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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
#41
भाग- 40



लाली के घर से जाने के बाद सोनू का दिल बल्लियों उछल रहा था यह पहला अवसर था जब किसी लड़की या युवती ने उसके कुंवारे लंड को मुखमैथुन द्वारा उत्तेजित और शांत किया था। और तो और वह युवती उसकी मुंह बोली बहन लाली थी।


लाली और सोनू का रिश्ता बचपन से ही था उसकी लाली दीदी कब उसके सपनों की मलिका हो गई थी वह खुद भी नहीं जानता था। जैसे-जैसे उसकी जांघों के बीच बाल आते गए लाली दीदी के प्रति उसका नजरिया बदलता गया परंतु प्रेम में कोई कमी न थी। पहले भी वह लाली से उसी तरह प्रेम करता था जितना वह अपने विचारों में परिवर्तन के पाने के बाद करने लगा था अंतर सिर्फ यह था की उस बचपन के प्यार में दिल और दिमाग सक्रिय थे परंतु अब सोनू का रोम रोम लाली के नाम से हर्षित हो जाता खासकर उसका लण्ड….


सोनू के मन में जितनी इज्जत और प्यार अपनी दीदी सुगना के प्रति था जो पूरी तरह वासना मुक्त था वह उतना ही प्यार अपनी लाली दीदी से भी करने लगा था। नियति कभी-कभी सोनू के मन में सुगना के प्रति भी उत्तेजना जागृत करने का प्रयास करती परंतु विफल रहती।


लाली भी अपने पति राजेश का सहयोग और प्रोत्साहन पाकर लाली सोनू के करीब आती गई और पिछली दो अंतरंग मुलाकातों में लाली ने स्वयं आगे बढ़ कर सोनू की हिचक को खत्म किया परंतु सोनू अब भी उसका भाई था और दिन के उजाले में उससे एक प्रेमी की तरह बर्ताव करना न तो लाली के बस में था और न हीं सोनू के।


सोनू की खुशी उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। लाली की जगह यदि किसी दूसरी युवती ने सोनू का लंड चूसा होता तो सोनू अब तक अपने कई करीबी दोस्तों को उस का किस्सा सुना चुका होता। अपने जीवन में मिली यह खुशी सोनू के लिए बेहद अहम थी परंतु उसका दुर्भाग्य था कि वह यह बात किसी से साझा नहीं कर सकता था। सभी की निगाहों में अभी भी यह पाप की श्रेणी में ही था।

सोनू को इस तरह हॉस्टल की गैलरी में खुशी-खुशी चहकते देखकर उसके दोस्त विकास ने पूछा...

"क्या बात है बनारस का कर्फ्यू सबसे ज्यादा तुझे ही रास आया है बड़ा चहक रहा है"

"लगता है साले को कोई माल मिली है.. बता ना भाई क्या बात है" विकास के साथी ने सोनू के पेट में गुदगुदी करते हुए पूछा

सोनू के पेट में दबी हुई बात उछल कर गले तक आ गयी जब तक 
कि वह कुछ बोल पाता विकास ने दोबारा कहा..
"तू तो अपनी लाली दीदी के घर गया था ना?"

सोनू एक बार फिर सतर्क हो गया पिछले कुछ पलों में उसने अपनी विजय गाथा साझा करने की सोच लिया था परंतु विकास के "लाली दीदी" संबोधन पर उसने वह विचार त्याग दिया।


"कुछ नहीं यार अपने भाग्य में लड़की कहां? जब तक हाथ की लकीरें लंड पर नहीं उतर आए तब तक यूं ही किताबों में सर खपाना है"


तीनों दोस्त आपस में बात करते हुए हॉस्टल से नीचे उतरे। विकास की मोटरसाइकिल राजदूत नीचे ही खड़ी थी। विकास ने कहा चल ना बाजार से मेरी किताब लेकर आते हैं। विकास के दोस्त ने पढ़ाई का हवाला देकर क्षमा मांग ली विकास में सोनू की तरफ देखा…


सोनू ने कहा "भाई मैं चलाऊंगा….."

सोनू ने विकास की राजदूत चलाना सीख तो ली थी परंतु वह अभी पूरी तरह दक्ष नहीं था पर हां यदि सड़क पर भीड़ भाड़ ज्यादा ना हो तो उसे बाइक चलाने में कोई दिक्कत नहीं थी।

विकास ने उसकी बात मान ली और सोनू सहर्ष बाजार जाने को तैयार हो गया।

सोनू ने राजदूत स्टार्ट की और एक हीरो की भांति राजदूत पर बनारस शहर की सड़कों को रोते हुए बाजार की तरफ बढ़ चला। बहती हवा के प्रभाव से सोनू के खूबसूरत बाल लहरा रहे थे और मन में उसकी भावनाएं भी उफान पर थीं। काश उस राजूदूत पर पीछे लाली दीदी बैठी होती….

रात में हॉस्टल के खुरदुरे बिस्तर पर लेटे हुए सोनू को लाली के कोमल बदन की गर्मी याद आ रही थी। सोनू के लंड में अब भी रह-रहकर कसक उठ रही थी। लाली के होठों और मुंह की गर्मी ने सोनू के दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ दी थी वह उन यादों के सहारे कई दिनों तक अपना हस्तमैथुन कर सकता था…

लाली की यादों ने सोनू की हथेलियों को लण्ड का रास्ता दिखा दिया और सोनू की मजबूत हथेलियां उस कोमल पर तने हुए लंड का मान.मर्दन करनें लगीं….

उधर सीतापुर में सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी अपने शरीर में हो रहे बदलाव को महसूस कर रही थीं।समय के साथ साथ उन्हें अपने शरीर में तरह तरह के बदलाव महसूस हो रहे थे। जितना बदलाव उनके शरीर में हो रहा था उतना ही उनकी भावनाओं और लोगों को देखने के नजरिये में।

अपनी बहन सुगना के पुत्र सूरज के जादुई अंगूठे से खेलते और उसके परिणाम को देखने और उसे शांत करने की तरकीब उन दोनों की समझ के परे थी परंतु दोनों बहनों ने उसे न सिर्फ अपनी आंखों से देखा था बल्कि महसूस किया था वह भी एक नहीं दो दो बार।

दोनों ही बहनें घर के कामकाज में पूरी तरह दक्ष थी पढ़ाई लिखाई उनके बस की बात न थी और नहीं वो इसके लिए बनी थीं। ऊपर वाले ने उन्हें अद्भुत कद काठी और सुंदरता दी थी जिससे आने वाले समय में वह न जाने कितने पढ़े लिखे और काबिल लड़के उनकी जाँघों के बीच अपनी सारी विद्वता अर्पित करने को तत्पर रहते।

दोनों अपनी मां पदमा का हाथ बतातीं और अपने शरीर का ख्याल रखतीं। दोनों खूबसूरत कलियां फूल बनने को लगभग तैयार थीं। ऊपर और नीचे के होंठ चुंबनों के लिए तरस रहे थे। जब भी वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आती दोनों के मन में ही कसक उठती पर वह कसक मिटाने वाला भी बनारस महोत्सव की राह देख रहा था।

इधर सोनी मोनी जवानी की दहलीज लांघने वाली थी उधर सुगना की जवानी हिलोरे मार रही थी। पिछले तीन-चार वर्षो से वह शरीर सिंह की मजबूत बांहों और लण्ड का आनंद ले रही थी परंतु पिछले कुछ महीनों से उसकी जांघों के बीच गहराइयों में सूनापन था। बुर के होठों पर तो सरयू सिंह के होंठ और जिह्वा अपना कमाल दिखा जाते परंतु बुर की गहराइयों में लण्ड से किया गया मसाज सुगना को हमेशा याद आता। उसके वस्ति प्रदेश में उठ रही मरोड़ को सिर्फ वही समझ सकती थी या फिर इस कहानी की महिला पाठिकाएँ.


##

सुगना अपने प्रार्थनाओं में सरयू सिंह के स्वस्थ होने की कामना करती। नियति सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह के प्रेम और उसके स्वार्थ दोनों को बराबरी से आंकती। सरयू सिंह के चेकअप का वक्त भी नजदीक आ रहा था सुगना को पूरी उम्मीद थी कि इस बार डॉक्टर उन्हें इस सुख से वंचित रहने की सलाह नहीं देगा।

सरयू सिंह अब पूरी तरह स्वस्थ थे वह खेतों में काम करते वह हर कार्य करने में सक्षम थे यदि उन्हें मौका दिया जाता तो वह सुगना की क्यारी को भी उसी प्रकार जोत सकते थे जैसा वह पिछले कई वर्षों से जोतते आ रहे थे परंतु कजरी और सुगना उन्हें डॉक्टर की सलाह का हवाला देकर रोक लेते थे।

जैसे-जैसे उनका जन्म दिन नजदीक आ रहा था उनकी उम्मीदें बढ़ती जा रही थी। वो सुगना की तरफ कामुक निगाहों से देखते और प्रत्युत्तर में सुगना अपनी आंखें नचा कर उन्हें अपने जन्मदिन की याद दिलाती। वह सरयू सिंह का जन्मदिन यादगार बनाने के लिए पूरी तरह मन बना चुकी थी।

परंतु सुगना जब जब सरयू सिंह की उस अंगूठी इच्छा के बारे में सोचती सिहर उठती वह कैसे उस मजबूत मुसल को उसका अपवित्र द्वार के अंदर ले पाएगी वह अपने एकांत के पलों में उस गुदा द्वार के कसाव और उसकी क्षमता का आकलन अपने हिसाब से करती जिस प्रकार कुंवारी लड़कियां पहली चुदाई को लेकर आशंकित भी रहती हैं और उत्तेजित भी रहती हैं वही हाल सुगना का भी था.

अपनी छोटी सी बुर से बच्चे को जन्म देने की बात याद कर सुगना के मन में विश्वास जाग उठा। एक वक्त वह था जब उसकी बुर में उसके बाबु जी की उंगली ने पहली बार प्रवेश किया था तब भी वह दर्द से चीख उठी थी परंतु आज उसे वह सहज प्रतीत हो रहा था। उसने मन ही मन सोच लिया जो होगा वह देखा जाएगा।

वैसे भी सुगना सरयू सिंह को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी उसे पता था की वह उनके दिल की रानी है वह उसे बेहद प्यार करते हैं वह उसे किसी भी हाल में कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।


##


ज्यों ज्यों बनारस महोत्सव का दिन करीब आ रहा था सुगना और कजरी के उत्साह में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी। जाने सुगना को उस महोत्सव से क्या उम्मीदें थीं। परंतु अपनी पुरी (उड़ीसा) यात्रा के पश्चात यह पहला अवसर होता जब वह घर से बाहर अपने पूरे परिवार के साथ रहती और उस उत्सव का आनंद लेती।

वैसे भी घर के काम धाम और खेतीबाड़ी से दूर शहर की हलचल भरी जिंदगी में कुछ वक्त बिताने का अपना ही आनंद था इस महोत्सव में लगे हुए मेले सुगना को विशेष रूप से आकर्षित कर रहे थे। ग्रामीण समाज में मेलों का अपना आकर्षण है। इन मेलों में कई तरह की ऐसी वस्तुएं मिल जाती हैं जो आप पूरी उम्र खोजते रहे आप को नहीं मिली मिलेंगी। बनारस शहर में होने वाले इस भव्य महोत्सव में अलग-अलग विचारधारा और संस्कृति के लोगों का यह समागम निश्चय ही दर्शनीय होगा।

सरयू सिंह ने भी तैयारी में कोई कमी नहीं रखी सुगना और कजरी ने जो जो कहा वह बाजार से लाते गए उन्हें अब बेसब्री से अपने जन्मदिन का इंतजार था उस दिन एक बार फिर वह सुगना के साथ जी भर कर चुदाई करते और अपने जीवन में पहली बार गुदामैथुन का आनंद लेते।

सरयू सिंह की निगाहें जब भी सुगना से मिलती उनकी निगाहों में एक ही मूक प्रश्न होता
"ए सुगना मिली नु?"

और सुगना के चेहरे और हाव-भाव एक ही उत्तर दे रहे होते..
" हां बाबूजी…"

सुगना के लिए यह संबोधन अब शब्दार्थ को छोड़कर बेहद अहम हो चला था वह जब भी उनकी गोद में रहती चाहे कपड़ों के साथ या बिना कपड़ों के दोनों ही समय यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगता। नग्न अवस्था में दोनों के बीच उम्र का यह अंतर उनके बीच पनपे प्यार ने पूरी तरह मिटा दिया था विशेषकर सुगना के मन ने। परंतु सरयू सिंह 
कभी उसे अपनी प्यारी बहू के रूप में देखते और कभी वासना और गदराए यौवन से भरी हुई कामुक युवती के रूप में तो कभी अपनी ……..।

नियति ने सुगना और सरयू सिह में बीच एक अजब सा संबंध बना दिया था। एक उम्र के ढलान पर था और एक वासना और यौवन के उफान पर।

बनारस जाने की तैयारियों के दौरान लाली और कजरी ने अपने-अपने संदूको में पड़े अपने कपड़ों का मुआयना किया और उनमें से अच्छे वस्त्रों को छांट कर अलग किया ताकि उन्हें बनारस ले जा सके इसी दौरान सुगना की शादी की एल्बम बाहर आ गई जिसमें रतन और सुगना कुछ तस्वीरें थी..

कजरी इन तस्वीरों को लेकर देखने लगी। अपने पुत्र को देखकर उसकी आंखों में प्यार छलक आया उसने उसे सुगना को दिखाते हुए कहा "सुगना बेटा देख ना फोटो कितना अच्छा आईल बा"

सुगना को हालांकि उस शादी से अब कोई औचित्य न था धीरे-धीरे अब वह उसे भूल चुकी थी पर रतन अब भी उसका पति था। कजरी के कहने पर उसने वह फोटो ली तथा अपनी किशोरावस्था के चित्र को देखकर प्रसन्न हो गई पर रतन की फोटो देखकर वह हंसने लगी और बोली…

"ई कतना पातर रहन पहले"
( यह कितने पतले थे पहले)

"अभी भी तो पतला ही बा मुंबई में जाने खाए पिए के मिले ना कि ना"

"नाम अब तो ठीक-ठाक हो गईल बाड़े"

सुगना ने जिस लहजे में यह बात कही थी कजरी खुश हो गई थी अपनी बहू के मुंह से अपनी बेटे की तारीफ सुनकर उसके मन में एक बार फिर आस जग उठी। काश... इन दोनों का रिश्ता वापस पति-पत्नी के जैसे हो जाता।

"जाने एक कर मती कैसे मरा गइल" कजरी में रतन को ध्यान रख कर यह बात कही
(पता नहीं कैसे इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई)

" मां ई में उनकर गलती ना रहे लइका उम्र में शादी ना करेंके"

कजरी सुगना की बातों को सुनकर बेहद प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना रतन के पक्ष में बोल रही थी उसने सुगना को छेड़ते हुए कहा " लागा ता हमार बेटा सुगना के पसंद आवे लागल बा"

सुगना ने अपनी बड़ी बड़ी आंखें नचाई और कजरी की चेहरे को घूरते हुए बोला "हमरा राउर कुंवर जी ही पसंद बाड़े"

कजरी सरयू सिंह की मजबूत कद काठी के बारे में सोचने लगी जो निश्चय ही अभी भी रतन से बीस ही थी।

सुगना ने सटीक उत्तर देकर उस बातचीत को वहीं पर विराम लगा दिया था परंतु कजरी ने सुगना के मन में रतन की पिछली यादों को कुछ हद तक जीवित कर दिया था।


पिछली बार रतन ने आगे आकर उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाया था परंतु सुगना से वह उस तरह होली नहीं खेल पाया था जिस प्रकार राजेश ने खेली थी। परंतु जिस प्रकार वह सूरज का ख्याल रखता था उसने सुगना का ध्यान अवश्य आकर्षित कर लिया था। सुगना बेफिक्र होकर सूरज को रतन के हवाले करती और अपनी रसोई के कार्यों में लग जाती सूरज भी रतन की गोद में ऐसे खेलता जैसे वह अपने पिता की गोद में खेल रहा हो। नियति आने वाले दिनों की कल्पना कर मुस्कुराती रही थी। कभी वह गिलहरी बन जाती और रतन की चारपाई के आगे पीछे घूम कर अपना ध्यान आकर्षित करती सूरज किलकारियां मारते हुए प्रसन्न हो जाता।


सुगना यह बात जानती थी की रतन की एक विवाहिता पत्नी है जो मुंबई में रहती है और रतन उससे बेहद प्यार करता है। सुगना को रतन की जिंदगी में दखल देने की न कोई जरूरत थी नहीं कोई आवश्यकता। उसके जीवन में खुशियां और जांघों के बीच मजबूत लंड भरने वाले सरयू सिंह अभी भी उसे बेहद प्यारे थे।।


साल में दो बार गांव आकर रतन सुगना से अपना रिश्ता बचाए हुए था सुगना के लिए इतना पर्याप्त था इसी वजह से समय के साथ उसने रतन के प्रति अपनी नफरत को बुलाकर उसे एक दोस्त की तरह स्वीकार कर लिया था।



##


उधर एक सुखद रात्रि को लाली को अपनी बांहों में समेटे हुए और चुचियाँ सहलाते हुए राजेश ने पूछा.. " क्या सच में उस दिन सोनू ने…." राजेश अपनी बात पूरी न कर पाया पर लाली समझ चुकी थी


" आपको चुचियों का स्वाद बदला हुआ नहीं लग रहा था?"


राजेश अपनी चाल में कामयाब हो गया था वह सोनू के बारे में बात करना चाह रहा था और लाली उसके शब्द जाल में आ चुकी थी।


"सोनू तो मालामाल हो गया होगा.."


"क्यों" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए पूछा

"अपनी दीदी के कोमल हाथों को अपने लंड पर पाकर कौन मस्त नहीं होगा…."

लाली मन ही मन मुस्कुराने लगी उसने सोनू को जो सुख दिया था वह राजेश शायद अब तक न समझ पाया था। 

राजेश की कामुक बातों से उसकी बुर में भी हलचल प्रारंभ हो गई थी उसने राजेश को और उत्तेजित करते हुए कहा… " सोनू सच में भाग्यशाली है उस दिन उसे हाथों का ही नहीं इनका भी सुख मिल चुका है" लाली ने अपने होठों को गोल कर इशारा किया।

लाली के इस उत्तर ने राजेश को निरुत्तर कर दिया उसने बातचीत को वही विराम दिया और उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसने लगा।

राजेश ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और लाली की नाइटी को कमर तक खींचते हुए बोला….

"काश मैं सोनू होता"

"तो क्या करते…"

राजेश ने कोई उत्तर न दिया परंतु अपने तने हुए लंड को लाली की पनियायी बुर में जड़ तक ठान्स दिया और उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर लाली को चोदते हुए बोला "अपनी लाली दीदी को खूब प्यार करता"

लाली भी अपनी जांघें खोल चुकी थी उससे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी वो राजेश को चूम रही थी परंतु इन चुम्बनों में एक अलग एहसास था राजेश उस अंतर को बखूबी महसूस कर रहा था परंतु उसके चोदने की रफ्तार में कोई कमी नहीं आ रही थी वह लाली को कस कस कर चोद रहा था।


मासूम और युवा सोनू लाली और राजेश दोनों की उत्तेजना का केंद्र बन चुका था।


चुदाई का चिर परिचित खेल खत्म होने के पश्चात पसीने से लथपथ राजेश लाली के बगल में लेटा हुआ उसकी चूचियां सहला रहा था।


तभी लाली ने मुस्कुराते हुए कहा… 
"आपकी फटफटिया कब आ रही है"

"इतनी रात को फटफटिया की याद आ रही है"

"कई दिन से शंकर जी के मंदिर जाने की सोच रही थी। एक दिन टैक्सी वाले से बात करके गाड़ी बुलाइएगा।"

"एक तो साले खूब सारा पैसा भी लेते हैं और नखरे अलग से दिखाते हैं"

" हां जब फटफटिया आ जाएगी तो हम लोग अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा पाएंगे।

राजेश ने एक लंबी सांस भरी परंतु कोई उत्तर न दिया।

लाली ने राजेश के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख ली थी उसने उसे चूमते हुए कहा 
"ठीक है, पर परेशान मत होइएगा जब भगवान चाहेंगे आ जाएगी"

"हां भगवान सब इच्छा पूरा किये हैं तो यह भी जरूर करेंगे।"

राजेश लाली को अपनी बाहों में लिए हुए सुखद नींद सो गया लाली के मन में अभी भी सोनू नाच रहा था उसका मासूम चेहरा और गठीला बदन लाली को पसंद आ चुका था…. सोनू को अपनी मीठी यादों में समेटे हुए लाली सो गई...


बनारस शहर में महोत्सव की तैयारियां प्रारंभ हो गई थी यह एक विशेष उत्सव था जिसकी व्यवस्था में सिक्युरिटी और प्रशासन दोनों सक्रिय थे शहर की समतल मैदान को पूरी तरह साफ स्वच्छ किया जा रहा था जगह-जगह रहने के पंडाल लगाए जा रहे थे और शौचालयों का निर्माण किया जा रहा था यह एक अत्यंत भव्य व्यवस्था थी। बड़े-बड़े गगनचुंबी झूलों के अस्थि पंजर जमीन पर पड़े अपने कारीगरों का इंतजार कर रहे थे। अस्थाई सड़कों पर पीली लाइटें लगाने का कार्य जारी था। बनारस शहर का लगभग हर बाशिंदा उस उत्सव से कुछ न कुछ अपेक्षा रखता था।

##


उधर हॉस्टल में सोनू के कमरे के दरवाजे पर वॉलीबॉल की गेंद धड़ाम से टकराई। सोनु बिस्तर पर पड़ा ऊंघ रहा था। सोनू उठकर हॉस्टल की लॉबी में आ गया सुबह के 6:00 बजे रहे थे विकास के कमरे की लाइट अभी भी जल रही थी..

"अरे तू तो बड़ी जल्दी उठ गया" सोनू ने विकास की खिड़की से झांकते हुए पूछा।

"अबे रात भर जगा हूं एक पैसे की तैयारी नही हुई है एक्जाम की। अब जा रहा हूं सोने"

"भाई तेरी मोटरसाइकिल कुछ देर के लिए ले जाऊं क्या?"

"क्यों सुबह सुबह कहां जाएगा?"

" वह छोड़ ना बाद में बताऊंगा"


"ठीक है ले जा पर तेल फुल करा देना…" विकास ने राजदूत की चाबी सोनू को पकड़ते हुए कहा।


सोनू बेहद प्रसन्न हो गया वह फटाफट मन में ढेर सारी उमंगे लिए तैयार होने लगा उसने अपना खूबसूरत सा पैजामा कुर्ता पहना और कुछ ही देर में राजदूत की सवारी करते हुए लाली के दरवाजे पर खड़ा हार्न बजा रहा था...


लाली उस हॉर्न की आवाज सुनकर दरवाजे पर आई और अपने भाई सोनू को राजदूत फटफटिया पर बैठा देखकर बेहद प्रसन्न हो गई और उसे देखकर मुस्कुराते हुए बोली "अरे सोनू यह किसकी फटफटिया है? अंदर आ…"



शेष अगले भाग में…


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#42
Snigdha ji, bahut hi mast kahani hai. Keep updating.
[+] 2 users Like bhavna's post
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#43
स्निग्धा जी बहुत ही उम्दा कहानी है और लेखनी की तो बात ही नही उसका कोई जोड़ नहीं.......कहानी को आज ही पढ़ा और पूरा पढ़ गया अब आपकी लेखनी के जादूगरी का इंतजार रहेगा .....
[+] 3 users Like Boobsingh's post
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#44
आह... तनी धीरे से... दुखाता


यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।

Heart


ALL CREDIT GOES TO ORIGINAL WRITER = लवली आनंद
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#45
Heart 
भाग-41
  • Heart
लाली को प्रसन्न देखकर सोनू की बांछें खिल उठीं। वह फटाफट अपनी फटफटिया से नीचे उतरा और मन में उमंगे लिए लाली के घर की तरफ तेज कदमों से चल पड़ा उसके मन में सिर्फ और सिर्फ एक ही ख्याल आ रहा था कि हे भगवान राजेश जीजू घर पर ना हो.

नियति मुस्कुरा रही थी जिस व्यक्ति ने लाली और सोनू को करीब लाने में सबसे अहम भूमिका अदा की थी सोनू अपनी अज्ञानता वश उसकी उपस्थिति को अवांछित मान रहा था.

परंतु मन का चाहा कहां होता है। फटफटिया की आवाज राजेश ने भी सुनी थी और लाली का संबोधन भी वह भी हॉल में आ चुका था जैसे ही सोनू लाली के करीब आया राजेश ने कहा

"अरे वाह साले साहब आज तो फटफटिया में….. कहां लॉटरी लग गई?"

सोनू केअरमानों पर घड़ों पानी फिर गया.

"नहीं. जीजाजी , यह मेरे दोस्त की है कुछ काम से शहर आया था सोचा आप लोगों से मिलता चलूं"

"सच बताना मुझसे या अपनी लाली दीदी से?"

सोनू पूरी तरह झेंप गया परंतु लाली ने बात संभाली

"आपका क्या है आप तो दिन रात ट्रेन में ही गुजारते हैं मेरा भाई कभी-कभी आकर हम सबको खुश कर देता है"

सोनू मुस्कुराने लगा उसने राजेश के चरण छुए और फिर लाली दीदी के। लाली ने फिर उसे उठाकर अपने गले से लगा लिया यदि राजेश उस हाल में ना होता तो सोनू के हाथ निश्चय ही लाली की पीठ पर अपनी उपस्थिति का एहसास करा रहे होते और इन दोनों के बीच दूरियां कुछ और कम होती लाली के तने हुए स्तन सोनू के सीने से सट कर चिपटे हो चुके होते।

तभी लाली का पुत्र राजू सोनू के पास आ गया। सोनू ने उसे अपनी गोद में उठाया और कुर्ते की जेब से दो लॉलीपॉप निकालकर उसके हाथों में दे दिया। राजू ने सोनू के गालों पर चुंबन दिया। एक पल के लिए सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे लाली के कोमल होंठ उसके गालों से हट गए। सोनू की स्थिति सावन के अंधे जैसी हो गई थी उसे हर जगह सिर्फ और सिर्फ लाली के खूबसूरत कोमल अंग और दिखाई पड़ रहे थे.

लाली ने फटाफट चाय बनाई और हॉल में बैठकर अपने दोनों मालियों के साथ चाय पीने लगी। सोनू की नजरें झुकी हुई थीं और राजेश अपनी आंखों के सामने नियति द्वारा मिलाए गए तो अद्भुत प्रेमियों को एक साथ देख रहा था। सोनू जैसे बलिष्ठ और मजबूत युवा को लाली जैसी गदराई हुई युवती के साथ देख कर राजेश भाव विभोर हो गया। मन ही मन हुआ उन दोनों को संभोग अवस्था में देखने लगा। लाली ने उसकी मनोदशा पढ़ ली और बेहद प्यार से बोली

"कहां अपनी फटफटिया में खो गए चाय पी लीजिए चाय ठंडी हो जाएगी"

राजेश अपनी ख्यालों से बाहर आया और बोला

"तुम शंकर जी के मंदिर जाने वाली थी ना जाओ आज तो तुम्हारा भाई फटफटिया लेकर आया है उसी के साथ घूम आओ"

"और घर का काम धाम कौन करेगा आपको ड्यूटी भी तो जाना है"

"अरे तुम तैयार होकर जल्दी चली जाओ आज सब्जी मैं बना दूंगा तुम आकर रोटी सेक लेना और बाकी काम बाद में हो जाएगा और फिर फटफटिया रोज रोज थोड़ी ही आएगी"

अभी कुछ देर पहले राजेश की उपस्थिति को देखकर सोनू जितना निराश हुआ था राजेश के प्रस्ताव को सुनकर वह उतना ही प्रसन्न हो गया। उसने राजेश की हां में हां मिलाते हुए कहा

"चलिए दीदी आप को घुमा लाता हूं"

सोनू के साथ फटफटिया पर बैठने की बात सोच कर लाली के चेहरे पर शर्म की लालिमा दौड़ गई वह अपनी भावनाएं छुपाते हुए बोली

"तू मोटरसाइकिल चलाना कब सीख गया मुझे गिरा तो नहीं देगा"

"नहीं दीदी मैं चला लेता हूं"

तभी राजू भी जाने की जिद करने लगा

"नहीं बेटा अभी मम्मी को जाने दो जब मैं फटफटिया लाऊंगा तब उस पर बैठना"

सोनू एक बार फिर राजेश के प्रति कृतज्ञ हो गया वह अपनी किस्मत पर नाज कर रहा था कि आज सब कुछ उसके मनोमुताबिक हो रहा था। उसने अपनी खुशी पर काबू रखते हुए चाय के कब को उठाकर किचन में ले जाते हुए कहा.

"दीदी फटाफट तैयार हो जाइये"..

जितना उत्साह सोनू के मन में था लाली भी उतनी ही खुश थी. वह फटाफट अपने कमरे में जाकर अपना अधोवस्त्र लिया और उसे अपनी नाइटी के अंदर छुपा कर हाथ में पकड़े हुए बाथरूम में प्रवेश कर गयी। उसने अपनी पेंटी और ब्रा को सोनू की कामुक नजरों से बचा लिया था। अजब दुविधा में थी लाली एक तरफ तो वह अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार थी दूसरी तरफ उन अंतर्वस्त्रों को नाइटी के बीच में लपेट कर उन्हें छुपा रही थी.

बाथरूम से पानी गिरने की आवाजें आने लगी सोनू के मन में लाली के नंगे और भरे हुए शरीर के दृश्य घूमने लगे। लाली को नहाते हुए तो वह पहले भी एक बार देख चुका था पर नारी रूप के दिव्य दर्शन उसे नहीं मिल पाए थे। पिछली बार उसे लाली का शरीर उसे साइड से दिखाई दिया था. वह अब लाली को साक्षात नग्न देखना चाहता था वह भी वस्त्र विहीन।

राजेश को भी बाथरूम से आ रही आवाज स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी हाल में शांति की वजह से यह आवाज और भी साफ थी। राजेश ने सोनू से यूं ही बातें शुरू कर दी।

"मुझे भी मोटरसाइकिल चलाना सीखना है"

"हां जीजा जी आप भी खरीद लीजिए मैं आपको सिखा दूंगा"

जीजा साले की बातें चल रही थी. तभी मदमस्त लाली अपने पूर्ण यौवन को नाइटी के आवरण से ढके हुए बाहर आई और लक्स साबुन की खुशबू बिखेरती हुई सोनू से सटते हुए अपने कमरे में चली गई। सोनू भीनी भीनी खुशबू से मस्त हो गया परंतु उसके नथूने उसी मदन रस की सुगंध को खोज रहे थे जो आज से कुछ दिनों पहले सोनू के उंगलियों ने लाली की बुर में प्रवेश कर चुराया था।

कमरे में जाने के बाद लाली तैयार होने लगी तभी उसनें आवाज दी

"ए जी सुनिए"

"क्या हुआ? आता हूं" राजेश उठकर कमरे के अंदर जाने लगा

दरवाजा सटाने के बाद राजेश ने पूछा

"क्या हुआ?"

"बताइए ना कौन सी साड़ी पहनु"

"अरे साड़ी मत पहनो पहली बार फटफटिया में बैठोगी कहीं साड़ी फस फसागई तो लेने के देने पड़ जाएंगे"

"तो फिर क्या पहनूं?" लाली चिंता में पड़ गई

"अरे तुम्हारे पास एक सलवार कमीज भी थी ना जो तुम कभी-कभी पहनती थी"

"नहीं नहीं मैं वह नहीं पहनूंगी अब वह थोड़ा छोटी भी होती है और पूरे बदन पर कस जाती है"

राजेश के मन मे लाली का कसा हुआ शरीर घूम गया।

"अरे तुम भी तो दुबली हो गई हो एक बार पहन के तो देखो" राजेश की तारीफ ने लाली में उत्साह भर दिया।

लाली ने अलमारी से मैरून कलर की कुर्ती और चूड़ीदार पैजामा निकाला और पहनने लगी। राजेश का लंड खड़ा हो चुका था। अपनी बीवी को उस खूबसूरत वस्त्र में देख वह मदहोश हो रहा था। इसके पहले की लाली कुछ सोच पाती राजेश पीछे से आया और उसकी दोनों भरी-भरी चुचियों अपनी हथेलियों से दबाने लगा। उसका लण्ड लाली के भरे हुए नितंबों पर सट रहा था लाली ने शर्माते हुए कहा..

"यह तो पूरे बदन से चिपक सा गया है देखिए ना चुचियां कितनी निकल कर बाहर आ गई हैं।"

अपने निप्पलों को दबाते हुए उसने फिर कहा

"और यह दोनों मुए... लग रहा है कुर्ती फाड़ कर बाहर आ जाएंगे."

राजेश ने लाली की मदद की और कुर्ती को थोड़ा सामने खींचकर उसके निप्पलों को छुपा दिया परंतु लाली की भरी भरी चुचियों को छुपा पाना असंभव था। और राजेश तो वैसे भी उन्हें छुपाना नहीं चाहता था। चाहती तो लाली भी यही थी पर स्त्रीसुलभ लज्जा उसमे अभी भी कायम थी।

कुर्ती लाली के शरीर से उसी तरह चिपक गई थी जैसे चांदी का अर्क मिठाई को ढक लेता है परंतु मिठाई का आकार छुपाने में नाकाम रहता है। लाली का सपाट पेट उसकी चुचियों और जांघों के बीच बेहद आकर्षक लग रहा था । कुर्ती लाली के भरे भरे नितंबों को बड़ी मुश्किल से ढक पा रही थी लाली अपने हाथों को पीछे करती और उसे खींचकर नीचे करने का प्रयास करती परंतु उसे ज्यादा सफलता नहीं मिलती।

लाली उदास हो गई उसने सलवार कुर्ती पहनने का विचार त्याग दिया और बोली मैं साड़ी ही पहन लेती हूं यह कुर्ती वास्तव में छोटी है

इससे पहले की लाली का विचार परिवर्तित होता राजेश ने सोनू को बुलाया…

"तुम ही समझाओ अपनी दीदी को साड़ी पहनकर फटफटिया में कैसे बैठेंगी?"

सोनू कमरे में आया और अपनी लाली दीदी का यह रूप देख कर दंग रह गया. लाली को उसने पिछले कई वर्षों में कभी सलवार कुर्ती में नहीं देखा था।

वह लाली की तुलना अपनी कॉलेज की लड़कियों से करने लगा। राजेश ने सोनू की मनोदशा पढ़ ली उसने एक बार फिर कहा

"देखो ठीक तो लग रहा है पर ये परेशान है"

"सच में दीदी, जीजा जी ठीक कह रहे आप बेहद सुंदर लग रही हैं"

"चल झूठे तू भी इनका साथ दे रहा है" लाली ने शर्माते हुए कहा

"नहीं दीदी सच में"

राजेश ने इस बातचीत को विराम देते हुए कहा

"अब तुम लोग जाओ और जल्दी वापस आना मुझे ड्यूटी भी जाना है।"

लाली ने अपने बाल संवारे और झीना सा जार्जेट का दुपट्टा अपने कंधे पर डाला और अपने भरे भरे नितंब हिलाते हुए दरवाजे से बाहर निकल आयी और आस पड़ोस की महिलाओं से नजर बचाती हुयी खूबसूरत लाली अपने युवा सोनू के साथ मजबूत मोटरसाइकिल पर बैठकर शंकर जी के दर्शन के लिए निकल पड़ी।

मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने के पश्चात राजेश ने सोनू से कहा

"अपनी दीदी को मंदिर के बाहर भी घुमा देना पिछली बार वह सिर्फ गर्भ ग्रह के दर्शन ही कर पाई थी।"

सोनू उस समय तो पूरे उन्माद में था उसने राजेश की बात सुनी तो जरूर पर समझ नहीं पाया

"हां जीजाजी, पूरा घुमा दूंगा कहकर उसने बात बंद की और मोटरसाइकिल आगे बढ़ा दी"

नियति भी पेड़ की डाली से उड़ते हुए मोटरसाइकिल का पीछा करने लगी आस्था और वासना दोनों अपनी अपनी जगह सर उठा रहे थे ……

उधर साधुओं की टोली और डुगडुगी वाला सुगना के मायके पहुंच चुके थे। बच्चों की टोली उनके पीछे पीछे चल रही थी डुगडुगी की आवाज सुनकर जाने बच्चों के पैरों में पंख लग जाते थे। सब अपने घर से वैसे ही निकलते जैसे कॉलेज की घंटी के बाद बच्चे भागते हैं।

कुछ ही देर में गांव की गलियां के दोनों तरफ बच्चों और घूंघट ली हुई महिलाएं दिखाई पड़ने लगती। साधु लोग उस महोत्सव के प्रचार प्रसार से संबंधित पोस्टर घरों पर चिपकाते और सभी को हाथ जोड़कर उस उत्सव में शामिल होने का आमंत्रण देते।

सोनी और मोनी पोस्टर में दिख रहे मेले के दृश्यों को टकटकी लगाकर देख रही थी। वो लकड़ी के बड़े बड़े झूले जिसमें कुल 4 खटोले बांधे हुए थे। उसमें बैठे युवक और युवती को देखकर सोनी के मन में प्रेम की हिलोरे उठने लगीं। अभी उनकी जांघों के बीच की कली पूरी तरह खिली भी नहीं थी परंतु पुरुष के समीप आने पर उतपन्न होने वाली संवेदनाएं उनके दिलो-दिमाग पर छा चुकी थीं। स्त्री और पुरुष का भेद और जांघों के बीच का आकर्षण वह भली-भांति समझने लगी थी।

"क्या देख रही है खटोले में…..साथ बैठने वाला ?"

मोनी ने सोनी के पेट पर चोटी काटते हुए बोला..

अपनी चोरी पकडे जाने पर सोनी शर्मा गई और उसने मोनी से कहा

"तेरा मन नहीं करता क्या?"

"जब भगवान ने मुंह दिया है तो खाना भी देगा मैं भगवान से मांगूंगी की तेरी जांघों के बीच की आग जल्दी बुझे"

मोनी की बात सुनकर सोनी ने उसे दौड़ा लिया और दोनों भागती भागती अपनी मां पदमा के पास आ गयीं जहां पदमा की सहेली पुलिया बनारस महोत्सव के बारे में ही बातें कर रहीं थी।

जाने इसस महोत्सव में क्या बात थी कि गांव के अधिकतर लोग वहां जाने की बातें कर रहे थे कोई 2 दिनों के लिए तो कोई 4 दिनों के लिए पर मन में ललक सभी के थी।

उधर लाली सोनू की मोटरसाइकिल पर दोनों पैर एक तरफ करके बैठी सोनू जैसे अकुशल चालक के लिए यह एक और कठिनाई थी जैसे ही वह लाली की रेलवे कॉलोनी से बाहर आया उसने मोटरसाइकिल रोकी और लाली से कहा

"दीदी आप दोनों पैर फैला कर बैठ जाइये गाड़ी का बैलेंस सही रहेगा?"

राजदूत मोटरसाइकिल कुछ ज्यादा ही ऊँची थी। लाली उस पर बैठने का प्रयास करने लगी परंतु ऊंचाई की वजह से वह अपना पैर दूसरी तरफ नहीं ले जा रही एक तो उसकी चूड़ीदार एक तो पहले से तंग थी दूसरी तरफ पैर को ऊंचा उठाना एक नई मुसीबत आ गई थी।

सोनू के साहस देने पर लाली में अपना पैर थोड़ा और ऊंचा किया और उसका पैर सीट के दूसरी तरफ आ तो गया परंतु "चर्र" एक अवांछित ध्वनि लाली के कानों तक पहुंची। मोटरसाइकिल पर सफलतापूर्वक बैठ जाने की खुशी में लाली उस ध्वनि को नजर अंदाज कर गई परंतु जैसे ही उसके नितंबों ने सीट को छुआ लाली घबरा गई। सीट की ठंडक उसकी बुर के होठों पर महसूस हुई।

लाली को अब जाकर समझ आ चुका था उसकी सलवार का जोड़ पैर के ज्यादा फैलाए जाने की वजह से टूट गया था। और उसकी सलवार थोड़ा फट गई थी सुबह जल्दी बाजी में उसने अपनी ब्रा तो पहन ली थी पर पेंटी पहनना जरूरी नहीं समझा था। घर में वैसे भी उसे पेंटी पहनने की आदत कम ही थी।

लाली के बैठ जाने के पश्चात गाड़ी का बैलेंस बिल्कुल सही हो गया था सोनू की मोटरसाइकिल तेजी से बनारस की सड़कों को रौंदकर हुए शंकर मंदिर की तरफ बढ़ रही थी। लाली अपनी सलवार फटे होने के विचारों से अभी भी मुक्त नहीं हो पा रही थी बनारस की सर्द हवाएं जब उसके बालों को उड़ाने लगी तब उसने अपनी बुर पर से ध्यान हटाकर बालों पर लगाया और उसे व्यवस्थित करने लगी। तथा पीछे से चीखते हुए बोली

"सोनू धीरे चला"

"दीदी बहुत मजा आ रहा है चलाने दो ना"

आनंद तो लाली को भी उतना ही आ रहा था उसने जो सपने अपनी किशोरावस्था में देखे थे वह आज पहली बार पूरे हो रहे थे।

सोनू अपनी रफ्तार में यह भूल बैठा की रोड पर स्पीड ब्रेकर भी होते हैं अपनी लाली दीदी को पीछे बैठा कर वह स्वयं को राजेश खन्ना समझ रहा था स्पीड ब्रेकर ने लाली को उछाल कर उसकी पीठ पर लगभग गिरा दिया।

लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां उसकी पीठ पर चपटी हो गई। लाली के इस तरह उछलने से सोनू की मोटरसाइकिल लगभग अनियंत्रित सी हो गई यह तो शंकर जी की लाली पर कृपा थी कि वह दोनों गिरे नहीं और सोनू ने अपनी मोटरसाइकिल सकुशल रोक ली।

लाली ने सोनू को डांटते हुए कहा

"मैं कहती थी ना की धीरे चला…."

अपनी प्रेमिका से डांट खाकर सोनू को अच्छा तो नहीं लगा परंतु सोनू ने अपना चेहरा पीछे घूम आया और लाली को प्यार भरी निगाहों से देखते हुए बोला

"ठीक है बाबा अब धीरे चलाऊगा"

लाली को भी अपनी गलती का एहसास हो चला था शायद उसने कुछ ज्यादा ही देश में वह बात कह दी थी सोनू के मासूम चेहरे और कोमल गाल को अपने बेहद समीप देखकर लाली का प्यार जागृत हो उठा उसने उसके गालों पर चूमते हुए कहा

"कोई बात नहीं सोनू बाबू अब धीरे चलना"

मोटरसाइकिल ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली..

बाली की बुर को अब भी मोटरसाइकिल की सीट का एहसास हो रहा था। अपने हाथों से सलवार के कपड़े को घसीट कर वह अपनी बुर के ऊपर ला रही थी परंतु कुछ ही दूर चलने के पश्चात कपड़ा वापस अपनी जगह पर आ जा रहा था और सीट उसकी बुर को फिर चुमने लगती थी।

लाली ने अपना ध्यान शंकर मंदिर की तरफ लगाया और इस विषम परिस्थिति को भूलने का प्रयास करने लगी। कुछ ही देर में सोनू की मोटरसाइकिल शंकर मंदिर के बाहर खड़ी थी। मोटरसाइकिल से उतरते वक्त एक बार फिर चर्र की आवाज हुई हालांकि यह आवाज पिछली बार की तुलना में कम थी परंतु इसने सलवार के जोड़ को थोड़ा और फैला दिया। लाली ने अपनी कुर्ती को व्यवस्थित किया और दोनों भाई बहन मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे लाली आगे आगे और पीछे पीछे। रेलिंग लगे होने की वजह से एक समय पर एक आदमी ही चल सकता था। सोनू जानबूझकर पीछे हट गया और लाली ने पहली सीढ़ी चढ़ी लाली आगे-आगे चढ़ती गई और सोनू उसके पीछे पीछे। सोनू ने जानबूझकर लाली और अपने बीच तीन चार सीढ़ियों का फासला बना लिया था।

सोनू तो दूसरे ही नशे में था अपने आगे सीढ़ी चढ़ती हुई लाली के नितंबों को देखकर उसका ध्यान आस्था से हटकर वासना पर केंद्रित हो गया था लाली के बड़े-बड़े भरे हुए नितम्ब सोनू की निगाहों के सामने थिरक रहे थे लाली की मोटी और गदराई हुई जाँघों ने नितंबों को सहारा दिया हुआ था …

"लाली ने पीछे मुड़कर कहा साथ साथ चल ना पीछे क्यों चल रहा है"

लाली ने खुद को सोनू की निगाहों से देख लिया था उसे एहसास हो गया था कि सोनू उसके नितंबों की चाल को देख रहा है..

"हां दीदी" सोनू थोड़ा झेंप गया परंतु उसने उनके बीच का फासला तेजी से कम किया और दोनों अपनी अपनी मनोकामनाएं लिए शंकर मंदिर मैं प्रवेश कर चुके थे।

शंकर भगवान की पूजा अर्चना करने के पश्चात दोनों भाई बहन ने अपनी अपनी मनोकामना उसे भगवान को अवगत कराया लाली की मनोकामना में सोनू से मिलन दूसरे स्थान पर था परंतु सोनू के मन में सिर्फ और सिर्फ इस समय एक ही मनोकामना थी और वह थी लाली दीदी के साक्षात दर्शन और उनसे मिलन।

मंदिर से बाहर आने के पश्चात रेलिंग का सहारा लेकर सोनू और लाली खड़े हो गए तथा मंदिर के पीछे पर ही नदी का खूबसूरत दृश्य देखने लगे लाली ने अपने हाथ में लिए सिंदूर से सोनू के माथे पर तिलक लगाया और प्रसाद खिलाया।

यह मंदिर चोल वंश के राजाओं ने बनाया था जिसमें अंदर कर ग्रह में शंकर भगवान की मूर्ति थी परंतु बाहर में विभिन्न कलाकृतियां बनाई गई थी उनमें से कुछ कलाकृतियां काम कला को प्रदर्शित करती हुई भी थी।

इन कलाकृतियों में खजुराहो जैसे आसन तो नहीं दिखाए गए थे परंतु फिर भी उसका कुछ अंश अवश्य मौजूद था मंदिर के बाहरी भाग को पर्यटन के हिसाब से भी सजाया गया था जिनमें आस्था न थी वो लोग भी इस मंदिर के बाहरी भाग में लगी हुई मूर्तियों को देखने आया करते थे और कुछ ठरकी किस्म के व्यक्ति कलाकृतियों में छुपी हुई कामवासना को देखकर अपनी उत्तेजना भी जागृत किया करते थे।

लाली को इस बात की जानकारी न थी परंतु सोनू तो अब बनारस का जानकार हो गया था हॉस्टल के लड़कों ने उसका सामान्य ज्ञान बढ़ा दिया था लाली दीदी के साथ शंकर मंदिर जाने की बात सुनकर उसके लण्ड ने तुरंत सहमति दे दी थी।

सोनू को राजेश की बात याद आई जो उन्होंने घर से निकलते वक्त कही थी कि अपनी दीदी को मंदिर का बाहरी भाग भी दिखा देना। क्या जीजाजी चाहते थे कि मैं दीदी को इन कामकला की मूर्तियों को दिखाऊं..क्या उन्हें इस मंदिर की इन कलाकृतियों की जानकारी थी?

"कहां खो गया सोनू" लाली ने आवाज लगाई

"कुछ नहीं दीदी चलिए आपको मंदिर का बाहरी भाग दिखाता हूं"

मंदिर के पीछे एक काम पिपासु युवक और युवती की तस्वीर थी परंतु उसमें कोई नग्नता न थी कुछ लोग उन्हें किसी अनजान भगवान की मूर्ति मानते थे परंतु जानकार उसकी हकीकत जानते थे।

सोनू के मन में शरारत सूझी उसने जमीन पर अपने दोनों घुटने टिकाए और सर को सजदे की तरह जमीन से छुआ दिया कुछ सेकंड उसी अवस्था में रहकर वह उठ खड़ा हुआ।

लाली ने पूछा

"यह कौन से भगवान है"

" पहले प्रणाम कर लीजिये फिर बताता हूं"

लाली में देर ना की और सोनू ने जिस तरह प्रणाम किया था उसी तरह प्रणाम करने लगी। लाली की कुर्ती जो नितंबों को ढकी हुई थी वह हवा के झोंके से उड़ गई और लाली की फटी हुई सलवार के बीच से उसकी सुंदर और कसी हुई बुर सोनू की निगाहों के ठीक सामने आ गई जो लाली के ठीक पीछे खड़ा उसके नितंबों की खूबसूरती निहार रहा था। सोनू ने तो सिर्फ उसके नितंबों को जी भर कर देखने की कल्पना की थी परंतु उसकी जांघों के बीच छुपा हुआ अनमोल खजाना सोनू की निगाहों के सामने आ गया था। फटी हुई सलवार ने अपना कमाल दिखा दिया था ।

उधर लाली को अब जाकर एहसास हुआ कि वह लगभग डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। बाहर बहती हवा ने जब उसके बुर के होठों को छुआ तब जाकर लाली को एहसास हुआ कि उसकी सलवार फटी हुई है वह तुरंत ही झट से उठ कर खड़ी हो गई और पीछे मुड़कर देखा सोनू की निगाहें उसके नितंबों के साथ-साथ ऊपर उठ रही थी।

लाली शर्म से पानी पानी हो गई उसे पता चल चुका था की सोनू ने उसकी नंगी बुर के दर्शन कर लिए थे…

शेष अगले भाग में
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#46
Heart 
भाग-42


उधर लाली को महसूस हुआ कि वह लगभग डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। बाहर बहती हवा ने जब उसके बुर के होठों को छुआ तब जाकर लाली को एहसास हुआ कि उसकी सलवार फटी हुई है वह तुरंत ही झट से उठ कर खड़ी हो गई और पीछे मुड़कर देखा सोनू की निगाहें उसके नितंबों के साथ-साथ ऊपर उठ रही थी।

लाली शर्म से पानी पानी हो गई उसे पता चल चुका था की सोनू ने उसकी नंगी बुर के दर्शन कर लिए थे…

अब आगे…

यह एक संयोग ही था कि उस दिन ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। लाली जान चुकी थी कि सोनू की निगाहें उसके खजाने का अवलोकन कर चुकी है। लाली मंदिर के पार्श्व भाग में लगे अलग-अलग कलाकृतियों को देखने लगी। कभी वह अपनी सुंदर काया की उन कलाकृतियों से तुलना करती और मन ही मन खुश हो जाती। लाली को उस रात की बात याद आ रही जब वह राजेश की बाहों में नग्न लेटी हुई थी और वह उसकी चूचियां सहलाते हुए उसे चोदने के लिए तैयार कर रहा था

राजेश में उससे कहा..

"लाली मजा आ जाएगा जब तुम्हारी चूचियां मेरे मुंह में होंगे और सोनू का सर तुम्हारी जाँघों के बीच"

"छी, कितनी गंदी बात करते हैं आप, अपने भाई से अपनी वो चुसवाना अच्छा अच्छा लगेगा क्या"

"चुसवाने की बात तो मेरी जान तुमने ही कहीं"

"तो क्या सोनू मेरी जांघों के बीच सर लाकर सजदा करेगा?"

लाली की बातों से राजेश के लंड का तनाव बढ़ता चला जा रहा था।

"सच लाली मजा आ जाएगा जब…" राजेश अपनी बात पूरी नहीं कर पाया पर उसने लाली की चुचियाँ जोर से दबा दी लाली सिहर उठी और बोली…

"क्या जब?" लाली ने उत्सुकता से पूछा

"यही कि उत्तर भारत पर मैं राज करूं और दक्षिण भारत पर तुम्हारा प्यारा सोनू"

लाली राजेश की बात समझ तो गई थी परंतु वह राजेश को खुलकर बोलने के लिए उकसा रही थी..

"आप और आपके सपने ऐसी गंदी बातें कैसे सोच लेते हैं आप"

"मैंने अपने से थोड़े ही सोचा यह तो प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है अपनी प्रेमिका को जी भर कर सुख देना. मेरे पास तो एक ही मुंह है और तुम्हारे पास चूमने लायक कितनी सारी जगह है?"

लाली राजेश की हाजिर जवाबी से प्रभावित हो गई थी उसने कहा तो आपको यह ज्ञान किसी महात्मा ने दिया है

"नहीं मैंने शंकर मंदिर के पीछे लगी एक प्राचीन मूर्ति में देखा था जिसमें एक नायिका को दो पुरुष मिलकर प्रसन्न कर रहे थे"

"सच में आपका दिमाग खाली जांघों के बीच ही घूमता रहता है मंदिर में भला ऐसी मूर्ति कहां मिलेगी"

राजेश ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया और चुमते हुए बोला…

"मैं सच बोल रहा हूं"

"मैं नहीं मानती"

"और अगर यदि यह सच हुआ तो?"

"तो क्या आप जीते मैं हारी"

"फिर मुझे क्या मिलेगा?"

"जो आप चाहेंगे"

"बस उस मूर्ति की नायिका तुम बनोगी और सेवक मैं और….. "

राजेश के वाक्य पूरा करने से पहले लाली ने उसके होंठों को अपने होंठों के बीच भर लिया और स्वयं ही राजेश के लण्ड को पकड़ कर अपनी बुर में घुसेड लिया…

राजेश की उपस्थिति में सोनू से संभोग करने की बात सोच कर ही वक्त उत्तेजना से प्रोत हो गई थी….

"दीदी आगे चलिए और भी तरह-तरह की कलाकृतियां हैं"

सोनू की आवाज लाली अपनी मीठी यादों से बाहर परंतु उन यादों ने उसकी बुर् के होठों की चमक बढ़ा दी थी। अंदरूनी गहराइयों से उत्सर्जित मदन रस बुर के होठों पर आ चुका था।

सोनू को अभी भी तृप्ति का एहसास नहीं हुआ था लाली की बुर देखने कि उसके मन में एक बार फिर इच्छा जागृत हुयी।

सोनू ने आगे बढ़ते हुए एक बार फिर दंड प्रणाम किया और लाली अपनी टाइमिंग सेट करते हुए एक बार फिर डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। इस बार नियति को लाली की कुर्ती को हवा से उड़ाने की कोई आवश्यकता नहीं थी लाली ने स्वयं ही अपनी कुर्ती खींच ली थी लाली के बुर् के चमकते हुए होंठ सोनू को उन्हें चुमने का खुला निमंत्रण दे रहे थे।। आह….. कितने सुंदर थे प्यारे होंठ थे। सोनू के मुंह में पानी आ रहा था उसकी जीभ में मरोड़ पैदा हो रही थी वह तुरंत ही झुक कर उन चमकती बूंदों को आत्मसात कर लेना चाहता था।

लाली इस बार कुछ ज्यादा देर तक नतमस्तक रही और अपने भाई सोनू के अरमान कुछ हद तक पूरे करती रही और कुछ के पूरे होने की कामना करती रही।

उठने के पश्चात लाली की निगाहें अभी भी उस कलाकृति को ढूंढ रही थी जिसके बारे में राजेश ने अंतरंग पलों में लाली से बताया था।

सोनु लाली की धीमी चाल से अधीर हो रहा था। उसे तो पता ही नहीं था की लाली दीदी क्या खोज रही हैं। लाली हर मूर्ति का बारीकी से निरीक्षण करती और अंततः लाली ने वह मूर्ति खोजली जिसका राजेश ने जिक्र किया था।

लाली के चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई। मूर्ति पर जाकर उसकी आंखें ठहर गई उसमें एक युवती के साथ दो पुरुषों को संभोग स्थिति में दिखाया गया था यद्यपि उनके लण्ड और बुर को कलाकृति से हटा दिया गया था परंतु फिर भी वह मूर्ति चीख चीख कर अपनी दास्तान कह रही थी।

लाली अपने ख्वाबों में स्वयं को उस नायिका की तरह देखने लगी उसकी जांघों के बीच छुपी बुर कांप उठी।

लाली राजेश से अपनी शर्त हार कर भी जीत हुई अपनी उत्तेजना को चरम पर महसूस कर लाली का रोम-रोम संभोग के लिए तैयार हो चला था यदि सोनू संभोग के लिए तैयार होता तू लाली की जाँघे निश्चित ही फैल जाती। लाली उस अद्भुत संभोग करने के लिए मन ही मन खुद को तैयार करने लगी।

उधर सोनू की कामवासना चरम पर पहुंच रही थी मंदिर जैसी पवित्र जगह से जल्दी से निकल जाना चाहता था उसने लाली से कहां दीदी अब चला जाए देर हो रही है दर्शन भी हो गए..

"हां हां चल भगवान करे तेरी सभी मनोकामनाएं पूरी हो आज तूने अच्छा कार्य किया है…."

"फिर मेरा इनाम"

"चल रास्ते में देती हूं…"

इधर सोनू लाली दीदी के साथ रंगरेलियां मना रहा था उधर हॉस्टल में विकास सोनू का इंतजार कर रहा था सोनू और विकास का दोस्त गोलू विकास की बेचैनी देखते हुए बोला

" क्यों परेशान हैं?"

"वह सोनू बहन चोद राजदूत लेकर गया है अब तक नहीं लौटा

"कहां गया है कुछ बताया था?"

"पता नहीं यार मैं उस समय सोने जा रहा था बोला था जल्दी आ जाऊंगा"

"वह पक्का अपनी लाली दीदी के पास गया होगा. साली गच्च माल है। सोनू की बहन नहीं होती तो साली को पटक पटक के चोदता।"

"माल सुनकर विकास के लंड में ही हरकत हुई उसने उत्सुकता से पूछा सच में चोदने लायक है क्या?"

" बेहतरीन माल है एक बार सोनू के साथ जाकर देख आ मिजाज खुश हो जाएगा तेरा और तुझे और तेरे मुन्ने का। फिर हाथों को मेहनत कम करना पड़ेगा और दिमाग को ज्यादा"

" और हां सोनू से अनजान बनकर पूछना उसे यह नहीं लगना चाहिए कि लाली के बारे में मैंने तुझे बताया है"

अभी विकास और गोलू बातें ही कर रहे थे तभी उनका एक और दोस्त अपने माता पिता की कार से उतरकर हॉस्टल में प्रवेश किया उसने विकास को देखते ही बोला…

" तेरी राजदूत कहां है"

" सुबह-सुबह सोनू ले गया है हम लोग उसी की बातें कर रहे थे"

"तब साला पक्का वही था। साले ने तो बनारस में माल पटा ली है आज सुबह-सुबह ही अपनी माल को लेकर शहर के बाहर जा रहा था मैंने आवाज दी पर साला रुका नहीं। तूने अपनी मोटरसाइकिल उसे क्यों दे दी ? उसे तो अभी ठीक से चलाना भी नहीं आता"

उस दोस्त ने अपनी सारी जलन विकास से साझा कर दी।

भोलू ने कहा "अबे उसकी कोई सेटिंग हो ही नहीं सकती इतना शर्मीला है साला"

"नहीं भाई सच कह रहा हूं। एकदम माल थी पर उसकी उम्र कुछ ज्यादा लग रही थी अपने कालेज की तो नहीं थी।"

भोलू ने एक बार सोचा कि शायद सोनू की लाली दीदी ही पीछे बैठकर कहीं जा रही हो परंतु उस लड़के ने बताया कि लड़की सलवार सूट पहने हुए थे और तो और वह राजदूत पर दोनों पैर दोनों तरफ करके बैठी थी यह बात भोलू के अनुसार लाली दीदी नहीं कर सकती थी भोलू ने उन्हें जब भी देखा था साड़ी पहने हुए ही देखा था। खैर बात आयी गई हो गयी परंतु विकास बेसब्री से सोनू का इंतजार कर रहा था। भोलू द्वारा लाली की गदराई जवानी के विवरण ने सोनू के दोस्तों में भी हलचल मचा दी थी।

उधर मंदिर से सोनू अपनी फटफटिया में लाली को बैठा कर वापस चल पड़ा। लाली की बुर एक बार फिर राजदूत की सीट से सटने लगी। परंतु लाली ने अपनी सलवार को बीच में लाने का प्रयास न किया। सीट की गर्मी उसे पसंद आ रही थी। बाहर खिली हुई धूप मौसम को खुशनुमा बनाए हुई थी। लाली इस बार जानबूझकर सोनू से सट कर बैठी थी और उसकी चूचियां सोनू की पीठ से सटी हुई थीं। पीठ पर मिल रहे चुचियों के स्पर्श और अपनी दीदी की पनियायी बुर की कल्पना ने उसके लण्ड को पूरी तरह खड़ा कर दिया था..

कुछ ही देर में सोनू ने लाली से पूछा

"दीदी मेरा इनाम कहां है"

"वह तो तूने मंदिर के पीछे ही ले लिया था"

सोनू सतर्क हो गया और अनजान बनते हुए पूछा

"मंदिर के पीछे?

"ज्यादा बन मत"

"तूने अपने पसंदीदा चीज के दर्शन तो कर ही लिए"

सोनू को सारी बात समझ आ चुकी थी फिर भी उसने उसे छुपाते हुए कहा

"मैंने तो कुछ भी नहीं देखा हां वह मूर्तियां बहुत अच्छी थीं"

लाली ने अपने हाथ बढ़ाएं और सोनू के तने हुए लण्ड को पकड़ लिया अच्छा तो यह महाराज उन मूर्तियों की सलामी दे रहे हैं।

सोनू निरुत्तर था उस ने मुस्कुराते हुए कहा लाली दीदी आप सच में बहुत सुंदर हो...

"मैं या मेरी वो"

"दोनों दीदी"

"पहले तो तूने कभी इतनी तारीफ न की"

"पहले उसके दर्शन भी तो नहीं हुए थे.."

"और उस दिन नहाते समय दरवाजे पर खड़ा क्या कर रहा था…?"

सोनु एक बार फिर निरुत्तर था। लाली की हथेलियां उसके लण्ड पर आगे पीछे हो रही थीं। उसका सुपाड़ा फुल कर लाल हो गया कपड़ों के ऊपर से सहलाए जाने की वजह से सोनू थोड़ा असहज हो रहा था परंतु वह इस सुख से वंचित नहीं होना चाहता था। दर्द और सुख की अनुभूति के बीच एक अद्भुत तालमेल हो चुका था. लाली कोई ऐसा बिल्कुल आभास नहीं था कि कपड़े के ऊपर से लण्ड को मसलने से सोनुको दिक्कत हो सकती थी।

अचानक वही स्पीड ब्रेकर एक बार फिर आ गया जिस पर पिछली बार एक्सीडेंट होते-होते बचा था अपनी उत्तेजित अवस्था के बावजूद सोनू सतर्क था। परंतु लाली अब भी बेपरवाह थी। अचानक आई इस उछाल से सोनू का लण्ड लाली के हाथ से छूट गया सोनू ने चैन की सांस ली और लाली अपने आपको व्यवस्थित करने लगी। राजदूत की सीट लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। जितने वीर्य का उत्सर्जन सोनू अंडकोष कर रहे थे उसकी आधी मात्रा तो निश्चय ही लाली की बुर भी उड़ेल रही थी।

खुद को सीट पर व्यवस्थित करते समय लाली ने अपनी कमर हिलाई और उसकी बुर राजदूत की सीट पर रगड़ उठी। एक सुखद एहसास के साथ लाली को सफर काटने का उपाय मिल गया। उधर सोनू ने अपने पजामे का नाड़ा ढीला किया और लण्ड को पजामे से बाहर कर दिया और उसे अपने कुर्ते का आवरण दे दिया।

अपनी बुर की चाल को नियंत्रित करने के पश्चात लाली को एक बार फिर सोनू के मजबूत पर मुलायम लण्ड की याद आई और उसने अपने हाथ सामने की तरफ बढ़ा दिए। सोनू को लाली की कोमल हथेलियों का स्पर्श प्राप्त हो चुका था। उसके लण्ड ने तीन चार झटके लिए और अपनी परिपक्व महबूबा के हाथों में खेलने लगा।

सोनू के कोमल लण्ड को अपने हाथों में लेकर लाली मचल उठी उसके कुशल हाथ तरह तरह से उस लण्ड से खेलने लगे। जब तक शहर की भीड़भाड़ शुरू होती सोनू के लण्ड ने जवाब दे दिया। वीर्य की धार फूट पड़ी और लाली के हाथ श्वेत धवल गाढ़े वीर्य से सन गए परंतु राजदूत की सीट लाली का स्खलन न करा पायी।

लाली ने सोनू को अपने बाएं हाथ से पकड़ लिया और दाहिने हाथ को अपनी जांघों के बीच लाकर बुर को छूने लगी परंतु वह चाह कर भी स्खलित न हो पाई लाली की तड़प बढ़ चुकी थी।

उन्होंने मिठाई की दुकान पर मोटरसाइकिल रोक दी बच्चों के लिए मिठाई और आइसक्रीम लेकर लाली और सोनू रेलवे कॉलोनी की तरफ बढ़ चले। लाली अब अपने दोनों पैर एक तरफ करके मोटरसाइकिल पर बैठी हुई थी रेलवे कॉलोनी पहुंचते-पहुंचते सड़क पर भीड़ भाड़ बढ़ चुकी थी अचानक साइकिल वाले के सामने आ जाने से सोनू की मोटरसाइकिल का बैलेंस गड़बड़ा गया और सोनू की ड्राइविंग स्किल की पोल एक झटके में ही खुल गई लाली सड़क पर गिर चुकी थी उसकी कमर में चोट लगी थी सोनू की मदद से वह बड़ी मुश्किल से उठ पाई। भगवान का लाख-लाख शुक्र था की मोटरसाइकिल को कोई चोट नहीं लगी की वरना विकास उसका जीना हराम कर देता।

लाली ने कहा सोनू घर पास में ही है तुम चलो मैं पैदल आती हूं। सोनू को लाली की यह बात तीर की तरह चुभ गई उसने अपनी नाराजगी को छुपाते हुए कहा

दीदी उस साइकिल वाले की गलती थी वरना हम लोग नहीं गिरते आप विश्वास रखिए

लाली एक बार फिर मोटरसाइकिल पर बैठ चुकी थी सोनू पूरी सावधानी से लाली को लेकर घर पहुंच गया राजेश अपना टिफिन लेकर बेसब्री से लाली और सोनू का इंतजार कर रहा था। समय कम होने की वजह से वह लाली से ज्यादा बात नहीं कर पाया और निकलते हुए बोला रात तक आता हूं।

लाली ने अपने कमर के दर्द को अपने सीने में दफन करते हुए राजेश से कहा…

आप जीत गए…

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा अपनी तैयारी शुरू कीजिए

लाली मुस्कुरा उठी। लाली का पुत्र सोनू मिठाई और आइसक्रीम के पैकेट देख खुश हो गया था। खुश तो लाली भी बहुत थी परंतु कमर में लगी चोट ने उस खुशी में विघ्न डाल दिया था नियति एक बार फिर मुस्कुरा रही थी। लाली के दर्द में ख़ुशी छुपी हुई थी शायद यह बात लाली नहीं समझ पा रही थी।

उधर सलेमपुर में सरयू सिंह का जन्मदिन करीब आ चुका था। सरयू सिंह बाजार में अपने जन्मदिन के उत्सव की तैयारी कर रहे थे। उन्हें सर्वाधिक इंतजार सुगना द्वारा दिए जाने वाले गिफ्ट का था। सुगना की गुदांज गांड को भेदने की उनकी सर्वकालिक इच्छा कल पूरी होने वाली थी वह सुगना को हर हाल में खुश रखना चाहते थे परंतु उनकी इस इच्छा मैं विरोधाभास था। उन्हें लगता था जैसे इस अप्राकृतिक मैथुन से निश्चय ही सुगना को कष्ट होगा। परंतु उनके विरोधाभास पर विजय उनके लण्ड की ही हुई जो पिछले तीन-चार महीनों सुगना की कोमल बुर् का स्वाद नहीं चख पाया था।

सरयू सिंह ने सुगना के लिए कई सारे कपड़े खरीदे और कजरी के लिए सुंदर साड़ियां। वह कजरी को कभी नहीं भूलते थे। सुगना के लिए लड्डू खरीदते समय उन्हें अपने पुराने दिनों की याद आने लगी जब वह लड्डू में गर्भ निरोधक दवाई मिलाकर अपनी प्यारी सुगना को दो-तीन वर्षों तक बिना गर्भवती किए हुए लगातार चोदते रहे थे हालाकी अब वह उस आत्मग्लानि से निकल चुके थे। सुगना भी यह बात जान चुकी थी और सरयू सिंह की शुक्रगुजार थी जिन्होंने उसे को जवानी का भरपूर सुख दिया था और नियति द्वारा रचे गए संभोग सुख का आनंद भी।

सूरज ढलते ढलते सरयू सिंह गांव वापस आ चुके थे सुगना हाथ में बाल्टी लिए उनका इंतजार कर रही थी उसकी सहेली बछिया जो अब गाय बन चुकी थी। इस मामले में वह सुगना से आगे निकल चुकी थी उसने एक बछड़े और दो बछिया को जन्म दिया था।

कभी-कभी सुगना के मन में दूसरे बच्चे की चाह जन्म लेती। सरयू सिंह से संभोग न कर पाने के कारण सुगना अपने मन की इस इच्छा को दबा ले जाती। हालांकि उसके बाबूजी उसकी कामेच्छा को काफी हद तक पूरा कर देते थे परंतु लण्ड से चुदने का सुख निश्चय ही अलग होता है वह मुखमैथुन और उंगलियों के कमाल से बिल्कुल अलग होता है। सुगना के मन में सरयू सिंह के मजबूत लण्ड की अंदरूनी मालिश की तड़प बढ़ती जा रही थी।

सरयू सिंह को देखकर सुगना चहकने लगी उसने फटाफट सरयू सिंह के कंधे में टंगे झोले को लिया और उसे झट से आंगन में रख आई। बाल्टी में रखी हुई पानी से उसने शरीर सिंह के हाथ और पैर धोए और बोली

"चली दूध दूह दीं आज देर हो गईल बा"

"सुगना के चेहरे पर खुशी और उसकी धधकती जवानी देख कर शरीर सिंह का रोम-रोम खुश हो जाता. उन्होंने सुगना को अपनी तरफ खींचा और उसकी बड़ी बड़ी चूचीयां सरयू सिंह के पुस्ट सीने से सटकर सपाट हो गयीं। उसके भरे भरे नितंब सरयू सिंह की मजबूत और बड़ी-बड़ी हथेलियों में आ चुके थे। सरयू सिंह थोड़ा झुक कर अपने खुर्रदुरे गाल सुगना के कोमल गालों से रगड़ रहे थे। सुगना ने मचलते हुए कहा पहले गाय के दूध दुह लीं। सरयू सिंह ने सुगना को छोड़ दिया और बाल्टी लेकर सुगना की सहेली गाय का दूध दुहने लगे।

सुगना ने कजरी की जगह ले ली थी वह अपनी सहेली के पुट्ठों पर हाथ फेरने लगी और सरयू सिंह गाय की चुचियों से दूध दुहने लगे….

सुगना को अचानक लाली की याद आई एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह लाली के नितंब सहला रही थी और कोई उसकी चुचियों से दूध निकाल रहा था। सुगना के दिमाग में राजेश की तस्वीर भी घूम रही थी को हमेशा उसके समीप आने को लालायित रहता था। उसकी सहेली गाय का दूसरा बच्चा भी दूसरे सांड से हुआ था। सुगना के मन मे अपने दूसरे सांड की तस्वीरें घूमने लगीं...

"कहां भुलाइल बाडू"

"काल राउर जन्मदिन ह नु" सुगना ने सरयू सिह को खुश कर दिया।

सरयू सिह उठकर खड़े हुए और अपनी आंखों में उम्मीद लिए सुगना से बोले

"तैयारी बा नु"

"का तैयारी करें के बा?"

उसने अनजान बनते हुए कहा...

सरयू सिंह ने सुगना के नितंबों पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए बोले

"आपन वादा याद बा नु?"

"याद बा…."

सुगना ने सरयू सिंह जी के हाथ से बाल्टी ली और आंगन में भाग गई कल की बातें सोच कर उसकी जांघों के बीच बुर सतर्क हो गई थी पर उसकी छोटी सी गांड सहम गई थी….

शेष अगले भाग में

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#47
Heart 
भाग-43



हॉस्टल के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आज के सुखद और दुखद पलों को याद कर रहा था। विकास ने आज उसके साथ जो बर्ताव किया था उसकी उम्मीद उसे न थी।

माना कि उसकी हैसियत मोटरसाइकिल खरीदने की न थी। पर सोनू काबिलियत में विकास से बेहतर था। विकास तो अपने माता पिता की दौलत की वजह से अय्याशी की जिंदगी व्यतीत करता था। परंतु सोनू अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझते हुए कम खर्च में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था।

लाली दीदी के घर पहुंच कर उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली 11:00 बज चुके थे निश्चय ही देर हो गई थी। राजेश के जाने के पश्चात लाली धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ने लगी कमर में आई चोट अपना प्रभाव दिखा रही थी लाली के कदम गर्भवती महिला की तरह धीरे धीरे पड़ रहे थे। एक पल के लिए सोनू को बेहद अफसोस हुआ। उसने लाली दीदी को अनजाने में ही कष्ट तो दे ही दिया था।

सोनू ने लाली के हाँथ पकड़ लिए और सहारा देते हुए घर के अंदर ले आया लाली के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर सोनू खुश हो गया परंतु लाली के चेहरे पर तनाव था। शायद दर्द कुछ ज्यादा था।

इस स्थिति में लाली को छोड़कर जाना उचित न था परंतु विकास की मोटरसाइकिल वापस करना भी उतना ही जरूरी था।

सोनू ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए लाली से कहा

"दीदी मुझे मोटरसाइकिल वापस करने जाना पड़ेगा।"

लाली ने अपने दर्द को छुपाते हुए कहा

"सोनू बाबु कुछ खाना खा ले तब जाना"

" नहीं दीदी मैं हॉस्टल में खा लूंगा. मुझे पहले ही बहुत देर हो चुकी है"

"सोनू, ऐसे खाली पेट कैसे जाएगा? मुझे अच्छा नहीं लगेगा"

"नहीं दीदी मुझे जाना होगा"

लाली ने कोई और रास्ता ना देख कर फटाफट बाजार से खरीदी हुई मिठाई सोनू के मुंह में जबरदस्ती डाल दी और पास बड़ी बोतल उठाकर उसके हाथों में पकड़ा दी "सोनू बाबू थोड़ा पानी तो पी ले" लाली बड़ी बहन की भूमिका बखूबी निभा रही थी।

सोनू फटाफट मिठाई खाते हुए पानी पीने लगा. तभी लाली ने पीछे मुड़कर अपनी चुचियों के बीच फंसे 100 -100 के दो नोट निकाले( जिसे सोनू ने निकालते हुए देख लिया) और सोनू को देते हुए बोली..

"यह अपने पास रख ले खर्च में काम आएंगे"

"नहीं दीदी इसकी कोई जरूरत नहीं है"

" मैंने कहा ना रख ले"

सोनू को निश्चय ही पैसों की जरूरत थी। अभी राजदूत में तेल फुल करवाना था। उसने लाली के सामने ही उन रुपयों को लिया और चूम लिया।

लाली को एक पल के लिए लगा जैसे सोनू ने उसके उभरे हुए उरोजों को ही चूम लिया. लाली अपना दर्द भूल कर एक बार फिर शर्म से लाल हो गई। उसने अपनी निगाहें झुका ली और सोनू ने अपने कदम दरवाजे से बाहर की तरफ बढ़ा दिए। जब लाली ने अपनी नजरें उठाई वह अपने मासूम और अद्भुत प्रेमी को राजदूत की तरफ बढ़ते हुए देख रही थी।

लाली को भी आज सुख और दुख की अनुभूति एक साथ ही मिली थी। नियति सामने मुंडेर पर बैठे मुस्कुरा रही थी। लाली का यह दर्द शीघ्र ही सुख में बदलने वाला था।

सोनू राजदूत लेकर फटाफट पेट्रोल पंप पर पहुंचा और पेट्रोल फुल करवाया इसके बावजूद उसके पास ₹50 शेष रह गए जो उसके कुछ दिनों के खर्चे के लिए पर्याप्त थे। उसने लाली दीदी को मन ही मन धन्यवाद दिया और उनके स्वस्थ होने की कामना की और मोटरसाइकिल को तेजी से चलाते हुए हॉस्टल की तरफ बढ़ चला।

हॉस्टल की लॉबी में पहुंचते ही उसकी मुलाकात विकास और भोलू से हो गई

"अबे साले तू तो 9:00 बजे तक आने वाला था? टाइम देख कितना बज रहा है"

सोनू ने अपनी घड़ी देखी और मैं दिमाग मैं उचित उत्तर की तलाश में लग गया

"पहले बता कहां गया था?"

विकास के प्रश्न लगातार आ रहे थे अंततः सोनू ने संजीदगी से कहा

"कुछ नहीं यार ऐसे ही अपने रिश्तेदार के यहां गया था" सोनू का उत्तर सुनकर भोलू ने अपनी नजरें झुका ली और मन ही मन मुस्कुराने लगा।

"सच-सच बता किस रिश्तेदार के यहां गया था?"

"अरे मेरी एक बहन यहां रहती हैं उनके पास ही गया"

"अच्छा बेटा तो ये बता मोटरसाइकिल पर लाल सूट में कौन लड़की बैठी थी?"

सोनू पूरी तरह आश्चर्यचकित हो गया उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था अब झूठ बोलना संभव नहीं था। उसने विकास और भोलू को सारी बातें साफ-साफ बता दी सिर्फ उस बात को छोड़ कर जिसके बारे में उसके दोस्त सुनना चाहते थे।

विकास ने चुटकी लेते हुए कहा

"यार जिसने तुझे और उस लड़की मेरा मतलब तेरी लाली दीदी को देखा था वह कह रहा था कि भगवान ने उसे बड़ी खूबसूरती से बनाया है तू सच में तो उसे बहन तो नहीं मानता?"

"अरे बहन है तो बहन ही मानूँगा ना। "

"तो ठीक है बेटा आज से मुझे अपना जीजा मान ले।. इतनी गच्च माल को मैं तो नहीं छोडूंगा पक्का उसे पटाउंगा और …...।"

"ठीक है यदि तू उसे पटा कर सका तो मुझे तुझे जीजा बनाने में कोई दिक्कत नहीं।"

लाली को ध्यान में रखते हुए सोनू ने यह बात कह तो दी परंतु नियति ने सोनू की यह बात सुन ली. विकास सोनू का जीजा…... नियति मुस्कुरा रही थी…

बनारस महोत्सव करीब आ रहा था. दो अनजान जोड़े मिलन के लिए तैयार हो रहे थे। सोनू की बहन सोनी अपनी जांघों के बीच उग रहे बालों से परेशान हो रही थी उसकी खूबसूरत बुर को चूमने और चोदने वाला उसके भाई सोनू से बहस लड़ा रहा था।

सोनू ने उस समय तो बात खत्म कर दी थी परंतु अब हॉस्टल के बिस्तर पर लेटे हुए हुए उसी बात को मन ही मन सोच रहा था। विकास ने कैसे उससे लाली दीदी के बारे में वैसी बात कह दी थी। कितना दुष्ट है साला वो। उसके मन में तरह-तरह के गलत ख्याल आ रहे थे वह विकास से अपनी दोस्ती तोड़ने के बारे में भी सोच रहा था। तभी विकास और भोलू कमरे में आ गए सोनू को उदास देखकर वह दोनों बोले...

"यार तू गुमसुम यहां बैठा है"

"हां मन नहीं लग रहा था" सोनू ने बेरुखी से जवाब दिया

"क्यों क्या बात है?"

"कुछ नहीं, मुझे बात नहीं करनी है तुम लोग जाओ"

विकास सोनू के मन की बात जानता था उसने विकास का हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा ...

"अरे भाई माफ कर दे उस समय मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया, तेरी लाली दीदी मेरी भी लाली दीदी है मेरी बात को गलत मत लेना"

विकास के मनाने पर सोनू का गुस्सा काफूर हो गया।

उघर लाली का दर्द बढ़ गया था उसने पड़ोसियों की मदद से दर्द निवारक दवा मंगवा ली थी और चोट लगी जगह पर मलने के लिए एक क्रीम भी. उसने दवा तो खा ली पर अपने हाथों से अपनी ही कमर के ऊपर क्रीम लगाना इतना आसान न था। वह राजेश को बेसब्री से याद कर रही थी कि काश वह रात में आ जाता। परंतु रेलवे की टीटी की नौकरी का कोई ठिकाना न था। राजेश रात को नही लौटा और लाली राजेश को याद करती रही। उसके मन में सोनू के प्रति कोई गुस्सा न था सोनू उसे पहले भी प्यारा था और अब भी.

उधर अगली सुबह सरयू सिंह सुबह-सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर दालान में पहुंचे। आज उनके चेहरे पर खुशी स्पष्ट देखी जा सकती थी। आगन से सुनना गिलास में चाय लिए हुए हाजिर हो गई उसने सरयू सिंह के चरण छुए और बेहद आत्मीयता से बोली

"बाबूजी आज राउर जन्मदिन ह"

सरयू सिंह ने सुगना द्वारा लाई गई चाय एक तरफ रख दी और उसे अपनी गोद में खींच लिया। अपनी दाहिनी जांघ पर बैठाते हुए वह सुगना के कोमल गालों को चुमें जा रहे थे और सुगना उनकी बाहों में पिघलती जा रही थी।

सुगना ने भी उन्हें चूमते हुए कहा

"बाबूजी पहले चाय पी ली ई कुल काम दोपहर में"

सुगना ने कजरी को सब कुछ साफ-साफ बता दिया था. आज सरयू सिंह के जन्मदिन के विशेष उपहार के रूप में कजरी ने भी सुगना को चुदने की इजाजत दे दी थी थी.

सरयू सिंह बेहद प्रसन्न थे। उन्होंने पिछले तीन-चार महीनों से सुगना से संभोग का इंतजार किया था तो तीन चार घंटे और भी कर सकते थे। उन्होंने सुगना की बात मान ली और वह अपनी नजरों से सुगना के खूबसूरत जिस्म का और होठों से चाय का आनंद लेने लगे।

सुगना अपने बाबूजी की कामुक निगाहों को अपनी चूचियां और जांघों के बीच टहलते हुए देखकर रोमांचित हो रही थी और होठों पर मुस्कान लिए उनकी चाय खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

कजरी ने अपने कुँवर जी के जन्मदिन के विशेष अवसर पर तरह-तरह के पकवान बनाए और सरयू सिंह का पसंदीदा मालपुआ भी बनाया। परंतु सरयू सिंह को जिस मालपुए की तलाश थी उसके सामने यह सारे पकवान फीके थे। सुगना का मालपुआ रस से सराबोर अपने बाबूजी के होठों और मजबूत लण्ड का इंतजार कर रहा था।

समय काटने के लिए सरयू सिंह ने अपनी कोठरी की साफ सफाई शुरू कर दी। इसी कोठरी में आज वह अपनी प्यारी बहू सुगना को जम कर चोदना चाहते थे। उनका लण्ड भी नए छेद के लिए तड़प रहा था। कितनी कसी हुई होगी सुगना की कोमल गांड उसकी कल्पना मात्र से ही उनका लण्ड में तनाव आ रहा था। वह बार-बार उसे समझाते परंतु वह मानने को तैयार ना था। इंतजार धीरे धीरे बेसब्री में बदल रहा था। काश सरयू सिंह के पास दिव्य शक्ति होती तो वह समय को मुट्ठी में सिकोड़ कर समय को पीछे खींच लेते लेते।

साफ सफाई के दौरान सरयू सिंह को शिलाजीत रसायन की 2 गोलियां मिल गयीं। सरयू सिंह की आंखों में चमक आ गई। गोलियों के प्रभाव और दुष्प्रभाव से वह बखूबी परिचित थे उनके मन में कामेच्छा और डॉक्टर के निर्देश दोनों के बीच द्वंद्व शुरू हो गया। उस गोली को वह खाएं या ना खाएं इसी उहापोह में कुछ पल बीत गए। विजय लंड की ही हुई।

शरीर का सारा रक्त लण्ड में भर चुका था और दिमाग के सोचने की शक्ति स्वाभाविक रूप से कम हो गई थी। सरयू सिंह ने एक गोली घटक ली। और दूसरी गोली अपने बैग में रख लीजिए वह हमेशा अपने साथ रखते थे। सुगना के दोनों अद्भुत छेदों का आनंद लेने के लिए सरयू सिंह ने डॉक्टर के सुझाव को दरकिनार कर दिया था।

अंदर सुगना नहा धोकर तैयार हो रही थी। आज उसे दीपावली के दिन की याद आ रही थी जब मन में कई उमंगे और अनजाने डर को लिए हुए वह अपने जीवन का पहला संभोग सुख लेने जा रही थी। आज उसके मन में बार-बार उसकी छोटी सी गांड का ख्याल आ रहा था जिसे आज एक नया अनुभव लेना था। परंतु उसके डर पर उसकी बुर की उत्तेजना हावी थी वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से बेतहाशा चुदना चाहती थी उसकी तड़प भी अब चरम पर पहुंच चुकी थी।

कजरी भी पूरी तरह मन बना चुकी थी। उसने भगवान से प्रार्थना की कि उसके कुंवरजी सरयू सिंह का स्वास्थ्य कायम रहे। सुगना को मुखमैथुन पर विशेष जोर देकर और सरयू सिंह से कम से कम मेहनत कराने की बात समझा कर वह अपनी बहू को लेकर उनकी कोठरी में आ गई। सुगना ने अपने हाथ में पूजा की थाली ली हुई थी और कजरी ने अपनी थाली पर पकवान रखे हुए थे।

दोनों ने उनके जन्मदिन के अवसर पर औपचारिकताएं पूरी कीं। कजरी ने सरयू सिंह को आरती दिखायी और माथे पर तिलक लगाया। सरयू सिंह के मन में एक बार यह ख्याल आया जैसे वह जंग पर जाने वाले वीर सिपाही हों। अपनी कोमलांगी बहु सुगना के कोमल छेद के भेदन के लिए इतनी तैयारी…. सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे।

उनकी निगाहें सुगना की ब्लाउज से झांकती हुई चुचियों पर गड़ी हुई थी। सुगना ने अपने हाथों से उन्हें मालपुआ खिलाया और उन्होंने उसकी उंगलियों को अपने होठों से पकड़ लिया। कजरी अपनी बहू और कुँवरजी की अठखेलियां देख रही थी और शीघ्र ही वहां से हटने की सोच रही थी तभी गांव का चौकीदार भागता हुआ आया….

सरयू भैया सरयू भैया चलये मनोरमा मैडम ने आपको तुरंत बुलाया है।

सरयू सिंह भौचक रह गए

"अचानक कैसे आ गई मनोरमा मैडम?"

उन्हीं से पूछ लीजिएगा? कुछ जरूरी काम होगा तभी ढेर सारे पटवारी भी उनके साथ हैं"

"जा बोल दे मेरी तबीयत खराब है मैं नहीं आ सकता" सरयू सिंह किसी भी हाल में सुगना का साथ नहीं छोड़ना चाह रहे थे…

सुगना और कजरी मुस्कुरा रही थीं। सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया एक पल के लिए उसे लगा जैसे नियति ने आज भी उसके काम सुख पर ग्रहण लगा दिया था परंतु उसके बाबूजी अभी मोर्चा लिए हुए थे।

चौकीदार ने कहा

"छुट्टी तो नहीं लिया है ना आपने, चुपचाप जाकर मिल लीजिए बाकी आप जानते हैं मैडम कैसी हैं"

सरयू सिंह के दिमाग में मनोरमा का चेहरा घूम गया। वो बेहद कड़क एसडीएम थीं। जितनी कड़क उतनी ही सुंदर । 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई भरा पूरा शरीर और सुंदर मुखड़ा तथा वह सरयू सिंह से बेहद तमीज से पेश आती थी।

सरयू सिंह इस बात को बखूबी मानते थे कोई भी सुंदर और युवा औरत उनकी कद काठी देखकर उन पर आसक्त तो हो सकती थी पर उनसे क्रोधित होना शायद सुंदर नारियों के के वश में न था।

इसके बावजूद ओहदे की अपनी चमक होती है। सरयू सिंह के मन में उसका खौफ हमेशा रहता था किसी महिला से डांट खाना उन्हें कतई गवारा ना था।

चौकीदार से हो रही इतनी देर की बहस में ही सरयू सिंह की उत्तेजना पर ग्रहण लग चुका था उन्होंने मनोरमा से मिलना ही उचित समझा और अपनी सजी-धजी प्रियतमा सुगना को देखते हुए बोले

"सुगना बेटा थोड़ा इंतजार करो मैं आता हूं"

चौकीदार ससुर और बहू के बीच में यह संबोधन देखकर वह सरयू सिंह से प्रभावित हो गया।

उधर प्राइमरी कॉलेज पर खड़ी एसडीएम मनोरमा परेशान थी उसने प्राइमरी कॉलेज के टॉयलेट का प्रयोग करने की सोची पिछले दो-तीन घंटों से लगातार दौरा करते हुए उसे जोर की पेशाब लग चुकी थी परंतु कॉलेज का टॉयलेट देखकर वह नाराज हो गई। तुरंत इतनी जल्दी इसकी सफाई हो पाना भी असंभव था।

कॉलेज के प्रिंसिपल ने हाथ जोड़कर कहा

मैडम जी सरयू सिंह जी का घर बगल में ही है आप वहीं चली जाए। मनोरमा के दिमाग में सरयू सिंह का मर्दाना और बलिष्ठ शरीर घूम गया। उनके पहनावे और चेहरे की चमक को देखकर मनोरमा जानती थी कि वह एक संभ्रांत पुरुष है। वह तैयार हो गई सरयू सिंह अपने दरवाजे से कुछ ही दूर आए होंगे तभी मनोरमा अपने काफिले के साथ ठीक उनके सामने आ गई।

सरयू सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया और मनोरमा ने भी अपने चेहरे पर मुस्कान ला कर उनका अभिवादन स्वीकार किया।

साथ चल रहे सिक्युरिटी वाले ने सरयू सिंह के कान में सारी बात बता दी और सरयू सिंह उल्टे पैर वापस अपने घर की तरफ आने लगे। उनके चेहरे पर मुस्कान थी मनोरमा मैडम ने उनके घर आकर निश्चय ही उन्हें इज्जत बख्शी थी। रास्ते में चलते हुए मनोरमा ने कहा..

आप भी बनारस चलने की तैयारी कर लीजिए दो-तीन दिनों का काम है बनारस महोत्सव की तैयारी करनी है

सरयू सिंह आज किसी भी हाल में सुगना को छोड़ने के मूड में नहीं थे मुंह में हिम्मत जुटा कर कहा

"मैडम मैं परसों आता हूं मेरे परिवार वाले भी उस महोत्सव में जाना चाहते हैं"

"फिर तो बहुत अच्छी बात है आप मेरे साथ चलिए और वहां महोत्सव की तैयारियां कराइये मैं परसों अपनी गाड़ी भेज कर इन्हें बुलवा लूंगी।"

मनोरमा ने शरीर सिंह के घर में जाकर उनका बाथरूम प्रयोग किया। सुगना और कजरी ने मनोरमा का दिल खोलकर स्वागत किया सुगना की खूबसूरती और कजरी की आवभगत देखकर मनोरमा बेहद प्रसन्न हुई। सुगना की खूबसूरत और कुंदन जैसी काया देखकर मनोरमा उससे बेहद प्रभावित हो गई गांव की आभाव भरी जिंदगी में भी सुगना ने इतनी खूबसूरती कैसे कायम रखी थी यह मनोरमा के लिए आश्चर्य का विषय था । वह उससे ढेर सारी बातें करने लगी सुगना ने कुछ ही पलों में अपना प्रभाव मनोरमा पर छोड़ दिया था।

उधर सरयू सिंह पर शिलाजीत रसायन का असर था जब जब वह सुगना को देखते उनका लण्ड उछल कर खड़ा हो जाता परंतु आज उन्हें सुगना से दूर करने के लिए नियति ने मनोरमा को भेज दिया था।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे नियति बनारस महोत्सव को रास रंग का उत्सव बनाने की तैयारी में थी। कजरी ने सरयू सिंह के कपड़े तैयार किये और कुछ ही देर में सरयू सिंह मनोरमा के पीछे पीछे जीप की तरफ चल पड़े। सुगना अपनी जांघों के बीच अपनी उत्तेजना को दम तोड़ते हुए महसूस कर रही थी।

सुगना और कजरी को एक ही बात की खुशी थी कि बनारस महोत्सव जाने का प्रोग्राम पक्का हो गया था वह भी एसडीएम द्वारा भेजी जा रही गाड़ी से। यह निश्चय ही सम्मान का विषय था। मनोरमा के आगमन से सुगना और कजरी दोनों की प्रतिष्ठा और बढ़ गई थी।

सुगना ने अपनी बुर को दो-चार दिन और इंतजार करने के लिए समझा लिया।

परंतु बनारस में सोनू के दिमाग में बार-बार लाली का चेहरा आ रहा था उस को लगी चोट सोनू को परेशान कर रही थी। लाली दीदी कैसी होंगी? क्या आज ठीक से चल पा रही होंगी ? यह सब बातें सोच कर उसका मन नहीं लग रहा था अंततः वह हॉस्टल से बाहर आया और लाली के घर की तरफ चल पड़ा.

लाली का पुत्र राजू कॉलेज गया हुआ था और लाली बिस्तर पर पड़ी टीवी देख रही थी उसने दरवाजा जानबूझकर बंद नहीं किया का बार-बार चलने में उसे थोड़ा कष्ट हो रहा था। राजेश दोपहर के बाद आने वाला था इसीलिए उसने दरवाजा खुला छोड़ दिया था।

लाली के दरवाजे पर पहुंचकर सोनू ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से लाली ने आवाज दी

"आ जाइए दरवाजा खुला है"

सोनू थोड़ा आशंकित हो गया। क्या लाली की सच में तबीयत ज्यादा खराब है? लाली हाल में नहीं थी वह अंदर कमरे में आ गया। लाली पेट के बल लेटी हुई थी। उसने आगंतुक को देखे बिना ही कहा थोड़ा आयोडेक्स लगा दीजिए। इतना कहते हुए उसने अपनी ब्लाउज और पेटीकोट के बीच नंगी पीठ को खोल दिया।

सोनू लाली की नंगी पीठ को अपनी आंखों के सामने देखकर मंत्रमुग्ध हो गया उसमें कोई आवाज न कि और पास पड़े आयोडेक्स को उंगलियों में लेकर लाली दीदी की पीठ को छू लिया। सोनू की उंगलियों के स्पर्श को लाली तुरंत पहचान गई और अपनी गर्दन घुमाते हुए बोली

"अरे सोनू बाबू…. मैं समझी कि वो आए हैं"

"कोई बात नहीं दीदी दवा ही तो लगानी है मैं लगा देता हूँ"

लाली ने अपनी शर्म को छुपाते हुए कहा

"छोड़ दे ना वह आएंगे तो लगा देंगे तेरे हाथ गंदे हो जाएंगे"

"अब तो हो गए दीदी" सोनू ने अपनी दोनों उंगलियां (जिस पर आयोडेक्स लिपटा हुआ था) लाली को दिखा दीं।

लाली मुस्कुराने लगी और वापस अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया। सोनू की उंगलियां लाली की पीठ के निचले हिस्से पर दर्द के केंद्र की तलाश में घूमने लगीं। लाली दाएं बाएं ऊपर नीचे शब्द बोल कर सोनू की उंगलियों को निर्देशित करती रही और अंततः सोनू ने वह केंद्र ढूंढ लिया जहां लाली को चोट लगी थी।

सपाट और चिकनी कमर जहां दोनों नितंबों में परिवर्तित हो रही थी वही दर्द का केंद्र बिंदु था। लाली का पेटीकोट सोनू की उंगलियों को उस बिंदु तक पहुंचने पर रोक रहा था। सोनू अपनी उंगलियों में तनाव देकर उस जगह तक पहुंच तो जाता पर जैसे ही वह अपनी उंगलियों का तनाव ढीला करता पेटीकोट की रस्सी उसे बाहर की तरफ धकेल देती।

शायद पेटिकोट की रस्सी लक्ष्मण रेखा का काम कर रही थी। तकिए में मुह छुपाई हुई लाली नसोनू की स्थिति बखूबी समझ रही थी। यही वह बिंदु था जिसके आगे सोनू के सपने थे। लाली मुस्कुराती रही परंतु उसके सीने की धड़कन तेज हो गई थी उसके हाथ नीचे की तरफ बढ़ते गए। पेटीकोट की रस्सी लाली के हाथों में आ चुकी थी।

उत्तेजना और मर्यादा में एक बार फिर उत्तेजना की ही जीत हुई और पेटीकोट की रस्सी ने अपना कसाव त्याग दिया। सोनू की उंगलियां एक बार फिर उस बिंदु पर मसाज करने पहुंची। पेटिकोट की रस्सी अपना प्रतिरोध खो चुकी थी सोनू की उंगलियां जितना पीछे जाती वह सरक पर और दूर हो जाती। लाली के दोनों नितम्ब सोनू को आकर्षित करने लगे थे। एकदम बेदाग और बेहद मुलायम। यदि नितंबों पर एक निप्पल लगा होता तो सोनू जैसे युवा के लिए चुचियों और नितंबों में कोई फर्क ना होता। सोनू ने न अपना दूसरा हाथ भी लाली की सेवा में लगा दिया।

लाली को दर्द से थोड़ा निजात मिलते ही उसका ध्यान सोनू की हरकतों की तरफ चला गया। सोनू लाली के नितंबों से खेलने लगा। पेटिकोट ने नितंबों का साथ छोड़ दिया था और उसकी जांघों के ऊपर था। सोनू बीच-बीच में दर्द को के केंद्र को सहला था और अपने इस अद्भुत मसाज की अहमियत को बनाए रखा था।

परंतु उसका ज्यादा समय लाली के नितंबों को सहलाने में बीत रहा था। सोनू के मन में शरारत सूझी और उसने लाली के दोनों नितंबों को अलग कर दिया लाली की बेहद सुंदर गांड और बुर का निचला हिस्सा सोनू को दिखायी पड़ गया। बुर पर मदन रस चमक रहा था।

लाली की का गांड पूरी तरह सिकुड़ी हुई थी। नितंबों पर आए तनाव को देखकर उन्होंने यह महसूस कर लिया। लाली ने जानबूझकर अपनी गांड छुपाई हुई थी। सोनू ने नितंबों को सहलाना जारी रखा। उसे पता था लाली ज्यादा देर तक उसे सिकोड़ नहीं पाएगी।अंततः हुआ भी वही, लाली सामान्य होती गई परंतु उसकी बुर पर आया मदन रस धीरे धीरे लार का रूप लेकर चादर पर छूने लगा।

सोनू वह खूबसूरत दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था। गांव की बछिया और गायों की सेवा करते करते बुर से बहने वाली लार का मतलब उसे पता था…..

शेष अगले भाग में।

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#48
Heart 
भाग-44


पिछले भाग में आपने पढ़ा...

सोनू वह खूबसूरत दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था। गांव की बछिया और गायों की सेवा करते करते बुर से बहने वाली लार का मतलब उसे पता था…


अब आगे...


सोनू अपनी दीदी लाली की रिसती हुई बुर को देख खुद को न रोक पाया उसने झुककर लाली की लाली की बुर को चूमने की कोशिश की परंतु लाली ने उसी समय कमर को थोड़ा हिलाया और लाली की गांड सोनू के होठों से छू गई….


एक पल के लिए सोनू को अफसोस हुआ परंतु लाली के कोमल नितंबों ने सोनू के गालों पर हल्की मसाज कर दी। लाली को अपनी गलती का एहसास हो गया था। सोनू अपने पहले प्रयास में लक्ष्य तक पहुंचने में असफल रहा परंतु सोनू को लाली दीदी का हर अंग प्यारा था।


उसने एक बार फिर प्रयास किया उधर लाली में अपनी गलती के प्प्रायश्चित में अपनी जांघें थोड़ा फैला दी सोनू के होंठ लाली के निचले होठों से सट गए। पहली बार की कसर सोनू ने दूसरी बार निकाल ली। उसने लाली की छोटी सी बुर के दोनों होंठों को अपने मुंह में भर लिया और उसका रस चूसने लगा। सोनू अबोध युवा की तरह लाली की बुर चूस रहा था उसे यह अंदाज नहीं था की वह लाली का सबसे कोमल अंग था। लाली सिहर उठी उसमें अपने हाथ पीछे कर सोनु के सर को पकड़ने की कोशिश की पर असफल रही। उसकी पीठ में थोड़ा दर्द महसूस हुआ।
अपने अनाड़ी और नौसिखिया भाई के होठों में अपनी बुर देकर वह फंस चुकी थी। लाली ने सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया और कराहते हुए बोली "बाबु तनि धीरे से….. "


अपनी फूली हुयी बुर को अपने भाई सोनू को सौंप कर वह अपने तकिए में मुंह छुपाए अपने अनाड़ी भाई सोनू के होठों और जीभ की करामात का आनंद लेते हुए अगले कदम का इंतजार करती रही। सोनू जब-जब नितंबों और जांघों के जोड़ पर अपना चेहरा ले जाता लाली के कोमल नितंब और गदराई जाँघे सोनू के चेहरे को पूरी तरह ढक लेते। सोनू अपने सर का दबाव बढ़ा कर अपने होठों को बुर तक ले जाता और लाली की बूर को चूमने का प्रयास करता।


सोनू को अपनी लंबी जीभ का ध्यान आया उसने उसे भी मैदान में उतार दिया। सोनू की जीभ बुर् के निचले भाग पर पहुंचने लगी और लाली की भग्नासा को छूने लगी। लाली उत्तेजना से कांपने लगी उसे लगा जैसे यदि उसने सोनू को नहीं रोका तो कुछ ही देर में सोनू अपना अगला कदम बढ़ा देगा। सोनू की जीभ और होठों से मिल रहे अद्भुत सुख को लाली छोड़ना भी नहीं चाहती थी।


लाली चुदना चाह रही थी पर उसने राजेश को जो वचन दिया था उसे तोड़ना नहीं चाहती थी। उसने अपनी यथास्थिति बनाए रखी। सोनू ने लाली की जाँघे पकड़कर उसे सीधा लिटाने का प्रयास किया। लाली ने दर्द भरी आह भरी। यह लाली ने जानबूझकर किया था। पीठ के बल लेटने पर उसकी नजरें सोनू से निश्चित ही मिलती और वह इस विषम स्थिति से बचना चाहती थी । अपने चेहरे पर वासना लिए अपने छोटे भाई से नजरें कैसे मिलाती। और यदि पीठ के बल लेटने के पश्चात सोनू कहीं संभोग के लिए प्रस्तुत हो जाता तो वह कैसे उसे रोक पाती ? जिस लंड की कल्पना और बातें कर उसने और राजेश ने अपनी कई रातें जवान की थी उसे मना कर पाना लाली के वश में न था।
सोनू ने भी उसे तकलीफ न देते हुए वापस उसी स्थिति में छोड़ दिया। सोनू के होठों से बहती लार और लाली की बुर से रिस रहे काम रस के अंश चादर पर आ चुके थे।


सोनू ने अपने लण्ड को बाहर निकाल दिया तने हुए लण्ड पर अपनी हथेलियां ले जाकर सहलाने लगा। लंड में सनसनी होने से उसे आयोडेक्स की याद आई उसने फटाफट अपने हाथ चादर के कोने से पोछे। लण्ड को पोछने के लिए उसने लाली की साड़ी का पल्लू खींच लिया।


लण्ड की जलन को सिर्फ और सिर्फ लाली की बुर ही अपने मखमली अहसाह से मिटा सकती थी। सोनू बिस्तर पर आ गया और अपनी अपने दोनों पैर लाली की जांघों के दोनों तरफ कर लाली पर झुकता चला गया।


जैसे ही उसके मजबूत लण्ड ने लाली के गदराये नितंबों को छुआ लाली उत्तेजना से कांप उठी। जिस प्रकार छोटे बच्चे लॉलीपॉप देखते ही अपना मुंह खोल देते हैं उसी प्रकार लाली की बुर ने अपने लॉलीपॉप के इंतजार में मुंह खोल दिया।


सोनू सच मे अनाड़ी था। लाली के फुले और कोमल में गोरे और कोमल नितम्ब देखकर वह मदहोश हो चुका था। सोनू व्यग्र हो गया था जैसे ही लंड ने नितंबों को छुआ सोनू ने अपनी कमर आगे बढ़ा दी लण्ड बुर की छेद पर न था लाली दर्द से तड़प उठी। ऐसा लग रहा था जैसे लण्ड नितंबों के बीच नया छेद करने को आतुर था "बाबू तनि नीचे…" लाली एक पल के लिए राजेश को दिया वचन भूल कर अपनी बुर को ऊपर उठाने लगी।


परंतु नियति निष्ठुर थी जैसे उसने बनारस के आसपास कामवासना को जागृत तो कर रखा था परंतु संभोग पर पाबंदी लगा रखी थी। 


दरवाजे पर फिर खटखट हुई। सोनू घबरा गया वो फटाफट नीचे उतरा और अपने हथियार को वापस पजामे में भरकर भागकर दरवाजा खोलने गया।

राजेश को देखकर उसकी सिद्धि पिट्टी गुम हो गई अंदर बिस्तर पर लाली अर्धनग्न अवस्था में थी। वह राजेश को क्या मुंह दिखाएगा?


सोनू में जोर से आवाज दी " दीदी जीजू हैं " लाली ने फटाफट अपने पेटिकोट को ऊपर किया और चादर ओढ़ ली. 


राजेश और सोनू अंदर आ चुके थे। आयोडेक्स की महक कमरे में फैली थी। राजेश को समझते देर न लगी की सोनू की उंगलियों ने लाली की पीठ का स्पर्श कर लिया है। राजेश का लण्ड खड़ा हो गया। उसे पता था सोनू के स्पर्श से लाली निश्चित ही गर्म हो चुकी होगी और चुदने के लिए तैयार होगी।

सोनू ने अब और देर रहना उचित न समझा उसने लाली से कहा "दीदी एक-दो दिन आराम कर लीजिए" परसों से बनारस महोत्सव शुरू होने वाला है तब तक पूरी तरह ठीक हो जाइए। दवा टाइम से खाते रहिएगा"

सोनू ने राजेश से अनुमति ली। लाली अब तक करवट ले चुकी थी उसने सोनू से कहा "बनारस महोत्सव के समय तो हॉस्टल बंद रहेगा ना। तू यहीं पर रहना यहां से हम लोग साथ मे घूमेंगे।"

राजेश ने लाली की बात में हां में हां मिलाई और बोला "हां सोनू तुम्हारी दीदी तुम्हें देखते ही चहक उठती है इन्हें बनारस महोत्सव दिखा देना"


लाली ने सोनू के मन की बात कह दी थी अपनी प्यारी दीदी लाली के साथ वो 7 दिन सोनू को हनीमून के जैसे लग रहे थे।वो अपने दिल की धड़कन को महसूस कर पा रहा था जो निश्चित ही बढ़ी हुई थी। परंतु उसका लण्ड अपने लक्ष्य के करीब पहुंचकर एक बार फिर दूर हो गया था। लाली और सोनू के काम इंद्रियों पर सिर्फ और सिर्फ उत्तेजना थी और मन में बनारस महोत्सव का इंतजार ।



##

उधर एसडीएम मनोरमा की जिप्सी में सरयू सिंह ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बैठे थे और सामने बैठी मनोरमा को तिरछी नजरों से निहार रहे थे। मनोरमा को सामने से देखने की हिम्मत सरयू सिंह में ना थी परंतु आज अपनी तिरछी निगाहों से वह उसके गालों कंधों और साड़ी के पल्लू के नीचे से झांकती हुई चुचियों को निहार रहे थे। मनोरमा की कमर और जाँघे भी सरयू सिंह का ध्यान आकर्षित कर रही थी।


मनोरमा भी मन ही मन सरयू सिंह के बारे में सोच रही थी। कैसे यह व्यक्ति गृहस्थ जीवन से दूर एकांकी जीवन व्यतीत कर रहा था मनोरमा को क्या पता था सरयू सिंह कामकला के धनी थे और नियति उन पर मेहरबान थी। मनोरमा स्वयं इस सुख का आनंद पूरी तरह नहीं ले पाती थी उसके पति लखनऊ में सेक्रेटरी थे।


कामवासना की पूर्ति के लिए 400 किलोमीटर की यात्रा करना आसान न था। जब सेक्रेटरी साहब का मन होता वह मनोरमा के पास आ जाते और दो-चार दिनों के प्रवास में जी भर कर मनोरमा को चोदते परंतु मनोरमा को चरम सुख की प्राप्ति कभी कभार ही हो पाती।


मनोरमा जो मिल रहा था उसमें खुश थी उसकी हालत गांव की उस बच्चे जैसी थी जो बालूशाही आकर भी वैसे ही मस्त हो जाता है जैसे शहर के अमीर रसमलाई खाकर। परंतु रसमलाई रसमलाई होती है उसका सुख नसीब वालों को ही मिलता है मनोरमा उस सुख से वंचित थी।


बनारस महोत्सव की तैयारियों में मनोरमा ने बहुत काम किया था उसके कार्यों से प्रसन्न होकर नियति ने मनोरमा के लिए भी रसमलाई बनाई हुई थी। समय और वक्त का इंतजार नियति को था मनोरमा इन बातों से अनजान अपने रुतबे और टीम के साथ बनारस महोत्सव में पहुंच चुकी थी।


मनोरमा के साथ आये सारे पटवारियों ने अलग-अलग हिस्सों में कार्य संभाल लिया। सरयू सिंह को भी सेक्टर 12 के पंडालों का कार्यभार दिया गया। इसी सेक्टर के बगल में मेला अधिकारियों के लिए कई छोटे छोटे कमरे बनाए गए थे जिनमें शौचालय भी संलग्न थे। यह सब कमरे मध्यम दर्जे के थे परंतु पांडाल से निश्चय ही उत्तम थे जिसमें एक बिस्तर लगा हुआ था। मनोरमा को भी एक कमरा मिला हुआ था परंतु वह उसकी हैसियत के मुताबिक न था। सेक्रेटरी साहब और मनोरमा की कमाई हद से ज्यादा थी उसने तय कर रखा था कि वह उस कमरे को छोड़ नजदीक के होटल में रहेगी।


हर पंडाल किसी न किसी संप्रदाय और धर्मगुरुओं से जुड़ा हुआ था। कई पंडाल मेला में आने वाले दुकानदारों और सर्कस वालों ने भी ले रखा था हर पंडाल में लगभग पचास व्यक्तियों के रहने की व्यवस्था थी।


हर पंडाल से लगे हुए शौचालय भी बने थे जिनका उपयोग पंडाल में रह रहे लोग करते। स्त्री और पुरुषों के लिए सोने की व्यवस्था अलग-अलग थी। पंडाल में पवित्रता बनी रहे शायद इसी वजह से स्त्री और पुरुषों को अलग अलग रखा गया था।


स्वामी विद्यानंद का पंडाल भी सेक्टर 12 में ही था। पंडाल के बाहर लगी बड़ी सी प्रतिमा को देखकर सरयू सिंह की आंखें विद्यानंद पर टिक गई। वह चेहरा उन्हें जाना पहचाना लग रहा था परंतु वह पूरी तरह से पहचान नहीं पा रहे थे वह आंखें और नयन नक्श उन्हें अपने करीबी होने का एहसास दिलाते परंतु बढ़ी हुई दाढ़ी और मूछों में चेहरे का आधा भाग ढक लिया था। एक पल के लिए सरयू सिंह के दिमाग में आया कहीं यह बड़े भैया बिरजू तो नहीं?


सरयू सिंह को अपने बड़े भाई बिरजू की काबिलियत पर यकीन नहीं था उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि बिरजू जैसा व्यक्ति इतना बड़ा महात्मा बन सकता था।


सरयू सिंह विद्यानंद के कटआउट में खोए हुए थे तभी मनोरमा वहां आ गई और बोली

"सरयू सिंह जी कहां खोए हुए हैं यह विद्यानंद जी का पंडाल है। देखिएगा उनके अनुयायियों को कोई कष्ट ना हो मैं खुद इनकी भक्त हूं । एक बात और आपके परिवार के लिए भी मैंने इसी पंडाल में व्यवस्था की हुई है। ये लीजिये पास।"

" मैडम कुछ पास और मिल जाते असल में पास पड़ोस वाले भी मुझ पर ही आश्रित हैं"

"कितने …"


सरयू सिंह सोचने लगे उनके दिमाग में हरिया और उसकी पत्नी का चेहरा घूम गया तभी उन्हें अपनी पुरानी प्रेमिका पदमा की याद आई 


उन्हें खोया हुआ देखकर मनोरमा ने कहा "परेशान मत होइए यह लीजिए 5 और पास रख लीजिए जरूरत नहीं होगी तो मुझे वापस कर दीजिएगा अब खुश है ना"

सरयू सिंह के दिमाग में सुगना और कजरी का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया इतनी दिव्य व्यवस्था में रहकर सुगना और कजरी कितने खुश होंगे यह सोचकर वह मन ही मन हर्षित होने लगे।


"हां एक बात और पीछे कुछ वीआईपी कमरे बने हैं जिसमें अटैच बाथरूम है। यह उस कमरे की चाबी है मैंने आपकी बहू और भाभी को साफ सफाई से रहते हुए देखा है उन्हें यहां का कॉमन बाथरूम पसंद नहीं आएगा आप यह चाभी उन्हें दे सकते हैं वो लोग आवश्यकतानुसार उसका उपयोग कर सकते हैं पर उनसे कहिए गा कि ज्यादा देर वहां ना रहे नहीं तो बाकी लोग शिकायत कर सकते हैं"


सरयू सिंह मनोरमा की उदारता के कायल हो गए। अपने घर में सिर्फ उसे बाथरूम प्रयोग करने और आवभगत कर सुगना और कजरी ने मनोरमा का दिल जीत लिया था।


##

दिनभर की कड़ी मेहनत के पश्चात बनारस महोत्सव की तैयारियां लगभग पूर्ण हो गई थी विद्यानंद जी का पांडाल सज चुका था। विद्यानंद जी का काफिला भी बनारस आ चुका था और बनारस महोत्सव में उनका पदार्पण कल सुबह ही होना था। बनारस महोत्सव के लगभग सभी पंडालों में हलचल दिखाई पड़ने लगी थी एक खूबसूरत शहर अस्थाई तौर पर बसा दिया गया था। सड़कों पर पीली रोशनी चमक रही थी।पंडालों के अंदर लालटेन और केरोसिन से जलने वाले लैंप रखे हुए थे जमीन पर पुआल बिछाकर और उन पर दरी और चादरों के प्रयोग से सोने के लिए माकूल व्यवस्था बनाई गई थी।

बाहर तरह-तरह के पंडाल जिनमें अलग-अलग प्रकार की वस्तुएं तथा खान-पान की सामग्री भी मिल रही थी। कुल मिलाकर यह व्यवस्था अस्थाई प्रवास के लिए उत्तम थी।


horseride
बनारस महोत्सव का पहला दिन


अगली सुबह नित्य कर्मों के पश्चात तैयार होकर सरयू सिंह सुगना और कजरी को याद कर रहे थे वह बार-बार पांडाल से निकलकर बाहर देखते। मनोरमा की गाड़ी जिसे सुगना और कजरी को लेने जाना था अब तक नही आई थी।
तभी एक लाल बत्ती लगी चमचमाती हुई एंबेसडर कार पांडाल के बाहर आकर रुकी।


सरयू सिंह सावधान की मुद्रा में आ गए इस अपरिचित अधिकारी के बारे में वह कुछ भी नहीं जानते थे परंतु गाड़ी पर लगी लाल बत्ती उस अधिकारी और उनके बीच प्रशासनिक कद के अंतर को बिना कहे स्पष्ट कर रही थी

ड्राइवर ने सर बाहर निकाला और सरयू सिंह से ही पूछा "सरयू सिंह कहां मिलेंगे?"

"जी मैं ही हूँ"

"मुझे मनोरमा मैडम ने भेजा है उन्होंने कहा है कि आप यहीं पंडाल की व्यवस्था में रहिए हां अपने परिवार के लिए कुछ मैसेज देना हो तो दे सकते हैं ड्राइवर ने पेन और पेपर सरयू सिंह की तरफ आगे बढ़ा दिया"


सरयू सिंह ने कजरी और सुगना के लिए संदेश लिखा अपने लिए और कपड़े लाने का भी निर्देश दिया।
कुछ ही देर में गाड़ी धूल उड़ आती हुई सरयू सिंह के गांव सलेमपुर की तरफ बढ़ गई।


आवागमन के उचित साधन ना होने की वजह से गांव से शहर की जिस दूरी को तय करने में सरयू सिंह को 4 घंटे का वक्त लगता था निश्चय ही एंबेसडर कार से वह घंटे भर में पूरी हो जानी थी।


सरयू सिंह सुगना का इंतजार करने लगे। मनोरमा द्वारा दी गई चाबी से वह मनोरमा का कमरा देख आए थे अपनी बहू सुगना से रासलीला मनाने के लिए वह कमरा सर्वथा उपयुक्त था। अपनी बहू को मिला दिखा दिखा कर खुश करना और जी भर चोदना सरयू सिंह का लण्ड खड़ा हो गया। मन में उम्मीदें हिलोरे ले रही थी बनारस महोत्सव रंगीन होने वाला था।


दूर से आ रही ढोल नगाड़ों की गूंज बढ़ती जा रही थी। विद्यानंद जी का काफिला अपने पंडाल की तरफ आ रहा था सरयू सिंह सतर्क हो गए और विद्यानंद जी की एक झलक का इंतजार करने लगे। उन्होंने मन ही मन सोचा यदि वह बिरजू भैया तो निश्चय ही उन्हें पहचान लेंगे। उनका मन उद्वेलित था।


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उधर रेलवे कालोनी में सोनू की मालिश और बनारस महोत्सव की ललक ने लाली के दर्द को कम कर दिया था। सुबह अपनी रसोई की खिड़की से बाहर दीवार लगे हुए बनारस महोत्सव के पोस्टरों को देख रही थी। लाली ने चाय चढ़ायी हुई थी परंतु उसका मन नहीं लग रहा था। परसो दोपहर की बात लाली के दिमाग में अभी भी घूम रही थी..
सोनू के लण्ड ने उसकी बुर और गांड के बीच में अपना दबाव बढ़ा कर उसे दर्द का एहसास करा दिया था। परंतु लाली तो जैसे सोनू से नाराज ही नहीं सकती थी। काश सोनू का निशाना सही जगह होता तो वह सामाजिक मर्यादाओं को भूलकर अपने भाई सोनू से चुद गई होती। 


सोनू के जाने के बाद राजेश बिस्तर पर आ गया था।

लाली के कमर को सहलाते हुए उसने पूछा " दर्द में कुछ आराम है?"

जब तक लाली उत्तर दे पाती राजेश के हाथ लाली के नितंबों को सहलाते हुए नीचे पहुंच गए। पेटीकोट का नाड़ा खुला हुआ देखकर राजेश प्रसन्न हो गया उसने लाली से कुछ न पूछा। हाथ कंगन को आरसी क्या।


उसकी उंगलियां लाली की बुर पर पहुंच गयी जो चपा चप गीली थी। राजेश को सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे। बुर से बहने वाली लार लाली की उत्तेजक अवस्था को चीख चीख कर बता रही थी। राजेश को समझते देर न लगी कि सोनू के हाथों ने न सिर्फ उस दर्द भरी जगह को सहलाया है अपितु अपनी दीदी के कोमल नितंबों को और अंतर्मन को भी स्पर्श सुख दिया है।

राजेश ने लाली को जांघो से पकड़कर पीठ के बल लिटा दिया। लाली ने इस बार कोई प्रतिरोध न किया। उसका मन बेचैन हो रहा था अपने भाई के इसी प्रयास को उसने दर्द का बहाना कर नकार दिया था। उसे मन ही मन अपने भाई से दोहरा व्यवहार करने का दुख था।

वह क्या करती ? वो राजेश को दिए वचन को वह तोड़ना नहीं चाहती थी। पीठ के बल आते ही लाली का वासना से भरा लाल चेहरा राजेश की आंखों के सामने आ गया। उसने देर ना कि और लाली की जाँघे फैल गयीं। अपने साले सोनू द्वारा गर्म किए गए तवे पर राजेश अपनी रोटियां सेकने लगा.


राजेश ने लाली को चूमते हुए बोला 
" मेरी जान मैं लगता है गलत समय पर आ गया?"


"बात तो सही है" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए कहा

राजेश ने अपने लण्ड को लाली की बुर में जड़ तक ठान्स दिया और बोला "मुझे अफसोस मत दिलाओ"

"आपके लिए ही मैंने अपने भाई को दुखी कर दिया"


"राजेश लाली को बेतहाशा चोदे जा रहा था और उसी उत्तेजना में उसने बेहद प्यार से बोला"


"बनारस महोत्सव के उद्घाटन के दिन ही सोनू को खुश कर देना"


" और आपका वचन?"


"यह तो मुझ पर छोड़ दो…."



लाली खुश हो गई और उत्तेजना में अपनी कमर हिलाने की चेष्टा की पर दर्द की एक तीखी लहर उसकी पीठ में दौड़ गई. लाली ने पैरों को राजेश की कमर पर लपेट लिया वह राजेश को चूमे जा रही थी।

राजेश मुस्कुरा रहा था और लाली को चोदते हुए स्खलित होने लगा... मेरी प्यारी दीदी …..आ आईईईई। लाली ने भी अपना पानी साथ साथ छोड़ दिया….

बनारस महोत्सव के उद्घाटन की राह वह और उसकी बुर दोनों देख रहे थे। गैस पर उबल रही चाय की आवाज से बनारस महोत्सव के पोस्टर से लाली का ध्यान हटा पर बुर् ….. वह तो सोनू की ख्यालों में खोई हुई थी। वह अजनबी और प्रतिबंधित लण्ड से मिलने को आतुर थी…..

शेष अगले भाग में।


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#49
भाग-45




बनारस महोत्सव का पहला दिन

सुगना और कजरी सुबह से ही तैयार होकर मनोरमा मैडम द्वारा भेजी जाने वाली गाड़ी का इंतजार कर रहे थीं।


तभी गांव के सकरे रास्ते पर धूल उड़ाती चमचमाती एंबेसडर कार सरयू सिंह के दरवाजे की तरफ आ रही थी गांव के बच्चे उस कार के आगे पीछे दौड़ रहे थे ड्राइवर परेशान हो रहा था और बार-बार हार्न बजा रहा था परंतु गांव के इस माहौल में उसकी सुनने वाला कोई नहीं था। वह मन ही मन बस सोच रहा था हे भगवान में कहा जाहिलों के बीच फस गया।

गांव की धूल एंबेसडर की खूबसूरती को रोक नहीं पाई सुगना और कजरी ने मनोरमा मैडम की जीप की उम्मीद की थी परंतु कार तो उनकी उम्मीद से परे थी।

सफेद रंग का सफारी सूट पहने ड्राइवर कार से बाहर आया और बच्चों को कार से दूर रहने की नसीहत देते हुए उन्हें कार से दूर हटाने लगा। जिस तरह गुड़ पर मक्खियां सटी रहती हैं बच्चे भी घूम घूम कर कार के पास आजा रहे थे।

सुगना और कजरी सतर्क मुद्रा में खड़ी हो गई थी ड्राइवर ने कजरी से पूछा

"सुगना मैडम कौन है?"

सुगना शर्म से लाल हो गई उसे अपने लिए मैडम शब्द की उम्मीद न थी। कजरी को थोड़ा बुरा जरूर लगा पर सुगना उसे जान से प्यारी थी उसने मुस्कुराते हुए कहा

"यही है आपकी सुगना मैडम।"

"मैडम बनारस महोत्सव में चलने के लिए मनोरमा मैडम ने गाड़ी भेजी है। और यह खत सरयू सिंह जी ने दिया है।"

"ठीक है हम लोग आते हैं " सुगना अपनी खुशी को छुपाना चाह रही थी परंतु उसके दांत खूबसूरत होठों से निकलकर उसकी खुशी प्रदर्शित कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सुगना और कजरी एम्बेसडर कार की पिछली सीट पर बैठ रहे थे. तभी हरिया की पत्नी ( लाली की मां ) निकलकर बाहर आई… और बोली

"ई झोला लाली के यहां पहुंचा दीह"

सुगना और कजरी को एम्बेसडर कार में बैठा देखकर उसे यकीन ही नहीं हो रहा था।

कजरी ने उससे कहा..

"ठीक बा घर के ख्याल रखीह"

लाली की मां ने हाथ हि

लाकर सुगना और कजरी को विदा किया और ड्राइवर ने कार वापस बनारस शहर की तरफ दौड़ा ली।


##

उधर विद्यानंद जी के पंडाल में गहमागहमी थी सरयू सिंह पंडाल के आयोजकों में थे परंतु विद्यानंद जी के आने के बाद जैसे उनकी उपयोगिता खत्म हो गई थी। जिस तरह बारात आने के बाद पांडाल लगाने वाले दिखाई नहीं पड़ते उसी प्रकार सरयू सिंह पांडाल के एक कोने में खड़े विद्यानंद की एक झलक पाने को बेकरार थे।

सजे धजे बग्गी में बैठे विद्यानंद पांडाल में बने अपने विशेष कक्ष की तरफ जा रहे थे। समर्थकों और अनुयायियों की भारी भीड़ उन्हें घेरे हुए थी। सरयू सिंह उन्हें तो देख पा रहे थे पर दूरी ज्यादा होने की वजह से वह निश्चय कर पाने में असमर्थ थे कि वह उनके बिरजू भैया हैं या यह सिर्फ एक वहम है।

कुछ ही देर में विद्यानंद जी का पंडाल सज गया श्रोता गण सामने बैठ चुके थे। मंच पर हुई दिव्य व्यवस्था मनमोहक थी और विद्यानंद के कद और ऐश्वर्य को प्रदर्शित कर रही थी । 54- 55 वर्ष की अवस्था में उन्होंने इस दुनिया में एक ऊंचा कद हासिल किया हुआ था। पाठक अंदाजा लगा सकते हैं जिसकी अनुयाई मनोरमा जैसी एसडीएम थी निश्चय ही वह विद्यानंद कितने पहुंचे हुए व्यक्ति होंगे।

कुछ ही देर में स्टेज के पीछे का पर्दा हटा और विद्यानंद जी अवतरित हो गए श्वेत धवल वस्त्रों में उनकी छटा देखते ही बन रही थी। चेहरे पर काली दाढ़ी में कुछ अंश सफेदी का भी था जो उनकी सादगी को उसी प्रकार दर्शाता था जैसे उनका मृदुल स्वभाव।

विद्यानंद जी का प्रवचन शुरू हो गया वह बार-बार दर्शक दीर्घा में बहुत ध्यान से देख रहे थे पता नहीं उनकी आंखें क्या खोज रही थी। श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उनके द्वारा बताई जा रहे विवरण को ध्यान से सुन रहे थे।

पंडाल के बाहर एंबेसडर कार आ सुगना और कजरी को लेकर आ चुकी थी। सरयू सिंह बेसब्री से सुगना और कजरी का इंतजार कर रहे थे उन्होंने सुगना और कजरी का सामान लिया और उन्हें रहने की व्यवस्था दिखाई। सुगना और कजरी भी पंडाल में आ गयीं।

सुगना की गोद में सूरज एक खूबसूरत फूल के रूप में दिखाई पड़ रहा था। सूरज का खिला हुआ चेहरा और स्वस्थ शरीर सबका ध्यान अपनी तरफ जरूर खींचता। जितनी सुंदर और सुडौल सुगना थी उसका पुत्र भी उतना ही मनमोहक था ।

पांडाल में पहुंचते ही कजरी और सुगना श्रोता दीर्घा में बैठकर बैठकर पंडाल की खूबसूरती का मुआयना करने लगे वो बीच-बीच में विद्यानंद जी की तरफ देखते परंतु न तो कजरी का मन प्रवचन सुनने में लग रहा था और नहीं सुगना का। कजरी बार-बार विद्यानंद को देखे जा रही थी परंतु उसके मन में एक बार भी उसके बिरजू होने का ख्याल नहीं आया।

जब हैसियत और कद का अंतर ज्यादा हो जाता है तो नजदीकी भी दूर दिखाई पड़ने लगते हैं। विद्यानंद दरअसल बिरजू था यह कजरी की सोच से परे था।

विद्यानंद का एक प्रमुख चेला जो उनकी ही तरह सफेद धोती कुर्ते मैं सजा हुआ पंडाल में बैठी महिलाओं और बच्चों को बेहद ध्यान से देख रहा था। धीरे धीरे वह हर कतार में जाकर महिलाओं और बच्चों से मिलता उनका कुशलक्षेम पूछता और और छोटे बच्चों को लॉलीपॉप पकड़ा कर अपना प्यार जताता।

उसकी हरकतों से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह किसी विशेष बच्चे को खोज रहा हो। जैसे-जैसे वह पंडाल के आखिरी छोर तक आ गया उसके चेहरे पर अधीरता दिखाई पड़ने लगी।

वह व्यक्ति सुगना के करीब पहुंचा। सुगना जैसी खूबसूरत अप्सरा जैसी युवती को देखकर उसकी आंखें सुगाना के चेहरे पर ठहर गयीं। सूरज सुगना की चुचियों को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था शायद वह भूखा था। विद्यानंद जी के उस चेले ने सूरज को आकर्षित करने की कोशिश की। अपने मुंह से रिझाने के लिए उसने तरह-तरह की किलकारियां निकाली और सूरज का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल हो गया। लाल और सफेद रंग की धारियों वाला लॉलीपॉप उसने अपने हाथों में निकाल लिया। सूरज उस खूबसूरत लालीपाप के आकर्षण से न बच पाया और उसने अपना हाथ लॉलीपॉप लेने के लिए बढ़ा दिया।

यह वही हाथ था जिसके अंगूठे पर नाखून नहीं था। विद्यानंद के शागिर्द ने सूरज का अंगूठा देख लिया और उसके चेहरे पर खुशी देखने लायक थी। कभी वह सूरज को देकहता कभी विद्यानंद को। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई आश्चर्य देख लिया हो। उसने लॉलीपॉप सूरज को पकड़ाया और उल्टे पैर मंच की तरफ बढ़ चला। सुगना के बाद भी कतार में बैठे कई बच्चे भी लालीपाप का इंतजार कर रहे थे परंतु विद्यानंद का चेला वापस लौट चुका था।

जिसके भाग्य में लॉलीपॉप था वह मिल चुका था शायद उसकी तलाश पूरी हो चुकी थी। कुछ देर पश्चात विद्यानंद ने अपने प्रवचन से थोड़ा विराम लिया और हॉल में बैठे लोगों के लिए चाय बांटी जाने लगी। वह व्यक्ति एक बार फिर सुगना के पास आया और बोला

"विद्यानंद जी आपको बुला रहे हैं..?

सुगना आश्चर्यचकित थी। न तो वह विद्यानंद को जानती थी और न हीं वह उनकी अनुयायी थी फिर इस तरह से उसे बुलाना? यह बात सुनना की समझ से परे था। परंतु विद्यानंद की हैसियत और प्रभुत्व को वह बखूबी जान रही थी। यह उसके लिए सौभाग्य का विषय था कि इतनी भरी भीड़ में विद्यानंद ने उसे ही मिलने के लिए बुलाया था । उसने कजरी से कहा

"मां चल स्वामी जी का जाने काहे बुलावतारे ?"

उस शागिर्द ने कहा स्वामी जी ने सिर्फ आपको अपने बच्चे के साथ बुलाया है। सुगना की निगाहें सरयू सिंह को खोज रही थी शायद वह उनसे अनुमति और सलाह दोनों चाहती थी परंतु वह कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे थे । अंततः विद्यानंद के आमंत्रण को सुगना ठुकरा ना पायी और कजरी की अनुमति लेकर विद्यानंद से मिलने चल पड़ी।

विद्यानंद का कमरा बेहद आलीशान था उनके कमरे को बेहद खूबसूरती से सजाया गया था अपने भव्य आसन पर बैठे विद्यानंद अपनी आंखें बंद किए हुए थे। सुगना के आगमन को महसूस कर उन्होंने आंखें खोली और अपने शागिर्द को देखते हुए बोले

"एकांत"

वह उल्टे पैर वापस चला गया उन्होंने सुगना की तरफ देखा और सामने बने आसन पर बैठने के लिए कहा।

सुगना ने आज सुबह से ही भव्यता के कई स्वरूप देखें अब से कुछ देर पहले बह एंबेसडर कार में बैठकर यहां आई थी और वह इतने बड़े महात्मा विद्यानंद के साथ उनके कमरे में उनके विशेष आमंत्रण पर उपस्थित थी। उसे घबराहट भी हो रही थी और मन ही मन उत्सुकता भी । कमरे में एकांत हो जाने के पश्चात विद्यानंद ने कहा

"देवी आपकी गोद में जो बालक है यह विलक्षण है। मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं।" अपने पुत्र को विलक्षण जानकर सुगना खुश हो गई उसने स्वामी जी के सामने हाथ जोड़ लिए और बेहद आत्मीयता से बोली

"जी कहिए"

"मैंने अपने स्वप्न में इस विलक्षण बालक को देखा है और उसे ढूंढते हुए ही इस बनारस महोत्सव में आया हूं। आपका यह पुत्र पति-पत्नी के पावन संबंधों की देन नहीं अपितु व्यभिचार की देन है और यह व्यभिचार अत्यंत निकृष्ट है ऐसे संबंध समाज और मानव जाति के लिए घातक है।

मैं यह बात सत्य कह रहा हूं या असत्य यह आपके अलावा और कोई नहीं जानता परंतु मुझे इस बालक के जन्म का उद्देश्य और इसका भविष्य पता है यदि मेरी बात सत्य है तो आप अपनी पलके झुका कर मेरी बात सुनिए.. अन्यथा मुझे क्षमा कर आप वापस जा सकती हैं। "

सुगना के आश्चर्य का ठिकाना न रहा वह बेहद परेशान हो गई उसके चेहरे पर पसीना आने लगा . विद्यानंद ने फिर कहा

"आप परेशान ना हों यदि मेरी बात सत्य है तो सिर्फ अपनी पलके झुका लें... और यदि मेरी बात गलत है तो निश्चय ही आपका पुत्र वह नहीं है जिसे मैं ढूंढ रहा हूं"

सुगना की पलकें झुक गई उसकी श्रवण इंद्रियां विद्यानंद की आवाज की प्रतीक्षा करने लगी विद्यानंद ने बेहद संजीदा स्वर में कहा..

" यद्यपि इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ है फिर भी इसके पिता और आपमें बेहद प्रेम है जो कि इस बालक में भी कूट कूट कर भरा हुआ है।

परंतु इसके पिता के साथ आपका एक पवित्र रिश्ता है जिसे आप दोनों ने जाने या अनजाने में कलंकित किया है। यह अनैतिक और पाप की श्रेणी में आता है। आने वाले समय में यह बालक एक असामान्य पुरुष के रूप में विकसित होगा जो अति सुंदर, बलिष्ठ, सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, विद्ववान पर अति कामुक होगा।

यदि इसकी कामुकता को न रोका गया तो इसके अंगूठे में जो दिव्य कामुक शक्तियां प्राप्त हैं उससे यह सारे सांसारिक रिश्तों की मर्यादा तार-तार कर देगा और उन्हें कलंकित करता रहेगा।

सांसारिक नजदीकी रिश्तों और मुँहबोले रिश्तों के अलावा किसी अन्य अपरिचित कन्या से मिलने पर इसका पुरुषत्व सुषुप्त अवस्था में रहेगा वह चाह कर भी किसी अन्य कन्या या स्त्री से संबंध नहीं बना पाएगा।"

सुगना थरथर कांपने लगी। अपने जान से प्यारे सूरज के बारे में ऐसी बातें सुनकर वह बेहद डर गई। विद्यानंद एक पहुंचे हुए फकीर थे उनकी बात को यूं ही नजरअंदाज करना कठिन था और तो और उन्होंने उसे देखते ही उसके नाजायज संबंध के बारे में जान लिया था जो निश्चित ही आश्चर्यजनक था पर कटु सत्य था। सुगना को उनकी बातों पर विश्वास होने लगा था।

उसने दोनों हाथ जोड़कर अपनी आंखें बंद किए ही विद्यानंद जी से कहा..

"स्वामी जी तब क्या यह कभी किसी लड़की के साथ विवाह कर सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाएगा"

"नहीं देवी, सांसारिक और नजदीकी रिश्तो के अलावा स्त्री मिलन के समय इसकी काम इंद्रियां पूरी तरह निष्क्रिय रहेंगी"

सुगना को सारी बात समझ आ चुकी थी उसने हाथ जोड़कर कहा…

"क्या इसका कोई उपाय नहीं है?

"जैसे इसका जन्म एक अपवित्र संभोग से हुआ है वैसे ही इसका जीवन एक अपवित्र और निकृष्ट संबंध बनाने के पश्चात ही सामान्य होगा"

सुगना के चेहरे से पसीना टपक रहा था। वह यह बात पूरी तरह नहीं समझ पा रही थी या समझना नहीं चाह रही। उसने उत्सुकता से कहा

" महाराज कृपया अपनी बात स्पष्ट करें..

"देवी मैं यह बात कहने में ही आत्मग्लानि महसूस कर रहा हूं आप बस इतना समझ लीजिए की इस बालक का कामसंबंध या तो उस स्त्री या कन्या से होना चाहिए जो इस बालक के माता या पिता की सन्तान हो या फिर….. विद्यानंद चुप हो गए।

"महाराज कहिए ना सुगना अधीर हो रही थी.."

"या फिर आप स्वयं….आपसे…. "

विद्यानंद द्वारा बोली गई बात निश्चित ही निकृष्ट थी। सुगना जैसी पावन और कोमल स्त्री इस मानसिक वेदना को न झेल पाई और बेहोश हो गई...

विद्यानंद ने अपने कमंडल से पानी के छींटे सुगना के मुंह पर मारे और वह एक बार पुनः चैतन्य हुई।

विद्यानंद ने हाथ जोड़कर कहा…

"देवी मेरी यह बात याद रखिएगा परंतु आप किसी से भी साझा मत करिएगा। यह आपके और आपके पुत्र के लिए घातक होगा। समय के साथ आपको मेरी बातों पर यकीन होता जाएगा।

नियति ने मुझे इस बालक के सामान्य होने तक जीवित रहने का निर्देश दिया है। इस बालक को सामान्य करना ही मेरी मुक्ति का मार्ग है।

नियति का लिखा मिटा पाना संभव नहीं है जिसने इसका भाग्य लिखा है वह स्वयं इसका रास्ता बनाएगा। अब आप जाइए और मुझसे मिलने का प्रयास मत कीजिएगा इस विलक्षण बालक के युवावस्था प्राप्त करने के पश्चात आप मुझसे मेरे आश्रम में मिल सकती हैं। एक बात और ….यह बनारस महोत्सव आपके और आपके परिवार के लिए बेहद अहम है सूरज एक भाग्यशाली लड़का है यह आप लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाएगा और इसकी मुक्ति का मार्ग भी इसी बनारस महोत्सव के दौरान ही सृजित होगा।".

विद्यानंद द्वारा कही गई बातें सुगना के दिलों दिमाग पर छप चुकी थी। सुगना बड़ी मुश्किल से उठ कर खड़ी हुई। सूरज का लालीपाप खत्म हो चुका था। वह लॉलीपॉप की डंडी को भी उसी तरह चूस रहा था। जिस व्यक्ति ने सुगना को विद्यानंद तक पहुंचाया था वह
वापस आया उसने एक और लॉलीपॉप और बच्चे के हाथ में थमाते हुए बोला

"बहुत प्यारा बच्चा है बिल्कुल आप पर गया है।" सुगना को उसकी बात से फिर नाजायज संबंधों की याद आ गई।

सुगना ने कुछ नहीं कहा वह पंडाल में आ चुकी थी कई सारी निगाहें सुगना को देख रही थी। सरयू सिंह और कजरी भी अपने कदम बढ़ाते हुए सुगना की तरफ आ रहे थे। उनके मन में कौतूहल था परंतु सुगना के पास उत्तर देने को कुछ नहीं था।



##

इधर सुगना बेहद तनाव में आ गयी थी उधर लाली के चेहरे पर लालिमा छाई हुई थी। राजेश ने आज लाली के चुदाई का दिन निर्धारित कर दिया था परंतु उसका प्यारा भाई सोनू अब तक नहीं आया था। बनारस महोत्सव जाने के लिए राजेश और लाली पूरी तरह सजधज कर तैयार थे। दोनों छोटे बच्चे राजू और रीमा भी नए नए कपड़े पहन कर मेला देखने के लिए उत्साह से लबरेज कमरे में उठापटक कर रहे थे ।

"मामा अभी तक नहीं आए?" राजू ने अधीरता से पूछा।

लाली बार-बार दरवाजे के बाहर अपना सर निकालकर सोनू की राह देख रही थी। राजेश ने उसे छेड़ते हुए कहा अरे इतनी अधीर क्यों होती हो अभी रात होने में बहुत वक्त है

लाली फिर शर्मा गई उसने राजेश की तरफ देखा और बोला

"मुझे मेला देखने की पड़ी है और आपको तो हर घड़ी वही सूझता है" लाली ने यह बात कह तो दी परंतु उसकी बुर जैसे लाली का विरोधाभास सुन रही थी। लाली के शब्दों के विपरीत उसकी बुर पनियायी हुई थी आज सुबह से ही लाली ने उसे खूब सजाया संवारा था उसकी उम्मीदें भी जाग उठी थी।

फटफटिया की आवाज सुनकर लाली एक बार फिर सतर्क हो गई और उसका प्यारा भाई और आज रात का शहजादा अपने दोस्त विकास के साथ राजदूत पर बैठा हुआ लाली के दरवाजे के सामने खड़ा था..

लाली उस अपरिचित व्यक्ति को देखकर कमरे के अंदर आ गई और राजेश से बोली

"देखिए सोनू आ गया है शायद उसका दोस्त भी साथ है"

राजेश कबाब में हड्डी बिल्कुल नहीं चाहता था वह बाहर निकला। परंतु आज नियति राजेश और लाली के साथ थी। विकास मोटरसाइकिल से आगे बढ़ चुका था और सोनू अपने कदम बढ़ाते हुए कमरे की तरफ आ रहा था।

कुछ ही देर में घर के बाहर दो रिक्शे खड़े थे राजेश ने लाली से कहा

"जाओ तुम सोनू के साथ बैठ जाओ दोनों बच्चे मेरे साथ बैठ जाएंगे।"

लाली नहीं मानी उसके मन में चोर था वह सोनू के साथ बैठना तो चाहती थी परंतु कहीं ना कहीं उसके मन में शर्मो हया कायम थी.

बनारस महोत्सव पहुंचने के पश्चात लाली का चेहरा देखने लायक था। हर तरफ खुशियां ही खुशियां राजेश ने लाली को मनपसंद सामान खरीदने की खुली छूट दे दी वह आज उसे किसी भी कारण से निराश नहीं करना चाहता था। आखिर उसके ही कहने पर लाली सोनू के करीब आ चुकी थी और उसकी दिली इच्छा आज पूरी करने वाली थी. परंतु राजेश को शायद यह बात नहीं पता थी की जो आग उसने लगाई थी उसे बुझा पाना अब उसके बस में भी नहीं था। नियति लाली और सोनू को अपना मोहरा बना चुकी थी।

राजेश को पता था की लाली और सोनू का यह संबंध लाली सुगना से पचा नहीं पाएगी और यदि ऊपर वाले ने साथ दिया तो सुगना जैसी खूबसूरत और कामसुख से वंचित कोमलंगी उसकी बाहों में आकर उसे जन्नत का सुख जरूर देगी.

इधर राजेश के मन में सुगना का ख्याल आया और उधर सरयू सिंह सुगना और कजरी को लेकर उसी रास्ते पर आ गए। लाली, सुगना को देखकर बेहद प्रसन्न हो गयी। सुगना भी अपनी सहेली को देख, विद्यानंद द्वारा कही गई बातों को दरकिनार कर फूली न समाई। वह दोनों लगभग एक दूसरे की तरफ दौड़ पड़ीं। दोनों की हिलती हुई बड़ी-बड़ी चूचियां आसपास के लोगों का ध्यान खींचने लगी सोनू भी इससे अछूता न था।

आलिंगन में लेते समय हमेशा की तरह दोनों की चुचियाँ एक दूसरे को दबाने का प्रयास करने लगीं। चुचियों के लड़ने का एहसास हमेशा की तरह सुगना और लाली को बखूबी हुआ। वह दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दीं। कजरी ने छोटी रिया को गोद में लेकर लेकर प्यार किया। सरयू सिंह ने राजेश का हालचाल लिया। राजेश वैसे भी सुगना पर फिदा था और उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में सुगना से नजदीकियां बढ़ा रहा था.

लाली ने राजेश से कहा

"यह तो दिन पर दिन और चमकती जा रही है अपनी साली को पहचान तो रहे हैं ना?"

"सुगना ने झुककर राजेश के चरण छुए और अनजाने में ही अपने दोनों बड़े बड़े नितम्ब उसकी आंखों के सामने परोस दिए। अब तक सोनू भी आ चुका था उसने सुगना के पैर छुए और सुगना ने उसे अपने सीने से सटा लिया और बेहद प्यार से बोली

"अरे सोनू बाबू तू कैसे""

"लाली दीदी के साथ आया हूं मुझे तो पता ही नहीं था कि आप लोग भी यहां आने वाले हैं."

यही मौका था जब सोनू अपने दोनों बहनों के साथ हो लिया राजू अपने पिता राजेश की उंगली पकड़कर चल रहा था और रीमा कजरी की गोद में खेल रही थी। सरयू सिंह ना चाहते हुए भी अपने प्रतिद्वंद्वी राजेश के साथ बनारस उत्सव के बारे में बातें करते हुए टहल रहे थे.

रास रंग का आनंद लेते हुए शाम हो गई। सोनू ने अपनी दोनों बहनों को मेले के आनंद से रूबरू कराया झूला झुलाया और ढेर सारी शॉपिंग करायी।

लाली और राजेश ने सुगना और कजरी से विदा ली तभी कजरी ने कहा

"हमार पंडाल पासे बा लाली की मां कुछ सामान भेज ले बाडी चल लेला"

कुछ ही देर में सभी लोग विद्यानंद के पांडाल में थे। अपना सामान लेकर लाली और राजेश ने विदा ली सुगना ने सोनू से कहा

"बाबू तू यही रुक जा कॉलेज तो नहीं जाना है?"

" नहीं दीदी आज नहीं आज कुछ जरूरी काम है कल फिर आऊंगा"

लाली सोनू का झूठ अपने कानों से सुन रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। लाली की बुर के आकर्षण में बंधा सोनू अपनी सगी बहन को छोड़ लाली के पीछे पीछे चल पड़ा। नियति मुस्कुरा रही थी। सोनू की निगाहें लाली के नितंबों के साथ ऊपर नीचे हो रही थीं।

लाली ने अपना मोहपाश फेंक दिया था...सोनू उसके आकर्षण में बंधा...लाली के घर आ चुका था…..

राजेश अपनी पत्नी लाली की झोली में खुशियां भरने को तैयार था और उधर लाली की जांघो में छुपी सजी धजी बधू अपने नए वर से मिलने को तैयार थी..

लाली के बच्चे राजू और रीमा रास्ते में ही ऊँघने लगे थे मेला घूमने के आनंद में उन बच्चों ने कुछ ज्यादा ही मेहनत कर दी थी। लाली ने उन्हें बिस्तर पर सुला दिया और वापस हॉल में आ गयी।

राजेश अब तक नहाने जा चुका था मेले की भाग दौड़ से लगभग सभी थक चुके थे सिर्फ सोनू ही उत्साह से लबरेज लाली के आगे पीछे घूम रहा था।

राजेश के आने के पश्चात लाली ने सोनू से कहा

"सोनू बाबू तू भी नहा ले मजा आएगा" सोनू खुश हो गया मजा शब्द का मतलब उसने अपनी भावनाओं के अनुसार निकाल लिया था।

थोड़ी ही देर में राजेश और सोनु हॉल में बैठे हुए बातें कर रहे थे।

सोनू ने राजेश से पूछा

"जीजा जी रात में कितने बजे जाना है?"

"1:00 बजे"

सोनू ने घड़ी की तरफ निगाह उठाई जिसकी सुइयां 90 डिग्री का कोण बना रही थी। 9 बज चुके थे।

सोनू खुद को 4 घंटे इंतजार करने के लिए तैयार करने लगा । अपने लण्ड को राजेश की नजरों से बचाकर वह उसे तसल्ली देने की कोशिश कर रहा था।

तभी लाली बाथरूम से नहाकर, लाल रंग की सुंदर नाइटी में लिपटी हुई बाहर आ गयी। शरीर से चिपकी हुई शिफॉन की नाइटी लाली के खूबसूरत शरीर को छुपा पाने में नाकाम थी।

सोनू की निगाहें उसके शरीर पर ब्रा और पेंटी खोजती रही। लाली सीधा किचन में गई और तीन गिलास दूध निकालकर हाल में आ गयी। लाली के दोनों प्रेमी लाली का दूध पीने लगे। मेरा आशय लाली द्वारा लाये गए दूध से था।

नियति छिपकली के रूप में हॉल में दीवाल से चिपकी तीनों की मनोदशा पढ़ रही थी। छिपकली देखकर लाली चिल्लाई राजेश अचानक पीछे पलटा और उसके हाथ का दूध हाल में रखे एकमात्र बिस्तर पर गिर गया।

सोनू और लाली मैं वह दूध साफ करने की कोशिश की परंतु जितना ही वह साफ करते गए बिस्तर उतना ही गंदा होता गया।

लाली ने कहा..

"सोनू बाबू का बिस्तर खराब हो गया मीठे दूध के कारण इसमें चीटियां लगेंगी।"

"कोई बात नहीं सोनू अंदर ही सो जाएगा वैसे भी मुझे रात में चले जाना है।"

"सोनू बाग बाग हो गया उसे इसकी आशा न थी।"

लाली ने राजेश का गिलास उठाया और अपने झूठे ग्लास से दूध उसके क्लास में डालते हुए बोली

"लीजिए मेरा दूध पी लीजिए लाली ने कह तो दिया पर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया जिसे राजेश और सोनू ने बखूबी समझ लिया।"

सोनू ने लाली की झेंप मिटाते हुए कहा

"जीजा जी थोड़ा दूध मेरे ग्लास से भी ले लीजिए पर ...जूठा है"

राजेश ने बड़ी आत्मीयता से कहा

"अब तुम हमसे अलग थोड़ी हो हम सब एक हैं और अपना ग्लास आगे बढ़ा दिया" सोनू राजेश की बातों में छिपे गूढ़ रहस्य को नहीं समझ पाया।

दूध पीने के पश्चात राजेश ने जम्हाई लेते हुए कहा तुम लोग बातें करो मैं चला सोने और उठ कर अंदर आ गया अपनी डबल बेड की रजाई ओढ़ कर वह सो गया।

पर राजेश की आंखों में नींद कहां थी वह तो अपनी खूबसूरत पत्नी लाली और सोनू के मिलन का आनंद लेना चाह रहा था जिसका प्रणेता वह स्वयं था। वह बेसब्री से उनका इंतजार करने लगा उसके कान लाली और सोनू के वार्तालाप अपना ध्यान लगाए हुए थे।

सोनू बात करने के बिल्कुल मूड में नहीं था वह राजेश की नींद में कोई व्यवधान डालना नहीं चाहता था.. लाली किचन में ग्लास साफ करते हुए बोली

"सोनू बाबू जाओ आराम करो मैं भी आती हूं.."

सोनू जाकर बिस्तर के एक किनारे लेट गया उसने लाली के लिए अपने और राजेश के बीच में स्थान खाली छोड़ दिया था। अपनी आंखें बंद किए वह लाली के खूबसूरत शरीर को याद कर अपने लण्ड को सहला रहा था तभी अचानक लाली आ गई।

सोनू की कमर के ऊपर हो रही हलचल को वह बखूबी समझती थी उसने रजाई को सोनू की कमर के ठीक नीचे से पकड़ा और ऊपर उठाते हुए बोली

" मुझे भी आने दे लाली की आंखों के सामने सोनू का तंनाया हुआ लण्ड दिखाई पड़ गया जिसे सोनू अपने हाथों से छिपाने का असफल प्रयास कर रहा था । परंतु देर हो चुकी थी यह तो शुक्र है कि कमरे में पूरी रोशनी न थी सिर्फ एक लाल रंग का नाइट लैंप जल रहा था जो चीजों को देखने और पहचानने के काम आ सकता था.

सोनू ने अपने पैर सिकोड़ कर अपने सीने से सटा लिए और लाली को अंदर आने की जगह दे दी। लाली सोनू और राजेश के बीच में आ चुकी थी.

लाली ने अपने सिरहाने से वैसलीन की एक ट्यूब निकाली और सोनू को देते हुए बोली

तूने उस दिन जो दवा लगाई थी उसकी वजह से ही मैं चलने फिरने लायक हो गई यह क्रीम वही पर लगा दे..

लाली ने करवट ले ली और उसका चेहरा राजेश की तरफ हो गया और पीठ सोनू की तरफ।

सोनू ने वह वैसलीन तर्जनी पर निकाली और लाली की नंगी पीठ की तलाश में अपनी बाकी उंगलियां फिराने लगा। परंतु उस दिन की तरह आज लाली की पीठ नंगी न थी. सोनू ने हिम्मत जुटाकर लाली की नाइटी को नीचे से कमर की तरफ लाना शुरू कर दिया लाली की गोरी और चमकती हुई जान है रजाई के अंदर घुप अंधेरे में अनावृत हो रही थी लाली की बुर पहनी हुई अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थी।

नितंबों तक आते-आते सोनू का सब्र जवाब दे गया उसने एक ही झटके में अपना पजामा अलग कर दिया।

लाली की पीठ पर सोनू की उंगलियां घूमने लगी और सोनू का मजबूत लण्ड अपनी दीदी के नितंबों में छेद करने को एक बार फिर आतुर हो गया। रजाई के अंदर हो रही हलचल ने राजेश को सतर्क कर दिया था।

वह लाली की चुचियों पर कब्जा जमाने को लालायित हो गया उसकी हथेलियों ने लाली की नाइटी को सामने से खींच कर उसकी मदमस्त चुचियों को स्वतंत्र कर दिया….

नाइटी लाली के गले तक आ चुकी थी चीरहरण की इस मनोरम गतिविधि में लाली ने भी अपनी आहुति दी और उस सुंदर नाइटी को अपने गले और चेहरे से निकालते हुए बाहर कर दिया एक मदमस्त सुंदरी पूरी तरह वासना से भरी हुई चुदने को तैयार थी….

शेष अगले भाग में।

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#50
Heart 
भाग-46




नाइटी लाली के गले तक आ चुकी थी चीरहरण की इस मनोरम गतिविधि में लाली ने भी अपनी आहुति दी और उस सुंदर नाइटी को अपने गले और चेहरे से निकालते हुए बाहर कर दिया एक मदमस्त सुंदरी पूरी तरह वासना से भरी हुई चुदने को तैयार थी….

अब आगे...

लाली राजेश और सोनू के बीच करवट लेकर लेटी हुई थी उसका चेहरा राजेश की तरफ और पीठ सोनू की तरफ थी।

नियति लाली की दुविधा समझ रही थी। लाली जो सोनू से दिल खोलकर दिल ही क्या दिल और चूत दोनों खोलकर चुदना चाहती थी, परंतु वह राजेश की इच्छा पूरी कर अपना पत्नी धर्म भी निभाना चाह रही थी उसने अपना चेहरा और वक्षस्थल राजेश की तरफ बढ़ा दिया। लाली की कमर तथा भरे पूरे नितंब सोनू को उपहार स्वरूप स्वतः ही प्राप्त हो गए।

लाली के नितंब तब ही रुके जब सोनू के खड़े लण्ड ने उसकी गांड पर दबाव बना दिया। लाली का खरबूजा चाकू की नोक पर आ चुका था।

उधर लाली का चेहरा राजेश की हथेलियों में आ चुका वह उसे प्यार से चूमे जा रहा था। लाली और राजेश के होंठ आपस में मिल गए। जीभ रूपी दोनों तलवारें आपस में टकराने लगी जाने यह कैसा प्यार था जिसमें प्रेम युद्ध तो ऊपर हो रहा परंतु रंगहीन पारदर्शी रक्त लाली की जांघों के बीच से रिस रहा था और लाली इस प्रेम से अभिभूत प्रेमयुद्व के आनंद में डूब रही थी। उसकी उसकी सांसे भारी हो रही थीं।

लाली के ऊपरी होंठ राजेश के होठों से गीले हो चुके थे। निचले होठों को गीला करने में राजेश और सोनू दोनों के ही स्पर्श का योगदान था। सोनू का लण्ड उस चिपचिपी दरार तक पहुंच चुका था और आगे का मार्ग तलाश रहा था। लाली अपनी बुर सिकोड़ने का प्रयास कर रही थी।

अजब बिडम्बना थी जिसके इंतजार में लाली की बुर खुशी के आँशु लिए बेकरार थी और अब अपने करीब देखकर अब नजरें चुरा रही थी।

दरअसल लाली कुछ देर इसी आनंद को जीना चाह रही थी। राजेश अब होठों को छोड़ लाली की भरी-भरी चुचियों की तरफ आ गया। अपने दोनों हाथों में भरकर वह उसकी चूँची चूसने लगा। सोनू तो सुध बुध खो कर अपने लण्ड को उसके नितंबों के बीच से निकाल कर अपनी दीदी की फूली हुई बुर पर रगड़ रहा था तथा अपनी हथेलियों को लाली की जांघों पर फिरा रहा था।

कुछ देर लाली के वस्ति प्रदेश पर घूमने के पश्चात उसकी उंगलियों ने लाली की चुचियों की तरफ बढ़ने की कोशिश की। लाली ने लक्ष्मण रेखा खींच रखी थी उसने सोनू का हाथ पकड़ कर वापस अपनी जांघों पर रख दिया। सोनू को लाली का यह व्यवहार थोड़ा अप्रत्याशित लगा परंतु वह हर हाल में लाली को चोदना चाहता था। उसने लाली के इस कदम को नजरअंदाज कर दिया और अपने लण्ड से उस जादुई सुरंग को खोजने लगा।

उत्तेजित स्त्री की बुर में चुंबकीय आकर्षण होता है लाली की बुर के चुंबकीय आकर्षण ने सोनू के चर्म दंड को ढूंढ लिया और उसे अपने मुहाने तक खींच लाई। भावनाओं की एक करंट लाली और सोनू के शरीर में दौड़ गयी और सोनू का बहुप्रतीक्षित सपना पूरा हो गया.

सोनू का लण्ड अपनी दीदी की बुर की गहराइयों में उतर चुका था।

सोनू का हथियार लाली की बुर में उतरता जा रहा था। अंदर सिर्फ और सिर्फ प्रेम भरी फिसलन थी। रोकने वाला कोई ना था जैसे-जैसे लण्ड अंदर जा रहा था बुर का मांसल दबाव उसे एक मखमली एहसास दे रहा था। सोनू का लण्ड तब रुका जब उसने लाली के गर्भाशय पर ठोकर मारी और लाली के मुख से चीख निकल गई

"बाबू तनि अपनी धीरे से… आह…...."

राजेश ने लाली के होठों को चूम लिया।

लाली की आह सुन सोनू और उत्तेजित हो गया उसने अपने लण्ड को बाहर निकाला और फिर ठान्स दिया। लाली मीठे दर्द सेकराह उठी…

आह ….सोनू बाबू…

सोनु को अफसोस हुआ और उसके मन मे एक अनजाना डर समाया कि कहीं राजेश जीजू जग मत जाएं। वह कुछ देर के लिए शांत हो गया लाली ने स्वयं अपनी कमर आगे पीछे की और सोनू को एक बार फिर इशारा मिल गया। उधर राजेश लाली की चुचियों को लगातार मीस रहा था और लाली उसके बालों को सहलाए जा रही थी.

लाली एक समझदार रानी की तरह अपने उत्तरी और दक्षिणी भाग को अपने दोनों आशिकों में बांट कर आनंद के सागर में गोते लगा रहे थी और अपनी वासना पर निष्कंटक राज कर रही थी।

जैसे-जैसे सोनू की उत्तेजना बढ़ रही थी वह उग्र होता जा रहा था उसके धक्कों की रफ़्तार तेज हो रही थी। लाली को अब जाकर आपीने अद्भुत युवा भाई की ताकत का एहसास हो रहा था। लण्ड की ठोकर उसके गर्भाशय का मुख खोलने का प्रयास कर रही थी.

सोनू के युवा लण्ड की थिरकन लाली की बुर को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे लाली की बुर ने जिंदा रोहू निगल ली थी जो तड़प रही थी। बुर से रिस रही लार रोहू को न मरने दे रही थी न जीने। लण्ड बेतरतीब ढ़ंग से आगे पीछे हो रहा था। परंतु बुर् का मांसल दबाव उसे हर बार गर्भाशय के मुख तक पहुंचा दे रहा था जिसका आनंद अद्भूत था।

उत्तेजना का दौर ज्यादा देर नहीं चल पाया एक तरफ सोनू को यह स्वर्गीय सुख पहली बार मिल रहा था वह भी अपनी प्यारी लाली दीदी से और दूसरी तरह लाली दोहरे आनंद का शिकार हो रही थी। अपने पति परमेश्वर के होठों से अपनी चूचियां चुसवाते हुए अपने छोटे भाई का लण्ड गपागप ले रही थी।

राजेश भी बेहद उत्साहित था वह खुल्लम खुल्ला लाली को चोदना चाहता था। उसके दिमाग में लाली के साथ सोनू की उपस्थिति में संभोग करने की इच्छा थी परंतु लाली ने उसे रोक दिया था..

सोनू की रफ्तार बढ़ती जा रही थी वह लाली को पूरी तन्मयता से चोदे जा रहा था परंतु उसके हाथ अपनी दीदी की चुचियाँ खोज रहे थे। पिछली बार उसकी हथेलियों को लाली ने रोक दिया था परंतु सोनू को लाली की चुचियों का वह मादक स्पर्श याद आ रहा था। उसने एक बार फिर प्रयास किया और अपनी उंगलियों को लाली के पेट से सटाते हुए ऊपर बढ़ाने लगा। लाली ने सोनू की मनसा जान ली उसने राजेश को ऊपर की तरफ खींचा और अपने होठो को उसके होठों से सटा दिया तथा राजेश के हाथों को अपने चुचियों से हटाकर दूर कर दिया।

सोनू की उंगलियां कोई अवरोध न पाकर चुचियों के निचले हिस्से तक पहुंच चुकी थी। सोनू की खुशी का ठिकाना ना रहा ।उसने लाली की चूँचियां अपनी हथेलियों में भर ली। लाली की चुचियाँ राजेश की लार से पूरी तरह गीली थी। सोनू के आश्चर्य का ठिकाना न उसे यह बात समझ ही नहीं आएगी लाली की चूचियां गीली कैसे हो गयीं। क्या लाली दीदी ने अपनी चुचियाँ खुद अपने होठों में ले ली? तनी हुई चुचियों को अपने होंठो से चूसना असंभव था और जो संभव था वह उसकी कल्पना से परे था।

सोनू को अब जाकर लाली के पूरे जिस्म का आनंद मिल रहा था सिर्फ उन खूबसूरत होठों को छोड़कर जिस पर अभी भी राजेश ने कब्जा जमाया हुआ था। सोनू और लाली एक हो चुके थे। गर्भाशय का मुख बार-बार दस्तक देने से खुल चुका था। जादुई सुरंग सोनू का रस खींचने को तैयार थी।

लाली ने अपनी कमर पीछे की और सोनू ने अपना लण्ड आगे। लाली बुदबुदा रही थी…

बाबू आ….आईईईई आ…...धीरे….आह…..मममममम

बुर की कपकपी सोनू महसूस कर पा रहा था। लाली के पैर सीधे हो रहे थे परंतु सोनू का लण्ड उसे सीधे होने से रोक रहा था। लाली झड़ रही थी और सोनू उसे लगातार चोद रहा था। जब तक वीर्य की फुहारे लाली के गर्भ से को सिंचित करतीं लाली स्खलित हो चुकी थी और एकदम शांत होकर अपने गर्भ पर अपने भाई सोनू के वीर्य की फुहारों को महसूस कर रही थी जो उसके बूर की तपिश को शांत कर रहीं थीं।

लाली के गर्भ ने अपने ऊपर हो रही वीर्य वर्षा में से कुछ अंश को आत्मसात कर लिया। तृप्ति की पूर्णाहुति हो चुकी थी प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था और लाली के गर्भ में अपना अंश छोड़ चुका था.

वासना का तूफान शांत हो चुका था परंतु लाली और सोनू के दिल की धड़कन तेज थी। उनकी तेज चलती हुई साँसे कमरे में स्पष्ट सुनाई दे रही थीं राजेश भी वासना से ओतप्रोत स्खलित होने को तैयार था परंतु उसकी गाड़ी प्लेटफार्म खाली होने का इंतजार कर रही थी।

स्खलित होने के बाद कुछ ही देर में सोनू को बहुत जोर की पेशाब लगी। राजेश ने यह अवसर नहीं गवाया जब तक सोनू वापस कमरे में आता लाली की चुदी हुई और शांत बुर में राजेश ने भी हलचल मचाने की कोशिश की परंतु लाली पूरी तरह तृप्त थी उसके दिलों दिमाग पर सोनू छाया हुआ था। श्वेत वीर्य से लथपथ लाली की रानी आराम चाहती थी फिर भी उसने अपने पुराने प्रेमी को निराश न किया और इस अवस्था में भी उसे आत्मसात कर लिया ।

राजेश के लण्ड ने लाली की बुर से रिश्ते हुए सोनू के वीर्य को वापस धकेल कर गर्भाशय तक पहुंचा दिया था। जाने नियति क्या चाह रही थी? राजेश का यह प्रयास क्या रंग लाने वाला था? जब तक सोनू दरवाजे तक पहुंचता राजेश ने अपनी उत्तेजना शांत कर अपना लावा उड़ेल दिया। वह लाली की जांघों के बीच से हटकर वापस अपनी जगह पर आ रहा था. सोनू को यह टाइमिंग सातवें आश्चर्य से कम ना लगी।

सोनू दरवाजे की ओट लेकर खड़ा हो गया और अंदर स्थिति सामान्य होने की प्रतीक्षा करने लगा। राजेश ने लाइट जला दी और लाली को चुमते हुए बोला.. " मेरी रानी तुम खुश होना ना ? "

लाली ने कुछ कहा नहीं परंतु उसके चेहरे के हाव भाव उसकी खुशी जाहिर कर रहे थे उसने राजेश को चूम लिया। राजेश बिस्तर से उठा और अपना पेंट पहनने के बाद कमरे की लाइट जला दी।

लाली भी रजाई से बाहर आ गई और अपनी नाइटी को गले से डालते हुए अपने हाथ हटा लिए नाइटी एक पर्दे की भांति लाली के गदराए और मादक जिस्म को ढकती चली गई ऐसा लग रहा था जैसी वासना की इस फिल्म का द एंड हो गया था। परंतु सोनू की निगाहों ने लाली की खूबसूरत और चुदे हुए जिस्म का भरपूर नजारा देख लिया था। उसका लण्ड एक बार फिर तन्ना कर खड़ा हो गया। 


जैसे ही राजेश हाल में आया उसने सोनू को देखकर बोला.. "अरे बड़ी जल्दी नींद खुल गई तुम्हारी"

" हां जीजू नए बिस्तर पर नींद कच्ची ही आती है"

" कोई बात नहीं... अब तो छुट्टी ही है जाओ आराम करो"

राजेश ने लाली को आवाज देते हुए कहा "साले साहब को नींद नहीं आ रही है उनका ख्याल रखना"

"लाली भी अब हॉल में आ चुकी थी उसके चेहरे को देख कर ऐसा लगता ही नहीं था जैसे अब से कुछ देर पहले वह सोनू से चुद रही थी। उसने सोनू के गालों को सहलाते हुए बोला

"जा टीवी चला कर देख मैं तेरे जीजू के लिए चाय बना रही हूं तू भी पीयेगा? "

"हां दीदी"

कुछ देर बाद राजेश अपनी ड्यूटी पर चला गया और कमरे में लाली और सोनू अपनी नजरें झुकाए चाय पी रहे थे दोनों के होंठ सिले हुए थे परंतु जांघों के बीच हलचल तेज थी अद्भुत और कामांध प्रेम का सैलाब हिलोरे मार रहा था।

नियति ने एक और व्यभिचार को बखूबी अंजाम तक पहुंचा दिया था और तो और लाली के गर्भ में उसके मुँहबोले भाई सोनू के अंश को सहेज कर रख दिया था। यह गर्भ नियति की साजिश में एक अहम भूमिका अदा करने वाला था।


##




इधर लाली के घर में लाली और सोनू अंतरंग हो रहे थे उधर सोनू की बहन सुगना परेशान थी. विद्यानंद के पांडाल में सुगना की आंखों की नींद उड़ी हुई थी। कजरी सो चुकी थी, परंतु सुगना टकटकी लगाकर कर पांडाल की छत को देख रही थी। पंडाल का वैभव उसे अब आकर्षित नहीं कर रहा था। सूरज सुगना की एक चूची को मुंह में डालें बड़े प्रेम से चूस रहा था और दूसरी चूची के निप्पल को अपने छोटे छोटे हाथों से सहला रहा था।

वह अपने जादुई अंगूठे से सुगना के निप्पल को सहलाता और अपनी छोटी-छोटी मुट्ठीओं में उस निप्पल को भरने की कोशिश करता। सुगना पांडाल की हल्की रोशनी में उस अंगूठे को देख रही थी।

क्या यह सच में जादुई है ?

सुगना को सोनी की बात याद आने लगी। वह अंगूठे को मसलने पर नुन्नी के बढ़ने की बात उसे दिखाना चाह रही थी परंतु उसमें सफल ना हुई थी। सुगना ने उस बात की तस्दीक करने के लिए अपने उंगलियों से उस उस अंगूठे को सहलाया और उसका असर देखने के लिए अपने छोटे बालक की जांघों की तरफ अपना ध्यान ले गई । सूरज की नूनी में कोई हलचल न थी।

ऐसा कैसे हो सकता है? क्या मेरा सूरज वास्तव में अलग है ? यदि सोनी की बात सच है तो निश्चय ही विद्यानंद एक पहुंचे हुए फकीर हैं? काश कि सोनी यहां होती?

सुगना मन ही मन सोनी से मिलने को अधीर हो उठी सोनी और मोनी दोनों ही उसकी बहनें थी और सूरज की मौसी थीं।

विद्यानंद के अनुसार जो असर सोनी ने देखा था वही मोनी के साथ में भी होना था। सुगना ने मन ही मन सोच लिया कि बनारस महोत्सव खत्म होने के बाद वह अपने मायके जाकर विद्यानंद जी की बताई बात की तस्दीक करेगी।

सुगना ने सूरज का जन्म एक नाजायज और अनुचित संबंधों से होने की बात को स्वीकार कर लिया था। सच में सरयू सिंह उसके पिता के उम्र के थे और रिश्ते में ससुर….यह संबंध अब सुगना की नजर में अनुचित लगने लगा था।

सुगना सूरज के सामान्य होने की बात को याद कर एक बार फिर सिहर उठी। क्या मेरे इस कोमल पुत्र को अपनी सगी बहन से संभोग करना होगा? पर यह कैसे संभव होगा? यह तो मेरा एकमात्र पुत्र है ? और बाबूजी तो अविवाहित हैं उनका संबंध कजरी मां और मेरे सिवा शायद ही किसी से हो? और यदि हुआ भी हो तो मैं उनसे कैसे यह बात पूछ पाऊंगी? और यदि सूरज को मुक्ति दिलाने के लिए उसकी बहन ना मिली तो?

सुगना विद्यानंद जी की दूसरी बात याद कर पसीने पसीने हो रही थी । नहीं नहीं यह असंभव है ऐसा निकृष्ट और नीच कार्य मुझसे नहीं होगा। मुझसे ही क्या कोई मां ऐसा सोच भी नहीं सकती।

तभी सुगना की आत्मा सुगना को कचोटने लगी। उसकी अंतरात्मा से आवाज आई

"तो क्या तुम अपने पुत्र को यूं ही समाज में सांसारिक रिश्तो को कुचलने और संभोग करने के लिए छोड़ दोगी? क्या वह समाज में एक सम्मानित जीवन जी पाएगा ? क्या कुछ ही वर्षों में वह एक कामुक और चरित्रहीन व्यक्ति के रूप में पहचान नहीं लिया जाएगा?

ऐसे कलंकित जीवन से तो मृत्यु बेहतर है सूरज इस कलंक के साथ ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाएगा"

"नहीं नहीं मैं अपने बालक को मरने नहीं दे सकती"

"सुगना तेरे पास कोई चारा नहीं है"

"मैं अपने पुत्र को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती हूं"

"अपने आप को झुठला मत... तेरा मन इस बात की गवाही कभी नहीं देगा... तेरे पुत्र को यह दुनिया छोड़नी ही होगी"

"नहीं…. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी"

"तो क्या तू अपने पुत्र के साथ… संभोग करेगी.?"

सुगना ने अपने दोनों हाथों से अपने कान बंद कर लिए उसे लगा ऐसी बात सुनने से बेहतर था इसी वक्त अपनी जान दे देना।

सुगना की आत्मा फिर अट्टहास करने लगी।

"मैं जानती हूं सुगना तू एक कोमल और पावन हृदय वाली युवती है। पुत्र की लालसा में तूने सरयू सिंह के साथ संबंध बनाए उन्होंने तेरे साथ छल किया पर उस व्यभिचार का आनंद तुम दोनों ने लिया सूरज का जन्म निश्चित ही व्यभिचार की देन है तुझे फैसला करना ही होगा।"

सुगना को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था तभी उसके मन में विचार आया और उसने खुशी-खुशी सोचा

"मैं एक पुत्री को जन्म दूंगी जो मेरे सूरज को इस शाप से मुक्ति दिलाएगी"

"तू कह रही तू ? क्या तू अपनी पुत्री और अपने पुत्र के बीच संभोग करवाएगी ? परन्तु तुझे पुत्री होगी कैसे? सूरज के पिता के साथ तेरा संभोग अब वर्जित हो चुका है क्या तू उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करेगी।

सुगना जानती थी कि सरयू सिंह अब उसके साथ पहले की तरह संभोग नहीं कर पाएंगे और गर्भधारण के लिए न जाने कितने बार उसे उनके वीर्य को आत्मसात करना होगा।

सुगना प्रतिज्ञा होते हुए बोली

" मैं कुछ भी करूंगी पर निश्चित ही सूरज की मुक्तिदाता अपनी पुत्री को जन्म दूंगी"

"और यदि तुझे पुत्री की जगह पुनः पुत्र प्राप्त हुआ तो..?"

सुगना एक बार फिर थरथर कांपने लगी. सच यदि वह पुत्र हुआ तो क्या वह भी सूरज की तरह विलक्षण होगा। नहीं नहीं अपने दोनों पुत्रों के जीवन के बारे में सोच कर वह बेहद डर गई। इस अवस्था में उसे अपने दोनों पुत्रों के साथ …. छी छी छी कितनी विषम और घृणित परिस्थितियों में नियत ने सुगना को लाकर छोड़ दिया था।

सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह पुत्री के जन्म के लिए प्रयास अवश्य करेगी चाहे वह उसके बाबूजी सरयू सिंह हो या कोई और।

सूरज सुगना की चूची छोड़ कर उसके चेहरे को एकटक देख रहा था।

सूरज ने सुगना के चेहरे को छू कर अपना ध्यान आकर्षित किया और सुगना अपने अचेतन मन से बाहर आई और अपने सूरज के कोमल और मासूम चेहरे को चूम लिया... "बाबू तेरे लिए मैं सब कुछ करूंगी"

सूरज ने अपने होठों से सुगना के निप्पल को काट लिया और सुगना की तरफ देख कर मुस्कुराने लगा...

सूरज मुस्कुरा रहा था और सुगना भाव विभोर होकर उसे चुमें जा रही थी सूरज उसे इस दुनिया में सबसे प्यारा था वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी।

सुगना थक चुकी थी धीरे-धीरे उसकी पलकें बंद होने लगी सूरज जाग रहा था और उसकी सूचियों को चूमते और चाटते हुए अपनी मां को सुखद एहसास करा रहा था। सूरज निश्चित ही एक विलक्षण बालक था…

इधर सुगना नींद की आगोश में जा रही थी उधर लाली और सोनू वासना के दलदल में धसते चले जा रहे थे। राजेश के जाने के पश्चात दोनों प्रेमी युगल अब किसी बंदिश के शिकार न थे। चाय खत्म होते-होते सोनू की लाली दीदी उसकी गोद में आ चुकी थी….

नियति ने उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया और बनारस महोत्सव के दूसरे दिन की तैयारियों में लग गई।

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#51
Heart 
भाग -47

बनारस महोत्सव का दूसरा दिन…

बनारस स्टेशन से एक महिला दो खूबसूरत किशोरियों के साथ रिक्शे पर बैठी हुई शहर की तरफ आ रही थी सोनू का दोस्त विकास जो स्टेशन से अपने रिश्तेदार को छोड़कर वापस आ रहा था खूबसूरत किशोरियों को देखकर लालायित हो गया वह अपनी राजदूत से रिक्शे का पीछा करने लगा। कभी वह रिक्शे से आगे निकलता और अपनी गर्दन घुमा कर कभी एक किशोरी पर ध्यान गड़ाता कभी दूसरी पर कभी दाएं कभी बाएं।

लड़की के हाव भाव यह इंगित कर रहे थे की वह पुरुष नजरों की प्रतीक्षा में थी। बाई तरफ बैठी लडक़ी ज्यादा सतर्क नजर आ रही थी जब जब उसकी नजरें विकास से मिलतीं वह अपनी नजरें झुका लेती।

विकास उन किशोरियों के आकर्षण में बंधा हुआ बनारस महोत्सव में पहुंच गया। किशोरियों की सीलबंद बुर का आकर्षण उसे रस्ता भूला कर इस महोत्सव में खींच लाया था। रिक्शा के अचानक बाई तरफ घूमने से विकास की मोटरसाइकिल रिक्शा से टकरा गई और एक किशोरी रिक्शे से गिर कर जमीन पर आ गई..

"बेटा लगी तो नहीं?"

पद्मा ने रिक्शे से उतरते हुए पूछा।

विकास भी मोटरसाइकिल से गिर चुका था।

मोनी उस पर गुस्सा होते हुए बोली

"भैया आप को दिखता नहीं है"

विकास सोनी पर ध्यान टिकाये हुए था। वह फटाफट उठ खड़ा हुआ और राजदूत को स्टैंड पर खड़ा कर वह सोनी के पास पहुंचा और बेहद संजीदगी से बोला..

"मुझे माफ कर दीजिए रिक्शा के अचानक मुड़ जाने से मैं टकरा गया.."

रिक्शा वाले ने अपनी गलती स्वीकार कर ली थी सच मे वह बिना हाथ दिए ही मुड़ गया था..

भगवान का शुक्र था की किसी को कोई विशेष चोट नहीं आई थी परंतु इस मिलन के चिन्ह सोनी और विकास दोनों के घुटनों पर अवश्य थे जो थोड़े छिल चुके थे।

पीछे आ रहे रिक्शे में पदमा की पड़ोसी भी इसी महोत्सव में आ रही थी। दोनों रिक्शे विद्यानंद के पंडाल की तरफ बढ़ रहे थे और विकास अपनी मोटरसाइकिल से सुरक्षित दूरी बनाए हुए उनके पीछे पीछे जा रहा था। विद्यानंद के पंडाल पर पहुंचते ही सब लोग रिक्शे से उत्तर कर पंडाल में जाने लगे। सोनी की निगाहें विकास को ढूंढ रही थी और विकास अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा दूर से सोनी को देख रहा था।

सोनी की नजरें जब विकास से टकराई सोनी ने अपनी गर्दन झुका ली। विकास पहली मुलाकात में ही सोनी पर फिदा हो गया था। अंदर से मोनी की आवाज आई…

"अरे सोनी चल पहले सामान रख ले मेला बाद में देख लेना " मोनी को क्या पता था सोनी मेला नहीं अपना मेल देख रही थी।

पंडाल में पहुंचकर शीघ्र ही पदमा की मुलाकात कजरी और सुगना से हो गयी। सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा.. कल रात ही वह सोनी और मोनी के बारे में सोच रही थी और आज उसकी दोनों बहने उसके सामने थीं। सुगना ने उन दोनों को अपने गले से लगा लिया और उनकी छोटी छोटी कसी हुई चूचियां सुगना की फूली हुई चुचियों से सटने लगी सोनी के मन में हमेशा यह भाव आता की दीदी की चूचियां कितनी भरी भरी हैं न जाने मेरी कब बड़ी होंगीं।

मिलन की घड़ी बेहद सुखद थी अपने परिवार के साथ मेला घूमने की बात सोचकर सुगना बेहद खुश थी। कजरी और पदमा भी देश दुनिया की बातें करने लगीं। बनारस महोत्सव ने सच में सभी के चेहरे पर खुशियां ला दी थीं सरयू सिंह अपनी दोनों भूतपूर्व प्रेमिकाओं और अपनी वर्तमान रानी सुगना को लालच भारी निगाहों से देख रहे थे उनका ध्यान सुगना के गदराये नितंबों के बीच छुपे छेद पर केंद्रित था। उनका इंतजार अब उन्हें बेसब्र कर चुका था।

उधर विकास अपने बिस्तर पर पड़ा सोनी को याद कर रहा था कितनी खूबसूरत और करारी माल थी सोनी।

सोनी की छोटी-छोटी चुचियों को याद कर विकास की हथेलियों में ऐठन उत्पन्न हो गई काश कि वह उन्हें छु पाता। उसकी उत्तेजना ने उसके लण्ड को जागृत कर दिया और वह बेचारा एक बार फिर विकास की खुरदरी हथेलियों में पिसने को तैयार हो रहा था। विकास का लण्ड अपने मालिक को चीख चीख कर अपनी संगिनी लाने को कह रहा था पर विकास भी उतना ही मजबूर था जितना कि वह मसला जा रहा लण्ड।

विकास ने न जाने कितनी लड़कियों और युवतियों को अपने ख्याओं में लाकर पर अपने लण्ड को झांसा देते हुए हस्तमैथुन किया था पर आज वह सोनी पर फिदा हो गया था। वह अपनी भावनाओं को वह अपने दोस्त सोनू से साझा करना चाहता था परंतु उसका दोस्त सोनू अपनी लाली दीदी की के साथ रसोई में बर्तन मांज रहा था और लाली के शरीर से अपने शरीर को अलग-अलग अवस्थाओं में सटा रहा था। सोनू की लाली दीदी उसके दिलो-दिमाग , तन, मन सब पर छाई हुई थी।

सोनू को इस बनारस महोत्सव की शुरुआत में ही अपनी लाली दीदी की जवानी उसे उपहार स्वरूप मिल गई थी नियति ने यह संयोग ऐसे ही नहीं बनाया था। सोनू, लाली और उसके पति राजेश की कामुक कल्पनाएं का अभिन्न अंग था वह उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला था।

कल रात लाली के साथ अपने प्रथम संभोग को सकुशल अंजाम देने और राजेश के जाने के बाद हुई घटनाओं को याद करते करते सोनू खो सा गया। लाली खाना बनाते बनाते बीच-बीच में सोनू को देख रही थी जो अपनी यादों में खोए हुए निर्विकार भाव से खिड़की के बाहर देख रहा था और अपने हाथों में गिलास लिए उस पर अपनी उंगलियां लापरवाही से फिर आ रहा था..

लाली ने अंदाज लगा लिया की सोनू कल रात के ख्यालों में डूबा हुआ है...

बीती रात बिस्तर पर चाय पीने के पश्चात लाली रजाई में घुस गई और अपनी पीठ पर तकिया लगा कर टीवी देखने लगी सोनू भाई बिस्तर पर आ चुका था लाली ने पूछा

"सोनू बाबू नींद आ रही हो तो टीवी बंद कर दूं"

" नहीं दीदी मुझे तो नहीं आ रही"

"क्यों अपनी दीदी के साथ मन नहीं लगता क्या"

लाली सोनू को खोलना चाह रही थी पर सोनू अभी भी शर्मा रहा था।

"अच्छा आ देख मेरी आंख में कुछ पड़ गया है जरा फूंक मारकर निकाल दे"

सोनू लाली के बिल्कुल पास आ गया और अपने होठों को गोलकर लाली की आंख के पास आकर फूंक मारने लगा। सोनू के भोलेपन को देखकर लाली को उस पर बेहद प्यार आया और उसने अपने होंठ उससे बड़े आकार में गोलकर उसके फूंक मार रहे होठों को अपने आगोश में ले लिया। जब तक सोनू कुछ समझ पाता रेलवे कॉलोनी की बत्ती एक बार फिर गुल हो गयी।

सोनू ने लाली की मंशा जान ली थी और उसने लाली के होठों से जंग छेड़ दी । लाली ने अपनी तलवार रूपी जीभ बाहर निकाल ली पर सोनू ने उसे अपने होठों से खींच कर अपनी जीभ से सटा लिया।

इधर लाली और सोनू एक दूसरे के होठों से खेल रहे थे उधर सोनू के हाथ लाली की नाइटी को ऊपर की तरफ खींच रहे थे..

रजाई तो न जाने कब एक उपेक्षित वस्त्र की भांति किनारे पड़ी हुई थी जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई लाली के कोमल बदन को ठंड का एहसास होता गया।

लाली की नाभि तक पहुंचते-पहुंचते सोनू ने लाली की नाइटी को छोड़ अपने पजामे को नीचे करना शुरू कर दिया।

दोनों प्रेमी अर्धनग्न हो चुके थे सोनू ने लाली के होठों को चूमते हुए नाइटी पर ध्यान लगाया और लाली के सहयोग से उसका ही चीर हरण कर लिया।

सोनू अब पूरी तरह लाली के ऊपर आ चुका उसकी लाली दीदी जो उम्र में तो बड़ी थी पर सोनू के आगोश में लगभग समा चुकी थी। उम्र का यह अंतर सोनू के बलिष्ठ शरीर ने मिटा दिया था। दोनों एक प्रेमी युगल की भांति एक दूसरे से सटे हुए थे। उधर सोनू ने एक बार फिर लाली के चेहरे और होठों को चूमना शुरू किया और सोनू के तने हुए लण्ड ने लाली की चूत को चुम लिया।

जैसे-जैसे लाली अपनी जीभ को सोनू के होठों के अंदर करती गई सोनू का लण्ड उसकी मलाईदार और कसी हुई चूत में प्रवेश करता गया।

वासना अंधेरे में जवान होती है और एकांत में फलती फूलती है। उसके विविध रूप भी अंधकार में ही प्रकट होते हैं। यदि दोनों पक्षों की सहमति हो और शरीर का लचीलापन बरकरार हो तो संभोगरत जोड़े अपने सारे अरमान पूरे कर सकते हैं ।

सोनू ने आज तक जितना भी ज्ञान अपने दोस्तों और गंदी किताबों से सीखा था अपनी लाली दीदी पर प्रयोग कर लेना चाहता था। उसने अपने हाथों से लाली की जांघों को पकड़कर लाली के घुटने उसकी चुचियों के दोनों तरफ करते हुए अपने लण्ड को लाली की बुर में जड़ तक उतार दिया लाली एक बार फिर कराह उठी

"बाबू तनी धीरे से ….आह...दुखाता"

लाली ने अंतिम शब्द का प्रयोग यूं ही नहीं किया था इस अवस्था में सोनू का लण्ड उसके गर्भाशय पर एक बार फिर छेद करने को आतुर था।

सोनू ने लाली को चूम लिया और अपने लिंग को थोड़ा पीछे कर लिया लाली ने भी अपनी जांघें थोड़ा ऊंची की और खुद को व्यवस्थित कर लिया।

सोनू अपनी लाली दीदी को पूरी रिदम के साथ चोद रहा था और लाली अपनी आंखें बंद किए उस का आनंद ले रही थी। जाने लाली ने अपनी आंखें क्यों बंद की थी कमरे में तो पहले से ही अंधेरा था पर शायद आंखों के बंद करने से दिमाग और शांत हो जाता है और लाली उस अद्भुत असीम शांति में अपनी चुदाई का आनंद ले रही थी।

पर नियति तो जैसे शरारत करने के मूड में ही थी। रेलवे कॉलोनी की लाइट वापस आ गयी। लाली की बंद आंखों पर रोशनी की हल्की फुहारे आने लगीं। लाली को अब जाकर एहसास हुआ कि वह आज अपने ही बिस्तर पर पूरी तरह नग्न होकर अपने पैर के दोनों घुटनों को अपनी चुचियों के दोनों तरफ हाथों से खींचे हुए चुद रही थी।। लाली शर्म से पानी पानी हो गई सोनू क्या सोच रहा होगा? उसने अपने पैरों को छोड़ा और अपनी बंद आंखों को अपनी उंगलियों से ढक लिया.

अचानक लाइट आ जाने से एक पल के लिए सोनू भी डर गया था परंतु लाली ने जब अपनी आंखें स्वयं ही ढक लीं तो सोनू को आंखें बंद करने की कोई आवश्यकता न थी। वह लाली के खूबसूरत और भरे पूरे जिस्म का आनंद लेने लगा। एक पल के लिए उसने अपना ध्यान चुदाई से हटाकर लाली की खूबसूरती को जी भर कर निहारने लगा। अपनी नंगी दीदी का खूबसूरत चेहरा, सुंदर और सांचे में ढली हुई गर्दन और गर्दन में पहना हुआ काले मोतियों और सोने के धागों से बना हुआ मंगलसूत्र। मंगलसूत्र का लॉकेट दोनों चुचियों के बीच निर्विकार भाव से पड़ा सोनू को देख रहा था।

उस लाकेट को आज अपना अस्तित्व समझ नहीं आ रहा था। आज से पहले उसने नग्न लाली पर सिर्फ उसके पति राजेश को ही देखा था। उसे राजेश ने अपने प्रतीक स्वरूप लाली के खूबसूरत शरीर पर सजाया था परंतु आज लाली के भाई को उसी अवस्था में देखकर उसे अपनी उपयोगिता पावन संबंधों के प्रतीक के रूप में नहीं अपितु एक सौंदर्य की वस्तु के रूप में महसूस हो रही थी।

लाली सोनू की मनोदशा से अनभिज्ञ उसके कमर हिलाने का इंतजार कर रही थी। प्रेम कीड़ा में यह ठहराव उसे पसंद नहीं आ रहा था। उसने अपनी उंगलियां अपनी आंखों पर से हटायीं और सोनू की तरफ देखा जो अपना ध्यान उसकी चुचियों पर लगाए हुए था।

जब तक लाली कुछ कहती सोनू ने उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां गप्प से अपने मुंह में भर लीं और दोनों हाथों से पकड़ कर उसे मीसने लगा। सोनू के बलशाली होठों द्वारा चुसे जाने से दूध की धारा सोनू के मुंह में फूट पड़ी। अपनी भांजी रीमा के हिस्से का दूध पीना सोनू को पसंद ना आया और उसने अपने होठों का दबाव नियंत्रित किया और चूसने की वजह उसे चुभलाने पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया

आनंद में जो ठहराव आया था वह उतनी ही तेजी से अपनी गति पकड़ने लगा। लाली ने अपनी आंखें फिर से बंद कर लीं अब वह उंगलियों के प्रयोग से अपने प्यारे भाई सोनू के सर को प्यार से सहलाने लगी।

सोनू इस प्यार से अभिभूत होकर लाली को गचागच चोदने लगा कमरे में हलचल बढ़ रही थी जांघों के टकराने की थाप अद्भुत थी। लाली के दोनों बच्चे सो रहे थे और उनकी मां अपने भाई सोनू को प्रेमझुला झूला कर सुलाने का प्रयास कर रही थी।

सोनू अभी कुछ देर पहले ही स्खलित हुआ था उसकी उसका शरीर वीर्य उत्पादन के लिए अंडकोषों को निचोड़ रहा था। परंतु स्खलन हेतु वीर्य एकत्रित होने में अभी समय था। सोनू की तेज चल रही सांसे और लण्ड ने लाली को अपने पैर तानने पर मजबूर कर दिया। सोनू की चुदाई ने लाली को एक बार फिर झड़ने पर मजबूर कर दिया था। लाली हांफ रही थी और अपनी झड़ती हुई बुर में सोनू के लण्ड के आवागमन को महसूस कर रही थी। कभी वह उसे रोकना चाहती कभी अपनी बुर को सिकोड़ कर उसे बाहर निकालना चाहती। परंतु उसकी उंगलियां सोनू के सिर को लगातार अपनी चुचियों पर खींचे हुए थीं।

लाली शांत हो रही थी और भरपूर प्रयास कर रही थी कि वह अपने भाई सोनू की उत्तेजना को भी अपनी बुर की गर्मी से शांत कर दे परंतु सोनू तो आज अड़ियल सांड की तरह उसे निर्ममता से चोदे जा रहा था।

लाली की बुर अब आराम चाह रही थी परंतु लाली सोनू की उत्तेजना पर ग्रहण नहीं लगाना चाहती थी। वह सच में सोनू से प्यार करने लगी थी अपनी बुर की थकान और उसकी संवेदना को ताक पर रख वह अभी भी चेहरे पर मुस्कान लिए सोनू को इस स्खलन के लिए उत्साहित कर रही थी। नियत लाली की यह कुर्बानी देख रही थी उसने लाली को आराम देने की सोची और लाली की पुत्री रीमा जाग गई..

सोनू ने इस आकस्मिक आए विघ्न को ध्यान में रख अपनी रफ्तार बढ़ाई परंतु रीमा की आवाज तेज होती गयी। इससे पहले की राजू जागता और अपने मामा को अपनी मम्मी के ऊपर देखता लाली ने करवट लेना ही उचित समझा। सोनू ने अपना फनफनाता आता हुआ लण्ड मन मसोसकर बाहर खींच लिया जो फक्क की आवाज के साथ बाहर आ गया लाली और सोनू दोनों का ही ध्यान उस आवाज पर गया और उनकी नजरें मिल गई यह आवाज बेहद मादक थी और लाली और सोनू दोनों को उनके नंगे पन का एहसास करा गई थी दोनों ने ही अपनी पलके झुका लीं।

लाली ने रीमा की तरफ बढ़ कर उसे अपनी चुचियों से सटा लिया अपने मामा द्वारा कुछ देर पहले चुसी जा रही चुचियों को रीमा ने अपने मुंह में ले लिया और उससे दूध खींचने का प्रयास करने लगी। सोनू ने अनजाने में ही अपनी भांजी की मदद कर दी थी उसके चुभलाने से लाली का दूध उतर आया था। रीमा आंखें बंद कर दूध पीने लगी।

करवट मुद्रा में लाली को नग्न देखकर सोनू एक बार फिर उसके मदमस्त नितंबों का कायल हो गया वह नीचे आकर लाली के नितंबों को चूमने लगा ….

सोनू लाली को सर से पैर तक झूमे जा रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके सामने पूरी तरह नग्न लेटी हुई थी। लाली भी अपने तन की नुमाइश सोनू को बेझिझक होकर कर रही थी। पास पड़ी रजाई को न तो लाली ने खींचने की कोशिश की और न हीं सोनू ने।

रीमा के सो जाने के पश्चात लाली जान चुकी थी कि उसे एक बार फिर चुदना है। अपने प्रेम सफर पर उसने सोनू को अकेला छोड़ दिया था। उसकी बुर फूल चुकी थी और अब लण्ड के ज्यादा वार सहने को तैयार न थी। लाली ने अपने जांघों के बीच अपनी रानी की संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए खुद को डॉगी स्टाइल में ला दिया।

सोनू लाली का यह दिव्य रूप देख भाव विभोर हो गया। दोनों नितंबों के बीच उसकी कसी हुई गांड और उसके नीचे फूली और चुदी हुई बुर सोनू के लण्ड का इंतजार कर करती हुयी प्रतीत हुयी। लाली में अपनी ठुड्डी अपनी हथेलियों पर रख ली थी और बेहद प्यार और मासूमियत से चोली

"बाबू बत्ती बंद कर लो…फिर चो….."

लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली। हाय राम मैंने यह क्या कह दिया। हालांकि लाली ने उस कामुक शब्द का दूसरा अंश अपने होठों पर नहीं लाया था परंतु सोनू तो पूरी एकाग्रता से लाली की अवस्था और आमंत्रण दोनों को देख और सुन रहा था।

वह इस नयनाभिराम दृश्य को देखना चाहता था उसने लाली की पीठ को चूमते हुए कहा

"दीदी बस थोड़ा देर…. और आप बहुत सुंदर लग रही हो"

इधर सोनू ने अपनी बात खत्म की और उसके लण्ड ने एक बार फिर लाली की नाभि की तरफ दौड़ लगा दी। लाली यह बात जानती थी कि उसके मादक और नंगे जिस्म को इस अवस्था में देखकर सोनू की उत्तेजना सातवें आसमान पर होगी फिर भी वह राजू के अकस्मात जाग जाने की आशंका से थोड़ा चिंतित थी..

उसने सोनू की उत्तेजना को नया आयाम देने की सोची और अपने मुंह से हल्की हल्की मादक आवाजें निकालने लगी

"बाबू ….धीरे…..आ…..ईईई ….और जोर से...हां हां ऐसे आ…".

जैसे-जैसे लाली कराह रही थी उसकी उत्तेजना एक बार फिर जागृत हो रही थी। अपने भाई सोनू के प्रति उसका अद्भुत प्रेम देख उसकी बुर् अपने सूजन को दरकिनार कर खुद स्खलन के लिए एक बार फिर तैयार हो गयी। सोनू लाली की कमर को पकड़े हुए उसे लगातार चोद रहा था और बीच-बीच में झुककर कभी वह उसकी पीठ को चूमता और चुचियों को मसलता और फिर उसी अवस्था में आ जाता।

सोनू और लाली के इस प्रेम पर अब सोनू की उत्तेजना हावी हो चुकी थी वह यह बात भूल चुका था कि जिस कोमल युवती की बुर वह बेरहमी से चोद रहा था वह उसकी अपनी लाली दीदी है। लाली के नितंबों के बीच अपने लण्ड के आवागमन को देखकर सोनू पागल हो गया और अपने लण्ड को तेजी से आगे पीछे करने लगा उसका दिमाग पूरी तरह एकाग्र होकर स्खलन के लिए तैयार हो गया।

सोनू ने एक बार फिर अपने लण्ड को लाली को बुर के अंदर ठान्स दिया और वीर्य वर्षा प्रारंभ कर दी।

"दीदी …...आह…." सोनू झड़ रहा था और लाली भी. जहां लाली की बुर उसके तने हुए लण्ड को जड़ से सिरे तक अपने प्रेमरस से सिंचित कर रही थी वही सोनू का लण्ड लाली के गर्भ में एक बार फिर वीर्य भर गया था।

नियति मुस्कुरा रही थी। लाली कि बुर ने आज कई दिनों बाद दिवाली मनाई थी और उसकी कोमल बुर में चलाए गए पटाखों की गूंज 9 महीने बाद सुनाई देनी थी।

नियत उस गूंज को सुनना चाहती थी महसूस करना चाहती थी और अपनी साजिश का अंश बनाकर इस खेल को आगे बढ़ाना चाहती थी।


"जल्दी जल्दी काम खत्म कर जीजू आते ही होंगे शाम को बनारस महोत्सव चलना है ना अपनी दीदी से मिलने"

लाली सोनू का ध्यान खींचकर उसे वापस वर्तमान में ले आयी।

"आप भी तो मेरी दीदी ही हो" सोनू ने अपने सचेत होने का प्रमाण देते हुए बोला..

"तो क्या हम दोनों तेरी निगाहों में एक ही हैं"

"आप मेरे लिए दीदी से बढ़कर हो"

"तो इसका मतलब अब मैं तुझे सुगना से ज्यादा प्यारी हूं"

सोनू उत्तर न दे पाया पर लाली ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया। और सोनू का लण्ड एक बार फिर खड़ा हो गया।

जब तक सोनू लाली की जांघों के बीच आने के लिए कोई रणनीति बनाता राजेश दरवाजे पर आ चुका था। सोनू के अरमान जमीन पर आ गए पर पिछली रात उसे जो सुख मिला था वह उसे कई दिनों तक तरोताजा और उत्साहित रखने वाला था।

बनारस महोत्सव में जाने की तैयारियां शुरू हो गई थी.

उधर विद्यानंद के पंडाल में सुगना ने मोनी को बुलाया

"जी.. दीदी"

"चल तुझे.. एक वीआईपी कमरा दिखा कर लाती हूं"

सुगना ने मनोरमा के वीआईपी कमरे की चाबी ली और मोनी को लेकर उसके कक्ष की तरफ चल पड़ी। सूरज सुगना की गोद में बैठा अपनी मौसी मोनी को देख रहा था। मोनी भी सूरज को छेड़ती हुई सुगना के साथ साथ चल रही थी और सूरज किलकारियां मारकर मोनी की छेड़छाड़ का अपनी भाषा और भाव से उत्तर दे रहा था..

कमरे के आसपास मनोरमा की गाड़ी न देखकर सुगना खुश हो गई सरयू सिंह ने उसे बताया था कि यदि मनोरमा की गाड़ी उस कमरे के आसपास नहीं हो तभी उस कमरे का प्रयोग करना है।

सुगना ने दरवाजा खोला और अंदर प्रवेश कर गई।

कमरे के साफ और सुंदर बिस्तर पर मोनी बैठ गई।

सुगना ने पूरी संजीदगी से कहा

" मोनी क्या तुझे सूरज के अंगूठे के बारे में सोनी ने कुछ बताया था "

"हां दीदी"

"क्या वह बात सच है?"

"हां दीदी उस दिन तो हुआ था"

"चल मेरे सामने कर ना"

मोनी ने सूरज को अपनी गोद में लिया उसकी कच्छी सरकायी उसके जादुई अंगूठे को अपने हाथों से सहलाने लगी। नुन्नी में कोई हरकत ना थी।सूरज मुस्कुरा रहा था।

सुगना को ध्यान आया की पिछली बार भी उसकी उपस्थिति में सोनी की हरकत से भी सूरज की नुंनी में कोई अंतर नहीं आया था। मोनी स्वयं आश्चर्य में थी पिछली बार उसने सूरज के जादुई अंगूठे को सहलाने का परिणाम अपनी आंखों से देखा था और न चाहते हुए भी उसे अपने होंठों का स्पर्श उस नुंनी को देना पड़ा था। परंतु आज वैसा कुछ भी न था।

"रुक जा मैं बाथरूम से आती हूं फिर वापस चलते हैं" सुगना ने कहा और सोचती हुई बाथरूम में चली गई। मोनी ने एक बार फिर सूरज के अंगूठे को सहलाने की कोशिश की और उसकी नूनी ने आकार बढ़ा लिया। अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मोनी ने अंगूठे को कुछ ज्यादा ही सहला दिया और सूरज के नूनी एक लंबे गुब्बारे की भांति भूल गई। मोनी जोर से चिल्लाई

"सुगना दीदी यह देखिए.."

सुगना बाथरूम में नीचे बैठकर मूत्र विसर्जन कर रही थी उसकी बुर की फाँकें फैली हुई थी और उसका ध्यान मूत्र की सुनहरी धार पर लगा हुआ था। मोनी की आवाज सुनकर उसने अपने मूत्र विसर्जन को यथाशीघ्र रोकने की कोशिश की और वापस कमरे में आ गई सूरज की बढ़ी हुई नुंनी उसके लिए सातवें आश्चर्य से कम न थी। नुंनी का आकार 4 से 5 गुना बढ़ चुका था। जो सूरज के मासूम उम्र की तुलना में बेहद असामान्य था।

"मोनी, अब यह वापस सामान्य कैसे होगा?

मोनी ने अपने होठों को सूरज की नुन्नी से सटा दिया जैसे-जैसे वह अपने होंठ उस पर रगड़ती गई सूरज की नूनी का आकार सामान्य होता चला गया। सुगना कि आज आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी।

स्वामी विद्यानंद की बात सोलह आने सच थी..

सुगना सोच में पड़ गई तो क्या…. सूरज को सामान्य करने के लिए सच में उसे अपने बेटे सूरज से…...

छी छी छी…... मैं यह कभी नहीं कर पाऊंगी. सुगना बुदबुदाई..

"क्या नहीं कर पाओगी.. दीदी"

सुगना क्या क्या बोलती उसने बात टालने की कोशिश की।

"कुछ नहीं…"

"दीदी सूरज के साथ ऐसा क्यों हो रहा है?

"मोनी कसम खा तू यह बात किसी को नहीं बताएगी"

"पर दीदी यह सोनी को भी पता है"

तुम दोनों ही उसकी मौसी हो तुम दोनों के अलावा यह बात किसी के सामने नहीं आनी चाहिए यहां तक कि हमारी मां और मेरी सासू मां को भी नहीं।

"ठीक है दीदी आप चिंता मत कीजिए"

सुगना खुश हो गई परंतु मोनी के मन में शरारत सूझी चुकी थी उसने हंसते हुए कहा..

"जब सूरज बड़ा हो जाएगा तो इसके अंगूठे पर दस्ताना पहनाना पड़ेगा वरना यदि कहीं मैंने और सोनी ने इस अंगूठे को छू लिया तब …….?"

सुगना मुस्कुराने लगी । उसके दिमाग में युवा सूरज और मोनी की तस्वीर घूम गयी। वह मोनी और सोनी की बड़ी बहन थी उनके बीच बातचीत की मर्यादा कायम थी। वह सेक्स विषय पर खुल कर बात करना नहीं चाहती थी। उसने बात टालने के लिए कहा

"हट पगली…. चल तू ही दस्ताना बना देना"

दोनों उस कमरे से वापस पंडाल की तरफ आने लगीं। सुगना मन ही मन गर्भवती होने की योजना बना रही थी। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह एक पुत्री को अवश्य जन्म देगी और अपने जान से प्यारे सूरज को इस अभिशाप से मुक्त करेंगी।

सरयू सिंह पंडाल के गेट पर खड़े अपनी मदमस्त बहू सुगना को आते हुए देख रहे थे। भरी-भरी चुचियों के बीच पतली कमर और साड़ी के पतले आवरण से झांकती सुगना की नाभि उन्हें सुगना कि गुदांज गाड़ का आभास करा रही थी। उनका लण्ड लंगोट के तनाव से जंग लड़ रहा था…

सुगना अपने बाबूजी के नजरों को बखूबी पहचानती थी परंतु मोनी साथ में थी वह चाह कर भी सरयू सिंह के करीब नहीं आ सकती थी उसने अपना घुंघट लिया और पंडाल के अंदर जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा..

"सुगना बेटा लावा सूरज के हमरा के दे द"

सुगना रुकी और सरयू सिह के पास जाकर सूरज को उनके हवाले करने लगी। ससुर बहू के निराले संबंधों से जन्मा सूरज अपनी माता की गोद से अपने पिता की गोद में जा रहा था सरयू सिंह की बड़ी उंगलियों ने इसी दौरान अपनी बहू सुगना की चुचियों को छेड़ दिया। सुगना शरीर सिंह की मनोदशा से बखूबी परिचित थी उसने अगल-बगल देखा और उंगलियों के खेल की प्रतिक्रिया में मुस्कुरा दी। और एक बार फिर पंडाल की तरफ बढ चली…


शेष अगले भाग में
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#52
भाग 48


बनारस महोत्सव का दूसरा दिन अपरान्ह 3:00 बजे…..


बनारस महोत्सव के निकट एक पांच सितारा होटल के बेहतरीन सजे धजे कमरे में एक नग्न युवती अपने घुटनों के बल बैठी हुई एक मोटे और थुलथुले व्यक्ति का छोटा सा लण्ड अपने मुंह में लेकर चूस रही थी वह व्यक्ति उसके सर को पकड़कर अपने लण्ड पर आगे पीछे कर रहा था।

युवती पूरी तरह रति क्रिया के लिए आतुर थी और पूरी लगन से उस कमजोर हथियार में जान भरने की कोशिश कर रही थी। पुरुष की आंखों में वासना नाच रही थी परंतु जितनी उत्तेजना उसके दिमाग में थे उतना उसके हथियार तक न पहुंच रही थी। अपने चेहरे पर कामुक हावभाव लिए वह उस सुंदर युवती के मुंह में अपना लण्ड आगे पीछे कर रहा था। कुछ देर बाद उसने उस युवती को उठाया और बिस्तर पर लेटने का इशारा युवती खुशी खुशी बिस्तर पर बिछ गई।

कामुक और सुडोल अंगों से सुसज्जित वह युवती प्रणय निवेदन के लिए अपनी जांघें फैलाए और अपने हाथों से उस व्यक्ति को संभोग के लिए आमंत्रित कर रही थी। सुंदर, सुडोल और कामवासना से भरी हुई युवती का यह आमंत्रण देख वह व्यक्ति उस पर टूट पड़ा।

उस मोटे व्यक्ति ने सुंदर युवती की जांघों के बीच आकर अपने लगभग तने हुए लण्ड को अंदर प्रवेश कराया और अपनी कुशलता और क्षमता के अनुसार धक्के लगाने लगा।

वह उसकी चुचियों को भी मीसने और चूसने का प्रयास करता रहा और वह युवती उसकी पीठ और कमर को सहला कर उसे उत्तेजितऔर प्रोत्साहित करती रही। धक्कों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी और उस युवती के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।

अचानक उस व्यक्ति के धक्के गहरे होते गए परंतु उनके बीच का अंतराल कम हो गया वह स्खलित होते हुए बोल रहा था

"….मनोरमा मुझे माफ कर देना…"

मनोरमा के पति सेक्रेटरी साहब स्खलित हो चुके थे और मनोरमा बिस्तर पर आज फिर तड़पती छूट गई थी। कुछ देर यदि वह यूं ही अपने चर्म दंड को रगड़ पाने में सक्षम होते तो आज कई दिनों बाद मनोरमा को भी वह सुख प्राप्त हो गया होता। मनोरमा नाराज ना हुई परंतु उसकी बुर में बेजान पड़ा लण्ड अब फिसल कर बाहर आ रहा था और उसके द्वारा बुर के अंदर भरा पतला वीर्य भी उसी के साथ साथ बाहर आ रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे "बरसात में सड़क पर चलने वाला जोक अपनी लार गिराते हुए चल रहा हो."

सेक्रेटरी साहब ने अपनी उंगलियों से मनोरमा की बुर को और उत्तेजित कर स्खलित कराने की कोशिश की परंतु मनोरमा ने मना कर दिया। उसका रिदम टूट चुका था और अब वह अपनी उत्तेजना लगभग खो चुकी थी। उसने स्त्री सुलभ व्यवहार को दर्शाते हुए कहा...

"कोई बात नहीं जी अभी तो बनारस महोत्सव में कई दिन है. फिर कभी"

मनोरमा को संभोग के उपरांत नहाने की आदत थी उसने स्नान किया और वापस सज धज कर एक एसडीएम की तरह वापस सेक्रेटरी साहब के सामने आ गई। घड़ी एक के बाद एक टन टन टन की पांच घंटियां बजाई मनोरमा बनारस महोत्सव में जाने के लिए तैयार थी उसका ड्राइवर ठीक 5:00 बजे गाड़ी लेकर उस होटल के नीचे आ जाता.. था। मनोरमा होटल के रिसेप्शन हॉल में जाने के लिए सीढ़ीयां उतरने लगी बनारस महोत्सव के आयोजन से संबंधित रोजाना होने वाली मीटिंग में उसे पहुंचना अनिवार्य था।

एक सुंदर और अतृप्त नवयौवना अपना दैहिक सुख छोड़कर कर्तव्य निर्वहन के लिए निकल चुकी थी। परंतु नियति आज निष्ठुर न थी। वह सुंदर, सुशील तथा यौवन से भरी हुई मनोरमा की जागृत उत्तेजना को अपनी साजिश में शामिल करने का ताना-बाना बुनने लगी।


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उधर लाली अपने परिवार औरपरिवार के नए सदस्य सोनू को लेकर विद्यानंद जी के पंडाल में आ चुकी थी। जहां सरयू सिंह के परिवार के लगभग सभी सदस्य उपस्थित थे। सुगना भी सज धज कर अपनी दोनों बहनों सोनी और मोनी के साथ मेला घूमने को तैयार थी।

कजरी और सरयू सिंह विद्यानंद से मिलने को आतुर थे परंतु किसी न किसी वजह से उनकी मुलाकात टलती जा रही थी। परंतु आज दोनों ने उनसे मिलने का निश्चय कर लिया था। दोनों देवर भाभी मेला घूमने का मोह त्याग कर विद्यानंद से मिलने का उपाय तलाश रहे थे।

रात में कई बार चुदने की वजह से लाली की चाल में अंतर आ गया था। लाली खुद भी आश्चर्यचकित थी। उसे यह एहसास कई दिनों बाद हुआ था। फूली हुई बुर चलने पर अपनी संवेदना का एहसास करा रही थी और लाली की चाल स्वतः ही धीमे हो जा रही थी थी।

सुगना ने कहा..

"काहे धीरे धीरे चल रही हो?"

"सोनुवा से पूछ" लाली सुगना से अपने और सोनू के संबंधों के बारे में खुलकर बात करना चाह रही थी परंतु सीधी बात करने में उसकी स्त्री सुलभ लज्जा आड़े आ रही थी।

सोनू सोनी और मोनी के साथ आगे चल रहा था अपना नाम लाली की जुबान पर आते ही वह सतर्क हो गया और पीछे मुड़कर देखा पर सुगना ने कुछ ना कहा...

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

"इसकी शादी जल्दी करनी पड़ेगी.."

लाली के बार-बार उकसाने से सुगना भी मूड में आ गई उसने लाली को छेड़ते हुए धीरे से बोला

"काहे तोहरा संगे फिर होली खेललस हा का"

सुगना ने होली के दिन सोनू को लाली की चूचियां पकड़े हुए देख लिया था और यह बात लाली भी बखूबी जानती थी लाली शर्मा गई और मुस्कुराते हुए बोली..

"बदमाश होली त छोड़ दिवाली भी मना ले ले बा"

"का कहतारे?" सुगना को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ उसे अभी भी सोनू एक किशोर के जैसा ही दिखाई पड़ता था यद्यपि उसकी कद काठी एक पूर्ण युवा की हो चुकी थी।

"जाके ओकरे से पूछ" लाली का चेहरा पूरी तरह शर्म से लाल था

"तूने ही उकसाया होगा.."

"मतलब?"

"मतलब.. मिठाई खुली छोड़ी होगी"

"अरे वाह मिठाई का ढक्कन खुला छूट गया तो कोई भी खा ले…" लाली ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा

"तूने जानबूझकर अपनी मिठाई खोलकर दिखाई होगी मेरा भाई सोनू ऐसा लगता तो नहीं है.."

" वाह मेरा भाई….तो क्या वह मेरा भाई नहीं है ?"

"जब भाई मान रही है तब मिठाई की बात क्यों कर रही है?" सुगना ने जैसे बेहद सटीक बात कह दी वह अपने इस हंसी ठिठोली में आए इस तार्किक बात से खुद की पीठ थपथपा रही थी।

"अरे वाह जब मेरा भाई मिठाई का भूखा हो तो उसको क्यों ना खिलाऊं कही इधर उधर की मिठाई खाया और पेट खराब हुआ तो…" लाली ने नहले पर दहला मार दिया।

"अच्छा जाने दे छोड़ चल वह झूला झूलते हैं…" सुगना ने प्रसंग बदलते हुए कहा... वह सोनू के बारे में ज्यादा अश्लील बातें करना नहीं चाह रही थी।

सुगना को यह विश्वास न था की लाली और सोनू ने प्रेम समागम पूर्ण कर लिया है। परंतु लाली के चंचल स्वभाव और बातों से वह इतना अवश्य जानती थी की लाली सोनू को अपने अंग प्रत्यंग दिखा कर उत्तेजित किया रहती थी और भाई-बहन के संबंधों की मर्यादा को तार तार करती थी।

झूले के पास पहुंचने पर झूले वाले ने बच्चों को झूले पर चढ़ाने से इनकार कर दिया। यह झूला लकड़ी की बड़ी-बड़ी बल्लियों से मिलकर बनाया गया था और बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम न होने की वजह से उस पर 10 वर्ष से कम के बच्चों को चढ़ने की रोक थी।

राजेश ने सामने की दुकान से दो बड़े-बड़े लॉलीपॉप लाया और बच्चों को देकर बोला

"बेटा तुम और रीमा सामने सर्कस का शो देख लो। सोनू मामा दिखा लाएंगे।" सोनू बगले झांकने लगा वह लाली से दूर नहीं होना चाहता था।

"साले साहब जाइए अपने मामा होने का हक अदा कीजिए और बच्चों को सर्कस दिखा लाइए तब तक मैं इन लोगों को झूला झूला देता हूं.."

सोनू ने राजेश की बात मान ली. वैसे भी इन दोनों बच्चों की मां ने उसके सारे सपने कल रात पूरे कर दिए थे और इन बच्चों ने भी पूरी रात भर गहरी नींद सो कर उनकी प्रेम कीड़ा में कोई विघ्न न पहुंचाया था।

सोनू के जाने के पश्चात झूले पर बैठने की बारी आ रही थी। सुगना और उसकी दोनों बहनों ने उनका पसंदीदा घाघरा चोली कहना हुआ था।

झूले पर कुल चार खटोले बंधे हुए थे एक खटोले पर दो व्यक्ति बैठ सकते थे। सुगना और सोनी एक साथ बैठे और लाली तथा मोनी एक साथ। राजेश में अपनी सधी हुई चाल चलते हुए सुगना के ठीक सामने वाला खटोला चुन लिया। परंतु उसका साथी न जाने कौन होता तभी सोनू का दोस्त विकास न जाने कहां से भागता हुआ आ गया और राजेश के बगल में बैठ गया।

एक पल के लिए राजेश को लगा जैसे उसने उस व्यक्ति को कहीं देखा है परंतु वह उसे पहचान नहीं पाया। चौथे खटोले पर एक अनजान युगल बैठा हुआ था। झूले वाले ने झूला घुमाना प्रारंभ कर दिया जैसे जैसे झूले की रफ्तार बढ़ती गई सुगना और सोनी दोनों के लहंगे हवा में उड़ने लगे। जब राजेश और विकास का खटोला ऊपर रहता उन दोनों की निगाहें सुगना और सोनी के गर्दन के नीचे टिकी रहती और चूँचियों के बीच गहराइयों में उतरने का प्रयास करतीं। सुगना और सोनी दोनों बहने अपनी चुचियों का उधार छुपा पाने में नाकाम थीं सुगना तो चाह कर भी अपनी मादक चुचियों को नहीं छुपा सकती थी परंतु आज सोनी ने भी अपनी छोटी चचियों को चोली में कसकर उनमें एक अद्भुत और मोहक उभार दे दिया था।

शाम के सुहाने मौसम और खिली हुई रोशनी में सुगना और सोनी के पैर चमकने लगे पैरों में बनी हुई पाजेब और पैरों में लगा हुआ आलता उनकी स्त्री सुलभ खूबसूरती को और उजागर कर रहा था। जैसे-जैसे झूला तेज होता गया ऊपर से नीचे आते वक्त उनका घाघरा और ऊपर उठता गया। सोनी के सुंदर घुटने पर लगी चोट देख कर विकास आहत हो गया। सोनी की खूबसूरत जांघों से उसकी नजर हटकर एक पल के लिए घुटनों पर केंद्रित हो गई थी। चोट का जिम्मेदार कहीं ना कहीं विकास खुद को मान रहा था।

उधर सुगना की मदमस्त और गोरी जाघे राजेश की उत्तेजना नया आयाम दे रही थी। कितनी सुंदर थी सुगना और कितने सुंदर थे उसके खजाने। आज कई दिनों बाद सुगना के नग्न पैरों को देख राजेश का लण्ड पूरी तरह खड़ा हो गया। उसकी नजरें सुगना के कोमल और खूबसूरत पैरों पर रेंगने लगी धीरे धीरे वह अपने ख्यालों में सुगना की जांघों को नग्न करता गया और उसकी जांघों के बीच छुपे स्वर्गद्वार की कल्पना करता गया।

राजेश जिस एकाग्रता से सुगना की जांघों के बीच अपना ध्यान लगाया हुआ उस एकाग्रता को पाने के लिए न जाने कितने तपस्वी कितने दिनों तक ध्यान लगाया करते होंगे।

राजेश की कामुक नजरों का यह खेल ज्यादा देर तक न चल पाया और झूला शांत होने लगा। राजेश की उत्तेजना पर भी ग्रहण लग गया।

नई सवारियां झूले पर बैठने को तैयार हो रही थीं। खूबसूरत रंग-बिरंगे कपड़ों में लड़के और लड़कियां युवक और युवतियां अपने मन में तरह-तरह के भाव और संवेदनाएं लिए झूले पर अपने जीवन की खुशियां ढूंढने कतार में इंतजार कर रहे थे। झूला रुकते ही विकास और राजेश ने अपनी भावनाओं को काबू में किया तथा तने हुए लण्ड को अपने पेट की तरफ इशारा कर उसे फूलने पिचकने का मौका दिया.

झूला परिसर से बाहर आते समय सोनी और विकास थोड़ा पीछे रह गए यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी दोनों ही एक दूसरे से मिलने को आतुर थे। विकास ने सोनी से कहा..

"आपके घुटने पर तो ज्यादा चोट लगी है मुझे माफ कर दीजिएगा"

सोनी शर्मा गई परंतु वह मन ही मन बेहद प्रसन्न थी। उसके सपनों का राजकुमार मैं आज पहली बार खुद पास आकर उससे बात की थी। सोनी को इस बात का आभास न था उसने अनजाने में ही अपने प्रेमी को अपने खूबसूरत अंगों की एक झलक दिखा दी थी।

सोनी को चुप देखकर विकास ने कहां

"अपना नाम तो बता दीजिए"

"मिलते रहिये नाम भी मालूम चल जाएगा" सोनी ने अपने कदम तेज किये। वह अपने परिवार से थोड़ा दूर हो गई थी इससे पहले कि कोई देख पाता वह परिवार में शामिल हो जाना चाह रही थी।

तभी विकास के दोस्त भोलू ने आवाज दी

"साले मुझे मौत का कुआं की टिकट लेने भेज कर तू यहां झूला झूल रहा है. चल जल्दी अगला शो शुरू होने वाला है"

विकास अब से कुछ मिनट पहले जिस दृश्य को देख रहा था उसमें जीवन का रस छुपा था। काश कुछ देर झूला यूं ही घूमता रहता तो विकास अपनी युवा नायिका की जांघों के दर्शन कुछ देर और कर पाता।

विकास ने सोनी के नग्न पैरों को देखकर उसकी जांघों के जोड़ पर बैठी उसकी सोन चिरैया की कल्पना कर ली थी। वह सोनी के बारे में ढेर सारी बातें करना चाहता था उसका प्रिय मित्र सोनू अपनी लाली दीदी के यहां जाकर बैठ गया था। आज विकास में सोच लिया कि वह जाकर सोनू से जरूर मिलेगा। विकास को क्या पता था कि उसका दोस्त सोनू कुछ ही दूर पर ध्यान सर्कश के जोकर पर आँखे टिकाये सर्कस खत्म होने का इंतजार कर रहा था।

कुछ देर बाद सोनू बच्चों को सर्कस दिखा कर वापस आ गया और पूरा परिवार एक बार फिर मेले में आगे बढ़ने लगा।

रास्ते में एक हाउसिंग प्रोजेक्ट की बड़ी-बड़ी होर्डिंस लगी हुई थीं। (उस समय बनारस शहर का विकास तेजी से हो रहा था। गंगा नदी के किनारे कई सारे हाउसिंग प्रोजेक्ट चालू हो गए थे।)

होर्डिंग पर बने हुए खूबसूरत घर, सड़कें और न जाने क्या-क्या बरबस ही ग्रामीण युवतियों का ध्यान खींच लेते हैं अपनी आभाव भरी जिंदगी से हटकर उन खूबसूरत दृश्यों को देखकर ही उनका मन भाव विभोर हो उठता है। होर्डिंस में दिखाए गए घर उन्हें स्वर्ग से कम प्रतीत नहीं होते। सुगना और लाली भी इन से अछूती न थीं। लाली का पति तो फिर भी आगे पीछे कर कुछ पैसा कमा लेता था परंतु सुगना वह तो परित्यक्ता की भांति अपना जीवन बिता रही थी। यह तो शुक्र है सरयू सिंह का जिन्होंने सुगना और कजरी की आर्थिक स्थिति को संभाले रखा था और सुगना को कभी भी उसका एहसास नहीं होने दिया था तथा एक मुखिया के रूप में सुगना की हर इच्छा पूरी की थी परंतु इस घर को खरीद पाना उनकी हैसियत में न था।

सुगना और लाली दोनों टकटकी लगाकर उन खूबसूरत मकानों को देखे जा रही थी और उन मकानों के सामने सजे धजे कपड़ों में खुद को अपनी कल्पनाओं में देख मन ही मन खुश हो रही थीं

सोनी ने कहा.

"सुगना दीदी चल आगे, ई सब हमनी खातिर ना ह"

सुगना और लाली ने सोनी की बात को सुना जरूर पर जैसे उनके पैर जमीन से चिपक गए थे और आंखें होर्डिंग पर।

उस हाउसिंग प्रोजेक्ट के बुकिंग काउंटर के ठीक बगल में एक लॉटरी काउंटर था। जिनके पास पैसे थे वह हाउसिंग प्रोजेक्ट के काउंटर पर जाकर प्रोजेक्ट से संबंधित पूछताछ कर रहे थे और जिनकी हैसियत न थी परंतु उम्मीदें और आकांक्षाएं भरपूर थी वह अपना भाग्य आजमाने के लिए लाटरी की दुकान में खड़े थे।

अपनी पत्नी लाली और अपने ख्वाबों की मलिका सुगना को उन घरों की तरफ देखते हुए राजेश का मन मचल गया था काश कि वह टाटा बिरला जैसा कोई धनाढ्य व्यापारी होता अपनी खूबसूरत सुगना को निश्चित ही वह घर उपहार स्वरूप दे देता। अपने मनोभावों को ध्यान में रखते हुए राजेश ने लाटरी की टिकट खरीद ली दो टिकट अपने बच्चों के नाम और एक टिकट सूरज के नाम। उसे अपने भाग्य पर भरोसा न था परंतु बच्चों के भाग्य को लेकर वह हमेशा से आशान्वित था।

लॉटरी का ड्रा बनारस महोत्सव के समाप्ति के 1 दिन पूर्व होना था। राजेश खुशी-खुशी सुगना और लाली के पास गया और सुगना की गोद में खेल रहे सूरज को वह टिकट पकड़ाते हुए बोला...

"सूरज बहुत भाग्यशाली है इसके छूने से यह टिकट सोना हो जाएगा" सूरज ने वह टिकट पकड़ लिया और तुरंत ही अपने होठों से सटाने लगा सुगना ने उसका हाथ पकड़ लिया और राजेश से बोली...

"जीजा जी क्यों आपने पैसा बर्बाद किया?"

"अरे ₹10 ही तो है सूरज के हाथ लगने से यह 1000000 हो जाए तो बात बन जाए. आप यह टिकट संभाल कर रख लीजिए"

सुगना ने सूरज के हाथ से वह टिकट ले लिया और अपनी चोली के अंदर चुचियों के बीच छुपा लिया।

लाली राजेश और सुगना को देख रही थी राजेश ने उसे भी निराश ना किया और उसके भी दोनों बच्चों को एक-एक लॉटरी की टिकट पकड़ा दी। लाली भी खुश हो गयी। राजेश चंद पलों में ही कई सारे सपने बेच गया।

आगे-आगे चल रही युवा पीढ़ी अपने में ही मगन थी जहां सोनू अपनी लाली दीदी के साथ बिताई गई रात के बारे में सोच रहा था और लाली की शर्म और उसके चेहरे पर आए मनोभावों को पढ़कर अपनी मेहनत के सफल या असफल होने का आकलन कर रहा था वहीं दूसरी तरफ सोनी के जांघों के बीच हलचल मची हुई थी विकास से मिलने के बाद उसे अपनी जांघों के बीच एक अजीब सी सनसनी महसूस हो रही थी ऐसा लग रहा था जैसे उसकी छोटी सी बुर के अगल बगल के बाल इस सिहरन से सतर्क हो गए थे। चोली में कसी हुई चूचियां उसके शरीर से रक्त खींचकर बड़ी हो गई थी और बार-बार सोनी का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी वह मौका देख कर उन्हें सामान्य करने की कोशिश भी कर रही थी।

सोनी के लिए यह एहसास बेहद सुखद था उसे आज रात का इंतजार था जब वह मोनी के साथ खुलकर इस विषय पर बात करती और अपने एहसासों से मोनी को अवगत करती। मोनी अभी भी मेले की खूबसूरती में खोई हुई थी उसके शांत मन में हलचल पैदा करने वाला न जाने कहां खोया हुआ था।

बनारस महोत्सव का यह मेला वास्तव में निराला था देखते ही देखते तीन-चार घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला और सुगना तथा लाली का परिवार एक बार फिर विद्यानंद के पंडाल की तरफ आ रहा था।

सोनू अपने इष्ट देव से राजेश की नाइट ड्यूटी लगवाने का अनुरोध कर रहा था। वह अनजाने में ही उसके और लाली के मिलन के प्रणेता को अपने बीच से हटाना चाह रहा था। लाली के साथ रात बिताने की सोच कर उसका लण्ड अचानक ही खड़ा हो गया परंतु नियति ने आज लाली की बुर को आराम देने की सोच ली थी।

राजेश नियति के विरुद्ध जाकर अपनी पत्नी लाली को एक बार फिर सुख देने पर आमादा था उसने सोनू पर अपना मोह पास फेका।

"सोनू अपनी लाली दीदी और रीमा को घर पहुंचा दो.."

सोनू की तो जैसे बांछें खिल गयीं छोटी रीमा लाली के साथ की जाने वाली प्रेम कीड़ा में कोई अड़ंगा डाल पाने में असमर्थ थी। सोनू के दिमाग मे लाली के साथ होने वाले संभोग आसन की मादक तस्वीर खींच गई वह लाली को करवट लिटा कर चोदने की तैयारी करने लगा इस अवस्था में लाली अपनी पुत्री रीमा को आराम से दूध पिला सकती थी और उसकी कसी हुई बुर अपने भाई सोनू के लण्ड से दूध दूह सकती थी।

परंतु नियति को यह मंजूर न था उसने कुछ और ही सोच रखा था।

शेष अगले भाग में..
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#53
भाग -49



राजेश नियति के विरुद्ध जाकर अपनी पत्नी लाली को एक बार फिर सुख देने पर आमादा था उसने सोनू पर अपना मोह पास फेका।

"सोनू अपनी लाली दीदी और रीमा को घर पहुंचा दो.."

सोनू की तो जैसे बांछें खिल गयीं छोटी रीमा लाली के साथ की जाने वाली प्रेम कीड़ा में कोई अड़ंगा डाल पाने में असमर्थ थी। सोनू के दिमाग मे लाली के साथ होने वाले संभोग आसन की मादक तस्वीर खींच गई वह लाली को करवट लिटा कर चोदने की तैयारी करने लगा इस अवस्था में लाली अपनी पुत्री रीमा को आराम से दूध पिला सकती थी और उसकी कसी हुई बुर अपने भाई सोनू के लण्ड से दूध दूह सकती थी।

परंतु नियति को यह मंजूर न था उसने कुछ और ही सोच रखा था।


अब आगे..


सुगना की खनकती आवाज सुनाई दी
"जीजा जी आज सब लोग खाना यहीं पंडाल में खाएंगे और यही रहेंगे।" सुगना ने अपनी मादक अदा से यह बात कह दी।

राजेश के लिए यह आग्रह से ज्यादा और आदेश से कम था।

सुगना और सोनू की मां पदमा भी वहां आ चुकी थी उसने भी सुगना की बातों में हां में हां मिलाई और सोनू के हाथ में आया मौका फिसल गया…।
परंतु सोनू को इस बात का सुकून था की आज रात वह अपने पूरे परिवार के साथ रह सकता था और अपनी दोनों छोटी बहनों तथा मां के साथ कई दिनों बाद जी भर कर बातें कर सकता था।
पूरा परिवार गांव की पुरानी यादों और परस्पर प्रेम में डूब गया। सरयू सिंह भी अपने परिवार को हंसी खुशी देखकर उनकी खुशियों में शामिल हो गए।
बनारस महोत्सव पारिवारिक मिलन के एक बेहद खूबसूरत उत्सव में बदल गया था जहां किसी को कोई चिंता न थी खान-पान की। रहन-सहन की व्यवस्था रहने वालों की मनोदशा के अनुकूल थी।

परंतु नियति ने इस खुशहाल परिवार में कामुकता का जाल बिछा दिया था... लाली और सोनू अभी नियति के चहेते चेहरे थे परंतु सुगना और सरयू सिंह के बीच की आग भी धधक रही थी। पिछले दो-तीन महीनों से सरयू सिंह सुगना को चोद तो नहीं पाए थे परंतु हस्तमैथुन और मुखमैथुन द्वारा एक दूसरे की उत्तेजना शांत कर अपना सब्र बनाए हुए थे।

यदि मनोरमा मैडम उन्हें उनके जन्मदिन पर सलेमपुर से खींचकर बनारस महोत्सव में न ले आई होती तो निश्चित ही उस दिन वह सुगना के आगे और पीछे दोनों छेदों का जी भर कर आनंद ले चुके होते।

सुगना ने डॉक्टर की सलाह के विपरीत जाकर जन्मदिन के उपहार स्वरूप अपने दोनों छेदों से खुलकर खेलने का मजा देने का वचन दे दिया था।

सरयू सिंह सुगना के अकेले आशिक न थे। राजेश की चाहत भी अब अपनी पराकाष्ठा पर थी लाली को वासना के दलदल में उतार देने के पश्चात अब उसे कोई डर भय नहीं था। राजेश सुगना को भी उसी फिसलन में खींच लेना चाहता था तथा रिश्तो की मर्यादा को ताक पर रख वह अपनी और सुगना की अतृप्त काम इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता था।

उसे क्या पता था की सुगना की कामेच्छा पूरा करने वाले उसके बाबूजी सरयू सिंह कामकला के न सिर्फ धनी थे अपितु नियति द्वारा एक खूबसूरत और मजबूत लण्ड से नवाजे गए थे।

सुगना अपने बाबूजी सरयुसिंह की तरफ देख रही थी जो अपनी जानेमन सुगना को हंसता और खुश देख कर उसे अपने आगोश में लेने को तड़प रहे थे…

नयन चार होते ही सुगना ने सरयू सिंह के मनोभाव पढ़ लिए.. उसने मुस्कुराते हुए अपनी नजरें नीची कर ली। उसके गदराए शरीर में ऐठन सी हो रही वह अपने बाबूजी के आगोश में जाने को मचल उठी।

खुशहाल युवती स्वभाव से ही उत्तेजक प्रतीत होती है हंसती मुस्कुराती नग्न युवती को बाहों में लिए उससे कामुक अठखेलियां करना और संभोग करते हुए उसकी हंसी को उत्तेजना में तब्दील कर देना हर मर्द की चाहत होती है।

सरयू सिंह भी इससे अछूते न थे उनका मजबूत हथियार अपने कोमल और मुलायम आवरण (सुगना की बुर) में छुपने को तैयार था….

ग्रामीण समाज की परंपराओं के अनुसार स्त्रियों और पुरुषों का झुंड अलग-अलग घेरा बना कर बैठ चुका था। पांडाल में महिलाओं और पुरुषों के रहने की व्यवस्था अलग-अलग थी। सरयू सिंह और राजेश यह बात भली-भांति जानते थे कि पांडाल परिसर में वासना का खेल खेलना अनुचित और बेहद खतरनाक हो सकता था। सामाजिक प्रतिष्ठा एक पल में धूमिल हो सकती थी।

परंतु सरयू सिंह बेचैन थे सुगना द्वारा किया हुआ वादा याद करके उनकी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच जाती और हंसती खिलखिलाती सुनना की आवाजें उनकी उत्तेजना के लिए आग में घी का काम कर रही थी।

वह रह-रहकर सुगना की तरफ देख रहे थे और सुगना भी इस बात को महसूस कर रही थी। इन दोनों का नैन मटक्का शक के दायरे में कतई न था। परंतु सोनू को यह अप्रत्याशित लगा उसने सरयू सिंह से पूछ लिया...

"बाबूजी कुछ चाही का?"

सरयू सिंह ने इशारे से उसे मना किया और एक बार फिर इधर-उधर की बातों में लग गये।

अचानक उन्होंने सुगना को उठकर पांडाल से बाहर बने बाथरूम की दिशा में जाते देखा उनकी बांछें खिल उठी। वह तड़प उठे उनसे बर्दाश्त ना हुआ और जैसे ही सुगना पांडाल से बाहर निकल गई सरयू सिंह भी पांडाल के सामने वाले गेट से निकलकर बाहर आ गए और तेज कदमों से भागते हुए एक बार फिर पांडाल के पीछे पहुंचे और बाथरूम से आ रही सुगना का इंतजार करने लगे।

शाम वयस्क हो चुकी थी। बनारस महोत्सव में रोशनी की कोई कमी न थी परंतु रात को दिन कर पाना बनारस महोत्सव के आयोजकों के बस में नहीं था। अभी भी कुछ जगहों पर घुप अंधेरा था। सरयू सिंह अंधेरे में घात लगाए अपनी बहु सुगना का इंतजार करने लगे। बाथरूम से बाहर आकर सुगना ने अपनी चोली और लहंगे को व्यवस्थित किया। बालों की लटो को अपने कान के पीछे करते हुए अपना सुंदर मुखड़ा अंधेरे में दूर खड़े अपने बाबूजी को दिखा दिया और अपनी मदमस्त चाल से पांडाल की तरफ आने लगी। अचानक सरयू सिंह बाहर आ गए। सुगना के आश्चर्य का ठिकाना न था

"बाबूजी आप"

सरयू सिंह ने अपने होठों पर उंगलियां रखकर सुगना को चुप रहने का इशारा किया और उसकी कलाइयां पकड़कर खींचते हुए उस अंधेरी जगह पर ले आए।

सुगना स्वयं भी पुरुष संसर्ग पाने को आतुर थी। वह अपने बाबूजी के आगोश में आने के लिए तड़प उठी। सरयू सिंह सुगना को अपनी बाहों में भर उसकी चुचियों को अपनी छाती से सटा लिया उनके हाथ सुगना की गोरी पीठ पर अपना शिकंजा बनाए हुए थे और धीरे-धीरे सुगना ऊपर उठती जा रही थी। उसका वजन अब सरयू सिंह की मजबूत बांहों ने उठा लिया था और सुगना के कोमल होंठ अपने बाबुजी के होठों से टकराने लगे।
सरयू सिंह ने एक झटके में अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना के दोनों होठों को मुंह में भरने की कोशिश की। परंतु सुगना भी उनका निचला होंठ चूसना चाहती थी उसने भी अपना मुंह खोल दिया।
सरयू सिंह और सुगना दोनों मुस्कुराने लगे। आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी।

सुगना अपने कोमल होठों से अपने बाबूजी के मजबूत होठों को चूसने लगी और सरयू सिंह भी उसी तन्मयता से अपनी बहू की इस अदा का रसास्वादन करने लगे। ऊपर हो रही हलचल को शरीर के बाकी अंगों ने भी महसूस किया। सरयू सिंह की हथेलियां सुगना के कोमल नितंबों की तलाश में लग गयीं। सुगना एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ी हो गई और सरयू सिंह की हथेलियों ने उसके दोनों नितंबों को अपनी आगोश में ले लिया।

सुगना के नितंबों के आकार को महसूस कर सरयू सिंह सुगना की किशोरावस्था को याद कर रहे थे। नितंबों के आकार में आशातीत वृद्धि हुई थी। दीपावली कि वह पहली रात उन्हें याद आ रही थी। तब से अब तक नितंबों का आकार बढ़ चुका था और निश्चय ही इसका श्रेय कहीं न कहीं सरयू सिंह की भरपूर चुदाई को था उन्होंने सुगना के कान में कहा..

"सुगना बाबू ई दोनों फूलते जा तारे से"

"सब राहुर एकरे कइल ह" सुगना ने सरयू सिंह के लण्ड को पकड़ कर दबा दिया।

"अब उ सुख कहां मिला ता"

सुगना ने अपने होंठ गोल किए और अपनी जीभ को बाहर निकाल कर सरयू सिंह के मुंह में आगे पीछे करते हुए बोली

"कौन सुख ई वाला"

सरयू सिंह सुगना के इस मजाक से और भी उत्तेजित हो गए हो गए उन्होंने अपनी उंगलियां सुगना की गांड से सटा दीं और उसे सहलाते हुए बोले...

"ना ई वाला"

सुगना ने उनका हाथ खींच कर अपनी जांघों के बीच अपनी पनिया चुकी बुर पर ला दिया और बोला..

"तब इकर का होइ.."


"तू और तोहार सास ही पागल डॉक्टर के चक्कर में हमारा के रोकले बाड़ू हम त हमेशा तडपत रहे नी।"

"सरयू सिंह सुगना की उत्तेजित अवस्था को बखूबी पहचानते थे. सुगना का गोरा और चमकदार चेहरा वासना से वशीभूत हो चुका था। उसकी आंखों में लाल डोरे तैरने लगे थे। उसने अपनी पलके झुका लीं और अपने बाबु जी के मजबूत हथेलियों के स्पर्श को महसूस करने लगी।

सरयू सिंह सुगना के हर उस अंग को सहलाए जा रहे थे जो उन्हें अपने शरीर से अलग दिखाई पड़ रहा सुगना के हाथ भी अपने बहुप्रतीक्षित और जादुई मुसल को हाथों में लेकर अपना स्पर्श सुख देने लगे। कपड़ों का आवरण हटा पाना इतना आसान न था। परंतु ससुर और बहू दोनों ने यथासंभव नग्न त्वचा को छूने की भरपूर कोशिश की। दोनों दो-तीन दिनों से मन में जाग रही उत्तेजना को शांत कर लेना चाहते थे।


सरयू सिंह ने आनन-फानन में सुगना का लहंगा ऊपर कर दिया और अपनी उंगलियों को सुगना की बुर् के होठों पर फिराने लगे सुगना चिहुँक उठी। सरयू सिंह की उंगलियां अपनी बहू की बुर् के होठों पर उग आए बालों को अलग करती हुयी उस चिपचिपी छेद के भीतर प्रवेश कर प्रेम रस चुराने लगीं।


मध्यमा और तर्जनी जहां सुगना के बुर् के अंदरूनी भाग को मसाज दे रही थी वही बाकी दोनों उंगलियां सुगना की गांड पर घूम रही थी। सुगना सिहर रही थी। न जाने उसके बाबूजी को उस गंदे छेद में क्या दिखाई पड़ गया था। वह तो जैसे पागल ही हो गए थे।

जिस बुर में उनकी उत्तेजना को पिछले तीन-चार वर्षो तक शांत किया था उसे छोड़कर वह उस सौतन के पीछे लग गए थे।


सरयू सिंह के तन मन में उत्तेजना भरने के लिए अपने अंगों के बीच लगी होड़ को महसूस कर सुगना परेशान भी थी और उत्तेजित भी।

सरयू सिंह का लंड भी लंगोट से बाहर आ चुका था। परंतु मर्यादा और परिस्थितिवश वह धोती की पतले और झीने आवरण के अंदर कैद था। सुगना अपनी हथेलियों से उसके नग्न स्पर्श को महसूस करने को बेताब थी पर धोती जाने कैसे उलझ गई थी।


उसके होंठ अभी भी अपने बाबूजी के होठों से खेल रहे थे और वह चाह कर भी नीचे नहीं देख पा रहे थी। सरयू सिह सुगना की कोमाल हथेलियों का स्पर्श अपने लण्ड पर महसूस कर रहे थे और सुपाड़े ओर रिस रहा वीर्य सुगना की उगलियों को चिपचिपा कर रहा था।

दोनों स्स्खलन की कगार पर पहुंच रहे थे परंतु नियति को यह मंजूर न था । इस बनारस महोत्सव में सरयू सिंह का वीर्य व्यर्थ नहीं जाना था। सरयू सिंह के वीर्य से कथा का एक और पात्र सृजित होने वाला था।


नियति ने अपनी चाल चल दी। पास से गुजरती एक महिला ठोकर खाकर गिर पड़ी। उसे उठाने के लिए आसपास के कई सारे लोग इकट्ठा हो गए। सरयू सिंह को ना चाहते हुए भी सुगना को छोड़ना पड़ा। सुगना स्वयं बाबूजी के इस अप्रत्याशित व्यवहार से चौक गई। उसे पीछे हो रही घटना का अनुमान गलत वह तो अपने बाबूजी के आलिंगन में अद्भुत कामसुख के आनंद में डूबी हुई थी।


उसने पीछे मुड़कर देखा और सारा माजरा उसकी समझ में आ गया उसने सरयू सिंह से धीरे से कहा.. "बाबूजी कल शाम के मनोरमा जी वाला कमरा में …." इतना कह कर वह तेज कदमों से पंडाल की तरफ भाग गई।

सरयू सिंह ने अपने खूंटे जैसे तने हुए लण्ड को वापस अपनी लंगोट में डाला और अपनी उंगलियों को चुमते और सुघते हुए पांडाल की तरफ चल पड़े। इस थोड़ी देर के मिलन ने सरयू सिंह में जान भर दी थी। उनकी उंगलियों ने सुगना की बुर से प्रेम रस और उसकी खुशबू चुरा ली थी। वह अपनी उंगलियों को चूम रहे थे और सुगना के मदमस्त बुर की खुशबू को अपने नथुनों में भर रहे थे। उधर सुगना की उंगलियां भी अपने हिस्से का सुख ले आयी थी। सरयू सिंह के लण्ड से रिस रहा वीर्य धोती के पतले आवरण को छेद कर सुगना की उंगलियों तक पहुंच चुका था। उसकी बाबूजी के लण्ड ने दिन में न जाने कितनी बार वीर्य रस की बूंदे अपने होठों पर लायी थी और वहीं पर सूख गया था। लण्ड की वह खुशबू बेहद मादक थी और सुगना को बेहद पसंद थी। वह अपनी उंगलियों को बार-बार सूंघ रही थी और उसकी खुसबू को महसूस कर उसकी बूर चुदने के लिए थिरक रही थी।

सुगना ने कल शाम अपने बाबू जी को खुश करने का मन बना लिया था। सुगना के मनोभावों को जानकर उसकी छोटी सी गांड ठीक वैसे ही सिहर उठी थी जैसे घर पर आने वाले मेहमानों की सूचना सुनकर कामवाली सिहर उठती है।

खानपान का समारोह संपन्न होने के पश्चात स्त्री और पुरुषों के अलग होने की बारी थी । लाली सोनू को प्यार भरी निगाहों से देख रही थी और उधर सुगना कभी राजेश को देखती कभी सरयू सिंह को….। राजेश की निगाहों में सुगना के लिए जितना प्यार और आत्मीयता थी शायद सुगना उसका चौथाई भी सुगना की आंखों में न था वह पूरी तरह तरफ पिछले दो-तीन महीनों को छोड़ दें तो उसे एक पुरुष से जो कुछ मिल सकता था वह सारा उसके बाबूजी सरयू सिंह ने जी भर कर दिया था। उसने सरयू सिंह से अपने सारे अरमान पूरे किए थे।


घर की सभी महिलाएं पांडाल में सोने चली गई लाली और सुगना अगल-बगल लेटे हुए थे सोनी और मोनी की भी जोड़ी जमी हुई थी। और अपनी जवानी जी चुकीं कजरी और पदमा अपने जीवन में आए अध्यात्म को महसूस कर रही थी।



##

परंतु सुगना की आंखों में नींद न थी वह पांडाल की छत की तरफ देख रही थी। उसके जहन में बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि सूरज को मुक्ति दिलाने वाली उसकी बहन का पिता कौन होगा.

डॉक्टर ने सरयू सिंह के चोदने पर प्रतिबंध लगाया था उस बात को याद कर सुगना तनाव में आ गई थी। वह स्वयं कभी भी दूसरी संतान नहीं चाहती थी परंतु विद्यानंद की बातों को सुनकर गर्भधारण करना अब उसकी मजबूरी हो चली थी.

क्या वह अपने बाबूजी के स्वास्थ्य को ताक पर रखकर उनसे एक बार फिर गर्भधारण की उम्मीद करेगी?

क्या यह 1 - 2 मुलाकातों में संभव हो पाएगा.?

सुगना इस बात से भी परेशान थी कि सरयू सिंह की प्राथमिकता अब उसकी बुर ना होकर वह निगोड़ी गांड हो चली थी।

सुगना को अभी अपनी कामकला पर पूरा विश्वास था उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि कल मनोरमा के कमरे में जाने के पश्चात वह अपनी कामकला से सरयू सिंह को अपनी जांघों के बीच स्खलित होने पर मजबूर कर देगी और रही बात उस दूसरे छेद की तो वह फिर कभी देखा जाएगा।

सुगना की अंतरात्मा ने उसे झकझोरा..

"तो क्या तू अपने पुत्र को मुक्ति दिलाने के लिए अपने बाबूजी के जीवन से खिलवाड़ करेगी…?

यदि तुझे चोदते हुए वह फिर एक बार मूर्छित हो गए तब??

सुगना पूरी तरह आतुर थी वह अपनी अंतरात्मा की आवाज को नकार रही थी उसने मन ही मन उसे उत्तर दिया…

"मैं उन्हें मेहनत नहीं करवाऊंगी मैं स्वयं उनका वीर्य दोहन करूंगी और यदि कुछ ऊंच-नीच होता भी है तो हम सब बनारस में ही हैं डॉक्टर की सुविधाएं तुरंत मिल सकती हैं"

"देख उनके माथे का दाग भी अब कितना कम हो गया है तेरे वासना के खेल से उनका दाग फिर बढ़ जाएगा"

"मुझे गर्भवती होना है इसके लिए इतनी कुर्बानी तो मेरे बाबूजी दे ही सकते हैं"


सुगना की अंतरात्मा ने हार मान ली और सुगना अपने प्यारे बाबू जी सरयू सिंह से चुदकर गर्भवती होने की तैयारी करने लगी।


मन ही मन फैसला लेने के पश्चात सुगना संतुष्ट थी।

"सुगना मैं तेरे बगल में लेटी हूं और तू न जाने क्या सोच रही हो?" लाली ने सुनना का ध्यान भंग करते हुए कहा.

सुगना अपना निर्णय करने के पश्चात सहज महसूस कर रही थी। उसमें करवट ली। सुगना को अपनी तरफ करवट लेते देख लाली ने भी करवट ली और एक बार फिर उन दोनों की चुचियों ने एक दूसरे को छू लिया। दोनों मुस्कुराने लगी । उनकी चुचियों एक दूसरे से सट कर गोल से सपाट होने लगी।

"तुझे रतन भैया की याद नहीं आती है?"

लाली में सुगना की सुगना को सह लाते हुए कहा 
"तू फिर फालतू बात लेकर शुरू हो गई"

"अरे वाह ये निप्पल ऐसे ही कड़ा है? यह सब फालतू बात है?" लाली सुगना को छेड़ने लगी


सुगना सरयू सिह के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित थी लाली द्वारा अपनी चूँचीयां सहलाये जाने से उसके निप्पल और भी खड़े हो गए थे।

"मैंने तो बदलाव का सुख ले लिया है पर तेरे जीजा जी अभी भी तड़प रहे हैं"

लाली अपने और सोनू के बीच हुए संभोग के बारे में सुगना से खुल कर बताना चाह रही थी। परंतु यह उसकी जुबान पर खुलकर नहीं आ पा रहा था अनैतिक कृत्य तो आखिर अनैतिक ही था।

सुगना भली-भांति उसका मंतव्य जानती थी परंतु उसे इस बात का कतई विश्वास न था की सोनू उसे चोद चुका था।

"तो तू इस समय घूम घूम कर अनजानो से मजे ले रही है क्या?"

"ऐसे ऐसे मत बोल मैं कोई छिनाल थोड़ी हूं"

"बातें तो तू वैसी ही कर रही है"

"मैंने अपने सबसे प्यारे सोनू से ही व सुख बांटा है."

"क्या सच में पर यह हुआ कैसे.." सुगना ने लाली के उत्साह भरे चेहरे को देखकर उसकी बातें सुनने का निर्णय कर लिया।


सुगना के इस प्रश्न ने लाली के मन में भरी हुई बातों का मुंह खोल दिया। वह बेहद बेसब्री से अपने और सोनू के बीच हुए प्रेमालाप को अपनी भाषा में सुना दिया वह राजेश के सहयोग को जानबूझकर छुपा गयी। परंतु अपने और सोनू के बीच हुए हर तरीके के कामुक स्थितियों और परिस्थितियों को विस्तार पूर्वक सुना कर सुगना को उत्तेजित करती रही। परंतु वह किसी भी प्रकार से राजेश के व्यवहार को संदेह के घेरे में नहीं लाना चाहती थी। लाली मैं सोनू के साथ जितना संभोग सुख का आनंद लिया था वह अपनी सहेली को मना कर वही सुख अपने पति राजेश को दिलाना चाह रही थी।


सुगना को कभी उसकी बात पर विश्वास होता कभी लाली के फेंकने की आदत मानकर उसे नजरअंदाज कर देती। परंतु जितना भाव विभोर होकर लाली अपनी चुदाई की दास्तान बताए जा रही थी वह सुगना को उद्वेलित कर रहा था। " क्या सचमुच उसका छोटा भाई सोनू उसकी हम उम्र लाली को चोद रहा था…?


व्यभिचार और विवाहेतर संबंधों के बारे में ज्यादा बातें करने और सोचने से वह सहज और सामान्य लगने लगता है. सुगना के कोमल मन मस्तिष्क पर लाली की बातों ने असर कर दिया था उसे यह सामान्य प्रतीत होने लगा था। परंतु मासूम सोनू ने लाली को घोड़ी बनाकर चोदा होगा यह नसरत विस्मयकारी था अपितु सोनू के व्यवहार से मेल नही खाता था।


अपनी ही चुदाई की दास्तान बताकर लाली भी गरमा गई थी। दोनों युवतियां अपने मन में तरह-तरह के अरमान और जांघों के बीच तकिया लिए अपनी चुचियां एक दूसरे से सटाए हुए सोने लगी…।


सोनी और मोनी बगल में लेटी हुई थी. सोनी विकास के साथ बिताए गए पलों को याद कर अपने तन बदन में उठ रही लहरों को महसूस कर रही वह अपनी बहन मोनी से सटकर लेटी हुई थी। उसकी जांघों पर अपनी जाँघे रखे सोनी अपनी बहन को विकास मानकर अपनी सूचियों को मोनी की बाहों से रगड़ रही थी तथा उसकी मोनी मोनी के जाँघों से सट रही थी।


मोनी के लिए यह खेल अभी नया था वह थकी हुई थी और नींद में आ चुकी परंतु सोनी के हिलाने डुलाने से ने अपनी आंखें खोली और बोली चल अब सो जा... घर जाकर अपनी आग बुझा लेना…

सोनी शर्मा गई और मोनी को चूम कर सोने का प्रयास करने लगी। पंडाल में स्खलन जैसे वर्जित था।

परंतु नियति इस बनारस महोत्सव में इस परिवार में संबंधों की रूपरेखा को बदलकर आने वाले समय की व्यूह रचना कर रही थी।

शेष अगले भाग में….


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#54
50 वां भाग


बनारस महोत्सव का तीसरा दिन

सरयू सिंह आज सुबह से ही उत्साहित थे. सुगना ने अपना वादा पूरा करने के लिए आज शाम का वक्त तय किया था परंतु सरयू सिंह सुबह-सुबह ही नहा धोकर तैयार थे. जब तक सुगना और परिवार की बाकी महिलाएं तैयार होकर आती सरयू सिंह पंडाल के सात्विक नाश्ते को छोड़कर बाहर से कचोरी और जलेबी ले आए वह सुगना के लिए विशेष तौर पर मोतीचूर का लड्डू भी ले आए जो सुगना को बेहद पसंद था। अपनी बहू का ख्याल रखना वह कभी नहीं भूलते थे और आज तो वैसे भी विशेष दिन था.

कजरी सरयू सिंह की भावनाओं को पूरी तरह पहचानती थी और उनकी नस नस से वाकिफ थी। सरयू सिंह के उतावले पन और बार-बार सुगना के करीब आने से वह अंदाज लगा रही थी की सरयू सिंह और सुगना निश्चित ही आज मिलने वाले थे। कजरी को भी मनोरमा के कमरे और उसकी चाबी सुगना के पास होने की जानकारी थी। उस कमरे की उपलब्धता ने कजरी की सोच को बल दे दिया था। बनारस महोत्सव के इस पावन अवसर पर दोनों पूर्ण संभोग करेंगे ऐसा तो कजरी ने नहीं सोचा था पर मुखमैथुन और हस्तमैथुन उन दोनों के बीच बेहद सामान्य को चला था।

सुबह के नाश्ते के पश्चात लाली और राजेश अपने बच्चों के साथ अपने घर चले गए। सोनू को भी अपने दोस्तों की याद आई और वह उनसे मिलने चला गया.

सरयू सिंह सुगना को लगातार ताड़ रहे थे जो अपनी दोनों बहनों के साथ अपनी उम्र को भूलकर हंस खेल रही थी। अपनी छोटी बहनों के साथ खेलते हुए सुगना सचमुच एक भरे पूरे बदन की किशोरी लग रही थी। कोमल और मासूम चेहरा उसके गदराए जिस्म से मेल नहीं खा रहा था.. सरयू सिंह की भरपूर चुदाई से उसके फूले हुए नितंब चीख चीख कर उसके युवती होने की दुहाई दे रहे थे परंतु सुगना के चेहरे की मासूमियत विरोधाभास पैदा कर रही थी।

तभी विद्यानंद के एक चेले ने हॉल में आकर आवाज लगाई सरयू सिंह और कजरी महात्मा जी आप लोगों को बुला रहे हैं.

पिछली दोपहर सरयू सिंह ने विद्यानंद से मिलने की बहुत कोशिश की परंतु सफल न हुए। हार कर उन्होंने खत लिख कर विद्यानंद के चेले को पकड़ा दिया। शाम तक विद्यानंद की तरफ से कोई बुलावा ना आने पर उनका स्वाभिमान आड़े आने लगा।

सरयू सिंह सोच रहे थे ...यदि वह उनका भाई बिरजू था तो उसे उन्हें इतना इंतजार नहीं कराना था। खत में उन्होंने साफ-साफ अपना नाम पता लिखा हुआ था और यदि वह बिरजू नहीं था तो विद्यानंद से मिलने का कोई औचित्य भी न था। सरयू सिंह वैसे भी ऐसे भौतिक महात्माओं पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे.

परंतु अब आमंत्रण आ चुका था। सरयू सिंह और कजरी दोनों विद्यानंद से मिलने चल पड़े..

विद्यानंद के कमरे में प्रवेश करते ही सरयू सिंह और कजरी विद्यानंद के आलीशान कक्ष की शोभा से मोहित हो गए। सरयू सिंह तो इन भौतिक चीजों में ज्यादा विश्वास नहीं रखते थे पर

ऐश्वर्य की अपनी चमक होती है। आप ना चाहते हुए भी उससे अभिभूत हो जाते हैं।

वही हाल सरयू सिंह का था उनकी निगाहें बरबस ही कमरे की साज-सज्जा पर जा रही थी। एक पल के लिए उनका ध्यान विद्यानंद से हटकर उस कमरे की भव्यता में खो गया था परंतु कजरी विद्यानंद को देखे जा रही थी उसे भी अब एहसास हो रहा था कहीं यह रतन के पिता तो नहीं।

विद्यानंद अपने आसन से उठ कर खड़े हो गए

"आओ सरयू"

इनके इस अभिवादन ने सरयू सिंह और कजरी के मन में उठ रहे संदेशों को खत्म कर दिया। उनका यह अंदाज ठीक वैसा ही था जैसे वह अपनी युवावस्था में अपने छोटे भाई सरयू सिंह को बुलाया करते थे। सरयू सिंह एक पल के लिए भाव विभोर हो गए और तेज कदमों से चलते हुए विद्यानंद के गले जा लगे।

कृष्ण और सुदामा का यह मिलन नियति देख रही थी। विद्यानंद ने सांसारिक जीवन से अपना मोह भंग कर लिया था यह उसके आलिंगन से साफ साफ दिखाई पड़ रहा था परंतु सरयू सिह के आलिंगन में आज भी आत्मीयता झलक रही थी। उनकी मजबूत बाहों की जकड़ विद्यानंद महसूस कर पा रहे थे। सरयू सिंह के अलग होते ही कजरी की बारी आई।

कजरी वैसे तो अपने पति से नफरत करती थी परंतु आज विद्यानंद जिस रूप में उसके सामने खड़े थे वह उनका अभिवादन करने से स्वयं को ना रोक पायी और झुक कर उनके चरण स्पर्श करने की कोशिश की।

परंतु विद्यानंद पीछे हट गए और और स्वयं आगे झुक कर कजरी को प्रणाम किया तथा अपने चेहरे पर संजीदा भाव लाकर बोले

" देवी मुझे क्षमा कर देना मैंने आपके साथ जो किया वह मेरी नासमझी थी परंतु नियति का लिखा कोई मिटा नहीं सकता मुझसे वह अपराध होना था सो हो गया। हो सके तो मुझे माफ कर देना।"

कजरी निरुत्तर थी इतना बड़ा महात्मा उसके सामने अपने दोनों हाथ जोड़े से क्षमा मांग रहा था कजरी ने अपनी मधुर आवाज में कहा

"शायद हम सभी के भाग्य में यही लिखा था"

विद्यानंद ने सहमति में अपना सर हिलाया और सरयू सिंह तथा कजरी को बैठने का इशारा किया।

कजरी के माथे पर चमकता हुआ सिंदूर और चेहरे का सुकून देखकर विद्यानंद को एक पल के लिए यह एहसास हुआ जैसे कजरी और सरयू सिंह ने एक दूसरे से विवाह कर लिया हो ।

विद्यानंद का आकलन सही था वैसे भी सरयू सिंह और कजरी विवाह न करते हुए भी एक दूसरे के प्रति पूरी तरह समर्पित थे और एक सुखद दांपत्य जीवन का आनंद ले रहे थे।

विद्यानंद ने सरयू सिंह से खुलकर बातें की और अपने बचपन को याद किया कजरी का जिक्र भी स्वाभाविक तौर पर आ रहा था गांव के छोटे बड़े सभी व्यक्तियों का समाचार सुनकर विद्यानंद अपने युवा काल और बचपन को याद कर रहे थे।

तभी विद्यानंद ने कजरी से पूछा..

बच्चे कहां हैं अब तो सब बड़े हो गए होंगे ..

"हां, आपका एक बेटा है जो मुंबई में है.".

सरयू सिंह ने उत्तर दिया पर विद्यानंद को यह बात समझ ना आयी। उन्होंने कजरी के साथ संभोग अवश्य किया था परंतु उन्हें कतई उम्मीद न थी की कजरी गर्भवती हो गई होगी। विद्यानंद ने इस पचड़े में ज्यादा पड़ना उचित नहीं समझा।

अचानक विद्यानंद का ध्यान सरयू सिंह के माथे के दाग पर चला गया जो निश्चित ही अपना आकार कुछ कम कर चुका था परंतु अब भी वह स्पष्ट तौर पर अपने अस्तित्व का एहसास करा रहा था। बालों के हटने से वह दिखाई पड़ने लगा।

विद्यानंद ने उस दाग को देखकर असहज हो गए और कजरी से कहा..

"देवी अब आप जा सकती हैं मुझे सरयू से एकांत में कुछ बातें करनी है।"

कजरी को यह बात बुरी लगी परंतु विद्यानंद से न उसे कोई उम्मीद थी और नहीं कभी भविष्य में मिलने की इच्छा वह कमरे से बाहर आ गई।

विद्यानंद उठकर सरयू के पास आए और अपने उंगलियों से उनके बाल को हटाकर उस दाग को ध्यान से देखाऔर बोला..

"सरयू तूने पाप किया है"

"नहीं बिरजू भैया ऐसी कोई बात नहीं है"

"तेरे माथे पर यह दाग तेरे पाप का ही प्रतीक है। यह क्यों है यह मैं तुझे नहीं बता सकता परंतु इतना ध्यान रखना नियति सारे पापों का लेखा जोखा रखती है तू जितना इस पाप से दूर रहेगा तेरे लिए उतना ही अच्छा होगा।"

विद्यानंद की बात सुनकर सरयू सिंह का दिमाग खराब हो गया। यह दाग उन्हें बेहद खटकने लगा। विद्यानंद ने अपनी नसीहत देकर उन्हें मायूस कर दिया। सरयू सिह को यह बात पता थी कि इस दाग का सीधा संबंध सुगना से था और सुगना उनकी जान थी।

वह चाह कर भी उसके यौवन और प्रेम के आकर्षण से विमुक्त नहीं हो पा रहे थे। कितनी अल्हड़ नवयौवना थी सुगना और उनसे कितना प्यार करती थी? उम्र के अंतर को भूलकर वह उनकी गोद में फुदकती थी और उनका लण्ड खुद-ब-खुद सुगना की बूर् खोज लेता। इतना सहज और मधुर संभोग कैसे प्रतिबंधित हो सकता है? सरयू सिंह ने अब और देर करना उचित न समझा और उठकर खड़े हो गए। उन्होंने विद्यानंद को प्रणाम किया और कहा भैया अब मैं चलता हूं।

विद्यानंद ने एक बार फिर से सरयू सिह को अपने आलिंगन में लिया और अपना सर उसके कान के पास ले जाकर कहा

"मनुष्य का नियंत्रण यदि दिमाग करें तो प्रगति दिल करे तो आत्मीयता और संबंध और यदि नियंत्रण कमर के नीचे के अंग करने लगे तो मनुष्य वहशी हो जाता है।उसे ऊंच-नीच और पाप पुण्य का अंतर दिखाई नहीं पड़ता । मैं सिर्फ इतना कहूंगा मेरी बात को ध्यान रखना और अपने आने वाले जीवन को सुख पूर्वक व्यतीत करना जिस दिन तुम्हें इस दाग के रहस्य पता चलेगा तुम्हें असीम कष्ट होगा। मैं प्रार्थना करूंगा कि यह दाग इसी अवस्था में सीमित रह जाए और तुम्हें इस जीवन में इसका रहस्य पता ना चले।"

"ठीक है भैया"

सरयू सिह अब बाहर निकलने के लिए अधीर हो चुके थे। इस दाग ने उनके बड़े भाई बिरजू को उन्हें नसीहत देने की खुली छूट दे दी थी और वह चाह कर भी उसका जवाब नहीं दे पा रहे थे।

यह तो उन्हें भी पता था की दाग का सीधा संबंध सुगना से था और शुरुआती दिनों में जिस तरह से उन्होंने सुगना के पुत्र मोह की लालसा को एक अस्त्र के रूप में प्रयोग कर सुगना की अद्भुत कामकला को विकसित किया था तथा जी भर कर उसके यौवन का आनंद लिया था बल्कि अब भी ले रहे थे। इतना ही नहीं उन्होंने उसके साथ कजरी को भी अपने इस वासना चक्र में शामिल कर लिया था।

सरयू सिंह विद्यानंद के कक्ष से बाहर आ गए उनका मूड खराब हो चुका था। बाहर सुगना और कजरी उनका इंतजार कर रहे थे सुनना चहकती हुई उनके पास आई और बोली..

"बाबू जी महात्मा जी का कह तले हा?@

"सुगना बेटा छोड़ ई सब कुल फालतू आदमी हवे लोग"

"अपना दाग के बारे में ना पूछनी हां?"

सरयू सिंह ने कोई उत्तर न दिया वह इस विषय पर और बातें नहीं करना चाह रहे थे। वह धीरे धीरे पांडाल के उसे हिस्से में आ गए जहां पर उनकी बैठकर लगा करती थी….

सुबह के कुछ घंटे सरयू सिंह ने अपनी सुगना के साथ बड़े अच्छे से व्यतीत किए थे परंतु विद्यानंद से हुई मुलाकात ने उनका दिमाग पूरी तरह खराब कर दिया था अब उन्हें उस अवसाद से निकलना था। तभी एक संदेश वाहक चौकीदार सरयू सिह को खोजता हुआ आया और बोला

"सरयू भैया बधाई हो आपकी पदोन्नति हो गई है"

सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा। इस पदोन्नति के लिए वह बेहद आशान्वित थे। मनोरमा मैडम ने उनके पदोन्नति के कागज पर दस्तखत कर बनारस महोत्सव के आयोजन में उनके योगदान का प्रतिफल दे दिया था। उन्होंने पूछा

" मनोरमा मैडम कहां है?"

"सेक्टर ऑफिस में बैठी हैं चाहे तो चल कर मिठाई खिला आइए"

एक पल में ही सरयू सिंह के सारे अवसाद दूर हो गए।

जैसे तेज हवा आकाश पर छा रहे छुटपुट बादलों को बहा ले जाती हैं उसी तरह पदोन्नति की खुशी ने सरयू सिंह को विद्यानंद की बातों से हुए अवसाद से बाहर निकाल लिया । वह भागकर मिठाई की दुकान पर गए और मिठाई का डिब्बा लिए एक बार फिर पंडाल में आए। कजरी और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न हो गए थे। सरयू सिंह की पदोन्नति मे वो दोनों निश्चित ही विद्यानंद के चमत्कारी प्रभाव का अंश मान रहे थे वरना जिस पदोन्नति की आशा सरयू सिंह पिछले एक-दो वर्षों से कर रहे थे वह अचानक यू हूं कैसे घटित हो गया?

बहुत ही घटनाएं अपनी रफ्तार और समय से घटती है पर जब यह खबर आपको प्राप्त होती है उस समय आपकी मनो अवस्था और परिस्थितियां उसके लिए कर्ता की तलाश कर लेतीं है और निश्चित ही वह कर्ता दिव्य शक्तियों वाला कोई विशेष होता है चाहे वह भगवान हो या कोई महात्मा…

अपनी जानेमन सुगना को मिठाई खिलाते हुए सरयू आज आज अपनी खुशकिस्मती पर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रहे आज के दिन में दोहरी खुशी मिलने वाली थी।

सरयू सिंह लंबे लंबे कदम भरते हुए मनोरमा के अस्थाई ऑफिस जा पहुंचे मनोरमा उन्हें मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए अपनी तरफ आता दे उनका मंतव्य समझ चुकी थी अपने होठों पर खूबसूरत मुस्कुराहट लिए उनके आने का इंतजार करने लगी

"मैडम जी आपने हमको इस लायक समझा आपका आभार"

एक आभावान और बलिष्ठ शरीर का अधेड़ मार्ग पूर्ण कृतज्ञ भाव से मनोरमा के सामने अपना आभार प्रकट कर रहा था मनोरमा के चेहरे पर प्रसन्नता थी उसने सरयू सिंह से कहा..

आपका यह प्रमोशन आपकी काबिलियत की वजह से है मेरा इसमें कोई योगदान नहीं है।

"मैडम यह आपका बड़प्पन है लीजिए मुंह मीठा कीजिये।"

सरयू सिंह के मन में मनोरमा के प्रति बेहद आदर और सम्मान का भाव आया। नारी के इस रूप से सरयू सिंह कतई रूबरू न थे। आज तक जितनी भी स्त्रियों से उनकी मुलाकात हुई थी वह हमेशा उन पर भारी पड़े थे भगवान द्वारा दिए हुए सुंदर और सुडौल शरीर में न जाने उन्होंने कितनी महिलाओं का दिल जीता था और कितनों के दिलों में हूक पैदा की थी। परंतु मनोरमा को सम्मान देने से वह खुद को ना रोक पाए।

सरयू सिंह के पूरे परिवार में हर्ष और उल्लास का माहौल बन गया पदमा कजरी सोनी मोनी सभी शरीर से उनकी पदोन्नति की खुशियां मनाने लगे शरीर सिंह ने भी ढेर सारी मिठाइयां और सभी के लिए कुछ न कुछ मनपसंद सामग्री खरीद कर सबका मन मोह लिया। सरयू सिंह आज परिवार में एक हीरो की तरह दिखाई पड़ रहे थे और सुगना उन पर न्योछावर होने को तैयार थी उसे अपने निर्णय पर कोई अफसोस ना था उसने आज अपने दूसरे छेद को अपने प्यारी बाबूजी को भेट देने की ठान ली थी।

शाम का इंतजार जितना सरयू सिंह को था उतना ही सुगना को भी...


अपराहन 3:00 बजे

बनारस महोत्सव के पास का पांच सितारा होटल

आज सेक्रेटरी साहब एक बार फिर अपनी रौ में थे। वह अपनी कल की गई गलती को दोबारा नहीं दोहराना चाह रहे थे । उन्होंने आज मनोरमा को खुश करने की ठान ली थी।

आखिर पत्नी धर्म निभाना भी पति का कर्तव्य होता है और पत्नी की जांघों के बीच उस जादुई अंग को उत्तेजित कर पत्नी को चरम सुख देना भी उतना ही आवश्यक है जितना एक सेक्रेटरी के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन।

मनोरमा खाना खाने के पश्चात बिस्तर पर आराम कर रही थी और सेक्रेटरी साहब उसके खूबसूरत शरीर को निहारते हुए उसे अपने करीब खींचने का प्रयास कर रहे थे। मनोरमा की नींद खुल चुकी थी परंतु वह सेकेट्री साहब के उत्तेजक भाव को पढ़ने का प्रयास कर रही थी।

मनोरमा की नाइटी ऊपर उठती जा रही थी और पतले चादर के नीचे उसके कोमल अंग नग्न होते जा रहे थे। सेक्रेटरी साहब उसकी भरी-भरी चुचियों को चूमते चूमते सरकते हुए नीचे आते गए और मनोरमा की फूली हुई बुर पर उन्होंने अपने होंठ टिका दिए।

मनोरमा लगभग ऐंठ गई। उसने अपनी जांघें सिकोड लीं। विरोधाभास का आलम यह था कि दिमाग जांघों को खोलने का इशारा कर रहा था परंतु बुर की संवेदना जांघों को करीब ला रही थी। सेक्रेटरी साहब पूरी अधीरता से मनोरमा की बूर को चूसने लगे।

जांघों के बीच का वह त्रिकोण पुरुषों का सबसे पसंदीदा भाग होता है। अपने गालों को मनोरमा की जाँघों से सटाते हुए सेक्रेटरी साहब स्वयं अपनी उत्तेजना को चरम पर ले आये। और उनका छोटा सा लण्ड एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया।

वह बार-बार उसे शांत कर अपनी उत्तेजना को कम करने का प्रयास करते परंतु मनोरमा की गुदांज और चिकनी कसी हुयी बूर उनके लण्ड में जबरदस्त जोश भर दे रही थी। मनोरमा तड़प रही थी और अपने पति के बालों को सहला रही थी उसका भग्नासा फुल कर लाल हो चुका था।

स्त्री उत्तेजना को पूरी तरह समझना बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को समझने जैसा है। सेक्रेटरी साहब ने इतनी पढ़ाई और अनुभव हासिल करने के बाद भी मनोरमा की उत्तेजना का आकलन करने की क्षमता को प्राप्त नहीं किया था उन्हें यह आभास हो गया की अब कुछ ही देर की चुदाई में मनोरमा स्खलित हो जाएगी। उन्होंने अपने होठों को बुर से हटाया और एक बार फिर अपने तने हुए छोटे से लण्ड को मनोरमा की बुर से सटाकर उसके ऊपर चढ़ गए।

मनोरमा ने भी अपनी जाँघे फैला कर अपने पति का स्वागत किया और उत्तेजना से कांपते हुए उनके धक्कों का आनंद लेने लगी। वह अपनी उंगलियों से अपनी भग्नासा को छूने का प्रयास करती परंतु यह इतना आसान न था। सकेट्री साहब का मोटा पेट मनोरमा की उंगलियों को उसकी भग्नासा तक पहुंचने से रोक रहा था।

सेक्रेटरी साहब अधीर हो रहे थे मनोरमा की फूली हुई और की चिपचिपी हुई बुर में अपना लण्ड डालकर वह उसे गचागच चोद रहे थे और उसकी फूली हुई चुचियों को होठों से चूसकर उसे चरम सुख देने का प्रयास कर रहे थे।

मनोरमा जैसी मदमस्त युवती की चुचियों को चूस कर जितना वह उसे उत्तेजित करने का प्रयास कर रहे थे उससे ज्यादा उत्तेजना अपने मन में लेकर वह मनोरमा को चोद रहे थे लण्ड और बुर कि इस मधुर मिलन में अंततः सेक्रेटरी साहब अपनी उत्तेजना पर एक बार फिर काबू नहीं रख पाए और उनके लण्ड ने मनोरमा की बुर पर एक बार फिर उल्टियां कर दी।

मनोरमा तड़प कर रह गई वह बेहद खुश थी। आज वह अपने चरम सुख के ठीक करीब पहुंच चुकी थी परंतु सेक्रेटरी साहब स्खलन के ठीक पहले निढाल पड़ गए थे। मनोरमा को यदि उस चर्म दंड का स्पर्श कुछ पलों के लिए और प्राप्त होता तो वह आज जी भर कर झड़ती और अपने पति से संसर्ग का आनंद समेटे हुए अगले कई महीनों के लिए इस सुखद क्षण को अपने मन में संजोए अपने पति धर्म को निभाने के लिए तैयार रहती।

परंतु मनोरमा की उत्तेजना एक बार फिर अपने अंजाम तक न पहुंच पाई घड़ी की सुईओ ने एक बार फिर टन टन... टन कर 5:00 बजने का इशारा किया। मनोरमा को याद आया कि आज उसका ड्राइवर नहीं आएगा उसने अपने पति से कहा..

"मुझे बनारस महोत्सव तक छुड़वा दीजिए मेरा ड्राइवर आज नहीं आएगा"

सेक्रेटरी साहब मनोरमा से नजरे मिला पाने की स्थिति में नहीं थे। वह इस प्रेम के खेल में लगातार दूसरी बार पराजित हुए थे। उन्होंने मनोरमा के छोटे से अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया। समय की कमी के कारण मनोरमा ने आज स्नान नहीं किया अपनी जांघो और बुर पर गिरे वीर्य को उसने सेकेट्री साहब की बनियाइन से पोछा। समयाभाव के कारण स्नान संभव न था। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि वह मीटिंग के बाद बनारस महोत्सव में अपने कमरे में जाकर स्नान कर लेगी।

मनोरमा फटाफट तैयार हुई और अपने पर्स में एक पतली सी टॉवल डालकर कमरे से बाहर आ गई और सीढ़ियां उतरती हुई होटल के रिसेप्शन की तरफ बढ़ने लगी सेक्रेटरी साहब का ड्राइवर अपनी मेम साहब का इंतजार कर रहा था।

उधर सरयू सिंह और सुगना सूर्यास्त की प्रतीक्षा में थे सरयू सिंह मनोरमा के कमरे की चाबी लेकर उसकी साफ सफाई कर आए थे और सुगना की पसंद के कई फूल रख आए थे।

मनोरमा के इस कमरे में आज सुगना और सरयू सिंह के अरमान पूरे होने वाले थे।

सुगना अपने पुत्र के लिए उसे मुक्ति दिलाने वाली पुत्री की लालसा में गर्भवती होना चाहती थी और सरयू सिंह इच्छा का मान भी रखना चाहती थी।

इसका उपाय न तो सुगना को सूझ रहा और न नियति को….


शेष अगले भाग में।
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#55
भाग -51

सरयू सिंह और सुगना सूर्यास्त की प्रतीक्षा में थे सरयू सिंह मनोरमा के कमरे की चाबी लेकर उसकी साफ सफाई कर आए थे और सुगना की पसंद के कई फूल रख आए थे।


मनोरमा के इस कमरे में आज सुगना और सरयू सिंह के अरमान पूरे होने वाले थे।

सुगना अपने पुत्र के लिए उसे मुक्ति दिलाने वाली पुत्री की लालसा में गर्भवती होना चाहती थी और सरयू सिंह इच्छा का मान भी रखना चाहती थी।

इसका उपाय न तो सुगना को सूझ रहा और न नियति को….


अब आगे

बनारस महोत्सव का तीसरा दिन शाम 6 बजे...


सूर्य क्षितिज में विलीन होने को तैयार था दिन भर अपनी आभा से बनारस महोत्सव को रोशन करने वाला अब थक चुका था परंतु रंगीन शाम में अब युवा हृदय जवान हो रहे थे। जैसे-जैसे शाम की आहट बनारस महोत्सव में हो रही थी सुगना की सिहरन बढ़ती जा रही थी। वह अपने मन में तरह-तरह की रणनीति बना रही थी कि किस प्रकार अपने बाबू जी को अपनी कामकला से अपनी प्यासी बुर के अंदर ही स्खलित करा दिया जाए।

ऐसा नहीं था कि वह अपने बाबू जी को दिया वादा पूरा नहीं करना चाहती थी परंतु उसकी प्राथमिकता अलग थी और सरयू सिंह की अलग। यदि वह सरयू सिंह को सूरज की मुक्ति दायिनी बहन के बारे में बता पाती तो सरयू सिंह अपनी जान पर खेलकर भी उसे जी भर कर चोदते और गर्भवती अवश्य करते.

परंतु नियति को यह मंजूर नहीं था विद्यानंद की बातों को सुगना ने अक्षरसः आत्मसात कर लिया था और वह उस बात को किसी से साझा नहीं कर सकती थी। विद्यानंद का चमत्कार उसने देख लिया था और वह उनकी बातों से पूरी तरह आश्वस्त थी।

सुगना ने खूबसूरत सा लहंगा और चोली धारण किया और सज धज कर चुदने के लिए तैयार हो गयी। उधर सरयू सिंह अपने सामान की पोटली में शिलाजीत की दूसरी गोली को खोज रहे थे जो वह बड़ी उम्मीदों से बनारस महोत्सव में छुपा कर ले आए थे।

अधीरता और व्यग्रता सामान्य कार्य को भी दुरूह बना देती है। सरयू सिंह अपना पूरा सामान उलट-पुलट रहे थे परंतु वह दिव्य गोली उन्हें दिखाई न पड़ रही थी।

कजरी और पदमा ने उनकी व्यग्रता देखकर उनकी मदद करने की सोची कजरी ने पास जाकर कहा

"कुंवर जी का खोजा तानी?"

सरयू सिंह झेंप गए और बोले

"कुछ भी ना" पदमा पास में ही खड़ी थी वह किस मुंह से उस गोली का नाम लेते जिसको खाकर वह उसकी ही पुत्री के साथ अनैतिक और अप्राकृतिक कृत्य करने जा रहे थे।

पदमा और कजरी के जाने के बाद सरयू सिंह ने एक बार फिर बिखरे हुए सामानों पर ध्यान लगाया और वह छोटी सी दिव्य गोली उन्हें दिखाई पड़ गई।

देर हो रही थी। उन्होंने बिना पानी ही वह गोली लील ली।

सरयू सिंह वक्त के बेहद पाबंद थे और गोली के असर को वह किसी भी सूरत में कम नहीं करना चाह रहे थे और सुगना से मिलन के दौरान अपने लिंग की अद्भुत उत्तेजना का आनंद सुगना को देना चाह रहे थे। उन्हें शायद यह भ्रम था कि इस अप्राकृतिक मैथुन का सुगना भी उसी तरह आनंद लेगी जैसे उसने अपनी पहली चुदाई का लिया था।

कुछ देर बाद पदमा, सोनी और मोनी को लेकर बाहर बाजार में घूम रही थी। सूरज की उपस्थिति से प्रेम कीड़ा में बाधा आ सकती थी। सुगना ने सूरज को कजरी के हवाले किया और बोली

"मां थोड़ा बाबू के पकड़ हम सोनी मोनी खातिर कुछ सामान खरीदे जा तानी"

सुगना उन्मुक्त होकर सूरज की मुक्तिदाता का सृजन करने अपने मन में उत्तेजना और दिमाग में डर लिए मनोरमा के कमरे की तरफ चल पड़ी।

उधर बनारस महोत्सव में मनोरमा की मीटिंग आज ज्यादा लंबी चलने वाली थी। मीटिंग प्रारंभ हुए लगभग एक घंटा बीत चुका था। मीटिंग में भाग लेने वाले सभी अधिकारियों का चेहरा उतर गया था। सभी जलपान के लिए मीटिंग में ब्रेक चाह रहे थे। मनोरमा को जलपान से ज्यादा स्नान की आवश्यकता थी। सेक्रेटरी साहब का वीर्य उसकी जांघों पर सूख चुका था और मनोरमा को असहज कर रहा था।

जैसे ही मीटिंग में जलपान के ब्रेक का अनाउंसमेंट हुआ मनोरमा तेज कदमों से चलती हुई अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह इस समय का उपयोग स्नान करके स्वयं को तरोताजा कर लेगी।

अंधेरा हो चुका था घड़ी में 7:00 बज चुके थे मनोरमा अपने कमरे के दरवाजे पर पहुंची और ताला खोलकर अंदर प्रवेश कर गई. अस्थाई निर्माण अस्थाई ही होता कमरे का दरवाजा अंदर से बंद नहीं हो पा रहा था उसने बड़ी मुश्किल से चटकानी चढ़ाने की कोशिश की परंतु वह उसे बड़ी मुश्किल से उसे फंसा पाई। दरवाजा ठीक से बंद नहीं हुआ हल्का सा धक्का देने पर वह दरवाजा खुल जाता।

अंदर का कमरा आज बेहद खूबसूरती से सजा हुआ था बिस्तर पर कुछ मनोरम फूल भी रखे हुए थे जिसकी सुगंध कमरे में व्याप्त थी। मनोरमा को अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था उसने इस कमरे की चाबी सरयू सिंह और उनकी बहु सुगना को देकर कोई गलती नहीं की थी।

मनोरमा के पास समय कम था उसने चिटकिनी के ठीक से बंद ना होने की बात पर ज्यादा ध्यान न दिया। वैसे भी उसके कमरे में आने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता था। सरयू सिंह और उनका परिवार ताला खुला देख कर किसी हाल में अंदर प्रवेश नहीं करता। मनोरमा अपने वस्त्रों को करीने से उतारती गई और उन्हें सहेजकर रखती गयी।यही वस्त्र उसे स्नान के बाद पुनः पहनने थे।

पूर्ण तरह निर्वस्त्र होकर वह बाथरूम में प्रवेश कर गयी और झरने को चालू कर स्नान करने लगी।

नियति मनोरमा की मनोरम काया देकर मंत्रमुग्ध हो गई। मनोरमा के हाथ उसके कोमल पर कसे हुए शरीर पर तेजी से चल रहे थे। अपनी जांघों पर हाथ फेरते हुए मनोरमा के हाथों में सेक्रेटरी साहब का सूखा हुआ वीर्य लग गया जो अब लिसलिसा हो चला था।

उस वीर्य को अपने शरीर से हटाने की कोशिस में मनोरमा अपनी जांघों और बुर् के होठों को सहलाने लगी। ज्यों ज्यों मनोरमा की उंगलियां बुर् के होठों को छूती उसके शरीर में सिहरन बढ़ जाती है और न चाहते हुए भी वह उंगलियां दरारों के बीच अपनी जगह तलाशने लगती। एक पल के लिए मनोरमा यह भूल गई कि वह यहां मीटिंग से उठकर स्नान करने आई है न की अपनी प्यासी बुर को उत्तेजित कर स्खलित होने।

परंतु जब तक उसके मन में यह ख्याल आता उसकी बूर् की संवेदना जागृत हो चुकी थी। मनोरमा ने अपने कर्तव्य के आगे अपने निजी सुख को अहमियत न दी और बुर को थपथपा कर रात्रि तक इंतजार करने के लिए मना लिया और अपने बालों में लपेटे हुए तौलिए को उतार कर अपने शरीर को पोछने लगी।

उधर सुगना बाजार से होते हुए मनोरमा के कमरे की तरफ बढ़ रही थी। मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे उसके जीवन में भूचाल आने वाला हो। वह एक बार फिर गर्भवती होगी और फिर उसे गर्भावस्था के सुख और दुख दोनों झेलने पड़ेंगे। अभी उसकी कोख में सरयू सिंह का बीज आया भी न था और वह आगे होने वाली घटनाओं को सोच सोच कर आशंकित भी थी और उत्साहित भी। तभी एक पास की एक दुकान से आवाज आई..

"सुगना बेटा बड़ा भाग से तू आ गईले" यह आवाज पदमा की थी जो सुगना के पुत्र सूरज के लिए उपहार स्वरूप हाथ का कंगन खरीद रही थी। पद्मा ने सुगना को दुकान के अंदर बुला लिया और उसे तरह-तरह के कंगन दिखाने लगी। सोना वैसे भी स्त्रियों की सबसे बड़ी कमजोरी होती है और ऊपर से वह उसके पुत्र सूरज के लिए था। सुगना एक पल के लिए यह भूल गई कि वह कहां जा रही थी। वह सूरज के हाथों के कंगन को पसंद करने में व्यस्त हो गई उसे यह ध्यान ही नहीं रहा कि कुछ ही देर में उसके बाबूजी भी मनोरमा के कमरे में पहुंच रहे होंगे।

उधर सरयू सिंह द्वारा निगली हुई शिलाजीत की गोली अपना असर दिखा चुकी थी। लंगोट में कसा हुआ उनका लण्ड तन चुका था। सरयू सिंह ने अपना लंगोट ढीला किया और अपने तने हुए लण्ड को लेकर दूसरे रास्ते से मनोरमा के कमरे की तरफ बढ़ने लगे। अपने मन मस्तिष्क में असीम उत्तेजना और तने हुए लण्ड को लेकर वह मनोरमा के कमरे के ठीक पास आ गए।

मनोरमा की गाड़ी आसपास न पाकर वह और भी खुश हो गए । वैसे भी आज मनोरमा ने उन्हें पदोन्नति देकर उनका दिल जीत लिया था। कमरे के दरवाजे पर ताला न पाकर वह खुशी से झूमने लगे उनकी सोच के अनुसार निश्चित ही सुगना अंदर आ चुकी थी।

अंदर स्थिति ठीक इसके उलट थी। अंदर मनोरमा अपना शरीर पोछने के बाद कमरे में आ चुकी थी। उसकी नग्न सुंदर और सुडौल काया चमक रही थी। मनोरमा की कद काठी सुगना से मिलती जुलती थी, पर शरीर का कसाव अलग था। मनोरमा का शरीर बेहद कसा हुआ था। शायद उसे मर्द का सानिध्य ज्यादा दिनों तक प्राप्त ना हुआ था और जो हुआ भी था मनोरमा की काम पिपासा बुझा पाने में सर्वथा अनुपयुक्त था।

मनोरमा ने जैसे ही आगे झुक कर अपना पेटीकोट उठाने की कोशिश की उधर सरयू सिह ने दरवाजे पर एक हल्का सा धक्का लगा और दरवाजा खुल गया।

जब तक मनोरमा पीछे मुड़ कर देख पाती बनारस महोत्सव के उस सेक्टर की बिजली अचानक ही गुल हो गई।

परंतु इस एक पल में सरयू सिंह ने उस दिव्य काया के दर्शन कर लिए। चमकते बदन पर पानी की बच गई बूंदे अभी भी विद्यमान थीं । सुगना ने संभोग से पहले स्नान किया यह बात सरयू सिंह को भा गई। उन्होंने मन ही मन निर्णय कर लिया कि वह वह आज उसकी बूर को चूस चूस कर इस स्खलित कर लेंगे और फिर उसके दूसरे छेद का जी भर कर आनंद लेंगे।

कमरे में घूप्प अंधेरा हो चुका था सरयू सिंह धीरे-धीरे आगे बढ़े और अपनी सुगना को पीछे से जाकर पकड़ लिया। क्योंकि कमरे में अंधेरा था उन्होंने अपना एक हाथ उसकी कमर में लगाया और दूसरी हथेली से सुगना के मुंह को बंद कर दिया ताकि वह चीख कर असहज स्थिति न बना दे।

मनोरमा ने सरयू सिंह की धोती देख ली थी। जब तक कि वह कुछ सोच पाती सरयू सिंह उसे अपनी आगोश में ले चुके थे। वह हतप्रभ थी और मूर्ति वत खड़ी थी। सरयू सिंह उसका मुंह दबाए हुए थे तथा उसके नंगे पेट पर हाथ लगाकर उसे अपनी ओर खींचे हुए थे।

अपने नितंबों पर सरयू सिंह के लंड को महसूस कर मनोरमा सिहर उठी। सरयू सिंह को सुगना की काया आज अलग ही महसूस हो रही थी अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने अपनी हथेली को सुगना की चुचियों पर लाया और उनका शक यकीन में बदल गया यह निश्चित ही सुगना नहीं थी। चुचियों का कसाव चीख चीख कर कह रहा था कि वह सुगना ना होकर कोई और स्त्री थी।

सरयू सिंह की पकड़ ढीली होने लगी उन्हें एक पल के लिए भी यह एहसास न था कि जिस नग्न स्त्री को वह अपनी आगोश में लिए हुए हैं वह उनकी एसडीएम मनोरमा थी। अपने नग्न शरीर पर चंद पलों के मर्दाना स्पर्श ने मनोरमा को वेसुध कर दिया था। इससे पहले कि सरयू सिंह उसकी चुचियों पर से हाथ हटा पाते मनोरमा की हथेलियों ने सरयू सिंह की हथेलियों को अपनी चुचियों पर वापस धकेल दिया। मनोरमा कि इस अदा से सरयू सिंह बेहद उत्तेजित हो गए। स्त्री शरीर की उत्तेजना और हाव-भाव से सरयू सिंह स्त्री की मनो स्थिति भांप लेते थे उन्होंने मनोरमा के कानों को चूम लिया और अपनी दोनों हथेलियों से उसकी चुचियों को सहलाने लगे।

प्रणय निवेदन मूक होता है परंतु शरीर के कामुक अंग इस निवेदन को सहज रूप से व्यक्त करते हैं। विपरीत लिंग उसे तुरंत महसूस कर लेता है।

मनोरमा की गर्म सांसे, तनी हुई चूचियां , और फूल चुके निप्पल मनोरमा की मनोस्थिति कह रहे थे। और मनोरमा की स्थिति जानकर सरयू सिंह का लण्ड उसके नितंबों में छेद करने को आतुर था।

सरयू सिंह एक हाथ से मनोरमा की चूँचियों को सहला रहे थे तथा दूसरे हाथ से बिना किसी विशेष प्रयास के अपने अधोभाग को नग्न कर रहे थे।

उनका लण्ड सारी बंदिशें तोड़ उछल कर बाहर आ चुका था। उन्होंने शर्म हया त्याग कर अपना लण्ड मनोरमा के नितंबों के नीचे से उसकी दोनों जांघों के बीच सटा दिया। मनोरमा उस अद्भुत लण्ड के आकार को महसूस कर आश्चर्यचकित थी। एक तो सरयू सिंह का लण्ड पहले से ही बलिष्ठ था और अब शिलाजीत के असर से वह और भी तन चुका था। लण्ड पर उभर आए नसे उसे एक अलग ही एहसास दिला रहे थे। मनोरमा ने अपनी जाँघे थोड़ी फैलायीं और वह लण्ड मनोरमा की जांघो के जोड़ से छूता हुआ बाहर की तरफ आ गया।

मनोरमा ने एक बार फिर अपनी जांघें सिकोड़ लीं। सरयू सिह के लण्ड का सुपाड़ा बिल्कुल सामने आ चुका था। मनोरमा अपनी उत्सुकता ना रोक पायी और अपने हाथ नीचे की तरफ ले गई । सरयू सिंह के लण्ड के सुपारे को अपनी उंगलियों से छूते ही मनोरमा की चिपचिपी बुर ने अपनी लार टपका दी जो ठीक लण्ड के फूले हुए सुपाड़े पर गिरी

मनोरमा की उंगलियों ने सरयू सिंह के सुपाडे से रिस रहे वीर्य और अपनी बुर से टपके प्रेम रस को एक दूसरे में मिला दिया सरजू सिंह के लण्ड पर बल दिया मनोरमा की कोमल उंगलियों और चिपचिपे रस से लण्ड थिरक थिरक उठा। मनोरमा को महसूस हुआ जैसे उसने कोई जीवित नाग पकड़ लिया जो उसके हाथों में फड़फड़ा रहा था।

यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी। जिस सुंदर और नग्न महिला को अपनी बाहों में लिए उसे काम उत्तेजित कर रहे थे वह उनकी भाग्य विधाता एसडीएम मनोरमा थी सरयू सिंह यह बात भली-भांति जान चुके थे परंतु अब वह उनके लिए एसडीएम ना होकर एक काम आतुर युवती थी जो अपने हिस्से का सुख भोगना चाहती थी। अन्यथा वह पलट कर न सिर्फ प्रतिकार करती अपितु छिड़ककर उन्हें उनकी औकात पर ला देती।

जिस मर्यादा को भूलकर सरयू सिंह और मनोरमा करीब आ चुके अब उसका कोई अस्तित्व नहीं था। प्रकृति की बनाई दो अनुपम कलाकृतियां एक दूसरे से सटी हुई प्रेमालाप में लगी हुई थीं। धीरे धीरे मनोरमा सरयू सिंह की तरफ मुड़ती गई और सरयू सिंह का लण्ड उसकी जांघों के बीच से निकलकर मनोरमा के पेट से छूने लगा। सरयू सिंह ने इसी दौरान अपना कुर्ता भी बाहर निकाल दिया। मनोरमा अब पूरी तरह सरयु सिंह से सट चुकी थी। सरयू सिंह की बड़ी-बड़ी हथेलियों ने मनोरमा के नितंबों को अपने आगोश में ले लिया था। और वह उसे बेतहाशा सहलाए जा रहे थे।

उनकी उंगलियों ने उनके अचेतन मस्तिष्क के निर्देशों का पालन किया और सरयू सिंह ने न चाहते हुए भी मनोरमा की गांड को छू लिया। आज मनोरमा कामाग्नि से जल रही थी। उसे सरयू सिंह की उंगलियों की हर हरकत पसंद आ रही थी। बुर से रिस रहा कामरस सरयू सिंह की अंगुलियों तक पहुंच रहा था। मनोरमा अपनी चुचियों को उनके मजबूत और बालों से भरे हुए सीने पर रगड़ रही थी। सरयू सिंह उसके गालों को चुमे में जा रहे थे।

गजब विडंबना थी जब जब सरयू सिंगर का ध्यान मनोरमा के ओहदे की तरफ जाता वह घबरा जाते और अपने दिमाग में सुगना को ले आते। कभी वह मनोरमा द्वारा सुबह दिए गए पुरस्कार की प्रतिउत्तर में उसे जीवन का अद्भुत सुख देना चाहते और मनोरमा को चूमने लगते परंतु मनोरमा के होठों को छु पाने की हिम्मत वह अभी नहीं जुटा पा रहे थे। मनोरमा भी आज पुरुष संसर्ग पाकर अभिभूत थी। वह जीवन में यह अनुभव पहली बाहर कर रही थी। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह वशीभूत हो चुकी थी। वह अपने होठों से सरयू सिंह के होठों को खोज रही थी। मनोरमा धीरे धीरे अपने पंजों पर उठती चली गई और सरयू सिंह अपने दोनों पैरों के बीच दूरियां बढ़ाते गए और अपने कद को घटाते गए।

जैसे ही मनोरमा के ऊपरी होठों ने सरयू सिह के होठों का स्पर्श प्राप्त हुआ नीचे सरयू सिंह के लंड में उसकी पनियायी बूर् को चूम लिया। मनोरमा का पूरा शरीर सिहर उठा।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी तरफ खींचा और मनोरमा ने अपना वजन एक बार फिर अपने पैरों पर छोड़ती गई और सरयू सिह के मजबूत लण्ड को अपने बुर में समाहित करती गयी।

मनोरमा की बुर का अगला हिस्सा पिछले कई वर्षों से प्रयोग में आ रहा था उसने सरयू सिंह के सुपारे को थोड़ी मुश्किल से ही सही परंतु लील लिया। सरयू सिंह ने जैसे ही अपना दबाव बढ़ाया मनोरमा चिहुँक उठी।

सरयू सिंह मनोरमा को बिस्तर पर ले आए और उसकी जाँघे स्वतः ही फैलती गई सरयू सिंह अपने लण्ड का दबाव बढ़ाते गए और उनका मजबूत और तना हुआ लण्ड मनोरमा की बुर की अंदरूनी गहराइयों को फैलाता चला गया।

मनोरमा के लिए यह एहसास बिल्कुल नया था। बुर के अंदर गहराइयों को आज तक न तो मनोरमा की उंगलियां छु पायीं थी और न हीं उसके पति सेक्रेटरी साहब का छोटा सा लण्ड। जैसे जैसे जादुई मुसल अंदर धँसता गया मनोरमा की आंखें बाहर आती गयीं। मनोरमा ने महसूस किया अब वह दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाएगी उसने अपनी कोमल हथेलियों से सरयू सिंह को दूर करने की कोशिश की।

सरयू सिंह भी अपने लण्ड पर मनोरमा की कसी हुई बुर का दबाव महसूस कर रहे थे उन्होंने कुछ देर यथा स्थिति बनाए रखी और मनोरमा के होठों को छोड़कर अपने होंठ उसके तने हुए निप्पल से सटा दिए।

सरयू सिंह के होठों के कमाल से मनोरमा बेहद उत्तेजित हो गई उनकी हथेलियां मनोरमा की कोमल जाँघों और कमर और पेड़ू को सहला रही थी जो उनके लण्ड को समाहित कर फूल चुका था।

जैसे-जैसे मनोरमा सहज होती गयी सरयू सिह का लण्ड और अंदर प्रवेश करता गया। मनोरमा के मुख से चीख निकल गई उसने पास पड़ा तकिया अपने दांतो के बीच रखकर उसे काट लिया परंतु उस चीख को अपने गले में ही दबा दिया। उधर लण्ड के सुपारे ने गर्भाशय के मुख को फैलाने की कोशिश की इधर सरयू सिंह के पेड़ूप्रदेश ने मनोरमा की भग्नासा को छू लिया। मिलन अपनी पूर्णता पर आ चुका था भग्नासा पर हो रही रगड़ मनोरमा को तृप्ति का एहसास दिलाने लगी ।

मनोरमा की कसी हुई बुर का यह दबाव बेहद आनंददायक था। सरयू सिंह कुछ देर इसी अवस्था में रहे और फिर मनोरमा की चुदाई चालू हो गई।

जैसे-जैसे शरीर सिंह का का लण्ड मनोरमा के बुर में हवा भरता गया मनोरंम की काम भावनाओं का गुब्बारा आसमान छूता गया। बुर् के अंदरूनी भाग से प्रेम रस झरने की तरह पर रहा था और यह उस मजबूत मुसल के आवागमन को आसान बना रहा था।

सरयू सिंह पर तो शिलाजीत का असर था एक तो उनके मूसल को पहले से ही कुदरत की शक्ति प्राप्त थी और अब उन्होंने शिलाजीत गोली का सहारा लेकर अपनी ताकत दुगनी करली थी । मनोरमा जैसी काम सुख से अतृप्त नवयौवना उस जादुई मुसल का संसर्ग ज्यादा देर तक न झेल पाई और उसकी बुर् के कंपन प्रारंभ हो गए।

सरयू सिंह स्त्री उत्तेजना का चरम बखूबी पहचानते थे और उसके चरम सुख आकाश की ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते थे उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार में आशातीत वृद्धि कर दी और मनोरमा की चुचियों को चूसने लगे। वह मनोरमा की चुचियों से दूध तो नहीं निकाल पर उनकी सारी मेहनत का फल मनोरमा के बूर् ने दे दिया। मनोरमा झड़ रही थी और उसका शरीर में निढाल पढ़ रहा था।

इसी दौरान बनारस महोत्सव के आयोजन कर्ताओं ने बिजली को वापस लाने का प्रयास किया और कमरे में एक पल के लिए उजाला हुआ और फिर अंधेरा कायम हो गया। बिजली का यह आवागमन आकाशीय बिजली की तरह ही था परंतु सरयू सिंह ने स्खलित होती मनोरमा का चेहरा देख लिया। और वह तृप्त हो गए। मनोरमा ने तो अपनी आंखें बंद की हुई थी परंतु उसे भी यह एहसास हो गया की सरयू सिंह ने उसे पूर्ण नग्न अवस्था में देख लिया है। परंतु मनोरमा अब अपना सर्वस्व न्योछावर कर चुकी थी। उसके पास अब कुछ न कुछ छुपाने को था न दिखाने को।

सरयू सिंह ने अपना लण्ड बाहर निकाल दिया और मनोरमा के वापस जागृत होने का इंतजार करने लगे। मनोरमा को अपना स्त्री धर्म पता था। जिस अद्भुत लण्ड में उसे यह सुख दिया था उसका वीर्यपात कराना न सिर्फ उसका धर्म था बल्कि यह नियति की इच्छा भी थी। मनोरमा अपने कोमल हाथों से उस लण्ड से खेलने लगी। कभी वह उसे नापती कभी अपनी मुठियों में भरती। अपने ही प्रेम रस से ओतप्रोत चिपचिपे लण्ड को अपने हाथों में लिए मनोरमा सरयू सिंह के प्रति आसक्त होती जा रही थी। सरयू सिंह के लण्ड में एक बार फिर उफान आ रहा था। उन्होंने मनोरमा को एक बार फिर जकड़ लिया और उसे डॉगी स्टाइल में ले आए।

सरयू सिंह यह भूल गए थे कि वह अपने ही भाग्य विधाता को उस मादक अवस्था में आने के लिए निर्देशित कर रहे थे जिस अवस्था में पुरुष उत्तेजना स्त्री से ज्यादा प्रधान होती है। अपनी काम पिपासा को प्राप्त कर चुकी मनोरमा अपने पद और ओहदे को भूल कर उनके गुलाम की तरह बर्ताव कर रही थी। वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गयी और अपने नितंबों को ऊंचा कर लिया । सरयू सिंह अपने लण्ड से मनोरमा की बुर का मुंह खोजने लगे। उत्तेजित लण्ड और चिपचिपी बूर में चुंबकीय आकर्षण होता है।

उनका लंड एक बार फिर मनोरमा की बूर् में प्रवेश कर गया। अब यह रास्ता उनके लण्ड के लिए जाना पहचाना था। एक मजबूत धक्के में ही उनके लण्ड ने गर्भाशय के मुख हो एक बार फिर चूम लिया और मनोरमा ने फिर तकिए को अपने मुह में भर लिया। वाह चीख कर सरयू सिंह की उत्तेजना को कम नहीं करना चाहती थी।

लाइट के जाने से बाहर शोर हो रहा था। वह शोर उन्हें मनोरमा को चोदने के लिए उत्साहित कर रहा था।

सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ रही थी। बिस्तर पर जो फूल व सुगना के लिए लाए थे वह मनोरमा के घुटनों और हाथ द्वारा मसले जा रहे थे। फूलों की खुशबू प्रेम रस की खुशबू के साथ मिलकर एक सुखद एहसास दे रही थी।

सरयू सिंह कभी मनोरमा की नंगी पीठ को चूमते कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसके दोनों चुचियों को मीसते हैं कभी उसके बालों को पकड़कर मन ही मन एक घुड़सवार की भांति व्यवहार करते। अपने जीवन की इस विशेष उत्तेजना का मन ही मन आनंद लेते लेते सरयू सिंह भाव विभोर हो गए।

इधर मनोरमा दोबारा स्खलन की कगार पर पहुंच चुकी थी। मनोरमा के बूर की यह कपकपाआहट बेहद तीव्र थी। सरयू सिंह मनोरमा को स्खलित कर उसकी कोमल और तनी हुई चुचियों पर वीर्यपात कर उसे मसलना चाह रहे थे। बुर् की तेज कपकपाहट से सरयू सिंह का लण्ड अत्यंत उत्तेजित हो गया और अंडकोष में भरा हुआ वीर्य अपनी सीमा तोड़कर उबलता हुआ बाहर आ गया। मनोरमा के गर्भ पर वीर्य की पिचकारिया छूटने लगीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था बरसों से प्यासी धरती को सावन की रिमझिम में बूंदे भीगों रही थी। मनोरमा की प्यासी बुर अपने गर्भाशय का मुंह खोलें उस वीर्य को आत्मसात कर तृप्त तो हो रही थी।

मनोरमा अपने मन में सरयू सिंह के छैल छबीले चेहरे और बलिष्ठ शरीर की छवि को बसाये हए अपने गर्भाशय में हो रहे वीर्य पात के अद्वितीय अनुभव को महसूस कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी कहानी का एक प्रमुख पात्र सृजित हो रहा था…..

शेष अगले भाग में।
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#56
Heart 
भाग 52

मनोरमा अपने मन में सरयू सिंह के छैल छबीले चेहरे और बलिष्ठ शरीर की छवि को बसाये हए अपने गर्भाशय में हो रहे वीर्य पात के अद्वितीय अनुभव को महसूस कर रही थी।


नियति मुस्कुरा रही थी कहानी का एक प्रमुख पात्र सृजित हो रहा था…..

अब आगे

सरयू सिंह द्वारा की गई जबरदस्त चुदाई से मनोरमा तृप्त हो चुकी थी और उसके गर्भ में सरयू सिंह के खानदान का एक अंश आ चुका था। तृप्ति का भाव मनोरमा और सरयू सिंह दोनों में ही था। जिस प्रेम भाव और अद्भुत मिलन से इस गर्भ का सृजन हुआ था उसने स्वतः ही इस मिलन की गुणवत्ता को आत्मसात कर लिया था। मनोरमा जैसी काबिल मां और सरयू सिंह जैसे विशेष व्यक्तित्व वाले पिता की संतान निश्चित ही विलक्षण होती।

मनोरमा, सरयू सिंह के लण्ड निकालने का इंतजार कर रही थी। सरयू सिंह पूरी तरह स्खलित होने के बावजूद उस मखमली एहसास को छोड़ना नहीं चाह रहे थे। वह अभी भी मनोरमा की पीठ को चूमे जा रहे थे और अपनी हथेलियों से उसकी चुचियों को मीस रहे थे।

शिलाजीत के असर से लण्ड में तनाव अभी भी बना हुआ था। परंतु अंडकोशों ने उसका साथ छोड़ दिया था और ढीले पड़ चुके थे।

वैसे भी वह दोनों द्वारपाल की तरह हमेशा इस क्रीडा में बाहर ही छोड़ दिए जाते थे। वह तो काम कला में दक्ष और पारखी सुगना थी जो इस द्वारपालों को भी अपनी कोमल उंगलियों का स्पर्श देकर उनकी उपयोगिता को बनाए रखती थी। परंतु मनोरमा वह तो अभी कामकला के पहले पायदान पर ही थी। उसने तो यह चरम सुख आज शायद पहली बार प्राप्त किया था।

स्खलित हो जाना ही चरमोत्कर्ष नहीं है। जिस सुख की अनुभूति आज मनोरमा ने की थी वह सामान्य स्खलन से कई गुणा बढ़कर था। मनोरमा के शरीर का रोम रोम अंग अंग सरयू सिंह के इस अद्भुत संभोग का कायल था।

सरयू सिंह अपना लण्ड निकालने के बाद अपनी धोती ढूंढने लगे। थोड़ा प्रयास करने पर उन्होंने अपना धोती और कुर्ता ढूंढ लिया परंतु लंगोट को ढूंढ पाना इतना आसान न था। वह बिजली आने से पहले ही कमरे से हट जाना चाहते थे। मनोरमा से आंखें मिला पाने की उनकी हिम्मत अब नहीं थी। यह अलग बात थी की कामवासना के दौरान उन्होंने उसे कस कर चोदा था परंतु उसके कद और अहमियत को वह भली-भांति जानते थे। सरयू सिंह ने आनन-फानन में अपनी धोती को मद्रासी तरीके से पहना और कुर्ता डालकर कमरे से बाहर आ गए।

मनोरमा अभी भी बिस्तर पर निढाल पड़ी हुई थी। उसकी बुर से रिस रहा वीर्य जांघों पर आ चुका था। मनोरमा के सारे कपड़े बिस्तर पर तितर-बितर थे। बिना प्रकाश के उन्हें ढूंढना और धारण करना असंभव था। वह नग्न अवस्था में लेटी हुई बिजली आने का इंतजार करने लगी। नियत ने मनोरमा को निराश ना किया और जब तक मनोरमा की सांसें सामान्य होतीं बनारस महोत्सव की लाइट वापस आ गई।

मनोरमा ने अपनी जांघों पर लगे वीर्य को पोछने की कोशिश नहीं की। वह सरयू सिंह की चुदाई और उनके प्रेम के हर चिन्ह को सजाकर रखना चाहती थी। उसने फटाफट अपने कपड़े पहने और बिस्तर पर पड़े लाल लंगोट को देख कर मुस्कुराने लगी।

सरयू सिंह ने आज नया लंगोट पहना हुआ था परंतु लंगोट में कसे हुए लण्ड की खुशबू समाहित हो चुकी थी। मनोरमा ने उसे अपने हाथों में उठाया और मुस्कुराते हुये उसे मोड़ कर अपने पर्स में रख लिया। उसके लिए यह एक यादगार भेंट बन चुकी थी।

भरपूर चुदाई के बाद स्त्री का शरीर अस्तव्यस्त हो जाता है। वह चाह कर भी तुरंत अपनी पूर्व अवस्था में नहीं आ सकती। मनोरमा का चेहरा और शरीर अलसा चुका था। उसने अपने बाल ठीक किए और कमरे से बाहर आ गयी पर उसकी हालत कतई ठीक नहीं थी। उसे अभी मीटिंग में भी जाना था। वह अनमने मन से मीटिंग हाल की तरफ बढ़ने लगी तभी उसे सुगना दिखाई दे गयी जो उसके कमरे की तरफ ही आ रही थी।

सुगना ने मनोरमा को देखा और अपने दोनों हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया।

"अरे मैडम जी इतनी रात को"

"हां सुगना आज मेरी मीटिंग कुछ ज्यादा ही लंबी चल रही है"

सुगना ने मनोरमा के ऐश्वर्य भरे चेहरे और कसी हुई काया में आया बदलाव महसूस कर लिया उसने मनोरमा से पूछा

"मैडम जी आपकी तबीयत ठीक है ना? आप काफी थकी हुई लग रही है।"

सुगना ने जो कहा था इसका एहसास मनोरमा को भी था उसने बड़ी सफाई से अपने आप को बचाते हुए बोला..

"अरे सुगना होटल का खाना मुझे सूट नहीं किया पेट भी खराब हो गया है इसी लिए कमरे में आना पड़ा"

सुगना ने मन ही मन मनोरमा की स्थिति का आकलन कर लिया और उस कमरे के उपयोग के औचित्य के बारे में भी अपने स्वविवेक से सोच लिया।

सुगना को संशय में देखकर मनोरमा सोच में पड़ गई कहीं सुगना ने उसकी शारीरिक स्थिति देखकर कुछ अंदाज तो नहीं लगा लिया उसने बात बदलने की कोशिश की..

"तुमने बनारस घूम लिया कि नहीं?"

"अभी है ना दो-तीन दिन घूम लूंगी'

"कल मैं अपनी गाड़ी भेज दूंगी अपने बाबू जी के साथ जाकर बनारस घूम लेना"

सुगना बेहद प्रसन्न हो गई। मनोरमा ने कहा

"तुम उस कमरे में जा सकती हो मैं अब वापस जा रही हूँ।"

मनोरमा अपने मीटिंग हॉल की तरफ बढ़ चली और सुगना कमरे की तरफ।

सुगना मन ही मन घबरा रही थी कि निश्चित ही उसके बाबू जी आज उसका इंतजार करते करते थक चुके होंगे.. परंतु वह क्या कर सकती थी. उसकी मां ने कुछ देर तक उसे सूरज के कंगन में उलझाये रखा तभी बत्ती गुल हो गई थी। अंधेरे में वहां से कमरे तक जाना संभव न था।

जवान स्त्री तब भी मनचलों के आकर्षण का केंद्र रहती थी और आज भी।

पद्मा ने सुगना को लाइट आने तक रोक लिया था।

उधर सरयू सिंह कमरे से बाहर निकलने के पश्चात कुछ दूर पर जाकर खड़े हो गए थे। वह मनोरमा के कमरे से चले जाने का इंतजार कर रहे थे। उन्हें अपना लंगोट भी लेना था।

उन्हें पूरा विश्वास था कि सुगना अवश्य आएगी। निश्चित ही वह बिजली गुल हो जाने होने की वजह से समय पर नहीं आ पाई थी।

सुगना को कमरे की तरफ आता देख सरयू सिंह सुगना की तरफ बढ़ चले उन्होंने सुगना पर झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा..

"सुगना बाबू कहां रह गईलू हा..?" अपने झूठे क्रोध में यह प्यार सिर्फ सरयू सिंह ही दिखा सकते थे।

सुगना ने अपना सच स्पष्ट शब्दों में बयान कर दिया. सरयू सिंह ने सुगना से कहा

"लागा ता आज देर हो गईल बा तोहार उपहार के भोग आज ना लाग पायी "

सचमुच देर हो चुकी थी सुगना तो पूरी तरह उत्तेजित थी और चुदना भी चाहती थी परंतु इस क्रिया में लगने वाला समय उन दोनों की हकीकत पूरे परिवार के सामने ला देता। खाने के समय न पहुंचने पर कजरी पदमा को लेकर उसे ढूंढती हुई यहां आ जाती।

सुगना ने अपना मन मसोसकर कहा

ठीक बा बाबू जी "काल एहि बेरा (बेरा मतलब समय)"

सरयू सिंह ने सुगना से चाबी मांगी और दरवाजा खोलकर अपना लंगोट ढूंढने लगे।

सुगना ने दरवाजे पर खड़े खड़े पूछा

" ...का खोजा तानी?".

सरयू सिंह क्या जवाब देते जो वह खोज रहे थे वह मनोरमा ले जा चुकी थी।

सुगना और शरीर सिंह धीरे-धीरे वापस पंडाल की तरफ आ रहे थे।

सूरज के परिवार का एक अभिन्न अंग मनोरमा के गर्भ में आ चुका था काश कि यह बात सुगना जान पाती तो अपने गर्भधारण को लेकर उसकी अधीरता थोड़ा कम हो जाती। हो सकता था की सूरज की जिस बहन की तलाश में वह गर्भधारण करना चाह रही थी वह मनोरमा की कोख में सृजित हो चुकी हो….

बनारस महोत्सव के बिजली विभाग के कर्मचारियों की एक गलती ने नियति को नया मौका दे दिया था।

सुगना से मिलने के बाद मनोरमा मीटिंग में पहुंची तो जरूर परंतु उसका मन मीटिंग में कतई नहीं लग रहा था। बिजली गुल होने की वजह से मीटिंग का तारत्म्य बिगड़ गया था और सभी प्रतिभागी घर जाने को आतुर थे।

अंततः मीटिंग समाप्त कर दी गई और मनोरमा एक बार फिर अपने पांच सितारा होटल की तरफ चल पड़ी।

कमरे में पहुंचकर उसने अपने वस्त्र उतारे और अपनी जाँघों और बूर् के होठों पर लगे श्वेत गाढ़े वीर्य के धब्बे को देख कर मुस्कुराने लगी। उसे अपने शरीर और चरित्र पर लगे दाग से कोई शिकायत न थी। उसने सरयू सिंह के साथ हुए इस अद्भुत संभोग को भगवान का वरदान मान लिया था। उसकी काम पिपासा कई वर्षों के लिए शांत हो चुकी थी। वह अपनी फूली और संवेदनशील हो चुकी बुर को अपनी हथेलियों से सहला रही थी और मन ही मन आनंद का अनुभव कर रही थी।

मनोरमा ने अपने हाथ पैर और चेहरे को धुला परंतु स्नान करने का विचार त्याग दिया। सरयू सिंह के वीर्य को अपने शरीर से वह कतई अलग नहीं करना चाह रही थी। अनजाने में ही सही मनोरमा ने पुरुष का वह दिव्य स्वरूप देख लिया था। वह मन ही मन भगवान के प्रति कृतज्ञ थी और इस संभोग को अपने गर्भधारण का आधार बनाना चाह रही थी।

मनोरमा ने अपने इष्ट देव को याद किया और अपने गर्भधारण की अर्जी लगा दी। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और स्वस्थ पुरुष की संतान निश्चित ही उनके जैसी ही होगी।

मनोरमा के गर्भ से पुत्र होगा या पुत्री इसका निर्धारण नियति ने नियंता के हाथों छोड़ दिया।


बनारस महोत्सव का चौथा दिन……

बनारस महोत्सव के इन 3 दिनों में कथा के दो पात्रों का सृजन हो चुका था एक लाली के गर्भ में और दूसरा एसडीएम मनोरमा के गर्भ में नियति ने इन दोनों पात्रों का लिंग निर्धारण अपनी योजना के अनुसार कर दिया था। परंतु सुगना अभी भी अपने गर्भधारण का इंतजार कर रही थी। कल का सुनहरा अवसर उसने अनायास ही गवां दिया था और सरयू सिंह के प्यार और अद्भुत चुदाई का आनंद लेते हुए गर्भवती का होने का सुख सुगना की जगह मनोरमा ने उठा लिया था।

बनारस महोत्सव के चौथे दिन महिलाओं का एक विशेष व्रत था घर की सभी महिलाओं ने व्रत रखा हुआ था। सुगना भी उस से अछूती न थी। सुगना ही क्या उसकी दोनों छोटी बहनें भी आज व्रत थी सुगना को आज के व्रत का ध्यान ही नहीं आया था। कल शाम उसने अपने बाबू जी से मिलने के लिए आज का दिन मुकर्रर किया था। परंतु अब यह व्रत... जिसे वह छोड़ नहीं सकती थी।

परंतु व्रत के दौरान संभोग क्या यह उचित होगा? सुगना अपनी अंतरात्मा से एक बार फिर लड़ रही थी।

क्या बनारस महोत्सव का चौथा दिन क्या यूं ही बीत जाएगा?

हे भगवान अब मैं क्या करूं। सुगना ने इससे पहले भी व्रत रखा था परंतु उस दौरान वह संभोग से सर्वथा दूर रही थी। बातों ही बातों में कजरी ने उसे व्रत की अहमियत और व्रत के दौरान पालन किए जाने वाले दिशा निर्देशों की जानकारी बखूबी दी हुई थी। परंतु आज का दिन वह किस प्रकार व्यर्थ जाने दे सकती थी।

यदि वह गर्भवती ना हुई तो?? सुगना की रूह कांप उठी। सूरज को मुक्ति दिलाने के लिए वह हर हाल में गर्भवती होना चाहती थी।

उसकी अंतरात्मा ने आवाज दी

व्रत के पावन दिन यदि तू संभोग कर गर्भवती होना भी चाहेगी तो भगवान तेरा मनोरथ कभी नहीं पूर्ण करेंगे। हो सकता है तेरे गर्भ में आने वाला तेरी मनोकामना की पूर्ति न कर तुझे और मुसीबत में डाल दे।

सुगना एक बार फिर कांप उठी यदि सचमुच उसके गर्भ में पुत्री की जगह पुत्र का सृजन हुआ तो वह आने वाले समय में सूरज को मुक्ति किस प्रकार दिला पाएगी। क्या उसे स्वयं सूरज से …. इस विचार से ही उसके शरीर में कंपन उत्पन्न हो गए।

"मैं भगवान से प्रार्थना करूंगी मेरी मजबूरी और मनोदशा को समझ कर वह मुझे माफ कर देंगे सुगना ने खुद को समझाने की कोशिश की"

"यदि भगवान चाहेंगे तो तेरा यह संभोग कल और परसों भी हो सकता है आज व्रत के दिन तुझे निश्चित ही इस से दूर रहना चाहिए।" अंतरात्मा ने फिर अपनी बात रखी।

सुगना चाह कर भी व्रत के नियम तोड़ पाने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी परंतु जैसे-जैसे समय बीत रहा था उसकी अधीरता बढ़ती जा रही थी।

सरयू सिंह को भी महिलाओं के व्रत का पता चल चुका था उनकी उत्तेजना भी व्रत के नाम पर शांत हो चुकी वैसे भी पिछले शाम उन्होंने अपनी मनोरमा मैडम की जी भर कर चुदाई की थी और उनकी कामोत्तेजना कुछ समय के लिए तृप्त हो गई थी।

सुबह-सुबह मनोरमा मैडम की गाड़ी विद्यानंद के पांडाल के सामने आ गई थी। सुगना ने इसकी सूचना पहले ही अपनी मां पदमा और सास कजरी को दे दी थी। सोनी और मोनी दोनों भी बनारस घूमने के नाम से बेहद उत्साहित थी।

सबको बनारस घूमने के कार्यक्रम के बारे में पता था परंतु यह बात सरयू सिंह को पता न थी कल शाम की मुलाकात में वह यह बात सरयू सिंह को बताना भूल गई थी।

पंडाल के सामने गाड़ी खड़ी देख सरयू सिंह उठ कर गाड़ी की तरफ गए उन्हें लगा जैसे मनोरमा मैडम स्वयं आई हैं। उन्हें देखकर ड्राइवर बाहर आया और अदब से बोला

" मैडम ने यह गाड़ी आप लोगों को बनारस घुमाने के लिए भेजी है शायद सुगना मैडम से उनकी बात हुई है"

सरयू सिंह ने पांडाल की तरफ देखा और अपने परिवार की सजी धजी महिलाओं को देखकर वह बेहद भाव विभोर हो उठे।

सोनी और मोनी युवावस्था की दहलीज लांघने को तैयार थी परंतु सरयू सिंह का सारा ध्यान अपनी जान सुगना पर ही लगा था। सुगना के कोमल अंगों को न जाने वह कितनी बार अपने हाथों से नाप चुके थे पर जब जब वह सुगना को देखते उनकी नजरें सुगना के अंगो का नाप लेने लगतीं और उसके अंदर छुपे हुए खजाने की कल्पना कर उनके लण्ड जागृत हो जाता। आज व्रत के भी दिन भी वह अपनी उत्तेजना पर काबू न रख पाए और उनका लण्ड एक बार फिर थिरक उठा।

सरयू सिंह दलबल समेत बनारस दर्शन के लिए निकल चुके थे। सुगना ने लाली को भी अपने साथ ले लिया। महिलाओं का सारा ध्यान बनारस की खूबसूरत बिल्डिंगों को छोड़कर मंदिरों पर था। सबकी अपनी अपनी मनोकामनाएं थी जहां सुगना सिर्फ और सिर्फ सूरज के बारे में सोच रही थी और अपने इष्ट देव से उसकी मुक्ति दाईनी बहन का सृजन करने के लिए अनुरोध कर रही थी वही पदमा अपने सोनू के उज्जवल भविष्य तथा उसके लिए भगवान से नौकरी की मांग कर रही थी।

कजरी भी अपने पुत्र मोह से नहीं बच पाई थी वह भी भगवान से अपने पुत्र रतन की वापसी मांग रही थी। वही उसके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा था।

माता का पुत्र के प्रति प्रेम दुनिया का सबसे पवित्र प्रेम है। यह बात इन तीनों महिलाओं पर लागू हो रही थी परंतु सुगना दुधारी तलवार पर चल रही थी यदि उसकी मांग पूरी ना होती तो सुगना को मृत्यु तुल्य कष्ट से गुजरना होता। अपने ही पुत्र के साथ संभोग करने का दंड वह स्वीकार न कर पाती।

अपने अवचेतन मन से उसने अपने इष्ट देव को वह फैसला सुना दिया था। उसने अपने इष्ट देव को यह खुली धमकी दे दी थी यदि उसके गर्भ में पुत्री का सृजन ना हुआ और यदि सूरज को मुक्ति दिलाने के लिए यदि उसे अपने ही पुत्र से संभोग करना पड़ा तो वह यह निकृष्ट कार्य भी करेगी परंतु उसके पश्चात अपनी देह त्याग देगी।

वह मंदिर मंदिर अनुनय विनय करती रही और अपनी एकमात्र इच्छा को पूरा करने के लिए मन्नतें मांगती रही।

उधर सरयू सिंह भगवान के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करते रहे । सरयू सिंह मनोरमा को जी भर कर चोदने के बाद आत्मविश्वास से लबरेज थे। उन्होंने डॉक्टर की सलाह को झुठला दिया था और उनके निर्देशों के विपरीत जाकर न सिर्फ शिलाजीत का सेवन किया था अपितु एक नौजवान युवती के साथ जी भर कर संभोग किया था और उसे एक नहीं दो दो बार स्खलित किया था। भगवान ने उन्हें एक बार फिर मर्दाना ताकत से भर दिया था।

सभी के पास मांगने के लिए कुछ ना कुछ था परंतु सोनी जो चाहती थी उसे वह मांगना भी नहीं आता था। विकास उसे पसंद तो आने लगा था परंतु इस कच्ची उम्र में वह विकास से कोई रिश्ता नही जोड़ना चाहती थी। और जो वह विकास से चाहती थी उसे भगवान से मांगने का कोई औचित्य नहीं था। सोनी विकास से लिपटकर पुरुष शरीर का स्पर्श एवं आनंद अनुभव करना चाहती थी। वह अपनी चुचियों पर पुरुष स्पर्श के लिए लालायित थी। अपने दिवास्वप्न में वह कभी-कभी पुरुषों के लण्ड के बारे में भी सोचती और अपनी अस्पष्ट जानकारी के अनुसार उसके आकार की कल्पना करती।

अपने भांजे सूरज की नुन्नी सहलाकर उसने नुन्नी का बढ़ा हुआ आकार देखा था और पुरुष लिंग की कल्पना उसी के अनुरूप कर ली थी। परंतु क्या सभी पुरुषों का लिंग उसी प्रकार होता होगा? सोनी के मन में भविष्य को लेकर कई प्रश्न थे? तुरंत सारे प्रश्नों के उत्तर भविष्य के गर्भ में छुपे हुए थे।

सोनी के ठीक उलट मोनी अभी इस कामवासना की दुनिया से बेहद दूर थी। घर के कामकाज में मन लगाने वाली मुनि धर्म परायण भी थी और एक निहायत ही पारिवारिक लड़की थी अपने संस्कारों से भरी हुई। जब सुगना के कहने पर मोनी ने सूरज के अंगूठे सहलाया था और उसकी बड़ी हुई नुन्नी को अपने होठों से छू कर छोटा किया था वह बेहद शर्मसार थी और फिर कभी सूरज के अंगूठे से ना खेलने का मन ही मन फैसला कर लिया था।

हालांकि यह फैसला कब तक कायम रहता यह तो नियति ही जानती थी। जब जांघों के बीच आग बढ़ेगी कई फैसले उसी आग में दफन हो जाने थे।

इस समय सिर्फ लाली ही की जिसके दोनों हाथों में लड्डू थे उसका पति राजेश उससे बेहद प्यार करता था और अब सोनू के उसके जीवन मे हलचल मचा दी थी। सोनू दो-तीन दिनों से लाली के घर नहीं आया था। लाली की अधीरता भगवान ने समझ ली थी।

मंदिर से बाहर निकलते समय सुगना ने सरयू सिंह के माथे पर तिलक लगाया और उनसे अनुरोध किया…

"बाबूजी कल और कोनो काम मत करब कल हम पूरा दिन आपके साथ रहब । उ वाला होटल ठीक कर लीं जवना में हमनी के पहला बार एक साथ रुकल रहनी जा जब हमार हाथ टूटल रहे।"

सरयू सिह बेहद प्रसन्न हो गए सुगना ने जिस बेबाकी से होटल में रहकर चुदने की इच्छा जाहिर की थी वह उसके कायल हो गए थे।

सरयू सिंह मुस्कुराते हुए बोले

"हां उहे वाला होटल में जवना में तू रात भर तक सपनात रहलु"

सुगना को उस रात की सारी बातें याद आ गई


((("मैं सुगना"

दिन भर की भागदौड़ से मैं थक गई थी। शहर के उस अनजान होटल के कमरे में लेटते ही मैं सो गई। बाबुजी दूसरे बिस्तर पर सो रहे थे.

रात में एक अनजान शख्स मेरी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर की तरफ उठा रहा था. पता नहीं क्यों मुझे अच्छा लग रहा था। मैंने अपने घुटने मोड़ लिए। मेरा पेटीकोट मेरी जांघो को तक आ चुका था। पंखे की हवा मेरे जांघों के अंदरूनी भाग को छू रही थी और मुझे शीतलता का एहसास करा रही थी। उस आदमी ने मेरी पेटीकोट को मेरे नितंबों तक ला दिया था। उसे और ऊपर उठाने के मैने स्वयं अपने नितंबों को ऊपर उठा दिया। उस आदमी के सामने मुझे नंगा होने में पता नहीं क्यों शर्म नही आ रही थी। मैं उत्तेजित हो चली थी।

पेटिकोट और साड़ी इकट्ठा होकर मेरी कमर के नीचे आ गए। घुंघराले बालों के नीचे छुपी मेरी बूर उस आदमी की निगाहों के सामने आ गयी।
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उस आदमी का चेहरा मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा था पर उसकी कद काठी बाबूजी के जैसी ही थी। वह आदमी मेरी जाँघों को छू रहा था। उसकी बड़ी बड़ी खुरदुरी हथेलियां मेरे जाँघों को सहलाते हुए मेरी बुर तक पहुंचती पर उसे छू नही रही थीं।

मैं चाहती थी कि वह उन्हें छुए पर ऐसा नहीं हो रहा था। मेरी बुर के होठों पर चिपचिपा प्रेमरस छलक आया था। अंततः उसकी तर्जनी उंगली ने मेरी बुर से रिस रहे लार को छू लिया। उसकी उंगली जब बुर से दूर हो रही थी तो प्रेमरस एक पतले धागे के रूप में उंगली और बूर के बीच आ गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरी बुर उस उंगली को अपने पास खींचे रखना चाहती थी।

उंगली के दूर होते ही वह पतली कमजोर लार टूट गयी जिस का आधा भाग वापस मेरी बूर पर आया और आधा उसकी उंगली से सट गया। उस आदमी ने अपनी उंगली को ध्यान से देखा और अपने नाक के करीब लाकर उसकी खुशबू लेने की कोशिश की। और अंततः अपनी जीभ से उसे चाट लिया। मेरी बुर उस जीभ का इंतजार कर रही थी पर उस अभागी का कोई पुछनहार न था। मैं अपनी कमर हिला रही थी मेरी जाघें पूरी तरह फैल चुकी थी ।

अचानक वह व्यक्ति उठकर मेरी चूँचियों के पास आ गया। मेरी ब्लाउज का हुक खुद ब खुद खुलता जा रहा था। तीन चार हुक खुलने के पश्चात चूचियां उछलकर ब्लाउज से बाहर आ गयीं। उस व्यक्ति ने मेरी चूचियों को चूम लिया। एक पल के लिए मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया पर फिर अंधेरा हो गया। वह मेरी चुचियों को चूमे जा रहा था। उसकी हथेलियां भी मेरी चुचियों पर घूम रही थी। आज पहली बार किसी पुरुष का हाथ अपनी चुचियों पर महसूस कर मेरी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई। मेरी बुर फड़फड़ा रही थी। मैंने स्वयं अपनी उंगलियां को अपने बुर के होठों पर ले जाकर सहलाने लगी। मेरी बुर खुश हो रही थी और उसकी खुशी उसके होठों से बह रहे प्रेम रस के रूप में स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।

अचानक मेरी चूचि का निप्पल उस आदमी के मुह में जाता महसूस हुआ। वह मेरे निप्पलों को चुभला रहा था। मैं कापने लगी। मैने इतनी उत्तेजना आज तक महसूस नहीं की थी।

कुछ देर बाद मैंने उस आदमी को अपनी धोती उतारते देखा। उसका लंड मेरी आंखों के ठीक सामने आ गया यह। लंड तो बाबुजी से ठीक मिलता-जुलता था मैं अपने हाथ बढ़ाकर उसे छूना चाह रही थी। वह मेरे पास था पर मैं उसे पकड़ नहीं पा रही थी। मेरी कोमल हथेलियां ठीक उसके पास तक पहुंचती पर उसे छु पाने में नाकाम हो रही थी।

मैं चाह कर भी उस आदमी को अपने पास नहीं बुला पा रही थी पर उसके लंड को देखकर मेरी बुर चुदवाने के लिए बेचैन हो चली थी। मैं अपनी जांघों को कभी फैलाती और कभी सिकोड़ रही थी।

वह आदमी मेरी उत्तेजना समझ रहा था कुछ ही देर में वह बिस्तर पर आ गया और मेरी जांघों के बीच बैठकर अपनी गर्दन झुका दिया वह अपने होठों से मेरी नाभि को चूम रहा था और हथेलियों से चूचियों को सहला रहा था। मैं स्वयं अपनी हथेलियों से उसके सर को धकेल कर अपनी बुर पर लाना चाहती थी पर जाने यह यह क्यों संभव नहीं हो पा रहा था । मेरी हथेलियां उसके सर तक पहुंचती पर मैं उसे छू नहीं पा रही थी।

अचानक मुझे मेरी जाँघे फैलती हुई महसूस हुयीं। लंड का स्पर्श मेरी बुर पर हो रहा था बुर से निकल रहा चिपचिपा रस रिश्ते हुए मेरी कोमल गांड तक जा पहुंचा था। मैं उत्तेजना से हाफ रही थी तभी लंड मेरी बुर में घुसता हुआ महसूस हुआ।

मैं चीख पड़ी

"बाबूजी……"

मेरी नींद खुल गई पर बाबूजी जाग चुके थे। उन्होंने कहा

"का भईल सुगना बेटी"

भगवान का शुक्र था। लाइट गयी हुयी थी। मेरी दोनों जाँघें पूरी तरह फैली हुई थी और कोमल बुर खुली हवा में सांस ले रही थी। वह पूरी तरह चिपचिपी हो चली थी मेरी उंगलियां उस प्रेम रस से सन चुकी थी। मैंने सपने में अपनी बुर को कुछ ज्यादा ही सहला दिया था। मेरी चूचियां भी ब्लाउज से बाहर थी।
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मैंने बाबूजी की आवाज सुनकर तुरंत ही अपनी साड़ी नीचे कर दी।

मुझे चुचियों का ध्यान नहीं आया। बाबूजी की टॉर्च जल चुकी थी उसकी रोशनी सीधा मेरी चुचियों पर ही पड़ी। प्रकाश का अहसास होते ही मैंने अपनी साड़ी का पल्लू खींच लिया पर बाबूजी का कैमरा क्लिक हो चुका था। मेरी चुचियों का नग्न दर्शन उन्होंने अवश्य ही कर लिया था। साड़ी के अंदर चुचियां फूलने पिचकने लगीं।

मेरी सांसे अभी भी तेज थीं। बाबू जी ने टॉर्च बंद कर दी शायद वह अपनी बहू की चूँचियों पर टार्च मारकर शर्मा गए थे। उन्होंने फिर पूछा

" सुगना बेटी कोनो सपना देखलू हा का?" उनकी बात सच थी। मैंने सपना ही देखा था पर उसे बता पाने की मेरी हिम्मत नहीं थी। मैंने कहा

"हां बाबू जी"

"चिंता मत कर….नया जगह पर नींद ठीक से ना आवेला"

" हा, आप सूत रहीं"

मैंने करवट लेकर अपनी चुचियों को बाबूजी से दूर कर लिया और मन ही मन मुस्कुराते हुए सोने लगी। डर वश मेरी बुर पर रिस आया प्रेमरस सूख गया था।

उपरोक्त यादें भाग 11 से ली गयी हैं))))
वह शर्म से पानी पानी हो गई।

सरयू सिंह सुगना के अंतर्मन को नहीं जान रहे थे परंतु होटल और एकांत दोनों एक ही बात की तरफ इशारा कर रहे थे जिसे वह बखूबी समझ रहे थे। वह बेहद प्रसन्न हो गए और सुगना को अपने सीने से सटा लिया कजरी और पदमा को आते देख इस आलिंगन का कसाव तुरंत ही ढीला पड़ गया और सुगना के द्वारा दिया प्रसाद सरयू सिंह मुंह में डालकर सभी को जल्दी चलने का निर्देश देने लगे।

शाम हो चली थी बनारस महोत्सव में आज धर्म हावी था हर तरफ पूजा-पाठ की सामग्री बिक रही थी लगभग हर पांडाल से शंख ध्वनि और आरती की गूंज सुनाई पड़ रही थी सभी महिलाएं भाव विभोर होकर अपने-अपने इष्ट देव की आराधना कर रही थीं।

बनारस महोत्सव का चौथा दिन पूजा पाठ की भेंट चढ़ गया।

पंडाल की छत को एकटक निहारती सुगना कल के दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। कल का दिन सुगना के लिए बेहद अहम था। कल वह अपने बाबू जी से जी भर कर संभोग करना चाहती थी। और एक नहीं कई बार उनके वीर्य को अपने गर्भाशय में भरकर गर्भवती होना चाहती थी। अपने पुत्र मोह में वो यह बात भूल चुकी थी की डॉक्टर ने सरयू सिंह को संभोग न करने की सलाह दी हुई है।

सुगना की अधीरता को देख नियति भी मर्माहत हो चुकी थी वह सुगना के गर्भधारण को लेकर वह तरह-तरह के प्रयास कर रही थी। सुकुमारी और अपने पूरे परिवार की प्यारी सुगना के गर्भ से सुगना के परिवार की दशा दिशा तय होनी थी..

परंतु नियति निष्ठुर थी सुगना की तड़प को नजरअंदाज कर उसने अपनी चाल चल दी..

शेष अगले भाग में…
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#57
भाग-53

भाग 53



बनारस महोत्सव का पांचवा दिन…..


बीती रात अपने जमीर से द्वंद लड़ते हुए तथा आज के दिन की रणनीति बनाते बनाते सुगना को सोने में विलंब हो गया था।

आज के शुभ दिन सुगना को उसके व्रत का फल मिलना था। सूर्य की कोमल किरणें पांडाल को प्रकाशमान कर चुकी थी परंतु सुगना अब भी सोई हुई थी। कजरी और पदमा सुगना के खूबसूरत चेहरे को निहार रही थीं। एक बार के लिए पदमा का मन हुआ कि वह सुगना को जगा दे परंतु कजरी ने रोक लिया। उसे पता था जब सुगना नींद पूरी कर उठती थी खिली खिली रहती थी यह समय का ही चक्र था की सुगना को अब कजरी उसकी मां की से ज्यादा समझने लगी थी। पदमा अपनी पुत्री के खूबसूरत चेहरे को निहारते हुए कुछ देर वहीं बैठ गयी।

कजरी ने ही सुगना के मर्म को समझा था तथा न सिर्फ सुगना के गर्भधारण की इच्छा के लिए अपने कुँवर जी को उससे साझा किया था अपितु सुगना की काम इच्छाओं की पूर्ति के लिए वह हर हद तक गई और उसकी इच्छाओं की पूर्ति करते करते स्वयं खुद की और सरयू सिंह की काम इच्छाओं को अतिरेक तक पहुंचा दिया था। इस वासना के अतिरेक का परिणाम ही कि सरयू सिंह सुगना के दूसरे छेद के पीछे हाथ धोकर पड़ गए थे। सुगना अभी मीठे स्वप्न में खोयी हुयी थी।

वह पूरी तरह निर्वस्त्र होकर सरयू सिह की गोद में बैठी हुई कभी उनकी मूछे सवांरती कभी वह उनकी मूछों पर ताव देकर उन्हें ऊंचा करती कभी अपने होठों से उसे गिला कर अलग आकार देती। सरयू सिंह उसके कोमल नितंबों को सहला रहे थे और अपनी मजबूत भुजाओं से खींच कर उसे अपने सीने से सटा ले रहे थे। सुगना सहज ही उनकी गोद में खेल रही थी।

यदि सुगना के स्तन विकसित ना हुए होते और शरीर पर वस्त्रों का आवरण होता तो यह वासना रहित दृश्य बेहद मधुर और पावन होता।

परंतु यह अवस्था वासनाजन्य थी। एक तरुणी एक अधेड़ की उम्र के मर्द की गोद में में नग्न बैठी हुई थी। सरयू सिंह का लण्ड पूरी तरह तन कर खड़ा हो गया था और सुगना के जांघों के बीच अपनी सहभागिनी को उत्तेजित कर रहा था। शरीर सिंह सुगना को सहलाए जा रहे थे और सुगना उन्हें चूमे जा रही थी। सुगना ने अपने दोनों पैर उनकी कमर पर लपेट लिए थे। जैसे ही सरयू सिंह के लण्ड ने सुगना की बुर के मुख को चुमा। सुगना की नींद खुल गई।

"बाबूजी…."

सुगना की आँखें खुल चुकी थीं।

सुगना की मां पद्मा ने अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देख उसके बालों को सहलाते हुए बेहद प्यार उसे उठाया और बोली..

"सुगना बेटा सपनात रहलु हा का?"

सुगना को अपने सुखद स्वप्न से जागने का अफसोस भी था और अपनी मां को करीब देखने का सुख भी। वैसे भी उसका स्वप्न आज हकीकत में बदलने वाला था।

इधर सुगना अपने मीठे सपनों में खोई हुई थी उधर पंडाल के पुरुष वाले भाग में सरयू सिंह तैयार हो चुके थे। उन्होंने होटल वाले से मिलकर कमरा भी बुक कर लिया था जिसमें आज वह सुगना के साथ रंगरलिया मनाने वाले थे। वह पंडाल में चहलकदमी करते हुए सुगना के आने का इंतजार कर रहे थे।

तभी पांडाल के गेट पर एक बार फिर मनोरमा की गाड़ी आकर रुकी। सरयू सिंह तो अपनी कामुक दुनिया में खोए हुए थे। उन्हें मनोरमा की गाड़ी आने का आभास नहीं हुआ। सरयू सिंह को अपनी तरफ आता न देखकर ड्राइवर गाड़ी से निकल कर भागता हुआ उनके पास गया आधी दूर पहुंचकर ही जोर से चिल्लाया

"सरयू जी मैडम गाड़ी में बैठी हैं"

शरीर सिंह की तो सांसें फूल गई वो भागते हुए मनोरमा के सामने पहुंच गए।

अपने दोनों हाथ जोड़े हुए वह कार की पिछली सीट के सामने खड़े थे। मनोरमा ने शीशा नीचे किया और कहा

"आपको सलेमपुर जाना होगा। बिजली गिरने से कई मवेशियों की मौत हो गई है गांव वाले बवाल कर रहे हैं। आप इसी गाड़ी से सलेमपुर चले जाइए और स्थिति के नियंत्रण में आने पर वापस आ जाइएगा। मैं आपकी मदद के लिए सिक्युरिटी फोर्स भी भेज रही हूँ"

सरयू सिंह जी को तो जैसे सांप सूंघ गया उनके सारे अरमान एक पल में मिट्टी में मिल गए थे उन्होंने हिम्मत करके एक बार फिर पूछा..

"मैडम दोपहर बाद चला जाऊं क्या?.".

नहीं आपको तुरंत जाना होगा मनोरमा की मीठी आवाज में छुपे आदेश की गंभीरता सरयू सिंह समझ चुके थे। उनके मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी मनोरमा ने फिर कहा

"मैं आपका इंतजार कर रही हूं आप अपना सामान लेकर आ जाइये।"

मनोरमा ने जो काम बताया था वह उनके अलावा कोई और कर भी नहीं कर सकता था। यह तो मनोरमा का बड़प्पन था कि उसने आगे बढ़कर उन्हें अपनी ही गाड़ी ऑफर कर दी थी और उन्हें ससम्मान सलेमपुर भेजने की तैयारी कर दी थी।

परंतु सरयू सिंह ने जिस कृत्य की तैयारी की थी वह उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था।

सरयू सिंह ने अभी दो दिनों पहले ही पदोन्नति पाई थी और वह मनोरमा के कृपा पात्र बने थे। कृपा पात्र ही क्या वह मनोरमा के गर्भ में पल रहे बच्चे के पिता भी बन चुके थे । वह किसी भी परिस्थिति में उसका कोपभाजन नहीं बनना चाह रहे थे। वह भागते हुए गए और अपना झोला लपेटा। उन्होंने महिला पंडाल की तरफ जाकर कजरी को आवाज लगाई और उसे सारी वस्तुस्थिति बताई। और अनमने मन से गाड़ी के करीब आ गए।

आज मनोरमा काम पिपासु युवती की भांति नहीं एक सजी-धजी और मर्यादित एसडीएम थी। हालांकि सरयू सिंह उसे अपने मजबूत शरीर के नीचे लाकर उसे कसकर चोद चुके थे फिर भी उसके साथ पिछली सीट पर बैठने की न वह हिम्मत जुटा पाए और न हीं मनोरमा ने यह आग्रह किया।

मनोरमा ने ड्राइवर को आदेश दिया मुझे होटल छोड़ दो और साहब के साथ सलेमपुर चले जाओ।

मनोरमा हमेशा सरयू सिंह को उनके नाम से ही पुकारती थी और अधिकतर नाम के आगे जी जोड़कर उनके व्यक्तित्व का सम्मान बनाए रखती थी परंतु आज मनोरमा ने उन्हें पहली बार साहब कहकर आदर दिया था। सरयू सिंह मनोरमा के कायल हुए जा रहे थे।

ड्राइवर के साथ अगली सीट पर बैठे सरयू सिंह बनारस महोत्सव को पीछे छूटते हुए देख रहे थे।

कुछ ही देर में मनोरमा की कार पांच सितारा होटल के गेट से अंदर प्रवेश कर चुकी थी। होटल की भव्यता देखकर सरयू सिंह आश्चर्यचकित रह गए । 6 मंजिला होटल की बिल्डिंग बेहद खूबसूरत और प्रभावशाली थी। गाड़ी जैसे ही पोर्च के अंदर खड़ी हुई अंदर हल्की-हल्की पीली लाइटों से सुसज्जित रिसेप्शन दिखाई पड़ गया। कितना खूबसूरत था वह होटल। वह उस पांच सितारा होटल की तुलना अपने बुक किए गए होटल से करने लगे। मटमैली जमीन और नीले आसमान का अंतर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था। सरयू सिंह उस होटल में अपनी जान सुगना के साथ रंगरेलियां मनाने की सोचने लगे थे।

मन भी चंचल होता वह भौतिक दुनिया की सीमाओं और मजबूरियों को नजरअंदाज कर अपनी कल्पनाओं में वह हर उस सुख और संसाधन को शामिल करता है जिसे उसने देखा और महसूस किया हो चाहे वह उसके लिए संभव हो या ना हो।

अपनी कामुकता को शांत करने के लिए ऊपर वाले ने उन्हें सुगना जैसी सहभागीनी दे दी थी पर जिस ऐश्वर्य और वैभव के साथ उसका भोग करना चाहिए था वह सरयुसिंह की हैसियत के बाहर था।

यदि भगवान की बनाई सुगना की सुडौल और कमनीय काया की तुलना किसी भी राजरानी या तथाकथित परियों से की जाती तो सुगना की चमकती कुंदन काया निश्चित ही सब पर भारी पड़ती।

सरयू सिंह को अब जाकर पद की अहमियत समझ में आ रही थी। उन्हें पता था मनोरमा जी के पति सेक्रेटरी और अब वह सेक्रेटरी पद की आर्थिक और सामाजिक हैसियत जान चुके थे।

सरयू सिंह वैसे तो संतोषी स्वभाव के व्यक्ति थे परंतु जब जब वह वैभव और ऐश्वर्य को देखते उन्हें हमेशा सुगना की याद आती। वह सुगना को दुनिया के सारे ऐसो आराम देना चाहते थे और संसार की सारी खूबसूरत कृतियों से उसे रूबरू कराना चाहते थे। आखिर वह स्वयं इस संसार की एक अनुपम कलाकृति थी उसे इस वैभव को भोगने का पूरा हक था। सरयू सिंह अपनी भावनाओं में खोए हुए थे तभी मनोरमा कार से निकलकर बाहर आई और सरयू सिंह की तरफ देखकर बोली।

"मैं आपको आपके परिवार से अलग कर रही हूं इसका मुझे अफसोस है परंतु यह कार्य बेहद आवश्यक है और आपके बिना शायद ही कोई इसे पूरी दक्षता से पूरा कर पाए।"

सरयू सिंह ने अपने हाथ जोड़ लिए और खुशी-खुशी बोले

"मैं आपको कभी निराश नहीं करूंगा आपने मुझ पर विश्वास जताया है मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करूंगा"

ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। मनोरमा अभी भी सरयु सिंह को एकटक देखे जा रही थी। 2 दिन पहले उनके साथ बिताए पलों को याद करते हुए मनोरमा मुस्कुराते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चली।

इधर सुगना जाग चुकी थी। सुगना की मां पद्मा अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान देख खुश हो गई और उसके बालों को सहलाते हुए बेहद प्यार से उसे उठाया। सुगना झटपट उठ ग़यी। उसका आज का पूरा कार्यक्रम पहले से तय था।

सर्वप्रथम वह अपने बाबूजी को देखने के लिए पुरुष पंडाल की तरफ गई। सरयू सिंह अपनी कद काठी की वजह से भीड़ में भी पहचाने जा सकते थे परंतु सुगना की आंखों को सरयू सिंह दिखाई नहीं पड़ रहे थे। सुगना अधीर हो रही थी वह भागती हुई फिर अंदर आई और कजरी को ढूंढने लगी। कजरी स्वयं सुगना को ढूंढ रही थी नजरें मिलते दोनों एक दूसरे की तरफ बढ़ने लगे

" मां बाबूजी कहां बाड़े" सुगना ने अधीर होकर कहा।

सुगना का यह संबोधन उसे और मासूम बना देता था। न तो कजरी उसकी मां थी और नहीं सरयू सिंह उसके बाबूजी पर संबोधनों का यह दौर तब शुरू हुआ था जब सुगना अबोध थी और तब से अब तक काफी समय बीत चुका था।

संबोधनों में अंतर अब भी न था परंतु संबंध बदल चुके थे।

कजरी ने सरयू सिंह के सलेमपुर जाने की बात सुगना को बता दी। सुगना के पैरों तले जैसे जमीन खिसक गई वह आज के दिन के लिए पूरी तरह आस लगाए हुए थी और मन ही मन अपने गर्भधारण के लिए बेतहाशा चुदने को तैयार थी। बनारस महोत्सव में सूरज की मुक्तिदायिनी का सृजन सुगना के लिए जीवन मरण का प्रश्न था। सुगना का मायूस चेहरा देखकर कजरी परेशान हो गयी।

"ए सुगना काहे परेशान बाड़े?"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया उसकी जबान पर विद्यानंद के वचन का ताला लगा हुआ था। वह किस मुंह कजरी को अपनी व्यथा बताती।

सुगना रुवांसी हो गई वह। धीमे धीमे कदमों से आकर पांडाल में बैठ गयी।

मनुष्य की चाल उसके मन में भरे उत्साह या निराशा को स्पष्ट कर देती है।

सुगना जमीन पर बैठ गई उसने अपने दोनों घुटने ऊपर किए और उस पर अपना सर टिका दिया। पदमा और कजरी दोनों सुगना के पास आकर बैठ गयीं और उसकी मनो व्यथा पढ़ने का प्रयास करने लगीं। परंतु जितना ही वह सुगना से उसके व्यथित होने का कारण पूछती सुगना उतना ही दुखी होती।

नियति का यह क्रूर मजाक सुगना को बेहद दुखी कर गया था। उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे भगवान ने उसके व्रत का उसे कोई प्रतिफल नहीं दिया था। पदमा और कजरी दोनों सुगना की उदासी का कारण जानना चाहते थे।

यदि सुगना को विद्यानंद की बातों पर थोड़ा भी अविश्वास होता तो वह निश्चय ही अपने मन की बात अपनी सास और सहेली कजरी से अवश्य साझा करती। इस समय कजरी सुगना के ज्यादा नजदीक थी बनिस्पत उसकी मां के।

पास लेटे हुए सूरज को देख कर सुगना की ममता हिलोरे मारने लगी। जब जब वह सूरज के मुखड़े की तरफ देखती वह और बेचैन हो जाती। कजरी और पदमा को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। सोनी और मोनी भी अब सुगना के पास आ चुकी थीं। सुगना जिस मुसीबत में थी उसका निदान किसी के पास ना था। सुगना को गर्भवती करने वाले सरयू सिंह अचानक ही सलेमपुर चले गए थे। बनारस महोत्सव का उत्तरार्ध शुरु हो चुका था। सुगना के दिमाग में बार-बार एक ही बात घूम रही थी यदि वह गर्भवती ना हुई तो……. यह यक्ष प्रश्न सुगना की बेचैनी को बढ़ा रहा था।

सोनी ने सुगना से कहा….

"चल दीदी हम लोग लाली दीदी के घर से घूम कर आते हैं"

सुगना सचेत हो गई पर कुछ बोली नहीं सोनी ने दुबारा कहा

"दीदी तुझे रास्ता तो मालूम है ना?"

सुगना के जबाब न देने पर सोनी उसे पैरों से पकड़ कर हिलाने लगी और बोली

"दीदी चल ना ऐसे मुह लटकाने से क्या मिलेगा चल हम लोग वहीं नाश्ता करेंगे"

सुगना ने सोनी की बात मान ली। लाली से मिलकर वह अपना दुख तो साझा नहीं कर सकती थी पर लाली के सानिध्य में रहकर थोड़ा हंसी मजाक कर सहज अवश्य हो सकती थी। सुगना धीरे धीरे उठ खड़ी हूं और अपने आशुओं को पोछते हुए तैयार होने चली गई।


उधर लाली के घर में ..

सोनू आज सुबह-सुबह ही लाली के घर आ धमका था। और अभी लाली की रसोई में अपनी दीदी की मदद कर रहा था। ऐसा नहीं था कि सोनू को अब रसोई के कार्यों में आनंद आने लगा था परंतु नाइटी में घूम रही लाली के शरीर के उभारों को देखने के लालच में सोनू लाली के साथ साथ लगा हुआ था।

सोनू लाली के ठीक बगल में खड़े होकर चाकू से प्याज काट रहा था। उसकी उंगलियां बहुत तेजी से चल रही थी। बगल में खड़ी लाली की उभरी हुई चूचियां सोनू का ध्यान खींच रही थी। जैसे ही लाली मुड़ी उसकी चूँची सोनू की मजबूत बांहों से टकरा गई। सोनू का ध्यान भटक गया और चाकू ने प्याज की जगह सोनू की उंगली को चुन लिया।

"आह" उसके मुंह से चीख निकल गई।

"क्या हुआ सोनू बाबू"

जैसे ही लाली की निगाह सोनू की उंगलियों पर पड़ी उसे सारा वाकया समझ में आ गया। इससे पहले कि सोनू कुछ बोलता लाली ने उसकी उंगली को अपने मुंह में भर लिया और उसे चूस कर खून के बहाव को शांत करने लगी।

खून का बहाव रोकने की यह विधि निराली थी जो आजकल के पढ़े लिखे समाज में शायद कम उपयोग में लाई जाती होगी पर उस समय यह बेहद कारगर थी।

सोनू लाली के सुंदर चेहरे को निहार रहा था और उसके गोल हो चुके हुए होंठ बेहद मादक लग रहे थे। एक पल के लिए सोनू पर महसूस हुआ काश लाली के होठों के बीच उसकी उंगलियां ना होकर उसका लण्ड होता। सोनू के इस ख्याल से ही उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई जिसे लाली ने भांप लिया।

उसने उसकी उंगली को मुंह से बाहर निकाला और बड़ी अदा से बोली

" क्या सोच रहा है?" शायद लाली ने उसकी मनोदशा पढ़ ली थी

"कुछ नहीं दीदी"

"सच-सच बता नहीं तो?"

"सच दीदी कोई बात नहीं. देखिए उंगली से खून निकलना भी बंद हो गया"

"तु मुस्कुरा क्यों रहा था? सच बता क्या सोच रहा था? कुछ गंदा संदा सोच रहा था ना?"

लाली सोनू के मुंह में शब्द डालने की कोशिश कर रही थी.

सोनू ने शर्माते हुए कहा

"वह सब गंदी पिक्चरों में होता है ना… मेरे दिमाग में वही बात आ गई."

"क्या होता है साफ-साफ बताना"

"अरे वो विदेशी लड़कियां अपने होठों में लेकर लड़कों का…."

सोनू अपनी बात पूरी नहीं कर सका.

"मैंने तो सुना है कि लड़के भी…. " लाली ने शर्माते हुए कहा परंतु अपनी नजरें सोनू से हटाकर कड़ाही पर केंद्रित कर लीं।

"हां दीदी बहुत मजा आता होगा"। सोनू अब लाली से खुल रहा था।

"छी वह जगह कितनी गंदी होती है लड़के अपना मुंह कैसे लगाते होंगे.."

"दीदी मेरे लिए तो वह जन्नत का द्वार है मुझे तो उसमें कोई गलत बात दिखाई नहीं पड़ती मैं तो उसे चूम सकता हूं और…"

"और क्या.." लाली का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था और वह अब सोनू से अपनी नजर नहीं मिला रही थी। कड़ाही मे प्याज भूनते हुए लाली ने सोनू को उकसाया।

"मेरी दीदी की तो मैं चाट भी सकता हूँ"

"अपनी सुगना दीदी की"

"आप कैसी गंदी बात करती हो"

"अरे वाह तूने ही तो कहा"

"अरे मैं अपनी प्यारी दीदी की बात कर रहा था" सोनू ने अपने दोनों हाथ लाली के पेट पर ले जाकर उसे अपनी और खींच लिया। सोनू का तना हुआ लण्ड लाली के नितंबों के बीच आ गया और उसकी गांड में छेद करने को आतुर हो गया।

लाली ने सोनू को फिर छेड़ा..

"अरे वाह सुगना के नाम से तो छोटे नवाब भी तन गए हैं"

सोनू को गुस्सा आ रहा था परंतु लाली की मदमस्त जवानी उसे अपना गुस्सा व्यक्त करने से रोक रही थी परंतु सोनू ने अपने लण्ड का दबाव लाली के नितंबों पर और बढ़ा दिया

"उइ माँ सोनू बाबू तनी धीरे से…."

सोनू ने लाली को छोड़ तो दिया था पर लाली खुद अपने चीखने का अफसोस कर रही थी। सोनू के लण्ड के सु पाडे ने उसकी बुर के होठों को सहला दिया था।

लाली अब आटा गूथ रही थी और सोनू उसे पीछे से अपने आगोश में लिए हुए था। उसकी हथेलियां लाली के कोमल हाथों के ऊपर घूम रही थी जो आटे से सनी हुयी थी। सोनू का पूरा शरीर लाली से सटा हुआ था और लण्ड रह-रहकर उसके नितंबों से छू रहा था सोनू लाली के सानिध्य का आनंद जी भर कर उठा रहा था।

सोनू की हथेलियां धीरे-धीरे लाली की भरी भरी चूची ऊपर आ गई। लाली जैसे-जैसे आटे को गूथ रही थी सोनू उसी लय में उसकी चुचियों को मीस रहा था। जैसे-जैसे लाली की उंगलियां चलती वैसे वैसे सोनू अपनी उंगलियां घुमाता। उधर उसका लण्ड अभी भी लाली के नितंबों में जगह-जगह छेद करने का प्रयास कर रहा था।

सोनू और लाली की मीठी छेड़छाड़ जारी थी। लाली में आह भरी। तवा गर्म हो चुका था…. गैस पर रखा हुआ भी और लाली की जांघों के बीच भी...

इधर सोनू और लाली मिलन की तैयारी में थे उधर सुगना और सोनी बनारस महोत्सव से लाली के घर आने के लिए निकल चुके थे..

कुछ अप्रत्याशित होने वाला था.

शेष अगले भाग में।
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#58
भाग 54

सोनू और लाली की मीठी छेड़छाड़ जारी थी। लाली में आह भरी। तवा गर्म हो चुका था…. गैस पर रखा हुआ भी और लाली की जांघों के बीच भी...

इधर सोनू और लाली मिलन की तैयारी में थे उधर सुगना और सोनी बनारस महोत्सव से लाली के घर आने के लिए निकल चुके थे..

अब आगे..


लाली रोटियां बना रही थी और सोनू उसके गदराए बदन को सहला रहा। अब से कुछ देर पहले आटा गूँथते समय सोनू ने उसकी चुचियों को खूब मीसा था जिसका असर उसकी जांघों के बीच छुपी हुई बुर पर भी हुआ था जो अपनी लार टपका रही थी.

सोनू उस चासनी जैसी लार की कल्पना कर मदहोश हो रहा था। उसकी जीभ फड़फड़ा रही थी। वह अपनी दीदी के अमृत कलश से अमृत पान करना चाह रहा था। जैसे ही लाली ने रोटियां बनाना खत्म किया सोनू ने उसे उठा लिया और किचन स्लैब पर बैठा दिया.

"अरे सोनू क्या कर रहा है? गिर जाऊंगी"

"कुछ नहीं दीदी आप बैठे हो तो".

"लाली इतनी भी नासमझ न थी चार पांच वर्षों के वैवाहिक जीवन के पश्चात उसे स्लैब पर बैठने का अनुभव था और उसके बाद होने वाले क्रियाकलापों का भी। परंतु आज राजेश की जगह सोनू था लाली की नजरों में नासमझ और अनुभवहीन.

"क्या कर रहा है?".

"मुझे चासनी चाटनी है"

"लाली सोनू की मंशा समझ चुकी थी उसने हटाते हुए कहा.."

"अच्छा रुक में बाथरूम से आती हूं" लाली नहीं चाहती थी कि वह अपनी बुर से टपकती हुई लार सोनू को दिखाएं और अपने छोटे भाई के सामने अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन करें".

परंतु सोनू नहीं माना वह अधीर हो गया और उसने लाली की नाइटी को ऊपर करना शुरू कर दिया. लाली के पैर नग्न होते गए जांघो तक पहुंचते-पहुंचते सोनू का सब्र जवाब दे गया। उसने अपने सर को लाली की दोनों जांघों के बीच रखा और नाइटी पर से अपना ध्यान हटा लाली की जांघों को अपने गालों से सहलाने लगा। नाइटी एक बार फिर नीचे आ चुकी थी परंतु सोनू नाइटी के कोमल आगोश में छुप गया था।

सोनू के होठ धीरे-धीरे लाली की जांघों के जोड़ की तरफ बढ़ रहे थे सोनू जैसा अधीर किशोर आज बेहद धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था लाली की बुर से आ रही खुशबू उसके नथुनों में भर रही थी वह उस मादक एहसास को खोना नहीं चाह रहा था।

कुछ ही देर में उसके होंठों ने अपनी प्रेमिका के निचले होठों को चूम लिया और उसकी लप-लपपाती जीभ अमृत कलश के मुहाने पर छलके प्रेम रस का आनंद लेने लगी।

लाली कांप रही थी ऐसा नहीं था की लाली को यह सुख पहली बार मिल रहा था परंतु आज यह सुख उसे अपने ही मुंहबोले छोटे भाई से मिल रहा था। नाइटी के अंदर सोनू के सर को सहलाते हुए कभी वह उसे अपनी तरफ खींचती कभी दूर करती। परंतु सोनू की जीव अमृत कलश पर से हटने को तैयार न थी।

सोनू की जीभ लाली की बुर की गहराइयों में उतर जाना चाहती थी। सोनू की नाक लाली के भग्नासा से टकरा रही थी। कुछ ही देर में लाली में अपने सोनू के लिए इतनी चासनी उड़ेल दी जिसे खत्म कर पाना सोनू के बस में नहीं था।

सोनू का चेहरा कामुक लाली के प्रेम रस से सन गया था ऐसा लग रहा था जैसे सोनू बड़े से पतीले में चासनी में तैर रहे रसगुल्ले को बिना अपने हाथों की सहायता से खाने का प्रयास कर रहा था।

सोनू अभी भी उस सुखद अहसास को छोड़ना नहीं चाह रहा था परंतु लाली ने स्लैप पर पड़े गिलास को नीचे गिरा कर उसका ध्यान भंग किया और जैसे ही सोनू ने अपना सर दूर किया लाली स्लैब से उतर गई इस बार लाली ने स्वयं ही अपनी नाइटी को ऊपर उठाया और सोनू को अपने कोमल और मखमली घेरे से आजाद कर दिया। सोनू उठ खड़ा हुआ उसके होठों और नाक पर लगी हुई चाशनी को देखकर लाली मोहित हो गई उसनें आगे बढ़कर सोनू के होठों को चूम लिया और बोली..

"सब कुछ बड़ा जल्दी सीख लिए हो पर पूरा चश्नी अपना मुंह में लभेर लिए हो"

सोनू की आंखों में वासना का असर साफ दिखाई दे रहा था उसकी भूख अभी शांत नहीं हुई थी उसने लाली को उठा लिया और हाल में रखे चौकी पर ले आया।

कुछ ही देर की चुदाई में लाली स्खलित हो गई। आधा कार्य तो सोनू के होठों ने पहले ही कर दिया था बाकी सोनू के मजबूत लण्ड ने कर दिया ।

अंदर कमरे में बच्चे सो रहे थे। लाली शीघ्र ही सोनू को स्खलित करना चाहती थी उसने अपना दांव खेला और एक बार फिर वह डॉगी स्टाइल में उपस्थित थी। सोनू आज दिन के उजाले में लाली के नितंबों को अनावृत कर उसके भी छुपे छेद का भोग करने लगा। लाली की गांड पर आज पहली बार उसका ध्यान गया। वह उतनी ही आकर्षक थी। जितनी लाली की रसीली बुर सोनू लाली की खूबसूरती का आनंद लेते हुए उसे गचागच चोद रहा था। कमरे में थप... थप..थप.. की मधुर आवाज गूंज रही थी. .

इधर सोनू और लाली की चुदाई जारी थी उधर दरवाजे पर सुगना आ चुकी थी। सोनी लालय के घर के सामने की परचून की दुकान पर लाली के बच्चों के लिए लॉलीपॉप लेने चली गई। और सुगना अपने प्यारे सूरज को गोद में लिए हुए लाली के दरवाजे पर आकर खड़ी थी। कमरे के अंदर से आ रही थप..थपा ..थप…..थप की आवाजें आ रही थी। छोटा सूरज भी अनजान ध्वनि से रूबरू हो रहा था और उछल उछल कर दरवाजे की तरफ जाने का प्रयास कर रहा था लगता था उसे यह मधुर थाप पसंद आ रही थी।

सुगना को वह आवाज जानी पहचानी लग रही थी उस ने भाप लिया कि अंदर लाली चुद रही है। सुगना शर्म से लाल हो गई उसकी दरवाजा खटखटाने की हिम्मत ना हुई वह दरवाजे के पास खड़ी लाली के नितंबों पर पड़ रही मधुर थाप को सुनती रही.

सोनी को दरवाजे की तरफ आते देख सुगना की सांसें फूल गई. वह भागती हुई सोनी की तरफ आई और बोली

"लगता है लाली अब तक सो रही है"

"अपने दरवाजा खटखटाया था"

" हां एक बार खटखटाया था" सुगना ने मीठा झूठ बोल दिया।

"अरे अब कोई सोने का वक्त है। रुकिए में खटखटाती हू"

सोनी सुगना को किनारे कर दरवाजे की तरफ बढ़ गई सुगना मन ही मन ऊपर वाले से प्रार्थना करने लगी की राजेश और लाली के बीच चल रहा प्रेम समाप्त हो चुका हो उसे क्या पता था कि अंदर लाली को चोद रहा व्यक्ति उसका पति राजेश नहीं सुगना का अपना भाई सोनू था. किशोर सोनी अंदर चल रही घटनाओं से अनजान थी उसने दरवाजा खटखटा दिया.

" दरवाजा खटखटाया जाने से लाली घबरा गई थी परंतु सोनू अभी भी उसे घपा घप चोदे जा रहा था अपनी उत्तेजना के आवेश में उसने लाली के नितंबों को अपने लण्ड पर तेजी से खींचा और लण्ड को एक बार फिर जड़ तक ठान्स दिया।

सोनू की पिचकारी फुलने पिचकने लगी लाली ने अपने आपको उससे अलग किया परंतु लण्ड से निकल रही वीर्य की धार लाली के शरीर पर गिरती रही लाली चौकी से उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी और सोनू अपने वीर्य से उसे भिगोने की कोशिश कर रहा था.

वीर्य की धार जितना लाली के शरीर पर गिरी थी उतनी ही चौकी पर बिछे चादर पर भी थी और उसके कुछ अंश जमीन पर भी गिरा रहा था।

लाली ने दरवाजे की सांकल खोलने से पहले सोनू की तरफ देखा जो अपना पैजामा ऊपर कर रहा था.

जब तक लाली दरवाजा खोलती सोनू बाथरूम में घुस गया सुगना और सोनू अंदर आ चुके थे.

सोनी ने चहकते हुए कहा

"अरे लाली दीदी तो नहा धोकर तैयार हैं पर आपके बाल क्यों बिखरे हुए हैं. और आप हांफ क्यों रही हैं?

सुगना ने तो लाली की स्थिति देखकर ही अंदाजा लगा लिया था। कमरे से आ रही मधुर थाप, लाली के तन की दशा और दिशा दोनों को ही चीख चीख कर लाली की चुदाई की दास्तान कह रहे थे।

रेलवे के मकानों के सीमेंट से बने फर्श पर वीर्य की लकीर साफ दिखाई पड़ रही थी .

सोनी ने लाली के चरण छुए और इसी दौरान उसके नथुनों में लाली की ताजा चुदी हुई बुर की मादक खुशबू समा गई। सोनी ने लिए यह गंध जानी पहचानी सी लगी सोनी ने कई बार अपनी बुर को सहला कर उस से निकल रहे रस को सूंघ कर उसे जानने पहचानने की कोशिश की थी।

वह उस गंध के बारे में सोचती हुई चौकी पर बैठने लगी सोनी के नितंबों से पहले उसकी हथेलियों ने चौकी पर बिछी हुई चादर को छू लिया और चादर पर गिरा हुआ सोनू का बीर्य सोनी की हथेलियों में लग गया..

"छी राम लाली दीदी यह क्या गिरा है"

"लाली सन्न रह गई उसे कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था उसने अपने अनमने मन कहा

"अरे सोनी पानी गिर गया होगा"

"नहीं दीदी यह चिपचिपा है" सोनी बेपरवाह होकर अपनी बात रख रही थी।

सुगना पूरी तरह समझ चुकी थी कि वह निश्चित ही वीर्य की धार ही थी.

चादर पर गिरा हुआ वीर्य एक लकीर की भांति अपना निशान छोड़ चुका था। यह निशान भी वैसा ही था जैसा सुगना ने फर्श पर पहले ही देख लिया था सुगना ने सोनी से कहा।

"जा बाथरूम में हाथ धो ले मैं चादर बदल देती हूँ"

लाली स्वयं असहज स्थिति में थी । सोनू की भरपूर चुदाई से वह थक चुकी थी उसकी तेज चल रही सांसे धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी। वह चादर लेने कमरे में जाने लगी।

सोनी ने लाली से पूछा

"लाली दीदी जीजा जी कहां है?"

"अरे वह शाम को आएंगे"

सुगना का दिल धक से हो गया इससे पहले कि वह कुछ सोच पाती बाथरूम से सोनू बाहर आ गया और उसके चरण छूते हुए बोला

"अरे दीदी आप ..अचानक"

"अरे सोनू भैया तो लाली दीदी के यहां है हम लोग वहां आपका इंतजार कर रहे थे."

मैं तो लाली दीदी को लेकर वहीं आ रहा था

"जीजू नहीं थे ना इसलिए मैं वाली दीदी को लेने आ गया था यह भी मेला में जाना चाहती थी।"

सोनू ने अपनी बातों से सोनी और सुगना को समझा तो लिया था. परंतु सुगना ने अपने कानो से जो सुना था और चादर तथा जमीन पर पड़ी वीर्य की लकीरों को अपनी आंखों से देखा था उसे झुठला पाना असंभव था। सुगना को पूर्ण विश्वास हो चला था की लाली और सोनू ने मर्यादाओं को तोड़ कर भरपूर चुदाई की है।

लाली भी चादर लेकर बाहर आ चुकी थी।

कुछ ही देर में स्थिति सामान्य हो गई और लाली द्वारा बनाई गई रोटियां सभी मिलजुल कर खाने लगे.

सोनु अपनी आंखें झुकाये हुए खाना खा रहा था। वह सोनी से तो बात कर रहा था परंतु सुगना से बात करने और नजरें मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। अब से कुछ देर पहले ही वह उसकी प्रिय सहेली को कस कर चोद चुका था।

कुछ देर की औपचारिक बातचीत के पश्चात सुगना ने सोनू से कहा जा सोनी को पंडाल में छोड़ आ और जाते समय यह सामान पांडाल में लिए जाना।। सुगना में कुछ सामानों की फेहरिस्त उसे बता दी और सोनू और सोनी लाली के घर से पांडाल के लिए निकल गए घर में अब सुगना और लाली ही थे।

लाली के बच्चे भी अब सूरज का ध्यान रखने लायक हो गए थे। सूरज इन दोनों के साथ बिस्तर पर आराम से खेल रहा था। सुगना बिस्तर पर अपने बालक को उन्मुक्त होकर खेलते हुए देखकर मन ही मन गदगद थी। परंतु जब जब उसे विद्यानंद की बातें याद आ रही थी। वह बेचैन होती जा रही थी। बनारस महोत्सव के 4 दिन बीत चुके थे।

सुगना का गर्भधारण एक जटिल समस्या बन चुकी थी। बनारस महोत्सव से लाली के घर आते समय सुगना अपनी शर्मो हया त्याग कर राह चलते मर्दो को देख रही थी क्या उसके गर्भ में बीज डालने के लिए कोई मर्द ना बचा था। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। कभी वह अपने अश्लील खयालों को सोच सोच खुद ही शर्मसार होती और कभी ऊपर वाले से यही गुहार करती कि एन केन प्रकारेण उसका गर्भधारण संपन्न हो और उसे सूरज की मुक्तिदायिनी बहन को जन्म देने का अवसर प्राप्त हो परंतु कोई उपाय न सूझ रहा था।

अपनी इस दुविधा को वह न तो किसी से बता सकती थी और न हीं अकेले गर्भधारण उसके बस में था। उसने हिम्मत जुटा घर लाली से अपना दुख साझा करने की सोची। विद्यानंद द्वारा दी गई नसीहत ओं का उसे पूरा ख्याल था परंतु बिना लाली के सहयोग के उसे और कोई रास्ता ना सूझ रहा था। उसने लाली के हाँथ को अपने कोमल हाथों में लेते हुए पुरी संजीदगी से कहा

"लाली मुझे दोबारा गर्भधारण करना है"

'अरे मेरी कोमल गुड़िया इतनी जल्दी क्या है बच्चा जनने की. अभी सूरज को और बड़ा हो जाने दे"

"नहीं तू नहीं समझेगी. मुझे यह कार्य इन 2 दिनों में ही करना है" लाली की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी उसे सुगना की बात बिना सर पैर के प्रतीत हो रही थी। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"तू पागल हो गई है क्या?. अभी 2 दिन में तू कहां से गर्भधारण करेगी? रतन भैया जब आएंगे तब जी भर कर चुद लेना मेरी जान और फिर अपना पेट फुला लेना। "

लाली को क्या पता, सुगना की बेचैनी का कारण क्या था.

जिस प्रकार मानसिक वहम का शिकार व्यक्ति चाहकर भी अपनी बात दूसरे को नहीं समझा पाता हूं वही हाल सुगना का था वह अपने गर्भ धारण की जल्दी बाजी को बयां कर पाने में सर्वथा असमर्थ थी।

सुगना उदास हो गई उसने अपना सिर झुका लिया उसकी आंखों में पानी छलक आया। उसके मन में अचानक उठ रहा उम्मीदों का बुलबुला फूट गया। लाली भी क्या करती सुगना का गर्भधारण उसके बस में तो था नहीं। फिर भी उसने सुगाना के चेहरे की उदासी न देखी गयी वह उसकी अंतरंग सहेली थी उसने सुगना के चेहरे को अपनी हथेलियों से उठाया और बोला

"सुगना मुझे खुलकर बता क्या बात है"

"चल चल छोड़ जाने दे" सुगना ने कोई उत्तर न दिया वह उठकर रसोई की तरफ चली गई. लाली भी उसके पीछे पीछे आ गयी और उसे बाहों में पकड़ते हुए बोली..

" देख रतन भैया तो है नहीं और बिना इस रानी को खुश किये तू गर्भवती हो नहीं सकती। मेरी रानी नियोग के लिए इसका भोग लगवाना होगा " लाली ने सुगना की जांघों के बीच अपनी उंगलियां फिराते हुए बोला।

सुगना चुप ही रही उसकी शांति को लाली ने उसकी रजामंदी समझ कर कहा

"एक मर्द है परंतु मुझे नहीं पता वह तेरे साथ ऐसा कार्य कर पाएगा या नहीं…"

सुगना परेशान थी परंतु वह व्यभिचार के लिए किसी भी तरीके से तैयार न थी। उसके अंतर्मन में कई बार राजेश का ख्याल अवश्य आ रहा था परंतु जब जब वह अपने ख्यालों में उसके साथ स्वयं को नग्न रूप में देखती वह स्वयं को बेहद असहज महसूस करती और अपने ख्याल को तुरंत त्याग देती। राजेश के साथ मीठी छेड़खानी तो वह कई बार कर चुकी थी और अपने पिछले प्रवास के दौरान अपनी नग्न जांघों के दर्शन भी उसने राजेश को करा दिए थे। परंतु इससे आगे बढ़कर अपनी जांघे खोल कर उससे चुदने की कल्पना करना उसके लिए कठिन हो रहा था।

सुगना कतई व्यभिचारिणी नहीं थी वह हंसते मुस्कुराते और कामुकता का आनंद लेती थी परंतु अपनी सहेली के बिस्तर पर बिछकर उसके ही पति से चुदना उसके लिए यह बेहद शर्मनाक सोच थी।

जैसे-जैसे बनारस महोत्सव का समय बीत रहा था सुगना की अधीरता बढ़ रही थी वह अपने दिमाग में गर्भधारण के तरह-तरह के उपाय सोचने लगी। आखिर संभोग में होता क्या है लिंग और योनि का मिलन तथा लिंग से निकले उस श्वेत धवल हीरे का गर्भ पर गिरना और गर्भाशय द्वारा उसे आत्मसात कर एक नए जीव का सृजन करना। सुगना को नियति के इस खेल का सिर्फ इतना ही ज्ञान था।

क्या किसी पुरुष के वीर्य को वह अपने गर्भ में नहीं पहुंचा सकती? क्या इसके लिए संभोग ही एकमात्र उपाय है ? सुगना का दिमाग तेजी से चलने लगा अपनी व्यग्रता में उसने अपनी समझ बूझ के आधार पर एक नया मार्ग निकाल लिया.

वह अपने मन में उम्मीद लिए हुए लाली के पास पहुंची जो अपने बेटे राजू को खाना खिला रही थी। बच्चों के सामने ऐसी बातें करने में सुगना शर्मा रही थी। उसने इंतजार किया और अपनी सोच को सधे हुए शब्दों में पिरोने की कोशिश करने लगी ।

लाली राजू को खाना खिला कर बर्तन रखने की रसोई में आ गई और सुगना उसके पीछे पीछे।

"ए लाली क्या बिना मिलन के भी गर्भधारण संभव है" लाली का ज्ञान भी सुगना से कम न था

दोनों ने प्राथमिक विद्यालय से बमुश्किल स्नातक की उपाधि ली थी।

"लाली ने मुस्कुराते हुए कहा हां हां क्यों नहीं महाभारत की कहानी सुनी है ना?"

"सुगना के मन में फूल रहे गुब्बारे की हवा निकल गई उसे पता था न तो इस कलयुग में वैसे दिव्य महर्षि थे और न हीं सुगना एक रानी थी"

"ए लाली यदि किसी आदमी का वीर्य अपने अंदर पहुंचा दें तो क्या गर्भ ठहर सकता है।"

"अरे मेरी जान इतनी क्यों बेचैन है कुछ दिन इंतजार कर ले वरना मेरे पास एक और रास्ता है"

"सुगना ने शर्म से अपनी आंखें झुका ली उसे पता था लाली क्या कहने वाली है" राजेश के उसके प्रति आकर्षण को लाली कई बार व्यक्त कर चुकी थी और वह स्वेच्छा से राजेश को उसे समर्पित करने को तैयार थी।

"जाने दे मुझे तेरा रास्ता नहीं सुनना मैं जीजाजी के साथ वो सब नहीं कर सकती"

"अरे क्या मेरे पति में कांटे लगे हैं?"

" तू कैसी बीवी है तुझे जलन नहीं होगी"

"अरे मेरी जान मुझे जलन नहीं बेहद खुशी होगी यदि मेरे पति तेरे किसी काम आ सके"

"तू भटक गई है मैं कुछ और बात कह रही थी"

" क्या बात पहेलियां क्यों बुझा रही है साफ-साफ बोलना"

"मैं सोच रही थी की क्या पुरुष वीर्य को अपने गर्भ में पहुंचा कर मैं गर्भवती हो सकती हूँ?"

"और यह पुरुष वीर्य तुझे मिलेगा कहां"

"मेरी सहेली है ना? अभी सुबह जो इस कमरे में हो रहा था उसका एहसास मुझे बखूबी है तूने सोनू को आखिर अपने मोहपास में बांध ही लिया"

"ओह तो तूने सोनू को मिठाई खाते हुए देख लिया"

"नहीं मैंने खाते हुए तो नहीं देखा पर मुझे मिठाई खाने की चप चप...की आवाज जरूर सुनाई पड़ रही थी" अब शर्माने की बारी लाली की थी। वह आकर सुगना से लिपट गई चारों बड़ी-बड़ी चुचियों ने एक दूसरे का चुंबन स्वीकार कर लिया। जैसे-जैसे दोनों सहेलियों का आलिंगन कसता गया सूचियों का आकार गोल से सपाट होता गया।

लाली ने सुगना के कान में कहा..

"मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू है बता कौन सा लड्डू खाएगी"

सुगना ने अब तक सिर्फ और सिर्फ राजेश के बारे में ही सोचा था उसने अपने ख्यालों में राजेश के वीर्य से स्वयं को अपने मन में चल रही अनोखी विधि से गर्भवती करना स्वीकार कर लिया था।

"जिसने मेरी सहेली को दो प्यारे प्यारे फूल दिए हैं"

"पर कहीं होने वाले बच्चे का चेहरा राजेश पर गया तो तू दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगी"

मेरे ख्याल से तुझे दूसरा लड्डू ही लेना चाहिए

"क्या तू सोनू की बात कर रही है"

"मेरे पास और कोई उपाय नहीं दिख रहा है वैसे भी वो बाहर है पता नहीं कब आएंगे" लाली ने उत्तर देकर निर्णय सुगना पर ही छोड़ दिया।

"अरे जरूरी थोड़ी ही है कि उसका चेहरा पिता पर ही जाए मुझ पर भी तो जा सकता है" सुगना ने उत्तर दिया और मन ही मन खुद को राजेश के वीर्य से गर्भवती होने के लिए तैयार कर लिया था।

"ठीक है तो उनका इंतजार कर मैं कुछ उपाय करूंगी"

इंतजार शब्द ने सुगना के अंतर्मन पर गहरा प्रभाव दिखाया यही वह शब्द था जो उसे और अधीर कर रहा था। समय तेजी से बीत रहा था सुगना चैतन्य हो गयी। लाली ने एक बार फिर कहा..

"मैं अभी भी दूसरे लड्डू के पक्ष में हूं। उसे तो पता भी नहीं चलेगा अभी नया नया नशा है दिन भर पिचकारी छोड़ता रहता है. यदि तू कहे तो प्रयास किया जा सकता है" लाली हंस रही थी।

सुगना ने सर झुका लिया और बोला

"जैसी तेरी मर्जी"

उसके चेहरे के हाव भाव यह इशारा कर रहे थे कि वह लाली की बातों से इत्तेफाक नहीं रख रही थी पर मरता क्या न करता सुगना ने अनमने मन से ही सही लाली की बात को स्वीकार्यता दे दी थी। लाली ने सुगना के कोमल चेहरे को ठुड्डी से पकड़कर उठाते हुए कहा..

"अरे मेरी प्यारी चल मैं कुछ उपाय करती हूं, सुगना प्रसन्न हो गयी उसने अपनी आत्मग्लानि और मन में चल रहे द्वंद्व पर पर विजय पा लिया था"

सुगना ने अपने मन में चल रहे बवंडर को लाली के हवाले कर कुछ पलों के लिए चैन की सांस ले ली।

कल व्रत करने के पश्चात आज सुगना ने अपनी सहेली लाली और सोनू के सहयोग से बनी रोटियां कुछ ज्यादा ही खा ली थी भोजन में अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। सुगना जम्हाई भरने लगी। दिमाग में चल रहा द्वंद्व भी कुछ हद तक शांत हो गया था।

सुगना लाली के बिस्तर पर लेट गई और छोटे सूरज ने करीब आकर उसकी चूचियां बाहर निकाल ली और दुग्ध पान करने लगा सुगना धीरे धीरे सुखद नींद की आगोश में चली गई परंतु उसका अवचेतन मन अब भी जागृत था।

सुखना और लाली ने गर्भधारण के लिए जो तरीका चुना था वह अनोखा था उसने नियति के कार्य को और दुरूह बना दिया था नियति अपने ही बनाए जाल में फंस चुकी थी….



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#59
Heart 
भाग 55

अब तक आपने पढा...

कल व्रत करने के पश्चात आज सुगना ने अपनी सहेली लाली और सोनू के प्रेम और सहयोग से बनी रोटियां कुछ ज्यादा ही खा ली थी भोजन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। सुगना जम्हाई भरने लगी। दिमाग में चल रहा द्वंद्व भी कुछ हद तक शांत हो गया था।

सुगना लाली के बिस्तर पर लेट गई और छोटे सूरज ने करीब आकर उसकी चूचियां बाहर निकाल ली और दुग्ध पान करने लगा सुगना धीरे धीरे सुखद नींद की आगोश में चली गई परंतु उसका अवचेतन मन अब भी जागृत था।


अब आगे…..

धान की लहराती फसलों के बीच बनी कुटिया में खड़ी सुगना धरती पर बिछी हरियाली को देख रही थी जहां तक उसकी नजर आती धान के कोमल पौधे धरती पर मखमली घास की तरह दिखाई पड़ रहे थे। खेतों में एड़ी भर पानी लगा हुआ था। इन्हीं खेतों मे वह सोनू तथा अपनी छोटी बहनों सोनी और मोनी के साथ खेला करती थी। सुगना अपने बचपन की खूबसूरत यादों में खोई हुई थी परंतु उसके मन में विद्यानंद की बात गूंज रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके दिमाग की शांति में ड्रम बजा कर कोई खलल डाल रहा हो। सुगना के मस्तिष्क में जितनी शांति और सुंदरता थी, मन में उतना ही उद्वेग और अस्थिरता.

विद्यानंद की आवाज उसके दिमाग में और भी तीव्र होती गई तुम्हें गर्भधारण करना ही होगा अन्यथा अपने पुत्र के साथ संभोग कर तुम्हें उसे मुक्ति दिलानी होगी यह आवाज अब सुगना को डराने लगी थी। जैसे-जैसे वह आवाज तीव्र होती गई सुगना की आंखों के सामने दृश्य बदलते गए वह मुड़ी और कुटिया की चारपाई पर एक युगल को देख आश्चर्यचकित हो गयी.

चारपाई पर लेटा हुआ युवक पूरी तरह नग्न था। सुगना को उस पुरुष की कद काठी जानी पहचानी लग रही थी परंतु चेहरे पर अंधेरा कायम था वह अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु वह चाह कर भी उसे पहचान न सकी।

चारपाई पर बैठी हुई युवती का चेहरा भी अंधेरे में डूबा हुआ था परंतु उसकी कद काठी से सुगना ने उसे पहचान लिया और बोली..

"लाली... ये कौन है"

लाली ने न कोई उत्तर न दिया न उसकी तरफ देखा। वह उस युवक के लण्ड से खेल रही थी। वह चर्म दंड बेहद आकर्षक और लुभावना था। जैसे-जैसे अपनी उंगलियों और हथेलियों से उसे सहलाती वह अपना आकार बढ़ा रहा था और कुछ ही देर में वह पूरी तरह तन कर खड़ा हो गया।

उस गेहूंये रंग के या चर्म दंड पर उस स्त्री की गोरी उंगलियां बेहद खूबसूरत लग रही थी। उस स्त्री ने लंड की चमड़ी को नीचे खींचकर सुपाड़े को अनावृत करने का प्रयास कर रही थी। बेहद सुंदर और सुडोल था उस लण्ड का सुपाड़ा। लण्ड की चमड़ी पूरी तरह उस सुपाड़े को अपने आगोश में ली हुई थी। उस स्त्री को सुपारी को अनावृत करने में अपनी उंगलियों का दबाव लगाना पड़ रहा था। लण्ड का सुपाड़ा किसी नववधू के चेहरे की तरह अनावृत हो रहा था।

सुगना एक स्त्री को पुरुष का हस्तमैथुन करते देख शर्मा रही थी परंतु ध्यान मग्न होकर वह दृश्य देख रही थी उसका सारा आकर्षण अब उस लण्ड और उस पर घूमती उस स्त्री की उंगलियों पर केंद्रित था। लण्ड का सुपाड़ा पूरी तरह अनावृत होते ही सुगना उसकी खूबसूरती मैं खो गई। उस पुरुष का तना हुआ लण्ड जितना सुदृढ़ और मजबूत प्रतीत हो रहा था उतना ही कोमल उसका सुपाड़ा था। सुगना की उंगलियां फड़फड़ाने लगी वह उस लिंग को अपने हाथों से छूना चाहती थी और उसकी मजबूती और कोमलता दोनों को एक साथ महसूस करना चाहती थी।

सुगना की आंखें अब भी उस पुरुष को पहचानने की कोशिश कर रही थी। जैसे-जैसे उस स्त्री की उंगलियां लण्ड पर घूमती गई उस युवक के शरीर में ऐठन सी होने लगी। वह कभी अपने पैर फैलाता कभी पैर की उंगलियों को तान लेता कभी सिकोड़ता।

उस स्त्री की उंगलियों के जादू में उस युवक की तड़प बढ़ा दी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस युवक की जान उस लण्ड में केंद्रित हो गई थी।

सुगना यह दृश्य देखकर पानी पानी हो गई उस पर उसकी उत्तेजना हावी हो चली थी। सुगना की बुर पनिया गई थी जैसे-जैसे वह युवक इस स्खलन के करीब पहुंच रहा था सुगना के मन में चल रही उत्तेजना अपने चरम पर पहुंच रही थी।

तभी उसे आवाज सुनाई दी

"ए सुगना आ जा" उस स्त्री की आवाज गूंजती हुई प्रतीत हुई एक पल के लिए सुगना को वह आवाज लाली की लगी।

सुगना यंत्रवत उस स्त्री के बेहद करीब पहुंच गई।

उस स्त्री ने अपने दूसरे हाँथ से सुगना के घागरे को ऊपर करने की कोशिश की। सुगना ने उसके इशारे को समझा और अपने दोनों हथेलियों से घागरे को अपनी कमर तक खींच लिया। सुगना की जाँघे और उसके जोड़ पर बना घोंसला नग्न हो गया। छोटे छोटे बालों के झुरमुट से झांकती हुई उसके बुर की दोनों फांके खुली हुयी थी तथा उस पर छलक आया रस नीचे आने गिरने के लिए बूंद का रूप ले चुका था।

लाली ने हथेली से सुगना के बुर् के होठों को छू कर न सिर्फ उस बूंद को अपनी हथेलियों का सहारा दिया अपितु होठों पर छलका मदन रस चुरा लिया । उस स्त्री की कोमल उंगलियों का स्पर्श अपने सबसे कोमल अंग पर पाकर सुगना सिहर उठी उसने अपनी जांघें सिकोड़ी और कमर को थोड़ा पीछे कर लिया परंतु कुछ न बोली नहीं ।

अपने होठों को अपने ही दातों में दबाए सुगाना यह दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रही थी। स्त्री ने सुगना के प्रेम रस से भीगी हुई उंगलियां वापस उस युवक के लण्ड पर सटा दी सुगना के प्रेम रस ने स्नेहक का कार्य किया और उसी युवक का लण्ड इस चिकने दृव्य से चमकने लगा। स्त्री की उंगलियां अब बेहद आसानी से उस मजबूत लण्ड पर फिसलने लगीं उत्तेजना चरम पर थी।

जब जब उस स्त्री की हथेलियां लण्ड के सुपारे पर पहुंचती वह युवक उत्तेजना से सिहर उठता स्त्री अपने अंगूठे से सुपारे के निचले भाग को जैसे ही सहलाती युवक फड़फड़ाने लगता ... उसके मुंह से आह... की मधुर आवाज सुनाई पड़ती वह कभी अपने मजबूत हाथों से उस स्त्री के हाथों को पकड़ने की कोशिश करता कभी हटा लेता।

स्त्री बीच-बीच में सुगना की बुर से प्रेम रस चुराती और उस युवक ने लण्ड पर मल कर उसे उत्तेजित करती रहती। जब बुर् के होठों से प्रेम रस खत्म हुआ तो उसकी उंगलियां सुगना की बुर की गहराइयों में उतरकर प्रेम रस खींचने का प्रयास करने लगीं।

अपने बुर पर हथेलियों और उंगलियों के स्पर्श से सुगना स्वयं भी स्खलन के करीब पहुंच रही थी। यह दृश्य जितना मनोरम था उतना ही उस स्त्री का स्पर्श भी। वह युवक स्त्री की उंगलियों के खेल को ज्यादा देर तक न झेल पाया और लण्ड ने वीर्य की धार छेड़ दी।

वीर्य की पहली धार उछल कर ऊपर की तरफ गई और सुगना की आंखों को के सामने से होते हुए वापस उस युवक की जांघों पर ही गिर पड़ी। अब तक वह स्त्री सचेत हो चुकी थी और उसमें उस युवक के वीर्य पर अपनी हथेलियों का आवरण लगा दिया था। उस स्त्री की दोनों हथेलियां वीर्य से पूरी तरह सन गयी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने मक्खन में हाथ डाल दिया हो। वह सुगना की तरफ मुड़ी और उसकी बुर में अपनी उंगलियां बारी-बारी से डालने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह उस वीर्य को सुनना की बुर में भरना चाह रही थी। सुगना अपनी जाघें फैलाएं उस अद्भुत निषेचन क्रिया को महसूस कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।

तभी उसे युवक की आवाज सुनायी दी..

"लाली दीदी आपके हाथों में भी जादू है"

सोनू की आवाज सुन सुगना बेहद घबरा गयी उसने अपना लहंगा नीचे किया और उस कुटिया से भागती हुई खेतों की तरफ दौड़ पड़ी वह भागे जा रही थी उसे लग रहा था जैसे सोनू उसका पीछा कर रहा है वह किसी भी हालत में उसके समक्ष नहीं आना चाहती थी मर्यादा की जो दीवार उन दोनों के बीच थी उस दीवार की पवित्रता वह कतई भंग नहीं करना चाहती सुगना भागी जा रही थी।

अचानक सामने से आ रहे व्यक्ति ने सुगना को रोका और अपने आगोश में ले लिया सुगना उस बलिष्ठ अधेड़ के सीने से सट गई और बोली "बाबूजी…."

सुगना की नींद खुल चुकी थी उसने अगल-बगल देखा सूरज बगल में सो रहा था सुगना की दोनों चूचियां अभी भी अनाव्रत थी. सुगना अपने स्वप्न से जाग चुकी थी और मुस्कुरा रही थी।

सुगना की आवाज सुनकर लाली कमरे में आ गई और बोली

"का भईल सुगना"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया परंतु उठकर अपनी चुचियों को ब्लाउज में कैद करते हुए बोली…

" तोरा बिस्तर पर हमेशा उल्टा सीधा सपना आवेला"

लाली उल्टा सीधा का मतलब बखूबी समझती थी उसने मुस्कुराते हुए कहां

"क्या जाने इसी बिस्तर पर तेरा सपना पूरा हो"

सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन महसूस हो रहा था अपने ही स्वप्न से वह पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी वह उठकर बाथरूम में चली गई।

उसके अंतर्मन में हलचल थी पर वह अपने स्वप्न और हकीकत के अंतर को समझ रही थी।

अपने उधेड़बुन में खोई हुई सुगना ने अपनी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर किया और खुद को तनाव मुक्त करने के लिए जमीन पर मूत्र विसर्जन के लिए बैठ गई जैसे ही मूत्र की धार ने होठों पर रिसा आये मदन रस को खुद में समाहित करते हुए गुसलखाने के फर्श गिरी

बाहर दरवाजे पर खट खट..की आवाज हुई.

सुगना संभल गई उसने अपने मूत्र की धार को नियंत्रित करने की कोशिश की ताकि वह उससे उत्पन्न हो रही सुर्र …….की आवाज को धीमा कर सकें परंतु वह नाकामयाब रही। राजेश घर में आ चुका था…

बाथरूम से आ रही वह मधुर आवाज उसके भी कानों तक पडी..

बाथरूम में कौन है…?

राजेश ने कौतूहल बस धीमी आवाज में पूछा…

आपको कैसे पता कि बाथरूम में कोई है ? लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए कहा

राजेश ने लाली को खींच कर अपने सीने से सटा लिया और उसके कोमल उभारों को सहलाते हुए उसके कान में बोला…

"बहुत बदमाशी सूझ रही है"

जब तक राजेश लाली को अपने आलिंगन से अलग करता सुगना बाथरूम से बाहर आ चुकी थी।

सुगना आगे बढ़ी और राजेश के चरण छुए।

राजेश का ध्यान बरबस ही सुगना के भरे हुए नितंबों पर चला गया वह एक पल के लिए मंत्र मुक्त होकर उसे देखता रहा उसे यह ध्यान भी नहीं आया की उसकी साली उसके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में है..

जीजा जी आशीर्वाद तो दीजिए सुगना ने झुकी अवस्था में ही कहा।

"अरे खूब खुश रही भगवान आपकी सारी मनोकामना पूरी करें"

सुगना मन ही मन सोच रही थी काश जीजा जी कोई सिद्ध पुरुष होते और उनके इस आशीर्वाद से ही वह गर्भवती हो जाती क्या कलयुग में किसी भी मनुष्य के पास जैसी दिव्य शक्तियां नहीं न थीं जैसी महाभारत काल में सिद्ध महापुरुषों के पास थीं।

सुगना के मन में ढेरों प्रसन्न थे बनारस महोत्सव का समय तेजी से बीत रहा था गर्भधारण का तनाव सुगना पर हावी हो रहा था परंतु अब भी गर्भधारण अभी उसके लिए एक दुरूह कार्य था उसके बाबूजी उसे मझधार में छोड़ कर अकेला चले गए थे। एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह कोई उपाय कर अपने बाबूजी के पास सलेमपुर चली जाए और वहां अपने बाबू जी के साथ एकांत में रात्रि प्रवास में जी भरकर सहवास करें और नियति द्वारा निर्धारित गर्भधारण कर सूरज की मुक्ति दायिनी का सृजन करें।

सुगना की सोच और हकीकत में अंतर था वाहन विहीन व्यक्ति के लिए थोड़ी दूरी भी दुरूह हो जाती है सुगना के लिए सलेमपुर पहुंचना बनारस से दिल्ली पहुंचने जैसा था और दिल्ली अभी दूर थी।

सुगना अपने ख्यालों में खोई हुई थी राजेश सुगना के खयालों में। लाली रसोई से पानी लेकर आई और राजेश को देते हुए बोली..

"लीजिए यह मीठा खाकर पानी पीजिए यह मिठाई ( सुगना की तरफ इशारा करते हुए) अभी खाने को नहीं मिलेगी"

राजेश और सुगना दोनों हंसने लगे सुगना लाली के पीछे आकर लाली की पीठ पर अपनी हथेलियों से मीठे प्रहार करने लगी।

राजेश जब स्नान करने गुसल खाने में घुसा तो लाली ने सुगना से कहा…

"बड़ा भाग से तोरा जीजा जी आ गए. कह तो उनके जोरन से तेरे पेट में दही जमा दूं"

(जोरन दही का एक छोटा भाग होता है जो दूध से दही जमाने के लिए दूध में डाला जाता है)

सुगना ने कुछ कहा तो नहीं परंतु मुस्कुरा कर अपनी दुविधा पूर्ण सहमति दे दी।

जैसे ही राजेश आराम करने के लिए अंदर गया लाली सुगना को रसोई में छोड़कर कमरे में आ गई। राजेश के वीर्य दोहन और सुगना के गर्भधारण के इस अनोखे तरीके को अंजाम देने के लिए लाली अपनी तैयारियां पूरी कर चुकी थी... लाली ने अंदर का दरवाजा सटा दिया था...

सुगना रसोई में बर्तन सजाते अपने कल के व्रत के बारे में सोच रही थी कहीं उससे व्रत में कोई गलती तो नहीं हो गई? उसके बाबूजी अचानक उसे छोड़कर क्यों चले गए? आज का दिन वह अपने बाबू जी से जी भर चुद कर गर्भधारण कर सकती थी। क्या भगवान उससे रुष्ट हो गए थे?

उसका दिल बैठा जा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे उसके जीवन में कोई पुरुष बचा ही न था। अपने कामुक ख्यालों में कभी-कभी वह राजेश के साथ अंतरंग जरूर हुई थी परंतु हकीकत में राजेश और उसके बीच अब भी मर्यादा की लकीर कायम थी हालांकि यह लकीर अब बेहद महीन हो चुकी थी। राजेश तो सुगना को अपनी बाहों में लेने के लिए मचल रहा था सिर्फ और सिर्फ सुगना को ही अपनी रजामंदी देनी थी परंतु वह अभी भगवान से सरयू सिंह के वापस आने की प्रार्थना कर रही। लाली राजेश का वीर्य दोहन करने अंदर जा चुकी थी और कुछ ही देर में उसे अंदर जाना था।

क्या वह अपने गर्भ में राजेश का वीर्य लेकर गर्भधारण करेगी क्या यह उचित होगा? क्या भगवान ने उसके व्रत के फलस्वरूप ही राजेश को यहां भेजा है…

परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी और सुगना के मनोभाव भी। सुगना ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था और वह लाली के खाँसने का इंतजार कर रही थी जिसे सुनकर उसे कमरे के अंदर प्रवेश करना था।

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उधर सोनी रिक्शे में विकास के साथ बैठी हुई बनारस महोत्सव की तरफ जा रही थी उसे बार-बार अपनी उंगलियों में लगा हुआ चिपचिपा द्रव्य याद आ रहा था आखिर वह क्या था? जितना ही वह उसके बारे में सोचती उसके विचार में घृणा उत्पन्न होती उस किशोरी उस किशोरी ने तो आज तक कभी वीर्य को न देखा था और न हीं छुआ था। परंतु आज उसे अपने ही भाई के वीर्य को अपनी उंगलियों से अकस्मात ही छू लिया था। उस करिश्माई द्रव्य से सोनी कतई अनजान थी। जिस द्रव्य को सोनी अपनी अज्ञानता वश घृणा की निगाह से देख रही द्रव्य के अंश को सुगना अपने गर्भ में लेने के लिए सुगना तड़प रही थी।

उसने सोनू से पूछा

"भैया आप लाली दीदी के यहां हमेशा आते जाते हो?"

"क्यों तुझे क्यों जानना है?"

"ऐसी ही" सोनू ने उत्तर न दिया और अनमने मन से दूसरी तरफ देखने लगा उसे लगा जैसे लाली के घर आना जाना असामान्य था किसे सोनी ने अपने संज्ञान में ले लिया था।

"लगता है आजकल वर्जिश खूब हो रही है" सोनी ने सोनू की मजबूत भुजाओं को छूते हुए बोला

सोनू का ध्यान सोनी की तरफ गया उसके मुंह से अपनी तारीफ सुनकर सोनू खुश हो गया था।

सोनू ने रिक्शा रुकवाया और पास की दुकान से जाकर कुल्फी ले आया सोनी खुश हो गयी और कुल्फी खाने लगी। सोनी के गोल गोल होठों में कुल्फी देखकर सोनू के दिमाग में लाली घूमने लगी। वह देख तो सोनी की तरफ रहा था परंतु उसके दिमाग में लाली का भरा पूरा बदन घूमने लगा। कुल्फी चूसती हुई सोनी उसे लण्ड चूसती लाली दिखने लगी। अपनी ही छोटी बहन के प्रति उसके मन में बेहद अजीब ख्याल आने लगे।

उसका ध्यान सोनी के मासूम चेहरे से हटकर उसके शरीर पर चला गया जैसे जैसे वह सोनी को देखता गया उसे उसके उभारो का अंदाजा होता गया। सोनी अपनी अल्हड़ यौवन को भूलकर कुल्फी का आनंद ले रही थी। उसे क्या पता था की सोनु की नजरें आज पहली बार उसके शरीर का नाप ले रही थी।

"भैया आप भी अपनी कुल्फी खाइए पिघल रही है"

सोनी की बात सुनकर सोनु शर्मा गया एक पल के लिए उसे लगा जैसे सोनी ने उसके मनोभाव को पढ़ लिया है उसने अपना ध्यान हटाया और दोनों रिक्शा में बैठकर विद्यानंद के पंडाल की तरफ चल पड़े। अपनी मुंह बोली बहन लाली को चोद कर सोनू के दिमाग में बहन जैसे पावन रिश्ते के प्रति संवेदनशीलता कम हो रही थी।

सोनू ने सोनी को पंडाल तक छोड़ा और अपनी मां पदमा तथा कजरी से मिला। पद्मा ने सोनू को सदा खुश रहने और अच्छी नौकरी का आशीर्वाद दिया और अपने पिछले दिन के व्रत से अर्जित किए सारे पुण्य को अपने पुत्र पर उड़ेल दिया। पदमा को क्या पता था कि उसका पुत्र इस समय जीवन के सबसे अद्भुत सुख के रंग में रंगा हुआ अपनी मुंहबोली बहन लाली के जाँघों के बीच बहती दरिया में गोते लगा रहा है।

सोनू का मन पांडाल में नहीं लग रहा था उसे रह-रहकर लाली याद आ रही थी। हालांकि घर में उसकी बड़ी बहन सुगना भी मौजूद थी परंतु फिर भी वह लाली के मोहपाश से अपने आप को न रोक पाया और वापस लाली के घर जाने के लिए निकल पड़ा….

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उधर कजरी का व्रत सफल हो चुका था। कजरी ने जो मांगा था उसे शीघ्र मिलने वाला था।

मुंबई में रह रहा उसका पुत्र रतन बीती शाम बबीता से अपना पीछा छुड़ाकर गांव वापस आने के लिए तैयार था। उसने अपनी सारी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी बड़ी पुत्री मिंकी को लेकर आज सुबह सुबह ट्रेन का इंतजार कर रहा था।

रतन के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी उसने कुछ दिनों पहले सूरज के लिए जो खिलौने और सुगना के लिए जो खत लिखा था उसका जवाब नहीं आया था, आता भी कैसे? रतन का पार्सल सलेमपुर के डाकखाने में एक कोने में पड़ा सरयू सिंह के परिवार के सदस्यों के आने का इंतजार कर रहा था।

रतन में मन ही मन फैसला कर लिया था कि वह सुगना के करीब आने और उसे मनाने की भरपूर कोशिश करेंगा यदि वह नहीं भी मानती है तब भी वह उससे एक तरफा प्यार करता रहेगा और उसे पत्नी होने का पूरा हक देगा। शारीरिक न सही परंतु स्त्री को जो पुरुष से संरक्षण प्राप्त होना चाहिए वह उसमें पूरी तरह खरा उतरेगा।

अपने चार-पांच सालों में सुगना के प्रति दिखाई बेरुखी को मिटा कर अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना चाहता था। जैसे-जैसे उसका प्रेम सुनना के प्रति बढ़ रहा था नियति प्रसन्न हो रही थी। वह इस कहानी में उसकी भूमिका तलाश में लगी हुई थी।

रेलवे स्टेशन चूरमुरा खाते हुए। मिंकी ने पूछा

"पापा वहां पर कौन-कौन है. नई मम्मी मुझे परेशान तो नहीं करेगी. मम्मी कह रही थी कि नयी मम्मी तुझे बहुत मारेगी तू मत जा"

"बेटा तेरी नई मम्मी तुझे बहुत प्यार करेगी. वह बहुत अच्छी है... वहां गांव पर तेरे बाबा है दादी हैं और ढेर सारे लोग हैं. तुझे सब ढेर सारा प्यार करेंगे और एक छोटा भाई भी है सूरज तू उसे देख कर खुश हो जाएगी वह बहुत प्यारा है"

मिंकी खुश हो गई. उसे छोटे बच्चे बेहद प्यारे थे और यह बात उसे और भी अच्छी लग रही थी उसका कोई भाई होगा. मिंकी अपनी नई जिंदगी को सोच सोच कर खुश भी थी और आशान्वित भी। सूरज के चमत्कारी अंगूठी अंगूठे का एक और शिकार सलेमपुर पहुंचने वाला था नियति को अपनी कथा का एक और पात्र मिल रहा था और सुगना को उसका पति।

परंतु क्या सुगना रतन को अपना आएगी? क्या उसका गर्भधारण उसके पति द्वारा ही संपन्न होगा? क्या सुगना और रतन का मिलन अकस्मात ही हो जाएगा? सुगना जैसी संवेदनशील और मर्यादित युवती क्या अचानक ही रतन की बाहों में जाकर आनन-फानन में संभोग कर लेगी?

नियति सुगना के गर्भधारण का रास्ता बनाने में लगी हुई थी परंतु सुगना के भाग्य में जो लिखा वह टाला नहीं जा सकता था। सुगना था यह गर्भधारण उसे विद्यानंद के श्राप से मुक्ति दिला पाएगा इसकी संभावना उतनी ही थी जितनी गर्भधारण से पुत्र या पुत्री होने की। सुगना के भविष्य को भी सुगना के गर्भ के लिंग के तय होने का का इंतजार था।

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परंतु लाली के घर में सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था। लाली के खांसने की आवाज सुनकर सुगना का दिल तेजी से धड़कने लगा उसकी चूचियां और काम इंद्रियां सतर्क हो गई। आज पहली बार वह लाली के हाथों राजेश का वीर्य स्खलन देखने जा रही थी। देखने ही क्या उसे उस वीर्य को अपने गर्भ में आत्मसात भी करना था। सुगना का दिल और जिस्म एक दूसरे से सामंजस्य बैठा पाने में नाकाम थे। वह बदहवास सी अधूरे मन से गर्भधारण की आस लिए लाली के कमरे में प्रवेश कर गई...

शेष अगले भाग में...

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#60
भाग 56

परंतु लाली के घर में सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था। लाली के खांसने की आवाज सुनकर सुगना का दिल तेजी से धड़कने लगा उसकी चूचियां और काम इंद्रियां सतर्क हो गई। आज पहली बार वह लाली के हाथों राजेश का वीर्य स्खलन देखने जा रही थी। देखने ही क्या उसे उस वीर्य को अपने गर्भ में आत्मसात भी करना था। सुगना का दिल और जिस्म एक दूसरे से सामंजस्य बैठा पाने में नाकाम थे। वह बदहवास सी अधूरे मन और गर्भधारण की आस लिए लाली के कमरे में प्रवेश कर गई…

अब आगे….

बिस्तर पर राजेश अर्धनग्न स्थिति में पड़ा हुआ था उसकी लूंगी कमर पर कसी अवश्य थी परंतु सामने से पूरी तरह खुली हुई थी।

राजेश का तना हुआ लण्ड लाली के खूबसूरत हाथों में आगे पीछे हो रहा था।

लाली ने अपनी उंगलियां होंठ पर रखते हुए सुगना को चुप रहने का इशारा किया और उन्हीं उंगलियों से उसे अपने पास भी बुला लिया।

कमरे में अब भी कुछ उजाला कायम था रेलवे कॉलोनी की खिड़कियों और दरवाजों को बंद करने के बावजूद सूरज की रोशनी को रोक पाना असंभव था।

सुगना बार-बार राजेश के चेहरे को देख रही थी जिस पर लाली ने अपना दुपट्टा डाल रखा था।

सुगना मन ही मन बेहद घबरा रही थी कहीं यदि राजेश जीजू के आंख पर से दुपट्टा हट गया तो?

सुगना सधे हुए कदमों से धीमे धीमे लाली के करीब आ गई। सुगना के सधे हुए कदमों ने पायल की छनक को भी रोक लिया। अपने अंतर्द्वंद से लड़ते हुए सुगना का मन मस्तिष्क थक चुका था और उसके कदम उसका अनुकरण कर रहे थे।

राजेश को यह अंदाजा भी ना हुआ की सुगना कमरे में आ चुकी है।

लाली ने अपनी हथेलियां राजेश के काले लण्ड पर फिराते हुए कहा…

"आज त कालू मल पूरा उछलत बाड़े…...सुगना खातिर का?" राजेश मुस्कुरा उठा

"धीरे बोल... सुगना बाहरे होइ"

"हमार बात मत टालीं ... ई इतना काहे फुदकता हमरा सब मालूम बा" लाली ने राजेश के लण्ड को दबा दिया और उसके सुपारे को अपने अंगूठे से सहला दिया।

राजेश ने लाली के प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु लाली से पूछा…

"सुगना तोहार सहेली ह उकरे से काहे ना पूछ लूं कि छौ छौ महीना अकेले कैसे रहे ले? रतनवा सार पागल ह.. सुगना जैसन पुआ हमरा भेटाई रहित त…

"त..का…..का करतीं?" लाली ने राजेश के मुसल को मसल दिया

"आह..तनि धीरे से…..दुखाता….."

राजेश के मुख से निकले अंतिम वाक्यांश यूं ही नहीं निकले थे दरअसल सुगना की तारीफ सुनकर लाली थोड़ा नाराज हो गई थी उसने राजेश के लण्ड को कुछ ज्यादा ही तेजी से दबा दिया था और राजेश की उत्तेजना एक मीठी कराह में बदल गई थी।

लाली ने अपने हाथों का दबाव थोड़ा नरम किया और बोली..

"बताई बताई का करतीं...ओकरा पुआ के साथ?." लाली ने मुस्कुराते हुए सुगना को देखा

राजेश ने कुछ कहा नहीं पर अपने होठों को गोल कर अपनी जीभ को अपने होठों पर फिराने लगा...

राजेश की इस हरकत से सुगना की जांघों के बीच छुपे मालपुए पर एक अजीब सी संवेदना हुई और वह सिहर उठी। उसे लाली की बातें याद आ रही थी लाली सच कहती थी। राजेश जीजू उसके बारे में खुलकर गंदी बातें कर रहे थे।

सुगना असमंजस में थी। उसे लाली और राजेश के बीच उसे लेकर चल रही उत्तेजक बातों से ज्यादा सरोकार न था वह मन ही मन घबरा रही थी और लाली द्वारा राजेश के वीर्य स्खलन का इंतजार कर रही थी। उसने लाली को अपने हाथों की गति बढ़ाने का इशारा किया प्रत्युत्तर में लाली ने उसे ही अपने हाथ लगाने का आमंत्रण दे दिया सुगना ने झटपट अपने दोनों हाथ पीछे कर लिए और मुस्कुराने लगी.

सुगना राजेश के करीब हो या ना हो पर वह लाली से बेहद प्रेम करती थी वह उसकी प्रिय सहेली थी जिससे वह हर प्रकार की बातें साझा करती थी।

राजेश के अंडकोष में लावा उबलने लगा था लाली के हाथों की कुशलता और दिमाग में घूम रही सुगना ने लण्ड में करंट दौड़ा दी और राजेश का लण्ड झटके लेने लगा…

जैसे ही राजेश का स्खलन प्रारंभ हुआ सुगना थर थर कांपने लगी। लाली के वीर्य से सने हाथ को देखकर सुगना को एक अजीब सा एहसास हुआ उसे आज पहली बार उस श्वेत वीर्य से घृणा का एहसास हुआ यह क्यों हुआ यह तो सुनना ही जाने परंतु उसी समय सूरज के रोने की आवाज आई और सुगना उल्टे पैर हॉल वाले कमरे की तरफ दौड़ पड़ी। पुत्र मोह में वह यह भूल गई कि वह लाली के पास दबे पैर आई थी.

सुगना की छनकती पायल ने सारी कहानी बयां कर दी। राजेश ने लाली के वचन को तोड़ अपनी आंखों पर पड़ा दुपट्टा हटा लिया और दरवाजे से बाहर जाती हुई सुगना को देख लिया। वह अवाक रह गया उसने लाली से पूछा

"सुगना एहजे रहली का?"

लाली ने कुछ नहीं कहा। अपने दोनों हाथों में वीर्य लपेटे हुए अजीब सी स्थिति में आ चुकी ही। वह किस मुंह से यह बात बताती कि वह इन्हीं उंगलियों से सुगना की बुर में उसके वीर्य को प्रवेश करा कर सुगना को गर्भधारण करने में मदद करने वाली थी।

सारा खेल खराब हो चुका था।

( कुछ तो पाठको ने किया कुछ नियति ने किया)

सुगना के गर्भधारण की आस टूट चुकी थी अद्भुत निषेचन क्रिया होते होते रुक गई थी। लाली सोच रही थी कि जब राजेश के वीर्य से गर्भधारण में सुगना को आपत्ति नही है तो काश सुगना एक बार के लिए उसके पति की इच्छा भी पूरी कर देती……पर सुगना अपनी अपनी अद्भुत निषेचन क्रियाविधि से ही संतुष्ट थी पर आज यह अवसर भी जा चुका था।

कुछ ही देर बाद राजेश ने खाना खाया और वापस ड्यूटी के लिए निकल पड़ा।

सुगना सूरज को दूध पिलाते हुए लाली के वीर्य से सने हाथों की याद कर रही थी यदि सूरज न होता तो शायद लाली की वीर्य से सनी उंगलियां उसकी बुर में राजेश के वीर्य को पहुंचा चुकी होती…

सुगना को समझ ही नही आ रहा था कि वह खुश हो या दुखी…

थोड़ा आराम करने के पश्चात सुगना और लाली दोनों बनारस महोत्सव जाने के लिए तैयार होने लगी।

लाली के दोनों बच्चे पड़ोस में खेलने चले गए। लाली अपनी नयी साड़ी पहनकर झटपट तैयार हुई… तभी सुगना ने कहा...

"रुक जा हमु नहा ले तानी"

"काहे नहा तारे ते त असहीं चमकते रहेंले

अपनी तारीफ सुनकर सुगना मुस्कुरा उठी। वह खूबसूरत तो थी ही और मुस्कुराहट ने उसमे चार चांद लगा दिए।

सुगना ने अपनी साड़ी उतारी लाली की निगाहें उसके खूबसूरत जिस्म को निहार रहीं थीं जिसे सुगना ने ताड़ लिया और पलटते हुए बोली

" का देखा तारे.."

लाली शर्मा गई लाली सुगना की पतली कमर और भरे भरे नितंबों के बीच खो गई थी नितंबों के बीच छुपी सुगना की रानी की कल्पना जितना उसके पति राजेश ने की थी उतना लाली ने भी। उसने अपने मन और मस्तिष्क में अनायास ही उसकी छवि बिठा ली थी।

वह अपनी तुलना सुगना से कर रही थी भगवान ने दोनों एक जैसी काया दी थी परंतु सुगना के शरीर की चमक और कसाव उसे एक अलग ही पहचान देता था।

सुगना ने लाली की नाइटी ली और बाथरूम की तरफ जाने लगी। लाली ने भी आज बिल्कुल नई साड़ी पहनी थी वह बाहर जाते हुए बोली

"सूरज के भी ले ले जा तानी। पूजा में चढ़ावे खातिर कुछ सामान खरीद ले तानी। ते आराम से नहा ले"

"दरवाजा सटा दे" सुगना ने कहा और गुसल खाने में प्रवेश कर गई।

नियति सुगना को नग्न होते हुए देख रही थी सुगना ने अपने शरीर के सारे वस्त्र उतार दिए और अपनी जन्मजात अवस्था में आकर अपने खूबसूरत शरीर का अवलोकन करने लगी । एक बच्चे की मां बनने के बाद भीभी सुगना बिना अपने हांथों का प्रयोग किये अपनी आंखों से अपनी बुर की दरार देख पाती थी उसने अपने पेट पर उभार आने नहीं दिया था और चुचियों का कसाव भी बरकरार रखा था।

सुगना के चमकते हुए शरीर को देखकर नियति भी स्वयं अपनी कृति पर प्रफुल्लित हो रही थी यदि उसके बस में होता तो वह स्वयं ही उससे संभोग कर उसकी मनोकामना पूर्ण कर देती।

सुगना के तन मन में एक अजब सी आग थी अपने बाबुजी सरयू सिह से संभोग किये उसे कई महीने बीत चुके थे। जब भी उसका मन खुशहाल होता उसकी जांघों के बीच छुपी हुई बुर मुस्कुराने लगती। पिछले दो-तीन दिनों से उसे हर घड़ी अपने बाबूजी की याद आ रही थी। विद्यानंद से मिलने के पश्चात एक-एक दिन उसने सरयू सिंह को याद करते हुए गुजारे थे। परंतु किसी न किसी कारण उसे उनका संसर्ग नहीं मिल पा रहा था।

हर समय उसका अंतरमन ऊपर वाले से एक ही प्रार्थना करता काश उसके बाबु जी उसे अपनी गोद में उठाते और उसकी नग्न पीठ पर अपनी खुरदरी हथेलियां फिराते हुए उसे अपने आलिंगन में लेते। गालों से गाल सटाते होठों से होठ चूमते और ……..आह ….

सुगना की उंगलियों ने उसके मनोभावों को पढ़ लिया वह अपनी निगोड़ी बुर को समझाने के लिए उसे थपथपाने लगी। परंतु प्यासी बुर सुगना के झांसे में आने को तैयार न थी उसने अपना मुंह खोल दिया और सुगना की उंगलिया उसकी कोमल गहराइयों में उतर गयीं। सुगना की बुर ने न जाने उंगलियों पर ऐसा कौन सा निर्वात बल कायम किया हुआ था, सुनना चाह कर भी अपनी उंगलियां बाहर न निकाल पायीं। उसकी उंगलियां अंदर थिरकती रहीं और सुगना के निप्पल तनते चले गए।

अपने ही हाथों अपनी चुचियों को सांत्वना देने के लिए सुगना ने उन्हें सहलाना चाहा और अनचाहे में ही अपनी उत्तेजना को अंजाम तक पहुंचा दिया। सुगना के दिलों दिमाग पर सरयू सिंह के साथ बिताए गए अंतरंग पल छाते चले गए...

काश बाबूजी अपने मजबूत मुसल से उसकी जांघों के बीच चटनी कूटते….मुसल का कार्य उंगलिया न कर सकीं पर …

सुगना की बुर ने अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया। सुगना ऐंठती रही उसकी जाँघे तन गयी.. उसकी मांसल बुर ने अंदर रिस रहे सारे प्रेम रस को बुर् के होठों पर लाकर छोड़ दिया जो सुगना द्वारा लोटे से डाले जा रहे शीतल जल के साथ विलीन हो गया।

सुगना ने अपना स्नान पूरा किया और लाली की नाइटी पहन कर लाली के कमरे में आ गई अपने बाल सुखाते हैं सुखना दरवाजे की तरफ पीठ करके खड़ी थी ..

#####################################

उधर सोनू सोनी को पांडाल में छोड़ने के बाद कुछ देर अपने दोस्तों के साथ रहा परंतु उसका मन कहीं न लग रहा था। सुबह लाली को जी भर कर चोदने के पश्चात उसका मन नहीं भरा था। जाने यह कैसी आग थी जितना सोनू लाली के करीब आ रहा था उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी। आज लाली के घर में सुगना भी उपस्थित थी इसलिए सोनू जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

परंतु चतुर सोनू चूत के चस्कर में चकोर की भांति, चित्त में लाली की छवि बसाये, चूत के आकर्षण में बंधा लाली की कालोनी में आ गया।

लाली के घर से कुछ ही दूर उसे नई साड़ी में लिपटी सुगना के कंधे पर से झांकता हुआ सूरज का चेहरा उसे दिखाई पड़ गया। उसे लगा जैसे सुगना दीदी सूरज को लेकर कुछ सामान खरीद रही है। सोनू तेजी से भागता हुआ लाली के घर पहुंच गया और सटे हुए दरवाजे को धीरे से खोलते हुए अंदर आ गया।

घर में एकांत पाकर सोनू ने मन ही मन ऊपर वाले से अपनी अनुनय विनय कर डाली और ऊपर वाले ने भी उसकी इच्छा पूरी कर दी। उसके मनो मस्तिष्क में चल रही लाली को उसने अंदर अपने बाल सुखाते देख लिया। नाइटी में लाली न होकर सोनू की सुगना दीदी थी पर सोनू इस बात से अनजान था। नाइटी के झीने आवरण में ढकी गदराई जवानी उसे ललचाने लगी। सोंग का लण्ड स्प्रिंग की तरह तुरंत ही खड़ा हो गया वह सधे हुए कदमों से उस कामनीय शरीर के पीछे गया और उसे पीछे से अपने आलिंगन में ले लिया।

सुगना के पेट पर अपने हाथों से पकड़ बनाते हुए उसने सुगना को लगभग ऊपर उठा दिया। सुगना के पैर हवा में आ गए। सोनू के लण्ड ने सुगना के नितंबों के बीच में जगह बनाने की कोशिश की और सोनू के मजबूत लिंग ने अपनी उपस्थिति का एहसास सुगना को करा दिया।

सुगना ने पीछे पलट कर देखा...

सोनू सकपका गया।

"हम जननी हा की लाली ….."

सोनू जो कहना चाहता उसे कह पाना भी उतना ही कठिन था वह अपने वाक्य को पूरा न कर सका।

उसने सुगना को तुरंत ही नीचे छोड़ दिया और बिना कुछ कहे उलटे पैर कमरे से बाहर निकल गया।

कुछ देर के आलिंगन ने भाई बहन की बीच के पवित्र रिश्ते में एक ऐसा एहसास डाल दिया था जो दोनों के लिए बिल्कुल ही नया था।

सोनू थरथर कांप रहा था वह सबकी नजर बचाकर भाग जाना चाह रहा था परंतु ऐसा हो ना सका दुकान से आ रही लाली ने उसे देख लिया और बोला...

"कहां जा रहे हो ? दरवाजा तो खुला ही था अंदर सुगना है ना..

"मुझे कुछ काम है मैं थोड़ी देर बाद आता हूं…"

"जा पहले रिक्शा लेकर आ हम लोग बनारस महोत्सव जाएंगे.."

सोनू फंस चुका था वह रिक्शा लेने के लिए सड़क की तरफ बढ़ गया। उसके हाथ अभी भी उस अद्भुत स्पर्श.. को याद कर रहे थे। ऐसा नही था कि सुगना को सोनू ने छुआ न था पर वह आलिंगन अलग था वासना से ओतप्रोत...सोनू की बाहों पर अपना भार छोड़ती चुचियों का कोमल स्पर्श सोनू को अपने दिमाग मे चल रहे के कामुक द्वंद में और कमजोर कर रहा था।

सुगना के शरीर की कोमलता उसके लिए बेहद नई थी। इतनी उत्तेजना उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। लाली और सुगना के शरीर के अंतर को सोनू ने कुछ ही पलों में पहचान लिया था।

यह अंतर बिल्ली और खरगोश के बच्चे की तरह था दोनों ही कोमल और मुलायम थे पर अंतर अपनी जगह था।

उधर सुगना भी सिहर उठी थी।। कुछ ही पलों के आलिंगन में उसे सोनू के पूर्ण वयस्क होने का एहसास करा दिया था। अपने नितंबों में उसके खड़े लिंग की चुभन को उसने बखूबी महसूस किया था और मजबूत आलिंगन के कसाब को भी।

उसका भाई अब उतना छोटा न था जितना अब वो उसे समझती थी। जिस तरह बचपन मे वह उसे झूला झुलाया करती थी आज ठीक उसी तरह सोनु ने उसे कुछ पलों के लिए ही सही पर वही झूला झूला दिया था। पर भाव मे अंतर स्पस्ट था। प्रेम प्रेम में अंतर था।

सुगना और सोनू का प्यार वात्सल्य रस से अचानक श्रृंगार रस की तरफ मुड़ता प्रतीत हो रहा था।

इस आलिंगन ने सुगना के मन में सोनू के प्रति भाव बदल दिए। सोनू से नजरें मिलाने में खुद को नाकाम पा रही थी।

कुछ ही देर में लाली और सुगना सोनू द्वारा लाए रिक्शे में बैठकर बनारस महोत्सव के लिए चल पड़ीं। पीछे एक और रिक्शे में सोनू अपनी लाली दीदी के दोनों बच्चों को लेकर एक सेवक की भांति पीछे पीछे चलने लगा। रिक्से में बैठी हुई दोनों स्त्रियों की पीठ देखकर सोनू आज पहली बार इन दोनों की तुलना कर रहा था।

आज सोनू की निगाहे अपनी सगी बहन में कामुकता खोज रही थी। वह जितना ही ध्यान सुगना की पीठ पर से हटा कर लाली पर ले जाता परंतु उसका अवचेतन मन सुगना की पीठ पर ही निगाहों को घसीट लाता।

सुगना जब-जब सोनू के बारे में सोचती उसका दिल धक धक करने लगा। वह बार बार अपने कपड़ों को व्यवस्थित कर अपनी नंगी पीठ को ढकने का प्रयास करती। सोनू के सामने बिंदास और निर्विकार भाव से घूमने वाली अब सचेत हो गयी थी।

पंडाल में उतरने के बाद वह सीधा महिलाओं वाले भाग में चली गई। उसने सोनू की तरफ पलट कर नहीं देखा वह देखती भी कैसे? अभी भी उसके स्पर्श का वह एहसास उसके दिलो-दिमाग पर छाया हुआ था।

बनारस महोत्सव का पांचवा दिन भी बीत रहा था। संध्या वंदन के उपरांत सुगना ने अपने इष्ट देव के समक्ष अपना निर्णय सुना दिया…

जब तक उसके बाबूजी सरयू सिंह उसे अपने हांथो से पानी नही पिलायेंगे वह पानी नही पीयेगी। सुगना जो बात अपने इष्ट से कहना चाहती थी उसने अपने तरीके से वह बात उन पहुंचा दी थी। सुगना ने मन ही मन सोच लिया था कि वह सरयू सिह के आते ही तुरंत ही उनकी गोद मे आ जाएगी..

के सुगना चल खाना खा ले…

"ना मां हमारा भूख नइखे"

सुगना को जिस चीज की भूख थी वह सर्वविदित था।

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उधर सुबह सुबह सरयू सिंह सलेमपुर की तरफ बढ़ रहे थे.. आज वह किसी भी हाल में सुगना को छोड़कर सलेमपुर नहीं जाना चाह रहे थे परंतु उनका कर्तव्य और मनोरमा का निर्देश उनकी निजी आकांक्षाओं पर भारी पड़ रहा था। सलेमपुर पर आई इस प्राकृतिक विपदा से अपने गांव वालों को निकालना और उन्हें राहत पहुंचाना सरयू सिंह ने ज्यादा जरूरी समझा और अपने मन का मलाल त्याग कर अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए निकल पड़े। काश कि वह सुगना की मनोदशा और उसके अंतर्द्वंद को जान पाते तो वह अपनी नौकरी को ताक पर रखकर सुगना के साथ खड़े रहते बल्कि उसे तब तक लगातार संभोग करते जब तक कि वह गर्भवती ना हो जाती।

उन्होंने निकलते वक्त सुगना के साथ रंगरेलियां मनाने के लिए निर्धारित होटल मैं जाकर अपने ना आने की सूचना दे दी और काफी जद्दोजहद करने के पश्चात अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ पैसा वापस ले आए।

सलेमपुर पहुंच कर उन्होंने गांव वालों को यथोचित मदद पहुंचायी और साथ आए सिक्युरिटीवालों के साथ मिलकर उग्र गांव वालों को शांत करने में मदद की। इस दुरूह कार्य को करते करते रात गहरा गई।

सरयु सिंह का कार्य अभी अधूरा था सलेमपुर में भी और सुगना द्वारा किये वादे का सुख लेने का भी... परंतु बनारस महोत्सव का पांचवा दिन बीत चुका था।

सरयू सिंह सुगना के लिए अधीर हो रहे थे परंतु नियति भी सुगना के हाँथ की लकीरों के आगे मजबूर थी।

#####################################

विद्यानंद के पंडाल में रात गहरा रही थी। पंडाल में सारी महिलाएं सो चुकी थी सिर्फ सुगना की आंखों से नींद गायब थी भूखी प्यासी सुगना अपने इष्ट देव से अपने बाबू जी के आगमन के लिए प्रार्थना कर रही थी अपने मन में इतना झंझावात लिए सुगना सो गई.. और एक निराली दुनिया मे पहूँच गयी।

पंडाल में जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। पंगत में कई सारे लोग बैठे हुए थे। महिलाएं पुरुषों को खाना परोस रही थी। सुगना को भी खाना परोसने के लिए बुलाया गया। सुगना अपने हाथ में मीठा मालपुआ लिए पंगत की तरफ बढ़ चली।

अचानक सुगना को अपनी साड़ी की सरकती हुई महसूस हुई। यह क्या... उसकी साड़ी अचानक ही शरीर से गायब हो चुकी थी थी. ब्लाउज और पेटीकोट सुगना के शरीर को मर्यादित आवरण देने में पूरी तरह नाकाम थे।

सामने बैठे पुरुष उसे एकटक घूरे जा रहे थे तभी पीछे से कजरी की आवाज आई

"सुगना बेटा.. सब के मालपुआ खिया द"

कजरी के मुख से मालपुआ शब्द सुनकर सुगना ने एक पल के लिए शर्म से पानी पानी हो गई और अगले ही पल अपनी शर्म को ताक पर रखकर सामने बैठे व्यक्तियों को पहचानने की कोशिश करने लगी..

जैसे जैसे उसकी आंखें पुरुषों को पहचानने की कोशिश करती गई उसकी आंखें आश्चर्य से फटती चली गयीं।

पंगत में सबसे पहले रतन था उसके पश्चात राजेश और सोनू था। सबसे आखरी में सुगना के प्यारे बाबू जी पालथी मारे बैठे हुए थे और उनकी गोद में छोटा सूरज बैठा हुआ था।

सुगना अपनी अर्धनग्न अवस्था में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। तभी कजरी की आवाज एक बार फिर आयी..

"सुगना बेटा सब आपने ही परिवार के ह मालपुआ दे द"

सुगना आगे झुकी और रतन के पत्तल में मालपुआ रख दिया उसकी चूचियां बरबस ही रतन की निगाहों के सामने आ गयीं। सुगना के दोनों हाथ व्यस्त थे वह चाह कर भी अपनी चुचियों पर अपने हाथों का आवरण न दे पायी। सुगना थरथर कांप रही थी। उसकी चूचियां ब्लाउज से बाहर आकर रतन को ललचा रही थीं।

अगली बारी राजेश की थी। पत्तल में मालपुआ डालते समय सुगना कि दोनों चूचियां उछल कर बाहर आ गई…

सुगना ने जैसे ही मालपुआ सोनू की थाली में डाला पेटीकोट जैसे गायब हो गया। अपने छोटे भाई के सामने खुद को नग्न पाकर सुगना के पैर कांपने लगे सुगना बेसुध होकर गिर पड़ी उसने खुद को सरयू सिह की गोद में पाया..

सरयू सिंह की एक जंघा पर पूर्ण नग्न सुगना थी दूसरे पर सूरज था…

अपने ही अबोध बालक के सामने सुगना पूर्ण नग्न अवस्था में बैठी हुई थी। उसकी मालपुआ की थाली न जाने कहां गायब हो गयी थी..

सुगना के मन में अभी भी कजरी की बात घूम रही थी सुगना मालपुआ खोजने लगी तभी उसे सरयु सिंह की कड़कती आवाज सुनाई पड़ी

"सुगना बाबू का खोजा तारू?"

"मालपुआ"

"ई त बा"

सरयू सिंह की हथेलियां सुगना की जांघो के बीच आ चुकी थीं।

छोटा सूरज अपनी माँ को इस नए रूप में देख कर आश्चर्य चकित था ..सुगना की आंख सूरज से मिलते ही सुगणा की नींद खुल गयी...


शेष अगले भाग में...


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