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05-07-2022, 11:42 AM
भाग 92
सरयू सिंह अपने मन में सुखद कल्पनाएं लिए कल्पना लोक में विचरण करने लगे. कई दृश्य धुंधले धुंधले उनके मानस पटल पर घूमने लगे कजरी… पदमा सुगना… और अब मनोरमा….. मानस पटल पर अंकित इन चार देवियों में अब भी सुगना नंबर एक पर ही थी…
सरयू सिंह को यदि यह पता न होता की सुगना उनकी पुत्री है तो वह सुगना को जीवन भर अपनी अर्धांगिनी बनाकर रखते…और सारे जहां की खुशियां उसकी झोली में अब भी डाल रहे होते….
रात बीत रही थी सूरज गोमती नदी के आंचल से निकलकर लखनऊ शहर को रोशन करने के लिए बेताब था।
अब आगे..
आज लखनऊ की सुबह बेहद सुहानी थी… गंगाधर स्टेडियम में सोनू और उसके साथियों के शपथ ग्रहण समारोह के लिए दिव्य व्यवस्था की गई थी… सफेद वस्त्रों से बने पांडाल पर गेंदे के फूल से की गई सजावट देखने लायक थी…बड़े-बड़े कई सारे तोरण द्वार बनाए गए थे। उन पर की गई सजावट सबका मन मोहने वाली थी। सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ सज धज कर तैयार होकर और सोनू और सरयू सिंह के साथ गंगाधर स्टेडियम में प्रवेश कर रही थी।
सुगना इतनी भव्यता की आदी न थी वह आंखें फाड़ फाड़ कर गंगाधर स्टेडियम में की गई सजावट का आनंद ले रही थी.. सुगना यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं नियति और नियंता की अनूठी कृति है।
जो स्वयं सबका मन मोहने वाली थी वह गंगाधर स्टेडियम की सजावट में खोई हुई थी वह जिस रास्ते से गुजर रही थी आसपास के लोग उसे एकटक देख रहे थे।
जाने सुगना के शरीर में ऐसा कौन सा आकर्षण था कि हर राह चलता व्यक्ति उसे एकटक देखता रह जाता सांचे में ढली मदमस्त काया साड़ी के आवरण में भी उतनी ही कामुक थी जितनी साड़ी के भीतर।
शिफॉन की साड़ी ने उसकी काया को और उभार दिया था भरी-भरी चूचियां पतली गोरी कमर और भरे पूरे नितंब हर युवा और अधेड़.. सुगना के शरीर पर एक बार अपनी निगाह जरूर फेर लेता। और जिसने उसके कोमल और मासूम चेहरे को देख लिया वह तो जैसे उसका मुरीद हो जाता। एक बार क्या बार-बार जब तक सुगना उसकी निगाहों की के दायरे में रहती वह उस खूबसूरती का आनंद लेता।
सुगना धीरे-धीरे दर्शक दीर्घा में आ गई…
सोनू ने सुगना और सरयू सिंह के बैठने का प्रबंध किया और सुगना का पुत्र सूरज सरयू सिंह की गोद में आकर उनसे खेलने लगा सूरज और सरयू सिंह का प्यार निराला था। सरयू सिंह की उम्र ने सूरज को उन्हें बाबा बोलने पर मजबूर कर दिया था ….
मधु सुगना की गोद में बैठी चारों तरफ एक नए नजारे को देख रही थी उस मासूम को क्या पता था कि आज उसके पिता सोनू एक प्रतिष्ठित पद की शपथ लेने जा रहे थे..
सूट बूट में सोनू एक दूल्हे की तरह लग रहा था था . सुगना ने अधिकतर युवकों को सूट-बूट विवाह समारोह के दौरान ही पहनते देखा था।
सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर टिक जाती और वह अपनी हथेलियों को मोड़ कर अपने कान के पास लाती और मन ही मन सोनू की सारी बलाइयां उतार लेती मन ही मन वह अपने अपने इष्ट देव से सोनू को हर खुशियां और उसकी हर इच्छा पूरी करने के लिए वरदान मांगती.. परंतु शायद सुगना यह नहीं जानती थी कि इस समय सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ एक इच्छा थी और वह सिर्फ सुगना ही पूरा कर सकती थी। और वह इच्छा पाठको की इच्छा से मेल खाती थी।
सुगना की प्रार्थना भगवान ने भी सुनी और नियति ने भी जिस मिलन की प्रतीक्षा सोनू न जाने कब से कर रहा था सुगना ने अनजाने में ही अपने इष्ट देव से सोनू की खुशियों के रूप में वही मांग लिया था..
मंच पर गहमागहमी बढ़ गई…. सभी मानिंद लोक मंच पर आसीन हो चुके थे मुख्य अतिथि का इंतजार अब भी हो रहा था।
अचानक सिक्युरिटी वालों के सुरक्षा घेरे में एक महिला आती हुई दिखाई पड़ी। दर्शक दीर्घा में कुछ लोग खड़े हो गए… फिर क्या था… एक के पीछे एक धीरे धीरे सब एक दूसरे का मुंह ताकते ……..परंतु उन्हें खड़ा होते देख स्वयं भी खड़े हो जाते … कुछ ही देर में पंडाल में बैठे सभी लोग खड़े हो गए सुगना और सरयू सिंह भी उनसे अछूते न थे धीरे-धीरे महिला मंच के करीब आ गई।
सुगना की निगाह उस महिला पर पड़ते सुगना बोल उठी…
"अरे यह तो मनोरमा मैडम है…अब तक सरयू सिंह ने भी मनोरमा को देख लिया था जिस मनोरमा को बीती रात उन्होंने जी भर कर चोदा था आज वह चमकती दमकती अपने पूरे शौर्य और ऐश्वर्य में अपने काफिले के साथ इस मंच पर आ चुकी थी।
उद्घोषणा शुरू हो चुकी थी…और सभी अपने अपने मन में चल रहे विचारों को भूलकर उद्घोषणा सुनने में लग गए…
आज मनोरमा के चेहरे पर एक अजब सी चमक थी सरयू सिंह और मनोरमा की निगाहें मिली। मनोरमा ने न चाहते हुए भी सरयू सिंह के चेहरे से अपनी निगाहें हटा ली और सामने बैठी अपनी जनता को सरसरी निगाह से देखने लगी।.
मंच पर बैठने के पश्चात उसने अपनी निगाहों से सुगना को ढूंढने की कोशिश की ….सरयू सिंह के बगल में बैठी सुगना को देखकर मनोरमा ने मुस्कुरा कर सुगना का अभिवादन किया। परंतु सुगना ने अपना हाथ उठाकर मनोरमा का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की। सुगना के मासूमियत भरे अभिवादन से मनोरमा खुद को ना रोक पाई और उसने भी हाथ उठाकर सुगना के अभिवादन का जवाब दे दिया।
दर्शक दीर्घा में बैठे सभी लोग उस शख्स की तरफ देखने लगे जिसके लिए मनोरमा ने अपने हाथ हिलाए थे… सुगना को देखकर सब आश्चर्यचकित थे मनोरमा और सुगना के बीच के संबंध को समझ पाना उनके बस में न था…सरयू सिंह मन ही मन घबरा रहे थे की कहीं सुगना और मनोरमा अपनी बातें एक दूसरे से साझा न कर लें…
डर चेहरे से तेज खींच लेता है…. सरयू सिंह अचानक खुद को निस्तेज महसूस कर रहे थे.. वह वह अपना ध्यान मनोरमा से हटाकर सूरज के साथ खेलने लगे..
उधर मंच पर बैठी मनोरमा सरयू सिंह और सुगना को देख रही थी नियति ने दो अनुपम कलाकृतियों को पूरी तन्मयता से गढ़ा था उम्र का अंतर दरकिनार कर दें तो शायद सरयू सिंह और सुगना खजुराहो की दो मूर्तियों की भांति दिखाई पड़ रहे थे एक बार के लिए मनोरमा ने अपने प्रश्न के उत्तर में सुगना को खड़ा कर लिया परंतु उसका कोमल और तार्किक मन इस बात को मानने को तैयार न था कि सरयू सिंह अपनी पुत्री की उम्र की पुत्रवधू सुगना के साथ ऐसा संबंध रख सकते है…
मंच पर मनोरमा मैडम का उनके कद के अनुरूप भव्य स्वागत किया गया । सरयू सिंह मनोरमा की पद और प्रतिष्ठा के हमेशा से कायल थे और आज उसे सम्मानित होता देख कर स्वयं गदगद हो रहे थे। मनोरमा के सम्मान से उन्होंने खुद को जोड़ लिया था आखिर बीती रात मनोरमा और सरयू सिंह एक ऐसे रिश्ते में आ चुके थे जो शायद आगे भी जारी रह सकता था।
स्वागत भाषण के पश्चात अब बारी थी इस प्रोग्राम के सबसे काबिल और होनहार युवा एसडीएम को बुलाने..की…
सभी प्रतिभागीयों के परिवार के लोग उस व्यक्ति के नाम का इंतजार कर रहे थे जो इस ट्रेनिंग की बाद हुई परीक्षा में अव्वल आया था और जिसे इस कार्यक्रम में सबसे पहले सम्मानित किया जाना था..
प्रतिभागियों के परिवार को शायद इसका अंदाजा न रहा हो परंतु सभी प्रतिभागी यह जानते थे कि उनका कौन इस ट्रेनिंग प्रोग्राम की शान था और वही निर्विवाद रूप से इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का सबसे होनहार व्यक्ति था।
उद्घोषक ने मंच पर आकर कहा …
अब वह वक्त आ गया है कि इस ट्रेनिंग प्रोग्राम के सबसे होनहार और लायक प्रतिभागी का नाम आप सबके सामने लाया जाए आप सब को यह जानकर हर्ष होगा कि यह वही काबिल प्रतिभागी हैं जिन्होंने पिछली बार पीसीएस परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था…
उद्घोषक के कहने से पहले ही भीड़ से संग्राम सिंह …संग्राम सिंह…. की आवाज गूंजने लगी…
अपने सोनू का नाम भीड़ के मुख से सुनकर सुगना आह्लादित हो उठी उसने पीछे मुड़कर देखा। पीछे खड़ी भीड़ गर्व से संग्राम सिंह का नाम ले रही थी।
उद्घोषक ने भीड़ की आवाज थमने का इंतजार किया और बोला आप लोगों ने सही पहचाना वह संग्राम सिंह ही हैं मैं मंच पर उनका स्वागत करता हूं और साथ ही स्वागत करता हूं उनकी बहन सुगना जी का जिनके मार्गदर्शन और सहयोग से संग्राम सिंह जी ने यह मुकाम हासिल किया है। सुगना बगले झांक रही थी…उसे इस आमंत्रण की कतई उम्मीद न थी।
उद्घोषक ने एक बार फिर कहा मैं संग्राम सिंह जी से अनुरोध करता हूं कि अपनी बहन सुगना जी को लेकर मंच पर आएं और मनोरमा जी के द्वारा अपना पुरस्कार प्राप्त करें..
सोनू न जाने किधर से निकलकर सुगना के ठीक सामने आ गया सुगना मंच पर जाने में हिचक रही थी परंतु नाम पुकारा जा चुका था सरयू सिंह ने मधु को सुगना की गोद से लेने की कोशिश की परंतु वह ना मानी और सुगना अपनी गोद में छोटी मधु को लेकर सोनू के साथ मंच की तरफ बढ़ चली…
मंच पर पहुंचकर सुगना को एक अलग ही एहसास हो रहा था सारी निगाहें उसकी तरफ थी। मनोरमा मैडम के पास पहुंचकर मनोरमा ने सोनू और सुगना दोनों से हाथ मिलाया। सुगना की हथेली को छूकर मनोरमा को एहसास हुआ जैसे उसने किसी बेहद मुलायम चीज को छू लिया हो मनोरमा एक बार फिर वही बात सोचने लगी कि ग्रामीण परिवेश में रहने के बावजूद सुगना इतनी सुंदर और इतनी कोमल कैसे थी ।
दो सुंदर महिलाएं और सोनू कैमरे की चकाचौंध में स्वयं को व्यवस्थित कर रहे थे फोटोग्राफी पूरी होने के पश्चात उद्घोषक ने सुगना को माइक देते हुए कहा
"अपने भाई के बारे में कुछ कहना चाहेंगी?"
सुगना का गला रूंध आया अपने भाई की सफलता पर सुगना भाव विभोर थी उसके मुंह से शब्द ना निकले परंतु आंखों से बह रहे खुशी के हाथों ने सुगना की भावनाओं को जनमानस के सामने ला दिया..
सुगना ने अपने कांपते हाथों से माइक पकड़ लिया और अपने बाएं हाथ से अपने खुशी के आंसू पूछते हुए बोली..
"मेरा सोनू निराला है आज उसने हम सब का मान बढ़ाया है मैं भगवान से यही प्रार्थना करूंगी कि उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो और वह हमेशा खुश रहे…"
तालियों की गड़गड़ाहट ने एक बार फिर सुगना को भावविभोर कर दिया उसने आगे और कुछ न कहा तथा माइक सोनू को पकड़ा दिया..
आखिरकार माइक सोनू उर्फ संग्राम सिंह के हाथों में आ गया। उसने सब को संबोधित करते हुए कहा मेरी
"मेरी सुगना दीदी मेरा अभिमान है मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है और मैंने यह निश्चय किया है कि जिसने मेरे जीवन को सजा सवार कर मुझे इस लायक बनाया है मैं जीवन भर उनकी सेवा करता रहूंगा मैं इस सफलता में अपनी मां पदमा और अपने सरयू चाचा का भी शुक्रगुजार हूं…"
पंडाल में बैठे लोग एक बार फिर तालियां बजाने लगे। सूरज भी अपनी छोटी-छोटी हथेलियों से अपने मामा सूरज के लिए ताली बजा रहा था।
सुगना और सोनू के इस भावुक क्षण में वासना न जाने कहां गायब हो गई थी समाज में सोनू और सुगना एक आदर्श भाई-बहन के रूप में प्रतिस्थापित हो चुके थे।
सोनू के पश्चात और भी प्रतिभागियों का सम्मान किया गया। सम्मान समारोह के पश्चात सुगना गंगाधर स्टेडियम से बाहर आ गई…वह मनोरमा मैडम से और कुछ बातें करना चाहती थी परंतु मंच पर उसके और मनोरमा मैडम के बीच की दूरी इतनी ज्यादा थी की उसको पाट पाना असंभव था।
सोनू आज बेहद प्रसन्न था. वह अपनी बड़ी बहन सुगना को हर खुशी से नवाजना चाहता था। ट्रेनिंग के पैसे उसके खाते में आ चुके थे और वह अपनी सुगना दीदी की पसंद की हर चीज उसके कदमों में हाजिर करना चाहता था।
बाहर धूप हो चुकी थी सुबह का सुहानापन अब गर्मी का रूप ले चुका था बच्चे असहज महसूस कर रहे थे सोनू ने सुगना से कहा
" रिक्शा कर लीहल जाओ"
"सूरज खुश हो गया और चहकते हुए बोला
"हां मामा"
सोनू ने रास्ते में चलते हुए दो रिक्शे रोक लिए अब बारी रिक्शा में बैठने की थी।
नियति दूर खड़ी नए बनते समीकरणों को देख रही थी सूरज और सरयू सिंह एक रिक्शे में बैठे और दूसरे में सोनू और सुगना। सोनू की गोद में उसकी पुत्री खेल रही थी …. बाहर भीड़ से निकल रहे लोग रिक्शे में बैठे सोनू और सुगना को देखकर अपने मन में सोच रहे थे कि यदि सोनू और सुगना पति-पत्नी होते तो शायद यह दुनिया की सबसे आदर्श जोड़ी होती। गोद में मधु सोनू और सुगना को पति-पत्नी के रूप में सोचने को मजबूर कर रही थी।
राह चलते व्यक्ति के लिए रिक्शे में बैठे स्त्री पुरुष और गोद में छोटे बच्चे को देखकर यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि वह भाई बहन है…
रिक्शा जैसे ही सिग्नल पर खड़ा हुआ पास के रिक्शे में बैठी एक युवा महिला ने सुगना की गोद में खेल रही मधु को देखकर कहा..
" कितनी सुंदर बच्ची है"
साथ बैठी अधेड़ महिला ने कहा
"जब बच्चे के मां बाप इतने सुंदर है तो बच्चा सुंदर होगा ही" औरत ने अपने अनुभव से रिश्ता सोच लिया।
उस औरत की आवाज सुनकर सुगना ने तपाक से जवाब दिया…
"ये मेरा भाई है पति नहीं"
शायद सुगना सोनू के बारे में ही सोच रही थी जिसकी जांघें सुगना से रगड़ खा रही थी। सुगना सचेत थी और सोनू से सुरक्षित दूरी बनाए हुए थी।
स्त्री पुरुष के बीच रिश्तों का सही अनुमान लगाना आपके अनुभव और विचार पर निर्भर करता है जिन लोगों ने मंच पर सुगना और सोनू को आदर्श भाई बहन के रूप में देखा था अब वह रिक्शे पर बैठे सोनू और सुगना को देखकर उन्हें पति पत्नी ही समझने लगे..थे..
वैसे भी रिश्ते भावनाओं के अधीन होते हैं …सामाजिक रिश्ते चाहे जितने भी प्रगाढ़ क्यों न हो यदि उनके बीच वासना ने अपना स्थान बना लिया वह रिश्तो को दीमक की तरह खा जाती है।
सोनू और सुगना जो आज से कुछ समय पहले तक एक आदर्श भाई बहन थे न जाने कब उनके रिश्तो के बीच दीमक लग चुकी थी। यदि सोनू अपने जीवन के पन्ने पलट कर देखें तो इसमें बनारस महोत्सव का ही योगदान माना जाएगा… जिसमें उसने पहली बार सुगना को सिर्फ और सिर्फ एक नाइटी में देखा था शायद उसके अंतर्वस्त्र भी उस समय उसके शरीर पर न थे…उसी महोत्सव के दौरान जब उसने सुगना को लाली समझकर पीछे से पकड़कर उठा लिया था और अपने तने हुए लंड को सुगना के नितंबों में लगभग धसा दिया था।
उसके बाद से वासना एक दीमक की तरह सोनू के दिमाग में अपना घर बना चुकी थी।भाई बहन के रिश्तो को तार-तार करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका लाली ने अदा की थी जो मुंह बोली बहन होने के बावजूद अपने पति के सहयोग से सोनू से बेहद करीब आ गई थी और अब उसके साथ हर तरह के वासना जन्य कृत्य कर रही थी।
सोनू के कोमल मन पर धीरे धीरे भाई-बहन के बीच संबंधों का मोल कम होता गया था और वासना अपना आकार बढ़ाती जा रही थी.और अब वर्तमान में सोनू सुगना को अपनी बड़ी बहन के रूप में कम अपनी अप्सरा के रूप में ज्यादा देखता था.. और उसे प्रसन्न और खुश करने के लिए जी तोड़ कोशिश करता था…
सोनू और सुगना दोनों शायद एक दूसरे के बारे में ही सोच रहे थे वक्त कब निकल गया पता ही न चला। धीरे-धीरे रिक्शा गेस्ट हाउस में पर पहुंच चुका था…
सोनू रिक्शे से उतरा और सुगना को अपने हाथों का सहारा देकर उतारने की कोशिश की… सुगना की कोमल हथेलियां अपनी हथेलियों में लेते ही सोनू को एक अजब सा एहसास हुआ उसका लंड अपनी जगह पर सतर्क हो गया। रास्ते में दिमाग में चल रही बातें ने उसके लंड पर लार की बूंदे ला दी थी..
वासना सचमुच अपना आकार बढ़ा रही थी।
कमरे में पहुंचकर सुगना और सोनू अभी अपनी पीठ सीधी ही कर रहे थे कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई ..
"कम ईन" सोनू ने आवाज दी।
बाहर खड़े व्यक्ति ने दरवाजा खोला और अंदर आकर बोला
" सर मनोरमा मैडम की गाड़ी आई है उनका ड्राइवर आपको बुला रहा है…"
सोनू घबरा गया…वह उठकर बाहर आया और गेस्ट हाउस के बाहर मनोरमा मैडम की गाड़ी देखकर उसके ड्राइवर के पास गया और बोला
"क्या बात है?"
"मनोरमा मैडम ने यह पर्ची सुगना जी के लिए दी है"
सोनू ने कांपते हाथों से वह पर्ची ली उसके मन में न जाने क्या-क्या चल रहा था । सुगना और मनोरमा की एक दो चार बार ही मुलाकात हुई थी यह बात सोनू भली भांति जानता था परंतु मनोरमा मैडम सुगना दीदी के लिए कोई संदेश भेजें यह उसकी कल्पना से परे था।
वह भागते हुए सुगना के कमरे में आ गया और सुगना से बोला
" दीदी मनोरमा मैडम ने देख तोहरा खातिर का भेजले बाड़ी "
सोनू के हांथ में खत देखकर सुगना ने बेहद उत्सुकता से कहा
"तब पढ़त काहे नइखे"
सोनू ने पढ़ना शुरू किया..
"सुगना जी मैं मंच पर आपसे ज्यादा बातें नहीं कर पाई और आपको समय न दे पाई पर मेरी विनती है कि आप अपने बच्चों सरयू सिंह जी और सोनू के साथ मेरे घर पर आए और दोपहर का भोजन करें इसी दौरान कुछ बातें भी हो जाएंगी… मैं आपका इंतजार कर रही हूं"
मनोरमा का निमंत्रण पाकर सुगना खुश हो गई वह सचमुच मनोरमा से बातें करना चाहती थी सोनू ने जब यह खबर सरयू सिंह को दी उनके होश फाख्ता हो गए एक अनजान डर से उनकी घिग्गी बंध गई उन्होंने कहा
"सोनू बेटा हमरा पेट दुखाता तू लोग जा हम ना जाईब"
सुगना ने भी सरयू सिंह से चलने का अनुरोध किया और बोली
"मनोरमा मैडम राऊर कतना साथ देले बाड़ी आपके जाए के चाहीं"
सरयू सिंह क्या जवाब देते हैं वह मनोरमा का आमंत्रण और और खातिरदारी और अंतरंगता तीनों का आनंद बीती रात ले चुके थे और अब सुगना के साथ जाकर वह वहां कोई असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहते थे।
उनकी दिली इच्छा तो यह थी कि सुगना और मनोरमा कभी ना मिले परंतु नियति को नियंत्रित कर पाना उनके बस में ना था। जब वह स्थिति को नियंत्रित करने में नाकाम रहे उन्होंने पलायन करना ही उचित समझा और सब कुछ ऊपर वाले के हवाले छोड़ कर चादर तान कर सो गए।
सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..
नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..
दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..
मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..
##
कुछ होने वाला था…
शेष अगले भाग में…
पाठकों की संख्या मन मुताबिक होने के कारण मैं यह अपडेट कहानी के पटल पर डाल रहा हूं।
पर अपडेट 90और 91 ऑन रिक्वेस्ट ही उपल्ब्ध है..
जिन पाठकों की इस अपडेट पर प्रतिक्रिया आ जाएगी उन्हें अगला अपडेट एक बार फिर भेज दिया जाएगा आप सबका साथ ही इस कहानी को आगे बढ़ाएगा जुड़े रहिए और कहानी का आनंद लेते रहे धन्यवाद
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भाग 93
सुगना और सोनू मनोरमा मैडम के घर जाने के लिए तैयार होने लगे दोनों ..
नियति सक्रिय थी कहानी की और कहानी की पटकथा को अपनी कल्पनाओं से आकार दे रही थी..
दोनों बच्चे एंबेसडर कार में बैठकर चहक उठे सूरज आगे ड्राइवर के बगल में बैठ कर उससे ढेरों प्रश्न पूछ रहा था जैसे कार चलाना एक ही पल में सीख लेगा..
मनोरमा की एंबेसडर कार सरयू सिंह की दोनों प्रेमिकाओं को एक दूसरे से मिलाने के लिए लखनऊ की सड़कों पर सरपट दौड़ रही थी और सोनू अपनी मैडम के घर जाने को तैयार बड़े अदब से अपने कपड़े ठीक कर रहा था..
अब आगे
मनोरमा की एंबेसडर कार उसके खूबसूरत बंगले के पोर्च में आकर खड़ी हो गई। सागौन की खूबसूरत लकड़ी से बना विशालकाय दरवाजा खुल गया।
मनोरमा शायद सुगना का इंतजार ही कर रही थी। उसने दरवाजा स्वयं खोला था… घर में इतने सारे नौकर चाकर होने के बावजूद मनोरमा का स्वयं उठकर दरवाजा खोलना यह साबित करता था कि वह सुगना से मिलने को कितना अधीर थी।
ड्राइवर ने उतरकर सुगना की तरफ का कार का दरवाजा खोला और सुगना अपनी साड़ी ठीक करते हुए उतर कर मनोरमा के बंगले के दरवाजे के सामने आ आ गई।
सरयू सिंह के प्यार से सिंचित दो खूबसूरत महिलाएं एक दूसरे के गले लग गई। हर बार की तरह सुगना की कोमल चुचियों ने मनोरमा की चुचियों को अपनी कोमलता और अपने अद्भुत होने का एहसास दिला दिया।
सोनू अपनी पुत्री मधु को लेकर उतर रहा था। वह आश्चर्यचकित था कि ड्राइवर ने उस जैसे नए-नए एसडीएम को छोड़कर सुगना का दरवाजा क्यों खोला था। इसमें जलन की भावना कतई न थी वह इस बात से बेहद प्रभावित था कि सुगना दीदी का आकर्षण सिर्फ उस पर ही नहीं अपितु उनके संपर्क में आए सभी व्यक्तियों पर वैसे ही चढ़ जाता था…..
क्या स्त्री क्या पुरुष .. क्या राजा… क्या रंक ….जिस तरह एक सुंदर बच्चा सबको प्यारा लगता है सुगना भी सबका मन मोहने में सक्षम थी…जितनी सुंदर तन उतना सुंदर मन….. चाहे वह गांव की बूढ़ी औरतें हो या छोटे बच्चे…वह सब की प्यारी थी…..और उन मर्दों का क्या जिनके जांघों के जोड़ पर अब भी हरकत होती थी.. उन्हें तो सुगना शिलाजीत को गोली लगती थी…जिसे देखकर और कल्पना कर वह अपनी पत्नी या महबूबा की अगन बुझाया करते थे।
शायद ड्राइवर भी इस पहली मुलाकात में ही सुगना के तेज और व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया था जो वासनाजन्य कतई न था…और शायद इसीलिए उसने उतरकर कार का दरवाजा सुगना के लिए खोला था…
सुगना के बाद मनोरमा ने सोनू का भी अभिवादन किया और सोनू ने अपने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा को प्रणाम किया परंतु सुगना तपाक से बोल पड़ी
"अरे सोनू मैडम जी के पैर छू ये तुम्हारी गुरु हैं…"
सोनू ने झुककर मनोरमा के पैर छुए परंतु मनोरमा ने सोनू को बीच में ही रोक लिया।
जात पात धर्म सबको छोड़ आज सुगना ने सोनू को मनोरमा के चरणों में ला दिया था शायद यह मनोरमा के आत्मीय व्यवहार और उसके कद की देन थी।
आदर और सम्मान आत्मीयता से और बढ़ता है शायद मनोरमा के इस अपनेपन से सुगना प्रभावित हो गई थी।
यद्यपि मनोरमा सुगना से भी उम्र में 8 से 10वर्ष ज्यादा बड़ी थी परंतु सुगना ने मनोरमा के पैर नहीं छूए उन दोनों का रिश्ता सहेलियों का बन चुका था और वह अब भी कायम था।
सूरज को अपनी गोद में उठाकर मनोरमा ने उसे पप्पी दी। सूरज निश्चित ही अनोखा बालक था…उसने पप्पी उधार न रखी और मनोरमा के खूबसूरत होंठों को चूम लिया….मनोरमा को यह अटपटा लगा पर तीन चार वर्ष के बच्चे के बारे में कुछ गलत सोचना अनुचित था मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…
"नॉटी बॉय"
सुगना ने सूरज को आंखे दिखाई और सूरज ने एक बार फिर मनोरमा के गालों पर पप्पी देकर पुरानी गलती भुलाने की कोशिश की…
दरअसल सुगना के अत्यधिक लाड प्यार से सूरज कई बार सुगना के होठों पर पप्पी दे दिया करता था और सुगना कभी मना न करती थी पर एक दिन जब उसने लाली के सामने सुगना के होंठो पर पप्पी दी लाली बोल पड़ी..
लगता ई अपना मामा (सोनू) पर जाई..
सुगना और लाली दोनों हसने लगे..उसके बाद सुगना ने सूरज की यह आदत छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर कभी कभी सूरज ऐसा कर दिया करता था…उसकी इस आदत की एक और कद्रदान थी वह थी सोनी…. एक तरफ .सुगना सूरज की आदत छुड़ाने को कोशिश करती उधर सोनी को यह बालसुलभ लगाता…उसे उसे सूरज के कोमल होंठ चूसना बेहद आनंददायक लगता और यही हाल सूरज का भी था…
सूरज वैसे भी अनोखा था..और हो भी क्यों न सरयू सिंह जैसे मर्द और सुगना जैसे सुंदरी का पुत्र अनोखा होना था सो था….
सूरज मनोरमा की गोद से उतरकर खेलने लगा..
मनोरमा का ड्राइंग रूम आज भरा भरा लग रहा था….
पिछले एक-दो दिनों में ही मनोरमा का खालीपन अचानक दूर हो गया था…. जैसे उसे कोई नया परिवार मिल गया था… मनोरमा उन सब से तरह-तरह की बातें कर रही थी…. ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे वह एक प्रतिष्ठित प्रशाशनिक अधिकारी थी।
घर ने नौकरों ने मनोरमा को इतना सहज और प्रसन्न शायद ही कभी देखा हो..
सहजता चेहरे पर निखार लाती है…अकड़ तनाव
गप्पे लड़ाई जा रही थीं। बातों के कई टॉपिक सोनू नया-नया एसडीएम बना था मनोरमा कभी उसे प्रशासन के गुण सिखाती कभी सुगना की तारीफ के पुल बांध देती। सुगना और सोनू दोनों मनोरमा के मृदुल व्यवहार के कायल हुए जा रहे थे।
कुछ देर बातें करने के बाद सूरज ने बाहर बगीचा देखने की जिद की और सोनू उसे लेकर मनोरमा का खूबसूरत बगीचा दिखाने लगा।
अंदर से मनोरमा की नौकरानी मधु को लिए ड्राइंग रूम में लेकर आ गई और मनोरमा को देखते हुए बोली मैडम बेबी आपके पास आना चाह रही है।
सुगना ने कौतूहल भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा और पूछा..
"कितनी सुंदर है ..किसकी बेटी है यह.."
मनोरमा ने पिंकी को अपनी गोद में ले लिया और अपने आंचल में ढककर झट से अपनी चूचियां पकड़ा दी … सुगना को उसके प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था..
सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़े और अपने भगवान को याद करते हुए बोली
"चलिए भगवान ने प्रार्थना सुन ली और आपकी गोद में इस फूल सी बच्ची को दे दिया "
सुगना ने भी अपने हाथ जोड़कर कभी न कभी मनोरमा के लिए दुआ मांगी थी यह अलग बात थी कि उसे इसकी उम्मीद कम ही थी शायद इसीलिए उसने यह जानने की कोशिश न थी कि मनोरमा की गोद भरी या नहीं।
सुगना को क्या पता था कि जिस रसिया ने उसके जीवन में रंग भरे थे उसी रसिया ने मनोरमां की कोख में भी रस भरा था।
जब बच्चे का जिक्र आया तो सुगना ने बड़े अदब से पूछा
"साहब कहां है"
सुगना को इस बात का पता न था कि मनोरमा सेक्रेटरी साहब को छोड़कर अब अकेले रहती है। उसने स्वाभाविक तौर पर यह पूछ लिया परंतु मनोरमा ने कहा "अब वह यहां नहीं रहते"
मनोरमा ने इस बारे में और बातें न की और नौकरानी द्वारा लाए गए नाश्ते को सुगना को देते हुए बोली
"अरे यह ठंडा हो जाएगा पहले इसे खत्म करिए फिर खाना खाते हैं"
सुगना और मनोरमा ने इधर उधर की ढेर सारी बातें की सब मिलजुल कर खाना खाने लगे..
सुगना की पुत्री मधु ( जो दरअसल लाली और सोनू की पुत्री है) और मनोरमा की पुत्री पिंकी दोनों को एक ही पालना में लिटा दिया गया…शायद यह पालना जरूरत से ज्यादा बड़ा था। दोनों एक दूसरे को देखती और एक दूसरे के गालो को छूकर जैसे एक दूसरे को प्यार करती मनोरमा और सुगना उन्हें खेलते देख मुस्कुरा रही थीं। एक और शख्स था जो उन दोनों को एक साथ देख कर बेहद उत्साहित था और वह था छोटा सूरज।
वह अपनी प्लेट से दाल अपनी उंगलियों में लेता और जाकर मधु और पिंकी के कोमल होंठों पर चटा देता .. दोनों अपनी छोटी-छोटी जीभ निकालकर उस दाल के स्वाद का आनंद लेती और खुश हो जाती मनोरमा और सुगना सूरज के इस प्यार को देख रही थी मनोरमा से रहा न गया उसने कहा..
" सूरज अपनी बहन मधु का कितना ख्याल रखता है…?"
सुगना भी यह बात जानती थी परंतु उसने मुस्कुराते हुए कहा
"अरे थोड़ा बड़े होने दीजिए झगड़ा होना पक्का है"
"और इस शैतान पिंकी को तो देखिए सूरज की उंगलियों से कैसे दाल चाट रही है ऐसे खिलाओ तो नखरे दिखाती है" मनोरमा ने फिर कहा..
"लगता है पिंकी का भी बच्चों में मन लग रहा है शायद इसीलिए वह खुश है"
सुगना ने स्वाभाविक उत्तर दिया।
खाना परोस रही युवती के रूप में नियति सारे घटनाक्रम बारीकी से देख रही थी…उसने सूरज के भविष्य में झांकने की कोशिश की…पर कुछ निष्कर्ष निकाल पाने में कामयाब न हो पाई…
खाना लगभग खत्म हो चुका था। और अब बारी थी मनोरमा के खूबसूरत घर को देखने की. सुगना वह घर देखना चाहती थी पर बोल पाने की हिम्मत न जुटा पा रहे थी..
सुगना जब भी मौका मिलता मनोरमा के घर की भव्यता को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर निहार लेती सुगना ने भव्यता की दुनिया में अब तक कदम न रखा था वह ग्रामीण परिवेश से निकलकर शहर में आज जरूर गई थी परंतु आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी न थी।
सुंदर वस्तुएं किसे अच्छी नहीं लगती मनोरमा के घर की हर चीज खूबसूरत थी…
मनोरमा ने सुगना की मनोस्थिति ताड़ ली और बोली चलिए आपको अपना घर दिखाती हूं..
सुगना खुशी-खुशी मनोरमा के साथ चल पड़ी और एक बार फिर बच्चों को संभालने का जिम्मा सोनू पर आ गया।
सुगना को मनोरमा ने पूरा घर दिखाया…जितना सुगना ने पूछा उतना बताया ….और आखरी में सुगना मनोरमा के उस बेडरूम में आ गई जिस पर बीती रात सरयू सिंह और मनोरमा ने जन्नत का आनंद लिया था..
मनोरमा का बिस्तर बेहद खूबसूरत था…पलंग के सिरहाने पर मलमल के कपड़े से तरह-तरह की डिजाइन बनाई गई थी बेड की खूबसूरती देखने लायक थी सुगना से रहा न गया उसने मनोरमा से पूछ लिया यह तो लगता है बिल्कुल नया है…
हां इसी घर में आने के बाद लिया है….
नियति मुस्कुरा रही थी। मनोरमा जैसे सेक्रेटरी साहब को पूरी तरह भूल जाना चाहती थी। नए घर में आते समय वह जानबूझकर उस पुराने पलंग को वहीं छोड़ आई थी जिस पर सेक्रेटरी साहब ने उसकी सुंदर काया का सिर्फ और सिर्फ शोषण किया था।
सुगना ने घर देखने के दौरान यह नोटिस कर लिया था कि पूरे घर में सेक्रेटरी साहब की एक भी फोटो न थी सुगना समझदार महिला थी और उसने शायद यह अंदाजा लगा लिया कि सेक्रेटरी साहब मनोरमा के साथ शायद नहीं रहते…..
मनोरमा और सुगना बिस्तर पर बैठ कर बातें कर रही थी अचानक मनोरमा ने अपने मन की बात सुनना से पूछ ली..
"एक बात बताइए सरयू जी ने विवाह क्यों नहीं किया ?क्या आपको पता है…?"
सुगना को ऐसे प्रश्न की उम्मीद मनोरमा से कतई न थी वह असहज हो गई फिर भी उसने स्वयं को संतुलित किया और बोली..
"मुझे कैसे पता होगा जब उनकी शादी करने की उम्र थी तब तो शायद में पैदा भी नहीं हुई थी.."
बात सच थी मनोरमा के प्रश्न का उत्तर सुगना ने बखूबी दे दिया था…
"परंतु मुझे लगता है सरयू सिंह जी के जीवन में कोई ना कोई महिला अवश्य है" मनोरमा ने गम्भीरता से कहा..
सुगना घबरा गई उसके और सरयू सिंह के बीच के संबंध यदि जगजाहिर होते तो वह कहीं मुंह दिखाने के लायक न रहती। अचानक उसके दिमाग में कजरी का ध्यान आया उसने मनोरमा के प्रश्न को बिल्कुल खारिज न किया अपितु मुस्कुराते हुए बोली
"लगता तो नहीं …..पर होगा भी तो वह बाबूजी ही जाने.."
सुगना ने बाबूजी शब्द पर जोर देकर खुद को मनोरमा के शक से दूर करने को कोशिश की.
"लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है ?" अब की बार सुगना ने प्रश्न किया। मनोरमा तो जैसे ठान कर बैठी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा
" बनारस महोत्सव का वो कमरा याद है…"
"हा"
"मैंने उस कमरे से सरयू सिंह के साथ एक महिला को निकलते हुए देखा था.."
मनोरमा ने इंट्रोगेट करने की शायद पढ़ाई कर रखी थी। उसने एक छोटा झूठ बोलकर सुगना का मन टटोलने की कोशिश की… सुगना स्वयं आश्चर्यचकित थी उसकी सास कजरी कभी उस कमरे में गई न थी .. तो वह औरत कौन थी जो सरयू सिंह के साथ उस कमरे में थी…
सुगना ने बहुत दिमाग दौड़ाया पर वह किसी निष्कर्ष पर न पहुंच पाई। सरयू सिंह ने कजरी और उसके अलावा भी किसी से संबंध बनाए थे यह सुगना के लिए सातवें आश्चर्य से कम न था।
"आपको कोई गलतफहमी हुई होगी बाबूजी एसे कतई नहीं है…" यदि सुगना को सरयू सिंह की कामकला और वासनाजन्य व्यवहार का ज्ञान न होता तो शायद वह मनोरमा को उसके प्रश्न पर पूर्णविराम लगा देती।
मनोरमा ने सुगना की आवाज में आई बेरुखी को पहचान लिया और उसके चेहरे पर बदल चुके भाव को भी पढ़ लिया। शायद सुगना इस प्रश्न उत्तर के दौर से शीघ्र बाहर आना चाह रही थी।
अचानक सुगना का ध्यान मनोरमा के सिरहाने मलमल के कपड़े से बने डिजाइन पर चला गया वह अपनी उंगलियां फिराकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी अचानक उसका हाथ मलमल पर लगे दाग पड़ गया …
"वह बोल उठी अरे इतने सुंदर कढ़ाई पर यह क्या गिर गया है "
मनोरमा ने भी ध्यान दिया कई जगह मलमल के कपड़े पर छोटे-छोटे धब्बे पड़ गए थे ऐसा लग रहा था जैसे दूध या दही की बूंदे उस पर गिर पड़ी थीं।
अचानक मनोरमा को ध्यान आया वह बूंदे और कुछ न थी अपितु वह कल रात हुई घनघोर चूदाई की निशानी थीं…जो कल रात उसने नए और कुवारे बिस्तर पर हुई थी।
उसके सामने वह दृश्य घूम गया जब सरयू सिंह अपने लंड को हांथ में पकड़े अपने स्टैन गन की तरह उसके नग्न शरीर पर वीर्य वर्षा कर रहे थे… निश्चित ही यह वही था…
मनोरमा ने सुगना का ध्यान वहां से खींचने की कोशिश की और बोली..
अभी फर्नीचर वाले को फोन कर उसको ठीक करवाती हूं..
पर सुगना कच्ची खिलाड़ी न थी…सरयू सिंह के साथ तीन चार वर्षो के कामुक जीवन में उसने कामकला और उसके विविध रूप देख लिए थे…उसने अंदाज लगा लिया कि वह निश्चित ही पुरुष वीर्य था…और वह भी ज्यादा पुराना नहीं..…
उसने मनोरमा की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर बोला..
"लगता है साहब… अब भी यहाँ आते रहते हैं…"
इतना कहकर सुगना अपना हाथ धोने चली गई…
यदि उसे पता होता कि वह किसी और का नही अपितु सरयू सिंह का वीर्य था तो शायद सुगना का व्यवहार कुछ और होता।
सुगना का यह मज़ाक मनोरमा न समझ पाई …..
शायद उसे सुगना से इस हद तक जाकर बात करने की उम्मीद न थी…
सुगना ने सोच लिया शायद मनोरमा मैडम भी लाली की विचारधारा की है…हो सकता है कोई सोनू उन्हें भी मिल गया हो…तभी सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद भी उनके बिस्तर पर प्यार के सबूत कायम थे।
उधर सरयू सिंह सुगना और सोनू के आने की राह देख रहे थे उनका मन गेस्ट हाउस में कतई नहीं लग रहा था बार-बार दिमाग में यही ख्याल आ रहे थे कि सुगना और मनोरमा आपस में क्या बातें कर रही होंगी दिल की धड़कन पड़ी हुई थी..
कहते हैं ज्यादा याद करने से उस व्यक्ति को हिचकियां आने लगती हैं जिसे आप याद कर रहे हैं। शायद यह संयोग था या मनोरमा के चटपटे खाने का असर परंतु सुगना को हिचकियां आना शुरू हो गई।
मनोरमा के कमरे से आ रही सुगना की हिचकीयों की आवाज सोनू ने भी सुनी और वह डाइनिंग टेबल पर पड़ी गिलास में पानी डालकर मनोरमा के कमरे के दरवाजे सामने आकर बोला..
" दीदी पानी पी ल"
"अरे सुगना… सोनू तो तुम्हारा बहुत ख्याल रखता है देखो पानी लेकर आया है" मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा..
मनोरमा ने सोनू को अंदर बुला लिया और सोनू ने अपने हाथ में लिया हुआ ग्लास सुगना को पकड़ा दिया सुगना ने जैसे ही पानी का घूंट अपने मुंह में लिया एक बार फिर हिचकी आ गई और उसके मुंह से सारा पानी नीचे गिर पड़ा जो उसकी चुचियों पर आ गया।
ब्लाउज के अंदर कैद चूचियां भीगने लगीं। सुगना ने अपने हाथ से पानी हटाने की कोशिश की और इस कोशिश में उसकी चूचियों के बीच की दूधिया घाटी सोनू की निगाहों में आ गई। सोनू की आंखें जैसे चुचियों पर अटक सी गई पानी की बूंदे सुगना की गोरी गोरी चुचियों पर मोतियों की तरह चमक रहीं थी।
एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना की चुचियों पर गिरा पानी अपने हाथों से पोंछ दे और उन खूबसूरत और कोमल सूचियां के स्पर्श का अद्भुत आनंद ले ले परंतु मनोरमा मैडम आसपास ही थी सोनू ने अपने हाथ रोक लिए….
सुगना ने तुरंत ही सोनू की नजरों को ताड़ लिया और झट से अपने आंचल से सूचियों को ढकते हुए बोली "लागा ता बाबूजी याद करत बाड़े अब हमनी के चले के चाही…"
सोनू की नजरों ने जो देखा था उसने उसके लंड पर असर कर दिया जो अब उसकी पेंट में तन रहा था….
बिछड़ने का वक्त आ चुका था…
मनोरमा ने बिछड़ते वक़्त एक बार फिर सूरज को अपनी गोद में लिया और गाल में पप्पी दी परंतु इस बार मनोरमा सतर्क थी सूरज के होठों को आगे बढ़ते देख उसने झट से अपने गाल आगे कर दिये.. नटखट सूरज मनोरमा के गालों पर पप्पी लेकर नीचे उतर गया…
इतनी बाते करने के बावजूद मनोरमा उस महिला का नाम जानने में नाकाम रही जिसके हिस्से का अंश वह पिंकी के रूप में अपनी झोली ने ले आई थी..
रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…
मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…कही कल बाबूजी मनोरमा के साथ ही तो नहीं थे? एक पल के लिए सुगना के दिमाग में आया परंतु कहां मनोरमा और सरयू सिंह में दूरी जमीन आसमान की थी और शायद यह सुगना की कल्पना से परे था कि सरयू सिंह अपनी भाग्य विधाता को चोद सकते हैं…
मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..
उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…और और अपनी कल्पनाओं में उन खूबसूरत चुचियों पर अपने गाल रगड़ रहा था…
सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…
शेष अगले भाग में…
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05-07-2022, 11:49 AM
भाग 94
रास्ते भर सुगना और सोनू मनोरमा की तारीफों के पुल बांधते रहे परंतु मनोरमा के बिस्तर पर वीर्य के निशान देख सुगना का मन कुछ खट्टा हो गया था…
मनोरमा की बंजर हो चुकी कोख को किसने सींचा सींचा होगा सुगना के लिए प्रश्न बन चुका था…
मनोरमा के बारे में यदि कोई शख्स बता सकता था तो वह थे उसके बाबूजी शरीर से इसके अलावा सुगना की जिज्ञासा शांत करने वाला और कोई ना था…वह एंबेसडर कार के गेस्ट हाउस पहुंचने की राह देखने लगी..
उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की चुचियों को अपने दिमाग में अनावृत कर रहा था…
सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे का इंतजार कर रहे थे पर अपने अपने प्रश्नों और जिज्ञासाओं के साथ…
अब आगे….
अंततः सुगना सोनू और दोनों छोटे बच्चे गेस्ट हाउस आ गए …लाबी में टहलते हुए सरयू सिंह सूरज को दिखाई पड़ गए और वह अपने छोटे-छोटे कदमों से भागता हुआ सरयू सिंह के पास जाकर बोला
"बाबा मैं आ गया"
अब तक सुगना भी सरयू सिंह के करीब आ चुकी थी उसने कहा बा
"बाबूजी लगता राउर तबीयत ठीक हो गईल "
"हां अब ठीक लगाता का कहत रहली मनोरमा मैडम"
"कुछो ना…लेकिन आपके खोजत रहली"
अब तक सोनू भी आ चुका था
" सरयू चाचा कितना सुंदर घर बा मनोरमा मैडम के घर एकदम महल जैसे"
जिस महल की सोनू दिल खोलकर तारीफ कर रहा था उस महल की मालकिन को सरयू सिंह बीती रात एक नहीं दो दो बार कसकर चोद कर आए थे.
सरयू सिंह का स्वाभिमान बीती रात से बुलंदियों पर था.. परंतु मन के अंदर आ चुका डर कायम था..
सुगना से और प्रश्न पूछना उचित न था सोनू बगल में ही खड़ा था। सभी लोग कमरे में आ गए सरयू सिंह भी खाना खा चुके थे। शाम को वापस बनारस जाने की ट्रेन पकड़नी थी। समय कम था सरयू सिंह और सुगना दोनों एकांत खोज रहे थे… उन दोनों को अपनी अपनी जिज्ञासा शांत करनी थी…उधर सोनू सुगना के साथ ढेरो बाते करना चाहता था..
सुगना अपने पूर्व और वर्तमान प्रेमी के बीच झूल रही थी…अंत में विजय एसडीएम साहब की हुई और वह सुगना को बाजार ले जाने में कामयाब हो गए.. आखिर उन्हें सुगना उसके बच्चों और बनारस में बैठी अपनी दोनों बहनों के लिए कुछ ना कुछ उपहार खरीदने थे। आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था और सोनू की खुशियों पर पूरे परिवार का हक था.
व्यस्तता और वासना दोनों एक दूसरे की दुश्मन है…सोनू ने आज का पूरा दिन लगभग सुगना के साथ ही बिताया था परंतु उसकी वासना व्यस्तता की भेंट चढ़ गई थी… बाजार से लौटते लौटते शाम के 6:00 बज चुके थे और 2 घंटे बाद ही मैं वापस स्टेशन के लिए निकलना था।
सोनू की हालत आजकल के आशिक हो जैसी हो गई थी जो अपनी गर्लफ्रेंड को दिन भर घुमाते शापिंग कराते दिन भर उसके खूबसूरत जिस्म और सानिध्य का लाभ उठाकर अपने लंड में तनाव भरते हैं लंड के सुपाड़े से लार टपकाते परंतु शाम ढलते ढलते विदा होने का वक्त हो जाता ….
सोनू मायूस हो रहा था दिन भर की खुशियां शाम आते आते धूमिल पड़ रही थी सुगना जाने वाली थी और सोनू का मन उदास था परंतु पूर्व निर्धारित कार्यक्रम में कोई बदलाव कर पाना संभावना न था।
सोनू को भी अपना सामान समेटकर बनारस आना था परंतु कुछ कागजी कार्रवाई पूर्ण न होने की वजह से वह चाहकर भी सुगना के साथ बनारस नहीं जा पा रहा था।
सूरज एक बार फिर उत्साहित था। ट्रेन में बैठ ना उसे बेहद अच्छा लगता था उसने सोनू से कहा
"मामा जल्दी चलो गाड़ी छूट जाएगी…"
सोनू को पल के लिए लगा जैसे सब सुगना को उससे दूर कर रहे हैं...
सोनू ने बाजार से सुगना के लिए एक बेहद खूबसूरत लहंगा चोली खरीदा था.. जो रेशम के महीन कपड़े से बना था और जिस पर हाथ की कढ़ाई की गई थी…
नकली सितारों की चमक दमक से दूर वह लहंगा चोली बेहद खूबसूरत था जिसे सामान्य तौर पर भी बिना किसी विशेष प्रयोजन के भी पहना जा सकता था..
न जाने सोनू के मन में क्या आया उसने सुगना से कहा..
"दीदी जाए से पहले कपड़वा नाप ले छोट बढ़ हुई तब बदल देब.."
समय कम था परंतु सोनू की बातें तर्कसंगत थी …
कमरे में सोनू दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा और सुगना बाथरूम में जाकर अपने कपड़े बदलने लगी…
हल्के गुलाबी रंग के लहंगा चोली में सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी सुंदर और सुडौल काया पर वस्त्र और भी खिल उठते हैं।
चोली तो जैसे सुगना की काया के लिए ही बनी थी.. चूचियों के लिए दी गई जगह शायद कुछ कम पड़ रही थी परंतु सुगना की कोमल चुचियों ने स्वयं को उन में समायोजित कर लिया था परंतु कपड़ों का तनाव चूचियों के आकार का अंदाजा बखूबी दे रहा था.. चोली की लंबाई सुगना की कमर तक आ रही थी…सोनू चाहता तो यही था कि चोली की लंबाई ब्लाउज के बराबर ही रहे….परंतु सुगना जो अब दो बच्चों की मां थी वह अपने सपाट पेट और नाभि का खुला प्रदर्शन कतई नहीं करना चाहती थी।
उसने यही चोली पसंद की थी जो उसकी कमर तक आ रही थी। परंतु सुगना को क्या पता था जिस मदमस्त कमर को वह चोली के भीतर छुपाना चाहती वह छिपने लायक न थी । चोली में सुगना की खूबसूरती को और उभार दिया था..
सोनू सुगना को देखकर फूला नहीं समा रहा था। उसकी अप्सरा उसकी आंखों के सामने उसके द्वारा दिए गए वस्त्र पहने अपने बाल संवारे रही थी.. काश सुगना उसकी बहन ना होती तो शायद इतनी आवभगत करने का इनाम सोनू अवश्य ले लिया होता।
सरयू सिंह वापस आ चुके थे और सुगना को लहंगा चोली में देखकर दंग रह गए..
सुगना अपनी युवा अवस्था में हमेशा लहंगा और चोली ही पहनती भी और सरयू सिंह के हमेशा से उसके इस पहनावे के कायल थे…सपाट पेट और उस पर छोटी सी नाभि.. सरयू सिंह को बेहद भाती।
जब पहली बार जब सरयू सिंह और सुगना ने मिलकर दीपावली मनाई थी उस दिन भी सुगना ने लहंगा और चोली ही पहना था।
सुगना के उस दिव्य स्वरूप को याद कर सरयू सिंह को कुछ हुआ हो या ना हुआ हो परंतु लंगोट में कैद सुगना का चहेता लंड हरकत में आ रहा था।
वह तो भला हो सरयू सिंह के कसे हुए लंगोट का अन्यथा वह अब तक उछल कर अपने आकार में आ रहा होता। सरयू सिंह ने सुगना से कहा
" चला देर होता वैसे भी स्टेशन में आज ढेर भीड़ भाड़ होखी"..
"बाबूजी रुक जा जाई कपड़ा बदल के चलत बानी"
"अरे कपड़ा ठीक त बा… यही पहन के चला फिर बदले में देर होखी "
सरयू सिंह देरी कतई नहीं करना चाहते थे…उन्होंने हनुमान जी की तरह दोनों बच्चों को गोद में लिया और गेस्ट हाउस से बाहर आने लगे।
कुछ ही देर बाद एक बार फिर सोनू अपनी बहन सुगना के साथ रिक्शे में बैठकर स्टेशन की तरफ जाने लगा..
लहंगा चोली में सुगना और पजामे कुर्ते में सोनू.. जो भी देखता एक पल के लिए अपने नजरें उन पर टिका लेता नियति के रचे दो खूबसूरत पात्र धीरे-धीरे बिछड़ने के लिए रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहे थे ..
सोनू के उदास चेहरे को देखकर सुगना दुखी हो रही थी अंततः उससे रहा न गया उसने सोनू के हाथ को अपनी कोमल हथेलियों के बीच में ले लिया और सहलाते हुए बोली
"ते दुखी काहे बाडे… हम कोई हमेशा तोहरा साथ थोड़ी रहब। दू दिन खाती आईल रहनी अब जा तानी……वैसे दू दिन बाद तहरा भी त बनारस आवे के बा"
सुगना की बातें सुनकर सोनू और भी दुखी हो गया परंतु सुगना की कोमल हथेलीयों के बीच में उसकी हथेली के स्पर्श में न जाने किस भाव का अनुभव किया और सोनू के शरीर में एक सनसनी फैल गई…
युवा मर्दों का सबसे संवेदनशील अंग उनका लंड ही होता है और सुगना के स्पर्श ने सबसे ज्यादा यदि किसी अंग पर असर किया तो वह था सोनू का लंड …अचानक ही सोनू की भावनाएं बदल गईं…. साथ रिक्शे पर बैठी उसकी बहन सुगना एक बार फिर अपने मदमस्त और अतृप्त यौवन लिए उसकी निगाहों के सामने अठखेलियां करने लगी… सोनू ने सुगना के कामुक अंगो को और करीब से निहारना चाहा परंतु सिवाय चुचियों के उसे कुछ न दिखाई पड़ा। परंतु सोनू का लाया लहंगा कमाल का था…. रेशम के महीन धागे से बना वह लहंगा पारदर्शी तो न था परंतु बेहद पतला और मुलायम था…उसने सुगना की कोमल जांघों से सट कर उन पर एक आवरण देने की कोशिश जरूर की थी परंतु सुगना की पुष्ट जांघों के आकार को छुपा पाने में कतई नाकाम था।
सुगना बार बार अपने दोनों पैर फैला कर लहंगे को दोनों जांघों के बीच सटने से रोकती और अपनी जांघों के आकार को सोनू की नजरों से बचाने की कोशिश करती..
भीनी भीनी हवा चल रही थी और मौसम बेहद सुहावना था कभी-कभी सुगना को एहसास होता जैसे उसने कुछ पहना ही ना हो…रेशम का कपड़ा सुगना की रेशमी त्वचा के साथ तालमेल बिठा चुका था और सुगना को एक अद्भुत एहसास दे रहा था ..
सोनू को सुगना का और कोई अंग दिखाई दे या ना दे परंतु सुगना के कोमल और हल्की लालिमा लिए हुए गाल स्पष्ट दिखाई दे रहे थे और होठों का तो कहना ही क्या ऐसा लग रहा था जैसे होठों में चाशनी भरी हुई थी…
काश काश लाली दीदी के होठ भी सुगना दीदी जैसे होते..
सोनू को अपने बचपन के दिन याद आने लगे जब वह सुगना के गालों को बेझिझक चुम लिया करता था परंतु आज शायद यह संभव न था रिश्ता वही था सुगना भी वही थी परंतु सोनू बदल चुका था ऐसा क्या हो गया था जो अब वह सुगना को चूमने मैं असहज महसूस कर रहा था…
जवानी रिश्तो की परिभाषा बदल देती है…युवा स्त्री और पुरुष कभी भी एक दूसरे को चूम नहीं सकते चाहे वह किसी भी पावन रिश्ते से बंधे क्यों ना हो…
हां माथे का चुंबन अपनी जगह है….
रेलवे स्टेशन आने वाला था परंतु उससे पहले रेलवे क्रासिंग आ चुकी थी। सारे वाहनों पर विराम लगा हुआ था… रिक्शेवाले अपने मैले कुचैले तौलिए से अपना चेहरा पोंछ रहे थे…सरयू सिंह ने पीछे मुड़कर सुगना और सोनू को देखा वह मन ही मन अपने फैसले पर प्रसन्न हो रहे थे कि उन्होंने स्टेशन जल्दी आने का फैसला लेकर सही कार्य किया था.. अचानक सोनू का ध्यान बगल की दीवार पर लगे किसी एडल्ट फिल्म के पोस्टर पर चला गया…
फिल्म का नाम था "लहंगा में धूम धाम"
पोस्टर में दिख रही हीरोइन ने भी संयोग से लहंगा और चोली ही पहना हुआ था परंतु उसकी चोली तंग थी और चूचियां उभर कर बाहर आ रही थीं … शायद निर्देशक ने उन वस्त्रों का चयन ही इसलिए किया था ताकि वह चुचियों को और उभार सके..
इसी प्रकार लहंगा लहंगा ना होकर एक स्कर्ट के रूप में था और हीरोइन के नंगे पैर पिंडलियों चमक रहे थे सोनू लालसा भरी निगाहों से उस पोस्टर को देखे जा रहा था
सोनू को वासना भरी निगाहों से पोस्टर की तरफ देखते हुए देख कर सुगना स्वयं शर्मसार हो रही थी उसने सोनू का ध्यान खींचने के लिए बोला..
"अब अपन ब्याह के मन बना ले ई सब ताक झांक ठीक नईखे"
"अब सब तहारे हांथ में बा.."
"तोरा इतना फोटो में कोई पसंद काहे नईखे परत?"
सोनू क्या जवाब देता वह सुगना के प्यार में पागल हो चुका था…प्यार तो वह सुनना से पहले भी करता था परंतु अब वह जिस रूप में सुगना को चाहने लगा था …उसे और कोई लड़की पसंद नहीं आ सकती थी.. इतना प्यार करने वाली सुगना जैसी खुबसूरत युवती मिलना असंभव ही नही नामुमकिन था…
सोनू ने खुद को संभाला और मुस्कुराने लगा.. परंतु उस में कुछ न कहा सुगना ने फिर पूछा
" बोलत काहे नहींखे .."
"तू दुनिया में अकेले ही आईल बाड़ू का? तोहरा जैसन केहू काहे नईखे मिलत.."
सुगना निरुत्तर हो गई और शर्मसार भी ऐसा नहीं है कि सोनू ने यह बात पहली बार कही थी परंतु फिर भी अपनी होने वाली पत्नी की तुलना अपनी बड़ी बहन से करना …..शायद सोनू ने बातचीत की मर्यादा का दायरा बढ़ा दिया था दिया था।
सुगना यह बातें पहले भी सुन चुकी थी उसे उसे अब यह सामान्य लगने लगा था.. ठीक उसी प्रकार से जैसे सूरज का उसके होठों को कभी-कभी चूम लेना… ना जाने क्यों सोनू के इस कथन में उसे अपनी तारीफ नजर आती और वह मन ही मन मुस्कुरा उठती उसे यह कतई पता न था कि उसकी मुस्कुराहट सोनू को और उकसा रही थी।
मुस्कुराती हुई सुगना और भी ज्यादा खूबसूरत लगती थी।
मुस्कुराहट वैसे भी सौंदर्य को निखार देती है और लज्जा वश आई मुस्कुराहट का कहना ही क्या..
सोनू उस हीरोइन को छोड़ सुगना के शर्म से लाल हुए गाल देखने लगा …
रेलवे केबिन में बैठी नियति सोनू और सुगना दोनों को एक साथ देख कर अपने मन में आने वाले घटनाक्रम बुन रही थी। नियति ने ऐसी खूबसूरत जोड़ी को मिलाने का फैसला कर लिया परंतु क्या यह इतना आसान था?
सुगना जैसी मर्यादित बहन को अपने ही छोटे भाई से संभोग के उसके नीचे ला पाना नियति के लिए भी दुष्कर था परंतु सोनू अधीर था और वह सुगना के प्रति पूरी तरह समर्पित था…
रेलवे क्रॉसिंग पर अचानक कंपन प्रारंभ हो गए और कुछ ही देर में ट्रेन की तीव्र आवाज सुनाई थी धड़ धड़आती हुई मालगाड़ी रेलवे क्रॉसिंग से पास होने लगी..
अचानक शांत पड़े वाहनों में हलचल शुरू हो गई मोटर कार के स्टार्ट होने की आवाज गूंजने लगी वातावरण में काले धुएं का अंश बढ़ने लगा सुगना और सोनू दोनों चैतन्य होकर क्रासिंग के खुलने का इंतजार करने लगे और धीरे धीरे सोनू और सुगना का रिक्शा गंतव्य की तरफ पर चला परंतु जैसे-जैसे स्टेशन करीब आ रहा था सोनू मायूस हो रहा था उसकी बड़ी बहन सुगना एक बार फिर उससे दूर हो रही थी।
थोड़ी देर में रिक्शा स्टेशन पर आ चुका था और एक बार फिर सोनू अपनी बहन सुगना के साथ लखनऊ सिटी के प्लेटफार्म पर भीड़ का हिस्सा बन चुका था..
लखनऊ सिटी लखनऊ के मुख्य स्टेशन के बाहर का एक छोटा स्टेशन था जो गेस्ट हाउस के करीब ही था सरयू सिंह ने अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए यह फैसला लिया था कि वह ट्रेन लखनऊ मेन स्टेशन की बजाय लखनऊ सिटी से पकड़ेंगे शायद उनके मन में यह बात थी कि आउटर स्टेशन होने के कारण वहां पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं होगी और सीट आसानी से मिल जाएगी।
सोनू और सुगना सरयू सिंह पर पूरा विश्वास करते थे और उनके अनुभव पर कभी भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगाते थे।
परंतु आज सरयू सिंह का अनुमान गलत प्रतीत हो रहा था इस आउटर स्टेशन पर भी भीड़भाड़ कम न थी शायद जो अनुभव सरयू सिंह को प्राप्त था वैसा अनुभव और भी लोग अब हासिल कर चुके थे । परंतु अब कोई चारा न था थोड़ी ही देर में ट्रेन आने वाली थी।
सरयू सिंह सूरज की खातिरदारी करने में कोई कमी ना रख रहे थे वह कभी उसके लिए खिलौने खरीदते कभी रंग-बिरंगे रैपर में पैक छोटे-छोटे बिस्किट..
स्टेशन पर आज कुछ ज्यादा ही भीड़ भाड़ थी जैसे ही ट्रेन आई ट्रेन के अंदर सवार होने की जंग जारी हो गई इस बार सुगना के दो-दो कदरदान उपस्थित थे सरयू सिंह आगे बढ़े और सुगना उनके पीछे…ट्रेन में इतनी भीड़ भाड़ थी कि एक बार ऊपर चढ़ जाने के बाद नीचे उतरना संभव न था।
सरयू सिंह ने कहां
" सुगना तू मधु के गोद में लेला… सोनू ट्रेन में ना चढ़ी …. अंदर गइला के बाद उतरे में बहुत दिक्कत होखी सुगना को मधु को अपनी गोद में लेना पड़ा था।
ट्रेन के आते ही धक्कम धक्का शुरू हो गई। ट्रेन के दरवाजे पर ढेर सारे लोग खड़े हो गए महिला पुरुष बच्चे सब जल्दी से जल्दी ट्रेन में चढ़ जाना चाहते थे। शुरुआत में तो लोगों ने ट्रेन के अंदर बैठे यात्रियों को उतरने दिया परंतु जैसे ही उतरने वालों का रेला धीमा पड़ा अंदर जाने के लिए जैसे होड़ लग गई।
पिछली बार की ही भांति सरयू सिंह सबसे पहले ट्रेन में चढ़े और ऊपर पहुंच कर उन्होंने सुगना को ऊपर आने के लिए अपना हाथ दिया.. मधु के गोद में होने के कारण सुगना अकेले चढ़ने में नाकाम थी.
जिस प्रकार पिछली बार एक अनजान युवक ने उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे चढ़ने में सहायता की थी आज वही स्थिति दोबारा आ चुकी थी सोनू ने कोई मौका ना गवायां उसने सुगना की गोरी और मादक कमर के मांसल भाग को अपने हाथों में पकड़ लिया और उसे धक्का देते हुए उसे ट्रेन में चढ़ने की मदद की।
इन कुछ पलों के स्पर्श ने सोनू के शरीर को गनगना दिया। सोनू के हाथ ठीक उसी जगह लगे थे जिस जगह को आज की आधुनिक भाषा में लव हैंडल कहा जाता है सोनू स्त्रियों के उस खूबसूरत भाग से बखूबी परिचित था लाली को घोड़ी बनाकर चोदते समय वह लाली के कमर के उसी भाग को अपनी हथेलियों से पकड़े रहता था और लाली की फूली हुई चूत को अपने लंड के निशाने पर हमेशा बनाए रखता था । सोनू के दिमाग में एक वही दृश्य घूम गए।
अंदर अभी भी कुछ यात्री शेष थे जिन्हें इसी स्टेशन पर उतरना था अंदर गहमागहमी बढ़ रही थी ..
"अरे हम लोगों को पहले उतरने दीजिए तब चढ़िएगा.."
ट्रेन के अंदर से एक स्भ्रांत बुजुर्ग अंदर की आवाज आ रही थी.. परंतु उनकी आवाज लोग सुनकर भी अनसुना कर रहे थे.. ट्रेन के अंदर से एक बार फिर लोगों के बाहर आने का दबाव बढ़ा और एक पल के लिए लगा जैसे दरवाजे पर खड़ी सुगना बाहर गिर पड़ेगी..
सोनू के रहते ऐसा संभव न था सोनू ने अपने दोनों मजबूत हाथों से दरवाजे के दोनों तरफ लगे स्टील के सपोर्ट को पकड़ा और स्वयं को ट्रेन के अंदर धकेलने लगा सुगना सोनू के ठीक आगे थी अपने भाई द्वारा पीछे से दिए जा रहे दबाव के कारण वह अब ट्रेन में लगभग सवार हो चुकी थी सोनू अभी भी लटका हुआ था..
ट्रेन ने सीटी दी और धीरे-धीरे गति पकड़ने लगी..
सुगना ने कहां
"सोनू उतर जा गाड़ी खुल गईल"
"दीदी तू बिल्कुल दरवाजा पर बाडू.. झटका लागी तो दिक्कत होगी मधु भी गोद में बीया .. चला हम आगे लखनऊ स्टेशन पर उतर जाएब…
सुगना संतुष्ट हो गई.. और अपने भाई सोनू की अपनत्व की कायल हो गई वह उसे सचमुच बेहद प्यार करता था और उसका ख्याल रखता था..
सोनू भी अब ट्रेन के अंदर आ चुका था पर दरवाजे के पास बेहद भीड़भाड़ थी लखनऊ सिटी पर उतरने वाले यात्री अंदर कूपे में जाने को तैयार न थे और जो चढ़े थे वह मजबूरन दरवाजे के गलियारे में खड़े थे..
सबसे आगे दो दो झोले टांगे और सूरज को अपनी गोद में लिए सरयू सिंह उनके ठीक पीछे मधु को अपनी गोद में लिए हुए सुगना और सबसे पीछे अपनी दोनों मजबूत भुजाओं से ट्रेन के सपोर्ट को पकड़ा हुआ और अपनी कमर से सुगना को सहारा देता हुआ सोनू..
जैसे ही माहौल सहज हुआ सोनू ने महसूस किया कि उसकी कमर सुगना से पूरी तरह सटी हुई है। अब तक तो सोनू का ध्यान सुगना के मादक बदन से हटा हुआ था परंतु धीरे-धीरे उसे उसके बदन की कोमलता महसूस होने लगी सुगना के मादक नितंब उसकी कमर से दब कर चपटे हो रहे थे।
सोनू ने पतले लहंगे के पीछे छुपे सुगना के मादक नितंबों को अपनी जांघों और पेडू प्रदेश पर महसूस करना शुरू कर दिया जैसे-जैसे सोनू का ध्यान केंद्रित होता गया उसके लंड में तनाव आने लगा.. सोनू के लंड का सुपाड़ा सुगना की कमर से सट रहा था शायद यह लंबाई में अंतर होने की वजह से था।
सोनू पूरी तरह सुगना से सटा हुआ था.. उसके मजबूत खूंटे जैसे लंड में तनाव आए और सुगना को पता ना चले यह संभव न था। सोनू के लंड में आ रहे तनाव को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी.. और अब वह स्वयं को असहज महसूस कर रही थी…. उसके दिमाग में सोनू के लंड की तस्वीर घूमने लगी…
शेष अगले भाग में…
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05-07-2022, 11:55 AM
भाग 95
सोनू ने पतले लहंगे के पीछे छुपे सुगना के मादक नितंबों को अपनी जांघों और पेडू प्रदेश पर महसूस करना शुरू कर दिया जैसे-जैसे सोनू का ध्यान केंद्रित होता गया उसके लंड में तनाव आने लगा.. सोनू के लंड का सुपाड़ा सुगना की कमर से सट रहा था शायद यह लंबाई में अंतर होने की वजह से था।
सोनू पूरी तरह सुगना से सटा हुआ था.. उसके मजबूत खूंटे जैसे लंड में तनाव आए और सुगना को पता ना चले यह संभव न था। सोनू के लंड में आ रहे तनाव को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी.. और अब वह स्वयं को असहज महसूस कर रही थी…. उसके दिमाग में सोनू के लंड की तस्वीर घूमने लगी…
अब आगे
सोनू का लंड सुगना पहले भी देख चुकी थी..लाली की बुर में तेजी से आगे पीछे होते हुए सोनू के मजबूत लंड की तस्वीर उसके दिलो-दिमाग पर छप चुकी थी और न जाने कितनी बार वह अपने स्वप्न में वह उस लंड को देख चुकी थी। उस दिन हैंडपंप के नीचे सोनू नहाते समय जिस तरह अपने लंड को और उसके सुपाड़े को सहला रहा था वह बेहद उत्तेजक था … सुगना के दिमाग में वही दृश्य घूमने लगे..
सुगना सोच रही थी… क्या सोनू के लंड में आया हुआ तनाव उसकी वजह से था? उसे अपने भाई से ऐसी उम्मीद नहीं थी। सुगना ने अगल-बगल नजर दौड़ाई और सोनू के लंड में आए इस तनाव का कारण जानने की कोशिश की।
एक और युवती सुगना से कुछ ही दूर पर खड़ी थी परंतु उसके शरीर की बनावट देखकर सुगना समझ गई निश्चित ही यह तनाव उस युवती की वजह से न था… तो क्या उसके भाई सोनू का लंड उसके लिए ही खड़ा हुआ था?.
हे भगवान अब वह क्या करें? सुगना अब असहज महसूस कर रही थी। उसका रोम-रोम सिहर उठा। ह्रदय की धड़कन तेज हो गई। जिस अवस्था में वह थी कुछ कर पाना संभव न था। वह इस बारे में सोनू से कुछ भी बोल पाने की स्थिति में न थी।
फिर भी सुगना ने अपने शरीर को थोड़ा अगल-बगल कर सोनू को यह एहसास दिलाने की कोशिश की कि वह उससे दूर हो जाए। परंतु यह सोनू के लिए भी संभव न था। सोनू के पीछे भी एक दो व्यक्ति खड़े थे और पीछे जाना संभव न था। सुगना के हिलने डुलने की वजह से सोनू को भी हिलना पड़ा और गाहे-बगाहे सोनू का लंड सुगना के नितंबों के बीच आ गया।
लंड का सुपाड़ा सुगना की पीठ पर था परंतु लंड का निचला भाग सुगना की नितंबों के बीच की घाटी में आ चुका था।
ट्रेन और वासना धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहीं थी..
ट्रेन के आउटर स्टेशन और मुख्य स्टेशन के बीच ट्रेन न जाने कितनी बार पटरियां बदलती है और पटरियां बदलते समय ट्रेन की हिलने डुलने की गति और बढ़ जाती है।
आज यह गति सोनू को बेहद प्यारी लग रही थी जब भी ट्रेन हिलती सुगना और उसके बीच में एक घर्षण होता और वह सोनू के लंड एक बेहद सुखद एहसास देता..
सोनू अपनी कमर हिला कर अपने आनंद को और बढ़ाना चाह रहा था परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना की नजरों में गिरना नहीं चाह रहा था। जिस सुखद पल को नियति ने उसे स्वाभाविक रूप से प्रदान किया था उस अहसास को अपने हाथों से गवाना नही चाहता था।
लाली के साथ भरपूर कामुक क्रियाकलाप करते करते सोनू में अब धैर्य आ चुका था…
उसने यथासंभव अपने आप को संतुलित रखते हुए ट्रेन के हिलने से अपने लंड में हो रहे कोमल घर्षण और हलचल को महसूस करने लगा…
ट्रेन के हिलने से सुगना और सोनू के बीच का दबाव कभी कम होता कभी ज्यादा परंतु सोनू के लंड और सुगना के नितंबों का साथ कभी ना छूटता.. और कभी इसकी नौबत भी आती तो सोनू स्वतः ही उस दबाव को बढ़ा देता… यह मीठा और उत्तेजक एहसास सोनू को बेहद पसंद आ रहा था..
जिस तरह सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को खुद से दूर नहीं करना चाहता था ठीक उसी प्रकार सोनू का लंड सुगना के नितंबों के कोमल और मादक के स्पर्श से दूर नहीं होना चाहता था..
ट्रेन के पटरी या बदलने से खटखट की आवाजें ट्रेन में आ रही परंतु न तो यह सुगना को सुनाई दे रही थी और नहीं सोनू को ….सुगना और सोनू के दिमाग में इस समय कुछ और ही चल रहा सोनू अपने सपने में देखी गई बातों को याद कर रहा था और अपने मन में सुगना के कोमल और मादक बदन को अनावृत कर रहा था.. और उधर सुगना सोनू के लंड के स्पर्श को महसूस कर रही थी और सोनू के लंड के आकार का अनुमान लगा रही थी..
एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह दरवाजे के सपोर्ट को छोड़कर अपने दोनों हाथ सुगना की चुचियों पर ले आए और उसे मसलते हुए अपने लंड को उसके नितंबों के बीच पूरी तरह घुसा दे..
परंतु यह सोच सिर्फ और सिर्फ उसके उत्तेजक खयालों की देन थी.. हकीकत में ऐसा कर पाना संभव न था। सुगना के साथ ऐसी ओछी हरकत करने का परिणाम भयावह हो सकता था…
कामुक सोच और उत्तेजना में चोली दामन का संबंध है..
सोनू अपनी सोच में सुगना को और नग्न करता गया और …. उसका लंड और भी संवेदनशील होता गया..
सरयू सिंह अब भी सूरज के साथ बातें कर रहे और मधु अपनी मां सुगना के कंधे पर सर रखकर सो रही थी।
सोनू की उत्तेजना अब परवान चढ़ चुकी थी। लाली को घंटों चोद चोद कर थका देने वाला सोनू का वह मजबूत लंड आज सुगना के नितंबों के सानिध्य में आकर जैसे अपना तनाव खोने को तत्पर था।
सुगना स्वयं अपने मन में चल रहे गंदे संदे खयालों से जूझ रही थी.. और उसकी बुर हमेशा की तरह उसकी बातों को नजरअंदाज करते हुए अपने होठों से लार टपक आने लगी थी। न जाने वह निगोडी क्यों सोनू के लंड के ख्याल मात्र से सुगना से विद्रोह पर उतारू हो जाती ऐसा लगता जैसे उसके लिए रिश्तो की मर्यादा का कोई मोल ना हो।
सुगना असहज हो रही थी उसने सोनू को खुद से दूर करने की सूची और अपने नितंबों को पीछे की तरफ हल्का धकेल कर सोनू को दूर करने की कोशिश की।
यही वह वक्त था जब सुगना के नितंबों ने सोनू के लंड पर एक बेहद मखमली दबाव बना दिया… सोनू के सब्र का बांध टूट गया।
सोनू का अपनी बड़ी बहन के प्रति भावनाओं का सैलाब फूट पड़ा.. अंडकोशो ने वीर्य उगलना शुरू कर दिया सोनू स्खलित होने लगा उसका लंड उछल उछल कर वीर्य वर्षा करने लगा….
परंतु हाय री किस्मत सोनू की सारी भावनाएं सोनू की पजामी को न भेद सकीं और उसका ढेर सारा वीर्य उसकी पजामी को गीला करता रहा।
स्खलित होता हुआ लंड एक अलग ही कंपन पैदा करता है जिन स्त्रियों में इस कलित होते हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा होगा वह वीर्य के बाहर निकलते वक्त उसके कंपन को अपनी उंगलियों पर अवश्य महसूस किया होगा…
सुगना को तो जैसे इसमें महारत हासिल थी वैसे भी नियति ने अब तक उसके भाग्य में जो दो पुरुष दिए थे वह दोनों अपनी जांघों के बीच विधाता की अनुपम धरोहर के लिए घूमते थे…
सरयू सिंह और सुगना के धर्मपति रतन दोनो एक मज़बूत लंड के स्वामी थे …
सुगना अपने नितंबों पर लंड की वह थिरकन महसूस कर रहीं थी।.दिल में भूचाल लिए वह एकदम शांत थी…हे भगवान सोनू स्खलित हो रहा था…. और वह अनजाने में अपने ही छोटे भाई सोनू को स्खलित होने में मदद कर रही थी..
सोनू का स्खलन पूर्ण होते ही…. वासना न जाने कहां फुर्र हो गई सिर्फ और सिर्फ आत्मग्लानि थी …आज सोनू ने अपनी बड़ी और सम्मानित बहन सुगना के नितंबों पर अपना लंड रगड़ते हुए खुद को स्खलित कर लिया था ..पर अब शर्मिंदगी महसूस कर रहा था..
वासना के अधीन होकर की गई बातें और कृत्य वासना का उफान खत्म होने के बाद हमेशा अफसोस का कारण बनते हैं जिह्वा और हरकतों पर लगाम न लगाने वाले अपने अंतर्मन में चल रहे अति उत्तेजना और अपने अपेक्षाकृत घृणित विचारों को अपने साथी को बता जाते हैं। यह उनके चरित्र को उजागर करता है।
जब तक सोनू कुछ और सोचता ट्रेन में एक बार फिर गहमागहमी चालू हो गई थी ट्रेन लखनऊ स्टेशन के प्लेटफार्म पर आ रही थी अंदर फसे यात्री अब उग्र हो रहे थे परंतु सोनू शांत था और सुगना भी।
सरयू सिंह ने सुगना के लिए रास्ता बनाया और सोनू से कहा
"संभाल के उतर जाईह"
सुगना इस स्थिति में न थी कि वह सोनू से कुछ कह पाती और न सोनू इस स्थिति में था कि वह सुगना से प्यार से विदा ले पाता… अब से कुछ देर पहले उसने जो किया था या जो हुआ था उसका गुनाहगार सिर्फ और सिर्फ सोनू था परंतु नियति सुगना को भी उतना ही कसूरवार मान रही थी..
खैर जो होना था वह हो चुका था सोनू को सुगना का लखनऊ आगमन रास आ गया था.. शायद उसने अपने विधाता से आज इतना मांगा भी न था जितना नियत ने उसे प्रदान कर दिया था..
सोनू प्लेटफार्म पर उतर कर कुछ देर और खड़ा रहा सुगना ट्रेन के अंदर आ चुकी थी दोनों बच्चे सोनू की तरफ देख रहे थे सोनू ट्रेन की खिड़की से अपने हाथ अंदर डाल कर सूरज के साथ खेल रहा था परंतु सुगना अपनी नजर झुकाए हुए थी.. सोनू से हंसी ठिठोली करने वाली सुगना आज शांत थी… न जाने जिस अपराध का गुनाहगार सोनू था उस अपराध के लिए सुगना क्यों अपनी नजर झुका रही थी..
कुछ देर बाद ट्रेन चल पड़ी सोनू ने अपने हाथ हवा में लहरा कर अपने परिवार के सदस्यों को विदा करने लगा ट्रेन के अंदर से सब ने हाथ हिलाए परंतु सुगना अब भी शांत थी पर जैसे ही सुगना को लगा कि अब वह सोनू को और नहीं देख पाएगी उसका धैर्य टूट गया..
उसने सोनू की तरफ देखा और अपने हाथ हिला कर उसका अभिवादन किया सुगना की आंखों में आंसू स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते थे यह आंसू क्यों थे यह तो हमारे संवेदनशील पाठक ही जाने परंतु सुगना असमंजस में थी।
आज अपने ही भाई के साथ वह जिस अनोखी घटना की भागीदार और साक्षी बनी थी वह निश्चित ही पाप था एक घोर पाप पर सोनू का परित्याग करना या उसके साथ कुछ भी गलत करना सुगना को कतई गवारा ना था सोनू अब भी सुगना को उतना ही प्यारा था शायद इसी वजह से सुगना सोनू को विदा करते समय अपने हाथ हिलाने से खुद को ना रोक पाई…
सुगना और सोनू का प्यार निराला था ..
ट्रेन पटरीओं पर दौड़ लगाती ओझल हो गई परंतु सुगना अब भी सोनू के दिमाग में घूम रही थी …सुगना के हाथ [b]हीलाए जाने से सोनू प्रसन्न हो गया था और अब उसके होठों पर मुस्कान थी…सोनू हर्षित मन से स्टेशन के बाहर आया और ऑटो रिक्शा कर अपने हॉस्टल की तरफ निकल गया…
[/b]
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अगली सुबह सरयू सिंह सुगना के साथ बनारस आ चुके थे। मदमस्त सोनी नहा कर बाहर आई थी। आधुनिकता के इस दौर में सोनी भी नहा कर नाइटी पहन कर बाहर आ जाया करती थी जैसे ही सोनी ने दरवाजा खोला सरयू सिंह सामने खड़े थे…अब भी सरयू सिंह ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनके सामने घर की स्त्रियां अब भी कुछ पर्दा कर लिया करती थी परंतु आज जिस अवस्था में उन्होंने सोनी को देखा था वह बेहद उत्तेजक और निगाहों में अभद्र थी। सोनी उनके चेहरे के भाव देख कर घबरा गई। उसने न तो सरयू सिंह के चरण छुए और न सुगना के अपितु उल्टे पैर भागते हुए सुगना के कमरे में आ गए….
सरयू सिंह सोनी को अंदर जाते हुए देख रहे थे। सोनी की काया में आया बदलाव सरयू सिंह बखूबी महसूस कर रहे थे। शायद सोनी अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी दिखाई पड़ने लगी थी और हो भी क्यों न विकास से कई दिनों तक जी भर कर चुदवाने के बाद सोनी में निश्चित ही शारीरिक बदलाव आया गया था…आज भी जब कभी उसे मौका मिलता वह अपने कामुक खयालों में खो जाया करती थी और अपनी छोटी सी बुर को मसल मसल कर स्खलित होने पर मजबूर कर देती थी…
शायद उसे भी अपनी कामुक अवस्था का ध्यान आ गया था .. इसीलिए वह सर्विसिंग के सामने ज्यादा देर खड़ी ना हो पाई …सोनी ने अपने वस्त्र पहने और फिर आकर सरयू सिंह और सुगना के चरण छुए। सरयू सिंह ने सोनी को आशीर्वाद दीया परंतु उसकी कामुकता या उनके दिमाग में अभी घूम रही थी…
सरयू सिंह का लंड तो न जाने लंगोट की अंधेरी कैद में भी न जाने कैसे सुंदर और कामुक युवतियों को अंदाज लेता था..
सूरज तो जैसे अपनी सोनी मौसी से मिलने के लिए बेचैन था.. वह झटपट सोनी की गोद में आ गया और फिर क्या था उसने सोनी के कोमल होठों को चूम लिया… सरयू सिंह की निगाह सूरज पर पड़ गई। उन्होंने कुछ कहा नहीं परंतु वह यह देखकर आश्चर्य में थे कि सोनी ने उसे रोका तक नहीं अपितु वह उसका साथ दे रही थी। सूरज की यह क्रिया बाल सुलभ थी या आने वाले समय की झांकी यह कहना कठिन था पर जो कुछ हो रहा था वह असामान्य था छोटे बच्चों को भी कामुक महिलाओं के होंठ चूमने का कोई अधिकार नहीं है ऐसा सरयू सिंह का मानना था..
लाली अब तक चाय लेकर आ चुकी थी सरयू सिंह चाय पी रहे थे और लाली सोनू के बारे में ढेर सारी बातें पूछ रही थी.. लाली का सोनू के बारे में जानने की इतनी इच्छा …..लाली का यह व्यवहार बुद्धिमान सरयू सिंह की बुद्धि के परे था…
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उधर सोनी सूरज को लेकर कमरे में आ गई थी ….
सूरज अभी भी सोनी की गोद में था और कभी उसके गाल कभी होठों को चूम रहा था… सोनी ने सूरज को बिस्तर पर खड़ा कर दिया और हमेशा की तरह एक बार फिर उसके जादुई अंगूठे को सहला दिया …आगे क्या होना था यह सबको पता था सूरज में अपनी सोनी मौसी के बाल पकड़े और उसे खींचकर नीचे झुका दिया सोनी ने जी भर कर उस अद्भुत मुन्नी के दर्शन किए जो अब विकास के लंड के बराबर अपना आकार बढ़ा चुकी थी सोनी को निदान पता था… उसने अपने होंठ अपने कार्य पर लगा दिए कुछ ही देर में सूरज खिलखिलाते हुआ सोनी के बाल सहलाने लगा…सोनी की जांघों के बीच गर्माहट बढ़ गई थी…
"सोनी सूरज के भेज बिस्कुट खा ली" सुगना ने आवाज लगाई..
सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि अब भी सोनी एकांत पाकर अपनी हरकत करने से बाज नहीं आएगी परंतु सुगना को सोनी की आदत से कोई विशेष तकलीफ न थी…. सूरज भी खुश था और सोनी भी….
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घर में सब के चेहरों पर खुशियां व्याप्त थी परंतु सुगना असहज थी जब जब उसे ट्रेन की वह घटना याद आती वह खुद को उस घटना के लिए जिम्मेदार मानती जिसमें शायद उसका सक्रिय योगदान न था वह तो सोनू ही था जो अपनी बहन की सुंदरता और मादक शरीर पर फिदा हुआ जा रहा था…
यदि सुगना अपना सुखद वैवाहिक जीवन जी रही होती तो शायद सोनू इस गलत विचारधारा में न पड़ता परंतु इसे परिस्थितियों का दोष कहें या स्त्री पुरुष के बीच स्वाभाविक आकर्षण परंतु सोनू अब बेचैन हो उठा था।…
सुगना नहाने जा चुकी थी…सोनू द्वारा दी गई लहंगा और चोली उतारते समय उसे एक बार फिर सोनू की याद आ गई दिमाग में ट्रेन के दृश्य घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना नग्न होती गई वासना उसे अपनी आगोश में लेती गई।
सुगना ने अपनी कोमल और उदास बुर को सर झुका कर देखना चाहा..
ट्रेन में छाई उत्तेजना ने सुगना की जांघों पर भी प्रेमरस के अंश छोड़ दिए थे…दिमाग में सोनू की मजबूत लंड की कल्पना और नितंबों की बीच उसे प्रभावशाली घर्षण ने सुगना की बुर को लार टपकाने के लिए विवश कर दिया था…
जैसे जैसे सुगना उस सुख चुकी लार को साफ करने लगी..उसकी बुर ने और उत्सर्जन प्रारंभ कर दिया..
सुगना ने अपनी अभागन बुर को थपकियां देकर धीरज रखने को कहा पर न उसकी उंगलियों ने उसकी बात मानी और न बुर ने…सोनू ….आ ….ई………सुगना के होंठ न जाने क्या क्या बुदबुदा रहे थे सुगना की मनोस्थिति पढ़ पाना नियति के लिए भी एक दुरूह कार्य था…
कुछ ही देर में सुगना ने अपना अधूरा स्खलन पूर्ण कर लिया….
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सोनू ने अगले दो-तीन दिनों में अपना सामान बांधा और बनारस आने की तैयारी करने लगा।
सोनू की पोस्टिंग बनारस से कुछ ही दूर जौनपुर में हुई थी। सोनू बेहद प्रसन्न था। जौनपुर से बनारस आना बेहद आसान था सोनू मन ही मन अपने ख्वाब बुनने लगा …
सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?
सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…
अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..
उसका कलेजा धक धक कर रहा था..
शेष अगले भाग में..
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05-07-2022, 12:03 PM
भाग 96
सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?
सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…
अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..
उसका कलेजा धक धक कर रहा था..
अब आगे…
दरवाजा सुगना ने ही खोला…सुगना के चेहरे पर स्वागत करने वाली मुस्कान थी एक पल के लिए वह यह बात भूल गई थी कि सामने खड़ा सोनू वही सोनू है जिसने अपने तने हुए लंड को उसके नितंबों से रगड़ते हुए एक कुत्सित स्खलन को अंजाम दिया था… सुगना ने उस घटना को नजरअंदाज कर अपनी डेहरी पर खड़े सोनू का स्वागत किया और बोला..
"अरे तोर ट्रेन तो जल्दी आ गईल आज"
अंदर आने के पश्चात सोनू ने सुगना के चरण छुए परंतु सुगना को अपने आलिंगन में लेने की हिम्मत न जुटा पाया… शायद सुगना भी सतर्क थी..
मन में जब पाप उत्पन्न हो जाता है तो प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से बदल जाती है।
यही हाल सोनू का था…
सुगना का व्यवहार क्यों बदला यह कहना कठिन था शायद इसमें कुछ अंश उस ट्रेन में हुई घटना का था और उसके मन के किसी कोने में उपज रहे पाप का भी..
इसके उलट सोनी खुलकर अपने भाई सोनू के गले लग गई सोनू और सोनी का यह मिलन पूरी तरह वासना विहीन था यद्यपि सोनू ने सोनी को अपने दोस्त विकास के साथ अपने पूरे यौवन और कामुकता के साथ संभोग करते देखा था… परंतु न जाने क्यों उसने उस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था।
सोनी उसे अपनी छोटी बहन ही दिखाई देती थी जिसके बारे में उसके मन में गलत ख्याल शायद ही कभी आते हों… वर्तमान में सोनू के दिलो-दिमाग सब पर सुगना छाई हुई थी…और एक तरह से राज कर रही थी।
जिस प्रकार पूर्णिमा का चांद आकाश में छाए छुटपुट सितारों की रोशनी धूमिल कर देता है उसी प्रकार सुगना इस समय सोनू की वासना पर एकाधिकार जमाए हुए थी …सोनू के लिए जैसे बाकी युवतियां गौड़ हो चुकी थीं।
थोड़ी ही देर में सोनू लाली और सुगना के बच्चों में घुलमिल कर बच्चों की तरह खेलने लगा। एक प्रतिष्ठित और युवा एसडीएम अपनी उम्र को आधा कर बच्चों के साथ वैसे ही खेल रहा था जैसे वह खुद एक बच्चा हो…. सुगना बार-बार उसके इस स्वरूप को देखती और मन ही मन उसे क्षमा कर देती….
आखिरकार सुगना ने सोनू से कहा
"ए सोनू जो जल्दी नहा ले हम खाना लगा दे तानी.."
पता नहीं सोनू के मन में कहां से हिम्मत आई उसने अकस्मात ही कहा
"ठीक बा हम जा तानी आंगन में नहाए तनी पानी चला दिहे "
सोनू ने जो कहा था वह सुगना को उस दिन की याद दिला गया जब वह लाली के कहने पर हैंडपंप चलाने गई थी और सोनू ने उसे लाली समझकर उसके सामने ही अपने तने हुए लंड पर साबुन लगा रहा था… सुगना के जेहन में वह दृश्य पूरी तरह घूम गया…वैसे भी वह पिछले दो-तीन दिनों से न जाने कितनी बार उसके उस तने हुए लंड के बारे में सोच चुकी थी…. उसने बचते हुए कहा..
"ते जो नहाए लाली पानी चला दी."
शायद सोनू ने बिना सोचे समझे वह बात कही थी परंतु सुगना अब फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी..
अब तक के हुए घटनाक्रमों में लाली एक बात तो जान गई थी कि सुगना की कामुक काया सोनू को आकर्षक लगती थी। सुगना भी उसे और सोनू को लेकर कई मजाक किया करती थी परंतु जब कभी सोनू का नाम उसके साथ जोड़कर लाली मजाक करती तो वह एक हद के बाद उसे रोक देती देती…
बातों ही बातों में सुगना ने उसे उसे उसके और सोनू के बीच हुए संभोग को देखे जाने की घटना घटना बता दी थी ….लाली के लिए सुगना को समझ पाना कठिन हो रहा था वह कभी तो हंसते खिलखिलाते लाली से सोनू के बारे में ढेरों बातें करती जिसमें कभी कभी कामुक अंश भी होते परंतु कभी-कभी न जाने क्यों सोनू को लेकर छोटी सी बात पर नाराज हो जाती।
लाली ने कई बार ऐसा महसूस किया था कि संभोग के दौरान सुगना का नाम लेने पर सोनू और भी उत्तेजित हुआ करता था तथा सुगना के बारे में और बातें करना चाहता था।
यह लाली पर ही निर्भर करता था कि वह वासना और कामुकता से भरी हुई बातों में सुगना को कितना खींचे और कितना छोड़े…पर सोनू इस पर कोई आपत्ति नहीं जताता था।
लाली ने आज सोनू को खुश करने की ठान ली..
घर में दिनभर घर में चहल पहल रही … सोनू की तीनों बहनें सोनू का जी भर कर ख्याल रख रही थी…
शाम जब सुगना और लाली सब्जी भाजी लेने बाजार गईं सोनू घर में अकेला था…. वह सुगना के कमरे में किताब का दूसरा हिस्सा खोजने लगा रहीम और फातिमा की अधूरी कहानी को पूरा पढ़ने की उसकी तमन्ना जाग उठी थी।
सोनू ने सुगना के कमरे का कोना-कोना छान मारा और आखिरकार वह आधी किताब उसके हाथ आ गई..
सोनू ने उस किताब के पन्नों के बिछड़े हुए भाग को आपस में पूरी तन्मयता और मेहनत से जोड़ा और किताब को मन लगाकर पढ़ने लगा …जैसे-जैसे रहीम और फातिमा की कहानी आगे बढ़ती गई न जाने कब कहानी में रहीम सोनू बन गया और सुगना फातिमा ….कहानी को पढ़ते समय सोनू के जेहन में सिर्फ और सिर्फ सुगना की तस्वीर घूम रही थी..
सोनू का लंड तो जैसे सुगना का नाम लेते ही उछल कर खड़ा हो जाता था सोनू ने उसे थपकी या देकर शांत करने की कोशिश की …. जिस तरह अभी तक सोनू ने अपना धैर्य कायम किया हुआ था उसी प्रकार सोनू के लंड को भी अभी धैर्य रखना था…
आखिर सोनू ने हिम्मत जुटाई और उस किताब को सुगना के शृंगारदान के पास रख दिया…उसे पता था सुगना रात को सोने से पहले श्रृंगारदान खोलकर अपने चेहरे पर क्रीम लगती थी.. वह उस किताब को देखेगी जरूर ….. सोनू ने किताब के अपने वाले हिस्से पर कुछ कलाकारी भी की थी वह भी उस दौरान जब वह लखनऊ में अकेले था…. एक बार के लिए सोनू का मन हुआ कि वह उसके द्वारा की गई कलाकारी को मिटा दे परंतु शायद यह इतना आसान न था…
सोनू ने सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया
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आखिरकार आखिरकार रात हुई जिसका इंतजार सबसे ज्यादा लाली को था…
रात के 10:00 बज चुके थे सारे बच्चे अपने दिनभर की थकावट को दूर करने निद्रा देवी के आगोश में आ चुके थे। बच्चे घर की शान होते हैं और जब वह सो जाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे घर में सन्नाटा पसर गया हो।।
परंतु युवा प्रेमियों को यह सन्नाटा बेहद सुहाना लगता है सोनू और लाली आज रंगरलिया मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थे। परंतु लाली आज दूसरे ही मूड में थी..
वो सोनू के कमरे में बैठी उससे बातें कर रही थी ..
तभी सोनू ने लाली को अपने पास खींच लिया और उसके गालों को चुमते हुए उसकी चूंची सहलाने लगा सोनू का हाथ धीरे-धीरे लाली की नाइटी में प्रवेश करता गया तभी लाली ने कहा..
अरे सोनू थोड़ा सब्र कर ले सुगना के सूत जाए दे…
"अब बर्दाश्त नईखे होत… देखा तब से खड़ा बा सोनू ने अपनी लूंगी हटाकर अपने खड़े ल** को लाली की निगाहों के ठीक सामने ला दिया..
सोनू का लंड दिन पर दिन और युवा होता जा रहा था.. ऐसा लग रहा था लाली की बुर ने उसे मालिश कर और बलवान बना दिया था.
लाली ने सुगना की लूंगी खींचकर खूंटी पर टांग दी और उसके लंड को अपने हाथों में लेकर उसके आकार में और इजाफा करने लगी तभी रसोई से सुगना की आवाज आई…
"ए लाली सोनू के दूध ले जो"
लाली ने सोनू से 5 मिनट का समय मांगा और सोनू ने अपने नंगे बदन पर लिहाफ डाल लिया… लाली बलखाती हुई कमरे से चली गई…परंतु जाते जाते उसने कमरे की बत्तियां बुझा दी…कमरे में चल रही टीवी से पर्याप्त रोशनी आ रही थी और सोनू बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए टीवी देख रहा था और मन ही मन आज लाली के साथ जी भर कर रंगरलिया मनाने की तैयारी कर रहा था।
सोनू अपने हाथों से अपने लंड को सहलाते हुए लाली का इंतजार कर रहा था…. परंतु यह क्या कमरे में दूध लिए सुगना आ चुकी थी… सोनू के होश फाख्ता हो गए पतली रजाई के नीचे सोनू पूरी तरह नग्न था.. यह तो ऊपर वाले का शुक्र था कि उसने अपनी बनियान न उतारी थी अन्यथा सुगना उसकी नग्न अवस्था को तुरंत ही पकड़ लेती… सुगना सोनू के बिल्कुल करीब आ चुकी थी सोनू ने अपने दोनों घुटनों को उठाकर अपने खड़े लंड को रजाई के नीचे छुपा लिया
सोनू ने अपना दाहिना हाथ अपने लंड पर से हटाया और हाथ बढ़ाकर सुगना के हाथों से दूध ले लिया..
सुगना से नजरें मिला पाने की सोनू की हिम्मत न थी.. परंतु वह सुगना की भरी भरी चूचियों को अवश्य देख रहा था। दोनों दुग्ध कलश उसकी आंखों के ठीक सामने थे परंतु उसकी अप्सरा उसे ग्लास में दूध पकड़ा रही थी.. सुगना जैसे ही जाने के लिए पलटी लाली आ चुकी थी..
लाली नेआते ही कहा…
"रसोई के सब काम हो गईल अब बैठ सोनू अपन पहला पोस्टिंग के बात बतावता"
सुगना भली-भांति यह बात जानती थी की सोनू और लाली अब से कुछ देर बाद घनघोर चूदाई करने वाले थे इसकी पूर्व तैयारियां लाली आज सुबह से ही कर रही थी.. वह दाल भात में मूसर चंद नहीं बनना चाहती थी परंतु लाली में उसे हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा दिया और सोनू से कहा..
अरे बीच में खिसक अपना दीदी के बैठे थे सोनू पलंग के ठीक बीच में बैठ गया और सुगना अनमने मन से बिस्तर पर बैठ गई… उसके दोनों पैर अब भी बिस्तर के नीचे लटक रहे थे। लाली सुगना के करीब आई और बोली..
"अरे पैरवा ऊपर कर ले आज बहुत ठंडा बा ए सोनू अपना दीदी के रजाई ओढ़ा दे"
सोनू खुद असहज महसूस कर रहा था उसे लाली का यह व्यवहार कतई समझ ना आ रहा था वह पूरी तरह लाली को चोदने के मूड में था.. परंतु लाली ऐसा क्यों कर रही थी यह उसकी समझ के परे था…
अंततः सुगना ने अपने दोनों पैर ऊपर कर लिए और सोनू ने अनमने ढंग से रजाई का कुछ हिस्सा सुगना के पैरों पर डाल दिया परंतु उससे सुरक्षित दूरी बनाते हुए अलग हो गया रजाई के अंदर सोनू पूरी तरह नग्न था और यही उसकी असहजता का मुख्य कारण भी था।
सोनू का लंड अपना तनाव खो रहा था। उसे अब लाली पर गुस्सा आ रहा परंतु सुगना साथ हो और सोनू उसे खुद से दूर करें यह संभव न था।
उसने बातें शुरू कर दी… लाली अब सोनू के दूसरे तरफ आकर बैठ चुकी थी और उसने भी रजाई में अपने पैर डाल लिए थे…सोनू अपनी दोनों बहनों के बीच बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए अपने अनुभव को साझा कर रहा था…
सुगना और लाली दोनों पूरी उत्सुकता और तन्मयता से सोनू के अनुभवों को सुन रही थी और समझने का प्रयास कर रहीं थी। अचानक लाली की हथेलियों ने सोनू के लंड को अपने हाथों में पकड़ लिया सोनू को यह अटपटा भी लगा और आनंददायक भी ।
उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और उसी तरह अपनी बहन सुगना से बातें करता रहा… लाली के साथ अब अपनी कार्यकुशलता दिखाने लगे सोनू के लंड का सुपाड़ा आगे पीछे हो रहा था.. सुपाड़े के ऊपर सूख चुकी लंड की लार एक बार फिर छलकने लगी।
कुछ ही पलों में लंड एक बार फिर पूरी तरह तन चुका था। सुगना लाली की हरकतों से अनजान अपने भाई के प्रशासनिक अनुभव को सुन रही थी कमरे में …वासना अपना रंग दिखाने लगी थी….
अचानक सुगना का ध्यान लाली की हरकतों पर चला गया सोनू की जांघों के बीच हिलती हुई रजाई ने उसके मन में शक पैदा कर दिया। निश्चित ही लाली सोनू के लंड को छू रही थी। सुगना असहज होने लगी सोनू अपनी उत्तेजना को काबू में रखते हुए सुगना से बातें किया जा रहा था परंतु लाली की उंगलियों और हथेलियों के जादू को अपने लंड पर बखूबी महसूस कर रहा था।
एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह अपने ठीक बगल में बैठी सुगना जांघों पर हाथ रख दे परंतु…सोनू अभी इतनी हिम्मत न जुटा पाया सुगना ने अचानक बिस्तर से उठते हुए कहा
"तोहान लोग टीवी देख हम जा तानी सूते "
सुगना कमरे से निकल गई परंतु वह कमरे से ज्यादा दूर ना जा पाईं…
उसे सोनू की आवाज सुनाई पड़ी.."दीदी तू काहे हिलावत रहलु हा सुगना दीदी देख लिहित तब"
"अइसन कह तारा जैसे उ जानत नईखे" लाली ने हल्का गुस्सा दिखाते ही बोला..
"अरे सुगना दीदी जानत बीया ऊ ठीक बा लेकिन हाईसन हालत में देख लीहित तब" सोनू ने लिहाफ हटा दिया और अपने खूंटे से जैसे तने हुए लंड को हाथ में लेते हुए बोला"
अब तक सोनू के मुंह से अपना नाम सुनकर सुगना खिड़की पर आ चुकी थी उसमें अंदर झांका लिहाफ हटा हुआ था और सोनू अपना खूबसूरत लंड अपने हाथों में लिए लाली को दिखा रहा था..
"ज्यादा सयान मत बन…. हैंड पंप पर अपना बहिनी के आपन हथियार देखावले रहला तब …ना लाज लागत रहे"
लाली अपने बालों को बांधते हुए बोली… ऐसा लग रहा था जैसे लाली प्रेम युद्ध के लिए स्वयं को तैयार कर रही हो…
सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई तो क्या सुगना दीदी ने लाली से सब कुछ बता दिया था क्या ट्रेन की घटना भी…
सोनू ने झेपते हुए कहा..
"हम जानत रहनी की पानी चलावे तू अइबू एहि से सुगना दीदी रहती तब थोड़ी ना करतीं"
सुगना मन ही मन खुश हो गई… शायद उसका भाई सोनू इतना भी बदमाश ना था कि वह अपनी बड़ी बहन को अपना लंड खोल कर दिखा रहा हो…
"चल मान लेनी लेकिन सांच कह.. इ सुगना खातिर तनेला की ना?….लाली ने सोनू की दुखती रग को छेड़ दिया…
"लाली दीदी तू ई का बोला तारू"
"देख अभिये से उछलता …..नामे लेला प " लाली ने सोनू के उछलते हुए लंड को सहलाते हुए बोला….
सुगना के बारे में बातें कर सोनू बेहद उत्तेजित हो गया। वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और उसमें एक ही झटके में लाली की नाइटी उतार के लाली को पूरी तरह नंगा कर सामने चल रही टीवी के प्रकाश में उसका दूधिया बदन चमकने लगा सुगना बाहर लॉबी में खड़े खिड़की से अंदर झांक रही थी.
सोनू ने लाली को पीछे से पकड़ कर दबोच लिया.. लाली की पीठ सोनू के नंगे सीने से सटी हुई थी सोनू के मजबूत हाथ लाली की नाभि और कमर पर लिपटे हुए थे. सोनू लाली को ऊपर उठा रहा था..और लाली खिलखिला कर हंस रही थी लाली के दोनों पर हवा में थे और सोनू का खूंटे जैसा तना हुआ लंड नितंबों के बीच जगह ढूंढ रहा था…
"आराम से सोनू चोट लग जायी"
परंतु सोनू सुनने के मूड में न था.. सुगना आज अपनी आंखों से वही दृश्य देख रही थी जो स्वयं उसके साथ बनारस महोत्सव में घटा था उस दिन भी सोनू ने ठीक इसी प्रकार उसे उठा लिया था और उसने भी अपने नितंबों के बीच सोनू के तने हुए लंड को महसूस किया था यद्यपि उस दिन सोनू ने अपने कपड़े पहने हुए थे फिर भी सोनू के मजबूत लंड का तनाव छपने लायक न था।
सुगना की आंखें एक बार फिर जड़ हो गई.. कदम फिर रुक गए और सांसे तेज होने लगी सोनू ने लाली को बिस्तर पर पीठ के बल लिटा कर उसकी जांघों के बीच आ गया परंतु आज सोनू किसी और मूड में था..
ई बतावा लाली दीदी सुगना दीदी तोहरा से सब बात करेले का?
"कौन बात?"
"इहे कुल"
"अरे साफ-साफ बोल ना कौन बात?"
"सोनू ने लाली की चूचियों को मसलते हुए कहा"
"इहे कुल..अब बुझाइल "
"हां ऊ हमार सहेली ह त करी ना"
"वो दिन का सुगना दीदी साच में देख ले ले रहे"
"हां देखले रहे और कह तो रहे"
"का कहत रहे?"
"कि हमार भाई अब मर्द बन गईल बा.".
"अवरू का कहत रहे"
"खाली बकबक करब की कामों होई…"
"बतावाना? दीदी का कहत रहे…
"काश सोनू हमर भाई न होखित"
सुगना लाली की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गई उसने ऐसा कुछ न कहा था…. जब भी यह वाक्यांश शब्दों के रूप में आए थे लाली के मुख से ही आए थे। उसे लाली पर गुस्सा आया..पर अभी वह कुछ कहने की स्थिति में न थी।
"तू पागल हउ सुगना दीदी अइसन कभी ना बोली…"
"अरे वाह हम तहर दीदी ना हई "
"सुगना दीदी और तहरा में बहुत अंतर बा ऊ ई कुल के चक्कर में ना रहेली"
"हाई देखतार नू…. एकर कोई जात धर्म रिश्ता नाता ना होला…"लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच अपनी फूली हुई बुर को दिखाते हुए कहा।
"एकर साथी एके ह…".इतना कहकर लाली ने सोनू के लंड को अपनी हथेलियों में पकड़ लिया…लंड पर रिस आयी लार लाली की हथेलियों में लग गई..
लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..
"देख बुझाता इहो आपन सुगना दीदी खातिर लार टपकावता…"
सोनू का लाल फूला हुआ सुपाड़ा लाली की हथेली में था…ऐसा लग रहा था जैसे लाली उसे खुद को छोड़ किसी और को चाहने का दंड दे रही हो पर लंड आज सुगना की चाहत लिए तैयार था…
सोनू उत्तेजना से कपने लगा…लाली ने उसे बेहद उत्तेजित कर दिया था..
और एक बार फिर लाली चुदने लगी….
सुगना ने आज लाली का नया रूप देखा था…शायद उसे लाली से यह उम्मीद न थी…
सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह अपने कमरे में आ गई…
सुगना ने खुद को संतुलित किया और गंदे गंदे ख्यालों को दरकिनार कर वह अपने श्रृंगारदान को खोल कर अपनी क्रीम लगाने लगी तभी उसका ध्यान उस जिंदगी किताब तक चला गया जिसको सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए छोड़ आया था किताब के दोनों हिस्सों को एक साथ देख कर सुगना चौक उठी आखिर यह किसने किया हे भगवान…
शेष अगले भाग में…
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भाग 97
सोनू का लाल फूला हुआ सुपाड़ा लाली की हथेली में था…ऐसा लग रहा था जैसे लाली उसे खुद को छोड़ किसी और को चाहने का दंड दे रही हो पर लंड आज सुगना की चाहत लिए तैयार था…
सोनू उत्तेजना से कपने लगा…लाली ने उसे बेहद उत्तेजित कर दिया था..
और एक बार फिर लाली चुदने लगी….सुगना ने आज लाली का नया रूप देखा था…शायद उसे लाली से यह उम्मीद न थी…
सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह अपने कमरे में आ गई…
सुगना ने खुद को संतुलित किया और गंदे गंदे ख्यालों को दरकिनार कर वह अपने श्रृंगारदान को खोल कर अपनी क्रीम लगाने लगी तभी उसका ध्यान उस जिल्द लगी किताब पर चला गया जिसको सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए छोड़ आया था किताब के दोनों हिस्सों को एक साथ देख कर सुगना चौक उठी आखिर यह किसने किया हे भगवान…
अब आगे…..
आइए सुगना को अपनी तड़प और सोनू को लाली के साथ उनके हाल पर छोड़ देते हैं…..
और आपको लिए चलते हैं हिमालय की गोद में जहां सुगना के पति रतन की मेहनत अब रंग ला चुकी थी। विद्यानंद ने उसे जिस आश्रम का निर्माण कार्य सौंपा था वह अब पूरा हो चुका था ….आज रतन उसका मुआयना करने जा रहा था..…
कुछ ही महीनों में रतन ने विद्यानंद आश्रम में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था ऐसा नहीं था कि यह स्थान उसे विद्यानंद के पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था अपितु उसने अपनी मेहनत और लगन से वह मुकाम हासिल किया था l
आश्रम सच में बेहद खूबसूरत बना था रतन अपनी जीप में बैठकर आश्रम के लिए निकल चुका था कुछ दूर की यात्रा करने के बाद बड़े-बड़े चीड़ के पेड़ दिखाई पढ़ने लगे….. जैसे जैसे वह शहर से दूर होता गया प्रकृति की गोद में आता गया।
शहर की सुंदरता कृत्रिम है और जंगल की प्राकृतिक
कृत्रिम निर्माण सदैव तनाव का कारण है और प्रकृति सहज एवं सरल..
यह वाक्यांश जीवन के हर क्षेत्र में अपनी अहमियत साबित करते हैं चाहे वह जीवन शैली हो या सेक्स…
रतन खोया हुआ था…धरती इतनी सुंदर कैसे हो सकती है ?…शहरों में भीड़ भाड़ और लगातार हो रहे विकास कार्यों की वजह से…शहर प्रदूषित हो चुके है जबकि जंगल में प्रकृति अपनी खूबसूरती को संजोए हमेशा नई नवेली दुल्हन की तरह सजी धजी रहती है …..
रतन प्रकृति की खूबसूरती में खोया हुआ धीरे-धीरे आश्रम के गेट पर आ गया। इस आश्रम तक जन सामान्य का पहुंचना बेहद कठिन था…. निजी वाहनों के अलावा यहां आने का कोई विकल्प न था शहर से दूर यह सड़क विशेषकर इस आश्रम के लिए ही बनाई गई थी…
दो सिक्यूरिटी गार्ड ने उस आश्रम का विशाल गेट खोला और रतन की गाड़ी अंदर प्रवेश कर गई।
अंदर की खूबसूरती देखने लायक थी. सड़क के किनारे सुंदर सुंदर पार्क बनाए गए थे उसमें करीने से जंगली और खूबसूरत फूल लगाए गए थे जो अब अपनी कलियां बिखेर कर रतन की मेहनत को चरितार्थ कर रहे थे…
सपाट खाली जगह सुंदर विदेशी घांस से पटी हुई थी कभी-कभी प्रकृति से की गई छेड़छाड़ उसे और भी सुंदर बना देती है इस आश्रम के चारों तरफ जो फूल पौधे लगाए गए थे वह इस आश्रम को और भी खूबसूरत बना रहे थे…
सामने तीन मंजिला भवन दिखाई पढ़ने लगा भवन की खूबसूरती दिखने लायक थी दूर से देखने पर यह होटल दिखाई पड़ता परंतु भवन के मुख्य भाग की सजावट उसे एक आलीशान आश्रम की शक्ल दे रही थी। रतन उस भवन तक पहुंच चुका था सिक्योरिटी गार्ड ने अपने पैर पटक कर रतन को सैल्यूट किया.. और रतन स्वयं अपनी ही बनाई कृति को देखकर भावविभोर हो उठा.. भवन के रंग रोगन ने उसे और भी खूबसूरत बना दिया था.
उस दौरान (90 के दशक में) इतनी सुंदर कलाकृति का निर्माण देखने लायक था…
अब तक निर्माण कार्य में लगे लोगों की फौज वहां आ चुकी थी और उनके प्रतिनिधि ने रतन को बताया..
"महाराज पुरुष आश्रम का कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है परंतु महिला हॉस्टल में कुछ ही काम बाकी है वह भी अगले हफ्ते में पूरा हो जाएगा आश्रम का उद्घाटन हम लोग दीपावली के दिन कर सकते हैं…"
रतन ने पुरुष आश्रम के कक्षों का मुआयना किया और वहां पर उपलब्ध सामग्री की गुणवत्ता की जांच की दीवारों के रंग रोगन को अपने पारखी निगाहों से देखा। निर्माण कार्य में लगे लोगों ने अच्छा कार्य किया था।
आश्रम में कमरों में जो सादगी थी वह होटल से अलग थी। यह कहना कठिन था की आश्रम के कमरे ज्यादा खूबसूरत थे या पांच सितारा होटल का सजा धजा शयनकक्ष…परंतु सादगी जितनी खूबसूरत हो सकती थी वो थी।
जिस प्रकार कहानी की नायिका सुगना ग्रामीण परिवेश में पलने बढ़ने के बाद भी बिना किसी कृत्रिम प्रयास के बेहद खूबसूरत और कोमल थी या आश्रम भी उसी प्रकार खूबसूरत था…
इस पुरुष आश्रम के ठीक पीछे वह विशेष भवन था जिसमें वह अनोखे कूपे बनाए गए थे (जिनका विवरण पहले दिया जा चुका है..) इस भवन का निर्माण विद्यानंद ने एक विशेष प्रयोजन के लिए कराया था जिसकी आधी अधूरी जानकारी रतन को थी परंतु विद्यानंद के मन में क्या था यह तो वही जाने …परंतु रतन ने इस विशेष भवन का निर्माण पूरी तन्मयता और कार्यकुशलता से किया था… अंदर बने कूपे निराले थे।
आज इस विशेष भवन में प्रवेश कर रतन खुद गौरवान्वित महसूस कर रहा था सचमुच अंदर से उस भवन की खूबसूरती देखने लायक थी.. दीवारों पर की गई नक्काशी और कृत्रिम प्रकाश से उसे बेहद खूबसूरत ढंग से सजाया था।
विधाता ने प्रकृति के माध्यम से इंसान को रंगों की पहचान थी परंतु विधाता की कृति इंसान ने उन रंगों के इतने रूप बना दिए जितने शायद विधाता की कल्पना भी न थी..
प्रकाश के विविध रंगों ने साज सज्जा को नया आयाम दे दिया था अलग-अलग रंगों के प्रकाश जब दीवार पर सजी मूर्तियों पर पढ़ते उसकी खूबसूरती निखर निखर कर बाहर आती ऐसा लगता जैसे पत्थर बोलने को आतुर थे वह इस भवन में होने वाली घटनाओं के साक्षी बनने वाले थे…
ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे विद्यानंद ने जो भी धन अर्जित किया था उसका अधिकांश भाग इसके निर्माण में लगा दिया था..
इस विशेष भवन के पीछे हुबहू पुरुष आश्रम जैसा सा ही एक और आश्रम था.. वह महिलाओं के लिए बनाया गया था.. महिलाओं के आश्रम के ठीक सामने भी वैसा ही पार्क और वैसे ही सड़क थी.. यूं कहिए कि वह विशेष भवन पुरुष आश्रम और महिला आश्रम के बीच एक कड़ी था। बाकी पुरुष आश्रम तक पहुंचने का रास्ता अलग था और महिला आश्रम तक पहुंचने का रास्ता अलग।
पुरुष आश्रम में आ रहे आगंतुकों को महिला आश्रम दिखाई नहीं पड़ता था इसी प्रकार महिला आश्रम में आ रहे लोग पुरुष आश्रम को देख नहीं सकते थे यहां तक कि वह विशेष भवन भी सामने से दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि वह पुरुष आश्रम और महिला आश्रम के बीचों-बीच स्थित था….
महिला आश्रम का मुआयना करने के पश्चात जो छुटपुट कार्य बाकी थे उसके लिए रतन ने निर्माण कार्य में लगे लोगों को दिशा निर्देशित किया।
अब तक उसकी जीप घूम कर महिला आश्रम के गेट पर आकर खड़ी हो गई थी…महिला आश्रम और पुरुष आश्रम के एक दूसरे से नजदीक होने के बावजूद वाहन को वहां पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा था…दरअसल महिला आश्रम और पुरुष आश्रम के पहुंचने के लिए जो मुख्य द्वार बनाया गया था वह पूरी तरह अलग था…
रतन आश्रम का मुआइना कर पूरी तरह संतुष्ट हो गया जो कुछ छुटपुट कार्य बाकी था वह दो तीन दिनों में पूरा हो जाना था।
आज रतन विद्यानंद से मिलकर आश्रम के की निर्माण कार्य पूरा हो जाने की सूचना देने वाला था ….और उनसे आश्रम के उद्घाटन से संबंधित दिशा निर्देश प्राप्त करने वाला था.
रतन खुशी खुशी वापस विद्यानंद के मुख्य आश्रम की ओर निकल पड़ा……महिला आश्रम के सामने बने पार्क से उसकी जीप गुजर रही थी एक पल के लिए उसे यह भ्रम हो गया कि वह पुरुष आश्रम के सामने की तरफ से जा रहा है या महिला आश्रम के? उसने पीछे पलट कर देखा और मुस्कुराते हुए उसने ड्राइवर से कहा
"यह पार्क हूबहू पुरुष आश्रम के पार्क की तरह ही है "
हां महाराज दोनों ही बिल्कुल एक जैसे दिखाई पड़ते हैं ....
जीप तेजी से सरपट विद्यानंद के मुख्य आश्रम की तरफ बढ़ती जा रही थी। रतन अपने जीवन के पन्ने पलट कर देख रहा था कैसे वह मुंबई में एक आम जीवन जीवन व्यतीत करते करते आज अचानक खास हो गया था । शायद इसमें वह सुगना का ही योगदान मानता था उसके प्यार की वजह से ही वह बबीता जैसी दुष्ट और व्यभिचारी पत्नी को छोड़ पाने की हिम्मत जुटा पाया और अपनी प्यारी मिंकी को लेकर सुगना की शरण में आ गया था …पर हाय री नियति सुगना और रतन का मिलन हुआ तो अवश्य परंतु न जाने उस प्यार की पवित्रता में क्या कमी थी सुगना की जादुई बुर ने रतन के लंड को स्वीकार न किया।
रतन ने सुगना के कुएं से अपनी प्यास खूब बुझाई पर कुआं स्वयं प्यासा रह गया…
रतन.सुगना को तृप्त न कर पाया था और यही उसके लिए विरक्ति का कारण बन गया था..
जैसे-जैसे रतन की जीप विद्यानंद के आश्रम की करीब आ रही थी रतन की धड़कनें बढ़ रही थी । आज भी वह विद्यानंद के सामने जाने में घबराता था परंतु धीरे-धीरे वह उनके करीब आ रहा था..
रतन यद्यपि विद्यानंद का पुत्र था परंतु फिर भी उसका चेहरा विद्यानंद से पूरी तरह नहीं मिलता था किसी बाहरी व्यक्ति के लिए यह बता पाना कठिन था कि रतन विद्यानंद का पुत्र है ऐसा क्यों हुआ होगा यह तो विधाता ही जाने परंतु रतन की मां कजरी और विद्यानंद का मिलन एक मधुर मिलन न था …
विद्यानंद के कक्ष के बाहर बैठा रतन अपनी बारी का इंतजार कर रहा था । अंदर विद्यानंद अपना ध्यान लगाकर अपने इष्ट को याद कर रहे थे कुछ ही देर बाद एक सेविका रतन को अंदर ले गई।
विद्यानंद ने अपनी आंखें खोली और रतन को देखकर बोले
" बताओ वत्स… तुम्हारे चेहरे की मुस्कुराहट बता रही है कि मैंने तुम्हें जो कार्य दिया था वह तुमने पूर्ण कर लिया है"
" हां महाराज .. आपके आशीर्वाद से आश्रम का निर्माण कार्य पूरा हो गया है आप जब चाहें हम लोग उसका उद्घाटन कर सकते हैं.."
विद्यानंद की चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई का चेहरा आभा से चमकने लगा उन्होंने रतन को बैठने के लिए कहा और अपनी सेविका को एकांत का इशारा किया…
विद्यानंद ने रतन को संबोधित करते हुए कहा..
" जन सामान्य की यह अवधारणा है कि जिस व्यक्ति ने संयास ले लिया है उसने भौतिक इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली परंतु ऐसा कर पाना इतना आसान नहीं है…काम क्रोध मद लोभ यह मनुष्य के स्वाभाविक गुण हैं इन पर नियंत्रण कर और विजय पाकर वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है.
आश्रम में रहने वाले मेरे हजारों अनुयायियों में से आज भी कई लोग इन सामान्य गुणों का परित्याग कर पाने में अक्षम हैं.. मुझे यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है.."
रतन की आंखें शर्म से झुक गई उसे ऐसा लगा जैसे विद्यानंद की बातें उसकी ओर ही इंगित कर रही थी रतन सकपका गया तो क्या विद्यानंद जी को उसके आश्रम में किए गए व्यभिचार की खबर थी? वह सर झुकाए विद्यानंद की बातें सुनता रहा विद्यानंद ने आगे कहा..
" आज भी इस आश्रम के अनुयायी किसी ने किसी रूप में वासना से ग्रस्त हैं वो अपनी अपनी समस्याओं की वजह से घर त्यागकर इस आश्रम में आए हुए हैं।
ऐसी लोग आश्रम में आ तो गए हैं परंतु उनकी स्वाभाविक कामवासना अभी भी जीवित है और वह अपने उचित की साथी की तलाश में अक्सर अपना समझ जाया करते है..
जिस आश्रम का निर्माण तुमने कराया है उसका एक विशेष प्रयोजन है यह आश्रम .. मेरे अनुयायियों को कामवासना से मुक्ति दिलाने के लिए ही बनाया गया है."
रतन रतन ने आंख उठाकर विद्यानंद की तरफ देखा जो अपनी आंखें बंद किए अपने मुख से यह अप्रत्याशित शब्द कह रहे थे परंतु उनके चेहरे के भाव यह बता रहे थे कि वह जो कुछ कह रहे थे वह आवेश और उद्वेग से परे एक शांत और सहज मन की बात थी..उन्होंने फिर कहा..
"मेरी बात ध्यान से सुनना वह आश्रम स्त्री और पुरुष के मिलन के लिए बनाया गया है… समाज में आज भी कई किशोर युवक और युवतियां समागम को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां पाले हुए है.. जिसकी वजह से किशोर और किशोरियों में एक भय जन्म ले चुका है.. किशोरियां समागम से घबराती हैं और किशोर अपनी मर्दानगी पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं समाज में धीरे धीरे यह व्याधि फैलती जा रही है और उनके माता-पिता अक्सर मेरी शरण में आकर उनके लिए सुखद गृहस्थ जीवन का आशीर्वाद मांगते हैं।
स्त्री और पुरुष का मिलन ही गृहस्थ जीवन की कुंजी है यह उतना ही पावन है जितना परमात्मा से मिलन.. परंतु किसी न किसी कारणवश सभी स्त्री और पुरुषों का मिलन उतना सुखद नहीं होता जितना उन्हें होना चाहिए इसका कारण सिर्फ और सिर्फ अज्ञानता है..न तो पुरुष स्त्री के कोमल शरीर को पूरी तरह समझ पाता है और नहीं स्त्री पुरुष की उग्र उत्तेजना को..
और जब उन दोनों का मिलन होता है तब निश्चित की परिणाम आशानुरूप नहीं रहते.. मैं चाहता हूं कि तुम गृहस्थ जीवन में रहने के इच्छुक स्त्री और पुरुषों को एक दूसरे को समझ में में मदद करो.. जिस आश्रम का निर्माण तुमने कराया है वह इस प्रयोजन को चरितार्थ करेगा
तुम्हें इस बात का विशेष प्रबंध करना होगा कि आश्रम में रह रहे इस स्त्री और पुरुष एक दूसरे को कभी भी न जान पाएं…उनकी गोपनीयता सुरक्षित रखना तुम्हारा कार्य है यदि गोपनीयता भंग होती है तो यह आश्रम अपना अस्तित्व खो बैठेगा…..
पुरुष और स्त्री दोनों का मिलन सिर्फ और सिर्फ आश्रम के मुख्य भवन में होना चाहिए इसके अलावा कहीं नहीं..
आश्रम से संबंधित दिशा निर्देश और विस्तृत नियमावली माधवी ने बनाई है वह तुम्हें और भी विस्तार से समझा देगी…
माधवी का नाम सुनकर रतन चौका.. लगभग विद्यानंद से जुड़े सभी खास स्त्री और पुरुषों को जानता था पर माधवी का नाम उसने आज से पहले कभी नहीं सुना था विद्यानंद ने…
विद्यानंद ने आगे कहा..
"इस आश्रम से कुछ स्त्रियां और कुछ पुरुष उस आश्रम में रहने के लिए भेजे जाएंगे और जब उनकी वासना समाप्त हो जाएगी तब वो इस आश्रम में वापस आ सकेंगे…"
रतन विद्यानंद की बातों को बेहद ध्यान से सुन रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि विद्यानंद जैसा महात्मा भी वासना को इतना महत्व देता था.. रतन ने भी वासना की कई रूप देखे थे अपनी पत्नी बबीता के व्यभिचार को भी और अपनी पत्नी सुगना के व्यभिचार को जिससे उसने सूरज जैसे दिव्य बालक को जन्म दिया था यह अलग बात थी की व्यभिचार के कारण अलग थे पर इन संबंधों की सामाजिक मान्यता न थी ना हो सकती थी..
विद्यानंद की गंभीर आवाज आई
" माधवी को बुलाया जाए" और थोड़ी ही देर में एक विदेशी और बेहद खूबसूरत युवती रतन के सामने खड़ी थी.. श्वेत धवल वस्त्रों में उस विदेशी युवती को देखकर रतन अवाक रह गया। माधवी….. उसकी खूबसूरती देखने लायक थी 24 - 25 वर्ष की माधवी सुडौल काया की स्वामी थी.. हल्के भूरे रेशमी बाल जो एकदम सीधे थे उसके चेहरे की खूबसूरती और भी बड़ा रहे थे… रतन उसकी खूबसूरती में खो गया और विद्यानंद ने रतन की आंखों को पढ़कर उसके मनोभावों का अंदाजा लगा लिया….. विद्यानंद ने रतन से कहा
"वत्स तुम माधवी के साथ चले जाओ यह तुम्हें उस आश्रम से संबंधित नियमावली समझा देगी और मैं चाहता हूं कि तुम भी उस आश्रम में रहकर ही वहां का कार्य भार देखो …. तुम पुरुष आश्रम का कार्यभार संभाल लेना और माधवी महिला आश्रम का…"
विद्यानंद ने अपनी आंखें बंद कर ली.. और हाथ उठाकर रतन को आशीर्वाद दिया शायद यह मुलाकात की समाप्ति का इशारा भी था रतन के मन में अब भी ढेरों प्रश्न थे उसने कुछ और कहना चाहा परंतु विद्यानंद अपनी ध्यान मुद्रा में जा चुके थे। उसने माधवी की तरफ देखा और माधवी ने मुस्कुरा कर उसका अभिवादन किया अपने रतन को अपने पीछे आने का इशारा किया और वह पलट कर वापस जाने लगी..
विद्यानंद की आंखें बंद होने के बाद रतन की आंखें पूरी तरह खुल गई सामने बलखाती हुई माधवी जा रही थी और रतन उसके पीछे-पीछे …
श्वेत चादर में लिपटी माधवी की कामुक और मदमस्त काया देखने लायक थी…श्वेत वस्त्र के आवरण के बावजूद माधवी की चौडी छाती पतली कमर और भरे-भरे नितंब अपनी खूबसूरती का एहसास बखूबी करा रहे थे…
रतन की वासना ने उसे घेर लिया और उसका लंड कुलांचे मारने लगा…उसके नेत्र वस्त्रों के पार माधवी की मदमस्त काया को देखने का प्रयास करने लगे माधवी की नग्न छवि उसके दिलो-दिमाग में बनती चली गई…
जैसे-जैसे वासना हावी होती गई दिमाग कुंद होता गया शरीर का सारा रक्त जैसे उस वह तना हुआ लंड अपनी तरफ खींच रहा था…
माधवी अपने कक्ष में आ चुकी थी और रतन दरवाजे पर खड़ा माधवी के इशारे का इंतजार कर रहा था ऐसे ही किसी युवती के कमरे में जाने में वह संकोच कर रहा था..
"अरे रतन जी अंदर आ जाइए" विदेशी युवती के मुख से शुद्ध हिंदी में संबोधन सुनकर रतन और भी आश्चर्य में पड़ गया वह यंत्र वत अंदर आ.गया.."
माधुरी का कमरा भी बेहद भव्य था शायद वह विद्यानंद की विशेष शिष्या थी… रतन को यह एहसास हो गया था कि विद्यानंद से शायद वह जितना नजदीक था माधवी उससे दो कदम आगे थी.. आप बैठिए मैं दो मिनट में आती हूं..
माधवी अपने कक्ष के भीतर बने एक छोटे से कक्ष में प्रवेश कर गई और रतन अपनी तेज धड़कनें के साथ उसका इंतजार करने लगा…
##############
इधर बनारस में सूरज चढ़ आया था… खिड़कियों के बीच फंसे शीशों से उसकी रोशनी छन छन कर सुगना के गोरे चेहरे पर पढ़ रही थी …बदन पर पड़ी हुई रजाई सुगना के मदमस्त बदन को छुपाए हुए थी..परंतु बंद पलकें, गोरे गाल और रस से लबरेज उसके होंठ सूरज की रोशनी में चमक रहे थे…
उस पर बाल की दो लड़िया निकलकर गालों को चूमने का प्रयास कर रहीं थीं …
होठों पर बेहद हल्की मुस्कान छाई हुई थी शायद सुगना कोई सुखद और मीठा स्वप्न देख रही थी..
यदि कामदेव भी सुगना को उस रूप में देख लेते तो उन्हें इस बात का अफसोस होता कि उन्होंने ऐसी सुंदर अप्सरा को धरती पर क्यों दर् दर ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया था…
अचानक दरवाजे पर खटखट हुई और सुगना जाग उठी ….रजाई के अंदर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ…नाइटी चुचियों के अपर एक घेरा बनाकर पड़ी हुई थी सुगना की ब्रा और पेंटी तकिए के नीचे अपने बाहर आने की राह देख रहे थे…
न जाने क्यों दिन भर स्त्री अस्मिता के वो दोनो प्रहरी रात्रि में रति भाव के आगमन पर अपनी उपयोगिता को देते थे…
जब तक सुगना उन्हे पहन पाती दरवाजे पर खट खट के साथ मधुर आवाज आई…
"दीदी…
शेष अगले भाग में..
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08-07-2022, 03:32 PM
भाग 98
होठों पर बेहद हल्की मुस्कान छाई हुई थी शायद सुगना कोई सुखद और मीठा स्वप्न देख रही थी..
यदि कामदेव भी सुगना को उस रूप में देख लेते तो उन्हें इस बात का अफसोस होता कि उन्होंने ऐसी सुंदर अप्सरा को धरती पर क्यों दर् दर ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया था…
अचानक दरवाजे पर खटखट हुई और सुगना जाग उठी ….रजाई के अंदर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ…नाइटी चुचियों के अपर एक घेरा बनाकर पड़ी हुई थी सुगना की ब्रा और पेंटी तकिए के नीचे अपने बाहर आने की राह देख रहे थे…
न जाने क्यों दिन भर स्त्री अस्मिता के वो दोनो प्रहरी रात्रि में रति भाव के आगमन पर अपनी उपयोगिता को देते थे…
जब तक सुगना उन्हे पहन पाती दरवाजे पर खट खट के साथ मधुर आवाज आई…
"दीदी…
अब आगे
कमरे में रोशनी देखकर सुगना परेशान हो गई… अरे आज इतना देर कैसे हो गईंल….. उसने स्वयं से पूछा और आनंद फानन में उठकर दरवाजा खोला ….बाहर सोनी खड़ी थी
" अरे दीदी दरवाजा बंद करके काहे सुतल बाड़े ?…. तु त कभी दरवाजा ना बंद करेलू"
सुगना को कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था उसमें अपने बिस्तर की तरफ देखा मधु अभी भी सो रही थी… सुगना की निगाहों ने इस भाग की तस्दीक कर ली कि वह किताब उसके बिस्तर पर न थी। उसने सोनी को आश्वस्त करते हुए अंदर आते हुए बोली…
"राते कपड़ा बदलला के बाद दरवाजा खोले भुला गइल रहनी… " चल चल तैयारी कईल जाओ…. सोनू उठल की ना?"
नियति मुस्कुरा रही थी जिस सोनू को लेकर सुगना रात भर बेचैन थी आज सुबह भी उसके होठों पर उसका ही नाम था….
उधर लाली सतर्क थी वह सोनू के कमरे से जा चुकी थी पर उसके लंड पर अपना प्रेम रस छोड़कर… सोनू तो जैसे अब भी घोडे बेचकर सो रहा था…बीती रात एक नहीं दो दो बार उसने लाली की घनघोर चूदाई की थी और अपनी भावनाओं में सुगना से बड़ी बहन का दर्जा कई मर्तबा छीन लिया था…और…ना जाने कितनी बार अपनें मन में पाप को अंजाम दिया था..
नियति सोनू को मनोदशा से अनभिज्ञ न थी…
सोनी ने कहा "जा तानी सोनू भैया के जगा देत बानी"
सुगना ने उसे रोक लिया उसे यह डर था कि कहीं सोनू आपत्तिजनक अवस्था में ना हो और इस तरह सोनी का वहां जाना कतई उचित न होगा। आजकल वैसे भी सोनू कुछ ज्यादा ही लापरवाह हो चुका था… उसने सोनी से कहा
" रुक जा चाय बन जाए दे तब उठा दीहे"
सोनी अपनी दिनचर्या में लग गई और…कुछ देर बाद सुगना स्वयं चाय लेकर सोनू के कमरे के बाहर खड़ी थी… उसने लाली को आवाज दी
" लाली उठ चाय लेले " दरअसल सुगना सोनू के कमरे में ऐसे नहीं जाना चाहती थी… इसीलिए उसने लाली को आवाज दी।
सोनू अपनी नींद से ज्यादा और न जाने किस धुन में कहा
" कम इन" हॉस्टल में रहते रहते एसडीएम साहब पर ऑफिसर होने का रंग चढ़ चुका था…उन्हें शायद यह ईल्म न था कि दरवाजे पर खड़ा व्यक्ति उनका मातहत नहीं अपितु उनकी बड़ी बहन सुगना थी।
फिर भी सुगना कमरे के अंदर आई सोनू अब भी रजाई ओढ़े लेटा हुआ था उसकी आंखें बंद थी सुगना ने पास पड़े टेबल पर चाय रखी और वापस जाने लगी तभी सोनू ने अचानक उठ कर उसकी कलाइयां पकड़ ली और धीरे से खींचकर बिस्तर पर बिठा दिया..
सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था कहीं ऐसा तो नहीं कि सोनू अब भी नग्न था वह घबरा गई दिन के उजाले में वह किसी असहज स्थिति का शिकार नहीं बनना चाहती थी..
सोनू ने अगड़ाई लेते हुए कहा…
"सुबह-सुबह तोहरा के देख लेनी त पूरा दिन मन खुश रहेला.. भगवान से मनाओ कि हमार पोस्टिंग बनारस हो जाए ….त असहि तोहार हाथ के चाय रोज मिली"
सोनू ने जो बात कही थी वह बेहद गूढ़ थी…परंतु भोली भाली सुगना अपने भाई की मीठी मीठी बातों में आ गई सुगना मुस्कुराने लगी वह बिस्तर पर बैठ गई पर अब भी उसके मन का डर काम था। रजाई का आवरण ओढ़े सोनू का लंड अभी उसकी आंखों के सामने घूमने लगा…
अचानक सोनू बिस्तर से उठ खड़ा हुआ सोनू ने अपनी वस्त्र सभ्य युवा की भांति बखूबी पहने हुए थे लूंगी के अंदर अंडरवियर भी अपनी जगह पर सोनू के अद्भुत लंड को कैद किए अपनी उपयोगिता साबित कर रहा था।
सुगना को आज अपनी ही सोच पर शर्म आई और वह एक बार फिर मुस्कुराने लगी..
आपके मन में चल रहे विचार और भावनाएं आपके चेहरे पर अपना अंश छोड़ती हैं…सुगना जो अपने मन में सोच रही थी उसने उसे मुस्कुराने पर विवश कर दिया था
सोनू अपनी बहन सुगना के सुंदर चेहरे को देखते हुए चाय पीने लगा तभी…कुछ कुछ ही देर में लाली और सोनी भी वहां आ गए गई सोनू एक बार फिर अपनी बहनों के बीच बैठा आगे आने वाली जीवन की प्लानिंग किए जा रहा था ….
सोनी ने पूछा " तब अबकी दीपावली गांव पर ही मनी पक्का बा नू "
सुगना ने सोनू को निर्देश करते हुए कहा ..
"सोनू तू भी अपना साहब से बात कर लीहे दीपावली में एक हफ्ता के छुट्टी लेके गांव चले के बा…अबकी गांव में भोज भात भी कईल जाई"
सोनू रह-रहकर सुगना के खूबसूरत चेहरे और मदमस्त बदन में पर खो जाता परंतु जब भी सुगना की आवाज उसके खानों में पढ़ती वह सचेत हो जाता। वैसे भी सुगना कहे और सोनू ना मानें ….. ऐसे आज्ञाकारी भाई या प्रेमी की तलाश युवतियों को हमेशा रहती है…
सोनू ने अपनी रजामंदी दे दी…
::
सोनू के लिए अगले एक-दो दिन बेहद खुशहाली भरे थे सुगना और लाली उसका जी भर ख्याल रखते सुगना के हाव भाव से यही लगता कि जैसे उसने उसे ट्रेन वाली घटना के लिए पूरी तरह माफ कर दिया था ..
परंतु सोनू अब तक यह बात नहीं जान पाया था कि उसकी सुगना दीदी ने वह रहीम फातिमा की किताब पढ़ी या नहीं। सुगना का व्यवहार संयमित था उस किताब से उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ रहा था परंतु इतना तो अवश्य था कि सुगना के मन में सोनू से शर्म पैदा हो चुकी थी। सुगना का वह अल्हड़ पन और स्वाभाविकता कुछ परिवर्तित होती प्रतीत हो रही थी।
उसका सगा भाई होने के बावजूद सोनू से वह उतनी सहज न रही थी। जब जब बही बहन की भावनाएं प्रगाढ़ होती सुगना सोनू से और सहज होती और जब उसे सोनू का काम रूप दिखाई पड़ता सुगना एक नई नवेली दुल्हन की तरह उससे दूर हो जाती।
::
1- 2 दिन कैसे बीत गए किसी को पता ना चला और अब बारी थी सोनू को अपनी पहली पोस्टिंग जौनपुर पर भेजने की। एक बार फिर लाली और सुगना दोनों ने सोनू के लिए ढेर सारे नाश्ते बनाए और तैयारियां पूरी की अगली सुबह सोनू जौनपुर जाने के लिए हाल में खड़ा था।
सुगना हाथों में आरती का थाल लिए उसकी आरती उतार रही थी और सोनू एक टक सुगना के खूबसूरत चेहरे को देख जा रहा था. साड़ी पहनी हुई सुगना ने अपनी साड़ी का पल्लू अपनी कमर में फंसा हुआ था उसकी दोनों भरी-भरी चूचियां पल्लू से पूरी तरह ढकी हुई थी गले में पड़ा रतन का मंगलसूत्र अब भी उसके विवाहिता होने का एहसास दिला रहा था… ..
सुगना आरती की थाल घुमा रही थी..सोनी और लाली बगल में खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी.. तभी सोनू ने सोनी से कहा
" टेबल पर लिफाफा रखल बा तनी लेआउ त" सोनी लिफाफा लेने सोनू के कमरे की तरफ गई उसी दौरान सुगना ने अपनी आरती पूरी की और सोनू को नीचे झुकने के लिए कहा उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और अपने पूर्व अंदाज में उसके माथे को चुमने के लिए आगे बढ़ी इससे पहले कि सुगना अपने होठों को गोल कर उसके माथे को चुमती सोनू ने अपना चेहरा ऊपर उठा दिया और सुगना के होंठ सोनू के होठों से छू गए…. एक करंट सुगना के शरीर में दौड़ गई ..
कोई और देखे या ना देखे पास खड़ी लाली ने चार खूबसूरत लबों को आपस में मिलते देख लिया और मुस्कुराते हुए बोली …
" लागा ता सोनुआ के कुल प्यार अभिए दे दे देबू"
सुगना झेंप गई उसके गाल शर्म से लाल हो गए उसने लाली को घूर कर देखा और आरती को थाल पकड़ाते हुए बोला..
" ते आज कल ढेर बक बक करत बाड़े "
निश्चित ही जो कुछ हुआ था वह अनजाने में हुआ था परंतु लाली ने ऐसा कह कर सुगना को सोचने पर मजबूर कर दिया और जब एक बार सोच में वह बात आ गई सुगना के गाल लाल होने थे सो हो हुए और सोनू की धड़कनें तेज हो गई...
अब बारी लाली की थी सोनू ने लाली के पैर छुए लाली ने उसके सर पर हाथ फेरा और बेहद प्यार से कहा "भगवान तोहर सब मनोकामना पूरा करस और उसने अपनी निगाहों से सुगना की तरफ देखा …" सोनू लाली की बात समझ न पाया पर नियति समझदार थी और पाठक भी...
सोनी आ चुकी थी उसने सोनू को लिफाफा पकड़ाया और सोनू के चरण छू कर उस आजकल की प्यार भरी झप्पी भी दी…जो पूरी तरह वासना विहीन थी.
सोनू विदा हो रहा था जाते-जाते उसने अपनी बड़ी बहन सुगना के चरण छुए और बोला.
"आज हमार नौकरी के पहला दिन ह हमरा खातिर प्रार्थना करिहे… हमरा से कभी कोई गलती भईल होगी तो माफ कर दीहे…"
सोनू ने ऐसी भावुक लाइन क्यों कही थी यह तो वही जाने पर भावुकता स्वाभाविक थी…सोनू आज इस प्रतिष्ठित पद को ग्रहण करने जा रहा था वह सुगना और उसके परिवार के लिए एक दिवास्वप्न से कम न था जिसे सोनू ने अपनी मेहनत से सच कर दिखाया था..।
सोनू और सुगना दोनों भावुक हो उठे सोनू और सुगना एक स्वाभाविक प्रेम की वजह से एक दूसरे के आलिंगन में आ गए यह आलिंगन बेहद पावन था.. शायद सोनू के मन भी कुछ समय के लिए वासना विहीन हो गया था और उसने भी सुगना ने भी आलिंगन की पवित्रता बरकरार थी।
सोनू और सुगना अपने अश्रुपूरित नयन लिए अपने ईस्ट देव से एक दूसरे के लिए खुशियां मांगते…एक दूसरे से अलग हो गए… सोनू ऑटो से सर निकालकर बार-बार पीछे देख रहा था जहां उसके तीनों बहने खड़ी हाथ हिला रही थी सोनू का सर ऑटो से बाहर देख कर सुगना जैसे मन ही मन सोनू से कह रही थी कि अपना सर अंदर कर ले चोट लग जाएगी उसने अपने हाथों से सोनू को अपना सर अंदर करने का इशारा भी किया सच सुगना सोनू का बेहद ख्याल रखती थी…. कुछ ही देर में ऑटो गली से मुड़ गया और तीनो बहने घर के अंदर आ गई।
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दीपावली आने वाली थी इस दीपावली ने सुगना के जीवन में ढेरों खुशियां लाई थी परंतु क्या आने वाली दीपावली सोनू और सुनना के बीच कुछ की दूरियां खत्म करेगी? या सोनू को सुगना जैसी कोई जीवन संगिनी मिल जाएगी…? जिसके लिए सरयू सिंह और उनके रिश्तेदार पूरी तत्परता से लगे हुए थे…सोनू की इस सफलता ने तो आसपास के कई जिलों के मानिंद लोगों को भी अपनी बेटी सोनू से ब्याने के लिए उत्साहित कर दिया था..
नियति के लिए एक बड़ा प्रश्न था… वह विधाता द्वारा लिखे गए पन्नों को पलट कर आगे की रूपरेखा बनाने लगी… सरयू सिंह के दरवाजे पर आज भी अपनी सुकुमारी किशोरियों का रिश्ता लेकर आने वालों का तांता लगा रहता था और सोनू पढ़ी-लिखी अक्षत योवनाओं को छोड़ अपनी बड़ी बहन सुगना से तार जोड़ने पर आमादा था.
दीपावली का त्यौहार शायद हिंदुस्तान में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्यौहार है। 90 के दशक में इस त्यौहार की अहमियत और भी ज्यादा हुआ करती थी दूर-दूर से लोग अपने घरों पर वापस आ जाया करते थे
सोनी का प्रेमी विकास भी अमेरिका से वापस बनारस आ रहा था सोनी को जब इसकी खबर मिली वह चहकने लगी…
विकास से मिलन की कल्पना कर उसकी वासना हिलोरे मारने लगी …उस तरुणी का तन बदन और दिमाग सब कुछ विकास का बेसब्री से इंतजार करने लगा परंतु इस बार की दीपावली सलेमपुर में मनाई जानी थी और सोनी को उसमें शरीक भी होना था तो क्या वह अपनी दीपावली विकास के साथ नहीं मना पाएगी…?
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि विकास भी उस दिन सलेमपुर चले आखिर अब वह उसका ससुराल भी था यद्यपि सोनी और विकास का विवाह एक गंधर्व विवाह की श्रेणी में रखा जा सकता है परंतु सोनी और विकास दोनों उस विवाह की पवित्रता को अपने मन में पूरी अहमियत देते थे..
सोनी ने मन ही मन ठान लिया कि वह अपने स्त्री हक और अधिकार का प्रयोग करते हुए विकास को सलेमपुर चलने के लिए मनाएगी चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े…
और आखिरकार सोनी ने पीसीओ से विकास को फोन लगा दिया…
फोन की घंटी जाते ही अमेरिका में बैठे विकास ने फोन काटा…और वापस पलट कर उसी नंबर पर अपने फोन से फोन किया विकास सोनी की आर्थिक स्थिति को भलीभांति जानता था।
सोनी और विकास ने कुछ देर बातें की और अंततः सोनी ने विकास को दीपावली की रात सलेमपुर आने के लिए मना लिया…. सोनी अपनी विजय पर मुस्कुरा रही थी उसने अपने जिस दिव्य और कोमल हथियार का प्रयोग इस विजय के लिए किया था वह थे उसके खूबसूरत होंठ…
जिन होठों का प्रयोग वह सूरज की नून्नी पर करती आई थी… दीपावली के दिन उसे उसका सही उपयोग करना था…. विकास उस अनोखे सुख की कल्पना कर सोनी के सामने पूरी तरह सरेंडर हो गया …और उसने और उसमें अपने परिवार को भूल अपनी प्रेमिका और पत्नी सोनी के घर पर दीपावली मनाने को अपनी रजामंदी दे दी…
स्त्रियों द्वारा पुरुषों को दिया जाने वाला सबसे मुख्य उपहार है मुखमैथुन… इस सुख की कल्पना शायद हर पुरुष करता है.. परंतु विरले ही वह लोग होंगे जिन्हें स्त्रियां स्वेच्छा से, हंसी खुशी और पूरी तन्मयता से उन्हें यह सुख देती है…
सलेमपुर में दीपावली की तैयारियां जोरों पर थी…दीपावली के दिन सोनू के सम्मान में विशेष पूजा रखी जानी थी. और दोपहर में ही आसपास के गांव के लोगों को सामूहिक भोज पर आमंत्रित किया गया था यह एक प्रकार की खुली मुनादी थी जो भी चाहे उस कार्यक्रम में शरीक हो सकता था। विशेष मानिंद लोगों को अलग से नियुक्ति भेजे गए थे और बाकी गांव वालों के लिए डुगडुगी बजाकर मुनादी करा दी गई थी…
सरयू सिंह ने दिल खोलकर पैसे खर्च किए थे वैसे भी यह एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट ही था जो सम्मान और प्रतिष्ठा उनके परिवार को प्राप्त हुई थी यह आयोजन उस प्रतिष्ठा को और भी बढ़ाने वाला था..
सरयू सिंह के पुराने मकान को भी रंग रोगन कर सजा धजा दिया गया। घर के बाहर ईंटों से बने कुछ कमरे भी तैयार कर दिए गए थे जिनमें पुरुषों के रहने की व्यवस्था की गई थी…
घर के अंदर महिलाओं के रहने की व्यवस्था थी…सरयू सिंह के परिवार का यह दुर्भाग्य ही था की इसमें कोई भी जोड़े में उपलब्ध न था।
कजरी और सुगना दोनों सास बहू अकेले रहने को मजबूर थी। रतन और विद्यानंद दोनों न जाने किस विशेष आश्रम की तैयारियों में लगे हुए थे। दोनों ने ही अपने अपने परिवार को अलग-अलग कारणों से छोड़ रखा था।
सरयू सिंह जो इस परिवार के आधार स्तंभ थे वह भी अब सुगना से दूरी बना चुके थे और कजरी वह तो अब निरापद हो चुकी थी वासना और कामुकता से परे … पूजा पाठ और गांव वालों के साथ समय व्यतीत करना उसे बेहद पसंद आता था।
सिर्फ एक विवाहित जोडी उस दिन सलेमपुर आने वाली थी वह थी विकास और सोनी की जोड़ी। परंतु यह जोड़ी जिस तरह एकांत में बनाई गई थी उन्हें वह एकांत उस दिन कतई नहीं मिलना था.. समाज और अपने परिवार की नजरों में सोनी अब भी अविवाहित थी।
खैर जो होना था वह तो दीपावली के दिन होना था नियति प्रेमियों का हमेशा मार्ग प्रशस्त करती है वह सोनी और विकास को मिलाने के लिए जुगत लगाने लगी… परंतु सुगना और सोनू दोनों की तड़प अब उससे देखी नहीं जा रही थी… एक तरफ सोनू खुलकर अपनी बड़ी बहन सुगना को अपना लेना चाहता था परंतु मर्यादा और समाज का डर अब भी उस पर हावी था।
काश कोई उससे कह देता कि सुगना उसकी अपनी सगी बड़ी बहन नहीं है तो वह सुगना के सामने नतमस्तक होकर उसके प्यार की भीख मांग लेता और उसे येन केन प्रकारेण मना लेता। और अपने छद्म गुरु रहीम की तरह अपनी बड़ी बहन सुगना को फातिमा जैसे जी भर कर प्यार करता….
दूसरी तरफ सुगना अपने मन में एक नई प्रकार की वासना को जन्म लेते हुए महसूस कर रही थी.. रहीम और फातिमा की वह किताब अब उसे इतनी बुरी नहीं लगती… सोनू ने जब से उस किताब के दोनों भागों को जोड़ दिया था वह न जाने कितनी बार उस किताब को पढ़ चुकी थी… जब जब वह एकांत में होती वासना उसे गुदगुदाती उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आती और कुछ ही देर में वह किताब उसके हाथों में आ जाती।
सुगना न जाने कब उस किताब की गिरफ्त में आ गई सोनू ने उस किताब में कई जगह सुगना का नाम लिखा हुआ था…. इतना तो अब सुगना भली-भांति समझने लगी थी कि सोनू उसके कामुक बदन का कायल है परंतु उसे सोनू से कभी कोई खतरा नहीं हो सकता था… इतना तो वह भली-भांति जानती थी कि सोनू कभी भी उसके साथ ऐसी वैसी हरकत नहीं करेगा…विशेषकर तब जब तक वह खुद ही उसे न उकसाए। परंतु वह स्वयं अपनी वासना के आधीन होकर सोनू के लंड को अपने ख्यालों में लाने में अब परहेज नहीं करती थी और गाहे-बगाहे अपनी उत्तेजना में उसे शामिल कर लेती…
आज रात सुगना की आंखों से फिर नींद गायब थी …घर के सारे सदस्य सो चुके थे और सुगना अपने बिस्तर पर हाथों में किताब लिए आ गई..
एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से अपनी छोटी सी अबोध बुर पर हाथ फिराते हुए वह किताब पढ़ने लगी…
कुछ ही देर में किताब के शब्दों में छुपा रस उसकी जांघों के बीच रिस रिस कर उंगलियों को भिगोने लगा और उंगलियों का संसर्ग उसके बुर की फांकों से और भी आत्मीय होता गया…
किताब के कुछ अंश..
रहीम : दीदी हम दोनों के प्यार करने पर रोक क्यों है?
रहीम ने अपनी बड़ी बहन की चुचियों को सहलाते हुए पूछा….
फातिमा: तू पागल है भला कोई अपने बहन से के साथ ये सब काम करता है.
रहीम: कौन सा काम …. रहीम ने फातिमा के फूले हुए निप्पलों को मसलते हुए कहा
फातिमा: ये जो तू कर रहा है…बड़ी बहन मां समान होती है…. फातिमा ने अपनी उखड़ती सांसो पर काबू करते हुए कहा..
रहीम : सच दीदी ….बड़ी बहन सचमुच मां समान होती है…
इतना कहते हुए रहीम ने फातिमा की बड़ी बड़ी चूचियों को अपने मुंह में भरने की कोशिश की और अपनी जीभ से उसके निप्पल चुभलाने लगा..
सोनू रहीम ने अपनी आंखें उठाकर फातिमा को देखा जैसे पूछ रहा हूं अब ठीक है …
किताब में फातिमा उत्तेजना से कांपने लगी और बिस्तर पर पड़ी सुगना भी उसने किताब को एक तरफ रखा और उसकी हथेलियां जांघों के बीच अपनी करामात दिखाने लगी…
रहीम और फातिमा की किताब जितनी उत्तेजक थी उससे कहीं ज्यादा उत्तेजक सोनू के ख्वाब थे पर उसके ख्वाब अभी उसके दिल में ही दफन थे जाने कब वह सुगना को अपने दिल की बात बताएगा…
नियति का कुछ ऐसा चक्र था कि सोनू जो कुछ अपनी खुली आंखों से पूरे होशो हवास में सुगना के साथ करना चाहता था वह सुगना अपने स्वप्न में देखा करती थी.. सुगना के जीवन में रतन के जाने बाद आई नीरसता उसके सपनों ने दूर कर उसकी रातें रंगीन कर दीं थीं।
परंतु दिन के उजाले में सुगना अपनी वासनाओं को काबू कर एक सभ्य और सुसंस्कृत बड़ी बहन की तरह अपने घर की जिम्मेदारियां अब भी उठा रही थी…उसे पता था रहीम और फातिमा की कहानी एक कुत्सित मन द्वारा उपजी वासना के अलावा और कुछ भी नहीं है….हकीकत इससे इतर थी…सुगना को अपने भाई के लिए एक सुंदर दुल्हन खोजनी थी जिसमें सुगना कोई कोताही नहीं बरतना चाहती थी…
दीपावली आने वाली थी…सुगना अपने भाई सोनू और सोनी अपने प्रेमी विकास का का इंतजार करने लगी…
इंतजार सबको था सरयू सिंह को भी , सोनू की मां पद्मा को भी और नियति को भी…
शेष अगले भाग में
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16-07-2022, 05:39 PM
भाग 99
दिन के उजाले में सुगना अपनी वासनाओं को काबू कर एक सभ्य और सुसंस्कृत बड़ी बहन की तरह अपने घर की जिम्मेदारियां अब भी उठा रही थी…उसे पता था रहीम और फातिमा की कहानी एक कुत्सित मन द्वारा उपजी वासना के अलावा और कुछ भी नहीं है….हकीकत इससे इतर थी…सुगना को अपने भाई के लिए एक सुंदर दुल्हन खोजनी थी जिसमें सुगना कोई कोताही नहीं बरतना चाहती थी…
दीपावली आने वाली थी…सुगना अपने भाई सोनू और सोनी अपने प्रेमी विकास का का इंतजार करने लगी…
इंतजार सबको था सरयू सिंह को भी , सोनू की मां पद्मा को भी और नियति को भी…
अब आगे…
दीपावली पर सलेमपुर में एक साथ मिलने का आनंद अनूठा होने वाला था सरयू सिंह और सुगना का परिवार बेहद प्रसन्न था…
सोनू की मां पदमा एक पखवाड़े पहले ही सलेमपुर आ गई और साथ-साथ मोनी को भी ले आई …मोनी का गदराया बदन सलेमपुर के लड़कों की नजरों से बचना मुश्किल था। सरयू सिंह के घर पर लड़कों का आना जाना बढ़ गया… यद्यपि उस दौरान सरयू सिंह के घर-घर में ढेरों तैयारियां हो रही थी ..इसलिए उन लड़कों के आने जाने का कोई अन्य अर्थ नहीं निकाला जा सकता था… परंतु उनमें से कई सारे लड़के ऐसे थे जो सिर्फ और सिर्फ मोनी की गदराई काया के दर्शन करने आया करते थे।
मोनी तो जैसे अपनी मदमस्त काया की अहमियत को भूल कर भूलकर बिंदास घर से बाहर हंसती खेलती रहती। कभी बाहर खूंटे से बंधे मवेशियों को खाना खिलाती कभी उनकी पीठ सहला कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करती और मनचले लड़के उसकी हर अदा में कामुकता खोज अपना लंड खड़ा किए रहते…
मोनी खुद में लीन रहती। न उधव से लेना ना न माधव को देना वाली कहावत उस पर चरितार्थ होती..
उसे तो न जाने इस दुनिया से क्या चाहिए था…जब जब वह वैरागीयों को देखती उसे उनमें अपना भविष्य दिखाई पड़ता परंतु जब-जब मोनी स्त्रियों को सजते धजते और श्रृंगार करते हुए देखती उसे बार-बार यह व्यर्थ ही लगता। उसे बाहरी सुंदरता से ज्यादा मन की सुंदरता पसंद आती ..
शादी विवाह जैसे बड़े आयोजनों पर खर्च होने वाला पैसा उसे व्यर्थ लगता आज भी वह जिस कार्यक्रम में सम्मिलित होने आई थी उसमें भी सरयू सिंह पैसा पानी की तरह बहा रहे थे मोनी को यह कतई रास नहीं आ रहा था परंतु वह अपने परिवार के साथ सलेमपुर आ गई थी..
कजरी बार बार मोनी के विवाह का जिक्र करती। मोनी को विवाह कतई पसंद न था धीरे-धीरे उसके मन में विवाह को लेकर कई आशंकाएं आ चुकी थी.. और न जाने कब वह मन ही मन विवाह के सख्त खिलाफ हो गई थी…शायद इसमें सुगना और रतन बिखरे हुए रिश्ते ने भी भूमिका अदा की थी…
ग्रामीण किशोरियों और युवतियों मैं विवाह का आकर्षण यौन सुख को प्राप्त करने के लिए ही होता है वरना वह तो अपने पिता के घर में भी उसी तरह आनंदित और प्रफुल्लित घूमती रहती है…और इसी सुख के लिए वह अपने घर का हंसता खेलता आंगन छोड़ अपनी ससुराल में आ जाती हैं…
मोनी भी अनोखी थी और उसके विचार भी। जाने नियति ने उसके भाग्य में क्या लिखा था…
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उधर बनारस में सुगना और लाली अपने अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीद कर पूरी तरह तैयार थीं। दीपावली सलेमपुर में मनाने के नाम से सभी के मन में हर्ष व्याप्त था।
गांव चलने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए थे कल सोनू बनारस आने वाला था सुगना और लाली दोनों सोनू का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।
लाली उबटन लगा रही थी…अपने सोनू को रिझाने के लिए वो कोई कसर न छोड़ती…सुगना ने उसे छेड़ा…
चिकना ने आपन देह काल आई सोनूआ त रगडी….
लाली ने सुगना से कहा
आव तनी मदद कर द
सुगना लाली के पास गई और लाली ने जान बूझ कर सुगना के हाथों पर उबटन लगा दिया…और उसे भी उस प्रक्रिया में शामिल कर लिया..
औरतों में सुंदर दिखने की चाह स्वाभाविक होती है…सुगना भी उससे अलग न थी….सुगना की सुंदर काया उबटन के काले पीले आवरण में आकर बदरंग हो गई…परंतु कुछ ही देर बाद उबटन का आवरण हटाने के बाद सुगना की कुंदन काया चमक उठी….
नियति सुगना को अपने भाई के लिए अनजाने में ही तैयार होते देख मुस्कुरा रही थी…
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सोनू बनारस आ चुका था तीनों बहनों के चेहरे पर अपने अपने भाव के अनुसार खुशियां थी. सुगना हमेशा की तरह सबसे ज्यादा खुश थी न जाने उसे सोनू को देखकर क्या हो जाता ? कभी जब वह उसे अपने छोटे भाई के रूप में देखती और उसकी सफलता पर झूम उठती ।
यदि उसके परिवार में में कोई राजमुकुट होता तो वह अपने छोटे भाई के सर पर रख कर उसे घंटों निहार रही होती। और जब कभी वह सोनू के कामुक रूप को देखती उसका बदन सिहर उठता… शरीर में एक अजब सी उत्तेजना होती और उसके गाल सुर्ख हो जाते वह एक नई नवेली वधू की तरह शर्माती और उससे दूर हो जाती परंतु कभी मुड़ मुड़कर कभी ओट लेकर उसे अवश्य देखती….
सोनू ने अपनी तीनो बहनों के लिए लहंगा चोली लाया था….सब कपड़ेएक से बढ़ कर एक थे …और सुगना का कपड़ा तो उसके जैसा ही खूबसूरत था…तीनों बहनों ने तय किया को वो दीपावली के दिन वही लहंगा चोली पहनेंगी। सुगना बेहद खुश थी…
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दोपहर में सोनू आराम कर रहा था और सुगना एवं लाली आपस में बैठे बात कर रही थी। तभी सोनू ने सोनी को पुकारा जो सूरज के साथ कमरे में थी। वह क्या कर रही थी यह बात भली-भांति पाठक समझ सकते हैं…. छोटा सूरज खिलखिला रहा था और अपनी मौसी के सर पर हाथ फेर रहा था..
सोनू ने दोबारा आवाज लगाई और सोनी को अचानक ही सूरज को उसी अवस्था में छोड़कर सोनू के पास जाना पड़ा ….सोनू का दोबारा आवाज देना यह साबित कर रहा था कि निश्चित ही सोनू ने सोनी को किसी आवश्यक कार्य के लिए ही बुलाया था उसने सूरज से उसी तरह खड़े रहने के लिए कहा और .. उठकर सोनू के पास आ गई ..
इधर सुगना सोनी को बुलाने के लिए उसके कमरे में आ गई और उसके बिस्तर पर खड़े सूरज को देख कर सारा माजरा समझ गई। सूरज का निक्कर नीचे था और उसकी छोटी सी नून्नी फूल कर कुप्पा हो गई थी… सुगना उसके पास आई और उसे अपने सीने से हटाते हुए उसे प्यार करने लगी उसने उसने निक्कर में उसकी फूली हुई नून्नी को बंद करने की कोशिश की परंतु सूरज तैयार न था वह अब भी अपनी मौसी का इंतजार कर रहा था..
सुगना ने उसे सीने से लगाकर खुस करने की कोशिश की परंतु वह न माना वह सुगना को दूर धकेलता रहा और न जाने कब सुगना का मंगलसूत्र सूरज के हाथों में आ गया… सूरज के छोटे छोटे हाथों में न जाने कहां से इतनी शक्ति आई कि उसने सुगना का मंगलसूत्र पर कुछ ज्यादा ही जोर लगा दिया और सुगना का मंगलसूत्र टूट गया…. सुगना के अपने ही पुत्र ने अपनी माता के गले से मंगलसूत्र छीन लिया…
सुगना दुखी हो गई परंतु उसने फिर भी सूरज को कुछ भी ना कहा… अब तक सूरज का गुस्सा भी शांत हो चुका था समय के साथ सूरज की फूली हुई नून्नी अपना आकार घटा रही थी….
सोनी वापस आ चुकी थी और सुगना उसे एक बार फिर गुस्से से देख रही थी। सुगना ने एक बार फिर सोनी को हिदायत दी और बोली "सोनी ई आदत छोड़ दे सूरज परेशान हो जाला तोर मजाक मजाक में कभी बात बिगड़ जाए आज देख चिड़चिड़ा के हमार मंगलसूत्र खींचकर तोड़ देले बा"
अब तक सोनू और लाली भी कमरे में आ चुके थे.. मंगलसूत्र में जड़े काले मनके नीचे फर्श पर बिखर चुके थे। रतन के द्वारा लाया गया यह मंगलसूत्र सुगना के गले से जुदा हो चुका था… जिस प्रकार रतन सुगना की जिंदगी से दूर हो गया था उसी प्रकार उसका दिया मंगलसूत्र भी आज बिखर गया था…. मनकों को वापस इकट्ठा कर पाना असंभव था… मंगलसूत्र में जड़ा हुआ सोना.. अब भी मूल्यवान था सोनू ने उसे अपने हाथों में लेते हुए कहा…
"जायदे दीदी हम इकरा के बनवा देब"
सुगना को वैसे भी उस मंगलसूत्र से कोई सरोकार न था उसने उसे उठाकर सोनू को दे दिया और इस अकस्मात धन हानि से अपना ध्यान हटाने के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई।
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उसी शाम नगर निगम से सुगना के घर पर कोई नोटिस आया जिसमें म्युनिसिपल टैक्स से संबंधित कोई जानकारी मांगी गई थी…जिसके लिए पिछले वर्ष जमा की गई रसीद का होना आवश्यक था।
यदि कागजात संभाल कर न रखे जाएं तो उन्हें खोजना सबसे दुरूह कार्य होता है
सुगना को उस कागज की अहमियत का अंदाजा न था और उसे यह कतई ध्यान नहीं आ रहा था कि उसने यह कागज कहां रखा पूरे घर में कागज ढूंढा जाने लगा…
कुछ ही देर में पूरा सजा धजा घर अस्त-व्यस्त हो गया नियति अपने सामने घर को फैलते देख रही थी परंतु वह संतुष्ट थी। सरयू सिंह की खून जांच की रिपोर्ट और सुगना से उनके संबंध को उजागर करने वाली पर रिपोर्ट लाल झोले में झांक सोनू का ध्यान खींच रही थी सोनू ने उछल कर अपने हाथ बढ़ाएं और उस झोले को ऊपर छज्जे से उतार लिया..
सुगना ने उस झोले को पहचान लिया और बोली
"अरे ही बाबूजी के रिपोर्ट ह ए में ना होई"
सोनू कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था उसने रिपोर्ट निकाली और उसे सुगना और सरयू सिंह के संबंधों को उजागर करने वाली रिपोर्ट दिखाई पड़ गई… सोनू की आंखें आश्चर्य से फटी रह गए उसने उस रिपोर्ट को कई बार पढ़ा अब तक उसे इस प्रकार की जांचों के बारे में जानकारी हो चुकी थी।
एसडीएम की ट्रेनिंग करते-करते उसे खून जांच के मिलान आदि के बारे में पर्याप्त ज्ञान हो चुका था उस रिपोर्ट में दी गई बात को झुठला पाना संभव न था।
सोनू का कलेजा धक-धक कर रहा था उसे इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था कि सुगना सरयू सिंह की पुत्री है ……
तो क्या सुगना उसकी अपनी बहन नहीं है… सोनू का कलेजा मुंह को आ रहा था… वह इस बात पर प्रसन्न हो या दुखी वह खुद भी समझ नहीं पा रहा था… सोनू ने फटाफट उस रिपोर्ट को उसी झोले में डालकर ऊपर छज्जे पर रख दिया… उसका मन व्यग्र हो चुका था वह सुनना के कमरे से बाहर निकल आया…
सुगना ने उससे बाहर जाते देखकर बोला..
" अरे सोनू सब फैला देले बाड़े… ठीक-ठाक कर के जो"
"बस थोड़ा देर में आव तनी"
सोनू घर से बाहर आ गया.. बाहर गली में टहलते हुए उसके दिमाग में बार-बार यही बात आ रही थी कि यह कैसे हो सकता…सुगना यदि सरयू सिंह की पुत्री थी तो सुगना की मां कौन है..?
हे भगवान तो क्या उसकी मां…ने सरयू सिंह से…. छी छी ऐसा नहीं हो सकता…कौन पुत्र अपनी मां के चरित्र पर सवाल उठाएगा…
सोनू बेचैन हो गया था…एक तरफ यह जान कर की सुगना उसकी अपनी सगी बहन नहीं है सोनू उसे लाली के समकक्ष रखने लगा था…और उसके मन ने इस बात को पूरी तरह स्वीकार कर लिया था। पर इस सच को मानना इतना आसान न था। उसने जब से अपना होश संभाला था सुगना उसके साथ थी…
सोनू कुछ देर बाद वापस घर गया…सुगना अब तक कमरा साफ कर चुकी थी.. सोनू ने उसकी अलमारी एक बार फिर खोली और बचपन का पुराना एल्बम बाहर निकाल कर देखने लगा..
उस दौरान फौज में होने के कारण पदमा अपने पति के साथ शहर में रहती थी…सुगना अपने मां-बाप की पहली संतान थी उन्होंने सुगना के जन्म पर कई तस्वीरें खिंचवाई थी…….सोनू को उन फोटो को देखकर यह यकीन हो गया की सुगना ने भी उसकी मां की ही कोख से जन्म लिया है… परंतु सुगना के पिता सरयू सिंह थे यह बात पचने योग्य न थी।
एक बार के लिए उसके मन में आया कि हो सकता है डॉक्टरों ने जांच रिपोर्ट में कोई गलती कर दी हो।
परंतु इसकी संभावना न थी…. हॉस्पिटल में सुगना ने ही सरयू सिंह को बचाने के लिए अपना खून दिया था यह बात रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर थी और यही बात सोनू के सारे संशय को मिटाने के लिए काफी थी… सोनू यह बात भली-भांति जान चुका था कि सुगना सरयू सिंह की ही पुत्री थी…
सोनू के मन में अचानक यह प्रश्न आया कि क्या सुगना दीदी को यह बात पता है…? उसने सुगना और सरयू सिंह के बीच संबंधों को बड़े करीब से देखा था एक बहू और ससुर के बीच जो संबंध होना चाहिए वह इस से ज्यादा कुछ और नहीं देख पाया था…
बंद कमरे के अंदर सुगना और सरयू सिंह के बीच क्या थे यह उसकी सोच से परे था। परंतु पिता और पुत्री ? यह संबंध अविश्वसनीय था। और यदि सरयू सिंह यह बात जानते थे तो उन्होंने क्यों अपनी ही पुत्री का विवाह अपने बड़े भाई के लड़के रतन से कराया था….
सोनू का दिमाग घूम रहा था उसके प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई नहीं था….अंततः उसने अपनी सुगना दीदी से ही बात करने की सोची और पूछा…
"दीदी जब सरयू चाचा बीमार पड़ल रहल तब तू उनका के खून देले रहलु नू..?
" हा …का बात बा? काहे पूछा तारे?"
" असही…" सोनू के चेहरे को देखकर सुगना ने अंदाजा लगा लिया कि वह किसी दुविधा में है उसने स्वयं कहा
"डॉक्टर पुछत रहले सो कि परिवार के आदमी बा? खून देवे के बा…हम रहनी एही से चल गईनी…रिपोर्ट में कुछ गडबड बा का..?"
सुगना ने जिस तरह बिंदास होकर प्रश्न पूछा था सोनू ने यह अंदाज कर लिया कि शायद सुगना को यह नहीं पता की सरयू सिंह उसके पिता है…वैसे भी अभी सुगना ने अंग्रेजी पढ़ना नहीं सीखा था और वैसे भी इन पचड़ों में ज्यादा पढ़ती भी न थी…
यह सच भी था यदि सुगना को यह बात पता होती कि सरयू सिंह उसके पिता है तो यह जानकर घुट घुट कर मर गई होती अपने ही पिता के साथ एक नहीं अनवरत संभोग करने का पाप वह सह नहीं पाती…और तों और वह इस बात को उजागर करने वाली रिपोर्ट को इस तरह सबकी पहुंच में कतई न रखती…
सोनू मन ही मन यह बात सोचने लगा कि क्यों ना वह यह बात सुगना दीदी को बता दे? पर क्यों? इससे क्या फर्क पड़ता था की सुगना सरयू सिंह की पुत्री है? सुगना और सोनू का व्यवहार और संबंध एक आदर्श भाई बहन जैसे ही रहे थे फिर इस नए संबंध से क्या फर्क पड़ना था? वैसे भी सोनू का सुगना के प्रति यह वासना जनित प्यार एक तरफा ही था…सुगना सोनू के प्रति आसक्त अवश्य थी परंतु मर्यादा के दायरे में….
हां यह बात अलग थी कि अब सोनू के दिमाग में सुगना खुलकर आने लगी थी। अपनी बहन से ही व्यभिचार के विचार से उसके मन में उठ रही आत्मग्लानि अब लगभग खत्म हो रही थी … सुगना और सोनू की मां एक थी परंतु पिता अलग-अलग…. सोनू ने सुगना को सरयू सिंह की संतान मान लिया। शायद उसके दिमाग में यह निष्कर्ष उस समय के पितृ प्रधान समाज की व्यवस्था के कारण निकाला था।
वैसे भी मनुष्य परिस्थितियों और घटनाओं को अपने विवेक से देखता है, सोचता है और उनका निष्कर्ष अपने अनुकूल ही निकलता है …
आज सोनू की शाम पूरे उतार-चढ़ाव में बीती। उसके दिमाग ने संबंधों का इतना आकलन आज से पहले कभी नहीं किया था। अपनी मां और सरयू सिंह के संबंधों को जानकर वह आश्चर्यचकित भी था और अब थोड़ा प्रसन्न भी था…सुगना दीदी उसकी अपनी बहन नहीं है… यह बात उसके दिमाग में पूरी तरह आत्मसात कर ली थी…
और अब सुगना के प्रति उसकी भावनाएं तेजी से बदल रही थी। ख्वाबों की मलिका अचानक उसे अपनी जद में दिखाई पड़ने लगी वह सुगना को छूना चाहता था उसकी कोमल त्वचा को महसूस करना चाहता था और अपने ख्वाबों से निकल कर उसे हकीकत का जामा पहनाना चाहता था…
धीरे-धीरे मन का ऊहा फोह कम हुआ और रात्रि में लाली की बाहों में आकर सोनू मदहोश हो गया
उबटन ने लाली के त्वचा को और भी चिकना कर दिया था। नंगी लाली को अपने आगोश में लेने के बाद सोनू एक बार फिर अपनी सुगना दीदी के बारे में सोचने लगा। धीरे धीरे लाली सुगना बन गई और सोनू ने अपनी सारी कसर लाली पर निकाल ली… लाली के होठों कानो और गालो को चूमते हुए सोनू ने आज उसे बेहद प्यार से चोदने लगा ..…. सोनू का यह रूप लाली को कई दिनों बाद देखने मिला था…. अन्यथा पिछले कई मुलाकातों में अब वह उसे एक पति पत्नी की भांति चोदता था जिसमें प्यार कम और वासना शांति ज्यादा हुआ करती थी..
वासना शांति के उपरांत सोनू ने लाली से ढेर सारी बातें की और सरयू सिंह के बारे में और भी जानने की कोशिश की।
लाली सरयू सिंह के पड़ोसी और दोस्त हरिया की बेटी थी। बातों ही बातों में सोनू को यह पता चल चुका था कि सरयू सिंह की ननिहाल और उसकी मां का मायका एक ही गांव में है और घर भी अगल-बगल हैं…।
आज के समाज में स्त्री और पुरुष स्वभाविक रिश्ते में भाई बहन ही होते हैं परंतु उनमें से कोई एक इस रिश्ते को झुठला कर पति का रूप ले लेता है…
सरयू सिंह और सोनू की मां पदमा भी स्वाभाविक रिश्ते में भाई बहन ही थे…सोनू की निगाहों में न तो सरयू सिंह व्यभिचारी थे और ना उसकी मां पदमा परंतु यह संबंध बना तो अवश्य था… पर कैसे.? यह समझ पाना बेहद कठिन था ।
परंतु जब जब वो अपने और लाली के संबंधों के बारे में सोचता वह अपनी तुलना सरयू सिंह से करने लगता। आखिर लाली भी तो उसकी मुंह बोली बहन थी हो सकता है एक ही गांव में अगल बगल रहते सरयू सिंह और उसकी मां पदमा के बीच कभी संबंध बन गया हो परंतु विवाह के उपरांत सोनू को यह बात नहीं पच रही थी।
परंतु अब वह इस पचड़े में और नहीं पढ़ना चाहता था वह अब यह मान चुका था कि सुगना उसकी सगी बहन नहीं है शायद उसकी यह भावना इसलिए भी प्रगाढ़ हो रही थी कि अब वह सुगना को अन्य रूप में चाहने लगा था….
काश उसे इस बात इल्म होता कि उस दिन जब सरयू सिंह ने पदमा को तालाब में डूबने से बचाया था और उसके मदमस्त बदन के स्पर्श का अनुभव किया था.. उनकी उत्तेजना जाग उठी थी और उनके इस स्पर्श ने पदमा के मन में भी हलचल पैदा कर दी थी…. शाम ढलते ढलते पदमा उनकी बाहों में आ चुकी थी… और उन्होंने पदमा का हलवा कसकर खाया था और अपने दिव्य वीर्य का कुछ अंश उसके गर्भ में छोड़ आए थे जो अब सुगना के रूप में उनकी पुत्रवधू बनकर उनका ही आगन रोशन कर रही थी।
समय हर चीज का वेग कम कर देता है क्या सुख क्या दुख क्या जिज्ञासा क्या आशा क्या निराशा…
धीरे-धीरे सोनू ने इस सच को अपना लिया।
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अगली सुबह सोनू ने अपनी बड़ी बहन सुगना को देखने का नजरिया बदल लिया उसकी आत्मग्लानि लगभग खत्म हो चुकी थी अब सिर्फ और सिर्फ उसे सुगना को अपने नजदीक लाना था पर कैसे यह कार्य आसमान से तारे तोड़ कर ला ने जैसा था….. परंतु ट्रेन की घटना ने सोनू के मन में उम्मीद कायम रखी थी। सोनू सुगना के और करीब जाकर उसके मन में उठ रही भावनाओं का आकलन करना चाहता था क्या सुगना दीदी की भावनाएं भी लाली दीदी के जैसे होंगी क्या अतृप्त सुगना को अपने तृप्ति के लिए अपने ही भाई से संबंध स्थापित करने में परहेज नहीं होगा..
सोनू के मन में एक बार फिर आया कि वह सुगना को यह बात बता दे कि वह उसकी सगी बहन नहीं है परंतु उसने अपनी मां को व्यभिचारी साबित करना और सुगना को यह बताना की वह अपने ही पिता के घर में उनकी पुत्र वधू के रूप में रह रही है, सोनू को यह बात रास न आई।
सोनू ने मन ही मन यह फैसला कर लिया कि वह यह बात सुगना को अभी नहीं बताएगा परंतु यदि आवश्यकता पड़ी तो वह सुगना को बिना उसके पिता का नाम लिए यह अवश्य बता देगा कि वह उसकी सगी बहन नहीं है और शायद उसके मन में भी उठ रही आत्मग्लानि को कम कर देगा…
सोनू अपने मन में कई तरीके के विचार लाता कभी उन्हें हकीकत का जामा पहनाने की कोशिश करता परंतु उसे यह सहज ना लगता फिर वह अपने विचार बदलता नए तरीके की परिस्थितियां बनाता और मन ही मन उसमे विफल होता, सुगना को अपनी बाहों में भरने की कल्पना मात्र से वह सिहर उठता पर यह क्या इतना आसान था? चंद कामुक मुलाकातों को छोड़ दिया जाए तो… जिस बड़ी बहन को वह पिछले कई वर्षों से आदर और सम्मान देता आया था उसे अपने बिस्तर पर लाना यह निश्चित ही कठिन था…पर सोनू की कामुकता ने रिश्तो पर घुन की तरह कार्य करना शुरू कर दिया था ।
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दोपहर बाद सभी को सलेमपुर के लिए निकलना था एसडीएम साहब ने 2 गाड़ियां बुलवा ली थी पद का प्रभाव दिखाई पड़ने लगा था। सुगना और लाली तैयारियों में जुटे हुए थे और सोनू बाजार घूम रहा था दोपहर के वक्त सुगना स्नान कर अपने कपड़े पहन चुकी थी और अपने गोरे चेहरे पर बोरोलीन लगा रही थी उसका सूना गला श्रृंगारदान के शीशे में दिखाई पड़ रहा था…शायद विवाह के बाद यह पहला अवसर था जब उसका गला सूना था। उसे अपने किशोरावस्था के दिन याद आ रहे थे परंतु भरी-भरी चुचियों को देखकर वह मुस्कुराने लगी अब वह एक किशोरी ना होकर पूर्ण युवती थी..
उसी समय सोनू ने पीछे से आकर उसकी पलकें अपनी हथेलियों से बंद कर दी और बोला
"सुगना दीदी आंख मत खोलिह"
"सुगना ने मचलते हुए कहा अरे छोड़ पहले… ना खोलब"
सोनू का लंड अब पेंट में अपना तनाव बढ़ाने लगा था परंतु सोनू ने अपनी कमर को सुगना की पीठ से दूर रखा हुआ था वह कोई असहज स्थिति पैदा करने के मूड में नहीं था..
"सोनू ने फिर कहा दीदी पक्का मत खोलिह"
सुगना स्वयं सोनू के स्पर्श से अब असहज महसूस कर रही थी उसके कंधे पर सोनू की गर्म सांसे टकरा रही थी और सुगना अब धीरे-धीरे असहज महसूस कर रही थी सुगना ने कहा
" ठीक बा ना खोलब" और सचमुच सुगना ने अपनी आंखें बंद ली जिसे सोनू की उन्होंने बखूबी महसूस किया…
सोनू ने अपनी जेब से मलमल के कपड़े में रखे नए मंगलसूत्र को निकाला और सुगना के गोरे और चमक दार गले पर पहनाने लगा मंगलसूत्र का लॉकेट सुगना की चूचियों के बीच घाटी में पचुंच कर उन्हे चूमने का प्रयास करने लगा…सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसके गले में सोनू कोई लाकेट पहना रहा है..
सुगना ने अपनी आंख खोली और यह देखकर दंग रह गई कि सोनू ने उसके गले में मंगलसूत्र पहना दिया है…
इससे पहले की सुगना कुछ बोल पाती…लाली वहां आ गई…और बोली..
"अरे वाह भाई होखे त अइसन दीदी के मंगल सूत्र काल्हे टुटल और आज नया आ गइल…"
सुगना कुछ बोल ना पाई…अपने ही भाई के हाथों मंगलसुत्र पहनकर वह अजीब सा महसूस कर रही थी…
सोनू सारी पढ़ाई पढ़ने के बावजूद यह बात नहीं समझ पाया की बड़ी बहन के गले में मंगलसूत्र डालना किस ओर इशारा कर रहा था ..
किताबों में पढ़ा गया ज्ञान व्यवहारिकता से अलग होता है…
सोनू ने सुगना के लिए टूटे हुए मंगलसूत्र को बनवाने की बजाय नया मंगलसूत्र खरीदना उचित समझा था वह अपनी बड़ी बहन सुगना को प्रसन्न करना चाहता था उसे इस बात का इल्म न था कि किसी युवा स्त्री को मंगलसूत्र पहनाने का क्या अर्थ हो सकता था परंतु अब जो होना था वह हो चुका था …
लाली ने आकर भाई-बहन के बीच उत्पन्न हुई असहजता को खत्म कर दिया था और कुछ ही देर मे सब कुछ सामान्य हो गया परंतु सुगना के मन में एक कसक आ चुकी थी वह उस खूबसूरत मंगलसूत्र को निकालना भी नहीं चाहती थी और उसे अपने ही भाई के हाथों उसका दिया मंगलसूत्र पहनने में असहजता भी महसूस हो रही थी…उधर सोनू प्रसन्न था…पर नियति ने उसकी मेहनत का फल देने के लिए बिसात बिछा दी थी..
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सारी तैयारियां हो चुकी थी पर वहां आने में अभी विलंब था। लाली और सुगना आपस में बैठे बातें कर रहे थे। और बाहर हाल में बच्चों के साथ खेल रहा सोनू अपने कान अंदर सुगना और लाली की बात सुनने के लिए लगाए हुआ था.
" सांचौ कितना सुंदर मंगलसूत्र ले आईबा सोनूवा काश कि हमरा के पहनावले रहित सेवा करी हम और मलाई तोरा के"
सुगना ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा
ए लाली बिल्कुल बकबक कर बंद कर,। तोरा हर घड़ी ऐही सब सब बात करे में मन लागेला "
"अरे हम कौन गलत कहत बानी"
"उ तोरा के मंगलसूत्र पहना दे ले बा अब काहे के भाई बहन₹
"लाली ते पगला गइल बाड़े…तोरा रिश्ता के कोनो मोल नाइक सोनू के रही बिगाडले बाड़े…"
" अरे वाह छोट भाई के खेला खेलल देखेलू तब ना सोचे लू…."
सुगना को यह उम्मीद न थी कि लाली इस प्रकार से खुलकर बोल देगी…सुगना शांत हो गई
लाली ने सुगना की कोमल हथेलिया अपने हाथों में लेकर उसे सह लाते हुए कहा
"ए सुगना तोर मन ना करे ला का"
सुगना अपने मन की अवस्था कतई बताना नहीं चाहती थी। सोनू उसके ख्वाबों खयालों में आकर पिछले कई दिनों से उसे स्खलित करता आ रहा था …
"अच्छा सोनुआ तोर भाई ना होेखित तब?"
"काश कि तोर बात सच होखित"
सुगना में बात समाप्त करने के लिए यह बात कह तो दी परंतु उसके लिए यह शब्द सोनू के कानों तक पहुंच चुके थे और उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा…
सुगना की बात में छुपा हुआ सार सोनू अपने मन मुताबिक समझ चुका था…उसे यह आभास हो रहा था की सुगना के मन में भी उसको लेकर कामूक भावनाएं और ख्याल हैं परंतु वह झूठी मर्यादा के अधीन होकर इस प्रकार के संबंधों से बच रहीं है…नजरअंदाज कर रही है…. सोनू अपने मन में आगे की रणनीति बनाने लगा सुगना को पाना अब उसका लक्ष्य बन चुका था…
शेष अगले भाग में...
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bhut badhiya yaar thoda aaur aaise he upanyass hain to jara jaldi post karo na .. kamse kam link bata do kahan pe milenge bhojpuri wale upanyas.....
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One of the best stories I have read
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भाग 103
नियति मोनी को लेकर परेशान थी…जो सोनी को खोजती हुई बाहर सोनू की कोठरी के दरवाजे पर आ चुकी थी…जिसके अंदर सोनी अपने प्रेमी पति विकास के साथ……..धरती पर स्वर्ग के मजे लूट रही थी…
यदि मोनी ने हल्ला मचा दिया तब?….सरयू सिंह और सुगना के परिवार की इज्जत दांव पर लग गई थी…लाली अपराध बोध से ग्रस्त अब भी सुगना के कमरे में जाने में घबरा रही थी…सोनू पिछवाड़े में जाकर मुत्रत्याग कर रहा था और आगे होने वाले घटनाक्रम को अंदाज रहा था…
कुछ होने वाला था…अनिष्ट को आशंका से सोनू भी घबरा रहा था…
अब आगे…..
इस घटना की एकमात्र गवाह मोनी जो अपनी नंगी आंखों से देख चुकी थी कि सुगना और सोनू रिश्तो की मर्यादा को ताक पर रखकर अपनी जिस्मानी आग बुझा रहे थे फिर भी मोनी को यकीन नहीं हो रहा था।
वह एक बार फिर खुद को संतुलित कर उस छोटी सी खिड़की पर गई अंदर स्थिति और भी कामुक हो चुकी थी सोनू अब और तेजी से सुगना को चोद रहा था सुगना के पैर हवा में थे और कांप रहे थे.. पैरों में पहनी पाजेब के घुंघरू न जाने कौन सी ताल छेड़ रहे थे…
मोनी से और बर्दाश्त ना हुआ उसके शरीर में अजीब सी ऐठन हुई उसने आज पहली बार ऐसे दृश्य देखें थे उसे लगा जैसे उसका कलेजा मुंह को आ रहा था वह बेचैन हो गई.. सोनी बिस्तर पर पहले ही नहीं थी मोनी को कुछ सूझ नहीं रहा था।
अशांत मन एकांत में और भी अशांत हो जाता है.. मोनी को अब कमरे का एकांत चुभने लगा था.
अपनी बड़ी बहन सुगना और सोनू को चूदाई करते छोड़ वह सोनी की तलाश में कमरे से बाहर आ गई बाहर भी अंधेरा था…मोनी ने कमरे में जाकर अपनी टॉर्च निकाली और बाहर गलियारे में आ गई टॉर्च की रोशनी देखकर गलियारे में दूसरी तरफ खड़ी लाली सतर्क हो गई उसके मन में डर समा गया कि कहीं मोनी उसे इस अवस्था में देख ना ले।
लाली ने जो अपराध किया था उसका एहसास अब उसे हो चुका था अब वह पश्चाताप की आग में जल रही थी सुगना का प्रतिरोध उसने उसकी आवाज से महसूस कर लिया था.. निश्चित ही सुगना ने प्रतिरोध किया था..परंतु आगे के घटनाक्रम की उसे कोई जानकारी न थी सुगना और सोनू के बीच अंदर क्या घटा था यह उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा था….
लाली कतई नहीं चाहती थी कि मोनी इस बात को लेकर कोई बतंगड़ करें.. लाली ने आंगन में बने पाए की ओट ले ली वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी की मोनी सुगना के कमरे की तरफ न जाए। उस बेचारी को क्या पता था कि मोनी अपने सोनू भैया और सुगना दीदी की घनघोर चूदाई अपनी नंगी आंखों से देख कर आ रही है।
मोनी ने सोनी को ढूंढने की कोशिश की परंतु घर इतना बड़ा न था की मोनी को समय लगता.. मोनी ने गुसल खाने की तरफ टॉर्च मारी परंतु उसे दरवाजा खुला था, वहां कोई दिखाई न पड़ा इस मूसलाधार बारिश में वैसे भी वहां कौन जाता..
मोनी से रहा न गया वह आंगन से बाहर आकर सरयू सिंह की कोठरी के सामने आ गई जिसके अंदर सोनी और विकास अपनी रासलीला में लगे थे…मोनी के कानों में हल्के हल्के थप ..थप ….की आवाजें सुनाई देने लगी ऐसा लग रहा था जैसे कोई बच्चे की पीठ थपथपा रहा हो अंदर इतनी रात को कौन जगा हो सकता है…
अब जब मोनी के अंदर उत्सुकता जाग ही गई थी तो न जाने मोनी के मन में क्या आया उसने दरवाजे पर पहुंचकर सरयू सिंह के कमरे में टॉर्च की रोशनी मार दी।
उस जमाने में गांव में दरवाजों की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं हुआ करती थी, लाख प्रयास करने के बावजूद बढ़ाई उनके बीच की दरार को ढक पाने में असफल रहता था। अंदर आ रही रोशनी से विकास और सोनी हक्के बक्के रह गए।
सोनी के गदराए नितंब खुली हवा में टॉर्च की रोशनी में चमकने लगे सोनी की चूचियां चौकी के ऊपर बिछी चादर को छू रही थी और सोनी की पतली कमर को पकड़े हुए विकास उससे सटा हुआ था…एकदम नंगा…। सोनी डॉगी स्टाइल में विकास से चुदवा रही थी परंतु टॉर्च की रोशनी पड़ने पर दोनों जड़ हो गए थे।
मोनी वासना के इस दोहरे आघात से विस्मित रह गई।
मोनी अपने ही घर में हो रहे तो दो व्यभिचार को देखकर विक्षिप्त सी हो गई …. उसके दिमाग ने काम करना पूरी तरह बंद कर दिया। दिन के उजाले में एक आदर्श भाई और बहन के रूप में रहने वाले सुगना और सोनू को बेहद आपत्तिजनक अवस्था में देखकर उसका मन पहले ही खट्टा हो चुका था और अब अपनी हम उम्र कुंवारी बहन सोनी को विकास जैसे अनजान मर्द से चुदवाते देख उसका विश्वास हिल गया था
क्या रात्रि का अंधेरा संबंधों को इतना काला कर देता है? क्या वासना की आग अविवाहित युवतियों को भी चुदने पर मजबूर कर देती है? क्या संभोग के लिए तथाकथित विवाह आवश्यक नहीं? क्या संभोग के लिए कोई रिश्ता कोई संबंध नहीं?
मोनी की नजरों में जहां एक तरफ विकास और सोनी दो अनजान व्यक्ति थे वहीं दूसरी तरफ सुगना और सोनू जो भाई बहन के पावन रिश्ते में बने थे और एक दूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे .. मोनी ने दोनों ही अवस्थाओं में संभोग को अपनी आंखों से देखा था उसे अब समाज द्वारा बनाए गए नियम और कानून दोहरे प्रतीत हो रहे थे एक तरफ बड़े बुजुर्गों द्वारा बताया गया ज्ञान और दूसरी तरफ रात के अंधेरे में किए जाने वाले कृत्य…
मोनी मर्माहत थी. सोनू और सूगना के बीच जो हुआ था वह कभी वह अपने सपनों में भी नहीं सोच सकती थी..सोनू और सुगना का भाई बहन प्रेम सबकी जुबां पर हमेशा रहता था.. और अब सोनू के एसडीएम बनने के बाद गांव और आसपास के लोगों की जुबां पर चढ़ एक मिसाल बन गया था।
न जाने कितने प्रश्न मोनी के दिमाग में घूमने लगे उसकी सांसे तेज होती चली गई उसने टॉर्च बंद किया और अपनी बढ़ती हुई सांसो की गति को काबू करते हुए वहां से हट गई।
लड़कियों का कौमार्य उसकी निगाहों में आज भी महत्वपूर्ण था। आज जब पहली बार उसकी बुर को पंडित के हरामी शिष्य ने देखा था तब से ही वह परेशान थी। परंतु इस रात के अंधेरे में उसने जो देखा था वह उसका दिलो-दिमाग पचा नहीं पा रहा था ..
मोनी ने तय कर लिया कि वह यह बात अपनी मां पदमा को जरूर बताएंगी बाहर अभी भी बारिश हो रही थी वह छज्जे की ओट लेकर अंधेरे में खड़ी हो गई और बारिश खत्म में होने का इंतजार करने लगी…
तभी आगन से सोनू अपनी बड़ी बहन और अपने ख्वाबों की मलिका सुगना को तृप्त कर बाहर निकल आया.. मोनी ने खुद को छिपा लिया ताकि वह सोनू की नजरों में ना आ सके ….
सोनू गुसल खाने तक जाना चाहता था परंतु बारिश की वजह से उसने वहां जाने का विचार त्याग दिया और छज्जे की ओट में खड़े होकर अपना खूंटे जैसा लैंड निकालकर पेशाब करने लगा…जो हो रही बारिश में विलीन हो धरा में समाताचला गया…
इसी दौरान सोनी और विकास का भी मिलन पूर्ण हुआ विकास ने अपनी प्रेमिका के लिए संचित श्वेत द्रव्य उसके शरीर पर छिड़ककर उसे नहलाने की कोशिश की परंतु शायद न उसके अंडकोशों में न इतना दम था और नहीं भागलपुरी केले में…
(जिन पाठकों को यह जानकारी नहीं है की भागलपुरी और भुसावल केले में क्या अंतर है वह गूगल कर सकते हैं)
परंतु सोनी उसे तो भुसावल के केले के बारे में अता पता ही नहीं था उसने भागलपुरी केले से ही संतुष्ट होना सीख लिया था…वैसे भी आज कई दिनों बाद उसकी बुर की अगन शांत हुई थी।
तृप्ति का एहसास लेकर सोनी वापस बाहर आई। वह अभी भी अगल-बगल टॉर्च जलाने वाले को देख रही थी परंतु वहां कोई न था। मोनी दीवाल के दूसरी तरफ छज्जे की ओट में छुपी हुई परंतु जैसे ही सोनी आगे बढ़ी.. उसका सामना सोनू से हो गया जो पेशाब कर वापस लौट रहा था…
तो क्या सोनू भैया ने टॉर्च मारी थी? सोनी शर्म से पानी पानी हो गई…उसे लगा जैसे वह दूसरी बार अपने सोनू भैया की निगाहों के सामने विकास से चुदवाती हुई पकड़ी गई थी।
उधर सोनी को अपने कपड़े ठीक कर देख औरअपने कमरे को खुला देख कर सोनू सारा माजरा समझ गया…
सोनी ने अपनी नजरें ना उठाई और तेज कदमों से आंगन में आकर अपनी कोठरी की तरफ चली गई.
अपने कमरे में मोनी को वहां न पाकर वह परेशान हो गई। परंतु सोनी ने खुद जो कार्य किया था उसके पकड़े जाने के डर से वह स्वयं घबराई हुई थी न जाने किसने उसे इस हाल में देखा होगा…
उधर मोनी ने जब यह देखा की सोनू और सोनी का आमना सामना हो चुका है उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि सोनू ने सोनी से कोई प्रश्न क्यों नहीं किया ? क्या विकास और सोनी के बीच बने जिस्मानी रिश्ते की जानकारी सोनू भैया को थी? कोई बड़ा भाई अपनी ही छोटी बहन को अपने दोस्त से चुदवाने के लिए कैसे भेज सकता है?
जब व्यभिचार हद पार कर जाता है उसे बता पाना बेहद कठिन और व्यर्थ होता है। मोनी को ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे कोई भी उसकी बात का विश्वास नहीं करेगा… सोनू और सुगना दोनों के बीच जो रिश्ता था उस रिश्ते पर कलंक लगाने वाले को खुद ही शक के दायरे में रख दिया जाता और उसका साथ देने विकास और सोनी भी आ जाते और खुद मोनी को ही पागल ठहरा दिया जाता….
मोनी ने अंततः कम से कम आज रात के लिए यह बात अपने सीने में दफन करने की सोच ली..
वह अपने मन में विचारों का तूफान लिए एक बार फिर अपने कमरे में आ गई बिस्तर पर करवट लेकर पड़ी हुई सोनी ने मोनी को कमरे में आते हुए महसूस किया। एक पल के लिए उसे लगा कहीं मोनी ने तो टॉर्च नहीं मारी थी। आखिर सोनू भैया ऐसा क्यों करेंगे? परंतु उसने कुछ भी बोलना उचित न समझा। सोनी और घबरा गई परन उसके मन में अब इस रिश्ते के उजागर होने को लेकर डर खत्म हो चुका था। उसे पता था सोनू भैया उसका हमेशा साथ देंगे।
अब कहने सुनने को रह कर ही क्या गया था…. यदि टॉर्च मारने वाली मोनी थी तो उसे अंदर चल रही गतिविधियों का पूरा अंदाजा हो ही गया होगा और यदि मोनी नहीं थी तो इस बारे में बात करने का कोई औचित्य भी न था।
सोनी को यह भी डर सता रहा था कहीं सरयू चाचा ने तो आकर टार्च नही जलाई थी? आखिर यह उनका कमरा था और उनके हिसाब से घर में दो युवा मर्द सो रहे थे उन्हें कमरे में आने जाने का नैतिक अधिकार था…
जब-वो यह बात सोचती उसके रोंगटे खड़े हो जाते सरयू सिंह अभी भी परिवार के मुखिया थे। सोनी को न जाने ऐसा क्यों लगता था जैसे वह उसे उतना नहीं पसंद करते हैं जितना वह सुगना दीदी को करते हैं? शायद इसमें उसे अपने आधुनिकता और आधुनिक विचारों का योगदान लगता। और अब आज यदि सरयू चाचा ने यदि उस अवस्था में देख लिया होगा तब ?
सोनी की सांसें उखड़ने लगी संभोग का आनंद काफूर हो गया था बदन टूट रहा था परंतु दिमाग में ड्रम बज रहे थे।
मोनी भी बिस्तर पर लेट जरूर गई परंतु अपने मन में चल रहे तूफान को शांत न कर पाई। अपने ही घर में हुए इस व्यभिचार को देखकर वह कुढ़ने लगी। वह किस मुंह से अपनी मां पदमा को यह बात बताएगी कि उनके कलेजे के दोनों टुकड़े सुगना और सोनू आपस में भाई बहन होने के बावजूद एक दूसरे से अपनी वासना शांत करने का पाप कर रहे है क्या उसकी मां पदमा इस घृणित पाप को सुन पाएगी…जब उसको पता चलेगा कि उसकी अविवाहित पुत्री सोनी एक अनजान मर्द से चुद रही है…वह कैसे इस बात को बचा पाएगी….. कहीं यह बात सुन वह हृदयाघात या पक्षाघात की शिकार ना हो जाए…
इस व्यभिचार को जानने के बाद उसका अपने परिवार से विश्वास हिल चुका था…उसने मन ही मन एक खतरनाक निर्णय ले लिया…
अंदर सुगना के कमरे में …वासना का तूफान खत्म हो चुका था। स्खलन के उपरांत कुछ क्षणों के लिए सुगना एक दम शांत और निर्विकार हो गई थी। परंतु कमरे से जाते समय जब सोनू ने सुगना के पैर छुए थे… सुगना के मन में अजीब सी घृणा उत्पन्न हुई थी…खुद के लिए भी और सोनू के लिए भी पर सोनू के लिए यह भाव एकदम अलग था। अपने जिस छोटे भाई को वह दिलो जान से प्यार करती थी आज उसने रिश्तो की मर्यादा को तार-तार कर दिया था। सुगना इस घटना के लिए सोनू को जिम्मेदार अवश्य मानती थी परंतु उससे भी ज्यादा वह खुद को दोष दे रही थी.. सुगना जानती थी अपने ही भाई सोनू को वासना के आगोश में अपने सपनों और दिवास्वप्नों में याद कर स्खलित होना पाप था। सुगना ने अपना गुनाह अब स्वीकार्य कर लिया था और और अपने आपको पाप के बोझ तले दबा महसूस कर रही थी…
सुगना की आंखों से ग्लानि के आंसू और करिश्माई बुर से सोनू का पाप बह रहा था…
एक तरफ सुगना सरयू सिंह के वीर्य को सप्रेम अपने शरीर और चुचियों पर स्वीकार करती थी…परंतु आज उसकी बुर से रिस रहा सोनू का वीर्य उसे असहज कर रहा था। सुगना ने अपनी बुर को निचोड़ निचोड़ कर सोनू के वीर्य को बाहर फेंकने की कोशिश की परंतु सुगना के दामन पर दाग लग चुका था और सोनू ने जिस गहराई को तक अपने वीर्य को जा कर छोड़ा था वहां से उसे निकाल पाना असंभव था…
नियति सुगना को देख रही थी यह वही सुगना थी जब उसने सरयू सिंह को अपने भीतर स्खलित होने लिए विवश किया था और अपनी दोनों जांघों को ऊंचा कर अपनी दिए रूपी चूत में सरयू सिंह के तेल रूपी वीर्य को संजोकर रखने की कोशिश की थी ताकि वह गर्भवती हो सके और आज वह सोनू के वीर्य का एक-एक कतरा अपने शरीर से अलग कर देना चाहती थी …
सुगना का ध्यान अभी सिर्फ और सिर्फ अपने किए गए पाप पर था उसे अपने आज हुए अद्भुत स्खलन के आनंद का ध्यान भी नहीं आ रहा था…
मन में आया हुआ दुख सारी खुशियों को भी अपने आगोश में ले लेता है…
आज स्खलन के अंतिम क्षणों में सुगना ने जिस आनन्द और तृप्ति की अनुभूति की थी वह दिव्य था…इतना आनंद इतनी तृप्ति शायद सुगना को आज से पहले कभी नहीं मिली थी…युवा सोनू निश्चित ही सरयू सिंह पर भारी था….
सुगना की नाइटी कमर के चारों तरफ इकट्ठी हो गई थी.. चूदाई के दौरान हवा में उठें नितंबों में नाइटी को कमर तक आकर इकट्ठा होने के लिए मजबूर कर दिया था जो अब कोमलांगी सुगना की कमर में चुभ रही थी…सुगना ने अपनी कमर उठाने की कोशिश की और कमर के नीचे इकट्ठा हो चुकी नाइटी को खींच कर अपने नितंबों के नीचे कर दिया और धीरे-धीरे.. नाइटी ने सुगना की जांघों को ढक लिया….
सुगना के वक्षस्थल अब भी खुले हुए थे सुगना ने नाइटी के ऊपरी भाग को भी एक दूसरे के पास लाकर बटन लगाने की कोशिश की परंतु वह ऐसा न कर पाई.. बटन नाइटी का साथ छोड़ चुके थे सोनू की व्यग्रता ने उन्हें नाइटी से अलग कर दिया था। सुगना ने पास पड़ी चादर अपने शरीर पर डाली और करवट लेकर लेट गई …इसी दौरान लाली सकुचाती धीरे-धीरे कमरे के अंदर आई और बिना कुछ बोले सुगना के बगल में लेट गई।
एक दूसरे को जी भर प्यार करने वाले दोनों सहेलियां एक दूसरे की तरफ पीठ कर अपने हृदय में न जाने कितने बुरे विचार लिए …अपनी सोच में डूबी हुई थी..
जब दिल और दिमाग में विचारों का झंझावात चल रहा हो आंखों के बंद होने पर यह और भी उग्र हो जाता है और आपकी बेचैनी को और भी ज्यादा बढ़ा देता है..
सुगना और लाली की पलकें कभी बंद होती कभी खुल जाती नींद आंखों से दूर थी।
उधर सोनू ने कुछ समय बाहर बिताया शायद वह विकास को वापस सामान्य अवस्था में आने का मौका दे रहा था…और फिर जाकर विकास के बगल में ही लेट गया यहां भी दोनों दोस्तों की पीठ एक दूसरे के तरफ ही थी…
सिर्फ विकास ही ऐसा शख्स था जिसके मन में सबसे कम उथल-पुथल थी उसे सिर्फ एक ही बात का डर था कि यदि उसे संभोग रत अवस्था में देखने वाले व्यक्ति ने इसे जगजाहिर कर दिया तो? परंतु वह मन ही मन इसके लिए भी तैयार था। उसने सोनी को मन से अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया था और उसे समाज के सामने अपनाने में भी उसे कोई दिक्कत न थी…
कुछ ही देर में विकास को नींद आ गई। परंतु …सुगना के परिवार के सारे युवा जाग रहे थे…
पूर्ण प्रेम और समर्पण के साथ किया गया संभोग एक सुखद नींद प्रदान करता है विकास सो रहा था परंतु अंदर सुगना के कमरे में आज जो हुआ था उसने सुगना और सोनू के आंखों की नींद हर ली थी।
रात्रि बीतने में एक और प्रहर था परंतु उसे बिता पाना कठिन हो रहा था करवट बदलना भी शायद मुमकिन न था कोई किसी का सामना नहीं करना चाह रहा था…
समय सब चीजों की धार कुंद कर देता है विचारों की भी दुखों की भी और सुख की भी…धीरे धीरे हर व्यक्ति अपने विचारों के निष्कर्ष पर पहुंचता गया रात्रि का अंधेरा बीत गया और सूर्योदय की लालिमा ने सरयू सिंह के आंगन में भी रोशनी बिखेर दी…
पदमा सोनी को झकझोर कर उठा रही थी
" अरे मोनी कहां बीया…. बताओले बिया कहां गइल बीया?"
सोनी की आंख बमुश्किल लगी थी वह हड़बड़ा कर उठ गई और लापरवाही से बोली "हमरा नइखे मालूम बाथरूम में देखलू हा? शायद नींद में होने की वजह से सोनी पदमा के चेहरे की व्यग्रता नहीं देख पाई…
पदमा परेशान हो गई…. दरअसल पदमा मोनी को उन सभी संभावित जगहों पर पहले ही देख आई थी जहां उसके होने की संभावना थी और अब सोनी से कोई उचित उत्तर न मिलने से उसकी व्यग्रता चरम पर आ चुकी थी। आवाज मैं व्यग्रता ने अब उग्रता का रूप ले लिया था वह चीखने लगी.
"अरे मोनिया कहा चल गइल" जैसे-जैसे आवाज बढ़ती गई आंगन में भीड़ बढ़ती गई । सुगना को छोड़कर घर की बाकी महिलाएं और करीबी रिश्तेदार आगन में इकट्ठा हो गए थे..
कजरी ने सोनी से कहा..
"सोनी जाकर सोनू के जगाव त"
सोनी उसी कमरे में गई जहां अब से कुछ घंटों पहले वह जम कर चुदी थी…सोनू और विकास दोनों ही वहां पर न थे…सोनी ने आकर यह खबर अंदर दी।
महिलाओं की बेचैनी चरम पर थी..। उस समय कुछ समस्याओं का निदान सिर्फ और सिर्फ पुरुष वर्ग ही कर सकता था। मोनी का इस तरह से घर से कहीं चले जाना किसी को समझ नहीं आ रहा था.. सभी संभावित स्थानों पर मोनी की तलाश हो चुकी थी…
तभी सरयू सिंह हाथ में लोटा लिए अपने खेत खलिहान घूम कर वापस आ रहे थे उन्हें आज भी खुली हवा में नित्यक्रिया पसंद था..
आंगन से ही सरयू सिंह की एक झलक देखकर कजरी भागती हुई उनके पास गई और उन्हें मोनी के न मिलने की सूचना दी…
पदमा भी अपना चेहरा घूंघट में छुपाए उनके सामने आ चुकी थी और बोली…
"सोनू भी नहीं लौकत (दिखाई पड़ना) खेत ओर दिखल रहे का?"
सरयू सिंह ने अपनी गंभीर आवाज में कहा
" सोनू और विकास बनारस गईल बाड़े लोग। कहले हा आज रात के ना ता काल सुबह आ जाएब… विकास के कोनो जरूरी काम रहल हा"
सरयू सिंह के आगमन में घर की महिलाओं को थोड़ी तसल्ली हुई सोनू और विकास के बारे में जानकर उनकी उत्सुकता भी शांत हो गई.. परंतु मिट्टी से अपने हाथ और लोटे को माज रहे सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूम रहा था।
आखिर यह मोनी कहां गई होगी? उनके दिमाग में अनिष्ट की आशंका प्रबल होती गई ऐसा तो नहीं की मोनी घर के बाहर शौच आदि के लिए गई हो और गांव के किसी मनचले ने उसे ….
सरयू सिंह फटाफट अपने कमरे में आए कमरे में आए और अपनी धोती और कुर्ता पहनने लगे…दिमाग मोनी में लगा हुआ था… अचानक उन्हें अपनी चौकी के सिरहाने एक लाल वस्त्र दिखाई दिया…जो उपेक्षित सा जमीन पर पड़ा था…
वह वस्त्र सहज ही ध्यान आकर्षित करने वाला था सरयू सिंह के दिमाग में आज भी लाल रंग की अहमियत थी उनका मन आज भी उतना ही रंगीन था यह अलग बात है कि अपने और सुगना के संबंधों को जानने के बाद उनकी कामुकता और वासना पर एक चादर सी पड़ गई थी। परंतु ऊपर दिख रही राख के नीचे अभी भी आग बाकी थी.. सरयू सिंह ने झुककर वह लाल कपड़ा उठा लिया और उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा …वह लाल रंग का वस्त्र एक खूबसूरत जालीदार पेंटी थी…
वह पेंटी निहायत ही खूबसूरत थी.. जिस रेशम के कपड़े से वह बनाई गई थी वह न तो सलेमपुर में मिल सकता था और न हीं बनारस में।
एक पल के लिए अपनी जिम्मेदारियों को भूल सरयू सिंह अपनी वासना में खो गए.. आखिर यह किसकी पेंटी थी…?
एक-एक करके सरयू सिंह ने घर में उपस्थित सभी महिलाओं का ध्यान किया…पेंटी का आकार देख वह इस में आने वाले नितंबों की कल्पना करने लगे और उनकी निगाहों ने उस युवती की कल्पना कर ली…
उन्हें पता था की इस घर में सिर्फ और सिर्फ एक ही थी जो अपनी आधुनिकता पर आज भी पैसे खर्च करती थी…वह थी सोनी…
सरयू सिंह का दिमाग ब्योमकेश बक्शी की तरह चलने लगा… कहते हैं ना .. है नाआए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास..
उन्हें ढूंढने था मोनी को परंतु वह उस खूबसूरत पेंटी में कुछ फलों के लिए खो गए। अचानक उनका ध्यान पेंटी में लगे सफेद रेशमी स्टीकर पर गया उन्होंने अपनी आंखें फाड़ कर उसे पढ़ने की कोशिश की …और कुल मिलाकर वह उसमें मेड इन यू एस ए शब्द खोज पाए।
तभी कजरी ने आवाज दी..
"जल्दी करीं सब परेशान बा." सरयू सिंह उस पेंटी को कजरी को दिखाना नहीं चाहते थे। उन्होंने वह लाल पैंटी अपने कुर्ते की जेब में रख ली और अपनी लाठी लेकर बाहर आ गए।
अब तक उनका साथी हरिया भी आ चुका था। दोनों लोग मोनी की तलाश में निकल पड़े …परंतु सरयू सिंह के दिमाग में कुछ और प्रश्न भी घूमने लगे …
तो क्या यह पेंटी विकास लाया था …पर किसके लिए … उन्होंने प्रश्न खुद से ही पूछा और उत्तर उनके मन ने तुरंत उत्तर भी हाजिर कर दिया। वह विकास और सोनी को पहले भी दीपावली की रात साथ देख चुके थे और उनके मन में सोनी को लेकर उपजी वासना अपना आकार बड़ा रही थी।
सोनी की आधुनिकता और उसका लड़कों से मिलना जुलना सरयू सिंह को कतई रास ना आता…. उन्हें संस्कारी और गुणवती लड़की ठीक सुगना जैसी ही पसंद आती…. यह अलग बात है कि कुछ वर्ष पूर्व बंद कमरे में अपने वासना की आगोश में वह सुगना में वही आधुनिकता और अलहड़ता खोजने लगते थे। सरयू सिंह अपने इस दोहरे चरित्र को न जाने कब से जी रहे थे।
सरयू सिंह और हरिया ने गांव के सभी संभावित स्थलों पर जाकर मोनी की पूछताछ की परंतु लोगों को यह एहसास न होने दिया कि मोनी गायब हो चुकी है…परंतु कोई सुराग हाथ ना लगा वह धीरे-धीरे वह गांव के बाहर आ गए …कुछ ही दूर पर रेलवे स्टेशन था न जाने सरयू सिंह के मन में क्या आया वह स्टेशन की तरफ जाने लगे हरे भरे खेतों के बीच सरयू सिंह और उनके पीछे हरिया…
तभी गांव का एक और अधेड़ जो शायद स्टेशन पर अपने किसी परिचित को छोड़कर वापस आ रहा था सरयू सिंह से सरयू सिंह के सामने आया
का भैया सवेरे सवेरे कहां जा तारा..?
"अरे तरकारी (सब्जी) लेवे जा तनी.."
सरयू सिंह ने उसके प्रश्न का सही उत्तर न दिया अपितु एक मीठा झूठ बोल कर जान छुड़ाने की कोशिश की.. हरिया आश्चर्यचकित था कि सरयू भैया ने बेवजह झूठ क्यों बोला…
सरयू सिंह यह बात बखूबी जानते थे की उस व्यक्ति का काम खबरों को इधर से उधर फैलाना था। मोनी के गायब होने की बात यदि समाज में आ जाती तो निश्चित ही उनकी इज्जत दांव पर लग जाती।
सरयू सिंह ने मोनी को हरसंभव जगह ढूंढा परंतु कोई भी सुराग हाथ ना लगा…
थके मांदे सरयू सिंह आखिरकार आखिरकार थाने पहुंचे और मोनी की गुम शुदगी की तहरीर दे दी…
सिक्युरिटी विभाग वैसे तो कुछ लोगों की निगाह में एक भ्रष्ट और निकम्मा तंत्र है परंतु आदमी मजबूर होने के बाद उसी का सहारा लेने पहुंचता है ..
दोपहर बाद सरयू सिंह अपने घर पहुंचे.. चेहरा उतरा हुआ था…आंगन में सन्नाटा पसरा हुआ था ऐसा लग रहा था जैसे घर में किसी की मृत्यु हो गई हो मोनी के न मिलने का दुख स्पष्ट था… सरयू सिंह अपनी कोठरी में गए जहां सुगना अकेले गुमसुम बैठी हुई थी…
सुगना की स्थिति देखकर सरयू सिंह सन्न्न रह गए…
चौकी पर सुगना अपने दोनों घुटने जुड़े हुए और उस पर सिर टिकाए बाहर निर्विकार भाव से देखती हुई न जाने क्या सोच रही थी… उसकी दाहिनी कलाई पर एक कपड़ा बंधा हुआ था… चेहरे पर घनघोर उदासी.. खिला खिला और सब में स्फूर्ति भर देने वाला वह सुंदर चेहरा आज उदास था.. सुगना के सुंदर और कोमल होठ थोड़े फूले हुए थे…जिस तरह मालिक अपनी बछिया को देखकर उसके दर्द का अनुमान लगा लेता है सरयू सिंह ने भी सुगना का मन पढ़ने की कोशिश की ..
"का भईल सुगना ई हाथ में का बांधले बाड़ू?
सरयू सिंह को देखकर सुगना ने उनके सम्मान में उठना चाहा परंतु सरयू सिंह ने उसे रोक लिया और कहा
" बैठल रहा..बताव ना का भईल बा?"
सुगना की आंखों के सामने एक बार फिर वह दृश्य घूम गया जब सोनू ने अपने मजबूत हाथों से उसकी कलाइयों को सर के ऊपर ले जाकर दबा रखा था…
न जाने सुगना के मन में क्या आया वह उठी और सरयू सिंह से लिपट गई…आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी सरयू सिंह पूरी तरह सुगना के दुख में डूब गए। उन्हे उसके दुख का कारण तो न पता था परंतु सुगना के सर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने सुगना से बारंबार कारण जानने की कोशिश की और आखिर सुगना ने अपने लब खोले..
शेष अगले भाग में…
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