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Adultery कामवासना की तृप्ति
#1
कामवासना की तृप्ति

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
मेरा झुकाव शुरू से ही उम्रदराज़ स्त्रियों की ओर ज्यादा रहा है। कारण कोई भी रहा हो, जैसे उनका गदराया जिस्म, ब्लाउज या समीज़ के ऊपर से नुमाया उनके मोटे मोटे स्तन की घाटियाँ, उनकी हल्की चर्बीयुक्त क़मर, पेट पर सुशोभित नाभि, उभरी हुई मटकती गांड, उस पर उनकी सधी हुई चालढाल और आत्मविश्वास; एक एक अंग कमाल, हर रंग बेमिसाल।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
एक कामरूपी सुन्दरी श्रीमती सिमरन भनोट जी से मुलाकात हुई। आप एक कॉलेज में लेक्चरर हैं। आपकी सुंदरता और सौंदर्य के लिए मेरे उपरोक्त शब्द सटीक भी हैं और कमतर भी हैं। मेरे आग्रह पर आप इस रचना में अपने शब्द देने के लिए राज़ी हुई,
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
श्रीमती सिमरन भनोट जी के शब्द:
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
मेरी उम्र 44 वर्ष भले ही हो परंतु मन अभी भी 24 का ही है। यदि आप लोग मेरे बदन(फिगर) या लुक्स की तुलना करना चाहें तो मैं एक नाम लेना चाहूंगी-विद्या बालन। बस, उनसे थोड़ी सी लंबी होऊँगी।

इस साइट पर लिखी कहानियाँ मैं भी विगत कई वर्षों से पढ़ती आई हूँ। सुबह पतिदेव ही मुझे कॉलेज तक छोड़ते हैं और उसके बाद वो अपने आफिस चले जाते हैं। लेकिन शाम को मेरा लौटना पहले होता है इसलिए मैं ऑटो लेकर वापिस आ जाती हूँ।
अरे मैं तो भूल ही गयी, अपने पतिदेव से तो आपका परिचय ही नहीं करवाया। गोपनीयता की वजह से में उनका उल्लेख ज्यादा तो नहीं कर सकती लेकिन आप ये जान ही सकते हैं कि मेरे पतिदेव भनोट जी सरकारी मुलाजिम हैं। उम्र के 48 बसंत देख चुके, निहायती सभ्य, मिलनसार और अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार हैं।[Image: 41182123_182_f0d9.jpg]
27 वर्ष की अपनी आग उगलती जवानी से आज तक लगातार मेरी चूत की कामाग्नि शान्त करते चले आये हैं। तब से अब तक में बस फर्क ये है कि अब वो जवानी वाली आग उनका लण्ड उगल नहीं पाता लेकिन वो मुझे प्यार बहुत करते हैं और तन मन से मैं भी उन्हें।
हमारे दो बच्चे भी हैं। बड़ी वाली लड़की दिल्ली में पढ़ती है और छोटा लड़का तैयारी के लिए इसी वर्ष कोटा गया है। जब से लड़का कोटा गया है, तब से घर में अकेलापन सा महसूस होने लगा। मुझे थोड़ी स्वतंत्रता भी मिल गयी कि मैं वर्षों से दबी इच्छाओं को बाहर आने दूँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
लेकिन पतिदेव का एक बार वीर्य उगलते ही शिथिल पड़ जाता और पुनः मेरा सहारा बनती मेरी उंगलियां और किचन में रखे लंबे मोटे बैंगन।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
Smile Smile Smile Smile 













उस रात तो मैं सो न सकी। पतिदेव जी भी देर से आये और खाना खाकर सो गए। मैं अजीब पशोपेश में थी कि किसी अजनबी आदमी से दोस्ती ठीक रहेगी। और बात केवल दोस्ती की तो है नहीं, उससे कहीं ज्यादा की बात है।

मेरी इज़्ज़त, मेरी आबरू, मेरा परिवार, सब कुछ दांव पर होगा।
अगले ही पल मुझे मेरी चूत की भी याद आ गयी। कितने सालों से मेरी चूत की संतुष्टि से चुदाई नहीं हुई। मैं अपने पति के सूखे लण्ड से असंतुष्ट होकर कितना तड़पी हूँ। अपनी भरपूर जवानी में परिवार के लिए, बच्चों के लिए, पति के लिए कितना त्याग-तपस्या की है। क्या मैं अपनी कुछ वर्षों की शेष जवानी भी ऐसे ही गुज़ार दूंगी? अगले ही पल मेरा एक हाथ मेरी चूत पर पहुंचकर रगड़ने और सहलाने की क्रिया करने लगा और मैं अपनी विचारों की दुनिया में गोते लगाने लगी।
अब मेरे दिमाग ने सोचना बंद कर दिया और चूत ने सोचना शुरू कर दिया था।
दो दिन बाद हमने मिलने का प्लान बनाया। मैं हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहती थी इसलिए तय ये हुआ कि कॉलेज से छुट्टी के बाद मैं ऑटो नहीं लूंगी बल्कि ज्ञान जी मुझे घर छोड़ देंगे। छुट्टी के बाद मैंने ज्ञान जी को फ़ोन लगाया तो उसने बताया कि वह बस स्टॉप पर खड़ा है।
मैं मन ही मन उत्साहित होकर मानो उड़ते हुए बस स्टॉप तक पहुंची। सामने एक सफेद कार खड़ी थी। मैंने कन्फर्म करने के लिए फ़ोन लगाना चाहा कि तभी ज्ञान जी का मैसेज आया कि सफेद कार में आकर बैठ जायें।
मैं इधर उधर देखते हुए कार में बैठ गयी। ड्राइवर सीट बैठे एक मनमोहक, हैंडसम, जवान, 27-28 वर्ष के युवक ने हाथ मिलाने के लिए अपना दाहिना हाथ मेरे तरफ बढ़ा दिया- हेलो मैम, मैं ज्ञान।
“हेलो ज्ञान जी!” कहते हुए मैंने भी अपना हाथ बढ़ा दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
ज्ञान के मजबूत हाथों की पकड़ ने मेरा ध्यान उसके बदन पर ले गया जो कि पोलो टी शर्ट और नीली जीन्स में कसा हुआ था। मेरे मन में आया कि बदन गठीला और कसा हुआ है तो लण्ड का क्या हाल होगा. ऐसा सोचते ही मेरी चूत में सरसराहट सी मच गयी।

मैंने खुद को संभालते हुए नॉर्मल बातचीत शुरू की। बात करते करते मैं ध्यान दे रही थी कि ज्ञान कभी कभी सामने देखकर गाड़ी चला रहा था और कभी कभी मुझे मेरे बदन को भी निहार देता।
कॉलेज से मेरा घर 5-6 किमी ही है और जल्दी ही मेरा घर आ गया। ज्यादा बातचीत नहीं हो पाई थी इसलिए मेरा मन उससे छोड़ने का हो नहीं रहा था, दिल आ गया था मेरा इस बांके नौजवान पर।
मैंने अपने घर के सामने गाड़ी रुकवाई और ज्ञान को चाय पीने के बहाने अंदर चलने को कहा।
वो भी जैसे इसी बात का इंतज़ार ही कर रहा था। उसके बाद जब तक ज्ञान अपनी कार साइड लगाकर आया, तब तक मैंने पर्स से चाभी निकालकर मेन गेट खोला और उसे अंदर आने का इशारा किया।
ज्ञान अंदर आया और घर की तारीफ करते हुए सोफे पर विराजमान हो गया। मैं भी रसोई की तरफ बढ़ी और फ्रिज से पानी और कुछ बिस्किट वगैरह लेकर आयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#9
ज्ञान थोड़ा सा हंसते हुए बोला- आपने क्या अनुमान लगाया था?

अब उल्टा प्रश्न मुझी से हो गया- नहीं, मेरा मतलब कि तुम ऐसी वैसी बात या हरकत …
ज्ञान मेरी बात को बीच में पूरा करते हुए बोला- नहीं कर रहा … है ना?
मैं- हां!
ज्ञान- मेरे कुछ नियम हैं, जिसके तहत ही मैं किसी स्त्री की चुदाई करता हूँ।
मैं- वो क्या हैं?
ज्ञान- सबसे पहले हम दोनों को एक एच.आई.वी टेस्ट कराना होगा, और दूसरा मेरा पारिश्रमिक आपको जो भी उचित लगे, केवल एक बार, देय होगा।
मैंने बहुत कुछ सोचकर हाँ कह दिया।
ज्ञान- आप तैयार हो जाएं, कल से आपके ज़िंदगी में तूफ़ान आने वाला है।
इतना कहकर ज्ञान उठा और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसने मुझे अपनी मजबूत बाँहों में जकड़ लिया। उसने अपना एक हाथ मेरे सिर के पीछे ले जाकर अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिया।
मुझे तो जैसे करेंट लगा हो, ज्ञान के बलिष्ठ शरीर में मैं पिघल सी गयी थी। मैं भी अपना हाथ उसकी पीठ पर सहलाते हुए उसके कसरती कसे हुए बदन को महसूस करने लगी। मेरे मुलायम से स्तन उसके पत्थर से मजबूत सीने में चिपट से गये।
फिर धीरे से उसने मेरे सिर से हाथ नीचे ले आया और मेरे होंठों को काटते हुए मेरे चूतड़ को कस के भींच दिया। उसके इस द्विघाती प्रहार से मैं दर्द और उत्तेजना से बिलबिला उठी।
इतना जैसे कम था कि उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर मेरी नर्म मुलायम जीभ से अठखेलियां करने लगा। मै मदहोशी से अपनी आँखें बंद करके उसकी एक एक क्रिया का आनन्द ले रही थी थी।
तंद्रा तो मेरी तब टूटी जब उसने मेरे कान में धीरे से कहा- आपके रूप को देखकर खुद को रोकना बहुत मुश्किल है।
इतना कहते हुए उसने मुझे सोफे पर वापिस धकेल दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#10
पर- नीचे होती अपनी साँसों को संभालते हुए ज्ञान बोला- अब मुझे चलना चाहिए, कल मिलते हैं।

इससे पहले कि मैं अपनी ऊपर नीचे होती साँसों को संभालकर उठ पाती, ज्ञान दरवाज़े से बाहर निकल चुका था।
मैं उसी मुद्रा में बेसुध सी पड़ी रही और सोचने लगी कि इसी को शायद कहते हैं ‘हाथ तो आया पर मुँह को न लगा।’
लेकिन अब मैं भला कर भी क्या सकती थी।
आग तो भंयकर लग चुकी थी मेरी चूत में! मैं खुद को संभालते हुए उठी और सीधे फ्रिज से एक लंबा मोटा खीरा निकाल वहीं फर्श पर पसर गयी। अपनी साड़ी और पैंटी सरका कर खीरे को चूत में डाल लिया।
चूत मेरी पहले से ही पानी पानी हो रही थी। ठंडा ठंडा खीरा मेरी चूत में सट्ट से अंदर घुस गया। मैं लगभग चिल्लाती हुई खीरे को ज्ञान का लण्ड समझ कर अंदर बाहर करने लगी।
कुछ देर की मशक्कत के बाद मैं अपने चरम पर पहुंच गयी और झड़ने के बाद सोचने लगी कि क्या आज ज्ञान ने भी मेरे नाम की मुठ मारी होगी।
फिर वही सब कुछ नार्मल हुआ। पतिदेव आफिस से आये, डिनर के बाद मेरी 2-3 मिनट चुदाई की और सो गए।
लेकिन मुझे तो बस कल का इंतज़ार था। मुझे ज्ञान की कही तूफान वाली बात और आज का 5 मिनट का ट्रेलर मेरे दिलोदिमाग खासकर मेरी चूत में हिलौरें मार रहे थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#11
अगले दिन कॉलेज के बाद हम दोनों फिर उसी जगह मिले और सीधे एक पैथोलॉजी गए। वहां से एच.आई.वी टेस्ट के लिए सैंपल देकर वापिस घर की तरफ चल दिये। मैं रास्ते में यही सोचने लगी कि आज इसे रोकू की न रोकूँ अपने घर क्योंकि एच.आई.वी टेस्ट की रिपोर्ट तो कल आएगी और ज्ञान मुझे तब तक चोदेगा भी नहीं। मुझे कल की तरह फिर से तड़पना पड़ेगा।

इसी उधेड़बुन में घर कब आ गया पता ही नहीं चला। कार से उतरकर मैं गेट खोलने लगी तब तक मेरे पीछे ज्ञान भी आकर खड़ा हो चुका था।
मैंने ध्यान दिया कि उसके हाथ में एक बैग था। सोफे पर बैठते हुए मैंने ज्ञान से बैग के बारे में पूछा।
बैग से एक तेल की बोटल निकालते हुए ज्ञान ने कहा- आज से मेरी सेवाएं शुरू हो चुकी हैं। यह एक ख़ास मसाज ऑयल है।
मुझे समझते देर न लगी कि ये किस तरह का मसाज ऑयल है और किस प्रकार के मसाज की बात कर रहा था लेकिन थोड़ा नादान बनते हुए मैं पूछ पड़ी- इसमे मुझे क्या करना होगा?
ज्ञान- सबसे पहले ये सफेद चादर लीजिये और जिस बेड पर लेटेंगी उस पर लगा दीजिये।
मैंने ज्ञान के कहे अनुसार अच्छे से चादर अपने ही बेडरुम में लगा दी।
ज्ञान- अब आप चेंज कर लें और टॉवल लगाकर बेड पर पेट के बल लेट जाएं।
इतना सुनते ही मैं सबसे पहले वाशरूम में घुस गई। साड़ी के साथ ही पेटीकोट और ब्लाउज को निकाल फेंका। वस्त्र के नाम पर इस वक़्त मेरे बदन पर ब्रा और पैंटी ही बची थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#12
खुद को एक नज़र शीशे में निहारा तो मन मे रोमांच की तरंगें उठने लगी। एक पराया मर्द बांका नौजवान मुझे इस तरह नंगी देखेगा। और केवल देखेगा तो है नहीं बल्कि एक एक करके अपने बलिष्ठ हाथों से मेरे गदराए अंगों को सहलायेगा, टटोलेगा, मसलेगा।

इससे ज्यादा मैं आगे सोचती, मैंने ब्रा के साथ पैंटी भी उतार फेंकी। और यहां मैं अपने मर्द मित्रों को एक बात आपको बता दूँ कि औरतें जब दिन भर की भागदौड़ के बाद अपनी ब्रा उतारती हैं तो जो रिलैक्सेशन वाली फीलिंग आती है ना कि पूछिये मत।
मेरे भी दोनों उरोज उछल कर फुदकने लगे।
मैंने ऊपर टॉवल लपेटा और बाथरूम से निकल बैडरूम मे आ गयी जहां ज्ञान भी अपने कपड़े निकालकार केवल बॉक्सर पहने बेड के सिरहाने बैठा था।
मुझे इस रूप मे देखकर उसकी आँखों में एक अलग सी चमक आ गयी- आप गज़ब की खूबसूरत हैं सिमरन मैम। यहां आकर पेट के बल लेट जाएं।
मैं टॉवल लपेटे हुए बिस्तर पर पेट के बल लेट गयी और ज्ञान ने अपना काम शुरू कर दिया। सबसे पहले उसने मेरे पैरों पर मालिश शुरू करते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगा। मेरे घुटने तक आने के बाद उसने मेरे कूल्हे को सहारा देते हए धीरे से मेरे बदन पर लिपटा एकमात्र वस्त्र तौलिये को निकाल दिया। मेरे 36 के चूतड़ उसकी आंखों के सामने नंगे हो गए।
उसने देर न करते हुए मेरे मोटे चूतड़ों पर तेल लगाना शुरू कर दिया। मेरी गांड पर तेल लगाते हुए ज्ञान ने बड़ी कस के मेरे दोनों चूतड़ों को दबा दिया।
‘उफ्फ’ करके मैं बड़ी जोर से कराह उठी। मैं एकदम गर्म हो चुकी थी।
इतना जैसे कम था कि उसने हाथ में तेल लेकर मेरे चूतड़ों के बीच मेरी चूत पर हाथ फेर दिया। दो तीन बार मेरी चूत पर हाथ फेरने के बाद उसने मेरी गांड के छेद से छेड़खानी शुरू कर दी। तेल से डूबी हुई मध्यमा उंगली को उसने एकाएक मेरी छोटी सी गांड के छेद में घुसेड़ दी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#13
मेरी गांड में मुझे मीठा मीठा दर्द उठ पड़ा। मैं अपने चेहरे को मालिश सुख महसूस करते हुए बिस्तर में गड़ाए पड़ी थी। ज्ञान ने अब तक मेरी पीठ पर तेल लगाना शुरू कर दिया। उसके कसरती कठोर हाथ की ताकत से मेरी नाज़ुक पीठ और कंधों की मस्त मालिश कराते हुए मैं सुख के उस संसार में पहुंच चुकी थी जहाँ से चाह कर भी लौटना नामुमकिन था।

इतने में उसने मेरे कंधे और कमर से हाथ लगाते हुए मुझे दूसरी ओर पलट दिया। अब मेरी नंगी, साफ, बिना झांटों वाली चूत ज्ञान के आगे पसर कर उसको ललचाने लगी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#14
बिस्तर में मुंह गड़ाए गालों को चादर से रगड़ते हुए मैं गांड में उंगली का आनंद ले ही रही थी कि ज्ञान ने मेरी पीठ का रुख कर लिया. उसके कसरती हाथ मेरे जिस्म के रोम रोम को उत्तेजित कर रहे थे.

पीठ पर मालिश करवाते हुए मेरी चूत से आनंद के आंसू बाहर आने ही वाले थे कि ज्ञान ने मुझे पलट कर सीधी कर लिया और मेरी नंगी, साफ, बिना झांटों वाली चूत ज्ञान के आगे पसर कर उसको ललचाने लगी.
मैंने ज्ञान के चेहरे को देखा तो उसकी आंखें मेरी चूत के दर्शन करके जैसे धन्य हो रही थीं. कामवासना से ललचाई उसकी आंखों के साथ उसके होंठ भी लार टपका रहे थे. एक बांका हैंडसम मर्द जो एक कसरती मजबूत बदन का मालिक हो, उसके सामने अपने नंगे जिस्म का प्रदर्शन करके उसको तड़पाने का भी अलग ही रोमांच मैंने उस दिन अनुभव किया.
ज्ञान ने कुछ पल तक मेरी नंगी चूत को निहारा और फिर मेरी आंखों की ओर देखा तो मैंने पलकें नीचें कर लीं. फिर उसने अपनी हथेली पर तेल लिया और मेरे मोटे मोटे उरोजों पर अपने चिकने हाथ रख दिये.
उसके सख्त खुरदरे से हाथ मेरे कोमल वक्षों पर आकर उनको सहलाने लगे. चूचियों को अपने हाथों से गोलाकार दिशा में मालिश देते हुए उसके हाथ मेरी वासना की आग में घी डालने लगे. चूत की हालत हर पल बिगड़ने लगी.
कुछ पल तक मेरे वक्षों को मसाज देने के बाद उसने अपने मजबूत हाथों से मेरी जांघों को मसाज देना शुरू कर दिया. मैं भी टांगें फैलाये हुए जैसे उसको अपने ऊपर चढ़ने का आमंत्रण दे रही थी. मगर उसको भी मुझे तड़पाने में ज्यादा आनंद मिल रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#15
सके हाथों के अंगूठे जब मेरी चूत के इर्द गिर्द आकर रगड़ दे रहे थे तो मन कर रहा था उसके कपड़ों को फाड़ कर उसे नंगा कर लूं और उसके गठीले मजबूत जिस्म को बेतहाशा चूमने लगूं.

अपनी चिकनी मजबूत हथली से ज्ञान ने मेरी चूत पर सहला दिया. मैं तड़प गयी और उसकी और लपकी. मगर ज्ञान एकदम से पीछे हट लिये.
मैंने रोषपूर्ण, कुंठित दृष्टि से ज्ञान की ओर देखा तो उन्होंने मुझे इस हालत में अधूरा छोड़ने के कारण की ढाल को पहले से तैयार कर लिया था.
मेरे प्रश्नवाचक नैनों के तीर उनके मन के किले को भेद ही नहीं पाये.
इससे पहले मैं अपना गुस्सा दिखाती उन्होंने कह दिया- पहले रिपोर्ट आने दीजिये, उसके बाद आपकी तसल्ली बख्श चुदाई का रास्ता साफ हो जायेगा. तब तक के लिए थोड़ा सा इंतजार और कीजिये.
एच.आई.वी. रिपोर्ट का सवाल सामने आया तो मेरे पास कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. मन मसोस कर रह गयी. न जबरदस्ती कर सकती थी और न ही वासना की आग में जल रहे अपने जिस्म के अंगों पर छिड़कने के लिए मर्दन का पानी ही मांग सकती थी.
ज्ञान जी मुझे अधूरा छोड़ कर चले गये. मेरा मन खार खा गया. सोच लिया कि आज के बाद इनसे बात ही न करूंगी.
दोस्तो, कोई औरत जब किसी बांके जवान मर्द के नीचे खुद ही अपने जिस्म को रगड़वाने के लिए तड़प रही होती है तो ऐसी स्थिति में किसी का रूखा व्यवहार बहुत अखरता है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#16
दो दिन तक मैंने ज्ञान जी को फोन ही नहीं किया. रात में पति के लंड से चुदने के बाद ध्यान तो ज्ञान के लंड से चुदाई करके प्यास को शांत करवाने पर ही जाता था लेकिन गुस्सा निकालने के लिए मैंने उनको संपर्क ही नहीं किया. ज्ञान जी भी तीन दिन तक खामोश रहे.

चौथे दिन मैं दोपहरी में कॉलेज आने के बाद नहाकर आई और मैक्सी पहन कर बेड पर आराम करने लगी. थकान के मारे जल्दी ही आंख लग गयी. मेरी नींद घर के दरवाजे की बेल ने खोली.
आलस में उठ कर दरवाजे तक गयी और दरवाजा खोला तो सामने ज्ञान जी एक कागज का लिफाफा लिये खड़े हुए थे. एक बार तो मन किया कि दरवाजे को वापस बंद कर लूं लेकिन ज्ञान की जीन्स में कसी उसकी सुडौल मांसल जांघों पर नजर गयी तो मन बहक गया. सोचा कि आज तो चुद कर ही रहूंगी.
मैंने कहा- अंदर आ जाइये, बाहर क्यों खड़े हुए हैं?
मेरे कहने पर ज्ञान अंदर आये और आकर सोफे पर बैठ गये. मैं किचन से पानी लेकर आई और उनको पीने के लिए दिया.
पानी पीते हुए उन्होंने रिपोर्ट वाला लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया. मैंने लिफाफा खोल कर देखा.
एच.आई.वी. रिपोर्ट में निगेटिव आया हुआ था. मैंने ज्ञानी की ओर देखा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#17
वो मेरी ओर ललचाई नजरों से देख रहे थे. उनकी नजर मेरी नाइटी को भेद कर मेरे चूचों का नाप ले रही थी.

मैंने भी सोच लिया था कि उस दिन का बदला आज ठीक से निकालूंगी.
मैंने पूछा- चाय लेंगे या कॉफी?
वो बोले- दूध!
मैंने पूछा- किसका?
उन्होंने मेरे वक्षों को घूरते हुए कहा- जो भी आपके पास हो.
मुंह बना कर मैं अंदर चली गयी. उनको भी थोड़ा अजीब सा लगा. पांच मिनट के बाद मैं चाय बना कर वापस आई तो वो मैगजीन पढ़ रहे थे.
मैंने चाय की ट्रे टेबल रखते हुए कहा- आप तो भूल ही गये थे शायद मुझे?
वो बोले- नहीं मैडम, रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहा था. रिपोर्ट के बिना तो आप पर हक नहीं बनता था. सेफ्टी दोनों के लिए ही जरूरी है.
मुझे ज्ञान जी का ये बर्ताव अच्छा लगा. उन्होंने सिर्फ सेक्स की पूर्ति को तरजीह नहीं दी बल्कि वो सामने वाले का ख्याल रखना भी खूब जानते थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#18
चाय का कप अपने होंठों से लगाते हुए मैंने ज्ञान की जांघ पर हाथ रख लिया.

चाय को कप से खींचते हुए उनके होंठ भी मुस्करा दिये. मगर नीचे जीन्स की पैंट में उनके लिंग ने भी अंगड़ाई लेकर ये जता दिया कि औरत के कोमल हाथों में क्या जादू होता है.
इससे पहले की मेरा हाथ उनके लिंग पर जाता उन्होंने पूछ लिया- आपके पति घर पर तो नहीं हैं?
मैंने कहा- अगर होते, तब भी मैं बेशर्मों की तरह गैर मर्द की बांहों में जाने से हिचकती नहीं.
वो बोले- अच्छा जी, इतना पसंद करने लगी हैं क्या आप हमें?
ज्ञान जी की पैंट में आकार ले चुके लंड पर मैंने हाथ से सहलाते हुए कहा- आप ही बेरुखे से हो रहे थे, मैं तो पहले दिन ही चुदने के लिए तैयार थी.
इतने में उन्होंने अपने कप की चाय को खत्म किया और मुझे अपनी ओर खींच कर अपनी गोद में लिटा लिया. वो मेरी आंखों में देखने लगे और उनकी नजर मुझे अंदर तक घायल करने लगी.
दोनों के होंठों को मिलने में देर न लगी. उनके गर्म गर्म होंठों से निकल रही रसीली लार का स्वाद मैं भी अपने मुंह में लेने लगी. इतने सालों में मेरे पति ने कभी मुझे इतने जोश में किस नहीं किया था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#19
अपनी पीठ पर मैं ज्ञान का लंड चुभता हुआ महसूस करने लगी. मेरे होंठों को चूसने के बाद उन्होंने मेरी मैक्सी में दिख रही मेरी वक्षरेखा पर अपने होंठों को रख दिया. अपने होंठों को मेरी चूचियों की वक्षरेखा पर रगड़ते हुए वो उनको नाक घुसा कर सूंघ रहे थे.

मैंने भी उनके सिर को अपने सीने में दबा लिया और उनके बालों में हाथ से सहलाने लगी. उनका एक हाथ नीचे से मेरी मैक्सी में घुस कर मेरी जांघों को सहलाता हुआ मेरी चूत को टटोलता हुआ मेरी पैंटी तक आ पहुंचा था.
जल्दी ही उनकी उंगलियां पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को छेड़ने लगीं. मैं भी एक्टिव मोड में आ गयी और उनकी जांघों की ओर घूम कर अपने होंठों को उनकी जांघों के बीच में तन चुके लंड पर रख दिया.
उनका लंड पूरे जोश में आ चुका था. मैं भी कई दिन से उनके लंड को अपने होंठों से छूने का इंतजार कर रही थी लेकिन अपनी चूत को सहला कर ही सांत्वना दे रही थी. अब वो पल जब मेरे करीब था तो मैंने भी जोश में आकर ज्ञान के लंड पर अपने होंठों को फिराना शुरू कर दिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#20
ञान का लंड मेरे होंठों के छूने से और ज्यादा कड़ा होता चला गया. मैंने उनकी पैंट की जिप को खोल कर अंदर हाथ दिया और उनके लंड को पकड़ लिया. आह्ह … उस हैंडसम जवान मर्द का लंड बहुत ही गर्म था. इतने सालों के बाद मुझे ऐसा लंड छूने का मौका मिला था.

मैंने उनकी पैंट को ऊपर से खोल दिया और नीचे खींचने की कोशिश की. इसी बीच उन्होंने मेरी मैक्सी को ऊपर करके मेरी पैंटी को खींच दिया और मेरी गांड को नंगी करके दबाने लगे.
उनके हाथ मेरी चूत को सहलाने लगी. मैं मदहोश सी होने लगी. मेरा मन उस पराये मर्द का लंड चूसने के लिए कर रहा था. ज्ञान ने मुझे उठाया और मेरी मैक्सी को निकलवा दिया. फिर मेरी ब्रा के ऊपर से मेरी 36 की चूचियों को जोर से दबाया और फिर पीछे हाथ ले जाकर ब्रा को खोल दिया.
ब्रा की कैद से आजाद होते ही चूचियां उछल कर बाहर आ गयीं. ज्ञान ने अपने दोनों हाथों में एक एक चूची को पकड़ लिया और जोर जोर से दबाने लगे. उसके सख्त हाथ मेरी चूचियों में अलग ही उन्माद पैदा करने लगे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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