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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#81
भाग 75


सोनू पिछले कुछ समय से लाली के पैर छूना बंद कर चुका था जो स्वाभाविक भी था … अब लाली के जिन अंगों को वह छू रहा था वहा पैरों का कोई अस्तित्व न था, परंतु आज वह सोनी के सामने असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहता था उसने झुककर लाली के पैर छुए और लाली का आशीर्वाद लेकर गाड़ी में बैठ गया। लाली और सुगना सोनू को दूर जाते देख रही थीं..…

बच्चे अपने मामा को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे….

गाड़ी धीरे धीरे नजरों से दूर जा रही थी और सोनू के हिलते हुए हाथ और छोटे होते जा रहे थे ..गली के मोड़ ने नजरों की बेचैनी दूर कर दी और सोनू दोनों बहनों की नजरों से ओझल हो गया।

सुगना और सोनू दोनों अपने दिल में एक हूक और अनजान कसक लिए सहज होने की कोशिश कर रहे थे…और निष्ठुर नियति भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश…

शेष अगले भाग में….

सोनू के जाने से सिर्फ लाली और सुगना ही दुखी न थी घर के सारे बच्चे भी दुखी थे। सोनी शायद सुगना के परिवार की एकमात्र सदस्य थी जो सबसे कम दुखी थी और अपने व्यावहारिक होने का परिचय दे रही। उसके दुख कमी का एक और कारण भी था वह थी आने वाले समय में उसकी आजादी और विकास से मिलने की खुली छूट वह भी बिना किसी डर और संशय के।

दरअसल सोनी अपने भाई सोनू से बहुत डरती थी उसे बार-बार यही डर सताता कि यदि सोनू भैया को यह बात मालूम चल गई कि वह विकास से प्यार की पींगे बढ़ा रही है और उसके साथ कामुक क्रियाकलाप कर रही है तो सोनू भैया उसे बहुत मारेंगे तथा उसके घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा देंगे। शायद यह सच भी होता जो सोनू स्वयं अपनी ही मुंह बोली बहन लाली को बेझिझक चोद रहा वह अपनी कुंवारी बहन को लेकर निश्चित ही संजीदा था। सोनी सोनू के जाने से इसीलिए सहज थी।

सोनू और सुगना जिस तरह एक दूसरे के आलिंगन में बिना किसी झिझक के आ जाते थे वैसा सोनी के साथ न था। सोनी सोनू के आलिंगन में कभी ना आती वह उसके चरण छूती परंतु उसे से सुरक्षित दूरी बना कर रहती। ऐसा न था कि सोनी के मन में कोई पाप था परंतु यह स्वाभाविक रूप से हो रहा था। जो पवित्रता और अपनापन सुगना और सोनू के बीच थी शायद सोनी अपने प्रति कम महसूस करती थी।

उधर रेलवे स्टेशन पर खड़ा सोनू का दोस्त विकास उसका इंतजार कर रहा था। दोनों दोस्त एक दूसरे के गले लग गए…ट्रेन आने में देर थी इधर उधर की बातें होने लगी तभी सोनू ने उससे पूछा…

"अरे तेरे एडमिशन का क्या हुआ?.

"दो-चार दिन में फाइनल हो जाएगा" विकास में चहकते हुए जवाब दिया

"वाह बेटा तब तो तेरी बल्ले बल्ले हो जाएंगे यहां तेरी बनारस की बबुनी तो सती सावित्री बन रही थी वहां अंग्रेज लड़कियां ज्यादा नानुकुर नहीं करती खुल कर मजे लेना "

"नहीं यार मुझे तो बनारस की बबुनी ही चाहिए.. क्या गच्च माल है मैं उसको ही अपनी बीवी बनाऊंगा और फिर गचागच …."

विकास को अब तक नहीं पता था कि अपनी प्रेमिका के संग बिताए गए अंतरंग पलों को वह जिस तरह सोनू से साझा किया करता था उसकी प्रेमिका कोई और नहीं अपितु सोनू की अपनी सगी बहन थी। सोनू भी नियति के इस खेल से अनजान अपनी ही बहन के बारे में बातें कर उत्तेजित होता और विकास को उसे अति शीघ्र चोदने के लिए प्रेरित करता। गजब विडंबना थी सोनू अपनी ही बहन को चोदने के लिए विकास को उकसा रहा था।

विकास भली-भांति यह बात जानता था की सोनू लाली के साथ संभोग सुख ले चुका है… वह उसे अपना गुरु मानता था। सोनू विकास की अधीरता समझ रहा था उसने कहा..

"यार कोई तरीका नहीं है उसे मनाने का कोई उपाय तो होगा" सोनू ने विकास को टटोलना चाहा..

"भाई वह शादी की शर्त लगाए बैठी है"

" तो शादी कर क्यों नहीं लेते? तू तो प्यार भी करता है उससे?"

"पागल है क्या मेरे घरवाले कभी नहीं मानेंगे"

"प्राचीन मंदिर में ले जाकर पंडित को 1000 दे वह तेरी शादी करा देगा और फिर बुला लेना अपने पास और कर लेना अपनी तमन्ना पूरी ।"

"क्या यह धोखा नहीं होगा?

नहीं यार जब दोनों ही इस पर राजी हो तो क्या दिक्कत है। जब विदेश से आना तो कर लेना शादी धूमधाम से "

विकास को यह बात समझ आ गई नियति ने सोनी की चूत की आग बुझाने का प्रबंध कर दिया था वह भी उसके अपने ही भाई के मार्गदर्शन में।

पटरियों पर आ रही ट्रेन ने प्लेटफॉर्म पर कंपन पैदा कर दिए और खड़े सभी यात्रियों को सतर्क कर दिया। सोनू भी अपने सामान के साथ अलर्ट हो गया विकास भी उसकी मदद करते हुए सोनू के डब्बे के साथ-साथ आगे बढ़ने लगा।

सोनू द्वारा बताई गई सलाह विकास के दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ट्रेन में बैठ चुका था और बनारस शहर को पीछे छूटता हुआ देख रहा था… इस बनारस शहर ने उसके जीवन में कई मोड़ लाए थे।

कॉलेज में आने के पश्चात अपने जीवन को संवारने को संवारने के लिए अकूत मेहनत की थी और उसका फल भी उसे बखूबी मिला था। बनारस शहर ने उसे और भी कुछ दिया था वह थी.. लाली एक अद्भुत प्यार करने वाली महिला जो संबंधों में तो सोनू की मुंहबोली बहन थी पर इस शब्द के मतलब नियति ने समय के साथ बदल दिए थे। प्यार का रूप परिवर्तित हो चुका था। सोनू भी तृप्त था और उसकी दीदी लाली भी।

परिपक्व महिला के कामुक प्रेम का आनंद अद्भुत होता है खासकर युवा मर्द के लिए..

पर आज शाम हुई अप्रत्याशित घटना ने सोनू को हिला दिया था। उसे यकीन नही हो रहा था की उसकी सुगना दीदी उसे और लाली को संभोग करते देख रही थी। इस घटना ने उसे सुगना के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया..था। क्या सुगना दीदी के जीवन में वीरानगी थी? क्या रतन जीजा के जाने के बाद सुगना दीदी अकेले हो गईं थीं? सुगना का मासूम चेहरा सोनू की निगाहों में घूम रहा था।

कैसे सुगना उसका बचपन में ख्याल रखती थी अपने हाथों से खाना खिलाती तथा उसके सारे कष्टों और गलतियों को अपने सर पर ले लेती। उसे आज भी वह दिन याद है जब वह सुगना के साथ-साथ उसके गवना के दिन उसके ससुराल आया था। उस समय उसे शादी विवाह और गवना का अर्थ नहीं पता था।

सुगना की सुहागरात की अगली सुबह जब वह सुहागरात और उसके अहमियत से अनजान मासूम सोनू सुगना से मिलने गया तो सुगना बेहद दुखी और उदास थी। वह बार-बार सुगना से पूछता रहा

"दीदी का भईल तू काहे उदास बाड़ू ? "

परंतु सुगना क्या जवाब देती… विवाह के उपरांत जिस समागम और अंतरंग पलों की तमन्ना हर विवाहिता में होती है वही आस लिए सुगना सुहाग की सेज पर रतन का इंतजार कर रही थी जिसे रतन ने चूर चूर कर दिया था और इस विवाह पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था।

सोनू अपनी बहन के दर्द के करण को तो नहीं समझ पाया परंतु अपनी बड़ी बहन के चेहरे पर आए दुख ने उसे भी दुखी कर दिया था उसने अपनी मां पदमा को भी बताया परंतु उसे न कारण का पता था न निदान का।

जब सोनू को स्त्री पुरुष संबंधों का ज्ञान हुआ तब से उसे हमेशा इस बात का मलाल रहता था की उसके जीजा रतन उसकी बहन सुगना के साथ न थे।

उसे रतन का मुंबई में नौकरी करना कतई पसंद नहीं था। परंतु सोनू घर की परिस्थिति में दखल देने की स्थिति में नहीं था।

कुछ ही महीनों बाद सरयू सिंह और सुगना के बीच एक अनोखा संबंध बन गया और सुगना प्रसन्न रहने लगी। और सोनू अपनी बड़ी बहन की खुशियों में शरीक हो रतन को भूलने लगा। सोनू को वैसे भी रतन से कोई सरोकार न था रतन उसकी बड़ी बहन सुगना का पति था सुगना खुश थी तो सोनू भी खुश था।

टिकट टिकट करता हुआ काले कोट में एक व्यक्ति सोनू को उसकी यादों से बाहर खींच लाया…सोनू को बरबस ही राजेश जीजू की याद आ गई जो लाली का पति था और अपनी लाली को सोनू के हवाले कर न जाने किस दुनिया की सैर करने अकस्मात ही चला गया था।

सोनू को कभी-कभी लगता कि राजेश जीजू कैसे आदमी थे। वह उनकी मनोदशा से पूरी तरह अनजान था।अब न तो राजेश के बारे में लाली बात करना चाहती और ना सोनू। राजेश की बात कर जहां लाली एक तरफ दुखी होती वहीं सोनू असहज। राजेश ने लाली और सोनू को करीब लाने में जो भूमिका अदा की थी वह सोनू के आश्चर्य का कारण था और राजेश के व्यक्तित्व को और उलझा गया था।

सोनू ने अपनी टिकट दिखाई और अपनी बहन सुगना द्वारा दिए गए खाने को खाने लगा सुगना एक बार फिर उसके दिमाग में घूम रही थी।

इधर सोनू सुगना को याद कर रहा था उधर सुगना तकिया में अपना चेहरा छुपाए पेट के बल लेटी हुई सोच कर रही थी। क्यों आज उसने सोनू के कमरे में झांका? उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। उसे तो यह बात पता थी की लाली और सोनू अंतरंग होते हैं फिर क्यों नहीं वह वहां से हट गई? परंतु अब पछतावे का कोई मतलब न था। सुगना ने अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन होकर एक युवा प्रेमी युगल के संभोग को लालसा वश देखा था वह यह भूल चुकी थी कि उस रति क्रिया में लीन जोड़े में उसका अपना छोटा भाई था जिसे इस तरह नग्न और संभोगरत अवस्था में देखना सर्वथा अनुचित था।

सुगना कुछ देर यूं ही जागती रही और फिर ऊपर वाले से क्षमा मांग कर सोने का प्रयास करने लगी।

अगली सुबह लाली और सुगना दोनों के घर में अजब सा सन्नाटा था घर का एक मुख्य सदस्य सोनू जा चुका था। सोनू को लखनऊ भेजने की तैयारियों में लाली और सुगना दोनों का घर अस्त-व्यस्त हो गया कई सारे सामान निकाले गए थे इसी क्रम में कुछ अवांछित वस्तुएं भी बाहर आ गई थी जो अब तक किसी कोने में पड़ी धूल चाट रही थीं।

सबसे प्रमुख लाली के पति राजेश द्वारा एकत्रित की गई कामुक किताबें। दरअसल कल सोनू ने अलमारी के ऊपर से सामान निकालते समय उन किताबों को भी निकाल दिया था और रखना भूल गया था।

सुगना लाली के कमरे में आई और नीचे पड़ी पतली जिल्द लगी किताबों को देखकर अपना कौतूहल न रोक पाई उसने उसमें से एक किताब उठा ली और लाली से कहा…

"अरे बच्चा लोग के किताब नीचे काहे फेकले बाड़े?"

लाली ने मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखा और बोली "ई लइकन के नाह…लइकन के माई बाबू के हा"

" के पढ़ेला ई कुल?"

"तोर जीजाजी पढ़त रहन…"

अब तक सुगना पन्ने पलट चुकी थी अंदर किताब में रतिक्रिया का सचित्र वर्णन था। सुगना की सांसे थम गई रतिक्रिया में लीन विदेशी युवक और युवतियों की रंगीन परंतु धुंधली तस्वीर ने सुगना की उत्सुकता और बढ़ा दी वह पन्ने पलटने लगी…

लाली ने सुगना की निगाहों में उत्सुकता और चेहरे पर कोतुहल भाप लिया उसने सुगना को एकांत देने की सोची और उससे बिना नजरे मिलाए हुए बोली

"ते बैठ हम चाय लेके आवा तानी"

सुगना ने उसे रोकने की कोशिश न कि वह सच एकांत चाहती थी सुगना बिस्तर पर बैठ गई और कुछ चित्र देखने के बाद किताब को पढ़ने की कोशिश करने लगी…

कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार थी…

रहीम अपनी आपा फातिमा की पुद्दी में अपना लंड डाले उसे गचागच चोद रहा था रहीम ने फातिमा के मुंह को अपनी हथेलियों से बंद कर रखा था फातिमा की आंखों में आंसू थे और उसके दोनों पैर हवा में थे…..

फातिमा को इस अवस्था में लाने के लिए रहीम को बड़े पापड़ बेलने पड़े थे….

जैसे-जैसे सुगना कहानी बढ़ती गई उसे कहानी में और भी मजा आने लगा स्त्री और पुरुष के बीच आकर्षण एक स्वाभाविक और कुदरती प्रक्रिया है… सुगना रहीम और फातिमा की प्रेम कहानी को दिलचस्पी लेकर पढ़ रही थी…जैसे-जैसे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी सुगना की जांघों के बीच बालों के झुरमुट में हलचल हो रही थी अंदर बंद मक्खन पसीज रहा था.. सुगना गर्म हो रही थी…

तभी लाली कमरे में चाय लेकर आ गई। उसे देखकर सुगना ने झटपट किताब बंद कर दी और स्वयं को व्यवस्थित करते हुए उसने उत्सुकता बस लाली से पूछा….

"आपा केकरा के कहल जाला"

"बड़ बहिन के"

"हट पागल ऐसा ना हो ला"

"सच कहतानी आपा मियां लोग में बड़ बहन के कहल जाला" ई किताब रहीम और फातिमा वाली त ना ह"

"हे भगवान… फातिमा रहीम के बड़ बहिन रहे…"

सुगना को अपने कानों पर विश्वास ना हुआ….

"इतना गंदा किताब के ले आई रहे?"

"तू अपना जीजा जी के ना जानत रहो उनकर ई कुल में ढेर मन लागत रहे और ई सब गंदा पढ़ा पढ़ा के हमारो मन फेर देले आगे ते जानते बाड़े …"

सुगना को यकीन नहीं हो रहा अब तक उसने जितनी कहानी पढ़ी थी वह घटनाएं भाई और बहन के बीच होती जरूर थी पर उनकी परिणीति को जिस रूप में इस कहानी में दिखाया गया था भाई-बहन के बीच होना असम्भव था…

किताब की भाषा बेहद अश्लील और गंदी थी जिस सुगना में आज तक अपने मुंह से चोदने चुदवाने की बात न की थी वह अपनी आंखों से वह शब्द पढ़कर एक अजीब किस्म की बेचैनी महसूस कर रही थी। चाय खत्म होते ही वह उठकर जाने लगी अनमने मन से किताबों को बंद कर उसी जगह पर रखने लगी।

तभी लाली ने कहा

"ले लेजो अपना भीरी आधा दूर के बाद कहानी पढ़ना में ढेर मजा आई …ओसाहों कहानी बीच में ना छोड़े के आदमी रास्ता भुला जाला… "

"ना ना हमरा नईखे पढ़ने के ई कुल"

"ठीक बा ले ले जो मन करे तब पढ़िहे ना ता फेंक दिहे… हमरा खातिर अब एकर कौनो मतलब नइखे.".

"सुगना ने किताब को वापस अपने हाथों में ले लिया.. उसके दिल की धड़कन तेज हो गई थी ..उसने लाली से नजर ना मिलाई और गर्दन झुकाए हुए कमरे से बाहर निकल गई…. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था और चूचियां सख्त हो रही थी. ऐसा नहीं कि वह सोनू के बारे में सोच रही थी परंतु उसके लिए यह कहानी अविश्वसनीय और अद्भुत थी।

उधर विकास सुबह-सुबह तैयार हो रहा था। वह सोनी के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़प रहा था। उस दिन ट्यूबवेल पर उसका यह सपना पूरा होते-होते रह गया था। क्या विवाह संभोग की अनिवार्य शर्त है? क्या प्यार और एक दूसरे के प्रति समर्पण का कोई स्थान नहीं?

विकास मन ही मन यह फैसला कर चुका था कि वह सोनी से विवाह करेगा परंतु वह यह कार्य अपने पैरों पर खड़ा होने के बात करना चाहता था। परंतु शरीर की भूख उसे अधीर कर रही थी वह सोनी के कामुक बदन को भोगने के लिए तड़प रहा था।

उसे सोनू की बात पसंद आ गई आखिर हर विवाह के साक्षी भगवान ही होते हैं…. तो क्यों ना वह सोनू की बात मानकर सोनी से मंदिर में शादी कर ले.

ऐसा ना था की प्यार में सिर्फ विकास ही पागल था सोनी भी अपनी छोटी सी चूत में धधकती आग लिए पिचकारी की तलाश कर रही थी जो अपने श्वेत धवल वीर्य से उसकी बुर की आग शांत कर पाता। सोनी अपनी सहेलियों से कामवासना के साहित्य में पीएचडी कर चुकी थी बस प्रैक्टिकल करना बाकी था। विकास का लंड उसे बेहद पसंद आता था जिसका आकार उसे अपने छोटी सी बुर के अनुरूप लगता…।

कुछ ही दिनों में विकास के विदेश जाने का रास्ता प्रशस्त हो गया। अमेरिका जाने की खबर विकास के लिए ढेरों खुशियां लाई थी परंतु सोनी से बिछड़ने का दर्द उसे सताने लगा।

सोनी तक जब यह खबर पहुंची वह फफक फफक कर रोने लगी ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अपने को खोने जा रही है। दोनों प्रेमी एक दूसरे के आलिंगन में अपनी आंखों में आंसू लिए आने वाले समय के बारे में सोच रहे थे।

सोनी और विकास ने पिछले 2 वर्षों में ढेरों आनंद उठाए थे विकास सोनी को चोद तो नहीं पाया था परंतु सोनी के अंग प्रत्यंग से वह भलीभांति परिचित हो चुका था। ऐसा लग रहा था जिस इमारत का निर्माण उसने स्वयं अपने हाथों से किया था उसका वह कोना-कोना देख चुका था सिर्फ ग्रह प्रवेश बाकी रह गया था। सोनी भी तड़प रही थी और अपनी अधीरता को जाहिर करते हुए बोली..

"अब तो हम लोगों की शादी 1 वर्ष बाद ही होगी तुम आ तो जाओगे ना"

"मेरी जान यदि आवश्यक नहीं होता तो मैं वहां जाता ही नहीं.. रही बात शादी की तो वह हम अब भी कर सकते हैं . घरवाले अभी तो नहीं मानेंगे पर हम दोनों के इष्ट देव इस बात के गवाह रहेंगे"

विकास के मन में सोनू द्वारा की गई बातें घूम रही थी। उसने सोनी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना आगे कहा .

"क्यों ना हम प्राचीन मंदिर में जाकर विवाह करलें कई जोड़े वहां विवाह करते हैं। मैं जाने से पहले तुम्हें सुहागन देखना चाहता हूं और वहां से आने के पश्चात हम दोनों धूमधाम से शादी कर लेंगे।"

सोनी विकास की बात सुनकर अवाक रह गई। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। विकास ने उसे एक बार फिर आलिंगन में भर लिया और बोला

"तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी विवाह हमें करना ही है चाहे अभी या आने के बाद.. यह तुम्हारी इच्छा पर है."

सोनी कुछ कह पाने की स्थिति में न थी. विकास के जाने का दर्द उसे सता रहा था और उससे भी ज्यादा उसे खोने का डर सोनी के मन में आया निश्चित ही विवाह के उपरांत विकास विवाह की पवित्रता की लाज रखेगा और अमेरिका में जाकर व्यभिचार से दूर रहेगा.

सोनी ने अपनी मासूम बुद्धि से विचार मंथन किया और बोली

" पंडित जी वहां शादी करावे ले…बिना घर वालन के?"

सोनी के प्रश्न में विकास के प्रश्न का उत्तर छुपा हुआ था सोनी ने अपनी रजामंदी अप्रत्यक्ष रूप से दे दी थी।

तुम सुबह-सुबह तैयार रहना मैं लेने आऊंगा बाकी मुझ पर छोड़ दो …

दोनों युवा प्रेमी चेहरे पर समर्पण का भाव लिए अलग हुए परंतु दोनों के मन में उथल-पुथल जारी थी जो कदम उठाने जा रहे थे वह बेहद नया और गंभीर था।

कुछ ही देर में सोनी विकास की मोटरसाइकिल पर बैठकर अपने घर की तरफ निकल पड़ी और हमेशा की तरह घर से कुछ दूर पहले ही उतर कर विकास को विदा कर दिया। सोनी कभी भी यह नहीं चाहती थी कि विकास उसके परिवार वालों से मिले । वह वक्त आने पर उसे अपने परिवार से मिलाना चाहती थी.। उस बेचारी को क्या पता था कि जिस पुरुष को उसने पसंद किया है वह उसके बड़े भाई सोनू का लंगोटिया यार है और उससे हर बात साझा करता यहां तक की उसके अंग अंग प्रत्यंगो के विस्तृत विवरण से लेकर उसकी अब तक की कामयात्रा भी।

अगली सुबह विकास पूरे उत्साह और तैयारी के साथ आया तथा प्राचीन मंदिर में जाकर उसने सोनी से विवाह कर लिया। दिन का वक्त था .. जब विवाह दिन में हुआ था तो आगे की रस्में भी दिन में ही होनी थी…सोनी अपने इस अप्रत्याशित कदम से कभी दुखी होती पर विकास को अपने करीब पाकर खुश हो जाती। उसे इस आनन-फानन में हो रहे विवाह को लेकर एक अजब किस्म का डर था जो अब समय के साथ कम हो रहा था। फेरे खत्म होते होते सोनी सहज हो गई.

उस दौर में विवाह प्रेम की पराकाष्ठा थी और संभोग पूर्णाहुति…विकास और सोनी किराए की कार में बनारस के एक खूबसूरत होटल की तरह बढ़ चले.. विकास के कुछ दोस्तों ने सोनी के सुहागरात की जोरदार व्यवस्था कर दी थी……

नियति का खेल तो देखिए जिस कमरे में विकास के दोस्तों ने उसके सुहागरात की व्यवस्था की थी यह वही कमरा था जिसने मनोरमा मैडम रुकी थी और उसी कमरे में सोनी की बहन सुगना को चोदते और सुगना के अपवित्र छेद का उद्घाटन कर अपने व्यभिचार को पराकाष्ठा तक ले जाते ले जाते सरयू सिंह बेहोश हो गए थे…।

वह कमरा सुगना के परिवार के लिए शुभ है या अशुभ यह कहना कठिन था पर सोनी उसी कमरे में धड़कते हृदय के साथ प्रवेश कर रही थी।

जैसे ही सोनी बाथरूम में फ्रेश होने के लिए गई बिस्तर पर लेटे विकास में सोनू के ट्रेनिंग हॉस्टल में फोन लगा दिया…

शेष अगले भाग में..
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#82
भाग -76
नियति का खेल तो देखिए जिस कमरे में विकास के दोस्तों ने उसके सुहागरात की व्यवस्था की थी यह वही कमरा था जिसने मनोरमा मैडम रुकी थी और उसी कमरे में सोनी की बहन सुगना को चोदते और सुगना के अपवित्र छेद का उद्घाटन कर अपने व्यभिचार को पराकाष्ठा तक ले जाते ले जाते सरयू सिंह बेहोश हो गए थे…।

वह कमरा सुगना के परिवार के लिए शुभ है या अशुभ यह कहना कठिन था पर सोनी उसी कमरे में धड़कते हृदय के साथ प्रवेश कर रही थी।

जैसे ही सोनी बाथरूम में फ्रेश होने के लिए गई बिस्तर पर लेटे विकास में सोनू के ट्रेनिंग हॉस्टल में फोन लगा दिया…


अब आगे…


हेलो….मधुबन हॉस्टल….

जी कहिए…

जरा सोनू को बुला दीजिए….

कौन सोनू….

माफ कीजिएगा मैं संग्राम सिंह की बात कर रहा हूं…

विकास को अपनी गलती का एहसास हुआ

आप कौन?

उनका दोस्त विकास..

ठीक है लाइन पे रहिए..

छोटू जा संग्राम सर को बुला ला…कहना किसी विकास का फोन है….

विकास के कानों में यह आवाज धीमी सुनाई पड़ी शायद फोन उठाने वाले ने रिसीवर दूर कर दिया था…

कुछ देर इंतजार के बाद विकास के कानों में छी

चिरपरिचित आवाज सुनाई पड़ी…

अरे विकास …क्या हाल है …?

भाई तेरी सलाह काम आई मैंने अपनी छमिया से आज विवाह कर लिया है…..

अरे वाह क्या बात है ….अभी तू कहां है..

रेडिएंट होटल में….

विकास ने आज दिन भर के हुए घटनाक्रम को संक्षेप में सोनू को बता दिया…

अभी कहां है मेरी भाभी…सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा

अंदर शायद नहा रही है..

यार तू तो छुपा रुस्तम निकला मैंने तो यूं ही सलाह दी थी तू तो सच में छमिया को बिस्तर पर खींच लाया..

विकास मुस्कुरा रहा था और अपनी विजय पर प्रफुल्लित हो रहा था..

चल अब रखता हूं लगता है आने वाली है…

जी भर कर चोदना.. और हां पहली बार है जरा संभाल के…कोई ऊंच-नीच हो गई तो तेरा गंधर्व विवाह लोड़े लग जाएगा….

हां भाई हां तू तो ऐसे सलाह दे रहा है जैसे वह तेरी बहन हो…

सोनू को विकास की यह बात अच्छी ना लगी..

"जा भाई तू पटक कर चोद उसको मुझे क्या लेना देना.".

सोनू में फोन रख दिया…

सोनू विकास की किस्मत पर नाज कर रहा था अमीर बाप का लड़का अमेरिका में पढ़ने जा रहा था और उसने अपनी माशूका से विवाह कर आज उसे अपने बिस्तर पर खींच लाया था .. सोनू ने एक लंबी सांस भरी और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। बिस्तर पर लेट अपने पूरी तरह तन चुके लंड को व्यवस्थित करते हुए सोनू के मन के उस अनजान नायिका की चूदाई के दृश्य घूमने लगे.

सोनू के दिमाग में विकास द्वारा उद्धृत की गई उसकी छमिया की कामुक तस्वीर अवश्य थी परंतु आज तक वह उससे मिला न था। वह बार-बार विकास से जिद करता परंतु विकास उसे किसी न किसी बहाने से टाल देता था उसे बार-बार यह डर सताता कि कहीं उसकी छमिया सोनू के साथ नजदीकी न बढ़ाने लगे। विकास यह बात भली-भांति जानता था की सोनू हर मायने में उससे बीस था।

जैसे यह विवाह निराला था वैसे ही सुहागरात की रस्में न दूध न वो फूल मालाओं की सजावट बस चंद फूल बिस्तर पर बिखरे पड़े थे न सहेलियां न दूल्हे के साथी सब कुछ आनन-फानन में आयोजित किया प्रतीत हो रहा था।

सोनी ने भी अपनी विवाहिता साड़ी बाथरूम में उतारकर उसे सहेज कर रख दिया था साड़ी निश्चित ही महंगी थी और सोनी के लिए यादगार भी।

सोनी विकास द्वारा लाई गई पारदर्शी नाइटी में अपनी चूत पर हाथ रखे बिस्तर की तरफ आ रही थी। चेहरे पर शर्म की लाली थी या नग्नता के एहसास की कहना कठिन था परंतु सोनी आज अत्यंत मादक लग रही थी । यदि सोनी अपने हाथ अपनी कुंवारी बुर पर ना रखती तो बुर की दरार निश्चित ही विकास की आंखों के सामने आ जाती। विकास से रहा न गया वह बिस्तर से उठ कर सोनी के पास गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया।

सोनी के लगभग नग्न शरीर को अपनी बाहों में लिए विकास बिस्तर पर आ गया और….. तभी कमरे की डोरबेल बजी…

डिंग डांग…

पहले से घबराई सोनी और डर गई उसने अपनी आंखों में कौतूहल लिए अपनी भौंहों सिकोड़ा और फुसफुसाते हुए विकास से पूछा..

*कौन है..?"

विकास का दिमाग खराब हो गया वह गुस्से में आ गया और वहीं से चिल्लाया

कुछ नहीं चाहिए बाद में आना…

परंतु बाहर खड़े व्यक्ति ने एक बार फिर कमरे की डोर बेल बजा दी।

विकास पास पड़े तौलिए को लपेटकर चेहरे पर झल्लाहट लिए …दरवाजे की तरफ गया…और बिस्तर पर लगभग नग्न पड़ी सोनी ने स्वयं को सफेद चादर से ढक लिया….

विकास ने थोड़ा सा दरवाजा खोला.. और बड़ी मुश्किल से अपना सर बाहर निकाल कर बोला

" बोला ना कुछ नहीं चाहिए…"

सामने ट्रेन में दूध लिए वेटर खड़ा था और उसके पीछे उसके तीनो दोस्त जिन्होंने इस विवाह को अंजाम तक पहुंचाने में महती भूमिका अदा की थी…

विकास ने दूध का गिलास उठा लिया और मुस्कुराने लगा। वेटर के जाते ही विकास ने अनुरोध किया भाई "अब अकेला छोड़ दो …."


विकास ने कमरे का दरवाजा बंद किया और एक बार फिर मन में उत्साह लिए सोनी की तरफ बढ़ने लगा जो दरवाजा बंद होने की आवाज से अपना चेहरा चादर से बाहर निकाल चुकी थी।

धमाचौकड़ी होने वाली थी…

आइए नवविवाहिता पति पत्नी को अकेले छोड़ देते हैं और सुगना के पास चलते हैं ..

सुगना और लाली के बच्चे कॉलेज जा चुके थे घर में सिर्फ और सिर्फ सूरज तथा छोटी मधु बची हुई थी जो नीचे जमीन पर खेल रही थी।


सुगना सूरज और मधु को देखकर विद्यानंद की बातों में उलझ गई। नियति ने यह कौन सा खेल रचा था। दोनों मासूम बच्चे आने वाले समय न जाने किस पाप की सजा भुगतने वाले थे। सूरज अपनी प्यारी बहन मधु से कैसे संबंध बनाएगा? क्या भाई और बहन के बीच एसे संबंध बनना उचित होगा ? क्या विद्यानंद ने यूं ही गलत बातें कहीं थीं? परंतु विद्यानंद की बातों में सच्चाई अवश्य थी अन्यथा उन्हें कैसे पता होता कि उसका पुत्र व्यभिचार से उत्पन्न हुआ है?

सुगना कभी सूरज के मासूम चेहरे को देखती कभी मधु के। जितनी आत्मीयता से वह एक दूसरे से खेल रहे थे कालांतर में प्यार का रूप बदलना कितना कठिन होगा


भाई बहन के पावन संबंध में वासना का कोई स्थान न था परंतु आने वाले समय में सुगना को यह दुरूह कार्य भी करवाना था। भाई बहन के बीच यह सब कैसे होगा?

अचानक सुगना को लाली के घर से लाई गई किताब की याद आ गई। अपनी अलमारी से वह किताब निकाल लाई जिसे उसने बच्चों और सोनी की निगाह से छुपा कर रखा था। वह बिस्तर पर लेट कर उस किताब को पढ़ने लगी। पन्ने पलटते हुए उसके दिल की धड़कन तेज हो गई जिस कहानी को पढ़ रही थी वह यकीन योग्य न थी पर कौतूहल कायम रखती थी।

कहानी में लिखे अश्लील शब्द सुगना के शांत मन में हलचल मचा रहे थे..

कुछ वाक्यांश कहानी से…

आपा बहुत सुंदर हो एक बार….. सिर्फ एक बार मुझे अपनी चूची दिखा दो…..मैं सिर्फ देखूंगा … कुछ नहीं करूंगा?

नहीं…… यह गलत है मैं तेरी आपा हूं तू अपनी आपा से ऐसे कैसे बात कर सकता है …

आपा बस एक बार …. फिर …..कभी नहीं कहूंगा

झूठ बोलता है तू देखा तो तूने पहले भी है…

नहीं आपा वह तो बस गलती से नहाते हुए देखा था…

छी तू कितना गंदा है..


दीदी इसमें मेरी गलती नहीं ….तुम हो ही इतनी खूबसूरत. मैं तुम्हारा भाई जरूर हूं पर हूं तो एक लड़का ही बस एक बार दिखा दो ना…

ठीक है पर खबरदार जो तूने मुझे छूने की कोशिश की चल दूर हट….

फातिमा रहीम से दूर हट कर अपनी टॉप उतार देती है और रहीम के सामने जन्नत का नजारा पेश कर देती है

सुगना और आगे ना पढ़ पाई उसका कलेजा धक-धक करने लगा। यह कैसे हो सकता है यह तो पाप है उसके दिलो-दिमाग में तरह तरह के ख्याल आने लगे वह अनजाने में ही अपने जहन में सोनू के ख्याल लाने लगी।


उसने अपनी वासना पर विजय पाई और पुस्तक को तुरंत ही बंद कर दिया परंतु उसका शरीर जैसे उसका साथ छोड़ चुका था जांघों के बीच बुर न जाने कब पनिया गई थी। यह असर सोनू का था या उस कहानी के लेखक का यह कहना कठिन था पर सुगना का मन अस्थिर था वह अपने दिलोदिमाग में एक अजब सी उद्वेलना लिए हुए थी।

वासना के विविध रूप होते हैं और हर नया रूप एक अलग किस्म का आकर्षण पैदा करता है अब जब सुगना ने कहानी तक पढ़ ली थी अपनी सांसे काबू में आते ही उसने एक बार फिर पुस्तक उठा ली और कांपते हाथों से पन्ने पलटने लगी…

आगे कहानी में फातिमा रहीम के सामने पूरी तरह नग्न होती है और रहीम उसकी बुर पर अपने हाथ फिराता है। अचानक सुगना को किताब से तीव्र नफरत हो गई। सुगना का सब्र टूट गया उसने किताब दो टुकड़ों में फाड़ दी

"छी हरामजादे कैसी कैसी किताबे लिखते हैं" आज पहली बार सुगना जैसी व्यवहार कुशल मृदुभाषी सुंदरी के मुख से लेखक के प्रति अपशब्द निकले थे। परंतु उसकी पनियाई बुर उसके गुस्से को नजर अंदाज कर रही थी। शुक्र है उसने किताब के दो टुकड़े ही किए थे। नियत मुस्कुरा रही थी और सुगना अपने मन के अंतर्द्वंद से लड़ रहे थी।

सुगना अपनी सांसों पर नियंत्रण पाने का प्रयास कर रही थी और बिस्तर पर एक किनारे पड़ी हुई उस फटी पुस्तक को देख रही थी जो अब दो टुकड़ों में विभक्त तथा उपेक्षित रूप में पड़ी हुई थी.

बच्चों के आगमन की आहट से सुगना को उस वासना के भवसागर से दूर किया और वह दरवाजा खोलने के लिए बढ़ चली.

मालती अपने कंधे पर भारी झोला लटकाए हुए घर के अंदर दाखिल हुई और सीधा सुगना के कमरे में आ गई सुगना को अचानक ध्यान आया कि वह जिल्द वाली किताब अब ही बिस्तर पर ही पड़ी थी। दो टुकड़ों में विभक्त हो जाने के बावजूद भी वह वह बच्चों के हाथ में आने पर असहज स्थिति पैदा कर सकती थी।

सुगना भाग कर गई और उस किताब को उठाकर अलमारी के पीछे फेंक दिया…और चैन की सांस ली।


इधर सुगना मालती के खान पान की व्यवस्था में लग गई उधर सोनी अपनी सुहागरात मना कर घर वापस आ रही थी। आज भी विकास में उसे कॉलोनी के गेट पर छोड़ दिया था। वह थकी मांदी लड़खड़ाते कदमों से सुगना के घर में प्रवेश कर रही थी…

माथे पर लगा सिंदूर न जाने कब विलुप्त हो गया था वह सुहागन बन कर अपनी अस्मिता खोने के पश्चात एक बार फिर कुंवारी हो गई थी। परंतु जांघों के बीच जिस पवित्रता को उसने खोया था वह सोनी ही जानती थी उसका दिल अब भी रह-रहकर अपनी बड़ी हुई धड़कन का एहसास करा रहा था अपनी अस्मिता खोने का डर और मन में चल रहा भूचाल सोनी को अस्थिर किया हुआ था। सुगना एक परिपक्व युवती थी उसने तुरंत ही ताड़ लिया और सोनी से बोली

"का भईल सोनी काहे उदास बाड़े?"


सोनी क्या बोलती वह तेज कदमों से चलते हुए अपने कमरे में आ गई और बिस्तर पर पेट के बल लेट अपने जीवन में आए इस बदलाव को महसूस करने लगी उसने गलत किया था या सही …उसके मन का द्वंद कायम था.

सुगना अपनी बहन को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी वह पीछे पीछे आ गई और सोनी की पीठ को सहलाते हुए बोली

"का भईल बा अतना काहे उदास बाड़े ?"

"कुछ ना दीदी हम जा तानी नहाए तनी सा चाह पिया दे मिजाज हल्का हो जाई"

सुनना सोनी के लिए चाय बनाने चली गई और सोनी बाथरूम में जाकर अपनी अस्मिता पर लगे दाग को मिटाने का प्रयास करने लगी..


शायद ये इतना आसान न था विकास का रंग जो सोनी के दिलों दिमाग पर चढ़ा था अब वह उसकी चूत में भी अपना अंश छोड़ चुका था विकास का वीर्य कहीं उसे गर्भवती न कर दे यह सोनी की चिंता को और बढ़ा रहा था।

आज का एक और दिन बीत चुका था परंतु आज का दिन बेहद अहम था सुगना के लिए भी और सोनी के लिए भी ।

आज सुगना ने जो पढ़ा था वह यकीन योग्य न था परंतु सुगना को इस बात का विश्वास था कि पुस्तकों में लिखी बातें कहीं ना कहीं सच होती हैं।


क्या सच में कोई युवा मर्द अपनी बड़ी बहन के बारे में ऐसा सोच सकता है? जितना ही इस बारे में सोचती उतना ही उसके ख्यालों में सोनू आता कभी अपनी मासूमियत लिए और कभी अपने पूर्ण मर्दाना रूप में। सुगना के मस्तिष्क पटल पर दृश्य तेजी से घूम रहे थे दिमाग सुगना का दिमाग बार-बार उस दृश्य पर अटक जा रहा था जब सोनू लाली की कमर को पकड़े हुए अपना लंड तेजी से उसकी फूली हुई बुर में आगे पीछे कर रहा था। आंखें बंद किए हुए सोनू का चेहरा ऊपर था। सुगना बार-बार यह सोचती कि सोनू ने अपनी आंखें क्यों बंद कर ली थी।

छी छी छी सोनू ऐसा नहीं सोच सकता। पर वह अपनी कमर की रफ्तार और तेज क्यों कर गया था। जितने जटिल प्रश्न उतने ही जटिल उनके उत्तर । सुगना का दिमाग उत्तर दे पाने में असमर्थ था पर वासना अनुकूल उत्तर खोज लेती है।


सुगना रह रह कर उसी उत्तर पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही थी जो पूर्णता अमर्यादित और पाप की श्रेणी में गिना जाता था। सोनू निश्चित ही ऐसा नहीं सोचता होगा ऐसा सुगना अपने आप को समझा रही थी पर नियति कुछ और चाहती थी। वैसे भी सुगना और सोनू पूरी तरह से भाई-बहन न थे। सोनू पदमा और उसके फौजी पति का पुत्र का वही सुगना सरयू सिंह और पदमा के वासना जन्य संबंधों की देन थी.. माता एक होने के बावजूद दोनों के पिता अलग-अलग थे।

अगले 1 हफ्ते सोनी के लिए हनीमून जैसे रहे हनीमून जैसे रहे वह विकास के साथ दिन भर घूमते और मौका और एकांत देखकर अपनी सलवार उतार चुदने को तैयार हो जाती। दो-तीन बार की च**** में ही सोनी विकास के ल** की हो गई अब व्यस्त हो गई और अपने क्षेत्र वैवाहिक जीवन का आनंद उठाने लगी हनीमून पर जा पाना संभव न था परंतु नियति ने सोनी और विकास को एक मौका दे दिया विकास को लखनऊ पासपोर्ट के कार्य हेतु जाना था उसने सोनी से भी चलने के लिए कहा दोनों ने रणनीति बनाई और सोनी सुगना को मनाने चल पड़ी ।

दीदी हमरा ट्रेनिंग खातिर लखनऊ जाए के बा 2 दिन लागी

"अकेले कैसे जयबे? "

"दुगो और सहेली जाता री सो"


थोड़ी देर समझाने पर सुगना तैयार हो गई और सोनी से बोली

" सोनू के फोन करके बता दे तनी तोरा के स्टेशन पर ले लेवे आ जायी," सुगना की आवाज में अधिकार बोध था आखिर वह सोनू की बड़ी बहन थी।

सोनू का नाम सुनते ही सोनी घबरा गई वह किसी भी हाल में अपने और विकास के संबंधों की जानकारी सोनू को नहीं देना चाहती थी। उसने सुगना की बात पर हामी तो भर दी परंतु मन ही मन यह फैसला कर लिया कि वह सोनू को फोन नहीं करेगी उसे पता था सुगना सोनू से इस बात की तस्दीक नहीं करेंगी बाद में जो होगा देखा जाएगा। जैसे एक झूठ वैसे सौ।

2 दिनों बाद सोनी और विकास लखनऊ जाने के लिए ट्रेन में बैठ चुके थे। सोनी ने सोनू को फोन न किया परंतु विकास वह तो सोनू से अपनी विजय गाथा साझा करने को उतावला था उसने सोनू को अपने आने की सूचना दे दी। सोनू ने भी अपने प्रिय दोस्त के लिए गेस्ट हाउस में उसके रहने की व्यवस्था करा दी थी। और उत्सुकता से विकास और उसकी उस छमिया का इंतजार करने लगा जिसे कल्पना कर उसने भी कई बार अपने लंड का मानमर्दन किया था …..

हर एक दोस्त कमिना होता है यह बात जितनी आज सच है उतनी तब भी थी। सोनू ने विकास और उसकी माशूका के रहने की व्यवस्था तो कर दी थी परंतु अंदर के दृश्य देखने के लिए वह लालायित था उसने विकास के लिए निर्धारित कमरे के बगल में एक कमरा और बुक कर लिया। दोनों कमरों के पीछे वाला भाग कामन था।


सोनू ने अंदर झांकने की व्यवस्था कर ली उसे पता था विकास इस सुंदर कमरे में अपनी माशूका को चोदने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा

वैसे भी, खूबसूरत कमरे मिलन को आमंत्रित करते हैं

सोनू प्रफुल्लित मन से अपने दोस्त सोनू और उसकी अनजान माशूका की प्रतीक्षा करने लगा जिसके मादक बदन की कल्पना कर उसने न जाने कितनी बार मुठ मारी थी। सोनू ने अपनी जिस माशूका को अब तक सोनू से छुपा कर रखा था वह उसकी निगाहों के सामने आने वाली थी सोनू अति उत्साहित था।


पर इसे सोनू का सौभाग्य कहे या दुर्भाग्य वह और उसकी माशूका को लेने स्टेशन ना जा पाया। विकास सोनू को स्टेशन पर न पाकर दुखी हो गया। उसने बाहर निकल कर पीसीओ से एक बार फिर सोनू के ट्रेनिंग सेंटर में फोन किया परंतु रिसेप्शन ने उसे या कि अभी क्लासेस चल रही है वह बात नहीं करा सकता आप 5:00 बजे के बाद फोन करिएगा।

दोपहर के 2:00 बज रहे थे और सोनी गेस्ट हाउस के लिए चल पड़े। प्रेम में पहुंचते ही कमरे में पहुंचते ही विकास और सोनी गेस्ट हाउस की खूबसूरती में खो गए।

जैसे ही सोनी नहा कर बाहर आई विकास उस पर टूट पड़ा। कुछ ही देर में सोनी बिस्तर पर अपनी जान से फैलाए लेटी हुई थी और विकास उसकी जांघों के बीच जीभ से उसकी बुर की गहराई नाप रहा था इसलिए कुछ दिनों के संभोग में हर रोज विकास कुछ नया करने की कोशिश करता था और सोनी को खुलकर संभोग सुख का आनंद लेने के लिए प्रेरित करता था।

सोनी सोनी मुखमैथुन की उत्तेजना को झेल पाने में असमर्थ थी वह बार-बार काश कि सर को अपनी ऊपर से दूर धकेल रही थी परंतु विकास मानने को तैयार नाथ आखिर सोनी में दबी आवाज में कहां…

"अरे छोड़ दो जल्दी से कर लो नहीं तो तुम्हारा दोस्त आता ही होगा.."

"अरे वो साला गोली दे गया वो 5:00 बजे से पहले नहीं आएगा साले को आज ही पढ़ाई करनी थी….. "

नियति ने अनजाने में ही विकास के संबोधन को सच कर दिया था…

परंतु सोनू गोलीबाज न था। वह सचमुच अपरिहार्य कारणों बस स्टेशन ना पहुंच पाया परंतु जैसे ही उसे ट्रेनिंग क्लास से छुट्टी मिली वह भागता हुआ गेस्ट हाउस गया अपने दोस्त और उसकी माशूका से मिलने। कमरे के दरवाजे पर पहुंचते ही उसे सोनी की आवाज सुनाई पड़ गई जो विकास को जल्दी करने के लिए कह रही थी.

उत्तेजना धीमे बोलने की वजह से सोनी की आवाज को पहचानना सोनू के बस में ना था वैसे भी उसके दिमाग में सोनी का चेहरा नहीं आ सकता था।

सोनू अंदर कमरे में चल रही गतिविधि का अंदाज लगाने लगा वह भागते हुए अपने कमरे में गया और पीछे की लॉबी में आकर विकास के कमरे में अपनी आंख लगा दिया…


अंदर विकास ने विकास में सोनी के कहने पर उसकी बुर पर से अपने होंठ हटा लिए थे परंतु उसे अपने ऊपर आने के लिए मना लिया था..दृश्य अंदर का दृश्य बेहद उत्तेजक था...




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सोनू की आंखें सोनू की आंखें फटी रह गई..


शेष अगले भाग में..
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#83
भाग 77

सोनू अंदर कमरे में चल रही गतिविधि का अंदाज लगाने लगा वह भागते हुए अपने कमरे में गया और पीछे की लॉबी में आकर विकास के कमरे में अपनी आंख लगा दिया…

अंदर विकास ने विकास में सोनी के कहने पर उसकी बुर पर से अपने होंठ हटा लिए थे परंतु उसे अपने ऊपर आने के लिए मना लिया था..दृश्य अंदर का दृश्य बेहद उत्तेजक था...

सोनू की आंखें सोनू की आंखें फटी रह गई..


अब आगे...

सोनू उस मदमस्त सुंदरी को विकास के लंड पर उछलते देख कर मदहोश हो गया। ऐसे दृश्य उसने गंदी किताबों में ही देखे थे परंतु आज अपनी खुली आंखों से देख रहा था।

लड़की बेशक माल थी। नितंब कसाव लिए हुए थे पतली कमर पर सजे नितंब और उसके बीच की वह गहरी घाटी ……सोनू की उत्तेजना अचानक चरम पर पहुंच गईं। जब वह लड़की अपनी कमर उपर करती विकास का छोटा काला लंड निकलकर बाहर आता और कुछ ही देर में वह लड़की उसे अपने भीतर स्वयं समाहित कर लेती। गुलाबी बुर में काले लंड का आना जाना सोनू को बेहद उत्तेजित कर रहा था…विकास की किस्मत से उसे अचानक जलन होने लगी।


उसके मन में उस सुंदर बुर में अपना लंड डालने की चाहत प्रबल हो उठी। इधर मन में चाहत जगी उधर लंड विद्रोह पर उतारू हो गया। यदि सोनू के हाथ लंड तक न पहुंचते तो निश्चित ही वह लगातार उछल रहा होता।

सोनू आंखें गड़ाए अंदर के दृश्य देखता रहा और अनजाने में अपनी ही छोटी बहन के नंगे मादक जिस्म का आनंद लेता रहा। अपने खुले बालों को अपनी पीठ पर लहराती सोनी लगातार विकास के लंड पर उछल रही थी और उसका भाई सोनू उसकी बुर को देख देख कर अपना लंड हिला रहा था।

जैसे-जैसे उस सोनी की उत्तेजना बढ़ती गई उसकी कमर की रफ्तार बढ़ती गई। विकास लगातार सोनी की चुचियों को मसल रहा था वह बार-बार अपना सर उठा कर उसकी चुचियों को मुंह में भरने का प्रयास करता।

सोनी कभी आगे झुक कर अपनी चूचियां विकास के मुंह में दे देती और कभी अपनी पीठ को उठा कर विकास के मुंह से अपने निप्पलों को बाहर खींच लेती। विकास अपनी दोनों हथेलियों से उसके नितंबों को पकड़ कर अपने लंड पर व्यवस्थित कर रहा था ताकि वह सोनी के उछलने का पूरा आनंद ले सकें।

विकास की मध्यमा उंगली बार-बार सोनी की गांड को छूने का प्रयास करती कभी तो सोनी उस उत्तेजक स्पर्श से अपनी कमर और हिलाती और कभी अपने हाथ पीछे कर विकास को ऐसा करने से रोकती। प्रेम रथ को नियंत्रित करने के कई कई कंट्रोल उपलब्ध थे.. विकास सोनी के कामुक अंगो को तरह तरह से छूकर सोनी को शीघ्र स्खलित करना चाहता था उसे सोनी को स्खलित और परास्त कर उसे चोदना बेहद पसंद आता था वह उसके बाद अपनी मनमर्जी के आसन लगाता और सोनी के कामुक बदन का समुचित उपयोग करते अपना वीर्य स्खलन पूर्ण करता।


सोनू अपनी ही बहन सोने के कामुक बदन का रसपान लेते हुए अपना लंड हिला रहा था ….सोनू सोच रहा था….क्या गजब माल है …. विकास तो साला बाजी मार ले गया. सोनू ने मन ही मन फैसला कर लिया हो ना हो वह भी इस छमिया को चोदेगा जरूर।

आखिर जो लड़की यूं ही गंधर्व विवाह कर इस तरह चुद रही हो वह निश्चित की वफादार और संस्कारी ना होगी। मन में बुर की कोमल गहराइयों को महसूस करते हुए लिए सोनू अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करता रहा..और उसका लंड लावा उगलने को तैयार हो गया…

इसी बीच विकास में सोनी को अपने ऊपर खींच लिया तथा तेजी से अपने लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगा।

सोनी विकास के सीने पर सुस्त पड़ी हुई थी और अपनी गांड सिकोड़ रही थी। गांड का छोटा सा छेद कभी सिकुड़ता कभी फैलता। सिर्फ और सिर्फ नितंबों में हरकत हो रही थी और सोनी का शरीर पुरा निढाल पड़ा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे वह चरमोत्कर्ष का आनंद ले रही थी..। विकास की हथेलियों में उसके कोमल नितंबों को पूरी तरह जकड़ा हुआ था..

उत्तेजक दृश्य को देखकर सोनू स्वयं पर और नियंत्रण न रख पाया और अपने लंड को और तेजी से हिलाने लगा। वह मन ही मन स्खलन के लिए तैयार हो चुका था।

उधर विकास ने उस लड़की को अपने सीने से उतार पीठ के बल लिटा दिया और उसकी जांघें फैला दी.. सोनी की चुदी हुई बुर विकास की निगाहों में आ गईं। बुर जैसे मुंह खोले सोनू के लंड का इंतजार कर रही थी। यह भावना इतनी प्रबल थी कि उसने सोनू के लंड को स्खलन पर मजबूर कर दिया… वीर्य की धार फूट पड़ी ठीक उसी समय विकास लड़की की जांघों के बीच से हट गया और उसका सोनू को सोनी का चेहरा दिखाई पड़ गया।


सोनी को देख सोनू हक्का-बक्का रह गया उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। सोनू के लंड से वीर्य की पिचकारी लगातार छूट रही थी। कुछ देर की चूदाई के दृश्य ने उसके लंड में इतनी उत्तेजना भर दी थी कि उसे रोकना नामुमकिन था। अपनी छोटी बहन को इस अवस्था में देखकर वह हतप्रभ था परंतु कमर के नीचे उत्तेजना अपना रंग दिखा रही थी। सोनू ने एक पल के लिए अपनी आंखें बंद कर लीं और झड़ता रहा परंतु सोनी की मदमस्त चूत ने उसे एक बार फिर आंखें खोलने पर मजबूर कर दिया।

सोनू अपनी ही छोटी बहन की बुर को देख लंड से वीर्य निचोड़ता रहा।

विकास एक बार फिर सोनी की जांघों के बीच आकर उसकी बुर को चूम रहा था। अपनी बहन को इस तरह विकास से चुदाते देखकर उसका मन क्षुब्ध हो गया उसे बार-बार यही अफसोस हो रहा था की काश ऐसा ना हुआ होता …उसकी आंखों का देखा झूठ हो जाता परंतु यह संभव न था ।

सोनू विकास के कमरे से सटे अपने कमरे में बैठकर सामान्य होने की कोशिश करने लगा। परंतु यह उतना ही कठिन था जितना जुए में सब कुछ आने के बाद सामान्य हो जाना।


रह रह कर सोनू के मन में टीस उठ रही थी की क्यों विकास और सोनी एक दूसरे के करीब आए,,? मनुष्य अपनी गलतियां और कामुक क्रियाकलाप भूल जाता उसे दूसरे द्वारा की गई कामुक गतिविधियां व्यभिचार ही लगती हैं। यही हाल सोनू का था एक तरफ वह स्वयं अपनी मुंहबोली बड़ी बहन लाली को कई महीनों से चोद रहा था पर अपनी ही छोटी बहन के समर्पित प्रेम प्रसंग से व्यथित और क्रोधित हो रहा था।

अपनी काम यात्रा की यात्रा को याद कर सोनू सोनी को माफ करता गया… आखिर उसने भी तो बेहद कम उम्र में लाली के काम अंगों से खेलना शुरू कर दिया था और राजेश जीजू से नजर बचाकर लाली को चोदना शुरू कर दिया था यह अलग बात थी कि जो सोनू लाली के साथ जो कर रहा था वह कहीं ना कहीं राजेश की ही इच्छा थी। कुछ देर के उथल-पुथल के बाद आखिर सोनू विकास से मिलने को तैयार हो गया।

डिंग डांग ….आखिरकार हिम्मत जुटाकर सोनू ने विकास के रूम की बेल बजा दी..

"अपने कपड़े ठीक कर लो लगता है लगता है मेरा दोस्त ही होगा"

सोनी ने स्वयं को व्यवस्थित किया और उठ कर खड़ी हो गई दरवाजा खुल चुका था और सोनू सामने खड़ा था। सोनू को देखकर सोनी की घिग्घी बंध गई।

उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें …परंतु इतना तो उसे अवश्य पता था कि इस परिस्थिति में कोई भी झूठ कारगर नहीं होने वाला था।


वह तुरंत ही अपने भाई के पैरों पर गिर पड़ी..झुकी हुई सोनी के मादक नितंब एक बार फिर सोनू की निगाहों में आ गए जो अब कपड़ों के भीतर कैद होकर अपनी सुंदर त्वचा को छुपाने में तो कामयाब हो गए कोमल और सुडौल गोलाईयों को छुपाना असंभव था।

सोनू ने कुछ नहीं कहा अपितु सोनी को कंधे से पकड़ कर ऊपर उठाया और विकास से बोला

"अरे वाह तेरे को मेरी ही बहन मिली थी शादी करने के लिए"

विकास हकलाने लगा…

"सो…. सोनी तेरी बहन है?"

"हां भाई ….मेरी बहन है" सोनू के लिए अभिनय उतना ही कठिन हो रहा था जितना मार खाए बच्चे के लिए हंसना। परंतु सोनू वक्त की नजाकत को समझता था। विकास स्वयं हक्का-बक्का था अपनी जिस प्रेमिका की बातें कर उसने और सोनू में न जाने कितनी बार मुठ मारी थी आज वह प्रेमिका कोई और नहीं अपितु सोनू की बहन थी। परंतु जो होना था वह हो चुका था।

विकास सोनू के गले लग गया और भावुक होते हुए बोला

"भाई तेरी बहन मेरी ब…विकास की जबान रुक गई."

दोनो दोस्त हंसने लगे …सोनी भी अपनी पीठ उन दोनों की तरफ कर मुस्कुराने से खुद को ना रोक पाई। अपने भाई से माफी पाकर उसे तो मानो सातों जहान की खुशियां मिल गई थीं। क्या सोनू ने उसे सचमुच माफ कर दिया और उसके और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर लिया था ? यह तो सोनू ही जाने पर सोनी खुश थी।


अब जब सोनू मान चुका था तो सोनी को परिवार वालों से कोई डर न था। वैसे भी सोनू अब धीरे-धीरे परिवार के मुखिया की जगह ले रहा था। सुगना दीदी का आधिपत्य साझा करने वाला यदि घर में कोई था तो वह सोनू ही था।

सोनू ने सोनी से पूछा

"सुगना दीदी के मालूम बा ई सब?"

सोनी ने एक बार फिर रोनी सूरत बना ली..


सोनू तुरंत ही समझ गया। अब जब उसने सोनी को एक बार माफ किया था तो एक बार और सही उसने अपने हाथ खोले और सोनी उसके सीने से सट गई। आज सोनी पूरी आत्मीयता से सोनू के गले लगी थी शायद इसमें उसका अपराध बोध भी था..और सोनू के प्रति कृतज्ञता भी।

जब आत्मीयता प्रगाढ़ होती है आलिंगन में निकटता बढ़ जाती है आज पहली बार सोनू ने सोनी की चुचियों को अपने सीने पर महसूस किया। निश्चित ही यह लाली से अलग थी कठोर और मुलायम .. नियति स्वयं निश्चय नहीं कर पा रही थी कि वह उन मादक सूचियों को क्या नाम दें। सोनी के मादक शरीर का स्पर्श पाकर सोनू के दिमाग में कुछ पल पहले देखे गए दृश्य घूम गये ..

उसने सोनी को स्वयं से अलग किया और बोला…तुम दोनों तैयार हो जाओ बाहर घूमने चलेंगे।

शाम हो चुकी थी सोनू ने विकास और सोनी को बाहर ले जाकर एक अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खिलाया और फिर उन्हें अकेला छोड़ दिया। जब-जब सोनू सोनी की तरफ देखता उसे एक अजब सा एहसास होता। उसके दिमाग में बार-बार वही दृश्य घूमने और उसकी निगाहें बरबस ही सोनी के शरीर का माप लेने लगती। वह एक बार फिर अपने दिमाग में चल रहे द्वंद्व में शामिल हो गया क्या वह फिर विकास के कमरे में झांकने की हिम्मत करेगा…. छी छी अपनी ही छोटी बहन को चुदवाते हुए देखना…. नहीं मैं यह नहीं करूंगा…

सोनी इस बात से अनजान थी कि सोनू उसे चूदते हुए देख चुका था। परंतु सोनी की शर्म के लिए इतना ही काफी था कि वह अपने बड़े भाई के सामने अपने प्रेमी के साथ बैठे खाना खा रही थी।

सोनू अपने मन में बार-बार एक ही बात सोचता कि काश विकास की छमिया उसकी बहन न होकर कोई और होती ….

सोनू ने गेस्ट हाउस में अपने लिए भी कमरा बुक कराया था परंतु उसकी वहां रुकने की हिम्मत ना हुई उसे वहां रुकना असहज लग रहा था। अब जब यह बात मालूम चल ही चुकी थी कि सोनी उसकी अपनी सगी बहन है उनके कमरे के ठीक बगल में रुक कर वह उन्हें और स्वयं को असहज नहीं करना चाहता था वह अपने हॉस्टल लौट आया।

सोनू अपने बिस्तर पर पड़ा नियति के दिए इस दर्द को झेलने की कोशिश कर रहा था। उसने यह कभी भी नहीं सोचा था की सोनी की शारीरिक जरूरतें इतनी प्रबल हो जाएंगी कि उसे गंधर्व विवाह स्वीकार करना पड़ेगा। परंतु जो होना था वह हो चुका था।


विकास द्वारा सोनी के बारे में बताई गई बातें सोनू के दिमाग में घूम रही थी। विकास सोनी के साथ की गई कामुक गतिविधियों का विस्तृत विवरण सोनू को अक्सर सुनाया करता था। जब जब वह विकास के उद्धरण को याद करता उसका लंड तन जाता और वह उस अनजान नायिका के नाम पर अपना वीर्य स्खलन कर लेता। परंतु आज वह इस स्थिति में नहीं था। पर जब जब उसे वह सोनी का विकास के लंड पर उछलने का दृश्य याद आता सोनू का लंड तन कर खड़ा हो जाता और सोनू की उंगलियां बरबस उसे सहलाने लगती।

सोनू ने अपना ध्यान सोनी पर से हटाने की कोशिश की वह एक बार फिर अपनी लाली दीदी के बारे में सोचने लगा। उसने अपना ध्यान लाली दीदी की आखरी चूदाई पर ध्यान लगाने की कोशिश की। सोनू का ध्यान उस आखिरी पल पर केंद्रित हो गया जब उसकी निगाहें सुगना से मिली थी और उसने आंखें बंद कर लाली की बुर में गचागच अपना लंड आगे पीछे करना शुरू कर दिया था।

अपनी आंखें बंद करके उसने जो क्षणिक रूप से सोचा था उसे वह याद आने लगा…. सुगना दीदी के साथ ……छी….वह उस बारे में दोबारा नहीं सोचना चाहता था।

परंतु क्या यह संभव था….. एक तरफ सोनू के जेहन में अपनी नंगी छोटी बहन के विकास के लंड पर उछलने के दृश्य घूम रहे थे दूसरी तरफ उसे अपनी घृणित सोच पर अफसोस हो रहा था कैसे उसने उन उत्तेजक पलों के दौरान सुगना दीदी को चोदने की सोच ली थी….

इस उहाफोह से अनजान सोनू का लंड पूरी तरह तन चुका था और उसकी मजबूत हथेलियों में आगे पीछे हो रहा था।


सोनू ने अपना ध्यान लाली पर केंद्रित करने की कोशिश की परंतु शायद वह संभव न था। सोनी और सुगना दोनों ही सोनू के विचारों में आ चुकी थीं जैसे अपना अधिकार मांग रही हों।

सोनू वैसे तो कुटुंबीय संबंधों में विश्वास नहीं करता था परंतु परिस्थितियां उसे ऐसा सोचने पर मजबूर कर रही थी। दोनों बहने जो कामुक बदन तथा मासूम चेहरे की स्वामी थीं सोनू का ध्यान बरबस अपनी तरफ आकर्षित कर रही थीं।


अब तक के ख्याली पुलाव से सोनू का लंड वीर्य उगलने को फिर तैयार हो गया।

सोनू ने एक बार फिर लाली के चूतड़ों के बीच अपने लंड को हिलते हुए याद किया तथा अपनी आंखे बंद कर एक बार फिर अपना वीर्य स्खलन पूर्ण कर लिया… सोनू के स्खलन में आनंद तो भरपूर था परंतु स्खलन के उपरांत उसे फिर आत्मग्लानि ने घेर लिया. छी… उसकी सोच गंदी क्यों होती जा रही है? क्या यह सब सोचना उचित है? कितना निकृष्ट कार्य है यह…?

सोनू अपने अंतर्मन से जंग लड़ता हुआ छत के पंखे की तरफ देख रहा था जो धीरे धीरे घूम रहा था। सोनू के दिमाग ने आत्मसंतुष्टि के लिए एक अजब सा खेल सोच लिया पंखे की पत्तियां उसे अपनी तीनों बहनों जैसी प्रतीत हुई एक सोनी दूजी लाली और तीसरी उसकी सुगना दीदी।

क्या नियति ही उन्हें उसके पास ला रही थी? क्या यह एक संयोग मात्र था की उसकी सुगना दीदी उसके और लाली के कामुक मिलन को देख रही थीं? क्या सोनी के चूत की आग इतनी प्रबल हो गई थी कि वह अपने विवाह तक का इंतजार ना कर पाई….

सोनू ने मन ही मन कुछ सोचा और सिरहाने लगे स्विच को दबाकर पंखे को बंद कर दिया वह पंखा रुकने का इंतजार कर रहा था और अपने भाग्य में आई अपनी बहन को पहचानने की कोशिश। अंततः लाली ही सोनू के भाग्य में आई..

सोनू के चेहरे पर असंतुष्ट के भाव थे वह मन ही मन मुस्कुराया और एक बार फिर पंखे का स्विच दबा दिया.. और नियति के इशारे की प्रतीक्षा करने लगा। आजाद हुआ पिछले परिणाम से संतुष्ट न था। इस बार नियति ने उसे निराश ना किया नियति ने सोनू की इच्छा पढ़ ली…

अनुकूल परिणाम आते ही सोनू का कलेजा धक-धक करने लगा क्या यह उचित होगा? क्यों नहीं? आखिर लाली दीदी और सुगना दीदी दोनों उम्र ही तो है।

वासना से घिरा हुआ सोनू.. सुगना के बारे में सोचने लगा..

जब सोच में वासना भरी हुई तो मनुष्य के जीवन में वही घटनाक्रम आते हैं जो उसकी सोच को प्रबल करते हैं सोनू उस दिन को याद कर रहा था जब हरे भरे धान के खेत में सुगना धान के पौधे रोप रही थी। वह उसके पीछे पीछे वही कार्य दोहराने की कोशिश कर रहा था।…

कुछ देर पहले हुए वीर्य स्खलन ने सोनू को कब नींद की आगोश में ले लिया पता भी न चला अवचेतन मन में चल रहे दृश्य स्वप्न का रूप ले चुके थे..


सोनू बचपन से ही शरारती था…सोनू ने धान की रोपनी कर रही सुगना के घाघरे को ऊपर उठा दिया. आज सपने में भी सोनू वही कर रहा था जो वह बचपन में किया करता था पर तब यह एक आम शरारत थी।

पर तब की और आज की सुगना में जमीन आसमान का अंतर था। पतली और निर्जीव सी दिखने वाली टांगे अब केले के तने के जैसी सुंदर और मांसल हो चुकी थी …. उनकी खूबसूरती में खोया सोनू स्वयं में भी बदलाव महसूस कर रहा था। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसके वह अब बच्चा नहीं रहा था। सोनू ने सुगना का लहंगा और उठा दिया….सुगना के नितंब सोनू की निगाहों के सामने आ गए दोनो गोलाईयों के बीच का भाग अपनी खूबसूरती का एहसास करा रहा था। परंतु बालों की कालीमां ने अमृत कलश के मुख पर आवरण बना दिया था। वह दृश्य देखकर सोनू मदहोश हो रहा था। अपने स्वप्न में भी उसे व दृश्य बेहद मादक और मनमोहक लग रहा था।

सोनू अपने बचपन की तरह सुगना की डांट की प्रतीक्षा कर रहा था। जो अक्सर उसे बचपन में मिला करती थी। परंतु आज ऐसा न था । सुगना उसी अवस्था में अब भी धान रोप रही थी। जब वह धान रोपने के लिए नीचे झुकती एक पल के लिए ऐसा प्रतीत होता जैसे बालों के बीच छुपी हुई गुलाब की कली उसे दिखाई पड़ जाएगी।

परंतु सोनू का इंतजार खत्म ही नहीं हो रहा था अधीरता बढ़ती गई और सोनू की उत्तेजना ने उसे अपने लंड को बाहर निकालने पर मजबूर कर दिया।


सोनू का ध्यान अपने लंड पर गया जो अब पूरे शबाब में था। सोनू अपनी हथेलियों में लेकर उसे आगे पीछे करने लगा… उसका ध्यान अब भी सुगना की जांघों के बीच उस गुलाब की कली को देखने की कोशिश कर रहा था। अचानक सुगना की आवाज आई

"ए सोनू का देखा तारे?"

"कुछ भी ना दीदी"

"तब एकरा के काहे उठाओले बाड़े?" सुगना अपने घागरे की तरफ देखते हुए बोली

सोनू अपने स्वप्न में भी शर्मा जाता है परंतु हिम्मत जुटा कर बोलता है

"पहले और अब में कितना अंतर बा"

"ठीक कहा तारे"

सुगना की निगाहें सोनू के लंड की तरफ थीं.. जिसे सोनू ने ताड़ लिया और उसके कहे वाक्य का अर्थ समझ कर मुस्कुराने लगा..

अचानक सोनू को सुगना के बगल में सुगना के बगल में धान रोपती लाली भी दिखाई पड़ गई। सोनू ने वही कार्य लाली के साथ भी किया…

लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।

सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..

चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…

शेष अगले भाग में…

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#84
भाग 78

लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।

सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..

चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…


अब आगे..

सोनू अचानक ही अपने सपने से बाहर आ गया अकस्मात पड़े सुगना के इस तमाचे ने उसकी नींद उड़ा दी। वह अचकचा कर उठ कर बैठ गया। पूरी तरह जागृत होने के पश्चात उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई। यह दुर्घटना एक स्वप्न थी यह जानकर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

वह एक बार फिर बिस्तर पर लेट गया और अपने अधूरे सपने को आगे देखने का प्रयास करने लगा परंतु अब वह संभव नहीं था…….. पर एक बात तय थी सोनू बदल रहा था…

इधर सोनू की आंखों से नींद गायब थी और उधर बनारस में सुगना की आंखों से । आज जब से सोनी लखनऊ के लिए निकली थी तब से बार-बार घर में सोनू का ही जिक्र हो रहा था। लाली और सुगना बार-बार सोनू के बारे में बातें कर रहे थे।

यह अजीब इत्तेफाक था सोनू दोनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था दोनों का प्यार अलग था पर सुगना और सोनू का भाई बहन का प्यार अब स्त्री पुरुष के बीच होने वाले प्यार से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था।

लाली द्वारा कही गई बातें अब भी सुगना के जेहन में गूंज रही थीं।

दरअसल बच्चों के सो जाने के बाद दोनों सहेलियां अकेली हो गई थी। सोनू के जाने के बाद लाली वैसे भी अकेली थी और आज सोनी के लखनऊ जाने के बाद सुगना भी अकेलापन महसूस कर रही थी। उसने लाली को अपने पास ही बुला लिया …दोनों घरों के बीच दीवार न होने का यही सबसे बड़ा फायदा था। लाली और सुगना एक दूसरे के घर में बेबाकी से आ जाया करती थी बिना किसी औपचारिकता के।

लाली अपने बच्चों को सुला कर सुगना के पास आ गई..

*का बात बा मन नइखे लागत का?"

"सोनी के जाये के बाद सच में खालीपन लागता"

"अरे वाह तोरा सिर्फ सोनी के चिंता बा सोनू के गईला से तोरा जैसे कोनो फर्क नइखे"

"हमरा का पड़ी तोरा ज्यादा बुझात होई"

सुगना ने यह बात मुस्कुराते हुए कही। लाली उसका इशारा समझ चुकी थी उसने भी मुस्कुराते ही कहा..

"सोनुआ रहित त तोरो सेतीहा में सिनेमा देखे के मिल जाईत…"

"का कहा तारे ? कौन सिनेमा?" सुगना सचमुच लाली की बातों को नहीं समझ पाई थी..उसका प्रश्न वाजिब था..

लाली भी सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहती थी उसने बात बदलने की कोशिश की

" चल छोड़ जाए दे "

"बताओ ना…. बोल ना का बोला तले हा" लाली के उत्तर न देने पर सुगना ने उसके उसे कंधे से हिलाते हुए कहा…

"ओ दिन जब सोनूआ जात रहे ते कमरा में काहे झांकत रहले?"

आखिरकार जिस बात पर पर्दा कई दिनों से पड़ा हुआ था उसे लाली ने उठा दिया। सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना ने नजर चुराते हुए कहा


"जाय दे छोड़ ऊ कुल बात"

"ना ना अब तो बतावही के परी"

सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था और नजरें झुक गई थी वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी

"अच्छा ई बताओ कि केकरा के देखत रहले हमरा के की सोनुआ के?"

"पागल हो गईल बाड़े का? सोनुआ हमर भाई हा हम तो देखत रहनी की ते सोनुआ के कतना बिगाड़ देले बाड़े.."

"आंख मिला कर ई बात बोल नजर काहे छुपवले बाड़े"

नजर मिलाकर झूठ बोलना सुगना की फितरत में न था। उसने अपनी नजरें ना उठाई.

"झूठ बोला तारे नू, पूरा मर्द बन गइल बा नू....हम कहत ना रहनी की सोनुआ के पक्का मर्द बना के छोड़ब ओकर मेहरारू हमर नाम जपी "

"ठीक बा ठीक बा साल भर और मजा ले ले ओकरा बाद हम ओकर ब्याह कर देब.."

सोनू की शादी की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई … उसे यह तो पता था कि आने वाले समय में सोनू का विवाह होगा पर इतनी जल्दी? इस बात की कल्पना लाली ने ना की थी।

"अरे अभी ओकर उम्र ही कतना बा तनी नौकरी चाकरी में सेट हो जाए तब करिए काहे जल्दीआईल बाड़े?"

"लागा ता तोर मन भरत नईखे…" अब बारी लाली की थी वो शरमा गई और उसने बात बदलते हुए कहा


"अच्छा ई बताऊ यदि सोनू तोरा के देख लिहित तब?"

सुनना ने लाली के प्रश्न पूछने के अंदाज से उसने यह अनुमान लगा लिया कि लाली यह बात नहीं जानती थी कि सुगना और सोनू की नजरें आपस में मिल चुकी थीं उसने लाली को संतुष्ट करते हुए

"अरे एक झलक ही तो देखले रहनी ऊ कहा से देखित ऊ तोरा जांघों के बीच पुआ से रस पीयत रहे … सच सोनूवा जरूरत से पहले बड़ हो गईल बा …"

लाली के दिमाग में शरारत सूझी

" खाली सोनू ने के देखले हा की ओकर समान के भी?" लाली ने जो पूछा था सुगना उसे भली-भांति समझ चुकी थी

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई दोनों युवा स्त्रियां दूसरे की अंतरंग थी…एक दूसरे का मर्म भलीभांति समझती थी …

"जब देख लेले बाड़े तो लजात काहे बाड़े" लाली ने फिर छेड़ा।


सुगना ने कोई उत्तर न दिया उसके लब कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे परंतु उसकी अंतरात्मा उसे रोक रही थी जितनी आसानी से लाली कोई बात कह देती थी उतना सुगना के लिए आसान न था। उसका व्यक्तित्व उसे ओछी बात कहने से सदैव रोकता।

" आखिर भाई केकर ह?_सुगना ने समुचित उत्तर ढूंढ लिया था

" काश सोनुआ तोर आपन भाई ना होखित.."

" काहे …काहे …अइसन काहे बोलत बाड़े?"

"ई बात तेहि सोच..हमारा नींद आवता हम जा तानी सूते"


लाली सुगना के कमरे से बाहर जा रही थी और सुगना अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कनों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी… लाली के जाते ही सुनना बिस्तर पर लेट गईं। और एक बार फिर उसी प्रकार छत पर देखने लगे जैसा लखनऊ में बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू देख रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की सोनू ने अपनी कल्पना की उड़ान कुछ ज्यादा थी जबकि सुगना उस बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। पर परिस्थितियां और नियति ने सुगना को अपनी साजिश का हिस्सा बना लिया था क्या सुगना …सोनू के साथ….

सभ्य और आकर्षक व्यक्तिव की सुगना को इस वासना के दलदल में घसीटते हुए नियत भी सोच रही थी परंतु जो होना था शायद नियति के बस में भी नहीं था…

इसे संयोग कहें या टेलीपैथी सुगना ने भी अपने स्वप्न में वही दृश्य दखे जो कमोबेश सोनू न देखें थे और जैसे ही सोनू ने उसे पकड़ने की कोशिश की सुगना का हाथउठ गया….. और उस चटाक की गूंज से सुगना की भी नींद भी खुल चुकी थी। बिस्तर पर बड़े भाई बहन मन में एक अजब सी हलचल लिए हुए पंखे को ताक रहे थे।

लाली ने उस बात का जिक्र कर दिया था जिसे सुगना महसूस तो करती थी परंतु अपने होठों पर लाना नहीं चाहती थी उसके दिमाग में लाली के शब्द मंदिर के घंटों की तरह बज रहे थे।

जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने लाली को अपने पास बुलाया था..

सुगना की रात बेहद कशमकश में गुजरी वह बार-बार सोनू के बारे में सोचती रही। रात में उसकी पलकें तो बंद हुई पर दिमाग में तरह-तरह के ख्याल घूमते रहे। कुछ स्वप्न रूप में कुछ अनजान और अस्पष्ट रूप में । कभी उसे सपने में सरयू सिंह दिखाई पड़ते कभी उनके साथ बिताए गए अंतरंग पल ।

कभी उसके पति रतन द्वारा बिना किसी प्रेम के किया गया योनि मर्दन .. न जाने क्या क्या कभी कभी उसे अपने सपने में अजीब सी हसरत लिए लाली का पति स्वर्गीय राजेश दिखाई पड़ता…

अचानक सुगना को अपनी तरफ एक मासूम सा युवक आता हुआ प्रतीत हुआ…अपनी बाहें खोल दी और वह युवक सुगना के आलिंगन में आ गया सुगना उसके माथे को सहला रही थी और उस युवक के सर को अपने सीने से सटाए हुए थी अचानक सुगना ने महसूस किया की उस युवक के हाथ उसके नितंबों पर घूम रहे हैं स्पर्श की भाषा सुगना अच्छी तरह समझती थी उसने उस अनजान युवक को धकेल कर दूर कर दिया वह युवक सुगना के पैरों में गिर पड़ा और हाथ जोड़ते हुए बोला

"मां मुझे मुक्ति दिला दो….."

अचानक सुगना ने महसूस किया उसका शरीर भरा हुआ था। हाथ पैर उम्र के अनुसार फूल चुके थे। सुगना अपने हाथ पैरों को नहीं पहचान पा रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह एक अधेड़ महिला की तरह हो चुकी थी। सुगना समझ चुकी थी कि वह किशोर युवक कोई और नहीं उसका अपना पुत्र सूरज था जो विद्यानंद द्वारा बताए गए शॉप से अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहा था। क्या सुगना अपने पुत्र को शाप से मुक्त करने के लिए उसके जन्म मार्ग को स्वयं उसके ही वीर्य द्वारा अपवित्र करने देगी..?

यह प्रश्न जितना हकीकत में कठिन था उतना स्वप्न में भी। सुगना इस प्रश्न का उत्तर न तो जागृत अवस्था में दे सकती थी न स्वप्न में । अलग बात थी कि वह अपने पुत्र प्रेम के लिए अंततः कुछ भी करने को तैयार थी।

इस बेचैनी ने सुगना की स्वप्न को तोड़ दिया और वह अचकचा कर उठ कर बैठ गई । हे भगवान यह आज क्या हो रहा है। सुगना ने उठकर बाहर खिड़की से देखा रात अभी भी बनारस शहर को अपने आगोश में लिये हए थी। घड़ी की तरफ निगाह जाते ही सुगना को तसल्ली हुई कुछ ही देर में सवेरा होने वाला था।

सुगना ने और सोने का प्रयास न किया। आज अपने स्वप्न में उसने जो कुछ भी देखा था उससे उसका मन व्यथित हो चला था।


उधर लाली ने उसके दिमाग में पहले ही हलचल मचा दी थी और आज इस अंतिम स्वप्न में उसे हिला कर रख दिया था। सुगना ने बिस्तर पर सो रही छोटी मधु और सूरज को देखा और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया जिसमें उसे इस पाप से बचाने के लिए मधु को भेज दिया था। सुगना दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि वह समय आने पर एक बार के लिए ही सही मधु और सूरज का मिलन अवश्य कराएगी तथा सूरज की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी ….

लाली और सुगना की मुलाकात अगली सुबह कई बार हुई परंतु न सुगना ने लाली को छेड़ा और ना लाली ने सुगना को। पर लाली द्वारा कही गई बातें बार-बार सुगना के जहन में घूम रही थी। क्या सोनू सच में उसके बारे में ऐसा सोचता होगा? उसे याद आ रहा था कि कैसे नजरें मिलने के बाद भी सोनू लाली को बेहद तेजी से चोदने लगा था। अपनी बड़ी बहन के प्रति इस प्रकार की उत्तेजना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.. सुगना के प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई न था परंतु सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन का एहसास हुआ और शायद उसे उसका उत्तर मिल गया।

दोनों अंतरंग सहेलियां ज्यादा देर तक एक दूसरे से दूर ना रह पाईं । दोपहर का एकांत उन्हें फिर करीब खींच लाया और सुगना और लाली के बीच उपजा मीठा तनाव समाप्त हो गया परंतु उसने सुगना के श्वेत धवल विचारों में कामवासना की लालिमा छोड़ दी थी..


एक-दो दिन रह कर और सोनी और विकास वापस बनारस आ गए थे। पिछले सात आठ दिनों में सोनी और विकास इतने करीब आ गए थे जैसे नवविवाहित पति पत्नी। बातचीत का अंदाज बदल चुका था। निश्चित ही वह सात आठ दिनों से हो रही सोनी की घनघोर चूदाई का परिणाम था। जब अंतरंगता बढ़ जाती है तो बातचीत का अंदाज भी उसी अनुपात में बदल जाता है। नई नवेली वधू में लाज शर्म और संभोग उपरांत शरीर में आई आभा स्पष्ट दिखाई पड़ती है। पारखी लोग इस बात का अंदाजा भली-भांति लगा सकते हैं।


सोनी के शरीर में आई चमक भी इस बात को चीख चीख कर कह रही थी कि सोनी बदल चुकी है उसके चेहरे और शरीर में एक अलग किस्म की कांति थी।

सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस पधारे हुए थे. सोनी चाय लेकर आ रही थी सरयू सिंह सोनी के व्यवहार और शरीर में आए बदलाव को महसूस कर रहे थे। अचानक वह एक किशोरी से एक युवती की भांति न सिर्फ दिखाई पड़ रही थी अपितु बर्ताव भी कर रही थी…

चाय देते समय अचानक ही सरयू सिंह का ध्यान सोनी की सीने में छुपी घाटी पर चला गया जो डीप गले के कुर्ते से झांक रही थी। सरयू सिंह की निगाहें दूर और दूर तक चली गई ।

दुधिया घाटी के बीच छुपे अंधेरे ने उनकी निगाहों का मार्ग अवरुद्ध किया और सोनी द्वारा दिए चाय के गर्म प्याले के स्पर्श ने उन्हें वापस हकीकत में ढकेल दिया पर इन चंद पलों ने उनके काले मूसल में एक सिहरन छोड़ थी।

वह कुर्सी पर स्वयं को व्यवस्थित करने लगे जब एक बार नजरों ने वह दृष्टि सुख ले लिया वह बार-बार उसी खूबसूरत घाटी में घूमने की कोशिश करने लगी। परंतु सरयू सिंह मर्यादित पुरुष थे उन्होंने अपनी पलकें बंद कर लीं और सर को ऊंचा किया । कजरी ने उन्हें देखा और बोली

"का भईल कोनो दिक्कत बा का?"

वो क्या जवाब देते। सरयू सिंह को कोई उत्तर न सूझ रहा था उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा…

" मिजाज थाक गईल बा.." सरयू सिंह ने बात टालने की कोशिश की।

जैसे ही सोनी चाय लेकर कजरी की तरफ बढ़ी सोनी के कमर के कटाव सरयू सिंह की निगाहों में आ गए पतले कुर्ते के भीतर से भी कमर का आकार स्पष्ट दिखाई दे रहा था. सरयू सिंह को कमर का वह कटाव बेहद पसंद आता था।

सोनी के शरीर में आया यह बदलाव अलग था जो नवविवाहिता ओं में में सामान्यतः देखा जा सकता सरयू सिंह इस कला के पारखी थे….

उन्होंने बेहद संजीदगी से कहा

"लागा ता अब सोनी के ब्याह कर देवें के चाही आजकल जमाना ठीक नईखे"

कजरी ने भी शायद वही महसूस किया था जो शरीर सिंह ने। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"कवनो बढ़िया लाइका देखले रखीं ट्रेनिंग पूरा होते ही ब्याह कर दीहल जाओ"

सरयू सिंह और कजरी चाय की ट्रे लेकर वापस जाती हुई सोनी को देख रहे थे। सच में कुछ ही दिनों की गचागच चूदाई का असर सोनी के पिछवाड़े पर पड़ चुका था। कमर का कटाव और नितंबों का आकार अचानक ही मर्दों का ध्यान रहे थे। सोनी के चेहरे पर नारी सुलभ लज्जा स्पष्ट दिखाई पड़ रही सोनी जो अब विवाहिता थी अपने पूरे शबाब पर थी। सोनी लहराती हुई वापस चली गई परंतु सरयू के शांत पड़ चुके वासना के अंधेरे कुएं में जुगनू की तरह रोशनी कर गई..

नियति स्वयं उधेड़बुन में थी…वासना के विविध रूप थे.. सरयू सिंह की निगाहों में जो आज देखा था उसने नियति को ताना-बाना बुनने पर मजबूर कर दिया…

तभी सुगना चहकती हुई कमरे में आई सरयू सिंह एक आदर्श पिता की भांति व्यवहार करने…

सूरज उछल कर की आवाज में " बाबा.. बाबा ..करते पिता की गोद में आ गया" …और उनकी मूछों से खेलने लगा। सरयूयो सिंह बार-बार छोटे सूरज की गालों पर चुम्बन लेने लगे। सुगना का दृश्य देख रही थी और उनके चुंबनों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी। शरीर में एक अजब सी सिहरन हुई और वह अपना ध्यान सरयू सिंह से हटाकर …कजरी से बातें करने लगी सुगना और सरयू सिंह ने जो छोड़ आया था उसे दोहरा पाना अब लगभग असंभव था।……

"सोनू कब आई?"

सरयू सिंह ने सुगना से पूछा

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…


सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…

शेष अगले भाग में..

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#85
भाग 79

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…

सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…


अब आगे….

आइए कहानी के और भी पात्रों का हालचाल ले लेते हैं आखिर उनका भी सृजन इस कथा के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही हुआ है। सुगना को छोड़कर जाने के पश्चात रतन बदहवास सा हो गया था। उसे यह बात कतई समझ नहीं आ रही थी कि आखिर उसके पुरुषत्व को क्या हो गया था,,,? सुगना उसके जीवन में आई दूसरी युवती थी इससे पहले तो उसे अपने पुरुषत्व पर नाज हुआ करता था..

रतन के पुरुषत्व का आनंद बबीता ने भी बखूबी उठाया था.. रतन को बबीता के साथ बिताए गए अपने कामुक दिन याद याद आते थे जब बबीता उसके मजबूत और खूंटे जैसे लंड पर उछलती हुई एक नहीं दो दो बार स्खलित होती और अंततः याचना करते हुए बोलती

"अब आप भी कर लीजिए मैं थक गई"

फिर रतन उसे चूमते, चाटते …..और प्यार से चोदते हुए स्खलित हो जाता.. । इतनी संतुष्टि के बावजूद पैसों की हवस ने बबीता को उसके ही मैनेजर की बाहों में जाने पर मजबूर कर दिया था । बबीता के इस व्यभिचार ने रतन और बबीता के बीच कभी न मिटने वाली दूरियां पैदा कर दी थी।

अपने पुरुषत्व पर नाज करने वाला रतन सुगना को संतुष्ट क्यों नहीं कर पाया? यह उसकी समझ के बाहर था। सुगना को स्खलित करने के लिए उसने कामकला के सारे अस्त्र छोड़ दिए परंतु उस छोटी और मखमली बुर से चरमोत्कर्ष का प्रेम रस स्खलित न करा पाया।

कई बार छोटे बच्चे तरह-तरह के खिलौने और मिठाइयां देने के बाद भी प्रसन्न नहीं होते उसी प्रकार सुगना की करिश्माई बुर रतन की जी तोड़ मेहनत को नजरअंदाज कर न जाने क्यों रूसी फूली बैठी थी..

मनुष्य का पुरुषत्व उसका सबसे बड़ा अभिमान है रतन अपने इस अभिमान को टूटता हुआ देख रहा था। उसका मोह इस जीवन से भंग हो रहा था। वह कायर नहीं था परंतु सुगना का सामना करने की उसकी स्थिति न थी। रतन न जाने किस अनजानी साजिश का शिकार हो चुका था। सुगना का स्खलित न होना उसके लिए एक आश्चर्य का विषय था।

रतन सुगना से बेहद प्यार करता था और उस पूजा के दौरान उसने अपनी पत्नी सुगना को हर वह सुख देने की कोशिश की जो एक स्त्री एक पति या प्रेमी से उम्मीद करते है…अपितु उससे भी कहीं ज्यादा परंतु रतन को निराशा ही हाथ लगी।

कुछ महीनों की अथक मेहनत के बावजूद वह सुगना की बुर को स्खलित करने में नाकामयाब रहा और घोर निराशा का शिकार हो गया।

रतन ने गृहस्थ जीवन से संन्यास लेकर विद्यानंद के ही आश्रम की शरण में जाना चाहा।

बनारस महोत्सव के दौरान वह चाहकर भी विद्यानंद से नहीं मिल पाया था हालांकि तब चाहत में इतना दम न था जितना आज वह अकेला होने के बाद महसूस कर रहा था। अब उसका घर उजाड़ रहा था उसने आश्रम में जाकर रहने की ठान ली। सुगना जैसी आदर्श मां के हवाले अपनी पुत्री मिंकी को छोड़कर वह भटकते भटकते आखिर वह ऋषिकेश के क़रीब बने विद्यानंद के आश्रम में पहुंच गया।

विद्यानंद का आश्रम बेहद शानदार था। विद्यानंद का आश्रम जीवन मूल्यों तथा सुखद जीवन जीने की कला के मूल मंत्र पर निर्भर था यह पूजा पाठ आदि का कोई स्थान न था स्त्री और अपने-अपने समूह में एक दूसरे का ख्याल रखते हुए आनंद पूर्वक रहते।

बनारस महोत्सव में उनका पंडाल जन सामान्य के लिए सुलभ था और विद्यानंद के दर्शन भी उतनी ही आसानी से हो जाते थे। परंतु यहां उनके आश्रम में विद्यानंद के दर्शन तभी होते जब वह प्रवचन देने आते। बाकी समय वह आश्रम की व्यवस्था और आश्रम को उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर ले जाने में व्यस्त रहते हैं। आश्रम की भव्यता को बरकरार रखना निश्चित ही एक व्यवसायिक कार्य था और विद्यानंद उसके प्रमुख थे उनके जीवन में धन का कोई मूल्य हो ना हो परंतु उनकी महत्तावकांक्षा में कोई कमी न थी…

रतन उम्मीद लिए आश्रम की सेवा करने लगा और धीरे धीरे अपना परिचय बढ़ाता गया।

काश कि रतन को पता होता की विद्यानंद उसके पिता है पर न नियति ने उसे बताने की कोशिश की और नहीं उसके मन में कभी प्रश्न आया। उसे यह बात तो पता थी कि उसके पिता साधुओं की टोली के साथ भाग गए थे परंतु उस छोटे से गांव का एक भगोड़ा साधु आज विद्यानंद के रूप में शीर्ष कुर्सी पर विराजमान होगा यह उसकी कल्पना से परे था।

कालांतर में रतन की आश्रम में दी गई सेवा सफल होगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा परंतु रतन जो इस आश्रम का उत्तराधिकारी बन सकता था अभी विद्यानंद के नए आश्रम में मुंशी बना निर्माण कार्य…की देखरेख का कार्य कर रहा था। नियति इस आश्रम के युवराज की यह स्थिति देखकर मुस्कुरा रही थी।

इस कहानी का एक और पात्र धीरे-धीरे विरक्त की ओर अग्रसर हो रहा था और वह की सोनी की बहन मोनी एक तरफ जहां सोनी अपने युवा शरीर का खुलकर आनंद ले रही थी वहीं दूसरी तरफ मोनी अपनी सुंदर काया को भूल अपना ध्यान धर्म विशेष की ओर लगाए हुए थी..

बनारस महोत्सव ने उसके मन में वैराग्य को एक बेहद आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर दिया था.. मोनी जब युवा महिलाओं को एक साथ नृत्य और जाप करते हुए देखती वह भाव विभोर हो जाती अपने इष्ट को याद करती हुई मन ही मन झूमने लगती….।

ऐसा नहीं था कि मोनी के बदन पर मनचलों की निगाह न पड़ती परंतु ढीले ढाले वस्त्रों की वजह से मोनी के उभार काफी हद तक छुप जाते और उसका सीधा साधा चेहरा तथा झुकी हुई निगाहें मनचलों के उत्साह को थोड़ा कम कर देते। वैसे भी मोनी घर से ज्यादा बाहर निकलती और अपने घरेलू कार्यों पर अपनी मां का हाथ बंटाती और अपने इष्ट की आराधना में व्यस्त रहती..

मोनी की मां पदमा बेहद प्यार से बोलती

"मेरी प्यारी बेटी की शादी में पुजारी से करूंगी दोनो का मन पूजा पाठ में मन लगेगा…"

मोनी कोई उत्तर नहीं देती और बात टाल जाती उसे विवाह और विवाह से मिलने वाले सुख से कोई सरोकार न था। यदि कोई व्यक्ति उसके साथ उसकी ही विचारधारा काम मिल जाता तो निश्चित ही वह उसे स्वीकार कर लेती…पर फिर भी उसे इस बात का ध्यान रखता कि पुरुषों की सबसे प्यारी चीज उसकी जांघों के बीच अपने चाहने वाले का इंतजार कर रही है.. मोनी जिस सुंदर मणि को अपनी जांघों के बीच छुपाए हुए घूम रही थी उसका इंतजार भी कोई कर रहा था …

रतन की पूर्व पत्नी बबीता अब भी उस होटल मैनेजर के साथ रहती थी। धन और ऐश्वर्य की लोलुपता ने उसे और व्यभिचारी बना दिया वह अब किसी भी सूरत में स्त्री कहलाने योग्य न थी…उसके कृत्य अब दिन पर दिन घृणित हो चले थे। बबीता की छोटी पुत्री चिंकी भी अपनी मां का चाल चलन देखती उसके कोमल मन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था।

सोनू का दोस्त विकास भी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुका था अगले 1 वर्ष सोनी को उसकी यादों के सहारे ही गुजारना था सोनी मन ही मन घबराती कि क्या अमेरिका से आने के बाद विकास उसे उसी तरह अपना लेगा जैसा उसने वादा किया है या वह बदल जाएगा सोनी मन की मन अपने इष्ट देव से प्रार्थना करती और विकास का इंतजार दिन बीत रहे थे।

लखनऊ में सोनी को विकास के देखने के बाद जिस बड़प्पन का परिचय सोनू ने दिया था उसने सोनी का दिल जीत लिया था सोनी अपने बड़े भाई के बड़प्पन पर नतमस्तक हो गई थी सोनू भैया इतने बड़े दिलवाले होंगे सोनी ने यह कभी नहीं सोचा था। सोनू को देखने के बाद एक पल के लिए वह हक्की बक्की रह गई थी परंतु सोनू की अनुकूल प्रतिक्रिया देखकर वह सोनू के गले लग गई उसके आलिंगन में आ गई यह आलिंगन पूर्णता वासना रहित और आत्मीयता का प्रतीक था सोनू का हृदय भी अपनी छोटी बहन के इस प्रेम को नजरअंदाज न कर पाया और सोनू ने सोनी के इस कदम को मन ही मन स्वीकार कर लिया था।

उधर सलेमपुर सरयू सिंह का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। सोनू ने पीसीएस परीक्षा परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर उनके परिवार का नाम और भी रोशन कर दिया था। सरयू सिंह के माथे का दाग पूरी तरह विलुप्त हो चुका था निश्चित ही वह सुगना के साथ उनके नाजायज संबंधों ने जन्म दिया था जो एक पाप के प्रतीक के रूप में उनके माथे दिखाई पड़ता था। सरयू सिंह की उम्र इतनी भी नहीं हुई थी की उनका जादुई मुसल अपना अस्तित्व भुला बैठे। जैसे-जैसे उनकी आत्मग्लानि कम होती गई उनके लंड में हरकत शुरु होती गई।

सरयू सिंह की खूबसूरत यादों में अब सिर्फ एक ही शख्स बचा था और वह थी उनकी आदर्श मनोरमा मैडम न जाने वह कहां होंगी। बनारस महोत्सव में उनके ही कमरे में उनके साथ अंधेरे में किया गया वह संभोग सरयू सिंह को रह-रहकर याद आता और उनका लंड उछल कर मनोरमा मैडम को सलामी देने के लिए उठ खड़ा होता। सरयू सिंह अपने लंड को तेल लगाते और सहलाते जैसे उसे किसी अनजान प्रेम युद्ध के लिए तैयार करते ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार वह अपनी लाठी पर तेल लगाकर उसे आकस्मिक हमले से बचने के लिए तैयार रखते थे। सरयू सिंह मनोरमा मैडम के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हर संभव कोशिश करते परंतु मर्यादा में रहते हैं कई बार उन्हें अपने करीबी साथियों से यह प्रश्न सुनने को मिल जाता

" का सरयू भैया? कुछ चक्कर बा का? उनका के काहे याद करा तारा?"

उनके सभी साथियों और कर्मचारियों को इस बात का अंदाजा था कि मनोरमा मैडम का सरयू सिंह और उनके परिवार के प्रति विशेष स्नेह था। जाने मनोरमा मैडम कहां होगी और कैसी होंगी…


कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था.. बच्चों के लिए कपड़े खरीदना आवश्यकत था और स्वयं के लिए भी …दोनों सहेलियां बाजार निकल पड़ी।

दुकान पर टंगे रंग बिरंगे कपड़े देखकर सुगना और लाली दोनों का मन मचल उठा. दोनों ने एक साथ ही कहा

"कितना सुंदर कपड़ा बा" दोनों सहेलियां मुस्कुरा उठी नियति ने दोनों की पसंद को मिला दिया था… दोनों मुस्कुराने लगी दुकान की तरफ बढ़ चली…

"आइए दीदी क्या दिखाऊ?"

सुगना ने अपनी उंगलियां बाहर टंगे पुतले की तरफ कर दी.. जिस पर एक लखनवी कुर्ता टंगा हुआ था जिस पर खूबसूरत चिकनकारी की हुई थी..

दुकानदार में अपने बात हाथ से उस कपड़े को निकालने के लिए कहा और उस कुर्ते की तारीफ करने लगा ..

सुगना सुगना सामान्यतया साड़ी ही पहनती थी विशेष अवसरों पर लहंगा चोली पहने ना उसे पसंद था परंतु सलवार सूट पहनना उसे आधुनिकता का प्रतीक लगता था जो उसके व्यक्तित्व और स्वभाव से मेल खाता था परंतु जब जब सुगना एकांत में होती वह सोनी के सलवार सूट को पहनने की कोशिश करती परंतु सोनी का कुर्ता सुगना के गदराए बदन पर फिट न बैठता और सुगना चाह कर भी अपने कामुख बदन को सलवार सूट में न देख पाती।


"दीदी यह माल कल ही आया है खास लखनऊ से मंगाया है" आप जैसे सुंदर दीदी पर यह बहुत फबेगा। दुकानदार चालू था… उसने एक ही वाक्य में सुगना और लाली दोनों को प्रभावित कर लिया था..

दुकान का नौकर उस सूट की कई वैरायटी लेकर काउंटर पर फैला चुका सुगना और लाली बार-बार उन्हें छूते उनके कपड़ों की कोमलता महसूस करते और मन ही मन उस कपड़े में अपने खूबसूरत बदन को महसूस करते..

कपड़ा और डिजाइन एक बार में ही पसंद आ चुका था अब बारी थी पैसों की.

"कितना के वा सुगना के सुकुचाते हुए पूछा?"

"₹300 के दीदी"


"लाली ने आश्चर्य से कहां 300 बाप रे बाप इतना महंगा?"

दुकानदार को लाली का इस प्रकार चौकना पसंद ना आया उसने सुगना की तरफ देख कर कहा

₹दीदी यह लखनवी चिकनकारी है आप तो जानती ही होंगी? हाथ का काम है महंगा तो होगा ही? आप एक बार ले जाइए यदि जीजा जी ने पसंद न किया तो वापस पटक जाइएगा"

सुगना अपने आकर्षक त्वचा और खूबसूरत चेहरे तथा सुडोल जिस्म की वजह से एक सब सब सभ्रांत महिला लगती थी…जिस सुगना ने मनोरमा मैडम जैसी खूबसूरत एसडीएम को प्रभावित कर लिया था उसे देखकर दुकानदार का प्रभावित होना स्वभाविक था।

सुगना और लाली दोनों दुकानदार का इशारा समझ रही थी उन्हें पता था कि इन कपड़ों में लाली और सुगना बेहद सुंदर लगेंगी और शायद इसीलिए वह विश्वास जता रहा था कि कोई भी उसे वापस करने नहीं आएगा।

यह अलग बात थी कि घर पर उन्हें इन वस्त्रों में देखने वाला कोई न था। लाली का सोनू लखनऊ में था और सुगना उसका तो जीवन ही उजाड़ हो गया… सरयू सिंह सरयू जिसके साथ उसने अपनी जवानी के तीन चार वर्ष बिताए थे उन्होंने अचानक ही काम वासना से मुंह मोड़ लिया था और उसका पति रतन ……शायद सुगना रतन के लिए बनी ही न थी।


सुगना जैसी सुंदरी सिर्फ और सिर्फ प्यार की भूखी थी और जिसका बदन प्यार पाते ही मक्खन की तरह पिघल जाता है वह अपने प्रेमी के शरीर से लिपट कर उसकी सॉरी उत्तेजना और वासना को आग को अपने बदन के कोमल स्पर्श और चुम्बनो से शांत करती करती और अंदर उठ रहे तूफान को केंद्रित कर उसके लिंग में भर देती और उसे अपनी अद्भुत योनि में स्थान देकर उसके तेज को बेहद आत्मियता से सहलाते हुए इस उत्तेजना से उत्पन्न वीर्य को बाहर खींच लाती।

रतन ने भी सुगना से प्यार ही तो किया था पर क्या यह प्यार अलग था …. क्या यह प्यार सरयू सिंह और सोनू के प्यार से अलग था…लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला..और कहा

"चल सोनू के फोन कर दीहल जाओ ….लखनऊ से खरीद के ले ले आई आतना पैसा काहे देवे के?"

सुगना को यह बात पसंद आई उसने महसूस किया था उसे पता था सोनू की स्त्रियों के कपड़े की पसंद बेहद अच्छी थी। वह लाली के लिए कुछ कपड़े पहले भी खरीद चुका था।

दोनों सहेलियां एकमत होकर दुकानदार से बोली

"अच्छा ठीक है इसको रखिए हम लोग और सामान लेकर आते हैं फिर इसे ले जाएंगे.."

दुकानदार समझ चुका था वह अब भी सुगना और लाली को समझने की कोशिश कर रहा था दोनों रंग-बिरंगे कपड़ों में सजी थीं पर माथे का सिंदूर गायब था।

बाहर निकल कर पीसीओ बूथ से लाली ने सोनू के हॉस्टल में फोन लगा दिया..

प्रणाम दीदी …. सोनू की मधुर आवाज सुगना के कानों में पड़ी

" खुश रहो "

सुगना ने दिल से सोनू को आशीर्वाद दिया और पूछा "सोनी बढ़िया से पहुंच गईल नू"

"हां"

सोनू ने संक्षेप में जवाब दिया। सुगना ने सोनू के स्वास्थ्य और खानपान के बारे में पूछा पता नहीं क्यों उसे आज बात करने में वह बात करने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। और यही हाल सोनू का था। कुछ दिनों से सोनू और सुनना दोनों की सोच में जो बदलाव आया था वह बातचीत में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था दोनों की बातें ज्यादा औपचारिक हो रही थी वह भाई बहन की आत्मीयता न जाने कब कमजोर पड़ती जा रही थी।

जो भाई बहन पहले काफी देर बातें किया करते थे वो आज मुद्दों की तलाश में थे… ऐसा लग रहा था जैसे बातें खींच खींच कर की जा रही हो। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसने फोन लाली को पकड़ा दिया और बोली

"ले लाली भी बात करी" सुगना को अचानक महसूस हुआ जैसे उसने फोन सोनू की प्रेयसी को दे दिया वह थोड़ा दूर हट कर खड़ी हो गई ..

लाली और सोनू ने कुछ देर बातें की। सुगना उनकी बातें सुनती रही आज पहली मर्तबा सुगना सोनू और लाली की बातों को ध्यान लगाकर सुन रही थी। उसे सोनू की आवाज तो सुनाई न दे रही थी परंतु वह मन ही मन अंदाज लगा रही थी । अंत में लाली ने सोनू से कहा

"वहां से लखनवी चिकनकारी के शीफान के सूट लेले अईहा हमनी खातिर…_

" दीदी पहनी…? " सोनू ने लाली से इस बात की तस्दीक करनी चाहिए कि क्या सुनना वह सूट पहनेगी उसे यह विश्वास न था।

"अरे राखी में तू गिफ्ट ले आईबा तब काहे ना पहनी"

लाली भी सुगना के साथ रहते-रहते वाकपटु हो चली थी।

"साइज त बताव"

" हमर त मलूमे बा हां बाकी दुसरका एक साइज .. कम"

सुगना को समझते देर न लगी कि लाली ने उसकी चुचियों की साइज सोनू को बता दिया है…

सोनू की बाछे खिल उठी। आज लाली ने उसे सुगना को खुश करने का एक अवसर दे दिया था।

कमरे में आकर वहीबिस्तर पर लेट कर एक बार फिर सुगना की कल्पना करने लगा वह इसे तरह-तरह के कपड़ों में देखता और मन ही मन प्रफुल्लित होता कभी-कभी वह सुगना को कपड़े बदलते हुए देखने की कल्पना करता और तड़प उठता…हवा के झोंकें से सुगना का घाघरा जैसे हवा में उड़ता और उसकी मखमली जांघों अनावृत हो जाती…..

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…


शेष अगले भाग में…
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#86
भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…

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#87
भाग 81

सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को सरप्राइस देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रखती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखें फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…

सोनू ने आज वही दृश्य देखा जिसकी कल्पना वह कई दिनों से कर रहा था सुगना की भीगी हुई नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठ रही थी सुगना ने अपनी पीठ उसी खिड़की की तरफ की हुई थी जिससे सोनू अंदर झांक रहा था। सुगना स्वाभाविक रूप से अपने कपड़े बदल रही थी उसे क्या पता था खिड़की पर उसका छोटा भाई नजरों में कामुक प्यास लिए उसे निहार रहा था। जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई.. सुगना की मांसल और गदराई जांघें सोनू की निगाह में आती गईं।


वह पैरों की गोरी पिंडलियां ,.…… जांघों और पिंडलियों के बीच वह बेहद लचीला और दो-तीन धारियों वाला घुटने के पीछे का भाग……सोनू की दृष्टि उस पर अटक गई.. सोनू मंत्रमुग्ध होकर ललचाई निगाहों से एक टक देखे जा रहा था.. कुछ ही पलों में नाइटी सुगना के नितंबों को अनावृत्त कर चुकी थी।

उसी दौरान सुगना की नाइटी उसके मंगलसूत्र में फस गई। सुगना उसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी और कुछ देर तक सोनू की नजरों के सामने अपने भरे पूरे मादक नितंबों को अनजाने में ही परोस दिया। सोनू कामुक निगाहों से उसे देख रहा था उसकी पुतलियां फैल चुकी थी वह इस खूबसूरत दृश्य को अपने जहन में बसा लेना चाहता था। वह बिना पलक झपकाए मादक नितंबों के नीचे जांघों के बीच बने त्रिकोण पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए था। सुगना की बुर के होंठों ने और जांघों के बीच जोड़ ने एक अनोखी दिल की आकृति बना दी थी।

सुगना का दिल जितना खूबसूरत और विशाल था उतना ही खूबसूरत यह छोटा दिल भी था। इस अनोखे दिल के शीर्ष पर खड़ी सुगना की बुर न जाने कितना प्रेम रस छुपाए अपने प्रेमी का इंतजार कर रही थी… ।

कुछ ही देर में सुगना ने मंगलसूत्र को नाइटी से अलग कर लिया और उसकी नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठती गई जब तक कि वह नाइटी उसकी पीठ को अनावृत करते हुए गले तक पहुंचती…

हाल से मामा मामा की आवाज आने लगी। बच्चों ने सोनू को देख लिया था और वह मामा मामा चिल्लाने लगे थे।


सुगना बच्चों की चहल-पहल से अचानक पलटी और और अनजाने में ही अपनी भरी-भरी मदमस्त चुचियों को सोनू की निगाहों के सामने परोस दिया परंतु सोनू का दुर्भाग्य वह सिर्फ एक झलक उन चूचियों को देख पाया और उसे न चाहते हुए भी अपने भांजो की तरफ मुड़ना पड़ा जो अब उसके करीब आ चुके थे।

सुगना ने खिड़की की तरफ देखा और सोनू को खिड़की के पास खड़े घूमते हुए देखा। सुगना हतप्रभ रह गई।


क्या सोनू अंदर झांक रहा था? हे भगवान क्या सच में उसने अंदर झांका होगा? नहीं नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता…आने के पश्चात तो वह अपने भांजों में खोया होगा… परंतु सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया था. वह खिड़की की तरफ गई और पर्दे को पूरी तरह बंद कर वापस कपड़े बदलने लगी उसने फटाफट अपने वस्त्र पहने.. उसका कलेजा धक-धक कर रहा था..

सुगना कमरे से बाहर आने की हिम्मत जुटा रही थी परंतु शर्म उसके पैरों में बेड़ियां बनकर उसका रास्ता रोक रही थी।

सोनू वैसे तो बच्चों के साथ खेल रहा था परंतु उसका ध्यान बार-बार उस कमरे की तरफ जा रहा था। आज पहली बार उसका मन बच्चो के साथ न लग रहा था।

इस अनोखी वासना ने सोनू को बदल दिया था।

सोनी हाल में आ चुकी थी। उसने सोनू के चरण छुए और एक बार फिर अपनी कृतज्ञता जताने के लिए वह सोनू के गले लग गई। .. सोनी की मुलायम चुचियों ने सोनू के सीने पर दस्तक दी परंतु उसका दिलो दिमाग कहीं और खोया हुआ था…सोनू ने लाली के भी चरण छुए और अपने बैग से निकाल कर ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने बच्चों में बांटने लगा…. पर ध्यान अब भी बार-बार सुगना के दरवाजे की तरफ जा रहा था.


आखिरकार सुगना कमरे से बाहर आई। सोनू ने सुगना के चरण छुए… सुगना ने उसे खुश रहो का कर आशीर्वाद दिया…सुगना के घागरे के पीछे से आ रही साबुन और सुगना की मादक खुशबू को सोनू कुछ देर यूं ही सूंघता रहा ..सुगना ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा

" अब उठ भी जो .."

सोनू उठ गया परंतु आज सुगना ने सोनू को गले न लगाया शायद आज भाई बहन के पावन प्यार पर ग्रहण लग चुका था। सुगना अपराध बोध से ग्रस्त थी।


बच्चे तो चॉकलेट और मिठाइयों में ही मस्त हो गए सुगना और लाली ने अपने-अपने गिफ्ट पैकेट प्राप्त किए । सोनी के हाथ में भी गिफ्ट पैकेट था परंतु यह पैकेट लाली और सुगना के पैकेट से अलग था कभी-कभी पैकिंग का आकर्षण गिफ्ट की अहमियत को बढ़ा या घटा देता है सोनी निश्चित ही अपने गिफ्ट की तुलना और सुगना को मिले गिफ्ट से कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी शायद उसने सोनी के साथ अन्याय कर दिया था।

आखिर सोनू की उस बहन ने भी अनजाने में अपने भाई के लिए लखनऊ के गेस्टहाउस में जो कुछ परोसा था वह निश्चित ही बेहद उत्तेजक था परंतु परंतु सोनू का दिलो-दिमाग अभी सुगना पर अटका था।

सोनू और सुगना का साथ आज का न था। दोनों को युवा हुए कई वर्ष बीत चुके थे और सोनू सुगना की सहेली लाली से जैसे-जैसे अंतरंग होता गया सुगना के प्रति उसका आकर्षण एक अलग रूप लेता गया।

यह बात निश्चित थी कि सोनू ने सुगना से अंतरंग होने की न कभी कोशिश कि नहीं कभी कभी उसके ख्यालों में वह आई पर एक झोंके की तरह। सोनू के विचारों का भटकाव स्वभाविक था दरअसल सुगना एक मदमस्त युवती थी जो स्वाभाविक रूप में उन सभी मदों के आकर्षण का केंद्र थी जिनकी जांघों के बीच हरकत होती थी। सोनू यह बात जानता था कि वह उसकी बड़ी बहन है और यही बात उसके ख्यालों पर लगाम लगा देती..

सुगना का व्यक्तित्व सोनू के छिछोरापन पर तुरंत लगाम लगा देता और वह एक बार फिर अपनी निगाहों में सुगना की बजाय लाली के कामुक अंगो की कल्पना करने लगता…

लाली और सुगना लाली और सुगना दोनों अपने-अपने गिफ्ट पैकेट लेकर अपने-अपने कमरों में आ गईं। दोनों में लखनऊ से मंगाए गए कपड़े देखने चाहत थी। सुगना उस खूबसूरत सूट को देखकर खुश हो गई आज पहली बार सोनू ने उसके लिए कपड़े पसंद किए थे वह भी इतने खूबसूरत ।

सुगना उसे अपने हाथों में लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगे तभी उसका ध्यान सलवार के नीचे पड़ी खूबसूरत जालीदार ब्रा और पेंटी पर पड़ा और वह चौंक गई… …ब्रा और पेंटी को देखकर सुगना को यकीन ही नहीं हुआ कि सोनू ऐसा कार्य कर सकता है।

ठीक उसी समय सोनी के कमरे में आने की आहट हुई सुगना ने फटाफट उस ब्रा और पेंटी को तकिए के नीचे छुपा दिया और सूट को अपने हाथों में ले पीछे पलटी और सोनी को दिखाते हुए बोली


"देख कईसन बा सोनुआ ले आइल बा…"

सोनी ने व सूट अपने हाथों में ले लिया और उसकी कोमलता और डिजाइन को देखकर खुश हो गई

" कितना सुंदर बा सोनू भैया हमरा खातिर ना ले ले आइले हा"


सुगना ने एक पल भी सोचे बिना कहा

" तोहरा ठीक लागत बा ले ले हम फिर मंगा लेब"

सुगना का यहीं बड़प्पन उसे बाकी लोगों से अलग करता था…. सोनी ने सुगना के हाथों में सूट को देते हुए कहा "ना…ई सूट दीदी तोरा पर बहुत अच्छा लागी आज इहे पहन ले"

सुगना को भी वह सूट बेहद पसंद आया था परंतु उसकी शर्म उसे रोक रही थी । सोनी के आग्रह पर उसने सूट पहने का फैसला कर लिया। परंतु वह ब्रा और पेंटी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि सोनू ने ऐसा क्यों किया होगा? उसने तकिया हटाया और एक बार फिर उस खूबसूरत ब्रा और पेंटी को देखने लगी… यह संयोग कहें या सोनू की किस्मत ब्रा और पेंटी की कढ़ाई सूट से थोड़ा-थोड़ा मैच करती थी। सुगना को एक पल के लिए लगा जैसे यह जालीदार ब्रा और पेंटी इसी सूट का हिस्सा थी। सुगना सहज हो गई परंतु फिर भी अपने भाई द्वारा लाई गई ब्रा और पेंटी को पहनने की हिम्मत न जुटा पाईं…उसे यह कार्य बेहद शर्मनाक लगा.

सुगना ने एक बार फिर अपने वस्त्र उतारे और सोनू द्वारा लाए गए सलवार सूट को धारण करने लगी । चिकनकारी किया हुआ वह शिफान के सूट बेहद खूबसूरत था जैसे जैसे वह सूट सुगना के मादक और कमनीय काया पर चढ़ता गया वह अपनी खूबसूरती को और बढ़ाता गया।

वस्त्रों की खूबसूरती उसे धारण करने वाले पर निर्भर करती है। सुगना के कोमल बदन को छूकर सोनू द्वारा लाया गया सूट भी धन्य हो गया।

सुंदर वस्त्र सुंदर स्त्री पर दोगुना असर दिखाते हैं यही हाल सोनू द्वारा लाए गए सूट का था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस सूट का सृजन ही सुगना के लिए हुआ हो। सूट का बाजू लगभग पारदर्शी था जो सुगना की बाहों को आवरण देने में कामयाब था बाजू पर की गई चिकनकारी सुगना की मांसल भुजाओं को और खूबसूरत बना रही थी।


सीने पर सूट की फिटिंग देखने लायक थी ऐसा लग रहा था जैसे दर्जी ने सुगना की चूचियों की कल्पना कर उनके लिए जगह पहले से छोड़ रखी थी और सुगना की कसी हुई चूचियां सूट में बने जगह पर जाकर पूरी तरह सेट हो गई। सुगना की पतली कमर पर सटा हुआ सूट बेहद खूबसूरत लग रहा था सूट का पिछला हिस्सा सुगना के नितंबों को ढक रहा था और अगला उस प्रेम त्रिकोण को जिसकी तलाश उसका भाई सोनू अब अधीर हो रहा था।

सुगना ने स्वयं को आईने में देखा एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसकी मदमस्त काया पर किसी ने खूबसूरत पेंटिंग कर दी हो..

सुगना स्वयं अपनी चुचियों को देखकर प्रसन्न हो गई उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। सलवार सूट मैं उनका कसाव और आकार और भी उत्तेजक हो गया था।

सुगना ने अपने बाल सवारे । मांग के एक कोने में हमेशा की तरह सिंदूर का टीका किया। अपने मंगलसूत्र को गले पर सजाया और हाल में आने लगी। अचानक सुगना को सोनू का ध्यान आया और सुगना ने दुपट्टे से अपनी खूबसूरत चूचियों को ढक लिया और हाल में आ गई।

सुगना सचमुच बेहद खूबसूरत लग रही थी जैसे ही सोनू ने सुगना को देखा उसकी आंखें सुगना पर टिक गई और वह उसे सर से पैर तक निहारने लगा। सुगना की आंखें स्वतः ही शर्म से झुक गई.. .


सोनू खुद को रोक न पाया और बोला

"अरे दीदी सूट तोरा पर कितना अच्छा लागत बा" लाली ने भी सोनू की बात पर हां में हां मिलाई

"लागा ता सूट तोहरे खातिर बनल रहल हा" …लाली ने सुगना से कहा

" देख हम कहत ना रहनी की सोनू अब बड़ हो गईल बा दे त ओकरा के लइका समझेले"

सुगना मुस्कुरा दी और उस मुस्कुराहट ने उस सुंदरी के खूबसूरत चेहरे पर चार चांद लगा दिए…

अब तक सोनी ने हाल में सारी तैयारियां पूरी कर ली थी चादर को मोड़ कर बैठने का इंतजाम कर दिया गया था सारे बच्चे लाइन से बैठे हुए थे..



आइए मैं पाठकों को एक बार फिर इन बच्चों की याद दिला देता हूं जो इस कहानी के उत्तरार्ध में अपनी महती भूमिका निभाएंगे..

सुगना के घर में


  1. सुगना और सरयू सिंह के मिलन से जन्मा : सूरज…उम्र ..4 वर्ष लगभग..
  2. लाली और सोनू के मिलन से पैदा हुई : मधु उम्र लगभग 1 वर्ष कुछ माह ( सुगना इसे अपनी पुत्री और सूरज को उस अनजाने श्राप से मुक्ति दिलाने वाली उसकी छोटी बहन समझती है)
  3. रतन और बबीता की पुत्री मिंकी जो अब मालती नाम से सुगना के साथ रह रही है उम्र लगभग 6 वर्ष..

लाली के घर में

  1. राजेश और लाली का पुत्र : राजू, उम्र लगभग 6 वर्ष
  2. राजेश और लाली की पुत्री: रीमा, उम्र लगभग 4 वर्ष
  3. राजेश के वीर्य,सरयू सिंह की मेहनत और सुगना के गर्भ से जन्मा: राजा…..उम्र 1 वर्ष कुछ माह…


सारे लड़के चादर पर बैठे हुए थे। सोनू बीच में बैठा था और उसकी गोद में छोटा राजा था सोनू के एक तरफ राजू और दूसरी तरफ सूरज बैठा था।

लाली भी मधु को गोद में लेकर करीब ही बैठी थी। मालती और रीमा ने अपने तीनों भाइयों को राखी बांधी…अब बारी मधु की थी..

लाली मधु से सूरज के हाथ पर राखी बंधवाने लगी सुगना तड़प उठी…. भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को वह भलीभांति समझती थी…उसका दिल कह रहा था कि वह मधु को सूरज की कलाई पर राखी बांधने से रोक ले….. आखिर मधु को कालांतर में उससे संभोग कर उसे श्राप मुक्त करना था…

सुगना ने कहा अरे छोड़ दे "मधु अभी छोट बीया ओकरा का बुझाई"

परंतु लाली ना मानी उसने बेहद आत्मीयता से कहा "अरे ई सोनू के सबसे छोटे और प्यारी बहन हा ई ना बांधी त के बांधी"

और आखिरकार सूरज की कलाई पर छोटी मधु ने राखी बांध दी सुगना मन मसोसकर रह गई।

अब स्वयं उसकी बारी थी…

सुगना अपने हाथों में पूजा की थाली लिए सोनू की तरफ बढ़ रही थी। नजरों में ढेर सारा प्यार और अपने काबिल भाई की मंगल कामना सहित… उसने सोनू की आरती की माथे पर टीका लगाया और सोनू की कलाई पर राखी बांधने लगी.. इसी दौरान सुगना का दुपट्टा न जाने कब झूल गया और सूट में छुपी हुई चूचियां झुकने की वजह से अपने आकार का प्रदर्शन करने लगीं।


उन गोरी चूचियों के बीच गहरी घाटी पर सोनू की नजरें चली गईं। बेहद मादक दृश्य था अपनी बड़ी बहन की भरी-भरी चूचियों के बीच उस गहरी घाटी में सोनू की निगाहें न जाने क्या खोज रही थी। वह एक टक उसे घूरे जा रहा था। इस नयन सुख का असर सोनू की जांघों के बीच भी हुआ और उसका छोटा शेर भी इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए उठ खड़ा हुआ।

कुछ ही देर में सुगना ने सोनू की निगाहों को ताड़ लिया। उसे बेहद शर्म आई … और उसने अपना दुपट्टा ऊपर खींच लिया। उसने सोनू के गाल पर चपत लगाते हुए बोला…

"कहां भुलाईल बाड़े आपन मुंह खोल" और अपने हाथों में लड्डू लेकर उसने सोनू के मुंह में एक लड्ड भर दिया..

सोनू को अपने पकड़े जाने का है अहसास हो चुका था परंतु वह कुछ ना बोला और बड़ी मुश्किल से उस लड्डू को अपने मसूड़े से तोड़ने का प्रयास करने लगा.. लड्डू का आकार कुछ ज्यादा ही बड़ा था और सुगना ने आनन-फानन में उसे पूरा लड्डू खिला दिया था।

सोनी ने भी सोनू की कलाई पर राखी बांधी। इसी दौरान लाली ने मधु को सुगना की गोद में दे दिया और उठकर रसोई घर की तरफ चली गई । लाली आज सोनी की उपस्थिति में असमंजस में थी। जब से लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया था तब से उसने उसकी कलाई पर राखी बांधना बंद कर दिया था।


परंतु सोनी ने लाली को न छोड़ा और अंततः सोनू की कलाई पर लाली से भी राखी बंधवा ही दी बंधन की पवित्रता नष्ट हो रही थी…. सोनू की निगाहों में भी और सुगना की निगाहों में भी…नियति मजबूर थी जिस खेल में विधाता ने उसे धकेल दिया था उसे चुपचाप यह खेल देखना था।

सोनू अपने तीनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था आज उसकी जमकर आव भगत हो रही थी जब-जब सोनू सोनी को देखता वह उसके भविष्य को लेकर खुश हो जाता। विकास से बातचीत करने के पश्चात सोनु आश्वस्त हो गया था कि विकास सोनी को धोखा नहीं देगा और सोनू ने सोनी को दिल से माफ कर दिया था….


शाम होते होते भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का असर कम होने लगा और सोनू लाली के साथ एकांत खोजने में लग गया…

जैसे ही सोनी बच्चों को लेकर बाहर घुमाने गई…

लाली और सोनू एक बार फिर उसी कमरे में आ गए.. इस बार खिड़की पर से पर्दा हटाने का कार्य स्वयं सोनू ने अपने हाथों से किया और लाली के शरीर से वही सूट हटाने लगा जिसे वह जिसे वह आज सुबह ही लाया था.

सोनू के मन में एक बार फिर सुगना घूमने लगी

.. क्या सुगना दीदी आज भी आएंगी? सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जाती और बैरंग लौट आती समय कम था सोनी कभी भी वापस आ सकती थी।

"ए सोनू रात में करिहे काहे जल्दी आई बाड़?" लाली को क्या पता था कि सोनू के मन में हवस भरी हुई थी पिछले कुछ महीनों में उसमें इन उत्तेजक पलों को सिर्फ ख्वाबों में जीया था और जब यह पल उसके सामने हकीकत में उपलब्ध थे वह उसे तुरंत भाग लेना चाहता था…

"रात में फेर से"


सोनू ने बिना समय गवाएं लाली को घोड़ी बना दिया और उसकी जालीदार पेंटी को एक तरफ खिसका कर अपना लंड उसकी फूली बूर में उतार दिया…

लाली की बुर अभी पनियाइ न थी.. जहा पहले उसकी बुर को सोनू के चुंबनओं का स्पर्श प्राप्त होता था और सोनू की जीभ उसकी बुर की दरारों को फैला कर अंदर से प्रेम रस खींचती थी.. वही आज सोनू अधीर होकर लाली को आनन-फानन में चोदने के लिए तैयार था लाली ने सोनू को निराश ना किया और अपनी बुर को यथासंभव फैलाने की कोशिश की परंतु नाकामयाब रही..

सोनू के लंड ने अपना रास्ता जबरदस्ती तय किया और लाली "आह….." की आवाज के साथ कराह उठी…

लाली की यह कराह कुछ ज्यादा ही तेज थी शायद यह उसके द्वारा अनुभव किए जा रहे दर्द के अनुपात में थी..

"सोनू…. तनी धीरे से ..दुखाता" लाली ने फुसफुसा कर कहा..

"बस बस हो गइल"

लाली की आह की आवाज सुनकर सुगना सचेत हो गई। एक पल के लिए उसे लगा जैसे लाली किसी मुसीबत में थी परंतु जैसे ही वह कमरे की तरफ बढ़ी.. उसे सोनू की आवाज सुनाई दे गई। सुगना के मन में उस दिन के दृश्य घूम गए….

एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह एक बार फिर खिड़की से झांक कर देखें परंतु वह हिम्मत न जुटा पाई और कुछ देर उसी अवस्था में खड़े रहकर वापस अपने कमरे में आ गई.. उसने कमरे का दरवाजा बंद न किया…और अपने कान उस कमरे की तरफ लगा लिए जिसमें सोनू और लाली की प्रेम कीड़ा चल रही थी..

सुगना के दिमाग में उसे कमरे के अंदर झांकने से रोक लिया था परंतु दिल …. ने सुगना के कामों पर नियंत्रण कर लिया था जो अब सोनू और लाली की आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे..

सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जा रही थी लाली भी धीरे धीरे गर्म हो चली थी लंड के आवागमन ने उसके बुर् के प्रतिरोध को खत्म कर दिया था और लाली अब पूरे आनंद में थी…

वासनाजन्य उत्तेजना कभी-कभी वाचाल कर देती है..लाली ने सोनू से कहा

"जल्दी कर कही तहार सुगना दीदी मत आ जास" लाली ने यह बात कुछ ज्यादा तेजी कही जो सुगना के कानो तक भी पहुंची…

सुगना का नाम सुनकर सोनू और उत्साह में आ गया वो तो न जाने कब से खिड़की पर उसका इंतजार कर रहा था। और सोनू ने लाली की कमर पर अपने हाथों का कसाव बढ़ा दिया और लंड को और गहराई तक उतार दिया..

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…


सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के दिशा निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…

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#88
आह... तनी धीरे से... दुखाता


यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।

Heart


ALL CREDIT GOES TO ORIGINAL WRITER = लवली आनंद
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#89

भाग 82

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…

सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…

सुगना अपनी आंखें बंद किए अंदर के दृश्य देख रही थी और उसके कानों पर पड़ रही वह सुनहरी थाप उसे और भी मदहोश किए जा रही थी। सोनू अधीर होकर लाली को चोद रहा था और अपनी बड़ी बहन को उस कामुक दृश्य देखने के लिए अनोखे अंदाज में आमंत्रित कर रहा था।


परंतु सुगना खड़ी रही…लग रहा था जैसे उसने अपनी वासना पर विजय प्राप्त कर ली हो…. उसी समय छोटा सूरज सुगना के पास आ गया…

मां… मां… कर वह सुगना के पैरों से लिपटने लगा.. सुगना ने उसे अपनी गोद में उठा लिया ।

यद्यपि अपने पुत्र का यह व्यवधान उसे रास ना आया परंतु सूरज जो उसके कलेजे का टुकड़ा था उसे वह किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं कर सकती थी।

न जाने आज सूरज को क्या हुआ था सुगना की गोद में आने पर वह सुगना की चुचियों को छूने का प्रयास करने लगा… वह बार-बार सुगना से दूधू पीने का अनुरोध करने लगा…. सुगना लाली और सोनू के प्रेम प्रसंग में इतनी खोई थी कि उसने सूरज की बात न टाली और पास पड़े बिस्तर पर लेटकर अपनी चूचियां उसे पकड़ा दी पर मन के तार सोनू और लाली के कमरे में जुड़े रहे। सुगना की चूचियां उत्तेजना से पूरी तरह सख्त हो चुकी थी… सूरज के होठों में सुगना के निप्पलों से दूध निकालने की कोशिश की परंतु असर कुछ और हो रहा था।

ऐसा लग रहा था जैसे काम रस वात्सल्य रस पर हावी था। दिमाग में नंगी लाली की चूदाई घूम रही थी। उत्तेजना ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया था..आज सुगना अपने ही पुत्र द्वारा अपनी चुचियों के चूसे जाने से उत्तेजित हो रही थी……

सरयू सिंह का पुत्र सूरज …अनजाने में ही सरयू सिंह की अनूठी पुत्री अपनी बहन की चूचियों को रखाबंधन के पवित्र दिन चूस रहा था..

विद्यानंद की बातें मूर्त रूप ले रही थी…

दरअसल सूरज बड़ी मासूमियत से दूध निकालने का प्रयास कर रहा था….. उस अबोध को चुचियों का जादू अभी पता न था।


नियति मुस्कुरा रही थी….. रक्षाबंधन के दिन सोनू सुगना को याद कर लाली को चोद रहा था और सुगना का पुत्र जो दरअसल उसका भाई था उसकी चूचियों से से खेल रहा था….. सूरज के छोटे-छोटे पैर सुगना की जांघों के बीच टकरा रहे थे । संवेदनशील हो चुकी बुर को वह स्पर्श बेहद आनंददायक लग रहा अनजाने में ही सही आज सूरज की हरकतें उसकी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी।

उधर लाली और सोनू का मिलन अब अंजाम तक पहुंचने वाला था। कमरे में आ रही कामुक मिलन को थाप अब मध्यम हो चली थी। सुगना अपने कान लगातार उस कमरे में लगाए हुए थी।

एकाग्रता आवाज की तीव्रता को बढ़ा देती है। मिलन की थाप तीव्र होती गई और उसका समापन सोनू की मदहोश कर देने वाली कराह से हुआ

दीईईईई ….. दीईइ………

सुगना तड़प उठी…

सोनू और लाली दोनों स्खलित हो रहे थे। उत्तेजना के बादल शांत होकर वर्षा का रूप ले चुका था…और उस बारिश में सोनू की लाली भीग रही थी।

जिन बादलों को सुगना ने आमन्त्रित किया था उनकी वर्षा का आनंद लाली ले रही थी।

सोनू के लंड से निकलने वाली धार लाली को भिगोने के बाद अब बूंद का रूप ले रही थी। सोनू के मन में निराशा थी सुगना खिड़की पर ना आई परंतु उसका लंड पूरी तरह तृप्त था आज कई महीनों बाद उसे मखमली गोद में स्खलित होने का अवसर प्राप्त हुआ था।


उसे सुगना के बुर के मखमली बुर के एहसाह का अता पता न था परंतु जहा वह था वह सोनू के कठोर हाथों से लाख दर्जे अच्छा था…

उधर कमरे में सोनू की धौंकनी जैसी चल रही सांसों से सुगना ने उसके स्खलन का अंदाजा लगा लिया… और उसके उछलते और वीर्य वर्षा करते लंड की कल्पना कर मदहोश होने लगी.. उसे पुराने दिन याद आने लगी जब वह सरयू सिंह के उछलते हुए लंड को अपने छोटे हाथों से पकड़ने का प्रयास करती परंतु असफल रहती और लंड एक जिंदा मछली की भांति सुगना के हाथों से कभी छूटता वह उसे फिर पकड़ती परंतु खुद को श्वेत धवल वीर्य से भीगने से न रोक पाती।

इन उत्तेजक यादों ने और सोनू के इस स्खलन की कामुक कल्पना ने सुगना को स्खलन की कगार पर ला दिया…

इधर सूरज सुगना की स्थिति से अनजान अभी दूध की तलाश में था उसने सुगना की चुचियों पर अचानक अपने दांतो का दबाव बढ़ा दिया और सुगना कराह उठी "बाबू……. तनी धीरे से दुखाता"

सुगना स्वयं अपनी मादक कराह से अतिउत्तेजित हो गई…


सुगना ने अपनी जांघें अपने पेट से सटाने की कोशिश की और सूरज का पैर उसकी भग्नासा पर छूने लगा। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसकी जांघें ऐंठने लगी पेट में हल्की मरोड़ हुई और सुगना की बुर ने संकुचन प्रारंभ कर दिए..प्रेमरस छलकने लगा…अतृप्त सुगना तृप्त हो रही थी सूरज, सुगना की चुचियों से दूध लाने में नाकामयाब रहा पर उसने अनजाने में ही सुगना को प्रेमरस से भर दिया था जो इस समय उसकी जांघों के बीच मुस्कुराती करिश्माई बूर से रिस रहा था..

सुगना ने सूरज को खुद से अलग किया और बोला

बाबू ….अब बस हो गईल.

स्खलन का सुख अनूठा होता है …घर के तीनों युवा सोनू, सुगना और लाली यह महसूस कर रहे थे परंतु सोनू के मन में सुगना के खिड़की पर ना आने की कसक रह गई थी।


उसी दौरान सोनी और बच्चों के आने की आहट हुई

लाली घबरा गई और आनन-फानन में अपना सूट उल्टा पहन कर कमरे से बाहर निकल गई। वह सीधा बाथरूम में घुस गई। ऊपर वाले का लाख-लाख शुक्र था सोनी ने लाली को सोनू के कमरे से निकलते देखा तो जरूर परंतु वह लाली के उल्टा सूट पहनने को देख ना पाई।

सोनू ने बेमन से अपनी बनियान और लुंगी पहनी और बिस्तर पर लेट कर पंखे को देखने लगा जो बेहद तेजी से घूम रहा था सोनू को अपनी जिंदगी भी इसी तेजी से घूमती प्रतीत हो रही जितने उम्मीदें और सपने वह संजो कर आया था वह टूट रहे थे…

सोनू ने अपने मन में जितनी कल्पनाएं की थी आज कुदरत ने उसका साथ न दिया था। सुगना को दिखाकर लाली को बेहद उत्तेजक तरीके से चोदने की उसकी योजना नाकामयाब रही थी। सुगना का खिड़की पर ना आना सोनू की कल्पना पर एक कुठाराघात जैसा था।

सोनी बाजार से समोसे लेकर आई थी जैसे ही वह सोनू को समोसा देने के लिए उस कमरे में गई …कमरे में फैली काम रस की सुगंध उसके नथुनो से टकराई। अब तक सोनी इस सुगंध से भलीभांति वाकिफ हो चुकी थी परंतु सोनू भैया के कमरे से इस सुगंध का आना सोनी को आश्चर्यचकित कर रहा था क्या सोनू भैया ने हस्तमैथुन किया था?? सोनी इससे ज्यादा न सोच पाई।

सोनू ने जो किया था जो कर रहा था और जो सोच रहा था वह सोनी ख्वाबों में भी नहीं सोच सकती थी वह उस सुगंध को नजरअंदाज कर समोसे निकालने लगी। उसने वहीं से सुगना और लाली को भी आवाज दी और कुछ ही देर में सोनू अपनी तीनों बहनों के साथ समोसे खाने लगा। सब आपस में बातें कर रहे थे पर जो सबसे ज्यादा बातें करते थे वह दोनों चुप थे। सोनू सुगना एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे थे।

अपने अवचेतन मन में किए गए इस कामुक अपराध से दोनों भाई बहन ग्रस्त थे खासकर सुगना।

सोनू उदास होकर बाहर घूमने चला गया और सोनू की बहने एक बार फिर सोनू के लिए शाम का खाना बनाने में लग गई।


सोनी को बच्चों के साथ खेलने में ज्यादा मजा आता था वह एक बार फिर बच्चों के बीच आ गई और लाली एवं सुगना रसोई में खाना बनाने लगी। सोनी के विकास को याद किया और एक बार फिर उसने प्यारे सूरज के अंगूठे को सहला दिया….और फिर क्या ...सूरज अपनी मौसी के बाल खींच कर …….उसके होंठो को सही जगह ले आया। सोनी खुश थी …जिस दंड को उसने स्वयं चुना था वो उसका आनंद लेने लगी..

रसोई में सुगना ने लाली को छेड़ा और बोला

" तोरा एकदम लाज ना लागेला आज राखी के दिन रहे ते आजो सोनूवा के परेशान कईले हा.."

"अरे वाह ढेर अपना भाई के पक्ष मत ले। हम परेशान कईनी हां? आज त उहे ढेरे बेचैन रहे एकदम थका देले बा"

"ई काहे…?" सुगना में मासूमियत से पूछा

सोनू के साथ संभोग के दौरान लाली ने जान लिया था सोनू के मन में सुगना के प्रति कुछ ना कुछ कामुक भावनाएं अवश्य थीं । उसे इस बात का अंदाजा न था कि पिछली बार सोनू और सुगना की नजरें उस कामुक संभोग के दौरान मिल चुकी थी।

जब जब सुगना का नाम आता सोनू का मन प्रफुल्लित हो उठता और सोनू की पकड़ में एक अद्भुत कसाव आ जाता। यह अंतर लाली स्पष्ट रूप से महसूस कर पा रही थी। उसने एक दो नहीं अपितु कई बार सुगना का नाम लेकर सोनू को उत्तेजित करने में मदद की थी और उसका असर बखूबी धक्कों की रफ्तार उसके लंड की उछाल के रूप में महसूस किया था..

"अब तू टाइट सूट में मटक मटक के ओकरा सामने घुमाबु दे त का करी?"

"हट पागल कुछो बोलेले?

"आज ते आईल रहते द बड़का सिनेमा देखे के मिलीत। आज सोनू पूरा जोश में रहे"

"इ काहे…?"

" अनजान बनत बाड़े..आज राखी बांधत खानी आपन चूची काहे देखावत रहले..हमरा लगता तबे से गरमाइल रहे"

सुगना इस बात का बखूबी एहसास था और अब लाली ने वह बात कहकर सुगना को निशब्द कर दिया था..

सुगना ने लाली की पीठ पर मुक्का मारा और शरमाते हुए बोली ..

"हम काहे करब लाली सोनुआ हमर आपन भाई ह"

"ई हे त दुख बा…. काश सोनुआ तोर भाई ना होखित"

लाली का यह वाक्य सुगना के दिमाग में अब अक्सर गूंजने लगा था हकीकत को झुठला पाना इतना आसान न था परंतु कल्पनाओं का क्या उन पर तो सिर्फ मन का नियंत्रण होता है मन अपनी इच्छा और भावनाओं के अनुसार कल्पनाए संजोता है. सुगना की कल्पनाएं भी एक नई दिशा ले रही थीं।

अजीब कशमकश थी सूचना के मन में भी और सोनू के मन में भी परंतु दोनों के बीच जमी बर्फ रक्षाबंधन के इस त्यौहार ने और जमा दिया था… जिसका टूटना इतना आसान न था.

सोनू और लाली ने रात में एक बार फिर संभोग किया और लाली ने सोनू को उत्तेजित करने के लिए सुगना के नाम का बार बार प्रयोग किया सोनू भी सुगना के बारे में बातें कर अपनी कल्पना को आकार देता उसकी नग्न छवि को मन में संजोता और लाली को चोद कर अपने मन में उपज रही इस अनोखी वासना को शांत करने का प्रयास करता.. परंतु सुगना की उपस्थिति में लाली को चोदने का जो सुख उसे उस दिन प्राप्त हुआ था वह यादगार था और सोनू उस उत्तेजना के लिए तरस रहा था..





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उधर लखनऊ में एक शासकीय बंगले में काफी गहमागहमी थी घर के बाहर सिक्युरिटी वाले इकट्ठा हो चुके थे …अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थी.

एक सिक्युरिटी वाले ने कहा…

साहब मेम साहब पर फालतू बिगड़ते रहते हैं आज तो हद ही हो गई है क्या हम लोगों को अंदर जाना चाहिए

नौकरी से हाथ धोना है क्या? उनकी लड़ाई में दखल देना ठीक नहीं । दोनों पति पत्नी हैं जल्द ही शांत हो जाएंगे।

सिक्युरिटी वालों ने अंदर जाने की हिम्मत तो ना जुटाई परंतु दरवाजे से अपने कान सटा दिए…

"साली तू जितनी शरीफ दिखती है उतनी है नहीं न जाने कहां-कहां मुंह मारी होगी?"

वरिष्ठ अधिकारी से इस तरह की भाषा की उम्मीद कतई नहीं की जा सकती परंतु मनुष्य स्वभाव से जंगली होता है और आज यह जानने के पश्चात की मनोरमा ने किसी और के साथ भी संभोग किया था सेक्रेटरी साहब पूरी तरह आग बबूला थे।

मनोरमा का भी गुस्सा आसमान पर था.

हां मैंने किया है पर मैं रंडी नहीं हूं खबरदार जो मेरे बारे में अपशब्द कहा…

"तो मुझे बता ….पिंकी का पिता कौन है"

"क्यों आपको यकीन नहीं कि आप इसके पिता हैं?"

"पहेलियां मत बुझा साली मुझे पता है यह बीज तुम्हारे पाप का है" सेक्रेटरी साहब ने दांत पीसते हुए कहा..

"तुम्हें कैसे पता" मनोरमा के संबोधन भी अब सम्मान की भाषा छोड़ चुके थे।

सेक्रेटरी साहब ने कागज मनोरमा की तरफ उछालते हुए कहा..

"ये देख लो अपनी करतूत…"

मनोरमा ने वह रिपोर्ट उठाई और उसे सारा माजरा समझ में आ गया।

उसने पिंकी को देखा और उसके पास गई तथा उसे गोद में लेकर चूम लिया। जैसे वो अपने व्यभिचार से जन्मी पुत्री को मान्यता दे रही हो।

"हा यह आपकी पुत्री नही है…और एसी सुंदर बच्ची तुम्हारे जैसे नामर्द की हो भी नहीं सकती"

पिंकी वास्तव में एक खूबसूरत बच्ची थी फूल सी कोमल और चेहरे पर ढेर सारा प्यार लिए। मनोरमा की खूबसूरती और सरयू सिंह के तेज को संजोए हुए यह बच्ची अनोखी थी सबका दिल जीतने वाली और मन मोहने वाली।


मनोरमा की बात सुनकर सेक्रेटरी साहब भड़क गए और दनदनाते हुए कमरे से बाहर निकलने लगे।

बाहर दरवाजे पर कान लगाए सिक्युरिटी वाले तुरंत ही सावधान की मुद्रा में आ गए और सेक्रेटरी साहब को बड़ी तेजी से बाहर की तरफ जाते हुए देख रहे थे। बॉडीगार्ड ने दरवाजा खोला और सेक्रेटरी साहब अपना गुस्से से लाल चेहरा लिए एंबेसडर में बैठकर आगे बढ़ चले। शायद उन्होंने मन ही मन मनोरमा के साथ न रहने का फैसला कर लिया था।

मनोरमा पिंकी को गोद में लेकर चूम रही थी आज पिंकी के प्रति उसके प्यार में दोगुनी वृद्धि हो गई। यह जानने के पश्चात कि वह सरयू सिंह का अंश थी मनोरमा बेहद भावुक हो गई । सरयू सिंह के साथ किया गया उसका अकस्मात हुआ संभोग उसके जीवन की न भूलने वाली घटना थी। उत्तेजना को चरम पर ले जाकर स्खलित करने का जो सुख सरयू सिंह ने उसे दिया था वह आज तक उसे नहीं भूल थी। वो उस दिन को याद करने लगी…


बनारस महोत्सव के उस मंगल दिन वह बनारस महोत्सव के अपने कमरे में शरीर पोछने के बाद आ चुकी थी। उसकी नग्न सुंदर और सुडौल काया चमक रही थी। उसकी कद काठी सुगना से मिलती जुलती थी, पर शरीर का कसाव अलग था। उसका शरीर बेहद कसा हुआ था। शायद उसे मर्द का सानिध्य ज्यादा दिनों तक प्राप्त ना हुआ था और जो हुआ भी था उसकी काम पिपासा बुझा पाने में सर्वथा अनुपयुक्त था।

पूर्व भाग से पुनः मनोरंजन हेतु उद्धृत


"उसने जैसे ही आगे झुक कर अपना पेटीकोट उठाने की कोशिश की सरयू सिह ने दरवाजे पर एक हल्का सा धक्का लगा और दरवाजा खुल गया जो सुगना को खोजते हुए अंदर आ गए…

जब तक मनोरमा पीछे मुड़ कर देख पाती बनारस महोत्सव के उस सेक्टर की बिजली अचानक ही गुल हो गई।

परंतु इस एक पल में सरयू सिंह ने उस दिव्य काया के दर्शन कर लिए। चमकते बदन पर पानी की बच गई बूंदे अभी भी विद्यमान थीं ।

उधर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना घूम रही थी। सुगना ने संभोग से पहले स्नान किया यह बात सरयू सिंह को भा गई। उन्होंने मन ही मन निर्णय कर लिया कि वह वह आज उसकी बूर को चूस चूस कर इस स्खलित कर लेंगे और फिर उसके दूसरे छेद का जी भर कर आनंद लेंगे।

कमरे में घूप्प अंधेरा हो चुका था सरयू सिंह धीरे-धीरे आगे बढ़े और अपनी सुगना की जगह मनोरमा को पीछे से जाकर पकड़ लिया। क्योंकि कमरे में अंधेरा था उन्होंने अपना एक हाथ उसकी कमर में लगाया और दूसरी हथेली से सुगना के मुंह को बंद कर दिया ताकि वह चीख कर असहज स्थिति न बना दे।

मनोरमा ने सरयू सिंह की धोती देख ली थी। जब तक कि वह कुछ सोच पाती सरयू सिंह उसे अपनी आगोश में ले चुके थे। वह हतप्रभ थी और मूर्ति वत खड़ी थी। सरयू सिंह उसका मुंह दबाए हुए थे तथा उसके नंगे पेट पर हाथ लगाकर उसे अपनी ओर खींचे हुए थे।

अपने नितंबों पर सरयू सिंह के लंड को महसूस कर मनोरमा सिहर उठी। उधर सरयू सिंह को सुगना की काया आज अलग ही महसूस हो रही थी अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने अपनी हथेली को सुगना की चुचियों पर लाया और उनका शक यकीन में बदल गया यह युवती निश्चित ही सुगना नहीं थी। चुचियों का कसाव चीख चीख कर कह रहा था कि वह सुगना ना होकर कोई और स्त्री थी।

सरयू सिंह की पकड़ ढीली होने लगी उन्हें एक पल के लिए भी यह एहसास न था कि जिस नग्न स्त्री को वह अपनी आगोश में लिए हुए हैं वह उनकी एसडीएम मनोरमा थी। अपने नग्न शरीर पर चंद पलों के मर्दाना स्पर्श ने मनोरमा को वेसुध कर दिया था। इससे पहले कि सरयू सिंह उसकी चुचियों पर से हाथ हटा पाते मनोरमा की हथेलियों ने सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी चुचियों पर वापस धकेल दिया। मनोरमा कि इस अदा से सरयू सिंह बेहद उत्तेजित हो गए। स्त्री शरीर की उत्तेजना और हाव-भाव से सरयू सिंह स्त्री की मनो स्थिति भांप लेते थे उन्होंने मनोरमा के कानों को चूम लिया और अपनी दोनों हथेलियों से उसकी चुचियों को सहलाने लगे।

प्रणय निवेदन मूक होता है परंतु शरीर के कामुक अंग इस निवेदन को सहज रूप से व्यक्त करते हैं। विपरीत लिंग उसे तुरंत महसूस कर लेता है।


मनोरमा की गर्म सांसे, तनी हुई चूचियां , और फूल चुके निप्पल मनोरमा की मनोस्थिति कह रहे थे। और मनोरमा की स्थिति जानकर सरयू सिंह का लण्ड उसके नितंबों में छेद करने को आतुर था।

सरयू सिंह एक हाथ से मनोरमा की चूँचियों को सहला रहे थे तथा दूसरे हाथ से बिना किसी विशेष प्रयास के अपने अधोभाग को नग्न कर रहे थे।

उनका लण्ड सारी बंदिशें तोड़ उछल कर बाहर आ चुका था। उन्होंने शर्म हया त्याग कर अपना लण्ड मनोरमा के नितंबों के नीचे से उसकी दोनों जांघों के बीच सटा दिया। मनोरमा उस अद्भुत लण्ड के आकार को महसूस कर आश्चर्यचकित थी। एक तो सरयू सिंह का लण्ड पहले से ही बलिष्ठ था और अब शिलाजीत के असर से वह और भी तन चुका था। लण्ड पर उभर आए नसे उसे एक अलग ही एहसास दिला रहे थे। मनोरमा ने अपनी जाँघे थोड़ी फैलायीं और वह लण्ड मनोरमा की जांघो के जोड़ से छूता हुआ बाहर की तरफ आ गया।

मनोरमा ने एक बार फिर अपनी जांघें सिकोड़ लीं। सरयू सिह के लण्ड का सुपाड़ा बिल्कुल सामने आ चुका था। मनोरमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और अपने हाथ नीचे की तरफ ले गई । सरयू सिंह के लण्ड के सुपारे को अपनी उंगलियों से छूते ही मनोरमा की चिपचिपी बुर ने अपनी लार टपका दी जो ठीक लण्ड के फूले हुए सुपाड़े पर गिरी

मनोरमा की उंगलियों ने सरयू सिंह के सुपाडे से रिस रहे वीर्य और अपनी बुर से टपके प्रेम रस को एक दूसरे में मिला दिया और सरजू सिंह के लण्ड पर मल दिया मनोरमा की कोमल उंगलियों और चिपचिपे रस से लण्ड थिरक थिरक उठा। मनोरमा को महसूस हुआ जैसे उसने कोई जीवित नाग पकड़ लिया जो उसके हाथों में फड़फड़ा रहा था।

यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। जिस सुंदर और नग्न महिला को अपनी बाहों में लिए उसे काम उत्तेजित कर रहे थे वह उनकी भाग्य विधाता एसडीएम मनोरमा थी सरयू सिंह यह बात भली-भांति जान चुके थे परंतु अब वह उनके लिए एसडीएम ना होकर एक काम आतुर युवती थी जो अपने हिस्से का सुख भोगना चाहती थी। अन्यथा वह पलट कर न सिर्फ प्रतिकार करती अपितु छिड़ककर उन्हें उनकी औकात पर ला देती।

जिस मर्यादा को भूलकर सरयू सिंह और मनोरमा करीब आ चुके अब उसका कोई अस्तित्व नहीं था। प्रकृति की बनाई दो अनुपम कलाकृतियां एक दूसरे से सटी हुई प्रेमालाप में लगी हुई थीं। धीरे धीरे मनोरमा सरयू सिंह की तरफ मुड़ती गई और सरयू सिंह का लण्ड उसकी जांघों के बीच से निकलकर मनोरमा के पेट से छूने लगा। सरयू सिंह ने इसी दौरान अपना कुर्ता भी बाहर निकाल दिया। मनोरमा अब पूरी तरह सरयु सिंह से सट चुकी थी। सरयू सिंह की बड़ी-बड़ी हथेलियों ने मनोरमा के नितंबों को अपने आगोश में ले लिया था। और वह उसे बेतहाशा सहलाए जा रहे थे।

उनकी उंगलियों ने उनके अचेतन मस्तिष्क के निर्देशों का पालन किया और सरयू सिंह ने न चाहते हुए भी मनोरमा की गांड को छू लिया। आज मनोरमा कामाग्नि से जल रही थी। उसे सरयू सिंह की उंगलियों की हर हरकत पसंद आ रही थी। बुर से रिस रहा कामरस सरयू सिंह की अंगुलियों तक पहुंच रहा था। मनोरमा अपनी चुचियों को उनके मजबूत और बालों से भरे हुए सीने पर रगड़ रही थी। सरयू सिंह उसके गालों को चुमे में जा रहे थे।


गजब विडंबना थी जब जब सरयू सिंगर का ध्यान मनोरमा के ओहदे की तरफ जाता वह घबरा जाते और अपने दिमाग में सुगना को ले आते। कभी वह मनोरमा द्वारा सुबह दिए गए पुरस्कार की प्रतिउत्तर में उसे जीवन का अद्भुत सुख देना चाहते और मनोरमा को चूमने लगते परंतु मनोरमा के होठों को छु पाने की हिम्मत वह अभी नहीं जुटा पा रहे थे। मनोरमा भी आज पुरुष संसर्ग पाकर अभिभूत थी। वह जीवन में यह अनुभव पहली बाहर कर रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह वशीभूत हो चुकी थी। वह अपने होठों से सरयू सिंह के होठों को खोज रही थी। मनोरमा धीरे धीरे अपने पंजों पर उठती चली गई और सरयू सिंह अपने दोनों पैरों के बीच दूरियां बढ़ाते गए और अपने कद को घटाते गए।

जैसे ही मनोरमा के ऊपरी होठों ने सरयू सिह के होठों का स्पर्श प्राप्त हुआ नीचे सरयू सिंह के लंड में उसकी पनियायी बूर् को चूम लिया। मनोरमा का पूरा शरीर सिहर उठा।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी तरफ खींचा और मनोरमा ने अपना वजन एक बार फिर अपने पैरों पर छोड़ती गई और सरयू सिह के मजबूत लण्ड को अपने बुर में समाहित करती गयी।

मनोरमा की बुर का अगला हिस्सा पिछले कई वर्षों से प्रयोग में आ रहा था उसने सरयू सिंह के सुपारे को थोड़ी मुश्किल से ही सही परंतु लील लिया। सरयू सिंह ने जैसे ही अपना दबाव बढ़ाया मनोरमा चिहुँक उठी।

सरयू सिंह मनोरमा को बिस्तर पर ले आए और उसकी जाँघे स्वतः ही फैलती गई सरयू सिंह अपने लण्ड का दबाव बढ़ाते गए और उनका मजबूत और तना हुआ लण्ड मनोरमा की बुर की अंदरूनी गहराइयों को फैलाता चला गया।

मनोरमा के लिए यह एहसास बिल्कुल नया था। बुर के अंदर गहराइयों को आज तक न तो मनोरमा की उंगलियां छु पायीं थी और न हीं उसके पति सेक्रेटरी साहब का छोटा सा लण्ड। जैसे जैसे जादुई मुसल अंदर धँसता गया मनोरमा की आंखें बाहर आती गयीं। मनोरमा ने महसूस किया अब वह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाएगी उसने अपनी कोमल हथेलियों से सरयू सिंह को दूर करने की कोशिश की।

सरयू सिंह भी अपने लण्ड पर मनोरमा की कसी हुई बुर का दबाव महसूस कर रहे थे उन्होंने कुछ देर यथा स्थिति बनाए रखी और मनोरमा के होठों को छोड़कर अपने होंठ उसके तने हुए निप्पल से सटा दिए।

सरयू सिंह के होठों के कमाल से मनोरमा बेहद उत्तेजित हो गई उनकी हथेलियां मनोरमा की कोमल जाँघों और कमर और पेड़ू को सहला रही थी जो उनके लण्ड को समाहित कर फूल चुका था।

जैसे-जैसे मनोरमा सहज होती गयी सरयू सिह का लण्ड और अंदर प्रवेश करता गया। मनोरमा के मुख से चीख निकल गई उसने पास पड़ा तकिया अपने दांतो के बीच रखकर उसे काट लिया परंतु उस चीख को अपने गले में ही दबा दिया। उधर लण्ड के सुपारे ने गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश की इधर सरयू सिंह के पेड़ूप्रदेश ने मनोरमा की भग्नासा को छू लिया। मिलन अपनी पूर्णता पर आ चुका था भग्नासा पर हो रही रगड़ मनोरमा को तृप्ति का एहसास दिलाने लगी ।

मनोरमा की कसी हुई बुर का यह दबाव बेहद आनंददायक था। सरयू सिंह कुछ देर इसी अवस्था में रहे और फिर मनोरमा की चुदाई चालू हो गई।


जैसे-जैसे शरीर सिंह का का लण्ड मनोरमा के बुर में हवा भरता गया मनोरंम की काम भावनाओं का गुब्बारा आसमान छूता गया। बुर् के अंदरूनी भाग से प्रेम रस झरने की तरह पर रहा था और यह उस मजबूत मुसल के आवागमन को आसान बना रहा था।

सरयू सिंह पर तो शिलाजीत का असर था एक तो उनके मूसल को पहले से ही कुदरत की शक्ति प्राप्त थी और अब उन्होंने शिलाजीत गोली का सहारा लेकर अपनी ताकत दुगनी करली थी । मनोरमा जैसी काम सुख से अतृप्त नवयौवना उस जादुई मुसल का संसर्ग ज्यादा देर तक न झेल पाई और उसकी बुर् के कंपन प्रारंभ हो गए।

सरयू सिंह स्त्री उत्तेजना का चरम बखूबी पहचानते थे और उसके चरम सुख आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते थे उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार में आशातीत वृद्धि कर दी और मनोरमा की चुचियों को चूसने लगे। वह मनोरमा की चुचियों से दूध तो नहीं निकाल पर उनकी सारी मेहनत का फल मनोरमा के बूर् ने दे दिया। मनोरमा झड़ रही थी और उसका शरीर में निढाल पढ़ रहा था।

इसी दौरान बनारस महोत्सव के आयोजन कर्ताओं ने बिजली को वापस लाने का प्रयास किया और कमरे में एक पल के लिए उजाला हुआ और फिर अंधेरा कायम हो गया। बिजली का यह आवागमन आकाशीय बिजली की तरह ही था परंतु सरयू सिंह ने स्खलित होती मनोरमा का चेहरा देख लिया। और वह तृप्त हो गए। मनोरमा ने तो अपनी आंखें बंद की हुई थी परंतु उसे भी यह एहसास हो गया की सरयू सिंह ने उसे पूर्ण नग्न अवस्था में देख लिया है। परंतु मनोरमा अब अपना सर्वस्व न्योछावर कर चुकी थी। उसके पास अब कुछ न कुछ छुपाने को था न दिखाने को।

सरयू सिंह ने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया और मनोरमा के वापस जागृत होने का इंतजार करने लगे। मनोरमा को अपना स्त्री धर्म पता था। जिस अद्भुत लण्ड में उसे यह सुख दिया था उसका वीर्यपात कराना न सिर्फ उसका धर्म था बल्कि यह नियति की इच्छा भी थी। मनोरमा अपने कोमल हाथों से उस लण्ड से खेलने लगी। कभी वह उसे नापती कभी अपनी मुठियों में भरती। अपने ही प्रेम रस से ओतप्रोत चिपचिपे लण्ड को अपने हाथों में लिए मनोरमा सरयू सिंह के प्रति आसक्त होती जा रही थी। सरयू सिंह के लण्ड में एक बार फिर उफान आ रहा था। उन्होंने मनोरमा को एक बार फिर जकड़ लिया और उसे डॉगी स्टाइल में ले आए।

सरयू सिंह यह भूल गए थे कि वह अपने ही भाग्य विधाता को उस मादक अवस्था में आने के लिए निर्देशित कर रहे थे जिस अवस्था में पुरुष उत्तेजना स्त्री से ज्यादा प्रधान होती है। अपनी काम पिपासा को प्राप्त कर चुकी मनोरमा अपने पद और ओहदे को भूल कर उनके गुलाम की तरह बर्ताव कर रही थी। वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गयी और अपने नितंबों को ऊंचा कर लिया । सरयू सिंह अपने लण्ड से मनोरमा की बुर का मुंह खोजने लगे। उत्तेजित लण्ड और चिपचिपी बूर में चुंबकीय आकर्षण होता है।

उनका लंड एक बार फिर मनोरमा की बूर् में प्रवेश कर गया। अब यह रास्ता उनके लण्ड के लिए जाना पहचाना था। एक मजबूत धक्के में ही उनके लण्ड ने गर्भाशय के मुख हो एक बार फिर चूम लिया और मनोरमा ने फिर तकिए को अपने मुह में भर लिया। वाह चीख कर सरयू सिंह की उत्तेजना को कम नहीं करना चाहती थी।

लाइट के जाने से बाहर शोर हो रहा था। वह शोर उन्हें मनोरमा को चोदने के लिए उत्साहित कर रहा था।

सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ रही थी। बिस्तर पर जो फूल व सुगना के लिए लाए थे वह मनोरमा के घुटनों और हाथ द्वारा मसले जा रहे थे। फूलों की खुशबू प्रेम रस की खुशबू के साथ मिलकर एक सुखद एहसास दे रही थी।


सरयू सिंह कभी मनोरमा की नंगी पीठ को चूमते कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसके दोनों चुचियों को मीसते हैं कभी उसके बालों को पकड़कर मन ही मन एक घुड़सवार की भांति व्यवहार करते। अपने जीवन की इस विशेष उत्तेजना का मन ही मन आनंद लेते लेते सरयू सिंह भाव विभोर हो गए।

इधर मनोरमा दोबारा स्खलन की कगार पर पहुंच चुकी थी। मनोरमा के बूर की यह कपकपाआहट बेहद तीव्र थी। सरयू सिंह मनोरमा को स्खलित कर उसकी कोमल और तनी हुई चुचियों पर वीर्यपात कर उसे मसलना चाह रहे थे। बुर् की तेज कपकपाहट से सरयू सिंह का लण्ड अत्यंत उत्तेजित हो गया और अंडकोष में भरा हुआ वीर्य अपनी सीमा तोड़कर उबलता हुआ बाहर आ गया। मनोरमा के गर्भ पर वीर्य की पिचकारिया छूटने लगीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था बरसों से प्यासी धरती को सावन की रिमझिम में बूंदे भीगों रही थी। मनोरमा की प्यासी बुर अपने गर्भाशय का मुंह खोलें उस वीर्य को आत्मसात कर तृप्त तो हो रही थी।

मनोरमा अपने मन में सरयू सिंह के छैल छबीले चेहरे और बलिष्ठ शरीर की छवि को बसाये हए अपने गर्भाशय में हो रहे वीर्य पात के अद्वितीय अनुभव को महसूस कर रही थी।"



नियति मुस्कुरा रही थी कहानी का एक प्रमुख पात्र पिंकी के रूप में सृजित हो चुका था…..

शेष अगले भाग में...
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#90
मस्त कहानी। प्लीज अपडेट।
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#91
भाग 83




भाग 83

मनोरमा की दास्तान सुनने के बाद आइए जरा रतन का हाल चाल ले लेते है…फिर हम सब की प्यारी सुगना के पास चलेंगे…



रतन अपनी मेहनत और लगन से धीरे-धीरे विद्यानंद के आश्रम में अपनी जगह बनाता जा रहा था। परंतु रतन वैराग्य को पूरी तरह अपना नहीं पाया था। आश्रम की युवा महिलाओं को देखकर उसमें अभी भी खुशी की लहर दौड़ जाती।

सुगना के समक्ष उसका पुरुषत्व तार-तार हो चुका था परंतु वह यह बात मानने को तैयार न था। और रतन ने आखिर एक दिन अपने पुरुषत्व का परीक्षण कर लिया..

आश्रम की एक महिला से उसने कामुक संबंध बना लिए जिस की खबर विद्यानंद तक भी पहुंच गई..

विद्यानंद ने उसे मुख्य आश्रम से हटाकर एक विशेष आश्रम में स्थानांतरित कर दिया अब वह जिस आश्रम का वह निर्माण कार्य देख रहा था उसका औचित्य तो उसे पता न था परंतु वह आश्रम एक विलक्षण तरीके से बनाया जा रहा था।

एक खूबसूरत हॉल में 5 x 5 फीट के कई सारे कूपे पर बने हुए थे। इस कूपे में जाने के 2 दरवाजे थे एक आगे से और एक पीछे से।

कूपे की ऊंचाई लगभग 7 फीट की थी। पिछले दरवाजे से प्रवेश करने पर आने वाला व्यक्ति कूपे में बने लगभग 2 फीट बाई 2 फीट के चबूतरे पर आ जाता उसका सर तथा कंधा उस कूपे के बाहर आ जाता। कूपे का ऊपरी भाग कपड़े से बनाया गया था। चबूतरे पर खड़ा व्यक्ति अपने हाथ अपने कंधे के समानांतर करता और कूपे का ऊपरी भाग का कपड़ा दोनों किनारों से पास आता और उसके शरीर के ऊपरी भाग को छोड़कर उसके ऊपर की छत को पूरी तरह ढक लेता।

रतनू ने एक कूपे की जांच करनी चाहिए वह पिछले दरवाजे से कूपे के अंदर घुस 2 फीट X 2 फीट के चबूतरे पर आया और दोनों हाथ पूरी तरह फैला दी जो उस कूपे की बाहरी दीवारों पर जाकर टिक गए। कूपे की दीवाल पर बने लाल बटन को दबाते ही दोनों तरफ से कपड़े की एक परत स्लाइड करती हुई आई और उसके सीने को घेर लिया और कूपे को एक छत का रूप दे दिया। कपड़े ने रतन के शरीर को दो हिस्सों में बांट दिया थासीने से उपर और सीने से नीचे..

कूपे के ऊपर रतन का सिर्फ सर और दो मजबूत भुजाएं ही दिखाई दे रही थी उस कपड़े की छत के नीचे उसका सारा शरीर था। परंतु रतन अपने शरीर को देख पाने में अक्षम था।

उसी समय सामने के दरवाजे से रतन के असिस्टेंट ने उसी कूपे में अंदर प्रवेश किया। कूपे में आने के बाद उस असिस्टेंट ने रतन के शरीर का सीने से लेकर पैर तक के भाग को देखा उसे न तो रतन का चेहरा दिखाई पड़ रहा था और नहीं उसके गले का ऊपरी भाग।

कूपे का निर्माण दिशानिर्देशों के अनुरूप ही बनाया गया था।

असिस्टेंट ने बाहर आकर रतन से कहा…

सर बिल्कुल सही बना है.. मुझे आपका चेहरा और ऊपरी भाग नहीं दिखाई पड़ रहा है.

परंतु यह कूपा क्यों बनाया जा रहा है..?

इस प्रश्न का उत्तर रतन स्वयं नहीं जानता था वह तो विद्यानंद के करीबी अपने गुरु के आदेश अनुसार अनुसार इस विशाल कक्ष और उसके अंदर इस प्रकार के कई कूपों का निर्माण करा रहा था जो अब धीरे-धीरे समापन की तरफ बढ़ रहा था. यह कूपा रतन और उसके परिवार के लिए बेहद अहम था परंतु रतन इस बात से अनजान था।

आइए अब रतन को ( और पाठकों को भी) उसके प्रश्नों के साथ छोड़ देते हैं और वापस सुगना और लाली के पास चलते हैं जहां सोनू के हाथों से सुगना फिसलती जा रही थी…




##



रक्षाबंधन का अगला दिन भी यूं ही बीत गया। सोनू और लाली ने एक बार फिर उसी कमरे में संभोग किया और इस बार भी सुगना ना आई.. ।

शाम होते-होते सोनू के चेहरे पर उदासी छा गई। ऐसा लग रहा था जैसे उसने सुगना को लेकर अपनी अतृप्त इच्छाओं की जो तस्वीर बनाई थी वह सुगना के व्यक्तित्व और मर्यादा की भेंट चढ़ गई थी। सोनू सोच रहा था…

क्या.. सुगना दीदी के मन में कोई भी कामुक भाव न थे? क्या उनके जीवन में वासना का कोई स्थान न था?

पर यदि ऐसा ही था तो वह क्यों उसका और लाली का मिलन देखने खिड़की पर आई थी? जीजू के जाने के बाद वह आज भी सज धज कर क्यों रहती थी? सूट के साथ जालीदार ब्रा और पेंटी को दीदी ने क्यों स्वीकार किया था? सोनू के प्रश्न जायज थे परंतु सही उत्तर तक पहुंच पाना सोनू के लिए कठिन हो रहा था।

सोनू सुगना के साथ हुए कामुक अब तक हुए कामुक घटनाक्रमों के बारे में सोचने लगा । जब सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को अतृप्त युवती के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं सुगना के कामुक रूप को और उजागर करती जब वह सुगना को अपनी बड़ी और मर्यादित बहन के रूप में देखता उसे सारी घटनाएं स्वाभाविक लगती वह कंधे से दुपट्टा गिर कर उसकी चुचियों का दिख जाना उसका खिड़की पर आना और न जाने क्या क्या..

पिछले कुछ महीनों में अपनी वासना के आधीन होकर सोनू ने सुगना के अतृप्त युवती वाले रूप को जेहन में बसा लिया था परंतु सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यवहार सोनू की सोच पर अंकुश लगा रहा था ..

शाम होते होते सोनू ने अपने कल वापस जाने की घोषणा कर दी…

सुगना ने बेहद प्यार और आत्मीयता से कहा

"अरे सोनू बाबू एक-दो दिन और रुक जा तब जईहा"

लाली सोनू का मर्म समझ रही थी अब तक वह यह भली-भांति जान चुकी थी कि सोनू सुगना के नाम से अब उत्तेजित होता था उस ने मुस्कुराते हुए कहा…

"तोहार दीदी तहार अपना ख्याल रखिए मानजा उनकर बात.."

लाली के मजाक में सोनू ने उम्मीद की किरण ढूंढ ली और सोनू अगले दिन सुबह की बजाय शाम को जाने को तैयार हो गया। नियति मुस्कुरा रही थी और सोनू की उदासी दूर करने का प्रयास कर रही थी। परंतु सुगना उसे क्या पता था की सोनू को अपेक्षाएं बदल चुकी थी। भाई बहन के जिन कामुक संबंधो को वह पाप मानती थी और अपनी आत्मग्लानि पर विजय पाने के लिए लगातार अपने दिमाग से द्वंद्व करती रहती थी सोनू की अपेक्षाएं उसी दिशा में थीं।

सोनू का शारीरिक स्वास्थ्य और मजबूत लंड उसे सरयू सिंह की याद दिलाता और सरयू सिंह के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर सुगना भाव विभोर हो जाती जाने कब उस कल्पना में सोनू सरयू सिंह की जगह ले लेता और सुगना बेचैन हो उठती। वह बार-बार अपने विचारों में सरयू सिंह को याद करती परंतु जैसे सोनू उसके विचारों और दिमाग पर छाता चला जा रहा था। सुगना अचकचा कर उठ जाती और मुस्कुरा कर वापस फिर सोने का प्रयास करने लगती उसके सपनों में सोनू अपनी जगह बनाता जा रहा था।

अगली सुबह अगली सुबह सोनू के लिए बेहद अहम थी सारे बच्चे कॉलेज जा चुके थे और सोनी भी कॉलेज जा चुकी थी घर के छोटे बच्चे हॉल में खेल रहे थे।

सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ रसोई घर में खड़ा बातें कर रहा था तभी सुगना ने कहा..

" बाबूजी कहत रहले जा कि कई सारा लोग शादी ब्याह खाती आवत बा ऊ फोटो भेजले बाड़े केहू से आज लेके आई"

" हमरा अभी शादी नईखे करेके पहले ट्रेनिंग पूरा हो जाओ तब सोचब" सोनू ने स्पष्ट तौर पर अपनी बात रख दी.

" ठीक बा लड़की पसंद कर ले ब्याह बाद में करीहे …शादी ब्याह एक-दो दिन में थोड़ी होला "

सुगना ने अपनी बात को संजीदगी से रखने का प्रयास किया परंतु उसने सोनू का टेस्ट खराब कर दिया वह यहां कुछ और सोच कर आया था और हो कुछ और रहा था।

लाली ने सोनू का पक्ष लेते हुए बोला

"अरे अभी लईका बा तनी सयान होवे दे फिर ब्याह करिए काहे जल्दी आईल बाड़ू"

" हम देखले बानी कतना लईका बा …ढेरों ओकर पक्ष मत ले…." सुगना ने मुस्कुराते हुए यह बात बोल दी…दिमाग में यह बात बोलते समय उस दिन की तस्वीर आ गई जब सोनू लाली को अपने मजबूत लंड से चोद रहा था लाली ने उसकी मनोदशा तुरंत पढ़ ली और बोली..

"कहां बड़ भईल बा? अभियों त दिन भर दीदी दीदी कइले रहेला.."

सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।

सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..

लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला

"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा

"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।

परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…

सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

शाम को शाम को सोनू को वापस लखनऊ के लिए निकलना था।


क्या सुगना सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट देगी…या सोनू यूं ही विदा हो जाएगा…

शेष अगले भाग में

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#92
बहुत खूब।
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#93
भाग 84

भाग 84

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।


शाम को शाम को सोनू को वापस लखनऊ के लिए निकलना था।

क्या सुगना सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट देगी…या सोनू यूं ही विदा हो जाएगा


अब आगे…..

सुगना ने आज जब से सोनू का खड़ा और खूबसूरत लंड देखा था और तब से ही सुगना एक अजीब सी कशमकश में थी उसकी आंखों से वह दृश्य हट ही न रहा था। बाथरूम में नहाते समय जैसे ही सुगना निर्वस्त्र हुई उसकी आंखों के सामने हैंड पंप पर नहाता हुआ सोनू घूमने लगा। वासना की गिरफ्त में आ चुकी सुगना अपने भाई सोनू के चेहरे को भूलकर उसके खूबसूरत शरीर तथा खड़े लंड को याद करने लगी। उसके हाथ स्वतः ही शरीर के निचले भागों पर घूमने लगे…

बुर के होठों को सहलाते हुए सुगना को सरयू सिंह की वह बातें याद आ गई जब उन्होंने सुगना की फूली हुई बुर की तुलना मालपुए से की थी और तब से पुआ और सुगना की बुर दोनों पर्याय बन चुके थे। यह उपमा कजरी सरयू सिंह और सुगना इन तीनों के बीच ही थी.

सुगना ने अपना स्नान पूरा किया और बड़ी मुश्किल से अपनी वासना से पीछा छुड़ाकर जैसे ही वह हाल में आए सोनू की आवाज उसे सुनाई पड़ी ..

"हमारा तो सुगना दीदी के पुआ ही पसंद बा"

सुगना सिहर उठी…सोनू ने यह क्या कह दिया …पुआ शब्द सुनकर सुनकर सुगना के दिमाग में उसकी नहाई धोई फूली हुई बुर दिमाग में घूम गई…किसी व्यक्ति की कही गई बात का अर्थ आप अपनी मनोदशा के अनुसार निकालते हैं…

सोनू ने सुगना के हाथों द्वारा बनाए गए मीठे मालपुए की तारीफ और मांग की थी परंतु सुगना ने अपनी मनोदशा के अनुसार उसे अपनी अतृप्त बुर से जोड़ लिया था।

तभी सोनी बोली..

"सुगना दीदी के पुआ दूर से ही गमकेला …सरयू चाचा त दीवाना हवे दीदी के पुआ के …अब तो सोनू भैया भी हमेशा दीदी के पुआ खोजेले....सबेरे से पुआ पुआ कइले बाड़े"

सुगना सोनू की पसंद जानती थी…पर सोनू अब जिस पुए की तलाश में था सुगना उससे अनभिज्ञ न थी.. पर उसे अब भी अपने भाई पर विश्वास था। भाई बहन के बीच की मर्यादा का असर वह आज सुबह देख चुकी थी जब सोनू का लंड उसे देखते ही अपनी घमंड और अकड़ छोड़ कर तुरंत ही नरम हो गया था।

सुगना दोनों के लिए मालपुआ बनाने लगी कड़ाही में गोल मालपुए को जैसे ही सुगना ने अपने छनौटे से बीच में दबाया हुआ ने बुर की दोनों मोटी मोटी फांकों का रूप ले लिया और सुगना मुस्कुरा उठी। सुगना एक बार फिर अपनी वासना के भवर में झूलने लगी। सुगना ने कड़ाही में से मालपुआ को निकालकर चासनी में डुबोया परंतु सुगना की जांघों के बीच छुपा मालपुआ खुद ब खुद रस से सराबोर होता गया…सुगना के अंग जैसे उसके दिमाग के निर्देशों को धता बताकर अपनी दुनिया में मस्त थे…

सोनू सुगना गरम-गरम मालपुआ लेकर सोनू के समक्ष उपस्थित थी…. मालपुआ गरम था । सोनू मालपुए का आनंद लेने लगा मालपुआ गर्म था सोनू की जीभ बार-बार बाहर को आ रही थी शायद यह गर्म मालपुआ को ठंडा करने के लिए था…. परंतु वासना से घिरी सुगना को मालपुए से छूती सोनू की जीभ बेहद उत्तेजक लग रही थी। उसका अंतरमन उटपटांग चीजें सोचने लगा…..

सोनू बेपरवाह होकर कभी मालपुए को अपने दोनों होठों से पकड़ता कभी जीभ से छूकर उसके मीठे पल का अंदाज करता सुगना एकटक सोनू को अपना मालपुआ खाते हुए देख रही थी…

जांघों के बीच छुपे मालपुए ने जब अपना रस जांघों पर छोड़ दिया तब सुगना को अपने गीले पन का एहसास हुआ सुगना शर्म से पानी पानी हो गई…

कुछ ही पलों में सुगना ने वासना की हद पार कर दी थी उसने जो सोचा था वह एक बड़ी बहन के लिए कहीं से उचित न था.…..


##


उधर सीतापुर में सुगना की मां पदमा अपनी बेटी युवा बेटी मोनी के साथ गांव की एक विवाह कार्यक्रम में गई हुई थी। वहां उपस्थित सभी महिलाएं मोनी के बारे में बात कर रही थीं। न जाने गांव की महिलाओं को कौन सा कीड़ा काट रहा था वह सब मोनी की शादी की बात लेकर चर्चा कर रही थीं। मोनी उनकी बातें सुनकर मन ही मन कुढ़ रही थी। न जाने उन महिलाओं को मोनी के विवाह से क्या लाभ होने वाला था..

मोनी के मन में विवाह शब्द सुनकर कोई उत्तेजना पैदा ना होती… अभी तो वह सिहर जाती उसे किसी मर्द के अधीन होकर रहना कतई पसंद ना था मर्द से मिलने वाला सुख न तो वह जानती थी और नहीं उसे उसकी दरकार थी। वह अपने भक्तिभाव में लीन रहती।

जब जब पदमा उससे विवाह के बारे में बात करती वह तुरंत मना कर देती… आखिर उसकी मां पदमा ने कहा "बेटी यदि तू ब्याह ना करबू तो गांव वाली आजी काकी सब तहार जीएल दूभर कर दीहे लोग। चल हम तोहार बियाह कोनो पुजारी से करा दी… तू ओकर संग पूजा पाठ में लागल रहीहे"

पद्मा ने अपनी सूझबूझ से मोनी को समझाने और मनाने की कोशिश की.. परंतु मोनी तो जैसे अपने पुट्ठे पर हाथ न रखने दे रही थी… न जाने इतने खूबसूरत युवा जिस्म की मालकिन मोनी में कामवासना कहां काफूर हो गई थी …. जब भाव न हों कामांगों का कोई औचित्य नहीं रह जाता। जांघों के बीच छुपी सुंदर बूर दाढ़ी बढ़ाए मोनी की तरह बैरागी बन चुकी थी। वह सिर्फ मूत्र त्याग के कार्य आती…..उसी प्रकार मोनी की भरी-भरी चूचियां अस्तित्व विहीन सी मोनी के ब्लाउज में कैद, जैसे सजा काट रही थीं।

मोनी के मन में समाज के प्रति विद्रोह की भावना जन्म ले रही थी उसका जी करता कि वह इन औरतों से दूर कहीं भाग जाए परंतु उसे भी पता था कि घर से भागकर जीवन व्यतीत करना बेहद दुरूह कार्य था। वह अपने इष्ट देव से अपने भविष्य के लिए दुआएं मांगती और स्वयं को अपनी शरण में लेने के लिए अनुरोध करती…..

मोनी की मां पदमा और मोनी की अपेक्षाएं और प्रार्थनाएं एक दूसरे के प्रतिकूल थी …. मोनी के भाग्य में जो लिखा था वह होना था ….

मोनी को अब भी बनारस महोत्सव में दिए गए विद्यानंद के प्रवचन याद थे शारीरिक कष्टों और संघर्ष से परे वह ख्वाबों खयालों की दुनिया निश्चित ही आनंददायक होगी। जहां एक तरफ ग्रामीण जीवन में रोजाना का संघर्ष था वही विद्यानंद के आश्रम में जैसे सब कुछ स्वत ही घटित हो रहा था। जीवन जीने के लिए आवश्यक भोजन और सामान्य वस्त्र स्वतः ही उपलब्ध थे। वहां की दिनचर्या मोनी को बेहद भाने लगी थी… काश विद्यानंद जी उसे स्वयं अपने आश्रम में शामिल कर लेते ….. . मोनी मन ही मन अपनी प्रार्थनाओं में अपने इष्ट देव से विद्यानंद जैसे किसी दार्शनिक के आश्रम में जाने दाखिला पाने की गुहार करने लगी।…..

नियति मोनी की इच्छा का मान रखने का जाल बुनने लगी आखिर विधाता ने मोनी के भाग्य में जो लिखा था उसे पूरा करना अनिवार्य था..


##



उधर सुगना के घर में शाम को सभी भाई-बहन एक साथ बैठे हंसी ठिठोली कर रहे थे सोनू के जाने की तैयारियां लगभग पूरी हो गई थी सिर्फ सोनू के लिए कुछ पकवान बनाए जाने बाकी थे। उसी समय दरवाजे पर दस्तक हुई और सरयू सिंह द्वारा भेजा आदमी आ गया था..

"सरयू सिंह जी का परिवार यही रहता है?"

"हां क्या बात है?" सुगना ने पूछा

आगे कुछ कहने सुनने को न रहा उस व्यक्ति ने सरयू सिंह द्वारा भेजा लिफाफा सुगना को पकड़ा दिया.. सुगना खुश हो गई… उसने उस व्यक्ति को चाय पान के लिए भी आमंत्रित किया परंतु वह कुछ जल्दी बाजी में था और तुरंत वापस जाना चाहता था .. सुगना ने फिर भी उसे खड़े-खड़े मिठाइयां खिलाकर ही विदा किया सुगना का यही व्यवहार उसे सर्वप्रिय बनाए रखता था…

सुगना चहकती हुई अंदर आई और सरयू सिंह द्वारा भेजे गए फोटो निकाल कर सभी को दिखाने लगी। सोनी और सुगना पूरे उत्साह से फोटो देख रही थी जबकि लाली अनमने मन से उन फोटो को देख रही थी।

और सोनू …. वह तो कतई इन फोटो की तरफ नहीं देखना चाहता था। सारी फोटो ठीक-ठाक थी उनमें से जो दो फोटो सुगना को पसंद आई उसने सोनू को दिखाते हुए बोला

"ए सोनू देख कितना सुंदर बिया"

"दीदी हमरा के बेवकूफ मत बनाव" हम शादी करब तो तोहरा से सुंदर लड़की से…. नाता ना करब" सोनू ने मुस्कुराते हुए अपनी बात रख दी इस बात में कोई शक न था कि सुगना उन तीनों में सबसे सुंदर थी।

लाली और सोनी मुस्कुराने लगीं…...

सोनी ने मुस्कुराते हुए कहा सोनू भैया

"देखिह कहीं कुंवारे मत रह जईह , सुगना दीदी जैसन मिलल मुश्किल बा"

अपनी तारीफ सुनकर सुगना बेहद प्रसन्न हो गई और अपनी खुशी को दबाते हुए सोनू से बोली

"ना सोनू ….हम तोरा खातिर अपना से सुंदर लड़की जरूर ले आएब" इतना कहकर सुगना ने सारी फोटो एक तरफ कर दी।

सुगना की बात सुनकर सोनू प्रसन्न हो गया और उसने खुशी में एक बार अपनी सुगना दीदी को गले लगा लिया….. सुगना बैठे-बैठे ही उसके आलिंगन में आ गई… आज सोनू की बाहों का कसाव उसने कुछ ज्यादा ही महसूस किया.

यद्यपि सामने सोनी और लाली बैठी थी फिर भी सोनू का वह मजबूत आलिंगन सुगना ने महसूस कर लिया था। उसने स्वयं को सोनू की गिरफ्त से हटाते हुए कहा

"अब ढेर दुलार मत दिखाव… हम कोशिश करब"

"और यदि ना मिलल तब?" सोनू ने प्रश्न किया….

" तब के तब देखल जाई…अच्छा चल अपन सामान ओमान पैक कर"

सुगना को कोई तात्कालिक उत्तर न सूझ रहा था सो उसने सभा विसर्जन की घोषणा कर दी और हमेशा की तरह अपने छोटे भाई के लिए कुछ नाश्ते का सामान बनाने में लग गई।

लाली और सोनी सोनू की पैकिंग करने में मदद करने लग गई। सोनू कुछ ही देर में लखनऊ जाने के लिए तैयार हो गया।

सुगना ने सोनू को रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट तो न दिया परंतु यह आश्वासन देकर कि वह सोनू के लिए खुद से खूबसूरत लड़की लेकर आएगी सुगना फस गई।

ऐसा नहीं था कि उस समय सुगना से खूबसूरत लड़कियां इस दुनिया में न थीं परंतु जिस ग्रामीण परिवेश से सुगना आई थी वह वहां लड़कियों में शारीरिक कसाव तो अवश्य था परंतु कोमल और दमकती त्वचा जो सुगना ने कुदरती रूप से पाई थी वैसी त्वचा गांव गवई में मिलना मुश्किल था। यह अद्भुत सुंदरता कुछ शहरी बालों में अवश्य थी परंतु वह सुगना और सोनू जैसे निम्न आय वर्ग के लिए पहुंच से काफी दूर थीं।

सोनू निश्चित ही गरीबी के क्रम को तोड़कर आगे बढ़ने वाला था और आने वाले समय में हो सकता था कि उसे विवाह के लिए सुगना से भी खूबसूरत लड़की मिल जाती…. परंतु आज यह उनकी कल्पना से परे था।

आने वाले समय में सोनू को क्या मिलेगा क्या नहीं यह प्रश्न गौड़ था परंतु आज जो उपलब्ध था उसमें सुगना का कोई सानी न था। सुगना जैसी सुंदर और अदब भरी कामुक युवती का मिलना बेहद कठिन था।

घर से निकलने से पहले सोनू सुगना के कमरे में अपनी अटैची में कुछ सामान रख रहा था तभी उसके भांजे सूरज की गेंद उछलती हुई अलमारी के पीछे चली गई। सूरज ने अपनी मधुर आवाज में कहा

"मामा मामा बाल निकाल द".

सोनू सूरज का आग्रह न टाल पाया और उस लोहे की अलमारी को खिसकाने लगा जिसके पीछे सुगना ने वह गंदी किताब फाड़कर फेकी थी….वही किताब जिसमें रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा थी.

सोनू ने ताकत लगाकर न सिर्फ अलमारी खिसकाई बल्कि अपनी किस्मत का दरवाजा भी। उसने सूरज की बाल को उसके हाथों में दे दिया वह उछलता खेलता कमरे से बाहर निकल गया। तभी सोनू की निगाह उस जिल्द लगी किताब पर पड़ी जो दो टुकड़ों में पड़ी थी।

सूरज सोनू में वह किताब अपने हाथों में उठा ली और जैसे ही उसने उसके पन्ने पलटे संभोग रत विदेशी युवक और युवती की तस्वीर उसकी आंखों के सामने आ गई वह भौचक्का रह गया…

उसी समय सुगना कमरे में प्रवेश की..

दरअसल अलमारी खिसकाए जाने की आवाज रसोईघर तक भी पहुंची थी और सुगना तुरंत ही सचेत हो गई उसे याद आ गया कि वह गंदी किताब उसने क्रोध में दो टुकड़े कर उसी अलमारी के पीछे फेकी थी वह भागती हुई अपने कमरे में आ गई थी।.

सुगना के आने की आहट पाकर सोनू घबरा गया उसे समझ ना आया कि वह क्या करें। उसने किताब का एक टुकड़ा अपने कुर्ते के नीचे लूंगी में फंसाया और जब तक वह दूसरा टुकड़ा अंदर फसा पाता सुगना सामने आ चुकी थी।

उसके हाथों में उस किताब देखकर सुगना के होश फाख्ता हो गए …. कहने सुनने को कुछ भी बाकी ना था. वह कुछ बोली नहीं परंतु सोनू के हाथों से किताब का आधा टुकड़ा बिजली की फुर्ती से छीन लिया और बोली..

"जा तरह नाश्ता निकाल देले बानी ओकरा के पैक कर ल ई किताब फिताब बाद में देखीह…"

सोनू निरुत्तर था वह कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं था। सुगना ने बड़ी फुर्ती से किताब का आधा टुकड़ा छीन कर सोनू को विषम स्थिति से निकाल लिया था।

वह तुरंत ही भागता हुआ किचन की तरफ चला गया परंतु जाते समय उसने अपने पेट पर हाथ फिरा कर यह आश्वस्त किया कि किताब का दूसरा हिस्सा उसकी कमर की लूंगी में फंसा हुआ सुरक्षित है।

सोनू उस किताब को देखना चाहता था परंतु समय और वक्त इस बात की इजाजत नहीं दे रहा था… सोनू ने रसोई में सुगना द्वारा बनाए गए सामान को लाकर सुरक्षित तरीके से पैक किया और अगर उस अनोखी किताब का टुकड़ा भी अपने सामान के साथ बैग में भर लिया..

उधर सुगना थरथर कांप रही थी। सोनू के हाथ में उस किताब को देखकर वह बेचैन हो गई थी। सोनू के हाथों से किताब का वह टुकड़ा छीन कर वह कुछ हद तक आश्वस्त हो गई थी… पर दूसरा टुकड़ा ?

सुगना ने अलमारी के पीछे किताब के दूसरे भाग को खोजने की कोशिश की परंतु सफल न रही। उसकी बेचैनी देखने लायक थी। सोनू वापस कमरे में आया अपनी बहन को परेशान देखकर इतना तो समझ ही गया कि वह किताब का दूसरा भाग खोज रही है जो अब उसके बैग में बंद हो चुका था।

उसने सुगना से अनजान बनते हुए पूछा

" दीदी कुछ खोजा तारु का? हम मदद करीं।"

सुगना कुछ कह पाने की स्थिति में न थी अपने हृदय में बेचैनी समेटे वह निकल कर हॉल में आ गई..

सुगना के दिमाग में हलचल तेज हो गई..

क्या सोनू ने किताब के मजमून को पढ़ लिया था…क्या भाई बहन ( रहीम और फातिमा) की चूदाई गाथा सोनू ने पढ़ ली थी? यह सोचकर ही सुगना परेशान हो गई थी। क्या सोनू ने उस किताब का दूसरा टुकड़ा उससे छुपाकर अपने पास रख लिया था…?

सुगना के मन में प्रश्न कई थे… परंतु उस किताब के बारे में सोनू से पूछ पाने की उसकी हिम्मत न थी आखिर वह किस मुंह से उस किताब के बारे में सोनू से पूछती? सुगना परेशान थी बेचैन थी पर मजबूर थी…

सोनू एक बार फिर लखनऊ के लिए निकल रहा था… और अपनी तीनों बहनों की आंखों में आंसू छोड़े जा रहा था… सबसे ज्यादा हमेशा की तरह सुगना ही दुखी थी…सुगना और सोनू दोनों साथ रहते रहते एक दूसरे के आदी हो गए थे । और अब तो सोनू एक जिम्मेदार और आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी बन चुका था ठीक वैसा ही जैसी स्वयं सुगना थी। दो आकर्षक व्यक्तित्व और बेहद खूबसूरत काया के स्वामी स्त्री और पुरुष भाई-बहन के पवित्र बंधन से बंधे एक दूसरे के पूरक बन चुके थे…

सोनू के खुद से दूर होते ही सुगना अपनी आंखों में आंसू रोक ना पाई और उसने अपना चेहरा घुमा लिया… सोनी और लाली अभी बाहर खड़े सोनू को हाथ हिला रहे थे परंतु सुगना अंदर हाल में आकर मन ही मन सिसक रही थी।

वियोग के इन पलों में वासना न जाने कहां गायब हो गई थी.. आंसुओं की भी एक सीमा होती है सजना दुखी तो थी परंतु कुछ ही देर में वह सामान्य अवस्था में आ गई और उसे उस किताब का ध्यान आया।

सुगना अपने अपने कमरे में आई और अलमारी को थोड़ा थोड़ा खिसका कर वह किताब का वह दूसरा टुकड़ा फिर ढूंढने लगी पर वह वहां न था।

हे भगवान क्या सोनू दूसरा टुकड़ा अपने साथ ले गया..?

क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा..?

क्या भाई बहन के बीच गंदे रिश्ते की कहानी पढ़कर सोनू उसके चरित्र के बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेगा…? आखिर वह किताब उसके कमरे से ही प्राप्त हुई थी?

सोनू को किताब के आधे टुकड़े के रूप में रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट प्राप्त हो गया था। वह किताब सुगना के कमरे से प्राप्त हुई थी और उसका आधा हिस्सा स्वयं सुगना के पास था…

सोनू भी यथाशीघ्र उस किताब को देखना चाहता था ….

वह अद्भुत गंदी किताब सोनू और सुगना के रिश्ते में नया अध्याय लिखने वाली थी…


शेष अगले भाग में…






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#94
भाग 85

हे भगवान क्या सोनू दूसरा टुकड़ा अपने साथ ले गया..?

क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा..?

क्या भाई बहन के बीच गंदे रिश्ते की कहानी पढ़कर सोनू उसके चरित्र के बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचेगा…? आखिर वह किताब उसके कमरे से ही प्राप्त हुई थी?

सोनू को किताब के आधे टुकड़े के रूप में रक्षाबंधन का रिटर्न गिफ्ट प्राप्त हो गया था। वह किताब सुगना के कमरे से प्राप्त हुई थी और उसका आधा हिस्सा स्वयं सुगना के पास था…

सोनू भी यथाशीघ्र उस किताब को देखना चाहता था ….

वह अद्भुत गंदी किताब सोनू और सुगना के रिश्ते में नया अध्याय लिखने वाली थी…

अब आगे

बनारस स्टेशन पर खड़ा सोनू अधीर हो रहा था वह बार-बार अपने उस बैग की तरफ देख रहा था जिसमें उसने उस गंदी किताब का आधा टुकड़ा पैक किया था।

एक बार के लिए उसके मन में ख्याल आया कि कहीं सुगना दीदी ने उसके बैग से वह टुकड़ा निकाल तो नहीं लिया है इस बात की तस्दीक करने के लिए सोनू ने बैग खोला और किताब के टुकड़े को देखकर प्रसन्न हो गया।

उसका जी कर रहा था कि वह वही किताब को खोलकर उसके मजमून का अंदाजा ले परंतु किताब में छपे गंदे चित्र उसे स्टेशन पर असहज स्थिति में ला सकते थे इसलिए उसने इस विचार को त्याग दिया और अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगा।


आखिर उसकी मुराद पूरी हुई और उसकी ट्रेन बनारस स्टेशन पर अपनी रफ्तार कम करती गई।

सोनू अपने कूपे पर आकर अपना सामान सजा कर उस अद्भुत गंदी किताब को लेकर ऊपर वाली सीट पर चढ़ गया…


उधर सोनू को विदा करने के पश्चात तीनो बहने साथ बैठकर सोनू को याद कर रही थीं। कुछ देर बाद लाली और सोनी अपने अपने कार्यों में लग गई।

आज वैसे भी घर में गहमागहमी थी सभी सोनू की तैयारियों में थक चुकी थी धीरे धीरे कमरों की बत्तियां बुझने लगी और सभी निद्रा देवी की आगोश में जाने लगे सिर्फ और सिर्फ सुगना की आंखों से नींद गायब थी।


उसे अब यकीन हो चला था की किताब का दूसरा टुकड़ा निश्चित ही सोनू अपने साथ ले गया है।

हे भगवान !!! क्या सोनू उस किताब को पढ़ेगा? सुगना ने स्वयं किताब का दूसरा टुकड़ा उठा लिया और उसे पड़ने लगी। सुगना के मन में यह कौतूहल अब भी था कि जो टुकड़ा सोनू के पास था आगे उसमें लिखा क्या था? कहीं उसे यह तो नहीं पता चलेगा कि रहीम और फातिमा दोनों सगे भाई बहन थे.


सुगना बिस्तर पर लेट गई और किताब के पन्ने पलटने लगी…

सुगना किताब के शुरुआती पृष्ठ तेजी से पलटने लगी। वह किताब के कुछ पन्ने पहले भी पढ़ चुकी थी। परंतु जब से किताब में रहीम और फातिमा के संबंधों का जिक्र आया.. सुगना न सिर्फ आश्चर्यचकित थी अपितु यह उसे यह बात उसे कतई नहीं पच रही थी…कि कोई छोटा भाई अपनी ही बड़ी बहन से ऐसे संबंध स्थापित कर सकता है। इसीलिए किताब में जब फातिमा रहीम के सामने नग्न हो रही थी सुगना ने किताब को दो टुकड़ों में फाड़ कर फेंक दिया था… परंतु आज सुगना उस किताब को आगे पढ़ने के लिए मजबूर थी…

किताब से उद्धृत…

फातिमा पूरी तरह नग्न हो चुकी थी। अपने छोटे भाई रहीम के सामने इस तरह नग्न होकर वह उससे नज़रें नहीं मिला पा रही थी। उसने अपनी आंखें बंद कर ली और रहीम जी भर कर अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती को निहार रहा था।

अपने ही छोटे भाई के सामने नग्न होने का एहसास फातिमा को बेसुध कर रहा था उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। वह धीरे-धीरे चलते हुए बिस्तर पर आ गई और अपने भाई रहीम को अपने उन्नत नितंबों के दर्शन भी कराती गई..

उधर सोनू भी के किताब का दूसरा भाग पढ़ रहा था..

फातिमा बिस्तर पर लेट चुकी थी उसने अपनी पलके खोली और अपने भाई छोटे रही के लंड को हसरत भरी निगाहों से देखने लगी जो रहीम के हाथों में तन रहा था…और रहीम उसे सहला कर उसमें और ताकत भरने का प्रयास कर रहा था..।

सोनू के दिमाग में आज सुबह के दृश्य घूमने लगे जब उसकी सुगना दीदी उसके लंड को देख रही थी अचानक सोनू को रहीम और फातिमा की कहानी अपनी और सुगना की कहानी लगने लगी…

एकांत में वासना परिस्थितियों और कथानक को अपने अनुसार मोड़ कर मनुष्य को और भी गलत राह पर ले जाती है..

सोनू को यह वहम हो चला था कि सुगना उसके लंड को शायद इसीलिए देख रही थी क्योंकि वह उस से चुदना चाह रही थी।

सोनू को कहानी में विशेष आनंद आने उसे लगा जैसे सुगना दीदी भी इस कहानी को पढ़ चुकी है..

सोनू को यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना दीदी जैसे मर्यादित व्यक्तित्व वाली सुंदर युवती अपने ही भाई से चुदवाने के लिए बेकरार थी। सोनू अपने लंड में असीम उत्तेजना लिए कहानी को आगे पढ़ने लगा।

रहीम बिस्तर पर अपनी बड़ी बहन को नग्न देखकर बेचैन हो गया वह धीरे-धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ने लगा फातिमा रहीम को अपनी तरफ आते हुए देखकर शर्मसार हो रही थी। उसे आगाज का भी पता था और अंजाम का भी..

सुगना द्वारा पढ़े जा रहे किताब के टुकड़े से..

अपने छोटे भाई को रहीम को पूरी तरह नग्न अपने हाथों में अपने भुसावली केले जैसे लंड को सह लाते हुए बिस्तर पर देखकर फातिमा एक बार फिर सोच में पड़ गई क्या अपने ही छोटे भाई से चुदवाना हराम न होगा ?

फातिमा का चेहरा शर्म से पानी पानी था और जांघों के बीच बुर भी पानी पानी थी उसे न तो रिश्तो से कोई सरोकार था और नहीं सही गलत से उसका साथी रहीम के हाथों में तना उससे मिलने के लिए उछल रहा था..

रहीम ने अपनी हथेलियों से अपनी बड़ी बहन जांघों को अलग किया और उनके बीच खूबसूरत गुलाबी बुर को देखकर मदहोश हो गया उसके होंठ सदा उन खूबसूरत होठों को अपने आगोश में लेने चल पड़े..


सुगना तड़प उठी एक छोटा भाई अपनी ही बड़ी बहन की बुर चूसने वाला था…. हे भगवान न जाने किस हरामजादे ने ऐसी किताब लिखी थी… सोनू यह पढ़कर क्या सोच रहा होगा…? कहीं सोनू यह तो नहीं सोच रहा होगा कि मैं ऐसी किताबें इसलिए पढ़ती क्योंकि मेरे मन में भी इस तरह की भावनाएं हैं…नहीं नहीं मैं तो ऐसी घटिया किताब पढ़ भी नहीं सकती मैंने इसीलिए उसे फाड़ कर फेंक दिया था सोनू को ऐसा नहीं सोचना चाहिए….

आखिरकार सुगना से वह किताब और न पढ़ी गई उसने उसे उठाकर अपने सिरहाने रख दिया.. और सोने का प्रयास करने लगी…


उधर सोनू किताब का अगला पन्ना पढ़ रहा था..

आधी किताब को पढ़कर आधे भाग का अनुमान लगाना इतना कठिन भी न था यह पढ़ाई आसान थी..


किताब से उद्धृत

अपनी बड़ी बहन की नंगी बुर और उसके फूले हुए होठों को देखकर रहीम पागल हो गया। उसने अपने होंठ फैलाए और अपनी बहन फातिमा की बुर से रस चूसने लगा।


जैसे ही रस खत्म हुआ.. उसने अपनी लंबी सी जीभ निकाली और अपनी बहन फातिमा के बुर में घुसाने की कोशिश करने लगा.. फातिमा की बुर में कसाव था। रहीम की जीभ फिर भी फातिमा की बुर से रस की खीचने का प्रयास करती रही..

अपने सगे भाई रहीम के होंठों का स्पर्श अपनी बुर पाकर फातिमा मदहोश हो गई वह रहीम के सर को अपनी बुर की तरफ खींचने लगी वह कभी अपनी कमर को उठाती और अपनी बुर को रहीम के चेहरे पर रगड़ने का प्रयास करती …


सोनू का लंड फटने को तैयार था.. पर अफसोस पन्ना पलटने का वक्त आ चुका था..


उधर सुगना किताब को अपने सिरहाने रख कर अपनी आंखें बंद किए सोने का प्रयास कर रही थी थकावट ने उसकी आंखें बंद कर दिमाग को शिथिल कर दिया था परंतु मन में आए उद्वेलन ने उसे बेचैन किया हुआ था। यूं कहिए शरीर सो चुका था पर अवचेतन मन अभी भी जागृत था और किताब तथा सोनू के मन को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।

उधर सोनू ने पूरे मन से किताब पढ़ना जारी रखा 


अपनी बड़ी बहन के बुर में अपने लंड को जड़ तक ठेल कर भी रहीम नहीं रुका वह अपनी बहन फातिमा के बुर में पूरी तरह समा जाना चाहता था…

फातिमा की आंखों में आंसू थे परंतु रहीम कोई कोताही बरतने के पक्ष में न था । अब जब लंड बुर में घुस ही गया था वह वह अपनी और फातिमा की प्यास पूरी तरह बुझना चाहता था। उसने फातिमा के होठों पर अपने हाथ रखे और अपने तने हुए लंड से गचागच अपनी बड़ी बहन को चोदने लगा..

सोनू और उत्तेजना नहीं सह पाया और झड़ने लगा..

ऊपरी बर्थ पर लेटा सोनू अपने लंड से श्वेत लावा उगलता रहा और अपने ही अंडरवियर में उस लावा को समेटने का प्रयास करता रहा…. कुछ ही देर में सोनू का अंडरवियर पूरी तरह गीला हो गया परंतु उसने जो तृप्ति का एहसास किया था यह वही जानता था..


उधर सुगना किताब को तो हटा चुकी थी परंतु उसके अवचेतन मन में उस कहानी का आगे का कथानक घूम रहा था…

सुगना परिपक्व थी…नग्न युवती और नग्न युवक के बीच होने वाली प्रेम क्रीडा समझना सुगना के लिए दुरूह न था वह इस खेल की पक्की खिलाड़ी थी यह अलग बात थी कि पिछले कुछ महीनों से वह इस खेल से दूर थीं।


वासना से भरी सुगना अपने अवचेतन मन में वह खेल शुरू कर चुकी थी। एक अनजान लंड उसकी बुर में तेजी से आगे पीछे हो रहा था वह बार-बार उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी.. परंतु अंधेरे की वजह से पहचान पाना कठिन हो रहा था.

किसी अनजान मर्द से चुदते समय सुगना को आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी और वह उस व्यक्ति को बार-बार बाहर धकेलने का प्रयास कर रही थी परंतु उस व्यक्ति का मजबूत और खूबसूरत लंड सुगना की बरसों की प्यास बुझा रहा था।

वह उस लंड को अपनी बुर में पूरी तरह आत्मसात कर लेना चाहती थी…. सुगना के पैर उसकी कमर पर लिपट चुके थे और कुछ ही देर में सुगना की बुर के कंपन प्रारंभ हो गए ….सुगना झड़ रही थी और असीम तृप्ति का अनुभव कर रही थी तभी उसे गूंजती हुई आवाज सुनाई थी..

"दीदी ठीक लागल हा नू?"

यह आवाज सोनू की थी
सुगना अचकचा कर उठ गई..

उसे अपनी अवस्था का एहसास हुआ जांघों के बीच एक अजब सा गीलापन था सुगना सचमुच स्खलित हो गई थी वासना से भरे उस सपने ने सुगना को स्खलित कर दिया था और निश्चित ही इसका श्रेय उस गंदी किताब को था।


परंतु सोनू की आवाज सुगना को अब डरा रही थी। नहीं ….नहीं… सोनू उसका अपना छोटा भाई है और उसके बारे में ऐसा सोचना एक अपराध है ..

हे भगवान मुझे माफ करना सुगना बार-बार अपने इष्ट से अनुरोध करती रहे और मन ही मन माफी मांगती रही..

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना और सोनू लगभग एक साथ स्खलित हो चुके थे एक तरफ सोनू अब भी सुगना को याद कर रहा था दूसरी तरफ सुगना सोनू को भूलने का प्रयास कर रहे थी….

सुगना और सोनू …..नियति भी बेकरार थी पर सुगना और सोनू के मिलन में सुगना का हृदय परिवर्तन आवश्यक था….सुगना को अपने ही भाई से चुदवाने के लिए तैयार होना था जो सुगना जैसी संजीदा और मर्यादित युवती के लिए थोड़ा नही बहुत कठिन था..


##


अगले दिन की शुरुआत हो चुकी थी…

उधर लखनउ में सेक्रेटरी साहब से अलग होने के बाद मनोरमा कुछ ही दिनों में सामान्य हो गई उसे वैसे भी सेक्रेटरी साहब से कोई सरोकार न था। वह दिन भर पैसे और पद के पीछे भागते न उन्हें पिंकी का ख्याल था और नहीं मनोरमा का।


स्त्री को साथ और वक्त दोनों की जरूरत होती है पता नहीं सेक्रेटरी साहब को यह बात क्यों नहीं समझ आई। जांघों के बीच की आग शांत कर पाना उनके बस का न था परंतु मनोरमा का साथ देकर वह अपने दांपत्य को बचाए रख सकते थे। परंतु सेक्रेटरी साहब ने न मनोरमा को पहचाना न उसकी भावनाओं को।

मनोरमा ने जिस तरह सेक्रेटरी साहब के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई थी उससे वह बेहद आहत हुए और प्रतिकार स्वरूप उन्होंने मनोरमा से प्रशासनिक पद छीन कर उसे ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट का इंचार्ज बना दिया यह ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट कोई और नहीं अपितु सोनू का ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट था जहां उसे एसडीएम बनने के लिए जरूरी ट्रेनिंग दी जा रही थी और आखिरकार एक दिन मनोरमा अपने सुसज्जित कपड़ों में सोनू की क्लास रूम में उपस्थित थी..

लगभग 34- 35 वर्ष की खूबसूरत मनोरमा को देखकर क्लास के वयस्क विद्यार्थी अवाक रह गए। कमरे में एकदम शांति छा गई सभी एकटक मनोरमा को देखे जा रहे थे सोनू भी उनसे अलग न था सोनू को बार-बार यही लगता जैसे उसने उस सुंदर युवती को कहीं ना कहीं देखा जरूर है परंतु उसे यह कतई यकीन नहीं हो पा रहा था कि कक्षा में उपस्थित सुंदर महिला मनोरमा एसडीएम है जिसे उसने बनारस महोत्सव के दौरान एंबेसडर कार में बैठे देखा था…


गुड मॉर्निंग……. मनोरमा की मनोरम आवाज सोनू और अन्य विद्यार्थियों के कानों में पहुंची।


गुड मॉर्निंग मैडम….सभी विद्यार्थियों का शोर एक साथ कमरे में गूंज उठा सुंदर स्त्री के प्रति युवा विद्यार्थियों का यह अभिवादन स्वाभाविक था।

"मैं आप सब के ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की प्रिंसिपल मनोरमा हूं मैंने कल ही कार्यभार ग्रहण किया है"


इसके पश्चात मनोरमा ने सभी विद्यार्थियों से बारी-बारी से उनका परिचय पूछा…

सोनू का नंबर आते ही..

"संग्राम सिंह… रैंक 1"सोनू की मर्दाना और गंभीर आवाज मन मोहने वाली थी।

मनोरमा संग्राम सिंह उर्फ सोनू के की खूबसूरत चेहरे और आकर्षक शरीर को देखती रह गई।


सुंदर शरीर और चेहरा सभी के आकर्षण का केंद्र होता है और सोनू ने तो अपनी रैंक बताकर मनोरमा को विशेष तवज्जो देने का अधिकार दे दिया था। स्वयं सोनू भी मनोरमा को देख रहा था

"आप किस जिले से है?"

सोनू ने अपना जिला बताया अगला प्रश्न सामने था

" किस गांव से.?


"सीतापुर…"

मनोरमा ने अपना ध्यान सोनू से हटाया और पूरी क्लास को संबोधित करते हुए बताने लगी मैं इस जिले में एसडीएम के पद पर कार्य कर चुकी हुं…

मनोरमा ने सोनू पर दिए गए विशेष ध्यान का कारण बताकर अन्य सभी विद्यार्थियों को संतुष्ट कर दिया था। कक्षा खत्म होते ही मनोरमा ने संग्राम सिंह उर्फ सोनू को अपने कक्ष में बुलाया और बातों ही बातों में मनोरमा ने सरयू सिंह का हाल-चाल पूछ लिया।


और जब जिक्र सरयू सिंह का आया तो सुगना का आना ही था मनोरमा सुगना से बेहद प्रभावित थी यह जानने के बाद की संग्राम सिंह उर्फ सोनू सुगना का अपना सगा भाई है मनोरमा उससे और खुलती गई कुछ देर की ही वार्तालाप में दोनों एक दूसरे से सहज हो गए सोनू और मनोरमा दोनों आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे और उनका साथ आना स्वाभाविक था……

परंतु सोनू इस समय पूरी तरह सुगना में खोया हुआ था.. उसे इस बात का एहसास भी न रहा कि मनोरमा के साथ रहने और विशेष कृपा पात्र बनने का अलग मतलब ही निकाला जा सकता था।


यद्यपि…मनोरमा का प्रशासनिक कद और उम्र में 10- 15 वर्ष का अंतर लोगों की सोच पर अंकुश लगाता परंतु कामुकता और ठरक से भरे लोगों को यह संबंध निश्चित ही सेक्स जनित ही प्रतीत होता।

बहरहाल सोनू और मनोरमा में एक सामंजस्य जरूर बना था परंतु इसमें वासना का कोई स्थान न था। मनोरमा जिस सम्मान और आदर की हकदार थी वह उसे सोनू से बखूबी मिल रहा था और सोनू एक आज्ञाकारी जूनियर की तरह मनोरमा के सानिध्य में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर रहा था…

सोनू की रातें रंगीन थी वह गंदी किताब सोनू के जीवन की सबसे मूल्यवान वस्तु थी…जब भी वह एकांत में होता उस किताब को निकालकर उसे अक्षरशह पढ़ता…और पन्ने के दूसरे भाग को अपनी इच्छा अनुसार संजो लेता…

कहानी में फातिमा की जगह सुगना ले चुकी थी और वह एक नहीं बारंबार सुगना की कल्पना करते हुए उस कहानी को पड़ता और अपनी बड़ी बहन की काल्पनिक बुर में झड़ कर गहरी नींद में चला जाता उसे अब न कोई आत्मग्लानि होती और नहीं कोई अफसोस।

परंतु दिन के उजाले में जब वह सुगना के बारे में सोचता उसे यह यकीन ही नहीं होता कि सुगना दीदी ऐसी किताब पढ़ सकती है उसके मन में यह प्रश्न कभी नहीं आता कि सुगना नहीं वह किताब फाड़ी थी.. और उसे इस बात का इल्म भी न होता की उसकी बहन सुगना भाई-बहन के बीच इस अनैतिक संबंधों के पक्षधर न थी…

परंतु सोनू की सोच एक तरफा हो चली थी। वो सुगना दीदी का खिड़की पर आकर उसे लाली को चोदते हुए देखना …..वह हैंडपंप पर उसके तने हुए लंड को एकटक देखना….. वह सलवार सूट के साथ कामुक ब्रा और पेंटी को स्वीकार कर लेना…. और अपनी नाराजगी न जाहिर करना…….ऐसे कई सारी घटनाएं सोनू की सोच को संबल दे रही थी और सोनू अपने मन में सुगना की कामुक छवि को स्थान देता जा रहा था …..सुगना का मर्यादित और संतुलित व्यक्तित्व सोनू की वासना के रास्ते में जब जब आता उसे नजरअंदाज कर सोनू सुगना सुगना को एक अतृप्त और प्यासी युवती के रूप में देखने लगता।


##



दिन तेजी से बीत रहे थे और सोनू अपने ख्वाबों में सुगना को तरह तरह से चोद रहा था…वह गंदी किताब सोनू के दिलों दिमाग पर असर कर गई थी….सोते जागते अब सोनू को सिर्फ सुगना दिखाई पड़ रही थी…


##

उधर सुगना ने वह गंदी किताब अलमारी के ऊपर छुपा कर रख दी…वह किताब का आधे से ज्यादा हिस्सा पढ़ चुकी थी.. उस किताब ने सुगना के दिमाग पर भी असर किया था.. और वह उस हरामजादे लेखक को जी भर भर कर गालियां देती जिसने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को तार-तार कर दिया था परंतु अपने स्वप्न में सुगना गाहे-बगाहे चूदाई के सपने देखती और खूबसूरत लंड से जी भर कर चुद कर स्खलित होती…और कभी आत्मग्लानि कभी होंठो पर मुस्कुराहट ले सो जाती…



सोनू को गए कई महीने बीत गए थे… 
दीपावली आने वाली थी…


.दीपावली ध्यान में आते ही सुगना को सरयू सिंह याद आ गए..

सुगना चहकते हुए लाली के पास गई …और पूछा


"ए लाली अबकी दिवाली में गांव चलेके…?"



शेष अगले भाग मे
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#95
भाग 86

उधर सुगना ने वह गंदी किताब अलमारी के ऊपर छुपा कर रख दी…वह किताब का आधे से ज्यादा हिस्सा पढ़ चुकी थी.. उस किताब ने सुगना के दिमाग पर भी असर किया था.. और वह उस हरामजादे लेखक को जी भर भर कर गालियां देती जिसने भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को तार-तार कर दिया था परंतु अपने स्वप्न में सुगना गाहे-बगाहे चूदाई के सपने देखती और खूबसूरत लंड से जी भर कर चुद कर स्खलित होती…और कभी आत्मग्लानि कभी होंठो पर मुस्कुराहट ले सो जाती…


सोनू को गए कई महीने बीत गए थे…दीपावली आने वाली थी….दीपावली ध्यान में आते ही सुगना को सरयू सिंह याद आ गए..

सुगना चहकते हुए लाली के पास गई …और पूछा


"ए लाली अबकी दिवाली में गांव चलेके…?"

अब आगे…

प्रश्न पूछा गया था लाली से परंतु उत्तर सोनी ने दिया जो हॉल में आ चुकी थी…

*हां दीदी अब की दिवाली गांव पर ही मनावल जाई हमरो छुट्टी बा…

मां और मोनी के भी ओहिजे बुला लिहल जाई…"

लाली भी खुश हो गई उसे भी अपने माता-पिता से मिलने का अवसर प्राप्त होता और त्योहारों की खुशियां वैसे भी पूरे परिवार के साथ मनाने में ही आनंद था ..

सुगना ने सोनी से कहा..

"आज बाजार जाकर सोनू के फोन कर दीहे दू चार दिन पहले जाई तब साथे गांव चलेके"

"ठीक बा दीदी…"


सोनी…. खुशी खुशी तैयार होने चली गई..

सोनी यद्यपि रहने वाली सीतापुर गांव की थी परंतु उसे सलेमपुर में ज्यादा मजा आता था वहां वह मेहमान की हैसियत से आती थी और अपनी बहन सुगना की खातिरदारी का आनंद उठाती थी ।

गांव की सारी महिलाएं महिलाएं सोनी की पढ़ाई की कायल थी सोनी ने अपने गांव का नाम रोशन किया था। शायद वह अपने गांव की पहली महिला थी जो आने वाले समय में नौकरी करने के लायक थी।


एक तो सोनी जिस नर्सिंग की पढ़ाई पढ़ रही थी वह गांव वालों की प्राथमिक चिकित्सा के लिए डॉक्टर ही थी। सोनी ने अपने सामान्य ज्ञान ने कई गांव वालों की मदद की थी और गांव की महिलाएं उसे समय से पूर्व ही डॉक्टर जेड डॉक्टर कहकर बुलाने लगी थीं और सोनी को यह सम्मान बेहद पसंद आता था।

ऐसा ना था की सोनी को सलेमपुर सिर्फ इसलिए ही भाता था, उसे वहां के मनचले लड़के भी पसंद आते थे।

जैसे-जैसे सोनी युवा होती गई सलेमपुर के लड़के उसके मादक और कमसिन शरीर के दीवाने होते गए। गांव के मनचले लड़के उस पर नगर निगाह टिकाए रखते। इसका एहसास सोनी को बखूबी होता। सरयू सिंह के रूतबे की वजह से मनचले सोनी को अपनी निगाहों से तो ताड़ते तो जरूर परंतु उसे छूने और उसके करीब आने की हिम्मत न जुटा पाते।

सोनी को लड़कों की यह बेचैनी और बेकरारी बेहद पसंद आती उसे अपनी चढ़ती हुई जवानी का एहसास था और वह उसका भरपूर आनंद ले रही थी। आज नहाते वक्त वह उन्हीं बातों को याद कर रही थी।


बनारस आने के बाद उसने विकास से संबंध बना लिए थे और अब वह जवानी के मजे लूट चुकी थी। शरीर में आया बदलाव स्पष्ट था। वह एक बार खुद को गांव की पगडंडियों पर चलते हुए देख रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसे यह एहसास हो रहा था कि उसके गदराये हुए नितंब पगडंडियों पर चलते समय पीछे से कैसे दिखाई पड़ रहे होंगे?.

उसने अपने नितंबों को देखने के लिए गर्दन घुमाई परंतु उनकी खूबसूरती के दर्शन न कर पाईं…उसने अपने दोनों हाथों से अपने नितंबों को सहलाया और उनके आकार का अंदाज लगाने लगी निश्चित ही जिस अनुपात में हथेलियां बड़ी थी नितंब उससे ज्यादा…..

सोनी ने अपने नितंबों को स्वयं अपने ही हाथों से फैलाया और उसे विकास की याद आ गई….


उसकी हथेलियां एक बार फिर उसकी कोमल जगहों पर घूमने लगी एक हथेली ने चुचियों का मोर्चा संभाला और दूसरी उस गहरी गुफा से प्रेम रस खींचने की कोशिश करने लगीं ….सोनी आनंद से सराबोर थी…उंगलियों और का करतब कुछ देर और चला और सोनी पूरी तन्मयता से अपने हस्तमैथुन का आनंद लेने लगी…

"सोनी 9:00 बज गइल तोरा देर नइखे होत? कतना नहा तारे?"

सोनी ने अपनी उंगलियों की रफ्तार बढ़ा दी और कुछ ही देर में स्खलित हो कर अपना स्नान पूर्ण कर लिया…

कुछ देर बाद …सोनी तैयार हुई और खुशी-खुशी बाजार जाकर सोनू को फोन लगा दिया..

"हां भैया हम सोनी बोला तानी.."

"का हाल बा? सब ठीक बानू?"

"हां सुगना दीदी कहली हा कि अबकी दिवाली सलेमपुर में मनावल जाई तू जल्दी आ जाई ह?"

"सुगना की बात सुनकर सोनू खुश हो गया"

"ठीक बा हम दो-चार दिन पहले आ जाएब"

"दीदी और कुछ कहत रहली हा?"

"काहे कुछ बात बा का?"

सोनी का प्रश्न सुनकर सोनू आश्चर्य में पड़ गया वह उसे एहसास हुआ जैसे उसने सोनी से जो प्रश्न पूछा था वह सुगना के प्रति उसकी व्यग्रता जाहिर कर रहा था।

"ना ना असहीं पूछ तानी हां"

"दिन भर तहारा खातिर लइकिन के फोटो देखत रहेले "

"और लाली दीदी"

"ऊहो तहरा के याद करेली?"

सोनी को अब तक यह ज्ञात न था कि लाली और सोनू के बीच अब रिश्ते बदल चुके थे फिर भी सोनू लाली को पूरे सम्मान से दीदी बुलाता और सोनी के मन में कोई गलत ख्याल पैदा ना होने देता।

सोनू सुगना के बारे में और भी बातें करना चाहता था.. परंतु सोनी से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती थी.. सोनी को क्या पता था कि उसका बड़ा भाई सोनू अपनी ही बड़ी बहन सुगना के प्यार में पागल हुआ जा रहा था……


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उधर मनोरमा अपने नए बंगले में शिफ्ट हो चुकी थी। सोनू से मिलने के बाद उसके मन में सरयू सिंह की यादें एक बार फिर ताजा हो गई। जब जब वह पिंकी को देखती उसके मासूम चेहरे में उसे सरयू सिंह दिखाई पड़ते…यद्यपि सरयू सिंह कहीं से मासूम न थे परंतु मनोरमा के प्रति उनका सम्मान सराहनीय था वह सदैव उसका यथोचित सम्मान करते और अन्य साथियों को भी उसके प्रति एक आदर्श व्यवहार की प्रेरणा देते।


बनारस महोत्सव की उस रात को छोड़ सरयू सिंह ने कभी भी उसके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाई और यथोचित सम्मान और आदर देखकर उसके पद की गरिमा बनाए रखी थी मनोरमा सरयू सिंह से बेहद प्रसन्न रहती थी और प्रत्युत्तर में उनका भी सम्मान बनाए रखती थी।

बनारस की उस कामक रात को याद कर रही थी। सेक्रेटरी साहब से विवाह बंधन टूटने के पश्चात जैसे मनोरमा के दिमाग में उसे उस कामुक रात को याद करने की खुली छूट दे दी थी।

मनोरमा के मन में अब भी यह प्रश्न बार-बार खटक रहा था कि आखिर सरयू सिंह उस दिन उस कमरे में किसका इंतजार कर रहे थे…


क्या सरयू सिंह अविवाहित होने के बावजूद इस तरह के संबंध रखते थे? परंतु किससे?

सुगना और सरयू सिंह के संबंध मनोरमा की कल्पना से परे थी? उसके नजरों में यह एक निकृष्ट व्यभिचार था। सरयू सिंह से इसकी उम्मीद कतई नहीं की जा सकती थी ।

तो क्या कजरी? हां यह हो सकता है। आखिर वह उनकी हम उम्र भी थी और एक तरह से परित्यक्ता। भाभी देवर का संबंध वैसे भी हंसी ठिठोली का होता है…. हो सकता है सरयू सिंह कजरी के करीब आ गए हों..या कोई और महिला?


मनोरमा अपने पति को छोड़ने के बाद स्वयं एक परित्यक्ता की भूमिका में आ चुकी थी। उसे खुद और कजरी में समानता दिखाई पड़ने लगी। आखिर दोनों ही युवतियों को उनके पतियों ने छोड़ दिया। जिस तरह सरयू सिंह ने कजरी की प्यास बुझाई थी क्या वह उसकी भी प्यास …..मनोरमा ने खुद से यह प्रश्न किया और खुद ही मुस्कुराने लगी….

मनुष्य की सोच कभी-कभी इतनी असामान्य और असहज होती है कि वह अपनी सोच पर ही मुस्कुराने लगता है…

मनोरमा ने मन ही मन सोच लिया कि जब कभी उसकी मुलाकात सरयू सिंह से होगी वह इस बात का जिक्र जरूर करेगी और यह जानने का प्रयास करेगी कि आखिर सरयू सिंह उस दिन किसका इंतजार कर रहे थे…

मनोरमा सरयू सिंह के बारे में जैसे जैसे सोचती गई वैसे वैसे वह सहज होती गई। उसे सरयू सिंह के साथ बिताए गई उस रात का कोई अफसोस न था अपितु उसने उस मुलाकात को भगवान की देन मान लिया था।


जिस संभोग ने उसकी पथराई कोख में सुंदर पिंकी को सृजित किया था वह गलत कैसे हो सकता है? सुगना मनोरमा उस रात को याद करने लगे तभी उसे सरयू सिंह के उस लाल लंगोट का ध्यान आया जिसे मनोरमा अपने साथ ले आई थी… उसमें अपनी अलमारी से वह लाल लंगोट निकाला और उसे ध्यान पूर्वक देखने लगी..वह लाल लंगोट सरयू सिंह के मजबूत लंड कैसे अपने आगोश में लेता होगा और सरयू सिंह उस लंगोट में कैसे दिखाई पड़ते होंगे … मनोरमा यह सोचकर मुस्कुराने लगी ..

[b]सरयू सिंह
के मर्दाना शरीर के बारे में सोचते सोचते मनोरमा कब उत्तेजित हो चली थी उसे इसका एहसास तब हुआ जब से अपनी जांघों के बीच नमी महसूस हुई.। और अब जब उत्तेजना ने मनोरमा को घेर लिया था मनोरमा खुद को ना रोक पाई।

बिस्तर पर अपनी जांघों के बीच तकिया फसाए मनोरमा अब एक एसडीएम न होकर एक उत्तेजित महिला की तरह तड़प रही थी.. वह अपनी जानू को सिकुड़ कर कभी अपने पेट की तरफ लाती कभी अपने पैर सीधे कर देती …नियति मनोरमा की तरफ देख रही थी और अपने ताने-बाने बुन रही थी।[/b]

कामुक मनोरमा का यह रूप बिल्कुल अलग था कई दिनों की बल्कि यूं कहें कई वर्षों की प्यासी मनोरमा की के अमृत कलश पर सरयू सिंह ने जो श्वेत धवल वीर्य चढ़ाया था और मनोरमा को जो तृप्ति का एहसास दिलाया था वह अद्भुत था…

आज मनोरमा को यह एहसास हो रहा था कि उस मुलाकात ने उसे उस अद्भुत सुख से परिचय कराया था जिस पर हर स्त्री का हक है …खूबसूरत जिस्म और मादक अंगो से सुसज्जित मनोरमा की सोच पर कामुकता हावी हो रही थी और उसे सरयू सिंह एक कामदेव के रूप में दिखाई पड़ रहे थे..

एक बार के लिए मनोरमा के मन में आया कि वह सरयू सिंह से मिलने के लिए सलेमपुर जाए परंतु स्त्री हया और अपने पद के गौरव के अधीन मनोरमा को यह निर्णय व्यग्रता भरा लगा । वह मन मसोसकर रह गई परंतु सलेमपुर जाने का निर्णय न ले पाईं.. परंतु उसकी तड़प ऊपर वाले ने सुन ली और नियति सरयू सिंह को लखनऊ लाने की जुगत लगाने लगी..



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उधर शाम को सोनी ने आकर सोनू से हुई बातचीत का सारा विवरण सुगना और लाली को बता दिया दोनों बहने प्रसन्न हो गई..

सुगना के चेहरे पर चमक स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी सोनू और पूरे परिवार के साथ गांव पर दीवाली मनाने की बात सोचकर सुगना बेहद खुश थी।


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कुछ ही दिनों में उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव कराए जाने थे। तात्कालिक सरकार में नई भर्ती वाले सभी प्रशासनिक अधिकारियों की ट्रेनिंग एक महीना कम कर दी। सोनू और उसके साथी भी इस निर्णय से प्रभावित हुए परंतु उन सभी के चेहरे पर हर्ष व्याप्त था। आखिर अपने ओहदे पर काम करना और क्लासरूम में ट्रेनिंग करना दोनों अलग-अलग बातें थी। ट्रेनिंग समाप्ति पर एक विशेष कार्यक्रम रखा गया था जो आने वाली दीपावली से लगभग 1 सप्ताह पूर्व था। मनोरमा ने कक्षा में आकर सोनू और उसके साथियों को इसकी सूचना दी और कहा..

"आप सबको जानकर हर्ष होगा कि आप की ट्रेनिंग एक महीना कम कर दी गई है। ट्रेनिंग की समाप्ति पर आप सब अपने परिवार के अधिकतम 3 सदस्यों को उस विशेष कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए बुला सकते हैं। इसी कार्यक्रम में इस ट्रेनिंग क्लास के प्रतिभाशाली छात्रों को सम्मानित किया जाएगा।"

"मैडम परिवार के सदस्यों के रहने की व्यवस्था कहां की जाएगी एक विद्यार्थी ने प्रश्न किया…"

"सभी पार्टिसिपेंट और उनके परिवार के लिए शारदा गेस्ट हाउस में दो कमरे दो दिनों के लिए उपलब्ध रहेंगे.. जिसमें उनके रहने खाने का प्रबंध होगा परंतु आने-जाने का खर्च आपको स्वयं वहन करना होगा…."

क्लास के सारे प्रतिभागियों में खुशी की लहर दौड़ गई आखिर अपनी ट्रेनिंग के आखिरी दिन अपने परिवार के साथ होना और उनके समक्ष प्रशासनिक पद के कार्यभार ग्रहण करने की शपथ लेना सभी के लिए एक गर्व की बात थी हर कोई अपने परिवार के हम सदस्यों को उस दिन आमंत्रित करना चाहता था ।

अधिकतर प्रतिभागी अपने माता पिता और छोटे भाई बहनों को बुलाने की सोच रहे थे परंतु सोनू के लिए दुविधा अलग थी एक तरफ पितातुल्य सरयू सिंह थे जिन्होंने उसकी पढ़ाई लिखाई में बहुत मदद की थी दूसरी तरफ उसकी अपनी मां पदमा जिसने उसे पाल पोस कर बड़ा किया और सबसे ज्यादा सुगना जिसके साथ रहकर उसने इस प्रशासनिक पद की तैयारियां की थी और अपनी बड़ी बहन के सानिध्य और सतत उत्साहवर्धन से आज वह इस मुकाम पर पहुंचा था।

सोनू ने उन तीनों को ही बुलाने की सोची और उसने यह संदेश तीनों तक पहुंचा दिया। उस समय संदेश पहुंचाना भी एक दुरूह कार्य परंतु टेलीफोन पर आया मैसेज लोग एक दूसरे की मदद के लिए उन तक अवश्य पहुंचा देते थे । पदमा आना तो चाहती थी परंतु मोनी को छोड़कर लखनऊ जाना यह संभव न था। एक बार के लिए पदमा के मन में आया कि वह मोनी को सुगना के पास छोड़कर लखनऊ चली जाए परंतु खेती किसानी के कार्य के कारण वह यह निर्णय न ले पाई। गांव मैं मोनी को अकेले छोड़ना उचित न था उसकी गदराई काया के कई दीवाने थे और अक्सर उस पर नजरें गड़ाए रखते थे मोनी को इनसे कोई सरोकार न था परंतु उन्हें जो मोनी से चाहिए था वह सबको पता था। वह उसकी जवानी का अपनी आंखों से ही रसास्वादन गाहे-बगाहे कर लिया करते थे।

उधर सरयू सिंह सहर्ष तैयार हो गए और सुगना भी।

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सोनू का संदेश सब सुनना के घर पहुंचा तो सबसे ज्यादा दुखी लाली थी आखिर उसने भी दो सोनू की ठीक वैसे ही सेवा की थी जैसे सुगना ने की थी अभी तो उससे कहीं ज्यादा सोनू जब बनारस पढ़ने आया था वह तब से लाने के घर आता जाता था सुगना तो बनारस कुछ वर्ष पहले ही आए थे वैसे भी लाली सोनू से ज्यादा करीब आ चुकी थी परंतु अपना-अपना होता है सोनू और सुगना बचपन से साथ रहे थे और उनके बीच की आत्मीयता बेहद गहरी थी लाली सोनू के करीब अवश्य थी पर शायद वह सुगना न थी।

ऐसा नहीं था कि सोनू ने लाली के बारे में सोचा न था। परंतु जब आपके पास विकल्प कम तो निश्चय ही चयन की प्रक्रिया आरंभ होती है और चयन निश्चित ही कुछ प्रतिभागियों के लिए दुखदाई होता है । लाली ने भी अपनी स्थिति का आकलन किया और सोनू के निर्णय को समझने का प्रयास किया । सोनू से दुखी या उसे गलत ठहराने का कोई कारण न था। लाली ने अपने दुख पर नियंत्रण किया और खुशी खुशी सुगना को लखनऊ भेजने के लिए तैयारियां कराने लगी।

सुगना के लिए अपनी ही आंखों के सामने अपने छोटे और काबिल भाई को प्रशासनिक पद की शपथ करते ग्रहण करते देखना उसके लिए खुशी की बात थी।

सुगना लाली को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी आखिर वही उसकी सुख दुख की सहेली थी परंतु यह संभव न था सारे बच्चों को और पूरे कुनबे को ले जाना संभव न था न हीं लखनऊ में रहने की व्यवस्था थी…..


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पहले के दिनों में एक दूसरे से बात कर पाने की इतनी सुविधा न थी पदमा अपने लखनऊ न जाने की बात सोनू को बता भी ना पाई उसने इतना जरूर किया कि अपने न जाने की खबर किसी हर कार्य से सलेमपुर सरयू सिंह तक पहुंचा दी सरयू सिंह कजरी को लेकर बनारस के लिए निकल पड़े..

कजरी ने सरयू सिंह से मुस्कुराते हुए कहा .. "अब त कालू मल 2 दिन अकेले ही रहीहे इनकर सेवा के करी..?"

सरयू सिंह ने लंबी सांस भरी वह कजरी के मूक प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे..

"अच्छा रउआ सुगना के ऊ (लंड) काहे ना छूवे ना देवेनी? पहले तो दिन भर उतरा के गोदी में लेले राहत रहनी अब अइसन का हो गईल बा…?

दरअसल सुगना से कई दिनों दूर रहने के पश्चात सरयू सिंह धीरे-धीरे अपनी आत्मग्लानि को कम करने में सफल रहे थे और धीरे-धीरे उनका लंड स्त्री योनि की तलाश में सर उठा कर घूमने लगा था..

सरयू सिंह के धोती में चाहे जितनी ताकत छुपी हो पर चेहरे पर आए उम्र का असर उनकी मर्दाना ताकत पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता था। भला क्यों कर कोई तरुणी 5२ - 5४ वर्ष के मर्द से संभोग की लालसा रख उनके समीप आएगी?


परंतु कजरी सरयू सिंह के मन और विचार दोनों से भलीभांति वाकिफ थी उनके धोती में आ रहे उबाल को संभालना उसे बखूबी आता था। अब वह संभोग तो नहीं कर सकती थी परंतु अपने कुशल हाथों से सरयू सिंह के लंड का मान मर्दन करना उसे बखूबी आता था। जिस हस्तमैथुन क्रिया को उसने कुछ वर्षों से छोड़ दिया था उसने [b]सरयू सिंह की इच्छा और खुशी का मान रखने के लिए वह अपने हाथों से सरयू सिंह के लंड को सहलाना और उसका वीर्यपात कराने लगी थी। सरयू सिंह को कजरी का साथ इसीलिए बेहद पसंद था वह उसे एक पल भी नहीं छोड़ना चाहते थे।

...[/b]


सोनू की प्रसिद्धि गांव में तेजी से बढ़ रही थी और उसके लिए आने वाले रिश्तो की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी शरीर सिंह बनारस आते समय 46 लड़कियों की फोटो अपने साथ लेकर आ रहे थे..

बनारस स्टेशन पर उतरकर सरयू सिंह ने ऑटो किया और सुगना के घर की तरफ चल पड़े उधर सुगना और लाली अपने घर के बाहर बैठे धूप ताप रहे थे जैसे ही ऑटो उनके घर की तरफ आता दिखाई पड़ा लाली और सुगना सतर्क हो गए।


सर पर से हटे पल्लू ने अपनी जगह पकड़ ली और सुगना के सुंदर मुखड़े को और भी सुंदर बना दिया। सरयू सिंह आ चुके थे ऑटो से उतर कर वह अंदर आ गए। सुगना ने उनके और कजरी के चरण छुए…और सुगना कजरी के गले लग गई। सुगना के आलिंगन का सुख सरयू सिंह ने स्वयं छोड़ा था और अब सुगना भी उनकी मनोदशा समझ चुकी थी ।

सरयू सिंह अभी भी उसके ख्वाबों में आकर उसे गुदगुदाते उसे छूते उसे सहलाते और उसकी उत्तेजना जागृत करते परंतु हकीकत सुगना भी जानती थी कि जो कामसुख उसने सरयू सिंह के साथ उठाए थे अब शायद वह न उचित और न संभव । सुगना एक आदर्श बहू के रूप में व्यवहार कर रही थी और सरयू सिंह भी अपना रिश्ता निभा रहे थे जो सिर्फ वही जानते थे…

सुगना को जब पता चला उसकी मां पदमा लखनऊ नहीं जा रही है उसने तुरंत ही लाली से कहा यह लाली तू भी संग चल

लाली पहले निमंत्रण न मिलने से दुखी थी और अब वह पदमा की जगह जाने को तैयार ना हुई उसने अपने मनोभावों छुपा लिए और सहजता से बोली अरे अपना सारा बच्चा लोग के के देखी कजरी में सुगना का पक्ष लिया परंतु लाली तब भी ना माने और अंततः बारी सोनी कि आई सोनी जाना तो चाहती थी परंतु उसकी नर्सिंग कॉलेज में कुछ प्रोग्राम था अंततः जाने के लिए मना कर दिया।


सरयू सिंह और सुगना लखनऊ जाने के लिए अपनी तैयारियां करने लगे… दोनों छोटे बच्चे सूरज और मधु को भी सुगना के साथ लखनऊ जाना था। रतन की पुत्री मालती ने लाली के बच्चों के साथ रहना खेलना उचित समझा और कजरी के सानिध्य में 2 दिन रहने के लिए स्वत: ही हामी भर दी….

सरयू सिंह ने आज भी सोनी की गदराई जवानी को देखा बल्कि उसके असर को अपने लंड पर भी बखूबी महसूस किया…. उनका कामुक मन सुगना की बहन सोनी को अपनी साली के रूप में देख लेता था..परंतु जब उन्हें सुगना का ध्यान आता वह तुरंत ही वापस सतर्क हो अपनी कुत्सित सोच पर लगाम लगा लेते।


<>

अगली सुबह सरयू सिंह अपने पुत्र सूरज को गोद में लिए को अपनी गोद में लिए स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। पास खड़ी सुगना अपना घुंघट ओढ़े मधु को अपनी गोद में लिए हुए थी…

नियति मुस्कुरा रही थी सरयू सिंह ने जिस नवयौवना के यौवन का जी भर कर आनंद लिया था वह पुत्री रूप में उसने बगल में खड़ी अपने अंतरमन से जूझ रही थी…

एक पल के लिए सुगना को ऐसा लगा जैसे उसके बाबूजी उसे अपने से दूर कर उसे सोनू के आगोश में देने जा रहे थे..

सुगना भी जानती थी ऐसा कतई न था परंतु अपनी सोच पर सुगना स्वयं मुस्कुरा उठी…

वासना जन्य सोच पर किसी का नियंत्रण नहीं होता कामुक मन ... कुछ भी कितना भी और कैसा भी, अच्छा बुरा , उचित अनुचित यहां तक कि घृणित संबंध भी सोच सकता है..

ट्रेन की सीटी ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला और वह सरयू सिंह के पीछे पीछे ट्रेन में चढ़ने के लिए चलने लगी..


शेष अगले भाग में..
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#96
Heart 
आह... तनी धीरे से... दुखाता


यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।


Heart


ALL CREDIT GOES TO ORIGINAL WRITER = लवली आनंद
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#97
Heart 
भाग 87 Heart

भाग 87

नियति मुस्कुरा रही थी सरयू सिंह ने जिस नवयौवना के यौवन का जी भर कर आनंद लिया था वह पुत्री रूप में उसने बगल में खड़ी अपने अंतरमन से जूझ रही थी…


एक पल के लिए सुगना को ऐसा लगा जैसे उसके बाबूजी उसे अपने से दूर कर उसे सोनू के आगोश में देने जा रहे थे..

सुगना भी जानती थी ऐसा कतई न था परंतु अपनी सोच पर सुगना स्वयं मुस्कुरा उठी…

वासना जन्य सोच पर किसी का नियंत्रण नहीं होता कामुक मन ... कुछ भी कितना भी और कैसा भी, अच्छा बुरा , उचित अनुचित यहां तक कि घृणित संबंध भी सोच सकता है..

ट्रेन की सीटी ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला और वह सरयू सिंह के पीछे पीछे ट्रेन में चढ़ने के लिए चलने लगी..


##

सुगना को अपने पीछे आते देख सरयू सिंह ने उसके हाथ से उसका झोला ले लिया और तेजी से ट्रेन में चढ़ गए। सुगना अभी भी मधु को अपनी गोद में पकड़े ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ी थी सरयू सिंह ने झोला जमीन पर रखा और अपने मजबूत हाथ बढ़ा दिये।


सुगना ने अपने हाथ निकाले। सुगना की गोरी गोरी भुजाओं को देखकर सरयू सिंह के दिमाग में सुगना की खूबसूरत काया घूम गई।सुगना के हाथों का स्पर्श पाते ही उनकी तंद्रा भंग हुई और उन्होंने सुगना कि कोमल कलाइयां पकड़ ली…

सुगना ने भी उस स्पर्श को महसूस किया और उसके रोएं उसकी त्वचा का साथ छोड़ कर खड़े हो गए..जैसे वो स्वयं सरयू सिंह से मिलने को उतावले हो रहे थे। सुगना सरयू सिंह का सहारा लिए ट्रेन में चढ़ने लगी मधु के गोद में होने की वजह से सुगना को चढने में दिक्कत हो रही थी तभी पीछे खड़े एक मनचले युवक ने सुगना को पीछे से धक्का देकर ट्रेन में चढ़ाने की कोशिश की आपदा में अवसर खोज कर सुगना की कमर पर हाथ फेर लिया।

सुगना को यह अटपटा लगा परंतु उसने उस व्यक्ति के धक्के में मिले सहयोग को ज्यादा वरीयता दी…उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा और अपनी निगाहों से उसने युवक की निगाहों की पढ़ने की कोशिश की..

निश्चित ही उस युवक की आंखों में कामुकता थी। सुगना ने कोई प्रतिक्रिया देना उचित न समझा वह वहां कोई बवाल नहीं खड़ा करना चाहती थी। सुगना भली भांति यह बात जानती थी कि यह बात सरयू सिंह को पता चल जाती तो निश्चित ही उस युवक की खैर नहीं थी..

सरयू सिंह और सुगना ट्रेन में आ चुके थे और वह मनचला युवक भी…

वह युवक सुगना जैसी सुंदरी को देखकर हतप्रभ था उसने कई युवतियां और महिलाएं देखी थी परंतु सुगना उसके लिए कतई अलग थी। इतनी गोरी और चमकती त्वचा उसने शायद ही पहले कहीं नही देखी थी ऊपर से सुगना का मासूम और सुंदर चेहरा… सुगना के प्रतिकार न करने की वजह से उसका उत्साह बढ़ गया था जैसे ही सरयू सिंह कुछ देर के लिए ट्रेन के बाथरूम में गए उसने सुगना से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की।

सुगना उस युवक के व्यवहार से असहज महसूस कर रही थी। परंतु वह युवक न जाने किस भ्रम में सुगना के करीब आने की कोशिश कर रहा था। कुछ देर की असमंजस को एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने रोक दिया …. उस युवक ने अपने गाल को हाथ से सहलाते हुए गुस्से से मुड़ कर पीछे की तरफ देखा तभी दूसरे उसके गाल पर भी सरयू सिंह का तेज तमाचा पड़ा..

"बेटी चोद…. यही सब करने ट्रेन में आता है…"

सरयू सिंह क्रोध से भरे थे.. उन्होंने उस युवक को और मारने की कोशिश की परंतु सफल ना हुए लोगों ने बीच-बचाव कर उस युवक को सरयू सिंह से अलग कर दिया… नियति मुस्कुरा रही थी …सरयू सिंह जिन्होंने स्वयं अपनी बेटी को अनजाने में ही सही पर वर्षों तक चोदते रहे थे वह स्वयं उस अनजान व्यक्ति को बेटीचोद कह रहे थे।


वह युवक भी क्रोध से भरा था परंतु सरयू सिंह से भिड़ने की उसकी हिम्मत न थी वह वहां से चुपचाप कट लिया और सरयू सिंह सुगना के समीप बैठ गए…

आसपास बैठे लोग सरयू सिंह और सुगना को देख रहे थे…इस अनोखी जोड़ी के बीच तारतम्य को समझने का प्रयास कर रहे थे…

दिमाग शांत होते ही सरयू सिंह के मन में अचानक अपने ही कहे शब्द गूंजने लगे…. बेटीचोद… हे भगवान सरयू सिंह ने अपने ही शब्दों का मतलब निकाला और बेहद दुखी हो गए। उनका मन अचानक खिन्न हो गया।


उन्होने गाली तो उस युवक को दी थी परंतु नियति ने उन्हें खुद उस गाली का पात्र बना दिया था। सरयू सिंह के चेहरे पर तनाव देखकर सुगना खुद को रोक ना पाई और उसने बेहद संजीदगी से कहा ..

"जाएदी ऊ कुल लफुआ लोग कभी कभी भेंटा जाला…. रऊआ परेशान मत होखी.."

सुगना की मीठी आवाज ने सरयू सिंह के दुख को कुछ तो कम किया परंतु वह शब्द बेटी चोद उनके दिमाग में बार बार घूम रहा था… उन्होंने जो सुगना के साथ किया था स्वाभाविक तौर पर हुआ था परंतु था तो गलत…

सरयू सिंह को विशेषकर वह बात ज्यादा परेशान करती की क्यों उन्होंने सुगना जैसी मासूम को गर्भधारण से बचाने के लिए उसकी प्रिय मिठाई मोतीचूर के लड्डू में मिलाकर दवाई खिलाई थी और वह यह कार्य एक बार नहीं अपितु कई वर्षों तक करते रहे थे…

सुगना से उनके संभोग का रास्ता कजरी ने उसे गर्भवती करने के लिए ही प्रशस्त किया था पर सरयू सिंह सुगना जैसी मादक और कमसिन सुंदरी से अनवरत संभोग का मोह न त्याग पाए और उन्होंने सुगना को अपने मोहपाश में बांध लिया। सुगना से संभोग का जितना आनंद सरयू सिंह ने लिया था अब उसे याद कर वो दुखी हो रहे थे…

ट्रेन की धीमी होती रफ्तार और स्टेशन पर बढ़ते शोर ने सरयू सिंह और सुगना का ध्यान आकर्षित किया…

लखनऊ स्टेशन पर पपीता बेचने वाले उस समय भी उतने ही सक्रिय थे जैसे आजकल हैं। सरयू सिंह और सुगना ने अपना अपना सामान उठाया और वापस ट्रेन से उतरने की कोशिश करने लगे…


सरयू सिंह ने इस बार विशेष ध्यान दिया कि सुगना को उतरने में कोई तकलीफ ना हो और किसी अन्य अनजान आदमी के हाथ सुगना को ना छुए।

वह युवक दूर खड़ा सरयू सिंह और सुगना को देख रहा था। उसकी आंखों में अभी भी गुस्सा था पर वह मजबूर था। अपने प्रतिकार को अपने सीने में दबाए वह चुप चाप स्टेशन के बाहर निकल गया.

बाहर खड़ा सोनू सरयू सिंह और सुगना को देखकर खुश हो गया। कुछ ही देर में सरयू सिंह सुगना और दोनों छोटे बच्चे पूर्व निर्धारित गेस्ट हाउस में उपस्थित थे.. एक कमरे में सरयू सिंह और दूसरे में सुगना…

नियति और सुगना दोनों परेशान थे… सरयू सिंह और सुगना ने न जाने कितनी रातें साथ बिताई थी और अब जब वह दोनों शहर से दूर आज होटल नुमा गेस्ट हाउस में थे तब वह दोनों अलग-अलग कमरों में रहने को मजबूर थे… परंतु परंतु विधाता ने उनके लिए जो सोच रखा था वह होना ही था..


लखनऊ के आसमान पर हल्के हल्के बादल इकट्ठे हो रहे थे…मौसम खुशनुमा हो रहा था.. सुगना आज कई दिनों बाद घर के चूल्हे चौके से मुक्ति पाकर सरयू सिंह के साथ बाहर निकली थी…. और गेस्ट हाउस में बैठे अपने बच्चों के साथ खेल रही थी तभी सोनू नाश्ते के सामान और बच्चों के लिए अलग-अलग किस्म की मिठाइयां लेकर आ गया….सरयू सिंह सुगना और सोनू ने मिलकर नाश्ता किया… सरयू सिंह बीच-बीच में सुगना को देखते और उसे खुश देखकर स्वयं प्रफुल्लित हो उठते।


परंतु जब जब सोनू की निगाहें सुगना से मिलती सुगना की निगाहें न जाने क्यों झुक जाती। सुगना को अब सोनू से नजरें मिलाने में न जाने क्यों शर्म आ रही थी?

शायद उसने जो अपने सपनों में देखा था उसने उसका आत्मविश्वास छीन लिया था वह सोनू के सामने अब पहले जैसी सहज न थी।

परंतु सोनू वह तो धीरे-धीरे एक मर्द बन चुका था सुगना कि वह इज्जत जरूर करता था परंतु जब से उसने सुगना के कमरे से वह गंदी किताब का एक हिस्सा ले आया था उसे …सुगना का जीवन अधूरा लगता था ऐसा लगता था जैसे सुगना एक अतृप्त युवती थी....वह बार बार यही सोचता .... लाली की तरह ही काश वह उसकी अपनी सगी बहन ना होती…

सोनू सुगना की खूबसूरती में खोया हुआ था तभी उसका ध्यान भंग किया उसके भांजे सूरज ने ।

सूरज ने सोनू की मूछों को खींचते हुए बोला मामा..

चलअ घूमने चलअ…...

सुगना ने भी सूरज का साथ दिया और कहा "ले जो बाबू के घुमा ले आओ आवत खाने तनी दूध लेले अइहे "

सोनू सूरज को लेकर बाहर निकल गया कमरे में सरयू सिंह सुगना और छोटी मधु रह गए अपने भाई सूरज को मामा की गोद में जाते देख मधु भी रोने लगी और अंततः सरयू सिंह को उसे अपनी गोद में लेकर बाहर गलियारे में जाना पड़ा….

सुगना एकांत का फायदा उठाकर गुसल खाने में नहाने चली गई।सुगना ने अपने कपड़े गीले करना उचित न समझा वैसे भी वहां कपड़े धोने की व्यवस्था न थी उसने नग्न होकर स्नान करना उचित समझा।

अपने नंगे बदन पर 
झरने से आ रही पानी की फुहारों के बीच एक सुखद स्नान का आनंद लेने लगी…
नग्नता और वासना में चोली दामन का साथ होता है.. नग्न सुगना स्वयं अपने सपाट पेट को देखकर खुश हो रही थी 2 बच्चों को जन्म देने के बावजूद उसके पेडू प्रदेश पर अतिरिक्त मांस जमा ना हुआ था। सुगना की बुर के ऊपर उगे झुरमुट अब भी घुंघराले थे और बेहद खूबसूरत लगते थे.. अपनी खूबसूरती का मुआयना करते करते सुगना सरयू सिंह और सोनू के बारे में सोचने लगी …

सुगना सरयू सिंह के लंड को याद करें और उसकी बुर गीली ना हो यह संभव न था ….. सुगना ने मन में मीठी-मीठी उत्तेजना लिए अपना स्नान पूरा किया और लाली द्वारा दी गई खूबसूरत नाइटी पहन कर बाहर आ गई उसी समय सरयू सिंह ने दरवाजा खोल दिया…

सुगना को सरयू सिंह से कोई शर्म हया न थी…सुगना ने उनकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए बोली…

"लाई दे दी मधु के हम नहा लेनी"

सरयू सिंह ने सुगना की मादक काया से अपनी नजरें हटा ली और मधु को देकर कमरे से बाहर निकलते हुए बोले "हम जा तानी तानी शहर घूमें सोनू के कह दिया हमार चिंता ना करी हम खाए के बेरा ले आ जाएब"


सरयू सिंह सुगना के साथ एकांत में नहीं रहना चाह रहे थे वह वैसे भी लोगों के बीच रहने वाले आदमी थे। वह अपने तेज कदमों से चलते हुए वह लखनऊ शहर के पास के बाजार में आ गए…

नुक्कड़ पर चाय की दुकान से उन्होंने चाय मंगाई और चुस्कियां लेकर चाय पीते हुए लखनऊ शहर की खूबसूरती का आनंद लेने लगे। इससे पहले कि सरयू सिंह चाय खत्म कर पाते… आसपास से कुछ युवक शोर करते हुए उनकी तरफ बढ़े । सरयू सिंह यह समझ ही नहीं पा रहे थे कि यह शोर क्यों हो रहा था… तभी एक व्यक्ति ने उन पर लाठी से हमला कर दिया… अचानक सरयू सिंह को वह युवक दिखाई दे गया…

"मार साला के एही बेटीचोद हमरा के मरले रहल हा?

सरयू सिंह को आभास हो गया कि वह उस युवक को मारकर फस चुके थे सात आठ आवारा बदमाश एक साथ सरयू सिंह पर आक्रमण कर चुके थे और सरयू सिंह उनका मुकाबला कर रहे थे …

इससे पहले कि वह सरयू सिंह को घायल कर पाते…एक सफेद एंबेसडर आकर वहां रुकी तथा सामने की सीट पर बैठे सिक्युरिटी वाले ने उतर कर अपनी रौबदार आवाज में कहा

"क्या बात है…?"

कुछ पल के लिए ऐसा लगा जैसे वहां कुछ हुआ ही न हो परंतु सरयू सिंह की हालत देखकर सिक्युरिटी वाले ने सारा माजरा समझ लिया उसने उन युवकों को भगाया …और वापस आने लगा…

सरयू सिंह ने एंबेसडर की तरफ देखा तो भौचक रह गए। कार में पीछे बैठी मनोरमा से उनकी निगाहें टकराई और मनोरमा ने अपनी कार का दरवाजा खोल दिया… वह नीचे उतर कर खड़ी हो गई और सरयू सिंह को अपने लड़खड़ाते कदमों से मनोरमा के पास जाना पड़ा…सरयू सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया और बोला

"मैडम आप?"

मनोरमा ने वहां नुक्कड़ पर सरयू सिंह से ज्यादा बातचीत करना उचित न समझा उसने सरयू सिंह को अंदर कार में बैठने का इशारा किया सरयू सिंह ने असमंजस भरी निगाहों से मनोरमा की तरफ देखा।


वह कार में पीछे मनोरमा के साथ बैठने से कतरा रहे थे परंतु कोई चारा न था आगे ड्राइवर और वह सिक्युरिटी वाला बैठा हुआ था सरयू सिंह मनोरमा का आग्रह न टाल पाए और वह कार में मनोरमा के साथ बैठ गए…

लखनऊ की चिकनी..सड़क पर एंबेसडर कार सरपट दौड़ने लगी.।

मैडम मुझे कुछ नहीं हुआ है मैं ठीक हूं मुझे गेस्ट हाउस छुड़वा दीजिए..

"सरयू जी आपको गहरी चोट लगी है यह देखिए आपके गर्दन पर चोट भी लगी है" मनोरमा ने…अपनी पद और प्रतिष्ठा का ख्याल दरकिनार कर अपनी रुमाल से उनकी गर्दन पर लगा रक्त पोछने लगी…


सरयू सिंह ने बारी बारी से अपने शरीर के सभी चोटिल अंगों की तरफ ध्यान घुमाया और महसूस किया कि निश्चित ही मार कुटाई से उनके शरीर को भी कई जगह चोटें पहुंची थी कुछ अंदरूनी और कुछ बाहरी..

इससे पहले वह कुछ कह पाते एंबेसडर एक छोटे क्लीनिक पर जाकर रुक गई..

सरयू सिंह को अंदर ले जाया गया और मनोरमा उनके पीछे-पीछे क्लीनिक में आ गई डॉक्टर उपलब्ध न थे परंतु कंपाउंडर ने मनोरमा को नमस्कार किया और कुछ ही देर में सरयू सिंह की मरहम पट्टी की जाने लगी …दर्द निवारक दवा का इंजेक्शन का लगा कर कंपाउंडर ने कहा..

इन्हें एक दो घंटा आराम करने दीजिएगा उम्मीद करता हूं की वह सामान्य हो जाएंगे…

कंपाउंडर ने सरयू सिंह के चूतड़ों पर वह इंजेक्शन लगाया था शायद अपने होशो हवास में सरयू सिंह ने अपने चूतड़ पर यह पहला इंजेक्शन लिया था…इसके पहले जब वह इसके पहले जब वह हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे तब वह मूर्छित अवस्था में थे और डॉक्टरों ने उनके शरीर के साथ क्या-क्या किया था यह वह जान नहीं पाए थे…

सरयू सिंह और मनोरमा वापस गाड़ी में आ चुके थे। मनोरमा ने ड्राइवर को इशारा किया और एंबेसडर एक बार फिर सरपट दौड़ने लगी कुछ ही देर बाद मनोरमा की गाड़ी उसके खूबसूरत बंगले के सामने रुक गई।

"अरे यह कहां ले आईं आप मुझे?"सरयू सिंह उस खूबसूरत बंगले को देख कर कहा..

मनोरमा गाड़ी से उतर चुकी थी और सरयू सिंह को भी मजबूरन उतरना पड़ा।

थोड़ी ही देर में थोड़ी ही देर में सरयू सिंह मनोरमा के ड्राइंग रूम में बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे और उनकी पुत्री पिंकी उनकी गोद में खेल रही थी…


उधर …सोनू सूरज को घुमा कर वापस आ चुका था…। सुगना ने अपनी नाइटी उतार कर वापस साड़ी पहन ली थी उसे सोनू के सामने इस तरह नाइटी में घूमना नागवार गुजर रहा था आखिर अपने छोटे भाई के सामने कौन सी बड़ी बहन नाइटी में घूमना पसंद करेगी…यद्यपि सोनू और सुगना के बीच उत्तेजना अपनी जगह बना चुकी थी परंतु सुगना ने अब भी अपनी वासना पर काबू कर रखा था…

परंतु सोनू बदल चुका था वह सुगना की खूबसूरती और उसके कामुक अंगो को देखने का कोई मौका न छोड़ता और अब भी उसकी निगाहें ब्लाउज के भीतर और कैद सुगना की गोरी गोरी चूचियों पर टिकी थी।

"सोनू दूध ले आइले हा?" सुगना ने सोनू से पूछा ..

सोनू ने गर्म दूध से भरी बोतल सुगना को पकड़ा दी…

परंतु सोनू की निगाहें अब भी सुगना की फूली हुई गोरी गोरी चूचीयों पर अटकी हुई थी… तक की सुगना उस बोतल को पकड़ती सोनू ने बोतल छोड़ दी और वह सुगना के हाथों से फिसल कर उसकी जांघों पर आ गिरी.. ढक्कन ढीला होने की वजह से दूध छलक कर बाहर आ गया ….सुगना के मुख से आह निकल गई…सोनू अपराध बोध से ग्रस्त बार-बार अपने हाथों से सुगना की जांघो पर गिरे गर्म दूध को हटाने की कोशिश कर रहा था। सोनू ने पास पड़े पानी के बोतल से पानी लेकर सुगना की जांघों को ठंडा करने की कोशिश की वह कुछ हद तक कामयाब भी हुआ .. अस्त व्यस्त हो चुकी सुगना की साड़ी गीली हो चुकी थी ।

उसके पास कोई चारा न था वह एक बार फिर बाथरूम में गई और उसी नाइटी को पहन कर वापस आ गई जिसे उसने शर्म वश उतार कर रख दिया था…सुगुना ने अपनी नग्न जांघों का मुआयना किया…..गर्म दूध ने सुगना की जांघ पर अपना निशान छोड़ दिया….था..

सुगना एक बार फिर कमरे में आ चुकी थी। सोनू ने सुगना को देखते ही पूछा

"दीदी जरल त नईखे?"

सुगना ने सोनू को तसल्ली देते हुए कहा

"ना ना ज्यादा गर्म ना रहे …ठीक बा... ज्यादा नाइखे जरल लेकिन हमार कपड़ा खराब हो गएल। हम ढेर कपड़ा ना ले आईल रहनी…अब इहे पहन कर रहे के रहे के परी…"

सुगना के होठों पर मुस्कुराहट देख सोनू ने चैन की सांस ली और उछलते हुए बोला

" दीदी हम अभी जा तानी दोसर साड़ी खरीद के ले आवा तानी" सोनू अपनी गलती का प्प्रायश्चित करना चाहता था वह सुगना के होठों पर सदैव मुस्कान देखना चाहता था जो दर्द अनजाने में ही उसने सुगना को दिया था वह नए वस्त्र लाकर उसकी भरपाई करना चाहता था।

सोनू जैसे ही दरवाजा खोलकर बाहर निकला बारिश की आवाज़ कमरे में आने लगी। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी….

बारिश की आवाज सुनकर सुगना ने सोनू को रोक लिया और बोली

" अभी मत जो बहुत बारिश होता …अब रात हो गईल बा कपड़ा का होई हमरा कहीं जाएके नईखे।"

सोनू उल्टे कदम वापस कमरे में आ गया..

"सरयू चाचा लागा ता पानी में फस गईल बाड़े.."

घड़ी 8:00 बजा रही थी सोनू और सुगना सरयू सिंह का खाने पर इंतजार कर रहे थे। गेस्ट हाउस का अटेंडेंट बार-बार सुगना और सोनू को खाना खा लेने के लिए अनुरोध कर रहा था शायद बारिश की वजह से वह भी रसोई जल्दी बंद करना चाह रहा था।

परंतु सरयू सिंह…. वह तो मनोरमा के घर में अपनी पुत्री पिंकी के साथ खेल रहे थे…और दूर खड़ी मनोरमा अपने हाथों में दूध की बोतल लिए मिंकी का इंतजार कर रही थी….


बाहर बारिश के साथ-साथ अब आंधी और तेज हवाएं चलने लगी थी…बिजली गुल होने की आशंका होने लगी थी..

मनोरमा ने दूध का बोतल सरयू सिंह को पकड़ाया और बोली

" मैं मोमबत्ती लेकर आती हूं…" मनोरमा का अंदेशा बिल्कुल सही था। जब तक कि वह रसोई घर में प्रवेश करती बिजली गुल हो गई। दूधिया रोशनी में चमकने वाला मनोरमा का ड्राइंग रूम अचानक काले स्याह अंधेरे की गिरफ्त में आ गया।

मनोरमा रसोई घर में प्रवेश कर गई तभी सरयू सिंह को धड़ाम की आवाज सुनाई थी…

मैडम क्या हुआ…..

घायल सरयू सिंह एक पल में ही उठकर खड़े हो गए और रसोई घर की तरफ बढ़ चले। उन्हें अपना दर्द अब काम प्रतीत हो रहा था। दर्द निवारक दवा ने उनमें स्फूर्ति भर दी थी..

मैडम….



शेष अगले भाग में….
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#98
भाग 88


बाहर बारिश के साथ-साथ अब आंधी और तेज हवाएं चलने लगी थी…

मनोरमा ने दूध का बोतल सरयू सिंह को पकड़ाया और बोली

" मैं मोमबत्ती लेकर आती हूं…" मनोरमा का अंदेशा बिल्कुल सही था। जब तक कि वह रसोई घर में प्रवेश करती बिजली गुल हो गई। दूधिया रोशनी में चमकने वाला मनोरमा का ड्राइंग रूम अचानक काले स्याह अंधेरे की गिरफ्त में आ गया।

मनोरमा रसोई घर में प्रवेश कर गई तभी सरयू सिंह को धड़ाम की आवाज सुनाई थी…

मैडम क्या हुआ…..

घायल सरयू सिंह एक पल में ही उठकर खड़े हो गए और रसोई घर की तरफ बढ़ चले। उन्हें अपना दुख मनोरमा मैडम के दुख के सामने छोटा प्रतीत हो रहा था वैसे भी दर्द निवारक दवा ने उनमें स्फूर्ति भर दी थी..


मैडम….

अब आगे..

सरयू सिंह पिंकी को गोद में लिए किचन की तरफ भागे.. अंदर मनोरमा जमीन पर गिरी हुई थी और उठने का प्रयास रही थी।

मनोरमा अफसोस कर रही थी कि क्यों उसने आज ही अपनी मेड को छुट्टी दे दी थी।


सरयू सिंह ने पिंकी को ड्राइंग रूम में फर्श पर बैठाया और रसोई घर में गिरी मनोरमा को उठाने की कोशिश करने लगे…कमरे में अंधेरा होने के बावजूद बाहर कड़क रही बिजली सरयू सिंह का मार्ग प्रशस्त कर रही थी।

बिजली की चमकती रोशनी में खूबसूरत मनोरमा को देखकर सरयू सिंह उत्साहित हो गए। सुंदर महिलाओं का कष्ट उनसे वैसे भी देखा न जाता था…और मनोरमा वह तो निराली थी…

परंतु वह उत्साह में यह बात भूल गए कि मनोरमा किसी न किसी कारण वश गिरी थी… दरअसल बाहर हो रही बारिश का पानी रसोई घर की खिड़की से अंदर आ गया था… और फर्श गीला होने की वजह से फिसलन भरा हो गया था…

जिस कारण से मनोरमा गिरी थी उसी कारण से सरयू सिंह भी अपना संतुलन खो बैठे और नीचे गिर पड़े।

सरयू सिंह की मजबूत भुजाओं ने उन्हें मनोरमा के ऊपर गिरने से बचा लिया पर वह मनोरमा के ठीक ऊपर अवश्य थे…पर अपने शरीर का भार अपनी भुजाओं पर लेकर सरयू सिंह ने मनोरमा को और घायल होने से बचा लिया था। अन्यथा मनोरमा मैडम दोहरी चोट का शिकार हो जाती। सरयू सिंह जैसा मजबूत कद काठी का व्यक्ति यदि उनके ऊपर गिर पड़ता तो निश्चित ही उनका कचूमर निकल जाता …


सरयू सिंह की यह स्थिति देखकर मनोरमा मुस्कुरा उठी और बोली…

*अरे यहां बहुत फिसलन है आप भी गिर गए ना आपको चोट तो नहीं लगी..?"

स्वयं को असहज स्थिति से बचाने के लिए सरयू सिंह ने करवट ली। परंतु हाथ में उन गुंडों द्वारा की गई मार कुटाई की वजह से लगी चोट के कारण उन्हें तीव्र पीड़ा हुई और अब अपना संतुलन कायम न रख पाए और मनोरमा के बगल में करवट ले कर लेट गए।

सरयू सिंह और मनोरमा दोनो मुश्किल से ऊपर उठे.. किसने किसकी ज्यादा मदद की यह कहना कठिन था पर मनोरमा और सरयू सिंह दोनों के कपड़े फर्श पर फैले हुए पानी से भीग चुके थे…

मनोरमा ने मोमबत्ती जलाई और अपनी तथा सरयू सिंह की स्थिति का आकलन किया।

मनोरमा ने सरयू सिंह के भीगे हुए कपड़े देख कर कहा "आप रुकिए मैं आपके लिए कुछ कपड़े लेकर आती हूं "

मनोरमा अपने कमरे में आ गई…मनोरमा को यह याद ही ना रहा कि अब वह सेक्रेटरी साहब के घर में नहीं थी। जब से वह यहां आई थी वह अकेली थी। यहां मर्दाना कपड़े होने का प्रश्न ही नहीं उठता था। उसने अपनी अलमारी खोलकर देखी परंतु एक अदद तोलिया के अलावा वह सरयू सिंह के लिए कोई कपड़े ना खोज पाई।


अचानक उसे सरयू सिंह का वह लंगोट ध्यान में आया जो वह बनारस महोत्सव से ले आई थी…

मनोरमा मुस्कुराने लगी उसने वह लंगोट निकाला और लंगोट और तोलिया लेकर सरयू सिंह के करीब आई और बोली…

"…आप अपने कपड़े निकाल कर कुर्सी पर डाल दीजिए कुछ देर में सूख जाएंगे तब तक यह पहन लीजिए.. गीले कपड़े आपके जख्म को और भी खराब कर सकते हैं।"

सरयू सिंह हिचकिचा रहे थे..

"कुछ देर के लिए यह भूल जाइए कि मैं आपकी मैडम हूं …."

सरयू सिंह ने मनोरमा के हाथ से वह कपड़े लिए और मनोरमा एक बार फिर अपने कमरे में आकर कमरे मे आकर कपड़े बदलने लगी…


मनोरमा ने स्वभाविक तौर पर अपने नाइट सूट को पहन लिया उसे यह आभास भी ना रहा कि वह अपनी मादक काया लिए एक पराए मर्द के सामने जा रही है..

अंधेरा अवचेतन मन में चल रहे कामुक विचारों को साहस देता है। मनोरमा ने अपने संशय को दरकिनार किया और अपनी सांसो पर नियंत्रण किया तथा अपने कमरे का दरवाजा खोल बाहर हाल में आ गए..

मनोरमा के मन में साहस भरने का काम सरयू सिंह ने ही किया था। कई बार पुरुष का मर्यादित और संतुलित व्यक्तित्व स्त्री को सहज कर देता है और सरयू सिंह तो इस कला के माहिर थे। मनोरमा हाल में आ चुकी थी..वह अपनी एक शाल भी सरयू सिंह के लिए ले आई थी..जिसे सरयु सिंह ठंड लगने की दशा में ओढ़ सकते थे..

इधर सरयू सिंह अपना लंगोट बदलकर तौलिया लपेट चुके थे परंतु उनके शरीर का ऊपरी भाग नग्न था …सरयू सिंह अभी भी यही सोच रहे थे कि यह लंगोट मनोरमा के घर में क्या कर रहा था न तो सेक्रेटरी साहब लंगोट पहनने वाले लगते थे और नहीं संभ्रांत परिवारों में लंगोट पहनने का प्रचलन था…

सरयू सिंह के मन में आया की मनोरमा से लंगोट के बारे में पूछ लें पर हिम्मत ना जुटा पाए।

मनोरमा की भरी भरी चूचियां नाइट सूट से उभर कर बाहर झांक रही थी। मनोरमा के हाथ में जल रही मोमबत्ती की रोशनी में उनकी खूबसूरती और बढ़ गई थी। सरयू सिंह की निगाहों को अपनी चुचियों पर देख वो शर्मा गई। उसने मोमबत्ती को टेबल पर रखा और मधु को अपनी गोद में ले लिया। अपनी बेटी को गोद में लेकर अपनी चूची छिपाने का मनोरमा का यह प्रयास सफल रहा।


पता नहीं क्यों उसे सरयू सिंह का इस तरह देखना कतई बुरा ना लगा था अपितु शरीर में एक अजीब सी सिहरन उत्पन्न हो गई थी…जाने यह हल्की हल्की ठंड का असर था या सरयू सिंह की नजरों में छुपी लालसा का..

बारिश अभी भी लगातार जारी थी.. खान पान का प्रबंध अभी तक न हुआ था…

मनोरमा ने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और डायल टोन सुनकर सुकून की सांस ली.. उसने काले फोन पर अपनी उंगलियां कई बार घुमाईं और कुछ देर बाद बोली..

" रेडिसन होटल ….कुछ खाना पार्सल कर सकते हैं..

"हां हां… बारिश रुकने के बाद ही" मनोरमा ने एक बार फिर कहा।

मनोरमा ने खाना ऑर्डर किया और सरयू सिंह की तरफ देख कर बोली …

उफ आज ही ऐसी बारिश होनी थी..

सरयू सिंह मुस्कुरा कर रह गए . मोमबत्ती की रोशनी में उनका गठीला शरीर चमक रहा था मनोरमा दूर से ही उनके शारीरिक सौष्ठव को अपनी निगाहों से महसूस कर रही थी। वह बार-बार सरयू सिंह की तुलना अपने पूर्व पति सेक्रेटरी साहब से करती और उसे यह यकीन ही ना होता की दो अलग-अलग व्यक्तियों की कद काठी और शारीरिक संरचनाओं में उतना ही अंतर हो सकता है जितना उनकी ज्ञान क्षमता में।


सेक्रेटरी साहब जहां दिमाग और बुद्धि के चतुर् थे वही सरयू सिंह भोले भाले आम आदमी थे परंतु जहां मर्दानगी की बात हो सरयू सिंह और सेक्रेटरी साहब में कोई समानता न थी। सूरज और दिए का न तो कोई मेल हो सकता था और ना उनकी तुलना करना संभव था.. मनोरमा को अपने आप में खोए देखकर सरयू सिंह ने कहा…

" मैडम सुगना और सोनू मेरा इंतजार कर रहे हैं अब मुझे जाना चाहिए..

"आप जरूर चले जाइएगा पर यह बारिस रुके तब तो…" सरयू सिंह सोफे पर से उठे और दरवाजे पर पहुंचकर उन्होंने बाहर का नजारा लिया। बाहर मूसलाधार बारिश बदस्तूर जारी थी.. और रह रहकर बिजली का कड़कना भी जारी था…. ऐसी अवस्था में घायल सरयू सिंह का बाहर निकलना कतई उचित न था और वह यह बात वह भली-भांति जानते थे… वह मन मसोसकर वापस आकर मनोरमा के सोफे पर बैठ गए…


मनोरमा की पुत्री पिंकी भी अब सो चुकी थी। उसे बाहर की परिस्थितियों से कोई सरोकार ना था। बोतल के दूध ने उसका पेट भर दिया था और वह सरयू सिंह के बगल में ही सोफे पर लेटे-लेटे सो गई थी..

खाना आने में विलंब था। मनोरमा ने इस खूबसूरत मौसम का आनंद लेने की सोची और ड्राइंग रूम में सजी अलमीरा से एक वाइन की बोतल निकाल लाई।


संभ्रांत परिवारों में उस समय भी मदिरापान चलन था और मनोरमा को उसमें खींचने वाले सेक्रेटरी साहब ही थे। मनोरमा को इन अपव्यसनों की लत तो न थी पर सेक्रेटरी साहब से अलग होने के उपरांत एकांत में वह कभी-कभी इनका आनंद ले लिया करती थी।

आज कई दिनों बाद वह वाइन का आनंद उठाने के लिए मन बना चुकी थी। रंग बिरंगी सुंदर बोतल मनोरमा के हाथों में देखकर सरयू सिंह को यकीन ही नहीं हुआ की एक महिला भी शराब का सेवन कर सकती है।

सरयू सिंह ने आज से पहले कभी शराब को हाथ न लगाया था। उन्हें उसके दुष्प्रभाव की जानकारी अवश्य थी इसीलिए वह उन्हें हमेशा हेय दृष्टि से देखते थे।


परंतु आज मनोरमा के हाथ में वाइन की बोतल देखकर सरयू सिंह से रहा न गया। उनकी आदर्श मनोरमा मैडम भी शराब का सेवन करती हैं यह जानकर वह आश्चर्य में थे। अपनी जिज्ञासा को वह रोक ना पाए और मनोरमा से कहा..

" मैडम यह आपको नुकसान करेगी आपको यह नहीं पीना चाहिए…"

मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…

" सरयू जी आप बहुत अच्छे हैं….पर यकीन करिए शराब उन लोगों के लिए ही जानलेवा है जो इस पर नियंत्रण नहीं कर पाते ..बाकी यह अमृत है…आपको लगता है मैं अपने साथ ऐसा कुछ करूंगी?

सरयू सिंह निरुत्तर थे. मनोरमा अपने लिए गिलास में पैग बना चुकी थी। सरयू सिंह के विचार सुनकर उसकी सरयू सिंह के लिए पैग बनाने हिम्मत ना हुई परंतु सरयू सिंह बड़े ध्यान से गिलास में गिरती रंगहीन वाइन को देखे जा रहे थे…

"मैडम इसका स्वाद कड़वा होता है न?" सरयू सिंह उत्सुकता पर नियंत्रण न रख पाए और मनोरमा से पूछ बैठे। और यही अवसर था जब मनोरमा ने दूसरे गिलास में वाइन डाली और सरयू सिंह को देते हुए बोली

" यदि मुझ पर विश्वास है तो इसे पी लीजिए आपको अच्छा लगेगा और आपको दर्द में भी आराम मिलेगा " सरयू सिंह हिचक रहे थे परंतु मनोरमा की बात को टाल पाना उनके वश में न था…उन्होंने अपने इष्ट को याद किया और वह गिलास हाथ ले लिया..

"घूंट घूंट का पीजीयेगा …चीयर्स.." मनोरमा ने मुस्कुराते हुए सरयू सिंह की तरफ देखा और उनका उत्साहवर्धन किया।

सरयू सिंह को स्वाद थोड़ा अटपटा लगा परंतु उन्होंने मुंह में लिया हुआ घूंट पी लिया …मनोरमा ने उनकी तरफ देखते हुए बोला

"स्वाद थोड़ा खट्टा है ना ? पर चिंता मत कीजिए कुछ ही देर में यह स्वाद आपको अच्छा लगने लगेगा "

सरयू सिंह ने गिलास नीचे रख दी और मनोरमा को ध्यान से देखने लगे जो अपने गिलास से एक-एक करके वाइन के घूंट अपने हलक के नीचे उतार रही थी…

जैसे ही वाइन का घूंट मनोरमा के गले में जाता उसके गोरे गाल थोड़े फूलते और फिर मनोरमा की सुराही दार गर्दन में हरकत होती और वह हलक से नीचे उतरकर मनोरमा के सीने से होता हुआ मनोरमा के शरीर में विलीन हो जाता।

मनोरमा के सीने का ध्यान आते ही सरयू सिंह की निगाहें एक बार फिर मनोरमा की भरी-भरी चुचियों पर टिक गई लंड में अचानक रक्त की लहर दौड़ गई और वह काला नाग सर उठाने की कोशिश करने लगा सरयू सिंह ने अपना ध्यान भटकाना चाहा और अपना गिलास उठा लिया…उत्तेजना पर नियंत्रण करने के लिए उन्होंने कुछ ज्यादा ही बड़ा घूंट अपने हलक में उतार लिया जिसे मनोरमा ने देख लिया और मुस्कुरा कर कहा

"सरयू जी धीरे धीरे.."


और धीरे-धीरे गिलास में पढ़ा रंगहीन द्रव्य गले से उतरता हुआ शरीर सिंह के रक्त में विलीन होता गया..

कामुक और सुंदर स्त्री के साथ शराब के असर को दोगुना करती है।

सरयू सिंह तो आज पहली बार वाइन पी रहे थे वह भी मनोरमा जैसी खूबसूरत और मादक स्त्री के साथ। एक ही गिलास में उन्हें जन्नत नजर आने लगी मनोरमा ने एक गिलास और उनकी तरफ बढ़ाया और मनोरमा के मोह पास में बंधे उन्होंने दूसरा गिलास भी अपनी हलक के नीचे उतार लिया।

सरयू सिंह पर शराब अपना रंग दिखाने लगी। उसने सरयू सिंह की हिचक बिल्कुल खत्म कर दी.. सरयू सिंह सोफे से उठ खड़े हुए और बोले

"मैडम आपकी इजाजत हो तो एक बात पूछूं "

"हां हां आराम से पूछीए?" मनोरमा अब भी सहजता से बरताव कर रही थी…

"मैडम साहब लंगोट पहनते हैं क्या?"

सरयू सिंह का यह प्रश्न सुनकर मनोरमा खिलखिला कर हंस पड़ी …शराब के नशे ने उसकी खिलखिलाहट में मादकता और कामुकता भर दी…

मनोरमा अपना पेट पकड़ कर हंसने लगी। सरयू सिंह उसकी हंसी का कारण जानने को उत्सुक थे…उनके चेहरे पर अजीब से भाव आ रहे थे…


अपनी हंसी पर नियंत्रण कर मनोरमा ने कहा

"सरयू जी ध्यान से देखिए यह आपका ही है…बनारस महोत्सव ….मेरा कमरा … कुछ याद आया…"

सरयू सिंह को बनारस की वह रात याद आ गई जब मनोरमा से संभोग के उपरांत वह अपना लंगोट वही छोड़कर हड़बड़ी में बाहर निकल गए थे और बाद में लाख ढूंढने के बावजूद वह लंगोट उन्हें नहीं मिला था।


सरयू सिंह निरुत्तर हो गए उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या बोलें।

तभी मनोरमा ने गिलास में एक बार फिर वाइन डाल दिया और अपने बहक रहे कदमों पर खड़ी होकर सरयू सिंह को गिलास देने लगी.. उसी समय किसी खुली खिड़की से हवा का एक तेज झोंका आया और जल रही मोमबत्ती को बुझा गया।

मनोरमा का पैर न जाने कहां टकराया और वह लड़खड़ा कर सरयू सिंह की गोद में गिर पड़ी ..

सरयू सिंह ने उसे सहारा दिया और जब तक दोनों संभलते मनोरमा सरयू सिंह की जांघों पर बैठी हुई थी।


अपनी अवस्था देखकर मनोरमा ने शर्म से अपना चेहरा झुका लिया। परंतु सरयू सिंह अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुके थे। मनोरमा का उनकी गोद में आना और उसकी कोमल जांघों के अहसास ने उनके लंड में तनाव बढ़ाना शुरू कर दिया था… ऐसा लग रहा था जैसे वह पुराने लंगोट को चीर कर बाहर आ जाएगा।

सरयू सिंह के हाथ मनोरमा की पीठ की तरफ से कमर पर आ चुके थे। हाथ में मक्खन का गोला हो और उंगलियां उनकी कोमलता का आनंद न ले यह असंभव था। सरयू सिंह की हथेलियां न जाने कब और कैसे ऊपर की तरफ बढ़ती गईं।

मन में छुपी वासना पर पड़े सभ्यता के आडंबर को शराब ने एक पल में धो दिया…


मनोरमा अपनी चुचियों की तरफ बढ़ती मजबूत उंगलियों को महसूस कर रही थी…उसकी धड़कन लगातार बढ़ रही थी। सरयू सिंह की आतुरता उसे असहज कर रही थी परंतु वह आंखें नीचे किए इस पल कों महसूस कर रही थी।हो…मनोरमा के कोमल गाल सरयू सिंह कि होठों से रगड़ खा रहे थे। उंगलियां चूचियों को छुएं इसके ठीक पहले मनोरमा ने अपनी गर्दन सरयू सिंह की तरफ घूमाई जैसे सरयू सिंह से कुछ कहना चाहती हो..

जैसे-जैसे मनोरमा घूमती गई उसके होंठ सरयू सिंह के होठों के करीब आते गए और जैसे ही लबों ने लबों को छुआ सरयू सिंह ने मनोरमा के कोमल और रसीले होंठ अपने होंठों के बीच भर लिए…


मनोरमा न जाने क्या कहने आई थी और क्या कर रही थी। उसकी बात उसके हलक में ही दफन हो गई और उसके होंठ सरयू सिंह के होठों से में समाहित होते चले गए।

उसे अपनी चुचियों का ध्यान भी न रहा जो अब सरयू सिंह के हाथों में आ चुकी थी…सरयू सिंह की उंगलियों का एहसास उसे तब हुआ जब उसके तने हुए निप्पल उंगलियों के बीच आए और सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों से उनके तनाव को महसूस करने की कोशिश की। मनोरमा चिहुंक उठी…

आह ……तनी धीरे से…

मनोरमा कि यह कराह कुछ ज्यादा ही तीव्र थी शायद शराब के नशे में सरयू सिंह की उंगलियों ने कोमल निप्पलों को कुछ ज्यादा ही मसल दिया था…


सरयू सिंह लगातार मनोरमा को चूमे जा रहे थे …ऐसा लग रहा था जैसे जो दर्द उन्होंने मनोरमा के निप्पलों को दबा कर दिया था वह उसकी भरपाई करना चाह रहे थे।

उनकी उंगलियों ने चुचियों को छोड़कर वस्त्रों पर अपना ध्यान लगा लिया था…..नाइट सूट के बटन लगातार लगातार खुल रहे थे…. और मनोरमा का भरा हुआ सीना नग्न होता जा रहा था था सरयू सिंह के इशारे पर मनोरमा ने अपने दोनों हाथ फैलाए और सरयू सिंह ने नाइट सूट के ऊपरी भाग को मनोरमा के शरीर से अलग कर दिया…

सरयू सिंह यही न रुके.. मनोरमा की तनिक भी विरोध न करने की वजह से उनका उत्साह चरम पर पहुंच गया और एक ही झटके में मनोरमा के नाइट सूट का पजामा जमीन पर आ गया..

मनोरमा पूरी तरह नग्न हो चुकी थी। उसने भीतर पेंटिं न पहनी थी। उसकी तनी हुई चूचियां सरयू सिंह के मजबूत सीने से टकरा रही थी और उन्हें अपनी कोमलता का एहसास करा रही थीं। सरयू सिंह अभी भी मनोरमा को चूमे जा रहे थे।


सोफे पर लेटी हुई पिंकी पूरी शांति और तन्मयता से सो रही। और इधर उसकी मां मनोरमा उसके पिता की गोद में मोम की तरह पिघलती जा रही थी। हलक से नीचे उतर चुकी शराब अब शरीर के अंग अंग तक पहुंच चुकी थी और सरयू सिंह को एक अलग ही साहस दे रही थी उन्हें मनोरमा मैडम अब और अपनी लगने लगी थीं।

इस मिलन में व्यवधान तब आया जब सरयू सिंह की लंगोट खोलने की बारी आई। मामला फंस गया.. अंधेरे के कारण सरयू सिंह अपनी लंगोट का बंधन खोल पाने में असमर्थ हो रहे थे।

आज वही अंधेरा प्रेम क्रीडा में बाधक बन रहा था जिसने पिछली मुलाकात में दोनों को मिलाने में हम भूमिका अदा की थी।

आखिर मनोरमा को उनकी गोद से उठकर मोमबत्ती लेने टेबल के पास जाना पड़ा।

सरयू सिंह नंगी मनोरमा को अपनी गोद से कतई उतारना नहीं चाहते थे परंतु बिना औजार के फ्री में युद्ध हो नहीं सकता था मनोरमा और सधे हुए कदमों से बाहर कड़क रही बिजली की क्षणिक रोशनी में टेबल की तरफ बढ़ने लगी जब जब बिजली की रोशनी मनोरमा पर पड़ती उसकी मदमस्त काया सरयू सिंह के दिमाग में छप जाती गजब सुंदर काया थी मनोरमा की..


सरयू सिंह मनोरमा को नग्न देखने के लिए तड़प उठे..

मनोरमा ने मोमबत्ती एक बार फिर जला ली.. शायद शराब के नशे में वह यह भूल गई थी कि वह पूरी तरह नग्न थी..


नग्न मनोरमा वापस सरयू सिंह के पास आ रही थी..नंगी मनोरमा को कमरे में चलते हुए देखकर सरयू सिंह मदहोश हो रहे थे। ऐसी सुंदर और नग्न काया वह कई वर्षों बाद देख रहे थे। एक बार के लिए उनके मन में सुगना घूम गई…दिमाग ने सरयू सिंह को रोकना चाहा पर उनका लंड पूरे आवेग से थिरक उठा ऐसा लगा जैसे वह लंगोट के मजबूत आवरण को चीर कर बाहर आ जाएगा।

अपनी सम्मानित और प्रतिष्ठित मैडम को नग्न देखकर सरयू सिंह की आंखें झुक रही थी पर उनका मर्दाना स्वभाव कामातुर मनोरमा की खूबसूरती का आनद लेना चाहा रहा था।

दूसरी तरफ मनोरमा सरयू सिंह की कसरती और गठीली काया को निहारती हुई खुद को असहज महसूस कर रही थी। बाहर कड़क रही बिजली का प्रकाश जब शरीर सिंह के कसे हुए शरीर पर पड़ता वह और चमक उठता और मनोरमा उनके गठीला शरीर को देखकर मन ही मन सिहर रही थी उनकी मर्दानगी का अनुभव वह एक बार पहले ले चुकी थी और आज…. भी उसका तन बदन स्वत ही सरयू सिंह के आगोश में आने को तैयार हो चुका था।

मोमबत्ती की रोशनी लाल लंगोट पर पड़ रही थी लंगोट में पड़ चुकी गांठ के खुलने का वक्त आ चुका था… सरयू सिंह के हांथ बहक रहे हाथ वह उस गांठ को खोलने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहे थे अंततः मनोरमा ने अपनी पतली उंगलियों को मैदान में उतारा और सरयू सिंह के लंगोट की गांठ खुल गई। सरयू सिंह का तन्नाया हुआ लंड पूरी ताकत से उछलकर मनोरमा के सामने आ गया……

मनोरमा…. सरयू सिंह ने खड़े लंड को देखकर पानी पानी हो गई…. उसकी शर्म उस पर हावी हुई और वह अपनी आंखें और न खोल पाई….

पर सरयू सिंह अब अपनी रौ में आ चुके थे शराब ने उनके मन में हिम्मत भर दी थी..उन्होंने मोर्चा संभाल लिया…


शेष अगले भाग में….
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#99
  • भाग 89
Quote:मोमबत्ती की रोशनी लाल लंगोट पर पड़ रही थी लंगोट में पड़ चुकी गांठ के खुलने का वक्त आ चुका था… सरयू सिंह के हांथ बहक रहे हाथ वह उस गांठ को खोलने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहे थे अंततः मनोरमा ने अपनी पतली उंगलियों को मैदान में उतारा और सरयू सिंह के लंगोट की गांठ खुल गई। सरयू सिंह का तन्नाया हुआ लंड पूरी ताकत से उछलकर मनोरमा के सामने आ गया……

मनोरमा…. सरयू सिंह ने खड़े लंड को देखकर पानी पानी हो गई…. उसकी शर्म उस पर हावी हुई और वह अपनी आंखें और न खोल पाई….

पर सरयू सिंह अब अपनी रौ में आ चुके थे शराब ने उनके मन में हिम्मत भर दी थी..उन्होंने मोर्चा संभाल लिया…


अब आगे…


इधर सरयू सिंह अपनी रासलीला में व्यस्त थे... 


##

उधर सुगना और सोनू इस आश्चर्य में डूबे हुए थे कि सरयू सिह किस महिला की एंबेसडर कार में बैठकर न जाने कहां चले गए थे।

सुगना और सोनू तक इसकी खबर गेस्ट हाउस के एक व्यक्ति ने बखूबी पहुंचा दी थी जो नुक्कड पर सरयू सिंह को मनोरमा की गाड़ी में बैठ के देख चुका था वह व्यक्ति मनोरमा को तो नहीं जानता था परंतु सरयू सिंह को बखूबी पहचानने लगा था। गेस्ट हाउस में कुछ देर की ही मुलाकात में वह उनसे प्रभावित हो गया था. शुक्र है कि उसने सरयू सिंह की मार कुटाई नहीं देखी थी अन्यथा शायद वह यह बात भी सुगना और सोनू को बता देता और उन दोनों को व्यग्र कर देता…

सरयू सिंह को आने में देर हो रही थी थी…गेस्ट हाउस के अटेंडेंट ने सोनू और सुगना को खाने का अल्टीमेटम दे दिया उसने बेहद बेरुखी से कहा..

" हम और इंतजार नहीं कर सकते हमें भी अपने घर जाना है हमने आप लोगों का खाना निकाल कर रख दिया है कहिए तो कमरे में दे जाएं…"

सोनू उस पर नाराज हो रहा था परंतु सुगना ने रोक लिया आखिर उस अटेंडेंट की बात जायज थी कोई व्यक्ति कितना इंतजार कर सकता है उसका भी अपना परिवार है…

सोनू और सुगना ने आपस में बातें कर यह अंदाज कर लिया कि सरयू सिंह निश्चित ही किसी के मेहमान बन गए थे।

सोनू और सुगना ने खाना खाया… दोनों छोटे बच्चे भी खाना खाकर सो गए। सुगना बिस्तर पर लेटी हुई थी सोनू गेस्ट हाउस के सोफे पर बैठ कर सुनना से बातें कर रहा था… तभी बिजली गुल हो गई शायद यह वही समय था जब पूरे लखनऊ शहर की बिजली एक साथ ही गई थी ..

सुगना ने सोनू से कहा..

"हमरा झोला में से टॉर्च निकाल ले.."

सोनू ने सुगना के बैग में हाथ डाला और उसकी उंगलियां सुगना के कपड़ों के बीच घूमने लगी। उनको वह एहसास बेहद आनंददायक लगा। कितने कोमल होते हैं महिलाओं के वस्त्र …सोनू की उंगलियां उन कोमल वस्त्रों के बीच टॉर्च को खोजने में लग गईं..


कुछ देर वह अपनी उंगलियां यूं ही फिराता रहा तभी सुगना ने कहा

"सबसे नीचे होई सोनू….."

आखिर सोनू ने टॉर्च बाहर निकाल कर बाहर जला ली।

टॉर्च की रोशनी को छत पर केंद्रित कर सोनू ने कमरे में हल्की रोशनी कर दी…और सुगना से बोला

"आज बारिश कुछ ज्यादा ही बा… एहीं से लगा ता लाइट गोल हो गइल बा"

सुगना ने उसकी हां में हां मिला या और बोला

"ए घरी बनारस में भी खूब लाइट कटत बा"

कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद सोनू ने कहा

"लाली दीदी कईसन बिया?"

न जाने सुगना को क्या सूझा उसने अपनी नाराजगी दिखाते हुए सोनू से कहा

"ते लाली के दीदी मत बोलल कर"

"काहे का भईल" सोनू ने अनजान बनते हुए पूछा। उसे सच में समझ में नहीं आया कि सुगना ऐसा क्यों कह रही थी..

"तेहि समझ ऊ तोर बहिन ह का?"

"हा हम त लाली के दीदी सुरुए से बोलेनी.."

" पहिले ते बहिन मानत होखबे.. पर अब...ना नू मानेले"

सोनू सुगना की बात समझ चुका था परंतु अनजान बन रहा था। सुगना चुप हो गई परंतु उसने जिस मुद्दे को छेड़ दिया था वह बेहद संवेदनशील था सोनू ने सुगना को उकसाया..

"हम त अभी ओ लाली के लाली दीदी ही मानेनी.."

"दीदी बोलकर ऊ कुल काम कईल ठीक बा का? न जाने नियति ने सुगना को कितना वाकपटु कर दिया था


सोनू ने अपनी नजरें नीचे झुका लीं। सुगना उससे इस विषय पर जितनी बेबाकी से बात कर रही थी, उतनी सोनू की हिम्मत न थी कि वह खुलकर सुगना की बातों का जवाब दे पाता.. सोनू शर्मा रहा था और सुगना उसे छेड़ रही थी।

बातचीत में यदि एक पक्ष शर्म और संकोच के कारण चुप होता है तो दूसरा निश्चित ही उसे और उकसाने पर आ जाता है… सोनू की चुप्पी ने सुगना को और साहस दे दिया वह मुस्कुराते हुए बोली…

"तु जौन प्यार अपना लाली दीदी से करेला ना … ढेर दिन ना चली…. घर में बाल बच्चा और सोनी भी बिया कभी भी धरा जईब…"

सोनू की सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसकी बड़ी बहन सोनू से खुलकर अपनी सहेली की चूदाई के बारे में बातें कर रहे थे। सुगना की बातों ने सोनू के मन में डर और उत्तेजना दोनों के भाव पैदा कर दिए।

सुगना की बातों से सोनू उत्तेजित होने लगा था पर मन ही मन इसे इस बातचीत के बीच में छूट जाने का डर भी सता रहा था। उसका एक अश्लील जवाब सुगना से उसकी बातचीत पर विराम लगा सकता था। वह संभल संभल के सुगना की बातों का जवाब देना चाह रहा था और इस बातचीत के दौर को और दूर तक ले जाना चाह रहा था।

"तू हमरा के काहे बोला तारू लाली के कहे ना बोलेलू "

"हम जानत बानी ऊहो बेचैन रहने ले….जाए दे तोर बियाह हो जाई त सब ठीक हो जाई"

"पहिले तोरा जैसन केहू मिली तब नू"

सोनू ने आज वही बात फिर कही थी जो आज से कुछ दिन पहले सभी की उपस्थिति में की थी परंतु आज इस एकांत में उसकी बात ने सुगना के दिलों दिमाग पर असर कुछ ज्यादा ही असर किया ।

सुगना सोच रही थी..क्या सोनू उसके जैसी दिखने वाली लड़की को प्यार करना चाहता था? प्यार या सिर्फ चूदाई…उसके दिमाग में सोनू का वह चेहरा घूम गया जब वह आंखे बंद किए लाली को चोद रहा था। सुगना ने सोनू से नजरे मिलने के बाद …सोनू के कमर की गति और उसके लाली को पकड़ने की अंदाज़ में बदलाव को सुगना ने बखूबी महसूस किया था। हे भगवान क्या सोनू के मन मन वह स्वयं बसी हुई थी… सुगना को सोनू की निगाहों में एक अजीब किस्म की ललक दिखाई दी।

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसके उसके गाल सुर्ख लाल हो गए.. उसके दिमाग में सोनू और लाली की चूदाई घूमने लगी..

पांसा उल्टा पड़ गया था सोनू ने सुगना को निरुत्तर कर दिया था वह कुछ बोल पाने में असहज महसूस कर रही थी उसे कोई उत्तर न सोच रहा था सोनू ने फिर कहा..

"सांचो दीदी हम जानत बानी… तहरा जैसन बहुत भाग से मिली… पर हम बियाह तबे करब ना त …"

सुगना ने अपनी आवाज में झूठी नाराजगी लाते हुए कहा..

"ना त का …असही अकेले रहबे?"

"लाली दीदी बाड़ी नू .."

सोनू जान चुका था कि इस बातचीत का अंत आ चुका है उसने इसे सुनहरे मोड़ पर छोड़कर हट जाना ही उचित समझा और

"बोला दीदी तू सूत रहा हम जा तानी दूसरा कमरा में"

सुगना खोई खोई सी थी सोनू को कमरे से बाहर जाते हुए देख कर उसने कहा..

" एहजे सूरज के बगल में सूत के आराम करले का जाने लाइट कब आई.. अकेले हमरो डर लागी"

सोनू को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई हो ..सुगना का साथ उसे सबसे प्यारा था। पिछले कई महीनों से.. सुगना उसे अपने ख्वाबों की परी दिखाई पड़ने लगी थी जिसे वह मन ही मन बेहद प्यार करने लगा था। सोनू सुगना से अपने प्यार का इजहार करना चाहता था परंतु अपनी मर्यादित और गंभीर बड़ी बहन से अपने प्यार का इजहार कर पाना .……शायद असंभव था।

सोनू आ कर सुगना के बिस्तर पर लेट गया। डबल बेड के बिस्तर पर सबसे पहले सुगना फिर मधु फिर सूरज और आखिरी में सोनू लेटा हुआ था ..


टॉर्च बंद हो चुकी थी कमरे में अंधेरा कायम था….. अंधेरे के बावजूद नियति अपनी दिव्य आंखों से सुगना, सोनू और उनके बीच लेटे उन दोनों छोटे बच्चों को देख रही थी.. भगवान की बनाई दो कलाकृतिया जो शायद एक दूसरी के लिए ही बनी थी … पर एक दूसरे से दूर अपनी आंखें छत पर टिकाए न जाने क्या सोच रही थीं…

सुगना दिन भर की थकी हुई थी उसे नींद आने लगी…उसके मन में सरयू सिंह को चिंता अवश्य थी पर उसे पता था अब भी सरयू सिंह स्वयं सबको मुसीबत से निकालने का माद्दा रखते थे उनका स्वय मुसीबत में पड़ना कठिन था..

थकी हुई सुगना नींद के सागर में हिचकोले खाने लगी। और न जाने कब ख्वाबों के पंख लगा कर स्वप्न लोक पहुंच गई…

बादलों के बीच सुगना एक अदृश्य बिस्तर पर लेटी आराम कर रही थी। चेहरे पर गजब की शांति और तेज था। शरीर पर सुनहरी लाल रेशमी चादर थी।

अचानक सुगना ने महसूस किया को वह चादर धीरे-धीरे उसके पैरों से ऊपर उठती जा रही हैऔर उसके पैर नग्न होते जा रहे है। उसने अपनी पलके खोली और सामने एक दिव्य पुरुष को देखकर मंत्रमुग्ध हो गई। वह दिव्य पुरुष लगातार उसके पैरों को देखें जा रहा था। जैसे जैसे वह चादर ऊपर की तरफ उठ रही थी उसके गोरे पैर उस पुरुष की आंखों में रच बस रहे थे सुगना बखूबी यह महसूस कर रही थी कि वह दिव्य पुरुष, सुगना की सुंदर काया को देखना चाहता है। सुगना नग्न कतई नहीं होना चाहती थी उसने अपने हाथ बढ़ाकर चादर को पकड़ने की कोशिश की परंतु उसके हाथ कुछ भी न लगा चादर और ऊपर उठती जा रही थी सुगना की जांघे नग्न हो चुकी थी…


इससे पहले की चादर और उठकर सुखना की सबसे खूबसूरत अंग को उस दिव्य पुरुष की आंखों के सामने ले आती सुगना जाग गई एक पल के लिए उसने अपनी आंखें खोली और देखकर दंग रह गई कि सामने सोनू खड़ा था और टॉर्च से रोशनी कर सुगना के नंगे पैरों को देख रहा था। दरअसल सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी और उसका दाहिना पैर कुछ ऊपर की तरफ था.

इस अवस्था में उसकी दाहिनी जांघ का कुछ हिस्सा भी दिखाई पड़ रहा था।

कमरे में अंधेरा था परंतु टॉर्च की रोशनी में सुगना की गोरी जांघ पूरी तरह चमक रही थी और सोनू अपने होठ खोले लालसा भरी निगाह से सुगना को देख रहा था।


सुगना ने कोई हरकत ना कि वह चुपचाप उसी अवस्था में लेटी रही उसने सोनू को यह एहसास न होने दिया कि वह जाग चुकी है।

सोनू लगातार अपना ध्यान सुगना की जांघों पर लगाया हुआ था उसके हाथ बार-बार सुगना की नाइटी की तरफ बढ़ते पर वह उसे छूने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था…। उधर सुगना देखना चाहती थी कि सोनू किस हद तक जा सकता है। उस अनोखे स्वप्न से और सोनू की परीक्षा लेते लेते सुगना स्वयं भी उत्तेजित होने लगी थी…

जांघों के बीच सुगना की छोटी सी मुनिया सुगना की उंगलियों का इंतजार कर रही थी उसे कई महीनों से कोई साथी ना मिला था और उसने सुगना की उंगलियों से दोस्ती कर ली थी.. सामने सोनू खड़ा था .. अपनी जाग चुकी बुर को थपकियां देकर सुला पाना सुगना के बस में ना था।


आखिरकार उसने करवट ली और सोनू की आंखों के सामने चल रहे उस कामुक दृश्य को खत्म कर दिया सोनू भी मायूस होकर धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ चला..

सुगना सोनू के व्यवहार से आश्चर्यचकित अवश्य थी …परंतु दुखी न थी उसके नग्न पैरों को देखने की कोशिश एक युवक की सामान्य जिज्ञासा मानी जा सकती थी परंतु उसने अपनी बहन की नाइटी को ऊपर न कर …सुगना के मन में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की पवित्रता को कुछ हद तक कायम रखा था।

नियति बार-बार सुगना और सोनू को एक साथ देखती और उसे उन दोनों के मिलन के दृश्य उसकी आंखों में घूमने लगते हैं परंतु एक मर्यादित और सुसंस्कृत बड़ी बहन कैसे स्वेच्छा से छोटे भाई से संबंध बना ले यह बात न नियति को समझ में आ रही थी और न सुगना को….

परंतु विधाता ने जो सोनू और सुगना के भाग्य में लिखा था उसे होना था कब कैसे और कहां यह प्रश्न जरूर था पर जिसने उन दोनों का मिलन लिखा था निश्चित ही उसने उसकी पटकथा भी लिखी होगी….

इधर सोनू अपनी बड़ी बहन के खूबसूरत कोमल पैरों और खुली जांघों का दर्शन लाभ ले रहा था
 


##

उधर सरयू सिंह के सामने मनोरमा पूरी तरह नग्न अपनी पूरी मादकता के साथ उपस्थित थी।

सरयू सिंह का लंड लंगोट की कैद से बाहर आ चुका था और अपने पूरे उन्माद में खड़ा सरयू सिंह की नाभि को चूमने का प्रयास कर रहा था। यह बात वह भी जानता था कि वह सरयू सिंह की नाभि को चूम ना सकेगा परंतु उछल उछल कर वह अपना प्रयास अवश्य कर रहा था।

लंड में आ रही उछाल मर्द और औरत दोनों को उतना सुख देती है.. जिन युवा पुरुषों ने उछलते लंड का अनुभव किया है उन्हें इसका अंदाजा बखूबी होगा और जिन महिलाओं या युवतियों में उछलते हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा है वह उस अनुभव को बखूबी समझती होंगी।


मनोरमा की आंखें उस अद्भुत लंड पर टिकी हुई थी जो मोमबत्ती की रोशनी में और भी खूबसूरत दिखाई पड़ रहा था। मनोरमा के लिए वह लंड दिव्य अद्भुत और अकल्पनीय था… वह उसे को अपने हाथों में लेने के लिए मचल उठी ।

उधर सरयू सिंह सोफे पर बैठे अपने दोनों पैर फैला चुके थे। मनोरमा उनके पैरों के बीच पूरी तरह नग्न खड़ी थी और अपनी नजरे झुकाए सरयू सिंह के लंड को लालच भरी निगाहों से देख रही थी।

सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां मनोरमा की जांघों की तरफ की और उसकी जांघों को पीछे से पकड़ कर मनोरमा को और आगे खींच लिया…सरयू सिंग के दिमाग में एक बार भी यह बात ना आई कि सामने खड़ी मनोरमा उनकी सीनियर और भाग्य विधाता रह चुकी थी और आज भी उसका कद उनसे कई गुना था परंतु आज सरयू सिंह के पास मनोरमा द्वारा पिलाई गई शराब का सहारा था और सामने एक कामातुर महिला …..

सरयू सिंह की हिम्मत बढ़ चुकी थी।

सरयू सिंह के खींचने से मनोरमा का वक्ष स्थल सरयू सिंह के चेहरे से आ सटा। सरयू सिंह ने अपना चेहरा मनोरमा कि दोनों भरी-भरी चुचियों के बीच लाया और थोड़ा सा आगे पीछे कर अपने गाल मनोरमा की दोनों चुचियों से सटाने लगे।


वह उनके खूबसूरत और कोमल एहसास में खोते चले गए । नीचे उनके हाथ बदस्तूर मनोरमा की जांघों की कोमलता को महसूस कर रहे थे। जैसे किसी बच्चे को एक साथ कई खिलौने मिल गए हैं सरयू सिंह मनोरमा के हर अंग से खेल रहे थे।

जैसे-जैसे सरयू सिंह की हथेलियां और ऊपर की तरफ बढ़ रही थी मनोरमा कसमसा रही थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सरयू सिंह की इस कामक्रीड़ा को आगे बढ़ाएं या उसे रोकने का प्रयास करें। जिस दिव्य सोमरस ने सरयू सिंह के मन में हिम्मत भरी थी उसी दिव्य रस ने मनोरमा को वक्त की धारा के साथ बह जाने की शक्ति दे दी।

सरयू सिंह की हथेली मनोरमा के नितंबों पर आ गई और वह उन खूबसूरत नितंबों को सहला कर उनकी गोलाई का अंदाजा करने लगे…खूबसूरती की तुलना करने के लिए उनके पास एकमात्र सुगना थी परंतु जैसे ही उन्हें सुगना का ध्यान हुआ दिमाग उनका दिमाग सक्रिय हुआ और अचानक उन्हें अपनी अवस्था का एहसास हुआ और उन्हें अपने किए पाप का ध्यान आने लगे। इससे इतर सुगना को ध्यान करते ही उनका लंड उत्तेजना से फटने को तैयार हो गया ।

सरयू सिंह की उंगलियों ने दोनों नितंबों के बीच अपनी जगह बनानी शुरू की और धीरे-धीरे वो मनोरमा की खूबसूरत और गुदाज गाड़ को छूने लगी। इस छोटे छिद्र के शौकीन सरयू सिंह शुरू से थे…परंतु वह उनके सामने न था उंगलियों ने थोड़ा और नीचे का रास्ता तय किया और वह मनोरमा कि उस खूबसूरत और रसभरी नदी में प्रवेश कर गए उंगलियों पर प्रेम रस छलक छलक कर लगने लगा ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह ने चासनी में अपना हाथ डाल दिया उधर उनके होंठ मनोरमा की सूचियों से हट कर निप्पल तक जा पहुंचे और उन्होंने मनोरमा का निप्पल होंठो में लिया…

मनोरमा कसमसा उठी…अब तक उसने अपने हाथ इस प्रेमयुद्ध से दूर ही रखे थे परंतु उस अद्भुत अहसास से वह खुद को रोक ना पाए और उसके हाथ सरयू सिंह के सर पर आ गए। उसने सरयू सिंह के बाल पकड़े परंतु वह उन्हें अपनी तरफ खींचे या दूर करें यह फैसला वह न कर पाई उत्तेजना चरम पर थी… आखिरकार मनोरमा ने सरयू सिंह को अपनी चुचियों की तरफ खींच लिया।

सरयू सिंह गदगद हो गए.. मनोरमा का निमंत्रण पाकर वह मन ही मन उसे चोदने की तैयारी करने लगे..

नियति सरयू सिंह की अधीरता देख रही थी…परंतु सरयू सिंह को कच्चा खाना कतई पसंद न था वह पहले खाने को धीमी आंच में भूनते और जब वह पूरी तरह पक जाता तभी उसका रसास्वादन किया करते थे।

इस उम्र में भी उनका उत्साह देखने लायक था। सरयू सिंह ने अपना बड़ा सा मुंह फाड़ा और मनोरमा की भरी-भरी चुचियों को मुंह में लेने की कोशिश करने लगे..परंतु मनोरमा मनोरमा थी और सुगना ….

सरयू सिंह जिस तरह सुगना की चुचियों को अपने मुंह में भर लिया करते थे मनोरमा की चुचियों को भर पाना इतना आसान न था… आखिरकार सरयू सिंह हांफने लगे … परंतु इस रस्साकशी में उन्होंने मनोरमा की चूचियों में दूध उतार दिया।


मनोरमा अपनी चुचियों में दूध उतर आया महसूस कर रही थी..सरयू सिंह ने अब तक उसकी एक ही चूची को पूरे मन से पिया था और दूसरी पर मुंह मारने ही वाले थे तभी सोफे पर सो रही पिंकी जाग उठी।

सरयू सिंह मनोरमा की चूची छोड़कर उससे अलग हुए और अपने हाथ मनोरमा के नितंबों के बीच से निकालकर छोटी पिंकी को थपथपा कर सुलाने लगे।

उन्होंने इस बात का बखूबी ख्याल रखा कि मनोरमा की गीली बुर से निकला हुआ रस उनकी उंगलियों तक ही सीमित रहें और पिंकी के कोमल शरीर से दूर ही रहे।


परंतु पिंकी मानने वाली न थी वह रोती रही अंततः मनोरमा ने उसे अपनी गोद में लिया और अपनी दूसरी चूची को को पिंकी के मुंह में दे दिया… सरयू सिंह ने जो दूध मनोरमा की चूचियों में उतारा था उसका लाभ उनकी पुत्री पिंकी बखूबी ले रही थी…..

सरयू सिंह के लंड में तनाव कम होना शुरू हो गया था.. उस हरामखोर को चूत के सिवा और कुछ जैसे दिखाई ही न पड़ता था… इतना बेवफा कोई कैसे हो सकता है। क्या सुगना क्या मनोरमा क्या कजरी और क्या सुगना की मां पदमा लंड के उत्साह में कोई कमी न थी.. ऊपर से सोमरस आज सरयू सिंह की तरह उनका लंड भी उत्साह से लबरेज था..

मनोरमा अपना सारा ध्यान अपनी पुत्री पिंकी पर लगाए हुई थी… जो अब दूध पीते पीते एक बार फिर अपनी पलकें झपकाने लगी थी। सरयू सिंह अभी भी मनोरमा की पीठ को सहला रहे थे.. परंतु मनोरमा अपने हाथ से उन्हें रुकने का इशारा कर रही थी।


सरयू सिंह बेहद अधीरता से अपने लंड को सहला रहे थे और अपने इष्ट से पिंकी के शीघ्र सोने की दुआ मांग रहे थे। शराब का असर धीरे धीरे अपने शबाब पर आ चुका था…

वह बार-बार टेबल पर पड़ी उस वाइन की बोतल को देख रहे थे जिसमें अब भी कुछ शराब बाकी थी। सरयू सिंह जिन्होंने आज तक शराब को हाथ भी ना लगाया था आज उसके सेवन और असर से इतने प्रभावित थे कि उनका मन बार-बार कह रहा था कि वह बची हुई शराब को भी अपने हलक में उतार ले जाएं।

परंतु ऐसा कहकर वह शर्मिंदगी मोल लेना नहीं चाह रहे थे जिस मनोरमा से उन्होंने अभी इस शराब की बुराइयां बताई थी यदि वह स्वयं से उन्हें शराब की बोतल पकड़ पीते हुए देखती तो उनके बारे में क्या सोचती.? सरयू सिंह एक संवेदनशील व्यक्ति थे…वह अपने मन में चल रहे द्वंद से जूझ रहे थे उनकी उस शराब को पीने की इच्छा अवश्य थी पर हिम्मत में कमी थी…


पिंकी सो चुकी थी और मनोरमा की चूची छोड़ चुकी थी..मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा आप मोमबत्ती लेकर आइए पिंकी को पालने पर सुलाना हैं

मनोरमां पिंकी को गोद में लिए खड़ी हो गई और सरयू सिंह टेबल पर पड़ी मोमबत्ती लेकर। मनोरमा सरयू सिंह के आगे चलने का इंतजार कर रही थी परंतु सरयू सिंह मनोरमा के पीछे ही खड़े थे अंततः मनोरमा को ही आगे आगे चलना पड़ा…. शायद सरयू सिंह अपनी मनोरमा मैडम को लेडीस फर्स्ट कहकर आगे जाने के लिए प्रेरित कर रहे थे परंतु असल बात पाठक भी जानते हैं और सरयू सिंह भी..


सरयू सिंह ने न जाने मन में क्या सोचा और वह शराब की बोतल को भी अपने दूसरे हाथ में ले लिया। आगे-आगे मनोरमा बलखाती हुई चल रही थी और पीछे पीछे अपना खड़ा लंड लिए हुए सरयू सिंह।

शेष अगले भाग में

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Heart 
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लवली आनंद
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