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Adultery मम्मीजी‌ आने वाली हैं
#1
मम्मीजी‌ आने वाली हैं

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
(23-05-2022, 04:31 PM)neerathemall Wrote:
मम्मीजी‌ आने वाली हैं





.................................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
से तो मैं कुछ करता नहीं था मगर हां, मैं अब भी अपनी भाभी की घर के काम हाथ जरूर बंटा देता था जिससे मेरी भाभी भी खुश होकर कभी कभी मुझे अपनी जवानी का रस पिला देती थी।

मेरे दिन अब ऐसे ही गुजर रहे थे कि एक दिन शाम‌ के समय मैं अपनी भाभी के कहने पर हमारी छत से सूखे हुए कपड़े लेने चला गया। वैसे जब से मैं पिंकी के साथ पकड़ा गया था तब से हमारी छत पर जाता नहीं था, मगर उस दिन मेरी भाभी किसी दूसरे काम में व्यस्त थी इसलिये उन्होंने छत से कपड़े लेने के लिये मुझसे बो‌ल दिया।
मैं हमारी छत पर सूखे हुए कपड़े तार पर से उतार ही रहा था कि तभी पिंकी की भाभी भी छत पर आ गयी। वो भी छत पर से कपड़े ही लेने आई थी मगर उसने मुझे देखते ही पूछा- क्या बात है जब से पिंकी गयी है तब से छत पर तो दिखाई ही‌ नहीं देते?
उसने तार पर से कपड़े उतारते हुए कहा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
पिंकी की भाभी ने मेरा और पिंकी का काम‌ बिगाड़ दिया था। उसने मुझे और पिंकी को रंगे हाथ पकड़ लिया था इसलिये मुझे अभी तक उनके सामने जाने में झिझक सी लगती थी और इसलिये ही मैं छत पर नहीं जाता था।
जब से मेरा और पिंकी का भांडा फूटा था तब से मैं ना ही‌ उनके घर जाता था और ना ही पिंकी की भाभी से कभी बात करता था। वो भी मुझसे कभी बात नहीं करती थी मगर आज जब उसने खुद आगे से ही मुझे छेड़ दिया तो मुझसे भी अब रहा नहीं गया.
“सारा किया धरा तो आपका ही है!” मैंने भी ताव ताव में बोल दिया।
“अच्छा … मैंने‌ क्या किया है?” उसने‌ मेरी तरफ देखते हुए कहा।
“सारा काम‌ ही आपने बिगाड़ा था.” मैंने वैसे ही मुंह बनाते हुए कहा।
“बिगाड़ा था तो तुम‌ अब फिर से बना‌ लो, आ रही है पिंकी अगले‌ महीने। वैसे मैंने तो तुम्हारे अच्छे‌ के लिये ही किया था। वो उम्र थी तुम्हारी ये सब करने की?” उसने सारे कपड़े उतारकर अब हमारी छत के पास आते हुए कहा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
पिंकी की भाभी की बात सुनकर मुझे अब झटका सा‌ लगा और मेरा सारा गुस्सा एक पल में ही गायब हो गया. क्योंकि कल तक तो वो मुझे और पिंकी को पकड़ने की फिराक में रहती थी और आज वो खु्द ही मुझे बता रही थी की अगले महीने‌ पिंकी आ रही है।
पहले जब मेरे और पिंकी के‌ सम्बन्ध थे, तब मैं पिंकी की भाभी से काफी हंसी मजाक कर लिया करता था जिसको वो कभी बुरा नहीं मानती थी। वो देखने में भी काफी सुन्दर है इसलिये पिंकी के साथ साथ मेरी नजर उस पर भी रहती थी.
मगर मुझे पिंकी और मेरी खुद की भाभी से ही मुझे फुर्सत नहीं मिलती थी इसलिये मैं उसके साथ ज्यादा कुछ करने की कोशिश नहीं कर सका था। और बाद में तो मेरा और पिंकी का भांडा ही फूट गया था इसलिये मैं उससे दूर ही रहने‌ लगा था।
खैर जब उसने ही शुरुआत कर दी तो अब मैं कहां पीछे रहने वाला था। मेरा मिजाज भी अब बदल गया… “और अब? अब हो गयी?” मैं भी अब थोड़ा मस्ती के से मिजाज में आ गया था इसलिये मैंने‌ भी अब मजाक करते हुए कहा, मगर उसने मेरी‌ बात का कोई‌ जवाब नहीं दिया.
“क्यों अब हो गयी क्या मेरी उम्र?” उसने जब पहली बार में कोई जवाब नहीं दिया तो मैंने उसके चेहरे की देखते हुए फिर से पूछ लिया जिससे वो अब हंसने लग गयी।
“मुझे क्या पता? आ रही है पिंकी अगले महीने … उसी से‌ पूछ लेना!” उसने हंसते हुए कहा और हमारी छत व उनकी छत के बीच जो पतली और छोटी सी दीवार है उसके पास आकर खड़ी हो गयी।
मैं अब आगे कुछ कहता मगर तभी …
“अरे क्या करने लग गयी? ये लड़की रो रही है!” उनके घर से पिंकी की मम्मी की आवाज सुनाई दी।
“ज..जी अभी आई.” कहते हुए वो अब‌ जल्दी से नीचे चली गयी।
अब वो तो चली गयी मगर मेरे दिल में एक नयी ही उम्मीद सी जगा गयी। नहीं … यह उम्मीद पिंकी के आने की नहीं थी बल्कि पिंकी की भाभी को ही पाने की ललक थी. क्योंकि मुझसे बात करते हुए उसकी आँखों में मुझे एक अजीब ही शरारत सी दिखाई दे रही थी।
आपने कभी किसी लड़की या औरत को पटाया होगा तो आपको पता होगा कि उसकी शुरुआत सबसे पहले आँखों से ही होती है। वो लड़की या औरत पटेगी या नहीं इसका अन्दाजा अधिकतर उसके देखने के तरीके से ही हो जाता है।
अब इतना अभ्यास तो मुझे भी हो ही गया था‌। साल भर से भी ज्यादा हो गया था मुझे उससे बात किये मगर आज उसने खुद ही पहल की थी और जिस तरह से वो अपनी आँखों को नचा नचा कर मुझसे बात कर रही थी उससे तो यही लग रहा था कि थोड़ी सी कोशिश करने पर ये पका हुआ आम खुद ब खुद ही मेरी झोली में गिर जायेगा।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
पिंकी की भाभी का नाम स्वाति है जो 27-28 साल की होगी। रंग रूप में वो जितनी खूबसूरत है उतना ही आकर्षक उसका बदन भी है। वो पहले ही काफी सुन्दर थी, ऊपर से अभी पांच छः महीने ही उसको बच्चा हुआ है जिससे उसके रंग रूप‌ में अब तो और भी निखार आ गया था। उसकी चूचियाँ पहले ही सुडौल व बड़ी बड़ी थी ऊपर से उनमें अब दूध भर आने से उसके जोबन और भी बड़े और इतने आकर्षक हो गये थे कि देखते ही मुंह में पानी आ जाये।
स्वाति भाभी का पति दिल्ली में एक लिमिटेड कम्पनी में काम करता है और काम के सिलसिले में वो एक-एक दो-दो महीने बाहर ही रहता है। घर पर तो वो बस महीने दो महीने में दो चार दिन ही आता है नहीं तो बाहर ही रहता है। पिंकी के पापा का तो पहले ही निधन हो गया था घर में बस अब उसकी मम्मी ही है जिसकी वजह से स्वाति भाभी को घर पर ही रहना पड़ता है। स्वाति भाभी की बातें व देखने के अन्दाज से लग रहा था कि उसको भी मुझमें काफी रुचि है, और फिर इन‌ सब कामों में मैं तो हूँ ही पक्का ठरकी … इसलिये मेरा तो ध्यान ही इन बातों में रहता है।
खैर स्वाति भाभी के चले जाने के बाद अब मैं भी नीचे आ गया. मगर मेरा अब ये रोज का काम हो गया कि जब भी शाम के समय स्वाति भाभी छत पर आती, मैं भी टहलने के बहाने छत पर रोज पहुंच जाता जिससे अब मेरी और स्वाति भाभी की बातचीत का सिलसिला शुरु हो गया।
स्वाति भाभी भी मेरी बातों में खूब रूचि दिखाती थी इसलिये मैं भी उनसे इधर उधर की बातें करने रोज छत पर आ जाता। अब बातचीत होने लगी तो धीरे धीरे हंसी मजाक और फिर एक दूसरे से छेड़छाड़ भी होने लग गयी मगर असल में तो मेरी नजरे उनके दोनो पपितो पर रहती थी जिसको वो भी शायद अच्छे से समझती थी, पर कुछ कहती नहीं थी।
वो भी अनजान बनकर मुझे अपने पपीतों के जी भरकर दर्शन करवाती थी जिससे अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी। उससे बातें करते करते मैं अब कभी उसका हाथ पकड़ लेता तो कभी उसके बदन को सहला देता जिसका वो इतना विरोध नहीं करती थी, बस बातों बातों में हंसकर टाल देती थी।
अब ऐसे ही एक दिन शाम के समय स्वाति भाभी कपड़े लेने जब छत पर आई तो मैं भी छत पर पहुंच गया। उस दिन काफी जोर से हवा चल रही थी जिसके कारण तार पर से लगभग उसके सारे कपड़े ही उड़कर नीचे गीरे हुए थे जिनको वो एक एक कर बीन रही थी। तभी मेरी नजर हमारी छत पर पड़ी उसकी एक ब्रा पर चली गयी। शायद तेज हवा कर कारण उसके एक दो कपड़े उड़कर हमारी छत पर भी आ गये थे जिनमें तौलिया और उनकी एक ब्रा भी थी।
शायद ब्रा और पेंटी को उन्होंने तौलिये के नीचे छुपाकर सुखाया था जिनमें से उसकी पेंटी तो वही उनकी छत पर ही गिर गयी थी मगर तौलिये के साथ साथ उनकी ब्रा इधर हमारी छत पर आ गिरी थी.
ब्रा को मैंने अब तुरन्त ही उठा लिया और ‘ये आपकी है क्या?’ मैंने उस ब्रा को उठाकर स्वाति भाभी को दिखाते हुए कहा।
तब तक स्वाति भाभी ने भी छत पर गिरे हुए सारे कपड़े उठा लिये थे अब जैसे ही उसने मुझे अपनी ब्रा को उठाये देखा तो ‘ओय … लाओ इधर दो इसे!’ उसने जल्दी से हमारी छत की ओर लगभग दौड़कर आते हुए कहा।
“ये इतनी छोटी सी आपको आ जाती है?” मैंने उसे फैलाकर देखते हुए कहा जिससे वो शर्म से लाल हो गयी और उसके छेहरे पर शर्म के कारण हल्की सी मुस्कान सी आ गयी।
“क्या कर रहे हो? दो इधर इसे!” उसने हंसते हुए कहा और तुरंत ही मेरे हाथ से उस ब्रा को छीन लिया।
“इसमें आपके आ जाते हैं?” मैंने अब फिर से दोहरा दिया।
स्वाति भाभी शर्मा तो रही ही थी अब जैसे ही मैंने फिर से पूछा शायद अनायास ही अनजाने में उसके मुंह से भी ‘क्या?’ निकल गया।
अब स्वाति भाभी का क्या कहना हुआ कि ना जाने मुझमें इतनी हिम्मत कहा से आ गयी ‘ये …’ कहते हुए मैंने तुरन्त ही अपना एक हाथ आगे बढ़ाकर उसकी एक चुची पर रख दिया.
स्वाति भाभी पहले ही शर्म से लाल हो रही थी. अब जैसे ही मैंने उसकी चुची को हाथ लगाया तो …
“अ.ओ.ओय … हट हट … क्या कर रहे हो?” कहते हुए वो तुरन्त ही पीछे हट गयी।
मेरी इस हरकत से स्वाति भाभी ने मुझ पर गुस्सा नहीं किया था, बस हंसकर थोड़ा सा पीछे हट गयी थी जिससे अब मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी।
“क्क्.. कुछ नहीं, मैं तो बस देख रहा हूँ…” मैंने हंसते हुए कहा।
“अच्छा … जाकर अपनी भाभी के देखो!” उसने भी नजरें‌ मटकाते हुए कहा।
“अरे … वो कहां … और और आप कहां! आपको तो ऊपर वाले ने बड़ी ही फुर्सत से बनाया है!” मैंने हसरत से उसे देखते हुए कहा।
मेरी नियत का तो‌ उसे‌ पहले से ही पता था, अब तो वो मेरे इरादे भी समझ‌ गयी थी. मगर फिर भी वो‌ वहां से हटी नहीं और वैसे ही दीवार के पास खड़ी रही।
“अच्छा अब ज्यादा मक्खन मत लगा, बता तो दिया आ रही है पिंकी अगले महीने … तब देख लेना और… और!” कहते-कहते वो अब अटक सी गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#7
“और और और क्या?” मैंने हंसते हुए कहा जिससे वो शर्मा गयी।
“और … और क्या पूछ लेना उसी से, और वो जो कहेगी वो कर लेना!” उसने शर्माते हुए कहा।
“और आप … आप क्या कहती हो?” कहते हुए मैंने अपना एक हाथ फिर से उसकी चूचियों की तरफ बढ़ा दिया.
“अ.ओय्.य … क्या है?” मेरे हाथ को झटकते हुए वो थोड़ा सा और पीछे हो गयी। वैसे उसकी चुचियां तो मेरे हाथ की पहुंच से दूर थी मगर मेरे हाथ को झटकने से उसका एक हाथ अब मेरी पकड़ में आ गया जिसे पकड़कर मैंने उसे अब फिर से अपनी तरफ खींच लिया.
जिससे वो घबरा सी गयी और चारों तरफ देखते हुए
“ओय्.य क्या कर रहा है … छोड़ … छोड़ मुझे…” स्वाति भाभी जल्दी से अपने हाथ को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा।
“अरे कुछ नहीं, बस देख ही तो रहा हूँ!” कहते हुए मैंने अपने दूसरे हाथ से अब सीधा ही उसकी एक चुची को पकड़कर उसे जोर से मसल दिया. जिससे वो जोर से कसमसा उठी और पहले की तरह ही चारों तरफ देखते हुए अब तो और भी जोर से कसमसाकर अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी।
स्वाति भाभी इस बात से इतना नहीं डर रही थी‌ कि मैंने उसका हाथ पकड़ा हुआ है और मैं उनकी चुची को मसल रहा हूँ, बल्कि शायद इस बात से ज्यादा डर रही थी कि कोई हमें देख ना ले क्योंकि शाम‌ समय आस पास के घरों में अधिकतर लोग छतों पर होते हैं।
वैसे मेरा दिल तो उसे छोड़ने को नहीं कर रहा था मगर मैंने एक बार उसकी चुची को जोर से भींचकर उसे छोड़ दिया क्योंकि छत पर किसी के देख लेने का जितना डर स्वाति भाभी को था उतना ही डर मुझे भी था।
मेरे छोड़ते ही स्वाति भाभी अब मुझसे बिल्कुल दूर जाकर खड़ी हो गयी और बनावटी सा गुस्सा करते हुए!
“अच्छा … पिंकी के साथ साथ अब मुझ पर नजर लगाये बैठे हो.” उसने अपनी आंखें इधर उधर मटकाते हुए कहा।
“नजरें कहां … मैं तो हाथ लगा रहा था.” कहते हुए मैंने अपना हाथ अब झूठमूठ में ऐसे एक बार फिर से उसकी ओर बढ़ा दिया.
“औय्य … क्या है चल हट …” कहते हुए वो अब सीधा नीचे भाग गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#8
जब से मैं और पिंकी पकड़े गये थे तब से मैं उनके घर नहीं जाता था, मगर अब तो मैंने उनके घर भी जाना शुरु कर दिया। हालांकि पिंकी की मम्मी यानि स्वाति भाभी की सास मुझे अब भी पसंद नहीं करती थी. इसलिये मैं उनके घर तभी जाता था जब मेरे पास उनके घर जाने के लिये कोई ना कोई बहाना होता था।
स्वाति भाभी की सास मुझे अधिकतर घर के बाहर से ही काम‌ पूछ कर चलता कर देती थी मगर फिर भी, मुझे जब भी उनके घर जाने का कोई मौका मिलता तो मैं उसे छोड़ता नहीं था।
अब ऐसे ही एक दिन सुबह सुबह ही मेरी भाभी ने मुझे स्वाति भाभी‌ के घर से सिलाई मशीन लाने के लिये कहा।
वैसे तो हमारे घर भी सिलाई मशीन थी मगर उस समय वो खराब थी इसलिये मेरी भाभी ने मुझे स्वाति भाभी के घर से सिलाई मशीन लाने‌ के लिये कहा।
मैं तो अब रहता ही इस ताक‌ में था कि कब मुझे स्वाति भाभी के घर जाने का मौका मिले और मैं उनके घर जा सकूं. जैसे मेरी भाभी ने मुझे स्वाति भाभी के घर से मशीन लाने को‌ कहा मैं भी तुरन्त ही‌ उनके घर चला गया।
मुझे पता था कि स्वाति भाभी की सास मुझे देखकर घर के बाहर से ही चलता कर देगी इसलिये मैंने उनके घर के बाहर से किसी‌ को आवाज नहीं दी, बल्कि उनके घर के मुख्य दरवाजे को खोलकर अन्दर आ गया और ड्राईंगरूम के दरवाजे के पास आकर ‘भाभी … भाभी … स्वाति भाभी…’ मैंने सीधा ही स्वाति भाभी को आवाज लगाई.
मगर काफी आवाज देने पर भी किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
जब बाहर से किसी ने जवाब नहीं दिया तो मैंने अब उनके ड्राईंगरूम के दरवाजे थोड़ा धकेलकर देखा.
दरवाजा खुला हुआ ही था इसलिये मैं भी अब अन्दर आ गया, मगर अब अन्दर भी कोई नहीं था.
अक्सर‌ तो स्वाति भाभी की सास मुझे ड्राईंगरूम‌ में ही मिल‌ जाती थी और वो मुझे वही से वापस कर देती थी मगर आज वो भी नजर नहीं आ रही थी।
‘भाभी …’
‘भाभी…’
‘स्वाति भाभी …’
उनके ड्राईंगरूम में आकर मैंने अब एक बार फिर से स्वाति भाभी को ही आवाज लगाई. तभी ‘कौन है?’ अन्दर से स्वाति भाभी की आवाज सुनाई दी।
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#9
वो आवाज शायद बाथरूम‌ से आई थी।
“मैं हूँ महेश … वो मैं आपकी सिलाई मशीन लेने आया था.” कहते हुए मैं अब उनके ड्राईंगरूम‌ से निकलकर उनके घर के अन्दर आ गया।
“कुछ देर रुक जाओ या फिर तुम बाद में आ जाना मैं अभी बाथरूम में हूँ!” स्वाति भाभी ने अन्दर से ही कहा।
स्वाति भाभी बाथरूम में थी इसलिये अब मैं भी बाथरूम के दरवाजे के पास आ गया जो स्वाति भाभी ने मुझसे बात करने के‌ लिये अब हल्का सा खोल लिया था।
“कहां रखी है आप बता दो, मैं आंटी को बोलकर ले लेता हूँ!” मैंने फिर से‌ कहा।
“अरे… वो मम्मी यहां नहीं हैं ना … घर पर मैं अकेली ही हूँ.”
“क्यों … आंटी कहां गयी?” मैंने चारों तरफ देखते हुए कहा.
स्वाति भाभी अब कुछ देर तो शांत रही फिर बोली- वो मम्मी तो गुड़िया (सपना भाभी की बेटी) को लेकर मन्दिर गयी हैं … और घर में मैं अकेली ही हूँ!
भाभी ने‌ अब हल्का सा अपना चेहरा बाथरूम‌ से बाहर निकालकर मेरी तरफ देखते हुए कहा।
उसने इस बार ‘घर में मैं अकेली‌ ही हूँ’ इस बात पर कुछ ज्यादा ही जोर देकर कहा था. साथ ही उनके चेहरे पर मुझे हल्की सी शरारती मुस्कान सी भी दिखाई दे रही थी जिससे‌ मुझे अब झटका‌ सा लगा क्योंकि यह तो शायद स्वाति भाभी की तरफ से मेरे लिये खुला ही इशारा था।
मैंने अब भी देर ना करते हुए सीधा ही बाथरूम के दरवाजे को पकड़ लिया और उसे खोलने के लिये अन्दर की तरफ धकेल दिया.
“ओय्…य … ये. ये. क्या कर रहे हो? हटो … हटो यहां से … बताया ना बाद में आना!” स्वाति भाभी ने तुरन्त दरवाजे को पकड़ते हुए कहा।
मगर मुझे पता था वो बस ये झूठमूठ का ही दिखावा कर रही है, इसलिये मेरे थोड़ा जोर से बाथरूम‌ के‌ दरवाजे को धकेलते ही उसने दरवाजे को छोड़ दिया जिसे मैं अब पूरा खोलकर बाथरूम‌ में घुस गया।
अन्दर स्वाति भाभी बस लाल रंग के पेटीकोट और ब्लाउज में थी। वो पूरी भीगी हुई थी जिससे उसका ब्लाउज चूचियों पर बिल्कुल चिपका हुआ था और अन्दर पहनी हुई उनकी ब्रा साफ नजर आ रही थी।
वो शायद अभी नहाने नहीं लगी थी, बस कपड़े ही धुलाई कर रही थी जिससे लगभग वो सारी भीगी हुई थी।
बाथरूम‌ में घुस कर मैंने उसे अब सीधा ही पकड़कर अपनी बांहों में भींच लिया.
“नहीं … छोड़ो … छोड़ो मुझे! ये क्या कर रहे हो … हटो … छोड़ो … छोड़ो मुझे.” करते हुए वो अब कसमसाने लगी. मगर मुझे हटाने‌ का या खुद मुझसे दूर होने‌ का‌ प्रयास ‌वो बिल्कुल‌ भी कर रही थी। वो तो शायद चाहती ही यही थी इसलिये स्वाति भाभी को‌ अपनी‌ बांहों में भींचकर मैंने उसके ठण्डे ठण्डे होंठों से सीधा ही अब अपने गर्म और प्यासे होंठों को जोड़कर उसका मुंह भी बन्द कर दिया।
“उम्म्म्म … ह्ह्हु …” कहते हुए स्वाति भाभी ने अब एक बार तो अपनी गर्दन घुमाकर अपने होंठों को छुड़ाने की कोशिश की मगर तब तक मैंने अपने दोनों हाथों से उसके सिर को पकड़ लिया जिससे वो बस कसमसाकर रह गयी।
वैसे तो भाभी के होंठ मुलायम थे मगर गीले होने के कारण ठण्डे और थोड़े सख्त हो रखे थे जिनको अपने‌ मुंह‌ में भरकर मैंने अब जोर से चूसना शुरु कर दिया.
स्वाति भाभी ने भी अब एक दो बार तो अपनी गर्दन व होंठों को छुड़ाने की कोशिश की मगर फिर वो भी शांत हो गयी.
वो अब हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं कर रही थी इसलिये उसके होंठों के रस को चूसते चूसते मैं अपना एक हाथ अब धीरे से उसके पपीतों पर भी ले आया. मगर जैसे ही मैंने उन्हें पकड़ा स्वाति भाभी ने तुरन्त अपना एक हाथ मेरे हाथ पर रख दिया.
मगर अब मैं कहाँ रुकने वाला था, उसके होंठों को चूसते चूसते मैंने उसकी एक चुची को भी अब अपनी पूरी हथेली में भर भरकर उसे जोर से मसलना शुरु कर दिया. नारीयल के जितनी बड़ी चुची थी भाभी की जो मेरी हथेली में पूरी समा भी नहीं रही थी. मगर एकदम‌ गुदाज और स्पंज जैसी नर्म नर्म थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#10
स्वाति भाभी भी अब मेरे हाथ को अपनी चूचियों पर से हटाने की कोशिश नहीं कर रही थी, वो वैसे ही मेरे हाथ पर अपना हाथ रखकर चुपचाप मुझसे अपनी चूचियाँ मसलवाने लगी।
उधर उसके होंठों को चूसते चूसते मैंने अब धीरे से अपनी जीभ को‌ भी अब उसके‌ मुंह में घुसा दिया जिससे वो एक बार तो थोड़ा सा कुनकनाई मगर फिर अपने आप ही मुंह को‌ खोलकर मेरी‌ जीभ को अपने मुंह में अन्दर जाने का रास्ता दे दिया।
मैंने भी उसका मुंह खुलते ही अपनी जीभ को पूरा ही उसके गले तक उतार दिया और उसकी नर्म नर्म जीभ के साथ खेलते हुए उसके होंठों को चुभलाने लगा।
उसने शायद अभी अभी ब्रुश किया था क्योंकि उसके मुंह से अभी भी टुथपेस्ट(दन्तमंजन) की ठण्डी ठण्डी और मीठी मीठी महक आ रही थी। ब्रश करने से उसका मुंह अन्दर से ठण्डा तो था मगर थोड़ा शुष्क हो रहा था, जिसको गीला करने‌ के लिये मैंने अब अपनी जीभ को एक बार वापस अपने मुंह में खींच लिया और उसे अपने थूक से सान‌कर फिर उसके मुंह में घुसा दिया जिससे एक बार तो वो हल्का सा कसमसाई मगर मेरा विरोध बिल्कुल भी नहीं किया।
मैंने अपनी थूक लगी जीभ से पहले तो स्वाति भाभी का मुंह गीला किया फिर उसे खुद ही चाट‌ भी लिया. ऐसा मैंने अब लगातार तीन चार बार किया जिससे पहले दो तीन बार तो वो हल्का सा कसमसाई मगर चौथी बार उसने खुद ही अपने होंठों से मेरी जीभ को दबा लिया और मेरी गीली जीभ अपने होंठों के बीच दबाकर धीरे धीरे चूसना शुरु कर दिया।
स्वाति भाभी भी अब मेरी जीभ को चूस‌ने लगी थी मगर मेरी नजरे तो लाल रंग के ब्लाउज में कसी हुई उसकी कच्चे दूध सी सफेद और खरबूजे के जैसे बड़ी बड़ी चुचियों पर थी। उसके ब्लाउज का गला इतना गहरा भी नहीं था मगर फिर उसकी चूचियाँ उसमें से निकल कर ऐसे बाहर आ रही थी जैसे की उन्हें ब्लाउज में ठुंस ठुंसकर जबरदस्ती भर रखा हो।
उसकी दोनों चूचियाँ उस ब्लाउज में इतनी जोर से कसी हुई थी कि दोनों चूचियों के बीच बस एक पतली सी लाईन ही दिखाई दे रही थी। बाकियों की तो V आकार में गहरी घाटी सी होती है मगर स्वाति भाभी की चूचियाँ इतनी बड़ी थी कि दोनों चूचियों के बीच बिल्कुल भी जगह नहीं थी बस एक‌ लाईन सी ही दिखाई दे रही थी।
कुछ देर ब्लाउज के ऊपर से उसकी चूचियों को मसलने के बाद मैं अब धीरे से अपने हाथ की उंगलियों को उसकी चूचियों की जो लाईन सी बनी हुई थी उसमें घुसाने की‌ कोशिश करने लगा. मगर जैसे ही मैंने अपनी एक दो उंगलियां उसके ब्लाउज में घुसाई‌, उसने मेरे हाथ को‌ पकड़कर जोर से झटक दिया जिससे ‘टक् टक् …’ की आवाज के साथ उसके ब्लाउज के ऊपर के दो ‌बटन‌ खुल‌ गये और उसकी चूचियाँ ब्लाउज में से उभरकर ऐसे बाहर आ गयी जैसे की गर्म‌ होने पर बर्तन में से दूध उफन कर बाहर आता है।
दरअसल स्वाति भाभी ने जो ब्लाउज पहना‌ हुआ था उसमें टिच-बटन लगे हुए थे जो दबाने पर बन्द होते है और खींचने पर आसानी से खुल जाते हैं। मेरी दो उंगलियां उसके ब्लाउज में ऊपर से घुस गयी थी इसलिये अब जैसे ही स्वाति भाभी ने‌ मेरे हाथ को खींचा, झटके से उसके ब्लाउज के बटन‌ खुल गये।
स्वाति भाभी ने अब तुरन्त ही मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग कर‌ लिया और ‘ओय्य्य … ओह्ह …” कहते मेरी तरफ घूर घूर कर देखने लगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#11
मगर मैंने तो‌ कुछ किया ही नहीं था। वो तो उसके ही खिंचने से ब्लाउज के बटन खुले थे इसलिये हैरानी से मैं भी स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा. उसकी आँखों में शर्म के भाव तो थे ही साथ ही उत्तेजना के गुलाबी डोरे भी तैरते मुझे अब साफ नजर आ रहे थे।
अब जैसे ही उसकी नजर मेरी नजर से मिली, उसके चेहरे पर शर्म से हल्की सी मुसकान आ गयी और शर्माकर उसने अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिया।
स्वाति भाभी ने अब भी मेरा हाथ तो पकड़ा हुआ था मगर उसके हाथ की पकड़ में विरोध बिल्कुल भी नहीं था इसलिये उसकी तरफ देखते देखते मैंने अब फिर से उसके ब्लाउज में अपने हाथ की उंगलियों को फंसा कर उसे जोर से खींच दिया जिससे उसके ब्लाउज के दो बटन‌ और खुल गये।
सच में भाभी ने अपनी चूचियों को जबरदस्ती ही ब्लाउज में ठूंस कर भरा हुआ था क्योंकि अब जैसे ही उसके ब्लाउज के ऊपर के चार बटन खुले उसकी चुचियाँ ब्रा के साथ नीचे के दो बटन के ऊपर से ही उछलकर अपने आप ही उछलकर बाहर आ गयी।
उस ब्रा में भी उसकी चूचियाँ समा नहीं रही थी इसलिये उसके ब्लाउज के सारे बटन खोलकर मैंने उसकी ब्रा को भी अब नीचे से पकड़कर ऊपर खींच दिया… उसकी ब्रा को मैंने बस थोड़ा सा ही खींचा था मगर मेरे थोड़ा सा खींचते ही उसकी चूचियाँ अपने आप ही ब्रा की कैद से फड़फड़ा कर बाहर आ गयी और खुद के ही बोझ से थोड़ा नीचे होकर झूल गयी।
कच्चे दूध सी सफेद, बिल्कुल बेदाग और गोरी चिकनी चूचियाँ थी उसकी जो भीगने के कारण थोड़ी सख्त हो रही थी. उन पर खड़े हुए रोयें साफ नजर आ रहे थे। गहरे भूरे रंग के बड़े बड़े घेरे में उनके भूरे भूरे निप्पल सुपारी के जितने बड़े और इतने तने हुए थे कि उनको देखते ही मेरा गला सूख सा गया.
मुझसे सब्र नहीं हो रहा था इसलिये मैं अब सीधा ही उसकी चूचियों पर टूट पड़ा। मैंने उसकी एक चुची को पकड़ कर पहले तो उसे ऊपर ऊपर हल्के से चूमा, फिर उसके निप्पल को अपने मुंह में भरकर जोर से चूस लिया.
मगर जितनी तेजी व फुर्ती से मैंने उसके निप्पल को अपने मुंह में भरकर चूसा था, उतनी ही जल्दी मैंने उसके निप्पल को अपने मुंह से बाहर भी निकाल दिया क्योंकि जैसे ही मैंने उसकी चुची को चूसा, दूध की मोटी सी धार मेरे तालु से टकराई और मेरे सुखे मुंह को गीला करते हुए सीधा ही मेरे गले से नीचे उतर गयी।
चुची से इस तरह दूध निकल आने से मैं हड़बड़ा गया था इसलिये मैंने झट से अपना मुंह भाभी की चूची से हटा लिया और स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा.
वो भी मेरी तरफ ही देख रही जिससे उसे हंसी आ गयी।
उसने हंसते हुए अब एक बार तो मेरी आँखों में देखा फिर शर्माकर अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिया।
हल्का मीठा और मितैला सा स्वाद था भाभी के दूध का जो मुझे इतना अच्छा तो नहीं लगा था मगर फिर भी मेरे सूखे गले को उसने काफी राहत सी पहुंचाई।
स्वाति भाभी अब मेरी तरफ तो नहीं देख रही थी मगर मेरी हड़बड़ाहट पर वो अब भी हंस रही थी। उसको देखकर मुझे भी अब एक उत्तेजक सी शरारत सूझ गयी। मैंने ऊपर उसके चेहरे की तरफ देखते देखते अब फिर से उसकी चुची को अपने मुंह में भर लिया और उसे जोर से चूसकर थोड़े से दूध को अपने मुंह में इकट्ठा कर लिया।
थोड़ा सा दूध अपने मुंह में भरकर मैंने चुची को छोड़ दिया और ऊपर आकर अपने होंठों को उसके होंठों से जोड़ दिया। उसको पता नहीं था कि मैंने अपने मुंह में दूध भरा हुआ है इसलिये उसने मेरा कोई विरोध नहीं किया।
मगर जैसे ही उसके होंठों को चूसने के बहाने मैंने अपने मुंह का दूध उसके मुंह में डाला उसकी बड़ी बड़ी आँखें और भी बड़ी हो गयी और ‘ऊऊऊ … ह्ह्ह …’ कहते हुए उसने तुरन्त ही अपने मुंह को मेरे मुंह से अलग कर लिया। जिससे वो दूध उसके‌ मुंह से निकलकर उसकी ठोड़ी पर बह आया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#12
पने मुंह को मेरे होंठों से अलग करके ‘क्या … है …’ कहते हुए स्वाति भाभी ने अब एक बार तो फिर से मेरी आँखों में देखा … फिर हंसकर अपना मुंह दूसरी तरफ घुमा लिया।
मगर तब तक मैंने उसके सिर को पकड़ लिया और फिर से उसके होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया। उसके होंठों को चूसते हुए मैंने उसकी ठोड़ी और होंठों पर लगे हुए दूध को चाट चाट कर अब खुद ही साफ कर दिया जिसका उसने‌ अब इतना विरोध नहीं किया।
वो अब भी अब हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर उसने मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग नहीं किया‌।
स्वाति भाभी के होंठों को चूसते हुए मैंने अपना एक हाथ अब भाभी की चूत की तरफ भी बढ़ा दिया था. मगर जैसे ही मैंने उसकी मुनिया को छुआ, ‘ऊऊऊ … ह्ह्ह …’ की आवाज निकालकर उसने तुरन्त अब मेरे हाथ को‌ पकड़ लिया और मेरे होंठों से अपने होंठों को अलग करके ‘ओय य … क्या कर रहे हो? बस्स्स अब …’ उसने हल्का सा कसमसाकर मुझे अपने से दूर करते हुए कहा।
स्वाति भाभी ने मेरे हाथ को तो पकड़ लिया था मगर उसकी पकड़ बहुत ही हल्की थी। उसके हाथ की पकड़ में विरोध बिल्कुल भी नहीं था, वो बस ऊपर ऊपर से ही मेरे हाथ को पकड़े हुए थी इसलिये उसके पकड़ने के बावजूद भी मैंने एक दो बार तो भाभी की चुत को सहला ही दिया.
उसने नीचे पेंटी पहनी हुई थी इसलिये मैंने भी बस एक दो बार ही उसकी चुत के फूले हुए उभार को सहलाकर देखा. फिर अपने हाथ को उसकी बगल में ले जाकर सीधा ही उसके पेटीकोट के नाड़े को खींच दिया.
मगर नाड़ा खुलने के बाद भी स्वाति भाभी का पेटीकोट निकला नहीं क्योंकि एक तो उसने अपने कूल्हों को दीवार के साथ लगा रखा था और दूसरा भीगने के कारण उसका पेटीकोट उसकी जांघों और कूल्हों से बिल्कुल चिपका हुआ था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#13
स्वाति भाभी के पेटीकोट का नाड़ा खोलकर अब मैंने ही अपना एक हाथ पीछे ले जाकर उसे धीरे से उसके कूल्हों से नीचे कर दिया। स्वाति भाभी अब भी मेरे हाथ को पकड़े हुए थी मगर मुझे रोकने का या अपने पेटीकोट को पकड़ने का वो बिल्कुल भी प्रयास नहीं कर रही थी।

मैंने बस पेटीकोट को उसके कूल्हों से ही निकाला, बाकी तो वो अब भीगने के के कारण खुद के ही भार से नीचे उसके पैरों में गिर गया और स्वाति भाभी बस नीले रंग की एक पेंटी में रह गयी।
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#14
अब जैसे ही स्वाति भाभी का पेटीकोट निचे गिरा … ‘ओयय … बस्स्स … बस अब …’ उसने हल्का सा कसमसाकर मेरी तरफ देखते हुए कहा मगर अपने पेटीकोट को उठाने का या अपने नंगेपन को ढकने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं किया।
वो तो शायद चाह ही यही रही थी मगर शर्म के कारण ऐसे ही दिखावे के लिये ये सब बोल रही थी।
भाभी के पेटीकोट को निकालकर मैं अब नीचे अपने पंजों के बल बैठ गया और अपने दोनों हाथ उसकी पेंटी के किनारों में फंसाकर उसे सीधा ही नीचे उसके घुटनों तक खींच दिया.
मुझे बस एक झलक ही भाभी की गोरी चिकनी चुत की मिली थी कि ‘ओहय … क्या कर रहे हो … बस्स्स अब … बहुत हो गया … मम्मीईई … मम्मी आने वाली हैं.’ उसने हल्का सा कसमसाकर दोनों हाथों से अपनी चुत को छुपाते हुए कहा।
मगर अब मैं कहां रुकने वाला था, मैंने अपने दोनों हाथों से उसके हाथों को पकड़कर चुत पर से हटा दिया.
‘ओय्य … बस्स्स्स … बस्स्स अब …’ उसने फिर से कसमसाते हुए कहा.
मगर अब फिर से अपनी चुत को छुपाने की कोशिश नहीं की, बस चुपचाप खड़ी हो गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#15
स्वाति भाभी की गोरी चिकनी और फूली हुई चुत अब मेरे सामने थी जिस पर बस छोटे ही बाल थे मगर काफी गहरे और घने थे। पाव रोटी की तरह फूली हुई उसकी गोरी चिकनी चुत इतनी कमसिन और हसीन थी कि कुछ देर तक‌ तो मैं टकटकी लगाये बस उसे देखता ही रह गया.
भाभी की चुत चूचियों से भी ज्यादा गोरी सफेद और बिल्कुल बेदाग थी। चुत की फांकें थोड़ी सी फैली हुई थी जिससे चुत के अन्दर का गुलाबी भाग मुझे साफ नजर आ रहा था, और गोरी चिकनी फांकों के बीच हल्का सा दिखाई देता चुत का गुलाबी दाना तो ऐसा लग रहा था जैसे की उसकी चुत अपनी जीभ निकालकर मुझे चिढा रही हो।
स्वाति भाभी की चुत को देखकर मैं तो जैसे अब पागल ही हो गया। मैंने उसकी गोरी चिकनी चुत व उसकी मांसल भरी हुई जाँघों को पागलों की तरह बेतहाशा यहाँ वहां चूमना शुरु कर दिया जिससे वो मचल सी गयी और ‘ईईई … श्श्श्श … बस्स्स …’ कहते हुए दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया।
मैं भाभी की चुत को नहीं चूम‌ रहा था, बस चुत के फूले हुए उभार को और चुत के चारों तरफ उसकी जाँघों पर ही चूमे जा रहा था। मेरे होंठ एक जगह ठहर ही नहीं रहे थे इसलिये स्वाति भाभी ने मेरे सिर को पकड़कर अब थोड़ा सा कसमसाते हुए अपनी चुत को सीधा ही मेरे मुंह पर लगा दिया मगर उसने दिखावा ऐसा किया जैसे कि वो मुझे हटाना चाह रही थी.
मगर मैंने ही उसकी चुत पर अपने होंठों को लगा दिया हो।
मुझे थोड़ा अचरज सा हुआ इसलिये अपना सिर उठाकर मैंने स्वाति भाभी की तरफ देखा, वो भी मेरी तरफ ही देख रही थी। शर्म से उसके गाल लाल हो रखे थे और चेहरे पर हल्की मुसकान सी थी। हम दोनों की नजरें अब एक बार तो मिली मगर अगले ही पल उसने शर्मा कर फिर से अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।
एक नजर स्वाति भाभी की तरफ देखकर मैंने उसके पैरों में फंसी पेंटी को खींचकर अब उसके पैरों से पूरा ही निकाल कर अलग कर दिया जिसमें स्वाति भाभी ने ‘ओय्य्य … बस्स्स … क्या कर रहा है … छोड़ मुझे …’ कहते हुए थोड़ा सा नखरा तो दिखाया मगर साथ ही अपने पैरों को उठाकर पेंटी को निकालने में मेरा साथ भी दिया।
भाभी की पेंटी को निकालकर मैं अब दोनों हाथों से उसके पैरों को खोलकर उसके दोनों पैरों के बीच बैठ गया जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया और अपनी टांगों को चौड़ा करके सीधी खड़ी हो गयी। नीचे फर्श पर पानी था जिससे मेरा लोवर भीग गया था मगर मुझे उसकी तो फिक्र ही कहाँ थी।
भाभी की नंगी टांगों के बीच बैठे बैठे पहले तो मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी चूत की नाजुक पंखुड़ियों को थोड़ा सा फैला दिया, फिर धीरे से अपने होंठों को उसकी चुत के अन्दर के लाल गुलाबी भाग पर रख दिया.
‘उफ्फ्फ … कितनी गर्म चूत थी भाभी की …’ मुझे तो लगा जैसे मेरे होंठ जल ही ना जायें। भीगने के कारण उसकी चुत बाहर से तो ठण्डी थी मगर अन्दर से किसी भट्ठी की तरह एकदम सुलग सी रही थी जिसको चूमकर ऐसा लग रहा था मानो मेरे होंठ जल ही जायेंगे।
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#16
मैंने अब पहले तो एक बार उसकी चुत को अपने होंठों से चूमा फिर धीरे से अपनी जीभ निकालकर चुत के अन्दर के लाल गुलाभी भाग को पूरा चाट लिया। एकदम खारा और कैसेला स्वाद था उसकी चुत का मगर उस समय तो वो मुझे रसमलाई से कम‌ नहीं लगी।
मैंने उसकी चुत को एक बार चाटकर उसकी फांकों के अन्दर के गुलाबी भाग को अब जोर से चूस भी लिया जिससे स्वाति भाभी ‘ईईई … श्श्श्स … आह्ह्ह …” कहते हुए अपने पंजों के जोर पर ऊपर की तरफ उकसकर थोड़ा सा पीछे सरक गयी।
मैंने भी अब अपने एक हाथ को पीछे उसके नितम्बों पर ले जाकर उसे फिर से अपनी तरफ खींच लिया.
मगर अब जैसे ही मैंने स्वाति भाभी को अपनी तरफ खींचा ‘ओय्य्य … क्क्या … क्या कर रहा है? छोड़ … छोड़ मुझे …’ कहते हुए भाभी ने अपना एक पैर धीरे से उठाकर मेरे कन्धे से सटा दिया जिसको पकड़कर मैंने उसे अब अपने कंधे की तरफ खींच लिया।
मैंने उसके पैर को बस थोड़ा सा ही खींचा था मगर ‘आह्ह … ओय्य्य … क्या कर रहा है? मैं गिर जाऊँगी!’ का दिखावा सा करते हुए उसने अपना पैर अब मेरे कन्धे पर ही चढ़ा दिया जिससे उसकी चुत की खुली हुई फांकें सीधा ही मेरे होंठों से चिपक गयी।
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#17
स्वाति भाभी बस दिखावे के लिये ही नखरा कर रही थी नहीं तो हर एक काम तो वो खुद अपने आप ही कर रही थी साथ ही मुझे भी आगे के लिये राह दिखा रही थी।
खैर मैंने भी अब अपने होंठों को उसकी चुत की फांकों के बीच घुसा दिया और अपनी पूरी जीभ निकालकर उसकी चुत की नर्म नर्म व गर्म फांकों को चाटना और चूसना शुरु कर दिया जिससे स्वाति भाभी अब जोर से सिसक उठी।
उसने मेरे सिर को पकड़ा हुआ था जिससे उसने अब मेरी जीभ के साथ साथ खुद ही अपनी कमर को हिला हिलाकर अपनी चुत को‌ जोर से मेरे मुंह पर रगड़ना शुरु कर दिया।
उसकी चुत पहले‌ ही कामरस से लबालब थी मगर अब तो जैसे उसने कामरस की बारिश सी करनी‌ शुरु कर दी जिसे मैं भी चाट चाटकर और चूस चूसकर पीने लगा।
कुछ देर तो वो ऐसे ही अपनी चुत का रस मुझे पिलाती रही फिर ना जाने उसके दिल‌ में क्या आया, उसने अपने पैर को मेरे कंधे पर से उतारकर नीचे कर लिया और थोड़ा सा पीछे होकर अपनी चुत को भी मेरे होंठों से दूर हटा लिया.
स्वाति भाभी के इस तरह पीछे हो जाने से मेरी हालत अब बिल्कुल वैसी हो गयी जैसे किसी छोटे बच्चे के मुंह से उसकी पसंदीदा चीज खाते खाते अचानक उससे वो चीज छीन ली हो.
मैंने अपनी गर्दन उठाकर अब एक‌ बार तो स्वाति भाभी की तरफ देखा फिर अगले ही पल उसके पीछे पीछे अपने घुटनों के बल सरक कर मैंने उसकी दोनों जाँघों को अपनी‌ बांहों में भर लिया और अपने होंठों को फिर से उसकी चुत की फांकों से जोड़ दिया.
“ओय्य्य्य … क्या कर रहा है… हट … हट छोड़ … छोड़ मुझे!” कहते हुए उसने अब दोनों हाथों से मेरे सिर के बालों को पकड़कर मुझे ऊपर खींच लिया।
स्वाति भाभी के इस तरह के व्यवहार से मुझे खीज तो हुई मगर बाल खींचने से मुझे दर्द भी हो रहा था इसलिये मैं उसकी जाँघों के बीच से उठकर सीधा खड़ा हो गया और मायूस सा चेहरा बना के स्वाति भाभी की तरफ देखने लगा.
वो अब भी वैसे ही खड़ी हुई थी।
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#18
भाभी ने मुझे अपनी चुत पर से तो हटा दिया मगर मुझे अपने से दूर हटाने का या खुद मुझसे दूर होने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं किया। उसकी निगाहे शायद अब मेरे लोवर में तम्बू पर थी इसलिये मैंने भी अब जल्दी से लोवर के साथ साथ अपने अण्डरवियर को भी खींचकर उसे घुटनों तक उतार लिया।
लोवर व अण्डरवियर के नीचे होते ही अब जैसे ही तनतनाता हुआ मेरा मुसल लण्ड फुंकार कर बाहर आया उसे देखकर स्वाति भाभी एक बार तो हांफ सी गयी और ‘य ऐ … ये … तू … क्या कर रहा है … हट … बस्स्स हट अब!’ कहते हुए वो अपने दोनों हाथों को ऐसे ही मेरे सीने पर मार मारकर झूठमूठ मुझे हटाने की कोशिश सी करने लगी। मगर उसके हाथों की मार में जान बिल्कुल भी नहीं थी।
वो मुंह से तो मुझे मना कर रही थी मगर उसकी निगाहें मेरे तन्नाये लण्ड पर ही जमी हुई थी। मेरे तमतमाते लण्ड को आँखें फाड़ फाड़कर वो ऐसे देख रही थी जैसे उसे अभी ही खा जायेगी। उसकी आँखों में वासना के साथ साथ मुझे एक चमक भी दिखाई दे रही जो शायद उसकी आँखों में अभी अभी मेरे लण्ड को देखकर आई थी।
अपने लोवर को नीचे करके मैंने अब फिर से स्वाति भाभी को पकड़ लिया और यहां वहां उसकी गर्दन, गाल और होंठों पर बेतहाशा चूमते हुए उसे अपनी बांहों में भर लिया।
स्वाति भाभी की लम्बाई मेरे से थोड़ी कम है और हम दोनों ही सीधा खड़े हुए थे इसलिये मेरा उत्तेजित लण्ड उसकी नाभि पर लग गया था जो उसके नर्म मुलायम ठण्डे ठण्डे पेट के अहसास से अब तो और भी ताव में आ गया।
मेरे इस तरह चूमने चाटने से स्वाति भाभी अब भी मुंह से तो ‘इश्श्श … ओय्य्य … हट … छोड़ … छोड़ मुझे…’ बड़बड़ाते हुए हल्का हल्का कसमसा तो रही थी मगर मुझे हटाने का प्रयास बिल्कुल भी नहीं कर रही थी।
वो हल्का हल्का कसमसाकर अब धीरे धीरे एक बगल की तरफ खिसकती जा रही थी मगर मैं कहां रुकने वाला था मैं भी उसे चूमते हुए उसके साथ साथ ही खिसकता रहा.
इसी तरह धीरे धीरे खिसकते हुए स्वाति भाभी अब बगल में ही रखे पटरे पर चढ़ गयी, मैं तो उसके पीछे पीछे था ही और उससे लिपटा भी हुआ था. अब जैसे ही स्वाति भाभी उस पटरे पर खड़ी हुई मेरा लण्ड सीधा ही नीचे उसकी चुत पर लग गया.
‘ओ तेरी …’ मेरे तो ये अब समझ में आया कि स्वाति भाभी इस तरफ क्यों खिसक रही थी। शायद उसे पता था कि पटरे पर खड़े होने से मेरा लण्ड उसकी चुत पर लग जायेगा।
स्वाति भाभी की इस चालाकी को देखकर मैं तो दंग सा ही रह गया क्योंकि मैंने तो ये सोचा ही नहीं था। मैं तो ये सोच रह था कि स्वाति भाभी को नीचे फर्श पर लेटाकर आराम से पेलूंगा मगर स्वाति भाभी ने तो ये नया ही तरीका सुझा दिया था।
खैर स्वाति भाभी के उस पटरे पर चढ़ते ही मैंने भी अब एक हाथ से अपने लण्ड को पकड़कर सीधा उसकी चुत की फांकों के बीच लगा दिया जो उसके कामरस और मेरे मुंह की लार से बिल्कुल भीगी हुई थी।
“ईईश्श्श्स … ओय्य … बस्स्स … बस्स्स अब मम्मी … आने वाली होगी!” स्वाति भाभी एक मीठी सी आह भरती हुई बड़बड़ायी।
मगर मुझे अब होश ही कहाँ था … अपने लण्ड को उसकी चुत पर लगा कर मैंने पहले तो एक दो बार उसे चुत की फांकों पर घिसा, फिर अपने घुटनों को‌ मोड़कर थोड़ा सा नीचे हो गया और अपने लण्ड को उसकी चुत के प्रवेशद्वार पर लगा कर धीरे से अपने घुटनों को सीधा करते हुए खड़ा हो गया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#19
अब जैसे मैं सीधा खड़ा हुआ, मेरा लण्ड भाभी की चुत के मुंह में किसी हुक की तरफ से फंसकर एक चौथाई के करीब उस मखमली गहराई में उतर गया जिससे स्वाति भाभी ‘ओह्ह य्य्य्य … ईईश्श्श … आआह्ह्ह …’ कहते हुए अपनी दोनों बांहें मेरे गले में डालकर मुझसे चिपट सी गयी और अपना एक पैर ऊपर हवा में उठाकर अपनी जांघ को मेरी कमर तक चढ़ा दिया.
स्वाति भाभी को सहारा देने के लिये अब मैंने भी अपने एक हाथ से उसके पैर को पकड़ लिया.
मगर जैसे ही मैंने उसके एक पैर को पकड़ा… ‘ओय्य्य … क्या कर रहा है … म्म … मैं गिर जाऊँगी!’ कहते हुए उसने मेरे गले में डाली हुई बांहों पर जोर देकर अपना दूसरा पैर भी ऊपर हवा में उठा लिया जिससे लगभग अब मेरा आधे से भी ज्यादा लण्ड उसकी चुत की गहराई में उतर गया।
“आह्ह्ह … क्या कर रहा है … गिरायेगा क्या?” स्वाति भाभी ने अब कराहते हुए कहा और मेरी गर्दन के सहारे ऊपर हवा में झूल सी गयी।
मुझे नहीं पता था कि स्वाति भाभी ने अपने पैर किस लिये उठाये थे? और ये सब वो क्या … और क्यों कर रही थी? मगर फिर भी उसको सहारा देने के लिये मैंने अपने दूसरे हाथ से अब उसका दूसरा पैर भी पकड़ लिया.
मगर जैसे ही मैंने उसके दूसरे पैर को सहारा दिया, वो अपनी बांहों को मेरे गले में और पैरों को मेरी कमर में फंसाकर मुझसे जोर सी चिपक गयी‌ जिससे उसकी चुत लगभग अब मेरा पूरा ही लण्ड निगल गयी।
स्वाति भाभी बस दिखावे के लिये ही कह रही थी ‘मैं गिर जाऊंगी… मैं गिर जाऊँगी …’ मगर उसका असली मकसद तो मुझे अब समझ में आया जब उसने ‘गिर जाऊँगी … गिर जाऊँगी …’ करते करते ही अपनी चुत में मेरे पूरे लण्ड को निगल लिया।
उसने ना ना बोलकर भी सबकुछ खुद ही‌ कर लिया था। उसकी यह चतुराई देखकर मैं तो उसे बस आँखें फाड़ फाड़ कर देखता ही रह गया था जो मेरे पूरे लण्ड को अब किसी खूंटे की तरह अपनी चुत में फंसाकर उस पर लटकी हुई थी।
मैं लगातर स्वाति भाभी के चेहरे को ही देखे जा रहा था.
मगर तभी ‘ओय्य्य … क्या कर रहा है … गिरायेगा क्या मुझे?” उसने मेरी तरफ देखते हुए अब फिर से कहा और मुझसे और भी जोरों से चिपक गयी।
मैंने भी अब तुरन्त ही उसकी जाँघों को छोड़कर अपने दोनों हाथों से उसके कूल्हों को थाम लिया जिससे मेरा लण्ड अब जड़ तक उसकी चुत में उतर गया।
मैं तो उसकी तरफ‌ देख रहा था, अब जैसे ही स्वाति भाभी की नजर मेरी नजर से‌ मिली, उसके चेहरे पर शर्मीली मुस्कान सी आ गयी। उसने एक बार तो मेरी नजर से नजर मिलाई, फिर अगले ही पल ‘क्या कर रहा है … बस अब … मुझे गिरायेगा क्या?’ स्वाति भाभी ने अपना मुंह दूसरी तरफ करके कहा साथ ही उसने अपने कूल्हों को हल्की जुम्बिश देकर मुझे आगे का भी रास्ता दिखा दिया.
अब इतना बेवकूफ तो मैं भी नहीं था जो इतना भी‌ ना समझ सकूँ।
हालांकि इस तरह से चुदाई करने का ये मेरा पहला अवसर था मगर अब आगे क्या करना है ये तो मुझे भी अच्छी तरह समझ आ गया था।
उसके दोनों कूल्हों को पकड़कर मैंने उसे अब धीरे धीरे ऊपर नीचे हिलाना शुरु कर दिया जिससे मेरा लण्ड अब उसकी चुत में अन्दर बाहर होने लगा और स्वाति भाभी के मुंह से ‘आह्ह … ईश्श्श् … ईश्श्स … आह्ह् … ईश्श्श …’ की हल्की हक्की सिसकारियां फूटनी शुरु हो गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#20
आनन्द से‌ स्वाति भाभी ने भी अब अपनी आँखें बन्द कर ली थी और अपनी गर्दन को पीछे की तरफ मोड़कर वो मुंह से हल्की हल्की सिसकारियां सी निकाल रही थी। सिसकारियां भरने के लिये उसका मुंह थोड़ा सा खुला हुआ था और उसके टमाटर से लाल लाल होंठ अपने आप ही खुल और बन्द हो रहे थे जो मुझे इतने कामुक और उत्तेजक लग रहा थे कि बस पूछो मत!
मेरा दिल तो कर रहा था कि अभी ही उसके रसीले होंठों को अपने मुंह में भर लूं … मगर उसने अपनी गर्दन नीचे की तरफ की हुई थी इसलिये उसके होंठ मेरे होंठों की पहुंच से दूर थे।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसके नितम्बों को पकड़ा हुआ था जिससे मेरे दोनों हाथ भी व्यस्त थे मगर फिर भी मैंने अपने प्यासे होंठों को अब उसकी दूधिया सफेद गोरी चिकनी गर्दन पर रख दिया और उसकी गर्दन पर से धीरे धीरे चूमते चाटते हुए उसकी ठोड़ी तक आ गया।
स्वाति भाभी के होंठ तो मेरे होंठों की पहुंच से दूर थे इसलिये मैंने अब उसकी ठोड़ी को ही पीना शुरु कर दिया.
मगर जैसे ही मैंने उसकी ठोड़ी को चूसना शुरु किया … स्वाति भाभी ने शायद मेरे दिल‌ की बात जान ली और तुरन्त ही अपनी गर्दन को सीधा करके उसने खुद ही मेरे होंठों से अपने होंठों को जोड़ दिया।
मैंने भी अब उसके होंठों को तुरन्त ही अपने मुंह में भर लिया और उन्हें जोरों से चूसना शुरु कर दिया।
अबकी बार स्वाति भाभी ने भी मेरा साथ दिया। उसने खुद ही मेरे ऊपर के एक होंठ को अपने मुंह में भर लिया और मेरे साथ साथ उसे जोरों से चूसने लगी। अब कुछ देर तो ऐसे हमारे होंठों की चुसाई चलती रही फिर धीरे धीरे हमारी जीभ ने भी एक दूसरे के मुंह में जाकर कुश्ती सी लड़ना शुरु कर दिया जिसमें भी स्वाति भाभी अब मेरा पूरा साथ देने‌ लगी।
मेरे आनन्द की अब कोई सीमा नहीं थी क्योंकि नीचे से मेरे लण्ड को स्वाति भाभी की चुत चूस रही थी,‌ ऊपर से भी मुझे उसके नर्म रसीले‌ होंठों और जीभ‌ का स्वाद मिलने लगा था जिससे आनन्द के वश अब अपने‌ आप ही मेरे हाथों की‌ हरकत तेज हो गयी।
मैंने स्वाति भाभी को अब थोड़ा जोरों से हिलाना‌ शुरु‌ कर दिया था जिससे उसकी‌ सिसकारियां भी अब और तेज हो गयी. मेरे साथ साथ वो भी अब धीरे धीरे उचक उचक‌कर अपनी चुत की मखमली दीवारों को मेरे लण्ड पर घिसने लगी।
स्वाति भाभी ने मेरी गर्दन में बांहें डाली ही हुई थी, उनके सहारे अब वो भी धीरे धीरे अपने कूल्हों को उचकाने लगी थी जिससे उसकी चुत की फांकें … फांकें क्या … उसकी पूरी की पूरी चुत ही मेरे लण्ड के पास की चमड़ी और मेरे झांटों पर रगड़ खाने लगी … जिसने मेरा आनन्द अब और भी दोगुना कर दिया।
भाभी की चुत की मखमली दीवारें तो मेरे लण्ड की मालिश कर ही रही थी, उसके उचक उचककर धक्के लगाने से अब उसकी चुत की मखमली फांकें भी मेरे लण्ड के आस पास की जगह की तसल्ली से मालिश करने लगी।
मैं तो‌ स्वाति भाभी को धीरे धीरे ही हिला‌ रहा था मगर स्वाति भाभी शायद कुछ ज्यादा ही जल्दी में थी क्योंकि उसकी गति अब अपने आप ही बढ़ती जा रही थी। मैं तो अपने चरम के आधे भी नहीं पहुंचा था मगर स्वाति भाभी को देखकर लग रहा था कि उसका चरम शायद अब करीब ही आ गया था।
स्वाति भाभी की इस जल्दी को देखकर मुझे अब ये डर लगने लगा था कि कहीं स्वाति भाभी ने जिस तरह मुझे अपनी चुत को चाटते चाटते बीच में ही हटा दिया था वैसे ही कहीं उसका काम हो जाने के बाद वो मुझे प्यासा ही ना छोड़ दे … इसलिये मैंने अब स्वाति भाभी को हिलाने की गति को थोड़ा कम कर दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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