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14-04-2022, 02:27 PM
(This post was last modified: 14-04-2022, 02:28 PM by Snigdha. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
भाग -20
होली के दौरान राजेश और सुगना के बीच बढ़ रही नजदीकियों को सरयू सिंह की पारखी निगाहों ने देख लिया था। वह स्वयं इस कला में माहिर थे। उनकी आंखों के सामने उनकी प्यारी सुगना अपने हम उम्र और युवा राजेश के करीब आ रही थी।
उन्होंने सुगना पर अपना अधिकार कायम रखने के लिए उसके साथ बार-बार और विविध प्रकार से संभोग करने लगे परंतु सुगना बदल रही थी। सरयू सिंह की मुट्ठी से रेत फिसल रही थी। जितनी तेजी से वह अपनी मुट्ठी दबाते रेत उतनी ही तेजी से फिसल कर बाहर आती।
दिन पर दिन वह सुगना के साथ और कामुक होते चले गए कभी-कभी वह दिन में दो बार सुगना की जमकर चुदाई करते सुगना उसका आनंद अवश्य लेती पर जो चुलबुला पन उसे राजेश के सानिध्य और उसके एहसास में मिलता वह अब सरयू सिंह के बस में न था। यद्यपि राजेश और सुगना के बीच अब तक कुछ विशेष ना हुआ था फिर भी वह बाहरी स्पर्श भी सुगना को उत्तेजित कर जाता था। वह उसकी सहेली लाली का पति था यही बात सुनना को ज्यादा उत्तेजित करती थी।
सुगना अब भी सरयू सिंह से उतना ही प्यार करती थी परंतु धीरे धीरे उस प्यार में कामुकता का अंश घट रहा था। इधर सुगना की कामुकता में कमी आ रही थी उधर सरयू सिंह कामुकता के अतिरेक पर थे वह अपनी अति कामुकता से अपनी बहू सुगना के मन में वही आकर्षण जगाना चाह रहे थे जो आज से कुछ वर्षों पहले सुगना के मन में था।
सरयू सिंह का दिया बुझने से पहले फड़फड़ा रहा था। यही हाल उनके लंड का था। लंड का तनाव कम हो रहा था यह तो सुगना की बेहद खूबसूरत और मलाईदार बुर थी जो बूढ़ों के लंड में भी एक हरकत पैदा कर देती थी उस बुर के आकर्षण में सरयू सिंह का लंड अब भी तुरंत खड़ा हो जाता था।
सरयू सिंह नीम हकीम से अपने माथे का दाग तो ठीक न करा सके थे परंतु लंड को और खड़ा करने तथा स्तंभन शक्ति को बढ़ाने के लिए वह कई दवाइयों का सेवन करने लगे थे जिसका परिणाम सुगना को भुगतना पड़ता था वह उसे जरूरत से ज्यादा चोदने लगे थे। सुगना की निर्दोषऔर कोमल जाँघे अब थकने लगी थी। वह वासना के अतिरेक से अब तंग हो चली थी।
वह अपने बाबू जी से अब भी प्यार करती थी और अपना जीवन संवारने के लिए उनके प्रति कृतज्ञ थी पर वह चाह कर भी अपने बाबू जी को इस वासना के दलदल से निकाल नहीं पा रही थी। जब भी वह उनसे दूर होती सरयू सिंह की आंखों में आग्रह देखकर वह उनकी बाहों में चली।
आज भी सुगना नहा कर निकली ही थी तभी सरयू सिंह ने उसे अपनी बाहों में ले लिया उन्होंने पीछे से आकर सुगना की कमर में हाथ डाला और उसे अपने पेट से सटा कर उठा लिया। सुगना के दोनों पैर हवा में हो गये। सुगना ने कहा
"बाबूजी अभी ना राती के".
पर सरयू सिंह कहां मानने वाले थे। शिलाजीत के असर और सुगना की गदरायी जवानी ने उन्हें कामुकता के जाल में जकड़ लिया था। सूरज कजरी के साथ किचन में बैठा हुआ आटे की लोई से खेल रहा था। आंगन में सरयू सिंह उसकी मां को अर्धनग्न अवस्था में अपने सीने से सटाये घुमा रहे थे। कजरी को पता था सुगना चुदने वाली है उसने किचन से आवाज दी
"अपना सुगना बाबू संगे कुछ देर बाद खेल लेब चली पहले खाना खा लीं।" कजरी ने सरयू सिंह को रोकने की कोशिश की
सरयू सिंह कुछ सुनने के मूड में नहीं थे वह सुगना को लिए लिए उसके कमरे में आ गए सुगना अभी उत्तेजित न थी परंतु अपने बाबूजी की इच्छा का मान रखने के लिए वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गई सरयू सिंह ने उसके साये को ऊपर किया और उसके गदराये नितंबों को अनावृत कर दिया।
सुगना के नितंब पूरी तरह गोल और अत्यंत मादक थे। सुगना अभी अभी नहा कर आई थी और उसकी जांघों पर पानी की बूंदे मोतियों की तरह चमक रही थीं। उसकी जांघो और शरीर से लक्स साबुन की खुशबू आ रही थी। सरयू सिंह ने अपने लंड का सुपाड़ा सुगना की बुर पर सटा दिया।
सुगना ना तो उत्तेजित थी नहीं उसका मन इस कृत्य के लिए तैयार था परंतु वह सरयू सिंह की इच्छा का मान रखते हुए इस अवस्था में आ गई थी। सरयू सिंह ने उसकी जांघों और नितंबों को सह लाया और अपने लंड को सुगना की बुर में घुसाने का प्रयास करने लगे।
सुगना की बुर गीली न थी सरयू सिंह को अपना लंड अंदर डालने में परेशानी हो रही थी परंतु वह तो बेचैन थे। उन्होंने ढेर सारी लार अपने हथेलियों में ली और अपने लंड पर मल दिया। लंड की चिकनाई बढ़ चली थी। सुगना की बुर उनके लंड को और ना रोक पायी।
सुगना की सांसे रुक गई सरयू सिंह का लंड सुगना की नाभि को चूमने लगा। सरयू सिंह ने अपनी बहू की कमर पकड लिया और लगातार धक्के लगाने लगे।
उन्हें यह भ्रम हो गया था कि शायद उनकी उत्तेजना में वह आवेश और नयापन नहीं था जो सुगना युवा मर्दों में खोज रही थी। वह अपने लंड को बेहद तेजी से आगे पीछे कर रहे थे। सुगना इससे उलट परेशान हो रही थी वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहती इसलिए उनकी कामुकता को लगभग सह रही थी।
सरयू सिंह सुगना की बुर से वह सहयोग न पाकर मन ही मन उससे नाराज हो जाते और उनकी चुदाई में प्यार गायब हो जाता। सुगना उनके व्यवहार में आए बदलाव को बखूबी महसूस करती परंतु उनकी उम्र और पुराने संबंधों को ध्यान रखते हुए कोई प्रतिरोध न करती।
सरयू सिंह अब भी सुगना की गुदांज गाड़ के पीछे पड़े हुए थे। डॉगी स्टाइल में सुगना को चोदते समय सुगना की सुंदर गांड उन्हें ललचाती कभी वह फूलती कभी पिचकती। वह केलाइडोस्कोप की भांति अपनी आकृति बदल कर सरयू सिंह को लुभाती। वह अपनी उंगलियों से उसे सहलाते कभी अपनी उंगलियों में थूक लगाकर अपनी उंगली को थोड़ा अंदर प्रवेश कराते।
सुगना सिहर उठती और बोलती..
"बाबू जी तनी धीरे से….. दुखाता"
उसे पता था सरयू सिंह उसकी उस गुदांज गांड के पीछे शुरू से ही पड़े थे। उसे अपना वादा याद था परंतु आज भी वह हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। सरयू सिंह उसे कभी-कभी हंसकर उसे उसका वादा याद दिलाते।
सुगना अपने बाबू जी की यह इच्छा पूरी तो करना चाहती थी पर वह हिम्मत न जुटा पाती थी। सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ती जा रही थी। सुगना ना चाहते हुए भी स्खलित होने को तैयार हो गई थी। आज भी सरयू सिंह के लंड में जादू कायम था। कुछ देर की चुदाई में सुगना की बुर सुगना की बात न मानकर स्खलन के लिए तैयार हो गई।
सरयू सिंह ने अंततः अपनी बहू के बुर से बह रहे मदन रस को महसूस कर लिया और अपनी चुदाई को और तेज कर दिया। वह हांफ रहे थे।
"सुगना…….हमार बाबू, ठीक…. लग ता नु" कहते हुए वह अपनी प्यारी बहु को चोद रहे थे। अंततः उन्होंने अपने लंड को पूरी तरह सुगना की स्खलित हो रही बुर में ठान्स दिया। सुगना पहले ही स्खलित हो रही थी उधर सरयू सिंगर की आवाज लहराने लगी। सुगना …...कहते हुए अचानक सरयू सिंह एक कटे हुए पेड़ की भांति जमीन पर गिर पड़े।
उनके लंड से वीर्य उछल उछल कर बह रहा था। सुगना पीछे मुड़ी और अपने बाबुजी को जमीन पर गिरते हुए देख रही थी। सर्विसिंग अपना सीना पकड़े जमीन पर पड़े कराह रहे थे
नंगी सुगना ने रोते हुए कजरी को आवाज दी।
"माँ बाबुजी गिर गइले"
कजरी सूरज को गोद मे लिए भागते हुए कमरे में आयी….
अंदर का दृश्य देखकर कजरी की सांसे रुक गई नंग धड़ंग सरयू सिंह जमीन पर अपना सीना पकड़े कराह रहे थे नंगी सुगना उनके चेहरे को हिला कर बाबूजी…. बाबूजी… पुकार रही थी.
शरीर सिंह की का मुंह टेढ़ा हो रहा था कजरी ने कहा
"सुगना बाबू... अपन कपड़ा पहन और जाकर हरिया चाचा के बुला ले आव.."
सुगना ने अपने उपेक्षित पड़े साये से अपनी चुदी हुई बुर को पोछा फिर सरयू सिंह की जाँघों पर गिरा वीर्य पोछकर उसे पहना और कजरी की मदद से सरयू सिंह को लंगोट और धोती पहनायी और आनन फानन में साड़ी लपेट कर हरिया को बुलाने चली गयी।
गाँव के वैद्य की मेहरबानी से सरयू सिंह उठ तो गए पर सुगना और कजरी ने दबाव बनाकर उन्हें शहर इलाज कराने ले आयीं।
नियति ने सरयू सिंह की कामुकता पर विराम लगा लेने की सोच ली थी... आज वह अपनी अति कामुकता की वजह से ही अपनी बहू सुगना को चोदते चोदते गिर पड़े थे। उनकी सांस ऊपर नीचे होने लगी थी।
यह कैसा वासना का अतिरेक था सुगना जैसी सुंदरी की जांघों के बीच जाने कौन सा रत्न छुपा था जिसे सरयू सिंह का लंड बार-बार खोद कर निकालना चाहता पर हर बार उसका गुरुर उन गुफाओं में पानी की भांति बह जाता और सुगना की बुर एक बार फिर उन्हें वही प्रयत्न करने को बाध्य कर देती।
आज उनके माथे का दाग भी बढ़ा हुआ प्रतीत हो रहा था। कभी-कभी तो सुगना को लगता की उसके बाबूजी जब जब उसको अति उत्तेजना से चोदते हैं तभी उनके माथे का दाग बढ़ जाता है। उसका यह वहम उसे अपने बाबू जी से दूर रहने को प्रेरित करता पर सरयू सिंह वह तो सुगना की कमर के नीचे छुपे खजाने के गुलाम थे। उनके हाथ सुगना का एक खजाना तो लग ही चुका था और दूसरे खजाने को प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षारत थे।
बनारस पहुंच कर सरयू सिंह जी को हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया डॉक्टर ने उनके शरीर की विधिवत जांच और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कुछ विशेष दवाओं के सेवन की वजह से उनका रक्तचाप आवश्यकता से अधिक बढ़ गया था. यह एक लघु हृदयाघात से कम न था।
डॉक्टर बार-बार सरयू सिंह से उन दवाओं के बारे में पूछता पर सरयू सिंह ने उन दवाओं का नाम डॉक्टर को ना बताएं आखिर वह किस मुंह से डॉक्टर को यह बताते हैं कि उन्होंने शिलाजीत और अन्य कामोत्तेजक दवाइयों का सेवन किया है जबकि वह ऐसे सम्मानित पुरुष थे जिसने आज तक विवाह न किया था।
डॉक्टर ने कहा ने 2 दिन यही रहना पड़ेगा आप में से कोई एक व्यक्ति यहां रह सकता है।
हरिया ने कहा
"भौजी तू इनका संगे रुक जा हम सुगना के लाली के यहां ले जा तानी सूरज बाबू के खाए पिए के इंतजाम हो जाए. काल सुबह फेर आइब जा"
हरिया का यह प्रस्ताव सर्वाधिक उचित था पर सरयू सिंह उदास हो गए हॉस्पिटल के कमरे में वह सुगना के साथ की उम्मीद कर रहे थे उन्हें हर वक्त सुगना का साथ पसंद आता था। उनके दिमाग में बार बार यह बात आ रही थी कि सुगना लाली के घर में जाएगी तो राजेश निश्चय ही उनकी बहु सुगना से नजदीकियां बढ़ाने का प्रयास करेगा जो उन्हें कतई गवारा ना था मौके की नजाकत को देखते हुए उन्होंने कोई प्रतिकार न किया और सुगना हरिया के साथ कमरे से बाहर जाने लगी सुगना के भरे पूरे नितंब उनकी आंखों के सामने हिलते हुए ओझल हो रहे थे कजरी सरयू सिंह की निगाहों को सुगना की चूतड़ का पीछा करते हुए देख रही थी सुगना के जाते ही उसने कहा
"सुगना के साथ उ सब काम कईल अब छोड़ दी। देखी आज उहे कारण हॉस्पिटल में आवे के परल बा"
सरयू सिंह किसी भी सूरत में यह बात मानने को तैयार न थे कि वह और उनकी मर्दानगी सुगना को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। परंतु आज वह बिस्तर पर पड़े थे और उनके पास कजरी की बात मानने के अलावा दूसरा रास्ता ना था।
कजरी सरयू सिंह के बिस्तर के बगल में पढ़े लंबे बेंच पर लेट कर ऊँघने लगी.
सरयू सिंह अपने और सुगना के प्रथम मिलन को याद करने लगे…..
कजरी ने जब से सुगना और शरीर सिंह के मिलन का रास्ता बनाया था वह बेहद प्रसन्न थी। सरयू सिंह ने उसकी बात मान कर उसकी राह आसान कर दी थी। दरअसल कजरी को सुगना और सरयू सिंह के बीच पनप रही कामुकता की भनक बिल्कुल न थी. बेचारी कजरी तो सुगना की भावनाओं में बहकर सरयू सिंह के पास चली गई थी। वरना कुछ ही समय में सुगना की कोमल बुर का आकर्षण सरयू सिंह को उसके लहंगे में खींच लाता अद्भुत सुंदरी थी सुगना...अपनी मां पदमा से भी ज्यादा।
सुबह सुगना के चेहरे पर खुशी के साथ-साथ नववधू वाली लालिमा भी थी। पिछली दोपहर में सरयू सिंह की मजबूत उंगलियों ने उसका कौमार्य हर लिया था। सरयू सिंह की उंगली किसी कमजोर मर्द के लंड से कम नहीं थी। सुगना को अपना कौमार्य खोने का दर्द वैसा महसूस न हुआ था जैसा लंड से चोदने के बाद होता उसके बाबुजी ने मक्खन की मदद से स्खलित होते समय यह शुभ कार्य किया था सुगना खुश थी।
अब सुगना तैयार हो रही थी बीती रात उसकी कोमल उंगलियों ने पहली बार उसकी बुर की अंदरूनी मालिश की थी और सुगना को स्खलित कर दिया था। सुगना को अब अपनी उंगलियां करामातीं लग रही थी। उसने अपनी उनलियों को चूम लिया और अनजाने में ही अपने होंठों से स्वयं के प्रेम रस का स्वाद भी ले लिया।
कजरी की आवाज आयी
" ए सुगना कुँवर जी के दूध दे आवा"
कजरी सुगना को पहले भी बता चुकी थी कि वह सरयू सिंह को बाबूजी की जगह कुंवर जी ही बोला करें। कजरी के अनुसार बाबूजी शब्द पिता पुत्री के बीच का संबोधन है इस संबोधन के साथ चुदना या चोदना दोनों अनुचित होगा। परंतु सुगना के मुंह से हमेशा बाबूजी शब्द ही निकलता। वही हाल शरीर सिंह का था वह अपने मन में सुगना को नग्न करते मन ही मन उसे चोदते उसके साथ सारे नैतिक और अनैतिक क्रियाकलाप करते पर जैसे ही वह सामने आती उसे सुगना बेटा या सुगना बेटी ही बुलाते। सिर्फ सुगना बोलना जैसे उनकी जीभ को गवारा ना था। शुरुआती महीनों में सुगना और सरयू सिंह के बीच बना ससुर बहु का संबंध प्रगाढ़ हो गया था।
यह तो पिछले दो-तीन महीनों में सरयू सिंह और सुगना प्रेम की पाठशाला में पढ़ने लगे थे और दिन पर दिन महारत हासिल करते जा रहे थे।
"बाबूजी दूध ले ली" सुगना ने कहा। अपनी गलती पर उसकी जीभ खुद-ब-खुद दांतो के बीच आ गई।
सरयू सिंह ने दूध पकड़ते वक्त उसका चेहरा देख लिया सुगना ने अपनी नजरें झुका ली. वह अब बाबुजी से शर्माने लगी थी। दूध का गिलास छोड़ते ही सुगना वापस जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा
"सुगना बाबू कोनो दिक्कत नइखे नु, दुखाइल होखे त माफ कर दिह"
वह सुगना की बुर की तरफ इशारा कर रहे थे।
"ना सब ठीक बा" वह मुस्कुराते हुए अपनी पायल बजाते हुए छम छम करती आगन में चली गई. नव योवनाओं की खुशी सरयू सिंह के लिए सबसे महत्वपूर्ण थी।
तभी अंदर से कजरी की आवाज आई
"सुगना के मायके घुमा ले आयीं दीपावली से पहले अपना मां पदमा से मिल ली"
कजरी ने दीपावली शब्द पर ज्यादा ही जोर दिया था। सरयू सिंह को ऐसा महसूस हुआ जैसे सुगना दीपावली के दिन अपनी चुदाई से पहले अपनी मां से मिलना चाहती हो। यह सच ही था सुगना के लिए वह अवसर एक त्यौहार से कम न था वह अपनी मां से आशीर्वाद चाहती होगी ऐसा उन्होंने अनुमान लगाया।
सुगना मायके जाने के नाम से खुश हो गई थी।
कजरी और सुगना ने मिलकर सुगना के छोटे भाई बहनों के लिए कई सारी मिठाइयां बनाई और अगले दिन सुगना अपने बाबुजी के साथ मायके के लिए निकल पड़ी।
सरयू सिंह जब भी पदमा के बारे में सोचते उनके शरीर में उत्तेजना की लहर दौड़ जाती। यद्यपि वह पिछले कई वर्षों से वह पदमा के संपर्क में नहीं आए थे पर उसका नाम सुनकर उनका लंड थिरक उठता।
वह पद्मा को याद करते करते आगे आगे चल रहे थे और पद्मा पुत्री सुगना पीछे पीछे चल रही थी।
आज जब वह सुगना को लेकर पदमा के पास जा रहे थे उन्हें वह दिन याद आ गया जब सुगना पदमा की गोद में थी और पदमा अपने मायके आई हुई थी । सरयू सिंह भी अपने मामा के यहां पहुंचे हुए थे। पदमा को तांगे से उतरते देखकर ही उनकी आंखों में चमक आ गई। शहर से आई हुई पदमा और खूबसूरत हो गई थी। गोद में सुगना को लिए हुए व नीचे उतर रही थी। आँचल हटते ही उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ का उभार दिखाई दे गया। चूचियाँ सच मे कुछ ज्यादा बड़ी लग रही थीं। बड़ी हो भी क्यों न? उन चूचियों पर चार चार हथेलियो (सरयू सिंह और पद्मा का पति) ने मेहनत की थी। ऊपर से चूँचियों में सुगना के लिए दूध भी भर आया था। सरयू सिंह उन चूँचियों को सोचकर ही मस्त हो गए धोती में लंड फनफनाने लगा।
पदमा का पति लोहे की दो बड़े-बड़े संदूके लिए घर की तरफ आ रहा था। पास पहुंचने पर पद्मा ने अपने सरयू भैया की तरफ देखा और मुस्कुरायी।
पद्मा ने उनसे बात नहीं की पर आंखों ही आंखों में एक दूसरे के प्रति प्यार का इजहार हो गया। सरयू सिंह का दिल बल्लियों उछल रहा था और लंड का क्या कहना वह तनाव में आ रहा था और पद्मा की जाँघों के बीच खो जाने को बेकरार था।
पदमा का पिछवाड़ा अब सरयू सिंह की निगाह में था। उसके गोरे-गोरे गदराए नितंब लाल रंग की साड़ी में छुपे हुए हिल रहे थे। सुगना अपनी मां के कंधे पर सर रखे हुए सरयू सिंह का को टुकुर टुकुर देख रही थी। कुछ ही देर में पदमा अपने आंगन में चली गई और सरयू सिंह का नयनसुख खत्म हो गया।
"सरयू भैया कहां चल दिहल… अ" गांव के एक किसान बुधिया ने कहा
सरयू सिंह अपनी यादों से बाहर आये। वो और सुगना चलते चलते गांव के लगभग बाहर आ गए थे।।।
शेष अगले भाग में
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भाग-21
"सरयू भैया कहां चल दिहल… अ"गांव के एक किसान बुधिया ने कहा
सरयू सिंह अपनी यादों से बाहर आये। वो और सुगना चलते चलते गांव के लगभग बाहर आ गए थे।
"सीतापुर जा तानी हो"
"बहु रानी खाती पालकी ना मिलल हा का?"
"इनके मन रहे पैदल चलेके"
दरअसल पैदल चलने का सुझाव सुगना का ही था वह पालकी में अकेले नहीं जाना चाहती थी। जितना ज्यादा से ज्यादा समय वह अपने बाबुजी के साथ व्यतीत करती उतना ही आनंदित होती जब तक वह गांव के करीब थी. तब तक सुगना सरयू सिंह के पीछे पीछे चल रही थी. सरयू सिंह अपने गांव से बाहर आ चुके थे और अभी सुगना का गांव आने में कुछ वक्त था बीच का यह रास्ता लगभग एकांत जैसा था सरयू सिंह ने सुगना से कहा "सुगना बाबू तू आगे-आगे चल...अ"
सुगना मासूम लड़की की तरह सरयू सिंह के आगे आगे चलने लगी। दो खेतों के बीच पतली पगडंडी जिस पर बमुश्किल एक आदमी चल पाता है सुगना और शरीर सिंह आगे का सफर तय करने लगे सुगना अपने मदमस्त यौवन के साथ सरयू सिंह की निगाहों के सामने आगे आगे चलने लगी सरयू सिंह की निगाहों को सुगना की खूबसूरती के दर्शन होने लगे। जैसे-जैसे सुगना के कदम आगे बढ़ते उसकी उभरे हुए नितंब सरयू सिंह का ध्यान खींचते जब कभी वह अपने शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए अपने हाथ उठाती उसकी कोमल बाहें सरयू सिंह को आमंत्रित करती वह सुगना के पीछे पीछे चल रहे थे। और अपनी बहु पदमा के अंग प्रत्यंगो का निरीक्षण कर रहे थे जिन्हें दीपावली के दिन सहलाते और मसलते हुए सुगना को उसके जीवन का पहला संभोग सुख देना था।
सरयू सिंह जी की निगाहों ने अपनी पुत्री समान बहू के वस्त्रों का हरण कर लिया था जैसे-जैसे सरयू सिंह सुगना के नितंबों के बीच अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे उन्हें सुगना के नितंब निर्वस्त्र दिखाई दे रहे थे और उन हिलते हुए मादक नितंबों के बीच सुगना की कोमल गांड की कल्पना कर रहे थे निश्चय ही सुगना अपनी मां पदमा से ज्यादा खूबसूरत थी और हो भी क्यों ना सुगना की कमसिन उमर और गदराई जवानी ऊपर वाले की देन थी।
सुगना को अब तक एहसास हो चुका था कि उसके बाबूजी उसके शरीर को देख कर आनंदित हो रहे हैं । उसने पीछे मुड़कर देखा सरयू सिंह अपनी लंगोट में तन रहे लंड को व्यवस्थित कर रहे थे। सुगना शर्मा गयी।
सुगना और सरयू सिंह बातें करते हुए पदमा के घर पहुंच गए। पदमा का छोटा भाई सोनू कुछ दूर पहले ही गली में खेल रहा था उसने शरीर सिंह और पदमा को आते हुए देख लिया उसकी खुशी की सीमा न रही वह सरयू सिंह और सुगना के पास आने की बजाय भागता हुआ घर गया। शायद उसे अपने घर यह सूचना देना ज्यादा आवश्यक लगा वनस्पत कि वह अपनी बहन सुगना और सरयू सिंह से मिलता।
पदमा खुश हो गई। सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपने गोबर से सने हाथ धोकर सुगना के स्वागत के लिए तैयार हो गयीं। घर पहुंचते ही तीनों बच्चों ने सुगना को घेर लिया गजब का उत्साह था बच्चों में।
सरयू सिंह ने अपना झोला खोला और जो मिठाईयां कजरी और सुगना ने बनाई थी वह बच्चों के सुपुर्द कर दीं। उनके इस कार्य से बच्चों और सरयू सिंह में थोड़ी आत्मीयता बढ़ी।
सोनू ने पूछा
" चाचा कब चलल रहला हा"
सोनू द्वारा सरयू सिंह से जोड़ा गया यह रिश्ता अपेक्षाकृत ज्यादा उचित था। इसने सुगना और सरयू सिंह के बीच चल रहे कामुक प्रेम प्रसंग की ग्लानि को थोड़ा कम कर दिया। सरयू सिंह खुश हो गए। उन्होंने सोनू से खेती किसानी की बातें की और कुछ ही देर में बाद घर के आंगन से सफेद साड़ी में लिपटी हुई पदमा आज कई दिनों बाद उनके नजरों के सामने आ गयी।
सरयू सिंह खुद उस समय लगभग 45 -46 वर्ष के युवा थे पदमा की उम्र भी 42 -43 के आसपास रही होगी. इस उमर में भी पदमा के शरीर का कसाव कजरी जैसा ही था. विधवा होने के बावजूद गांव में लगातार श्रम करने की वजह से वाह अपने शरीर की बनावट को कायम रख पाई थी। सरयू सिंह की निगाहें एक सधे हुए दर्जी की भांति उसके शरीर के उभारों और कटावों का नाप लेने लगीं। तभी पद्मा ने उन्हें गुड़ और पानी पकड़ा दिया। जाने अधेड़ महिलाएं इतनी निश्चिंत क्यों होती है। झुकते समय यदि वह सावधानी ना बरतें तो अपनी चूचियां अनायास ही सामने बैठे पुरुष को दिखा देती हैं।
पद्मा ने भी अनजाने में अपनी गदरायी हुई चूँचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा दिए। पर जैसे सांड के मन मे गाय की जगह बछिया छायी हुई थी वैसे ही सरयू सिंह के मन में सुगना छाई हुई थी। सरयू सिंह ने पदमा की गदरायी हुई चुचियों को नजरअंदाज कर दिया।
अभी एक-दो दिन पहले ही सुगना का कसा हुआ बदन उन्होंने अपने हाथों से हुआ था। छूआ ही क्या उसके शरीर के हर अंग को महसूस किया था तथा अपनी उंगलियों से सुगना की कुंवारी बुर को जी भर कर सहलाया तथा उसका कौमार्य हरण किया था।
पदमा पुरानी रसमलाई थी और सुगना ताजी। इस समय सरयू सिंह की कामुकता पर सुगना एकछत्र राज कर रही थी।
सोनू ने कहा
"चाचा तनी धान में पानी डालकर आव तानी तब तक रउआ आराम कर लीं"
सोनी - मोनी भी खेलने भाग गयीं।
अब घर में सिर्फ सुगना और पदमा ही बचे थे। कुछ देर बाद सुगना भी अपनी सहेलियों से मिलने चली गई।
पद्मा सरयू सिंह के लिए खाना बना रही थी वह सरयू सिंह की यादों में खो गयी। और संयोग से उसी दिन को याद करने लगी (जिस दिन को रास्ते मे सरयू सिंह याद कर रहे थे) जब वह दूध पीती हुई सुगना को लेकर अपने मायके गई हुई थी।
सरयू सिंह भी अपने मामा के यहां पहुंचे हुए थे। तांगे से उतरते हुए उसमें सरयू सिंह को देख लिया था और उसकी आंखों में चमक आ गई थी। ऐसा नहीं था कि सिर्फ पद्मा ही खुश हुयी थी सरयू सिंह भी उतना ही खुश थे।
आंखों ही आंखों में एक दूसरे के प्रति ललक जाग उठी प्रेम छलक उठा। शाम होते होते पदमा सरयू सिंह से मिलने उनके मामा के घर आ गयी। सरयू सिंह ने सुगना को अपनी गोद में ले लिया और अपने जेब से ₹50 निकालकर पद्मा को दिया और बोला "केतना प्यारी बेटी बिया"
सुगना भी उनके साथ खेलने लगी वह उनकी गोद में रच बस गई. वह कभी उनकी मूछें छूती कभी बाल पकड़ती पदमा सुगना को बार-बार रोकती पर सुगना उसे अपना हक मान रही थी।
(निष्ठुर नियति को यह पवित्र प्यार रास न आया था और उसने अगले कुछ सालों में उसने यह परिस्थितियां पैदा कर दी कि अपनी गोद में खिलाई हुई सुगना को सरयू सिंह दीपावली के दिन चोदने जा रहे थे)
कुछ देर खेलने के बाद सुगना पदमा की गोद में चली गई।
उस समय गांव में रामलीला हो रही थी। सारे बुजुर्ग और धर्म कर्म में लिप्त लोग वह रामलीला देखने अवश्य जाया करते थे। पदमा के मां और पिताजी भी वह रामलीला नियमित रूप से देखते थे।
सुगना आज रो रही थी इसलिए पदमा रामलीला देखने न गई उसकी मां ने कहा "बेटा जब सुगना सुत जाई तब आ जाइह" पदमा के घर से उनके माता-पिता को निकलते देख कर सरयू सिंह की आंखें चमकने लगी. उनकी प्रेयसी घर में अकेली थी उसकी रखवाली के लिए सिर्फ और सिर्फ एक छोटी बच्ची थी जो स्वयं उसका ही दूध पी रही थी.
रामलीला का प्रसंग प्रारंभ होते ही लाउड स्पीकर की आवाज गांव में गूंजने लगी सरयू सिंह के कदम पदमा के घर की तरफ बढ़ चले।
कमरे में दिए की रोशनी चल रही थी। पद्मा अपनी चारपाई पर लेटी हुई थी उसकी चारपाई अपेक्षाकृत बड़ी थी जिस पर दो व्यक्ति आसानी से सो सकते थे। पदमा को सरयू सिंह के कदमों की आहट लग चुकी थी। उसने सरयू सिंह से कहा
"अंगनवा के द्वार में किल्ली लगा दी"
( आगन का दरवाजा बंद करके लॉक कर दीजिए )
सरयू सिंह उल्टे कदमों से एक बार फिर आंगन में गए और अपनी प्रेयसी पदमा के कथन का पालन किया। जैसे ही दरवाजा बंद हुआ उनके दिमाग ने उनकी हथेलियों को निर्देश पारित कर दिया शरीर सिंह की धोती खुल चुकी थी। कुछ ही देर में धोती और लंगोट दोनों पदमा के कमरे में दिखाई पड़ रहे थे पर उनका तनाव में आता हुआ लिंग अभी कुर्ते के पीछे छुपा हुआ था। सरयू सिंह की हथेलियां पदमा की पीठ पर घूमने लगी पद्मा ने खिलखिलाते हुए कहा "तनी धीरज धरी सुगना के सूत जाए दी"
पर सरयू सिंह अधीर हो चले थे। दीए की रोशनी में पदमा की बेदाग पीठ चमक रही थी। रीड की हड्डी का भाग दबा हुआ था साड़ी सरक पर नितंबों तक आ चुकी थी। सरयू सिंह के हाथ पदमा की पीठ पर रेंगते हुए उसकी चूचियो तक पहुंच गए।
पद्मा बाई करवट लेटी हुई थी और आगे की तरफ झुक कर अपनी दाहिनी चूची सुगना को पिला रही थी जिससे वह लगभग पेट के बल लेटी हुई प्रतीत हो रही थी। उसकी बाईं चूची पर सुगना का ही अधिकार था। वह अपने छोटे छोटे हाथों से उससे खेल रही थी। सरयू सिंह के हाथ जैसे ही दाहिनी चूची पर गए सुगना ने चूँची छोड़ दी और रोने लगी। पदमा फिर हंसने लगी और बोली "सरयू भैया चूँचियां छोड़ दी ओकरा के पी लेवे दीं रउआ नीचे चल जायीं"
सरयू सिंह को तो जैसे जन्नत मिल गई वह तो पदमा का चुचियों का रस लेने गए थे उन्हें पदमा के गोल नितंबों को छूने का विधिवत आमंत्रण मिल चुका था। उनकी हथेलियां चूँची को छोड़कर वापस पीठ पर आ गयीं और धीरे-धीरे पदमा के कोमल और गोल नितंबों की तरफ बढ़ने लगीं।
नितंबों की दरार आते आते सरयू सिंह की उंगलियां पेटीकोट का नाड़ा खोज रही थी पर वह दिखाई न पढ़ रहा था। कुछ ही देर में उनके हाथ में पदमा के नितंब आ गए वह पेटीकोट न पाकर थोड़ा आश्चर्यचकित थे पर जैसे ही उनके हाथ आगे बढ़े साड़ी की गांठ खुल गयी और एक पल के लिए उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे साड़ी द्वारा लगाया जा रहा प्रतिरोध पूरी तरह खत्म हो गया। साड़ी एक पतली चादर की भांति हटती गई पदमा के गोर और मादक नितंब उनकी आंखों के ठीक सामने थे। उन्होंने अपनी दोनों हथेलियों से उसे सहलाना शुरु कर दिया।
कभी वह उन्हें फैलाते कभी आपस में सटा देते। उन्हें पदमा की गोरी और ग़दरायी गांड उन्हें दिखाई देने लगी। अद्भुत थी पदमा। सरयू सिंह की उंगलियां और आगे बढ़ती गई। और वह उनकी पसंदीदा जगह पर पहुंच गई। पदमा की बूर पनिया चुकी थी। उनकी उंगलियों में लिसलिसा मदन रस लग गया। सरयू सिंह प्रसन्न हो गए पदमा पहले से ही उत्तेजित थी। उनके लंड का पदमा की बुर मिलन शीघ्र होने वाला था। उन्होंने एक ही झटके में अपना कुर्ता उतार दिया और पदमा के बगल में आकर लेट गये। सुगना अभी भी चूँची पी रही थी।
सरयू सिंह के प्यासे लंड ने अपना रास्ता खोज लिया। पदमा ने भी अपने दोनों पैर अपने पेट की तरफ लाकर अपनी बुर को सरयू सिंह के लंड के सामने ला दिया।
पद्मा के सरयू भैया का मूसल उसकी ओखली में प्रवेश कर गया। गजब चिपचिपी थी पदमा की बुर। सुगना के जन्म के बाद भी उसका कसाव कायम था। सरयू सिंह अपनी कमर हिलाने लगे। वह चारपाई पालना बन गई छोटी बच्ची सुगना पालना झूलते झूलते पदमा का दूध पी रही थी और पदमा की बुर सरयू सिंह के अंडकोष में दही के उत्पादन को बढ़ावा दे रही थी। कुछ ही देर में सुगना नींद में चली गई थी।
अब पदमा निश्चिंत थी वह चारपाई से उठ खड़ी हुई सरयू सिंह का लंड पूरी तरह खड़ा था और उछल रहा था पदमा की बुर से रिस रहा चिपचिपा मदन रस उस पर एक आवरण की तरह लिपटा हुआ था। पदमा जैसे ही चारपाई से उतर कर खड़ी हुई उसकी साड़ी जमीन पर आ गयी।
दीए की रोशनी में अपनी नंगी और गदरायी पद्मा को देखकर सरयू सिंह मदहोश हो गए। जांघों के बीच बीच फूली हुयी बुर चमक रही थी कुछ ही देर की चुदाई में उसका मुंह खुल गया था। बुर की फांके अलग-अलग थीं जिन पर प्रेम रस सना हुआ था। होठों के बीच से बुर का गुलाबी मुख दिखाई पड़ रहा था। पदमा ने अपने कदम उनकी तरफ बढ़ाएं पर सरयू सिंह ने रोक दिया।
" बस 2 मिनट जी भर कर देख लेवे द जाने फेर कब मिलबु"
पदमा शर्मा गई उसने अपनी आंखें बंद कर ली पर अपने सरयू भैया के लिए अपना सारा खजाना खोल दिया सरयू सिंह उस खूबसूरती को देखकर मस्त हो गए।
चारपाई की पाठ पर बैठकर पदमा को अपने पास खींच लिया और पदमा की पीठ को अपने सीने से हटा लिया।पदमा अभी भी खड़ी थी उसकी जांघों के बीच से सरयू सिंह का चिपचिपा लंड निकलकर पदमा को छूने का खुला आमंत्रण दे रहा था।
लंड का सुपाड़ा सच में बहुत आकर्षक लग रहा था दीए की रोशनी में वह चमक रहा था। पद्मा ने अपने हाथ नीचे किए और अपने छोटे कोमल हथेलियों में उस जादुई लट्टू को पकड़ लिया। जैसे ही लंड पर पदमा के हाथ लगे वह उछलकर उसकी बुर की तरफ बढ़ने लगा। वह बार-बार उसे नीचे करती पर सरयू सिंह का लंड मजबूत था वह पदमा की हथेलियों को ऊपर की तरफ धकेल रहा था। वह बुर में समा जाने को बेताब था।
जिस तरह एक मदमस्त नाग सपेरे की पकड़ में आने के बावजूद अपना तनाव लगातार बनाए रखता है उसी प्रकार सरयू सिंह का लंड पद्मा की हथेलियों को ऊपर की तरफ धकेल कर बुर में घुस जाने को बेताब था। पदमा हंस रही थी उसने कहा "संरयु भैया ई त पकड़ में आवते नईखे"
सरयू सिंह ने पदमा की चूचियां सहलायीं और उसकी कमर को नीचे की तरफ आने का इशारा किया और कहा
"जायेदा तू आराम से बैठा उ अपन रास्ता खोज ली"
ठीक वैसा ही हुआ पदमा उनकी गोद में बैठ रही थी और लंड अपना रास्ता खोजता हुआ बुर के मुहाने पर पहुंच गया। जैसे-जैसे पदमा अपना वजन छोड़ती गई उसकी पनियाई बुर एक बार फिर से भर गई। पदमा के पैर जमीन के ऊपर आ चुके थे। लंड नाभि को चूम रहा था। पदमा पूरी तरह भरी हुई महसूस हो रही थी। सरयू सिंह ने थोड़ी देर उसकी चूचियां सहलायीं और फिर अपने हाथों और पैरों का उपयोग कर पदमा को अपनी गोद में ऊपर नीचे करने लगे। जैसे जैसे पदमा ऊपर नीचे हो रही थी सरयू सिंह का लंड बुर में आगे पीछे होने लगा। अद्भुत आनंद में डूबे दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे में खोने लगे। कुछ देर इसी अवस्था में पदमा को चोदने के बाद उन्होंने पदमा की अवस्था बदल अब भी पदमा उनकी गोद में ही थी पर उसका चेहरा सरयू सिंह की तरफ था।
शर्म से लाल पद्मा के चेहरे को देखकर सरयू सिंह उसे चूमने लगे। उसके होठों पर अपनी जीभ फिराते हुए वह आनंद लेने लगे। पद्मा ने भी अपने होंठ खोल कर अपनी जीभ को बाहर निकाल लिया। दोनों छोटी तलवारे एक दूसरे में उलझ पड़ी। कभी पदमा की जीभ सरयू सिंह के मुह में प्रवेश कर जाती कभी सरयू सिंह की जीभ पद्मा में।
ऊपर के इस छोटे प्रेम युद्ध ने सरयू सिंह के लंड की रफ्तार बढ़ा दी उसे जैसे इशारा मिल रहा था। जितना प्यार सरयू सिंह और पदमा के होंठ एक दूसरे से कर रहे थे पदमा की बुर में लंड का आवागमन उतना ही तेज हो रहा था।
पदमा की दूध से भरी फूली हुई चूचियां सरयू सिंह के सीने से सटकर सपाट हो रहीं थी उसके निप्पल ओं से दूध रिस रहा था जो शरीर से के पेट से होता हुआ उनके लंड तक पहुंच रहा था।
एक बार फिर तूफान रफ्तार पकड़ रहा था पदमा की जाँघे तनने लगी। सरयू सिंह उसके होठों को चूमे जा रहे थे। उनकी हथेलियां पदमा के दोनों नितंबों को सहलाए जा रहीं थीं और दोनों ही हाथों की मध्यमा उंगली पदमा की गांड को छूने में होड़ लगा रही थीं। जब जब पदमा की गांड पर सरयू सिंह की उंगलियां घूमती पद्मा सिहर उठती पर उसकी उत्तेजना में चार चांद लग जाते। पद्मा से अब और बर्दाश्त न हुआ वह स्खलित होने लगी। वह उनसे अमरबेल की भांति लिपट चुकी थी। वह अपनी चूँचियां उनके सीने से रगड़ रही थी। कुछ ही देर में पद्मा स्खलित होकर शांत हो गई पर सरयू सिंह का लंड इतनी जल्दी पानी छोड़ने के मूड में नहीं था।
पदमा कोमलंगी थी उसे इस अद्भुत लंड का साथ पाकर झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगता था वह उनके प्यार से अभिभूत हो जाती थी। पदमा शांत हो चुकी थी और अपनी तेज चल रही सांसो को सामान्य करने की कोशिश कर रही थी। उससे अपनी कमर और नहीं हिलाई जा रही थी। सरयू सिंह उसे चूमे जा रहे थे और उसके स्खलन को आनंददायक बना रहे थे।
पदमा अगले कदम के बारे में सोच रही थी उसकी कोमल बुर इस अद्भुत चुदाई के बाद संवेदनशील हो चुकी थी वह सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर प्रवेश देने में अक्षम थी ठीक उसी प्रकार जिस तरह बारात में जी भर कर मिठाई खाकर पानी पी लेने के पश्चात दोबारा मिठाई खाने की हिम्मत नहीं होती वही हाल पद्मा की बुर का हो चुका था वह अपनी जी भर कर चुदाई करा चुकी थी और अब कुछ देर शांत रहना चाहती थी। सरयू सिंह अपना लंड लिए पदमा के अगले कदम का इंतजार कर रहे थे।
तभी सुगना रोने लगी पद्मा ने लोटे से पानी निकाला अपनी चूचियां पर पानी का छींटा मारा सरयू भैया के कुर्ते से उसे पोछा और सुगना को दूध पिलाने लगी।
सरयू सिंह पदमा के चूतड़ों पर अपना लंड रगड़ रहे थे उन्हें पता था अभी बुर के अंदर लंड प्रवेश करा पाना उचित नहीं था पर वह अपनी उत्तेजना कायम रखते हुए पदमा के गोल नितंबों से खेलने लगे। अचानक ही पदमा डॉगी स्टाइल में आ गई। सुगना पदमा के पेट के ठीक नीचे थी और अपना सिर ऊपर कर उनकी चूचियां पी रही थी सरयू सिंह को यह समझ नहीं आया।
पदमा को इस मादक अवस्था में देखकर उन्होंने तुरंत ही अपना लंड उसकी बुर में ठाँस दिया पदमा आगे की तरफ झुक गई सुगना के मुंह में फंसी उसकी चूची छूट गई सुगना फिर रोने लगी सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया।
इस अवस्था में वह अपनी प्यारी पदमा को चोदने को लालायित थे पर सुगना उनका खेल बिगाड़ रही थी वह छोटी सी बच्ची अनजाने में ही सरयू सिंह को सता रही थी।
(नियति का खेल निराला था जो सुगना अनजाने में सरयू सिंह को सता रही थी वही 2 दिनों बाद उसी निराले लंड से स्वयं चुदने जा रही थी)
जैसे ही उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला तभी पद्मा ने कहा "सरयू भैया आगे आ जाई" सरयू सिंह पदमा के चेहरे की तरफ चले गए। पदमा सुगना को दूध पिलाती रही और एक हाथ से उनका लंड सहलाने लगी। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्होंने अपना लंड पदमा के होठों से छुवाने की कोशिश की। पदमा शहर जाने के बाद पुरुषों का यह आदत बखूबी जानती थी। उसका फौजी पति भी इस सुख का कायल था। पदमा में अपने प्रेमी सरयू भैया को वह सुख देने की सोची और अपने होठों से उनके लंड का सुपाड़ा छूने लगी।
सरयू सिंह की उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई यह पहला अवसर था जब किसी स्त्री ने उनके लंड को अपने होठों से छुआ था। सरयू सिंह के हाथ पदमा के सिर के ऊपर आ गए वह उसके कोमल बालों से खेलने लगे। पदमा ने लंड का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर ले लिया।
उधर सुगना पदमा की चूचियां चूस रही थी इधर सुगना की मां पदमा सरयू सिंह का लंड। सरयू सिंह पदमा के प्रति कृतज्ञ हो रहे थे। आज वो जीवन का एक नया सुख पाकर खुश थे। वीर्य धार फूट पड़ी वह पद्मा के होठों को सीचने लगे पदमा को पता था कि यदि उसने अपना मुंह अभी खोला तो वीर्य की धार न सिर्फ पदमा को भीगोएगी अपितु छोटी बच्ची सुगना पर भी पड़ सकती थी जो पदमा को कतई पसंद न था।
पदमा के मुंह में वीर्य का दबाव बढ़ रहा था। पदमा अपने होठों को उनके लंड पर जकड़ी रही। उसका पूरा मुंह भर चुका था। सरयू सिंह की उत्तेजना भी शांत हो चुकी थी। लंड का उछलना खत्म हो चुका था। अब लंड को बाहर आने का समय हो चुका था। उन्होंने अपना ल** धीरे-धीरे पीछे करना शुरू किया और पदमा ने अपने होंठों को सिकोड़ना शुरू किया। जैसे-जैसे पदमा के हॉट सिकुड़ रहे थे उसके मुंह में भरे हुए वीर्य के लिए जगह कम पड़ रही थी।
अंततः जब लंड बाहर आया सुगना के मुंह से वीर्य की धार बह निकली।। पद्मा ने अपना चेहरा नीचे कर दिया और वह वीर तकिए पर गिरने लगा। पदमा के मुंह पर वीर्य की एक परत चढ़ चुकी थी।
अब तक सुगना सो चुकी थी। पदमा एक बार फिर बिस्तर से उतरकर सरयू सिंह के करीब आ गयी उसने सरयू सिंह के पास आकर कहा
" भैया हम का करीं हमार ई ( बुर की तरफ इशारा करते हुए) हमेशा हार जाले"
सरयू सिंह ने उसे अपने सीने से सता लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोले
"लेकिन अब तहरा भीरी इहो बा. अब ना हरबू"
पद्मा उनका इशारा समझ चुकी थी। वो मुस्कुराने लगी।
सरयू सिंह अपनी प्रेमिका के होठों से अपने ही बीर्य को चुराकर उन्होंने उसका स्वाद लिया और भाव विभोर होकर बोले
"पदमा आज तू जीत गईलू हम तोहार दिहल ई सुख कभी ना भूलब तू हमारा से कुछो माग ल"
"ठीक बा माग लेब"
पदमा अपनी तारीफ सुनकर उनसे सटती चली गई। सरयू सिंह अभी भी पदमा के नितंबों को सहलाए जा रहे थे। उनका जी पदमा से कभी नहीं भरता था।
पद्मा रोटी बनाते हुए सोचने लगी कि क्या वह आज सरयू सिंह से अपनी सुगना को गर्भवती करने का वचन मांग ले? क्या यह उचित होगा?
शेष अगले भाग में
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भाग- 22
पदमा अपनी यादों में इतना खो गई थी कि तवे पर रोटी रखी रोटी चल रही थी सुगना वापस आ चुकी थी
"मां कहां भुलाईल बाड़े देख रोटी जरता" पदमा सचेत हो गई।
उस दिन की छोटी सुगना न आज पूर्ण युवा और वयस्क नारी बन चुकी थी और अपनी मां के प्रेमी के साथ दीपावली के दिन संभोग करने जा रहे थी।
सुगना और पदमा आपस में बातें करने लगी। मां और बेटी को आपस में खुलने में ज्यादा वक्त ना लगा सुगना ने अपनी सासू मां कजरी द्वारा कुछ दिन बाद (दीपवली के दिन) आयोजित किये गए प्रथम संभोग के बारे में अपनी मां पदमा को स्पष्ट रूप से बता दिया।
पदमा खुश हो गई पर जैसे ही उसका ध्यान सुगना की कमर पर गया वह थोड़ी डर गई सुगना की कोमल जांघों और उसके बीच उसकी छोटी और कोमल बुर सरयू सिंह के विशाल लंड को अपने आगोश में कैसे ले पाएगी यह सोचकर वह सिहर उठी। उसने यह सब नियति पर छोड़ दिया आखिर उस अवस्था में वह भी सुगना की ही तरह थी कोमल और कमसिन।
कुछ देर बाद हुआ दालान में बैठकर पंखा झलते हुए पद्मा सरयू सिंह को खाना खिलाने लगी। पदमा के मन में यह उत्सुकता कायम थी कि आखिर सरयू सिंह सुगना को चोदने के बारे में क्या सोच रहे होंगे। क्या उन्होंने अपनी बहू सुगना को चोदने का प्रस्ताव यूं ही स्वीकार कर लिया होगा? क्या उनके मन में इस बात का हर्ष होगा या वह ऐसा करने को विवश हो रहे होंगे?
जितना व सरयू सिंह को जानती थी उससे ज्यादा उनके लंड को। सरयू सिंह के मन में चाहे जो चल रहा हो धोती के अंदर वह जादुई लंड सुगना के बुर में जाने के लिए अवश्य उछल रहा होगा इतना पदमा अवश्य जानती थी।
सरयू सिंह मन में कई भाव लिए खाना खा रहे थे। कभी पदमा को देखते कभी रोटी को। वह पदमा को चोदना तो हमेशा से चाहते थे पर इस समय वह सुगना में खोए हुए थे। आखिर पद्मा ने पूछ ही दिया
"कजरी जी मंदिर में मिलल रहली सुगना के दुख के बारे में बतावत रहली"
"हा कुछ त करहीं के परि"
उन्होंने गंभीर मुद्रा में कहा। वह इस बारे में ज्यादा बात करने से बच रहे थे।
आखिर वह यह बात करते भी कैसे जिस लंड से वह पद्मा को चोद चुके थे उसी लंड से उसकी पुत्री को चोदने जा रहे थे।
तभी पद्मा का ध्यान सरयू सिंह के माथे पर कीड़े द्वारा काटे गए निशान पर गया। पद्मा ने पूछा..
"ई कइसे लाग गइल हा"
सरयू सिंह से जवाब देते न बना। वह पदमा से किस मुंह से कहते कि नियति ने यह इनाम उन्हें सुगना की कोमल बुर देखने के उपलक्ष्य में दिया है।
पद्मा ने कहा
"एक बात बोली मानब"
"हा बोल...अ"
"दीपावली के दिन हमार सुगना बेटी के ध्यान राखब बहुत कोमल और सुकवार बीया तनी धीरे धीरे आगे बढ़ब"
सरयू सिंह भावुक हो गए और बोले। उनकी प्रेमिका अपनी बेटी को धीरे धीरे चोदने का आग्रह कर रही थी। पर शायद पदमा को नहीं पता था सरयू सिंह भी सुगना से उतना ही प्यार करते थे जितना पदमा स्वयं यह तो नियति ने साजिश रचकर उनके प्यार में वासना का पुट डाल दिया था और अब वह अपनी प्यारी पुत्री समान बहू को उसकी इच्छा अनुसार चोदने जा रहे थे।
"तहर बेटी के खुश राखल हमार जिमेवारी बा बाकी सुगना ने पूछ लिह"
सरयू सिंह की बात सुनकर पदमा संतुष्ट हो गई उसे यह बात पता थी कि सरयू सिंह कभी भी स्त्रियों के साथ आक्रामक नहीं होते थे वह उन्हें जी भर कर प्यार करते और मन भर चोदते थे। वह स्वयं उनकी इस कला की प्रत्यक्ष गवाह थी और हमेशा अपनी जाघें खोले उनसे चुदने के लिए तैयार थी।
आज पदमा ने अपनी कामुकता को दवा लिया था वह सुगना के प्रति चिंतित भी थी और मन ही मन सुगना के प्रथम संभोग के सुखद होने की कामना कर रही थी। सरयू सिंह पर उसे पूरा विश्वास था पर उनका जादुई लंड…... पदमा को उसकी करतूतें याद थी।
अपनी जांघों के बीच फंसे सरयू सिंह के लंड को सोचकर वह सिहर उठती। कितना शैतान था वह लंड पदमा की कोमल बुर को जी भर चोदने के बाद भी उसकी प्यास ना बुझती। आखिर पदमा को अपने होठों और नितंबों को भी मैदान में उतारना पड़ता तब जाकर लंड अपने अभिमान का परित्याग करता और वीर्य रस बहाते हुए पदमा के सामने नतमस्तक हो जाता।
पदमा द्वारा बनाया बेहतरीन खाना खाकर बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगे वह शाम की कल्पना में डूबे हुए थे उनकी दोनों परियां एक साथ एक ही घर में थी क्या आज उनकी रात गुलजार होगी ? यह प्रश्न मन में लिए हुए वह निद्रा देवी की आगोश में चलें गए।
पदमा आज अपनी सुगना को प्रसन्न देखकर स्वयं भी बेहद खुश थी. सुगना अपनी छोटी बहनों सोनी मोनी के साथ खेल रही थी खेलते समय उसकी उम्र कुछ और भी कम हो गई। पदमा सुगना के बारे में सोच सोच कर कभी घबराती कभी शरमाती और कभी कभी उत्तेजित हो जाती।
सुगना एक पूर्ण युवा नारी थी जो संभोग की प्रतीक्षा में थी नियति ने मिलन का दिन निर्धारित भी कर दिया था पर अभी इस वक्त उसे खेलते देखकर पदमा की ममता जाग उठी वह कैसे अपनी फूल सी बच्ची को सरयू सिंह जैसे मर्द के हाथों चुदने के लिए छोड़ सकती थी।
पदमा भावनाओं में खो गई उसने सुगना को अपने पास बुलाया और अपने आलिंगन में ले लिया। सुगना की चूँचीयां अपनी मां की चुचियों से सट गई। सुगना की चूँचियां तनी हुई थी। अभी कल ही सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों ने उसकी चुचियों को नया आकार देने की कोशिश की थी। सुगना ने भी अपनी मां को गले से लगा लिया। सुगना ने पूछा
"का भइल मां?"
पदमा की आंखों में आंसू थे. उसने कहा "कुछ ना बेटा जा खेल.."
पदमा नियति का यह निराला खेल देख रही थी. उसने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया जो सुगना के भाग्य में लिखा था वह घटित होना था. उसने अपने आप को इसी बात से संतुष्ट कर लिया कि सरयू सिंह निश्चय ही उसके अनुरोध का ख्याल रखेंगे और सुगना के साथ कोई कामवेग में कोई ज्यादती नहीं करेंगे।
वह शाम के खाने की तैयारियों में लग गई
खाना पीना खाने के पश्चात सोनी और मोनी सोने चली गई। पदमा का भाई सोनू भी खेत रखाने ट्यूबवेल पर चला गया घर में पदमा और सुगना रसोई के कार्य निपटा रही थी।
बाहर दालान में सरयू सिंह अपने ख्वाबों में खोए हुए थे। वह आज रात के लिए व्यग्र थे। उनके मन में इस रात के लिए कोई पटकथा तैयार नहीं थी वह कभी सुगना के बारे में सोचते कभी पदमा के। उन दोनों के बारे में सोच कर ही उनका लंड धोती में खड़ा हो चुका था जिसे वह बीच-बीच में थपकीया देकर सुलाने की कोशिश करते पर अपनी भूतपूर्व और वर्तमान प्रेमिकाओं को आंगन में घूमते और आपस में बातें करते देख कर उनका लंड सोने को तैयार न था। उसे अपनी प्रेमिकाओं की प्रतीक्षा थी।
कहते हैं जब अपनी प्रेमिका को सच्चे दिल से पुकारो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने के लिए लग जाती है. आज सरयू सिंह के लंड का सबसे ज्यादा इंतजार सुगना कर रही थी वह अपने बाबू जी से अपने ही घर में मिलने के लिए बेचैन थी।
पद्मा ने उसके मन की बात पढ़ ली और कहा "जा अपना ससुर जी के तेल लगा द, रास्ता चलत चलत थक गईल होइहें"
सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही उसने लकड़ी के चूल्हे पर कड़ाही में तेल गर्म किया और कटोरी में लेकर दालान में आ गई. पद्मा ने आगन से आवाज दी
"सुगना बेटी तेल लगा कर हमारे कोठरी में आ जाइह" सुगना खुशी-खुशी अपने बाबू जी के पास आकर उनके पैरों में तेल लगाने लगी. सरयू सिंह के मजबूत पैरों पर सुगना की कोमल हथेलियां फूल जैसी लग रही थीं फिर भी सुगना की हथेलियों का दबाव उन्हें अच्छा लग रहा था। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियां ऊपर बढ़ती गई लंड मुस्कुराने लगा। जाने क्यों उसे यह प्रतीत हो रहा था जैसे वह कोमल हथेलियां उसका भी ख्याल रखेंगी.
सुगना स्वयं उस जादुई अंग को अपने हाथों में लेना चाहती थी परंतु दीए की रोशनी में अपने बाबूजी का लंड पकड़ना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नियति ने फिर उसका साथ दिया और एक ठंडी हवा के झोंके ने दिया बुझा दिया पर झरोखे से आ रही चांदनी कमरे को अभी भी थोड़ा प्रकाशमय की हुई थी। सुगना का गोरा चेहरा सरयू सिंह की आंखों में चमक रहा था। सुगना की हथेलियां धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही थी। सरयू सिंह अपना लंगोट पहले ही खोल चुके थे।
कुछ ही देर में सुगना के तेल से भीगी हुयी हथेलियों ने सरयू सिंह के जादुई लंड को अपने हाथों में ले लिया। सरयू सिंह सिहर उठे। अपनी बहू के हाथ में अपना लंड महसूस कर उनकी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गयी। लंड से रिश्ता हुआ वीर्य सुगना की हथेलियों से छू गया।
सुगना अब चिपचिपे द्रव्य को आसानी से पहचान लेती थी। उसकी हथेलियों ने सरयू सिंह के वीर्य की बूंदों को उनके ही सुपारे पर फैला दिया और अपनी छोटी हथेलियों से उसकी मालिश करने लगी। वह आई तो थी अपने बाबूजी के पैरों की मालिश करने पर अब जो वह कर रही थी वह उसके बाबूजी को भी उतना ही पसंद था जितना खुद उसको।
वह अपनी हथेलियों से कभी उसे नापने की कोशिश करती कभी उसकी गोलाई महसूस करती और कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसे ऊपर नीचे करने लगती। लंड बार-बार उसकी हथेलियों को ऊपर की तरफ खींच रहा था। इस उम्र में भी शरीर सिंह के लंड में जाने इतनी ताकत कहां से रहती थी। सुगना उस लंड से खेलने लगी।
कुछ देर बाद सरयू सिंह ने उसे अपने पास बुला लिया। सुगना उनके पेट के पास आकर बैठने लगी।
सुगना ने लहंगा पहना हुआ था जैसे ही वह बैठ रही थी सरयू सिंह ने अपने दाहिने हाथ से उसके लहंगे को सरकाया और अपनी हथेली को सुगना के नितंबों के नीचे रख दिया। सुगना लगभग उनकी हथेली पर बैठ चुकी थी। अपने कोमल नितंबों के नीचे सरयू सिंह की मजबूत हथेली को पाकर वह आने वाले घटनाक्रम का अंदाजा कर रही थी। कुछ ही देर में सरयू सिंह की उंगलियां सुगना की बुर की फांकों को सहलाने लगी। सुगना की उत्तेजना बढ़ रही थी सुगना की बुर ने सरयू सिंह की उंगलियों को अपने मदन रस से भिगो दिया। सरयू सिंह की मध्यमा उंगली सुगना की कोमल बुर के अंदर एक बार फिर प्रवेश कर गई।
सुगना आनंद में डूब रही थी जितना आनंद उसे अपने लहंगे के नीचे प्राप्त हो रहा था वह प्रत्युत्तर में उतना ही आनंद सरयू सिंह के लंड को सहला कर उन्हें प्रदान कर रही थी।
सरयू सिंह भी दोहरे आनंद में डूबे हुए थे एक तरफ उनकी हथेलियों को सुगना की कोमल बुर् का स्पर्श मिल रहा था जिसकी संवेदना उनके दिमाग तक भी जा रही थी उसी संवेदना लंड तन जा रहा था। उधर सुगना की हथेलियां उसे और उत्तेजित कर रही थीं। कुछ ही देर में सुगना की कोमल हथेलियों ने सरयू सिंह के लंड की अकड़ ढीली कर दी।
सुकुमारी सुगना के प्रयासों से लंड से वीर्य प्रवाह होने लगा वीर्य की धार उछल कर सुगना के गाल पर जा पड़ी। उछलते समय लंड को पकड़ना सुगना के लिए कठिन हो रहा था। इसी बीच सरयू सिंह की उंगलियों का कंपन बढ़ गया और सुगना की बुर भी पानी छोड़ने लगी। इस दोहरी उत्तेजना से वह वह वीर्य वर्षा को सही दिशा न दे पायी और सरयू सिंह के वीर्य की धार में वह खुद भी भीग गई और उसका कुछ अंश सरयू सिंह के चेहरे और सीने पर जा गिरा।
सरयू सिंह के लंड की उत्तेजना शांत पढ़ते ही सरयू सिंह ने सुगना को अपनी तरफ खींच लिया। और उसके गालों को चूमने लगे। सुगना ने भी उनके होठों से अपने होंठ सटा दिए और उनके होठों पर लगा उनका वीर्य अनजाने में अपने होठों पर ले लिया।
सरयू सिंह की मध्यमा उंगली जो सुगना के काम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी उसे सरयू सिंह ने अपने होठों से सटा लिया। सुगना उस उंगली पर चमकते हुए अपने काम रस को देखकर शर्मा गई सरयू सिंह ने सुगना की आंखों में देखा और अपनी उंगली को अपने मुंह में भर लिया।
सुगना अपने बाबू जी की इस हरकत पर सिहर उठी। क्या उसके बाबूजी उसकी बुर का स्वाद ले रहे हैं? क्या बाबूजी को वह स्वाद पसंद आ रहा है? क्या कभी वह अपने होठों से उसके बुर का स्वाद लेंगे? सुगना सिहर रही थी वह उनसे अपनी आंखें और मिला पाने में खुद को असहज महसूस कर रही थी.
वह बिस्तर से उठी अपने बाबूजी के लंड को धोती से ढका और कटोरी में बचा हुआ तेल लेकर वापस आंगन में आ गई। पदमा कोठरी में उसका इंतजार कर रही थी। सुगना ने अपने चेहरे और चूचियों को साफ किया जो शरीर सिंह के वीर्य से गीली हो चुकी थी। सुगना ने अपने शरीर पर से वीर्य तो पोछ लिया था पर उसकी चोली और लहंगे पर जगह-जगह वीर्य के दाग पड़ चुके थे। सुबह उठने पर पद्मा ने वह दाग देखा और बोला
"सुगना बेटा ई का लगा ले लु हा"
सुगना ने जबाब न दिया।सुगना को अब जाकर एहसास हुआ की प्रेम रस का अपना दाग होता है वह शरमा गई और नहाने चली गई।
पदमा के मन में यह शंका उत्पन्न हो चुकी थी कि क्या सुगना के लहंगे पर लगा वीर्य सरयू सिंह का ही था? तो क्या सरयू सिंह ने सुगना के साथ नज़दीकियां बना ली थी? क्या सुगना ने सरयू सिंह के जादुई लंड को अपने हाथों में लेकर स्खलितकिया था या फिर सुगना पहले ही चुदाई का आनंद ले चुकी थी।
पदमा अपने ख्यालों में खोई थी पर उसके पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था। वह सुगना से और बातें करना चाहती थी पर समय का अभाव था आज ही सुगना और सरयू सिंह को वापस अपने गांव निकलना था
कुछ ही समय बाद सरयू सिंह और सुगना वापसी यात्रा के लिए निकल चुके थे। आज धनतेरस का दिन था 2 दिनों बाद दिवाली थी। सुगना और उसकी बुर दिवाली मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थी।
शेष अगले भाग में।
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भाग-23
सुगना आज अपने मायके से विदा हो रही थी। गवना के बाद यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह सुगना को विदा कराकर ला रहे थे ससुर बहू का संबंध अब बदल रहा था सुगना अपने ससुराल जा रही थी पर उसके दिलो-दिमाग पर उसके पति रतन की जगह उसके बाबूजी सरयू सिंह छाए हुए थे. सुगना बेहद प्रसन्न थी पद्मा ने सुगना को कॉटन की एक नई साड़ी उपहार में दी और उसे अपने हाथों से पहना दिया सुगना बेहद सुंदर लग रही थी।
जाते समय पद्मा ने सुगना को दीपावली की बधाई दी और उसके कान में कहा
"भगवान तोहरा के हमेशा खुश रखे तहर हर मनोकामना भगवान पूरा करें. दीपावली तहरा खातिर ढेर खुशियां ले के आये"
दीपावली का नाम सुनकर सुगना सिहर उठी।
सुगना की आंखों में अपनी मां से बिछड़ने का अफसोस था पर सरयू सिंह के साथ दीपावली मनाने की खुशी। वह अब उनका संसर्ग पाने को अधीर हो चली थी। सुगना का भाई सोनू और दोनों छोटी बहन उसे गांव के बाहर तक छोड़ने आए और उसके बाद सुगना अपने बाबूजी के पीछे पीछे अपने ससुराल के लिए चल पड़ी। गांव से दूर आते हैं सुगना अपने बाबूजी के साथ साथ चलने लगी
सरयू सिंह ने कहा
"दिवाली के बात ताहरा मां के मालूम बा?"
"हां, बुझाता सासू मां बतावले बाड़ी"
"तू तो खुश बाड़ू नु?"
"रउआ नइखी का"
सरयू सिंह के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी। सुगना अब एक प्रेमिका की भांति बर्ताव कर रही थी।
नियति सरयू सिंह और सुगना का मिलन सुनियोजित कर चुकी थी। दोनों ही तरफ आग लगी हुई थी सुगना की अधीरता बढ़ती जा रही थी। नियति ने इस आग को भड़काने की कोशिश की और आसमान से बूंदाबांदी होने लगी। इस मौसम में वैसे कभी बरसात नहीं होती थी पर आज कुछ नया था।
आसपास सिर्फ और सिर्फ खेत थे जिन में धान की फसल लहलहा रही थी सरयू सिंह और सुगना परेशान हो गए। कुछ दूर एक बरगद का पेड़ दिखाई दे रहा था। सरयू सिंह और सुगना ने अपने पैरों की रफ्तार बढ़ा ली। सुगना कोमलांगी थी और शरीर सिंह गठीले मर्द। सुगना उनका साथ दे पाने में असमर्थ हो थी फिर भी भागते भागते वह दोनों प्रेमी युगल बरगद के पेड़ के नीचे पहुंच गए।
सुगना और सरयू सिंह थोड़े-थोड़े भीग गए थे। सुगना के चेहरे पर पानी की बूंदे उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रही थी काटन की साड़ी भीग कर उसके बदन से चिपक गई सुगना की चूँचियां अपना उभार दिखाने लगी थी। अपने बाबू जी की निगाहें अपने चुचियों पर महसूस कर सुगना ने अपना आंचल ठीक किया और चुचियों को एक बार फिर आंचल से ढक लिया। सरयू सिंह अपनी बहू की यह अदा देख रहे थे उनका लंड चुचियों के दर्शन मात्र से ही खड़ा हो चुका था। उन्हें अपने लंगोट पहने होने पर अफसोस हो रहा था। उन्होंने सुगना से अपनी नजर घुमाई और पीछे मुड़कर अपने लंड को लंगोट से बाहर निकाल दिया।
धोती और कुर्ते के अंदर छुपा लंड ऐसा लग रहा था नाग पिटारे से निकालकर चादर ओढ़े बैठा हो। सुगना इस अप्रत्याशित बारिश से डरी हुई थी। आकाश में बिजली कड़कना शुरू हो चुकी थी। वह सरयू सिंह के पास आती जा रही थी। बरगद का पेड़ अभी भी उन्हें पानी से बचा रहा था पर कब तक?
बिजली कड़कने की आवाज से सुगना बेहद डर गई और सरयू सिंह से आकर सट गई. सरयू सिंह ने उसे अपने आगोश में ले दिया उसकी चूचियां उनके सीने से टकराने लगी. सुगना जैसी कोमलंगी बहु को अपने आगोश में लिए सरयू सिंह मदहोश हो गए उन्हें यह ध्यान न रहा कि वह उनकी बहू सुगना है उनकी भौजी कजरी नहीं। वह उसके नितंबों और पीठ पर अपने हाथ फिराने लगे सुंदर युवती उनकी हमेशा से कमजोरी थी। इस भरी दुपहरी में वह अपनी बहु सुगना के अंग प्रत्यंगो को छूने लगे सुगना स्वयं भी मस्त हो गई थी। उसका डर अब उत्तेजना में बदल चुका था। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने पेट पर महसूस कर लिया था।
सरयू सिंह के मन में आया कि वह सुगना की साड़ी उठा दे और गदराये नितंबों की मखमली त्वचा को अपने हाथों से महसूस करें। उन्हें अपनी उत्तेजना पर शर्म भी आई। क्या हुआ इतने अधीर हो चले थे कि अपनी बहू को दिन के उजाले में खुले खेत में नंगा करने को तैयार है। वह नई नई जवान हुई थी उसे इस तरह नंगा करना सर्वाधिक अनुचित था।
सरयू सिंह सुगना से अलग हुए और बरगद की जड़ पर पालथी मारकर बैठ गए सुगना अभी भी खड़ी थी उसे सरयू सिंह ने अपने आलिंगन से अलग कर उसका मन तोड़ दिया था। वह तो उस आलिंगन का आनंद ले रही थी तभी सरयू सिंह ने उसे बैठने के लिए कहा वह नीचे बरगद की जड़ पर बैठने लगी।
सरयू सिंह ने अपनी गोद की तरफ इशारा किया और बोले
"सुगना बेटा नया साड़ी गंदा हो जायी एहिजे बैठ जा"
सुगना प्रसन्न हो गई सरयू सिंह ने उसे अपनी गोद में ही बिठा लिया सुगना के नितंब सरयू सिंह के गोद में आ गए। कितनी कोमल थी सुगना। उनकी एड़ियों पर सुगना के गोल नितंब मुलायम तकिए के जैसे लग रहे थे। सरयू सिंह अपने अंगौछे से सुगना के गालों पर आई पानी की बूंदे पोछने लगे। उन्हें सुगना का चेहरा तो नहीं दिखाई दे रहा था पर उसके नाक नक्श का उन्हें भरपूर अंदाजा था सुगना उनके प्यार से अभिभूत हो रही थी और अपना प्रेम अपनी जांघों के बीच मदन रस छोड़कर जता रही थी। क्या उसके बाबूजी उसका प्यार समझ पाएंगे ? वह उनकी उंगलियों और लंड का स्पर्श अपनी बुर पर चाह रही थी।
जब भावनाएं और विचार एक तो लक्ष्य एक हो ही जाता है। सरयू सिंह स्वयं उत्तेजित हो चले थे । सुगना के कोमल नितंब उनके लंड से भी छू रहे थे। सुगना के चेहरे को पोछने के बाद उन्होंने सुगना के गर्दन और नीचे के भाग को छूना शुरु कर। दिया जैसे जैसे बिजली कड़कती सुगना की पीठ सरयू सिंह के सीने सट जाती। सरयू सिंह अपनी भुजाओं से सुनना को अपनी तरफ खींच लेते।
वह उनकी गोद में बेहद सुंदर लग रही थी। सरयू सिंह की हथेलियों ने अपना रास्ता खोज लिया। सुगना की गोल-गोल चूचियाँ उनकी हथेलियों में आ चुकी थी। कुछ देर तो वह उन्हें साड़ी के ऊपर से ही सहलाते रहे पर वह न सुगना को रास आ रहा था ना सरयू सिंह को। सरयू सिंह को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह पन्नी में भरकर रसगुल्ला खा रहे थे। उनकी हथेलियों ने सुगना की ब्लाउज के अंदर जाकर सुगना की नंगी चूचियों को अपने आगोश में ले लिया। सुगना सिहर उठी पर खुश हो गई।
अपनी चुचियों पर अपने बाबूजी का हाथ उसे बेहद अच्छा लगता था। उसकी बुर अपने होंठ खोल रही थी। प्रेम रस के बहने से बुर की दोनों फांकें थोड़ी फूल गई थी। शायद यह सुगना की उत्तेजना के कारण था। एक कुंवारी नवयौवना अपने बाबू जी की गोद में बैठी हुई अपनी चूची मीसवा(दबवा) रही थी यह उसके लिए स्वर्गिक सुख से कम न था।
जब जब बिजली कड़कती सरयू सिंह की हथेलियां अनजाने में ही उसकी चुचियों को जोर से दबा देतीं। सुगना कराह उठती
"बाबूजी तनी धीरे से…….दुखाता"
सरयू सिंह अपनी बहू की कोमल कराह से द्रवित हो जाते और उसके गर्दन और गालों को चूमने लगते. सुगना उत्तेजना से कांप उठती इस ठंडक में सरयू सिंह की सांसे उसे बेहद मर्मस्पर्शी और अपनत्व से ओतप्रोत लगतीं। वह अपने चेहरे को पीछे कर उनके गाल से अपने गाल सटाती तथा कभी-कभी उन्हें चूमने का प्रयास करती।
नियति बरगद के पेड़ पर बैठे हुए यह प्रेमा लाप देख रही थी उसे अपने निर्णय पर गर्व हो रहा था। उम्र का फासला हटा दें तो सरयुसिंह और सुगना जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे।
सरयु सिंह के माथे पर कीड़े का काटा हुआ दाग दिखाई दे रहा था। उनके खूबसूरत चेहरे पर एक वह एक धब्बे के जैसा दिखाई पड़ रहा था। जाने वह कौन सा कीड़ा था जिसने सरयू सिंह की खूबसूरती पर एक दाग लगा दिया था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे जब वह सुगना के साथ कामुक गतिविधियां करते समय वह दाग और बढ़ जाता था।
सुगना की निगाह जब भी उस दाग पर जाती वह अपनी उंगलियों से उसे सहलाती और कई बार उसे चूम लेती। उसे बार-बार यही अफसोस होता कि उस दिन उसके लहंगे से कीड़ा निकालते समय उसके बाबूजी को यह दाग मिला था। पर उसका कोमल मन यह जानता था की यही वह पहला दिन था जब उसकी कोमल और कमसिन बुर के दर्शन बाबूजी ने किए थे।
सरयू सिंह के चूमने और सहलाने से सुगना उत्तेजित हो चली थी वह अपने बाबू जी की गोद में हिलडुल रही थी। अचानक ही सुगना ने अपने शरीर को थोड़ा सा उठाया और अपने साड़ी को स्वयं ही पीछे करते गई। सरयू सिंह सुगना की यह गतिविधि देख रहे थे थोड़ी ही देर में सुगना की साड़ी उसकी कमर तक आ गई और उसके कोमल नितंब पूरी तरह नग्न हो गए इसी दौरान सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती से अलग कर दिया। सुगना जब उनकी गोद में बैठी लंड उसकी जांघों के बीच से होते हुए ऊपर उसकी नाभि तक आ गया।
लंड पर सुगना की पेटीकोट और साड़ी का आवरण था। वह सुगना की साड़ी में एक तंबू बनाए हुए था। सुगना उस लंड की ताकत को देखकर सिहर भी रही थी और आनंदित भी हो रही थी। उसने अपनी हथेलियों से सरयू सिंह के लंड को साड़ी के ऊपर से ही सहलाना शुरु कर दिया।
सरयू सिंह थोड़ा पीछे छुक गए और सुगना को आरामदायक स्थिति प्रदान कर दी। सुगना ने अपने शरीर को एक बार फिर साड़ी से ढक लिया था पर नीचे उसके नितंब और जांघें पूरी तरह नग्न थी जो उसके बाबूजी के पैरों और जांघों से छू रही थीं।
सरयू सिंह का लंड सुगना की पनियायी बुर से छूता हुआ ऊपर की तरफ आ गया था। कोई दूर बैठा व्यक्ति यह तो देख सकता था कि सुगना अपने बाबू जी की गोद में बैठी है पर यह कल्पना भी नहीं कर सकता था सरयू सिंह का लंड सुगना की बुर से छू रहा था।
उनकी प्यारी बहू उस लंड को अपनी साड़ी के ऊपर से सहला रही थी। सरयू सिंह सुगना की कोमल बुर का स्पर्श अपने लंड पर पाकर अभिभूत हो चले थे। एक पल के लिए उन्हें लगा काश आज दीपावली होती वह अपनी कजरी भौजी की इच्छा आज ही पूरी करते देते।
बुर से निकल रहा चिपचिपा रस लंड पर भी लग रहा था। उस प्रेम रस पर सर्वाधिक अधिकार सरयू सिंह के लंड के सुपारे का था जिसने नहा कर उसे सुगना की बुर की गहराइयां नापनी थीं। पर वह बेचारा उससे दूर था। सुगना इस बात से अनजान सुपारे को अपने पेटीकोट और साड़ी के ऊपर से सूखा ही रगड़ रही थी।
सरयुसिंह सुगना की उंगलियों का कोमल स्पर्श अपने सूपारे पर चाह रहे थे। पर सुगना शायद इतनी समझदार न थी। सरयू सिंह ने स्वयं ही मोर्चा संभाल लिया उनके हाथ सुगना की नंगी जांघों को छूने लगे धीरे-धीरे वो अपने हाथ अपने लंड की तरफ ले गए और अपने लंड को छूने की कोशिश में उन्होंने सुनना कि को बुर को भी न सिर्फ छू दिया अपितु उसके होंठों पर रिस आये प्रेम रस चुरा कर अपने लंड पर लगा दिया
सुगना इस प्रेम रस की चोरी से प्रसन्न हो गई वह उनकी उंगलियों का इंतजार एक बार फिर करने लगी। सुगना और उसके बाबुजी अब तक पूरी तरह उत्तेजित हो चले थे। वह अपने लंड को सुनना की बुर पर रगड़ रहे थे पर लंड का सुपाड़ा बुर् का स्पर्श नहीं कर पा रहा था। वह सुगना की गोरी जांघों के बीच से निकालकर बुर से सट रहा था और सुगना के हाथों में खेल रहा था। ऐसा लग रहा था सरयू सिंह के उस नाग को पकड़ने में वह और उनकी बहू दोनों मेहनत कर रहे थे। सुगना की बुर पूरी तरह पनिया चुकी थी। शरीर सिंह अपने लंड को लगातार उसकी बुर से सटाए हुए थे।
सुगना की बुर लंड को अपने अंदर लेना चाह रही थी पर अभी दिवाली दूर थी। सरयू सिंह की करामाती उंगलियों ने सुगना की बुर के दोनों होठों और भगनासे को सहलाना शुरु कर दिया। थोड़ी ही देर में ससुर और बहू स्खलन के लिए तैयार हो गए। सुगना से अब बर्दाश्त ना हुआ वह अपने बापू जी की तरफ मुड़ी और उनके होठों को चूम लिया। इसी दौरान सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के भगनासे को कुरेद दिया। सुगना की बुर का फूलना पिचकना प्रारंभ हो गया।
सुगना कराह रही थी..
"बाबुजी….हा असहिं…..ए..आईईईई हममममम"
सरयू सिंह की हथेलियों को सुगना का प्रेम रस मिलने लगा सुगना ने भी अपने बाबूजी के लंड को तेजी से दबा दिया सरयू सिंह ने भी वीर्य धारा छोड़ दी।
"सुगना बाबू…..आहहहहहहह…"
सुगना की पेटीकोट और जाँघें भीगने लगीं।
सरयू सिंह सुगना की कोमल चुचियों को मीसते हुए अपना वीर्य दान कर रहे थे। (ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रक्तदान करते समय वह अपने हाथों से बॉल को मसल रहे हैं।)
ससुर और बहु की उत्तेजना धीमी पड़ रही थी साथ ही साथ नियत द्वारा नियोजित बारिश भी धीमी हो गयी थी। सरयू सिंह और सुगना एक दूसरे को चूम रहे थे। सुगना की आंखें बंद थी और सरयू सिंह की खुली। सुगना इस उत्तेजक इस स्खलन के पश्चात एकदम शांत होकर सरयू सिंह की गोद में लगभग सो गई थी।
बारिश रुक जाने का एहसास सरयू सिंह को हो चुका था उन्होंने सुगना की गाल पर मीठी सी चपत लगाई और बोला
"सुगना बेटी उठा पानी बंद हो गईल"
सुगना ने अपनी आंखें खोली और बंद हुई बारिश को देखकर प्रसन्न हो गयी। वह धीरे-धीरे सरयू सिंह की गोद से उठ खड़ी हुई। साड़ी और पेटीकोट ने स्वतः ही सुगना की नंगी जांघों और स्खलित हुई बुर को ढक लिया। अपनी चुचियों पर सिकुड़ी अपनी साड़ी देखकर सुगना शर्मा गयी। आज इस बरगद के पेड़ के नीचे खुले आकाश में अपने बाबू जी की गोद मे स्खलित हुई थी। यह बरगद का पेड़ उसकी उत्तेजना और अनूठे प्रेम का गवाह था। ससुर और बहू आगे का सफर तय करते हुए घर तक आ पहुंचे कजरी सुगना को देखकर खुश हो गई।
जैसे-जैसे दिवाली करीब आ रही थी सुगना अपने बाबू जी से खुल रही थी। जिस दिन उसके शरीर पर मक्खन गिरा था और उसके बाबूजी ने उसके नंगे शरीर को जी भर सहलाया और उसका कौमार्य हरण किया था वह दिन उसकी याददाश्त में एक अमिट छाप छोड़ गया था। कैसे वह अपने बाबुजी के साथ नंगे होकर कुछ देर तक उनकी गोद में रही थी और अपने बुर पर उनकी हथेलियों का स्पर्श महसूस की थी।
जब जब इस बारे में सोचती उसका शरीर सिहर उठता। सरयू सिंह के दिमाग में भी नग्न सुगना की वह तस्वीर कैद हो गयी थी और वह अपनी सुगना को फिर नग्न देखना चाहते थे और जी भरकर उसके अंगों से खेलना चाहते थे।
दीपावली का त्यौहार उन दोनों के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आने वाला था। कजरी भी खुश थी उसकी बहू उस दिन गर्भवती होने वाली थी।
पर क्या सच में सुगना गर्भवती होना चाहती थी? सुगना मन ही मन अब यौन सुख का आनंद लेने लगी थी वह अपने बाबूजी का संसर्ग तो चाहती थी पर अब उसके मन में गर्भवती होने की इच्छा गौड़ हो चली थी। वह अपने बाबू जी से सिर्फ और सिर्फ चुदना चाहती थी। उसने अपनी सहेलियों से जितना सुन रखा था वह सारा योग प्रयोग वह अपने बाबूजी के साथ करना चाहती थी। एक अकेले वही मर्द थे जिन्होंने आज तक सुगना को छुआ था। वह उनसे अपने सारे अरमान पूरा करना चाहती थी।
क्या उसके बाबूजी उसकी इच्छाओं की पूर्ति करेंगे? या दीपावली के दिन अपने वीर्य को उसके गर्भ में भरकर उसे गर्भवती कर देंगे? यदि वह गर्भवती हो गई तो वह यौन सुख कैसे ले पाएगी? क्या वह उस बछिया की तरह ही बन जाएगी?
सुगना ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह अपने बाबू जी से चुदेगी तो जरूर पर गर्भवती नहीं होगी। वह बछिया नही थी जीती जागती अतिसुन्दर स्त्री थी कामसुख पर उसका भी हक था। यह विचार उसकी सास कजरी के आदेश से अलग था पर सुगना मजबूर थी। उसके दिलो-दिमाग पर अब उत्तेजना ने घर जमा लिया था।
कजरी को सुगना की बदली हुई मनोदशा का अंदाजा न था। सरयू सिंह खुद भी अपनी सुगना को जी भर कर प्यार करना और चोदना चाहते थे उनके मन में भी सुगना के प्रति तरह-तरह के अरमान पनप रहे थे परंतु वह अपनी कजरी भौजी के आग्रह को टाल पाने की स्थिति में नहीं थे। उन्हें दीपावली के दिन बहु के गर्भ में अपना वीर्य छोड़ना था जो कजरी की इच्छा थी।
दोनों तरफ विचार अलग थे सरयू सिंह के मन में सुगना के प्रति उत्तेजना तो थी पर वह कजरी की बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहते थे।
अगला दिन सुगना और सरयू सिंह के लिए पहाड़ जैसा बीत रहा था वो दोनों दीपावली की शाम का इंतजार बेसब्री से कर रहे थे।
आखिरकार सुगना का इंतजार खत्म हुआ। दीपावली का दिन आ चुका था सुबह से ही घर में जश्न का माहौल था। कजरी भी खुश थी। आज उसकी बहू को बहुप्रतीक्षित कामसुख मिलने वाला था जिस की कामना वह पिछले 6 महीनों कर रही थी।
कजरी स्वयं भी काफी प्रसन्न थी क्योंकि वह इस मिलन की प्रणेता थी हालांकि वह एक निमित्त मात्र थी जिसे नियति ने एक मोहरे के रूप में प्रयोग किया था।
सरयू सिंह तो उन्माद में थे। आज वह अपनी बहू सुगना को उसकी इच्छा अनुसार चोदने जा रहे थे। सुगना से वह बेटी का दर्जा पहले ही छीन चुके थे आज वह उसे बहु भी न मान रहे थे। जो कामुकता उस सांड के मन मे सुगना की बछिया के प्रति थी वही कामुकता सरयू सिंह सुगना के प्रति संजोये हुए थे।
उनकी कजरी भौजी और सुगना की मां पदमा की सहमति ने इस उन्माद को और बढ़ा दिया था। इतनी कामुकता के बावजूद संबोधनों में अभी भी वैसा ही प्यार कायम था। सुगना आज भी उन्हें बाबुजी ही बुलाती उसके कुँवर जी न कहा जाता। वही हाल सरयू सिंह का था। वह सुगना को या तो सुगना बेटी बुलाते या सुगना बेटा पर सिर्फ सुगना उनके मुह से चाह कर भी नहीं निकलता।
संबोधनों का यह प्यार अब वासना का अवरोधक न रहा अपितु सुगना की बुर बाबुजी बोलते समय मचल उठती।
उधर सरयू सिंह ऐसा सुंदर संयोग बनाने के लिए वह ऊपर वाले के शुक्रगुजार थे और धोती में फनफनता हुआ लंड लेकर अपनी बहू सुगना को चोदने के लिए तैयार थे।
आसमान में सूरज ढलने लगा था सरयू सिंह की अधीरता बढ़ती जा रही थी जिस तरह जयंद्रथ महाभारत के युद्ध में सूर्यास्त की प्रतीक्षा कर रहा था उसी प्रकार सरयू सिंह भी सूर्यास्त का इंतजार कर रहे थे।
सुगना नहा रही थी। इधर कजरी अपनी बहू सुगना की दीपावली यादगार बनाने की तैयारी कर रही थी। उसके जीवन में यह संभोग सुख कुछ समय की बात थी। जैसे ही वह गर्भवती होती कुंवर जी उसके साथ संभोग बंद कर देते। कजरी मन ही मन इस बात से डरी भी हुई थी कि कहीं सरयू सिंह अपने उन्माद में इस कोमलंगी के साथ ज्यादती ना कर दें। परंतु जिस प्यार से सरयू सिंह सुगना को संबोधित करते थे उसे विश्वास था वह अपनी बहू को कष्ट नहीं देंगे। उस बेचारी कजरी को क्या पता था सरयू सिंह सुगना के शरीर को अद्भुत संभोग के लिए पूरी तरह तैयार कर चुके थे।
जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे में आई कजरी भी पीछे-पीछे आ गई उसने कहा आज हम अपना अपना सुगना बेटी के तैयार कर दी सुगना शर्मा रही थी।
पिछले कुछ दिनों में कजरी और सुगना एक दूसरे के सुख दुख में साथ देने लगे थे वह दोनों सहेलियों की भांति रहते उम्र का अंतर उन दोनों में जरूर था पर वह दोनों एक दूसरे का बहुत ख्याल रखती थी। कजरी ने तो सुगना की गर्भवती होने की इच्छा का मान रख कर उसके दिल मे अपनी जगह बना ली थी।
कजरी सुगना के कोमल शरीर को पोछने लगी। चेहरे और कंधे पर पानी की बूंदे मोतियों के समान लग रहे थे। सुगना बेहद सुंदर थी उसकी कद काठी भगवान ने अपने हाथों से रची थी। यदि वह किसी धनाढ्य घर में पैदा हुई होती तो निश्चय ही एक अप्सरा के समान रहती। पर सुंदरता तो सुंदरता है चाहे वह गांव में हो या शहर में।
कजरी जैसे जैसे उसका शरीर पोछती गयी सुगना का खजाना उसकी आंखों के सामने आता गया। सुगना की चूचियां वह पहले भी देख चुकी थी पर आज वह उसे ज्यादा ही आकर्षक लग रही थीं।
धीरे-धीरे कजरी सुगना के पेट और जांघों को पोछने लगी। उसकी निगाहें सुगना की कोमल बुर पर टिक गयीं। हल्के बालों से घिरी हुई सुगना की कोमल बुर अपना मुंह दिखाने को तैयार न थी। सुगना खड़ी थी बुर के दोनों होंठों ने बुर् के मुंह को पूरी तरह ढक रखा था। सुगना ने भी अपनी जांघों को सिकोड़ रखा था। उसे कजरी से शर्म आ रही थी। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसकी सास कजरी उसकी बुर को देखकर खुश हो रही थी। कजरी के मन में सुगना को लेकर प्यार के साथ-साथ कामुकता भी पैदा हो रही थी।
वह सुगना की उस कोमल बूर को छूना और चूमना चाहती थी। पर क्या यह उचित होता? कजरी मन ही मन अपनी भावनाओं को काबू कर रही थी पर वह सुगना की बुर से अपना ध्यान न हटा पा रही थी। उसके हाथ जांघों पर रुक गए थे।
सुगना ने कहा...
"मां का देखा तारे?"
सुगना खड़ी थी और कजरी जमीन पर उकड़ू बैठी हुई सुगना की जांघों को पोछ रही थी सुगना के प्रश्न से कजरी सचेत हुई उसने सुगना की जांघों के जोड़ पर बुर् के ठीक ऊपर चुंबन ले लिया और कहा
" आज हमारा सुगना बेटी के पहिली बार सुख मिली इहे सोचतानी हां"
सुगना का ध्यान आज की नशीली रात पर चला गया।
सुगना के शरीर को पोछने के पश्चात कजरी में उसके शरीर पर सुगंधित तेल लगाया जो वह विशेष रुप से सुगना के लिए ही लाई थी। सुगना का शरीर कुंदन की भांति चमकने लगा। अब सुगना की शर्म कजरी से खत्म हो रही थी। फिर भी उसे ज्यादा देर तक कजरी के सामने नग्न रहने मे असहज महसूस हो रहा था।
उसने कहा
"मां बस हो गई जा तानी कपड़ा पहने"
" रुक जा बेटा अ पहिले आलता ( एक लाल रंग जो गांव की स्त्रियां अपने पैरों में साथ सजावट के लिए लगाती हैं) लगा दीं"
"कपड़ा पहिने के बाद लगा दिह"
"नया कपड़ा बा गंदा हो जाई. हमारा से का लजा तारू, कुँवर जी से लजाइह आज रात"
सुगना सिहर उठी उसने कजरी के कंधे पर अपने कोमल हाथों से प्यार भरा प्रहार किया। दोनों हंसने लगी…
सुगना चारपाई पर बैठ गई उसने अपनी जांघो को को सटा रखा था। कजरी बार बार सुगना की कोमल बुर का गुलाबी मुखड़ा देखना चाहती थी। देखना ही क्या वह उसे चुमने को भी तैयार थी। उसके मन में यह इच्छा बलवती हो उठी थी।
अंततः कजरी को मौका मिल गया सुगना के पैरों में आलता लगाते समय उसने सुगना के दोनों पैरों को थोड़ा दूर कर दिया यह कार्य अकस्मात हुआ था पर इसने सुगना की कुवारी बुर को कजरी की प्यासी आखों के सामने कर दिया।
जिस तरह आंखों में खुशी के आंसू चमकने लगते हैं उसी प्रकार सुगना की बुर पर प्रेम रस चमक रहा था। सुगना भी रात के ख्यालों में खोई हुई थी जिसका असर उसकी बुर के होठों पर दिखाई पड़ रहा था। कजरी ने सुगना को एक बार फिर छेड़ दिया..
वह सुगना की बुर की तरफ इशारा कर बोली
"ए सुगना, ई तो बछिया नियन पनियाईल बिया" सुगना शर्म से पानी पानी हो गई. उसके गाल लाल हो गए।
कजरी ने उठकर उसके गालों को चूम लिया चूमना तो वह उसकी बुर को भी चाहती थी पर उसने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा।
कजरी ने सुगना को शहर से लाई हुई लाल रंग की जालीदार ब्रा और पेंटी पहनाई वह सुगना की खूबसूरती की मुरीद होती जा रही थी वह मन ही मन सुगना के प्रति आसक्त हो रही थी उसे यह बात समझ नहीं आ रही थी कि एक स्त्री होने के बावजूद उसे सुगना पर इतना प्यार क्यों आ रहा था वह उसके हर अंग को चूमना चाह रही थी और स्वयं उत्तेजित हो रही थी।
कजरी की बुर भी अब तक पनिया चुकी थी पर वह साड़ी और पेटीकोट के आवरण में कैद थी। पर निगाहों का क्या? कजरी की आंखों में वासना तैरने लगी थी सुगना ने यह देख लिया उसने पूछा
"मां तोहार अखिया काहे लाल बा?"
" कुछ ना सुगना असहिं कुछ पर गइल होइ"
कजरी ने अपनी उत्तेजना छुपा ली। कुछ ही देर में सास और बहू पूरी तरह सज संवर कर दीपावली मनाने के लिए तैयार हो गयीं। कजरी ने सुगना के आभूषणों के अलावा अपने आभूषण भी सुगना को पहना दिए थे। सुगना तो अब आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी।
कजरी भी अपना कसा हुआ शरीर लेकर अपनी बहू सुगना से होड़ लगा रही थी यदि कोई अनजान व्यक्ति उन दोनों को एक साथ देखता तो कभी नहीं कह सकता था कि सुगना कजरी की बहू है वह दोनों दो बहनों की भांति दिखाई पड़ रही थी।
उधर सरयू सिंह सफेद धोती कुर्ता पहने एक मर्द की भांति तैयार थे एक ही ऐब आ गया था वह कीड़े द्वारा काटा गया दाग जो उन्हें अपनी सुगना बहू की बुर देखने के बदले प्राप्त हुआ था पर उन्होंने उसे अपने बालों से ढक रखा था।
घर के अंदर उनकी भौजी और बहू दोनों ही उनके लिए ही तैयार हो रही थी पर आज उनका सारा ध्यान अपनी सुगना पर था। आज का दिन अद्भुत था सुगना के लिए भी और सरयू सिंह के लिए भी। कजरी भी आज बेहद उत्साहित थी।
दीपावली का उत्सव मनाया जाने लगा।
पूजा पाठ के पश्चात सुगना और कजरी ने घर के आंगन को दिए से सजा दिया बाहर की दालान और दरवाजे पर भी दिए रखकर पूरे घर को रोशन कर दिया । आज सभी के अंतर्मन में खुशी थी सुगना के जीवन मैं भी रोशनी होने वाली थी।
शेष अगले अपडेट में
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भाग-24
सरयू सिंह सुगना और कजरी को खूबसूरत लिबास में देखकर बेहद प्रसन्न थे। जब जब सुगना दिए जलाने के लिए उकड़ू बैठती उसके कोमल और खूबसूरत नितम्ब लहंगे के पीछे से सरयू सिंह की निगाहों को नयनसुख प्रदान करते। लंगोट के अंदर उनका लंड कभी हरकत में आता कभी पारिवारिक उत्सव का माहौल देखकर शांत हो जाता।
हरिया का परिवार भी अपने घर के सामने दीपावली मना रहा था कुछ ही देर में दोनों परिवार एक दूसरे से मिले लाली और सुगना बातें करने लगी लाली की गोद में बच्चा देखकर सुगना खुश हो गई। आज उसकी भी मुराद पूरी होने वाली थी। लाली का पति राजेश सुगना को एकटक देखे जा रहा था। सुगना थी ही ऐसी और आज तो वो अपने ससुर से चुदने जा रही थी शर्म की लाली ने उसे और आकर्षक बना दिया था।
जैसे-जैसे पटाखों का शोर कम हो रहा था सुगना के मन में पटाखे फूटने शुरू हो रहे थे बाहर की दिवाली खत्म हो चुकी थी सुगना के लहंगे के अंदर दीपावली मनाने की तैयारी होने लगी। सुगना पूरी तरह तैयार थी।
कजरी और सुगना घर वापस आ चुकी थी मिठाईयां और पकवानों से उन दोनों का पेट पहले ही भरा हुआ था। कजरी ने सुगना के प्रथम संभोग की व्यवस्था अपनी कोठरी में ही की थी। उसकी चारपाई बड़ी थी और मजबूत भी। कजरी ने उस पर नई चादर बिछा दी थी। सुगना ने उस कमरे में कई सारे दिए रख लिए थे वह स्वयं अपनी प्रथम रात को यादगार बनाना चाहती थी।
अंततः मिलन का वक्त आ गया कजरी ने कहा
"सुगना बेटा अब अपना कमरा में जा" सुगना तो कब से उसकी प्रतीक्षा में थी। उसने अपनी सासु मां के चरण छुए कजरी ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूमते हुए बोला
"भगवान तोहरा के खूब सुख देस और गोद में जल्दी से एक सुंदर बच्चा"
सुगना प्रसन्न हो गई उसने भी अपनी प्यारी सासू मां के गालों को चूम लिया. दोनो परियों के चारों स्तन एक दूसरे से सट गए। सुगना अलग हुई और अपने कमरे में धीरे धीरे जाने लगी। कजरी अपनी आंखों में खुशी के आंसू लिए सुगना को देख रही थी जो अपने सुंदर नितंबों को एक लय में हिलाते हुए कमरे के अंदर प्रवेश कर रही थी।
कजरी आंगन से उठकर दालान में आ गई जहां सरयू सिंह उसका इंतजार कर रहे थे। उन्होंने कजरी को सीने से लगा लिया और अपनी कजरी भौजी के होठों को चूमने लगे। कजरी और सरयू सिंह दो जिस्म एक जान होने लगे। सरयू सिंह की हथेलियां कजरी की पीठ और नितंबों पर घूमने लगी। कजरी की बूर पनियाने लगी।
एक तरफ उसके मन में सुगना और सरयू सिंह के बीच होने वाले चुदाई के दृश्य घूम रहे थे दूसरी तरफ सरयू सिंह की हथेलियां उसे और भी उत्तेजित कर रही थीं। कजरी को पता था की सरयू सिंह के लंड का सुख आज उसे नहीं मिलना था वह अपनी उत्तेजना को और आगे नहीं बढ़ाना चाह रही थी।
वह सरयू सिंह से अलग हो गई और बोली "अब चलीं, सुगना बाबू इंतजार करत होइ।"
"सरयू सिंह खुशी और दुख के भंवर में झूल रहे थे" वह सजी-धजी कजरी को अपने शरीर से अलग करते हुए थोड़ा दुखी थे पर सुगना से मिलन की खुशी उस दुख से कहीं ज्यादा थी। सरयू सिंह ने अपना लंगोट पहले ही खोल लिया था। कजरी ने उनके लंड की चुभन अपने नाभि पर महसूस कर ली थी। उसका हाथ अनायास ही लंड पर चला गया। कजरी में उस लंड को अपनी हथेलियों में ले लिया और कहां
"कुंवर जी, सुगना बहुत सुकवार बिया, तनी आराम से ही करब। बेचारी के दिक्कत मत होखे। पहलिही डेरा जाइ त दोबारा हाँथ ना लागवे दी और ओकर गर्भवती होखे के इच्छा बाकिये रह जायी।"
सरयू सिंह ने कजरी को चूम लिया. वह सच में सुगना का ख्याल रखती थी पर शायद उसे यह नहीं पता था कि सुगना सरयू सिंह की जान बन चुकी थी वह उसे किसी भी हालत में दुख नहीं पहुंचाएंगे। कजरी के मन में जाने क्या आया वह नीचे बैठती चली गई और सरयू सिंह के लंड को अपने मुंह में ले लिया तथा अपने होठों से उसे चूसने लगी। सरयू सिंह उत्तेजना के अधीन थे वह सुगना को भूलकर कजरी के होठों में खुशी ढूंढने लगे कजरी के होठों की करामात बुर से कम न थी। लंड का उछलना महसूस कर कजरी ने अपने होंठ हटा लिए।
उसने सर्विसिंग के लंड को वापस धोती से ढक दिया और उन्हें साथ लेकर अपने कमरे की तरफ चलपड़ी जहां सुगना एक नव वधु की तरह अपने बाबुजी का इंतजार कर रही थी। कजरी ने आदर्श सहेली की भांति उन्हें कमरे के अंदर किया और दरवाजा बंद कर दिया और खुशी-खुशी दूसरे कमरे में आ गयी।
कजरी इस बात से प्रसन्न में थी कि उसने सरयू सिंह की उत्तेजना को आखरी मुकाम तक पहुंचा दिया था अब वह अपनी प्यारी बहु सुगना को ज्यादा देर तक नहीं चोद पाएंगे।
कजरी ने अपने लार से सरयू सिंह के लंड को पूरी तरह से भिगो दिया था वह इस बात से भी प्रसन्न थी कि उसकी लार का चिपचिपापन सुगना की बुर में लंड के प्रवेश को आसान कर देगा। कजरी सच मे अनूठी थी और आज के दिन भी अपनी प्यारी बहू का ख्याल रख रही थी।
आज नियति ने कजरी के कमरे में सुगना को और सुगना के कमरे में कजरी को ला दिया था। दोनो कमरों के बीच का झरोखा बंद था पर उसमे दरार कायम थी। यह वही दरार थी जिससे सुगना ने सरयू सिंह और कजरी के बीच चल रहे प्रेमालाप को कई बार देखा था।
सरयू सिंह कमरे में प्रवेश कर चुके थे सुगना चारपाई पर अपनी जांघें सिकोड़े सिमटी हुई बैठी थी। अपने बाबू जी के आगमन से वह सचेत हो गई सरयू सिंह ने दरवाजा बंद कर दिया। सुगना की सांसें तेज हो रही थी।
वह चारपाई से उठकर जमीन पर खड़ी हो गई सुगना आज शर्मा रही थी। सरयू सिंह करीब आ चुके थे। सुगना ने झुककर सरयू सिंह के चरण छुए। आज इस कामुक घड़ी में भी वह अपने संस्कार ना भूली।
सरयू सिंह उसके लिए हमेशा से आदर्श थे पहले वह बाबुजी थे पर आज उसके आदर्श पुरुष अपना संबंध बदलकर उसे गर्भवती करने के लिए प्रस्तुत थे।
सरयू सिंह की निगाहें झुकी हुयी सुगना की गोरी पीठ और नितंबों पर टिक गई। जब तक सुगना उनके चरण छूती सरयू सिंह ने उसे कंधे से पकड़ लिया और उसे अपने सीने से लगा लिया। सुगना और सरयू सिंह दो जिस्म एक जान होते चले गए। सरयू सिंह ने सुगना का चेहरा ऊपर किया और अपना नीचे। दोनों के होंठ आपस में टकरा गए और सरयू सिंह अपनी बहू के कोमल होंठों का रसपान करने लगे।
उनकी हथेलियों ने सुगना के नितंबों को अपनी पकड़ में ले लिया और वह धीरे-धीरे सुगना की मदमस्त गोलाइयों को महसूस करने लगे। इधर सरयू सिंह सुगना की गोलाइयों को महसूस कर रहे थे उधर सुगना अपने पेट पर अपने बाबूजी के लंड को महसूस कर रही थी। सरयू सिंह सुगना की मासूम जवानी का भोग लगाने के लिए आतुर हो उठे। उनकी उंगलियां अपना कमाल दिखाने लगीं। जाने कब सुगना के लहंगे की गांठ खुल गई और लहंगे गोबर से लीपी हुई जमीन पर गिर पड़ा।
सुगना ने भी अपनी उंगलियों का कमाल दिखाया और अब बारी सरयू सिंह की धोती की थी। स्वयं को अर्धनग्न महसूस कर सुगना ने जलते हुए दिए पर फूंक मारकर उसे बुझा दिया वह आज अपने बाबुजी के सामने नग्न होने में असहज महसूस कर रही थी। सरयू सिंह ने उस समय तो कुछ ना बोला और वह दोनो नग्न होते गए।
सुगना के शरीर और अब सिर्फ ब्रा और पेंटी बची हुई थी और शरीर सिंह पूरी तरह निर्वस्त्र हो गए थे। कमरे में अंधेरा था आंगन में चल रहे दिए से थोड़ी बहुत रोशनी लकड़ी के दरवाजे से छन छन कर आ रही थी पर वह सुगना के खूबसूरत शरीर को देखने के लिए अपर्याप्त थी।
सरयू सिंह ने सुगना की ब्रा को छूते हुए कहा
"उ दिन शहर से इहे कपड़ा खरीद के ले आईल रहलु हां"
" हां बाबू जी"
"हमरा के ना दिखाइलूं हा."
सुगना कुछ ना बोली।
"दिया काहे बुझा देलु हा?"
सुगना शर्मा रही थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया परंतु अपनी कोमल जीभ को अपने बाबूजी के होठों पर फिरा दिया तथा अपने कोमल हथेलियों से लंड के सुपाडे को सहला दिया।
सरयू सिंह और उनका लंड मचल उठा। उन्होंने सुगना के कान में फुसफुसाते हुए कहा
"आज दिवाली ह कमरा में अंधेरा ना राखे के।"
दरअसल सूगना खुद दुविधा में थी। अब से कुछ समय पहले उसने इस कमरे में ढेर सारे दीए रखे थे जिसे वह आज जलाने वाली थी वह खुद भी दिए की रोशनी में अपने बाबुजी के साथ संभोग करना चाहती थी। उनके मर्दाना चेहरे को देखते हुए अपने प्रथम संभोग को यादगार बनाना चाहती थी।
पर अपने बाबुजी के आगोश में आने के पश्चात अपनी उत्तेजना को छुपाने के लिए उसमें एकमात्र जलाते हुए दिए को फूंक मारकर बुझा दिया था। सुगना ने हिम्मत जुटाई और दियासलाई उठाई।
उसने एक-एक करके दीयों को जलाना शुरू कर दिया. ज्यों ज्यों कमरे में उजाला बढ़ता गया सुगना की कुंदन काया चमकने लगी। रोशनी झरोखे से होते हुए कजरी के कमरे में भी पहुँची। कजरी सचेत हो गई। अचानक हुई रोशनी ने उसका आकर्षण बढ़ा दिया वह झरोखे पर आकर सुगना के कमरे में झांकने का प्रयास कर रही थी। एक बार फिर वह टीन का डिब्बा कजरी के काम आया। कजरी उस डिब्बे पर खड़ी होकर वह दृश्य देखने लगी।
सुगना ब्रा और पेंटी में दिए जला रही थी। जब सुगना दीए जलाने के लिए नीचे झुकती उसके दोनों गोल नितम्ब उभर कर बाहर आ जाते उन पर लाल रंग की पैंटी का आवरण उनकी खूबसूरती को और बढ़ा देता। कुंवर जी अपना तना हुआ लंड लिए सुगना को देख रहे थे। गजब उत्तेजक दृश्य था। कजरी की आंखें उस अद्भुत दृश्य पर टिक गयीं। कुंवर जी की सुगना बेटी ब्रा और पेंटी में झुकी हुई दिए जला रही थी और सरयू सिंह अपनी हथेलियों से अपने लंड को सह लाते हुए अपनी पुत्री समान बहू को अर्धनग्न अवस्था में देख रहे थे।
सरयू सिंह और सुगना को मिलाने वाली नियति आंगन में खड़ी सभी पात्रों की मनोदशा को पड़ रही थी।
एक तरफ कजरी और सुगना की मां पदमा, सुगना को गर्भवती किए जाने के उद्देश्य से किये जा रहे इस संभोग को अपनी स्वीकार्यता दी हुई थी दूसरी तरफ सुगना और सरयू सिंह दोनों उस उद्देश्य को भूल चुके थे। युवा सुगना और अधेड़ सरयू सिंह दोनों वासना की आग में जल रहे थे। उन्हें इस मिलन का उद्देश्य न याद रहा था न वह इसे पूरा करना चाहते थे।
दीये जलाने के बाद सुगना उनके समक्ष खड़ी हो गई सुगना की निगाहें झुकी हुई थी पर उसकी आंखों को सरयू सिंह के लंड के साक्षात दर्शन हो रहे थे। सरयू सिंह भी अपनी अर्ध नग्न बहू को देखकर नयन सुख ले रहे थे।
कुछ ही देर में दोनों प्रेमियों के पैर आगे बढ़े और सुगना अपने बाबू जी से सट गई। सरयू सिंह के लंड पर लगी कजरी की लार सूख चुकी थी। सुगना ने अपने कोमल हाथों से उनका लंड पकड़ लिया। उसकी सास कजरी द्वारा लंड चूस लार गीला करने का प्रयास व्यर्थ हो चला था।
उधर झरोखे से यह दृश्य देख रही कजरी सुगना की इस गतिविधि पर आश्चर्यचकित थी। कैसे सुगना कुछ ही मिनटों में इतनी खुल गई ? सरयू सिंह सुगना को लगातार चूमे जा रहे थे। कुछ ही देर में सरयू सिंह ने सुगना को बिस्तर पर लिटा दिया। वह उसकी चुचियों को ब्रा से आजाद कर रहे थे। सुगना की चुचियों को मीसते (तेजी से दबाते) हुए सरयू सिंह मदहोश हो रहे थे उधर सुगना की धड़कन तेज हो गयी। वह अपनी जांघों को बार-बार सिकोड रही थी पर सरयू सिंह अपने कार्य मे व्यस्त थे।
वह सुगना की चूँचियों में खोए हुए थे। ब्रा ने सुगना का साथ छोड़ दिया। कजरी सुगना के शरीर पर सरयू सिंह के रेंगते हुए हाथों को देखकर स्वयं उत्तेजित हो गयी। उसे यह दृश्य बिल्कुल अटपटा लग रहा था उसने तो सिर्फ यह सोचा था कि सरयू सिंह सुगना की जांघों के बीच अपने लंड को घुसा कर सुगना को गर्भवती करने का प्रयास करेंगे पर यहां तो ससुर और बहू के के बीच कामुक प्रेमालाप चल रहा था।
सरयू सिंह सुगना की चुचियों को चुमने के बाद धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ रहे थे। सुगना की पेंटी तक पहुंचने के पश्चात उन्होंने पेंटी को सरकाने का प्रयास न किया अपितु उसकी जांघों पर आ गए। जांघों का चुंबन लेते ही सुगना की सिहरन बढ़ती जा रही थी।
वह बुदबुदा रही थी…
बाबुजी ऊपर…..हां…….अउरु ऊपर...… वह अपने होंठ काट रही थी। वह अपनी जांघों को कभी ऊपर करती कभी नीचे। सरयू सिंह के हाथ कभी उसके पेट को सहलाते कभी उसकी जांघों को सुगना बेचैन हो रही थी। अंततः सुगना की पेंटी उतरने का वक्त आ गया।
सरयू सिंह ने अपनी मोटी उंगलियां उस लाल रंग की पेंटिं में फंसायीं और धीरे-धीरे सुगना की कोमल बुर पर से पर्दा हटा दिया। सुगना की बुर पूरी तरह गीली हो चुकी थी। ऐसा लग रहा था जैसे उसकी बुर के होंठों पर अमृत छलक आया हो। कितना स्वच्छ और निर्मल था सुगना का मदन रस….
अपनी पुत्री समान बहू सुगना के गुलाबी बुर के काले रोएं पर ओस की बूंदों की तरह चमक रहा मदन अगर सरयू सिंह की उत्तेजना को और बढ़ा गया वह सुगना के बूर की खूबसूरती में खो गए। उनकी जीभ लप-लपलपाने लगी।
उधर अपनी प्यारी बहू सुगना की सुंदर और पनियाई बुर देखकर कजरी मदहोश सी हो गई। उसके मन में भी उस अति सुंदर बुर को चूमने की तीव्र इच्छा हुई। कजरी सुगना के प्रति आकर्षित हो रही थी उसके शरीर और भावनाओं में आया यह बदलाव बिल्कुल अलग था।
इधर कजरी सोच ही रही थी उधर सरयू सिंह से बर्दाश्त नहीं हुआ उन्होंने बिना कुछ कहे सुने सुगना की कोमल बुर से अपने होंठ सटा दिए और सुगना का मदन रस चुरा लिया।
सुगना और कजरी दोनों सिहर गयीं। सुगना को तो शारीरिक सुख मिल रहा था और कजरी को भावनात्मक। सुगना ने आखिर बाबुजी की अपनी जाँघों के बीच ला दिया था।
अपनी कुंवारी बुर पर अपने बाबुजी के होठों को महसूस करते हुए सुगना की उत्तेजना आसमान छूने लगी। वह अपनी हथेलियों से चारपाई पर पड़ी चादर को पकड़ रही थी। और अपनी मुठ्ठियाँ भींचे अपनी चूत अपने बाबू जी से चटवा रही थी। उसके मन में कामुकता जाग चुकी थी उसे आनंद और वासना ने घेर लिया था।
सरयू सिंह ने अपनी मजबूत हथेलियों से सुगना की जाँघें फैला दी और अपने होठों से सुगना की बुर को चूसते हुए उसमें अपनी जीभ फिराने लगे। जितना रस वह अपनी बहू के बुर से चुराते उससे ज्यादा रस सुगना की बुर फिर से छोड़ देती।
कजरी यह दृश्य देखकर शर्म से पानी पानी हो रही थी कुंवर जी का यह रूप उसने कभी नहीं देखा था। कजरी ने झरोखे के पल्लों को थोड़ा फैला दिया ताकि वह इस अद्भुत दृश्य को और ध्यान से देख पाए। सुगुना तो सुध बुध खो कर अपनी बुर अपने ससुर से चुसवा रही थी। उसे तो झरोखे के पल्ले खुलने की कोई आवाज न सुनाई नदी पर सरयू सिंह को वह झरोखा याद था। इस धीमी आवाज को उन्होंने अपने संज्ञान में लिया और अपनी निगाहें झरोखे की तरफ की।
उन्हें दीए की रोशनी से चमकती कजरी की आंखें दिखाई पड़ गई। सरयू सिंह यह जान चुके थे कि कजरी यह दृश्य देख रही है। उनकी उत्तेजना चरम पर पहुंच गई कजरी उन्हें अपनी बहू को चोदते हुए देखना चाह रही थी। सरयू सिंह वासना के अधीन हो गए यह वासना का अतिरेक उनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उन्होंने सुगना की बुर को और तेजी से चूसना शुरू कर दिया सुगना मासूम थी वह इतनी उत्तेजना एक साथ बर्दाश्त न कर पाई वैसे भी सुगना के लिए यह अनुभव बिल्कुल नया था वह उत्तेजना से कराहने लगी।
"बाबूजी…...तनी.. धीईईईई….. रे. ..हां….असहिं……..अउरु भीतरी…..ह।….आह…….ममम…….माँ……..।
सुगना स्खलन के लिए तैयार थी। वह कभी अपने बाबूजी के बालों को पकड़ कर उनके चेहरे को अपनी बुर पर खींचती कभी उन्हें अपनी बुर से दूर करती।
सुगना अपने पैर अपनी पाबूजी की पीठ पर पटक रही थी वह अपनी दोनों एड़ियों से अपने बाबूजी की पीठ पर प्रहार कर रही थी। पर सरयू सिंह अपनी सुगना बेटी को बिना स्खलित कराए छोड़ने वाले नहीं थे। उनके होठों और जिह्वा ने सुगना की छोटी रसीली बुर को घेर रखा था और उनकी खुरदुरी मुलायम जीभ सुगना की बुर की गहराई नाप रही थी तथा अंदर छुपा मदन रस कुरेद कुरेद कर चुरा रहो थी। उधर उनकी हथेलियां सुगना की चूचियों को मीसे जा रही थीं जिसकी तरंगे सुगना की बुर तक पहुंच रही थी। सुगना का चेहरा लाल हो गया था।
सुगना उनके बालों को खींच रही थी और पीठ पर प्रहार कर रही थी। इतना करने के बावजूद वह अपनी बुर का स्खलन रोक पाने में नाकाम थी। सुगना झड़ने लगी। उसके कोमल प्रहार कम होते गए और मुठ्ठियों में पकड़े गए बालों का खिंचाव भी।
सुगना शांत होती गई। सरयू सिंह उसे और परेशान नहीं करना चाहते थे। उन्हें उनकी मेहनत का फल मिल चुका था सुगना की बुर जो अब तक अपना मदन रस रह-रहकर छलका रही थी उसने बचा खुचा प्रेम रस एक साथ उड़ेल दिया था जिसे सरयू सिंह आत्मसात कर रहे थे।
उन्होंने जब सुगना की बुर से चेहरा हटाया वह पूरी तरह सुगना के मदन रस से भीगा हुआ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे शेर शिकार कर उठा हो और रक्त की जगह होंठो और गालों पर प्रेम रस लगा हुआ हो।
उन्होंने कजरी की तरफ देखा कजरी सरयू सिंह को मन ही मन चूमना चाहती थी आज उन्होंने उसकी बहू को वह सुख दिया था जो हर स्त्री अपने मन में कल्पना करती हैं। कजरी अपनी बुर पर भी सरयू सिंह के होठों की प्रतीक्षा कर रही थी सरयू सिंह ने आज तक कभी कजरी की बुर पर अपने होंठ नहीं लगाए थे परंतु आज सुगना की बुर को चूसते देखकर कजरी मन ही मन ललच गई थी।
सुगना की साँसें अभी भी तेज चल रही थी। उसने अपनी आंखें बंद की हुई थी। सरयू सिंह सुगना के प्यारे चेहरे को देखकर भाव विभोर हो गए वह उसके होठों को चूमना चाहते थे जैसे ही उन्होंने अपना चेहरा सुगना के चेहरे के पास लाया सुगना की कोमल बाहों ने उनकी गर्दन को घेर लिया और नंगी सुगना ने अपने बाबुजी की अपने ऊपर खींच लिया।
सरयू सिंह के मदन रस से भीगे होंठ सुगना के होठों से सट गए। दोनों प्रेमी युगल में आपस में कोई बात नहीं हुयी पर चारों होंठ एक दूसरे में समा गए।
सुगना खुद द्वारा उत्सर्जित मदन रस का स्वाद ले रही थी। अपने बाबुजी के होठों से मिल रहा स्पर्श और उस मदन रस का अनोखा स्वाद उसे भाव विभोर कर रहा था।
सरयू सिंह चारपाई से उठकर खड़े हो गए अपने होठों पर लगे सुगना के मदन रस और अपने मुह से लार अपनी हथेलियों में अपने लंड को सहलाने लगे। चुदाई की घड़ी आ चुकी थी…
अद्भुत दृश्य था एक सुकुमारी चारपाई पर अपनी जाँघे सटाए लेटी हुई थी उसके बलिष्ठ और भीमकाय ससुर अपने विशाल लंड को सहलाते हुए उसकी सांसे सामान्य होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दूसरे कमरे में सास अपनी बहू की खूबसूरती से मोहित होकर उसे नग्न देख रही थी….
नियति ने बुर और लंड के रिश्तों को वरीयता देकर इंसानी रिश्तो को पीछे छोड़ दिया था।
सुगना की आंख खुल चुकी थी अपने बाबू जी को अपना लंड सहलाते हुए देखकर उसकी आंखें स्वतः ही बंद हो गई। उसने अपनी पलकें फिर खोलीं वह सरयू सिंह के लंड को देखकर मन ही मन खुश होती कभी घबराती कभी शर्माती। उसकी जाँघे एक दूसरे से सटी हुई थी पर बुर फूल चुकी थी। अब से कुछ देर पहले सरयू सिंह की जीभ और होठों ने सुगना के बुर के होंठो को चूसकर लाल कर दिया था। बुर का गुलाबी मुख झांक रहा था।
सरयू सिंह ने चारपाई को खींच कर उसी अवस्था में ला दिया जिस अवस्था में उन्होंने कजरी को चोद कर सुगना को कामुक दृश्य दिखाया था। चारपाई खींचे जाने से सुगना सचेत हो गयी वह उस दिन को याद करने लगी। अचानक उसकी निगाहें झरोखे पर चली गई। झरोखा अपेक्षाकृत ज्यादा खुला हुआ था। कजरी की आंखें रोशनी से चमक रही थी। अब सुगना जान चुकी थी की आज उसकी चुदाई देखने के लिए उसकी सास कजरी झरोखे पर खड़ी थी।
शर्म और हया के सारे पर्दे हट चुके थे। सुगना यह जानकर और भी उत्तेजित हो गई कि उसकी प्यारी सास उसे चुदते हुए देख रही है।
सुगना ने अपनी जाँघे फैला दीं। उसने अपनी कोमल बाहें ऊपर की और अपने बाबूजी को खुले तौर पर आमंत्रित कर दिया।
सरयू सिंह उत्तेजना से कांप रहे थे सुगना जैसी अद्भुत सुंदरी अपनी जाँघे फैलाए उनसे प्रणय निवेदन कर रही थी। वह अपना लंड अपने हाथ में लिए सुगना की कोमल जांघों के बीच आ गए।
उन्होंने अपनी चिर परिचित प्रेमिका कजरी की तरफ देखा जैसे धनुष भंग करने से पहले वह कजरी की इजाजत चाह रहे हों। उन्होंने मन ही मन कजरी की इजाजत स्वीकार कर ली और अपने लंड के सुपाड़े को सुगना की कोमल बुर् से सटा दिया।
सरयू सिंह के माथे पर एक बार फिर चिलकन सी हुई उन्हें एक बार को फिर एहसास हुआ कि जिस सुकुमारी की कुंवारी बुर में वह अपना लंड डालने को बेकरार है वह उनकी पुत्री समान बहू सुगना है। परंतु सुगना की आंखों के कामुक आग्रह ने उनका ध्यान फिर सुगना की चुचियों पर खींच लाया। सरयू सिंह ने सुगना की चुचियों को चूम लिया।
सुगना की बुर ने सरयू सिंह के लंड के सुपाडे को अपने प्रेम रस से रंग दिया। यह जाने कैसा आकर्षण था न सरयू सिंह ने कोई चेष्टा की न सुगना ने लंड का सुपाड़ा उस कोमल बुर के मुख के प्रवेश द्वार को पूरी तरह ढक लिया। सुगना की बुर अपने बाबूजी के लंड के स्पर्श से अभिभूत हो चली सुगना की आंखें बंद होने लगी।
कितनी प्यारी लग रही थी सुगना। सरयू सिंह उसकी कोमलता और मासूमियत में खोए हुए थे उधर उनका लंडअंदर जाने के लिए आतुर था। सरयू सिंह ने अपनी कमर का दबाव बढ़ाया और सुगना कराह उठी...
"बाबूजी…. तनी धीरे से ….दुखाता"
उस मलाईदार चूत में लंड का प्रवेश सरयू सिंह की उत्तेजना को एक नया आयाम दे रहा था। अपनी बेटी समान बहू को वह उसकी खुशी के लिए चोद रहे थे उनके मन में कोई मलाल न था। उन्होंने सुगना की दर्द भरी कराह सुनी तो जरूर पर नजरअंदाज कर दिया और अपनी कमर का दबाव बढ़ाते चले गए।
सुगना को अब जाकर चुदाई का एहसास हो रहा था। उसकी जांघें अकड़ रही थीं। अब तक तो उसकी बुर ने सिर्फ सरयू सिंह की उंगली का आनंद लिया था पर यह मुसल तो उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा था। सुगना को अपनी जांघें फैलती हुई प्रतीत हुई। यह कैसा अंजाना अनुभव था वह इस मुसल को अपने अंदर कहां जगह देगी। उसके कसे हुए शरीर का भराव मुसल को अंदर आने से रोक रहा था।
सुगना सिहर रही थी उसने अपने बाबूजी के कंधों को पकड़ लिया और उन पर अपने नाखून गड़ाने लगी। सुगना की आंखों में आंसू की बूंदे थी।
सरयू सिंह अपनी बहू की आंखों में आंसू ना देख सके। एक पल के लिए उन्होंने उसकी आंखों को चूम लिया पर वह अपने लंड को कुछ इंच और प्रवेश करा गए।
अभी तक लंड का तिहाई भाग ही सुगना की बुर में जा पाया था और उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रहीं थीं।
कजरी अपनी बहू की कोमल बुर को पूरी तरह फैले हुए देख रही थी। उस पतली और गुलाबी सुरंग में सरयू सिंह का काला लंड अद्भुत लग रहा था। सरयू सिंह ने सुगना के गाल पर चुम्बन लिया। सुगना ने अपनी आंखें खोली सरयू सिंह ने कहा
"सुगना बाबू दुखाई तो बताइह"
सरयू सिंह ने अपना लंड उसी स्थान पर बनाए रखा। अब तक सुगना की तेज चल रही सांसे धीरे-धीरे सामान्य होने लगी। सरयू सिंह सुगना की चूचियों को सहला रहे थे तथा उसके गाल और होठों को चूम रहे थे। सुगना को धीरे धीरे वह स्थिति सामान्य लगने लगी। सरयू सिंह ने अपने लंड को जैसे ही पीछे लिया सुनना के चेहरे पर खुशी आ गई उसे लगा जैसे उसने अपनी पहली चुदाई के दर्द को सह लिया है।
सरयू सिंह ने अपने लिंग को पीछे लिया और फिर धीरे-धीरे वापस उसी अवस्था में ला दिया सुगना की बुर फिर भर गई। सरयू सिंह एक माहिर खिलाड़ी वह सुगना कि बुर को धीरे-धीरे चोद रहे थे। सुगना अब मुस्कुरा रही थी उसकी बुर ने खुशी में प्रेम रस का उत्सर्जन बढ़ा दिया। सरयू सिंह ने धीरे-धीरे अपने लंड का दबाव बढ़ाना शुरू किया। सरयू सिंह का लंड सुगना की कोमल चूत में एक एक सूत कर आगे बढ़ रहा था। हर धक्के से वह थोड़ा अंदर प्रवेश करता। हर धक्के के साथ सुगना की आंखें पूरी तरह खुल जाती और पुतलियां बाहर आने को होती पर सुगना उस दर्द को सही कर लंड के बाहर निकलने का इंतजार करती और उस आनंद को महसूस कर फिर अगले दर्द को सहने के लिए तैयार हो जाती।
सरयू सिंह के लंड ने सुगना की कोमल और कसी हुयी बुर में ठीक उसी प्रकार जगह बनाई जैसे जनरल डिब्बे में घुसा कोई यात्री धीरे-धीरे अपनी जगह बना लेता है। सुगना की खुशी बढ़ती जा रही थी शरीर सिंह लंड अभी भी 1 इंच बाहर था। जब तक लंड पूरा प्रवेश न करता सरयू सिंह रुकने वाले नही थे।
सरयू सिंह का लंड सुगना के गर्भाशय तक पहुंच कर उसका मुंह खोलने का प्रयास कर रहा था। लंड की ठोकर सुगना को आनंदित तो कर रही थी परंतु उस पर दबाव पढ़ते ही सुगना थरथर कांपने लगती। वह अपने बाबू जी को आगे बढ़ने से रोकना चाहती थी। सरयू सिंह के दबाव बढ़ाते ही वह कराह उठी
" बाबूजी अब बस अब ना सहल जाई"
सरयू सिंह उसे चुमते उसकी चूचियां सहलाते परंतु उसकी बात को मान पाना उनके बस मे न था। कमर के नीचे उनका लंड उस बुर में पूरी तरह समा आने को आतुर था। सरयू सिंह अपनी बहू सुगना को धीरे-धीरे चोद रहे उन्हें इस जुदाई का आनंद तो आ रहा था पर पूरा नहीं। लंड का कुछ हिस्सा अब भी बाहर था।
सुगना के चेहरे पर खुशियां ही खुशियां उसके बाबूजी का लंड उसे आज वह सुख दे रहा था जिसकी कल्पना वह विवाह के उपरांत हमेशा किया करती थी और जिस प्यार और आत्मीयता से उसके बाबूजी उसे चोद रहे थे वह उनकी मुरीद हो गई थी वह इस सुख को एक नहीं हर बार लेना चाहती थी उसने गर्भवती होने की इच्छा का पूरी तरह परित्याग कर दिया था उसने सरयू सिंह को अपनी तरफ खींचा और उनके कान में बोली
"बाबूजी भीतरी मत गिराइब"
"काहें हमार बाबू"
"हमरा ई सुख बार-बार चाहीं हमरा अभी लाइका ना चाहीं"
सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना न रहा जिस बात को वह पिछले कुछ दिनों से सोच रहे थे वह उनकी बहू ने स्वयं ही कह दिया था. सरयू सिंह का दिल बल्लियों उछल रहा था। अचानक आने कजरी का ध्यान आया वह क्या सोचेगी। सरयू सिंह माहिर खिलाड़ी थे। अपनी धोती में गठियाये हुए लड्डु को याद कर उन्हें अपनी बुद्धिमत्ता पर गर्व हो रहा था।
वह सुगना के होठों को चूमने लगे और अपनी कमर की रफ्तार को बढ़ाने लगे। सुगना की बुर उनके नए जोश कोऔर न झेल पाई। वह आंनद के सागर में डूबने उतराने लगी। सुगना बुदबुदा रही थी..
"बाबुजी ….ह असहिं चो…….आ…...ई …..चोद……...दीईईईई आ……..माँ…...एआईईईई"
सुगना के मुह से चोदना शब्द सुनकर सरयू सिंह और कामुक हो गए। उन्हें सुगना बहु के रूप से अलग एक कामपिपासु युवती दिखाई पड़ने लगी। उन्होंने उसकी चुचियों को तेजी से मसलते हुए चोदना शुरु कर दिया। सुगना के प्रति उनका प्यार बदल गया था। वह उसे एक युवती की भांति चोद रहे थे जिसमें सिर्फ और सिर्फ वासना थी। सुगना अपने बाबुजी का यह रूप देखकर आनंदित भी थी और अपनी जांघों को यथासंभव फैलाकर अपनी चुदाई का आनंद ले रही थी।
उसकी बुर का कसाव लंड पर अभी भी कायम था पर उसके बाबुजी का मजबूत लंड उस दबाव को चीरकर सुगना की बुर में अंदर गहराई तक उतर रहा था और गर्भाशय के मुख को खोलने का प्रयास कर रहा था यही वह अवसर होता जब सुगना अपनी आंखों से बाबूजी को रोकती। एक कमसिन सुंदरी सरयू सिंह के पसीने छुड़ा दिए थे उनके माथे पर पसीने की बूंदे आ गई थी शरीर भी गर्म हो चला था। वह अपनी प्यारी सुगना को चोदने में मगन थे। उन्होंने सुगना की चुचियों को मुंह में ले लिया और उसके छोटे पर तने हुए निप्पलों को चूसने लगे उन्होंने अपने लंड की रफ्तार कम न की। सुगना उनके बाल पकड़कर उन्हें कभी अपनी चुचियों पर खींचती कभी धकेलती।
वह बड़बड़ा रही थी…
बाबुजी…..कस…..के…...चो…...आआआआआ च…. च... च चो…...द…..मा………."
कजरी अपनी बहु सुगना के इस कामुक रूप को देखकर हतप्रभ थी उसे यह कतई उम्मीद नहीं थी उसकी बहू सुगना इस तरह से अपने प्रथम मिलन का सुख ले रही थी। निश्चय ही उसकी कामुकता को जागृत करने में उसकी सहेली लाली का योगदान होगा वरना सुगना जैसी मासूम लड़की और यह कामूक व्यवहार यह कजरी की सोच से परे था।
सरयू सिंह उसकी उत्तेजना को समझ रहे थे सुगना अब झड़ने वाली थी। जिस प्रकार उन्होंने इस स्खलित होती हुई सुगना का कौमार्य भेदन अपनी उंगलियों से किया था उसी प्रकार सुगना के स्खलन के समय उन्होंने अपने लंड को सुगना की बुर में जड़ तक ठान्स दिया। सुगना की जांघों के बीच बुर के उपर की हड्डी और सरयू सिंह के लंड के ऊपर की हड्डी टकरा गई।
सुगना की आंखें और जाँघे पूरी तरह फैल गयीं। सुगना बेसुध हो गयी थी पर उसकी बुर का फूलना पिचकना जारी था। सरयू सिंह उसी अवस्था में कायम रहे पर सुगना की अंदरूनी भागों ने उनके लंड पर इतना दबाव बनाया की लंड ने पानी छोड़ दिया।
"सुगना बाबुजी…..आह….हमारा के हमेशा असहिं चो……" सुगना की जीभ उसके दांतों के बीच आ गयी। चेहरा लाल हो गया था।
सरयू सिंह का लंड सुगना के गर्भ में वीर्य भर रहा था। उस वासना के अतिरेक पर नर् सरयू सिंह का बस चल रहा था न सुगना का। नियति ने जैसे सुगना को गर्भवती करने का सोच लिया था।
सुगना की बुर का फूलना - पिचकना और सरयू सिंह के लंड का वीर्य वर्षा करना उसके लिए यह दोनों ही सुख अद्भुत थे वह उस आनंद को अपने दिलो-दिमाग में सजा लेना चाहती थी।
कजरी सरयू सिंह की जांघों में हो रही अकड़न को देख रही थी वह इस बात से प्रसन्न न थी की अंततः सरयू सिंह ने अपना वीर्य सुगना के गर्भ में उतार दिया था। कजरी भी अबतक अपनी चूत को रगड़ कर स्खलित हो चुकी थी।
सरयू सिंह सुगना के गालों को चूम रहे वह बार-बार अपनी मरदानी आवाज में सुगना बाबू ...सुगना बाबू…. पुकार रहे थे पर सुगना शांत थी। कुछ ही देर में वह स्वयं निढाल होकर सुगना के बगल में लेटने लगे। उनका लंड पक्कक़्क़... की ध्वनि के साथ सुगना की कोमल बुर से बाहर आ गया।
सुगना की कसी हुयी बुर ने सरयू सिंह के वीर्य को उगलना शुरू कर दिया। कजरी सुगना की बुर से बहते हुए वीर्य को देख रही थी। वह मन ही मन सोच रही थी कि काश कुँवर जी अपनी हथेलियों को सुगना की बुर पर रखकर इस वीर्य को बहने से रोक ले। वीर्य ज्वालामुखी की तरह छलक छलक कर बाहर आ रहा था।
कजरी ने आज अपनी बहू की अद्भुत चुदाई देख ली थी। नियति ने आज सुगना को उसकी जगह ला दिया और वह स्वयं सुगना की जगह खड़ी थी।
सरयू सिंह ने सुगना को करवट लिटा कर उसे सीने से सटा लिया। उनकी हथेलिया सुगना की पीठ और कोमल नितंबों पर घूमने लगीं। उन्होंने सुगना के नितंबों को अपनी हथेलियों से फैला दिया। सुगना की कोमल और कुमारी गांड कजरी को आंखों के ठीक सामने थी।
कितनी सुंदर थी सुगना और कितने सुंदर थे उसके खजाने। कजरी मदहोश हो रही थी। उसे पता था सुगना की चुदाई अभी और होनी थी। वह अब थक चुकी थी। वो टीन के डिब्बे से नीचे उतरी और अपनी चारपाई पर सो गई। उसने सुगना और सरयू सिंह और को नियति के हवाले छोड़ दिया था।
अभी रात बाकी थी पर कजरी थक चुकी थी।
और मैं भी
शेष अगले भाग में।
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भाग-25
सुगना को जी भर कर चोदने के बाद सरयू सिंह सुगना के नंगे जिस्म को अपने सीने से सटाए हुए आनंदित हो रहे थे सुगना उनसे अपने कोमल गाल रगड़ रही थी। अचानक सुगना ने अलसायी आवाज में कहा
"बाबूजी हमार बात ना मननी हा नु"
सरयू सिंह को सुगना की बात समझ ना आई। उन्होंने उसे चूमते हुए कहा
" कौन बात बाबू " सुगना ने अपना चेहरा उनसे दूर किया और अपने पेट से सटे हुए वीर्य से सने लंड को पकड़ लिया और बोली "एकर मलाई हमरा भीतरी भर देनी हा अब हमार पेट बछिया जइसन फूल जायी फेर ई सुख कैसे मिली"
सरयू सिंह सुगना का दर्द समझ चुके थे उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा
"ताहरा मां और सास दुनो के इहे ईच्छा रहे तू भी तो पहले इहे चाहत रहलु"
सुगना अपनी छोटी-छोटी मुठ्ठीयों से उनके सीने पर मरने लगी और बोली अभी
"कुछ देर पहले बतावले त रहनी"
सरयू सिंह को सुगना की एक एक बात याद थी परंतु वह उसे छेड़ने के मूड में थे। उन्होंने कहा
"एक हाली फिर से बता द"
सुगना शर्मा रही थी। शरीर सिंह उसे चुमते हुए बार-बार उससे पूछ रहे थे पर वह कोई जवाब न दे रही थी अपितु उनके सीने से अपनी चूचियाँ रगड़ रही थी तथा अपने हाथों से उनके चिपचिपा लंड को सहला रही थी। सरयू सिंह … अपना हाथ चारपाई के नीचे ले गए और अपनी धोती को अपने पास खींचा धोती में गठियाये हुए मोतीचूर के लड्डू को निकाला और उसे सुगना के होठों पर रख दिया।
सुगना को लड्डू बेहद पसंद थे। उसने अपने होठों को गोलकर उस लड्डू को पकड़ लिया और उसे अपने बाबूजी के होठों से सटाने लगी। वह उस लड्डू को अपने बाबू जी से भी साझा करना चाह रही थी। सरयू सिंह ने लड्डू को अपने होठों से सटा लिया परंतु खाया नहीं। धीरे-धीरे लड्डू का अधिकतर भाग सुगना के मुंह में विलीन होता चला गया। सरयू सिंह अपनी बहू को वह लड्डू खाते देख रहे थे तथा उसके नितंबों को लगातार सहलाते हुए आने वाले दिनों की कल्पना कर रहे थे। लड्डू के खत्म होते ही सुगना ने कहा ..
"लड्डुआ तनि तीत लाग तला हा"
"जायेदा इहे तहर सब मनोकामना पूरा करी"
सुगना को सरयू सिंह की यह बात समझ ना आयी परंतु उसकी बुर अब एक बार फिर चुदाई का सुख लेने के लिए तैयार हो चुकी थी। सुगना धीरे धीरे अपने बाबूजी के शरीर पर आ रही थी। कुछ ही देर में वह सरयू सिंह के ऊपर थी उसकी दोनों मखमली जाँघे सरयू सिंह की कमर के दोनों तरफ आ चुकी थी। लंड और बुर के बीच का फासला तेजी से कम हो रहा था।
सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना के कोमल और मासूम चेहरे को देखते हुए उसके भूत और भविष्य दोनों के बारे में सोच रहे थे। क्या उन्होंने वह लड्डू खिलाकर गलत किया था?
दरअसल आज सुबह से ही वह इस उधेड़बुन में थे कि यदि सुगना गर्भवती हो गई तो वह उसके साथ आगे संभोग कैसे कर पाएंगे। वह सुगना की सुंदर काया और मासूमियत से आकर्षित हो गए थे। वह उसके साथ जी भर कर और तरह-तरह से संभोग करना चाहते थे। अपने मन की इच्छा को पूरा करने का उन्हें कोई उपाय न सूझ रहा था। यदि वह अपना वीर्य बाहर गिराते तो सुगना उनकी इस कामुक इच्छा को जान जाती।
उनका दिमाग वासना के आधीन हो गया। अपनी भौजी कजरी और प्रेमिका पदमा की इच्छा को दरकिनार रखते हुए वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोधक गोलियां ले आए उन्हें अपने हाथों से लड्डू में मिलाकर कुछ लड्डू तैयार कर लिए। वह अपनी उधेड़बुन में अब भी थे। मन में दुविधा प्रबल थी अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह ने उसमें से एक लड्डू अपनी धोती में गठियाया और सुगना को उसका प्रथम मिलन का सुख देने कमरे में आ गए थे।
कजरी चुदाई का दृश्य देख चुकी थी। उन्होंने सुगना के गर्भ में अपना वीर्य भरकर कजरी और पदमा दोनों की इच्छा का मान रख लिया था और अब नियति ने सुगना के मुख से गर्भवती न होने की इच्छा जाहिर करा कर आकर उस लड्डू की उपयोगिता सिद्ध कर दी थी।
सरयू सिंह ने अपने हाथों से अपनी बहू को गर्भवती न होने के लिए उस लड्डू का सेवन करा दिया था जिसे सुगना ने अनजाने में खा लिया था।
सरयू सिंह ने वह लड्डू बनाकर जो पाप किया था उसमें सुगना की सहभागिता शामिल हो गई थी। सरयू सिंह ने सुगना के कोमल चेहरे को चूम लिया और उधर उनके लंड ने सुगना की कोमल बुर को। सुगना सिहर उठी।
लंड का सुपाड़ा बुर में प्रवेश कर चुका था। पिछली दमदार चुदाई में बूर फूलकर अपना मुख खोल चुकी थी। सरयू सिंह अपनी कमर को थोड़ा पीछे ले गए पर सुगना उस जादुई लंड को अपनी बुर से अलग करने के मूड में न थी उसने अपनी कमर पीछे करनी शुरू कर दी। सरयू सिंह सुगना की इच्छा जान चुके थे उन्होंने अचानक अपनी कमर आगे कर दी। सुगना की पीछे जाती हुई बुर में लंड घुसता चला गया। सरयू सिंह द्वारा अपनी बहू के बुर में भरा हुआ वीर्य अब एक स्नेहक (लुब्रिकेंट) की तरह काम कर रहा था।
ज्यों ज्यों लंड अंदर गया सुगुना की आंखें बाहर आने को हो रही थी। उसका चेहरा लाल हो रहा था। उसने अपने बाबुजी के कंधे पर अपने नाखून गड़ाकर उन्हें रोकने की कोशिश की परंतु सरयु सिंह के मजबूत हाथों ने सुगना की कमर को जकड़ लिया था और सुगना के प्रतिरोध के बावजूद लंड का अधिकतर भाग सुगना की बुर में प्रवेश कर गया सुगना अपने बाबुजी के सीने पर अपनी मुठ्ठीयों से मार रही थी और कराहते हुए बोल रही थी..
बाउजी तनि धीरे से…..दुखाता।
सरयू सिंह ने सुगना को अपने सीने से सटा लिया और उसे चूम लिया सुगना की इस बात पर बेहद प्यार आता था एक तरफ वह सुगना के गालों और माथे को चुने जा रहे थे दूसरी तरफ अपनी प्यारी बहू की चूत में लंड आगे पीछे करने लगे थे।
सुगना का दर्द गायब होने लगा चुदाई के आनंद के आगे दर्द कुछ फीका लग रहा था। सुगना अपने बाबूजी को लगातार चुम रही थी और चुदाई का आनंद ले रही थी। सरयू सिंह ने अपनी कमर की रफ्तार जैसे-जैसे कम की सुगना की कमर उसी अनुपात में हिलने लगी। उसने लंड और बुर के प्रेमसंघर्ष में कोई कमी नहीं आने दी। अपने बाबूजी का कार्यभार नई पीढ़ी की सुगना ने संभाल लिया था वह अपनी बुर के भगनासे को अपने बाबूजी के पेड़ू से रगड़ते हुए लंड के अधिक से अधिक भाग को अपनी बुर में समाहित करने की चेष्टा कर रही थी।
जब लंड उसके गर्भाशय के मुख में प्रवेश करता हूं वह सिहर उठती थी पर उस आनंद को वह बार-बार लेना चाह रही थी। कुछ देर तक अपने बाबू जी को अपनी कोमल बुर उसे चोदने के बाद सुगना की हिम्मत जवाब दे गयी। उसकी बुर कांपने लगी और उसने अपनी जाँघे फैलाकर लंड को पूरी तरह आत्मसात कर लिया।
सुगना झड़ रही थी। सरयू सिंह उसके चेहरे को देख रहे थे और उसके गालों और माथे को चूम रहे थे। उसने कराहते हुए कहा
"बाबूजी हमारा के हमेशा असहीं चो………….." सुगना से और आगे न कहा गया। सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी। वह अपना चेहरा नीचे करना चाहती थी पर झड़ती हुई सुनना को देखना सरयू सिंह को उत्तेजक लग रहा था। सुगना के चेहरे के भाव तेजी से बदल रहे थे कभी वह अपनी आंखों को भींचती, कभी दांतो से होठों को काटती कभी मुंह को गोल करती तरह-तरह की के भाव चेहरे पर लाते हुए सुगना स्खलित हो गई।
वह पराजित योद्धा की तरह अपने बाबू जी के सीने पर लेट चुकी थी। सरयू सिंह कभी उसकी पीठ को सहलाते कभी गर्दन तो कभी उसके कोमल नितंबों को दबाते। उनकी भावनाएं सुगना के प्रति प्यार और वासना में झूल रही थी। उसकी गुदांज गांड को छूते ही सुगना सिहर उठती पर वह थक चुकी थी। सरयू सिंह का लंड अब भी उसकी बुर में तना हुआ था और चीख चीख कर सरयू सिंह से अपनी कमर हिलाने के लिए कह रहा था। उसे सुगना की थकावट से कोई मतलब न था वह सिर्फ और सिर्फ सुगना की बुर में और अंदर तक प्रवेश करना चाहता था।
सरयू सिंह सुगना को प्यार कर रहे थे जैसे ही सुगना की सांसे सामान्य हुई सरयू सिंह सुगना को गोद मे लिए हुए बैठ गए। एक पल के लिए लगा जैसे उनका लंड सुगना की बुर से बाहर आ जाएगा पर सरयू सिंह ने अपने लंड को बुर के अंदर बनाए रखा।
सुगना सरयू सिंह के खूंटे पर टंगी हुई उनकी गोद में बैठ चुकी थी। शरीर सिंह उसे चूम रहे थे। सुगना भी अब उन्हें प्यार कर रही थी। उसे पता था उसकी बुर के बीच ठंसा हुआ लंड बिना इस स्खलित हुए नहीं मानेगा।
सुगना ने अपने बाबूजी के होंठों को चूसना शुरू कर दिया और अपनी नुकीली मुलायम जीभ उनके होठों पर फिराने लगी। सरयू सिंह कभी उसे अपने होठों से पकड़ पाते कभी सुगना उसे लप्प से अपनी मुंह के अंदर खींच लेती। ससुर बहु का यह खेल दोनों को उत्तेजित कर रहा था।
सरयू सिंह के हाथ सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए थे वह अपनी हथेलियों से उसे धीरे-धीरे ऊपर नीचे करने लगे सरयू सिंह का लंड बुर में आगे पीछे होने लगा। वह आनंद में डूबने लगे। सुगना भी अपने बाबू जी को स्खलित करने का प्रयास करने लगी।
सुगना ने मुस्कुराते हुए अपनी बुर की तरफ देखा और बोली
"बाबू जी आज एकरो इच्छा पूरा हो गईल" सरयू सिंह उसकी इस अदा पर घायल हो गए उन्होंने सुगना के कान में बोला
" केकर इच्छा हो?
सुगना जान रही थी कि सरयू सिंह इन उत्तेजक बातों का आनंद ले रहे थे। उसने सरयू सिंह के कान को अपने होठों में ले लिया और धीरे से बोली हमार बू….र के"
सरयू सिंह सुगना की इस बात से बेहद उत्तेजित हो गए. उन्होंने सुनना को चारपाई पर लिटा दिया पर अपने लंड को उसकी बुर से बाहर नहीं आने दिया। वह उसकी जांघों को फैलाकर उसे जोर जोर से चोदने लगे। सुगना इस अप्रत्याशित व्यवहार से आश्चर्यचकित थी। सरयू सिंह उसकी चूचियों को मसलते हुए उसे तेजी से चोद रहे थे। इस चुदाई में प्यार कहीं नहीं था सिर्फ और सिर्फ वासना थी।
सुगना को अब थोड़ा दर्द हो रहा था परंतु वह दर्द की पराकाष्ठा वह झेल चुकी थी। उसने अपने बाबूजी के सुख के लिए अपने दर्द को अपने भीतर संजोए रखा और अपने होठों पर मुस्कुराहट किए हुए अपने बाबुजी को उत्तेजित करती रही….
" हां….बाबू जी…. हां हां…..आईईईईईई आ आ आ….. "
सरयू सिंह ने अपने लंड को गर्भाशय में ठान्स दिया और एक बार फिर स्खलित होने लगे। उन्हें सुगना की इच्छा याद आ गई वीर्य की पहली धार गर्भ में गई परंतु उन्होंने न चाहते हुए भी अपने लंड को बाहर निकाल लिया और सुगना के शरीर पर वीर्य वर्षा करने लगे। वीर्य की धार सुगना की चेहरे, गले और चूचियों को भीगोती हुई धीमी पड़ रही थी। अंत में बारी सुगना की नाभि और उस कोमल बुर की आई जिसने लंड को झड़ने में अपनी पूरी शक्ति लगाई थी।
सुगना के शरीर पर जगह-जगह वीर्य सफेद मोतियों के रूप में चमक रहा था। सुगना के होंठों को चूमते समय सरयू सिंह ने जानबूझकर अपने वीर्य को उसके मुख के अंदर कर दिया। सुगना प्रेम रस की अहमियत जानती थी वह अपने बाबू जी के होठों को चूसने लगी प्रेम रस ससुर और बहू की लार में विलुप्त हो रहा था।
सरयू सिंह सुगना को अपने सीने से सटाए हुए नग्न अवस्था में ही सो गए सुगना ने भी कपड़े पहने की जहमत नहीं उठाई वह पूरी तरह थक चुकी थी।
दीपावली की रात बीत चुकी थी ससुर और बहू में एक नया संबंध कायम हो चुका था।
सोते समय सुगना उस लड्डू के बारे में सोच रही थी। उसे सरयू सिंह द्वारा की गई साजिश की भनक न थी हालांकि यह साजिश उसकी स्वयं की इच्छा थी।
सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे की मनो ईच्छा जान चुके थे और नियत उन दोनों की ही इच्छा को पूरा करने का मार्ग प्रशस्त कर चुकी थी। लड्डू के रूप में सरयू सिंह के पास एक विशेष अस्त्र आ चुका था।
सरयू सिंह के माथे का दाग आज अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया था। बालों के पीछे ढके होने के कारण सुगना का ध्यान उस पर न गया वैसे भी वह बेचारी आज तो वासना के आधीन थी उसका सारा ध्यान उस जादुई लंड ने खींच रखा था।
सुबह हो चुकी थी कजरी आंगन में मुंह हाथ धोकर अपनी बहू सुगना का इंतजार कर रही थी।
कजरी ने कल रात सुगना की उस अद्भुत चुदाई का दृश्य देखा था वह उसके जेहन में एक अमिट छाप छोड़ गया था। सरयू सिंह ने एक ही रात में सुगना की कामवासना को चरम पर ला दिया था। कभी-कभी कजरी यह सोचती की सुगना ने क्या पहले भी यह अनुभव लिया हुआ था? पर उसके चेहरे के भाव और उसकी मासूमियत इस बात को नकारते थे. जिस तरह सरयू सिंह उसकी बुर को सहला और चूस रहे थे एवं सुगना भी उस का आनंद ले रही थी उस दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे सुगना और सरयू सिंह के लिए वह आनंद नया न था।
बात सच थी। कजरी का अवलोकन सत्य के करीब था परंतु जब सरयू सिंह का लंड सुगना की कोमल बुर में प्रवेश कर रहा था सुगना की आंखों में दर्द और खुशी एक साथ दिखाई पड़ रही थी। निश्चय ही वह सुगना के लिए बिल्कुल नया था यह उसके चेहरे से स्पष्ट था..
वह बाबूजी... बाबूजी... पुकार रही थी। कजरी बेहद प्रसन्न थी चाहे जो भी हो उसकी प्यारी बहू सुगना ने अपना प्रथम संभोग सकुशल संपन्न कर लिया था और उसके कुंवर जी ने उसके गर्भ में अपना वीर्य भर दिया था।
धूप निकल रही थी कजरी से और बर्दाश्त ना हुआ दरवाजे पर कभी भी गांव के व्यक्ति आ सकते थे सामान्यतः सरयू सिंह सुबह सुबह उठ जाते थे परंतु आज देर हो रही थी।
कजरी ने पहले सुगना को आवाज देने की सूची परंतु उसे सुगना और सरयू सिंह को देखने का मन किया उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला। सरयू सिंह ने दरवाजे की किल्ली बंद नहीं की थी और करते भी क्यों सुगना के साथ रात बिताने के लिए कजरी स्वयं उन्हें यहां तक लाइ थी।
अंदर का दृश्य देखकर कजरी भाव विभोर हो गई उसकी बहू सुगना एकदम नग्न अपने ससुर के आलिंगन में लिपटी हुई सो रही थी उसकी दाहिनी जांग सरयू सिंह की दोनों जांघों के बीच में थी उसकी चुदी हुई बुर झांक रही थी कजरी की निगाहें रक्त के निशान खोज रही थी पर उसे वह दिखाई न पड़ा। उसे इस बात पर आश्चर्य भी हो रहा था
तभी सुगना ने अंगड़ाई ली कजरी उल्टे पांव कमरे से बाहर आ गई और आगन से सुगना का नाम पुकारा।
सुगना बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई . उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और अपनी फूली हुयी बुर को देखकर सिहर गयी। दो बार की जमकर चुदाई से उसकी बुर का मुंह खुल गया था। तभी उसकी नजर सरयू सिंह के लटके हुए बैगन पर चली गई। जादुई लंड सो रहा था। वह एक बैगन की भांति सरयू सिंह की जांघों के बीच लटका हुआ था। सुगना को जितना आनंद उसने पिछली रात दिया था वह उसकी मुरीद हो चली थी। उसे लंड को छूने का मन हुआ। वह खुद को ना रोक पायी और सरयू सिंह के लंड को हाथ लगा दिया।
सरयू सिंह की नींद खुल गई अपनी नग्न सुगना को अपना लंड पकड़े हुए देखकर सरयू सिंह बेहद प्रसन्न और उत्तेजित हो गए। उन्होंने सुगना को अपनी तरफ खींच लिया। इससे पहले की वह अपनी प्यारी बहू को एक बार फिर चोद पाते कजरी की आवाज आई
"सुगना बेटी उठ जा देर हो जाइ"
नंगी सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और पूरी मासूमियत से बोला
"बाबूजी अभी जाए दीं, सासू मां बुलावत बाड़ी। बाकी राती के फिर मालपुआ भेटाई"
(भेटाई मतलब मिलेगा)
यह एक संयोग ही था सुगना यह बात करते हुए अपनी पेंटी को उठा रही थी और सरयू सिंह नीचे से उसके फूले हुए मालपुआ का दर्शन कर रहे थे लंड पूरी तरह तनाव में था पर वह सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहते थे। उन्होंने उसे छोड़ दिया पर जाते जाते उसकी बुर पर एक बार फिर हाथ फिरा दिया।
सरयू सिंह की उंगलियों पर एक बार फिर सुगना की फूली हुई बुर से रिस आया मदन रस लग चुका था। उन्होंने अपनी उंगलियां चुम लीं। आज सुबह-सुबह ही उनके होठों को उनका बहुप्रतीक्षित और पसंदीदा रस मिल चुका था।
सुगना अपने वस्त्र पहनकर आंगन में आ गयी। उसने कजरी के पैर छुए और उसके सीने से लग गई। कजरी ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूम लिया।
कजरी ने पूछा
"हमरा सुगना बाबू के नींद आईल ह नु? कुंवर जी सुते देले हा कि रात भर जगावले रहले हा?"
सुगना ने अपना सिर शर्म से नीचे कर लिया उसे उत्तर देने में हिचकिचाहट हो रही थी। कजरी ने फिर कहा
"जा मुंह हाथ धो कर तैयार हो जा फेर…"
सुगना अब तक अपनी के कामुक दुनिया से बाहर नहीं लौटी थी उसने पूरी बात सुने हुए बोला
"मां अभी ना, अब राती के…"
दरअसल सुगना में कजरी की बात से यह अंदाज लगाया कि कजरी उसे साथ मुंह हाथ धोने के बाद एक बार फिर अपने ससुर से संभोग के लिए प्रेरित कर रही है। तभी उसने अपनी मानसिकता के अनुरूप उत्तर दिया था जिसे सुनकर अब कजरी हंस रही उसने कहा..
"हट पगली"
सुगना अपनी दीवाली मना चुकी थी. उसके जीवन और लहंगे दोनों में खुशियां भरी हुई थी।
सुगना के जाने के बाद कजरी सरयू सिंह के पास आ गई सरयू सिंह अपने लंड को लंगोट में कस रहे थे कजरी को देखकर वह थोड़ा शर्मा से गए पर उन्होंने कहा
"आवा आखिर हमरा से तू ही गलत काम करवा ही देलू"
"रहुआ त हमारा कहला से आगे बढ़ गईनी. हम तो सुगना के मालपुआ में रस भरे के कहले रहनी रउआ त पुआ चूसे लगनी हा…रहुआ लाज ना लागत रहे"
सरयू सिंह यह बात भली-भांति जानते थे कि कजरी सारा दृश्य अपनी आंखों से देख चुकी है उससे छुपाने का अब कोई औचित्य न था उन्होंने कहा..
"अइसन सुंदर पुआ रहे मन लालच गईल रहे हम सोचनी ओकरो के सुख दे दी"
एक पल के लिए सरयू सिंह को लगा कि जैसे कजरी उनके और सुगना के बीच हुए इस मिलन से उतनी प्रसन्न नहीं थी।
कल की चुदाई से सुगना की बुर पूरी तरह फूल चुकी थी और संवेदनशील हो चुकी थी जिसका एहसास सुगना को तब हुआ जब वह मूत्र विसर्जन के लिए बैठी। उसने अपनी चुदी हुई बुर को देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि 1 दिन में ही उसका छोटा सा मालपुआ बड़ा हो गया था। आज वह सरयू सिंह के साथ पुनः मिलन की इच्छुक थी परंतु बुर की हालत उसे रोक रही थी।
उधर सरयू सिंह का लंड अपनी जबान बहु को चोद कर मदमस्त हो गया था वह रह रह कर अपना सर उठा रहा था जिसे सरयू सिंह सहला कर वापस लंगोट में कर देते परंतु सुगना की आहट सबसे पहले वह लंड ही सुन रहा था। जब भी सुगना आस पास से गुजरती सरयू सिंह के लंड में तनाव बढ़ने लगता।
सरयू सिंह दोपहर में ही सुगना से मिलन को तत्पर थे परंतु सुगना ने अपना सारा वक्त लाली के यहां बिता दिया सरयू सिंह मन मसोसकर रह गए शाम होते होते आखिर उन्होंने सुगना को रसोई में घेर लिया कजरी घर से बाहर परचून की दुकान से तेल लेने गई हुई थी सरयू सिंह ने आनन-फानन में सुगना की साड़ी उतार दी वह पेटीकोट और ब्लाउज में रसोई में खड़ी थी सरयू उसकी चुचियों को मसले जा रहे थे परंतु जब तक सुगना अपनी बुर की संवेदनशीलता भूल कर चुदाई के लिए तैयार हो पाती बाहर कजरी की आवाज आई। सरयू सिंह जल्दी बाजी में अपनी धोती समेटते हुए रसोई से बाहर आ गए सुगना ने भी अपनी साड़ी लपेटी और बैठकर सब्जी चलाने लगी।
आज सुगना में चुदने के लिए वह उत्साह नहीं था उधर सरयू सिंह के मन में निराशा जाग रही थी। रात होते-होते सुगना कजरी के बिस्तर पर ही सो गए सरयू सिंह इंतजार ही करते रह गए। उनकी हालत न माया मिली न राम जैसी हो गई थी सास और बहू एक ही बिस्तर पर एक दूसरे के आलिंगन में सो रही थी सरयू सिंह मन ही मन तरह तरह की कल्पनाएं करते हुए सो गए।
भाई दूज के दिन सुगना का भाई सोनू सुगना के घर आया हुआ था। उसे सुगना की मां पदमा ने सुगना का हाल-चाल लेने के लिए भेजा था।
पदमा सुगना को लेकर चिंतित थी परंतु पदमा से मिलने के बाद सोनू बेहद प्रसन्न था। उसकी बहन सुगना आज से पहले इतनी खुश कभी न दिखाई दी थी। उसका रोम-रोम खिला हुआ था।
सोनू अब तक स्त्री पुरुष के बीच होने वाले
क्रियाकलापों को बखूबी जान चुका था। लाली को देखकर उसके किशोर मन में हलचल होती थी वह उसका सानिध्य पाने को बेताब रहता था सोनू की मासूमियत लाली को भी आकर्षित करती थी परन्तु कामुकता वश नहीं अपितु वह सोनू की मासूमियत और सुगना के छोटे भाई होने की वजह से उसके करीब आसानी से आ जाती थी।
लाली और सुगना आगन में बातें कर रही थीं। सोनू दालान में बैठा लाली की बातों में ध्यान लगाया हुआ था। सुगना के कहा...
शेष अगले भाग में।
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14-04-2022, 02:50 PM
भाग -26
दोपहर के वक्त लाली और सुगना आंगन में बैठकर बातें कर रही थी सोनू बाहर दालान में चारपाई पर लेटा हुआ ऊंघ रहा था। सुगना अपनी बुर की संवेदनशीलता के बारे में लाली से बातें करना चाह रही उसने लाली से पूछा
"ए लाली पहला रात के तोहरो उ ( बुर की तरफ इशारा करते हुए) लाल भई रहे का.."
"हां तनी मनि ( हां थोड़ा सा)"
"हमार तो ढेर लाल भईल बा"
सुगना ने अनजाने में ही सच कह दिया था। लाली को यह बात बिल्कुल भी ना समझ आई सुगना का पति घर में न था और सुगना की सुहागरात को हुए काफी समय बीत चुका था फिर सुगना ने अकस्मात वह बात क्यों कही। उसने उस बात को नजरअंदाज करते हुए कहा
"त तहरा सुहागरात में ढेर छीला गई रहे का रतन भैया चुमले चटले ना रहन का"
लाली हंस रही थी और सुगना भी उसका साथ दे रही थी उधर सोनू उनकी बात से उत्तेजित हो रहा था वह सुगना के प्रति तो आकर्षित न था पर लाली उसके सपनों में कई बार आती थी।
लाली की कसी हुई कमसिन जवानी सोनू को लुभाती थी परंतु अभी वह यह सुख लेने लायक न था उसकी उम्र अभी सपने देखने की ही थी जिस पर लाली की चुचियों ने अधिकार जमाया हुआ था।
सरयू सिंह आज भी सुगना के आगे पीछे घूम रहे थे यह बात भूल कर कि उसका भाई घर में ही है और आज सुगना के साथ संभोग करने पर पकड़े जाने का खतरा था पर वह अपनी उत्तेजना के अधीन होकर सुगना से मिलन का मौका तलाश रहे थे।
शाम का वक्त था सुगना की बछिया जो अब गाय बन चुकी थी उसे दुहने का वक्त हो रहा था। सामान्यतः यह काम सरयू सिह स्वयं किया करते थे परंतु उन्हें यह बात पता थी कि सोनू भी इस कला में दक्ष है। उनके मन में योजना बन गई उन्होंने कजरी से कहा
" आज सोनू से दूध निकलवा ल हमरा अंगूठा में दर्द बा"
थोड़ी ही देर में सोनू और कजरी दोनों सुगना की बछिया का दूध निकालने मैं लग गए। बछिया नयी थी वह अपनी चुचियों पर आसानी से हाथ नहीं लगाने दे रही थी। सोनू के हाथ तो उसके लिए बिल्कुल नए थे। सोनू ने उसके दोनों पैर बांध दिए और कजरी बछिया के पुट्ठों पर हाथ फिराने लगी।
यह एक संयोग ही था की सुगना अपने कमरे की कोठरी से एक बार फिर वही दृश्य देख रही थी जिसे देखकर उसके मन मे उत्तेजना ने जन्म लिया था।
उसने स्वयं को बछिया की जगह रख कर सोचना शुरू कर दिया। एक पल के लिए उसे लगा कि जैसे उसकी जांघें बांध दी गई हों और उसकी सास कजरी उसके नितंबों को सहला रही हो तथा उसकी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास किया जा रहा हो। वह अपनी चुचियों पर सोनू के हाथ की कल्पना न कर पायी वह उसका छोटा भाई था उसके ख्यालों में अभी उसके बाबूजी सरयू सिंह ही छाए हुए थे।
वह अपनी सोच पर शरमा गई। उसके मन में आई इच्छा नियति ने पढ़ ली। सुगना ने अभी-अभी संभोग सुख लेना शुरू किया था उसके मन में तरह-तरह की कल्पनाएं आना वाजिब था आखिर वह बछिया ही थी जिसने सुगना की मन में उसके बाबूजी के प्रति प्यार को वासना में बदल दिया था।
दालान में बैठे सरयू सिंह कभी सुगना को देखते कभी कजरी और सोनू को।
सुगना अपने छोटे भाई के हाथ अपनी बछिया की चुचियों पर महसूस कर गनगना रही थी। वह हमेशा अपनी चुचियों की तुलना बछिया की चुचियों से करती रही थी। जैसे-जैसे सोनू के हाथ बछिया की चुचियों को मीस रहे थे सुगना के निप्पल खड़े हो रहे थे वह अपने मन में चल रहे अंतर्द्वंद में जूझ रही थी एक पल के लिए उसने सोनू के हाथों को अपनी चुचियों पर भी महसूस कर लिया।
क्या बछिया की चुचियों पर एक नवकिशोर के हाथ भी सरयू सिंह की तरह महसूस होते होंगे? क्या उम्र का अंतर चुचियों के स्पर्श पर कोई असर डालता होगा? वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी सरयू सिंह ने सुगना को पीछे से आकर पकड़ लिया. इससे पहले कि सुगना चौक पाती सरयू सिंह की हथेलियों ने उसके होठों को ढक लिया सरयू सिंह सुगना के गालों से गाल सटाये हुए उसे चूम रहे थे और लंड सुगना के नितंबो से सट कर सुगना को उसका एहसास दिला था सुगना दोहरी उत्तेजना की शिकार हो रही थी...
सुगना स्वयं को अपने बाबूजी के आगोश में महसूस कर रही थी उसकी निगाहें अपने छोटे भाई सोनू पर थी जो उसकी बछिया की चूचियां दबा दबा कर दूध निकाल रहा था तभी सरयू सिंह की हथेलियों ने सुगना की चुचियों को धर लिया सुगना का ब्लाउज सरयू सिंह की हथेलियों को न रोक पाया वो ब्लाउज के नीचे से प्रवेश कर सुगना की नंगी चूचियां को छूने लगी.
सुगना उत्तेजित हो चली थी. सरयू सिंह का लंड उसके नितंबों के बीच चुभ रहा था। अचानक सुगना ने अपनी साड़ी को ऊपर उठता महसूस किया उसे सरयू सिंह से यह उम्मीद न थी क्या उसके बाबु जी अभी इसी अवस्था में उसे नंगा करेंगे। वह कांप उठी उसकी निगाहें अभी भी अपनी सास कजरी और सोनू पर थी। परंतु सुगना अब उत्तेजना के आधीन थी सरयू सिंह उसकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर करते हुए कमर तक ले आए और सुगना ने इसे रोकने की कोई कोशिश न की। सरयू सिंह का लंड सुगना की गांड से छू रहा था। वह अपने लंड को बुर की तरफ ले जाना चाह रहे थे।
सुगना खड़ी थी इस अवस्था में यह संभव न था वह कामकला के आसनों से परिचित न थी। सरयू सिंह ने सुगना के पेट पर अपना हाथ लगाया और उससे आगे झुकने का इशारा किया। सुगना एक खूबसूरत गुड़िया की तरह खिड़की को पकड़कर अपने शरीर को आगे झुका लिया तथा अपनी कमर को पीछे कर दिया। उसके बाबूजी के लंड को बुर् का स्पर्श मिल चुका था। स्पर्श ही क्या बुर से छलक रही लार ने सरजू सिंह के लंड के सुपारे को गीला कर दिया।
शरीर सिंह से और बर्दाश्त न हुआ उन्होंने अपने लंड को अपनी प्यारी सुगना बहू की बुर में उतार दिया वह गर्म सलाख की भांति सुगना की मक्खन जैसी बुर में प्रवेश करता गया। सुगना की आंखें बड़ी होती चली गई। वह इस उत्तेजक माहौल मैं अपना दर्द भूल कर कर लंड लीलने को कोशिश कर रही थी।
नियति तमाशा देख रही थी सरयू सिंह अपनी बेटी समान बहू सुगना को उसके छोटे भाई की उपस्थिति में धीरे-धीरे चोद रहे थे। उधर सोनू सुगना की बछिया की सूचियां मिस रहा था और इधर सरयू सिंह उसकी बहन सुगना के।
सरयू सिंह ने कहा
"सोनू बढ़िया से दूध दूहता लागा ता जल्दी एकरो बियाह करे के परी"
सुगना शर्मा गई और अपनी बुर को सिकोड़ कर सरयू सिंह के लंड पर दबाव बढ़ा दिया।
सरयू सिंह ने सुगना की चुचियों को तेजी से दबाया और सुगना कराह उठी...
"बाबू जी तनी धीरे से …...दुखाता, इकरा में से दूध ना निकली" उसने मुस्कुराते हुए कहा।
सरयू सिंह भी मुस्कुरा रहे थे उन्होंने सुगना को छेड़ा "जायेदा आज फिर से तहरा …. ( लंड से गर्भाशय पर प्रहार करते हुए) ए में मलाई भर दे तानी कुछ दिन बाद तोहरो चूची से दूध निकली"
सुगना ने अपने हाथ पीछे किये और उनके पेट पर मुक्का मारा
"छी कइसे बोला तानी"
समय कम था। अब सरयू सिंह सुगना को पूरे आवेश और उन्माद से चोदे जा रहे थे उधर दूध की बाल्टी भर रही थी उधर सरयू सिंह के अंडकोष में वीर्य।
बाल्टी भरने के बाद कजरी बछिया के पैर में बंधी रस्सी खोल रही थी और सोनू बाल्टी लिए उठ रहा था। इससे पहले कि वह दोनों दालान तक पहुंचते सरयू सिंह और सुगना अपना काम तमाम कर चुके थे। सरयू सिंह का वीर्य सुगना की बुर में भर चुका था और लंड निकलने के बाद उसकी जांघों से रिसता हुआ नीचे आ रहा था।
सरयू सिंह ने अपनी धोती में लपेटा हुआ लड्डू निकाला और सुगना को पकड़ा दिया वह खुशी-खुशी लड्डू खाने लगी।
कजरी और सोनू दलान में आ चुके थे।
सोनू ने सुगना को लड्डू खाते हुए देख कर बोला
"अकेले अकेले ही लड्डू खा तारे हमरा के ना देबे"
सुगना अबोध थी उसे लड्डू का रहस्य पता न था उसने लड्डू का बचा हुआ छोटा टुकड़ा सोनू को दे दिया जब तक सरयू सिंह सोनू को रोक पाते सोनू की जीभ उस लड्डू के स्वाद को महसूस कर रही थी लड्डू में मिली हुई दवाई का स्वाद सोनू को रास ना आया उसने कहा
"लड्डू तनी तीत लगाता"
सरयू सिंह ने बात बदल दी
"हां ई लड्डू तनी पुरान हो गईल बा"
इन्हीं बातों के दौरान सुगना ने अपनी आंखों से बहता हुआ वीर्य अपने पेटीकोट में पोछ लिया था।
कजरी सुगना के ब्लाउज पर पड़ी सलवटे देख रही थी परंतु वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी उसे यह कतई उम्मीद न थी कि सरयू सिंह इतनी जल्दी और इस तरह से सोनू की उपस्थिति में सुगना के साथ छेडख़ानी कर लेंगे।
सोनू अपने जहन में अपनी दीदी सुगना का खुशहाल चेहरा और उसकी सहेली लाली की सुनहरी यादें लेकर अपने घर लौट गया।
इधर सरयू सिंह ने सुगना के जीवन में खुशियां भर दी थी। वह कभी कभी उसके गर्भाशय में अपना वीर्य भरते, कभी अपनी वीर्य रूपी मलाई से उसकी मालिश। सुगना को सरयू सिंह का हर रूप पसंद आता वह सिर्फ और सिर्फ चुदने का आनंद लेती। बुर के अंदर लंड का फूलना पिचकना उसे अद्भुत सुख देता था इसलिए वह सरयू सिंह को अपने अंदर स्खलित होने पर अब टोकती न थी। उसने अब सब कुछ नियति के भरोसे छोड़ दिया था। और नियत उसे अभी और सुख देने पर उतारू थी। उसका गर्भाधान अब प्राथमिकता न रही थी। सरयू सिह जब जब वह अपनी बहू की बुर में अपना वीर्य भरते उसकी काट वह लड्डू के रूप में सुगना को खिला देते।
सुगना को उस लड्डू का रहस्य अभी पता न था परंतु वह अपने गर्भ में गिरे हुए वीर्य को भूलकर संभोग सुख का आनंद ले रही थी। जब जब सरयू सिंह सुगना की बुर में अपना वीर्य भरते तब तब सुगना अपने बाबुजी को घूरकर देखती और उसे लड्डू मिलता। वह इस राज को जानना चाहती थी परंतु सरयू सिंह वह बात छुपा ले जाते।
सुगना ने अब अपनी जांघें अपने बाबूजी के लिए पूरी तरह फैला दी थी यह उसकी सास कजरी की भी इच्छा थी और उसकी मां पदमा की भी। सुगना मन ही मन गर्भवती नहीं होना चाहती थी परंतु वह यह बात बार-बार सरयू सिंह से नहीं कहना चाहती थी। सरयू सिंह जब जब उसकी बुर में अपना वीर्य भरते वह एक तरफ थोड़ी दुखी होती परंतु मां बनने की खुशी सोचकर वह प्रसन्न भी होती। बुर में वीर्य भरे जाने के पश्चात उसे लड्डू खाने को मिलता उसके लिए यह एक अतिरिक्त खुशी थी।
अगले दस बारह दिन में कजरी ने सुगना और सरयू सिंह को संभोग करने के खूब अवसर दिए। सुगना की घनघोर चुदाई भी हुई इसके वावजूद सुगना का महीना आ गया।
सुगना बेहद खुश थी परंतु अपनी सास कजरी के सामने दुखी होने का नाटक कर रही थी।
सुगना का महीना आने के पश्चात सरयू सिह बेहद प्रसन्न थे। यह खुशी उनके अंतर्मन में थी परंतु जब जब वह कजरी के पास जाते वह अपनी खुशी पर काबू रखने का प्रयास करते ।
इन दस बारह दिनों में कजरी और सरयू सिंह के बीच संभोग ना हो पाया था परंतु अब सुगना का महीना आने के बाद सरयू सिंह कजरी के साथ रात बिताना चाहते थे।
सुगना समझदार थी उसे सरयू सिंह और कजरी के बीच की नजदीकियां बखूबी पता थी वह जानती थी की अब चुदने की बारी उसकी सास कजरी की थी। वैसे भी सरयू सिंह इन दिनों बेहद उत्तेजित रहा करते थे और हो भी क्यों ना अपनी बहू की कोमल बुर को चोद चोद कर उनका लंड मदहोश हो गया था। उसे एक पल के लिए भी चैन ना आता जब जब सुगना लहराती हुई दिखाई पड़ती तब तब वह लंड अपना सर उठाता। सुगना इन दिनों कजरी के कोठरी में उसकी चारपाई पर ही सो रही थी।
शाम के वक्त सुगना और कजरी आगन में नहीं मिल रही थी तभी सुगना ने कहा
"मां, हम अपना कोठरी में में सुतब"
"ई काहें?"
"राउर कुवर जी आजो मत धर लेस" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा सुगना की बात सुनकर कजरी भी हंस पड़ी और बोली..
"हम बता देब परेशान मत हो"
" ए सुगना, एक बात पूछी?"
" का बात?"
" कुंवर जी भीतरीये गिरावत रहन नू"
"का गिरावत रहन?" सुगना ने अनजान बनते हुए कहा
"अरे आपन मलाई"
"मां साफ-साफ बोल ना का पूछा तारे"
कजरी ने अपनी जाँघे फैला दी और अपनी बुर की तरफ इशारा करते हुए बोली
"तोरा में मलाई भरले रहन की ना?"
"हा भरत रहन पर कभी कभी हमारा देह पर भी गिरावत रहन"
कजरी का चेहरा लाल हो रहा था जिसमें वासना का पुट ज्यादा था और क्रोध का कम उसने कहा
"उ तोरा देह पर ना गिरावत होइहें चूचीं पर गिरावत होइहें"
सुगना ने अपने मन की खुशी को दबाते हुए कहा
" ए मा तोहरा कैसे मालूम"
कजरी निरुत्तर हो गई उसकी चोरी उसकी बहू ने पकड़ ली थी। कजरी झेंप गयी उसने स्थिति को संभालते हुए कहा
"अरे सब मर्द लोग के दु ही चीज पसंद ह" उसने अपनी निगाहों से सुगना की चूची और बुर की तरफ इशारा कर दिया।
सुगना भी आज कजरी को छेड़ने का मन बना चुकी थी उसने कहा
"मां बाबूजी ता कई साल पहले ही चल गई रहन रउआ कैसे मालूम था मर्द लोग के लीला"
कजरी ने उसकी बात का कोई उत्तर न दिया बल्कि अपनी निगाहें गेहूं की थाली में गड़ा ली ।
सुगना ने अपनी मर्यादा को ध्यान में रखते हुए बात को वहीं पर समाप्त कर दिया परंतु जाते जाते वह मुस्कुराते हुए बोली
"आज हम अपना कोठरी में सूतब अपना कुँवर जी से बच के रहिह"
सुगना ने कजरी के मन की बात कह दी कजरी की अंतरात्मा खुश हो गई उसकी जांघों के बीच एक चिलकन सी हुई और कजरी की बुर मुस्कुरा उठी आज कई दिनों बाद सरयू सिंह का साथ उसे मिलने वाला था।
सरयू सिंह आगन में बैठकर खाना खा रहे थे कजरी के मन में आज हलचल थी। सुगना बार-बार कजरी की तरफ देख रही थी उसे पता था आज उसकी सास कजरी जरूर चुदेगी।
खाना खाने के बाद सुगना अपने कमरे में चली गई और कजरी ने अपनी बुर को धो पोछ कर तैयार कर लिया और अपनी चारपाई पर लेट कर सरयू सिंह का इंतजार करने लगी।
आगन में शांति होते ही सरयू सिंह ने अपनी लंगोट उतार ली अचानक उनका ध्यान स्टील के उस छोटे से डिब्बे पर गया जिसमें उन्होंने अपनी प्यारी बहू सुगना के लिए लड्डू बना रखे थे। आज इन लड्डुओं कि उन्हें कोई आवश्यकता न थी। कजरी की नसबंदी पहले ही हो चुकी थी।
सरयू सिंह आकर कजरी की बगल में लेट गए और उसकी चुचियों पर हाथ रख उसे सहलाने लगे कजरी ने कहा
"रउवा अपन बहू सुगना में भुला गईल बानी। हमार याद एको दिन ना आइल हा"
सरयू सिंह ने कजरी की बड़ी-बड़ी चुचियों को जोर से मसल दिया और बोले
"अरे सुगना त अभी लइका बिया। तू ही तो कह ले रहलू कि पूरा मेहनत कर ली ओकरा गोदी में लाइका खातिर"
" एहि से दोनों बेरा (टाइम) मालपुआ खात रहनी हां"
सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे। सुगना के मालपुआ को याद करके वो उत्तेजित हो रहे थे उनका लंड उनकी भाभी कजरी की गांड से छू रहा था जिसे वह पूरी तरह अंदर उतार देना चाहते थे परंतु कजरी ने उस लंड को अपनी गांड में लेने से मना कर दिया था इतने दिनों के साथ के बावजूद वह उस सुख का आनंद न ले पाए थे।
कजरी अब पलट कर पीठ के बल आ चुकी थी सरयू एक हाथ से उसकी चूची मिस रहे थे तथा अपने चेहरे को दूसरी चूची पर रगड़ रहे थे कजरी ने कहा
"राउर सारा मेहनत बेकार चल गईल.."
"मेहनत बेकार नईखे गइल देखेलू सुगना आजकल कितना खुश रहेंले"
"अब रउआ पुआ चूसब त खुश ना रही"
सुगना झरोखे पर खड़ी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी की बातें सुन रही थी वह सतर्क हो गई थी उसे यह विश्वास ही नहीं हो रहा था की उसके बाबूजी और सास उसके ही बारे में ऐसी बातें कर रहे थे वह अपना कान लगाकर उनकी बातें सुनने का प्रयास करने लगी।
"ले आवा आज तोहरो चूस दी"
सरयू सिंह ने कजरी की साड़ी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया उसकी मखमली और गदराई जांघें नग्न होने लगी। उधर सरयू सिंह उसकी साड़ी को उठा रहे थे और इधर कजरी अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर रही थी।
सरयू सिंह अपना चेहरा कजरी की जांघों के बीच ले जाने लगे तभी कजरी ने रोक लिया और कहा
" रहे दी अभी ई सुख सुगना के ही दी साच में ओकर पुआ फूल जइसन कोमल बा"
"ओह त हु हूँ ओकर पुआ देखले बाड़ू"
"ओकरा खिड़किया से सब दिखाई देला"
"इकरा मतलब वह दिन तू सब देखले रहलु"
कजरी ने कोई जवाब न दिया अपितु सरयू सिंह को अपने ऊपर खींच लिया सरयू सिंह कजरी का इशारा पाते ही उसकी जांघों के बीच आ गए और उनका लंड अपनी सर्वकालिक ओखली में प्रवेश कर गया। सरयू सिंह की रफ्तार और उन्माद बिल्कुल नया था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह कजरी की बुर को पूरे उन्माद से चोद कर कजरी को प्रसन्न करना चाहते हों और उसे अपनी सुकुमार बहू को चोदने का अवसर देने के लिए उसे धन्यवाद देना चाहते हों। इस नए उन्माद को कजरी ने पहचान लिया और मुस्कुराते हुए बोली
"सुगना बहू रउआ में फुर्ती भर देले बिया"
सरयू सिंह ने कजरी की चुचियों को मसल दिया और उसकी प्यासी बुर में झड़ने लगे कजरी भी अपनी जाँघे फैला कर अपने कुँवर जी की वीर्य वर्षा का आंनद लेने लगी। उसकी बुर भी अपना पानी छोड़ रही थी। आज के इस उत्तेजक प्यार में निश्चय ही सुगना का योगदान था कजरी और शरीर सिंह दोनों ही उसके बारे में सोच रहे थे।
उधर सुगना अपने बाबू जी और अपनी सास की बातें सुन चुकी थी। उसकी रजस्वला बुर भी पनिया गई थी परंतु सुगना उसे और छेड़ना नहीं चाहती थी।
अब तीनों ही एक दूसरे का राज जानते थे।
अपनी सांसे सामान्य होने के बाद कजरी में पूछा
"सुगना के कोनो बीमारी नइखे नु अतना मेहनत पर पर त ओकरा गाभिन हो जाये के चाहीं"
सरयू सिंह ने अपनी खुशी छुपाते हुए कहा " ना अइसन लागत त नइखे, जाए द एक महीना और देख ल"
सरयू सिंह ने अगले महीने भी सुगना की चुदाई का मार्ग प्रशस्त कर लिया था।
शेष अगले भाग में।
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भाग -27
अगले कुछ दिनों में सुगना और सरयू सिंह की बीच अंतरंगता और बढ़ती गई. कजरी ने कुंवर जी और सुगना को खुली छूट दे रखी थी। सरयू सिंह और सुगना अब दिन में भी एकाकार हो जाते। इधर कजरी रसोई में खाना पकाती उधर दोनों प्रेमी युगल अपनी रास लीला रचाते। सुगना के अस्त-व्यस्त कपड़े और बिखरे हुए बाल देख कजरी सारा माजरा समझ जाती और मुस्कुराते हुए सुगना से पूछती
"भीतरी गिरावले हां की फिर चुचिये पर"
सुगना शर्मा जाति परंतु वह इशारों ही इशारों में कजरी को उत्तर दे जाती। एक बार कजरी के प्रश्न पूछने पर सुगना उत्तर न दे पायी उसके मुंह में लड्डू भरा हुआ था उसने अपनी साड़ी घुटनों तक उठा दी जांघों से बहता हुआ वीर्य घुटनों तक आ चुका था।
कजरी सारा माजरा समझ गई और मुस्कुराने लगी और बोली...
"अब लगाता तोहार पेट फूल जायी। अपना मन भर सुख ले ल"
बेचारी कजरी को क्या पता था जब तक सुगना लड्डू खाती रहती उसका गर्भवती होना असंभव था.
सुगना मुस्कुरा रही और सरयू सिंह द्वारा दिया हुआ लड्डू खा रही थी। कजरी ससुर बहू के इस प्रेम से अभिभूत थी परंतु लड्डू का राज उसे भी समझ ना आ रहा था।
इधर जैसे-जैसे सुगना अपनी अदाओं से सरयू सिंह को रिझा रही थी उधर सरयू सिंह भी उत्तेजना को नए मुकाम पर ले जा रहे थे। वह शहर जाकर वह सुगना के लिए तरह-तरह की डिजाइनर पेंटी और ब्रा ले आए साथ ही साथ कुछ मैक्सी भी खरीद लाये।
सुगना उनके ख्वाबों की शहजादी वह उसे परियों की तरह सजाना चाहते थे और जी भरकर उसे चोदना चाहते थे। कभी-कभी वह घंटों सुगना के साथ नग्न होकर कोठरी में बंद रहते और कजरी को मजबूरन आवाज देकर उन दोनों को अलग करना पड़ता.
सुगना मैक्सी में अपनी आकर्षक काया लिए हुए लहराती हुई इधर-उधर घूमती और सरयू सिंह मौका देख कर उसे अपनी गोद में बैठा लेते। जब-जब सुगना का चुदने का मन होता वह अपनी पैंटी न पहनती और अपने बाबू जी की गोद में बैठते ही वह जादुई लंड सुगना की पनियायी बुर में प्रवेश कर जाता। उनकी गोद मे उछल कूद करने के बाद सुगना को लड्डू मिलता और वह अपनी जांघों पर बहता हुआ वीर्य लेकर खुशी खुशी वापस कजरी के पास चली जाती.
नया महीना आ चुका था सुगना का भी और अंग्रेजी कैलेंडर का भी। कैलेंडर के नए पृष्ठ पर समुद्र की खूबसूरत फ़ोटो थी जिसे सुगना मंत्रमुग्ध होकर देखती रह गयी। सुगना के चेहरे पर खुशी आ गई।
वह एकटक उस फ़ोटो को देखे जा रही थी तभी सरयू सिह कोठरी में आ गए। सरयू सिंह ने सुगना को गोद में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए बोले।
" का देख तारू?"
"कतना सुंदर बा ई जगह हमनी के कभी देखे के ना मिली."
सुगना ने अनजाने में ही बाहर घूमने की इच्छा जाहिर कर दी। कई वर्षों बाद उसके मन में यह इच्छा जागी थी। सरयू सिंह को अपनी प्रेमिका की यह इच्छा हनीमून जैसी प्रतीत हुई। सरयू सिंह ने हिम्मत जुटाई और सुगना को किसी समुद्र तट पर ले जाने की सोचा परंतु यह इतना आसान न था वह किस मुंह से सुगना को हनीमून पर ले जाते।
जहां चाह वहां राह। सरयू सिंह ने अपनी व्यूह रचना की और रात को अपनी बाहों में सुगना को लेकर उसे यह खुशखबरी दी। सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने सरयू सिंह को चूम लिया और एक नई उत्तेजना के साथ उनके ऊपर आ गई सच कहते हैं जब प्रसन्नता मन पर हावी हो तो चुदने चुदाने का आनंद और भी बढ़ जाता है।
सुगना ने इसकी जानकारी कजरी को दी। कजरी भी बेहद प्रसन्न हुई अभी तक सरयू सिंह अपने मन में सिर्फ सुगना का ख्याल लिए हुए हनीमून की तैयारी कर रहे थे उधर कजरी ने भी साथ चलने की इच्छा जाहर की उस बात से उनकी कल्पना में व्यवधान आया और उनके चेहरे पर थोड़ी उदासी आ गई।
नियति मुस्कुरा रही थी। जिस कजरी ने सरयू सिंह को पिछले 10 - 15 सालों से हर सुख दिया था वह उस सुख और उसका साथ भूल कर उसकी बहू सुगना के साथ रंगरलिया मना रहे थे। उन्होंने कजरी को भी साथ ले चलने की स्वीकृति दे दी। खैर कजरी की उपस्थिति से ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था। सुगना और सरयू सिंह का मिलन तब तक निर्बाध रूप से होता रहता जब तक कि सुगना गर्भवती ना हो जाती यह बात कजरी भी जानती थी और चाहती भी।
सरयू सिंह ने अपनी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी जिंदगी के सारे अरमान पूरे करने अपनी भौजी कजरी और बहू सुगना को लेकर उड़ीसा के समुद्रतट पुरी जाने की तैयारी करने लगे।
उन्होंने यह बात अपने दोस्त हरिया से कहां
"ढेर दिन हो गोहिल सोचा तानी कजरी के तीरथ (तीर्थ) करा ले आई फेर बुढ़ापा में जाने कब मौका मिली की ना मिली"
सरयू सिंह ने अपने हनीमून को कजरी के सहारे एक नया मोड़ दे दिया था वह गांव में प्रतिष्ठित तो थे ही और अपनी भौजी को तीर्थ पर ले जाने की बात से गांव में उनका सम्मान और बढ़ गया था।
हरिया भी सरयू सिंह से बेहद प्रभावित हो गया उसने पूछा
"और सुगना बेटी ?."
"अकेले उ कहां रही उ भी संग ही जायी।"
हरिया बात समझ चुका था उसने सरयू सिंह के घर की देखरेख करने का जिम्मा उठा लिया। यह पहला अवसर था जब वह अपनी भौजी को लेकर किसी दूसरे शहर में जा रहे थे और आने वाले कई दिन सिर्फ और सिर्फ पर्यटन और सुगना के साथ हनीमून का आनंद लेना चाहते थे।
कजरी भौजी की खुली सहमति और सुगना की इच्छा दोनों ही सुगना से संभोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करती उन्होंने मन ही मन कई सारी कल्पनाएं की थी जिन्हें वह साकार करना चाहते थे। अपनी सुगना और ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्लीपर क्लास के तीन टिकट कटा लिए और अपनी बहु सुगना और भौजी कजरी को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकलने की तैयारी करने लगे।
सुगना को गर्भधारण से बचाने के लिए अब तक वह जिस लड्डू का प्रयोग करते आ रहे थे उसे आगे प्रयोग करना कठिन होता इस बात का अंदाजा उन्हें था। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोध के अन्य उपायों की जानकारी ली। दूसरा उपाय एक इंजेक्शन था जिससे अनचाहे गर्भ को अगले 2 वर्ष तक रोका जा सकता था सरयू सिंह अपनी वासना के अधीन थे उन्होंने मन ही मन सुगना को वह इंजेक्शन दिलाने की सोची .
परंतु जब जब वह उसके मासूम चेहरे को देखते और उसकी मां बनने की चाह के बारे में सोचते वह अपने फैसले में पाप का अंश महसूस करते। उनकी दुविधा बढ़ रही थी और पुरी जाने के दिन नजदीक आ रहे थे इसी दौरान सुगना के हाँथ में लोहे की एक पुरानी कील चुभ गई। उन दिनों टिटनेस इंजेक्शन का बहुत प्रचलन था।
सरयू सिंह सुगना को लेकर प्राथमिक सामुदायिक केंद्र पहुंच गए। एक पल के लिए सरयू सिंह की वासना फिर हावी हो गई और सुगना को उन्होंने 2 इंजेक्शन लगवा दिए। कम्पाउंडर राजवीर उनका राजदार बन गया उसने सुगना को 2 इंजेक्शन लगाए। पहला टिटनेस का और दूसरा आने वाले 2 वर्ष तक उसकी खुशियों का।
सुगना को एक इंजेक्शन के बारे में तो पता था परंतु दूसरे इंजेक्शन से वह पूरी तरह अनजान थी उसमें अपने बाबू जी पर पूरा विश्वास किया था परंतु सरयू सिंह ने अपनी बहू से छल किया था।
इंजेक्शन सुगना के शरीर में प्रवेश कर चुका था अब उसका कोई काट ना था अगले 2 वर्ष तक सुगना को सिर्फ और सिर्फ चुदना था और प्रकृति द्वारा प्रदत गदराई हुई जवानी का भरपूर आनंद लेना था। सरयू सिंह का वीर्य उसकी बुर के लिए किसी काम का ना रह गया था उससे सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों की मालिश हो सकती थी।
कुछ ही दिनों बाद सरयू सिंह अपनी बहू सुगना और भौजी कजरी को लेकर ट्रेन में सवार हो चुके थे सबके मन में अपने अपने अरमान थे कजरी को इस बात का इल्म न था की सरयू सिंह इस अवसर को हनीमून के रूप में देख रहे हैं परंतु कजरी खुद मन ही मन यह सोच रही थी कि क्या वह तीनों लोग एक ही कमरे में रहेंगे? यदि ऐसा हुआ तो क्या उसके कुंवर जी बिना संभोग किए रह पाएंगे?
सरयू सिंह जब जब अपनी पुरी यात्रा को याद करते थे उनका ल** तनाव में आ जाता था और जब तक कि उसे सुगना कि बुर् का कोमल स्पर्श ना मिलता वह शांत ना होता.
(आइए कहानी को वर्तमान में ले आते हैं)
हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे हुए सरयू सिंह अपनी सुनहरी यादों से वापस आ गए थे उनका लंड सुगना के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर खड़ा हो गया था जिसे वह अपने हाथों से शांत करने का प्रयास कर रहे थे। जितना ही वह उसे शांत करते वह उद्दंड बालक की तरह उतना ही उत्तेजित होता। वह धोती से बाहर आ चुका था कजरी पड़ी बेंच पर सोने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल को देखकर व उनके पास आ गई और बोली
"नींद नईखे आवत का ?"
सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती के अंदर ढका पर उसके आकार को कजरी से न छुपा पाए। कजरी ने उसका तनाव देख लिया और बोला
"अब ई महाराज काहै खड़ा बाड़े? रउआ ई कुल मत सोचल करिन।"
सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा
"आज हमरा दीपावली वाला दिन याद आवत रहल हा।"
कजरी मुस्कुराने लगी उसे भी दीपावली की वह रात कभी न भूलती थी। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने हाथों में ले लिया और बोली
"अब तू शांत हो जा. सुगना के लाइका दे देला अब ओकरा के तंग मत कर"
सरयू सिंह ने कहा " अब सुगना के मन ना करेला का"
कजरी ने कहा
"ना आइसन बात नइखे। लेकिन राउर दाग से चिंतित रहेले। ओकरा लागेला कि जब जब रउआ संगे सुते ले राउर दाग और बढ़ जाला"
सरयू सिंह को भी यह प्रतीत होता था कि नीचे इस दाग में कोई न कोई रहस्य अवश्य है परंतु वह इसका स्पस्ट उत्तर नही जानते थे।
कजरी उनके लंड को हाथों से सहला रही थी। उनकी प्यारी बहू सुगना अपनी सहेली लाली के घर जा चुकी थी। तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नर्स कमरे में प्रवेश की। उस नर्स की उम्र सुगना जैसी ही थी और प्रकृति ने उसकी चुचियों, जांघों और नितंबों को भी वैसी ही खूबसूरती प्रदान की थी जैसी उनकी बहू सुगना को। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्हें पता था वह नर्स के साथ कुछ भी कर पाना असंभव था पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह धोती से अपने तने हुए लंड को छुपा रहे थे।
अचानक उन्हें नर्स के हाथ में इंजेक्शन दिखाई पड़ा सरयू सिंह के होश फाख्ता हो गए। सारी उत्तेजना ढीली पड़ती गई। परंतु उनका लंड अभी भी इस अनजानी और खूबसूरत बुर की कल्पना में डूबा हुआ था। वह अपना सर झुकाने को तैयार न था।
नर्स ने कहा
"पीछे पलट जाइए कमर में इंजेक्शन देना है"
सरयू सिंह के करीब खड़ी कजरी ने उनकी धोती सरकाई और नर्स ने अपने कोमल हाथों से उनके नितंबों को थोड़ा रगड़ा और अगले ही पल इंजेक्शन घुसा दिया। सरयू सिंह दर्द से कराह उठे ज्यों ज्यों इंजेक्शन में भरी दवा अंदर जा रही थी एक तेज दर्द की लहर सरयू सिंह को महसूस हो रही थी अब उनका लंड भी अपना गुरुर भूलकर धीरे-धीरे शिथिल हो रहा था।
नर्स के जाने के पश्चात सरयू सिंह इस दर्द से निजात पाने की कोशिश कर रहे थे कजरी उनके नितंबों को से लाई जा रही थी उनका लंड अब उम्मीद खो चुका था और सिकुड़ कर छुप गया था।
कजरी ने उस लंड को वापस छूने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने रोक लिया और बोला
"जायेद अब रहे द"
सरयू सिंह की उत्तेजना शांत हो चुकी थी और वह सोने का प्रयास करने लगे।
उधर हरिया सुगना और सूरज को लेकर लाली के घर आ गया। लाली सुगना को देखकर खुश हो गई उसने अपने पिता और सहेली का खूब स्वागत किया सरयू सिंह की स्थिति जानकर वह थोड़ा दुखी हुई पर उसे इस बात का संतोष था कि अब वह पूरी तरह होश में थे।
राजेश के घर में दो कमरे थे दोनों ही कमरे पर्याप्त बड़े थे वैसे भी रेलवे के घरों में जगह की कमी नहीं होती है राजेश और लाली ने दो चौकियों को जोड़कर एक बड़ा सा बिस्तर बना लिया था जिस पर राजेश और लाली तथा उनके दोनों बच्चे राजू और रीना सोया करते थे।
यह बिस्तर राजू और रीना की बाल सुलभ क्रीडा ओं का मैदान भी था और बच्चों के सो जाने के पश्चात वह काम क्रीड़ा के लिए भी प्रयोग में आता था।
दूसरे कमरे में उन्होंने बैठका बना रखा था जिसमें एक पतली चौकी पड़ी हुई थी जो किसी आगंतुक के सोने के काम आती घर में एक रसोई और एक गुसलखाना भी था।
लाली और सुगना रसोई खाना बना रहे थे और हरिया अपने नाती और नातिन के साथ खेल रहा था। सुगना का पुत्र सूरज एक किनारे आराम से सो रहा था। राजू और रीमा कभी उसकी पीठ पर चढ़ते कभी उसके मूंछ के बाल खींचते हरिया उनकी बाल सुलभ लीलाओं से प्रसन्न होकर ऊपर वाले को धन्यवाद दे रहा था जिसने उसकी लाली को ऐसे सुंदर और प्यारी औलाद दे दी थी। वह राजेश का भी शुक्रगुजार था जिसने लाली को हर सुख दिया था।
राजेश को आज घर नहीं आना था वह आज ही ट्रेन लेकर लखनऊ गया हुआ था। हरिया रात में खाना खाने के पश्चात बैठका में लगे हुए चौकी पर सो गया सुगना और लाली दोनों अंदर के कमरे में आ गई बच्चों को सुलाने के बाद बिस्तर पर लेटे लेटे वह दोनों बातें करने लगी।
सुगना उठकर बाथरूम की तरफ गई तभी लाली को राजेश की बातें याद आने लगी आज राजेश के ख्वाबों की मलिका उसके घर में थी घर में ही क्या उसके अपने बिस्तर पर थी काश राजेश यहां होता और अपनी सुगना को अपने बिस्तर पर देखकर उसकी कल्पनाएं आसमान छूने लगती। सुगना स्वयं लाली के बिस्तर पर आकर उत्तेजित महसूस कर रहे थे उसे पता था इस बिस्तर पर उसकी सहेली लाली जाने कितनी बार चुदी होगी।
सुगना के आने के बाद लाली ने कहा
"तोर जीजा जी आज घर में रहिते तो खुश हो जइते"
" ई काहें"
"उनके से पूछ लीह"
"खिसिया मत" ( नाराज मत हो)
लाली खुश थी उसने सुगना को राजेश की कल्पनाओं के बारे में खुलकर बता दिया जितना वह राजेश की कामुक कल्पनाओं के बारे में सुगना को बताती सुगना के कान और चौड़े हो जाते तथा बुर सावधान हो जाती.
सुगना और लाली दोनों अच्छी सहेलियां थी लाली के मुंह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सुगना की बुर पनिया चुकी थी लाली भी उत्तेजित थी। दोनों सहेलियां अपने अपने मन में कई तरह के ख्याल लेकर सो गयीं।
अगली सुबह हरिया और सुगना वापस हॉस्पिटल चले गए। लाली और सुगना ने मिलकर कजरी और सरयू सिंह के लिए खाना बना लिया था। हॉस्पिटल पहुंचने पर सुगना को देख सरयू सिंह प्रसन्न हो गए एक ही रात में सुगना से हुई दूरी ने उन्हें कर भावुक कर दिया था वह सुगना के लिए दिन पर दिन अधीर होते जा रहे थे।
दोपहर में राजेश लखनऊ से वापस आ गया लाली ने उसे सरयू सिंह और सुगना के आने की सूचना दी राजेश एक तरफ तो सरयू सिंह के लिए थोड़ा सा दुखी हुआ पर सुगना के आगमन के बारे में सुनकर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके इतने करीब है इस एहसास ने उसके दिल और दिमाग को अंदर तक गुदगुदा दिया वह लाली को दिखाकर बिस्तर के उस भाग को चूमने लगा जहां सुगना सोई हुई थी लाली हंस रही थी।
उसने कहा..
चली हॉस्पिटल चल के सब केहू से मिली आईल जाओ
राजेश प्रसन्न हो गया और कुछ देर बाद लाली और अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर हॉस्पिटल जाने के लिए रिक्शे में बैठ गया…
शेष अगले भाग में
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14-04-2022, 02:57 PM
भाग-28
रिक्शे में बैठा राजेश सुगना के बारे में सोचने लगा। सुगना जैसी खूबसूरत और जवान युवती के साथ भगवान ने ऐसी नाइंसाफी क्यों की थी? उसका पति हर 6 महीने में गांव आता था। उस बेचारी को पति का सुख उन 3 -4 दिनों के लिए ही मिलता था. बाकी समय उसकी गदराई और मदमस्त जवानी का कोई पूछनहार न था.
राजेश इस बात को लेकर सुगना से बेहद हमदर्दी रखता था। सुगना भी राजेश के करीब आ रही थी यह बात राजेश ने महसूस की थी। जब भी वह अपनी ससुराल जाता सुगना राजेश के लिए तरह-तरह की खानपान की सामग्री बनाती. राजेश उसकी ढेर सारी तारीफ करता और जीजा साली एक दूसरे के प्रति प्रेम का इजहार अपनी आंखों ही आंखों में कर लेते। राजेश उसके लिए उपहार भी ले जाने लगा था जिसे सुगना सहर्ष स्वीकार कर लेती।
इस बार की होली ने राजेश और लाली के बीच सुगना को लेकर आम सहमति बना दी। लाली को अब सुगना और राजेश के बीच पनप रहे कामुक संबंधों से परहेज न रहा। यही हाल राजेश का था वह लाली में सुगना के भाई सोनू के प्रति कामवासना भड़का रहा था।
दरअसल राजेश एक खुले विचार का आदमी था उसके जीवन में कामुकता और सेक्स का विशेष स्थान था। उसे पता था लाली और उसके बीच जो संबंध है उसकी डोर मजबूत थी थोड़ा बहुत व्यभिचार से यदि आनंद बढ़ता था तो उसे इसमे कोई आपत्ति न थी। अब तो लाली भी उसकी इच्छा में शामिल हो गई थी और नियति ने उनकी इच्छा पूर्ति के लिए सुगना और सोनू को उनसे मिला दिया था।
रिक्शा हॉस्पिटल के सामने पहुंच चुका था। राजेश ने राजू को गोद में लिया और लाली ने रीमा को। दोनों पति पत्नी हॉस्पिटल की सीढ़ियां चढ़ते हुए सरयू सिंह के कमरे में आ गए। सरयू सिंह बिस्तर पर पड़े हुए कमरे में घुस रहे अपने प्रतिद्वंदी को देख रहे थे। राजेश ने उन्हें नमस्कार किया और उनका हालचाल लिया। राजेश की निगाहें कुछ देर तो सरयू सिंह के ऊपर रही पर शीघ्र ही अपने लक्ष्य पर पहुंच गयीं।
सुगना के मासूम चेहरे पर प्यार बरसाने के बाद उसकी निगाहों में कामुकता जाग उठी। राजेश की निगाहें सुगना की चूचियों और कटीली कमर पर पड़ीं। कमर के उस गोरे हिस्से जो ब्लाउज और कमर पर साड़ी के घेरे के बीच दिखाई पड़ रहा था उसके बीच सुगना की सुंदर नाभि सुगना के छुपे खजाने का स्पष्ट संकेत दे रही थी। राजेश ने सुगना की नाभि को देख कर मन ही मन सुगना की कसी हुयी बुर की कल्पना कर ली।
सुगना ने राजेश की निगाहों को अपने शरीर पर महसूस कर लिया था। वह गठरी की भांति सिमट रही थी। उसने लाली की गोद से रीमा को ले लिया और लाली को अपने बगल में बैठा लिया। वह राजेश की कामुक निगाहों को अपने बाबू जी के सामने सहने की स्थिति में नहीं थी।
राजेश ने नर्स से उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी इकट्ठा की। वहां उपस्थित सारे लोगों में राजेश सबसे पढ़ा लिखा और प्रतिष्ठित व्यक्ति था। सरयू सिंह भी अपनी युवावस्था में इसी प्रकार अपनी काबिलियत के बल पर कई लड़कियों और युवतियों को प्रभावित करते थे। आज राजेश उनके सामने ही उनकी सुगना को उनसे दूर करने जा रहा था। सरयू सिंह की सोच ना चाहते हुए भी राजेश को प्रतिद्वंदी की निगाह से देख रही थी। इसके उलट राजेश उन्हें और अपने ससुर हरिया को एक ही निगाह से देखता था। सुगना उसकी साली थी और जिस अवस्था से गुजर रही थी उसने राजेश के मन में सुगना के प्रति स्वाभाविक कामवासना को जन्म दिया था। राजेश को तो यह इल्म भी न था की हॉस्पिटल के बेड पर पड़ा हुआ यह अधेड़ अपनी बहू सुगना से ऐसे संबंध बनाए हुए था।
अचानक हरिया ने कहा
"भैया आज हम गांव चल जा तानी खेत में खाद डाले के बा. कल फिर आईब"
हरिया यह जान चुका था कि राजेश आज घर पर ही रहेगा और घर की हालत ऐसी न थी जहां अधिक मेहमान एक साथ रह सकते थे उसने गांव जाना ही बेहतर समझा।
कुछ देर और बातें करने के पश्चात हरिया गांव के लिए निकल गया.
शाम हो रही थी। लाली की बेटी रीमा रो रही थी। सरयू सिंह ने राजेश से कहा..
"बेटा अब आप लोग भी जाके आराम करो बच्चा सब भी परेशान हो रहे हैं" सरयू सिंह राजेश से हिंदी में बात करने का प्रयास कर रहे थे। राजेश ने लाली की तरफ देखा और उसकी इच्छा जाननी चाही। आंखों ही आंखों में लाली की सहमति प्राप्त कर उसने कहा..
" ठीक है । अब हम लोग जा रहे है। काल फिर आएंगे"
सरयू सिंह खुश हो गए। उन्हें जाने क्यों यह उम्मीद हो गई थी कि आज सुगना राजेश के घर नहीं जाएगी। आखिर अब वहां जाने का कोई औचित्य भी न था। आज लाली का पति घर आ चुका था।
राजेश उठ कर खड़ा हो गया। लाली ने सुगना से कहा
"सुगना चला ना ता अंधेरा हो जाई"
कजरी भी यही चाहती थी कि सुगना लाली के साथ चली जाए ताकि उसके बेटे सूरज को कोई दिक्कत ना हो।
लाली ने कजरी के मुंह की बात छीन ली थी। कजरी में उसका साथ देते हुए कहा
"अरे सुगना.. सूरज बाबू के भूख लागल होइ घर जाकर कुछ खिया पिया दीह"
सूरज का नाम सुनकर सरयू सिंह शांत हो गए। एक बार फिर उनकी प्यारी सुगना उनकी आंखों के सामने उनसे दूर अपने प्रेमी राजेश के साथ जा रही थी। उनके दिल का दर्द एक बार फिर बढ़ रहा था। नियति उनके साथ यह खेल क्यों खेल रही थी वह स्वयं ना समझ पा रहे थे।
कजरी उनके मन की व्यथा जान रही थी। जब से उनके जीवन में सुगना आई थी तब से शायद ही कोई दिन ऐसा था जिस दिन उनके लंड ने वीर्य प्रवाह ना किया हो। सरयू सिंह दिन में कभी एक बार तो कभी दो बार सुगना या कजरी को जमकर चोदते तथा अपनी कामवासना को शांत करते। उनमें यह आग पिछले दो-तीन वर्षों में और भी बढ़ गई थी। निश्चय ही इसकी जिम्मेदार सुगना की मदमस्त जवानी और उनकी पुरी यात्रा थी जिसमें सरयू सिंह ने कजरी और सुगना के साथ कामकला के विविध रंग देखे थे।
सरयू सिंह अपना सोया हुआ लंड लेकर बिस्तर पर पड़े हुए थे। जब तक सुगना यहां थी वह चहक रहे थे। वह मन ही मन हॉस्पिटल के इस बिस्तर पर भी सुगना को चोदना चाहते थे। उसके जाते ही उनका चेहरा उदास हो गया कजरी ने कहा..
"अपना सुगना बाबू के याद कर तानी हां?"
कजरी ने सरयू सिंह की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सरयू सिंह मुस्कुराने लगे वह आज कुछ तरोताजा महसूस कर रहे थे. कजरी ने फिर कहा
"अब ई कुल चोदा चोदी छोड़ दीं। हर चीज के ए गो उमर होला। सुगना त अभी जवान बिया हमनी के उम्र गइल अब ई कुल ठीक नइखे।"
( हर चीज की एक उम्र होती है सुगना तो अभी जवान है पर हम लोग अब बूढ़े हो चले हैं)
सरयू सिंह कजरी की बातें सुन तो रहे थे पर उनका लंड इस बात को सिरे से नकार रहा था। शिलाजीत का असर अभी भी उस पर था। सुगना के साथ चोदा चोदी की बातें सुनकर वह हरकत में आ गया और धोती में एक नाग की भांति अपना सर उठाने लगा। कजरी ने हॉस्पिटल के कमरे का दरवाजा बंद किया और सरयू सिंह के लंड को सहलाने लगी। उसे पता था सरयू सिंह को सबसे ज्यादा आनंद स्खलित होने में ही मिलेगा। शायद वह सुगना की कमी को कुछ हद पूरा कर पाएगी और अपने कुँवर जी के चेहरे पर वापस ताजगी ला पाएगी।
कजरी सरयू सिंह के लंड को हाथों में लेकर सहलाने लगी वह अब अपनी बुर को सन्यास दिला चुकी थी परंतु आवश्यकता पड़ने पर अपने हाथों के कमाल से शरीर सिंह को खुश कर देती। आज भी उसने सरयू सिंह के लंड को सहलाना शुरु कर दिया था।
उधर राजेश अपनी पत्नी और अपनी प्यारी साली को लेकर हॉस्पिटल के नीचे आ चुका था उसने लाली और सुगना को एक रिक्शे में बैठाया तथा दूसरे रिक्शा अपने पुत्र राजू को लेकर घर की तरफ निकल पड़ा लाली और सुनना का रिक्शा आगे आगे चल रहा था और राजेश का उनके पीछे।
राजेश को आज ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी बहुप्रतीक्षित प्रेमिका उसके घर आई हुई थी। राजेश ने घर पहुंचने के ठीक पहले रिक्शा रोक दिया और आइसक्रीम तथा मोतीचूर के लड्डू खरीद लिए। उसने शायद लाली से कभी सुन रखा था कि सुगना को मोतीचूर के लड्डू बेहद पसंद थे।
सुगना और लाली ने घर पहुंचते ही बच्चों के खान-पान का प्रबंध किया बच्चे अस्पताल के वातावरण में कुछ देर में ही तंग हो गए थे। बच्चों का खाना पीना समाप्त होते हैं वह कमरे में लगे बड़े बिस्तर पर खेलने लगे। राजेश के दोनों बच्चे उससे बेहद प्यार करते थे और उसके पीठ पर चढ़कर खेल रहे राजेश भी उनका साथ पाकर आनंदित था ।
उसने सुगना के पुत्र सूरज को अपनी गोद में लेने की चेष्टा की। सूरज राजेश के पास नहीं जाना चाहता था पर उसके हाथ में एक नया और अनजान खिलौना देखकर उसे लेने के लिए राजेश की तरफ हाथ बढ़ाया इसी समय राजेश ने अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए और सूरज उसकी गोद में आ गया पर सूरज के हस्तांतरण के समय राजेश की हथेलियों ने सुगना के वक्ष स्थल पर तने हुए सांची के स्तूपों को छू लिया यह घटना अकस्मात हुई थी पर उसकी सिहरन जीजा और साली दोनों में हुई थी। एक पल के लिए राजेश का लंड हरकत में आ गया था। सभी चूचियां उतनी ही कोमल होती है परंतु पराई और अपरिचित चूँची की बात ही अलग थी। सुगना भी अपनी जाँघों के बीच में अनजाना करेंट महसूस कर रही थी। उसने अपनी आंखें झुका ली और कमरे से बाहर आ गई।
कुछ देर खेलने के बाद लाली के दोनों बच्चे राजू और रीमा निद्रा देवी के आगोश में चले गए। सुगना का पुत्र सूरज बिना सुगना की चुचियों का रसपान किये नहीं सोता था। वह अभी भी जाग रहा था और राजेश के साथ खेल रहा था।
सुगना जब भी कमरे की तरफ देखती उसे यह देखकर बेहद हर्ष होता की राजेश सूरज को कितना प्यार करता है जिस तरह बछड़े को प्यार करने से मां स्वतः ही करीब आ जाती है वही हाल सुगना का राजेश उसे पसंद आने लगा था।
लाली ने कहा "जा सूरज के सुता दा उ भी थक गईल होइ"
सुगना कमरे में आ गई और राजेश से बोली
"लाइए मुझे दे दीजिए आपको बहुत तंग किया होगा"
सुगना आवश्यकता पड़ने पर हिंदी बोल लेती थी वह अपनी मां और फौजी पिता के साथ जब कई वर्षों तक बाहर रही थी उस दौरान उसने यह गुण सीख रखा था परंतु यह हिंदी भाषा वह सोच समझकर बोलती थी स्वाभाविक रूप से वह अपनी मूल भाषा में ही बात करती थी।
एक बार फिर सूरज का हस्तांतरण हुआ पर राजेश के हाथों को सुगना का उभरी हुयी चूँचियों का स्पर्श प्राप्त ना हो सका।
राजेश ने कहा बहुत "प्यारा बच्चा है बिल्कुल आप पर गया है"
इतना कहकर राजेश ने सूरज के गाल पर चुंबन ले लिया सूरज का गाल और सुगना के गाल में ज्यादा दूरी न थी एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सूरज के बाद उसकी ही बारी है तभी लाली कमरे में आ गयी।
सुगना सूरज को लेकर कमरे से बाहर जाने लगी तभी लाली ने उसे रोक लिया और बोली
"एहीजे बैठ के दूध पिया ल"
सुगना राजेश के सामने अपनी चूचियां खोलकर सूरज को दूध पिलाने में शर्मा रही थी उसकी दुविधा देखकर राजेश ने कहा
" आप आराम से बैठ जाइए मैं बाहर घूम कर आता हूं"
लाली ने अधिकार पूर्वक कहा
" अरे आप बैठिए सुगना दूसरी तरफ मुंह करके पिला लेगी।"
सुगना बिस्तर पर बैठ गई और सूरज को दूध पिलाने लगी। राजेश दीवाल पर टेक लगा कर बैठा हुआ था। सुगना ने अपने आंचल से अपनी चुचियाँ ढक लीं और सूरज को दूध पिलाने लगी। सुगना की पीठ राजेश की तरफ थी।
लाली ने राजेश को छेड़ा..
"लीजिए अब तो आपकी साली घर आ गई कीजिए उसका स्वागत जैसे हमसे बात करते थे"
राजेश शर्म से पानी पानी हो गया लाली इस तरह की बात बोल जाएगी उसने कभी न सोचा था। वह निरुत्तर हो गया। उधर सुगना अपना सर नीचे किये मुस्कुरा रही थी। पिछली रात लाली ने राजेश द्वारा उसे लेकर की जाने वाली बातों का एहसास करा दिया था। इतना तो सुगना को भी पता था कि पति-पत्नी के बीच में ढेर सारी ऐसी बातें होती हैं जिनका हकीकत से कोई लेना देना नहीं होता। खुद सरयू सिंह उसके साथ ऐसी ऐसी कल्पनाएं किया करते थे जो संभव न था पर उसका आनंद सरयू सिंह भी लेते थे और सुगना भी।
राजेश उसके प्रति आकर्षित था पर लाली जितना बोलती थी उतना सोचना तो आसान था पर करना कठिन। सुगना की जांघों के बीच तनाव बढ़ रहा था उसकी कोमल बुर सचेत हो गई थी।
राजेश ने बात बदलते हुए कहा
"आप के आदेश पर आपकी सहेली के लिए आइसक्रीम ले आया हूं"
" और वह मोतीचूर का लड्डू क्या अकेले में खिलाएगा"
लाली फिर हंस पड़ी थी वह राजेश पर प्रहार किए जा रही थी और सुगना सर नीचे किए हुए मुस्कुरा रही थी।
राजेश भी
हाजिर जवाब था उसने कहा
"अरे आप मौका दीजिएगा तब ना लड्डू खिलाएंगे"
लाली ने झूठ मुठ का गुस्सा दिखाते हुए बोला
"ठीक है हम जा रहे हैं खाना निकालने तब तक अपनी साली को लड्डू खिला लीजिए"
वह उठकर जाने लगी। सुगना ने लाली का हाथ पकड़ लिया और बोला
"हम तोरा रहते लड्डू खा लेब हमरा लड्डू खाए में कौन लाज लागल बा"
सुगना की बात सुनकर राजेश को बल मिला वह बोला "मेरी साली साहिबा ज्यादा समझदार है"
तीनों हंसने लगे थे अब तक सूरज सो चुका था। सुगना ने उसे सुलाने के लिए अनजाने में ही राजेश की तरफ मुड़ गई उसे अपनी चूचियां ढकने का ख्याल न रहा और सूरज को बिस्तर पर सुलाते समय उसने अपनी कोमल नंगी चूचि और खुले हुए निपल्ल का दर्शन राजेश को करा दिया। लाली ने राजेश की निगाहों को सुगना की चुचियों पर निशाना साधते देख लिया और सुगना से हंसते हुए बोली..
"ए सुगना एक आदमी और पियासल बा, कुछ दूध बाचल बा का?"
राजेश की चोरी पकड़ी गई थी सुगना ने राजेश की निगाहों को अपनी चुचियों पर महसूस कर लिया और तुरंत ही अपनी चूचियां ढक लीं.
उसने कुछ कहा नहीं और मुस्कुराते हुए बोली
"ते पागल हो गईल बाड़े चल खाना निकल जाऊ"
उसी समय एक व्यक्ति द्वारा दरवाजा खटखटाने का का एहसास हुआ। राजेश ने उठकर दरवाजा खोला उस व्यक्ति ने कहा
"स्टेशन मास्टर साहब ने आपको बुलाया है"
"ठीक है मैं आता हूं" राजेश ने कहा।
राजेश कपड़े पहन कर बाहर जाने के लिए तैयार होने लगा। लाली थोड़ा दुखी हो गई पर राजेश ने कहा
"अरे तुम खाना निकालो मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगा" लाली थोड़े गुस्से में थी।
राजेश के जाने के पश्चात सुगना ने लाली का गुस्सा शांत किया और वह दोनों सहेलियां आपस में हंस-हंसकर बातें करने लगी। लाली ने सुगना से कहा...
"चल तब तक हमनी के कपड़ा बदल लीहल जाउ"
आज ही राजेश ने लखनऊ से आते समय लाली के लिए एक सुंदर नाइट गाउन लाया था। यह नाइट गाउन फ्रंट ओपन टाइप का था जिसे कमर में बने कपड़े के बेल्ट द्वारा बांधा जा सकता था उसका कपड़ा बेहद मुलायम और कोमल था सुगना उसे अपने हाथों में लेकर छू रही थी। उसने इतना अच्छा और कोमल नाइट गाउन पहले कभी नहीं देखा था।
लाली ने कहा
"ए सुगना आज तू ई हे पहिंन ला"
" हट पागल, जीजा जी तोहरा खातिर ले आईल बाड़े."
"पर तोरा के पहिंनले देखे लीहें तो और मस्त हो जइहें. हमार कसम पहिंन ले"
लाली की जिद के आगे सुगना की एक न चली और उसने वह नाइट गाउन पहनने के लिए अपनी रजामंदी दे दी। अचानक सुगना को याद आया उसने पेंटी नहीं पहनी थी साड़ी और पेटीकोट पहनने के बाद उसकी कोई विशेष आवश्यकता वह महसूस नहीं करती थी। आज दिन भर तो वह बिना ब्रा के रही थी दरअसल दूध भरे होने के कारण सुगना की चूचियां ज्यादा बड़ी थी।
आज सुबह नहाने के पश्चात सुगना ने लाली की साड़ी और पेटीकोट तो पहन लिया था परंतु उसकी ब्रा सुगना को फिट नहीं आ रही थी बड़ी मुश्किल से एक पुरानी ब्लाउज सुगना की चूँचियों को ढक पाने में कामयाब हुई थी। इस कसी हुई ब्लाउज की वजह से सुगना की चूचियां और तन गई थी तथा निप्पल अपनी उपस्थिति साफ साफ दिखा रहे थे जिसे सुगना अपने आंचल से ढक कर उसे छुपाने का प्रयास कर रही थी।
सुगना ने लाली से कहा
"गाउन पेटीकोट के ऊपर से पहनब हमरा भीरी नीचे के कपड़ा नईखे"
लाली सुगना की दुविधा समझ गई और अपनी अलमारी खोलकर एक सुंदर सी लाल रंग की पेंटी निकाली। सुगना के नितंब लाली के नितंबों से थोड़ा ही बड़े थे परंतु पेंटी लचीले कपड़े से बनी हुई थी थोड़ा प्रयास करने पर सुगना ने उसे पहन लिया सुगना की गोरी जांघो पर लाली की निगाहें टिक गई वो बेहद खूबसूरत थीं और केले के तने की भांति चमक रही थीं। सुगना का सिर्फ रंग ही गोरा न था उसकी त्वचा में एक अलग किस्म की चमक थी।
लाली ने कहा..
"तोर जाँघ कतना चमकत बा का लगावे ले"
सुगना मुस्कुरा रही थी उसने कोई उत्तर न दिया वह अपने गनितंबों को उस लाल पेंटी में व्यवस्थित कर रही थी।
कुछ देर में उसने लाली की साड़ी और पेटीकोट को उतार दिया तथा उस सुंदर नाइट का उनको अपने शरीर पर धारण कर लिया। सुगना की खूबसूरती देखते ही बन रही थी वह खूबसूरत तो थी ही और इस खूबसूरत निवास में एक परी की बात दिखाई पड़ रही थी। सुगना ने लाली से अपनी सुबह खोली गई ब्रा लाने को कहा।
"एक बार ऐसे ही अपना जीजा जी के दिखा दे उनकर जीवन तर जायी।"
इतने में ही दरवाजे पर एक बार फिर खटखट की आवाज हुयी। राजेश वापस आ चुका था लाली झट से भाग कर गई और सुगना की ब्रा ले आई सुगना ने आनन-फानन में ही वह ब्रा पहनी उसकी सांसे तेज चल रही थी। जब तक सुगना ब्रा के हुक फसाती लाली दरवाजे की कुंडी खोल चुकी थी। राजेश अंदर आ चुका था और सुगना कमरे से निकलकर हॉल में आ रही थी। राजेश ने सुगना को देखा... उसकी सांसे रुक गई….
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14-04-2022, 03:00 PM
भाग-29
राजेश ने सुगना को लेकर अपने मन में तरह-तरह की कल्पनाएं की थी जिसमें वह सुगना को कभी सजा धजा कर,कभी कामुक वस्त्रों में अर्धनग्न स्थिति में और कभी-कभी तो उसे अपने ख्वाबों में पूर्ण नग्न कर अपनी कामुकता को शांत किया करता था आज उस गुलाबी रंग के खूबसूरत गाउन में अपनी सुगना को देखकर राजेश की सांसे रुक गई थी।
कमर पर बंधा हुआ बेल्ट सुगना के खूबसूरत वक्ष स्थल और कटी प्रदेश को अलग कर रहा था। दूध से भरी हुई सुगना की चुचियाँ अपनी मादक उपस्थिति का अहसास करा रही थी।
नाइट गाउन सुगना की चुचियों को पूरी तरह ढकने में नाकाम था। सुगना की गोरी चूचियों के बीच की घाटी साफ-साफ दिखाई पड़ रही थी।
राजेश दरवाजे पर खड़ा एक टक सुगना को देखे जा रहा था तभी लाली ने कहा..
"अभी अंदर आ जाइए सुगना भागी नहीं जा रही आराम से देख लीजिएगा" सुगना और लाली दोनों मुस्कुराने लगी सुगना ने अपना सर झुका लिया था. राजेश शर्मसार था वह हॉल में आ चुका था उसके लंड में ना चाहते हुए भी हरकत हो रही थी जो उसके पेंट में आए उभार से स्पष्ट था।
कुछ ही देर में राजेश ने अपनी लूंगी लपेटी ( एक चादर नुमा कपड़ा जो गांव में कमर के इर्द-गिर्द लपेटा जाता है।) और हाथ मुंह धो कर हॉल में खाने के लिए उपस्थित हो गया तीनों बच्चे पहले ही सो चुके थे सुगना और लाली खाना निकालने की तैयारी करने लगे। लाली ने भी आज एक दूसरा गाउन पहना हुआ था लाली की खूबसूरती किसी भी प्रकार से कम न थी पर सुगना अद्भूत थी और राजेश के लिए नई थी। राजेश की निगाहें उस पर से हट ही नहीं रही थी वह कभी उसके पैरों को देखता कभी उसकी जांघों के उभार को और जब कभी सुगना के नितंबों के दर्शन होते राजेश बाग बाग हो जाता। अपनी ख्वाबों की मलिका को अपने इतने करीब और अपने ही घर में मचलते हुए देखकर उसकी भावनाएं हिलोर मार रही थी।
लाली ने जमीन पर ही अंग्रेजी भाषा के एल आकार में चादर बिछाई जिस पर एक तरफ राजेश बैठा और दूसरी तरफ सुगना। लाली अपने छोटे मोढ़े पर ही बैठ गई उसे उस मोढ़े पर बैठना अच्छा लगता था।
सुगना का फ्रंट ओपन गाउन जमीन पर बैठते समय उसके पैरों के ढकने में नाकाम हो रहा था। सुगना चाह कर भी पालथी नहीं मार पा रही थी जब भी वह इस अवस्था में आती गाउन दो भागों में अलग होने लगता और उसकी जांघें दिखाई पड़ने लगती उसे इस बात का एहसास था अपने दोनों घुटने सटाए तथा पैरों को एक तरफ कर दिया। उसके दोनों पैर नितंबों के एक तरफ हो गए और नितंबों ने जमीन का सहारा ले लिया। सुगना का शरीर लचीला था वह अब आराम से बैठ गई थी परंतु उसकी स्थिति और मादक लग रही थी।
खाना खाते समय राजेश कनखियों से बार-बार सुगना को देख रहा था और अपनी कल्पनाओं को उड़ान दे रहा था क्या नियति आज सुगना को उसकी बाहों में ला देगी? क्या सुगना के खजाने को देखकर उसकी प्यासी आंखें तृप्त होंगी? क्या सुगना की जांघों के बीच छुपे उस मखमली छेद को वह अपने होठों से चूम पायेगा? जितना ही वह इस बारे में सोचता उसकी जांघों के बीच उभार बढ़ता जाता।
लाली राजेश की स्थिति बखूबी समझ रही थी उसने छेड़ते हुए कहा.
"सुगना को देखकर पेट नहीं भरेगा रोटी खाईये"
राजेश और सुगना दोनों मुस्कुरा दिए। थोड़ी ही देर में लाली राजेश द्वारा लाई गई आइसक्रीम ले आई राजेश स्वयं उसे अपने हाथों से निकाल कर कटोरी में रखने लगा इसी दौरान आइसक्रीम का कुछ भाग छलक पर सुगना की दोनों जांघों के बीच गिर पड़ा सुगना जिस अवस्था में बैठी थी उसके दोनों पैर सटे हुए थे आइसक्रीम का टुकड़ा दो जांघों के बीच की जगह पर गिरा था गुलाबी रंग के गाउन के बीच में वह सफेद आइसक्रीम चमक रही थी।
क्योंकि यह गलती राजेश ने की थी उसने उस आइसक्रीम हुए टुकड़े को उठाने की कोशिश की और उसने अकस्मात ही सुगना की जाँघों को छू लिया। सुगना सिहर उठी…
राजेश की उंगलियां जैसे ही उस आइसक्रीम के टुकड़े को पकड़ती वह पिघल कर उसके हाथों से फिसल जाता दो तीन बार प्रयास करने के बाद भी राजेश उस आइसक्रीम के टुकड़े को पकड़ ना पाया अपितु वह धीरे-धीरे जांघों के जोड़ तक पहुंच गया।
राजेश के हाथ रुक गए वह उस स्थान पर हाथ लगा पाने की स्थिति में नहीं था। सुगना ने स्वयं उस छोटे टुकड़े को उठाने की कोशिश परंतु वह भी नाकामयाब रही लाली ने हंसते हुए कहा..
"जायदे तोर जीजा जी के आइसक्रीम उ हो खा ली" लाली ने सुगना की जांघों के बीच इशारा कर दिया था।
लाली ने हंसते हुए एक गूढ़ बात कह दी थी राजेश की आइसक्रीम (क्रीम) और सुगना की बुर... सुगना सिहर उठी और राजेश ने भी शर्म से सर झुका लिया।
इधर लाली सुगना को छेड़ रही थी तभी सूरज के रोने की आवाज आई सुगना ने आधी खाई हुई आइसक्रीम कटोरी में छोड़ दी और भागकर सूरज के पास गयी।
सूरज उसे जान से ज्यादा प्यारा था और हो भी क्यों ना हर मां के लिए उसका बच्चा प्यारा होता है और सुगना को तो यह बच्चा काफी प्रयास के बाद मिला था। उसके प्यारे बाबूजी सरयू सिंह ने उसे तीन-चार वर्षों तक जी भर चोदने के बाद ही उसे पुत्र रत्न से नवाजा था।
उधर सुगना सूरज को एक बार फिर दूध पिला रही थी इधर लाली और राजेश बातें कर रहे थे।
राजेश अब तक पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था उसने लाली से संभोग की इच्छा जाहिर की परंतु राजेश का दुर्भाग्य था लाली आज ही रजस्वला हुई थी उसने राजेश को लाल झंडी दिखा दी राजेश के मन में एक बार फिर सुगना की जांघों और उनके बीच छुपा खजाना देखने की तीव्र इच्छा जागृत हुई परंतु यह इतना आसान न था।
सुगना सूरज को सुला कर अपने गोद में लिए हुए हॉल में आ चुकी थी और हाल में पड़े बिस्तर पर सूरज को सुलाने लगी उसने स्वयं ही हाल में सोने का फैसला कर लिया था उसे अपनी मर्यादा मालूम थी। वह लाली और राजेश को अलग नहीं करना चाहती थी वैसे भी राजेश कभी-कभी ही घर आता था। सुगना को मर्दों की जरूरत पता थी।
लाली ने सुगना से कहा
"हमनी के भीतर सुतल जाई"
लाली ने राजेश की तरफ देख कर कहा..
"आपका मन होगा तो आप भी वही आ जाइएगा"
कुछ ही देर में लाली और सुगना अंदर कमरे में आ चुके थे। राजेश भी अंदर आया पर कुछ ही देर में वह वापस अपनी चादर लेकर हॉल में जाने लगा सुगना ने राजेश से कहा
"जीजा जी आप यहीं सो जाइए मैं आराम से हाल में सो जाऊंगी"
राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा
"अरे आज आपकी दीदी हमारे साथ नहीं सोना चाहती उन्होंने लाल झंडी दिखा दी है अब आपका ही सहारा है"
अच्छा आप चलिए मैं लाली को मनाती हूं।
राजेश हाल में आ गया और लाली ने सुगना को अपने रजस्वला होने और राजेश की चाहत के बारे में खुलकर बता दिया अब जाकर सुगना को राजेश की बात समझ आई सुगना सिहर उठी थी एक पल के लिए उसे लगा जैसे वह मन ही मन अपनी जांघें फैलाने के लिए खुद को तैयार कर रही थी।
कुछ देर बातें करने के बाद लाली उठी अलमारी के ऊपर रखा जॉनसन बेबी आयल का डिब्बा उठाया और हाल में आ गई।
कुछ ही देर मैं हाल से फुसफुस आहट की आवाज आने लगी जिसमें कभी-कभी सुगना का जिक्र आ रहा था सुगना बेचैन हो रही थी उसे पता था लाली और राजेश रोमांटिक पति पत्नी थे। परंतु उसका नाम? हो सकता है लाली राजेश के हस्तमैथुन में मदद करने गई हो परंतु उसका नाम आने का कोई औचित्य न था। वह दबे पांव दरवाजे के पास आ गयी।
दरवाजा पूरी तरह बंद न था। उसने हॉल में झांका और चौकी पर चल रहे दृश्य को देखकर उसकी आंखें राजेश के लंड पर टिक गई। लंड सरयू सिंह के मुकाबले में उन्नीस ही था परंतु वह नया और अपरिचित था।
सुगना की नजर उस पर से नहीं हट रही थी। लाली अपने दोनों हाथों से उस लंड को तेजी से आगे पीछे कर रही थी राजेश उसके होंठों को चूमते हुए उसकी दोनों चूचियों को दबा रहा था। लाली ने कहा..
आपके ख्वाबों की मलिका आपके बिस्तर पर सो रही हैं । हमेशा उसकी बातें करके यह बदमाश (लंड को दबाते हुए) मुझे तंग करता था। आज इसकी सिट्टी पिट्टी गुम है।
राजेश ने कहा
"लाली धीरे बोलो सुगना सुन लेगी"
लाली ने सुगना की चुचियों और कामुक अंगो की बातें और उनका उत्तेजक विवरण करके राजेश को शीघ्र स्खलित करा दिया राजेश तृप्त होकर लेट गया। सुगना यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित थी की कैसे लाली और राजेश ने उसे अपने अंतरंग पलों में स्थान दे दिया था। सुगना की बुर पनिया गई थी उसने अपनी हथेलियों से उसका गीलापन महसूस किया और न जाने कब उसकी मध्यमा उंगली उसकी बुर की रसीली गहराइयों में उतर गई थी।
जब तक लाली बाथरूम से लौट कर आती सुगना की बुर अपना पानी छोड़ चुकी थी। जीजा और साली अपनी अपनी जगह एक दूसरे को याद करते हुए तृप्त हो गए परंतु मिलन बाकी था।
सुगना अपनी आंखों और कानों से यह दृश्य देखने और सुनने के बाद यह जान चुकी थी की लाली और राजेश के बीच उसको लेकर कोई मतभेद नहीं था। लाली पहले भी राजेश की परिकल्पनाओं के बारे में उसे बताया करती थी परंतु उसे यकीन नहीं होता था आज सुगना यह जान चुकी थी की यदि वह आगे बढ़कर एक इशारा करेगी तो राजेश स्वतः उसकी जांघों के बीच उसका खेत जोत रहा होगा।
सुगना वक्त का इंतजार कर रही थी उसने धीरे-धीरे अपना मन बना लिया था।
स्टेशन मास्टर ने राजेश को आकस्मिक ड्यूटी के लिए बुलाया था उसे सुबह 4:00 बजे ही वापस जौनपुर के लिए निकलना था राजेश ने घड़ी में अलार्म सेट किया परंतु उसकी आवाज बेहद धीमी कर ली वह किसी भी हाल में अपनी प्रेमिका सुगना की नींद खराब नहीं करना चाहता था।
सुबह उठकर राजेश अपने कमरे में अपने कपड़े निकालने आया और कमरे की लाइट जला दी जो दृश्य उसकी आंखों के सामने था उसने राजेश की तन मन में आग लगा दी रात में सोते समय सुगना का नाइट गाउन घुटनों के ठीक ऊपर तक आ गया था उसकी जांघों का निचला भाग पूरी तरह नग्न था एक अकेली पायल ही सुगना के पैरों पर सुशोभित हो रही थी बाकी उसके पैरों और नंगी जांघों की कुदरती चमक स्वाभाविक रूप से ध्यान खींच रही थी
राजेश ललचायी नजरों से सुगना को देख रहा था अब तक लाली जाग चुकी थी उसने राजेश को सुगना की जांघों के बीच देखते पकड़ लिया था राजेश कुछ देर तक कामुक नयनसुख लेने के पश्चात अलमारी से अपने कपड़े निकालने लगा उसने इस बात का विशेष ख्याल रखा कि सुगना और बच्चों की नींद खराब ना हो जैसे ही राजेश अलमारी से कपड़े निकालने में व्यस्त हुआ लाली ने सुगना का गाउन और ऊपर खींच दिया सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी तथा उसका दाहिना पैर ऊपर पेट की तरफ उठा हुआ था। गाउन को ऊपर उठाने से सुखना की लाल पेंटी दिखाई पड़ने लगी और उसके नितंब जो लाल पैंटी की कैद में थे, नजर आने लगे।
लाली ने यह कार्य कर तो दिया था परंतु उसने सुगना की नींद खोल दी उसने ऊंघते हुई अपने हाथ अपने चेहरे के उपर कर लिए तथा अपनी आंखों तथा चेहरे को ढक लिया। परंतु अपने खजाने को ढकना भूल गयी। कपड़े लेकर वापस जाते समय राजेश ने एक बार फिर सुगना को देखा सुगना का पूरा खजाना राजेश की आंखों के सामने था। सुगना की फूली हुई बुर पेंटी के नीचे से अपने आकार का प्रदर्शन कर रही थी। सुगना की कमर के नीचे का बेहद खूबसूरत हिस्सा था। पैन्टीअपनी मालकिन को कैद किए राजेश को ललचा रही थी। नंगी जाँघों का आकार अब पूरी तरह स्पष्ट था।
राजेश उन जाँघों पर अपना सिर रखकर उसके बीच उस जादुई सुरंग से रिस रहे अमृत का रसपान करना चाहता था। सुगना के खजाने भी उसे आमंत्रण दे रहे थे। लाली बिस्तर से उठ खड़ी हुई और राजेश को सुगना की जागो के बीच देखते हुए पकड़ लिया। राजेश ने शर्मा कर अपनी नजर हटायीं और बोला
"थोड़ा चाय पिला दो"
लाली ने मुस्कुराते हुए कहा
"लाती हूँ, तब तक आप बैठ कर अपनी मल्लिका को निहारिये। सुगना मुस्कुरा रही थी पर अपने पूरे शरीर पर राजेश की निगाहों को महसूस कर रही थी एक पल के लिए उसके मन में आया कि काश राजेश अपने हाथ बढ़ा कर उसकी नंगी जांघों को अपने मजबूत हाथों का स्पर्श दे दे। परंतु राजेश और सुगना के बीच की यह दीवार मजबूत थी उसे टूटने में थोड़ा समय था।
उधर राजेश के पास समय बेहद कम था। लाली द्वारा बनाई गई चाय पीकर राजेश अपनी साली सुगना को छोड़कर स्टेशन की तरफ निकल गया। जाते-जाते उसने लाली से कहा हो मैं शाम को वापस आ जाऊंगा अपना ध्यान रखना और मुस्कुराते हुए धीरे से बोला और हमारी साली साहिबा का भी।
लाली एक बार फिर बिस्तर पर आ चुकी थी उसने सुगना के नितंबों को ढकने की कोशिश की। सुगना ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया दोनों सहेलियों की चूचियां आपस में टकरा गई और वह दोनों एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गयीं।
लाली ने सुगना से कहा
" देख लेले हम कहत रहनी नु ते एक बार इशारा कर बे उ तोरा बूर के पूजाई करे लगिहें"
सुगना मुस्कुरा रही थी. उसने लाली के गालों को चूम लिया और बोली
"साँच कह तारे लागत बा पुजाई करावही के परी" लाली ने भी उसे अपनी तरफ खींच लिया. लाली को राजेश की एक पुरानी बात याद आ गई वह मुस्कुराने लगी।
लाली सुगना को आलिंगन में लिए उसकी पैंटी को उतारने की कोशिश करने लगी पता नहीं सुगना किस नशे में थी उसने लाली को न रोका। लाली ने सुगना को पहनने के लिए दी हुई पेंटी को अपने हाथों से ही उतार दिया वह उपेक्षित सी बिस्तर के किनारे आ गई वह बेचारी हमेशा उत्तेजक पलों में सुगना की बुर को अकेला छोड़ देती थी।
लाली के हाथ सुगना की बुर की तलाश में लग गए और जब तक सुगना यह फैसला कर पाती कि वह लाली को आगे बढ़ने दे या रोके लाली की उंगलियों ने सुगना की बुर से प्रेम रस चुरा लिया और उसे चूमते हुए बोली
"तोर जीजा जी इ रस खाती हमेशा बेचैन रहेले एक हाली उनको के चीखा दे"
लाली ने सुगना की उत्तेजना को पहचान लिया था इस मदन रस के रिसाव में निश्चय ही राजेश का भी योगदान था। आज पहली बार लाली ने सुगना की बुर पर हाथ लगाया था।
लाली आज स्वयं रजस्वला थी उसे पता था कि वह लाली से और अंतरंग नहीं हो सकती थी। उसने इस क्रिया को वहीं पर रोक दिया और सुगना को अपने सीने से सटे हुए सोने का प्रयास करने लगी। सुगना भी अपनी उत्तेजना पर काबू पाते हुए लाली की बाहों में सो गई।
लाली सुबह उठी और सुगना की कमर से उतारी गई पेंटी को ध्यान से देखा। पेंटी के बीच में सुगना की बुर से रिस आये प्रेम रस से उसका रंग बदल चुका था। वह उसे अपनी नाक के पास ले गई और उसकी भीनी खुशबू को महसूस किया उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आई और उसने उस पेंटी को लपेटकर वापस अलमारी में रख दिया। उसने बड़ी आसानी राजेश की कल्पना को अंजाम दे दिया था।
वह एक बार फिर बिस्तर पर सुगना से सटकर ऊँघने लगी।
कुछ देर बाद दरवाजे पर आहट हुई। लाली ने ऊंघते हुए सुगना से कहा
" ए सुगना तनी दरवाजा खोल दे ना"
सुगना भी जाग चुकी थी उसने जाकर दरवाजा खोला और अपने भाई सोनू को पाकर आश्चर्यचकित हो गई।
"अरे सोनू आईल बा" उसने लाली को आवाज दी।
लाली सचेत हो गयी।
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14-04-2022, 03:12 PM
भाग-30
सोनू के आने की बात सुनकर लाली सचेत हो गई उसके शरीर में एक अलग प्रकार की ऊर्जा का संचार हुआ वह बिस्तर से उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े व्यवस्थित करने लगी। सोनू अंदर आ चुका था। सुगना को इन मादक कपड़ों में देखकर सोनू विस्मित था। उसने अपनी बहन सुगना के पैर छुए और ऊपर उठते समय पतले और कामुक गाउन के पीछे छुपे सुगना के पैर जांघों और कमर के उभारों और गहराइयों के दर्शन कर लिये। सुगना को भी अपनी इस उत्तेजक अवस्था का एहसास था परंतु वह कुछ कर पाने में असमर्थ थी।
सोनू सुगना के प्रति गलत भावनाएं नहीं रखता था पर अपनी बड़ी बहन का यह रूप उसने पहली बार देखा था। कई दिनों बाद मिलने पर वह अक्सर अपनी बहन ले गले लग जाता था परंतु आज वह हिम्मत न जुटा पाया। जब तक सुगना की बाहें उसे आलिंगन में लेने के लिए उठतीं सोनू उससे दूर हो गया था।
लाली भी अब हाल में आ चुकी थी सोनू ने लाली के भी पैर छुए लाली भी गाउन में ही थी। यह एक अजीब संयोग था कि सुगना की पेंटी सुबह लाली ने उतार दी थी और बीती रात राजेश का हस्तमैथुन करते समय लाली की ब्रा राजेश ने उतार दी थी और उसकी चुचियों से जी भर कर खेला था।
जैसे ही सोनू लाली के पैर छूकर ऊपर उठा लाली ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और प्यार से बोला "अरे हमार सोनू बहुत दिन बाद आइल बा"
लाली और सोनू का यह आलिंगन एक भाई बहन के आलिंगन से बेहद अलग था सोनू के सीने से लाली की चूचियां सट गई जिसका एहसास सोनू को हो रहा था उसके हाथ लाली की पीठ पर थे। उसके हाथों ने लाली की पीठ पर कामुक आलिंगन वाला दबाव बना दिया था।
सुगना ने खलल डाला और बोला "अतना भोरे भोरे कैसे?"
"अरे दीदी 8:00 बजता"
सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसे उठने में देर हो गई थी उसे हॉस्पिटल भी जाना था वह आनन-फानन में अपनी साड़ी और ब्लाउज लेकर नहाने चली गई।
लाली रसोई में चाय नाश्ते की तैयारी कर रही थी और सोनू हाल में बैठा हुआ अपनी लाली दीदी के शरीर का मुआयना कर रहा था उसे महिलाओं के शरीर का ज्यादा अनुभव नहीं था। लाली की नंगी चुचियां वह होली के अवसर पर छू चुका था परंतु वह आकस्मिक और होली के भावावेश में हुई घटना थी।
सोनू लाली की चुचियों को देखना चाहता था और उसे अपने हाथों तथा होठों से महसूस करना चाहता था। कॉलेज में जाने के पश्चात उसका सामान्य ज्ञान बढ़ चुका था लाली की कमर और उसकी जांघों के बीच सोचते ही सोनू का लंड बेकाबू हो जाता था।
सुगना बाहर आ चुकी थी। सोनू ना चाहते हुए भी आज सुगना को बार-बार देख रहा था उसे आज पहली बार अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती का अंदाजा हुआ था उसने अपना ध्यान हटाया और वापस अपने लक्ष्य लाली पर केंद्रित कर दिया।
कुछ ही देर पश्चात सुगना और सोनू एक ही रिक्शे में बैठकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े। लाली ने कहा "सुगना शाम के जल्दी आजईहे"
धीरे धीरे सोनू सुगना का वह कामुक रूप भूल गया और अपनी बहन के साथ सामान्य रूप से बातें करते हुए हॉस्पिटल आ गया।
सरयू सिंह सुगना और उसके भाई सोनू को देखकर प्रसन्न हो गए। आज वह स्वस्थ लग रहे थे और कमरे में चहलकदमी कर रहे थे। सुगना को देखकर लंगोट में छुपा उनका नाग सतर्क हो गया। अपने बाबूजी को टहलते हुए देखकर सुनना के चेहरे पर खुशी आ गयी।
सरयू सिंह के मन में राजेश को लेकर बेचैनी थी उन्होंने पूछा
" सुगना बेटा राजेश ना अइले हा"
" बाबूजी उ त रात के ही चल गइले"
सरयू सिंह ने चैन की सांस ली वह अपने मन में सुगना और राजेश को लेकर तरह तरह की गलत कल्पनाएं करने लगे थे।
उसी समय दो तीन डॉक्टरों की टीम ने कमरे में प्रवेश किया और सभी लोगों को बाहर जाने के लिए कहा। सरयू सिंह आदर्श पेशेंट की तरह तुरंत बिस्तर पर लेट गए। डॉक्टरों की टीम ने उनका चेकअप किया और बाहर निकल कर कजरी से बोले
"अब यह पूरी तरह ठीक हैं आप लोग इन्हें घर ले जा सकते हैं"
उसने अपने असिस्टेंट से कहा "इनके डिस्चार्ज पेपर रेडी करा दीजिए"
इस बार डॉक्टर ने सुगना की तरफ देख कर कहा
"और हां एक बात का ध्यान रखिएगा कि यह हमेशा खुश रहे इनका खुश रहना बेहद आवश्यक है वैसे मैं कुछ दवाइयां लिख दे रहा हूं कुछ ही दिनों में वो पूरी तरह खेत जोतने लायक हो जाएंगे।" डाक्टर मुस्कुराने लगा।
डॉक्टर ने यह बात शारीरिक श्रम के भाव से कही थी परंतु सुगना सिहर उठी उसे अपनी जांघों के बीच कोमल खेत की याद आ गई जिसे उसके बाबूजी न जाने कितनी बार जोत चुके थे…
सुगना ने डॉक्टर से पूछा "बाबूजी के माथा के दाग कुछ कम लग रहा है आप उसकी भी दवाई दिए हैं ना?"
डॉक्टर ने कहा "उस दाग का हमारे पास कोई इलाज नहीं है वह कब बढ़ता है और कब कम होता है यह आपको ही देखना है हमें लगता है वह समय के साथ चला जाएगा वैसे उस दाग से उनके शरीर को कोई दिक्कत नहीं है"
सुगना ने यह महसूस किया था कि पिछले दो दिनों में वह दाग कुछ कम हो गया था। एक पल के लिए उसके मन में आई यह बात फिर प्रगाढ़ हो रही थी कि कहीं यह दाग उसके और उसके बाबूजी के बीच बने अनैतिक कार्यों की वजह से तो नहीं है? उसने अपने दिमाग से यह बात निकाल दी। वैसे भी आज सुगना, कजरी और सोनू तीनों खुश हो गए थे। सुगना अंदर आकर अपने बाबू जी से लिपट गई और बोली "बाबूजी रउआ ठीक हो गईनी आज हमनी के घरे चले के"
सुगना सरयू सिंह से बेहद प्यार करती थी वह उनका आदर और सम्मान भी करती थी। यदि नियति ने साजिश रच कर उनके बीच यह कामुक संबंध न बनाए होते तो सरयू सिंह अपनी बहू सुगना को वैसे ही प्यार करते जैसे कोई आदर्श ससुर अपनी बहू बेटी को करता है बल्कि कहीं उससे ज्यादा। वही हाल सुगना का भी था।
जब तक डिस्चार्ज पेपर तैयार होते हरिया भी हॉस्पिटल आ चुका था। कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपनी दोनों प्रेमिकाओं को अगल-बगल लिए हुए हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे। सोनू ने सारे सामान पकड़ रखे थे और सूरज को संभालने की जिम्मेदारी हरिया ने उठा ली थी। वह नीचे रिक्शा वालों को रोके सरयू सिंह का इंतजार कर रहा था।
सरयू सिह पूरी तरह स्वस्थ थे परंतु कजरी और सुगना उनके साथ साथ चल रहे थे।
हॉस्पिटल के नीचे खड़े रिक्शे के पास पहुंचकर विदाई का वक्त आ गया रिक्शे में कुल 4 व्यक्तियों के जाने की जगह थी सोनू को यहीं से अलग होना था।
हरिया की पत्नी ने अपनी बेटी लाली और उसके बच्चों के लिए कुछ मिठाईयां बनाकर भेजी थी परंतु हरिया अब लाली के घर जाने की स्थिति में नहीं था उसने सोनू से कहा
"बेटा हॉस्टल जाने से पहले ई सामान लाली तक पहुंचा देना"
सुगना ने भी पीछे मुड़कर अपनी ब्लाउज में हाथ डाला और ₹50 के दो नोट निकाल कर सोनू को दिया और बोली
"लाली के बच्चा लोग खातिर चॉकलेट खरीद लीहे और बाकी अपना खर्चा खातिर रख लीहे।"
सुगना भावुक हो गई। सोनू ने सभी के चरण छुए और अंत में सुगना के भी आज सुबह ही उसने सुगना का नया रूप देखा था पर साड़ी में उसका यह रूप सोनू की भावनाओं से मेल खाता था सोनू मन ही मन मुस्कुरा रहा था। जैसे ही वह उठा दोनों भाई बहन स्वाभाविक आलिंगन में आ गए सुगना ने उसके माथे को चूम लिया और बोली..
"आपन ख्याल रखिहे, कोनो दिक्कत परेशानी होखे लाली दीदी भीरे चल जईहे"
हरिया ने भी सुगना की बात को आगे बढ़ाया और बोला...
"कितना बढ़िया बात बा की लाली यही शहर में है जब भी छुट्टी हो लाली के घर चले जाया करो उसका भी मन लग जाया करेगा वइसे भी राजेश बाबू अधिकतर बाहर ही रहते हैं।"
हरिया ने यह बात बोल कर सोनू को एक नई ऊर्जा दे दी। वह लाली से मिलने को बेचैन हो गया। जैसे ही सरयू सिंह और सुगना का रिक्शा स्टेशन की तरफ बड़ा सोनू मन में उमंग लिए तेज कदमों से लाली के घर की तरफ बढ़ चला। उसकी चाल धड़क पिक्चर के हीरो जैसी थी।
रास्ते में बाजार सजा हुआ था परसों ईद की तैयारियां जोरों पर थी। एक से एक सुंदर युवतीयां कुछ बुरके में तो कुछ सलवार सूट में सोनू जैसे मैंने मर्द को लुभा रही थी वह कभी अपने कदम रोक कर उन्हें देखता पर उनमें से कोई भी
उसकी लाली दीदी के आसपास न था। लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां सोनू के आकर्षण का मुख्य केंद्र थी। उसने लाली के बच्चों के लिए कई चॉकलेट खरीदी और दो चूसने वाली आइसक्रीम भी खरीदी। वह हॉस्टल जाने के बाद लड़कियों को आइसक्रीम चूसते हुए देखता और वह और उसके दोस्त उसकी तुलना अपनी मनोदशा के हिसाब से अपने लंड से कर लेते।
सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता अंततः वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….
"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."
"ठीक है दीदी"
"सुगना कहा है"
"मैं अकेले ही आया हूँ दीदी गांव चली गयी"
"ठीक है तू रूक मैं आती हूँ"
सोनू मैं मन ही मन अंदाजा लगा लिया कि उसकी लाली दीदी बाथरूम में नहा रही थी वह उसकी कल्पनाओं में डूब गया और लाली के आने का इंतजार करने लगा।
##
उधर सरयू सिंह स्टेशन पर आ चुके थे और ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। आज ट्रेन में स्लीपर की बोगी में भीड़भाड़ कम थी सरयू सिंह सपरिवार अपने दोस्त हरिया के साथ स्लीपर में चढ़ गए ट्रेन के चलते ही वह खिड़की से बाहर खेतों और पेड़ों का नजारा देखने लगे 2 दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद उन्हें यह खेत खलिहान बेहद पसंद आ रहे थे। ट्रेन की यह स्लीपर बोगी उन्हें उनकी पुरी यात्रा की याद दिलाने लगी। वह पूरी यात्रा की यादों में खो गए…..
पुरी जाते समय कजरी की बेहद उत्साहित थी। आने वाले सात आठ दिन उन तीनों को एक ही कमरे में गुजारने थे सरयू सिंह की उत्तेजना इस समय चरम पर थी वह सुगना की मदमस्त जवानी का भोग लगा रहे थे।
कजरी स्वयं भी सुगना को नग्न देखकर बेहद खुश होती थी उसके मन में अक्सर सुगना को नग्न देखने की चाहत उठती वह उसके कोमल चूचियों को छूना चाहती थी। सुगना की साफ-सुथरी और कोमल बुर भी कजरी को बेहद आकर्षित करती थी। जब से उसने सरयू सिंह के होठों को सुगना के बुर की फांकों से खेलते हुए देखा था उसका मन ललच गया था।
कजरी जितना अपने मन में सुगना के साथ अंतरंग हो जाती थी उतना हकीकत में लगभग असंभव जैसा था। सुगना के मन में कजरी के प्रति इस तरह की कोई भावना न थी वह तो मासूम थी। उसने संभोग का नया नया सुख प्राप्त किया था वह भी अपने बाबूजी के साथ। उम्र का अंतर छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह ने उसकी मनो इच्छा पूरी करने में कोई कमी ना रखी थी। उम्र का यह अंतर उन्होंने अपने मजबूत लंड से मिटा दिया था। जितना सुख सरयू सिंह का वह जादुई लंड सुगना को दे रहा था उतना शायद उसका पति रतन या उस उम्र के लड़के भी ना दे पाते। यह अलग बात थी की नए लड़कों के अनाड़ीपन और अलहड़ता सरयू सिंह में न थी वह एक मजे हुए खिलाड़ी थे।
सरयू सिंह इस बात को लेकर पसोपेश में थे की पुरी पहुंचने के बाद वह होटल में कैसे रहेंगे? क्या एक ही कमरे में दो विवाहित महिलाओं के साथ उन्हें रहने की अनुमति होटल प्रबंधन देगा? क्या यह व्यवस्था उन्हें प्रश्नों के दायरे में नहीं खड़ा कर देगी? वह किस तरह से इस बात को होटल प्रबंधन को समझा पाएंगे?
कजरी तो उनकी पत्नी स्वरूप थी उसे तो वह अपनी भार्या बनाकर अपने कमरे में रख सकते थे परंतु विवाहित सुगना को उसी कमरे में रखना यह कठिन था। दो कमरे लेने में धन का अपव्यय था इतना धन सरयू सिंह के पास ना था कि वह दो अलग-अलग कमरे लेकर अपनी कजरी भाऊ जी और सुगना की मनो इच्छा को पूरा कर पाते।
उन्होंने यह बात कजरी से बताई कजरी एक समझदार महिला थी उसे मुसीबतों से निकलना आता था उसने कहा
"अरे जाए दी कह देब की बेटी ह। आखिर बहू और बेटी में ढेर अंतर ना होला। सुगना के उम्र भी कम बा"
सरयू सिंह को यह बात पसंद आ गई परंतु बेटी शब्द सुनकर उनके मन में अजीब से भाव पैदा हुए सुगना उनकी प्रेमिका थी।
"ओकरा माथे पर सिंदूर देखकर लागी ना कि शादीशुदा ह"
" अरे परेशान मत होई तनी मनी सिंदूर भीतेरी लगा ली और लड़की वाला कपड़ा पहनी साड़ी ब्लाउज ना पहिनी"
सरयू सिंह धीरे धीरे आश्वस्त हो गए सुगना के पास लड़कियों वाले कपड़े न थे। कुछ लहंगा और चोली अवश्य थे जिसे लड़कियां और नव युवतियां बराबरी से प्रयोग करती थीं। कजरी ने सुगना को साड़ी और ब्लाउज ना ले जाने के लिए कहा वह बार-बार जिद करती रही कि वह सिर्फ दो या तीन कपड़ों में इतने दिनों तक कैसे रहेगी परंतु उसकी सास कजरी ने उसे यह कहकर मना लिया उसके लिए नए वस्त्र वहीं खरीदे जाएंगे।
सफर के लिए तैयार होते समय कजरी ने सुगना के बाल बनाएं और उसकी मांग में बिल्कुल छोटा सा सिंदूर लगा दिया जो बालों के बीच लगभग छुप सा गया था सुगना ने पूछा "सासू मां आज इतना कम सिंदूर"
"अरे सुगना बाबू, शहर जा तारे घूमे, शहर में असही सिंदूर लगावल जाला"
सुगना बेहद उत्साहित थी वह इस प्रपंच में नहीं पड़ना चाहती थी वैसे भी वह लहंगा और चोली में बेहद खूबसूरत लग रही थी उसे अपने विवाह के पूर्व के दिन याद आ रहे थे।
ट्रेन आ चुकी थी और सुगना अपने सास और बाबूजी के साथ ट्रेन पर सवार हो गयी। उसकी पर्यटन की इच्छा पूर्ण होने वाली थी नियति एक बार फिर उसी ट्रेन पर सवार होकर सुगना को जीवन के नए सुख दिलाने निकल पड़ी थी।
सुबह-सुबह ट्रेन उड़ीसा के पुरी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गयी। सरयू सिंह ट्रेन के दरवाजे पर सामान लेकर खड़े थे पीछे पीछे उनकी भौजी कजरी और कोमलांगी सुगना खड़ी थी। तीनों ट्रेन के रुकने का इंतजार कर रहे थे।
टेंपो में बैठकर सरयू सिंह सपरिवार पुरी के समुद्र तट पर पहुंच गए। सड़क के एक तरफ कई प्रकार के छोटे और बड़े होटल थे तथा दूसरी तरफ बेहतरीन और आकर्षक समुद्र तट सुगना की तो जैसे आंखें समुद्र से अटक गई थी वह कजरी के पीछे पीछे चल रही थी परंतु टकटकी लगाकर समुद्र तट की तरफ देख रही कजरी उसका हाथ पकड़कर आगे आगे चल रही थी। कभी-कभी लगता जैसे कजरी सुगना को घसीट रही हो। सरयू सिंह कंधे पर झोला तथा हाथ में दो संदूक लिए हुए कुली की भांति आगे चल रहे थे।
उनके लंड ने उन्हें इस अधेड़ अवस्था में सुगना के साथ हनीमून मनाने पर विवश कर दिया था मन में उम्मीदें हिलोरे ले रही थीं।
तभी एक दलाल सरयू सिंह के पास आया और बोला
"ए चाचा चली होटल दिखा दी बहुत बढ़िया बा सस्ता में"
सरयू सिंह का बजट ज्यादा न था सस्ता शब्द ने उन्हें कुछ ज्यादा ही आकर्षित किया एक तो वह व्यक्ति उनकी भाषा बोल रहा था दूसरे उसने सस्ते होटल का आश्वासन दिया था सरयू सिंह उसके झांसे में आ गए और अपने परिवार को लेकर उसके पीछे पीछे चल पड़े होटल के अंदर प्रवेश करते ही सिगरेट की महक आ रही थी होटल भी उनकी अपेक्षा अनुरूप न था वह उन्हें अपनी प्यारी बहू सुगना के लायक न लगा।
कुछ देर और होटल देखने के बाद सुगना और कजरी के पैर थक गए और अंततः सरयू सिंह ने होटल के रिसेप्शन की चमक दमक देखकर एक होटल को पसंद कर लिया।
होटल के रिसेप्शनिस्ट जो लगभग 20 - 21 साल का युवक था ने पूछा…
"चाचा जी आप का नाम"
"सरयू सिंह"
"चाची आपका"
"कजरी"
"और दीदी का" उसने सुगना की तरफ देखते हुए पूछा।
"सुगना"
कजरी ने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ उस व्यक्ति ने सरयू सिंह और उनकी दोनों प्रेमिकाओं के बीच संबंधों की जगह पर पत्नी और पुत्री लिख दिया। सरयू सिंह अपनी आंखों के सामने उन संबंधों को देख रहे थे पर नियति जो उनके साथ साथ ही घूम रही थी उसने सरयू सिंह का ध्यान वहां से हटा दिया और वह होटल के अटेंडेंट के साथ कजरी और सुगना को लेकर कमरे की तरफ बढ़ चले।
डबल बेड के सुंदर बिस्तर को देखकर सरयू सिंह का लंड उछलने लगा …
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14-04-2022, 03:20 PM
भाग-31
कजरी और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न थीं। होटल उनकी उम्मीदों से ज्यादा अच्छा था। वैसे भी वह दोनों गांव में रहने वाली औरतें थीं उनके लिए यह होटल किसी स्वर्ग से कम न था। सुगना तो सरयू सिंह से लिपट गई एक पल के लिए वह भूल गई कि उसकी सास कजरी ठीक बगल में खड़ी है। उसने अपनी चूचियां सरयू सिंह के सीने से सटा दी और उनके गालों को चूम लिया सरयू सिंह ने कजरी को अपने पास खींचा और उसे अपने से सटा लिया वह उसे अलग-थलग नहीं छोड़ना चाहते थे
गुसल खाने का सर्वप्रथम उपयोग सरयू सिंह ने किया तत्पश्चात सुगना ने और जैसे ही कजरी गुसल खाने की तरफ बढ़ी श्रृंगार दान के सामने बाल बना रही सुगना को सरयू सिंह ने पीछे से आकर अपने आलिंगन में ले लिया उनकी हथेलियों ने अपनी प्यारी बहू के होंठ ढक लिए। यह सिर्फ चुप रहने का इशारा था सरयू सिंह को नहीं पता था कि सुगना तो स्वयं उसका इंतजार कर रही थी।
कुछ ही देर में सुगना बिस्तर पर थी समय कम था सरयू सिंह ने उसे आज पहली बार उसे डॉगी स्टाइल में आने को कहा। सुगना के लिए यह अवस्था बिल्कुल नई थी सरयू सिंह ने उसके नितंबों और पीठ को अपने हाथों से व्यवस्थित किया तथा उसे संभोग की आदर्श स्थिति में ला दिया सुगना का लचीला और कोमल शरीर इस अवस्था मैं बेहद आकर्षक लग रहा था।
सरयू सिंह को समय का अनुमान था उन्होंने सुगना को निर्वस्त्र न किया परंतु उसके लहंगे को उठाकर उसके दोनों नितंबों को अनावृत कर दिया दोनों गोल नितंबों के बीच से सुगना की कोमल और गुदाज गांड सरयू सिंह को दिखाई पड़ गई उन्होंने घुटनो के बल आकर सुगना के नितंबों को चूम लिया सुगना थिरक उठी। कुछ ही देर में सरयू सिंह की जीभ सुगना की जांघों के बीच बुर से रस चुराने को आतुर हो उठी। गुसल खाने में नहाते समय सुगना अपनी बुर को पहले ही सहला कर गीला कर चुकी थी तौलिए से पोछने के बावजूद बुर् के होठों पर मदन रस चमक रहा था जो इस डॉगी स्टाइल में आने के कारण गुरुत्वाकर्षण से नीचे लटक रहा था। सरयू सिंह ने अपनी जीभ से उस रस को आत्मसात कर लिया तथा सुगना की कोमल बुर को अपनी जीभ का स्पर्श दे दिया सुगना की जाँघे ऐंठ गयीं और उसकी सिहरन चुचियों तक पहुंच गई।
सुगना को इस बात का अंदाजा न था वह अपने बाबूजी के लंड का इंतजार कर रही थी सुगना ने अपना चेहरा उठाया और सरयू सिंह की तरफ देखा परंतु वह तो उसके मादक नितंबों के पीछे गुम हो गए थे।
सुगना ने धीमी आवाज में कहा
"बाबुजी जल्दी करीं सासू मां जल्दी आ जईहें"
सरयू सिंह ने सुगना को छेड़ते हुए कहा
"का करीं सुगना बाबू?" सरयू सिंह ने अपना ध्यान सुगना की जांघों के बीच से हटाकर सुगना के चेहरे पर केंद्रित किया।
सुगना शर्म से लाल हो गई वह उनकी शरारत जान रही थी पर वह इस समय वार्तालाप करने के मूड में बिल्कुल नहीं थी।
सुगना का मासूम चेहरा और खुले हुए नितंब देखकर सरयू सिह मदहोश हो गए उन्होंने आगे बढ़कर सुगना को चूमने की कोशिश की और इसी दौरान उनके लंड ने सुगना की बुर को चूम लिया। सुगना ने अपने नितंब पीछे किये और उसकी पनियायी बुर ने मुहाने पर खड़े लंड का सूपड़ा लील लिया।
आगे किसी मार्गदर्शन की आवश्यकता न थी उसके बाबूजी का जादुई दंड अपनी जगह ढूंढ रहा था कुछ ही देर में कमरे में थपाथप की आवाजें गूंजने लगी। सरयू सिंह अपनी उत्तेजना और आवाज का समन्वय बनाए हुए थे। उधर कजरी गुसल खाने में नहाते वक्त तरह तरह की कल्पनाएं कर रही थी। । उसके दिमाग में आज रात्रि के संभावित अवसर घूम रहे थे क्या कुँवर आज संभोग करेंगे? और किसके साथ करेंगे क्या यह संभव हो पाएगा?
कजरी ने सुगना को गर्भवती कराने की ठान ली थी। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि यदि आवश्यकता पड़ी तो वह होटल से निकलकर बाहर बाजार में आ जाएगी तब तक सरयू सिंह सुगना के गर्भ में अपना वीर्य भर देंगे। काश वह सुगना और सरयू सिंह का संभोग इसी कमरे में देख पाती उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे और इसी दौरान कमरे में उसकी बहू सुगना चुद रही थी।
सुगना को लगा हुआ इंजेक्शन काम कर रहा था सरयू सिंह ने एक बार फिर अपना वीर्य सुगना की बुर में भर दिया था थोड़ी ही देर की चुदाई में सुगना और सरयू सिंह स्खलित हो गए थे। इससे पहले की कजरी गुसल खाने का दरवाजा खोलती सुगना के अनावृत नितंब घागरे के अंदर जा रहे थे। सरयू सिंह अपना लंड लिए हुए दीवाल की तरफ मुड़ चुके थे और उसे लंगोट में समेट रहे थे। कजरी सुगना के करीब आ गयी। सुगना की तेज सांसे कजरी को इशारा कर रही थी कजरी ने सारी बात समझ ली।
वह मुस्कुरा रही थी। सरयू सिह ने बात बदलते हुए कहा…
"चल अपना सुगना बेटा खातिर कपड़ा खरीद दिहल जाऊ"
कजरी ने हंसते हुए कहा…
"जब इहे करे के बा त कपड़ा के कौन जरूरत बा"
सुगना शरमाते हुए गुसल खाने की तरफ बढ़ गई थी उसे अपनी जांघों पर लगा हुआ वीर्य पोछना था।
सरयू सिह ने अपनी शर्म बचाने के लिए कजरी को चूम लिया। कुछ ही देर में वह सुगना और कजरी के साथ समुंदर के किनारे आ चुके थे।
मानव मन चंचल होता है यह बात हम सबको पता है पर जब इस चंचलता में कामुकता का अंश लग जाए तो यह चंचलता और प्रबल हो उठती है सरयू सिंह अपनी बहू सुगना के प्रेम जाल में अपनी उम्र भूल कर बीच पर आ चुके थे उन्होंने धोती कुर्ता पहना हुआ था साथ चल रही सुंदर कजरी साड़ी में थी सुगना ने आज फिर लहंगा और चोली पहना हुआ था।
बीच पर सरयू सिंह को एक दूसरी दुनिया दिखाई पड़ रही थी सुगना की उम्र की लड़कियां उन्हें अलग-अलग वस्त्रों में दिखाई दे रही थी. सरयू सिंह सुगना को कई दिनों से चोद रहे थे उन्हें अपनी उम्र याद न रही थी वह उन लड़कियों को भी उसी तरह देख रहे थे जिस तरह सुगना को देखते थे।
सरयू सिंह की निगाहें मदमस्त यौवनाओं के खूबसूरत नितंबों और पीठ पर घूम रही थी जब कभी कोई लड़की सामने से आती दिखाई पड़ती सरयू सिंह की पारखी निगाहें लड़कियों की चूची और जांघों के बीच की गहराई का अंदाज करने लगते। उनका लंड उन अनजानी गहराइयों में गोते लगाने की कल्पनाओं में खो जाता।
सरयू सिंह मन ही मन सुगना के बारे में सोच रहे थे वह इन वस्त्रों में कैसी दिखाई देगी। तभी एक विदेशी लड़की अपने बॉयफ्रेंड के साथ वहां से गुजरी। उस लड़की ने बेहद पतली बिकनी पहनी हुई थी चुचियाँ उभर कर बाहर आ रही थीं। सरयू सिंह के कदम धीरे हो गए सुगना और कजरी ने उनकी धीमी की चाल का कारण जान लिया था वह दोनों भी आश्चर्यचकित होकर उस लड़की की नग्नता का आनंद ले रही थीं।
सुगना ने कजरी से कहा…
"ओकर आगा पीछा कतना बढ़िया बा"
(उसका आगे और पीछे का भाग कितना सुंदर है)
"हमरा सुगना बाबू से कम सुंदर बा" कजरी ने मुस्कुराते हुए कहा और सुगना के नितंबों पर हाथ फिरा दिया।
सुगना शर्म से पानी पानी हो गई पर वह अपनी प्रशंसा सुनकर खुश हो गई।
सरयू सिंह की आंखों में अभी सुगना ही नाच रही वह उसे अलग-अलग वस्त्रों में अपने कल्पनाओं में देख रहे थे। उनके मन मे सुगना के मादक और कमनीय शरीर को इन उत्तेजक वस्त्रों में देखने की इच्छा प्रबल हो रही थी। सरयू सिंह समुद्र स्नान का आनंद तो लेना चाहते थे पर यह कार्यक्रम उन्होंने अगले दिन के लिए रखा था आज वह बीच पर उपलब्ध संसाधनों का मुआयना करने आए थे। कुछ देर बीच पर चहल करने करने के पश्चात सरयू सिंह सपरिवार पास के बाजार में आ गए…
दुकानों पर रंग-बिरंगे वस्त्र सजे हुए थे जिसमें अधिकतर लड़कियों और युवतियों के वस्त्र थे सरयू सिंह का यहां कोई कार्य न वह सिर्फ अपने परिवार के रक्षक के रूप में वहां आ गए थे।
कजरी और सुगना ग्रामीण वेशभूषा में थे परंतु उनके चेहरे पर चमक थी जो उनके सभ्रांत होने का एहसास दिलाती।
"दीदी इधर आईये"
एक व्यक्ति सामने से आकर कजरी और सुगना को एक दुकान की तरफ मोड़ दिया सरयू सिंह चाह कर भी उसे ना रोक पाए। दुकान पर और भी महिलाएं थी वह दुकान से थोड़ा दूर खड़े होकर अपनी तंबाकू बनाने लगे।
दुकानदार ने कजरी और सुगना के लिए तरह-तरह के अंदरूनी वस्त्र दिखाएं जिनमें से कुछ बीच पर समुद्र में अठखेलियां करने के काम आते और कुछ अपनी उत्तेजक कल्पनाओं को जागृत करने के लिए।
सुगना नव वधु की तरह शर्माते हुए कजरी की पसंद को देख रही थी। कजरी अपने मन में सुगना के प्रति उत्तेजना लिए हुए थी। उसने भी इस यात्रा में कई कल्पनाएं की हुई थीं।वह सुगना की कोमल और मखमली जांघों के बीच उसकी मासूम बुर को सजाना संवारना चाहती थी और उसे अपने कोमल स्पर्श से अभिभूत करना चाहती थी। उसमें सुगना के प्रति यह आकर्षण क्यों पैदा हो रहा था यह बात वह नहीं जानती परंतु उसे यह आकर्षण अच्छा लग रहा था।
कजरी ने सोच रखा था अब नहीं तो कभी नहीं उसने बेझिझक होकर अपने लिए और सुगना के लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदें। सुगना उसे रोकती रह गई पर कजरी ने एक न सुनी वह अपने सारे सपने पूरा कर लेना चाहती थी।
सुगना अपने शरीर पर इन उत्तेजक वस्त्रों की कल्पना कर गरम हो चुकी थी उसकी जाँघों के बीच गुदगुदी हो रही थी।
दोपहर में जब सरयू सिंह होटल में आराम कर रहे थे कजरी सुगना को लेकर पास के ही सस्ते से ब्यूटी पार्लर में चली गई। आज पहली बार उसने और सुगना ने अपने बालों को थोड़ा छोटा कराया अपनी आइब्रो बनवाई और वापस आ गयीं। भगवान ने कजरी और सुगना को प्राकृतिक सुंदरता दी थी उन्हें फेशियल या ब्यूटी प्रोडक्ट की आवश्यकता न थी।
शाम को सरयू सिंह सुगना और कजरी को तैयार होने का निर्देश देकर कमरे से बाहर आ गए उन्होंने आज पहली बार धोती की जगह पैजामा पहना हुआ था परंतु कुर्ता अपनी जगह बरकरार था। इस खूबसूरत कुर्ता पायजामे में सरयू सिंह ने अपनी उम्र कुछ वर्ष कम कर ली थी। सुगना अपने छैल छबीले बाबूजी को देखकर खुश हो रही थी उसे उनके साथ एकांत में बिताए जाने वाले पलों का इंतजार था।
सुगना और कजरी अपने नए वस्त्रों में तैयार होने लगे। सुगना को यह नए वस्त्र बेहद अजीब लग रहे थे परंतु कजरी की जिद की वजह से उसने वह पहन लिए। कजरी ने भी नई साड़ी पहनी और कई वर्षों बाद साड़ी का उल्टा पल्लू लिया खुले हुए बाल पीठ पर कजरी और सुगना की सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे पार्लर में जाने की वजह से बालों की बनावट और खूबसूरती निखर आई थी।
सरयू सिंह कुछ देर होटल की लॉबी में टहलने के बाद कमरे में आये। उनके कदम ठिठक गए। एक नवयुवती नीले रंग की जींस और सफेद टॉप में आइने के सामने खड़ी थी। दूसरी युवती काली और सुनहरे पाढ़ वाली साड़ी में जींस वाली लड़की के बाल सवार रही थी।
सरयू सिह को गलत कमरे में आ जाने का आभास हुआ।
"माफ कीजिएगा….."
कहकर वह उल्टे पैर बाहर आ गए। अंदर दो अनजान महिलाओं को देखकर उन्हें यह भ्रम हो गया कि वह किसी दूसरे कमरे में आ गए उनकी सांसें तेज चल रही थी उन्होंने एक बार फिर कमरे की चौखट पर पीतल के स्टिकर पर गुदा हुआ नंबर देखा।
कमरा तो उन्हीं का था उनकी आंखें एक बार फिर उस नंबर पर केंद्रित हुयीं और दिमाग सक्रिय हो गया उन्होंने पुनः दरवाजा खोला और अंदर आ गए उनका संदूक टेबल के नीचे दिखाई पड़ गया कजरी उनकी तरफ मुखातिब हुई और बोली
"आज हमार सुगना बाबू एकदम शहर के लईकी लाग तिया"
सरयू सिंह के लिए सुगना का यह नया रूप बेहद आकर्षक और उत्तेजक था। अपनी जवानी के दिनों से उन्होंने शहर में कई लड़कियों को इस तरह की चुस्त जींस और टॉप मैंने देखा था और न जाने कितनी बार अपनी कल्पनाओं में उस जींस को अपने हाथों से उतारा था।
सरयू सिंह सुगना को ऊपर से नीचे तक घूरे जा रहे सुगना का टॉप तो ढीला था परंतु जीन्स ने सुगना के पैरों पर एक चुस्त आवरण दे दिया था। वह सुगना की जाँघों के कसाव को छुपा पाने में असमर्थ थी।
दोनों जांघों के जोड़ पर जींस सुगना की कोमल बुर से चिपकी हुई थी और उसके ठीक नीचे बुर और जांघों के मिलन पर एक दिलनुमा आकार बन गया था जो अत्यंत मनमोहक लग रहा था सुगना की बुर की फाँकों ने उस खाली जगह को दिल का रूप दे दिया था। सफेद टॉप में सुगना की सूचियां उभरकर दिखाई दे रही थी निश्चय ही उन दिलकश चूचियों को ब्रा का भी समर्थन प्राप्त था।
सरयू सिंह को इस तरह घूरते हुए देखकर कजरी ने सुगना को गालों पर चूम लिया और कहा
" हमरा सुगना बाबू के नजर मत लगायीं"
कजरी तो उसके खूबसूरत होंठ चूमना चाहती थी परंतु वह हिम्मत न जुटा पा रही थी।
सरयू सिंह का ध्यान कजरी पर गया वह आज जितना खूबसूरत कभी नहीं लगी थी कजरी ने अपने बाल खुले रखे थे और वह उसकी बाई चुचियों को ढक रहे थे काले रंग की साड़ी कजरी के गोरे शरीर पर खूब जच रही थी सुनहरे रंग के ब्लाउज में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां सांची के स्तूप की भांति तन कर खड़ी थीं
सरयू सिंह का लंड एक बार फिर खड़ा हो चुका था। परंतु समय का आभाव था।कुछ ही देर में सरयू सिंह सपरिवार पवित्र मंदिर के दर्शन हेतु निकल चुके थे।
कजरी ने मंदिर में सुगना के गर्भवती होने की कामना की और प्रभु से उसके लिए आशीर्वाद मांगा उधर सरयू सिंह सुगना की खुशियों की कामना कर रहे थे परंतु उस कामना में उसके गर्भवती होने का जिक्र न था उसका यह हक वह स्वयं छीन चुके थे सुगना को लगाया गया इंजेक्शन अगले 2 वर्षों तक उसे गर्भधारण से बचाए रखता।
सुगना ने भी भगवान से प्रार्थना की परंतु वह कुछ मांग पाने की स्थिति में न थी। उसे पिछले कुछ दिनों में इतनी खुशियां मिली थी कि वह भगवान के प्रति कृतज्ञता जाहिर करती रह गयी उसे और कुछ ना चाहिए था।
रात करीब आ रही थी सरयू सिंह के मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे खाना खाने के पश्चात होटल जाते समय सुगना और कजरी आगे आगे चल रहे थे। पीछे कसी हुई जींस में सुगना के नितंब सरयू सिंह को आकर्षित कर रहे थे सुगना की चाल के साथ वह गोल नितंब एक लय में हिलते और सरयू सिंह को उन्हें अपनी हथेलियों में भर लेने को आमंत्रित करते।
उनका सारा ध्यान सुगना के कोमल नितंबों पर ही टिका था परंतु जब कभी उनकी निगाह कजरी पर पड़ती उनका लंड एक बार फिर उछल पड़ता।
कमरे में प्रवेश करते करते ही कजरी बाथरूम चली गई। सुगना की जींस का बटन बेहद टाइट था। सरयू सिंह बिस्तर पर बैठ कर अपना कुर्ता उतार रहे थे तभी सुगना उनके पास आई और बोली
" बाबूजी ई बटन खोल दीं"
सरयू सिंह ने तुरंत ही अपनी उंगली जींस के पीछे कर दीं और अंगूठे की मदद से बटन को खोल दिया उनकी उंगलियां यही ना रुकीं वह सुगना की जींस को नीचे करते गए। ज्यों ज्यों जींस नीचे उतरती गयी सुगना का वस्ति प्रदेश सरयू सिंह की आंखों के सामने आता गया। लाल रंग की पेंटिं ने सुगना की कोमल बुर और उसके ऊपरी भाग को ढक रखा था परंतु गोरा और चमकदार वस्ति प्रदेश उनकी आंखों के सामने उन्हें ललचा रहा था सुगना ने उन्हें रोकने की कोशिश न की और जींस कुछ ही देर में उसके घुटनों तक आ गई थी।
तभी कजरी के आने की आहट हुई सुगना ने बिस्तर पर पड़ा तोलिया अपनी कमर में लपेट लिया और दूसरी तरफ बैठकर अपनी जींस को उतारने लगी।
कजरी के बाहर आते हैं सुगना बाथरूम में चली गई. कजरी सरयू सिंह के करीब आई और सरयू सिंह ने उसे अपने आलिंगन में भर लिया। जितनी उत्तेजना उन्होंने सुगना की जींस खोलने में बटोरी थी वह सारी उन्होंने कजरी पर उड़ेल दी कजरी ने उनके तने हुए लंड को महसूस कर लिया और उसे दबाते हुए बोला।
"तब महाराज आज कैसे शांत होइहें"
"जे खड़ा करलए बा उहे शांत करी " सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा" कजरी उनकी बात को पूरी तरह न समझ पायी। एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसे नहाने के बाद इस मादक अवस्था में देखकर सरयू सिंह का लंड खड़ा हुआ था। परंतु उसे क्या मालूम था आज सरयू सिंह ने अपनी जवान बहू सुगना को एक मनचली लड़की का रूप देकर उसके जींस के बटन खोले थे। वह अपनी सुगना के इस नए रूप से बेहद उत्तेजित थे।
कजरी में इस पचड़े में न पड़ते हुए कि कुँवर जी का लंड किसने खड़ा किया है, अपने होंठ सरयू सिंह की तरफ बढ़ा दिया और प्रत्युत्तर में सरयू सिंह उसके होठों का रसपान करने लगे कजरी के नितंब सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों में आ चुके थे और उनकी उंगलियां धीरे-धीरे कजरी की बुर की तरफ बढ़ रही थीं।
सरयू सिंह कजरी को उसी समय कसकर चोदना चाहते थे परंतु उनकी जींस वाली सुगना अभी बाथरूम में नहा रही थी उन्होंने मन ही मन आज रात की कई कल्पनाएं की थीं उन्होंने कजरी को उस समय चोदने का विचार दिमाग से निकाल दिया तथा उसे उत्तेजित करने पर अपना ध्यान केंद्रित किए रखा। कजरी पूरी तरह उत्तेजित हो गई थी और उत्तेजना से हाफ रही थी।
तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और एक अति सुंदर नाइट गाउन में अपने बाल झटकती हुई सुगना कमरे में आ चुकी थी सुगना का यह नाइट गाउन कजरी ने आज ही खरीदा था। कजरी और सरयू सिंह सुगना को एकटक तक देखे जा रहे थे। सुगना धीरे धीरे चलते हुए ड्रेसिंग टेबल पर आकर तौलिए से अपने बाल सुखाने लगी।
कजरी ने सरयू सिंह से कहा
"जायीं रउओ नहा लीं"
जब तक सरयू सिंह बाथरूम में नहा कर बाहर निकलते उनकी दोनों परियां बेहद खूबसूरत गाउन में तैयार हो चुकी थीं। कजरी सुगना के नाइट गाउन व्यवस्थित कर रही थी। कजरी ने अपनी युवावस्था में जिस सुंदरता के दर्शन न कर पायी थी आज वह अपनी बहू को सजा संवार कर वह सारे अरमान पूरे कर रही थी।
कजरी ने कहा
"अब हमार सुगना बाबू एकदम रानी लागत बिया. आज कुँवर जी से कहब मलाई भितरे भरिहें। भगवान तोर मा बने के इच्छा पूरा करसु।"
कजरी ने सुगना के माथे को चूम लिया और सुगना को अपने आलिंगन में लेकर नाइटी के अंदर छुपी नंगी चुचियों (बिना ब्रा के आवरण की) को सुगना की खूबसूरत चूँचियों से सटा दिया।
सुगना के जवान बदन की खुशबू कजरी के नथुने से टकराई कजरी स्वयं बहुत उत्तेजित थी और इस रात के लिए कई अरमान संजोये हुए थी।
सरयू सिंह बाथरूम का दरवाजा खोल कर आ चुके थे उन्होंने अपनी कमर पर तौलिया लपेटा हुआ परंतु अपने जादुई लंड के उभार को छुपा पाने में पूरी तरह नाकाम थे। उनकी प्यारी बहु सुगना और भौजी कजरी बेहद उत्तेजक कपड़ों में एक दूसरे के पास घड़ी थीं। वह एक टक उन्हें देखे जा रहे थे। तभी अचानक कमरे की लाइट चली गई..
शेष अगले भाग में।
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14-04-2022, 03:23 PM
भाग- 32
सरयू सिह की कल्पनाएं
लाइट जाने के बाद कमरे में अंधेरा हो गया था। बाहर गलियारे में कई लोगों के आने-जाने की आवाज आ रही थी। किसी ने चिल्लाया
"लाइट कब आएगी क्या फालतू होटल है जनरेटर नहीं है क्या?"
होटल वाले वेटर की आवाज आई
" पूरे शहर की लाइट गई है देखिए कब तक आती है हमारे पास जनरेटर नहीं है कहिए तो मोमबत्ती दे दूं।"
सरयू सिंह के मन में एक बार आया कि वह जाकर मोमबत्ती ले लें। परंतु वह तौलिया पहने हुए थे और इस स्थिति में बाहर जाना उचित न था। उन्होंने लाइट का इंतजार करना ही उचित समझा। कजरी और सुगना दोनों बिस्तर पर आकर बैठ चुकी थीं।
कजरी ने कुंवर जी को छेड़ा
"अच्छा केकर कपड़ा ज्यादा सुंदर लागतल हा?"
" तू कभी खराब काम करेलू का? तू जवन भी करेलू उ सब अच्छा होला"
सरयू सिंह ने कजरी की तारीफ कर दी उनके दोनों हाथ में लड्डू थे जिनकी तुलना वह नहीं करना चाह रहे थे। बिस्तर पर बैठे उत्तेजना में डूबे सरयू सिंह और कजरी लाइट आने का इंतजार कर रहे थे। परंतु लाइट आने में विलंब हो रहा था। धीरे धीरे वह तीनों बिस्तर पर लेटते गए एक किनारे सरयू सिंह थे बीच में कजरी और दूसरी तरफ अपनी सास और अपने ससुर की चहेती सुगना।
कजरी जानबूझकर बीच में नहीं आई थी वह अकस्मात थी उन दोनों के बीच आ गई थी।
सरयू सिंह का लंड अब इंतजार करने के मूड में नहीं था। उसे वैसे भी उसे अंधेरी गुफा की यात्रा करनी थी। बाहरी दुनिया और उसके आडंबर उसके किसी काम के नहीं थे। उसे तो उस गहरी और चिपचिपी गुफा में प्रवेश कर उस गर्भाशय को चूमना था जिसका चेहरा आज तक कोई नहीं देख पाया था। कजरी की पीठ सरयू सिंह की तरफ थी और चेहरा सुगना की तरफ।
सरयू सिंह से और बर्दाश्त नहीं हो रहा था उन्होंने कजरी के पेट पर हाथ लगाया और उसके नितंबों को अपनी तरफ खींच लिया।
उनका लंड कजरी के नितंबों के बीच से उसकी गॉड से टकराने लगा। कजरी स्वयं भी उत्तेजित थी। उसकी बुर से रिस रही लार उसकी अनछुई गांड तक पहुंच चुकी थी। एक पल के लिए कजरी को लगा यदि उसने सरयू सिंह के लंड को सही रास्ता न दिखाया तो वह आज उसकी गांड में ही छेद कर देंगे। सरयू सिंह आज दोहरी उत्तेजना के शिकार थे। एक तो उनकी सुगना बहू आज एक नए रूप में उपस्थित थी और वह भी अपनी सास कजरी के सामने।
कजरी ने अपनी कमर थोड़ी और पीछे की तथा सरयू सिंह के लंड को उस चिपचिपी चूत का द्वार मिल गया। सरयू सिंह ने आव देखा न ताव और एक ही झटके में अपना लंड अपनी भौजी की बुर में उतार दिया।
उनका मजबूत लंड कजरी की बुर को चीरता हुआ गर्भाशय तक जा पहुंचा कजरी चिहुँक पड़ी.
सुगना ने पूछा
"सासु मां का भइल?"
जब तक कजरी उत्तर देती तब तक सरयू सिंह तेजी से अपना लंड उसकी बुर में आगे पीछे करने लगे। कजरी की आवाज लहरा गई वह बड़ी मुश्किल से बोली
"कुछो….ना"
सरयू सिंह का लंड आज भी कजरी की बुर में पूरे कसाव के साथ जाता था।उसमें इतनी ताकत थी वह जब बाहर आता कजरी को खींचे लाता और जब वह अंदर की तरफ जाता कजरी दो -चार इंच ऊपर की तरफ उठ जाती। बिस्तर पर हो रही यह हलचल सुगना ने महसूस कर ली।
अंधेरा होने के बावजूद बिस्तर पर होने वाली इस गतिविधि ने सुगना का ध्यान खींच लिया था। उसे कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था परंतु वह कुछ उत्तेजक महसूस कर पा रही थी। वह कजरी की तरफ मुंह करके करवट लेट गयी। सरयू सिंह की हथेलियां कजरी की चुचियों को अपने आगोश में लेने के लिए आगे आयीं परंतु इससे पहले कि वह कजरी की चुचियों को पकड़ पाती, हथेली के पिछले भाग को सुगना की सूचियों का स्पर्श मिल गया।
सुगना की कोमल चुचियां सरयू सिंह कैसे भूल सकते थे। सरयू सिंह पसोपेश में आ गए। वह सुगना की चुचियाँ सहलाना चाहते थे परंतु उनका हाथ कजरी के सीने के ऊपर था। यदि वह कजरी की चुचियाँ ना पकड़ते कजरी तुरंत ही समझ जाती।
उन्होंने बड़ी ही चतुराई से कजरी की चुचियों को अपनी हथेलियों में भर लिया और बीच-बीच में वह अपनी पकड़ ढीली करते और उनकी हथेलियों के पिछले भाग को सुगना की चुचियों का स्पर्श मिलता।
सुगना अब समझ चुकी थी कि उसके बाबूजी कजरी की चुचियों को मीस रहे हैं। सुगना की की बुर सिहर उठी। अपने ठीक बगल में अपनी सास कजरी की चुदाई होने के ख्याल मात्र से उसकी कोमल और संवेदनशील बुर के मुंह में पानी आ गया।
वो आगे आ कर अपनी चुचियों को सरयू सिंह की हथेलियों से सटाने लगी।
सरयू सिह कजरी की चुचियों को मीस रहे थे और उधर सुगना अपनी चुचियों को उनकी हथेली के पिछले भाग पर रगड़ रही थी। अचानक सुगना के निप्पल उनकी दो उंगलियों के बीच आ गए सरयू सिंह से बर्दाश्त ना हुआ और उन्होंने सुगना के निप्पल को दबा दिया। सुगना कराह उठी
"बाबूजी…. "
उसने अपने आगे के वाक्यांश को अपने मुंह में ही रोक लिया और उस मीठे दर्द को सह लिया। कजरी ने पूछा
"सुगना बाबू का भइल"
सरयू सिंह का लंड सकते में आ गया वह कजरी की बुर में पूरा जड़ तक घुस कर शांत हो गया। एक पल के लिए सरयू सिह घबरा गए उन्हें लगा इस प्रेम क्रीडा में विघ्न आ गया।
तभी सुगना ने बात संभाल ली उसने कहा "बाबूजी लाइट कब आई?"
सरयू सिंह अपनी भौजी की बुर चोदते चोदते हाफ रहे थे उन्होंने उत्तर न दिया परंतु कजरी ने कहा
"नींद नईखे आवत का? सुते के कोशिश कर"
कजरी उत्तेजना में पूरी तरह डूब चुकी थी वह किसी हाल में भी बिना स्खलित हुए सरयू सिंह के लंड को नहीं छोड़ना चाहती थी। सुगना भी इस दर्द को समझती थी वह शांत हो गयी। परंतु अपनी चुचियों को अपने बाबुजी की हथेलियों के पीछे रगड़ती रही।
सरयू सिंह का पिस्टन एक बार फिर आगे पीछे होने लगा। कजरी अपनी कमर हिला कर उनका साथ दे रही थी। उसे अब बिस्तर पर हो रही हलचल से कोई लेना-देना नहीं था। उत्तेजना में उसका दिमाग वैसे भी कम काम कर रहा था। वह अपनी बहू के सामने एक ही बिस्तर पर पूरी तन्मयता से अपने नितंबों को आगे पीछे कर चुदवा रही थी।
अचानक सरयू सिंह ने अपना हाथ ऊपर उठाया उसी दौरान सुगना ने उनकी हथेलियों की तलाश में अपनी चूचियां और आगे बढ़ा दी जो सीधे-सीधे कजरी की चुचियों से सट गयीं। कजरी जिन चुचियों को वह हमेशा से छूना और महसूस करना चाहती थी आज उसकी बहू ने वह चूचियां स्वयं ही उसकी चुचियों से टकरा दी थी। इससे पहले की सुगना इस अप्रत्याशित स्थित से बचने के लिए अपनी चुचियाँ पीछे कर पाती कजरी ने तुरंत अपना हाथ ऊपर किया और सुगना को अपनी तरफ खींच लिया सुगना कुछ बोल ना पायी और उसकी मझोली चुचियाँ अपनी सास की भारी चूँचियों में समा गयीं।
सरयू सिंह ने अपने हाथ वापस उसी अवस्था में लाने की कोशिश परंतु सास और बहू की चूचियों के बीच उनके हाथ के लिए जगह नहीं थी परंतु उन्होंने हार न मानी और उन दोनों की चुचियों को अपनी हथेली से सहलाने लगे।
एक ही पल में सास बहू और सरयू सिंह के बीच की शर्म की दीवार लगभग गिर चुकी थी वह उन दोनों की छातियों के बीच ढेर सारी चुचियों को सहलाते हुए मदमस्त हो रहे थे और इसका एक तरफा आनंद कजरी की चूत उठा रही थी।
अचानक कजरी ने अपने शरीर को थोड़ा नीचे किया उसके होंठ सुगना के गर्दन के ठीक नीचे आ गए थे इससे ज्यादा नीचे आना संभव न था सरयू सिंह का लंड कजरी को लगातार ऊपर धकेल रहा था सुगना ने कजरी की मनोदशा का अंदाजा लगा लिया आज वह भी पूरे उन्माद में थी। उसने अपने शरीर को ऊपर की तरफ धकेला और अपनी कोमल चुचियों के निप्पलों को अपनी सास कजरी के मुंह में दे दिया।
सुगना ने उत्तेजना में एक बड़ा कदम उठा लिया था जो कजरी की मनोदशा के अनुरूप था सरयू सिंह अपनी हथेलियों से सुगना की चुचियों को ढूंढते हुए ऊपर की तरफ गए और कजरी के चेहरे पर हाथ लगते ही उन्हें वस्तुस्थिति का अंदाजा हो गया। सरयू सिंह स्वयं आनंद के अतिरेक से अभिभूत अपने लंड को अपनी भौजी की बुर में बेहद तेज गति से आगे पीछे करने लगे कजरी से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ। उसकी कई इच्छाएं एक साथ पूरी हो रही थी कजरी के पैर सीधे होने लगे परंतु सरयू सिंह ने उसे चोदना जारी रखा। कजरी की बुर पानी छोड़ रही थी जितना रस वह अपनी बुर से बाहर छोड़ रही थी वह सुगना की कोमल चुचियों से उतना रस दूह लेना चाहती थी परंतु सुगना की चुचियां भी कच्चे आम जैसी थीं जिसे आप चूस तो सकते थे पर उसमें से रस निकलना असंभव था। उधर कजरी की मेहनत से सुगना की बुर भी पूरी तरह भजन कीर्तन के लिए आतुर थी।
स्खलन के दौरान कजरी ने अनजाने में ही सुगना के निप्पलों को जोर से दबा दिया सुगना से बर्दाश्त ना हुआ वह बोल उठी..
"आआआ…..तनी धीरे से दुखाता"
सुगना की इस कराह ने सरयू सिंह को पूरी तरह उत्तेजित कर दिया उन्होंने कजरी की बुर में लंड जड़ तक घुसा कर गर्भाशय को अंतिम विदाई दी और फक्कक कि आवाज के साथ अपना फनफनाता आता हुआ लंड बाहर निकाल लिए जो अब पूरी तरह कजरी के रस से भीगा हुआ था। आज कजरी की बुर ने इतना पानी स्खलित किया था कि उनके अंडकोष भी भीग गए थे।।
कजरी को अगले कदम का आभास हो गया था। सरयू सिंह का लंड अब भी स्खलित नहीं हुआ था और उन्हें अब अपनी बहू सुगना की कसी हुयी बुर की तलाश थी। कजरी बिना बात किए उनके बीच से उठी और सुगना की तरफ आ गई सुगना भी आतुर थी उसने तुरंत ही कजरी की जगह ले ली।
सरयू सिंह अब यह जान चुके थे की सुगना और कजरी दोनों ही इस खेल में शामिल हो चुके हैं। उन्होंने सुगना की जाँघे पकड़कर उसे खींच लिया और उसकी जांघों के बीच आ गए। उन्होंने अपनी हथेली से सुगना की कोमल बुर का मुआयना किया और बुर के होठों पर भरपूर प्रेम रस देखकर खुश हो गए। उन्होंने झुककर सुगना के निचले होठों को चूम लिया। सुगना के प्रेम रस से अपने होठों को भी भिगोने के पश्चात व सुगना को चूमने के लिए उसके चेहरे की तरह बढ़े।
तभी उन्हें कजरी के हाथ अपने और सुगना के सीने के बीच रेंगते महसूस हुए । कजरी सुगना की चुचियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी।
सरयू सिंह सुगना के कोमल होठों को घूमते हुए सुगना को उसका ही प्रेमरस चटा रहे थे उधर उनके तने हुए लंड ने सुगना की बुर को चूम लिया। वह रसीली बुर के अंदर प्रवेश करता गया। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अब वह किसी इशारे की प्रतीक्षा में न था। सुगना भी अपनी जांघें फैला कर उसे खुला आमंत्रण दे रही थी। थोड़ी ही देर में सरयू सिह की कमर तेजी से हिलने लगी। सरयू सिंह ने खुद को सुगना अलग किया और उसकी जांघों को पकड़ कर उसके पेट के दोनों तरफ कर दिया और अपने लंड से उसकी बुर को पूरी गहराई तक हुमच हुमच कर चोदने लगे।
कजरी सरयू सिह का उत्तेजक रूप महसूस कर घबरा गयी। वह अपनी बहू सुगना के चिंतित थी जो अपने बाबूजी की इस अद्भुत उत्तेजना का आनंद ले रही थी।
कजरी ने कहा
"तनी धीरे धीरे… लइका बिया"
सरयू सिंह कजरी की इस बात पर और भी ज्यादा उत्तेजित हो गए उन्होंने सुगना के होंठ काट लिए तथा अपने लंड से उसके गर्भाशय में छेद करने को आतुर हो उठे। उधर कजरी सुगना की चूचियों को सहलाये जा रही थी। कभी-कभी वह अपनी उंगलियां सुगना की भग्नासा पर ले आती परंतु सरयू सिंह के लंड के तेज आवागमन को महसूस कर वह अपनी उंगलियां हटा लेती। उसे कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता जैसे उसकी उंगली भी सरयू सिंह के लंड के साथ सुगना की बुर में चली जाएगी इतना आवेग था सरयू सिंह के लंड में।
सुगना हाफ रही थी। ऐसी उत्तेजना उसने जीवन में पहली बार महसूस की थी। कजरी कभी उसके होठों को चूमती कभी उसके गालों को सहलाती कभी अपने हाथों से उसकी चुचियों को सहलाती। अपनी चुचियों पर अपनी सास और अपने प्रिय बाबुजी की हथेलियां एक साथ पाकर सुगना सिहर उठी।उसकी बुर में कसाव आ गया वह स्खलित होते हुए बोली
बाबूजी... "आआआआआ…..ई….असहिं….आ..आ…सासु....माआआआआआ….आ ईईईई"
वह अपने पैर सीधा करना चाह रही थी परंतु सरयू सिंह का लंड अब भी और गहराइयां खोज रहा था। वह उसकी अंतरात्मा में उतर जाना चाहते थे।सुगना की उत्तेजक कराह ने सरयू सिंह को स्खलन पर मजबूर कर दिया और उनके लंड ने अपनी पहली धार सुगना के गर्भाशय पर छोड़ दी।
सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और अपने चिर परिचित अंदाज में अपने वीर्य से अपनी प्यारी बहू को भिगोने लगे। तभी उन्हें कजरी का ध्यान आया उन्होंने अपने लंड की दिशा घुमा ली और अपने पुराने खेत को भी उसी तरह खींचने की कोशिश की जिस तरह वह अपने आंगन की क्यारी सींच रहे थे।
परंतु दुर्भाग्य यह था की सुगना के शरीर में लगा हुआ इंजेक्शन खेत की जुताई और सिंचाई होने के बावजूद बीजारोपण में अक्षम था।
वीर्य स्खलन समाप्त होते ही उनकी हथेलियां कजरी और सुगना की चुचियों पर लगे वीर्य को बराबरी से फैलाने की कोशिश करने लगीं इसी दौरान लाइट आ गई।
अचानक आई रोशनी की वजह से सभी की आंखें मूंद गई परंतु सरयू सिंह इस अद्भुत दृश्य को देखना चाहते थे। उन्होंने अपनी आंखें खोल दी और अपनी दोनों नंगी प्रेमिकाओं को एक दूसरे से सटे और अपने वीर्य से भीगा हुआ देखकर अभिभूत हो गए। कजरी भी अब अपनी आंखें खोल कर सुगना को निहार रही थी।
परन्तु सुगना ने अपनी आंखें ना खोली। वह पूरी तरह शर्मसार थी। उसने पास पड़ा तकिया अपने चेहरे पर डाल लिया परंतु उसके खुले खजाने पर सरयू सिंह और कजरी का पूरा अधिकार और नियंत्रण था। वह दोनों उसकी खूबसूरत और कोमल शरीर को सहला रहे थे। सुगना की चुदी हुई फूली बुर को देखकर कजरी से न रहा गया उसने उसे चूम लिया। सुगना को यह अंदाजा न था उसने अपनी जांघें सिकोड़ी परंतु कजरी की जीभ को प्रेम रस चुराने से ना रोक पाइ उसने कहा..
"बाबूजी बत्ती बंद कर दीं"
सरयू सिह अपना झूलता हुआ लंड लेकर बिस्तर से उठे और उन्होंने ट्यूब लाइट बंद कर दी। कमरे में जल रहा नीला नाइट लैंप थोड़ी-थोड़ी रोशनी कमरे में फैला रहा था। सुगना अब उठ कर सिरहाने टेक लगाकर बैठ चुकी थी। कजरी उसकी नंगी जांघों को सहला रही थी। सरयू सिंह भी सुगना के दूसरी तरफ आकर बैठ गए थे। वह बेहद थके हुए थे। उसने सुगना को अपने सीने से लगा लिया और उसके गालों पर चुंबन लेते हुए बोले…
"तोहन लोग के बीच अतना प्यार बा हमरा आज मालूम चलल।
कजरी ने कहा..
"रहुआ आज भी ओकरा चूची पर गिरा देनी हां सुगना बाबू के इच्छा कैसे पूरा हुई?."
सुगना भी अब हाजिर जवाब हो चली थी उसने मुस्कुराते हुए कहा
"सासु मां अभी त रात बाकीये बा" और अपनी आंखें शरारत से मीच लीं।
सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह और कजरी सुगना की तरफ मुड़ गए। उनकी नंगी जांघे सुगना कोमल जांघों पर आ गयीं। उन्होंने सुगना के गाल को चूम लिया। वह उन दोनों को जान से प्यारी हो गई थी। आज रात सुगना ने कजरी के मन में कई दिनों से उठ रही काम इच्छाओं को पूर्ण किया था और एक अलग किस्म की उत्तेजना को जन्म दिया था.
सरयू सिंह और कजरी दोनों सुगना के दोनों गालों को चूमे जा रहे थे तथा अपनी हथेलियों से वीर्य से सने सुगना की चुचियों को सहला रहे थे।
सुगना को आज की रात बहुत कुछ देखना और सीखना था।
तभी सुगना की मधुर आवाज सुनाई पड़ी..
"बाबूजी आपन स्टेशन आवे वाला बा"
ट्रेन में बैठे सरयू सिंह भी आज रात का ही इंतजार कर रहे थे। अपनी पूरी यात्रा को याद करते करते उनके लंड में तनाव भर चुका था। कजरी ने उनके जांघों के बीच उभार को महसूस कर लिया। सरयू सिंह अपनी कामुक दुनिया से लौटकर हकीकत में आ चुके थे। हरिया ने सारा सामान उठाया और सरयू सिंह कजरी के साथ ट्रेन की गेट पर आ गए। सुगना अपने ससुर द्वारा दी गई भेंट सूरज को लेकर खुशी खुशी उनके पीछे आ गई।
घर पहुंचने के बाद गांव वालों के आने-जाने का ताता लग गया। सरयू सिंह जैसा प्रभावशाली और मजबूत आदमी आज हॉस्पिटल में 2 दिन रह कर वापस आया था। सभी लोग उनका कुशलक्षेम पूछने उनके दरवाजे पर आ रहे थे। हरिया के परिवार वाले आगंतुकों का स्वागत कर रहे थे इधर कजरी और सुगना अपने घर को व्यवस्थित करने का प्रयास कर रही थीं।
सुधीर वकील भी उनका हालचाल घर में आया हुआ था यह वही वकील था जिसने सरयू सिंह पर केस किया परंतु अब वह उनका दोस्त बन चुका था।
सुधीर ने पूछा
"सरयू भैया तोहरा जैसा मजबूत आदमी कईसे हॉस्पिटल के चक्कर में पड़ गईल हा"
सरयू सिंह को कोई उत्तर न समझ रहा था उन्हें पता था उन्हें जो तकलीफ हुई थी वह सुगना को जरूरत से ज्यादा चोदने के कारण हुयी थी। सरयू सिंह हकीकत बयां कर पाने में असमर्थ थी उन्होंने मन मसोसकर कहा
"लागता अब हमनी के बुढ़ापा आ जायी…" सरयू सिंह मुस्कुराने लगे। अंदर आगन में सुगना और कजरी ने उनकी यह बात सुन ली और कजरी ने हंसते हुए कहा
"कुंवर जी के मुसल हमेशा ओसही रही. पूरा रास्ता खड़ा रहल हा….दुइये तीन दिन में तोरा खातिर बेचैन हो गइल बाड़े"
सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा
"आज उनका के खुश कर दीयायी"
"सुगना बेटा उनका ले मेहनत मत करवइह"
सरयू सिंह खाना पीना खाने के पश्चात दालान में आराम करने चले गए आज उनकी इच्छा एक बार फिर सुगना से संभोग करने की थी परंतु लज्जावश उन्होंने यह बात न बोली।
कुछ देर बाद कजरी दालान में आई उसने कुँवर जी के पैर दबाए और जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा...
"सुगना बाबू से दवाइयां और दूध भेज दीह. तनि शहद भी भेज दीह मीठा खाये के मन करता"
कजरी ने सुगना से कहा..
"कुंवर जी के दूध के साथ दवाई खिला दीह मीठा में तनी आपन शहद चटा दीह" इतना कहकर कजरी ने अपना चेहरा घुमा लिया और मुस्कुराने लगी।
सुगना ने सूरज को दूध पिलाया और उसे कजरी के हवाले कर अपने बाबू जी की सेवा में निकल पड़ी। शहद चटाने की बात ने उसके मन मे कामुकता को जन्म दे दिया था। सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अपने बाबूजी के कमरे की तरफ बढ़ रही थी...
शेष अगले भाग में।
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14-04-2022, 03:25 PM
भाग-33
जब तक सुगना अपने बाबूजी को दूध पिलाने के लिए उनके पास पहुंचे सोनू का हाल चाल ले लेते है...
सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता था। कुछ ही देर में वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….
"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं"
लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."
"ठीक है दीदी"
"दीदी" शब्द सुनकर लाली ने सोनू की आवाज पहचान ली परंतु वह इस स्थिति में नहीं थी कि जाकर तुरंत दरवाजा खोल दे पर लाली सोनू को इंतजार भी नहीं कराना चाहती थी।
लाली बाथरूम में पूर्ण नग्न होकर स्नान का आनंद ले रही थी सोनू के आने के बाद अचानक ही उसके शरीर में सिहरन बढ़ गई। चुचियों पर लगा साबुन साफ करते करते उसकी चूचियां तनाव में आने लगी निप्पल खड़े हो गए। चूचियों पर लगे साबुन का झाग नाभि को छूते हुए दोनों जांघों के बीच आ गया था लाली की हथेली जैसे उस साबुन के झाग के साथ साथ स्वतः ही जांघों के बीच आ गयी और उसने अपनी रसीली बुर को छू लिया। उसकी जांघों के जोड़ पर जितना पानी था उससे ज्यादा उस मखमली बुर के अंदर था। जो अब रिस रहा था।
सोनू के आगमन ने लाली को उत्तेजित कर दिया था।
लाली लाख प्रयास करने के बावजूद अपने शरीर पर लगा साबुन साफ नहीं कर पा रही थी आज वह इत्मीनान से स्नान करने के मूड में थी परंतु सोनू के आकस्मिक आगमन ने उसे जल्दी बाजी में नहाने पर मजबूर कर दिया था परंतु धन्य हो वह रेलवे का नल जिस पर पानी थोड़ा-थोड़ा ही आ रहा था।
अंततः लाली ने यह फैसला किया कि वह अपनी नाइटी पहन कर जाकर दरवाजा खोल देगी और वापस आकर इत्मीनान से स्नान करेगी।
लाली ने जल्दी-जल्दी अपना अर्ध स्नान पूरा किया और अपनी लाल रंग की बेहद खूबसूरत नाइटी पहन कर बाहर आ गई। एकमात्र वही वस्त्र था जिसे लेकर वह बाथरूम में गई थी जो उसके शरीर पोछने और ढकने दोनों के काम आता था। दरअसल राजेश नाइटी, गाउन और अंतर्वस्त्र का बेहद शौकीन था वह लाली के लिए तरह-तरह की नाइटी और नाइट गाउन लाया करता था आखिर वही उसके सपनों की रानी थी जिसे सजा धजा कर वह कामकला के विविध रंग देखता था।
लाली ने दरवाजा खोला …
सोनू लाली को लगभग भीगी हुई अवस्था में नाइटी पहने देखकर सन्न रह गया. उसका ध्यान लाली की चुचियों पर चला गया जो पूरी तरह भीगी हुई थी . लाल रंग की नाइटी उस पर चिपक कर उन्हें और भी आकर्षक रूप दे रही थी. लाली के कड़े निप्पल उस नाइटी का आवरण छेद कर बाहर आने को तैयार थे. सोनू कुछ बोल नहीं पाया जुबान उसके हलक में अटक गई जब तक वह कुछ सोच पाता तब तक लाली ने कहा…
"सोनू बाबू थोड़ी देर बैठो मैं नहा लेती हूँ "
सोनू कुछ बोला नहीं उसने सिर्फ अपनी गर्दन हिलाई और अपने सूखे मुख से थूक गटकने का प्रयास करने लगा लाली। धीमे कदमों से बाथरूम के अंदर प्रवेश कर गयी परंतु वापस जाते समय उसके गोल नितंब लय में हिलते हुए सोनू के मन में हलचल पैदा कर गए।
कुछ ही देर में बाथरूम से पानी गिरने की आवाज फिर से आने लगी सोनू बेचैन हो गया उसका ध्यान न चाहते हुए भी उस पानी की आवाज की तरफ जा रहा था जो उसकी नंगी लाली दीदी के शरीर पर गिर रहा होगा। क्या लाली दीदी नंगी होकर नहा रही होंगी? या उन्होंने वह नाइटी पहनी हुई होगी? सोनू अपनी उधेड़बुन में खोया हुआ था. पता नहीं भगवान ने उसे कौन सी शक्ति दी उसके कदम धीरे धीरे बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ने लगे. रेलवे का दरवाजा कितना अच्छा होगा यह आप अंदाजा लगा सकते हैं।
अंततः सोनू को वह दरार मिल गई जिससे उसे जन्नत के दर्शन होने थे। उसकी पुतलियां फैल गई और उस छोटे से दरार से उसने नारी का वह रूप देख लिया जो सोनू जैसे नवयुवक को मर्द बनने पर मजबूर कर देता।
लाली पूरी तरह नंगी होकर पीढ़े पर बैठकर नहा रही थी। लाली पूरी तरह नंगी थी परंतु दरवाजे की तरफ उसका दाहिना हिस्सा था उसकी दाहिनी चूँची उभरकर दिखाई पड़ रही थी तथा उसकी मुड़ी हुई जाँघे अपने खूबसूरत आकार का प्रदर्शन कर रही थीं।
लाली को यह आभास नहीं था की सोनू उसे नहाते हुए देखने की हिम्मत कर सकता है पर सोनू भी अब बड़ा हो चुका था और उसका लंड भी ।
लाली बेफिक्र होकर अपनी चुचियों पर लगा साबुन धो रही थी तथा अपनी जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा को भी साफ कर रही थी जो हर मर्द की लालसा थी।
सोनू उत्तेजना से कांप रहा था वह डर कर वापस चौकी पर बैठ गया। कुछ देर बाद उसने फिर हिम्मत जुटाई और एक बार फिर दरवाजे पर जाकर उसी दरार पर अपनी आंख लगाने लगा तभी लाली ने दरवाजा खोल दिया सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।
सोनू का मुंह खुला का खुला रह गया उसके हाव-भाव को देखकर लाली ने यह अंदाज लगाया की सोनू निश्चय ही उसे देखने के लिए यहां आया था लाली सब कुछ समझ गई पर उसने सोनू को शर्मसार न किया और बोली…..
"सोनू बाबू कुछ चाहिए क्या"
सोनू की जान में जान आई उसने अपना सिर झुका लिया और तेजी से भागते हुए आइसक्रीम के पैकेट की तरफ गया और उसे हाथ में लेकर बोला
"दीदी आइसक्रीम फ्रिज में रखना है पिघल जाएगी।"
लाली ने उसे किचन में रखें फ्रिज को दिखाया और मुस्कुराते हुए कहा " फ्रिज में रख दो मैं 5 मिनट में कपड़े बदल कर आती हूं"
सोनू ने लाली को अपने कमरे में जाते हुए देखा वह लाली के कामुक शरीर से बेहद प्रभावित हुआ था। उसके लंड में अब भी सिहरन कायम थी।
लाली के कमरे का दरवाजा आसानी से बंद नहीं होता था दरअसल कभी इसकी जरूरत भी नहीं पड़ती थी। परंतु आज लाली दरवाजे को बंद करना चाहती थी उसने प्रयास किया परंतु असफल रही।
कमरे के अंदर उसकी पुत्री रीमा सो रही थी। लाली ने दरवाजा सटा दिया और अपने शरीर पर पड़ी नाइटी को उतार कर पूर्ण रूप से नग्न हो गई उसने उसी नाइटी से अपने शरीर को पोछा। उसे सोनू का ध्यान आया क्या वह बाथरूम में उसे नंगा देखने के लिए आया था यह सोच कर उसका तन बदन सिहर उठा।
सोनू चौकी पर बैठे-बैठे लाली के कमरे की तरफ ही देख रहा था वह दोबारा दरवाजे पर जाकर अपनी बेइज्जती करवाने का इच्छुक नहीं था। वह मन मसोसकर अपनी कल्पनाओं में ही लाली को कपड़े बदलते हुए देखने लगा।
उधर लाली अलमारी पर रखे जैतून के तेल के डिब्बे को उठाने गई पर डिब्बा फिसल कर नीचे गिर पड़ा। अंदर हुई आवाज ने सोनू को मौका दे दिया और वह लाली के दरवाजे के करीब आकर अंदर झांकने लगा।
अंदर का दृश्य देखकर सोनू के सारे सपने एक पल में ही पूरे हो गए लाली पूरी तरह नीचे झुकी हुई थी और गिरे हुए जैतून के तेल के डिब्बे को उठा रही थी उसके भरे भरे गोल और गदराये नितंब सोनू की आंखों के ठीक सामने थे। लाली की गांड तो नितंबों ने छुपा ली थी परंतु लाली की बुर बालों के आवरण के पीछे से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही थी।
बाल उसे पूरी तरह ढकने में असमर्थ थे लाली की बुर् के दोनों होंठ उसकी बुर को सुनहरा आकार दे रहे थे और उन होठों के बीच से लाली का गुलाबी छेद सोनू को आकर्षित कर रहा था।
लाली की नजर अपने दोनों पैरों के बीच से दरवाजे पर पड़ी उसे वहां सोनू के होने का एहसास हुआ लाली तेजी से उठ खड़ी हुई उसने अपनी बुर तो छुपा ली पर अपने मदमस्त यौवन का अद्भुत नजारा सोनू की आंखों के सामने परोस दिया। भरे भरे गोल नितंब पतली कमर और भरा भरा सीना…..आह सोनू सिहर उठा। ऊपर वाले ने लाली को भरपूर जवानी थी जिसका नयन सुख उसका मुंह बोला भाई सोनू उठा रहा था।
लाली और सोनू दोनों उत्तेजना के शिकार हो चले थे अब जब सोनू ने लाली के नग्न शरीर का दर्शन कर लिया था और यह बात लाली जान चुकी थी उसमें सोनू को और उत्तेजित करने की सोची उसने अपना एक पैर बिस्तर पर रखा और अपने हाथों से अपनी जाँघों और पैरों पर जैतून का तेल मलने लगी। लाली यहां भी ना रुकी उसने अपनी चुचियों पर भी तेल मला तथा अपनी जाँघों के अंदरूनी भाग तक अपनी हथेलियों को ले गयी। एक पल के लिए उसके मन में आया की वह अपनी जांघों को फैलाकर अपनी बुर के दर्शन सोनू को करा दे परंतु उसे यह छिछोरापन लगा। बेचारी लाली को क्या पता था उसके खजाने का दर्शन सोनू अब से कुछ देर पहले कर चुका था।
स्वाभाविक रूप से ही आज लाली ने सोनू को भरपूर खुशियां प्रदान कर दी थीं। लाली ने अपने हाथ रोक लिए और अपने कपड़े पहनने शुरू कर दीये। सोनू अपनी लाली दीदी को देखकर भाव विभोर हो चुका था और अपने हाथों से अपने लंड को सहला रहा था।
लाली की नग्न काया पर एक-एक करके वस्त्रों के आवरण चढ़ते गए और उसकी सुंदर लाली दीदी हाल में आने के लिए कदम बढ़ाने लगी सोनू अपनी सांसों को नियंत्रण में किए हुए चौकी पर आकर बैठ गया।
लाली ने बड़ी आत्मीयता से कहा सोनू
"बाबू तुमको बहुत इंतजार करवा दिए"
"सुगना कहां चली गई"
सोनू ने हॉस्पिटल का पूरा वृतांत लाली को सुना दिया लाली और सोनू अब सामान्य हो चले थे उत्तेजना का दौर धीमा पढ़ रहा था। सोनू की सांसें भी अब सामान्य हो रही थीं।
लाली ने झटपट सोनू और अपने लिए लिए खाना निकाला और उसके बगल में बैठ कर खाना खाने लगी।
लाली ने बमुश्किल 1- 2 कौर खाए होंगे तभी उसकी बेटी रीमा रोने लगी हालांकि रीमा अब 2 वर्ष की हो चुकी थी परंतु उसे सुलाते समय लाली को अब भी अपनी चूचियां पकडानी पड़ती थीं। लाली अपना खाना छोड़कर रीमा की तरफ भागी और उसे अपनी चूचियां पिलाकर सुलाने लगी।
लाली को आने में देर हो रही थी उधर खाना ठंडा हो रहा था। सोनू ने आवाज दी
"दीदी खाना ठंडा हो रहा है रीमा को लेकर यहीं आ जाइए"
लाली ने रीमां को गोद में उठाया और अपनी चूचियां पकड़ाये हुए ही लेकर हाल में आ गई उसने अपनी चुचियों को आंचल से ढक रखा था।
लाली सोनू के बगल में बैठ गई और रीमा को सुलाने का प्रयास करने लगी परंतु उसके दोनों ही हाथ रीमा को सुलाने में व्यस्त थे अभी खाना खा पाना उसके बस में न था तभी सोनू ने एक निवाला लाली के मुंह में डालने की कोशिश की…
लाली ने अपना सुंदर मुंह खोला और उस निवाले को स्वीकार कर लिया उसे सोनू पर बेहद प्यार आया कितना अच्छा था सोनू।
सोनू बाबू तुम खाना खा लो मैं रीमा को सुला कर खा लूंगी
दीदी मैं अपने हाथ से खिला देता हूं ना खाना ठंडा हो जाएगा
लाली मुस्कुराने लगी और बोली…
आज अपनी लाली दीदी पर खूब प्यार आ रहा है होली के दिन तो मुझको पकड़ कर अपनी सुगना दीदी से रंग लगवा रहे थे
दीदी पकड़म पकड़ाई में तो आपको भी अच्छा लग रहा था क्या आप गुस्सा थीं ? सोनू ने मासूमियत से पूछा
नहीं पगले अपने सोनू बाबू से कोई गुस्सा होगा क्या तू तो इतना प्यार करता है मुझे। लाली ने उसके गालों को प्यार से चुम लिया।
लाली में इस बार निवाला लेते समय उसकी उंगलियों को चूस लिया था..
सोनू की उंगलियों को लाली के सुंदर होठों का यह स्पर्श बेहद उत्तेजक और आकर्षक लगा वह बार-बार लाली से इसकी उम्मीद करने लगा लाली ने भी उसे निराश ना किया जब भी सोनू उसे खिलाता वह उसकी उंगलियों को चूम लेती कभी अपने होंठों के बीच लेकर चुम ला देती सोनू को लाली का वह स्पर्श सीधा अपने लंड पर प्रतीत हो रहा था जो अब पूरी तरह तन कर खड़ा था और जांघों के बीच उधार बनाए हुए था।
खाना समाप्त होने के पश्चात लाली ने कहा
सोनू बाबू अपने जीजा जी के लुंगी पहनकर आराम कर लो
सोनू ने मन ही मन अपनी तुलना अपने जीजा जी से कर ली और उनकी लुंगी पहनकर हॉल में लगी चौकी पर लेटने की तैयारी करने लगा लाली रीमा को लेकर अंदर अपने कमरे में आ गई।
सोनू बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगा तभी उसे बिस्तर के नीचे कुछ गड़ने का एहसास उसने बिस्तर हटाकर देखा वहां पर कुछ पतली पतली किताबें पढ़ी हुई थी सोनू ने उत्सुकता बस किताब अपने हाथ में ले ली परंतु पन्ने पलटते ही उसके होश एक बार फिर उड़ गए।
वह किताब एक सचित्र कामुक कहानियों की पुस्तक की जिसमें देसी विदेशी लड़कियों को अलग-अलग सेक्स मुद्राओं में दिखाया गया था और कई तरीके की उत्तेजक कथाओं के मार्फत कामुक पुरुषों और युवतियों की उत्तेजना जागृत करने का प्रयास किया गया था।
सोनू ने अपने सिरहाने की दिशा बदल दी अब उसके पैर लाली के दरवाजे की तरफ से और वह लेट कर उस किताब को देखने लगा उसका लंड एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया।
जैसे-जैसे सोनू के लंड में खून का प्रवाह बढ़ता गया उसका दिमाग शांत होता गया वह पूरी तन्मयता से किताब के अंदर बनी नंगी लड़कियों के अंदर खोता गया परंतु जो नग्नता उन्होंने अब से कुछ देर पहले देखी थी वह उसके दिलो-दिमाग पर चढ़ी हुई थी। फोटो में एक से एक सुंदर लड़कियां थी परंतु सोनू को लाली से ज्यादा कोई भी खूबसूरत नहीं दिखाई पड़ रही थी। परंतु अब अपना कच्छा खिसका कर लंड को सहलाने लगा बल्कि अपनी मुठीयों में भरकर उसे तेजी से आगे पीछे करने लगा। उसे इस बात का आभास न रहा की लाली कभी भी यहां आ सकती है। उत्तेजना के अतिरेक में लूंगी का पतला कपड़ा जाने कब लंड के ऊपर से हट गया।
नियति आज लाली और सोनू के बीच सारी दीवार गिरा देना चाहती थी अचानक लाली को पेशाब करने की इच्छा हुई और वह न चाहते हुए भी उठकर अपने दरवाजे के पास आ गई।
उसके कानों में "लाली दीदी" की कामुक कराह सुनाई पड़ रही थी उसने अपना सर दरवाजे से बाहर कर सोनू को देखा जो बेफिक्र होकर अपने सुकुमार पर सुदृढ़ लंड को मसल रहा था।
लाली की आंखें फटी रह गई अब से कुछ घंटों पहले उत्तेजना का जो खेल खेल उसने सोनू को दिखाया था नियति उसे प्रत्युत्तर में उसी खेल को दिखा रही थी। सोनू अपने लंड को लगातार आगे पीछे कर रहा था और उसके मुख से "लाली दीदी" का नाम धीमे स्वर में आ रहा था। सोनू का लंड नितांत ही कोमल पर बेहद खूबसूरत था लाली के होठों में एक मरोड़ से उत्पन्न हुई वह अपने पति राजेश का लंड तो कई बार चुसती थी परंतु सोनू का लंड चूसने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त था कितना सुंदर था वह बेहद मासूम कोमल और तना हुआ।
एक बार के लिए लाली के मन में इच्छा हुई कि वह अचानक ही कमरे में प्रवेश कर सोनू को रंगे हाथों पकड़ ले परंतु उसने अपने आप को रोक लिया वह भी उत्तेजना में डूब चुकी थी उसकी बुर पनिया गई थी।
सोनू के हाथों की गति बढ़ती गई और अचानक उसने अपनी कमर के नीचे से पीले रंग की पेंटी निकाली जो लाली अब से कुछ घंटों पहले नहाने के पश्चात सुखाने के लिए बाथरूम के सामने रस्सी पर डाली थी।
सोनू के लंड से वीर्य धारा फूट पड़ी और उसने लाली की पेंटी में अपना सारा माल भर लिया। लाली को अब जाकर यह बात समझ में आ रही थी कि सारे पुरुष स्त्रियों की पेंटी में जाने कौन सा रस पाते हैं। राजेश भी पेंटी का दीवाना था और अब यह छोटा सोनू भी उसकी पैंटी पर अपना वीर्य गिरा कर तृप्त हो गया था।
सोनू फटाफट बिस्तर से उठा और वह पेंटिं मोड़ कर खूंटी पर टंगे अपने पैंट की जेब में डाल ली और बिस्तर पर आ कर वापस लेट गया।
लाली ने दरवाजा खोला और हाल में प्रवेश कर गयी सोनू आंखें बंद कर लेटा हुआ था।
लाली बाथरूम गई और वापस आ गई तथा किचन में चाय बनाने लगी इसी दौरान जब सोनू बाथरूम गया तो लाली ने अपनी पेंटी उसकी जेब से निकालकर छुपा ली।
तभी दरवाजे पर घंटी बजी और लाली ने पुकारा
कौन है
दरवाजे पर राजेश खड़ा था….
सोनू ने राजेश की आवाज पहचान ली…
वह थोड़ा घबराया और आनन-फानन में जल्दी से हाल में आया।
उसने राजेश के चरण छुए और तभी उसकी निगाह चौकी पर रखी उस गंदी किताब पर गई उसने राजेश की नजर बचाकर उसे उसकी ही लूंगी से ढक दिया और राजेश के अंदर जाते ही उसे वापस उसी जगह पर रख दिया जहां से उसने वह किताब ली थी।
सोनू यथाशीघ्र वहां से निकल जाना चाहता था।
अब तक लाली चाय बना चुकी थी। चाय पीने के पश्चात सोनू ने लाली और राजेश से विदा ली और बाहर आने के बाद अपने पैंट की जेब चेक की जिसमें उसने अपनी लाली दीदी की चूत का आवरण अपने वीर्य से भिगोकर रखा हुआ था।
अपनी जेब पर हाथ जाते हैं वह सन्न रह गया जेब से पैंटी गायब थी वह घबरा गया वह पेंटी किसने निकाली? क्या लाली दीजिए ने? क्या उन्होंने उसे हस्तमैथुन करते हुए देख लिया?
हे भगवान यह क्या हो गया वह अपने मन में अफसोस और उत्तेजना लिए हॉस्टल की तरफ चलता जा रहा था.
उधर सुगना अपनी जांघों के बीच उत्तेजना लिए और अपने बाबूजी सरयू सिंह को खुश करने के लिए दूध और दवाइयां लेकर उनके कमरे में पहुंच गई राजेश और लाली से मिलने के पश्चात वह रह-रहकर कामूक ख्यालों में हो जाया करती थी।
"बाबूजी ली दूध पी ली"
सुगना ने अपनी मधुर आवाज में पुकारा परंतु सरयू सिह सो गए थे। शायद हॉस्पिटल में भी जा रहे दवाओं की वजह से वह थोड़ा सुस्त हो गये थे। अब से कुछ ही देर पहले अपना तना हुआ लंड लिए सुगना का इंतजार कर रहे थे पर अब उनके चेहरे पर सुकून भरी नींद थी।
सुगना ने अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण कर लिया और सरयू सिंह के माथे को सहलाते हुए उन्हें उठाया दवाइयां खिलाई और दूध पिलाया।
वह कजरी का आग्रह पूरा न कर पाई । सरयू सिह की स्थिति उसकी जांघों के बीच रिस रहा शहद चाटने लायक न थी। सुगना ने पूरी आत्मीयता से उनके पैर दबाये और वो पुनः एक सुखद नींद सो गए।
अगले दिन सुगना की मां पदमा, सुगना की दोनों छोटी बहनों सोनी और मोनी के साथ सरयू सिंह के घर पर आ गई उनका यह आना अकस्मात न था। निश्चय ही वह सरयू सिंह को देखने के लिए यहां आई थीं।
सोनी और मोनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी थीं। प्रकृति के गूढ़ रहस्य उन्हें पता चल चुके थे। जांघो के बीच की दिव्य चीज का ज्ञान उन्हें ही चुका था और उसकी उपयोगिता भी यह अलग बात थी कि उन्होंने उसका उपयोग आज तक न किया था। भगवान ने उन्हें सुंदरता उसी प्रकार दी थी जैसे सुगना और पद्मा को। ऐसा प्रतीत होता था जैसे पदमा की फैक्ट्री से निकलने वाली कलाकृतियों का में कामुकता का सृजन नियति ने विशेष प्रयोजन के लिए किया था।
सुगना पुत्र सूरज को देखते ही सोनी ने उसे अपनी गोद में ले लिया सूरज वैसे भी बहुत प्यारा बच्चा था। सोनी जैसी सुंदरी की गोद में जाकर वह और भी खिल गया सोनी भी बड़ी आत्मीयता से उसे अपने सीने से लगाए हुए थी।
सूरज करते हुए अपने छोटे पैर सोनी के पेट पर मार रहा था तथा वह सोनी के हाथों पर बैठकर सोनी के सानिध्य का आनंद ले रहा था तभी सोनी का ध्यान सूरज के दाहिने अंगूठे पर गया उस अंगूठे पर नाखून लगभग नहीं के बराबर था और नाखून की जगह एक गुलगुला सा उभरा हुआ भाग था वह स्वता ही ध्यान आकर्षित कर रहा था।
सोनी उस विलक्षण अंगूठे को देखकर खुद को रोक न पाए और उसे अपने अंगूठे और तर्जनी से कौतूहल वश सहलाने लगी...
अचानक सोनी को अपनी चूँचियों पर कुछ गड़ने का एहसास हुआ। उसने सूरज को तुरंत अपने दोनों हाथों में उठाया और सुगना से बोला…
दीदी लगता है बाबू पेशाब करेगा
तो करा देना..
सोनी ने सूरज का कच्छा उतारा और अपने हाथों का सहारा देख कर उसे सु सु कराने लगी…
सूरज की मुन्नी तन गई थी पर वह सुसु नही कर रहा था..
अंत में सोनी ने परेशान होकर उसका कच्छा ऊपर किया और उसे सुगना की गोद में देकर सरयू सिह के पास चली गयी जहां उसकी माँ पद्मा घूंघट ओढ़े हुए बैठी हुई थी…
नियति आंगन में बैठी हुयी सोनी और सूरज को निहार रही थी सोनी ने सूरज के जिस अंगूठे को सहलाया था वह नियति ने किसी विशेष प्रयोजन के लिए बनाया था जिसे सोनी ने अनजाने में छू दिया था… नियति मुस्कुरा रही थी सोनी ने अनजाने में ही गलत उतार छेड़ दिया था जिस की सरगम उसे सुनाई पड़नी थी...
शेष अगले भाग में….
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भाग 34
उधर लाली के घर में
राजेश के आने के कुछ ही देर बाद सोनू घर से चला गया राजेश को यह बात समझ में ना आए कि जाने की इतनी जल्दी क्यों परंतु उसने ज़िद न की. लाली ने सरयू सिंह की स्थिति और सुगना के वापस जाने की खबर राजेश को सुना दी। राजेश दुखी हो गया वह आज फिर सुगना के कोमल और कामुक शरीर को देखने और अपने मन में उसके करीब आने के लिए कई प्रकार से योजना बना रहा था परंतु उसके सारे अरमान धूमिल हो रहे थे वह उदास हो गया और चौकी पर लेट कर अपनी आंखें बंद किए सोचने लगा।
तभी लाली अपने कमरे में गई और रात में सुगना के शरीर से उतारी हुई पेंटी को लेकर आयी और राजेश के चेहरे पर रख दिया.
राजेश ने अपनी आंखें खोली और उस खूबसूरत पेंटी को देख कर लाली से कहा..
"इसे हटाओ अभी मन नहीं है"
राजेश ने कोई उत्सुकता नहीं दिखाई उसके जवाब में बेरुखी थी।
लाली ने कहा अरे आपकी साली साहिबा के शरीर से उतरी है अभी उसकी जांघों के बीच की खुशबू वैसे ही होगी"
राजेश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी उसने उस पेंटी को लिया और अपने बड़े-बड़े नथुनों से सुगना की बुर की खुशबू लेने की कोशिश करने लगा। सच वह खुशबू अलग ही थी वह उसमें खो गया और पेंटिं के उस भाग को चूमने लगा जो अब से कुछ घंटे पहले सुगना की बुर को चूम रही थी।
राजेश में उत्तेजना भर गई वह खुश हो गया और उठकर लाली को आलिंगन में ले लिया तभी लाली ने दूसरा बम फोड़ दिया उसने वह दूसरी पेंटी भी राजेश के हाथों में थमा दी जिसमें अब से कुछ देर पहले सोनू ने अपना हस्तमैथुन कर अपना वीर्य उस पेंटिं में भर दिया था। पेंटी अब भी गीली थी।
राजेश ने पूछा
"अब यह क्या है?"
लाली ने उसके सीने पर सर रख दिया और बोली
"यह आपके साले साहब की करतूत है"
राजेश को बात समझते देर न लगी उसने लाली को तुरंत ही अपनी गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ले आया. राजेश को आज एक साथ दो दो सरप्राइज मिले थे। सोनू में उसके ही घर में आज उसकी ही पत्नी की पेंटिं में अपना वीर्य स्खलन किया था निश्चय ही सोनू की कल्पना में लाली का ही स्थान रहा होगा यह सोचकर राजेश बेहद खुश हो गया।
उसने फटाफट लाली को नग्न करने की कोशिश की तभी लाली ने लाल झंडी दिखा दी वह अब भी रजस्वला थी। राजेश एक बार फिर दुखी हो गया लाली ने तुरंत ही उसके लंड को अपने हाथ में लिया और सुगना की बातें करते हुए सहलाने लगी। कुछ ही देर में राजेश का लंड लाली के हाथों में अठखेलियां करने लगा राजेश ने पूछा…
"क्या सुगना ने अपनी पैंटी जानबूझकर छोड़ी थी?" राजेश ने बेहद उम्मीद और उत्सुकता से लाली से पूछा
"पता नहीं पर आपके जाने के बाद मैं और सुगना एक दूसरे के आलिंगन में आ रहे थे तभी मैंने उसकी पैंटी उतार दी थी"
राजेश बेहद उत्तेजित हो गया काश उस बिस्तर पर लाली और सुगना के साथ वह भी उपस्थित होता उसके मन में तरह तरह की कल्पनाएं जवान होने लगी वह मन ही मन अपने ख्वाबों में लाली और सुगना को एक साथ देखने लगा.
अचानक राजेश को सोनू का ध्यान आया उसने लाली से पूरा विवरण सुनना चाहा जिसे लाली ने चटखारे ले लेकर बताया।
राजेश का वीर्य स्खलन प्रारंभ होते ही लाली ने वही पेंटी राजेश के लंड पर रख दी जिस पर कुछ देर पहले उसके भाई सोनू ने अपना वीर्य भरा था।
राजेश यह देखकर और भी उत्तेजित हो गया और पूरी गति से अपना वीर्य लाली की पेंटी में भरने लगा। लाली मन ही मन मोनू और राजेश का वीर्य अपनी पेंटी पर गिरते हुए देख रही थी और उसे अपनी बुर की गहराइयों में महसूस कर रही थी उसके मन में भी सपने जवान हो रहे थे।
नियति राजेश और लाली को एक अलग किस्म की उत्तेजना और कल्पनाएं दे रही थी जो सुगना और सोनू के बिना संभव नहीं था परंतु यह कार्य नियत ने स्वयं संभाल रखा था सोनू अपने आज के दिन को याद करते हुए हॉस्टल में बिस्तर पर लेटा अपने लंड को सहला रहा था। लाली की गोरी और गदराई जांघों के बीच उसने जिस पवित्र गुफा के दर्शन किए थे वह उसे चूमना और चोदना चाहता था यह भूल कर भी कि उस गुफा पर राजेश का वीर्य न जाने कितनी बार गिरा होगा। उसे लाली आज भी उतनी ही पवित्र लगती थी जितनी उसने अपने बचपन से देखी थी।
लाली के सीने से सटते हुए उसे कई वर्ष हो गए परंतु आज के बाद वह लाली के गले किस प्रकार लगेगा यह सोचकर ही उसका लंड फिर स्खलन के लिए तैयार हो रहा था।
इधर सरयू सिंह के घर पर सोनी की उत्सुकता कायम थी आज सूरज के बिना नाखून के अंगूठे को सहलाने पर उसकी नुंनी पूरी तरह तन गई थी यह सोनी के लिए आश्चर्य की बात थी।
दोपहर में सुगना ने सोनी से कहा "सूरज बाबू को तेल लगा कर नहला दो"
सोनी को सूरज वैसे भी बहुत प्यारा लगता था वह उसे लेकर दालान में आ गई।
दालान पूरी तरह खाली था. सोनी ने अपने दोनों पैर चौकी पर रखें और अपने घागरे को अपनी जांघों तक खींच लिया वह तेल से अपने घागरे को गंदा नहीं करना चाहती उसने पैर के पंजों पर सूरज का तकिया रखा और अपने पैरों पर सूरज को लिटा लिया तथा उसके पैरों और हाथों की मालिश करने लगी अचानक सूरज का वही अंगूठा उसे फिर दिखाई दिया उस अंगूठे में नाखून की जगह एक अजब किस्म का गुलगुला भाग था जिसे छूने का मन हो जाता था। सोनी ने एक बार फिर उस अंगूठे को अपने हाथ में लिया और सहला दिया और एक बार फिर सूरज की मुन्नी तन गई सोनी की उत्सुकता बढ़ती गई और उसने सूरज के अंगूठे को और सहलाया सूरज की नुंनी में आया उधार अप्रत्याशित था वह अपने आकार का 3 गुना हो गया। सोनी को यह बेहद अजीब लग रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस अंगूठे का उस नूंन्नी से क्या संबंध है उसने उस अंगूठे को थोड़ा और सह लाया और सूरज की नुंनी लगभग सोनी की उंगली से ज्यादा बड़ी हो गयी।
सोनी डर गई वह सूरज नुन्नी के अप्रत्याशित बढ़ोतरी से घबरा गई उसके लाख प्रयास करने के बावजूद सूरज की नुंनी नहीं सिकुड़ रही थी। सोनी डर से थर थर कांपने लगी सूरज को यह क्या हो गया था वह सुगना दीदी को क्या जवाब देगी।
सोनी ने पहले भी कई बार बच्चों की तेल मालिश देखी थी तेल मालिश के पश्चात कई औरतें बच्चों की नुंन्नी में तेल लगाकर मुंह से फूंकती है ताकि नुंनी के सुपारे के अंदर की सफाई हो सके।
सोनी ने भी थोड़ा सा तेल अपनी उंगलियों पर लिया और सूरज की नुंनी के मुंह पर लगाया परंतु नुन्नी के आकार में कोई परिवर्तन न हुआ। सूरज अभी भी मुस्कुराते हुए अपनी सोनी मौसी को देख रहा था उसे जैसे अपनी कमर के नीचे हो रही घटनाओं का कोई आभास ही नहीं था।
लाली अपने कोमल होठों को गोलकर तेजी से सूरज की नुंनी के ऊपर फूकने लगी परंतु नुंनी के आकार में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा था। अपने प्रयास को बढ़ाते बढ़ाते एक बार सोनी के होठ सूरज की नुंनी से छू गए यही वह मौका था जब सूरज की मुन्नी के आकार में परिवर्तन हुआ उसका आकार थोड़ा घट गया था। सोनी ने यह महसूस कर लिया और तुरंत ही एक बार फिर अपने होठों को उसकी नुन्नी से छुआ दिया।
सूरज की नुंनी का आकार घट रहा था सोनी के चेहरे पर सुकून आ गया वह अपने होठों से बार-बार नुंनी को छूती और वह सिकुड़ती जाती। कुछ ही देर में नुंनी वापस अपने आकार में आ गयी थी।
तभी दालान में सुगना आ गयी। सोनी के होंठो पर तेल देखकर उसने पूछा…
"होंठ में तेल काहे लगवले बाड़े?"
सोनी ने सुगना को सारी बात बताने की कोसिश की पर सुगना के कहा..
" अच्छा एक बार फेर करके देखा त"
सोनी ने दुबारा कोशिश की पर सूरज की नुंनी में कोई हरकत नहीं हुई।
सोनी के आश्चर्य को कोई सीमा न रही वह उसके अंगूठे को मसलती रही पर आश्चर्यजनक रूप से सूरत की नुंनी में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा था।
सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा…
"लागाता हमार सोनी अब जवान हो गईल बिया जल्दी ब्याह करावे के परी। दिने में सपनात बिया"
सोनी भगवान को शुक्रिया अदा कर रही थी कि उसने सुगना को आधी ही बताई थी कि सूरज केअंगूठे को सहलाने पर उसकी नुंनी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती है। जब तक वह यह बात बता पाती कि होठों से छूने पर नुंनी का आकार वापस हो जाता है इसके पहले ही सुगना ने उसे करके दिखाने के लिए कह दिया था।
अन्यथा सूरज की नुंनी को अपने होठों से छूने की बात बताकर और शर्मसार हो जाती ।
सुगना दालान से बाहर वापस जा चुकी थी परंतु सोनी का आश्चर्य कायम था उसने एक बार फिर सूरज के अंगूठे को वैसे ही सह लाया और नुन्नी में अपना आकार फिर बढ़ा दिया।
सोनी उधेड़बुन में थी परंतु उसे नुंनी के बढ़ने और घटने दोनों का राज पता था। सोनी ने मन ही मन इस बात को अपनी बहन मोनी से साझा करने की सोची।उसमें अपनी बहन मोनी को आवाज दी परंतु वह बाहर नहीं थी। सोनी सुगना की बात को याद कर थोड़ा उत्तेजित हो चुकी थी विवाह की बात सुनकर उसकी जांघों के बीच एक अजब किस्म की हलचल हो रही थी जिसे सिर्फ और सिर्फ सोनी ही समझ सकतीथी या फिर हमारे प्रबुद्ध पाठक गण।
उधर सरयू सिह ट्यूबवेल में पड़ी चारपाई पर लेते हुए सुगना को याद कर रहे थे वह अपनी पूरी की यादों में खोए हुए थे जब उनके लंड को सुगना के होंठों का स्पर्श प्राप्त हुआ था। एक बार सुगना को जी भर चोदने के बाद पुरी के होटल में वह अपनी भौजी कजरी और सुगना के साथ बिस्तर पर लेटे हुए थे।
सुगना अब भी पूरी तरह नंगी बीच में लेटी हुई थी। उसने अपनी पीठ पलंग के सिरहाने टिका रखी थी वह किसी छोटी महारानी की तरह प्रतीत हो रही थी और हो भी क्यों ना वह अपने बाबूजी और सासू मां की चहेती थी और उन दोनों की अधूरी मनोकामनाएं पूर्ण कर रही थी सुगना के प्रति कजरी के मन में आई वासना बिल्कुल नयी थी कजरी तो सुगना की मासूमियत और उसके अंग प्रत्यंग ओं की कोमलता पर मोहित हो गई थी सच कितनी कोमल थी सुगना की बुर।
कजरी ने जब उसकी बुर पर अपने होंठ फिराए थे उसे अपनी जीभ ज्यादा कठोर महसूस हो रही थी सुगना का मालपुआ अद्भुत था। सरयू सिंह और कजरी दोनों उसके कोमल जिस्म को अपने हाथों और जांघों से सहला रहे थे। सुगना की तेज चल रही सांसे अब सामान्य हो चली थीं।
तभी कजरी की नजर दीवाल पर टंगी घड़ी पर गई रात के 12:00 बज चुके थे। उसने कहा..
"आज त सुगना बाबू के चुमत चाटत 12:00 बज गइल"
सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा…
"हां चली सुत जाईल जाउ राउर कुँवर जी अब थाक गईल बाड़े"
सरयू सिंह को सुगना का यह वाक्य उत्तेजित करने वाला लगा। उनके सोए हुए लंड में हरकत हुई परंतु वह तुरंत खड़ा हो पाने की स्थिति में नहीं था। अब से कुछ देर पहले ही उसने अपनी प्यारी ओखलीओं में जी भर कर अदृश्य चटनी कुटी थी जिसका रस छलक छलक कर दोनों ओखलियों से बह रहा था।
सुगना की बात सुनकर उन्होंने जल्दी बाजी में सुगना की चुचियां अपने मुंह में भर लीं और अपनी उत्तेजना को जागृत करने का प्रयास करने लगे पर अनायास ही उनके ही वीर्य का स्वाद उनके मुंह में आने लगा।
कजरी ने अपने कुंवर जी की मदद करने की सोची और उठ कर उनके जादुई लंड को अपने हाथों से सहलाने लगी। उधर सरयू सिंह सुगना की चूचियों से उर्जा लेकर अपने लंड में उत्तेजना भर रहे थे।
कजरी के सधे हुए हाथ प्रेम रस से लथपथ मुसल को खड़ा करने में लगे हुए थे। कजरी ने अब अपने होठों को भी मैदान में उतार दिया।
कमरे की मद्धम रोशनी में सुगना ने अपनी सास कजरी को कुछ नया करते हुए देख लिया। कजरी लंड के सुपाडे को मुंह में भरकर चूस रही थी।
सुगना यह देखकर आश्चर्यचकित थी। उसकी आंखें कजरी के होठों पर टिक गई। उसे दीपावली की वह रात याद आई जब उसके बाबूजी ने उसकी कोमल और प्यारी कुँवारी बुर को जी भर कर चूमा और चाटा था।
कजरी ने अकस्मात सुगना की तरफ देखा और उनकी आंखें चार हो गई कजरी ने सुगना के मनोभाव पढ़ लिए थे उसने मुस्कुराते हुए कहा
"ए सुगना तनि इकरा में ताकत भर द हम आव तानि"
कजरी बिस्तर से उठी और अपने नंगे चूतड़ मटकाती हुई बाथरूम की तरफ चल पड़ी। सरयू सिंह सुगना की चूँचियों को छोड़ चुके थे और बड़ी बेसब्री से अपनी प्यारी बहू सुगना के होठों का इंतजार अपने लंड पर कर रहे थे। सुगना मन में कई भाव लिए सरयू सिंह के लंड की तरफ बढ़ गई उसने अपने कोमल हाथों से उसे छूआ और लंड एक ही झटके में तन कर खड़ा हो गया।
जैसे जैसे वह अपने कोमल हाथ उस लंड पर फिराती गई वह तनता चला गया। सुगना ने अपने बाबूजी की तरफ देखा जो अपनी पलकों को लगभग मूंदे हुए उसे निहार रहे थे।
सुगना के हाथ चिपचिपे हो चले थे ऐसा लग रहा था जैसे सरयू सिंह ने अपना लंड मक्खन में घुसा कर बाहर निकाला हो। सुगना ने अपने छोटे होठों को गोल किया और लंड के सुपाड़े को चूम लिया। वह कुछ समय पहले अपनी सास कजरी से यह ज्ञान प्राप्त कर चुकी थी और कुछ ही देर में उसने लंड का सुपाड़ा अपने मुंह में लेकर लेमनचूस की तरह चुभालाने लगी। अपना और अपने बाबूजी का प्रेम रस पहले भी चख चुकी थी परंतु आज उसमें कजरी का भी अंश शामिल था।
उसके मुलायम हाथ लंड की जड़ तक जा रहे थे तथा अंडकोशों को सहला रहे थे। नियति ने उसे यह शिक्षा जाने कब प्रदान कर दी थी की लंड की जान अंडकोष में बसती है। उसे गर्भाधान कराने वाला लंड एक निमित्त मात्र है जबकि असली बीज उत्पादन में वह दोनों उपेक्षित अंडकोष ही लगे हुए हैं।
सुगना के होंठ गति पकड़ते गए। सुगना जब-जब लंड को अपने मुंह में गले तक लेती सरयू सिंह के मुंह से आह… निकल जाती सुगना अपनी आंखें तिरछी कर उन्हें देखती और उनके चेहरे का सुकून देख उसे और प्रेरणा मिलती।
सुगना अपने हाथों से लंड की चमड़ी को ऊपर कर सुपाड़े को उसके अंदर करने का प्रयास करती परंतु जब तक वह सफल होती तब तक बाहरी चमड़ी छलक कर वापस अपनी जगह पर पहुंच जाती और लंड का चमकदार सुपाड़ा एक बार फिर उसे आकर्षित करने लगता वह उसे कभी चूमती कभी अपने मुंह में भर लेती सुगना को भगवान ने एक अद्भुत खिलौना दे दिया था जिससे वह आज मन लगाकर खेल रही थी।
सुगना का छोटा सा मुंह सरयू सिंह के लड्डू नुमा सुपाडे से पूरी तरह भर जाता। जब वह उसके गर्दन से टकराता सुगना गूँ...गूँ ... की आवाज निकालने लगती और तुरंत ही अपना मुंह पीछे कर लेती। सरयू सिंह कभी उसके बालों को सहलाते और उसके चेहरे को दबाकर उसे लंड का और भी ज्यादा भाग मुंह में लेने को प्रेरित करते। बीच बीच मे वह उसके चूतड़ों पर हाथ फेर रहे थे जो इस समय उनके सीने के ठीक बगल में थे। सुगना के गोल नितंबों के बीच उसकी चूत का फूला हुआ छेद बेहद आकर्षक लग रहा था परंतु वह सरयू सिंह की जिह्वा से बहुत दूर था।
अपने बाबू जी का हाथ अपने चूतड़ों पर महसूस कर सुगना और गर्म हो गई। सरजू सिंह कभी-कभी अपनी मध्यमा उंगली को सुगना की बुर के बीच घुमा देते। सुगना की कमर थिरक उठती।
कजरी अब बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और उसने कमरे की लाइट अचानक ही जला दी। सुगना के मुंह में अपने कुंवर जी का लंड भरा हुआ देखकर कजरी खुश हो गई।
कजरी अपनी चुचियाँ हिलाती हुई बिस्तर पर आ गई और अपनी बहू सुगना का साथ देने लगी सरयू सिंह अपने लंड की किस्मत पर नाज कर रहे थे जिसे उनकी दोनों प्रेमिकाये मुखमैथुन देने को आतुर थीं।
अचानक कजरी को अपनी बहु सुगना की कोमल बुर याद आ गई वह कुंवर जी के लंड को अकेला छोड़ कर सुगना की जांघों के बीच आ गई और अपने प्यारे मालपुए से रस खींचने का प्रयास करने लगी। जितना आनंद सुगना अपने बाबूजी के लंड में भर रही थी उसकी सास कजरी उसकी बुर में उतनी ही उत्तेजना।
कजरी की जीभ के कमाल से सुगना को ऐसा लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी….
उसने कहा…
"सासु माँ……" कजरी ने अपना सिर उसकी जांघों के बीच से बाहर निकाला..
"अब छोड़ दीं ... हमारा हउ चाहीं…" सुगना ने शरमाते हुए अपने बाबूजी के लंड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर चूम लिया।
सरयू सिंह भी उत्तेजना के अतिरेक पर थे उन्होंने और देर नहीं की उन्होंने सुगना को अपने दोनों हाथों से उठा लिया। जब तक सरयू सिंह सुगना को बिस्तर पर लिटा पाते कजरी सुगना के ठीक नीचे आ गयी।
सरयू सिंह ने अपनी गोद में ही सुगना को पलटा दिया और उसे पेट के बल कजरी के ऊपर ही सुला दिया।
कितना मोहक दृश्य था पीठ के बल लेटी हुई कजरी अपनी प्यारी बहू को अपने ऊपर लिटाये हुए थी। कजरी और सुगना की जांघें एक दूसरे से सटी हुई स्वता ही अपना आकार ले रही थीं। सुगना की उभरती हुई चूचियां अपनी सास कजरी की चूचियों के बीच जगह बनाने का प्रयास कर रही थीं। कजरी और सुगना के ऊपरी होंठ एक दूसरे में समा गए थे। वासना का यह रूप उन दोनों के लिए नया था। उनकी कमर निचले होठों को भी सटाने का भरपूर प्रयास कर रही थी पर यह संभव नहीं हो पा रहा था। सरयू सिंह अपनी भौजी और सुगना बाबू की चूत एक साथ देख कर मदमस्त हो गए थे।
सरयू सिंह का लंड सुगना के गोल नितंबों के बीच विचरण कर रहा था वह कभी कजरी की बुर को चुमता कभी सुगना की। सरयू सिंह को अपनी प्यारी सुगना की गुदांज गांड के दर्शन हो गए। सरयू सिह का लंड फटने को हुआ उन्होंने देर न की और कजरी की बुर में अपना लंड जड़ तक ठान्स दिया। कजरी चिहुंक उठी उसने सुगना के होंठ काट लिये…
सुगना ने कराहते हुए कहा…
"सासु माँ, तनि धीरे से ….दुखाता…"
सुगना के मुंह से निकली यह कराह सरयू सिंह की उत्तेजना को आसमान पर पहुंचा देती थी उन्होंने अपना लंड कजरी की बुर के मुहाने तक लाया और उसे वापस कजरी की बुर में पूरी ताकत से डालने लगे परंतु उनका लंड कुछ ज्यादा ही बाहर आ गया था। वह कजरी की बुर से छटक कर सुगना की कोमल बुर में प्रवेश कर गया। उन्होंने अपनी कमर का दबाव कजरी के हिसाब से लगाया था जिसका सामना कोमल सुगना को करना पड़ गया। लंड एक ही बार मे उसकी नाभि को चूमने लगा। सुगना सिहर उठी….और एक बार फिर कराह उठी…
"बाबूजी….तनि धीरे से….दुखाता"
सुगना की पुकार सुनकर सरयू सिंह उसे और जोर जोर से चोदने लगे बीच-बीच में वह अपने लंड को कजरी की बुर में घुसा देते तथा सुगना की कोमल बुर पर अपनी उंगलियां फिराते रहते।
सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार देखकर कजरी समझ गई की सरयू सिंह इस दोहरे मजे में जल्दी ही स्खलित हो जाएंगे वह किसी भी हाल में अपनी बहू सुगना को गर्भवती करना चाहती थी। उसने कहा…
"रुक जायीं सुगना के नीचे आवे दी हम थक गईनी"
सरयू सिंह रुकते रुकते भी सुगना को चोदे जा रहे थे वह अपना लंड निकालने के मूड में बिल्कुल नहीं थी परंतु सुगना अब कजरी के ऊपर से उठकर नीचे बिस्तर पर पीठ के बल लेट रही थी। सरयू सिंह का लंड उस कोमल बुर से बाहर आकर थिरक रहा था। कजरी आज उसकी चमक देखकर बेहद खुश हो रही थी उधर सुगना की बुर पूरी तरह फूल चुकी थी।
सरयू सिंह सुगना की जांघों के बीच आ गए और उसके दोनों पैरों को अपने कंधे पर रखकर गचागच चोदने लगे आज वह एक नवयुवक की तरह बर्ताव कर रहे थे। कजरी सुगना की चुचियों को चूमने लगी वह धीरे-धीरे उसके सपाट पेट को चूमती हुई बुर की तरफ जा रही थी सुगना सिहर उठी।
क्या सासू मां उसकी चुद रही बुर को चूमेंगी?
कितना कामुक अनुभव होगा? वह अपनी भग्नासा पर कजरी की जीभ का इंतजार करने लगी. कजरी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी पर सुगना से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से कजरी के सिर को अपनी बुर की तरफ धकेला कजरी प्रसन्न हो गई और उसने सुगना का कोमल भग्नासा चूम लिया।
सुगना तड़प उठी…
"आईई। मा…...असही…. आह आआआ ईईईई "
वह सिसकारियां लेने लगी. उसे आज जैसी उत्तेजना कभी अनुभव नहीं हुई थी उसने अपने पैर अपने बाबूजी के कंधे से उतार लिए और अपने हाथों से पैरों को पकड़ कर पूरी तरह फैला लिया।
कजरी लगातार उसकी भग्नासा को चुमें जा रही थी बीच-बीच में उसकी जीभ सरयू सिंह के लंड से भी टकराती। सरयू सिंह सुगना को बेतहाशा चोदे जा रहे थे आज पहली बार वह सुगना को चूम नहीं पा रहे थे परंतु उसे जमकर चोद रहे थे उनके मन में आज सुगना वह जींस वाली लड़की थी जिसकी जींस उन्होंने अब से कुछ घंटे पहले अपने हाथों से खोली थी और उसके गोल चूतड़ों को सहलाया था।
सरयू सिंह की कामुक चुदाई से सुगना अभिभूत हो गई उसकी जांघें तन गई और उसकी बुर से प्रेम रस का रिसाव चालू हो गया ऐसा लग रहा था जैसी उसकी कोमल गुफा की हर दीवार से रस छलक छलक कर बह रहा हो.. जब सरयू सिंह का लंड बाहर आता छलका हुआ प्रेम रस उस गुफा में इकट्ठा हो जाता और जैसे ही सरयू सिंह अपना लंड अंदर घुसाते वह बुर् के किनारों से छलक कर बाहर आ जाता जिसे कजरी तुरंत ही आत्मसात कर लेती।
सरयू सिंह ने एक बार फिर अपने लंड को सुगना की नाभि से छुवाने की कोशिश की और स्खलन के लिए तैयार हो गए।
उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला और पहली धार कजरी के होठों पर ही मार दी जो अब तक सुगना का ही रस पी रही थी। कजरी ने तुरंत ही अपनी हथेली से लंड पकड़ा और उसे वापस सुगना की बुर में डाल दिया जहां से वह बाहर आया था।
सरयू सिंह को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह एक बार फिर सुगना को झड़ते झड़ते चोदने लगे और उन्होंने सुगना की बुर मलाई से भर दी।
कजरी भी रसपान कर तृप्त हो चुकी थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह मक्खन की हांडी में मुंह मार कर आई हो। सरयू सिंह का लंड निकलने के बाद कजरी ने सुगना के पैर ऊंचे कर दिए वह उसकी बुर में भरे हुए वीर्य को बाहर नहीं निकलने देना चाह रही थी। उसकी चूत रूपी दिये में उसके बाबूजी का तेल रूपी वीर्य लबालब भरा हुआ था जिसे कजरी और सुगना मिलकर छलकने से रोक रहे थे।
सरयू सिंह और सुगना दोनों ही इस उत्तेजक संभोग से हाफ रहे थे परंतु सुगना अपने पैर ऊंचे किए गर्भवती होने का प्रयास कर रही थी। उधर सरयू सिंह उसके इस प्रयास पर सुगना को इंजेक्शन दिलाने का अफसोस कर रहे थे।
सरयू सिंह ने कहा
"अरे सुगना बाबू के खुश रहे द गाभिन त उ कभियो हो जायीं।"
सुगना और कजरी अब मुस्कुराने लगे और सरयू सिंह भी।
कजरी ने भी मुस्कुराते हुए कहा
"हां अब ई सब में एकरो मन लागता"
सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो गया उसने कुछ बोला नहीं पर शर्म से अपनी आंखें बंद कर ली उसका यह रूप बेहद मोहक था।
सरयू सिंह और कजरी दोनों सुगना के करीब आ गए। किसने किसको किस तरह चुम्मा यह बताना कठिन था पर कजरी के होठों पर लगा मक्खन तीनों प्रेमियों के होंठो से लिपट गया….
शेष अगले भाग में।
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भाग 35
सरयू सिंह अपनी पुरी यात्रा की यादों में खोए हुए अपनी बहु सुगना की गर्म चूत को याद कर अपने लंड को सहलाए जा रहे थे और वह उनके शरीर से सारा लहू खींचकर अपना आकार बढ़ा रहा था परंतु उस पर लगाम लगाने वाली सुगना अपने घर पर अपनी मां पदमा और प्यारी बहनों सोनी और मोनी के साथ खोई हुई थी।
मायके के लोगों का साथ पाकर सुगना बेहद खुश थी। सुगना और सरयू सिंह के बीच पिछले तीन-चार वर्षों में आई नज़दीकियों के बारे में पदमा को पता चल चुका था परंतु उसे यह बात नहीं मालूम थी कि कजरी और सुगना दोनों एक साथ सरयू सिंह के सानिध्य का आनंद उठा चुकी हैं।
अब पदमा को सरयू सिंह और सुगना के बीच चल रहे संबंधों से कोई आपत्ति नहीं थी। उसे सुगना की खुशी चाहिए थी जो उसे मिल रही थी।
शाम होते-होते सरयू सिंह वापस दालान में आ गए और खानपान के पश्चात अपनी तीनों प्रेमिकाओं के साथ बैठकर वार्तालाप करने लगे सोनी और मोनी की उपस्थिति ने कामुकता पर विराम लगा दिया था तभी कजरी ने सोनी से कहा..
"सोनी बेटा सूरज बाबू के ले जाकर सुता द"
सोनी ने सूरज को अपनी गोद में लिया और सुगना के कमरे की तरफ जाने लगी मोनी उसके पीछे हो ली।
अचानक सोनी को दोपहर की घटना याद आ गई उसने मोनी से कहा
"सूरज का यह अंगूठा कितना प्यारा है सहला के देख ना"
मोनी ने सूरज के बिना नाखून के अंगूठे को देखा तो था परंतु उसे सहलाने की बात उसके दिमाग में नहीं आई थी। सोनी के कहने पर मोनी ने सूरज के अंगूठे को सह लाया और एक बार फिर सूरज की नुन्नी तन गई मोनी का ध्यान स्वतः ही उस पर चला गया।
मोनी ने खेल ही खेल में सूरज का अंगूठा कुछ ज्यादा सहला दिया और सूरज की नुंनी का आकार 4 इंच से ज्यादा बड़ा हो गया मोनी घबरा गई।
उसने अपनी आंखें उठाकर सोनी की तरफ देखा जो मुस्कुरा रही थी।
"अरे बाप रे यह क्या है?"
लगता है इसके अंगूठे का कनेक्शन उससे है सोनी ने अपनी आंखों से सूरज की नुंनी की तरफ इशारा कर दिया।
मोनी ने अपनी उंगलियों से नुंन्नी का आकार घटाने की कोशिश की पर उससे नून्नी पर कोई अंतर न पड़ा सूरज मुस्कुराते हुए अपनी दोनों मौसियों को देख रहा था।
मोनी ने हार कर सोनी से पूछा
"अब यह छोटा कैसे होगा..?
सोनी ने अपने होठों को गोल किया और मोनी को अपने अनुभव के आधार पर इशारा किया मोनी शर्म से लाल हो गई। दोनों बहनों में एक दूसरे से छेड़खानी करने की आदत थी परंतु आज सोनी ने जो करने के लिए कहा था वह बिल्कुल अलग था। मोनी की दुविधा जानकर सोनी ने फिर कहा..
"परेशान मत हो इसके अलावा दूसरा रास्ता नहीं है मैंने दोपहर में ही यह राज जाना है"
अंततः मोनी ने अपने कोमल होठों का स्पर्श सूरज की नुंनी को दिया और नुन्नी का आकार घटने लगा जैसे जैसे वह अपने होठों को उस नुन्नी पर रगड़ती गई उसका आकार छोटा होता गया।
मोनी को इस आश्चर्य पर यकीन नहीं हो रहा था उसने वही कार्य दोबारा किया और एक बार फिर उसे सूरज की नुंनी को अपने होंठों के बीच लेना पड़ा।
मोनी ने बिस्तर से उठते हुए सोनी से कहा
"जब सोनू बड़ा हो जाएगा क्या तब भी उसका अंगूठा ऐसे ही कार्य करेगा?"
दोनों बहने एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुरा दी उनकी जांघों के बीच एक अलग से सिहरन उत्पन्न हो रही थी जिसका एहसास सुखद था।
आँगन में बैठी सुगना के चेहरे पर खुशी देखकर पदमा को सारी खुशियां मिल चुकी थी। सरयू सिंह ने पद्मा को उसकी जवानी में उसे कामुक और अद्भुत संभोग का आनंद कई बार दिया था और पदमा ने भी बढ़-चढ़कर उस कामुक प्रेमालाप में सरयू सिंह का साथ दिया था।
आज सरयू सिंह उसकी पुत्री उनके जीवन में खुशियां भर रहे थे। कजरी ने पदमा के सामने ही सुगना को छेड़ दिया….
"ई त कुँवर जी पर कब्जा जमा लेले बिया दिनभर एकरे खातिर बेचैन रहे ले"
पद्मा ने सुगना को छेड़ना उचित नहीं समझा आखिर वह उसकी पुत्री थी और मां बेटी के बीच जो मर्यादा कायम थी वह उसे तार-तार नहीं करना चाहती थी फिर भी कजरी की हां में हां मिलाते हुए उसने कहा..
"हमार सुगना बाबू केहू के दिल जीत ली"
तभी सूरज के रोने की आवाज आई और सुगना सूरज को अपना दूध पिलाने चली गई।
सुगना के मन में कल रात की बात याद आ रही थी जब वह अपने मन में कामुकता का अंश लिए अपने बाबूजी को शहद चटाने के लिए निकली परंतु सरयू सिंह दवाइयों की प्रभाव की वजह से शीघ्र सो गए थे
सुगना ने आज मन ही मन सरयू सिंह को खुश करने की ठान ली थी आखिर वह उसका इंतजार पिछले तीन-चार दिनों से कर रहे थे। शायद यह इंतजार पिछले तीन-चार वर्षो में पहली बार उन्हें करना पड़ा था अन्यथा उनके लंड से वीर्य दोहन का कार्य या तो सुगना करती या कजरी।
सुगना उठ कर खड़ी हो गई थी और अपनी भरी हुई चुचियों को ब्लाउज के अंदर बंद कर रही थी तभी पदमा और कजरी दोनों कमरे में आ गयीं।
पदमा को अपनी जवानी के दिन याद आ गए। सुगना की भरी भरी और मदमस्त चूचियाँ देखकर पदमा मन ही मन बेहद प्रसन्न हो गई उसकी पुत्री वास्तव में इतनी खूबसूरत हो गई थी इसका उसे इल्म न था। कजरी की बात सही थी सुगना की भरपूर जवानी किसी भी मर्द को उसके इर्द-गिर्द घूमने पर मजबूर कर सकती थी।
कजरी ने सुगना से कहा
"तोर बाबू जी इंतजार करत बाड़े जो उनका के दूध पिया दे"
पदमा आश्चर्यचकित थी की कजरी ने कितने खुले तरीके से सुगना को सरयू सिंह को अपनी चूचियां पिलाने के लिए कह दिया था।
तभी कजरी में अपना वार्ड के पूरा किया और कहा
"हम गिलास में दूध निकाल देले बानी"
पदमा को अपनी सोच पर शर्म आ गयी वह सुगना की चूँचियों में खोई हुई थी और कजरी की बात सुनकर उसने अपने अनुसार ही मतलब निकाल लिया था।
सुगना ने अपना सिर झुकाया और मुस्कुराते हुए रसोई की तरफ बढ़ चली पदमा सुगना को जाते हुए देख रही थी भगवान ने जितनी सुंदर चूचियां सुगना को दी थी उतने ही सुंदर नितंब भी जो एक ताल में थिरक रहे थे।
सरयू सिंह अविवाहित होकर भी जिस सुख का आनंद ले रहे थे वह विवाहित मर्दो को भी प्राप्त न था।
अपनी कोठरी में लेटे सरयू सिंह अपनी आंखें बंद किये सुगना को ही याद कर रहे थे। उनका लंड खड़ा हो चुका था तभी सुगना आयी और झुक कर बोली …
"बाबूजी दूध पी ली"
अपनी ब्लाउज में कसी भारी चूँचियों को दिखाती हुयी बोली…
सरयू सिंह को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे सुगना उन्हें अपनी चुचियों से दूध पिलाने जा रही थी परंतु तभी सुगना ने अपने हाथ में लिया गिलास आगे कर दिया सरयू सिंह ने वह गिलास पकड़ा और सुगना द्वारा दिया दूध पीने लगे। सुगना की निगाह सरयू सिंह के लंड पर पड़ गई जो तन कर खड़ा था।
सुगना ने मुस्कुराते हुए पूछा…
"सुते के बेरा में ई काहे खड़ा बाड़े"
सुगना ने उत्सुकता वश सरयू सिंह के लंड को हाथ लगा दिया वैसे भी पिछले दो तीन दिनों में उसने काफी उत्तेजना का सामना किया था। राजेश ने उसके तन बदन में आग लगा दी थी परंतु उसे पता था इसकी शांति उसके बाबू जी के द्वारा ही होनी थी। उसे कजरी की बात याद आई सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह आज बाबू जी को तंग नहीं करेगी परंतु….. वह मुस्कुराते हुए उनके दूध खत्म होने का इंतजार करने लगी।
सरयू सिंह का चेहरा शांत था परंतु उनका दाग अप्रत्याशित रूप से कम था सुगना उनके दाग के घटते आकार को देखकर बेहद प्रसन्न थी।
"बाबूजी राउर दाग कितना कम हो गईल बा" सुगना ने पूरी आत्मीयता से कहा
सरयू सिंह को दाग से कोई लेना-देना नहीं था आज वह पूरी तरह वासना के आधीन थे और सुगना को अपनी बाहों में भर लेना चाहते थे वैसे भी सुगना के मायके वालों की उपस्थिति में उसे चोदने का अवसर उन्हें पहली बार प्राप्त हुआ था जाने उन्हें इसमें कौन सा आनंद मिलता यह तो वही समझ सकते थे परंतु आज उनमें उत्तेजना भरपूर थी।
दूध की मलाई उनकी मूछों में लग गई थी ठीक वैसे ही जैसे छोटे बच्चे दूध पीते समय अपने ऊपरी होठों पर दूध का कुछ भाग लगा लेते हैं सुगना उनकी मासूमियत देखकर द्रवित हो गई और उनके गालों को चुमने के लिए अपने होंठ आगे बढ़ाएं तभी शरीर सिंह ने अपना चेहरा घुमा दिया और अपनी प्यारी बहू के होंठों को अपने होंठों में भर कर चूस लिया।
सरयू सिंह की मजबूत बाहों ने सुगना को अपने आगोश में ले लिया और कुछ ही देर में सुगना सरयू सिंह के ऊपर लेट चुकी थी।
सरयू सिंह का लंड सुगना की जांघों के बीच घुसने का प्रयास कर रहा था परंतु उसमें सुगना की साड़ी और पेटीकोट को चीर पाने की हिम्मत न थी।
सरयू सिंह की ठुड्डी सुगना की चुचियों से छू रही थी सरयू सिंह ने सुगना को ऊपर की तरफ खींचा और अपना चेहरा सुगना की गोरी चूचियां पर मलने लगे।
सुगना उनके माथे के दाग को देखती हुई उनके बाल सहला रही थी और उनके माथे पर चुंबन ले रही थी। आज सरयू सिंह पर उसे बेहद प्यार आ रहा था। कैसे आज से कुछ दिनों पहले वह उसे चोदते हुए गिर पड़े थे। कुछ ही पलों के लिए सही परंतु सुगना को अपने अनाथ होने का एहसास हो गया था। उसकी आत्मा कांप उठी थी सरयू सिंह उसके लिए बेहद अहम थे नियति ने उन दोनों के बीच एक ऐसा रिश्ता बना दिया था जिसे सुगना हमेशा उनकी बाहों में रह कर निभाना चाहती थी परंतु वह सरयू सिंह को किसी भी प्रकार से कष्ट में नहीं देखना चाहती थी।
इधर सुगना सरयू सिंह से भावनात्मक रूप से आसक्त हो रही थी उधर सरयू सिह के हाथ सुगना की साड़ी और पेटीकोट को खींचते हुए कमर तक ले आए उसकी गोरी जाघें नग्न हो चुकी थी। जब उनके तने हुए लंड ने सुगना की पनियायी बुर ने को स्पर्श किया तब जाके सुगना सतर्क हुई एक पल के लिए उसने अपनी कमर पीछे कर उस लंड को आत्मसात करने की सोची तभी उसे कजरी द्वारा दी गई नसीहत याद आ गई कि अपना बाबूजी से ज्यादा मेहनत मत करवइह।
सुगना की पनियायी बुर ने लंड के सुपारे को गीला कर दिया था। लंड स्वभाविक रूप से सुगना की मखमली बुर के अंदर प्रवेश कर रहा था परंतु सुगना ने मन मसोसकर अपनी जाघें ऊपर उठा ली सरयू सिंह उसके कोमल नितंबों को हाथ लगा कर अपने लंड की तरफ खींचते रहे परंतु सुगना ने उनके इशारे को नजरअंदाज कर दिया वह बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई।
उसके पेटीकोट और साड़ी ने उसके सुंदर और सुडौल पैरों को फिर से ढक लिया।
सरयू सिंह कातर निगाहों से सुगना की तरफ देख रहे थे उन्होंने बड़े ही प्यार से कहा सुगना बाबू
"धीरे धीरे करब"
सुगना को उन पर बेहद प्यार आया वह उसे चोदने के लिए पूरी तरह आतुर थे उस ने मुस्कुराते हुए कहा..
"बाबू जी पहले ठीक हो जाई फिर हम कहां जा तनि हमरो ओकरे इंतजार बा"
सरयू सिंह को सुगना की बात सुनकर तसल्ली तो हुई परंतु उनका लंड विद्रोह पर उतारू था वह पहले भी सुगना की बुर की खुशबू पाकर बेचैन हो जाता था उसे संवेदनाएं और भावनाओं से कोई सरोकार नहीं था और आज तो उसने सुगना की बुर चूम ली थी और उसके रस से भीगा हुआ उसी के इंतजार में खड़ा था।
सरयू सिंह ने सुगना की तरफ देखा और फिर अपने लंड की ओर देखते हुए फिर कहा…
" सुगाना बाबू, इहो दु-तीन दिन से तोहरे इंतजार करा ता एकरा के कइसे समझाईं"
सुगना मुस्कुराई और बड़े ही प्यार से बोली
"इकरा के हम समझा दे तानी रहुआ खाली आंख बंद करके सुतल रही"
सरयू सिंह ने छोटे बच्चे की तरह अपनी आंखें बंद कर लीं पर शरारत वस अपनी पलकों के बीच से वह अपने तने हुए लंड को देख रहे तभी सुगना का प्यारा चेहरा उनकी आंखों के सामने आया और उनके लंड का चमकता हुआ सुपाड़ा सुगना के कोमल होंठों के बीच खो गया। जीभ का स्पर्श सुपाड़े के पिछले भाग पर लगते हैं ही लंड ने उछाल मारी और एक पल के लिए वह सुगना के मुख से बाहर आने लगा। सुगना ने अपनी कोमल हथेलियां उस लंड को वश में करने के लिए उतार दी और उसे वापस अपने मुह में अंदर कर दिया वह लॉलीपॉप की तरह अपने बाबूजी का लंड चूसने लगी।
उसकी स्वयं की बुर पूरी तरह पनीयाई हुई थी और लंड का इंतजार कर रही थी। सरयू सिंह के हाथ सुगना के नितंबों को सहलाने लगे और सुगना के नितंब धीरे-धीरे उनके सीने के करीब आने लगे। सरजू संघ ने सुगना के गोल नितंबों को अनावृत कर दिया और उनके मखमली स्पर्श का आनंद लेने लगे।
उधर सुगना अपनी पूरी कार्यकुशलता से सरयू सिह के लंड को चूस कर उन्हें आनंद देने की भरपूर प्रयास कर रही थी। उसने अब इस कला में पर्याप्त दक्षता हासिल करली थी।
सरयू सिंह उत्तेजना में पागल हो रहे थे उन्होंने सुगना के बाएं पैर को उठाया और उसे अपने सीने के दूसरी तरफ ले आए सुगना कि दोनों नितंबों उनके चेहरे के ठीक सामने थे और उसके बीच में उनकी प्यारी बहू सुगना का वह अपवित्र द्वार ( गुदाजं गांड) सरयू सिंह को आज भी पुकार रही थी.
सरयू सिंह ने सुगना के नितंबों को अपनी ओर खींचा और उनकी लंबी जीभ ने सुगना की बुर को छू लिया।
सुगना की बुर प्रेम रस से लबालब भरी हुई थी जीभ का स्पर्श पाते ही प्रेम रस को बहने का रास्ता मिल गया और वह सर्विसिंग के मुख में प्रवेश करने लगा। सरयु सिह अपनी प्यारी बहु सुगना की गुफा से निकलने वाले शहद का रसपान करने लगे उनकी नाक बार-बार सुगना की गोरी और प्यारी गांड से टकरा रही थी।
वासना के आधीन सरयू सिंह उस अपवित्र द्वार को ही स्वर्ग का द्वार समझ रहे थे उन्होंने जाने कितनी बार सुगना से उस द्वारा को भेदने की अनुमति मांगी थी परंतु सुगना ने हर बार बहाना कर दिया था।
आज एक बार फिर उन्हें सुगना से कहा बेहद आत्मीयता से कहा
"सुगना बाबु हम कितना दिन जीयब हमरा मालूम नइखे लेकिन लागता हमार ई इच्छा अधूरा रह जायी।"
सुखना ने शरयू सिंह के लंड को अपने मुंह से बाहर निकाला परंतु अपने हाथों से उसे सहलाते हुए बोली
"आइसन अशुभ बात मत बोलीं रउआ ठीक हो जायीं अबकी हाली हम खुद ही परोस देब"
सरयू सिंह की खुशी दुगनी हो गई। अपनी बहू की चूत को चाट कर वह पहले ही आनंद में आ चुके थे और सुगना का यह आश्वासन उनके तन बदन में आग लगा चुका था उन्होंने सुगना की बुर को अपने होंठों के बीच भर लिया और एक झटके में उसकी रस से भरी गगरी खाली करने का प्रयास करने लगे। तथा अपनी नाक से उसकी सुनहरी गांड पर प्रहार करने लगे सुगमा उत्तेजना में हिलोरें ले रही थी ।
सुगना अपनी बुर को उनके चेहरे पर रगड़ रही थी उसकी उत्तेजना अब चरम पर थी और वह स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार थी।
सरयू सिंह धीरे-धीरे अपने होठों को भग्नासा की तरफ ले गए और उसके उभरे हुए दाने को चूसते समय उन्होंने अपने दांतो का भी प्रयोग कर दिया सुगना की चीख निकल गई।
उसने कराहते हुए कहा
"बाबू जी तनी धीरे………""
सरयू सिंह को यह मधुर ध्वनि बेहद पसंद थी उन्होंने अपनी जीभ से उसके भग्नासे से को सहलाना जारी रखा और उनकी नाक से सुगना की बुर में छेद करने को आतुर हो गए।
सुगना सरयू सिह कि इस अधीरता का आनंद लेते हुए स्खलित होने लगी सरयू सिंह सुगना की बुर के कंपन कई दिनों बाद अपने होठों पर महसूस कर रहे थे। जितनी उत्तेजना उन्हें सुगना की बुर को चूसने से मिल रही थी उसका असर उनके लंड पर भी पड़ रहा था।
उनके लंड ने लावा उगलना शुरू कर दिया। पिछले तीन चार दिनों से उनके अंडकोष ने जितना वीर्य उत्पादन किया था वह सब सुगना की मुंह में भर देना चाहते थे परंतु सुगना का छोटा मुंह वीर्य की पूरी मात्रा को आत्मसात करने में अक्षम था। अपना मुंह भरने के बाद सुगना ने अपने होंठ हटा लिए और सरयू सिंह के लंड ने बचे हुये वीर्य की धार सुगना के चेहरे पर छोड़ दी।
सरयू सिंह और सुगना दोनों हाफ रहे थे सुगना ने अपना शरीर सरयू सिंह के ऊपर छोड़ दिया था वह अपनी सांसों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी वह अभी भी अपनी बुर को अपने बाबूजी के होठों पर रखी हुई थी और सरयू सिंह अपनी नाक उसके नितंबों से निकालकर सांस ले रहे थे।
वासना का ज्वार थमते ही सुगना सरयू सिंह के ऊपर से उठी और खड़ी हो गई उसने सरयू सिंह के लंड को वापस धोती के अंदर किया और अपने होठों से अपने बाबूजी को चुंबन दिया और उनके माथे को सहला कर बोली
"अब आराम से सूत जायीं। सरयू सिंह बेहद प्रसन्न हो गए और जाते-जाते उसकी चुचियों को सह लाते हुए बोले
"सुगना बाबू एक हाली हमार इच्छा जरूर पूरा कर दीह"
सुगना ने नजरें नीची कर ली और बोली
"राउर इच्छा जरूर पूरा होयी"
सुगना अपने कमरे में जाते हुए सरयू सिंह की उस अनोखी इच्छा के बारे में सोच रही थी. जिस आत्मीयता और अनुरोध से उन्होंने अपनी इस इच्छा को जाहिर किया था उसमें सुगना को द्रवित कर दिया था। उसने मन ही मन अपने बाबू जी की इस अनूठी और अप्राकृतिक इच्छा को पूरा करने की ठान ली थी।
रास्ते में जाते समय उसने अपने आंचल से अपने चेहरे पर लगे वीर्य को भरसक पोछने की कोशिश की और कमरे में आ गई जहां कजरी और पदमा उसका इंतजार कर रही थीं। कजरी को तो पता था परंतु पदमा को यह उम्मीद नहीं थी आज पूरे परिवार की उपस्थिति में सरयू सिंह और सुगना कोई कामुक संबंध बनाएंगे पद्मा ने सुगना से पूछा...
"दवाई खिला देलू हा?"
"हां खिला दे देनी हां।"
कजरी सुगना के चेहरे को ध्यान से देख रही थी उसकी पलकों के पास अभी भी सरयू सिंह का वीर्य लगा हुआ था। उसने अपने हाथ बढ़ाएं और उंगलियों से उसे पोछते हुए बोली लिया..
"अपना बाबूजी के परेशान ना नु कईलू हा?"
सुगना मुस्कुरा रही थी उसने एक बार फिर अपने आंचल से अपना चेहरा पोंछा और अपनी मां से लिपट कर सो गई।
अगली सुबह पदमा अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ वापस जाने की तैयारी करने लगी। मोनी का सूरज को लेकर कौतूहल अब भी कायम था उसने मौका देखकर एक बार फिर सूरज के अंगूठे को सह लाया और एक बार फिर अपने होठों का प्रयोग कर उसे शांत कर दिया। वह मुस्कुरा रही थी। नीम के पेड़ पर बैठी नियति सोनी और मोनी का भविष्य सूरज के उस अंगूठे में देख रही थी।
दिन तेजी से बीत रहे थे और सरयू सिंह धीरे धीरे स्वस्थ हो रहे थे उन्होंने खेती किसानी का काम फिर से संभाल लिया था बस अपनी बहू सुगना की क्यारी जोतने का काम बचा हुआ था। सुगना को चोदने का वह अवसर अवश्य खोजते परंतु सुगना ने अपनी कामुकता पर काबू पाना सीख लिया था । कभी-कभी वह और कजरी सरयू सिंह का हस्तमैथुन और कभी मुखमैथुन कर उनकी उत्तेजना को शांत कर देती थीं । परंतु कजरी ने संभोग करना पहले ही बंद कर दिया था और अब सुगना ने भी सरयू सिंह से उचित दूरी बना ली थी वह अपने बाबू जी को फिर उसी हाल में नहीं पहुंचाना चाहती थी। वह उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित थी।
इसी दौरान बनारस शहर में दंगे हो गए और कर्फ्यू लगने की तैयारियां हो गई। सोनू का हॉस्टल पूरी तरह बंद हो गया जो लड़के आसपास के रहने वाले थे वह सब अपने अपने घरों को चले गए परंतु दूर से आए लड़कों के लिए यह संभव न था। कुछ लड़के हॉस्टल में बचे जरूर थे परंतु यह तय था कि उन्हें अगले दो-तीन दिनों में खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना था ।
सोनू वापस गांव आ पाने की स्थिति में नहीं था अंततः उसे अपनी लाली दीदी की याद आई उसने अपने जरूरी कपड़े लिए और अपनी लाली दीदी के घर की ओर निकल पड़ा उस शहर में उसकी लाली दीदी का घर ही एकमात्र आसरा था। उसे पता था लाली देवी उसे बेहद मानती हैं और एक-दो दिन वहां गुजारने में कोई दिक्कत नहीं होगी। कुछ ही घंटों बाद अपने मन में ढेर सारे अरमान लिए सोनू लाली के दरवाजे पर खड़ा था…
शेष अगले भाग में।
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भाग 36
लाली आज सुबह से ही बेहद प्रसन्न थी आज राजेश उसके लिए एक अनोखा उपहार लाने वाला था उसे उपहार क्या है उसे इसकी जानकारी तो नहीं थी परंतु राजेश के उत्साह को देखकर लगता था निश्चय ही वह उपहार महत्वपूर्ण होगा।
वह राजेश के साथ दो-तीन दिनों पहले बितायी गई रात को याद करने लगी जब उसे अपनी बाहों में लिए राजेश ने सोनू की बात छेड़ दी.
"तुम्हें सोनू की याद नहीं आती है?"
"क्यों नहीं आती, जब भी आता है दीदी दीदी की रहता है"
"तो उसे हर छुट्टी के दिन बुला क्यों नहीं लेती. घर का खाना पीना मिल जाएगा तो उसका भी मन चंगा हो जाएगा।"
"आप ही जाकर बोलिएगा मुझे तो शर्म आती है"
राजेश ने लाली की चूचियां सहलाते हुए कहा
"भाई से कैसी शर्म"
"और जो उसने पिछली बार जो करतूत की थी उसका क्या?"
" यह तो आप ही बता सकती हो कि उसने ऐसा क्यों किया होगा"
लाली की आंखों के सामने उस दिन का सारा घटनाक्रम घूम गया सच सोनू को इस कार्य के लिए उत्तेजित करने का श्रेय लाली को ही था जिसमें सोनू जैसे किशोर की आंखों के सामने अपने कामुक बदन को परोस दिया था। और उसे अपनी पेंटी में वीर्य भरने को प्रेरित कर दिया था।
राजेश और लाली एक दूसरे सटते चले जा रहे थे राजेश का लंड लाली की नाभि में चुभने लगा था।
अपने लंड पर ध्यान जाते ही राजेश ने लाली को एक बार फिर छेड़ा..
"सोनू का देखी थी क्या…"
"क्या?" लाली ने अपने चेहरे को राजेश से दूर करते हुए पूछा।
राजेश ने प्रत्युत्तर में लाली के चेहरे को वापस अपने समीप खींच लिया और अपने लंड का दबाव बढ़ाते हुए धीरे से बोला...
"ये "
लाली शर्म से सिमट गई और बोली
"छी"
अब तक उसकी कोमल चुचियाँ राजेश के हाथों में आ चुकी थीं। धीरे-धीरे राजेश लाली के ऊपर आ रहा और था और लाली की जाँघे फैल रही थीं।
बिस्तर पर हलचल बढ़ रही थी। राजेश अपने मन में सुगना की मदमस्त जवानी को याद करते हुए लाली को चोद रहा था उधर राजेश की बातों से उत्तेजित हो चुकी लाली अपने छोटे भाई सोनू को याद कर रही थी।
वासना उफान पर थी और लाली की जाघें तन रही थी वह अपनी भावनाओं पर काबू न रख पायी और स्खलित होते हुए बुदबुदाने लगी..
"सोनू बाबू...हां एसे ही …..हा और जोर से"
राजेश लाली के मुंह से यह उद्गार सुन राजेश बेचैन हो गया और पूरी गति से उसे चोदने लगा अंत में उसने लाली का साथ देते हुए खुला
" दीदी अब ठीक बानू"
लाली को अब जाकर हकीकत का एहसास हुआ उसने अपने दोनों हाथ से अपने चेहरे को ढक लिया परंतु अपनी जांघें फैला कर स्खलन का आनंद लेने लगी।
राजेश अपनी बीवी का यह रूप देख कर पूरी तरह उत्तेजित हो गया और उसकी बुर की मखमली गहराइयों को अपने वीर्य से सिंचित करने लगा।
वासना का उफान थमते ही राजेश ने लाली को चुमते हुए बोला
"एक बार सोनू को अपना लो वह भी अब तरस रहा होगा।"
लाली ने अपनी कजरारी आंखें तरेरते हुए बोला "ठीक है जब आप रहेंगे तभी" पर अपना वाक्य पूरा करते-करते शर्म को न छुपा पायी।
"अरे मेरी जान तब तो आनंद ही आ जाएगा…"
रीमा के रोने की आवाज सुनकर लाली और राजेश का प्रेम आलाप संपन्न हुआ।
और आज कुकर की सीटी बजने से लाली अपनी मीठी यादों से बाहर आयी और उसके होठों पर मुस्कुराहट दौड़ गई।
समय तेजी से बीत रहा था। राजेश के आने का वक्त हो रहा था लाली ने स्नान किया और अपने कमरे में आकर सजने संवरने लगी।
अपने नंगे जिस्म को शीशे में देखकर एक बार लाली फिर कामुक हो उठी वह कभी अपनी चुचियाँ आगे कर कभी नितंबों को पीछे कर खुद की खूबसूरती को निहारने लगी।
अलमारी से ब्रा और पेंटी निकालते समय उसे वही पेंटी दिखाई पड़ गई जिस पर उसके भाई सोनू ने अपना वीर्य भरा था। लाली के होठों पर मुस्कान आ गई।
क्या सच में वह सोनू को अपनाएगी।
क्या अपने नंगे जिस्म को को सोनू को छूने देगी क्या वह सोनू के साथ एक ही बिस्तर पर नग्न होकर…..आह…..और …… उसके आगे आप वह सोच भी नहीं पा रही थी। उसकी नंगी जांघों के बीच उस अद्भुत गुफा पर मदन रस झांकने लगा।
उसने ब्रा और पेंटी पहनने का निर्णय त्याग दिया वैसे भी राजेश के आने के पश्चात सबसे पहले उन्हें ही लाली का साथ छोड़ना था वह बेसब्री से राजेश का इंतजार करने लगी वह मन ही मन संभोग के लिए आतुर हो उठी थी।
तभी…
दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुयी। लाली बेहद खुश हो गई उसकी उसकी मखमली बुर में गीलापन अब भी कायम था। राजेश के आने की आहट से वह मुस्कुराती हुई अपनी फ्रंट ओपन नाइटी को लपेट कर दरवाजा खोलने लगी…
दरवाजे पर सोनू खड़ा था… …..
वह उसे देखकर अवाक रह गई।
"अरे सोनू बाबू अंदर आ जा"
सोनू ने घर की दहलीज पार की और तुरंत ही अपनी लाली दीदी के चरण छुए. चरण छूने के पश्चात जैसे-जैसे सोनू उठता गया लाली के खूबसूरत पैर गदराई जांघें आकर्षक कमर और भरी-भरी चूचियां उसकी निगाहों में अपने अस्तित्व का एहसास करातीं गई। लाली स्वयं भी उत्तेजित थी।
हमेशा की तरह लाली और सोनू एक दूसरे के गले लग गए। यह पहला अवसर था जब लाली कि लगभग नंगी चुचियों ने सोनू का स्वागत किया और उसके उभरे हुए निप्पलों के सोनू के सीने में चुभ कर अपने अस्तित्व का एहसास दिलाया।
सोनू ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया आज का यह आलिंगन निश्चय ही अलग था। आज सोनू के हाथ लाली की पीठ पर घूम रहे थे। जब तक सोनू अपने हाथों को लाली की कमर तक ले जाता बाहर रिक्शा आने की आहट हुई।
लाली ने रिक्शे की आवाज को पहचान कर यह महसूस कर लिया कि वह रिक्शा उसके ही दरवाजे पर आकर रुका था। उसने ना चाहते हुए भी खुद को सोनू से अलग किया सोनू को लाली का यह व्यवहार थोड़ा अटपटा लगा। उसे उसके अरमानों पर थोड़ी चोट लगी। परंतु वह इशारा पाकर अलग हो गया। उसके लंड में भरपूर तनाव आ चुका था आज लाली दीदी का यह आलिंगन उसके जीवन का सबसे कामुक आलिंगन था परंतु लाली के इस तरह हटने से सोनू थोड़ा दुखी हो गया था।
लाली से अलग होने के पश्चात उसने अपने तने हुए लंड को अपने पैंट में सीधा किया परंतु वह अपनी इस क्रिया को लाली की नजरों से न बचा पाया लाली मुस्कुराते हुए दरवाजे के बाहर आ गई।
रिक्शे पर राजेश एक बड़ा सा कार्टून लिए नीचे उतर रहा था।
हॉल में खड़ा सोनू दरवाजे पर खड़ी लाली को देख रहा था बाहर से आ रही रोशनी लाली के पैरों के बीच से छन छन कर बाहर आ रही थी जिसकी वजह से लाली का पूरा बदन और उसके उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे एक एक्सरे फिल्म की तरह। नाइटी और शरीर एक दूसरे से पूरी तरह अलग हो चुके थे। कायनात ने लाली के कामुक बदन को सोनू की आंखों के सामने परोस दिया था। सोनू अपनी उत्तेजना में खोया हुआ था तभी लाली ने पीछे मुड़कर कहा
"सोनू बाबू अपना जीजा जी के मदद करो"
सोनू अपनी कामुक सोच (जो लाली के नितंबों का आकार नाप रही थी) से निकला और दरवाजे पर खड़ी लाली से सटते हुए बाहर आ गया।
सोनू को देख कर राजेश आश्चर्यचकित था। सोनू भाग कर राजेश के पास पहुंचा उसके चरण छूने की कोशिश की परंतु राजेश ने उसके कंधे पकड़ लिए और अपने आलिंगन में ले लिया यह आलिंगन सोनू को राजेश के दोस्त होने का एहसास दिला रहा था।
"इसमें क्या है जीजा जी"
"पहले उठाओ तो, घर चल कर दिखाते हैं"
राजेश और सोनू उस बड़े से डिब्बे को उठाए हुए कमरे की तरफ आ रहे थे लाली के मन में कौतूहल कायम था वह खुशी से उछल रही थी। इस गहमा गहमी को सुनकर लाली का पुत्र राजू और पुत्री रीमा भी हाल में आकर उस अनजानी चीज का इंतजार कर रहे थे।
कार्टून के डिब्बे का आकार लाली के आश्चर्य को कायम किये हुए था।
कार्टून के डिब्बे को चौकी पर रखकर राजेश उसे खोलने लगा उसके व्यग्र हाथों ने पैकिंग टेप को उसी प्रकार चीरते हुए अलग कर दिया जैसे वह कभी कभी संभोग के लिए आतुर होकर लाली के वस्त्र हटाया करता था।
डिब्बे के अंदर टीवी देख कर लाली खुशी से उछलने लगी उसने आनन-फानन में राजेश को गले से लगा लिया एक पल के लिए वह या भूल गयी थी कि सोनू उसी हाल में उसके पीछे ही खड़ा है।
एक साथ आई खुशियां इंसान को बेसुध कर देती हैं उसे आसपास का एहसास कुछ समय के लिए खत्म हो जाता है यही हाल लाली का था वह राजेश से पूरी तरह लिपट गई। यह आलिंगन पति पत्नी के कामुक आलिंगन की भांति था। परंतु राजेश सोनू को देख रहा था उसने लाली को खुद से अलग न किया अपितु उसे आलिंगन में लिए हुए उसकी पीठ सहलाने लगा। जाने राजेश ने अपने मन में इतनी हिम्मत कहां से लाई, उसके हाथ लाली के नितंबों तक पहुंचे और उसने सोनू के सामने ही लाली के नितंबों को अपनी हथेलियों से दबा दिया। लाली को अब जाकर एहसास हुआ और वह राजेश से अलग हो गई। परंतु लाली और राजेश की यह कामुक क्रिया सोनू के मन पर एक अमिट छाप छोड़ गयी।
सिर्फ एक नाइटी का आवरण लिए लाली की गदराई जवानी सोनू की आंखों के सामने घूम रही थी। राजेश द्वारा उसके नितंबों को इस प्रकार दबाना सोनू को उत्तेजक और कामुक लगा उसके लंड में एक बार फिर तनाव आ गया।
"अच्छा हटो पहले टीवी निकाल लेने तो दो" राजेश ने लाली को अलग करते हुए कहा।
टीवी कार्टून से बाहर आ चुका था। लाली को अब अपनी नग्नता का एहसास हो रहा था वह अब राजेश और सोनू की उपस्थिति में बिना ब्रा और पेंटी के नहीं रहना चाह रही थी। वह अपने कमरे में जाकर पहनने के लिए ब्रा और पेंटी निकालने लगी तभी राजेश ने आवाज दी एक गिलास पानी तो पिलाओ।
लाली उल्टे पैर वापस आ गई और राजेश के लिए पानी निकालने लगी। पानी पीकर राजेश टीवी लगाने के लिए अंदर कमरे में आ गया और पीछे पीछे सोनू भी कुछ ही देर में टीवी लगाने की प्रक्रिया चालू हो गई। लाली को ब्रा और पैंटी पहने का कोई मौका ही नहीं प्राप्त हो रहा था।
यह टीवी एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था जिसका एंटीना छत पर लगाया जाना था राजेश ने टीवी का एंटीना लिया और लोहे की सीढ़ियां चढ़ता हुआ छत पर जा पहुंचा। उसने छत पर निकली हुई सरियों की मदद से उस एंटीने को बांधा और तार नीचे गिराया जिसे सोनू ने खिड़की के अंदर लेते हुए टीवी के पास ला दिया।
राजेश छत से नीचे आया और उसने टीवी का तार जोड़ कर उसे ऑन किया दोनों ही बच्चे बिस्तर पर बैठे टीवी को जादू का पिटारा समझ कर देख रहे थे। टीवी ऑन होते ही स्क्रीन पर काले और सफेद बिंदुआने लगे राजेश खुश हो गया और सोनू से कहा
"मैं ऊपर जा रहा हूं जब स्क्रीन पर कुछ आएगा तो बताना"
राजेश के ऊपर जाने के बाद लाली सोनू के बगल में खड़े होकर टीवी को बड़े ध्यान से देख रही थी। जब तक राजेश टीवी की ट्यूनिंग करता लाली थाली में सिंदूर और दीया लेकर आ गई और टीवी पर स्वास्तिक का निशान बनाने लगी। इस दौरान लाली झुकी हुई थी और उसके उभरे हुए नितम्ब सोनू की आंखों के ठीक सामने थे। वह उसके नितंबों की गोलाईयों में खो गया। लाली ने आज सोनू को बेहद उत्तेजित कर दिया था। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह लाली के नितंबों को उसी प्रकार अपनी हथेलियों से मसल दे जिस प्रकार राजेश ने अब से कुछ देर पहले मसला था।
जैसे ही लाली ने टीवी को दिया दिखाना शुरू किया टीवी पर फिल्म आने लगी यह एक संयोग ही था की स्क्रीन पर एकदंत विनायक की फोटो आ रही थी।
सोनू के कहने से पहले ही राजू ने चिल्लाया पापा आ गया सोनू ने भी लाली के नितंबों से अपना ध्यान हटाया और जोर से बोलो
"जीजा जी आ गया"
राजेश ने ऊपर से ही पूछा
"एकदम साफ है कि अभी भी बिंदी बिंदी आ रहा है"
"नहीं जीजा जी एकदम साफ है आप नीचे आ जाइए"
यह एक संयोग ही था कि राजेश ने एक ही बार में टीवी एंटीना की दिशा बिल्कुल सही कर दी थी वह भागता हुआ कमरे में आया और टीवी स्क्रीन पर चल रहे गणेश वंदना को सुनकर अभीभूत होने लगा।
एक पल के लिए उसके मन में यह गुमान आया जैसे उसने ही उस टीवी का आविष्कार किया था। घर में उपस्थित सभी सदस्यों का ध्यान टीवी की तरफ ही था परंतु सोनू का ध्यान रह-रहकर लाली की तरफ ही जा रहा था। सोनू अपने हॉस्टल में कई बार टीवी देख चुका था वह साक्षात अपनी नायिका लाली दीदी और उसकी कामुकता का आनंद ले रहा था।
टीवी पर फिल्म एक फूल दो माली शुरू हो चुकी शुरू हो चुकी थी।
राजेश ने कहा खाना यहीं बिस्तर पर खा लेते हैं।
ठीक है मैं लेकर आती हूं।
लाली का ध्यान अब भी टीवी पर ही लगा था वह अपनी नग्नता भूल कर रसोई से जाकर खाना और बर्तन लाने लगी सोनू भी उसकी मदद करने रसोई में आ गया इधर राजेश बिस्तर पर चादर बिछा कर खाने का इंतजार करने लगा। लाली बिना ब्रा और पेंटी पहने कमरे में इधर से उधर आ जा रही थी और सोनू का ध्यान बार बार उसकी चुचियों और नितंबों पर जा रहा था कभी रोशनी से उसकी जाँघे स्पष्ट दिखाई पड़ती परंतु लाली अपने ही उन्माद में खोई हुई थी।
खानपान खत्म होते ही लाली लाली ने बर्तन वापस पहुंचाया और वापस कमरे में आ गई।
कमरे में रोशनी कम थी। खिड़कियों को भी राजेश ने बंद करा दिया था शायद उसे अंधेरे में टीवी देखना ज्यादा आनंददायक लग रहा था।
राजेश और सोनू दोनों दीवाल पर अपनी पीठ टिकाए बिस्तर पर बैठकर टीवी देख रहे थे दोनों बच्चे भी कौतूहल बस टीवी पर चल रहे फिल्म को देखकर कभी अचंभित होते हैं कभी उन्हें वह सब बेमानी लगता। रीमा तो बिल्कुल छोटी थी वह सब की खुशियों में शामिल हो रही थी पर शायद उसे इस टीवी की अहमियत बहुत ज्यादा समझ में नहीं आ रही थी।
लाली के कमरे का बिस्तर पीछे और साइड से दीवार से सटा हुआ था सबसे कोने में राजू की जगह थी उसके पश्चात रीमा फिर लाली और आखिरी में राजेश सोया करता था परंतु आज टीवी देखते समय राजेश लाली की जगह पर लेटा हुआ था और राजेश की जगह पर सोनू अपनी पीठ दीवार में सटाए टीवी देख रहा था।
लाली की आने के पश्चात सोनू अकस्मात ही उठ खड़ा हुआ और लाली से कहा
"दीदी आ जाइए बहुत अच्छी पिक्चर है।"
"तू कहां जा रहा है उधर खिसक"
"मैं बाथरूम से आता हूं"
"ठीक है" लाली बिस्तर पर आ चुकी थी वह स्वाभाविक रूप से सरकती हुई राजेश के बिल्कुल करीब आ चुकी थी. जब तक सोनू बाथरूम से लौटकर आता उसने राजेश के गालों पर चुंबन देकर अपनी खुशी और धन्यवाद दोनों ही प्रदान कर दिए थे. जब तक कि उसकी हथेलियां राजेश के लंड को सहला पातीं सोनू कमरे में दाखिल हो चुका था। लाली ने उसके लिए जगह बनाते हुए कहा...
"आजा सोनू"
मौसम थोड़ा सर्द था शुरुआती ठंड पड़ रही थी बिस्तर पर पड़ा हुआ पतला लिहाफ राजेश ने बच्चों को ओढादिया था और एक दूसरा लिहाफ खुद के और लाली के शरीर पर डाल लिया था। लाली ने लिहाफ खींचकर अपनी तरफ किया और उसे सोनू के पैरों पर भी डाल दिया।
कुछ ही देर में सोनू लाली के परिवार का अंग हो चुका था। लाली का पूरा परिवार उस बिस्तर पर बड़ी आसानी से समा जाता था और आज उस पर सोनू के लिए भी जगह बन गई थी। राजेश और सोनू अपनी पीठ दीवाल से सटाये टीवी देख रहे थे। लाली ने भी अपनी पीठ दीवाल से सटा ली थी परंतु उसने तकिया का सहारा लिया हुआ था।
टीवी पर चल रही फिल्म एक फूल दो माली धीरे-धीरे अपनी कहानी पकड़ रही थी जैसे जैसे किरदारों के बीच नजदीकियां बढ़ रही थी वैसे वैसे लाली का मन एकाग्र होता गया । वह मन मैन ही मन खुद को उस नायिका से जोड़ रही थी जिसके अगल बगल दो युवक लेटे हुए थे तथा उसके कामुक और भरे हुए शरीर का आनंद लेना चाहते थे।
लाली एक बार फिर उत्तेजना के आगोश में आ रही थी। लाली ही क्या राजेश और सोनू की स्थिति भी कमोवेश वही थी कमरे में अंधेरा होने की वजह से और टीवी पर ध्यान लगाए रहने की वजह से राजेश और सोनू दोनों को कभी-कभी एक दूसरे की उपस्थिति का एहसास नहीं हो रहा था।
अचानक राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया जो धीरे-धीरे उसकी जांघों तक आ गयी। उत्तेजना बस लाली ने राजेश को मना नहीं किया परंतु नाइटी के अपनी जांघों के जोड़ पर आते ही उसे अपनी नंगी बुर का एहसास हुआ और उसने राजेश के हाथ वहीं पर रोक दिए।
कुछ देर यथास्थिति कायम रही पर राजेश कहां मानने वाला था वह तो आज टीवी दिखा दिखा कर अपनी प्यारी बीवी लाली को खूब चोदना चाहता था परंतु सोनू की अकस्मात उपस्थिति ने उसके अरमानों पर पानी डाल दिया था। राजेश ने लाली का हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया और लाली अपने हाथों से उसे हल्का-हल्का सहलाने लगी।
वर्तमान स्थिति में लाली का यह स्पर्श भी राजेश के लिए काफी था। उधर सोनू अपने बगल में सोई हुई अपनी ख्वाबों की मलिका के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित हुए चले जा रहा था। टीवी पर थिरक रही नायिका उसे अपनी वाली दीदी ही दिखाई पड़ रही थी
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भाग -37
अपने तने हुए लंड को व्यवस्थित करने के लिए सोनू ने अपना दाहिना हाथ लिहाफ के अंदर किया और अपने लंड की तरफ ले गया पर इसी दौरान उसकी हथेलियों का पिछला भाग लाली की नग्न जांघों से छू गया सोनू को जैसे करंट सा लगा।
उसे यकीन ही नहीं हुआ कि उसने नारी शरीर का वह अनोखा भाग अपनी हथेलियों के पिछले भाग से छू लिया है। उसने अपने लंड को व्यवस्थित किया और वापस अपनी हथेलियां ऊपर करते समय एक बार फिर लाली की जांघों को छूने की कोशिश की। वह यह तसल्ली करना चाहता था कि क्या उसने सच लाली की नंगी जांघों को छुआ है या नाइटी के ऊपर से।
इस बार सोनू ने अपनी हथेलियों की दिशा मोड़ दी थी सोनू की हथेलियां एक बार फिर लाली की जांघों पर सट रही थी जब तक कि सोनू अपने हाथ हटा पाता लाली ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी जांघों से सटाये रखा।
लाली ने सोनू की चोरी पकड़ ली थी परंतु अब वह खुद उहाफोह में थी कि वह उसका हाथ हटाए या उसी जगह रखें रहे? लाली मन ही मन दुविधा में थी और उसी दुविधा में कुछ सेकेंड तक सोनू की हथेलियां लाली की नंगी जांघों से छू रहीं थी। धीरे-धीरे लाली का हाथ सोनू के हाथ से हट गया पर सोनू की हथेलियों ने लाली की जांघों को ना छोड़ा।
सोनू की सांसें तेज चल रही थीं। उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि लाली दीदी ने उसका हाथ क्यों पकड़ा और अब उन्होंने उसका हाथ क्यों छोड़ दिया था। जबकि वह अपने हाथ अभी भी उनकी जांघों से सटाये हुए था। सोनू ने अपनी हथेलियां थोड़ी ऊपर की परंतु उसने लाली की जांघों को न छोड़ा। 5कुछ ही देर में सोनू ने हिम्मत जुटाई और लाली की नंगी जांघों पर अपने हाथ फिराने लगा।
उधर लाली उत्तेजना में कॉप रही थी। उसने अकस्मात ही सोनू का हाथ अपनी जांघ पर महसूस कर न सिर्फ उसे पकड़ लिया था अपितु उसे उसी अवस्था में कुछ देर रखे रहा था। अब वह यह जान चुकी थी कि सोनू उसकी नंगी जांघों को सहलाना चाह रहा है उसने अपने हाथ हटा लिए परंतु सोनू की हथेलियों का स्पर्श उसे अब भी प्राप्त हो रहा था। लाली अपनी उत्तेजना को कायम रखते हुए सोनू के स्पर्श का आनंद लेने लगी ।
तभी लाली को अपनी दूसरी जांघ पर राजेश की हथेलियों का स्पर्श प्राप्त हुआ। राजेश अपने लंड को सहलाने से उत्तेजित हो चुका था और वह लाली की मखमली जाँघों और उसके बीच छुपी हुई बूर को अपनी उंगलियों से सहलाना चाह रहा था। लाली मन ही मन इस उत्तेजक घड़ी का आनंद लेने लगी परंतु उसे पता था यह ज्यादा देर नहीं चल पाएगा। सोनू भी धीरे-धीरे व्यग्र हो रहा था उसकी हथेलियां उसके वस्ति प्रदेश की तरफ बढ़ रहीं थीं। हर कुछ पलों के बाद सोनू की हथेलियां अपने लक्ष्य के बिल्कुल करीब थीं।
जीजा और साले के बीच लक्ष्य तक पहुंचने की होड़ सी लग गई थी। कमरे में पूरी तरह शांति थी सिर्फ टीवी की आवाज ही कमरे में गूंज रही थी। सभी की आंखें टीवी पर लगी हुई थीं और हाथ अपने-अपने हरकतों में व्यस्त थे। लाली अपने हाथ से राजेश का लंड सहला रही थी परंतु सोनू का लंड छुने की उसकी हिम्मत नहीं थी। वह खुद से अपनी व्यग्रता और इच्छा को सोनू पर हावी नहीं करना चाहती थी। धीरे धीरे राजेश और सोनू की हथेलियों उसकी मखमली बुर की तरफ बढ़ रहीं थीं।
अचानक लाली में राजेश का हाथ पकड़ कर उसे वापस अपनी जांघों पर रख दिया। जो अब ठीक उसकी बुर के ऊपर पहुंचने वाला था। राजेश लाली के इस व्यवहार से हतप्रभ था। आज पहली बार लाली ने उसे अपनी बुर छूने से रोक दिया था। उसने अपनी गर्दन घुमाई और लाली की तरफ देखा। परंतु लाली ने बड़े प्यार से अपनी आंखें बंद कर उसे प्यार से शांत कर दिया। राजेश को यह बात समझ में ना आयी परंतु वह अपने लंड को सहलाये जाने का आनंद लेने लगा जिसमें लाली में अपनी हथेलियों की गति बढ़ाकर नई ऊर्जा डाल दी थी।
सोनू की उंगलियां तेजी से लाली की बुर की तरफ बढ़ रही थीं। उस सुनहरी गुफा तक पहुंचने से पहले वह लाली की बुर के मखमली और मुलायम बालों से खेलने लगा। सोनू बेहद आनंदित हो रहा था। यह पहला अवसर था जब उसने किसी लड़की या युवती की बुर को इतने करीब से छुआ था। वह वासना में डूबा हुआ अपनी लाली दीदी की बुर के बिल्कुल समीप आ चुका था।
लाली से कोई प्रतिरोध न मिलने से उसका उत्साह बढ़ गया और अंततः उसकी उंगलियों में लाली की बुर् के होठों पर आए मदन रस को छू लिया। उस चिपचिपे द्रव्य को अपनी उंगलियों पर महसूस कर सोनू खुशी से पागल हो गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह आगे क्या करें। यह उसका पहला अनुभव था वह चाह रहा था कि अपनी उंगलियों को बाहर खींचे और जाकर अपनी इस खुशी का आनंद एकांत में उठाए उसने अपने हाथ बाहर खींचने की कोशिश की।
यही वह अवसर था जब लाली ने एक बार फिर उसकी कलाई पकड़ ली सोनू एक पल के लिए डर गया परंतु लाली ने उसका हाथ उसी अवस्था में कुछ देर तक पकड़े रहा। सोनू की खुशी का ठिकाना ना रहा। उसकी तर्जनी ने लाली के बुर् के दोनों होठों के बीच अपनी जगह बनानी शुरू कर दी। ऐसा लग रहा था जैसे सोनू लाली के मक्खन भरे मुंह में अपनी उंगलियां घुमा रहा हो। जैसे-जैसे सोनू की उंगलियां लाली के बुर के अंदर जाने लगी बुर की मखमली दीवारों में अपना प्रतिरोध दिखाना शुरू किया। मदन रस की फिसलन बुर की दीवारों के प्रतिरोध को कम कर रही थी परंतु सोनू की उंगलियों को उनका सुखद स्पर्श बेहद उत्तेजक लग रहा था। उसने अपनी उंगलियों को वापस निकाला और उंगलियों पर लगे मदन रस को दूसरी उंगलियों पर रगड़ कर उसकी चिकनाहट को महसूस किया।
अचानक उसे स्त्रियों की भग्नासा का ध्यान आया परंतु सोनू जैसे नौसिखिया के लिए लाली का भग्नासा खोज पाना इतना आसान न था वह अपनी उंगलियों को लाली की बुर के होठों पर इधर घुमाने लगा। उंगलियों का स्पर्श अपनी भग्नासा पर पढ़ते ही लाली ने अपनी हथेली से उसके हाथ को दबा दिया। लाली के इशारे से सोनू ने वह खूबसूरत जगह खोज ली। जब जब उसकी उंगलियां भगनासे से छूतीं लाली उसके हाथों को पकड़ लेती । कुछ ही देर में लाली की बुर की दोस्ती सोनू की उंगलियों से हो गयी। दोनों ही एक दूसरे का मर्म समझने लगे।
सोनू की उंगलियां लाली की बुर में जाते समय प्रेम रस चुराती और उसके भगनासा पर अर्पित कर देतीं। लाली अपनी दोनों जाँघे सिकोड़ रही थी और प्रेम रस को बाहर की तरफ धक्का देकर निकालने का प्रयास कर रही थी।
उधर वह राजेश के लंड को सहलाए जा रही थी। अब भी उसे सोनू के लंड को छूने की हिम्मत न थी परंतु वह इस उत्तेजना का आनंद ले रहे थी। जितनी उत्तेजना वह सोनू के स्पर्श से प्राप्त कर रही थी वह अपने पति राजेश के लंड को उसी तत्परता से सह लाए जा रही थी। राजेश भी अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था।
लाली ने अचानक अपने दोनों पैर ऊपर की तरफ मोड़े और सोनू की उंगलियां छटक कर बाहर आ गयीं। सोनू के लिए शायद यह एक इशारा था और उसकी उंगलियों को लाली की बुर से बिछड़ने का इशारा मिल चुका था। सोनू का लंड खुद भी अब वीर्य स्खलन के लिए तैयार था।
अचानक ही सोनू बिस्तर से उठा और बोला
" मैं जा रहा हूं सोने मुझे नींद आ रही है "
राजेश ने कहा
"ठीक है सोनू आराम कर लो रात को फिर टीवी देखा जाएगा "
लाली की भी इच्छा यही थी वह राजेश से चुदना चाहती थी। उसने भी सोनू को न रोका और सोनू हॉल की तरफ बढ़ गया। परंतु जाते जाते उसने अपनी उंगलियां अपनी नाक की तरफ ले गया जिस पर लाली की बुर का प्रेम रस लिपटा हुआ था। वह अपनी अधीरता न छूपा पाया और इसे लाली ने बखूबी देख लिया वह सोनू की इस हरकत से बेहद उत्तेजित हो गयी। अपने ही भाई को अपनी बुर का रस सूंघते देख लाली सिहर गई।
राजेश बिस्तर से उठा और अपने कमरे का दरवाजा ताकत लगाकर बंद कर दिया उसे दरवाजा बंद करने की प्रैक्टिस थी अन्यथा उसे बंद करना लाली के बस का न था। दरवाजा बंद होने की स्पष्ट आहट से सोनू जान चुका कि आगे कमरे में क्या होने वाला है। वह दरवाजे के पास खड़ा होकर अंदर के दृश्यों की कल्पना करने लगा और अपने कानों को दरवाजे से सटाकर सुनने का प्रयास करने लगा।
राजू और रीमा सो चुके थे। कमरे में ठंड अब कम हो चुकी थी कई लोगों की उपस्थिति से कमरा वैसे भी कुछ गर्म हो चुका था और ऊपर से लाली और राजेश दोनों ही बेहद उत्तेजित थे। एक ही झटके में राजेश ने लिहाफ हटाया और लाली की नंगी जांघों को देखकर उस पर टूट पड़ा। बाहर खड़ा सोनू अंदर के दृश्य तो नहीं देख पा रहा था परंतु उसे उसका एहसास बखूबी था।
लाली की जाँघों और बुर के आसपास इतना ढेर सारा चिपचिपा पन देखकर राजेश से रहा न गया और उसने बोला
"अरे आज तक पूरा गर्म बाड़ू सोनू के देख कर गरमाइल बाडू का?"
राजेश ने लाली को छेड़ते हुए कहा।
"आप आइए अपना काम कीजिए" लाली ने अपनी दोनों जाँघे फैला दीं।
"अच्छा एक बात तो बताओ उस समय तुमने मेरा हाथ क्यों रोका था?"
लाली मुस्कुराई और बोली
"एक ही ट्रैक पर दो रेलगाड़ी गाड़ी कैसे चलती?"
राजेश यह बात सुनकर उतावला हो गया। जो लाली ने कहा था वह उसकी सोच से परे था। वह लाली को बेतहाशा चूमने लगा और बोला
"बताओ ना किसका हाथ था?"
"आपके साले का" जब तक लाली यह बात बोलती राजेश का लंड लाली की गर्म और चिपचिपी बुर में प्रवेश कर चुका था। और लाली अपनी आंखें बंद की संभोग का आनंद लेने लगी।
जैसे-जैसे राजेश का आवेग बढ़ता गया टीवी की आवाज पर बिस्तर की धमाचौकडी की आवाज भारी होती गयी जो सोनू के सतर्क कानों को बखूबी सुनाई पड़ रही थी। उस पर से लाली की कामुक आहे सोनू को और भी स्पष्ट सुनाई पड़ रही थीं।
जाने सोनू और लाली में कोई टेलीपैथी थी या कुछ और परंतु सोनू को लाली बेहद करीब नजर आ रही थी। वह अपने ख्यालों में हैं उसे चूम रहा था और अपनी हथेलियों से अपने लंड को लगातार आगे पीछे किये जा रहा था। अचानक लाइट चली गई और टीवी एकाएक बंद हो गया। कमरे में अचानक पूरी शांति हो गई परंतु राजेश और लाली अपनी चुदाई में पूरी तरह मस्त थे उन्हें सोनू का ध्यान ना आया।
कमरे में चल रही और जांघों के टकराने की थाप स्पष्ट सुनाई पड़ रही थी। सोनू से अब और न देखा गया उसकी हथेलियों की गति अचानक बढ़ गई और वीर्य की धारा फूट पड़ी।
स्खलित होते समय उसके कानों ने अचानक ही लाली की आवाज सुनी। सोनू ….आ…...ईई आह…. हां बाबू ऐसे हीं…….…...आ आ आ ए ….……….आईईईई "
सोनू ने जो सुना वह खुद पर यकीन न कर पाया। पर उसने अपनी हथेलियों से अपने लंड को मसलना जारी रखा वह वीर्य की अंतिम बूंद को भी अपनी वाली दीदी को समर्पित करता रहा जो उसकी लाली दीदी तक तो न पहुंच पायीं परंतु उसके दरवाजे पर गिरकर एक अनुपम कलाकृति बनाती रहीं।
सोनू थके हुए कदमों से हॉल में पड़ी चौकी पर जाकर लेट गया। अब वह कमरे के अंदर चल रही धमाचौकड़ी को और सुनना नहीं चाहता था। उसकी उत्तेजना चरम को प्राप्त हो चुकी थी वह कम से कम कुछ घंटों के लिए अपनी सांसो को नियंत्रित करते हुए बिस्तर पर लेट कर इस सुखद अहसास को आत्मसात कर रहा था।
उधर लाली की कामुक कराहें थम गई थीं। परंतु राजेश उसे अभी भी चोदे जा रहा था। लाली ने उसे उत्तेजित करते हुए कहा
"आप खुश हो ना?
"क्यों किस बात पर?"
अपनी मुनिया ( राजेश कभी-कभी लाली की बुर को मुनिया कहता था) को अपने साले से साझा कर...
राजेश को लाली की यह बात आग में घी जैसी प्रतीत हुयी। वह स्वयं भी उन्ही खयालों में डूबा हुआ था और लाली कि इस बात से उससे रहा न गया और उसने अपने लंड को लाली की बुर में पूरी गहराई तक डाल कर इस स्खलित होने लगा।
उत्तेजना का ज्वार जब शांत हुआ तब एक बार फिर राजेश ने पूछा।
"सोनू के भी छुवले रहलु हा"
"अब एक ही दिन में सब कुछ लुटा दी?"
राजेश ने लाली को आगोश में ले लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोला
"वह तुम्हारा भाई है तुम ही जानो उसका ख्याल कैसे रखोगे मुझे कुछ नहीं कहना है"
"और यदि उसने भी अपनी मलाई मेरे ऊपर गिरा दी तब तो मेरी मुनिया और चूँची आपके लिए पवित्र ना रहेगी और आपके होठों का स्पर्श उसे कैसे मिलेगा"
जब तुम और तुम्हारी मुनिया उसे अपना लेंगी तो फिर मैं भी अपना लूंगा आखिर तब वह अपने परिवार का ही हिस्सा हो जाएगा।
लाली ने राजेश की बात सुन तो ली परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया ना दी। वह अपनी आंखें बंद कर राजेश को अपने नींद में होने का एहसास दिला रही थी राजेश भी पूरी तरह थक चुका था वह उसे आगोश में ले कर सो गया। परंतु राजेश ने लाली को सोनू के वीर्य को अपनाने के लिए अपनी रजामंदी दे दी थी।
लाली की अंतरात्मा मुस्कुरा रही थी। वह सोनू को अपनाने का मन बना चुकी थी…
आइए बहुत दिन हो गया सुगना के पति रतन का हालचाल ले लेते हैं आखिर इस कहानी में उसकी भूमिका भी अहम होगी।
सुगना के साथ होली मनाने के पश्चात रतन मुंबई पहुंच चुका था। हालांकि सुगना ने रतन को अब भी अपने शरीर पर हाथ लगाने नहीं दिया था परंतु फिर भी वह उससे बातें करने लगी थी। जितना प्यार वह सूरज से करता था सुगना उतनी ही आत्मीयता से उससे बातें करती थी ।
मुंबई पहुंचने के बाद रतन का मन नहीं लग रहा था अपनी पत्नी सुगना और उसके बच्चे सूरज का चेहरा उसके जेहन में बस गया था। कभी-कभी उसके मन में आता कि वह सब कुछ छोड़ कर वापस अपने गांव चला जाए परंतु यह इतना आसान नहीं था मुंबई में उसने अपनी गृहस्थी जमा ली थी।
बबीता से उसके संबंध धीरे-धीरे खराब हो रहे थे उसकी बड़ी बेटी मिंकी उसे बहुत प्यारी थी उसे ऐसा लगता था जैसे वह उसके और बबीता के प्रेम की निशानी थी परंतु छोटी बेटी चिंकी का जन्म अनायास ही हो गया था रतन और बबीता ने यह निर्धारित किया था कि वह परिवार नियोजन के साधनों का समुचित उपयोग करेंगे। वह दोनों ही दूसरी संतान के पक्षधर नहीं थे परंतु रतन के सावधानी बरतने के बावजूद बबीता गर्भवती हो गई अब राजेश को यकीन हो चला था कि निश्चय ही उसकी छोटी बेटी चिंकी बबीता और उसके मैनेजर के संबंधों की देन है। वह स्वाभाविक रूप से चिंकी को अपना पाने में असमर्थ था।
दो-तीन महीनों बाद दीपावली आने वाली थी इसी बीच सुगना का जन्मदिन आ रहा था रतन ने सुगना के लिए सुंदर साड़ियां लहंगा और चुन्नी तथा सूरज के लिए कपड़े और ढेर सारे खिलौने खरीदें और बड़े अरमानों के साथ उन्हें गत्ते के डिब्बे में बंद करने लगा। वह दीपावली से पहले सुगना को प्रभावित करना चाहता था उसने मन ही मन मुंबई छोड़ने का मन बना लिया था उसने सुगना को एक प्रेम पत्र भी लिखा जिसका मजमून इस प्रकार था।
मेरी प्यारी सुगना,
मैंने जो गलतियां की है वह क्षमा करने योग्य नहीं है फिर भी मैं तुमसे किए गए व्यवहार के प्रति दिल से क्षमा मांगता हूं तुम मेरी ब्याहता पत्नी हो यह बात समाज और गांव के सभी लोग जानते हैं मुझे यह भी पता है कि मुझसे नाराज होकर और अपने एकांकी जीवन को खुशहाल बनाने के लिए तुमने किसी अपरिचित से संभोग कर सूरज को जन्म दिया है मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है मैं सूरज को सहर्ष अपनाने के लिए तैयार हूं वैसे भी उसकी कोमल छवि मेरे दिलो दिमाग में बस गई है पिछले कुछ ही दिनों में वह मेरे बेहद करीब आ गया और मुझे अक्सर उसकी याद आती है।
मुझे पूरा विश्वास है की तुम मुझे माफ कर दोगी मैं तुम्हें पत्नी धर्म निभाने के लिए कभी नहीं कहूंगा पर तुम मुझे अपना दोस्त और साथी तो मान ही सकती हो।
मैंने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया है बबीता से मेरे रिश्ते अब खात्मे की कगार पर है मैं उसे हमेशा के लिए छोड़कर गांव वापस आना चाहता हूं यदि तुम मुझे माफ कर दोगी तो निश्चय ही आने वाली दीपावली के बाद का जीवन हम साथ साथ बिताएंगे।
तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में।
रतन ने खत को लिफाफे में भरा और सुगना तथा सूरज के लिए लाई गई सामग्रियों के साथ उसको भी पार्सल कर दिया वह बेहद खुश था उसने आखिरकार अपने दिल की बात सुगना तक पहुंचा दी थी वह खुशी खुशी और उम्मीदें लिए सुगना के जवाब की प्रतीक्षा करने लगा।
उधर लाली के घर में शाम को चुकी थी।
दोपहर में लाली को कसकर चोदने के बाद राजेश उठ चुका था। उधर अपनी दीदी की बुर को सहला कर सोनू भी अद्भुत आनंद को प्राप्त कर चुका था । तृप्ति का अहसास तीनों युवा दिलों में था सब ने अपनी अपनी आकांक्षाएं कुछ हद तक पूरी कर ली थी। शाम को लाली ने अपने पति राजेश और प्यारे भाई सोनू को पकोड़े खिलाए और घुल मिलकर बातें करने लगी। उन तीनों के ऐसे व्यवहार से ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे दोपहर में उनके बीच की दूरियां अचानक ही घट गई थीं। सिर्फ सोनू अब भी अपनी आंखें झुकाये हुए था वह अभी भी शर्मा रहा था जबकि लाली उससे खुलकर बात कर रही थी लाली ने सोनू को छेड़ते हुए कहा..
"का सोनू बाबू मन नईखे लागत का?"
"नहीं दीदी आप लोगों के यहां अच्छा नहीं लगेगा तो फिर कहां लगेगा?" सोनू ने अपना जवाब सटीक तरीके से दे दिया था.
राजेश ने कहा
"भाई मुझे तो अब ड्यूटी पर जाना पड़ेगा तुम दोनों एक दूसरे का ख्याल रखो" राजेश ने एक बार फिर सोनू को दोस्त जैसा संबोधित किया था।
"अरे आज ड्यूटी छोड़ दीजिए ना इतना अच्छा टीवी लाए हैं रात में एक साथ देखा जाएगा. क्यों बाबू सोनू अपने जीजा जी को रोको ना।"
सोनू ने भी लाली की हां में हां मिलाई परंतु राजेश को ड्यूटी पर जाना जरूरी था वैसे भी वह दोपहर में वह अपनी काम पिपासा शांत कर चुका था। उसके मन में रह रहकर यह भी ख्याल आ रहा था की आज रात लाली और सोनू एक साथ रहेंगे हो सकता है लाली अपने हुस्न के जादू से सोनू को अपने और करीब ले आए।
राजेश ने कहा
"सोनू आज तो नहीं पर कल मैं जरूर छुट्टी लूंगा और तुम्हारे साथ रहूंगा"
राजेश ड्यूटी पर जाने की तैयारी करने लगा उसने निकलते वक्त लाली को चुमते हुए कहा
"सोनू को भी अंदर ही सुला लेना"
"लाली में भी अपनी आंखें तरेरते हुए और चेहरे पर मुस्कुराहट लिए हुए कहा
" कहां ?अपने ऊपर" लाली ने राजेश के पास पहुंच कर धीरे से कहा..
राजेश मुस्कुराने लगा उसमें लाली को अपने आलिंगन में कसकर दबोचा और उसके नितंबों को पकड़ते हुए बोला
" नहीं ..नहीं... वह तो मेरे सामने ही.."
कुछ देर बाद राजेश चला गया. लाली और सोनू के लिए यह रात अलग थी. सोनू ने अपने मन में ढेर सारे सपने सजों लिए थे उसकी प्रेमिका और उसके ख्वाबों की मलिका लाली दीदी आज रात उसके साथ गुजारने वाली थी वह भी एक ही बिस्तर। पर क्या वह अपनी लाली दीदी की जांघों के बीच एक बार फिर अपनी हथेलियों को ले जा पाएगा? क्या वह उस अद्भुत द्वार को देख पाएगा ? वह मन ही मन उसे चूमने और चाटने की कल्पनाएं करने लगा जिसका सीधा असर उसके लंड पर हो रहा था।
लाली ने सोनू की पसंद का खाना बनाया और अब अपने बच्चों के साथ मिलकर खाना खाया। सोनू वास्तव में उसे अब अपने परिवार का ही हिस्सा लगने लगा था। दोनों बच्चे भी उससे घुल मिल गए थे वह बार-बार उसे मामा मामा कहते और उसकी गोद में खेलते।
सोनू दोनों बच्चों को लेकर बिस्तर पर आ गया और उनके साथ खेलने लगा। लाली का बेटा राजू कभी सोनू के ऊपर कूदता कभी उसे पटकने का प्रयास करता उस मासूम के छोटे हाँथ सोनु जैसे बलिष्ठ युवा को आसानी से गिरा देते वह बेहद खुश होता और उसकी खुशियां ही सोनू की खुशियां थीं।
लाली सोनू का यह रूप देखकर बेहद खुश थी। कुछ ही देर में लाली दूध का गिलास हुए हुए कमरे में प्रवेश की । सोनू को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे उसकी प्रेमिका नववधू के रूप में दूध का गिलास लेकर संभोग के लिए प्रस्तुत है सोनू का दिल बल्लियों उछलने लगा। उसने गटागट दूध पी लिया परंतु अपनी लाली दीदी की कलाई पकड़ने की उसकी हिम्मत ना हुई।
इधर सोनू अपने मन में ढेर सारे अरमान पाले हुए था उधर लाली को आज की रात से कोई उम्मीद न थी वह राजेश की अनुपस्थिति में अपना अगला कदम बढ़ाने की इच्छुक न थी। उसने अपनी रसोई का कार्य निपटाया और वापस आकर रीमा को अपनी चुचियां पकड़ा दीं। रीमा लाली की एक चूची से दूध पीती रही तथा दूसरी से खेलती रही सोनू यह दृश्य देखता रहा और तरसता रहा काश वह रीमा की जगह होता।
रीमा को दूध पिलाते पिलाते लाली खुद भी निद्रा देवी की आगोश में चली गई सोनू अपने अरमान लिए अकेला बिस्तर पर लेटा टीवी देख कर दादी की कल्पनाओं का आनंद ले रहा था परंतु असली आनंद उसे तभी प्राप्त हुआ जब उसकी रूखी हथेलियों ने तने हुए कोमल लंड को अपने हाथों में लेकर उसका वीर्य स्खलन कराया। एक सपनों भरी रात अचानक खत्म हो गई थी पर सोनू ना उम्मीद नहीं था उसे लाली दीदी पर और अपनी तकदीर पर भरोसा था उसने अगले दिन लाली को खुश करने की ठान ली थी.
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भाग -38
इधर लाली और सोनू करीब आ रहे थे उधर सुगना की जांघों के बीच उदासी छाई हुई थी पिछले कई दिनों से सुगना को संभोग का आनंद प्राप्त नहीं हुआ था। सरयू सिंह कभी कभी उसकी चुचियों और बुर को को चूम चाट कर सुगना को स्खलित कर देते परंतु जो आनंद संभोग में था वह मुखमैथुन से प्राप्त होना असंभव था।
सुगना की बुर तरस रही थी। उधर उसकी सास कजरी ने सरयू सिंह के स्वास्थ्य का हवाला देकर सुगना को चुदने के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया था सुगना स्वयं भी सरयू सिंह को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहती थी। उसने मन मसोसकर कजरी की बात मान ली थी।
बेचारी सुगना की जो पिछले 3- 4 वर्षों से सरयू सिह की लाडली थी और वो उसे तन मन से खुश रखते थे आज उसकी जाँघों में बीच उदासी छायी हुयी थी। सुगना अपनी चुदाई की मीठी यादों के साथ सो जाती।
बीती रात उसने बेहद कामुक कामुक स्वप्न देखा सरयू सिंह अपना तना हुआ लंड लेकर जैसे ही उसे चोदने जा रहे थे कई सारे लोग अचानक ही उसके कमरे में आ गए उसने आनन-फानन में चादर से अपने बदन को ढका और सर झुकाए अनजान लोगों को देखने लगी।
कभी उन अनजान लोगों में कभी गांव वाले दिखाई पड़ते कभी कजरी कभी राजेश कभी लाली। सुगना अपनी चोरी पकड़े जाने से परेशान थी। स्वप्न में ही उसके पसीने छूटने लगे तभी कजरी की आवाज आई.
"राउर तबीयत ठीक नईखे सुगना के छोड़ दी। जितना खुशी सुगना के देवे के रहे रहुआ दे लेनी अब उ सूरज के साथ खुशि बिया"
सुगना कजरी को रोकना चाहती थी। सुगना को चुदे हुए कई दिन बीत चुके थे वो अपने बाबू जी सरयू सिह से जी भरकर चुदना चाहती थी। उसकी जांघों के बीच अजब सी मरोड़ उत्पन्न ही रही थी इसी उहापोह में उसकी आंख खुल गई । और वह उठ कर बैठ गई।
बगल में सूरज सो रहा था वह अपने स्वप्न को याद कर मुस्कुराने लगी अपनी बुर पर ध्यान जाते ही उसने महसूस किया की उस स्वप्न ने बुर को पनिया दिया था।
सुगना को अपने बाबू जी से किया हुआ वादा भी याद आ रहा था वह उनकी इस अनूठी इच्छा को पूरा अवश्य करना चाहती थी परंतु उनके विशाल लंड को अपनी गुदाद्वार में ले पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।
अचानक सुगना को राजेश की याद आई वही उसके जीवन में आया दूसरा मर्द था जो उसके इतने करीब आया था। सुगना के दिमाग में उस रात का वृतांत घूमने लगा जब राजेश में उसकी नंगी जांघों को जी भर कर देखा था वह स्वयं भी उत्तेजना के आवेश में उसे ऐसा करने दे रही थी सुगना मुस्कुरा रही थी और ऊपर वाले से प्रार्थना कर रही थी की काश राजेश स्वयं आगे बढ़ कर उसे अपनी बाहों में ले ले।
सुगना ने नींद में जो स्वप्न देखा था वह तो जब सुगना चाहती साकार हो जाता परंतु राजेश के साथ अंतरंग होने का जो दिवास्वप्न सुगना खुली आंखों से देख रही थी वह इतना आसान नहीं था. इन दूरियों को सिर्फ और सिर्फ नियति मिटा सकती थी जो अब तक सुगना का साथ दे रही थी सुगना अपने मन में वासना की मिठास और जांघों के बीच कशिश लिए हुए एक बार फिर सो गई.
सुबह घरेलू कार्य निपटाने के पश्चात सुगना और कजरी बाहर दालान में बैठे सरसों पीट रहे थे. दूर से डुगडुगी बजने की आवाज आ रही थी जो धीरे-धीरे तीव्र होती जा रही थी कुछ ही देर में वह आवाज बिल्कुल करीब आ गई. डुगडुगी वाला मुनादी करते घूम रहा था साथ चल रहे कुछ व्यक्ति जगह-जगह पोस्टर चिपका रहे थे.
हरिद्वार से आए कुछ साधु भी उस मंडली के साथ थे सुगना भागकर दालान से बाहर निकली और गली में आ रहे झुंड को देखने लगी.
उन साधुओं ने एक पोस्टर सुगना के घर के सामने भी चिपका दिया सुगना ने ध्यान से देखा यह बनारस में कोई महोत्सव आयोजित किया जा रहा था जिसमें सभी को आमंत्रण दिया जा रहा था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह एक दिव्य आयोजन था . साधुओं ने हाथ जोड़कर सुगना और कजरी ( जो अब सुगना के पास आकर खड़ी हो गई थी ) तथा परिवार के बाकी सदस्यों को इस उत्सव में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.
कजरी ने हाथ जोड़कर साधुओं का अभिवादन किया और अपनी सहमति देकर उन्हें आगे के लिए विदा किया कुछ ही देर के लिए सही इस डुगडुगी और उस भीड़ भाड़ ने सुगना के जीवन में नयापन ला दिया था।
सुगना ने कजरी से पूछा
"मां बाबू जी से बात करीना शहर घुमला ढेर दिन भईल बा यज्ञ भी देख लीहल जाई और शहर भी घूम लिहल जायीं।"
कजरी को भी सुनना की बात रास आ गई उसे भी शहर गए कई दिन हो गए थे। सुगना का जन्मदिन भी करीब आने वाला था। उसने मुस्कुराते हुए कहा..
"कुँवर जी के रानी त हु ही हउ बतिया लीह"
सुगना मुस्कुराने लगी….
उधर लाली के घर पर
सोनू कल की यादें लिए आज सुबह से ही लाली के आगे पीछे घूम रहा था वह कभी रसोई में जाकर उसकी मदद करता कभी राजू और रीमा के साथ खेलता। लाली घरेलू कार्यों में व्यस्त थी। दोपहर बाद लाली घर के कार्यों से निवृत्त होकर हॉल में पड़ी चौकी पर बैठकर अपने बाल बना रही थी. सोनू उसे हसरत भरी निगाहों से देखे जा रहा था अचानक लाली ने पूछा
"सोनू बाबू हॉस्टल कब खुली?"
"क्यों दीदी मेरे रहने से दिक्कत हो रही है. कर्फ्यू खुलते ही मैं हॉस्टल वापस लौट जाऊंगा?"
लाली ने तो सोनू से वह प्रश्न यूं ही पूछ लिया था परंतु सोनू की आवाज में उदासी थी. लाली ने वह तुरंत ही भांप लिया और सोनू के सिर को अपनी तरफ खींच लिया सोनू उसके बगल में ही बैठा था वह झुकता चला गया और उसका सिर लाली की गोद में आ गया।
लाली उसकी बालों पर उंगलियां फिराने लगी और बेहद ही आत्मीयता से बोली
"अरे मेरा सोनू बाबू मैं तुझे जाने के लिए थोड़ी कह रही हूं मैं तो यूं ही पूछ रही थी"
सोनू के गाल अपनी लाली दीदी की मोटी और गदराई जांघों से सटने लगे। लाली ने अब से कुछ देर पहले ही स्नान किया था उसके शरीर से लक्स साबुन की खुशबू आ रही थी और लाली के जिस्म की मादक खुशबू भी उसमें शामिल हो गई थी। सोनू उस भीनी भीनी खुशबू में खो रहा था उसके खुले होंठ लाली की जांघों से सट रहे थे। सोनू का लंड सोनू के मन को पूरी तरह समझता वह लाली की बुर को सलामी देने के लिए उठ खड़ा हुआ।
अपनी मां की गोद में सोनू को देखकर रीमा ईर्ष्या से सोनू को हटाने लगी और वह स्वयं उसकी गोद में आने लगी। सोनू को मजबूरन हटना पड़ा वह मन ही मन लाली की जांघों को चूमना चाहता था परंतु रीमा के बाल हठ ने उसे ऐसा करने से रोक दिया।
तभी दरवाजे पर टन टन टन की आवाज सुनाई पड़ी यह आवाज उस गली से गुजर रहे कुल्फी वाले की थी। ऐसा लग रहा था जैसे रेलवे कॉलोनी में कर्फ्यू का कोई असर नहीं था। राजू उस आवाज को भलीभांति पहचानता था उसने कहा
"मामा चलिए कुल्फी लाते हैं"
सोनू मासूम बच्चों का आग्रह न टाल पाया और राजू को लेकर बाहर आ गया उसने राजू की पसंद की कई आइसक्रीम लीं और अपने और लाली के लिए सबसे बड़ी साइज की कुल्फी ली। यह कुल्फी बांस से पतले स्टिक पर लिपटी हुई थी और आकार में बेहद बड़ी थी एक पल के लिए सोनू को वह अपने लंड जैसी प्रतीत हुई।
सोनू उन बड़ी-बड़ी कुल्फीयों को लेकर घर में प्रवेश किया। लाली को भी उन कुल्फियों को देखकर वही एहसास हुआ जो सोनू को हुआ था सच में उनका आकार एक खड़े लंड जैसा ही दिखाई पड़ रहा था। लाली को अपनी सोच पर शर्म आयी पर उसने कुल्फी को शहर अपने हाथों में ले लिया और तुरंत ही अपने होठों को गोलकर उसका रसास्वादन करने लगी।
कुल्फी का ऊपरी आवरण तेजी से पिघल रहा था और बह कर वह निचले भाग की तरफ आ रहा था लाली अपनी जीभ निकालकर उस रस को नीचे गिरने से रोक रही थी तथा उस कुल्फी को जड़ से लेकर ऊपर तक अपनी जीभ से चाट रही थी। सोनू को यह दृश्य बेहद उत्तेजक लग रहा था वह एकटक लाली को घूरे जा रहा था। लाली को वह कुल्फी बेहद पसंद आ रही थी।
अचानक लाली को सोनू की निगाहों का अर्थ समझ आया वह शर्म से पानी पानी हो गई। उसने झेंपते हुए सोनू से कहा
"यह कुल्फी जल्दी पिघल जाती है"
"हां दीदी इसे चूस चूस कर थाने में ही मजा आता है" और सोनू ने कुल्फी का आधे से ज्यादा भाग अपनी बड़े से मुंह में ले लिया.
उसने लाली से कहां
"दीदी ऐसे खाइए"
लाली ने भी सोनू की नकल की और उसने कुल्फी का अधिकतर भाग अपने मुंह से में लेने की कोशिश की जो की उसके गले से छू गई परंतु लाली ने हार न मानी और अंततः कुल्फी का उतना ही भाग अपने मुंह में ले लिया जितना सोनू ले रहा था।
सोनू को एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे लाली ने उसके ही लंड को अपने मुंह में ले लिया हो लाली भी अब थोड़ा बेशर्म हो चली थी वह जानबूझकर कुल्फी को उसी तरह खा रही थी और सोनू को उत्तेजित कर रही थी.
लाली सोनू को हाल में छोड़ कर अपने कमरे में गई और रीमा को सुलाते सुलाते खुद भी सो गई उसने आज सोनू को खुश करने की ठान ली थी परंतु सोनू को अभी रात का इंतजार करना था.
शाम को राजेश ड्यूटी से घर आ चुका था। आते समय उसने ढाबे से खाना बनवा लिया था।
घर में प्रवेश करते ही राजेश में बड़े उत्साह से कहा
"आज टीवी पर जानी दुश्मन फिल्म आने वाली है हम सब लोग फिल्म देखेंगे मैं खाना पैक करा कर ले आया हूं"
लाली और राजू वह खाना देखकर बेहद प्रसन्न हो गए लाली को तो दोहरा फायदा था एक तो आज शाम उसे काम नहीं करना था दूसरा ढाबे का चटक खाना उसे हमेशा से पसंद था खानपान खत्म करने के बाद एक बार फिर लाली का बिस्तर सज गया. कोने में राजू था उसके पश्चात रीमा और उसके बगल में राजेश लेटा हुआ था राजेश के ठीक बगल में सोनू लेटा हुआ था और अपनी लाली दीदी का इंतजार कर रहा था। बच्चों ने अपनी रजाई ओढ़ रखी थी और सोनू राजेश और लाली की रजाई अपने पैर ढके हुए था।
टीवी पर जानी दुश्मन फिल्म शुरू हो रही थी राजेश ने आवाज दी
लाली जल्दी आओ फिल्म शुरू हो रही है।
"हां आ रही हूं"
कुछ ही देर में मदमस्त लाली नाइटी पहने हुए कमरे में आ चुकी थी सोनू ने उठ कर लाली के लिए जगह बनाई और लाली राजेश के पास जाकर सट गई सोनू लाली से कुछ दूरी बनाकर वापस बिस्तर पर बैठ गया उसने अपनी पीठ पीछे दीवार पर सटा ली थी परंतु उसके पैर उसी रजाई में थे जिसने लाली और राजेश को ढक रखा था।
कुछ ही देर में कहानी की पटकथा रंग पकड़ने लगी राजेश को इस फिल्म का कई दिनों से इंतजार था वह मन लगाकर इस फिल्म को देख रहा था उधर सोनु के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ लाली घूम रही थी कल लाली की बुर सहलाने के पश्चात वह मस्त और निर्भीक हो गया था और आज भी वह उसी सुख की तलाश में था। उसके पैर स्वतः ही लाली के पैरों को छूने लगे। लाली सोनू की मंशा भली-भांति जानती थी परंतु आज उसने कुछ और ही सोच रखा था।
लाली ने अंगड़ाई ली और बोली
"मुझे डर लग रहा है आप दोनों फिल्म देखीये मैं चली सोने"
लाली धीरे-धीरे रजाई के अंदर सरकती गई उसने अपना सर भी रजाई से ढक लिया था।
लाली करवट लेकर लेटी हुई थी उसकी पीठ सोनू की तरफ थी। लाली अपने हाथ राजेश की जांघों पर ले गई और उसके लंड को सहलाने लगी। राजेश अपनी फिल्म देखने में व्यस्त था उसने लाली का हाथ पकड़ लिया और अपने लंड से दूर कर दिया।
लाली मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसने राजेश को अपना गुस्सा दिखाते हुए करवट ली और अपनी पीठ राजेश की तरफ कर दी। राजेश ने उसकी पीठ सहला कर अपनी गलती के लिए अफसोस जाहिर किया परंतु उसकी आंखें टीवी पर टिकी रहीं।
लाली के करवट लेने से सोनू सतर्क हो गया रजाई के अंदर लाली के हाथ हिल रहे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह अपने वस्त्र ठीक कर रही हो।
लाली के शरीर की हलचल शांत होते ही उसने अपने पैर एक बार फिर लाली के पैरों से हटाने की कोशिश की जो सीधा लाली की नंगी जांघों से छू गए । सोनू ने अपने पैर वापस खींचने की कोशिश की परंतु लाली ने अपने हाथ से उसका पैर पकड़ लिया और वापस अपनी जांघों से सटा लिया। कुछ देर यथास्थिति कायम रहे धीरे-धीरे लाली के हाथ सोनू की जांघों की तरफ बढ़ चले। लाली ने समय व्यर्थ न करते हुए अपने सोनू का लंड पजामे ऊपर से भी पकड़ लिया जो अब तक पूरी तरह तन चुका था। सोनू शहर उठा उसके शरीर का सारा लहू जैसे उस लंड में आ गया था। उन्होंने स्वयं ही अपना पजामा नीचे खिसकाने की कोशिश की वह लाली की कोमल उंगलियों को अपने लंड पर महसूस करना चाहता था।
थोड़े ही प्रयासों से सोनू का कुंवारा लंड बाहर आ गया से बाहर आ गया और लाली उसे अपने कोमल हाथों से सहलाने लगी। यह कहना मुश्किल था कि लाली के साथ ज्यादा कोमल थे या सोनू का लंड।
सोनू बीच-बीच में राजेश की तरफ देख रहा था जो पूरी तरह टीवी देखने में मगन था। उधर लाली उसके लैंड के सुपारे को खोल चुकी थी। लंड की भीनी खुशबू लाली के नथुनों से टकराई लाली अपने भाई के लंड की भीनी खुशबू में खो गयी।
उसके होंठ फड़कने लगे। उसका कोमल चेहरा स्वता ही आगे बढ़ता गया और उसके होंठ सोनू के लंड से जा टकराए। सोनू को यह उम्मीद कतई न थी वह व्यग्र हो गया उसने अपने शरीर की अवस्था बदली वह लाली की तरफ थोड़ा मुड़ गया। लाली के होठों ने सोनू के लंड के सुपाड़े को अपने आगोश में ले लिया और उसकी जीभ चमड़ी के पीछे छुपे लंड के मुखड़े को सहलाने लगी
लाली एक अलग ही अनुभव ले रही थी रजाई के भीतर वह शर्म और हया त्याग कर अपने भाई सोनू का लंड चूसने लगी। जाने सोनू के बारे लंड में क्या खूबी थी लाली मदमस्त होती जा रही थी। उधर सोनू के पैर लाली की नंगी जांघों को छूते छूते जांघों के जोड़ पर आ उसकी बुर की तरफ आ गए । लाली में अपनी जाघें फैला दीं और सोनू के पंजे को अपने बुर पर आ जाने दिया। पंजों का संपर्क बुर से होते हो लाली ने अपनी जांघें सटा ली और पंजों को उसी अवस्था में लॉक कर दिया। सोनू जब भी अपने पैर हिलाता लाली की बुर सिहर उठती लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस सोनू के पंजों को गीला कर रहा था। कुछ ही देर में सोनू के पंजों और लाली के निचले होंठों के चिपचिपा पन आ चुका था जो सोनू और लाली दोनों को ही सुखद एहसास दे रहा था।
लाली सोनू के लंड को लगातार चूस रही थी। सोनू आनंद के सागर में गोते लगा रहा था। अचानक उसने अपने हाथ रजाई के अंदर किये और अपनी हथेलियों से बेहद प्यार के अपनी लाली दीदी के गालों को सहलाने लगा। वह अपने लंड को लाली के मुंह के अंदर हिलाने की कोशिश कर रहा था। सोनू को एक पल के लिए ख्याल आया कि वह रजाई हटा कर अपनी लाली दीदी की आज ही पटक कर चोद दे पर …..
लाली के दांतों ने सोनी के लंड पर संवेदना बढ़ दी। सोनू ने अपने हाथ थोड़े और नीचे किये और उलाली की चुचियों को सहला दिया। लाली ने अपनी नाइटी को पूरी तरह ऊपर कर लिया था वह उसकी चूचियों और गर्दन के बीच सिमट कर रह गई थी।
कितनी कोमल थी लाली की चूचियां वह उन्हें धीरे-धीरे सहलाने लगा। निप्पलों पर उंगलियां लगते ही हाली सिहर उठती। सोनू ने उत्सुकता वश लाली के निप्पल को अपनी उंगलियों के बीच लेकर थोड़ा दबा दिया सोनू को अंदाजा ना रहा यह दबाव जरूरत से ज्यादा था लाली चिहुँक उठी।
राजेश ने पूछा
"क्या हुआ"
लाली ने सोनू का लंड छोड़ दिया और अपने शरीर को थोड़ा हिला डूला कर अपने नींद में होने का एहसास दिलाया।
सोनू को बेहद अफसोस हो रहा था परंतु लाली ने उसे निराश ना किया कुछ ही देर में वह दोनों फिर उसी अवस्था में आ गए।
उधर सोनू के पंजे लाली की बुर को उत्तेजित किए हुए थे इधर उसकी हथेलियां चुचियों को सहला रही थीं। लाली की बुर भी स्खलन को तैयार थी कुछ ही देर में लाली अपने पैर सीधे करने लगी। वह सोनू से पहले नहीं झड़ना चाहती थी।
उसने अपने हाथों का उपयोग सोनू के अंडकोष ऊपर किया। लाली के मुलायम हाथों को अपने अंडकोष के ऊपर पाकर सोनू स्खलन के लिए तैयार हो गया।
सोनू का सब्र जवाब दे गया उसके लंड से वीर्य धार फूट पड़ी उधर लाली की बुर भी पानी छोड़ना रही थी। एक तो रजाई की गर्मी ऊपर से वासना की गर्मी लाली पसीने से भीग चुकी थी।
सोनू ने अपने वीर्य की पहली बार लाली के मुंह में ही छोड़ दी आनन-फानन में लाली ने सोनू के लंड को बाहर निकाला और उसे नीचे की दिशा दिखाई वीर्य की धारा लाली की चुचियों पर गिर गई थी वह उसे अपनी नाइटी से रोकना चाहती थी परंतु अंधेरे में कुछ समझ नहीं आ रहा था।
सोनू की हथेलियां भी उसके वीर्य से भीग रही थी वह अभी भी लाली की चुचियों को मसल रहा था वीर्य का लेप चुचियों पर स्वता ही लग रहा था ।
उधर लाली की जांघों को उत्तेजित करते-करते सोनू के पैर का अंगूठा लाली की बुर में प्रवेश कर रहा था लाली को वह छोटे और मजबूत खूटे की तरह प्रतीत हो रहा था लाली अपनी बुर को उस अंगूठे पर रगड़ रही थी और पूरी तन्मयता से झड़ रही थी...
सोनू स्खलन की उत्तेजना से कांप रहा था. जैसे ही टीवी पर विज्ञापन आया राजेश को सोनु की सुध आई उसने सोनू की तरफ देखा। सोनू के माथे पर पसीना था राजेश ने कहा
"अरे तुमको तो इतना सारा पसीना आ रहा है तबीयत ठीक है ना"
सोनू को लगा उसकी चोरी पकड़ी गई है उसने अपने हाथों से पसीना पोछा और बोला यह रजाई बहुत गर्म है।
उसने लाली को भी आवाज दी पर लाली चुपचाप बिना सांस लिए पड़ी रही।
सोनू को अब चरम सुख प्राप्त हो चुका थाउसने कहा "मुझे नींद आ रही है मैं जा रहा हूँ सोने"
राजेश आज अपनी फिल्म में कोई व्यवधान नहीं चाहता था उसने सोनू और लाली को करीब लाने की अपनी चाहत आज के लिए टाल दी थी आज वह पूरे ध्यान से अपनी पसंदीदा फिल्म देख रहा था परंतु नियत सोनू और लाली को स्वाभाविक रूप से करीब ला रही थी इस बात का इल्म उसे न था।
फिल्म की हीरोइन नीतू सिंह की बड़ी-बड़ी चूचियां राजेश के लंड में उत्साह भर रही थी पर पर्दे का भूत तुरंत ही लंड को मुरझाने पर मजबूर कर देता इसी कशमकश में एक बार फिर फिल्म शुरू हो गयी परंतु बनारस शहर ने बिजली कि अपनी समस्याएं थी। अचानक बत्ती गुल हो गई राजेश मन मसोस कर रह गया।
सोनू कमरे से बाहर जा चुका उसे बुलाने का कोई औचित्य न था राजेश उदास हो गया और रजाई में घुस कर लाली को पकड़ने लगा लाली अब तक अपनी नाइटी नीचे कर चुकी थी परंतु उसकी जांघें अभी भी नग्न थी राजेश ने अपनी जान है लाली की जांघों पर रखी और उसे अपने करीब खींचता गया लाली के चेहरे पर अभी भी पसीने की बूंदे थी।
उसने लाली के गालों पर हाथ फिराया और बोला
अरे कितना पसीना हुआ है रजाई क्यों नहीं हटा देती
"आप तो अपनी फिल्म देखिए अब लाइट गई तो मेरी याद आ रही है।" राजेश अपनी झेंप मिटाते हुए लाली के माथे को पोछने लगा। उसके हाथ लाली की चुचियों पर गए जो नाइटी के अंदर आ चुकी थीं।
"नीतू सिंह की चूचियां टीवी पर ही मिलेंगी घर पर तो मैं ही हूं"
नीतू सिंह का नाम सुनकर राजेश के लंड में एक बार फिर तनाव आ गया वह लाली को चोदना चाहता था । धीरे-धीरे वह लाली के ऊपर आने लगा। लाली प्रतिरोध कर रही थी उसकी चुचियों और होंठो पर उसके छोटे भाई सोनू का वीर्य लगा हुआ था।
जब तक वह राजेश को रोक पाती राजेश ने लाली की नाइटी को ऊपर किया और गप्प से उसकी चूची को मुंह में भर लिया…..
शेष अगले भाग में।
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भाग-39
मुंबई में रतन सुगना के जबाब का इंतजार कर रहा था हालांकि अभी तक उसके द्वारा भेजा गया सामान गांव पहुंचा भी नहीं था पर रतन की व्यग्रता बढ़ रही थी वह रोज शाम को अपने एकांत में सुगना और सूरज को याद किया करता। बबीता से उसका मोह पूरी तरह भंग हो चुका था।
अपनी बड़ी बेटी मिंकी से ज्यादा प्यार करने के कारण उसकी पत्नी बबीता का प्यार मिंकी के प्रति कम हो गया था। मिंकी भी अब अपनी मां के बर्ताव से दुखी रहती थी। रिश्तो में खटास बढ़ रही थी या यूं कहिए बढ़ चुकी थी।
इधर बनारस में आयोजित धार्मिक महोत्सव में जाने के लिए सरयू सिंह को मनाना आवश्यक था कजरी सुगना की तरफ देख रही थी और सुगना कजरी की तरफ परंतु इसकी जिम्मेदारी सुगना को ही उठानी पड़ी। कजरी और सुगना दोनों ही यह बात जानती थी कि सरयू सिंह सुगना की कही बात कभी नहीं टाल सकते थे सुगना के लहंगे में जादू आज भी कायम था मालपुए का आकर्षण और स्वाद आज भी कायम था। वैसे भी इस दौरान मालपुए का स्वाद सरयू सिंह अपने होठों से ही ले रहे थे उनका लंड सुगना के मालपुए में छेद करने को बेचैन रहता परंतु डॉक्टर और कजरी के आदेश से उनकी तमन्ना अधूरी रह जाती।
दोपहर में खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह दालान में लेटे आराम कर रहे थे। बाहर बिना मौसम बरसात हो रही थी तभी कजरी सूरज को अपनी गोद में लिए हुए आगन से निकलकर दालान में आई और सरयू सिंह से कहा..
"भीतरे चल जायीं सुगना अकेले बिया हम तनी लाली के माई से मिलकर आवतानी"
सरयू सिंह को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई हो आज कजरी ने कई दिनों बाद उन्हें सुगना के पास जाने का आमंत्रण दिया था वह भी दिन में। अन्यथा उनकी कामेच्छा की पूर्ति सामान्यतः रात को ही होती जब सुगना उन्हें दूध पिलाने आती और उसके उनके लंड से वीर्य दूह कर ले जाती। कभी-कभी वह अपने मालपुए का रस भी उन्हें चटाती परंतु उनका लंड सुगना के मालपुये के अद्भुत स्पर्श और मजबूत जकड़ के लिए तड़प रहा था ।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कजरी से कहा
"छाता ले ला भीग जइबू"
जब तक सरयू सिंह की आवाज कजरी तक पहुंचती कजरी अपना सर आंचल से ढक कर हरिया के घर की तरफ बढ़ गई।
सरयू सिंह की खुशी उनके लंड ने महसूस कर ली थी। धोती के अंदर वह सतर्क हो गया था सरयू सिंह अपनी चारपाई पर से उठे और आँगन में आकर सुगना के कमरे में दाखिल हो गए। सुगना सूरज को दूध पिला कर उठी थी और अपनी भरी-भरी चूचियां को ब्लाउज के अंदर समेट रही थी परंतु वह सरयू सिह की आंखों उन्हें बचा ना पाई।
सरयू सिंह के अकस्मात आगमन से सुगना थोड़ा घबरा गई। शायद कजरी ने सरयू सिंह को बिना सुगना से बात किए ही भेज दिया था।
सुगना की घबराहट देखकर सरयू सिह सहम गए और बड़ी मायूसी से बोले
"भौजी कहली हा कि तू बुलावत बाडू"
सुगना को कजरी की चाल समझ आ चुकी थी। सुगना कजरी की इच्छा को जानकर मुस्कुराने लगी। शायद इसीलिए कजरी दूध पी रहे सूरज को सुगना की गोद से लेकर हरिया के यहां चली गई थी। भरी दुपहरी में अपने बाबू जी के साथ एकांत पाकर उसकी कामुकता भी जाग उठी।
सरयू सिंह अब भी उसकी चुचियों पर ध्यान टिकाए हुए थे..
सुगना ने नजरें झुकाए हुए कहा..
"आजकल बाबू फिर दूध नइखे पियत"
"जायदा अब तो बड़ हो गईल बा गाय के दूध पियावा"
"तब एकरा के का करी" सुगना ने अपनी भरी-भरी चुचियों की तरफ इशारा किया उसके होठों पर मादक मुस्कान तैर रही थी सरयू सिंह ने देर न कि वह सुगना के पास आए और चौकी पर बैठकर उसे अपनी गोद में खींच लिया उनका मर्दाना चेहरा सुगना की चुचियों से सट गया। सुगना के ब्लाउज को उन्होंने अपने होठों से पकड़ा और उसे खींचते हुए नीचे ले आए सुगना की भरी भरी फूली हुई दाहिनी चूँची उछल कर बाहर आ गई।
सरयू सिंह इस दूध से भरी हुई गगरी को पकड़ने को तैयार थे उन्होंने अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना की चूँचियों का अगला भाग अपने मुंह में भर लिया सुगना के तने हुए निप्पल जब उनके गर्दन से छू गए तब जाकर उन्होंने दम लिया।
जितनी तेजी से उन्होंने सुगना की चूची अपने मुंह में भरी थी उतनी ही तेजी से उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया जिसे सुगना की जांघों ने महसूस कर लिया।
सुगना को अब आगे के दृश्य समझ आ चुके थे वह स्वयं भी मन ही मन खुद को तैयार कर चुकी थी
सरयू सिंह ने सुगना की चूची से दूध चूसना शुरू कर दिया सरयू सिंह और सूरज के चूसने में एक समानता थी दोनों ही एक ऊंची को चूसते समय दूसरी को बड़े प्यार से सहलाते थे परंतु सरयू सिंह जितना रस सूचियों से चूसते थे सुगना की बुर उतने ही मदन रस का उत्पादन भी करती थी।
कुछ ही देर में सुगना और सरयू सिंह नियति की बनाई अद्भुत काया में प्रकट हो चुके थे सुगना के रंग बिरंगे कपड़े और सरयू सिंह की श्वेत धवल धोती और कुर्ता गोबर से लीपी हुई जमीन पर उपेक्षित से पड़े थे।
सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां सुगना की बुर से सटा दी और बड़े मासूमियत से बोले
"सुगना बाबू आज हम करब ये ही में"
सुगना उन्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु वह डॉक्टर के निर्देशों और कजरी के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी उसमें सरयू सिंह के माथे को चुमते हुए कहा
"अच्छा आज आपे करब पर ये में ना बल्कि ये में" सुगना ने अपने मादक अंदाज में उनका ध्यान बुर से हटाकर अपने होठों पर कर दिया जिसे वह पूरी तरह गोल कर चुकी थी।
सरयू सिंह भली बात समझ चुके थे कि सुगना उन्हें अपनी बुर की बजाए मुंह में चोदने का निमंत्रण दे रहे थी परंतु यह कैसे होगा?
अब तक सुगना ने कभी जमीन पर बैठकर कभी घुटनों के बल आकर और कभी उनके ऊपर आकर उनके लंड को चूसा था परंतु आज वह उन्हें नया सुख देने को प्रतिबद्ध थी।
सुगना ने अपने सर और कमर के नीचे तकिया लगा कर लेट गई और सरयू सिंह को उसी अवस्था में आने का आमंत्रण दे दिया जिस अवस्था को आज सिक्सटी नाइन के नाम से जाना जाता है। सरयू सिंह का तना हुआ लंड सुगना के चेहरे के ठीक ऊपर था।और सरयू सिंह की आंखों के सामने सुगना की गोरी और मदमस्त चिपचिपी चूत थी जो खिड़की से आ रही रोशनी और उसके होंठों से रिस आए मदन रस से चमक रही थी।
तभी सुगना ने आज एक अनोखी चीज देख ली सरयू सिह के अंडकोशों के नीचे एक अलग किस्म का दाग दिखाई पड़ रहा था जो सुगना ने पहली बार देखा था यह इस विशेष अवस्था के कारण संभव हुआ था।
सुगना को अचानक सरयू सिंगर के माथे का दाग याद आ गया। यह दाग भी उसी की तरह अनोखा था परंतु दोनों दाग एक दूसरे से अलग थे।
सुगना से रहा नहीं गया उसने अपनी उंगलियों से उस दाग को छुआ और बोली
"बाबूजी ई दाग कइसन ह"
(((((शायद पाठकों को इस दाग के बारे में पता होगा जो सरयू सिंह को एक विशेष अवसर पर प्राप्त हुआ था जिसका विवरण इसी कहानी में है। मैं उम्मीद करता हूं कि जिन पाठकों ने यह कहानी पड़ी है उन्हें अवश्य इस दाग के बारे में पता होगा)))))
सरयू सिंह सुगना को इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे। वो बेवजह इस कामुक अवसर को खोना नहीं चाहते थे उन्होंने उत्तर देने की बजाय सुगना के रस भरे मालपुए को लगभग लील लिया। उनके मुंह में उत्पन्न हुए निर्वात ने सर... सर... की ध्वनि के साथ सुगना के मालपुए का रस खींच लिया। सुगना चिहुँकउठी और बोली
"बाबू जी तनी धीरे…से….".
इस शब्द ने सरयू सिंह की उत्तेजना को और जागृत कर दिया उनकी लंबी जीभ सुगना के मालपुए में छेद करने का प्रयास करने लगी सुगना का दिमाग अब भी उस दाग के रहस्य को जानना चाह्ता था परंतु उसका शरीर इन प्रश्नों के मोह जाल से मुक्त होकर सरयू सिंह की अद्भुत काम कला का आनंद लेने लगा।
खिड़की से आ रही रोशनी सुगना की बुर और गुदांज गांड पर बराबरी से पढ़ रही थी. सुगना की बुर चूसते चूसते उनका ध्यान सुगना के उस अद्भुत छेद पर चला गया वह छेद उनके लिए एकमात्र दुर्लभ चीज थी जिसका आनंद वह लेना चाहते थे परंतु किसी न किसी कारण से उस अवसर के आने में विलंब हो रहा था।
आज उस छेद को वह ठीक उसी प्रकार देख रहे थे जैसे कोई महत्वाकांक्षी पर्वतारोही हिमालय की तराइयों में खड़े होकर माउंट एवरेस्ट को लालसा भरी निगाहों से देख रहा हो।
अपने लक्ष्य को इतने करीब देखकर उनसे रहा न गया और उन्होंने सुगना को बिना बताए अपने दोनों होंठों को उस छेद पर सटा दिया सुगना ने अपनी गांड सिकोड़ ली। सरयू सिंह के होंठ उस छेद के बाहरी भाग तक ही रह गए परंतु उन्होंने हार ना मानी उनकी लंबी जीभ बाहर आई और जो कार्य उनके होंठ न कर पाए थे उनकी लंबी जीभ ने कर दिया। उन्हींने सुगना के उस सुनहरे छेद को अपने लार से भर दिया। सुगना को यह कृत्य पसंद ना आया। परंतु उसकी उत्तेजना निश्चय ही बढ़ गई थी
"बाबूजी उ में अभी ना…" उसने कामोत्तजना से कराहते हुए कहा..
संजू सिंह अपनी उत्तेजना के आवेश में बह जरूर गए थे पर वह तुरंत ही वापस अपने लक्ष्य पर आ गए और फिर मालपुए का आनंद लेने लगे। उधर उनका लंड सुगना के मुंह में प्रवेश कर चुका था और वह अपनी कमर हिला हिला कर जोर-जोर से उसे चोद रहे थे जब भी उन्हें सुगना का मासूम चेहरा ध्यान आता उनकी रफ्तार थोड़ी कम हो जाती परंतु जब वह उसकी मदमस्त बुर को देखते वह अपनी रफ्तार बढ़ा देते।
कुछ ही देर में ओखली और मूसल ने अपने अंदर उत्सर्जित रस को एक साथ बाहर कर दिया सुगना का रस तो सरयू सिंह पूरी तरह पी गए पर सुगना के बस में सरयू सिंह के वीर्य को पूरी तरह आत्मसात कर पाना संभव न था अंततः उसकी चुचियां अपने बाबूजी के वीर्य से एक बार फिर नहां गयीं। सरयू सिह उसकी चुचियों से खेलते हुए बोले..
"सुगना बेटा अब उ दिन कभी ना आई का? लागा ता हमार जन्मदिन भी एकरा बिना ही बीत जायी"
उनका कथन पूरा होते-होते उनकी हथेलियों ने सुगना की बुर को घेर लिया।
सुगना बेहद खुश थी आज उसे भी बेहद आनंद प्राप्त हुआ था उसने खुश होकर बोला
"राउर जन्मदिन में सब मनोकामना पूरा हो जायीं"
सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह का उत्साह बढ़ गया अपनी मध्यमा उंगली में सुगना की गांड को छूते हुए और सुगना की आंखों में देखते हुए पूछा..
"साच में सुगना"
सुगना ने अपनी गांड एक बार फिर सिकोड़ी और उनकी उंगली को लगभग अपने चूतड़ों में दबोच लिया और उन्हें चुमते हुए बोली...
"हां...बाबू जी"
सरयू सिंह ने सुगना को अपने आगोश में भर लिया वह उसे बेतहाशा चूमने लगें।
वासना का उफान थमते ही नीचे पड़े उपेक्षित वस्त्रों की याद उन दोनों ससुर बहू को आई और वह अपने अपने वस्त्र पहनने लगे. अपने पेटीकोट से अपनी जांघों को ढकते हुए सुगना ने पूछा
"बाबूजी दरवाजा पर पोस्टर देखनी हां"
"हां देखनी हां, ई सब साधु वाधू फालतू काम कर ले"
"बाबूजी हमरा वहां जाए के मन बा वहां मेला भी लागेला"
सरयू सिंह सुगना की निप्पल से लटकती हुयी अपने वीर्य की बूंद को अपने हाथों से पोछते हुए बोले
"अरे तू तो इतना जवान बाड़ू अपन सुख भोगा तारू तहरा साधु वाधु से का मिली?"
"ना बाबूजी तब भी, हमरा जाए के मन बा और सासु मा के भी" सुगना ने कजरी का बहु सहारा लिया।
सरयू सिंह ने सुगना को एक बार फिर अपने सीने से सटा लिया और बोले
" सुगना बाबू जवन तू कहबु उहे होइ"
सुगना खुश हो गई और उनसे अमरबेल की तरह लिपटते हुए बोली
"हम जा तानी मां के बतावे उ भी बहुत खुश होइहें"
"अरे कपड़ा त पहन ला"
सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी उसकी चूचियां अभी भी नंगी थी।
सुगना बेहद खुश थी वह अपनी विजय का उत्सव कजरी के साथ मनाना चाहती थी कपड़े पहन कर वह हरिया के घर कजरी को खुशखबरी देने चली गई सरयू सिंह सुगना के बिस्तर को ठीक कर वापस अपनी दालान में आ गए।
सुगना ने आज उनके अंडकोषों के नीचे लगा दाग देख लिया था। उन्होंने उसे उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था परंतु उन्हें पता था कि सुगना वह प्रश्न दोबारा करेगी और कभी ना कभी उन्हें उसका उत्तर देना पड़ेगा। वह किस मुंह से उसे बताएंगे? उनके चेहरे पर उलझन थी परंतु उनका शरीर वीर्य स्खलन के उपरांत थक चुका था वह प्रश्न जाल में उलझे हुए ही सो गए.
उधर हरिद्वार में राजरानी मठ के आलीशान कमरे में श्री विद्यानंद जी अपनी सफेद धोती पहने और पीला गमछा ओढ़ कर प्रवचन के लिए तैयार हो रहे थे चेहरे पर तेज और माथे पर तिलक उनकी आभा में चार चांद लगा रहा थे। लंबे-लंबे बालों पर उम्र ने अपनी सफेद धारियां छोड़ दी थी जो उनके प्रभुत्व और प्रभाव को प्रदर्शित कर रही थीं।
तभी एक शिष्य कमरे में आया और बोला महात्मा हमारे बनारस जाने की सारी तैयारियां पूर्ण हो गई अगली पूर्णमासी को हमें बनारस के लिए प्रस्थान करना है.
बनारस का नाम सुनकर श्री विद्यानंद जी अपनी यादों में खो गए कितने वर्ष हो गए थे उन्हें अपना गांव सलेमपुर छोड़े हुए. यद्यपि यह मोह माया है वह सब कुछ जानते थे परंतु फिर भी गांव की यादें उनके जेहन में आज भी जीवित थीं। सरयू भी अब 50 का हो गया होगा उसके भी तो बाल सफेद हो गए होंगे। और वो पगली ...क्या नाम था उसका…….. हां ...हां .कजरी. ... मैंने उसके साथ शायद गलत किया.
मुझे कजरी के साथ विवाह ही नहीं करना चाहिए था परंतु दबाव और मेरी नासमझी की वजह से विवाह संपन्न हो गया परंतु मैं उसको उसका हक़ न दे पाया। पता नहीं सरयू और कजरी किस हाल में होंगे? क्या उनमें भी थोड़ी बहुत धार्मिक भावनाएं जगी होंगी? क्या सरयू और कजरी इस विशाल महोत्सव में वहां आएंगे? मेरा तो नाम और पहचान दोनों बदल चुके हैं वह मुझे पहचान भी तो नहीं पाएंगे?
विद्यानंद के होठों पर एक मुस्कान आ गयी। सांसारिक रिश्तों से दूर रहने के बावजूद अपने गांव के नजदीक जाने पर उनकी पुरानी यादें ताजा हो गई थीं। उन्होंने एक लंबी गहरी सांस भरी और सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया जो उनके दरवाजे पर मक्खी के रूप में बैठी उनकी मनोदशा पड़ रही थी।
सांसारिक रिश्तो की अहमियत अभी भी विद्यानंद जी के मन में पूरी तरह दूर नहीं हुई थी उनका वैराग्य अभी पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ था। तभी उनका शिष्य कमरे में आया और बोला
" महात्मा सभी आपका इंतजार कर रहे हैं"
विद्यानंद जी ने अपने बालों को ठीक किया और पंडाल के सुसज्जित स्टेज पर विराजमान हो गए।
उधर बनारस शहर में भी गजब का उत्साह था हर तरफ इस धार्मिक महोत्सव के ही चर्चे थे देश विदेश से कई महात्मा और धर्म प्रचारक यहां अपने अनुयायियों के साथ आ रहे थे. इस उत्सव में गांव देहात से आए लोगों को रहने के लिए भी व्यवस्था की गई थी। ध्यान से देखा जाए तो यह एक उत्सव सामाजिक मिलन का उत्सव था जिसमें एक ही विचारधारा के कई लोग एक जगह पर उपस्थित रहते और एक दूसरे के साथ का आनद लेते लंगर में खाना खाते धार्मिक प्रवचन सुनते और तरह तरह के मेलों का आनंद लेते.
सुगना और कजरी ने इन उत्सव के बारे में कई बार सुना था परंतु वहां जा पाने का अवसर प्राप्त न हुआ था। सरयु सिंह की विचारधारा इस मामले में कजरी से मेल न खाती थी। इसी कारण उनके साथ 20 - 22 वर्ष बिताने के बाद भी कजरी अपनी मन की इच्छा पूरी न कर पाई थी। पर आज सुगना ने अपना मालपुरा चूसा कर सरयू सिंह को सहर्ष तैयार कर लिया था।
सुगना और सरयू सिंह एक दूसरे से पूरी तरह जुड़ चुके थे। एक दूसरे की इच्छाओं का मान रखना जैसे उनके व्यवहार में स्वतःही शामिल हो गया था।
परंतु सरयू सिंह की सुगना के गुदाद्वार में संभोग करने की वह अनूठी इच्छा एक अप्राकृतिक मांग थी। सुगना भी अपने बाबूजी की यह मांग कई वर्षों से सुनते आ रही थी। उसका तन और मन इस इस बात के लिए राजी न था परंतु उसका दिल सरयू सिंह की उस इच्छा को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध था। आयोजन के 2 दिन पूर्व ही सरयू सिंह का जन्मदिन था। सुगना उस उत्सव में जाने और अपने बाबुजी का जन्मदिन मनाने की तैयारियां करने लगी।
उधर लाली बेहद खुश थी। चाय बनाते समय वह कल रात की बात याद कर रही थी जब उसकी चूँची को गप्प से मुंह में लेने के बाद राजेश की स्वाद इंद्रियों को एक अलग ही रस से परिचय हुआ। लाली की चूचियां पसीने और सोनू के वीर्य रस से लिपटी हुई थीं। राजेश को यह मिश्रित स्वाद कुछ अटपटा सा लगा परंतु वह कामकला का माहिर खिलाड़ी था उसे वीर्य रस और उसके स्वाद की पहचान थी। तुरंत लाली की चुचियों पर वीर्य यह उसकी सोच के परे था…
अपनी उत्सुकता पर काबू रखते हुए और लाली को छेड़ते हुए कहा..
"आज तो चूची पूरी भीग गई है स्वाद भी अलग है।
लाली सब कुछ समझ रही थी उसने अपनी हथेलियों से अपने चेहरे को ढक लिया और मुस्कुरा कर बोली
"सब आपका ही किया धरा है"
"अरे मैंने क्या किया?"
"जाकर अपने साले से पूछीये"
राजेश ने लाली की आंखों में देखा और फिर उसकी चुचियों की तरफ. और चेहरे पर उत्साह लिए बोला
"तो क्या तुमने उसे अपना लिया"
लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली और चेहरे पर मुस्कान लिए हुए बोली
"हां, आपके कहने से मैंने उसे अपना लिया है"
"पर कब?"
" जब आप जानी दुश्मन देख रहे थे तब आपका साला दोस्ती कर रहा था"
राजेश लाली की दोनों चुचियों को हाथ में लिए हुए लाली को आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहा था।
लाली को राजेश के आश्चर्य से शर्म महसूस हो रही थी उसने बात बंद करते हुए कहा
"मैंने अपना लिया है अब आप भी अपना लीजिए" इतना कहते हुए लाली की जाँघे फैल गयीं। राजेश खुशी से पागल हो गया उसका मुंह एक बार फिर खुला और उसने लाली की दूसरी चूची को भी अपने मुंह में भर लिया।
लाली की स्खलित हो चुकी बुर ने भी राजेश के लंड को आसानी से रास्ता दे दिया कमरे में एक बार फिर…..
गैस से उबल कर चाय गिरने की आवाज हुई और लाली अपनी यादों से वापस आयी। चेहरे पर मुस्कुराहट लिए चाय छानकर वो हॉल में बैठकर सोनू से अगली मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो आज सुबह ही अपने बनारस में लगे कर्फ़्यू में अपनी लाली दीदी द्वारा दी सुनहरी भेंट लेकर हॉस्टल लौट चुका था।
नियति अपनी चाल चल रही थी। बनारस का महोत्सव यादगार होने वाला था….
शेष अगले भाग में।
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