29-08-2022, 05:21 PM
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.

Adultery जब फँसा चूत में केला
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29-08-2022, 05:21 PM
![]() जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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29-08-2022, 05:37 PM
ससे शुरूआत करो, इसकी साइज, लम्बाई मोटाई चिकनाई सब ‘उससे’ मिलते है, यह ‘इसके’ (उंगली से योनिस्थल की ओर इशारा) के सबसे ज्यादा अनुकूल है। एक बार उसने कहा, “छिलके को पहले मत उतारो, इन्फेक्शन का डर रहेगा। बस एक तरफ से थोड़ा-सा छिलका हटाओ और गूदे को उसके मुँह पर लगाओ, फिर धीरे धीरे ठेलो। जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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29-08-2022, 05:46 PM
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29-08-2022, 05:49 PM
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भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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29-08-2022, 05:51 PM
मेरी खुली टांगों के बीच योनिप्रदेश काले बालों की समस्त गरिमा के साथ उनके सामने लहरा रहा था।
मैंने हीना के हाथ के ऊपर अपना हाथ रख दिया- जो सही समझो, करो ! “लेकिन मुझे सही नहीं लग रहा।” करण ने बम जैसे फोड़ा,”मुझे लग रहा है, पिहू समझ रही है कि मैं इसकी मजबूरी का नाजायज फायदा उठा रहा हूँ।” बात तो सच थी मगर मैं इसे स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थी। वे मेरी मजबूरी का फायदा तो उठा ही रहे थे। “खतरा पिहू को है। उसे इसके लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पर यहाँ तो उल्टे हम इसकी मिन्नतें कर रहे हैं। जैसे मदद की जरूरत उसे नहीं हमें है।” उसका पुरुष अहं जाग गया था। मैं तो समझ रही थी वह मुझे भोगने के लिए बेकरार है, मेरा सिर्फ विरोध न करना ही काफी है। मगर यह तो अब ….. “मगर यह तो सहमति दे रही है !”, हीना ने मेरे पेड़ू पर दबे उसके हाथ को दबाए मेरे हाथ की ओर इशारा किया। उसे आश्चर्य हो रहा था। जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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15-09-2022, 01:48 PM
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भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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15-09-2022, 02:38 PM
“मैं क्यों मदद करूँ? मुझे क्या मिलेगा?”
सुनकर हीना एक क्षण तो अवाक रही फिर खिलखिलाकर हँस पड़ी,”वाह, क्या बात है !” करण इतनी सुंदर लड़की को न केवल मुफ्त में ही भोगने को पा रहा था, बल्कि वह इस ‘एहसान’ के लिए ऊपर से कुछ मांग भी रहा था। मेरी ना-नुकुर पर यह उसका जोरदार दहला था। “सही बात है।” हीना ने समर्थन किया। “देखो, मुझे नहीं लगता यह मुझसे चाहती है। इसे किसी और को ही दिखा लो।” मैं घबराई। इतना करा लेने के बाद अब और किसके पास जाऊँगी। करण चला गया तो अब किसका सहारा था? “मेरा एक डॉक्टर दोस्त है। उसको बोल देता हूँ।” उसने परिस्थिति को और अपने पक्ष में मोड़ते हुए कहा। मैं एकदम असहाय, पंखकटी चिड़िया की तरह छटपटा उठी। कहाँ जाऊँ? अन्दर रुलाई की तेज लहर उठी, मैंने उसे किसी तरह दबाया। अब तक नग्नता मेरी विवशता थी पर अब इससे आगे रोना-धोना अपमानजनक था। मैं उठकर बैठ गई। केले का दबाव अन्दर महसूस हुआ। मैंने कहना चाहा,”तुम्हें क्या चाहिए?” पर भावुकता की तीव्रता में मेरी आवाज भर्रा गई। हीना ने मुझे थपथपाकर ढांढस दिया और करण को डाँटा,”तुम्हें दया नहीं आती?” मुझे हीना की हमदर्दी पर विश्वास नहीं हुआ। वह निश्चय ही मेरी दुर्दशा का आनन्द ले रही थी। “मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए।” “क्या लोगे?” करण ने कुछ क्षणों की प्रतीक्षा कराई और बात को नाटकीय बनाने के लिए ठहर ठहरकर स्पष्ट उच्चारण में कहा,”जो इज्जत इन्होंने केले को बख्शी है वह मुझे भी मिले।” मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। अब क्या रहेगा मेरे पास? योनि का कौमार्य बचे रहने की एक जो आखिरी उम्मीद बनी हुई थी वह जाती रही। मेरे कानों में उसके शब्द सुनाई पड़े, “और वह मुझे प्यार और सहयोग से मिले, न कि अनिच्छा और जबरदस्ती से।” पता नहीं क्यों मुझे करण की अपेक्षा हीना से घोर वितृष्णा हुई। इससे पहले कि वह मुझे कुछ कहती मैंने करण को हामी भर दी। मुझे कुछ याद नहीं, उसके बाद क्या कैसे हुआ। मेरे कानों में शब्द असंबद्ध-से पड़ रहे थे जिनका सिलसिला जोड़ने की मुझमें ताकत नहीं थी। मैं समझने की क्षमता से दूर उनकी हरकतों को किसी विचारशून्य गुड़िया की तरह देख रही थी, उनमें साथ दे रही थी। अब नंगापन एक छोटी सी बात थी, जिससे मैं काफी आगे निकल गई थी। ‘कैंची’, ‘रेजर’, ‘क्रीम’, ‘ऐसे करो’, ‘ऐसे पकड़ो’, ‘ये है’, ‘ये रहा’, ‘वहाँ बीच में’, ‘कितने गीले’, ‘सम्हाल के’, ‘लोशन’, ‘सपना-सा है’…………… वगैरह वगैरह स्त्री-पुरुष की मिली-जुली आवाजें, मिले-जुले स्पर्श। बस इतना समझ पाई थी कि वे दोनों बड़ी तालमेल और प्रसन्नता से काम कर रहे थे। मैं बीच बीच में मन में उठनेवाले प्रश्नों को ‘पूर्ण सहमति दी है’ के रोडरोलर के नीचे रौंदती चली गई। पूछा नहीं कि वे वैसा क्यों कर रहे थे, मुझे वहाँ पर मूँडने की क्या आवश्यकता थी। लोशन के उपरांत की जलन के बाद ही मैंने देखा वहाँ क्या हुआ है। शंख की पीठ-सी उभरी गोरी चिकनी सतह ऊपर ट्यूब्लाइट की रोशनी में चमक रही थी। हीना ने जब एक उजला टिशू पेपर मेरे होंठों के बीच दबाकर उसका गीलापन दिखाया तब मैंने समझा कि मैं किस स्तर तक गिर चुकी हूँ। एक अजीब सी गंध, मेरे बदन की, मेरी उत्तेजना की, एक नशा, आवेश, बदन में गर्मी का एहसास… बीच बीच में होश और सजगता के आते द्वीप। जब हीना ने मेरे सामने लहराती उस चीज की दिखाते हुए कहा, ‘इसे मुँह में लो !’ तब मुझे एहसास हुआ कि मैं उस चीज को जीवन में पहली बार देख रही हूँ। साँवलेपन की तनी छाया, मोटी, लंबी, क्रोधित ललाट-सी नसें, सिलवटों की घुंघचनों के अन्दर से आधा झाँकता मुलायम गोल गुलाबी मुख- शर्माता, पूरे लम्बाई की कठोरता के प्रति विद्रोह-सा करता। मैं हीना के चेहरे को देखती रह गई। यह मुझे क्या कह रही है! “इसे गीला करो, नहीं तो अन्दर कैसे जाएगा।” हीना ने मेरा हाथ पकड़कर उसे पकड़ा दिया। “पिहू, यू हैव प्रॉमिस्ड।” मेरा हाथ अपने आप उस पर सरकने लगा। आगे-पीछे, आगे-पीछे। “हाँ, ऐसे ही।” मैं उस चीज को देख रही थी। उसका मुझसे परिचय बढ़ रहा था। “अब मुँह में लो।” मुझे अजीब लग रहा था। गंदा भी……….. । “हिचको मत। साफ है। सुबह ही नहाया है।” हीना की मजाक करने की कोशिश……..। मेरे हाथ यंत्रवत हरकत करते रहे। “लो ना !” हीना ने पकड़कर उसे मेरे मुँह की ओर बढ़ाया। मैंने मुँह पीछे कर लिया। “इसमें कुछ मुश्किल नहीं है। मैं दिखाऊँ?” हीना ने उसे पहले उसकी नोक पर एक चुम्बन दिया और फिर उसे मुँह के अन्दर खींच लिया। करण के मुँह से साँस निकली। उसका हाथ हीना के सिर के पीछे जा लगा। वह उसे चूसने लगी। जब उसने मुँह निकाला तो वह थूक में चमक रहा था। मैं आश्चर्य में थी कि सदमे में, पता नहीं। हीना ने अपने थूक को पोंछा भी नहीं, मेरी ओर बढ़ा दिया- यह लो। “लो ना…….!” उसने उसे पकड़कर मेरी ओर बढ़ाया। करण ने पीछे से मेरा सिर दबाकर आगे की ओर ठेला। लिंग मेरे होंठों से टकराया। मेरे होंठों पर एक मुलायम, गुदगुदा एहसास। मैं दुविधा में थी कि मुँह खोलूँ या हटाऊँ कि “पिहू, यू हैव प्रॉमिस्ड” की आवाज आई। मैंने मुँह खोल दिया। मेरे मुँह में इस तरह की कोई चीज का पहला एहसास था। चिकनी, उबले अंडे जैसी गुदगुदी, पर उससे कठोर, खीरे जैसी सख्त, पर उससे मुलायम, केले जैसी। हाँ, मुझे याद आया। सचमुच इसके सबसे नजदीक केला ही लग रहा था। कसैलेपन के साथ। एक विचित्र-सी गंध, कह नहीं सकती कि अच्छी लग रही थी या बुरी। जीभ पर सरकता हुआ जाकर गले से सट जा रहा था। हीना मेरा सिर पीछे से ठेल रही थी। गला रुंध जा रहा था और भीतर से उबकाई का वेग उभर रहा था। “हाँ, ऐसे ही ! जल्दी ही सीख जाओगी।” मेरे मुँह से लार चू रहा था, तार-सा खिंचता। मैं कितनी गंदी, घिनौनी, अपमानित, गिरी हुई लग रही हूँगी। करण आह ओह करता सिसकारियाँ भर रहा था। फिर उसने लिंग मेरे मुँह से खींच लिया। “ओह अब छोड़ दो, नहीं तो मुँह में ही………” मेरे मुँह से उसके निकलने की ‘प्लॉप’ की आवाज निकलने के बाद मुझे एहसास हुआ मैं उसे कितनी जोर से चूस रही थी। वह साँप-सा फन उठाए मुझे चुनौती दे रहा था। उन दोनों ने मुझे पेट के बल लिटा दिया। पेड़ू के नीचे तकिए डाल डालकर मेरे नितम्बों को उठा दिया। मेरे चूतड़ों को फैलाकर उनके बीच कई लोंदे वैसलीन लगा दिया। कुर्बानी का क्षण ! गर्दन पर छूरा चलने से पहले की तैयारी। “पहले कोई पतली चीज से !” हीना मोमबत्ती का पैकेट ले आई। हमने नया ही खरीदा था। पैकेट फाड़कर एक मोमबत्ती निकाली। कुछ ही क्षणों में गुदा के मुँह पर उसकी नोक गड़ी। हीना मेरे चूतड़ फैलाए थी। नाखून चुभ रहे थे। करण मोमबत्ती को पेंच की तरह बाएँ दाएँ घुमाते हुए अन्दर ठेल रहा था। मेरी गुदा की पेशियाँ सख्त होकर उसके प्रवेश का विरोध कर रही थीं। वहाँ पर अजीब सी गुदगुदी लग रही थी। जल्दी ही मोम और वैसलीन के चिकनेपन ने असर दिखाया और नोक अन्दर घुस गई। फिर उसे धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा। मुझसे कहा जा रहा था,”रिलैक्सन… रिलैक्सव… टाइट मत करो… ढीला छोड़ो… रिलैक्स … रिलैक्स…..” मैं रिलैक्स करने, ढीला छोड़ने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर के बाद उन्होंने मोमबत्ती निकाल ली। गुदा में गुदगुदी और सुरसुरी उसके बाद भी बने रहे। कितना अजीब लग रहा था यह सब ! शर्म नाम की चिड़िया उड़कर बहुत दूर जा चुकी थी। “अब असली चीज !” उसके पहले करण ने उंगली घुसाकर छेद को खींचकर फैलाने की कोशिश की, “रिलैक्स … रिलैक्स .. रिलैक्स…..” जब ‘असली चीज’ गड़ी तो मुझे उसके मोटेपन से मैं डर गई। कहाँ मोमबत्ती का नुकीलापन और कहाँ ये भोथरा मुँह। दुखने लगा। करण ने मेरी पीठ को दोनों हाथों से थाम लिया। हीना ने दोनों तरफ मेरे हाथ पकड़ लिए, गुदा के मुँह पर कसकर जोर पड़ा, उन्होंने एक-एक करके मेरे घुटनों को मोड़कर सामने पेट के नीचे घुसा दिया गया। मेरे नितम्ब हवा में उठ गए। मैं आगे से दबी, पीछे से उठी। असुरक्षित। उसने हाथ घुसाकर मेरे पेट को घेरा … अन्दर ठेलता जबर्दस्तब दबाव… ओ माँ.ऽऽऽऽऽऽऽ… पहला प्यार, पहला प्रवेश, पहली पीड़ा, पहली अंतरंगता, पहली नग्नता… क्या-क्या सोचा था। यहाँ कोई चुम्बन नहीं था, न प्यार भरी कोई सहलाहट, न आपस की अंतरंगता जो वस्त्रनहीनता को स्वादिष्ट और शोभनीय बनाती है। सिर्फ रिलैक्स… रिलैक्स .. रिलैक्सप का यंत्रगान….. मोमबत्ती की अभ्*यस्त* गुदा पर वार अंतत: सफल रहा- लिंग गिरह तक दाखिल हो गया। धीरे धीरे अन्दर सरकने लगा। अब योनि में भी तड़तड़ाहट होने लगी। उसमें ठुँसा केला दर्द करने लगा। “हाँ हाँ हाँ, लगता है निकल रहा है !” हीना मेरे नितम्बों के अन्दर झाँक रही थी। “मुँह पर आ गया है… मगर कैसे खींचूं?” लिंग अन्दर घुसता जा रहा था। धीरे धीरे पूरा घुस गया और लटकते फोते ने केले को ढक दिया। “बड़ी मुश्किल है।” हीना की आवाज में निराशा थी। “दम धरो !” करण ने मेरे पेट के नीचे से तकिए निकाले और मेरे ऊपर लम्बा होकर लेट गया। एक हाथ से मुझे बांधकर अन्दर लिंग घुसाए घुसाए वह पलटा और मुझे ऊपर करता हुआ मेरे नीचे आ गया। इस दौरान मेरे घुटने पहले की तरह मुड़े रहे। मैं उसके पेट के ऊपर पीठ के बल लेटी हो गई और मेरा पेट, मेरा योनिप्रदेश सब ऊपर सामने खुल गए। हीना उसकी इस योजना से प्रशंसा से भर गई,”यू आर सो क्लैवर !” उसने मेरे घुटने पकड़ लिए। मैं खिसक नहीं सकती थी। नीचे कील में ठुकी हुई थी। मेरी योनि और केला उसके सामने परोसे हुए थे। हीना उन पर झुक गई। ‘ओह…’ न चाहते हुए भी मेरी साँस निकल गई। हीना के होठों और जीभ का मुलायम, गीला, गुलगुला… गुदगुदाता स्पर्श। होंठों और उनके बीच केले को चूमना चूसना… वह जीभ के अग्रभाग से उपर के दाने और खुले माँस को कुरेद कुरेदकर जगा रही थी। गुदगुदी लग रही थी और पूरे बदन में सिहरनें दौड़ रही थीं। गुदा में घुसे लिंग की तड़तड़ाहट,योनि में केले का कसाव, ऊपर हीना की जीभ की रगड़… दर्द और उत्तेजना का गाढ़ा घोल… मेरा एक हाथ हीना के सिर पर चला गया। दूसरा हाथ बिस्तर पर टिका था, संतुलन बनाने के लिए। करण ने लिंग को किंचित बाहर खींचा और पुन: मेरे अन्दर धक्का दिया। हीना को पुकारा, “अब तुम खींचो…..” हीना के होंठ मेरी पूरी योनि को अपने घेरे में लेते हुए जमकर बैठ गए। उसने जोर से चूसा। मेरे अन्दर से केला सरका…. एक टुकड़ा उसके दाँतों से कटकर होंठों पर आ गया। पतले लिसलिसे द्रव में लिपटा। हीना ने उसे मुँह के अन्दर खींच लिया और “उमऽऽऽ, कितना स्वादिष्ट है !” करती हुई चबाकर खा गई। मैं देखती रह गई, कैसी गंदी लड़की है ! मेरी चूत मस्त गरम हो चुकी थी मेरे सिर के नीचे करण के जोर से हँसने की आवाज आई। उसने उत्साठहित होकर गुदा में दो धक्के और जड़ दिये। हीना पुन: चूसकर एक स्लाइस निकाली। करण पुकारा,”मुझे दो।” पर हीना ने उसे मेरे मुँह में डाल दिया, “लो, तुम चखो।” वही मुसाई-सी गंध मिली केले की मिठास। बुरा नहीं लगा। अब समझ में आया क्यों लड़के योनि को इतना रस लेकर चाटते चूसते हैं। अब तक मुझे यह सोचकर ही कितना गंदा लगता था पर इस समय वह स्वाभाविक, बल्कि करने लायक लगा। मैं उसे चबाकर निगल गई। हीना ने मेरा कंधा थपथपाया,”गुड….. स्वादिष्ट है ना?” वह फिर मुझ पर झुक गई। कम से कम आधा केला अभी अन्दर ही था। “खट खट खट” …………. दरवाजे पर दस्तक हुई।को इतना रस लेकर चाटते चूसते हैं। अब तक मुझे यह सोचकर ही कितना गंदा लगता था पर इस समय वह स्वाभाविक, बल्कि करने लायक लगा। मैं उसे चबाकर निगल गई। हीना ने मेरा कंधा थपथपाया,”गुड….. स्वादिष्ट है ना?” वह फिर मुझ पर झुक गई। कम से कम आधा केला अभी अन्दर ही था। “खट खट खट” …………. दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं सन्न। वे दोनों भी सन्न। यह क्या हुआ? “खट खट खट” ….. “करण, दरवाजा खोलो।” पियूष उसके हॉस्टल से आया था। उसको मालूम था कि करण यहाँ है। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। लड़कियों के कमरे में लड़का घुसा हुआ और दरवाजा बंद? क्या कर रहे हैं वे !! “खट खट खट…. क्या कर रहे हो तुम लोग?” जल्दी खोलना जरूरी था। हीना बोली, “मैं देखती हूँ।” करण ने रोकना चाहा पर समय नहीं था। हीना ने अपने बिस्तर की बेडशीट खींचकर मेरे उपर डाली और दरवाजे की ओर बढ़ गई। पियूष हीना की मित्र मंडली में काफी करीब था। किवाड़ खोलते ही “बंद क्यों है?” कहता पियूष अन्दर आ गया। हीना ने उसे दरवाजे पर ही रोककर बात करने की कोशिश की मगर वह “करण बता रहा था पिहू को कुछ परेशानी है?” कहता हुआ भीतर घुस गया। मुझे गुस्सा आया कि हीना ने किवाड़ खोल क्यों दिया, बंद दरवाजे के पीछे से ही बात करके उसे टालने की कोशिश क्यों नहीं की। उसकी नजर चादर के अन्दर मेरी बेढब ऊँची-नीची आकृति पर पड़ी। “यह क्या है?”उसने चादर खींच दी। सब कुछ नंगा, खुल गया….. चादर को पकड़कर रोक भी नहीं पाई। उसकी आँखें फैल गर्इं। मुझे काटो तो खून नहीं। कोई कुछ नहीं बोला। न हीना, न मेरे नीचे दबा करण, न मैं। जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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15-09-2022, 02:40 PM
![]() ![]() ![]() जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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09-12-2023, 01:09 AM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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09-12-2023, 01:18 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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09-12-2023, 01:27 PM
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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09-12-2023, 06:24 PM
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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10-12-2023, 09:36 AM
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