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मैंने बुआ चोद दी
#81
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#82
Juan El Caballo LocoRachael Cavalli


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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#83
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#84
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#85
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जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#86
(10-06-2022, 04:50 PM)neerathemall Wrote:
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(10-06-2022, 04:53 PM)neerathemall Wrote:
खूब चोदा और जल्दी जल्दी धक्के देते देते चूत में अपनी क्रीम चूत में ही छोड़ दी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#87
नंगी बुआ की चूत चोदी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#88
(10-06-2022, 05:10 PM)neerathemall Wrote: नंगी बुआ की चूत चोदी

मेरी बुआ का घर एक ही कॉलोनी में था. उस समय बुआ की उम्र करीब 22 साल होगी और बुआ का एक छोटा भाई और मम्मी, पापा उनके साथ में रहते थे और मेरा बुआ के घर पर बहुत आना जाना लगा रहता था और में हर दिन स्कूल से आकर सीधा बुआ के घर पर ही चला जाता था और फिर खाना भी वहीं पर ख़ाता था. दोस्तों उस समय बुआ के घर में खाना बनाना के लिए मिटटी का चूल्हा था और उन्हें उस चूल्‍हे में आग लगाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है और बुआ का रोज का यही काम था. वो आग जलाने के लिए बहुत परेशान रहती थी.
दोस्तों बुआ हर दिन सूखी लकड़ियाँ लेकर आती फिर बैठकर उस लकड़ी के छोटे छोटे टुकड़े करती और फिर चूल्‍हे में रखकर उसमें आग लगाने की कोशिश किया करती थी. में इन सब कामों में अपनी बुआ की मदद करने पहुंच जाता था. दोस्तों पूछिए ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि आग जलाते समय बुआ अपनी चुन्नी को अपने जिस्म से हटाकर दूर फेंक देती थी और चूल्‍हे की आग को जलाने के लिए नीचे झुककर बहुत देर तक चूल्‍हे में हवा करनी पड़ती है और मुझे वहाँ जो नज़ारा देखने को मिलता था वो आप लोग अच्छी तरह से समझ सकते है.
बुआ जैसे ही नीचे झुकती तो बुआ के बड़े बड़े बूब्स उनके कपड़े फाड़कर बाहर आने को तैयार रहते थे और मेरा मन करता कि पास जाकर बुआ के दोनों बूब्स को मसल दूँ और मुहं में डालकर चूस चूसकर नीबूं बना दूँ, लेकिन मेरी ऐसी किस्मत कहाँ? में बस मन ही मन में वो जन्नत का नज़ारा लिए बुआ के बाथरूम में तुरंत जाकर मुठ मार लेता था. फिर एक दिन की बात है. बुआ के उस समय एग्जाम थे और में बुआ के घर पर पहुंचा और एक बार फिर से वही आग देखने के लिए तो मुझे पता चला कि बुआ अगले बीस दिन तक खाना नहीं बनाएगी. यह बात सुनकर में बहुत उदास हुआ और तुरंत बाहर का रास्ता पकड़ा और बाहर जाने लगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#89
तभी मुझे पीठ पीछे से एक मधुर सी आवाज़ सुनाई दी, क्यों क्या आज तुझे देखना नहीं है? दोस्तों मुझे तो यह बात सुनकर जैसे करंट का झटका सा लग गया था. मैंने जब पीछे पलटकर देखा तो बुआ मुझे देखकर ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी और उसने मुझे अपनी बड़ी निगाहों से अपनी तरफ बुला लिया. में भी तुरंत भंवरे की तरह उसकी तरफ खींचा हुआ चल दिया और मन ही मन सोचने लगा कि जैसे आज तो शायद मेरी लॉटरी ही लग गई, लेकिन में जैसे ही बुआ के पास गया तो उसने मेरे साथ ऐसा व्यहवार किया जैसे उसने मुझसे कुछ कहा ही नहीं और कुछ देर खड़े रहने के बाद मुझे अपने गले से लगा लिया और अपने दूध से चिपका लिया. दोस्तों अब मेरा चेहरा बिल्कुल बुआ के दोनों दूध के बीच में ज़ोर से दबा हुआ था और में उसी में खुश था और जन्नत का आनन्द ले रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#90
मैंने अपना चेहरा पूरी तरह से बुआ के दूध में घुसा दिया था और बुआ को कमर से कसकर पकड़ कर रखा था. बुआ बस मेरे बाल सहला रही थी और धीरे धीरे मेरा चेहरा अपने दूध पर दबा रही थी, लेकिन ऐसे जैसे उसको कुछ पता ही ना हो कि क्या हो रहा है? मुझे मेरे चेहरे पर बुआ की ब्रा का एहसास हो रहा था और बुआ के निप्पल कभी मेरी आँख में तो कभी मेरी गालों पर चुभ रहे थे और में फिर जन्नत में था. मुझे बस ऐसा लग रहा था कि में बुआ को गोद में उठा लूँ और उनका पूरा कुर्ता फाड़कर पूरे दूध अपने मुहं में डालकर खा जाऊँ, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं था क्योंकि यह सब काम करीब 10-15 मिनट तक चलता रहा और थोड़ी देर में बुआ के भाई की आवाज़ आने पर में अपने घर चला गया और फिर से वहीं अपने हाथ जगन्नाथ.

दूसरे दिन में फिर से बुआ के घर पर पहुंचा. मैंने बहुत देर तक दरवाजा खटखटाया, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला तो में उदास होकर जाने लगा, लेकिन तभी बुआ की आवाज़ आई कौन है? तो मैंने तुरंत खुश होकर जवाब दिया और फिर बुआ ने दरवाजा खोल दिया. दोस्तों उस समय बुआ अपने बूब्स के ऊपर केवल टावल लपेटकर सीधा बाथरूम से बाहर आई थी. शायद वो नहाने जा रही थी, लेकिन मेरी वजह से बीच में ही बाहर आ गई थी और अब उनका गोरा बदन मुझे उनकी तरफ आकर्षित कर रहा था. तो में अंदर आ गया और मैंने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. बुआ नहाने बाथरूम में चली गयी और में टीवी देखने लगा और थोड़ी देर में मेरा मन सोचने लगा कि मुझे बाथरूम में झाँकने का मौका मिल जाए तो मुझे मज़ा आ जाएगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#91
ने उठकर एक कोशिश की और मुझे दरवाजे पर अंदर झाँकने के लिए बहुत सारे छेद मिल गये. अब में वहीं पर खड़ा होकर बुआ के गोरे बदन को निहारने लगा. वाह क्या चीज़ थी मुझे मज़ा आ गया, तने हुए बूब्स, चाटने लायक चमड़ी, मखमली बदन, करारी गांड और बड़े बड़े झांट के बाल और ऊपर से वो पानी मेरे लंड में आग लगा रहा था. अब में वहीं पर बाथरूम के बाहर बुआ को नहाते हुए देखकर मुठ मारने लगा और पांच मिनट के बाद खड़े खड़े पैरों में दर्द होने लगा तो में थोड़ा आराम करने के लिए दरवाजे का सहारा लेकर नीचे बैठ गया और ज़ोर ज़ोर से मुठ मारने लगा और करीब दस सेकण्ड के बाद बाथरूम का दरवाजा अंदर की तरफ खुल गया और में अपनी नंगी बुआ के सामने अपना लंड पकड़कर नीचे बैठा हुआ था और अब में तो शरम के मारे बुआ से आँख भी नहीं मिला पा रहा था.
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#92
मैंने तुरंत वहां से भागने की कोशिश की, लेकिन बुआ ने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया. मुझे लगा कि आज तो में काम से गया, लेकिन उसके बाद जो मुझे उनके मुहं से सुनाई दिया उस पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने मुझसे कहा कि क्यों चोदोगे मुझे? मैंने बिना कुछ सोचे समझे और बिना कुछ बोले बुआ के दोनों बूब्स पकड़ लिया और बाथरूम के अंदर बुआ के बूब्स से रस चूसने लगा और एक हाथ से बूब्स को ज़ोर ज़ोर से मसल रहा था और दूसरे हाथ से दूसरे बूब्स को पकड़कर ज़ोर से दबाकर चूस रहा था. बुआ भी मेरा पूरा साथ दे रही थी और सिसकियाँ भर रही थी उउम्म्मह आह्ह्हहह आईईईईई और मुझे ज़ोर से अपनी तरफ दबा रही थी. में तो पागल हो गया था और कुत्ते की तरह बूब्स को चूस रहा था. फिर मैंने अचानक से बुआ की चूत में अपनी एक उंगली डाल दी और फिर बुआ के मुहं से एक जोरदार चीखने की आवाज़ बाहर आई. अब वो एकदम से पूरे जोश में आकर मुझसे कहने लगी कि प्लीज अब जल्दी से चोद दो मुझे आईईईई और मत तरसाओ.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#93
मुझसे भी अब रहा नहीं जा रहा था और मैंने बुआ को तुरंत ज़मीन पर लेटा दिया और उनके दोनों पैर फैला दिये. अब में बूब्स को चूसते चूसते नीचे की तरफ आया और बूब्स के नीचे वाला हिस्सा चूसने लगा. बुआ लगातार सिसकियाँ भर रही थी और उसकी अब साँसें बहुत तेज हो गयी थी. में फिर से पेट की तरफ आया और पूरे पेट पर अपनी जीभ घुमाने लगा.

फिर नाभि के चारों तरफ जीभ घुमाई तो मैंने महसूस किया कि बुआ की साँसे और तेज हो गयी और फिर में पेट के कोने में चूसने लगा और अब बुआ बहुत गरम हो चुकी थी. मैंने उनकी झांट के बाल पकड़कर ज़ोर से मुट्ठी में भर लिए और खींचा तो बुआ चिल्ला पड़ी, छोड़ो प्लीज़ छोड़ो. फिर मैंने तुरंत अपनी जीभ को बुआ की चूत में लगा दिया और अब में उसकी चूत को कुत्ते की तरह चाटने लगा. वाह मुझे क्या मज़ा आ रहा था. में बता नहीं सकता और फिर में पूरी चूत को मुहं में लेकर चूसने लगा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#94
बुआ की तो जान ही निकल रही थी उसने अपने दोनों पैरों को मेरी गर्दन में डाल दिया और ज़ोर से अपनी चूत की तरफ दबाने लगी और लगातार अपनी कमर को उठाकर मुझे चुदाई करने का इशारा दे रही थी. ज़ोर से और ज़ोर से चूसो आह्ह्ह्ह उह्ह्ह्हह्ह माँ प्लीज आआअससस्सीईई.

दोस्तों अब मुझसे भी नहीं रहा गया और मैंने भी अपनी पेंट को पूरा उतार दिया और में अंडरवियर में आ गया. बुआ ने तुरंत मेरी अंडरवियर को भी उतार दिया और मेरा लंड अपने मुहं में लेकर चूसने लगी. दोस्तों में बस आँख बंद करके बुआ के मुहं को ही धीरे धीरे धक्के देकर चोदने लगा. लगातार पांच मिनट चोदने के बाद में झड़ गया और बुआ ने मेरा पूरा माल पी लिया. फिर भी बुआ ने मेरा लंड चूसना नहीं छोड़ा और लंड फिर से दो मिनट के बाद एक बार फिर से चोदने के लिए एकदम तैयार था. हम दोनों बेड रूम में आ गए और मैंने बुआ को बिस्तर पर लेटा दिया और दोनों पैरों को फैलाकर उसकी चूत में लंड को डालने की कोशिश की.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#95
थोड़ी देर के बाद लंड अंदर गया तो मैंने एक ज़ोर का झटका दिया और मेरा पूरा का पूरा लंड बुआ की चूत के अंदर था. बुआ अपनी दोनों आँख बंद करके बोली कि आईईईईई माँ आआआअहह थोड़ा धीरे कर, ज्यादा बेरहम मत बन, थोड़ा आराम से कर, में कहीं भागी नहीं जा रही हूँ. फिर मैंने कुछ देर धीरे से धक्के देने के बाद अपनी स्पीड को बढ़ाया और अब ज़ोर ज़ोर से धक्के देकर चोदने लगा. फच फच फच की आवाज़ ज़ोर ज़ोर से पूरे कमरे में गूँज रही थी और बुआ भी अपनी कमर को उठा उठाकर अपनी चुदाई के मज़े ले रही थी और लगातार आहें भर रही थी आहह माँ आह्ह्ह्ह प्लीज़ और ज़ोर ज़ोर से चोदो, हाँ और ज़ोर से चोदो, आज फाड़ डालो मेरी चूत को, फाड़ डालो आआहह माँममआ… करीब पांच दस मिनट तक यह ताबड़तोड़ चुदाई चली और फिर बुआ झड़ गई और मैंने भी अपना पूरा माल बुआ की चूत में ही डाल दिया. दूसरे दिन मैंने बुआ को आई-पिल लाकर दी
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#96
बुआ हो तो ऐसी

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#97
(14-06-2022, 05:57 PM)neerathemall Wrote:
बुआ हो तो ऐसी


घर की मौज हर किसी को नसीब नहीं होती पर शायद मैं इस मामले में खुशनसीब था जो मुझे वो सब मिला जो हर घर में हर किसी को नहीं मिलता। तब मैं गाँव में रहता था। दसवीं तक पढाई कर चुका था पर गाँव में दस से आगे का स्कूल नहीं था सो आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना पड़ा। शहर गाँव से करीब तीस किलोमीटर था। इसलिए घर वालों ने फैसला किया कि शहर में ही कमरा ले लिया जाए नहीं तो आने जाने में बहुत समय खराब होगा। मैं शहर में कमरा ढूंढने लगा। पर जब तक कमरा मिला तब तक जिंदगी में उथल पुथल हो गई।
मैं राज मुझे तो जानते ही हो आप लोग। मैं गाँव का हट्टा कट्टा नौजवान, कद 5 फुट 7 इंच, रंग गोरा, जिम तो नहीं जाता पर अपने शरीर का मैं पूरा ध्यान रखता हूँ। घर में माँ, पिता जी, दो बहनें, एक मुझ से एक साल छोटी, दूसरी तीन साल छोटी। गाँव में ज्यादातर संयुक्त परिवार होते हैं तो दादी और चाचा जी भी हमारे साथ ही रहते थे। चाचा करीब 25 साल के थे। कुछ दिनों के बाद ही उनकी शादी होने वाली थी। एक बुआ थी जिसकी दो साल पहले शादी हो चुकी थी।
अगर चरित्र की बात करें तो मेरे परिवार में सभी शरीफ थे। कभी भी किसी के बारे में मैंने घर या बाहर कोई गलत बात नहीं सुनी थी। मेरे मन में भी कभी परिवार के किसी सदस्य के बारे में कभी कोई गंदा विचार नहीं आया था। पर मानना है कि मेरे दादाजी भी जरुर चूत के रसिया रहे होंगे क्योंकि बेटी की उम्र का तो उनका पोता (मैं) था पर उम्र सुलभ मेरे दिमाग में भी सेक्स के कीड़े कुलबुलाने लगे थे। गाँव के लड़कियों को देख कर मेरा लंड जो करीब 5- इंच के करीब था और मोटा भी काफी था पजामे में तन कर खड़ा हो जाता था। गाँव में ज्यादातर खुला पाजामा या लूंगी ही पहनते थे तो लंड अक्सर उसमें तम्बू बना कर लेता था जिससे शर्म भी महसूस होती थी पर अपने लंबे और मोटे लंड को देख कर दिल में एक अजीब सी खुशी भी होती थी। खैर कहानी के असली मुद्दे पर आते हैं।
मैं शहर में कमरा तलाश कर रहा था। तभी बुआ का एक दिन फोन आया कि फूफा जी का तबादला उसी शहर में हो गया है जहां मैं पढ़ता हूँ। बुआ ने बताया कि उन्हें सरकारी मकान मिला है रहने के लिए जो बहुत बड़ा है। बुआ के कोई बच्चा तो था नहीं अभी तक सिर्फ बुआ और फूफा ही थे। बुआ बोली कि मुझे कमरा ढूंढने की कोई जरुरत नहीं है। मैं उनके पास रह सकता हूँ। पिता जी भी इसके लिए राजी हो गए क्योंकि इस से मेरे खाने पीने की समस्या का भी हल मिल गया था और बुआ-फूफा की निगरानी में मेरे बिगड़ने का भी डर नहीं था।
पिता जी ने फूफा से बात की तो उन्होंने भी हाँ कर दी। बस दो दिन के बाद फूफा सामान लेकर शहर पहुँच गए। मकान पर फूफा के ऑफिस के लोग आये थे फूफा से मिलने और सामान उतरवाने। करीब आधे घंटे में सब लोग सामान उतरवा कर और चाय पी कर चले गए। अब सामान जमाने का काम शुरू करना था। यह काम तो बुआ को ही करना था। मैं भी बुआ की मदद करने लगा। मैंने और बुआ ने मिल कर बड़ा-बड़ा सामान करीने से लगा दिया। अब कुछ छोटा मोटा सामान बचा था जो हर रोज़ काम आने वाला भी नहीं था। बुआ बोली कि इसे ऊपर टांड पर रख देते हैं।
तभी फूफा ने आवाज दी। जाकर देखा तो फूफा जी बोतल खोल कर बैठे थे और शायद एक दो पैग लगा भी चुके थे। वो कुछ खाने को मांग रहे थे। फूफा ने मुझे भी लेने को कहा पर मैंने मना कर दिया क्योंकि मैंने पहले कभी नहीं पी थी।
बुआ ने फूफा को काजू और नमकीन निकाल कर दी और हम फिर से काम पर लग गए। काम के दौरान हम दोनों ने एक दूसरे को कई बार छुआ पर ना तो मेरे मन में और ना ही बुआ के मन में कोई दूसरा ख़याल था। यानि सब कुछ सामान्य था। बुआ टांड पर चढ़ी हुई थी और मैं नीचे से सामान पकड़ा रहा था।
अचानक बुआ एकदम से चिल्लाई।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो बुआ बोली कॉकरोच है। बुआ कॉकरोच से बहुत डरती थी।
मैंने ऊपर चढ़ कर देखा तो कॉकरोच ही था। मैंने कॉकरोच को मार कर नीचे फेंक दिया। बुआ अब भी बहुत डरी हुई थी। डर के मारे बुआ की आवाज भी नहीं निकल रही थी। जैसे ही मैंने कॉकरोच को मार कर नीचे फेंका बुआ एकदम मुझ से चिपक गई। बुआ डर के मारे कांप रही थी।
मैंने बुआ के कंधे पर हाथ रखा और बोला- बुआ अब कॉकरोच नहीं है, मैंने उसे मार कर फ़ेंक दिया है।
पर बुआ अब भी मुझ से चिपकी हुई कांप रही थी। मेरा हाथ बुआ की पीठ पर चला गया था। पर अब तक मेरे दिल में कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं थी। अचानक मेरी नजर बुआ की चूचियों पर गई जो दिल की धड़कन के साथ ऊपर नीचे हो रही थी और अब मुझे अपने सीने में गड़ी हुई महसूस हो रही थी। मेरा लंड एक दम से पजामे में हरकत करने लगा था। पर मैं अपने आप पर कण्ट्रोल करने के पूरी कोशिश कर रहा था।
बुआ अब भी मुझसे चिपकी हुई थी। मैंने बुआ के चेहरे को आपने हाथ से ऊपर उठाया। बुआ की आँखें बंद थी। बुआ कितनी खूबसूरत थी इस बात का एहसास मुझे इसी पल हुआ था। मैंने कभी बुआ को इस नजर से देखा ही नहीं था। एक दम गोरा चिट्टा रंग, गुलाबी होंठ। इस पल तो मुझे बस यही नजर आ रहे थे। या फिर आपने सीने में गड़ती बुआ की मस्त बड़ी बड़ी चूचियाँ। बुआ की चूचियाँ बड़ी बड़ी थी। पर मुझे उसके नंबर का कोई अंदाजा नहीं था।
अब मुझे बुआ पर बहुत प्यार आ रहा था। बुआ के बदन के खुशबू और गर्मी ने मुझे दीवाना बना दिया था। अब मेरा आपने ऊपर कण्ट्रोल खत्म होता जा रहा था। बुआ का चेहरा मेरे करीब आता जा रहा था। ना जाने कब मेरे होंठ बुआ के होंठों से टकरा गए और मैं बुआ के रसीले होंठ अपने होंठो में दबा कर चूसने लगा। बुआ भी मेरा साथ देने लगी। एक दो मिनट तक ऐसे ही रहा। फिर बुआ जैसे अचानक नींद से जागी और उसने मुझे अपने से अलग कर दिया। बुआ नीचे मुँह किये हुए थी। मैं भी अपनी करनी पर शर्मिन्दा महसूस कर रहा था। मैं नीचे उतर गया। बुआ जब नीचे उतरने लगी तो बीच में ही लटक गई। बुआ ने मुझे मदद करने को कहा।
मैंने बुआ की टाँगें पकड़ ली और बुआ धीरे धीरे नीचे आने लगी। जैसे ही मेरे हाथ बुआ के गांड के पास पहुंचे मैंने बुआ के चूतड़ हल्के से दबा दिए। बुआ के मुँह से सिसकारी जैसी आवाज निकली मैं तो जैसे कहीं खो सा गया था।
बुआ बोली- अब ऐसे ही पकड़ कर खड़ा रहेगा या मुझे नीचे भी उतारेगा ?
मैं भी सपने से जगा और बुआ को नीचे उतारने लगा। जब बुआ मेरे बराबर आई तो बुआ की मस्त चूचियाँ बिलकुल मेरे मुँह के सामने थी। बुआ की उठती गिरती साँसों के साथ ऊपर नीचे होती चूचियों को देख कर मेरा तो दिमाग बिलकुल सुन्न हो गया।
अचानक बुआ ने मेरा सर पकड़ा और अपनी चूचियों पर दबा दिया। बुआ के बदन कि खुशबू ने मुझे हिला कर रख दिया था। मेरे पजामे में तूफ़ान सी हलचल होने लगी थी। हम इन लम्हों का आनन्द ले ही रहे थे कि फूफा की आवाज ने हम दोनों को सपनो की दुनिया से बाहर निकाला।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#98
फूफा को कुछ खाने के लिए चाहिए था। बुआ मुझ से अलग हुई और रसोई में चली गई। मैं पहले तो वहीं खड़ा रहा फिर मैं भी बुआ के पीछे पीछे रसोई में चला गया। अब बुआ से अलग होने का मेरा दिल नहीं था। बुआ ने खाना लगाया और फूफा को देने चली गई। खाना फूफा के ऑफिस के लोग देकर गए थे। फूफा के कमरे में जाकर देखा तो फूफा पूरी बोतल गटक चुके थे। बड़ी मुश्किल से एक रोटी खाई और वहीं बेड पर पसर गए। बुआ ने उनके जूते वगैरा उतारे और सीधा करके लिटा दिया। पांच मिनट के बाद ही फूफा सो गए।
बुआ ने कहा कि मैं भी रसोई में आकर खाना खा लूँ। मैं भी बुआ के पीछे पीछे रसोई में चला गया। सच बोलूं तो मेरा दिल बुरी तरह से धड़क रहा था। दिल कर रहा था के बुआ एक बार फिर से मुझे आपने छाती से लगा ले। मेरा मुँह अपनी चूचियों में छुपा ले। पर थोड़ा सा डर था दिल में। आखिर वो मेरी बुआ थी।
बुआ ने खाना लगा दिया था और जैसे ही मुझे देने के लिए पीछे मुड़ी तो मुझ से टकरा गई क्योंकि मैं बुआ के बिल्कुल नजदीक खड़ा था। खाना गिरते गिरते बचा। मैंने बुआ को संभाला और इस संभालने के चक्कर में मेरा एक हाथ बुआ के नंगे पेट पर चला गया। मेरे हाथ का स्पर्श मिलते ही बुआ के मुँह से आह से निकल गई। बुआ के पेट का नरम और चिकना एहसास मिलते ही मेरा दिल भी धक-धक करने लगा। मैंने खाने की प्लेट बुआ के हाथ से लेकर एक तरफ़ रख दी और बुआ को थोड़ा अपनी ओर खींचा।
बुआ अब बिलकुल मेरे नजदीक थी। बुआ की मस्त कठोर चूचियाँ मेरे सीने में गढ़ रही थी और गर्म साँसे मेरी साँसों से मिल कर बहुत ही मादक माहोल बना रही थी। हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे पर बोल कुछ भी नहीं रहे थे। बुआ की आँखों में एक प्यास सी नजर आ रही थी। मैंने बिना कुछ बोले अपने होंठ बुआ के गर्म होंठों पर रख दिए। बुआ एक दम से सिहर उठी। अब मैं बुआ के रसीले होंठों से अपनी प्यास ठंडी कर रहा था और इसमें बुआ मेरा पूरा साथ दे रही थी। फूफा सो चुके थे सो अब डर भी नहीं था। मुझे मालूम था के फूफा पुरी बोतल गटक कर सोये थे तो सुबह से पहले तो उठने वाले थे नहीं। मैंने बुआ को गोदी में उठाया और बेडरूम में ले गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#99
जब मैंने बुआ को गोद में उठाया तो बुआ मुझ से बुरी तरह से चिपक गई। मैंने बुआ को बेड पर लिटा कर देखा तो बुआ आँखें बंद करके पड़ी थी और उसकी सांस धौंकनी की तरह से चल रही थी यानि वो लंबी लंबी और तेज तेज साँसें ले रही थी। शरीर भी कुछ अंगड़ाईयाँ ले रहा था। बुआ के उठते गिरते उभारों को देख कर मेरा लंड अब पजामा फाड़ कर बाहर आने को उतावला हो रहा था। मैंने बुआ की साड़ी का पल्लू एक तरफ किया तो बुआ की मस्त पहाड़ियों को देखता ही रह गया। क्या मस्त चूची थी बुआ की। मुझे खुशी भी हो रही थी कि मेरी बुआ इतनी सेक्सी और सुंदर है। अभी कुछ देर पहले ही तो बुआ ने मेरा मुँह दबाया था इन मस्त चूचियों में।

मेरा एक हाथ बुआ की दाईं चूची पर चला गया। हाय…..क्या मस्त कठोर चूची थी। मेरा तो बुरा हाल हो रहा था क्योंकि मेरा तो यह पहली बार ही था ना। बुआ ने मेरा हाथ अपनी चूची के ऊपर पकड़ कर दबा दिया और खुद ही सीत्कार उठी। एक मस्त आह सी निकली बुआ के मुँह से।

मैं अब धीरे धीरे बुआ की चूचियाँ सहलाने लगा था। बुआ के मुँह से सिसकरियाँ निकल रही थी। मैंने बुआ के ब्लाउज के हुक खोलने शुरू किये तो बुआ ने मेरा हाथ पकड़ लिया- नहीं राज, यह ठीक नहीं है। मैं तेरी बुआ लगती हूँ।

पर मुझ पर तो अब वासना का नशा छाने लगा था। मैंने बुआ की बात को अनसुना कर दिया और अगले ही पल बुआ की ब्रा में कसी चूचियाँ मेरी आँखों के सामने थी। मैंने ब्रा के ऊपर से ही चूचियों को चूमना शुरू कर दिया। बुआ भी अब वासना की आग में जलने लगी थी। बुआ की सिसकारियों से इस बात का पता चल रहा था। बुआ बार-बार ना-ना कर रही थी पर सिसकारियों से साफ़ था कि बुआ के मुँह पर ना और मन में हाँ थी।

मैंने बुआ की ब्रा का हुक खोल दिया। बुआ की दोनों मस्त गोरी गोरी चूचियाँ एक दम से उछल कर बाहर आई। बुआ की चूचियाँ एक दम से तनी-तनी थी। दोनों चुचूक किसी पहाड़ी की चोटी की तरह से लग रहे थे। मैंने आव देखा ना ताव, झट से बुआ की एक चूची को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा।

हाय…. क्या स्वाद था।

बुआ मस्ती के मारे सीत्कारने लगी। उसकी आहें कमरे में गूंजने लगी- आह्हह्ह आह्ह्ह राज मैं मर जाउंगी राज आह्हह्ह…..

मैं चुपचाप बुआ की गोरी गोरी चूचियों का मजा ले रहा था। बुआ ने आहें भरते भरते हाथ नीचे ले जाकर लंड को पकड़ कर मसल दिया। मैं इस हमले के लिए तैयार नहीं था सो कसमसा उठा। लंड अकड़ा हुआ था सो थोड़ा दर्द भी हुआ पर मजा भी बहुत आया- बुआ, इसे बाहर निकाल लो ना !

बुआ कुछ नहीं बोली, बस पजामे का नाड़ा पकड़ कर खींच दिया। फिर मुझे अपने ऊपर से थोड़ा उठाया और मेरा पजामा अंडरवियर सहित नीचे खींच दिया। मेरे लंड महाराज पूरे शबाब पर थे। एकदम सर उठाये अकड़ कर खड़े थे।

बुआ ने मेरा लंड हाथ में पकड़ लिया और बोली- राज….. हाय…….कितना बड़ा है तुम्हारा !

मेरा लंड अपनी तारीफ़ सुन कर और ज्यादा अकड़ गया और किसी नटखट बच्चे की तरह ठुनकने लगा। बुआ अपने कोमल कोमल हाथों से लंड को सहलाने लगी।

मैंने पूछा- चूसोगी?

बुआ ने मना कर दिया फिर ना जाने क्या मन किया कि झट से लंड को पकड़ कर मुँह में ले लिया और लॉलीपोप की तरह चूसने लगी। मेरे लिए तो ये एक बिल्कुल नया अनुभव था। बुआ बहुत मस्त चूस रही थी। लंड तो पहले ही फटने को हो रहा था। मैं ज्यादा रोक नहीं कर पाया और बुआ के मुँह में ही झड़ गया। बुआ ने शायद पहले कभी लंड का पानी नहीं चखा था तभी तो बुआ को थोड़ी उबकाई सी आई फिर एक दम से सारा का सारा गटक गई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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अब मैंने बुआ की साड़ी उतारनी शुरू कर दी और अगले ही पल बुआ सिर्फ पेटीकोट में मेरे सामने पड़ी थी। मैंने बुआ के पाँव चूमने शुरू किये और बुआ के केले के तने जैसी टांगो पर हाथ फेरते हुए पेटीकोट को उठाते हुए ऊपर की तरफ बढ़ने लगा। बुआ की गोरी गोरी टांगों पर हाथ फेरते हुए मैं उन्हें चूमता भी जा रहा था। मेरे होंठो के छुअन से बुआ मस्ती में भर गई थे और बेचैन होती जा रही थी।
कुछ ही देर बाद बुआ की गोरी-गोरी जांघे दिखने लगी। मैं चूमता जा रहा था और बुआ सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थी। अब मुझे पेंटी में कसी बुआ की चूत नजर आने लगी थी। बुआ मस्त हो गई थी और पूरी पेंटी गीली हो चुकी थी बुआ की चूत के पानी से।
मैंने अपना हाथ जैसे ही बुआ की चूत पर रखा, बुआ सीत्कार उठी। शायद बुआ उत्तेजना के कारण झड़ गई थी क्योंकि इस सीत्कार के साथ ही पेंटी और भी गीली हो गई थी। मैंने बुआ की गीली पेंटी को उतार दिया। बुआ की लाल-लाल चूत अब बिलकुल नंगी मेरी आँखों के सामने थी। मैंने बुआ की गीली पेंटी को सूंघा। क्या मादक खुशबू थी यार। लंड अकड़ कर लट्ठ जैसा हो गया था। इस खुशबू ने मुझे दीवाना बना दिया था।
मैंने पेंटी एक तरफ़ कर अपने होंठ बुआ की चूत की पुतियों पर रख दिए। बुआ की चूत बहुत पानी छोड़ रही थी। मैं जीभ से उस अमृत को चाटने लगा। मैंने भी पहले कभी चूत का स्वाद नहीं चखा था। पर मुझे बुआ की चूत का कसैला और नमकीन स्वाद बहुत अच्छा लगा और मैं मस्त हो कर चाटने लगा था।
बुआ बुरी तरह से सीत्कार रही थी। अब मैंने बुआ का पेटीकोट भी उतार कर एक तरफ़ रख दिया। बुआ अब बिलकुल नंगी थी। मेरे शरीर पर भी सिर्फ बनियान थी जो बुआ ने उतार फेंकी। अब हम दोनों जन्मजात नंगे थे। लंड तो पहले से ही लोहे की छड़ की तरह से हो चुका था। बुआ भी पूरी मदहोश थी।
“अब नहीं रहा जाता राज…. जल्दी से कुछ कर ! नहीं तो मैं मर जाऊँगी !”
“क्या करूँ बुआ ? खुल कर बोलो ना !”
“क्या बोलू बेशर्म.. क्यों तड़पा रहा है ? चोद मुझे… अब बर्दाश्त नहीं होता…. जल्दी से फाड़ दे रे मेरी चूत !”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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