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Incest छत पर बहन की चुदाई
#1
छत पर बहन की चुदाई
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#2
हाई दोस्तों मेरा नाम रोशन है और मैं औरंगाबाद का रहने वाला हूँ, यह बात कुछ 3 साल पहले की हैं जब मैं 21 साल का था. मेरी एक छोटी बहन हे जिसका नाम दिव्यांशी हैं. दिव्यांशी मुझ से दो साल छोटी थी लेकिन वो लड़की होने से जल्दी बढ़ गई थी. वोह देखने में मुझ से भी ऊँची लंबी लगने लगी थी. Shy

मैंने कोलेज के एक दो मित्रो से दिव्यांशी के चक्कर होने की बात सुनी थी लेकिन मैं उसे रंगे हाथ पकड़ना चाहता था. मैंने उसकी वोच रखी हुई थी लेकिन दिव्यांशी के चुदाई का कोई सुराग मुझे मिल नहीं रहा था. मैंने उसके पीछे काफी वक्त निकाल दिया था. उसके कुछ एक दो कोलेज के मित्र थे लेकिन उनमे कोई बॉयफ्रेंड हो ऐसा मुझे नहीं लग रहा था.

C banghead

गर्मियों के दिन थे इसलिए हम लोग छत पर ही सोते थे. मेरे और दिव्यांशी के अलावा मोम डेड और दादीमा ऊपर सोते थे. एक दिन मोम की आंटी की तबियत ख़राब थी इसलिए मोम डेड दोनों बहार गए थे और वोह लोग दुसरे दिन आने वाले थे. छत पर केवल मैं, दिव्यांशी और दादीमा थे. मुझे खुली हवा में मस्त नींद आती थी. मैं कुछ 11 बजे तो सो गया होऊंगा..कुछ 12-1 बजे के करीब मुझे लगा की मेरे लंड के ऊपर कुछ रेंग रहा हैं.

मैंने हाथ लंड के ऊपर से इस कीड़े को हटाने के लिए मारा. लेकिन मुझे तो मानवीय अंग का अहेसास हुआ. वोह शायद दिव्यांशी का हाथ था. मुझे बहुत अजीब लगा, क्या दिव्यांशी मेरे लंड को पकड़ने की कोशिस कर रही थी. क्या उसको मेरे से चुदाई करवानी थी, क्या बहन भाई की चुदाई…? मेरे दिल में बहुत सारे सवाल एक साथ उठने लगे. लेकिन फिर मैंने सोचा की देखू तो सही की दिव्यांशी करती क्या हैं. मेरे हिलने से दिव्यांशी ने हाथ हटाया नहीं और वोह शायद सोने की एक्टिंग कर रही थी.

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दिव्यांशी ने कुछ 5 मिनिट तक कोई हलनचलन नहीं की लेकिन उसके बाद उसका हाथ मेरे लंड के ऊपर धीमे धीमे चलने लगा था. वोह पेंट के ऊपर से ही मेरे लंड का अहेसास ले रही थी. मेरे ना चाहते हुए भी मेरा लंड खड़ा होने लगा था. दिव्यांशी के हाथ बहुत सेक्सी तरीके से मेरे लंड को दबाने लगे थे. मैंने सोचा वैसे भी अगर मैंने दिव्यांशी की चुदाई की तो क्या हो जाएगा, ऐसे भी अगर वो बाहर चुदवाएगी तो इस से तो अच्छा की मैं उसकी चुदाई करूँ.

मेरे मन में अब उसे चोदने की इच्छा जाग्रत होने लगी. दिव्यांशी अब एक कदम आगे बढ़ी और उसने मेरी ज़िप खोली. मैंने अभी भी आँखे बंध रखी थी. दिव्यांशी ने मेरे खड़े हुए लंड को बहार निकालने लगी. मेरी दादी की नींद का उसको भी अंदाजा था इसलिए वोह इतना बड़ा चांस ले रही थी. मैं भी सोच रहा था की अगर मुझे चांस मिला तो मैं उसकी चुदाई कहा करूँगा….?

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मेरा लंड बहार आते मुझे मजबूरन मेरी आँखे खोलनी पड़ी. मेरे सामने मेरी छोटी और जवान बहन थी जो मेरे लंड को अपने हाथ में पकडे हुए थी. दिव्यांशी ने मेरे सामने देखा ही नहीं, उसे पता जरुर था की मैंने आँखे खोली है. उसने तो हदे पार करनी हो इस तरह सीधे मेरे लंड को अपने मुहं में ले लिया. दिव्यांशी के चूसने से लंड के अंदर बहुत ही उत्तेजना आने लगी थी. दिव्यांशी लंड के गोलों को हाथ में पकडे हुए थी. मेरे गोले मेरी पेंट की ज़िप से अड़े हुए थे.

मुझे लगा की अगर ज़िप में भर गए तो पंगे हो जाएंगे, चुदाई साइड में रहेंगी उस के पहले ही गांड फट जाएगी. मैंने ज़िप के आगे से बोल्स को हटाने के लिए पेंट उतार के घुटनों तक ले ली. दिव्यांशी ने लंड चूसते चूसते ही मेरी तरफ देखा. उसकी आँखे बहुत ही मादक थी और मुझे उन में चुदाई का जूनून साफ़ नजर आ रहा था. वोह मेरे लंड को गले तक ले जाती थी और फिर थूंक स भरे हुए लंड को बहार निकाल देती थी.

बिच बिच में वो मेरे चिकने लंड को हाथ में ले के हिलाती थी. दिव्यांशी का यह कामुक रूप मेरे लिए बिलकुल आश्चर्य था लेकिन मुझे मजा भी उतना ही आ रहा था.

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तभी दिव्यांशी ने लंड हिलाना बंध किया और वो अपनी ट्रेक पेंट खोलने लगी. मुझे लगा की वो चुदाई की तैयार में है. मैंने उसकी चूत को देखा तो मैं चकरा ही गया. उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं था और वोह जितनी गोर्री थी उसकी चूत उतनी ही गुलाबी थी. चूत की पंखडीयाँ भी मस्त छोटी छोटी थी और उनका रंग भी ऊपर से साफ़ गोरा और छेद की तरफ मस्त गुलाबी था. मुझे इस सेक्सी चूत को चाट लेने की असीम इच्छा हो चली. मैंने उसकी चूत पर जैसे ही हाथ फेरा दिव्यांशी ने हलकी सिसकारी निकाली.

मैंने दादीमा की तरफ देखा. वोह घोड़े बेच के सोई हुई थी. मैंने अपने मुहं को दिव्यांशी की टांगो के बिच रख दिया और मैं उसके चूत के होंठो को अपने होंठो से मिला के किस देने लगा. दिव्यांशी ने मेरे बाल पकड़ लिए और जोर से खींचने लगी. चुसाई की उत्तेजना वो झेल नहीं पा रही थी शायद.

मैंने जबान को पूरा उसकी चूत के अंदर घुसा दिया. मेरे बाल और भी जोर से खिंच महेसुस करने ;लगे. मैंने दिव्यांशी की चूत चूसते हुए उसकी टी-शर्ट को ऊँचा कर के निकाल दिया. उसके स्तन भी मस्त गोल मटोल और मांसल थे. मैंने उसकी चूत को कुछ 10 मिनिट तक चूसा और शायद बिच में ही दिव्यांशी झड़ गई, तभी तो मेरे मुहं में यकायक वो खारापन आया था.

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दिव्यांशी के चूत को मैंने होंठ हटा के हाथ से मसला, चूत बहुत ही गीली हो चुकी थी और उसके अंदर से चुदाई का रस भी झरने लगा था. दिव्यांशी लंड का मार खाने के लिए बिलकुल तैयार थी. मैंने अपने लंड को हाथ में लिया और उसके चूत के ऊपर रखने लगा. तभी दिव्यांशी ने चद्दर खिंच के हम दोनों के कंधो तक रख दी. मेरा लंड उसकी चूत के सेंटर के ऊपर मस्त सेट हुआ था. मैंने जैसे ही एक हल्का झटका दिया सन करता हुआ मेरा लंड उसकी चूत में चला गया.

बहार कुछ एक तिहाई लंड रह गया था और बाकि का दो तिहाई लंड दिव्यांशी की चूत की गरमी में पहुँच चूका था. वोह सिसकारी लेने को थी की मैंने उसके होंठ से अपने होंठ लगा दिए. उसने जोर जोर से मुझे किस करनी चालू कर दी और मैंने इधर उसकी चूत के अंदर लंड को अंदर बहार करना चालू कर दिया. मैं दिव्यांशी के बिलकुल ऊपर आ गया था चुदाई करते करते और उसके शरीर पर मेरे 65 किलो के शरीर का वजन डाल दिया था.

लेकिन दिव्यांशी मुझे सच में चुदाई की शौकिन लगी क्यूंकि उसने उतनी ही उत्तेजना से चूत में लंड का स्वागत किया. वोह अपनी चूत के होंठो को लंड के ऊपर कस लेती थी जिस से मुझे मस्त उत्तेजना मिल सकें.
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मेरी चुदाई के झटके तीव्र होते गए और मैं दिव्यांशी के बूब्स चूसता हुआ उसे चोदता गया. दिव्यांशी भी मेरे होंठो से होंठ लगा लेती थी बिच बिच में और मुझे कंधे से पकड़ के अपने ऊपर दबा भी लती थी. सच में एक असीम मजा आ रहा था बहन की चूत में इस तरह अँधेरे में लंड देने से.

कुछ 10 मिनिट की चुदाई हुई थी की मेरा लंड जैसे की फटा, मेरे लंड से वीर्य की एक बड़ी धार छुट पड़ी और दिव्यांशी की चूत को चिकना करने लगी. दिव्यांशी ने तभी अपने चूत को कस के लंड पर दबा लिया. उसकी चूत के अंदर सभी रस निकल गया लेकिन अभी भी दिव्यांशी को कुछ मजा लेना बाकी था, उसने मेरे लंड को हाथ में लिया और धीरे से बहार निकाल के लंड के सुपाड़े को अपने चूत के उपर घिसने लगी.

एक मिनिट घिसने के बाद उसने मेरे लंड को छोड़ा. हमने कपडे पहन लिए और जैसे की कुछ हुआ ना हो वैसे अपनी अपनी जगह पर सो गए. इस रात के बाद तो जब भी चांस मिलता है दिव्यांशी मुझ से चुदाई करवा लेती हैं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#3
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#4
ok sir please ask someone
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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