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Adultery कामिनी की कामुक गाथा
#1




कामिनी की कामुक गाथा

जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#2
नाम है कामिनी देवी, एक प्राईवेट फर्म में उप प्रबंधक। चेहरे मोहरे और अपने सुगठित शरीर के कारण वह आज भी ३५ से ४० की लगती है। लंबा कद ५’ ७”, रंग गेहुंआ, चेहरा लंबोतरा, पतले रसीले गुलाबी होंठ, नशीली आंखें, घने काले कमर से कुछ ऊपर तक खुले बलखाते रेशमी बाल और ३८”, ३०”, ४०” नाप के अति उत्तेजक खूबसूरत काया की स्वामिनी। जिसे देखते ही मानव प्रजाती के किसी भी नर की आंखें उसके शरीर से चिपक जाएं, ऐसी है कामिनी। वह सिर्फ आंखें सेंकने की चीज नहीं है, कई पुरुषों की अंकशायिनी भी बन चुकी है। जितने पुरुषों की हमबिस्तर बन चुकी है उनमें हर उम्र के लोग शामिल हैं, युवा, अधेड़, वृद्ध। अपने यौवन का रस पान कराने में कामिनी नें कोई कंजूसी नहीं बरती और वह भी बिना किसी भेद भाव के। इसके लिए जिम्मेदार है खुद उसकी अदम्य उद्दात्त काम पिपाशा। अपने इस उत्तेजक खूबसूरती और कामेच्छा का उसने कई मौकों पर बड़ी होशियारी से इस्तेमाल भी किया और अपने कैरियर को संवारा। कैरियर में तरक्की के लिए कुछ कुरूप, बदशक्ल और बेढब बेडौल सीनियर्स की कुत्सित विकृत कामेच्छा की तृप्ती के लिए अपने तन को समर्पित करने में भी कत्तई परहेज नहीं किया।
एक विधवा की कमाई से मजे की जिंदगी जी रहे उसके ससुराल वालों को उसके रहन सहन, पहनाव ओढ़ाव और असमय आने जाने पर कोई ऐतराज क्यों होता भला? भले ही दुनिया वाले कुछ भी बोलें, बोलने वाले तो कुछ भी बोलेंगे, हमारा सुख जो उनसे देखा नहीं जाता, यही बोल कर ससुराल वाले, जिसमें उसके सास ससुर और दादा ससुर हैं, चुप कर देते, हालांकि उन्हें अपने बहु के चाल चलन पर भरोसा रत्ती भर भी नहीं है, किंतु अपनी आंखें बंद रखते, आखिर दुधारू गाय जो ठहरी।
लेकिन क्या कामिनी हमेशा से ऐसा थी? कत्तई नहीं। वह तो परिस्थितियों नें उसे आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया था।
अब मैं इससे आगे की कहानी कामिनी के आत्मकथा के रूप में लिखना चाहूंगी अन्यथा मैं कामिनी के भावनाओं और उसके जीवन में हुए घटनाक्रम को, जिन कारणों से आज वह इस मोड़ पर अपने आप को खड़ी पा रही है, असरदार रूप में व्यक्त नहीं कर पाऊंगी।
हां तो मेरे प्रिय पाठको, मैं कामिनी अब अपने जीवन के उन घटनाओं से आपको रूबरू कराऊंगी जिन के परिणाम स्वरूप आज मैं इस मोड़ पर खड़ी हूं। दरअसल यह कहानी शुरू होती है मेरे पैदा होने के पहले से। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे माता पिता, जो कहने को तो पढ़े लिखे और संपन्न थे मगर दकियानूसी खयालात के थे, पता चल गया था कि मैं कन्या हूं। उन्हें तो पुत्र रत्न की चाह थी, अत: गर्भपात कराने की काफी कोशिश की गई, मगर मैं ठहरी एक नंबर की ढीठ। सारी कोशिशों के बावजूद एकदम स्वस्थ और शायद उन गर्भपात हेतु दी गई दवाओं का उल्टा असर था कि मैं रोग निरोधक क्षमताओं से लैस पैदा हुई। लेकिन चूंकि मैं अपने माता पिता की अवांछित संतान थी, मुझे बचपन से उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। फिर हमारे परिवार में मेरे पैदा होने के ४ साल बाद एक बालक का आगमन हुआ और मेरे माता पिता तो लगभग भूल ही गए कि उनकी एक पुत्री भी है। पुत्र रत्न की प्राप्ति पर घर में उत्सव का माहौल बन गया। बधाईयों का तांता लग गया और उस माहौल में मैंने खुद को बिल्कुल अकेली, अलग थलग और उपेक्षित पाया।
समय बीतता गया और मैंने अपने आप को विपरीत परिस्थितियों के बावजूद और मजबूत बनाना शुरू कर दिया। मेरे अंदर के आक्रोश नें भी मेरे हौसले को बढ़ावा दिया। पढ़ाई में सदा अव्वल रही, खेल कूद में भी कई ट्रॉफियां और उपलब्धियां हासिल की। कॉलेज में कुंगफू कराटे की चैंपियन रही। लेकिन मेरे घर वालों नें बधाई देना तो दूर मेरी तमाम उपलब्धियों की ओर कोई तवज्जो कर नहीं दी। इस के विपरीत मेरा भाई मां बाप के अत्यधिक लाड़ प्यार से बिगड़ता चला गया। आवारा लड़कों की सोहबत में पड़ कर पढ़ाई लिखाई में फिसड्डी रह गया मगर माता पिता उसकी हर गलतियों को नजरअंदाज करते गये नतीजतन वह बिल्कुल आवारा निखट्टू और मां बाप का बिगड़ैल कपूत बन कर रह गया।
मैंने एक तरह से अपने परिवार के मामलों से अपने आप को अलग कर लिया और अपने तौर पर जीना शुरू कर दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#3
मैंने जिन्दगी के १६ वसंत पार कर लिया और +२ में दाखिला लिया। मेरे अंदर छुपे आक्रोश नें मुझे सदा मेहनत करने और आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया। इसी दौरान मेरे साथ एक ऐसी घटना घटी जिसने मेरे जीवन को एक नया मोड़ दिया। एक नये निहायत ही नये और अभूतपूर्व अनुभव से रूबरू कराया। उस घटना नें मेरी जिन्दगी का एक नया अध्याय खोल दिया। अपनी उपेक्षा का दंश झेलते झेलते मैं तंग आ गई थी, मगर उस घटना के बाद मैंने जिल्लत भरी जिन्दगी में खुशी पाने की राह ढूंढ़ ली, भले ही समाज उसे गलत नजर से देखे मेरे ठेंगे से। आज तक मैंने जो उपेक्षा का दंश झेला है उससे तो कई गुना खुशी और संतोष की प्राप्ति तो होती साथ ही मेरे अंदर के आक्रोश को काफी हद तक शांत होता।

पड़ोस में हमारे एक रिश्तेदार के यहां मेरी एक रिश्ते में चचेरी बहन का विवाह था। गांव से काफी सारे रिश्तेदार उसमें शरीक होने के लिए आए हुए थे। उनमें से कुछ लोग हमारे यहां भी ठहरे हुए थे। विवाह के दिन सारे घरवाले मुझे घर में अकेली छोड़ शादी वाले घर चले गए। वैसे भी मुझे इन सब समारोहों में जाने में कोई रुचि नहीं थी, क्योंकि लोगों के सामने घर वालों की उपेक्षा का पात्र बनना अब मुझे बहुत बुरा लगता था। संध्या का समय था करीब ६:३० बज रहे थे। सड़क के किनारे की बत्तियां जल चुकी थीं। मैं अपने घर के छत पे अकेली खड़ी सड़क की ओर देख रही थी तभी मेरी नजर सड़क किनारे झाड़ी के पास एक कुतिया और ४ – ५ कुत्तों पर पड़ी। एक कुत्ता जो उनमें अधिक बड़ा और ताकतवर लग रहा था, कुतिया के पास आया और उसके पीछे सूंघने लगा। बाकी कुत्ते चुपचाप देख रहे थे। एक दो मिनट सूंघने के पश्चात वह कुत्ता उस कुतिया के पीछे से उसपर सवार हो गया। मेरी उत्सुकता बढ़ गई और मैं फौरन कमरे से दूरबीन ले आई और पूरी क्रिया को बिल्कुल सामने से पूरी तन्मयता के साथ अपने आस पास से बेखबर देख रही थी। मैं देख रही थी कि कुत्ते नें कुतिया के कमर को अपने अगले दोनों पैरों से जकड़ लिया था और अपने कमर को जुम्बिश देना शुरु किया। कुत्ते का लाल लाल लपलपाता नुकीला लिंग कुछ देर कुतिया के योनी छिद्र के प्रवेश द्वार के आसपास डोलता रह। फिर कुछ ही पलों में मैने कुत्ते के लिंग को कुतिया की योनी में प्रवेश होते देखा। अब कुत्ता पूरे जोश के साथ अपने कमर को मशीनी अंदाज में आगे पीछे कर रहा था। धक्कों की रफ्तार इतना तेज थी कि मैं अवाक हो कर देखती रह गई। इन सब क्रियाओं में मैंने देखा कि कुतिया नें बिल्कुल भी विरोध नहीं किया, ऐसा लग रहा था मानों यह सब कुतिया की रजामंदी से हो रहा है और अपने साथ हो रहे इस क्रिया से काफी आनन्दित हो। करीब ५ – ६ मिनट के इस धुआंधार क्रिया के पश्चात वह कुत्ता कुतिया के पीछे से उतरा लेकिन यह क्या! कुत्ते का लिंग कुतिया की योनी में फंस चुका था। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए खड़े हुए थे और अपनी पूरी लंबी जीभ बाहर निकाले हांफ रहे थे। यह सब देखते हुए मेरे अंदर अजीब सी खलबली शुरु हो चुकी थी। मेरी पैंटी में मैंने गीलापन महसूस किया और सलवार का नाड़ा खोलकर हाथ लगा कर देखा तो यह सचमुच भीग चुकी थी। मैंने पैंटी के अंदर हाथ लगाया तो पाया कि मेरी योनी से लसीला चिकना तरल द्रव्य निकल कर पैंटी को गीला कर चुका था। छत के मुंडेर से मेरे गरदन से नीचे का हिस्सा छुपा हुआ था, अत: मैंने हौले से अपनी सलवार उतारी फिर पैंटी भी उतार डाली। अब मेरा निचला हिस्सा पूर्णतय: नग्न था। मैं उत्तेजित हो चुकी थी, उत्तेजना के मारे मेरे शरीर पर चींटियां सी रेंगने लगी और मेरा पूरा शरीर में तपने लगा। मेरे सीने के अर्धविकसित उभार बिल्कुल तन गये, मेरा दायां हाथ स्वत: ही मेरे उभारों को सहलाने लगे, मर्दन करने लगे और अनायास ही मेरा बांया हाथ मेरी योनी को स्वचालित रूप से स्पर्ष करने लगा, सहलाने लगा और शनै: शनै: उंगली से मेरे भगांकुर को रगड़ने लगा। मैं पूरी तरह कामाग्नी की ज्वाला के वशीभूत थी, अपने आस पास के स्थिति से बेखबर दूसरी ही दुनिया में। करीब ५ मिनट के योनी घर्षण से मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया और मेरा सारा शरीर थरथराने लगा, मेरी उंगली लसदार द्रव्य से सन गई और पूरे शरीर में एक तनाव पैदा हुआ और एक चरम आनंद की अनुभूति के साथ निढाल हो गई। मैं छतपर ही बैठ गई। मुझे बाद में पता चला कि यह मेरा प्रथम स्खलन था। कुछ देर मैं उसी अवस्था में पड़ी रहा और फिर खड़ी हो कर दूरबीन संभाला और उन्हीं कुत्तों की ओर देखने लगी। करीब १५ मिनट बाद कुत्ते का लिंग कुतिया की योनी से बाहर आया, बाप रे बाप ! करीब ८” लंबा और ४” मोटा लाल लाल लपलपाता लिंग नीचे झूल रहा था और उससे टप टप रस टपक रहा था। इतना विशाल लिंग कुतिया नें पड़े आराम से अपनी छोटी सी योनी में संभाल लिया था। अब दूसरा कुत्ता उस पर चढ़ रहा था, उफ क्या दृश्य था, यह सब इतना उत्तेजक था कि मैं बयां नहीं कर पा रही हूं। दूसरे के बाद जब तीसरा चढ़ने लगा, कुतिया भागना चाहती थी किंतु तीसरे कुत्ते नें भी सफलता पूर्वक अपनी इच्छा पूर्ण की और फिर चौथे नें भी फटाफट अपने लिंग के धुआंधार प्रहार से कुतिया को अपने लिंगपाश में बांध कर अपनी कामेच्छा शांत की। मैं बुत बनी उस काम क्रीड़ा का दीदार कर रही थी और उस दौरान मैं हस्तमैथुन द्वारा तीन बार स्खलित हुई। उस समय करीब ८ बज रह था।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#4
मैं थरथराते पैरों पर किसी तरह खड़ी हुई कि अचानक मेरे नितंब पर किसी कठोर वस्तु के दबाव का अनुभव हुआ। हड़बड़ा कर ज्योंही मैं पीछे मुड़ी, मैं स्तब्ध रह गई। मेरे पीछे न जाने कब से मेरे दूर के रिश्ते के दादाजी जिन की उम्र उस वक्त करीब ६५ साल थी, ६’ लंबे तोंदियल काले कलूटे भैंस जैसे, गंजे, झुर्रीदार चेहरा, खैनी खा खा कर काले किए हुए अपने बड़े बड़े आड़े टेढ़े दांत दिखाते हुए मुह खोल कर बड़े ही भद्दे तरीके से मुस्कुराते हुए ठीक मेरे करीब पीछे से सट कर खड़े थे और धोती कुर्ते में होने के बावजूद उनकी धोती सामने से तंबू का आकार लिए हुए थी। स्पष्ट था कि मेरी सारी हरकतों को न जाने कब से देख रहे थे और अब मुझसे सट कर खड़े हो गए थे और उनकी धोती के अंदर कोई कठोर वस्तु मेरे नितंब के दरार पर दस्तक दे रहा था। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सन्न खड़ी लाज से दोहरी हुई जा रही थी।
फिर ज्यों ही मैं होश में आई अपने सलवार और पैंटी की ओर झपटी, किंतु उस खड़ूस बुड्ढे नें मुझे बाज की तरह दबोच लिया और बोला, ” घबराव ना बबुनी, हम से का शरम। हम सब कुछ देखली बानी। हमका पता है कि तोहरा मां बाबूजी तोहरा के पसंद ना करेला, मगर हम तोहरा के पसंद करीला। तू बहुत सुंदरी है रे। तोहरा मां बाबूजी के तो मति मारी गई है जे ऐसन नीक लईकी के ना पसंद करो हैं ।” कहते कहते उसका बनमानुस जैसा एक हाथ मेरे सीने के उभारों पर हरकत करने लगा और अपने जादुई स्पर्श से मुझे कमजोर करने लगा, दूसरे हाथ से वह मेरे कमर से नीचे के नाजुक अंगों को सहलाने लगा। मैं कुछ देर छूटने की असफल कोशिश का ढोंग करती रही, ढोंग मैं इस लिए रह रही हूं क्योंकि मुझे भी यह सब आनंदित कर रहा था, वरना अगर मैं चाहती तो उस बुड्ढे की पसली तोड़ सकती थी। कुछ देर पहले जो बूढ़ा कुरूप बदशक्ल और बेढब लग रहा था उसकी हरकतें अब मुझे अच्छा लगने लगी, वह खेला खाया बदमाश बूढ़ा मेरी कामोत्तेजना को भड़का कर मुझे पागल कर रहा था, मदहोश कर रहा था और मैं नादान पगली उस कामपिपाशु बूढ़े दादाजी के हाथों हौले हौले समर्पित होती जा रही थी। मेरी अवस्था को देख दादाजी की कंजी आंखों में चमक आ गई और उस नें आहिस्ते से अपनी धोती ढीली कर दी, नतीजतन पलक झपकते धोती गिर गई और मैं नें जो नजारा देखा उसे जीवन भर न भूल पाऊंगी। धोती के अंदर अंडरवियर नहीं थी, भयानक काला नाग फन उठाए मेरी ओर देखे जा रहा था, विकराल लिंग के चारों ओर लंबे लंबे घने सफेद बाल भरो हुए थे, बुड्ढे नें मेरा हाथ पकड़ कर उस पर रख दिया ” ले बबुनी हमार लंड पकड़ के खेल, तोहरा के माजा आई”, और मैं गनगना उठी। ७” लंबा और ३” मोटा लिंग मेरे हाथों में था, मेरे मुख से सिसकारी निकल पड़ी और मैं मदहोशी के आलम में उस बेलन जैसे जैसे लिंग पर बेसाख्ता हाथ फेरने लगी। कितना गर्म और सख्त। इधर दादाजी मेरी कमीज उतार चुके थे, ब्रा खोल चुके थे और पूर्णतय: नग्न कर मेरे सीने के उभारों को सहला रहे थे, दबा रहे थे, मेरी चिकनी योनी में अाहिस्ता आहिस्ता उंगली चला रहे थे, मैं पूरी तरह पागल हो चुकी थी। पूरी तरह उस बूढ़े के वश में थी। इस दौरान उन्होंने अपना कुर्ता बनियान बी उतार फेंका था। पूरा शरीर सफेद बालों से भरा हुआ था। उन्हें देख कर बूढ़े बनमानुस का आभास हो रहा था।
अचानक दादाजी नें एक उंगली मेरी योनी में घुसेड़ दी, मैं चिहुंक उठी। “आह, ये क्या किया? उंगली निकालिए ना आााााह” मेरे मुख से खोखली आवाज निकली, वस्तुत: मुझे दर्द कम मजा ज्यादा आया। दादाजी अनुभव शिकारी की तरह मुझे जाल में फांस चुके थे अब अंतिम प्रहार करने की तैयारी में थे। उन्होंने अब उंगली मेरी योनी के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया।”आह, ओह उफ आह ” मेरी सिसकारियां निकल रही थी और बूढ़ा बोल रहा था,”बस बबुनी बस अब तोहरा बुर में हमार लौड़ा घुसे का समय आ गया, अब हम तोहरा के चोदब बबुनी”
मुझे तो कुछ होश ही नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है। जो भी हो रहा था अच्छा लग रहा था, मैं पूर्ण रूप से अपने आप को उस बूढ़े के हवाले कर चुकी थी।
अब समय आ चुका था, मेरा कौमार्य भंग होने का। आनन फानन उस बूढ़े नें छत पर धोती बिछाया, उसी पूर्ण नग्नावस्था में मुझे चित्त लिटा कर मेरे पैरों को अलग किया और मेरी दोनों जंघाओं के बीच अपने आप को स्थापित किया, पहले से गीली मेरे योनी छिद्र के मुख पर अपने विकराल लिंग का सुपाड़ा टिकाया, मेरे शरीर में झुरझुरी दौड़ गई।
“ले बिटिया हमार लौड़ा तोहरा बुर में” कहते ही एक करारा धक्का मारा और मैं चीख पड़ी। “आााााााह ” लेकिन वह बूढ़ा तैयार था, उसनें अपने गंदे होंठों से मेरे होंठ बंद कर दिया। फच्चाक से मेरी गीली चिकनी योनी के संकीर्ण छिद्र को फैलाता हुआ या यों कहिए चीरता हुआ उस कमीने बूढ़े बनमानुष के लिंग का गोल अग्रभाग प्रविष्ट हो गया। आााााह दर्द से मेरी आंखों में आंसु आ गए। चंद सेकेंड रुकने के बाद फिर एक धक्का मारा,” ओहहहह मााा मर गईईई” बूढ़े नें अपना मुह मेरे मुह से हटा कर झट से एक हाथ से मेरा मुह बंद किया और बड़े ही अश्लील लहजे में बोला, “तू चुपचाप शांत रहो बबुनी, हम तोके मरने ना देब, तू खाली हमार लौड़े का कमाल देख, अभी ई तोहरा बूर में आधा घूस गईले है। ले एक धक्का और हुम,” “आाााहहहहह,” मेरी चीख घुट कर रह गई। एक और करारा ठाप मार दिया हरामी नें। उफ मांं मेरी आंखें फटी की फटी रह गई।, सांस जैसे रूक सा गया, पूरा लिंग किसी खंजर की तरह मेरी योनी को ककड़ी की तरह चीरता हुआ जड़ तक समा गया था या यों कहिए कि घुप गया था। कुछ पल उसी अवस्था में रुका, मेरा कौमार्य तार तार हो चुका था। दादाजी नें तो जैसे किला फतह कर लिया था, किसी भैंसे की तरह डकारता हुआ हौले से लिंग बाहर निकाला, मुझे पल भर थोड़ा सुकून की सांस लेने का मौका मिला मगर उस तोंदियल खड़ूस वहशी जानवर के मुंह में तो जैसे खून का स्वाद मिल गया था, खून से सना लिंग पूरी ताकत से दुबारा एक ही बार में भच्च से मेरी योनी के अंदर जड़ तक ठोंक दिया ,” देख रे बुरचोदी बिटिया, अब हम तोहरा के हमार लंड से पूरा मजा देब,” बोलते बोलते फिर ठोका, अब ठोकने की रफ्तार धीरे धीरे बढ़ाता जा रहा था गंदी गंदी गाली निकाल रहा था, “आह मेरी रंडी, ओह बुरचोदी, आज तोहरा बुर को भोंसड़ा बना देब,”मेरे सीने को दबा रहा था नोच रहा था “चूतमरानी, कुत्ती” और अब मुझे यह सब अत्यंत रोमांचित कर रहा था। मुझे दर्द की जगह जन्नत का अनंद मिल रहा था, हर ठाप पर मस्ती से भरती जा रही थी। मैं भी अब बेशरमी पर उतर आई, ” आह दादूू, ओह राजा, आााााााा,हां हाहं,” पता नहीं और क्या क्या मेरे मुह से निकल रहा था। मैं भी ठाप का जवाब ठाप से देने लगी। नीचे से मेरी कमर चल रही थी।मैं समझ गई कि इसे चुदाई कहते हैं और अब मुझे चुदाई का आनंद मिल रहा है। मर्द के लिंग को लंड या लौड़ा कहते हैं और स्त्री की योनी को चूत या बुर कहते हैं। अब मैं बुरचोदी बन गई थी, चूतमरानी बन गई थी, ” चोद राजा चोद,” मेरे मुह से भी मस्ती भरी बातों निकल रही थी, मैं पगली की तरह अपने बुर में घपाघप लंड पेलवा रही थी और यह दौर करीब १५ मिनट तक चला कि अचानक मेरा पूरा बदन कांपने लगा, उधर बूढ़ा भी पूरी रफ्तार से मेरी चूत की कुटाई किए जा रहाथा कि अचानक हम दोनों ने एक दूसरे को कस कर पकड़ लिया और मुझे महसूस होने लगा कि मेरी चूत में गरमा गरम तरल गिर रहा है, मैं भी चरम अनंद में बुड्ढे से चिपक गई, मेरा भी स्खलन होने लगा, यह स्थिति करीब १ मिनट तक रहा फिर दादाजी का विशाल शरीर भी डकारता हुआ निढाल हो गया और इधर मैं भी चरम सुख में आंखें मूंदे निढाल पड़ गई। “कैसा लगा बिटिया” बूढ़ा पूछ रहा था और मैं बेशरमों की तरह बोल पड़ी ” मस्त, मेरे प्यारे चोदू दादाजी” फिर मैं ने खुद ही शरमा कर उनके चौड़े सीने में अपना चेहरा छुपा लिया। बूढ़ा अपनी विजय पर मुस्कुरा उठा और मुझे अपनी बांहों में समेट लिया। उधर घर वाले रात भर शादी में व्यस्त रहे और इधर रात भर में चुदक्कड़ बूढ़े नें अपने विशाल लंड से तीन बार मुझे अच्छी तरह से चोद चोद कर मेरी बूर को पावरोटी की तरह फुला दिया, मेरे सीने के उभारों का ऐसा मर्दन किया कि वह भी नींबू से संतरा बन गए। फिर पूरी तरह थक कर चूर उसी तरह निर्वस्त्र नंग धड़ंग हम दोनों छत पर ही सो गए। मेरे अगल बगल मेरे कपड़े पड़े हुए मुझे मुह चिढ़ा रहे थे। दादाजी की धोती मेरे खून से लाल हो चुकी थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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#5
2...........................
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#6
s1 Shy
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#7
[Image: 1619457589577796-0.png]
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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#8
zxc Angry
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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