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03-09-2022, 04:19 PM
(This post was last modified: 03-09-2022, 05:47 PM by SEEMA SINGH. Edited 3 times in total. Edited 3 times in total.)
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शालू
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१
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शरद ऋतू की कठोरता शांत हो चली थी। ऐसे ही मौसम के ढलते हुए दिन में मैं प्रसन्नचित हो अपने ससुर जी का पसंदीदा भोजन बना रही थी। घर में अनेको नौकर हैं पर मुझे कभी कभी अपना प्यार दिखाने का सरूर चढ़ जाता है। वैसे मेरे उनको भी यह व्यंजन बहुत अच्छे लगते है।
"शालू बेटी, कोई मदद चाहिए ? मुझे पता है कि तुमने रसोईयों को बाहर निकाल दिया पर सास की मदद हाज़िर है ?" मेरी सासूजी ने प्यार से पूछा। वो विशाल रसोई के पास पारिवारिक-भवन में कोई बड़ी भारी सी किताब पड़ रहीं थीं । उन्होंने अपनी किताब को पुस्तक-चिन्ह लगा कर सोफे पर रख दी।
मेरी सास, विमला प्रकाश , अत्यंत सुंदर, सुशील और शांत महिला हैं। उनकी सुंदरता चवालीस [ ४४ ] साल की उम्र में समय के कठोर प्रभाव से मद्दिम होने के बजाय परिपक्वता और जीवन के अनुभवों की तिलिस्मी माया के प्रभाव से और भी प्रफुल, सम्मोहक और उज्जवल हो गयी है। कुछ उन्हें स्थूल कहें पर मेरे स्त्रीत्व के निगाहों में वो उम्र के उस मोड़ के भरेपूरे सुडौल शरीर की स्वामिनी हैं। ठीक मेरी मम्मी की तरह।
मैंने मुस्करा कर स्नेह से उन्हें निश्चित करने का प्रयास किया , "मांजी आप आराम से बैठें । आपको तो मम्मी ने बता ही दिया है कि मेरी खाना पकाने की योग्यता लाटरी की तरह है कभी निकल आती है कभी बिलकुल ज़ीरो। "
सासुजी खिलखिला कर हंस दी , उनकी मधुर जलतरंग के संगीत जैसी प्यार भरी हँसी , "शालू बेटी तुम्हारे हाथ का बनाया हुआ खाना तो तुम्हारे डैडी और मम्मी के लिए प्रसाद की तरह है। वैसे ही तुम्हारे बाबूजी और मेरे लिए, तुम जो कुछ भी प्यार से बनाओगी उस से अच्छा और क्या हो सकता है। "
मैं अपनी सास से प्यार से मुग्ध हो गयी। मेरे सासु जी मेरे मम्मी की तरह भरे-पूरे शरीर की स्वामिनी हैं। उनका शरीर, चार बच्चों को जनम देने के बाद, प्राकर्तिक रूप से मातृक उभारों से खिल उठा था। उनके भारी बड़े वक्षस्थल उनके ब्लाऊज़ में मुश्किल से समा पाते हैं। उनकी गोल भरी कमर और आकर्षित रूप से उभरा हुआ उदर उनके विशाल भारी और किसी भी पुरुष की दिल की धड़कन बड़ा देने वाले नीतिम्ब साड़ी में भी छुप नहीं पाते हैं।
"नहीं मांजी, यह तो आपका माँ का प्यार बोल रहा है वरना मेरे भैया तो जब मैं रसोई में जाती थी तो डर जाते थे ," मैं भी खिलखिला कर हंस दी।
"अरे भाई मैं क्या मिस कर रहा हूँ? हमारी बहु और और प्राणप्रिय अर्धांग्नी किस बातपर इतने खुश हैं?" मैं तुरंत पीछे से आने वाली भारी मर्दानी अव्वाज की तरफ मुड़ गयी।
मेरे ससुरजी, राज प्रकाश, छियालीस [ ४६ ] की उम्र पर मेरे पापा से एक साल बड़े थे। पर मेरे पापा की तरह छेह फुट से लम्बे और भारी -भरकम मज़बूत काठी के कामाकर्षक पुरुष हैं। उनकी बढ़ती उम्र के साथ उनकी बढ़ती तोंद से वो और भी सुंदर लगते हैं।
"बाबू जी, आज आप जल्दी आ गए, " मैंने ख़ुशी से अपने ससुरजी को देखा और उनके खुले आलिंगन में समा गयी।
उन्होंने मेरे व्यंजन की तैयारी से पता लगा लिया कि मैं उनके लिए खाना बना रहीं हूँ , "हमें भविष्य वाणी से पता चल गया था कि हमारी प्यारी बहु-बेटी हमारे लिए रसोई में कितना उद्योग कर रही है। हमसे और हमारे लालच से ऑफिस में रुका नहीं गया।"
"अजी मैं यही तो कह रही थी ," सासुजी भी अपनी किताब बंद कर रसोई में आ गयीं , "आपकी प्यारी बहु सिर्फ आपके लिए इतनी मेहनत कर रही है।"
"मांजी , अपने परिवार के लिए ख़ुशी से कुछ् करने को मेहनत थोड़ी ही कहते हैं," मैंने अपना चेहरा उठाया जिससे ससुरजी मुझे गाल पे चूम सकें।
"चलिए बाबू जी , आप फ्रेश हो लीजिये मैं आपके लिए ड्रिंक बना देती हूँ ," मैंने उनके चौड़े सीने से भरे सिल्क के कोट के ऊपर हाथ सहलाते हुए कहा।
मुझे मुक्त कर ससुरजी ने सासुजी को आलिंगन ले कर उन्हें भी प्यार से चूमा और अपने शयन-कक्ष की ओर चले गए।
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२
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शादी से पहले मेरी ननद कामिनी या कम्मो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। हमारी दोस्ती अपने अपने बड़े भैया की बड़ाई से एक दुसरे भाई के लिए उत्पन्न आकर्षण से और भी दृढ़ हो गयी। जैसे किसी ने हमारी कहानी पहले से ही लिख दी हो कम्मो के भैया रवि के माता पिता ने जब मेरे परिवार से मिले तो हम दोनों की शादी तय हो गयी एक दुसरे के भाई के साथ। मेरी शादी के एक महीने में ही कम्मो और मेरे भैया प्रताप का विवाह भी हो गया।
मेरी शादी को अब सात महीने हो चले थे। मेरे ससुराल में मुझे एक दिन भी अकेलेपन का आभास नहीं हुआ। अपने ससुराल में एक ही दिन में इतनी घुल-मिल गयी कि मानों मैं इसी परिवार में जन्मी और बड़ी हुई हूँ। सासु और ससुर जी न सिर्फ शारीरिक रूप से मुझे अपने डैडी और मम्मी के जैसे लगते थे पर उनके प्यार और व्यवहार से भी मुझे बिलकुल अपने माता-पिता की याद दिलाते थे।
"मांजी आप क्या लेंगी ?" मैंने सासु जी से पूछा।
"रोज़ वाली ड्रिंक, शालू बेटी," सासु जी ने मेरे गाल को प्यार से सहलाया और अपनी किताब उठाने के लिए चल दीं।
मैं बार की तरफ मुड़ने ही वाली थी कि नन्हे क़दमों के दौड़ने की तक-तक के साथ मेरी छोटी ननद ने मुझे 'भाभी, भाभी ' पुकारते हुए अपनी नन्ही बाँहों में जकड़ लिया।
नीलू ने अभी अभी किशोरावस्था में कदम रखा था। पर उसका सुंदर गोरा चेहरा अभी भी बचपने के नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण था।
नीलू अब आंठवी कक्षा में प्रविष्ट हो गयी थी और उसकी ड्रेस भी बदल गयी थी। नीलू नीले स्कर्ट और सफ़ेद कमीज़ में बहुत सुंदर लगती थी। उसके बचपने के भरे गोल मटोल शरीर में अचानक लम्बाई और कुछ छरहरापन आने लगा था। नीलू की छाती पे उलटे रखे कप की तरह दो उठाने उसकी कमीज़ को भर रहीं थी।
नीलू की कमीज़ उसके पसीने से गीली थी। वो बहुत खेल-कूद में हिस्सा लेती थी और रोज़ अपने भाई बबलू के साथ टेनिस खेल कर ही कॉलेज से वापिस आती थी।
"मेरे प्यारी ननद ने आज कितनों की टेनिस कोर्ट से छुट्टी कर दी ?" मैंने प्यार से नीलू के पसीने और खेलने की महनत से दमकते चेहरे को कई बार चूमा।
"भाभी , आज तो आपकी ननद एक सेट से मैच हार गयी। टाई में मैच चला गया था पर मेरी सर्विस बाहर चली गयी, " नीलू ने बुरा सा मुंह बना कर मेरे वक्षस्थल में अपना मुंह छुपा लिया।
मैंने उसके घुंघराले घने लम्बे जंगली फूलों की तरह बिखरे, बालों को प्यार से चूम कर नीलू को कस कर अपने आलिंगन में भर लिया , "अरे नीलू खेल में हार-जीत तो होगी ही। बताओ तुम आखिरी बार कब मैच हारीं थीं ?"
नीलू बहुत ही अच्छी टेनिस की खिलाड़ी है। उस उम्र में भी वो अपने बड़ी उम्र की लड़कियों को आराम से हरा देती थी।
"आं .......... आं भाभी हारने से तब भी बुरा लगता है," नीलू ने मेरे भारी वक्ष स्थल में मचल कर अपना चेहरा रगड़ा।
मेरे दोनों विशाल स्तनों में मातृत्व की सिहरन दौड़ गयी ,"इस हार से अब तुम और भी प्रयास करोगी। उस से तुम्हारा गेम और भी मज़बूत हो जायेगा। इस हार में तुम्हारी आने वाली कई जीत छुपीं हुई हैं। "
आखिर में नीलू ने मुस्करा कर मेरे होंठो को चूम लिया , "भाभी आप कितनी अच्छीं हैं। "
"पर मेरी सुंदर ननद से अच्छी नहीं हूँ ," नीलू का पसीने और खेलने के परिश्रम से लाल दमकता चेहरा अपनी बड़ाई सुनने की शर्म से और भी लाल हो गया।
"चलो अब थोड़े नाश्ता के बाद फिर नहा-धो कर कॉलेज का काम ख़त्म कर लो ," मैंने प्यार से नीलू को सासु जी की तरफ मोड़ दिया।
"देखा नीलू , भाभी की बात कितनी सही है ," सासु जी ने अपनी नन्ही परी जैसी अवर्णीय सुंदर बेटी को गले से लगा लिया।
मैंने उन दोनों की तरफ मुड़ कर नीलू से पूछा , "नीलू, बबलू कहाँ है ?"
"भाभी वो बाहर अपने दोस्तों से बात करने के लिए रुक गया था ," नीलू अभी अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाई थी कि दो लम्बी भुजाओं ने मुझे पीछे से पकड़ लिया।
"भाभी मैं आ गया ," बबलू ने मुझे खींच कर अपने आलिंगन में भींच लिया। बबलू ने तभी-तभी किशोरावस्था में पहले पद-चिन्ह बनाये थे।
बबलू नीलू से एक साल बड़ा था और इसी साल नवीं कक्षा में प्रविष्ट हुआ था। उसके किशोरे अवस्था में आते ही उसकी लम्बाई ने एक साल में ही बाँध तोड़ दिए। वो तब भी मेरे से कम से कम दो या तीन इंच ऊंचा था। उसका शरीर अपने पापा और भाई की तरह चौड़ा और मज़बूत है। उसका बालकों जैसे अत्यंत सुंदर और गोरा चेहरा टेनिस खेलने की मेहनत से चमक रहा था।
बबलू और कम्मो के बीच में बब्बू यानि विकास था जो सत्रह साल का हो चला था और देहरादून के बोर्डिंग कॉलेज में पढ़ रहा था।
मैंने अपने हाथ को पीछे ले जा कर उसके पसीने से गीले घुंगराले बालों में उंगलिया फेहराईं, "आज मेरे नन्हे देवर को भाभी पर बहुत प्यार आ रहा है ?"
सीमा सिंह
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३
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मैंने बबलू को छेड़ा जबकि सच यह था कि जिस दिन मैं उसके कॉलेज से आने के बाद उसके आलिंगन को मिस कर देती थी तो मुझे दिन में कुछ खालीपन सा लगता था। मेरे अंदर तेज़ी से बढ़ते मातृत्व की अनुभूति से मैं अभिभूत हो गयी थी। मेरे अंदर छुपी हुई माँ को बबलू और नीलू जैसे बच्चों की चाहत उबलने लगी थी।
"भाभी , आपको मैंने कब इस से कम प्यार किया है ?" मेरा नन्हा सा देवर बहुत ही गुणी और बुद्धिमान है।
"तो फिर भाभी की पुच्ची कहाँ है?" मैंने अपने शरीर को बालक जैसे सुंदर चेहरे के मालिक अपने देवर बबलू के पूर्ण विकसित मर्दों जैसे शरीर से और भी चिपका दिया।
ज्यों ही मैंने मुड़ने का प्रयास किया बबलू ने मुझे और भी कस कर जकड़ लिया। उसने अपना चेहरा मेरे बालों में से उठा कर मेरे गाल को तीन प्यार भरे चुम्बनों से गीला कर दिया।
"यह तो तुम्हारी पुच्ची है। अब मेरी बारी है ," मैंने अपना मुंह मोड़ कर बबलू के लाल गोरे गाल को कस कर अनगिनत चुम्बनों से भर दिया।
बबलू ने एक हल्की सी 'ऊँह ' की आवाज़ के साथ मुझे अपनी भीमकाय शक्तिशाली बाँहों में कस कर अपने शरीर से और भी कस कर लिपटा लिया।
मेरे भारी विशाल चूतड़ों के ऊपर एक सख्त उभार चुभने लगा। मुझे एक क्षण में पता चल गया कि यह बबलू के बड़े लिंग की सख्ती थी।
मैंने धीरे से हंस कर फुसफुसाई ," मेरे बच्चे देवर जी ने यह क्या छुपा रखा है आपने कॉलेज के निक्कर में ?"
बबलू भी हौले से फुसफुसाया ,"भाभी आपको पता है कि यह क्या है। यह आपकी वजह से ही तो ऐसा हो जाता है। "
मैं शर्म से लाल हो गयी ,"चलो अब बबलू अपनी मम्मी को किस दो और नाश्ता करके नहा-धो लो। "
बबलू ने अपने कसी हुई बाँहों को बहुत देर में ढीला किया। मुझे छोड़ने से पहले उसने अपने सख्त होते उरुसंधी को मेरे चूतड़ो के ऊपर ज़ोर से दबाया।
"बबलू साहिब, अब चलिए महाशय नाश्ता कीजिये और ऊपर जा कर नहा लीजिये। मैं आज बाबूजी के पसंद के व्यंजन बना रहीं हूँ, " मैं तब ऊंची आवाज़ में बोली
" दैट इज़ ग्रेट। आई लव यू भाभी, " नटखट बबलू ने भी साधारण आवाज़ में उत्तर दिया पर मुझे मुक्त करने से पहले अपने गरम मुंह को मेरी गर्दन की संवेदन शील त्वचा में मसल दिया। मैं सिहर उठी।
बबलू से मेरी नज़दीकी मेरे ससुराल आने के एक महीने में ही हो गयी थी।
"अरे बबलू तू तो भाभी के आने के बाद अपने माँ को बिलकुल ही भूल गया है ," सासुजी ने अपने जिगर के टुकड़े को चिढ़ाया।
"मम्मी भला कोई भी बेटा अपनी माँ को भूल सकता है ? और फिर आप ही तो कह रहीं थीं कि बड़ी भाभी माँ के समान होती है ," मैंने मुस्करा कर बबलू की चतुरता के लिए उसके चौड़े कूल्हों को सहला कर अपनी प्रशंसा ज़ाहिर की।
बबलू ने तेज़ी से मुड़ कर अपने होंठों से मेरे होंठों को चूम लिया और दौड़ कर रसोई से पारिवारिक-भवन की ओर भाग गया।
मैं कुछ क्षण बिलकुल हिल उठी। बबलू ने तब तक कभी भी मेरे होंठों पे चुम्बन करने का प्रयास नहीं किया था।
मैं ना चाहते हुए भी शर्म से लाल हो मुस्करा उठी।
मैंने नाश्ता रसोई की डाइनिंग टेबल पर लगा दिया और दोनों को आवाज़ दीं , "नीलू, बबलू चलो नाश्ता कर लो। "
तब तक ससुरजी नहाने के बाद कपड़े बदल कर वापस आ गए। दोनों बच्चों को चुम्बन दे कर ससुरजी ने उन्हें रसोई की तरफ धकेल दिया।
नीलू और बबलू ने नाश्ते पर आक्रमण शुरू कर दिया।
मैं ससुर और सासु जी के ड्रिंक बनाने लग गयी। मैं जब पारिवारिक-भवन में प्रविष्ट हुई तो मुझे उनके वार्तालाप के आखिरी वाक्य सुनाई पड़े ,"राजू [ प्यार से सासुजी ससुरजी को केवल घर में राजू पुकारती हैं ] शालू बिटिया के आने से सारे घर में और भी खुशी आ गयी है। हम सौभाग्यशाली हैं कि शालू हमारी बहु है ," सासुजी ने ससुर जी से भावुक आवाज़ में कहा।
इस से पहले ससुरजी कुछ बोलते मैं अपने उबलते खुशी के आंसुओं को दबा कर भवन में प्रविष्ट हो गयी।
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४
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"बाबू जी आज मैंने सोचा कि आप ग्लेनफिडिक के बजाय लफ़रोए [Laphroaig] पसंद करेंगें। मांजी आपकी बेलीज़ [Bailey’s] ,” मैंने दोनों को उनके ड्रिंक थमा दिए।
"शालू तुम तो मेरे विचार पढ़ लेती हो ," ससुरजी ने चहक कर मेरी प्रशंसा की। ससुरजी वैसे तो ज़्यादातर ग्लेनफिडिक स्कॉच पीते थे पर उनकी सबसे पसंदीदा स्कॉच लफ़रोए है।
"बाबू जी, मांजी , सौभाग्यशाली तो मैं हूँ कि मुझे आपने अपने परिवार में शामिल किया। और एक दिन भी मुझे अपने मम्मी पापा की कमी नहीं महसूस होने दी। " मैं और भी भावुक हो गयी और मेरी आँखें भर गयीं।
ससुरजी ने हलके से मेरा हाथ पकड़ मुझे अपनी चौड़ी गोद में बिठा लिया। मैंने अपने बाहें उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द दाल दीं और अपना मुंह उनकी मांसल गर्दन में छुपा लिया । उनके ताज़े नहाये हुए शरीर से मेरे पापा जैसी मर्दानी सुगंध आ रही थी।
"अरे बेटी तुम्हारे आंसू हमसे नहीं देखे जाते। यहाँ तुम हो और वहां तुम्हारे माता-पिता ने हमारी कम्मो को प्यार से अभिभूत कर दिया है," सासूजी ने मेरे बालों को वात्सल्य भरे प्यार से सहलाया।
मैं हलके से सुबकी और फिर गीला मुंह उठा कर बोली , "आपने मुझे कभी भी बहु की तरह नहीं समझा। आपने मुझे पहले दिन से ही कम्मो के तरह पूरी स्वत्रंता देदी है। "
ससुरजी ने मेरे गीले गालों को चूमा और भवशील क्षणों को हल्का करने के लिए चहकते हुए कहा ,"फिर बेटा यह बाबूजी और मांजी कौन है ? इस घर में तो सिर्फ डैडी और मम्मी हैं। "
सासु जी भी हलके से हंस दी।
मैं शर्म से लाल हो गयी और शर्माते हुए खिलखिला दी, "सॉरी डैडी। " मैंने आगे झुक कर सासुजी को चूम कर उनसे भी क्षमा माँगी "सॉरी मम्मी। "
दोनों ने मुझे अपने बाँहों में कस लिया।
आखिर में हम लोगों उस प्रेम भरे क्षण को स्वीकार कर अलग हो गए।
"हम लोग ऊपर जा रहें हैं ," नीलू ज़ोर से बोली और दोनों भाई बहिन एक दुसरे को प्यार से चिड़ाते हुए अपने कमरों की तरफ दौड़ गए।
मैंने बिलकुल परम्परागत माँ की तरह चीख कर पूछा ,"तुम दोनों ने नाश्ता अच्छे से खाया कि नहीं?" पर दोनों तब तक दूर जा चुके थे।
"शालू यह दोनों तुम्हे समय से पहले ही मातृत्व की तकलीफों से परिचित करा रहें हैं। " सासुजी मुकरा कर बोलीं।
"मम्मी यदि मेरे दो इन दोनों की तरह हुए तो मैं अपने को बहुत सौभाग्यशाली समझूंगी। मैं खाना शुरू कर दूं अब। फिर इन दोनों के होम-वर्क को चेक करती हूँ। " मैंने रसोई की तरफ पैर बढ़ाये।
सासुजी ने ससुर जी से कहा , "जबसे शालू ने इन दोनों की पढ़ाई की बागडोर सम्भाली है तबसे इन दोनों ग्रेड्स पहले तीन में पहुँच गए है "
"शालू बेटी ने इकोनॉमिक्स में मास्टर की डिग्री की है। उस यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के दाखिले के लिए लाखों तरस जाते हैं। शालू को गोल्ड-मेडल मिला था." ससुरजी ने गर्व से सासु जी को बताया।
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५
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मैंने अगले आधे घंटे में तीनों व्यंजनों को शुरू कर दिया। यह मेरी मम्मी की व्यंजन-विधि थीं और तीनों धीरी ऊष्मा में बनाई जाती हैं।
मैं ससुरजी और सासुजी को बताने चली कि मैं ऊपर जा रहीं हूँ।
"शालू बेटी, तुम तो उनके होम-वर्क के लिए उनकी माँ से भी बढ़ कर ख्याल रखती हो। अब जरा थोड़ी देर अपने डैडी के गोद में बैठ कर उनको भी सुख दे दो , " ससुरजी जब उनका मन होता है तो बड़े चुलबुले और मज़ाकिया बन जाते हैं ठीक मेरे पापा की तरह।
मैं झट से ससुरजी की गोद में बैठ गयी ," डैडी, मैं अब अपने को नीलू और बबलू के बारे में अपने बच्चो की तरह ही समझती हूँ इसीलिए कभी-कभी मैं उन्हें कुछ ज़यादा ही बढ़ावा देती हूँ पढ़ाई करने में। "
ससुरजी ने प्यार भरे गर्व से मुझे चूमा। मैंने उनका खाली गिलास ले कर उसे फिर से भरने चल दी। सासुजी ने भी अपनी बेलीज़ ख़तम कर दी थी।
"मम्मी मेरे डैडी की गोद में नहीं बैठ जाइयेगा। आज यह मेरे सीट है," मैंने चुलबुला कर सासुजी को चिढ़ाया।
"अरे बाबा किसकी हिम्मत है हमारी बेटी की सीट छीनने की। तुम्हारे डैडी की गोद तुम्हारे लिए बिलकुल तैयार मिलेगी। " हम तीनों अपने बचपने के मज़ाक से हंस दिए।
मैंने वापस आ कर दोनों उनके गिलास थमाए और झटक कर ससुर जी की भारी-भरकम गोद में बैठ गयी। मेरी बाहें उनके गले का हार बन गयी और मैंने अपना चेहरा उनके चौड़े सीने पर रख दिया। हम तीनों ने घर-बार की रोज़मर्रा की बातों से सलग्न हो गए।
आखिर में सासुजी ने कहा ,"शालू तुम्हारा दिल नहीं नहीं मानेगा बिना जाए। "
मैं अपने व्याकुलता को इतने आसानी से ज़ाहिर करने के लिए थोड़ी शर्मिंदा हो गयी।
"ठीक है बेटा , तुम उन दोनों को निपटा आओ फिर इकट्ठे ड्रिंक लेंगें। " ससुरजी ने भी हामी भरी।
"मैं जब रवि आ जायेंगें तो अपने लिए बना लूगीं, " मैंने ससुर जी की गोद खाली कर दी। ससुर जी सफ़ेद कुर्ते-पजामे बहुत ही आकर्षक लगते हैं। और मैं न चाहते हुए भी दिमाग में से इस ख्याल को नहीं निकल पायी कि 'ठीक मेरे पापा की तरह'।
मैं अपने बनते हुए व्यंजनों को हिला कर जाने के लिए मुड़ ही रही थी कि मम्मी डैडी के वार्तालाप की कड़ी सुनाई पड़ी ।
“"आँहाँ , राजू आपकी बहू ने आपके औज़ार को जगा दिया दीखता है। मैं तो समझती थी कि अब कम्मो आपकी गोद में नहीं बैठती तो शायद आपके महाराज को थोड़ी शांती मिल जाये। पर आपकी शालू बेटी भी कम्मो की तरह ही प्रभावशाली है ," मुझे सासुजी की प्यार भरा प्रबोधन सुनाई पड़ा।
"विम्मो, पिता हूँ पर पुरुष भी तो हूँ। कम्मो इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर है। और शालू भी उससे बाईस नहीं तो बीस तो है," ससुरजी ने हंस कर कहा।
"मैं आपको उल्हाना थोड़े ही दे रहीं हूँ मैं तो आपके पुरुषत्व की प्रशंसा कर रहीं हूँ कि आप अपनी बेटियों को पिता कि तरह प्यार दे सकते हैं पर उन्हें अत्यंत सुंदर स्त्रियों की तरह भी देख सकते हैं। यह तो सिर्फ आत्मविश्वासी पुरुष ही कर सकते हैं ," सासुजी ने शायद ससुरजी को चूमा था।
"पर मैं आपको बता दूं विम्मो जब शालू बेटी मेरी गोद में बैठी थी तो मुझे उतना ही यतन करना पड़ा जितना कम्मो के साथ करना पड़ता था ," ससुरजी ने सासुजी को बताया।
"इसमें क्या आश्चर्य की बात है। दोनों ही आपकी बेटियां है ," सासुजी ने अधिकार भरे लाड़ से कहा।
मैं थोड़ी शरमाई पर मुझे यह सब सुन कर बहुत अच्छा लगा। मेरे पापा का भी यही हाल होता है जब मैं उनकी गोद में बैठती हूँ।
सीमा सिंह
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६
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मैं पहले बबलू के कमरे की तरफ चल दी। मेरे मस्तिष्क में छह महीने पहले हुई घटना एक चलचित्र की तरह तेज़ी से सक्रिय हो गयी। बबलू उस समय आठवीं में था। मैं उस से और नीलू से इतनी घुल मिल गयी थी कि दोनों की विश्वास-पात्र बन गयी थी। इस वजह से मैंने उनके कमरों के दरवाज़ों को प्रवेश करने से पहले खटखटाना छोड़ दिया। बबलू तब किशोरावस्था के द्वार से दो तीन महीने दूर था।
मेरे मायके और मेरी ससुराल में एक दूसरे को पूरी व्यक्तिगता और एकांतता देने की परम्परा है। उस दिन मैं बबलू के कमरे में दरवाज़ा खोल कर अंदर दाखिल हो गयी और जैसी ही मैं उसके अंदर के कमरे में पहुँची और उस दृश्य के प्रभाव से बिलकुल भौचक्की हो कर मानों कालीन ने मेरे पाँव जकड़ लिए।
नन्हा बबलू पलंग पर बिलकुल नंगा था और अपने लंड को अपने हाथ से सहला रहा था। उसके हाथों में एक बड़ी से तस्वीर थी।
पहले तो मैं हिल भी नहीं पायी पर जब बबलू ने चीख कर 'सॉरी भाभी ' कहा तो मैं जगी। मुझे अपने पर बहुत गुस्सा आया। बढ़ते हुए लड़के की एकान्तता में इस तरह विघ्न डालना कितने शर्म की बात थी।
पहले बबलू ने घबरा कर तस्वीर तकिये के नीचे छुपा ली। फिर उसने ने जल्दी से अपने को चादर से ढक लिया और उसका सुंदर चेहरा शर्म और घबराहट से लाल हो गया।
लेकिन बेचारे को इस नाज़ुक और बेढंगी परिस्थिति में ख्याल ही नहीं रहा कि हल्की रेशमी सफ़ेद चादर में उसका लिंग खम्बे की तरह उठा हुआ था।
मुझे हंसी आ गयी। बबलू का चेहरा और भी लाल हो गया इस बार उसने कुछ गुस्से से और कुछ मिलीजुली शर्म से। उसने ज़ोर से कहा, "भाभी आप भी ……"
और अपना सर बेचारगी से हिला कर नीचे झुका लिया। मुझे अब समझ आया कि मैं तो सिर्फ उसे बच्चा समझ कर अपने को मन ही मन में डांट रही थी , पर यहाँ स्थिति थोड़ी और भी गम्भीर थी।
मैं जल्दी से उसके पास बिस्तर पर बैठ गयी और उसके लाल चेहरे को अपनी दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाया और पूरी गम्भीरता से कहा, "सॉरी बबलू। रिअली आई ऍम वैरी सॉरी। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। यह मेरी गलती है। तुम्हे अपने कमरे में पूर्ण एकांत मिलने का पूरा हक़ है। और मैंने बेवकूफी से तुम्हारे एकांत में बाधा डाली है। यह मेरे व्यवहार की अयोग्ता का नतीज़ा है। प्लीज़ बबलू अपनी बुद्धू भाभी को माफ़ कर दो। "
मैं ने और भी कई बार माफी मांगी पर बबलू ने अपना सर मेरे हाथों से झटक कर फिर नीचे कर लिया।
मेरे अनगिनत अनुनय ने बबलू के ऊपर कोई भी वास्तविक प्रभाव नहीं छोड़ा। मानों वो किसी संगमरमर की सुंदर मूरत बन गया था। मेरे दिल को बहुत धक्का लगा और मुझे साफ़ लगने लगा कि मैंने बबलू के प्यार और विश्वास तो ठेस पहुँच दी है और शायद अब वो मुझ पर कभी विश्वास नहीं करेगा।
मेरी आँखों में आंसू भर आये ,"बबलू, लगता है कि तुम मुझे माफ़ नहीं करोगे। मैं समझती हूँ कि तुम्हारा विश्वास मेरे ऊपर से उठ गया है। तुम्हारा और नीलू का प्यार, दोस्ती और विश्वास मेरे लिए इस नए घर में स्थापित होने की नींव बन गए थे। शायद मैं इस उपहार के लायक ही नहीं हूँ।”
“यदि तुम मुझे माफ़ न भी करो तो प्लीज़ मुझसे घृणा नहीं करना। मैं तुम्हारी घृणा नहीं बर्दाश्त कर पाऊन्गी। " मैं अब अपने रोने को नहीं रोक पा रही थी।
इस से पहले मैं बिलख कर रो पडूं मैं जल्दी से बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गयी और न चाहते हुए भी मेरे मुंह से सुबक निकल पड़ी , "बबलू मैं तुम्हारे कमरे में कभी भी नहीं घुसूँगी और जब तक तुम नहीं चाहोगे मैं तुमसे कुछ भी नहीं बोलूँगीं। यह ही मेरी सज़ा है कि मैं तुम्हारे प्यार से वंचित हो गयी हूँ। " अब मेरे सुबकने लगी और मेर चेहरा आंसुओं से भीग गया।
मैं जब तक मुड़ पाती मुझे बबलू के चीख सुनाई पड़ी , "भाभी ! भाभी !" बबलू लपक कर बिस्तर से उठा और उसने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। उसने अपना मुंह मेरी गरदन में छुपा लिया और सुबकते हुए बोला, “भाभी, आपका मेरे कमरे आना तो मेरे दिन का सबसे अच्छा समय होता है। मैं सारा दिन कॉलेज में आपके आने के बारे में ही सोचता रहता हूँ। मैं आपसे गुस्सा नहीं था। मुझे तो डर था कि आप मुझे नाराज़ हो जाओगी और मुझे हेट करने लगोगी। "
हम दोनों और भी ज़ोर से एक दुसरे से लिपट गए।
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७
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बबलू उस समय मेरे कद से एक इंच **छोटा था। हम दोनों कुछ देर बाद शांत हुए , "बबलू मैं क्यों तुमसे नाराज़ हो जाती? बताओ तो मुझे। क्या कोई माँ अपने बेटे को हेट कर सकती है ?" मैं ज़ोर से सुबकी औए आंसू से गीले बबलू के गालों को पागलों की तरह चुम्बनों से भर दिया।
बबलू के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गयी।
"पहले आप मुझे बताओ कि आपने मुझे माफ़ कर दिया है ," बबलू ने अपनी बाहें मेरे इर्द-गिर्द और भी ज़ोर से कस दीं।
"बबलू गलती तो मेरी है। चलो हम दोनों ही एक दूसरे को माफ़ कर देतें हैं ," मेरे थरकते होंठों पर भी एक भीनी सी मुस्कान थिरक उठी।
तब हम दोनों को अहसास हुआ कि बबलू पूरा नंगा था।
बबलू घबरा कर मुझसे छूटने का पर्यास करने लगा पर मैंने उसे कस कर पकड़ लिया ,"बबलू नंग्न-पन और. … उम ....... सड़ …… अर …… जो तुम कर रहे थे उससे शर्मिंदा होने या बुरा मानने की कोई भी ज़रुरत नहीं है। "
बबलू ने शर्मा कर अपना सुंदर मुंह मेरे गर्दन में दबा दिया और फुसफुसा कर बोला , "भाभी आपको मुझे वो सब करते हुए देख कर बुरा नहीं लगा। "
मैं हलके से हंस दी , "बबलू यदि तुम्हारी उम्र के लड़के यदि वो न करें तो बहुत विचित्र होगा। मुझे बिलकुल बुरा नहीं लगा। मैं तो बस तुम्हारी प्राइवेसी में दखल देने से डर गयी, " मैंने बबलू के घुंगराले घने बालो को चूमते हुए पूछा, "वैसे मुझे यह तो बताओ कि ये 'वो' को कहते क्या हैं। "
बबलू ने मुझे और भी कस कर पकड़ लिया और अपना मुंह मेरे गर्दन में कस कर दबा लिया।
मैं समझी कि बबलू शर्मा रहा है सो मैंने फिर से पूछा , "बबलू तुम मुझे चिढ़ा रहे हो? बताओ न उसे तुम क्या कहते हो? " मैं नहीं चाहती थी कि बबलू के मन या दिमाग में इस आकस्मिक प्रसंग की वजह से कोई अनहोनी गाँठ न बन जाये।
"नहीं भाभी मुझे वास्तव में नहीं पता ," बबलू अब मुझे बेल की तरह लिपट गया। बबलू तब भी बहुत हृष्ट-पुष्ट बच्चा था। उसका शारीरिक विकास अपनी उम्र के बच्चों से कई साल आगे था और अब भी है।
मैं अब भौचक्की हो गयी पर मैंने अपने अविश्वास को दबाया और चहकते हुए कहा , "आहा ,बबलू मियां आपकी भाभी को पता है कि उसे क्या कहते है। "
बबलू ने फुफुसा कर कहा ,"भाभी आप मुझे समझाओगे ?"
मेरे शरीर में एक अनजानी सी सिरहन दौड़ गयी।
"पहले बबलू अपनी भाभी को आराम से बिस्तर में बैठने को तो कहो ," मैंने बबलू को प्यार से बिस्तर की तरफ धकेलने का प्रयास किया। उस समय भी बबलू मेरे लिए बहुत शक्तिशाली था। अचानक उसे अपने और लंड के नंगे होने का अहसास हुआ।
"सॉरी भाभी, मैं जल्दी से कुछ पहन लेता हूँ। " बबलू ने मुझसे छूटना चाहा पर मैंने उसे और भी कस कर पकड़ लिया ,"मेरे प्यारे देवर जी अब तो गाड़ी निकल चुकी है स्टेशन से । जैसे कि कहते है घोड़े के भागने के बाद अस्तबल के द्वार को बंद करने का क्या फायदा। जैसे कि कहते हैं यह जहाज तो अब जलयात्रा के लिए निकल पड़ा। जैसे कि कहते हैं कि अब पछताये का होत जब चिड़िया चुग गयीं खेत। "
बबलू खिलखिला के हंस पड़ा और मुझसे छूटने की कोशिश बंद कर दी , "भाभी आखिरी वाला मुहावरा इस स्थिति के लिए ठीक नहीं है। "
मैं जानती थी कि बबलू मेरे गलत मुहावरे को पकड़ लेगा पर नीलू और बबलू दोनों मेरे गलत-शलत मुहाविरों पर खूब हँसते हैं।
बबलू मेरे साथ आराम से बिस्तर पर बैठ गया।
हम दोनों गुदगुदे सिरहाने पर कमर टिका कर बिस्तर में बैठ गए। मेरी बाहें अभी भी बबलू के चारों तरफ थी। मुझे उसकी बाँहों को अपने शरीर से लिपटा पा कर बहुत अच्छा लग रहा था।
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८
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"भाभी बताओं न उसे क्या कहते हैं ," बबलू ने मुझे हलके से हिलाया। मेरी आँखे मेरे नियंत्रण की, मेरे निर्देशों की अवज्ञा कर बबलू की गोरी चिकनी पर मांसल भारी जाँघों के बीच में लेते उसके लंड पर जा कर रुक गयीं। मैं पहले उसका लिंग ध्यान से नहीं देख पायी थी। उसके लंड गोरा, चिकना, और बहुत मोटा था। अब तक बिचारा बिलकुल शिथिल हो गया था पर फिर भी उसकी लम्बाई और मोटाई किसी साधारण लंड से बहुत ज़यादा थी। बबलू का लंड पर अभी तक एक भी बाल नहीं उगा था। मुझे लगा कि जब तक बबलू पूरा बड़ा होगा तो शायद वो अपने बड़े भैय्या के महाकाय लंड से भी आगे निकल जाए। इस विचार से मेरे शरीर में बिजली सी दौड़ गयी।
मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी दृष्टि को बबलू के मोटे लम्बे लंड से दूर कर पायी। मैं हंस कर बोली ,"अच्छा तो यह बताओ तुम अपने उसको क्या कहते हो ?"
बबलू शरमाया , "किसको भाभी!"
मैंने उसके लाल गाल को चूम कर फिर से पूछा ," यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे उसको पकड़ कर पूछ सकती हूँ?"
बबलू थोडा घबरा गया ,"अंह … अंह, भाभी पुझे तो सिर्फ कॉलेज के किताबों वाला नाम ही मालूम है। इसे पीनिस कहते हैं। "
मेरे दिल हुआ कि मैं बबलू को पागलों की तरह चूम लूँ। वास्तव मैं मेरे गंदे दिमाग तो उसके सारे शरीर को चूमने के विचार से भरा हुआ था।
"मेरे अनाड़ी देवर मियां ," मुझे तब तक विश्वास हो गया था कि बबलू और नीलू मेरी विनोदपूर्णता को अच्छे से समझ चुके थे और उसे अनाड़ी बुलाने से बुरा नहीं लगेगा, "पीनिस तो कॉलेज की किताबों में या शिष्टाचार के माहौल में ठीक लगता है पर निजी समय में तो उसे कुछ और ही कहते हैं। "
अब तक बबलू का दिलचस्पी पूरी जाग कर उत्तेजित हो गयी थी। उसका गुणी और अत्यंत मेधावी मस्तिष्क नई जानकारी और ज्ञान के लिए हमेशा बूखा रहता है।
"ठीक है, यदि तुम्हारी भाभी ने तुम्हे यह सब सिखाया तो उसे क्या गुरुदक्षिणा दोगे?" मैंने फिर से बबलू के लाल पर दमकते हुए सुंदर चेहरे को चूम लिया।
"जो आप मांगेंगीं," बबलू ने मुझे अपनी बाँहों में भींच कर कहा।
"देवर जी वचन देने से पहले सोच लेना चाहिए। क्या पता आपको मैं क्या मांग लूँ ?” मैं नाटकीय शैली में इठला कर बोली, "जब मैं मांगूं और आप देना न चाहें। "
बबलू ने मेरी आँखों में अपनी हल्की भूरी आँखे डाल कर हलके से कहा ,"भाभी मुझे पता है कि आप वो सब नहीं मांगेंगी जो मेरे पास देने को है ही नहीं। पर जो कुछ भी मेरे पास है और आप मांगें तो वो आपका है। "
मेरे दिल में हिचक उठ गयी ,"बबलू इतना प्यार करोगे तो मैं रो पडूँगी। " मेरा हृदय में बबलू का प्यार समा गया।
बबलू ने मेरे माथे पे प्यार से पुच्ची रख दी ,"भाभी यदि आप रोईं तो मैं भी रो दूंगा।"
"अरे मर्द थोड़े ही रोते हैं अनाड़ी देवर, " मैंने बात हलकी करने का प्रयास किया।
"अच्छा तो वायदा करो कि मैं जब आपको दूसरा शब्द भी सिखा दूंगी तो मुझे आप बताओगे कि आपको अपने पीनिस से खेलने की क्यों ज़रूरत पड़ी ?” मैंने बिना सोचे बबलू कि चिकनी पर चौड़ी छाती पे गहरा चुम्बन टिका दिया।
बबलू अचानक सोच में पड़ गया।
मैंने जल्दी से बात सम्भाली , "देखो जी देवर मियां, अभी कुछ देर हम दोनों ने रो कर एक दुसरे को प्यार करने का और विश्वास करने का आश्वासन दिया है। यदि आप मुकरे तो मुखे दुख होगा। "
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९
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बबलू ने ये सुन कर एक क्षण भी नहीं व्यतीत नहीं होने दिया , "भाभी यदि आप वचन दें कि नाराज़ नहीं होंगी ?"
"प्रॉमिस , वायदा, वचन, क्रॉस माय हार्ट एंड होप तो डाई , स्कॉट्स ऑनर, टिट फॉर टैट ," मैंने पूरी गम्भीरता से कहा।
बबलू खिलखिला के हंस दिया और ज़ोरों से हँसता रहा। मैंने नासमझी का नाटक किया जिससे उसे और भी हंसी आ गयी। उस सुंदर निर्दोष बालक की स्वछन्द हंसी से मेरा हृदय भी मुक्त महसूस करने लगा।
"भाभी अब बताइये ना प्लीज़ ," बबलू ने अपनी उम्र के बालकों जैसे ही हट की।
"अच्छा देवर जी सुनिये, जिस को आप कॉलेज की किताबों में पीनिस की तरह जानते हैं उसको निजी समय व्यक्तिगत समय में लंड कहते हैं। उसके और भी नाम हैं कुछ शलील और कुछ अश्लील। गुप्तांग, जनेन्द्रिय, लिंग, शिश्न, जंग बहादुर, महाराज ,लवड़ा, लौड़ा। " मेरी साँसे अब तेज़ हो चली थी। मैंने उन पर काबू रखने की पूरी कोशिश की, "मेरा ज्ञान भी थोडा सीमित है पर मैं तुम्हारे बड़े भैय्या से पूछूंगी शायद उन्हें और भी नाम पता हों। "
मैंने गौर से, बबलू का सुंदर चेहरा जो अब एकागर्ता में डूबा हुआ था, को एकटक देख रही थी। बबलू बहुत गुणी और अत्यंत मेधावी है। उसके होठ बिना आवाज़ निकले हिल रहे थे और शीघ्र उसने मुस्करा कर पूछा ," भाभी अब दूसरी बात का नाम बताइये।"
मैंने अपनी टांगों को कस कर जोड़ लिया ,"बबलू मुझे तो तीन ही नाम पता हैं । हस्त-मैथुन, सड़का मारना, और हिलाना । "
बबलू की आँखें अब चमक रहीं थीं, "भाभी मैं कुछ और पूछूं। प्रॉमिस आप बुरा तो नहीं मान जाएंगीं ?"
"प्यारे देवर जी यदि आप अपने वायदे से नहीं मुकरे तो मैं किसी भी सवाल का बुरा नहीं मानूँगी ," मैंने अपनी सलाह की उपेक्षा कर दी - कोई भी वचन सोच समझ कर देना चाहिए।
"भाभी, वैजाइना और ब्रेस्ट्स को क्या कहते हैं?" बबलू का चेहरा शर्म से लाल हो उठा था और उसे देख कर मेरे दिल की धड़कन और भी तीव्र हो गयी।
"बबलू जी आप तो मेरा सारा ज्ञान भण्डार खाली करने की योजना बना रहें है, " मैं प्रार्थना कर रही थी कि मेरा हथोड़े की तरह धड़कते हृदय की धड़कन सिर्फ मुझे ही सुनाई दे रही थी।
“"प्लीज़ भाभी, " बबलू का उत्साह का कोई अंत नहीं था।
"ठीक है शिष्य महाराज तो ध्यान से सुनो। ब्रेस्ट्स को वक्षस्थल, सीना, स्तन, छाती, आँचल, झोंका, और चूचियाँ भी कहते हैं। कुछ और भी नाम हैं पर मुझे इस समय इतने ही याद आ रहें हैं ," मैंने बबलू के बुदबुदाते होंठों के रुकने की प्रतीक्षा की, "मेरे बालक, सीधे, नन्हे, और बहुत ही प्यारे देवर मियां क्यों कि आप बहुत ही अच्छे शिष्य लग रहें हैं मैं आपको एक और बात बता देती हूँ जो आपने पूछी ही नहीं। "
बबलू ने गम्भीरता और एकाग्रता से मेरे चेहरे पे दृष्टि टिका दी।
"ब्रेस्ट्स के आगे लगे निप्प्ल को स्तनाग्र, वक्षाग्र , चूची, चूचुक भी कहते हैं। " मैं अपनी झाँगों के बीच में गीलापन महसूस कर कुछ घबरा सी गयी।
"भाभी थैंक्स, और बाकी के ?” मेरा शिष्य का ध्यान अत्यंत केंद्रित था।
"वैजाइना को योनि, योनिमार्ग , स्त्रीजननांग , स्त्री धन, महारानी, सहेली, और चूत भी कहते हैं," और इसके साथ इन सब नाम वाले मेरी जगह पूरी गीली हो गयी।
"मेरे प्यारे बालक देवर जी अब आप की बारी है," मेरे शब्द मेरी बिगड़ती हालत को शायद बिलकुल छुपा न पा रहें हों।
सीमा सिंह
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१०
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बबलू ने मुझे गम्भीरता से देखा और उसका सुंदर चेहरे पर हल्की सी घनी छाया आ गयी ," भाभी आपको अपना वचन याद है ? आप नाराज़ तो नहीं होंगीं ?
मुझे लगा कि मेरी आवाज़ शायद ठीक से न निकले इसीलिए मैंने सिर्फ अपना सर हिला दिया।
बबलू ने मेरे से बाहें दूर कर धीरे -धीरे तकिये के नीचे से तस्वीर निकाल कर मुझे देदी।
मैंने धड़कते दिल से उल्टी दी हुई तस्वीर को पलटा और मेरी सांस मानो रुक गयी। जब बबलू अपने लंड को सहला रहा था उसके हाथ में मेरी फ़ोटो थी। यह फ़ोटो गलती से शादी के एल्बम में आ गयी थी। मैं शादी के कपडे पहनने के लिए तैयार थी और इस में मैं सिर्फ पेटीकोट और ब्रा पहने हुए थी। हम सब तीन हफ्ते पहले शादी के एल्बम और डीवीडी देख रहे थे सब लोग इसे देख कर हंस दिए थे और मैंने शर्मा कर उसे उल्टा कर अलग मेज़ पर रख दिया था पर बातचीत में मैं उस तस्वीर को उठाना बिलकुल भूल गयी। बबलू ने प्रत्यक्ष रूप से उसे उठा लिया था।
"भाभी मैंने इसे चुराया नहीं। जब सब लोग चले गए और आपने इसकी खोज नहीं की मैंने इसे उठा लिया। सॉरी," बबलू का मासूम ,सुंदर चेहरा रोने जैसा हो गया।
मैंने एक क्षण में निर्णय ले लिया और अपने दोनों हाथों से उसका चेहरा पकड़ कर कहा, "इसमें सॉरी कि क्या बात। हम दोनों पहले से ही वायदा कर चुके हैं, " फिर मैंने धड़कते हुए दिल से बबलू पूछा, "तो जब तुम अपना पीनिस अं .... छू रहे थे तो तुम क्या सोच रहे थे ?"
बबलू के चेहरे पर कोई भी कपट , या प्रवंचना नहीं थी ," भाभी मैं इसे रोज़ देखता था पर और मुझे अपने पी …अं … ,"
मुझे पता ही नहीं चला कि कब मेरे मुंह से ये शब्द निकल गए, "बबलू अब तुम इसे नए नाम से पुकार सकते हो। "
बबलू ने मासूमियत से पूछा ,"भाभी कौनसा नाम यूज़ करूँ ?"
मेरी आवाज़ मानो गहरे कुँए से आ रही थी , "जो तुम्हे अच्छा लगे। "
मैं अपने आप को ऊंची पहाड़ी के कगार पे खड़ा महसूस सा कर रही थी।
"भाभी आपको सबसे अच्छा कौनसा नाम लगता है ," बबलू ने एक बार फिर से सरल निष्कपट बालकपन के भाव से मुझसे पूछा।
मुझे अब भरोसा नहीं था कि मेरे हलक से कोई आवाज़ भी निकल पायेगी , "मुझे लंड और फिर लौड़ा सबसे अच्छे लगतें हैं। "
मेरी आवाज़ अब रुक-रुक कर निकल रही थी।
"बबलू अब बताओ नए नाम को इस्तेमाल करके कि तुम क्या कर रहे थे. देखो तुमने वायदा किया है ," मैं मुश्किल से बोल पायी।
"भाभी मैं आपकी फोटो रोज़ देखता था और फिर कुछ देर में मेरा अँ …अँ मेरा लंड अजीब सा हो जाता है। पहले तो मुझे समझ नहीं आया। पर इसमें बड़ी अजीब सी कुछ कुछ खुजली जैसी फीलिंग होने लगी " बबलू को काश पता होता कि उसका हर शब्द मेरे पर क्या कयामत धा रहा था।
"बबलू तो तुमने कभी मास्टरबेट नहीं किया। " मैं मुश्किल से अपना सवाल मुंह से निकाल पाई।
"नहीं भाभी, बस मेरा दिल किया कि मैं इसे हाथ से सहलायूं तो मैं करने लगा तभी आप अम …आप आ गयीं। " बबलू का चेहरा इतना मासूम और निष्कपट था कि मुझे रोना सा आने लगा।
मैंने सारे पूर्वविधान और सावधानी को खिड़की के बाहर फैंक दिया, "बबलू मैं तुम्हे मास्टरबेट करना सिखाऊं? सब लड़के करतें हैं और उन्हें बहुत अच्छा लगता है। "
"भाभी क्या आप भी करतीं हैं?” अब मेरे डूबने में कोई देर नहीं थी।
"बबलू लड़कियां भी मास्टरबेट करती हैं पर मुझे तुम्हारे भैया ....... बबलू तुम्हे सीखना है ?" मैंने ध्यान से बबलू का एकागर्ता में डूबा चेहरा गौर से देखा।
"प्लीज़ भाभी , मुझे अच्छा लग रहा था ,” बबलू ने बच्चों जैसी मासूमियत से कहा।
"बबलू अपने हाथ को अपने लंड पर लगाओ और लंड की त्वचा को ऊपर नीचे करो। पहले धीरे धीरे फिर जब तुम्हे जितना अच्छा लगे उतनी तेज़ी से कर सकते हो,” मेरी भारी आवाज़ मुझे भी अपरिचित लगी।
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११
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बबलू ने अपना बड़ा हाथ से अपने सख्त होते लंड को पकड़ लिया। मेरी आँखे फट कर खुल गयीं। बबलू का कमसिन लंड अब विशाल लग रहा था। बबलू का बड़ा चौड़ा हाथ भी उसके आधे सख्त लंड की पूरे घेरे को पकड़ नहीं पा रहा था। अभी उसका लंड पूरा खड़ा भी नहीं हुआ था।
बबलू ने मेरी ओर देखा और मुझसे मानो पूछा कि वो सही तरीके से मुठ मार रहा था।
मुझसे अब रुका नहीं गया। मैंने अपना हाथ बबलू बड़े हाथ के ऊपर रख कर उसे अपने लंड की त्वचा को ऊपर नीचे करने में मदद करने लगी।
बबलू की हल्की भूरी आँखे मेरी आँखों से उलझ गयीं। मेरे पास अब कोई और चारा नहीं रहा। मैंने अपने दोनों हाथों से बबलू के लंड के मोटे घेरे को पकड़ लिया। बबलू का हाथ अब मेरे हाथों के भीतर था।
मैंने उसके लंड को थोड़े ज़यादा ज़ोर से उसकी मुठ मारने लगी। बबलू के मुंह से सिसकारी उबल उठी।
"भाभी प्लीज़, यह तो बहुत अच्छा लग रहा है , प्लीज़ भाभी …… उउन्न्ह ," उस प्यारे बालक की सिसकारी मेरे कानों में संगीत के सुर बजाने लगी।
"बबलू तुम जितने ज़ोर और तेज़ी से चाहो उतने ज़ोर और तेज़ी से मुठ मार सकते हो ," मैंने शुष्क आवाज़ में फुसफुसाई।
"भाभी आप ही कीजिये। आपके हाथ मुझे बहुत अच्छे लग रहें है ," बबलू ने घुटी घुटी आवाज़ में कहा।
अब मुझसे रुका नहीं गया। मैंने अपने दोनों हाथों से बबलू का हाथ दबा कर उसके मीठे चिकने लंड की मुठ मारने लगी।
उसका गुलाबी सूपड़ा उसके लंड के विसर्जन के पहले रस से भीग गया। मेरा मन कर रहा था कि बबलू का रसीला लंड अपने मुंह में ले लूं। पर मैंने अपनी अतार्किक इच्छा पर किसी तरह से काबू पा लिया।
बबलू का लंड अब पूरा लोहे की तरह सख्त हो गया था। उसकी लम्बाई और चौड़ाई दोनों और भी बड़ गए।
मेरी हालत बेडौल हो गयी। इतनी छोटी उम्र के बालक के इतने वृहत लंड को अपने हाथों में पा कर मैं तो पागल हो चली थी।
"भाभी , भाभी ," बबलू ने घुटी अव्वाज में मुझे पुकारा और अपने मीठे मुंह को मेरे सीने में छुपा लिया।
मेरे भारी विशाल उरोज़ों पर बबलू के मुंड के दवाब से मेरी चूत छटपटा उठी। मेरी चूत अब लबालब भर गयी थी।
मेरे हाथों ने बबलू के हाथ को मार्गदर्शक दे कर उसे और भी तीव्रता से मुठ मारने के लिए उत्तेजित कर दिया।
मैं तो अवाक रह गयी इतने नाबालिग लड़के की सहन-शक्ति से। अब तक बहुत से मर्द झड़ चुके होते।
बबलू की सिस्कारियां मेरे कानों में मीठे सुर भर रहीं थी।
"बबलू क्या तुम झड़ने वाले हो ?" मैंने भारी आवाज़ में उस से पूछा।
"भाभी झड़ना क्या होता है ?” बबलू ने किसकिसाते हुए पूछा।
मैं उसके भोलेपन से इतनी प्रभावित हुई कि बिना अपनी चूत छुए मैं झड़ गयी। मेरी सिस्कारियां बबलू की सिस्कारियों से मिल कर कमरे में एक नया पर अनुचित संगीत बजाने लगीं।
"भाभी आह भाभी मेरे लंड में कुछ हो रहा है ," बबलू ने अपने दाँतों को भींच कर सुसकारते हुए कहा।
मैं अभी भी अपने रति-निष्पति से उलझ रही थी पर मुझे इस बालक की तरफ़ अपने कर्तव्य का ध्यान आ गया।
"बबलू तुम निश्चिन्त रहो। यह सब प्राकर्तिक आभास हैं। तुम्हारा कामोन्माद होने वाला है। इस मीठे दर्द का आनंद उठाओ। बबलू तुम्हारी भाभी तुमहे कोई भी क्षति नहीं होने देगी। " मैंने बबलू के माथे को चूम कर उसे सांत्वना दी।
"भाभी प्लीज़ और ज़ोर से करो ," बबलू की आँखें बंद थीं पर उसके सुंदर लाल चेहरे पर पसीने की बूँदें प्रगट हो चलीं थी।
मैंने अब बबलू के हाथ को और भी तेज़ी से उसके लंड की मुठ मारने के लिए पथप्रदर्शन करने लगी।
बबलू ने अचानक ऐंठ कर सिसकारी मारी और उसके वृहत लंड के पेशाब के छिद्र से गाड़ा सफ़ेद वीर्य उबाल पड़ा। बबलू के वीर्य की बौछार कई फूट तक ऊपर जा कर मेरे हाथों और उसके पेट और झाँगों पे बिखर गयी।
बबलू ने मुझे अपनी बाँहों में जकड लिया और उसका मीठा हांफता मुंह मेरे गाल से चिपक गया ,"ओह भाभी उउन्न्ह भाभी। "
उसका मुझे पुकारना इतना मीठा लगा कि मैं फिर से झड़ गयी।
बबलू के लंड ने अनेको बार गाढ़े वीर्य की पिचकारी मारी। मेरे दोनों हाथ,उसका पेट सफ़ेद मलाई की तह से ढक गए।
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१२
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बबलू मेरे ऊपर अपने पूरे वज़न से ढलक गया मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया और जैसे-तैसे बिस्तर में नीचे खिसक कर सीधे लेट गयी। मैंने निष्चल बबलू के माथे को चूमा। फिर उसकी हांफती हुई सुंदर नासिका को प्यार से चूम कर उसके तेज़ी से उठते बैठते सीने के ऊपर अपने होंठ चिपका कर आँखे बंद करके उसके जागने का इंतज़ार करने लगी।
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बबलू ने जब होश सम्भाला तो मुझसे ज़ोरों से लिपट गया ," भाभी आई लव यू भाभी। "
उसकी प्यार की पुकार ने मेरे ह्रदय की हर तरंग को जगा दिया ,"अब तो बोलेगे ही। पर क्या कल भी तुम अपने भाभी को इतना ही 'आई लव यू ' करोगे ?"
बबलू ने मुझे और भी सख्ती से भींच लिया , " भाभी आप और मम्मी को मैं मरते दम तक प्यार करूंगा। "
मेरी तरुणा का द्वार पूरा खुल गया। बबलू ने मेरे प्यार को अपनी माँ के प्यार से तुलना कर मुझे बिलकुल जीत लिया।
मैंने उसके गाल को चूम कर भावना के अतिरेक से अभिभूत हो फुसफुसाई , "मेरा प्यारा बेटा देवर आई विल आलवेज़ लव यू विद माई लाइफ। "
बबलू की तब तक आँखे बंद हो गयीं थी और उसकी गहरी साँसों ने मुझे बताया कि मेरा नन्हा प्यारा देवर बेटा सो गया था।
मैंने रवि से सम्भोग की हिंदी और अंग्रेजी की किताबे और डीवीडी मंगवा कर बबलू को दे दीं। रवि ने मुझे इंटरनेट पर कुछ साइट्स के लिंक भी दे दिए पर मैं नहीं चाहती थी कि बबलू इंटरनेट से सम्भोग की शिक्षा ले।
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उस दिन से मैं रोज़ बबलू के कॉलेज होम-वर्क की मदद करने के लिए उसे मुठ मारने में मदद करती रहीं हूँ। बबलू अब रात में और अलग समय में अपने आप मुठ मारने लगा था। पर वो हमेशा कॉलेज के बाद मेरा इंतज़ार करता था। उसके हिसाब से जब वो मेरे सामने मुठ मरता था तो मेरा चेहरा देख कर उसे और भी आनन्द मिलता था। मैं कई बार अपने को रोक नहीं पाती थी और अपने दोनों नाज़ुक हाथों के उसके हाथ के ऊपर रख कर उसके विशाल लंड की मुठ मारने में मदद कर देती थी। मुझे अपनी चूत को छूने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती थी झड़ने के लिए। अब उसकी शब्दावली मेरे शब्दकोष के बराबर हो चली थी। हम दोनों खुल कर हर अश्लील शब्द का इस्तेमाल करने लगे।
मुझे दो हफ्ते बाद ही बबलू ने बताया कि नीलू भी उन किताबों में खो गयी थी।
सीमा सिंह
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१३
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मैंने मुस्करा कर अपने सर झटका और बीते दिनों की मीठे यादों को वापस अपने मानस के पीछे हिस्सों में धकेल दिया।
मैंने हौले से बबलू का दरवाज़ा खोला और उसके शयन-कक्ष के सुइट के बाहर वाले हिस्से से गुजर कर उसके मुख्य शयन कक्ष में खुस गयी।
मैं बबलू की हालत देख कर हंस दी। बबलू बिस्तर पर पूरा नंगा और अपने विशाल इस्पात के खम्बे जैसे खड़े लंड के ऊपर हाथ रख कर बेसब्री से मेरा इंतज़ार कर रहा था।
"अरे मेरे पागल देवर , यदि इतनी ही बेससबरी थी तो खुद से शुरू क्यों नहीं हो गए ?" मैंने समझते हुए भी नासमझ बनने का नाटक किया।
"भाभी , कहाँ थी अब तक ? रोज़ तो आप नाश्ते के ठीक बाद मेरे कमरे में आ जातें हैं," बबलू ने प्यार भरा उल्हाना दिया।
मैंने अपनी आँखें मटका कर कहा ," मैं तो तो डैडी की गोद में बैठी थी मेरे नन्हे देवर जी, " तब तक मैं बबलू के साथ बिस्तर में लेट गयी थी, "लेकिन मुझे यह बताईये मेरे नटखट बालक देवर कि आपने मुझे मेरे होठों पर कब से चूमना शुरू कर दिया ?"
बबलू का मुंह शर्म से लाल हो गया, " सॉरी भाभी, आपका सुंदर मुंह देख कर मैं कितने दिनों से सोच रहा था और आज मुझसे रुका नहीं गया। "
"मैंने यह कहाँ बोला है कि मुझे बुरा लगा। तो फिर सॉरी किस बात की ? मैं तो सिर्फ जानना चाह रही थी कि मेरे बेटे देवर के मेधावी दिमाग में क्या हलचल चल रही है," मैंने प्यार से बबलू के शर्म से लाल गाल को चूम लिया।
बबलू के कद में तो तीन इंच का इज़ाफा तो हुआ ही उसके लंड में भी कम से कम दो या तीन इंच जुड़ गयीं थीं।
"देवर जी जब कोई लड़का किसी लड़की को प्यार दिखाने के लिए हिम्मत दिखाता है तो उसे इनाम मिलता है। अब आप बताइये कि आपको क्या इनाम दिया जाये ," मैंने बबलू को अपनी बाँहों में भर लिया।
"भाभी, वास्तव में आप .... मेरा मतलब है कि आप जो मैं चाहूंगा वो आप दे देंगीं," बबलू की दोनों आँखें चौड़ी हो कर फ़ैल गयीं।
"ऊंह!…… यदि आपकी दरख्वासत ठीक-ठाक हुई तो बिलकुल जो आप चाहें ," मैंने अपना गाल बबलू के गाल से रगड़ा।
"भाभी जब मैं मुठ मारूं तो क्या आप आज अपने यह मुझे दिखाएंगीं ," बबलू ने मेरे उठते बैठते सीने की तरफ इंगित कर के कहा।
"मेरे अनाड़ी देवर जी, कितने महीनों से मैं आपको सिखा रहीं हूँ ? आज आपने सारे शिक्षा की ऐसी की तैसी कर दी। इनको क्या कहते हैं ? यदि आप इनका सही नाम भी नहीं पुकार सकते तो मैं आपको यह कभी भी नहीं दिखाऊंगी ," मैं अब सिहर उठी थी। एक ही दिन में बबलू ने दो बहुत लम्बे कदम ले लिए थे।
"भाभी सॉरी, मुझे आज मुठ मारते हुए आपकी चूचियाँ देखनी हैं, प्लीज़," बबलू ने वंदना की।
"ठीक , भाभी नन्हे मासूम देवर की हिम्मत से खुश हुई। अब आप यह बताइये कि आप मेरी चूचियों को बाहर निकालेंगे कि मैं निकालूँ," बबलू के सुंदर चेहरे पे प्यार, आश्चर्य और उत्तेजना के मिश्रण से उसकी दमक से मैं पागल सी हो गयी।
"भाभी क्या मुझे आप इन्हें यानी अपनी चूचियों को बाहर निकालने देंगीं ?" बबलू की प्यारी नासमझी ने मेरी चूत में हलचल मचा दी।
मैंने साड़ी को सीने से नीचे फैंक कर बबलू को आमंत्रित किया , "चलो तो फिर नादान देवर जी देखें आपने अपनी भाभी से कितनी शिक्षा ग्रहण की है। यह आपकी परीक्षा है। "
समुन्द्र में तूफ़ान के लहरें सर उठा रहीं थीं। प्रकृति के अभियान के कदम अब नैसर्गिक पर अनुचित दिशाओं में बढ़ चले थे। ना तो मुझे और ना बबलू को किसी सामाजिक बाधाओं की फ़िक्र थी।
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१४
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जब तक बबलू के कांपते हाथ मेरे ब्लाउज़ के बटनों तक पहुंचे मैं ने तीर मारा ,"हाँ, एक बात और, क्या मेरे देवर जी भाभी से वायदा करते हैं कि वो इस साल कॉलेज में प्रथम आयेंगें?"
बबलू ने बिना हिचक के कहा, "प्रॉमिस भाभी। "
मैंने मुस्करा कर उसके हाथ अपने ब्लाउज़ के सबसे नीचे के बटन पर रख दिए। बबलू के कांपते हाथों में सारे बटन खोलने में बहुत समय लगाया। उसकी उत्तेजना और लगाव से मेरी चूत में रतिरस का सैलाब उठ गया।
आखिरकार बबलू ने सारे बटन खोलने सफलता पा ली। उसकी आँखे सफ़ेद कॉटन की ब्रा में फंसे मेरे भारी विशाल उरोज़ों के उभार को देख कर और भी फ़ैल गयीं।
"भाभी आप कितनी सुंदर हैं, " बबलू ने हलके से कहा पर उसके भावुकता की प्रबलता ने मुझे हिला दिया।
"बबलू अपनी भाभी की ब्रा खोल कर उसकी चूचियाँ मुक्त कर दो ," अब मेरी भी आवाज़ कांपने लगी।
बबलू को तो समझ ही नहीं आया कि ब्रा कैसे उतारे। मैंने उसके हाथों को अपने पीठ के ऊपर के बकसुए के ऊपर ले जा कर उसे उत्साहित किया।
बबलू ने एक बार बकसुए को देखा और शीघ्र उसने उसे खोल दिया। मेरी हल्की सी सिसकारी निकल गयी , “हाय मेरे देवर तो अब नादान नहीं रहे। "
बबलू ने धीरे-धीरे मेरी कंचुकी को अपने भार से नीचे गिरने दिया। जैसे ही मेरे उन्नत, विशाल स्तन पूरे नग्न हुए, बबलू की सांस तेज़ तेज़ चलने लगी।
"भाभी , भाभी ," बबलू की प्यार भरी आँखों ने और उसकी आवाक्य अवस्था ने मुझे उसके प्रेम की पूरी व्याख्या दे दी।
"बबलू अब तुम मुठ मारनी शुरू कर दो। आज तुमने दो इनाम वाली बातें कीं हैं। मैं तुम्हे एक और उपहार दूंगीं ," मैं मुश्किल से बोल पायी।
मेरी आँखे बबलू के विशाल गोर चिकने झांट-विहीन लंड पे अटक गयीं। बबलू अब बहुत लम्बे समय तक मुठ मार सकता था।
अचानक न जाने कहाँ से मेरे मुंह से निकल पड़ा ," बबलू यदि तुम चाहो तो मेरे चूचियों से खेल सकते हो। "
बबलू का सीधा हाथ अपने मोटे लम्बे लंड के ऊपर तीव्र गति से चल रहा था पर उसने अपने बायें हाथ से मेरी दायीं चूची को सहलाने लगा।
मेरी ज़ोर से सिसकारी निकल गयी। मेरी चूत रति-रस से सराबोर हो चली। बबलू का हाथ मेरे सख्त चूचुक को पंख से भी कोमल अंदाज़ में सेहला रहा था। बबलू का सीधा हाथ बिजली की तेज़ी से अपने लंड को मथने लगा।
मैं अगले आधे घंटे में चार बार झड़ गयी। बबलू के मासूम हाथ ने मेरी दोनों चूचियों को सहला कर मुझे पागल कर दिया।
"बबलू, जब तुम झड़ने वाले हो तो मुझे बता देना," मैं मुश्किल से बोल पायी।
बबलू भी अब तक आनंद की गहरी झील में गोते लगा रहा था और सिर्फ सर हिलाने के सिवाय कुछ न बोल सका।
मेरे दोनों उरोज़ भड़क उठे बबलू के हाथ के कोमल स्पर्श से।
मेरी चूत नादीदे पन से फिर से झड़ पड़ी। लगभग आधे घंटे के बाद बबलू अचानक ज़ोर से बोला , "भाभी मैं झड़ने वाला हूँ। "
जो मैंने तब किया उसे आज तक बबलू याद करता है। मैंने जल्दी से झुक कर अपना खुला मुंह बबलू के सुपाड़े के ऊपर स्थिर कर दिया।
बबलू की भौचक्के आँखों ने उसके गरम गाढ़े वीर्य की पहली बौछार को मेरे खुले मुंह में जाते हुए देखा।
उसका हाथ अब बेतरतीबी से मुठ मार रहा था। बबलू की अगली धार हिल कर मेरे माथे और नाक पर फ़ैल गयी। मैंने बेसबरी से बबलू के उबलते सुपाड़े को अपने मुंह में ले लिया।
बबलू के मुंह से ज़ोर की सिसकारी निकल गयी ," आह भाभी। "
उसकी आनंदमयी सिसकारी मेरा उपहार थी। बबलू के लंड ने कम से कम दस बारह बार मेरे भूखे मुंह में गाढ़े वीर्य की बौछारों से भर दिया। मैं जितनी तेज़ हो सकता था बबलू के लंड के मलाई को निगल गयी।
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१५
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मैंने अपना मुंह तब तक नहीं उठाया जब तक बबलू ने लंड बिलकुल ठंडा नहीं हो गया।
बबलू हांफता हुआ बिस्तर पर ढलक गया। मेरी साँसे भी मुश्किल से मेरे काबू में थीं।
"भाभी, थैंक यू। आप को मैं कैसे बताऊँ कि मैं आपसे …… ओह भाभी आई लव यू सो मच, " बबलू ने मुड़ कर मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया और अपने खुले मुंह को मेरे हाँफते खुले मुंह से कस कर चुपके दिया। अब मुझसे भी बस नहीं हुई और मेरे बाहें उसकी गर्दन के इर्द-गिर्द फ़ैल गयी और मैंने अपनी जीभ बबलू के मुंह के अंदर घुसा दी। बबलू को अपने वीर्य का मीठा नमकीन स्वाद अच्छा लगा ही होगा क्यों की उसने अपना मुंह और भी बेदर्दी से मेरे मुंह के ऊपर दबा दिया।
हमरा खुले मुंह का गीला चुम्बन बड़ी देर तक चला।
"अब देखो देवर जी अपनी भाभी की लाज रखना और अपने दिए हुए वचन को पूरा करना ," मैंने मुश्किल से अपना मुंह बबलू के मीठे मुंह से अलग किया।
बबलू ने भावुक स्वर में कहा , "भाभी मैं आपको कभी भी लज्जित नहीं होने दूंगा। "
मैं भी भावुक हो उठी और मैंने बबलू के मुंह के ऊपर अपने खुले होंठ चिपका दिए।
मैंने बबलू को कॉलेज के होम-वर्क की शुरूआत करा कर अपने कपड़े ठीक उसके कमरे से बाहर निकल पड़ी।
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१६
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मैं हलके पावों से नीलू के सुइट की ओर बड़ चली।
नीलू ने अपने कॉलेज के कपडे उतार दिए थे और नहा चुकी थी। उसके गीले लम्बे घुंगराले बाल उसे और भी सुंदर बना रहे थे।
नीलू हर रोज़ की तरह अपनी छाती को आदमकद के शीशे में देख रही थी।
"क्या हुआ ननद रानी क्या तुम्हारी एक चूची खो गयी है ?” मैंने भीतर जा कर नीलू को अपनी बाँहों में पकड़ लिया।
"भाभी आप भी मेरा मज़ाक उड़ा लीजिये। देखिये मेरी चूचियाँ बिलकुल नहीं उग रहीं हैं। आपकी और कम्मो दीदी की चूचियाँ कितनी बड़ी हैं ," नीलू ने ठमक कर मुझसे शिकायत की।
" अरे भोले भाली नन्ही सी गुड़िया ननंद रानी अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है। तुम्हारी उम्र की लड़कियों की छाती लड़कों जैसी समतल होती हैं। तुम्हारे तो देखो आखिरी कुछ महीनों में ही उलटे कप के सामान इतने सुंदर स्तन उभर आयें हैं, " मैंने नीलू के दोनों कच्चे उरोज़ों को अपने हाथों में भर कर कस कर मसल दिया।
"ऊई भाभी दर्द होता है ," नीलू सिसकते हुए चीखी।
"अरे इन्हे मसलवाने से ही तो ये बड़ी होंगीं। कोई लड़का है तुम्हारी नज़र में जो इन्हें रोज़ ज़ोर से मसले," मेरे अश्लील मज़ाक से नीलू शर्मा गयी।
"भाभी मुझे किसी लड़के में रूचि नहीं है। यदि मसलवाने से ही मेरी चूचियां बड़ी होंगी तो फिर तो मुझे छोटी चूचियों के साथ ही जीना पड़ेगा ," मेरी मुश्किल कुछ महीनों से से किशोरावस्था में प्रविष्ट हुई बालिका की मुश्किल सुन कर हसने का मन कर रहा था।
पर मुझे नीलू के मन की संवेदनशीलता का अहसास था इसलिए मैंने भी गम्भीर हाव भाव बना लिया।
" हूँ तो देखें कि हम कैसे इस समस्या का क्या हल निकाल सकते हैं," मैं बिस्तर पर बैठ गयी और मैंने प्यार से नीलू को खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया।
नीलू ने अपनी बाहें मेरे इर्द-गिर्द फैला दीं।
"भाभी और क्या कर सकते हैं इन्हें बड़ा करने के लिए ," नीली ने थोडा इंतज़ार कर के बेसब्री से पूछा।
"पहले तो हम इनको 'इन्हें' कहने के बजाय चूचियां कह सकते हैं," मैंने प्यार से नीलू को होंठो पर चूमा, “और मैंने तुम्हारे भैया से बात की है। वो तैयार हैं अपनी बहिन की चूचियाँ मसलने को ," नीलू शर्मा गयी और उसने अपना मुंह मेरे उरोज़ों के बीच छुपा लिया ,"यदि हमारी नन्ही ननद चाहे तो वो और भी कुछ मसलने को तैयार हैं। "
"भाभी आप कैसी बातें करती हैं। भैया से मैं कैसे चूचियाँ मसलवा सकती हूँ ?, नीलू ने भोलेपन से कहा ,"भाभी वास्तव में लड़कों से मसलवाने से चूचिया बड़ी हो जातीं हैं?"
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१७
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"नन्ही ननंद रानी, मसलवाने सो तो वास्तव में बड़ी हो जातीं हैं पर अगर चुदाई भी साथ में हो जाये तो और भी जल्दी और भी बड़ी हो जाएंगीं। देख लो मैं तुम्हारी सिफारिश तुम्हारे बड़े भैय्या से लगा सकती हूँ," मैंने एक बार फिर से नीलू के उगते हुए उरोज़ों को कस कर दबोचा और मसल दिया। नीलू फिर से सिसक उठी।
"भाभी सच में! चुदवाने से चूचिया बड़ी हो जातीं हैं ?," नीलू का सुंदर चेहरा इस ख्याल की एकगर्ता में डूब गया।
"ननंद बेटी सिर्फ चुदवाने और मसलवाने से ही नहीं दोनों इकठ्ठे करवाने से असर और भी तीव्र और फलदायक हो जाता है ," मैं अब नीलू के दोनों कच्चे उरोज़ों को बेदर्दी से मसल रही थी। नीलू ने दर्द भरी सिस्कारिया तो छोड़ीं पर मुझे रुकने के लिए नहीं कहा।
"भाभी आप और दीदी किस से चुदवातीं थीं जो आप दोनों की चूचियां इतनी बड़ी और भारी हो गयीं। " नीलू ने अपने कमर मेरे उरोज़ों पर दबा दी।
"कम्मो दीदी ने तो मेरे भैय्या से चुदाई करवाई और मैंने तुम्हारे भैय्या से ," मैंने नीलू के मटर के दानों जैसे चूचुकों को उंगली और अंगूठे ले ले कर निर्ममता से मसल दिया।
नीलू सिसक उठी और उसने अपनी कमर मेरे वक्षस्थल के ऊपर दबा दी। मेरे हाथों ने उस नाबालिग किशोरी कन्या की दोनों कच्ची उभारों को कस कर मसलना प्रारम्भ कर दिया। नीलू की सिकारियां कमरे में गूंजने लगीं। मैंने उसके मटर के दानों जैसे चूचुकों को फिर से उंगली और अंगूठे में दबा कर पहले तो मड़ोड़ा फिर उनकों बेदर्दी से खींच कर नीलू की छाती से दूर ले गयी और अचानक उन्हें छोड़ दिया। नीलू के अविकसित उरोज़ थरथरा उठे और उसके चीख निकल गयी , "भाभी! आह भाभी दर्द हो रहा है। "
मैंने नीलू के लाल सूजे हुए कच्चे उरोज़ों को फिर से अपने हाथों में भर कर कस कर उमेठा और फिर पहले की तरह मसलने लगी , "नन्ही नादान ननद रानी इन बच्ची चूचियों को लड़कियों के चूचीयां बनाने के लिए कुछ तो यतन करने ही पड़ेंगें।
'भाभी, आप कितना दर्द करती हो मेरी चूचियाँ मसलते हुए। क्या मेरे बड़े भैया भी आपकी चूचियाँ इतने बेदर्दी से मसलते हैं ?" नीलू ने सिस्कार मार कर पूछा।
"मेरे प्यारी ननंद तुम्हारे भैया न केवल मेरी दोनों चूचियों को इस से भी ज़यादा बेदर्दी से मसलते उसके ऊपर वो मुझे अपने मूसल जैसे लंड से ठोक कर मेरी चूत का बाजा बजा देतें हैं," मैंने नीलू के उभरते स्तनों का बिना रुके मर्दन करते हुए कहा।
"भाभी क्या बड़े भैय्या का बहुत बड़ा है?" नीलू की सिकारियां उसे मुश्किल से अपना वाक्य समाप्त करने दे पा रहीं थीं ।
सीमा सिंह
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१८
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"अरे, इतना सिखाया पढ़ाया पर फिर भी भाभी की सारी मेहनत पर तेल फेर दिया। अरे भैय्या का क्या ? उनकी नाक ? या उनका हाथ ? और क्या उनका पैर बहुत बड़ा है ?" मैंने नीलू के चूचुकों को इस बार इतना कस कर दबाया की उसकी लम्बी चीख वंदना में समाप्त हुई।
"भाभी हाय, नहीं बहुत दर्द कर रही हो। अच्छा सॉरी। मेरे भैया का लंड। अब तो ठीक है। प्लीज़ थोडा धीरे से मसलों ना," नीलू ने राहत की सांस ली जैसे हे मैंने अपनी गिरफ्त उसके चूचुकों पर कुछ ढीली कर दी।
"अब समझ आई ना बात, " मेरे दोनों हाथ पूरे उद्यमी थे औए नीलू की सिकारियां कभी ऊंची कभी मद्यम स्वर में कमरे में गूँज रहीं थीं।
"नीलू रानी, बड़ी सयानी, चूत मरानी तुम्हारे भैया का लंड इतना लंबा है कि मेरी चार मुठियों के बाद भी उनका बड़े सेब जैसा सुपाड़ा अनढका रहता है। तुम्हारे भैया के लंड की मोटाई तो हाथी के लंड जैसी है। मेरे दोनों हाथ मुश्किल से मिल पाते हैं। उनके अंडकोष तो किसी सांड को भी शर्मिंदा कर दें ,इतने विशाल और भारी हैं, " नीलू अब आधे खुले मुंह से ज़ोर ज़ोर से सांस ले रही थी। उसकी सिस्कारियां और उसके लाल कामवासना से उज्जवलित चेहरे को देख कर मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गए।
"भाभी, आप ही बताइये मैं क्या करूँ ?,” नीलू ने सिसकारते हुए पूछा , "कोई बहन अपने बड़े भाई से कैसे चुदवा सकती है ?"
कम से कम नीलू ने चोदने के लिए कोई मंगलभाषी शब्द का प्रयोग नहीं किया।
"अरे इसमें शर्माने की क्या बात है ? तुम्हारे भैया के पास लंड है और तुम्हारी चूत को उनका लंड चाहिए। बस उनसे पूछ लो ," मैंने एक बार फिर से नीलू के चूचुकों को निर्ममता से मसला और उसकी मादक चीख ने मेरी चूत गीली कर दी।
"भाभी अब मेरी चूत से नहीं सहा जाता। प्लीज़ उसे देखों ना ," नीलू के गोल मटोल मुलायम चूतड़ मेरी चूत को मचलते हुए रगड़ रहे थे।
"क्या देखूं तुम्हारी चूत में नीलू रानी?" मैंने अपनी नन्ही कमसिन ननद को चिड़ाते हुए कहा।
"सॉरी भाभी। मेरी चूत को ठंडी कर दीजिये प्लीज़। जब मैं अपने आप करती हूँ तब उतना मज़ा नहीं आता। पर जब आप करती हैं तो मैं बहुत देर के लिए ठीक हो जातीं हूँ और पढ़ाई भी बहुत अच्छे से होती है," मेरी नादान ननद अब भाभी के गुर सीख रही थी।
पढ़ाई के नाम से तो नीलू मुझसे कुछ भी करा सकती थी। मैंने अपने एक हाथ को मुश्किल से उसकी लाल सूजी चूची से अलग कर उसकी मादक गोल मटोल मोटी टांगें चौड़ा कर अपनी झाँगों के दोनों ओर फैंक दी। नीलू के गुलाबी नन्ही सी चूत मेरी उँगलियों के तड़प रही थी। नीलू की चूत पर अभी एक भी झांट का रेशा नहीं उगा था।
मैंने अपनी बीच की उंगली से उसकी चूत के द्वार तो सहलाया और उसकी ऊंची सिसकारी ने मुझे भी कामोन्माद से अभिभूत कर दिया।
मुझे याद था कि इस उम्र में चूत से उपजे आनंद का अलग ही मज़ा है और कोई भी कन्या इसे नहीं भूल सकती है।
मैंने नीलू की चूत के तंग संकरे मुंह को उंगली से कुरेदा पर अपनी उंगली को अंदर डालने से रोक दिया। नीलू की चूत का उद्घाटन तो एक मूसल से भी बड़े लंड से होना था।
शीघ्र मेरी उंगली ने नीलू के नन्हे से भाग-शिश्न को ढून्ढ लिया और जैसे ही मेरी उंगली ने उसे रगड़ा नीलू मेरी गोद में से उझल पड़ी ,"भाभी, आः ऐसे ही करो प्लीज़ भाभी। " नीलू अब अपने चूची के मर्दन के दर्द को भूल गयी। मैं उसके चूचुक और उरोज़ को निर्ममता से मसल रही थी पर अब नीलू चीखने के बजाय सिसक रही थी।
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१९
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मैंने नीलू के भाग-शिश्न [क्लिट] को तेज़ी से रगड़ना शुरू कर दिया और तीन मिनट में नीलू ऐसे कांप रही थी जैसे उसे मिर्गी का दौरा पड़ रहा हो।
जब तक उसका चरम-आनंद धीमा पड़ा तब तक नीलू दौड़ की घोड़ी की तरह हांफ रही थी।
"भाभी आप कसम से कितनी अच्छीं हैं। आई लव यू भाभी।, " नीलू ने हाँफते हुए कहा।
मैंने उसे प्यार से अपने से लिपटा लिया और उसके फड़कते हाँफते होठों को कस कर चूम लिया।
"भाभी आप मेरी लिए कुछ सोचेंगीं ना ?" मेरी नन्ही ननद अब पूरी तरह तैयार हो गयी थी।
मैंने कुछ देर सोचने की अभिव्यक्ती बनाई फिर अचानक जैसे मुझे उंसकी समस्या का कोई हल किसी देव-वाणी से मिल गया।
"नीलू मैंने यह पहले क्यों नहीं सोचा, मेरे भैया शायद होली पर यहाँ आये तुम्हारी कम्मो दीदी के साथ। मैं उनको तुम्हारी चूत के ऐसी कि तैसी करने के लिए मना लूगीं। "
नीलू की आँखें चमक उठीं ," भाभी क्या जीजू मुझे चोदना चाहेंगें। उनके पास तो दीदी हैं। मैं कम्मो दीदी के सामने तो कुछ भी नहीं हूँ।" मैंने उसे और भी कस कर भींच लिया और इसके होंठों को चूस चूस कर सुजा दिया, इतना प्यार आ रहा था मुझे अपनी बच्ची ननद पर।
"नीलू रानी , मेरे भैया तो तुम्हारे जीजू हैं। जीजू का तो साली पर हक़ तो होता ही है पर उनका कर्तव्य भी है की अपनी साली के कौमार्य को भिन्न-भिन्न करने का। तुम बस एक बार मन बना लो बाकी मेरे ऊपर छोड़ दो। फिर जब समय आये तो वैसे ही करना जैसे मैं कहूं, " मेरे हाथ अब नीलू के लाल मसले हुए चूचियों को प्यार से सेहला रहे थे।
"भाभी, जीजू इतने हैंडसम है और कम्मो दीदी इतनी सुंदर हैं यदि जीजू मुझे चोदने के लिए तैयार हो जायेंगें तो मैं जैसे आप कहेंगें वैसे ही करूंगीं। भाभी जीजू का लंड कितना बड़ा है ," मैं मुस्करा दी। कुंवारी नीलू अब लंड के लम्बाई मोटाई के बारे में भी फिक्रमंद हो गयी थी , "क्या जीजू का भी बड़े भैया जितना बड़ा है ?"
"नीलू मैंने अपने भैया के लंड के बारे में कम्मो से सुना है। उसके विवरण से तो मुझे लगता है कि मेरे भैया का लंड तुम्हारे भैया जैसा ही है। दोनों मर्द नहीं सांड और घोड़े का मिश्रित रूप हैं। "
नीलू का चेहरा अपने जीजू के लंड की बड़ाई सुन कर खिल गया।
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२०
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" लेकिन, ननद जी एक शर्त है। आप इस साल अपनी सब क्लासों में प्रथम आयेंगीं। " मैंने तुरंत स्थिति का फायदा उठाया।
"भाभी यदि इस होली पर जीजू मुझे चोद दें तो मैं कभी भी आपके बात नहीं टालूंगीं प्रथम आना तो बहुत आसान है ," नीलू ने मुड़ कर मेरे खुशी से खुले हुए मुंह को ज़ोर से चूम लिया।
" अपने कॉलेज का काम समाप्त कर लो। तुम तो मेरी बहुत ही प्यारी और सयानी ननंद हो। मैं तो प्रार्थना करती हूँ कि मेरी बेटी भी तुम्हारी तरह ही मेधावी हो ," मैंने कस कर नीलू को भींच लिया।
"भाभी नन्ही ननंद तो भी बेटी की तरह होती है ," नीलू के भावुक शब्दों से हम दोनों कुछ क्षणों के लिए मूक हो गए।
मैंने नीलू गुलाबी के होंठों को चूम कर कहा, "चलो अब वापस काम पे लग जाओ। "
जैसे ही मैं जाने लगी नीलू ने पूछा ," भाभी क्या भैया आपको रोज़ चोदते हैं ?"
मैंने मुड़ कर मुस्करा कर कहा ," हां नीलू जी रोज़। सिर्फ रात में ही नहीं सुबह बिस्तर से निकलने से पहले, कभी कभी बाथरूम में भी। और फिर वो मुझे काम के बहाने ऑफिस बुला लेते हैं और वहाँ उनके ऑफिस के साथ लगे बेडरूम में मेरे चूत का बैंड-बाजा बजा देतें है। जब मेरे भैया, तुम्हारे जीजू तुम्हारी चूत का उद्घाटन कर दें तो अपने भैया से भी मरवा लेना। कभी भी नहीं भूलोगी भैया की चुदाई को। "
मैं इस विचार को नीलू के मस्तिष्क में भर कर खाना बनाने चल दी।
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२ १
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रवि भी जब तक भोजन तैयार हुआ ऑफिस से आ गए। उन्होंने मम्मी को चूमकर आलिंगन में ले लिया। मैं उनके पीछे पीछे अपने शायह-कक्ष में चली गयी। बाहर की बैठक के बाद रवि का अध्यन-कक्ष और ऑफिस थे फिर उनसे के बाद विशाल शयन-कक्ष। रवि ने मुझे बाँहों में भरकर मेरे होंठों से होंठ लगा दिए। मेरी दिल की धड़कन बढ़ गयी। उनके मीठी जीभ मेरे गीले मुंह में घुस कर मेरे मुंह की तलाशी लेने लगी।
मैंने भी अपनी जीभ को उनके मुंह को अच्छे से तलाशने के लिए अंदर भेज दिया । उनके मजबूत हाथों ने मेरे बड़े विशाल गदराये चूतड़ों को पकड़ कर मुझे हवा में उठा लिया और मेरी भरी-भरी गोल गोरी बाहें उनकी गर्दन से लिपट गयीं।
अब हमारा गीला एक दुसरे की स्वादिष्ट लार चखने वाला चुम्बन जो शुरू हुआ तो तभी छूटा जब मैं सांस भी नहीं ले सकती थी।
उनके बलशाली विशाल हाथों मेरे ब्लाऊज़ के ऊपर से ही मेरी गदराई फड़कती चूचियों को मसलने लगे।
"हाय, रवि थोडा सब्र किजीये ना। सब खाने के लिए आपका इंतज़ार कर रहे थे," मैंने सिकारी मारते हुए मुश्किल से कहा।
“ शालू, तुम्हारी याद ने सारा दिन मेरी पैंट में तनाव बना रखा है। एक बार जल्दी वाली चुदाई करने के बाद खाना खाने चलेंगें," रवि ने प्यार से मेरी नाक की नोक को पहले चूमा फिर हलके से दातों तले दबा कर उसे काट लिया।
मैंने हाथ नीचे ले जा कर महसूस किया कि उनका बलशाली लंड पैंट के अंदर मुश्किल से समा पा रहा था।
"आपको नहाना भी है। प्लीज़ मेरी मानिये अभी रहने दीजिये। आपकी जल्दी वाली चुदाई भी घंटे से कम नहीं चलती ," मैंने खिलखिला के कहा।
उन्होंने मुझे बिस्तर पर खड़ा कर दिया। मेरी पांच फूट पांच इंच के कद से वो लगभग दस इंच ऊंचे थे। उन्होंने मेरे ब्लाउज़ को ब्रा सहित झटक के मेरे चूचियों ले ऊपर कर दिया और उन्होंने मेरा एक गदराया हुआ विशाल स्तन अपने हाथ में भर कर मसलना शुरू कर दिया और दुसरे उरोज़ के सख्त मोटे लम्बे चूचुक को मुँह में भर कर दर्दीले प्यार से चूसने लगे।
मैं सिहर कर सिसक उठी , "हाय, रवि प्लीज़, आग नहीं लगाओ। मुझे तो आप वैसे ही पागल कर देते हो।
रवि ने मेरे चूचुक को हलके से काट कर मेरे चीख निकलवा दी ,"शालू रानी आप रोज़ रात को मुझे सो जाने को कह देती हो। कि मेरे स्वास्थ्य के लिए लम्बी नीद ज़रूरी है। लेकिन कल मुझे जल्दी नहीं जाना। "
मैंने मुस्करा कर अपने देवता जैसे सुंदर पति को चूम कर प्यार से कहा ," मेरा मन तो चाहता है कि आप सारा दिन और रात मेरी चूत में अपना घोड़े जैसा लंड डाल कर मेरे साथ रहे पर मैं आपको बीमार नहीं देखना चाहती। लेकिन यदि कल आप देर से जायेंगें तो मैं आप को सारी रात नहीं रोकूंगी। आप मुझे जितनी बार मन करे चोदियेगा और कहीं भी ," मैंने प्यार से उनके घने घुंगराले बालों को पकड़कर ज़ोर से उनका सर झंझोड़ दिया।
"शालू, मुझे तुम से इतना प्रेम क्यों है ? मैं तुम्हारे बिना पूरा दिन बिताने से कितना परेशान हो जाता हूँ," रवि ने मेरे दोनों उन्नत भारी चूतड़ों को अपने बलशाली हाथों से मसल डाला।
"सनम , मैं भी तो अपने प्यार की भूख दबा कर आपकी प्रतीक्षा करतीं हूँ," रवि ने मुझे फिर से रोम रोम पुलकित कर देने वाले चुम्बन से पागल कर दिया।
मैंने रवि को जल्दी से शॉवर में धकेल दिया। उनका घोड़े जैसा लंड उनकी पेड़ के तने जैसी चौड़ी बलवान जाँघों के बीच में हाथी की सूंड की तरह हिल डुल रहा था।
हम दोनों किसी तरह अपनी कामांगनि को काबू में कर वापस पारिवारिक -भवन की ओर चले गये।
रवि ने भी लफ़रोए ली और मेरे लिए भी ग्लेनफिद्दिक का गिलास बना दिया।
सीमा सिंह
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२२
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मुझे और भैया को बचपन से ही पापा ने अनेक तरह की शराबों से परिचित करा दिया था। इस से जब हम विश्यविद्यालय में गए तो शराब हमारे लिए कोई भी नवीन आकर्षण नहीं रखती थी।
खाने पर साधारण पारिवारिक वार्तालाप भी कितना सुखदायक होता है।
"तो रवि बेटा होली का क्या कार्यक्रम है ," सासुजी ने पूछा।
“ अरे भाई हमें तो लगा था कि कार्यक्रम पहले से ही निश्चित हो चूका है ," ससुरजी जोड़ा लगाया।
“ डैडी, मम्मी को यह नहीं पता कि कौन किस तरफ पहले जा रहा है ," रवि ने अपने पिता को समझाया।
"मम्मी मैं और शालू पहले उसके मायके जायेंगें फिर हफ्ते बाद वहाँ से कम्मो, प्रताप और रज्जो को लेकर हफ्ते के लिए यहाँ वापस आयेंगें। शायद शालू के पापा और मम्मी भी एक दो दिनों के लिए आ जाएँ," रवि ने विस्तार से समझाया।
"रज्जो दीदी आ रहीं हैं ?,' बबलू की खुशी छुपाये नहीं छुप पा रही थी।
मुझे पता था कि रजनी मेरी छोटी बहिन और बबलू एक दुसरे को ईमेल, टेक्स्ट, फेस-टाइम , स्काइप करते रहते हैं।
"अच्छा जी मेरे देवर को मेरी बहिन के आने से इतनी खुशी क्यों हो रही है ? क्या मेरे देवर जी का अपनी भाभी से मन भर गया ?" मैंने हँसते हुए बबलू को चिड़ाया।
"अरे बेटे को लगता है कि उसकी भाभी को, जिसकी बबलू पूजा करता है, तो बड़े भैया ने हथिया लिया वो कम से कम भाभी की बहिन को तो पकड़ ले," मम्मी ने भी मेरा साथ दिया।
बबलू का चेहरा शर्म से लाल हो गया।
"बबलू , यार तुम्हारे बड़े भाई होने के नाते मेरी तुम्हे इज़ाज़त है जब तुम चाहो चाहो अपनी भाभी को पकड़ सकते हो ," रवि ने भी मेरे बेचारे देवर की टांग खींची।
"आप सब लोग तो। ….," शर्म से लाल बबलू हँसते हुए परिवार पर झल्लाया।
"मेरे देवर को क्यों छेड़ रहे हैं आप सब। मेरे देवर का तो प्राकर्तिक हक़ है अपनी भाभी पर। उसे किसी से भी पूछने की ज़रुरत नहीं है ," मेरे कहने मात्र से बबलू के चेहरे पर मुस्कान छा गयी और उसके चौड़े कंधे और भी चौड़े हो गए।
"भई मैं तो शालू बेटी से इत्तेफ़ाक़ करता हूँ," ससुरजी ने मेरा साथ दिया, “बबलू मेरे और मेरी भाभी के बीच में कोई भी नहीं आ सकता था। "
"आ सकता था , अभी भी कोई नहीं आ सकता है ," सासु जी ने जोड़ा।
“ बिलकुल ठीक है , बबलू मियां आपकी भाभी और आपके बीच का मामला बिलकुल आप दोनों के बीच है ," रवि ने भी मौके की नज़ाकत समझ कर अपने शरमाते भाई को प्रोत्साहित किया।
"जीजू ज़रूर आयेंगें ना भैया," नीलू चहक कर बोली।
"क्यों नन्ही ननंद जी तुम्हे क्या मिर्च लग गयी मेरे भैया के आने से या ना आने से ," मैंने नीलू की आँखों में झांक कर तीर मारा।
"बस मैं … ऐसा है कि अं .......... कि मैं जीजू से …… ,” बेचारी के ज़बान ने काम ही करना बंद कर दिया।
"अरे शालू, होली पर जीजू का साथ ना हो तो होली कैसी ? रवि और शालू तुम लोग मेरे दामाद जी को लेकर ज़रूर आना। होली पर साली को जीजू और सासु माँ को भी दामाद का साथ तो ज़रूर मिलना चाहिए," सासुजी ने मेरी नीलू के खींचाई की रेड़ मार दी।
"नीलू रानी आपके जीजू ज़रूर आयेंगें ," मैंने भी आत्मसंपर्पण कर दिया।
नीलू के चेहरे पर मानों हज़ार वॉट के बल्ब जल उठे।
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२३
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ससुरजी ने पूछा , " क्या भाभी और भैया भी आ रहें हैं ?"
सासूजी की बड़ी बहिन भी ससुरजी के बड़े भाई से बिहाई थीं ठीक मेरे और कम्मो की तरह। फर्क सिर्फ इतना है कि दोनों सगी बहनें हैं ।
"राजू, अपनी भाभी का इंतज़ार है कि अपनी साली का ?" सासु जी ने बाण छोड़ा।
“भाभी या साली….. !! बस भाभी आ जाएँ। आप हमें क्यों कह रही हो तुम्हे भी तो अपने जेठ से ज़्यादा जीजू के आने की कितनी बेसब्री है ," ससुरजी ने भी मौका नहीं छोड़ा।
सासुजी का सुंदर चेहरा शर्म से लाल हो गया।
सासू जी ने एक और बाण छोड़ा , "आप भी बहुत चालक हैं। पत्नी की बड़ी दीदी तो थोड़ी मुश्किल हाथ में आती पर आपने सरला दीदी को सिर्फ भाभी ही बना के रखा है। "
"विम्मो तुम भी तो कम नहीं हो। भैया तुम्हारी बड़ी बहिन के पति और छोटे भाई की पत्नी होने के लिहाज़ से तुम्हे छोटी बहन भी तो बना सकते थे पर तुम दोनों एक दुसरे से सिर्फ जीजा-साली जैसे पेश आते हो। " ससुरजी भी कम नहीं थे।
हम सब इस नोक-झोंक का खूब मज़ा ले रहे थे।
मुझे लगा की यह वास्तव में सहीं मौका है ," मम्मी आप इन्हें बताएं की होली पर जब यह मेरे मायके जायेंगें तो इन्हें कम्मो के नंदोई की तरह पेश आना चाहिए या भैया की तरह?''
मेरे इनका मुंह लाल हो गया, " पहले शालू तुम बोलो की पीहर में होली पर प्रताप तुम्हारे नंदोई होंगे या भैया?'
रवि ने सोचा की मैं लाजवाब हो जाऊँगी ," चाहो तो मम्मी से पूछ लीजिये। होली पर तो कम्मो के रिश्ते से भैया मेरे नंदोई होंगे। आप क्या कहतीं है मम्मी ?"
सासू माँ ने मुस्करा कर कहा, " रवि बेटा इस बात में बहु रानी सही है। होली पर कम्मो के तुम नंदोई हो जैसे प्रताप शालू के। होली पर तो नंदोई सलहज का रिश्ता ही सही है। "
" हाँ भाई होली पर तो नन्द का पति नंदोई हुआ। बाकि साल चाहे तुम और प्रताप, भैया बने रहो पर होली नंदोई का रिश्ता ही सही है।" डैडी ने भी मेरे दिल के तार बजा दिये। मैंने इठला कर अपनी जीत के मुस्कराहट उन पैर फेंक दी। और अपने ससुर जी की तरफ मोहिनी मुस्कान फेंकना भी नहीं भूली।
पूरे भोजन के दौरान इसी तरह का हांसी-मज़ाक चलता रहा। और हम सब एक के बाद सबके तीरों का निशाना बनते रहे।
ससुरजी ने शयनकक्ष की ओर जाते हुए रवि से कहा ," बेटा मैं कल तुम्हारी टेक-ओवर की मीटिंग सम्भाल लूँगा। तुम्हे आने की कोई ज़रुरत नहीं हैं। तुम चाहो तो शालू बिटिया के साथ अपने ससुराल के लिए खरीदारी कर लो। "
मेरी बांछे खिल गयी। खरीदारी से ज़यादा महत्वपूर्ण था कि हम अब सुबह तक चुदाई कर सकते हैं।
मैंने प्यार से ससुर जी को चूम कर शुभ रात्रि कहा,"शालू बिटिया नंदोई तो अभी दूर है लेकिन आज रवि को सोने नहीं देना," ससुरजी ने प्यार से मुझे चूमा और मेरे आश्चर्य-चकित चेहरे को देख कर हंस दिए।
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२४
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रवि ने शयन कक्ष में घुसते हे मेरे चीर्ण हरण करना शुरू कर दिया। मेरी साड़ी खींच कर दूर फैंक दी। मेरे ब्लाउज़ के बटन खोलने के बजाय उसे फाड़ कर मुझसे अलग फैंक दिया। मेरी ब्रा को तो एक क्षण भी नहीं लगा मुझसे बिछड़ने में।
मेरे साये के नाड़े की क्या हिम्मत थी कि वो मेरे स्वामी के पुरुषत्व के सामने टिक सके।
मेरी सफ़ेद कॉटन के अँगिया ही मेरा आखिरी अवरोध थी और उसको भी फाड़ कर फैंक दिया उन्होंने।
"आज मेरी खैर नहीं है, है ना?" मैंने वासना के अतिरेक से कांपती आवाज़ में बोला।
"आज मैं तुम्हारी चूत और गांड फाड़ दूंगा ," रवि ने दांत किचकिचाते हुए कहा।
मेरी चूत में मानो सैलाब आ गया। मैंने बेसब्री से रवि के दानवीय शरीर से उनका सफ़ेद कुरता पजामा खींचने की कोशिश में उतनी सफल नहीं हुई जितने रवि मेरे चीर्ण -हरण में हुए थे।
रवि ने खुद को नंग्न कर मेरे शरीर को अपने विशालकाय शरीर से धक लिया। मैं अपने पति के भीमकाय शरीर के नीचे मानों गायब हो गयी।
रवि ने मेरे चेहरे को हलके, गीले कसमसाते चुंबनो से भर दिया। उनके होंठ मेरी गर्दन की कोमल संवेदन शील त्वचा को चिढ़ाते तरसाते मेरी भारी सांसों से फड़कते उरोज़ों के ऊपर आ कर उन्होंने मेरे शरीर पर कयामत धा दी।
मेरे उरोज़ों को मसल और चूस चूस कर लाल कर दिया। मेरी सिकारियां अब रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं।
रवि मेरे पूरे शरीर को चूमते हुए मेरी गदराई भारी जांघों के बीच में पहुँच गए। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी घनी घुंघराली झांटों को फैला कर मेरी चूत के द्वार और भग-शिश्न को चूमना-चाटना शुरू कर दिया। मेरी सिस्कारियों में मेरी वासना में लिपटी चीखें भी मिल गयीं। रवि ने निर्ममता से मेरी सूखी गांड में अपनी तर्जनी धूंस दी उंगली और हथेली के जोड़ तक।
मैं बिलबिला कर चीख उठी, "हाय माँ , मैं मर गयी। कितने बेदर्द हो आप। अपने पत्नी की गांड फाड़ना चाहते हो ?"
" शालू ऊँगली से ही इतना चीखती हो अब जब तुम्हारे नंदोई अपना हाथी जैसा लंड तुम्हे गांड में ठूँसेंगें तो कितना चिल्लाओगी," उन्होंने ने खाने के समय की मेरी इठलाने का पूरा बदला लेने का इरादा बना लिया लगता था।
" मेरे राजा, मेरे स्वामी, आपकी आँखों में भी तो अपनी सलहज की चूत और गांड के विचार से अनोखी चमक है ," मैंने अपने दातों तले निचला होंठ दबा कर गांड में उपजे दर्द की चीख को दबाने की अनर्थक कोशिश की।
रवि ने मेरे भग्नासे को काट कर मेरी चीख को और बुलंद कर दिया।
रवि की तर्जनी ने मेरे मलाशय को पूरे तरह से तलाशा। रवि की जीभ और उंगली ने मेरे भग्नासे और गांड को तभी छोड़ा जब मैं चीख़्ती चिल्लाती झड़ गयी।
रवि ने मेरी गांड से निकली अपनी उंगली को चूस कर चटकारा भरते हुए अपने महाकाय लंड को मेरी फड़कती चूत के ऊपर स्थापित कर दिया।
रवि के विशाल मांसल कूल्हों की एक भयंकर ठक्कड़ से उनका आधा लंड मेरी चूत में समां गया। मेरे गले की चीत्कार रवि के बहरे कानों पे से कमल की पंखुड़ियों के ऊपर से पानी की तरह ढल कर गायब हो गयीं।
रवि ने मेरे दोनों चूचियों को वहशियों की तरह से मड़ोड़ कर एक दूसरा धक्का लगाया और मेरी चीख ने उनके विशाल लंड की कुछ और इंचों का स्वागत किया।
सीमा सिंह
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२५
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मैंने अपने दांतों से अपने होंठ को कस लिया। पर मेरी सुबकती चीत्कार उनके अगले धक्के से कमरे में गूँज उठी।
अब उनका पूरा विकराल अमानवीय लंड मेरी चूत में गड़ा हुआ था।
मेरी गुदाज़ बाँहों ने उनकी मर्दानी मांसल गर्दन को अपनी प्यार भरी गिरफ्त में जकड़ लिया।
रवि ने मेरी फड़कती नासिका को अपने मुंह में भर कर मेरी तड़पती चूत की भीषण चुदाई प्रारम्भ कर दी।
मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठीं।
रवि ने अपनी लार से मेरी फड़कती नाक को नहला दिया। उनके भारी भरकम विशाल मांसल पहलवानों जैसे सशक्त चूतड़ों की ताकत उनके महाकाय लंड को तीव्र गति और विध्वंसक शक्ति से मेरी चूत की संकरी कंदरा का मर्दन करने में सक्षम है। उन्होंने जैसे हज़ारों बार पहले किया था उसी प्रेम भरी बेदर्दी से मेरी चूत का लतमर्दन प्रारम्भ कर दिया।
मेरी सिस्कारियां और हल्की चीखें अजीब सी आवाज़ों से कमरे में गूँज रहीं थीं। मेरी चूत का दर्द शीघ्र ही मंद हो चला, पति देव के अमानवीय लंड के सौभाग्य के सामने दर्द की क्या बिसात ? मेरी गुदाज़ गोरी बाहें उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द जकड़ गयीं। मेरी चूत में रति रस की बाढ़ आ गयी।
रवि के लंड के मेरी चूत के आवागमन से उपजी अब फ़च - फ़च - फ़च - फ़च की निर्लज्ज अश्लील ध्वनी ने मेरी वासना से लिप्त सिस्कारियों के संगीत को और भी ऊंचा उठा दिया।
"रवी ई ईईईई ईईई आआह्ह्ह्ह्ह कितना मोटा लंड। … हाय मॉ तुम मेरी चूत फाड़ डालोगे। रवि मारो मेरी चूत और ज़ोर से मारो ," मैं मीठे दर्द भरी वासना की लहरों में डगमगा रही थी। रवि ने अपनी जीभ की नोक मेरी दोनों नासिकाओं में बारी-बारी से डाल कर उन्हें मेरी चूत की तरह चोद रहे थे।
हम दोनों अब कामाग्नि के ज्वर से गरम हो चले। इस चुदाई का इंतज़ार अब रवि की अधीरता का उद्योतक था। और उनकी अधीरता आदिपुरुष की भांति सम्भोग प्रेम की निष्ठुरता को और भी बढ़ावा देती है।
रवि का महाकाय लिंग मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ने का प्रयास कर रहा था। मेरी साँसे बड़ी मुश्किल से काबू में आ पा रहीं थी। रवि ने अपना खुला मुंह मेरे हाँफते मुंह के ऊपर कस कर रख कर अपनी जीभ से मेरे मुंह की बारीक तलाशी ले रहे थे। उनकी मीठी लार मेरे मुंह में भर रही थी।
"आअह र.… र.……र.……र..... रवी मैं झड़ने वाली हूँ," मैंने रवि के मुंह में फुसफुसाने की कोशिश की। उनका बालों से ढका सीना मेरे विशाल फड़कते उरोज़ों को मसल रहा था।
उनके लंड की रफ़्तार और भी तेज़ हो गयी। मेरी आँखे कामोन्माद के अतिरेक से आधी बंद हो गयीं। मेरी चूत में मानो आग जल उठी। मीठी आनन्ददायिक अग्नि। आदि समय से स्त्री और पुरुष इस अग्नि में स्वतः जलने के लिए हमेशा तत्पर रहे हैं।
मेरा रति रस रवि की बलशाली चुदाई से मेरी चूत से बाहर रिसने लगा।
मैं भरभरा के झड़ गयी। "आन्न्न्न्न्न्ह् ऊऊओ माँ ह्हन्न्न्न्न्न र्र्र्र्र्र्र वीईईईए ," मैं रवि के मुंह में चीखी जैसे ही मेरे कामोन्माद ने मेरे शरीर को जकड़ कर कमान की तरह मड़ोड़ने लगा।
मेरे पतिदेव ने मेरी चीखें और मेरे गुदाज़ बदन की तड़पन को अनदेखा करके मेरी चूत का अपने लंड से सटासट सटासट मर्दन करते रहे। मेरी चूत में उनके लंड के मंथन से फचक फचक फचक के अव्वाज़ेँ निकलने लगीं।
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२६
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मैं ना जाने कितनी बार झड़ गयी पर मेरे बलशाली पतिदेव मेरी चूत की धज्जियां उड़ाने के लिए मानों वचनबद्ध थे। मेरे चूचियों उनके बड़े मज़बूत हांथों में भिंच कर दर्द भी करती और उनके मर्दन की लालसा भी उपज रहीं थीं।
रवि ने मेरे हाँफते अधखुले मुंह के ऊपर अपने मुंह को कस कर दबा कर मुझे निरंतर आदिकालीन वहशीपन से चोदते रहे। मैं झड़ जाती और सुबक कर रवि के लंड की दासी बनने की गुहार लगाती ।
जब मैं थकने लगी और उनके झड़ने का कोई आस नहीं लग रही थी तो मैं वासना भरी आवाज़ में फुफुसाई , "रवि क्या होली पर अपनी सलहज को चोदने के विचार से अपनी पत्नी की चूत फाड़ने लग गए। स्वामी होली बहुत दूर………………… “
रवि ने अपने विशाल लंड से एक जानलेवा धक्का लगाया और मेरी बोलती बंद हो गयी और चीख उबल उठी ,"रानी, होली पर जब मैं तुम्हारी नन्द की चूत तो तभी मारूंगा जब तुम अपनी चूत में मेरे जीजा का लंड अंदर ले लोगी । "
मेरे दिल में जलतरंग बज उठी। रवि अपनी बहन और सलहज की चुदाई के विचार से अग्रस्त हो चले थे।
मैंने सुबकते हांफते हुए बुदबुदाया , " मैं तो अपने स्वामी के आनंद के लिए गली के कुत्ते का लंड भी अपनी चूत में ले लूंगीं। हाय थोड़ा धीरे चोदिये ना। ....... उउउन्न्न्न्न मेरी चूचियाँ मेरी छाती से उखाड़ने का इरादा है क्या आज ? "
रवि ने मेरी चुदाई की रफ़्तार और भी तेज़ कर दी थी। मेरी कामवासना हर सीमा को फलांग गयी , " चोदिये मुझे ज़ोर से उउन्न्न्न आअरर्र्र्र् रवि आप कहो तो मैं कुत्ते का ही नहीं गली के हर गधे, घोड़े का लंड भी अपनी चूत में ले लूंगीं। हाय मार डाला आपने। चोदिये और मुझे। "
मेरी चूत का मर्दन अब पहाड़ की चोटी बन चला था। रवि के हलक से गुर्राने की हल्की हल्की आवाज़ें उबलने लगीं थीं।
उनका महाकाय लंड पूरी ताकत से मेरे गर्भाशय को और भी अंदर धकेल रहा था। जब कामोन्मांद के आवेश में उबलती स्त्री के गर्भाशय के ऊपर मोटे लम्बे लंड की ठोकरें चुदाई के समय लगतीं है उसके चरम-आनंद की कोई सीमा नहीं रहती।
मैं लगातार भरभरा कर झड़ रही थी।
" हाय रवि , अब खोल दो अपने लंड मेरी चूत में। भर दो अपनी बीवी की चूत को अपने वीर्य से ," मेरे गर्भित होने की इच्छा सर उठाने लगी।
रवि ने मेरे दोनों उरोज़ों को और भी बेदर्दी से मसलते हुए अपने महा-लंड से मेरी चूत का लतमर्दन की लय को अचानक तोड़ कर अपना लगभग पूरा लंड चूत के द्वार तक निकल कर पूरे ताकत से एक बार में ही जड़ तक ठूंसने लगे। उनके इस नए चुदाई आक्रमण से मैं बिलबिला उठी। और फिर उन्होंने अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल कर मुझे कस कर पकड़ लिया। उनके मुंह मेरे खुले हाँफते मुंह से चिपक गया, मेरी गुदाज़ बाँहों ने उनकी गर्दन जकड़ ली। रवि के लंड से उबलते जनक्षम, उर्वर गरम वीर्य की बौछार जब मेरे गर्भाशय पर शुरू हुई तो मैं फिर से झड़ गयी। मैं काम-आनंद के अतिरेक से शिथिल हो गयी। रवि का लंड न जाने कब तक मेरी चूत के भीतर फड़क फड़क कर वीर्य के फव्वारे मारता रहा। अपने प्रेमी की विशाल शरीर के नीचे दबे, मैंने अपने शरीर को नीचे शिथिल छोड़ दिया। इस प्रेम के आनंद के उपसंहार का कोई भी साधारण विवरण संभावित नहीं है। इसे बस हृदय की तीव्र गति, सांसों के हड़बड़ाहट, मस्तिष्क और बुद्धि के पूरे समर्पण में ही स्पर्श कर सकते हैं।
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२७
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रवि बड़ी देर तक अपना थोड़ा सा ही शिथिल हुए वृहत लंड को मेरी रस से भरी चूत में बसाये हुए मेरे ऊपर पड़े रहे। उन्हें पता है की मुझे ज़बरदस्त चुदाई के बाद उनके भारी-भरकम शरीर के नीचे दबे रहना बहुत आनंददायक लगता है।
" सुनिए, रज्जो की शिकायत है। मम्मी ने आज जब फोन किया तो कहा की रज्जो आपसे बहुत नाराज़ है। " मैंने स्त्री नियम और अधिकार का पूरा इस्तमाल करने का निर्णय कर रखा था। आखिर अपने स्वामी से हां बुलवाने का चुदाई के ठीक बाद से और कौनसा अच्छा मौका हो सकता है।
" भाई मैंने अपनी इकलौती परियों जैसी सुंदर साली को कैसे नाराज़ कर दिया। मैं तो अपनी साली के लिए कुछ भी कर सकता हूँ ," रवि ने मेरे हँसते होंठो को दातों से चुभलाते हुए पूछा।
" अरे आप भूल गए जब हम शादी के बाद मेरे घर गए थे तो आपने रज्जो की खूब रगड़ाई की थी। उसको कितना मसला था पर काम अधूरा छोड़ दिया था, " मैंने उनके लंड की थिरकन अपनी चूत में महसूस की , " बस उसे लगा की आप अपनी साली को बहुत पसंद नहीं करते। वरना उसे बिना चोदे कैसे छोड़ दिया आपने ?" मैं वास्तव में सच बोल रही थी। रज्जो वाकई उनसे थोड़ी सी नाराज़ थी।
" शालू भाई, मैंने तो बड़ी कोशिश की। पर जब भी मुझे मौका मिलता तो मैं आगे बढ़ता पर मंजिल से पहुँचने से पहले कोई न कोई बाधा आ जाती। आखिर मैं अपनी साली को अपनी सासु माँ , बहन या जीजा के सामने तो नहीं चोद सकता। " मुझे अपने सीधे पति पर बड़ा प्यार आया।
"पहले तो मेरे पीहर में आपकी कोई बहन नहीं है। हाँ वहां आपकी सलहज है। देखिये, यदि आपकी सासु माँ या सलहज या जीजू आपको रज्जो को चोदते देख भी लेते तो आँखें बंद करके दूर चले जाते। आखिर छह महीनें हो गए हैं हमारी शादी को और रज्जो ने अभी तक अपने जीजू का लंड भी नहीं देखा। कितने शर्म की बात है यह ?" मैंने उलहना लगाने में की कसर नहीं छोड़ी।
मैंने आगे बात बड़ाई , "वैसे भी यदि आपकी सासु माँ यदि आपके पहलवानी लंड से अपनी छोटी बेटी को चुदते देख लेतीं तो शर्त लगतीं हूँ वो भी मुग्ध हो कर आपके पीछे पड़ जातीं। "
मैंने रवि के लंड की दूसरी ठरकन महसूस की अपनी चूत में।
"वाकई शालू, क्या सही में सासु माँ। ... मुझे तो विश्वास नहीं होता। तुम हमेशा की तरह मज़ाक में मिला कर बातें बोल रही हो ," रवि ने मेरे चुचूक मड़ोड़ दिए बेदर्दी से।
" उईईईईईई दर्द होता है। अरे सासु माँ के ऊपर दिल आ गया है तो उसकी बेटी को क्यों सता रहे हो। जब ससुराल जाओ तो उन्हें पकड़ कर उन्हीं को सीधे सीधे बता देना। मुझे नहीं लगता की वो अपने इकलौते दामाद को ना कर सकतीं हैं। " मैंने रवि को प्यार से चूम कर कहा।
"शालू होली में यदि कम्मो मेरी सलहज बन गयी तो मैं सासु माँ को ज़रूर अकेला ढूंढ कर कुछ प्रयास करूंगा। तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा ? " रवि के दिल की बात का मुझे पूरा आश्वासन हो चला था।
" मैं कौन होती हूँ साली और जीजू या सास और दामाद के बीच में आने वाली ?" मैंने अपने नरम नन्हे हाथों से रवि की पीठ सहलाते हुए अपने नाखूनों से हलके से खरोंच दिया।
"और सुनिये आप जय चाचू की बेटी को भी नहीं भूलना। रूचि ठीक नीलू की उम्र की हो गयी है। और होली पे आपके आने का बेसब्री से इन्तिज़ार कर रही है ," मैंने रवि की मोहक नासिका की नोक को चूमते हुए बात आगे बड़ाई।
" शालू मैं न जाने तुम्हे कितना प्यार करता हूँ। कभी कभी तो मेरे सांस रुक जाती है तुम्हे हँसते देख कर ," रवि ने प्यार से मुझे होंठों पर चूमते हुए भावुक अंदाज़ में कहा।
" मेरे हृदय में भी आपके लिए प्यार का अथाह सागर है," मैं भी भावुक हो चली.
हम दोनों कुछ देर तक एक दुसरे के लिए असीमित प्रेम के आवेश के अतिरेक से निःशब्द हो गए।
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२८
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जब इतना प्यार हो और शारीरिक सानिध्य हो तो वासना प्रेम का दूसरा रूप बन जाती है।
रवि के चुम्मनों और उनके मेरे चूचियों की खिलवाड़ में धीरे धीरे तीव्रता आने लगी। उनका लंड मेरी चूत में अब तनतना कर शीघ्र आने वाले हमले का आगाह करने लगा।
मैंने अचानक अपने दिमाग एक अनोखे विचार से प्रभावित हो कर उनसे पूछा , " सुनिए, एक बात बताइये हमें। हमें एक उलझन है आप मदद करेंगें हमारी?"
"शालू तुम तो हमारी जान हो मरना भी पड़ा तो पीछे नहीं हटेंगें , " रवि ने मेरे घुंडियों को मसलते हुए कहा।
"हाय राम कैसी बातें करने लग जाते हैं आप। मरे हमारे दुश्मन। आपको तो मैं अपनी ज़िंदगी भी दे दूंगीं। सुनिए, मैं यह सोच रही थी की नीलू अपने जीजू के आने से बहुत बेसब्र है। लेकिन बेचारी को थोड़ा सा भी अनुभव नहीं है। मैंने तो उसे दावत दी थी की अपने भाई से चुदवा कर अपने जीजू के लिए तैयार हो जाये पर वो बहुत शर्माती है अपने बड़े भाई से। " मैंने अपना राम-बाण दाग दिया।
"अरे शालू नीलू तो अभी बच्ची है। और बड़ा भाई कैसे अपनी नन्ही बहन को चोद सकता है ?" रवि के होंठ चाहे कुछ भी कह रहें हों पर उनका लंड मेरी चूत में ज़ोर से फड़क उठा।
" आप भी ना कितने पुराने विचारों के हैं। आपकी नन्ही बहन यदि जीजू से चुद सकती है या बाहर के किसी और से तो क्या बहतर नहीं है कि अपने घर में अपने सुंदर मर्दाने भाई से वो रतिक्रिया के गुर सीखे ?" मैंने उनके मोटे भीमकाय लंड को अपनी चूत की दीवारों में भींचने का अनर्थक प्रयास किया।
" वैसे भी नीलू आपसे बहुत शर्माती है अभी। लेकिन यह बताईये क्या आपको बहुत एतराज़ होगा यदि मैं उसको हमारे कमरे में छुपा कर उसे हम दोनों की चुदाई देखने दूँ? उसे नहीं बताऊंगीं कि आपको उपस्थिति का आभास है। और आप भी उसे कभी भी नहीं बताइयेगा की मैंने आपको इस बात के लिए शामिल किया है ," मैंने रवि के खुले होंठों को चूम चूम कर अपनी नन्द की खातिर गिड़गिड़ाई।
" शालू मैं तो पहले ही हर बात मानने का वायदा कर चूका हूँ। जो तुम्हें ठीक लगे वो करो। " रवि ने मेरे उरोज़ों को निर्ममता से मसलते हुए कहा।
"हाय देखिये तो छोटी नन्द के सामने अपनी बीवी को चोदने के विचार से ही आपका लंड कितना थरथरा रहा है। जरा सोचिये की जब उसे असलियत में चोदने का समय आएगा तो इस बेचारे की तन्न्नाहट का तो कोई अंत ही नहीं होगा।" मैंने ताना मारा।
"शालू अब अपनी नन्द का किस्सा बंद करो ,” रवि ने गुर्रा कर अपना लंड बाहर निकला और एक भीषण धक्के में फिर से ठूंस दिया।
मैं बिलबिला उठी उनके भीमकाय लंड के आक्रमण से , " हाय माँ मैं मर गयी। ....... यह नन्द की चुदाई को सोच से मेरी चूत की कुटाई कितनी बेदर्दी से करतें हैं,"
मेरे हलक से निकलने वाले यह आखिरी समझने योग्य शब्द थे। जब उन्होंने मेरी चूत को प्रेम भरी निर्ममता शुरू किया तो बस मैं पहले बिलबिलायी , फिर सिस्कारियां मारने के अलावा कुछ भी नहीं बोल पायी।
रवि ने मेरे उरोज़ों को मसलते हुए मेरी चूत में दनादन अपना लंड अंदर-बाहर करने लगे।
शीघ्र ही मेरी गीली चूत पूरी तरह पानी छोड़ने लगी। उनके लंड के घर्षण से मेरी चूत में से फचक फचक की चुदाई की मनोहक आवाज़ें कमरे में गूँज उठी।
रवि ने मुझे तीन बार झड़ कर अपना लंड मेरी फड़कती चूत में से बाहर निकाल लिया। इस से पहले कि मैं कुछ बोल पाती रवि ने बेदर्दी से मुझे पट्ट लिटा दिया। फिर मेरे फूले फूले गुदाज़ चुत्तड़ों को हवा में उठा दिया। मैं अब मुंह बिस्तर पर और गांड हवा में उठाये उनके लंड के अपने दुसरे छेद के ऊपर के आक्रमण के लिए तैयार करी जा रही थी। रवि अब मेरी गांड का मलीदा बनाने के इच्छुक थे।
सीमा सिंह
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२९
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रवि मेरी गांड के आशिक हैं। मुझे भी चाहे शुरू में कितना भी दर्द हो अपनी गांड को उनके हाथ भर लम्बे खम्बे जैसे मोटे लंड के सामने समर्पित करने से पीछे नहीं हटती थी। और पीछे हटना चाहती भी तो उनके मर्दाने विशाल शक्तिशाली शरीर के सामने मेरी क्या बिसात चलती।
रवि ने मेरे दोनों गोर मुलायम नितिम्बों को चौड़ा कर मेरी फड़कती गांड के छेद के ऊपर अपने होंठो और जीभ से तारी हो गए। उन्हें मेरी गांड को तैयार करने की पूरी कला आती है। मैं अपनी गांड के ऊपर रवि के चुम्मन से सनसना उठी। रवि ने अपनी जीभ से मेरे नन्हे तंग मलाशय के द्वार को जब कुरेदा तो मेरे शरीर में मानों बिजली सी दौड़ उठी।
रवि जब मेरे भंगाकुर [ क्लिटोरिस ] को मसलते हुए मेरी धीरे धीरे फैलती गांड के छेद को अपनी जीभ की नोक से चोदने लगे तो मैं बिलकुल गनगना उठी।
" ऊओह भगवान…………… ..हां ऐसे ही रवि ………… ईईईईईई मेरी गांड चाटिये …………. उउन्न्न्न्न्न ……………,” मैं गांड चटाई के आनंद से अभिभूत हो गयी।
रवि ने मन लगा कर मेरी गांड की जिव्हा-चुदाई करते हुए मेरी चूत और भग-शिश्न को मसलते रहे। मैं बिना देर लगाये भरभरा कर झड़ गयी।
रवि मेरे साथ के लम्बे अरसे से सम्भोग के अनुभव से पता था यह सुनहरी मौका है। मेरी गांड उनकी चूमने चाटने से तैयार थी और मैं ताज़े चरम-अनद के प्रभाव से थोड़ी शिथिल। बस रवि के पास मौका था मेरे हज़ारों प्यार भरे तानों, उल्हानों के बदले में अपने लौहे के हथोड़े से जवाब देने की - सौ सोनार की एक लौहार की - मेरी तौबा बोलने वाली थी।
रवि ने अपना ने अपना मोटा हथियार मेरी गांड के फड़कते छेद के ऊपर सटा दिया। मैं अभी भी रतिरस के प्रभाव से उनींदी थी।
रवि ने अपने सेब जैसे मोटे सुपाड़े को को मेरे मलाशय के नन्हे दरवाज़े के ऊपर ताकत से दबाया। कुछ देर तक तो कुछ नहीं हुआ। फिर मेरी निगोड़ी गांड मुंह बा कर उनके लंड के दवाब से खुलने लगी। अचानक उनका मोटा गांड-फाड़ू सुपाड़ा फचक से मेरी गांड में घुस गया।
" नहींईईई ………. उउउन्न्न्न्न्न्न्न …………. रवीईईईई ……….धीईईईईई ……………. रेएएएएएएएएएए ………….,” मैं इस गांड-चुदाई के शुरुआत से बहुत परिचित थी। पर फिर भी बिलबिला उठी गांड से उपजे दर्द से। उनका लंड मानों जैसे मेरी गांड के छेद को तार तार कर के फाड़ने वाला था।
रवि ने मेरी कांपती गुदाज़ कमर को कस कर जकड़ लिया फिर एक दमदार धक्का लगाया। मैं चीख उठी दर्द के मारे। पर रवि और मुझ पर रहम किये बिना तीन चार बलशाली धक्कों से अपना पूरा विकराल हाथ भर का बोतल जैसा मोटा लंड जड़ तक मेरे मलाशय में ठूंस दिया।
" हाय माँ मैं मर गयीईईईई उउउन्न्न्न्न्न्न नहीईईईई आअन्न्न्न्न्न्न्न्न ," मैं गांड फटने की पीड़ा से बिखल उठी। हमेशा की तरह मेरी आँखों में ना चाहते हुए भी आंसू भर गये। पर मुझे गर्व है अपने पति पर की उन्होंने मेरे बिलखने चीखने और टसुए बहाने के ऊपर कुछ ध्यान भी नहीं दिया। बस उन्होंने अपना लंड , लगभग आधा , मेरी गांड से बहार निकाल कर एक ही ठोकर से फिर से जड़ तक ठूंस दिया।
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३०
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अब क्या देर थी, देर और रुकावट थी, रवि के लंड के लिए। अपनी पत्नी की गांड के समर्पण को स्वीकार कर उन्होंने उसका लतमर्दन प्रारम्भ कर दिया।
रवि ने मेरी गांड को बलशाली धक्कों से जब मारना शुरू किया तो मैं पूरी हिल उठी। हर धक्के से मेरा गुदाज़ बदन सर से चुत्तडों तक हिल उठता। रवि ने जब मेरी गांड में कई धक्के लगाने के बाद एक लय सी बना ली तो वो मेरे कांपते हुए शरीर के ऊपर थोड़ा सा झुक गए और अपने लम्बे मज़बूत बाज़ुओं को बड़ा कर मेरे दोनों फड़कते चूचियों के कोमल फलों को अपने विशाल हाथों में भर कर मसलना भी शुरू कर दिया।
मैं तो अब दो तरफा के कामवासना के आक्रमण से सिसक गयी।
रवि मेरी गांड की बेहिचक चुदाई हचक हचल के करने लगे। कई बार की तरह कुछ देर में मेरा दर्द ना जाने कहाँ गायब हो गया। मेरी चूत में फिर से रस की बाढ़ आ गयी।
" हाय माँ चोदो मेरी गांड रवीईईईई आआन्न्न्न्न्न भगवाआआआआआन ," मैं नादान गांड-चुदाई के आनंद के तलैया फिर से गोते लगाने लगी।
रवि मेरी चालाक योजनाओं के प्रभाव से बहुत उत्तेजित थे। आखिर होली पर उन्हें अपनी बड़ी छोटी बहन की चुदाई का पूरा अंदेश था। फिर सासु माँ के परिपक्व मातृत्व भरी सुंदरता की चाहत उन्होंने पहली बार शब्दों में ढाल दी थी।
मुझे अब पूरा भरोसा था की इस होली पर हमारे परिवार के प्रेम में एक और अध्याय खुलने वाला है।
मेरे योनि मार्ग के सुरंग में हलचल मच उठी। मेरी चूचियों की मसलन का दर्द गांड की चुदाई के दर्द के साथ मिल कल इतना आन्नददायी और मीठा हो चला था कि मैं कुछ ही देर में रति-निष्पति के द्वार पे दस्तक दे रही थी।
" रवीईईई मैं झड़ने आआन्न्न्न्न्न्न्न उउउन्न्न्न्न्न्न्न ," मैं भभक कर झड़ने लगी।
रवि ने बिना रुके और धीमे हुए मेरी गांड का मर्दन उसी निर्ममता से करते रहे जैसे वो शुरू हुए थे।
मेरी गांड चुदाई के मोहक सुगंध से कमरा की हवा मोहक हो गयी। मुझे पता था की रवि का लंड इस सुगंध से और भी तनतना जायेगा।
और ठीक ऐसा ही हुआ। रवि का लंड मानों एक इंच और मोटा लम्बा हो गया। मेरी गांड से अब अश्लील फच फच जैसी मनोहक आवाज़ें रवि और मेरी कामवासना को और भी उकसाने लगीं।
रवि ने घंटे भर मेरे गांड भीषण ताकत भरे धक्कों से मार मार कर मुझे अनगिनत बार झाड़ दिया। मैं अविरल चरम-आनंद की बाढ़ से शिथिल होने लगी। अब मैं मुश्किल से अपनी गांड हवा में उठा पा रही थी। रवि ने मेरी कामोन्माद के अतिरेक से उपजी दुर्बलता को समझ लिया और अपनी चुदाई की रफ़्तार और भी बड़ा दी। रवि ने एक भयंकर धक्के से अपना लंड मेरी गांड में ठूंस कर जब अपना गरम उर्वर वीर्य का फव्वारा छोड़ा तो मैं बिलबिला कर फिर से झड़ गयी।
मुझे ज्ञान नहीं कितनी बार उनके लंड ने मेरी गांड की दीवारों को अपनी गाढ़ी मलाई से नहलाया। मैं तो अपने प्रचंड चरमानंद की लड़ी से थक कर चूर-चूर हो चली थी।
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३१
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जब हम दोनों को कुछ होश आया तो मुझे पता चला कि मेरी गांड की चुदाई के रस से सने मेरे चूतड़ों को रवि प्यार दुलार से चाट चूम कर साफ़ कर रहे थे। उन्होंने मेरी मलाशय के ढीले ताज़े चुदे मुंह बाये द्वार को भी प्यार से चूमा और जीभ से कुरेदा।
मैंने भी हमेशा की तरह उनके अपनी गांड से निकले मेरे रस और उनके वीर्य से लिसे लंड को बिना हिचक चूस कर उसका सारा मज़ेदार स्वादभरा रस सटक गयी।
रवि ने मेरे कान में फुफुसया , " शालू जानेमन, आज तो तुम्हारा शरबत पीने का बहुत मन कर रहा है। पिलाओगी क्या। "
रवि और मैं इस अनोखे [ कुछ लोगों के लिए शायद विकृति ] आनंददायी कामुक क्रिया को कई बार करते हैं। हमारी इच्छा कई बार करने के बाद भी शांत नहीं हुई।
" मेरा तो सुब कुछ आपका है। जो आपकी इच्छा वो ही मेरी इच्छा है ," मैने आँख मटका कर रवि को प्यार से सहलाया।
रवि ने मुझे बाँहों में उठा कर शयनगृह से लगे स्नानगृह में ले चले।
मैंने अपनी टाँगे फैला कर अपनी चूत आगे बड़ा दी। कई बार के अभ्यास से उपजी कार्यकुशलता दिखाते हुए मैंने अपने खारे सुनहरे शर्बत की धार को काबू में रखा। रवि का मुंह भरने के बाद मैंने ज़ोर लगा कर उसे रोक लिया।
रवि ने मेरी सुनहरी खारी सुगन्धित सौगात को नदीदेपन से निगल कर फिर तैयार हो गए। मैंने भी अपने प्यारे पति के प्रतीक्षित मुंह को कई बार भर दिया और हर बार उन्होंने मेरे उपहार को उत्सुकता से स्वीकार कर सटक लिया।
अब मेरी बारी थी उनके उतने ही, मेरे लिए मीठा पर वास्तव में, तीखा खारा सुनहरे शरबत का प्रसाद लेने की।
उनके पास लंड है और मुझे उस से बहुत आसानी हो जाती है। मैंने पहला मुंह भर कर उनका शर्बत सटका तो मेरी चूत गीली हो गयी। उन्होंने भी दक्षता दिखाते हुए अपनी धार को काबू में रखा। मैंने जी भर कर उनके सुनहरे शर्बत तो किसी लज़ीज़ मदिरा की तरह घूंट गयी।
हमेशा की तरह इस क्रिया के समाप्त होते होते उनका लंड तनतना के खड़ा हो गया था। उस रात रवि ने, बिना जाने कि उनके पिताजी और मेरे ससुरजी ने मुझे उनसे सारी रात चुदने का सुझाव दिया था ,वाकई सारी रात मुझे चोद -चोद कर सोने नहीं दिया। जब हम देर रात बाद सोये तो मेरी चूत और गांड की तो तौबा ही बोल चुकी थी। मेरे दोनों चुदाई की सुरंगें उनकी घनघोर चुदाई से चरमरा गयीं थीं। मेरे दोनों छेदों में बहुत दर्द था - बड़ा मीठा बहुत चाहत भरा दर्द। ऐसा दर्द जो हर स्त्री के सौभाग्य में नहीं होता।
जब मैं सुबह देर से उठी तो वाकई मेरी चाल थोड़ी ख़राब थी। थोड़ी टांगें चौड़ानी पड़ रही थी।
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३२
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ना जाने दोनों स्त्रियों और मर्दों को भीषण चुदाई के बाद ज़ोरों से पेशाब क्यों आता है ! मैंने अपने उनके सुंदर चहरे को गहरी नींद में सोते बड़ी देर तक सराहा। उनका महाकाय लण्ड गहरी नींद में पूरा तना हुआ था। मेरी लार बड़ी मुश्किल से टपकने से रुक पायी।
फिर अपने मूत्राशय के बढ़ते दवाब का अंदर करते हुए गुसलखाने में जा कर ज़ोर की छरछरहाती बौछार से अपने मूत्राशय को खाली करने लगी। मेरे वो यदि मेरे पास होते तो मेरा सुनहरी शर्बत ऐसे बर्बाद नहीं होने देते।
फिर ना जाने क्यों मुझे सुबह की बेला की सौंधी सुगंध और ठंडी बयार अनुभव करने की तीव्र ईच्छा होने लगी। मैं दबे पाँव एक हल्का सा सिल्क का साया [ गाउन ] पहन कर अपने नंगे शरीर को नाम-मात्र के लिए ढक हमारे शयन-कक्ष से लगे बगीचे की और धीरे से निकल गयी। मैंने हलके से दरवाज़ा बंद किया जिस से उनकी आँख न खुल जाये। मेरा पूरा इरादा था कि जब वो उठे तो उनका हाथ भर लम्बा और कोहनी से मोटा लण्ड मेरे हाथ और मुँह में हो।
मैं बेढब चौड़ी टांगों वाली चाल से धीमे धीमे बाग़ से लगे गलियारे में दौलती पूरव की ओर पहुँच कर मंत्रमुग्ध सुबह के बेला का आनंद लेने लगी।
अचानक दो मज़बूत हाथों ने मुझे पीछे से घेर लिया। मुझे थोड़ी से चौकाहत हुई पर शीघ्र ही मैं थोड़ी से मटकाहत के साथ पीछे हो कर उन बलशाली बाँहों के स्वामी शरीर के ऊपर धलक गयी।
" हमारी प्यारी बहु-बिटिया किस विचार में खोयी हुए है ? ," मेरे ससुरजी की मर्दानी भारी प्यारी आवाज़ मेरे कानों में गूँज उठी, " लगता है मेरी प्यारी बहु के पैरों में कुच्छ कांटा चुभ गया है। तभी तो बेचारी मुश्किल से चल पा रही है। "
ससुरजी कल रात के मज़ाक को सुबह तक चालू रख रहे थे।
मैंने अपने हाथ उनके मेरे पेट के ऊपर उनके दोनों बंद हांथो के ऊपर रख कर कहा , " डैडी कोइ कांटा-वांटा नहीं चुभा। यह तो आपके बेटे हैं ना उनका कमाल है यह आपकी बहु की बेढंगी चाल करने के पीछे। "
" अरे यह बात है तो मैं उसकी खूब खबर लूंगा जब वो उठेगा ," ससुरजी की बाहें मेरे गोल थोड़ी सी उभरी कमर और पेट के ऊपर और भी कस गयीं।
" डैडी , इसमें उनका दोष नहीं है। दोष यदि किसीका दोष है तो, उनको जनम देने वाले बीज का है जिसकी वजह से घोड़े से भी विकराल लिंग का वरदान मिला है ," मैं भी और कस कर ससुरजी के बदन से चिपक गयी। ससुरजी भी कुर्ते पैजामे में थे। मेरे गुदाज़ चूतड़ उनकी जांघें सहला रहे थे। उनका भरा हुआ जांघों के बीच का उदंड हिस्सा मेरी पीठ में गढ़ रहा था।
" ओह, तो फिर ये तो मेरी गलती है।तो मेरी प्यारी बेटी मेरे लिए सज़ा देने का निर्णय बनायेगी ?" ससुरजी के हाथ धीरे धीरे मेरे पेट को सहलाते हुए ऊपर की ओर चलने लगे।
" आपकी सज़ा यह है कि आप अपने बहु को हमेशा ऐसे ही डैडी की तरह अपने से लिपटा कर रखेंगें," मैं इठला उठी , " मेरी मम्मी कहतीं हैं कि ऐसा भीमकाय पुरुष तो सिर्फ बहुत सौभाग्यशाली लड़कियों को ही मिलता है। इस तरह तो आप दोषी नहीं दानशील है डैडी। " मैं अब अपनी कमर हौले-हौले ससुरजी के तेज़ी से तनतनाते लिंग पर रगड़ रही थी।
ससुरजी ज़रूर मेरी कोमल पीठ के प्रयास से थोड़े प्रभावित होंगे , " बेटा तुम्हारी मम्मी बिलकुल ठीक कहतीं हैं। तो इस दानशील ससुर को क्या पुरस्कार मिलेगा। "
मैंने इठला कर ससुर जी के दोनों विशाल बलवान हाथों को अपने कोमल नन्हे हाथों से पकड़ कर धीरे धीरे ऊपर करने लगी और हलके से उन्हें अपने फड़कते उरोजों के ऊपर ले आयी। बिना एक क्षण की देर लगाये ससुरजी के हाथ मेरे उरोजों के ऊपर हलके से कस गए। मैं बड़ी मुश्किल से अपनी सिसकारी दबा पायी।
"डैडी, मेरी पीठ में इतना भारी क्या गढ़ रहा है ? क्या आप सारे घर की चाभियों का गुच्छा अपने सोने के कपड़ों में रखते हैं ?" मैंने और भी इठला कर बोली।
"बेटा खुद ही अपने हाथों से देख कर पता लगा लो कि क्या गढ़ रहा है तुम्हारी पीठ में ," ससुरजी के हाथों ने धीरे धीरे मेरे उरोजों को सहलाना आरम्भ कर दिया। मेरे दोनों चुचूक तन कर सख्त हो गए।
"डैडी, हमें पहले मम्मी से आज्ञा लेनी होगी की हमें आपकी उस जगह को अपने हाथों से जांच-पड़ताल करने के लिए," मैं अपने ससुरजी के शरीर से और भी चुपक गयी।
" चलिए तो आज ही अपनी मम्मी से पूछ लेना बेटी ," ससुरजी ने प्यार से मेरे सर को चूमा और मेरे कैसे मोठे लम्बे चूचुकों को अपनी हथेली के नीचे दबा कर मसल दिया। अब मेरी सिसकारी निकल ही पड़ी।
" डैडी, अब मैं चलती हूँ. यदि आपके बेटे जग गए और मैं उन्हें तैयार नहीं मिली तो वो बहुत उदास हो जाएंगें," मैंने ससुरजी के हाथों को और भी अपने स्तनों के ऊपर दबा दिया, " मम्मी भी तो आपका इन्तिज़ार कर रहीं होंगी?"
मेरे ससुरजी हंस कर बोले , " बेटे मैंने आने से पहले ही सुबह सवेरे की कसरत तुम्हारी मम्मी के साथ दो बार कर ली है। इसीलिए वो फिर से थक कर गहरी नींद हैं। मैं भी अब तैयार होता हूँ ऑफिस जाने। "
जब मेरे ससुरजी के हाथों ने मुझे मुक्त किया तो मुझे बिना वजह बुरा सा लगा। आखिर उनमे मैं अपने पापा को देखती हूँ ना।
" ठीक है डैडी, मैं भी आपके सुपुत्र की सुबह की सेवा के लिए जातीं हूँ ," मैंने मुड़ कर अपने ससुरजी के उभरी तोंद के ऊपर हाथ रगड़ कर उनके खुले कुर्ते से झांकते विशाल , बालों से भरे सीने को चूम लिया।
सीमा सिंह
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३४
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कमरे में पहुंची तो रवि चित्त कमर पे लेते थे और उनका महालण्ड उनकी घनी झांटों में से सीधा छत को छूने का प्रयास कर रहा था। मैंने अपना साया उतारा और हौले से बिस्तर पे चढ़ गयी। और फिर अपना थूक से भरा मुंह खोल कर उनके सब जैसे मोटे सुपाड़े को मुश्किल से अपने मुंह में गपक लिया। इतना मोटा था उनका सुपाड़ा कि मेरे मुंह के कोनें दर्द से चरमरा उठे। रवि की आँखें धीरे धीरे खुलीं और मेरे मुंह को अपने लण्ड में पा कर आनंद से फिर बंद हो गईं।
मैंने अपनी जीभ की नोक को उनके बड़े खुले पेशाब के छेद में घुसा दिया। मैं अपने रवि की आनंद भरी कराह से प्रस्संचित हो कर उनके लण्ड की मुंह-सेवा करने लगी। मैंने उनके लण्ड को चूसा , साथ साथ उनके सांड जैसे बड़े अंडकोष को सहलाते हुए मसल भी दिया। फिर मैंने उनकी जांघों को उठा कर रवि के घने बालों से ढकी गांड के छल्ले को जीभ से चुभला कुरेद कर उन्हें सिसकियाँ भरने के लिए मजबूर कर रही थी।
"शालू अब अपनी चूत टिका दो लण्ड के ऊपर ," रवि दांत भेंच आकर बोले।
अँधा क्या चाहे दो आँख या एक आँख वाला मूसल। मैं कूद कर अपनी गीली रस से भरी चूत को उनके भीमकाय लण्ड के ऊपर दबाने लगी। एक एक इंच करने उनके हाथ भर लम्बा बोतल से भी मोटा लण्ड मेरी चूत खोलता फैलता मेरे अंदर गायब होने लगा।
मैंने सुबह सुबह के मीठे ठंडी होले होले बहती रजनीगंधा से सुगन्धित हवा के जैसे रवि की लण्ड को धीमे धीमे चोदने लगी।
इस चुदाई से रवि का लण्ड घण्टों तक मेरी चूत चोद सकता था। पर मैं कहाँ उतनी देर तक उनका मूसल झेल पाती थी। रवि ने मेरे उछलते मचलते स्तनों को सहलाते हुए मुझे अपनी पसंद कि रफ्तार से अपनी चूत को उनके लण्ड से चोदने दिया। मैं मुघकिल से पांच मिनट बाद ही भरभरा कर झड़ उठी। पर मैंने आधे घंटे और रुक रुक कर रवि के लण्ड के ऊपर अपनी चूत पटकती रही और कई बार और झड़ गयी।
"अब आप पटवार सम्भालो ," मैंने फुसफुसा कर कहा।
रवि ने मुझे पकड़ कर बिस्तर पे पटक दिया और फिर शुरू हुई उनकी मनपसंद चुदाई। तेज़, ज़ोरदार, दनादन धक्कों के साथ स्तनों को मसलते मरोड़ते पर मेरे चरम-आनंद की लड़ी बिना टूटे निरंतर मेरे शरीर को तूफान के प्रहरों की तरह मुझे तड़पा रहीं थी।
जब उन्होंने अपने उर्वर वीर्य की बारिश की तो मैं एक और झड़ गयी। मैं थक कर चूर चूर हो गयी।
"शालू रानी , अब तो तुम्हार शर्बत की थैली पूरी भरी होगी ," हाय कितना प्यारा लगता है इन्हें मेरा सुनहरी शर्बत।
"सॉरी सुबह मैं जल्दी उठी तो इतनी ज़ोर से आ रहा था की रुका ही नहीं गया। पर थोड़ा बहुत तो होगा ज़रूर। पर आपका तो ज़रूर भरा हुआ है," मैं भी उनके गरम सुनहरी शर्बत की पूरी दीवानी थी।
वाकई उन्होंने इतना ताज़ा गरम गरम खारा पर मेरे लिए मीठा शर्बत पिलाया कि मेरा पेट भर गया। मैंने भी ज़ोर लगा कर कम से कम एक कप तो पिला ही दिया उन्हें।
फिर हमने बारी बारी से एक दूसरे को शरीर के दुसरे ज़रूरी विसर्जन करते हुए देखा। हमे एक दुसरे की उस महक से भी आनंद की उत्तेजना हो जाती है। मैंने हमेशा की तरह उन्हें अपनी जीभ से चाट कर साफ़ किया और उन्होंने भी मुझे। स्नानघर में उन्होंने मुहे एक बार और चोदा। हवा में उठा कर। मेरी चीखें निकल पड़ी। पर आनंद से भरी चीखें।
आखिर नहा धो कर हमने देर वाला नाश्ता किया और खरी-दारी के लिए निकल पड़े।
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३५
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बाज़ार से वापस आये तो गर्मी के चलते फिरते पसीने से भीग गयी थे हम। उन्होंने कपडे उतार कर थोड़ी देर सोने का इरादा बना लिया। मैंने नहाने से पहले सोचा कि सासूमाँ को खरीदारी दिखा दूँ।
मैं उनको हलकी नींद की भारी भारी साँसे भरते छोड़ के मम्मी की कमरे की ओर चल पड़ी। साड़ी खरीदारी उनके बिस्तर पे पटक कर थोड़ा ज़ोर से बोली , 'मम्मी मम्मी। "
"यहाँ हूँ टब में ,"स्नानघर से मम्मी की आवाज़ आयी।
मैं झट से अपने सास -ससुर के कमरे से सलग्न स्नानघर से घुस गयी। पानी और झागों से भरे टब में सासूमाँ आराम से लेते किताब पढ़ रहीं थीं।
"मम्मी मैंने सोचा की नहाने से पहले आपको खरीदारी की चीज़ें दिखा दूँ," अचानक मुझे अपने ब्लाऊज़ के कांगें मेरे पसीने से तरबतर महसूस हुईं।
"तो चल बेटी यहाँ ही नहा ले और मुझे विस्तार से बता की क्या क्या ख़रीदा मेरे समधन के परिवार के लिए ,"यदि मम्मी ने अपनी बहू को अपने साथ नहाने के निमंत्रण को थोड़ा सा या कुछ भी अजीब महसूस किया तो उनकी आवाज़ में ज़रा सा भी संदेह नहीं था। मानों यह तो रोज़ मर्रा की बात थी।
"मम्मी मैं पसीने से तरबतर हूँ। आप बेहोश तो नहीं हो जाएँगी ,"मैंने भी मम्मी के सुझाव को साधारण तरह से लिया । पर मेरे पेट में खलबली मची थी और मेरे दिल के जलतरंग बज रही थी। मैं ऐसा ही तो सानिध्य अपनी ससुराल में बनाना चाह रही थी।
जैसे जैसी मैंने अपने कपडे उतारने लगी मम्मी की प्यार भरी निगाहें मेरे बदन को देख रहीं थीं। मैंने भी मम्मी को ध्यान से देखा।
मेरी सासू माँ का बदन ठीक मेरी प्यारी जन्मदात्री मम्मी के जैसा था।
गोरा गोल सुंदर चेहरा तरह नैसर्गिक सुंदर नासिका जिसे कई पुरुष घूरते रह जाते बिना सोचे। गोल गोल कंधे और भारी भरी बाहें। बयालीस या चवालीस [४२-४४] की छाती पर ढल्के ढल्के अत्यन्त भारी भारी ईई [डबल ई ] के विशाल स्तन। उनकी भरी दो तहों से सजी चौतीस या पैंतीस इंचों की कमर फिर उनके तूफानी सैंतालिस या अड़तालीस [४७-४८ ] के विशाल नितम्ब , यह सब साढ़े पांच फुट और पिचहत्तर [७५] किलो के प्रभाव से रेत - घड़ी जैसे अकार का था.
"अरे तेरे जैसे सुंदर बेटी के पसीने की सुगंध तो मोहक होती है। मैं बेहोश हुई तो तेरे सुंदरता की बिजली से होऊंगीं ,"मम्मी मुझे जगा दिया। तब तक मैं सिर्फ कच्छी और कंचुकी [ब्रा] थी।
"अब आएगी भी या मैं उतारूँ उठ कर ,"मम्मी भर्रायी आवाज़ में कहा।
मुझे लगा कि सिर्फ मैं ही नहीं पर वो भी मेरे मेरी मम्मी के दिए सौंदर्य से प्रभावित हो गईं थीं। मैंने इठला कर कहा टब के पास खड़े हो कर कहा ," आप ही उतरिये इन पसीने से भीगीं चीज़ों को मम्मी।
मम्मी टब में कड़ी हो गईं और उनका पानी से भीगा बदन देख आकर मेरी चूर में सैलाब उठ चला।
मम्मी ने हर स्त्री की प्राकर्तिक दक्षता दिखाए हुए मेरी ब्रा एक क्षण में उतार दी। फिर उन्होंने मेरी कच्छी नीचे खींची और मैंने बारी बारी से टांग टब के किनारे रख कर उन्हें अपनी कच्छी उतारने में मदद की।
"चल मेरे पास आ. देखूं तो कितन पसीना आया तुझे ,"मम्मी की अनोखी में चमक थी।
मैंने भी नादान बच्ची की तरह अपनी बाहें ऊपर उठा कर कहा ,"देखिये मेरी बगलें पूरी पसीने से तरबतर हैं। "
मम्मी ने मुझे अपने पास खींच कर मेरी बगलों को प्यार से चुम कर कहा ," यह बेटी का पसीना तो माँ के लिए इत्र की सुगंध जैसा है। "
मम्मी की इच्छा तो कुछ और भी करने की थी पर शायद उन्हें लगा की मैं डर ना जाऊं।
"रवि क्या कर रहा है? कहीं अपनी सुंदर बिहाता के वियोग में मचल ना रहा हो ?" मम्मी ने मेरे गालों को चूमता हुए पूछा।
मैंने मौका देखा कर मामी और मेरे बीच होने वाले सानिध्य को और भी आसान बनाने का प्रयास करते हुए कहा ," मम्मी कल साड़ी रात खुद नहीं सोये और मुझे भी नहीं सोने दिया। सुबह दुबारा शुरू हो गए। अब थोड़ी थकन महसूस हुई होगी तभी सो गएँ हैं," मैंने भी अपनी बाहें मम्मी के बदन के ऊपर दाल दीं।
"बिलकुल तेरे डैडी की तरह है मेरा बेटा। उन्होंने भी देर रात तक जगाया और सुबह काम पे जाने से पहले दो बार रगड़ा। मैं तो बिकुल थक गयी थी ,"मम्मी ने भी निसंकोच जो मुझे डैडी ने सुबह बताया था उसको दोहराया।
"मम्मी पर यदि हमारे वो इतना परेशान न करें तो हमें ही परेशानी होगी ," मेरे पसीने से भीगे स्तन मम्मी के पानी से भीगे स्तनों से रगड़ रहे थे।
" तू बहुत बुद्धिमान है बेटी। सही कह रही है। यदि स्त्री का जीवन साथी उसके शरीर की चाहत से दीवाना हो उसे परेशान ना करे तो उसे दुःख ही होगा आराम नहीं। आ जा अब टब में मैं तेरे कंधे मालिश कर देतीं हूँ। सारे थकन कन्धों से ही शुरू होती है ,"मम्मी ने मेरा हाथ पकड़ कर वृहत टब में मुझे खींच लिया। मेरे ससुराल और पीहर के स्नानघर के टब विशाल हैं। तीन चार शरीरों के लिए भी काफी बड़े हैं।
मैं मम्मी के आगे उनकी खुली टांगों के बीच में बैठ गयी।
मम्मी ने जैतून के तेल हाथों पे रगड़ कर मेरे कन्धों की मालिश करने लगीं। मेरी कमर उनके विशाल स्तनों को दबा रही थी। मेरे नितम्ब उनकी घनी झांटों की मीठी खुजलाहट से आनन्दित हो रहे थे।
मैंने और भी अपनी कमर को अपनी सास की पहाड़ों जैसी चूचियों के ऊपर दबा दिया।
मैं मम्मी के हाथों के जादू से बिलकुल ढीली हो गयी। मेरी आँखें आधी बंद हो गईं।
"शालू बेटी क्या थोड़े नीचे भी मालिश करूँ ?" मेरे आनंद से अधखुली आँखों और अधखुले मुंह मेरी स्थिति का विवरण दे रहे थे। मम्मी की आवाज़ मुझे दूर पहाड़ी आती महसूस हुई।
"हूँ माम्म्म्म ," मैं नींद में सोती सी बुदबुदाई।
मम्मी के जैतून तेल से लिसे हाथ साबुन के झागों के स्तर के नीचे तैरते मेरे उरोज़ो के ऊपर आ गए, "बेटी तेरे स्तनों का नाप है ?"
"मम्मी मेरी ब्रा तो अड़तीस डी डी [डबल डी ] है पर लगता है आपके बेटे ने इन्हे मसल मसल कर बड़ा कर दिया है," मैंने भी शर्म लिहाज़ छोड़ कर खुल कर कहा।
"फिक्र मत कर जब तक तेरे दो तीन बच्चे हो जाएंगें तब तक तेरे स्तन यदि मेरे जैसे पैंतालीस डबल ई ना हो जाएँ तो कहना ," मम्मी ने अपने हाथों से मेरे स्तनों को मालिश के नाम से मसलना प्रारम्भ कर दिया।
"मम्मी यदि मेरे स्तन आपके और मम्मी जैसे हो जाएँ तो मैं खुशनसीब समझूंगीं अपनेआप को। आप और मेरी मम्मी दुनिया में मेरे लिए सबसे सुंदर स्त्रियां हैं ," मैं सच कह रही थी।
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३६
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"बेटी माँ का सौंदर्य तेरी और कम्मो जैसी बेटियों के साथ बंधा होता है। जब उन्हें तुम दोनों जैसी इंद्र-परियों सी सुंदर और पुरुषों जितनी समर्थ बेटियां की माँ कहलाने का अघिकार मिल जाता है तो उनके जीवन का उदेश्य पूरा हो जाता है," मम्मी ने मेरे दोनों चूचुकों को अब बिना हिचक अंगूठे और ऊँगली के बीच दबा कर मसल दिया।
मैंने भी मम्मी की स्वंत्रता का फायदा उठाया, "मम्मी डैडी ने सिर्फ आगे की मारी या पीछे की भी तौबा बुलवा दी। "
"अरे शालू रात में तो दोनों की हालत ख़राब कर दी। जब तेरे डैडी मुझे घोड़ी बना कर मेरी मारते हैं तो दोनों छेदों को बदल बदल कर मुझे तो पागल बना देतें हैं। पर तू भी ज़िम्मेदार है मेरी सुबह की शामत की ," मम्मी ने बिना हिचक बोलीं। अब सिर्फ कुछ अश्लील शब्दों के आने की देर थी और सास-बहू के बीच सब दीवारें गिरने वालीं थीं।
"मम्मी मैंने क्या किया। डैडी आपके रूप के दीवाने है। इस में आपके रूप का दोष है मेरे नाम कहाँ से आ गया ,"मुझे आभास तो था कि मम्मी कहाँ जा रहीं थीं। पर भोलेपन में ही मेरी भलाई थी।
"बेटी सुबह दो बार मेरी तौबा बुला कर जब वो बाग़ में घूम कर वापस आये तो मैं थकी थकी सोने जा रही थी। उन्होंने ने बेदर्दी से मुझे खींच आकर मेरी चूत और गांड का मलीदा बना दिया। जब मैंने पूछा तो बोले तेरी बहू मुझे मिल गयी और उसने ये हाल कर दिया मेरे लण्ड का। जो शिकायत करनी है उस से कर जा कर। तभी मैं तुझ से शिकायत कर रहीं हूँ।"अब मम्मी ने आखिरी दीवार भी गिरा दी।
"हाय मम्मी जब डैडी ने मुझे पीछे से आलिंगन में बाँधा तो उनका घोड़े जैसा मूसल मेरी पीठ में गढ़ रहा था। मैं तो पागल हो गयी, इतना बड़ा लगा मुझे ," मैं भी अब खुल कर मैदान में आ गयी।
"है ही घोड़े जैसा शालू बेटी। मैंने रवि का तो नहीं देखा कई सालों से पर जब उसे नहलाती थी तो तब भी उसका आकार बता रहा था की बाप की टक्कर लेगा बड़ा होके ," मम्मी ने अब मेरे स्तनों को मर्दों की तरह दबाना मसलना शुरू कर दिया था।
मैं सिसक उठी और बोली ,"हाय मम्मी धीरे धीरे। आपके बेटे ने साड़ी रात मसला है इन्हें। शायद एक दिन हम दोनों बाप-बेटे के लण्ड को आमने सामने नाप सकें, नहीं मम्मी?"
मम्मी ने मेरे चूचुकों को और भी ज़ोर से मरोड़ा ,"यह तो तेरे सुंदर चूचियों का कसूर है मेरा या मेरे बेटे का नहीं। तू सच में ऐसी स्थिति से शर्माएगी या घबरायेगी नहीं ?"
"मम्मी यदि आप मेरे साथ हो तो मैं क्यों शर्माऊंगीं या घबराऊंगीं। " मैंने सिसकते हुए कहा। मेरे नितम्ब अब स्वतः मटकने लगे।
अब सासू माँ और मेरे बीच साड़ी दीवारें गिर गईं।
मम्मी हाथ मेरी खुली टांगों के बीच ले गईं और शीघ्र स्त्री की प्राकर्तिक दीक्षता से मेरी चूत के भगोष्ठों को फैला कर मेरे दाने को ढूंढ लिया। मैं हलकी सी चीख भरी सिसकारी मार कर फुसफुसाई ,"हाँ मम्मी वहीँ हैं उन्न्नन्न। "
मम्मी को सिर्फ नाममात्र का इशारा चाहिए था। उन्होंने मेरी चूत को अपनी दक्ष उँगलियों के नृत्य से पागल कर दिया। एक हाथ से मेरे स्तनों को और दुसरे हाथ से मेरी चूत को जो तरसाया मम्मी ने वो मुझे आज तक याद है।
मैं ना जाने कितनी बार झड़ी पर मम्मी मुझे एक के बाद दूसरी ऊंचाईं पर फिर से पहाड़ धकेल देतीं।
मैं सिसक सुबक कर झड़ती रही। आखिर में मेरा भग-शिश्न इतना संवेदनशील हो गया की मम्मी की उँगलियाँ दर्दीली हो चलीं। मुझे मम्मी को कुछ कहना नहीं पड़ा। दो स्त्रियों के प्रेम एक दूरसंवेदन या टेलीपैथी होती है जिस से विचार भर की काफी होतें है। शब्दों की कोई ज़रुरत नहीं होती।
"मम्मी अब मेरी बारी आपकी मालिश करने की ,"मैंने पीछे मुड़ कर मम्मी के होंठों को चुम लिया बिना शर्म और डर के।
"बेटी तूने कसी साथ किया था पहली बार ,"मम्मी मुंह को चूमते हुए पूछा।
"अपनी मम्मी साथ। और आपने? ,"मैंने बिना हिचे सच बोला।
"पहली बार अपनी बड़ी बहन सरिता दीदी के साथ। लेकिन सबसे अधिक बार अपनी मम्मी और सरला दीदी के साथ ,"मम्मी ने साथ जगह बदल ली।
अब मेरी बारी थी मम्मी की 'मालिश ' की। मैंने बिना किसी नाटक के सीधे सीधे मम्मी के पहाड़ों जैसे विशाल अपने वज़न से ढल्के भारी स्तनों को खूब ज़ोर से मसला दबाया और रगड़ा। जितनी ज़ोर से मैं मसलती मरोड़ती उतनी ही ऊँची सिसकारी उबलती मम्मी के मुंह से।
फिर मैंने मम्मी की खूब घनी घुंघराली झांटों से ढकी चूत की अपनी उँगलियों से सता तरसा चिढ़ा कर खूब मस्ती ली। मैंने मम्मी के मोटे लम्बे भाग-शिश्न को कई बार इतनी ज़ोर से मसला कि किसी साधारण स्त्री तो दर्द से चिल्ला उठती पर मम्मी वासना से सुबक कर और भी उत्तेजित हो जातीं।
एक घंटे बाद मम्मी ने चीख सी मारी और मेरे ऊपर धलक गईं। मैंने उनका हांफता मुंह अपनी ओर मोड़ कर उनके मुंह, जीभ और होंठो को बेसब्री से चूसने लगी। . आखिर में हम ने वाकई स्नान पूरा किया। लेकिन नहाते हुए मम्मी को पेशाब लगा। जब मम्मी कमोड की ओर मुड़ीं तो मैंने उनका हाथ पकड़ लिया। उन्होंने मेरी आँखों में झाँका और हम दोनों को कुछ भी बोलने की आवशयक्ता नहीं थी।
" बेटा देख जितना मन करे तू उतना ही पीना ," मम्मी की आवाज़ में वासनामयी भारीपन था।
" मम्मी तो अमृत की तरह है मेरे लिए। सारा का सारा पी जाऊँगी मई। आप देना तो शुरू कीजिये ," मैं भी अब अपनी सासुमाँ के साथ इस कुछों के लिए अप्राकृतिक पर हमारे लिए नैसर्गिक सानिध्य के विचार से मचल उठी थी।
मैंने मम्मी के झरझरा के गिरते गरम सुनहरी शर्बत को प्यार और लदिदेपन से गटक लिया। मम्मी ने भी अब मेरी ओर देखा और मैंने भी अपना सुनहरा शर्बत की धार मम्मी के मुंह में खोल दी।
मम्मी सुनहरा शेरबत पिलाने में माहिर थीं मेरी मम्मी की तरह। उन्होंने अपनी धार को रोक रोक कर मेरा खुला मुंह बार बार भर दिया। एक बूँद भी बर्बाद नहीं होने दी मैंने। आखिर अमृत की तरह होता हैं माँ का सुनहरी शर्बत।
फिर ,सासूमाँ की बारी थी मेरा शर्बत पीने की। मैंने भी सालों की दक्षता दिखाते हुए अपनी धार को रोक रोक कर मम्मी का मुंह कई बार भर दिया। मम्मी ने भी एक बूँद भी बर्बाद नहीं की।
जब हम तैयार होने लगे तो मम्मी ने मेरी पसीने से भीगी कच्छी और ब्रा अपने पास रख ली, "यह तो आज तेरे डैडी को सताने के लिए इस्तेमाल करूंगीं। "
"मम्मी मुझे आप कल बताना की डैडी की कैसी प्रतिकिर्या हुई ,"मैंने मम्मी के होंठों को खूब ज़ोर से चूमते हुए कहा। फिर मुझे अचानक एक ख्याल आया।
"मम्मी क्या आपके पास कम से कम एक दिन पहनी कच्छी है बिना धुली। मैं आपके बेटे के लिए इनाम की तरह इस्तेमाल करूंगीं उसे ,"मैंने हँसते हुए कहा।
मम्मी झट से गंदे कपड़ों के बीच अपनी कच्छी निकाल लायीं, "यह ले जा। बहुत निशान हैं इसमें। इसे मैंने तेरे डैडी से चुदने के बाद बदली नहीं।"
मैंने देखा कि आगे और पीछे की जगह बहुत गाढ़े गहरे भूरे पीले निशान थे। मैंने उन्हें सूंघ कर कहा ,"हाय मम्मी इसे सूंघ कर तो आपके बेटे बिलकुल पागल हो जायेंगें और शामत आयेगी मेरी। "
मम्मी ने मुझे आलिंगन में बाँध कर चूमा और कहा ,"तू मेरे घर में भगवान् के निर्देश से आयी है। तू वो करेगी जिस का सामर्थ्य मुझमे नहीं था। "
मैं भावुक हो कर मम्मी से चिपक गईं।
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सीमा सिंह
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३७
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जब मैं देर दोपहर के बाद अपने कमरे पहुंची तो रवि आलसपन से अपनी लण्ड को सहलाते किताब पढ़ रहे थे।
"यह किताब का कमल है या आपके लण्ड में खुजली हो रही है ?"मैंने हँसते हुए पूछा।
"किताब तो नॉन-फिक्शन है मेरा हाथ तो तुम्हारा काम कर रहा है ," उन्होंने मेरी ओर उस प्यार भरी दृष्टि से देखा जो मुझे माँ की तरह पिघला देती है।
मैं आ तो गईं हूँ अब आप को मेरा काम करने की कोई ज़रुरत नहीं है ,"मैंने मम्मी का दिया गाउन उतार फेंका।
"यह तुम्हारा गाउन तो नहीं है। तुमने कपडे कब बदले ?"रवि ने पूछा
मैंने उनका लण्ड का सुपाड़ा अपने मुंह में ले कर पहले तो चुभलाया फिर अपने और मम्मी के बीच में दोपहर की कहानी विस्तार से सुना दी।
रवि ने बार बार अपनी माँ के शरीर के हिस्सों के आकार , सुंदरता के बारे में कई बार पूछा। मैंने नाटकीय अंदाज़ में झुंझला कर कहा ,"देखों अगली बार मैं मम्मी नंगी तस्वीर ले कर आऊंगीं। देखो कम से काम उनकी कच्छी तो ले आई हूँ। "
मैंने झट से अपने गाउन से मम्मी की गन्दी पहनी कच्छी अपने उनको दे दी।
ओह्हो क्या उत्तेजित प्रभाव हुआ उन के ऊपर। उन्होंने अपनी मम्मी की कच्ची के आगे पीछे वाले निशानों को पहले कई बार सुंघा फिर पागलों की तरह मुंह में भर कर चूसा। मैं भी वासना की गर्मी से जल उठी अपने पति का मातृप्रेम देख कर। ईडिपस का प्यार तो हर बेटे में सुपत बैठा होता है। सिर्फ एक बहाने, उकसाव और प्रेरणा के इन्तिज़ार में।
"अजी यदि आपका अपनी बीवी से मन भर गया है तो आपकी माँ अपने कमरे में नंगी बिस्तर पे लेटीं हैं। अपना खड़ा लण्ड वहां क्यों नहीं ले जाते," मैंने अपने रवि को और भी चिढ़ाया। यह मेरी गलती थी।
रवि ने मुझे पेट के बल अपनी जांघों के ऊपर पटक कर जो मेरे चूतड़ों के ऊपर थप्पड़ों की बरसात शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। मैं पहले चीखी। फिर वास्तव में आंसूं बहा कर रोयी र्दद से। फिर सिसक सिसक कर झड़ते हुए पागल से हो गयी। फिर रवि ने मुझे बिस्तर पर पटक पर पट्ट पटक कर मेरे चूतड़ों को फैला कर मेरी सुखी गांड में अपना घोड़े जैसा लण्ड ठूंस दिया। मुझे जो दर्द हुआ सो हस अपर उनको भी बहुत दर्द हुआ होगा। मैं दर्द से बिलबिला कर चिल्लायी। वो दर्द और वासना के ज्वर से जलते हुए गुर्राए। और उनका लण्ड मेरी गांड की धज्जियाँ उड़ाने लगा। मैं दर्द से हाहाकार मचाती पहले आधे घंटे तो रोटी चिल्लाती रही फिर हमेशा की तरह सिसकारियाँ मारते जब झड़ने लगी तो उन्हें और भी ज़ोर से अपनी गांड मारने को उत्साहित करने लगी।
रवि कहाँ पीछे हटने वाले थे। उन्होंने अपनी पत्नी की गांड की तौबा बुलवाने का बीड़ा उठाया था और वो जो सोच लेते थे वो पूरा ज़रूर करते थे।
जब रवि ने डेढ़ घंटे बाद मेरी गांड में अपना वीर्य की बौछार छोड़ी तो मेरी गांड बिलकुल चरमरा गयी थी। मैं बिलकुल भी अचंभित नहीं थी उनके लण्ड के ऊपर अपनी गांड के रस के अलावा ताज़े लाल खून को देख कर।
रवि ने मुझे चुम कर मुझे अपने मुंह के ऊपर बैठा कर मेरी गांड की चुदाई के प्रसाद को अपने मुंह में भर कर सटक लिया।
फिर मैंने उनके 'गंदे' सुगन्धित लण्ड को चूस कर थूक से चमका दिया।
"रानी आज तो हमें कुछ खास चाहिए ," रवि की आँखों में एक खास चमक थी।
" जो आप चाहो ," मैंने उनके मर्दाने चुचूक को दांतों से काटते हुए कहा।
जो उन्होंने मुझसे माँगा उसने तो मुझे चौंका दिया ," रवि क्या आपको घिन्न नहीं आयेगी। "
"शालू रोज़ तो तुम्हारी गांड तो चूस कर साफ़ करता हूँ। घिन्न का क्या काम? तुम्हारे शरीर की हर चीज़ मेरे लिए नायाब है रानी। यदि ये मुझे तुझे बताना पड़े तो मेरा प्यार शायद असफल रहा," रवि के शब्दों को सुन कर मैं तो रुआंसी हो गयी।
मैंने उनके होंठों को चूम चूम कर कहा ," आपको आज से मुझसे सिर्फ एक बार कहने की ज़रुरत है। जो आप कहेंगें वो मैं करूंगीं। समझे आप। आप अब मेरे पूर्णतया स्वामी हैं मेरे मन और मेरे तन के। पर आप भी मेरा ध्यान रखेंगें ना "
रवि की आँखों में गीलापन आ गया ,"शालू तू तो मेरे जीवन का चिराग है। तेरे बिना तो सुबह का सवेरा भी आधी रात लगेगी। "
मैं अपने रवि से चिपक गयी।
स्नानघर में रवि और मैंने एक और सीमा उलांघ ली उस दिन। रवि ने बिना हिचक मन भर कर मेरा प्रसाद लिया और फिर मैंने उनका। अब हमारे बीच कुछ भी व्यक्तिगत नहीं बचा था। अब हम दो शरीर एक जान हो गए थे।
बिस्तर में मेरा 'गन्दा' मुंह रवि ने अपने 'गंदे' मुंह से प्यार से चूमा और अगले तीन घंटों तक मेरी चूत और गांड की ऐसी हालत कर दी की मैं लगभग बेहोश हो गयी।
जब हम रात के खाने से पहल के ड्रिंक्स के लिए पहुंचे तो मैं टांगें चौड़ा कर चल रही थी। लेकिन मुझे बहुत प्रसन्ता हुई जब मैंने देखा कि मम्मी भी मेरे जैसी हालत थीं।
रात के खाने की मेज पर रवि और मम्मी के बीच और डैडी के बीच गहरी आशापूर्ण नज़रों का आदान प्रदान हुआ। घर में प्यार के एक और रूप की सम्भावना के आचार उभरने लगे।
मेरी योजना की सफलता के आसार और भी सुलभ हो चले थे।
बबलू और नीलू मुझसे थोड़ा नाराज़ लग रहे थे। आज पहला दिन था जब मैं उनके कॉलेज के आने के बाद उनके कमरे गयी थी।
"बबलू ,नीली आप दोनों का काम पूरा कर लिया?" मैंने वैसे तो साधारण आवाज़ में पूछा था पर मेरी आँखों ने उन्हें कुछ और ही बताया था।
"भाभी कर तो लिया है अपर आपक एक बार चेक कर लीजिए ," बबलू ने मेरा अर्थ तुरंत समझ लिया।
नीलू थोड़ी सुस्त थी पर बहुत नहीं ," हाँ भाभी मेरा भी। प्लीज़। "
"अरे भाभी आज थक गईं हैं। कल चेक कर लेंगीं ,"मम्मी ने मेरा ख्याल रखते हुए कहा।
"नहीं ठीक है मम्मी कल शनिवार है। इनको कॉलेज के लिए जल्दी भी नहीं उठना। रात में चेक कर लूंगीं तो कम से कम इनका सारा सप्ताहंत [वीकेंड] खाली रहेगा," फिर मैंने शरमाते हुए कहा ,"और वैसे भी आपके बेटे को पूरे दिन की खुराक शायद मैंने वैसे ही दे दी है। "
"बेटी इस खुराक का कोई अंत नहीं है क्यों रवि? ," डैडी मुस्कुरा कर कहा। ज़रूर मम्मी ने डैडी को सबकुछ बता दिया था।
"रवि बेटा तेरा क्या ख्याल है ? क्या डैडी सही कह रहें हैं ?" मम्मी ने बहुत ही गूढ़ रहस्मयी मुस्कान अपने बेटे की ओर फेंकते हुए पूछा।
"मम्मी , खुराक थोड़े ही है। यह तो समोर्गासबोर्ड है जब मन चाहे खा लो ,"पहली बार रवि अपनी माँ आँख मिला कर द्विअर्थिय बात की।
"अरे विम्मो रवि बेटा सही तो कह रहा है। यदि भोजन स्वादिष्ट हो तो रोकटोक कैसी ?" डैडी मुस्कुराते हुए कहा।
"मम्मी डैडी और आपके बेटे मिली भगत कर रहें हैं। समोर्गासबोर्ड पर तो बहुत सारे खाने के पदार्थ फैले होथें हैं। यहाँ तो एक ही खाने के पदार्थ की शामत आती है," मैंने अनकही इच्छाओं को और उकसाया।
"शालू बेटी तेरा कहना है की घर में जो भी खाने के लिए तैयार हो उस से भूख मिटा लेनी चाहिए ?" मम्मी ने तो गेंद मैदान के बाहर पहुंचा दी।
"शालू बेटी और मेरी प्यारी अर्धांगिनी हमने और हमारे बेटे ने कब कहा की हम मिल बाँट कर नहीं खाते। हमारे परिवार में तो सब कुछ सबका है ," डैडी ने मुस्कराते हुए आँखे चमकाते हुए कहा।
"पापा इस समोर्गा ,...... ुरर समोर्गासबो जो भी भैया ने कहा उस खाने में सब शामिल हैं ना ,"मेरी नादान ननंद ने सबसे ज़्यादा गहरी बात कह दी।
"बेटी इसे समोर्गासबोर्ड कहतें हैं। और हमारे परिवार में खाने का हर कतरे का हिस्सा सबके लिए होता है ," मम्मी ने हंस कर कहा।
"तो फिर ठीक है मम्मी। मैं और नीलू भी जब चाहें इस जो भी भैया ने कहा उस से जो कुछ पसंद आये खा सकतें हैं ,"मेरे बबलू ने इस रात की कहानी पर अपनी मोहर लगा दी।
मम्मी ने अपने नन्हे सुंदर बेटे को देख कर कहा ," बबलू तेरे लिए और नीलू के लिए तो कोई रोकटोक कभी भी नहीं है"
डैडी की आँखें अपनी नन्ही बेटी के दमकते सुंदर मुंह के ऊपर टिक गईं।
मम्मी और मेरी आँखें मिलीं और दोनों ने बिना कुछ कहें एक दुसरे को बधाई दी।
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३८
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खाने के बाद डैडी, मम्मी और रवि और स्कॉच पीने के लिए रुक गए और मैं नीली और बबलू को उनके कमरे की ओर ले गयी।
"बबलू तू कपड़े बदल मैं पहले नीलू के कॉलेज का काम देख आकर तेरे कमरे में आतीं हूँ ," मुझे पता था कि बबलू को यह इंतज़ाम पसंद आएगा। मेरी मम्मी ने मुझे बरसों पहले से ही अपने पुरुषों की मनोस्थिति समझने की क्षमता प्रदान कर दी थी।
कमरे में पहुंचते ही मैंने नीलू को गोद में उठा कर उसके कपड़े उतार फेंकें, "भाभी आप नहीं उतारोगी आज। "
मैंने भी अपनी सलवार कुरता उतार दिया। मैंने उस रात ब्रा और कच्छी नहीं पहनी थी।
मैंने नीलू के नीम्बूओं को बेदर्दी से मसलते हुए हुए उसके मीठे होंठो को चूसने लगी। नीलू की सिसकारियाँ निकलते कुछ नहीं देर नहीं लगी।
मैंने उसे बिस्तर पर धकेल दिया और इस बार मैं उसके ऊपर उलटी लेट गयी, ६९ जैसे। नीलू को एक क्षण भी नहीं लगा समझने में। मैं उसकी और वो मेरी चूत ज़ोर से चूसने चाटने लगी। सिर्फ फर्क था तो वो कि मेरी चूत पर घनी घुंघराली झांटों की झाड़ी थी और नीलू की चूत पर एक रेशमी रेशा नहीं था , बिलकुल चिकनी चूत थी मेरी नन्ही ननद की।
मैंने उसकी और नीलू ने मेरी चूत ज़ोर ज़ोर से और हर तरीके से चूसी और एक घंटे में हम दोनों अनेकों बार झड़ गए।
जब हमारी साँसे वापस धरातल पर आईं तो मैंने नीलू को चूम कर कहा ,"मेरी नन्ही नन्द मैंने इन्तिज़ाम कर लिया है तुम्हारे लिए और तुम अब मेरी और तुम्हारे भैया की चुदाई देख सकती हो। "
नीलू खिलखिला कर बोली ,"सच भाभी। ओह भाभी आप कितनी अच्छी हो। "
मैंने नीलू को प्यार से चुम शुभरात्रि कह बबलू के कमरे की ओर चल दी। मैंने कपड़े पहनने की बजाय सिर्फ उन्हें अपने हाथों में उठा लिया।
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बबलू जैसा मैंने सोचा था बबलू पूर्ण नग्न अपने तन्नाए लण्ड को सहलाते हुए मेरा इन्तिज़ार कर रहा था।
आज मैंने भी एक और सीमा उलाँघने का निर्णय कर लिया था।
मैंने अपने कपड़े कुर्सी पे फेंक कर बिस्तर पे चढ़ गयी। बबलू ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और मेरे खुले मुंह को चूमने लगा।
मैं फिर से गरम हो गयी। मेरा देवर अभी मुश्किल से किशोरावस्था के दुसरे वर्ष में पहुंचा था पर परिपक्व पुरुष की तरह मुझे उत्तेजित करने में समर्थ था।
"बबलू आज मैं तुम्हारा लण्ड नहीं चुसूंगीं ," मैंने कहा और बबलू का उतरा मुंह देख कर हंस दी ,"आज रात मेरे देवर राजा तुम्हारी भाभी तुम्हारे गोर चिकने मोटे लम्बे लण्ड को अपनी चूत से चोदगी। "
बबलू का चेहरा कमल के फूल की तरह खिल उठा, "सच भाभी आप चिढ़ा तो नहीं रही हो मुझे। "
मैंने जवाब देने की बजाय अपनी गीली चूत बबलू के तन्नाए लण्ड के ऊपर दबा कर अपने नितम्ब नीचे दबाये। मेरी बुरी तरह चुदी चूत चरमरा गयी बबलू के अप्राकृतिक लम्बे मोटे लण्ड को अपनी चूत में लेते हुए।
मैंने जब बबलू के लण्ड के ऊपर उछलना शुरू किया तो उसके मासूम सुंदर चेहरे पर जो आनंद और आश्चर्य का मिश्रण छाया था उसे देख कर मेरा मातृत्व प्यार सारे बाँध कूद कर बाहर आ गया।
"बबलू तुम वायदा करो चाहे तुम कितने भी बड़े हो जाओ और शादी भी कर लो पर मेरे छोट देवर और बेटा बने रहोगे ," मैं अनुचित वासना के ज्वर से जल उठी थी।
"भाभी सारी ज़िंदगी मैं आपका देवर और बेटा हूँ और रहूँगा ," बबलू ने मेरे मचलते स्तनों को मरोड़ते मसलते हुए कहा।
और फिर बबलू के कमरे में में मेरी सिसकारियाँ गूंजने लगीं। मैं छह बार झड़ गयी अगले आधे घंटे में पर बबलू का लण्ड क़ुतुब मीनार की तरह खड़ा था।
मैं थकने लगी थी। मैंने बबलू से पूछा ,"बबलू मैं थक गईं हूँ। अब तुम मेरे ऊपर आ जाओ। और इसी तरह ज़ोर से चोदना मुझे। "
बबलू की चमकती आंखों ने मुझे जवाब दे दिया।
बबलू ने मुझे बिस्तर पे पलट आकर मेरे ऊपर आ कर जो मुझे चोदा वो उसके भैया से बहुत दूर नहीं था।
मैं झड़ने लगी तो रुकी ही नहीं। बबलू ने दनादन अपना लण्ड मेरी चूत में पेलना शुरू किया तो रुका ही नहीं।
मैं थक कर बिस्तर पर पस्ट लेट गयी और आखिरकार बबलू ने अपने किशोर लण्ड के गाढ़े ऊर्वर वीर्य की बौछार मेरे गर्भाशय पे शुरू की तो मुझे लगा मानों उसका लण्ड झड़ना बंद करेगा ही नहीं।
आखिर में उसका लण्ड ढीला पड़ गया। मैंने मौका देख कर कहा , "बबलू और मैं ऐसी घनघोर चुदाई के बाद कुछ खास करते हैं। तुम भी परखना चाहोगे की तुम्हें अच्छा लगेगा कि नहीं ?"
बबलू ने सुन कर खुल कर हामी भरी।
मैं तो अपने अविकसित किशोरावस्था के दुसरे साल में टहलते देवर के लण्ड से बहते मूत्र को पी कर दो बार झड़ गयी। पर जब बबलू का लण्ड मेरे मूत्र को पीते तन्ना गया तो मैं ख़ुशी से पागल हो गयी।
मैंने कमोड के ऊपर झुक कर बबलू कोआमंत्रित किया फिर से मेरी चूत मारने को।
और बबलू ने इस बार मेरी चूत की नानी याद दिला दी। बबलू ने सारे सीखे तरीकों को इस्तेमाल किया। उसे मेरे लटकते मटकते स्तनों को दिल भर कर मरोड़ा मसला। जब वो मेरी चूत में झड़ा तो मैं अनेकों बार झड़ कर थक गयी थी और मेरी चूत और चूचियाँ चरमरा उठीं थीं बबलू की निर्मम चुदाई और रगड़ाई से।
मैं कमोड के ऊपर निश्चेत ढलक कर लेट गयी। बबलू ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ कर चूमते हुए प्यार से लिपटा लिया। बबलू अब बच्चा नहीं मर्द बन गया था। अपनी भाभी की मदद से। मेरे हृदय में दिवाली के पटाखे फूट रहे थे।
बबलू ने मुझे अपनी आश्चर्यजनिक ताकत दिखते हुए बाहों में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया और अपने जादू से तनतनाते हुए लण्ड से मेरी दुखती चूत को फिर से भर दिया। इस बार मैं बबलू के नीचे दबी उसके लण्ड की भयंकर रफ़्तार से चुदती रही और झड़ती रही। इस बार बबलू ने मुझे घंटे भर चोदा और मैं थक कर पस्त लेट गयी बिस्तर पर।
बबलू आखिर बच्चा था और वो मेरे ऊपर से धलक कर बिस्तर पर लेता तो दो क्षण में गहरी नींद में सो गया।
मैं उसका मासूम चेहरा देखती रह गयी। आखिरकार मैंने बबलू के प्यार से अपने को बाहर खींचा और अपने अप्तिदेव के आगोश के समाने के लिए अपने शयनगृह की ओर चल पड़ी।
जब मैंने रवि को बबलू और नीलू के साथ बिताए घंटों का विवरण दिया तो उन्होंने मेरी पहले से ही थकी चूत और गांड की क़यामत मचा दी।
पर यह ही तो प्यार की व्यक्ति थी। और मैं उस प्यार की प्रतारणा और आनंद में डूबने लगी।
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सीमा सिंह
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Very difficult to reading
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Seema ji plzz kahani ko aage continue kijiye ,aap mast likhti ho ,ji karta hai aap ke hatho ko chum lu
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(04-09-2022, 04:44 PM)bhavna Wrote: Beautiful story!
अति सुंदर अभिव्यक्ति
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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Very Nice.
I think you have also written one more good story, "Pure Parivar ki Vadhu" in other forum.
Please also write "Pure Parivar ki Vadhu" in this forum and complete the same.
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