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Adultery कामवासना की तृप्ति- एक शिक्षिका की
#1
कामवासना की तृप्ति- एक शिक्षिका की






जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
मेरा झुकाव शुरू से ही उम्रदराज़ स्त्रियों की ओर ज्यादा रहा है। कारण कोई भी रहा हो, जैसे उनका गदराया जिस्म, ब्लाउज या समीज़ के ऊपर से नुमाया उनके मोटे मोटे स्तन की घाटियाँ, उनकी हल्की चर्बीयुक्त क़मर, पेट पर सुशोभित नाभि, उभरी हुई मटकती गांड, उस पर उनकी सधी हुई चालढाल और आत्मविश्वास; एक एक अंग कमाल, हर रंग बेमिसाल।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#3
मुझे पूर्ण विश्वास है कि अभी तक मेरा परिचय ठाकुर साब ने दे दिया होगा। मेरी उम्र 44 वर्ष भले ही हो परंतु मन अभी भी 24 का ही है। यदि आप लोग मेरे बदन(फिगर) या लुक्स की तुलना करना चाहें तो मैं एक नाम लेना चाहूंगी-विद्या बालन। बस, उनसे थोड़ी सी लंबी होऊँगी।

इस साइट पर लिखी कहानियाँ मैं भी विगत कई वर्षों से पढ़ती आई हूँ। सुबह पतिदेव ही मुझे कॉलेज तक छोड़ते हैं और उसके बाद वो अपने आफिस चले जाते हैं। लेकिन शाम को मेरा लौटना पहले होता है इसलिए मैं ऑटो लेकर वापिस आ जाती हूँ।
अरे मैं तो भूल ही गयी, अपने पतिदेव से तो आपका परिचय ही नहीं करवाया। गोपनीयता की वजह से में उनका उल्लेख ज्यादा तो नहीं कर सकती लेकिन आप ये जान ही सकते हैं कि मेरे पतिदेव भनोट जी सरकारी मुलाजिम हैं। उम्र के 48 बसंत देख चुके, निहायती सभ्य, मिलनसार और अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार हैं।
27 वर्ष की अपनी आग उगलती जवानी से आज तक लगातार मेरी चूत की कामाग्नि शान्त करते चले आये हैं। तब से अब तक में बस फर्क ये है कि अब वो जवानी वाली आग उनका लण्ड उगल नहीं पाता लेकिन वो मुझे प्यार बहुत करते हैं और तन मन से मैं भी उन्हें।
हमारे दो बच्चे भी हैं। बड़ी वाली लड़की दिल्ली में पढ़ती है और छोटा लड़का तैयारी के लिए इसी वर्ष कोटा गया है। जब से लड़का कोटा गया है, तब से घर में अकेलापन सा महसूस होने लगा। मुझे थोड़ी स्वतंत्रता भी मिल गयी कि मैं वर्षों से दबी इच्छाओं को बाहर आने दूँ।
कॉलेज से आने के बाद मैं सीधा अन्तर्वासना साइट पर गर्मागर्म कहानियां पढ़ती; फिर चूत की गर्मी शांत करने के लिए जो भी लंबा मोटा मिलता उसे घुसेड़ लेती। इससे भी जब मेरी चूत की कुलबुलाहट न शांत होती तो रात में पतिदेव के लण्ड पर उछल उछल कर पलंग के पाए तक हिला देती.
लेकिन पतिदेव का एक बार वीर्य उगलते ही शिथिल पड़ जाता और पुनः मेरा सहारा बनती मेरी उंगलियां और किचन में रखे लंबे मोटे बैंगन।
इसी बीच मैंने ज्ञान ठाकुर जी की लिखी कहानी ‘दोस्त की भाभी ने की चूत की पेशकश’ को मैंने पढ़ा।
इसके पहले मैंने कभी किसी लेखक को मेल(मैसेज) नहीं किये थे। मन में जिज्ञासा सी उमड़ पड़ी की इतनी ज़बरदस्त चुदाई करने वाला कोई मेरे शहर यानि कि प्रयागराज की पावन धरती पर भी है।
अगले दिन सुबह उधर से प्रतिउत्तर आया हुआ था।
शुरुआती परिचय और एक दो दिन के हाय हेलो के बाद उसने सीधा पूछ लिया- आप चाहती क्या हैं?
मैं तो लिखना चाहती थी कि मुझे एक लंबा मोटा लण्ड चाहिए जो मेरी अतृप्त प्यास को बुझा सके लेकिन ऐसा यदि मैं लिखती तो मुझे सस्ती या सड़क छाप भी समझ जा सकता था। आखिर मैं एक अच्छे सोसाइटी और इज़्ज़तदार घराने की बहू हूँ।
बस अंत में इतना ही बोल पायी- आपकी कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी, क्या इसके सारे पात्र असली हैं?
“बहुत बहुत धन्यवाद! वैसे मैं एक नई कहानी लिखने के लिए नए पात्र की तलाश में हूँ और आप इसमें शामिल हो सकती हैं और आपका उत्तर भी मिल जाएगा.” ज्ञान ठाकुर ने जवाबी मेल भेजा।
“शामिल हो भी सकती हूं लेकिन सब कुछ मेरी मर्ज़ी से होगा.” मैंने भी फ़्लर्ट का जवाब फ़्लर्ट होकर दे दिया।
“आपकी मर्जी सर आँखों पर भनोट मैम!” ज्ञान ने आखिरी उत्तर लिख भेजा।
उस रात तो मैं सो न सकी। पतिदेव जी भी देर से आये और खाना खाकर सो गए। मैं अजीब पशोपेश में थी कि किसी अजनबी आदमी से दोस्ती ठीक रहेगी। और बात केवल दोस्ती की तो है नहीं, उससे कहीं ज्यादा की बात है।
मेरी इज़्ज़त, मेरी आबरू, मेरा परिवार, सब कुछ दांव पर होगा।
अगले ही पल मुझे मेरी चूत की भी याद आ गयी। कितने सालों से मेरी चूत की संतुष्टि से चुदाई नहीं हुई। मैं अपने पति के सूखे लण्ड से असंतुष्ट होकर कितना तड़पी हूँ। अपनी भरपूर जवानी में परिवार के लिए, बच्चों के लिए, पति के लिए कितना त्याग-तपस्या की है। क्या मैं अपनी कुछ वर्षों की शेष जवानी भी ऐसे ही गुज़ार दूंगी? अगले ही पल मेरा एक हाथ मेरी चूत पर पहुंचकर रगड़ने और सहलाने की क्रिया करने लगा और मैं अपनी विचारों की दुनिया में गोते लगाने लगी।
अब मेरे दिमाग ने सोचना बंद कर दिया और चूत ने सोचना शुरू कर दिया था।
दो दिन बाद हमने मिलने का प्लान बनाया। मैं हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहती थी इसलिए तय ये हुआ कि कॉलेज से छुट्टी के बाद मैं ऑटो नहीं लूंगी बल्कि ज्ञान जी मुझे घर छोड़ देंगे। छुट्टी के बाद मैंने ज्ञान जी को फ़ोन लगाया तो उसने बताया कि वह बस स्टॉप पर खड़ा है।
मैं मन ही मन उत्साहित होकर मानो उड़ते हुए बस स्टॉप तक पहुंची। सामने एक सफेद कार खड़ी थी। मैंने कन्फर्म करने के लिए फ़ोन लगाना चाहा कि तभी ज्ञान जी का मैसेज आया कि सफेद कार में आकर बैठ जायें।
मैं इधर उधर देखते हुए कार में बैठ गयी। ड्राइवर सीट बैठे एक मनमोहक, हैंडसम, जवान, 27-28 वर्ष के युवक ने हाथ मिलाने के लिए अपना दाहिना हाथ मेरे तरफ बढ़ा दिया- हेलो मैम, मैं ज्ञान।
“हेलो ज्ञान जी!” कहते हुए मैंने भी अपना हाथ बढ़ा दिया।
ज्ञान के मजबूत हाथों की पकड़ ने मेरा ध्यान उसके बदन पर ले गया जो कि पोलो टी शर्ट और नीली जीन्स में कसा हुआ था। मेरे मन में आया कि बदन गठीला और कसा हुआ है तो लण्ड का क्या हाल होगा. ऐसा सोचते ही मेरी चूत में सरसराहट सी मच गयी।
मैंने खुद को संभालते हुए नॉर्मल बातचीत शुरू की। बात करते करते मैं ध्यान दे रही थी कि ज्ञान कभी कभी सामने देखकर गाड़ी चला रहा था और कभी कभी मुझे मेरे बदन को भी निहार देता।
कॉलेज से मेरा घर 5-6 किमी ही है और जल्दी ही मेरा घर आ गया। ज्यादा बातचीत नहीं हो पाई थी इसलिए मेरा मन उससे छोड़ने का हो नहीं रहा था, दिल आ गया था मेरा इस बांके नौजवान पर।
मैंने अपने घर के सामने गाड़ी रुकवाई और ज्ञान को चाय पीने के बहाने अंदर चलने को कहा।
वो भी जैसे इसी बात का इंतज़ार ही कर रहा था। उसके बाद जब तक ज्ञान अपनी कार साइड लगाकर आया, तब तक मैंने पर्स से चाभी निकालकर मेन गेट खोला और उसे अंदर आने का इशारा किया।
ज्ञान अंदर आया और घर की तारीफ करते हुए सोफे पर विराजमान हो गया। मैं भी रसोई की तरफ बढ़ी और फ्रिज से पानी और कुछ बिस्किट वगैरह लेकर आयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
पानी वगैरह पीते हुए मैंने पूछ लिया- आप तो अपनी अन्तर्वासना कहानी के बिल्कुल विपरीत हैं?

ज्ञान थोड़ा सा हंसते हुए बोला- आपने क्या अनुमान लगाया था?
अब उल्टा प्रश्न मुझी से हो गया- नहीं, मेरा मतलब कि तुम ऐसी वैसी बात या हरकत …
ज्ञान मेरी बात को बीच में पूरा करते हुए बोला- नहीं कर रहा … है ना?
मैं- हां!
ज्ञान- मेरे कुछ नियम हैं, जिसके तहत ही मैं किसी स्त्री की चुदाई करता हूँ।
मैं- वो क्या हैं?
ज्ञान- सबसे पहले हम दोनों को एक एच.आई.वी टेस्ट कराना होगा, और दूसरा मेरा पारिश्रमिक आपको जो भी उचित लगे, केवल एक बार, देय होगा।
मैंने बहुत कुछ सोचकर हाँ कह दिया।
ज्ञान- आप तैयार हो जाएं, कल से आपके ज़िंदगी में तूफ़ान आने वाला है।
इतना कहकर ज्ञान उठा और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसने मुझे अपनी मजबूत बाँहों में जकड़ लिया। उसने अपना एक हाथ मेरे सिर के पीछे ले जाकर अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिया।
मुझे तो जैसे करेंट लगा हो, ज्ञान के बलिष्ठ शरीर में मैं पिघल सी गयी थी। मैं भी अपना हाथ उसकी पीठ पर सहलाते हुए उसके कसरती कसे हुए बदन को महसूस करने लगी। मेरे मुलायम से स्तन उसके पत्थर से मजबूत सीने में चिपट से गये।
फिर धीरे से उसने मेरे सिर से हाथ नीचे ले आया और मेरे होंठों को काटते हुए मेरे चूतड़ को कस के भींच दिया। उसके इस द्विघाती प्रहार से मैं दर्द और उत्तेजना से बिलबिला उठी।
इतना जैसे कम था कि उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर मेरी नर्म मुलायम जीभ से अठखेलियां करने लगा। मै मदहोशी से अपनी आँखें बंद करके उसकी एक एक क्रिया का आनन्द ले रही थी थी।
तंद्रा तो मेरी तब टूटी जब उसने मेरे कान में धीरे से कहा- आपके रूप को देखकर खुद को रोकना बहुत मुश्किल है।
इतना कहते हुए उसने मुझे सोफे पर वापिस धकेल दिया।
ऊपर- नीचे होती अपनी साँसों को संभालते हुए ज्ञान बोला- अब मुझे चलना चाहिए, कल मिलते हैं।
इससे पहले कि मैं अपनी ऊपर नीचे होती साँसों को संभालकर उठ पाती, ज्ञान दरवाज़े से बाहर निकल चुका था।
मैं उसी मुद्रा में बेसुध सी पड़ी रही और सोचने लगी कि इसी को शायद कहते हैं ‘हाथ तो आया पर मुँह को न लगा।’
लेकिन अब मैं भला कर भी क्या सकती थी।
आग तो भंयकर लग चुकी थी मेरी चूत में! मैं खुद को संभालते हुए उठी और सीधे फ्रिज से एक लंबा मोटा खीरा निकाल वहीं फर्श पर पसर गयी। अपनी साड़ी और पैंटी सरका कर खीरे को चूत में डाल लिया।
चूत मेरी पहले से ही पानी पानी हो रही थी। ठंडा ठंडा खीरा मेरी चूत में सट्ट से अंदर घुस गया। मैं लगभग चिल्लाती हुई खीरे को ज्ञान का लण्ड समझ कर अंदर बाहर करने लगी।
कुछ देर की मशक्कत के बाद मैं अपने चरम पर पहुंच गयी और झड़ने के बाद सोचने लगी कि क्या आज ज्ञान ने भी मेरे नाम की मुठ मारी होगी।
फिर वही सब कुछ नार्मल हुआ। पतिदेव आफिस से आये, डिनर के बाद मेरी 2-3 मिनट चुदाई की और सो गए।
लेकिन मुझे तो बस कल का इंतज़ार था। मुझे ज्ञान की कही तूफान वाली बात और आज का 5 मिनट का ट्रेलर मेरे दिलोदिमाग खासकर मेरी चूत में हिलौरें मार रहे थे।
अगले दिन कॉलेज के बाद हम दोनों फिर उसी जगह मिले और सीधे एक पैथोलॉजी गए। वहां से एच.आई.वी टेस्ट के लिए सैंपल देकर वापिस घर की तरफ चल दिये। मैं रास्ते में यही सोचने लगी कि आज इसे रोकू की न रोकूँ अपने घर क्योंकि एच.आई.वी टेस्ट की रिपोर्ट तो कल आएगी और ज्ञान मुझे तब तक चोदेगा भी नहीं। मुझे कल की तरह फिर से तड़पना पड़ेगा।
इसी उधेड़बुन में घर कब आ गया पता ही नहीं चला। कार से उतरकर मैं गेट खोलने लगी तब तक मेरे पीछे ज्ञान भी आकर खड़ा हो चुका था।
मैंने ध्यान दिया कि उसके हाथ में एक बैग था। सोफे पर बैठते हुए मैंने ज्ञान से बैग के बारे में पूछा।
बैग से एक तेल की बोटल निकालते हुए ज्ञान ने कहा- आज से मेरी सेवाएं शुरू हो चुकी हैं। यह एक ख़ास मसाज ऑयल है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#5
मुझे समझते देर न लगी कि ये किस तरह का मसाज ऑयल है और किस प्रकार के मसाज की बात कर रहा था लेकिन थोड़ा नादान बनते हुए मैं पूछ पड़ी- इसमे मुझे क्या करना होगा?

ज्ञान- सबसे पहले ये सफेद चादर लीजिये और जिस बेड पर लेटेंगी उस पर लगा दीजिये।
मैंने ज्ञान के कहे अनुसार अच्छे से चादर अपने ही बेडरुम में लगा दी।
ज्ञान- अब आप चेंज कर लें और टॉवल लगाकर बेड पर पेट के बल लेट जाएं।
इतना सुनते ही मैं सबसे पहले वाशरूम में घुस गई। साड़ी के साथ ही पेटीकोट और ब्लाउज को निकाल फेंका। वस्त्र के नाम पर इस वक़्त मेरे बदन पर ब्रा और पैंटी ही बची थी।
खुद को एक नज़र शीशे में निहारा तो मन मे रोमांच की तरंगें उठने लगी। एक पराया मर्द बांका नौजवान मुझे इस तरह नंगी देखेगा। और केवल देखेगा तो है नहीं बल्कि एक एक करके अपने बलिष्ठ हाथों से मेरे गदराए अंगों को सहलायेगा, टटोलेगा, मसलेगा।
इससे ज्यादा मैं आगे सोचती, मैंने ब्रा के साथ पैंटी भी उतार फेंकी। और यहां मैं अपने मर्द मित्रों को एक बात आपको बता दूँ कि औरतें जब दिन भर की भागदौड़ के बाद अपनी ब्रा उतारती हैं तो जो रिलैक्सेशन वाली फीलिंग आती है ना कि पूछिये मत।
मेरे भी दोनों उरोज उछल कर फुदकने लगे।
मैंने ऊपर टॉवल लपेटा और बाथरूम से निकल बैडरूम मे आ गयी जहां ज्ञान भी अपने कपड़े निकालकार केवल बॉक्सर पहने बेड के सिरहाने बैठा था।
मुझे इस रूप मे देखकर उसकी आँखों में एक अलग सी चमक आ गयी- आप गज़ब की खूबसूरत हैं सिमरन मैम। यहां आकर पेट के बल लेट जाएं।
मैं टॉवल लपेटे हुए बिस्तर पर पेट के बल लेट गयी और ज्ञान ने अपना काम शुरू कर दिया। सबसे पहले उसने मेरे पैरों पर मालिश शुरू करते हुए ऊपर की ओर बढ़ने लगा। मेरे घुटने तक आने के बाद उसने मेरे कूल्हे को सहारा देते हए धीरे से मेरे बदन पर लिपटा एकमात्र वस्त्र तौलिये को निकाल दिया। मेरे 36 के चूतड़ उसकी आंखों के सामने नंगे हो गए।
उसने देर न करते हुए मेरे मोटे चूतड़ों पर तेल लगाना शुरू कर दिया। मेरी गांड पर तेल लगाते हुए ज्ञान ने बड़ी कस के मेरे दोनों चूतड़ों को दबा दिया।
‘उफ्फ’ करके मैं बड़ी जोर से कराह उठी। मैं एकदम गर्म हो चुकी थी।
इतना जैसे कम था कि उसने हाथ में तेल लेकर मेरे चूतड़ों के बीच मेरी चूत पर हाथ फेर दिया। दो तीन बार मेरी चूत पर हाथ फेरने के बाद उसने मेरी गांड के छेद से छेड़खानी शुरू कर दी। तेल से डूबी हुई मध्यमा उंगली को उसने एकाएक मेरी छोटी सी गांड के छेद में घुसेड़ दी।
मेरी गांड में मुझे मीठा मीठा दर्द उठ पड़ा। मैं अपने चेहरे को मालिश सुख महसूस करते हुए बिस्तर में गड़ाए पड़ी थी। ज्ञान ने अब तक मेरी पीठ पर तेल लगाना शुरू कर दिया। उसके कसरती कठोर हाथ की ताकत से मेरी नाज़ुक पीठ और कंधों की मस्त मालिश कराते हुए मैं सुख के उस संसार में पहुंच चुकी थी जहाँ से चाह कर भी लौटना नामुमकिन था।
इतने में उसने मेरे कंधे और कमर से हाथ लगाते हुए मुझे दूसरी ओर पलट दिया। अब मेरी नंगी, साफ, बिना झांटों वाली चूत ज्ञान के आगे पसर कर उसको ललचाने लगी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
प ही बताइये, मैं मोटी गुदाज गांड की मालकिन, वजनदार वक्षों का बोझ उठाते उठाते कब तक प्यासी रहती. मुझे किसी ऐसे लंड की तलाश थी जो मेरे मोटे और रसीले वक्षों को निचोड़ दे और मेरी प्यासी चूत को अपने लिंग के रस का अमृत पिला दे.

ज्ञान जी को मैंने जब पहले दिन कार में पीले रंग के पोलो टीशर्ट और नीली जीन्स में देखा तो उसी क्षण चूत में सरसराहट मच गयी थी. घर आकर जब ज्ञान ने मेरे होंठों से अपने होंठों की गर्मी का आदान प्रदान किया तो उस दिन मुझे चूत में खीरा लेना पड़ गया था.
मैं ज्ञान के लंड से चुदने के लिए बेसब्र हो गयी थी. अगले दिन जब ज्ञान जी मेरे घर आये तो उन्होंने मुझे तेल की शीशी थमा दी.
सब कुछ समझते हुए भी मैंने उनसे पूछ लिया- शीशी किसलिए?
इसके उत्तर में उन्होंने मुझे बेड पर सिर्फ तौलिया में लेटने के लिए कहा.
बाथरूम में जाकर मैंने साड़ी और पेटीकोट उतार फेंका और ब्रा-पैंटी से भी आजाद होकर तौलिया लपेट कर बाहर आई.
टॉवल लपेटे हुए मैं बिस्तर पर पेट के बल लेट गयी और ज्ञान ने अपना काम शुरू कर दिया। पैरों की मालिश के बाद ज्ञान तौलिया को हटा दिया और मेरे 36 के नंगे चूतड़ों को मसलना शुरू कर दिया. गर्म होकर मैं करहाने लगी और इसी बीच ज्ञान की मध्यमा उंगली मेरी गांड के छेद में चली गयी.
अब आगे:
बिस्तर में मुंह गड़ाए गालों को चादर से रगड़ते हुए मैं गांड में उंगली का आनंद ले ही रही थी कि ज्ञान ने मेरी पीठ का रुख कर लिया. उसके कसरती हाथ मेरे जिस्म के रोम रोम को उत्तेजित कर रहे थे.
पीठ पर मालिश करवाते हुए मेरी चूत से आनंद के आंसू बाहर आने ही वाले थे कि ज्ञान ने मुझे पलट कर सीधी कर लिया और मेरी नंगी, साफ, बिना झांटों वाली चूत ज्ञान के आगे पसर कर उसको ललचाने लगी.
मैंने ज्ञान के चेहरे को देखा तो उसकी आंखें मेरी चूत के दर्शन करके जैसे धन्य हो रही थीं. कामवासना से ललचाई उसकी आंखों के साथ उसके होंठ भी लार टपका रहे थे. एक बांका हैंडसम मर्द जो एक कसरती मजबूत बदन का मालिक हो, उसके सामने अपने नंगे जिस्म का प्रदर्शन करके उसको तड़पाने का भी अलग ही रोमांच मैंने उस दिन अनुभव किया.
ज्ञान ने कुछ पल तक मेरी नंगी चूत को निहारा और फिर मेरी आंखों की ओर देखा तो मैंने पलकें नीचें कर लीं. फिर उसने अपनी हथेली पर तेल लिया और मेरे मोटे मोटे उरोजों पर अपने चिकने हाथ रख दिये.
उसके सख्त खुरदरे से हाथ मेरे कोमल वक्षों पर आकर उनको सहलाने लगे. चूचियों को अपने हाथों से गोलाकार दिशा में मालिश देते हुए उसके हाथ मेरी वासना की आग में घी डालने लगे. चूत की हालत हर पल बिगड़ने लगी.
कुछ पल तक मेरे वक्षों को मसाज देने के बाद उसने अपने मजबूत हाथों से मेरी जांघों को मसाज देना शुरू कर दिया. मैं भी टांगें फैलाये हुए जैसे उसको अपने ऊपर चढ़ने का आमंत्रण दे रही थी. मगर उसको भी मुझे तड़पाने में ज्यादा आनंद मिल रहा था.
उसके हाथों के अंगूठे जब मेरी चूत के इर्द गिर्द आकर रगड़ दे रहे थे तो मन कर रहा था उसके कपड़ों को फाड़ कर उसे नंगा कर लूं और उसके गठीले मजबूत जिस्म को बेतहाशा चूमने लगूं.
अपनी चिकनी मजबूत हथली से ज्ञान ने मेरी चूत पर सहला दिया. मैं तड़प गयी और उसकी और लपकी. मगर ज्ञान एकदम से पीछे हट लिये.
मैंने रोषपूर्ण, कुंठित दृष्टि से ज्ञान की ओर देखा तो उन्होंने मुझे इस हालत में अधूरा छोड़ने के कारण की ढाल को पहले से तैयार कर लिया था.
मेरे प्रश्नवाचक नैनों के तीर उनके मन के किले को भेद ही नहीं पाये.
इससे पहले मैं अपना गुस्सा दिखाती उन्होंने कह दिया- पहले रिपोर्ट आने दीजिये, उसके बाद आपकी तसल्ली बख्श चुदाई का रास्ता साफ हो जायेगा. तब तक के लिए थोड़ा सा इंतजार और कीजिये.
एच.आई.वी. रिपोर्ट का सवाल सामने आया तो मेरे पास कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं था. मन मसोस कर रह गयी. न जबरदस्ती कर सकती थी और न ही वासना की आग में जल रहे अपने जिस्म के अंगों पर छिड़कने के लिए मर्दन का पानी ही मांग सकती थी.
ज्ञान जी मुझे अधूरा छोड़ कर चले गये. मेरा मन खार खा गया. सोच लिया कि आज के बाद इनसे बात ही न करूंगी.
दोस्तो, कोई औरत जब किसी बांके जवान मर्द के नीचे खुद ही अपने जिस्म को रगड़वाने के लिए तड़प रही होती है तो ऐसी स्थिति में किसी का रूखा व्यवहार बहुत अखरता है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
दो दिन तक मैंने ज्ञान जी को फोन ही नहीं किया. रात में पति के लंड से चुदने के बाद ध्यान तो ज्ञान के लंड से चुदाई करके प्यास को शांत करवाने पर ही जाता था लेकिन गुस्सा निकालने के लिए मैंने उनको संपर्क ही नहीं किया. ज्ञान जी भी तीन दिन तक खामोश रहे.

चौथे दिन मैं दोपहरी में कॉलेज आने के बाद नहाकर आई और मैक्सी पहन कर बेड पर आराम करने लगी. थकान के मारे जल्दी ही आंख लग गयी. मेरी नींद घर के दरवाजे की बेल ने खोली.
आलस में उठ कर दरवाजे तक गयी और दरवाजा खोला तो सामने ज्ञान जी एक कागज का लिफाफा लिये खड़े हुए थे. एक बार तो मन किया कि दरवाजे को वापस बंद कर लूं लेकिन ज्ञान की जीन्स में कसी उसकी सुडौल मांसल जांघों पर नजर गयी तो मन बहक गया. सोचा कि आज तो चुद कर ही रहूंगी.
मैंने कहा- अंदर आ जाइये, बाहर क्यों खड़े हुए हैं?
मेरे कहने पर ज्ञान अंदर आये और आकर सोफे पर बैठ गये. मैं किचन से पानी लेकर आई और उनको पीने के लिए दिया.
पानी पीते हुए उन्होंने रिपोर्ट वाला लिफाफा मेरी ओर बढ़ा दिया. मैंने लिफाफा खोल कर देखा.
एच.आई.वी. रिपोर्ट में निगेटिव आया हुआ था. मैंने ज्ञानी की ओर देखा.
वो मेरी ओर ललचाई नजरों से देख रहे थे. उनकी नजर मेरी नाइटी को भेद कर मेरे चूचों का नाप ले रही थी.
मैंने भी सोच लिया था कि उस दिन का बदला आज ठीक से निकालूंगी.
मैंने पूछा- चाय लेंगे या कॉफी?
वो बोले- दूध!
मैंने पूछा- किसका?
उन्होंने मेरे वक्षों को घूरते हुए कहा- जो भी आपके पास हो.
मुंह बना कर मैं अंदर चली गयी. उनको भी थोड़ा अजीब सा लगा. पांच मिनट के बाद मैं चाय बना कर वापस आई तो वो मैगजीन पढ़ रहे थे.
मैंने चाय की ट्रे टेबल रखते हुए कहा- आप तो भूल ही गये थे शायद मुझे?
वो बोले- नहीं मैडम, रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहा था. रिपोर्ट के बिना तो आप पर हक नहीं बनता था. सेफ्टी दोनों के लिए ही जरूरी है.
मुझे ज्ञान जी का ये बर्ताव अच्छा लगा. उन्होंने सिर्फ सेक्स की पूर्ति को तरजीह नहीं दी बल्कि वो सामने वाले का ख्याल रखना भी खूब जानते थे.
चाय का कप अपने होंठों से लगाते हुए मैंने ज्ञान की जांघ पर हाथ रख लिया.
चाय को कप से खींचते हुए उनके होंठ भी मुस्करा दिये. मगर नीचे जीन्स की पैंट में उनके लिंग ने भी अंगड़ाई लेकर ये जता दिया कि औरत के कोमल हाथों में क्या जादू होता है.
इससे पहले की मेरा हाथ उनके लिंग पर जाता उन्होंने पूछ लिया- आपके पति घर पर तो नहीं हैं?
मैंने कहा- अगर होते, तब भी मैं बेशर्मों की तरह गैर मर्द की बांहों में जाने से हिचकती नहीं.
वो बोले- अच्छा जी, इतना पसंद करने लगी हैं क्या आप हमें?
ज्ञान जी की पैंट में आकार ले चुके लंड पर मैंने हाथ से सहलाते हुए कहा- आप ही बेरुखे से हो रहे थे, मैं तो पहले दिन ही चुदने के लिए तैयार थी.
इतने में उन्होंने अपने कप की चाय को खत्म किया और मुझे अपनी ओर खींच कर अपनी गोद में लिटा लिया. वो मेरी आंखों में देखने लगे और उनकी नजर मुझे अंदर तक घायल करने लगी.
दोनों के होंठों को मिलने में देर न लगी. उनके गर्म गर्म होंठों से निकल रही रसीली लार का स्वाद मैं भी अपने मुंह में लेने लगी. इतने सालों में मेरे पति ने कभी मुझे इतने जोश में किस नहीं किया था.
अपनी पीठ पर मैं ज्ञान का लंड चुभता हुआ महसूस करने लगी. मेरे होंठों को चूसने के बाद उन्होंने मेरी मैक्सी में दिख रही मेरी वक्षरेखा पर अपने होंठों को रख दिया. अपने होंठों को मेरी चूचियों की वक्षरेखा पर रगड़ते हुए वो उनको नाक घुसा कर सूंघ रहे थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
मैंने भी उनके सिर को अपने सीने में दबा लिया और उनके बालों में हाथ से सहलाने लगी. उनका एक हाथ नीचे से मेरी मैक्सी में घुस कर मेरी जांघों को सहलाता हुआ मेरी चूत को टटोलता हुआ मेरी पैंटी तक आ पहुंचा था.

जल्दी ही उनकी उंगलियां पैंटी के ऊपर से ही मेरी चूत को छेड़ने लगीं. मैं भी एक्टिव मोड में आ गयी और उनकी जांघों की ओर घूम कर अपने होंठों को उनकी जांघों के बीच में तन चुके लंड पर रख दिया.
उनका लंड पूरे जोश में आ चुका था. मैं भी कई दिन से उनके लंड को अपने होंठों से छूने का इंतजार कर रही थी लेकिन अपनी चूत को सहला कर ही सांत्वना दे रही थी. अब वो पल जब मेरे करीब था तो मैंने भी जोश में आकर ज्ञान के लंड पर अपने होंठों को फिराना शुरू कर दिया.
ज्ञान का लंड मेरे होंठों के छूने से और ज्यादा कड़ा होता चला गया. मैंने उनकी पैंट की जिप को खोल कर अंदर हाथ दिया और उनके लंड को पकड़ लिया. आह्ह … उस हैंडसम जवान मर्द का लंड बहुत ही गर्म था. इतने सालों के बाद मुझे ऐसा लंड छूने का मौका मिला था.
मैंने उनकी पैंट को ऊपर से खोल दिया और नीचे खींचने की कोशिश की. इसी बीच उन्होंने मेरी मैक्सी को ऊपर करके मेरी पैंटी को खींच दिया और मेरी गांड को नंगी करके दबाने लगे.
उनके हाथ मेरी चूत को सहलाने लगी. मैं मदहोश सी होने लगी. मेरा मन उस पराये मर्द का लंड चूसने के लिए कर रहा था. ज्ञान ने मुझे उठाया और मेरी मैक्सी को निकलवा दिया. फिर मेरी ब्रा के ऊपर से मेरी 36 की चूचियों को जोर से दबाया और फिर पीछे हाथ ले जाकर ब्रा को खोल दिया.
ब्रा की कैद से आजाद होते ही चूचियां उछल कर बाहर आ गयीं. ज्ञान ने अपने दोनों हाथों में एक एक चूची को पकड़ लिया और जोर जोर से दबाने लगे. उसके सख्त हाथ मेरी चूचियों में अलग ही उन्माद पैदा करने लगे.
मैंने भी उनके अंडरवियर के ऊपर से उनके लंड को सहलाना जारी रखा. इसी बीच मैंने उनकी टीशर्ट निकलवा दी. उनकी बनियान निकलवा कर उनकी गर्दन को चूमने लगी. कभी होंठों पर चूमती तो कभी गालों पर. मेरी वासना बहुत दिनों से ऐसे ही किसी मर्द के लिए मचल रही थी.
ज्ञान को मैंने नीचे लिटा लिया और उनकी पैंट को खोल कर नीचे खींच दिया. उनके अंडरवियर में उनका मोटा सा लंड एकदम अकड़ा हुआ था. बिना वक्त गंवाए मैंने अंडरवियर को नीचे कर दिया और उसके लम्बे मोटे लंड को मुंह में भर कर चूसने लगी. आह्ह … बहुत दिनों के बाद ऐसा रसीला लंड चूसने का मौका मिला था.
उसके लंड से जो रस निकल रहा था ऐसा स्वाद मैंने इससे पहले कभी नहीं लिया था. मेरे पति का लंड तो उनके लंड के सामने कुछ भी नहीं था. मैं जोर जोर से लंड को चूसने लगी. मगर तभी ज्ञान ने 69 की पोजीशन ले ली और उनका मुंह मेरी चूत पर जा लगा.
मेरी चूत में उनकी जीभ गयी तो मैं और तेजी से लंड को चूसने लगी. ज्ञान भी मेरी चूत का रस अपने मुंह में खींचने लगे. पांच मिनट तक दोनों ने एक दूसरे के यौनांगों को खूब चूसा और चाटा.
जब रहा न गया तो मैंने कहा- बस कीजिये, अब डाल भी दीजिये.
ज्ञान भी चुदाई के पूरी तरह से तैयार थे. उन्होंने मुझे उठाया और सोफे के पीछे ले जाकर खड़ी होने के लिए कहा.
मेरी एक टांग को उठाकर उन्होंने मेरी चूत को पीछे चाटना शुरू कर दिया. आह्हह … ओह्ह … ऊईई … सस्स … आई मां … आह्ह … करके मेरे मुंह से कामरूपी सीत्कार फूट पड़े.
अब लंड लेने के लिए मेरी चूत एक पल का इंतजार नहीं सहन कर सकती थी. ऐसा लग रहा था कि अगर लंड नहीं मिला तो कयामत हो जायेगी. मैंने ज्ञान से मिन्नतें करना शुरू कर दिया- प्लीज, चोद दीजिये. आह्ह … चोद दीजिये.
वो उठे और मेरी एक टांग को सोफे पर रख कर अपने लंड को पीछे से मेरी चूत पर सटा दिया. लंड का अहसास चूत पर हुआ तो मुझे मजा सा आया. मैंने ज्ञान को पीछे से पकड़ कर अपनी खींचना चाहा. मगर वो लंड को मेरी चूत पर रगड़ रहे थे.
मैं उत्तेजना में बेहोश सी होने लगी. तभी उन्होंने एक धक्का मारा और मेरे मुंह से आह्ह … करके हल्की चीख बाहर आ गयी. उस बांके जवान मर्द के लंड का सुपाड़ा मेरी चिकनी चूत में चला गया था.
तभी मैंने चूत में दूसरा झटका महसूस किया और इस झटके के साथ ही चूत में लंड जाने का आनंद मुझे मिलने लगा. मेरी प्यासी चूत और ज्यादा चुदासी हो गयी. मेरी हालत को देख कर ज्ञान ने मेरी चूत में एक तीसरा धक्का भी मारा और उनके झांटों तक लंड मेरी चूत में घुस गया.
उन्होंने मेरी चूचियों को भींच कर मुझे जकड़ लिया और नीचे से अपनी गांड को आगे पीछे चलाने लगे. मेरी चूत की चुदाई शुरू हो गयी. मुझे मजा आने लगा.
हम दोनों के मुंह आह्ह … ओह्ह … आह्ह … याह … उफ्फ … आह्ह … अम्म … ओह्ह … करके कामुक आवाजें आने लगीं. बहुत दिनों के बाद चूत ने इतना आनंद महसूस किया था. जैसी कहानियां मैंने उनकी पढी थीं उनसे कहीं ज्यादा मजा चुदाई का मुझे वो दे रहे थे.
पांच मिनट तक भी मैं लंड को संभाल नहीं पाई और मेरी चूत का पानी निकल गया. पानी निकलते ही पूरे हॉल में पच-पच की आवाज होने लगी मगर ज्ञान किसी इंजन की तरह मेरी चूत में लंड को चलाते रहे.
दस मिनट में मैं दो बार झड़ गयी. मेरी वासना तृप्त हो गयी थी और अब चूत में दर्द होने लगा था क्योंकि ज्ञान के लंड के धक्के बहुत ज्यादा तेज थे. फिर भी मजा आ रहा था.
20-25 मिनट तक पराये मर्द से चूत चुदवा कर मेरी चूत को संपूर्ण आनंद की प्राप्ति का अनुभव हुआ. बहुत दिनों के बाद मुझे चुदाई का ऐसा मजा मिला था. मेरी कामवासना पूरी तरह से तृप्त हो गयी थी.
ज्ञान अभी भी मेरी चूत को रौंद रहे थे. फिर उनके धक्के इतने तेज हो गये कि चूत में लंड का प्रेशर बर्दाश्त के बाहर हो गया. उनके दमदार लंड से चुद कर चूत का बैंड बज गया. फिर एकाएक उनकी स्पीड धीमी हो गयी और उनके लंड ने मेरी चूत को अपने गर्म गर्म माल से भर दिया.
कुछ देर थक कर हम सोफे पर पड़े रहे. उसके बाद मिशनरी पोज में चुदाई का मजा भी हमने लिया. ज्ञान का लंड लेकर वाकई मेरी बरसों की प्यास बुझ गयी थी. ज्ञान को भी मेरी चूत चोद कर पूरी संतुष्टि मिली.
उसके बाद मैंने कई बार पति की गैरमौजूदगी में उनसे अपनी चूत की सर्विस करवाई. उनके साथ ये रिश्ता काफी मजेदार रहा. एक लेखक के लंड में इतनी जान और जोश हो सकता है मैंने कभी कल्पना नहीं की थी. मैं उनसे चूत चुदवा कर उनकी दीवानी सी हो गयी हूं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#9
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#10
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#11
(23-05-2022, 01:58 PM)neerathemall Wrote: Smile Smile Smile Smile

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#12
(23-05-2022, 01:58 PM)neerathemall Wrote: Shy Smile Shy Smile Smile

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#13
चुदक्कड़ टीचर ने पढ़ाए चुदाई के पाठ




































जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#14
(23-05-2022, 02:00 PM)neerathemall Wrote:
चुदक्कड़ टीचर ने पढ़ाए चुदाई के पाठ





































मैं ग्यारहवीं क्लास पास करके बारहवीं में आया था. बाली मैडम हमारी क्लास टीचर थी. क्लास टीचर होने के साथ साथ वह सीनियर क्लासों को इंग्लिश पढ़ाती थी. बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी. कॉलेज में कुल छह महिला टीचर थीं परन्तु बाली मैडम के बेपनाह हुस्न के क्या कहने! मैडम अपार सौंदर्य की मालकिन तो थी हीं, उनका व्यक्तित्व भी अत्यंत भव्य और प्रभावशाली था. कपड़ों जूतों का चुनाव, चलने फिरने उठने बैठने का अंदाज़, बातचीत की शालीनता इत्यादि से लगता था कि किसी रियासत की महारानी आ गयी हैं. उनकी हर एक अदा अनूठी थी, मन को मोह लेने वाली थी. उनके संपर्क में आकर यह तो संभव था ही नहीं कि आप उनका दिल से अपने आप ही सम्मान करना शुरू न कर दें.

मैडम शादीशुदा थी और एक बहुत ही रईस घर में ब्याही थी. उसके ससुर काफी ज़मीन जायदाद के मालिक थे जिसके मैनजमेंट में ही समय लगाया करते थे. मैडम के पति एक मैरीन इंजीनियर थे और साल में एक बार तीन या चार महीने के लिए आया करते थे. मैडम को नौकरी की कोई ज़रूरत नहीं थी किन्तु वह सिर्फ टाइम पास करने के लिए कॉलेज में नौकरी करती थी. इसके सिवा उनको पढ़ाने का शौक भी था. उनके घर में एक एम्बेसडर कार और ड्राइवर थे. कार रोज़ मैडम को कॉलेज छोड़ने आती थी और छुट्टी के टाइम वापिस घर ले जाने आया करती थी.
सब लड़के मैडम का नाम लेकर खूब मुट्ठ मारा करते थे. मैडम कॉलेज के स्पोर्ट्स क्लब की इंचार्ज भी थीं. हमारा कॉलेज बॉक्सिंग में काफी नामी था. पूरे प्रदेश में मशहूर था. मैं भी एक बहुत अच्छा मुक्केबाज़ था. चैंपियन तो नहीं बना लेकिन नंबर दो तो आ ही जाता था. अच्छा हट्टा कट्टा, ऊंचा लम्बा, मज़बूत कद काठी का लड़का था और शायद हैंडसम भी था.
वैसे मैं, जब से लंड से वीर्य निकलना शुरू हुआ, तभी से बहुत ठरकी था. आस पास की सभी लड़कियां तो लड़कियां, औरतों पर भी नज़र लगाए रखता था लेकिन किसी से इश्क़ विश्क़ की पहल करने से डरता था. हाँ दो लौंडे थे, बड़े चिकने चुपड़े से, लड़कियों की तरह मुलायम से. दाढ़ी मूंछ भी नहीं आयी थी. अक्सर उनकी गांड मारा करता था. कभी गांड मारने का मूड न हो तो उनसे मुट्ठ मरवा लिया करता था. हालांकि लंड चूसने को कमीने राज़ी नहीं हुए थे.
एक दिन मैं एक खाली पीरियड में लाइब्रेरी में पढ़ाई करने का नाटक करते हुए ऊँघता हुआ टाइम पास कर रहा था, तो कॉलेज का सबसे सीनियर चपरासी रामजी लाल मुझे ढूंढता हुआ आया- राजे … तुम्हें बाली मैडम ने बुलाया है … स्टाफ रूम में … चलो फटाफट!
रामजी लाल को सब लोग ताऊ कहा करते थे. न जाने कब किसने यह नाम उनको दिया था और तब से ही यह नाम उनके साथ चिपक गया था. वैसे शकल सूरत और हाव भाव से लगते भी ताऊ ही थे.
“ताऊ … क्या हुआ … क्यों बुला रही हैं मैडम?” मैंने पूछा.
“मेरे को क्या मालूम … मैडम बड़े बिगड़े हुए मूड में हैं … तुमने कोई न कोई शैतानी की होगी … तुम हो ही एक नंबर के शैतान लड़के.”
“अरे नहीं ताऊ … क्यों मुझे बदनाम करते हो … कोई शैतानी नहीं की मैंने!”
मैं स्टाफ रूम में चला गया जहाँ मैडम बैठी हुई थी. स्टाफ रूम एक काफी बड़ा कमरा था जिसमें बीस बाईस कुर्सियां एक बड़ी सी अंडाकार टेबल के सब तरफ लगी हुई थी. यह कमरा स्टाफ रूम होने के साथ साथ प्रिंसिपल द्वारा टीचरों की मीटिंग लेने के काम भी आया करता था. एक दीवार पर एक बड़ी सी अलमारी थी जिसमें हर टीचर के लिए एक खाना था, जिसमें टीचर अपना लंच बॉक्स या और कुछ सामान रखते थे. दूसरी दीवार के साथ आठ दस आराम कुर्सियां लगी हुई थीं. तीसरी दीवार में दो दरवाज़े थे जिसमें एक मरदाना बाथरूम के लिए और दूसरा ज़नाना बाथरूम में जाने के लिए था. चौथी दीवार में कमरे में घुसने के लिए दरवाज़ा था.
इस कमरे में टीचर लोग खाली पीरियड में सुस्ताने, इम्तेहान की कापियां चेक करने, विद्यार्थियों का होम वर्क जांचने और लंच इत्यादि के लिए इस्तेमाल करते थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#15
डरता हुआ मैं स्टाफ रूम में जा पहुंचा. वास्तव में मैडम उखड़े उखड़े मूड में लगती थी. लेकिन उनकी खूबसूरती हर मूड में उनको बेहद दिलकश बनाये रखती थी. 

“जी मैडम … अपने बुलाया था?”
“हाँ राजे … कुछ काम था तुम्हारे लिए … आज मेरा ड्राइवर नहीं है तो मुझे रिक्शा से घर जाऊंगी … लेकिन समस्या यह है कि इतनी सारी कापियां चेक करने के लिए ले जानी थीं … मुझे अकेले रिक्शा में इनको उठा कर ले जाने में बहुत दिक्कत होगी … मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे साथ रिक्शा में चलो. ये कापियां ले चलने में मेरी मदद करो. तुम्हारा घर तो पास में ही है इसलिए सोचा कि यह काम तुम्हें ही दे दूँ.” मैडम के सामने टेबल पर एक मोटा सा करीब चालीस पचास कापियों का बंडल पड़ा था.
मैंने कहा- मैडम आप घर जाइये … मैं यह बंडल अपनी साइकिल पर आपके घर पर छोड़ दूंगा … आप समय बता दीजिये कि आप कब घर पर मिलेंगी?
“ठीक है राजे … तुम तीन बजे यहाँ से यह कापियां ले जाना … मैं साढ़े तीन तक घर पहुँच जाऊंगी. तुम चार बजे तक घर पर इनको पहुंचा देना.”
“यस मैडम!’ कह कर मैं स्टाफ रूम से निकल कर क्लास में चला गया. खाली पीरियड ख़त्म होने वाला था. 
तीन बजे कॉलेज की छुट्टी हुई तो मैं सीधे स्टाफ रूम में मैडम से कापियों वाला बंडल ले आया और उसको अपने साथ घर ले गया. घर कॉलेज से नज़दीक ही था. साइकिल से दस बारह मिनट का रास्ता था. मैडम का घर भी उसी कॉलोनी में था जहाँ मैं रहता था. यही कोई एक डेढ़ किलोमीटर दूर.
जैसा मैडम ने कहा था मैं ठीक चार बजे उनके मकान पर कापियों का गट्ठर लेकर पहुँच गया. बहुत बड़ा आलीशान बंगला था. हज़ार गज़ के प्लाट में बना हुआ. आगे बहुत बड़ा लॉन था जिसके बगल में गेराज को जाने वाला रास्ता था और घर में प्रवेश के लिए बरामदा भी था.
मैडम घर पहुँच चुकी थी और बरामदे में एक बेंत की आराम कुर्सी पर बैठी थी. मुझे देखकर उठ कर खड़ी हो गयी और घर में जाने का मेन गेट खोल के मुझे भीतर आने का इशारा किया. अंदर गए तो एक गलियारा था जिसके दोनों तरफ अलग अलग कमरों में प्रवेश करने के द्वार थे. मैडम के पीछे पीछे मैं ड्राइंग रूम में चला गया और कापियों वाला गट्ठर एक टेबल पर रख दिया.
जैसे ही मैं जाने को हुआ तो मैडम ने कहा- थैंक यू राजे … रुको थोड़ा … मैं तुम्हारे लिए कुछ नाश्ता लेकर आती हूँ.
“नहीं मैडम … मैं चलता हूँ. आधे घंटे में मुझे बॉक्सिंग प्रैक्टिस के लिए वापिस कॉलेज जाना है … प्रैक्टिस के बाद ही कुछ खाता हूँ … कुछ चाय नाश्ता कर लिया तो बॉक्सिंग नहीं की जायगी.”
“अरे नहीं राजे … ऐसे तो मैं न जाने दूंगी … मैं हूँ न स्पोर्ट्स इंचार्ज … मेरी इजाज़त है … आज मत करो बॉक्सिंग प्रैक्टिस … . तुम आराम से बैठो. मैं पांच मिनट में फ्रेश होकर आती हूँ.”
मैं एक सोफे पर बैठ गया और चारों तरफ नज़रें घुमाकर ड्राइंग रूम का मुआयना करने लगा. काफी बड़ा ड्राइंग रूम था. बढ़िया किस्म के फर्नीचर और कालीनों से लैस. कई इम्पोर्टेड शो पीस जगह जगह पर रखे हुए थे. एक रईस खानदान का जैसा ड्राइंग रूम होना चाहिए वैसा ही था. सेन्टर टेबल पर एक फिल्मी मैगज़ीन पड़ी थी. मैं उसको उठाकर पन्ने पलटने लगा. एक हीरोइन की पूरे पन्ने की फोटो पर जाकर मेरी नज़रें अटक गयीं. फोटो में वो हरामज़ादी कामुकता से भरपूर हुस्न की जीती जागती तस्वीर लग रही थी. साली बहुत सेक्सी थी जिसको देखते ही लौड़ा अकड़ गया. मैं बड़ी ध्यान से उसकी तस्वीर को निहार रहा था.
तभी कानों में मैडम की सुरीली आवाज़ आयी- ओह हो … तो आँखें हरी की जा रही हैं … तुम्हारी फेवरिट है क्या वो?
मैं हड़बड़ा के उठा, मैगज़ीन भी नीचे गिर गई. अकड़ा हुआ लौड़ा किसी नोकीली चीज़ की तरह पैंट में उभरा हुआ था. उसे इधर उधर करके सेट करने का भी मौका नहीं था.
मैंने मुंह ऊपर उठाकर मैडम की तरफ देखा. मैडम ने एक निम्बू जैसा हरापन लिए हुए पीले रंग का गाउन पहन रखा था. उन्होंने ट्रे को टेबल पर रख दिया. एक गिलास मोसम्बी का रस और कुछ काजू, बादाम, पिस्ते और अखरोट एक तश्तरी में रखे थे.
मैडम मेरे सामने वाले सोफे पर बैठ गयीं और एक टांग दूसरी टांग पर टिका कर आराम से हो गयीं. टेबल पर रखे सामान की तरफ इशारा करते हुए मुझे नाश्ता करने के लिए कहा. मैंने एक दो काजू लिए और घबराया हुआ सा जूस के दो तीन सिप लिए.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#16
अरे राजे, तुम इतने डरे हुए क्यों हो. आराम से जूस पियो और ड्राई फ्रूट लो. जूस बिल्कुल ताज़ा मोसम्बी से खुद निकाल के लायी हूँ. मुझे सॉफ्ट ड्रिंक्स या शरबत पसंद नहीं … सेहत के लिए बुरे होते हैं … और तुमको तो मुक्केबाज़ी भी करनी है इसलिए ताक़त वाली चीज़ें हैं सब … और हाँ अगर आँखें पूरी तरह से हरी न हुई हों तो मैगज़ीन गिर गयी है, उठा लो और मज़े से देखो अपनी फेवरिट हीरोइन को!” मैडम की मीठी आवाज़ सुन के यूँ लगता था जैसे दूर कहीं हल्के हल्के से घंटियां बज रही हों. मैं बड़ा परेशान था कि लौड़ा बग़ावत पर उतारू था. कम्बख्त बैठने में ही नहीं आ रहा था. मुझे डर था कहीं ये ज़ोर से अकड़ा लंड मैडम को पैंट के पीछे दिख न जाए.

मैंने मैगज़ीन तो फर्श से उठाकर वापिस टेबल पर रख दी लेकिन दुबारा से आँखें हरी करने का विचार टाल दिया. मेरी निगाह तो मैडम के हाथों पर जाकर जाम हो गयी थी. दूध से गोरे, बहुत ही खूबसूरत सुडौल हाथ थे मैडम के. उनका चेहरा भी सौंदर्य में किसी भी हीरोइन से कम नहीं था. वैसे उनको गाउन में देखकर लौड़ा जो हड़बड़ाहट में बैठ गया था फिर से अकड़ गया.
एक दो बार डरते डरते मैंने मैडम पर नज़र डाली तो उनको अपनी तरफ ही देखते पाया. घबरा के मैं झट से निगाह नीचे कर लेता और फिर उनके हाथों को देखने लगता. मैडम ने पैरों में किसी मखमली से गहरे नीले कपड़े की स्लिपर पहनी हुई थी. स्लिपर बहुत सुन्दर थी परन्तु उसमें पांव ढक हुए थे, दिख नहीं रहे थे. लेकिन उनके टखने और एड़ी का जो थोड़ा सा भाग मैं देख पाया उससे लगता था कि मैडम के पांव भी उनके हाथों जैसे सुन्दर ही होंगे.
जूस और नाश्ता ख़त्म होने तक मैडम इधर उधर की कुछ बातें करती रही. अपने विषय में बताती रहीं. मैडम के पापा इंडियन आर्मी में ब्रिगेडियर थे और गुजरात में पोस्टेड थे. उनकी मम्मी भी आर्मी में डॉक्टर थीं. मैडम जी की पढ़ाई आर्मी पब्लिक कॉलेज डगशाई, शिमला में हुई थी. कॉलेज की पढ़ाई कई स्थानों पर हुई, जहाँ जहाँ उनके पापा का ट्रांसफर होता रहा. मालूम हुआ कि मैडम जी के सास और ससुर किसी सत्संग में एक हफ्ते के लिए अमृतसर गए हुए हैं और उनका पुराना नौकर मोहन दास अचानक बीमार हो गया तो छुट्टी पर था. इसलिए आजकल मैडम जी घर में अकेली ही थीं.
जब मैं खा पी चुका तो मैडम ने गिलास और ख़ाली प्लेट उठाकर ट्रे में रखी और ट्रे को लेकर भीतर चली गयीं. दो मिनट में वापिस आईं तो मैंने पूछा- मैडम जी अब चलूँ?
मैडम ने एक उंगली उठाकर रुकने का इशारा किया और मेरे बहुत करीब आकर यकायक मुझसे लिपट गयीं. मेरे सर के पीछे हाथ लगाकर मेरा मुंह झुकाकर अपने मुंह के पास ले आईं. मैडम की गर्म गर्म मादक साँस मेरे मुंह पर लगने लगी.
मैं सटपटा गया और घबराहट के मारे मेरी टाँगें लड़खड़ाने लगीं.
राजे, जिस लड़की की फोटो देख कर तुम्हारी मर्दानगी ज़ोर मार रही थी, ध्यान से मुझे देख कर बोलो, मैं क्या उससे कम हूँ? देखो मेरी ओर ध्यान से.”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#17
Quote:मैंने पूछा- मैडम जी अब चलूँ?
मैडम ने एक उंगली उठाकर रुकने का इशारा किया और मेरे बहुत करीब आकर यकायक मुझसे लिपट गयीं. मेरे सर के पीछे हाथ लगाकर मेरा मुंह झुकाकर अपने मुंह के पास ले आईं. मैडम की गर्म गर्म मादक साँस मेरे मुंह पर लगने लगी.
मैं सटपटा गया और घबराहट के मारे मेरी टाँगें लड़खड़ाने लगीं.
“राजे, जिस लड़की की फोटो देख कर तुम्हारी मर्दानगी ज़ोर मार रही थी, ध्यान से मुझे देख कर बोलो, मैं क्या उससे कम हूँ? देखो मेरी ओर ध्यान से.”
मैडम इतने कस के लिपटी हुई थी कि उनके मम्मे मेरी छाती में और मेरा फनफनाता हुआ लौड़ा उनके पेट में चुभ रहा था.
मैंने दो तीन गहरी सांसें लेकर स्वयं को संतुलित किया और गौर से मैडम को देखा. अति सुन्दर चेहरा, मलाई जैसी गोरा रंग, बड़ी बड़ी आँखें और मादक हल्के से थरथराते हुए गुलाबी होंठ. वाकई में बाली मैडम उस मैगज़ीन वाली रंडी से कहीं अधिक हसीन थीं.
“मैडम जी, आप बहुत बहुत सुन्दर हैं … वो फोटो वाली हीरोइन आपके सामने क्या है … कुछ भी नहीं.” मैंने धीमी सी आवाज़ में उत्तर दिया.
“राजे, तुम मुझे किस करोगे … कभी किया किसी लड़की को किस?”
“नहीं मैडम कभी किसी को किस नहीं किया.”
हालाँकि मैं जिन लौंडों की गांड मारा करता था उनको कई बार किस कर चुका था परन्तु किसी लड़की का किस कभी नहीं लिया था. मैडम जैसी अति सुन्दर स्त्री को किस करने के नाम से ही दिल की धड़कनें तेज़ हो गयीं. माथे पर पसीना आने लगा.
मैंने हामी में सर हिलाया.
मैडम ने तुरंत मेरे सर को जकड़ के अपने मुंह से मुंह लगा दिया. न जाने कैसे खुद बा खुद ही मेरा मुंह थोड़ा सा खुल गया और पलक झपकते ही मैडम की जीभ मेरे मुंह में चली गयी.
उसके बाद मैडम की जीभ का कमाल का अत्यंत सुखद अनुभव मिला जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था. उनकी जीभ कभी मेरी जीभ से लिपट जाती तो कभी मेरे मुंह में पूरा चक्कर लगाती. कई बार तो मैडम ने जीभ पूरी मुंह के भीतर देकर लपलप की और कई बार मेरे होंठों के अंदरूनी भाग पर जीभ घुमाई. मेरे तन बदन में बिजलियाँ दौड़ने लगीं. शरीर थरथराने लगा. उत्तेजना आकाश से भी ऊँची उड़ने लगी थी.
यह सब करते करते मैडम धीरे धीरे सरक सरक कर कुछ ही दूर रखे दीवान तक जा पहुंची थीं. उन्होंने मेरे कन्धों पर हाथ रख के दबाया तो मैं उनको लिपटाए लिपटाए दीवान पर आ गया. अब मैडम का मुंह मेरे मुंह के ऊपर था और उनके मुंह में तेज़ी से निकलती हुई लार मेरे मुंह में आने लगी. उनके मुखरस के आनंद से मैं मस्त हो गया. उम्म्ह… अहह… हय… याह… लौड़ा बेकाबू होकर और भी ज़ोर से कूद फांद करने लगा. जीभ का करिश्मा तो था ही, मैडम के हाथ भी मेरे बदन पर फिर रहे थे.
उन मुलायम, रेशमी हाथों का स्पर्श!! हे भगवान … मैं नहीं जानता था कि किसी लड़की की जीभ से हवस की पराकाष्ठा हो सकती है या लड़की हाथ मेरे बदन पर ऐसा जादू कर सकते हैं.
काफी देर ये गहन चुम्बन लेने के उपरान्त मैडम ने जीभ बाहर निकाल ली और फुसफुसाकर बोलीं- राजे तेरी मर्दानगी बहुत ज़ोर मार रही है … जवानी का भरपूर जोश है ना … देखूं तेरे लंड कैसा है.
उनके मुंह से लंड शब्द सुन कर मैं अचम्भे से सन्न हो गया. यह शब्द तो लड़के लोग आपस में बात करते हुए इस्तेमाल करते हैं. क्या लड़कियां भी यही भाषा बोलती हैं? क्या मालूम, मैंने तो कभी किसी लड़की के मुंह से ऐसा शब्द नहीं सुना था.
इससे पहले मैं कुछ सोच समझ पाता, मैडम ने मेरी पैन्ट की ज़िप नीचे कर दी और लौड़ा मेरे अंडरवियर से बाहर. जब तक मैंने यह महसूस किया कि लंड मेरे कच्छे से बाहर आ चुका है, मैडम ने अपने गाउन खोल कर धरती पर गिरा दिया था. अब वो एक मिनी नाईटी में थीं जो उनके घुटनों के तीन चार इंच ऊपर तक ही थी और लगभग पूर्णतया पारदर्शी थी.
उसका बदन हाड़ मांस का बना हुआ नहीं बल्कि केसर रूह अफ़ज़ा से मिक्स की हुई मलाई का बना लगता था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
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#18
इससे पहले कि मैं मर्दों के दुश्मन उस मादक बदन को अच्छे से निहार पाता, मैडम ने लंड को अपने नाज़ुक मुलायम हाथ में ले लिया था- अरे वाह राजे! तेरा लौड़ा तो काफी बड़ा है. सात इंच से ज़्यादा ही होगा … शायद साढ़े सात भी हो … मोटा भी बहुत है … आह मज़ा आ गया तेरे लंड को देख कर!

मैडम ने लंड पर हौले हौले से हाथ फेरना शुरू कर दिया. दूसरे हाथ से अंडकोष सहलाने लगीं.
लड़की का दिया हुआ पहला चुम्बन और फिर उसके हाथ से लंड पर पहला स्पर्श! मेरा दिल सरपट दौड़ने लगा. बदन गर्म हो गया. और जैसे ही मैडम ने सुपारी की खाल पीछे कर के सुपारी पर उंगली फिराई तो मेरी उत्तेजना का भरा हुआ गुब्बारा फूट गया. ढेर सारा लावा बंदूक से निकली गोली की रफ़्तार से लौड़े से छूटा. लंड के अचानक उछलने से मैडम का हाथ भी छूट गया. तुनक तुनक कर लौड़े ने आठ दस लावा के मोटे मोठे थक्के दागे. कुछ मैडम के बालों पर गिरा, तो कुछ लौंदे उनके गाल पर और कुछ ने उनके गले और चूचुक के ऊपरी भाग पर ठिकाना लिया.
मैडम ने तुरंत ही लंड को पकड़ के उसकी उछल कूद काबू में कर ली और दूसरा हाथ लंड के सामने फैला कर दनादन झड़ते हुए मसाले को हथेली पर आने दिया. थोड़ी देर में जब लंड खाली हो गया तो मैडम ने हथेली पर इकट्ठे लावा को चाट लिया. और चाटा भी खूब चटखारे लेते हुए. हथेली को साफ करके मैडम ने बाकि सब जगह पर पड़े हुए मक्खन को उंगलियों से समेटा और उसको भी मुंह में लेकर चाट लिया.
मेरा वीर्य चाटते हुए सारा समय मैडम मेरी आँखों में आँखें डाले मुझे देखती रहीं. फिर उन्होंने मुरझाए हुए लंड का दबा दबा के तीन चार बूंदें और निकालीं. जिनको मेरे मुंह में देकर धीरे से बोलीं- ले राजे तू अपने माल का स्वाद चख … अच्छे से चूस ले उंगली.
मैंने मैडम की उंगली चूसनी शुरू कर दी. अपने माल का तो खैर जो स्वाद था वो था ही लेकिन मुझे तो मैडम की उंगली के स्वाद ने पागल कर दिया था. जी करता था कि बस सारा जीवन इस मदमस्त कर देने वाली उंगली को चूसते चूसते ही बिता दूँ. लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्यूंकि थोड़ी देर के बाद मैडम ने उंगली खींच ली. दिल मार के मैंने उंगली को निकल जाने दिया.
उंगली आज़ाद होते ही मैडम ने मेरी पैंट खोल के नीचे घसीट कर टखनों तक कर दी. उसके बाद उन्होंने मेरे जूते मोज़े उतार कर पैंट निकाल भी के एक साइड में डाल दी. यह सब कार्य मैडम ने ऐसी फुर्ती से किया जिससे पता चलता था कि मैडम इसमें सिद्धहस्त हैं.
“अब मैं राजे तुझे नंगा करुँगी … लेकिन पहले एक बात सुन ध्यान से!”
मैंने कहा- कहिये मैडम जी … मैं सुनूंगा ध्यान से.
“गुड … वैरी गुड राजे … देख मैंने तेरा वीर्य पी लिया है इसलिए अब तू मुझे मैडम जी न बोला कर … अब से तू मुझे बाली रानी कहा करेगा … अब से मैं तेरी रानी और तू मेरा गुलाम राजा … आयी समझ मादरचोद.”
यूँ तो मैडम या किसी भी लड़की के मुंह से मादरचोद सुन के मैं आश्चर्यचकित हो जाता, लेकिन अब तक के घटनाक्रम से अचंभित होने का मेरा कोटा पूरा हो चुका था. यह बाली मैडम कोई अनोखी आइटम हैं, यह मैं जान चुका था.
मैंने धीमी सी आवाज़ में कहा- ठीक है मैडम बाली रानी जी.
“बुद्धू राम!” मैडम की हंसी से भरी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी- मैडम बाली रानी जी नहीं सिर्फ बाली रानी … लगता है कि जब लंड झड़ा तो तेरी अकल भी झड़ गई … बाहें ऊपर कर … शर्ट उतारनी है.
“हाँ समझ गया बाली रानी.” मैंने बाहें ऊपर की तो मैडम ने पहले मेरी शर्ट फिर बनियान उतार दी. अब मैं पूरा नंगा था.
बाली रानी ने मेरे जिस्म पर नीचे से ऊपर तक हाथ फेरा. मेरी मांसपेशियां दबाकर बदन की मज़बूती जांचनी चाही- राजे, बड़ा सख्त और कड़ा बदन है तेरा … मज़ा आएगा तेरी तगड़ी बाज़ुओं में जब भिंचूंगी. तेरा लौड़ा भी तगड़ा, तेरी बॉडी भी तगड़ी … अब मुझे भी तो नंगी कर … क्या किसी पंडित से मुहूर्त निकलवा के मेरे कपड़े उतारेगा मूरख चंद?
मैंने हड़बड़ाते हुए बड़ी मुश्किल से बाली रानी की नाईटी को उतारा. मैंने कौनसा पहले किसी लौंडिया की नाईटी क्या किसी भी कपड़े को उतारा था. इसलिए न अनुभव था और न ही प्रैक्टिस. खैर, अल्ला अल्ला खैर सल्ला … आखिरकार मैं उस नाईटी को उतारने में सफल हो गया तो मेरी निगाह उस अलौकिक, इंद्रलोक की अप्सराओं को चुनौती देने वाले शरीर पर अटक गयी.
मैं एकटक बाली रानी को घूरने लगा. शायद पलक भी झपकना भूल गया था. संगमरमर की मूर्ति समान सौंदर्य से भरपूर शरीर ऐसा था जो सन्यासियों को भी बलात्कारी बना डाले. जिसपर एक दृष्टि डाल दें तो देवता भी राक्षस जैसे हो जाएँ.
तभी बाली रानी ने कामुक अदाएं दिखाते हुए कभी बाज़ू ऊपर उठा कर, तो कभी साइड में फैला कर घूम घूम के मुझे अपना बदन अच्छे से दिखाना शुरू कर दिया. कभी थोड़ी दूर चली जाती, तो कभी बिल्कुल करीब आकर मेरी आँखों में आँखें डाल कर नितम्ब लचकाती या कमर मटकाती.
मैं मंत्रमुंग्ध सा कुदरत के इस करिश्मे को ताकता रहा. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि निगाह कहाँ केंद्रित करूँ. हुस्न के लाजवाब चेहरे को तो अच्छे से देख ही चुका था. कभी पिंडारी के ग्लेशियर जैसी उन्नत चूचियों पर नज़र जमाता तो कभी रानी के सुडौल पेट, कमर और चिकनी चिकनी टांगों पर आँखें गड़ाता. बहनचोद ऐसी चिकनी काया थी कि नज़र टिकती ही नहीं थी. खूब बड़ी बड़ी गोल गोल चूचियां, हल्के से भूरे रंग के नुकीले निप्पल और थोड़े गहरे भूरे निप्पल के दायरे. झांट प्रदेश पर हल्की सी झांटों का गलीचा. सुन्दर, त्रुटिहीन टाँगें और बेहद खूबसूरत पिंडलियाँ. पैरों में अभी भी स्लिपर थे इसलिए पांव नहीं दिख रहे थे. लौड़ा इस बेपनाह कामोत्तेजना की ज़्यादा देर तक ताब न ला सका और खड़ा हो गया. टट्टे माल से भरपूर होकर फूल गए थे.
तभी रानी मेरे बिल्कुल नज़दीक आ गयी और मेरा हाथ पकड़ के चूत के मुंह से लगा दिया. जैसे ही जीवन में पहली बार किसी चूत को छुआ, शरीर एक तेज़ बिजली की तरंग का प्रवाह हुआ. उंगलियां चूत के रस से तरबतर हो गयीं. चूत से रस का प्रवाह खूब हो रहा था. चूत के इर्द गिर्द का शरीर रस से भीगा हुआ था.
यारो, आप खुद ही सोचिये. जवानी में क़दम रखता हुआ एक लड़का, जिसने सिर्फ चूत का नाम ही सुना हो, जिसके यार दोस्तों ने भी कभी चूत के दर्शन न किये हों, उसके हाथ अगर चूत के जूस से तरबतर हो जाएँ तो उसका क्या हाल हुआ होगा. मुझे तो यह मालूम भी नहीं था कि चूत से जूस भी निकलता है.
“राजे मेरे कुत्ते, अब उंगलियां चाट जल्दी से … कमीने, ले मज़ा इस बुर के रस का … पीकर दीवाना न हो गया तो कहना.” बाली रानी की आवाज़ जैसे कहीं दूर से मेरे कानों में पड़ी.
मैंने रानी के कहे अनुसार उंगलियां चाट ली. आआ आआआह हहह हहह … सच में इससे ज़्यादा नशा चढ़ाने वाला कोई भी और द्रव हो ही नहीं सकता. जीवन में उस दिन पहली बार एक हसीना की चूत का रस चाटने के मौका मिला … आआआआ आहहहह हहह!
उस समय की मेरी जो मनोदशा थी वह बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है. पहले ही रानी के मस्त बदन का भिन्न भिन्न अदाओं के साथ नज़ारा मेरी कामोत्तेजना को बेहद बढ़ा चुका था, और ऊपर से यह चूत का मादक रस चाट के मेरा दिमाग न जाने कौन से आसमान में पहुँच गया था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#19
अब तक मैं भूल चुका था कि बाली मैडम मेरी टीचर हैं. अब तो वह सिर्फ बाली रानी थी, एक लौंडिया और मैं सिर्फ राजे था, बाली रानी का दीवाना.

“क्यों राजे आया न मज़ा? यह ले और चाट.” यह कहकर बाली रानी ने अपनी उंगलियां, जो उसने चूत में लगा कर रस से गीली कर ली थीं, मेरे मुंह से चिपका दीं. मैंने तुरत ही जीभ निकाल के चाटना शुरू कर दिया. यारो, अभी तक तो मैं खुद की उँगलियों से चाटे गए रस के सुरूर से उभरा भी नहीं था कि एक और सुरूर जीभ को मिल गया. यह तो डबल सुरूर था, एक तो रानी की बहती हुई चूत का रस और दूसरी उसकी उंगलियां. खूब चाटा, चाट चाट के बौरा गया और लौड़ा तो किसी मस्त हिरण की भांति कुलांचें भर भर के बार बार पेट में टक्कर मारने लगा.
रानी ने मुझे धक्का देकर दीवान पर गिरा दिया और चिल्लाई- राजे … माँ के लौड़े, अब देख मेरी चूत कैसे इस खम्बे को लील जायगी … थोड़ा उचक हरामखोर … देख ज़िन्दगी की पहली चूत में तेरा डंडा कैसे घुसता है.
झट से रानी ने अपनी चूत को लौड़े के ऊपर जमाया और बैठती चली गयी. रस से लबालब भरी हुई बुर में लंड फिसलता हुआ पूरा घुस गया, केवल अंडे बाहर रह गए. चूत की गर्मी, चूत के रसीलेपन और कसी जकड़ से लंड मज़े से पगला उठा. लंड घुसने के कारण ढेर सारे पिच्च करके छलके रस ने हम दोनों की झांटें भिगो डालीं. मेरे मुंह से आनंद की एक लम्बी सी आह निकली. कुहनियों पर उचके हुए मैंने लंड के बुर में घुसने का मदमस्त कर देने वाला दृश्य भी देखा. मेरी उत्तेजना पराकाष्ठा पर पहुँचने वाली हो गयी थी.
“राजे, कुछ देर गहरी गहरी सांसे ले कुत्ते … नहीं तो झड़ जायगा … हाँ ऐसे ही … और ले इसी तरह गहरी सांस.” रानी लौड़ा चूत में लिए बिल्कुल बिना हिले डुले मुझे हिदायतें दे रही थी. वैसे तो कुछ ही देर पहले वो मुझे एक बार झाड़ चुकी थी. और शायद इसी लिए कि चुदाई करते हुए मैं जल्दी ना झड़ जाऊँ.
मैंने गहरी गहरी साँसें लेकर कुछ ही पलों में अपनी उत्तेजना पर काबू पा लिया. बाली रानी काम क्रिया में बहुत सिद्धहस्त थी, ताड़ गयी कि कब मेरा नियंत्रण हो गया, और तभी उसने अपनी कमर को गोल गोल घुमाना शुरू किया. गोल गोल गोल गोल, एक बार क्लॉकवाइज (घड़ी की चाल के अनुसार), फिर एंटी क्लॉकवाइज (घड़ी की चाल के विपरीत)घुमाने लगी.
लौड़े की सुपारी पर बच्चेदानी का मुंह टिका हुआ था और उसको दबा रहा था, चूत जब घूमती तो लौड़े को ऐसा लगता कि कोई उसको एक मथनी के तरह घुमा रहा है. लंड हर तरफ से चूत में फंसा हुआ था और चूत के रसभरे दबाब से आनंदमग्न था. वास्तव में देखा जाए तो लंड बाली रानी की बुर को मथ ही तो रहा था. रस से लबालब भरी हुई चूत में जड़ तक घुसा हुआ लंड खूब मज़े पा रहा था.
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भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#20
रानी ने अब हाथ मेरी छाती पर जमा के उछल उछल के धक्के लगाने शुरू कर दिए थे. वो बहुत उत्तेजित हो गयी थी. मुंह लाल हो गया था, माथे पर पसीने की छोटी छोटी बूंदें उभर आयी थी. साँसें तेज़ हो चली थीं. हर धक्का फचक फचक फचक की आवाज़ से कमरे को गुंजा देता. जैसे ही लौड़ा बाहर को आता, ढेर सा चूतरस भी छलक के निकलता. मेरी निगाहें रानी के चूचुक पर जमी हुई थी. रानी धक्का ठोकती तो चूचे भी इधर उधर, ऊपर नीचे, दाएं बाएं थिरकते. बड़ा ही मनमोहक नाच था रानी के उरोजों का. निप्पल अकड़ के सुकड़ गए थे, जैसे किसी रस्सी पर कस के गाँठ लगा दी गयी हो.

मेरी उत्तेजना भी बड़ी तेज़ी से बढ़ी जा रही थी. बदन में एक ज्वाला ऊपर से नीचे भड़क उठी थी. लौड़े के अंदर और अण्डों में एक तीव्र सनसनाहट होने लगी थी. रानी धक्के पे धक्के, धक्के पे धक्के मारे जा रही थी, आआह आआह आआह आआह. फचक फचक फचक. चुदाई की मदभरी ध्वनियाँ वातावरण को अनेकों गुणा कामुक बनाये जा रही थी.
बाली रानी विचलित होकर मेरे ऊपर लेट गयी. उसके चूचियों की निप्पल मेरी छाती में चुभने लगीं. रानी के मुंह से अजीब अजीब भैं भैं भैं की आवाज़ें आने लगीं. मुंह से लार टपक के मेरे सीने पर गिरने लगी. रानी की धौंकनी की तरह चलती तेज़ तेज़ साँसें मेरे मुंह पर आने लगीं.
रानी चिल्लाने लगी- राजे … बहन के लौड़े, साले तेरी माँ की चूत … आह उम्म्ह… अहह… हय… याह… मादरचोद चोदू राम … ले भोसड़ी के … फिर चार पांच ज़ोरदार धक्के … और ले माँ के लौड़े राजे … फिर कुछ तगड़े धक्के … .भैं भैं भैं.
रानी ने धक्कों की रफ़्तार बहुत तेज़ कर दी. धकाधक धकाधक धकाधक … फचक फचक फचक … रानी अब राजधानी एक्सप्रेस की गति से धक्के ठोक रही थी.
हर धक्के पर रानी के निप्पल मेरी छाती में रगड़ रगड़ के मेरी उत्तेजना की आग में घी डालने का काम कर रहे थे. मेरी बांहों ने रानी की कमर को स्वतः ही लपेट लिया था. मेरे हाथ उसकी चिकनी कमरिया और गोल गोल रेशमी चूतड़ों पर घूम रहे थे. रानी के मुंह से लार टपक टपक कर मेरी ठुड्डी पर गिरने लगी थी. रानी इस समय चुदास के शवाब पर थी, धक्के दनादन लगाए जा रही थी. चूतड़ उछाल के लंड को सुपारी तक बाहर निकलती और फिर धम्म से झटका मार के पूरा लंड चूत में लील जाती. अब उसके मुंह से गालियां तक नहीं निकल रही थीं. उसको ज़ोर की हाँफनी चढ़ गयी थी. हर सांस के छूटने पर भैंऽऽऽ की आवाज़ निकालती. मैं भी रानी की छोड़ी हुई सांस में सांस ले रहा था. मदमस्त कर देने वाली साँसें थीं बाली रानी की.
अचानक से रानी ने ज़ोर की किलकारी मारी- ईईईई ईईईई ईईई … अईईई ईईईईई … .ईईईईईईई की ऊँची चिल्लाहट से रानी एकदम से मचली, छटपटाई और फिर शांत पड़ गयी जैसे शरीर से दम निकल गया हो.
उस समय यह क्या हुआ मुझे कुछ समझ नहीं आया. पहली बार किसी लड़की से संपर्क हुआ था न. इसका मुझे रानी ने बाद में बताया कि जैसे लड़के झड़ते हैं वैसे लड़कियां भी झड़ती हैं. जब लौंडिया स्खलित होती है तो उसके हाथ पैर ठन्डे हो जाते और बदन मूर्छित जैसा हो जाता है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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