार कहा है, मत आओ मेरे सामने, फिर भी ना जाने क्यों टकरा जाती हो मुझसे?? चिढ़ है मुझे तुम जैसी जान बूझ कर सीधी -साधी बनने वाली लड़कियों से। तुम्हारा ये चेहरा उसे बेवकूफ बना सकता है जिन्हें लड़कियों को पहचानना नहीं आता, मैं नहीं। अच्छे से जानता हूं तुम जैसी सीधी और भोली दिखने वाली लड़कियों को, वो भी उनका किसी ना किसी बहाने से अमीर लड़कियों से टकराना। फिर उनकी भावनाओं से खेलना। लेकिन बस अब और नहीं...... पता नहीं पूरी दुनिया छोड़ कर इस दर्श को भी इसी की दोस्त मिली थी....।" आद्विक अपने कमरे में बैठा बैठा खुद में ही गुस्से से बडबडा रहा था।
 
            "क्या हुआ भाई, मेरे बच्चे को?? किसने इस cool dude की नींद उड़ा दी है ??" आद्विक के दादा -दादीजी अचानक से उसके कमरे में आते हुए हंस कर बोले।
 
आद्विक (मुंह बना कर)- कुछ नहीं दादी -दादू, बस यूं ही...
 
            आद्विक की बात सुन कर उसके दादा दादी बस मुस्कुरा रहे थे।
 
आद्विक (कुछ सोच कर फिर से)- आप लोग यहां, इस वक्त?? मेरा मतलब है कि कल तो दर्श की शादी भी है, पूरे दिन थकान होती रहेगी तो कम से कम आज तो अच्छे से आराम कर लीजिए।
 
दादी (प्यार से)- हां बेटा, वहीं जा रहे थे हम लेकिन सोचा कि एक बार अपने पोते को भी देखते चले जाएं।
 
             आद्विक भी उनकी प्यार भरी बात सुन कर मुस्कुराने लगा।
 
आद्विक (अपने दादाजी की ओर देखते हुए)- दादू, ये तो हो गई आज की मक्खनबाजी, अब सच -सच बताइए कि क्या काम है आप दोनों को मुझसे जो ये हीर रांझा की जोड़ी एक साथ मेरे पास आई है??
 
            सच्चिदानंद जी (आद्विक के दादाजी) आद्विक की बात सुनते ही खांसने लगे तो उनकी पत्नी उर्मिला जी यानी कि आद्विक की दादी उन्हें आंखें दिखाने लगीं।
 
दादी (प्यार से)- बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है, हम बस यूं ही सोच रहे थे कि न जाने हम बूढ़े -बूढ़ी कब अपने सभी बच्चों को सेटल होते देख पाएंगे?? देखो, नीतू और आदर्श ने भी अपनी घर गृहस्थी अच्छे से बसा ली है तो अब हमें उनकी चिंता भी नहीं रहती। अब बस एक......
 
                  इतना कहते हुए दादी भी चुप हो गईं। आद्विक अब अपनी दादी का मतलब काफी हद तक समझ चुका था फिर भी जान कर नासमझ बन रहा था। 
 
आद्विक (टालते हुए)- दादी, क्या मैं आपको खुश अच्छा नहीं लगता हूं??
 
दादी - नहीं बेटा, ऐसे क्यों सोच रहे हो?? शादी ब्याह भी जिंदगी को एक अच्छे और खूबसूरत मोड़ पर ले जाने का एक जरिया है बेटा, जिसमें एक नया साथी का साथ पा कर इंसान जिंदगी की हर अच्छी बुरी सौगातों को अपनी झोली में समेट पाता है। इस सफर में एक साथी थक भी जाए तो दूसरा उसे साथ खड़े हो कर चलने का हौसला देता है।
 
आद्विक (थोड़ा शांत हो कर)- हर साथी इतना अच्छा नहीं होता दादी....
 
दादी (बात बीच में काटती हुई)- बेटा, हर साथी उतना बुरा भी नहीं होता.... एक मौका तो दो तुम हमें।
 
आद्विक (उदास मन से)- यही कह कर ना आप लोगों ने दीदी और आदर्श भैया की भी शादी करवाई थी ना, लेकिन क्या हुआ आज??
 
             तीनों ही एक पल के लिए बिल्कुल शांत हो गए।
 
आद्विक के दादाजी (थोड़ा गंभीर हो कर)- पुरानी बातों पर दुखी हो कर इंसान जीना नहीं छोड़ता बेटा। हर किसी के जिंदगी में एक सी परीक्षाओं का सामना नहीं होता। 
 
दादाजी (फिर से)- मैं जानता हूं कि नीतू या आदर्श की शादी में थोड़ी बहुत दिक्कतें आ रही हैं लेकिन देखना समय से सब ठीक हो जायेगा। 
 
आद्विक (दुखी होकर)- दादू, मां -पापा का रिश्ता जब आज तक आदर्श नहीं बन पाया इतने सालों में भी तो सच कहता हूंइस शादी नाम के शब्द से मेरा भरोसा जा चुका है।
 
दादी (थोड़ा गंभीर हो कर)- देखो बेटा, मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डालना चाहती और ये भी जानती हूं कि तुम इस बात को भी अच्छे से समझते हो कि अगर आज सुबोध और सुनीता (आद्विक के मां -पापा) को घर गृहस्थी की इतनी चिंता होती तो ये बुढ़िया भी आराम से घर के किसी कोने में आराम से भजन कर रही होती।
 
आद्विक (दुखी हो कर)- दादी, ये घर और हमारी जिंदगी ऊपर से और सभी बाहर वालों के लिए कितनी अलग और खुशनुमा लगती है, लेकिन असल सच्चाई कितनी अलग है ना?? हमारा परिवार जो इस पूरे शहर में कितनों के लिए एक आदर्श परिवार है लेकिन अंदर की सच्चाई इतनी खोखली है कि दम घुटता है मेरा।
 
आद्विक (फिर से)-  एक ओर पापा, जिनके लिए इस शहर में जरूरत पर हर किसी के लिए समय है सिवाय अपने बच्चों के, दूसरी ओर मां, जो बचपन से आज तक अपनी बड़ी फैमिली से निकल कर आने का सदमा अब तक नहीं भूल पाईं हैं। उनके उस वक्त इलेक्शन में खड़े ना होने देने का बदला वो आज तक हम सब से ही ले रही हैं।
 
            नीतू दीदी की शादी इतना सोच समझ कर करने के बाद भी अब तक सिर्फ एक बच्चा ना हो पाने की वजह से उनके पति और परिवार वालों को इनके ऊपर उंगली उठाने का लाइसेंस मिल गया। दूसरी ओर आदर्श भैया जिन्होंने सिर्फ मां पापा के डर से अपनी पसंद की शादी न करके किसी और से की जिसकी सजा और नाराजगी अब भी सौम्या भाभी अपने मन में ले कर बैठी हैं। 
 
आद्विक (रूआंसा सा)- किस शादी को देख कर आदर्श कहूं दादी, किस शादी को देख कर मुझे एक बार भी ऐसा महसूस होना चाहिए कि शादी सच में जिंदगी में सुकून ले कर आएगी कोई तकलीफ नहीं।
 
          आद्विक के अंदर का दर्द उसके दादा दादी, दोनों ही अच्छे से समझ रहे थे, क्योंकि सच तो यही था कि उसने जो कुछ भी कहा था वही असल सच्चाई थी उनके परिवार की।
 
                  "वाह बेटा, वाह, सबकी बात कर ली लेकिन अपने दादू -दादी को क्यों छोड़ दिया?? आद्विक के दादाजी ने प्यार से पूछा।
 
आद्विक (प्यार से उन दोनों का हाथ पकड़ कर)- आप दोनों तो always और always परफेक्ट हैं।
 
दादाजी (प्यार से)- तो बस, हमें ही देख कर बढ़ जा आगे....... और बांकी सब बस ऊपरवाले पर छोड़ दो।
 
           आद्विक उनकी बात सुन कर बिल्कुल चुप हो गया।
 
दादाजी (थोड़ा गंभीर हो कर)- देखो आदि, अगर तुम्हें पहले से कोई और भी पसंद है तो तुम खुल कर बता सकते हो, हमारी ओर से जो गलती आदर्श के वक्त हुई थी वो हम अब दुबारा किसी हाल में नहीं होने देंगे।
 
आद्विक (शांति से)- नहीं दादू, ऐसी कोई बात नहीं है, वरना आपको पता होती, आप जानते हैं कि मैं आपसे कुछ भी नही छुपाता।
 
आद्विक (फिर से)- लेकिन.......
 
दादी -दादाजी (दोनों एक साथ)- लेकिन क्या???
 
आद्विक (धीरे से)- मुझे अरेंज्ड मैरिज पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है।
 
दादाजी (थोड़ा हंसते हुए)- वाह, अरेंज्ड मैरिज में भरोसा नहीं है तुझे और लव तू किसी से करता नहीं है, क्या खूब है....
 
           आद्विक चिढ़ कर दादाजी की ओर घूरने लगा।
 
दादी (गंभीर हो कर)- देखो बेटा, वैसे इस बात पर तो सबकी अपनी अपनी राय होगी, लेकिन सच कहूं तो मैं यही जानती भी हूं और मानती भी कि कोई भी शादी लव या अरेंज होने की वजह से नहीं चलती बल्कि एक दूसरे पर भरोसा और इस रिश्ते में विश्वास होने से चलती है। शादी एक अनजाने सफर का नाम है, जिस पर दो इंसानों को साथ साथ चलना होता है, उसमें अगर कभी भी किसी एक की रफ्तार धीमी होती है तो वही दूसरा शक्श अपनी रफ्तार स्वयं धीमी कर उसका हौसला बढ़ाता है। जो भी इंसान अपनी इन जिम्मेदारियों को बाखूबी समझ जाएगा उसे सामने वाले से कभी भी कोई शिकायत नहीं रहेगी।
 
आद्विक (धीरे से)- दादी, लेकिन.....
 
दादी (बात काटती हुई)- देखो बेटा, मैं तुम पर कोई जोर नहीं डाल रही हमारे फैसले को मानने की, मैं तो बस एक रिश्ते की बात करने आई थी कि एक बार देख लो, अगर सही लगी तो ठीक है नहीं तो फिर जाने दो।
 
आद्विक (कुछ सोच कर)- ठीक है, आप दोनों को जो सही लगे।
 
             थोड़ी देर और रुक कर आद्विक के दादा दादी, दोनों अपने कमरे की ओर वापस चले गए और आद्विक अपने बेड पर पड़ा - पड़ा कुछ सोचने लगा और कब नींद आ गई पता भी नही चला।
 
 
शादी का दिन........
 
             आज तो दोनों ही घर की रौनक ही अलग थी। सभी  एक से एक कपड़ों और मेकअप के साथ घूम रहे थे। नीतिका भी आज सुबह से ही पूरा वक्त भव्या के ही पास थी ताकि उसे किसी भी चीज की कोई कमी नहीं हो।
 
भव्या (थोड़ा भावुक होकर)- नीकू, अभी से ही मैं इस घर के लिए कितनी अनजानी हो गई ना, अभी से ही मेरे ही घरवाले मेरा खयाल एक बेटी की तरह नहीं बल्कि एक मेहमान की तरह कर रहे हैं।
 
              भव्या की बातों ने नीतिका को भी भावुक कर दिया, उसने किसी तरह खुद को सामान्य किया।
 
नीतिका - पागल है तू, ऐसे क्यों सोच रही है?? इस बात को तुम ऐसे क्यों नहीं देख रही हो भावी कि आज तो तुम्हारा सबसे स्पेशल दिन है, इसीलिए सभी तुम्हारा इतना खयाल रख रहे हैं, जैसे तू हमेशा चाहती थी।
 
भव्या (दुखी सी)- नीकू, ये वो स्पेशल दिन है, जिसके बाद सब कुछ बदल जायेगा, है ना??
 
भव्या (फिर से)- लेकिन सच कहूं, इस स्पेशल ट्रीटमेंट से कहीं ज्यादा मीठी मां की डांट, पापा का गुस्सा, भैया से लड़ाई है.... और उससे भी बड़ी बात उन चीजों में मुझे मेरा हक दिखता था जो आज इस इतना ज्यादा खयाल रखने पर भी नहीं दिखता।
 
           दोनों ही दोस्तें ढेरों पुरानी बातें सोचती हुई एक दूसरे के गले मिल कर रोने लगीं। उन दोनों की बातों में कोई एक तीसरा भी था जो बहुत ही भावुक था उस पल को देख कर और अकेले में अपना आंसू पोंछ रहा था, वो था विवेक, भव्या के भैया। खुद को नॉर्मल कर वो भी दोनो के पास आ कर खड़े हो गए।
 
विवेक (जान कर चिढ़ाते हुए)- ये सही है तुम दोनों का, मन की ना हो तो भी रोना, और अगर मन की हो तो भी रोना... क्या चीज़ हैं भाई ये लड़कियां..
 
         दोनों ही दोस्तें अब भी चुप थीं।
 
विवेक (फिर से मजाक करते हुए)- वैसे एक बात बताओ, बिना ग्लिसरीन के भी हर एक मोमेंट के लिए इतना सारा टोकरी भर भर कर ये आंसू आखिर लाती कहां से हो ?? बड़ा सही है यार, किसी को भी पता तक नहीं चलने वाला कि ये असली हैं या फिर नकली।
 
        "Plz भैया, आज नहीं.... आज हमारा बिल्कुल भी मूड नहीं है आपसे लड़ने का, सही कह रही हूं।" दोनों एक साथ चिल्लाने लगीं और विवेक दोनों को देख हंसने लगा। 
 
विवेक (हंसते हुए)- हां, लड़ने का तो सोचना भी नहीं, वरना बिचारे मेरे पापा के इतने पैसे जो तुमने इतनी सारी रोशनाई -चिकनाई में खर्च किए हैं, बर्बाद ही होंगे उसपर तुम्हारी शक्ल बिगड़ेगी सो अलग, बाद का रोना धोना कौन झेलेगा रे बाबा....
 
भव्या (चिढ़ कर)- भैया, मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं, देख लेना... 
 
            भव्या ने गुस्से में बगल में रखा तकिया विवेक की तरफ फेंक कर मारा तो विवेक ने उसे अपने एक हाथ से पकड़ लिया और हंसने लगा।
 
विवेक (हंस कर)- अब बिचारे दर्श बाबू को तो भगवान ही बचाए .... हमारा बुरा वक्त खत्म और किसी बिचारे का चालू..... वैसे ये बात तो पक्का है भावी, बिचारे दर्श बाबू अभी तक जिसे सूरजमुखी समझ रहे हैं वो तो असल में क्या खतरनाक ज्वालामुखी है वो भी नहीं जानते होंगे।
 
            इस बात पर तीनों एक बार खिलखिला कर हंसने लगे लेकिन अगले ही पल विदाई की बात सोच तीनों भावुक हो कर एक दूसरे के गले लग गए।
 
 
शादी की शाम.....
 
           शादी की शाम होते ही भव्या के घर से लेकर थोड़ी दूर बने हॉल तक का पूरा रास्ता ढेर सारी सजावटों से जगमगा उठा। शादी की पूरी तैयारी बहुत ही अच्छे से की गई थी ताकि किसी को भी कोई दिक्कत ना हो और साथ ही बहुत खूबसूरत भी हो।
 
           भव्या, आज दुल्हन के रूप में बिल्कुल अलग और बहुत प्यारी लग रही थी जिसकी नजर बार बार उसकी मां खुद ही भावुक हो कर उतार रही थीं। दादी ने भी पास आ कर प्यार से उसके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और ढेरों बलाइयां लीं। भव्या के पिताजी दूर से ही अपनी बेटी को निहारते और ढेरों आशीर्वाद देते। उनके लिए अपने जिगर के टुकड़े को यूं विदा करना बिलकुल भी आसान नहीं था। शायद इसीलिए दूर ही रह कर खुद को संभालते रहते कि उनकी स्थिति का कोई अंदाजा ना लगा सके। लेकिन बेटियां तो बेटियां हैं उनसे ज्यादा अपने पिता के दिल का हाल कोई समझ ही नहीं सकता। वो भी बस मन ही मन अपने पिता की तकलीफ सोच और दुखी होती।
 
          शादी के लिए अब सभी बस बारात के आने की प्रतीक्षा में थे जो बस पहुंचने ही वाली थी। दूर से ही, ढोल और शनाइयों की आवाज गूंज रही थी जो धीरे धीरे पास आने की वजह से और बढ़ती जा रही थी। किसी की पहले से कितनी ही तैयारी क्यों ना हो लेकिन बारात आगमन के नाम से ही लड़की वालों में एक अलग ही भागम भाग मच ही जाती है, जो बिल्कुल सामान्य है, वही हाल आज यहां का भी था।
 
          आखिर बारात अपने निश्चित जगह तक पहुंच ही गई और सारे लड़की वाले उसकी अगुवाई के लिए खड़े हो गए। वहीं लड़कियों में दूल्हे और उसके साथ आए लड़कों को देखने के लिए अलग ही होड़ मची थी। अपने साथ ही सभी जिद में नीतिका को भी खींच कर ले गईं।
 
          सामने खड़ी ओपन कार में बैठा दर्श आज किसी सपने के राजकुमार से कम नहीं लग रहा था। हल्के मरून रंग की शेरवानी पर शादी का सेहरा अलग ही लुभावना लग रहा था जिसकी तारीफ घर आए सभी नाते -रिश्तेदार कर रहे थे और वो सब सुन कर भव्या की मां और दादी फूली नहीं समा रही थीं। नीतिका भी दर्श को देख कर बहुत खुश थी। मन ही मन दोनों की जोड़ी जिंदगी भर बनी रहे की प्रार्थना कर रही थी।
वो कुछ सोच ही रही थी कि पास खड़ी एक लड़की बोल पड़ी।
 
एक लड़की - यार, दूल्हे को छोड़ो, वो तो ऑलरेडी इंगेज्ड हैं और फिर आज तो उनका दिन है तो वो तो सुंदर लगेंगे ही लेकिन यार उसके बगल में बैठे इस लड़के को तो देखो क्या खूब लग रहा है, बिल्कुल रणबीर कपूर टाइप.....
 
                   एक के बोलते ही बांकि सभी भी उसी की ओर आंखें फाड़ कर देखने लगीं। नीतिका की भी नजर उस पर गई लेकिन वो बिल्कुल चुप हो गई क्योंकि वो कोई और नहीं बल्कि आद्विक था। देखने में तो वो खुद ही किसी हीरो से कम नहीं था और आज तो वो सच में ही कुछ अलग लग रहा था।
 
             "हां, इस बेदिमाग इंसान को मैं कैसे भूल गई थी, इसे तो अपनी दोस्ती का नगाड़ा पीटने आना ही था आज। आज तो अगर इसने कोई भी ऐसी वैसी बात बोली तो आज इसे सच में जी भर कर सुनाऊंगी कि इसकी सातों पुश्त याद रखेगी........ (थोड़ा रुक कर)........ नहीं, मैं क्यों ऐसे -वैसे के मुंह लगूं, जिसे जो करना है करे, होगा नवाब अपने रजवाड़े का, उससे डरती है मेरी जूती....।" खुद में बड़बड़ाती हुई नीतिका बोल रही थी। 
 
              "बेटा एक काम करो जल्दी से जा कर जयमाला की थाली तो ले आओ और एक बार भावी को भी देख लेना कि वो ठीक से तैयार है ना, अब बस जयमाला ही होगी पहले।" भव्या की मां नीतिका के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं।
 
नीतिका (हड़बड़ाते हुए)- जी....जी आंटी जी, मैं बस अभी देख कर आती हूं।
 
               हड़बड़ाती हुई नीतिका घर की ओर मुड़ गई। अपने ही खयालों में डूबी बढ़ती जा रही थी कि अचानक पीछे से कोई जानी पहचानी सी आवाज आई और वो पलटी।
 
              "देखो, मैं तुम्हें यहां कोई ज्ञान या तुम्हें एक्स्ट्रा भाव देने नहीं आया हूं, मैं बस इतना कहने आया हूं कि आज जैसे तुम्हारे लिए बहुत ही खास दिन है वैसे ही मेरे लिए भी ये पल और मेरे दोस्त की खुशियां बहुत मायने रखती हैं। उम्मीद है कि आज हम दोनों ही इस बात का खयाल रखेंगे कि हमारे किसी भी आपसी तनाव की वजह से इनका ये पल खराब हो।"  आद्विक शांति से बोल पड़ा।
 
            जहां आज आद्विक की हरकतों से नीतिका हैरान थी उससे ज्यादा उसे भी इस बात का सुकून था कि वो भी अब अच्छे से अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी का हर एक पल इंजॉय कर सकेगी। लेकिन उसने मुंह से कुछ कहा नहीं और बस वापस मुड़ गई।
 
आद्विक (फिर धीरे से)- और कल के लिए रियली सॉरी ?
 
             नीतिका को उसके मुंह से अचानक सॉरी सुन कर अजीब लगा लेकिन उस पर भी उसने कुछ नहीं बोला और आगे बढ़ गई। आद्विक वहीं खड़े उस पल उसे देखता रह गया।
 
             "भाव तो इस हूरपरी के करोड़ों हैं, उस पर तमीज एक पैसे की भी नहीं। गलती खुद की भी थी लेकिन क्या मजाल कि माफी के बदले वो भी माफी मांग ले, ना... आन और अकड़ कैसे कम हो जायेगी?? तू ही बेवकूफ था जो बड़ा साधू बाबा बनने का जोश छाया था, बड़ा आया माफी मांगने... हुंह...।" खुद में बड़बड़ाता हुआ आद्विक भी स्टेज की तरफ वापस मुड़ गया।
 
            "सुनो, सॉरी.... मुझे भी बिना सोचे समझे उतना कुछ नहीं कहना चाहिए था।" आद्विक अचानक ये आवाज सुन  पीछे मुड़ गया, देखा तो सामने नीतिका खड़ी थी।
 
           कोई और कुछ कह पाता कि भव्या की मां का फिर से फोन आ गया और वो हड़बड़ा कर वापस चली गई। एक पल के लिए आद्विक भी सोच में पड़ गया लेकिन अगले ही पल सिर झटक कर वापस मुड़ गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#13
            बड़े ही अच्छे से जयमाला का कार्यक्रम भी संपन्न हो गया, जहां एक पल के लिए भी दर्श की नजर भव्या से हट ना सकीं। वहीं दर्श को लगातार अपनी ओर देखते हुए भव्या और शर्मा कर लाल हुई जा रही थी। 
 
              जयमाला खत्म होते ही दोनों को शादी के मंडप की ओर ले जाया जाने लगा। कुछ लोगों को छोड़ कर बांकी सभी घरवाले बारातियों के खाने पीने का ध्यान देखने लगे। जिसमें एक नीतिका भी थी, क्योंकि भव्या की मां ने उसे अलग से सबका खयाल रखने की हिदायत दी थी कि किसी को भी कोई परेशानी ना हो, खास कर दर्श के करीबी महिला रिश्तेदारों का। नीतिका भी पूरी ईमानदारी से अपना काम कर रही थी।
 
          आज नीतिका ने भी एक हरे रंग का प्यारा सा लहंगा चोली पहन रखा था जिसमें उसके लंबे बालों का एक खूबसूरत जा जूड़ा बना रखा था। आंखों में काजल और चेहरे पर बस हल्की सी मेकअप, फिर भी वो बहुत ही प्यारी लग रही थी। आज जहां एक ओर दर्श और भव्या की शादी की रस्में हो रही थीं वहीं दूसरी ओर आद्विक के सभी घरवाले नीतिका को चुपचाप देखने और परखने में लगे हुए थे जिसका दूर तक उसे कोई अंदाजा भी नहीं था।
 
          नीतिका की दादी चूंकि ज्यादा चल फिर नहीं पा रही थीं तो वो हर थोड़ी देर में उनके पास जा कर कोई जरूरत तो नहीं है ये पूछ कर आती। दादी को भी नीतिका अपने पोते के लिए पहली ही नजर में भा चुकी थी।
 
नीतू दीदी (धीमे से)- अगर आज मां आई होती तो ये बात भी आज ही पक्की कर लेते।
 
दादी (दुखी मन से)- जो औरत आज तक अपने घर परिवार और रिश्तों की कद्र नहीं कर पाई वो अब आगे क्या करेगी।
 
सौम्या भाभी (कुछ सोच कर) - दादी, अब तक लगभग सारे फैसले आपने और दादाजी ने ही लिए हैं तो अब ये आखिरी वाला भी आप ही ले लीजिए।
 
दादी ( कुछ सोच कर लंबी सांस लेते हुए)- नीतू, तुमने इस बच्ची के घरवालों से कोई बात की है या नहीं अब तक ??
 
नीतू - नहीं दादी मां, लेकिन बस एक दो बार इन्हीं रस्मों में मिली हूं क्योंकि दोनों ही परिवार काफी करीबी हैं।
 
            नीतू ने इशारे में ही नीतिका की मां को दिखाया जो दूसरी ओर शादी के मंडप में खड़ी भव्या की मां की मदद कर रही थीं। दादी के कहने पर ही नीतू दीदी ने जा कर उन्हे बुलाया।
 
            नीतिका की मां शादी में कोई ऊंच -नीच ना हो गई हो ये सोच कर थोड़ा घबराती हुई आईं तो आद्विक की दादी ने उन्हें प्यार से बगल में बिठाया और नीतिका का हाथ अपने पोते आद्विक के लिए मांगा। नीतिका की मां तो इस बात पर बिल्कुल हैरान रह गई।
 
दादी - देखो बेटा, मुझे ये बच्ची अपने पोते के लिए एक नजर में भा चुकी है, अब आप भी आदि यानी कि लड़के को देख परख लीजिए, फिर हामी भरिए हमें कोई दिक्कत नहीं है।
 
नीतू दीदी - जी आंटी जी, मैं तो नीतिका को तब से देख रही हूं जब से यहां दर्श की दुल्हन को सगाई की अंगूठी पहनाने आई थी। तबसे हमें वो अपने आद्विक के लिए पसंद है, बस बात आपसे आज कर रही हूं।
 
सौम्या भाभी - और आंटीजी आपको भी हमारे देवरजी से अच्छा रिश्ता अपनी बेटी के लिए और कहीं नहीं मिलेगा, देखने में तो क्या कहूं आपके सामने ही हैं, खुद ही देख लीजिए। बांकी रही बात परिवार और लड़के के अपने पैरों पर खड़े होने की तो, जैसे दर्श जी हैं वैसे ही ये भी हैं। अच्छी सैलरी है, और परिवार कैसा है ये तो आप लोग पता कर ही चुके होंगे भव्या के लिए।
 
             नीतिका की मां ये सब सुन कर हैरान थीं लेकिन कुछ भी कहने के लिए सुबह तक का वक्त मांगा उन्होंने जिस पर आद्विक के घरवालों ने भी हामी भर दी। नीतिका की मां ने ये बात जा कर उसके पिताजी को भी बताई तो वे भी काफी हैरान हो गए और खुश भी कि नीतिका की अच्छी किस्मत की वजह से इतना अच्छा रिश्ता घर बैठे ही आ गया। उन दोनों ने आद्विक को भी देखा तो ना कहने का उन्हें ऐसा कुछ भी नही मिला। उन लोगों के लिए सबसे बड़ी बात ये भी थी कि बचपन से जो सहेलियां हमेशा साथ रही थीं उन्हें आगे भी आज पास रहने को मिलेगा ये सोच कर भी वे लोग खुश थे।
 
           एक ओर जहां हर एक रस्म के साथ भव्या और दर्श के आपस की दूरी हमेशा के लिए मिटती जा रही थी वहीं दूसरी ओर लड़कियां दर्श के जूतों के पीछे पड़े थे ताकि वक्त आने पर उसकी मुंहमांगी कीमत वसूल सकें। बड़ी ही मेहनत से नीतिका और बाकियों ने सबकी नजरें चुरा कर दर्श के जूते उठाए और उसे किसी अच्छे जगह छुपा दिया।
 
           दूसरी ओर दर्श की बहनें और उसके कुछ और चचेरे भाई उस जूते को वापस हड़पने की होड़ में लगे थे। इसी होड़ में दर्श का एक चचेरा भाई, सागर जिसकी नजर काफी वक्त से नीतिका पर थी उसके पीछे पड़ गया। नीतिका को उसका पास दिखना ही उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था लेकिन चूंकि वे लड़के वाले थे वो चुप थी।
 
             थोड़ी देर बाद उसे किसी काम से घर जाना पड़ा तो वो उसी और जा रही थी कि अचानक सागर उसके सामने आ खड़ा हुआ। नीतिका के इग्नोर करने पर भी बार बार रिश्तों का हवाला देते हुए वो उसके पीछे पड़ गया।
 
सागर (कुटिल मुस्कान से)- अरे, आप मुझसे इतना दूर क्यों भाग रही हैं, अब भैया की साली हमारी भी तो कुछ लगेगी ही ना.......
 
          नीतिका ये भद्दा मजाक सुन कर अंदर ही अंदर गुस्से से लाल हुई जा रही थी लेकिन फिर भी बड़े बड़े कदमों से आगे बढ़ने लगी। लेकिन वो सागर और भी ज्यादा ढिठाई से उसके पीछे पड़ गया। जब नीतिका ने उसे फिर भी इग्नोर किया तो उसने गुस्से में नीतिका की हाथ पकड़ ली तो नीतिका ने डर से अपनी आंखें बंद कर लीं। वो कुछ और सोचती या करती कि अचानक उसे एक जोर के थप्पड़ की आवाज आई और उसने झट से आंखें खोल लीं।
 
        सामने देखा तो सागर के गालों पर एक जोर का थप्पड़ पड़ा था और वो गुस्से में अपना गाल पकड़े खड़ा था वहीं दूसरी ओर आद्विक बेहद गुस्से में उसे खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था।
 
सागर (चिढ़ कर)- ये क्या बदतमीजी है भैया??
 
आद्विक (गुस्से में)- ये बदतमीजी नहीं, तुम्हारी गंदी हरकतों का जवाब है।
 
सागर (जान बूझ कर)- अच्छा तो ये आपकी वाली थी क्या, ओह... सॉरी, पहले बताना था ना।
 
आद्विक (गुस्से में)- चुप...... एक दम चुप, वरना मार डालूंगा।
 
सागर ( गुस्से में)- क्यों, इस पटाखा ने आप पर भी कुछ ज्यादा नशा तो नहीं कर दिया जो ऐसे पागल हुए जा रहे हैं, आप तो ये भी भूल रहे हैं कि हमारा क्या रिश्ता है।
 
सागर (फिर से उसके थोड़े पास जा कर अपनी गंदी हंसी में)- या, अभी तक नशा लेना बांकी है??? वैसे आपको तो इन रंगीन पटाखों का मुझसे कहीं ज्यादा तजुर्बा है।
 
            आद्विक उसकी तरफ गुस्से से लपका ही था कि इसके पहले सागर ने वहां से खिसकना ही सही समझा और दौड़ कर निकल गया। अब आद्विक को नीतिका का खयाल आया और वो उसकी तरफ मुड़ा। नीतिका वहीं एक ओर खड़ी बदहवास सी रोई जा रही थी। आद्विक कुछ कहता ही कि नीतिका चिल्ला उठी।
 
नीतिका (गुस्से में उसका कॉलर पकड़ कर)- क्या समझा तुमने मुझे, यही गंदी नियत थी ना तुम्हारी भी, इसीलिए आज आते ही वो माफी -माफी का ड्रामा रचा, है ना।
 
नीतिका (फिर से)- क्या लगा तुम्हें, मैं वैसी लड़की हूं, तुम जो चाहोगे वो करोगे, जान ले लूंगी तुम्हारी मैं......
 
                   आद्विक नीतिका की बातें सुन और गुस्से में लाल हो गया और जोर से उसका हाथ पकड़ कर पीछे की ओर मोड़ दिया, फिर गुस्से में उसके करीब आ कर खुद को उसके होंठों के बिल्कुल पास आ कर अगले ही पल झटके में उसे छोड़ दिया।
 
आद्विक (गुस्से में)- तुम्हें क्या लगता है, मैं तुम जैसी लड़की के लिए मरा जा रहा हूं?? कभी भी, कुछ भी बोलोगी तुम?? अगर मुझे तुम्हारे साथ कुछ भी गलत करना होता तो कॉलेज से ज्यादा अच्छी जगह कोई और नहीं होती। और हां तुम्हें इतना तो पता ही होगा कि ऐसी बातों को चलता फिरता करना आज के वक्त में कितना आसान होता है। कुछ नहीं बिगाड़ पाती तुम मेरा।
 
आद्विक (फिर से गुस्से में)- लेकिन हां, तुम छोटे सोच वाली लड़कियों की औकात ही नहीं है कि तुम इस आद्विक सिन्हा के सामने भी खड़ी हो पाओ। आज के बाद कोशिश यही करना कि मेरे सामने ना आओ वरना अब मैं भी नहीं जानता कि मैं तुम्हारा क्या हाल करूंगा।
 
              इतना कह कर आद्विक गुस्से में वहां से निकल गया और दूसरी ओर नीतिका भी भागती हुई अंदर भव्या के कमरे के अंदर के बाथरूम में जा कर बैठ गई और फूट फूट कर रोने लगी।
 
              कुछ घंटों के बाद ही भव्या और दर्श की शादी संपन्न हो गई और उन्होंने सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया। अब घड़ी थी विदाई की तो भव्या बस अपने पिता के गले लग फूट -फूट कर रोए जा रही थी। एक एक कर सबसे मिलने के बाद उसने जब सब तरफ नजरें दौड़ाई तो उसे नीतिका कहीं नहीं दिखी। उसे लगा कि वो उसे शायद जाते वक्त देख नहीं पाएगी इसीलिए वहां नहीं है। बांकी लोग भी वही सोच रहे थे इसीलिए किसी ने इस बात पर ज्यादा कोई ध्यान नहीं दिया। थोड़ी ही देर बाद भव्या की विदाई हो गई और पूरा घर सूना पड़ गया।
 
                दूसरी ओर आद्विक की दादी ने जब लौटते समय फिर से नीतिका और आद्विक के रिश्ते की बात की तो उन्होंने खुशी से हामी भर दी। आद्विक के घरवाले भी बहुत खुश थे और जल्दी ही आगे की बात करने का कह कर निकल गए। 
 
 
नीतिका का घर........
 
             "बेटा तुम सोच भी नहीं सकती कि कितना अच्छा रिश्ता आया है तुम्हारे लिए....।" खुशी से नीतिका का माथा चूमती हुई उसकी मां बोलीं और साथ ही उसके पिताजी ने भी हामी भर दी।
 
              नीतिका बस परेशान सी उन दोनों की ओर देखती रही।
 
नीतिका (रुआंसी सी) - पर पापा..... मैं अभी शादी नहीं, जॉब करना चाहती हूं, plz पापा....
 
नीतिका की मां (प्यार से)- बेटा, तू जिस घर में जा रही है ना, वहां तुझे नौकरी की कोई जरूरत ही नही है, हां चाहे तो तू कितनों को नौकरी पर रख सकती है।
 
नीतिका (कुछ सोच कर)- मां, आपको नहीं लगता कि ये सब कुछ ज्यादा ही अजीब है ?? शादी जैसी चीज ऐसे थोड़े ही होती हैं ??
 
नीतिका के पापा (समझाते हुए)- बेटा, क्या अजीब है, कुछ भी तो नहीं। 
 
नीतिका के पापा (प्यार से)- अब भाई, मेरी बेटी है ही इतनी प्यारी कि कोई भी छांट ही नहीं सकता। हां, और एक महत्त्वपूर्ण बात, वो ये कि बेटा घर चाहे अमीर का हो या गरीब का, बहुवें सभी को अच्छी और संस्कारी ही चाहिए होती हैं ताकि वे उनके घर को जोड़ कर रख सकें। इसीलिए तुम्हारे लिए उनका रिश्ता आना कोई बड़ी बात नहीं है।
 
             नीतिका भी सोच में पड़ गई।
 
नीतिका (थोड़ी देर में गहरी सांस लेते हुए)- पापा, आप सभी जैसा चाहें वो करें लेकिन plz पापा, मैं बस job करना चाहती हूं, और कुछ नहीं। और ये मैं पैसे के लिए नहीं बल्कि सुकून के लिए करना चाहती हूं।
 
नीतिका के पापा (प्यार से)- तुम परेशान मत हो बेटा मैं खुद उनसे बात करूंगा इस बारे में, वे जरूर मान जायेंगे।
 
            नीतिका बस भावुक हो कर अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी प्यार से अपनी बेटी का माथा चूम लिया।
 
 
आद्विक का घर........
 
              आद्विक भी रात ही बस हल्के से दर्श को कोई बहुत जरूरी काम का बता कर घर लौट आया था। आते ही उसने सबसे पहले गुस्से में अपने कमरे की ढेरों जरूरी चीजें तोड़ डालीं। लेकिन चाह कर भी उसका गुस्सा कम नहीं हो रहा था। उसे अब भी रह रह कर नीतिका की बातें अंदर तक परेशान कर रही थीं। 
 
              "नहीं छोडूंगा तुम्हें मैं, क्या सोच कर तुमने ये........ नहीं हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी???? इस ऊंची आवाज में तो मेरे घरवालों ने मेरे साथ बात तक नहीं की है और तुम......... तुम्हें नहीं छोडूंगा..... नहीं...।" आद्विक खुद में बौखलाया हुआ बडबडा रहा था।
 
             ऊपर के कमरे से बार -बार टूटने -फूटने की आवाज सुन आद्विक की मां भी ऊपर पहुंची। काफी बार नॉक करने पर जब उसने दरवाजा खोला तो कमरे की हालत देखते ही सुनीता जी हैरान हो गईं।
 
सुनीता जी (थोड़ा गुस्से में)- क्या है ये सब आदि??? क्या हाल किया है तुमने इस कमरे का ?? ये क्या हरकत है, अब तुम बच्चे नहीं हो कि तुम्हें कमरा सलीके से रखने की ट्रेनिंग दी जाए या तुम गुस्से में पैर पटको या फिर चीज़ें तोड़ो।
 
आद्विक (गुस्से में)- क्यों आई हैं आप यहां, और ये ज्ञान plz बंद कीजिए अभी, और अपने पास ही रखिए। मुझे बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। Plz जाइए यहां से......
 
सुनीता जी (और गुस्से में)- shut up आदि, बढ़ती उम्र के साथ तुम अपनी तमीज छोड़ते जा रहे हो, तुम्हें अंदाजा है कि तुम बात किससे कर रहे हो ??
 
आद्विक (गुस्से में)- हां, उस एक औरत से जो अपनी जिंदगी में ना तो एक अच्छी पत्नी बन पाई और न ही एक अच्छी मां..
 
               सुनीता जी गुस्से में तिलमिलाते हुए वहां से वापस चली गईं और आद्विक ने फिर से जोर से पटक कर दरवाजा बंद कर दिया।
 
              सुबह जब आद्विक के दादा -दादीजी और बांकी सभी भी घर वापस लौटे तो सबने पहले आद्विक का पूछा।
 
सुनीता जी (गुस्से में)- उस लड़के को इतनी भी तमीज नहीं रह गई है कि अपनी मां से कैसे बात करते हैं।
 
दादी (थोड़ा कड़े शब्दों में)- वो बेटा नहीं बन पा रहा है क्योंकि तुम अब तक सही मायनों में तुम उसकी मां नहीं बन पाई हो। मां बनने का मतलब सिर्फ बच्चे को पैदा करना नहीं होता। उसकी और भी सैकड़ों जिम्मेदारियां होती हैं, उसे तो तुमने निभाना तो दूर सोचना भी जरूरी नहीं समझा। कभी सोचा है कि इन बच्चों का मां बाप होते हुए भी ये क्यों उनसे मरहूम ही हैं बचपन से ले कर आज तक। तुम दोनों के आपसी मतभेद में इनकी क्या गलती थी।
 
सुबोध (नाराजगी में)- मैंने तो पहले ही आप लोगों को इन सब चीजों के लिए मना किया था लेकिन....
 
उर्मिला जी (गुस्से में)- हमने बच्चों की बात पर इसलिए जोर दिया था कि बच्चे मां बाप के बीच की वो कड़ियां होते हैं जो उन्हें जिंदगी भर साथ जोड़ते हैं।
 
सुबोध - लेकिन जब वही कड़ियां बंधन बन जाएं तो.....
 
दादाजी (गुस्से से)- तो..... तो बस वही करना चाहिए जो तुम दोनों आज तक कर रहे हो। दुख बस इस बात का है कि तुम दोनों के आपसी झगड़ों और परेशानियों ने तीन मासूम बच्चों से उनका बचपन छीन लिया और इसका लेश मात्र भी पछतावा तुम दोनों को ही नहीं है।
 
दादाजी (दुखी मन से)- उर्मिला जी, आप भी कहां अपना सिर फोड़ रही हैं, वे जो मां बाप बन कर भी आज तक उसकी कीमत नहीं समझ पाए, चलिए, कमरे में चल कर आराम कीजिए, वैसे ही काफी थक गई हैं आप.. मैं जरा आदि को देख कर आता हूं।
             इतना कह कर वे दोनों वहां से चले गए। बांकी लोग तो पहले ही अपने कमरे में जा चुके थे, क्योंकि ये तो उस घर की लगभग रोज की ही कहानी थी। जहां ऊपर से तो सब कुछ अच्छा था लेकिन सच तो यही था कि इस परिवार के हर जोड़े की ही आपसी जिंदगी ढेरों शिकवे और शिकायतें थीं।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#14
"आदि, दरवाजा खोल बेटा......।" आद्विक के दादाजी ने उसका दरवाजा खटखटाते हुए आवाज लगाई।
 
                 थोड़ी देर में बस दरवाजा खुलने की धीमी सी आवाज आई। सच्चिदानंद जी धीरे से दरवाजा खोल कर कमरे में आए। कमरे की हालत उसकी स्थिति आप ही बयान कर रही थी कि वो कितना ज्यादा परेशान था।
 
दादाजी (प्यार से)- बेटा, सोचता हूं तुम्हारे इस कमरे को अब रेनोवेट कर ही दिया जाए।
 
आद्विक (गुस्से में उन्हें घूरते हुए)- plz दादू, अभी मुझे बिल्कुल मजाक करने का मन नहीं है। Plz आप जा कर आराम कीजिए, थक गए होंगे।
 
दादाजी - हम्मम..... थक तो गया हूं लेकिन इतना भी नहीं कि मेरे बच्चे को मेरी जरूरत हो और मैं ना रहूं।
 
            आद्विक रूआंसा सा आ कर अपने दादाजी के पैरों के पास बैठ गया।
 
दादाजी (प्यार से)- अब बता मेरे बच्चे को कौन सी बात इतनी परेशान कर रही है कि वो इतना बेचैन है ???
 
           आद्विक ने संक्षिप्त में कुछ बातें उन्हें बता दीं। सारी बातें सुन कर दादाजी भी एक गहरी सोच में पड़ गए।
 
दादाजी (थोड़ा गंभीर हो कर)- बेटा, मैं तुम्हारी स्थिति अच्छे से समझ रहा हूं लेकिन एक बात कहूं तूने उसके साथ गलत किया।
 
आद्विक (गुस्से में)- और वो जो उसने मेरे साथ किया....??
 
दादाजी (समझाते हुए)- बेटा, लड़कियां मन की बहुत कोमल होती हैं। उस सागर की गलत हरकतों के बारे में सोच कर ही वो कितनी परेशान होगी, उसपर से अपने सामने उसी स्थिति में यूं तुम दोनों का बात करना, तुम्हें अंदाजा भी नहीं है, क्या गुजर रही होगी उस पर.... बेटा ये समाज आज भी जो छूट जो अधिकार लड़कों को देता है वही अधिकार उसे लड़कियों को देने में आज भी ऐतराज है। ज्यादातर लड़कियां तो खुल कर अपनी ऐसी परेशानियां आज भी अपने मां बाप तक को नहीं बता पाती हैं क्यों, क्योंकि उसे पता है कि वे मां बाप जिन्होंने उसे पैदा किया, सुरक्षा दी, वही जब बात इज्जत की आएगी तो वे साथ बेटियों का नहीं बल्कि उस दोगले समाज का देंगे।
 
           आद्विक दादाजी की बात काफी गंभीरता से सुन रहा था। 
 
दादाजी (फिर से)- अब तुम्हीं बताओ, कि उस जगह उस परिस्थिति में एक डरी हुई लड़की और क्या करती ??
 
            आद्विक बिल्कुल चुप था। अब उसे अपनी ही हरकतों पर बुरा लग रहा था। हालांकि उसे थोड़ी नाराजगी अब भी थी लेकिन उस वक्त के अपने रवैए को सोच कर वो खुद में शर्मिंदा था।
 
             थोड़ी देर और दोनों एक दूसरे से बातें करते रहे फिर दादाजी भी अपने कमरे में आराम करने चले गए।
 
 
 
दर्श का घर......
 
                        दर्श का घर भव्या के लिए बिल्कुल सपनों जैसा खूबसूरत था जहां लगभग हर एक चीज परफेक्ट थी। गृहप्रवेश और बांकी सारी रस्में पूरी करने के बाद भव्या को भी दर्श के कमरे तक छोड़ दिया गया। भव्या भी कमरे और उसकी सजावट देख बहुत खुश थी। थोड़ी ही देर बाद दर्श भी कमरे में आया तो भव्या के दिल की धड़कनें भी बढ़ने लगीं। दर्श धीरे से आ कर भव्या के बगल में बैठ गया।
 
दर्श (प्यार से)- कांग्रेट्स, आखिर हम दोनों हमेशा के लिए एक दूसरे के साथ आ ही गए।
 
भव्या (नजरें नीची किए)- आ....आप... आप 
 
दर्श (प्यार से)- यार, plz ये आप मत बोलो मुझे, अजीब लगता है जैसे मैं तुम्हें जानता ही नहीं हूं। तुम मुझे तुम पुकारती हुई ही अच्छी लगती हो।
 
भव्या की नजरें फिर से शर्म से नीचे झुक गईं।
 
             दर्श ने थोड़ी ही देर में बगल के ड्रॉअर से एक गिफ्ट निकाला और भव्या के हाथों में रख दिया। 
 
दर्श (प्यार से)- Mrs दर्श, plz खोल कर देखो ना....
 
भव्या ने धीरे से वो डिब्बा खोला तो उसमें बहुत ही खूबसूरत सी कपल के लिए दो डायमंड रिंग थीं। वो हैरानी से दर्श की ओर देखने लगी।
 
दर्श (प्यार से)- सॉरी ये इसलिए कि इन सब रस्मों में एक रस्म तो अधूरी ही रह गई थी, हमने एक दूसरे को अंगूठी ही नहीं पहनाई। इसीलिए सोचा क्यों ना हमारे रिश्ते की शुरुआत इसी से की जाए।
 
             भव्या भी प्यार से बस दर्श की ओर देखने लगी। वहीं दर्श ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथों में ले कर उसे अंगूठी पहना दी। फिर भव्या ने भी दर्श के उंगली में अंगूठी पहना दी और दोनों प्यार से एक दूसरे के गले लग गए।
 
              इस बीच जहां भव्या एक ओर अपने प्यार में ही अपना जीवनसाथी पा कर खुश थी, वहीं साथ ही शादी के बाद के आए जिंदगी, घर और रिश्तों में बदलाव को समझने की पूरी कोशिश कर रही थी। 
 
                दूसरी ओर नीतिका अचानक से आए इस रिश्ते को समझ नहीं पा रही थी। उस पर से आद्विक की कही हुई वो बातें अब तक उसका पीछा नहीं छोड़ पा रही थीं। यही वजह भी थी कि भव्या के लाख बुलाने पर भी वो किसी ना किसी बहाने से उसे मना करती रहती थी कि भूल से भी उसका आमना सामना फिर से दर्श के इस दोस्त से न हो जाए, जिसे वो जिंदगी भर नहीं देखना चाहती थी। 
 
                नीतिका के मां बाप ने भी जब आद्विक का परिचय दर्श के फुफेरे भाई के तौर पर कराया तो उसे इस बात का दूर दूर तक कोई खयाल नहीं आया कि ये वही इंसान हो सकता है जिससे वो आज के वक्त में शायद सबसे ज्यादा नफरत करती थी। वहीं उसके मां बाप को लगा कि सबने लड़के को शादी में देखा ही है और फिर बांकी बात तो फिर से आमने सामने होगी ही, तो अलग से फोटो की कोई मांग नहीं की और ना ही नीतिका ने भी इस बात पर कोई जोर ही दिया।
 
            
 
 
कुछ समय बाद.......
 
 
            "बेटा, क्या सोचा है तुमने??? मैंने नीतू से तुम्हें फोटो भी दिखवाई थी, लेकिन तूने कोई जवाब नहीं दिया??" उर्मिला जी आद्विक के सिर में तेल लगाते हुए बोलीं।
 
आद्विक (बात बदलते हुए) - दादी, आपके हाथों की मालिश का जादू ही कुछ और है।
 
उर्मिला जी - देख बेटा, इस बुढ़िया ने ये बाल धूप में नहीं पकाए हैं बल्कि तजुर्बे से पके हैं।
 
आद्विक (हंसते हुए) - फिर भी आप अब भी उतनी ही सुंदर लगती हैं।
 
उर्मिला जी (झूठा गुस्सा करते हुए)- अब तू अपनी दादी से चुहलबाजी करेगा, मार खायेगा, मार.... समझा।
 
            तीनों फिर खिलखिला कर हंसने लगे।
 
उर्मिला जी (थोड़ा गंभीर हो कर)- देख बेटा, अगर सच में तुम्हें कोई और पसंद है तो खुल कर बताओ लेकिन नहीं तो फिर हमारी बात मानो, काफी अच्छी, शांत और संस्कारी लड़की है वो, बिल्कुल सही जोड़ी रहेगी तुम दोनों की।
 
दादाजी - वैसे बेटा, एक बार मिलने और देखने में क्या बुराई है??
 
           आद्विक अब चाह कर भी ना नहीं कर सका। और दोनों ही परिवार वालों के मिलने मिलाने की बात अगले इतवार यानी कि बस तीन दिन बाद की ही तय की गई। रही बात फोटो देखने की तो उसे इस शादी में दूर तक कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, वो तो बस अपने दादा दादी के मन को दुखी नहीं करना चाहता था बस इसीलिए मिलने को तैयार हो गया। उसने तो अपने खुराफाती दिमाग से ये पहले ही सोच लिया था कि मिलते ही लड़की खुद ही मना कर देगी।
 
              उर्मिला जी ने सुबोध और सुनीता जी को भी साथ चलने के लिए कड़ाई से कह रखा था। जहां सुबोध जी को इन सब बातों से कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा था वहीं सुनीता जी इस बात से थोड़ा परेशान और चिढ़ी सी थीं कि दोनों ही परिवारों के स्टैंडर्ड में जमीन आसमान का फर्क था।
 
               रविवार की सुबह उर्मिला जी पहले से ही एक एक तैयारी देख रही थीं लड़की वालों के यहां जाने की चीजों को ले कर ताकि ऐन वक्त पर कोई हड़बड़ी ना मच पाए। वो और नीतू कुछ काम ही कर रही थीं कि उधर दूसरे कमरे से फिर से एक बार सुनीता और सुबोध जी के आपस में बहस करने की आवाज़ें आने लगीं।
 
सुबोध जी (गुस्से में)- तुम कोई भी काम चुपचाप नहीं कर सकती है ना, चाहे वो काम कितना ही जरूरी या तुम्हारे बच्चों का ही क्यों ना हो।
 
सुनीता जी (गुस्से में)- हां, थैंक्यू at least किसी को तो याद है कि ये मेरे बच्चे की शादी की बात हो रही है, वरना......
 
सुबोध जी - अगर ये काम तुम पहले से कर रही होती, अपनी जिम्मेदारी समझती तो शायद आज ये स्थिति भी नहीं होती।
 
सुनीता जी (गुस्से में)- हां, तुम तो चाहोगे ही यही कि मैं बस अपनी जिंदगी जीना छोड़ बस तुम्हारे घर और घरवालों की चाकरी करूं...... लेकिन तुम्हारा ये सपना कभी पूरा नहीं होगा, याद रखना।
 
सुबोध जी (गुस्से में)- इतने साल हो गए लेकिन तुम्हारी सुई अब भी वहीं अटकी है कि मैंने तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर दी। तुम्हारा चुनाव में ना खड़े होने देने का फैसला सिर्फ मेरे घरवालों का नहीं वरन तुम्हारे भी घरवालों का था, ये भूलो मत।
 
सुनीता जी (गुस्से में)- हां, तो ना मैंने अब तक अपने घरवालों को भी माफ किया है और ना ही कभी तुम्हारे घरवालों को ही माफ करूंगी और तुम..... तुम तो सबसे बड़े दोषी हो मेरी तरक्की के, जलते थे न तुम, इसीलिए साथ नहीं दिया ना...
 
सुबोध जी (गुस्से में तिलमिलाते हुए)- बस, बहुत हो गया, बहुत सुन ली बकवास तुम्हारी, सिर्फ मां बाप की वजह से अब तक बर्दाश्त कर रहा हूं तुम्हें, वरना तुम भी जानती हो कि कितने मिनट लगते तुम्हें अपनी जिंदगी से चलता फिरता करने में.......
 
सुनीता (गुस्से में)- हां तो करो ना, सिर्फ बोलते क्यों हो, और ये मां बाप का हवाला देते -देते थक नहीं गए हो?? एक वे हैं जिन्हें सब पता है फिर भी मेरी जिंदगी को कंट्रोल करने से बाज नहीं आते।
 
            दोनों ऐसे ही गुस्से में एक दूसरे से लगातार बहस किए जा रहे थे कि अचानक बाहर के हॉल से तेज हलचल की आवाज आने लगी।
 
नीतू (घबराते हुए)- आदि....... आदि, आदर्श... Plz जल्दी आओ, plz जल्दी।
 
           नीतू की ऐसी घबराई आवाज सुन कर सब बाहर हड़बड़ा कर पहुंचे तो देखा सामने सच्चिदानंद जी सोफे पर बेहोश सी अवस्था में पड़े हैं और उर्मिला जी जार जार रोए जा रही हैं।
 
          "दादू......... दादू.......हटो, जल्दी हटो सारे, भैया.... गाड़ी..... गाड़ी निकालिए..... जल्दी...। दीदी तुम दादी को संभालो.... उनको देखो...." कहते हुए आद्विक ने उन्हें झट से अपनी गोद में उठा कर गाड़ी में लिटाया और हॉस्पिटल ले गया।
 
                  हॉस्पिटल पहुंच कर और डॉक्टर की देख रेख के बाद यही पता चला कि उन्हें मेजर हार्ट अटैक आया था, अब उनकी हालत थोड़ी स्थिर थी। आद्विक चुपचाप सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया। आदर्श ने फोन करके घर पर भी सभी को सारी बात बताई और उर्मिला जी का खयाल रखने को कहा।
 
                      कुछ घंटों बाद जब सच्चिदानंद जी को होश आया तो देखा आद्विक बस उनका हाथ पकड़े वहीं बैठा था। आद्विक भी उन्हें होश में आता देख खुश हो गया लेकिन अगले ही पल सुबह की सारी बात सोच कर फिर से दुखी हो गया। आज सुबह की सारी बातें आद्विक पहले ही नीतू और सौम्या से सुन चुका था लेकिन फिर भी किसी तरह अपने आप को उसने शांत कर रखा था।
 
आद्विक (जान कर)- दादू, ये बिलकुल ठीक नहीं किया आपने, ये कौन सा तरीका है सबको डराने का....
 
दादाजी (धीमे से)- मैं ठीक हूं बेटा, चिंता मत करो।
 
आद्विक (रूआंसा हो कर) -दादू, दोबारा आपने कभी भी ऐसा कुछ किया तो देखिएगा मैं आपसे बात नहीं करूंगा। 
 
            दोनों ने यूं ही थोड़ी हल्की फुल्की बात की और फिर दवाओं की वजह से उनकी आंख लग गई और आद्विक भी पीछे कुर्सी के सहारे अपना सिर टिकाते हुए आंखें बंद किए कुछ सोचने लगा। थोड़ी देर में ही रूम से बाहर आ कर फोन पर उसने किसी से कुछ बात की और फिर वापस कमरे में चला गया।
 
            दो दिन बाद ही सच्चिदानंद जी भी घर आ गए। उन्हें सकुशल देख सबसे ज्यादा राहत और खुशी उर्मिला जी के आंखों में थी। इस बीच सुबोध जी ने उर्मिला जी से बात करने की कोशिश भी की थी लेकिन उनके लिए उस वक्त अपने पति से ज्यादा कुछ भी कीमती नहीं था सो उन्होंने उसकी कोई बात नहीं सुनी। इसके विपरीत सुनीता जी ने तो ऐसी कोई कोशिश तक नहीं की थी इतना कहना छोड़ कर कि इतना परेशान मत होइए, अच्छा हॉस्पिटल है, ठीक हो जायेंगे वो, इतना घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
 
          सच्चिदानंद जी अपने कमरे में आराम कर रहे थे और उर्मिला जी भी वहीं उनके बगल में बैठी थी। आदर्श, नीतू और आद्विक भी वहीं आस पास थे। तभी कुछ बात उठी तो नीतू ने बताया कि उसने लड़की वालों को अभी आने से मना कर दिया है।
 
उर्मिला जी (कुछ सोच कर उदास मन से)- पता नही, विधाता को भी क्या मंजूर है, इतनी अच्छी, प्यारी और सुशील लड़की, सोचा था अपने आदि के साथ खूब सही जोड़ी बैठेगी लेकिन अब तो पता नहीं कब ये सब हो पाएगा।
 
सच्चिदानंद जी (कुछ सोच कर)- आप लोग जा कर आगे का काम क्यों नहीं देख लेते हैं, ऐसे लड़कीवालों को ज्यादा इंतजार कराना भी ठीक नहीं है।
 
नीतू - पर....
 
सच्चिदानंद जी - पर.... क्या, सही कह रहा हूं, मैं तो वैसे भी बच्ची को देख ही चुका हूं, मुझे तो उर्मिला जी की पसंद बिल्कुल पसंद है, अब बस आदि देख और मिल ले फिर बांकी बात भी आराम से हो जायेगी, क्यों आदि....??
 
            सभी आदि की ओर देखने लगे जो बिल्कुल शांति से काफी देर से सबकी बातें सुन रहा था।
 
             "दादू..... दादी.... मुझे कोई लड़की नहीं देखनी है.......।" आद्विक ने बस इतना ही कहा कि सभी फिर से उदास हो गए।
 
आद्विक (फिर से)- दादू... दादी, आप दोनों को पसंद है ना यह रिश्ता, तो मुझे भी कोई दिक्कत नहीं है, मैं, शादी के लिए तैयार हूं। (थोड़ा रुक कर)........ हां बस मेरी एक शर्त है, वो यह कि मुझे इस शादी के नाम पर कोई ज्यादा ताम झाम नहीं चाहिए। ये शादी जल्दी और बिल्कुल साधारण से तरीके से किसी मंदिर में होनी चाहिए। बस ये बात आप लड़की वालों से ये बात खुल कर कह दीजिए।
 
उर्मिला जी - पर......
 
                    वो आगे कुछ कहतीं लेकिन पहले ही इशारे से सच्चिदानंद जी ने उस वक्त कुछ भी कहने से उन्हें रोक लिया।
बांकी सभी आद्विक की बात सुन कर बस उसकी और देखने लगे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#15
8.................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#16
"ये क्या बात हुई?? हम शादी कर रहे हैं या मजाक, ये क्या कोई तरीका है, जो मन आया वो कह दिया। वे लड़के वाले हैं तो क्या कोई भी मनमानी चलेगी?? आपने सीधे तौर से मना क्यों नहीं कर दिया ?? गुस्से में अखिल जी यानी कि नीतिका के पिताजी उसकी मां से बात कर रहे थे जिन्होंने अभी थोड़ी ही देर पहले आद्विक की दादी और नीतू दीदी से बात की थी।
 
                     विभाजी (नीतिका की मां) बस चुप थीं क्योंकि उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि अभी इस वक्त क्या बोलें। 
 
अखिल जी (फिर से गुस्से में)- ठीक है उनके लड़के को नहीं मिलना है नीकू से, ना सही, लेकिन मेरी बेटी का क्या?? अगर वो मिलना चाहे तो, इतना सा तो उसका हक है ना??
 
विभाजी (धीमे से)- लड़के के दादाजी की तबियत खराब है और फिर हो सकता है, नीकू भी ना मिलना चाहती हो अभी लड़के से ?? लड़के की तरह शायद वो भी यही सोच रही हो कि हमने जो भी सुना समझा और खोजा होगा वो उसके लिए अच्छा होगा।
 
विभाजी (फिर से थोड़ा रुक कर)- या......ये भी हो सकता है कि ये लोग भावी की शादी में ही एक दूसरे को देख चुके हों.....
 
अखिल जी (अब भी गुस्से में)- मुझे कुछ भी नहीं पता बस मेरी बेटी की किसी भी भावनाओं को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए। उसने अगर संपूर्ण तरीके से यह हक हमें दिया है तो आप ये मत भूलिए कि हमारी जिम्मेदारी और दुगनी हो गई है।
 
अखिल जी (फिर से)- हां..... एक बात और..... ये मंदिरों में शादी करने वाली बात.... मुझे नहीं लगता कि ये सही है, हमारी एक ही बेटी है, हजारों सपने हैं हमारे उसकी शादी को लेकर, यूं बस जैसे तैसे किसी के पल्ले नहीं बांध सकता मैं अपने जिगर के टुकड़े को।
 
विभाजी (शांति से)- आपकी सारी बातें सही हैं, मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि बस हमारी किसी जिद में अपनी बच्ची के लिए आया इतना अच्छा रिश्ता ना निकल जाए....... (थोड़ा रुक कर)....... और यकीन मानिए यहां बात पैसे वालों की नहीं है बल्कि सुखी संपन्न होने के साथ ही उनका संस्कारी होना मैटर करता है। वे जितना ही सुलझे दिमाग के होंगे, उतना ही अपनी नीकू को समझने की कोशिश करेंगे, और अपनी बच्ची खुश रहेगी। इतने संपन्न होने के साथ ही ऐसे सुलझे लोग कम ही मिलते हैं, ये मत भूलिए आप.....
 
             दोनों काफी देर तक इन्हीं सब बातों पर विचार विमर्श करते रहे जिसकी थोड़ी थोड़ी आवाज नीतिका के कानों में भी पड़ती रही। वो भी अब मन ही मन कुछ फैसला कर रही थी।
 
                रात को सोने के पहले जब हर रोज की तरह निखिल जी अपनी बेटी को कमरे में देखने गए तो देखा वो शांति से अपनी स्टडी टेबल पर बैठी हाथों में पेन लिए काफी गहराई से कुछ सोच रही थी।
 
अखिल जी (प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए)- क्या बेटा, कहां खोई है, कोई उलझन है क्या ??
 
            नीतिका अचानक पापा को सामने देख थोड़ा हड़बड़ा गई लेकिन फिर मुस्कुराने लगी।
 
नीतिका - नहीं पापा, कुछ तो नहीं.... बस यूं ही...
 
अखिल जी (कुछ सोच कर)- बेटा, तुम्हें किसी भी चीज के लिए परेशान होने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है, मैं सब देख लूंगा।
 
नीतिका (भावुक होकर प्यार से)- मैं जानती हूं पापा, तभी तो आप वर्ल्ड के बेस्ट पापा हैं।
 
            दोनों ने यूं ही थोड़ी देर और बातें की फिर अखिल जी भी उठ कर उसे गुड नाईट बोलते हुए अपने कमरे की ओर जाने लगे वो दो कदम चले ही थे कि नीतिका की बात सुन कर हैरानी से रुक गए।
 
नीतिका (धीमे से)- पापा, मुझे उनकी शर्त मंजूर है.....
 
अखिल जी (हैरानी से)- पर.... नीकू.....
 
नीतिका (शांति से)- हां पापा, अगर आप लोगों को सही लगे तो मुझे भी कोई परेशानी नहीं है।
 
अखिल जी (कुछ सोच कर)- तुम लड़के से मिली हो..?? 
 
नीतिका - नहीं पापा, लेकिन मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि आपलोगों से ज्यादा अच्छी चीज मेरे लिए कोई और खोज ही नहीं सकता..... यहां तक कि मैं भी नहीं...।
 
अखिल जी - लेकिन नीकू.....
 
नीतिका (शांति से)- पापा अगर आप दोनों संतुष्ट हैं तो बांकी किसी भी चीज से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, सच मानिए। और रही बात शादी के नाम पर ढेरों ताम -झ़ाम की, तो मुझे भी किसी भी नजरिए से ये बिलकुल भी सही नहीं लगता कि इंसान के जिंदगी भर के मेहनत की कमाई को इस नाम पर पानी की तरह बहाया जाए कि लोगों को अच्छा लगाना है, नहीं पापा। 
 
नीतिका (फिर से)- शादी, दो परिवारों का एक पवित्र गठबंधन है जिसमें शरीक होने का हक भी उन्हीं अपनों को है जो सच में आपके करीब हैं ना कि इस समाज के नाम पर हर किसी को.... जो लोग दिल से आपके करीब नहीं हैं पापा, तो क्या फर्क पड़ता है कि वे हमारी खुशियों में शरीक हुए या नहीं, हमारे घर आए या नहीं, हमारे यहां कुछ खाया या नहीं..... इससे कहीं ज्यादा अच्छी चीज तो ये है ना पापा कि इन पैसों से हम किसी गरीब के लिए कुछ करें जिनकी जिंदगी सच में बदल सकती है।
 
             आज अखिल जी अपनी बेटी की इतनी बड़ी बड़ी बातों से बिल्कुल हैरान थे, उन्हें ये समझ कर भावुक और गर्व महसूस हो रहा था कि कब उनकी बेटी इतनी बड़ी हो गई पता ही नहीं चला।
 
अखिल जी (नीतिका के सिर पर हाथ फेरते हुए)- अब तो सच में मेरी बेटी बड़ी हो गई है, भगवान करे तुम हमेशा -हमेंशा खुश रहो।
 
              इतना कह कर अखिल जी कमरे से बाहर निकल गए और दूसरी ओर नीतिका भी उसी कुर्सी से सिर टिकाए और आंखें बंद किए कुछ सोचने लगी।
 
             "अब तक आपको जितना समझ पाई हूं, आप जरूर एक सुलझी सोच के इंसान हैं जिन्हें दिखावे से कहीं ज्यादा अपनों के भावनाओं की कद्र है। भरोसा इसी बात का है कि और कुछ हो ना हो हमारे रिश्ते में एक दूसरे के लिए सम्मान जरूर होगा और अपनी जिंदगी के इस आने वाले अनजाने सफर पर हम दोनों साथ साथ होंगे।" कुछ सोच कर नीतिका खुद से बोल रही थी।
 
            यूं ही दोनों पक्षों के राजी होने के बाद चूंकि ज्यादा कुछ खास तैयारियों की जरूरत नहीं थी और ना ही ज्यादा रुकने की ही कोई वजह थी तो आखिर कर आद्विक और नीतिका का रिश्ता तय हो गया और इनकी शादी अगले रविवार को उसी शहर के पुराने शंकर -पार्वती के मंदिर में होना तय हो गया। हां अखिल जी के ज्यादा जोर देने की वजह से ही उनकी शादी के ही अगले दिन दोनों ही पक्षों के लिए एक कम्बाइंड रिसेप्शन पार्टी भी रखी गई ताकि दुनिया -समाज वालों का भी उन्हें आशीर्वाद मिल जाए।
 
             दोनों ही पक्षों ने शादी इतने सीधे -साधे तौर से होने के बाद भी उन्होंने अपनी अपनी तैयारियां शुरू कर दीं। जहां अखिल और विभा जी अपनी बेटी की कोई भी जरूरत बांकी नहीं छोड़ना चाहते थे वहीं आद्विक के घरवाले और खास कर उसके दादा दादी और उसकी दीदी हर एक छोटी से छोटी चीज का ध्यान रख रहे थे। 
 
                इन सबमें ना तो बहुत ही ज्यादा खुशी नीतिका के चेहरे पर झलक रही थी और ना ही आद्विक के... जहां एक ओर आद्विक के लिए ये रिश्ता सिर्फ अपने दादा -दादी की खुशियों के लिए एक वजह थी जो उनके खुद के बेटे बहु यानी कि सुबोध और सुनीता जी नहीं दे पाईं थीं वहीं दूसरी ओर नीतिका के लिए भी बस अपने मां बाप की इच्छा और खुशियों का सम्मान रखना था।
 
            एक रोज आद्विक अपने कमरे में बैठा कुछ कर रहा था कि सच्चिदानंद जी भी आ कर वहीं पास में बैठ गए।
 
आद्विक (थोड़ी हैरानी से)- अरे दादू..... आप यहां ???
 
दादाजी (प्यार से)- क्यों भाई, अब अपने पोते के पास भी नहीं आ सकता क्या ??
 
आद्विक - plz दादू, आप ऐसे क्यों बोल रहे हैं??
 
दादाजी (कुछ सोच कर)- बेटा, कोई जबरदस्ती नहीं है इस या किसी और रिश्ते की, हां, लड़की अच्छी शांत, सीधी और सुलझी हुई है तो हमें पसंद आ गई। फिर भी तू अगर खुद से मिलना चाहे, देखना चाहे या बात करना चाहे, तो हम उनसे अब भी बात कर सकते हैं, कोई परेशानी नहीं होगी।
 
आद्विक (एक लंबी सांस लेते हुए)- नहीं दादू, इसकी कोई जरूरत नहीं है। मुझे आप दोनों के फैसले और पसंद पर भरोसा है।
 
दादाजी - लेकिन बेटा.....
 
आद्विक - आप निश्चिंत रहिए, मुझे कोई दिक्कत नही है...
 
दादाजी (कुछ सोचते हुए मुस्कुरा कर)- लगता है अब मेरा आदि सच में बड़ा हो गया है...
 
               दादाजी भी ठीक है कह कर थोड़ी ही देर में वहां से चले गए और आद्विक यूं ही सिर एक ओर टिकाए कुछ सोचने लगा।
 
               "नहीं जानता तुम कौन होगी, या कैसी होगी, हां लेकिन एक बात तो बिलकुल सच है कि ये शादी मेरे लिए एक जिंदगी भर का समझौता है और कुछ भी नहीं, ये तुम जितना जल्दी समझ जाओ उतना ही अच्छा होगा। एक पति होने की सारी जिम्मेदारियां उठाने की पूरी कोशिश रहेगी मेरी लेकिन मैं वो अपनी खुशी से करूंगा या फिर अपनों की खुशी के लिए इसका जवाब सच में मेरे पास नहीं होगा।......... (थोड़ा रुक कर)....... वैसे भी जिस रिश्ते में पसंद या नापसंद की कोई बात ही नहीं आई हो, उसमें कैसी भावनाएं या फिर कैसा जुड़ाव......!!!!" आद्विक खुद में सोचता हुआ बोल रहा था कि तभी उसे हर दिन की तरह बगल वाले कमरे से अपने भैया भाभी के आपस के बहस की जोर जोर की आवाजें आने लगीं और उसने फिर से आंखें बंद कर लीं।
 
 
एक रोज सुबह सुबह...............
 
             "ओह मां, ये क्या हरकत है शुभी (नीतिका के छोटे भाई का प्यार का नाम), दिमाग खराब है क्या तुम्हारा?? क्यों नहीं सोने दे रहे हो?? आज सच में पापा को तुम्हारी सारी हरकतें बताऊंगी, देखना.......।" बोलती हुई परेशान हो कर नीतिका अपने बंद आंखों में ही अपने बाल ठीक करते हुए बोल पड़ी क्योंकि किसी ने जोर से उसके बाल खींच कर उसे उठाया था।
 
              "ओहो..... तो मैडम विक्टोरिया यहां सोती रहें चैन से और इतना सारा काम, वो क्या अकेली मैं ही करूंगी??? जी नहीं, मेरी शादी में तुमने मुझसे भी कम काम नहीं कराए थे जो तेरी बारी आने पर तुझे छोड़ दूं। चल उठ....." मुंह बना कर हंसते हुए भव्या बोल पड़ी।
 
             "भावी तुम........." उछलती हुई दोनों सहेलियां एक दूसरे के गले लग गईं।" 
 
नीतिका (भावुक हो कर)- भावी, सच में बहुत -बहुत मिस किया तुझे, thanku आखिर तू आ गई।
 
भव्या (थोड़ा नाराज होते हुए)- तू और मुझे मिस करती थी, है ना .......?? हुंह.... इसीलिए इस एक महीने में मुश्किल से गिन कर एक -दो कॉल या चार या पांच मैसेज.... मेरे शक्ल पर बेवकूफ लिखा है जो तेरी बात मान लूं।
 
नीतिका (धीरे से) - नहीं यार, तुझे पता है, ऐसी कोई बात नहीं है, हां बस न्यूली वेडेड कपल को बार -बार कॉल करके परेशान करना अच्छा नहीं लगता था।
 
भव्या (जान कर चिढ़ाती हुई)- हां, हां, ये सीधा बोल ना, जीजू के खयाल छोड़ेंगे तब ना किसी और का कुछ सोचेगी??
 
            नीतिका भव्या की बातों से बिल्कुल चुप थी जो भव्या भी बड़े गौर से समझने की कोशिश कर रही थी।
 
भव्या (कुछ सोच कर थोड़ा गंभीरता से)- क्या हुआ नीकू, तू इतनी बुझी हुई क्यों है?? परसों तेरी शादी है पागल..... और एक बात ये बता तूने लड़के से मिलने तक से मना क्यों कर दिया और फिर ये शादी भी इतने सिंपल तरीके से करने की जिद...... जबकि मैं तुझे जितना जानती और समझती हूं तुझे तो इन  ढेर सारी रस्मों रिवाजों का कितना शौक है।
 
नीतिका (शांत हो कर)- नहीं भावी ऐसी कोई बात नहीं है, बस पता नहीं दिल में एक अजीब सा सन्नाटा है कि जैसे जिंदगी में कोई बहुत बड़ी हलचल मचने वाली है। रही बात लड़के से मिलने या मिलाने की, तो तू ये अच्छे से जानती है कि इन चीजों में मैं पहले से ही थोड़ी कच्ची हूं, समझ नहीं आया कि क्या करना चाहिए या क्या नहीं, फिर जब शांति से सोचा तो लगा कि जब मां -पापा दोनों की पसंद है तो अच्छा ही होगा, बांकी जो आगे किस्मत लिख दे।
 
भावी (प्यार से)- नीकू, plz इतना मत सोच, खुद को रिलैक्स रख..... मैंने जितना उनके बारे में दर्श से सुना है वो बहुत अच्छे हैं। दर्श तो कहते हैं कि तुम्हारी दोस्त को उससे ज्यादा अच्छा जीवनसाथी मिल ही नहीं सकता।
 
नीतिका चुपचाप भव्या की बात सुन रही थी।
 
भव्या (फिर से)- देख, देखने में तो सुपर कूल हैं, तू जानती ही है, हां मैंने तो ये भी सुना है कि अपने परिवार पर जान छिड़कते हैं वो तो अपनी बीवी को कितना मानेंगे ये सोच। (कुछ सोच कर)-दर्श और वे बेस्ट फ्रेंड हैं लेकिन एक बस ये बात अजीब है कि मैं भी अब तक उनसे बस एक बार रिसेप्शन में मिली हूं फिर उसके बाद कभी नहीं। उनका या उनके घरवालों का हमारे घर आना जाना काफी कम ही होता है।
 
               भव्या अब तक इस बात से बिल्कुल ही अंजान थी कि नीतिका ने अब तक आद्विक को ठीक से देखा तक नहीं है, यहां तक कि तस्वीर में भी। भव्या आगे कुछ और बोलती कि उसका फोन बजने लगा और वो उठा कर एक साइड में चली गई। उसका चमकता चेहरा ही बता रहा था कि वो दर्श की कॉल थी तो नीतिका बस उसके चेहरे को देख फिर से यूं ही कुछ सोचने लगी।
 
            थोड़ी देर में नीतिका की मां के जोर देने पर दोनों सहेलियां शॉपिंग के लिए चली गईं।
 
              उधर आज काफी दिनों बाद दर्श और आद्विक अपनी पुरानी पसंदीदा जगह "चाचा की चाय" वाली दुकान पर बैठे थे।
 
दर्श - क्या हो गया है तुझे आज कल ???
 
आद्विक - क्यों, बिल्कुल भला चंगा तो हूं।
 
दर्श (कुछ सोच कर)- देख आदि, तेरे बांकी दोस्तों को तू ये कहानियां बता, मुझे नहीं।
 
दर्श (फिर से)- जो लड़का अपनी एक जींस भी पच्चीस दुकानों में चक्कर लगा कर पसंद करता है उसने एक बार भी उससे मिलने की कोई जिद नहीं की......। जो लड़का जिंदगी भर लव मैरिज की बात करता रहा वो आज अचानक ऐसे सीधे शांत तरीके से किसी से भी शादी करने को तैयार हो गया, ये सब कुछ अजीब नहीं है ??
 
आद्विक (शांति से)- नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है। तुझे पता है ना दादू -दादी मेरे लिए क्या हैं...। फिर अगर उसे उन्होंने इतने भरोसे से मेरे लिए चुना है तो यही सही।
 
आद्विक (फिर से)- मुझे पता है कि इस रिश्ते का कोई खास भविष्य नहीं है लेकिन....... (थोड़ा रुक कर) वैसे भी, अच्छा ही है ना, उनका ये भ्रम भी दूर हो जाएगा.....
 
दर्श (उसकी बात बीच में काटता हुआ)- ऐसे क्यों बोल रहा है?? लड़की सच में अच्छी है।
 
आद्विक (हंसते हुए)- जो भी हो... मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। हां वैसे एक बात सोच कि बिना मिले, बिना जाने, किस बात पर वे लोग इस शादी के लिए राजी हो गए, (थोड़ा रुक कर)..... यही सोच कर ना, कि लड़का बहुत पैसे वाला है। बेटी पूरी जिंदगी ऐश करेगी।
 
दर्श (थोड़ा गुस्से में)- क्यों, तुझे उस लड़की को बिना देखे, बिना मिले ये सब कैसे समझ आ गया...??? भगवान है तू कि यहां बैठे हुए तूने सब जान लिया..?? 
 
दर्श (फिर से)- जितना मैं उस लड़की को जानता और समझता हूं ना, सच में आज के वक्त में उतना शांत और समझदार होना बहुत बड़ी बात है।
 
आद्विक (थोड़ा चिढ़ कर)- बस कर अब उसका पुराण, अच्छी है या बुरी, अब फर्क क्या पड़ता है, शादी तो कर ही रहा हूं ना, हां जब असलियत सामने आए तो दुखी मत होना।
 
दर्श -अपनी सोच पर तू पछताएगा, देखना....।
 
आद्विक (हंसते हुए)- देखेंगे...... खैर अभी से इस बात पर क्यों बहस करनी, वैसे भी काफी दिनों बाद मिले हैं चल शहर की ही एक तफ़री मारते हैं।
             दोनों थोड़ी देर में गाड़ी में बैठ निकल गए।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#17
9.......................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#18
              आखिर दोनों ने पूरे बेमन और बेबसी से ही सही लेकिन बांकी सभी के ढेरों आशीर्वाद और शुभकामनाओं के साथ पहले एक दूसरे को जयमाला डाली और फिर शादी के अनोखे बंधन में बंध ही गए। शादी के बीच की भी कई रस्मों में  जहां इन्हें एक दूसरे का हाथ छूना या पकड़ना था वहां तो मानो इनके लिए पूरे पानीपत की लड़ाई का सामना करने वाली जैसी स्थिति थी जिसमें दोनों ही एक दूसरे को अपनी आंखों से खा जाने वाली नजर से देखते थे लेकिन अगले ही पल स्थिति से हार कर अपने हथियार डाल देते और नजरें नीची कर लेते।
 
                कुछ ही घंटों में शादी संपन्न हो गई और किसी भी तरह से एक दूसरे से मेल ना खाने वाले दो लोग आखिरकार जीवनसाथी बन ही गए अब वे जीवन भर एक दूसरे का साथ निभाने की ताकत और इच्छा रखते थे या नहीं ये तो सिर्फ वे या शायद उनकी किस्मत ही जानती थी।
 
                थोड़ी ही देर में विदाई की घड़ी भी आ गई जिसमें कोई मां -बाप कितने ही मजबूत कलेजे वाला क्यों ना हो लेकिन बेटी की विदाई में उनकी आंखें ना बरसे या उनका दिल ना तड़पे ये तो संभव ही नहीं फिर यहां तो नीतिका अपने मां बाप की दुलारी सी गुड़िया थी जिन्हें उन्होंने आज तक खुद से कभी दूर देखा ही नहीं था।
 
             अखिल और विभा जी की जो हालत थी वो किसी से भी छुपी हुई नहीं थी लेकिन इस वक्त जो मनोस्थिति नीतिका की थी उसका बयान करना असम्भव था। एक ओर मां बाप को छोड़ने की तकलीफ लेकिन शायद इस वक्त इस तकलीफ से कहीं ज्यादा इस चीज का दर्द था कि जिंदगी ने उसे आज जिस शक्श के साथ खड़ा कर दिया वो शायद अगर दुनिया का आखिरी इंसान भी होता तो नीतिका कभी भी जान कर इस रिश्ते के लिए हां नहीं करती। लेकिन कहते हैं ना शादी या जोड़ियां तो ऊपरवाला ही बनाता है तो उनके सामने इनकी क्या और कितनी चलती। 
 
              जिस शादी की हर एक चीज में चाहे लड़का हो या लड़की, वो एक अलग ही उत्साह रखता है, कितने सपने संजोता है, वही शादी आज इन दोनोंके लिए इनके गले की फांस थी। आज दोनों के लिए सच तो यही था कि जिस साथ चलने वाले इंसान को पसंद करना क्या एक पल के लिए भी बर्दाश्त करना भी असंभव था उन्हें अब अपने घरवालों और दुनिया वालों की नजर में एक बन कर रहना था और यही उनकी सबसे बड़ी मजबूरी भी थी।
 
              आखिर नम आंखों से बिटिया की विदाई भी हो गई और नीतिका अपनी जिंदगी के नए सफर पर अपना पहला कदम रखने के लिए मजबूरी में ही सही लेकिन आद्विक के साथ चल पड़ी। वहीं जो आद्विक आज तक कभी भी किसी भी फैसले में कमजोर नहीं पड़ा था वही आज अपनों की खुशी के लिए खामोश था। शायद यही होती है सच्चे प्यार की ताकत जिसमें इंसान अपनों के लिए कुछ भी कर गुजरने का हौसला रखता है।
 
            थोड़ी ही देर में नीतिका और आद्विक "सिन्हा निवास" के मुख्य द्वार पर खड़े थे। जहां आद्विक बस बुझे मन से चुपचाप खड़ा था वहीं नीतिका भी लाचार पड़ी सी उसके साथ ही खड़ी थी। उसपर से मां बाप से दूर होने की तकलीफ से दुखी हो कर बीच में हल्के से सिसक भी रही थी जिसका अंदाजा घूंघट में होने की वजह से बांकी किसी को तो नहीं था हां, आद्विक जो उसके पास ही खड़ा था उसे ये एक दो बार जरूर महसूस हुआ लेकिन शायद अभी तक उसे इन चीजों की कोई खास परवाह नहीं थी तो उसने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
 
               दादी के कहने पर सौम्या आरती की थाल ले कर आई और पीछे से नीतू ने चावल भरा कलश रख दिया। दादी ने प्यार उन दोनों की आरती उतारी फिर कलश को गिरा कर नीतिका का गृह प्रवेश कराया। घर की कुलदेवी को प्रणाम करने के बाद जब उसने सबको प्रणाम किया तो दादी -दादाजी  ने जी भर कर आशीर्वाद दिया। वो जब सुनीता जी की ओर प्रणाम करने के लिए बढ़ रही थी तो आद्विक ने हल्के से रोकने की कोशिश भी की लेकिन नीतिका ने इस पर ध्यान नहीं दिया।
 
सुनीता जी - हां, हां ठीक है, खुश रहो....। और क्या आशीर्वाद दूं तुम्हें, जो तुमने सपने में  भी नहीं सोचा होगा वैसा लड़का, वैसा घर मिल गया तो मन में लड्डू तो बड़े -बड़े फूट रहे होंगे, क्यों, है ना...??
 
            अब तक तो नीतिका को भी उनका रवैया खटक ही रहा था लेकिन अब सामने से ऐसी तीखी बातें सुन कर वो अपने आंसू रोक नहीं पाई। इन सबमें कोई कुछ कहता कि उसके पहले ही आद्विक बोल पड़ा।
 
आद्विक (गुस्से में)- क्या समझती हैं आप खुद को..?? क्या लगता है आपको कि जैसी छोटी सोच आपकी है, वैसी ही सबकी होगी??? 
 
आद्विक (फिर से)- मेरी एक साफ और सीधी बात आप अच्छे से समझ लीजिए कि आपको अपनी बहू के मान मर्यादा या उसके आत्म सम्मान की कोई परवाह हो या नहीं लेकिन मुझे जरूर है। मेरे लिए मेरी पत्नी की इज्जत या उसका आत्म सम्मान मुझे खुद की इज्जत के जितना ही प्यारा है, इसीलिए दुबारा बिना किसी वजह से भी अपने मन की भड़ास इस पर निकालने की सोचिएगा भी मत..... 
 
              इतना कह कर आद्विक नीतिका का हाथ पकड़ उसको लगभग खींचते हुए अपने कमरे की ओर ले कर चला गया और वहां खड़े बांकी लोग देखते ही रह गए या यूं कह लें कि चाह कर भी नहीं रोक पाए।
 
उर्मिला जी (परेशान हो कर)- मिल गया दिल को सुकून....?? कम से कम उस लड़की के लिए ना सही अपने बच्चे की खुशी या शगुन समझ कर आज तो खुद को संभाल लेती तुम ??
 
सुनीता जी (गुस्से में)- आपको उस दो कौड़ी वाले घर से आई लड़की की परवाह है लेकिन अपनी बहू की नहीं, देखा कैसे आदि ने उसके सामने मेरी बेइज्जती की..??......(थोड़ा रुक कर).........और सबसे बड़े दुख की बात तो ये है कि यहां खड़े किसी भी एक सदस्य ने उसे न ही डांटा और ना ही रोका।
 
                बेटा, तुम जिस बच्ची को आज यहां दो कौड़ी की कह रही हो, ये मत भूलना कि वो तुम्हारे अपने बेटे की पत्नी है, जिसे वो भगाकर नहीं बल्कि सबकी सहमति से शादी के पवित्र बंधन में बांध कर लाया है। और हां, अगर ठीक से देखने और समझने की कोशिश करोगी तो आज उसकी जगह भी बिलकुल वही है जो तुम्हारी है। सबसे अच्छी बात तो यही होगी कि जिस खुशी और जिस इज्जत और सम्मान से हमने तुम्हें इस परिवार में शामिल किया था, आज तुम भी उसे उसी तरीके से अपनाओ, बांकी तुम्हारी मर्जी।" सच्चिदानंद जी, ने गंभीरता पूर्वक ये बात कही और फिर अपने बेटे सुबोध की ओर एक नजर डालते हुए चुपचाप अपने कमरे की ओर चले गए।
 
                           चूंकि आद्विक के गुस्से को सभी अच्छे से जानते थे तो चाह कर भी उस वक्त कोई भी उसे कुछ भी नहीं कह पाया। उर्मिला जी ने भी कुछ सोच कर बांकी सबको भी आराम करने को कह दिया तो बांकी सभी भी अपने अपने कमरे में चले गए।
 
नीतू दीदी (कुछ सोच कर)- दादी, नीतिका ने अब तक कुछ खाया भी नहीं है सुबह से, उसे भूख लगी होगी और फिर ये घर भी उसके लिए बिलकुल नया है। किसी चीज की जरूरत पड़ी तो.....
 
उर्मिला जी (शांति से)- हम्म्म....तुम्हारी बात बिलकुल सही है बेटा, लेकिन बहुत ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है, जिस इंसान को उसका सबसे ज्यादा खयाल रखना चाहिए, वो उसके साथ है....(थोड़ा मुस्कुराते हुए) देखा नही, किस तरह से अपनी पत्नी की आवाज बन कर खड़ा था.... वैसे भी जिन हालातों में और जिस तरह हड़बड़ी में इनकी शादी हुई है, ये जितना ज्यादा वक्त एक दूसरे को देंगे, उतना ही एक दूसरे को समझेंगे और करीब आयेंगे।
 
            नीतू भी दादी की बात समझ गई और अपने कमरे की ओर चली गई।
 
                जहां पूरे घर में सभी के अपने कमरे में जाने से एक अलग सी खामोशी छाई थी वहीं उन खामोशियों से निकला सबसे बड़ा तूफान आद्विक और नीतिका के कमरे में बह रहा था। आद्विक वहां से नीतिका को गुस्से में खींच कर ले तो आया था लेकिन अब इस कमरे में उसकी मौजूदगी उससे कतई बर्दाश्त नहीं थी। नीतिका अब भी आद्विक के अंदर आए इस अचानक के बदलाव को नहीं समझ पा रही थी इसीलिए बस गौर से उसकी तरफ देख रही थी।
 
आद्विक (गुस्से में)- मना किया था ना तुम्हें उनके पैर छूने से, फिर भी तुम नहीं मानी.....
 
नीतिका (थोड़ा शांत होकर)- लेकिन, वो तो आपकी मां........
 
आद्विक (फिर गुस्से में)- मैं जानता हूं वो क्या हैं मेरी, मुझे मेरे रिश्ते याद दिलाने की जरूरत किसी तीसरे को नहीं है, समझी... तुम्हें जितना कहूं बस उतना सुना करो वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।
 
नीतिका (रुआंसी सी)- हां, समझ गई...... 
 
               आद्विक एक ओर अब भी अपने रिश्तों को कड़वाहट को सोच कर दुखी था वहीं दूसरी ओर नीतिका अचानक अपनी जिंदगी में आए इतने बदलावों को न ही तो समझ ही पा रही थी और ना ही उसका सामना कर पा रही थी। उस पर आद्विक की मां की बातें उसे अलग ही चुभ रही थीं। अगर वो जी भर कर फूट - फूट कर रोना भी चाहती तो ना तो उस पल उसके पास किसी का कंधा था और ना ही कोई अपनी जगह। इस नए घर, इस नए कमरे में उसे जेल में रहने वाले कैदियों से भी ज्यादा घुटन महसूस हो रही थी जो वो खुद के अलावा किसी को नहीं बता सकती थी। 
 
            नीतिका बस काफी देर तक यूं ही कमरे के एक साइड लगे सोफे के एक कोने में चुपचाप सिमटी सी बैठी थी। दूसरी ओर आद्विक हर दिन की तरह अपनी चीजों को गुस्से में इधर उधर फेंक कर अपने बिस्तर पर पांव फ़ैला कर ऐसे पड़ा था जैसे नीतिका उस वक्त उसके कमरे में हो ही नहीं। या शायद ये जान बूझ कर उसके ऊपर अपना गुस्सा जाहिर करने का उसका तरीका था जिससे नीतिका दूर तक अंजान थी। काफी देर तक आद्विक अपनी करवटें बदलता रहा और खुद को नींद की ओर ढकेलता रहा जो उससे कोसों दूर थी।
 
           रात के लगभग दो बज चुके थे, नीतिका अब भी यूं ही सोफे पर सिमटी, उदास सी बैठी थी, ना चाहते हुए भी अब तक उसके आंसुओं की झड़ी खत्म नहीं हुई थी। पुरानी बातें, अपना घर, अपने मां बाप का सोच उसकी आंखें भर ही आती थीं। दूसरी ओर आद्विक शायद सो चुका था क्योंकि उसका करवटें बदलना भी अब तक बंद हो चुका था। उसे सोया समझ अब एक पल के लिए नीतिका भी थोड़ा शांत हो चुकी थी।
 
              थोड़ी और देर बाद नीतिका को वाशरूम जाने की जरूरत महसूस होने लगी तो उसने हल्के से नजरें इधर उधर दौड़ाई तो कमरे के एक कोने में ड्रेसिंग एरिया और उसके थोड़े आगे वॉशरूम जान पड़ा। नीतिका धीमे कदमों से उस ओर बढ़ने लगी लेकिन वो जितनी ही कोशिश करती कि आवाजें कम हो, उतना ही उसकी पायल और उसकी चूड़ियों ने बजने की ठान ली थी।
 
आद्विक (आधी नींद में चिढ़ कर)- क्या मजाक है, ये चुड़ैल और भूतनियों को भी अभी मेरा ही कमरा मिला है नाइट पार्टी करने को......
 
                   इतना कह कर उसने नींद में ही अपने बगल में रखा कुशन उठा कर अपने मुंह पर रख लिया। उधर नीतिका आद्विक की बातों को सुन ना जाने क्यों हल्के से मुस्कुरा पड़ी। फिर अगले ही पल उसकी सारी हरकतें और अपनी स्थिति याद कर वापस दुखी हो गई।
 
                  वॉशरूम जा कर उसने सबसे पहले अपना मुंह धोया जो रो रो कर बिलकुल लाल हो चुका था। सच तो ये था कि वे भरी भरकम कपड़े और खास कर वो साड़ी उससे अब बिल्कुल भी नहीं संभल रही थी, बहुत मुश्किल से उसे सुबह विभा जी और भव्या ने पहनाया था जो अब तक बिलकुल अस्त व्यस्त हो चुका था। 
 
             वो जैसे ही उसे ठीक करने को थोड़ा झुकी तो उसके ही कलाई की एक चूड़ी टूट कर उसे गड़ गई और काफी खून निकलने लगा। शायद ये चूड़ी आद्विक के उस वक्त जोर से कलाई पकड़ने की वजह से टूटी थी जिसका अंदाजा उस अफरा तफरी में उसे भी अब तक नहीं लगा था। दोबारा ठोकर लगने की वजह से इस बार नीतिका जोर से कराह उठी। 
 
          नीतिका को बचपन से ही चोट क्या खरोंच से भी बहुत डर लगता था और यही वजह भी थी कि चूड़ियां इतनी पसंद होने के बाद भी इस डर से वो कभी नहीं पहनती थी कि कहीं वो टूट कर चुभ ना जाएं। दर्द से कराहती हुई उसने अपनी साड़ी भी ठीक करने की कोशिश की जो ठीक नहीं हुई। अब आईने में अपनी हालत देख वो सुबह से ले कर अब तक की सारी बातें याद कर आखिर बिफर कर रो पड़ी। यूं फूट -फूट कर रोने की आवाज वाशरूम का दरवाजा बंद होने के बाद भी धीमी -धीमी आ रही थी जो आद्विक के कानों में  भी पड़ चुकी थी।
 
            एक पल के लिए तो नींद में होने की वजह से उसे बिलकुल भी समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है लेकिन अगले ही पल ना चाह कर भी नीतिका का यूं रोना उसे अब परेशान कर रहा था। उसे कुछ समझ नहीं आया तो वॉशरूम के पास जा कर उसका दरवाजा नॉक करने लगा।
 
आद्विक (गुस्से में)- पागल हो क्या, या कोई दौरे चढ़ते हैं तुम पर जो इतनी रात ये सब कर रही हो...??
 
              नीतिका अचानक यूं आद्विक की आवाज सुन घबरा गई और खुद को चुप कराने लगी। आद्विक अब भी दरवाजा नॉक कर रहा था।
 
आद्विक (गुस्से में)- आज ही निकलोगी या पंडित से मुहूर्त निकलवाऊं....??
 
                     नीतिका चुपचाप जैसे -तैसे खुद को और खुद के कपड़े संभालती हुई बाहर आ गई। कमरे में जलती हल्की रौशनी में भी जब आद्विक की नज़र नीतिका के चेहरे पर पड़ी तो उसकी हालत और सूजी लाल -लाल आंखें देख ना चाहते हुए भी उसे बुरा लग रहा था। उसने बेड के बगल में रखा पानी का ग्लास उठाया और उसकी तरफ बढ़ा दिया तो नीतिका भी एक पल के लिए उसे ही देखने और घूरने लगी।
 
आद्विक (चिढ़ कर)- ग्लास पकड़ना है कि वापस रखूं इसे?? इस वक्त आपकी सेवा में इससे ज्यादा और कुछ नहीं हो पाएगा, समझीं महारानी साहिबा।
 
आद्विक (फिर से)- जानता हूं, जिंदगी में चाहे कुछ भी हो जाए, तुम जैसी रोतलू का ये सब ड्रामा कभी भी खत्म नहीं होने वाला है, है ना....!!!
 
नीतिका को भी आद्विक की बात से गुस्सा आ गया।
 
नीतिका (चिढ़ कर)- अपना ये भारी भरकम अहसान अपने पास ही रखें वरना मैं तो इसके तले दब कर मर ही जाऊंगी .....!!
 
            आद्विक ने गुस्से से पानी का ग्लास वहीं पटक दिया जिससे नीतिका भी थोड़ा सहम गई। 
 
आद्विक (गुस्से में)- अपना ये बाइस मन का नखड़ा अपने पास रखो समझी, मैं तुम्हारा कोई गुलाम नहीं हूं कि तुम्हारी सेवा में पड़ा रहूंगा, समझी। पीना है तो पियो, वरना भांड में जाओ। मेरा ही दिमाग खराब है जो तुम पर दया दिखा रहा था।
 
           इतना कह कर आद्विक गुस्से में वापस अपने बिस्तर पर लेट गया और नीतिका फिर से सुबकती हुई बस वहीं सोफे से सिर टिका कर वहीं पर बैठ गई। 
 
                जिस रात के सपने हर लड़की कितने ही खुशियों से मन में सजाती है और जो रात कभी भी जिंदगी में खत्म ना हो यही मनाती है, आज वही रात नीतिका की जिंदगी के लिए सबसे भारी और तकलीफों वाली थी जिसके जल्दी बीतने की छटपटाहट बस नीतिका का दिल ही समझ रहा था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#19
11...............................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#20
"वाह चाचीजी जी, आप तो बहुत ही प्यारी बहु लेकर आई हैं, बहुत बहुत बधाई हो आपको।" आद्विक की एक पड़ोस में रहने वाली आंटीजी नीतिका को देख कर बोल पड़ीं।

"अरे आद्विक, तुम तो कहते थे कि जब भी शादी करोगे अपनी पसंद से करोगे और वो भी पूरे ढोल नगाड़े के साथ, फिर ये अचानक, चुपचाप वाली बात तो समझ नहीं आई बेटा.... और वो भी सुना है कि शादी भी तुमने अपनी पसंद नहीं बल्कि दादी की पसंद की लड़की से की है, अचानक इतना बदलाव....??" वो आंटी नीतू दीदी के हाथ से शरबत का ग्लास उठाती हुई फिर से बोल पड़ीं।

"अरे आंटी जी इसे ही तो प्यार कहते हैं ना कि जबसे दादी के कहने पर इन्हें देखा, देखते ही रह गया फिर किसी और चीज का इंतजार कर ही नहीं पाया.....!!! और देखिए ना आपको भी नहीं बुला पाया...!!" उर्मिला जी या कोई और कुछ बोलती कि पहले ही आद्विक ने तड़ाक से जवाब दे डाला और वो चुप हो गईं।

आद्विक के इस जवाब से जहां पड़ोसन आंटी जी थोड़ा चिढ़ गईं वहीं घर के बांकी लोग आद्विक के इस अंदाज पर मन ही मन में हंस रहे थे। दूसरी ओर नीतिका आद्विक के इस अंदाज को बिलकुल भी समझ नहीं पा रही थी। जहां उसे अपने जीवनसाथी के रूप में एक शांत और समझदार इंसान की उम्मीद थी आद्विक उसके बिलकुल विपरीत था।

थोड़ी देर में ही वहां की सारी रस्मों को निभाने के बाद उर्मिला जी ने उन दोनों को नीतिका के मायके भेज दिया जहां से उन्हें तैयार हो कर एक साथ रिसेप्शन हॉल में जाना था। आद्विक चिढ़ा हुआ तो बहुत था लेकिन सामने बैठे ड्राइवर की वजह से नीतिका को कुछ खुल कर कह नहीं पा रहा था। वहीं नीतिका की आंखों में भले ही कुछ पलों के लिए लेकिन ये एक सुकून था कि वो अपने घर जा रही थी, अपने मां बाप के पास।

अचानक थोड़े ही आगे पेट्रोल पंप के पास जा कर ड्राइवर ने आद्विक को इशारा किया और उसकी हामी देख उसने पेट्रोल पंप के अंदर की ओर गाड़ी कर ली। वहां थोड़ी भीड़ थी तो गाड़ी से निकल कर वो अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगा।

आद्विक (मौका देख कर गुस्से में)- तुम मिडिल क्लास वाले लोगों को सिर्फ एक बात आती है ना, वो है बस दिखावा करना, फिर चाहे सामने वाले को पसंद हो या फिर नहीं हो।

नीतिका को आद्विक की बात बहुत बुरे तरीके से चुभी और वो कुछ कहती कि आद्विक फिर से बोल पड़ा।

आद्विक - सही है, इतने बड़े घर में रिश्ता हो गया बैठे -बैठे तो दिखाना तो बनता है ना......

नीतिका (आद्विक की बात काटते हुए गुस्से में)- बस कीजिए, आपको नहीं जाना है ना घर, नहीं जाना है ना रिसेप्शन में..... तो बस मत जाइए लेकिन बेफिजूल की ये कड़वी बातें अपने पास रखिए।

आद्विक नीतिका की बात सुन और गुस्सा हो गया।

आद्विक (मुंह बना कर गुस्से में)- ओह, तो महारानी जी को सचमुच में ये लगता है कि मुझे इन लोगों की चाल समझ नहीं आती है... (थोड़ा रुक कर)...... तुम बस शुकर करो कि मैंने ना नहीं की तुम लोगों के इन फिजूल के दिखावे के लिए वरना....... वरना सबका होश एक साथ ठिकाने लग जाता।

नीतिका बिल्कुल रुआंसी हो चुकी थी और उसकी आंखें फिर से भर आईं।

आद्विक (चिढ़ कर) - बस...... फिर से वही ड्रामा, थकती नहीं हो, इतना आंसू तो ग्लिसरीन लगा कर भी ना आएं किसी के जितना तुम्हें ऐसे ही हर बात में निकालने का शौक है।

नीतिका बस चुपचाप बिना कुछ बोले अपने आंसू पोंछ रही थी। आगे कुछ बात होती कि उसके पहले ही ड्राइवर वापस आ गया और ये लोग दोनों ही सामान्य होने की कोशिश करने लगे। आद्विक की एक एक बात शब्दशः नीतिका के कानों में हथौड़े की तरह पड़े थे जिसे वो बहुत मुश्किल से अपने आप को सामान्य कर रही थी ताकि किसी को भी उसके घर में उसके अंदर की असल तकलीफ का अंदाजा न हो पाए।

थोड़ी ही देर में दोनों घर पहुंच गए। सामने अखिल जी को बाहर देखते ही नीतिका दौड़ कर उनके गले लग गई जैसे एक दिन बाद नहीं बल्कि सालों बाद मिल रही हो अपने पापा से..! अखिल जी ने भी प्यार से बिटिया को गले लगा लिया। आद्विक को ये चीजें देख कर अजीब लग रही थी या शायद वो इन पलों और इन रिश्तों की खूबसूरती को समझ नहीं पा रहा था। उसके और सुबोध जी के बीच का रिश्ता एक बाप -बेटे से ज्यादा एक जिम्मेदारी के निर्वाह का था सो उसमें भावनाओं की गर्माहट ना के ही बराबर थी।

नीतिका से मिलते ही अखिल जी आद्विक के पास आए और प्यार से उसके सिर पर भी हाथ फेरा। जहां एक ओर वो इन नए रिश्तों से चिढ़ कर दूर भाग रहा था वहीं ये रिश्ते उसे और अपनी जिंदगी के खालीपन का याद दिला रहे थे। अखिल जी को देख एक पल के लिए उसका मन आया कि वो झिड़क दे लेकिन फिर अगले ही पल उसके अंदर के संस्कारों ने उसका हाथ थाम लिया।

अब तक विभा जी भी आ चुकी थीं बाहर, नीतिका उनके भी गले लग गई और उन्होंने भी प्यार से उसका सिर चूम लिया फिर आद्विक के पास जाकर उसे भी आशीर्वाद दिया। उन दोनों की आरती उतार कर उन्हें प्यार से घर के अंदर लाया। अब तक शुभम भी आ चुका था तो वो भी आद्विक की जीजू...... जीजू करके आगे पीछे कर रहा था।

सबसे मिलने के बाद विभा जी ने ही नीतिका को आद्विक को ले कर कमरे में जाने को कहा ताकि वे दोनों थोड़ा रिलैक्स और फ्रेश हो सकें। आद्विक की उस घर में आज पहले बार आने की असहजता अखिल जी और विभा जी अच्छे से समझ रहे थे इसीलिए वे सभी उसे प्यार से उस माहौल को समझने का वक्त दे रहे थे।

नीतिका ने आद्विक को कमरा दिखा दिया और उसके जरूरत की लगभग सारी चीज़ें दिखा दी जो विभा जी ने पहले से ही इंतजाम कर रखा था और नीतिका को भी बता दिया था। आद्विक चारों ओर नजरें घुमा कर उस कमरे को देख रहा था जहां नीतिका के पलंग के सिरहाने में एक बड़ी सी फैमिली पिक्चर लगी थी। वहीं एक ओर उसके स्टडी टेबल पर एक प्यारा सा वुडेन फ्रेम रखा था जिसमें उसकी और भव्या की एक बहुत ही प्यारी सी फोटो लगी थी। ना चाह कर भी आद्विक की नज़र उस तस्वीर में नीतिका की मुस्कुराहट से हट ही नहीं रही थी।

"और कुछ चाहिए हो तो प्लीज मुझे एक मैसेज डाल दीजिएगा, मैं आ जाऊंगी...तब तक आप आराम कर लीजिए..!!" नीतिका चुपचाप बोल कर वापस जाने लगी।

आद्विक (खोया सा)- क्यों, तुम कहां जा रही हो ??

नीतिका आद्विक के इस सवाल से एक पल के लिए बिलकुल चुप हो गई वहीं आद्विक पलट कर नीतिका की ओर देखने लगा। तस्वीर वाली नीतिका एक ओर जितनी ही प्यारी और खुश लग रही थी वहीं आज ये सामने खड़ी नीतिका मुरझाई और उदास सी थी। जहां उस तस्वीर में उसकी आंखें चमक रही थीं वहीं आज असल की जिंदगी में वही आंखें बिल्कुल सूनी थीं। आद्विक का नीतिका को यूं इतने गौर से देखना उसे बहुत अजीब महसूस करा रहा था तो बस वो बिना कुछ बोले कमरे से निकल गई।

अब तक आद्विक को भी होश आया तो उसने भी वापस से सिर झटक लिया और सामने लगे बेड पर जाकर बैठ गया। कलाई से अपनी घड़ी खोल कर बेड के साथ लगे टेबल पर रखने लगा तो उसे एक छोटी और प्यारी सी डायरी दिखी। ना जाने क्या सोच कर वो उस डायरी को उठा कर पलट कर देखने लगा।

"???? तुम मेरे हो ना..!!❤️?" डायरी के पहले पन्ने पर ही उसे एक खूबसूरत सी लिखावट में ये लिखा मिला और उसे अजीब लगा...!!

"अच्छा तो इन महारानी का भी अपना पास्ट है, बन कर तो ऐसी सीधी -साधी दिखती है जैसे कितनी सच्ची है...!! मैं भी तो देखूं इसकी असलियत....!!" आद्विक खुद में बड़बड़ाता हुआ सा बोल रहा था और उत्सुकता से डायरी को आगे पलट रहा था।

"क्या है ये सब, आपको इतनी सी बात पता होनी चाहिए कि किसी की पर्सनल चीज़ें इस तरीके से छुप कर झांकना कितना गलत है...!!" नीतिका जो हाथ में कॉफी लिए खड़ी थी गुस्से में आद्विक की ओर देख कर बोल पड़ी।

आद्विक (गौर से देख कर)- कोई बड़ा राज छुपा रखा है जो इतना डर रही हो??

नीतिका (गुस्से में)- जो इंसान खुद जैसा होता है उसे पूरी दुनिया भी वैसी ही लगती है।

इतना कह कर नीतिका ने आद्विक के हाथ से अपनी डायरी ले ली। लेकिन आद्विक की सनक और उसका दिमाग तो एक अलग ही दिशा में दौड़ रहा था जिससे उस पल उसका बाहर निकलना मुश्किल था।

आद्विक (गुस्से में)- अब तक मुझे लगा था कि शायद मैं ही तुम्हें नहीं समझ पा रहा हूं, बदतमीज ही सही लेकिन सच्ची हो....!! लेकिन भूल कैसे गया मैं कि तुम जैसी लड़कियां तो होश आते ही सबसे पहली पढ़ाई इस चीज की करती हो कि कैसे लड़कों.........(थोड़ा रुक कर)........सॉरी अमीर लड़कों को अपनी उंगलियों पर नचा सको फिर इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े...!! बस पूरी दुनिया के आगे ढोंग सती सावित्री होने का करना है....!!

आद्विक (फिर से)- ........फिर तुम्हारा कोई पास्ट कैसे नहीं होगा?? जरूर होगा।

नीतिका आद्विक के मुंह से इतनी बड़ी बात सुन कर आवाक रह गई। शादी से पहले भी आद्विक की कई ऐसी हरकतें और बातें थीं जिसने उसे बहुत तकलीफ पहुंचाई थीं लेकिन आज एक पति के रूप में उसके मुंह से ऐसी बातें सुनना उसके लिए बहुत ही कठिन था, वो वहीं फफक कर रो पड़ी जिसमें उसका आसूं नहीं उसका दर्द था जो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।

आद्विक (और गुस्से में)- बंद करो यार ये ड्रामा, वरना सच कहता हूं दो दिन में मेरे सामने तुम्हारे इन आंसुओं की कीमत दो कौड़ी की भी नहीं बचेगी....!! क्या प्रूव करना चाहती हो, हर बात पर रो कर.....?? यही ना कि कितनी सच्ची हो...... हुंह......... अगर सच में तुम सच्ची होती ना, तो अभी इस पल तुम्हारी आंखों में ये दिखावे के आंसू नहीं बल्कि होंठों पर इन सबका जवाब होता।

नीतिका कुछ कहती कि उसके पहले ही उसके दरवाजे पर किसी ने नॉक किया और दोनों चुप हो गए। बहुत मुश्किल से उसने खुद को संभालते हुए "हां, अभी आई" का जवाब दिया। आद्विक अब भी बस उसे ही घूर रहा था।

"क्या कर रही है तू, अब तक तैयार नहीं हुई??? देर हो जायेगी, मैंने बोला था ना कि plz देर मत करना....!! और .......(इधर उधर देखते हुए)..... और ये क्या तूने तो अभी तक अपने कपड़े भी नहीं निकाले हैं नीकू.... क्या कर रही है यार, जल्दी कर ना.....!! लगातार बोलती हुई भव्या कमरे में आ गई।

भव्या (मुस्कुराते हुए)- सॉरी जीजू.... ऐसे धावा बोल डाला आपकी प्राइवेसी पर लेकिन सच में बहुत काम था और फिर अगर अच्छे से तैयार नहीं किया आपकी मैडम को तो फिर नाराज भी तो आप ही होंगे ना....??

आद्विक यूं अचानक से भव्या को सामने देख बिलकुल चुप हो गया क्योंकि क्या जवाब दे उसे समझ नहीं आ रहा था।

भव्या (फिर से)- और जीजू..... ये क्या आप भी तो अब तक तैयार नहीं हुए हैं, आप भी हो जाइए, सबको टाइम से हॉल पहुंचना है ना।

नीतिका (हिम्मत करके)- भावी, एक कप कॉफी ला देगी, थोड़ा सिर दुख रहा है, फिर तैयार होती हूं।

भव्या (उसकी और देख कर कुछ सोचते हुए)- हां.... हां.. अभी लाती हूं।

भव्या (अचानक से रुक कर)- जीजू, आपके लिए भी ना....???

आद्विक (शांति से)- नहीं, मुझे नहीं चाहिए....

भव्या (मजाक में)- क्यों, एक ही कप में दोनों काम चला लोगे....?? अच्छा है, प्यार बढ़ाओ, प्यार....!!

इतना बोल कर भव्या हंसती हुई बाहर चली गई।

आद्विक (वापस से गुस्से में)- अगर हमारे बीच की कोई भी बात इस तक और फिर इससे दर्श तक पहुंची तो देखना मुझसे ज्यादा बुरा कोई भी नहीं होगा, मेरी जिंदगी का तमाशा बनाना मुझे हरगिज पसंद नहीं है, समझी..??

नीतिका के आंखों ने फिर से आंसुओं को जगह दे ही दी।

आद्विक (फिर से)- और हां, ये जो तुम और तुम्हारे परिवार वाले ये नाटक कर रहे हो ना, सबको दिखाने का, इसका हिस्सा मैं जिंदगी में पहली और आखिरी बार बन रहा हूं, दुबारा इसकी उम्मीद मुझसे कभी भी मत रखना। ये आज तुम्हें समझा रहा हूं अगली बार तुम्हारे घरवालों को भी समझाने में मुझे देर नहीं लगेगी।

इतना कह कर आद्विक कपड़े ले कर बाथरूम की ओर चेंज करने चला गया और नीतिका बुत सी वहीं बैठी रोती रही। थोड़ी ही देर में भव्या भी कॉफी ले कर आ गई तो आद्विक भी जरूरी फोन का बहाना कर रूम से निकल गया।

भव्या (कुछ सोच कर)- कोई बात हुई है ना तुम दोनों के बीच में..???

नीतिका (खुद को सामान्य करते हुए)- नहीं तो.....

भव्या - तू ठीक है ना, खुश है ना...??

नीतिका (बहुत हिम्मत से अपनी तकलीफ छुपाते हुए)- हां. .हां...

भव्या (प्यार से)- नीकू, मैं जानती हूं मेरे लाख बार पूछने पर भी तू मुझे अपनी बात नहीं बताएगी, लेकिन plz अपना ध्यान रखो, देखना सब ठीक हो जायेगा जल्दी ही।

नीतिका (उदास मन से)- हम्मम......

थोड़ी देर बाद निश्चित समय पर सभी परिवार वाले नए जोड़े को साथ ले कर रिसेप्शन हॉल के लिए निकल गए। नीतिका और आद्विक साथ हो कर भी बिलकुल भी साथ नहीं थे बस अपने परिवार की इज्जत के नाम पर इस वक्त साथ खड़े थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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