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मेरा पहली बार था तो मैं भी जल्दी से लंड चूत में डालने के लिए मरा जा रहा था। मैंने लंड बुआ की चूत के मुँह पर रखा तो ऐसा लगा जैसे किसी भट्टी के मुँह पर रख दिया हो। बुआ की चूत बहुत गर्म थी। चूत बिल्कुल उबल रही थी। मैंने लंड को ठीक से सेट किया और एक जोरदार धक्का लगा दिया। चूत बहुत तंग थी सुपारा बुआ की चूत में उतर गया था। बुआ एक दम से कसमसा उठी दर्द के मारे।
मुझे हैरानी हुई कि बुआ की शादी तो दो साल पहले हो चुकी थी यानी बुआ पिछले दो साल से चुदवा रही थी पर फिर भी बुआ को मेरा लंड लेने में तकलीफ हो रही थी। चूत इतनी कसी थी कि लगता ही नहीं था कि इस चूत ने लंड का स्वाद चखा होगा।
इसी हैरानी में मैंने एक और जोरदार धक्का लगा दिया। आधा लंड बुआ की पनियाई हुई चूत में घुस गया। बुआ दर्द के मारे छटपटाने लगी। लंड तो मेरा भी कम नहीं था पर बुआ तो पिछले दो साल से चुदवा रही थी। खैर अगले दो धक्कों में पूरा लंड बुआ की चूत में घुस गया था। बुआ की झांटें और मेरी झांटें अब संगम कर रही थी। लंड जड़ तक घुस चुका था। बुआ की आँखों में आंसू आ गए थे।
मैंने पूछा- बुआ, दर्द हो रहा है क्या?
“नहीं रे.. तू अपना काम करता रह, मेरे आंसू मत देख…”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। बुआ की चूत बहुत तंग थी। लंड पूरा रगड़ रगड़ कर जा रहा था चूत में। बुआ धीरे धीरे मस्त होती जा रही थी। दर्द की शिकन जो कुछ देर पहले बुआ के चेहरे पर थी वो अब खत्म हो चुकी थी। बुआ ने अब अपने चूतड़ उठा उठा कर मेरे धक्कों का जवाब देना शुरू कर दिया था। मैं भी गाँव का जवान पट्ठा था। पूरे जोश के साथ बुआ की चूत का बाजा बजा रहा था। अब तो बुआ भी मस्त हो चुदा रही थी। हम दोनों एक दूसरे से कुछ नहीं बोल रहे थे बस दोनों के मुँह से सीत्कारें निकल रही थी।
करीब दस मिनट के बाद बुआ का शरीर अकड़ने लगा और बुआ लगभग चिल्ला उठी= आह्हह्ह… राज… जोर से चोद मेरे राजा… हाय बहुत प्यासी है रे तेरी बुआ की चूत… आह्ह… मार धक्के मेरे राज मैं तो गय्ईईईई अआहह्ह ग्ईईईई मैं तो आह्ह्ह… जोर से कर और जोर से आह्ह आह जोररर से आहह…
और बुआ झड़ गई और ढेर सारा पानी बुआ की चूत से निकल कर मेरे लंड के बराबर में से बाहर निकलने लगा। मेरा अभी नहीं हुआ था तो मैं अब भी जोरदार धक्को के साथ बुआ की चूत को पेल रहा था। दो मिनट के बाद ही बुआ फिर से गांड उछाल उछाल कर लंड लेने लगी। कमरे में अब फचा फच…. फचा फच… की आवाज गूंज रही थी। लंड मस्त गति से बुआ की चूत के अंदर आ जा रहा था।
आधे घंटे की मस्त चुदाई के बाद मेरा लंड भी फटने को तैयार था और बुआ की चूत भी दूसरी बार फव्वारा छोड़ने को तैयार थी। मेरे मुँह से भी अब मस्ती भरी आवाजें निकल रही थी बिल्कुल शेर के गुर्राने जैसी। बुआ भी और जोर से और जोर से चिल्लाने लगी थी। बुआ ने मुझे कस कर जकड़ लिया बुआ के नाख़ून मेरी कमर में गड़ गए थे। दोनों का शरीर बुरी तरह से अकड़ने लगा था।
फिर मेरा लंड फ़ूट पड़ा और वीर्य की धार बुआ के चूत में छूट गई। मेरे गर्म वीर्य का गर्मी मिलते ही बुआ की चूत भी पिंघल गई और उसने पानी का दरिया चला दिया। बुआ झमाझम झड़ रही थी। कमरे में तूफ़ान सा आ गया था। हम दोनों ही पसीने पसीने हो चुके थे।
पांच मिनट ऐसे ही लेटे रहने के बाद बुआ की आवाज आई- अब नीचे भी उतर ! मैं दब गई हूँ तेरे नीचे।
लंड अब बैठ चुका था और फक की आवाज के साथ बुआ के चूत से बहार निकला और साथ ही निकला ढेर सारा वीर्य और बुआ की चूत के रस का मिश्रण। बुआ की चूत बिल्कुल भर गई थी। बुआ उठी और अपने पेटीकोट से मेरा लंड और अपनी चूत साफ़ की। फिर बुआ ने कपड़े पहनने लगी। मैंने रोकना चाहा पर बुआ ने मना कर दिया और उठ कर फूफा के कमरे में चली गई। मैं भी कपड़े पहन कर बुआ के पीछे पीछे चला गया। फूफा गहरी नींद में सो रहे थे।
बुआ ने कमरे में देखा और फिर रसोई में चली गई। बुआ को शायद भूख लगी थी। मैंने और बुआ ने बैठ कर खाना खाया। फिर बर्तन धो कर बुआ फूफा के कमरे में जाकर सो गई। मैं भी अपने कमरे में सोने चला गया और बेड पर लेट कर सोचता रहा कि बुआ की चूत इतनी टाईट कैसे है? फूफा चोदते नहीं है क्या ? और सोचते सोचते ना जाने कब मुझे नींद आ गई।
सुबह बुआ ने मुझे उठाया और चाय दे गई। फूफा भी उठ चुके थे। बुआ बिलकुल सामान्य थी जैसे रात को कुछ हुआ ही ना हो। चाय देकर बुआ नहाने चली गई और फूफा ने मुझे अखबार लाने भेज दिया। वापिस आया तो फूफा ऑफिस के लिए तैयार हो चुके थे। मेरे भी कॉलेज का टाइम हो गया था। सो मैं भी नहा कर कॉलेज के लिए तैयार हो गया।
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दस बजे फूफा ऑफिस के लिए चले गए। बुआ ने अभी तक मुझ से कोई बात नहीं की थी, बिल्कुल चुपचाप थी। जब मैं कॉलेज के लिए निकलने लगा तो बुआ बोली- राज.. आज कॉलेज रहने दे घर पर कुछ काम है .. आज की छुट्टी ले ले !
मैं तो जैसे यही सुनने का इंतज़ार कर रहा था। मैंने झट से अपने एक दोस्त को बुला कर छुट्टी के लिए बोल दिया। कुछ ही देर के बाद एक चपरासी घर की सफ़ाई करने आ गया। मैं उसके जाने का इंतज़ार करता रहा पर उस हरामी ने पूरा डेढ़ घंटा लगा दिया। मैं सोच रहा था कि इससे तो अच्छा था कि मैं कॉलेज ही चला जाता। बुआ अब मटक मटक कर मेरे सामने घूम रही थी कुछ मुस्कुरा भी रही थी। मुझे बहुत झुंझलाहट हो रही थी पर मैं कुछ कर नहीं पा रहा था।
खैर जब लगभग बारह बजे वो हरामी चपरासी अपना काम खत्म करके गया। उसके जाते ही मैंने दरवाजा जल्दी से बंद किया और भाग कर बुआ के पास पहुँचा। बुआ रसोई में दोपहर के खाने की तैयारी में लग गई थी।
मैंने जाते ही बुआ को पीछे से पकड़ा और बुआ के नंगे पेट पर हाथ फेरते हुए बुआ की गर्दन पर चूमने लगा। बुआ ने मेरा हाथ हटा दिया और सब्जी काटती रही। बुआ के इस तरह हाथ हटाने से मैं बेचैन हो गया। मैंने दुबारा फिर कोशिश की तो बुआ ने फिर से मेरा हाथ हटा दिया। मैंने बुआ को अपनी तरफ घुमाया तो देखा बुआ की आँखों में आंसू थे। बुआ रो रही थी। मैंने बुआ के आंसू पोंछे और पूछा- क्या हुआ?
तो बुआ फफक फफक कर रो पड़ी। मैं परेशान हो गया कि आखिर बुआ रो क्यों रही है।
मैंने बुआ से पूछा- मुझ से कोई गलती हो गई क्या बुआ ?
“अरे नहीं रे … बस तेरा प्यार देख कर वैसे ही मन भर आया”
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मैंने जोर देकर पूछा तो बुआ ने जो बताया उसे सुन कर मेरा खून खौल उठा। बुआ ने बताया कि फूफा एक नंबर का ऐय्याश आदमी है। शादी के बाद सुहागरात को भी फूफा शराब के नशे में धुत हो कर कमरे में आये थे और बोले कि वो किसी दूसरी लड़की से प्यार करते हैं और वो इस शादी से खुश नहीं है। घर वालों के दबाव में उन्होंने शादी के लिये हाँ की थी।
क्योंकि बुआ गाँव से थी और पढ़ी लिखी भी कम थी इस लिए फूफा बुआ से शादी नहीं करना चाहते थे। फूफा बुआ के साथ सेक्स नहीं करते थे बल्कि बुआ के बजाय वो रंडियों पर पैसा उड़ाते थे। उन्होने पिछले दो साल में बुआ को सिर्फ दो चार बार ही चोदा था बस और वो भी शराब के नशे में धुत होकर। सही बोला जाए तो उन्होंने सिर्फ दो चार बार दैहिक शोषण किया था बुआ के साथ। शादी के समय बुआ बिल्कुल शील चरित्र थी। कभी ऊँगली भी नहीं डाली थी उन्होंने चूत में। पर हाय रे फूफा की फूटी किस्मत! जो इतने मस्त माल को कूड़ा समझ कर बाहर गंदगी में मुँह मार रहे थे।
बुआ के ससुर को यह बात पता लग गई थी और उन्होंने फूफा को समझाने की बहुत कोशिश भी की थी पर फूफा तो कुछ समझना ही नहीं चाहते थे। आखिरकार बुआ के ससुर ने फूफा को उस संगत से निकालने के लिए ऊपर सिफारिश करके फूफा का तबादला यहाँ करवा दिया था।
बुआ जवान थी और जवानी की आग उसमे भी भरी हुई थी तभी तो उस आग में जलते हुए बुआ ने मेरे साथ रात को सेक्स सम्बन्ध बना लिए थे। शायद बुआ ने पहली बार यौन का असली मजा लिया था वो भी बड़े प्यार के साथ।
“बुआ, अब तुम्हे और आंसू बहाने की जरुरत नहीं है मेरे होते हुए तुम्हें कभी भी किसी चीज़ की कमी नहीं होगी !” बुआ मेरे सीने में सिमट गई।
मैंने बुआ को सांत्वना देते हुए कहा- एक दिन मैं फूफा को भी सही रास्ते पर ले आऊंगा।
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(14-06-2022, 06:04 PM)neerathemall Wrote:
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बात कई साल पुरानी है। मैं +2 पास करने के बाद कॉलेज में दाखिला लेने शहर गया। ऊपर वाले की मेहरबानी और मेरी मेहनत के बल पर एक अच्छे कॉलेज में दाखिला भी मिल गया। हॉस्टल में कमरा भी ले लिया। पढ़ाई शुरू हो गई पर किस्मत में शायद कुछ और ही था। मेरे रूममेट के साथ मेरी बनी नहीं और हॉस्टल का माहौल भी पसंद नहीं आया तो मैंने घर वालों से सलाह करके बाहर रूम लेने की सोची।
अभी कमरे की तलाश चल ही रही थी कि अचानक मुझे मेरी बुआ जैसा कि मैंने बताया मेरे पिता जी के चाचा की लड़की कमलेश मिल गई। कमलेश बुआ तब लगभग 32-33 साल की रही होगी और मैं 20 साल का था। कमलेश बुआ बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं थी पर शरीर की बनावट इतनी गजब थी कि मुझे बुआ में ही माधुरी दीक्षित नजर आने लगी थी। वैसे भी कई साल बाद आमना सामना हुआ था।
बातों ही बातों में जब बुआ को पता लगा कि मैं कमरे की तलाश में हूँ तो वो नाराज होते हुए बोली कि उसके होते मैं किराये के कमरे में कैसे रह सकता हूँ।
मैंने बहुत मना किया पर वो जबरदस्ती मुझे अपने साथ अपने घर ले गई।
शहर का नाम मैं कहानी में नहीं लिख रहा हूँ, आप अपने शहर की कहानी समझ कर ही इसका आनंद लें।
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बुआ का घर शहर की एक अच्छी कॉलोनी में था। घर था भी काफी बड़ा। दो मंजिला मकान जो उस समय के हिसाब से कोठी कही जाती थी। कुल मिला कर आलिशान घर कह सकते हैं। फूफा जी का शहर में अच्छा खासा बिज़नस था।
बुआ ने घर पहुँचते ही मेरे घर पर फ़ोन मिला दिया और पिता जी को बता दिया कि अब से मैं उनके साथ ही रहा करूँगा। फ़ोन पर हो रही बातचीत तो नहीं सुन पाया पर बातों से लगा कि शायद पिता जी ने भी इसके लिए पहले मना किया था पर बुआ ने पूरे हक से बोल दिया कि वो चाहे कुछ भी कहें पर अब मैं उनके साथ ही रहूँगा।
मैं उसी दिन हॉस्टल से अपना सामान ले आया और बुआ ने मुझे एक कमरा दे दिया जो मेरे आने से पहले उनके बेटे रोहित का था। रोहित बोर्डिंग कॉलेज में पढ़ रहा था जिस वजह से वो कमरा खाली था। कमरे में सभी सुविधाएँ थी। पढ़ने के लिए अलग मेज, सोने के लिए बढ़िया बेड और कुछ खेल का सामान भी था जो अब मेरा ही था।
अब शुरू हुआ कहानी का दूसरा पहलू मतलब कहानी के टाइटल वाला किस्सा।
मुझे आये एक दिन ही हुआ था कि वो आ गई। वो मतलब गुड्डो, बुआ की ननद।
वैसे तो उसका नाम सुषमा था पर घर में सब उसे गुड्डो के नाम से बुलाते थे। लगभग 26-27 साल की मस्त पटाखा थी गुड्डो। अभी 4 साल पहले ही शादी हुई थी उसकी। पर ससुराल वालों से बनती नहीं थी तो अक्सर आपने मायके यानि बुआ के घर आ जाती थी।
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शुरू में मुझे कारण पता नहीं लगा पर बाद में पता लगा कि शादी के चार साल बाद भी वो माँ नहीं बन पाई थी तो उसकी सास और ननद अक्सर उसके साथ झगड़ा करती रहती थी. और पति भी उसका साथ देने की बजाये अपनी माँ और बहन की ही तरफदारी करता था; जिससे झगड़ा बढ़ जाता और वो रूठ कर अपने मायके आ जाती।
गुड्डो के बारे में क्या लिखूँ। गोरा रंग, भरा शरीर, मस्त उठी हुई चुचियाँ और मस्त गोलाई वाली गांड। चेहरे की खूबसूरती ऐसी कि देखने वाला देखता रह जाए। जब मैंने गुड्डो को पहली बार देखा तो मेरा दिल भी कुछ ऐसे धड़का की एक बार में ही उसका हो गया। कुछ तो मेरी उम्र ऐसी और ऊपर से उसकी खूबसूरती।
मैं घर में नया था तो अभी थोड़ा कम ही बोलता था। पर गुड्डो ने तो जैसे चुप रहना सीखा ही नहीं था, बहुत बातें करती थी और शायद यही कारण था कि हम दोनों रिश्ते नातों की दुनिया से अलग दोस्ती की दुनिया में पहुँच गए। अब वो मेरी दोस्त बन गई थी। बुआ की ननद थी तो मैंने उसको भी बुआ कहा तो भड़क गई और साफ़ बोली कि सबकी तरह मैं भी उसे गुड्डो ही कहूँ।
समय बीता और लगभग दस दिन ऐसे ही बीत गए। गुड्डो की ससुराल वाले उसको लेने आये भी पर वो उनके साथ नहीं गई। दस दिन बाद गुड्डो का पति महेश उसको लेने आया तो उन दोनों के बीच बहुत झगड़ा हुआ। मैं उन दोनों को शांत करने की नाकाम कोशिश करता रहा।
तभी गुड्डो के कुछ शब्द मेरे कानों में पड़े ‘महेश… तुम रात को कुछ कर तो पाते नहीं हो; फिर तुम्हारी माँ के लिए बच्चा क्या मैं पड़ोसियों से चुदवा कर पैदा करूँ? इतनी हिम्मत तुम में नहीं है कि अपना इलाज करवा लो। चार साल मैंने कैसे काटे है ये तुम भी अच्छी तरह जानते हो।’
उसके बाद बातें तो बहुत हुई पर मेरी सुई तो वहीं पर अटक गई थी। स्पष्ट था कि महेश गुड्डो को संतुष्ट नहीं कर पाता था और सही मायने में झगड़े की यही वजह थी।
जब महेश जाने लगा तो मैं भी उसके साथ चल पड़ा। वो बेचारा बहुत परेशान हो रहा था। रास्ते में मैंने उसको अपना इलाज करवा लेने की सलाह दी तो वो उसने मुझे घूर कर देखा पर कोई जवाब नहीं दिया।
वापिस आया तो गुड्डो ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था और रोये जा रही थी। बुआ ने कमरा खुलवाने की बहुत कोशिश की पर वो दरवाजा खोल ही नहीं रही थी। बुआ थक हार कर रसोई में चली गई।
तब मैंने गुड्डो का दरवाजा खटखटाया। पहले तो उसने दरवाजा नहीं खोला पर जब मैंने कहा कि दोस्त के लिए भी दरवाजा नहीं खोलोगी तो उसने झट से दरवाजा खोल दिया। मैं जैसे ही अन्दर गया गुड्डो मेरे गले से लिपट गई और जोर जोर से रोने लगी। सब इतना जल्दी हुआ कि मैं कुछ समझ ही नहीं पाया। कब मेरे हाथ गुड्डो की कमर से लिपट गए, पता ही नहीं चला।
जैसे तैसे मैंने उसको चुप करवाया। चुप होने के बाद जैसे उसे होश आया और वो एकदम से मुझ से अलग हो गई। मैं भी बिना कुछ बोले रसोई में गया और उसके लिए पानी का गिलास लेकर आया।
उसने थोड़ा पीया और उठ कर बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाद मुँह हाथ धो कर वो आई और मेरे पास ही बैठ गई।
मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या बात करूँ। क्योंकि हम दोनों पास पास बैठे थे तो अचानक ही उसने अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया। मुझे थोड़ा डर था कि अगर बुआ कमरे में आ गई तो पता नहीं क्या सोचेंगी। बस इसी डर में मैं बहाना बना कर वहाँ से उठ कर अपने कमरे में चला गया।
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कमरे में जाते ही गुड्डो के बदन की गर्मी याद आई; याद आया उसका मुझसे लिपटना; याद आया उसकी चुचियों अपनी छाती पर गद्देदार एहसास। सब याद आते ही लंड महाराज ने करवट ली और अकड़ कर लोअर में तम्बू बनाने लगा।
उस दिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ। पर उस दिन के बाद से गुड्डो का रूप सा बदल गया। मैंने महसूस किया कि वो मेरी तरफ आकर्षित हो रही थी। उठते बैठे खाते पीते उसकी नजर मेरे ऊपर ही टिकी हुई नजर आती। जब भी पास से गुजरती बिना छुए या टकराए नहीं निकलती। अगले दो दिन टचिंग टचिंग में निकल गए। ना वो आगे बढ़ रही थी और ना ही मेरी हिम्मत हो रही थी पर आग अब दोनों तरफ लगी हुई थी।
दो दिन बाद ऊपर वाले ने दो सुलगती आत्माओं की शांति के लिए एक मौका बना कर दिया। दोपहर को जब मैं कॉलेज से आया तो बुआ घर पर नहीं थी। गुड्डो ने ही दरवाजा खोला और बिना कुछ बोले रसोई में चली गई। मैंने घर में जब बुआ को नहीं देखा तो मैं गुड्डो के पास रसोई में चला गया और बुआ के बारे में पूछा तो उनसे बताया कि वो अपनी एक सहेली के घर कीर्तन में गई है और शाम तक आएँगी।
गुड्डो की बात सुनते ही मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। आज मौका अच्छा है अगर आज कुछ नहीं किया तो कभी कुछ नहीं हो पाएगा… इतना सोचते ही मैंने हिम्मत कर आगे बढ़ने का मन बना लिया।
मैं पानी लेने के बहाने से आगे बढ़ा और ठीक गुड्डो के पीछे जाकर खड़ा हो गया। जैसे ही मैं पानी पीने के लिए गिलास उतारने के लिए आगे हुआ गुड्डो का बदन मेरे बदन से टकरा गया। गुड्डो चौंकते हुए जैसे ही पलटी तो सीधा मेरी बांहों में समा गई। मैंने भी उसको सँभालने का नाटक करते हुए उसके कोमल मखमली बदन को अपनी बाँहों में भर लिया। गुड्डो के कोमल बदन का अहसास होते ही मेरी तो जैसे साँसें ही थम गई।
तन्द्रा तब भंग हुई जब गुड्डो मेरी बांहों से निकलने के लिए थोड़ा मचलने लगी। पर मैंने मौके की नजाकत को देखते हुए उसको और कस के अपने से लिपटा लिया। गुड्डो ने मेरी हरकत पर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए जैसे ही अपना चेहरा ऊपर किया मैंने तपाक से अपने होंठ गुड्डो के होंठों से मिला दिए।
एक बारगी तो वो कसमसाई पर फिर समर्पण करते हुए उसने अपना बदन मेरे हवाले कर दिया। अगले दस से पंद्रह मिनट तक रसोई में ही चूमाचाटी का दौर चलता रहा। बदन की आग अब ज्वालामुखी बन चुकी थी; हम दोनों एक दूसरे के होंठो को जैसे खा जाने को आतुर थे। कपड़े बदन पर बोझ से लग रहे थे।
“राज… अब आगे भी कुछ करने का इरादा है या फिर सारा समय ऐसे ही गुजारना है?”
उसकी बात का मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस उसके 52 किलो वजनी मखमली बदन को अपनी बांहों में उठाया और सीधा अपने बेडरूम में ले गया। बेडरूम में पहुँचते ही मेरे हाथ उसके कपड़ों का वजन उसके बदन से कम करने में व्यस्त हो गए। अगले ही पल को सिर्फ पेंटी में मेरे सामने खड़ी थी। मेरे रुकते ही वो शुरू हो गई और मुझे जन्मजात नंगा करने के बाद ही वो रुकी।
जैसे ही उसने मेरा अंडरवियर उतारा तो अपने मनपसंद खिलौने को देखते ही वो ख़ुशी से मचल उठी- वाह राज… तुम्हारा तो मस्त है यार… कहाँ छुपा रखा था इतने दिन से… देखो तो कितना मोटा और लम्बा है… महेश के लंड से कम से कम दो गुणा बड़ा है तुम्हारा!
लंड महाराज अपनी तारीफ़ सुन उछल कूद करने लगे। गुड्डो जो की खेली खाई थी उसने लंड को अपने मुँह में भर लिया और उसकी उछल कूद बन्द कर दी।
लंड की उछल कूद तो बंद हो गई पर मेरी शुरू हो गई। मेरे लिए ये अहसास बिलकुल नया था। मेरे तो पूरे बदन में सरसराहट सी फ़ैल गई; मेरे मुँह से आनंददायक सिसकारियाँ फूट पड़ी थी-
आह… मेरी गुड्डो रानी… अआह्ह… बहुत मजा आ रहा है मेरी जान… ओह्ह्ह्ह…
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मेरा लंड चूसते चूसते गुड्डो ने मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रख दिए। मैं भी मस्ती में लंड चुसवाते हुए गुड्डो की चुचियों को मसलने लगा। दोनों के बदन वासना के तूफ़ान की गिरफ्त में आ चुके थे। दिन-दुनिया को भूल बस बदन की आग को ठंडा करने की तड़प थी बस।
कुछ देर लंड चूसने के बाद गुड्डो ने मेरा लंड मुँह से निकाला और अपनी पेंटी उतार मेरे ऊपर आ गई और अपनी चुत मेरे मुँह पर रख दी और बोली- कब से लंड चुसवा रहा है… अब चाट मेरी चुत… खा जा मेरी चुत को!
मैं भी किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह उसकी चिकनी चुत को चाटने लगा और बीच बीच में अपने होंठों और दाँतों से काटने लगा।
वो अब मस्त हो चिल्ला रही थी- चाट… बहनचोद… चाट… चाट मेरी चुत… बहुत तड़पाया है तूने भी आज पूरा बदला लूँगी… बूंद बूंद निचोड़ लूँगी तेरे लंड की… तू भी खाली कर दे मेरी चुत… पानी निकाल निकाल के!
और फिर उसका बदन थोड़ा अकड़ा और झर से मेरे मुँह के ऊपर ही झड़ गई। उसकी चुत का स्वादिष्ट नमकीन पानी मेरी जीभ से होता हुआ मेरे गले में उतर गया कुछ मेरे मुँह पर टपक गया।
झड़ने के बाद वो थोड़ा सुस्त सी हुई और उसने नीचे होकर मेरे मुँह पर लगे उसकी चुत से निकलने वाले कामरस को चाटना शुरू किया और पूरा मुँह साफ़ करने के बाद उसने फिर से मेरे लंड को पकड़ लिया। लंड पहले से ही अकड़ कर लोहे की छड़ सा तना हुआ था।
थोड़ा मसलने के बाद उसने मेरे लंड को फिर से मुँह में भर लिया और चाटने लगी। मेरा लंड अकड़ने की वजह से दुखने लगा था। मैंने उसके मुँह से लंड बाहर निकाला तो वो पहले तो बच्चों की तरह इठलाई और फिर बिना देर किये मेरे ऊपर आ गई और लंड को अपनी चुत पर सेट करके उसके ऊपर बैठती चली गई और मेरा लंड भी उसकी चुत को भेदता हुआ गहराई में उतरने लगा।
मेरा लंड क्यूंकि महेश के लंड से मोटा था तो उसकी चुत थोड़ा फ़ैल गई जिससे उसे थोड़ा दर्द भी हुआ। दर्द उसके चेहरे पर नजर आ रहा था पर वासना दर्द पर भारी थी इसीलिए वो बिना दर्द की परवाह करते हुए मेरे लंड पर चुत को दबाती चली गई और फिर मेरा लगभग आठ इंच का लंड जड़ तक उसकी चुत में समा गया।
पूरा लंड अपनी चुत में लेने के बाद गुड्डो थोड़ा रुकी और मेरे ऊपर झुक गई। उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ मेरी आँखों के सामने थी जिन्हें मैंने बिना देर किया अपनी हाथों में दबोच लिया और मसलने लगा। गुड्डो ने भी झुक कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। गुड्डो की चुत शादी के चार साल बाद भी बहुत टाइट थी। मुझे मेरा लंड किसी शिकंजे में जकड़ा महसूस हो रहा था।
“राज… कितना मोटा लंड है तेरा… मेरी चुत तो पूरा भर गई तेरे लंड से… कितना कड़क है तेरा यार… ऐसा लग रहा है जैसे कीला ठोक दिया हो चुत में किसी ने…”
अपने लंड की तारीफ़ सुन मैं फूला नहीं समा रहा था। मैंने मस्ती के मारे अपनी गांड उछाल कर गुड्डो को आगे बढ़ने के लिए कहा तो वो भी मेरा इशारा समझते हुए मेरे लंड पर ऊपर नीचे होते हुए मेरे लंड को अन्दर बाहर करने लगी। गुड्डो को थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था तो इसी वजह से वो थोड़ा धीरे धीरे लंड पर ऊपर नीचे हो रही थी पर मेरा मन जोर जोर से चुदाई करने का हो रहा था।
जब मुझ से नहीं रहा गया तो मैंने पलटी मारी और गुड्डो को अपने नीचे कर लिया और लंड को अन्दर बाहर कर गुड्डो की कड़क चुत को चोद कर मजे लेने लगा।
मैंने दो चार धक्के ही धीरे धीरे मारे पर फिर मैं अपनी गति बढ़ाता चला गया और जोर जोर से धक्के मार गुड्डो की चुत की बैंड बजाने लगा। दर्द से गुड्डो की आहें निकल रही थी। हर धक्के के साथ वो कराह उठती थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ पर मेरा ध्यान अब सिर्फ चुदाई पर था और मैं बिना रुके धक्के पर धक्के लगा रहा था।
कुछ देर बाद गुड्डो की चुत ने भी पानी छोड़ दिया और लंड ने भी चुत में अपनी जगह बना ली थी। अब लंड आराम से चुत की गहराई तक जा रहा था। अब तो गुड्डो भी हर धक्के के साथ अपनी गांड उठा उठा कर मेरे हर धक्के का जवाब देने लगी थी। हम दोनों में से अब कोई भी बोल नहीं रहा था, बस मस्ती भरी आहें और सिसकारियाँ ही कमरे में गूंज रही थी। या फिर लंड चुत के मिलन से होने वाली थप थप और चुदाई की मस्ती भरी धुन फच फच ही सुनाई दे रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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पांच मिनट की चुदाई के बाद ही गुड्डो एक बार से फिर अकड़ने लगी और आठ दस धक्के के बाद ही उसकी चुत फिर से झरने लगी थी। उसके झड़ने से चुत पानी पानी हो गई थी और फच्च फच्च की आवाजें अब कुछ ज्यादा होने लगी थी।
झड़ने के बाद गुड्डो भी थोड़ा सुस्त हो गई थी पर मेरा लंड अभी भी तना हुआ उसकी चुत की सैर कर रहा था। गुड्डो के झड़ने के बाद मैंने उसको घोड़ी बनने को बोला तो बेड पर घोड़ी की तरह झुक कर पोजीशन में आ गई। मैंने बिना देर किये पीछे जाकर लंड उसकी चुत की गहराई में उतार दिया और उसकी कमर पकड़ कर लम्बे लम्बे धक्के मार मार कर उसकी चुदाई करने लगा।
कुछ ही धक्कों के बाद गुड्डो फिर से रंग में आ गई और मस्त हो चुदाई करवाने लगी थी। मैं झुक कर उसकी चुचियों को पकड़ कर मसलते हुए धक्के लगाने लगा।
“चोद मेरे राजा… चोद… आज तो तूने मुझे निहाल कर दिया… इतना मजा तो जिन्दगी में आज तक नहीं आया… आज पता लगा कि चुदाई क्या होती है मेरे राजा… फाड़ दे मेरी चुत आज अपने मोटे लंड से… चोद मुझे.. चोद मेरे राजा… लगा दे पूरा जोर… आज इस निगोड़ी चुत की धज्जियाँ उड़ा दे मेरे राजा…” गुड्डो मस्ती के मारे बड़बड़ाते हुए चुद रही थी और मैं भी चुदाई का भरपूर मजा लेते हुए चोद रहा था उसकी कड़क चुत को।
कुछ देर की चुदाई के बाद गुड्डो का बदन एक बार फिर से अकड़ने लगा और वो अपनी चुत को मेरे लंड पर कसने लगी थी। इस कसावट ने मुझे जैसे दूसरी दुनिया में पहुँचा दिया था और अब लगने लगा था कि जैसे मेरा लंड भी अब जैसे फटने को है। बीस पच्चीस धक्कों के बाद गुड्डो की चुत झड़ने लगी और फिर मैं भी अपने आप को रोक नहीं पाया और मेरे लंड से भी गर्म गर्म लावा फूट पड़ा और मेरे वीर्य से गुड्डो की चुत भरती चली गई।
एक दो तीन… ना जाने कितनी पिचकारियाँ निकली थी लंड से।
मेरे तो जैसे होश ही गुम हो गए थे।
हम दोनों मस्त तरीके से झड़ चुके थे। गुड्डो मेरे नीचे ही बेड पर पसर गई। मुझमें भी जैसे हिम्मत नहीं बची थी तो मैं भी वहीं गुड्डो के नंगे बदन के ऊपर ही ढेर हो गया। गुड्डो का कोमल बदन मेरे कसरती बदन के नीचे दबा हुआ था।
पाँच मिनट बीते थे गुड्डो के बदन में कुछ हलचल हुई तो मुझे एहसास हुआ कि कैसे वो कोमल कली मेरे नीचे दबी हुई थी। मैं उसके ऊपर से उतर कर बगल में लुढ़क गया। मुझ पर तो जैसे नींद का नशा सा छा गया था; मैं ऐसे ही नंगधड़ंग लेटे लेटे ही सो गया।
गुड्डो कब मेरे पास से गई, मुझे याद नहीं।
जब उठा तो मेरे बदन पर कपड़े थे जो गुड्डो ने ही मुझे पहनाये थे। शाम के साढ़े पाँच बजे हुए थे। मुझे याद आया कि मैं लगभग दो बजे घर आया था और आते ही हम दोनों का चुदाई प्रोग्राम शुरू हो गया था जो लगभग घंटा भर चला था। इसका मतलब मैं करीब दो घंटे से सो रहा था।
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गुड्डो की चुदाई की याद आते ही बदन में एक बार फिर से सरसराहट सी दौड़ गई। दिल ख़ुशी के मारे उछल रहा था। जैसे ही मैं अपने कमरे से बाहर निकला तो कमलेश बुआ से आमना सामना हो गया।
“आज ऐसा कौन सा पहाड़ तोड़ कर आया था जो आते ही घोड़े बेच कर सो गया? कम से कम खाना तो खा लेता आने के बाद… कितना उठाया तुझे पर तू है कि हिला तक नहीं?”
बुआ की बात सुनने के बाद मैंने बुआ को सॉरी बोला और तुरंत रसोई की तरफ चल दिया। मुझे लगा था कि गुड्डो जरूर रसोई में होगी और मैं अपनी महबूबा के पास जल्द से जल्द पहुँच जाना चाहता था।
गुड्डो मुझे रसोई में नहीं मिली।
जब बुआ से पूछा तो बुआ ने बताया कि गुड्डो बाजार गई है कुछ खरीददारी करने। इसीलिए तो तुझे उठा रही थी पर तू है कि उठा ही नहीं।
मैं खुद को कोसने लगा कि गुड्डो के साथ बाजार जाने का मौका छुट गया पर ख़ुशी भी थी कि अब तो गुड्डो मेरी है।
रात को सबने एक साथ खाना खाया और फिर हर रोज की तरह उठ कर अपने अपने कमरे में चल दिए। दस बजने को थे। मुझे कॉलेज का कुछ काम पूरा करना था जो दिन में नहीं कर पाया था। किताब खोल कर बैठा पर पढ़ाई में दिल ही नहीं लग रहा था; दिलो-दिमाग में सिर्फ गुड्डो छाई हुई थी। मन कर रहा था कि गुड्डो अभी के अभी मेरे पास आ जाए और फिर सारी रात सिर्फ गुड्डो और मैं। बीच में कोई नहीं… कोई कपड़ा भी नहीं।
गुड्डो रात को करीब साढ़े बारह बजे मेरे कमरे में आई। उसने गुलाबी रंग की नाईटी पहनी हुई थी; बाल खुले थे और आँखों में नशा भरा था।
जैसे ही मेरी नजर गुड्डो से मिली … मैं भी होश में नहीं रहा और फिर सुबह छ: बजे तक कमरे में घपाघप होती रही। रात को गुड्डो दिल खोल कर चुदी और पूरी मस्ती में चुदी।
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