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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#61

भाग -57

सुगना के मन में अभी भी कजरी की बात घूम रही थी सुगना मालपुआ खोजने लगी तभी उसे सरयु सिंह की कड़कती पर आत्मीयता से भरी आवाज सुनाई पड़ी

"सुगना बाबू का खोजा तारू?"

"मालपुआ"

"ई त बा"

सरयू सिंह की हथेलियां सुगना की जांघो के बीच आ चुकी थीं।

छोटा सूरज अपनी माँ को इस नए रूप में देख कर आश्चर्य चकित था ..सुगना की आंख सूरज से मिलते ही सुगणा की नींद खुल गयी...



अब आगे…

दरअसल सूरज सरकते हुए नीचे आ गया था वह अपने छोटे-छोटे पैरों से सुगना की जांघों के बीच प्रहार कर रहा था जो अनजाने में ही उसकी भग्नासा से टकरा रहा था। शायद इसी वजह से सुगना की नींद खुल गई थी ।

सुगना जाग चुकी थी पर उसके दिमाग में स्वप्न में देखे गए दृश्य अभी भी कायम थे। अपने स्वप्न में स्वयं को सूरज के समक्ष नग्न रूप में याद कर सुगना मुस्कुराने लगी। उसने सूरज को ऊपर खींच कर अपनी चूचियां पुनः पकड़ाई और सोने की कोशिश करने लगी।

नियति ने सुगना को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया था जहां पंगत में बैठा हर व्यक्ति उसकी निगाहों में अब पवित्र और पावन नहीं बचा था। और जो समाजिक रिश्तों में सबसे पवित्र और पावन था (उसका पति रतन) वह उससे न तो भावनात्मक रूप से जुड़ा था और न हीं बनारस महोत्सव के विद्यानंद के पण्डाल में विद्यमान था।

सुगना की नाव आज दिन भर हिचकोले खाती रही पर किनारे न लग पायी। उसके गर्भ में आ चुका अंडाणु अपने निषेचन का इंतजार कर रहा था। परंतु बनारस महोत्सव का पांचवा दिन समाप्त हो चुका था.


बनारस महोत्सव का छठवां दिन

मुंबई से आ रही बनारस एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में बैठी हुई छोटी बच्ची मिंकी ( रतन और बबिता की पुत्री) खिड़की पर ध्यान टिकाये हुए थी। धान की फसल लहलहा रही थी। मुम्बई में पल रही बच्ची के लिए वह नजारा बेहद खुबसूरत था हरियाली में लिपटी हुई उत्तर प्रदेश की पावन धरती सबका मन मोहने में सक्षम थी। तभी आवाज आई

"ये किसके साथ हैं? एक काले कोट पहने व्यक्ति ने पूछा।

"जी पापा इधर ही गए हैं" मिन्की ने अपनी मीठी आवाज में कहा।

टीटी और कोई नहीं लाली का पति राजेश था। वह बाहर गलियारे में झांकने लगा। रतन अपने ही कूपे की तरफ आ रहा था रतन और राजेश एक दूसरे को बखूबी पहचानते थे।


लाली के विवाह में रतन ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी और राजेश का पूरी इज्जत और सम्मान के साथ स्वागत किया था। वह दोनों एक दूसरे की भरपूर इज्जत किया करते थे। हालांकि यह मुलाकात चंद दिनों की ही हुआ करती थी।

रतन के विवाह और सुगना के अलग रहने के कारण राजेश को रतन का यह व्यवहार कतई पसंद नहीं आता था। वह बार-बार उसे सुगना को मुंबई ले जाने के लिए अपना सुझाव देता पर रतन की परिस्थितियां अलग थी। धीरे धीरे राजेश सुगना पर आसक्त होता गया और वह उसके खयालों में एक अतृप्त युवती की भूमिका निभाने लगी।

"अरे रतन भैया"

रतन ने जबाब न दिया पर अपनी बाहें खोल दीं।

राजेश और रतन एक दूसरे के गले लग गए। यह मुलाकात कई महीनों बाद हो रही थी।


मिंकी के रतन से कहा दिया पापा यह अंकल आपको पूछ रहे थे।

राजेश को इस बात का इल्म न था कि रतन मुंबई में शादी की हुई है मिंकी द्वारा रतन को पापा बुलाए जाने से वह आश्चर्यचकित था उसने रतन से कौतूहल भरी निगाहों से प्रश्न किया रतन उसे थोड़ा किनारे कर एक मीठा झूठ बोल कर अपनी स्थिति को बचा लिया । उसने राजेश को यह बताया वह उसके एक दोस्त की बेटी है जिसकी मृत्यु होने के पश्चात वह उसके साथ ही रह रही है और वह उसे बेटी की तरह पाल रहा है।

राजेश ने कोमल चिंकी की को अपनी गोद में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला..

कितनी प्यारी बच्ची है।

कुछ ही देर में मैं रतन और राजेश खुल कर बातें करने लगे । राजेश ने रतन को बनारस महोत्सव में उसके परिवार के आगमन की खबर दे दी और रतन ने अपने गांव न जाकर बनारस मैं ही उतरने का फैसला कर लिया।


राजेश को यह जानकर थोड़ी खुशी भी हुई कि रतन सब कुछ छोड़ छाड़ कर वापस गांव लौट आया परंतु उसके अंतर्मन में दुख भी था सुगना उसकी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल रही थी।

सूर्य अपनी चमक बिखेर रहा था दोपहर के 12:00 बज रहे थे सुगना के जीवन में चमक बिखेरने के लिए उसका पति रतन वापस आ चुका था विद्यानंद के पांडाल के गेट पर टीन की दो बड़ी बड़ी संदूकें लिए रतन की निगाहें अपनी धर्मपत्नी सुगना को खोज रही थी। जिस धर्म का अनुपालन रतन ने खुद नहीं किया था परंतु देर से ही सही वह अब उसे पूरे तन मन से अपनी पत्नी बनाने को तैयार हो चुका था। परंतु सुगना क्या वह उसे माफ कर अपने पति का दर्जा दे पाएगी?


यह प्रश्न उतना ही कठिन था जितना सुगना का गर्भधारण।

गेट पर खड़े रतन को देखकर कजरी भागती हुयी उसके पास आयी। रतन ने उस के चरण छुए और मां बेटा दोनों गले लग गए।

कजरी ने राजेश की तरफ देखा तभी राजेश ने कहा

"चाची तोहार रतन अब हमेशा खातीर गावें आ गईले खुश बाड़ू नु"

कजरी की आंखों से आंसू बहने लगे अपने पुत्र का साथ पाकर कजरी भाव विभोर हो गई भगवान में उसे उसके व्रत का फल दे दिया था। वह मिंकी को लेकर अंदर गयी और उसे सुगना से मिलवाया।

मिन्की बेहद प्यारी थी यद्यपि वह सुगना की सौतन बबीता की पुत्री थी परंतु मिंकी ने बाल सुलभ चेहरे और कोमलता ने सुगना का मन मोह लिया मिंकी ने आते ही सुगना के पैर छुए और सुगना से कहा

"बाबू जी कहते हैं कि आप बहुत अच्छी हैं" सुगना मिन्की से पहले ही प्रभावित थी उसकी इस अदा से वह उसकी कायल हो गई उसने मिंकी को गोद में उठा लिया और उसके गालो को चुमते हुए बोली

" तुम भी तो केतना प्यारी हो" सुगना ने मिंकी से हिंदी बोलने की कोशिश की।


दूर खड़ा रतन सुगना और मिंकी के बीच बन रहे रिश्ते को देखकर प्रसन्न हो रहा था अचानक सुगना से उसकी निगाह मिली। परंतु दोनों में कुछ तो एक दूसरे से झिझक थी और कुछ परिस्थितियां दोनों अपनी ही जगह पर खड़े रहे।

बनारस महोत्सव का छठवां दिन खुशियां लेकर आया था परंतु भूखी प्यासी सुगना और उसकी अधीर बूर अब भी अपने बाबूजी की राह देख रही थी उसका इंतजार लंबा हो रहा था।

राजेश रतन को पांडाल में छोड़कर वापस अपने घर गया और शाम ढलते ढलते लाली और अपने बच्चों को लेकर वापस विद्यानंद के पांडाल में आ गया आज शाम 6:00 बजे राजेश द्वारा खरीदी गई लॉटरी का ड्रा भी होना था।

गरीब और मध्यम वर्ग हमेशा से चमत्कार की उम्मीद में जीता है राजेश भी इससे अछूता न था। ₹10 से 10 लाख की उम्मीद करना सिर्फ उसके ही बस का था। राजेश आशान्वित अवश्य था पर उसने अपने मनोभाव लाली से छुपा लिए लाली को पांडाल में छोड़कर लॉटरी के ड्रा में पहुंच गया।

एक-एक करके इनाम खुलते गए और हमेशा की तरह राजेश के भाग्य ने उसे वही दिया जिसका वह हकदार था। 10 से 10लाख बनाना न तो राजेश के बस में था और नहीं उसके भाग्य में लिखा था।

प्रथम पुरस्कार की घोषणा होने वाली थी राजेश हतोत्साहित होकर वापस मुड़ने ही वाला था तभी


सूरज का नाम पुकारा गया...

परिसर में लाउड स्पीकर की आवाज घूमने लगी

"सूरज सिंह पुत्र रतन सिंह" जहां कहीं भी हो मंच पर आएं…

उद्घोषणा दो तीन बार होती रही। रतन भागता हुआ स्टेज की तरफ गया और आयोजकों के सामने प्रस्तुत होकर बोला।

"सूरज और उसके माता-पिता अभी यहां नहीं है मैं उन्हें लेकर आता हूं"

आयोजकों ने उसे बताया कि अब से 1 घंटे बाद पुरस्कार वितरण किया जाएगा आप जाकर उन्हें ले आइये। राजेश भागता हुआ पंडाल में पहुंचा।


संयोग से सुगना बाहर ही खड़ी सरयू सिंह की राह देख रही थी। राजेश ने भावावेश में सुगना को दोनों कंधों से पकड़ा और बोला

" सूरज बाबू के लॉटरी निकल गइल 10 लाख रूपया जीतेले बाड़े"


सुगना को राजेश की बात पर यकीन नहीं हुआ।

" काहे मजाक कर तानी"

"साथ सुगना तोहार कसम हम झूठ नइखी बोलत"

सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा उसका मन बल्लियों उछलने लगा।

एक पल के लिए सुगना अपनी भूख प्यास और गर्भधारण को आपको भूल कर इस धन सुख में हो गई वह भाव विभोर होकर राजेश से लगभग लिपट गई परंतु उसे अपनी मर्यादा का ख्याल था उसने राजेश से अपने कंधे तो सटा लिए परंतु अपनी चुचियों और राजेश के सीने के बीच दूरी कायम रखी।

"सुगना टिकट कहां रख ले बाड़ू ?" राजेश ने पूछा..

सुगाना को याद ही नहीं आ रहा था कि उसने उस दिन अपनी चूचियों के बीच छुपाया हुआ टिकट कहां रखा था। वह भागती हुई अंदर गई और अपने संदूक में वह टिकट खोजने लगी सारे कपड़े एक-एक कर बाहर आ गए पर वह टिकट न मिला सुगना पसीने पसीने होने लगी।

व्यग्रता निगाहों को धुंधला कर देती है उसे पास बड़ी चीजें भी दिखाई नहीं पड़ रही थी। तभी उसे वह टिकट अपनी साड़ियों के बीच से झांकता हुआ दिखाई पड़ गया…।

सुगना प्रसन्न हो गई। अब तक कजरी और पदमा भी सुगना के पास आ चुकी थी पूरे पांडाल में एक उत्साह का माहौल हो गया था। सारे लोग सूरज की ही बात कर रहे थे अब तक रतन भी आ चुका था। अपने पुत्र सूरज को गोद में लिए सुगना एक रानी की तरह लग रही थी।

पंडाल में उपस्थित सभी स्त्री पुरुषों की निगाहें सुगना और उसकी गोद में खेल रहे सूरज की तरफ थी।

थोड़ी ही देर में सुगना अपने पुत्र को गोद में लिए लॉटरी के मंच पर उपस्थित थी परिवार के बाकी सदस्य सामने दर्शक दीर्घा में अपने उत्साह का प्रदर्शन कर रहे थे अब तक सोनी मोनी और सोनू भी आ चुके थे। धीरे धीरे सरयू सिंह को छोड़कर उनका सारा परिवार दर्शक दीर्घा में आ चुका था लाली भी अपने बच्चों के साथ उपस्थित थी। उसे सुगना की किस्मत से थोड़ी जलन अवश्य हो रही थी परंतु सुगना उसकी बेहद प्रिय सहेली थी लाली ने अपने प्यार पर जलन को हावी न होने दिया वह खुश दिखाई पड़ रही थी।

इधर सुगना स्टेज पर बैठी पुरस्कार वितरण समारोह प्रारंभ होने का इंतजार कर रही थी उधर दर्शक दीर्घा में खड़ी सोनी अचानक वहां से हटकर किनारे की तरफ जा रही थी। सोनू का दोस्त विकास उसे दिखाई पड़ गया था। दोनों में एक दूसरे के प्रति जाने किस प्रकार का आकर्षण था सोनी के के कदम खुद-ब-खुद विकास की तरफ बढ़ते जा रहे थे।

विकास धीरे-धीरे दर्शक दीर्घा से दूर हो रहा था और सोनी उसके पीछे पीछे। कुछ ही देर में वह दोनों लॉटरी के स्टेज के पीछे आ गए.।

पुरस्कार वितरण देखने के लिए सारे लोग स्टेज के सामने खड़े थे और विकास और सोनी स्टेज के पीछे अपने जीवन का नया अध्याय लिखने जा रहे थे यह एकांत उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था।

सोनी के पास आते ही विकास ने सोनी को अपने आलिंगन में खींच लिया जाने यह विकास का आकर्षण था यार सोनी की स्वयं की इच्छा वह स्वतः ही विकास से सट गई। आज पहली बार नियति को सोनी के मन में उठ रही भावना का एहसास हो गया था सोनी की भावनाएं और तन बदन जवान हो चुका था।

विकास ने बिना कुछ कहे अपने होंठ सोनी के होठों से सटा दिए। सोनी शर्म बस अपने होंठ ना खोल रही थी पर वह ज्यादा देर अपनी भावनाओं पर काबू न रख पायी और उसने अपने निकले हुए विकास के होठों के बीच दे दिए।

अपने पहले पुरुष के स्पर्श को महसूस कर सोनी का रोम रोम उठा जवानी की आग प्रस्फुटित हो उठी। होठों की मिलन ने सोनी को मोम की तरह पिघलने पर मजबूर कर दिया। विकास की हथेलियों ने सोनी की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया सोनी मदहोश हो रही थी। उसके लिए यह एहसास बिल्कुल नया था।

अचानक सोनी को अपनी नाभि में कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ सोनी का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ चला गया उसे उत्थित पुरुष लिंग का एहसास न था और न कभी उसे देखा था। उसकी उंगलियों में संवेदना जागृत हो गई वह उस लिंग को छूना भी चाहती थी और उसे महसूस करना चाहती थी।


परंतु एक किशोरी की भावनाएं हया के अधीन होती हैं वह सोनी की भी थी विकास सोनी की हथेलियों को अपने लण्ड पर ले जाना चाहता था वह वह अपने होंठ सोनी के होठों से हटा नहीं रहा था।

जैसे-जैसे दोनों उत्तेजना के आधीन हो रहे थे सोनी के कोमल वस्त्र विकाश को चुभ रहे थे सोनी के नंगे बदन को छूने की इच्छा लिए विकास उसके लहंगा और चोली के बीच की जगह तलाशने लगा। सोनी की चोली उसकी कमर तक आ रही थी विकास ने अपने हाथ से उसकी चोली ऊपर उठाई और उसकी नंगी पीठ पर अपना हाथ फिराने लगा। अब तक सोनी को ब्रा पहनने की आवश्यकता महसूस न हुई थी उसकी चूचियां संतरे का आकार ले चुकी थी पर अपना भार स्वयं ले पाने में सक्षम थी।


अपनी पीठ पर पुरुष हथेलियों को पाकर सोनी की बुर ताजे कटे फल की तरह रस छोड़ने लगी। कुछ ही देर में विकास की हथेलियों ने सोनी के घागरे में कमर से प्रवेश करने की कोशिश घागरे का कसाव विकास के हाथों को अवरोध पैदा कर रहा था पर कब तक घागरे का नाडा विकास की हथेलियों का दबाव न झेल पाया और विकास की हथेलियां उस प्रतिबंधित क्षेत्र तक पहुंच गई जहां बिना सोनी के सहयोग से पहुंचना असंभव था। विकास की मजबूत उंगलियां दोनों नितंबों के बीच घूमने लगी और बरबस ही उसकी उंगलियों ने सोनी की गांड को छू लिया।

विकास ने न तो आज तक कभी न बुर को छुआ था न गांड। सोनी का वह छेद ही बुर की तरह प्रतीत हुआ वह । अपनी उंगलियों से उसकी गांड को सहलाने लगा।

सोनी मन ही मन चीख चीख कर कह रही थी थोड़ा और नीचे परंतु विकास शायद उसकी मनोभाव समझने में नाकाम था। अंततः सोनी ने अपने हाथों से उसके हाथों को और नीचे जाने का निर्देश दिया। विकास ने थोड़ा आगे झुक कर अपनी हथेलियों को और नीचे किया।

सोनी के बुर से रिस रही चासनी उसकी उंगलियों से छू गई कितना मखमली और कोमल था वह एहसास। सोनी के मुंह से आह निकल गयी।

वह उस अद्भुत रस के स्रोत की तरफ बढ़ चला कुछ ही देर में विकास की उंगलियों ने उस अद्भुत गुफा को छू लिया जिसकी तमन्ना में वह कई दिनों से तड़प रहा था। विकास की उंगलियां सोनी की बुर में अपनी जगह तलाशने की कोशिश करने लगी।


परंतु उन दोनों की यह अवस्था इस कार्य में विघ्न पैदा कर रहे थी। विकास ने सोनी को घुमा कर उसकी पीठ अपनी तरफ कर ली और अपने हाथों को आगे से उसके घागरे के अंदर कर दिया।

दोनों जांघों के बीच उसकी हथेलियां जिस स्पर्श सुख को प्राप्त कर रही थी अकल्पनीय था। हल्की रोजेदार बुर पर हाथ फिरा कर विकास एक अलग एहसास में डूब चुका था। वह एक हाथ सोने की चुचियों ने ठीक नीचे रखे हुए उसे सहारा दिया हुआ था और दूसरे हाथ से उसकी जांघों के बीच बुर पर अपना हाथ फिरा रहा था । सोनी कभी अपनी जाने से कुर्ती कभी थोड़ा फैला देते विकास की उंगलियों को अपनी इच्छा अनुसार मार्गदर्शित करना चाहती थी।

विकास की उंगलियां बरबस ही उसकी बुर के अंदर प्रवेश करने लगी सोनी मैं आह भरते हुए कहा

"बस इतना ही... तनी धीरे से ….दुखाता "

विकास ने अपने हाथों को रोक लिया और अपनी उंगलियों से बुर् के होठों को सहलाते हुए बुर की रूपरेखा को समझने का प्रयास करने लगा। गुलाब की पंखुड़ियों को फैलाते फैलाते व उसके केंद्र में जाने की कोशिश करता परंतु सोनी की कराह सुनकर अपनी उंगलियां रोक लेता।

उसका लण्ड लगातार सोनी के नितंबों में छेद करने का प्रयास कर रहा था । सोनी के दोनों हाथ अभी खुद को बचाने में ही लगे हुए थे वह एक हाथ अपनी चुचियों पर रखे हुयी विकास के हाथ को ऊपर बढ़ने से रोक रही थी और दूसरा हाथ विकास की हथेलियों पर रखकर कभी उसे अपनी बुर से दूर करती कभी हटा लेती अजीब दुविधा में थी सोनी।

विकास ने अपनी पेंट का चैन खोलकर लण्ड को बाहर निकाल लिया उससे अब और तनाव बर्दाश्त नहीं हो रहा था। लण्ड बाहर आने के बाद और भी उग्र हो गया। सोनी के नितंबों पर दबाव और बढ़ गया था। सोनी को थोड़ा असहज लगा उसने अपना हाथ पीछे किया और उस लिंग को अपने से दूर करने की कोशिश की और उसकी कोमल हथेलियों ने अपने से भी कोमल अंग को छू लिया। लण्ड की कोमल त्वचा उसे अभिभूत कर गई।

एक तरफ तो वह उसके तनाव से आश्चर्यचकित थी दूसरी तरफ उसकी मुलायम त्वचा। लण्ड का जादुई एहसास सोनी के आकर्षण का केंद्र बन गया। उसने अपनी कोमल हथेलियों मैं उस लण्ड को लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी। तनाव का आकलन करते करते उसने विकास के लण्ड को कुछ तेजी से दबा दिया।

विकास के मुंह से मादक आह निकल गयी उसने सोनी के कानों को चूम लिया और बेहद प्यार से बोला..

"तनी ...धीरे से दुखाता"

सोनी मुस्कुरा उठी उसने धीरे से कहा

"हमारो"

दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे की बातों से मुस्कुरा उठे। दोनों के ही हाथ एक दूसरे की दुखती रग पर थे। एक दूसरे के जननांगों का यह स्पर्श उन दोनों को उत्तेजना के चरम पर ले आया। सोनी की चूचियां अभी भी विकास के स्पर्श का इंतजार कर रही थी। सोनी ने अपनी निगोड़ी बुर को बेसहारा छोड़ अपनी हथेली को विकास के दूसरे हाथ पर ले आई और उसे ऊपर बढ़ने का न्योता दे दिया ।

विकास सोनी की बुर में ही खोया हुआ था उसे पता ही नहीं था कि चुचियों की कोमलता क्या होती है। उसने हाथ बढ़ाएं और सोने की चूची को अपने हाथ में ले लिया। विकास के दोनों ही हाथों में लड्डू आ चुके थे। एक हाथ से वह उसकी चूचियां सहलाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी बुर। कभी वह अनजाने में सोनी की भग्नासा को छूता कभी उसके निप्पल को। भग्नाशा का वह दाना अपने सोश मात्र से सोनी में थिरकन पैदा कर देता।


जितना ही वह उत्तेजित होती उतनी ही कोमलता से विकास के लण्ड को सहलाती।विकास दोहरी उत्तेजना में था किशोरी की बुर और चूची सहलाते हुए वह बेहद उत्तेजित हो गया था और सोनी की हथेलियों का स्पर्श पाकर वह स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार हो गया।

सोनी की बुर भी अब और बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में नहीं थी । उसकी बुर ने प्रेम रस उगलना शुरू कर दिया सोनी थरथर कांप रही थी और स्खलित हो रही थी। अपनी उंगलियों पर आए प्रेम रस से और उत्तेजित होकर विकास के लण्ड ने भी अपना लावा उगलना शुरू कर दिया ।

सोनी की हथेलियों में चिपचिपा द्रव्य लगने लगा। सोनी ने अपने हाथ हटा लिए परंतु वीर्य उसकी उंगलियों पर लग चुका था।

विकास ने अपने स्खलन के दौरान अपने हाथ को सोनी की बुर पर से हटाकर अपने लण्ड पर ले आया और अपने हाथों में लेकर हिलाने लगा इस कला का वह पुराना खिलाड़ी था। उसे पता था इस दौरान अपना हाथ किसी बजी अन्य हाथ से अधिक सुख देता है...हा बुर की बातअलग है जिसका इल्म अब्जी विकास को न था।

सोनी तृप्त हो चुकी थी । विकास के हाथ हटाने से वह विकास की पकड़ से आजाद हो गई वह विकास की तरफ मुड़ गई। और उसके हाथ में आए लण्ड को ध्यान से देखने लगी। विकास लगातार अपने लण्ड को तेजी से हिलाए जा रहा था और वीर की धार हवा में फैल रही थी विकास में अपनी बंदूक का मुंह सोनी की तरफ कर दिया। और सोनी उस से निकल रही धार से बचने का प्रयास करने लगे परंतु प्रेम रस के छींटे उसके शरीर पर पड़ चुके थे।

जब तक विकास सचेत हो पाता सोनी भागकर स्टेज के सामने अपने परिवार के बीच पहुंच गई। अपनी उंगलियों पर लगे वीर्य को सोनी अपनी तर्जनी और अंगूठे से छूकर महसूस कर रही थी। यह द्रव्य उसे वैसा ही प्रतीत हो रहा था जो आज सुबह उसने लाली के बिस्तर पर छुआ था। सोनी मन ही मन सोचने लगी क्या लाली दीदी के बिस्तर पर गिरा हुआ चिपचिपा द्रव्य यही था। पर किसका? राजेश जीजू तो घर में थे नहीं... तो क्या सोनू भैया का? हे भगवान….. क्या सोनू भैया भी यह सब करते हैं….? और उन्होंने यह सब किया कैसे होगा ??? लाली दीदी तो घर पर ही थी. सोनी का दिमाग चकराने लगा. उस बेचारी को क्या पता था सोनू इस कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुका था। तभी सोनू ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला

"कहां चली गई थी…?"

सोनी ने कोई उत्तर न दिया। वह अपने कपड़े सहेजने लगी और एक बार फिर अपने कपड़े पर लगे विकास के वीर्य को अपनी उंगलियों में महसूस किया। सोनी शर्म वश सोनू से दूर आकर मोनी के पास खड़ी हो गई और पुरस्कार वितरण समारोह का आनंद लेने लगी।

स्टेज पर सुगना के साथ राजेश भी उपस्थित था। सुगना ने स्वयं ही उसे ऊपर अपने साथ चलने के लिए अनुरोध किया था। एक तो लॉटरी की टिकट उसने स्वयं खरीदी दूसरे सुगना अकेले ऊपर जाने में घबरा रही थी वहां उपस्थित व्यक्तियों में अभी राजेश ही सबसे ज्यादा करीब था रतन से भी ज्यादा।

अपने लोक लाज के कारण उसने लाली को भी ऊपर चढ़ने के लिए कहा था परंतु राजेश ने उसे रोक लिया स्टेज पर एक साथ इतने व्यक्तियों के जाने स्थिति असहज हो सकती थी।

पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया था तृतीय द्वितीय पुरस्कारों को बांटने के पश्चात आखिरी बारी सुगना पुत्र सूरज की थी। सूरज का नाम आते ही सुगना खुश ही गयी। आयोजक मंडल के कई सदस्य फूल माला लेकर सुगना की तरफ बढ़ने लगे सुगना भाव विभोर हो उठी। उसे अपने जीवन में इतना सम्मान कभी नहीं मिला था। देखते ही देखते सुगना फूल मालाओं से लद गई। उसका कोमल और कांतिमय चेहरा और खिल गया। सुबह से भूखी प्यासी सुगना के चेहरे पर चमक आ गई थी।

तभी आयोजक मंडल का एक सदस्य हाथ में मिठाई लिए सुगना को खिलाने पहुंचा तभी सुगना को अपने व्रत की याद आ गई उसने लड्डू खाने के लिए मुंह तो जरूर खोला परंतु रुक गई...

"आज हमारा व्रत है" कह कर उसने उस व्यक्ति को रोक लिया राजेश ने धीरे से पूछा सुगना आज कौन सा व्रत है सुगना मन ही मन मुस्कुरा उठी परंतु उसका उत्तर देना बेहद कठिन था।

सुगना की आंखें भीड़ में सरयू सिंह को खोज रही थी परंतु वह अब तक बनारस महोत्सव नहीं पहुंचे थे सुगना की सारी खुशियां सरयू सिंह से जुड़ी थी जब तक वह बनारस महोत्सव में आकर उसे गर्भवती ना करते उसकी मनो इच्छा पूरी ना होती….

सुगना के जीवन में आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था सुगना जैसी युवती के लिए 10 लाख रुपए एक वरदान से कम न थे और यह वरदान भगवान ने राजेश के हाथों से प्रदान कर आया था। राजेश द्वारा लाया गया वह लाटरी का टिकट सुगना और उसके परिवार कि जिंदगी सवाँरने के लिए काफी था। पूरा परिवार हंसी खुशी वापस विद्यानंद के पंडाल में आ गया पर सुगना की निगाहें अभी भी पंडाल के गेट की तरफ लगी हुई थी अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी…


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उधर आज सलेमपुर में सुबह सुबह सरयू सिंह के घर पर डाकिया खड़ा था वह मुंबई से रतन द्वारा भेजा गया पार्सल लेकर आया था। सरयू सिंह के गांव में आने की खबर उसे भी लग चुकी थी उस खबर में मनोरमा की गाड़ी का विशेष योगदान था। इन दिनों सरयू सिंह की किस्मत जोरों पर थी वह गांव में मनोरमा की गाड़ी में दिखाई पड़ते उनका शारीरिक कद तो पहले भी ऊंचा था और अब उनका सामाजिक कद भी बढ़ चुका मनोरमा द्वारा दी गई पदोन्नति ने भी अपना योगदान दिया था।

"सरयू भैया लागता रतन भेजले बाड़े"

डाकिए ने मुंबई का पता देखकर अंदाज लगा लिया था सरयू सिंह ने वह पार्सल लिया और अपनी दालान में रख कर उसे खोलने लगे।

सूरज के लिए ढेर सारे खिलौने देखकर वह खुश हो गए और मन ही मन रतन को धन्यवाद दिया पार्सल में पड़े बंद लिफाफे पर सुगना का नाम देखकर वह आश्चर्यचकित थे रतन ने सुगना को पत्र क्यों लिखा? सरयू सिह यह भली-भांति जानते थे की रतन और सुगना में कोई संबंध नहीं है फिर उसे खत लिखने का क्या औचित्य था ? सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना को किसी और से साझा नहीं करना चाहते थे? उनकी बहू अब उनकी अर्धांगिनी तो न सही पर उनके जीवन का अभिन्न अंग हो चली थी ।

रतन के खत को हाथों में लिए वह उसे खोलने और न खोलने के बीच निर्णय नहीं ले पा रहे थे। यह खत एक पति द्वारा अपनी पत्नी को लिखा गया था परंतु पति पत्नी में कोई संबंध नहीं थे। सरयू सिंह को सुगना अपने हाथों से फिसलती हुए प्रतीत हो रही थी। वह सुगना को किसी भी हाल में खोना नहीं चाहते थे। अंततः वह खत खोल दिया और उसे पढ़ने लगे..


(पुरानी पोस्ट से उधृत)

मेरी प्यारी सुगना,

मैंने जो गलतियां की है वह क्षमा करने योग्य नहीं है फिर भी मैं तुमसे किए गए व्यवहार के प्रति दिल से क्षमा मांगता हूं तुम मेरी ब्याहता पत्नी हो यह बात समाज और गांव के सभी लोग जानते हैं मुझे यह भी पता है कि मुझसे नाराज होकर और अपने एकांकी जीवन को खुशहाल बनाने के लिए तुमने किसी अपरिचित से संभोग कर सूरज को जन्म दिया है मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है मैं सूरज को सहर्ष अपनाने के लिए तैयार हूं वैसे भी उसकी कोमल छवि मेरे दिलो दिमाग में बस गई है पिछले कुछ ही दिनों में वह मेरे बेहद करीब आ गया और मुझे अक्सर उसकी याद आती है।

मुझे पूरा विश्वास है की तुम मुझे माफ कर दोगी मैं तुम्हें पत्नी धर्म निभाने के लिए कभी नहीं कहूंगा पर तुम मुझे अपना दोस्त और साथी तो मान ही सकती हो।

मैंने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया है बबीता से मेरे रिश्ते अब खात्मे की कगार पर है मैं उसे हमेशा के लिए छोड़कर गांव वापस आना चाहता हूं यदि तुम मुझे माफ कर दोगी तो निश्चय ही आने वाली दीपावली के बाद का जीवन हम साथ साथ बिताएंगे।


तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में।

सरयू सिंह की दुविधा और बढ़ गई। रतन सुगना के करीब आना चाह रहा था यह सुगना के भविष्य के लिए निश्चित ही एक सुखद मोड़ था यह अलग बात थी कि सुगना रतन के प्रति कोई संवेदना नहीं रखती थी परंतु पिछली 1 -2 मुलाकातों में सुगना और रतन आपस में एक दूसरे से बातचीत करने लगे थे वह दोनों धीरे-धीरे खुल रहे थे यह बात सरयू सिंह जानते थे।

राहत कार्य में लगे सिक्युरिटीकर्मी आ चुके थे और सरयू सिंह के एक बार फिर सलेमपुर में आई प्राकृतिक आपदा के राहत कार्य में व्यस्त हो गये। कार्य के दौरान समय का पता ही ना चला और देखते देखते शाम हो गई।

सरयू सिंह ने अपनी काबिलियत के बल पर मनोरमा द्वारा दिया गया कार्य पूरी कुशलता से समाप्त कर लिया था और वह अब एक भी पल सलेमपुर में रुकना नहीं चाहते थे। बनारस महोत्सव के दौरान ही वह अपनी प्यारी सुगना को अपनी बाहों में लेकर जी भर प्यार करना चाहते थे। मनोरमा ने अपने कमरे की चाबी देकर बनारस महोत्सव में उनके और सुगना के लिए कामक्रीड़ा का मैदान तैयार कर दिया था परंतु यह दुर्भाग्य ही था कि वह पिछले 5 दिनों में सुगना के दूसरे क्षेत्र का उद्घाटन न कर सके थे।

अंधेरा हो रहा था उन्होंने ड्राइवर को लालच किया और वह मन में उम्मीदें और लण्ड में तनाव लिए बनारस महोत्सव की तरफ बढ़ चले। रास्ते में सलेमपुर बाजार में रोक कर उन्होंने अपने वैद्य से शिलाजीत की वह दवाई भी ले ली जिसका लाभ वह सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के समय लेना चाह रहे थे। सुगना की कसी हुई गांड का उन्हें अंदाजा था वह किसी भी हाल में अपने लैंड के तनाव को कमनहीं करना चाह रहे थे। सुगना का कसे छेद को भेदने के लिए वह अपनी तलवार में पूरी तरह धार लगा रहे थे।


उनकी असफलता उनके स्वाभिमान को हमेशा के लिए गिरा सकती थी। सुगना के कसी गांड को ध्यान कर उन्हें सुगना के कौमार्य हरण के दिन की घटना याद आ गई जब उन्होंने अपनी उंगलियों को कजरी द्वारा बनाए गए मक्खन से सराबोर कर उसकी कौमार्य झिल्ली को तोड़ा था।

सरयू सिंह हलवाई की दुकान पर जाकर थोड़ा मक्खन भी खरीद लाए। सरयू सिंह के झोले में आज रात को रंगीन करने के सारे हथियार उपलब्ध थे।

रतन द्वारा सुगना के लिए भेजा गया खत भी उसी झोले में एक तरफ पड़ा हुआ था । ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रतन की भावनाएं उस झोले में किनारे पड़ी हुई थी और उसकी पत्नी को चोदने तथा उसका भोग करने के लिए सरयू सिह अपने अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा कर रहे थे।

उन्होंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह सूरज को कजरी के हवाले कर सुगना को लेकर मनोरमा के कमरे में चले जाएंगे और रात भर अपने सारे अरमान शांत करेंगे।
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#62
भाग -57 - a

बनारस पहुंचते-पहुंचते रात के 7 बज गए। सरयू सिंह फटाफट नीचे उतरे और तेज कदमों से कजरी को खोजते हुए महिला पांडाल में पहुंच गए..

धोती कुर्ता में सजे धजे शरीर सिंह एक पूर्ण मर्द की तरह पंडाल के गेट से प्रवेश कर रहे थे।


परिवार के पूरे सदस्य एक साथ बैठे हुए थे मिठाइयों का दौर चल रहा था। सरयू सिंह को देखकर सुगना की बांछें खिल उठी वह लोक लाज छोड़कर भागती हुई सरयू सिंह की तरफ गई और बेझिझक उनके आलिंगन में आ गई। सरयू सिंह को देखकर सुगना के मन में जो भाव उठ रहे थे वह बेहद निराले थे कुछ पलों में ही वह यह भूल चुकी थी कि वह आज की सबसे भाग्यशाली महिला थी। सरयू सिंह के आगमन ने उसके सारे अरमान पूरे कर दिए थे

वह सरयू सिंह से अमरबेल की तरह लिपट गई सरयू सिंह लॉटरी के परिणाम से अनजान थे सुगना का यह प्रेम देखकर वह भी भावविभोर हो उठे और उन्होंने सुगना को अपने आलिंगन में कस लिया। चुचियों के निप्पल जब उनके सीने पर गड़ने लगे तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह पूरे पांडाल के बीच अपनी बहू को अपने आलिंगन में अपनी पत्नी की भांति सटाए हुए हैं। उन्होंने ना चाहते हुए भी सुगना को अलग किया और उसके माथे को चुमते हुए धीरे से बोले..

"हमार सुगना बेटा बहुत खुश बिया"

अब तक कजरी भी उनके समीप आ चुकी थी उसकी पारखी निगाहें सरयू सिंह और सुगना के आलिंगन मैं आए काम भाव को समझ चुकी थी। इससे पहले की उन दोनों के आलिंगन को कोई और अपनी गलत निगाहों से देखता कजरी ने कहा..

"अरे सूरज बेटा के 10 लाख के लाटरी लागल बा सुगना एहीं से गदगद बाड़ी"

10लाख का नाम सुनकर सरयू सिंह की भी आंखें बड़ी हो गई उन्होंने एक बार फिर सुगना को अपने सीने से सटा लिया परंतु इस पर उन्होंने मर्यादा ना तोड़ी।

सरयू सिंह ने अपने झोले से लड्डू निकाला सुगना ने अपना मुंह खोला और सरयू सिंह के हाथों दिया लड्डू खा लिया। राजेश यह देखकर बेहद आश्चर्यचकित था कि सुगना ने अपना व्रत भूलकर वह लड्डू कैसे खा लिया । उसे क्या पता था सुगना कि जीवन में खुशियां और गर्भाशय में बीज डालने वाले सरयू सिंह आ चुके थे सुगना का व्रत पूर्ण हो गया था।

पूरा परिवार एक साथ बैठकर परिवार में आए खुशियों का आनंद ले रहा था तरह-तरह की बातें हो रही थी।


सोनी मोनी तथा सोनू इतने सारे पैसों के बारे में सोच सोच कर ही उत्साहित थे अचानक उन्हें अपनी सुगना दीदी एक महारानी जैसी प्रतीत हो रही थी।

कजरी सरयू सरयू सिंह के पास गई और उनसे कुछ पैसे लेकर पांडाल की रसोई में चली गई वहां पर उसने कारीगरों से पूरे पांडाल के लिए मालपुआ बनाने का अनुरोध किया और उसके सारे खर्च का वहन स्वयं करने की इच्छा व्यक्त की।


पांडाल के कारीगरों ने उसे निराश ना किया सारी व्यवस्थाएं बनारस महोत्सव में पहले से ही मौजूद थीं। वैसे भी जब धन पर्याप्त हो तो व्यवस्थाएं तुरंत ही अपना आकार ले लेती हैं ।

कुछ ही देर में विद्यानंद के पंडाल में मालपुआ बनने लगा जिसकी सुगंध प्यूरी पंडाल में फैल गयी। सुगना के हर्षित और प्रफुल्लीत होने के कारण उसकी जांघो के बीच छूपा मालपुआ भी गर्म हो गया। सुगना अपनी मादक खुशबू बिखेरते हुए अपने परिवार के सदस्यों से मिल रही थी। उससे आसक्त सभी लोग रह रह कर अपने लिंग में तनाव महसूस कर रहे थे। सोनू भी सुगना के कॉलेज में दाखिला लेने के लिए राह राह कर सुगना को निहार रहा था पर नजरें मिलने से कतरा रहा था।

इस बात की खबर पंडाल मैं रहने वाले सभी श्रद्धालुओं को हो गई कजरी ने यह निर्णय लेकर सभी को खुश कर दिया था आज सुगना के परिवार को एक विशेष स्थान दिया जा रहा था।


खाने की पंगत बैठ चुकी थी पंगत पर रतन राजेश सोनू सरयू सिंह और उनकी गोद में सूरज बैठा हुआ था। कजरी ने सुगना से मालपुआ परोसने के लिए कहा सुगना ने अपने स्वप्न में जो दृश्य देखा था अचानक व उसकी आंखों के सामने आ गया था….

बिल्कुल यही दृश्य……. वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि स्वप्न में देखे गए दृश्य सच हो सकते हैं । अगले ही पर सुगना सिहर उठी क्या वह स्वप्न उसी तरह पूर्ण होगा ? वह घबरा गई उसने अपनी ब्लाउज को सहेजा और साड़ी की गांठ को व्यवस्थित किया. पूर्ण मर्यादित तरीके से वह रतन की थाली में मालपुआ देने लगी। सुगना की भरी भरी सूचियां छुपने लायक न थी बरबस ही रतन की निगाह उसकी चुचियों से टकरा गई। स्थिति कमोवेश स्वप्न जैसी ही हो गई थी परंतु उसका ब्लाउज गायब ना हुआ था। सुगना संतुष्ट थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। रतन ने पुआ खाते हुए पूछा ...

"आज तहरा के खुश देख कर बहुत अच्छा लगता"

सुगना ने भी उसे मुस्कुराते हुए छेड़ा

"का अच्छा लगाता हम की पुआ?"

सभी मुस्कुरा उठे परंतु सरयू सिंह थोड़ा चिंतित दिखाई पड़ रहे थे। सुगना अपने पति के साथ थी परंतु सरयू सिंह के मन में खोट थी वह सुगना को अपनी मुट्ठी से फिसलते नहीं देखना चाह रहे थे।

राजेश और सोनू की थाली में पुआ डालते समय सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य नाचने लगे जो वह स्वप्न में देखी थी वह लगातार अपनी कोहनी से अपनी साड़ी को व्यवस्थित की हुई थी ऊपर वाले में उसकी सुन ली थी उसके साथ स्वप्न में हुई घटनाएं नहीं हो रही थी परंतु अपने दिमाग में वह उन दृश्यों को अवश्य कल्पना कर रही थी।


सोनू की थाली में पुआ रखते समय सुगना को अपने स्वप्न में पूर्ण नग्न होने की याद आ गई उसका दिमाग विचलित हो गया ... वह कुछ देर के लिए जड़ हो गई तभी सरयू सिंह ने कहा...

" कुल पुआ अपना भाई यह के खिला देबु?" सरयू सिह ने यह बात उ ही कह दी थी। उसमें कोई और अर्थ न था। सोनू और सुगना के बीच आज हुए घटनाक्रम से वह अनजान थे।

सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुरा उठी वह उनके पास गयी उनकी थाली में मालपुआ रखा और एक मालपुआ उठाकर सूरज के हाथ में पकड़ा दिया जो अपने होंटो से चूस चूस कर उसकी मिठास का आनंद लेने लगा..

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना द्वारा दिए गए मालपुए को सभी संभावित पात्र बेहद चाव से खा रहे थे सभी के मन में किसी न किसी रूप में सुगना का मालपुआ आकर्षण का केंद्र बना था। होंठो में मिष्ठान और दिमाग मे सुगना के जांघो के बीच मालपुए पर ध्यान धरे सभी आंनद में थे।


सोनू ने आज सुबह की घटना को अपने मन में कई बार दोहराया था और अपने अवचेतन मन में किसी न किसी रूप में सुगना के प्रतिबंधित मालपूए की कल्पना कर ली थी।

सिर्फ सूरज ही ऐसा था जिसे सुगना की जांघों के बीच के पुए से अभी कोई सरोकार न था वह उसके द्वारा दिए गए मीठे मालपुए में ही खुश था।

खानपान का समारोह खत्म होने के बाद सरयू सिंह ने कुछ पलों के लिए सुगना के साथ एकांत पा लिया उन्होंने कहा

"सुगना बाबू बनारस महोत्सव असहीं बीत जायी का? तोहार वादा पुराना होइ?"

"आपे त छोड़कर भाग गईल रहनी हां ...हम तक कबे से इंतजार कर तानी…"

"ठीक बा हम जा तानी मनोरमा के कमरा ठीक करके आवा तानी आज रात हमनी के ओहिजे रहे के.".

सुगना पूरी तरह तैयार थी परंतु उसने सरयू सिंह से कहा "और ए जा सब केहू बा का सोची लोग ?"


"तू कजरी से बता दिया उ संभाल लीहें…"

सुगना भी अब लोक लाज की चिंता छोड़ कर आज अपने बाबु जी से चुदने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई थी। उसने मन ही मन सोच लिया था कि यदि आज उसने अपने बाबू जी से संभोग कर गर्भधारण न किया तो जिन परिस्थितियों का सामना उसे आने वाले समय में करना पड़ता वह बेहद ही शर्मनाक होती।


आज अपने बाबूजी के साथ रात बिताने और उससे उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को तो कजरी किसी न किसी प्रकार संभाल ही लेती।

सरयू सिंह मन में उमंग लिए और सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के लिए अपना झोला लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चले गए….।

Heart



इधर अचानक बनारस महोत्सव का मौसम खराब होने लगा। यह पूर्ण अप्रत्याशित था। देखते ही देखते बनारस महोत्सव घने बादलों से घिर गया हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लगी जो कुछ ही देर में घनघोर बारिश का रूप ले ली। सरयू सिंह भागते हुए मनोरमा के कमरे तक पहुंच तो गए परंतु इतनी तेज बारिश कि उन्हें उम्मीद न थी।

इधर सूरज कुछ गुमसुम हो रहा था शायद मालपुआ के घी की वजह से वह असहज महसूस कर रहा था अचानक उसके मुंह से झाग आने लगा। सूरज की तबीयत अचानक बिगड़ गई। कजरी तरह-तरह के जतन कर उसे सामान्य करने की कोशिश कर रही थी।। सुगना अंदर अपने रात्रि प्रवास का सामान इकट्ठा कर रही थी तभी सोनी ने उसे आकर सूरज के बारे में बताया सुगना के होश उड़ गए। वह भागती हुई कजरी के पास गयी और सूरज को अपनी गोद में लेकर उसे सामान्य करने का प्रयास करने लगी। परंतु स्थिति गंभीर थी। सुगना थर थर कांप रही थी।





"कोई डॉक्टर के बोलावा लोग"

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….



शेष अगले भाग में...
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#63
भाग -58

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….

अब आगे....

मूसलाधार बारिश हो रही थी। सरयू सिंह अपनी बहू की सेज सजा कर उसके छेद का उद्घाटन करने की पूरी तैयारी कर चुके थे। मौका देखकर उन्होंने शिलाजीत का सेवन भी कर लिया था। हथियार में धार और दिल में प्यार लिए वह बारिश के रुकने का इंतजार करने लगे। रह रह के बस मक्खन को देखते जिसकी मदद से उन्हें सुगना की मखमली गांड का उद्घाटन करना था.. वह पंडाल में आई विपत्ति से पूरी तरह अनजान थे।

राजेश ने हिम्मत जुटाई और वह भागकर भीगते हुए मेला प्रबंधन केंद्र की तरफ गया।

उधर सोनू ने बनारस महोत्सव आते जाते एक डॉक्टर का घर देखा था वह भीगता हुआ उस डॉक्टर के घर की तरफ दौड़ पड़ा यहअलग बात थी कि सोनू के जाने से वह डॉक्टर कतई बनारस महोत्सव नहीं आता परंतु सोनू अपनी बहन और भतीजे को उस दुख में देख नहीं सकता था।

रतन तो निर्विकार और निरापद था। वह भी पंडाल से बाहर निकल गया इतने दिनों तक मुंबई में रहने के कारण उसका बनारस शहर से संपर्क टूट गया था वह बाहर निकल कर लोगों से मदद मांगने लगा….

जब तक कजरी सरयू सिंह को बुलाने के लिए कह पाती तब तक तीनों मर्द अलग-अलग दिशाओं में जा चुके थे। सुगना भी कातर निगाहों से पंडाल के गेट की तरफ देख रही थी काश उसके बाबूजी आ जाते और अपने पुत्र को अनजान विपत्ति से निकालने में उसका सहयोग करते।

आखिरकार राजेश ने सफलता पाई और मेला प्रबंधन से एंबुलेंस प्राप्त करने में सफल हो गया कुछ ही देर में एंबुलेंस विद्यानंद के पंडाल के सामने खड़ी थी सुगना सूरज को लेकर एंबुलेंस में बैठ गई उसका साथ देने के लिए कजरी जाने लगी तभी लाली ने कहा..

"चाची तू रहे तो हम जा तानी ओहिजा कुछ काम पड़े त हम संभाल लेब तू ई दोनों बच्चा के संभाल ल"

उसने अपने दोनों बच्चों राजू और रीमा से कहा

"नानी के तंग मत करिहा लोग और अच्छा से रहीह लोग"

राजू और रीमा को पांडाल में बहुत आनंद आता था वह दोनों सहर्ष रुक गए और लाली सुगना और सूरज के साथ एंबुलेंस में बैठ गई। राजेश ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ गया। एम्बुसेन्स सांय सांय करती हॉस्पिटल की तरफ बढ़ गयी।

सूरज की तबीयत सचमुच खराब हो गई थी सुगना ने अपने जीवन में यह दिन कभी नहीं देखा था। आज मिले अकस्मात धन की खुशियां एक पल में ही काफूर हो गई थी। माता के लिए पुत्र से बड़ा कोई धन नहीं होता है आज सूरज विपत्ति में था और सुगना का हृदय व्यथित।

हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर ने सूरज का निरीक्षण किया और यह बात सच थी वाकई मालपुए की वजह से उसे उल्टियां शुरू हो गई थी कजरी द्वारा बनवाया गया मालपूआ उसे रास ना आया था।

डॉक्टर ने उसे कुछ दवाइयां दी और थोड़ी ही देर में सूरज भला चंगा हो गया रात के 10:00 बज चुके थे बाहर अभी भी बारिश हो रही थी।

हॉस्पिटल से राजेश की घर की दूरी कम थी जहां आसानी से जाया जा सकता था बनारस महोत्सव वापस जाना बेहद कठिन था।

सुगना लाली और राजेश के साथ उनके घर आ गई सूरज को सामान्य होते थे उसके चेहरे पर खुशियां स्पष्ट दिखाई देने लगी थी वह अब लाली और राजेश से खुलकर बात कर रही थी । लाली के घर पहुंच कर उसे सरयू सिंह की याद आई और वह एक बार फिर परेशान हो गई काश वह अपनी स्थिति सरयू सिंह को बता पाती काश उसके बाबूजी कैसे भी करके यहां लाली के घर आकर उसे ले जाते।

"का सोचतारे भीगल बाड़े कपड़ा बदल ले फेर सोचिहे" लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला.

सुगना ने तो सूरज को तो अपने आंचल में ढककर भीगने से बचा लिया था परंतु तीनों वयस्क इंद्रदेव की रिमझिम बारिश से न बच पाए थे।

लाली अंदर गई और अपने संदूक से दो नाइटी लेकर बाहर आ गई उसने सुगना को देते हुए कहा..

"कौन वाला पहिनबे?

सुगना ने देखा एक नाइटी उत्तेजक थी और दूसरी बेहद उत्तेजक। दोनों ही नाइटी प्रेमी जोड़ों के लिए ही बनी थी सुगना ने कहा

"और दूसर नइखे"

"सब त भीग गइल बा…"

बारिश के कारण लाली द्वारा बाहर सुखाने के लिए डाले गए कपड़े भी भीग चुके थे।

राजेश दोनों नाइटियो को देख कर खुद भी उत्तेजित हो रहा था। वह उन दोनों के बीच से हट गया और जाकर अपने कपड़े बदलने लगा। परंतु अपने इष्ट देव से वह मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि सुगना लाली की बात मानकर कोई भी एक नाइटी पहन ले।

सुगना के खूबसूरत शरीर को उस नाइटी में देखने की कल्पना कर राजेश मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। उसका लण्ड उछलने लगा।

आज उसने सुगना और सूरज की जी भर कर सेवा की थी। उसके छोटे से योगदान ने सूरज के तकदीर में ₹10 लाख का एक ऐसा विशाल धन ला दिया था जो सुगना के परिवार के जीवन स्तर को सुधारने में एक महती भूमिका अदा कर सकता था। सुगना आज राजेश के प्रति कृतज्ञ थी। राजेश ने उसके पुत्र की जान बचा कर आज उसने उसके जीवन में एक ऐसे पुरुष की भूमिका निभाई थी जो पति तुल्य थी।

कुछ ही देर में लाली और सुगना बेहद सुंदर नाइटियो में लाली की रसोई में दूध गर्म कर रहीं थी।

राजेश हाल के बिस्तर पर बैठा सूरज के साथ खेल रहा था और उन दोनों खूबसूरत सुंदरियों को देख रहा था परंतु उसकी निगाहें सुगना से ना हट रही थी।

आज राजेश के दोनों हाथों में लड्डू थे उसकी खूबसूरत पत्नी लाली और मदमस्त सुगना आह ….ऐसा मादक अहसास….खूबसूरत और पतली झीनी नाइटी से दोनों ही सुंदरियों के बदन का उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था । शरीर के ऐसे कटाव ग्रामीण परिवेश में ही देखने को मिलते हैं या फिर फिल्मों में। मध्यमवर्ग की अधिकतर महिलाएं चाह कर भी वह कसाव नहीं पा पातीं खासकर बच्चा होने के बाद।

राजेश ज्यादा देर तक उस खूबसूरती का आनंद न ले पाया बारिश तेज होने की वजह से रेलवे कॉलोनी की लाइट गुल हो गई एक पल के लिए राजेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया गैस की आंच में अब भी सुगना का चेहरा चमक रहा था जाने सुगना के शरीर में भगवान ने कौन सी उर्जा डाली थी उसकी त्वचा हमेशा चमकती थी थोड़ा सा भी प्रकाश पड़ने पर उसकी खूबसूरती और निखर आती।

लाली ने मोमबत्ती जला ली एक मोमबत्ती से उसने रसोई घर में उजाला कर दिया और दूसरी मोमबत्ती को सुगना को देते हुए बोली ले अपना जीजा जी के दूध दे द सुगना एक हाथ में गिलास लिए और दूसरे हाथ में मोमबत्ती लिए राजेश की तरफ चल पड़ी मोमबत्ती की रोशनी सीधे सुगना के चेहरे और छातियों के खुले भाग पर पढ़ रही थी उसकी चुचियों के बीच की बेहद आकर्षक घाटी पीली रोशनी में चमक रही थी सुगना का कुंदन शरीर राजेश की निगाहों में रच बस रहा था..

"जीजा जी दूध ले लीं"

सुगना की मधुर आवाज राजेश को सुनाई जरूर दी पर उसकी आंखें उसके खूबसूरत जिस्म से चिपक सी गयीं थीं।

सुगना ने फिर कहा..

"कहां भुलाईल बानी भाई दूध ले लीं"

रसोई में खड़ी लाली ने सुगना द्वारा दोबारा कहीं बात सुन ली और उसे राजेश की मनोदशा का अंदाजा हो गया उसमें मुस्कुराते हुए कहा

"तोहरे पुआ में भुलाईल होइहें"

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई। लाली ने स्पष्ट तौर पर वही बात कह दी थी जो सुगना मन ही मन सोच रही थी राजेश लाली की बात सुनकर सचेत हो गया था उसने स्थिति संभालते हुए कहा..

"उ नकली पूआ त सब काम खराब कइले बा सूरज बाबू के तबीयत वोही से नु खराब भईल…"

" आज भगवांन बचा लेनी" सुगना कृतज्ञ भाव से बोली।

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज त सुगना के दिन ह, ₹10 लाख भी जितली और बेटा भी ठीक हो गईल"

"जीजा जी आज ही त आप भगवान बन कर आइनी"

"त भगवान जी के का मिली? राजेश ने मुस्कुराते हुए पूछा"

"सब आपके ही ह बताई का चाहीं?"

लाली भी अब तक उनके करीब आ चुकी थी उसने एक बार फिर राजेश की दुखती रग पर हाथ रख दिया..

"छोड़, उनका जवन चाहीं तोरा से होइ ना"

"हमरा त एगो सूरज जइसन लइका चाहीं" राजेश ने पास खेल रहे सूरज को उठाकर चूम लिया।

मन में सुगना को सोच कर लिया गया यह चुम्बन कुछ ज्यादा ही आत्मीय था सूरज छूटने के प्रयास कर रहा था।

सुगना तो राजेश की बातों का गूढ़ अर्थ न समझ भाई परंतु लाली ने राजेश की मंशा जानकर सुगना से कहा..

"देख तोर जीजा जी का मांग तारे" जो आज उनके संगे सूत रह…उनको साध बुता जाई"

राजेश ने अनजाने में ही सुगना से उसका गर्भधारण मांग लिया था इच्छा तो सुगना की भी थी पर उसके गर्भधारण का प्रयोजन अलग था और राजेश का अलग।

"हट पागल कुछो बोलेले... हम कह तानी की सूरज अतना भाग्यशाली लईका बा जरूर अपना मां बाप के नाम रोशन करी और पूरा परिवार के भी" राजेश ने स्थिति को सामान्य करते हुए कहा….

जीजा साली और लाली के बीच हुई वार्तालाप ने नियति को मौका दे दिया।

कुछ देर की हंसी ठिठोली के बाद सुगना और लाली भीतर कमरे में सोने चली गई और राजेश हाल में ही अपनी मस्तराम की किताबों में डूब गया।

अंदर दोनों सहेलियां बिस्तर पर लेटी आज सुगना के जीवन में हुई धन वर्षा का आनंद ले रही थी..

"ए सुगना का करबे अतना पैसा के"

"हमु बनारस शहर में मकान खरीदब…"

" तब तो बहुत अच्छा बा हमरे साथ खरीद लीहे साथे रहल जायी।"

"अच्छा तोर पेट फुला वे के का भईल आज तक बनारस महोत्सव के आखिरी रात ह तोरा त रतन भैया के पास होखे के चाहीं ते एहजा बाड़े।"

सुगना के दिमाग में विद्यानंद की बातें एक बार फिर घूमने लगी सच आज बनारस महोत्सव की आखिरी रात थी वह अपने बाबूजी के साथ मनोरमा के कमरे में जी कर चुदना चाहती थी परंतु परिस्थितियों ने उसे ऐसी जगह पर लाकर छोड़ दिया था जहां वह न सिर्फ स्वयं को लाचार महसूस कर रही थी अपितु बेहद दुखी थी थी।

उसे पता था कल सुबह ही बनारस महोत्सव से उसके परिवार की विदाई निश्चित थी। नियति ने उसके साथ क्रूर खिलवाड़ किया था उसके बाबूजी उससे कुछ ही दूर पर उपस्थित थे परंतु उन दोनों के बीच का यह फासला मिटा पाना संभव न था।

"कहां भुला गइले" लाली ने सुगना को झकझोरा जो विचार मग्न थी।

"सोचा तानी कि तोर इच्छा पूरा करिए दीं"

"साँच सुगना… उ त सुन के पागल हो जइहें"

"पर ते सम्हाल लीहे…"

सुगना ने मन ही मन निर्णय कर लिया था। अपने पुत्र सूरज की मुक्तिदाता उसकी बहन का सृजन इसी बनारस महोत्सव में होना था इसके लिए समय बेहद ही कम था वह सुबह तक अपने बाबूजी का इंतजार कर सकती थी परंतु वह इसकी पक्षधर न थी। वह अपने भाग्य से अब तक आंख मिचौली खेलती आ रही थी और अब वह भाग्य भरोसे नहीं रहना चाहती थी। अपने पुत्र के साथ घृणित संभोग की आशंकाओं ने उसे अधीर कर दिया था।

अंततः उसने लाली को अपनी सशर्त सहमति दे ही दी। वह किसी भी स्थिति में खुद की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी …..पर क्या यह संभव था? नियति सुगना की मासूमियत और उसके मन मे चल रहे द्वंद्व को भली भांति जान रही थी। नियति ने ही इन पात्रों का सृजन किया था और इनका अंत भी उसी के हाथों होना था विधाता ने शायद सुगना के भाग्य में यही लिखा था।

अभी भी बिजली लगातार कड़क रही थी…सुगना ने जीवन में भूचाल आने वाला था।…..

उधर पंडाल में सरयू सिंह सुगना को खोजते हुए आ गए थे। पूरी तरह बारिश से लथपथ सरयू सिंह के चेहरे पर झुझलाहट साफ दिखाई दे रही थी वह पंडाल की वस्तुस्थिति से पूर्णता अनभिज्ञ थे।

"कहां चल गई रहनी हां?" कजरी ने पूछा….. पर उनका उत्तर सुना नहीं। उसने सूरज और उसकी स्थिति के बारे में स्वयं ही सब कुछ बता दिया। परंतु कोई भी यह बात पाने में असमर्थ था कि सुगना और राजेश सूरज को लेकर किस अस्पताल गए हैं।

मरता क्या न करता। सरयू सिंह के पास के पास और कोई चारा न था। इतनी रात को चाहकर भी वह सुगना और सूरज को ढूढने नही जा सकते थे। बारिश अभी भी जारी थी। वह मन मसोसकर रह कर रह गए। झोले में रखा सुगना के दूसरे द्वार भेदन के लाया गया मक्खन उन्हें मुह चिढा रहा था।

अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह सुगना की मनोस्थिति से अनजान थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सूरज की तबीयत हल्की फुल्की खराब होगी पर राजेश ने जबरजस्ती उसे अस्पताल के बहाने अपने घर ले गया होगा।

आशंकाये आपकी सोच को प्रभावित करती हैं। सरयू सिंह ने अपने मन में राजेश को लेकर जो अवधारणा बनाई थी वह परिस्थितियों को उसी अनुसार देख रहे थे।

एक तो रतन का खत पढ़कर उनके मन में सुगना को खोने का डर समा गया था वह स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे थे।

सुगना उन्हें अपने हाथों से फिसलती हुई महसूस हो रही थी।

बिजली कड़क रही थी और बारिश थमने का नाम नहीं ले रही शिलाजीत का असर अभी भी कायम था पर लण्ड नाउम्मीद हो चुका था। सुपारे पर उसके द्वारा छोड़ी गई लार सूख चुकी थी। बनारस महोत्सव का छठवां दिन भी सरयू सिंह की आकांक्षाओं को पूरा न कर पाया था।

परंतु लाली के घर में नियति का खेल चालू था।

बनारस महोत्सव का अंतिम दिन…

ड्राइवर सुबह-सुबह विद्यानंद के पांडाल के सामने खड़ा था। सरयू सिह उसका ही इंतजार कर रहे थे। पहले रेलवे कॉलोनी ले चलो। सरयू सिंह सूरज और सुगना से मिलना चाहते थे।ड्राइवर ने कहा..

"मैडम बाहर जाने वाली है पहले उनसे मिल लीजीए वो आपका इंतजार कर रही हैं।" सरयू सिह पशेपेश में थे पर उन्होंने ड्राइवर की बात मान ली जैसे उन्होंने पूरी रात इंतजार किया था वैसे कुछ समय और सही।

मनोरमा द्वारा दी गई राहत सामग्री और कुछ जरूरी कागजात अभी गाड़ी में ही थे। सरयू सिंह को उन्हें मनोरमा को वापस करना था। वो सलेमपुर में की गई गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट भी बताना चाहते थे। कल शाम बनारस महोत्सव पहुंचते-पहुंचते काफी देर हो गई थी और देर रात को मनोरमा से मिलना उचित नहीं था। और वह खुद भी सुगना और अपने परिवार की खुशियों में मशगूल हो गए थे।

कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपना झोला लिए मनोरमा के होटल के सामने खड़े थे। रिसेप्शन पर पहुंचने के पश्चात उन्होंने मनोरमा के कमरे में संदेश भिजवाया और रिसेप्शन पर बैठकर मनोरमा का इंतजार करने लगे। जब तक मनोरमा आती वह होटल की खूबसूरती को आंखों में बसा रहे थे। क्या रहने की जगह पर कोई इतना भी खर्च कर सकता है?

सरयू सिंह को पैसे की अहमियत पता थी और वह हमेशा से उसका सदुपयोग करते थे परंतु होटल के साज सजावट पर हुए खर्च का अनुमान कर उन्हें यह दुनिया दूसरी ही प्रतीत हो रही थी होटल सचमुच बेहद खूबसूरत था।

तभी मनोरमा सीढ़ियों से उतरते हुए दिखाई दी। सरयू सिंह ने मनोरमा की तरफ देखा यह पहला अवसर था जब मनोरमा ने अपनी नजरें झुका लीं। शायद सरयू सिह से आंख मिलाने में उसे शर्म आ रही थी।

सुबह-सुबह मनोरमा एक ताजे खिले हुए फूल की तरह दिखाई पड़ रही थी। सजा धजा कसा हुआ शरीर। आज पहली बार मनोरमा को उन्होंने अपनी काम वासना से भरी निगाहों से देखा । कल रात में खाये शिलाजीत ने उनके लण्ड में रक्त भर दिया।

मनोरमा करीब आ चुकी थी सरयू सिंह ने खड़े होकर उसका अभिवादन किया। मनोरमा उनकी आंख से आंख नहीं मिला पा रही थी पर उसने उनकी धोती में आया उभार देख लिया था।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। सभी सीढ़ियों से होटल का वेटर मनोरमा का सामान लेकर नीचे उतर रहा था और पीछे पीछे सेक्रेटरी साहब भी नीचे आ रहे थे।

मनोरमा ने सरयू सिंह से कहा मुझे किसी आवश्यक कार्य से लखनऊ निकलना है।

मनोरमा ने सेक्रेटरी साहब से होटल के कमरे की चाबी ली और सरयू सिंह को देते हुए बोली

"मेरे कमरे में बनारस महोत्सव से संबंधित कई सारे कागजात रखे हुए वह आप ऑफिस खुलने के पश्चात बनारस महोत्सव के कार्यालय में पहुंचा दीजिएगा।"

मनोरमा ने सरयू सिंह का परिचय होटल के रिसेप्शन पर करा दिया।

मनोरमा का ड्राइवर गाड़ी में रखे हुए कागजात लेकर रिसेप्शन पर आ चुका था मनोरमा ने उससे कहा

"तुम आज इनके साथ ही रहना तथा इनके परिवार को सलेमपुर छोड़ने के पश्चात छुट्टी पर चले जाना"

ड्राइवर भी खुश हो गया।

मनोरमा के जाने के पश्चात सरयू सिंह मनोरमा के कमरे में गए और कमरे की खूबसूरती और भव्यता को देख बेहद प्रसन्न हो गए। आलीशान कमरा और बेहतरीन सजा धजा डबल बेड देखकर सरयू सिंह की कामवासना जाग उठी उस सुंदर बिस्तर पर सुगना को चोदने का सुख सोच कर ही उनका लण्ड उत्तेजना से भर गया।

उन्होंने देर करना उचित न समझा वह नीचे आए और मनोरमा की गाड़ी में पीछे बैठकर सुगना को लेने चल पड़े।

थोड़ी ही देर में में उनकी गाड़ी रेलवे कॉलोनी में राजेश के घर के सामने खड़ी थी।

ड्राइवर ने हॉर्न बजाया। ड्राइवर भी एक चतुर और व्यवहारिक प्राणी होता है वह घर की बाहरी हालत देखकर रहने वाले का वजन अंदाज लेता है और उसके अनुरूप बर्ताव करता है।

यदि वह रेलवे कॉलोनी का घर न होकर किसी अधिकारी का बंगला होता तो ड्राइवर की हार्न बजाने की हिम्मत ना होती पर राजेश का घर सामान्य था।

ड्राइवर ने दोबारा हार्न बजाया। सरयू सिह अभी गाड़ी से नहीं उतरे थे वह चाहते थे कि कम से कम एक बार राजेश उसे इस गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा हुआ देख ले ताकि वह अपना प्रभुत्व उस पर और जमा सकें।

वह मन ही मन वह राजेश को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगे थे परंतु राजेश बाहर नहीं आया।

ड्राइवर ने फिर हार्न बजाने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने उन्हें रोक दिया। ड्राइवर का यह व्यवहार आसपास के लोगों को दिक्कत कर सकता था और वह अपनी प्रतिक्रिया देकर माहौल खराब कर सकते थे।

सरयू सिंह गाड़ी की पिछली सीट से उतरे और सधे हुए कदमों से राजेश के घर के दरवाजे पर पहुंच गए उन्होंने दरवाजा खटखटा दिया।

लाली ऊँघती हुई बाहर आई और दरवाजा खोला। लाली उनकी पुत्री समान थी वह उनके दोस्त हरिया की पुत्री थी उसे नाइटी में देखकर सरयू से ने अपनी आंखें घुमा लीं। इतने उत्तेजक कपड़ों में अपनी पुत्री समान लाली को देखना पसंद ना आया।

लाली को कतई उम्मीद नहीं थी कि सरयू सिंह इतनी सुबह सुबह बिना बताए उसके घर पर आ धमकेंगे। अन्यथा लाली पूरी शालीन कपड़ों में उनका इंतजार कर रही होती । परंतु अब जो होना था हो चुका था लाली ने उनके चरण छुए और उन्हें अंदर बुलाया तथा हाल में बैठने के लिए कहा।

सरयू सिंह वस्त्रों के चयन को लेकर मन ही मन आज की नई पीढ़ी की मानसिकता को समझने का प्रयास करने लगे।

सुगना को हाल में न पाकर सरयू सिह परेशान हो गए क्या सुगना अंदर सो रही थी? सरयू सिंह को थोड़ी खुशी हुई उन्हें लगा जैसे राजेश घर पर नहीं था इसलिए लाली और सुगना अंदर सो गए थे।

लाली अंदर गई और राजेश को जगाया। राजेश बेसुध सो रहा था। बीती रात वह तृप्त हो चुका था। अपने जीवन में इतनी सुखद नींद उसने आज तक नहीं मिली थी।

राजेश कमरे से उठकर हाल में आया और सरयू सिंह के चरण छुए सरयू सिंह ने उसे आशीर्वाद तो दिया पर शब्दों से। उनके मन में राजेश के प्रति नफरत घर कर गयी थी और सुगना के प्रति गुस्सा था।

राजेश ने एक काम सही किया था। आते हुए उसने सुगना को उठा दिया। सरयू सिह की आवाज सुन सुगना सचेत हो गयी और आनन फानन में अपनी साड़ी पहनी और कुछ ही देर में हाल में आ गयी।

सुगना की हालत देखकर सरयू सिंह के मन में कई तरह के भाव आ रहे थे परंतु अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए उन्होंने पूछा

"सूरज कैसन बा"

"ठीक बा काल त सब के डेरा देले रहे"

लाली अंदर से अपने कपड़े बदल कर सूरज को लेकर आ गई। सूरज ने अपनी आंखें खोली और सरयू सिंह को देखकर बेहद खुश हो गया वह उछल कर उनकी गोद में आ गया। पिता और पुत्र का या प्यार सिर्फ सुगना और सरयू सिंह ही समझ सकते थे। लाली और राजेश, सूरज और सरयू सिंह के बीच इस आत्मीय संबंध के कारण से पूरी तरह अनजान थे।

सूरज को स्वस्थ और सुगना को पसंद देखकर सरयू सिंह की उम्मीद जाग उठी उन्होंने मौका निकाल कर शिलाजीत की दूसरी गोली का सेवन कर लिया पर राजेश ने उन्हें गोली खाते हुए देखकर पूछा..

"रोज गोली खाए के परेला का"

राजेश शहर का रहने वाला था उसे पता था शहर के मानिंद लोग 50 -55 वर्ष की अवस्था में कुछ न कुछ गोलियां खाया करते थे

सरयू सिंह झेंप गए । वह किस मुंह से बताते कि वह यह गोली किस लिए खा रहे हैं।

सरयू सिंह ने फरमान जारी किया

"फटाफट तैयार हो जा बाहर गाड़ी खड़ा बिया हमनी के जल्दी चले के बा।"

सुगना बाथरूम में गई परंतु बिजली गुल होने की वजह से नल मैं पानी नहीं आ रहा था उसने मुश्किल से रसोई में रखे पानी से अपना मुंह धोया और बालों को व्यवस्थित कर सरयू सिंह के साथ जाने के लिए तैयार हो गयी। वह स्वयं भी अपने परिवार से शीघ्र मिलना चाहती थी वह जानती थी कि सभी सूरज की तबीयत के बारे में फिक्र मंद होंगे।

सुगना ने लाली से विदा ली और सूरज को अपनी गोद में लिए घर से बाहर निकल पड़ी। राजेश से नजरें मिलाने की उसकी हिम्मत ना थी कल रात जो हुआ शायद वह नहीं होना चाहिए था।

राजेश गाड़ी की तरफ जा रही सुगना के हिलते हुए नितंबों को देख रहा था उसका लण्ड एक बार फिर हिचकोले खाने लगा। सुगना की कामुक काया पर राजेश की निगाहें अटक गई थी। कल रात के कामुक दृश्य उसकी आँखों के सामने नाच गए।

सरयू सिंह सुगना को लेकर पीछे बैठ चुके थे। सरयू सिंह हो यह ध्यान ही नहीं रहा की सुगना उनकी पत्नी नहीं उनकी बहू है उन्होंने ड्राइवर से कहा..

"पहले होटल ले चलिए कागज पत्तर सहेज के तब पंडाल में चलेंगे।"

सुगना होटल के नाम से सचेत हो गई वह चाह कर भी कुछ बोल ना पायी। ड्राइवर की उपस्थिति में कुछ भी बोलना उसने गवारा न समझा। वह चाहती तो थी कि वह पहले पांडाल में जाए ताकि वह अपने और सूरज की सलामती की खबर परिवार वालों को दे सके परंतु ऐसा हुआ नहीं। वह अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी पर कुछ ही देर में गाड़ी पांच सितारा होटल के पोर्च में आ गयी ।

होटल की खूबसूरती देखकर सुगना सहम गई उसने आज से पहले इतनी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी..।

वह तो सुगना की चमकती कुंदन काया थी जो उस होटल में रहने वाले लोगों से कई गुना सुंदर थी परंतु उसके कपड़े पांच सितारा होटल के स्तर के न थे वह यह बात बखूबी जानती थी।

उसने आखिरकार सरयू सिह के कान में कहा

"ई होटल में काहें"

सरयु सिंह ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और एक विजेता की भांति उसे लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चल पड़े..

रिसेप्शनिस्ट ने सरयू सिंह की तरफ देखा और प्रश्नवाचक निगाहों से सुनना के बारे में जानना चाहा। "अरे हमारी बहू है थोड़ी देर बाद हम लोग सामान लेकर निकल जाएंगे"

रिसेप्शनिस्ट ने कोई ऐतराज न किया. दोनों की उम्र के अंतर और रिश्ते ने रिसेप्शनिस्ट के मन में आए ख्याल को दबा दिया। सरयू सिह सुगना को लेकर कमरे में आ गए छोटा सूरज भी होटल की चकाचौंध को मासूम निगाहों से निहार रहा था कमरे में पहुंचते ही सरयू सिंह ने दरवाजा बंद किया और सूरज को बिस्तर पर छोड़कर उसे रतन द्वारा भेजे खिलौने पकड़ा दिए जो उनके झोले में ही थे।

नए खिलौने देखकर सुगना ने पूछा

"ई कब खरीदनी हा?"

सरयू सिंह ने सुगना को अभी यह बताना उचित न समझा कि यह रतन द्वारा भेजे गए थे। उन्होंने उसकी बात टाल दी और उसे अपने आलिंगन में कस लिया। सुगना के कोमल होंठों को अपने होंठों के बीच चूसते हुए एक बार सरयू सिंह के मन में फिर राजेश का ख्याल आया उन्होंने सुगना को खुद से अलग किया और उसकी साड़ी खींचकर उसे नग्न करने का प्रयास करने लगे। सुगना को अंदाज़ हो गया कि आज बाबूजी अपने अरमान अवश्य पूरे करेंगे वह मन ही मन इसके लिए तैयार हो गयी।

उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह अपने बाबू जी को अपनी अदाओं से प्रथम स्खलन अपनी बुर में ही करने के लिए रिझा लेगी और इसके बाद स्वेक्छा से अपनी गुदांज गाड़ को उन्हें अर्पित कर देगी।

वैसे भी कल का दिन लगभग व्रत जैसा ही निकल गया था सूरज की बीमार पड़ने से सुगना अपना रात्रि भोजन न कर सकी थी थी और उसे सिर्फ लाली के घर में दूध पीकर ही गुजारा करना पड़ा था नियति ने उसके दूसरे छेद के उदघाटन की तैयारी करा दी थी।

परंतु सुगना प्रसन्न थी।बनारस महोत्सव में गर्भवती होने का उसकी इच्छा पूरी होने वाली थी। उसने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और स्वयं ही अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी। जब तक कि सुगना की चुचियाँ खुली हवा में सांस लेती सरयू सिंह का धोती कुर्ता और लंगोट जमीन चाट चुका था। सरयू सिंह का फनफनाता हुआ लण्ड देखकर सुनना खुश हो गई।

सुगना ने अपने शरीर पर पड़े अंतिम वस्त्र अपने पेटीकोट के नाड़े का धागा खोल दिया। एक प्रतिमा की भांति सुगना की कोमल जाँघे अनावृत होती गयीं।

पांच सितारा होटल के भव्य कमरे में पीली रोशनी में

कोमलांगी सुगना की कोमल कमनीय काया कुंदन की भांति कांतिमान थी।

सरयू सिंह अपनी किस्मत पर नाज कर रहे थे अपनी बहू और प्रेमिका की खूबसूरती का अवलोकन करते हुए उनकी निगाह सुगना के खूबसूरत बदन पर दौड़ रही थी। सुगना उनकी दृष्टि को अपने बदन पर महसूस कर रही थी उसकी धड़कनें तेज हो रही थी। जांघों के बीच निगाह पड़ते ही अचानक सरयू सिंह चेहरे के भाव बदल उठे।

सुगना ने उनके चेहरे पर आए बदलाव को महसूस किया इस बदलाव का कारण जानने के लिए अपनी जांघों के बीच देखा उसके होश फाख्ता हो गए जांघों के बीच बालों के झुरमुट और जांघों पर लगा राजेश का वीर्य सूख चुका था…...और सरयू सिंह को मुह चिढा रहा था…


शेष अगले भाग में...

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#64
Heart 
भाग 59

अब तक आपने पढ़ा...

सरयू सिंह अपनी किस्मत पर नाज कर रहे थे अपनी बहू और प्रेमिका की खूबसूरती का अवलोकन करते हुए उनकी निगाह सुगना के खूबसूरत बदन पर दौड़ रही थी। सुगना उनकी दृष्टि को अपने बदन पर महसूस कर रही थी उसकी धड़कनें तेज हो रही थी। जांघों के बीच निगाह पड़ते ही अचानक सरयू सिंह चेहरे के भाव बदल उठे।

सुगना ने उनके चेहरे पर आए बदलाव को महसूस किया इस बदलाव का कारण जानने के लिए अपनी जांघों के बीच देखा उसके होश फाख्ता हो गए जांघों के बीच बालों के झुरमुट और जांघों पर लगा राजेश का वीर्य सूख चुका था…...और सरयू सिंह को मुह चिढा रहा था…

अब आगे….


सुगना को अपनी गलती का एहसास हो चुका था उसने कोई सफाई देने की कोशिश न की। प्रेम सवालों पर विराम लगा देता है... उसने कदम बढ़ाए और अपने बाबूजी के आलिंगन में आ गई।

कई दिनों की तड़प के बाद सुगना के नंगे कोमल बदन का स्पर्श अपने शरीर से होते ही एक पल में सरयू सिह का गुस्सा काफूर हो गया।

सुगना का कोमल बदन उन्हें गर्म गुलाब जामुन की तरह प्रतीत हुआ जिसने उनके मन की कड़वाहट को एक पल में गायब कर दिया।

उनकी मजबूत भुजाओं ने उस कोमल शरीर को खुद से एकाकार करने की कोशिश की। परंतु उनका तना हुआ लण्ड सुगना के पेट में चुभ रहा था।

अपने बाबूजी के आलिंगन में जाकर सुगना की कामवासना जवान हो उठी. उसकी बुर पनिया गई और अपने होंठ खोल कर अपने लॉलीपॉप का इंतजार करने लगी। सरयू सिंह ने अपनी मजबूत भुजाओं में सुगना को एक किशोरी की तरह उठा लिया और बिस्तर पर ले आए जहां उसका पुत्र सूरज रतन द्वारा भेजे गए खिलौनों में व्यस्त था।

बिस्तर पर हुई हलचल महसूस कर सूरज का ध्यान दो विलक्षण आकृतियों पर गया। पूर्ण नग्न अवस्था में न तो उसे सरयू सिंह पहचान में आ रहे थे और न हीं उसकी मां। उन दोनों के नग्न शरीर से अपना ध्यान हटाकर जब सूरज ने उनके चेहरे की तरफ देखा और उनको पहचान लिया। और सरयू सिह की गोद मे आने की जिद करने लगा उसे शायद पता न था उसकी माँ सुगना को भी उस गोद मे उतना ही आंनद आता था जितना उसे बस भाव अलग थे।

सुगना ने सूरज का ध्यान वापस खिलौनों पर लगाना चाहा पर उसकी निगाहें नग्न शरीरों से हट ही नहीं रही थी। सरयू सिंह भी अपने तने हुए लण्ड को सूरज की निगाहों से दूर रखना चाहते थे। वह उसे सुगना के नितंबों के पीछे छुपा रहे थे। परंतु सूरज हठी बालक की तरह व्यवहार कर रहा था। वह सरयू सिह के जादुई अंग को देखना चाह रहा था। अंततः सुगना ने स्वयं को डॉगी स्टाइल में अपने बाबूजी के सामने परोस दिया और सरयू सिंह का लण्ड उस सूखे हुए वीर्य को भूल उसकी पनियाई बूर में प्रवेश कर गया।

सुगना की बुर आज भी सरयू सिह के लिए उसी तरह का कसाव पैदा करती थी। जाने सुगना ने किस तरह अपनी बुर् में अद्भुत कसाव बनाए रखा था। सरयू सिंह के मुंह से आह निकल गयी…. और जैसे ही सरयू सिंह ने अपने कमर की ताकत लण्ड पर लगाई कराह ने अपनी आवाज बदल ली। कराहने की आवाज इस बार सुगना से आयी ..

" बाबू जी तनी धीरे से….." यह मादक कराह के दिनों बाद सरयू सिह के कानों को सुनाई दी थी।

सरयू सिंह एक बार फिर सुगना की पीठ पर झुक गए और उसके कानों को चूम लिया। सुगना की कराह पर उनका यह प्यार हमेशा मरहम का काम करता था पर यह प्यार पाकर लण्ड उछलने लगता।

कुछ देर सुगना के कानों और गालों को चूमने के बाद अचानक उन्हें सुगना की जांघों पर लगे वीर्य का ध्यान आया और उन्होंने अपना लण्ड सुगना की बुर के जड़ तक ठान्स दिया और गर्भाशय के मुख पर चोट कर उसे अपना मुंह खोलने पर विवश कर दिया।

शिलाजीत का असर दोगुना हो चला था। कल रात खाए शिलाजीत का असर अभी कम होता उससे पहले ही आज सुबह-सुबह शरीर सिंह ने दूसरी गोली ले ली थी। सरयू सिंह के तने हुए लण्ड के मजबूत धक्कों ने न सिर्फ सुगना के गर्भाशय का मुख खोल दिया अपितु राजेश के वीर्य के वह शुक्राणु जो अभी तक सुगना की योनि की सुरंग में लक्ष्य की तलाश में दिग्भ्रमित होकर टहल रहे थे उन्हें भी अनजाने में ही सुगना के गर्भ तक पहुंचा दिया।

अपने पिता तुल्य प्रेमी सरयू सिंह के लण्ड द्वारा किसी पर पुरुष के वीर्य से गर्भधारण की यह विधि इतनी ही निराली थी जितनी सुगना और उसका उसके बाबूजी के साथ संबंध।

सरयू सिंह प्यार, उत्तेजना और क्रोध के बीच की कई अवस्थाओं से गुजर रहे थे। जब जब वह सुगना के मासूम चेहरे और कोमल शरीर का ध्यान करते वह उसके प्यार में डूब जाते उनका लण्ड सुगना की बुर को बेहद ही तन्मयता से चोदने लगता।

जिस प्रकार एक मां अपने छोटे बच्चे की मालिश करती है सरयू सिंह का लण्ड सुगना की बुर की भीतरी दीवारों की मालिश करता। जब उत्तेजना हावी होती चुदाई की रफ्तार बढ़ जाती और सुगना की अपने बाबू जी की अद्भुत चुदाई से आह….आ...ईई। ह ह। ममममममम। आ….तरह-तरह की आवाजें निकालने लगती.. परंतु जब सरयू सिंह को सुगना की जांघों पर लगे वीर्य की याद आती उनके दिमाग में राजेश का चेहरा घूम जाता और वह अपने लण्ड को पूरी ताकत से सुगना की बुर की जड़ तक ठान्स देते।

गर्भाशय के मुख पर पड़ रही चोट अब भारी हो रही थी। उत्तेजना से लण्ड भी विकराल रूप में आ चुका था। सुगना कराह उठती और अपनी आंखों में हल्की आंसू लिए कहती …

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"

इस वाक्य का अंतिम शब्द आज चरितार्थ हो रहा था। सुगना आज पहली बार इस संभोग में मीठे दर्द का एहसास कर रही थी यह दर्द सुगना की वो दीपावली वाली रात के दर्द जैसा ही था।

सरयू सिंह अपनी बहू सुगना से बेहद प्यार करते थे उसकी मादक और कामुक कराह सुनकर वह उत्तेजित अवश्य होते परंतु अपने लण्ड का आक्रमण कम कर देते और एक बार फिर चुदाई जारी हो जाती।

होटल के गद्देदार बिस्तर पर एक अजब सी हलचल थी। आज तक सरयू सिह को ऐसे डनलप के गद्दे पर चुदाई का सुख न मिला था। यह सुख अद्भुत और निराला था। इस हलचल में एक रिदम था। छोटा सूरज इस रिदम के साथ उछल रहा था और खिलौनों से खेल रहा था उसका ध्यान बरबस अपनी मां पर जाता। और वह उसकी चुचियों को उछलते हुए देखकर लालायित हो जाता। एक बार उसने आगे बढ़कर सुगना की चूँचियों को धरने की कोशिश की पर सुगना ने उसे वापस खिलौने में उलझा दिया। अपनी इस अवस्था में वह सूरज को स्तनपान नहीं कराना चाहती थी।

सुगना की चुदाई जारी थी। सुगना की बुर झड़ने को तैयार हो रही थी। एक पल के लिए सुगना अपने गर्भधारण को भूल अपनी उत्तेजना का आनंद लेने लगी उसकी गोरी और गुदांज गाँड़ फूलने पिचकने लगी और यही वह पल था जब सरयू सिह ने सुगना की गांड के उस अद्भुत आकर्षण को देख लिया।

केलाइडिस्कोप की तरह सुगना की सुंदर गांड तरह तरह के रूप दिखा रही थी और सरयू सिह को अनजाने में ही आमंत्रित कर रही थी।

आखिरकार उन्होंने सुगना के नितंबों से उन्होंने अपना हाथ हटाया और झोले की तरफ बढ़ कर आने झोले में रखा मक्खन का डिब्बा निकालने की कोशिश करने लगे। उनका लण्ड सुगना की बुर से छटक कर बाहर आ गया।

लण्ड की थिरकन देखने लायक थी। सुगना के प्रेम रस से सना लण्ड चमक रहा था। मदन रस की बूंदें एक धागे की तरह लटक रही थी और मोतियों की तरह चमक रही थीं ।

सुगना ने मुड़कर उस लण्ड को देखा और अपने बाबूजी से पूछा

"का भइल?"

सरयू सिंह के हाथ में डिब्बे को देखकर सुगना ने दोबारा प्रश्न किया।

"ई का ह?"

सरयू सिंह ने कुछ कहा नहीं और वापस उसकी बुर में अपना लण्ड डाल दिया सुगना की उत्तेजना ने उसके प्रश्न को वही दबा दिया।

सुगना एक बार फिर आनंद में झूला झूलने लगी।सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों को मक्खन से सराबोर कर लिया और सुगना की फूलती पिचकती गाँड़ को सहलाने लगे।

उंगलियों का स्पर्श पाकर सुगना को अपने वादे का ध्यान आ गया वह जान चुकी थी कि अब बचना मुश्किल है। वह अपना वादा कतई नहीं तोड़ना चाहती थी परंतु उसके मन में यही इच्छा थी के पहले बाबूजी उसकी बुर में ही स्खलित कर उसे गर्भवती करें।

सुगना ने अपनी डॉगी स्टाइल को और उत्तेजक बना दिया कमर के लचीलापन को पराकाष्ठा तक ले जाकर उसने अपनी दोनों चुचियों को उभार दिया और सरयू सिह की हथेली को जानबूझकर अपनी चुचियों पर ले आयी। सरयू सिह को सुगना का यह आमंत्रण बेहद पसंद आया उन्होंने उसकी चूँची थाम ली परंतु उन्होंने अपने एक हाथ को सुगना की गांड पर ही कायम रखा। सुगना सरयू सिंह को उत्तेजित करती हुयी बोली..

"बाबू जी आज जैसन सुख त कभी ना मिलल रहे"

सरयू सिंह उसे और तेजी चोदने लगे…

"हां बाबू जी असहीं ...धीरे से हां हां हां हां …..आह आआआआआआआईईई आई मा……" सुगना की आवाज कामूक थी। कुछ शब्द तो नियति सुन पा रही थी कुछ दांतो के बीच फंसे होंठो में अटक जा रहे थे परंतु जिस नियति ने सुगना में उत्तेजना भरी थी वह उसका मर्म बखूबी समझ रही थी।

सुगना सरयू सिंह को बेहद उत्तेजित कर उनको स्खलित कराना चाहती थी। उसने सारे जतन किये परंतु वह उन्हें स्खलित न कर पायी। सरयू सिह की उंगलियां उसकी गांड में अब अंदर तक जाने लगी।

उत्तेजना में अपनी गांड के अंदर अपने बाबूजी की उंगलियों को महसूस करना उसे भी अच्छा लग रहा था। वह और भी बेहद उत्तेजित हो गई। वह थरथर कांप रही थी। ऐसी उत्तेजना उसने जीवन में पहले कभी महसूस नहीं की थी।

गाँड़ के अंदर घूम रही सरयू सिंह की तर्जनी और मध्यमा उनके अपने ही लण्ड को पकड़ने की कोशिश करती। बीच का पतली दीवार पर हो रहा यह दोहरा घर्षण सुगना को एक अलग एहसास दिला रहा था। जब सरयू सिंह अपना लण्ड अंदर ठेलते वह अपनी दोनों उंगलियों से उसे महसूस करते और सुगना सिहर उठती। मक्खन लगे होने की वजह से सुगना को सुखद एहसास हो रहा था।

"बाबूजी राउर उंगली में भी सुख बा" सुगना के मुंह से बरबस ही निकल गया।

सरयू सिंह बेहद प्रसन्न थे। वह सुनना को लगातार चोद रहे थे। चूचियो को मीस रही हथेली को उन्होंने उठाकर सुगना के चेहरे पर ले आया और अपने अंगूठे को उसके मुंह में दे दिया। सुगना उनके अंगूठे को चूसने और चाटने लगी। अपने लण्ड तथा दोनों हांथो से वह सुगना के सारे छेद का आनंद ले भी रहे थे और यथासंभव सुगना को दे भी रहे थे।

पांच सितारा होटल का एयर कंडीशनर भी सुगना और सरयू सिह के पसीने को न रोक पाया। इस अद्भुत चुदाई से सरयू सिंह पसीने पसीने हो चले थे और सुगना भी।

माथे का दाग एक बार फिर अपने विकराल रूप में आ चुका था ऐसा लग रहा था जैसे उस दाग पर मौजूद आवरण फटने वाला था। परंतु जैसे-जैसे स्खलन का समय नजदीक आ रहा था सुगना और सरयू सिंह की आत्मा और भावनाएं एकाकार हो रही थीं।

नियति स्वयं इस मधुर मिलन में सुगना को विजयी और अपने गर्भ में सरयू सिह का वीर्य निचोड़ते देखना चाह राहु थी पर सुगना हार गयी। सरयू सिंह के त्रिकोणीय हमले ने सुगना को स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। सरयू सिह के वीर्य की प्रतीक्षा में उसकी बुर और गर्भाशय ने अपना मुंह खोल दिया। उसकी बुर प्रेम रस की वर्षा करती रही पर सरयू सिंह का लण्ड न पसीजा वह स्खलन को तैयार न था।

अंततः सुगना निढाल हो गयी। कमर का जो कसाव उसने सरयू सिंह को उत्तेजित करने के लिए बनाया था वो ढीला पड़ गया।

सरयू सिंह ने सुगना को चुमते हुए कहा

"सुनना बाबू ठीक लागल हा नु"

"राउरो हो जाइत तो बहुत बढ़िया लागीत"

"अरे तोहार वादा भी तो पूरा करे के बा…"

सरयू सिंह का लण्ड अभी भी थिरक रहा था। सुगना जान चुकी थी की सरयू सिह बिना उसके दूसरे छेद का उद्घाटन किए उसे छोड़ने वाले नहीं थे। सुगना स्खलित हो चुकी थी। उसे पता अब सिर्फ और सिर्फ उसे सरयू सिंह को ही सुख देना था। अपनी छोटी सी गाँड़ में इतने बड़े मुसल को लेकर निश्चय ही उसे कुछ सुख नहीं मिलने वाला था।

सुगना ने मन ही मन सोचा वो उठी और सरयू सिंह के लण्ड को अपने हाथों में लेकर और उत्तेजित करने लगी। सरयू सिंह को तो जैसे शिलाजीत नहीं संजीवनी बूटी मिल चुकी थी। सुगना अपने हाथों से उस लण्ड को सहलाती और मसलती रही परंतु सरयू सिंह और उत्तेजित होते रहे..

उनका ध्यान सुगना की जांघों के बीच गया सूखे हुए वीर्य को देखकर एक बार वह फिर भड़क उठे। उन्होंने सुनना के बालों को पकड़ा और उसके चेहरे को अपने लण्ड की तरफ ले आए। निश्चय ही उन्होंने यह कार्य क्रोध में किया था परंतु सुगना ने इस आपदा को अवसर में बदल लिया।। उसने अपने बापू जी के लण्ड के सुपाड़े को मुंह में भर कर और उत्तेजित करने की कोशिश करने लगी।

सुगना अब यह जान चुकी थी कि उसके बाबूजी का स्खलन उसकी बुर में कतई नहीं हो पाएगा पर उसे अब भी उम्मीद थी कि वह सरयू सिह को पहले ही स्खलित करा लेगी और वीर्य को लण्ड से न सही अपनी उंगलियों से ही अपनी बूर् में पहुंचा देगी। यदि वह सफल न भी हुई तो उसका यह प्रयास व्यर्थ न जाएगा और वह उसे अपने गाड़ में उसे शीघ्र स्खलित करा पाएगी ताकि उसे कम से कम कष्ट से गुजरना पड़े।

सुगना अपने बाबूजी का लण्ड चूसने लगी वह अपनी हथेलियों से उनके अंडकोष को भी सहलाती और उसमें उबल रहे वीर्य को बाहर निकालने का प्रयास करती।

सरयू सिंह की उत्तेजना धीरे-धीरे बलवान होने लगी उन्होंने सुनना के सर को हटाया और अपनी मासूम बहू को होठों को एक बार चुमकर उसे वापस डॉगी स्टाइल में ला दिया। गांड पर लगा हुआ मक्खन अब भी कायम थी। सरयू सिंह ने सुगना की पीठ को चूमना शुरू किया और धीरे-धीरे दो उसके कानों तक पहुंच गए । लण्ड नितंबो के बीच अपनी जगह तलाशने लगा। सुगना ने अपने नितम्ब ऊंचे किये और लण्ड को फिर अपनी चुदी हुई बूर् में लेने की कोशिश की। पर आज लंड कुछ ज्यादा ही तना था। सरयू सिह ने एक हाथ से सुगना के होठों पर उंगलीया फिराते हुए उन्होंने दूसरे हाथ से अपने लण्ड को सुगना की गांड के छेद पर रखा और धीरे धीरे अपना दबाव बनाने लगे।

"सुगना तू बहुत सुंदर बाड़ू और ई तहर दूसर द्वार भी…"

जैसे ही लण्ड के सुपारे ने गांड के छेद को फैलाया सरयू सिंह ने सुगना के होठों को अपनी मजबूत हथेलियों से दबा लिया और एक ही झटके में अपने लण्ड को पेल दिया।

सुगना दर्द से बिलबिला उठी।। मुंह बंद होने की वजह से उसकी चीख बाहर ना आ पायी पर आखों से आंसू छलक उठे।

आज उसके मुंह से आह की जगह कराह निकली थी ..

"बाबूजी साँचो ...दुखाता…." सुगना की यह दर्द भरी कराह सिर्फ नियति ने ही सुनी। सरयू सिह की हथेलियों ने सुगना का मुंह बंद कर रखा था।

सुगना ने अपने बाबूजी की खुशी के लिए उस दर्द को सह लिया। लण्ड एक झटके में पूरी तरह अंदर ना जा पाया। सुगना को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी गांड में कोई गर्म सलाख घुसा दी गई हो। सुगना एकदम शांत हो गयी। सरयू सिंह ने सुगना को शांत देखकर अपने हाथ हटाये और उसके कानों को एक बार फिर चूमते हुए बोले

"सुगना बाबू हो गइल अब ना दुखायी"

सरयू सिंह सुगना को बेहद प्यार करते थे और उसके शरीर की हर हरकत को महसूस कर लेते थे।

सुगना मजबूर थी वह चुपचाप सरयू सिह के अगले कदम का इंतजार करने लगी। सरयू सिंह ने अपने लण्ड को बाहर निकाला और धीरे-धीरे उसकी गांड में आगे पीछे करने लगे। सुगना को इस क्रीड़ा में कतई आनंद नहीं आ रहा था वह सिर्फ अपने बाबू जी को खुश करने के लिए उनका उत्साहवर्धन कर रही थी। उसे अब यह ज्ञात हो चुका था कि इस अपवित्र द्वार में घुसे हुए लण्ड से निकले हुए वीर्य को वह वापस अपनी बुर में कतई नहीं ले आएगी। वह अपने मन में यही योजना बनाने लगी कि अपने बाबू जी को कुछ देर आराम करने देकर वह एक बार उनके साथ पुनः संभोग करेगी और उनके वीर्य को अपने गर्भ में लेकर अपनी पुत्री का सृजन करेगी।

अपने विचारों में खोई हुई सुगना शांत थी और सरयू सिंह उसकी गांड लगातार मारे जा रहे थे उत्तेजना का यह दौर सरयू सिह के लिए बेहद कठिन था। सुगना की कसी हुई गांड में उनका लण्ड ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने अंगूठे और तर्जनी से किसी ने गोल आकृति बना दी थी जी बेहद कसी हुयी थी। उनके लण्ड को काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी...पर यही उनका चरमसुख था जिसके लिए वह कई वर्षों से इंतजार कर रहे थे। उनकी यह इच्छा को कजरी ने भी पूरा न किया था जिसके साथ उन्हीने न जाने कितने वर्षों तक काम सुख का आंनद लिया था। पर उनके सारे अरमान सुगना ने हो पूरे किए थे।

सरयू सिह अपना लण्ड पूरी तरह बाहर निकालते और फिर उसे थोड़ा आगे पीछे कर पीछे ताकत से पूरा जड़ तक अंदर डाल देते।

सूरज अब खिलौनों से उब चुका था वह अपनी मां के पास आकर कभी उसके चेहरे को छूता कभी चूचियो को जैसे वह सुगना को सांत्वना देने की कोशिश कर रहा हो। वह अपनी मां को सामने की तरफ खींच कर उसकी चुचियों से दूध पीना चाहता था परंतु सरयू सिह अभी सुगना को छोड़ने को तैयार ना थे। सरयू सिंह का चेहरा लाल हो चुका था।

माथे पर दाग पूरी तरह फूलकर फटने को तैयार था। जैसे-जैसे उनके लण्ड की रफ्तार बढ़ती गई उनकी धड़कनें तेज होती गयीं …..

और एक बार फिर वही हुआ जिसका सुगना को डर था। अपने नितंबों पर सुगना को सरयुसिंह की पकड़ ढीली लगने लगी। लण्ड की रफ्तार अचानक ही कम हो गई। लण्ड फिसल कर उसे बाहर जाता महसूस हुआ। सुबह पीछे पलटी। सरयू सिंह के चेहरे पर वासना की जगह दर्द था। वह असहज थे देखते हो देखते सरयू सिह कटे हुए वृक्ष की तरह धड़ाम से पांच सितारा होटल के कमरे की कारपेट पर गिर पड़े।

बाबूजी... बाबूजी ..चीखती हुयी सुगना उठ खड़ी हुई। वह कर उनके पास गई और उन्हें हिलाकर जगाने की कोशिश की।

नंगी सुगना अपने बाबूजी को जगाने के लिए भरपूर प्रयास कर रही थी। वह भागकर का एक टेबल पर रखे पानी के बोतल से पानी लाकर उनके चेहरे पर छींटे मारकर उन्हें जगाने की कोशिश की पर असफल रही।

सुगना थर थर कांप रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इस अवस्था में वह किसी से कैसे मदद मांगे यह बात उसे समझ ना आ रही थी।

सूरज अब रोने लगा था। सरयू सिंह के माथे के दाग से रक्त का रिसाव होने लगा था। शायद उनके पाप का घड़ा भर चुका था। सुगना बेहद डर गई उसने एन केन प्रकारेण सरयू सिंह को घसीट कर बाथरूम के अंदर पहुंचाया। उनके लण्ड को साफ किया परंतु जाने यह कैसा विलक्षण संयोग था वह उनके लण्ड का तनाव न कम कर पाई।

एक पल के लिए उसे मन में आया कि सरयू सिंह की यह अवस्था होटल स्टाफ की नजरों में आएगी और वह बेइज्जत महसूस करेंगे परंतु इस अवस्था में उनका स्खलन करा पाना असंभव था।

सुगना ने उन्हें उसी स्थिति में छोड़ दिया उनके सारे कपड़े बाथरूम में लाकर डाल दिए और आनन-फानन में अपनी गांड पोछ कर वापस कमरे में आई और अपने कपड़े पहनकर होटल की लॉबी में जाकर मदद की गुहार लगाने लगी।

थोड़ी ही देर में होटल स्टाफ ने आकर सरयू सिंह की मदद की। सरयू सिह की नग्न अवस्था और खड़े लण्ड को देखकर होटल का स्टाफ आपस मे कानाफूसीं कर रहा था..

"साला बुड्ढा जवान माल देखकर मुठ मार रहा होगा…"

"साले का हथियार तो वाकई कमाल है"

"चल भोसड़ी के उठा, लण्ड मत देख" उनके भारी शरीर को उठाते हुए पहले ने कहा..

सुगना सरयू सिह का झोला कंधे में टांगे और सूरज को गोद मे लिए सरयू सिंह को कमरे से बाहर जाते देख रही थी। उसकी आंखें नाम थी और मन ही मन वह अपने इष्ट देव से उनकी कुशलता की कामना कर रही थी।

कुछ ही देर बाद सरयू सिंह होटल की एंबुलेंस में लेटे हुए शांत शरीर पर तना लण्ड लिए सुगना और सूरज के साथ हॉस्पिटल की तरफ रवाना हो गए….

हॉस्पिटल पहुंचकर सुगना ने एंबुलेंस के ड्राइवर से अनुरोध किया कि वह विद्यानंद जी के पंडाल में जाकर सरयू सिंह के बारे में उसके परिवार को सूचना दे दे।

स्ट्रेचर पर सरयू सिह को आईसीयू में ले जाया जा रहा था। उनके धोती में उभार अब भी कायम था। लण्ड अपना तनाव छोड़ने को तैयार न था परंतु सरयू सिह हॉस्पिटल के स्ट्रेचर पर लेटे निस्तेज दिखाई पड़ रहे थे। उनका दाग विकराल रूप में आ गया था और उससे रक्त का रिसाव जारी था। सुगना बेहद डरी और घबराई हुई थी ।

डॉक्टरों की टीम ने सरयू सिंह का चेकअप प्रारंभ कर दिया कुछ ही देर में डॉक्टर का असिस्टेंट बाहर आया और बोला कुछ रक्त की आवश्यकता है आप अपने संबंधियों को बुलाकर उसका इंतजाम कीजिए सुगना ने कहा आप मेरा रक्त ले सकते हैं। कंपाउंडर ने सुगना को ऊपर से नीचे तक देखा सुगना पूरी तरह स्वस्थ थी उसने सिस्टर को बुलाया और सुगना उसके साथ रक्त देने चल पड़ी।

जब तक कजरी और परिवार के बाकी सदस्य हॉस्पिटल आते तब तक सुगना का रक्त उसके बाबूजी को चढ़ाया जा चुका था। विशेष दवाइयों के प्रयोग तथा सुगना के रक्त से सरयू सिंह होश में आ चुके थे।

होश में आते ही डॉक्टर ने सरयू सिंह से कहा… आपने जिन कामोत्तेजक दवाइयों का सेवन किया था वह आपको नहीं करना चाहिए … मेरी बात आप शायद समझ रहे हैं। डॉक्टर ने सरयू सिंह के जननांगों की तरफ इशारा किया। सरयू सिह शर्म से आंखें झुकाए डॉक्टर की बात पूरी समझ तरह समझ चुके थे पर उनके होंठ सिले हुए थे। डॉक्टर ने फिर कहा..

आज आपकी जान आपकी बेटी ने बचा ली…

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा... happy

"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….

शेष अगले भाग में….

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#65
Heart 
भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….

अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।

एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।

रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।

माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?

का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।

सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।

बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।

सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।

जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।

जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।

इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।

सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..
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#66
Heart 
भाग-61

कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।

सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी


"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई

अब आगे..

"आई भैया" सोनी चिल्लाई

जब तक सोनी की आवाज बाहर पहुंचती सोनू कमरे में दाखिल हो चुका था यह तो शुक्र था कि सोनी के हाथ उसके लहंगे से बाहर आ चुके थे परंतु उंगलियों में रस अभी भी लगा हुआ था. सोनी ने उस रस को अपने नितंबों को ढक रहे घागरे में पोछने की कोशिश की और बोली..

"का चाहीं"

"थोड़ा बोरोप्लस लगा दे देख यहां का कटले बा"

सोनी ने देखा सोनू की नाक के नीचे एक कीड़े ने काट लिया था चमड़ी छिली हुई प्रतीत हो रही थी। सोनू के दोनों हाथ भैंसों के चारे से लथपथ थे शायद वह भैंसों के नाद ( जिसमेँ भैसें खाना खाती हैं) में चारा डाल कर उसे मिला रहा था।

सोनी ने दीवाल पर टंगे शीशे के साथ लगी प्लेट में रखा बोरोप्लस उठाया और अपनी उंगलियों में लेकर सोनू की नाक के ठीक नीचे लगे जख्म पर लगाने लगी एक पल के लिए सोनी यह भूल गई की उसकी उंगलियां प्रेम रस से संनी हुई थीं।


यद्यपि उसने उस रस को अपने घागरे में पोंछ लिया था परंतु कुवारी चूत की खुशबू अभी भी उसकी उंगलियों में समाहित थी।

जिस तरह कस्तूरी मृग अपनी नाभि में छुपे सुगंध को नहीं पहचान पाता उसी प्रकार सोनी भी उस खुशबू से अनभिज्ञ थी। परंतु सोनू वह तो इस काम रस की खुशबू से अभी हाल में ही वाकिफ हुआ था और उसकी मादक खुशबू को बखूबी पहचानता था।

अपनी लाली दीदी की चूत में उंगली घुमा कर उसने न जाने कितनी बार अपनी उंगलियों को प्रेम रस से सराबोर किया था और उन पर आई मदन रस को न जाने कितने घंटों तक सहेज कर उसकी मादक खुशबू का आनंद लिया था।


जैसे ही सोनी की उंगलियां सोनू की नाक के नीचे पहुंची सोनू की घ्राणेन्द्रियों ने उन्होंने सोनी की उंगलियों में लगी उसकी कुंवारी चूत की खुशबू बोरोप्लस की खुशबू पर भारी पड़ गयी। सोनू ने उसे अपने संज्ञान में ले लिया वह खुशबू उसे जानी पहचानी लगी ….

बनारस महोत्सव ने सोनू को स्त्रियों के यौन अंगों और उनसे रिसने वाले काम रस से भलीभांति परिचित करा दिया था.

यदि सामने सोनी की जगह लानी होती तो सोनू निश्चित ही यकीन कर लेता की उसके दिमाग में आए खयालात पूरी तरह सच है परंतु चूंकि यह उसकी छोटी बहन सोनी थी, सोनू का दिल यह बात मानने को तैयार न था की वह खुशबू सोनी की नादान चूत की ही थी। सोनू की निगाह में अब भी सोनी एक किशोरी ही थी उसे क्या पता था लड़कियां ज्यादा जल्दी जवान होती हैं और जांघों के बीच भट्टी जल्दी सुलगने लगती है..

सोनू ने उंगलियों को सुघने के लिए कुछ ज्यादा ही प्रयास किया जिसे सोनी ने महसूस कर लिया और उसे यह बात ध्यान आ गई उसने फटाक से अपने हाथ नीचे खींच लीयेऔर बोली

"लग गया…" और शर्माती लजाती तेजी से कोठरी से बाहर निकल गयी…..

सोनू भी वहां से हट गया पर अभी भी उस भीनी भीनी खुश्बू की तस्दीक कर रहा था कि क्या सोनी की उंगलियों पर कुछ और भी लगा था?


यह पहला अवसर था जब सोनू के मन में सोनी की युवा अवस्था का ख्याल आया अन्यथा आज तक तो वह उसकी प्यारी गुड़िया ही थी।

एक-दो दिन बाद सोनू वापस बनारस आ कर अपनी पढ़ाई में लग गया।

बनारस महोत्सव ने कईयों के अरमान पूरे किए थे और कईयों को उनकी किए की सजा भी दी थी एक तरफ सोनू ने इस महोत्सव में लाली की चूत में डुबकी लगाई थी वही विकास ने सोनी के जाँघों के बीच छलकती पहाड़ी नदी और उसकी उष्णता का आनंद लिया था। वहीं दूसरी तरफ सरयू सिंह को इस महोत्सव में ऐसी स्थिति में ला दिया था जहां वह न सिर्फ पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे अपितु अब उन्हें अपना जीवन बोझ लगने लगा था।

सोनू और विकास दोनों ही हॉस्टल के कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे छत को देख रहे थे आंखें छत से चिपकी हुई थी पर दिमाग चूत पर टिका था।

कितना अद्भुत सृजन है नियति का एक छोटा पर अद्भुत छेद … लगता है जैसे सारी संवेदनाएं और भावनाएं उस अद्भुत कलाकृति के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वही प्रेम का चरम है वही जन्म का स्त्रोत है वही रिश्तो की जनक है वही पवित्र है वही पाप है…..

विकास अपने पहले अनुभव को साझा करना चाहता था। उसने बात शुरू करते हुए से सोनू से कहा...

इस बार तो तू अपनी लाली दीदी से चिपका रहा?

सोनू ने विकास की तरफ देखा परंतु कुछ बोला नहीं

" बेटा मैं जानता हूं कि वह गच्च माल तेरी असली दीदी नहीं है…"


"सच कहूं तो भगवान को ऐसी सुंदर और गदराई माल का कोई भाई नहीं होना चाहिए …तू कैसे उसे अपनी दीदी मां पाता है?" विकास मैं अपनी कही गई बात पर बल देते हुए कहा।

सोनू से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह अपनी सफलता अपने दोस्त से साझा करना चाहता था उसने मुस्कुराते हुए कहा..

"दीदी है ना तभी तो दे दी…."

विकास बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और उत्सुकता से पूछा…

"तू क्या तूने चोद लिया"

" हां, चोद लिया" सोनू ने शर्माते हुए कहा.. वह भी अपने प्रथम संभोग की बातों को साझा कर अपनी मर्दानगी का बखान करना चाहता था..

" बता...ना कैसे कैसे हुआ?"


सोनू ने लाली के साथ बिताए गए पलों को विकास से पूरी तरह साझा कर लिया जैसे-जैसे सोनू की कहानी संभोग के करीब पहुंची वैसे वैसे उसने अपनी कहानी से राजेश को दूर कर दिया सोनू को यह बात अब भी समझ नहीं आ रही थी कि आखिर राजेश जीजु उसे लाली के समीप आने पर रोक क्यों नहीं रहे थे परंतु सोनू तो लाली का आम चूसने में व्यस्त था उसे गुठलियों से क्या मतलब था।

संभोग का विवरण सुनते सुनाते दोनों युवा एक बार फिर उत्तेजित हो गए और उनके लण्ड एक बार फिर हथेलियों का मर्दन झेलने लगे। यह भी एक विधि का विधान है जब वह अंग सबसे कोमल रहता है तब उसे सख्त हथेलियों के मर्दन का शिकार होना पड़ता है।

अब बारी विकास की थी उसने जैसे-जैसे सोनी के शरीर और उसके कामांगो के बारीक विवरण प्रस्तुत किए सोनू के दिमाग में उस किशोरी की छवि बनती चली गई। जैसे-जैसे विकास के विवरण में उस किशोरी की कुंवारी चूत का अंश आने लगा सोनू भाव विभोर हो गया। उसका लण्ड उसकी कठोर हथेलियों के मर्दन से तंग आ चुका था और शीघ्र स्खलित हो कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहता था।

विकास ने बताया..

"यार चूत की खुशबू क्या नशीली होती है, मैं तो उसे रात तक सूंघता रह गया था…"

सोनू के दिमाग में बरबस सोनी का ख्याल आ गया सोनी की उंगलियों में बसी बुर की खुशबू को सोनू ने अपने दिलो-दिमाग में बसा लिया था।

अपनी लाली दीदी की फूली हुई चूत रूपी ग़ुलाब को छोड़कर अचानक सोनू के दिमाग में गुलाब की कली का ध्यान आ गया। एक पल के लिए सोनू यह भूल गए कि जिस कली को वह मसलने की सोच रहा है वह उसकी अपनी छोटी बहन सोनी थी। उत्तेजना ने पराकाष्ठा प्राप्त की और सोनू के लण्ड ने अपना तनाव त्यागना शुरू कर दिया और अपनी दुग्ध धारा खुले आसमान की तरफ छोड़ दी। उधर विकास में भी अपना स्खलन प्रारंभ कर दिया था।


दोनों ही युवा पुरुषों से निकल रही वीर्य धारा एक दूसरे से होड़ लगा रही थी। परंतु सोनू था गांव का गबरु जवान और सरयू सिंह की प्रतिमूर्ति और विकास शहर का सामान्य युवक …. लण्ड की धार चाहे जैसी भी रही हो तृप्ति का एहसास उन दोनों के चेहरे पर था।

विकास को क्या पता था जिस किशोरी का उसने वर्णन किया था वह सोनू की अपनी बहन सोनी थी।

समय बीतते देर नहीं लगती। उधर सलेमपुर में जैसे ही स्थितियां सामान्य हुई सुगना ने सूरज द्वारा जीते गए पैसों से गंगा नदी के किनारे उसी सोसाइटी में एक मकान खरीदा जिसके काउंटर के बगल में लॉटरी की टिकट बिक रही थी।


उसने लाली और राजेश को भी उसी सोसाइटी में मकान खरीदने के लिए मना लिया। सुगना के समीप रहने की बात सोच कर राजेश बेहद उत्साहित हो गया अपने प्रोविडेंट फंड के पैसे निकालकर वह उस सोसाइटी में मकान खरीदने के लिए तैयार हो गया।

पैसों की तंगी राजेश और लाली के पास भी थी। यह तो सुगना की दरिया दिली थी कि उसने अपने जीते हुए पैसों का कुछ भाग राजेश और लाली को भी दे दिया ताकि वह उसी सोसाइटी में उसके ठीक बगल का मकान खरीद पाए। राजेश ने बाकी पैसे अपने लोन से उठा लिए।

सरयू सिंह सुगना की दूरदर्शिता से पूरी तरह प्रभावित थे। बनारस शहर में मकान खरीदने का निर्णय सुगना ने किया था और वह तुरंत ही उसकी बात मान गए थे। क्योंकि वह पूरी तरह स्वस्थ न थे उन्होंने इस विशेष कार्य के लिए रतन और राजेश पर विश्वास कर लिया था और अपने संचित धन का महत्वपूर्ण हिस्सा उस घर पर लगा दिया। सरयू सिंह अपनी इस आकस्मिक पुत्री के जीवन में खुशियां लाना चाहते थे और उसकी हर इच्छा पूरी करना चाहते थे। राजेश ने भी सुगना को खुश करने के लिए घर के लिए आवश्यक साजो सामान खरीदने में अपने संचित धन का प्रयोग किया और कुछ ही दिनों में घर रहने लायक स्थिति में आ गया।

सुगना ने एक और कार्य किया उसने सोनू की मदद से जीते हुए पैसों से दो मोटरसाइकिल खरीदी और एक राजेश को तथा एक अपने पति रतन को उपहार स्वरूप दे दिया। फटफटिया की अहमियत के बारे में लाली उससे कई बार बातें कर चुकी थी सुगना मन ही मन यह सोच चुकी थी कि लॉटरी में जीते गए पैसे पर लाली का भी उतना ही अधिकार है जितना उसका। आखिर वह टिकट राजेश ने हीं खरीदी थी।

रतन और राजेश फटफटिया देखकर बेहद प्रसन्न हो गए यह अलग बात थी कि वह अपनी इस आकांक्षा को पूरा तो करना चाहते थे परंतु उन्हें कभी कभी यह फिजूलखर्ची लगती थी परंतु जब सुगना ने सामने से ही मोटरसाइकिल खरीदने का निर्णय कर लिया था तो वह उसके निर्णय के साथ हो गए थे और भौतिकता के इस उपहार का आनंद लेने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे ।

वह दोनों न सिर्फ सुगना की कामुकता के कायल थे अपितु उसकी दरियादिली के भी। सच सुगना बेहद समझदार थी और पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाली थी।

कुछ ही दिनों में बनारस का मकान पूरी तरह तैयार हो गया। सुगना और लाली का परिवार बेहद प्रसन्न था।

राजेश की मदद से रतन को भी बनारस में उसी होटल में की नौकरी मिल गई जिसमे सुगना के दूसरे छेद का उदघाटन हुआ था।

नए मकान का गृहप्रवेश था। सलेमपुर गांव से कई सारे लोग सुगना और लाली के गृह प्रवेश में आए हुए थे गृह प्रवेश की पूजा में लाली और राजेश तथा सुगना और रतन जोड़ी बना कर बैठे थे रतन और सुगना को एक साथ बैठे देख कर कजरी का मन फूला नहीं समा रहा था वह बेहद प्रसन्न थी। आखिर भगवान ने उसकी सुन ली थी।

पूजा-पाठ का दौर खत्म होते ही खानपान का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया सभी सुगना और सूरज की तारीख करते नहीं थक रहे थे कितना भाग्यशाली था सूरज लाटरी के जीते हुए पैसे ने सुगना और उसके परिवार को एक नई ऊंचाई पर ला दिया था।

अकस्मात आया धन अपने साथ दुश्मन लेकर आता है। घर के बाहर पंगत में बैठे लोग वैसे तो सुगना और उसके परिवार के शुभचिंतक थे परंतु उनमें से कई ऐसे भी थे जो इस इस प्रगति से ज्यादा खुश न थे।

रतन और बबीता की पुत्री मिंकी पंगत में पानी के गिलास रख रही थी मिंकी का चेहरा उसके पिता रतन से मिलता था गांव के ही एक व्यक्ति ने मिंकी को देखकर पूछा..

"ई केकर लईकी ह"

सरयू सिंह जो पास में है खड़े थे और पंगत की व्यवस्था देख रहे थे उन्होंने उत्तर दिया

"मिन्की बेटा जा होने गिलास दे आव"

"रतन के दोस्त के लईकी ह, एकर माई बाबूजी दोनों नई खन"

सरयू सिंह ने अपने परिवार की इज्जत का ख्याल कर रतन की दूसरी शादी की बात को छुपा लिया परंतु मिंकी के चेहरे पर रतन के प्रभाव को वह समझा पाने में नाकाम थे। जाकी रही भावना जैसी... पंगत में बैठे लोगों ने सरयू सिंह की बात को सुना और अपनी अपनी मनोदशा के अनुसार उनकी बात पर यकीन कर लिया।

सरयू सिंह ने उन सभी को यह बातें स्पष्ट कर दी कि अब मिंकी उनके ही परिवार का अंग है और रतन और सुगना ने उसे पुत्री रूप में अपना लिया है।

सुगना बेहद प्रसन्न थी। मिन्की सुगना से पूरी तरह हिल मिल गई थी वह हमेशा सुगना के आसपास ही रहती और छोटी-छोटी मदद करती रहती सुगना उसे अपनी सूज बुझ के अनुसार पढ़ाती तथा प्लेट पर क ख ग घ लिखना सिखाती। सुगना के मृदुल व्यवहार ने मिंकी का मन मोह लिया था वह सुगना को अपने मां के रूप में स्वीकार कर चुकी थी।

सुगना के सारे मनोरथ पूरे हो रहे थे। पेट में आया गर्भ अपना आकार बड़ा रहा था। पूजा की शाम को वह सरयू सिंह के समीप गई और उनके चरण छूने के लिए झुकी...

सरयू सिंह पूरी तरह सुगना को अपनी बेटी मान चुके थे उन्होंने अपनी अंतरात्मा से उसे आशीर्वाद दिया

"खुश रहो बेटी भगवान तोहर मनोकामना पूरा करें और सूरज के जइसन एगो और भाई होखे"

"बाबूजी हमारा लईकी चाहीं…" सुगना ने चहकते हुए कहा..


सुगना उठ कर खड़ी हो चुकी थी और सरयू सिंह के आलिंगन में जाने का इंतजार कर रही थी। पिछले दो-तीन माह से उसे सरयू सिंह की अंतरंगता और आलिंगन का सुख नहीं मिला था। परंतु आज खुशी और एकांत में सुगना की कामुकता जवान हो उठी थी वह स्वयं उठकर अपने बाबुजी के आलिंगन में आ गए अपनी चूचियां उनके सीने से रगड़ ती हुई बोली ..

"हमार पेट फुला के त रहुआ भुला गईनी... लागा ता ई हो बूढा गईल बा…"

सुगना की निगाहें सरयू सिंह के चेहरे से हटकर उनके लण्ड की तरफ बढ़ने लगीं और हाथों ने उन निगाहों का अनुकरण किया । जब तक की सुगना के हाथ सरयू सिंह के लटके हुए लण्ड को छूने का प्रयास करते सरयू सिंह ने सुगना का हाथ पकड़ लिया और उसे उसके गालों पर लाते हुए बोले..

"अब ई सब काम मत कर….बच्चा पर ध्यान द... और एक बात कही..?"

"ना पहले ई बतायी रहुआ हमरा से दूर काहे भाग तानी"

सुगना ने अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर दिया और बोली..

"यह दोनों हमेशा राहुल इंतजार करेले सो डॉक्टर खाली उ सब काम के मना कइले बा ई कुल खातिर नाहीं…"

सुगना ने अपनी चूचियां खोल कर उन्हें मीसने का खुला निमंत्रण सरयू सिंह को दे दिया था।

सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर लीं। वह अपनी पुत्री को अपने मन की व्यथा समझा पाने में पूरी तरह नाकाम थे।

सुगना ने अपनी कामकला का पाठ उन से ही सीखा था और उसे सरयू सिंह की यह बेरुखी बिल्कुल रास ना आ रही थी । यद्यपि यह बात वह जानती थी कि सरयू सिंह अभी उस दिन के सदमे से उबर रहे थे परंतु वह उनके कामुक स्पर्श के लिए बेताब और बेचैन थी।


उसे यह बात कतई समझ ना आ रही थी की सरयू सिंह की उत्तेजना को क्या हो गया था? जो व्यक्ति दिन में एक दो नहीं कई बार एकांत में उसे देखकर अपने आलिंगन में भर लेता और यथासंभव अपना स्पर्श सुख देता वह पिछले कई दिनों से उसी से दूर दूर रह रहा था।

सुगना को अचानक अपनी जांघों के बीच गिरे राजेश के वीर्य का ध्यान आया कहीं उसके बाबूजी मैं उसे गलत तो नहीं समझ लिया? सुगना परेशान हो गई उसने अपने मन में सोची हुई बात पर यकीन कर लिया और सरयू सिंह की नाराजगी के कारण को उससे जोड़ लिया।

उसने सरयू सिंह को मनाने की सोची… और घुटनों के बल आने लगी उसकी मुद्रा से सरयू सिंह ने आगे के घटनाक्रम का अंदाजा लगा लिया और वह पलट गए खिड़की की तरफ देखते हुए उन्होंने सुगना से कहा ..

"सुगना बेटा हमार ए गो बात मान ल…"

"बाउजी जी हम तो राउरे बानी आप जैसे कहब हम करब हमरा से नाराज मत होखी.. कौनो गलती भईल होखे तो हमार मजबूरी समझ के माफ कर देब"

सुगना ने अपने मनोदशा के अनुसार उस कृत्य के लिए सरयू सिंह से माफी मांग ली.

सरयू सिंह के मन में कुछ और ही चल रहा था उन्होंने सुगना को अपने सीने से लगा लिया परंतु यह आलिंगन में कामुकता कतई न थी सिर्फ और सिर्फ प्यार था. सुगना उनके आलिंगन में थी परंतु स्तनों ने जैसे अपना आकार सिकोड़ लिया था। उत्तेजना से सुगना के सख्त हो चुके निप्पलों ने भी इस नए प्रेम को पहचान लिया और उन्होंने अपना तनाव त्याग दिया। सुगना अपने पिता के आलिंगन में आ चुकी थी। सरयू सिंह का यह रूप उसे बेहद अलग प्रतीत हो रहा था परंतु भावनाएं प्रबल थी उसे सरयू सिंह के आलिंगन में अद्भुत सुख मिल रहा था।

सुगना ने पुरुष का यह रूप शायद पहली बार देखा था वह भावविभोर थी और आँखों मे अश्रु लिए सरयू सिह से सटती जा रही थी।

सरयू सिंह ने सुगना के कोमल गालों को अपने हाथों में लेते हुए उसके माथे को चूम लिया और बेहद प्यार से बोले ..

"बेटा हमार बात मनबु?

"हा बाबूजी" सुगना ने अपनी पलकों पर छलक आए आंसू को पूछते हुए कहा

"हमरा खातिर रतन के माफ कर द…"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया…

सरयू सिंह ने फिर कहा..

"जीवन ने सब कुछ अपना मर्ज़ी से ना होला..हम सब कहीं न कहीं गलती कइले बानी जा… पर अब गलती के ठीक करके बा"

सुगना को अपनी गलती का प्रायश्चित करने का विचार आ चुका था…

"ठीक बा बाबूजी… पर का उ अब हमारा के अपना पइहें"

"बेटा उ सब कुछ छोड़ के तहरे पास आइल बा….उ..अब हमारा सुगना बेटा के तंग करी त लाठी से पीटब"

सुगना के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी। चेहरा कांतिमान ही गया। नियति सुगना को देख रही थी और सुगना के भविष्य का ताना बाना बुन रही थी।


रतन सचमुच सुगना से प्यार करने लगा था उसे पता था कि सूरज और उसके गर्भ में पल रहा दूसरा बच्चा भी उसका नहीं था परंतु वह इन सब बातों से दूर सुगना पर पूरी तरह आसक्त हो चुका था वह एक पति की तरह उसका ख्याल रखता और हर सुख दुख में उसका साथ देता.

कुछ ही दिनों में लाली और सुगना दोनों ही अपने नए घर में पूरी तरह सेट हो गई। उनका गर्भ लगभग 6 माह का हो चुका था। दोनों ही एक साथ गर्भवती हुई थी दोनों साथ बैठती और अपने गर्भ के अनुभव को साझा करती…

एक दिन लाली ने सुगना का फूला हुआ पेट सहलाते हुए पूछा

"ए में केकर बीज बा तोर जीजाजी कि रतन भैया के…?"

"जब होइ त देख लीहे…"

सुगना इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट तौर पर दे सकती थी उसका संशय तो राजेश और बाबूजी के बीच था, रतन तो इस खेल से पूरी तरह बाहर था। निश्चित ही राजेश का पलड़ा भारी था...

सुगना के मन में उस दिन के दृश्य ताजा हो गए जब वह बनारस महोत्सव की आखिरी रात को राजेश के घर पर थी जाने यादों और संवेदनाओं में ऐसी कौन सी ताकत होती है जो दूसरा पक्ष भी पहचान लेता है। राजेश भी रेल की खिड़की से सर टिकाए स्वयं उस दिन की यादों में खोया हुआ निर्विकार भाव से बाहर की काली रात को देख रहा था और उसका अंतर्मन सुगना को याद कर रोशन था रोमांचित हो रहा था …

शेष अगले भाग में...

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#67
भाग 62

सुगना के मन में उस दिन के दृश्य ताजा हो गए जब वह बनारस महोत्सव की आखिरी रात को राजेश के घर पर थी। जाने यादों और संवेदनाओं में ऐसी कौन सी ताकत होती है जो दूसरा पक्ष भी पहचान लेता है। राजेश भी रेल की खिड़की से सर टिकाए स्वयं उस दिन की यादों में खोया हुआ निर्विकार भाव से बाहर की काली रात को देख रहा था और उसका अंतर्मन सुगना को याद कर रोशन था रोमांचित हो रहा था …

अब आगे....

लाली के घर मे बनारस महोत्सव की आखिरी रात लाली और सुगना बिस्तर पर सुंदर नाइटी में लिपटी हुई बातें कर रही थी। कुछ वस्त्र तन को इस प्रकार ढकते हैं कि वह उसे और कामुक बना देते हैं वही हाल लाली और सुगना का था। दोनों परियां दीये की रोशनी में कयामत ढा रहीं थीं पर इन पर मार मिटने वाला राजेश बाहर हाल में लेटा हुआ उन्हें ही याद कर रहा था।

लाली में खुश होकर कहा

"आज त ते भाग्यशाली बाड़े"

सुगना को एक पल के लिए सच में एहसास हुआ कि जैसे वह इस दुनिया के सबसे भाग्यशाली औरत हो। भरपूर धन दौलत जो आज राजेश की बदौलत उससे मिल चुकी थी एक खूबसूरत और प्यारा बेटा जो सूरज के रूप में उसके पास था और तीसरा काम सुख.. यह अलग बात थी कि उसे पुरुष संसर्ग का सुख अपने पति के बजाए अपने प्यारे बाबू जी से मिला था पर वह अनुभव अद्भुत और बेहद आनंददायक था।

पिछले 3 -4 वर्षों में न तो उसे कभी अपने पति की कमी कभी महसूस न हुई थी वह दुनिया की सबसे संतुष्ट औरत थी। परंतु पिछले 3-4 दिनों में उसकी अधीरता चरम पर पहुंच चुकी थी। विद्यानंद की बातों पर विश्वास कर गर्भधारण उसके लिए बेहद अहम और एक चुनौती बन गया था।

सुगना जैसे संतुष्ट और खुशहॉल युवती अचानक ही हतभगिनी बन गई थी। जिस स्त्री को अपने ही पुत्र से संभोग करना पड़े निश्चित ही यह मानसिक कष्ट असहनीय होगा और तो और इसके बचाव का तरीका भी कम कष्टकारी न था अपनी ही पुत्री को अपने पुत्र से संभोग कराना यह घृणित और निकृष्ट कार्य सुगना के भाग्य में नियति ने सौंप दिया था। लाली ने फिर कहा

"कहां भुला गइले" सुगना उदास होकर बोली

"लागा ता हमार मनोकामना पूरा ना हो पायी"

"रतन भैया त आ गइल बाड़े" सुगाना के ना तो दिमाग में और ना ही खयालों में कभी रतन का नाम आया था वह कुछ ना बोली और चुप ही रही।

"कह त जीजा जी के बुला दे तानी*

सुगना ने पिछले दो दिनों में मन ही मन कई बार राजेश के बारे में सोचा था अपने अवचेतन मन में में वह स्वयं को राजेश के सामने नग्न तो कर लेती पर अपनी जाँघे खोल कर उनके काले लण्ड को अपनी बुर में…..….छी छी सुगना तड़प उठती। क्या वह सच में राजेश से संभोग करेगी? जिस रसीली चूत को उसके बाबूजी रस ले लेकर चूसते और चाटते हैं और उसमेँ किसी पराये मर्द का….….आह… सुगना की बुर सतर्क हो गयी…परंतु आज राजेश का पलड़ा बेहद भारी था।

सुगना स्वयं को तैयार करने लगी तभी लाली ने कहा "अच्छा हम जा तानी हम कालू मल ( राजेश का लण्ड) के दूह ले आवा तानी. ते आंख बंद करके सुतल रहिये ..बस उनका के आपन दिया (बुर) देखा दीहें ओ में तेल हम गिरवा देब"

उधर सुगनामन ही मन चुदवाने को तैयार हो रही थी परंतु लाली ने यह सुझाव देकर वापस उसे एक सम्मानजनक परिस्थिति में ला दिया। उसने अपनी मूक सहमति दे दी।

उधर राजेश ….जन्नत में सैर कर रहा था..

खूबसूरत पलंग पर लाल चादर बिछी हुई थी। लाली पूर्ण नग्न अवस्था में बिस्तर पर लेटी थी जैसे उसका ही इंतजार कर रही थी। पूरे कमरे में घुप्प अंधेरा था परंतु बिस्तर और उस पर लेटी हुई लाली चमक रही थी।

राजेश बिस्तर पर आ चुका था कुछ ही देर में उसका खड़ा लण्ड लाली की बुर में प्रवेश कर गया। दो सख्त और दो मुलायम जांघों के बीच घर्षण शुरू हो गया। पति-पत्नी की काम क्रीड़ा हमेशा की तरह आगे बढ़ने लगी।

अचानक राजेश को लाली को बगल में किसी के लेटे होने का एहसास हुआ उसने लाली से पूछा

"अरे ई कौन है"

लाली की गूंजती हुई आवाज आयी

"जेकर हमेशा सपना देखेनी उ हे ह आपके सुगना.."

"फेर काहे बुला लेलु हा , जाग गईल त?

"अरे उ घोड़ा बेच के सुतेले उ ना जागी.."

" हमरा ठीक नईखे लागत, चल हाल में चलीजा "

"अरे एहिजे कर लीं उ ना जागी"

राजेश लाली को चोदते चोदते अचानक रुक गया था परंतु लाली के आश्वासन से एक बार फिर उसके कमर की गति ने रफ्तार पकड़ ली लाली ने राजेश को छेड़ा

"आज त कालू मल (राजेश का लण्ड) कुछ ज्यादा ही उछलत बाड़े। लागता आपके दिमाग में सुगना घूमत बिया"

"लाली मत बोल उ जाग जायी" राजेश मन ही मन उत्साहित भी था पर घबरा भी रहा था।

राजेश को लाली के बगल में सोई हुई सुगना की आकृति दिखाई दे रही थी परंतु उसका शरीर पूरी तरह नाइटी से ढका हुआ था.

अचानक लाली ने अपने हाथ बढ़ाए और सुगना की फ्रंट ओपन नाइटी के दोनों भाग दोनों तरफ कर दिए राजेश की निगाहें सुगना की भरी-भरी चुचियों पर टिक गई जो कार की हेडलाइट की तरह चमक रहीं थीं। राजेश की तरसती आंखों ने सुगना की चुचियों के दिव्य दर्शन कर लिए।

उस सुर्ख लाल बिस्तर पर सुगना का गोरा शरीर चमक रहा था पूरे शरीर पर कोई आभूषण न था परंतु सुगना की छातियों पर जो दुग्ध कलश थे सुगना के सबसे बड़े गहने थे। खूबसूरत और कसी हुई चूचियां गुरुत्वाकर्षण को धता बताकर पूरी तरह तनी हुई थी उस पर से निप्पल अकड़ कर खड़े थे जैसे सुगना के नारी स्वाभिमान की दुहाई दे रहे हों। चुचियों में वह आकर्षण था जो युवकों को ही क्या युवतियों को ही अपने मोहपाश में बांध ले।

राजेश जैसे-जैसे सुगना को देखता गया उसका लण्ड और खड़ा होता गया ऐसा लग रहा था जैसे शरीर का सारा रक्त लण्ड में घुसकर उसे फूलने पर मजबूर कर रहा था। राजेश का लण्ड अभी भी लाली के बुर में था पर वह शांत था। राजेश की निगाह छातियों की घाटी पर गई.. सुगना ने मंगलसूत्र क्यों उतारा था राजेश मन ही मन सोचने लगा…

कहीं सुगना संभोग आतुर तो नहीं शायद उसने अपने पति रतन का दिया मंगलसूत्र इसीलिए उतारा था? राजेश के मन में आए प्रश्न का उत्तर स्वयं राजेश ने हीं दिया और उसका मन कुलांचे भरने लगा।

लाली मुस्कुराते हुए राजेश को देख रही थी जिसकी आंखें सुगना की चुचियों से चिपकी हुई थी और होंठ आश्चर्य से खुले हुए थे।

राजेश का कालूमल अब अधीर हो रहा था शांति उसे कतई पसंद न थी उछलना उसका स्वभाव था और वह लाली की बुर में अठखेलियां करने के लिए तत्पर था लाली ने कहा

"लागा ता ओकरा चूँची में भुला गईनी"

राजेश वापस से लाली को चोदने लगा इस बार कमर के धक्कों की रफ़्तार कुछ ज्यादा थी निश्चित ही इसमें सुगना की चुचियों का असर था लाली ने कहा

"अब साध बुता गईल की औरू चाहीं"

सुगना राजेश के लिए एक अप्सरा जैसी थी उसकी चुचियों को देखकर उसके आकांक्षाएं और बढ़ गयीं सबसे प्यारी और पवित्र चीज सुगना की बुर अब भी उसकी निगाहों से दूर थी। सुगना की बुर और जांघों का वह मांसल भाग देखने के लिए राजेश तड़प उठा।

सुगना की जाँघों का पिछला भाग वह पहले देख चुका था परंतु आगे का भाग की कल्पना कर न जाने उसने कितनी बार कालूमल का मान मर्दन किया था राजेश ने लाली से कहा..

" नीचे भी हटा दी का?"

"मन बा तो हटा दी उ ना जागी घोड़ा बेच के सुतेले" लाली ने अपनी बात एक बार फिर दोहराई और राजेश के हौसले को बढ़ाया।

राजेश ने हिम्मत करके नाइटी का निचला भाग भी हटा दिया नाइटी अलमारी के 2 पल्लों की तरह खुलकर बिस्तर पर आ गए और सुगना का कोमल और कमनीय शरीर राजेश की निगाहों के सामने पूर्ण नग्न अवस्था में आ गया। सुगना ने अपने पैर के दोनों पंजे एक दूसरे के ऊपर चढ़ाए हुए थे। दोनों जाँघे एक दूसरे से चिपकी हुई थी।

अलमारी खुल चुकी थी परंतु तिजोरी अब भी बंद थी। जांघों के मांसल भाग ने सुगना की बुर पर आवरण चढ़ा रखा था वह तो उसके बुर् के घुंघराले बाल थे जो खजाने की ओर संकेत कर रहे थे परंतु खजाना देखने के लिए सुगना की मांसल जांघों का अलग होना अनिवार्य था।

राजेश को जांघों के बीच बना अद्भुत और मनमोहक त्रिकोण दिखाई दे रहा था सुगना के चमकते गोरे शरीर पर छोटे छोटे बालों से आच्छादित वह त्रिकोण राजेश को बरमूडा ट्रायंगल जैसा प्रतीत हो रहा था। वह उसके आकर्षण में खोया जा रहा था उसका अंतर्मन उस सुखना की अनजानी और अद्भुत गहराई में उतरता जा रहा था ।

उसने लाली की चुदाई बंद कर दी थी और भाव विभोर होकर बरमूडा ट्रायंगल के केंद्र में बने उस अद्भुत दृश्य को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर देख रहा था परंतु गुलाबी छेद का दर्शन तब तक संभव न था जब तक सुगना अपनी जांघों के पट ना खोलती और अपने गर्भ द्वार और उसके पहरेदार बुर् के होठों को न खोलती।

लाली ने राजेश का ध्यान भंग किया और बोली

"आप देखते रहीं हम जा तानी सुते" अपना कालूमल के निकाल ली। "

लाली ने यह बात झूठे गुस्से से कही थी राजेश को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह सुगना के सुंदर शरीर को देखते हुए लाली को फिर गचगचा कर चोदने लगा। उसने लाली को चूमते हुए कहा ..

"कितना सुंदर बीया सुगना देखा चुचियों कतना फूलन फूलन बा . रतनवा साला के कितना सुंदर माल मिलल बा। एकदम मैदा के जैसन चूची बा"

"अतना पसंद बा त ध लीं"

"जाग जायी त"

"छोड़ देब"

"हट पागल"

राजेश एक बार फिर लाली को चोदने लगा था परंतु उसकी आंखें सुगना के इर्द गिर्द घूम रही थी।

वह चुचियों को छूना चाहता था उसकी मनोदशा जानकर लाली ने एक बार फिर कहा

"जोर से मत दवाईब खाली सहला लीं"

राजेश जैसे अधीर हो गया था उसने सुगना की चुचियों पर अपना हाथ रख दिया. सुगना जैसे निर्विकार भाव से लेटी हुई थी. उसने कोई प्रतिरोध ना किया और राजेश के हाथ सुगना की चुचियों को प्यार से धीरे-धीरे सहलाने लगे। उसकी उंगलियां सुगना के निप्पलों से टकराते ही और राजेश सिहर जाता। एक पल के लिए राजेश के मन में आया कि वह आगे बढ़ कर उसकी चुचियों को मुंह में भर ले पर राजेश इतनी हिम्मत न जुटा पाया। राजेश ने जो प्यार सुगना की चुचियों के साथ दिखाया था उसका असर सुगना के कमर के निचले भाग पर भी हुआ।

सुगना के गर्भ द्वार के पटल खुल गए सुगना की दोनों एड़ियां दूर हो चुकी थी और जाँघे भी उसी अनुपात में अलग हो चुकी थी। सुगना की रानी झुरमुट से बाहर मुंह निकालकर खुली हवा में सांस ले रही थी। राजेश की निगाह इस परिवर्तित अवस्था पर पढ़ते ही वह अधीर हो गया। उसने लाली की बुर से अपना लण्ड बाहर खींच लिया और अपने सर को सुगना की जांघों के ठीक ऊपर ले आया। उसके दोनों पैर लाली और सुगना के बीचो-बीच आ गए.

गोरी सपाट चिकनी और बेदाग चूत को देखकर राजेश मदहोश हो गया उसने लाली की तरफ देख कर बोला "एकदम मक्खन मलाई जैसी बा"

"तो चाट ली."

" जाग गई त"

"तो आप जानी और आपके साली"

राजेश से और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपने होंठ सुगना की कोमल बुर से सटा दिए। अपने दोनों होंठो से सुगना के निचले होठों को फैलाते हुए उसने अपनी जीभ उस गहरी सुराही में छोड़ दी जिस पर पानी छलक रहा था । जीभ ने जैसे ही गहरी गुफा में प्रवेश किया सुगना की बुर से रस छलक कर बाहर आ गया और सुगना के दूसरे छेद की तरफ बढ़ चला। राजेश की निगाहें सुगना की सुगना की बुर को ध्यान से न देख पा रही थी वह कभी सर उठा कर सुगना की बुर को देखता और फिर झुक कर अपने होंठ उससे सटा देता।

नयन सुख और स्पर्श सुख दोनों ही राजेश को पसंद आ रहे थे। सुगना के फैले हुए पैर तन रहे थे। सुगना कि मजबूत जांघों की मांसपेशियां तनाव में आ रही थी राजेश के होठों की मेहनत रंग ला रही थी। सुगना की सांसें तेज चलने लगी । लाली ने सुगना की सांसों में आए बदलाव को महसूस कर लिया था उसने सुगना को चूमते हुए कहा

" ए सुगना मान जा"

"हम कहां रोकले बानी"

सुगना ने यह बात फुसफुसाकर कही थी पर राजेश ने सुन ली.

लाली ने सुगना के हाथ को पकड़ कर राजेश के लण्ड पर रख दिया और सुगना की कोमल हथेलियों से कालूमल को सहलाने लगी।

राजेश ने नए स्पर्श को महसूस किया। सुगना के हांथो में अपने लण्ड को देखकर मस्त हो गया। राजेश तृप्त हो गया उसने एक बार फिर सुगना की सुराही में मुंह डाल दिया।

एक अद्भुत तारतम्य बन गया था। सुगना राजेश का लण्ड तब तक सहलाती जब तक उसे अपनी बूर् चटवाने में मजा आता। जैसे जी राजेश उग्र होकर बूर् को खाने लगता वह लण्ड के सुपारे को जोर से दबा देती और राजेश तुरंत ही बुर से अपने होंठ हटा लेता।

लाली तो धीरे-धीरे इस खेल से बाहर हो गई थी थोड़ी ही देर में राजेश लाली को भूलकर सुगना की जांघों के बीच आ गया परंतु सुगना की जाघें अभी भी एक खूबसूरत कृत्रिम डॉल की तरह निर्जीव पड़ी हुई थी राजेश ने उसे अपने दोनों हाथ से अलग किया और घुटने से मोड़ दिया।

अपने काले लण्ड को सुगना की गोरी चूत के मुहाने पर रखकर वह मन ही मन सुगना को चोदने की सोचने लगा तभी लाली की गूंजती हुई आवाज सुनाई दी…

"अपना साली के सूखले चोदब बुर दिखाई ना देब?"

राजेश को शर्म आई और उसने अपने गले की चैन उतार कर सुगना की चूचियो पर रख दिया चैन से 8 का आकार बनाते हुए उसमें सुगना की चुचियों को उसमें भरने की कोशिश की। परंतु अब सुगना की चूचियां बड़ी हो चुकी थी। वह राजेश की छोटी सी चैन में आने को तैयार न थी। फिर भी राजेश ने यथासंभव कोशिश की और सुगना चुचियों को तो ना सही परंतु निप्पलों को अपने प्रेम पास में बांधने में कामयाब हो गया।

सुगना की निर्जीव पड़ी जाँघे अब सजीव हो चुकी थी वह अपने दोनों पैर घुटनों से मोड़ें दोनों तरफ फैलाए हुए थे और जांघों के बीच उसकी गोरी और मदमस्त फूली हुई बुर अपने होठों पर प्रेम रस लिए अपने अद्भुत निषेचन का इंतजार कर रही थी। अंदर का मांसल भाग भी उभरकर झांकने लगा ऐसा लग रहा था जैसे सुगना की उत्तेजना चीख चीख कर अपना एहसास करा रही थी और अपना हक मांग रही थी।

सुगना की जाँघे स्वतः फैली हुई थी राजेश को उन्हें सहारा देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सुगना की अवस्था प्रणय निवेदन को स्पष्ट रूप से दर्शा रही थी। राजेश ने अपने लण्ड का दबाव सुगना की मदमस्त बुर पर लगा दिया और सुगना की कामुक कराह निकल पड़ी..

"जीजा जी तनी धीरे से….. दुखाता…."

राजेश तो मस्त हो गया यह मादक और अतिकामुक कराह उसने पहली बार सुनी थी उसने निर्दयी भाव से अपने लण्ड को सुगना की बुर में ठान्स ने की कोशिश की और यही वक्त था जब उसका स्वप्न भंग हुआ दरअसल उसके लण्ड ने सुगना की कोमल बुर की जगह जगह चौकी में छेद करने की कोशिश की। परंतु वह काठ की चौकी लण्ड से ज्यादा कठोर थी। राजेश का स्वप्न भंग हो गया था.. और उत्तेजना दर्द में तब्दील हो गई थी।

सुगना की बुर लण्ड जड़ तक पहुंचाने के प्रयास में राजेश के पैर पूरी तरह तन गए थे पंजे बाहर की तरफ हो गए और चौकी के कोने में रखा दूध का वह गिलास जिससे सुगना ने अपने हाथों से दिया था जमीन पर गिर पड़ा खनखनाहट की तेज आवाज हुई और कमरे में लेटी बतिया रही सुगना और लाली सचेत हो गयीं।

राजेश ने अपने आपको पेट के बल चौकी पर पाया । नीचे सुगना ना होकर चौकी पर सूखा बिस्तर था। वह तड़प कर रह गया परंतु उसके होठों पर मुस्कुराहट कायम थी अपने स्वप्न में ही सही परंतु उसने अपनी स्वप्न सुंदरी की अंतरंगता का आनंद ले लिया था। वह पलट कर पीठ के बल आ गया और अपने इस खूबसूरत सपने के बारे में सोचने लगा।

गिलास गिरने की आवाज सेकमरे में लाली और सुगना सचेत हो गयीं। सुगना ने कहा

"जा कर देख जीजा जी सपनात बड़े का"

सुगना ने यह बात अंदाज़ पर ही कही थी परंतु उसकी बात अक्षरसः सत्य थी। लाली हाल में कई और राजेश की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई। राजेश अभी भी अपने तने हुए लण्ड को हाथ से सहला रहा था। राजेश की स्थिति देखकर लाली वापस अंदर आयी हाथों में जैतून का तेल लिए वापस हाल में आने लगी। जाते-जाते उसने अपने हथेलियों को गोलकर सुगना को यह इशारा कर दिया कि वह कालू मल का मान मर्दन करने जा रही है, सुगना मुस्कुरा रही थी।

लाली के जैतून के तेल से सने हाथ राजेश के लण्ड पर तेजी से चलने लगी उसने राजेश से पूछा

"सुगना के बारे में सोचा तानी है नु?"

राजेश ने लाली से अपने स्वप्न को ना छुपाया और उसे अपने स्वप्न का सारा विवरण सुना दिया। लाली राजेश के स्वप्न को सुनती रही और उसके लण्ड को सहला कर स्खलन के लिए तैयार कर दिया।

तभी लाली ने कहा त "चली आज साँचों दर्शन करा दीं, सुगना सुत गईल बिया"

"का कह तारू?"

" उ जागी ना?"

लाली ने वही उत्तर दिया जो राजेश ने अपने स्वप्न में सुना था।

राजेश उस लालच को छोड़ ना पाया और अपने खड़े लण्ड के साथ अंदर के कमरे में आ गया। सुगना किनारे पीठ के बल सोई हुई सोई हुई थी। सुगना की मदमस्त काया को देख कर का लण्ड उछलने लगा। लाली के हाथ अभी भी उसके लण्ड को सहना रहे थे। अचानक लाली ने नाइटी तो दोनों तरफ फैला दिया सुगना का मादक शरीर पूरी तरह नग्न हो गया।

कमरे में बत्ती गुल थी। पर दीए की रोशनी में सुगना का शरीर चमक रहा था। सुगना ने अपना चेहरा ढक रखा था। राजेश सुगना का चेहरा तो ना देख पाया परंतु चेहरे के अलावा सारा शरीर उसकी आंखों के सामने था जो सपने उसने देखा था उसका कुछ अंश आंखों के सामने देख कर वह बाग बाग हो गया।

कालूमल आज उद्दंड हो चला था वह लाली के हाथों से छटक रहा था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह स्वयं उछलकर सुगना की गोरी बुर में समाहित हो जाना चाहता था।

राजेश उत्तेजना से कांपने लगा लाली के हाथ लगातार कालूमल को रगड़ रहे थे और अंततः कालू मल ने अपना दम तोड़ दिया राजेश के लण्ड से निकल रही वीर्य की धार को नियंत्रित करने का जिम्मा लाली ने बखूबी उठाया और सुगना की बुर पर बालों का झुरमुट राजेश के रस से पूरी तरह भीग गया सुगना अपने होंठ अपने दांतो से दबाए इस कठिन परिस्थिति को झेल रही थी कभी उत्तेजना और कभी घृणा दोनों ही भाव अपने मन में लिए उसने अपनी बुर को राजेश के रस से भीग जाने दिया।

स्खलन उत्तेजना की पराकाष्ठा है और वही उसका अंत है स्खलन पूर्ण होते ही राजेश वापस हॉल में चला गया और लाली की राजेश के वीर्य से सनी उंगलियां सुगना की बुर में। सुगना की बुर पूरी तरह गीली थी। लाली की उंगलियों ने कोई अवरोध ना पाकर लाली में उस मखमली एहसास को अंदर तक महसूस करने की कोशिश की परंतु सुगना ने लाली के हाथ पकड़ लिए और कहा

"अब बस हो गईल"

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा

"अतना गरमाइल रहले हा त काहे ना उनकर साधो बुता देले हा"

सुगना अपनी यादों में खोई हुई थी। तभी राजेश के वीर्य के जिस अंश को उसने अपनी गर्भ में स्थान दिया था आज उसने ही अंदर से उसके पेट पर एक मीठी लात मारी और उसे अपनी उपस्थिति का एहसास कराया अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के हिलने डुलने का एहसास कर सुगना भाव विभोर हो गई और खुश होकर मुस्कुराते हुए बोली

"ए लाली देख लात मार तिया"

सुगना ने अपने गर्भ में पल रहे लिंग का निर्धारण स्वयं ही कर लिया था उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि गर्भ में पल रहा बच्चा एक लड़की की थी..

नियति स्वयं भी सुगना को देखकर उसके भाग्य के बारे में सोच रही थी सुगना जैसी संवेदनशील और प्यारी युवती के लिए उसने ऐसा खेल क्यों रचा था वह स्वयं परेशान थी।

लाली ने कहा..

"हमरा से बाजी लगा ले इ लइका ह"

सुगना सहम गई

"ते कैईसे बोला ता रे"

"हमरो पेट तोरे साथी फूलल रहे हमार त लात नईखे मारत ….लड़की देरी से लात मारेली सो"

सुगना ने लाली की बात का विश्वास न किया वह पूरी तरह आश्वस्त थी की नियति उसके साथ ऐसा क्रूर मजाक नहीं करेगी आखिर जब उसके इष्ट देव ने विषम परिस्थितियों में भी उसे बनारस महोत्सव के दौरान गर्भवती करा ही दिया था तो वह निश्चित ही यह कार्य सूरज की मुक्ति के लिए ही हुआ होगा..

सुगना और लाली की बातें खत्म ना हुई थी कि मिंकी भागती हुई सुगना के पास आई

"माँ सूरज के देख का भइल बा…"

मिंकी ने भी न सिर्फ अपनी माता बदल ली थी अपितु मातृभाषा भी सुगना अपना पेट पकड़कर भागती हुई सूरज के पास गई

"अरे तूने क्या किया…"

मिंकी हतप्रभ खड़ी थी उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लीये और कातर निगाहों से सुगना की तरफ देखने लगी...सुगना परेशान हो गई...

शेष अगले भाग में..

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#68
Heart 
भाग- 63

सुगना और लाली की बातें खत्म ना हुई थी कि मिंकी भागती हुई सुगना के पास आई

"माँ सूरज के देख का भइल बा…"

मिंकी ने भी न सिर्फ अपनी माता बदल ली थी अपितु मातृभाषा भी सुगना अपना पेट पकड़कर भागती हुई सूरज के पास गई

"अरे तूने क्या किया…"


मिंकी हतप्रभ खड़ी थी उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लीये और कातर निगाहों से सुगना की तरफ देखने लगी...सुगना परेशान हो गई...

अब आगे..

सूरज बिस्तर पर बैठा खेल रहा था परंतु उसकी छोटी नुंनी अपना आकार बढ़ा चुकी थी सूरज के अंगूठे पर सुगना द्वारा लगाया आवरण नीचे गिरा हुआ था । सुगना ने मिंकी की तरफ देखा डरी हुई मिन्की ने कहा "मां मैंने कुछ नहीं किया सिर्फ सूरज बाबू के अंगूठे को सह लाया था"

सुगना ने अपना सर पकड़ लिया उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था जो गलती मिन्की में की थी उसका उसे एहसास भी न था। उस मासूम को क्या पता था कि सूरज और उसके अंगूठे में क्या छुपा है।

सुगना ने स्थिति को संभाला और मिंकी से अपनी आंखें बंद करने को कहा..

"जबले हम ना कहीं आंख मत खोलीह"

मिंकी ने पूरी तन्मयता से अपनी आंखें बंद कर लिया और सुगना के अगले कदम का इंतजार करने लगी। मिंकी सुगना के वात्सल्य रस से ओतप्रोत हो चुकी थी उसे पूरा विश्वास था कि उसकी सुगना मां उसके साथ कुछ भी गलत नहीं करेगी।

फिर भी आंखें बंद कर सुगना के अगले कदम का इंतजार करती हुई मिंकी के चेहरे पर डर देखा जा सकता था। तभी सुगना ने अपनी उंगली को उसके होठों से सटाया और बोला

"अच्छा बता यह मेरी कौन सी उंगली है?"

सुगना की मीठी आवाज सुनकर मिंकी का डर काफूर हो गया और वह खुशी खुशी चाहते हुए बोली

"मां बीच वाली"

अच्छा यह बता

"मां सबसे छोटी वाली" मिन्की अपनी समझ बूझ से सुगना के प्रश्नों का उत्तर दे रही थी।


तभी सुगना ने सूरज को उठाकर अपनी गोद में ले लिया और उसकी नूनी को मिंकी के होठों से सटा दीया।

छोटी मिंकी सूरज की नुन्नी के अद्भुत स्पर्श को पहचान ना पहचान पायी। जब तक कि वह उत्तर देती सूरज की नुंनी ने अपना आकार कम करना शुरू कर दिया कुछ ही देर में मिल्की ने यह अंदाजा लगा लिया कि जो जादुई चीज उसके होठों से स्पर्श कर रही थी वह सुगना मां की उंगलियां कतई न थी मिकी ने अपनी आंखें तो ना खुली परंतु हाथ ऊपर कर सुगना को छूने की कोशिश की और उसकी कोमल हथेलियां सूरज के पैरों से जा टकराई मिंकी को एक पल के लिए वही भ्रम हुआ जो सच था परंतु उसकी आंखें अब भी बंद थी।

सुगना ने सूरज को वापस बिस्तर पर रख दिया और मिंकी के माथे को चूमते हुए बोली

"बेटा कभी भी बाबू के अंगूठा मत सहलाई ह"

मिंकी अभी भी अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी उसने अपना सर हिलाया और अपनी मां के आलिंगन में आ गई सुगना ने उसे अपने पेट से सटा लिया परंतु पेट में पल रहे बच्चे की हलचल महसूस कर मिंकी ने पूछा

" मां एमें बाबू बा नु?"

सुगना सहम गयी उसने मुझे के गाल पर मीठी सी चपत लगाई और बोली "तोहार साथ देवे तोहार बहन आव तिया"

नियति ने सुगना के कहे शब्दों को अपने मन में संजो लिया और अपनी कहानी का ताना-बाना बुनने लगी …


उधर सरयू सिंह पूरी तरह निरापद और निर्विकार हो चुके थे। जीवन में उन्होंने जितने सुख सुगना से पाए थे वह सुखद यादें अब उनके मन में एक टीस पैदा करती थी। उनका मन बनारस में न लगता जब जब वह सुगना को देखते उनके मन में एक हुक सी उठती। सरयू सिंह की कामवासना अचानक ही गायब हो चुकी थी। पिता पुत्री के पावन रिश्ते के सैलाब में उनकी कामवासना एक झोपड़ी की तरह बह गई थी।


सुगना जैसी मदमस्त और मादक युवती को देखने का अचानक ही उनका नजरिया बदल गया था परंतु उनके अंग प्रत्यंग किसी न किसी प्रकार से सुगना के मादक स्पर्श को न भूल पाते हाथों की उंगलियां दिमाग के नियंत्रण से बाहर जाने का प्रयास करतीं सुगना भी परेशान रहती आखिर बाबूजी को यह क्या हो गया है? उनके आलिंगन में आया बदलाव सुगना भली-भांति महसूस करती थी वह स्वयं सटने का प्रयास करती परंतु उसके बाबूजी स्वयं मर्यादा की लकीर खींच देते और अपने शरीर को पीछे कर लेते।

सुगना को मन ही मन यह ग्लानि होती ही क्यों उसने राजेश के वीर्य को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया… शायद इसी वजह से उसके बापूजी उससे घृणा करने लगे हैं। सुगना सरयू सिंह के करीब जाकर उन्हें खुश करने का प्रयास करती परंतु होता ठीक उल्टा शरीर सिंह असहज स्थिति में आने लगे थे।

सुगना ने अपने गर्भवती होने के लिए पर पुरुष के वीर्य को जिस तरह धारण किया था वह उचित है या अनुचित यह नजरिए की बात है।परंतु सुगना की मनो स्थिति वही जान सकती थी। बनारस महोत्सव में गर्भवती होना उसके लिए जीवन मरण का प्रश्न था और उसने वही किया जो उसके लिए सर्वथा उचित था।

सरयू सिंह दुविधा में थे। वह सुगना के करीब ही रहना चाहते थे और सुगना के कामुक व्यवहार से दूर भी रहना चाहते थे वह चाहकर भी सुगना को यह बात नहीं बता सकते थे कि वह उनकी अपनी पुत्री है। कोई उपाय न देख कर वह बनारस छोड़कर सलेमपुर चले आये। परंतु उनके लिए अकेले सलेमपुर में रहना कठिन हो रहा था उनका हमेशा से साथ देने वाली कजरी भौजी अब सुगना का ख्याल रखने बनारस में रहती थी। सरयू सिंह का खाना पीना उनके दोस्त हरिया के यहां चलता परंतु मनुष्य के जीवन में खाना के अलावा भी कई कार्य होते जो कजरी एक पत्नी के रूप में कर दिया करती थी। सेक्स तो जैसे सरयू सिंह के जीवन के गधे के सिर के सींघ की तरह गायब हो गया था।

उधर रतन सुगना के करीब आने को लालायित था। पिछले कुछ महीनों में सुगना ने रतन को अपने बिस्तर पर सोने की इजाजत देती थी परंतु विचारों में दूरियां अभी भी कायम थी। खासकर सुगना की तरफ से। रतन तो आगे बढ़कर सुगना को गले लगा लेना चाहता था परंतु सुगना खुद को हाथ न लगाने देती । वह मरखैल गाय की तरह व्यवहार तो ना करती परंतु बड़ी ही संजीदगी से स्वयं को दूर कर लेती।


वैसे भी वह दिमागी तौर पर हमेशा यही सोचने में व्यस्त रहती है कि आखिर उसके बाबूजी की उत्तेजना को क्या हो गया है। ऐसा तो नहीं कि वह गर्भवती पहली बार हुई थी इसके पूर्व भी जब उसके पेट में सूरज आया था तब भी सरयू सिंह ने अपनी और उसकी उत्तेजना को कम होने नहीं दिया था। सुगना की यादों में वह खूबसूरत पल आज भी कैद थे।

जैसे-जैसे सुगना का गर्भ अपना आकार बढ़ा रहा था सुगना का ध्यान कामुकता से हटकर अपने गर्भ पर केंद्रित हो रहा था शायद यही वजह थी कि वह सरयू सिंह की बेरुखी को नजरअंदाज कर पा रही थी।

आज सुगना के हाथ पैर में अचानक तेज दर्द हो रहा था। कजरी किसी आवश्यक कार्य से सलेमपुर गई हुई थी घर पर सिर्फ रतन और दोनों छोटे बच्चे थे एक सूरज और दूसरी मिन्की।

शाम घिर आई थी परंतु सुगना बिस्तर पर लेटी अपने हाथ पैर ऐंठ रही थी। उसे बच्चों और रतन के लिए खाना बनाना था परंतु उसकी स्थिति ऐसी न थी कि वह उठकर चूल्हा चौका कर पाती। एक पल के लिए उसके मन में आया की वह लाली से मदद ले परंतु उसे लाली की स्थिति का अंदाजा था। दोनों के पेट बराबर से फूले थे। उसके लिए खुद का खाना बनाना दूभर था। सुगना ने लाली को परेशान करने का विचार त्याग दिया और राम भरोसे रतन का इंतजार करने लगी।

थोड़ी ही देर में रतन आ गया सुगना की स्थिति देख वह सारा माजरा समझ गया। दोनों बच्चे उससे आकर लिपट गए सूरज हालांकि रतन का पुत्र न था परंतु जितनी आत्मीयता रतन ने सूरज के साथ दिखाई थी उस छोटे बालक सूरज ने उसे अपने पिता रूप में स्वीकार कर लिया था।


हालांकि सूरज की निगाहें अब भी सरयू सिंह को खोजती परंतु छोटे बच्चों की याददाश्त कमजोर होती है प्रेम का सहारा पाकर वह और धूमिल होने लगती है यही हाल सूरज का भी था वह रतन के करीब आ चुका था।

रतन ने कुछ ही देर में हाथ पैर धोए अपने और सुगना के लिए चाय बनाई। थोड़ी ही देर में पास पास के ही एक ढाबे से जाकर खाना ले आया बच्चों को खिला पिला कर उसने अपने ही कमरे में अलग बिस्तर पर सुला दिया तथा थाली में निकाल कर स्वयं और सुगना के लिए खाना ले आया।

सुगना रतन के इस रूप को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी आखिर रतन में आया यह बदलाव सर्वथा सुखद था । यदि सुगना के जीवन में सरयू सिंह ना आए होते तो शायद पिछले कुछ महीने सुगना के जीवन के सबसे अच्छे दिन होते जब वह धीरे-धीरे रतन के करीब आ रही होती।

खानपान के पश्चात रतन ने हिम्मत जुटाई और कटोरी में सरसों का तेल गर्म कर ले आया। बच्चे अब तक भोजन के मीठे नशे में आ चुके थे और सो चुके थे। रतन ने उन्हें चादर ओढाई और सुगना के बिस्तर पर आ गया।

कटोरी में तेल देखकर सुगना को आने वाले घटनाक्रम का अंदाजा हो रहा था वह मन ही मन सोच रही थी कि रतन उसके पैरों में तेल कैसे लगाएगा जिस पुरुष ने आज तक उसकी एडी से ऊपर का भाग नहीं देखा था वह आज उसके पैरों में तेल लगाने जा रहा था सुगना आज पहली बार रतन की उंगलियों को अपने पैरों पर महसूस करने जा रही थी।

सुगना की मनोदशा ऐसी न थी कि वह अपने पति से पैर दबवाती पाती परंतु लाली और राजेश के संबंधों के बारे में उसे बहुत कुछ पता था राजेश एक पत्नी भक्त की भांति लाली की सेवा किया करता था उसकी इस सेवा ने ही सुगना के मन में हिम्मत दी और उसने स्वयं को रतन के सामने तेल लगाने के लिए परोस दिया।

"साड़ी ऊपर करा तभी तो तेलवा लागी"

सुगना ने मुस्कुराते और रतन से अपनी नजरें बचाते हुए अपनी हरे रंग की साड़ी घुटनों तक खींच लिया। ऐसा लग रहा था जैसे केले के तने से ऊपरी हरा आवरण हटा दिया गया हो। सुगना के कोमल और सुडोल पैर झांकने लगे। रतन उन चमकदार पैरों की खूबसूरती में खो गया। सुगना के पैरों में लगा आलता और चमकदार चांदी की पाजेब उसके पैरों की खूबसूरती को और बढ़ा रही थी। सुगना आंखें बंद किए रतन की उंगलियों के स्पर्श का इंतजार कर रही थी। रतन ने अंततः हिम्मत जुटाकर तेल से सनी अपनी उंगलियां सुगना के पैरों से लगा दीं उंगलियों ने उन खूबसूरत पैरों को थाम लिया और राजेश सुगना के पैरों को हल्की हल्की मसाज देने लगा सुगना का दिल धक-धक कर रहा था रतन के स्पर्श से वह अभिभूत हो रही थी।

जैसे-जैसे रतन सुगना के पैर दबाता गया सुगना के पैरों को आराम मिलने इतनी मीठी यादों में खोई सुगना की आंख लग गई..

"बाबूजी बस अब हो गई अब मत लगाईं"

"रुक जा मालिश पूरा कर लेवे दा थोड़ा साड़ी और ऊपर क..र"

सरयू सिंह के हाथ सुगना की जांघों की तरफ बढ़ चले थे सुगना भी अपनी साड़ी को बचाने के प्रयास में खींचकर अपनी कमर तक ले आई थी परंतु उसका फुला हुआ पेट पेटीकोट के नाड़े को घसीट कर उसकी फूली हुई बुर के ठीक ऊपर ला दिया था।

सरयू सिंह के हाथ सुगना की नंगी जांघों पर घूमने लगे गोरे गोरे पैरों पर उनकी मजबूत उंगलियां धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगी और अंततः वही हुआ जिसका सुगना इंतजार कर रही थी सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के निचले होठों पर छलक आया काम रस छू लिया। अपनी तर्जनी को उस मलमली चीरे में डुबो दिया वह अपनी उंगलियां बाहर निकाल कर उस काम रस की सांद्रता को चासनी की भांति अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लार बनाकर महसूस करने लगे।

सुगना कनखियों से सरयू सिंह को देख रही थी और शर्म से पानी पानी हो रही थी अपनी गर्भावस्था के दौरान उसकी यह उत्तेजना बिल्कुल ही निराली थी सरयू सिंह ने सुगना के कोमल मुखड़े की तरफ देखा और बेहद प्यार से बोला

"सुगना बाबू के मन कराता का?"

सुगना ने अपना चेहरा अपनी दोनों हथेलियों से छुपा लिया परंतु अपने मीठे गुस्से को प्रदर्शित करते हुए अपने मासूम अपने पैर सरयू सिंह की गोद में पटकने लगी। जो सीधा शरीर सिंह के तने हुए लण्ड से टकराने लगे सरयू सिंह ने अपने चेहरे पर पीड़ा के भाव लाते हुए कहा

"अरे एकरा के तूर देबू का खेलबु काहे से?"

सुगना तुरंत उठ कर सरयू सिंह की गोद में छुपे उनके जादुई लण्ड को सहलाने लगी

"चोट नानू लागल हा?"

"हम का जानी एकरे से पूछ ल"

सुगना ने देर न की उसने सरयू सिंह का लंगोट खिसकाया और तने हुए लण्ड को बाहर निकाल लिया। उसने अपने बाबूजी की तरफ एक नजर देखा और अगले ही पल लण्ड का सुपाड़ा सुगना उंगलियों के बीच था सुगना ने उसे चूमना चाहा उसने अपने पेट को व्यवस्थित किया और अपने बाबू जी की गोद में झुक गई। लण्ड उसके होठों के बीच आ चुका था। सुगना की कोमल और गुलाबी जीभ कोमल सुपारे से अठखेलियां करने लगी।


सुगना की हथेलियां सरयू सिंह के अंडकोषों को सहला सहला कर सरयू सिंह को और उत्तेजित करती रहीं। लण्ड पूरी तरह उत्तेजना से भर चुका था सरयू सिंह सुगना के रेशमी बाल सहलाए जा रहे थे और कभी कभी अपनी तेल से सनी उंगलियां सुगना की पीठ पर फिरा रहे थे। ब्लाउज कसे होने की वजह से उंगलियां अंदर तक न जा पा रही थीं। जैसे ही उंगलियों ने ब्लाउज के अंदर प्रवेश करने की कोशिश की सुगना ने बुदबुदाते हुए कहा

"बाबूजी साड़ी नया बा तेल लग जायी"

" त हटा द ना"

सुगना सरयू सिंह का लण्ड छोड़कर बैठ गई। दो कोमल तथा दो मजबूत हाथों ने मिलकर सुगना जैसी सुंदरी को निर्वस्त्र कर दिया। सुगना का चिकना और सपाट पेट जिसकी नाभि से निकली पतली लकीर उसकी बुर तक पहुंच कर खत्म होती थी गायब हो चुकी थी। पेट पूरी तरह फूल चुका था।


सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना को चोदना चाहते थे परंतु उसके फूले हुए पेट और अंदर पल रहे बच्चे को ध्यान कर मन मसोसकर रह जाते थे परंतु आज उनका लण्ड विद्रोह पर उतारू था। सुगना के पेट को सहलाते हुए सरयू सिंह ने कहा..

"तहार मन ना करेला का?

"काहे के बाबूजी.."

उनकी उंगलियों ने पेट को छोड़कर बुर का रास्ता पकड़ा और मध्यमा ने गहरी घाटी में घुसकर सुगना के प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की।


सुगना ने सरयू सिंह की मूछों को अपनी उंगलियों से हटाया और उनके होठों को चूम लिया और बोली

"केकर मन ना करी ई मूसल से चटनी कुटवावे के" सुगना का दूसरा हाथ सरयू सिंह के लण्ड पर आ चुका था।

सुगना के होठों की लार अब भी सुपाडे पर कायम थी। सुगना ने अपनी हथेली से लड्डू जैसे सुपारे को कसकर सहला दिया और लण्ड की धड़कन को महसूस करने लगी।

सरयू सिंह ने सुगना को चूम लिया और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। सुगना ने बड़ी चतुराई से लण्ड को नीचे झुका कर अपनी दोनों जांघों के बीच से निकाल लिया और चौकी पर सरयू सिंह की गोद में पालथी मारकर बैठ गयी। उसके हाथ अब भी लण्ड के सुपारे से खेल रहे थे।


वह लण्ड को कभी अपनी बुर से सटाती और कभी लण्ड के सुपारे को अपनी भग्नासा से रगड़ती। सुगना अपना सारा ध्यान नीचे केंद्रित की हुई थी और उधर उसके बाबूजी की हथेलियां सुगना की चुचियों का जायजा ले रहीं थी। उन्होंने सुगना के शरीर को तेल से सराबोर कर दिया था और अपनी मजबूत हथेलियों से सुगना के कोमल शरीर और अत्यंत कोमल परंतु कठोर चुचियों को सहलाये जा रहे थे।

निप्पलों को दबाते ही सुगना सहम उठती और बोलती

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"


सुगना को भी यह अंदाज लग चुका था कि यह शब्द बाबुजी को अतिउत्तेजित कर देता है जब वह अपने मुंह से इस मीठी कराह को निकालती उनके लण्ड के सुपारे को दबा देती। लण्ड और भग्नासे की रगड़ बढ़ती जा रही थी।

"ए सुगना ये में से दूध निकली त हमरो मिली" सरयू सिंह ने सुगना की चूचियां और निप्पलों को मीसते हुए पूछा।

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली

" दुगो बानू एगो राहुर ए गो लइका के"

सुंदर और कामुक स्त्री यदि हंसमुख और हाजिर जवाब है उसकी खूबसूरती दुगनी हो जाती है सरयू सिंह भी सुगना कि इसी अदा पर मर मिटते थे। उन्होंने भी अपने हाथ सुगना की जांघों के बीच की घाटी में उतार दिए और उसकी बुर के झरने से बहने वाले रस में अपनी उंगलियां भिगोने लगे

सुगना की बुर से रिसने वाला काम रस लण्ड को सराबोर कर चुका था। सुगना अपनी हथेलियों को सुरंग का आकार देकर लण्ड को कृत्रिम योनि का एहसास करा रही थी..


सुगना का हर अंग जादुई था सुगना के स्पर्श से अभिभूत सरयू सिह धीरे-धीरे स्खलन को तैयार हो चुके थे उन्होंने सुगना के कान में कहां

"तनी सा भीतर घुसा ली का?"

"बाबूजी थोड़ा भी आगे जाए तब लाइका के माथा चापुट हो जायी हा मां कह तली हा"

अचानक ही सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों से सुगना की गुदांज गांड को सहला दिया और सुगना के गालो को चूमते हुए पूछे

" अउर ए में?"

सुगना मुस्कुराने लगी उसने सरयू सिंह के गानों को चुमते हुए बोला

"राहुल लइका ई सब सूनत होइ त का कहत होइ"

"इतना सुंदर सामान देखी त उहो इहे काम करी"

सुगना जान चुकी थी कि यदि बाबूजी स्खलित ना हुए तो यह कामुक कार्यक्रम किसी भी हद तक जा सकता था। उसने अपनी उंगलियों की कला दिखायी वह सरयू सिंह के सुपारे को कभी अपने बुर में घुसेड़ती और फिर अपनी उंगलियों से खींच कर बाहर कर देती।


बुर् के मखमली एहसास से सरयू सिंह का लण्ड उछलने लगा। सुगना उसकी हर धड़कन पहचानती थी उसे मालूम चल चुका था ज्वालामुखी फूटने वाला था। वह उनकी गोद से उठ गई और लण्ड से निकलने वाली वीर्य धार को ऊपर आसमान की तरफ नियंत्रित करने लगी। वीर्य की बूंदों ने छत को चूमने की कोशिश की परंतु कामयाब ना हुईं। वह वापस आकर सुगना के मादक शरीर पर गिरने लगी सुगना ने उस वीर्य वर्षा में खुद को डुब जाने दिया। चुचियों और चेहरे पर गिर रहा वीर्य सुगना आंखें बंद कर महसूस करती रही। सरयू सिंह उसकी ठुड्डी और होठों को चूमते रहे वह भाव विभोर हो चुके थे। उधर उनकी उंगलियां सुगना की बूर को मसले जा रही थी…

सुगना के पैर एक बार फिर एठने लगे और पंजे सीधे होने लगे ….

रतन अर्ध निद्रा में सो रही सुगना की इस परिवर्तित अवस्था से आश्चर्यचकित था उसने सुगना को झकझोरा और बोला

" का भईल सुगना"

सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…


शेष अगले भाग में…..
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#69
भाग 64 



सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…

अब आगे...…..

जब तक की रतन के हाथ सुगना के घुटनों के ऊपर पड़ी साड़ी तक पहुंचते सुगना ने रतन के हाथ पकड़ लीये और अपने दूसरे हाथ से साड़ी को नीचे करते हुए होली "जाए दी अब रहे दी ...अब ठीक लागता"

सुगना ने रतन को बड़ी सादगी और सम्मान से रोक लिया था। परंतु रतन सुगना के इस तरह रोके जाने से एक बार फिर दुखी हो गया।

रतन हमेशा यही बात सोचता की सुगना ने राजेश से संभोग कर न सिर्फ सूरज को जन्म दिया था अपितु वह एक बार पुनः गर्भवती हो गई थी। क्या सुगना राजेश से के बार बार अंतरंग हो चुकी थी? क्या उन दोनों के बीच अंतरंगता की वजह संतान उत्पत्ति के अलावा और भी कुछ थी ? क्या सुगना ने राजेश के साथ संबंध अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए बनाया था? क्या मासूम सी दिखने वाली सुगना एक काम पिपासु युवती थी जो जिसने वासना शांत करने के लिए राजेश से निरंतर संबंध बना कर रखे थे?

कभी-कभी रतन के मन में यह सोच कर घृणा का भाव भी उत्पन्न होता परंतु सुगना का मृदुल व्यवहार और मासूम चेहरा उसे व्यभिचारी साबित होने से रोक लेता रतन सुगना के साथ बिताए गए पिछले कुछ महीनों के अनुभव से यह बात कह सकता था कि सुगना जैसी युवती बिना प्रेम के इस तरह के संबंध नहीं बनाएगी और यह प्रेम न तो सुगना की आंखों में दिखाई देता न राजेश की आंखों में। यह अलग बात थी की राजेश की आखों में वासना अवश्य दिखाई देती।

ढेर सारे प्रश्न लिए रतन बेचैन रहता परंतु सुगना और राजेश के संबंध को जितना वह समझ पाया था वह उसके प्रश्नों के उत्तर के लिए काफी न था। वह सुगना और राजेश पर नजर भी रखता था परंतु हर बार उसे असफलता ही हाथ लगती। उसने राजेश की आंखों में सुगना के प्रति जो कसक और ललक महसूस की थी वह ठीक वैसी ही थी जैसी किसी कामुक मर्द की आंखों में दिखाई पड़ती है। रतन बार-बार यही बात सोचता कि जब राजेश सुगना के साथ कई बार अंतरंग हो चुका है तो फिर यह लालसा क्यों?

रतन के प्रश्नों का उत्तर किसी के पास नहीं था सुगना से पूछ पाने की उसकी हिम्मत न थी और सुगना जिससे पिछले तीन-चार वर्षो से कामकला के खेल खेल रही थी वह रतन की उम्मीदों से परे था ।

उधर मिंकी सूरज के अंगूठे के रहस्य को जान चुकी थी उस दिन सुगना ने आंखें बंद कर उससे जो कार्य कराया था उसका अंदाजा उसे लग चुका था अपनी समझ की तस्दीक करने के लिए उसने एक नहीं कई बार सूरज का अंगूठा सहलाया और उसकी नुंनी पर अपने होठों का स्पर्श दे उसे वापस अपने आकार में लाने में कामयाब रही थी। यह अनोखा खेल मिंकी को पसंद आ गया था।

सूरज की मासूम नुंनी से उसे नाम मात्र की भी घृणा न थी। जब उसका मन करता सूरज के अंगूठे पर से आवरण हटाती और उसके अंगूठे को सहला कर बेहद प्यार से उस करामाती अंग को बड़ा करती उससे प्यार से खेलती तथा सुगना के आने की आहट सुन अपने होठों के बीच लेकर उसे तुरंत ही छोटा कर देती। सूरज इस दौरान हंसता खिलखिला रहता।

नियति उसका यह खेल देखती और उनके भविष्य की कल्पना करती। काश नियति समय की चाल बदल पाती तो वह 15 वर्षों के बाद के एक तरुणी को एक युवा के लण्ड से इस प्रकार खेलते देख स्वयं उत्तेजित हो जाती।

मिंकी का यह खेल बेहद पावन और स्वाभाविक था उसे न तो इन काम अंगों का ज्ञान था नहीं उस पर लगाई गई समाज की बंदिशें। यदि वह समाज के बीच न होती तो यही कार्य करते करते दिन महीने साल बीतते जाते और एक दिन सूरज की नूनी लण्ड का आकार ले लेती और मिंकी के मादक हो चुके होंठ उसे निश्चित ही अपने स्पर्श , घर्षण और आगोश से स्खलित कर देते।

परंतु समय अपनी चाल से चल रहा था और नियति नित्य नई परिस्थितियां देखकर अपनी कहानी संजो रही थी। सुगना का गर्भ भी अब प्रसव के लिए तैयार हो रहा था।

इसी दौरान सुगना की बहन सोनी ने अपनी 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर बनारस के नर्सिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया था। वह सुगना के साथ रहती और घरेलू कार्यों में उसका हाथ भी बताती। सुगना के फूले हुए पेट को देखकर सोनी के मन में कई सारे प्रश्न आते वह सुगना से उसके अनुभव के बारे में पूछती परंतु गर्भधारण करने की मूल क्रिया के बारे में चाह कर भी न पूछ पाती जो इन दिनों लगातार उसकी उत्सुकता बढ़ा रहा रही थी।

सोनी ने अपनी बहन मोनी को भी अपने कामुक अनुभव सुनाने और उसे अपने खेल में शामिल करने के लिए कई प्रयास किए परंतु मोनी इन सब बातों से दूर घरेलू कार्यों और पूजा पाठ में मन लगाती। उसके पास बात करने के लिए विषय दूसरे थे और सोनी के दूसरे। सोने की इस जिज्ञासा का उत्तर देने वाला और कोई नहीं सिर्फ सुगना थी। परंतु सुगना और सोनी के बीच उम्र का अंतर और सुगना का कद आड़े आ जाता।

सोनी समय से पहले युवा हो चुकी थी और चुचियों ने स्वयं उसके हाथों का मर्दन कुछ जरूरत से ज्यादा झेला था और अपना आकार बरबस ही बढ़ा चुकी थीं। विकास के संपर्क में आने के बाद तो सोनी और भी उत्तेजित हो चली थी गुसल खाने में लगने वाला समय धीरे-धीरे बढ़ रहा था और सोनी को एकांत पसंद आने लगा था।

सुगना की अधीरता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी जैसे-जैसे प्रसव का समय नजदीक आ रहा था उसके मन में गर्भ के लिंग को लेकर प्रश्न उठते और वह अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होती जाती वह घंटों पूजा पाठ किया करती और अपनी हर दुआ में सिर्फ और सिर्फ पुत्री की कामना करती। मन में उठने वाली दुआएं अब बुदबुदाहट का रूप ले चुकी थी।

सुगना अपने इष्ट देव के सामने नतमस्तक होकर दुआ मांग रही थी

"हे भगवान हमरा के लइकिये दीह ना त हम मर जाइब"

पीछे खड़ी सोनी सुगना की इस विलक्षण मांग से थोड़ी आश्चर्यचकित थी सुगना के उठते ही उसने पूछ लिया..

"ए दीदी ते लड़की काहे मांगेले सब केहू लाइका मांगेला"

सुगना अपनी मनो स्थिति और विद्यानंद की बातों को सोनी जैसी तरुणी से साझा नहीं करना चाहती थी उसने कहा

"हमरा लाइका ता बड़ले बा हमरा एगो लईकी चाही"

सोनी की नजरों में सुगना पहले भी समझदार थी और आज इस सटीक उत्तर ने उसे उसकी नजरों में और बड़ा तथा सम्मानित बना दिया। सोनी ने किताबों में जो लिंगानुपात के बारे में पढ़ा था आज एक समझदार महिला उसका अनुकरण कर रही थी सोनी ने सुगना को गले से लगा लिया परंतु सगुना का पेट आड़े आ गया।

"चल छोड़ जाए दे कुछ चाही का बड़ा आगे पीछे घूमता रे"

सोनी ने अपनी चूचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा "गंजी चाहीं फाट गईल बा"

(सोनी और उस क्षेत्र की किशोरियों ब्रा को गंजी कहा करती थी)

सुगना भी आज हंसी ठिठोली के मूड में थी

" बनारस शहर में लइकन के चक्कर में मत पड़ जईहे देखा तानी तोर जोवन ढेर फुलल बा" सुगना में सोने की चुचियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सोनी शर्मा गई सुगना ने उसके गालों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए अपनी कमर मे लटके बटुए से निकालकर ₹ 50 का नोट पकड़ाया और बोला

" ले अब जो तोरा कॉलेज के देर होत होइ"

सोनी मस्त हो गई और फटाफट अपना बैग लेकर अपने नर्सिंग कॉलेज की तरफ निकल पड़ी।

हवा आग और फूस को मिलाने का कार्य करती है ऐसे ही जवानी और कामुकता इस्त्री पुरुषों को करीब खींच लाते विकास और सोनी एक बार फिर रूबरू हो गए।

नियति ने जो रास रंग सोनी और विकास के खाते में लिखे थे। वह अंजाम चढ़ने लगे विकास और सोनी की मुलाकाते होने लगी। दिल के रिश्ते जिस्मानी रिश्ते में तो न बदल पाए परंतु उन दोनों ने एक दूसरे के कामांगों के स्पर्श सुख और एक दूसरे का हस्तमैथुन कर रंगरलिया मनाने लगे।

विकास तो सोनी को बिस्तर पर पटक कर चोदना चाहता था परंतु सोनी पूर्ण नग्न होकर अभी विकास के सामने अपनी जांघें खोलने को तैयार न थी विवाह अभी भी उसके लिए अपना कौमार्य खोने की अनिवार्य शर्त थी पर विकास अभी सोनी चोदने के लिए तैयार तो था परंतु विवाह बंधन में बंधने के लिए नहीं।

विकास और सोनू दोनों ही अपने फाइनल एग्जाम की तैयारी में लगे थे। लाली का पेट फूलने के बाद सोनू की कामवासना को भी ग्रहण लग गया था। उसकी सुगना दीदी लाली के ठीक बगल में रहती थी और दोनों सहेलियां अक्सर साथ-साथ ही रहती सोनू जब कभी लाली से मिलने जाता तो सुगना वहां पहले ही उपस्थित रहती या फिर लाली खुद सुगना के घर में रहती दोनों ही स्थितियों में सोनू की कामवासना ठंडी पड़ जाती। मदमस्त युवती जब गर्भवती होती है तो कामकला के पारखी उस दशा में भी आनंद खोज लेते हैं परंतु सोनू तो नया नया युवा था वह मदमस्त काया वाली अपनी लाली दीदी पर आसक्त हुआ था लाली का बदला रूप उसे उतना नहीं भा रहा था।

इस समय विकास का पलड़ा भारी था सोनू की बहन सोनी के साथ बिताए पलों को वह विस्तार से सोनू को सुनाता और दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर अपने हाथों से अपने लण्ड का मान मर्दन करते और खुद को स्खलित कर अपनी अगली पढ़ाई के लिए स्वयं को तैयार कर लेते।

सोनी ने घर का सारा कार्यभार संभाल लिया था सुगना अब ज्यादा समय आराम ही करती थी।

रविवार का दिन था सुगना ने बिस्तर पर से ही आवाज दी

" ए सोनी तनी सूरज बाबू के तेल लगा दिहे ढेर दिन हो गईल बा"

सोनी को हमेशा से सूरज के साथ खेलना पसंद था उसने खुशी-खुशी कहा

"ठीक बा दीदी"

सोनी सूरज को तेल लगाने लगी थोड़ी ही देर में सूरज सोनी की कोमल हाथों की मालिश से मस्त हो गया और चेहरे पर मुस्कान लिए अपनी मौसी के साथ खेलने लगा अचानक सोनी ने एक बार फिर वही प्रतिबंधित कार्य किया जिसे सुगना ने मना किया था।

जाने बंदिशों में ऐसा कौन सा आकर्षण होता है जो मानव मन को स्वभावतः उसी दिशा में खींच लाता है क्या बंदिशें आकर्षण को जन्म देती हैं ?

सोनी भी अपने आकर्षण और कौतूहल को न रोक पायी। और एक बार फिर उसने सूरज के अंगूठे को सहला दिया और अंततः सोनी को अपने होठों का प्रयोग करना पड़ा। परंतु इस बार जब वह अपने होंठ रगड़ रही थी उसी समय रतन कमरे में आ गया सोनी झेप गई और सूरज को बिस्तर पर सुला उसके अधोभाग को पास पड़े तौलिए से ढक दिया …

"जीजा जी कुछ चाही का?" सोनी में अपनी चोरी पकडे जाने को नजरअंदाज कर रतन से पूछा...

रतन अब भी उस विलक्षण दृश्य के बारे में सोच रहा था सोनी के गोल किए गए होठों को यह कार्य करते देख वह कर अपने मन ही मन सोनी का चरित्र चित्रण करने लगा।

क्या सोनी ने वह कार्य वासना के अधीन होकर किया था? रतन ने पहले भी कई बार कई महिलाओं को छोटे बच्चों के उस भाग पर तेल की बूंदे डाल फूंक कर उसके आवरण को हटाते देखा था परंतु आज जो सोनी ने किया था यह कार्य सर्वथा अलग था अपने होठों के बीच उस भाग को रगड़ने की क्रिया को किसी भी प्रकार से तर्कसंगत नहीं माना जा सकता था.. सोनी के होंठ और चेहरे के हाव भाव रतन की सोच से मेल खा रहे थे।

रतन के मुंह से कोई उत्तर न सुन एक बार सोनी ने फिर कहा

" रउआ खातिर चाय बना दी?"

सोनी चौकी पर से उठने लगी। अपने घागरे को व्यवस्थित करते समय उसकी युवा टांगे रतन की निगाहों में आ गयीं। अचानक ही अपनी साली के इस युवा रूप को देखकर रतन के मन में एक पल के लिए वासना का झोंका आया जिस पर विराम एक बार फिर सोनी की आवाज ने ही लगाया

" ली रउआ सूरज बाबू के पकड़ी और दीदी के पास चली हम चाय लेकर आ आव तानी"

रतन ने अपनी क्षणिक कुत्सित सोच पर स्वयं को धिक्कारा और सूरज बाबू को लेकर सुगना के कमरे की तरफ बढ़ चला। सोनी कब बच्ची से बड़ी हो गई रतन यही सोच रहा था।

कुछ दृश्य मानव पटल पर ऐसे स्मृतियां छोड़ देते जो चाह कर भी विचारों से नहीं हटते। सोनी के गोल किए हुए सुंदर होठ अभी रतन के जहन में रह रह कर घूम रहे थे। रतन का ध्यान अब सोनी के अन्य अंगों पर भी जा रहा था। अचानक कि सोनी उसे मासूम किशोरी की जगह काम पिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी। रतन ने सोनी को कभी इस रूप में नहीं देखता था पर जब एक बार विचार मैले हुए फिर रतन के पुरुष मन ने सोनी के युवा शरीर की नाप जोख करनी शुरू कर दी। रतन के अंतर्मन में चल रहे इस विचार को उसकी अतृप्त कामेच्छा ने और बढ़ावा दिया।

सुगना ने रतन का ध्यान भंग किया और बोली..

"लागा ता अब दिन आ गईल बा। टेंपो वाला के बोल कर राखब कभी भी हॉस्पिटल जाए के पड़ सकता बा"

पिछले कुछ दिनों में सुगना रतन से खुल कर बातें करने लगी थी।

"तू चिंता मत कर सब तैयारी बा"

तभी सोनी चाय लेकर आ गई उसने सुगना को चाय दी और फिर रतन को जैसे ही सोनी रतन को चाय देने के लिए झुकी उसकी फूली हुई चुचियों के बीच की गहरी घाटी रतन को दिखाई पड़ गई न जाने आज रतन को क्या हो गया था सोनी उसके विचारों में पूरी तरह बदल गई थी।

वैसे भी बनारस आने से पहले रतन और सोनी की मुलाकात ज्यादा नहीं थी। जब रतन को सुगना से ही कोई सरोकार न था तो उसके परिवार वालों और उसकी छोटी बहनों से क्यों होता परंतु पिछले कुछ दिनों में जब से सोनी आई थी तब से रतन ने भी उसे सहर्ष अपनी साली के रूप में स्वीकार कर लिया था।

"जीजा जी हमरा का नेग मिली सेवा कईला के"

सोनी ने रतन को सहज करने की कोशिश की जोअपने ख्यालों में खोया हुआ था

"सब कुछ बढ़िया से हो जायी त जो चाहे मांग लीह"

"बाद में पलटब अब नानू"

"अच्छा बताव तहरा का चाहीं"

"चली जाए दीं, टाइम आवे पर मांग लेब भूलाइब मत"

चाय खत्म होने के बाद सोनी चाय के कप लेकर वापस जाने लगी रतन की निगाहें उस के हिलते हुए नितंबों पर चिपकी हुई थी बिस्तर पर बैठी सुगना ने यह ताड़ लिया और बोली

"का देखा तानी"

रतन क्या बोलता वह जो देख रहा था वह सारे युवाओं को पसंद आने सोनी के गदराए नितंब थे जो घागरे के अंदर से चीख चीख कर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे थे।

"कुछो ना"

रतन ने बात काटी और अपने वस्त्र बदलने लगा। सुगना को एक पल के लिए महसूस हुआ की युवा स्त्रियों के प्रति रतन का आकर्षण क्या स्वाभाविक है? या रतन एक चरित्रहीन व्यक्ति है? सुगना रतन के व्यक्तित्व का आकलन पिछले कई दिनों से कर रही थी और धीरे-धीरे उसे अपने अंतर्मन में जगह दे रही थी उसका घाघरा तो अभी व्यस्त था उस में जगह देने की न तो अभी जगह थी और नहीं यह विचार सुगना की सोच में था? जब अंतर्मन एक हो तो एकाकार होने का आनंद सुगना बखूबी जानती थी।

सुगना ने रतन की परीक्षा के दिन और बढ़ा दिए।

उधर रतन अब सोनी पर निगाह रखने लगा। कई बार वह अपने मन को समझाता कि उसका इस तरह सोनी पर निगाह रखना सोनी के चरित्र को समझने के लिए था परंतु इसमें उसकी कामेच्छा भी इसमें एक अहम भूमिका निभा रही थी।

रतन ने मन ही मन सोनी की युवा काया की तस्वीर को अपने मस्तिष्क के कैनवस पर खींचना शुरू कर दिया था। सोनी को बिना वस्त्रों के देखने की ललक बढ़ती जा रही थी। वह ताका झांकी करने लगा। सोनी इन सब बातों से अनजान सामान्य रूप से रह रही थी। उसे एक पुरुष से जो चाहिए था वह विकास उसे भली-भांति दे रहा था और जिसकी उसे असीम इच्छा थी उसके लिए विवाह एक अनिवार्य शर्त थी। उसे क्या पता था कि जीजा रतन के विचार बदल चुके थे।

स्त्रियों विशेषकर पत्नियों में यह एक विशेष गुण होता है कि यदि वह अपने पुरुष मित्र या पति को किसी अन्य युवती की तरफ आकर्षित होते हुए देखते हैं तो वह तुरंत ही उसे ताड़ लेती हैं। सुगना ने भी कुछ ही दिनों में रतन के मन में आए इस पाप को पहचान लिया। उसे रतन का यह रूप कतई पसंद न आया। अपनी सालियों से हंसी ठिठोली तो ठीक है परंतु रतन की निगाहें सोनी की चूचियों और नितंबों पर ज्यादा देर टिकने लगी थी।

रतन के मन में सोनी के प्रति जो भावना आई थी वह सिर्फ और सिर्फ वासना के कारण जन्मी थी उसके खयालो और हस्तमैथुन के अंतरंग पलों में कभी-कभी पेट फूली हुई सुगना की जगह सोनी अपनी जगह बनाने लगी थी। रतन सुगना से बेहद प्यार करता था परंतु वासना का क्या ? वह तो भटकती है और उचित पात्र देखकर उसे अपने रास रंग में शामिल कर लेती है रतन की वासना ने भी रतन के मन को व्यभिचारी बना दिया था।

अपनी वासना को अपनी सोच पर हावी होने देना मानव मन की सबसे बड़ी कमजोरी है जिन पुरुषों ने इस पर विजय प्राप्त की है वह तारीफ के काबिल है और उन के दम पर ही समाज चल रहा है यदि पुरुषों को यह वरदान प्राप्त हो जाए कि वह किसी भी सुंदर स्त्री को अपने बिस्तर पर अवतरित कर भोग सकते हैं तो अधिकतर पुरुष दर्जन भर से ज्यादा स्त्रियों को अपने बिस्तर पर ला चुके होते और इस चुनाव में रिश्ते शायद कम ही आड़े आते।

किसी नितांत अपरिचित सुंदरी से संभोग करना शायद उतना उत्तेजक ना होता हो जितना अपने जानने पहचानने वाली चुलबुली और हसीन स्त्री से।

दो-चार दिन और बीत गए और एक दिन सुगना का पेटीकोट पानी से भीग गया कजरी घर पर ही थी वह तुरंत ही समझ गई की प्रसव बेला करीब है रतन अपने होटल के लिए निकल रहा था कजरी ने कहा

"जो टेंपो ले आओ सुगना के अस्पताल लाई जाए के परी। ए सोनी जल्दी-जल्दी सामान रख लागा ता आज ही नया बाबू आई.."

चेहरे पर दर्द लिए सुगना एक बार फिर बोली

"मां बाबू ना बबुनी"

सुगना इस दर्द भरी अवस्था में भी अपनी पुत्री की चाह को सरेआम व्यक्त करने से ना रोक पायी ।

दोनों सास बहू उन बातों पर चिंता कर रही थी जो उनके हाथ में कतई ना था। थोड़ी ही देर में हरिया की पत्नी (लाली की सास) भागते हुए आई और बोली

"लाली के हमनी के अस्पताल ले जा तानी जा ओकरा पेट में दर्द होखता"

कजरी और हरिया की पत्नी ने एक दूसरे से अस्पताल ले जाने वाली सामग्रियों की जानकारी साझा की और कुछ ही देर में दो अलग-अलग ऑटो में बैठ कर सुगना और लाली अस्पताल में प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ी। बनारस महोत्सव में जो बीच उनके गर्भ में बोया गया था उसका फल आने का वक्त हो चुका था।…

क्या नियति ने सुगना के गर्भ में पुत्री का है सृजन किया था? या सुगना जो सूरज की मां और बहन दोनों थी वही उसकी मुक्ती दायिनी थी…



यह प्रश्न मैं एक बार फिर पाठकों के लिए छोड़े जा रहा हूं।

शेष अगले भाग में
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#70
Heart 
भाग 65

अब तक आपने पढ़ा लाली और सुगना अपने प्रसव के लिए अस्पताल पहुंच चुकी थीं

अब आगे..

कुछ ही देर में लाली और सुनना अपनी प्रसव वेदना झेलने के लिए अस्पताल के लेबर रूम के अंदर आ गयीं। जितनी आत्मीयता से कजरी और हरिया की पत्नी (लाली की मां) तथा सोनी अस्पताल पहुंची थी उतनी ही बेरुखी से उन्हें लेबर रूम के बाहर रोक दिया गया।

अंदर असहाय सुगना और लाली अपनी प्रसव पीड़ा झेलने के लिए चल पड़ीं। कजरी अस्पताल की लॉबी में पैर पटकते हुए इधर-उधर घूम रही थी लाली की माँ भी उसके पीछे-पीछे घूमती परंतु उसे यह घूमना व्यर्थ प्रतीत हो रहा था कुछ ही देर में वह चुपचाप लोहे की बेंच पर बैठ गई। सोनी ने अपने नर्सिंग की पढ़ाई के बलबूते वहां उपलब्ध नर्सों से कुछ ही घंटों में दोस्ती कर ली और कुछ देर के लिए अंदर जाकर सुगना और लाली का हालचाल ले आयी।


वाकपटु पढ़ी-लिखी युवती का यह गुण देखकर कजरी और लाली की मां ने सोनी को ढेरों आशीर्वाद दिए…

"जल्दी तोहरो बियाह ओके और भगवान तोहरा के सब सुख देस"

लाली की मां ने सोनी को उसके मन मुताबिक आशीर्वाद दे दिया था। विवाह की प्रतीक्षा वह स्वयं कर रही थी। सोनी अब यह जान चुकी थी की जांघों के बीच छुपी वह कोमल ओखली की प्यास बिना मुसल बुझने वाली नहीं थी। विकास के संग बिताए पल इस कामाग्नि को सिर्फ और सिर्फ भड़काने का कार्य करते थे सोनी चुदने के लिए तड़प उठती।। हाय रे समाज ….हाय रे बंदिशें ….सोनी समाज के नियमों को कोसती परंतु उन्हें तोड़ पाने की हिम्मत न जुटा पाती।


स्खलन एक आनंददायक प्रक्रिया है परंतु लिंग द्वारा योनि मर्दन करवाते हुए अपनी भग्नासा को लण्ड के ठीक ऊपर की हड्डी पर रगड़ते हुए स्खलित होना अद्भुत सुख है जो जिन महिलाओं को प्राप्त होता है वही उसकी उपयोगिता और अहमियत समझती हैं। सोनी का इंतजार लंबा था यह बात वह भी जानती थी पर सोनी की मुनिया इन सांसारिक बंधनों से दूर अपने होठों पर प्रेम रस लिए एक मजबूत लण्ड का इंतजार कर रही थी। सोनी विकास के लण्ड को स्वयं तो छू लेती परंतु अपनी मुनिया से हमेशा दूर रखती।

इधर सोनी अपने रास रंग में खो खोई थी...उधर अंदर दो युवा महिलाएं प्रसव वेदना से तड़प रही थी और प्रकृति को कोस रही थी। चुदाई का सुख जितना उत्तेजक और आनंददायक होता है प्रसव उतना ही हृदय विदारक। जो सुगना अपनी जांघें अपने बाबूजी सरयू सिंह के लिए खोलने से पहले उनसे मान मुनहार करवाती थी वह अपनी जांघें स्वयं फैलाए हुए प्रसव पीड़ा झेल रही थी।

सुगना अपने बाबूजी सरयू सिंह को को याद करने लगी उनके साथ बिताए पल उसकी जिंदगी के सबसे सुखद पल थे । कैसे वो उसे पैरों से लेकर घुटने तक चूमते, जांघों तक आते-आते सुगना की उत्तेजना जवाब दे जाती वह उनके होठों को अपनी बुर तक न पहुंचने देती…और उनके माथे को प्यार से धकेलती..


पता नहीं क्यों उसे बाबूजी बेहद सम्मानित लगते थे और उनसे यह कार्य करवाना उसे अच्छा नहीं लगता था। जबकि सरयू सिंह सुगना के निचले होठों को पूरी तन्मयता से चूसना चाहते उन्हें अपने होठों से सुगना की बूर् के मखमली होठों को फैला कर अपनी जीभ उस गुलाबी छेद में घुमाने से बेहद आनंद आता और उससे निकलने वाले रस से जब वह अपनी जीभ को भिगो कर अपने होठों पर फिराते …..आह….आनंद का वह पल उनके चेहरे पर गजब सुकून देता और सुगना उन्हें देख भाव विभोर हो उठती यह पल उसके लिए हमेशा यादगार रहता।

कभी-कभी वह अपनी जीभ पर प्रेम रस संजोए सुगना के चेहरे तक आते और उसके होठों को चूमने की कोशिश करते। सुगना जान जाती उसे अपनी ही बुर से उठाई चासनी को को चाटने में कोई रस नहीं आता परंतु वह अपने बाबूजी को निराश ना करती। उसे अपने बाबू जी से जीभ लड़ाना बेहद आनंददायक लगता और उनके मुख से आने वाली पान किमाम खुशबू उसे बेहद पसंद थी। और इसी चुम्मा चाटी के दौरान सरयू सिंह का लण्ड अपना रास्ता खोज देता... सुगना ने अपने दिमाग में चल रही यादों से कुछ पल का सुकून खरीदा तभी गर्भ में पल रहे बच्चे ने हलचल की और सुगना दर्द से कराह उठी

"आह ...तानी धीरे से" सुगना ने अपने गर्भस्थ शिशु से गुहार लगाई।

नियति सुगना की इस चिरपरिचित कराह सुनकर मुस्कुराने लगी। पर सुगना ने यह पुकार अपने शिशु से लगाई थी।

सुगना की जिस कोख ने उस शिशु को आकार दिया और बड़ा किया वही उस कोख से निकल कर बाहर आना चाहता था अंदर उसकी तड़प सुगना के दर्द का कारण बन रही थी सुगना अब स्वयं अपनी पुत्री को देखने के लिए व्यग्र थी।

सुगना ने पास खड़ी नर्स से पूछा...

"कवनो दर्द के दवाई नईखे का? अब नईखे सहात"

"अरे थोड़ा दर्द सह लो जब अपने लड़के का मुखड़ा देखोगी सारे दर्द भूल जाजोगी"

"अरे बहन जी ऐसा मत कहीं मुझे लड़की चाहिए मैंने इसके लिए कई मन्नते मान रखी है"

" आप निराली हैं' मैंने यहां तो किसी को भी लड़की मांगते नहीं देखा भगवान करे आपकी इच्छा पूरी हो... हमारा नेग जरुर दे दीजिएगा"

नर्स केरल से आई थी परंतु बनारस में रहते रहते वह नेग चार से परिचित हो चुकी थी।

सोनी अंदर आ चुकी थी और नर्स और सुगना की बातें सुन रही थी वह भी मन ही मन अपने इष्ट देव से सुगना की इच्छा पूरी करने के लिए प्रार्थना करने लगी।

इधर सुगना अपनी पुत्री के तरह-तरह की मन्नतें और अपने इष्ट देव से गुहार पुकार लगा रही थी उधर लाली एक और पुत्र की प्रतीक्षा में थी उसे लड़कियों का जीवन हमेशा से कष्टकारी लगता था जिनमें से एक कष्ट जो आज वह स्वयं झेल रही थी। उसका बस चलता तो वह सोनू को बगल में बिठाकर उतने ही दर्द का एहसास कराती


आज पहली बार उसे सोनू पर बेहद गुस्सा आ रहा था जिसने उसकी बुर में मलाई भरकर दही जमा दी थी।

नर्स मुआयना करने लाली के करीब भी गई और उससे ढेरों बातें की बातों ही बातों में लाली ने भी आने वाले शिशु से अपने अपेक्षाएं नर्स के सामने प्रस्तुत कर दीं।

परिस्थितियों ने आकांक्षाओं और गर्भस्थ शिशु के लिंग से अपेक्षाओं के रूप बदल दिए थे। उन दिनों पुत्री की लालसा रखने वाली सुगना शायद पहली मां थी। अन्यथा पुत्री जो भगवान का वरदान होती है वह स्वयं भगवान स्त्रियों को गर्भ में उपहार स्वरूप देते थे।

बाहर हॉस्पिटल की जमीन पर अपने नन्हे कदमों से कदम ताल करता हुआ सूरज अपनी मां का इंतजार कर रहा था वह बार-बार नीचे जमीन पर बैठना चाहता परंतु कजरी उसे तुरंत गोद में उठा लेती..

" मां केने बिया" सूरज ने तोतली आवाज में कजरी से पूछा

"तोहार भाई ले आवे गईल बिया"

सूरज को न तो भाई से सरोकार था नहीं बहन से उसे तो शायद ना इन रिश्तो की अहमियत पता थी और न हीं उसे अपने अपने अभिशप्त होने का एहसास था।

उधर बनारस स्टेशन पर रतन, राजेश का इंतजार कर रहा था उसे लाली की मां ने राजेश को लेने भेज दिया था। रतन का मन नहीं लग रहा था वह इस समय सुगना के समीप रहना चाहता था और उसे दिलासा देना चाहता था हालांकि यह संभव नहीं था परंतु फिर भी हॉस्पिटल के बाहर रहकर वह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाना चाहता था। परंतु लाली के अस्पताल में भर्ती होने की खबर राजेश तक पहुंचाना भी उतना ही आवश्यक था।

बनारस एक्सप्रेस कुछ ही देर मैं प्लेटफार्म पर प्रवेश कर रही थी। साफ सुथरा दिख रहा स्टेशन में न जाने कहां से इतनी धूल आ गई जो ट्रेन आने के साथ ही उड़ उड़ कर प्लेटफार्म पर आने लगी..

रतन को स्टेशन पर खड़ा देखकर राजेश सारी वस्तुस्थिति समझ गया उसे इस बात का अंदाजा तो था कि लाली के प्रसव के दिन आज या कल में ही संभावित थे। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि वह आज के बाद दो-तीन दिन छुट्टी लेकर लाली के साथ ही रहेगा। रतन को देखते ही उसने पूछा

"का भईल रतन भैया?"

"चलीं दूनों जानी अस्पताल में बा लोग"

"कब गईल हा लोग"

" 2 घंटा भईल"

कहने सुनने को कुछ बाकी ना था. राजेश ने अपनी मोटरसाइकिल बनारस के बाहर रेलवे स्टेशन में खड़ी की हुई थी। रतन और राजेश अपनी अपनी मोटरसाइकिल से अस्पताल के लिए निकल पड़े।

रतन आगे आगे चल रहा था और राजेश पीछे पीछे। ट्रैफिक की वजह से रतन आगे निकल गया और पीछे चल रहे राजेश को रुकना पड़ा परंतु यह अवरोध राजेश के लिए एक अवसर बन गया। बगल में एक ऑटो रिक्शा आकर खड़ा हुआ जिस पर एक 20 - 22 वर्षीय युवती अपनी मां के साथ बैठी हुई थी उस कमसिन युवती का चेहरा और गदराया शरीर बेहद आकर्षक था। उसकी भरी-भरी चुचियां उसे मदमस्त युवती का दर्जा प्रदान कर रही थी साड़ी और ब्लाउज मिलकर भी चुचियों की खूबसूरती छुपा पाने में पूरी तरह नाकाम थे।

राजेश की कामुक निगाहें उस स्त्री से चिपक गई वह रह रह कर उसे देखता और उसके गदराए शरीर का मुआयना करता…. पतली कमर से नितंबों तक का वह भाग का वह जिसे आजकल लव हैंडल कहा जाता है धूप की रोशनी में चमक रहा था इसके आगे राजेश की नजरों को इजाजत नहीं थी। गुलाबी साड़ी ने गुलाबी चूत और उसके पहरेदार दोनों नितंबों को अपने आगोश में लिया हुआ था। राजेश के पीछे मोटरसाइकिल वाले हॉर्न बजा बजाकर राजेश को आगे बढ़ने के लिए उकसा रहे थे परंतु राजेश उस दृष्टि सुख को नहीं छोड़ना चाहता था। वह ऑटो रिक्शा चलने का इंतजार कर रहा था।

रिक्शा चल पड़ा और राजेश उसके पीछे हो लिया। राजेश की अंधी वासना ने उसे मार्ग भटकने पर मजबूर कर दिया। हॉस्पिटल जाने की बजाय राजेश उस अपरिचित पर मदमस्त महिला के ऑटो रिक्शा पीछे पीछे चल पड़ा।

मौका देख कर राजेश उसे ओवरटेक करने की कोशिश करता और दृष्ट सुख लेकर वापस पीछे हट जाता।

राजेश की युवा और कामुक महिलाओं के पीछे भागने की आदत पुरानी थी। पता नहीं क्यों, लाली जैसी मदमस्त और कामुक महिला से भी उसका जी नहीं भरा था। उसकी सुगना को चोदने की चाहत अधूरी रह गई थी परंतु जब से उसने सुगना को नग्न देखकर अपना वीर्य स्खलन किया था वह भी उसकी जांघों के बीच उसकी रसीली बुर पर तब से वासना में अंधा हो गया और हर सुंदर तथा कामुक महिला को देखने की लालसा लिए उनके पीछे पीछे भागता रहता।

राजेश अपने ख्वाबों में उस अनजान महिला को नग्न कर रहा था। वह कभी उसकी तुलना सुगना से करता कभी उसकी अनजान और छुपी हुई बुर की कल्पना करती। राजेश का लण्ड तन चुका था।

अचानक राजेश को लाली का ध्यान आया और उसने ऑटो रिक्शा को ओवरटेक करने की कोशिश की। रिक्शा बाएं मुड़ रहा था राजेश को यह अंदाजा न हो पाया कि रिक्शा सामने आ रहे वाहन की वजह से बाएं मुड़ रहा है । राजेश ने यह समझा कि रिक्शावाला उसे आगे जाने के लिए पास दे रहा है उसने अपने मोटरसाइकिल की रफ्तार बढ़ा दी।


अचानक राजेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। सामने से आ रहे मेटाडोर ने राजेश को जोरदार टक्कर मार दी...

देखते ही देखते सड़क पर चीख-पुकार मचने लगी... नियति ने अपना क्रूर खेल खेल दिया था।

कुछ ही देर में राजेश उसी अस्पताल के एक बेड पर पड़ा जीवन मृत्यु के बीच झूल रहा था।

लाली के परिवार की खुशियों पर अचानक ग्रहण लग गया था । लाली के परिवार रूपी रथ के दोनों पहिए अलग-अलग बिस्तर पर पड़े असीम पीड़ा का अनुभव कर रहे थे। एक जीवन देने के लिए पीड़ा झेल रहा था और एक जीवन बचाने के लिए।

सोनी को लाली और सुगना के पास छोड़कर सभी लोग राजेश के समीप आ गए। राजेश की स्थिति वास्तव में गंभीर थी। सर पर गहरी चोट आई थी राजेश को आनन-फानन में ऑपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया गया परंतु मस्तिष्क में आई गहरी चोट वहां उपलब्ध डॉक्टरों के बस की ना थी। उन्होंने जिला अस्पताल से एंबुलेंस मंगाई और राजेश को प्राथमिक उपचार देकर उसकी जान बचाने का प्रयास करते रहे.


बाहर लाली की मां का रो रो कर बुरा हाल था अपनी एकमात्र पुत्री के पति को इस स्थिति में देखकर उसका कलेजा फट रहा था। भगवान भी लाली की मां का करुण क्रंदन देखकर द्रवित हो रहे थे। दो छोटे-छोटे बच्चे राजू और रीमा भी अपने पिता के लिए चिंतित और मायूस थे परंतु उनके कोमल दिमाग में अभी जीवन और मृत्यु का अंतर स्पष्ट न था।

नियति आज सचमुच निष्ठुर थी जाने उसने ऐसी कौन सी व्यूह रचना की थी उसे राजू और रीमा पर भी तरस ना आया।

राजेश जीवन और मृत्यु के लकीर के इधर उधर झूल रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो दो ऊँची मीनारों के बीच बनी रस्सी पर अपना संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा था।


आज इस अवस्था में भी उसके अवचेतन मन में सुगना अपने कामुक अवतार में दिखाई पड़ रही थी। अपने सारे भी कष्टों को भूल वह अपने अवचेतन मन में सुगना की जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा को आज स्पष्ट रूप से देख पा रहा था। गुलाबी बुर की वह अनजान सुरंग मुंह बाये जैसे राजेश का ही इंतजार कर रही थी।

जाने उस छेद में ऐसा क्या आकर्षण था राजेश उसकी तरफ खींचता चला जा रहा था। और कुछ ही देर में राजेश की आत्मा ने नया जन्म लेने के लिए सुगना के गर्भ में पल रहे शिशु के शरीर में प्रवेश कर लिया।


राजेश अपनी जिस स्वप्न सुंदरी की बुर को चूमना चाटना तथा जी भरकर चोदना चाहता था नियति ने उसका वह सपना तो पूरा न किया परंतु उस बुर में प्रवेश कर गर्भस्थ शिशु का रूप धारण करने का अवसर दे दिया।

सुगना राजेश की आत्मा के इस अप्रत्याशित आगमन से घबरा गई उसके शरीर में एक अजब सी हलचल हुई एक पल के लिए उसे लगा जैसे गर्भस्थ ने अजीब सी हलचल की।


सुगना तड़प रही थी उसने अपने पेट को सिकोड़ कर शिशु को अपनी जांघों के बीच से बाहर निकालने की कोशिश की। सुगना की छोटी और कसी हुई बुर स्वतः ही फूल कर शिशु को बाहर आने का मार्ग देने लगी।

प्रकृति द्वारा रची हुई वह छोटी से बुर जो हमेशा सरयू सिंह के लण्ड को एक अद्भुत कसाव देती और जब तक उसके बाबूजी सुगना को चूम चाट कर उत्तेजित ना करते बुर अपना मुंह न खोलती उसी बुर ने आज अपना कसाव त्याग दिया था और अपनी पुत्री को जन्म देने के लिए पूरी तरह तैयार थी।

सोनी और वह नर्स टकटकी लगाकर शिशु को बाहर आते हुए देख रहे थे। सोनी के लिए के लिए यह दृश्य डरावना था। जिस छोटी सी बुर में उसकी उंगली तक न जाती थी उससे एक स्वस्थ शिशु बाहर आ रहा था। सोनी डर भी रही थी परंतु अपनी बहन सुगना का साथ भी दे रही थी नर्सिंग की पढ़ाई ने उसे विज्ञान की जानकारी भी दी थी और आत्मबल भी।

इधर सुगना के बच्चे का सर बाहर आ चुका था नर्स बच्चे को बाहर खींच कर सुगना की मदद कर रही थी उतनी ही देर में लाली की तड़प भी चरम पर आ गई। गर्भ के अंदर का शिशु लाली की बुर् के कसाव को धता बताते हुए अपना सर बाहर निकालने में कामयाब हो गया।

"अरे लाली दीदी का भी बच्चा बाहर आ रहा है "

सोनी ने लगभग चीखते हुए कहा.. और सुगना के बेड के पास खड़ी नर्स के पास आ गई।

" आप इस बच्चे को पकड़िए मैं उस बच्चे को बाहर निकालने में मदद करती हूं"

नर्स भागकर लाली की तरफ चली गई

सोनी ने अपना ध्यान पहले ध्यान बच्चे के जननांग पर लगाया और सन्न रह गई सुगना ने पुत्री की बजाय पुत्र को जन्म दिया।

"हे विधाता तूने दीदी की इच्छा का मान न रखा"

सोनी को यह तो न पता था कि पुत्री का सुगना के जीवन में क्या महत्व था परंतु इतना वह अवश्य जानती थी कि सुगना दीदी जितना पुत्री के लिए अधीर थी उतना अधीर उसने आज तक उन्हें न देखा था। सुगना अपने बच्चे का मुख देख पाती इससे पहले वह पीड़ा सहते सहते बेहोश हो चुकी थी।

कुछ ही देर में नर्स लाली के बच्चे को लेकर सोनी के समीप आ गई

"आपकी दीदी को क्या हुआ है.."

सोनी ने उसके प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु वही प्रश्न उसने नर्स से दोहरा दिया

"मेरे हाथ में तो सुंदर पुत्री है.."

"क्या आप मेरी एक बात मानिएगा?"

"बोलिए"

"मेरी सुगना दीदी को पुत्री की बड़ी लालसा है और लाली दीदी को पुत्र की जो काम भगवान ने नहीं किया क्या हम उन दोनों की इच्छा पूरी नहीं कर सकते ? दो गुलाब के फूल यदि बदल जाए तो भी तो वह गुलाब के फूल ही रहेंगे।"

नर्स को सोनी की बात समझ आ गई उसे वैसे भी न लाली से सरोकार था न सुगना से । दोनों ही महिलाएं यदि खुश होती तो उसे मिलने वाले उपहार की राशि निश्चित ही बढ़ जाती। नर्स के मन में परोपकार और लालच दोनों उछाल मारने लगे और अंततः सुगना के बगल में एक अति सुंदर पुत्री लेटी हुई थी और सुगना के जागने का इंतजार कर रही थी।

यही हाल लाली का भी था। उसे थोड़ा जल्दी होश आ गया अपने बगल में पुत्र को देखकर लाली फूली न समाई।

उधर सोनी बाहर निकल कर अपने परिजनों को ढूंढ रही थी ताकि वह स्वस्थ बच्चों के जन्म की खुशखबरी उन्हें सुना सके गली में घूम रहे कंपाउंडर ने उसे राजेश की दुर्घटना के बारे में सब कुछ बता दिया। सोनी भागती हुई हॉस्पिटल के ऑपरेशन थिएटर की तरफ गई जहां राजेश का मृत शरीर ऑपरेशन थिएटर से बाहर आ रहा था। लाली की मां का रो रो कर बुरा हाल था अपनी नानी को इस तरह बिलखते देखकर राजू और रीमा भी रोने लगे। कजरी लाली की मां को सहारा दे रही थी परंतु लाली की मां अपनी पुत्री के सुहाग का मृत शरीर देख उसका कलेजा मुंह को आ रहा था।

सोनी आवाक खड़ी इस बदली हुई परिस्थिति को देख रही थी राजेश की मृत्यु सारी खुशियों पर भारी पड़ गई थी।

अस्पताल परिसर में एक ही इंसान था जो बेहद प्रसन्न था वह थी सुगना यद्यपि यह अलग बात थी कि उसे राजेश की मृत्यु की जानकारी न थी अपनी बहुप्रतीक्षित पुत्री को देखकर सुगना फूली नहीं समा रही थी। उसने अपने सारे इष्ट देवों का हृदय से आभार व्यक्त किया और अपने मन में मानी हुई सारी मान्यताओं को अक्षर सही याद करती रही और उन्हें पूरा करने के लिए अपने संकल्प को दोहराती रही। विद्यानंद के लिए उसका सर आदर्श इच्छुक गया था उसने मन ही मन फैसला किया कि वह अगले बनारस महोत्सव में उनसे जरूर मिलेगी

वह रह रह कर अपनी छोटी बच्ची को चूमती….

"अब तो आप खुश है ना"

सुगना को ध्यान आया कि अब से कुछ देर पहले उसने नर्स को नेग देने की बात कही थी

सुगना ने अपने हाथ में पहनी हुई एक अंगूठी उस नर्स को देते हुए कहा

"हमार शरदा भगवान पूरा कर देले ई ल तहार नेग "

नर्स ने हाथ बढ़ाकर वह अंगूठी ले तो ली पर उसकी अंतरात्मा कचोट रही थी। उसे पता था कि उसने बच्चे बदल कर गलत कार्य किया था चाहे उसकी भावना पवित्र ही क्यों ना रही हो।

कुछ घटनाक्रम अपरिवर्तनीय होते हैं आप अपने बढ़ाएं हुए कदम वापस नहीं ले सकते वही स्थिति सोनी और उस नर्स की थी शायद नियति की भी...।


शेष अगले भाग में...
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#71
Shocked 
भाग -66

सुगना ने अपने हाथ में पहनी हुई एक अंगूठी उस नर्स को देते हुए कहा

"हमार शरदा भगवान पूरा कर देले ई ल तहार नेग "

नर्स ने हाथ बढ़ाकर वह अंगूठी ले तो ली पर उसकी अंतरात्मा कचोट रही थी। उसे पता था कि उसने बच्चे बदल कर गलत कार्य किया था चाहे उसकी भावना पवित्र ही क्यों ना रही हो।

कुछ घटनाक्रम अपरिवर्तनीय होते हैं आप अपने बढ़ाएं हुए कदम वापस नहीं ले सकते वही स्थिति सोनी और उस नर्स की और शायद नियति की भी ..

अब आगे..

लाली की मा और कजरी लाली और सुगना से मिलने अंदर आ चुकी थीं। सुगना ने चहकते हुए कजरी से कहा..

"मां देख भगवान हमार सुन ले ले हमरा के बेटी दे दे ले"

कजरी ने बच्चे को गोद में ले लिया पर उसके चेहरे पर खुशी के भाव न थे।

"मां तू खुश नईखु का काहे मुंह लटकावले बाड़ू"

कजरी ने अपने होठों पर उंगलियां रखकर सुगना को चुप रहने का इशारा किया। और उसके कान में जाकर वस्तु स्थिति से सुगना को अवगत करा दिया।

सुगना सन्न पड़ गई जितनी खुशियां उसके दिलो-दिमाग मे थी. उन पर राजेश के मरने का गम भारी पड़ गया, अपनी सहेली के के लिए उसकी संवेदनाओं ने उन खुशियों को निगल लिया।

उधर लाली पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा था। वह एक बार फिर बेहोश हो गई। निष्ठुर नियति ने लाली का सुहाग छीन लिया था.

शाम होते होते सुगना और लाली अपने बच्चे के साथ अपने घर में आ चुकी थी।

राजेश की आत्मा ने अपने क्षत-विक्षत शरीर को त्याग कर सुगना के उसी गर्भ में अपना स्थान बनाया था जिसका निषेचन स्वयं उसके ही वीर्य से हुआ था। राजेश आज बालक रूप में अपनी ही पत्नी लाली की गोद में अपने घर में खेल रहा था और उन्हीं चुचियों पर बार-बार मुंह मार रहा था जिनको लाली उसे ज्यादा चूसने के लिए रोकती रहती थी।

काश लाली को यह पता होता वह बालक राजेश का ही अंश है तो शायद उसका दुख कुछ कम होता परंतु अपने पति को अपने बालक के रूप में देखकर शायद ही कोई महिला खुश हो।

पुरुष का पति रूप हर महिला को सबसे ज्यादा प्यारा होता है बशर्ते उन दोनों में और एक दूसरे के प्रति समझ आदर और प्यार हो।

सोनू भी घर पर आ चुका था। वह लाली को सांत्वना दे रखा था। लाली की मां को सोनू का इस तरह सांत्वना देना सहज तो लग रहा था परंतु कहीं ना कहीं कोई बात खटक रही थी।

स्त्री और पुरुष के आलिंगन को देखकर उनके बीच संबंधों का आकलन किया जा सकता है .. एक दूसरे के शरीर पर बाहों का कसाव खुशी और गम दोनों स्थितियों में अलग अलग होता है। शारीरिक अंगों का मिलन रिश्तो को परिभाषित करता है,

यदि आलिंगन के दौरान पुरुष और स्त्री के पेट आपस में कसकर चिपके हुए हों तो यह मान लीजिए की या तो उन दोनों में संबंध स्थापित हो चुके हैं या फिर निकट भविष्य में होने वाले हैं।

लाली और सोनू का यह मिलन जिन परिस्थितियों में हो रहा था वहां कामोत्तेजना का कोई स्थान न था परंतु लाली सोनू के जीवन में आने वाली पहली महिला थी जिसे वह मन ही मन प्यार करने लगा था यद्यपि इस प्यार में कामुकता का अहम स्थान था।

सोनू का शरीर पिछले कुछ ही महीनों में और मर्दाना हो गया था 6 फुट का लंबा शरीर भरने के बाद सोनू का व्यक्तित्व निखरने लगा था।

खबरों की अपनी गति होती है वह आज के युग में मोबाइल और व्हाट्सएप से पहुंचती हैं उस दौरान कानो कान पहुंचती थी। सुगना की पुत्री और राजेश की मृत्यु की खबर भी सलेमपुर पहुंची और अगले दिन अगले दिन सरयू सिंह भी बनारस में हाजिर थे।

अपनी पुत्री सुगना की गोद में मासूम बालिका को देखकर उनका हृदय भाव विह्वल हो उठा। उन्हें पता था की बनारस महोत्सव के दौरान सुगना की जांघों के बीच लगा वह वीर्य निश्चित ही राजेश का था। वह मन ही मन यह मान चुके थे कि सुगना का यह गर्भ राजेश से संभोग की देन थी।

उन्हें सुगना की पुत्री से कोई विशेष लगाव न था शायद इसकी वजह उसमें राजेश का अंश होना था परंतु सुगना... वह तो उन्हें जान से प्यारी थी उस कामुक रूप में भी और इस परिवर्तित पुत्री रूप में भी।

सुगना ने अपने बाबू जी के चरण छुए और एक बार फिर उनके आलिंगन में आने को तड़प उठी। परंतु सरयू सिंह ने अब मर्यादा की लकीर कुछ ज्यादा ही गहरी खींच रखी थी सुगना चाह कर भी उसे लांघ न पाई और सरयू सिंह ने सिर्फ उसके माथे को चूमकर उसे स्वयं से अलग कर दिया।

राजेश के मृत शरीर का अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया गया यद्यपि वह इस लायक कतई न था वासना का जो खेल वह खेल रहा था वह न शायद प्रकृति को पसंद था और नहीं नियति को।

विधि का विधान है दुख चाहे कितना भी गहरा और अवसाद भरा क्यों ना हो इंसान की सहनशक्ति के आगे हार जाता है ।

राजेश के जाने से लाली का पूरा परिवार हिल गया था परंतु कुछ ही दिनों में दिनचर्या सामान्य होती गयी। सोनू ने अपने दोस्तों की मदद से राजेश के विभाग से मिलने वाली सारी मदद लाली तक पहुंचवा दी तथा उसकी अनुकंपा नियुक्ति के लिए अर्जी भी लगवा दी।

सोनू जो उम्र में लाली से लगभग चार-पांच वर्ष छोटा था अचानक ही उसे बड़ा दिखाई पड़ने लगा। सोनू जब भी लाली के घर आता सारे बच्चे उसका भरपूर आदर करते हैं उसकी गोद में खेलते और लाली अपने सारे गम भूल जाती। जितना समय सोनू लाली के घर व्यतीत करता उतना तो शायद अपनी सगी बहन सुगना के यहां भी नहीं करता।

धीरे धीरे जिंदगी सामान्य होने लगी सुगना अपने बिस्तर पर रहती और पुत्री से एक पल के लिये भी अलग न होती। कजरी और सोनी मिलकर घर का कामकाज संभालती। कजरी को एक-दो दिन के लिए सरयू सिंह के साथ सलेमपुर जाना पड़ा घर की जिम्मेदारी संभालने का कार्य सोनी और रतन पर आ पड़ा। सोनी दिनभर कॉलेज में बिताती और घर आने पर चूल्हा चौका करती।

घर की जिम्मेदारियां किशोरियों और युवतियों को कामुकता से दूर कर देती हैं पिछले दो-तीन महीनों में सोनी विकास से नहीं मिल पा रही थी जिन चूचियों और जांघों के बीच उस झुरमुट में छुपी मुनिया को पुरुष हथेलियों का संसर्ग मिल चुका था वह भी इस बिछोह से त्रस्त हो चुकी थीं।

रसोई में कभी-कभी रतन उसका साथ देने आ जाता सोनी की उपस्थिति रतन को उत्साहित किए रखती। युवा लड़की आसपास के पुरुषों में स्वता ही उर्जा भर देती है .. रतन अपने आसपास सोनी को पाकर उत्साहित रहता और उसके साथ मिलजुल कर घर का काम निपटा लेता।

उधर सुगना अपनी पुत्री के लालन-पालन में खो गई थी। वह उसे अपने शरीर से एक पल के लिए भी अलग ना करती जैसे उसके लिए उससे ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं था। उसे सूरज की चिंता अवश्य थी जो उसके कलेजे का टुकड़ा था पर सूरज अब बड़ा हो चुका था और अपनी आवश्यकताएं अपने मुख से बोल कर अपनी प्यारी मौसी से मांग सकता था।

सुगना अपनी बच्ची को बार-बार चूमती और नियति को दिल से धन्यवाद देती जिसने उसे अपने ही पुत्र से संभोग करने से रोक लिया था परंतु जब जब वह अपनी फूल सी बच्ची के बारे में सोचती वह घबरा जाती..

एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई यही स्थिति सुगना की हो गई थी यह तो तय था की सुगना खाई में नहीं गिरेगी परंतु वह कैसे अपनी ही पुत्री को अपने ही पुत्र से संभोग करा कर उसे अभिशाप से मुक्ति दिलाएगी??

सुगना अपने विचारों में आज से 15- 20 वर्ष बाद की स्थिति सोचने लगी थी।

सुगना का ध्यान सूरज ने भंग किया जो उसकी ब्लाउज से दूसरी चूची को बाहर निकालकर पकड़ने का प्रयास कर रहा था..

"बाबू अब ना तू त बड़ हो गईला जा मौसी से दूध मांग ल में"

"मौसी के चूँची में दूध बा का? " सूरज ने अपना बाल सुलभ प्रश्न कर दिया तुरंत सुगना सिहर उठी उसने यह क्या कह दिया।

" बेटा मौसी गिलास में दूध दी"

सूरज ने मन मसोसकर दुखी मन से सुगना की सूचियां छोड़ी परंतु उसकी फूली चुचियों से दूध का कुछ अंश अपने होठों पर ले गया..

मौसी मौसी कहते हुए सूरज रसोई घर की तरफ चला गया.

सुगना अपनी पुत्री की खूबसूरती में खोई अपनी उसका नाम सोचने लगी... परंतु कोई भी नाम उसे सूझ नहीं सोच रहा था। वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से उसका नाम कारण कराना चाहती थी । अब तक उसके जीवन में जो भी खुशियां आई थी उसके मूल में सरयू सिंह ही थे।

सुगना ने दिल से इच्छा जाहिर की और उसी शाम को सरयू सिंह हाजिर थे जो किसी शासकीय कार्य बस बनारस आए हुए थे।

"बाबूजी हम रउवे के याद करा तनी हां"

सुगना ने झुककर सरयू सिह के चरण छुए और सरयू सिंह की नशीली निगाहों ने ने एक बार फिर सुगना की पीठ और मादक नितंबों की तरफ दौड़ लगा दी। सरयू सिंह के मस्तिष्क ने निगाहों पर नियंत्रण किया और उनकी हथेलियां एक बार फिर सुगना के सर पर आशीर्वाद की मुद्रा में आ गयीं।

सरयू सिंह के अंग प्रत्यंग अब भी दिमाग का आदेश नजरअंदाज करने को उत्सुक रहते थे परंतु शरीर सिंह ने अपने काम भावना पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया था वह सुगना को सचमुच अपनी बेटी का दर्जा दे चुके थे।

"बाबूजी एकर का नाम रखाई" सुगना ने अपनी फूल सी बच्ची को सरयू सिंह जैसे मजबूत मर्द के हाथों में देते हुए कहा।

सरयू सिंह ने बच्ची को गोद में लिया.. सचमुच लाली और सोनू के अद्भुत प्यार और मिलन से जन्मी बच्ची बेहद कोमल और प्यारी थी। सरयू सिंह ने छोटी बच्ची को उठाया और उसके माथे को चूम लिया। सरयू सिंह के मुख से फूट पड़ा..

"सुगना बेटा ई ता शहद जैसन मीठा बिया एकर नाव मधु रखिह"

रतन पास ही खड़ा था उसने मिंकी को आगे कर दिया और बोला..

"चाचा एकरो त नाम कॉलेज में लिखावे के बा मिन्की त ना नू लिखाई एकरो नाम तू ही ध द"

सरयू सिंह ने छोटी मिंकी को भी अपने पास बुलाया और बेहद प्यार से उसके माथे को सहलाते हुए बोले "एकर नाम मालती रही"

"हमरा सुगना बेटा के दुगो बेटी मधु - मालती"

सबके चेहरे पर खुशियां दिखाई देने लगी। सच सरयू सिंह ने दोनों ही बच्चों का नाम बड़ी सूझबूझ से रख दिया था।

"रतन तू ध्यान रखिह सुगना बेटी के कौनो कष्ट मत होखे"

रतन की निगाह में सरयू सिंह देवता तुल्य थे जिसने अपने निजी हित को ताक पर रखकर उसकी मां और पत्नी का ख्याल रखा था यहां तक की उन्होंने विवाह तक न किया था उसे सरयू सिंह की असलियत न पता थी और शायद यह उचित भी न था ।

रतन सरयू सिंह को पिता तुल्य मानता और उनके बड़प्पन के आगे हमेशा नतमस्तक रहता।

सुगना ने अपने बाबू जी सरयू सिंह की कामुकता को लगभग समाप्त मान लिया था उसे ऐसा प्रतीत होता जैसे उनकी उम्र हो चली थी। सुगना ने भी स्वयं पर नियंत्रण करना सीख लिया। वैसे भी अभी उसकी बुर अपना कसाव पाने की कोशिश कर रही थी। सुगना अपनी जांघों और बुर को सिकोड़ कर उसमें कसाव लाने का प्रयास करती। आज की कीगल क्रिया सुगना तब भी जानती थी।

समय दुख पर मरहम का कार्य करता है लाली के जीवन में भी खुशियां आने लगी। लाली को प्रसन्न देखकर सुगना भी धीरे धीरे धीरे खुश हो गई।

सूरज बार-बार मधु को अपनी गोद में लेने की कोशिश करता.. सुगना उसे रोकते परंतु वह जिद पर अड़ा रहा अंततः सुगना ने उसे बिस्तर पर पालथी मार कर बैठाया और उसकी गोद में अपनी फूल सी बच्ची मधु को दे दिया सूरज बेहद प्यार से मधु के माथे को चूम रहा था और उसके कोमल शरीर से खेल रहा था मधु भी अनुकूल प्रतिक्रिया देते हुए अपने कोमल होंठ फैला रही थी।

सुगना भाई बहन का यह प्यार देखकर द्रवित हो गयी। विधाता ने उसे कैसी अग्नि परीक्षा में झोंक दिया था कैसे हो इन दोनों मासूम भाई बहनों को परस्पर संभोग के लिए राजी करेंगी…

अगले कुछ दिनों में सुगना पूरी तरह स्वस्थ हो गई और अपने सभी इष्ट देवों के यहां जाकर मन्नत उतारने लगी रतन उसका साथ बखूबी देता।

सुगना द्वारा दी गई मोटरसाइकिल पर जब रतन सुगना को लेकर सुगना घुमाने और उसकी मन्नत पूरी कराने के लिए निकलता रतन की मन्नत स्वतः ही पूरी हो जाती। अपनी पत्नी सुगना के तन मन को जीतना रतन के जीवन का एकमात्र उद्देश्य था। हालांकि उससे अब इंतजार बर्दाश्त ना होता। पूरे 1 वर्ष तक वह सुगना के आगे पीछे घूमता रहा था उसने अपने प्रयश्चित के लिए हर कदम उठाए चाहे वह सुगना के पैर दबाना हो या उसके माथे पर तेल लगाना। सुगना इसके अलावा अपने किसी अंग को हाथ न लगाने देती।

परंतु पिछले चार-पांच महीनों में वह सोनी की कमनीय काया के दर्शन सुख का आनंद भी गाहे-बगाहे लेता रहा था। उसके मन में पाप था या नहीं यह तो रतन ही जाने पर सोनी की चढ़ती जवानी और उसके चाल चलन पर नजर रखना रतन अपना अधिकार समझ रहा था और अपने इसी कर्तव्य निर्वहन में वह अपना आनंद भी ढूंढ ले रहा था। एक पंथ दो काज वाली कहावत उसकी मनोदशा से मेल खा रही थी।

और एक दिन वह हो गया जो नहीं होना था..

रतन को आज अपने होटल जल्दी जाना था. घर के अंदर गुसल खाने में सोनी घुसी हुई थी उसे कॉलेज जाने की देरी हो रही थी। सुगना ने सोनी से कहा..

"तनी जल्दी बाहर निकल तोरा जीजा जी के होटल जल्दी जाए के बा"

सोनी ने अंदर से आवाज दी

"दीदी अभी 10 मिनट लागी"

रतन ने अंदाज लगा लिया कि यह 10 मिनट निश्चित ही 20 मिनट में बदल जाएंगे। वैसे भी रतन ने यह अनुभव किया था की सोनी बाथरूम में जरूरत से ज्यादा वक्त लगाती है उसने सुगना से कहा

"हम जा तानी आंगन में नल पर नहा ले तानी"

"ठीक बा आप जायीं हम ओहिजे कपड़ा पहुंचा देब"

सुगना भी अब अपने पति रतन को उचित सम्मान देने लगी थी।

रतन घर के आंगन में खुली धूप में नहाने लगा यह पहला अवसर था जब वह खुले में नहा रहा था। रतन और सुगना के बीच जो मर्यादा की लकीर खींची हुई थी उसने कभी भी रतन को सुगना के सामने निर्वस्त्र होने ना दिया था।

परंतु आज उसे सुगना को अपना गठीला शरीर दिखाने का मौका मिल गया था सुगना कुछ ही देर में उसके कपड़े और तोलिया लेकर आने वाली थी।

रतन की गठीली काया खुली धूप में चमक रही थी। रतन ने अपने शरीर पर साबुन लगाया और अपनी पत्नी सुगना की कल्पना करने लगा सुगना का शरीर अब वापस अपने आकार में आ रहा था रतन को पूरा विश्वास था कि वह सुगना को खुश कर उसे नजदीक आने के लिए राजी कर लेगा।

सुगना के मदमस्त बदन को याद करते करते रतन का लण्ड खड़ा हो गया वाह साबुन की बट्टी अपने लण्ड पर मलने लगा रतन अपनी आंखें बंद किए मन ही मन सोच रहा था काश सुगना इसी समय उसे तोलिया देने आ जाती तो वह अनजान बनकर ही अपने लण्ड के दर्शन उसे करा देता…

तभी पीछे आवाज आई..

"जीजा जी लींआपन तोलिया"

रतन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।

यह आवाज सोनी की थी। तो क्या सोनी ने उसे खड़े लण्ड पर साबुन बनते देख लिया था? हे भगवान…उसने झटपट अपनी लुंगी से अपने लण्ड को ढकने की नाकाम कोशिश की और अपना हाथ सोनी की तरफ बढ़ा दिया।

परंतु जो होना था वह हो चुका था. सोनी की सांसे तेज चल रही थीं। उसने आज जो दृश्य देखा था वह अनूठा था रतन एक पूर्ण मर्द था और उसका तना हुआ खूटे जैसा लण्ड देख कर सोनी अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं कर पा रही थी।

उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था। रतन का लण्ड आज तो वह अपनी बहुप्रतीक्षित सुगना की बुर को याद कर खड़ा हुआ था उसमें दोहरी ऊर्जा थी।

सोनी उस अद्भुत लण्ड को याद करते हुए अंदर भाग गई। रतन के खड़े लण्ड का वह आकार कल्पना से परे था। रतन एक ग्रामीण और बलिष्ठ युवक था पर क्या पुरुषों का लण्ड इतना बड़ा होता है? सोनी अपने दिमाग में रतन के लण्ड की विकास के लण्ड से तुलना करने लगी।

निश्चित थी रतन विकास पर भारी था। सोनी ने विकास के लण्ड को न सिर्फ छुआ था अपितु कई बार अपनी हथेलियों में लेकर सहलाते हुए उसे स्खलित किया था।

सोनी अभी लिंग के आकार की अहमियत से अनजान थी। वह अपने आप को खुश किस्मत मान रही थी कि उसे भगवान ने विकास से ही मिलाया था .. जिसके लण्ड को सोनी अपनी बुर में जगह देने को तैयार हो रही थी। यदि उसके हिस्से में भगवान में रतन जीजा जैसे किसी ग्रामीण युवक को दिया होता तो उसका क्या हश्र होता ? जिस बुर में उसकी पतली सी उंगली न जा पाती हो उसमें इतना मोटा बाप रे बाप। सोनी मन ही मन अपने जीजा और सुगना दीदी के मिलन के बारे में सोच रही थी। सुगना दीदी कैसे झेलती होंगी...जीजा को..

"काहें हाफ तारे"

"ऐसे ही कुछो ना"

" बुझाता जीजाजी तोर इंतजार कर तले हा तू हमारा के भेज देलु हा"

"काहे अइसन बोल तारे"

"अपन खजाना खोल के बइठल रहले हा .. बुझात रहे धार लगावतले हा" सोनी ने मुस्कुराते हुए अपनी जांघे खोल दी और जांघों के बीच इशारा किया..

सुगना को अंदाजा तो हो गया कि सोनी क्या कहना चाह रहे हैं परंतु उसे इस बात का कतई यकीन न था कि रतन इतनी हिम्मत जुटा सकेगा और आंगन में उसका इंतजार करते हुए अपने लण्ड पर धार लगा रहा होगा।

"साफ-साफ बोल का कहल चाह तारे?"

सोनी क्या बोलती जो दृश्य उसने देखा था उसे बयां करना कठिन था।

"दीदी चल जाए दे हमरा देर होता" सोनी अपने बाल झाड़ने लगी। उसकी सांसे और सांसों के साथ हिलती हुई भरी-भरी चूचियां कुछ अप्रत्याशित होने की तरफ इशारा कर रही थी।

"का भईल बा साफ-साफ बताऊ" * अपनी अधीरता न छुपा पा रही थी क्या रतन सचमुच उसे सोच कर उत्तेजित था।

"कुछ भी ना दीदी, दे कुछ खाए कि भूख लागल बा"

सुगना मन ही मन अफसोस कर रही थी कि क्यों उसने लाली को तोलिया लेकर भेज दिया था यदि वह स्वयं जाती तो रतन की मनोदशा को देख पाती और उसके हथियार को भी देख पाती। सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी।

उधर रतन का खड़ा लण्ड अचानक ही सिकुड़ गया था। सोनी जैसी युवा लड़की ने जिस तरह उसे देखा था वह वास्तव में शर्मसार करने वाला था। वह सोनी के सामने क्या मुंह लेकर जाएगा ? यह सोच कर वह मन ही मन परेशान होने लगा। वह जानबूझकर अपने नहाने का समय बढ़ाता गया ताकि सोनी अपने कॉलेज के लिए निकल जाए। सुगना ने रतन को आवाज दी...

"अब देरी नईखे होत"

रतन अंदर आया और उसने सोनी को न पाकर राहत की सांस ली। सुगना ने रतन का नाश्ता निकाल कर रख दिया और वापस अपने कमरे में आकर अपनी पुत्री को दूध पिलाने की कोशिश करने लगी।

सुगना ने भी अब रतन के बारे में सोचना शुरू कर दिया था जैसे जैसे वह स्वस्थ हो रही थी उसकी बुर में कसाव आता जा रहा था और जांघों के बीच संवेदनाएं और सिहरन एक युवती की भांति होने लगे थे। पिछले छह आठ महीनों से जिस बुर ने कामकला से मुंह मोड़ लिया था वह मौका देख कर अपने होठों पर प्रेम रस लिए न जाने किसका इंतजार करती। सरयू सिंह की बेरुखी ने सुगना की बुर को रतन के लिए अपने होंठ खोलने पर मजबूर कर दिया था इसमें निश्चित जी रतन की लगन और पिछले कुछ महीनों में की गई सेवा का भी अहम योगदान था।

दिन बीत रहे थे...

जाने सुगना की चुचियों में क्या रहस्य था कि कुछ ही दिनों बाद बच्चे उसकी चूची ना पकड़ते यही हाल सूरज का भी था जब वह छोटा था

(पाठक एक बार अपडेट 4 पढ़ सकते हैं उनके दिमाग में यादें ताजा हो जाएंगी)

और अब यही स्थिति अब मधु की थी। कल शाम से वह सुगना की चूँचियां नहीं पकड़ रही थी। सुगना ने सारे जतन किए अपने हाथों से अपने निप्पलों को मसलकर दूध निकालने की कोशिश की और दूध निकला भी परंतु मधु चूँची पकड़ने को तैयार न थी।

सुगना अंततः कटोरी ले आई और अपनी चुचियों से दूध कटोरी में निकालने का प्रयास करने लगी.. परंतु यह कार्य अकेले संभव न था एक हाथ से वह कटोरी पकड़ती और दूसरे हाथ से अपनी मोटी मोटी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास करती लाख जतन करने के बाद भी सुगना दूध की कुछ बूंदे ही कटोरी में निकाल पाई।

अपनी पुत्री को भूखा रखना सुगना को कतई गवारा न था जिस पुत्री का जन्म इतने मन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद हुआ था उसे भूख से तड़पाना सुगना को कतई गवारा न था। उसने अपनी लज्जा को ताक पर रख रतन से मदद लेने की सोची…

शेष अगले भाग में..

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#72
Heart 
भाग -67

सुगना अंततः कटोरी ले आई और अपनी चुचियों से दूध कटोरी में निकालने का प्रयास करने लगी.. परंतु यह कार्य अकेले संभव न था एक हाथ से वह कटोरी पकड़ती और दूसरे हाथ से अपनी मोटी मोटी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास करती लाख जतन करने के बाद भी सुगना दूध की कुछ बूंदे ही कटोरी में निकाल पाई।

अपनी पुत्री को भूखा रखना सुगना को कतई गवारा न था जिस पुत्री का जन्म इतने मन्नतों और प्रार्थनाओं के बाद हुआ था उसे भूख से तड़पाना सुगना को कतई गवारा न था। उसने अपनी लज्जा को ताक पर रख रतन से मदद लेने की सोची…

अब आगे..

"ए जी थोड़ा मदद कर दीं देर त ना होई?"

सुगना की मधुर आवाज रतन के कानों तक पड़ी जो अब घर से बाहर निकलने के लिए लगभग तैयार था।

रतन सुगना की बात कभी टाल नहीं सकता था। दुनिया में यदि कोई रतन के लिए अहम था तो वह थी सुगना। उसकी नौकरी चाकरी इतनी अहम न थी कि वह अपनी सुगना की बात को नजरअंदाज करता। उसने सहर्ष कहा

"हां बतावा ना का करे के बा"

"हई तनी कटोरी पकड़ी और आपन आंख मत खोलब"

सुगना ने अपनी झील जैसी आंखें नचाते हुए कहा..

कुछ निषेधात्मक वाक्यों को कहने का अंदाज उनकी निषेधात्मकता को कम कर देता है।

सुगना ने राजेश को आँखें खोलने के लिए तो मना कर दिया था परंतु शायद जो उसके उद्बोधन में था वो उसके मन में नहीं।

रतन ने अपनी आंखें कुछ ज्यादा ही मीच लीं। उसने शायद सुगना को आश्वस्त करने की कोशिश की और सुगना द्वारा दी गई कटोरी को पकड़ लिया सुगना ने उसके हाथों को एक नियत जगह पर रहने का इशारा किया और अपनी एक चूँची को ब्लाउज से बाहर निकाल लिया…

नियति यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध थी काश रतन अपनी आंखें खोल कर वह सुंदर दृश्य देख पाता। जिन चुचियों की कल्पना वह पिछले कई महीनों से कर रहा था वह उसकी आंखों के ठीक सामने थी परंतु उनकी मालकिन सुगना ने रतन को आंखें खोलने से रोक रखा था।

सुगना की कोमल हथेलियां उसकी चुचियों पर दबाव बढ़ाने लगी और दूध की धारा फूट पड़ी। कटोरी पर पढ़ने वाली धार सरररररर ... की मधुर आवाज पैदा कर रही थी जो रतन के कानों तक भी पहुंच रही थी।

रतन व्यग्र हो रहा था... कुछ दृश्य बंद आंखों से भी स्पष्ट दिखाई देते हैं वह अपने बंद आंखों के पीछे छुपी लालिमा में अपने हाथों में अपनी ही चूचियां पकड़े सुगना को देखने लगा।

सुगना के अथक प्रयास करने के बावजूद वह थोड़ा ही दूध बाहर निकाल पायी। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियों का दबाव घट रहा था दूध की धारा धीमी पड़ती जा रही थी…

रतन ने हिम्मत जुटाई और बोला...

"तनी थपथपा ल ओकरा के(चुचियों को) तब दूध निकले में आसानी होगी"

रतन की बात ने सब कुछ खोल कर रख दिया था। सुगना ने उसकी आंखें बंद कर जिसे छिपाने की कोशिश की थी उसे रतन मैं बोलकर बयां कर दिया था हालांकि उसकी आंखें अब भी बंद थीं।

"ली तब आप ही करीं" सुगना अपनी चुचियों को दबाते दबाते थक चुकी थी उसने अनजाने में ही रतन को अपनी चूचियां छूने और उनसे दूध निकालने के लिए आमंत्रित कर दिया था।

रतन का दिल तेजी से धड़कने लगा आज वह पहली बार सुगना की चुचियों को छूने जा रहा था वह भी उसके आमंत्रण पर रतन के हाथ कांपने लगे और दिल की धड़कन तेज होती गई। सुगना ने उसके हाथ से कटोरी ले ली और उसके दोनों हाथों को आजाद कर दिया

"आंख अभियो मत खोलब" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा परंतु उसकी आवाज में नटखट पन स्पष्ट महसूस हो रहा था। सुगना ने स्वयं रतन की हथेलियों को अपनी चुचियों से सटा दिया..

रतन सुगना की फूली हुई गोल-गोल सूचियों को अपने दोनों हथेलियों से महसूस करने लगा अपनी उंगलियों से उसके निप्पल को छूते हुए चुचियों के आकार और कसाव का अंदाजा लगाने लगा। धीरे-धीरे उसकी हथेलियों का दबाव बढ़ता गया और चूँचियों से दुग्ध धारा एक बार पुनः फूट पड़ी जिसे सुगना ने कटोरी में रोक लिया।

रतन मदहोश हो रहा था। उसका लण्ड खड़ा हो चुका था जो बिस्तर पर बैठी हुई सुगना की आंखों के ठीक सामने था। परंतु सुगना की निगाह अभी उस पर नहीं पड़ी थी। वह अपना ध्यान कटोरी पर लगाए हुए थी।

रतन का लण्ड अपने आकार में आकर रतन को असहज कर रहा था। उसे दिशा देने की आवश्यकता थी रतन ने अपना एक हाथ कुछ पल के लिए हटाया और लण्ड को ऊपर की तरफ किया। सुगना की निगाहों में यह देख लिया परंतु सुगना ने कुछ ना कहा।

रतन भी अब सहज हो चला था वह उसकी दोनों चूचियों को थपथपातता कभी उन्हें सहलाता और कभी अपनी हथेलियों के दबाव से उन्हें दुग्ध धारा छोड़ने पर मजबूर कर देता।

इसी क्रम में रतन की हथेलियों ने अपना दबाव कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया और सुगना करा उठी

"आह...तनी धीरे से …….दुखाता"

सुगना कि यह कराह मादक थी। रतन भाव विभोर हो गया उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी आंखें खोल दी वह सुगना की चूँचियों को सहलाने लगा।

रतन ने एक झलक उन दुग्ध कलशों को देख लिया परंतु अपनी निगाह वह ज्यादा देर तक उन खूबसूरत चुचियों पर ना रख पाए वह सुगना के चेहरे को देखते हुए बोला

"माफ कर द गलती से जोर से दब गइल हा"

सुगना का चेहरा लाल हो गया था यह दर्द के कारण था या उत्तेजना के रतन के लिए यह समझना मुश्किल था।

"जाए दीं कवनो बात ना। अब हो गई गईल अब आप जायीं " सुगना ने अपनी साड़ी के आंचल से दोनों चुचियों को ढक लिया।

सुगना ने रतन के आंख खोलने का बुरा न माना था। वह मुस्कुराती हुई अपनी सूचियों को अपनी ब्लाउज में अंदर करने लगी।

"आपन ख्याल रखीह" रतन में जाते हुए कहा

रतन वापस अपने होटल के लिए निकल गया आज का दिन रतन के लिए बेहद अहम था…

रतन रह रह कर अपनी हथेलियों को चूम रहा था आज पहली बार सुगना ने उसे अपनाने का संकेत दिया था वह उसका कृतज्ञ था जिसने उसे माफ कर अपने उस अंग को छूने दिया था जिस पर या तो उसके बच्चों का अधिकार होता है या पति का।

सुगना की पुत्री मधु ने उन दोनों को करीब लाने में अहम भूमिका अदा कर दी थी। अगले कुछ दिनों तक रतन सुगना की चुचियों से दूध निकालता रहा। धीरे धीरे आंखों का बंद होना भी सुगना की आवश्यक शर्त न रही थी।

जैसे-जैसे सुगना और रतन खुलते गए चुचियों से दूध निकालने के दौरान रतन उनसे अठखेलियां करने लगा सुगना उसे काम पर ध्यान देने को कहती परंतु रतन सुगना की चूँचियों को कामुक तरीके से सहला कर उसे उत्तेजित करने का प्रयास करता। इस दौरान उसका लण्ड हमेशा खड़ा रहता।

आखिरकार एक दिन सुगना ने भी उसे छेड़ दिया।

उसने रतन की जांघों की जोड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा

"दुधवा निकालत खानी इ महाराज काहे बेचैन हो जाले.."

रतन शर्मा गया परंतु उसमें अब हिम्मत आ चुकी थी उस ने मुस्कुराते हुए कहा..

"अइसन मक्खन मलाई जैसन चूची छुवला पर बुढ़वन के खड़ा हो जाए हम तो अभी नया बानी.".

"अच्छा चलीं बात मत बनाइ आपन काम करी"

"का करीं?"

"जवन कर तानी हां"

"साफ-साफ बोल…. ना"

" पागल मत बनी ई कुल बोलल थोड़ी जाला"

"एक बार बोल द हमरा खातिर"

"हम ना बोलब हमरा लाज लगाता"

रतन ने अपनी जगह बदल दी थी। वह सुगना के ठीक पीछे आकर खड़ा हो गया और उसकी दोनों चूचियों को दबा कर दूध निकाल रहा था। उसका खड़ा लण्ड सुनना की पीठ में सट रहा था। कभी वह नीचे झुक कर उसे सुगना के नितंबों से सटाने का प्रयास करता।

सुगना उसकी यह छेड़छाड़ समझ रही थी पर शांत थी। उसे भी अब यह अठखेलिया पसंद आने लगी थी। रतन अपना सर सुगना के कंधे पर रखकर अपने गाल सुगना के गाल से सटाने का प्रयास करता और उसकी गर्म सांसे सुगना के कोपलों से टकराती।

उत्तेजना दोनों पति पत्नी को अपने आगोश में ले रही थी। रतन ने मदहोश हो रही सुगना से एक बार फिर पूछा "बता द ना का करीं…"

"अब हमार चुंचीं मीसल छोड़ दीं और अपना होटल जाए के तैयारी करीं" सुगना ने बड़े प्यार से रतन के दोनों हाथों को अपनी चुचियों पर से हटा दिया और उन्हें ब्लाउज में बंद करते हुए कमरे से बाहर निकलने लगी। दरवाजे से निकलते समय उसने रतन को पलट कर देखा जो अभी भी सुगना के मुख से निकले चुंचीं शब्द की मधुरता में खोया हुआ उसे एकटक निहार रहा था।

नियति मुस्कुरा रही थी..रतन और सुगना करीब आ रहे थे।

उधर सोनू लाली के परिवार के साथ समय व्यतीत कर बच्चों को खुश करने का प्रयास करता और बच्चों की मां लाली अपने बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखकर स्वतः ही खुश हो जाती। सोनू का अपने परिवार के प्रति यह लगाव देखकर लाली अपने दिल और आत्मा से उसे धन्यवाद देती।

सुगना की पुत्री मधु 3 माह की होने वाली आने वाली पूर्णमासी को कुल देवता की पूजा होनी थी।

सरयू सिंह के खानदान में संतान उत्पत्ति होने पर अपने कुल देवता की पूजा करने विशेष प्रथा थी यह पूजा संतानोत्पत्ति के लगभग 3 माह पश्चात की जाती थी। पूजा की विशेष विधि थी और इसका उद्देश्य भी शायद विशेष था।

संतानोत्पत्ति के कुछ महीनों तक संतान के माता पिता का आपस में मिलना और संभोग करना अनुचित था। कुल देवता की पूजा करने के पश्चात उन्हें वापस एकाकार होने का अवसर प्राप्त होता।

सुगना मन ही मन सोचने लगी कि क्या वह इस पूजा में अपने पति रतन को शामिल करेगी? क्या पूजा के उपरांत वह अपने पति रतन को उसके साथ संभोग करने का अवसर देगी?

सुगना अपने पुराने दिनों को याद करने लगी जब सूरज के जन्म के 3 महीनों बाद उसे कुल देवता की पूजा करनी थी। उसका पति रतन उस समय उपस्थित न था। न तो सुगना के गर्भ धारण मैं रतन का योगदान था और नहीं अब सुगना की इस पूजा में उसकी उपयोगिता।

गांव के सभी मानिंद लोगों ने आपस में विचार-विमर्श कर यह निर्णय किया की यदि पति उपस्थित ना हो तो उसकी लाठी को साथ में रखकर कुल देवता की पूजा की जा सकती।

कजरी भी धर्म संकट में थी उसे पता था कुलदेवता की पूजा करने के पश्चात पति अपनी पत्नी को अपनी बाहों में उठा कर सीधा शयन कक्ष में ले जाता है और फिर अपनी पत्नी की योनि की पूजा करता और योनि को संतान प्राप्ति के लिए धन्यवाद देता और कई महीनों के अंतराल के बाद उसी दिन उसके साथ संभोग कर योनि को चरमोत्कर्ष प्रदान करता और वापस अपना गृहस्थ जीवन प्रारंभ करता।

कजरी ने तो गांव के बुजुर्ग लोगों की बात मानकर कुलदेवता की पूजन के लिए रतन की लाठी को मान्यता दे दी परंतु शयन कक्ष में होने वाली योनि पूजा कौन करेगा क्या कुंवर जी को ही यह पूजा करनी पड़ेगी? या सुगना को रतन की लाठी की मूठ से ही योनि स्खलित कर इस पूजा को पूर्ण करना होगा जैसे कि स्वयं उसने रतन के जन्म के बाद किया था।

(शायद पाठकों को याद हो रतन के पिता बिरजू जो आजकल विद्यानंद के नाम से जाने जाते थे कजरी को गर्भवती कर साधुओं की मंडली के साथ भाग गए थे उन्हें इस विशेष पूजा में बुला पाना असंभव था। कजरी ने भी अपने पति बिरजू उर्फ विद्यानंद की लाठी अपनी योनि से रगड़ कर बड़ी कठिनाई से उसे स्खलित किया था परंतु कजरी का वह अनुभव अच्छा नहीं रहा था उसने उसी दिन तय कर लिया था कि वह सरयू सिंह को अपने नजदीक आने का मौका देगी और अपनी स्वाभाविक काम इच्छा को पूरा करेगी।)

कजरी अपने मन में सुगना की पूजा का समापन सरयू सिंह से कराना चाहती थी। सच ही तो था.. जिसने सुगना को गर्भवती कर पुत्र रत्न से नवाजा था उसके द्वारा योनि पूजन कराना उचित ही था।

सरयू सिंह ने इस पूजा में उपस्थित रहने के लिए रतन से कई बार अनुरोध किया था परंतु वह मुंबई से आने को तैयार न था। अंततः परंपरा के निर्वहन के लिए सरयू सिंह ने इस पूजन की पूरी तैयारियां कर ली।

सलेमपुर गांव के सभी लोगों को पूजा के उपरांत होने वाले भोज में भारत में आमंत्रित किया गया। यह उत्सव परिवार के लिए बेहद सम्मान और मान प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होता था।

सुगना की अपनी सहेली लाली भी ईसी विशेष पूजा के लिए सलेमपुर आई हुई थी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसे पता चला कि यह पूजा सुगना बिना रतन भैया के करने जा रही है।

उसने रतन की लाठी की मूड को पकड़कर सुगना को छेड़ते हुए पूछा..

"त हमार रानी अपना ओखली में रतन भैया के मुसल की जगह हई लाठी डाली का"

"हट पागल कुछो बोलेले"

"रतन भैया काहे ना अइले हा आज के दिन के सब मर्द लोग इंतजार करेला"

"जाकर उनके से पूछ लीहे"

"त इनके के भेज दी का तोर बुर...के पूजाइयो हो जायी और इनको साध बता जायी?" लाली ने अपने पति राजेश की तरफ इशारा करते हुए कहा।

सुगना मुस्कुराने लगी…

तभी सरयू सिंह बाजार से वापस आए और आंगन में पहुंचते ही सुगना से बोले..

"इ ला आपन कपड़ा पूजा में पहने खातिर"

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया। कि वह भी इस पूजा का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उसने झोला पकड़ लिया।

"दिखाओ ना कौन कपड़ा आइल बा?" लाली ने उत्सुकता से पूछा।

सुगना ने सरयू सिंह की आंखों की चमक देखकर अंदाजा लगा लिया था कि उसके बाबूजी ने निश्चित ही कुछ न कुछ शरारत की होगी विशेषकर उसके अंतरंग वस्त्रों को लेकर।

"दिखाओ ना का सोचे लगले?"

"जब काल पहनब तब देख लीहे"


"ए सुगना सलेमपुर कब चले के बा" लाली अपने पुत्र (जो दरअसल राजेश और सुगना का पुत्र था ) को लिए हुए सचमुच सुगना के पास आ रही थी।

सुगना अपनी मीठी यादों से बाहर आ गयी। यह एक महज संयोग था या दोनों सहेलियों की जांघों के बीच जागृति प्राकृतिक भूख दोनों ही उस पूजा को याद कर रही थी।

"काहे खातिर" सुगना ने लाली के भाव को समझ कर भी अनजान बनते हुए पूछा

लाली पास आ चुकी थी वह सुगना के बगल में बैठते हुए उसकी जांघों के बीच अपनी हथेलियां लेकर आई और बोली

"एकर पूजाई करावे"

दोनों सहेलियां हंसने लगी।

"अबकी बार काठ के मुसल के बदला में असली मुसल भेटाई" लाली, सुगना कि उस संभावित रात की कल्पना कर मन ही मन खुश हो रही थी। इस बार रतन उपस्थित था और सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

सुगना ने लाली की हथेलियां अपने हाथ में ले ली और उसे प्यार से सहलाते हुए पूछा..

" एक बात कहीं "

"बोल ना"

"देख तोरा के सोनू से मिलावे वाला भी जीजा रहलन। अभी जिंदगी लंबा बा हमनी में दूसर बियाह ना हो सकेला लेकिन सोनुवा के अपनावले रहू जब तक ओकर ब्याह नईखे होत…"

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी पिछले 2-3 महीनों में लाली की जिंदगी में आए दुख में भी अब ठहराव आ रहा था। दिन के 24 घंटों में खुशियां अपना अधिकार लगातार बढ़ा रही थीं और राजेश के जाने का गम धीरे-धीरे कमजोर पड़ता जा रहा था।

सोनू भी ज्यादातर समय लाली के घर पर ही देता। वह राजेश के कमरे में अपनी पढ़ाई करता और अपने खाली समय में बच्चों के साथ खेल कर उनका मन लगाए रखता। परंतु विधवा लाली से सेक्स की उम्मीद रखना सोनू को उचित प्रतीत ना होता दोनों के बीच जमी हुई बर्फ को किसी ना किसी को पिघलाना था।

"काहे चुप हो गइले कुछ बोलत नईखे?" सुगना ने लाली के कंधे को हिलाते हुए पूछा।

"उ आजकल दिनभर पढ़त रहेला जब टाइम मिलेला तब बचवन संग खेलेला"

"त तेहीं आगे बढ़ के ओकरा के खेला दे" सुगना ने हंसते हुए कहा और लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। जांघों के बीच एक अजब सी सनसनी हुई जो चुचियों के निप्पलओ तक पहुंची। तभी राजेश और सुगना के पुत्र जो इस समय लाली की गोद में था ने लाली की चूचियां पकड़ने की कोशिश की और लाली की चूचियां बाहर आ गई।

सुगना ने मधु को लाली की गोद में देते हुए कहा

"ले तनी एकरो के दूध पिला दे हमार दूध धरे में दिक्कत कर तिया"

मधु ने लाली की दूसरी चूची बड़े प्रेम से पकड़ ली और चूस चूस कर तृप्त होने लगी। अपनी माता का दूध पीने का यह सुख मधु ही जानती होगी लाली ने भी मधु के होठों और मसूड़ों का मासूम स्पर्स महसूस किया और भावविभोर हो गयी"

नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।

नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे...

शेष अगले भाग में...

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भाग - 68

नियति सलेमपुर में सुगना की पूजा की तैयारियों में लग गई। काश कि दोनों सहेलियां इस पूजा में शामिल हो पाती? एक सुहागन एक विधवा परंतु दोनों में कुछ समानता अवश्य थी।

एक तरफ सुगना का वास्तविक सुहाग उजड़ चुका था। उसके बाबूजी सरयू सिंह जिसके साथ उसने अपने वैवाहिक जीवन के सुखद वर्ष बिताए थे वह अचानक ही वैराग्य धारण कर चुके थे। सुगना को यह एक विशेष प्रकार का वैधव्य ही प्रतीत हो रहा था। यह अलग बात थी कि प उस में कामेच्छा जगाने वाला उसका पति रतन आ चुका था और वह सुगना की योनि पूजा करने को लालायित भी था।

कमोबेश यही स्थिति लाली की भी थी उसका पति राजेश अपना शरीर छोड़ चुका था और अपने स्थान पर सोनू को लाली से मिलाकर उसकी कामेच्छा पूरी करने के लिए छोड़ गया था।

नियति अपनी उधेड़बुन में लगी लाली को तृप्त करने का संयोग जुटाने लगी… सुगना रतन बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे…

अब आगे...

रतन का इंतजार खत्म होने वाला था । विशेष पूजा के लिए रतन, सुगना और सोनी के संग चार दिन पहले ही सलेमपुर आ गया उसे इस उत्सव की तैयारियों में अपने चाचा सरयू सिंह का हाथ भी बटाना था।

सुगना की मां पदमा भी अपनी पुत्री मोनी के साथ सलेमपुर आ चुकी थी सरयू सिंह का भरा पूरा परिवार आंगन में बैठकर बातचीत कर रहा था तरह-तरह की बातें... तरह तरह के गीत गाए.. जा रहे थे। कजरी सोनी और मोनी को छेड़ रही थी और बार-बार उनके विवाह का जिक्र कर रही थी। मोनी को तो विवाह शब्द से कोई सरोकार न था परंतु विवाह का नाम सुनते ही सोनी सतर्क हो जाती। यद्यपि उसे यह बात पता थी कि बिना नर्सिंग की पढ़ाई पूरी किए उसका विवाह नहीं होना था परंतु कल्पना का क्या? उसका अल्लढ़ मन विवाह और उसकी उपयोगिता को भलीभांति समझता था। वह मन ही मन विकास से विवाह करने और जी भर कर चुदने को पूरी तरह तैयार थी।

सरयू सिंह दरवाजे पर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहे थे और आने वाले मेहमानों से उपहार और न्योता ग्रहण कर रहे थे। जब जब वह अंदर आंगन में आते सारी महिलाएं सतर्क हो जाती।

कजरी जान चुकी थी कि अब सरयू सिंह और सुगना के बीच कोई कामुक संबंध नहीं है उसे इस बात की बेहद खुशी थी। परंतु सुगना ...आह ...उसके मन में सरयू सिंह को देखकर अब भी एक कसक सी उठती थी।

देखते ही देखते पूजा का दिन आ गया। सुगना और रतन दोनों ने ही इस पूजा के लिए उपवास रखा था। सरयू सिंह ने कजरी से कहा "सुगना बेटा के शरबत पिला दिया तब से भूखल होइ"

सुगना सरयू सिंह के प्रेम की हमेशा से कायल थी परंतु प्रेम का यह परिवर्तित रूप पता नहीं क्यों उसे रास नहीं आ रहा था। उसने जिस रूप में सरयू सिंह को देखा था वह उन्हें उसी रूप में चाहती थी यह नया रूप उसके लिए अटपटा था।

उसका दिलो-दिमाग और तन बदन सरयू सिंह को पिता रूप में देखने के लिए कतई तैयार न था। जिस पुरुष से सुगना तरह-तरह के आसनों में चुदी थी और वासना के अतिरेक को देखा था उसे पिता रूप में स्वीकार उसके बस में न था।

पद्मा (सुगना की मां) ने सुगना से पूछा

"सोनू ना आई का?"

" कहले तो रहे हो सकता लाली के लेकर आई "

पदमा अपने पुत्र को देखने के लिए लालायित थी।

कजरी ने आकाश की तरफ देखा । सूर्य अपना तेज खो रहा था। पूजा का समय हो रहा था।

उसने सोनी से कहा…

"ए सोनी जा अपना दीदी के तैयार करा द"

सुगना के दिमाग में अभी भी सरयू सिंह ही चल रहे थे उसने कहां

" ते रहे दे सोनी हम तैयार हो जाएब"

" सोनी के लेले जो अलता नेलपॉलिश लगा दी"

आखिरकार सोनी और सुगना अपनी कोठरी में आ गई।

रतन सुगना के लिए गुलाबी लहंगा और चोली लाया था और साथ में जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी भी थी।

वह अपनी पत्नी के साथ अपना प्रथम मिलन यादगार बनाना चाहता था।

कमरे में अपने पलंग को देखकर सुगना के दिमाग में पुरानी यादें घूमने लगी इस पलंग पर वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से न जाने कितनी बार चुदी थी उसे खुद भी ध्यान न था। दिन में कभी दो बार कभी-कभी तीन- चार बार ... और आज इसी पलंग पर उसे रतन के सामने प्रस्तुत होना था। सुगना खोई खोई सी थी। उसके मन का द्वंद उसे कभी परेशान करता कभी उसकी बुर भावनाओं के झंझावात को भुलाकर चुदने के लिए अपने होठों पर मदन रस ले आती।

सोनी सुगना के कपड़े झोले में से निकालने लगी। गुलाबी रंग का लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था..

"कितना सुंदर बा" सोनी विस्मित होते हुए बोली

सचमुच वह लहंगा और चोली बेहद खूबसूरत था और जिसे उसे धारण करना था उसकी खूबसूरती इस लहंगा चोली से भी दोगुनी थी।

सुगना को वह लहंगा चोली देखकर उस दिन की याद आ गई जब उसके लहंगे में कीड़ा घुसा था और जिसे निकालते निकालते उसके बाबुजी सरयू सिंह ने पहली बार उसके अनछुए और कोमल मालपुए (सुगना की बुर) के प्रथम दर्शन किए थे।

"ए दीदी कितना सुंदर बा" सोनी की बात सुनकर सुगना घबरा गई। सुगना अपना हाथ अपनी जांघों के बीच ले आए और अपनी उस बुर को छुपाने लगी जो उसके दिमाग में घूम रही थी। उसने सोनी की तरफ देखा जो रतन द्वारा लाए गए जालीदार ब्रा और पेंटी को हाथ में लेकर लहलाते हुए बोली..

"सुगना शर्म से पानी पानी हो गई" रतन पहली बार में ही उसे ऐसी ब्रा और पेंटी लाकर देगा इसका अंदाजा उसे ना था ऊपर से वह सोनी के हाथों में लग गई थी। "चल रख दे हम उ ना पहनब"

"अरे वाह काहे ना पहिनबु जीजा जी अतना शौक से ले आईल बाडे" सोनी सुगना से खुलने का प्रयास कर रही थी।

सुगना मन ही मन तैयार तो थी परंतु वह सोनी के सामने उसे पहनने में असहज महसूस कर रही थी। उसने सोनी को आलता लेने भेजा और जब तक वह वापस आती रतन द्वारा लायी जालीदार पैंटी सुगना की बुर चूम रही थी….

ब्रा भी चुचियों पर फिट आ रही थी। सोनी सुगना को देखती रह गयी। कितनी खूबसूरत थी सुगना… दो बच्चों को जन्म देने के बाद भी उसके कमर के कटाव वैसे ही थे बल्कि और मादक हो गए थे। पतली कमर सपाट पेट मे थोड़ा उभार अवश्य आया था जो उसे किशोरी से वयस्क की श्रेणी में ले आया था।

यदि कोई ऋषि महर्षि सुगना को उसी अवस्था में जड़ होने का श्राप देते तो वह पाषाण मूर्ति बनी खजुराहो के मंदिरों में जड़ी हुयी काल कालांतर तक युवाओं में उत्तेजना भर रही होती।

लहंगे में छुपी उसकी खूबसूरत जाँघे ऐसे तो नजर न आती पर सुगना जैसे ही अपने पैर आगे बढ़ाते जांघो का आकार स्पष्ट नजर आने लगता। सोनी ने सुगना के पैरों में आलता लगाया पाजेब पहनायी। उसकी शादी के गहने पहनाए। रतन द्वारा विवाह के समय दिया गया मंगलसूत्र भी पहनाया पर सुगना ने सरयू सिह द्वारा दीपावली के दिन दी हुयी सोने की चैन को ना उतारा। वह उसकी पहली चुदाई की निशानी थी।

रतन द्वारा दिए गए झोले को सुगना ने हटाने की कोशिश की और उसमें एक शीशी को देख कर चौक उठी। उसने वह छोटी सी शीशी निकाली और उसमें रखे द्रव्य का अनुमान लगाने लगी। जब वह उसे अपनी आंखों से समझ न पहचान पाई उसने अपनी घ्राण शक्ति का प्रयोग किया और जैसे ही वह शीशी उसने अपने नाक के पास लायी उसकी मदमस्त खुशबू से सुगना भाव विभोर हो गयी।

सुगना ने इत्र के बारे में सुना जरूर था पर आज तक उसका प्रयोग नहीं किया था।। पर रतन मुंबई में जाकर इन सब आधुनिक साज सज्जा और रास रंग के सामग्रियों से बखूबी परिचित हो चुका था। रतन की पहली पत्नी बबीता सजने सवरने में माहिर थी।

सुगना ने इत्र की शीशी खोली और उसे अपने घाघरा और चोली पर लगाती गयी। जैसे-जैसे इत्र उसके वस्त्रों से टकराता गया कमरे में भीनी भीनी खुशबू फैलती गई। सुगना के मन में अचानक उसकी स्वभाविक कामुकता जागृत हो गई उसमें अपने हाथों में इत्र लिया और अपने घागरे में हाथ डालकर अपनी जालीदार पेंटी परमल दिया। वह रतन द्वारा लाए गए इत्र को योनि पूजा का भाग बनाना चाह रही थी हो सकता है उसने सोचा रतन ने यह इत्र उसी लिए लाया हो। सुगना आज मिलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।

कुछ ही देर में सजी धजी सुगना आंगन में आ चुकी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई अप्सरा सज धज कर उस मिट्टी के घर के आंगन में उतर आई हो….

सुगना की मां पदमा ने सुगना के कान के नीचे काजल से काला टीका लगाया और बोली

"हमरा फूल जैसी बेटी के नजर मत लागो"

कजरी ने सुगना को गले से लगा लिया और उसके कान में बोली

"बेटा अब रतन के अपना ला"

"हां मां" सुगना ने कजरी को आश्वस्त किया और बाहर ढोल नगाड़ों की आवाज आनी शुरू हो गई थी। कुल देवता की पूजा करने जाने का वक्त हो चुका था।

ग्रामीण परिवेश में ढोल नगाड़ों का विशेष योगदान है इनका बजना यह साबित करता है कि अब समय हो गया है और देर करना उचित नहीं। जैसे ही ढोल नगाड़े बजने लगते हैं घर के पुरुष वर्ग महिलाओं पर लगातार बाहर निकलने के लिए दबाव बनाते हैं परंतु वह अपने रास रंग में डूबी हुई बार-बार न चाहते हुए भी देर करती रहती हैं।

सुगना आंगन से बाहर निकलकर दालान में आ चुकी थी। वह सरयू सिंह की तरफ बढ़ रही थी सरयू सिंह सुगना को देखकर हक्के बक्के रह गए। सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसे गुलाबी रंग के लहंगे और चोली में देखकर उन्हें एक बार फिर वही सुगना याद आ गई जिसके लहंगे से कीड़े को निकलते समय उसकी बुर् के दर्शन किए थे.

यदि निष्ठुर नियत ने सरयू सिंह के संज्ञान में यह बात ना लाई होती कि सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है तो सुगना की मदमस्त जवानी को आज भोगने की तैयारी कर रहे होते और रतन को सुनना के आसपास भी न फटकने देते।

सुगना ने उनके चरण छुए और सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया आज आलिंगन के लिए कोई स्थान न था। आलिंगन की पहल इस बार सुगना ने भी नहीं की।

जैसे ही सुगना उठकर पीछे पलटी सोनू सामने खड़ा था "अतना देर कहां रह गईले हा"

"लाली दीदी देर कर देली हा"

सुगना लाली का नाम सुनकर चुप रह गई उस बेचारी के जीवन में दुख की घड़ी चल रही थी।

सोनू सुगना के पैर छूने के लिए झुका उसका चेहरा सुगना की कमर और जांघों के जैसे ही करीब पहुंचा रतन द्वारा लाए गए इत्र की खुशबू जो सुगना ने अपनी जांघों के बीच भी लगाया हुआ था सोनू के नथुने से जा टकराई क्या मदमस्त खुशबू थी सोनू ने सुगना के पैर छुए पर उस सुगंध के मोहपाश में घिर गया उसने उठने में कुछ देर कर दी।

सुगना ने उसके सर पर मीठी चपत लगाई और बोली..

"चल अब उठ जा देर हो गईल तो कोई बात नहीं." लाली ने अपने बेटे सूरज का हांथ सोनू को देते हुए कहा सूरज के अपना साथे रखिहे"

सुगना ने बड़ी की संजीदगी से सोनू की गलती पर पर्दा डाल दिया था। सुगना सोच रही थी कि आखिर सोनू ने उठने में इतनी देर क्यों की?। सोनू कामुक था यह बात सुगना भली-भांति जानती थी लाली से उसके रिश्ते सुगना से छिपे न थे। और लाली जब सोनू के कारनामे सुगना को बताती तो सुगना बिना उत्साह दिखाए लाली की बातें सुनती जरूरत थी उसका छोटा भाई एक युवक बन रहा था इस बात की उसे खुशी थी। पर आज वह कुछ गलत सोच पाने की स्थिति में न थी। वह उसका इंतजार कर रही महिलाओं के झुंड में आ गई।

सोनू अपनी बहन सुगना को इस तरह सोलह श्रंगार धारण किए हुए खूबसूरत लहंगा और चोली में कई दिनों बाद देख रहा था। उसे सुगना एक आदर्श बहू के रूप में दिखाई दे रही थी। वह सुगना की नाइटी में घिरी कामुक काया के दर्शन कई बार कर चुका था और एक बार लाली समझ कर उसे पीछे आकर उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे उठा भी चुका था। परंतु सुगना के आज के दिव्य रूप और वह मादक सुगंध उसके दिलो-दिमाग पर छा गई थी।

गांव की महिलाएं इकट्ठा हो चुकी थी। कुछ ही देर में उनका काफिला कुलदेवता के स्थान पर जाने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।

रतन पुरे उत्साह से लवरेज महिलाओं के समूह के पीछे पीछे चल रहा था। सुगना उसकी नजरों से ओझल हो रही थी बीच-बीच में वह उसकी झलक देखता। सरयू सिंह अपनी पुत्री सुगना के भावी जीवन को लेकर आश्वस्त हो रहे थे।

ऊपर वाले ने आखिर सुगना को उसके पति से मिला दिया था और आज की पूजा के पश्चात पति पत्नी पुराने कर्मों को बुलाकर एक होने को सहर्ष तैयार थे।

इस आयोजन से सर्वाधिक खुश रतन था या उसकी मां कजरी यह कहना कठिन था। रतन की खुशी में कामुकता का भी हम योगदान था। रतन सुगना से प्रेम तो अवश्य करने लगा था परंतु उस प्रेम के मूल में रतन की पूर्व पत्नी बबीता की बेवफाई और भोली भाली सुगना का मदमस्त यौवन था।

इसके उलट कजरी दिल से खुश थी उसकी खुशी अपने पुत्र प्रेम से प्रेरित थी सुगना को उसने अपनी बहू के रूप में पहले ही स्वीकार कर लिया था और अब रतन और सुगना को जोड़े में देखकर वह फूली नहीं समा रही थी। रतन और सुगना ने विधि विधान से कुल देवता की पूजा संपन्न की..।

पूजा के पश्चात रतन और सुगना सभी बुजुर्ग जनों का पैर छू छूकर आशीर्वाद ले रहे थे सरयू सिंह ने दिल से अपनी पुत्री और रतन को खुश रहने का आशीर्वाद दिया। यद्यपि उनके मन मे छुपी हुई वासना कोमा में थी परंतु रह रह कर अपने जीवित होने का एहसास करा रही थी उनकी आंखों में सुगना के उभारों का अंदाजा लगाने की कोशिश की। सरयू सिंह ने स्वयं पर काबू किया और अपनी पलकें बंद लीं।

सुगना की मां पदमा भी बेहद प्रसन्न थी और रतन के आने के पश्चात वह सरयू सिंह और सुगना के बीच जो कुछ भी हुआ था वह उसे भूल जाना चाहती थी।

पूजा समाप्त होने के पश्चात रतन और सुगना को आगे के कार्यक्रम की विधि की जानकारी देने के लिए कुल देवता के स्थल के पीछे बने चबूतरे पर ले जाया गया घर परिवार के सभी सदस्य दूर से ही रतन और सुगना को देख रहे थे दोनों अपनी नजरें झुकाये पीछे खड़े गुरु जिसने कुल देवता की पूजा कराई थी के निर्देश सुन रहे थे.

"आपके कुल में संतानोत्पत्ति के पश्चात की जाने वाली इस पूजा का विशेष महत्व है पुरखों ने जो विधि बताई है मैं उसे अक्षरसः आपको बताता हूं इसे ध्यान से सुनिएगा और उसके अनुसार अमल कीजिएगा यह आपके परिवार की वंशवेल और परिवार की मान प्रतिष्ठा बनाए रखेगा...

पति को अपनी पत्नी को अपनी गोद में लेकर शयन कक्ष में ले जाना है उसे अपने हाथों से भोजन कराना है और कुछ समय उसे विश्राम करने देना है ताकि पत्नी अपनी संतान को दूध आदि पिला सके।

इसके पश्चात शयन कक्ष में आकर स्वयं और पत्नी को पूरी तरह निर्वस्त्र करना है। यदि शर्म और हया अब भी कायम हो तो एकवस्त्र जैसे स्त्री लाल साड़ी और पुरुष पीली धोती का प्रयोग कर सकता है।

पूजा में चढ़ाया गया मधु (शहद) कटोरी में आपके बिस्तर के किनारे रखा हुआ मिलेगा आप दोनों को एक दूसरे के सिर्फ जननांगों पर उस मधु को अपनी मध्यमा उंगली से लगाना है। लिंग और योनि पूरी तरह से मधु से आच्छादित होनी चाहिए इसके अलावा अन्य किसी भाग पर मधु का स्पर्श नहीं होना चाहिए इसलिए मधु का लेप करते समय सावधानी बरतना आवश्यक है।

इसके पश्चात स्त्री और पुरुष एक दूसरे के जननांगों पर लगाए गए मधु को अपनी जिह्वा और होंठों के प्रयोग से चाट कर उसे मूल स्थिति में ले आएंगे याद रहे जननांगों पर मधु की मिठास शेष नहीं रहनी चाहिए।

इस दौरान दोनों पति पत्नी अपने होंठ एक दूसरे से सटाकर या चूम कर मिठास का आकलन कर सकते हैं।

जननांगों और होठों से मिठास पूरी तरह हटने के पश्चात आप दोनों संभोग कर सकते हैं याद रहे जब तक स्त्री की योनि स्खलित नहीं होती है आपको संभोग करते रहना है।

आपकी पूजा तभी सफल मानी जाएगी जब पत्नी स्खलन को प्राप्त करेगी।

पुरुष यदि चाहे तो पूजा में चढ़ाए गए विशेष प्रसाद का उपयोग अपनी इच्छानुसार कर सकता है। इस विशेष प्रसाद को खाने से पुरुष लिंग में उत्तेजना भर जाती है स्त्री को स्खलित करने में सहायक होगी। गुरु ने प्रसाद की एक पोटली रतन की गोद में डाल दी।

आप दोनों के बीच आज हुआ यह संबंध आपके आने वाले वैवाहिक जीवन के लिए एक नई ऊर्जा प्रदान करेगा।

अब आप दोनों जा सकते हैं।

जब तक सुगना और रतन गुरु ज्ञान ले रहे थे कजरी ने सोनी और मोनी को घर पर तैयारियां करने के लिए भेज दिया था।

सोनी और मोनी ने घर आकर गेंदे के फूलों कि कुछ लड़यों से सुगना के पलंग को सजाने का प्रयास किया था परंतु फूलों का अभाव सोनी के मन में सुहाग की सेज की छवि को किसी भी सूरत में पूरा नहीं कर पाया था।

सोनी अति उत्साह से सुगना के रतियुद्ध का स्थल सजाने में लगी हुई थी वही मोनी को यह सब व्यर्थ प्रतीत हो रहा था। आखिर कोई विवाह के 4 साल बाद यह सब करता है क्या? मन में जब कामुकता न हो कई क्रियाकलाप व्यर्थ प्रतीत होते हैं यही हाल मोनी का था। जाने नियति ने उसे सुंदर काया और मृदुल व्यवहार तो दिया था पर स्त्री सुलभ कामुकता और पुरुष आकर्षण क्यों हर लिया था?

सोनी और मोनी वापस पूजा स्थल की तरफ निकलने लगी तभी मोनी ने कहा

"उ शहद के कटोरी ना रखलू हा"

सोनी शहद की कटोरी उठा कर लाई और उसे बिस्तर के सिरहाने रख दिया। शहद को लेकर उसकी उत्सुकता अब भी कायम थी उसने मोनी से पूछा..

"आज के दिन ई लोग अतना शहद का करी?"

सोनी का यह प्रश्न ठीक वैसा ही था जैसे क्लास का कोई मेरिटोरियस बच्चा किसी कमजोर बच्चे से अपनी उत्सुकता मिटाने के लिए प्रश्न पूछ रहा हो..

मोनी ने कोई उत्तर न दिया। यदि सोनी सचमुच उस शहद के प्रयोग के बारे में जान जाती तो न जाने क्या करते उसका मन और तन दोनों ही कामुकता से भरा हुआ रहता और मुखमैथुन की इस अद्भुत विधि को जानकर वह निश्चित ही अधीर हो उठती। सोनी के भाग्य में सुख क्रमशः ही आने थे और शायद यह उचित भी था।

उधर सभी बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने के पश्चात रतन और सुगना अब वापस घर जाने की तैयारी में थे रतन ने जितनी सेवा सुगना की की थी उसका फल मिलने का वक्त आ रहा था। सुगना स्वयं भी उस पल का इंतजार कर रही थी।

पड़ोस की भाभी ने रतन से कहा..

"अब का देखा तारा उठाव सुगना के गोदी में और ले जा घर…... " रतन को लगा जैसे उसकी मुराद पूरी हो रही हो। उसके शैतान मन् ने भाभी की बात में यह वाक्यांश जोड़ लिए "…..कस के चोदा..".

सुगना ने हाथ में ली हुई पूजा की थाली कजरी की तरफ बढ़ाई और रतन के हाथों ने सुगना की पीठ और नितंबों के नीचे अपनी जगह तलाश की। अगले ही पल सुगना रतन की मजबूत भुजाओं में आ चुकी थी रतन उसे उठाए हुए घर की तरफ चलने लगा।

कुछ ही पलों में रतन की हथेलियों ने सुगना की जांघो की कोमलता और कठोरता का अनुमान लगाना शुरू कर दिया। कभी लहंगे के पीछे सुगना की जाँघे उसे मांसल और कठोर प्रतीत होती कभी वह उसे रेशम जैसी मुलायम प्रतीत होती।

वह अपनी हथेलियां थोड़ा आगे पीछे करता और सुगना उसे आँखे दिखाते हुए उसे रोकने का प्रयास करती। रतन की हथेलियां रुक जाती और सुगना मुस्कुराते हुए अपनी पलके झुका लेती। रतन का बाया हाथ सुगना की पीठ से होते हुए पेट तक पहुंचा था। यदि उसकी उंगलियां ऊपर की तरफ बढ़ती तो वह निश्चित ही चुचियों से टकरा जाती।। सुगना के कोमल पेट का स्पर्श रतन के लिए अद्भुत था। सुगना की कोमल त्वचा का यह स्पर्श उसके दिलो-दिमाग मे उत्तेजना भर रहा था जिसका सीधा असर उसके लण्ड पर पढ़ रहा था जो धीरे-धीरे अपना आकार बड़ा कर रतन को असहज कर रहा था। दोनों हाथ व्यस्त होने की वजह से वह उसे दिशा देने में कामयाब नहीं हो रहा था। उसने सुगना को अपनी तरफ खींचा और सुगना के द्वारा लण्ड को सही जगह पहुंचाने की कोशिश की।

सुगना की कमर पर वह दबाव स्पष्ट रूप से महसूस हुआ। सुगना उस भाग से भलीभांति परिचित थी। उसके तने हुए लण्ड को महसूस कर सुगना रतन की असहजता समझ गयी। उसके मन में आया वह स्वयं अपने हाथों से रतन के लण्ड को ऊपर की दिशा दे दे परंतु वह ऐसा न कर पायी।

अपने लण्ड को तसल्ली देते हुए रतन सुगना को लिए लिए शयन कक्ष में आ गया किसी युवा स्त्री को कुछ पल के लिए गोद में उठाना आनंद का विषय हो सकता है पर उसे 100 - 200 मीटर लेकर चलना इतना आसान न था रतन जैसा मजबूत व्यक्ति हांफने लगा था। यह तो सुनना की मदमस्त चूत थी जिसने रतन में उत्साह भरा हुआ था….

सुगना ने रतन की हथेलियों को अपने हाथों में लिया और चुम लिया। रतन बेहद खुश था। सुगना का यह स्पर्श और चुंबन आत्मीयता से भरा हुआ था।

कुछ ही देर में सोनी थाली में कई पकवान लिए अंदर आ गई। पूजा प्रसाद का पहला भोग रतन और सुगना को की ही करना था। थाली में मालपुए को देखकर सुगना सरयू सिंह के बारे में सोचने लगी।

मालपुआ शब्द और सुगना की बुर दोनों की उपमा सरयू सिंह को बेहद पसंद थी। वह जब भी सुगना की बुर को अपने होठों से दबाते बुर पानी छोड़ देती और सरयू सिंह मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखकर कहते

" देखा ताहर मालपुआ से चाशनी बाहर आ गईल"

सुगना उनके सर को ऊपर खींचती और पेट पर सटा लेती पर उनसे नजरे ना मिलाती..

"का सोचे लगलु?"

रतन ने सुगना का ध्यान भंग करते हुए पूछा…

शेष अगले भाग में…
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#74
Heart 
भाग -69


मालपुआ शब्द और सुगना की बुर दोनों की उपमा सरयू सिंह को बेहद पसंद थी। वह जब भी सुगना की बुर को अपने होठों से दबाते बुर पानी छोड़ देती और सरयू सिंह मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखकर कहते

" देखा ताहर मालपुआ से चाशनी बाहर आ गईल"

सुगना उनके सर को ऊपर खींचती और पेट पर सटा लेती पर उनसे नजरे ना मिलाती..

"का सोचे लगलु?"

रतन ने सुगना का ध्यान भंग करते हुए पूछा…

अब आगे..

सुगना अचकचा कर अपने मीठे ख्वाबों से बाहर आ गई..

तू मधु के दूध पिला कर तैयार हो जा हम थोड़ा देर में आवा तानी रतन कमरे से बाहर चला गया और सुगना कजरी का इंतजार करने लगी।

मधु को दूध पिलाने के पश्चात कजरी कमरे से चली गई और सुगना बिस्तर पर लेट कर अपने पुराने दिनों को याद करने लगी.

जिस सुहाग की सेज पर आज वो अपने पति से एकाकार होने जा रही थी वह पलंग उसकी चुदाई और न जाने कितनी कामुक घटनाओं का गवाह था। सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य घूमने लगे।

कैसे उसके बाबूजी पहली बार उसका चेहरा देख कर चौंक उठे थे? उनके व्यवहार में अचानक परिवर्तन क्यों आ गया था? कैसे उसे सरयू सिंह को देखना अच्छा लगने लगा था? कैसे उसके बाबूजी बछिया की चूची से दूध निकालते और वह सिहर उठती। उसे अपनी कोमल चुचियों में सिहरन महसूस होती।

जाने कब उसके हाथ अपनी चुचियों पर आ जाते उधर सरयू सिह बछिया की चूची मीस कर दूध निकालते और इधर सुगना अपनी की बुर से पानी…. आह अद्भुत था वह एहसास..

उसके बाबुजी जी का होटल में उसकी युवा चुचियों पर टॉर्च मारना …. सुगना की तड़प बढ़ती जा रही थी सुगना उस दृश्य को भी याद कर रही थी जब सरयू सिंह ने उसके शरीर पर मक्खन लपेटकर अपनी उंगलियों से उसका कौमार्य भेदन किया था सरयू सिंह के साथ बिताई गई दीपावली की रात सुगना के जहन में घूमने लगी। सरयू सिंह के साथ बिताए कामुक घड़ियों को याद करते करते सुगना अति उत्तेजित हो गई उसने अपनी बुर को सहला कर शांत करने की कोशिश की परंतु बुर गरमा चुकी थी और स्खलन को तैयार थी। सुगना की उंगलियों का स्पर्श पाते ही बुर से प्रेम धारा बह निकली।

सुगना के पैर उठने लगे और सांसे तेज होती गई बिस्तर पर पड़ी सुगना हाफ रही थी पैर के दोनों पंजे तन गए थे तथा एक दूसरे पर चढ़े हुए थे स्खलन प्रारंभ हो चुका था सुगना की बुर के अंदर मरोड़ उठ रही थी…. इसी समय रतन कमरे में आ गया।

"काहे हाफ तारु? तबीयत ठीक बानू?"

"हां.. ठीक बा" सुगना अपने उत्तेजना से लाल पड़ चुके चेहरे के भावों को संतुलित करते हुए बोली। जांघों के बीच असहजता लिए सुगना बिस्तर पर बैठ गई। अपने आलता लगे हुए पैरों को संयमित करते हुए वह अपने लहंगा और चोली को व्यवस्थित करने लगी।

मिलन की बेला आ चुकी थी रतन ने देर न की जिस तरह अति उत्साही बच्चे गिफ्ट पैकेट का रेपर पढ़ते हैं उसी प्रकार रतन ने नियति द्वारा भेजे गए सुगना रूपी उपहार के वस्त्र हरण करने शुरू कर दिए..

कमरे में सुगंध फैल रही थी यह सुगंध वैसे तो रतन द्वारा लाए गए इत्र की ही थी पर सुगना के स्खलन की खुशबू इसमें सम्मिलित हो गई थी।

जालीदार ब्रा और पेंटी में लिपटी सुगना मूर्तिवत खड़ी थी और रतन उसे एकटक घूरे जा रहा था ।

जैसे-जैसे रतन की निगाहें सुगना के चेहरे से नीचे आती गई सुगना का ध्यान रतन की निगाहों का अनुसरण करता रहा जैसे रतन का ध्यान सुखना की नाभि पर केंद्रित हुआ सुगना को अपनी पेंटी के पीलेपन का एहसास हुआ जो उसके अभी कुछ पलों पहले हुए स्खलन से भीग चुकी थी।

सुगना ने अपनी पलके झुका ली और अपने दाहिने पैर को आगे कर अपनी जाली के भीतर भीगी बिल्ली की तरह छुपी बुर को ढकने का प्रयास किया। रतन अब अधीर हो चुका था सुगना के करीब आया और उसे आलिंगन में भर लिया।

पर पुरुष से आत्मीय आलिंगन सुगना ने दूसरी बार महसूस किया था आलिंगन में तो वह एक दो मर्तबा राजेश की बाहों में भी आई थी परंतु चुचियां सीने से न टकरा पाई थीं। सुगना तुरंत ही अपना कंधा आगे कर देती थी और अपनी चुचियों को उसके सीने से न सटने देती यह अलग बात थी की होली के दौरान राजेश ने सुगना के मखमली कबूतरों को सहला जरूर लिया था।

सुगना एकाग्र ना हो पा रही थी रह रह कर उसके ख्यालों में उसके बाबूजी सरयू सिंह आ रहे थे हर स्पर्श हर आलिंगन मे वह सरयू सिंह को याद कर रही थी और राजेश की तुलना सरयू सिंह से कर रही थी। रतन के हाथ सुगना की पीठ पर घूम रहे थे और अपनी हद को जानने की कोशिश कर रहे थे रतन के मन में अब भी डर कायम था कि कहीं सुगना उसे आगे बढ़ने से रोक ना दे। परंतु सुगना तो अपने ख्यालों में खोई हुई थी रतन की उंगलियां ने साहस दिखाकर उसकी ब्रा के हुक खोल दिए।

ब्रा के अलग होते ही सुगना की चूचियां रतन की निगाहों के सामने आ गई रतन का इन चीजों से सामना पिछले कई दिनों से हो रहा था वह उसकी उत्सुकता का केंद्र न थी रतन धीरे-धीरे नीचे झुकता गया और अपने घुटने पर आ गया उसने अपना चेहरा सुगना के पेट से सटा लिया और उसे छूता हुआ बोला..

"हमरा के माफ कर दीह हम तोहरा के अतना दुख देनी"

सुगना के हाथ रतन के सिर पर आ गए और वह उसके बालों को सहलाने लगी। रतन सुगना के पेट को अपने गालों से सहलाता हुआ हुआ जालीदार बंटी के पास आ गया और अपने दांतो से उस पेंटी को नीचे खींचने का प्रयास करने लगा। रतन की कामकला में बबीता के रंग भरे हुए थे जो पाश्चात्य संस्कृति से प्रेरित थे। मुंबई शहर में रंगीन फिल्मों से रतन और बबीता दोनों लोग रूबरू हो चुके थे और उनकी कामुक क्रियाओं को यथासंभव आत्मसात कर चुके थे।

रतन के होंठों का स्पर्श अपनी जांघों के अंदरूनी भाग पर पड़ते हैं सुगना की कमर पीछे हो गई आज कई महीनों बाद जांघो के बीच पुरुष होंठ पाकर सुगना सिहर उठी।

रतन के दातों द्वारा पैंटी को उतार पाना मुश्किल था रतन ने अपनी उंगलियों को दातों की मदद के लिए उतार दिया और सुगना की छुपी हुई बुर अपने साजन के सामने अनावृत हो गयी।

स्खलित हुई सुगना की बुर पूरी तरह चिपचिपी थी ऐसा लग रहा था जैसे सफेद रसगुल्ले ने दबकर अपनी चासनी छोड़ दिया हो।

रतन सुगना की फूली और स्खलित हुई गीली बुर देखकर भ्रमित हो गया उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना की पुर उसके संसर्ग से उत्तेजित होकर गीली हुई उसने अपने होंठ बुर से सटा दिए तभी सुगना बोल पड़ी..

"गुरुजी के बात भुला गईनी का?"

रतन को गुरु जी की बात याद आ गई.. मधु का प्रयोग अभी तक न किया गया था रतन उठा और सुगना को चूमते हुए बोला

" मधु दूनों और लागी नु" रतन ने स्वयं अपने ल** की तरफ देखा सुगना सुगना की निगाहों ने भी उसका अनुकरण किया और वह रतन की मंशा समझ गयी।

सुगना शरमा गई उसने अपना चेहरा नीचे कर लिया रतन ने एक ही झटके में अपना कुर्ता उतार कर नीचे फेंक दिया और धोती जाने कब खुल कर नीचे गिर पड़ी लाल लंगोट देखकर सुगना को एक बार फिर सरयू सिंह की याद आ गई।

रतन सुगना के सहयोग की अपेक्षा कर रहा था सुगना ने अपने कोमल हाथ बढ़ाएं और लाल लंगोट की रस्सी खुलने लगी और कुछ ही देर में सुगना का नया मुसल अपने भरे पूरे आकार और तनाव में सुगना के सामने था।

सुगना बरबस ही रतन के लंड को सरयू सिंह से तुलना करने लगी आकार और तनाव दोनों में कोई कमी न थी पर अपना और पराया इसका अंतर स्पष्ट था सरयू सिंह का लंड सुगना को अपने पुत्र की भांति प्रतीत होता और रतन का लंड अब सौतन पुत्र की तरह प्रतीत हो रहा था। परंतु अब जब सुगना उसे अपना चुकी थी उसने रतन के लंड को अपने हाथों से सहला दिया।

दो नग्न शरीर एक दूसरे के आलिंगन में आ गए रतन ने इस बार सुगना को याद दिलाया

"मधु कहां बा?"

सुगना को एक पल के लिए अपनी पुत्री मधु का ख्याल आया परंतु अभी उसकी यहां कोई उपयोगिता न थी सुगना पहले ही कटोरी में रखा हुआ मधु देख चुकी थी वह रतन के आलिंगन से निकली और मधु उसकी हाथ में देते हुए बोली..

" थोड़ा सा ही लगाईब"

"हम तो पूरा लगाएब" रतन शरारत से अपनी आंखें नचाते हुए बोला।

रतन ने मधु की कटोरी पकड़ ली और सुगना को पलंग पर बैठने का इशारा किया सुगना ने पलंग पर बैठ कर अपने दोनों पर दोनों तरफ उठा लिए और अपनी बुर को रतन की निगाहों के सामने परोस दिया। दीए की रोशनी में सुगना की बुर चमक रही थी। होठों पर आया मदन रस सूख रहा था। परंतु उस दिव्य गुफा से लगातार रस निकलने को तैयार था। रतन में अपनी मध्यमा उंगली शहद में ठुकाई और सुगना के बुर्के होठों को शहद से भिगोने लगा।

सुगना ने अपनी जाँघे पूरी तरह फैला दी थी ताकि रतन शहद को सिर्फ और सिर्फ उसकी बुर पर ही लगाए जैसा कि गुरु जी ने कहा था। एक कामुक और मदमस्त युवती द्वारा स्वयं फैलाई गई जांघ में देखकर रतन मदहोश हुआ जा रहा था।

उसकी उंगली बरबस ही सुगना की बुर में घुसना चाह रही थी अंदर से रिस रहा मदन रस शहद से ज्यादा मीठा होगा ऐसा रतन का अनुमान था। रतन मन ही मन गुरु जी को धन्यवाद दे रहा था और अपने पुरखों को भी जिन्होंने ऐसी विधि बनाई थी।

सुगना की बुर पर शहद का लेप लगाने के पश्चात अब बारी सुगना की थी। यदि सुगना खड़ी होती तो वापस बुर पर लगा शहद उसकी जांघों पर लग जाता। रतन ने उसकी मदद की और सुगना ने अपने पैर के दोनों पंजे रतन ने अपनी कमर के दोनों तरफ रख लिए।

रतन सुगना के कंधों को पकड़कर उसे सहारा दिए हुए थे सुगना की उंगली शहद में डूबी और रतन के लंड पर घूमने लगी लंड का आकार उसकी उंगली से 3 गुना वह शहद लगाते लगाते उसके आकार और कद का आकलन करने लगी। सुगना रतन के लंड को पूरी आत्मीयता से छू रही थी।

सरयू सिंह की बेरुखी और रतन के प्यार ने उसे रतन को अपनाने की वजह दे दी थी सुगना के मन में कोई पछतावा या अफसोस न था पर रह रह कर उसके मन में कसक अवश्य उठ रही थी काश उसके बाबूजी ने उसका साथ अंत तक दिया होता।

लंड पूरी तरह शहद से भीग चुका था और सुगना की बुर के बिल्कुल समीप था एक बार के लिए रतन के मन में आया कि वह विधि-विधान को दरकिनार कर थोड़ा आगे बढ़कर सीधा सुगना की बुर में लण्ड ठान्स दे परंतु वह चाह कर भी ऐसा न कर पाया।

उसने सुगना को अलग किया और सुगना बिस्तर पर लेट गई और विधि के आगे बढ़ने का इंतजार करने लगी।

सुगना अपनी जाँघे. फैलाए अपने पति रतन के सामने उसकी जीभ का इंतजार कर रही थी । सुगना ने शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली और रतन की जीभ ने अमृत कलश पर दस्तक दे दिया। सुगना की जाँघे ऐंठ गयीं। एक अद्भुत प्रेम लहर उसके शरीर में दौड़ गई। सुगना का फूलता और पिचकता हुआ पेट और सीने की धड़कन इस बात की गवाही दे रही थी कि सुगना का यह मिलान नया और अद्भुत था।

रतन की जीभ सुगना की गीली बुर को फैलाते हुए अंदर प्रवेश करती। गुरुजी ने उसे शहद चाटने के लिए कहा था परंतु रतन अमृत कलश से छलक रहे प्रेम रस को पीने में ज्यादा उत्सुक था। शहद का मीठा स्वाद उस प्रेम रस से मिलकर एक अलग ही स्वाद दे रहा था।

रतन के मन में घृणा की कोई भावना न थी। वह पूरी तन्मयता और प्रेम से सुगना की अमृत कलश को गहराइयों तक छू रहा था और सुगना मदहोश हो रही थी। जैसे-जैसे सुगना को प्रेम की अनुभूति हुई वह सरयू सिंह की यादों में खो गयी...

सूरज के जन्म के पश्चात इसी पूजा में जब वह रतन की लाठी से यह विधि पूरा करने जा रही थी तभी सरयू सिंह अचानक ही उसके सामने प्रकट हो गए थे. रतन की लाठी को विधि में शरीक कर सरयू सिंह ने सुगना को वह सुख दिया था जिसकी स्त्री हकदार थी सरयू सिंह की लप-लपाती जीभ सुगना.. की बुर को इस प्रकार सहला रही थी जैसे कोई जानवर अपने छोटे बच्चे को अपनी जीभ से सहलाता है।

इधर रतन पूरी तन्मयता से सुगना की बुर चूस रहा था और सुगना अपने ख्वाबों खयालों में सरयू सिंह की जीभ को याद कर रही थी उसकी उत्तेजना परवान चढ़ रही थी परंतु उसकी उत्तेजना में रतन धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा था सरयू सिंह की यादें भारी पड़ रही थी बंद आंखों से हकीकत दूर होती जा रही थी।

जागो के बीच रतन हलचल मचाए हुए था और दिमाग में सरयू सिंह। निगोड़ी चुचियों का कोई पूछन हार न था सुगना के साथ स्वतः ही उन्हें सहला रहे थे। रतन की नाक भग्नासा पर रगड़ खा रही थी वोट निकले होठों से युद्ध लड़ रहे और उन पर लगा शहद रतन के मुंह में विलीन हो रहा था रतन के मुंह की लार सुगना की बुर का रस और शहद एक अद्भुत संगम बना रहे थे।

सुगना की बुर झड़ने को तैयार थी और अचानक..

" आह…बाबूजी"

" तनी धीरे से…….." .

"आआई….…हाँ असहीं….आह…".

सुगना की कामुक आहे गूंजने लगीं। रतन अचानक चौक उठा तब तक उसने स्त्रियों के मुख से उत्तेजना के दौरान अपनी मां का उद्बोधन तो जरूर सुना था पर "बाबूजी" उत्तेजना के अतिरेक पर यह सुगना का यह संबोधन रतन के आश्चर्य का कारण था। परंतु उसने अपनी पत्नी सुगना के स्खलन में बाधा ना डाली अपितु अपने होंठों की गति और बढ़ा दी। सुगना झड़ रही थी और अपने दोनों पैरों के पंजे से से पतन की पीठ पर मार रही थी।

सुगना के स्खलन का श्रेय एक बार फिर सरयू सिंह ही ले गए थे। जांघों के बीच मेहनत कर रही रतन की जीभ भी थक चुकी रतन उठकर सुगना के होठों की तरफ आया और प्यार से बोला

"देखा मीठा त नईखे लागत?"

सुगना ने अपने पति रतन के होठों को चूम लिया सचमुच रतन ने पूरी मेहनत और तन्मयता से सुगना के बुर को चूम चाट कर शहद विहीन कर दिया था। उसके होठों पर अब सिर्फ प्रेम रस ही बचा था जिसे सुगना भली भांति पहचानती थी और उसका स्वाद सरयू सिंह की जीभ से कई बार ले चुकी थी..

"तू ओ घरी बाबूजी के नाम काहे ले तलू हा?"

रतन ने अचानक कि अपना प्रश्न कर दिया सुगना निरुत्तर हो गई इसे कोई उत्तर न सूझ रहा था..

स्त्रियों के पास उत्तर न होने की दशा में अदाओं का ही सहारा होता है सुगना में बड़े प्रेम से कहां

" रहुआ ता हमरा मुनिया के चूस चूस के हमरा के पागल कर देनी हां अतना सुख तो आज तक ना मिलल रहे"

सुगना ने रतन को बाग बाग कर दिया। अपनी मेहनत और सफलता का यह पारितोषिक रतन के लिए सारे प्रश्नों का उत्तर भी था और आने वाले सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत भी।

सुगना ने देर ना की इससे पहले रतन अपना प्रश्न दोबारा करता वह तुरंत ही घुटनों पर आ गई उसे पता था अभी रतन के लंड पर लगा शायद उसके होठों का इंतजार कर रहा था..

नियति के खेल भी निराले हैं रतन सुगना की बुर चूस रहा था और उस दौरान उसका लण्ड लगातार हिचकोले ले रहा था और अपने मुखड़े पर प्रेम रस छोड़ रहा था। रतन का सुपाड़ा पूरी तरह भीग चुका था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रतन की उंगलियों ने उसको छूने की कोशिश की थी। हो सकता है की सुगना की बुर चूमते चाटते समय अकस्मात ही रतन का हाथ लण्ड पर चला गया हो ।

सुगना ने अपने होंठ गोल किये और अपने पति का लंड चूम लिया। वह रतन को अपनाने के लिए पूरी तरह तैयार थी और भाव विह्वल होकर सुगना ने रतन के सुपारे को अपने मुंह में भर लिया। बिना किसी घृणा भाग के सुगना रतन के लंड को चूस चूस कर उस पर लगा शहद हटाने लगी। रतन के पूरे लंड को मुंह में ले पाना संभव न था व सरयू सिंह जैसा बलशाली तो ना सही परंतु उससे कम भी न था।

सुगना ने लंड के सुपाडे को मुंह से निकाला और अपनी जीभ से लंड को जड़ से चाटते हुए उसके सुपारे तक आने लगी। शहद की परत उसकी जीभ पर आती और सुगना उसे चट से निगल जाती।

इतनी देर की उत्तेजना और स्खलन ने उसके उधर में भूख उत्पन्न कर दी थी। शहद का स्वाद उसे पसंद आ रहा था यह अलग बात है कि उसमें रतन के लंड की लार भी शामिल हो चुकी थी परंतु सुगना उसे भूलकर शहद का स्वाद ले रही थी और बरबस ही रतन के लंड को थिरकने पर मजबूर कर रही थी।

सुगना के होंठ लंड पर पर तेजी से चल रहे थे। लण्ड की जड़ से शहद का स्वाद हटते ही सुगना ने लंड के जड़ को अपने हाथों से पकड़ लिया और रतन के लंड को होठों से चूसने लगी। रतन ने अपनी आंखें खोली अपनी फूल जैसी पत्नी को अपना लंड चूसते हुए देख रहा था उसके लिए यह सुख स्वर्गीय सुख से कम न था।

रतन की सारी कल्पनाएं एक पल में ही साकार हो गई थी वह यदि किसी अप्सरा की कल्पना भी करता तो भी शायद सुगना से सुंदर स्त्री उसकी कल्पना में भी ना आती।

वह सुगना के रेशमी बालों को सहलाये जा रहा था और अचानक सुगना के दांतों ने लंड के निचले कोमल नसों को छू लिया.. रतन उत्तेजना से तड़प उठा और अंडकोष में उबल रहा लावा सारी सीमाएं और बंधन तोड़ते हुए बाहर आ गया.. सुगना अचानक हुए हमले से घबरा गयी उसने अपने होंठ पीछे करने की कोशिश की परंतु रतन को वह सुखद और कोमल स्पर्श को छोड़ने का मैन ना था। उसने सुगना का सर पकड़ लिया और अपनी पिचकारी का सारा लावा सुगना के मुंह में उड़ेल लिया सुगना गूं….गूं….. करती रही परंतु उसके पास अपने होंठ हटा पाने का कोई अवसर ना था। मरता क्या न करता सुगना ने ना चाहते हुए भी सारा वीर्य निगल लिया..

दोनों पति पत्नी एक दूसरे की बाहों में निढाल पड़ गए विधि के अनुसार रतन को सुगना की बुर चोदते हुए उसे स्खलित करना था परंतु सुगना और रतन दोनों ही झड़ चुके थे वासना का फूला हुआ गुब्बारा अचानक ही पिचक गया था रतन के हाथ सुगना की चुचियों पर घूमने लगे…

"ई बताव 4 साल हम तोहरा के कितना दुख देले बानी, हमरा के माफ कर द, ई बेचारी तरस गईल होइ" रतन का हाथ सुगना की बुर पर आ गया।

न सुगना बेचारी थी न हीं उसकी बुर। जिस स्त्री को सरयू सिह का प्यार और कामुकता दोनों प्राप्त हो वह स्वतः ही तृप्त होगी।

"आप ही त भाग गइल रहनी"

रतन ने सुगना को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके हाथ सुगना के कोमल नितंबों को सहलाने लगे धीरे धीरे वासना जवान होने लगी नसों में रक्त भरने लगा और रतन का लंड खड़ा हो चुका था..

सुगना अपनी योनि पूजा को सकुशल संपन्न कराने के लिए आतुर थी पर क्या यह पूजा संपन्न होगी? क्या रतन सुगना को चोदते हुए उसे स्खलित कर पाएगा? या नियति ने इनके भाग्य में कुछ और लिखा था…

शेष अगले भाग में..
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#75
Heart 
भाग-70

दोनों पति पत्नी एक दूसरे की बाहों में निढाल पड़ गए विधि के अनुसार रतन को सुगना की बुर चोदते हुए उसे स्खलित करना था परंतु सुगना और रतन दोनों ही झड़ चुके थे वासना का फूला हुआ गुब्बारा अचानक ही पिचक गया था रतन के हाथ सुगना की चुचियों पर घूमने लगे…

"ई बताव 4 साल हम तोहरा के कितना दुख देले बानी, हमरा के माफ कर द, ई बेचारी तरस गईल होइ" रतन का हाथ सुगना की बुर पर आ गया।

न सुगना बेचारी थी न हीं उसकी बुर। जिस स्त्री को सरयू सिह का प्यार और कामुकता दोनों प्राप्त हो वह स्वतः ही तृप्त होगी।

"आप ही त भाग गइल रहनी"


रतन ने सुगना को अपनी बाहों में खींच लिया और उसके हाथ सुगना के कोमल नितंबों को सहलाने लगे धीरे धीरे वासना जवान होने लगी नसों में रक्त भरने लगा और रतन का लंड खड़ा हो चुका था..

अब आगे...


सुगना रतन के लण्ड को अपने हाथों से सहला रही थी और मन ही मन उसकी तुलना सरयू सिंह के लण्ड से कर रही थी।

जिस तरह एक स्त्री किसी पराए सुंदर बच्चे को अपनी गोद में पूरी तन्मयता से खिलाती है परंतु आलिंगन में वह आत्मीयता नहीं होती जो अपनी कोख से जन्म लिए के बच्चे के साथ होती है।


यही हाल सुगना का था। सुगना रतन के लण्ड को देखकर मोहित और आकर्षित अवश्य थी परंतु उसका अंतर्मन अब भी सरयू सिंह के लण्ड को याद कर रहा था। रतन अधीर हो चुका था उसने सुगना के नितंबों को सहलाते-सहलाते सुगना को उठा लिया और एक बार फिर उसी पलंग पर सुगना को बिछा दिया जिस पर सुगना ने अपनी जवानी की रंगरेलियां मनाई थी रतन उसकी जांघों के बीच आ गया।

सुंदर स्त्री जब अपनी जाँघे फैलाए संभोग को आतुर होती है तब स्त्री और पुरुष के बीच में संबंध गौड़ हो जाते हैं और वासना सारे संबंधो को भूलने पर मजबूर कर देती है।

आज रतन और सुगना अपनी पुरानी गलतियों को भूल संभोग करने को तत्पर थे । दीए की रोशनी में सुगना का कुंदन बदन चमक रहा था। रतन धीरे-धीरे सुगना पर झुकता गया और रतन का लण्ड सुगना की बुर के होंठ से सट गया। एक पल के लिए सुगना सिहर उठी उसके निचले होठों पर आज किसी पराये मर्द के लंड ने दस्तक दी थी।


उसके दिलो-दिमाग में प्रेम भी था पर दिमाग के किसी कोने में अपने बदचलन होने का एहसास भी। सुगना ने अपने मन को समझाया और अपनी एड़ी जो अब रतन के नितंबों के ठीक ऊपर थी उसे खींचते हुए रतन को स्वयं में समाहित कर लिया। जांघों के बीच छुपी पनियाई और फूली हुई पुर पूरी तरह फैल गई और रतन का लंड अपने म्यान में घुसने का प्रयास करने लगा।

सुगना एक अद्भुत महिला थी जाने वह कौन से जतन करती थी उसकी बुर का कसाव किसी किशोरी से कम न था। रतन का लण्ड अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा था।

पुरुष का यही अंग बुर् के सारे विरोध और कसाव को धता बताकर गर्भाशय को चूमने को आतुर रहता है रतन के लण्ड में रक्त का बहाव और बढ़ गया तथा रतन अपनी सारी ताकत अपनी कमर में लगाते हुए लण्ड को सुगना की बुर में ठासता गया। सुगना चिहुँक उठी और उसके मुंह से बरबस ही निकल गया


"आह .....तनी धीरे से.. दुखाता"

रतन ने उसकी आंखों को में देखा और उसके आंखों और फिर होठों को चूम कर उसे तसल्ली देने की कोशिश की परंतु उसका लण्ड कोई मुरव्वत करने को तैयार न था। वह एक एक पिस्टन की बात अपने सिलेंडर में आगे पीछे होने लगा।


रतन के मन में सुगना को लेकर प्यार तो अवश्य था परंतु उसके गदराए हुए बदन को भोगने की इच्छा पिछले कई महीनों में बलवती थी वासना प्रेम पर हावी थी। परिणाम…. रतन अब सुगना को कस कर चोद रहा था दिमाग का सारा ध्यान कमर के नीचे केंद्रित था और सुगना का अंतर्मन तड़प रहा था...सरयू सिह रह रह कर उसके ख्यालों में आ रहे थे।

सुगना का पलंग आज उसकी अद्भुत चुदाई का गवाह बन रहा था। रतन की चुदाई और सरयू सिंह के प्यार दोनों में अंतर स्पष्ट था। जहां सरयू सिंह सुगना को प्यार करते करते चोदते थे और वह हंसते खेलते स्खलित हो जाती वही रतन का ज्यादा ध्यान चुदाई पर केंद्रित था।

महेंद्रा बोलेरो चलाने वाले आदमी के हांथ xuv 700 कार आ चुकी था। रतन बिना इंजन की आवाज सुने लगातार स्पीड बढ़ाए जा रहा था। सुगना की गाड़ी किस गियर में है उसका उसे एहसास भी न था।

सुगना भी आनंद में थी परंतु उसके मन मस्तिष्क में उसके बाबूजी की कमी स्पष्ट कर रहे थे. शरीर के अंग अलग अलग ढंग से बर्ताव कर रहे थे।

दिमाग में चल रहे द्वंद्व कामोत्तेजना में भटकाव पैदा करते हैं यही स्थिति सुगना की थी वह रतन के साथ संभोग का आनंद तो ले रही थी परंतु जब जब उसके मन में सरयू सिंह का का ख्याल आता उसके विचार भटक जाते, और दिमाग में चल रही कामोत्तेजना का रूप बदल जाता।


उधर रतन अपने जीवन के सबसे सुखद क्षण भोग रहा था जिस सुंदरी की कल्पना वह पिछले 1 वर्षों से कर रहा था आज उसे भोगने के अद्भुत सुख का आनंद ले रहा था। कमर की गति लगातार बढ़ रही थी वह सुगना की चुचियों को बेतहाशा मीस रहा था। अपनी चुचियों को जोर से मीसे जाने से वह कराह उठी..

"ए जी तनी धीरे से…. दुखाता"

बच्चों के मुख से जिस तरह कुछ वाक्यांश सिर्फ उनके माता-पिता को अच्छे लगते हैं उसी प्रकार सुगना के यह वाक्यांश सरयू सिंह को बेहद पसंद थे और हम सब पाठकों को भी परंतु रतन इन शब्दों की गहराई नहीं जानता था उसे इससे कोई सरोकार ज्यादा न था।


रतन ने सुगना की चुदाई जारी रखी और अंततः वही हुआ जैसा अति कामोत्तेजक पुरुषों के साथ होता है रतन के लंड ने ने सुगना की चूत में उल्टियां कर दीं।

संभोगातुर स्त्री को स्खलित किये किए बिना पुरुष स्खलन एक अवांछित अपराध की श्रेणी में आता है पुरुषों को यह भली-भांति समझना चाहिए कि स्त्री तो स्खलित होने के पश्चात भी आपको चरमोत्कर्ष तक पहुंचाने के लिए अपनी चूत उपलब्ध करा सकती है परंतु पुरुषों के साथ ऐसा नहीं है।

..रस बाहर तो दम बाहर..

रतन निढाल होकर सुगना के ऊपर ही लेट गया वह बेतहाशा हांफ रहा था सुगना तड़प रही थी और अपनी कसी हुई बुर से रतन के दम तोड़ रहे लंड को पकड़ने का प्रयास कर रही थी। परंतु जैसे जैसे वह अपना दबाव बढ़ाती रतन के लण्ड में भरा हुआ रक्त वापस उसके शरीर में फैली जाता।

लंड सिकुड़ कर एक लाचार मरी हुयी मछली की तरह बाहर आ गया।


सुगना थोड़ा उदास हो गयी। उसे गुरुजी की बात अब भी याद थी आज की रात पति और पत्नी दोनों को ही संभोग करते हुए स्खलित होना अनिवार्य था जिसमें सुगना असफल रही थी। रतन भारी शरीर लिए हुए उसके सीने पर पड़ा था।। धीरे-धीरे रतन उसके बगल में सरक गया और कोठरी की छत की तरफ देख कर बोला

"जाएदा चिंता मत कर... अभी रात बहुत बाकी बा" सुगना थकी हुई थी परंतु वह आज के विशेष अवसर और पूजा को सफल बनाने के लिए स्खलित होना चाहती थी आखिर उसका भी आने वाला जीवन रतन से ही जुड़ा था।

कुछ समय बाद अपनी चुचियों को रतन के गालों पर रगड़ते हुए वह बोली

"गुरुजी पुड़िया में कवनो दवाई दे ले रहले हा नु?"

सुगना की कामुक अदाओं रतन के मन में उत्साह भर गया..

रतन की बांछें खिल उठी। उसे सारा गुरुजी की बातें याद आ गयीं। वह झटपट उठा और गुरु जी द्वारा दी गई पोटली में से शिलाजीत की 2 गोलियां निकालकर निगल गया।

रतन दवा तो खा चुका था परंतु उसे यह बात सताने लगी थी कि आज उसने कमरे में आने से पहले हस्तमैथुन क्यों किया था। दरअसल रतन अपने प्रथम संभोग को यादगार बनाना चाह रहा था और वह यह बात जानता था कि वह अपने प्रथम मिलन सुगना की कामुक अदाओं और मुखमैथुन के सामने ज्यादा देर तक नहीं पाएगा इसलिए उसने बुद्धिमत्ता दिखाते हुए स्वयं को पहले ही स्खलित कर लिया था। निश्चय ही इस कार्य से उसे सुगना के साथ प्रथम संभोग में अत्यधिक आनंद की प्राप्ति हुई थी परंतु वह सुगना को स्खलित न कर सका था।

पर अब यही बुद्धिमत्ता भारी पड़ गई थी रतन को एक एक बार फिर सुगना को स्खलित करते हुए स्वयं भी स्खलित होना था। जो कि एक दुरूह कार्य था।

शिलाजीत के असर से रतन के लंड में फिर शक्ति भर गई पर अंडकोषों का क्या…? वो हड़ताल पर चले गए। रतन इस बात से अनजान सुगना पर एक बार फिर चढ़ गया। सुगना का पलंग एक बार फिर हिलने लगा और सुगना के मन में आने वाले जीवन को लेकर एक बार फिर सुखद हिलोरे उठने लगी। रतन एक बार फिर सुगना को उत्तेजित करने में कामयाब रहा था। परंतु अपने अत्यधिक और व्यग्र परिश्रम से वह सुगना के आकर्षण का केंद्र बन गया था। सुगना उसके चेहरे और शरीर से गिर रहे पसीने को देखती और मन ही मन उसके मर्दाना शरीर और उसके भागीरथी प्रयास की प्रशंसा करती वह स्वयं अपनी बुर को आगे पीछे कर स्खलित होना चाह रही थी।

पर नियति को यह मंजूर न था रतन को पसीने से लथपथ देखकर सुगना के मन में मन में वही ख्याल आने लगे जब उसके बाबूजी उसे चोदते चोदते गिर पड़े थे।

सुगना बार-बार अपना ध्यान उस बात से हटाती परंतु रतन के कंधे और सीने से बह रहा पसीना उसे बार-बार उसके दिमाग में वही दृश्य ला देता।

नकारात्मक विचार स्खलन की सबसे बड़ी बाधा है सुगना अपनी उत्तेजना को चरमोत्कर्ष के करीब ले जाकर भी स्खलित ना हो पाई। आधे पौन घंटे की गचागच चुदाई के दौरान सुगना ने आनंद तो लिया परंतु स्खलन पूर्ण ना हुआ।


सुगना स्खलन की अहमियत जानती थी। उसने स्वयं का ध्यान सरयू सिंह से भटकाने के लिए कामुक आवाजे निकालना शुरू कर दी…

" हां हां… आसही और जोर से आह….." कभी वह रतन के होठों को चूमने का प्रयास करती कभी अपने ही हाथों से अपनी चुचियों को मसलती रतन की पीठ पर अपनी उंगलियों को गड़ाती।


उसके इस उत्तेजक के रूप ने रतन की उत्तेजना में चार चांद लगा दिए परंतु नियति ने जो उनके भाग्य में लिखा था उसने सुगना को स्खलित होने से पहले रतन को एक बार और स्खलित कर दिया।

रतन एक बार फिर दो बूंद वीर्य सुगना की फूली और संवेदनशील हो चुकी बूर् पर छिड़कते हुए सुगना को निहार रहा था अपने लंड के सुपारे को सुगना की बुर पर पटकते हुए भी दो-चार बूंद से ज्यादा वीर्य बाहर न निकाल पाया सुगना उसके चेहरे की तरफ देख रहा था।

सुगना उसे अपने तृप्त और स्खलित होने का एहसास करा रही थी यद्यपि सुगना के अभिनय में वह मौलिकता न थी पर रतन आश्वस्त हो गया की सुगना स्खलित हो चुकी है वह एक विजयी योद्धा की तरह अपने अपने लण्ड को निचोड़ कर सुगना की बुर पर रगड़ रहा था।


सुगना के चेहरे के हावभाव विरोधाभास पैदा कर रहे थे एक पल के लिए उसे लगा जैसे वह उसे चरमोत्कर्ष तक पहुंचाने में नाकाम रहा है रतन अपनी खींझ मिटाते हुए बोला..

" तू का सोचे लाग तालु हा?

सुगना ने कोई उत्तर न दिया । सुगना ने रतन को यह अहसास तो करा दिया कि वह स्खलित हो चुकी है परंतु वह मन ही मन बेहद घबराई हुई थी आज की पूजा आसफल हो रही थी और उसके मन में भविष्य को लेकर कई प्रश्न उठा रहे थे ।

अपने अथक प्रयास करने के पश्चात भी जब सफलता हाथ नहीं लगती तो मनुष्य परिस्थितियों से समझौता करने लगता है और विधि के विधान पर प्रश्न चिन्ह भी उठाने लगता है.

यही हाल सुगना का था वह गुरु जी की बात से इतर यह सोचने लगी की हो सकता है पूजा का यह विधान आदर्श परिस्थितियों में ही कारगर होता वह परंतु आज का दिन उसके और रतन के प्रथम मिलन का था और ऐसा आवश्यक नहीं की प्रथम मिलन में ही स्त्री पुरुष दोनों एक साथ स्थगित हों..यह तो संभोग की आदर्श स्थिति है। सुगना अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी तभी

बाहर से कजरी की आवाज आई

"सुगना बेटा उठ जा किरण फूट गईल"

सुगना ने उत्तर तो न दिया पर पलंग से उतरने की आवाज सुनकर कजरी आश्वस्त हो गई और वह दरवाजे से हट गई। सुगना उठी उसने अपनी जांघों के बीच एक अजीब सा तनाव महसूस किया।


उसकी बुर की इतनी बेरहम चुदाई आज से पहले कभी नहीं हुई थी। प्रथम मिलन में भी उसकी दुर्गति नहीं हुई थी जबकि वह दो तीन बार स्खलित भी हुई थी।

यही सरयु सिंह का जादू था पर उनका भतीजा रतन सुगना की बुर का पूजन न कर पाया था और

" अनाड़ी चूदइया बुर् का सत्यानाश" वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया था।

सुगना के दोनों पैरों के बीच एक अजीब सा अंतर आ चुका था वह अपने पैर फैला कर चल रही जिसे कजरी में ताड़ लिया और सुगना की कमर सहलाते और मुस्कुराते हुए बोली

"रतनवा ढेर परेशान क देले बा का"

सुगना क्या कहती.. उसने मुस्कुराकर कजरी की बातों की लाज रख ली. कजरी उसके पास आई और उसे अपने आलिंगन में भरते हुए कि माथे को चूमा और बेहद प्यार और आत्मीयता से बोली


"दुनो पति-पत्नी हमेशा खुश रह लोग"

आशीर्वाद का क्या? वह तो बुजुर्ग हमेशा में बच्चों की भलाई के लिए ही देते हैं परंतु भाग्य और नियति ने जो सुख दुख उनके हिस्से में संजोया होता है उसे रोकना असम्भव होता है।

धीरे धीरे सुबह हो गई और घर के आंगन की शांति महिलाओं के कोलाहल में बदल गई सभी सुगना और रतन के बारे में बातें कर रहे थे बाहर सरयू सिह के दिमाग में भी वही दृश्य घूम रहे थे परंतु अब वह सुगना को पुत्री मान चुके थे और उसके बारे में कोई गलत ख्याल नहीं लाना चाह रहे थे। परंतु उनका अवचेतन मन कभी-कभी सुगना की कामुक काया को अपने मन में गढ़ लेता और अपने जीवन की सबसे सुंदर स्त्री के कामुक अंगों के बारे में सोचते हुए उनके लंगोट में हलचल होने लगती।

आखिरकार विदाई का वक्त आ गया सुगना और रतन वापस बनारस जाने के लिए तैयार होने लगे कुछ ही देर में रतन सोनू सुगना लाली और छैल छबीली सोनी बनारस के लिए निकल पड़े... पुरानी जीप धूल उड़ आती हुई नजरों से ओझल हो गयी और सरयू सिंह कजरी तथा पदमा के साथ अपना हाथ हिलाते रह गए

आने वाले कई दिनों तक रतन और सुगना एक दूसरे के साथ राते बिताते रहे पर परिणाम हर बार एक ही रहा रतन वासना के अधीन होकर सुगना को तरह-तरह चोदता पर सुगना स्खलित ना होती। मुखमैथुन के दौरान एक दो बार सुगना स्खलित भी हुई परंतु संभोग के दौरान जाने उसे क्या हो जाता?

सरयू सिंह ने उसकी बुर पर न जाने कौन सा जादू कर दिया था वह रतन के अथक प्रयासों के बाद भी स्खलित न होती। सुगना के मन में उसके बापू जी के साथ विदाई गई रातें बार बार घूमती। रतन ने सुगना से अपने कामुक अरमान हर हद तक पूरा किये। वह कभी वह सुगना को बिस्तर पर लिटा कर चोदता कभी पेट के बल लिटा कर । कभी डॉगी स्टाइल में कभी गोद में परंतु हर चुदाई का एक ही अंत होता रतन का लंड अपनी सारी ऊर्जा सुगना की बुर में भर देता पर सुगना को स्खलित न कर पाता।

ख्यालों में खोई हुई सुगना की आंख लग गई और उसके दिमाग में द्वंद चालू हो गया अंदर से आवाज आई

" सुगना रतन तेरे लायक नहीं है तू सरयू सिह के लिए ही बनी है वह तुझे दिलो जान से प्यार करते हैं.."

" पर मैंने तो उनके कहने से ही रतन को अपनाया है मैंने उनकी ही बात मानी है"

"वह तो उन्होंने तेरे भले के लिए यह बात कही पर उनका अंतर्मन तुझे अब भी प्यार करता होगा पर तू उन्हें भूल गई"

" मैं उन्हें नहीं भूली उन्होंने ही मुझे खुद से दूर किया और अंतरंग होने के लिए मना किया"

" एक बात भली-भांति जान ले तुझे काम सुख तेरे किसी अपने से ही मिलेगा"

"क्या...क्या…"

सुगना प्रश्न पूछती रही परंतु कोई उत्तर ना मिला सुगना चौक कर बिस्तर से उठ गई..

किसी अपने से? यह वाक्यांश उसके दिलो-दिमाग पर छप से गए..

छी… ये कैसे हो सकता है। अचानक सोनी भागती हुई कमरे में आए और बोली दीदी

" तू सपना में बड़बड़ात रहलू हासब ठीक बानू?

"हा चल चाह पियबे"

अपना बिस्तर से उठी और सोनी के साथ रसोई घर में चली गई


नियति ने सुगना के भाग्य में क्या लिखा था। क्या जो सुगना अपने पुत्र सूरज के अभिशप्त होने और उसे उस अभिशाप से मुक्त करने के लिए अथक प्रयासों और मन्नतों के वावजूद पुत्री को जन्म न दे पाई थी वह क्या स्वयं अभिशप्त थी?


शेष अगले भाग में ..
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#76
Heart 
आह... तनी धीरे से... दुखाता


यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।

Heart


ALL CREDIT GOES TO ORIGINAL WRITER = लवली आनंद
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#77
Heart 
भाग -71


" मैं उन्हें नहीं भूली उन्होंने ही मुझे खुद से दूर किया और अंतरंग होने के लिए मना किया"

" एक बात भली-भांति जान ले तुझे काम सुख तेरे किसी अपने से ही मिलेगा"

"क्या...क्या…"

सुगना प्रश्न पूछती रही परंतु कोई उत्तर ना मिला सुगना चौक कर बिस्तर से उठ गई..

किसी अपने से? यह वाक्यांश उसके दिलो-दिमाग पर छप से गए..

छी… ये कैसे हो सकता है। अचानक सोनी भागती हुई कमरे में आए और बोली दीदी

" तू सपना में बड़बड़ात रहलू हासब ठीक बानू?

"हा चल चाह पियबे"

अपना बिस्तर से उठी और सोनी के साथ रसोई घर में चली गई

नियति ने सुगना के भाग्य में क्या लिखा था। क्या जो सुगना अपने पुत्र सूरज के अभिशप्त होने और उसे उस अभिशाप से मुक्त करने के लिए अथक प्रयासों और मन्नतों के वावजूद पुत्री को जन्म न दे पाई थी वह क्या स्वयं अभिशप्त थी?

अब आगे

सलेमपुर मैं हुई पूजा के पश्चात सुगना और रतन करीब आ गए थे। उनका शारीरिक मिलन अक्सर होने लगा यद्यपि सुगना स्खलित ना होती परंतु वह स्खलित होने का भरपूर प्रयास करती उसे अब भी उम्मीद थी कि वह अपने पति रतन के साथ सुखद वैवाहिक जीवन व्यतीत कर पाएगी।

बनारस में सुगना के घर में अक्सर रंगरलिया मनतीं। उसकी बहन सोनी उन कामुक चुदाई की गवाह बनती। रतन धीरे धीरे सुगना से और खुलता गया और बिना सोनी की उपस्थिति की परवाह किए सुगना को दिन में भी चोद देता सोनी का ध्यान बरबस ही रतन और सुगना की कामक्रीड़ा पर चला जाता और वह तरुणी मचल जाती।

नियति ने उस में कामुकता पहले से भरी थी जो अब धीरे-धीरे परवान चढ़ रही थी। सुगना और रतन के मिलन और उनके बीच चल रही खुल्लम-खुल्ला चुदाई ने उसकी वासना को भडाका दिया और एक दिन ….

सोनी अपने नर्सिंग कॉलेज से बाहर निकल रही थी साथ में चल रही उसकी सहेली ने कहा

" सोनी देख गेट पर कौन खड़ा है हम लोग की तरफ ही देख रहा है "

सोनी ने अपनी निगाहें उठाकर देखा और अपनी सहेली से बोली..

"अरे वह मेरा दूर का रिश्तेदार है मुझे लेने आया है मैं चलती हूं"

सोनी की सहेली को यकीन ना हुआ आज से पहले उसने विकास को नहीं देखा था जब तक सहेली सोनी और विकास के संबंधों का आकलन कर पाती सोनी विकास की राजदूत पर बैठ चुकी थी.

सोनी समझदार थी वह राजदूत पर अपने दोनों पैर एक तरफ करके बैठी थी। सोनी की सहेली के मन में आ रहे प्रश्न शांत हो गए और मोटरसाइकिल गुररर गुर्रर्रर करती धुआं छोड़ते हुए आगे बढ़े गई.

मोटरसाइकिल पर बैठने की वजह से उसे हल्की ठंड लग रही थी और इस ठंड ने सोनी के मूत्राशय में मूत्र विसर्जन के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। वैसे भी सोनी आज शरारत के मूड में थी। उसने विकास के कान में कहा

"मुझे सुसु करनी है "

"अरे यहां कहां करोगी? सड़क पर वाहन आ जा रहे हैं"

"अरे किसी पगडंडी पर ले लो थोड़ी दूर जाकर खेत में कर लेंगे" सोनी वैसे भी खेतों में मूत्र विसर्जन करने की आदी थी उसे खुली हवा में मूत्र विसर्जन करना बेहद पसंद था।

"ओह तो तुम्हारी मुनिया को हवा खाने का मन है"

सोनी ने उसकी पीठ पर एक मुक्का मारा और मुस्कुराते हुए बोली

" जब तुम्हें सुसु आती है तब तो कहीं खड़े होकर कर लेते हो और मुझे ताने मार रहे हो"

विकास ने उत्तर न दिया अपितु अपनी मोटरसाइकिल एक पगडंडी पर मोड़ ली। कुछ ही दूर पर सरसों के पीले खेत लहलहा रहे थे। हरी चादर पर टंके पीले फूल बेहद आकर्षक प्रतीत हो रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे धरती ने कोई बेहद सुंदर दुपट्टा ओढ़ रखा हो।

सोनी सरसो के खेत की तरफ बढ़ गई।। विकास सोनी के मादक शरीर को लहराते और सरसों के खेत की तरफ जाते देख रहा था। सोनी ने खेत के करीब जाकर पीछे पलट कर देखा विकास एक टक उसे देखे जा रहा था। सोनी ने अपने हाथों से इशारा कर उसे पीछे पलटने को कहा और विकास में अपनी दोनों आंखों पर अपनी हथेलियां रखकर खुद को पीछे घुमा लिया।

सोनी मुस्कुराते हुए अपने सलवार का नाडा खोल रही थी। मन ही मन वह चाह रही थी कि विकास पलट कर उसे देखें और वह एक बार फिर पलटी उसकी निगाहें विकास से टकरा गई जो एक बार फिर सोने की तरफ देख रहा था सोनी मुस्कुराते हुए मुड़ गयी और मन ही मन साहस जुटाकर अपने दोनों मदमस्त नितंबों को खुली हवा में लहराते हुए नीचे बैठ गई .

जाने सोनी की मनोदशा में क्या था? वह अपनी पीठ विकास की तरफ की हुई थी। जबकि उसे विकास की तरफ अपना चेहरा रखना चाहिए था ताकि वह विकास पर नजर रख सकें। परंतु शायद लड़कियों को योनि को छुपाना ज्यादा तर्कसंगत सकता है बनिस्बत अपने नितंबों के….

विकास भी शरारती था वह पलट चुका था और सोनी के नंगे नितंबों को नीचे आते देख रहा था। एक पल के लिए उसकी आंखों ने सोनी के गोरे नितंबों के बीच काला झुरमुट देख लिया सोनी की कुंवारी बुर की पतली लकीर उस कालिमां में खो गई थी।

जब तक की सोनी अपने नितंब नीचे कर पाती मूत्र की धार निकल पड़ी। मंद मंद बहती बयार ने उस मधुर संगीतमय ध्वनि ..शी….सू….सुर्र्रर्रर को विकास के कानों तक पहुंचाया जो पूरे ध्यान से सोनी को देख रहा था।

सोनी ने अपनी कमीज के पिछले भाग को जमीन से छूने से बचाने के लिए उसे अपने पेट की तरफ मोड़ लिया था और अनजाने में ही अपने नितंबों को विकास की नजरों के सामने परोस दिया था।

विकास ललच रहा था वह उन नितंबों को अपने हथेलियों से छूने के लिए लालायित था।

सोनी मूत्र विसर्जन कर चुकी थी। नीचे बड़ी हुई घास उसकी बुर के होठों से छू रही थी और उसके शरीर में एक अजब सी सनसनी पैदा कर रही थी। सोनी कभी अपने नितंबों को उठाती और अपनी बुर को उन घासों से ऊंचा कर लेती परंतु कुछ सी देर में वह वापस अपनी बुर को घांसों से छुआते हुए उस अद्भुत उत्तेजना का आनंद लेती। बड़ी हुई घांस कभी उसकी बुर को कभी उसकी कसी हुई गांड को छूती।

यह संवेदना एक अलग किस्म की थी सोनी उसके आनंद में खो गई।विकास भी अपनी पलकों को बिना झुकाए यह मधुर दृश्य देख रहा था हल्की हल्की बह रही हवा सोनी के बुर में ठंडक का एहसास करा रही थी जो मूत्र विसर्जन में भीग चुके थे।

कभी-कभी कुछ घटनाएं अप्रत्याशित होती हैं। आकाश में छाए तितर बितर हल्के बादल अचानक कब सघन हो गए विकास और सोनी को यह एहसास तब हुआ जब आसमान पर चमकदार धारियां खींच गई जिन की रोशनी धरती पर भी दिखाई पड़ी। दिन के उजाले में भी यह चमक स्पष्ट थी। कुछ ही देर बाद बादलों के कड़कने की आवाज ने सोनी को डरा दिया वह झटपट उठ खड़ी हुई और विकास की तरफ पलटी। सोनी यह भूल गई कि उसकी सलवार अभी भी नीचे थी। जब तक वह संभल पाती जांघों के बीच का वह मनमोहक त्रिकोण विकास की निगाहों में आ गया।

सोनी ने विकास की नजरों को ध्यान से देखा जो उसकी जांघों के बीच थी।

सोनी ने झटपट अपनी सलवार ऊपर की और भागते हुए विकास के पास आ गयी।

"जल्दी भागो यहां से लगता है बारिश होगी"

"हां हां बैठो"

जब तक सोनी मोटरसाइकिल के पीछे बैठती बारिश प्रारंभ हो गयी। छोटी-छोटी बूंदे कब बड़ी हो गई पता भी न चला इतनी जबरदस्त बारिश की कुछ ही मिनटों में दोनों युवा प्रेमी पूरी तरह भीग कर लथपथ हो गए।

विकास और सोनी बारिश से बचने के लिए कोई आसरा ढूंढने लगे। कुछ ही दूर पर उन्हें एक ट्यूबवेल का कमरा दिखाई पड़ा जिसके आगे छप्पर लगा हुआ था विकास ने अपनी मोटरसाइकिल रोड के किनारे खड़ी की और दोनों भागते हुए उस छप्पर के नीचे आ गए।

"बाप रे कितनी जबरदस्त बारिश है तुम तो पूरी भीग गई" विकास ने सोनी के युवा बदन पर नजरें फिराते हुए कहा ।

बारिश की वजह से कपड़ा भी सोनी के बदन से चिपक गया था और सोनी के शरीर के उभार और कटाव स्पष्ट दिखाई पढ़ने लगे थे। सोनी ने जब यह महसूस किया उसने अपने कपड़ों को अपने शरीर से अलग करने की कोशिश की। परंतु गीले होने की वजह से कपड़े पुनः सोनी के शरीर से चिपक गए। सोनी ने अपने हाथों से अपनी समीज का निचला भाग निचोडने की कोशिश की और बरबस ही अपनी सलवार के पीछे का भाग विकास को दिखा दिया विकास सोनी के पास गया और बोला..

"यहां दूर-दूर तक कोई नहीं है और इस मूसलाधार बारिश में किसी के आने की संभावना भी नहीं है तुम अपने कपड़े खोल कर सुखा लो" यह देखो रस्सी ही बंधी है

नियति ने सोनी का ध्यान छप्पर के नीचे बंधी हुई रस्सी पर केंद्रित किया। ऐसे तो सोनी अपने कपड़े उतारने के लिए कभी तैयार ना होती परंतु छप्पर के नीचे दबी रस्सी को देखकर उसे यह भाग्य का खेल नजर आया और वह अपने कपड़े सुखाने की सोचने लगी। परंतु क्या वह विकास के सामने नग्न होगी"

यह संभव न था उसमें विकास से कहा कि

"मैं अपने कपड़े कैसे उतारूं? यहां पर तो तुम भी हो"

" मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं"

" तो क्या 1 घंटे तक अपनी आंखें बंद किए रहोगे? " सोनी ने हंसते हुए पूछा.

अचानक विकास में अपने गले में बाधा गमछा निकाला और उसे रस्सी पर टांगता हुआ बोलो

"लो तुम उस तरफ खड़ी हो जाना और मैं इस तरह अब तो ठीक है"

सफेद गमछा जो पानी में भीग चुका था परंतु फिर भी आग और फूंस के बीच एक आवरण देने के प्रयोग में लाया जा रहा था। नियति मुस्कुरा रही थी और सोनी अपने कपड़े उतार रही थी।

कुछ ही देर में काली पेंटी में सोनी की कुंदन काया चमकने लगी। परंतु उसके दर्शन झोपड़ी की छत से चिपकी हुई छिपकली ने किए कि जो स्वयं इस अप्रत्याशित मौसम के बदलाव से दुखी थी। यह कहना मुश्किल है की कौन ज्यादा डरा हुआ कौन था सोनी या वह छिपकली परंतु किसी अप्रत्याशित घटना का डर दोनों के चेहरे ही देखा जा सकता था।

स्वयं को विकास के गमछे के पीछे छुपाए हुए सोनी ने अपने कपड़े रस्सी पर टांग दिए । उसने कपड़ों को भली भांति में डाल दिया ताकि हवा के झोंके से वह जल्दी ही सूख जाएं।

परंतु हवा का झोंका जहां कपड़ों को सुखा रहा था वही सोनी के शरीर में सिहरन पैदा कर रहा था। उसने अपने दोनों हाथ से अपनी चुचियों से सटा लिए थे और स्वयं को कुछ गर्मी देने का प्रयास कर रही थी।

पानी में भीगी कटीली सोनी की सुंदर और कमनीय काया को विकास की नजरों से एक झीने पर्दे की दूरी पर थी । सोनी के शरीर का कटाव और उभार के एहसास ही उसके लंड को खड़ा करने के लिए काफी था।

पर्दे के पीछे उसकी प्रेमिका लगभग नग्न अवस्था में अपनी चूचियां समेटे खड़ी हुई थी। एक पल के लिए विकास के मन में आया कि वह यह गमछा हटा दे परंतु वह सोनी को दिया वादा न तोड़ना चाहता था। परंतु आज नियति उन दोनों को मिला देना चाहती थी। हवा का एक और झोंका आया और गमछा लहरा गया। दो प्रेमी एक अर्धनग्न और एक लगभग पूर्ण लगन एक दूसरे के सामने खड़े थे। रही सही कसर बिजली के कड़कने ने पूरी कर दी और सोनी विकास के आलिंगन में आ गयी।

जब तक बिजली कड़कती रही विकास की हथेलियां सोनी की पीठ पर अपना कसाव बढ़ाती रहीं। और जब तक बादलों की गड़गड़ाहट कम होती सोनी के अंतर्मन में उत्तेजना और डर दोनों में द्वंद हुआ और विजय उत्तेजना की हुयी।

विकास ने होठों ने सोनी के कंपकपाते होठों को छू लिया। होठों पर चुंबन की प्रगाढ़ता बढ़ती गई सोनी की मुह में गुलाबी गहराइयों के बीच विकास की जीभ जगह बनाने लगी।

चुंबन भी एक अजीब कला है जब प्रेमी और प्रेमिका पूरे मन से चुंबन करते हैं तो चुंबन की गहराई बढ़ती जाती यही हाल सोनी और विकास का था उन दोनों में प्यार की कमी न थी। इस प्यार में भी वासना ने अपनी जगह तलाश ली थी । यह स्वाभाविक भी था। विकास के हाथ लगातार सोनी की निचली गोलाइयों को सहला रहे थे और उंगलियां सोनी की बुर की तलाश में लगातार अंदर की तरफ बढ़ रही थीं।

विकास को अपने गीले पैंट के अंदर तने हुए लंड का एहसास हुआ और उसमें अपने हाथ से उसे आजाद कर दियाम सोनी के हाथों को अपने लंड पर ला कर उसने अपनी उंगलियां सोनी की पैंटी में फंसा धीरे धीरे सोनी की पैन्टी को नीचे करता गया।

चुम्बन में खोई हुई सोनी अपने नग्न होने का एहसास तो कर रही थी पर न तो वह प्रतिकार कर पा रही थी और न हीं विकास के हाथों को रोकने की कोशिश।

विकास धीरे-धीरे सोनी को ऊपर की तरफ खींच रहा था और अपनी कमर को नीचे की तरफ। उसका तना हुआ लंड सोनी के हाथों में था परंतु उसका सुपाड़ा सोनी की नाभि के नीचे उसके पेडु पर दस्तक दे रहा था। अचानक उसने सोनी को ऊपर खींचा और लण्ड ने सोनी के भग्नासे को छू लिया।

पनियायी बुर ने लण्ड के सुपारे को खींचने की कोशिश की पर सोनी के कौमार्य और बिना चुदी बुर के कसाव ने अपना प्रतिरोध कायम रखा। बुर को अपने लंड से छूते ही एक पल के लिए विकास को लगा जैसे उसने जन्नत छू ली। यदि थोड़ा समय वह उसी अवस्था में रहता तो झटका देकर उसका लंड पहली बार बुर में प्रवेश कर गया होता परंतु ऐसा ना हुआ।।

कुवारी सोनी ने अपनी उत्तेजना पर काबू पाया और विकास को दूर ढकेलते हुए बोली।

"यह सब शादी के बाद" एक पल के लिए सोनी अपने सामान्य रूप में आ गई उसकी उत्तेजना पानी के बुलबुले की तरह फूट कर विलुप्त हो गयी।

उसने अपने हाथों से अपनी चड्डी ऊपर की और स्वयं को विकास से दूर कर वापस गमछे को दोनों के बीच कर लिया। विकास के उतरे हुए चेहरे को देख उसने विकास को आश्वस्त करते हुए कहा

"बस कुछ दिन की बात है हम लोग शादी कर लेंगे और फिर यह खजाना तुम्हारा….. जी भर कर कर लेना"

विकास का मूड खराब हो चुका परंतु वह सामान्य होने की कोशिश कर रहा था उसने सोनी को छेड़ते हुए कहा

"क्या कर लेना?"

"वही जो हमेशा चाहते हो"

" क्या साफ-साफ बताओ ना?"

सोनी अपने होंठ उसके कान के पास ले गई। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"चो……...द लेना" वह कह कर शर्मा के पीछे मुड़ गयी। विकास ने एक पल की भी देर ना की। उसने अपने हाथ आगे किये और अपने हांथ आगे कर सोनी की चुचियों को पकड़ लिया और अपने तने हुए लंड को उसके नितंबों से सटा दिया और मुस्कुराते हुए बोला

"मेरी जान अभी कर लूं शादी ?"

"हट पागल "

कुछ देर दोनों प्रेमी प्रकृति की बारिश और कामुक्त बदनों से स्पर्श सुख की उत्तेजना का आनंद लेते रहे परंतु न उनकी हसरत पूरी हुई और न पाठकों की।

नियति के लिए अभी भी सुगना ही महत्वपूर्ण थी जो रतन की कामुकता का शिकार होकर डॉगी स्टाइल में गचागच चुद रही थी। तीनों बच्चे सूरज मधु और मालती बाहर हाल में खेल रहे थे वह बार-बार आकर दरवाजे पर दस्तक देते और सुगना धीमे से पुकारती

"रुक जा बाबू आवतानी" उसकी आवाज में एक अलग किस्म की लहर थी जो निश्चित ही रतन की बेतरतीब चुदाई कारण उत्पन्न हो रही थी। रतन पूरी ताकत से चोदते हुए स्खलित हो रहा था और सुगना हमेशा की भांति एक बार फिर तड़प रही थी और लाख कोशिशों के बावजूद एक बार फिर फेल हो गयी थी। उसकी फूल जैसी बुर बार बार मर्दन की शिकार होती पर उससे अमृत रूपी स्खलन का रस न मिल पाता।

दिन बीतते गए और सुगना काम सुख से दूर होती गयी। जिस कोमलांगी ने सरयू सिंह के साथ कामकला के सारे सुख भोगे थे वह धीरे-धीरे अपनी कामुकता में ठहराव आते हुए महसूस करने लगी।

अब उसका न तो चुदवाने का मन होता और नहीं कामुक अठखेलियाँ करने का। विरक्ति बढ़ रही थी और वह रतन के करीब रहते हुए भी दूर दूर रहने लगी। रतन ने यह बात महसूस की परंतु वह क्या करता है वह नियति के खिलाफ न जा सकता था उसके लाख प्रयास भी सुनना को चरम सुख से दूर रखते।

सुगना ने अंततः एक दिन और चुदने से मना कर दिया। रतनपुरी तरह हताश और निराश हो गया वह इस बात से बेहद क्षुब्ध था कि वह सुगना को चरम सुख ना दे पाया था यद्यपि उसमें रतन की कोई गलती न थी वह तो निष्ठुर नियति के हाथों का एक छोटा सा खिलौना था।

उसका दिलो-दिमाग उसे लगातार कोसता ना उसका काम धाम में मन लगता और नहीं बच्चों में। परिस्थितियों से क्षुब्ध हुआ मनुष्य किसी भी दिशा में जा सकता दिमाग के सोचने समझने की शक्ति निराशा में और कम हो जाती है। एक दिन आखिरकार वही हुआ जिसका डर था….

शेष अगले भाग में...
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#78
भाग -72

सुगना ने अंततः एक दिन और चुदने से मना कर दिया। रतनपुरी तरह हताश और निराश हो गया वह इस बात से बेहद क्षुब्ध था कि वह सुगना को चरम सुख ना दे पाया था यद्यपि उसमें रतन की कोई गलती न थी वह तो निष्ठुर नियति के हाथों का एक छोटा सा खिलौना था।

उसका दिलो-दिमाग उसे लगातार कोसता ना उसका काम धाम में मन लगता और नहीं बच्चों में। परिस्थितियों से क्षुब्ध हुआ मनुष्य किसी भी दिशा में जा सकता दिमाग के सोचने समझने की शक्ति निराशा में और कम हो जाती है। एक दिन आखिरकार वही हुआ जिसका डर था...


अब आगे.....

आइए अनिष्ट की आशंका को दरकिनार करते हुए सुखद पहलुओं को याद करते हैं जिस समय सुगना और रतन अपने प्रथम मिलन की रात में जी भर कर चोदा चोदी कर रहे थे उसी समय विधवा लाली एक बार फिर सुहागन हो रही थी। सोनू लाली को उसके ही घर में एकांत में स्टोर रूम में खींच लाया था। गांव का यह स्थान धान गेहूं मसूर आदि को रखने में काम आता है जो मिट्टी के बड़े-बड़े आदम कद बर्तनों में रखे जाते हैं। उस परिवेश में इसे कोठीला के नाम से जाना जाता है।

लाली बार-बार कहती

"कहां ले जा तारा... ?" परंतु उसके कदम स्वतःही सोनू के साथ साथ बढ़ रहे थे

सोनू कुछ बोल नहीं रहा था परंतु अपनी उंगलियां अपने होठों पर सटाये लाली को चुप रहने का इशारा कर रहा था। कुछ ही देर में लाली सोनू के आलिंगन में आ गयी। और दोनों विलक्षण प्रेमी एक बार फिर एकाकार होने का प्रयास करने लगे। लाली ने कहा..

"आज पूजा रहे तहरा जीजा और दीदी के तू हमरा के काहे धईले बाड़ा"

"तू हमार दीदी ना हउ का? चला तहरो पूजाई कर दी"

लाली सिहर उठी। एक पल के लिए उसके दिमाग मे सुगना द्वारा बताए गए पिछले योनि पूजन के दृश्य घूम गए। हालांकि योनि पूजन की व्यवस्था उसके घर में न थी परंतु उसे उस पूजा में होने वाली घटनाक्रमों का विधिवत एहसास था… उसने सोनू को छेड़ते हुए पूछा "तो शायद भी ले आईल वाड़ा का"

"उ का होइ"

सोनू ने कोई तैयारी न की थी? दरअसल वह शहद की उपयोगिता से अनभिज्ञ था परंतु उसमें इसका एहसास लाली को ना होने दिया और मुस्कुराते हुए बोला

"हमार लाली दीदी के रस शहदो से मीठ बा" लाली इससे पहले कुछ कहती सोनू नीचे झुकता गया और लाली की साड़ी ऊपर होती गयी।

पलक झपकते ही सोनू लाली की जांघों के बीच अपने होठों से उसके बुर के होठों को छूने का प्रयास कर रहा था। लाली अपने नितंबों को पीछे कर सोनु को रोकना चाह रही थी दरअसल वह बुर चुसवाने के लिए तैयार न थी उसने उसे धोया न था और अपने प्यारे भाई को असहज न करना चाहती थी।

सोनू ने लाली की साया (पेटीकोट) और साड़ी को छोड़ उसकी चूँची सहलानी चाही। उसके हांथ जब तक चूँची तक पहुंचते सोनू लाली के साया में आ चुका था। लाली हंसने लगी..

जैसे ही लाली सीधी हुयी उसकी बुर सोनू के होठों की जद में आ गयी। अजब सी मादक खुशबु सोनू ने नथुनों में भर गयी। सोनू ने अपना मुह खोला और गप्प से अपनी लाली दीदी की बूर् अपने मुह में भर लिया।।।

लाली की हंसी एक मादक कराह में बदल गयी..

"बाबू तनी धीरे से….आह…. " लाली उत्तेजना में अपने ही होंठो को काटते हुए फुसफुसाइ…

अब तक लाली और सोनु दोनों ही एक दूसरे की इच्छा और अनिच्छा को भलीभांति पहचानने लगे थे। " एक दूसरे की समझ संभोग से पहले होने वाले छेड़छाड़ को रोमांचक बना देते है। सोनू ने लाली की गहरी सुराही का रस होंठो से खींचकर पीने की कोशिश की…और लाली ने सोनु के बाल पकड़ लिए …

"बाबू बस…." लाली गरमा चुकी थी अब उसे सिर्फ उस दिब्य यंत्र की तलाश थी जो अपना मुह लाल किये सोनु की लुंगी में सर उठा रहा था।

कुछ ही देर में सोनू अपना लण्ड अपनी प्यारी और परिपक्व लाली दीदी की चूत में डाल कर गर्भाशय चुमने का प्रयास कर रहा था। कई दिनों बाद हुए इस मिलन में आवेश और उत्तेजना ज्यादा दी कुछ देर के मिलन में ही लाली और सोनू दोनों झड़ गए। सोनु मायूस होकर बोला..

"साला जल्दिये हो गइल.."

" हमरो……… बड़ा पावर बा लइका में" लाली ने सोनु को उत्साहित करते हुए चुम लिया..

"एक बार अउरी" सोनु ने लाली की चुचियों को सहलाते हुए अनुरोध भरे स्वर में कहा….

लाली भी तैयार थी…उसने सोनु के बीर्य से भीगे लण्ड को हांथो में लेकर कहा…

"ले आवा ए में ताकत भर दीं…."

कुछ देर हथेली में रगड़ने के बाद लाली घुटने के बल आ गयी और लाली के कोमल होंठो ने मोर्चा सम्हाल लिया….

सोनु सातवे आसमान पर था….रात भर दोनों एक दूसरे को तृप्त करते रहे उधर सुगना रतन से चुदवाती रही पर उसे तृप्ति का एह्सास न हुया….

नियति ने सुगना और रतन के मिलन में एक तरफा सुख रतन को दिया था और सुगना को अधूरा और तड़पता छोड़ दिया था परंतु सोनू और लाली दोनों ही तृप्त थे। आज अपने मायके में भरे पूरे घर में लाली सोनू से चुद रही थी। दोनों ने जी भरकर एक दूसरे की प्यास बुझाई और तृप्ति का अहसास लिए अलग हो गए। लाली अपने बच्चों के पास चली गई और सोनु लाली के पिता हरिया के बगल में जाकर बिछी चारपाई पर सो गया…

सुगना के योनि पूजन और लाली और सोनू के मिलन ने दोनों प्रेमी युगलों के बीच कई सारे दीवारें गिरा दीं। एक और जहां लाली अपने और सोनू के साथ चल रहे संबंधों को सुगना के सामने खुलकर स्वीकार करने लगी। वही सुगना ने भी सोनू और लाली के इस अवैध संबंध को मान्यता दे दी। दोनों सहेलियों के बीच ढेर सारे पर्दे हट रहे थे।

इसी दौरान सोनू के कॉलेज की पढ़ाई पूरी हो गयी और अब भविष्य निर्माण के लिए प्रयासरत था। मनोरमा मैडम के स डी एम पद के रुतबे का जादू देख चुका था और मन ही मन उस पद को प्राप्त करने की लालसा लिए वह पीसीएस की तैयारियों में जुट गया।

लाली और सुगना की सहमति से वह हॉस्टल छोड़कर सुगना के घर में आकर रहने लगा। रतन सोनू के आने से ज्यादा खुश न था। सोनी पहले से ही घर में रह रही थी। घर में ज्यादा लोगों की उपस्थिति रतन को नागवार गुजर रही थी उसे सुगना के पास जाने का मौका कम मिलता हांलांकि यह सुगना के लिए अच्छा ही था। वह स्वयं अब और चुदने को तैयार न थी उसे पता था वह रतन के लाख प्रयासों के बावजूद स्खलित न होगी।

निराशा उत्तेजना की दुश्मन है….सुगना पर यह भलीभांति लागू हो रहा था।

सोनू लाली के घर में रहना चाहता था परंतु सरेआम इस तरह रहना संभव न था। एक दिन छोटा सूरज अपने घर से निकलकर लाली के घर जा रहा था और बाहर सड़क पर जा रही मोटरसाइकिल से टकराते टकराते बचा…

वह गिर पड़ा….टायरों के चीखने की आवाज के साथ मोटरसाइकल रुकी। सुगना भागते हुए उसके करीब गयी और अपने सीने से सूरज को लगा लिया। ऐसा लग रहा था जैसे सुगना के कलेजे का टुकड़ा गिर पड़ा था। सूरज सच में सुगना की आंखों का तारा था… तभी सोनू ने कहा…

"दीदी सब बच्चा लोग एक साथ खेले ला दोनों घर के बीच हाल में एगो दरवाजा बना दियाव सब बच्चा लोग के आवे जावे में आसानी होइ "

सुगना के उत्तर देने से पहले लाली ने चहकते हुए कहा.. जो बाहर शोरशराबा सुन कर बाहर आ चुकी थी

"सोनू एकदम ठीक बोलता… का सुगना ते का कह तारे?"

सुगना को खुद भी यह बात पसंद आई और आखिरकार एक दिन लाली और सुगना के घरों के बीच की दीवार को तोड़कर एक दरवाजा लगा दिया जो सामान्यतयः खुला रहता। रतन को यह थोड़ा अटपटा लगा परंतु उसे तो इस बात का एहसास तक ना था की सोनू और लाली के बीच एक अद्भुत और नायाब रिश्ता बन चुका है और यह दरवाजा इस रिश्ते में कितना अहम था ये पाठक भलीभाँति समझ सकते हैं।

सोनू दिन भर पढ़ाई करता और बीच-बीच में लाली के बच्चे और अपने भतीजे भतीजीयों के साथ खेल कूद कर उनका मनोरंजन करता और जैसे ही रतन और सुगना अपने कमरे में जाते वह अपनी लाली दीदी की तनहाई दूर करने चला जाता।..

वैसे भी लाली का अब कोई ना था सोनू ही उसका सहारा था। और सोनू की बहन सुगना उसकी प्रिय सहेली थी. लाली और सुगना के बच्चे भी बेहद प्रसन्न थे। वो बेझिझक एक घर से दूसरे घर आ जाते और सब मिलजुल कर खेलते। इधर रतन और सुगना अपनी चुदाई करते उधर लाली और सोनू। सब अपने आप में मगन थे सिर्फ सुगना तड़प रही थी नियति से यह देखा ना गया और एक दिन… वही हुआ जिसका डर था….

सुबह तड़के सुगना ने रतन को जगाते हुए कहा

"ए जी उठिए होटल नइखे जाए के बा का?"

सुनना की जो हांथ रतन को छूने की कोशिश कर रहे थे वह लंबे होते गए पर रतन बिस्तर पर न था। सुगना संतुष्ट हो गई की रतन उठ चुका है पर कुछ देर कोई हलचल न होने पर वह बिस्तर से उठी और बाथरूम की तरफ देखा बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था रतन वहां न था।

सुगना हॉल में आए और बाहर दरवाजे की तरफ देखा जो खुला हुआ था। रतन ऐसे तो कभी बाहर न जाता था परंतु आज दरवाजा खुला देखकर सुगना ने मन ही मन सोचा शायद वह किसी कार्य से बाहर गया हो। परंतु ऐसा न था। जैसे ही सुगना एक बार फिर अपने कमरे में आयी बिस्तर पर पड़ा कागज सारी कहानी कह गया।

सुगना हतप्रभ सी अवाक खड़ी थी। उसे कुछ समझ में न आया। वह भागती हुई लाली के कमरे की तरफ दौड़ी दोनों घरों के बीच अब कोई दीवार ना थी सुगना ने लाली का दरवाजा खटखटा दिया लाली आनन-फानन में झटपट अपनी नाइटी डालती हुयी बाहर आ गई पर सुगना को अपनी नंगी जांघों की एक झलक दिखा गयी…

"का भईल सुगना ?" सुगना ने कोई उत्तर न दिया अपितु अपने हाथ में दिया हुआ खत लाली को पकड़ा दिया। लाली खत की तरफ देखने लगी और सुगना लाली के बिस्तर की तरफ जिस पर सोनू नंग धड़ंग पड़ा हुआ था। यह तो शुक्र था सोनु पेट के बल लेता था वरना उसके जिस औजार की तारीफ लाली खुलकर करती थी उसके दर्शन उसकी अपनी बहन सुगना कर लेती।

निश्चित ही आज रात सोनू और लाली ने एक बार फिर जमकर चुदाई की थी। बिस्तर की सलवटे और लाली का नींद में डूबा मादक शरीर इस बात की गवाह था। सुगना सोनू को नग्न अवस्था में देखकर सुगना तुरंत ही हटकर दूर हो गई और लाली उसके पीछे पीछे।

सुगना ने कहा

"सोनू के जगा के स्टेशन भेज… का जाने ओहिजे गइल होखसु "

कुछ ही देर में सोनू रतन को ढूढने के लिए बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के चक्कर काटने लगा परंतु जिसे जाना था वह जा चुका था।

रतन ने अपने खत में घर छोड़ने की बात स्पष्ट कर दी थी पर वह कहां जा रहा था यह उसने यह जिक्र न किया था जो स्वाभाविक था परंतु उसे न ढूंढने की नसीहत अवश्य दे थी फिर भी सुगना अपने पत्नी धर्म का निर्वहन करते हुए उसे ढूंढने का प्रयास कर रही थी।

रतन अचानक ही सुगना और अपने भरे पूरे परिवार से दूर हो गया था। नियति मुस्कुरा रही थी….क्या पता वह आने वाले समय में अपनी भूमिका के लिए तैयार हो रहा हो?

रतन के जाने की खबर सलेमपुर तक पर पहुंची और एक बार फिर सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस में उपस्थित थे..सुगना सरयू सिंह को देख कर रो पड़ी। वह तुरंत ही उनके आलिंगन में आ गयी।

दुख में आलिंगन की प्रगाढ़ता बढ़ जाती है।

सुगना सरयू सिंह से पूरी तरह लिपटी हुई थी रतन के जाने का उसे दुख तो अवश्य था परंतु शायद उतना नहीं जितना एक आम पत्नी को अपने पति के जाने पर होता। सुगना और रतन दोनों में कुछ हद तक प्यार अवश्य हुआ था परंतु इसमें वह कसक ना थी जो सरयू सिंह और सुगना के बीच थी।

सरयू सिह एक पल के लिए यह भूल गए कि वह जिस सुगना को अपने आलिंगन में लिए हुए हैं वह अब उनकी प्रेयसी नहीं उनकी पुत्री थी। कोमल शरीर के स्पर्श से जैसे ही लंड में हरकत हुई उनका दिमाग सक्रिय हो गया और उन्होंने सुगना को स्वयं से अलग करते हुए उसके माथे को चूम कर बोला

"जायदे उ साला कोनो काम के ना रहे तोहरा कोनो दिक्कत ना होखि" इस वाक्य में न कोई छुपा संदेश था न शरारत।

सरयू सिंह को अपने संचित धन पर अब भी भरोसा था वह सुगना वह उनके बच्चों के आने वाले जीवन के लिए पर्याप्त था। परंतु क्या युवा सुगना सारा जीवन यूं ही अकेले गुजार पाएगी। अभी वह एक 25 वर्षीय तरुणी थी जिसमें 2 बच्चों को जन्म अवश्य दिया था परंतु आज भी वह युवा किशोरी की तरह कमनीय काया 5 और चेहरे पर बाल सुलभ मासूमियत लिए हुए थी । सच वह प्यार की प्रतिमूर्ति थी..

जाने निष्ठुऱ नियति ने सुगना के भाग्य में क्या लिखा था? सुगना ने अपने सभी रिश्ते बखूबी निभाए थे और उसे प्रत्युत्तर में अपने परिवार से भरपूर प्यार और सम्मान मिला था. सरयू सिंह आज भी उसके हर दिल अजीज थे। यदि सरयू सिह उसे स्वयं से दूर ना करते तो वह आज भी उनकी गोद में खेलते हुए उनके मोटे और मजबूत पर कोमल लण्ड को अपनी मखमली बूर् में भर उस पर उछलते कूदते स्वयं भी स्खलित होती और डालने बाबूजी के अंडकोषों में संचित स्वेत वीर्य से अपनी बुरकी कामाग्नि को बुझाती। आह….पर सरयू सिह बदल चुके थे यह जानने के बाद कि सुगना उनकी ही पुत्री है उनकी काम वासना में ठहराव आ गया था…

रतन की मां कजरी पूरी तरह टूट चुकी थी उसके बुढ़ापे की लाठी उसका बेटा रतन अपने ही बाप की तरह घर छोड़कर भाग गया था। सरयू सिंह कजरी का भरपूर साथ देते परंतु रतन के जाने की कसक कजरी को कमजोर और दुखी कर गई।

कुछ दिनों तक बनारस में रहकर सरयू सिंह और कजरी एक बार फिर से सलेमपुर के लिए निकल गए। सुगना मन ही मन सोच थी और ऊपर वाले से प्रार्थना करती कि काश यह समय तीन चार वर्ष पीछे हो जाता और वह अपने बाबूजी को उसी रूप में देखती और महसूस करती जैसा वह सूरज के जन्म से पहले उनके साथ रहती थी।

गुजरा हुआ समय वापस नहीं आता परंतु उसकी सुखद समय की यादें आदमी को तरोताजा कर देती हैं। यही हाल सुगना का था वह यादें उसे गुदगुदाती और उसके होठों पर मुस्कान आ जाती। होठों पर ही क्या नीचे जांघों के बीच सिकुड़ी वह सुंदर और प्यारी बुर मुस्कुराने लगती और होठों पर पानी लिए अपने अद्भुत प्रेमी के होठों और अपने मूसल का इंतजार करती।

दिन बीतते गए। सुगना ने अपने बच्चों पर ऐसा जादू किया हुआ था कि उन्हें रतन के जाने का कोई विशेष एहसास ना हुआ। जब जब बच्चे उन्हें पूछते सुगना बड़े प्रेम से उन्हें फुसला लेती और कहती

" मुंबई शहर गईल बाड़े पैसा कमाये" बच्चे शांत और संतुष्ट हो जाते।

देखते ही देखते सुगना और लाली की स्थिति एक जैसी हो गयी। एक का पति स्वर्ग सिधार चुका था और दूसरा इसी धरती पर न जाने कहां गुम हो गया था। सुगना अभी भी सिंदूर लगाती पर उसका सुहाग जाने कहाँ विलुप्त था। वही लाली विधवा थी पर सोनू साए की तरह उस से चिपका रहता और लाली की रातें गुलजार रखता। सोनू को भी अपनी बहन सुगना से लाली को लेकर अब भी शर्म कायम था। यह बात उसे बेहद उत्तेजित करती की कैसे वह अपनी बहन की सहेली को उसकी जानकारी में चोदता था। .

सोनू की लगन और तैयारी में सुगना और लाली दोनों ही अपना सहयोग देती एक तरफ जहां सुगना सोनू की पसंद के खान-पान का ध्यान रखती वहीं दूसरी तरफ लाली सोनू की शारीरिक जरूरतों को पूरा कर उसका ध्यान बाहर न भटकने देती। परिवार में पूरी तरह खुशियां थी घर में सिर्फ सुगना ही ऐसी थी जिसकी खुशियों पर ग्रहण लगा हुआ सब कुछ होते हुए भी सुगना अधूरी थी …

रतन को गए 5 महीने से ऊपर का वक्त बीत चुका था संयोग से आज माघ महीने की पूर्णमासी थी.

चंद्रमा पूरा था पर सुगना की खुशियां अधूरी थी। इसी पूर्णिमा के दिन उसने रतन की लाठी से अपनी योनि पूजा का विधि विधान पूर्ण किया था। कुछ नियम ऐसे होते हैं जो समाज द्वारा बना तो दिए जाते हैं पर उन्हें पूरा कैसे किया जाएगा इस बारे में सब अपने अनुसार रास्ता निकाल लेते हैं सूरज के जन्म के बाद सुगना ने रतन की लाठी के साथ कुल देवता की पूजा तो संपन्न कर ली परंतु लाठी के साथ संभोग कर कैसे स्खलित होगी यह यक्ष प्रश्न कठिन था।

जिस रतन को वह गैर समझती थी उसकी लाठी को उसके लंड का प्रतीक मानकर स्खलितहोना यह आसंभव ही नहीं नामुमकिन था. सुगना बिस्तर पर लेटी हुयी अपनी सुखद यादों में खो गयी…

आखिरकार उस दिन सुगना का साथ कजरी ने दिया था। सुगना जब तक पूजा कर वापस अपने कमरे में आती कजरी के निर्देश पर सरयू सिंह सुगना के कमरे में आकर पहले ही छुप गए। उन्होंने ऐसा कजरी के निर्देश पर कर तो दिया था परंतु भरे पूरे मर्दाना शरीर के मालिक सरयू सिंह को छोटी सी जगह पर ज्यादा देर तक छुपना आसहज महसूस हो रहा था। सुगना के कमरे में उसे छोड़ने आयीं अन्य महिलाएं भी अठखेलियां कर रही थी।

एक महिला ने कहा..

"आतना फूल जैसन बहुरिया बीया रतनवा पागल ह आज घर रहे के चाही बतावा बेचारी के आज के दिन लाठी मिली.."

कजरी ने फिर भी अपने पुत्र का ही साथ दिया था और बात को समझते हुए बोली…

"नोकरी में छुट्टी मिलल अतना आसान ना होला..

"जायद….. अब सुगना के छोड़ द लोग दिनभर काम करत करत थाक गइल बिया आराम करे द लोग"

सरयू सिंह की जान में जान आई और जैसे ही महिलाएं कमरे से बाहर गई सुगना ने साँकल लगा दी। इससे पहले कि वह मुड़ती नंग धड़ंग सरयू सिंह उसके सामने अपना तना हुआ लण्ड लिए उपस्थित थे…..

सुगना आश्चर्य से उन्हें देख रही थी…

शेष अगले भाग में…
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#79
भाग 73

"आतना फूल जैसन बहुरिया बीया रतनवा पागल ह आज घर रहे के चाही बतावा बेचारी के आज के दिन लाठी मिली.."

कजरी ने फिर भी अपने पुत्र का ही साथ दिया था और बात को समझते हुए बोली…

"नोकरी में छुट्टी मिलल अतना आसान ना होला..

"जायद….. अब सुगना के छोड़ द लोग दिनभर काम करत करत थाक गइल बिया आराम करे द लोग"

सरयू सिंह की जान में जान आई और जैसे ही महिलाएं कमरे से बाहर गई सुगना ने साँकल लगा दी। इससे पहले कि वह मुड़ती नंग धड़ंग सरयू सिंह उसके सामने अपना तना हुआ लण्ड लिए उपस्थित थे…..

सुगना आश्चर्य से उन्हें देख रही थी…



अब आगे…

सुखद और मीठी यादें एक मीठे नशे की तरह होती है बिस्तर पर लेटे सुगना अपनी मीठी नींद में खो गई..


नियति आज सुगना पर प्रसन्न थी। आज का दिन सुगना और उसके परिवार के लिए विशेष था…

दरवाजे पर खट खट की आवाज से सुगना अपनी अर्ध निद्रा और सुखद स्वप्न से बाहर आ गई।

सुगना के घर के आगे गहमागहमी थी कई सारे लोग हाथों में कैमरा लिए बाहर इंतजार कर रहे थे..। खटखट की आवाज लाली के कानों तक भी पहुंची। सुगना और लाली इस अप्रत्याशित भीड़ भाड़ और उनके आने के कारण से अनभिज्ञ थीं उनके मन में डर पैदा हो रहा था फिर भी सुगना हिम्मत करके गई और खिड़की से बोली

"आप लोगों को क्या चाहिए क्यों यहां भीड़भाड़ लगाए हुए हैं?"

"आप संग्राम जी की पत्नी हैं"

"पागल हैं क्या आप? ..हम उसकी बहन हैं…"

"उसकी बहन" शब्द पर जोर देकर सुगना ने अपने बड़े होने और अधिकार दोनों का प्रदर्शन किया।

पत्रकार की कोई गलती न थी एक तरफ सोनू पूर्ण युवा मर्द बन चुका था वह अपनी उम्र से कुछ ज्यादा परिपक्व लगता वहीं दूसरी तरफ 25 वर्षीय सुगना अभी भी एक तरुणी की भांति दिखाई पड़ रही थी कोई भी सुगना को देखकर यह नहीं कह सकता था कि वह उम्र में सोनू से बड़ी होगी। खैर पत्रकार ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और बोला

"अरे बहन जी मुझे माफ करिए पर मिठाई खिलाइए संग्राम जी (सोनू) ने पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है. वो एसडीएम बन गए हैं."

सुगना खुशी से उछलने लगी उसने पास खड़ी लाली से कहा

"लाली …..लगा ता सोनू पास हो गईल"

सुगना सिर्फ पास ओर फेल की भाषा जानती थी उसे यह नहीं पता था कि सोनू ने पूरे पीसीएस परीक्षा में टॉप किया था।

सुगना और लाली की खुशी देखने लायक थी. दोनों सहेलियां एक बार फिर गले लग गईं और सुगना और लाली की चूचीयों ने एक दूसरे को चिपटा करने की कोशिश की। हार लाली की ही हुई। सुगना की सूचियां अब भी लाली की तुलना में ज्यादा कसी हुई थीं।

नियति ने सोनू की दोनों बहनों को आज बेहद प्रसन्न कर दिया था. खुशी के कारण दोनों के सांसें अवरुद्ध हो रही थीं।

सोनू के प्रति दोनों के प्यार में तुलना कर पाना कठिन था। जहां सुगना का सोनू के प्रति प्यार एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच का प्यार था वही लाली और सोनू बचपन के इस रिश्ते को जाने कब बदल कर एक हो चुके थे। परंतु आज सुगना भी उतनी ही खुश थी जितनी लाली दोनों की भावनाएं छलक रही थीं।

अचानक ही मिली इस खुशी से दोनों भाव विभोर हो उठी आंखों में आंसू छलक आए। जिस सोनू उर्फ संग्राम सिंह को दोनों बहनों ने पाल पोस कर बड़ा किया था आज वह पीसीएस की प्रतिष्ठित परीक्षा में न सिर्फ पास हुआ था बल्कि अव्वल आया था। बाहर खड़ी पत्रकारों की भीड़ संग्राम सिंह का इंतजार कर रही थी कुछ ही देर में सोनू अपनी राजदूत से घर के सामने आ गया। पत्रकारों द्वारा लाए गए फूल माला से गिरा हुआ सोनू घर के अंदर प्रवेश कर रहा था।

सुगना ने आज से पहले अपने जीवन में इतनी खुशी न देखी थी। इतना सम्मान उसकी कल्पना से परे था। सोनू ने उस के चरण छुए और सुगना उसके गले लग गयी।

आज खुशी के इस मौके पर सुगना को याद भी ना रहा की सोनू एक पूर्ण और युवा मर्द है जो उसकी सहेली लाली के साथ एक अनोखे रिश्ते में पति-पत्नी सा जीवन जी रहा है।

आलिंगन में आत्मीयता बढ़ते ही सोनू ने सुगना के शरीर की कोमलता को महसूस किया और उसके अवचेतन मन ने एक बार फिर उसके लिंग में तनाव भरने की कोशिश की। सुगना सोनू की बहन थी और सोनू अपने अंतर्मन में छुपी वासना के आधीन न था। परंतु हर बार यह महसूस करता सुगना के आलिंगन में आते ही उसके मन में कुछ पलों के लिए ही सही पर वासना अपना फन उठाने लगती।

उसने सुगना को स्वयं से अलग किया और पत्रकार भाई बहन की फोटो खींचने लगे। अपनी बारी आते ही लाली भी सोनू के आलिंगन में आ गई। पत्रकार ने लाली के बारे में जानना चाहा? सोनू थोड़ा असहज हुआ तो सुगना ने स्थिति को संभाल लिया और बोला..

"ई लाली है हमारी सहेली और सोनू की मुंहबोली बहन"

हम लोग सब एक ही परिवार जैसे हैं…

सुगना ने स्थिति संभाल ली थी सोनू की दोनों बहनों ने सोनू के दोनों तरफ खड़े होकर ढेर सारी फोटो खिंचवाई और पत्रकारों को मिठाई खिलाकर विदा किया।

सोनू उर्फ संग्राम सिंह ने आज अपने परिवार के लिए बेहद ही सम्मानजनक और महत्वपूर्ण कार्य किया था उसकी सालों की मेहनत सफल हुई थी…. लाली और सुगना का परिवार जिसमें दोनों सहेलियों के अलावा सिर्फ बच्चे ही थे जमकर हर्षोल्लास मना रहे थे। सोनू ने ढाबे से जाकर अच्छा और स्वादिष्ट खाना घर ले आया था बच्चों के लिए चॉकलेट और ढेर सारी मिठाइयां भी थी सोनू की इस सफलता की खबर आस-पास के गांव और सलेमपुर में भी पहुंची और दो दिन बाद सोनू की मां पदमा उसकी बहन मोनी तथा कजरी और सरयू सिंह भी बनारस आ गए।

सरयू सिंह को देखकर सुगना बेहद भावुक हो गई इस खुशी के मौके पर वह अपने बाबू जी से लिपट गई जैसे-जैसे वह उनके आलिंगन में आती है अपनी सुध बुध खोती गई। हमेशा की तरह सरयू सिंह ने उसे अलग किया। सरयू सिंह सोनू को अपनी तरफ आते देख चुके थे। सोनू भी उनके पैर छूने के लिए आगे आया और आज उन्होंने सोनू को पूरी आत्मीयता और अपनत्व से अपने गले लगा लिया ऐसा लग रहा था दो पूर्ण मर्द एक-दूसरे के गले लग रहे हों। एक क्षितिज में विलीन होने जा रहा था और दूसरा खुले आसमान में चमकने को तैयार था। सरयू सिंह ने फक्र से कहा…

"सोनू अपन परिवार के नाम रोशन कर दी दिहले…"

कजरी ने भी सोनू को ढेरों आशीर्वाद दिए और बेहद खुशी से बोली

"अब हमनी के घर में भी मनोरमा मैडम जैसन गाड़ी आई.. जाएद हमार बेटा रतन त हमरा प्यारी सुगना के साध ना बुतावले तू अपना सुगना दीदी के सब सपना पूरा करीह…"

सोनू और सुगना स्वता ही एक दूसरे के करीब आ गए।

उनकी मां पदमा ने अपने दोनों बच्चों को जी भर कर निहारा और दोनों एक साथ अपनी मां के पैरों में झुक गए और कुछ ही देर में पदमा अपने दोनों बच्चों को अपने सीने से लगाए भाव विभोर हो ऊपर वाले को इस सुखद पल के लिए धन्यवाद दे रही थी और कृतज्ञ हो रही थी। लाली भी कजरी के आलिंगन में आकर अपनी मां को याद कर रही थी।

युवा सोनी जब जब सुगना को सरयू सिंह के आलिंगन में देखती उसे बेहद अजीब लगता।सुगना और सरयू सिंह की आत्मीयता सोने की समझ के परे थी कोई बहू अपने चचिया ससुर से क्यों कर गले लगेगी यह बात उसकी बुद्धि से परे थी।

एक विलक्षण संयोग ही था की सुगना और उसका परिवार सरयू सिंह के परिवार में पूरी तरह घुल मिल गया था। सच ही तो था सरयू सिंह ने जिस तरह कजरी और पदमा से अंतरंग संबंध बनाए थे उसी तरह सांसारिक रिश्ते भी निभाए थे।

पदमा के परिवार को भी अब वह पूरी तरह अपना चुके थे पदमा की पुत्री उनकी प्रेयसी थी और अब धीरे-धीरे वह सोनू को भी अपना चुके थे। जो अब उम्र में छोटे होने के बावजूद अपनी बहन सुगना का ख्याल रख रहा था….।

सरयू सिंह यह बात भली-भांति जानते थे कि रतन के जाने के बाद नई पीढ़ी में सिर्फ और सिर्फ सोनू ही एकमात्र मर्द था जो अपने परिवार का ख्याल रखता तथा गाहे-बगाहे परिवार की जरूरतों को पूरा करता था। एक मुखिया के रूप में उसकी भूमिका बेहद अहम थी।

छोटा सूरज भी अब धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था वह सोनी को मौसी मौसी बुलाता एवं अपनी बड़ी बहन रतन की पुत्री मालती (पूर्व नाम मिंकी) को मालू मालू कर कर बुलाता उसे मालती बोलने में कठिनाई होती। लाली और सोनू के संभोग से उत्पन्न हुई पुत्री मधु जो वर्तमान में सुगना की पुत्री के रूप में पल रही थी वह अभी भी बेहद छोटी थी..पर चलना सीख चुकी थी…

सोनी बीच-बीच में मौका और एकांत देख कर सूरज के जादुई अंगूठे को सहलाती और हर बार उसे अपने होठों का प्रयोग कर सूरज की नुन्नी को शांत करना पड़ता।

सूरज के अंगूठे सहलाने से उसकी नून्नी पर पड़ने वाले असर को समझना सोनी जैसी पढ़ी-लिखी नर्स के लिए बेहद दुरूह कार्य था। वह बार-बार विज्ञान पर भरोसा करती और अपने आंखों देखी को झूठलाना चाहती परंतु हर बार उसे अपनी शर्म को दरकिनार कर अपने होठों का प्रयोग करना पड़ता जो सूरज की नुन्नी को शांत कर देता और उसकी बुद्धिमत्ता एक बार फिर प्रश्न के दायरे में आ जाती।

परंतु सोनी हार मानने वालों में से न थी उसे अब भी विश्वास था की हो सकता है यह सूरज के बचपन की वजह से हो? बचपन में सारे अंग ही संवेदनशील होते है शायद इसी कारण सूरज की नुन्नी तन जाती हो।

सूरज के अंगूठे के चमत्कार से अभी घर में दो शख्स भलीभांति वाकिफ थे एक सोनी जो पूरी तरह युवा थी और दूसरी सूरज की मुंहबोली बहन मालती। मालती की जिज्ञासा भी उसे कभी-कभी यह कृत्य करने पर मजबूर कर देती और न चाहते कोई भी उसे अपने होठों से सूरज की नुन्नी को छूना पड़ता।

सूरज अपनी प्रतिभाओं से अनजान धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था। जब जब सोनी और मालती उसे छेड़ती वह मुस्कुराता और उन दोनों के बालों को पकड़कर उसे नीचे खींचता ताकि वह उसे शीघ्र ही उसे इस तकलीफ से निजात दिला सकें।

कुछ ही दिनों में सोनू को अपनी ट्रेनिंग के लिए लखनऊ जाना था। इतने दिनों तक रहने के बाद सोनू सुगना और लाली से अलग होने वाला था। एक काबिल भाई के खुद से दूर होने से सुगना भी दुखी थी वह जाने से पहले सोनू का बहुत ख्याल रखना चाहती वह उसके बालों में तेल लगाती उसका सर दबाती। सोनू का सर कभी-कभी सुगना की चुचियों से छू जाता और एक अजीब सी सिहरन सोनू के शरीर में दौड़ जाती।

यद्यपि सुगना यह जानबूझकर नहीं करती परंतु अति उत्साह और अपने कोमल हाथों से ताकत लगाने की कोशिश करने में कई बार वह समुचित दूरी का ध्यान न रख पाती तथा कभी सोनू के कंधे, कभी सर से अनजाने में ही अपनी चुचियों को सटा देती। इस मादक स्पर्श से ज्यादा सिहरन किसको होती यह कहना कठिन था परंतु सुगना भी अपनी चुचियों के ज्यादा सटने से सतर्क हो जाती स्वयं को पीछे खींच लेती।

आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू को लखनऊ के लिए निकलना था शाम 7 बजे की ट्रेन थी। सोनू अपने कमरे में तैयार हो रहा था तभी लाली उसके अंडर गारमेंट्स लेकर उसके कमरे में और बोली

"ई हमरा बाथरूम में छूटल रहल हा"

सूरज ने हाथ बढ़ाकर अपने अंडर गारमेंट्स लेने की जगह लाली की कोमल हथेलियां पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

नाइटी में लिपटी हुई लाली सोनू के आगोश में आ गई..

सोनू ने अपने अंडरवियर को लाली को दिखाते हुए बोला

"अब ई बेचारा अकेले रही का?"

लाली को कोई उत्तर न सोच रहा था वह थोड़ा दुखी हुई थी और शायद इसी वजह से कोई उत्तर खोज पाने में असमर्थ थी..

सोनू के प्रश्न का उत्तर उससे ही हाथों ने दिया जो अब लाली की नाइटी को ऊपर की तरफ खींच रहे थे कुछ ही देर में लाली की पेंटी सोनी की उंगलियों में फंसी नीचे की तरफ आ रही थी।

इसी दौरान सुगना सोनू के स्त्री किए कपड़े लिए उसके कमरे जा रही थी तभी उसने सोनू के कमरे की तरफ खिड़की से देखा जो हॉल में खुलती थी। कमरे के अंदर के दृश्य को देखकर सुगना के कदम रुक गए और मुंह खुला रह गया।

उसका युवा भाई सोनू उसकी सहेली लाली की पैंटी को नीचे उतार रहा था। सुगना, लाली और सोनू दोनों के संबंधों से पूरी तरह अवगत थी परंतु आज जो दृश्य वह अपनी खुली आंखों से देख रही थी वह बेहद उत्तेजक था वह न जाने किस मोहपाश में बुत बनी.. अपनी खुली आंखों से अपने काबिल भाई की करतूत देखती रही..

सुगना की आंखों से अनजान सोनू लाली की पेंटी को लिए नीचे बैठता गया और लाली ने अपने पैर एक-एक करके ऊपर नीचे किए और कुछ ही देर में उसकी काली पैंटी सोनू की हाथों में थी उसने उसे अपने नथुनों से लगाया और उसकी मादक खुशबू को सूंघते हुए बोला..

"दीदी देखा अब जोड़ा लाल गइल.."

लाली ने उसके सर को सहलाते हुए बोला…

"तु बहुत बदमाश बाड़… कितना मन लागे ला तहार इ सब में"

लाली यह सब कह तो सोनू के बारे में रही थी परंतु यह बात उस पर स्वयं लागू होती थी वह सोनू से चुदने के लिए हमेशा तैयार रहती थी और शायद आज भी वह नाइटी में इसीलिए सोनू के पास आई थी। (बीती रात बुर् के बालों की वजह से मजा खराब हो गया था दरअसल सोनू जब उसकी चूत चाटने गया तो सोनू के होठों के बीच लाली के बुर बाल आ आ गया था जिससे लाली दुखी हो गई थी और सोनू के प्रयास करने के बावजूद वह अपराध बोध से मुक्त न हो पा रही थी।

परन्तु लाली आज पूरी तरह तैयार थी। उसकी फूली हुई चूत होठों पर प्रेम रस लिए चमक रही थी। सोनू लाली की नंगी जांघों के बीच चिकनी और पनियायी चूत को देखकर मदहोश हो गया…

इससे पहले की लाली कुछ बोलती सोनू ने लाली की बुर से अपने होंठ सटा दिए..

इधर लाली उत्तेजना में से भर रही थी उधर सुगना के पैर थरथर कांप रहे थे। वह अपने छोटे भाई को अपनी सहेली की बुर चूसते हुए अपनी आंखों से देख रही थी। उसका छोटा भाई जो कभी उसकी गोद में खेला था आज उसकी ही सहेली के भरे पूरे नितंबों को अपनी हथेलियों में दबोचे हुए उसकी बुर से मुंह सटाए अपनी जीभ बाहर निकाल कर उसकी बुर पर रगड़ रहा था। सुगना की अंतरात्मा कह रही थी कि अपनी आंखें हटा ले परंतु सुगना जड़ हो चुकी थी उसकी नजरें उस नजारे से हटने को तैयार न थी।

अचानक लाली को ध्यान आया कि उसने दरवाजा बंद न किया था। उसने फुसफुसाते हुए कहा..

"दरवाजा बंद कर लेवे द तहार सुगना दीदी आ जाई"

सोनू को अवरोध गवारा न था। उसने लाली की बात को अनसुना कर दिया परंतु लाली इस तरह खुले में सोनू के साथ वासना का खुला खेल नहीं खेलना चाहती थी सुगना किसी भी समय सोनू के कमरे में आ सकती थी। उसने सोनू को अलग किया। सोनू का लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था वह बिल्कुल देर करने के पक्ष में न था। फिर भी सुगना से अपनी शर्म के कारण वह उठकर दरवाजा बंद करने गया। तभी लाली की निगाह खिड़की की तरफ चली गई।

लाली सन्न रह गई सुगना की बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें फैलाए लाली को देख रही थीं। लाली को यकीन ही नहीं हुआ कि सुगना उसे खिड़की से देख रही थी हे भगवान अब वह क्या करें…

जब तक लाली कुछ निर्णय ले पाती सोनू वापस आ चुका था और लाली की नाइटी ऊपर का सफर तय कर रही थी। लाली का मदमस्त गोरा बदन नाइटी के आवरण से बाहर आ रहा था लाली के हाथ यंत्रवत ऊपर की तरफ हो थे। लाली मन ही मन सोच रही थी क्या सुगना अब भी वहां खड़ी होगी … हे भगवान… क्या सुगना यह सब अपनी आंखों से देखेंगी… ना ना सुगना ऐसी नहीं है …वह सोनू को यह सब करते हुए नहीं देखेगी…. .आखिर वो उसका छोटा भाई है…

नाइटी उसके चेहरे से होते हुए बाहर आ गई उसकी आंखों पर एक बार फिर रोशनी की फुहार पड़ी पर लाली ने अपनी आंखें बंद कर लीं …वह मन ही मन निर्णय ले चुकी थी…

शेष अगले भाग में…

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#80
Heart 
भाग 74


जब तक लाली कुछ निर्णय ले पाती सोनू वापस आ चुका था और लाली की नाइटी ऊपर का सफर तय कर रही थी। लाली का मदमस्त गोरा बदन नाइटी के आवरण से बाहर आ रहा था लाली के हाथ स्वता ही ऊपर की तरफ आ रहे थे। लाली मन ही मन सोच रही थी क्या सुगना अब भी वहां खड़ी होगी … हे भगवान… क्या सुगना यह सब अपनी आंखों से देखेंगी… ना ना सुगना ऐसी नहीं है …सोनू को यह सब करते हुए नहीं देखेगी…. .

नाइटी उसके चेहरे से होते हुए बाहर आ गई उसकी आंखों पर एक बार फिर रोशनी की फुहार पड़ी पर लाली ने अपनी आंखें बंद कर लीं …वह मन ही मन निर्णय ले चुकी थी…

अब आगे..

लाली को नंगी देखकर सोनू सुध बुध खो बैठा। वैसे भी आज उसे अपनी बहनों को छोड़कर न जाने कितने दिनों के लिए लखनऊ जाना था। समय कम था..काम ज्यादा। सोनू ने अधीर होकर लाली को बिस्तर पर बिछा दिया।

लाली चाहती तो यही थी कि वह अपनी निगाहें खिड़की पर रखें ताकि वह इस बात की तस्दीक कर सके कि क्या सुगना ने अकस्मात ही अंदर झांक लिया था या वह जानबूझकर उन्हें देख रही थी।

परंतु संयोग कहे या नियति का खेल लाली चाह कर भी यह न कर पाई सोनू के मजबूत हाथ बिस्तर पर उसकी दिशा तय कर गए थे । लाली अपने दोनों पैर ऊपर किए हुए बिस्तर पर लेटी गई और सोनू ने उसकी चिकनी चूत में मुंह गड़ा दिया।

सुगना की आंखों के सामने जो हो रहा था वो वह भलीभांति समझती थी। क्या सच में सोनू उम्र से पहले परिपक्व हो गया था? निश्चित ही लाली ने उसे उकसाया होगा। अन्यथा उसका सीधा साधा भाई इतनी छोटी उम्र में इस तरह …. हे भगवान सोनू की हथेलियां लाली की नंगी चूचियों पर घूम रही थी। वह अपनी मजबूत हथेलियों से लाली की कोमल चुचियों को कभी सहलाता कभी उन्हें जोर से मसल देता और लाली अपने पैर उसकी पीठ पर पटकने लगती।

सुगना एक टक वह दृश्य देख रही थी। लाली के हिलते हुए पैर उसकी जांघों के बीच हो रही हलचल एवम् उस छेड़छाड़ से उत्पन्न उत्तेजना का प्रदर्शन कर रहे थे। लाली बार-बार सर उठाकर सुगना को देखना चाहती थी परंतु कभी सोनू का सर कभी उसके हवा में लहराते पैर उसकी निगाहों के सामने अवरोध पैदा कर देते और उसकी नजरें सुगना से ना मिल पातीं।

लाली की सुगना को देखने की उत्सुकता ने उसकी गोरी और पनियायी चूत को चुसवाने के आनंद में कमी ला दी थी। उसका ध्यान बार बार खिड़की पर जा रहा था। वह सुगना को देखना चाहती थी।

कौतूहल और जिज्ञासा मनुष्य का सारा ध्यान खींच लेती है उसका किसी काम में मन नहीं लगता यही हाल लाली का था..

अंततः उसने सोनू को स्वयं से अलग कर दिया और सोनू के बिना कहे ही बिस्तर पर घोड़ी बन गई उसने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि इस बार वह खिड़की की तरफ देख पाए। उसने खिड़की के समानांतर अपनी अवस्था बना ली। खिड़की की तरफ देखते ही उसकी आशंका ने मूर्त रूप ले लिया…. उसका कलेजा मुंह को आ गया … सुगना अभी भी अंदर की तरफ देख रही थी…हे भगवान…कुछ अनिष्ट हो रहा था।

पर्दे की पीछे से उसकी कजरारी आंखें लाली को दिखाई पड़ गईं जिनका निशाना शायद सोनी का चेहरा ना होकर लाली के मादक नितंब थे जिसे सोनू सहला रहा था। लाली और सुगना की नजरें न मिलीं पर लाली की कामुकता में अचानक उबाल आ गया… अपनी प्रिय सहेली के भाई से उसी के सामने चुदवाने की बात सोचकर वह अत्यधिक कामुक हो उठी। उसने सोनू से कहा

"अरे वाह… हमार कूल कपड़ा उतार के हमारा के नंगा कर देला और अपने सजधज कर खड़ा बाड़….. कलेक्टर साहब ई ना चली… " सोनू मुस्कुराने लगा..और खिड़की पर खड़ी उसकी बहन सुगना भी।

इस कलेक्टर संबोधन से सुगना के स्वाभिमान को बल मिला था। सोनू ने झटपट अपने कपड़े उतार दिए उसे क्या पता था आज वह पहली बार अपनी बहन सुगना के सामने नंगा हो रहा था।

सुगना की नजरों और उपस्थिति से अनजान सोनू पूरी तरह नग्न होकर अपने लंड को हवा में लहराने लगा तथा अपनी हथेली से उसे पकड़ कर आगे पीछे करने लगा..

सुगना अपनी सांसें रोके यंत्र वत अंदर देख रही थी वह यह दृश्य देखना चाहती थी या नहीं… यह तो वह और उसकी अंतरात्मा जाने परंतु सोनू के लंड पर से नजरें हटा पाना किसी युवा स्त्री के लिए संभव न था। सुगना एक पुतले को भांति खड़ी सोनू को देखे जा रही थी।

सोनू का लंड समय से पहले ही मर्दाना लंड से मुकाबला करने या यूं कहे मात देने को तैयार था। सरयू सिंह की जिस दिव्य काया के दर्शन सुगना अब तक कर चुकी थी उसकी तुलना में सोनू का का भरा पूरा मांसल शरीर और तना हुआ लंड किसी भी प्रकार कम न था। अनजाने में ही सुगना सरयू सिंह के लंड की तुलना सोनू के लंड से करने लगी….. और उसकी तुलना ने उसे सोनू के लंड को ध्यान से देखने का अधिकार दे दिया। …

आज एक बार फिर सोनू के लंड की तुलना करते करते सुगना ने अपनी कलाई को देखा जैसे वह सोनू के लंड को अपनी कलाई के व्यास से मिलाने की कोशिश कर रही थी।

अपना आखिर अपना होता है सोनू सुगना की निगाहों में भारी पड़ा… सच कहे तो युवा सोनू अद्भुत था। सोनू का लंड अपने भीतर आ रहे रक्त के धक्कों से रह रह कर ऊपर उठ रहा था सुगना को इस तरह लंड का उछलना बेहद पसंद आता था।

इधर सुगना अपनी तुलना में व्यस्त थी उधर सोनू बिस्तर पर आ चुका और वह लाली के नितंबों और कटीली कमर पर हाथ फिराते हुए उस पर झुकता गया.. उसके होंठ जब तक लाली के कानों तक पहुंचते तब तक उसके लंड के सुपाड़े ने लाली के बुर् के होठों में छेद करने की कोशिश की। लाली की चुंबकीय चूत जैसे उसका ही इंतजार कर रही थी उसने एक झलक सुगना की तरफ देखा और अपनी कमर पीछे कर दी। सोनू का लंड एक गर्म रॉड की तरह की कसी पर चिपचिपी बुर में उतर गया।

सुगना यह दृश्य देखकर मदहोश हो गईं। न चाहते हुए भी उसकी जांघों के बीच गीलापन आ गया चूचियां सख्त हो गई और आंखें लाल…। एकाग्रता और उत्तेजना ने सुगना का दिमाग कुंद कर दिया उसे यह अहसास भी ना था की जिस प्रेमी युगल को वह रति क्रिया करके देख रही थी उसमें से एक उसका अपना छोटा भाई था।

सुगना आज पहली बार रति क्रिया के दृश्य नहीं देख रही थी वह इससे पहले भी सरयू सिंह और कजरी की चूदाई देख चुकी थी। उसके जीवन में यह संयोग पहले भी हो चुका था पर आज सुगना अपने सगे भाई को अपनी हमउम्र प्यारी सहेली को चोदते हुए देख रही थी। सोनू जो उसका छोटा और प्यारा भाई था आज एक पूर्ण मर्द की तरह लाली को गचागच चोद रहा था और लाली सुगना की तरफ बार-बार देख कर मुस्कुरा देती।

सोनू और लाली की चूदाई की रफ्तार बढ़ रही थी । सुगना की उपस्थिति से लाली अति उत्तेजित हो गई और कुछ ही देर में उसकी बुर ने कंपन प्रारंभ कर दिए…. सोनू में उसकी चूचियों को मसलते कहा..

" काहे दीदी आज जल्दी ए……कांपे लगलू"

लाली ने कुछ ना कहा वह अपने इस स्खलन का आनंद उठाने में व्यस्त थी। उसकी निगाहें खिड़की की तरफ थीं.. और वह अपनी बुर को निचोड़ निचोड़ कर स्खलित हो रही थी। सुगना की नजरों की तरफ देखते हुए इस तरह स्खलित होने का यह अप्रतिम आनंद लाली को अभिभूत कर गया इस स्खलन का आनंद लाली के दिलों दिमाग पर अमिट छाप छोड़ गया।

अचानक सोनू का ध्यान लाली की निगाहों की तरफ गया सोनू की निगाहों ने लाली की निगाहों का अनुसरण किया एक झटके में सोनू ने सुगना को अंदर का दृश्य देखते देख लिया।

एक पल के लिए सोनू सहम गया उसी यकीन ना हुआ कि सुगना वहां खड़ी थी।

जब दो नजरें जब एक दूसरे से मिल जाती है तो दोनों को ही एक दूसरे की उपस्थिति का एहसास हो जाता है। आप चाह कर भी उस पल को झुठला नहीं सकते।

सोनू और सुगना की भी निगाहे एक दूसरे से मिल चुकी थीं। सोनू से नजरें मिलते ही सुगना एक पल के लिए खिड़की से हट गई। परंतु उस एक पल ने सोनू को व्यग्र कर दिया….

सोनू ने दोबारा खिड़की की तरफ देखा सुगना वहां न थी। सोनू ने अपनी व्यग्रता को दरकिनार कर एक बार फिर लाली को उसकी कमर से पकड़कर अपने लंड पर खींच लिया। और तना हुआ लंड लाली की चिपचिपी और प्रतिरोध को चुकी हो बुर में अंदर तक प्रवेश कर गया।

सोनू अपनी आंखें बंद किए अपना चेहरा छत की तरफ किया हुआ था चेहरे पर अजब से भाव थे। न जाने सोनू को क्या हो गया था…. उसने लाली की कमर को और तेजी से पकड़ा तथा उसे पूरी ताकत से अपनी कमर से सटा दिया…उसका तना हुआ लंड लाली के गर्भाशय में छेद करने को आतुर हो गया … लाली कराह उठी..

"सोनू बाबू …तनी धीरे से….. दुखाता"

लाली की इस कामुक कराह ने सुगना का ध्यान बरबस खींच लिया जिससे वह भली भांति परिचित थी। सुगना अभी भी खिड़की के पास दीवार से पीठ टिकाए अपनी सांसो को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे उसके सीने में शांत धड़कने वाला दिल आज पिंजरा तोड़ बाहर आना चाह रहा था। उसने एक बार फिर खिड़की के अंदर देखना चाहा.. अंदर सोनू अपनी आंखे बंद किए और चेहरे पर वासनजन्य उत्तेजना लिए लाली को पूरी रफ्तार से चोद रहा था। उसकी हथेलियों की मजबूत पकड़ से लाली की कमर और कंधों पर निशान पड़ गए थे…लंड चूत से पूरा बाहर आता और गचाक से अंदर चला जाता। लाली की बुर के रस से लंड की चमक और बढ़ गई थी। हल्के गेहुएं लंड पर नसों की नीली धारियां उभर आयी थी। कभी-कभी लाल ही चुका सुपाड़ा बाहर आता परंतु वह लाली की प्यारी पुर से अपना संपर्क न छोड़ता और तुरंत उन कोमल गहराइयों में विलुप्त हो जाता।

सोनू का लावा फूटने वाला था। लाली को इस तरह चोदते समय उसने अपनी आंखें क्यों बंद कर रखी थीं.. उसके दिमाग में क्या चल रहा था यह तो वही जाने या हमारे ज्ञानी पाठक ..। परंतु लाली इस चूदाई से अभीभूत थी …सोनू की उत्तेजना का यह रंग नया था।

वीर्य की पहली धार ने जब अंडकोष से सुपाडे तक का रास्ता तय किया.. सोनू ने अपनी आंखें खोली और एक बार फिर खिड़की की तरफ देखा… सुगना से आंखें मिलते ही वह तड़प उठा….उसने अपनी आंखें पुनः बंद कर लीं और लाली की बुर में अपने वीर्य की पहली बूंद डालकर लंड को ना चाहते हुए भी बाहर निकाल लिया.. और लाली के शरीर पर वीर्य वर्षा करने लगा…उसकी मजबूत हथेलियां जैसे उसके लंड का मानमर्दन कर उससे वीर्य की हर बूंद खींच लेना चाहती हो…

लाली तुरंत पलट कर पीठ के बल आ गई और सोनू के लंड से से निकल रहा वीर्य उसकी चुचियों चेहरे और गदरायी जांघों पर गिराने लगा…. सोनू खिड़की की तरफ दोबारा देखने की हिम्मत न जुटा पाया.. परंतु उसे यह अहसास हो चुका था उसकी बड़ी बहन सुगना ने आज जो कुछ देख लिया था शायद वह उचित न था।

सोनू यहीं ना रुका..वह लाली की चुचियों पर गिरे वीर्य को अपने हाथों से उसकी चुचियों पर मलने लगा….

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह भागते हुए अपने कमरे में गई और बिस्तर पर बैठ कर अपनी आंखें बंद किए खुद को संयमित और नियंत्रित करने का प्रयास करने लगी। पर यह इतना आसान न था।

अप्रत्याशित दृश्य दिमाग पर गहरा असर छोड़ते हैं।

आज उसने अपने ही भाई को पूर्ण नग्न अवस्था में अपनी सहेली के साथ संभोग करते हुए अपनी इच्छा और होशो हवास में देखा था। उसने ऐसा क्यों किया इसका उत्तर स्वयं उसके पास न था। पर जो होना था वो हो चुका था।

सोनू और लाली के कमरे से बाहर आने की हलचल से सुगना सतर्क हो गई और वह अपनी बुर के बीच एक अजीब सा चिपचिपा पन लिए बाथरूम में चली गई। उसने अपनी पेंटी उतार कर उसे बदलना चाहा जो चिपचिपी हो कर उसे असहज कर रही थी। अपनी ही प्रेमरस से गीली पेंटी से अपने बुर के होंठों को पोछते समय अनजाने में ही उसकी तर्जनी ने उसके भगनाशे को छू लिया। उंगली और उसके भगनासे का यह मिलन कुछ देर तक यूं ही चलता रहा… सुगना के दिमाग में एक बार फिर न चाहते हुए भी लंड का दिव्य आकार घूम गया …वह बार-बार अपने बाबूजी के लंड को याद करती जिससे न जाने वह कितनी बार चुदी थी परंतु रह रह कर उसके दिमाग में..सोनू के थिरकता लंड का ध्यान आ जाता।

अचानक सुगना ने महसूस किया जैसे वो स्खलित हो चुकी है। पैरों में ऐठन इस बात का प्रतीक थी। ऐसा लग रहा था जैसे सुगना रह-रहकर टुकड़ों में स्खलित हुईं थी। कुछ शायद सोनू और लाली के प्रेमलाप के समय और रही सही कसर अभी तर्जनी और भगनासे की रगड़ ने पूरी कर दी थी।

"मां बाहर आओ मामा के जाने का टाइम हो गया है" मालती की आवाज सुनकर सुगना ने अपनी दूसरी पेंटी पहनी और अपने कपड़ों को ठीक कर बाहर आ गई। चेहरे के भाव अब भी सुगना के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाते थे। वह बदहवास सी सोनू के सामान को सजाने में लग गई।

सोनू के जाने की पूरी तैयारियां हो चुकी थीं। सुगना और लाली ने सोनू के लिए तरह-तरह के सूखे पकवान बनाए थे जिनका उपयोग वो आने वाले कई दिनों तक कर सकता था । हाल में सभी एकत्रित होकर गाड़ी का इंतजार कर रहे थे। जहां लाली के चेहरे पर सुकून दिखाई दे रहा था वही सोनू और सुगना तनाव में थे। लाली को यह बात पता न थी की उस अद्भुत चूदाई के दौरान सोनू और सुगना की निगाहें मिल चुकी थीं। परंतु लाली यह बात भली-भांति जानती थी कि सुगना ने आज उन दोनों का मिलन अपनी नंगी आंखों से देख लिया है और वह इसीलिए असहज महसूस कर रही है।

वह बार-बार सुगना से सामान्य बातचीत कर उसे सहज करने का प्रयास करती पर सुगना चुप थी। नियति ने भाई बहन को और परेशान न किया और बाहर दरवाजे पर गाड़ी की आवाज सुनाई पड़ी।

"लगता गाड़ी आ गइल" सोनू ने बाहर झांकते हुए बोला..

सोनू अपने नए कार्यभार की ट्रेनिंग लेने के लिए घर से बाहर निकल रहा था। आज का दिन उसके दिलो-दिमाग में एक अजब सी कशमकश छोड़ गया था। घर की दहलीज से बाहर निकलने से पहले उसे यह भी याद ना रहा कि उसे सुगना के चरण भी छूने है। अपनी सर और लज्जा बस वह ऐसे ही बाहर निकल रहा था। लाली ने उसे याद दिलाया…

"अरे बाबू ऐसे ही चला जाएगा? अपना दीदी के पैर नहीं छुएगा ?"

सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ परंतु उसकी हिम्मत अभी भी न हो रही थी। फिर भी वह सुगना के चरण छूने के लिए झुक गया।

सुगना ने उसके सर को सहला कर आशीर्वाद दिया और अपने प्यारे भाई को कई दिनों के लिए बिछड़ते देख उसका पवित्र प्रेम फिर जाग उठा और उसने सोनू को गले से लगा लिया। इस दौरान सुगना पूरी तरह सामान्य हो चुकी थी उसके आलिंगन में वही अपनापन वही प्यार था जो आज इस घटना से पहले हमेशा रहा करता था। परंतु सोनू असहज था।

सुगना ने अपनी आंखों में विदा होने का दर्द लिए रुंधे हुए गले से सोनू के गाल को सहलाते हुए कहा ..

"जा अपना ख्याल रखिह और बड़का कलेक्टर बन के आईह…" सुगना की आंखों से आंसू छलक आए . कुछ समय पहले जो सुगना सोनू को लेकर असहज हुई थी वह अचानक ही पूरी तरह सामान्य हो गई थी सोनू के प्रति उसका प्रेम प्रेम छोटे-मोटे झंझावातों को भूल कर एक बार फिर अपना प्रभुत्व जमा चुका था। सोनू भी अपनी बहन के प्यार में बह गया और उसने भी एक बार फिर उसे अपने से सटा लिया सोनू का यह अपनत्व पूर्ववत था..विचारों में आई धुंध एक पल में ही साफ होती प्रतीत हो रही थी।

सोनी ने भी सोनू के चरण छुए। सोनू ने उसे अच्छे से पढ़ाई करने की नसीहत दी तथा बाहर निकलने लगा।

सोनी ने याद दिलाया "अरे लाली दीदी के पैर ना लगबे का?"

सोनू पिछले कुछ समय से लाली के पैर छूना बंद कर चुका था जो स्वाभाविक भी था … अब लाली के जिन अंगों को वह छू रहा था वहा पैरों का कोई अस्तित्व न था, परंतु आज वह सोनी के सामने असहज स्थिति नहीं पैदा करना चाहता था उसने झुककर लाली के पैर छुए और लाली का आशीर्वाद लेकर गाड़ी में बैठ गया। लाली और सुगना सोनू को दूर जाते देख रही थीं..…

बच्चे अपने मामा को हाथ हिलाकर बाय बोल रहे थे….

गाड़ी धीरे धीरे नजरों से दूर जा रही थी और सोनू के हिलते हुए हाथ और छोटे होते जा रहे थे ..गली के मोड़ ने नजरों की बेचैनी दूर कर दी और सोनू दोनों बहनों की नजरों से ओझल हो गया।

सुगना और सोनू दोनों अपने दिल में एक हूक और अनजान कसक लिए सहज होने की कोशिश कर रहे थे…और निष्ठुर नियति भविष्य के गर्भ में झांकने की कोशिश…

शेष अगले भाग में….
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